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मगलमन्त्र णमोकार . एक अनुचिन्तन १३ सापेक्षध्वनि ग्राहक, सहयोग या सयोग-द्वारा विलक्षण कार्यसाधक, आत्मोन्नतिसे शून्य, रुद्रबीजोका जनक, भयकर और वीभत्स कार्योके लिए प्रयुक्त होनेपर कार्यसाधक।
स= सर्व समीहित साधक, सभी प्रकारके बीजोमे प्रयोग योग्य, शान्तिके लिए परम आवश्यक, पौष्टिक कार्योंके लिए परम उपयोगी, ज्ञानावरणीय-दर्शनावरणीय आदि कोका विनाशक, क्लींबीजका सहयोगी, कामवीजका उत्पादक, आत्मसूचक और दर्शक ।
ह - शान्ति, पौष्टिक और मागलिक कार्योका उत्पादक, साधनाके लिए परमोपयोगी, स्वतन्त्र और सहयोगापेक्षी, लक्ष्मीकी उत्पत्तिमे साधक, सन्तान प्राप्तिके लिए अनुस्वार युक्त होनेपर जाप्यमे सहायक, आकाशतत्त्व युक्त, कर्मनाशक, सभी प्रकारके बीजोका जनक । ____उपर्युक्त ध्वनियोके विश्लेषणसे स्पष्ट है कि मातृका मन्त्र ध्वनियोके स्वर और व्यजनोके सयोगसे ही समस्त वीजाक्षरोकी उत्पत्ति हुई है तथा इन मातृका ध्वनियोकी शक्ति ही मन्त्रोमे आती है । णमोकार मन्त्रसे ही मातृका ध्वनियां नि सृन हैं। अतः समस्त मन्त्रशास्त्र इसी महामन्त्रसे प्रादुर्भूत है। इस विषयपर अनुचिन्तनमे विस्तारपूर्वक विचार किया गया है । यतः यह युग विचार और तर्कका है, मात्र भावनासे किसी भी वातकी सिद्धि नही मानी जा सकती है। भावनाका प्रादुर्भाव भी तर्क और विचार-द्वारा श्रद्धा उत्पन्न होनेपर होता है। अत णमोकार महामन्त्रपर श्रद्धा उत्पन्न करनेके लिए उक्त विचार आवश्यक है।
दार्शनिक दृष्टिसे इस मन्त्र की गौरव-गरिमाका विवेचन भी अनुचिन्तनमे किया जा चका है। चिन्तनकी अपनी दिशा है, वह कहांतक सही है, यह तो विचारशील पाठक ही अवगत कर सकेंगे। इस अनुचिन्तनके लिखनेमे कई प्राचीन और नवीन आचार्योकी रचनाओका मैंने उपयोग किया है, अत मैं उन सभी आचार्यों मोर लेखकोका आभारी हूँ। श्री जैनसिद्धान्तभवन आराके विशाल ग्रन्थागारका उपयोग भी बिना किसी