Book Title: Khartargacchacharya Jinmaniprabhsuriji Ko Pratyuttar Author(s): Tejas Shah, Harsh Shah, Tap Shah Publisher: Shwetambar Murtipujak Tapagaccha Yuvak Parishad View full book textPage 3
________________ sexoose प्रस्तावना न् प्रभुवीर से चली आ रही पवित्र धर्मधारा का वर्तमान में अस्तित्व का मूल कारण है-शासनरक्षक, शासनप्रेमी आचार्य भगवंत, साधु, साध्वीजी एवं श्रावकगण / इन अजोड शासन सेवकों के योगदान से प्रभुवीर का शासन 21000 वर्ष तक जीवंत रहेगा। ___ याद रखें कि यह प्रभुवीर का शासन है, किसी गुरु या गच्छ का नहीं / फिर भी गच्छराग के रोग से पीडित कुछ आचार्य भगवंत एवं साधुसाध्वी इस जिनशासन को अपना गच्छशासन बनाना चाहते है। "अपना गच्छ नामशेष हो जायेगा तो मान लो कि जिनशासन का सर्वनाश हो जायेगा / " इस पागलपन भरे विचारों से प्रेरित होकर भारतभर के संधो में विचरण करके श्रावकों से संपर्क कर "हमारे गच्छ के आचार्य द्वारा आपके गौत्र की स्थापना की गई है" ऐसा उटपटांग झूठ बोलकर श्रावकों को भी अपने गच्छराग का चेप (Infection) लगा रहे हैं। ___ प्राचीन तीर्थों में जीर्णोद्धार के बहाने से अपने नामोल्लेख वाली प्रतिमाएँ एवं अपने गुरुओं की मूर्तियाँ बिठाकर तीर्थ पर अपना वर्चस्व जमाने की तुच्छ प्रवृत्ति के द्वारा श्री संघ की शांति का नाश कर संक्लेशमय वातावरण खडा करके अपनी जीत का एहसास कर रहे हैं। उसका जीता-जागता उदाहरण है श्री उज्जैन जैन संघ में हाल ही बीता हुआ प्रतिष्ठा महोत्सव / सारे भारत ने देखा है कि गच्छराग के नशे में / साथ छल-कपट करके अपने गच्छ का प्रभुत्व जमाने की कुचेष्ठा हुई है। अन्य संघों में भी जहाँ एक ही गच्छ के श्रावकों के घर थे वहां विचरण करके मात्र 25 वर्षों में ही भेदनीति से दो गच्छों के श्रावकों का निर्माण हुआ एवं संघ की एकता और शांतिमय आराधना का संकलेश में रुपांतर हुआ। इसलिए भारत के सभी जैन संधों का जागृत होना आवश्यक है /Page Navigation
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