Book Title: Kalpasutram
Author(s): Bhadrabahuswami, Mafatlal Zaverchand Gandhi
Publisher: Mukti Vimal Jain Granthmala
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कल्प
प्रदीपिका
॥ १३ ॥
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वासवासं पज्जोसवियस्स निग्गंथस्स गाहावइकुलं पिंडवायपडिआए अणुपविट्ठस्स निग्गिज्जिअ निग्गिज्जिअ वुट्टिका निवइज्जा कप्पड़ से अहे आरामंसि वा जाव उवागच्छित्तए ॥ ३७ ॥ व्याख्या - वासावा समित्यादित..... उवागच्छित्तए इत्यन्तं स्पष्टम् ॥ ३७ ॥ अथ कथं विकगृहवृक्षमूलादौ स्थेयमित्याह
तत्थ नो कप्पइ एगस्स निग्गंथस्स एगाए निग्गंथीए एगओ चिट्ठित्तए १, तत्थ नो कप्पइ एगस्स निग्गंथस्स दुन्हं निग्गंधीणं एगओ चिट्ठित्तए २, तत्थ नो कप्पइ दुन्हं निग्गंथाणं एगए निग्गंथीए एगओ चिट्ठित्तए ३, तत्थ नो कप्पइ दुन्हं निग्गंथाणं दुन्हं निग्गंथीणं एगओ चिट्ठित्तए ४, अत्थि अ इत्थ केइ पंचमे. खुड्डए वा खुड्डिआए वा अन्नेसिं वा संलोए सपदुिवारे एवं न्हं कप्पइ एगओ चिट्ठित्तए ॥ ३८ ॥
व्याख्या - तत्थ नो कप्पइ एगस्सेत्यादित... एगओ चिट्ठित्तए इत्यन्तम् स्पष्टम् परं एकाकित्वं तस्य सङ्घाटिके उपाषितेऽसुखिते वा कारणविशेषादा अत्थि अ इत्थ केइ त्ति अस्ति चात्र कश्चित्पञ्चमः क्षुल्लकः साधूनां क्षुल्लिका साध्वीनां, उत्सर्गतः साधुरात्मना द्वितीयः, संयत्यस्तु त्र्यादयः अन्नेसिं वा
समाचारी
॥ १३ ॥

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