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कि "अकबर दिन में न केवल पांच बार नमाज ही पढ़ता था, बल्कि राज्य धन-दौलत और मान-प्रतिष्ठा प्रदान करने की भगवान की अपार अनु. अम्पा के प्रति कृतज्ञता प्रकट करने के निमित्त प्रतिदिन प्रातःकाल बर का चिन्तन करता था और "या-ह-या-हादी" का ठीक मुसलमानी ढंग से उच्चारण करता था।
___ कहने का तात्पर्य है कि व्यक्तिगत जीवन में और शासक के रूप में इस समय तक वह एक सच्चा मुसलमान ही रहा मस्जिदों का निर्माण कराया, हिन्दुओं से जजिया तथा तीर्थयात्रा कर भी वसूल किये । यद्यपि इस अवधि में अकबर मध्य युग के सच्चे मुसलमान सम्राट का प्रतिरूप था, किन्तु वह कट्टर और धर्मान्ध नहीं था और न ही उसने हिन्दुओं पर धार्मिक अत्याचार किये क्योंकि धार्मिक कट्टरता के लिए तो वह स्वभावतः प्रतिकूल था। सन् 1561 तक तो उसने कोई धामिक सुधार नहीं किये क्योंकि शासन प्रबन्ध पूर्ण रूप से बरामखां के अधीन था इसलिये वह धार्मिक कार्य करने के लिए स्वतन्त्र नहीं था जैसे-जैसे उसके साम्राज्य का विस्तार होता गया उसका धार्मिक विश्वास बढ़ता गया । शेख सलीम चिश्ती के कारण वह प्रायः फतेहपुर में रहता था। महलों से अलग पास ही एक पुरानी सी कोठी थी, उसके पास पत्थर की एक सिल पड़ी पो, वहां तारों की छांव में अकेला ही बैठा रहता था, प्रभात का समय ईश्वराराधन में लगता था, बहुत ही नम्रता और दीनता से जप करता था तथा ईश्वर से दुआएं मांगता था। लोगों के साथ भी प्रायः धार्मिकता और आस्तिकता की ही बातें करता था। यहीं से उसकी धार्मिक नीति का विकास प्रारम्भ होता है।
धार्मिक नीति के विकास का क्रमिक वर्णन अकबर सत्य धर्म को जानने का इच्छुक था और सभी जातियों में भेदभाव मिटाना चाहता था इसके लिए उसने जो उदार धार्मिक नीति अपनाई उसका क्रमिक विकास इस प्रकार है1. राजपूत कन्याओं से विवाह
सन् 1562 के जनवरी महीने में अकबर ख्वाजा मुइनुद्दीन की यात्रा के लिए अजमेर गया। अजमेर के राजा भारमल की पुत्री से विवाह किया।
1. His majesty spent whole nights in praising god, he conti
nually occupied himself in pronouncing Ya-hawa and Ya-hadi in which he was well versed. अलबदायूनी डब्ल्यू. एच. लॉ द्वारा अनुदित भाग 2 पृष्ठ 203
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