Book Title: Mook Mati Author(s): Vidyasagar Acharya Publisher: Bharatiya Gyanpith View full book textPage 2
________________ प्रस्तवन 'मूक माटी' महाकान्य का सृजन आधुनिक भारतीय साहित्य की एक उल्लेखनीय उपलब्धि है। सबसे पहली बात तो यह है कि माटी जैसी ऑकंच धीमा और ... . तुळ वस्तु को महाकाव्य का विषय बनाने की कल्पना ही नितान्त अनोखी है। दूसरी बात यह कि माटी की तुच्छता से चरम भव्यता के दर्शन करके उसकी विशुद्धता के उपक्रम को मुक्ति की मंगल-बात्रा के रूपक में ढालना कविता को अध्यात्म के साथ अ-भेद की स्थिति में पहुँचाना है। इसीलिए आचार्यश्री विद्यासागर की कृति 'मूक माटी' मात्र कवि-कम नहीं है, यह एक दार्शनिक सन्त की आत्मा का संगीत है-सन्त जो साधना के जीवन्त प्रतिरूप हैं और साधना जो आत्म-चिद्धि की मंजिलों पर सावधानी से पग धरती हुई, नोकमंगल को साधती है। ये सन्त तपस्या ले अर्जित जीवन-दर्शन को अनुभूति में रचा-पचा कर सबके हृदय में गुजारत कर देना चाहते हैं। निर्मल-वाणी और सार्थक सम्प्रेषण का जो योग इनके प्रवचनों में प्रस्फुटित होता है-उसमें मुक्त छन्द का प्रवाह और काव्यानुभूति को अन्तरंग लय समन्वित करके आचार्यश्री ने इसे काव्य का रूप दिया हैं। प्रारम्भ में ही यह प्रश्न उठाना अप्रासंगिक न होगा कि 'मूक माटी' को पहाकाव्य कहें या खण्ड-काय या मात्र काथ्य। इसे महाकाव्य की परम्परागत परिभाषा के चौखटे में जड़ना सम्भव नहीं हैं, किन्तु यदि विचार करें कि चार खण्डों में विभाजित या काव्य लगभग 500 पृष्ठों में समाहित है, तो परिमाण की दृष्टि से यह महाकाव्य की सीमाओं को छूता है। पहला पृष्ठ खोलते ही महाकाव्य के अनुरूप प्राकृतिक परिदृश्य मुखर हो जाता है : सीमातीत शून्य में / नीलिमा बिछाई, और "इधर नीचे / निरी नीरवता छाई।" भानु की निद्रा टूट तो गई है परन्तु अभी वह लेटा है। माँ की मार्दव-गोद में... प्राची के अधरों पर / मन्द मधुरिम मुस्कान है पृष्ठ ।। पाँचPage Navigation
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