Book Title: Lokprakash Part 03
Author(s): Padmachandrasuri
Publisher: Nirgranth Sahitya Prakashan Sangh

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Page 601
________________ (५४८ ) कनिष्ठायाः समधिकमारभ्य समयादिकम् । यावज्ज्येष्ठां समयोनां, सर्वत्र मध्यमा स्थितिः ॥५७६ ॥ जघन्य आयुष्य से एक समय अधिक से लेकर उत्कृष्ट आयुष्य में एक न्यून तक मध्यम स्थिति गिनी जाती है । ( ५७६). द्वौ करावष्टभिर्भागैर्युक्तावेकादशोद्भवैः । देहोज्येष्ठायुषां हीनस्थितीनां तु करास्त्रयः ॥ ५७७ ॥ こ उत्कृष्ट स्थिति वाले देवों का देहमान २१ हाथ का होता है और जघन्य स्थिति वाले का देहमान तीन हाथ का होता है । (५७७) ग्रैवेयके द्वितीये तु चतुविंशतिरब्धयः । ज्येष्ठा स्थितिः कनिष्ठा तुत्रयोविंशतिरब्धयः ॥५७८ ॥ द्वौ करौ सप्तभिभागैर्युक्तावेकादशोत्थितैः । वपुर्ज्येष्ठायुषां हृस्वायुषामष्टलवाहधकौ ॥५७६ ॥ दूसरे ग्रैवेयक के देवों का उत्कृष्ट आयुष्य चौबीस सागरोपम होता है और जघन्य आयुष्य २३ सागरोपम का है यहां उत्कृष्ट आयुष्यं वाले देवों का देहमान ७ हाथ होता है । २ होता है और जघन्य आयुष्य वाले देवों का देहमान २ ११ ११ (५७८ - ५७६) ग्रैवेयके तृतीये च वार्द्धयः पञ्चविंशतिः । गुर्वीस्थितिर्जधन्या तु चतुविंशतिरेव ते ॥ ५८० ॥ ज्येष्ठ स्थितीनामत्राङ्ग, द्वौकरौ षड्वाधिक । तत्कनिष्ठस्थितीनां तु, सप्तांशाढयं कर द्वयम् ॥५८१ ॥ तीसरे ग्रैवेयक के देवों की उत्कृष्ट स्थिति २५ सागरोपम है और जघन्य स्थिति २४ सागरोपम होती है । यहां के उत्कृष्ट स्थिति वाले देवों का देहमान २ का है और जघन्य स्थिति वाले देवों का शरीर २ हाथ होता है । (५८०-५८१) I ६ ११ ग्रेवेयके तुरीये च षड्विंशतिः पयोधयः । आयुर्ज्येष्ठं कमिष्ठं तु, पञ्च विंशतिरब्धयः ॥ ५८२ ॥ ज्येष्ठ स्थितीनां द्वौ हस्तौ, देहः पञ्च लवाधिकौ । षड् भागास्यधिकौ तौ च तनुर्जधन्य जीविनाम् ॥५८३ ॥ • हाथ

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