Book Title: Keynote Address of Dr Sagarmal Jain at Calcutta
Author(s): Mahadeolal Saraogi
Publisher: Mahadeolal Saraogi

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Page 39
________________ -दोना में कुछ शाब्दिक परिवर्तनों के साथ जनों ने स्वीकार कर लिया। इस प्रकार जैन और बौद्ध परम्पराओं में तप, ध्यान और समाधि की साफ्ना गौण होकर कर्मकाण्ड प्रमुख हो गया। इस पारस्परिक प्रभाव का एक परिणाम यह भी हुआ कि जहां हिन्दू परम्पराओं में ऋषभ और बद्ध को ईशवर के अवतार के रूप में स्वीकार कर लिया गया, वहीं जैन परम्परा में राम और कृष्ण को पालाफा पुरुष के रूप में मान्यता मिली| इस प्रकार दोनों धारायें एक दूसरे से समन्वित हुयी। आज जब रामकृष्ण संस्कृति संस्थान जैन विद्या के शोध-कार्य को अपने हाथों में ले रहा है तो मैं कहना चाहूंगा कि उसे इस पारस्परिक प्रभावशीलता को तटस्थ दृष्टि से स्पष्ट करने का प्रयास करना चाहिए, ताकि धमों के बीच जो दूरियां पैदा कर री गयी हैं, उन्हें समाप्त किया जा सके और उनकी निकटता को सम्यक रूप से समझा जा सके। यह कार्य वैसे भी इस संस्था का विशेष दायित्व बनता है, क्यों कि इसकी स्थापना स्वामी रामकृष्ण के आदशों को साकार करने के लिए हुयी है। स्वामी रामकृष्ण जीवन भर स्टिान्त और व्यवहार में धमों के बीच उत्पन्न दूरियों को मिटाने का कार्य करते रहे। यदि हम स्वामी रामकृष्ण और विवेकानन्द के स्वप्न को साकार करना चाहते हैं तो हमें तटस्थ बुद्धि से धर्मों की इस पारस्परिक प्रभावशीलता एवं निकटता को समझना होगा। दुर्भाग्य से इस देश में विदेशी तत्वों के द्वारा न केवल हिन्दू और मुसलमानों के बीच अपितु जैन, बौद्ध, हिन्दू और सिक्खों - जो कि बृहद हिन्दू परम्परा के ही अंग है, के बीच भी खाईयां खोदने का कार्य किया जाता रहा है और सामान्य रूप से यह प्रसारित किया जाता रहा है कि जैन और बौद्ध धर्म न केवल स्वतन्त्र धर्म हैंअपितु वे वैकि हिन्दू परम्परा के विरोधी भी हैं। सामान्यतया जैन और बौद्ध धर्म को वैदिक धर्म के प्रति एक विद्रोह ( Reroet ) के रूप में चित्रित किया जाता रहा है। यह सत्य है कि वैदिक और श्रमण परम्पराओं में कुछ मूलभूत प्रश्नों को लेकर मतभेद है, यह भी सत्य है कि जन और बौद्ध परम्परा ने वैदिक परम्परा की उन विकृतियों को जो कर्मकाण्ड, पुरोहितवाद, जातिवाद और ब्राह्मण वर्ग के द्वारा निम्न क्गों के धार्मिक शोषण के रूप में उभर रही थी, खुलकर विरोध किया Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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