Book Title: Keynote Address of Dr Sagarmal Jain at Calcutta Author(s): Mahadeolal Saraogi Publisher: Mahadeolal SaraogiPage 47
________________ 13 के पुराने मूल्य ढह चुके है और नये मूल्यों का सर्जन अभी हो नहीं पाया है। आज हम मूल्य-रिक्तता की स्थिति में जी रहे हैं और मानवता नये मूल्यों की प्रसव पीड़ा से गुजर रही है। आज वह एक निर्णायक मोड़ पर खड़ी हुई है, उसके सामने दो ही विकल्प हैं या तो पुनः अपने प्रकृत आदिम जीवन की ओर लौट जावे या फिर एक नये मानव का सृजन करे, किन्तु, पहला विकल्प अब न तो सम्भव है और न वरेण्य । अत : आज एक ही विकल्प शेष है - एक नये आध्यात्मिक मानव का निमणि अन्यथा आज हम उस कगार पर खड़े हैं, जहां मानव जाति का सर्वनाश हमे पकार रहा है । आइये देखें इस नये आध्यात्मिक मानव के सृजन में फैन धर्म के सिद्धान्त हमारा क्या मार्ग दर्शन कर सकते हैं ? आध्यात्मिक जीवन-दृष्टि का निर्माण T जैन धर्म कहता है कि इस निणायक स्थिति में मानव को सर्वप्रथम यह तय करना है कि अध्यात्मवादी और भौतिकवादी जीवन दृष्टियों में से कौन उसे वर्तमान संकट से उबार सकती है ? भौतिकवादी दृष्टि मनुष्य की उस भोगलिप्ता तथा त योनित स्वार्थ एवं शोषण की पाशविक प्रवृत्तियों का निरसन पारने में सर्वथा अतमय है, जो कि आज सम्पूर्ण मानव जाति की त्रासदी है । क्यों कि मो तिकवादी दृष्टि में मनुष्य मूलतः पशु ही है। वह मनुष्य को एक आध्यात्मिक सत्ता (Spiritual Being ) न मानकर एक विकस्ति सामाजिक पशु (Socies avan) ही मानती है , जबकि जन धर्म मानव को विवेक और संयम की शक्तियक्त मानता है । भौतिकवाद के अनुसार मनुष्य का नि:श्रेयप्त उसकी शारीरिक एवं मनोवैज्ञानिक मागों की तुष्टि में ही है । वह मानव की भोग-लिप्ता की सन्तुष्टि को ही उसका चरम लक्ष्य पोषित कर की है । यद्यपि वह एक आरोपित सामाजिकता के द्वारा मनुष्य की स्वार्थ एवं शोधण Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.orgPage Navigation
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