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द्वे गव्यूते जलादूर्द्धमूच्छितोऽब्धि शिखादिशि । अन्ते स्यास्मिन्नम्बु बृद्धिस्त्रैराशिकात्प्रतीयते ॥१६८॥
समुद्र की शिखा की दिशा तरफ यह द्वीप जल से दो कोस ऊंचा है इस द्वीप के अंत भाग में पानी की वृद्धि कितनी है ? वह त्रिराशि से जानना चाहिए । (१६८) तथाहि - सहस्रेषु द्वादशसु, द्वीपोऽयं तावदाततः ।
चतुर्विशतिरित्येवं, सहस्रा वारिधेर्गताः ॥१६॥ ततश्च- सहस्र पञ्चनवति पर्यन्ते यदि लम्यते ।
___ जलवृद्धिर्योजनानां, शतानि सप्त निश्चिता ॥२००॥ चतुर्विंशत्या सहस्त्रैः, कियतीयं तदाप्यते । राशित्रयेऽन्त्याद्ययोश्च, कार्यं शून्यापवर्तनम् ॥२०१॥ मध्यराशिः सप्तशती, गुणितोऽन्त्येन राशिना । चर्तुविंशति रूपेण, सहस्राः षोडशाभवन् ॥२०॥ ततश्च पञ्चनवति रूपेणान्त्येन राशिना । विभज्यते ततो लब्धं, पंट् सप्तत्यधिकं शतम् ॥२०३॥ अशीतिः पञ्चनवति भागाश्चैतावती किल ।
गौतम द्वीप पर्यन्ते, जलवृद्धिः शिखा दिशिः ॥२०४॥ . .वह इस तरह से - समुद्र में बारह हजार योजन जाने के बाद यह द्वीप आता है और वह बारह हजार योजन चौड़ा है अत: यह द्वीप पूर्ण होने से समुद्र में चौबीस हजार योजन होता है । इससे पंचानवे हजार (६५०००) योजन के अन्त में जो सात सौ योजन की जलवृद्धि होती है । तो चौबीस योजन में कितनी जलवृद्धि होती है? उसकी त्रिराशि लिखना और उसमें प्रथम् और अन्तिम राशि के बिन्दु हटा देना, सात सौ की मध्य राशि को चौबीस से गुणा करने से सोलह हजार आठ सौ (१६८००) होते हैं उसे पंचानवे रूप प्रथम राशि-संख्या से भाग देने पर एक सौ छिहत्तर योजन आते है और शेष अस्सी- पंचानवे अंश आता है इससे गौतम द्वीप तक में शिखा तरफ यह कहे अनुसार योजन की जलवृद्धि होती है । (१६६-२०४)