Book Title: Lingnirnayo Granth
Author(s): Kalaprabhsagar
Publisher: Arya Jay Kalyan Kendra

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Page 36
________________ [25] अशुद्ध स्वास्थ्य त्रिक प्रीतिर्मुद् जीनान्ता चिति चित्या सतिनार्या प्रोक्तः स्युग्रंथिकादयः स्वास्थ्यत्रिक प्रीतिर्मुत् जीर्नान्ता चितिश्चित्या सती नार्या प्रोक्ताः स्युग्रंथिकादयः वमथुः संवत्सरादयः स्यादतिथिः वमथु ऋतू लिंगेषु ऽङ्गजस्तनयः मातरपितरौ हगूदृष्टि पाणियोध ऽङ्गुलीयकम् बृहतिका दयो सांवत्सरादयः स्यादतिथि ऋतु लिंगेष . ऽङ्गजस्तयः मातरपित्री दृगदृष्टि पाणिद्वयोश्च ऽङ्गलायकम् बृहतीका दयो बलिद्वयोः त्सरुः त्रिक क्षुरी छुरी तु छुरिका गुप्ति तथा प्रमानिह पराई अंत्य कोटिशः तंत्रवायः पुस्त्रियावद्धी रेणुः निवेदितः मागो बलियोः त्सरुत्रिक क्षुरीच्छुरी तुच्छुरिका गुप्तिस्तथा पुमानिह परार्द्धमन्त्य - कोटिशो तन्तुवायः पुस्त्रियोद्धी रेणुर्निवेदितः मार्गों

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