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तथा सपरिवाराणं, महिषीणां चतसृणाम् । ज्योतिर्विमान कोटीनामीशाते पुण्य शालिनौ ॥१२०॥ त्रिभिर्विशेषकम् ॥
ज्योतिष चक्र के अधिपति चन्द्र और सूर्य नामक बड़े पुण्यशाली दो देवता है । उनके चार हजार सामानिक देव, सोलह हजार आत्मरक्षक देव है तीन प्रकार की पर्षदा होती है, सात प्रकार की सेना और सात सेनापति, परिवारयुक्त चार अग्र महिषियां और ज्योतिषी के करोड़ विमानों का अनुशासन करते हैं । (११८-१२०)
सभायामभ्यन्तरायामेतयोः सन्ति नाकिनाम् । अष्टौ सहस्राणि पल्योपमार्द्ध स्थिति शालिनाम् ॥१२१॥ निर्जराणां सहस्राणि, दश मध्यमपर्षदि । . न्यून पल्योपमाञयुः शालिनां गुण मालिनाम् ॥१२२॥ द्वादशाथ सहस्राणि देवानां बाह्य पर्षदि । सातिरेक पल्यचतुर्विभाग स्थिति धारिणाम् ॥१२३॥
इन चन्द्र और सूर्य को जो बाह्य, मध्यम और अभ्यन्तर पर्षदा है उसमें अभ्यन्तर पर्षदा में आठ हजार देव है । जो आधे पल्योपम आयुष्य की स्थिति वाले है मध्यम पर्षदा में दस हजार देव रहते हैं, जो कुछ कम पल्योपम स्थिति वाले होते है और बाह्य पर्षदा में बारह हजार देव होते है वे साधिक ४१- १/४ पल्योपम की स्थिति वाले होते है । (१२१-१२३)
देवीनां शतमेकै कं पर्षत्स्वस्ति तिसृष्वपि । । तासां स्थितिः क्रमात्यल्योपमतुर्यलवोऽधिकः ॥१२४॥ एष एव परिपूर्णो , देशन्यूनोऽयमेव च । इयं च जीवाभिगमाति दिष्टा ऽऽसां स्थितिः किल ॥१२५॥
इन तीनों पर्षदा में सौ-सौ देवियां है उनकी आयुष्य क्रमशः एक लव से अधिक १/४ पल्यापम अभ्यन्तर पर्षदा की देवियों का है, १/४ पल्योपम मध्य पर्षदा की देवियों का है, कुछ कम १/४ पल्योपम बाह्य पर्षदा देवियों का होता है। देवियों की स्थिति का इस तरह का वर्णन श्री जीवाभिगम सूत्र के आधार पर किया है । (१२४-१२५)