Book Title: Kshirarnava
Author(s): Prabhashankar Oghadbhai Sompura
Publisher: Balwantrai Sompura

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Page 386
________________ माधी उदय भाग. शीराव अ.-१२० क्रमांक अ.-२२ નીકળતા. પટ્ટીથી બે ભાગ અધૂપીઠના રૂપ નીકળતા કરવા. ગજપીઠના રૂપ, નીચેની પટ્ટીથી બે ભાગ નીકળતા કરવા. हे ऋषिराज, अब क्षीर सागरमें उत्पन्न हुए ऐसे चतुर्मुख महाप्रासादके और मंडोवरभान सुनो । तीन मिट्टमें पहला छः भागका, दूसरा पाँच भागका और तीसरा तीन भामका (इस तरह जो मान आया हो उसके चौदह भाग का कर तीन मिट्ट करना । और उनके निकाले एक एक भागके रखना । सात भागका जाडंबा तेरह भागकी कणी, (छाजली और ग्रास पट्टीके साथ) करना । बारह भागका गजपीठ, आठ भागका अश्वपीठ और सात भागका नरपीठ करना । इस तरह महापीठके उदयके सुडतालीश भाग जानना । ७४-७५-७६-७७. ___अब निकाले कहते हैं। पहला और दूसरा भिट्ट दो दो भाग और तीसरा भिट्ट एक भागके निकालेका करना । जाडंबाका आठ भाग निकाला, कणीका छः भागको, गजपीठका चार भागका, अश्वपीठका साढ़े तीन भागका, और नरपीठका दो भागका निकाला रखना । सरकी पट्टीसे नरके रूप एक भाग निक . लते-पट्टीसे दो भाग अश्वपीठके रूप निक३ भिट्ट भाग १४ और महापीठ विभाग ४७ लते करना। गजपीठके रूपों-नीचेकी पट्टीसे दो भाग निकलते करना । ७८-७९.. तथा मंडोवरं वक्ष्ये खुरकं द्विपदं भवेत् ॥८॥ कुंभकं पंचसार्द्धच कलशं त्रिपदं श्रुभं । अंतरपत्रं पदमेकेन कपोतालि त्रयपदा ॥८॥ मंचिका त्रयसार्दा चं जंधैकादशपंचके । હવે સહામુખના ડેવરના ભાગ કહું છું. ખરે બે ભાગને, કુંભે સાડા પાંચ ભાગને, કળશે ત્રણ ભાગ, અંતરપત્ર એક ભાગ, કેવાળ ત્રણ ભાગ, IRCente -*-१२-गजेपी-...-१३ सय. कणीकार भीह

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