Book Title: Mahasati Madanrekha Diwakar Chitrakatha 012
Author(s): Shreechand Surana
Publisher: Diwakar Prakashan

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Page 2
________________ सती मदनरेखा प्रकृति भी बड़ी विचित्र है। जहाँ उसने गुलाब में सुन्दरता, सुकुमारता और सुषमा भरी वहीं उसके साथ तीखा काँटा भी पैदा कर दिया। नारी को जहाँ सुन्दरता, सुकुमारता, शील-निष्ठा कर्त्तव्य-परायणता एवं त्याग-बलिदान की प्रतिमा बनाया, वहीं उसकी सुन्दरता के लोभी काँटे भी पैदा कर दिये। ये काँटे ही उसके लिए कष्ट, पीड़ा और त्रास के कारण बन गये। मदनरेखा सौन्दर्य की अद्भुत प्रतिमा ही नहीं, शील व साहस की जीती जागती देवी थी। उसके रूप का लोभी राजा मणिरथ इतना मोह-उन्मत्त हो जाता है कि मदनरेखा को प्राप्त करने के लिए अपने पुत्रतुल्य छोटे भाई युगबाहू की हत्या भी कर देता है। मदनरेखा अपने शील की रक्षा के लिए घर-परिवार पुत्र राजवैभव सबका मोह त्यागकर अकेली जंगल में भाग जाती है। पग-पग पर कष्ट व भय का सामना करते हुए वह अन्त तक अपने उज्ज्वल चरित्र की रक्षा करती है। प्राणों भी प्यारा है उसे अपना शील। अपना निर्मल चरित्र । जैन कथा साहित्य में सती मदनरेखा (मयणरेहा) का चरित्र बहुत प्रसिद्ध और आदर्शों से भरपूर प्रेरक चरित्र है। विवेक, चातुर्य, साहस, शील-निष्ठा, कर्त्तव्य-परायणता, अविचल धीरता और सबसे बड़ी बात अपने निर्मल-चरित्र की रक्षा के लिए सब कुछ त्याग देने की अदम्य उत्कंठा यह सब आदर्श प्रेरणाएं व्यक्त होती हैं मदनरेखा के चरित्र से। मदनरेखा नारी शक्ति की एक जागृत देवी है। बड़ी रोमांचक और लोमहर्षक है उसकी जीवन कथा | प्रस्तुत पुस्तक में, श्रमणसंघ के वरिष्ठ सलाहकार मंत्री और जैन साहित्य के मर्मज्ञ विद्वान् श्री सुमन मुनि जी म. की प्रेरणा से प्राचीन कथा ग्रन्थों व उत्तराध्ययन सूत्र की टीका के आधार पर मदनरेखा के चरित्र को बड़ी भाव पूर्ण शैली में रेखांकित किया गया है। - श्रीचन्द सुराना सरस प्रेरक श्रमण संघीय सलाहकार मंत्री श्री सुमन मुनि जी म. संयोजक प्रकाशक संजय सुराना Jain Education International संपादक 'श्रीचन्द सुराना 'सरस' © सर्वाधिकार प्रकाशकाधीन राजेश सुराना द्वारा दिवाकर प्रकाशन ए-7, अवागढ़ हाउस, एम. जी. रोड, आगरा-282002 दूरभाष : (0562) 351165, 51789 के लिये प्रकाशित एवं क्विक लेजर आफसेट द्वारा मुद्रित For Private & Personal Use Only चित्रांकन श्यामल मित्र www.jainelibrary.org

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