Book Title: Kalpasutram
Author(s): Bhadrabahuswami, Mafatlal Zaverchand Gandhi
Publisher: Mukti Vimal Jain Granthmala
View full book text
________________
संलोए त्ति क्षुल्लाद्यभावेऽन्येषांलाहकारादानां वर्षत्यप्यमुक्तस्वकर्मणां सालाके दृग्पथे तत्रापि सप्रतिद्वारे । सर्वगृहाणां वा दारे एवं ण्हं ति एवं कल्पते स्थातुं एहमित्यलङ्कारे ॥ ३८॥ । । वासावासं प० निग्गंथस्स गाहावइकुलं पिंडवायपडिआए अणुप्पविट्ठस्स निग्गिज्झअ निग्गि
झिअ वुट्टिकाए निवइज्जा कप्पइ से अहे आरामंसि वा अहे उवस्सयंसि वाजाव उवागच्छित्तए, तत्थ नो कप्पइ एगस्स निग्गंथस्स य एगाए अगारीए एगओ चिट्ठित्तए एवं चउभंगो, अत्थि अ इत्थ केइ पंचमे थेरे वा थेरिया वा अन्नेसिं वा संलोए संपडिदुवारे एवं कप्पइ एगओ चिद्वित्तए एवं चेव निग्गंथीए अगारस्स य भाणियव् ॥ ३९ ॥ - व्याख्या-वासावासमित्यादितो....भाणियव्वं इत्यन्तम् , तत्र निर्ग्रन्थस्यागारीसूत्रे निर्ग्रन्थ्याश्चा| गारसूत्रे प्रागुक्तरीतिरेव, अगारमस्यास्तीत्यभ्रादित्वादप्रत्ययेऽगारो-गृही ॥ ३९ ॥ वासावासं प० नो कप्पइ निग्गंथाण वा निग्गंथीण वा अपरिन्नएणं अपरिन्नयस्स अट्ठाए असणं वा १ पाणं वा २ खाइमं वा ३ साइमं वा ४ जाव पडिग्गहित्तए ॥ ४०॥ से किमाहु भंते | इच्छापरो अपरिनए भुंजिज्जा इच्छापरो न भुंजिज्जा ॥ १ ॥

Page Navigation
1 ... 349 350 351 352 353 354 355 356 357 358 359 360 361 362 363 364 365 366 367 368 369 370 371 372 373 374 375 376