Book Title: Keynote Address of Dr Sagarmal Jain at Calcutta Author(s): Mahadeolal Saraogi Publisher: Mahadeolal SaraogiPage 43
________________ १ महाकश्यप, मंखलिगोसाल, संजय (वेलारिठपुत्त) आदि पैंतालिस अषियों का उल्लेख है और इन सभी को आहत अषि, बुद्ध त्रीषि एवं ब्राम्हण अषि कहा गया है। ऋषिभाषित में इनके आध्यात्मिक और नैतिक उपदेशों का संकलन है। जन परम्परा में इस गन्ध की रचना इस तथ्य को स्पष्ट संकेत है कि औपनिषकि अषियों की परम्परा और जैन परम्परा का उदगम श्रोत एक ही है। यह ग्रन्थ न केवल जैन धर्म की धार्मिक उदारता का सूचक है,अपितु यह भी बताता है कि सभी भारतीय आध्यात्मिक परंपराओं का मूल मोत एक ही है। औपनिषदिक, बौद्ध, जैन, आजीवक, सांख्य, योग आदि सभी उसी मूल मोत से निकली हुई धारायें हैं। जिस प्रकार जैन धर्म में ऋषिभा ति में विभिन्न परम्पराओं के उपदेश संकलित है, उसी प्रकार बौद्ध परम्परा की थेरगाथा में भी विभिन्न परम्पराओं के जिन स्थविरों के उपदेश संकलित हैं, उनमे भी अनेक औपनिषदिक एवं अन्य श्रमणपरम्परा के आचार्यो के उल्लेख हैं। जिनमें एक वधमान (महावीर) भी है। यह सब इस तथ्य का सूचक है कि भारतीय परम्परा प्राचीनकाल से ही उदार और सहिष्ण रही है और उसकी प्रत्येक धारा में यही उदारता और सहिष्णुता प्रवाहित होती रही है। आज जब हम साम्प्रदायिक अभिनिवेशों से जकड़ कर परस्पर संघर्षों में उलझ गये हैं इन ग्रन्थों का अध्ययन हमें एक नयी दृष्टि प्रदान कर सकता है। यदि भारतीय सांस्कृतिक चिंतन की इन धाराओं को एक दूसरे से अलग कर देखने का प्रयत्न किया जायेगा। तो हम उन्हें सम्यक रूप से समझने में सफल नहीं हो सकेगें। उत्तराध्ययन, सूत्रकृतांग, अधिभाषित और आचारांग को समझने के लिए औपनिषदिक साहित्य का अध्ययन आवश्यक है। इसी प्रकार उपनिषदों और बौद्ध साहित्य को भी जैन परम्परा के अध्ययन के अभाव में सम्यक प्रकार से नहीं समझा जा सकता है। आज साम्प्रदायिक अभिनिवेशों से ऊपर उठकर तटस्थ एवं तुलनात्मक रूप से सत्य की अन्वेषया ही एक ऐसा विकल्प है जो साम्प्रदायिक अभिनिवेश से ग्रस्त मानव को मुक्ति दिला सक्ती है। पुनः भारतीय आध्यात्मिक परम्परा और विशेष रूप से जन परम्परा ने जिन जीवन मूल्यों को प्रस्तत किया है उनकी कमान युग में क्या प्रासंगिकता है, इसके अध्ययन से ही यह बात स्पष्ट हो जायेगी किआज जैन विद्या के क्षेत्र में अध्ययन एवं शोध की क्यों आवश्यकता है। आज हम जिस युग में जी रहे हैं वह विज्ञान और तकनीकि का युग है। आज वैज्ञानिक ज्ञान के परिणामस्वरूप जहां एक ओर हमारे परम्परागत था कि Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.orgPage Navigation
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