Book Title: Lingnirnayo Granth
Author(s): Kalaprabhsagar
Publisher: Arya Jay Kalyan Kendra
View full book text
________________ इंगितं क्लीबलिंगोक्तं स्याद् अनुमीनमास्त्रयाम् / हेतुऍसि द्वयोर्योनिः क्लीबे कार्यत्रिकं पुनः // 96 // निमित्तं कारणं हेतुर्बीजं योनिर्निबन्धनम् / निदानं निदानं धर्मिवृत्तित्वेऽजहल्लिगा इमे सदा // 97 // निष्ठा स्त्रियां समाख्याता निर्वहणं नपुंसकम् / पुंल्लिगे प्रवहश्चैव जातिय॑क्तिः पुनः स्त्रियाम् // 98 // क्लीबे सामान्यजाते द्वे तिर्यक नपुंसके किल / स्त्री साचिः अव्ययं कश्चित् पुंसि संहर्षद्रोहको // 99 // स्पर्धा चापक्रिया नार्यां वन्ध्यं मोघं त्रिषु स्मृतम् / स्त्रियां मुधाऽफलं चान्तर्गडु-द्वयं नपुंसके // 10 // संन्निवेशो व्ययः पुंसि सम्मृर्छनं च पण्डके / अभिव्याप्ति स्त्रियां भ्रषो भ्रंशाऽभावो नरे त्रयः // 101 // संक्रामः संक्रमश्चास्त्री नीवाक-द्वितयं नरे। . अवेक्षा कामिनीलिंगे विश्रंभांत्रतयं नरे // 102 // विक्रिबा-विकृती नायर्या चक्रावत्तों भ्रमो नरि / स्त्रियां भ्रान्तिर्धमिधूर्णिर्विप्रलम्भादयो नरि // 103 // स्यादतिसर्जनं क्लीबे लंभनं लवनं तथा / निष्पावश्च पवः पुंसि पवनं तु नपुंसकम् // 104 // अथाऽयोषिति निष्ठेवः ष्ठीवनं प्ठयत-ष्ठीवने / थूत्कृतं क्लीबलिंगेऽमी निवृत्तिः स्यात् स्त्रियामिह // 105 // उपरमोपरामौ द्वौ पुंल्लिगेऽपि निवेदितौ / विरतिरारतिश्चैवावरत्युपरती स्त्रियाम् // 106 / / विधूननं विधुवनं रिवणं स्खलनं-समे / त्राणं नपुंसके पुंसि रक्ष्णादयः स्त्रियां किया // 107 // स्फरण-स्फुरणे क्लीबे ज्यानिर जाणिर् वृतिः स्त्रियाम / वरादयः स्मृताः पुंसि बुद्धिः शक्तिः स्त्रियां सदा // 108 // निष्क्रमो बुद्धिसामर्थ्य निर्गमे निष्क्रमः पुमान् / *अव्ययानि त्रिलिंगेऽपि सर्वदा समरूपिणः // 109 // * प्रतौ तु-उत्तराध एवं पठितमः अव्ययानि च पुंक्लीवलिंगयो.रह सर्वदा // 509 //

Page Navigation
1 ... 104 105 106 107 108