Book Title: Lokprakash Part 03
Author(s): Padmachandrasuri
Publisher: Nirgranth Sahitya Prakashan Sangh

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Page 591
________________ (५३८) सेव्यः पर्षदि बाह्यायां पञ्चमि किनां शतैः । एक विंशत्यब्धिपञ्चपल्योपममितायुषाम् ॥५२०॥ . . . इस इन्द्र महाराज को इक्कीस सागरोपम + सात पल्योपम के आयुष्य वाले, अभ्यन्तर पर्षदा के सवा सौ देवता होते हैं । इक्कीस सागरोपम + छ: पल्योपम के आयुष्य के मध्य पर्षदा के दो सौ पचास देवता होते हैं और इक्कीस सागरोपम और पाँच पल्योपम आयुष्य वाले पर्षदा के पाँच सौ देवता होते हैं । (५१८-५२०) सामानिकानां दशभिः सहस्त्रैः सेवितक्रमः । एकैकदिशि तावद्भिस्तावद्भिश्चात्मरक्षकैः ॥५२१॥ ... इस इन्द्र महाराज के दस हजार सामानिक देवता होते हैं और चार दिशा में दस-दस हजार आत्म रक्षक देवता सेवा करते हैं । (५२१) सैन्यः सैन्याधिपैस्त्रापस्त्रिशकैर्लोक पालकैः । . . . सैव्य परैरपि सुरैरारणाच्युतवासिभिः ॥५२२॥ . सैन्य, सेनाधिपति त्रायस्त्रिंश लोकपाल और अन्य आरण और अच्युतवासी देवताओं से इस इन्द्र महाराज की सेवा होती है । (५२२) द्वात्रिंशत्याधिकान् शक्तो, जम्बू द्वीपान् विकुर्वितैः । । रूपैः पूरयितुं तिर्यक् चासंख्यद्वीपवारिधीन् ॥५२३॥ अपने द्वारा रचे रूप से बत्तीस जम्बू द्वीप से भी कुछ अधिक और तिरछा असंख्य द्वीप समुद्र को भरने में यह इन्द्र समर्थ है । (५२३) भुंक्ते साम्राज्यमुभयोरारणाच्युत नाकयोः ।. विमानत्रिशतीनेता, द्वाविंशत्युदधिस्थितिः ॥५२४ ॥सप्तभि कुलकं ॥ आरण और अच्युता दोनों देवलोक का साम्राज्य भोग करते और बाईस सागरोपम का आयुष्य धारण करते इस इन्द्र महाराज के अधिकार में तीन सौ विमान होते हैं । (५२४) अस्य यानविमानं स्यात्सर्वतोभद्रसंज्ञकम् । सर्वतोभद्रदेवश्च नियुक्त स्तद्विकुर्वणे - ॥५२५॥ इस इन्द्र महाराज को बाहर जाने का विमान (सर्वतोभद्र) नाम का है और सर्वतो भद्र नाम का देव इसकी रचना करने का अधिकारी होता है । (५२५)

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