Book Title: Kundakunda Shabda Kosh
Author(s): Udaychandra Jain
Publisher: Digambar Jain Sahitya Sanskriti Sanskaran Samiti

View full book text
Previous | Next

Page 8
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir प्राथमिकी आगम साहित्य की परम्परा में आचार्य कुन्दकुन्द विरचित सिद्धान्तग्रन्थों का महत्वपूर्ण स्थान है। जितनी श्रद्धा एवं भक्ति के साथ आचार्य कुन्दकुन्द का नाम प्रत्येक शुभ कार्य के प्रारम्भ में लिया जाता है उतना ही आगम साहित्य, सिद्धान्त ग्रन्थों में पंचास्तिकाय, समयसार, प्रवचनसार, नियमसार एवं अष्टपाहुड आदि को सर्वोपरि मानकर उनके पठन-पाठन एवं स्वाध्याय की परम्परा उच्च स्थान को प्राप्त करती जा रही है। अतः सिद्धान्त ग्रन्थों के साथ वर्षों की पूर्व परम्परा इसके साथ जुड़ी है। इसकी भाषा आर्य है तथा प्राचीन भी है। भाषाविदों ने जिसे शौरसेनी संज्ञा दी है। इस शौरसेनी प्राकृतों का अध्ययन करते समय जब विचार किया तो इससे सम्बन्धित सर्व प्रथम व्याकरण लिखने का निश्चय किया गया और शौरसेनी प्राकृत विद्वज्जगत के सामने आई। शब्द कोश की शुरूआत इससे पूर्व हो चुकी थी, परन्तु कुछ कार्य शेष था इसलिए यह शीघ्र सामने नहीं आ सका। शौरसेनी शब्द कोश की विशाल रूपरेखा हमारे सामने थी। सुखाडिया विश्वविद्यालय, उदयपुर के जैन विद्या एवं प्राकृत विभाग के अध्यक्ष ने इसे सीमित दायरे में समेटने का प्रस्ताव रखा। इसी दृष्टि का विधिवत् रूप से आचार्य श्री विद्यासागर जी से जबलपुर में परामर्श लिया गया और इसे अन्तिम रूप दिया गया। इस शब्दकोश में निम्न विधि अपनाई गई है : १. सर्वप्रथम मूलशब्द दिए गए तत्पश्चात् उन शब्दों का लिंग और संस्कृत को [ ] कोष्ठक में दिया गया। २. कोष्ठक के बाद उस शब्द का अर्थ एवं सन्दर्भ ग्रन्थ की पंक्ति सहित दिया गया है। For Private and Personal Use Only

Loading...

Page Navigation
1 ... 6 7 8 9 10 11 12 13 14 15 16 17 18 19 20 21 22 23 24 25 26 27 28 29 30 31 32 33 34 35 36 37 38 39 40 41 42 43 44 45 46 47 48 49 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 ... 368