Book Title: Lokprakash Part 03
Author(s): Padmachandrasuri
Publisher: Nirgranth Sahitya Prakashan Sangh

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Page 614
________________ ( ५६१ ) पल्यो पमस्यसंख्येयो, भागः परममन्तरम् । सर्वार्थ सिद्धे सर्वत्र, जघन्यं समयोऽन्तरम् ॥६४७॥ सर्वार्थ सिद्ध में भी उत्कृष्ट अंतर पल्योपम के असंख्यात वा भाग होता है और जघन्य अंतर सर्वत्र एक समय का होता है । (६४७) जवनालकापराख्यं कन्याचोलकमुच्छ्रितम् । आकारेणानुकुरुते, एतेषामवधिर्यतः ॥६४८ ॥ इन देवों का अवधिज्ञान जिसका दूसरा नाम जवनालक है और उसका आकार कन्या की चोली समान है । (६४८) किंचिदूनां लोक नाडी, पश्यन्त्यबंधि चक्षुषा । त्वं तुस्वविमान ध्वजादूर्द्ध वमदर्शनात् ॥६४६॥ ये देव अवधिज्ञान से कुछ न्यून लोकनाडी को देख सकते हैं । अपने विमान की ध्वजा से ऊपर नही जा सकने से उतना कम कहा है । (६४६) उक्तं च तत्वार्थ वृत्तौ - "अनुत्तर विमान पञ्चक वासिनस्तु समस्तां लोकनाड़ीं पश्यन्ति लोक मध्य वर्तिनीं न पुन लोंक " मिति । श्री तत्वार्थ सूत्र की वृति में कहा है कि - 'अनुत्तरवासी देवता लोक मध्यवर्ति की समस्त लोक नाड़ी को देखता है, लोक को नही देखता है । ' अतएवावधिज्ञानाधार पर्यायवत्तया 1 क्षेत्रस्यावस्थानमुक्तं त्रयस्त्रिंशतमम्बुधीन् ॥ ६५० ॥ 1 इससे ही अवधिज्ञान के आधारभूत पर्यायवाला होने के कारण से क्षेत्र का अवस्थान अवधिज्ञाना के क्षेत्र के विषय की समय मर्यादा तेतीस सागरोपम कहा है। (६५०) अर्थात यह देव उत्पन्न हो तब से लेकर लोकनाडी के क्षेत्र को अवधिज्ञान से तेतीस सागरोपम तक देखता है । यह अवधिज्ञान क्षेत्र के विषय के समय मर्यादा कहलाता है । इसी बात को आगे के श्लोक में स्पष्ट कहा है । यदेषामुत्पत्तिदेशावगाढानां भवावधि I अवधेरप्यवगाढ क्षेत्रावस्थितिनिश्चयः '॥६५१ ॥

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