Book Title: Mahavir aur Unki Ahimsa
Author(s): Prem Radio and Electric Mart
Publisher: Prem Radio and Electric Mart

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Page 10
________________ व्यतीत करने का निश्चय किया। माता की ममता और पिता का प्यार भी उनको अपने मार्ग से विचलित नही कर सके। अन्तत तीस वर्ष की भरी जवानी मे वे घर बार छोडकर साधु जीवन व्यतीत करने लगे । उनका अधिकाश समय इसी बात के चिंतन में व्यतीत होता था कि ससार के दुखो का कारण क्या है ? और इन दुखो को दूर कर, अनन्त व सच्चा सुख कैसे प्राप्त किया जा सकता है? अपने साधना-काल मे ही उन्हें इस बात का दृढ निश्चय और विश्वास हो गया था कि जब तक स्थायी सुख और शान्ति के लिये प्रयत्न नही किया जायेगा तब तक सच्चा सुख नहीं मिल सकता। वे बारह वर्ष तक घोर तपस्या और चिंतन व मनन करते रहे । परिणामत बयालीस वर्ष की अवस्था मे उनको पूर्ण ज्ञान प्राप्त हुआ। पूर्ण ज्ञान की प्राप्ति के उपरान्त वे संसार के प्राणियो को बतलाने लगे कि उनके दुखों का कारण क्या है, और उन कारणो को दूर कर सच्चा, निर्वाध व अनन्त सुख कैसे प्राप्त किया जा सकता है ? इस प्रकार तीस वर्ष तक वे ससार को ज्ञानदान करते रहे । बहत्तर वर्ष की आयु मे उनको इस ससार से मुक्ति प्राप्त हुई। सन् १९७४ की दीपावली को भगवान महावीर को निर्वाण प्राप्त किये हुए २५०० वर्ष हो जायेंगे । इस उपलक्ष मे उनका २५००वा निर्वाण महोत्सव देश के कोने-कोने में विशाल स्तर पर मनाया जायेगा। हम सब का भी यह परम पुनीत कर्तव्य है कि हम भी इस निर्वाण महोत्सव को सफल बनाने में अपना अधिक-से-अधिक योगदान कर भगवान महावीर के चरण कमलो मे अपनी श्रद्धाञ्जलि अर्पित करें।

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