Book Title: Lonkashah Charitam
Author(s): Ghasilalji Maharaj
Publisher: Jain Shastroddhar Samiti

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Page 11
________________ क्रमण नियमित रूप से करना, उपवासादि तपों का अंगिकार आदि बातों द्वारा इनके आदर्श जीवन के चित्रण में कविवर ने बड़ा रस लिया है / जैन दर्शन के सिद्धान्तों के निरूपण में यहाँ संभाषण शैली को अपनाया गया है। यहाँ गुरुदेव-हेमचंद्र संवाद और हेमचंद्र गंगादेवी संवाद ऐसी योजना है / इस कारण यह विवरण बड़ा प्रवाही, जीवंत और नाटकीय बन पड़ा है / गंगावती की गर्भधारणा, शुभ स्वप्न देखना, अपने तबीयत की हिफाजत, अत्यंत उदार होकर दान देना, धर्माराधना में अधिकाधिक लगना आदि बातों का यथातथ्य वर्णन कविवर आचार्यश्री ने किया है / सेठ हेमचंद्र भी गंगावती की तबीयत का बहुत खयाल रखते हैं। फिर लोकचंद्र का जन्म और जन्मोत्सव का वर्णन मन को प्रसन्न करनेवाला है। यहाँ तक कविश्रेष्ठ नौवें सर्ग तक पहुँच गये हैं और दसवें सर्ग के प्रारंभ में लोकचंद्र का चन्द्रसमान बढ़ना और बालक्रीडा का ऐसा वर्णन है कि मानो संत सूरदास बालकृष्ण का लीलागान कर रहे हैं / अब लोकचंद्र बड़े हो जाते हैं / युवक बनकर माता-पिता की अच्छी सेवा करते हैं / वे होशियार और सुस्वरूप हैं। धर्मप्रेमी और आदर्श हैं / योग्य समय आने पर सुशील सुस्वरूप कन्या से विवाह हो जाता है / यहाँ ग्यारह सर्ग पूर्ण हो जाते हैं। बारहवें सर्ग में सरल कथात्मक शैली में लोकचंद्र का व्यवहार कुशल होना और व्यवहार व्यापार में अच्छा यश प्राप्त करना वर्णित है। उनका उज्ज्वल यश और कुशलता देखकर मातापिता पूरी जिम्मेवारी पुत्र पर सौंपकर वैराग्य धारण कर लेते हैं। कुछ अंतराल के बाद लोकचंद्र व्यवसाय के लिए अमदावाद आ जाते हैं / उनकी होशियारी देखकर उस समय के गुजरात के बादशाह मुहम्मदशाह उन्हें अपना कोषाध्यक्ष नियुक्त करते हैं / वे इस पद पर दस वर्षांतक अत्यंत कुशलता से कार्य करते हैं। और काफी लोकप्रिय हो जाते हैं तथा बादशाह का पूर्ण विश्वास अर्जित कर लेते हैं। लेकिन इसी सर्ग के आखिरी भाग में चरित नायक के जीवन धारा के महत्त्वपूर्ण मोड़ का विवरण (गाथा 87 से 103 तक) आया है। बादशाह के मृत्यु की विचित्र घटना के कारण उनके मन में क्षणभंगुरता के विचार तीव्र हो जाते हैं और वे निरागी बन जाते हैं। अपने पद का इस्तिफा देकर पाटण चले जाते हैं और मुनि सुमति विजयजी के पास जाकर यतिदीक्षा धारण कर लेते हैं। यहाँ तक के काव्य रचना का विचार करें तो दीखता है कि हेमचंद्र-गंगावती के जीवन वर्णन से प्रारंभ कर श्री लोकचंद्र के सांसारिक जीवन की समाप्ति तक के वर्णन-विवरण की व्याप्ति 12 वें सर्ग के अंत तक है। चरित्रचित्रण विस्तार से और सुंदर हुआ है।

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