Book Title: Lingnirnayo Granth
Author(s): Kalaprabhsagar
Publisher: Arya Jay Kalyan Kendra

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Page 103
________________ क्लीबे सर्वादयः प्रायः शकलं खण्डमस्त्रियाम् / / अर्थोऽपि वाच्यलिंगः स्यात् समांशेऽर्ध नपुंसके // 51 // अंशो भागादयः पुंसि मलिनाधा नपुंसके / / पवित्रमस्त्रियां कश्चित गुणिवृत्तौ पुनस्त्रिषु // 52 // प्रधानमजहल्लिगे ग्रामणीरग्रणी नरे। ग्रामनी पिते पुंसि श्रेष्ठे त्रिष्वमरः पुनः // 53 // ... पुंक्लीबयोर्वरं कश्चित् अव्ययं वाच्यलिंगकम् / प्रेष्ठं पराई युग्मं च वाच्यलिंगा अमी त्रयः // 54 // मुख्याद्याः परपर्यतास्त्रिषु शेषा इमेऽपरे / श्रेष्ठं तु सत्तमं श्रेयः पुष्कलं च त्रिलिंगके // 55 // प्रशस्यवाचकाः पुंसि व्याघ्रादयः पदोत्तरे / स्त्रीलिंगवाचिनी तत्र मतल्लिका मचर्चिका // 56 // प्रकांडमस्त्रियां ज्ञेयं तल्लजादय अत्र च / आविष्टलिंगकाः क्लीबे स्यादुपसर्जनयामलम् // 57 // / अस्त्री काण्डः पुमान् रेफः शेषा सर्वेऽधमादयः / अन्तिा वाच्यलिंगा स्युः रेफस्त्रिज्वपरोऽधमे // 58 // चार्वाद्याश्च प्रियान्ताः स्युः वाच्यलिंगा इमे पुनः / / व्युष्टिः स्त्रियामसाराद्या नपुंसके निवेदिताः // 59 // . जरत् पुंसि स्त्रियां क्लीबे तथैव मूर्तिमत् त्रिषु / सनिधिः सन्निकर्षो ना निकटं पुनपुंसके // 6 // स्युः पार्थादयः क्लीबे विप्रकृष्टं परं किल / दूरं त्रयोप्यमी प्रोक्ता वाच्यलिंगा विचक्षणैः // 61 // सनातनादयः पञ्च स्युः ध्रुवान्तास्त्रिलिंगकाः / . स्थेय-चतुष्टयं क्लीबे कूटोऽस्त्री निश्चले पुनः // 62 // स्थावराद्याश्च षण्वेऽपि वाच्यलिंगं जगत्पुनः / चंचलाद्यास्त्रिषु क्लीबे चोर्मिमदवसानकाः // 63 // अन्वक्षानुपदं क्लीबेऽन्वक्षमव्ययमेव च / एकाकी चैककस्त्वेकः पुल्लिगे त्रिषु वाऽपरे // 64 // एकतानादयः शब्दा एकायनगतान्तिमाः / एतेऽष्टौ वाच्यलिंगाश्च विबुधैरिहं भाषिताः // 65 //

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