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अथ चतुर्मुख महाप्रासाद स्वरुपाध्याय तो प्रासाद बाँधनेका पुण्य वर्जित होता है ।...अस्सी स्तंभोंको फिरते प्रदक्षिणामें भ्रममें करना । चौवीस जिनालयकी मध्य पंक्ति में तेरह तेरह चार कोने में कर बावनके क्षेत्रमें वैसा करना । दो मंडपों मिलते हो तो बिचमें एक पद जितना अंतर चौकीका रखना । चैत्यके नीचे पीठ करना । मूल प्रासादको जेष्ठमानका
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सनमा चत्वाचन
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माधर
३५६ स्तंभ संख्या ४८ महाधर ४ १२ मूळ चौमुख २०८ देरी पर ६२४ कुल स्तंभ
५मुख चाब ५२ लाल का - -- +- जमायतन धार माध्र
तरागत प्रय भामरकसमें
माम-गीरणाचली. । बावन देवकुलिका सहित चतुर्मुख । १ चतुर्मुख
| ५२ देवकुलिका नाम "ताराउली"
महाधर प्रवेश भद्रे कक्षासन करनेसे "किरणाउली" ४ मेघनाद मंडप
४ मंडप ४ बलाणक
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