Book Title: Karkanduadik Char Pratyek Buddhno Ras Author(s): Shravak Bhimsinh Manek Publisher: Shravak Bhimsinh Manek View full book textPage 2
________________ म शख ॥ ७ ॥ करकमू राजा डुमुख, नमि नें निग्गई -६ ॥ इण नामें उत्तम दुधा, चारे प्रत्येक बु६ ॥ ॥ ८ ॥ चारित्रिया चारे चतुर, महोटा साधु महंत ॥ चिहुं खंमें कहुं चोपई, जिम पामुं नव अंत ॥ ए॥ चार म ए चौप, चिहुं खं में परसिद्ध | प्रथम खं करकंमुनो, सांजलजो मन शुद्ध ॥ १० ॥ प्रथम ॥ श्रीकरकं प्रत्येक बुद्ध रास प्रारंभः ॥ ॥ ढाल पहेली | राग गोडी || देशी चोपाइनी ॥ ॥ जंबूनामें एदिज द्वीप, दो चंदा दो सूरज दीप ॥ भरत क्षेत्र तिहां कहीयें नलो, जिहां शत्रुज तीरथ गुण निलो ॥ १ ॥ त्रेशठ शलाका पुरुष रतन, जिदां उत्पत्ति जिन धर्म जतन ॥ साडा पचविश खारजदेश, साधु साधवी दिये उपदेश ॥ २॥ देश कलिंग नामें रसि-६, चंपा नयरी ऋद्धि समृद्ध ॥ राज्य करे दधिव) दन राय, रामचंद सम न्याय कहाय ॥ ३ ॥ तेज प्र ताप अधिक जेदनो, वचन न लोपे को तेहनो ॥ वय री राजा माने घाण, दधिवाहनना घणां वखाण ॥ ४ ॥ चेडानी जे पुत्री सात, तेह तणी सुणजो बात ॥ वीर वखाणी साते सती, नामें पाप रहे नह Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.orgPage Navigation
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