Book Title: Lingnirnayo Granth
Author(s): Kalaprabhsagar
Publisher: Arya Jay Kalyan Kendra

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Page 90
________________ अवश्यायस्तु पुंल्लिगे मिहिका धूमरी खियाम् / प्रालेयं तुहिनं क्लीवे स्पाद-धिमानि त्रियामाप // 101 // हिमं तुषार-नीहारौ पुंक्लीबयोरिमे त्रयः। . पारावारादयः पुंसि सिन्धुः स्त्रीपुंसपोरपि // 102 // पुंसि तरंग-भगो दौ स्त्रीलिंगे वीचिरित्यापि / स्वादूर्मि पुस्त्रियोरत्र कश्चिन् नर-नपुंसके // 103 // लहरिलहरी नार्या पुंस्युल्लोलादयो मता। स्त्रियां बेला च मर्यादा कूलभूः कच्छमस्त्रियाम् // 104 // कूलं रोधस्तथा तीरं प्रतीरं सैकतं पुनः / अंतरीकं च षण्ढेऽमी तट पात्रं त्रिषु स्मृतम् // 105 // पुलिन द्वीप-पारे वाऽवारं हि नपुंसके / मदी हिरण्यवर्णा स्पाद रोधोवका तरंगिणी // 106 // एते स्त्रियां द्वयोः सिन्धुः शैवलिन्यादयः स्त्रियाम् / गंगादयोऽपि तभेदाः स्त्रियां तत्रापगाऽपगा // 107 // क्लीबे स्रोत-द्विक पुंसि प्रवाहौधौ पुना रयः / वेणी धारा स्त्रियां घट्टः पुमांस्तीयोऽस्त्रियामिह // 108 // पूरः प्लवादयः पुंसि प्रणाली त्रिषु कीत्तिता / कुल्या च सारणिर्नार्या बहुत्वे सिकताः स्त्रियाम् // 109 // बिन्दुः पुंसि पृषत् क्लीवे विभुट स्त्री पृषतः पुमान् / अस्त्रियां पंकजम्बालौ पुल्लिगे चिकिलादयः // 110 // स्त्रीपुंसयोः भवेत् कूपः स्यादूदपानमलियाम् / अन्धुः पहिश्च पुल्लिगे नेमिस्त्रिका च योषिति // 111 // नान्दीमुखो नान्दीपटश्चाहावोऽपि च मानवे / वीनाहो निपानं चास्त्री वापी च दीपिका खियाम् // 112 // चुरी चुण्ढी पुनर्नार्या चूतकः पुंसि विश्रुतः / उद्घाटकं घटीयन्त्रं नपुंसके मतं खलु // 113 // पादावर्त द्वयं पुसि क्लीवेऽखातयुगं नरे। तडागश्च तटाको वा तटाकः पुनपुंसके // 11 // कासारः पल्वलवाऽऽलवालं पुंक्लीवलिंगके / / : भ्रमर वालवावं हि क्लीवेऽथ सरसी, लियाम् // 115 //

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