Book Title: Mugal Samrato ki Dharmik Niti
Author(s): Nina Jain
Publisher: Kashiram Saraf Shivpuri
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( 131 )
प्रयत, प्रीति, प्रयतात्मका, प्रीतात्मा, प्रयतांनन्द, प्रीति मना, प्रकाश (500)
रूषोतम, प्रकृति, प्रकृतिस्थिति, पृथ्वी, प्रथित, प्रत्यूह. वृषाकपि, परमोदार, परपष्ठी, पुरन्दर, प्रणतात्तिहा, प्रगात्तिहर, परंतप, प्रेरेता, प्रशान्त, प्रशम, प्रतापन, तापवान पुरूष, वृषध्वज, वि, विश्वमित्र, विश्वंभर, पशुमान, विश्तापन, पिता पतामह, पतग, पतंग, पितृद्वार, पुष्कलनिभ, बषटुकार, ज्यायानजा, जामदग्यजित्, वारूचरित, जाठर, जातवेदा, छन्दवेदा, छन्दवाहन, योगी, योगीश्रवरपति, योगा'नत्य, योगतत्पन, यो (ज्यो) तिरीश, जयजीव, जीवानन्द, जीवन, जीवनाथ, जीमूत जनप्रिय, जेता-जगत् युगादिकृत, युग, युगातव, जगदाधार, जगदादिज, जगदानन्द जगदीप, जगज्जेता, चक्रसन्धु, चक्रवत्ति, चक्रपाणि, जगन्नाथ, जगत्, जगतामंतकरण, जगतापन्ति, जगत्साक्षी, जगत्पति, जगतिप्रिय, जगप्सिता, यम, जनार्दन, जनानन्द,
डकर, जनेश्वर, जंगम, जनयिता, चराचरात्मा, यशस्वी, जिष्णु, जितावरीश, 'जतवपुः, जितेन्द्रिय, चतुर्भुज, चतुर्वेद, चतुर्वेदमय, चतुर्मुख, चिद्धांगद, वासुकि, वास रेशिता, वासरस्वामी, वासरप्रभु, सरप्रिय, वासररेष्वर, वाहनातिहर, वाय, धायुवाहन, वायुरत, वाग्विशारद, वाग्मी, पारिधि (600) मारण, 'वसुदाता, बसुप्रद, वसुप्रिय, वसुमान, विसृज, बिहारी, विहगवाहन, विहं, विहंगम, विहित, 'वधिविधाता,विधेय, वदान्य, विद्वान, विद्योतन, विद्या, विद्यावान, विद्याराज, विद्युत, विद्य तमान, विदिताशय, विपाप्मा, विभावसु, विभवचसापति, विजय, विजयप्रद, 'वजेता, विचक्षण, विवस्त्रान, विविध, विविधासन, वज्जधर, व्याधिहा, व्याधिनाशन, ज्यास बंदांग, वेदपारग, वेदभृत, वेदाहवाहन, वेदवेछयं, वेदवित्, वेद्य, वेदकर्ता, वैदमुर्ति, बैदनिलय, ध्योमग विचित्ररथ, ब्योर मणि, देदवान् विगतात्मा, वीर बैश्रवण, विगाही. विश्शमन, विषण, विग्रह, विकृति, वक्ता व्यक्ताव्यक्त, विगतारिष्ट, विमल, विमलेदयुति, विमन्यु, विमी, (र्षी) विनिद्र, विराट, विराट, बहस्पति, बृहत्कीति, वृहज्जेता, बुहन्तेजा, पद, वरदाता, बुद्धिबुद्धिद, वरप्रद, वर्चस, विरूपाक्ष, विरोचन, वरीयान, वरुण, वरनायक, वर्णाध्यक्ष, वरुणेश, वरेण्य-वरेण्यवृत्त, वृत्तिधन, वृत्तिचारी, विश्वामित्र, वत्ति, वशानुग, विशाष ख) विश्मेश्वर, विश्योनि, विजित, विवित, विशोक, विशविविष्णुविश्वात्मा, विश्वभाजन, विश्वकर्ता, विनिलय, (700) विश्वरूंगी, विष्तोमुख, विशिष्ट, विशिष्टात्मा, विषाद, यज्ञ, यज्ञपति, काक, काल, कालनलति, कालहा, कालचक्र, कालचक्रप्रवर्तक, कालकर्ता, कालनाशक, कालत्रय, काम, कामारि, कामद, कामचारी, काक्षिक, कांति, कांतिप्रद, कार्यकारण, वह, कारूणिक, कार्तस्तर, काश्यपेय, काष्टा, कपि, कुबेर, कपिल, गभस्तिमान्, मभस्मिली, कपर्दी, ख, खतिलक, खदयोत, खोल्का, खग, खगसत्तम, धर्मासू, वृणी, घृणि मान, कवि, कवच कवची, गोपति, गोविन्द, गोमान, ज्ञानशोभन, ज्ञानवान, ज्ञानगम्य, ज्ञेय, केयूर, कीति, कीर्तिवर्द्धन, कीर्तिकर, केतुमान, गमनकेतु, गगनमणि, कला, कल्प, कल्पांत, कल्पांतक, कल्पातकरण, कल्पकृत, कल्पक-कल्पक, कल्पकर्ता, कल्पितांबर, कल्याण, कल्याणकर, कल्याणकृत, कपिकालज्ञ, कल्पवपु,
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