Book Title: Lingnirnayo Granth
Author(s): Kalaprabhsagar
Publisher: Arya Jay Kalyan Kendra

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Page 38
________________ भूमिका संसार की सभी भाषाओं में न्यूनाधिक रूप से शब्दों के लिंग पर विचार किया जाता है। संस्कृत भाषा में लिंग तीन हैं: पुल्लिंग, स्त्रीलिंग और नपुंसक लिंग / जब कि कई भाषाओं में स्त्रीलिंग और पुल्लिंग-ये दो ही लिंग हैं। भारत में ही मध्यकालीन प्राकृत, अपभ्रंश और आधुनिक हिन्दी आदि भाषाओं में दो ही लिंग हैं। ऐसा कदाचित् सरलीकरण की प्रवृत्ति और लिंग-निर्णय की अस्पष्टता के कारण हुआ होगा। व्याकरण भाषा के रूप-निर्माण का अध्ययन करता है / व्याकृति अर्थात् भाषा की विशिष्ट आकृति को देखना-परखना ही व्याकरण है। इसे पद की पहचान कह दिया जाय तो विचार करना अधिक सुकर हो जायगा / पद की पहचान दो तरह से हो सकतो है / सुबन्त को लिंग, पचन, कारक और क्रिया के साथ सम्बन्ध खोज कर पहचाना जा सकता है, जब कि तिङन्त पद को लिंग, वचन, वाच्य, काल और पुरुष की दृष्टि से पहचाना जाता है। निश्चय ही व्याकरण की दृष्टि से पद की पहचान करते समय लिंग को प्रथम स्थान दिया जाता है। लिंग की स्थिति यह कहना बड़ा कठिन है कि लिंग का सम्बन्ध पदार्थ या वस्तु के साथ है अथवा पद के साथ / शब्द और अर्थ अथवा पद और पदार्थ का अभिन्न सम्बन्ध मानने वाले भी इस सम्बन्ध में मौन हैं। व्याकरण की दृष्टि से तो इतना ही जानना पर्याप्त है कि कोई शब्द स्त्री प्रत्यय जुड़ने पर स्त्रीलिंग हो जाता है तो पुं प्रत्यय जुड़ने पर पुल्लिंग हो जाता है। एक ही पदार्थ को घोषित करने वाले पृथक्-पृथक् पदों का लिंग भिन्न हो सकता है। यथा-'स्त्री 'पद सीलिंग है, 'योषित् ' नपुंसक लिंग है और 'दारः' पुल्लिंग है। शरीरवाची 'तनु' शब्द का प्रयोग तीनों लिंगों में होता है / 'गो' पद पुल्लिंग और स्त्रीलिंग दोनों में प्रयुक्त होता है। - देशी भाषाओं में तो और भी अराजकता की स्थिति है। हिन्दी में 'आत्मा' शब्द चीलिंग हो गया है। सारे देश में 'हाथी' पुल्लिंग है; पर भोजपुरी में 'हाथी जा रही है' का प्रयोग सामान्य बात है। वहाँ 'दही अच्छी होती है। जब कि हमारे क्षेत्र में 'दही अच्छा होता है। हम बोलते हैं 'मूंग अच्छे हैं। पूरव में 'मूंग अच्छी होती है ' का प्रयोग होता है। छायावादी कवि सुमित्रानन्दन पन्त' को न जाने कैसे सौन्दर्य की अतिशयता के घोतक 'शशि' जैसे पद स्त्रीलिंग में ही शोभास्पद लगते थे। छन्दःशास्त्रियों ने कवियों के ऐसे मनमाने प्रयोगों को आर्ष प्रयोग कहकर क्षम्य माना है। - यदि लिंग का वस्तु के साथ कोई सम्बन्ध नहीं है तो यह प्रश्न स्वाभाविक है कि पद में लिंग की स्थिति कहां से आई ? इसका उत्तर यही हो सकता है कि मानव मस्तिष्क ने सृष्टि

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