Book Title: Kailas Shrutasagar Granthsuchi Vol 26
Author(s): Mahavir Jain Aradhana Kendra Koba
Publisher: Mahavir Jain Aradhana Kendra Koba

View full book text
Previous | Next

Page 481
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra ४६६ www.kobatirth.org कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची महावीरजिन स्तोत्र- प्रभाती, मु. विवेक, मा.गु., पद्य, आदि सेवो वीरने चितमां नित अति विवेक० माहा सीधी पावे, गाथा - १५. १२०१२८. गोडी पारसनाथ स्तवन, संपूर्ण, वि. १८९१२ माघ कृष्ण, १ रविवार, मध्यम, पृ. १ ले स्थल. एकलिंग, प्र. वि. हुंडी श्रीपार्श्वनाथ स्तवन., प्र.ले. श्री. (१४६५) ज्यां लग मेर अडग है, जैये. (२३.५४९.५, १०४२६). पार्श्वजिन स्तवन- गोडीजी, मु. जिनचंद्र, पुहिं., पद्य, वि. १७२२, आदि: अमल कमल जिम धवल विराजे; अंति: जिनचंद० फली सह आस, गाथा- ९. १२०१२९. औपदेशिक बोल संग्रह, संपूर्ण, वि. १८८८, ज्येष्ठ शुक्ल, ११, सोमवार, मध्यम, पृ. २, ले.स्थल. रूपनगर, प्रले. श्रावि रायकवारी, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे. (२५. ५X१०, १४४५६). " औपदेशिक बोल संग्रह, मा.गु., गद्य, आदि: सावण भादरवाम चोदास कारण; अंति: नव निधान का नाम छे. १२०१३०. औपदेशिक सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १, प्रले. मु. भावविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, जैवे. (२५x१०, १२३०). औपदेशिक सज्झाय, पन्या, ऋषभसागर, मा.गु., पद्य, आदि करो रे कसीदा इन विधि अति रिषभसागर रस लाग रे " चतुरनर, गाथा-८. १२०१३१. (+) मवणरेहा सज्झाय, संपूर्ण वि. १९वी मध्यम, पृ. ४, प्रले. श्राव. गुमान प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैवे. (२४.५x१०.५. १९४४६). Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir मदनरेखासती सज्झाय, मा.गु., पद्य, आदि: अरिहंत सिद्धने आयरिय; अंति: पोहचइ मोक्ष मझारि, गाथा - १६०. १२०१३२ (4) चित्रसंभूति सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९वी मध्यम पू. १, प्र. वि. मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., (२२.५x१०, १३X३८). و चित्रसंभूति सज्झाय, मु. कविवण, मा.गु., पद्य, आदि चित कहे ब्रह्मरायने कछु अंति: कवीअण० आवागमण नीवारो हो, गाथा- २३. १२०१३३. २४ जिन स्तवन व शांतिजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, प्रले. मु. धीरजमल, प्र.ले.पु. सामान्य, जैवे. (२३१०, १५x२८). १. पे. नाम. २४ जिन स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण. २४ जिन स्तवन- वर्णगर्भीत, मु. रायचंद ऋषि, रा., पद्य, वि. १८३६, आदि: श्रीरषभ अजित संभवसामी अंति रायचंद० आवी गमण दुर हरणा, गाथा - ११. २. पे. नाम. शांतिजिन स्तवन, पृ. १आ, , संपूर्ण. मु. रतनचंद, मा.गु., पद्य, वि. १८५१, आदि: संत जिणैसर सोलमा संत करो; अंति: रतनचंद० संतजीणै सोलमा, गाथा- ९. १२०१३४. ८ कर्म १५८ प्रकृति विचार, मरुदेवीमाता सज्झाय व दानशीलतपभावना सज्झाय, संपूर्ण वि. १९वी मध्यम, पू. १, कुल पे. ३, प्र. वि. पत्रांक नहीं लिखा होने के कारण अनुमानित पत्रांक दिया गया है, जैदे. (२४.५४१०.५, १५४५५). . "" १. पे. नाम. ८ कर्म १५८ प्रकृति विचार, पृ. १अ, संपूर्ण. मा.गु., गद्य, आदि: पहेलो म्यानावरणी तेहनी; अंति: जीव मोख जाय. २. पे नाम, मरुदेवीमाता सज्झाय, पू. १अ १आ, संपूर्ण, मा.गु., पद्य, आदि: मोरादेवी माता कहे सांभलो; अंति: वरत्या जे जैकारो रे. ३. पे नाम, दानशीलतपभावना सझाय, पृ. १आ, संपूर्ण. दानशीलतपभावना सज्झाब, मा.गु., पद्य, आदि रे जीव धर्म कीजीये धर्मना, अंति बिनबुं प्रभुं पार उतार, गाथा-४. १२०१३५. २४ जिन तीर्थमाला स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, जैदे., ( २३X१०.५, ११x२४). २४ जिन तीर्थमाला स्तवन, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, आदि सेत्रुज ऋषभ सामासर्वा अतिः समवसुंदर कहे एम, गाथा-१६, (वि. अहमदावाद स्थित मंदिरों के किसी अज्ञात स्तवन की गाथा १२ से १४ लिखी है.) १२०१३६. (+०) चडवीस तीर्थंकर गीत, संपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पृ. २, प्र. वि. संशोधित मूल पाठ का अंश खंडित है, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैवे. (२४४१०, २३४६९) स्तवनचौवीसी, आ. जिनराजसूरि, मा.गु. पद्य वि. १७वी आदि मनमधुकर मोही रह्यो रिषभ अति हिव करी आप समान रे, स्तवन- २४. , For Private and Personal Use Only

Loading...

Page Navigation
1 ... 479 480 481 482 483 484 485 486 487 488 489 490 491 492 493 494 495 496 497 498 499 500 501 502 503 504 505 506 507 508 509 510 511 512 513 514 515 516 517 518 519 520 521 522 523 524 525 526 527 528 529 530 531 532 533 534 535 536 537 538 539 540 541 542 543 544 545 546 547 548 549 550 551 552 553 554 555 556 557 558 559 560 561 562 563 564 565 566 567 568 569 570 571 572 573 574 575 576 577 578 579 580 581 582 583 584 585 586 587 588 589 590 591 592 593 594 595 596 597 598 599 600 601 602 603 604 605 606 607 608 609 610 611 612