Book Title: Lingnirnayo Granth
Author(s): Kalaprabhsagar
Publisher: Arya Jay Kalyan Kendra

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Page 40
________________ [ 28 ] 3. वे नाम जो गुणधर्म के संकेतक होते हैं। ये विशेषण होते हैं जिनके विषय में व्याकरणशास्त्रियों ने कहा है “यल्लिंग यद्वचनं यद्विभक्तिर्विशेष्यस्य / तल्लिां तद्वचनं तद्विभक्तिविशेषणस्य / विशेषणों का लिंग विशेष्य के अनुसार निर्धारित होता है। 4. वे नाम जिबका लिंग प्रयोग के आधार पर निर्णीत होता है। इस विषय में एक हास्योक्ति चली आती है। 'खेत में घोड़ा चर रहा है या घोड़ी ?' इस प्रश्न के उत्तर में किसी इंसोड़ ने कहा कि यदि 'चर रहा है। तो घोड़ा होगा और 'चर रही है ' तो घोड़ी होगी। ऐसे शब्द अनिश्चित लिंग वाले होते हैं और जैसा बोला जाय वैसा उनका लिंग हो जाता है। 5. वे नाम जो अव्यय के साथ समस्त पद बनाकर अव्यय-प्राय हो जाते हैं उनका रूप परिवर्तन नहीं होता / प्रयोग अवश्य ही तीनों लिंगों में हो सकता है। नाम का लिंग-आधारित रूपात्मक विकास का इतिहास बताना यहाँ अभीष्ट नहीं है किन्तु यहाँ यह संकेत अवश्य देना उचित होगा कि ऋग्वेद के दशम मण्डल में बृहस्पति सूक्त में 'नामधेयं दधाना' वाणी की उत्पत्ति का उल्लेख है। 'नामधेयं दधाना' अर्थात् अपनी संपूर्ण विशेषता से संपन्न भाषा या वाणी का अर्थ भी समझ में आने लगता है। देशी भाषाओं में लिंग भेद के सम्बन्ध में कोई स्पष्ट नियम या निर्देश प्राप्त नहीं होते / इस कारण लगभग अराजकता की स्थिति देखी जा सकती है। इस विषय में हिन्दी भी अपवाद नहीं है। ऐसी दशा में इतना ही कहा जा सकता है कि लिंग का अनुशासन संस्कृत भाषा तक ही सीमित है। लोकभाषाओं में तो प्रयोग से ही लिंग जाना जा सकता है। 'खट्वा' शब्द संस्कृत में इसलिए स्त्रीलिंग है कि उसमें टाप् स्त्री प्रत्यय प्रयुक्त हुआ है। देशी भाषा में 'खाट' में स्त्री-प्रत्यय का बन्धन नहीं है तब भी यह शब्द स्त्रीलिंग है। 'खाट' से पुल्लिंग शब्द 'खटोलो' बन जाया करता है / 'सन्ध्या' टाप् स्त्री-प्रत्यय के कारण बोलिंग है; किन्तु 'सांझ' शब्द बिना टाप् के ही स्त्रीलिंग हो गया है। रामा, मोहना, सोहना, शब्द पुल्लिंग हैं किन्तु इनका अनुनासिकोकृत रूप रामां, मोहनां, सोहनां स्त्रीलिंग हो गये हैं। मीरां, पारां आदि शब्द भी ऐसे ही हैं। लिंगानुशासन सम्बन्धी ग्रन्थों की परम्परा : . लिंगानुशासन पर प्रायः व्याकरण ग्रन्थों में ही विचार किया गया। इस विषय पर ' स्वतन्त्र प्रन्थों का लेखन बहुत कम हुआ है। व्याकरण को 'वेद का मुख' (मुखं व्याकरणं

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