Book Title: Lokprakash Part 03
Author(s): Padmachandrasuri
Publisher: Nirgranth Sahitya Prakashan Sangh

View full book text
Previous | Next

Page 595
________________ (५४२) ग्रैवेयेके पञ्चमे च, त्रेधाप्येते द्वयं द्वयम् । . सर्वे चतुर्विशन्तिश्च, षष्ठे ग्रैवेयके ततः ॥५४२॥ द्वौ द्वौ स्तस्त्रि चतुः कोणावेको वृतः समे पुनः । विंशतिः पक्तिगा ग्रैवेयके ततश्च सप्तमे ॥५४३॥ एकोवृत्तश्चतुः कोण, एकोऽथ त्रयस्त्रयोर्दयम् । षोडशैवमष्टमे च, त्रिधाप्येकैक इष्यते ॥५४४॥ सर्वे द्वादश नवमग्रैवेयके च पङ्क्तिषु ।' केवलं त्रि चतुःकोणावेकैकावष्ट तेऽखिलाः ॥५४५॥ पाँच ग्रैवेयक के प्रतर में तीन प्रकार के विमान दो-दो हैं । कुल मिलाकर पंक्तिगत विमान चौबीस होते हैं । छठे ग्रैवेयक प्रतर में चोरस और त्रिकोन विमान दो-दो हैं और गोल विमान एक ही है । कुल पंक्तिगत विमान बीस होते हैं । सातवें ग्रैवेयक प्रतर में गोल और चोरस विमान एक हैं और त्रिकोन विमान दो है । कुल पंक्तिगत विमान सोलह होते हैं । आठवें ग्रैवेयक में तीनों प्रकार के विमान एकएक हैं और कुल बारह विमान होते हैं । और नौवे ग्रैवेयक में त्रिकोन और चोरस केवल एक है । कुल मिलाकर पंक्तिगत विमान आठ विमान होते हैं । (५४२-५४५) अधस्तनत्रिके चैवं, संयुक्ता स्त्रिभिरिन्द्रकैः । पञ्चत्रिंशत्पङ्क्ति वृत्ता, विमाना वर्णिता जिनैः ॥५४६॥ चत्वारिंशञ्च षट्त्रिंशत्यपङ्क्ति त्रिचतुरस्त्रकाः । एवं पंक्तियाश्च सर्वे शतमेकादशोत्तरम् ॥५४७॥ श्री जिनेश्वर भगवन्तो ने नीचे के त्रिक के इन्द्रक विमान सहित.पंक्तिगत गोल विमान पैत्तीस कहे हैं, त्रिकोन विमान चालीस और चोरस विमान छत्तीस कहे हैं, इस तरह सब मिलाकर पंक्तिगत विमान कुल एक सौ ग्यारह विमान होते हैं । (५४६-५४७) तथापि - एक चत्वारिंशदाद्ये, सप्तत्रिंशद् द्वितीययके । ग्रैवेयके तृतीय च त्रयस्त्रिंशत् समे स्मृताः ॥५४८॥ उसमें भी प्रथम ग्रैवेयक में इकतालीस, दूसरे में सैंतीस तीसरे में तेतीस विमान का विधान कहा है । (५४८)

Loading...

Page Navigation
1 ... 593 594 595 596 597 598 599 600 601 602 603 604 605 606 607 608 609 610 611 612 613 614 615 616 617 618 619 620