Book Title: Keynote Address of Dr Sagarmal Jain at Calcutta
Author(s): Mahadeolal Saraogi
Publisher: Mahadeolal Saraogi

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Page 65
________________ 30 (1) ईष्या के कारण, (2) किसी व्यक्ति की प्रसिद्धि की लिप्सा के कारण, (3) किसी वैचारिक मतभेद (मताह) के कारण, (4) फिसी आचार सम्बन्धी नियमोपनियम में भेद के कारण, (5) किसी व्यक्ति या पूर्व सम्प्रदाय के द्वारा अपमान या खींचातान होने के कारण, (6) किसी विशेष सत्य को प्राप्त करने की दृष्टि से एवं (7) किसी साम्प्रदायिक परम्परा या क्रिया में द्रव्य, क्षेत्र एवं काल के अनुसार संशोधन.या परिवर्तन करने की दृष्टि से। उपरोक्त कारणों में अन्तिम दो को छोड़कर शेष सभी कारणों से उत्पन्न सम्प्रदाय, आग्रह, आर्थिक असहिष्णुता और साम्प्रदायिकः कटुता को जन्म देते हैं। विश्व इतिहास का अध्येता इसे भलीभांति मानता है कि धार्मिक असहिष्णता ने विश्व में जघन्य दुष्कृत्य कराये हैं। आश्चर्य तो यह है कि इस मन, अत्याचार, नृशंसता और रक्त -प्लावन को धर्म का बाना पहनाया गया। शान्ति प्रदाता धर्म ही अशान्ति का कारण बना। आज के वैज्ञानिक यग में धार्मिक अनास्था का मुख्य कारण उपरोक्त भी है। यद्यपि विभिन्न मतों, पंथों और वादों में वाह्य भिन्नता परिलक्षित होती है किन्तु यदि हमारी दृष्टि व्यापक और अनानाही हो तो इसमें भी एकता और समन्वय के सूत्र परिलक्षित हो सकते हैं। ___ अनेकान्त विचार-दृष्टि विभिन्न धर्म सम्प्रदार्यों की समाप्ति के द्वारा एकता का प्रयास नहीं करती है, क्यों कि वैयक्तिकरूचि भेद एवं क्षमता भेद तथा देक्षाफाल-गत भिन्नताओं के होते हुए विभिन्न धर्म एवं विचार सम्प्रदायों की उपस्थिति अपरिहार्य है। एक धर्म या एक सम्प्रदाय का नारा असंगत एवं अव्यावहारिक ही नहीं, अपितु अशान्ति और संघर्ष का कारण भी है। अनेकान्त, विभिन्न धर्म सम्प्रदायों की समाप्ति का प्रयास नहीं होकर उन्हें एक व्यापक पूर्णता में सुसंगत रूप से संयो जित करने का प्रयास हो सकता है। लेकिन इसके लिए प्राथमिफ आवश्यकता है, धार्मिक सहिष्णुता और सर्व-धर्म-समभाव की। अनेकाना के समर्थक जैनाचायों ने इसी धार्मिक सहिष्णुता का परिचय दिया है। आचार्य हरिभद्र की धार्मिक सहिष्णुता तो सर्व विदित ही है। अपने ग्रन्थ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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