Book Title: Kshirarnava
Author(s): Prabhashankar Oghadbhai Sompura
Publisher: Balwantrai Sompura

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Page 403
________________ अथ चतुर्मुख महाप्रासाद स्वरुपाध्याय अधोदृष्टि मताकार्या नृत्य भावेन नर्तकी । ज्ञायते सर्व लोकेऽस्मिन् स्थूलदेहा (च) महीतले ॥१३३॥ एते जंघा वितानादौ दिव्यस्थाने चतुर्मुखे । दिग्पाला यक्ष गंधर्व भास्करादि ग्रहस्तथा ॥१३४॥ मुनि ताफ्सपश्च व्यालादि च जलान्तरे ।। इति देवाङ्गनादि जंघा स्वरूप ।। સર્વ લેકમાં જાણીતી એવી દેવાંગનાઓ આ પૃથ્વી પર સ્થૂળ દેહ નૃત્ય ભાવવાળી નૃત્યાંગનાઓની દષ્ટિ નીચે રાખવી. પ્રાસાદના દિવ્ય સ્થાનમાં ચાતુર્મુખ પ્રાસાદની મંડોવરની જંઘા મંડપ એકી અને ઘૂમટો-વિતાન આદિમાં દિપાલ લોકપાલ, યક્ષ, ગાંધર્વ અને સૂર્યાદિ નવ ગ્રહો ઇત્યાદિ સ્વરૂપે ફરતા કરવા. મુની तापस, व्या माहिना २१३५. पाणीतारमा ४२११, १३३-१३४. ।। इति जंघास्वरुप ।। Vira शंख बजाती बाल गुथती सरीवाली बंसरी और पात्रवाली शास्त्रोंका पाठोंसे विशेष प्राचिन मंदिरों में देखने में आतो पृथक पृथक स्वरूप, हावभाव और वार्जित्रवाली देवाशनाओंका स्वरूप । सर्वलोकमें विख्यात ऐसी देवाङ्गनाओं इस पृथ्वी पर स्थूल देहसे नृत्य भाववाली नृत्यांगनाओंकी दृष्टि नीचे रखना। प्रासादके दिव्य स्थानमें चातुर्मुख प्रासादकी मंडोवरकी जंघा मंडप चौकी और घुमट-वितान आदिमें दिग्पाल-लोकपाल यक्ष, गांधर्व और सूर्यादि नौ ग्रहों इत्यादि स्वरूपों फिरते करना। तापस व्याल आदि सरुप पानी तारमें करना । १३३-१३४ संघा स्वरुप ।। ४०

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