Book Title: Lingnirnayo Granth
Author(s): Kalaprabhsagar
Publisher: Arya Jay Kalyan Kendra

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Page 102
________________ काकली प्रतिश्रम् नार्या भवेत्काकुनरखियोः / संघाताद्याः नरे तत्र विशेषः कथ्यते पुनः // 36 // वारो वजस्तथा कूटमस्त्रियां मण्डलं त्रिषु / क्लीबे पटलं वाच्यं पेटकं त्रिषु भाषितम् // 37 // द्वयोः पिण्डोऽस्त्रियां चक्र क्लीवे वृन्दकदम्बके / जालं स्त्रीक्लीबलिंगेऽपि यूथं स्यात्पुनपुंसके // 38 // फेनाऽथ कथ्यते डान्तश्चक्रवाड (ल) इति व्रजे / स्त्रीलिंगे संहतिः, पुंसि संघसार्थों तु देहिनाम् // 39 // कुलं क्लीबेऽथ पुल्लिंगे निकायप्रमुखा खलु / शोकादयोऽपि पार्थान्ताः नपुंसके निवेदिताः // 40 // वातुलो नरि वात्याद्याः धोरण्यन्ता स्त्रियामिमे / स्त्रीपुंसवाचिनी श्रेणित्वेि द्वौ उभौ त्रिषु // 41 // 'भवेत् द्वयं द्वयी चैव त्रयं त्रयी चतुष्टयम् / चतुष्टयी क्धू-क्लीबे गुणिनि वाच्यलिंगता // 42 // युगल द्वितयं चैतौ योषित-क्लीव-निवेदको / युगं द्वैतं यमं द्वंद्व युग्मं यमल-मामले // 43 // स्यादश्च-गोयुगं चैव हस्ति-षद्गवम् एव हि / एते नपुंसके शेयाः परशतादयस्त्रिषु // 44 // क्लीबे प्राज्यादयस्तत्र प्राज्ये भूरित्रिष स्मृतः / त्रुटिर्मात्रा च योषायां स्त्रीपुसयोस्तुटिः कणः // 5 // कश्चित् क्षुल्लं त्रिषु स्तोके पुंस्यणुलेश एव च / त्रुटयादयोऽणुसंयुक्ता आविष्टलिंगकाः परे // 43 // हस्वं लघु त्रिषु क्लीवेऽत्यपादिश्च नपुंसके / दीर्घादयोऽप्युदग्रान्ता वाच्यलिंगा इमे पुनः // 47 // न्यक पुंसि वा स्त्रियां क्लीबे, क्लीबे नीचादवस्त्रिषु / विशालमस्त्रियां वाच्यं गुणिवृत्तौ त्रिषु स्मृतम् // 48 // विशङ्कटादयः क्लीबे वाच्यलिंगे बृहन्महत् / आषामाद्या नरे प्रोक्ता उत्सेधः पुनपुंसके // 49 // प्रपंचाभोगविस्तारव्यासाः शब्दे स विस्तरः। समासस्तु समाहारः संक्षेपः संग्रहो मरि // 5 //

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