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( 1 ) काश्मीर प्रवास में भी भानुचन्द्र जी से सूर्यसहस्त्र नाम सुनने के लिए ही साथ र गये थे।
दूसरा सबल प्रमाण यह भी है कि सूर्यसहस्त्रनामा की एकहस्तलिखित प्रति पूज्यपाद गुरुवर्य शास्त्र विशारद जैनाचार्य श्री विजयधर्म सूरिश्वर जी महाराज के पुस्तक भण्डार शिवपुरी में हैं । इससे स्पष्ट होता हैं कि बादशाह सूर्य के सहस्त्र नाम जरूर सुनता था और सुनाते थे भानुचन्द्र जी । सूर्यसहस्त्र नाम के लिये देखिये परिशिष्ट नं. 31
एक दिन अवसर पाकर भानुचन्द्र जी ने बादशाह से कहा कि सौराष्ट्र में जो युद्धबन्दी हैं उन्हें मुक्त कर दिया जाये । बादशाह पहले तो हिचकिचाया लेकिन बाद मैं कैदियों को मुक्त करने का आदेश दे दिया और एक फरमान लिखकर भानुचन्द्र जी को दे दिया जिसे उन्होंने गुजरात भेज दिया'
उन दिनों लाहौर किले में जैन साधुओं के निवास के लिए कोई उपाश्रय नहीं था । भानुचन्द्र उपाध्याय की भी यह इच्छा थी कि किसी प्रकार कोई उपाश्रय यहां बनाना चाहिये पर उसके लिए स्थान प्राप्त करना अति दुष्कर कार्य था क्योंकि मसलमान तथा अर्जन लोग जैन धर्म से द्वेष रखते थे। तो भी भानुचन्द्रजी ने एक युक्ति सोची और उसके अनुसार वे एक दिन अकबर को पढ़ाने देर से गये । अकबर ने इसका कारण पूछा तो भानुचन्द्रजी ने इसका उत्तर दिया कि मेरे पास कोई उपयुक्त स्थान नहीं है, जो है वह अत्यन्त सकीर्ण है और दूर है इसलिये राजदरबार में आने में कठिनाई होती हैं । अकबर ने उनके निवास के लिए अपने प्रासाद में स्थान देना चाहा पर वह भानुचन्द्र जी के अभिप्राय के अनुकुल न था, इसलिये अकबर ने उन्हें भूमि का एक टुकड़ा दे दिया। वहां स्थानीय श्रावकों ने एक उपाश्रय बनवाया तथा वहां शान्तिनाथ स्वामी का एक चैत्य भी बनवा दिया। इस बात का उल्लेख हीरविजय सूरिरास में मिलता है ।
बादशाह के पुत्र शहजादा सलीम के एक पुत्री मूल नक्षत्र के प्रथम चरण में उत्पन्न हुई थी, जो अत्यन्त अनिष्टकारी थी। इस अनिष्ट का परिहार करने के लिए सम्राट की इच्छानुसार सम्वत् 1648 (सन् 1591) चैत्र शुक्ला पूर्णिमा को
1. हीरविजयसूरिरास-पण्डित ऋषभदास, पेज 182 2. वही पेज 182 3. भानुचन्द्र जी गणिचरित-भूमिका लेखक अगरचन्द्र भंवरलाल नाहटा
पेज 30 4. हीरविजयसूरिरास पण्डित ऋषभदास श्लोक 36-37 पेज 182
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