Book Title: Lokprakash Part 03
Author(s): Padmachandrasuri
Publisher: Nirgranth Sahitya Prakashan Sangh

View full book text
Previous | Next

Page 583
________________ (५३०) दक्षिण दिशा में रहने वाले आरण देवलोक सम्बन्धी चार प्रतर के देवों की उत्कृष्ट स्थिति सवा बीस सागसेपम साढ़े बीस, सागरोपम, पौने इक्कीस, सागरोपम और पूर्ण इक्कीस सागरोपम अनुक्रम से होती है। (४६६ -४६८) अथाच्युतस्वर्ग संबन्धिषूदग्भागवर्तिषु । प्रतरेषु चतुर्वेषुत्कृष्टा सुधाभुजां स्थितिः ॥४६६॥ सपादैकविंशत्तिश्च, सौर्द्धकविशतिः क्रमात् । . ... पादोनद्वाविंशतिश्च, द्वाविंशतिश्रचःक्रमात् ॥४७०॥ उत्तर दिशा में रहने वाले अच्युत देवलोक सम्बन्धी चार प्रतर के देवों की उत्कृष्ट स्थिति सवा इक्कीस, साढ़े इक्कीस, पौने बाईस और पूर्ण बाईस सागरोपम का उपयुक्त अनुक्रम से होता है। (४६६-४७०). सर्वत्राप्यारणे वारानिधयो विंशतिलघुः । अच्युते सागरा एकविंशतिःसा निरूपिता ॥४७१ ॥ आरण देवलोक के चार प्रतर के देवोकी जघन्य स्थिति वीस सागरोपम की और अच्युत देवलोक के आयुष्य वाले देव लोक के चार प्रतर के देवों की जघन्य स्थिति इक्कीस सागरोपम की है। (४७१) . . द्वाभ्यामेकादशांशाभ्यां युक्ता इहक रास्त्रयः। देहप्रमाणंदेवानां विंशत्यम्भोधिजीविनाम् ।।४७२ ॥ त एव सैकांशा एक विंशत्युद धिजीविनाम् । . त्रयः कराश्च संपूर्णा, द्वाविशत्यर्णवायुषाम् ॥४७३॥ यहां बीस सागरोपम के आयुष्प वाले देवो का देहमान ३३ हाथ का है इक्कीस सागरोपम के आयुष्प वाले देवों का देहमान ३ १ हाथ होता है बाईस सागरोपम आयुष्य वाले देवो का देहमान ३ हाथ का होता है । (४७२-४७३) विंशत्या चैकविंशल्या, द्वाविंशत्या सहस्रकैः। . स्वस्वस्थित्यनुसारेण,वषैराहारकाङ्गिणः ।।४७४॥ अपनी-अपनी स्थिति अनुसार से बीस इक्कीस और बाईस हजार वर्षों में यहां के देव आहार की इच्छा वाले होते है। (४७४)

Loading...

Page Navigation
1 ... 581 582 583 584 585 586 587 588 589 590 591 592 593 594 595 596 597 598 599 600 601 602 603 604 605 606 607 608 609 610 611 612 613 614 615 616 617 618 619 620