Book Title: Keynote Address of Dr Sagarmal Jain at Calcutta Author(s): Mahadeolal Saraogi Publisher: Mahadeolal SaraogiPage 69
________________ इस प्रकार जैनधर्म के अपरिग्रह, अहिंसा और अनेकांत के सिद्धान्त आज भी प्रासंगिक है। अन्त में मैं अपने व्याख्यान का समापन आचार्य अमितगति के इस श्लोक से करना चाहूंगा जिसमें उन्होंने गुणी प्राणियों के प्रति मैत्री भाव, गुणीजनों के प्रति आदरभाव, पीड़ितों के प्रति करुणा भाव एवं विरोधियों के प्रति तटस्थ भाव (निर्विकार भाव ) की कामना की है - Jain Education International - सत्वेषु मैत्रीं गुणीषु प्रमोदं क्लिष्टेषु जीवेषु कृपापरत्वं । माध्यस्थ भावं विपरीतवृतौ सदा ममात्मा बिधातु देव ।। 34 डा. सागरमल जैन वनाथ विद्याप्रम शोध सं पार आईटी आईट रोड चोट आठ वीसंयत्यून वाराणसी 221005 For Private & Personal Use Only - www.jainelibrary.orgPage Navigation
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