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कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची
१. पे नाम. सुभाषित रत्नावली, पृ. ४अ-२०अ, अपूर्ण, पू. वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं.
सद्भाषितावली, आ. सकलकीर्ति, सं., पद्य, आदि: (-); अंति: ज्ञानतीर्थं हि जीवान्, श्लोक-४९५, (पू.वि. श्लोक-६२ अपूर्ण से है.)
२. पे. नाम. जैनधर्मसम्मत श्लोक संग्रह - विविध शास्त्रोद्धृत, पृ. २०अ २०आ, संपूर्ण.
सं., पद्य, आदि: कंडनी पेषणी चुल्ली उदकुंभ; अंति: भेदः शृंग कृतो भवेत्, श्लोक-११. ३. पे. नाम. छायापुरुषलक्षण श्लोक, पृ. २०आ, संपूर्ण.
सं., पद्य, आदि अथातः संप्रवक्ष्यामि ; अति तस्य मृत्यु न विद्यते श्लोक-६.
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११८४८५ () सिंदूरप्रकर सह वृत्ति, अपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पृ. २३-४ (२ से ३ ६ से ७)= १९, पू.वि. बीच-बीच व अंत के पत्र नहीं हैं. प्र. वि. हुंडी : सिंदूरप्रक. सू० वृ०. मूल पाठ का अंश खंडित है, जैये. (२७४१२, १२४३१).
सिंदूरप्रकर, आ. सोमप्रभसूरि, सं., पद्य, वि. १३वी, आदि: सिंदूरप्रकरस्तपः करिशिरः; अंति: (-), (पू.वि. श्लोक-३ से १० तक, श्लोक १८ से २२ तक व ८६ से नहीं है.)
सिंदूरप्रकर- अवचूरि, सं., गद्य, आदि पार्श्वप्रभोर्नखद्युतिभरो; अंति: (-).
११८४९०. धन्नाकाकंदी चौढालिया व प्रतिक्रमण सज्झाय, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ५, कुल पे. २, दे., (२७.५X११.५, ८X३५).
१. पे. नाम. धन्नाकाकंदी चौढालिया, पृ. १अ - ५अ, संपूर्ण.
मु. माल, मा.गु., पद्य, वि. १८२५, आदि प्रथम समरु सुत देविन अति पसावधी रे मालमुनि गुण गाय, डाल-४. २. पे. नाम. प्रतिक्रमण सज्झाय, पृ. ५अ -५आ, संपूर्ण.
संबद्ध, मु. धर्मसिंह मुनि, मा.गु., पद्य, आदि: कर पडिकमणुं भावशुं; अंति: मुक्ति तणो ए निधांन, गाथा-६. १९८४९४ (+०) कविशिक्षा सह टीका, अपूर्ण, वि. १६वी, मध्यम, पू. ३१-२३( २ से ६,८,१० से ११,१३ से १४,१९ से ३०)=८, पू.वि. बीच-बीच के पत्र हैं., प्र. वि. आधे पत्रांक अनुमानित है, पदच्छेद सूचक लकीरें संधि सूचक चिह्न संशोधित मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., (२८x११, १८-२२४७८-९२).
कविशिक्षा, श्राव. अरिसिंह, सं., पद्य, वि. १३वी आदि (-); अंति (-), (पू. वि. प्रतान-२ स्तबक ३ श्लोक ४९
(क्रमशः नंबर- ११८) अपूर्ण से इसी प्रतान के स्तबक- ४ श्लोक १७७ तक, प्रतान- ३ स्तबक- १ श्लोक ७ से ४५ अपूर्ण तक, प्रतान-३ स्तबक- ३ श्लोक - ६० से इसी प्रतान के स्तबक-५ का श्लोक-१०२ तक, प्रतान-४ स्तबक-५ श्लोक १४८ से १५६ तक है व बीच-बीच के पाठांश नहीं है. वि. लोकांक देने में कहीं प्रतर से क्रमश: है तो कहीं
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स्तचक से १ क्रमांक प्रारंभ किया है, कहीं तो नंबर दिया ही नहीं है.)
कविशिक्षा-काव्यकल्पलतावृत्ति, य. अमरचंद्र, सं., गद्य, वि. १३वी, आदि: (-); अंति: (-).
११८४९६ (+) पर्याप्ता अपर्याप्ता विचार, अपूर्ण, वि. २०वी मध्यम, पू. १३-१ (१) = १२. पू. वि. बीच के पत्र हैं. प्र. वि. संशोधित. दे.,
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(२७.५४१२, १८४४२).
पर्याप्ता अपर्याप्ता ३१ द्वार विचार, रा., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. २. अजीव तत्त्व से ९. मोक्ष तत्त्व वर्णन अपूर्ण
तक है.)
११८४९९. (+#) समवायांगसूत्र सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १७५७, कार्तिक शुक्ल, ९, मध्यम, पृ. १०८, प्रले. सा. केसरजी आर्या, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. हुंडी: समवायांगसूत्र., संशोधित टिप्पण युक्त विशेष पाठ. मूल पाठ का अंश खंडित है, जैवे. (२८x११.५, ५x५०).
समवायांगसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., गद्य, आदिः सुयमे आउस तेणं भगवद अंतिः अज्झयणं ति त्ति बेमि अध्ययन- १०३, सूत्र- १५९ . १६६७.
समवायांगसूत्र-टबार्थ *, मा.गु., गद्य, आदि: पांचमो गणधर सुधर्मास्वामि; अंति: इति शब्द समाप्ति न अर्थइं. ११८५०१. (+) सप्तव्यसन कथासमुच्चय, अपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ३३-२८ (१ से २८) = ५, पू. वि. बीच के पत्र हैं., प्र. वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ संशोधित, जैवे. (२६.५x१२, १५४३६).
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