Book Title: Kanhad Kathiyara tatha Mayanrehano Ras Author(s): Shravak Bhimsinh Manek Publisher: Shravak Bhimsinh Manek View full book textPage 2
________________ श्रीमानसागरगणिविरचित श्रीराला कान्हडकठियारानो रास प्रार ॥ -- ॥ दोहा ॥ ॥ पारसनाथ प्रणमुं सदा, त्रेविसमा जिनचंद ॥ अलिय विधन दूरे हरें, आपे परमानंद ॥ १॥ वीणा पुस्तक धारिणी, श्रुतदाता श्रुतदेव ॥ सानिध करजो सामिनी, सेवकने नितमेव ॥ २॥ दान शील तप नावना, इणमें अधिकू शीत ॥ सेवे जे नवियण सदा, नव परनव लील ॥ ३॥शीलें सुर सानिध करे, शील सिंह शिबाल ॥ शीले सवि संकट टले, फणि धर दु माल ॥ ४ ॥ शीलें सुखसंपद मिले, शी लें नोग. रस... ॥ कनियारा कान्हड परें, फले मनो रथ माल ॥ ५ ॥ कठियारो कान्हड दुवो, शीलवंत मां हे लीह ॥ तास तणा गुण गावतां, पावन थाये जी ह ॥ ६॥ गुण गानं गुरुया तणा, सांजलजो सदु सं त ॥ शील किसी परे पालियुं, ते दाखं व ॥७॥ Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.orgPage Navigation
1 2 3 4 5 6 7 8 9 10 11 12 13 14 15 16 17 18 19 20 21 22 ... 50