Book Title: Keynote Address of Dr Sagarmal Jain at Calcutta Author(s): Mahadeolal Saraogi Publisher: Mahadeolal SaraogiPage 44
________________ मिथ्या विश्वास समापा हुए हैं, वहीं दूसरी ओर माधिष्ठित आध्यात्मिक और नैतिक मानवीय मूल्यों के प्रति हमारी आस्था भी डगमगा गयी है। आज हम जितना अण के बारे में जानते हैं, उतना मानवीय जीवन के आदर्शों और क मूल्यों के संदर्भ में नहीं जानते। हम “पर" ( Uther ) के सम्बन्ध में जितने सजग है, "स्व"(Selt) के सम्बन्ध में उतने ही प्रसुप्त। उन जीवन मूल्यों, जो कि सार्थक और शांति पूर्ण जीवन के लिए आवश्यक हैं, के प्रति आज हमारी कोई निष्ठा ही नहीं रह गयी है। आज द्वगति से जो तकनीकी विकास हुआ है उसके परिणाम स्वाप भौ तिक दूरियां समाप्त हो रही हैं और विभिन्न राष्ट्रों, संस्कृतियों, और धर्मों के लोग एक दूसरे के निकट आ रहे हैं, किन्तु दुर्भाग्य से ह आज हमारे हृदय एक दूसरे से दूर हो रहे है दूसरे शब्दों में कहें तो भौतिक दूरियां कम हो रही हैं किन्तु हृदय की दूरियां बढ़ रही हैं। परिणाम स्वम्प जहां सहयोग और सहअस्तित्व के मूल्यों का विकास होना था और परस्पर प्रेम और समर्पण के पाठ पढ़ाये जाने थे, हम मनुष्य मनुष्य के बीच घृणा और विद्वेष के बीज वपन कर रहे हैं। रविन्द्रनाथ टैगोर ने ठीक ही कहा था " मनुष्य का एक दूसरे के निकट आना और फिर भी मानवीय मूल्यों की उपेक्षा करना निश्चित ही आत्महत्या की प्रक्रिया की दिशा में अगसर होना है। हमारा दर्भाग्य है कि आज हमारे ज्ञान का विकास हमारे पाशविक स्वार्थपूर्ण स्वभाव पर कोई नियंत्रण नहीं रख पाया। पाशविक वृत्ति आज भी हमारे वैयक्तिक और सामाजिक जीवन को नियंत्रित कर रही है, आज हमारा जीवन मानसिक आवेगों और तनावों से भर गया है। आज चाहे बाहर से म अहिंसा, शांति और सौहार्द की बात करें, किन्तु हमारी आस्था जिसकी लाठी उसकी भैंस के सिद्धान्त पर है। हठवाकिा और स्वार्थ आज भी हमारे जीवन के अंग बने हुए हैं। आज अस्त्र-शस्त्रों की दौड़ में हम मानवता की अन्त्येष्ठि यात्रा की तैयारी कर रहे हैं। बर्टेन्ड रसेल ने ठीक ही कहा है कि मैं एक मानव होने के नाते मानवों से यह प्रार्थना करता हूं कि वे केवल अपनी मानता को याद रखें बाकी सब भूल जायें। यदि,ऐसा करते हैं तो स्वर्ग का द्वार उद्घाटित होगा और यदि ऐसा करने में असफल होते है तो सार्वभौमिक मृत्यु के अतिरिक्त और कुछ शेष नहीं रहेगा। हमें इस तथ्य के प्रति सजग रहना चाहिये कि वैज्ञानिक, तकनीकी और वाणिज्य की यह प्रगति तब अपना अर्थ छोड़ देगी, जब मनुष्य एक दूसरे के प्रति अविश्वास और मार मानवीय मूल्यों की उपेक्षा करेगा। उर्दू शायर इकबाल ने सत्य ही कहा है - तक Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.orgPage Navigation
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