Book Title: Kailas Shrutasagar Granthsuchi Vol 26
Author(s): Mahavir Jain Aradhana Kendra Koba
Publisher: Mahavir Jain Aradhana Kendra Koba

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Page 455
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra ४४० www.kobatirth.org कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ३७. पे. नाम. गजसुकुमालमुनि सज्झाय, पृ. १० आ-११अ संपूर्ण. मु. रतनचंद, मा.गु., पद्य, वि. १९वी, आदि: देवकीनंद शिरोमण सुंदर; अंति: जी कहे० मधु मासे गुरुवारो, गाथा-१०. ३८. पे. नाम. मृगापुत्र सज्झाय, पृ. ११अ, संपूर्ण. मु. रतनचंद, मा.गु., पद्य, वि. १८९२, आदि सुणो सुणो हो भविक मन; अंतिः रतनचंद० ढाल वाणवे दीपक माल, गाथा - १२, (वि. दो गाथा को १ गाथा के क्रम से गिनी गई है.) Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ३९. पे. नाम. गजसुकुमालमुनि सज्झाय, पृ. ११ अ ११आ, संपूर्ण. मा.गु., पद्य, आदि: वाणी श्रीजिनराज तणी काने; अंति: ऊपर वे सास जामण करणो कीसो, गाथा-१५. ४०. पे नाम. सद्गुरुवाणी पद, पृ. १९आ-१२अ संपूर्ण. मु. रतनचंद, मा.गु., पद्य, वि. १८७३, आदि: मीठी अमृत सारखी; अंति: आनंद में कीधी आ ढाल रसाल, गाथा - १८, (वि. गाथाक्रम भिन्न है.) ४१. पे नाम. गुमानचंदगुरुगुण सज्झाय, पृ. १२अ १२ आ. संपूर्ण. मु. रतनचंद, मा.गु., पद्य, आदि: गुणवंत गुरना गुण काया; अंति: रेण समरे पूजरो उपगार ए, ढाल-२, गाथा-३०. ४२. पे. नाम. गुमानचंदगुरुगुण सज्झाय, पृ. १२आ-१३अ, संपूर्ण. मु. रतनचंद, मा.गु., पद्य, आदि: विने मूल जिनधर्म छे भर्म; अंतिः सुणीने लाया सीमगुणधारी, गाथा- ११. ४३. पे नाम, गुमानचंदगुरुगुण सज्झाय, पृ. १३अ १३आ, संपूर्ण. मु. रतनचंद, मा.गु., पद्य, आदि: जिन आज्ञा अनुस्वारथी उजल; अंतिः प्रगट्यो ग्यान विशेष रे, गाथा-१३. ४४. पे. नाम. गुरुगुण सज्झाय, पू. १३आ, संपूर्ण. मु. रतनचंद, मा.गु., पद्य, आदि मिलिया गुरु ग्यान तणा, अंति: कहे० भेट भए भवजल तिरिया, गाथा-५. ४५. पे. नाम, गुरुगुण सज्झाय, पृ. १३आ, संपूर्ण. मु. रतनचंद, मा.गु., पद्य, आदि: सतगुर मत भूलो एक घडी बोध; अंतिः सेवो जोवे चावो मुगतपुरी, गाथा-५. ४६. पे. नाम. गुरुगुण सज्झाय, पृ. १३आ, संपूर्ण. मु. रतनचंद, मा.गु., पद्य, आदि: गुर सम कुण जग मे उपगारी; अंति दर्शन देख देख लूं बलिहारी, गाथा - ९. ४७. पे नाम. गुरुगुण पद, पृ. १३आ, संपूर्ण मु. रतनचंद, मा.गु., पद्य, आदि मन सतगुर सीख काही भूले अति रतन० अमिरस आतमराम सदा झूले, गाथा-४. ४८. पे. नाम. आचारछत्रीसी, पृ. १३आ, अपूर्ण, पू. वि. प्रारंभ के पत्र हैं. मु. रतनचंद, मा.गु., पद्य, आदि: सुध समकीत पाया वीना, अंति: (-), (पू.वि. दोहा-२ अपूर्ण तक है.) ४९. पे. नाम, आचारछत्रीसी, पृ. १५-१५ आ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र हैं. मु. रतनचंद, मा.गु., पद्य, आदि (-); अति माहे सुणजो भवियण प्राणी, गाथा-३७, (पू.वि. गाथा १ अपूर्ण से है.) ५०. पे. नाम. समजछत्रीसी, पृ. १५आ-१६आ, संपूर्ण. समझछत्रीसी, मु. रतनचंद, मा.गु., पद्य, आदि सतगुरु सुधकर ओलखो छोडा; अंति कीयो जोधाणे शहर चोमास, गाथा-४२. ५१. पे. नाम. साधु आचार सज्झाय, पृ. १६आ-१७आ, अपूर्ण, पू. वि. प्रारंभ के पत्र हैं. साधु आचार सज्झाय-द्वार दोष विचार, मा.गु., पद्य, आदि: सूत्र सुध परूपणा करे; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-३७ अपूर्ण तक है.) ११९९३२. (४) स्थूलभद्ररो नवरस्यो, संपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पृ. ५, ले. स्थल. केकडी प्रले. महाकुर, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. हुंडी खंडित है., अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५.५X११, १८३८). " For Private and Personal Use Only स्थूलिभद्रमुनि नवरसो, उपा. उदयरत्न, मु. दीपविजय, मा.गु., पद्य, वि. १७५९, आदि: सुखसंपत दायक सदा पायक जास; अंति: मनोरथ सहज सहु फल्या रे, ढाल - ९, गाथा-७४. ११९९३४. (+) षडशीति व शतक नव्य कर्मग्रंथ, अपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पू. ७, कुल पे. २, प्र. वि. संशोधित. मूल पाठ का अंश खंडित है, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., ( २६१२, १५X३५-३९). १. पे. नाम षडशीति नव्य कर्मग्रंथ, पृ. १अ ४आ, संपूर्ण.

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