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मित्तेहिं चउहिं अद्धकुंभिक्केहिं मुत्तादामे हिं सव्व तो समंता सपरिक्खित्ता' एतट्टीकापि - "कुंभो मुक्ता फलानां परिमाण तया विद्यते, येषु तानि कुंभिकानि मुक्ता दामानि- मुक्ता मालाः, कुंभप्रमाणंच- 'दो असती पसई, दो पसइउ सेतियां,चतारि सेतियाओ कुलओ, चत्तारिकुलवा । पत्थो,चत्तारि पत्था आढयं, चत्तारि आढया दोणो, सट्ठी आढयाइं जहन्नौ कुंभो असीई मज्झिमो, सयमुक्को सो'त्ति तदद्ध त्ति तेषामेव मुक्ता दाम्ना मर्द्ध मुच्चत्वस्य प्रमाणं येषा तानि तदो च्चत्व प्रमाणानि तान्येव तन्मात्राणि तैः "अद्ध कुंभिक्केहि' ति मुक्ता फलार्द्ध कुम्भ वद्भिरिति ॥" ___श्री स्थानांग सूत्र में भी इसी ही तरह कहा है - 'वह वज्रमय अंकुश ऊपर कुंभ प्रमाण मोती वाली चार मुक्ता माला कही है, वह कुंभिका माला (कुंभ प्रमाण मोतियों से निष्पन्न माला) की चारों तरफ प्रत्येक दिशा में ऊंचाई और प्रमाण से अर्ध मान वाली अर्ध कुंभ प्रमाण मोतियों से युक्त मालाएं है ।' इस स्थानांग सूत्र की टीका में भी कहा है कि :- जिस माला के मोतियों के परिमाण में कुंभ का माप होता हो उन मालाओं को कुंभिका मुक्ता माला कहते है, तो वह . अब कुंभ का माप इस प्रकार से है :
२- असती = १ पसली ४ आढव = १ द्रोण २- पसली = १ सेतिका ६० आठव , - १ जघन्य कुंभ ४- सेतिका = कुलक ८० आठव = १ मध्यम " ४- कुलक = प्रस्थ . १०". = १ उत्कृष्ट कुंभ ४- प्रस्थ = आढय
वह कुंभ प्रमाण मोतियों की माला से ऊंचाई में आधे प्रमाण वाली अर्ध कुंभिका कहलाती है।
ततः पेक्षामण्डपाने, प्रत्येकं मणीपीठिका । उच्छ्रिता योजनान्यष्टौ घोडशायत विस्तृता ॥२०॥
उसके बाद प्रत्येक प्रेक्षा मंडप के आगे मणि पीठिका होती है उसकी ऊंचाई आठ योजन और लम्बाई चौड़ाई सोलह योजन है । (२०८) ।