Book Title: Lingnirnayo Granth
Author(s): Kalaprabhsagar
Publisher: Arya Jay Kalyan Kendra
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________________ प्रणीतमुपसंपन्न स्निग्धे मसृणचिक्कणे / पिच्छिलं तु विजिविलं विज्जलं विजिलं च तत् // 39 // भावितं तु वासितं स्यात् तुल्ये सम्मृष्टशोधिते / एते त्रिष्वमरे प्रोक्तः कांजिकाद्या नपुंसके // 40 // चुकं स्नेहोऽस्त्रियां तैलं वेषवारविक नरि / तिन्तिडीकद्वयं क्लीबे स्याच्चुकं पुनपुंसके // 41 // हारिद्रा-पंचकं नार्या राजिकात्रितयं तथा / क्षव-त्रिकं तु पुंल्लिगे कुस्तुंबरुरयोषिति // 42 // धन्याकं नवकं क्लीबे शुण्ठी शुठिरपि स्त्रियाम् / विश्वा स्त्री क्लीबलिंगेऽपि क्लीबे महौषध-त्रिकम् // 43 // वैदेही-प्रमुखा नार्या क्लीबे स्युग्रंथिकादयः / पुस्त्रियोरजमोदा स्यादजाजी तु स्त्रियामिह // 44 // पुल्लिगे जीरको हिंगु, वाल्हिकादिर्नपुंसके / सहस्रवेधि वा क्लीबे न्यादादय इतः किल // 45 // पुंसि क्लीबे स्त्रियां वाच्याः पिंडस्तु पुस्त्रियोरपि / कवकः कवलोऽस्त्रीत्वे फेला-त्रिकं स्त्रियां मतम् // 46 // लोभान्ता गदिता पुंसि तून्मदिष्णुरिह त्रिषु / स्त्रियां तृष्णादयः पुंसि वशस्त्वीहा तु पुस्त्रियोः // 47 // अभिलाषोऽस्त्रियां कामोऽभिधा-द्विकं च योषिति / उद्धताद्या अर्चितान्ताः पुंसि क्लीबे स्त्रियां त्रिषु // 48 // अमरे त्रिषु रोचिष्णुः स्त्रियां पूजार्हणादिकम् / पुस्त्रियोर्बलिराख्यातः स्थूलस्त्रिषु निवेदितः // 49 // नान्तं पीवा च पुल्लिंगे मानवे विक्लवादयः / कफीप्रांता द्वयोः खंजो मुंडोऽथ दंतुरो त्रिषु // 50 // चिल्लचुल्लौ तु पिल्लोऽपि क्लिन-नेत्र-प्रवर्तिनः / एते त्रयस्तदा क्लांबे पुरुषार्थे नरि स्मृताः // 51 // पुंसि मायुः कफः श्लेष्मा बलाशः स्नेहभूः खरः / / रोगो रुजा-ऋजौ नार्या पित्तं मांद्यमपाटवम् // 52 // आकल्यं क्लीबलिंगेऽमी पुंसि ह्यामादयः पुनः / स्त्रीलिंगे क्षुत् क्षुतं क्लाबे क्षवस्तु क्षवथुनरि // 53 //

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