Book Title: Kailas Shrutasagar Granthsuchi Vol 26
Author(s): Mahavir Jain Aradhana Kendra Koba
Publisher: Mahavir Jain Aradhana Kendra Koba
Catalog link: https://jainqq.org/explore/018083/1

JAIN EDUCATION INTERNATIONAL FOR PRIVATE AND PERSONAL USE ONLY
Page #1 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org कैलास श्रुतसागर ग्रंथसूची जैन हस्तलिखित साहित्य (खंड-१.१.२६) Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir 15260 KAILASA ŚRUTASAGARA GRANTHASUCI Descriptive Catalogue of Jain Manuscripts यह प्रमाणडणा ब्रह्माणानादयागीम चदरिमीणामिवमा वादमञ्जगारावति।। गानामा डिएाएंडि आचार्य श्री हाव महावीर । कोबा तीर्थ For Private and Personal Use Only (Vol 1, 1.26) प ज्ञानमंदिर मना श्रीयादी MISH Page #2 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir आचार्य श्री कैलाससागरसूरि स्मृति ग्रंथसूची - रत्न २६ कैलास श्रुतसागर ग्रंथसूची (१.१.२६) श्री महावीर जैन आराधना केन्द्र, कोबा तीर्थ संचालित आचार्य श्री कैलाससागरसूरि ज्ञानमन्दिर (जैन व प्राच्यविद्या शोध संस्थान एवं ग्रन्थालय) श्री देवर्द्धिगणि क्षमाश्रमण हस्तप्रत भाण्डागार में संगृहीत हस्तलिखित ग्रंथों की विस्तृत सूची से आशीर्वाद व प्रेरणा आचार्य श्री पद्मसागरसूरीश्वरजी भी अपतं तव प्रकाशक 6 श्री महावीर जैन आराधना केन्द्र, कोबा तीर्थ, गांधीनगर वीर सं. २५४४ ० वि.सं. २०७४ ० ई. २०१८ For Private and Personal Use Only Page #3 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir आचार्य श्री कैलाससागरसूरि स्मृति ग्रंथसूची - रत्न २६ Āacārya Śhrī Kailāsasāgarasūri Smộti Granthasūcī - Ratna 26 कैलास श्रुतसागर ग्रंथसूची : १.१.२६ Kailāsa Śrutasāgara Granthasūcī:1.1.26 *संपादक मंडल * पं. संजयकुमार आर. झा पं. नवीनभाई वी. जैन पं. अरुणकुमार झा पं. राहुल त्रिवेदी डॉ. जागृति बी. प्रजापति पं. रामप्रकाश झा पं. गजेन्द्रभाई शाह पं. भाविन पंड्या पं. पंकज शर्मा सुश्री मीनाक्षी शिंदे * संयोजक * डॉ. हेमन्त कुमार * संपादन सहयोग * परबत ठाकोर संजय गुर्जर * कम्प्यूटर प्रोग्रामिंग * केतन डी. शाह For Private and Personal Use Only Page #4 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org आचार्य श्री कैलाससागरसूरि स्मृति ग्रंथसूची - रत्न २६ श्री महावीर जैन आराधना केन्द्र, कोबा तीर्थ संचालित आचार्य श्री कैलाससागरसूरि ज्ञानमन्दिर स्थित श्री देवर्द्धिगणि क्षमाश्रमण हस्तप्रत भाण्डागारस्थ हस्तलिखितग्रंथानां विस्तृत सूची जैन साहित्य विभाग - १ : हस्तप्रत सूची वर्ग - ९ : खंड- २६ आशीर्वाद व प्रेरणा आचार्य श्री पद्मसागरसूरीश्वरजी Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir Descriptive Catalogue of Manuscripts Preserved in Śrī Devarddhigaṇi Kṣamāśramaṇa Hastaprat Bhāṇḍāgāra Acharya Shri Kailasasagarsuri Gyanmandir (Jain, Indological Oriental Research Institute and Library) under the auspices of Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra, Koba Tirth Section - I : Manuscripts Catalogue Class - I : Jain Literature Volume - 26 Blessings & Inspiration Acharya Shri Padmasagarsurishwarji Publisher Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra, Koba Tirth, Gandhinagar, (Guj.) India 2018 For Private and Personal Use Only Page #5 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir Acharya Shri Kailasasagarsuri Memorial Catalogue Series - 26 Kailāsa Śrutasāgara Granthasūcī: 1.1.26 Descriptive Catalogue of Manuscripts - 1.1.26 Preserved in Śrī Dēvarddhigaại Kșamāśramaņa Hastaprat Bhāņdāgāra Acharya Shri Kailasasagarsuri Gyanmandir 00:Publisher Vir Samvat 2544, Vikram Samvat 2074, A.D. 2018 O Edition : First ० प्रकाशन सौजन्य : स्व. शेठ श्री कन्हैयालालजी चपलोत परिवार, ह. पारस कन्हैयालालजी चपलोत, मीरा रोड़, मुंबई Swa. Sheth Shri Kanhaiyalalji Chaplot Parivar, By Paras Kanhaiyalalji Chaplot, Meera Road, Mumbai OAvailable at: Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra, Koba Tirth OPublisher: Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra Koba Tirth, Gandhinagar 382007. (Guj.) INDIA Tel: (079) 23276204,23276205, 23276252, What'sApp : 07575001081 Web site: www.kobatirth.org E_mail : gyammandir@kobatirth.org OPrice: Rs. 1500/O ISBN: 81-89177-00-1 (Set) 978-93-85803-27-7(Vol.26) OPrinter : Navprabhat Printing Press, Ahmedabad *उपलक्ष* श्रुतोद्धारक आचार्यदेव श्री पद्मसागरसूरीश्वरजी म. सा. के ८४ वें जन्मोत्सव के पुनीत प्रसंग पर वि. सं. 2074, भाद्रपद सुद, 13, रविवार दि. 23-09-2018 For Private and Personal Use Only Page #6 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir योगनिष्ठ आचार्य श्री बुद्धिसागरसूरीश्वरजी आचार्य श्री कीर्तिसागरसूरीश्वरजी गच्छाधिपति आचार्य श्री कैलाससागरसूरीश्वरजी आचार्य श्री कल्याणसागरसूरीश्वरजी आचार्य श्री पद्मसागरसूरीश्वरजी For Private and Personal Use Only Page #7 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ॥ अर्हम् नमः ॥ 卐 मंगल कामना तीर्थंकरों की वाणी में सरस्वती का निवास है. श्री तीर्थंकर परमात्मा के श्रीमुख से निकली वाणी, जिसे गणधर भगवंतों ने सूत्ररूप में गुंफित किया है; ऐसे जिनागम की परंपरा को वाचना के द्वारा आज तक अविच्छिन्न रखनेवाले सभी आचार्य भगवंतों को वंदन. जिनागम को समर्पित नियुक्तिकार-भाष्यकार-चूर्णिकार-टीकाकार एवं ग्रंथों के प्रतिलेखक आदि श्रमण समूह का भी मैं ऋणस्वीकृतिपूर्वक पुण्य स्मरण करता हूँ. अनेक जैन संघों, श्रेष्ठियों तथा यतिवर्ग ने आज तक जैन साहित्य का संग्रह-संरक्षण करके अनुमोदनीय कार्य किया है, वे सभी धन्यवाद के पात्र हैं. समय परिवर्तन के साथ परिस्थितिवश लोगों का गाँवों से शहर की ओर जाना प्रारंभ हुआ. यतिवर्ग भी लुप्तप्राय हुए. इन सभी कारणों से ग्रन्थभंडारों की स्थिति चिंतनीय बन गई. बहुत से ग्रन्थ विदेश जाने लगे, कुछ भंडार लोगों की उपेक्षा से नष्टप्राय होने लगे, ग्रन्थों की सुरक्षा भी एक समस्या बन गई. इन सब बातों को देखकर सर्वप्रथम सन् १९७४ में अहमदाबाद के चातुर्मास दौरान ग्रन्थ भंडारों को सुव्यवस्थित करने का मुझे विचार आया. परम श्रद्धेय आचार्य भगवंत श्रीमद कैलाससागरसूरीश्वरजी म.सा. से इस विषय में चर्चा करके उनके मंगल आशीर्वाद से कार्य प्रारंभ करने का संकल्प किया. श्रेष्ठीवर्य स्व. कस्तुरभाई लालभाई आदि ने भी इस कार्य में सहयोग देने की भावना दर्शाई. सन् १९७९ में श्री महावीर जैन आराधना केन्द्र के नाम से कोबा में संस्था की स्थापना हुई. अनेक स्थानों व विविध प्रान्तों में विहार करके ग्रन्थों को संग्रह करने का कार्य प्रारंभ हुआ और धीरे-धीरे संग्रह समृद्ध बनता गया. श्री कैलाससागरसरि ज्ञानमंदिर आज भारत का एक सव्यवस्थित-समद्ध ज्ञानभंडार है. प्राचीन प्रणाली को कायम रखते हुए भी इस ज्ञानमंदिर में आधुनिक साधनों का सुभग समन्वय हुआ है. ज्ञानभंडार को व्यवस्थित करने के साथ-साथ इस खंड से पूर्व की सूचियों में समाविष्ट अधिकांश ग्रंथों की मूलसूची बनाने का जो भगीरथ कार्य मुनि श्री निर्वाणसागरजी ने किया है तथा इस कार्य के लिए योग्य मार्गदर्शन देकर आचार्य श्री अजयसागरसूरिजी ने जो सहयोग दिया है, उसे कभी भुलाया नहीं जा सकता. अन्य मुनिराजों ने भी जो यथायोग्य बहुमूल्य सहयोग दिया है, उन सबकी मैं हार्दिक अनुमोदना करता हूँ. ज्ञानमंदिर के पंडितवर्ग ने जिस सूझ व धैर्य के साथ अस्तव्यस्त हस्तप्रतों को व्यवस्थित करने एवं प्रतों के बारीक अध्ययनपूर्वक अतिविवरणात्मक सूचीकरण के इस कार्य को उत्तरोत्तर गति प्रदान की, वह अपने आप में अनूठा व इतिहाससर्जक कार्य है. डॉ. हेमन्त कुमार, श्री संजयकुमार झा, श्री रामप्रकाश झा, श्री नवीनभाई जैन, श्री गजेन्द्रभाई शाह, श्री अरुणकुमार झा, श्री भाविन पंड्या, श्री राहुल त्रिवेदी, श्री पंकज शर्मा, डॉ. जागृति बी. प्रजापति, सुश्री मीनाक्षी शिंदे आदि सभी पंडितवरों, प्रोग्रामर श्री केतनभाई शाह एवं सभी सहयोगी कार्यकर्ताओं को मेरा हार्दिक धन्यवाद है. संस्था के अध्यक्ष श्री सुधीरभाई मेहता, ज्ञानमंदिर में चल रही विविध गतिविधियों की देख-रेख करनेवाले अन्य ट्रस्टीगण व कारोबारी सदस्य सभी को उनकी बहुमूल्य सेवाओं के लिए हार्दिक आशीर्वाद देता हूँ. अनेक श्रीसंघों, व्यक्तियों और जैन-जैनेतर लोगों ने भी इस कार्य में मुझे पूर्ण सहयोग दिया है, जिन्हें मैं धन्यवाद देता हूँ. ग्रन्थों के संरक्षण, सूचीकरण व प्रस्तुत २६वें खंड के प्रकाशन में आर्थिक सहयोग प्रदान करनेवाले स्व. शेठ श्री कन्हैयालालजी चपलोत परिवार, ह. पारस कन्हैयालालजी चपलोत, मीरा रोड़, मुंबई के प्रति भी धन्यवाद देता हूँ. बड़ी संख्या में पूज्य साधु-साध्वीजी तथा विद्वान-शोधकर्ताओं द्वारा यहाँ के ग्रंथसंग्रह का सुंदर लाभ लिया जा रहा है, जो बड़ी ही प्रसन्नता का विषय है. इस ज्ञानभंडार के हस्तप्रतों के अपने-आप में विशिष्ट प्रकार के सूचीपत्र कैलास श्रुतसागर ग्रन्थसूची का २६वाँ खंड प्रकाशित हो रहा है, जो ज्ञानमंदिर के कार्य की सफलता का एक नया सोपान है. मुझे विश्वास है कि विश्वभर के विद्वज्जन इस ग्रंथसूची से महत्तम लाभान्वित होंगे. संस्था अपने विकासपथ पर उत्तरोत्तर आगे बढ़ती रहे, यही मेरी मंगल कामना है. पमालागर हरि For Private and Personal Use Only Page #8 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir * प्रकाशकीय* जिनेश्वरदेव चरम तीर्थंकर श्री महावीरस्वामी, श्रुतप्रवाहक पूज्य गणधर भगवंतों, योगनिष्ठ आचार्यदेव श्रीमद् बुद्धिसागरसूरीश्वरजी तथा परम पूज्य गच्छाधिपति आचार्य श्री कैलाससागरसूरीश्वरजी की दिव्यकृपा से परम पूज्य आचार्यदेव श्री कल्याणसागरसूरीश्वरजी के शिष्यप्रवर राष्ट्रसंत आचार्यदेव श्री पद्मसागरसूरीश्वरजी की प्रेरणा एवं कुशल निर्देशन में आचार्य श्री कैलाससागरसूरि ज्ञानमंदिर के श्री देवर्द्धिगणि क्षमाश्रमण हस्तप्रत भाण्डागारस्थ हस्तलिखित जैन ग्रंथों की सूची के २६वें खंड को चतुर्विध श्रीसंघ के करकमलों में समर्पित करते हए श्री महावीर जैन आराधना केन्द्र, कोबातीर्थ परिवार की अनुभूति कर रहा है. विश्व में बहुत से ग्रंथालय तथा ज्ञानभंडार हैं, किन्तु प्राचीन परम्पराओं के रक्षक ज्ञानतीर्थरूप आचार्य श्री कैलाससागरसूरि ज्ञानमंदिर (जैन व प्राच्यविद्या शोध संस्थान एवं ग्रंथालय) में हस्तलिखित ग्रंथों का बेशुमार दुर्लभ खजाना पूज्य गुरुदेवश्री द्वारा भारत के कोने-कोने से एकत्र किया गया है. यह ज्ञानभंडार इस भूमंडल पर अब अपना उल्लेखनीय स्थान प्राप्त कर चुका है. हस्तप्रतों की संप्राप्ति, संरक्षण, विभागीकरण, सूचीकरण तथा रख-रखाव के इस कार्य व मार्गदर्शन में राष्ट्रसंत पूज्य आचार्यदेव श्री पद्मसागरसूरिजी के अधिकतर शिष्य-प्रशिष्यों का अपना योगदान रहा है. तपस्वी मुनिप्रवर श्री निर्वाणसागरजी ने तों के सूचीकरण हेतु वर्षों तक अहर्निश भगीरथ परिश्रम किया है. इस सूचीकरण की अवधारणा को और विकसित करने में तथा कम्प्यूटर प्रोग्रामिंग के कार्य में ग्रंथालय विज्ञान की प्रचलित प्रणालियों के स्थान पर महत्तम उपयोगिता व सूझबूझ का उपयोग करने में तथा समय-समय पर सहयोगी बनने हेतु आचार्य श्री अजयसागरसूरीश्वरजी तथा यहाँ के पंडितवर्यों, प्रोग्रामरों और कार्यकर्ताओं ने अपनी शक्तियों का यथासंभव महत्तम उपयोग किया है. इसी तरह पूज्य आचार्य भगवंत के अन्य विद्वान एवं प्रज्ञाशील शिष्यों का भी इस पूरी प्रक्रिया में विविध प्रकार का सहयोग प्राप्त होता रहा है, जिससे ज्ञानमंदिर की प्रवृत्तियों को विशेष बल एवं वेग मिलता रहा है. इस अवसर पर संस्था ज्ञात-अज्ञात सभी सहयोगियों व शुभेच्छुकों की अनुमोदना करते हुए हार्दिक कृतज्ञता व्यक्त करती है. सभी के मिले-जुले समर्पित सहयोग के बिना यह विशालकाय कार्य संभव नहीं था. पंडितों के साथ-साथ करीब पचास कार्यकर्ताओं के माध्यम से, श्रीसंघ के व्यापक हितों से संबद्ध ज्ञानमंदिर की अनेकविध प्रवृत्तियों के संचालन के लिए निरंतर बड़ी मात्रा में धनराशि की आवश्यकता रहती है. किसी भी प्रकार के सरकारी या अन्य किसी भी अनुदान को न लेकर मात्र संघों व समाज की ओर से मिलनेवाले आर्थिक व अन्य सहयोग के द्वारा कार्यरत इस संस्था में हस्तप्रत सूचीकरण व संलग्न अन्य विविध प्रवृत्तियाँ निरंतर गतिशील रहती हैं. इस भगीरथ कार्य हेत भारत व विदेश के श्रीसंघों, संस्थाओं व महानुभावों का आर्थिक सहयोग यदि नहीं मिल पाता तो इस कार्य को आगे बढ़ाना मुश्किल था. समस्त चतुर्विध संघ तथा संस्था के सभी शुभेच्छुकों को इस अवसर पर साभार-धन्यवाद दिया जाता है.. ___ आचार्य श्री कैलाससागरसूरि ज्ञानमंदिर में चल रहे श्रुतभक्ति के प्रत्येक कार्य में हमारे वर्तमान ट्रस्टीगण एवं कारोबारी सदस्य तो अत्यन्त उत्साही व सक्रिय रहे ही हैं, साथ-साथ ज्ञानमंदिर को आज की ऊँचाईयों तक पहुँचाने में भूतपूर्व ट्रस्टियों एवं कारोबारी सदस्यों का भी जो महत्त्वपूर्ण योगदान प्राप्त हुआ है, उसे कभी भुलाया नहीं जा सकता. __ कैलास श्रुतसागर ग्रंथसूची-जैन हस्तलिखित साहित्य के इस २६वें खंड के वित्तीय सहयोग प्रदाता स्व.शेठ श्री कन्हैयालालजी चपलोत परिवार, ह. पारस कन्हैयालालजी चपलोत, मीरा रोड़, मुंबई के प्रति संस्था कृतज्ञता व्यक्त करती है. आचार्य श्री कैलाससागरसूरि स्मृति ग्रंथसूची के इस २६वें रत्न का समाज में स्वागत किया जाएगा, ऐसा हमारा विश्वास है. श्री सुधीरभाई यु. महेता - प्रमुख श्री महावीर जैन आराधना केन्द्र ट्रस्ट - कोबातीर्थ, गांधीनगर For Private and Personal Use Only Page #9 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra स्व. श्री कन्हैयालालजी चपलोत www.kobatirth.org स्वर्गीय श्री कन्हैयालालजी चपलोत की पुण्यस्मृति में ... श्री पारस कन्हैयालालजी चपलोत डॉ. कार्तिका पारस चपलोत Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir श्रीमती शांतादेवी कन्हैयालालजी चपलोत श्रीमती स्नेहा पारस चपलोत श्री शुभम् पारस चपलोत For Private and Personal Use Only श्री संयम पारस चपलोत Page #10 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir *प्राक्कथन* कैलास श्रुतसागर ग्रंथसूची प्रकाशन के अविरत सिलसिले में प्रकाशित हो रहे इस २६वें रत्न का प्रकाशन हमारे लिए गौरव की बात है. प्रस्तुत भाग में संस्कृत, प्राकृत व देशी भाषाओं की आगमिक साहित्य, कर्मसिद्धान्त की मूल, टीका, अवचूरि आदि महत्त्वपूर्ण कृतियों के अतिरिक्त देशी भाषाओं की रास, कथा, औपदेशिक-सुभाषित पद आदि अनेक कृतियाँ भी अप्रकाशित प्रतीत हो रही हैं. जिसमें वल्लभ रचित अभिधानचिन्तामणि सारोद्धार टीका, सोमचंद्र कृत कर्पूरप्रकर-कथामहोदधि, मेरुतुंगसूरि का कामदेव चरित्र, कनकविजय रचित ग्रहविलास, दयारत्न की स्वोपज्ञटीका सहित न्यायावतारसूत्र आदि. मेघराज रचित ऋषिदत्ता रास, कांतिविमल कृत कनकावती रास, देपाल भोजक रचित जंबूस्वामी रास, माणिक्यराज की रत्नपालरत्नावती चौपाई, खंभात इतिहास-सं.१८८३ जैन घरों की संख्या आदि. हस्तप्रतों के वर्गीकरण से लेकर सूचीकरण तक का संपूर्ण कार्य बडा ही जटिल व कष्टसाध्य होता है, परंतु उनमें समाहित महत्त्वपूर्ण सूचनाएँ, जो अद्यावधि विद्वद्वर्ग की नजरों से ओझल थीं, उन्हें आपके कर-कमलों में समर्पित करने का यह सुंदर परिणाम हमारे लिये अपार संतोषदायक सिद्ध हो रहा है... जैन साहित्य एवं साहित्यकार कोश परियोजना के अन्तर्गत शक्यतम सभी जैन ग्रंथों व उनमें अन्तर्निहित कृतियों का कम्प्यूटर पर सूचीकरण करना; एक बहुत ही जटिल व महत्वाकांक्षी कार्य है. इस परियोजना की सबसे बड़ी विशेषता है, ग्रंथों की सूचना पद्धति. अन्य सभी ग्रंथालयों में अपनायी गई, मुख्यतः प्रकाशन और पुस्तक पर ही आधारित द्विस्तरीय पद्धति के स्थान पर, यहाँ विविधस्तरीय सूचना पद्धति विकसित की गई है. इसे कृति, विद्वान, प्रत, प्रकाशन, सामयिक व पुरासामग्री; इस तरह छः भागों में विभक्त कर बहुआयामी बनाया गया है. इसमें प्रत, पुस्तक, कृति, प्रकाशन, सामयिक व एक अंश में संग्रहालयगत पुरासामग्री; इन सभी का अपने-अपने स्थान पर महत्त्व कायम रखते हुए भी इन सूचनाओं को परस्पर संबद्धकर एकीकरण का कार्य कर दिया गया है. कैलास श्रुतसागर ग्रंथसूची खंड-२६ से पूर्व के सभी खंडों में समाविष्ट अधिकांश प्रतों की मूल सूची श्रुतसेवी पूज्य मुनिप्रवर श्री निर्वाणसागरजी ने वर्षों की मेहनत से बनाई थी. उसी का अनुसरण करते हुए हमने यह संपादनकार्य किया है. मुनिश्री के हम चिरकृतज्ञ हैं. समग्र कार्य के दौरान श्रुतोद्धारक पूज्य आचार्यदेव श्रीमद पद्मसागरसूरीश्वरजी म. सा. तथा श्रुताराधक आचार्य श्री अजयसागरसूरीश्वरजी म. सा. की ओर से मिली प्रेरणा व मार्गदर्शन ने इस जटिल कार्य को करने में हमें सदा उत्साहित रखा है. साथ ही पूज्यश्री के अन्य शिष्य-प्रशिष्यों की ओर से भी हमें सदा सहयोग व मार्गदर्शन मिलता रहा है, जिसके लिए संपादक मंडल सदैव आभारी रहेगा. इस ग्रंथसूची के आधार से सूचना प्राप्त कर श्रमणसंघ व अन्य विद्वानों के द्वारा अनेक बहुमूल्य अप्रकाशित ग्रंथ प्रकाशित हो रहे हैं, यह जानकर हमारा उत्साह द्विगुणित हो जाता है; फलतः हमें अपना श्रम सार्थक प्रतीत होता है. ___ प्रतों की प्राथमिक सूचनाओं की कम्प्यूटर में प्रविष्टि तथा सन्दर्भ हेतु पुस्तकें आदि शीघ्रतापूर्वक उपलब्ध कराने हेतु ज्ञानमन्दिर के सभी कार्यकर्ताओं को हार्दिक धन्यवाद. सूचीकरण का यह कार्य पर्याप्त सावधानीपूर्वक किया गया है. फिर भी जटिलता एवं अनेक मर्यादाओं के कारण क्वचित् भूलें रह गई होंगी. विद्वानों से करबद्ध आग्रह है कि इस प्रकाशन में रह गई भूलों की ओर हमारा ध्यान आकृष्ट करें, जिससे भविष्य में प्रकाशित होनेवाले भागों में यथोचित सुधार किए जा सकें. - संपादक मंडल III For Private and Personal Use Only Page #11 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra मंगलकामना.. प्रकाशकीय www.kobatirth.org अनुक्रमणि प्राक्कथन ..... अनुक्रमणिका. प्रस्तुत सूची में प्रयुक्त संक्षेप व संकेत. हस्तप्रत सूचीकरण सहयोग सौजन्य एवं सादर ग्रंथ समर्पण. हस्तप्रत सूची . परिशिष्ट : कृति परिवार अनुसार प्रत- पेटाकृति अनुक्रम संख्या... १. संस्कृत, प्राकृत व अपभ्रंश भाषाओं की मूल कृति के अकारादि क्रम से कृति परिवार सह प्रत-पेटाकृति क्रमांक सूची परिशिष्ट - १.. २. देशी भाषाओं की मूल कृति के अकारादि क्रम से कृति परिवार सह प्रत-पेटाकृति क्रमांक सूची परिशिष्ट - २.. प्रस्तुत खंड २६ में निम्नलिखित संख्या में सूचनाओं का संग्रह है. * प्रत क्रमांक - ११५२४६ से १२०९६० Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir IV iii iv v-vi .vii-viii .१-४७० .४७१-५९६ इस सूचीपत्र में हस्तप्रत, कृति व विद्वान/व्यक्ति संबंधी जितनी भी सूचनाएँ समाविष्ट की गई हैं, उन सबका विस्तृत विवरण व टाइप सेटिंग संबंधी सूचनाएँ भाग 7 के पृष्ठ VI एवं परिशिष्ट परिचय संबंधी सूचनाएँ भाग 7 के पृष्ठ 454 पर हैं. कृपया वहाँ पर देख लें. For Private and Personal Use Only .४७१-५२० ५२१-५९६ * इस सूचीपत्र में मात्र जैन कृतियों वाली प्रतों का ही समावेश किए जाने के कारण वास्तविक रूप से इस खंड में २८४९ प्रतों की सूचनाओं का समावेश हुआ है. * समाविष्ट प्रतों में कुल ३७४१ कृति परिवारों का समावेश हुआ है. * इन परिवारों की कुल ४३५२ कृतियों का इस सूची में समावेश हुआ है. * सूची में उपरोक्त कृतियाँ कुल ६२९७ बार आई हैं. Page #12 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra * प्रस्तुत सूची में प्रयुक्त संक्षेप व संकेत * कृति नाम के अंत में विभिन्न अज्ञात विद्वान कर्तृक, अनेक अस्थिर टबार्थ व श्लोक संग्रह जैसी समान कृतियों के समुच्चय रूप या फुटकर कृति दर्शक संकेत. . कृति / प्रत/पेटांक नाम के बीच का, की, के, इत्यादि विभक्ति सूचक (-) .......... प्रत क्रमांक के अंत में छोटे ऊर्ध्वाक्षरों में दुर्वाच्य, अवाच्य, अशुद्ध पाठ - सूचक. (+)......... प्रत क्रमांक के अंत में छोटे ऊर्ध्वाक्षरों में- प्रत की महत्ता सूचक. - इस हेतु प्र. वि. में निम्न सूचनाएँ हो सकती हैं. कर्त्ता कर्त्ता के शिष्य प्रसिद्ध व्यक्ति द्वारा लिखित, रचना के समीपवर्ती काल में लिखित, संशोधित शुद्धप्राय टिप्पण युक्त विशेष पाठ, पाठ में सुगमता हेतु विविध प्रकार के चिह्नयुक्त प्रत, यथा- अन्वय दर्शक अंक युक्त, पदच्छेद संधि सूचक वचन विभक्ति क्रियापदसूचक चिह्न आदि वाली प्रत. . कृति नाम के बाद प्रयुक्त होने पर संयुक्त कृति की पहचान यथा आवश्यकसूत्र सह निर्युक्ति, भाष्य व तीनों की लघुवृत्ति. ($) - www.kobatirth.org - उपा. . उपाध्याय (विद्वान स्वरूप) (#) .......... प्रत क्रमांक के अंत में छोटे ऊर्ध्वाक्षरों में. प्रत की अवदशा, पाठ नष्ट हो जाने से प्रत की उपयोगिता में कमी का सूचक. इस हेतु प्र.वि. में निम्न सूचनाएँ हो सकती हैं. आदिः........ आदिवाक्य (कृतिमाहिती) उप............. प्रत प्रतिलेखन उपदेशक. (प्र. ले. पु. विद्वान) ********. गा. गु.. गृही.. मूल पाठ का, टीकादि का, मूल व टीका का, टिप्पणक का अंश नष्ट है. अक्षर फीके पड़ गये हैं, मिट गये हैं, पन्नों पर आमने-सामने छप गये हैं. अक्षर की स्याही फैल गई है. पत्र जीर्णतावश नष्ट होने लगे हैं, हो गये हैं. *******... कृति परिशिष्टों में प्रत क्रमांक के अंत में ऊर्ध्वाक्षरों से प्रत की अपूर्णता सूचक, अपूर्ण, लुटक, प्रतिअपूर्ण हेतु. (--) ......... आदिवाक्य अनुपलब्ध. अप........... अपभ्रंश (कृति भाषा ) अंति:......... अंतिमवाक्य (कृतिमाहिती) आ............. आचार्य (विद्वान स्वरूप) Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ऋ............. ऋषि (विद्वान स्वरूप) क............. कवि (विद्वान स्वरूप) कुं.. कुल ग्रं. ....... कुंडली (कृति स्वरूप) . मूल व टीका आदि का संयुक्तरूप से सर्वग्रंथास परिमाण प्रत व पेटाकृति विशेष में. ....... कुल पेटाकृति (प्रतमाहिती स्तर) कुल पे. क्रीत ........... प्रत को खरीदनेवाला. (प्र. ले. पु. विद्वान) को............. कोष्टक (कृति स्वरूप) ग.. ........ गणि (विद्वान स्वरूप) गडी. ...........गडी किए हुए पत्रों वाली प्रत. गद्य.......... गद्यबद्ध (कृति प्रकार) . गाथा (कृति परिमाण) . गुजराती (कृति भाषा ) ...... गृहीत . आदान-प्रदान में प्रत को प्राप्त करने वाला (प्र. ले. पु. विद्वान) V - For Private and Personal Use Only - Page #13 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir यं............. देना..... गोटका....... बंधे पत्रों वाली प्रत. (प्रतमाहिती स्तर) क्वचित् | | प्रे........... प्रतलेखन प्रेरक. (प्र. ले. पु. विद्वान) गोटका शब्द भी प्रयुक्त होता है. बौ............. बौद्ध कृति (कृति परिशिष्ट) गोल.......... गोल कुंडलाकार प्रत. (प्रतमाहिती स्तर) म...... मराठी (कृति भाषा) ग्रं.......... ग्रंथाग्र (कृति परिमाण) महा. ......... महाराष्ट्री प्राकृत (कृति भाषा) जै......... जैन कृति (कृति परिशिष्ट) मा. ........... मागधी प्राकृत (कृति भाषा) जै.क.........जैन कवि (विद्वान स्वरूप) मा.गु......... मारुगुर्जर (कृति भाषा) जैदे...........जैन देवनागरी (प्रत लिपि) मुनि (विद्वान स्वरूप) ते............. जैन श्वेतांबर तेरापंथी कृति. (कृति परिशिष्ट) ... मुस्लिम धर्म (कृति परिशिष्ट) दत्त........... आदान-प्रदान में प्रत देनेवाला. (प्र. ले. प. जैन श्वेतांबर मूर्तिपूजक कृति (कृति परिशिष्ट) विद्वान) यंत्र (कृति स्वरूप) दि.............जैन दिगंबर कृति. (कृति परिशिष्ट) रा............. राजा (विद्वान स्वरूप) ..देवनागरी (प्रत लिपि) रा............. राजस्थानी (कृति भाषा) पं.............. पंजाबी (कृति भाषा) राज्यकाल ... जिस राजा के राज्य शासनकाल में प्रत लिखी गई हो. पं.......... ..पन्यास, पंडित (विद्वान स्वरूप) राज्ये......... जिस आचार्य के गच्छनायकत्व काल में प्रत का पठ........... पठनार्थ. जिसके पढ़ने हेत प्रत लिखी या लिखवाई। लेखन हुआ हो. गई हो. (प्र. ले. पु. विद्वान) लिख......... प्रत लिखवाने वाला. (प्र. ले. पु. विद्वान) प+ग......... पद्य व गद्य संयुक्त (कृति प्रकार) ले. स्थल..... लेखन स्थल (प्रतिलेखन पुष्पिका) पद्य........... पद्यबद्ध (कृति प्रकार) वा............ वाचक (विद्वान स्वरूप) पा............ पाठक (विद्वान स्वरूप) वि.............विक्रम संवत् (वर्ष माहिती) (प्र. ले. पु., कृति पु. हिं......... पुरानी हिंदी (कृति भाषा) रचना वर्ष) पू. वि......... पूर्णता विशेष (प्रतमाहिती, पेटाकृति माहिती व | विक्र......... विक्रेता - प्रत का. (प्र. ले. पु. विद्वान) कृतिमाहिती स्तर) वी............. वर्ष संख्या के पूर्व होने पर 'वीर संवत' यथा वी. कृतिमाहिती में वर्ष प्रकार सूचक 'वि. 'श. आदि २०००. वर्ष संख्या पश्चात् होने पर 'वी सदी. के बाद संवत् प्रवर्तन के पूर्व का वर्ष दर्शक. यथा- ८वी सदी. (७१०-८००) (प्र. ले. पु., कृति ... पृष्ठ सूचना (प्रत माहिती स्तर पर व पेटाकृति स्तर रचना वर्ष) वै............ वैदिक कृति. (कृति परिशिष्ट) पे. नाम...... प्रतगत पेटाकृति नाम व्या.प........ व्याख्याने पठित -विद्वान द्वारा. (प्र. ले. पु. विद्वान) पे. वि......... प्रतगत पेटाकृति विशेष श............. शक संवत् (वर्ष माहिती - प्र.ले.पु. कृति रचना वर्ष) पै............ पैशाची प्राकृत (कृति भाषा) श्राव.......... श्रावक (विद्वान स्वरूप) प्र. वि......... प्रत विशेष. श्रावि......... श्राविका (विद्वान स्वरूप) प्रले........... प्रतिलेखक, लहिया, (प्रतिलेखन पुष्पिका. प्रत, श्रु............. श्रोता द्वारा व्याख्यान में श्रुत. (प्र. ले. पु. विद्वान) पेटाकृति, कृति माहिती स्तर पर.) | श्वे.............जैन श्वेतांबर कति (कति परिशिष्ट) प्र. ले. पु..... प्रतिलेखन पुष्पिका की-(प्रत/पेटाकृति/कृति स्तर) | संस्कृत (कृति भाषा) (सामान्य, मध्यम' आदि उपलब्धता सूचक.) समर्पक. ज्ञानभंडार को प्रत समर्पित करनेवाला. प्र.ले.श्लो.... प्रत, पेटाकृति व कृति हेतु प्रतिलेखक द्वारा लिखित (प्र. ले. पु. विद्वान) प्रतिलेखन श्लोक (जलात् रक्षेत्... इत्यादि) साध्वीजी (विद्वान स्वरूप) प्र.सं......... प्रति संशोधक ...........जैन श्वेतांबर स्थानकवासी (कृति परिशिष्ट) प्रा............. प्राकृत (कृति भाषा) ........ हिंदी (कृति भाषा) पर) ...........साच्वाजा For Private and Personal Use Only Page #14 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra * सुकृत के सहभागी * हस्तप्रत सूचीकरण में विशिष्ट आर्थिक सहयोगियों की नामावली * १. शेठ आणंदजी कल्याणजी (धार्मिक धर्मादा ट्रस्ट), पालडी ५. श्री प्लेजेंट पैलेस जैनसंघ ६. श्री गोवालिया टैंक जैनसंच २. श्री शांतिलाल भुदरमल अदाणी परिवार, ३. बाबु श्री अमीचंद पन्नालाल आदीश्वर ट्रस्ट, वालकेश्वर मुंबई २७. श्री जैन पंच महाजन ४. शेठ श्री झवेरचंद प्रतापचंद सुपार्श्वनाथ जैन संघ, वालकेश्वर | १३. फेडरेशन ऑफ जैन एसोसिएसन इन नॉर्थ अमेरिका, 'जैना' हस्ते डॉ. प्रेमचंदजी गडा १४. श्री एम. जे. फाउन्डेशन ७. श्री प्रेमलभाई कापडिया ८. श्री जवाहरनगर जैन थे. मू. पू. जैन संघ, गोरेगांव ९. जैन सेन्टर ऑफ नॉर्दर्न केलिफोर्निया १०. श्री श्वेतांबर मूर्तिपूजक जैन बोर्डिंग ११. श्री शंभुकुमार कासलीवाल १२. शेठ मोतीशा जैन रिलीजियस एन्ड चेरीटेबल ट्रस्ट १५. श्री कल्याण पार्श्वनाथ जैन संघ, चौपाटी १६. श्री सांताक्रूज़ जैन तपगच्छ संघ, श्री कुंथुनाथ जैन देरासर मार्ग, सांताक्रूज़ (वे.) १७. श्री महावीर जैन श्वे. मू. पू. संघ, पालडी १८. श्री श्वे. मू. पू. जैन संघ, नानपुरा, १९. श्री आंबावाडी मू. पू. जैन संघ | २०. श्री चिंतामणी पार्श्वनाथ श्वे. मू. पू. जैन संघ, आरे रोड, गोरेगाँव www.kobatirth.org अहमदाबाद अहमदाबाद २१. श्री राजस्थान जैन श्री. म. पू. संघ, जयनगर, २२. श्री आदिनाथ जैन श्री मंदिर ट्रस्ट, चिकपेट मुंबई मुंबई ३०. श्री पुष्पदंत श्वे. मू. पू. जैन संघ मुंबई मुंबई मुंबई अमेरिका अहमदाबाद मुंबई मुंबई अमेरिका मुंबई मुंबई मुंबई अहमदाबाद २३. श्री महुडी जैन श्वे. मू. पू. ट्रस्ट, २४. श्री गोडीजी महाराज जैन टेम्पल एन्ड चेरीटीज़, सुरत अहमदाबाद मुंबई बेंग्लोर बेंग्लोर महुडी मुंबई २५. श्री जुहु स्कीम जैन संघ, विलेपार्ले (वे.) मुंबई २६. श्री शांतिनाथ देरासर जैन पेढी, श्री शंखे, पार्श्व, बावन जिनालय, देवचंदनगर रोड, भायंदर (वे.) थाणा मुंबई मांडाणी (राज.) २८. श्री जैन श्वेताम्बर नाकोडा पार्श्वनाथ तीर्थ मेवानगर (राज.) २९. श्री संभवनाथ जैन ट्रस्ट बिसलपुर (राज.) १. श्री नितिनभाई अशोकजी महेता २. श्री पंकजकुमार ज्ञानचंदजी गांधी, चार्टर्ड स्पीड प्रा. लि. Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ३१. श्री सेटेलाईट श्वे. मू. पू. जैन संघ ३२. श्री वेपेरी श्वे. मू. पू. जैन संघ ३३. श्री शाहीबाग-गीरधरनगर जैन श्वे. मू. पू. संघ ३४. श्रीमद् यशोविजय जैन संस्कृत पाठशाला ३५. श्री जैन सोसायटी जैन संघ ३६. शेठ नवलचंद सुप्रतचंद जैन देवकी पेढी ३७. श्री माटुंगा जैन श्वे. मू. पू. तपगच्छ संघ ३८. श्री दशापोरवाड सोसायटी जैन संघ ३९. श्री विले पार्ले (वे.) श्वे. मू. पू. संघ ४०. श्री जैन श्वे. मू. पू. संघ, शिव, सायन ४१. श्री सीमंधरस्वामी जिनमंदिर पेढी ४२. श्री अदाणी फाउन्डेशन ४३. श्री शेलुंजय तीर्थधाम, भुवनभानु मानसमंदिर ४४. श्री घाटलोडीया जैन श्वे. म.पू. संघ ४५. श्री नवजीवन जैन श्वे. मू. पू. संघ, लेमीग्टन ४६. श्री बोरीवली जैन श्वे. मू. पू. तपा. संघ * हस्तप्रत सूचीकरण में आर्थिक सहयोगियों की नामावली * VII For Private and Personal Use Only अहमदाबाद अहमदाबाद चेन्नई अहमदाबाद महेसाणा ४७. श्री एरोमा केमीकल एजन्सी (इ) प्रा. ली. पारले ४८. श्री पार्श्वनाथ जैन टेम्पल श्वे. ४९. श्री शांतिनाथ जैन संघ, मलाड (पू.) ५०. आ. बुद्धिसागरसूरि समुदायना पू. ज्योतिप्रभाश्रीजी तथा पू.जयरक्षिताश्रीजीना सपदेशथी भक्तगणो तरफथी अहमदाबाद पाली-राज. मुंबई अहमदाबाद मुंबई मुंबई महेसाणा अहमदाबाद मुंबई अहमदाबाद मुंबई मुंबई मुंबई बेल्लारी मुंबई कोईम्बतूर अहमदाबाद Page #15 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir (* सुकृत के सहभागी * ) हस्तप्रत सूचीकरण में 9 से २६ भाग के आर्थिक सहयोगियों की नामावली पर १. रमेशकुमार चोथमलजी, तारादेवी रमेशकुमार : सन्स नोवी, हाल शिवगंज (राज.) २. श्री जैन श्वेतांबर नाकोडा पार्श्वनाथ तीर्थ मेवानगर ३. घाणेराव (राजस्थान) निवासी श्रीमती मोहिनीबाई एस. देवराजजी जैन चेन्नई ४. श्री जैन श्वेताम्बर नाकोडा पार्श्वनाथ तीर्थ मेवानगर ५. मांडवला (राज.) निवासी संघवी मुथा ___मोहनलालजी रघुनाथमलजी सोनवाडीया परिवार चेन्नई ६. श्री जैन श्वेताम्बर नाकोडा पार्श्वनाथ तीर्थ मेवानगर ७. श्री जैन श्वेताम्बर नाकोडा पार्श्वनाथ तीर्थ मेवानगर ८. श्री जैन श्वेताम्बर नाकोडा पार्श्वनाथ तीर्थ मेवानगर ९. शेठ श्री आणंदजी कल्याणजी पेढी अहमदाबाद १०. श्री भवानीपुर मूर्तिपूजक जैन श्वेताम्बर संघ कोलकाता ११. श्रीमती तारादेवी हरखचंदजी कांकरिया परिवार कोलकाता १२. श्री सांताक्रुज जैन श्वेताम्बर मूर्तिपूजक जैन संघ मुंबई १३. डॉ. विनय के. जैन - प्रेसीडेन्ट (जीवदया फाउन्डेशन) यु.एस.ए. १४. डॉ. विनय के. जैन - प्रेसीडेन्ट (जीवदया फाउन्डेशन) यु.एस.ए. १५. शेठ श्री संवेगभाई लालभाई परिवार अहमदाबाद १६. श्री विजय देवसूर संघ श्री गोडीजी महाराज __ जैन टेम्पल एन्ड चेरीटीज, पायधुनी मुंबई १७. श्री जैन श्वेताम्बर नाकोडा पार्श्वनाथ तीर्थ मेवानगर १८. शेठ श्री संवेगभाई लालभाई परिवार अहमदाबाद १९. श्रीमती छगनकंवर अमृतलालजी गांधी परिवार सिरोही-जोधपुर २०. शेठ श्री संवेगभाई लालभाई परिवार अहमदाबाद २१. शेठ श्री देवीचंद, विकासकुमार, अनिलकुमार चोपड़ा ___परिवार (बच्छराज डेवलपर्स) मुंबई २२. शेठ श्री संवेगभाई लालभाई परिवार अहमदाबाद २३. शेठ श्री सोहनराजजी बच्छराजजी सिंघवी परिवार कोलकाता २४. श्री शंखेश्वर पार्श्वनाथ बावन जिनालय तीर्थ पेढी, भायंदर, २५. शेठ श्री नरेन्द्र लालचंदजी महेता परिवार देसुरी (राज.) हाल मीरा, भायंदर, मुंबई २६. स्व. शेठ श्री कन्हैयालालजी चपलोत परिवार ह. पारस कन्हैयालालजी चपलोत, मीरा रोड़, मुंबई मुंबई * सादरसमर्पण* कल्याणस्वरूप तीर्थंकरों द्वारा स्थापित श्रमणप्रधान चतुर्विध श्रीसंघ के करकमलों में... जिनके द्वारा यह श्रुतपरंपरा अक्षुण्ण रही. ००० VIII For Private and Personal Use Only Page #16 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ॥ श्री महावीराय नमः ॥ ॥ श्री बुद्धि-कीर्ति - कैलास सुबोध-मनोहर-कल्याण- पद्मसागरसूरि सद्गुरुभ्यो नमः ॥ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२६ १९५२४७. गुरु आरती व दादाजी स्तवनादि संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पू. २ १ ( २ ) = १, कुल पे. ७ जैदे. (२५.५x१२.५, १९४५३-५६). १. पे नाम. गुरु आरती, पू. २अ अपूर्ण, पू. वि. प्रथम पत्र नहीं है. मु. परमानंद, मा.गु., पद्य वि. १८८१, आदि (-) अंति: गावे मुनि परमानंद हरषे, गाथा १० (पू.वि. गाथा ४ अपूर्ण से २. पे नाम, दादाजी स्तवन, पृ. २अ संपूर्ण. 2 जीवणगुरु स्तवन- नागोरीगच्छाधिपति, मु. परमानंद, रा., पद्य, आदि: सद्गुरु साहिब सांभलो अरज, अंतिः परमानंद मनबंछित पूरीजे रे, गाथा १६. ३. पे. नाम. दादाजी स्तवन, पू. २अ, संपूर्ण. जीवणगुरु स्तवन- नागोरीगच्छाधिपति, मु. परमानंद, रा., पद्य, आदि सेवो सेवो री माय जीवण अतिः परमानंद० मनवंछित फल पावै, गाथा - ५. ४. पे नाम. जीवण गुरुगुण पद, पू. २अ २आ, संपूर्ण. मु. परमानंद, रा., पद्य, आदि आज मनोरथ फलीयाजी, अंति परमानंद० अधिक ओछाह गाथा ८. ५. पे नाम, दादाजी स्तवन, पू. २आ, संपूर्ण अंति: जीवणगुरु स्तवन-नागोरीगच्छाधिपति, आ. लक्ष्मीचंद्रसूरि, रा., पद्य, आदि : आज दिवस सफलो भयो सद; लक्ष्मीचंद्रसूर०वंछित काज, गाथा- ७. ६. पे. नाम. जीवणगुरु स्तवन- नागोरीगच्छाधिपति, पृ. २आ, संपूर्ण. - आ. लक्ष्मीचंद्रसूरि रा., पद्य, आदि आज हुवो अति ओछव मेरे अति रिध वृद्ध तेज सवावा, गाथा ६. ७. पे नाम, गुरुगुण गीत, पृ. २आ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. गुरुगुण गीत - होली, रा., पद्य, आदि: जै बोलो रे भवियण जै बोलो; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-२ अपूर्ण तक है.) ११५२५६. (+) शीलविषये देवराजवच्छराज चोपई, अपूर्ण, वि. १८९१, कार्तिक शुक्ल, ९, मध्यम, पू. ४८-४४ (१ से २,६ से ४७)=४, ले. स्थल, सुवाई, प्रले. सा. लाडां, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैवे. (२५x१२, १५X३०-३३). देवराजवच्छराज चौपाई, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: वलि होवै जनम पवित्र, (पू.वि. ढाल १ गाथा-१८ अपूर्ण से ४६ अपूर्ण तक व अन्तिम ढाल की गाथा - ९ अपूर्ण से है.) ११५२५९ (१) १० द्वार विचार, अपूर्ण, वि. २०वी मध्यम, पृ. २- १ ( १ ) = १, प्र. वि. पत्रांक लिखा न होने के कारण अनुमानित पत्रांक दिया गया है. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२५.५X१२.५, ५४३४). , १० जीवद्वार विचार, रा. गद्य, आदि (-); अंति (-), (पू.वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं व प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., द्वार-६ " अपूर्ण से है व द्वार १० अपूर्ण तक लिखा है.) ११५२६०. बोल संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पृ. २- १ ( १ ) = १, प्र. वि. पत्रांक लिखा न होने के कारण अनुमानित पत्रांक दिया गया है., जैदे., (२५.५X१२.५, ६X३५). बोल संग्रह, मा.गु., गद्य, आदि (-); अंति (-) (पू.वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं व प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण, क्रीडादशावर्णन अपूर्ण से है व पंचविध भोगवर्णन अपूर्ण तक लिखा है.) For Private and Personal Use Only Page #17 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ११५२६२. तीनचोवीसीजिन नाम व वर्तमान २४ जिन पिता नाम, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ४, दे., (२४४१२.५, १२४२९). १.पे. नाम. २४ तीर्थंकर नाम-अतीत, पृ. १अ, संपूर्ण. २४ जिन नाम-अतीत, मा.गु., गद्य, आदि: केवलज्ञानी १ निर्वाणी २; अंति: स्पंदन २३ संप्रति २४. २. पे. नाम. २४ वर्तमानजिन नाम, पृ. १अ, संपूर्ण. २४ जिन नाम, मा.गु., गद्य, आदि: श्रीऋषभ १ अजित २ संभव ३; अंति: वर्द्धमानजी २४, अंक-२४. ३. पे. नाम. २४ जिन नाम-अनागत, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. मा.गु., गद्य, आदि: श्रीपद्मनाभ१ श्रीसुरदेव२; अंति: अनंतवीर्य२३ भद्रकर२४, (वि. अंत में बृहद शांति की "ॐ मुनयो" से प्रारंभ होने वाली गाथा दी है.) ४. पे. नाम. वर्तमान २४ जिन पिता नाम, पृ. १आ, संपूर्ण. २४ जिन पिता नाम-वर्तमान, सं., गद्य, आदि: ॐ श्री नाभि१ जितशत्रु२; अंति: अश्वसेन२३ सिद्धार्थ२४. ११५२६३. २४ जिन परिवार परंपरा संपदादि बोल विचार, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ४, प्र.वि. हुंडी:ओलोवो., दे., (२४४१२, २२४३६). २४ जिन परिवार परंपरा संपदादि बोल विचार, मा.गु., गद्य, आदि: पेला ऋषभदेवजी चोरासी गच्छ; अंति: मारो वनण नमसकार हुजो. ११५२६४ (+#) गौतमाष्टक, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, पठ. पं. रायचंद, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ. अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५.५४१२.५, १३४२२). गौतमस्वामी स्तोत्र, सं., पद्य, आदि: श्रीइंद्रभूतिं वसुभूति; अंति: लभंते नितरां क्रमेण, श्लोक-१०. ११५२६५. आदिजिन स्तुति व चंद्राननजिन स्तवन, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ४-३(१ से ३)=१, कुल पे. २, जैदे., (२५.५४१२.५, ५-११४३१-३६). १.पे. नाम. आदिजिन स्तुति, पृ. ४अ-४आ, अपूर्ण, पृ.वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं. मु. शोभनमुनि, सं., पद्य, आदि: (-); अंति: शुभ्रामरी भासिता, श्लोक-४, (पू.वि. श्लोक-२ अपूर्ण से है.) २. पे. नाम. चंद्राननजिन स्तवन, पृ. ४आ, संपूर्ण. उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: नलिनावती विजये जयकारी; अंति: देशो धर्मनेह निरवहेशो रे, गाथा-७. ११५२६६. (+) मंडल प्रकरण सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२५.५४१२.५, ८४४३). मंडल प्रकरण, मु. विनयकुशल, प्रा., पद्य, वि. १६५२, आदि: पणमिय वीरजिणंद भवमंडलभमण; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., गाथा-१५ तक लिखा है.) मंडल प्रकरण-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: प्रणाम नमस्कार करीनइ; अंति: (-), अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण. ११५२६७. संलेखना पाठ, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, प्र.वि. हुंडी:सल., दे., (२५४१२, १६४२९). संलेखना पाठ, प्रा.,मा.गु., गद्य, आदि: अपच्छिम मारणंतीय; अंति: तस्स मिच्छामिदक्कडं. ११५२६९ (+) ऋषिमंडल स्तोत्र, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, पृ.वि. मात्र प्रथम पत्र है., प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., दे., (२५४१२, ११४३१). ऋषिमंडल स्तोत्र-बृहद्, आ. गौतमस्वामी गणधर, सं., पद्य, आदि: आद्यंताक्षरसंलक्ष्यमक्षरं; अंति: (-), (पू.वि. श्लोक-१८ अपूर्ण तक है.) ११५२७०. स्थानांगसूत्र सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ५५-५४(१ से ५४)=१, प्र.वि. हुंडी:ठाणायंग., जैदे., (२४.५४१२, ७X४२). स्थानांगसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., प+ग., आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं व प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., स्थान-३ उद्देश-२ अपूर्ण से है व उद्देश-३ अपूर्ण तक लिखा है.) स्थानांगसूत्र-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदिः (-); अंति: (-), पृ.वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं व प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण. For Private and Personal Use Only Page #18 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२६ ११५२७१. ७७ बोल-साधु आचार विचार, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ४, प्र.वि. हुंडी:समाचारीसाधुनी., दे., (२४४१२, १६४३५). ७७ बोल-साध आचार विचार, मा.गु., गद्य, आदि: साधु साध्वीने आधा कर्मादि; अंति: अध्ययनेन देसे कह. ११५२७४. (#) महावीरजिन स्तवन-पारणागर्भित, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. १, पृ.वि. मात्र प्रथम पत्र है.,प्र.वि. मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., (२५४११.५, ११४३६). महावीरजिन स्तवन-पारणागर्भित, मु. माल, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीअरिहंत अनंत गुण; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-१९ अपूर्ण तक है.) ११५२७५. साधुगुण सज्झाय, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २-१(१)=१, जैदे., (२४.५४१२.५, १०४५३). साधगण सज्झाय, पुहि., पद्य, आदि: (-); अंति: प्रते जीते ऐसे ऋष जगतारी, गाथा-२४, (पू.वि. अंत के पत्र हैं., गाथा-११ अपूर्ण से है.) ११५२७६. श्रावकाराधना, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, पू.वि. मात्र प्रथम पत्र है., जैदे., (२५.५४१२, १३४४४). श्रावकाराधना, सं., प+ग., आदि: श्रीसर्वज्ञं प्रपंपण; अंति: (-), (पू.वि. १८ पापस्थानक वर्णन अपूर्ण तक है.) ११५२७७. (+) ऋषिमंडल स्तोत्र, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ३, प्र.वि. संशोधित-पदच्छेद सूचक लकीरें., दे., (२५.५४१२, १४४४०). ऋषिमंडल स्तोत्र-बृहद, आ. गौतमस्वामी गणधर, सं., पद्य, आदि: आद्यंताक्षरसंलिक्षमक्षरं; अंति: लभ्यते पदमव्ययम्, श्लोक-९७, ग्रं. १५०. ११५२७८. अजितशांति स्तव, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २-१(१)=१, पृ.वि. मात्र बीच का ही एक पत्र है., जैदे., (२५.५४१२, ११४२५). अजितशांति स्तव , आ. नंदिषेणसूरि, प्रा., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. गाथा-६ अपूर्ण से १४ अपूर्ण तक है.) ११५२७९ (#) नवस्मरण, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ३, प्र.वि. मूल पाठ का अंश खंडित है, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६४१२.५, ८४३३). नवस्मरण, म. भिन्न भिन्न कर्तक, प्रा.,सं., प+ग., आदि: उवसग्गहर पासं पासं वंदामि; अंति: (-), (अपूर्ण, प.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., संतिकर स्तोत्र तक लिखा है.) ११५२८४. गाथा संग्रह, दशविधचक्रवाल सामाचारी रथ व शीलांगरथ विचार, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ३, जैदे., (२५४१२, ११४३०). १. पे. नाम, गाथा संग्रह, पृ. १आ, संपूर्ण. गाथा संग्रह *, प्रा., पद्य, आदि: एग समयंमि लोए; अंति: बंध ठाणाणिअसंखाणि, गाथा-२, (वि. प्रवचनसारोद्धार की १०५०,५१ नंबर की गाथाएँ हैं.) २. पे. नाम. दशविधचक्रवाल सामाचारी रथ, पृ. १आ, संपूर्ण. दशविधचक्रवाल समाचारी रथ, प्रा., पद्य, आदि: मणगुत्तो सन्नाणी पसमिपको; अंति: पनिमंतणा उपसंपपापदसमी, गाथा-२. ३. पे. नाम. शीलांगरथ विचार, पृ. १आ, संपूर्ण. १८ हजार शीलांगरथ आम्नाय, प्रा., पद्य, आदि: जे नो करंति मणसा; अंति: अट्ठारस सहस्स निपत्ति, गाथा-५. ११५२८५ (+) मौनएकादशीपर्व व नवपद स्तवन, संपूर्ण, वि. १८७३, आषाढ़ शुक्ल, ५, रविवार, मध्यम, पृ. ३, कुल पे. २, ले.स्थल. वर्गषटी, प्र.वि. हुंडी:एकादशीतवन., संशोधित., जैदे., (२५४१२, १५४२८). १. पे. नाम, मौनएकादशीपर्व स्तवन, पृ. १अ-३अ, संपूर्ण. पंन्या. जिनविजय, मा.गु., पद्य, वि. १७९५, आदि: जगपति नायक नेमिजिणंद; अंति: जिनविजय जयसिरी वरी, ढाल-४, गाथा-४२. २. पे. नाम. नवपद स्तवन, पृ. ३अ, संपूर्ण. मु. उत्तमसागर शिष्य, मा.गु., पद्य, आदि: गोयम नाणी हो कहै; अंति: जपे हो बहु सुख पाया, गाथा-५. For Private and Personal Use Only Page #19 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ११५२८६. (+) दशविधयतिधर्म व ईरियावहीनी सज्झाय, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १२३-१२२(१ से १२२)=१, कुल पे. २, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२४.५४१२, १२४४८). १.पे. नाम. दशविधयतिधर्म सज्झाय, पृ. १२३अ, अपूर्ण, पृ.वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं. १० यतिधर्म सज्झाय, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: (-); अंति: मला सुजश लीला अनुभवे, ढाल-११, गाथा-१३६, (पू.वि. ढाल-११ गाथा-३ अपूर्ण से है.) २.पे. नाम. ईरियावहीनी सज्झाय, पृ. १२३अ, संपूर्ण. इरियावही सज्झाय, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीशारद चितमां धरी सद्; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., ढाल-१ गाथा-३ तक लिखा है.) ११५२८८. (+) समवायांगसूत्र सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ३, प्र.वि. हुंडी:समवा०., संशोधित-टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२५४१२, २१४३८). समवायांगसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., गद्य, आदि: सुयमे आउसं तेणं भगवय; अंति: (-), (प.वि. प्रारंभ के पत्र हैं.. अध्ययन-२ प्रारंभिक पाठ अपूर्ण तक है.) समवायांगसूत्र-टबार्थ, वा. मेघराजजी, मा.गु., गद्य, वि. १७३, आदि: देवदेवं जिनं नत्वा; अंति: (-), पृ.वि. प्रारंभ के पत्र है. ११५२९०. मंत्र संग्रह, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, पृ.वि. मात्र प्रथम पत्र है., दे., (२४.५४१२, १३४३३). जैन मंत्र संग्रह-सामान्य , प्रा.,मा.गु.,सं., गद्य, आदि: ॐ नमो हुं जाण तोरी स्थान; अंति: (-), (पू.वि. "ॐ नमो हनुमंताय वानरराजाय" पाठांश तक है.) ११५२९३. (+#) शीलव्रतोच्चार विधि, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, प्रले. पं. भक्तिविजय; अन्य. मु. आणंद, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ. मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., (२३.५४१२, १३४३५). शीलव्रतोच्चार विधि, प्रा.,मा.गु., प+ग., आदि: प्रथम नंदी मांडी तथा ठवणी; अंति: संघ तेहने पेहरामणी करे. ११५२९४. (+) भारती प्रभाती स्तोत्र, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २, प्रले. मु. वल्लभविजय; पठ. मु. हीरविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२५४१२, १४४४०). सरस्वतीदेवी छंद-अजारीतीर्थ, मु. शांतिकुशल, मा.गु., पद्य, आदि: सरसति सरस वचन समता; अंति: वाचा फलशी माहरी, गाथा-३३. ११५२९५. स्तवनचौवीसी, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. २, पृ.वि. प्रारंभ के पत्र हैं., दे., (२५.५४१२.५, ११४३१). स्तवनचौवीसी, मु. हर्षचंद, मा.गु., पद्य, आदि: उठत प्रभात नाम जिनजी को; अंति: (-), (पू.वि. सुपार्श्वजिन स्तवन अपूर्ण तक है.) ११५२९६. ऋषभनाथजी की लावणी, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ३, जैदे., (२५४१२, १४४४५). आदिजिन छंद-धुलेवामंडन, मु. दीपविजय कवि, मा.गु., पद्य, वि. १८७५, आदि: आदिकरण आदिकर जिणंद जिनराज; अंति: दीपविजय० सब कीरत कहे, गाथा-६५. ११५२९७. कर्मबंध भांगा, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. २-१(१)=१, प्र.वि. पत्रांक लिखा न होने के कारण अनुमानित पत्रांक दिया गया है., दे., (२४.५४१२.५, १२४४४). कर्मबंध भांगा, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं व प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., सप्तम बोल उदयवर्णन अपूर्ण से है व नवम बोल लेश्यावर्णन अपूर्ण तक लिखा है.) ११५३०० (#) सुदर्शनासती भास व साधारणजिन पद आदि संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २-१(१)=१, कुल पे. ४, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५.५४१२.५, १४-१८४४७-५७). १.पे. नाम. सुदर्शनासती भास, पृ. २अ, अपूर्ण, पृ.वि. प्रथम पत्र नहीं है. मु. अमृत, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: निवाजे रे अमृत सुख निरधार, गाथा-६, (पू.वि. गाथा-६ अपूर्ण से है.) २. पे. नाम. साधारणजिन पद, पृ. २अ, संपूर्ण. पुहिं., पद्य, आदि: सुनो अविनासि साहिब; अंति: न फिरे दनिया में फेरा, गाथा-४. For Private and Personal Use Only Page #20 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२६ ३. पे. नाम. पार्श्वजिन स्तुति, पृ. २अ-२आ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तुति-गोडीजी, मु. भाणविजय, मा.गु., पद्य, आदि: परम प्रभु परमेस; अंति: भांणनी जीत करेवी, गाथा-४. ४. पे. नाम. प्रास्ताविक गाथा संग्रह, पृ. २आ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. म. भिन्न भिन्न कर्तक, प्रा.,मा.गु.,सं., पद्य, आदि: पूआए मन चिंतए पाहा; अंति: (-), (पू.वि. साधु संबंधी गाथा अपूर्ण तक है.) ११५३०१. पंचमीतिथि स्तति संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २-१(१)=१, कुल पे. ३, जैदे., (२६४१२.५, १३४३०). १. पे. नाम. पंचमीतिथि स्तति, पृ. २अ, अपर्ण, पृ.वि. प्रथम पत्र नहीं है. मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: हरज्यो विघन हमारा जी, गाथा-४, (पू.वि. गाथा-१ अपूर्ण से है.) २. पे. नाम. ज्ञानपंचमीपर्व स्तुति, पृ. २अ-२आ, संपूर्ण. सं., पद्य, आदि: श्रीनेमिः पंचरूपत्रिदशपति; अंति: कुशलं धीमतां सावधाना, श्लोक-५. ३. पे. नाम, पंचमीतिथि स्तुति, पृ. २आ, अपूर्ण, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. म. जीवविजय; म. सौभाग्यविजय, मा.गु., पद्य, वि. १७८४-१८००, आदि: पंचमी दिन जनम्या नेम; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-१ अपूर्ण तक है.) ११५३०२. (+) अष्टापदतीर्थ स्तवन, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, पृ.वि. मात्र प्रथम पत्र है.,प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., दे., (२५.५४१३, १०४२३). अष्टापदतीर्थ स्तवन, मु. भाणविजय, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: श्रीअष्टापद ऊपरे जाण; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-९ अपूर्ण तक है.) ११५३०५. घंटाकर्णमहावीरदेव स्तुति व पंचागुलीदेवी मंत्र, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, प्रले. मु. जुहारचंद (गुरु मु. सरूपचंद ऋषि), प्र.ले.पु. सामान्य, दे., (२५४१३, ७-८४२३). १. पे. नाम. घंटाकर्णमहावीरदेव स्तुति, पृ. १अ, संपूर्ण, वि. १९०२, ?, ज्येष्ठ शुक्ल, १, पठ. श्राव. सावतराम, प्र.ले.पु. सामान्य. घंटाकर्णमहावीरदेव स्तोत्र, सं., पद्य, आदि: ॐ घंटाकर्णो महावीरः; अंति: ते ठः ठः ठः स्वाहा, श्लोक-४. २. पे. नाम. पंचागुलीदेवी मंत्र, पृ. १आ, संपूर्ण, वि. १९०२, ?, ज्येष्ठ शुक्ल, ३, रविवार, पठ. मु. चतुर्भुज ऋषि, प्र.ले.पु. सामान्य. पंचांगुलीदेवी मंत्र, मा.गु.,सं., गद्य, आदि: ॐ पंचागुली २ परिसर; अंति: कुरु कुरु ठः ठः स्वाहा. ११५३०६. पडिलेहण विधि व औषध संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, दे., (२५.५४१३, ५४२५). १. पे. नाम. पडिलेहण विधि, पृ. १अ, संपूर्ण. आवश्यकसूत्र-प्रतिलेखन विधि, संबद्ध, प्रा.,मा.गु., गद्य, आदि: इरियावही पडिकमी; अंति: सज्झाय कहीजे प्रतिक्रमण. २.पे. नाम. औषध संग्रह, पृ. १आ, संपूर्ण.. औषध संग्रह*, मा.गु., गद्य, आदि: असथंबन होये सुपारी सुखाये; अंति: सुखाये तो सर्वरोग जाये. ११५३०७. (+#) दशवैकालिकसूत्र, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ४, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. संशोधित. मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., (२५४१३, १९४५५). दशवैकालिकसूत्र, आ. शय्यंभवसूरि, प्रा., पद्य, वी. रवी, आदि: धम्मो मंगलमुक्किट्ठ; अंति: (-), (पू.वि. अध्ययन-५ __ गाथा-३९ अपूर्ण तक है.) ११५३०८. तीर्थंकर चक्रवर्ती ऋद्धि वर्णन, संपूर्ण, वि. १९४६, कार्तिक शुक्ल, १४, मध्यम, पृ. १, ले.स्थल. पालि, प्रले. मु. भोगीलाल (गुरु पंन्या. धनरुपसागर); लिख. पंन्या. धनरुपसागर, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. शांतिनाथजी महाराज सुप्रसादात्., प्र.ले.श्लो. (५६) यादृशं पुस्तकं दष्टं, दे., (२५४१२, १६४३५). तीर्थंकर चक्रवर्ती ऋद्धि वर्णन, मा.गु., गद्य, आदि: तित्थयरा गणहारी सुर; अंति: मंगलमाला विस्तरे. ११५३१०. व्याख्यान संग्रह, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, पू.वि. मात्र प्रथम पत्र है., दे., (२४.५४१२.५, १५४३५). For Private and Personal Use Only Page #21 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची व्याख्यान संग्रह, प्रा., मा.गु. रा. सं., पग, आदि नो विद्या न च भेषजं न च अंति: (-), (पू.वि. पाठ तित्यरा गणहारी लोक-२ अपूर्ण तक है.) ११५३११. (#) पार्श्वजिन स्तवन, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. २- १ (१) = १, पू. वि. मात्र बीच का ही एक पत्र है., प्र. वि. अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५.५x१२.५, १६x४० ). Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir पार्श्वजिन स्तवन, मा.गु., पद्य, आदि (-); अंति: (-), (पू.वि. कमठासुर द्वारा उपसर्ग प्रसंग अपूर्ण से मोक्षगमन सिद्धशिला वर्णन अपूर्ण तक है. वि. गाथांक नहीं लिखा है.) ११५३१४. श्रीपालचरित्र, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १. पू. वि. मात्र प्रथम पत्र है. वे., (२५x१२.५, १५X३७). श्रीपाल चरित्र, ग. जयकीर्ति; पंन्या. जीवराज, सं., गद्य, वि. १८६८, आदि: प्रणम्य सिद्धचक्रं च; अंति: (-), (पू.वि. नवपद वर्णन अपूर्ण तक है.) ११५३१५ मौनएकादशीपर्व स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पू. १, दे. (२४४१२.५, १०X३०). मौनएकादशीपर्व स्तवन, मु. विशुद्धविमल, मा.गु., पद्य, वि. १७८१, आदि: शांतिकरण श्रीशांतिजी; अंति: (-), (अपूर्ण, पू. वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण गाथा-६ तक लिखा है.) ११५३१६ गजसुकमालमुनि सज्झाय, संपूर्ण, वि. २०वी श्रेष्ठ, पृ. १, दे. (२५.५४१२.५, ३४५२६). " गजसुकुमालमुनि सज्झाय, मु. चोथमल ऋषि, मा.गु., पद्य, वि. १८५८, आदि: गजसुखमाल देवकीनंदन; अंति: गाम जोधरे ऋषी चोथमल गाइ, गाथा २२. C ११५३१८. (+) महादेव स्तोत्र, बज्रसूची व प्रास्ताविक श्लोकसंग्रह, अपूर्ण, वि. २०वी श्रेष्ठ, पृ. ४, कुल पे. ३, प्र. वि. पवच्छेद सूचक लकीरें अन्वय दर्शक अंक युक्त पाठ. दे. (२५x१२.५, १०x३७). " १. पे. नाम. महादेव स्तोत्र, पृ. १अ - ३अ, संपूर्ण. आ. हेमचंद्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., पद्य, आदि: प्रशांतं दर्शनं यस्य; अंति: जिनो वा नमस्तस्मै श्लोक-४४. " २. पे. नाम, बज्रसूची, पृ. ३अ ४आ, संपूर्ण. वज्रशुचिकोपनिषत्, शंकराचार्य, सं., गद्य, आदि: वज्रशुचिं प्रवक्ष्यामि ; अति: ब्रह्मजाणाति ब्राह्मणः ३. पे. नाम. प्रास्ताविक लोकसंग्रह, पृ. ४आ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. For Private and Personal Use Only प्रास्ताविक श्लोक संग्रह, सं., पद्य, आदि नो दानं विहितं तपो अंति: (-), (पू.वि. श्लोक-४ अपूर्ण तक है.) ११५३२२. शालिभद्रमुनि चौपाई, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १. पू. वि. मात्र प्रथम पत्र है. दे. (२५५१२.५, १३x४०). शालिभद्रमुनि चौपाई, मु. मतिसार, मा.गु., पद्य, वि. १६७८, आदि सासननायक समरिये अंति (-), (पू.वि. डाल- २ " दुहा-३ अपूर्ण तक है.) ११५३२३. (२) नवतत्त्व प्रकरण का बालावबोध, अपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पृ. ४-२ (१ से २ ) -२ प्र. वि. पत्रांक लिखा न होने के कारण अनुमानित पत्रांक दिया गया है. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे. (२५x१२.५. १४४४१). " नवतत्त्व प्रकरण ६० गाथा-बालावबोध, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं व प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., जीवस्थितिवर्णन अपूर्ण से है व सम्यक्त्व प्राप्ति देवस्थितिवर्णन अपूर्ण तक लिखा है.) ११५३२४. (+#) प्रश्नोत्तरवार्त्तिक सिद्धांतसार, गाथा संग्रह व १४ राजलोक विचार, अपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ३-२ (१ से २)=१, कुल पे. ३, प्र. वि. अंत में संख्या यंत्र दिया गया है. संशोधित मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे. (२५x१२.५, १७१७-२२). १. पे. नाम. प्रश्नोत्तरवार्त्तिक सिद्धांतसार, पृ. ३अ अपूर्ण, पू. वि. मात्र अंतिम पत्र है. प्रश्नोत्तर संग्रह-आगमिक, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: श्रीपन्नवणा माहे कह्यो छै, प्रश्न- ३९, (पू. वि. प्रश्नोत्तर - ३८ अपूर्ण से है.) २. पे. नाम गाथा संग्रह. पू. ३४-३आ, संपूर्ण, गाथा संग्रह *, प्रा., पद्य, आदि: थोवा कपूर दुम्मा; अंति: उसप्पिणीओ असंखेज्जा. ३. पे. नाम. १४ राजलोक विचार, पृ. ३आ, संपूर्ण. मा.गु., गद्य, आदि: त्रसनाडी एक राज चउडी १४; अंति: १४ राजलोक हुवै है, (वि. यंत्र युक्त . ) Page #22 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२६ ११५३२७. मौनएकादशीपर्व माहात्म्य सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. २, पू.वि. प्रारंभ के पत्र हैं., प्र.वि. हुंडी:मौनएका., दे., (२४.५४१२.५, ५४२६). मौनएकादशीपर्व माहात्म्य, म. धीरविजय, सं., पद्य, वि. १७७४, आदि: श्रीवर्द्धमानतीर्थेशं; अंति: (-), (पू.वि. श्लोक-१२ अपूर्ण तक है.) मौनएकादशीपर्व माहात्म्य-टबार्थ, मा.ग., गद्य, आदि: प्रणम्य श्रीवर्द्धमा; अंति: (-). ११५३२८. (#) ९९प्रकारी पूजा, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ११-८(१ से ४,६ से ९)=३, पृ.वि. बीच-बीच के पत्र हैं.,प्र.वि. मूल पाठ का अंश खंडित है, दे., (२४.५४१२.५, १०४२६). ९९ प्रकारी पूजा-शत्रुजयमहिमागर्भित, पं. वीरविजय, मा.गु., पद्य, वि. १८८४, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. ढाल-४ ___ गाथा-६ अपूर्ण से ढाल-५ गाथा-७ अपूर्ण तक व ढाल-१० गाथा-३ अपूर्ण से कलश गाथा-६ अपूर्ण तक है.) ११५३२९. रूपीअरूपी जीवअजीव भेद गाथादि संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ५, दे., (२६.५४१२.५, १०४२२). १.पे. नाम. रूपीअरूपी जीवअजीव भेद गाथा, पृ. १अ, संपूर्ण. प्रा., पद्य, आदि: धम्माधम्मागासा तिय; अंति: अपज्जत्ता जीव बत्तिसं, गाथा-३. २. पे. नाम. नवतत्त्व प्रकरण की हेयज्ञेयउपादेय गाथा, पृ. १अ, संपूर्ण. नवतत्त्व प्रकरण ६० गाथा-हेयज्ञेयउपादेय, संबद्ध, प्रा., पद्य, आदि: हेया बंधासव पुन्ना; अंति: मक्खो पूण्णहुत्तिउ वाणा, गाथा-१. ३. पे. नाम. पात्रफल गाथा, पृ. १आ, संपूर्ण. सं., पद्य, आदि: मिथ्यादृष्टिसहस्रभ्यो; अंति: सहस्रभ्यो वनमेको जिनेश्वर, श्लोक-२. ४. पे. नाम. कवित्त, पृ. १आ, संपूर्ण, प्रले. श्राव. भाग्यचंद हेमचंद, प्र.ले.पु. सामान्य. स्त्री कवित, रघूनाथ, पुहिं., पद्य, आदि: एक नारे परे कर्क चपलचित्त; अंति: रघूनाथजि मलशे हर्ष अपार, पद-१. ५. पे. नाम. गुढा पद, पृ. १आ, संपूर्ण. मा.गु., पद्य, आदि: हाथि लदे घोडा लडे लडे उंट; अंति: एसी दिठिसि पर लकड लाई, गाथा-१. ११५३३३. पोस उसरवा विधि, संपूर्ण, वि. १९३८, मार्गशीर्ष कृष्ण, ४, मध्यम, पृ. १, दे., (२६४१२.५, १२४३३). पौषध विधि *, संबद्ध, प्रा.,मा.गु., गद्य, आदि: प्रथम सामायक लेवी; अंति: नवकार गुणी सागरचंदो केवो. ११५३३४. चार मंगल पद व गणेशमानसपूजा विधि, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, जैदे., (२४४१३, १४-१६४५-४०). १.पे. नाम. चार मंगल पद, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण, वि. १९वी, कार्तिक कृष्ण, ५, प्रले. मु. चिमनसागर, प्र.ले.पु. सामान्य. ४ मंगल पद, मु. उदयरत्न, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: सिद्धार्थ भूपति सोहे; अंति: उदयरत्न भाखे एम, ढाल-४, गाथा-२०. २. पे. नाम. गणेशमानसपूजा विधि, पृ. १आ, संपूर्ण. सं., पद्य, आदि: नानारत्न विचित्रकं रमणकं; अंति: गणपते भक्तिस्तु पादांबजे, श्लोक-३. ११५३३५. (#) जिनसहस्रनाम स्तोत्रादि संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २, कुल पे. ५, प्र.वि. मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., (२५४१३, २२-२५४६९). १. पे. नाम. जिनसहस्त्रनाम स्तोत्र, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. जिनसहस्रनाम लघस्तोत्र, सं., पद्य, आदि: नमस्त्रैलोक्यनाथाय; अंति: मुच्यते नात्र संशयः, श्लोक-४१. २. पे. नाम. परमानंद स्तोत्र, पृ. १आ, संपूर्ण. सं., पद्य, आदि: परमानंदसंपन्न; अंति: यो जानाति स पंडितः, श्लोक-२४. ३. पे. नाम. षट्कारक व्यवहारनिश्चयद्रष्टांत स्वरूप छप्पय सह बालावबोध, पृ. २अ-२आ, संपूर्ण. षट्कारक व्यवहारनिश्चयदृष्टांत स्वरूप छप्पय, श्राव. हेमराज पांडे, पुहि., पद्य, आदि: स्वयंसिद्ध करतार करै निज; अंति: रहित विविध एक अजरा अमर. For Private and Personal Use Only Page #23 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची षट्कारक व्यवहारनिश्चयदृष्टांत स्वरूप छप्पय-बालावबोध, पुहि., गद्य, आदि: (१)अब षटकारक आपही के विषे, (२)प्रथम कर्ता१ कर्म२ करण३; अंति: तातें परकं काहे• चाहै. ४. पे. नाम, सिद्ध जयमाला पूजा, पृ. २आ, संपूर्ण. आ. पद्मनंदि, सं., पद्य, आदि: ॐ उ धोरयुतं; अंति: मचर्ल संचर्चचामो व्ययं. ५. पे. नाम, सिद्धचक्र जयमाल, पृ. २आ, संपूर्ण. आ. पद्मनंदि, सं., पद्य, आदि: त्रीलोक्येश्वर वंदनीय चरण; अंति: पद्म० सोम्येति मुक्तिम्, श्लोक-११. ११५३३६. (+) मौनएकादशीपर्व स्तुति, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, प्रले. मु. गोविंददास साधु, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२४४१२.५, ११४३०). मौनएकादशीपर्व स्तुति, मु. लालविजय, मा.गु., पद्य, आदि: गौतम बोले ग्रंथ संभाली; अंति: श्रीसंघ विघन निवारी, गाथा-४. ११५३३७. (+#) रात्रिभोजन परिहार सज्झाय, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, पृ.वि. मात्र प्रथम पत्र है., प्र.वि. संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२४.५४१३, १०x२०). रात्रिभोजन परिहार सज्झाय, उपा. देवविजय, मा.गु., पद्य, आदि: गुरु समरी रे वाणि; अंति: (-), (पू.वि. ढाल-२ गाथा-१ अपूर्ण तक है.) ११५३४२. (+) स्तुति, भास व सज्झायादि संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ४-१(२)=३, कुल पे. ६, ले.स्थल. वालूचर, प्रले. मु. शिवदास, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२५४१३, १६४३३). १. पे. नाम. सिद्धचक्र स्तति, पृ. १अ, संपूर्ण. आ. जिनलाभसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: निरुपम सुखदायक; अंति: श्रीजिनलाभसूरिंदा जी, गाथा-४. २. पे. नाम. भगवतीसूत्र सज्झाय, पृ. १अ-१आ, अपूर्ण, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. भगवतीसूत्र-सज्झाय, संबद्ध, उपा. क्षमाकल्याण, मा.गु., पद्य, वि. १८४३, आदि: वीर जिणेसर अरथ; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-१६ अपूर्ण तक है.) ३. पे. नाम. लब्धिचंद्रसूरि वधावो, पृ. ३अ, संपूर्ण. लब्धिचंदसूरि वधावो, पा. वल्लभ, मा.गु., पद्य, आदि: वहिला पधारोजी रे वाला; अंति: मन गुरुचरणै वस रह्यो, गाथा-५. ४. पे. नाम. जिनचंद्रसूरि गंहली, पृ. ३अ, संपूर्ण.. जिनचंद्रसूरि गहंली, मु. जीतरंग, मा.गु., पद्य, आदि: आज आनंद मुझ अती थयो; अंति: लहे रे जीतरंग उलास, गाथा-६. ५. पे. नाम. लब्धिचंद्रसूरि वधावो, पृ. ३आ, संपूर्ण. लब्धिचंदसूरि गहली, मा.गु., पद्य, आदि: गच्छपती आया हे सहेली; अंति: हे सहेली मारो गच्छपति, गाथा-८. ६. पे. नाम, भगवतीसूत्र भास, पृ. ३आ-४आ, संपूर्ण. संबद्ध, श्राव. मनसुखदास दुग्गड, मा.गु., पद्य, आदि: सरसति सामणी नित नमुं; अंति: परम आणंदै रे लो अहो गावो, गाथा-१८. ११५३४४. (+) शिक्षारूप स्वाध्याय, सीमंधरजिन स्तव व राधाकृष्णभक्ति पद, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ३, प्र.वि. संशोधित., दे., (२४४१३, १२-१७४३३-४१). १. पे. नाम, शिक्षारूप स्वाध्याय, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. औपदेशिक सज्झाय-दुर्मतिविषये, मा.गु., पद्य, आदि: दुरमतडी वेरण थई लीधो; अंति: पदवीमां जै मलसे, ढाल-२, गाथा-१५. २. पे. नाम. सीमंधरस्वामि स्तव, पृ. १आ, संपूर्ण. सीमंधरजिन स्तवन, म. लालचंद, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीसीमंधरजी सुणजो; अंति: लालचंद कहे० एही अरदासो जी, गाथा-७. For Private and Personal Use Only Page #24 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२६ ३. पे. नाम. राधाकृष्णभक्ति पद, पृ. १आ, संपूर्ण. मा.गु., पद्य, आदि: बोलो दिल खोलोजी राधे; अंति: सासु लडेगी देख ओडोरो हात, गाथा-४. ११५३४५. ८४ उपमा-साधु, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. २, दे., (२४४१३, १८४४२). ८४ उपमा-मुनि की, मा.गु., गद्य, आदि: पहली ओपमा सरप की; अंति: निवारे शांति शांति बरतावे. ११५३४६ (-2) औपदेशिक सवैया, लावणी व दोहा संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. ४, ले.स्थल. पीपारा, प्र.वि. अशुद्ध पाठ. मूल पाठ का अंश खंडित है, दे., (२४४१२.५, २४४३०). १. पे. नाम. औपदेशिक सवैया, पृ. १अ, संपूर्ण. ___मा.गु., पद्य, आदि: फूल सुगंध ले० दीपक वले आप; अंति: परवार को इचारज का भायो, गाथा-८. २. पे. नाम, औपदेशिक सवैया, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. म. राम, पुहिं., पद्य, आदि: राण आदारी बीजली चामके कदी; अंति: राम कहा० आगन हा मीलतीसेरा, गाथा-३. ३. पे. नाम. औपदेशिक लावणी-पुण्यपाप, पृ. १आ, संपूर्ण. पुहि., पद्य, आदि: दोए बात है जगमें साची पुन; अंति: भावो सीवपुर छावो मन छाया, गाथा-४. ४. पे. नाम. औपदेशिक दोहा संग्रह, पृ. १आ, संपूर्ण. पुहिं.,प्रा.,मा.गु.,सं., पद्य, आदि: गढ के पास डुगरी कदेक गड; अंति: जोगन रोग लागो पी, गाथा-२. मोक्षभेद विचार, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ९-८(१ से ८)=१, दे., (२५४१२.५, ११४४०). मोक्षभेद विचार-स्त्रीपुरुष, मा.गु., गद्य, आदिः (-); अंति: संख्यात गुण मोक्षना ९ भेद, (पू.वि. मात्र अंतिम पत्र है., शुक्ल ___ ध्यान के वर्णन अपूर्ण से है.) ११५३५० (#) शांतिजिन स्तुति व दीपावलीपर्व स्तुतिद्वय, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ३, प्र.वि. अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, दे., (२५४१२.५, १३४३४). १. पे. नाम. शांतिजिन स्तति, पृ. १अ, संपूर्ण. क. ऋषभदास संघवी, मा.गु., पद्य, आदि: शांति जिणेसर समरीइं; अंति: सांभलो ऋषभदासनी वाणी, गाथा-४. २. पे. नाम. दीपावलीपर्व स्तुति, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. __मु. लालविजय, मा.गु., पद्य, आदि: वंदु वीर जिणंदनुचरी; अंति: लालविजय० संकट हरे, गाथा-४. ३. पे. नाम. दीपावलीपर्व स्तुति, पृ. १आ, अपर्ण, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. मु. रत्नविमल, मा.गु., पद्य, आदि: सासननायक श्रीमहावीर; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-४ अपूर्ण तक है.) ११५३५१ गिरनारतीर्थ स्तवन, अर्बुदाचल स्तवन व अइमुत्तामुनि सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ३, कुल पे. ३, जैदे., (२५४१३, १२४२६). १.पे. नाम. गिरनारतीर्थ स्तवन, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण.. ग. वीरविजय, मा.गु., पद्य, आदि: सहसावन जए वसीये चालो; अंति: श्रीशुभवीर विलसीइं, गाथा-९. २. पे. नाम. अर्बुदाचल स्तवन, पृ. १आ-२अ, संपूर्ण. __ अर्बुदगिरितीर्थ स्तवन, मु. वीरविजय, मा.गु., पद्य, आदि: आदिजिणेसर पूजता; अंति: पामीये वीरविजय जयकार, ___ गाथा-१०. ३. पे. नाम. अइमुत्तामुनि सज्झाय, पृ. २अ-३आ, संपूर्ण. आ. लक्ष्मीरत्नसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: वीरजिणंद वांदीने; अंति: ते मुनिवरना पाया, गाथा-१८. ११५३५७. (#) शांतिजिन स्तवन-१२ भव, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १,प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५.५४१३, १९४४८). शांतिजिन स्तवन-१२ भव, पं. दिनकरसागर, मा.गु., पद्य, वि. १८७१, आदि: आदिइल जगविछ परतिख जोत; अंति: दिणयरसागर कवि गाया, गाथा-२८. ११५३५८. चऊदस्थानक सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, जैदे., (२५४१२.५, ११४३३). For Private and Personal Use Only Page #25 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १४ समूर्छिमपंचेंद्रियजीव उत्पत्तिस्थानक सज्झाय, मु. धर्मदास, मा.गु., पद्य, आदि: गौतम गणधर प्रणमी पाय; अंति: सणे तस लील विलास, गाथा-१३. ११५३६०. दादाजीरी घघर निसाणी, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, दे., (२५.५४१२.५, १५४४८). जिनकुशलसूरि घग्घर निसाणी, य. दोलत, मा.गु., पद्य, वि. १८१२, आदि: सरस्वती माता जगत; अंति: सिद्धि नितवाधंदा हे, गाथा-१०. ११५३६२. (+) सकलार्हत् स्तोत्र व जिनभवन स्तुति, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ५-४(१ से ४)=१, कुल पे. २, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२५.५४१२, ११४३१). १.पे. नाम. सकलार्हत् स्तोत्र, पृ. ५अ, अपूर्ण, पू.वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं., ले.स्थल. जगाणा, प्रले. श्राव. राघवजी, प्र.ले.पु. सामान्य. त्रिषष्टिशलाकापुरुष चरित्र-हिस्सा सकलार्हत् स्तोत्र, आ. हेमचंद्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., पद्य, वि. १२वी, आदि: (-); अंति: (१)श्रीवीरजिननेत्रयोः, (२)श्रीवीरं प्रणिदद्धमहे, श्लोक-२६, (पू.वि. श्लोक-२० अपूर्ण से है.) २. पे. नाम. जिनभवन स्तुति-सकलार्हत, पृ. ५आ, संपूर्ण. त्रिषष्टिशलाकापुरुष चरित्र-हिस्सा सकलार्हत् स्तोत्र की जिनभवन स्तुति, संबद्ध, सं., पद्य, आदि: अवनितलगतानां कृत्रिम; अंति: भावतोहं नमामि, श्लोक-१. ११५३६४. जिनबिंब प्रतिष्ठाविधि संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २१-२०(१ से २०)=१, प्र.वि. हंडी:प्रतिष्ठापाठ., जैदे., (२६४१२.५, ४४३६). जिनबिंब प्रतिष्ठाविधि संग्रह, मा.गु.,सं., प+ग., आदि: (-); अंति: स्थाने गच्छ गच्छ स्वाहा, (पू.वि. कलशस्थापन विधि अपूर्ण से है., वि. अंत में बारह मास घातग्रह घातमास यंत्र है.) ११५३६५. (+#) रोहिणीतप स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २, प्र.वि. संशोधित. अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५.५४१३, १४४३९). रोहिणीतप स्तवन, मु. श्रीसार, मा.गु., पद्य, वि. १७२०, आदि: सासणदेवता सामणीए मुझ; अंति: हिव सकल मन आस्या फली, ढाल-४, गाथा-३२. ११५३६६. प्रतापसिंह चौपाई, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १०-७(१ से ७)=३, प्र.वि. हंडी:परतापसिं:चौ, दे., (२६४१२.५, १५४४१). प्रतापसिंह चौपाई, मा.ग., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. बीच के पत्र हैं., खंड-२ ढाल-२ गाथा-५ अपूर्ण से खंड-२ ___ ढाल-८ गाथा-४ अपूर्ण तक है.) ११५३६७. (+) शत्रुजयतीर्थ व अर्बुदगिरितीर्थ स्तवन, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२५.५४१२.५, १३४३४). १. पे. नाम. शत्रुजयतीर्थ स्तवन-९९ यात्रा गर्भित, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. शत्रुजयतीर्थ स्तवन-९९ यात्रागर्भित, मु. जिनहर्ष, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीसिद्धाचलमंडण; अंति: इम विमलाचल गुण गाय, गाथा-१५. २.पे. नाम. अर्बदगिरितीर्थ स्तवन, पृ. १आ, अपर्ण, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. मु. रूपचंद, मा.गु., पद्य, आदि: जात्रीडा भाई आबूजीनी; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-७ अपूर्ण तक है.) ११५३६८. (#) संवत्सरीप्रतिक्रमण विधि, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ५-३(१ से ३)=२, पृ.वि. बीच के पत्र हैं., प्र.वि. मूल पाठ का अंश खंडित है, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६४१३, ११४३१). आवश्यकसूत्र-संवत्सरीप्रतिक्रमण विधि, संबद्ध, प्रा.,मा.गु., प+ग., आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. "संबुद्धा खामणेणं अभुट्ठिओ" पाठ से ४ थुइ देववंदन विधि अपूर्ण तक है.) ११५३६९. सिद्धचक्र स्तवन व नेमराजिमती पद, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ.१, कुल पे. २, दे., (२५.५४१३, १५४३२). १. पे. नाम. सिद्धचक्र स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण. For Private and Personal Use Only Page #26 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२६ म. जिनचंद, मा.गु., पद्य, आदि: नवपदना गुन गावो तुम; अंति: एम चंद हीया माहै आंणी रे, गाथा-११, (वि. अंत ___ में-"उपशम विवेक संबर सार पदारथ है संसार में सो जाननाजी" लिखा है.) २. पे. नाम. नेमराजिमती पद, पृ. १आ, संपूर्ण. पं. कपूरचंद, पुहिं., पद्य, आदि: छाई घटा गगन में काली; अंति: कपूरचंदजाउं बलिहारी, गाथा-४. ११५३७०. आदिजिन छंद-धुलेवा, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २-१(१)=१, पू.वि. मात्र बीच का ही एक पत्र है., प्र.वि. *ट.नथी., जैदे., (२५.५४१२.५, १५४४२). आदिजिन छंद-धुलेवामंडन, मु. दीपविजय कवि, मा.गु., पद्य, वि. १८७५, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. "गोवधसेयो नासेगा" पाठ से "दीपविजे कविराज तुंही सिरदास तुही करतार" पाठांश तक है.) ११५३७१ (#) सिद्धचक्र चैत्यवंदन व स्तुति, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, प्र.वि. मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., (२६४१३, १२४३३). १.पे. नाम. सिद्धचक्र चैत्यवंदन, पृ.१अ-१आ, संपूर्ण. मु. साधुविजय, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीसिद्धचक्र आराधता; अंति: तणो सीस नमे करजोडि, गाथा-१६. २. पे. नाम. सिद्धचक्र स्तुति, पृ. १आ, अपूर्ण, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. नवपद स्तुति, मा.गु., पद्य, आदि: आसौ चेत्र आंबिल ओली नव; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-४ अपूर्ण तक है.) ११५३७२. (+) कल्याणमंदिर स्तोत्र, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ३, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. हुंडी:कल्याण, संशोधित., जैदे., (२५४१२.५, १४४२५). कल्याणमंदिर स्तोत्र, आ. सिद्धसेनदिवाकरसूरि, सं., पद्य, वि. १वी, आदि: कल्याणमंदिरमुदारमवद्यभेदि; अंति: (-), (पू.वि. श्लोक-३३ अपूर्ण तक है.) ११५३७३. (+) देवेंद्रस्तव प्रकीर्णक सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ४५-४४(१ से ४४)=१, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२६४१२.५, २४३०). देवेंद्रस्तव प्रकीर्णक, म. ऋषिपालित, प्रा., पद्य, आदिः (-); अंति: (-), (पू.वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं व प्रतिलेखक द्वारा ___ अपूर्ण., गाथा-२०० अपूर्ण से है व २०२ अपूर्ण तक लिखा है.) देवेंद्रस्तव प्रकीर्णक-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), पृ.वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं व प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण. ११५३७४. (+#) पाक्षिकनमस्कार स्तोत्र व व्याख्यान पीठिका, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ३-२(१ से २)=१, कुल पे. २, प्र.वि. संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५.५४१२.५, १४४२८). १. पे. नाम. पाक्षिकनमस्कार स्तोत्र, पृ. ३अ-३आ, अपूर्ण, पू.वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं. __ पार्श्वजिन स्तोत्र, सं., पद्य, आदिः (-); अंति: युष्मान् परमेश्वरा, श्लोक-४९, (पू.वि. गाथा-३७ अपूर्ण से है.) २. पे. नाम. व्याख्यान पीठिका, पृ. ३आ, अपूर्ण, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. मा.गु.,सं., प+ग., आदि: श्रीअरिहंतभगवंत त्रैलोक्य; अंति: (-), (पू.वि. प्रास्ताविक वर्णन अपूर्ण तक है.) ११५३७५. पाशाकेवली, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, जैदे., (२६४१२.५, १६४३७). पाशाकेवली, म. गर्ग ऋषि, सं., पद्य, आदि: ॐ नमो भगवती कूष्मांडिनी; अंति: (-), (पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., ___ श्लोक-३३ अपूर्ण तक है.) ११५३७६. (#) दानशीलतपभावना चौढालिया, अपूर्ण, वि. १९५३, कार्तिक शुक्ल, ७, बुधवार, मध्यम, पृ. ४-२(१ से २)=२, ले.स्थल. पाली, प्रले. अमरदत्त मेवाडा, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. शांतिजिन प्रासादात्, मूल पाठ का अंश खंडित है, दे., (२६.५४१२, १२४४३). दानशीलतपभावना संवाद, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, वि. १६६२, आदि: (-); अंति: समृद्धि सुप्रसादो रे, ढाल-४, गाथा-१०१,ग्रं. १३५, (पृ.वि. ढाल-३ गाथा-७ अपूर्ण से है.) ११५३७७. जंबूद्वीपप्रज्ञप्ति, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, प. ४-२(१ से २)=२, पृ.वि. बीच के पत्र हैं..प्र.वि. पत्रांक लिखा न होने के कारण अनुमानित पत्रांक दिया गया है., जैदे., (२६४१३, ५४३०). For Private and Personal Use Only Page #27 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra १२ www.kobatirth.org कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची जंबूद्वीपप्रज्ञप्ति, प्रा., गद्य, आदि (-); अति (-) (पू.वि. वक्षस्कार-५ पाठ "ओमुयइ ओमुवइत्ता एग साडिय" से "पुव्वतित्थयरनिद्दिवस्स" तक है.) יי ११५३७८. गौतमपृच्छा सह बालावबोध व कथा, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २६-२५ (१ से २५) = १, पू.वि. मात्रबीच एक पत्र है. प्र. वि. हुंडी गोतमपूछा., जैदे. (२५.५x१२, १७४२). गौतमपृच्छा, प्रा., पद्य, आदि (-) अति (-), (पू.वि. गाथा ४६ से ४७ है. ) गौतमपृच्छा वालावबोध+कथा*, मा.गु., गद्य, आदि (-); अंति (-) (पू.वि. गोसल कथा अपूर्ण से ब्रह्मदत्त कथा अपूर्ण तक है.) ११५३७९. (+) सचित्त अचित्त सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, ले. स्थल. बीकानेर, प्रले. ग. देवसागर, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. पदच्छेद सूचक लकीरें अन्वय दर्शक अंक युक्त पाठ-टिप्पण युक्त विशेष पाठ, जै. (२४.५x१२.५, १३४३४). असनादिक कालप्रमाण सज्झाय, मु. वीरविमल, मा.गु., पद्य, वि. १७वी, आदि प्रभु प्रणमुं गौतम गणधर अंतिः वीरविमल करजोडी कहे, गाथा १७. - Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ११५३८०. (**) गौतम कुलक सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पू. १, प्र. वि. पदच्छेद सूचक लकीरें संशोधित मूल पाठ का . (+#) अंश खंडित है, जैदे., (२५४१२, ६x४३). " गौतम कुलक, प्रा., पद्य, आदि: लुद्धा नरा अत्थपरा; अंति: (-), (पू.वि. मात्र प्रथम पत्र है., गाथा-१३ अपूर्ण तक है.) गौतम कुलक-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: लोभी नर लक्ष्मी, अंति: (-), (पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., गाथा- १२ तक के टवार्थ हैं.) ११५३८१. दशवैकालिकसूत्र, अपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पृ. ६-५ (१ से ५) १, पू. वि. मात्र बीच का ही एक पत्र है. प्र. वि. हुंडी: छजिवणी, जै. (२५x१२.५ १२४२९). "" दशवैकालिकसूत्र, आ. शय्यंभवसूरि, प्रा., पद्य, वी. २वी, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. अध्ययन-४ पाठ "जागरमाणे वा से पुढवं वा भितं वा" से "अलाई वा सुधागणिं वा" तक है.) . ११५३८२. (१) वीरस्तुति अध्ययन, महावीरजिन स्तुति व श्लोक संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी जीर्ण, पृ. ४, कुल पे. ३, प्र. वि. मूल पाठ का अंश खंडित है, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे. (२५x१२, ७२३). १. पे नाम वीर स्तुति, पृ. १अ ४अ संपूर्ण, प्रलं. रूपदेव, प्र.ले.पु. सामान्य. सूत्रकृतांगसूत्र-हिस्सा वीरस्तुति अध्ययन, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., पद्य, आदि: पुच्छिसुणं समणा माहण; अंतिः आगमिस्संति त्तिबेमि, गाथा - २९. २. पे नाम महावीरजिन स्तुति, पृ. ४अ ४आ, संपूर्ण प्रले रूपदेव, प्र.ले.पु. सामान्य प्रा.,मा.गु.,सं., पद्य, आदि: पंचमहव्वयसुव्वयमूलं; अंति: मोक्खपहस्स वडें सगभूयं, गाथा-३. ३. पे नाम श्लोक संग्रह, पृ. ४आ, अपूर्ण, पू. वि. अंत के पत्र नहीं हैं. प्रा.सं., पद्य, आदि: सारं दंसण नाणं सारं तव; अंति: (-), (पू.वि. श्लोक-३ अपूर्ण तक है.) ११५३८३. सूरिमंत्र विधि, अपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पृ. १, जैवे. (२५x१२.५, १६x४८). , मुद्रापंचक विधि, सं., गद्य, आदिः ॐ ह्रीं नमो जिणाणं ॐ अंति: (-), (पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., पाठ - "कायोत्सर्गं दत्वा एतन्मंत्रं १०८" तक है.) "" ११५३८४ (+) शक्रस्तव, अपूर्ण, वि. २०वी श्रेष्ठ, पृ. २-१ (१) १, प्र. वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ दे. (२५x१२.५, १४९५०). शक्रस्तव-अर्हन्सहस्रनाम, आ. सिद्धसेनदिवाकरसूरि, सं., प+ग., आदि: (-); अंति: लिलिखे संपदां पदम्, (पू.वि. गाथा-७ अपूर्ण से है. ) ११५३८५, (+) औषध संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी श्रेष्ठ, पृ. ३, प्र. वि. हुंडी दवाईका नुखसा है., पदच्छेद सूचक लकीरें संशोधित. दे., (२४x१२.५, १४-२०x४६). औषध संग्रह, मा.गु., गद्य, आदि इमरतसागर मतानुसारे नकसा; अंतिः सात रोगधरण चिकित्सा है. ११५३८८. (+) शत्रुंजयतीर्थ स्तुति, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पू. १, प्र. वि. संशोधित, दे., (२५x१३, १२५३६). For Private and Personal Use Only Page #28 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२६ www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir शत्रुंजयतीर्थ स्तुति, आव, ऋषभदास, मा.गु, पद्य, आदि: श्रीशत्रुंजय तीरथसार अति (-) (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., गाथा-४ अपूर्ण तक लिखा है.) ११५३९०. सूत्रकृतांग-मोक्षमार्ग अध्ययन, संपूर्ण, वि. १९४५, चैत्र अधिकमास कृष्ण, ६, मध्यम, पृ. १, प्रले. मु. फुलचंद ऋषि, प्र.ले.पु. सामान्य, जैये. (२४.५x१२.५, १९४०). " सूत्रकृतांगसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा. प+ग, आदि (-); अति (-), प्रतिपूर्ण, ११५३९१. (+) कायस्थिति २२ द्वार वर्णन, अपूर्ण, वि. २०वी मध्यम, पृ. ३-१ (१) २. पू. वि. प्रथम एक व अंत के पत्र नहीं हैं.. प्र. वि. हुंडी : कायथीत, अशुद्ध पाठ- संशोधित. दे. (२४४१३, २४३७). कायस्थिति २२ द्वार वर्णन, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. द्वार-७ अपूर्ण से २० अपूर्ण तक है.) ११५३९२. सज्जनचितवल्लभ काव्य सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १९५१, आषाढ़ शुक्ल, १३, मध्यम, पृ. ४, ले. स्थल बिदासर, , प्र. मु. केवलचंद्र, प्र.ले.पु. सामान्य, वे. (२४.५४१२.५, ७x४२). सज्जनचित्तवल्लभ काव्य, आ. मल्लिषेण, सं., पद्य, आदि नत्वा वीरजिनं अति सततं संसारविच्छिनये, श्लोक-२५. सज्जनचित्तवल्लभ काव्य-टवार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: नमस्कार करके श्रीवीर अति जासी भवांकई आंतरई. ११५३९३. (+४) चतु:शरण प्रकीर्णक, संपूर्ण वि. १९वी मध्यम, पृ. २, प्र. वि. पदच्छेद सूचक लकीरें अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, जैदे., (२५X१३.५, १२x२८). , चतुःशरण प्रकीर्णक, ग. वीरभद्र, प्रा., पद्य, वि. ११वी, आदि: सावज्जजोग विरई; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., गाथा - २२ तक लिखा है . ) ११५३९६. कुमत्युत्थापण चरचा, संपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पृ. ४, प्रले. मु. चिमनसागर, प्र.ले.पु. सामान्य, जैवे. (२५४१३, १६x४१). कुमतिउत्थापन चर्चा, प्रा., मा.गु., गद्य, आदि मनोमती झूठी प्ररूपणा; अंति वचन का उत्थापक जाणणा. ११५३९७ ८ कर्मप्रकृति विचार, अपूर्ण, वि. २०वी मध्यम, पू. २-२ ( १ ) = १. पू. वि. मात्र बीच का ही एक पत्र है. दे., , (२४.५X१२.५, १८x४१). ८ कर्मप्रकृति विचार, मा.गु., गद्य, आदि (-); अंति: (-), (पू.वि. अशुभ नाम चार प्रकार वर्णन अपूर्ण से उदय उपशम वर्णन अपूर्ण तक है.) ११५३९८. () कायस्थिति आंतरा बोल, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ३-१ (१) = २, पू. वि. प्रथम एक व अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. हुंडी:कायस्थिति आंतरो., अशुद्ध पाठ., दे., ( २४.५X१३, २३३६). कायस्थति बोल, मा.गु., गद्य, आदि (-); अंति: (-), (पू.वि. बोल- ७ अपर्याप्तावर्णन अपूर्ण से बोल १४ तिर्यंचवर्णन अपूर्ण तक है.) ११५३९९ (+४) ४८ लब्धि मंत्र, अपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पू. ३-२ (१ से २) १, पू.वि. मात्र बीच का ही एक पत्र है, प्र. वि. संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५X१२, १३X२७). ४८ लब्धि मंत्र, प्रा., गद्य, आदि (-); अति (-), (पू. वि. मंत्र १८ अपूर्ण से ४५ अपूर्ण तक है.) ११५४०० (+) वृधिक विषापहार मंत्र व दशवैकालिकसूत्र- प्रथमाध्ययन, संपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पृ. १. कुल पे. २, प्र. वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित, जैदे. (२६४१२.५, ७X२१). " १. पे नाम. वृश्चिक विषापहार मंत्र, पृ. १अ, संपूर्ण. मंत्र-तंत्र-यंत्र संग्रह*, उ.,पुहिं., प्रा., मा.गु., सं., प+ग., आदि: (-); अंति: (-). २. पे. नाम. दशवैकालिकसूत्र अध्ययन १. पू. १आ, संपूर्ण दशवैकालिकसूत्र, आ. शव्यंभवसूरि, प्रा., पद्य, वी. रवी, आदि धम्मो मंगलमुक्किहूं, अंति: (-), प्रतिपूर्ण ११५४०१. (+) पार्श्वजिन चैत्यवंदन व दशवैकालिकसूत्र, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, प्र. वि. संशोधित., दे., (२४.५x१३, १२४३३). ९. पे. नाम. पार्श्वजिन चैत्यवंदन सह अर्थ, पू. १अ संपूर्ण, १३ For Private and Personal Use Only Page #29 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra १४ www.kobatirth.org कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची सकलकुशलवल्लि चैत्यवंदनसूत्र, हिस्सा, सं., पद्य, आदि सकल कुशलवल्ली पुष्करावर्त अतिः सततं श्रेयसे पार्श्वनाथः, श्लोक - १. सकलकुशलवल्लि चैत्यवंदनसूत्र- अर्थ, मा.गु., गद्य, आदि समस्त कल्याण रूप वेलि; अति: स्वामी मंगलीकना कारण है. २. पे. नाम. दशवैकालिक प्रथम अध्ययन सह अर्थ, पृ. १अ १आ, संपूर्ण. दशवैकालिकसूत्र - हिस्सा डुमपुष्पिका अध्ययन, आ. शय्यंभवसूरि, प्रा., पद्य, आदि धम्मो मंगल मुक्किठं; अंतिः साहुणो तिब्बेमि, गाथा-५. दशवेकालिकसूत्र - हिस्सा हुमपुष्पिका अध्ययन का अर्थ, मा.गु., गद्य, आदि धर्म सर्व में मांगली कहै; अंतिः सहित तिणां नैं साधु कहीजे. ११५४०२. नवस्मरण, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. २, पू. वि. अंत के पत्र नहीं हैं., दे., (२५.५X१२.५, १४४४२). नवस्मरण, मु. भिन्न भिन्न कर्तृक, प्रा., सं., प+ग, आदि: नमो अरिहंताणं० हवइ मंगलम्; अंति: (-), (पू.वि. नमिऊ स्तोत्र गाथा-७ अपुर्ण तक है.) ११५४०३. पर्युषणपर्व चैत्यवंदन, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, दे., (२५.५X१२.५, ९x३२). Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir पर्युषण पर्व चैत्यवंदन, मु. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., पद्य, आदि सब परबो मे एही परच अलबेला; अति: निज घट ग्यान उजेला, गाथा-४ ११५४०४ चतुर्दस स्वप्न अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पू. ३-२ (१ से २) =१, दे., (२५x१२.५, १५X३७). १४ स्वप्न-ढाल, मु. ज्ञानचंद्रजी, मा.गु., पद्य, आदि (-); अंति: ग्यांनचंद० मीली करसी सेव, (पू.वि. स्वप्न १२ गाथा-३ अपूर्ण से है.) ११५४०५ आचारछत्रीसी, अपूर्ण, वि. २०बी, श्रेष्ठ, पृ. २१(१)-१, वे. (२४.५X१२.५, १८४३३). יי आचारछत्रीसी, मु. रतनचंद, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: रतनचंद० कोंण न राखी, गाथा- ३७, (पू. वि. गाथा - ११ अपूर्ण से है.) ११५४०६. (+#) नय निक्षेपा सप्तभंगी आदि विचार संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी, जीर्ण, पृ. १७-१४ (१ से १४) = ३, कुल पे. ३२, प्र. वि. पदच्छेद सूचक लकीरें. मूल पाठ का अंश खंडित है, जैवे. (२५x१२, २२४७४). १. पे. नाम. ७ नय विचार-अरिहंतपदघटित, पृ. १५अ, अपूर्ण, पू. वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं. मा.गु., गद्य, आदि (-); अंतिः इत्यादिक नय उलखावी, (पू.वि. व्यवहारनय पूर्व का अधिकार अपूर्ण से है.) २. पे. नाम. ४ निक्षेप विचार - अरिहंतपदघटित, पृ. १५अ, संपूर्ण. मा.गु., गद्य, आदि: ०चक्रभाव संबद्ध छे वाचकने; अंति: नाम लेतां वर्ते छे, (वि. आदिवाक्य खंडित है.) ३. पे नाम अस्तिनास्ति सप्तभंगी, पृ. १५ आ १६आ, संपूर्ण. सप्तभंगी-अस्तिनास्ति, मा.गु., गद्य, आदि: (अपठनीय); अंति: युगपत् अवक्तव्य पणुं छे, (वि. आदिवाक्य खंडित है.) ४. पे. नाम. सूत्रकृतांगसूत्र-सूत्र १० व ११की बृहद्वृत्तिगत वस्तुस्वभावसप्तभंगी, पृ. १६आ, संपूर्ण, पे.वि. अंत में शेत्रुंजय दृष्टांत हेतु उल्लेख मात्र है. सूत्रकृतांगसूत्र- बृहद्वृत्ति ॥, आ. शीलांकाचार्य, सं., गद्य, बि. १०वी, आदि (-); अति (-), प्रतिपूर्ण ५. पे. नाम. चंद्रगुप्त राज्ञः स्वप्नाः, पृ. १६आ, संपूर्ण. चंद्रगुप्तराजा १६ स्वप्नवर्णन, सं., गद्य, आदि: कल्पवृक्षशाखा भग्ना; अंतिः कलहं करिष्यति १६. ६. पे. नाम. शुभकर्मबंध आलापक, पृ. १६ आ-१७अ, संपूर्ण. प्रा., गद्य, आदि: कह णं भंते जीवा सुहं कम्म; अंति: सुहकम्मं बंधई. ७. पे नाम, सावद्यनिर्वद्य क्रियापरिणाम चतुभंगी, पृ. १७अ संपूर्ण. प्रा., गद्य, आदि: सावज्जा किरिया सावज्जे; अंति: गुणस्थानवर्त्ति साधो. ८. पे. नाम. भगवतीसूत्र - शतक ६ उद्देशक १ वेदनानिर्जरा चतुभंगी आलापक, पृ. १७अ, संपूर्ण, भगवतीसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., गद्य, आदि (-); अंति (-), प्रतिपूर्ण. For Private and Personal Use Only Page #30 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२६ ९. पे. नाम. स्थानांगसूत्र-स्थान ४ उद्देशक ३ सूर प्रकार सूत्र, पृ. १७अ, संपूर्ण, पे.वि. यह कृति इस प्रत के साथ एक से अधिक बार जुड़ी हुई है. स्थानांगसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., प+ग., आदिः (-); अंति: (-), प्रतिपर्ण. १०. पे. नाम, ४ करंड उपमा आलापक-आचार्य प्रकार, पृ. १७अ, संपूर्ण. प्रा., गद्य, आदि: कति णं भंते करंडगा; अंति: ते राजकरंड समाणा आयरिया. ११. पे. नाम. दिगंबर उत्पत्तिकाल गाथा, पृ. १७अ, संपूर्ण. प्रा., पद्य, आदि: छ वाससएहिं नवुत्तरेहिं; अंति: वेमणा पाखंडगा जाया. १२. पे. नाम. त्रिलोकमध्ये एकेंद्रियादिजीव निवासस्थान गाथा, पृ. १७अ, संपूर्ण. एकेंद्रियादिजीव निवासस्थान गाथा, प्रा., पद्य, आदि: एगिदिअपंचिंदिअ उड़ढे अ; अंति: वावि अभावे जलं नत्थि, गाथा-३. १३. पे. नाम. ग्रंथलेखनप्रारंभकाल गाथा, पृ. १७अ, संपूर्ण. प्रा., पद्य, आदि: वलही नयरे रम्मे देवड्ढी; अंति: आगम लिहिया वीराओ नवसयअसीए, गाथा-१. १४. पे. नाम. स्थानांगसूत्र-सुलभदर्लभबोधि ५ कारण आलापक, पृ. १७अ, संपूर्ण, पे.वि. यह कृति इस प्रत के साथ एक से अधिक बार जुड़ी हुई है. स्थानांगसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., प+ग., आदिः (-); अंति: (-), प्रतिपूर्ण. १५. पे. नाम. ७ गरणा गाथा, पृ. १७अ, संपूर्ण. प्रा., पद्य, आदि: सुद्धो सावग धम्मे हवइ गलण; अंति: घी५ तिल्ल६ चुन्नायं७, गाथा-१. १६. पे. नाम. श्रावक गृहे ९ चंद्रवा विधान, पृ. १७अ, संपूर्ण. मा.गु., गद्य, आदिः श्रावकने ९ चंद्रआ कह्या; अंति: जीमण७ सोणहरे८ देरासरे९. १७. पे. नाम. तीर्यग्नुंभकदेव निवासस्थान गाथा, पृ. १७अ, संपूर्ण. प्रा., पद्य, आदि: कंचणगिरिपव्वयसु चित्त; अंति: वसंति तिरियजंभगा देवा, गाथा-१. १८. पे. नाम, महावीरजिन से पद्मनाभजिन अंतरकाल गाथा, पृ. १७अ, संपूर्ण. प्रा., पद्य, आदि: वाससहस्साचुलसी वासा सत्त; अंति: पउमाणं अंतरमेयं वियाणेहिं. १९. पे. नाम, गाथा संग्रह जैन, पृ.१७अ, संपूर्ण. गाथा संग्रह जैन*, प्रा.,मा.गु.,सं., पद्य, आदि: विणनीर विमाणाई वत्थाभरणा; अंति: देवाणं हंति उवभोगे. २०. पे. नाम, गौतमादि गणधर मोक्षगमनकाल गाथा, पृ. १७अ, संपूर्ण. महावीरजिन निर्वाणात् गौतमादि मोक्षगमनकाल गाथा, प्रा., पद्य, आदि: वीरजिणे सिद्धिगए बारसवरिस; अंति: वुच्छिन्ना दस इमे ठाणा, गाथा-२. २१. पे. नाम. पूर्वश्रुत अर्थविस्तारमान गाथा, पृ. १७अ-१७आ, संपूर्ण. प्रा., पद्य, आदि: सव्व नईणं जा होज्ज वालुया; अंति: अत्थो एगस्स पुव्वस्स, गाथा-२. २२. पे. नाम. संवेगरसमहात्म्य गाथा, पृ. १७आ, संपूर्ण. प्रा., पद्य, आदि: जह०मवगाहइ अइसयरस०तह तह; अंति: रसो ता तं तुसखंडणं सव्वं, गाथा-३. २३. पे. नाम. लाठी पर्वसंख्याफल गाथा, पृ. १७आ, संपूर्ण. प्रा., पद्य, आदि: एगपव्वं पसंसंति दुपव्वा; अंति: जा लट्ठी तहियं सव्व संपया, गाथा-३. २४. पे. नाम. निशीथचूर्णि-रजोहरण विचार, पृ. १७आ, संपूर्ण. निशीथसूत्र-विशेषचर्णि #, ग. जिनदास महत्तर, प्रा.,सं., गद्य, वि. ८वी, आदि: (-); अंति: (-), प्रतिपूर्ण. २५. पे. नाम. औदारिकवैक्रियाहार गाथा, पृ. १७आ, संपूर्ण. प्रा., पद्य, आदि: उरालविउव्वाहारा छण्हवि: अंति: हंति वेउव्वियाहारो, गाथा-२. २६. पे. नाम. गौरवं चतुर्धाः, पृ. १७आ, संपूर्ण. आगम अक्षरार्थ चतुर्भंगी, सं., गद्य, आदि: अल्पाक्षर महार्थ पन्नवणा; अंति: दशवैकालिकादिश्चेति. For Private and Personal Use Only Page #31 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची २७. पे. नाम. देवदेवी भोगकालमान वर्णन, पृ. १७आ, संपूर्ण. मा.गु., गद्य, आदि: वैमानिकने भोगवर्ष २०००; अंति: अतीव रूपा गर्भाभावात्. २८. पे. नाम. स्थानांगसूत्र-स्थान ५ उद्देशक ३-जीवनिर्गमन स्थान व गतिगमन आलापक, पृ. १७आ, संपूर्ण, पे.वि. यह कृति इस प्रत के साथ एक से अधिक बार जुड़ी हुई है. स्थानांगसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., प+ग., आदिः (-); अंति: (-), प्रतिपूर्ण. २९. पे. नाम. मृत्युकाल जीव निर्गमन गत्यादि श्लोक-शैवमते, पृ. १७आ, संपूर्ण. सं., पद्य, आदि: ब्रह्मद्वारेण मोक्षत्वं; अंति: निषादत्वं मरणं सप्तधा मतं, श्लोक-२. ३०.पे. नाम. विविध विचार संग्रह, पृ. १७आ, संपूर्ण. विविधविचार संग्रह, गु.,प्रा.,मा.गु.,सं., प+ग., आदि: पल्योपमनो सागरोपमनो; अंति: विसोहंति इत्युपदेशमालायां, (वि. उल्लिखित विषय-पल्योपम, सागरोपम, पुद्गलपरावर्तन संक्षिप्त कालमान. एक इंद्र के जन्म में जिन जन्मोत्सव संख्या. संवेगपाक्षिक लक्षण. अभवि भी शत्रुजय आ सकता है लेकिन भिन्न भावना से.) ३१. पे. नाम. आदिजिन आगमन वर्षसंख्या-शत्रंजयतीर्थ, पृ. १७आ, संपूर्ण. शत्रुजयतीर्थे आदिजिन आगमन वर्षसंख्या, मा.गु., गद्य, आदि: ६९८४४००००.०००० एकोनसप्त; अंति: ऋषभजिन शत्रुजय आव्या. ३२. पे. नाम. इंद्रकृत कृत्रिम जिनबालरूप द्रव्य विचार, पृ. १७आ, संपूर्ण. मा.गु., गद्य, आदि: तीर्थंकरने जन्मसमये इंद्र; अंति: उडी जाय इति वृद्धवाक्यं. ११५४१० (+) प्रश्नोत्तर तत्त्वबोध, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १९-१५(१ से १३,१५,१७)=४, पृ.वि. बीच-बीच के पत्र हैं., प्र.वि. संशोधित., दे., (२५४१२,१६x४२). प्रश्नोत्तर तत्त्वबोध, आ. जयाचार्य, मा.गु., पद्य, वि. १९३३, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. अधिकार-११ गाथा-४० अपूर्ण से अधिकार-१६ गाथा-३८ अपूर्ण तक है व बीच-बीच के पाठांश नहीं हैं.) ११५४११ (#) उत्तराध्ययनसूत्र-अध्ययन-९, संपूर्ण, वि. १९२१, श्रावण कृष्ण, १०, मध्यम, पृ. ३, ले.स्थल. माधोपुर, प्रले. मु. गजनंद ऋषि; पठ. श्राव. छगनलाल, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. मूल पाठ का अंश खंडित है, दे., (२६४१३, १५४३२). उत्तराध्ययनसूत्र, मु. प्रत्येकबुद्ध, प्रा., प+ग., आदि: (-); अंति: (-), प्रतिपूर्ण. ११५४१२. (+) पाखिपडिकमणा विधि, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, पू.वि. मात्र प्रथम पत्र है., प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२५४१२.५, ९४२०). पाक्षिकप्रतिक्रमण विधि, संबद्ध, पुहिं.,प्रा.,मा.गु., गद्य, आदि: प्रथम वंदेतु तांइ देवसि; अंति: (-), (पू.वि. प्रथम अब्भुट्ठिओ सूत्र तक है.) ११५४१३. दशार्णभद्रऋषि व औपदेशिक सज्झाय, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ६-५(१ से ५)=१, कुल पे. २, जैदे., (२५४१२.५, १३४३५). १. पे. नाम. दसांणभद्रऋषि स्वाध्याय, पृ. ६अ-६आ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र हैं. दशार्णभद्रराजर्षि सज्झाय, म. लालविजय, मा.ग., पद्य, आदि: (-); अंति: लालविजय निसिदीस, गाथा-१८, (पू.वि. गाथा-७ अपूर्ण से है.) २. पे. नाम. औपदेशिक सज्झाय-जीवशिक्षा, पृ. ६आ, अपूर्ण, पू.वि. मात्र प्रथम पत्र है. मु. सिद्धविजय, मा.गु., पद्य, आदि: बापडलारे जीवडला तुं कां; अंति: (-), (पू.वि. मात्र गाथा-१ अपूर्ण है.) ११५४१४. (+) शीयलव्रत सज्झाय, औपदेशिक दूहा व अभिनंदनजिन स्तवन, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ६-५(१ से ५)=१, कुल पे. ३, प्र.वि. संशोधित., दे., (२४.५४१२.५, १२४२५). १. पे. नाम. शीयलव्रत सज्झाय, पृ. ६अ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र हैं. मु. कांतिविजय, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: गाथा-८, (पू.वि. गाथा-५ से है.) २. पे. नाम. औपदेशिक दहा, पृ. ६अ, संपूर्ण.. दोहा संग्रह-जैनधार्मिक, पुहिं.,मा.गु., पद्य, आदि: दधी सुत कंपत कुंडस्यो; अंति: आठ पोहर चोसठ घडी, दोहा-३. For Private and Personal Use Only Page #32 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२६ ३. पे. नाम, अभिनंदनजि स्तवन, प. ६आ, संपूर्ण. अभिनंदनजिन स्तवन, मु. आनंदघन, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: अभिनंदनजिन दरसण; अंति: कृपा थकी आणंदघन महाराज, गाथा-६. ११५४१५ (+) स्वरोदयसार, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १२-११(१ से ११)=१, पृ.वि. मात्र बीच का ही एक पत्र है.,प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें., दे., (२४.५४१२.५, १३४३८). स्वरोदयसार, मु. कपुरचंद, मा.गु., पद्य, वि. १९०७, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. गाथा-२५७ अपूर्ण से २८३ अपूर्ण तक है.) ११५४१७. ८४ बोल, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, दे., (२५४१२.५, १७४३६). ८४ बोल-औपदेशिक, मा.ग., गद्य, आदि: नकारो नर सोचन नटता उपजे; अंति: चाल सुगडनर सोभलोक संवगाम. ११५४१८. बृहद्शांति स्तवन, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ३-१(१)=२, दे., (२५४१३, १७४२४). बृहत्शांति स्तोत्र-तपागच्छीय, सं., प+ग., आदि: (-); अंति: जैनं जयतु शासनम्, (पू.वि. 'विजय दुर्भिक्ष्य कांतारेषु' पाठांश से है.) ११५४१९ पर्यषणापर्वअष्टाह्निकाव्याख्यान का प्रवचन, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, पृ.वि. मात्र प्रथम पत्र है., दे., (२४.५४१२.५, ९४३१). पर्युषणाष्टाह्निका व्याख्यान-प्रवचन, मा.गु., पद्य, आदि: णमो अरिहंताणं णमो; अंति: (-), (पू.वि. प्रवचन का मात्र प्रारंभिक भाग है.) ११५४२१. मौनएकादशी थोय, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, ले.स्थल. वीरमगाम, प्रले. श्राव. नेमचंद उजमसी शाह; पठ. श्रावि. पसीबाई, प्र.ले.पु. सामान्य, दे., (२४.५४१४.५, ११४३५). मौनएकादशीपर्व स्तुति, मु. लालविजय, मा.गु., पद्य, आदि: गौतम बोले ग्रंथ संभाली; अंति: लालविजय० विघन नीवार, गाथा-४. ११५४२२. (+) नंदीश्वर पूजा, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ५, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२५४१४, १३४२८-३२). नंदीश्वरद्वीप पूजा, मु. धनविजय, मा.गु.,सं., प+ग., आदि: श्रीनेमीजिन राजनी चरण; अंति: (-), (पू.वि. फल पूजा तक ११५४२३. (+) होलिका व्याख्यान, संपूर्ण, वि. १९४३, आश्विन शुक्ल, २, मध्यम, पृ. ३, ले.स्थल. लक्ष्मणपुर, प्रले. य. तिलोकचंद्र, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. हुंडी:होलि.व्या०., टिप्पण युक्त विशेष पाठ., दे., (२५४१३.५, १३४२९). होलिकापर्व व्याख्यान, मा.गु., गद्य, आदि: फाल्गुण सुदि पूनिम दिने; अंति: मुक्ति रूप सुख मिलै. ११५४२४. सामान्य यतिनाम अभिग्रह टीप, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ३, ले.स्थल. मोरबी, प्रले. जेशंकर दयाल पंड्या, प्र.ले.पु. सामान्य, दे., (२४४१३.५, १०४२८-३२). साधुमर्यादापट्टक, आ. हीरविजयसूरि, गु., गद्य, वि. १६४६, आदि: छति योगि दीन प्रती देव; अंति: निजपेक्षा न करवी सही, बोल-२९. ११५४२५ (+#) २२ अभक्ष्य गाथादि संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ९, प्र.वि. हुंडी:बोलपत्र., संशोधित-पदच्छेद सूचक लकीरें-अन्वय दर्शक अंक युक्त पाठ. अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, जैदे., (२४.५४१३.५, १८४४०). १.पे. नाम. बावीस अभक्ष्य गाथा, पृ. १अ, संपूर्ण. २२ अभक्ष्य गाथा, प्रा., पद्य, आदि: पंचुंबर चउविगई हिम; अंति: वज्जह अभक्ख बावीसं, गाथा-२. २. पे. नाम. वीसबोल तीर्थंकर बंधबाका, पृ. १अ, संपूर्ण. २० स्थानक विचार, मा.गु., गद्य, आदि: अरिहंतना गुण ग्राम करतौ; अंति: सिधांतरी भगति करतौ थकौ. ३. पे. नाम. सत्तरभेद संयम की गाथा, पृ. १अ, संपूर्ण. १७ संयमभेद गाथा, प्रा., पद्य, आदि: पुढवी दगमा रूय वणस्सई; अंति: पणज्झण परिठवण मणोवयकाए, गाथा-१. ४. पे. नाम. चौदा रतन नाम, पृ. १अ, संपूर्ण. For Private and Personal Use Only Page #33 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १४ रत्न नाम, प्रा., प+ग., आदि: चक्कासि छत्तदंडा आउहसाला; अंति: वेयद्दे कुलेगय तुरया, गाथा-२. ५. पे. नाम. चौदा अभ्यंतरग्रंथि गाथा, पृ. १अ, संपूर्ण. १४ अभ्यंतरग्रंथि गाथा, प्रा., पद्य, आदि: मिच्छत्तं वेय तिगं हासाइ; अंति: चौदस्स अभ्यंतरागांथी, गाथा-१. ६. पे. नाम, आठ आत्मानी गाथा, पृ. १अ, संपूर्ण. ८ प्रकार आत्मा गाथा, प्रा., पद्य, आदि: नाणं च दंसणं दव्वं चरित्त; अंति: योग उवओगोय आया अठहा भणिया, गाथा-१. ७. पे. नाम. बावीस परीसहनी गाथा, पृ. १अ, संपूर्ण. २२ परिषह नाम, प्रा., प+ग., आदि: खुहा पिवासा सीत उण्ह; अंति: समत्तं ए बावीस परीसह, गाथा-२. ८. पे. नाम. १२ भावना गाथा-१ व २, पृ. १आ, संपूर्ण. १२ भावना, प्रा., पद्य, आदि: पढममणिच्चमसरणं संसार; अंति: (-), प्रतिपूर्ण. ९. पे. नाम. अठार हजार शीलांगरथधारा का भेद, पृ. १आ, संपूर्ण. १८ हजारशीलांगरथधारी भेद, मा.गु., गद्य, आदि: तीन भांति की स्त्री; अंति: अठारा हजार हूवा १८०००. ११५४२७. १४ स्वप्न, २४ तीर्थंकर मातापिता स्तवन व सवैया कवित्त, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. २, कुल पे. ३, दे., (२५४१४, १२-१५४२३-३३). १. पे. नाम. चौद स्वप्न स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण. १४ स्वप्न स्तवन-त्रिशलामाता, मा.गु., पद्य, आदि: राय रे सिधारथ घेर; अंति: आनंद रंग वधामणां ए, गाथा-६. २. पे. नाम. चौवीस तीर्थंकरना मातापिता स्तोत्र, पृ. १अ-२आ, संपूर्ण. २४ जिन स्तवन-मातापितानामादिगर्भित, मु. आणंद, मा.गु., पद्य, वि. १५६२, आदि: सयल जीनेसर प्रणमी; अंति: तास सीस पभणे आणंद, गाथा-२९. ३. पे. नाम, गुरुगुणवर्णन कवित्त, पृ. २आ, अपूर्ण, पू.वि. मात्र प्रथम पत्र है. पुहिं., पद्य, आदि: द्रढ आसन मन अडरा कमर पद; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-३ अपूर्ण तक है.) ११५४२९ (+) शांतिपटचोईसी ऋषिमंडल पूजा, संपूर्ण, वि. १८८५, श्रेष्ठ, पृ. ४, ले.स्थल. लखनेउ, प्रले. मु. धर्मचंद्र (गुरु आ. कांतिसागरसूरि, विजयगच्छ); गुपि. आ. कांतिसागरसूरि (विजयगच्छ), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. हुंडी:ऋषिमंडलपुजा., संशोधित-टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२५४१३, १८x२८). ऋषिमंडल पूजा, सं., गद्य, आदि: श्रीऋषभाय नमः; अंति: ये नमः ८ ह्रीं क्रौं. ११५४३० (+) सिद्धपद सज्झाय, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, प्र.वि. संशोधित., दे., (२४.५४१३.५, ११४२३). सिद्धपद सज्झाय, मु. देवविजय, मा.गु., पद्य, आदि: आठ कर्म चूरण करी रे; अंति: देव दिइं आसिस, गाथा-६. ११५४३१. थुलीभद्र स्वाध्याय व आसिस वचन- कवित, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, दे., (३६४१४, १६४३६). १.पे. नाम. थुलीभद्रजी स्वाध्याय, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण, ले.स्थल. कडीनगर, प्रले. पं. राजविजय, प्र.ले.पु. सामान्य. स्थूलिभद्रमुनि सज्झाय, मु. ऋषभ, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीस्थूलिभद्र मुनि; अंति: तेहने करीये वंदणा जो, गाथा-१७. २. पे. नाम. आशिष वचन कवित्त, पृ. १आ, संपूर्ण.. मा.गु., पद्य, आदि: घमुलो कहे सुरतीगर्ने प्रथम; अंति: तो नीश्चे भेलो खाउं तने, पद-१. ११५४३२. पोसदशमी व्याख्यान, संपूर्ण, वि. १९४३, आश्विन कृष्ण, ९, श्रेष्ठ, पृ. ४, ले.स्थल. लक्ष्मणापुर, प्रले. य. तिलोकचंद्र, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. हुंडी:पो०दश०व्या०. अंत में "श्रीजिमहाराज के साथ" ऐसा लिखा है., दे., (२५४१३.५, १२४२५-२८). पौषदशमीपर्व कथा, रा., गद्य, आदि: (१)ध्यात्वा वामेयमहँत, (२)अगणित महिमारा भंडार; अंति: अंगीकार करी इस तरें करकें. ११५४३३. मरुदेवीमाता सज्झाय, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, दे., (२५४१३.५, १२४३०). मरुदेवीमाता सज्झाय, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: एक दन मारुदेवी आई; अंति: प्रगटी अनुभव सारी रे, गाथा-१८. For Private and Personal Use Only Page #34 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२६ ११५४३४. (#) हितोपदेश पदद्वय, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, प्रले. श्राव. मगनलाल खीमचंद सा, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. मूल पाठ का अंश खंडित है, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२५४१३, २०४४०). १. पे. नाम. हितोपदेश पद, पृ. १आ, संपूर्ण. मु. केवलमुनि, मा.गु., पद्य, आदि: (अपठनीय); अंति: केवलमुनि० कोडि साटे रे, गाथा-७. २. पे. नाम, हितोपदेश पद, पृ. १आ, संपूर्ण. मु. केवलमुनि, पुहिं., पद्य, आदि: तुं जो करे घर- काम रे; अंति: केवल० नहि तजे तोफान तो, गाथा-७. ११५४३५. ज्ञानपंचमीतप विधि, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. २, प्र.वि. हुंडी:ग्यांनपंचमिदि., ज्ञानपंचमी वि०., दे., (२४.५४१३.५, १७४२५-३४). ज्ञानपंचमीपर्व पूजा विधिसहित, मु. भिन्न भिन्न कर्तृक, मा.गु.,सं., प+ग., आदि: अब काती सूदी ५ पंचमी; अंति: एहि ज अंग आधार रे. ११५४३६. प्रतिष्ठा सामान सूचि, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, पू.वि. मात्र प्रथम पत्र है., दे., (२५.५४१२.५, १७४३२). प्रतिष्ठा सामान सूचि, मा.गु., गद्य, आदि: श्रीफल १९१ कलस १०८ कुंभ; अंति: (-), (पू.वि. 'आरिसा ८ पंखी ८ कपूरपाव १' पाठांश तक है.) ११५४३७. (+) चक्रेश्वरीदेवी स्तोत्र, संपूर्ण, वि. १९३८, पौष शुक्ल, ९, श्रेष्ठ, पृ. १, प्रले. पं. हुकमविजय; पठ. मु. छगनविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें., दे., (२५.५४१३, १२४२७-३०). चक्रेश्वरीदेवी स्तोत्र, सं., पद्य, आदि: श्रीचक्रे चक्रभीमे; अंति: चक्रदेव्या स्तवंति, श्लोक-९. ११५४३८. सप्तस्मरण स्तव, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ४, दे., (२५.५४१३, १४-१८४३३-३८). सप्तस्मरण-खरतरगच्छीय, मु. भिन्न भिन्न कर्तृक, प्रा., पद्य, आदि: उल्लासिक्कमनखनिग्गयप; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., उवसग्गहर स्तोत्र अपूर्ण तक लिखा है.) ११५४४२. आदिजिन पद व स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, दे., (२५४१३.५, १९x१८-२८). १. पे. नाम. आदिजिन पद, पृ. १अ, संपूर्ण. मु. हर्षचंद, पुहिं., पद्य, आदि: प्रात समै तेरो मुख देखन; अंति: तीन लोक भयौ जय जय कार, गाथा-४. २. पे. नाम, आदिजिन स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण.. पंडित. टोडरमल , पुहि., पद्य, आदि: उठ तेरो मुख देखं; अंति: टोडर० करौ नित नित बंदा, गाथा-५. ११५४४५. (+) षड्दर्शन समुच्चय, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ४-२(१ से २)=२, प्र.वि. पत्रांक लिखा न होने के कारण अनुमानित पत्रांक दिया गया है., संशोधित., जैदे., (२३.५४१३.५, १२४२३). षड्दर्शन समुच्चय, आ. हरिभद्रसूरि, सं., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., श्लोक-३७ से है व श्लोक-७३ तक लिखा है.) ११५४४६. (+#) सीतासती, अवंतीसुकुमाल व धन्नाअणगार सज्झाय, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ३, कुल पे. ३, प्र.वि. संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२३४१३, ७४१९). १. पे. नाम, सीता स्वाध्याय, पृ. १अ-२आ, संपूर्ण. सीतासती सज्झाय-शीलविषये, ग. जिनहर्ष, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: जलजलती मिलती घणी रे; अंति: नीत प्रणमीजे पाय रे, गाथा-९. २. पे. नाम. ऐवंतीकुमार सिज्झाय, पृ. २आ-३अ, संपूर्ण. अवंतिसुकुमाल सज्झाय, मु. जगचंद, मा.गु., पद्य, आदि: वंदो अयवंती सकमालने रे; अंति: जगचंद त्रिकाल रे, गाथा-५. ३. पे. नाम, धन्नाअणगार सज्झाय, पृ. ३आ, संपूर्ण. मु. ठाकुरसी, मा.गु., पद्य, आदि: जिनवाणी रे धना अमीय; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., गाथा-२ अपूर्ण तक लिखा है.) For Private and Personal Use Only Page #35 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ११५४४८. (-) नवतत्त्व प्रकरण की हेयज्ञेयउपादेय गाथा, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, प्र.वि. अशुद्ध पाठ., दे., (२५.५४१२.५, १२४२४). नवतत्त्व प्रकरण ६० गाथा-हेयज्ञेयउपादेय, संबद्ध, प्रा., पद्य, आदि: हेया सव बंध पुन पावा जीवा; अंति: सव्वगय इयर अप्पवेसे, गाथा-६. ११५४४९ (+) मंडपपीठस्थापन विधि, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १,प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२५४१२.५, १६x४८). वेदिका स्थापन विधि, ग.,प्रा.,मा.ग.,सं., प+ग., आदि: लग्नदिन ठेहराव्यो होवे; अंति: (-), (अपूर्ण, प.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., घंटाकर्ण महावीर मंत्र तक लिखा है.) ११५४५०. एकादशी व पार्श्वजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ४, कुल पे. २, दे., (२४.५४१३, १३४४१-४५). १. पे. नाम. एकादशी स्तवन, पृ. १अ-२आ, संपूर्ण. मल्लिजिन स्तवन, मु. कुशललाभ, मा.गु., पद्य, वि. १७५६, आदि: नवपद समरी मन सुधे वली; अंति: धरमराग मन मे धरी, ढाल-५, गाथा-४१. २. पे. नाम. पार्श्वजिन स्तवन, पृ. २आ-४आ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तवन-स्थंभनतीर्थ, उपा. कुशललाभ, मा.गु., पद्य, आदि: प्रभु प्रणमुं रे पास; अंति: जाणी कुशललाभ पयंपए, ढाल-५, गाथा-१८. ११५४५१ (#) रोहिणीतप स्तवन-ढाल १ से २, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १,प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२४.५४१३.५, १२४२७). रोहिणीतप स्तवन, मु. दीपविजय कवि, मा.गु., पद्य, वि. १८५९, आदि: हां रे मारे वासुपूज्यनो; अंति: (-), प्रतिपूर्ण. ११५४५२. पर्यषणपर्व चैत्यवंदन, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, दे., (२४४१३, १३४३२). पर्युषणपर्व चैत्यवंदन, मु. प्रमोदसागर, मा.गु., पद्य, आदि: सकल पर्व शृंगारहार; अंति: पालतां होवे जय जयकार, गाथा-१२. ११५४५३. जिनबिंब-प्रतिमा उत्थापन विधि, संपूर्ण, वि. १९५५, श्रावण शुक्ल, १, श्रेष्ठ, पृ. २, प्रले. मु. पद्मसागर (गुरु मु. पुण्यसागर), प्र.ले.पु. सामान्य, दे., (२४४१३.५, १३४२७). जिनबिंब प्रतिमा उत्थापन विधि, मा.गु.,सं., प+ग., आदि: प्रथम जलयात्रा विधिये करी; अंति: शांति करा०व० कुरु स्वाहा. ११५४५४. पंचमगर्भित वीरजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ३, दे., (२४४१३, १३४३८-४२). ५ कारण स्तवन, उपा. विनयविजय, मा.गु., पद्य, वि. १७३२, आदि: सिधारथसुत वंदीइ; अंति: विनय कहै आणंद ए, ढाल-६, गाथा-६३. ११५४५६. (+) गंगेयपृच्छाभंग प्रकरण, संपूर्ण, वि. १८९०, श्रेष्ठ, पृ. २, ले.स्थल. लखनेउ, प्रले. मु. धर्मचंद्र, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरे-अन्वय दर्शक अंक युक्त पाठ., जैदे., (२५४१३, १४४३३). गांगेयभंग प्रकरण, मु. पद्मविजय, प्रा., पद्य, आदि: नमिऊण महावीरं गंगेय इसि; अंति: मणमक्कड वस्समाणेउं, गाथा-४१. ११५४५७. (+) आध्यात्मिक पदद्वय सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, प. ३, कुल पे. २, ले.स्थल. नागोर, प्रले. मु. जगतचंद्र ऋषि, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. अंत में "उपरली परत दीठी जेहवी उतार लिधि छे एहमे असुद्ध होवे तो कविजन सुधार लीजो म्हारे में दोस काढीज्यो मती" ऐसा लिखा है., पदच्छेद सूचक लकीरें-संशोधित., जैदे., (२४४१३, ३४१४-२३). १. पे. नाम. आध्यात्मिक पद सह टबार्थ, पृ. १अ-२आ, संपूर्ण. आध्यात्मिक पद, मु. आनंदघन, पुहिं., पद्य, आदि: कंत चतुर दिल जानी; अंति: बूझे भविजन प्रानी हो, पद-५. आध्यात्मिक पद-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: चतुर भर्ता म्हारौ; अंति: ए पदना रहस्यनै जाणै. २. पे. नाम, आध्यात्मिक पद सह टबार्थ, पृ. २आ-३आ, संपूर्ण. ना, सपूण. For Private and Personal Use Only Page #36 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir २१ हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२६ आध्यात्मिक पद, मु. आनंदघन, पुहि., पद्य, वि. १८वी, आदि: छोरानै क्युं मारै; अंति: दास तुमारो जनम जनम कै सैण, गाथा-३. आध्यात्मिक पद-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: उपजतौ उपसमसम्यक्त्व अतएव; अंति: कवितुं आसये ते जाणै. ११५४५८. (+) सज्झाय संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ३, कुल पे. ४, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित., जैदे., (२५४१३.५, १४४३८). १.पे. नाम, अंधेरीनगरीनी सज्झाय, पृ. १अ, संपूर्ण. औपदेशिक-अंधेरनगरी सज्झाय, मु. उदयरत्न, मा.गु., पद्य, आदि: अज्ञान महा अंधेर नगर; अंति: रतन० मुगति जेहथी थाय रे, गाथा-११. २. पे. नाम. झांझरीमुनी सज्झाय, पृ. १अ-२आ, संपूर्ण. झांझरियामुनि सज्झाय, मु. भावरत्न, मा.गु., पद्य, वि. १७५६, आदि: सरसति चरणे सीस नमावि; अंति: कीधी कवियणना मन मोहे के, ढाल-४, गाथा-४३. ३. पे. नाम. पुन्यनी सझाय, पृ. ३अ, संपूर्ण. औपदेशिक सज्झाय-दानफल, मु. लावण्यसमय, मा.गु., पद्य, वि. १६वी, आदि: एक घर घोडा हाथीया जी; अंति: परतीख पुन्य प्रमाण रे, गाथा-१२. ४. पे. नाम. मदनी सझाय, पृ. ३अ-३आ, संपूर्ण. औपदेशिक सज्झाय-मानत्याग, ग. तत्त्वविजय, मा.गु., पद्य, आदि: मान न कीजे कोई मानवी रे म; अंति: नो रे तत्ववीजे कहे सीस रे, गाथा-१४. ११५४५९ (+#) पार्श्वजिन स्तोत्रद्वय, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५.५४१३, १३४४६). १. पे. नाम. पार्श्वनाथ माला स्तोत्र, प. १अ, संपूर्ण. पार्श्वजिन मालामंत्र स्तोत्र, सं., गद्य, आदि: ॐ ह्रीं अहँ; अंति: श्री पार्श्वनाथा नमः. २. पे. नाम. पार्श्वनाथ स्तोत्र, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तोत्र-कलिकुंड, सं., पद्य, आदि: ॐ हीं तं नमह; अंति: कलिकुंडस्वामिने नमः, श्लोक-४, (वि. अंत में साधना विधि दी गई है.) ११५४६०. शांतजिन स्तवन व पार्श्वजिन स्तवनद्वय, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २-१(१)=१, कुल पे. ३, जैदे., (२६४१३, १३४२७). १. पे. नाम. शांति स्तवन, पृ. २अ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र हैं. ___ शांतिजिन स्तवन, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: सहाई तुझ पद सेवा दीजै रे, गाथा-७, (पू.वि. गाथा-६ से है.) २. पे. नाम, पार्श्वजिन स्तवन, पृ. २अ-२आ, संपूर्ण.. मा.गु., पद्य, आदि: पारस जिनवर सुखकरु; अंति: अनंत सिद्ध जय पद चाहै, गाथा-७. ३. पे. नाम. पार्श्वजिन स्तवन, पृ. २आ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. पार्श्वजिन स्तवन-चिंतामणि, मा.गु., पद्य, आदि: चितामणि चित में धरी हो; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-७ अपूर्ण तक है.) ११५४६१. (+) १५ तिथि स्तुति संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२५४१३, ११४३१). १५ तिथि स्तुति संग्रह, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: एक मिथ्यात असंयम अविरति; अंति: (-), (पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., तिथि-३ की स्तुति गाथा-२ अपूर्ण तक है.) ११५४६३. संभवजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, प्र.वि. अंत में प्रतिलेखक ने सुपार्श्वजिन तवन संपूर्ण ऐसा लिखा है., दे., (२४.५४१३, १४४२६). संभवजिन स्तवन, म. कांतिविजय, मा.गु., पद्य, वि. १७५५, आदि: हारे प्रभु संजमधारी; अंति: पोताने सवि लेखे थई रे लो, गाथा-५, (वि. अंत मे एक औपदेशिक दोहा लिखा है.) For Private and Personal Use Only Page #37 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra २२ www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ११५४६४. (#) सिद्धचक्र स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, ले. स्थल. सुरतबंदीर, प्रले. मु. उत्तमविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. हुंडी:सीधचक्रतवन., मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., (२५X१३, १७X२८). नवपद स्तवन, मु. दानविजय, मा.गु., पद्य, वि. १७६२, आदि: सकल कुशल कमलानो; अंति: दानविजय जयकार रे, गाथा- २३. ११५४६५. उपदेश सझाय, संपूर्ण वि. २०वी श्रेष्ठ, पू. १, दे. (२४.५४१३, ११x२९). अभव्य सज्झाय, मु. उदय, मा.गु., पद्य, आदि उपदेस न लागे अभव्यने; अंति: उतमसंग निदान रे, गाथा- ७. ११५४६६. (+) इलाचीकुमार सज्झाय, भरतबाहुबली सज्झाय व चेलणा सज्झायदि संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ३, कुल पे. ६, पठ. श्रावि. दयाबीबी, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. संशोधित. दे. (२४.५४१३, १४४३२). " " १. पे नाम. इलाचीकुमार सज्झाय, पृ. १अ, संपूर्ण उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, आदि नाम बेलापूत्र जाणिये, अंति समयसुंदर गुण गाय, गाथा- ९. २. पे नाम. भरतबाहुबली सज्झाय, पृ. १अ १आ, संपूर्ण. उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, वि. १७वी, आदि: राज तणो अति लोभिओ भरत; अंति: समयसुंदर बांदै पायो रे, गाथा- ७. ३. पे. नाम. चेलणा सिझाय, पृ. १आ-२अ संपूर्ण. चेलणासती सज्झाय, उपा. समवसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, आदि वीर वादी वलतां थकां चेलणा, अंति समयसुंदर ० पामसे भवतणे पार, गाथा ७. ४. पे नाम. धन्ना सिझाय, पृ. २अ २आ, संपूर्ण. धन्ना अणगार सज्झाय, मु. ठाकुरसी, मा.गु., पद्य, आदि जिनवाणी रे धना अमीव; अतिः गाया हे मन में गहगही, गाथा - २१. ५. पे. नाम. ढंढणऋषि सज्झाय, पृ. २आ-३अ, संपूर्ण. मु. जिनहर्ष, मा.गु., पद्य, आदि ठंडण रिषीजीने वंदना, अंति: हुं बारी लाल, गाथा- ९. ६. पे नाम. अरणिकमुनि सज्झाय, पू. ३१-३आ, संपूर्ण ११५४६७. (+#). उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, आदि अरणक मुनिवर चाल्या गोचरी; अंति: समयसुंदर० फल सीधो जी, गाथा-८. मृतकसाधु परीठवानी विधि, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, प्र. वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ. मूल पाठ का अंश खंडित है, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे. (२४.५X१३, १४X३९). " साधुसाध्वी कालधर्म विधि, मा.गु., गद्य, आदि: स्नान पूर्व नवो वेष करवो; अंतिः मालतां पुतलां २ छ्छे करवां. ११५४६८. आदेशर वीनती संपूर्ण वि. १९५५ कार्तिक शुक्ल, १५, मध्यम, पू. १, प्रले. दुर्लभराम रायचंद भोजक, प्र.ले.पु. सामान्य, दे., (२४.५X१२.५, १२X४२). आदिजिनविनती स्तवन, ग. जिनहर्ष, मा.गु., पद्य, आदि: सुण जिणवर सेजा; अंति: रे देजो परमानंद रे, गाथा-२०. ११५४६९. वासुपूज्यजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी श्रेष्ठ, पृ. ३, वे. (२४४१३, १७५२४) वासुपूज्यजिन स्तवन- सूर्यपुरमंडण, उपा. उदयरत्न, मा.गु., पद्य, आदि श्रीसांतीसार सोलमो; अंतिः वदे वाणी आराधो अनीस सुधी, ढाल ६, गाथा-५९. ११५४७०. पार्श्वमहावीरसीमंधरजिन सिद्धचक्र स्तोत्र सह अन्वय व व्याख्या, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ५-४(१ से ४)=१, प्र.वि. पत्रांक लिखा न होने के कारण अनुमानित पत्रांक दिया गया है., जैदे., (२५.५X१३, १५X४०). पार्श्वमहावीरसीमंधरजिन सिद्धचक्र स्तोत्र, सं., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू. वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं व प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., श्लोक १७ से है व २० तक लिखा है.) पार्श्वमहावीरसीमंधरजिन सिद्धचक्र स्तोत्र- अन्वय, सं., गद्य, आदि (-); अंति (-), पू.वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं व प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण. पार्श्वमहावीरसीमंधरजिन सिद्धचक्र स्तोत्र- व्याख्या, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), पू. वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं व प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण. For Private and Personal Use Only Page #38 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir २३ हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२६ ११५४७१. (#) ककाबत्रीसी व उपदेशछत्रीसी, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. २, कुल पे. २, प्र.वि. कुल ग्रं. ३८, अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२५.५४१३, १४४३३). १. पे. नाम. ककाबत्रीसी, पृ. १अ-२अ, संपूर्ण. कक्काबत्रीसी, मु. जिनवर्द्धन, मा.गु., पद्य, आदि: कका करमनी वात करी; अंति: जीवो ऋषी इम विनवे, गाथा-३३. २. पे. नाम. उपदेशछत्रीसी, पृ. २अ-२आ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. पं. वीरविजय, मा.गु., पद्य, आदि: सांभलज्यो सजन नरनारी हेत; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-१३ अपूर्ण तक है.) ११५४७२. साधारणजिन स्तुति प्रार्थना संग्रह, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ७-६(१ से ६)=१, दे., (२५४१३, ९x१८). साधारणजिन स्तुति प्रार्थना संग्रह, प्रा.,मा.गु.,सं., पद्य, आदि: (-); अंति: धर्मणं जेनं जयति शासन, गाथा-८, (पू.वि. गाथा-२ अपूर्ण से है.) ११५४७४. तपना नाम व चवदस उजमणा विधि, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ६-४(१ से ४)=२, कुल पे. २, दे., (२५४१३, १५४२८). १. पे. नाम. तपना नाम, पृ. ५अ-६अ, अपूर्ण, पृ.वि. अंत के पत्र हैं. तपावली, प्रा.,मा.गु.,सं., प+ग., आदि: (-); अंति: करावीइं चउसठी तप, तप-६०, (पू.वि. दीक्षा तप-४२ अपूर्ण से है.) २.पे. नाम. चवदस उजमणा विधि, प्र. ६अ-६आ, संपूर्ण. चतुर्दशीतिथि-उजमणा विधि, मा.गु., गद्य, आदि: चउद वानिना पकवान; अंति: एहवा वचन कह्या छंइ. ११५४७५. (#) श्रीपाल रास, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २-१(१)=१, पृ.वि. प्रथम एक व अंत के पत्र नहीं हैं.,प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५४१३, १५४३६). श्रीपाल रास, मु. चेतनविजय, मा.गु., पद्य, वि. १८५३, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. ढाल-१ के दोहा-४ अपूर्ण से __ ढाल-२ गाथा-२४ अपूर्ण तक है.) ११५४७६. जीव उत्पत्ति सज्झाय, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ३, दे., (२५४१३, १२४३४). औपदेशिक सज्झाय-गर्भावास, मु. श्रीसार, मा.गु., पद्य, आदि: उतपति जोय जीव आपणी; अंति: इम कहै श्रीसार ए, गाथा-७२. ११५४७७. गौतमस्वामी स्तोत्र, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, प्रले. आ. रामचंद्रसूरि, प्र.ले.पु. सामान्य, दे., (२६४१३, १०४२६). गौतमस्वामी स्तोत्र, सं., पद्य, आदि: श्रीइंद्रभूतिं वसुभूति; अंति: लभंते नितरां क्रमेण, श्लोक-९. ११५४७८. (+) थावचापुत्र अणगार चौढालीयो, अपूर्ण, वि. १८४७, कार्तिक शुक्ल, १५, रविवार, मध्यम, पृ. २७-२६(१ से २६)=१, प्र.वि. कर्ता के हस्ताक्षर से लिखित प्रत., जैदे., (२५४१३, ११४२६). थावच्चापुत्र सज्झाय, उपा. क्षमाकल्याण, मा.गु., पद्य, वि. १८४७, आदि: (-); अंति: भणी सीस क्षमाकल्याण, ___ ढाल-४, गाथा-५३, (पू.वि. ढाल-४ गाथा-३ अपूर्ण से है.) ११५४७९. पार्श्वजिन स्तवन, दानसीलतपभावना व करकंडुमुनि सज्झाय, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. ३, दे., (२५४१३, १२४२९). १. पे. नाम. पार्श्वजिन स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण. पार्श्वजिन प्रभाति, मु. जिनहर्ष, मा.गु., पद्य, आदि: सारद वदन सदन अमृतनो रुप; अंति: पूण्य दसा अव जागी रे, गाथा-६. २. पे. नाम. दानशीलतपभावना सीजाय, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. दानशीलतपभावना प्रभाती, उपा. समयसंदर गणि, मा.गु., पद्य, वि. १७वी, आदि: रे जीव जिनधरम कीजीये; अंति: समयसुंदर० भवनो जी पार रे, गाथा-६. ३.पे. नाम. करकंडमनि सज्झाय, पृ. १आ, संपूर्ण. उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, आदि: चंपानगरी अतिभली हुं; अंति: समयसुंदर०पातक जाय रे, गाथा-५. ११५४८० (#) शीलोपदेशमाला सह बालावबोध, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, पू.वि. मात्र प्रथम पत्र है., प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५४१३, १२४३३). For Private and Personal Use Only Page #39 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir २४ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची शीलोपदेशमाला, आ. जयकीर्तिसूरि, प्रा., पद्य, वि. १०वी, आदि: आबालबंभआरि नेमिकुमार; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-१ तक है.) शीलोपदेशमाला-बालावबोध कथा, ग. मेरुसंदर, मा.गु., गद्य, वि. १५५१, आदि: आबाल ब्रह्मचारी आजन; अंति: (-). ११५४८१. (+) गजसुकमाल सिझाय, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२५४१३, १३४३४). गजसुकुमालमुनि सज्झाय, मु. चोथमल ऋषि, मा.गु., पद्य, वि. १८५८, आदि: गजसुकुमाल देवकीनंदन; अंति: चोथमल० हरख करि गाइ, गाथा-२०. ११५४८२. (+) पद्मावती आराधना, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. हुंडी:पद्मावति., संशोधित., जैदे., (२४४१३, १२४२८). पद्मावती आराधना, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, वि. १७वी, आदि: हीव राणी पदमावती जीवरास; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-२८ अपूर्ण तक है.) ११५४८३. सकलार्हत् स्तोत्र सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ४-१(१)=३, जैदे., (२५.५४१३.५, ५४२८). त्रिषष्टिशलाकापुरुष चरित्र-हिस्सा सकलार्हत् स्तोत्र, आ. हेमचंद्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., पद्य, वि. १२वी, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. बीच के पत्र हैं., गाथा-९ अपूर्ण से ३२ अपूर्ण तक है.) त्रिषष्टिशलाकापुरुष चरित्र-हिस्सा सकलार्हत् स्तोत्र का टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. प्रथम पत्र नहीं है व प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., गाथा-१० तक लिखा है.) ११५४८५ (#) मौनएकादशीपर्व स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १,प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२५४१३, १५४३१). मौनएकादशीपर्व स्तवन, मु. कांतिविजय, मा.गु., पद्य, वि. १७६९, आदि: द्वारिकानयरी समोसर्या रे; अंति: (-), (अपूर्ण, पृ.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., ढाल-१ गाथा-८ अपूर्ण तक लिखा है.) ११५४८७. (#) रात्रिभोजन परिहार सज्झाय व सीमंधरजिन स्तवन, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ३-१(१)=२, कुल पे. २, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२४.५४१३, १०४२१). १. पे. नाम. रात्रिभोजन परिहार सज्झाय, पृ. २अ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र हैं. उपा. देवविजय, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: सुखडी संभारो निसदीस, ढाल-२, गाथा-१४, (पू.वि. ढाल-२ गाथा-१ अपूर्ण से है.) २. पे. नाम. सीमंधरजिन स्तवन, पृ. २आ-३अ, संपूर्ण. क. पद्मविजय, मा.गु., पद्य, आदि: सुण संदाजी श्रीमंधर परमात; अंति: पुरा तो वाधे दनदन अतीनुरा, गाथा-७. ११५४९०. (+) उत्तराध्ययनसूत्र, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ४४-४३(१ से ४३)=१, पृ.वि. मात्र बीच का ही एक पत्र है., प्र.वि. हुंडी:उत्तध्येन०., संशोधित., दे., (२५.५४१३, ७४४४). उत्तराध्ययनसूत्र, मु. प्रत्येकबुद्ध, प्रा., प+ग., आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. अध्ययन-८ गाथा-२ से गाथा-१६ तक है.) ११५४९१ (#) दशवैकालिकसूत्र व दशाश्रुतस्कंधसूत्र अध्ययन नाम, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, पठ. श्रावि. झवेरबाई, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. मूल पाठ का अंश खंडित है, दे., (२५.५४१३, १३४२७). १. पे. नाम. दशवैकालिकसूत्र अध्ययन नाम, पृ. १अ, संपूर्ण. दशवैकालिकसूत्र-अध्ययन नाम, संबद्ध, प्रा.,मा.गु., गद्य, आदि: दुम्मपुफीया नामें १; अंति: आचार अध्येन गाथा २१नो २. पे. नाम. दशाश्रुतस्कंधसूत्र अध्ययन नाम, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. दशाश्रुतस्कंधसूत्र-अध्ययन नाम, संबद्ध, प्रा.,मा.गु., गद्य, आदि: २० असमाधी अध्येन १; अंति: १० नीयाणानु दशमु. ११५४९२. आदिजिन छंद, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ९-६(१ से ६)=३, पृ.वि. बीच के पत्र हैं., जैदे., (२५.५४१३, ११४२८). आदिजिन छंद-धलेवामंडन, म. दीपविजय कवि, मा.गु., पद्य, वि. १८७५, आदिः (-); अंति: (-), (पू.वि. गाथा-१ अपूर्ण से गाथा-३८ अपूर्ण तक है.) For Private and Personal Use Only Page #40 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२६ ११५४९४. माणीभद्र स्तोत्र, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, दे., (२५.५४१३, १३४२५). माणिभद्रवीर स्तोत्र, मु. चिमन, मा.गु., पद्य, आदि: मंगल करणो माणिभद्र तुं हे; अंति: दीजे अहसनीस तुज सेव, ____ गाथा-७, (वि. अंत में वीसो यंत्र दिया है.) ११५४९५. (#) नरकगतीना भावनी सज्झाय व दहा संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२५४१३, ११४३५). १.पे. नाम. नरकगतीना भावनी सीझाय, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. नरकगति प्राप्ति गीत, उपा. समयसुंदर गणि, पुहिं., पद्य, आदि: जीव तणी हिंसा करे रे बोले; अंति: नवी लहे बोलें श्रीभगवंत, गाथा-११. २. पे. नाम. औपदेशिक दोहा संग्रह, पृ. १आ, संपूर्ण. पुहि.,प्रा.,मा.ग.,सं., पद्य, आदि: तोल चोरें माल चोरें मूल; अंति: दया ताकुं नहि ज्ञान, गाथा-२. ११५४९६. (+#) चैत्यप्रवाडि स्तोत्र, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, प्र.वि. संशोधित. मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., (२५४१३, १३४३५). शाश्वताशाश्वतजिन स्तव, आ. धर्मसूरि, सं., पद्य, आदि: नित्ये श्रीभुवनाधिवासे; अंति: स्तुता श्रीधर्मसूरिभिः, श्लोक-१५. ११५४९८. (#) आदिजिन स्तवन व औपदेशिक सज्झाय, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. २-१(१)=१, कुल पे. २, प्र.वि. पत्रांक का उल्लेख नहीं है., अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२५४१३, १२४३२). १. पे. नाम. आदिजिन स्तवन, पृ. २अ, अपूर्ण, पृ.वि. प्रथम पत्र नहीं है. मा.गु., पद्य, आदिः (-); अंति: (-), (पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., गाथा-५ अपूर्ण से है व ७ अपूर्ण तक लिखा है.) २.पे. नाम. औपदेशिक सज्झाय, पृ. २आ, संपूर्ण. आ. रतनसरि, मा.गु., पद्य, आदि: जीव रे एह जगत जन नात; अंति: रतन यु करी कहे वड सरणारे, गाथा-७. ११५४९९ प्रथम प्रत्येकबुद्ध सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, जैदे., (२५.५४१२.५, १०४२९). करकंडुमुनि सज्झाय, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, आदि: चंपानयरी अतिभली हुं; अंति: ना प्रणमे पाप पुलाय रे, गाथा-५, (वि. अंत में सुमति साधु की गुरु-शिष्य परंपरा झवेरवर्धन मुनि तक लिखा है.) ११५५००. रात्रीपोषह विधि, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २, जैदे., (२५.५४१३, १८४४०). पौषधविधि संग्रह, संबद्ध, मा.गु., गद्य, आदि: स्थापनाचार्य प्रथम थापी १; अंति: प्रथम लिखी उसरी ते करणी. ११५५०१ (+) पार्श्वचंद्रसूरिगुरुगुण पद संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. ५, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित., दे., (२४४१२.५, १५४३४). १.पे. नाम. पार्श्वचंद्रसूरि स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण. पार्श्वचंद्रसूरिगुरुगुण स्तवन, मु. अबीरचंद, मा.गु., पद्य, आदि: प्रात समय सुमरण सद्गुरु; अंति: वारी जाउं वार हजारी, गाथा-५. २. पे. नाम. पार्श्वचंद्रसूरिगुरुगुण पद, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. ___ मु. अबीरचंद, मा.गु., पद्य, आदि: गुरुदेव भरोसा तेरा हम; अंति: नित प्रणमें कुंठि सवेरा, गाथा-५. ३. पे. नाम. पार्श्वचंद्रसूरिगुरुदेव पद, पृ. १आ, संपूर्ण. पार्श्वचंद्रसूरिगुरुगुण पद, मु. इंद्रचंद्र, मा.गु., पद्य, आदि: पाशचंद्रसूरिंद मन भाया; अंति: इंदचंद्र० तारण तरण कहाया, गाथा-५. ४. पे. नाम. पार्श्वचंद्रसूरिगुरुदेव पद, पृ. १आ, संपूर्ण. पार्श्वचंद्रसूरिगुरुगुण पद, मु. अबीरचंद, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीगुरुदेव साहाई जिनके; अंति: अबीरचंद गुणई, गाथा-३. ५. पे. नाम. पार्श्वचंद्रसूरिगुरुगुण पद, पृ. १आ, संपूर्ण. मु. इंद्रचंद्र, पुहिं., पद्य, आदि: सद्गुरु की बलिहारी जग मे; अंति: इंद्रचंद० उठि सवारा, गाथा-४. १५५०२ (+) जंबद्वीपादि परिधिमान, अपर्ण, वि. २०वी, मध्यम, प. २-१(१)=१, प्र.वि. संशोधित., दे., (२६४१३, १४४३३). For Private and Personal Use Only Page #41 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची जंबूद्वीप विचार, मा.गु., गद्य, आदि: जगत्गुरु महावीरस्वामी; अंति: (-), (पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., १६ वखारा पर्वत के ऊपर ४ कूट का वर्णन अपूर्ण तक है.) ११५५०३. (#) स्नात्र व अष्टप्रकारीपूजा विधि, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ६-३(१ से ३)=३, कुल पे. २, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६४१३, १२४३९). १. पे. नाम. स्नात्रपूजा विधि, पृ. ४अ-५आ, अपूर्ण, पू.वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं. स्नात्रपूजा विधिसहित, ग. देवचंद्र, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: (-); अंति: देवचंद० सूत्र मझार, ढाल-८, गाथा-६०, (पू.वि. ढाल-६ गाथा-४ अपूर्ण से है.) २. पे. नाम. अष्टप्रकारी पूजा, पृ.५आ, अपूर्ण, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. ८ प्रकारी पूजा, मु. देवचंद्र, मा.गु.,सं., पद्य, वि. १७२४, आदि: स्वस्ति श्रीसुख पूरवा; अंति: (-), (पू.वि. फलपूजा श्लोक-"कटुककर्मविपाकविनाशनं" अपूर्ण तक है.) ११५५०४. (+#) विषापहार स्तोत्र, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, प्र.वि. संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५.५४१३, १३४३७). विषापहार स्तोत्र, आ. अचलकीर्ति, पहिं., पद्य, वि. १७१५, आदि: विश्वनाथ विमलगण ईश; अंति: (-), (प.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., गाथा-२० अपूर्ण तक है.) ११५५०५. दस आश्चर्य वर्णन, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ५-४(१ से ४)=१, पृ.वि. मात्र बीच का ही एक पत्र है., दे., (२५.५४१३, १२४२३). १० आश्चर्य वर्णन, प्रा.,मा.गु.,सं., प+ग., आदिः (-); अंति: (-), (पू.वि. छठा अछेरा से अछेरा सात पाठ-"चंपानगरीन्यौ राजा अपुत्रीयौ मुए"तक है., वि. स्याही फूटने के कारण पत्र का पार्श्व भाग कोरा है.) ११५५०६. (+) देवदत्त कथा, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ६-४(१ से ४)=२, पृ.वि. बीच के पत्र हैं.,प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२६४१३, ११४२७). देवदत्त कथा, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. देवदत्त राजदरबार गमन प्रसंग अपूर्ण से देवदत्तगृहा गमन प्रसंग अपूर्ण तक है.) ११५५०७. (#) व्याख्यान पीठिका, महावीरजिन स्तवन व विजयजिनेंद्रसरिगुरुग पूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ३, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५.५४१३, १४४३६). १. पे. नाम, व्याख्यान पीठिका, पृ. १अ, संपूर्ण. मा.गु.,सं., प+ग., आदि: असरणसरण भवभयहरण तरण; अंति: चरीत्रनी वाचना प्रवर्ते. २. पे. नाम, महावीरजिन स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण. मु. रंगविजय, मा.गु., पद्य, आदि: प्रभुजी वीरजिणंदने; अंति: भवो भव तुम पाय सेव हो, गाथा-५. ३. पे. नाम. विजयजिनेंद्रसूरिगुरुगुण गहुंली, पृ. १आ, संपूर्ण. विजयजिनेंद्रसूरि गुरुगुण गहुँली, मु. राम, मा.गु., पद्य, आदि: वीर पटोधर जांणीइंरे सोहम; अंति: राम सदा गुण गाय, गाथा-७. ११५५०८. वीसविहरमानजिन स्तवन, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ३-१(१)=२, जैदे., (२५.५४१३.५, ११४३४). २० विहरमानजिन स्तवन, मु. देवचंद्र, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. प्रथम पत्र नहीं है व प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., सीमंधरजिन स्तवन गाथा-८ अपूर्ण से है व सुबाहजिन स्तवन गाथा-१० अपूर्ण तक लिखा है.) ११५५०९ (+) दशवैकालिकसूत्र सह अन्वयार्थ, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ३, प्र.वि. संशोधित., दे., (२५.५४१२.५, १९४३६). दशवैकालिकसूत्र, आ. शय्यंभवसूरि, प्रा., पद्य, वी. रवी, आदि: धम्मो मंगलमुक्किट्ठ; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., अध्ययन-३ अंतिम गाथा अपूर्ण तक लिखा है.) दशवैकालिकसूत्र-अन्वयार्थ, पुहिं., गद्य, आदि: अहिंसा प्राण व्यपरोप; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., अध्ययन-३ गाथा-१४ तक का अन्वयार्थ लिखा है.) For Private and Personal Use Only Page #42 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२६ ११५५१० (+) औपदेशिक व आध्यात्मिक लावणी संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. २, कुल पे. ३, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें., दे., (२६४१३, ११४४१). १. पे. नाम, औपदेशिक लावणी, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. मु. अबीरचंद, पुहिं., पद्य, आदि: ए संसार असार के अंदर; अंति: अबीरचंद० वाले गिरै उलट, गाथा-४. २.पे. नाम. आध्यात्मिक लावणी, पृ. १आ-२अ, संपूर्ण. म. अबीरचंद, पुहिं., पद्य, आदि: शिव पहली अरु शगती पीछै; अंति: अबीरचंद० वालै गए जो हार, गाथा-४. ३. पे. नाम. आध्यात्मिक लावणी, पृ. २अ-२आ, संपूर्ण. म. अबीरचंद, पुहिं., पद्य, आदि: क्या ते मूरख शकती गावै; अंतिः अबीरचंद० शिव की करामात, गाथा-४. ११५५१२. अष्टापद स्तवन व आदिजिन लावणी, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, दे., (२६४१३, ११४२८). १. पे. नाम. अष्टापदतीर्थ स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण.. मु. जिनेंद्रसागर, मा.गु., पद्य, आदि: तिरथ अष्टापद नित; अंति: जिनवर वधते नेहोजी, गाथा-८. २. पे. नाम. आदिजिन लावणी, पृ. १आ, संपूर्ण. आदिजिन लावणी-केसरियाजी, क. ऋषभदास संघवी, पुहिं., पद्य, वि. १७वी, आदि: सुनीयो रे बाता सदासीव मत; अंति: (-), (पूर्ण, पृ.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., गाथा-७ अपूर्ण तक लिखा है.) ११५५१३. (+) महावीरजिन स्तवन, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २-१(१)=१, पू.वि. प्रथम एक व अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२६४१२.५, १२४३३). महावीरजिन स्तवन-२७ भव, मु. लालविजय, मा.गु., पद्य, वि. १६६२, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. ढाल-२ गाथा-२ अपूर्ण से ढाल-३ गाथा-६ अपूर्ण तक है.) ११५५१४. ज्ञानपंचमीपर्व सज्झाय, अपूर्ण, वि. १९०७, श्रावण कृष्ण, ८, मध्यम, पृ. ३-२(१ से २)=१, ले.स्थल. मेडतानगर, प्रले. मु. कुसलसुंदर (कवलागच्छ); पठ. सा. चंदणश्री; सा. देवश्री, प्र.ले.पु. सामान्य, दे., (२६४१३, १३४३६). ज्ञानपंचमीपर्व सज्झाय, मु. मानसागर, मा.गु., पद्य, आदिः (-); अंति: (-), ढाल-३, (पू.वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं व प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., गाथा-१५ अपूर्ण से है व कलशगाथा-२ गुरुपरंपरा अपूर्ण तक लिखा है.) ११५५१५ (#) बीजतिथि स्तवन, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ३-२(१ से २)=१, पू.वि. मात्र बीच का ही एक पत्र है., प्रले. मु. विद्याविजय; लिख. अंबावीदास मेघजी, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, जैदे., (२६४१३, १५४३५). बीजतिथि स्तवन, ग. गणेशरुचि, मा.गु., पद्य, वि. १८१९, आदिः श्रीश्रुतदेवि पसाउले; अंति: गणेशरूचि० वंद पाय, गाथा-१९, संपूर्ण. ११५५१६. (+) २४ जिन चैत्यवंदन, अपूर्ण, वि. १८९१, मार्गशीर्ष शुक्ल, ५, शुक्रवार, मध्यम, पृ. ९-७(१ से ७)=२, ले.स्थल. बालूचर, प्रले. पं. रूपचंद, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. शंभवनाथजी प्रसादात्., संशोधित., जैदे., (२५.५४१३, ११४२५). २४ जिन चैत्यवंदन, उपा. क्षमाकल्याण, मा.गु., पद्य, आदिः (-); अंति: अमृतपदै करौ संघ कल्याण, चैत्यवंदन-२४, (पू.वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं., मुनि सुव्रतस्वामी चैत्यवंदन गाथा-१ अपूर्ण से है.) ११५५१७. (+) कल्पसूत्र की व्याख्यानपद्धति-अधिकार २, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ४, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. संशोधित., दे., (२६४१२.५, ११४३८). कल्पसूत्र-व्याख्यानपद्धति, संबद्ध, सं., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), (प्रतिअपूर्ण, पू.वि. आदिजिन पंचकल्याणक विस्तृतवर्णन अपूर्ण तक है., वि. प्रसंगानुसार मूल का संकेत व अर्थ दिया है.) ११५५१८. (+) कल्पसूत्र की व्याख्यानपद्धति-अधिकार ३, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ४, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. संशोधित., दे., (२६४१२.५, ११४४०). कल्पसूत्र-व्याख्यानपद्धति, संबद्ध, सं., गद्य, आदिः (-); अंति: (-), (प्रतिअपूर्ण, पृ.वि. अष्टम सामाचारी वर्णन अपूर्ण तक है., वि. प्रसंगानुसार मूल का संकेत व अर्थ दिया है.) For Private and Personal Use Only Page #43 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ११५५१९ (+) सुपार्श्वजिन स्तवन व दीवालीजी थोय, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ४-३(१ से ३)=१, कुल पे. २,प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२५४१२.५, १२४२७). १. पे. नाम. सुपार्श्वजिन स्तवन, पृ. ४अ, अपूर्ण, पृ.वि. अंत के पत्र हैं. मु. देवचंद्र, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: ते लहे परमानंद समाधि हो, गाथा-८, (पू.वि. गाथा-४ अपूर्ण से है.) २.पे. नाम. दीवालीजी थोय, पृ. ४अ-४आ, संपूर्ण.. दीपावलीपर्व स्तुति, मु. रत्नविमल, मा.गु., पद्य, आदि: सासननायक श्रीमहावीर; अंति: द्यो सरसती वाणीजी, गाथा-४. ११५५२० (#) शतक नव्य कर्मग्रंथ-५ का बालावबोध, संपूर्ण, वि. १९वी, जीर्ण, पृ. ३, प्र.वि. मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., (२५.५४१२.५, १७X४७). शतक नव्य कर्मग्रंथ-५-हिस्सा गाथा ३७, ३८,४०, ४१ का बालावबोध, मा.गु., गद्य, आदि: ए पांत्रीश प्रकृति विना; अंति: (अपठनीय), (वि. प्रत जीर्ण खंडित व कागज चिपके हुए होने से अंतिमवाक्य अपठनीय है.) ११५५२१. आदिजिन छंद, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., जैदे., (२५.५४१२.५, १३४४७). आदिजिन छंद-धुलेवामंडन, मु. दीपविजय कवि, मा.गु., पद्य, वि. १८७५, आदि: आदिकरण आदिकर जिणंद जिनराज; अंति: (-), (पू.वि. लावणी-१० अपूर्ण तक है.) ११५५२२. श्रीसारबावनी व अगरदास कृत कुंडलीया, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ११-१०(१ से १०)=१, कुल पे. २, जैदे., (२५४१२.५, १४४४४). १. पे. नाम. श्रीसारबावनी, पृ. ११अ, अपूर्ण, पृ.वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं. मु. श्रीसार कवि, मा.गु.,रा., पद्य, वि. १६८९, आदि: (-); अंति: कहैत सार० संग न कीजीयै, गाथा-५४, (पू.वि. गाथा-४९ अपूर्ण से है.) २. पे. नाम. औपदेशिक कंडलीया, पृ. ११अ-११आ, अपूर्ण, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., पे.वि. हुंडी:अग०कुडी. अगरदास, पुहि., पद्य, आदि: गुड जानै कै कोथलोकै वनीया; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-७ अपूर्ण तक है.) ११५५२६. अष्टप्रकारी पूजा, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, पृ.वि. मात्र प्रथम पत्र है., जैदे., (२५.५४१२.५, ८x२६). ८ प्रकारी पूजा विधिसहित, उपा. क्षमाकल्याण, पुहिं., प+ग., आदि: शुचि सुगंध वर कुसुमजुत जल; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-४ अपूर्ण तक है.) ११५५२७.(-) धन्नाशालिभद्र सज्झायादि संग्रह, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. २-१(१)=१, कुल पे. ४, प्र.वि. अशुद्ध पाठ., दे., (२५.५४१२.५, २१४४२). १. पे. नाम. औपदेशिक सज्झाय, प. २अ, अपूर्ण, पृ.वि. प्रथम पत्र नहीं है. औपदेशिक सज्झाय-दयापालने, म. हीरालाल, रा., पद्य, वि. १९४४, आदि: (-); अंति: हीरालाल० उपगार हो, गाथा-१२, (पू.वि. गाथा-१० अपूर्ण से है.) २. पे. नाम, धन्नाशालिभद्र सज्झाय, पृ. २अ, संपूर्ण. मु. नंदलाल शिष्य, मा.गु., पद्य, वि. १९६१, आदिः (१)साभल हो सुरता सुराने लागे, (२)नगरी तो राजगुरीहीना वासी; अंति: नंदलाल सीस०वंसीत फल दातार, गाथा-१३. ३. पे. नाम. गुरुगुण गहली, पृ. २अ, संपूर्ण. पुहिं., पद्य, आदि: गरुजी मारा अबके जनम सुधार; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., मात्र प्रारंभिक गाथा अपूर्ण तक लिखा है.) ४. पे. नाम. सम्यक्त्व बोल संग्रह, पृ. २आ, संपूर्ण. सम्यक् मिथ्या स्वरूप, पुहिं., गद्य, आदि: पेला बोले सरदना४ दुजे बोल; अंति: वजीरकला करे न धरम दीपाये. ११५५२८. पार्श्वजिनमहिम्न स्तोत्र, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ३, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., जैदे., (२५.५४१२.५, १३४३३). पार्श्वजिनमहिम्न स्तोत्र, आ. रघुनाथ, सं., पद्य, वि. १८५७, आदि: महिम्नः पारं ते परम; अंति: (-), (पू.वि. श्लोक-३१ अपूर्ण तक है.) For Private and Personal Use Only Page #44 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२६ २९ ११५५२९ (+#) पार्श्वजिन स्तवन, अपूर्ण, वि. १९वी, जीर्ण, पृ. २- १ (१) = १, प्र. वि. पदच्छेद सूचक लकीरें. मूल पाठ का अंश खंड है, जैदे., (२५. ५X१२.५, ६x२६). पार्श्वजिन स्तोत्र - चिंतामणि, आ. कल्याणसागरसूरि, सं., पद्य, आदि (-); अति बीजं बोधिबीजं ददातु श्लोक-११. ( पू. वि. गाथा - ६ अपूर्ण से है.) ११५५३६. असणादि कालप्रमाण सज्झाय, संपूर्ण वि. १९वी मध्यम पू. १, पठ श्रावि जीवकुंवरबाई, प्र.ले.पु. सामान्य, जै... (२५.५X१३, ११४३९). " असनादिक कालप्रमाण सज्झाय, मु. वीरविमल, मा.गु., पद्य, वि. १७वी, आदि: प्रणमुं श्रीगौतम; अंति: वीरविमल करजोडी कहे, गाथा - १८. ११५५३७. (+#) उपासकदशांगसूत्र की विषयसूची, अपूर्ण, वि. २०वी, जीर्ण, पृ. ३, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. हुंडी:उपासकदशासूची, टिप्पण युक्त विशेष पाठ. मूल पाठ का अंश खंडित है, दे., ( २६१२.५, २७६१). उपासक दशांगसूत्र- विषयसूची, मा.गु.से., गद्य, आदि चंपानगरी सुधर्मस्वामीसु; अति (-) (पू.वि. अध्ययन-७ अपूर्ण तक है.) ११५५३८. (+#) कंसकृष्ण विवरण लावणी, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ३, प्र. वि. संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२५x१२.५, १३x२३- ४०). कंसकृष्ण विवरण लावणी, मु. विनयचंद ऋषि, पुहिं., पद्य, आदि: गाफल मत रहे रे मेरी; अंति: विनेचंद० मन आणंदे, ढाल - २७, गाथा-४६. ११५५४५. (#) संख्या गिणती व पार्श्वजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, प्र. वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२३x११.५, १३X३१). १. पे. नाम संख्या गिणती, पृ. १अ, संपूर्ण. प्रा., गद्य, आदि इकं १ व २ सयं ३ सहस्स अंतिः संख्या दसगुणी गुणीतं. २. पे. नाम. पार्श्वजिन स्तवन, पृ. १अ - १आ, संपूर्ण. Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir मा.गु., पद्य, आदि सेरीमांहे रमतो दीठो; अंति: गाथा ८. ११५५४६ (#) कलिकालसर्वज्ञ हेमचंद्रसूरि रास, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १८-१७(१ से १७) = १, पू.वि. मात्र बीच का ही क पत्र है. प्र. वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है. जैवे. (२५.५४११.५. १३४५०). हेमचंद्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ रास, मा.गु., पद्य, आदि (-); अंति: (-), (पू.वि. गाथा- २३ अपूर्ण से ५० अपूर्ण तक है.) ११५५४७. हैमी नाममाला, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ६ - ५ (१ से ५ ) = १, प्र. वि. हुंडी : हेमीना, दे., ( २६ X११.५, ११x२६-२९). अभिधानचिंतामणि नाममाला, आ. हेमचंद्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., पद्य, वि. १३वी, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं व प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., कांड-१ श्लोक ७१ अपूर्ण से है व श्लोक ८६ अपूर्ण तक लिखा है.) ११५५४९. (१) शिवालिखित पद्धति व पार्श्वजिन पद, संपूर्ण वि. १९वी मध्यम, पू. १, कुल पे. २, प्र. वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैवे. (२६४११. १७४५३). १. पे. नाम. शिवालिखित पद्धति, पृ. १अ - १आ, संपूर्ण. शिवालिखितपद्धति, सं., पद्य, आदि: (१) कवियुद्धं कोटियुद्धं, (२) त्रिपुरहरमुहूर्तं ; अंति: मुहूर्त्ते रचनोच्चते, श्लोक-३४. २. पे. नाम. पार्श्वजिन पद, पृ. १आ, संपूर्ण. पुहिं., पद्य, आदि जय बोलो पासजिनेसर की अंति: बीनती एह अलवेसर की, पद-५. " 1 ११५५५२. (+) शक्रस्तव, संपूर्ण, वि. १७वी, मध्यम, पृ. २, प्रले. मु. हेमविनय पंडित (गुरु ग. लब्धिमंडन ), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ संशोधित, जैदे. (२६११. १५४५१). शक्रस्तव अर्हन्सहस्रनाम, आ. सिद्धसेनदिवाकरसूरि, सं., पग, आदिः ॐ नमोर्हते भगवते; अंति: लिलेखे संपदां पदम्. For Private and Personal Use Only Page #45 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ३० कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ११५५५५ (+#) आदिजिन स्तवन, भरतबाहुबली सज्झाय व पार्श्वजिन पदादि संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ३, कुल पे. १०, प्र.वि. संशोधित. मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., (२६४११.५, १२४३६-४०). १. पे. नाम, आदिजिन स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण. आदिजिन स्तवन-जन्मबधाई, मा.गु., पद्य, आदि: आज तो बधाइ राजा नाभि; अंति: तुम चरणां की सेवा, गाथा-५. २. पे. नाम, भरतबाहुबली सज्झाय, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, वि. १७वी, आदि: राजतणा अति लोभीया; अंति: समयसुंदर वंदे पाय रे, गाथा-७. ३. पे. नाम. पार्श्वजिन पद, पृ. १आ, संपूर्ण.. म. लालचंद ऋषि, पुहि., पद्य, आदि: श्रीजिनराज सदाइ जाकै; अंति: गावै सदा सदा सुखदाई, पद-३. ४. पे. नाम. आदिजिन पद, पृ. १आ, संपूर्ण. मु. साधुकीर्ति, पुहिं., पद्य, आदि: आज ऋषभ घर आवे देखो; अंति: साधुकीरति गुण गावे, गाथा-३. ५. पे. नाम. पार्श्वजिन गीत, पृ. १आ-२अ, संपूर्ण. म. आनंदघन, पुहिं., पद्य, वि. १८वी, आदि: मेरे एही ज चाहीइं; अंति: में तो ओर न ध्याउं, गाथा-३. ६. पे. नाम. सामायिक सज्झाय, पृ. २अ, संपूर्ण. मु. नेमसागर, मा.गु., पद्य, आदि: सामायिक मन सुधे करो; अंति: सामायक कीजे निसदीस, गाथा-५. ७. पे. नाम. इलाचीपुत्र सज्झाय, पृ. २अ-२आ, संपूर्ण. इलाचीकुमार सज्झाय, मु. लब्धिविजय, मा.गु., पद्य, आदि: नाम इलापुत्र जाणीए; अंति: लब्धिविजय गुण गाय, गाथा-९. ८. पे. नाम. ढंढणऋषि सज्झाय, पृ. २आ-३अ, संपूर्ण. मु. जिनहर्ष, मा.गु., पद्य, आदि: ढंढणऋषिने वंदणा; अंति: सुजाने हुं वारी लाल, गाथा-९. ९. पे. नाम. अरणकमुनि सज्झाय, पृ. ३अ-३आ, संपूर्ण. अरणिकमुनि सज्झाय, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, आदि: अरणक मुनिवर चाल्या; अंति: मनवंछित फल लीधो जी, गाथा-८. १०. पे. नाम. औपदेशिक सज्झाय, पृ. ३आ, अपूर्ण, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. औपदेशिक सज्झाय-वनमाली, मु. पद्मतिलक, मा.गु., पद्य, आदि: काया रे वाडी कारमी; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-५ ___ अपूर्ण तक है.) ११५५५६. महावीरजिन स्तवन, पार्श्वजिन स्तवन व चैत्यवंदन संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ४, जैदे., (२३.५४११.५, १५४४०-४४). १.पे. नाम. महावीरजी पारणो, पृ. १अ, संपूर्ण. महावीरजिन स्तवन-पारणाविनती, पं. वीरविजय, मा.गु., पद्य, आदि: चोमासी पारणो आवे करि; अंति: शुभवीर वचनरस गावे रे, गाथा-८. २. पे. नाम. गोडीपारसनाथ स्तवन, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण, ले.स्थल. सोझितनगर. पार्श्वजिन स्तवन-गोडीजी, म. देवीचंद, मा.गु., पद्य, आदि: जिन दरबारां जावजो रे; अंति: देवीचंद० लूल लागू पाय रे, गाथा-४. ३. पे. नाम. सीमंधरजिन चैत्यवंदन, पृ. १आ, संपूर्ण. उपा. विनयविजय, मा.गु., पद्य, वि. १७उ, आदि: श्रीसीमंधर वीतराग; अंति: कीरत्तिविजय० धरे वहमान, गाथा-३. ४. पे. नाम, आदिजिन चैत्यवंदन, पृ. १आ, संपूर्ण. मु. रूपविजय, मा.गु., पद्य, आदि: प्रथम नमुं श्रीआदिनाथ; अंति: धणी रुप कहे गणगेह, गाथा-३. ११५५६२. ५ महाव्रत सज्झाय व श्वासोश्वास थोकडा, संपूर्ण, वि. १९५३, भाद्रपद कृष्ण, ८, शनिवार, श्रेष्ठ, पृ. २, कुल पे. २, ले.स्थल. वटामण, प्रले. श्राव. हलु नथुभाई भावसार, प्र.ले.पु. सामान्य, दे., (२६४११.५, १२-१८४३१-५७). १. पे. नाम.५ महाव्रत सज्झाय-ढाल ५, पृ. १अ, संपूर्ण. For Private and Personal Use Only Page #46 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२६ ५ महाव्रत सज्झाय, म. कांतिविजय, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: सजाय भणता सुख लहे रे, प्रतिपूर्ण. २.पे. नाम, श्वासोश्वास थोकड़ा, पृ. १आ, संपूर्ण. श्वासोश्वास थोकडा-प्रज्ञापनासूत्रगत, मा.गु., गद्य, आदि: पन्नवणासूत्र पद १५ में; अंति: नारकीनो दुख आउखो केहवो. ११५५६९ (+) पाशाकेवली, संपूर्ण, वि. १५२४, आषाढ़ शुक्ल, १, मध्यम, पृ. ३, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२६४११.५, १८४५४-६८). पाशाकेवली, मु. गर्ग ऋषि, सं., पद्य, आदि: यत्सत्यं त्रिषु लोकेषु; अंति: १ अधः २ वामतः ३ दक्षिणतः, श्लोक-१९६. ११५५७४. (+) नवतत्त्व प्रकरण का बालावबोध, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १३-१२(१ से १२)=१, पृ.वि. मात्र बीच का ही एक पत्र है., प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें., जैदे., (२५.५४११, १७४४२). नवतत्त्व प्रकरण ६० गाथा-बालावबोध, रा., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. गाथा-४७ के बालावबोध अपूर्ण से ५४ के बालावबोध अपूर्ण तक है., वि. आवश्यकतानुसार मूल का प्रतीक पाठ दिया है.) ११५५७५ (+) तृतीयपद संग्रहणी, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ३, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-पदच्छेद सूचक लकीरे-संशोधित., जैदे., (२६४११, १७७५१-५४). प्रज्ञापनासूत्र-तृतीयपदसंग्रहणी, संबद्ध, आ. अभयदेवसूरि , प्रा., पद्य, आदि: दिसि १ गइ २ इंदिय ३; अंति: अभयदेव० संगहियं, गाथा-१३३. ११५५७६. पार्श्वजिन स्तवन, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, पृ.वि. मात्र प्रथम पत्र है., जैदे., (२५.५४११, १०४२६). पार्श्वजिन स्तवन-समवसरणविचारगर्भित, मु. धर्मवर्धन, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीजिनशासनसेहरो जग; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-१३ अपूर्ण तक है.) ११५५७७. (+) आदिजिन चौपाई, अपूर्ण, वि. १९४१, आषाढ़ कृष्ण, १४, बुधवार, मध्यम, पृ. १०-७(२ से ८)=३, ले.स्थल. रीया, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., दे., (२५४११.५, २५४५६-५९). आदिजिन चौपाई, मु. रायचंद ऋषि, मा.गु., पद्य, वि. १८४०, आदि: अरिहंत सिद्धनै आयरिय; अंति: ऋषभ चरीत टकसाल ए, ढाल-४७, (पू.वि. ढाल-२ के दुहा अपूर्ण से ढाल-३८ गाथा-१८ अपूर्ण तक नहीं है.) ११५५७८. बृहत्संग्रहणी, अजय पद व प्रास्ताविक दोहादि संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ३, जैदे., (२५.५४११, ९-१४४३४-३७). १. पे. नाम. बृहत्संग्रहणी, पृ. १अ, संपूर्ण. ___ आ. चंद्रसूरि, प्रा., पद्य, वि. १२वी, आदि: नमिउं अरिहंताई ठिइ; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., गाथा-३ अपूर्ण तक लिखा है.) २.पे. नाम, अजय पद, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. पद संग्रह, मा.गु., पद्य, आदि: अजै चंद सुरज अजै आकास; अंति: इम उचरे सतमत मुंडोरे भरां, ग्रं. पद १. ३. पे. नाम. प्रास्ताविक दोहादि संग्रह, पृ. १आ, संपूर्ण. म. भिन्न भिन्न कर्तक, प्रा.,मा.गु.,सं., पद्य, आदि: पंच कोसी पालौ रहे दस कोसी; अंति: हेलीवा सयणां सामु हीयुह, गाथा-१५. ११५५७९. सिद्धचक्र स्तवनद्वय, संपूर्ण, वि. १९वी, जीर्ण, पृ. १, कुल पे. २, प्रले. पं. खेमवर्द्धन (गुरु पं. हीरवर्द्धन), प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२५.५४११, १३४२६). १. पे. नाम. सिद्धचक्र स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण. सिद्धचक्र सज्झाय, मु. उत्तमसागर शिष्य, मा.गु., पद्य, आदि: नवपद महिमा सार सांभल; अंति: नवपद महिमा जाणज्यो, गाथा-५. २.पे. नाम. सिद्धचक्र स्तवन, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. मु. कांतिसागर, मा.गु., पद्य, आदि: वीर जिणंद वखाण्यौ; अंति: कांतिसा० सुख पाया रे, गाथा-१०. ११५५८०. विविध दोहा, गाथा, श्लोक, सवैया, कवित्त, हरियाली, गूढा आदि पद्य संग्रह, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. २-१(१)=१, जैदे., (२६४११, १८४५९). For Private and Personal Use Only Page #47 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची विविध दोहा, गाथा, श्लोक, सवैया, कवित्त, हरियाली, गूढा आदि पद्य संग्रह, भिन्न भिन्न कर्तक, ___ पुहि.,प्रा.,मा.गु.,सं., पद्य, आदि: (-); अंति: जो जण जाचे छे आपणा, (पू.वि. दोहा-१५ अपूर्ण से है.) ११५५८७. (+#) स्यादिशब्दसमुच्चय सह अवचूरि, संपूर्ण, वि. १७वी, मध्यम, पृ. ३, प्र.वि. पंचपाठ-पदच्छेद सूचक लकीरें. टिप्पणक का अंश नष्ट, अक्षर फीके पड गये हैं, जैदे., (२६४११, २३-२९४४२-६१). स्यादिशब्दसमुच्चय, आ. अमरचंद्रसूरि, सं., पद्य, आदि: श्रीशारदां हृदि ध्यात्वा; अंति: समुच्चयं स्यादिशब्दानां, उल्लास-४. स्यादिशब्दसमुच्चय-स्वोपज्ञ दीपिका अवचूरि, आ. अमरचंद्रसूरि, सं., गद्य, आदि: श्रीशारदामित्यादि इत्यादौ; अंति: (अपठनीय), (वि. फफूंदग्रस्त एवं किनारी खंडित होने के कारण अंतिमवाक्य अस्पष्ट है.) ११५५९३ (#) कलावती सज्झाय व हीरानंद धर्माचार्य गणवर्णन गीत, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २-१(१)=१, कुल पे. २, प्र.वि. पत्रांक लिखा न होने के कारण अनुमानित पत्रांक दिया गया है., अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६.५४११.५, १२४३२). १. पे. नाम. कलावती सज्झाय, पृ. २अ, अपूर्ण, पू.वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं. कलावतीसती सज्झाय, मु. जेमल ऋषि, मा.गु., पद्य, आदिः (-); अंति: दुक्कडमाय धन धन हो प्राणी, गाथा-२९, (पू.वि. गाथा-२३ अपूर्ण से है.) २. पे. नाम. हीरानंद धर्माचार्य गुणवर्णन गीत, पृ. २आ, संपूर्ण. मा.गु., गद्य, आदि: श्रधापरूपणा फर्सणायै करी; अंति: हुं प्रते कै कै तिखुत्ता०. ११५५९५. अंतिम आराधना विधि व संथारो करावानी विधि, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ३-१(१)=२, कुल पे. २, जैदे., (२६४११.५, १९४५२-६०). १. पे. नाम. आराधना विधि, पृ. २अ-२आ, अपूर्ण, पू.वि. प्रथम पत्र नहीं है. अंतिम आराधना संग्रह, प्रा.,मा.गु., प+ग., आदि: (-); अंति: जेदुमीया तेवि खामेमि, (पू.वि. मृषावादव्रत अपूर्ण से है.) २. पे. नाम. संथारो करावानी विधि, पृ. २आ-३आ, संपूर्ण. संथारापोरसीसूत्र, प्रा., पद्य, आदि: प्रथम इरियावही पडिक्कमी; अंति: सव्वं तिविहेण वोसिरे, गाथा-१४. ११५५९६ (+#) विवाहपडल भाषा, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २, प्रले. चतुर्भुज, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. हुंडी:विवाहविचार, टिप्पण युक्त विशेष पाठ. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६४११.५, १९४४८). विवाहपडल भाषा, मु. रूपचंद, मा.गु., पद्य, आदि: सदगुरु वाणी समरि; अंति: ज्योतिष तणो मर्म, गाथा-३६. ११५५९८. (+) महालक्ष्मी मंत्राम्नाय, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २-१(१)=१, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२६४११.५, १८४७२). महालक्ष्मी मंत्राम्नाय, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. प्रथम पत्र नहीं है व प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., फूल से जाप विधान अपूर्ण से है व जाप फलादेश अपूर्ण तक लिखा है., वि. आम्नाय प्रायः संपूर्ण है. बाद में कुछ अस्पष्ट लिखकर छोड दिया है.) ११५६०१ (+) जिनकल्प स्थमहावीरकल्पादि आगमिक विचार व व्याकरणमहत्वदर्शक श्लोक, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. २-१(१)=१, कुल पे. २,प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२६४११.५, २१४६२). १. पे. नाम. जिनकल्प स्थमहावीरकल्पादि आगमिक विचार, पृ. २अ-२आ, अपूर्ण, पू.वि. प्रथम पत्र नहीं है. जिनकल्पस्थमहावीरकल्पादि आगमिक विचार, प्रा.,सं., गद्य, आदिः (-); अंति: पिंडियापाएस चउरो तिप्पाओ, (पृ.वि. वीरभद्रमहाकालादि वंदन मिथ्यात्ववर्णन प्रसंग अपूर्ण से है.) २. पे. नाम. व्याकरणमहत्वदर्शक श्लोक, पृ. २आ, संपूर्ण. सुभाषित श्लोक संग्रह *, मा.गु.,सं., पद्य, आदि: अनधित व्याकरणो येन योन्य; अंति: तदति परोक्षे विजानीयात, श्लोक-२. ११५६०८. (+) पद्मावती स्तोत्र, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १३-१२(१ से १२)=१, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें., जैदे., (२६.५४११.५, ११४३३). For Private and Personal Use Only Page #48 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ३३ हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२६ पद्मावतीदेवी छंद, मु. हर्षसागर, मा.गु.,सं., पद्य, आदि: (-); अंति: हर्ष० पूजो सुखकारणी, गाथा-१०, (पू.वि. श्लोक-३ ___ अपूर्ण से है.) ११५६१३. (+) विविध बोल संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २, कुल पे. ६, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२५.५४११.५, २०४५९-७२). १. पे. नाम. दशविधचक्रवाल समाचारी रथ, पृ. १अ, संपूर्ण.. प्रा.,मा.गु., प+ग., आदि: मणगुत्तो सन्नाणी; अंति: इच्छाकारी नमो तस्स, गाथा-१. २. पे. नाम. आलोचणा रथ, पृ. १अ, संपूर्ण. प्रा.,मा.गु., प+ग., आदि: कय चउसरणो नाणी निअमिअ; अंति: विजिए अरह समक्खं खमावेमि, गाथा-१. ३. पे. नाम. अढार हजारसहस्स शीलांगरथ विचार सार, पृ. १आ, संपूर्ण. १८ हजार शीलांगरथ आम्नाय, प्रा., पद्य, आदि: जो ए करणे सआ इंदिय भूमाइ; अंति: खंतिजुयाते मुणी वंदे, गाथा-४. ४. पे. नाम, श्रमणधर्म रथ, पृ. २अ, संपूर्ण. प्रा.,मा.गु., प+ग., आदि: नहणेइ सयंसाहु मणसा; अंति: ढवि जिए खंतिसंपुन्नो. ५. पे. नाम. सामाचारी रथ, पृ. २अ, संपूर्ण. प्रा.,मा.गु., प+ग., आदि: भईनाण जुआणं जईण; अंति: इच्छाकारी भणंताणं, गाथा-१. ६. पे. नाम. ८४ जीवयोनी क्षमापना, पृ. २आ, संपूर्ण. ८४ जीवयोनि क्षमापना, प्रा.,मा.गु., प+ग., आदि: संसारंमि० पुढवीकाई; अंति: अढारै हजार भेद थाइं. ११५६१४. (#) संवत्च्छरी पडिक्कमणा विधि, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५४११.५, १४४४१). पाक्षिकचौमासीसंवत्सरीप्रतिक्रमण विधि, संबद्ध, प्रा.,मा.गु., प+ग., आदि: वंदेत्तु कह्या पछी इछाकार; अंति: देवसी पडिकमणो करवो, (वि. संक्षिप्त विधि.) ११५६१६. (+#) पूजा विधि व सुभाषित श्लोकसंग्रह, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, प्र.वि. संशोधित. मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., (२६.५४११.५, २०-२३४४३-६६). १.पे. नाम. पूजाविधि, पृ. १अ, संपूर्ण. जिनपूजाविधि श्लोकसंग्रह, प्रा.,सं., पद्य, आदि: प्रविशतां वामभागे; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., गाथा-२९ तक लिखा है.) २. पे. नाम, सुभाषित श्लोक संग्रह, पृ. १आ, संपूर्ण. सुभाषित श्लोक संग्रह *, पुहिं.,प्रा.,मा.गु.,सं., पद्य, आदि: आदित्यस्य गतागतैवरहरद; अंति: नत्थीभयं दीर्घपट्ठउतुकोई, गाथा-२०, (वि. गाथा परिमाण गिनकर लिखा गया है.) ११५६२०. कल्याणमंदिर स्तोत्र, अपूर्ण, वि. १८४२, फाल्गुन शुक्ल, १४, मध्यम, पृ. ४-१(१)=३, प्रले. मु. राजसी ऋषि; पठ. मु. उगरा (गुरु मु. राजसी ऋषि), प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२४.५४११.५, १२४२६). कल्याणमंदिर स्तोत्र, आ. सिद्धसेनदिवाकरसूरि, सं., पद्य, वि. १वी, आदिः (-); अंति: कुमुद० प्रपद्यते, श्लोक-४४, (पू.वि. श्लोक-१२ अपूर्ण से है.) ११५६२१. रथनेमिराजिमती सज्झाय, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ३, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., दे., (२५.५४१२, १०४३०). रथनेमिराजिमती सज्झाय, पं. वीरविजय, मा.गु., पद्य, आदि: कहे रहनेमी अंवरविण; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-३७ अपूर्ण तक है.) ११५६२३. क्षमाछत्रीसी, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, पू.वि. मात्र प्रथम पत्र है., जैदे., (२५.५४११.५, ९-१२४३४). क्षमाछत्रीसी, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, आदि: आदरि जिव क्षमागुण आदरि; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-१७ __ अपूर्ण तक है.) ११५६२५. (#) ज्योतिषसार सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ३४-३३(१ से ३३)=१, पू.वि. मात्र बीच का ही एक पत्र है., प्र.वि. हंडी:नारचंद्रट., अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५.५४११, ६x४०). For Private and Personal Use Only Page #49 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra ३४ www.kobatirth.org कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ज्योतिषसार, आ. नरचंद्रसूरि, सं., पद्य, आदि (-); अंति (-) (पू.वि. श्लोक-२१९ अपूर्ण से श्लोक-२३० अपूर्ण तक है., वि. प्रत नं- ०९५७० के आधार पर संपादन किया है.) ज्योतिषसार-टबार्थ *, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: (-). ११५६२९. (+) रमल शुकनावली व इंद्रयम शकुनावली, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २, कुल पे. २, प्र. वि. टिप्पणयुक्त विशेष पाठ-संशोधित, जैवे. (२६४११, १४४४०-४३). Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir १. पे. नाम रमल शुकनावली, पृ. १अ २अ, संपूर्ण. पुहिं., गद्य, आदि: अरे यार बहुत दिन चिंता; अंति: सोधी रै सब भला होगा. २. पे. नाम. इंद्रयम शुकनावनी, पृ. २आ, अपूर्ण, पू. वि. मात्र प्रथम पत्र है. पुहिं., गद्य, आदि: इंद्र यम राजा एवं भविष्यं; अंति: (-), (पू.वि. २२२ शकुन वर्णन अपूर्ण तक है.) १९५६३४ (+) राजूलरहनेमी गीत, बलभद्रमुनि सज्झाय व २४ जिन स्तवन अपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १४-१३ (१ से १३) = १, कुल पे. ३, प्र.वि. हुंडी:तवन., टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२५.५X११.५, १७-२०X४०-४३). १. पे. नाम राजूलरहनेमी गीत, पृ. १४अ, संपूर्ण, नेमराजिमती सज्झाय, मु. चोथमल ऋषि, मा.गु., पद्य, वि. १८२२, आदि: राजेमति इम वीनवे हो; अंति: चोथमल० अरज करे करजोड, गाथा- १२. २. पे. नाम. बलभद्रमुनि सज्झाय, पृ. १४अ-१४आ, संपूर्ण. मा.गु., पद्य, आदि हुं तुज आगल सी कहुं अंति: गाथा २१. ३. पे. नाम. २४ जिन स्तवन, पृ. १४आ, संपूर्ण. २४ जिन स्तवन- पांसठीयायंत्र गर्भित, मु. धर्मसिंह मुनि, मा.गु., पद्य, आदि श्रीनेमीसर संभव साम सुबध; अति धरमसीह मुनी० करो कल्यांण, गाथा-७. , १९५६३६ (+) प्रास्ताविक श्लोक संग्रह, संपूर्ण वि. १९वी मध्यम, पू. २, प्र. वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ, जैदे. (२६४१२, १८४४२-४६). "" " प्रास्ताविक श्लोक संग्रह, प्रा. मा. गु. सं., पद्य, आदि विद्वन् वद क्वचलितोसि अति गुणाः कांचनमाश्रयंति, गाथा- ७५. ११५६३७. (+#) रात्रिभोजन सज्झाय, आदिजिन विवाहलो व उत्तराध्ययनसूत्र गीत, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. १३-११(२ से १२)=२, कुल पे. ३, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६X११.५, १३X३८-४६). १. पे. नाम रात्रिभोजन सज्झाय, पृ. १अ १आ, संपूर्ण. रात्रिभोजन परिहार सज्झाय, मु. सेवक, मा.गु., पद्य, आदि: रंभा धरणी रूअडीजी पुत्र; अंति: सारिउ आपण काज रे, गाथा - १८. २. पे. नाम. आदिजिन विवाहलो, पृ. १आ, अपूर्ण, पू. वि. अंत के पत्र नहीं हैं. मा.गु., पद्य, आदि पहिलउ पदम जिणेसर हेलडी अति (-) (पू.वि. गाथा-३ अपूर्ण तक है.) ३. पे. नाम. उत्तराध्ययनसूत्र गीत, पृ. १३अ - १३आ, अपूर्ण, पू. वि. मात्र बीच का ही एक पत्र है. उत्तराध्ययनसूत्र-गीत, संबद्ध, उपा. राजशील, मा.गु., पद्य, आदि (-); अति (-) (पू.वि. गीत-२२ गाथा १ अपूर्ण से गीत-२३ गाथा-९ अपूर्ण तक है.) ११५६३८. स्तुति व स्तवनादि संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पृ. ९-८ (१ से ८)=१, कुल पे. ४ जैदे. (२६.५४१२, १४४३५-४३). १. पे नाम चतुविंशतिजिन स्तुति, पृ. ९अ, अपूर्ण, पू.वि. मात्र अंतिम पत्र है. स्तवनचौवीसी, मु. आनंदघन; आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., पद्य, वि. १८पू, आदि: (-); अंति: आनंदघन प्रभु जारे रे, स्तवन- २४, (पू.वि. स्तवन- २४ गाथा- २ अपूर्ण से है.) २. पे. नाम औपदेशिक सज्झाय, पृ. ९अ, संपूर्ण. औपदेशिक सज्झाय-परनारी परिहार, मु. शांतिविजय, मा.गु., पद्य, आदि: जीवा वारु छु मांहरा वालहा; अंति: शंतिविजय० आवागमण नीवीरो जी. गाथा-५. For Private and Personal Use Only Page #50 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२६ ३. पे. नाम. पार्श्वजिन स्तवन, पृ. ९अ, संपूर्ण. ___ पार्श्वजिन स्तवन-कामितपूरण, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: पास प्रभु प्रणमुं; अंति: परमानंद विलासे रे, गाथा-८. ४. पे. नाम. महावीरजिन स्तवन, पृ. ९आ, अपूर्ण, पृ.वि. अंतिम पत्र नहीं है. मु. ज्ञानविमल, मा.गु., पद्य, आदि: करुणा कल्पलता श्रीमह; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-३ अपूर्ण तक है.) ११५६३९. विवहारोपरि स्वाध्याय, अपूर्ण, वि. १९५०, चैत्र शुक्ल, ३, मध्यम, पृ. १८-१७(१ से १७)=१, ले.स्थल. वीसनगर, अन्य. मु. रुपसागर; पं. छगनसागर; मु. लक्ष्मणसागर, प्र.ले.पु. सामान्य, दे., (२६.५४११.५, ८४४२-६०). निश्चयव्यवहार सज्झाय, आ. हंससूरि, मा.गु., पद्य, आदिः (-); अंति: हंस०वीतराग इणपरि कहे, गाथा-८, (पू.वि. गाथा-६ अपूर्ण से है.) ११५६४१ (+#) लीलावती रास, अपूर्ण, वि. १८६३, कार्तिक शुक्ल, २, मध्यम, पृ. १०-७(१ से ७)+१(९)=४, ले.स्थल. ममाइबंदर, प्रले. मु. माणिक्यहर्ष, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६४१२, १८४३९-४३). लीलावतीसुमतिविलास रास, उपा. उदयरत्न, मा.गु., पद्य, वि. १७६७, आदि: (-); अंति: उदयरतन० संपत सुर लीला जी, ढाल-२१, गाथा-३४८, (पू.वि. ढाल-१६ गाथा-४ अपूर्ण से है., वि. ढाल-१९ वाला पत्र दो बार लिखा गया है.) ११५६४३. (+) आरंभसिद्धि व घटिकालग्नवर्णन श्लोकसंग्रह, अपूर्ण, वि. १७९२, फाल्गुन शुक्ल, ११, शनिवार, मध्यम, पृ. २०-१९(१ से १९)=१, कुल पे. २, ले.स्थल. भुजनगर, प्रले. मु. ऋद्धिविजय (गुरु मु. जीवविजय); गुपि. मु. जीवविजय (गुरु मु. ज्ञानविजय); मु. ज्ञानविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित-टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२६४१२, १६४३७-४४). १.पे. नाम. आरंभसिद्धि, पृ. २०अ, अपूर्ण, पृ.वि. मात्र अंतिम पत्र है. आ. उदयप्रभसूरि, सं., पद्य, वि. १३वी, आदिः (-); अंति: लग्न परिक्षाविमर्शः पंचमः, विमर्श-५, श्लोक-४१३, ग्रं. ४६०, (पू.वि. मात्र अंतिम वाक्य है.) २. पे. नाम. घटिका लग्न वर्णन श्लोक संग्रह, प. २०अ-२०आ, संपूर्ण, पे.वि. यह कृति किसी अन्य प्रतिलेखक के द्वारा लिखी हुई हो ऐसा प्रतीत होता है. ज्योतिष श्लोक संग्रह, प्रा.,मा.गु.,सं., पद्य, आदि: लग्ने० मंदाच्चतुर्वर्जिते; अंति: भतोंत्य कुलीरक वृश्चिके. ११५६४४. मेघकुमार सज्झाय, शत्रुजयतीर्थ व आदिजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ३, जैदे., (२६४११.५, ११४३६). १. पे. नाम, शत्रुजयतीर्थ स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण. म. कांतिविजय शिष्य, मा.गु., पद्य, आदि: सहीयां मोरी चालो; अंति: (-), (अपूर्ण, पृ.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., गाथा-३ अपूर्ण तक लिखा है.) २. पे. नाम, मेघकुमार सज्झाय, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. म. प्रीतिविमल, मा.गु., पद्य, आदि: धारणी मनावे रे मेघ; अंति: छुटे भव तणो पास, गाथा-५. ३. पे. नाम. आदिजिन स्तवन, पृ. १आ, संपूर्ण. उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: जगजीवन जगवाल हो; अंति: वाचक जस० सुख पोष लाल रे, गाथा-५. ११५६५१. सामुद्रिकशास्त्र, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. २-१(१)=१, पू.वि. प्रथम एक व अंत के पत्र नहीं हैं., दे., (२५.५४१३.५, ९४२१-२४). सामुद्रिकशास्त्र, सं., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. श्लोक-८ अपूर्ण से १३ अपूर्ण तक है.) ११५६५३. परमानंदपच्चीसी, संपूर्ण, वि. १९३०, पौष कृष्ण, ७, शुक्रवार, मध्यम, पृ.१, ले.स्थल. कोठारानगर, प्रले. मु. रविलाभजी (परंपरा मु. सुंदरलाभजी, अंचलगच्छ); पठ. श्राव. अभद टोकरसी संघवी, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. शांतिनाथजी प्रसादात्., दे. (२५.५४१३, १२४३६). परमानंद स्तोत्र, सं., पद्य, आदि: परमानंदसंपन्न; अंति: परमं पदमात्मनः, श्लोक-२५. For Private and Personal Use Only Page #51 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra ३६ www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ११५६६१. पन्नवणा स्वाध्याय व आध्यात्मिक हरियाली, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १. कुल पे. २, प्र. वि. पत्रांक अनुमानित है., दे., (२५.५x१३, १२X४२). १. पे. नाम. पन्नवणा स्वाध्याय, पृ. १आ, संपूर्ण. प्रज्ञापनासूत्र-सज्झाय संबद्ध, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु, पद्य, आदि: कहियो रे पंडित ते कुणनारी; अंति जस कहे ते सुख लहस्ये, गाथा-७. २. पे. नाम. आध्यात्मिक हरियाली, पृ. १आ, अपूर्ण, पू.वि. प्रथम पत्र नहीं है. श्राव. देपाल भोजक, मा.गु., पद्य, वि. १६वी, आदि: वरसे कांब भीजे पाणी; अंति: (-), (पू. वि. गाथा-४ अपूर्ण तक है.) ११५६६२. (+) औपदेशिक सज्झाय, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, पू. वि. मात्र प्रथम पत्र है., प्र. वि. पत्रांक अनुमानित है., संशोधित. दे., (२७४१३, १२४४२). औपदेशिक सज्झाय- शीलविषये स्त्री शिखामण, मु. उदयरत्न, मा.गु, पद्य, आदि एक अनोपम सीखामण खरी; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-९ अपूर्ण तक है.) . ११५६६३. (+) दानशीलतपभावना संवाद, अपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पू. २. पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. प्र. वि. संशोधित, जैदे., (२७X१३, १४X३८-४२). दानशीलतपभावना संवाद, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, वि. १६६२, आदि प्रथम जिनेसर पाय अति: (-). (पू.वि. डाल-४ दूहा-५ अपूर्ण तक है.) ११५६६४. (+) दीपावलीपर्व देववंदन विधिसहित, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, पू. वि. मात्र प्रथम पत्र है., प्र. वि. संशोधित., जीवे. (२६४१३.५, १६५३२). . दीपावली पर्व देववंदन विधिसहित आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., पद्य वि. १८वी आदि वीरजिनवर वीरजिनवर; अंति: (-), (पू.वि. महावीरजिन स्तवन गाथा-६ अपूर्ण तक है.) ११५६६५. (+#) अजितजिन स्तवन व गढपण सज्झायादि संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, जीर्ण, पृ. २, कुल पे. ४, अन्य. मु. हीरविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित. मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., (२७X१३, १५X३५-३९). १. पे नाम. अजितजिन स्तवन, पू. १अ, संपूर्ण. मु. रामविजय, मा.गु., पद्य, आदि अजितजिणेसर साहिबो रे; अंतिः राम अधिक तू गुणवान, गाधा-७. २. पे. नाम. पंखीडा विवाहलो. पू. १अ २अ संपूर्ण. मा.गु., पद्म, आदि: तीतर बेठो ताडु करे; अंति लापसी जमो नणदीना वीर गाथा-३०. ३. पे. नाम. गढपणनी सज्झाय, पृ. २अ - २आ, संपूर्ण. गढपण सज्झाय, मु. रूपविजय, मा.गु., पद्य, आदि: गढपण तुझ केने तेडिओ रे अति सीष्य रूपविजे गुणगाय, गाथा ८. ४. पे नाम, वाणियानी वेपारनी सज्झाय, पृ. २आ, संपूर्ण, औपदेशिक सज्झाय-वाणिया, मु. विशुद्धविमल, मा.गु., पद्य, आदि: वंणीओ वणज करे छे रे; अंतिः विसुधविमल ० कमाणी साथ, गाथा-८. ११५६६६. (४) एकत्व भावना सज्झाव व आध्यात्मिक पदादि संग्रह, अपूर्ण, वि. २०वी मध्यम, पृ. २- १ (१) १, कुल पे. ३. प्रले. अमोलक भोजक, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. मूल पाठ का अंश खंडित है, दे., (२५४१३.५, १४४३४). १. पे. नाम. आध्यात्मिक पद, पृ. २अ, अपूर्ण, पू. वि. प्रथम पत्र नहीं है. मु. चिदानंद, हि., पद्य, आदि (-); अति चिदानंद० के उंवर संभारि गाथा-५, (पू.वि. गाथा- २ अपूर्ण से है.) २. पे. नाम. आध्यात्मिक पद, पृ. २अ, संपूर्ण. , मु. चिदानंद, पुहिं., पद्य, आदि: सोहं सोहं सोहं रटना लगी; अंति: रेम भर बुद्धि थगी री, गाथा-४. ३. पे. नाम. एकत्व भावना सज्झाय, पृ. २अ - २आ, संपूर्ण. मु. चिदानंद, पुहिं., पद्य, आदि: जगमां तेरा कोई नर देखो; अंति: चिदानंद० जगमां जूठी माया, गाथा-३. ११५६७५ सुभाषित संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पू. १, दे. (२६५१३, १८४३४-४०). For Private and Personal Use Only Page #52 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२६ www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir सुभाषित संग्रह, प्रा., मा.गु. सं., प+ग, आदि कस्मित् पीता कमल नयने अंति: ससि विना धर्म विना मानवा, लोक-२१. ११५६७७. सारस्वत व्याकरण सह टीका, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. २- १ (१) = १, पू.वि. मात्र बीच का ही एक पत्र है., दे., (२५X१३, १५X३४). सरस्वतीसूत्र- प्रक्रिया सारस्वत व्याकरण, आ. अनुभूतिस्वरूप, सं., गद्य, आदि (-); अंति: (-), (पू.वि. संज्ञापद वर्णन अपूर्ण है., वि. कहीं कहीं मूल का प्रतीक पाठ लिखा है.) सारस्वत व्याकरण-दीपिका टीका, आ. चंद्रकीर्तिसूरि, सं., गद्य, वि. १६२३, आदि: (-); अंति: (-). ११५६८२ (+) नेमराजिमती सज्झाय, संपूर्ण, वि. २०वी मध्यम, पृ. ३, प्र. वि. संशोधित. दे. (२६.५x१३, ९x१८-२२). नेमराजिमती सज्झाय, मु. कांतिविजय, मा.गु., पद्य, वि. १७७१, आदि: राणी राजुल करजोडी; अंति: सभवार रे कांतिविजे राजुल, गाथा-१५. १९५६८३ (०) १६ सती सज्झाव, अपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पृ. १. पू. वि. मात्र प्रथम पत्र है. प्र. वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., ( २६.५x१२.५, १२X३१). ३७ १६ सती सज्झाय, वा. उदयरत्न, मा.गु., पद्य, वि. १८वी आदि आदिनाथ आदे जिनवर अंति: (-), (पू.वि. गाथा १७ अपूर्ण तक है.) "" ११५६८४. पद्मावती आराधना, पूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. २, पू. वि. प्रारंभ के पत्र हैं. दे., ( २६.५X१२.५, ११X३७). पद्मावती आराधना, उपा. समवसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, वि. १७वी, आदि हिव राणी पदमावती जीव अंति: (-), (पू.वि. डाल-३ अंतिम गाथा ४३ अपूर्ण तक है.) ११५६८५ (०) पंचकल्याणक पूजा, अपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पृ. १, प्र. वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैये. (२५.५x१२.५, १२-१५X३८-४४). पार्श्वजिनपंचकल्याणक पूजा विधिसहित, पं. वीरविजय, मा.गु., पद्य, वि. १८८९, आदि: श्रीशंखेश्वर साहिबो अंति (-), (पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., ढाल -२ गाथा- १ तक है.) . ११५६८६. ज्ञानपंचमीपर्व सज्झाय, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, पू. वि. मात्र प्रथम पत्र है., जैदे., (२५x१२, १२x२७-३३). ज्ञानपंचमीपर्व सज्झाय, आ. लक्ष्मीसूरि, मा.गु., पद्य, आदि श्रीवासुपूज्य जिणेसर; अति (-). (पू.वि. ढाल ४ गाथा- २ अपूर्ण तक है.) ११५६८७. आवश्यकविचार स्तवन, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ३-२ (१ से २ ) = १, प्र. वि. कुल ग्रं. ६५, दे., (२७X१३, १३४३५-३८). ६ आवश्यक स्तवन, संबद्ध, मु. विनयविजय, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि (-) अति आराधे तेह शिव संपद लहें, ढाल-६, गाथा-४३, (पू.वि. मात्र अंतिम पत्र है., ढाल-५ गाथा-३१ अपूर्ण से है.) ११५६८८. आत्मभावना, अपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पू. ४-२ (१ से २) =२, पू.वि. बीच के पत्र हैं. जैदे. (२६४१२.५, १०X३४-४०). 1 " आत्मभावना, पुहिं.,मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. भाव - १ अपूर्ण से भाव- ६ अपूर्ण तक है.) ११५६९०. पार्श्वजिन स्तवन व महावीर स्तवन, संपूर्ण वि. १९वी मध्यम, पृ. १, कुल पे. २. प्र. वि. पत्रांक लिखा न होने के कारण अनुमानित पत्रांक दिया गया है. जैवे. (२६४१३, ९४३७-४२). १. पे. नाम. पार्श्वजिन स्तवन, पृ. १अ -१आ, संपूर्ण, पे. वि. कृति के प्रारंभ में ३ अपूर्ण गाथाओं का उल्लेख है. पार्श्वजिन स्तवन-कामितपूरण, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., पद्य, आदि पास प्रभु प्रणम् अति परमानंद विलासे रे, For Private and Personal Use Only गाथा-८. २. पे. नाम महावीर स्तवन, पृ. १आ, संपूर्ण. महावीरजिन स्तवन, मु. रंगविजय, मा.गु., पद्य, आदि प्रभुजी वीरजिणंदने अंति भवो भव तुम पाय सेव हो, गाथा ५. ११५६९१ (+#) त्रैलोक्यसार चौपाई, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १४-११ (३ से १३) = ३, पू.वि. बीच व अंत के पत्र नहीं हैं., प्र. वि. हुंडी : त्रीलोक., संशोधित मूल पाठ का अंश खंडित है, अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५.५४१२.५, १०x३३). Page #53 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ३८ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची त्रैलोक्यसार चौपाई, आ. सुमतिकीर्तिसूरि, मा.गु., पद्य, वि. १६२७, आदि: सुमतिनाथ पंचमो जिन; अंति: (-), (पू.वि. अधोलोकवर्णन गाथा-२४अपूर्ण से ऊर्ध्वलोक गाथा-२९ अपूर्ण तक व गाथा-४४ अपूर्ण से नहीं है.) ११५६९२ (#) पाशाकेवली, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २-१(१)=१, पू.वि. मात्र बीच का ही एक पत्र है., प्र.वि. मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., (२५४१३, १७X४६). पाशाकेवली-भाषा, संबद्ध, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. शकुन अंक-१४२ से ३१२ तक है.) ११५६९४. (+) शंखेसरजीनी लावणी, शांतिजिन आरती व ऋषभजिन लावणी, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ३, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., दे., (२४४१३, १६४३२). १.पे. नाम. शंखेसरजीनी लावणी, पृ. १अ, संपूर्ण, वि. १९२०, मार्गशीर्ष शुक्ल, १३ अधिकतिथि. पार्श्वजिन छंद-शंखेश्वरतीर्थ, म. पद्मविजय, पुहिं., पद्य, आदि: श्रीसंखेसर गांम बीराजें; अंति: पद्मविजय सीर नामे, गाथा-७. २. पे. नाम. शांतिजिन आरती, पृ. १आ, संपूर्ण. पुहि., पद्य, आदि: जे जे आरती शांती तुमारी; अंति: धन नरनारी तुमने पावें, गाथा-९. ३. पे. नाम, ऋषभदेव लावणी, पृ. १आ, संपूर्ण. आदिजिन लावणी-केसरियाजी, म. मूलचंद्र, पुहिं., पद्य, वि. १८६३, आदि: सुंणीयो रे बातां सदायो; अंति: घोडे लाज रखी हे तम देवा, गाथा-९. ११५६९७. (+) लग्नसुबोधीएकोत्तरी, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, पू.वि. मात्र प्रथम पत्र है., प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., दे., (२५४१३, १४४३१). लग्नसुबोधीएकोत्तरी, मु. रामचंद, मा.गु., पद्य, वि. १८०८, आदि: श्रीगुरु सारद पाय; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-२० अपूर्ण तक है.) ११५६९८. चेलणासती सज्झाय, चउसरण गीत व कायावाडी सज्झाय अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २-१(१)=१, कुल पे. ३, प्र.वि. अनुमानित पत्रांक है., जैदे., (२६४१२.५, ११४३१). १. पे. नाम. चेलणासती सज्झाय, पृ. २अ, अपूर्ण, पू.वि. प्रथम पत्र नहीं है. उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: समयसुंदर० भव तणो पार, गाथा-७, (पू.वि. गाथा-५ अपूर्ण से है.) २. पे. नाम, चउसरण गीत, पृ. २अ, संपूर्ण. उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, आदि: तुमने चार सरणा हुज्य; अंति: समैसुंदर० मंगलकारो जी, गाथा-३. ३. पे. नाम. कायावाडी सज्झाय, पृ. २अ-२आ, संपूर्ण. म. पद्मतिलक, मा.गु., पद्य, आदि: काया रे वाडी कारिमी; अंति: (-), (अपूर्ण, पृ.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., गाथा-४ तक लिखा है.) ११५७०० (#) औपदेशिक साखी संग्रह व सभाषित श्लोक, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २,प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, ., (२५४१३, १५४३९). १.पे. नाम. औपदेशिक साखी संग्रह-दृष्टांतगर्भित, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. मा.गु., पद्य, आदि: जेशी जो की उदय है ते सोवे; अंति: फरता फरें परजापतना घोडा, गाथा-१८. २. पे. नाम, सुभाषित श्लोक, पृ. १आ, संपूर्ण.. सभाषित श्लोक संग्रह , मा.गु.,सं., पद्य, आदि: आस्या बंधते लोकानां; अंति: गुरू पद ग्रहy जाग्रत थई, श्लोक-३. ११५७०३. अष्टमीतिथिपर्व स्तवन, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, पू.वि. मात्र प्रथम पत्र है., जैदे., (२६.५४१२, ८४६१). अष्टमीतिथिपर्व स्तवन, मु. कांतिविजय, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: हां रे माहरे ठाम धरमना; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-८ अपूर्ण तक है.) ११५७०४. शत्रुजयतीर्थउद्धार रास, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, पृ.वि. मात्र प्रथम पत्र है., प्र.वि. हुंडी:सेजउद्धारप., जैदे., (२६.५४१३, ११४३६). For Private and Personal Use Only Page #54 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२६ www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ३९ शत्रुंजयतीर्थउद्धार रास, मु. नयसुंदर, मा.गु., पद्य, वि. १६३८, आदिः विमल गिरिवर विमल, अंति: (-), (पू.वि. डाल-३ गाथा-१५ अपूर्ण तक है., वि. ढाल - ३ से गाथा क्रमश: हैं . ) ११५७०५. आषाढाभूतिमुनि सज्झाय, अपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १, पू. वि. मात्र प्रथम पत्र है., जैदे., (२७X१३, १८x४३). आषाढाभूतिमुनि सज्झाय, मु. भावरत्न, मा.गु, पद्य, वि. १८वी, आदि: श्रीश्रुतदेवी हिइ घरी; अति: (-), (पू.वि. ढाल-५ गाथा-१ अपूर्ण तक है.) ११५७०६. २४ जिनकल्याणक स्तवन, अपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पू. ३-१ (२) -२, जैदे., (२७४१३, १२४३३). " २४ जिनकल्याणक स्तवन, पंन्या, पद्मविजय, मा.गु., पद्य, वि. १८३६, आदि: प्रणमी जिन चोवीशने अंति: इम थुआ श्रीजिनरायो रे, ढाल-७, गाथा-४९, (पू. वि. ढाल २ गाथा-८ अपूर्ण से ढाल ४ गाथा-९ अपूर्ण तक नहीं है.) ११५७०७. शाश्वतप्रतिमा विचार, अपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १, जैवे. (२६.५x१२, १५X३३-३६) शाश्वतप्रतिमा विचार, मा.गु., गद्य, आदि: पहिलो सुधर्मा देवलोक अने; अंति: (-), (पू.वि. प्रारंभ के पत्र हैं., कुंडल पर्वत विषय विचार अपूर्ण तक है.) ११५७११. पंचतीर्थी चैत्यवंदन, साधारणजिन स्तुति प्रार्थना व सीमंधरस्वामी नमस्कार, संपूर्ण, वि. १९९७, पौष कृष्ण, १२, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. ३, पठ. श्राव. पूनमचंद, श्राव. मेघराज, प्र.ले.पु. सामान्य, दे., (२५X१३, १५X३५). १. पे. नाम. पंचतीर्थी चैत्यवंदन, पृ. १अ १आ, संपूर्ण. पंचतीर्थ चैत्यवंदन, उपा. क्षमाकल्याण, मा.गु., पद्य, आदि जै जै नाभिनरिंद नंद; अति: कल्याण गण आप अवचिलराज, गाथा-१५. २. पे नाम साधारणजिन स्तुति प्रार्थना संग्रह, पू. १आ, संपूर्ण, प्रा., मा.गु., सं., पद्य, आदि दर्शनं देव देवस्य अंति जिनेंद्र तव दर्शनात् गाधा ८. ३. पे. नाम. सीमंधरस्वामी नमस्कार, पू. १आ, संपूर्ण आदिजिन सीमंधर जिन स्तुति, मा.गु., पद्य, आदि जै जै त्रिभुवन आदिनाथ; अंतिः प्रति करूं प्रणाम, गाथा-३११५७१३. वैरसिंहकुमार चौपई, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १३-१२ (१ से १२) = १, पू.वि. मात्र बीच का ही एक पत्र है., दे., (२६×१२.५, १४४४०). वैरसिंहकुमार चौपई- जीवदयाशील विषये, पंन्या. मोहनविमल, मा.गु., पद्य, वि. १७५८ आदि (-); अंति: (-), (पू.वि.] ढाल १७ दोहा-६ अपूर्ण से डाल १८ गावा-४ अपूर्ण तक है.) ११५७१४ (-) औपदेशिक सज्झाव संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, प्र. वि. प्रतिलेखन पुष्पिका अवाच्य है. अशुद्ध पाठ., दे., (२५X१२.५, १४-१९×२६-२९). १. पे. नाम औपदेशिक सज्झाय, पृ. १अ १आ, संपूर्ण. मु. जैमल ऋषि, मा.गु., पद्य, वि. १८६२, आदि लाख पतालीस जोजन पली पत्नी अंतिः न छ पद नार बाणो प्यारो, गाथा - १३. २. पे नाम औपदेशिक सज्झाय, पू. १आ, संपूर्ण. मा.गु., पद्य, आदि: सुणउ सुणउ चित चितलाए; अंति: ज्यासु जनम मरण मिट जाए, गाथा-९. ११५७१७ (-) औपदेशिक बोल- गर्भावास दुःख, संपूर्ण वि. २०वी श्रेष्ठ, पृ. २, प्रले. फूलचंद पाटीदार, अन्य. सा. जडावबाई, " प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. अशुद्ध पाठ. वे. (२७४१३ १३-१६४३५-४२). " औपदेशिक बोल-गर्भावास दुःख, मा.गु., गद्य, आदि: अरे जीव तूं कीहांथी; अंति: जीव धरम करसे ते सुखी थासे. ११५७२६. () आदिजिन स्तवन, अपूर्ण, वि. २०वी मध्यम, पृ. १. पू. वि. मात्र प्रथम पत्र है. प्र. वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे. (२६१२.५, ६x२०-२३). आदिजिन स्तवन, मु. रामविजय, मा.गु., पद्य, आदि आज भला दिन उगे जी; अंति (-), (पू.वि. गाथा-४ अपूर्ण तक है.) ११५७३५. मौनएकादशीगणाण स्तवन, अपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ३- २ (१ से २ ) = १, जैदे., ( २६.५X१३, १०X३०). For Private and Personal Use Only Page #55 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची मौनएकादशीपर्व स्तवन, मु. न्यायसागर, मा.गु., पद्य, आदिः (-); अंति: दिनदिन वधते वान रे, ढाल-२, गाथा-१८, (पू.वि. ढाल-१ गाथा-६ अपूर्ण से है.) ११५७३७. प्रभातकालीन सामायिक की विधि व संध्या सामायिक विधि, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, जैदे., (२५.५४१३, १८४४४-४९). १.पे. नाम. प्रभातकालीन सामायिक की विधि-खरतरगच्छीय, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. प्रा.,मा.गु.,रा., गद्य, आदि: श्रावक बे घडी पाछिली राते; अंति: (१)सज्झाय करेह एहवो कहे, (२)ध्यान वरी पछै पडकमणो करे. २. पे. नाम. संध्या सामायिक विधि-खरतरगच्छीय, पृ. १आ, संपूर्ण.. ___ संबद्ध, मा.गु., गद्य, आदि: तिहा पाछले पहुर धर्मशाला; अंति: गुरु कहे संदिसावेह. ११५७३८. (+#) स्नात्र विधि व नमस्कार महामंत्र छंद, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, प. ६-२(१ से २)=४, कल पे. २, प्र.वि. संशोधित. मूल पाठ का अंश खंडित है, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५.५४१३, १२४३६). १.पे. नाम. स्नात्र विधि, पृ. ३अ-६आ, अपूर्ण, पृ.वि. अंत के पत्र हैं., ले.स्थल. पालनपुर. स्नात्रपूजा, श्राव. देपाल भोजक, प्रा.,मा.गु., पद्य, वि. १६वी, आदिः (-); अंति: उतारी राजा कुमारपाले, कुसुमांजलि-५, (पू.वि. कुसुमांजलि पूजा अपूर्ण से है.) २. पे. नाम, नमस्कार महामंत्र छंद, पृ. ६आ, अपूर्ण, पू.वि. प्रारंभ के पत्र हैं. उपा. कुशललाभ, मा.गु., पद्य, वि. १७वी, आदि: वंछितपुरण विविध परे; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-६ अपूर्ण तक है.) ११५७४१. औपदेशिक सवैया, भूमी भेद विचार व नेमराजिमती पदादि संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ५, जैदे., (२४.५४१३, १५४७-३६). १. पे. नाम. औपदेशिक सवैया, पृ. १अ, संपूर्ण. श्राव. सुंदरलाल कवि, पुहि., पद्य, आदि: धिग काजल घाल निहाल चली; अंति: पानी की गंज में आग लगाइ, सवैया-३. २. पे. नाम. भूमि भेद विचार, पृ. १आ, संपूर्ण. सं., गद्य, आदि: शुभेच्छा विचारणा तनमानसा; अंति: शब्दश्च न च स्पर्शस्तथारस. ३. पे. नाम. नेमराजिमती पद, पृ. १आ, संपूर्ण. मु. जयरामजी, मा.गु., पद्य, आदि: हे सलुनी सांवरी मूरत देखत; अंति: उतारो प्रभु छइ आग्रहीरी, गाथा-५. ४. पे. नाम, श्रेयांसजिन पद, पृ. १आ, संपूर्ण.. मु. गुणविलास, पुहिं., पद्य, आदि: हम पर मेहर करोने महाराज; अंति: लीज्यो पास बुलाय, गाथा-४. ५. पे. नाम. आध्यात्मिक सवैया, पृ. १आ, संपूर्ण. पुहिं., पद्य, आदि: बरषत० नीक बान नेनतो; अंति: रानी में जानकी कर आनी है, सवैया-१. ११५७४२ (#) औपदेशिक सज्झाय, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं.,प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५४१२.५, ११४३१). औपदेशिक सज्झाय, पं. धीरविमल गणि, मा.गु., पद्य, आदि: सुमति सदा सुकुलिणी; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-१३ अपूर्ण तक है.) ११५७४३. (#) कल्याणमंदिर स्तोत्र की कथा व सज्झाय संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २, कुल पे. ३, प्र.वि. मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., (२४४१२.५, १३४३१). १. पे. नाम, कल्याणमंदिर स्तोत्र की कथा, पृ. १अ-२अ, संपूर्ण, वि. १८६७, फाल्गुन शुक्ल, ४, मंगलवार, ले.स्थल. कोटा, प्रले. मु. पेमचंद, प्र.ले.पु. सामान्य, पे.वि. हुंडी:कथा. कल्याणमंदिर स्तोत्र-कथा, मा.गु., गद्य, आदि: ओजणी नाम नगरी नै विषइ; अंतिः स्तवा ए कथानक जाणवो. २.पे. नाम. औपदेशिक सज्झाय, पृ. २अ, संपूर्ण, पे.वि. यह कृति इस प्रत के साथ एक से अधिक बार जुड़ी हुई है. For Private and Personal Use Only Page #56 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२६ औपदेशिक सज्झाय-परनारी परिहार, मु. जिनहर्ष, मा.गु., पद्य, आदि: सीख सुणो पिउ माहरी रे; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., गाथा-१ तक लिखा है.) ३. पे. नाम. औपदेशिक सज्झाय, पृ. २आ, संपूर्ण, पे.वि. यह कृति इस प्रत के साथ एक से अधिक बार जुड़ी हुई है. पदेशिक सज्झाय-परनारी परिहार, मु. जिनहर्ष, मा.गु., पद्य, आदि: सीख सुणो पिउ माहरी रे; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., गाथा-३ अपूर्ण तक लिखा है.) ११५७४७. माणिभद्रवीर स्तोत्र, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, दे., (२२.५४१२.५, १३४३७). माणिभद्रवीर स्तोत्र, म. धरणीधर कवि, सं., पद्य, आदि: गाढं दोर्भिश्चतुर्भि; अंति: (-), (अपूर्ण, पृ.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., श्लोक-६ तक लिखा है.) ११५७४८. (+) एकादशीनी सज्झाय, संपूर्ण, वि. १८४५, ज्येष्ठ कृष्ण, १४, श्रेष्ठ, पृ. १, प्रले. श्राव. खुशालचंद मलुकचंद वसा, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२३४१२, १४४३१). एकादशीतिथि सज्झाय, मु. विशालसोमसूरि शिष्य, मा.गु., पद्य, वि. १७वी, आदि: गोयम पूछे वीरने सुणो; अंति: सुरूप सज्झाय भणी, गाथा-१४. ११५७५०. नवपद पूजा, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ.१, पृ.वि. मात्र प्रथम पत्र है., दे., (२२४१३, १४४२८). नवपद पूजा, उपा. यशोविजयजी गणि, प्रा.,मा.गु.,सं., पद्य, आदि: उपन्नसन्नाणमहोमयाणं; अंति: (-), (पू.वि. ढाल-१ गाथा-२ अपूर्ण तक है.) ११५७५१. जैमलजीरा गुणा री ढाल, संपूर्ण, वि. १८८०, चैत्र शुक्ल, ३, श्रेष्ठ, पृ. ३, ले.स्थल. नागौर, प्रले. मु. तीसचंद ऋषि; पठ. श्राव. उमाजतुजी, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. हुंडी:पूजजेयमलजी. पूजजी प्रसादे., जैदे., (२३.५४१३, १५४२६). जैमलऋषि गुण वर्णन, मु. रायचंद ऋषि, मा.गु., पद्य, वि. १८५२, आदि: अरिहंत सिद्धने साध गुर; अंति: इणारी कणी में कुमी न कोय, ढाल-२, गाथा-५०. ११५७५२. माकणनी सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, जैदे., (१९x१२.५, १२४२३). औपदेशिक सज्झाय-खटमल, मु. माणेक, मा.गु., पद्य, आदि: मांकणनो चटको दोहीलो एतो; अंति: मुनि० राधनपुर में गवाउरे, गाथा-८. ११५७५३. शांतिकर स्तोत्र व भयहर स्तोत्र, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, प. ३, कुल पे. २, ले.स्थल. खिरालु, प्रले. मु. विद्याविजय; पठ. मु. रवचंद, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२४४१३, ११४३०). १. पे. नाम. शांतिकर स्तोत्र, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. संतिकरं स्तोत्र, आ. मनिसंदरसूरि, प्रा., पद्य, वि. १५वी, आदि: शांतिकर शांतजिनं जगसरणं; अंति: वरीयो सेलो सीसं पीयं पढम, गाथा-१४. २. पे. नाम. भयहर स्तोत्र, पृ. १आ-३आ, संपूर्ण. नमिऊण स्तोत्र, आ. मानतुंगसूरि, प्रा., पद्य, आदि: नमिऊण पणय सुरगण; अंति: नासइ तस्स रेण, गाथा-२४. ११५७५५. कर्पूरप्रकर-रोहिणेयचोर कथा, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २, पू.वि. प्रारंभ के पत्र हैं., जैदे., (२०४१३, १३४२०). कर्पूरप्रकर-रोहिणेयचोर कथा, संबद्ध, सं., पद्य, आदि: द्वेषेपि बोधबचनः श्रवणं; अंति: (-), (पू.वि. श्लोक-३३ अपूर्ण तक है.) ११५७५६. (+#) तिजयपहुत्त स्तोत्र सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ. मूल व टीका का अंश नष्ट है, जैदे., (२४४१२.५, ८४४०). तिजयपहत्त स्तोत्र, आ. मानदेवसूरि, प्रा., पद्य, आदि: तिजयपहुत्तपयासय अट्ठ; अंति: निभंतं निच्चमच्चेह, गाथा-१४. तिजयपहुत्त स्तोत्र-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: त्रण जगना प्रभुतानां; अंति: अचीत करो ए तावता पूजा करो. ११५७५७. (#) आदिजिन स्तवन व २४ जिन आरती, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २-१(१)=१, कुल पे. २, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२४.५४१२, ९४३०). १. पे. नाम. आदिजिन स्तवन, पृ. २अ-२आ, संपूर्ण. म. सकलविजय, मा.गु., पद्य, आदि: सरसति सामण विनवू रे; अंति: सकलविजय कहे साधुतो, गाथा-७. For Private and Personal Use Only Page #57 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra ४२ www.kobatirth.org कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची २. पे नाम. २४ जिन आरती, पृ. २आ, अपूर्ण, पू.वि. प्रारंभ के पत्र हैं. चोविशतीर्थंकर आरती, मा.गु., पद्य, आदि: पहेली आरती प्रथम, अंति: (-), (पू. वि. नेमिजिन आरती तक है.) ११५७५८. अष्टापद स्तवन व पाक्षिकचौमासीसंवत्सरीतप आलापक, संपूर्ण वि. १९वी मध्यम, पू. १, कुल पे. २, जैदे., (२४.५X१२.५, १६x४०). १. पे. नाम. अष्टापद स्तवन, पृ. १आ, संपूर्ण. अष्टापदतीर्थ स्तवन, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: अष्टापद जिनजात्र करणकुं; अंति: अहनिस सुरनर नायक गाजे, गाथा-८. २. पे. नाम. पाक्षिकचौमासीसंवत्सरीतप आलापक, पृ. १आ, संपूर्ण, पे. वि. यह कृति किसी अन्य प्रतिलेखक द्वारा लिखी गई है. Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir संबद्ध, प्रा.,मा.गु., गद्य, आदि: इच्छाकारेण संदिसह; अंति: सिज्झाय यथाशक्ति. ११५७५९ (+) अर्हन्नामसहस्र समुच्चय, अपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १५-१४(१ से १४ ) = १. पू. वि. मात्र बीच का ही एक पत्र है., प्र. वि. हुंडी सहस्र, संशोधित. जैवे. (२५.५x१९ १३x४१). अर्हन्नामसहस्र समुच्चय, आ. हेमचंद्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., पद्य, वि. १२वी - १३वी, आदि: (-); अंति: (-), (पू. वि. प्रकाश-६ श्लोक -९ अपूर्ण से प्रकाश ९ श्लोक-१ अपूर्ण तक है.) ११५७६२. होलिकापर्व कथा, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. २, जैदे. (२४४१६.५, १७३२). होलिकापर्व कथा, सं., पद्य, आदि: वर्द्धमानं जिनं; अंति: विज्ञानं वाचनोचितः, श्लोक ५१. ११५७६३. शांतिपाठ महाअर्घ्यविधान व पंचतीर्थ स्तवनादि संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. २, कुल पे. ४, दे., 2 (२१.५X१७, १३X३०-३३). १. पे नाम, शांतिपाठ पृ. १ अ १आ, संपूर्ण, पे.वि. हुंडी शांतिपा. प्रा. सं., प+ग, आदि शांतिजिन शशिनिर्मलवक्त्र, अति साहूणं इत्यादि जाप्यदीयते श्लोक-१६. २. पे. नाम. महाअर्घ्यविधान, पृ. १आ-२आ, संपूर्ण, पे. वि. हुंडी : समू०अ. अप.,पुहिं., रा., प+ग., वि. १९६३, आदि: प्रभु जी अष्टद्रव्य जी; अंति: अर्घ निर्वपामीति स्वाहा. ३. पे. नाम. पंचतीर्थ स्तवन, पृ. २आ, संपूर्ण. पुहि., पद्य, आदि: तुम तरण तारण विघनवार, अति: म्हारो आवागमन मिटाइये, गाथा- ३. ४. पे. नाम, विसर्जन पाठ, पू. २आ, संपूर्ण. सं., पद्य, आदि: ज्ञानतोज्ञानतो वापि; अंति: यांतु यथास्थितिम्, श्लोक-३. १९५७६४. रमल शुकनावली, संपूर्ण वि. १९वी मध्यम पू. ३, जैदे., ( २३४१६.५, १५X१८-२४). " रमल शुकनावली, पुहिं., गद्य, आदि: अरे यार बहुत दिन चिंता; अंति: रह्या सर्व बात भली होइ. ११५७६६. (+०) बृहत्शांति स्तोत्र, अपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पृ. १, प्र. वि. पदच्छेद सूचक लकीरें. मूल पाठ का अंश खंडित है, जैवे., (२३.५X१६.५, १६x२६). 3 बृहत्शांति स्तोत्र-तपागच्छीय, सं., प+ग., आदि: भो भो भव्याः शृणुत; अंति: (-), (पू.वि. प्रारंभ के पत्र हैं., "दुर्भिक्षकां तारेषु दुर्गमा" पाठ अपूर्ण तक है.) ११५७६८. (#) अष्टगंध नाम व पार्श्वजिन निसाणी, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, प्र. वि. पत्रांक १x२= १. अक्षरों की स्वाही फैल गयी है, वे. (२४.५४१६, २८४२४). १. पे नाम, अष्टगंध नाम, पू. १अ संपूर्ण. मा.गु., गद्य, आदि: हींगणु१ कपूर २ कस्तूरी ३; अंति: गोउलोचन७ छडछडीलो८, (वि. यंत्र व विधिसहित.) २. पे नाम, पार्श्वजिन निसाणी घग्घर. पू. १-१ आ. संपूर्ण. १आ, For Private and Personal Use Only मु. ,जिनहर्ष, पुहिं, पद्य, आदि: सुखसंपत्तिदायक सुरनर, अति (-) (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण.. गाथा १५ तक लिखा है.) Page #58 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२६ ११५७६९ (०) हरिवंशपुराण की भाषा, अपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पृ. ५२-४९ (१ से ४९) = ३, पू.वि. बीच के पत्र हैं.. प्र.वि. हुंडी ह.भा., अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५X१६.५, ११x२१-२४). יי Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हरिवंशपुराण- भाषा, भाव. खुशालचंद्र, मा.गु., पद्य, वि. १७८०, आदि (-) अति (-) (पू.वि. संधि ९ गाथा ७९ अपूर्ण से संधि १० गाथा ११३ अपूर्ण तक है.) ११५७७८. सुगंधदशमी कथा, संपूर्ण, वि. १९७४, भाद्रपद शुक्ल, २, मध्यम, पृ. ४, ले. स्थल. अलवर, प्रले. रामसहाय पंडित, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. हुंडी: सुगं०. वे. (२१.५x१६.५, ११४३२). सुगंधदशमी व्रत कथा, क. महाचंद्र, पुहि., पद्य, वि. १४१९, आदि वर्द्धमान जिन चरण नित नमि; अंतिः जिनवर देव चरण सिर लवै, गाथा- ४५. ११५७७९ (४) गौतमस्वामी रास व औपदेशिक कवित्त, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ८-४(१ से ४)-४, कुल पे, २, ले. स्थल. कंटालिया, प्रले. ग. सुमतिविजय (गुरुग. शुभविजय): गुपि. ग. शुभविजय (गुरु ग. माणिक्यविजय) ग. माणिक्यविजय (गुरुग. हर्षविजय) ग. हर्षविजय पठ. पं. जसवंत, प्र.ले.पु. मध्यम. प्र. वि. पत्रांक लिखा न होने के कारण अनुमानित पत्रांक दिवा गया है.. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैवे. (२१.५४१६.५, १५४२५-३०). "" १. पे. नाम. गौतमस्वामी रास, पृ. १अ ४आ, संपूर्ण, वि. १७५३, चैत्र कृष्ण, १३. उपा. विनयप्रभ, मा.गु., पद्य वि. १४१२, आदि वीरजिणेसर चरणकमल कमला, अंतिः वृद्धि कल्याण करो, गाथा-५१. २. पे नाम औपदेशिक कवित्त, पू. ४आ, संपूर्ण वि. १७५३, आषाढ़ कृष्ण, १२. मा.गु., पद्य, आदि: समरि एक अरिहंत रयण निद्रा; अंति: पोहोर रातदिवस राखो हूदे, गाथा - २. १९५७८०. अष्टक प्रकरण अग्निकारिकाष्टक सह टीका, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, प्र. वि. पत्रांक १४४=१. दे., (२३.५X१६, ८x४० ). अष्टक प्रकरण- हिस्सा अग्निकारिकाष्टक, आ. हरिभद्रसूरि, सं., पद्य, आदि कर्मो धनं समाश्रित्य दृढा, अंति: (-), (अपूर्ण, पू. वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण, श्लोक-३ तक लिखा है.) अष्टक प्रकरण- हिस्सा अग्निकारिकाष्टक की टीका, सं., गद्य, आदि कर्मज्ञानावरणादिकं मूल अंति (-), अपूर्ण, पू. वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण, ११५७८९. सरस्वतीदेवी छंद - अजारीतीर्थ, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, दे., ( २४x१५, १३x२१). ४३ सरस्वतीदेवी छंद-अजारीतीर्थ, मु. शांतिकुशल, मा.गु., पद्य, आदि: सरस वचन समता मन आणी अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., गाथा १० अपूर्ण तक लिखा है., वि. कृति अपूर्ण होने के बाद भी अंत में "इति" लिखा है.) ११५७९१ (+) ६५ यंत्र कोष्टक, मंत्र तंत्र यंत्र संग्रह व सरस्वती विद्योपासना विधि आदि संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ५. प्र. वि. संशोधित. दे. (२६४१४.५, १६५३९). 1 For Private and Personal Use Only १. पे. नाम. ६५ यंत्र कोष्टक, पृ. १अ, संपूर्ण. पंचषष्ठि यंत्र विचार, मा.गु., प+ग, आदि (-); अति (-), (वि. पॅसठिया यंत्र का कोष्टक दिया है.) २. पे. नाम. मंत्र तंत्र यंत्र संग्रह, पृ. १अ, संपूर्ण. मंत्र-तंत्र-यंत्र संग्रह, प्रा., मा.गु. सं., प+ग, आदि (-); अतिः कुरु संग्रामे जपं. " " ३. पे नाम. सरस्वती विद्योपासना विधि, पृ. १अ १आ, संपूर्ण सरस्वतीदेवी विद्योपासना विधि, सं., गद्य, आदिः ॐ ह्रीं अर्ह णमो कुठ; अंतिः सिद्धि सिघ्नं लभेनरः. ४. पे नाम, औषधवैद्यक संग्रह, पृ. ९आ, संपूर्ण. औषधवैद्यक संग्रह*, पुहिं., प्रा., मा.गु., सं., गद्य, आदि: नवनाथ नामा चूर्ण गोरख; अंति: सिद्धा अग्यानी ग्यानी. ५. पे नाम. २४ जिन स्तोत्र, पू. १आ, संपूर्ण, पे.वि. अंत में विनयविजयजी कृत लोकप्रकाश अंतर्गत विषय वर्णित है. २४ जिन स्तोत्र- पंचषष्टियंत्रगर्भित, मु. सुखनिधान, सं., पद्य, आदि आदौ नेमिजिनं नौमि अंतिः मोक्षलक्ष्मी निवासं, श्लोक- ८. Page #59 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ४४ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ११५७९२. ग्यानपच्चीसी, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, प्रले. मु. प्रागजी (गुरु मु. धनजी); गुपि. मु. धनजी (गुरु पं. परमानंदजी); पं. परमानंदजी, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२१४१३, २१४४४). ज्ञानपच्चीसी, जै.क. बनारसीदास, पुहिं., पद्य, वि. १७वी, आदि: सुरनर त्रिजग जोनिमां नरग; अंति: उदय करण को हेतु, गाथा-२५. ११५७९३. (#) सुबाहुकुमार सज्झाय, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. २, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२०.५४१५, १०४३२). सुबाहुकुमार सज्झाय, मु. सौभाग्यविजय, मा.गु., पद्य, वि. १८९३, आदि: हवे सुबाहुकुमार एम; अंति: विजय गुरु संजम आदर्यु, गाथा-१५. ११५७९४. भैरुजी छंद, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, जैदे., (२३४१५.५, १६४३२). भैरुजी छंद, मा.गु., पद्य, आदि: वाटे घाटे तु वसि वने; अंति: देव जय भुजबल राया, (वि. अंत में गोमटस्वामीजी लिखा ११५७९९ (#) अजितशांति स्तवन व पारसनाथ स्तवन, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. २, कुल पे. २, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२०४१५.५, २१४३२-४०). १.पे. नाम. अजितशांति स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण, वि. १७५९, ज्येष्ठ कृष्ण, प्रले. मु. क्षेमचंद्र; पठ. श्राव. चहत्थ (पिता श्राव. भागचंद शाह); गुपि. श्राव. भागचंद शाह, प्र.ले.पु. सामान्य. अजितजिन स्तवन, आ. पार्श्वचंद्रसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: आदि अजित श्रीशांतिनो; अंति: पूज्यपासचंदसूरि हरखै भणिय, गाथा-९. २. पे. नाम. पारसनाथ स्तवन, पृ. १आ-२आ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तवन-फलवर्द्धि, म. उदयचंद, मा.गु., पद्य, वि. १७२३, आदि: फलवधिपुर पति नयण देखी; अंति: गावता वंछित होइ प्रयास, ढाल-१४, गाथा-४१. ११५८०४. (#) पल्यव्रत विधि व ३४ अतिसय, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २-१(१)=१, कुल पे. २, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२२४१५, २१४२४-४२). १. पे. नाम. पल्यव्रत विधि, पृ. २अ, अपूर्ण, पृ.वि. प्रथम पत्र नहीं है. मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: ७२ त्यामैवेला ६ तेला ४, (पू.वि. वैशाख मास विधि अपूर्ण से है.) २. पे. नाम. ३४ अतिसय, पृ. २अ, संपूर्ण. ३४ अतिशय नाम, मा.गु., गद्य, आदि: निस्वेदता १ निर्मलता २; अंति: मंगल द्रव्य देव करै ३४, अंक-३४, (वि. अंत में काम्य प्रयोग यंत्र दिया है.) ११५८०५ (+#) २४ ठाणा १४ गुणस्थानक यंत्र, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १,प्र.वि. संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२३४१५, १६४४४). २४ स्थानक मार्गणाद्वार कोष्टक, मा.गु., को., आदिः (-); अंति: (-). ११५८०६. भक्तामर स्तोत्र की टीका का पद्यानुवाद, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १२-१०(१ से १०)=२, प्र.वि. हुंडी:भक्तां०., जैदे., (२६४१४.५, ९४३५). भक्तामर स्तोत्र-टीका व कथा का पद्यानवाद, श्राव. विनोदीलाल, पुहिं., पद्य, वि. १७४८, आदिः (-); अंति: (-), (पू.वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं व प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., गाथा-१३३ अपूर्ण से है व गाथा-१५५ तक लिखा है.) ११५८०७. शांतिनाथजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ३, जैदे., (२४४१४.५, १७४३०). शांतिजिन स्तवन, मु. जैनेंद्रसागर, मा.गु., पद्य, आदि: अचिरानंदन प्रणमीये; अंति: जिनेंद्रसागर गुणगाया, गाथा-२५. ११५८०८. गौतमस्वामी गहंली, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, प्रले. श्राव. कंकुचंद जेठीराम शा., प्र.ले.प. सामान्य, दे., (२१.५४१४, १२४३०). गौतमस्वामी गहंली, म. दीपविजय, मा.गु., पद्य, आदि: जी रे कांमनी कहे सुण; अंति: वीर सासन सिणगार रे, गाथा-८. For Private and Personal Use Only Page #60 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२६ १९५८१२. श्रद्धपाक्षिक अतिचार व संवत्सरी तप, संपूर्ण, वि. १९९६, चैत्र कृष्ण, १३, मध्यम, पू. ३, कुल पे. २, प्रले. मु. उमेदसागर, प्र.ले.पु. सामान्य, दे. (२४४१४.५, १६४३१). १. पे. नाम. श्राद्धपाक्षिकअतिचार, पृ. १अ - ३अ, संपूर्ण. Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir श्रावकपाक्षिक अतिचार-तपागच्छीय, संबद्ध, प्रा., मा.गु., गद्य, आदि: नाणंमि दंसणंमि, अंति: करी मिच्छामि दुक्कडं. २. पे. नाम. सवंत्सरी तप, पृ. ३अ - ३आ, संपूर्ण. पाक्षिकचौमासीसंवत्सरीतप आलापक, संबद्ध, प्रा. मा. गु., गद्य, आदि: चउत्थेण एक उपवास; अंति: यथासक्ति करी तप पोहचाडवो. १९५८१४. गंगीया अणगारना भांगा संख्या, अपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पू. २. पू. वि. अंत के पत्र नहीं हैं, जैदे., (२२.५x१४.५, २०x४३). " भगवतीसूत्र-हिस्सा शतक ९ उद्देश ३२ गत गांगेयभांगा का बालावबोध, मा.गु., गद्य, आदि: भगवती शतक ९मो उद्देशो ३२ अंति (-), (पू.वि. १९६० भांगा तक है.) ११५८१५. इखुकारराजा सज्झाय, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. २- १ (१) = १, दे., ( २४.५X१४.५, १३३५). कमलावतीरानी इक्षुकारराजा भृगुपुरोहित सज्झाय, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: शिव सुख पाम्यो सार, गाथा-३४, (पू. वि. गाथा १६ अपूर्ण से है.) ११५८१६. चेलणासती सज्झाय व औपदेशिक सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, जैदे., (२१X१५, १३X२५). १. पे. नाम. चेलणासती सज्झाय, पृ. १अ संपूर्ण. उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, आदि: वीर वांदी वलतां थकां अति समयसुंदर भव तणो पार, गाथा ६. २. पे नाम औपदेशिक सज्झाय, पृ. १अ १आ, संपूर्ण, औपदेशिक सज्झाय-हितशिक्षा, मु. सहजसुंदर, मा.गु., पद्य, आदि: गुण छे पुरा रे अरिहंत तणा; अंति: सहजसुंदर० भणे उचारे बोल, गाथा-६. ४५ १९५८१८. (d) पंचपरमेष्टिमहामंत्र स्तवन, जैनरक्षा स्तोत्र व आत्मरक्षा स्तोत्र, संपूर्ण, वि. २०वी मध्यम, पृ. १, कुल पे. ३, प्रले. आ. जिनचंद्रसूरि (गुरु भट्टा. क्षमारत्नसूरि); गुपि. भट्टा. क्षमारत्नसूरि, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. मूल पाठ का अंश खंडित है, दे., (२२.५X१४.५, १६४५० ). २. पे नाम. पंचपरमेष्टिमहामंत्र स्तवन, पृ. १अ संपूर्ण. पंचपरमेष्टि स्तोत्र, आ. जिनप्रभसूरि, सं., पद्य, आविः स्वः श्रियः श्रीमदर्हतः; अंति ते भवंति जिनप्रभा श्लोक ५. २. पे. नाम, जैनरक्षा स्तोत्र. पू. १अ १आ, संपूर्ण, वि. १९७३ श्रावण शुक्ल, १. जिनरक्षा स्तोत्र, सं., पद्य, आदि: श्रीजिनं भक्तितो; अंति: संपदश्च पदे पदे, श्लोक-१७. ३. पे. नाम. आत्मरक्षा स्तोत्र, पृ. १आ, संपूर्ण वज्रपंजर स्तोत्र, सं., पद्य, आदि परमेष्टि नमस्कारं सारं अंति: व्याधिराधिश्चापि कदाचिन, श्लोक ८. ११५८२०. भक्तामर स्तोत्र की कथा, पार्श्वजिन स्तवन व ४८ लब्धि मंत्र- लक्ष्मीप्राप्ति, अपूर्ण, वि. २०बी, मध्यम, पृ. ४-३ (१ से ३) = १, कुल पे. ३, प्र. वि. पत्रांक लिखा न होने के कारण अनुमानित पत्रांक दिया गया है. दे., (२५४१५, १५४२७-३२). १. पे. नाम. भक्तामर स्तोत्र की कथा, पृ. ४अ ४आ, अपूर्ण, पू. वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं. , भक्तामर स्तोत्र-कथा, मा.गु., गद्य, आदि (-) अति (-) (पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण श्लोक-१२ की कथा अपूर्ण से है व श्लोक-१३ की कथा तक लिखा है.) २. पे. नाम. गोडीपार्श्वजिन स्तवन, पृ. ४आ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तवन - गोडीजी, आ. आणंदसोमसूरि, मा.गु., पद्य, आदि आजुनी घडी रे बेनी आजुनी, अंति: धंग घणी माथे गोडी धणी, गाथा-७. ३. पे. नाम. ४८ लब्धि मंत्र - लक्ष्मीप्राप्ति, पृ. ४आ, संपूर्ण. ४८ लब्धि मंत्र, प्रा., गद्य, आदि ॐ ह्रीं आमोसही लद्धिणं; अति लक्ष्मी प्राप्ति हुई. , For Private and Personal Use Only Page #61 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ११५८२१ (+#) रमल शुकनावली, संपूर्ण, वि. १८१९, वैशाख शुक्ल, ९, मध्यम, पृ. ३, ले.स्थल. चाणोदनगर, प्रले. मु. सुजाण, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२४४१५, १८४३९). रमल शुकनावली, पुहि., गद्य, आदि: लहीयान १ कुबजतुदाखील; अंति: है भला होयगा सहीकर मानणा. ११५८२५. (#) संसारदावानल स्तुत्यादि संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १६-१४(१ से ९,११ से १५)=२, कुल पे. ४, प्र.वि. हंडी:पडि०., अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५.५४१३.५, ११४२३). १. पे. नाम. संसारदावा स्तुति, पृ. १०अ, अपर्ण, पृ.वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं. संसारदावानल स्तुति, संबद्ध, आ. हरिभद्रसूरि, प्रा.,सं., पद्य, आदि: (-); अंति: देहि मे देवि सारम्, श्लोक-४, (पू.वि. श्लोक-१ अपूर्ण से है.) २. पे. नाम. पंचतिर्थि स्तुति, पृ. १०अ-१०आ, संपूर्ण. कल्लाणकंद स्तुति, संबद्ध, प्रा., पद्य, आदि: कल्लाणकंदं पढमं; अंति: सुहाय सा अंब सया पसत्था, गाथा-४. ३. पे. नाम. बीजतिथि स्तुति, पृ. १०आ, अपूर्ण, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. मु. लब्धिविजय, मा.गु., पद्य, आदि: दिन सकल मनोहर बीज; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-३ अपूर्ण तक है.) ४. पे. नाम. वंदित्तसूत्र, पृ. १६अ-१६आ, अपूर्ण, पृ.वि. प्रारंभ व अंत के पत्र नहीं हैं. संबद्ध, प्रा., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. गाथा-२२ अपूर्ण से गाथा-३८ अपूर्ण तक है.) ११५८२६. (+) आध्यात्मिक पदादि संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ६, प्रले. मु. पद्मविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. अन्वय दर्शक अंक युक्त पाठ., जैदे., (२३४१४, २०४३१). १. पे. नाम. आध्यात्मिक पद, पृ. १अ, संपूर्ण. म. आनंदघन, पुहिं., पद्य, वि. १८वी, आदि: क्या सोवे उठ जागि बाउरे; अंति: निरंजन देव गाउं रे, गाथा-३. २.पे. नाम. आध्यात्मिक पद, पृ. १अ, संपूर्ण. मु. आनंदघन, पुहिं., पद्य, वि. १८वी, आदि: रे घरिआ रे बाउ रे मति; अंति: आनंदघन० वीरला कोइ गावे, पद-३. ३. पे. नाम, आध्यात्मिक पद, प. १अ, संपूर्ण. मु. आनंदघन, पुहिं., पद्य, वि. १८वी, आदि: जीय जानै मेरी सफल; अंति: आनंदघन० माया क करी, गाथा-३. ४. पे. नाम, आध्यात्मिक पद, पृ. १अ, संपूर्ण. मु. आनंदघन, पुहि., पद्य, वि. १८वी, आदि: सुहगनि जागी अनुभव प्रीत; अंति: प्रेम की अकथ कहानी कोइ, गाथा-३. ५. पे. नाम. शांतिकर स्तव यंत्र, पृ. १आ, संपूर्ण. मा.गु., गद्य, आदि: वाणि २० तिहअण ३६; अंति: अंबा ८ पउमाचई ८. ६. पे. नाम. औषध संग्रह, पृ. १आ, संपूर्ण. औषधवैद्यक संग्रह*, पुहि.,प्रा.,मा.गु.,सं., गद्य, आदि: वडनी वडवाइ ज नीचोइ; अंति: अकडम सर्व साता थाये. ११५८२७. महावीरजिन स्तवन व आदिजिन स्तवन द्वय, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. २, कुल पे. ३, प्र.वि. पत्र १४४=१., दे., (२२४१४, २५-२८x१८-२२). १.पे. नाम, महावीरजिन स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण. मु. जिनचंद्र, मा.गु., पद्य, वि. १८५०, आदि: मगध देस सुहामणो रे; अंति: तणी रे सेवा श्रीजिनचंद, गाथा-१७. २. पे. नाम. आदिजिन स्तवन, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. म. रंग शिष्य, मा.गु., पद्य, वि. १७७३, आदि: रिषभ जिणेसर भेटवारे लाल; अंति: फलीय मनोरथ माल, गाथा-१५. ३. पे. नाम, आदिजिन स्तवन-वृद्ध, पृ. १आ-२अ, संपूर्ण. आ. जिनराजसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: करजोडी इम वीनवू; अंति: आगल कही मगसिर सुदि दिनइ, गाथा-२७. ११५८२८. जिनचंद्रसूरि वीनती, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, दे., (२३४१४, २६x२६). जिनचंद्रसरि वीनती, मा.गु., पद्य, वि. १७६९, आदि: सरसत सामण विनवं हं तो; अंति: सदगुर विनतडी अवधारजी, गाथा-१४. For Private and Personal Use Only Page #62 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२६ ४७ ११५८२९. अरहन्नमुनिस्वर रास व कृष्णभक्ति गीत, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ३-२(१ से २)=१, कुल पे. २, प्र.वि. पत्रांक नहीं लिखा होने के कारण अनुमानित पत्रांक दिया गया है., जैदे., (२२४१४, १७४३३). १. पे. नाम. अरहन्नमुनिस्वर राश, पृ. १अ-१आ, अपूर्ण, पू.वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं. अरणिकमुनि रास, मु. आणंद, मा.गु., पद्य, वि. १७०२, आदि: (-); अंति: कह्यो विलास के, ढाल-८, (पू.वि. गाथा-७५ अपूर्ण से है.) २. पे. नाम. कृष्णभक्ति गीत, पृ. १आ, संपूर्ण. मा.गु., पद्य, आदि: स्वस्ति श्री प्रभु प्रणम; अंति: दीपता प्रीती लता परमाण, श्लोक-१४. ११५८३०. नेमराजिमती बारमासा, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., जैदे., (२५४१४.५, १८४४१). नेमराजिमती बारमासा, मु. लालविनोद, पुहिं., पद्य, आदि: विनवै उग्रसेण की लाड; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-१५ अपूर्ण तक है.) ११५८३२. सिद्धचक्र स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, दे., (२४४१४, ९४३४). सिद्धचक्र स्तवन, ग. अमृतविजय, मा.गु., पद्य, आदि: सिद्धचक्रने भजीइ रे भवियण; अंति: वांणी रे अमत पद पावे, गाथा-६. ११५८३३. सिझणा द्वार, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, दे., (२४४१४, २०x१९-२५). बोल संग्रह-विविधगत्यागतादि जीव एकसमयसिद्धसंख्या विचार, मा.ग., गद्य, आदि: नर्कना निकला १० सिझे; अंति: सामान केवलि १०८ सिझे. ११५८३४. चतुर्दशी स्तुति, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, दे., (२४.५४१४, १३४२७). पार्श्वजिन स्तुति-नाटिकाबंध, आ. जिनकुशलसूरि, सं., पद्य, आदि: देंद्रे कि धपमप; अंति: दिशतु शासनदेवता, श्लोक-४. ११५८३५. गौतम गहुंली, पर्जूसणा थोई व प्रास्ताविक श्लोक, संपूर्ण, वि. १९३६, ज्येष्ठ शुक्ल, ६, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. ३, ले.स्थल. अगस्तपुर, प्रले. श्राव. पनालाल, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. श्रीसुमती प्रसादात्., दे., (१९.५४१४, १५४२८). १.पे. नाम. गौतम गहंली, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण.. गौतमस्वामी गहुंली, मु. दीपविजय, मा.गु., पद्य, आदि: जीरे कामनी कहे सुण; अंति: वीर सासन सिणगार रे, गाथा-८. २. पे. नाम. पर्जूसणा थोई, पृ. १आ, संपूर्ण. पर्युषणपर्व स्तुति, मु. चिदानंद, मा.गु., पद्य, आदि: मणि रचित सिंहासन बेठ; अंति: संघने शासनदेव सहाई, गाथा-४. ३. पे. नाम. प्रास्ताविक श्लोक, पृ. १आ, संपूर्ण. श्लोक संग्रह **, पुहिं.,प्रा.,मा.गु.,सं., पद्य, आदि: हंसाज्युं चाहत मानसरोवर; अंति: चीतका जीणेवा धाता, श्लोक-१. ११५८३६. दानशीलतपभावना प्रभाती व चोविशतिर्थंकर स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, जैदे., (१७४१४.५, १४४२९). १.पे. नाम. दानशीलतपभावना प्रभाती, पृ. १अ, संपूर्ण. उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, वि. १७वी, आदि: रे जीव जीण धरम कीजीय; अंति: मस्यै ए मुक्ति तणौ दातार, गाथा-६. २. पे. नाम. चोविशतिर्थंकर स्तवन, पृ. १आ, संपूर्ण. २४ जिन अष्टक, आ. उदयसागरसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: अविचल थाणिक पहुंता जेह चो; अंति: पभणे श्रीउदैसागरसूरि, गाथा-८. ११५८३७. सिद्धचक्रमहिमा स्तवन व आदिजिन ढाल, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, जैदे., (२२४१५, २३-२७४२७-२९). १. पे. नाम. सिद्धचक्रमहिमा स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण. मु. कनककीर्तिशिष्य, मा.गु., पद्य, आदि: नवपदनो ध्यान धरीजे; अंति: कोइ न तोले हो, गाथा-१५. २. पे. नाम. आदिजिन ढाल, पृ. १आ, संपूर्ण. For Private and Personal Use Only Page #63 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची मु. जिनचंद, पुहिं., पद्य, आदि: (-); अंति: (-). ११५८३८. महावीरजिन गहुंली, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, जैदे., (२१x१४, १२४२७). महावीरजिन गहंली, पं. दीपविजय, मा.गु., पद्य, आदि: सही चालो श्री महावीर; अंति: वीलाशें पोहोती नीज आवासे, गाथा-१०. ११५८३९ (#) वीरस्वामी सिझाय व पद्मप्रभजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, प. १, कल पे. २, प्र.वि. पठनार्थ अवाच्य है., मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., (२३४१४, १८४२८-३०). १. पे. नाम. वीरस्वामी सिझाय, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. देवानंदामाता सज्झाय, उपा. सकलचंद्र गणि, पुहि., पद्य, आदि: जिनवर रूप देखी मन; अंति: सकलचंद० उलट मनमां आणि हो, गाथा-१२. २.पे. नाम, पद्मप्रभजिन स्तवन, पृ. १आ, संपूर्ण. पद्मप्रभजिन स्तवन-संप्रतिराजावर्णनगर्भित, मु. कनक, मा.गु., पद्य, आदि: धन धन संप्रति साचो; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., गाथा-५ तक लिखा है.) ११५८४० (#) भवानी अष्टक, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, प्र.वि. मूल पाठ का अंश खंडित है, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२४४१४, ११-१३४२५). सरस्वतीदेवी छंद, आ. दयासूरि, मा.ग., पद्य, आदि: बुद्धि विमलकरणी विबु; अंति: नित्य नवेलि जगपति, गाथा-९. ११५८४१ (+) नैषध चरित्र सह टीका, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ३, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. त्रिपाठ-संशोधित-पदच्छेद सूचक लकीरें., जैदे., (२५.५४१३.५, ४४४३). नैषध चरित्र, क. श्रीहर्ष, सं., पद्य, ई. ११वी, आदि: निपीय यस्य क्षितिरक्षिणः; अंति: (-), (पू.वि. श्लोक-१० तक है.) नैषध चरित्र-टीका, सं., गद्य, आदि: या कांक्षितामलपदानियतं; अंति: (-). ११५८५१ (-#) शांतिस्नात्र विधि, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, प्र.वि. अशुद्ध पाठ. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२२.५४१३, १७४३७). अष्टोत्तरी शांतिस्नात्र विधि, मा.ग.,सं., प+ग., आदि: प्रथम दिन कंभस्थापना; अंति: स्नात्ररी विधि जाणवी. ११५८५२. (+#) क्षमाछत्रीसी, १४ गणस्थानकस्थिति विचार व ज्ञानदर्शन नाम आदि संग्रह, अपूर्ण, वि. १७२७-१७५९, मध्यम, पृ. १०-८(१ से ७,९)=२, कुल पे. ६, प्र.वि. पत्र की किनारी खंडित होने से प्रतिलेखक अस्पष्ट है., संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२१.५४१४, १४४२६). १.पे. नाम. क्षमाछत्रीसी, पृ. ८अ-८आ, अपूर्ण, पृ.वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं., वि. १७२७, मार्गशीर्ष शुक्ल, ८, गुरुवार, पठ. श्राव. भागचंद भंडारी, प्र.ले.पु. सामान्य. उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: समयसुंदर० संघ जगीस जी, गाथा-३६, (पू.वि. गाथा-२७ अपूर्ण से २. पे. नाम. १४ गुणस्थानकस्थिति विचार, पृ. ८आ, संपूर्ण. १४ गुणस्थानक विचार, मा.गु., गद्य, आदि: १ मिथ्यादृष्टी अनादि अनंत; अंति: प्रमाण एवं गुणठाणा चउदनाम. ३. पे. नाम. ज्ञानदर्शन नाम, पृ. ८आ, संपूर्ण. मा.गु., गद्य, आदि: मतिज्ञान चक्षदर्शन; अंति: अवधिदर्शन केवलदर्शन. ४. पे. नाम. २३ पदवी विचार, पृ. १०अ, संपूर्ण. मा.गु., गद्य, आदिः (-); अंति: (-), (वि. पत्र की किनारी खंडित होने से आदि-अंतिमवाक्य नहीं भरा है.) ५. पे. नाम. २४ दंडक नाम गतिआगति विचार, पृ. १०आ, संपूर्ण.. २४ दंडक नाम गति-आगति विचार, मा.गु., गद्य, आदिः (-); अंति: दंडक एवं २४ ना नाम, (वि. पत्र की किनारी खंडित होने से आदिवाक्य नहीं भरा है.) ६. पे. नाम. ८ कर्म १५८ प्रकृति बोल, पृ. १०आ, संपूर्ण, वि. १७५९, ज्येष्ठ कृष्ण, १०, रविवार, पठ. श्राव. चउत्थ भागचंद भंडारी (पिता श्राव. भागचंद भंडारी), प्र.ले.पु. सामान्य. For Private and Personal Use Only Page #64 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२६ मा.गु., गद्य, आदि: ज्ञानवरणी तेहनी प्रकृति ५; अंति: कर्म प्रकृति ५ भंडार समान, (वि. ८ कर्म के साथ १५८ प्रकृति के भेद हैं.) ११५८६०. सप्तविसन परिहार सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, जैदे., (२३४१६, १२४२४). ७ व्यसन निवारण सज्झाय, म. जयरंग, मा.ग., पद्य, आदि: पर उपगारी साध सुगुर; अंति: सीस रंगै जयरंग कहै, गाथा-९. ११५८६१. पांडव पुराण, अपूर्ण, वि. १८६६, मध्यम, पृ. २०६-२०५(१ से २०५)=१, जैदे., (३०x१५.५, ८४३७). पांडव पुराण, आ. शुभचंद्र, सं., पद्य, वि. १६०८, आदि: (-); अंति: एतत् शास्त्रस्यमेव च, अध्याय-२५ पर्व, ग्रं. ६०००, (पू.वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं., पर्व-२५ श्लोक-१८४ अपूर्ण से है.) ११५८६३. ऋषिमंडल स्तोत्र, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. २, दे., (२९x१५, १६४३७). ऋषिमंडल स्तोत्र-बहद, आ. गौतमस्वामी गणधर, सं., पद्य, आदि: आद्यंताक्षरसंलक्ष्यमक्षरं; अंति: (-), (प्रतिअपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., गाथा-४६ तक लिखा है.) ११५८६४. ज्योतिषसारोद्धार, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, प्र.वि. हुंडी अवाच्य., जैदे., (२९x१४, १४४३९). ज्योतिषसारोद्धार, आ. हर्षकीर्तिसूरि, सं., पद्य, आदि: तं नमामि जिनाधीशं; अंति: (-), (प्रतिअपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., श्लोक-२१ तक लिखा है.) । ११५८६५ (+) आदिजिनमहिम्न स्तोत्र सह अन्वय व भाषांतर, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ३, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. हुंडी:म०.प०., टिप्पण युक्त विशेष पाठ-पदच्छेद सूचक लकीरें., दे., (२९x१२.५, १५४१८-२८). आदिजिनमहिम्न स्तोत्र, आ. रत्नशेखरसूरि, सं., पद्य, वि. १५वी, आदि: महिम्नः पारं ते परमलभमाना; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-५ तक है.) आदिजिनमहिम्न स्तोत्र-अन्वय, सं., गद्य, आदि: हे विभो यत समवसृति भूमौ; अंति: (-). आदिजिनमहिम्न स्तोत्र-बालावबोध, मा.गु., गद्य, आदि: हे विभो परमात्मन जे माटे; अंति: (-). ११५८६६. पट्टावली तपागच्छीय व सत्यार्थप्रकाश के चयनित संदर्भ श्लोक संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, दे., (२९४१५, ६०७७-२३). १. पे. नाम. पट्टावली तपागच्छीय, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण.. मा.गु., गद्य, आदि: १ श्री वर्द्धमानस्वामी; अंति: ७० मुनिचंद्रसरि विद्यमान. २.पे. नाम. सत्यार्थप्रकाश के चयनित संदर्भ श्लोक संग्रह, पृ. १आ, संपूर्ण. सत्यार्थप्रकाश-चयनित संदर्भश्लोक संग्रह, सं., पद्य, आदि: मद्यं मांसं च मानं च; अंति: कौला विचरंति महीतले. ११५८६७. (+) भक्तामर स्तोत्र, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ५१-४८(१ से ४८)=३, प्र.वि. हुंडी:भक्ता०., संशोधित., जैदे., (२७.५४१५.५, ९४२९). भक्तामर स्तोत्र, आ. मानतंगसूरि, सं., पद्य, आदि: भक्तामरप्रणतमौलिमणि; अंति: (-), (पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., श्लोक-२८ अपूर्ण तक है.) ११५८६९ (+) पिंगलछंद शास्त्र, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १०, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं.,प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२९x१५, ११४३८-४२). पिंगल नाममाला, मु.ज्ञानसार, पुहिं., पद्य, वि. १८७६, आदि: श्रीअरिहंतसु सिद्धपद; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-१३४ सुवदना छंद अपूर्ण तक है.) ११५८७४. निश्चयव्यवहार सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २, जैदे., (२७४१५, ३०४२२). निश्चयव्यवहार सज्झाय, आ. हंसभुवनसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीजिनवर रे देशना दीइ; अंति: वीतराग इणी परे लहें, गाथा-८. ११५८७५. कल्पसूत्र का बालावबोध, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, जैदे., (२६.५४१५.५, ११४३२). कल्पसूत्र-व्याख्यान+कथा *, प्रा.,मा.गु.,सं., गद्य, आदि: प्रणम्य प्रणताशेषं; अंति: (-), (पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., अचेलकल्प वर्णन अपर्ण तक है.) For Private and Personal Use Only Page #65 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra ५० www.kobatirth.org कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची मेतारजमुनि सज्झाय, मु. राजविजय, पुहिं. मा.गु., पद्य, आदि: समदम गुणना आगरु जी अंतिः साधुतणी रे सज्झाय, गाथा-१४. ११५८७६. मेतारजमुनि सज्झाय, संपूर्ण वि. २०वी मध्यम, पू. १, दे. (२६४१४, १५x२६). " Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ११५८७७. दशार्णभद्र स्वाध्याय व महावीरजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २, कुल पे. २, जैदे., (२७X१५, १२X३४). १. पे. नाम. दशार्णभद्र स्वाध्याय, पृ. १अ - २आ, संपूर्ण, ले. स्थल. शिवगंज, प्रले. पं. नंदसागर, प्र.ले.पु. सामान्य. दशार्णभद्रराजर्षि सज्झाय, मु. लालविजय, मा.गु., पद्य, आदि सारद बुद्धिदायक सेवक; अंति: लालविजय निसदीस, गाथा - ९. २. पे. नाम. महावीरजिन स्तवन, पृ. २आ, संपूर्ण. पंन्या. जिनविजय, मा.गु., पद्य, आदि: वंदो वीरजिनेश्वर राया; अंतिः सेवक जिन गुणगाया रे, गाथा-७. ११५८७९. सीमंधरस्वामी स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, ले. स्थल. आगलोल, प्रले. मु. प्रतापविजय; लिख. सा. रलियातबाई, प्र.ले.पु. सामान्य, जैवे. (२७१५, १४४२७). सीमंधरजिन स्तवन, मु. मुनिसुंदर, मा.गु., पद्य, आदि श्रीश्रीमंदिर स्वामि विनतः अति सा मुनी ते भणे सुंदर सेसा, गाथा-५. ११५८८३. नवकारवाली स्वाध्याय, प्रसन्नचंद्रऋषि स्वाध्याय व चेलणासती स्वाध्याय, संपूर्ण वि. १९वी मध्यम, पृ. १. कुल पे. ३, ले. स्थल. खमणोर, जैदे., ( २६.५X१५.५, १८४३५). १. पे. नाम. नवकारवाली स्वाध्याय, पृ. १अ, संपूर्ण. नमस्कार महामंत्र सज्झाय, मु. लब्धिविजय, मा.गु., पद्य, आदि: बार जपुं अरिहंतना; अंति: लब्धि० नित्य नवकार, गाथा - ९. २. पे. नाम. प्रसन्नचंद्रऋषि स्वाध्याय, पृ. १अ १आ, संपूर्ण. प्रसन्नचंद्रराजर्षि सज्झाय, मु. कुंअरविजय, मा.गु., पद्य, आदि: मन वसीकरवो दोहिलो ईम जाणो; अंति: कविरायनो सीस कुमर पभणंत गाथा - १०. 1 ३. पे. नाम. चेलणासती स्वाध्याय, पृ. १आ, संपूर्ण. चेलणासती सज्झाय, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, आदि वीर वांदी वलतां थका अति चेलणाजी पामीओ भव तणो पार, गाथा- ७. ११५८८४. विनतीवखाणनी स्तुति, संपूर्ण वि. १९४७ माघ शुक्ल, ५, शनिवार, मध्यम, पू. १, ले. स्थल. मुंबाई, दे. (३०x१४, १२४३४). महावीरजिन सवैया वाणीविशेषण, पुहिं, पद्य, आदि: वीर हिमाचल से निकसी गुरु: अति सिवाई सब छोरु सी कहाणि है, गाथा ५. ११५८८५ (+) आदिजिनविनती स्तवन, संपूर्ण वि. १९४५, फाल्गुन कृष्ण, ९, सोमवार, मध्यम, पृ. १ ले स्थल विरमगाम, प्रले. श्राव. त्रिभोवन गांधी, अन्य. श्रावि. मंडीबाई, प्र.ले. पु. सामान्य, प्र. वि. श्रीशांतिनाथ प्रासादात् संशोधित. वे., (२९x१४.५, १५X३२). 5 " For Private and Personal Use Only आदिजिनविनती स्तवन, ग. जिनहर्ष, मा.गु., पद्य, आदि सुण जिनवर शेडुंजा; अंति: देज्यो परमानंद रे, गाथा - २०. ११५८८६. घंटाकर्णमहावीरदेव स्तोत्र, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पू. १, दे. (२९x१३.५, ५४१०). घंटाकर्णमहावीरदेव स्तोत्र, सं., पद्य, आदि: ॐ घंटाकर्णो महावीरः; अंति: ते ठः ठः ठः स्वाहा, (वि. यंत्र सहित व मास कोटक दिया है.) १९५८८७ (+) ३२ विजेकी ओली गुणणो, संपूर्ण, वि. २०वी मध्यम, पृ. २. प्र. वि. संशोधित. दे. (२९.५४१४.५, १६x२४). अढीद्वीप १७० उत्कृष्टजिन नाम, मा.गु., सं., गद्य, आदि: श्रीमेघ अरहंत नम; अंति: श्रीजोगोदि श्रीबलभद्र. ११५८८८. गौतमस्वामी रास व गौतमस्वामी स्तुति, संपूर्ण वि. १९१२ ज्येष्ठ कृष्ण, १२, शुक्रवार, जीर्ण, पृ. ४. कुल पे. २, ले. स्थल भल्लाडी ग्रामे, प्रले. मु. नंदसीभाग्य ( गुरु मु. दौलतसौभाग्य); गुषि. मु. दौलतसौभाग्य राज्यकालरा सरूपसिंघ, प्र.ले.पु. सामान्य, " सामान्य, दे. (२८४१५, १५४२५). Page #66 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२६ www.kobatirth.org १. पे. नाम गौतमस्वामी रास, पृ. १अ ४आ, संपूर्ण. मु. उदयरत्न, मा.गु., पद्य, आदि: वीर जिणेसर चरण कमला; अंति: नित नित मंगल उद्योय करे, ढाल -५, गाथा- ४७. २. पे. नाम गौतमस्वामी स्तुति, पू. ४आ, संपूर्ण. मा.गु., सं., पद्य, आदि अंगुष्ट अमृत बस लबधि; अंति: लच्छी लील करंत, गाथा-२. १९५८९१. नवपद आराधन विधि, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पू. ४, दे. (२८४१५, १७x४२). Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir नवपद आराधन विधि, मा.गु., गद्य, आदि स्वर्ण सिंहासणस्थिताय; अंतिः अभ्यंतर उत्सर्ग तपसे नमः. ११५८९३. (१) सिद्धचक्र स्तवन, अपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पृ. १. पू. वि. अंत के पत्र नहीं हैं. प्र. वि. अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, जैवे., (२७.५x१४.५, १३x२०-२४). " सिद्धचक्र स्तवन, उपा. मानविजय, मा.गु., पद्य, आदि: जी हो प्रणमुं दिन प्रतें; अंति: (-), (पू.वि. ढाल - १ गाथा-१० अपूर्ण तक है.) ११५८९५. (+) प्रास्ताविक कवित्त संग्रह, अपूर्ण, वि. २०वी श्रेष्ठ, पृ. ९-७ (१ से ७) -२, पू.वि. बीच के पत्र हैं. प्र. वि. संशोधित., दे., (२८x१४.५, १२४३५-३९). प्रास्ताविक कवित्त संग्रह. मु. भिन्न भिन्न कर्तृक, पुहि., मा.गु., पद्य, आदि (-); अंति: (-), (पू.वि. कवित्त १५ अपूर्ण से कवित्त ३० अपूर्ण तक है.) ११५८९६. नरकविस्तार स्तवन, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., जैदे., (२७.५X१४.५, १३X३३). नरकविस्तार स्तवन, मा.गु., पद्य, आदि: वर्द्धमानजिन विनवूं; अंति: (-), (पू.वि. ढाल - १ गाथा- २ अपूर्ण तक है.) ११५९०२. (०) सप्ततिका कर्मग्रंथ सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पृ. ३, पू. वि. अंत के पत्र नहीं हैं. प्र. वि. अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२८.५४१५, ११४२९). " " ५१ सप्ततिका कर्मग्रंथ ६, आ. चंद्रमहत्तराचार्य, प्रा., पद्य, आदि सिद्धपएहिं महत्वं अंति (-), (पू.वि. गाथा- २ तक है.) सप्ततिका कर्मग्रंथ ६ बार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: अथ चंद्रमहत्तर आचार्य कृतः अति (-), (वि. बालावबोध पद्धति में बार्थ लिखा है.) זי ११५९०३. शत्रुंजयतीर्थ स्तोत्र, संपूर्ण वि. १९५६, मार्गशीर्ष कृष्ण, ८, रविवार, मध्यम, पू. १ ले स्थल. पाटडी, प्रले. शुक्ल 1 " दत्ताशंकर हरगोविंदराम; पठ. सा. जयश्रीजी, प्र.ले.पु. सामान्य, दे., (२८x१५, १२X४१). " आदिजिन स्तोत्र-शत्रुंजयतीर्थमंडण, सं., पद्म, आदि: पूर्णानंदमयं महोदवमय अति नाभिजनमा जिनेंद्र, श्लोक १०. ११५९०४. कर्मप्रकृति, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ३, प्र. वि. हुंडी सिद्धांत कम्मपयडिसूत्र. वे. (२८४१४.५, ७X४७). कर्मप्रकृति, आ. शिवशर्मसूरि, प्रा., पद्य, आदिः सिद्धं सिद्धत्वसुर्य अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., गाथा - २८ तक लिखा है.) ११५९०६. () षड्दर्शन समुच्चय सह लघुवृत्ति, अपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पृ. १, पू. वि. अंत के पत्र नहीं हैं. प्र. वि. मूल पाठ का अंश खंडित है, जैवे. (२९.५४१४.५ १२४४२) , षड्दर्शन समुच्चय, आ. हरिभद्रसूरि सं., पद्य, आदि सद्दर्शनं जिनं नत्वा वीरं अंति: (-). (पू.वि. मात्र लोक-१ तक है.) षड्दर्शन समुच्चय- लघुवृत्ति, आ. सोमतिलकसूरि, सं., गद्य, वि. १३९२, आदि: सज्ज्ञानदर्पणतले; अंति: (-). ११५९०७. पार्श्वजिन स्तवन व शांतिजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, दे., (२८.५X१५, ११X३६-४६). १. पे. नाम. पार्श्वजिन स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तवन- मगसीतीर्थ, मु. प्रमोदरुचि, पुहिं, पद्म, आदि पास प्यारो हे सरीवा मोरी अंतिः प्रमोदरुचि पास प्यारो हे, गाथा-५. २. पे. नाम. शांतिजिन स्तवन, पृ. १अ - १आ, संपूर्ण. शांतिजिन स्तवन- पणजी दिक्षा प्रसंग गर्भित, मु. प्रमोदरुचि, पुहिं, पद्य वि. १९३५, आदि शांतिजिनेश्वर साताकारी, अंतिः प्रमोदरुचि० तब हारी हे, गाथा ८. ११५९१०. (#) महावीरजिन स्तवन व व्याख्यान पीठिका, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ४, कुल पे. २, प्र. वि. मूल पाठ का अंश खंडित है, दे. (२६.५४१२.५, १३४३४). For Private and Personal Use Only Page #67 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra ५२ www.kobatirth.org कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १. पे. नाम महावीरजिन स्तवन, पृ. १आ-३आ, संपूर्ण. महावीरजिन स्तवन- २७ भवविचारगर्भित, पं. वीरविजय, मा.गु., पद्य, वि. १९०१, आदि: श्रीशुभविजय सुगुरू; अंति सेवक वीरविजय जयकरो, ढाल ५. Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir २. पे नाम व्याख्यान पीठिका, पृ. ४अ ४आ, संपूर्ण. मा.गु.,.सं., प+ग, आदि जे स्वामि जिना तुज तु न; अंति: जे सर्व मंगल मंगल्यो. ११५९११. आयंबिलतप सज्झाय, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, पठ. सा. नाहलीबाई, प्र.ले.पु. सामान्य, दे., (२७.५X१४.५, १२X४६). आयंबिलतप सज्झाय, पंन्या. पद्मविजय, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीमुनिचंद्र मुनीसर; अंति: सुरतरू समो आपे सुख सदैव, गाथा - १३. ११५९१२. पाक्षिक नमस्कार सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ३, प्रले. मु. देवेंद्र, पठ. श्राव. उत्तमभाई, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२८.५४१४.५, ७४३६). " त्रिषष्टिशलाकापुरुष चरित्र हिस्सा सकलार्हत् स्तोत्र, आ. हेमचंद्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं. पद्य वि. १२वी, आदि सकलार्हत्प्रतिष्ठानम; अंति: भावतोहं नमामि श्लोक-२९, संपूर्ण. त्रिषष्टिशलाकापुरुष चरित्र-हिस्सा सकलार्हत् स्तोत्र का टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: भवापायांगितायिते; अंति: (-), (अपूर्ण, पू. वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., श्लोक १ का ही टबार्थ लिखा है.) " ११५९१६. वीरप्रभुजीनो पारणो, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ३, अन्य. मु. मेघराज, प्र.ले.पु. सामान्य, दे., (२८४१५, १२x२६). महावीर जिन स्तवन- पारणागभिंत, मु. माल, मा.गु., पद्य, आदि श्री अरिहंत अनंत गुण; अति जी ते नमे मुनि माल, गाथा - ३१. ११५९१७. पार्श्वजिन स्तोत्रद्वय व सोलसती सज्झाय, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ३, कुल पे. ३, दे., (२७.५x१४.५, १८x४७). १. पे. नाम. पार्श्वजिन स्तोत्र, पृ. १अ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तवन-फलवर्द्धि, मु. अभयसोम, मा.गु., पद्य, आदि: सरस्वती माता सेवका दे; अंति: अभयसोम० द्यो मुजने घणी, गाथा- ९. २. पे नाम. सोलसति स्तोत्र, पृ. १अ १आ, संपूर्ण. १६ सती सज्झाय, मु. रत्नविजय, मा.गु., पद्य, आदि: सोलसतीना लीजे नाम; अंति: रत्नविजय भावे गुण गाय, गाथा-७. ३. पे नाम. पार्श्वजिन स्तोत्र देशांतरी, पृ. १आ-३अ, संपूर्ण. पार्श्वजिन छंद-गोडीजी, मा.गु., पद्य, आदि: सुमति समर्यो शारदा मया; अंति: इम थुण्यो छंद देशांतरी, गाथा-४७. ११५९१८. (+) रोहिणीतप स्तवन, संपूर्ण, वि. १८७५, मार्गशीर्ष शुक्ल, ४, मध्यम, पृ. ३, प्र. वि. हुंडी : रोहणी०, संशोधित, जैये., (२८x१३, ११४३२). रोहिणीतप स्तवन, मु. श्रीसार, मा.गु., पद्य, वि. १७२०, आदि: सासण देवत सामणिय मुज; अंति: हिव सकल मन आसा फली, ढाल ४, गाथा - २७. ११५९१९. (+) अठाणु बोल व चोवीस दंडक नाम, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. २, कुल पे. २, प्र. वि. संशोधित., दे., ( ५X१०). १. पे नाम. अठाणु बोल, पृ. १अ २आ, संपूर्ण. ९८ बोल यंत्र-अल्पबहुत्व, मा.गु., को., आदि: (-); अंति: (-). For Private and Personal Use Only (२८.५X१४.५, २. पे नाम. चोवीस दंडक नाम, पू. २आ, संपूर्ण २४ ठाणा विचार, मा.गु., प+ग, आदि गह इंद्रीए काये जोए वेए: अंति: (-). ११५९२०. दीपावलीपर्व कल्प, आलोयण विधि व साधु आलोयण विधि, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ३, कुल पे. ३, दे., (२९x१४.५, ३७५४). १. पे. नाम. दीपावलीपर्व कल्प का बालावबोध, पृ. १अ - ३आ, संपूर्ण, पे.वि. हुंडी : दीवालीकप. दीपावली पर्व कल्प बालावबोध, मा.गु., गद्य, आदिः स्वस्ति श्रीसुखदातार, अति भरवना ध्यायामि जागीश्वर. Page #68 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२६ २. पे. नाम, आलोयणा विधि, पृ. ३आ, संपूर्ण. श्रावक आलोयणा, मा.गु., गद्य, आदि: श्रावक समकित अतीचार लागे; अंति: वेलो १ उ० उपवा० १०. ३. पे. नाम. साधु आलोयण विधि, पृ. ३आ, संपूर्ण. ___ साधुप्रायश्चित विधि, मा.गु., गद्य, आदि: समकत अतीचार २ उप०; अंति: हती कु मेरी तसली महे. ११५९२१ (#) नारचंद्र ज्योतिष, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १,प्र.वि. हुंडी:नारचंद्रिका., अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (३०x१४, १०४३०-३४). ज्योतिषसार, आ. नरचंद्रसूरि, सं., पद्य, आदि: अर्हतजिनं नत्वा; अंति: (-), (पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., श्लोक-७ अपूर्ण तक है.) ११५९४१. सूरजदेव शलोको, संपूर्ण, वि. १९५२, श्रेष्ठ, पृ. २, प्रले. मु. मेघराज, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. श्री सुरसतीजीने नमु., दे., (२८x१३, १३४२८). सूरजदेव सलोको, मु. ऋषभसुंदर, मा.गु., पद्य, आदि: प्रणमुशारदा गुणपती; अंति: ऋषभसुंदर होज्यो दोलतदाइ, गाथा-२८. ११५९४५. कल्याणमंदिर स्तोत्र का पद्यानुवाद, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ३, दे., (२६.५४१४, १७४२७). कल्याणमंदिर स्तोत्र-पद्यानुवाद, जै.क. बनारसीदास, पुहिं., पद्य, वि. १७वी, आदि: परम ज्योति परमातमा; अंति: बनारसी कारण समकित सुधि, गाथा-४४. ११५९४६. मंगलाष्टक, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २५-२४(१ से २४)=१, जैदे., (२६४१४, ९४३७). मंगलाष्टक, सं., पद्य, आदि: श्रीमन्नम्रसुरेंद्रमुकुट; अंति: (-), (पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., श्लोक-७ अपूर्ण तक लिखा ११५९४८. जंबूस्वामी रास, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., दे., (३०.५४१४.५, १४४३६). जंबूस्वामी रास, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., पद्य, वि. १७३९, आदि: सारद सार दया करो; अंति: (-), (पू.वि. ढाल-१ गाथा-५ अपूर्ण तक है.) ११५९५०. ज्योतिषसार का लघुनारचंद्र ज्योतिष, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., जैदे., (२७.५४१४, ११-१४४२०-२३). ज्योतिषसार-लघुनारचंद्र ज्योतिष, संक्षेप, मा.गु.,सं., प+ग., आदि: श्रीअर्हतंजिनं नत्वा; अंति: (-), (पू.वि. श्लोक-९ अपूर्ण तक है.) ११५९५५ (+) १२ देवलोक ९ग्रैवेयक ५ अनत्तर देव विमानप्रासादप्रतिमाकायामानादि विवरण, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, प. १,प्र.वि. पत्रांक १४४=१ पत्रांक गिनकर भरा गया है., संशोधित., दे., (२७.५४१४,५४१०). १२ देवलोक ९ ग्रैवेयक ५ अनुत्तरदेव विमान-प्रासाद-प्रतिमा-कायामानादि विवरण, मा.गु., को., आदि: (-); अंति: ११५९५७. मौनएकादशीपर्व स्तवन, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ३-२(१ से २)=१, दे., (२६.५४१४.५, ९-१२४२७-३४). मौनएकादशीपर्व स्तवन, मु. न्यायसागर, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: दिनदिन वधते वान रे, ढाल-२, गाथा-१८, (पू.वि. ढाल-१ गाथा-४ अपूर्ण से है.) ११५९५८. (2) नवतत्त्व प्रकरण, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २, प्र.वि. मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., (२७४१३, २२४३४). नवतत्त्व प्रकरण ६० गाथा, प्रा., पद्य, आदि: जीवा१जीवा२ पुण्णं३ पावा४; अंति: उद्धरीउ लहीउ मणीरयणसूरीहे, गाथा-५६. ११५९६० (+) धन्ना सार्थवाह कथा, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ३, प्र.वि. अन्वय दर्शक अंक युक्त पाठ-संशोधित., दे., (२६.५४१४.५, १०४३६). धन्नासार्थवाह कथा, पुहि., गद्य, आदि: राजग्रही नाम नगरी विषे; अंति: वहुनी पेठे अपमान पामशे. ११५९७१. अतीतअनागतवर्तमान चौवीसजिन स्तवन व मौनएकादशीपर्व स्तवन, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २, कुल पे. २, जैदे., (२६.५४१४.५, १३४३३-३६). For Private and Personal Use Only Page #69 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ५४ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १.पे. नाम. अतीतअनागतवर्तमान चोवीसजिन स्तवन, प. १अ-२आ, संपूर्ण. ___ अतीतअनागतवर्तमान चौवीसजिन स्तवन, म. न्यायसागर, मा.ग., पद्य, आदि: सीस चोवीसी प्रणमी करी नेक; अंति: न्यायसागर० पूरो संघ जगीस, ढाल-३, गाथा-३१. २. पे. नाम. मौनएकादशीपर्व स्तवन, पृ. २आ, अपूर्ण, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. मु. न्यायसागर, मा.गु., पद्य, आदि: पहिले कोठइ महाजस नाम; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-४ अपूर्ण तक है.) ११५९७२. पंचमआरा सज्झाय, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, दे., (२४.५४१४.५, ११४४०). पंचमआरा सज्झाय, मु. जिनहर्ष, मा.गु., पद्य, आदि: वीर कहे गौतम सुणो; अंति: जिनहरषे० भाख्या वयण रसाल, गाथा-२४. ११५९७४. शत्रुजयतीर्थ २१ खमासण दूहा व आदिजिन शत्रुजय ९९ वार यात्रा विचार, संपूर्ण, वि. १९५०, आषाढ़ कृष्ण, १०, मध्यम, पृ. ३, कुल पे. २, ले.स्थल. सुरत, प्रले. मु. मुनिचंद्र; अन्य. मु.खेमाचंद्र, प्र.ले.पु. सामान्य, दे., (२७४१४.५, ११४२८). १. पे. नाम. शत्रुजयतीर्थ २१ खमासमण दहा, पृ. १आ-३आ, संपूर्ण. शत्रुजयतीर्थ २१ खमासमण दोहा, म. धर्मचंद्र, मा.गु., पद्य, आदि: समरी रीदय सारदा सरस वचन; अंति: ध्यानथी वाज्या मंगल तुर, गाथा-२९. २. पे. नाम. आदिजिन शत्रंजय ९९ वार यात्रा विचार, पृ. ३आ, संपूर्ण.. आदिजिन शत्रुजय पूर्व ९९ वार यात्रा विचार, मा.गु., गद्य, आदि: सेजे श्रीऋषभदेव; अंति: दश वरसे प्रभु एकवार आव्या. ११५९७५. चंद्रराजा रास, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ३-१(१)=२, पृ.वि. बीच के पत्र हैं., जैदे., (२७.५४१४, १६४३७). चंद्रराजा रास, मु. मोहनविजय, मा.गु., पद्य, वि. १७८३, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. उल्लास-१ ढाल-१ गाथा-८ अपूर्ण से ढाल-३ गाथा-१० अपूर्ण तक है.) ११५९७७. ज्योतिषसार, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ८-६(२ से ७)=२, पू.वि. बीच व अंत के पत्र नहीं हैं., जैदे., (२६.५४१४, १०x२३). ज्योतिषसार, आ. नरचंद्रसूरि, सं., पद्य, आदि: श्रीअर्हतं जिनं नत्वा; अंति: (-), (पू.वि. श्लोक-८ अपूर्ण तक व श्लोक-७४ अपूर्ण से श्लोक-८८ अपूर्ण तक है.) ११५९७९. अट्ठाईरो व्याख्यान, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ४, दे., (२७४१४, १८४४२). अष्टाह्निकापर्व व्याख्यान, मा.गु.,सं., गद्य, आदि: शांतीशं शांतिकर्तार; अंति: (-), (अपूर्ण, पृ.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., "देवता पणै पाम्यौ पछै साध्वी" तक लिखा है.) ११५९८३. साधारणजिन स्तुति, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, दे., (२६४१४, ११४४५). साधारणजिन स्तति प्रार्थना संग्रह, प्रा.,मा.गु.,सं., पद्य, आदि: श्रीमानसु श्रीसुमतिजिनवो; अंति: सौख्यंकरो पातुमाम्, गाथा-७. ११५९८४. स्थंभनकतीर्थराज पार्श्वनाथ स्तोत्र, संपूर्ण, वि. १९५०, वैशाख शुक्ल, २, मध्यम, पृ. २, पठ. मु. लाल, प्र.ले.पु. सामान्य, दे., (२४.५४१४, १५४४५). जयतिहुअण स्तोत्र, आ. अभयदेवसूरि , प्रा., पद्य, वि. १२वी, आदि: जय तिहुअणवरकप्परुक्ख; अंति: अभयदेव० आणंदिअ, गाथा-३०. ११५९८५ (#) नवपदजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. १९३१, मार्गशीर्ष शुक्ल, ८, मध्यम, पृ. १, प्रले. मु. छगनचंद्र ऋषि, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. मूल पाठ का अंश खंडित है, दे., (२५४१३, ८x२२). नवपद स्तवन, ग. हर्षेदु गणि, मा.गु., पद्य, वि. १९०१, आदि: ए दिन सफल भयो मे; अंति: कहे हर्षेदुगणि० सदा निहाल, गाथा-५. ११५९८६. पार्श्वजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, जैदे., (२५४१४, १६४३८). पार्श्वजिन लावणी-कल्याण-वीसनगरमंडन, मु. तेजराम, पुहि., पद्य, वि. १८६५, आदि: अगडदम अगडदम वाजै; अंति: पार्श्वनाथ अवतार बडा, गाथा-१६. For Private and Personal Use Only Page #70 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२६ ११५९९४. पार्श्वजिन स्तवन, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., जैदे., (२७४१४, १३४२९-३२). पार्श्वजिन स्तवन-भीनमाल, मु. पुण्यकमल, मा.गु., पद्य, वि. १६६१, आदि: सरसति भगवति नमीय पाय; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-१८ अपूर्ण तक है.) ११५९९५ (+) नवपद दुहा, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २-१(१)=१, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२६.५४१३.५, १०४२९). सिद्धचक्र पूजा में प्रारंभ के दोहे, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: निर्मल धरीयै ध्यान, गाथा-९, (पू.वि. गाथा-३ अपूर्ण से ११५९९७. सतासती सज्झाय, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, प्र.वि. हुंडी:सझा०., दे., (२५.५४१४, ११४३०). भरहेसर सज्झाय, संबद्ध, प्रा., पद्य, आदि: भरहेसर बाहुबली अभय; अंति: जास जसपडहो तीहुअणे सयले, गाथा-१३. ११५९९८. गौतमस्वामी रास, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ४-३(१ से ३)=१, पृ.वि. मात्र बीच का ही एक पत्र है., जैदे., (२६४१४, १०४३८). गौतमस्वामी रास, उपा. विनयप्रभ, मा.गु., पद्य, वि. १४१२, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. ढाल-४ गाथा-८ अपूर्ण से ढाल-५ गाथा-८ अपूर्ण तक है.) ११६०००. व्याख्यान पीठिका, संपूर्ण, वि. १९१५, चैत्र शुक्ल, ५, गुरुवार, मध्यम, पृ. १, प्रले. मु. लब्धिविजय गणि, प्र.ले.पु. सामान्य, दे., (२५.५४१३.५, ११४२५). व्याख्यान पीठिका, मा.गु.,सं., प+ग., आदि: असरणसरण दिनो धरण संसार; अंति: उठवणां संभलाव्यानी छे. ११६००१. औपदेशिक सज्झाय व पार्श्वनाथ स्तवनयुगल, अपूर्ण, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ३, जैदे., (२६४१३.५, १७४४५). १.पे. नाम. औपदेशिक सज्झाय, पृ. १अ, संपूर्ण, वि. १८८७, माघ शुक्ल, ५, मंगलवार, ले.स्थल. श्रीभालपुरा, प्रले. ग. हेमसोम (गुरु मु. अभयसोम); गुपि. मु. अभयसोम, प्र.ले.प. सामान्य, पे.वि. संभवनाथ प्रसादात्. जिनप्रतिमास्थापना सज्झाय, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., पद्य, आदि: जिन जिन प्रतिमा वंदन; अंति: कि तास वखाण रे, गाथा-१५. २. पे. नाम. प्रभाती गीत, पृ. १आ, संपूर्ण, प्रले. ग. हेमसोम (गुरु मु. अभयसोम); गुपि. मु. अभयसोम, प्र.ले.पु. सामान्य, पे.वि. श्रीपल्लविहापार्श्वप्रसादात्. पार्श्वजिन स्तवन, पं. वीरविजय, मा.ग., पद्य, आदि: सेरी मांहि रमतो दीठो; अंति: शभवि०भाग्य उघडिओ रे, गाथा-९. ३. पे. नाम. पार्श्वनाथ स्तवन, पृ. १आ, अपूर्ण, पू.वि. मात्र प्रथम पत्र है., पे.वि. यह कृति किसी अन्य प्रतिलेखक द्वारा लिखी गई पार्श्वजिन छंद-अंतरीक्षजी, मु. लावण्यसमय, मा.गु., पद्य, वि. १५८५, आदि: सरस वचन द्यो सरसति; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-१३ अपूर्ण तक है.) ११६००३. उत्तराध्ययनसूत्र वखांणनी माडणी, संपूर्ण, वि. १९६५, माघ कृष्ण, ६, मंगलवार, मध्यम, पृ. २, ले.स्थल. जालना, प्रले. य. मंगलचंद लक्ष्मीचंद, प्र.ले.पु. सामान्य, दे., (२६.५४१३.५, ११४३२-३५). उत्तराध्ययनसूत्र-व्याख्यानपीठिका, संबद्ध, मा.गु., गद्य, आदि: ईहां श्री अरिहंता भगवंत; अंति: वंचाय छे पठे गाथा कहीये. ११६००४. (4) पार्श्वजिन स्तोत्र, अपूर्ण, वि. १९०१, ?, भाद्रपद कृष्ण, ५, मध्यम, पृ. ६-३(१ से २,४)=३, ले.स्थल. रतलामनगर, प्रले. श्राव. अमरचंद माणकचंदजी, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. सा.जी श्रीहीराचंदजी की पोथी मांथी., अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२६.५४१४.५, १२४२६-३०). कल्याणमंदिर स्तोत्र, आ. सिद्धसेनदिवाकरसूरि, सं., पद्य, वि. १वी, आदि: (-); अंति: कुमुद० प्रपद्यंते, श्लोक-४४, (पू.वि. श्लोक-१८ अपूर्ण से २३ व श्लोक-३५ अपूर्ण से है.) ११६००५ (#) नवपद स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, प्र.वि. अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२६४१४,११४३५). नवपद स्तवन, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु.,सं., पद्य, आदि: अरिहंत पद ध्यातो; अंति: जस तणी० न अधूरी रे, गाथा-१३. For Private and Personal Use Only Page #71 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra ५६ www.kobatirth.org कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ११६००६. गौतमस्वामी रास व ग्यारह गणधर गुहली, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ६ ४(१ से ४) -२, कुल पे. २, वे. (२६४१४, १०x४०). १. पे. नाम गौतमस्वामी रास, पृ. ५अ- ६अ, अपूर्ण, पू. वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं. Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir आ. विजयभद्रसूरि, मा.गु., पद्य, आदि (-); अति विजयभद्र० विस्तरे ए. ढाल ६, गाथा ६६, (पू.वि. ढाल ५ गाथा-८ अपूर्ण से है.) २. पे नाम. इग्यार गणधर गुंहली, पू. ६अ ६आ, संपूर्ण ११ गणधर गहुंली. मु. दीपविजय, मा.गु., पद्य, आदि पेहेलो गोयम गणधरु, अंतिः ए जिनसासन रित गए, गाथा- ७. ११६००७ (१) जयंतीप्रश्न गुहली, संपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पृ. १, प्र. वि. अक्षरों की स्वाही फैल गयी है, जैवे. (२३.५४१४.५, १२x२६). भगवतीसूत्र-जयंतीप्रश्न गहुंली, संबद्ध, पं. वीरविजय, मा.गु., पद्य, आदि: चितहर चोवीसमा जिनराय; अंति: छेह न देस्यो मुज कदा, गाथा- ९. ११६००८. (+) औपदेशिक व आत्महित सज्झाय, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, प्र. वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., दे., (२४X१४, १२x२६). १. पे. नाम. औपदेशिक सज्झाय, पृ. १अ, संपूर्ण. औपदेशिक सज्झाय वणझारा, पंन्या, पद्मविजय, मा.गु., पद्य, आदि: नरभव नगर सोहामणु; अति: करे पद्म नमे वारंवार, गाथा-७. २. पे नाम. आत्महित सज्झाय, पू. १आ, संपूर्ण. आध्यात्मिक सज्झाय, मु. हर्षविजय, मा.गु., पद्य, आदि: मारुं मारुं मम कर; अंति: मुगति वधु तणो संग रे, गाथा-७. ११६०११. पार्श्वजिन छंद-अंतरीक्ष अपूर्ण, वि. १८८८, आषाढ़ शुक्ल, १३, मध्यम, पू. २- १ (१) १ ले. स्थल, पालनपुर, प्र. ग. हेमसोम (गुरु मु. अभयसोम); गुपि. मु. अभयसोम, प्र.ले.पु. सामान्य, वे., ( २६.५X१४, १५-१९५०-६०). पार्श्वजिन छंद-अंतरीक्षजी, मु. लावण्यसमय, मा.गु., पद्य, वि. १५८५, आदि: (-); अंति: दरिसण हु वंछु सदा, गाथा ५४, (पू.वि. गाथा १४ अपूर्ण से है.) ११६०१५. सीमंधरजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, दे., (२१X१४, १०X१४). सीमंधरजिन स्तवन, मु. जिनहर्ष, मा.गु., पद्य वि. १८वी, आदि पूर्वविदेह विजये; अंति: जिनहरख घणे ससनेह, गाथा-५. ११६०१६. (#) पद्मप्रभजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, प्र. वि. मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., (१९x१४, ११x२३). पद्मप्रभजिन स्तवन-संप्रतिराजावर्णनगर्भित, मु. कनक, मा.गु., पद्य, आदि: धन धन संप्रति साचो; अंति: दिज्यो भवभव सेव रे, गाथा - ९. ११६०१०. पार्श्वजिन स्तोत्र, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १, जैवे. (१३.५४४, ५४३२). पार्श्वजिन स्तवन, प्रा., पद्य, आदि: तं नमह पासनाहं धरणि अति इयनाउं सरह भगवंतं, गाथा-४. " ११६०१८. प्रत्याख्यान आगार संख्या सह अर्थ, संपूर्ण, वि. २०वी श्रेष्ठ, पृ. १, प्र. वि. सारिणीयुक्त, वे. (२४४१४, १८४३८). प्रत्याख्यान आगारसंख्या गाधा, संबद्ध, प्रा., पद्य, आदि दो चेव नमोक्कारे अति संचेवतहा उगाहिमदंवद सविगई, गाथा-३, (वि. कोष्टकसहित.) प्रत्याख्यान आगारसंख्या गाथा-अर्थ, मा.गु., गद्य, आदि: अन्नत्थणाभोगेणं; अंति: रोटी लेतां भंजे नही. ११६०२० (+) मुतीसाना ढालीया, अपूर्ण, वि. २०वी श्रेष्ठ, पृ. १. पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. प्र. वि. संशोधित. दे. (२५४१४, " " १४X३३). शत्रुंजयतीर्थे मोतीशाट्रंक स्तवन- अंजनशलाकाइतिहासयुक्त, पं. वीरविजय, मा.गु., पद्य, आदि : उठी प्रभाते प्रभु; अति: (-). (पू.वि. गाथा १७ अपूर्ण तक है.) ११६०२१. नववाड सज्झाव, संपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पृ. ३, जैवे. (२५.५x१४, १४४३३). "" For Private and Personal Use Only Page #72 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२६ ५७ ९ वाड सज्झाय, उपा. उदयरत्न, मा.गु., पद्य, वि. १७६३, आदिः श्रीगरुने चरणे नमी; अंति: हो तेहने जाउ भामणे, ढाल-१०, गाथा-४३. ११६०२४. जलयात्रा वडघोड़ा स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, प्रले. श्राव. नेमचंद उजमसी शाह; पठ. श्रावि. पसीबाई, प्र.ले.पु. सामान्य, दे., (२४.५४१३.५, ११४३४). जलयात्रा वरघोडा स्तवन, म. वीरविजय, मा.गु., पद्य, आदि: हवे सामग्री सवी सज; अंति: सने सेउरता धरमनी टेक, गाथा-१५. ११६०२५. नववाड सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९३०, माघ कृष्ण, १, मध्यम, पृ. ३, ले.स्थल. मांडल, प्रले. श्राव. बेचरदास बाबा गांधी, प्र.ले.पु. सामान्य, दे., (२५४१३.५, १२४२८-३२). ९वाड सज्झाय, उपा. उदयरत्न, मा.गु., पद्य, वि. १७६३, आदि: श्रीगुरुने चरणे नमी; अंति: उदयरतन राखो निरमली, ढाल-१०,गाथा-४३. ११६०२६. (+) शासनदेवी वधावो, संपूर्ण, वि. १९६०, श्रावण शुक्ल, २, मध्यम, पृ. १, ले.स्थल, जयपुर, पठ. मु. उत्तमचंद, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित., दे., (२५४१३.५, ११-१४४३३). शासनदेवी वधावागीत, मा.गु., पद्य, आदि: सरसति सामणि वीनवु रे; अंति: वरत्या जयजयकार रे, गाथा-२८. ११६०२७. पार्श्वजिन स्तवन, संपूर्ण, वि.२०वी, मध्यम, पृ. १, दे., (२४.५४१३, ९४२९). पार्श्वजिन स्तवन, पंन्या. पद्मविजय, मा.गु., पद्य, आदि: जिनजी त्रेवीशमो जिन; अंति: के भवसायर तरे रे, गाथा-५. ११६०२८. लब्धि बोल, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, दे., (२४४१३.५, १७४४२). २२२ बोल-लब्धि २१ द्वार, मा.गु., गद्य, आदि: मतिज्ञाननी विषइ केतलि; अंति: केवलनाणना पज्जवा अनंतगुणा. ११६०२९. ज्ञानपंचमी सज्झाय, संपूर्ण, वि. १८५७, मध्यम, पृ. १, पठ. मु. दलीचंद शिष्य, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. हुंडी:सज्झाय., जैदे., (२५४१३.५, ११४२५). ज्ञानपंचमीपर्व सज्झाय, मु. रिषजी, मा.गु., पद्य, आदि: गौतम पूछ भगवनसार पंचमी; अंति: कहै जैसे वते सिद्धगत लहै, गाथा-१२. ११६०३०. जीवराशि, संपूर्ण, वि. १९४५, भाद्रपद शुक्ल, ८, मध्यम, पृ. २, ले.स्थल. वीरमगाम, प्रले. श्राव. नेमचंद उजमसी शाह; पठ. श्रावि. पसीबाई, प्र.ले.पु. सामान्य, दे., (२५४१३.५, ११४३७). पद्मावती आराधना, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, वि. १७वी, आदि: हवे राणी पद्मावती; अंति: समयसुंदर० छुतइ तत्काल, ढाल-३, गाथा-३३. ११६०३१. (#) नेमनाथजी लावणी व नेमराजिमती लावणी, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २, कुल पे. २, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२३४१३.५, १३४२८). १.पे. नाम. नेमनाथजी लावणी, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. नेमराजिमती पद, मु. जिनदास, पुहि., पद्य, आदि: सजन समजाओ अपने मन कुं मत; अंति: आवता नीत उठ दरसन कुं, गाथा-४. २.पे. नाम. नेमराजिमती लावणी, पृ. १आ-२अ, संपूर्ण.. मु. जिनदास, पुहि., पद्य, वि. १७वी, आदि: तुम तज करि राजुल नार; अंति: जिनदास० पाय गया गिरवर रे, गाथा-७. ११६०३२. स्थापकस्तस्योत्पत्ति वर्णननाम रास, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. २, दे., (२४४१३.५, १६४३६). रत्नविजय रास, मा.गु., पद्य, वि. १९३३, आदि: सरसत गणपत दीजियौ; अंति: वरणियोजी सांडेराव मझार, ढाल-५, (वि. अंत में औपदेशिक दहा दिया है.) ११६०३३. पजुसणनी सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, प्रले. मु. रणछोड, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२४.५४१३.५, १५४३७). पर्युषणपर्व सज्झाय, मु. जगवल्लभ, मा.गु., पद्य, आदि: प्रथम प्रणमु सरस्वती; अंति: जगवल्लभ गुण गाय सदा, गाथा-१६. For Private and Personal Use Only Page #73 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ११६०३४. वीसस्थानक चैत्यवंदन व स्तवनादि संग्रह, संपूर्ण, वि. १९२७, फाल्गुन शुक्ल, १२, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ४, ले.स्थल. बावागाम, अन्य. सा. चतराजी; श्राव. टेकचंद; श्रावि. भूरादे टेकचंद, प्र.ले.प. सामान्य, प्र.वि. "सा.चतराजीरा बैटा टेकचंदजी तस भार्या श्रावकणी बाइ भूरादेजी वृधसाखीयं पोरवारग्यातीयं वीसस्थानकरो ओलीरो उजमणों कीधो छै." अंत में ऐसा उल्लिखित है., दे., (२४.५४१३.५, १३४२७). १. पे. नाम. २० स्थानकतप चैत्यवंदन, पृ. १अ, संपूर्ण. पंन्या. पद्मविजय, मा.गु., पद्य, वि. १९वी, आदि: पहिले पद अरिहंत नमुं; अंति: नमतां होय सुख खाणी, गाथा-५. २. पे. नाम. वीस स्थानकतप चैत्यवंदन, पृ. १अ, संपूर्ण. २० स्थानकतप चैत्यवंदन-कायोत्सर्गसंख्यागर्भित, पंन्या. पद्मविजय, मा.गु., पद्य, वि. १९वी, आदि: चोवीस पन्नर पिस्तालीशनो; अंति: नमी निज कारज साधे, गाथा-५. ३. पे. नाम. अरिहंत पद, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण.. २० स्थानकतप स्तवन, आ. लक्ष्मीसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीअरिहंत पद ध्याइय; अंति: लक्ष्मी पद पाया रे, गाथा-७. ४. पे. नाम. २० स्थानकतप दहा, पृ. १आ, संपूर्ण. २० स्थानकतप दोहा, मा.गु., पद्य, आदि: अरिहंतादि पदानु कारण; अंति: ध्याइइं नमो नमो जिनभाण, गाथा-२. ११६०३५. लघुसंग्रहणी, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ४, प्र.वि. हुंडी:लघुसंग्रहणी., दे., (२४.५४१३.५, १४४२८). लघुसंग्रहणी-यंत्र, मा.गु., गद्य, आदि: खंडद्वार जंबूद्वीपरा; अंति: १ हजार योजन पृथवि मे छे.. ११६०३९. सुधर्मास्वामी व केशीगौतमगणधर गुंहली, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, दे., (२५४१३, १४४३१). १. पे. नाम. सुधर्मास्वामी गंहुली, पृ. १अ, संपूर्ण. सुधर्मास्वामी भास, मा.गु., पद्य, आदि: चंपानयरी उद्यान; अंति: साद गुयली गीत भणेरी, गाथा-७. २. पे. नाम. केशीगौतमगणधर गुंहली, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. केशीगौतमगणधर गहुंली, मा.गु., पद्य, आदि: सावथी उद्यानमा रे; अंति: करी गुहली रंगरसाल रे, गाथा-७. ११६०४०. अष्टमीदिन स्तुति, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, पठ. श्रावि. बीजीवाई, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२४.५४१३.५, १२४३९). अष्टमीतिथिपर्व स्तुति, उपा. राजरत्न, मा.गु., पद्य, आदि: अष्टमी जिन चंद्रप्रभ; अंति: राजरत्न वाचक सुखकार, गाथा-४. ११६०४१. औपदेशिक सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९५३, मार्गशीर्ष शुक्ल, ८, मध्यम, पृ. १, पठ. सा. जयकुंवरश्री, प्र.ले.पु. सामान्य, दे., (२५४१३, १५४३३). औपदेशिक सज्झाय-लीखहत्यानिषेध, मु. शांतिकुशल, मा.गु., पद्य, वि. १६७५, आदि: सरसुति मत सुठ दो माय लीख; अंति: शांतिकुश० सिवसुख वरो, गाथा-१४. ११६०४२. दस पच्चक्खाण स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. २, प्र.वि. हुंडी:दश., दे., (२६४१४, १६४३५). १० पच्चक्खाणफल स्तवन, पं. रामचंद्र गणि, मा.गु., पद्य, वि. १७३१, आदि: सिद्धारथनंदन नमुं; अंति: रामचंद तपविधि भणे, ढाल-३, गाथा-३३. ११६०४३. (+) आदिजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., अ., (२१x१३.५, १३४२५). आदिजिन स्तवन, मा.गु., पद्य, आदि: जोवा चालो हे सहियां आदि; अंति: सिवसुख प्रेम इच्छंत, गाथा-९. ११६०४४. नारकी बोलसंग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. २, दे., (२४४१३.५, ५४१०). देव-नारकी बोल संग्रह, मा.गु., को., आदि: (-); अंति: (-). ११६०४५. (+) जंबूस्वामी सज्झाय, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ३, प्र.वि. हुंडी:जंबुजी०., संशोधित., दे., (२१४१४, १३४२६). जंबूस्वामी सज्झाय, रा., पद्य, आदि: राजगृही नगरीरा वासी; अंति: वंदना नित उठि परभातो, गाथा-३१. ११६०४६. जीवविचार प्रकरण, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ४, दे., (२३४१४, १०४२३). जीवविचार प्रकरण, आ. शांतिसूरि, प्रा., पद्य, वि. ११वी, आदि: भुवणपईवं वीरं नमिऊण; अंति: संतिसूरि०सुयसमुद्दाओ, गाथा-५१. For Private and Personal Use Only Page #74 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२६ ५९ ११६०४८. दशवैकालिकसूत्र व आगमिक गाथा संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, जैदे., (२४५१३.५, १०४३२). १.पे. नाम. दशवैकालिकसूत्र-अध्ययन-२ से अध्ययन-३ गाथा-१ तक, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. दशवैकालिकसूत्र, आ. शय्यंभवसरि, प्रा., पद्य, वी. रवी, आदिः (-); अंति: (-), (प्रतिअपूर्ण, पृ.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., अध्ययन-३ गाथा-१ तक लिखा है.) २. पे. नाम. आगमिक गाथा संग्रह, पृ. १आ, संपूर्ण. प्रा., प+ग., आदि: जसोभद्दानं मुनी उपसंग; अंति: वितही आयरेणइयारो. ११६०४९. देववंदन विधि व पच्चक्खाण पारण विधि आदि संग्रह, संपूर्ण, वि. १८८४, भाद्रपद शुक्ल, ८, मध्यम, पृ. ४, कुल पे. ८, ले.स्थल. सोजत, प्रले. पं. कस्तुरहर्ष, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२४.५४१४, १४४३१-३४). १. पे. नाम. देववंदन विधि, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. प्रा.,मा.गु., गद्य, आदि: प्रथम खमासण देइ इरियावही; अंति: सर्व० मांगल्यं ताइ कहीजें. २. पे. नाम. पच्चक्खाण पारण विधि, पृ. १आ-२अ, संपूर्ण. पच्चक्खाण पारने की विधि, प्रा.,मा.गु., गद्य, आदि: खमास० इरियावही प० ४ नवकार; अंति: तस मिच्छामि दुक्कडं. ३. पे. नाम. संथारापोरसी विधि, पृ. २अ-३अ, संपूर्ण. प्रा.,मा.ग., प+ग., आदि: प्रथम खमासणा देइ इच्छा०; अंति: इय सम्मत्तं मए गहियं, गाथा-११. ४. पे. नाम. मन्हजिणाणं सज्झाय, पृ. ३अ, संपूर्ण. मन्हजिणाणं सज्झाय-तपागच्छीय, संबद्ध, प्रा., पद्य, आदि: मनह जिणाणं आणं मिळू; अंति: निच्चं सुगुरूवएसेणं, गाथा-५. ५. पे. नाम. चवदे नेमरा नाम, पृ. ३अ, संपूर्ण.. १४ श्रावकनियम गाथा, प्रा., पद्य, आदि: सच्चित्त दव्व विगई; अंति: ब्रह्म दिस नावण भत्तिसुं, गाथा-१. ६. पे. नाम. सिद्धचक्र स्तुति, पृ. ३अ-४आ, संपूर्ण. नवपद नमस्कार, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: नमोनंत संत प्रमोद प्रधानं; अंति: ज्ञानविमल०जयकार पावे, गाथा-२२. ७. पे. नाम, वरकनक स्तुति, पृ. ४आ, संपूर्ण. संबद्ध, सं., पद्य, आदि: वरकनक शंखविद्रम; अंति: सर्वामरपूजितं वंदे, श्लोक-१. ८. पे. नाम. विशाललोचनदल स्तुति, पृ. ४आ, संपूर्ण. संबद्ध, सं., पद्य, आदि: विशाललोचनदलं; अंति: नौमि बुधैर्नमस्कृतम्, श्लोक-३. ११६०५३. सिद्धाचल थुई, युगमंधरजिन थुई व सीमंधरस्वामी चैत्यवंदनादि संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ४, जैदे., (२२४१४, १३४२९). १. पे. नाम. शत्रुजयतीर्थ स्तुति, पृ. १अ, संपूर्ण, पे.वि. इस स्तुति को ४ बार बोलने का उल्लेख मिलता है. मु. सुमतिविजय, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीविमलाचल भावे प्रणमो; अंति: सुमतिविजय चितधारोजी. २. पे. नाम. युगमंधरजिन स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण, पे.वि. इस स्तुति को ४ बार बोलने का उल्लेख मिलता है. युगमंधरजिन स्तुति, मु. सुमतिविजय, मा.गु., पद्य, आदि: दिनउ गमते वंदु श्रीयुग; अंति: सुमतिविजय करंत, गाथा-१. ३. पे. नाम, महावीरजिन स्तवन, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. महावीरजिन स्तुति, मु. सुमतिविजय, मा.गु., पद्य, आदि: चैत्र सुदि दिन तेरसेए; अंति: सुमतिविजय जयकारतो, गाथा-४. ४. पे. नाम. सीमंधरजिन चैत्यवंदन, पृ. १आ, संपूर्ण. मु. सुमतिविजय, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीसीमंधरजगत्प्रभु; अंति: सुमतिवि० होज्यो नित्यसवार, गाथा-५. ११६०५६. (#) सरस्वती स्तोत्र, महालक्ष्मी स्तोत्र व तुलजाभवानी स्तोत्रादि संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ६, प्र.वि. मूल पाठ का अंश खंडित है, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२३४१४, ३४४२२-२६). १. पे. नाम. सरस्वतीदेवी स्तोत्र, पृ. १अ, संपूर्ण. For Private and Personal Use Only Page #75 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra ६० www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ब्रह्मा, सं., पद्य, आदि आरुढा श्वेतहंसे भुमति: अंतिः सरस्वत्य प्रीयतान् मम श्लोक-३. २. पे. नाम. सरस्वती स्तोत्र, पृ. १अ, संपूर्ण, प्रले. श्राव. राजपाल घेला, प्र.ले.पु. सामान्य. सरस्वतीदेवी स्तोत्र, सं., पद्य, आदि: ह्रीं ह्रीं हृद्यैक बीजे, अंति: गोप्यंलोक दुर्लभं श्लोक-१२. ३. पे. नाम, महालक्ष्मी स्तोत्र, पृ. १आ, संपूर्ण. महालक्ष्मी स्तव, सं., पद्य, आदि: आद्यं प्रणवस्ततः; अंति: सर्वदा भूतिमिछता, श्लोक-११. ४. पे. नाम. तुलजाष्टक स्तोत्र, पृ. १आ, संपूर्ण. तुलजाभवानी स्तोत्र, शंकराचार्य, सं., पद्य, आदि हंसारूढ महाप्रसन्न, अंति: भुक्तिमुक्तिफलप्रदं श्लोक-१२. ५. पे. नाम. भैरव मंत्र, पृ. १आ, संपूर्ण, वि. १८२५, चैत्र शुक्ल, १३, प्रले. ऋ. ऋषीराज, प्र.ले.पु. सामान्य. ह्रीं श्रीं क्रीं क्लीं; अंति देहि सिद्धिर्भवतु स्वाहा. सं., गद्य, आदि ॐ ६. पे. नाम. शिवाष्टक, पृ. १आ, संपूर्ण. शंकराचार्य, सं., पद्य, आदि प्रभुं प्राणनाथं विभुं अंतिः सा च मोक्ष प्रवाति, गाथा- ९. ११६०६६ औपदेशिक सज्झाय, संपूर्ण, वि. २०वी श्रेष्ठ, पृ. १, वे. (३०.५४१३, २३४११-१३) , . औपदेशिक सज्झाय, मा.गु., पद्य, आदि सजे घण सुभट ठठ फोज गढ कोट; अति हलुक्रम सिव ते देख हर गाथा ९. " १९६०६७ पंचांगुलीमाता मंत्र, संपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पृ. १, जैवे. (२२.५X१४, ११४३०). पंचांगुली माता मंत्र, मा.गु. सं., गद्य, आदिः ॐनमो पंचांगुली परसर अति ॐ ठः ठः ठः स्वाहा, १९६०८४. अरणिकमुनि सज्झाय, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, प्रले. श्राव. बेचरदास बाबा गांधी, प्र.ले.पु. सामान्य, जैये., (२३X१४, १३X२०). अरणिकमुनि सज्झाय, मु. रूपविजय, मा.गु., पद्य, आदि: अरणिक मुनिवर चाल्या; अंति: मनवंछित फल लाधो जी, गाथा-८. 3 १९६०८६ (+) आदिजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. १९४१, ज्येष्ठ अधिकमास कृष्ण, १ शुक्रवार, मध्यम, पृ. १, प्रले. मु. गुमानचंद-शिष्य पठ. सा. हंसाबाई महासतीजी अन्य. सा. भावाजी; सा. असलाजी, प्र.ले.पु. मध्यम, प्र. वि. संशोधित, दे. (२२.५x१४, २०x१८). आदिजिन स्तवन, मु. केसर, मा.गु., पद्य, आदि जे जगनायक जगगुरु जी अति: केसर कहै० दरसण सुखकंद, गाथा-५. ११६०८७ (-) नेमराजिमती सज्झाव, संपूर्ण, वि. २०वी श्रेष्ठ, पृ. १, प्र. वि. अशुद्ध पाठ. वे. (२२४१३.५, १२-१४४३६)नेमराजिमती सज्झाय, मु. चंदनलाल, मा.गु., पद्य, आदि: पीरथम मनाउ पद सीरी नोकार; अंति: चंदनलाल० वीकट जावोगे, गाथा-२३. १९६०८८. चौद गुणठाणा विचार, संपूर्ण, वि. १९१वी, मध्यम, पृ. ४, जैवे. (२०.५४१३.५, ५x१०). गुणठाणा विचार, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), (वि. सारिणीयुक्त) ११६०९०. धन्नाकाकंदी सज्झाय, अपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पृ. २- १ (१) १, जैये. (२१.५४१३.५, ९x१५). "" 2 धन्नाकाकंदी सज्झाय, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, आदि (-); अंति (-), (पू. वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं व प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., गाथा- १० अपूर्ण से है व १५ तक लिखा है.) " ११६०९१. कर्मस्तव, बंधस्वामित्व व १४ गुणस्थानक के कर्मप्रकृति बंध बोल, अपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पू. ५-४(१ से ४)=१, कुल पे. ३, जैवे. (२३४१४, ११४३०). १. पे. नाम. कर्मस्तव नव्य कर्मग्रंथ २ सह बालावबोध, पू. ५अ, अपूर्ण, पू. वि. मात्र अंतिम पत्र है. कर्मस्तव नव्य कर्मग्रंथ २, आ. देवेंद्रसूरि, प्रा., पद्य वि. १३वी १४वी आदि (-); अंति: बंदीयं नमह तं वीरं, गाथा-३४, (पू.वि. गाथा-३३ अपूर्ण से है.) कर्मस्तव नव्य कर्मग्रंथ-२- बालावबोध*, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: वादुं नमस्कार करुं छं. For Private and Personal Use Only २. पे. नाम. १४ गुणस्थानक के कर्मप्रकृति बंध बोल, पू. ५अ, संपूर्ण. मा.गु., गद्य, आदि पहिले गुणठाणे ११७नु बंध; अति (-) (वि. अंतिम वाक्य आंशिकरूप से खंडित है.) ३. पे. नाम. बंधस्वामित्व नव्य कर्मग्रंथ सह बालावबोध, पृ. ५आ, अपूर्ण, पू.वि. मात्र प्रथम पत्र है. Page #76 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२६ बंधस्वामित्व नव्य कर्मग्रंथ-३, आ. देवेंद्रसूरि, प्रा., पद्य, वि. १३वी-१४वी, आदि: बंधविहाणविमुक्कं; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-२ तक है.) बंधस्वामित्व नव्य कर्मग्रंथ-३-बालावबोध *, मा.गु., गद्य, आदि: बंधना कारण सत्तावन हेतु; अंति: (-). ११६०९३ (+) सिद्धचक्र स्तुति, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १,प्र.वि. हुंडी:स्तुति., संशोधित., जैदे., (१६४१३.५, ११४२१). सिद्धचक्र स्तुति, मु. माणेकविजय, मा.गु., पद्य, आदि: आसो चैत्र आंबिल ओली; अंति: नितनित जयजयकारीजी, गाथा-४. ११६०९४. (+#) अष्टमीतिथिपर्व स्तवन, पच्चक्खाण पारने की विधि व छींक विचार, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ३-२(१ से २)=१, कुल पे. ३, प्र.वि. संशोधित. मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., (२४.५४१३.५, १३४२४). १. पे. नाम. अष्टमीतिथिपर्व स्तवन, पृ. ३अ, अपूर्ण, पृ.वि. मात्र अंतिम पत्र है. मु. कांतिविजय, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: (-); अंति: कांति सुख पामे घणा, ढाल-२, गाथा-२४, (पू.वि. गाथा-१४ अपूर्ण से है.) २. पे. नाम, पच्चक्खाण पारने की विधि, पृ. ३अ-३आ, संपूर्ण. प्रा.मा.ग., गद्य, आदि: इरियावही ४ नो० प्रगट: अंति: तस मिच्छामि दक्कडम. ३. पे. नाम. छींक विचार, पृ. ३आ, संपूर्ण. संबद्ध, मा.गु.,सं., गद्य, आदि: अतिचार कह्या पहिला; अंति: छिक दक्षण मिटे सही. ११६०९५ (+) पंचकल्याणक मंगल, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २, प्र.वि. हुंडी:पंचमंगलश्राव., टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२३.५४१३.५, १२४२२). पंचकल्याणक मंगल, मु. रूपचंद्र, मा.गु., पद्य, आदि: पणमवि पंच परम गुरु; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., गाथा-५ अपूर्ण तक लिखा है.) ११६०९६ (+) छम्मासीतप स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, प्र.वि. संशोधित., दे., (२४.५४१३, ९४२२). छमासीतप स्तवन, मा.गु., पद्य, आदि: गौतमस्वामी रे बुध दो; अंति: आपो स्वामी सुख घणा, गाथा-९. ११६०९७(+) इरियावही सज्झाय, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, पठ. सा. जीतश्री; गुपि.सा. जीवकोरश्री जी, प्र.ले.प. सामान्य, प्र.वि. अन्वय दर्शक अंक युक्त पाठ-संशोधित., दे., (२४.५४१३.५, १४४३२). इरियावही सज्झाय, संबद्ध, पं. वीरविजय, मा.गु., पद्य, वि. १९वी, आदि: गुरु सनमुख रहि; अंति: वरते एकवीस वरस हजार, गाथा-१४. ११६१०३. औपदेशिक सज्झाय-दर्मतिविषये, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ.२, दे., (२३.५४१३.५, १२४३२). औपदेशिक सज्झाय-दर्मतिविषये, मा.गु., पद्य, आदि: हो दरमति वेरण थइ लीधो रे; अंति: ज घर आवे हो प्रीतमजी, ढाल-३, गाथा-२१. ११६१०४. विहरमानशाश्वतजिन स्तवन व अष्टमीतिथिपर्व चैत्यवंदन, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, दे., (२३४१३, १३४२६). १. पे. नाम. विहरमानशाश्वतजिन स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण. आ. हेमखेमसूरि, मा.ग., पद्य, आदि: विहरमान जिन वीस वीस नित; अंति: नमू शाश्वताजिनवर बंब, गाथा-७. २. पे. नाम, अष्टमीतिथिपर्व चैत्यवंदन, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. पंन्या. पद्मविजय, मा.गु., पद्य, वि. १९वी, आदि: महा सुदी आठमने दिने; अंति: पद्मने नमता होय सुख, गाथा-७. ११६१०५ (+) चौपड खेलण सज्झाय, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १,प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित., दे., (२२४१३, ११४३४). औपदेशिक सज्झाय-चौपट, आ. रत्नसागरसूरि, रा., पद्य, आदि: अरे माहरा प्राणीया; अंति: रतनसागर कहै सूर रे, गाथा-८. ११६१०६. ८ योगदृष्टिगुण सज्झाय, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, दे., (२१४१३, ११४२१). For Private and Personal Use Only Page #77 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ८ योगदृष्टिगण सज्झाय, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., पद्य, आदि: शिवसुख कारण उपदिशे योगतणी; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., ढाल-५ गाथा-२ तक लिखा है.) ११६१०७. (+#) सामायिक लेने की विधि, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. २, प्र.वि. पंचपाठ-संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२२४१३.५, १३४२८). सामायिक लेने की विधि, संबद्ध, मा.गु., गद्य, आदि: पवित्र वस्त्र पहिरीजेने; अंति: जे दूजा कपडा पहिरी जे. ११६१०८. (+) क्षमाछत्रीसी, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ३, प्र.वि. संशोधित. मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., (२३४१२.५, १२४२२). क्षमाछत्रीसी, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, आदि: आदरि जीव खिमागुण आदर म; अंति: संघ जगीश जी, गाथा-३६. ११६१०९. (+#) अंतरीक्ष पार्श्वनाथ स्तवन व अष्टमीनी थुई, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२४.५४१४, १७४४५). १. पे. नाम. अंतरीक्ष पार्श्वनाथ स्तवन, पृ. १आ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तवन-अंतरीक्षजी, उपा. विनयविजय, मा.गु., पद्य, वि. १७१९, आदि: आज मनोरथ मुझ फल्या सफल; ___ अंति: वीनवे विनयविजय उवज्झाय, गाथा-१५. २. पे. नाम. अष्टमीनी थुई, पृ. १आ, संपूर्ण. अष्टमीतिथिपर्व स्तुति, आ. जिनसुखसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: चोवीसे जिनवर प्रणमुं; अंति: जीवित जनम प्रमाण, गाथा-४. ११६११० (+) भवानी छंद व तपपद सज्झाय, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २,प्र.वि. संशोधित., दे., (२४४१३, १३४४८). १.पे. नाम, भवानी छंद, पृ. १अ, संपूर्ण. अंबिकादेवी छंद, मा.गु., पद्य, आदि: सदा पूर्ण ब्रह्मांड; अंति: प्रेमसुं अंबनो छंद गाता, गाथा-१५. २. पे. नाम. तपपद सज्झाय, पृ. १आ, संपूर्ण. मु. धीरविजय, मा.गु., पद्य, आदि: सर्व देवमा देव नमे; अंति: पास धीर मुनि गाजे, गाथा-११. ११६१११ (+) द्विजवदनचपेटानामवेदाकश, संपूर्ण, वि. १९५२, चैत्र शुक्ल, ६, मध्यम, पृ. ४, प्र.वि. हुंडी:द्विजमुखचपे., पदच्छेद सूचक लकीरें-टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित., दे., (२४४१३, ११-१५४४७-५२). द्विजवदनचपेटा, आ. हरिभद्रसूरि, सं., पद्य, आदि: कूर्मवामनमीनाद्यैरवत; अंति: तस्य तिष्ठति विप्राः. ११६११२. शालिभद्र चौपाई-ढाल २ से ५, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ४, प्र.वि. हुंडी:सालभद्र., जैदे., (२३४१३, ८-१०४२५-२८). शालिभद्र चौपाई, आ. जिनराजसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), प्रतिपूर्ण. ११६१२२. आलोयणा छत्तीसी, संपूर्ण, वि. १९४५, आषाढ़ कृष्ण, १४, मध्यम, पृ. ३, ले.स्थल. बिदासर, प्रले. य. धर्मचंदजी, प्र.ले.पु. सामान्य, दे., (२४४१३, ११४३४). पद्मावती आराधना, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, वि. १७वी, आदि: हिव राणी पदमावती जीवारास; अंति: मुज मिच्छामि दुक्कडं, ढाल-३, गाथा-३५. ११६१२३. पार्श्वजिन स्तवन, पद्मप्रभजिन स्तवन व प्रास्ताविक दोहा संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ३, जैदे., (२२४१३.५, १८४३३). १.पे. नाम. पार्श्वजिन स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण. मु. जिनेंद्रसागर, मा.गु., पद्य, आदि: वामानंदन जिन प्रणमीइ नित; अंति: पइ जिनेंद्रसागर नित मेवा, गाथा-८. २. पे. नाम. पद्मप्रभजिन स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण. उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., पद्य, आदि: कोसंबी नयरी भलीजी; अंति: इहांजी सेवो ए जिनराज, गाथा-५. ३. पे. नाम. प्रास्ताविक दोहा संग्रह, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. For Private and Personal Use Only Page #78 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२६ www.kobatirth.org पु.ि, मा.गु., पद्य, आदि ते धन खाधो सजना ते धन अति मानवा देख काम के काम दोहा-३. ११६१२५. (a) कल्पसूत्र-लक्षण विचार, अपूर्ण, वि. २०वी मध्यम, पृ. १. पू. वि. मात्र प्रथम पत्र है. प्र. वि. द्विपाठ अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२४X१२.५, १०X३०). कल्पसूत्र - बालावबोध, मु. खीमाविजय, मा.गु, गद्य वि. १७०७ आदि (-); अंति: (-), प्रतिपूर्ण ११६१३७. ७ नय विचार, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, वे. (१७.५४१३, १२x१९) ७ नय विचार, मा.गु., गद्य, आदि: नैगम नय नैगम नय वालाने अतिः अर्थ करे ते मृषावाद जाणवो. ११६१३८. (#) भक्तामर स्तोत्र की भाषा, अपूर्ण, वि. १८५३, ज्येष्ठ कृष्ण, २, मध्यम, पृ. ९-८ (१ से ८) = १, ले.स्थल. मेडतानगर, प्रले. श्राव. स्वरूपचंद मथेन, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२१.५X१३, १३X२७). भक्तामर स्तोत्र-लोक ४८ पद्यानुवाद, आव, हेमराज पांडे, पुहिं., पद्य, आदि (-); अंति ते पावही शिवखेत, गाथा-५०, (पू.वि. गाथा-४५ अपूर्ण से है.) י' Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir मु. ४. पे नाम शालिभद्रमुनि सज्झाय, पृ. ३अ ४अ, संपूर्ण. ११६१३९. (+) १३ काठिया सज्झाय, प्रास्ताविक पद व गुणठाणा सज्झाय आदि संग्रह, अपूर्ण, वि. १९०८, चैत्र १, मध्यम, पृ. ४-१(१)=३, कुल पे. ४, ले. स्थल. मेदपुर, प्रले. गणेशराम ब्राह्मण, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., प्र.ले. लो. (१) यादृशं पुस्तकं दृष्ट्वा, दे. (२१.५४१३.५, १४४२९) १. पे. नाम. १३ काठिया सज्झाय, पृ. २अ-२आ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र हैं. मु. हेमविमलसूरि-शिष्य, मा.गु., पद्य, आदि (-); अंति: सही हेमविमलसूरि से कही, गाथा १५ (पू. वि. गाथा- २ अपूर्ण से है.) २. पे. नाम. प्रास्ताविक पद, पृ. २आ, संपूर्ण. औपदेशिक गीत, उपा. समयसुंदर गणि, पुहिं., पद्य, आदि: आए तीन जणे व्यापारी; अंति: सब रहिज्यो हुसीयारी, गाथा - ३. ३. पे. नाम. गुणठाणा सज्झाय, पृ. ३अ, संपूर्ण, प्रले. मु. भाणविमल, प्र.ले.पु. सामान्य. खांतिविमल, मा.गु., पद्य, आदि: वीरजिनेश्वरवा दिने कहे; अंति : सीस खांति वन प्रमाणो रे, गाथा-५. ६३ मु. सहजसुंदर, मा.गु., पद्य, आदि प्रथम गोवाला तणइ भविजी; अति: सहजसुंदरनी वाण, गाथा १५. ११६१४०. (*) नमस्कार महामंत्र सह बालावबोध, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ३-१ (१) - २, प्र. वि. हुंडी नव. अर्थ., संशोधित. दे., " (२०x१२.५, १५x२९). नमस्कार महामंत्र, शाश्वत, प्रा., पद्य, आदि: (-); अंति: पढमं हवई मंगलं, (पू.वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं., पद- ३ से है.) नमस्कार महामंत्र बालावबोध, मा.गु., गद्य, आदि (-); अंति: (-), (पू.वि. बीच के पत्र हैं., पद-२ के बालावबोध अपूर्णसे है व अंतिम पद अपूर्ण तक है.) ११६१४९ (१) ऋषभदेवजीनो स्तोत्र, शांतनाथ त्रिभंगी छंद व विषापहार स्तोत्र, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ४, कुल पे, ३, प्र. वि. मूल पाठ का अंश खंडित है, दे. (१६४१३, १५x२७). " १. पे नाम ऋषभदेवजीनो स्तोत्र, पृ. १अ २अ संपूर्ण आदिजिन स्तवन, मु. किसन, मा.गु, पद्य, आदि: श्रीऋषभ जिणेसर जगतसिर; अंति इम मुनी कीसन भणी, गाथा - १८. २. पे. नाम. शांतनाथ त्रिभंगी छंद, पृ. २अ - ३अ, संपूर्ण. शांतिजिन छंद-त्रिभंगी, जै. क. बनारसीदास, पुहिं., पद्य, आदि: विश्वसेन कुल कमल; अंति: वानारसी० जय जितकरन, गाथा-९, (वि. गाथाक्रम भिन्न है.) ३. पे नाम. विषापहार स्तोत्र. पू. ३अ-४आ, अपूर्ण, पू.वि. प्रारंभ के पत्र हैं. आ. अचलकीर्ति, पुहिं, पद्य वि. १७१५, आदि: आतमलीन अनंतगुण घ्यावं; अंति: (-), (पू.वि. गाथा ३३ अपूर्ण तक " है.) " ११६१५०. (A) सवैया इकतीसा झांझरा की वालि, अपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पृ. १, पू. वि. मात्र प्रथम पत्र है. प्र. वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे. (२२.५४१३.५ १२४३५). For Private and Personal Use Only Page #79 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ६४ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची पार्श्वजिन स्तुति, श्राव. बनारसीदास, पुहिं., पद्य, आदि: करम भरम जगतिमर हरन; अंति: द्रिग लीला की ललक मै, सवैया-३, संपूर्ण. ११६१५१ (+) शांतजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, प. २,प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित., जैदे., (२३४१३, ७४१८). शांतिजिन स्तवन, म. खेम, मा.गु., पद्य, वि. १७४२, आदि: श्रीशांतिजिनेसुर; अंति: सिद्ध श्रीसंघ धरै, गाथा-१३. ११६१५७. पार्श्वजिनवरमहिम्न स्तोत्र, अपूर्ण, वि. १९३२, माघ कृष्ण, ८, गुरुवार, श्रेष्ठ, पृ. ५-२(१ से २)=३, प्रले. अंबाराम लाधाराम जोषी; पठ. श्राव. लीलाधर प्रेमजी, प्र.ले.प. सामान्य, प्र.वि. हुंडी:महि., दे., (२१४१३.५, १३४२८). पार्श्वजिनमहिम्न स्तोत्र, आ. रघुनाथ, सं., पद्य, वि. १८५७, आदिः (-); अंति: रचित लिखितो मोदभरतः, श्लोक-४१, (पृ.वि. अंत के पत्र हैं., श्लोक-१५ अपूर्ण से है.) ११६१६८. प्रतिक्रमणहेतुगर्भित स्वाध्याय, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, दे., (२८x१२, ४४५२). प्रतिक्रमणहेतुगर्भित स्वाध्याय, संबद्ध, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., पद्य, वि. १७४४, आदि: श्रीजिनवर प्रणमी; ___ अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., ढाल-१ गाथा-१ अपूर्ण तक लिखा है.) ११६१७१. पल्लीपतन विचार व पंचांगानयन प्रकार, अपूर्ण, वि. १८७३, मार्गशीर्ष कृष्ण, १३, मध्यम, पृ. ३-२(१ से २)+१(३)=२, कुल पे. २, जैदे., (२६.५४१२, १५४४१). १.पे. नाम. पल्लीपतन विचार, पृ. ३अ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र हैं. मा.गु.,सं., गद्य, आदि: (-); अंति: पडे तो संतान वृद्धि कहे, (पू.वि. कृतिका नक्षत्र विचार अपूर्ण से है.) २. पे. नाम. पंचांगानयन प्रकार, पृ. ३अ-३आ, संपूर्ण. पंचांगविधि दोहा, म. मेघराज, मा.गु., पद्य, वि. १७२३, आदि: गवरीनंद आनंद करि; अंति: मेघराज० सुगम भांति सुखकाज, गाथा-५४. ११६१७२ (+) संखेश्वर पार्श्वनाथ स्तवन सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १९०८, चैत्र कृष्ण, १२, मध्यम, पृ. २, प्रले. मु. रंगविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित., दे., (२८x१२, ४४३९). पार्श्वजिन स्तवन-शंखेश्वर, पं. वीरविजय, मा.गु., पद्य, आदि: सहजानंदी शीतल सुख; अंति: वीर० घर तेडतां दोय घरी, गाथा-९. पार्श्वजिन स्तवन-शंखेश्वर-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: माथे म ढूंकी ने महीयानी; अंति: परे इहां पण दल एकज जाणवो. ११६१७३. भोजराजानो दृष्टांत, संपूर्ण, वि. १८८४, श्रावण शुक्ल, ३, मध्यम, पृ. १, प्रले. पं. प्रतापविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२८.५४१२, २०४५४). कल्पसूत्र-व्याख्यान+कथा की गंगा तेली दृष्टांत कथा, मा.गु.,सं., गद्य, आदि: कश्चित् विप्र देशे गत्वा; अंति: मारुवचन० निप्फल होइं नहिं. ११६१७५ (#) बृहत्संग्रहणी सह बालावबोध, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ३, पृ.वि. प्रारंभ के पत्र हैं., प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२८x१२, १६४५४). बृहत्संग्रहणी, आ. चंद्रसूरि, प्रा., पद्य, वि. १२वी, आदि: नमिउं अरिहंताई ठिइ; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-१९ अपूर्ण तक बृहत्संग्रहणी-बालावबोध, ग. दयासिंह, मा.गु., गद्य, वि. १४९७, आदि: नत्वा श्रीवीरजिनं; अंति: (-). ११६१८२. ३३ बोलनो थोकडो, अपूर्ण, वि. १९५०, ज्येष्ठ शुक्ल, १५, रविवार, मध्यम, पृ. ६-५(१ से ५)=१, ले.स्थल. खंभात, प्रले. मु. प्रागजी; पठ. सा. भगिनी बाई, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. हुंडी:३३ बोल., दे., (२७४१२, १९x४१-४७). ३३ बोल थोकडो, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: ऊंचे आसने बेसे तो आसातना, (पू.वि. अंत के पत्र हैं., "वैराग्य राखवानो" पाठ से है.) ११६१८३. श्रीपाल रास, अपूर्ण, वि. १८१७, ?, कार्तिक, श्रेष्ठ, पृ. ६-३(१ से ३)=३, ले.स्थल. श्रीपत्तन, प्रले. ग. अमरविजय (गुरु ग. लक्ष्मीविजय); गुपि. ग. लक्ष्मीविजय (गुरु पंन्या. कमलविजय, तपागच्छ), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. प्रतिलेखन पुष्पिका में संवत् १७ लिखा है., जैदे., (२७४१२, १९४६४-६७). For Private and Personal Use Only Page #80 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२६ श्रीपाल रास-लघु, मु. जिनहर्ष, मा.गु., पद्य, वि. १७४२, आदि: (-); अंति: सुणतां सदा कल्याण, ढाल-२०, गाथा-२७१, (पू.वि. अंत के पत्र हैं., गाथा-१३० अपूर्ण से है.) ११६१८५ (#) पार्श्वजिन लावणी व ऋषभदेवनी लावणी, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २-१(१)=१, कुल पे. २, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२७.५४१२.५, १५४४९). १.पे. नाम. पार्श्वजिन लावणी, पृ. २अ-२आ, अपूर्ण, पृ.वि. प्रथम पत्र नहीं है. पार्श्वजिन लावणी-गोडीजी, पंन्या. रूपविजय, पुहिं., पद्य, आदि: (-); अंति: पामे चिद परमानंदा, गाथा-१६, (पू.वि. गाथा-६ अपूर्ण से है.) २.पे. नाम, ऋषभदेवनी लावणी, पृ. २आ, अपूर्ण, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. आदिजिन लावणी-धुलेवामंडन, मा.गु., पद्य, आदि: षडगदेश धुलेव नग्र हे ऋषभ; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-८ अपूर्ण तक है.) ११६१८९ (+) शनिश्चर स्तोत्र, संपूर्ण, वि. १८५७, ज्येष्ठ कृष्ण, ६, मध्यम, पृ. १, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२६४१२, ११४४०). शनिश्चर स्तोत्र, मु. केसरकीर्ति, सं., पद्य, आदि: सुखदमर्चकृतं च शनिश्चरं; अंति: विफलं वांछित फलं, श्लोक-१७. ११६१९० (#) संभवजिन स्तवन व शांतिजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२८.५४११.५, ९४३४). १. पे. नाम, संभवजिन स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण. म. जीतविमल, मा.गु., पद्य, आदि: संभवजनवर नेनजी मनथी कुंड; अंति: जीतविमल जीव सुख वरस्ये, गाथा-९. २. पे. नाम, शांतिजिन स्तवन, पृ. १आ, संपूर्ण. मु. जीतविमल, मा.गु., पद्य, आदि: संती जिनेसर साहिबा रे; अंति: रे जीतविमल गुण गाय, गाथा-७. ११६१९१. जीवउत्पत्ति सज्झाय, संपूर्ण, वि. १८७७, कार्तिक कृष्ण, १०, मध्यम, पृ. २, ले.स्थल. बीजापुर, प्रले. पं. निधानविजय गणि; पठ. श्राव. गुलाबचंद, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२८x११.५, १६x४०-४७). औपदेशिक सज्झाय-गर्भावास, म. श्रीसार, मा.गु., पद्य, आदि: उत्पति जोज्यो आपणी; अंति: रंगे इम कहे श्रीसार, गाथा-७२. ११६१९२. (+#) ज्ञाताधर्मकथांगसूत्र, अपूर्ण, वि. १७वी, मध्यम, पृ. १२७-१२४(१ से १२४)=३, पृ.वि. बीच के पत्र हैं., प्र.वि. हुंडी:ज्ञाता०सूत्र., संशोधित. मूल पाठ का अंश खंडित है, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२८x११.५, १४४४४). ज्ञाताधर्मकथांगसूत्र, आ. सधर्मास्वामी, प्रा., प+ग., आदिः (-); अंति: (-), (पू.वि. श्रुतस्कंध-१ अध्ययन-१७ अपूर्ण ११६१९७. सरस्वतीदेवीनो छंद व गोडीजीनो छंद, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ३, कुल पे. २, जैदे., (२८x१२, १२४२९). १. पे. नाम, सरस्वतीदेवी छंद, पृ. १अ, संपूर्ण. मा.., पद्य, आदि: मोजदेयण तुं सरसति माता; अंतिः सदा समरुं हुं नाम सवेरा, गाथा-५. २.पे. नाम. गोडीजी नो छंद, पृ. १अ-३आ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तवन-गोडीजी, मु. सुंदर, मा.गु., पद्य, आदि: जपता प्रभु जाप संताप जावे; अंति: कहे धवल धींग गोडी धणी, गाथा-३९. ११६१९९ (+) जिनशतक-परिच्छेद १ सह अवचूरि, संपूर्ण, वि. १७वी, मध्यम, पृ. १, प्र.वि. पंचपाठ-पदच्छेद सूचक लकीरें., जैदे., (२६४११, १७४५९-६८). जिनशतक, मु. जंबू कवि, सं., पद्य, वि. १००१-१०२५, आदि: श्रीमद्भिः स्वैर्महो; अंति: (-), प्रतिपूर्ण. जिनशतक-अवचूरि, सं., गद्य, आदि: एष सूर्यो भुवनं विश; अंति: (-), प्रतिपूर्ण. ११६२००, नवपद स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, दे., (४०४२७.५, १०४३९). नवपद लावणी, क. बाल, पुहि., पद्य, वि. १९१७, आदि: जगत में नवपद जयपद जयकारि; अंति: आश बाल कहे नवपद जयाकारि, गाथा-६. For Private and Personal Use Only Page #81 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ६६ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ११६२०५. नेमनाथजीरो पंचढालियो, संपूर्ण, वि. १९१५, मध्यम, पृ. २, ले.स्थल. बगेरा, प्रले. श्राव. सदाकुंवर, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. हुंडी:रनेमी, रेहनेमी., दे., (२७.५४११.५, १९x४०-४४). रथनेमिराजिमती पंचढालियो, म. रायचंद ऋषि, रा., पद्य, वि. १८५४, आदि: अरिहंत सिद्धने आरिया; अंति:रीष रायेचंद कीनी जोड रे, ढाल-५. ११६२०६. १२ भाव ग्रहना फल, संपूर्ण, वि. १८३४, श्रावण शुक्ल, १०, बुधवार, श्रेष्ठ, पृ. ३, जैदे., (२६.५४११.५, १६४४४-४९). चमत्कारचिंतामणि-पद्यानुवाद, मु. श्रीसार, पुहिं., पद्य, वि. १७वी, आदि: युं विचार जोतिक कहो कहे; अंति: सकोमलमति मायावंत उदास, दोहा-१०८. ११६२२०. नवपद पूजा, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ६-५(१ से ५)=१, प्रले. मु. देवविमल, प्र.ले.पु. सामान्य, दे., (२७४१२, ९४३४). नवपद पूजा, पंन्या. पद्मविजय, मा.गु., पद्य, वि. १८३८, आदिः (-); अंति: सम पद्मविजय गुण गायो, ढाल-९, (पू.वि. मात्र अंतिम पद की पूजा है.) ११६२२३. (#) पंचषष्टि स्तोत्र व प्रास्ताविक दोहा संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२६.५४११.५, ५४१०). १. पे. नाम, पंचषष्टि स्तोत्र, पृ. १अ, संपूर्ण. २४ जिन स्तोत्र-पंचषष्टियंत्रगर्भित, म. सखनिधान, सं., पद्य, आदि: आदौ नेमिजिनं नौमि; अंति: मोक्षलक्ष्मी निवासम्, श्लोक-९. २.पे. नाम. प्रास्ताविक दोहा संग्रह, पृ. १अ, संपूर्ण. प्रास्ताविक दोहा संग्रह *, पुहिं.,मा.गु.,रा., पद्य, आदि: उपरि अंबर० निझरण वहेत; अंति: सांथरि हकियं सूयंपाट, गाथा-४. ११६२२५. (+) उत्तराध्ययनसूत्र-अध्ययन ३६, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ८-४(१ से २,४,६)=४, पू.वि. बीच-बीच के पत्र हैं., प्र.वि. हुंडी:उत्तरा०., संशोधित., जैदे., (२८.५४१२, १३४३९). उत्तराध्ययनसूत्र, मु. प्रत्येकबुद्ध, प्रा., प+ग., आदि: (-); अंति: (-), (प्रतिअपूर्ण, पू.वि. गाथा-१२ अपूर्ण से ३६ अपूर्ण तक, गाथा-४६ अपूर्ण से ७५ अपूर्ण तक व गाथा-८९ अपूर्ण से १४५ अपूर्ण तक है.) ११६२२६. (#) गुणस्थानक्रमारोह सह स्वोपज्ञ टीका, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २०-१९(१ से १९)=१, पू.वि. मात्र बीच का ही एक पत्र है., प्र.वि. पत्रांक भाग खंडित होने के कारण पत्रांक अनुमानित दिया गया है., मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., (२८x१२, १३४५३). गणस्थानक्रमारोह, आ. रत्नशेखरसूरि, सं., पद्य, वि. १४४७, आदिः (-); अंति: (-), (पू.वि. श्लोक-१०० से १०६ __ अपूर्ण तक है.) गुणस्थानक्रमारोह-स्वोपज्ञ टीका, आ. रत्नशेखरसूरि, सं., गद्य, वि. १४४७, आदि: (-); अंति: (-). ११६२२९ पंचकल्याणक स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, ले.स्थल. कालावड, प्रले. लीलाधर ठक्कर; अन्य. मु. कीसाजी (गुरु मु. कानजी); गुपि. मु. कानजी, प्र.ले.पु. सामान्य, दे., (२७४१२, १५४३४). पंचकल्याणक स्तवन, मु. हेमचंद ऋषि, मा.गु., पद्य, वि. १८९३, आदि: सरसती चरण नमी करी हरखे; अंति: हेमचंद० हतो समरु सीच मन, गाथा-२३. ११६२३० (+) परमात्मप्रकाश की टीका, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. १, पृ.वि. मात्र प्रथम पत्र है., प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें-संशोधित., जैदे., (२७४११.५, ११४३२). परमात्मप्रकाश-टीका, आ. ब्रह्मदेवसूरि, सं., गद्य, वि. १६वी, आदि: (१)चिदानंदैकरूपाय जिनाय, (२)श्रीयोगींद्रदेवकृत; अंति: (-), (पू.वि. अध्याय-१ 'तदनंतर द्रव्यगुण पर्याय' पाठांश तक है.) ११६२३१. ज्ञानचिंतामणी दोहा व मान परिहार सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ४, कुल पे. २, प्रले. मु. मयाराम (गुरु मु. गुजरातीमल); गुपि. मु. गुजरातीमल, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२६४१२, १५४४३). १. पे. नाम. ज्ञानचिंतामणी दोहा, पृ. १अ-४आ, संपूर्ण. For Private and Personal Use Only Page #82 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ..) हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२६ मु. मनोहरदास, मा.गु., पद्य, वि. १७२८, आदि: सकल विद्या वरदायनी; अंति: उपगरि करि कहै मनोहरदास, गाथा-१२८. २.पे. नाम. मान परिहार सज्झाय, पृ. ४आ, संपूर्ण. मा.गु., पद्य, आदि: मान न कीजै रे मानवी; अंति: सो घडी० निरफल जाए रे, गाथा-९. ११६२३२. (+) प्रतिलेखन पुष्पिका पत्र (दि.), अपूर्ण, वि. १६८४, मार्गशीर्ष कृष्ण, १०, मध्यम, पृ.५२-५१(१ से ५१)=१, ले.स्थल. पाडलीपुर, दत्त. श्राव. हेमराज श्रेष्ठि; गृही. मु. ब्रह्मनेमिसागर (गुरु मु. ब्रह्मवादिराज); गुपि. मु. ब्रह्मवादिराज (गुरु भट्टा. सकलकीर्ति), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें-टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२८.५४११.५, ६४३१). प्रतिलेखन पुष्पिका पत्र संग्रह-छुटक*, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. मात्र प्रतिलेखन पुष्पिका है., वि. किसी दिगंबर प्रत का छुटक पत्र है.) ११६२३५ (+) द्रव्यगुणपर्याय रास, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ३-१(१)=२, पृ.वि. बीच के पत्र हैं., प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२६.५४११.५, १३४३१). द्रव्यगुणपर्याय रास, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., पद्य, वि. १७२९, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. गाथा-१० अपूर्ण से गाथा-४६ अपूर्ण तक है.) ११६२४०. नेमिजिन चरित्र, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, जैदे., (२७४११.५, १६४४८). नेमिजिन चरित्र, मु. जेमल ऋषि, मा.गु., पद्य, वि. १८७४, आदि: नयर सोरीपुरी राजीयो रे सम; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., गाथा-१४ अपूर्ण तक लिखा है.) ११६२४८. सामायिक पौषध व राईप्रतिक्रमण विधि, अढार भार वनस्पति व संध्याप्रतिक्रमण विधि आदि संग्रह, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ४, कुल पे. ४, दे., (२८x११, १७४३३-३६). १.पे. नाम. सामायिक, पौषध व राईप्रतिक्रमण विधि, पृ. १अ-२आ, संपूर्ण. पौषध व राईप्रतिक्रमण विधि-खरतरगच्छीय, संबद्ध, मा.गु., गद्य, आदि: पहैली इरियावही पडिक्कमी; अंति: सवेर को पडिकमणो पूरो हुवो. २. पे. नाम. अढार भार वनस्पति, पृ. २आ-३अ, संपूर्ण. १८ भार वनस्पति गाथा, क. शुभ, मा.गु., पद्य, आदि: प्रथम कोडि अडतिसलाख मण; अंति: हुवो तोही गरभन की कदा, गाथा-३. ३. पे. नाम. संध्याप्रतिक्रमण विधि, पृ. ३अ-४आ, संपूर्ण. देवसिप्रतिक्रमण विधि-खरतरगच्छीय, संबद्ध, प्रा.,मा.गु.,सं., प+ग., आदि: सामायिक लैइ वैविकि जयति; अंति: मिच्छामि दक्कडं. ४. पे. नाम. पाक्षिक विधि, पृ. ४आ, अपूर्ण, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. ___ पौषध लेवा विधि-खरतरगच्छीय, संबद्ध, मा.गु., गद्य, आदि: प्रथम घर थकी निश्चै थइ; अंति: (-), (पू.वि. 'मांडल पाहै। जयणा कीज्यै' पाठांश तक है.)। ११६२५२. २० सखी सज्झाय, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., जैदे., (२६.५४११.५, ११४३४). २० सखी सज्झाय, मु. गोरधन, मा.गु., पद्य, आदि: उत्तम साध पधारीया; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-१५ अपूर्ण तक है.) ११६२५३. (+#) दशोठण विधि, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२७४११.५, १६७५३). _भोजन विच्छित्ति, मा.गु., गद्य, आदि: मांड्यो उतंग तोरण; अंति: (-), (पू.वि. 'लिरावडा घणें घोलें भीत' पाठांश तक है.) ११६२५७. (+) जंबूस्वामी रास, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ३, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२७४११, १७७५१). जंबूस्वामी रास, श्राव. देपाल भोजक, मा.गु., पद्य, वि. १५२२, आदि: गोयम गणहर पय नमी; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-१०४ अपूर्ण तक है.) ११६२५९ (+#) जिनशतक, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. २-१(१)=१, पृ.वि. मात्र बीच का ही एक पत्र है.,प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-पदच्छेद सूचक लकीरे-संशोधित. मूल व टीका का अंश नष्ट है, जैदे., (२९.५४११, १७४६०). For Private and Personal Use Only Page #83 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची जिनशतक, मु. जंबू कवि, सं., पद्य, वि. १००१-१०२५, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. द्वितीय परिच्छेद है.) ११६२६५ (#) जैनधर्मसम्मत संदर्भश्लोक संग्रह, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. २७-२३(१ से २३)=४, पू.वि. बीच के पत्र हैं., प्र.वि. मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., (२६.५४११, १८४५४). श्लोक संग्रह जैनधार्मिक, प्रा.,सं., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. वास्तुविद्योक्त जिनभवन विषयक श्लोक से दया विषयक श्लोक अपूर्ण तक है.) ११६२६७. वरदत्तगुणमंजरी चौपाई, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ५-१(१)=४, पृ.वि. बीच के पत्र हैं., जैदे., (२७.५४११.५, १२४४३). वरदत्तगुणमंजरी चौपाई-ज्ञानपंचमीफलमाहात्म्ये, मु. ऋषभसागर, मा.गु., पद्य, वि. १७४८, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. ढाल-१ की गाथा-१३ से ढाल-७ की गाथा-९ अपूर्ण तक है.) ११६२६८.(2) भक्तामर स्तवन, संपूर्ण, वि. १८वी, जीर्ण, पृ. ४, प्रले. मु. राघव ऋषि (गुरु म. जीवाजी ऋषि); गुपि. मु. जीवाजी ऋषि (गुरु मु. जयताजी ऋषि); मु. जयताजी ऋषि; पठ. श्रावि. रुखाबाई, प्र.ले.पु. मध्यम, प्र.वि. हुंडी:भक्तामर., मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., (२६४११.५, ११४३६). ___ भक्तामर स्तोत्र, आ. मानतुंगसूरि, सं., पद्य, आदि: भक्तामरप्रणतमौलि; अंति: मानतुंग० लक्ष्मीः , श्लोक-४४. ११६२७० (+) ४९ पच्चक्खाँ भांगा यंत्र, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. २, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. हुंडी:भांगा०., पदच्छेद सूचक लकीरें., दे., (२८x११.५, १४४८-४६). प्रत्याख्यान ४९ भांगा, प्रा.,मा.गु.,सं., गद्य, आदि: नकरेमी मणसा नकरेमी वयसा; अंति: नकारवेमि करतं मणसा कयसा, संपूर्ण. ११६२७४. दोषपृच्छा, सारानो विचार व अढार नातरा विचार, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २-१(१)=१, कुल पे. ३, जैदे., (२५४१०.५, १५४४८-५१). १. पे. नाम. दोषपृच्छा विचार, पृ. २अ-२आ, संपूर्ण. मा.गु.,सं., प+ग., आदि: ध्वजेन क्षेत्रपाल स्यात्; अंति: दानं दत्ते नीरोगी स्यात्. २. पे. नाम. वर्षेश राजामंत्रीधान्येशादि विचार, पृ. २आ, संपूर्ण. मा.गु., गद्य, आदि: चैत्र सुदि १ प्रतिपदानो; अंति: जे वारी होई दुर्गेश थाई. ३. पे. नाम, अढार नातरा विचार, पृ. २आ, संपूर्ण. १८ नातरा विचार, मा.गु., गद्य, आदि: देहर माहरो धणीना भाइ माटइ; अंति: (-), (अपूर्ण, पृ.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., बालक संबंधी छ: नातरा तक लिखा है., वि. अंत में एक औपदेशिक दोहा दिया है.) ११६२७८. पार्श्वधरणेद्रपद्मावती स्तोत्र व द्वादशमासराशिशकुन फल यंत्र, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. २-१(१)=१, कुल पे. २, जैदे., (२६.५४११.५, ६x४६). १. पे. नाम. पार्श्वधरणेद्रपद्मावती स्तोत्र, पृ. २अ, अपूर्ण, पू.वि. प्रथम पत्र नहीं है. ___सं., गद्य, आदि: (-); अंति: (१)आज्ञापयति स्वाहा, (२)शाकिनी ज्वररोग प्रतिचो०, (पू.वि. "शांति कुरु कुरु" पाठांश से है.) २. पे. नाम. द्वादशमासराशिशकुन फल यंत्र, पृ. २आ, संपूर्ण. ज्योतिषयंत्र संग्रह, मा.गु.,सं., को., आदि: (-); अंति: (-). ११६२७९ (+) सरस्वती अष्टक, उत्तमबोल स्वाध्याय व कालीमाता स्तोत्रादि संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, प. ५-४(१ से ४)=१, कुल पे. ४, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२७४११, १५४५२). १. पे. नाम. सरस्वती अष्टक, पृ. ५अ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र हैं. सरस्वतीदेवी छंद, आ. दयासूरि, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: श्रीराजराणी सरस्वती, गाथा-९, (पू.वि. मात्र अंतिम गाथा है.) २.पे. नाम. उत्तमबोल स्वाध्याय, पृ. ५अ, संपूर्ण. औपदेशिक छंद, पंडित. लक्ष्मीकल्लोल, मा.गु., पद्य, आदि: भगवती भारती चरण नमेव; अंति: धरम रंग मन धरजो चोल, गाथा-१६. For Private and Personal Use Only Page #84 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२६ ३. पे. नाम. कालीमाता स्तोत्र, पृ. ५आ, संपूर्ण. कालिकामाता स्तोत्र, गिरधारी, मा.ग., पद्य, आदि: करी सेवनां ताहरी मात देवो; अंति: महादःख भाजे भजो मातकाली, गाथा-८. ४. पे. नाम. औपदेशिक दूहो, पृ. ५आ, संपूर्ण. औपदेशिक दोहा *, पुहिं., पद्य, आदि: एक आंखे कांणों भाजे भांणो; अंति: लड तो इ सौम देजो भर्तार, दोहा-१. ११६२८० (+#) जिनप्रतिष्ठा गणराशिनाडीवर्गादि विचार, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ. मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., (२५.५४११.५, ५४१०). जिनप्रतिष्ठा गणराशिनाडीवर्गादि विचार, सं., प+ग., आदि: ०बिंबकारयितु श्वमिथो योनि; अंति: (-), (पू.वि. २४ जिन योनिगण वर्ग प्रत्यादि कोष्टक तक है.) ११६२८३. (+) त्रिषष्टिशलाकापुरुष चरित्र पर्व-१०, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ९-८(१ से ८)=१, पू.वि. मात्र बीच का ही एक पत्र है., प्र.वि. पत्रांक लिखा न होने के कारण अनुमानित पत्रांक दिया गया है., टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२७.५४११, १२४४६). त्रिषष्टिशलाकापुरुष चरित्र, आ. हेमचंद्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., पद्य, वि. १२२०, आदि: (-); अंति: (-), (प्रतिअपूर्ण, पू.वि. सर्ग-११ श्लोक-१५८ अपूर्ण से श्लोक-१८८ अपूर्ण तक है.) । ११६२८४. (+) कल्पसूत्र सह बालावबोध, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ४-३(१ से ३)=१, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरे-संशोधित., जैदे., (२८x११.५, १६x४७). कल्पसूत्र, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., गद्य, आदि: तेणं कालेणं० समणे; अंति: (-), (पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., महावीर च्यवन कल्याणक प्रसंग अपूर्ण तक है.) कल्पसूत्र-बालावबोध*, मा.गु.,रा., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), पृ.वि. मात्र बीच का ही एक पत्र है. ११६२८७. सिंदूरप्रकर सह टीका, अपूर्ण, वि. १७वी, मध्यम, पृ. १४-१३(१ से १३)=१, पू.वि. मात्र बीच का ही एक पत्र है., जैदे., (२८x११, १५४४१). सिंदूरप्रकर, आ. सोमप्रभसूरि, सं., पद्य, वि. १३वी, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. श्लोक-८५ से श्लोक-९१ तक है.) सिंदरप्रकर-टीका, सं., गद्य, आदि: (-); अंति: (-). ११६२८८ (-) औपदेशिक सज्झाय-कायाउपर, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, ले.स्थल. वीरमगाम, प्रले. श्राव. शांतिलाल लवजी ___ शाह, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. अशुद्ध पाठ., दे., (२७४११, ९४३७). औपदेशिक सज्झाय, मु. उदय, मा.गु., पद्य, आदि: भुलो मनभमरा तुं कांइ भमें; अंति: तो काइ आवेजी साथ, गाथा-८. ११६२९३. (#) स्थूलभद्र कोशा हमची व ७ सगपण गीत, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६४११, १३४३१). १. पे. नाम. थूलभद्रकोशा हमची, पृ. १अ, संपूर्ण. स्थूलिभद्रमुनि सज्झाय, मु. शिवचंद, मा.गु., पद्य, आदि: थूलिभद्र मुनीसर आए हम; अंति: धन श्रीथूलिजिणइ कोशा बाली, गाथा-७. २. पे. नाम. ७ सगपण गीत, पृ. १आ, अपूर्ण, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. मु. भावहर्ष, मा.गु., पद्य, आदि: जीव विमासी निज मनइ रे सगप; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-१० अपूर्ण तक है.) ११६२९४. १४ गुणस्थानक विचार, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, जैदे., (२६४११, १२४४१). १४ गुणस्थानक विचार, मा.गु., गद्य, आदि: पहिलो गुण ठाणो मिथ्यात; अंति: मुकायै सासता सुख लहै. ११६२९५. रथनेमिराजिमती सज्झाय, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, दे., (२६.५४१०.५, १०४२९). रथनेमिराजिमती सज्झाय, मु. रूपविजय, मा.गु., पद्य, आदि: काउसग ध्याने मुनि रहे; अंति: निर्मल सुंदर देह रे, गाथा-९. ११६२९६. (+) आत्मशिक्षा सज्झाय व वैराग्य अष्टक, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २-१(१)=१, कुल पे. २, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२५.५४११, १४४४३-५०). For Private and Personal Use Only Page #85 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ७० कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १.पे. नाम, आत्मासीख भमरा गीत, पृ. २अ-२आ, संपूर्ण. औपदेशिक सज्झाय, म. माल, मा.गु., पद्य, आदि: वाडी फली अति भली मन; अंति: कवि माल रंग भमन भमरा रे, गाथा-१९. २. पे. नाम. वैराग्य अष्टक, पृ. २आ, संपूर्ण. सं., पद्य, आदि: जन्म दःखं जस दःखं; अंति: हेया हेयं च कुर्व्वतः, श्लोक-८. ११६२९७ (+) स्तवन संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ५-१(१)=४, कुल पे. १८,प्र.वि. संशोधित-टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२५.५४११, १५४४४-४९). १.पे. नाम, वीर स्तवन, पृ. २अ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र हैं. महावीरजिन स्तवन, उपा. क्षमाकल्याण, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: पुर की क्षमाकल्याण उलसाया, गाथा-५, (पू.वि. गाथा-१ अपूर्ण से है.) २. पे. नाम. पावापुरीमंडण वीरजिन स्तवन, पृ. २अ, संपूर्ण. पावापरीमंडन-महावीरजिन स्तवन, उपा. क्षमाकल्याण, मा.गु., पद्य, आदि: वीर प्रभु त्रिभुवन उपगारी; अंति: क्षमाकल्याण० गुण गाए है, गाथा-५. ३. पे. नाम. वीर स्तवन, पृ. २अ-२आ, संपूर्ण. महावीरजिन स्तवन, उपा. क्षमाकल्याण, मा.गु., पद्य, आदि: इण वन स्वामी समोसर्या चलौ; अंति: है कहै जैसे क्षमाकल्यानरी, गाथा-९. ४. पे. नाम, आध्यात्मिक पद, पृ. २आ, संपूर्ण. मु. क्षमाकल्याण, पुहिं., पद्य, आदि: किन देखावे शिवगामी हमारा; अंति: महागुन प्रगट भये निजधामी, गाथा-५. ५.पे. नाम, आदिजिन पद, पृ. २आ, संपूर्ण. आदिजिन स्तवन, वा. क्षमाकल्याण, मा.गु., पद्य, आदि: आदीसर जिनराज; अंति: क्षमा० विनती करै जी, गाथा-५. ६.पे. नाम. जिनवाणी माहात्म्य पद, पृ. २आ-३अ, संपूर्ण. जिनवाणीमाहात्म्यवर्णन स्तवन, उपा. क्षमाकल्याण, मा.गु., पद्य, आदि: सुनियै रे प्रानी जिनजी; अंति: प्रकासन करण क्षमाकल्यानी, गाथा-५. ७. पे. नाम. सहसफणा पार्श्वस्तवन, पृ. ३अ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तवन-सहस्रफणा, उपा. अमृतधर्म, मा.गु., पद्य, वि. १८३६, आदि: सहसफणा प्रभुपासजी रे; अंति: अमृतधर्म०सारी जै सुभ काम, गाथा-७. ८. पे. नाम, पार्श्वजिन स्तवन, पृ. ३अ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तवन-जीरावला, उपा. क्षमाकल्याण, मा.गु., पद्य, आदि: जीरावलै जिनराजजी ललना लला; अंति: सीस क्षमाकल्याण, गाथा-५. ९.पे. नाम. पार्श्वजिन स्तवन, पृ. ३अ, संपूर्ण. ___ पार्श्वजिन स्तवन-फलवर्द्धि, उपा. अमृतधर्म, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीफलवर्द्धिपुर जइय; अंति: प्रभु गुन गावैरे, गाथा-५. १०. पे. नाम. शत्रुजयमंडण ऋषभजिन वीनती स्तवन, पृ. ३आ-४अ, संपूर्ण. आदिजिन स्तवन-शत्रुजयतीर्थमंडन, उपा. क्षमाकल्याण, मा.गु., पद्य, वि. १८५४, आदि: जिनजी आदिपुरुष; अंति: आपो सुख अविकार हो, गाथा-११. ११. पे. नाम. गिरनारमंडन नेमिजिन स्तवन, पृ. ४अ, संपूर्ण. नेमिजिन स्तवन-गिरनारमंडन, उपा. क्षमाकल्याण, मा.गु., पद्य, वि. १९वी, आदि: श्रीयादवकुल मंडण स्वामी; अंति: सीस वाचक क्षमाकल्याणजगीस, गाथा-५. १२. पे. नाम. वीरप्रभु स्तवन, पृ. ४अ, संपूर्ण. महावीरजिन स्तवन, उपा. क्षमाकल्याण, मा.गु., पद्य, वि. १९वी, आदि: आज हृदयकमल प्रगट्यो आनंद; अंति: म० जयकारी होज्यो वीरस्वाम, गाथा-५. For Private and Personal Use Only Page #86 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२६ १३. पे. नाम. जिनागम गीत, पृ. ४अ-४आ, संपूर्ण. ___ आगम स्तवन, उपा. क्षमाकल्याण, मा.गु., पद्य, आदि: श्रुत अतिहि भलो संघ; अंति: क्षमाकल्याण सदा पावै, गाथा-७. १४. पे. नाम. अंतरिक्षपार्श्व स्तवन, पृ. ४आ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तवन-अंतरीक्षजी, उपा. क्षमाकल्याण, मा.गु., पद्य, वि. १९वी, आदि: म्हारा प्रभुजीनो दरसण; अंति: ण० प्रभुगुण निसदीसैं लाल, गाथा-७. १५. पे. नाम. ब्रहानपुरमंडन पार्श्वजिन स्तवन, पृ. ४आ-५अ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तवन-व्रहानपुरमंडन, उपा. क्षमाकल्याण, मा.गु., पद्य, वि. १९वी, आदि: मनमोहन मन धर रे तुं आतम; अंति: पयंपै चिंताभर परिहर रे, गाथा-३. १६. पे. नाम. मनमोहनपार्श्व स्तवन, पृ. ५अ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तवन, उपा. क्षमाकल्याण, मा.गु., पद्य, आदि: मनमोहन महाराज तीन; अंति: क्षमाकल्याण० वीनती करैजी, गाथा-७. १७. पे. नाम. ऋषभजिन स्तवन, पृ. ५अ, संपूर्ण. आदिजिन स्तवन, उपा. क्षमाकल्याण, मा.गु., पद्य, आदि: प्रभु मया करी दिल; अंति: ते सफल करौ प्रभु हेत धरी, गाथा-५. १८. पे. नाम. ऋषभजिन स्तवन, पृ. ५अ-५आ, संपूर्ण. आदिजिन स्तवन, मु. क्षमाकल्याण, मा.गु., पद्य, आदि: प्रात उठि समरियै; अंति: कल्याण चरणु की सेवा, गाथा-५. ११६३०१. दुष्कालबोधक श्लोकसंग्रह व भडली वाक्य, अपूर्ण, वि. १५३८, मध्यम, पृ. ५-४(१ से ४)=१, कुल पे. २, ले.स्थल. जासायलि, प्रले. ग. धर्मजय गणि, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२६.५४११.५, १५४३८-४५). १.पे. नाम. दष्कालबोधक श्लोकसंग्रह, पृ. ५अ-५आ, अपूर्ण, पृ.वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं. ___ आ. जिनप्रभसूरि, प्रा.,सं., पद्य, आदि: (-); अंति: धन्नं च समग्घयं होइ, (पू.वि. श्लोक-४ अपूर्ण से है.) २. पे. नाम, भडली वाक्य, पृ. ५आ, संपूर्ण. भडलीवाक्य, भडली, गु., पद्य, आदि: माह सुदि १ वादल करइ; अंति: दिन १४ वादल हुई सुगाल हुई. ११६३०२. महादेवी सूत्र सह दीपिका टीका, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ४, जैदे., (२६४११,११४३५-३७). महादेवी सूत्र, महादेव, सं., पद्य, आदि: सिद्धिं करोति राजकेंद्र; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., श्लोक-९ तक लिखा है.) महादेवी सूत्र-दीपिका टीका, वा. धनराज, सं., गद्य, वि. १६९२, आदि: श्रीनाभेयं जिनं नत्वा; अंति: (-), अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण. ११६३०५. वृद्धनवकार स्तोत्र व जिनदत्तसूरि अष्टक, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. २, कुल पे. २, जैदे., (१०४५, ११४४४). १. पे. नाम, वृद्धनवकार स्तोत्र, पृ. १अ-२आ, संपूर्ण. नमस्कार महामंत्र पद, आ. जिनवल्लभसूरि, मा.गु., पद्य, वि. १२वी, आदि: किं कप्पत्तरु रे आयाण; अंति: सेवा देज्यो नित्त, गाथा-२५. २. पे. नाम. जिनदत्तसूरि अष्टक, पृ. २आ, संपूर्ण. जिनदत्तसूरि गीत, आ. जिनवल्लभसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: सिरिसुयदेव पसाइ करो; अंति: मंगलकरण करउ पुण्य आणंद, गाथा-९. ११६३११. नेमराजिमती बारमासा, समकितनी सज्झाय व सीमंधरजिन स्तवन, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २-१(१)=१, कुल पे. ३, जैदे., (२५.५४११, १७X४०). १. पे. नाम. नेमराजिमती बारमासा, पृ. २अ, अपूर्ण, पू.वि. प्रथम पत्र नहीं है. मा.गु., पद्य, आदिः (-); अंति: एक विचार ते सिध जगेगी, गाथा-२२, (प.वि. गाथा-२० अपूर्ण से है.) २. पे. नाम. समकितनी सज्झाय, पृ. २अ, संपूर्ण, ले.स्थल. रतलाम. समकित सज्झाय, मा.गु., पद्य, आदि: नरग निगोद तणा दुखभारी; अंति: सूरत की शिवापुरीसु हटक्यो, गाथा-१०. For Private and Personal Use Only Page #87 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra ७२ www.kobatirth.org कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ३. पे. नाम. सीमंधरजिन स्तवन, पृ. २आ, संपूर्ण. मा.गु., पद्य, आदि: सीमंधर सायबा अरज सुणीजे अंति: (-) (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण. गाथा १२ अपूर्ण तक लिखा है.) ११६३१२. साधारणजिन स्तवन व नेमराजिमती गीत, अपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पू. २- १ (१) = १ कुल पे. २, प्र. वि. पत्रांक लिखा न होने के कारण अनुमानित पत्रांक दिया गया है., जैदे., (२५x१०.५, ८४३८-४२) १. पे नाम. साधारणजिन स्तवन, पू. २अ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र हैं. Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir मु. मानसिंह, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: सीस ऊपरे मानसिंघ इसो कहे, (पू.वि. ढाल - २ गाथा-५ अपूर्ण से है., वि. ढाल क्रमांक अनुमानित दिया है.) २. पे. नाम. नेमराजिमती गीत, पृ. २आ, संपूर्ण. मु. मल्लदास, मा.गु., पद्य, आदि: थाढी राजुल वीनवे रे पाय; अंति: म्हानु सोई भेष प्रमाण, गाथा-६. ११६३१३ राचाबत्तीसी, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २- १ (१) = १, ले. स्थल. वीकानेर, प्रले. मु. हेमचंद्र, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. पत्रांक लिखा न होने के कारण अनुमानित पत्रांक दिया गया है., जैवे. (२५.५४११, ९४४९). राचाबत्तीसी, श्राव. राचो, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: रुडां कहै छे राचो, गाथा- ३२, (पू.वि. गाथा - २४ अपूर्ण से है.) ११६३१४. सुमतिनाथ गीत व मल्लिनाथ गीत, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, जैदे., ( २६११, १३x४४). १. पे नाम. सुमतिनाथ गीत, पू. १ आ. संपूर्ण. सुमतिजिन पद, मु. जिनराज, मा.गु., पद्य, आदि: कर तांसु तउ प्रीति; अंति: बिरूद साचो वहे रे, गाथा-४. २. पे. नाम मल्लिनाथ गीत, पू. १आ, संपूर्ण, मल्लिजिन स्तवन, मु. जिनराज, मा.गु., पद्य, आदि: दास अरदास शीपरि करुं जी; अंति: सदाजी सकल तुं अकल , सरूप, गाथा ५. ११६३१५ (+) योगानुष्ठान विधि, संपूर्ण, वि. १७वी श्रेष्ठ, पू. १, प्र. वि. संशोधित. जैदे. (२५.५x११ २३४७२). 1 अनुयोग विधि, प्रा., मा.गु., सं., गद्य, आदि: मुहपत्ती पडिलेही; अंति: तज्जलव्यापारणे न दोष. ११६३१६. (+) पंचपरमेष्ठी स्तोत्र, अपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १, प्र. वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ संशोधित पदच्छेद सूचक लकीरें.. जैवे. (२५x११, १३४३६-४०). पंचपरमेष्ठी स्तोत्र, आ. मानतुंगसूरि, प्रा., पद्य, आदि भत्तिभर अमरपणयं पणमिय; अति: (-). (पू.वि. प्रारंभ के पत्र हैं. गाथा-२६ तक है., वि. टिप्पणयुक्त.) ११६३१७. कुगुरुपच्चीसी, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, दे., (२६X११, १५X४३). कुगुरुपच्चीसी, मु. तेजपाल, मा.गु., पद्य, आदि जिनवर प्रणमी सदा लही; अंति: ते गुरतीरसी नितारसी ते, गाथा- २३. ११६३१८. पार्श्वनाथ स्तुति, संपूर्ण वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १, जै.. (२६.५४११, ९४४४). 3 ११६३१० (+) पार्श्वजिन स्तुति-नाटिकावंध, आ. जिनकुशलसूरि, सं., पद्य, आदि ट्रें हैं कि धपः अंतिः दिशतु शासनदेवता, श्लोक-४. ६ द्रव्यगुणपर्याय विचार, अपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पृ. ६-२ (१ से २) ४, पू.वि. बीच के पत्र हैं.. प्र. वि. संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., ( २६११, १२X३७). ६ द्रव्य ७ नय विचार, मा.गु., गद्य, आदि (-); अंति: (-), (पू. वि. पुगलद्रव्य गुणवर्णन अपूर्ण से 'द्रव्यार्थकनो अर्थ कहे छे" पाठ तक है.) ११६३२० (#) जीवोत्पत्ति सज्झाय, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ४-१ (१) = ३, ले. स्थल. जैनगर, पठ. श्राव. माणिकचंद, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. अक्षरों की स्वाही फैल गयी है, दे. (२६.५X११, १२x२३). , औपदेशिक सज्झाय-गर्भावास, मु. श्रीसार, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: इम कहे श्रीसार ए, गाथा- ७२, (पू.वि. गाथा १७ अपूर्ण से है.) ११६३२१. चंदनमलयगिरी चौपाई, अपूर्ण, वि. १९०६, आषाढ कृष्ण, १२, श्रेष्ठ, पृ. १५-१३(१ से १३) -२, ले. स्थल अलायग्राम, प्रले. पं. पुन्यविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, दे., ( २६.५x११.५, ११X३५). For Private and Personal Use Only Page #88 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२६ www.kobatirth.org चंदनमलयगिरी चौपाई, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: भवप्राणीया जिम पामो भवपार, ढाल-८, गाथा-२७३, (पू.वि. डाल-८ गाथा १८ अपूर्ण से है.) ११६३२२. पार्श्वजिन स्तोत्र - गाथा १७, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १, जैदे., (२६×११.५, १४X३८). Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir पार्श्वजिन स्तोत्र- गाथा १७, प्रा. सं., पद्य, आदि उवसग १ विसहर० २ अति (-) (अपूर्ण, पू. वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., पद्मावतीदेवी मंत्र वर्णन तक लिखा है.) ११६३२३. (*) मानतुंगमानवती रास मृषावादविरमण अधिकारे, अपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पू. १, प्र. वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ.. जैवे. (२६११, १५४४७). , मानतुंगमानवती रास-मृषावादविरमण अधिकारे, मु. मोहनविजय, मा.गु., पद्य, वि. १७६०, आदि: ऋषभजिणंद पदांबुजे मन, अंति (-), (पू. वि. प्रारंभ के पत्र हैं. डाल- २ गाथा-५ अपूर्ण तक है.) "" ११६३२४. नवतत्त्व प्रकरण सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ३, पू.वि. प्रारंभ के पत्र हैं., जैदे., (२६X१०.५, १५X३८). नवतत्त्व प्रकरण ६० गाथा, प्रा., पद्य, आदि: जीवाजीवा पुन्नं पावा; अंति: (-), (पू.वि. गाथा - ३३ अपूर्ण तक है.) नवतत्त्व प्रकरण ६० गाथा - टबार्थ *, मा.गु., गद्य, आदि: जीवतत्त्व पुण्यतत्त्व; अंति: (-), (पू. वि. गाथा - १० से १२ तक का टवार्थ नहीं है.) १९६३२५. साधारणजिन स्तवन, ३४ अतिशय जिन स्तवन व आदिनाथजिन स्तवन आदि संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पृ. ८-४(१ से ४)=४, कुल पे. ५, जैदे., ( २६११, ११x४१). १. पे. नाम. साधारणजिन स्तवन, पृ. ५अ, अपूर्ण, पू. वि. अंत के पत्र हैं. आ. गुणसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: ते मनबंछित शिवसुख पावइ, गाथा-२२, (पू.वि. गाथा - १३ अपूर्ण से है.) २. पे नाम. ३४ अतिशय जिन स्तवन, पृ. ५आ-६अ, संपूर्ण. ३४ अतिशय वर्णनमय साधारणजिन स्तवन, मु. केशो, मा.गु., पद्य, आदि: स्वेद रोगमल रहित; अंति: भवि भवि तुम्ह पद सेवश्री गाथा ११. ३. पे. नाम. आदिनाथजिन स्तवन, पृ. ६अ-७अ, संपूर्ण. आदिजिन स्तवन-आहडपुरमंडन, मु. गुणसागर, मा.गु., पद्य, आदि: जिन जीम जाणे ते दिन; अंति: तुम्ह तूठा नंद रली, गाथा- २३. ४. पे. नाम. पंचतीर्थ चैत्यवंदन, पृ. ७अ-७आ, संपूर्ण. मु. गुणसागर, मा.गु., पद्य, आदि आदि जिनवर आदि जिनवर प्रथम, अंति: आनंदधरि करो हु निरंतर सेव, गाथा-६. ५. पे नाम, पनरतिथि सज्झाय, पृ. ७आ-८आ, संपूर्ण. ७३ १५ तिथि सज्झाय-औपदेशिक, मु. गुणसागर, मा.गु., पद्य, आदि पनरइ तिथि सहेलडी मिली आवड, अंति: वीनवइ गुणसागर उछाहि रे, गाथा - १८. ११६३२६. (+) सम्यक्त्वव्रतग्रहण विचार, नंदी स्तुति व परिष्ठापनिका विधि, संपूर्ण, वि. १७वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ३, प्र. वि. संशोधित टिप्पण युक्त विशेष पाठ, जैवे. (२६४११, २५४७१-७८). " १. पे. नाम. सम्यक्त्वव्रतग्रहण विचार, पृ. १अ - १आ, संपूर्ण. प्रा. गद्य, आदि: खमा० पुती० खमा० पंचमंगल; अति एसा पोसहपडिमा पडिवत्ती " २. पे नाम, नंदी स्तुति, पृ. १आ, संपूर्ण. नंदीसूत्र स्तुति, संबद्ध, सं., पद्य, आदि: अर्हस्तनोतु स श्रेय; अंति: विघ्नविघातदक्षाः, श्लोक ८. ३. पे नाम, परिष्ठापनिका विधि, पृ. १आ, संपूर्ण. परिष्ठापनिका विधि, प्रा., गद्य, आदि दिअनिसिमए पयकरंगु अंति: महिच्छिअ सज्झावखमणु सिवे. For Private and Personal Use Only ११६३२८. (+) ७ व्यसन निवारण सज्झाय व औपदेशिक सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९ वी, मध्यम, पृ. २, कुल पे. २, ले. स्थल. फतेगढ, प्रले. महाकुर, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. हुंडी : सातकु., संशोधित., जैदे., ( २६.५X१०.५, १३X३७-४०). १. पे. नाम. ७ व्यसन निवारण सज्झाय, पृ. १अ-२अ, संपूर्ण. Page #89 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ७४ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची मु. लालचंद ऋषि, मा.गु., पद्य, आदि: मनष जमारो पायन करणी कीजो; अंतिः समजो भाइ ऋष लालचंद इम गाइ, ढाल-४, गाथा-१६. २. पे. नाम, औपदेशिक सज्झाय, पृ. २आ, संपूर्ण. मा.गु., पद्य, आदि: जो हो जिन भजताखो चोघडियो; अंति: कयो न मानो ओछ पथर पाको, गाथा-८. ११६३२९. पार्श्वजिन स्तवन व चमत्कारचिंतामणि, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, दे., (२५.५४११, १३४२२). १.पे. नाम. पार्श्वजिन स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण.. पार्श्वजिन प्रभाति, मु. जिनहर्ष, मा.गु., पद्य, आदि: सारद वदन धन अमृत वाणी रूप; अंति: भाग्यदिसा अब जागी रे, गाथा-७. २. पे. नाम, चमत्कारचिंतामणि, पृ. १आ, अपूर्ण, पू.वि. मात्र प्रथम पत्र है. राजऋषिभट्ट, सं., पद्य, आदि: न चेत् खेचराः स्थापिताः; अंति: (-), (पू.वि. श्लोक-२ अपूर्ण तक है.) ११६३३२. (#) शांतिजिन स्तवन, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ४-३(१ से ३)=१, प्रले. तलजाराम बारोट, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६४११.५, १२४३३). शांतिजिन स्तवन, मु. अमृतविमल, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: लाला रिदये धरे ससनेह, गाथा-११, (पू.वि. अंत के पत्र हैं., गाथा-५ से है.) ११६३३६. राजसिंघ रास व षट्दर्शन स्तवन, अपूर्ण, वि. १८४८, फाल्गुन कृष्ण, ३०, श्रेष्ठ, पृ. १५-१४(१ से १४)=१, कुल पे. २, प्र.वि. श्री वरकाणाजी प्रासादात्., जैदे., (२७४१०.५, १४४४२). १.पे. नाम. राजसिंघ रास, पृ. १५अ, अपूर्ण, पृ.वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं. ग. कपूरविजय, मा.गु., पद्य, वि. १८२०, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., ढाल-१९ गाथा-२० ___ अपूर्ण से है व ढाल-२० के दोहा-२ अपूर्ण तक लिखा है.) २. पे. नाम. षट्दर्शन स्तवन, पृ. १५अ, संपूर्ण. औपदेशिक सज्झाय-षड्दर्शनप्रबोध, म. रूपचंद, पुहिं., पद्य, आदि: ओरन से रंग न्यारा; अंति: रूपचंद०सरण तिहारा है, गाथा-९. ११६३३७. (+) दंडक प्रकरण, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ९-८(१ से ८)=१,प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२६.५४११, ८४३५). दंडक प्रकरण, मु. गजसार, प्रा., पद्य, वि. १५७९, आदिः (-); अंति: (-), (पू.वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं व प्रतिलेखक द्वारा ___ अपूर्ण., गाथा-१६ अपूर्ण से है व गाथा-२९ अपूर्ण तक लिखा है.) ११६३३८. गौतमपृच्छा सह बालावबोध, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २-१(१)=१, पू.वि. मात्र बीच का ही एक पत्र है., प्र.वि. हुंडी:गोतमपृच्छाछैजी., जैदे., (२६४११, १३४४०-४६). गौतमपृच्छा, प्रा., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. गाथा-९ से १२ तक है.) गौतमपृच्छा -बालावबोध*, मा.गु., गद्य, वि. १५६९, आदि: (-); अंति: (-). ११६३३९ मोतिकपासिया संवाद, अपूर्ण, वि. १८२५, कार्तिक शुक्ल, १, मध्यम, पृ. ६-२(१ से २)=४, प्रले. मु. रामचंद्र ऋषि, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२६४१०.५, १०४३३). मोतीकपासीया संबंध, मु. श्रीसार, मा.गु., पद्य, वि. १६८९, आदि: (-); अंति: श्रीसार० चतुरा चित चमकार, ढाल-५, गाथा-१०३, (पू.वि. ढाल-२ गाथा-३९ अपूर्ण से है.) ११६३४०. (+) पर्युषणपर्व नमस्कार, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, प्र.वि. संशोधित-टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२६.५४११, १०४३९). पर्युषणपर्व चैत्यवंदन, मु. विनीतविजय, मा.गु., पद्य, आदि: श्री शेāज शिणग्गरहार; अंति: वीनयविजय० नमुं सीस, गाथा-२१. ११६३४१ (+#) औपदेशिक सज्झाय, दशार्णभद्र राजर्षि चौपाई व औपदेशिक पद आदि संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ४, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ. मूल पाठ का अंश खंडित है, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५४१०.५, १८४३६). For Private and Personal Use Only Page #90 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२६ १. पे. नाम. औपदेशिक सज्झाय, पृ. १अ, संपूर्ण. मा.गु., पद्य, आदि: पाव देये हलने चलने कू हाथ; अंति: (अपठनीय). २. पे. नाम, दशार्णभद्र राजर्षि चौपाई, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. म. कुशल, मा.गु., पद्य, वि. १७८६, आदि: सारदमात मनरली समरु; अंति: भप हो संमत सतरेसछिसीये, ढाल-४, गाथा-२८. ३. पे. नाम. औपदेशिक पद, पृ.१आ, संपूर्ण. __ पुहि., पद्य, आदि: चिंता जवल शरीर मै दव लागी; अंति: चैन जहा व्यापत है चिंता, गाथा-१. ४. पे. नाम. पार्श्वजिन स्तवन-पुरिसादानी, पृ. १आ, संपूर्ण. मु. लाभवर्द्धन, मा.गु., पद्य, आदि: सुखकारि हो साहिब सांवरो; अंति: सेवक जाण कृपा करौ, गाथा-४. ११६३४२. पिंडविशुद्धि प्रकरण, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. १, पृ.वि. मात्र प्रथम पत्र है., जैदे., (२६४१०.५, १३४३८). पिंडविशुद्धि प्रकरण, आ. जिनवल्लभसूरि, प्रा., पद्य, आदि: देविंदविंदवंदिय पयार; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-२३ अपूर्ण तक है.) ११६३४३. (+) २४ जिन स्तवन-मंत्राक्षरफल, संपूर्ण, वि. १८३३, कार्तिक शुक्ल, १३, सोमवार, मध्यम, पृ. १, प्रले. मु. राजी ऋषि, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२६.५४१०.५, १२४३७). २४ जिन मंत्राक्षरफल, मा.गु.,सं., गद्य, आदि: ॐ ह्रीं श्रीं ऐं लोगस्स; अंति: धन प्राप्त होय महाफल होय. ११६३४४. थूलभद्र नवरस, अपूर्ण, वि. १८४९, मार्गशीर्ष शुक्ल, १३, सोमवार, श्रेष्ठ, पृ. ५-४(१ से ४)=१, ले.स्थल. कुरलाया, प्रले. मु. वीरचंद ऋषि, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२६४१०.५, १६४३९). स्थूलिभद्रमुनि नवरसो, उपा. उदयरत्न; मु. दीपविजय, मा.गु., पद्य, वि. १७५९, आदि: (-); अंति: मनोरथ वेगे फल्या रे, ढाल-९, गाथा-७४, (पू.वि. अंत के पत्र हैं., ढाल-७ गाथा-९ अपूर्ण से है.) ११६३४५. (+) बालतपसि इंद्रनाग कथा, अनर्थदंडविरतेसमद्धि श्रीपति कथा व सूरसोमभ्रातद्वय कथानक, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ३, कुल पे. ३, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित., जैदे., (२६४११, १७X४२-४६). १. पे. नाम, बालतपसि इंद्रनाग कथा, पृ. १अ, संपूर्ण. ___ इंद्रनाग कथा-बालतपसी, सं., पद्य, आदि: वसंतपुर नामास्ति; अंति: केवली निर्वृत्तिं ययौ, गाथा-२१. २. पे. नाम. अनर्थदंडविरतेसमृद्धिदत्त श्रीपति कथा, पृ. १अ-३आ, संपूर्ण. श्रीपति कथा-अनर्थदंडविरतेसमृद्धिदत्त, सं., पद्य, आदि: दक्षिणमधुरेत्यासी दत्रपः; अंति: कार्यस्तदा राधन एव यत्नः, गाथा-१०९. ३. पे. नाम. सूरसोमभ्रातृद्वय कथानक, पृ. ३आ, संपूर्ण. सं., पद्य, आदि: गृहेपि वसतां नित्यमश्रताम; अंति: मोक्षं गतौ भ्रातरौ, श्लोक-३२. ११६३४६. स्थूलिभद्रमुनि नवरसो, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ४-१(१)=३, पृ.वि. बीच के पत्र हैं., जैदे., (२५.५४११, १५४३१). स्थूलिभद्रमनि नवरसो, उपा. उदयरत्न; म. दीपविजय, मा.गु., पद्य, वि. १७५९, आदि: (-); अंति: (-), (प.वि. ढाल-१ गाथा-४ अपूर्ण से ढाल-६ दोहा-३ अपूर्ण तक है.) ११६३४७. (+) अजितशांति स्तवन, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ४, प्र.वि. संशोधित-पदच्छेद सूचक लकीरें., जैदे., (२६४१०.५, ११४२८). अजितशांति स्तव , आ. नंदिषेणसरि, प्रा., पद्य, आदि: अजिअंजिअसव्वभयं संति; अंति: जिणवयणे आयरं कणह, गाथा-४०. For Private and Personal Use Only Page #91 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ७६ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ११६३४८. (+) रत्नपालमहामनि चतुष्पदी व कल्याणमंदिरजी की भाषा, अपूर्ण, वि. १८६९, माघ, २, बुधवार, श्रेष्ठ, पृ. २२-२०(१ से २०)=२, कुल पे. २, ले.स्थल. नाथूसर, प्रले. मु. कीर्तिसागर (गुरु पं. सुगुणकुशल मुनि); गुपि. पं. सुगुणकुशल मुनि (गुरु वा. महिमाकल्याण गणि); वा. महिमाकल्याण गणि (गुरु वा. विद्याविशाल गणि); वा. क्षेमकीर्ति (परंपरा आ. जिनकुशलसूरि, खरतरगच्छ); आ. जिनकुशलसूरि (खरतरगच्छ), प्र.ले.पु. मध्यम, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२६४११, १६x४४). १.पे. नाम. रत्नपालमहामुनि चतुष्पदी-दानाधिकारे, पृ. २१अ, अपूर्ण, पृ.वि. अंत के पत्र हैं. रत्नपालरत्नावती चौपाई, पं. माणिक्यराज, मा.गु., पद्य, वि. १८१९, आदि: (-); अंति: वरतै मंगलीकमाला जी, ढाल-३५, गाथा-४१४, ग्रं. ९०५, (पू.वि. गाथा-४०५ अपूर्ण से है.) २. पे. नाम. कल्याणमंदिरजी की भाषा, पृ. २१अ-२२आ, संपूर्ण. कल्याणमंदिर स्तोत्र-पद्यानुवाद, जै.क. बनारसीदास, पुहिं., पद्य, वि. १७वी, आदि: परम योति परमातमा परम; अंति: कारन समकित शुद्धि, गाथा-४४. ११६३५० (+) प्रासुकनीरदानोपरि रत्नपालराजा कथा व उत्तमकुमार चरित्र, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ९-८(१ से ८)=१, कुल पे. २, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित-पदच्छेद सूचक लकीरें., जैदे., (२६४११, १३४४३-४८). १.पे. नाम. रत्नपालराजा कथा-प्रासुकनीरदानोपरि, पृ. ९अ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र हैं. सं., गद्य, आदि: (-); अंति: गतः महाविदेहे मोक्षं गमी, (पू.वि. "रणावस्थाप्रापः प्रत्यक्षी भूय पलादः" पाठ अपूर्ण से है.) २. पे. नाम, उत्तमकुमार चरित्र, पृ. ९अ-९आ, अपूर्ण, पू.वि. प्रारंभ के पत्र हैं. सं., गद्य, आदि: भक्त्या वस्त्राणि; अंति: (-), (पू.वि. "मारूढः ततश्च कियद्भिर्दि" पाठ अपूर्ण तक है.) ११६३५१. संथारा विधि, अंतिम आराधना पद व नेमिजिन स्तवन, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २-१(१)=१, कुल पे. ३, जैदे., (२६४११,१०४४४) १.पे. नाम. संथारा विधि, पृ. २अ-२आ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र हैं. संथारापोरसीसूत्र, प्रा., पद्य, आदि: (-); अंति: तत्तं एसमत्तंमेगहियं, गाथा-१६, (पू.वि. गाथा-९ अपूर्ण से है.) २. पे. नाम. अंतिम आराधना पद, पृ. २आ, संपूर्ण. मा.गु., पद्य, आदि: जाडो जूडो संसार थोडु; अंति: माहरो नमस्कार हुओ, गाथा-४. ३. पे. नाम, नेमिजिन स्तवन, पृ. २आ, अपूर्ण, पू.वि. प्रारंभ के पत्र हैं. मा.गु., पद्य, आदि: सुणज्यो नेम कहिजे एम; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-६ अपूर्ण तक है.) ११६३५२. कर्मगति सज्झाय व स्तवनादि संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. ६, जैदे., (२५.५४११, १५४३८). १.पे. नाम. नेमीजिन पद, प. १अ, संपूर्ण. नेमिजिन स्तवन, मु. हर्षचंद, पुहिं., पद्य, आदि: माई रे मे जीनजी प्रती; अंति: आनंद पद पायो मनकी आस फली, गाथा-४. २.पे. नाम, कर्मगति सज्झाय, पृ. १अ, संपूर्ण. म. नवल, पुहिं., पद्य, आदि: हे मो वांकडी करम गत जायने; अंति: नवल सरवमे व्याप रही, गाथा-५. ३. पे. नाम. शांतिजिन पद, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. शांतिजिन स्तवन, म. पुण्यविजय, पुहि., पद्य, आदि: जीणंदा तेरी अंखीयन मे; अंति: पुन्य०मोहि तारी मोहि तारी, गाथा-६. ४. पे. नाम. प्रास्ताविक दोहा, पृ. १आ, संपूर्ण. प्रास्ताविक दोहा संग्रह *, पुहि.,मा.गु.,रा., पद्य, आदि: वस्तु ठिकाणे पाइए; अंति: मोती सीपां मांहै, गाथा-१. ५. पे. नाम. अष्टापदतीर्थ पद, पृ. १आ, संपूर्ण. अष्टापदतीर्थ स्तवन, मु. जिनेंद्रसागर, मा.गु., पद्य, आदि: तीरथ अष्टापद नित नमी; अंति: जिनेंद्र वधते नेहो जी, गाथा-८. ६. पे. नाम. नेमराजिमती पद, पृ. १आ, संपूर्ण. For Private and Personal Use Only Page #92 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२६ ७७ नेमराजिमती होरीपद, पुहिं., पद्य, आदि: मेरो नेम पीया परदेस होरी; अंति: वारी ग्यांन सफल अरदास, गाथा-५. ११६३५३. (+) बंधस्वामित्व प्राचीन कर्मग्रंथ, आगमिकवस्तुविचारसार षड्शीति प्रकरण व सूक्ष्मार्थविचारसारोद्धार, अपूर्ण, वि. १७वी, श्रेष्ठ, पृ. ११-८(१ से ८)=३, कुल पे. ३, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरे-संशोधित., जैदे., (२६४११.५, २२४५७-६१). १. पे. नाम. बंधस्वामित्व प्राचीन कर्मग्रंथ, पृ. ९अ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र हैं. प्रा., पद्य, आदि: (-); अंति: नेयं कम्मत्थयं सोउं, गाथा-५२, (पू.वि. गाथा-२६ अपूर्ण से है.) २. पे. नाम. आगमिकवस्तुविचारसार षड्शीति प्रकरण, पृ. ९अ-१०आ, संपूर्ण. षडशीति प्राचीन कर्मग्रंथ-४, आ. जिनवल्लभसूरि, प्रा., पद्य, आदि: निच्छिन्नमोहपास; अंति: सुणंतु गुणंतु जाणंतु, गाथा-८६. ३. पे. नाम. सूक्ष्मार्थविचारसारोद्धार, पृ. १०आ-११आ, अपूर्ण, पू.वि. प्रारंभ के पत्र हैं. ग. जिनवल्लभ, प्रा., पद्य, आदि: सयलंतरारि वीरं वंदिय; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-९१ अपूर्ण तक है.) ११६३५४. (+) विद्याविलास कथानक-पुण्यप्रभावे, अपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ८-७(१ से ७)=१, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें., जैदे., (२६.५४११, १८४५१). विद्याविलास कथानक-पुण्यप्रभावे, सं., गद्य, आदि: विजयपुरे नयरे विजय सेणो; अंति: क्रमेण मुक्तिं यास्यतः, संपूर्ण. ११६३५६. सिद्धयोग प्रकरण व शांतिनाथ आरती, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, जैदे., (२६.५४११.५, १३४४२). १.पे. नाम. सिद्धयोग प्रकरण, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. सं., पद्य, आदि: आदित्येचाष्टमेहस्तो; अंति: (१)पूर्वाषाढ विवर्जयेत्, (२)विघ्नानि हरंति पुष्य, श्लोक-१४. २. पे. नाम. संतिनाथ आरती, पृ. १आ, संपूर्ण. ___ शांतिजिन आरती, मा.गु., पद्य, आदि: जय जय आरती शांति; अंति: नरनारी अमर पद पावे, गाथा-६. ११६३५७. (+) मुहूर्त संग्रह व मांगलिक गाथा संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २, कुल पे. २, प्र.वि. हुंडी:मुहूर्तपत्र., संशोधित., जैदे., (२५.५४११, १०x२४-३८). १. पे. नाम. मुहर्त संग्रह, पृ. १अ-२अ, संपूर्ण. प्रतिष्ठादीक्षादि विधिमहर्त संग्रह, सं., प+ग., आदि: राज्याभिषेक मुहुर्त अनु; अंति: परिहरउ घोडा आदित्यवार. २.पे. नाम. मांगलिक गाथा संग्रह, पृ. २आ, संपूर्ण. साधारणजिन स्तुति प्रार्थना संग्रह, प्रा.,मा.ग.,सं., पद्य, आदि: जयई जग जीवजोणी विहाणओ; अंति: येन तस्मै श्री गुरुवे नमः, गाथा-३. ११६३६०. अभिधानचिंतामणि नाममाला, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ६०-५९(१ से ५९)=१, पठ. ग. जीतसागर, प्र.ले.प. सामान्य, प्र.वि. हंडी:नाममालापत्र. लेखन संवत् १६८९ दिया है किन्तु लिखावट से इस वर्ष में लिखी प्रत की प्रतिलिपि प्रतीत होती है., कुल ग्रं. २२००, जैदे., (२६४११, १३४३७). अभिधानचिंतामणि नाममाला, आ. हेमचंद्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., पद्य, वि. १३वी, आदि: (-); अंति: रोषोक्तावु नतौ नमः, कांड-६, (पू.वि. कांड-६ गाथा-६८ अपूर्ण से है.) ११६३६५. पार्श्वजिन स्तवन-अंतरीक्ष, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २-१(१)=१, जैदे., (२५.५४११.५, १४४४०-४४). पार्श्वजिन छंद-अंतरीक्षजी, मु. लावण्यसमय, मा.गु., पद्य, वि. १५८५, आदि: (-); अंति: तुम्ह दरसण हूं वांछु सदा, गाथा-५१, (पू.वि. अंत के पत्र हैं., गाथा-३१ अपूर्ण से है., वि. कृति के अंत में देव पूजा से संबंधित एक दोहा है.) ११६३६६. अंतरीक्ष पार्श्वजिन स्तवन व औषध संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, जैदे., (२६४११,११४३१). १. पे. नाम. २० विहरमान नगरी नाम, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. २० विहरमानजिन नगरी नाम, मा.गु., गद्य, आदि: पुंडरीकिणी नगरीइ; अंति: पुष्कर वरद्वीपि पश्चिम. २. पे. नाम. औषध संग्रह, पृ. १आ, संपूर्ण. औषध संग्रह', मा.गु., गद्य, आदि: अनाहाराणि मूत्रे १० लीब २; अंति: विहारिन लीजइ ख्याद्यानि. ११६३७०. ३३ बोल थोकडा, अपूर्ण, वि. १८७५, कार्तिक कृष्ण, १२, सोमवार, श्रेष्ठ, पृ. ४-२(१ से २)=२, ले.स्थल. बूंदी, प्रले. मु. अनोपचंद, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. हुंडी:तेतीस., जैदे., (२६४११, २१४५४). For Private and Personal Use Only Page #93 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra ७८ www.kobatirth.org कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ३३ बोल थोकडा-जैन पदार्थज्ञान, मा.गु., गद्य, आदि (-); अंति: भोरहितो आसातना लागे (पू.वि. २१ सबल दोष अपूर्ण से है.) ११६३७२ (०) वर्द्धमानविद्या कल्प व मंत्र संग्रह, संपूर्ण, वि. १७वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २. प्र. वि. मूल पाठ का अंश खंडित है, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे. (२६.५x११.५. १९४९-५५). " १. पे. नाम. वर्द्धमानविद्या कल्प, पृ. १अ - १आ, संपूर्ण. आ. वज्रस्वामि, प्रा.सं., गद्य, आदिः ॐ हाँ अहं हूँ; अंतिः जीवितमरणं कथयति २. पे. नाम मंत्र संग्रह, पू. १आ, संपूर्ण मंत्र-तंत्र-यंत्र संग्रह, प्रा., मा.गु. सं., पग, आदि (-); अति: (-). ११६३७३ (+४) दशवैकालिकसूत्र, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पू. १७-१५ (१ से १५) = २. पू.वि. बीच के पत्र हैं. प्र. वि. पदच्छेद सूचक लकीरें मूल पाठ का अंश खंडित है, जैवे. (२६.५X११, ९४३५) दशवैकालिकसूत्र, आ. शव्यंभवसूरि, प्रा., पद्य, वी. रवी आदि (-); अति (-), (पू. वि. अध्ययन- ५ उद्देश- १ , गाथा-८४ अपूर्ण से उद्देश-२ गाथा-१९ अपूर्ण तक है.) " ११६३०४. मोहराजा चौपाई, अपूर्ण, वि. १७वी, मध्यम, पू. ४-२ (१ से २)=२, पू.वि. बीच के पत्र हैं. जै (२७४११.५, १५४५६). मोहराजा चौपाई, मा.गु., पद्य, आदि (-); अंति (-), (पू. वि. गाथा ५८ अपूर्ण से गाधा ११४ अपूर्ण तक है.) ११६३७५. (#) पट्टावली, १० पूर्वधर नाम व संप्रतिराजा वंशवृक्षादि संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ४, प्र. वि. मूल पाठ का अंश खंडित है, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., ( २६x११.५, ३७X१३-२० ). १. पे. नाम. पट्टावली अंचलगच्छीय, पृ. १अ - १आ, संपूर्ण. मा.गु., गद्य, आदिः श्रीवर्द्धमानस्वामी वर्ष; अंति: ६४ श्री कल्याणसागरसूरि. २. पे. नाम. महावीरजिनशासने प्रमुख ऐतिहासिक घटनाक्रम संवतवार, पृ. १आ, संपूर्ण सं., गद्य, आदि: १३९ दिगंबर ३५० चतुर्दशी; अंति: (-). ३. पे. नाम. १० पूर्वधर नाम, पृ. १आ, संपूर्ण. Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir मा.गु., गद्य, आदि महागिरि २सुहस्ती अंति वज्रस्वामी एते दशपूर्वण. ४. पे नाम, संप्रतिराजा वंशवृक्ष, पू. १आ, संपूर्ण. " मा.गु., गद्य, आदि: पाडिलीपुरे श्रीचंद्रगुप्त, अंतिः जिनमंडित पृच्छा कारिता. १९६३०८ (०) पट्लेश्या विचार, संपूर्ण वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १, प्र. वि. अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैवे. (२७४११.५, १०x३३) ' , लेश्यालक्षण श्लोक, प्रा. सं., पद्य, आदि अतिरौद्र सदा क्रोधी अति: (१) सुक्तलेश्या स कथ्यते (२)तं भणिठं जिणवरंदाणम्, श्लोक - ६. ११६३७९ (+) औपदेशिक सज्झाय- लोभ परिहार, अपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ५-४ (१ से ४) = १, प्र. वि. संशोधित., जैदे., (२५.५X११, १६X३८). औपदेशिक सज्झाय- लोभपरिहार, ग. पद्मसुंदर, मा.गु., पद्य, आदि (-) अति पद्मसुंदर० आणंद थाई, गाथा- ३६, (पू.वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं. गाथा- १० अपूर्ण से है.) ११६३८१ (#) वीस विहरमानजिन स्तवन, अयमत्तानी स्वाध्याय व वंकचूल सज्झाय, अपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. २९-२८(१ से २८) = १, कुल पे. ३, प्र. वि. अक्षरों की स्वाही फैल गयी है, जैवे. (२६११, १७४५३-५९). " १. पे. नाम. बीस विहरमानजिन स्तवन, पू. २९अ, अपूर्ण, पू. वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं. वि. १८२६, मार्गशीर्ष शुक्ल, ७, सोमवार, ले.स्थल. सूर्यपुर, प्रले. मु. मलूकचंद ऋषि (गुरु मु. ऋषभदास ऋषि); गुपि. मु. ऋषभदास ऋषि (गुरु मु. महानंद ऋषि): मु. महानंद ऋषि, प्र.ले.पु. सामान्य. For Private and Personal Use Only २० विहरमानजिन स्तवनवीसी, ग. देवचंद्र, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: (-); अंति: सुजस महोदय वृंदो रे, स्तवन-२०, (पू.वि. कलश की गाथा - ३ अपूर्ण से है.) २. पे. नाम. अयमत्तानी स्वाध्याय, पृ. २९ अ २९आ, संपूर्ण. Page #94 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ७९ हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२६ अइमुत्तामुनि सज्झाय, मु. कहानजी ऋषि, मा.गु., पद्य, आदि: एक दिन ऋतु वर्षा तणी आवी; अंति: कहान० चतुर सुजाण रे, गाथा-१६. ३. पे. नाम. वंकचूल सज्झाय, पृ. २९आ, संपूर्ण, वि. १८२६, मार्गशीर्ष, ले.स्थल. सूरत, प्रले. मु. मलूकचंद ऋषि (गुरु मु. ऋषभदास ऋषि), प्र.ले.पु. सामान्य. वंकचूलचोर सज्झाय, मु. मति, मा.गु., पद्य, आदि: जंबुद्विपमां दीपतु; अंति: धर्मनी नीम रे विवेकी, गाथा-१०. ११६३८२ (+) कल्याणमंदिर स्तोत्र, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, प.४, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें-संशोधित., जैदे., (२५.५४११, ११४४०). कल्याणमंदिर स्तोत्र, आ. सिद्धसेनदिवाकरसूरि, सं., पद्य, वि. १वी, आदि: कल्याणमंदिरमुदारमवद्यभेदि; अंति: मोक्षं प्रपद्यंते, श्लोक-४४. ११६३८३. कामदेव चरित्र, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २१-१९(१ से १९)=२, जैदे., (२६.५४११, १६४३८-४३). कामदेव चरित्र, आ. मेरुतंगसूरि, सं., गद्य, आदि: जयतिकामितपूर्ति; अंति: (-), (पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., पाठ-"सिद्धं वांच्छता यथोचितोपक्रमः" तक है.) ११६३८५ (+) संख्यातादिभेद विचार, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. २,प्र.वि. संशोधित., दे., (२५.५४११, २२४६८). संख्यातादिभेद विचार, मु. पार्श्वचंद्र, प्रा.,मा.गु., गद्य, आदि: से किंतं गणण संखा; अंति: शोधनीयमिति विज्ञप्ति. ११६३८६. (+) धनदत्तसिद्धदत्त कथा व महेश्वरदत्त कथा, अपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. १४-१२(१ से ६,८ से १३)=२, कुल पे. २, प्र.वि. संशोधित-पदच्छेद सूचक लकीरें-संशोधित-टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२६४११, १३४५३). १.पे. नाम. धनदत्तसिद्धदत्त कथा, पृ. ७अ-७आ, अपूर्ण, पृ.वि. मात्र बीच का ही एक पत्र है. सं., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. बीच के पाठांश है.) २. पे. नाम. महेश्वरदत्त कथा, पृ. १४अ-१४आ, अपूर्ण, पू.वि. मात्र बीच का ही एक पत्र है. सं., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. बीच के पाठांश है.) ११६३८७. (#) संख्याताअसंख्याताअनंता मान विचार, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ५-४(१ से ४)=१, प्र.वि. पत्रांक अनुमानित है., मूल पाठ का अंश खंडित है, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६४१०.५, १८x२८). संख्याताअसंख्याताअनंता मान विचार, मा.ग.,सं., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं व प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., "लाख वरष एक पूर्वांग" से "४३२००० कलयुग प्रमाण" पाठांश तक लिखा है.) ११६३८८.(#) नमस्कार मंत्र सह बालावबोध, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २-१(१)=१, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६.५४११,१५४४३). नमस्कार महामंत्र, शाश्वत , प्रा., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. मात्र बीच का ही एक पत्र है., पद- ३ से ५ तक है.) नमस्कार महामंत्र-बालावबोध , मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), पृ.वि. मात्र बीच का ही एक पत्र है. ११६३८९ (+#) अवश्यकसूत्र सह टबार्थ-अध्ययन ४, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ३-२(१ से २)=१, पृ.वि. मात्र बीच का ही एक पत्र है.,प्र.वि. संशोधित. अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६.५४११, ५४३५). आवश्यकसूत्र, प्रा., प+ग., आदि: (-); अंति: (-), (प्रतिअपूर्ण, पू.वि. "मणगुत्तेणं वयगुत्तेहिंए कायगुत्तीए" पाठ से "अदिन्नादाणाउ वेरमणं मेहणाउ वेरमणं" पाठ तक है.) आवश्यकसूत्र-टबार्थ *, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), प्रतिअपूर्ण. ११६३९० (#) स्तुति संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १३-११(१ से ११)=२, कुल पे. ५, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६.५४११, १३४२५). १. पे. नाम. एकादशीतिथि स्तुति, पृ. १२अ, अपूर्ण, पू.वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं. आ. ज्ञानविमलसूरि, सं., पद्य, आदिः (-); अंति: ज्ञानात्मनां सूरीणां, श्लोक-४, (पूर्ण, पू.वि. गाथा-१ अपूर्ण से है.) २. पे. नाम, पर्युषणा स्तुति, पृ. १२अ-१२आ, संपूर्ण.. पर्युषणपर्व स्तुति, मु. शांतिकुशल, मा.गु., पद्य, आदि: परव पजुसण पुन्य; अंति: शांतिकुशल गुण गाया जी, गाथा-४. ३. पे. नाम. ऋषभ स्तुति, पृ. १२आ, संपूर्ण. For Private and Personal Use Only Page #95 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra ८० www.kobatirth.org कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची आदिजिन स्तुति-मरुदेवामाता केवलज्ञान, मु. मोहनविजय, मा.गु., पद्य, आदि गजकुंभे बेसी आवे; अति मोहन कहै जयकार, गाथा-४. ४. पे. नाम. महावीरजिन थुई, पृ. १२आ-१३अ, संपूर्ण. महावीरजिन स्तुति, मा.गु., पद्य, आदि वर्धमान जिनवर परम अंतिः सिद्ध मंगलकारिणी, गाथा ४. Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ५. पे नाम. पार्श्वजिन स्तुति, पू. १३आ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र नहीं है. पार्श्वजिन स्तुति पलांकित जेसलमेरमंडन, सं., पद्य, आदि शमदमोत्तमवस्तुमहापणं अंति (-). (पू.वि. श्लोक-३ अपूर्ण तक है.) ११६३९१ (+) गुणवर्म चरित्र, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. १४- १२(१ से १२) = २. पू.वि. बीच के पत्र हैं. प्र. वि. हुंडी पूजाचरि०., संशोधित अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे. (२६.५X११, १७x४५). गुणवर्म चरित्र, आ. माणिक्यसुंदरसूरि सं., पद्य वि. १४८४, आदि (-) अति (-) (पू.वि. सर्ग-२ श्लोक-२०० अपूर्ण से २९७ अपूर्ण तक है.) १९६३९२. पार्श्वजिन स्तुति, अपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. २- १ (१) १, जैवे. (२६.५x११, ३x२४) पार्श्वजिन स्तुति-पलांकित जेसलमेरमंडन, सं., पद्य, आदि: (-); अंति: सा जिनशासन देवता, श्लोक-४, (पू.वि. मात्र अंतिम पत्र है, लोक-३ अपूर्ण से है.) १९६३९७. सुभाषितादि श्लोक संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पृ. ११-९ (१ से ९)= २, कुल पे. ६, जैवे. (२५.५x११, १६x४६-५९). १. पे. नाम. सुभाषितश्लोक संग्रह, पू. १०अ ११अ, अपूर्ण, पू. वि. बीच के पत्र हैं. सुभाषित श्लोक संग्रह *, मा.गु., सं., पद्य, आदि: (-); अंति: मता केन दृष्टा न सृष्टा, श्लोक-७४, (पू.वि. श्लोक-३० अपूर्ण से है.) २. पे. नाम. २४ प्रमादविकार लक्षण, पृ. ११अ, संपूर्ण, पे. वि. प्रारंभ में द्वाविंशति प्रमाद का उल्लेख है किन्तु २४ के नाम दिये गये हैं. " सं. गद्य, आदिः उच्चैर्निष्ठवति१ सानुराग अति पश्चातापस्मरणम् २४ (वि. यह कृति मूल श्लोकानुक्रम ७४ से ७५ के बीच में अलग से है.) ३. पे. नाम. २४ असती लक्षण नाम, पृ. ११अ, संपूर्ण. असतीलक्षण विचार, सं., गद्य, आदि द्वारदेशायिनी १ पश्चादवलोकन, अंतिः पुरुषान्वेषणं करोति. ४. पे. नाम. सत्पुरुष ३२ लक्षण नाम, पू. ११अ ११आ, संपूर्ण. ३२ लक्षण नाम-पुरुष, सं., गद्य, आदि कुलीन१ शीलवान् २ शीचवान् अति क्षमा परिभावकश्चेति. ५. पे. नाम. रामरावण सैन्य परिमाण, पृ. ११आ, संपूर्ण. रामरावणसैन्य परिमाण, सं., गद्य, आदि रावणदलं पंचाशत्योजनस्तु अति: सहस्र अक्षौहिणी रामस्य. ६. पे. नाम. प्रास्ताविक श्लोक संग्रह, पृ. ११आ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. , श्लोक संग्रह पु,ि प्रा., मा.गु. सं., पद्य, आदि (-); अति (-), (पू.वि. श्लोक ८६ अपूर्ण तक है., वि. वस्तुतः मूलश्लोकक्रम ७५ से ८६ है. इस बीच दूसरी कृतियाँ संलग्न है.) ११६४०१. (+) भरतक्षेत्र परिमाणादि वर्णन, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ३६-३५ (१ से ३५ ) = १, प्र. वि. संशोधित., दे., (२६×११.५, ९४२५). ', भरत क्षेत्रादि परिमाण विचार, मा.गु., गद्य, आदि (-) अति (-) (पू. वि. मात्र बीच का ही एक पत्र है. भरतक्षेत्र के जीवों की संख्या से कला अर्द्धकला का वर्णन अपूर्ण तक है., वि. सारिणीयुक्त.) १९६४०२ (७) प्रश्नपद्धति संग्रह सह टवार्थ, अपूर्ण, वि. २०वी मध्यम, पृ. ७. प्र. वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे. (२६.५x११, ५x२७-३२). प्रश्नपद्धति संग्रह, आ. हेमप्रभसूरि, सं., पद्य, आदि: प्रणम्य पार्श्वदेवेश अति (-) (पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. श्लोक-४९ अपूर्ण तक है.) For Private and Personal Use Only Page #96 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२६ प्रश्नपद्धति संग्रह-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: प्रणम्य करिने श्रीपार्श्व; अंति: (-), (पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., प्रारंभ व अंत के भाग में नहीं हैं कहीं-कहीं है.) ११६४०३. ५ प्रकार बोल विचार, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २-१(१)=१,प्र.वि. पत्रांक नहीं है., जैदे., (२६.५४११.५, ८४३९). ५ प्रकार बोल विचार, प्रा.,मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: पाखी चौमासी संवत्सरी, (पू.वि. पंचदिव्य बोल से है.) ११६४०४. कथा महोदधि, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. १, पृ.वि. मात्र प्रथम पत्र है., जैदे., (२६४११, ३१४८२). कर्परप्रकर-कथामहोदधि, संबद्ध, ग. सोमचंद्र पंडित, सं., गद्य, वि. १५०४, आदि: श्रीवर्द्धमानमानम्य; अंति: (-), (पू.वि. कथा-१५ सुलसाश्राविका कथा अपूर्ण तक है.) ११६४०५ (+) २४ जिन १२ चक्रि ९ वासुजिन ९ बलदेव ९ प्रतिविष्णु विचारप्रकरण, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२५.५४११, ११४३४-४०). ६३ शलाकापुरुष चरित्र विचारप्रकरण, प्रा., पद्य, आदि: बत्तीसंघरयाइं काउंतिरिया; अंति: तत्थभोएभोतु अयरोवमादसउ, गाथा-२१. ११६४०८.(-) शांतिजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, प्र.वि. अशुद्ध पाठ., दे., (२६.५४७.५, ८४३४). शांतिजिन स्तवन-भजनगर, रा., पद्य, आदि: हा रमतो गयो छोर गयो छो जी; अंति: सामी श्रीसंतजनेसुरो रे लो, गाथा-७. ११६४०९ मौनएकादशीपर्व स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ३, प्रले. मु. जयरत्न; पठ. मु. उजमणा (गुरु मु. साहरचंद); गुपि. मु. साहरचंद, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२६.५४१२.५, १०४३१). मौनएकादशीपर्व स्तवन, पंन्या. जिनविजय, मा.गु., पद्य, वि. १७९५, आदि: जगपति नायक नेमिजिणंद; अंति: जिनविजय जयसिरी वरी, ढाल-४, गाथा-४२. ११६४१३. २६२ मार्गणाये ५६३ जीवना भेदनी गति आगति, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ३, ले.स्थल. वीरमगांम, प्रले. श्राव. नेमचंद उजमसी शाह, प्र.ले.पु. सामान्य, दे., (२८x१४, १३४४४). ५६३ जीव भेद २६२ मार्गणा, मा.गु., गद्य, आदि: जीवना ५६३ने गति आगति कही; अंति: नीयाणां बंध वासुदेव होय. ११६४१७. भरहेसर सज्झाय सह व्याख्यान, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ४, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., दे., (२८.५४१३.५, १२-१९x४१-४८). भरहेसर सज्झाय, संबद्ध, प्रा., पद्य, आदि: भरहेसर बाहुबली अभय; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-१ तक है.) भरहेसर सज्झाय-व्याख्यान, मा.गु., गद्य, आदि: भरतेश्वर बाहूंबलि अभय; अंति: (-), (पू.वि. नवप्रकार दानवर्णन अपूर्ण तक है.) ११६४१९. गुरुगुण गहुंली, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, पू.वि. मात्र प्रथम पत्र है., दे., (२६.५४१३.५, ८४३०). गुरुगुण गहुंली, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीगुरुचरणे चित लागुंरे; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-४ अपूर्ण तक है.) ११६४२० (#) अपासरानी पट्टावली व औपदेशिक दहा, अपूर्ण, वि. १८७१, चैत्र कृष्ण, ३, मध्यम, पृ. २४-२३(१ से २३)=१, कुल पे. २, पठ. मु. गुलाबसोम (गुरु मु. अभयसोम); गुपि. मु. अभयसोम (गुरु मु. आणंदविमलसूरि); मु. आणंदविमलसूरि, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. आदिनाथ प्रसादात्., मूल पाठ का अंश खंडित है, प्र.ले.श्लो. (४३९) यादृशं पुस्तकं दृष्ट्वा, जैदे., (२७४१४,८-१५४३८). १.पे. नाम. अपासरानी पट्टावली, पृ. २४अ, संपूर्ण, पे.वि. हंडी:पट्टावली. हेमविमलसूरि पट्टावली, मा.गु., गद्य, आदि: श्रीहेमविमलसूरिने पाटे; अंति: पाटे लक्ष्मीसागरसूरि. २.पे. नाम. औपदेशिक दहा, पृ. २४आ, संपूर्ण, पे.वि. यह कृति किसी अन्य प्रतिलेखक द्वारा लिखी गई है. मा.गु., पद्य, आदि: अकल वडि संसार में अकलें; अंति: सुजाण उनसे करे नहिं यारि, दोहा-५. ११६४२१. बारव्रत अतिचार आलोयणा, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ६-१(१)=५, दे., (२६४१४, १४४३३). १२ व्रत अतिचार आलोयणा, मा.गु.,सं., गद्य, आदिः (-); अंति: मनसुपन परवसपणा की जयणां, (पू.वि. प्राणातिपात व्रत अपूर्ण से है.) ११६४२२ (#) पंचतीर्थजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२७७१३.५, १३४३२). For Private and Personal Use Only Page #97 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra ८२ www.kobatirth.org कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ५ तीर्थजिन स्तवन, मु. लावण्यसमय, मा.गु., पद्य, आदि आदि हे आदिजिनेसरु ए अंति लावण्यसमय आप सुख संपदा, गाथा - १२. ११६४२३. जंबूस्वामी कथा, अपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पृ. २- १ ( १ ) - १, पू.वि. मात्र बीच का ही एक पत्र है. जैवे. (२६४१४, , १८X३४). जंबू अध्ययन प्रकीर्णक कथा, मा.गु., गद्य, आदि (-); अंति: (-), (पू. वि. जंबुकुमार मातापिता से संगम अनुमति मांगने प्रसंग अपूर्ण से विजयदत्त रूपवति स्री कथा अपूर्ण तक है.) १९६४२४ (-) उपदेशमाला व साधारणजिन स्तवन, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ३५-३२(१ से ३२) -३, कुल पे. २, प्र. वि. अशुद्ध पाठ. वे. (२६.५x१४, ७-१०x२०-२५). १. पे. नाम. उपदेशमाला पू. ३३-३४अ, अपूर्ण, पू. वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं. पठ. मु. भभुतदास, प्र.ले.पु. सामान्य. Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir मु. दीप, पुहिं., पद्य, आदि: (-); अंति: दीप०निज निघलखौ महा सुखदाई, गाथा- ४५, (पू.वि. गाथा - २९ अपूर्ण से है . ) २. पे. नाम. साधारणजिन स्तवन, पृ. ३४आ- ३५आ, संपूर्ण पु,ि पद्य, आदि मो भवभव हो जिनदेव सेव नहि अति (-) (अपूर्ण, पू. वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण गाथा ११ तक " लिखा है.) ११६४२६ शत्रुंजयतीर्थ चैत्यपरिपाटी व गिरनार विनती, संपूर्ण, वि. १९६२, वैशाख शुक्ल, १४, मध्यम, पृ. २, कुल पे. २, ले.स्थल. पालीताणा, प्रले. मु. रत्नविजय, लिख. मु. गुलाबविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. श्री आदीश्वरजिन प्रसादात्., दे., (२८x१३.५, १२४४७). १. पे. नाम. शत्रुजयतीर्थ चैत्यपरिपाटी, पृ. १अ २अ, संपूर्ण. मा.गु., पद्य, आदि: वागवाणि पसाउ करे सामिणि; अंति: होइसी निम्मल देह, गाथा-३४. २. पे. नाम. गिरनार विनती, पृ. २अ २आ, संपूर्ण. गिरनार चैत्यपरिपाटी, अप., पद्य, आदि सुमर विसामी साभल अंबिकि, अंति: तणु फलात निश्चइ पांमात, गावा- २५. ११६४२७. (+) भगवतीसूत्रे संजयानियंठा ३६ द्वार २२ प्रकार सह टबार्थ व बालावबोध, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ४, अन्य. सा. आर्या रूपबाई, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. हुंडी नियंठा, पदच्छेद सूचक लकीरें. वे. (२६.५x१३, २-५X३२)भगवतीसूत्र-हिस्सा शतक २५ उद्देशक ६ संजयानियंठा ३६ द्वार २२ प्रकार अधिकार, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., गद्य, आदिः पन्नवणा वेय रागे कप्प; अंति: जिणकेवली अपरिस्सावि. " भगवतीसूत्र - हिस्सा शतक २५ उद्देशक ६ संजयानियंठा ३६ द्वार २२ प्रकार अधिकार-टवार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: प० पनवणा ते द्वारते नियंठ; अंति: के० केवली अ० आश्रवरहित. " भगवतीसूत्र - हिस्सा शतक २५ उद्देशक ६ संजयानियंठा ३६ द्वार २२ प्रकार अधिकार वालावबोध, मा.गु., गद्य, आदि: निर्ग्रथक० बाह्याभंतर; अंति: छे ए छ निर्गंथकनो अर्थ. १९६४२८ लघुशांति, अपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पृ. ३-२ (१ से २)=१, जैदे. (२८x१३, ९x४०). लघुशांति, आ. मानदेवसूरि, सं., पद्य, आदि: (-); अंतिः श्रीमानदेव० शासनम्, श्लोक - १९, (पू. वि. गाथा - ११ अपूर्ण से है.) ११६४२९ पार्श्वजिन चैत्यवंदन की अवचूरि, अपूर्ण, वि. २०वी श्रेष्ठ, पृ. १. पू. वि. मात्र प्रथम पत्र है. वे., (२७४१३.५, १४४३५). पार्श्वजिन चैत्यवंदन-यमकबद्ध - अवचूरि, सं., गद्य, आदि: वरं प्रधाना संवरस्य; अंति: (-), (पू.वि. श्लोक-३ की अवचूरि अपूर्ण तक है.) ११६४३०. (+) कल्याणमंदिर स्तोत्र व औपदेशिक लोक, संपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पृ. ४, कुल पे. २, प्र. वि. पवच्छेद सूचक लकीरें संशोधित, जैये. (२७४१३, १०३२-४३). १. पे. नाम. कल्याणमंदिर स्तोत्र, पृ. १अ ४आ, संपूर्ण. आ. सिद्धसेनदिवाकरसूरि, सं., पद्य, वि. १वी, आदि: कल्याणमंदिरमुदारमवद्यभेदि अंति कुमुद० प्रपद्यंते, श्लोक-४४. २. पे. नाम. पुराणवेदादि श्लोकसंग्रह, पृ. ४आ, संपूर्ण. पुराणहुंडी, मा.गु. सं., पद्य, आदि सौमित्र वदति बभीषणाय लंका; अति मायुर्जाति दिने दिने, लोक-२, " For Private and Personal Use Only Page #98 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२६ ८३ ११६४३१. (#) श्रावक के ४९ भांगा, संपूर्ण, वि. १९०८, माघ कृष्ण, ९, गुरुवार, मध्यम, पृ. २, ले. स्थल. टुकडा, प्रले. सा. रायकव (गुरु सा. पाराजी) गुपि. सा. पाराजी, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे. (२७.५x१२.५). भगवतीसूत्र- श्रावकपच्चक्खाण भांगा ४९, संबद्ध, मा.गु., गद्य, आदि आंक ११ एककरण एक जोग; अंति: अनमोवु नही कायसा. ११६४३२. मौनएकादशीपर्व नमस्कार, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, दे., (२७.५X१३, १०X३५). मौनएकादशीपर्व स्तवन, मु. माणेक, मा.गु., पद्य, आदि विश्वनायक मुक्तिदायक, अंति: माणेकमुनि सिवसुखकर, Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir गाथा - १३. " ११६४३३. शांतिस्नात्र विधि, संपूर्ण वि. १९३६ भाद्रपद कृष्ण, ५, जीर्ण, पृ. ४, ले. स्थल, मुंबई, दे. (२६.५४१३.५, ११४३६). शांतिस्नात्र विधि, उपा. सकलचंद्र गणि, मा.गु. सं., पद्य, आदि प्रतिष्टायो वा यात्रायां अंतिः वाजा वागते धारादेवी. १९६४३४. वसुधारा स्तोत्र, संपूर्ण, वि. १८७८, श्रावण शुक्ल, १२, शुक्रवार, मध्यम, पृ. ३, प्र. वि. हुंडी श्रीवसुधारा, जैवे. (२७४१३, १९४४८). वसुधारा स्तोत्र, सं., गद्य, आदि: संसारद्वयदैन्यस्य प्रतिहं; अंति: संतानादि सौख्यं करोति. ११६४३५. अढार हजार शीलांगरथ, संपूर्ण, वि. २०वी श्रेष्ठ, पृ. १, प्र. वि. सारिणीयुक्त, दे. (२६.५५१३, ५X१०). १८ हजार शीलांगरथ, प्रा., मा.गु., पद्य, आदि जे नो करंति ६००० अंतिः ९ वंभं १० जइ धम्मो, गाथा-२. ११६४३६. चातुर्मासिक व्याख्यान पद्धति, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ४, दे., (२७X१३, ११x४९). चातुर्मासिकपर्व व्याख्यान, उपा. समयसुंदर गणि, सं., गद्य वि. १६६५, आदि: प्रणम्य परमानंद अंति: समयसुंदर ० व्याख्याम्, ११६४३७. (*) पार्श्वनाथ स्तवन, धन्नाऋषि स्वाध्याय व सिद्धचक्र पद संपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पू. ४, कुल पे, ३, प्र. वि. संशोधित, जैदे., (२७.५X१३, १३४३८). १. पे. नाम. पार्श्वनाथ स्तवन- थंभण, पृ. १अ-३आ, संपूर्ण पार्श्वजिन स्तवन स्थंभनतीर्थ, उपा. कुशललाभ, मा.गु., पद्य, आदि प्रभु प्रणमुं रे पास अंति: जाणी गाथा - २१. ३. पे. नाम सिद्धचक्र पद, पू. ४आ, संपूर्ण. पयंपए, ढाल - ५, गाथा - १८. २. पे. नाम. धन्नाऋषि स्वाध्याय, पृ. ३ आ-४आ, संपूर्ण धन्नाकाकंदी सज्झाय, मु. तिलोकसी, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीजिनवाणी रे धन्ना; अंति: तिलोकसी० सुख पामस्यै, , कुशललाभ मु. लालचंद, मा.गु., पद्य, आदि: नवपद ध्यान धरो रे; अंति: बलिहारी सुरतरु बीज खरो रे, गाथा- ३. ११६४३८. उपदेशमाला प्रकरण, संपूर्ण, वि. १९ वी, मध्यम, पृ. २, जैदे., (२७१३, १२x२८). पौषध सज्झाय खरतरगच्छीय, संबद्ध, प्रा., पद्य, आदि जगचूडामणिभूओ उसभो; अति उप्पन्न केवलं नाणं, जैदे.. गाथा-३३. ११६४४३. (+) अनिट्कारिका सह टीका, संपूर्ण वि. १९वी मध्यम, पू. ४. प्र. वि. संशोधित पदच्छेद सूचक लकीरें. (२७.५X१३, ९३७-४७). सिद्धांतरत्निका व्याकरण-अनिट्कारिका, संबद्ध, आ. जिनचंद्रसूरि, सं., पद्य, आदि: अनिट् स्वरांतो भवति; अंतिः विध्यनिट्स्वरान् श्लोक-११. सिद्धांतरलिका व्याकरण-अनिट्कारिका की टीका, सं. गद्य, आदि स्वरांतो धातुरनिट् अंतिः एकः जाताः पंचदशः ११६४४४. अष्टकर्मप्रकृति तथा चउदगुण स्थानक सज्झाय, संपूर्ण, वि. २०वी मध्यम, पृ. १, वे. (२८x१३.५, १२४३३)कर्मप्रकृति सज्झाय, मु. मणिविजय, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीशंखेश्वर पूर धणी अति: मणिविजय बुद्ध ऊपदिसे ए. For Private and Personal Use Only सज्झाय- २. ११६४४५. औपदेशिक सज्झाय व वीरस्तुति, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पू. १, कुल पे. २, दे, (२७४१३.५, ११x४२). १. पे. नाम औपदेशिक सज्झाव- वैराग्य, पृ. १अ १आ, संपूर्ण. Page #99 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची मा.गु., पद्य, आदि: प्राणीरा रे अब तूं सुनो; अंति: करज होय तारा जीवरो, गाथा-१२. २. पे. नाम. वीरस्तुति, पृ. १आ, अपूर्ण, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. सूत्रकृतांगसूत्र-हिस्सा वीरस्तुति अध्ययन, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., पद्य, आदि: पुच्छिसुणं समणा माहण; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-१० अपूर्ण तक है.) ११६४४७. (#) कल्याणमंदिर स्तोत्र सह मंत्र विधि, पद्यानुवाद व टबार्थ, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ३-१(२)=२, प्र.वि. मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., (२७.५४१३.५, ८-११४३१). कल्याणमंदिर स्तोत्र, आ. सिद्धसेनदिवाकरसूरि, सं., पद्य, वि. १वी, आदि: कल्याणमंदिरमुदारमवद्यभेदि; अंति: (-), (प.वि. बीच व अंत के पत्र नहीं हैं., श्लोक-३ से ६ व ९ से नहीं है.) कल्याणमंदिर स्तोत्र-मंत्र विधिसहित, संबद्ध, मा.ग.,सं., गद्य, आदि: ॐ नमो भगवओ रिसहस्स; अंति: (-), प.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. कल्याणमंदिर स्तोत्र-पद्यानुवाद, मा.गु., पद्य, आदि: कमठमान भंजनवरवीर गरिमा; अंति: (-), पृ.वि. अंत के पत्र नहीं कल्याणमंदिर स्तोत्र-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: कुमुदचंद्र अत्रस्वरुप; अंति: (-), पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. ११६४४८. लघुशांति, नवस्मरण व महावीरजिन स्तवन, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. २७-२३(१ से २३)=४, कुल पे. ३, दे., (२६.५४१३.५, १६x४१). १. पे. नाम. लघुशांति, पृ. २४अ, अपूर्ण, पृ.वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं. आ. मानदेवसूरि, सं., पद्य, आदि: (-); अंति: सूरिः श्रीमानदेवश्च, श्लोक-१७, (पृ.वि. श्लोक-९ अपूर्ण से है.) २. पे. नाम. नवस्मरण, पृ. २४अ-२७आ, अपूर्ण, पू.वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं. मु. भिन्न भिन्न कर्तक, प्रा.,सं., प+ग., आदि: भक्तामरप्रणतमौलिमणिप्रभाण; अंति: अचिरान्मोक्षप्रतिपद्यते, (संपूर्ण, वि. भक्तामर व कल्याणमंदिर स्तोत्र है.) ३. पे. नाम. महावीरजिन स्तवन, पृ. २७आ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. महावीरजिन स्तव-समसंस्कृतप्राकृत, आ. जिनवल्लभसूरि, प्रा.,सं., पद्य, आदि: भावारिवारणनिवारणदारु; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-१० अपूर्ण तक है.) ११६४५०. चतुर्विधसंघशोभा स्तवन, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, पृ.वि. मात्र प्रथम पत्र है., दे., (२६४१३.५, ९४२७). चतुर्विधसंघशोभा स्तवन, म. दीपविजय, मा.गु., पद्य, वि. १८८७, आदि: वंदी जिन प्रभु वीरने; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-१३ अपूर्ण तक है.) ११६४५३. (+) पर्जषणपर्व चैत्यवंदन, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १,प्र.वि. संशोधित., दे., (२६.५४१३.५, ११४३३). पर्युषणपर्व चैत्यवंदन, मु. प्रमोदसागर, मा.गु., पद्य, आदि: सकलपर्व शृंगारहार; अंति: प्रमोदसागर० होवे जय जयकार, गाथा-१३. ११६४५६. (+) खेटकमंजरी, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२६४१४, १४-१९४३५-४४). खेचरमंजरी, म. जैनचंद्र, सं., पद्य, आदि: श्रीमत्तीर्थपति; अंति: व्यरचि खेचरमजरीयं, श्लोक-९, (वि. अंत में खेटकमंजरी यंत्र दिया गया है.) ११६४५९ (#) पाशाकेवली, संपूर्ण, वि. १७९६, कार्तिक शुक्ल, ३, मध्यम, पृ. ४, ले.स्थल. देवल्या, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६४१३.५, १७४४४-४८). पाशाकेवली, मु. गर्ग ऋषि, सं., पद्य, आदि: महादेवं नमस्कृत्य; अंति: सत्योपासक केवली, श्लोक-१९६. ११६४६१. वसुधारा-लघु, संपूर्ण, वि. १९७८, कार्तिक शुक्ल, ८, मंगलवार, मध्यम, पृ. २, ले.स्थल. बीजापुर, प्रले. मु. पद्मसागर, प्र.ले.प. सामान्य, प्र.वि. रेखाचित्र., दे., (२५.५४१४, १८४४०). वसुधारा-लघु, सं., गद्य, आदि: ॐ नमो भगवते वज्रधर; अंति: (१)आर्या वसुधारा ज्ञेया, (२)विशेष विधि गुरुगम्य, (वि. अंत में वसुधारा से संबंधित यंत्र दिया है.) For Private and Personal Use Only Page #100 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२६ ११६४६२. पाक्षिक अतिचार व कमलदल स्तुति, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ३, कुल पे. २, ले.स्थल. वडगाम, प्रले. मयाचंद डुंगर भोजक, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२७४१३.५, १२४२८-३२). १. पे. नाम, साधुपाक्षिक अतिचार, पृ. १अ-३आ, संपूर्ण. साधुपाक्षिकअतिचार-मू.पू., संबद्ध, प्रा.,मा.गु., गद्य, आदि: नाणम्मि दंसणम्मि०; अंति: सुक्ष्म जाणतां अजाणता. २. पे. नाम, कमलदल स्तुति, पृ. ३आ, संपूर्ण. श्रुतदेवी स्तुति, संबद्ध, सं., पद्य, आदि: कमलदलविपुलनयना कमलमुखी; अंति: ददातु श्रुतदेवता सिद्धिम्, श्लोक-१. ११६४६३. (+) अष्टाह्निकापर्व व्याख्यान व उपदेशमाला, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ३, कुल पे. २, प्रले. मु. रतनचंद्र ऋषि; पठ. पं. वखतावरचंद, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित., दे., (२६.५४१३.५, ११४२५-३२). १. पे. नाम. अष्टाह्निकापर्व व्याख्यान, पृ. १अ, संपूर्ण. मा.गु.,सं., गद्य, आदि: शांतीशं शांतिकर्तारं; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., पाठ-"इण भव परभव विषै सुख" तक लिखा है.) २. पे. नाम. उपदेशमाला, पृ. १अ-३अ, संपूर्ण. पौषध सज्झाय-खरतरगच्छीय, संबद्ध, प्रा., पद्य, आदि: जगचूडामणिभूओ उसभो; अंति: उप्पन्नं केवलं नाणं, गाथा-३३. ११६४६५. (+) ज्वालामालिनी स्तोत्र, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, प्र.वि. हंडी:ज्वालामालिनी स्तोत्र., टिप्पण युक्त विशेष पाठ., दे., (२७४१४, १७X४६). ज्वालामालिनीदेवी स्तोत्र-सबीज, सं., गद्य, आदि: ॐ नमो भगवते श्रीचंद; अंति: ज्ञापयति स्वाहा. ११६४६६. स्तुतिसंग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ३, कुल पे. ६, दे., (२७.५४१३.५, १३४३८-४२). १. पे. नाम. ऋषभदेव स्तुति, पृ. १आ, संपूर्ण. आदिजिन स्तुति-भक्तामरस्तोत्रप्रथमश्लोकपादपूर्तिमय, सं., पद्य, आदि: भक्तामरप्रणतमौलिमणि; अंति: भवजले पततां जनानाम्, श्लोक-४. २. पे. नाम. वीर स्तुति, पृ. १आ, संपूर्ण. महावीरजिन स्तुति-कल्याणमंदिर प्रथमश्लोकपादपर्तिमय, सं., पद्य, आदिः (-); अंति: नमभिनम्य जिनेश्वरस्य, श्लोक-४, (पूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., श्लोक-१ अपूर्ण से लिखा है.) ३. पे. नाम. पार्श्वनाथ स्तुति, पृ. १आ-२अ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तुति-रत्नाकरपच्चीसी प्रथमश्लोकपादपूर्तिमय, सं., पद्य, आदि: श्रेयः श्रियां मंगल; अंति: जय ज्ञानकलानिधानः, श्लोक-४. ४. पे. नाम. शांतिनाथ स्तुति, पृ. २अ, संपूर्ण. शांतिजिन स्तुति-सकलकुशलवल्ली पादपूर्तिमय, सं., पद्य, आदि: सकल कुशलवल्ली पुष्कर; अंति: वः श्रेयसे शांतिनाथः, श्लोक-४. ५. पे. नाम. नेमिनाथ स्तुति, पृ. २अ-२आ, संपूर्ण. नेमिजिन स्तुति, सं., पद्य, आदि: कमलवल्लपनं तव राजते; अंति: विभाभरनिर्जितभाधिपाः, श्लोक-४. ६. पे. नाम. पार्श्वनाथ स्तुति-सामलिया, पृ. २आ-३अ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तुति-शामला, मु. मोहनविजय, मा.गु., पद्य, आदि: मेरू महिधर सुंदर; अंति: वाधारं मोहन जयजयकारं, गाथा-४. ११६४६७. नमस्कारमहामंत्र कथासंग्रह, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. २५-२४(१ से २४)=१, पू.वि. मात्र बीच का ही एक पत्र है., प्र.वि. हुंडी:योगसंग्रह., दे., (२७७१३, १६x४०). नमस्कार महामंत्र-कथा संग्रह, संबद्ध, सं., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. जिनदास श्रावक कथा- श्लोक-४२ अपूर्ण से चंडपिंगल चोर कथा श्लोक-१७ अपूर्ण तक है.) For Private and Personal Use Only Page #101 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ८६ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ११६४६८. (+#) पालीसंघप्रश्नोत्तर संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ४, प्र.वि. संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२६४१३.५, १५४३८). पालीसंघप्रश्नोत्तर संग्रह, प्रा.,मा.गु., प+ग., आदि: आंबिलमां दोय द्रव्य ज; अंति: संघवज्जो कायव्वो समणसंघेण. ११६४६९ पार्श्वनाथजिन स्तवन, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ३-१(१)-२, लिख. मु. अभयसोम, प्र.ले.पु. सामान्य, दे., (२६.५४१४, १७४३६). पार्श्वजिन स्तवन-भीनमाल, मु. पुण्यकमल, मा.गु., पद्य, वि. १६६१, आदि: (-); अंति: पुण्यकमल भवभय हरो, गाथा-५३, (पू.वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं., ढाल-३ गाथा-६ अपूर्ण से है.) ११६४७०. महावीरजिन स्तवन व औपदेशिक सज्झाय, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. २-१(१)=१, कुल पे. २, दे., (२६४१३.५, १३४३७-४०). १.पे. नाम. महावीरजिन स्तवन, पृ. २अ, अपूर्ण, पू.वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं. मु. ऋषभ, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: बाह्य ग्रह्यानी लाज, गाथा-११, (पू.वि. गाथा-५ अपूर्ण से है.) २.पे. नाम. औपदेशिक सज्झाय, पृ. २अ-२आ, संपूर्ण, पे.वि. यह कृति किसी अन्य प्रतिलेखक द्वारा लिखी गई है. औपदेशिक सज्झाय-दर्मतिविषये, मा.गु., पद्य, आदि: हो दरमति वेरण थइने; अंति: महानंदमां जई मिलस्ये, ढाल-२, गाथा-१५. ११६४७४. जंबूस्वामी सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, प्र.वि. हुंडी:जंबु०स. पत्रांक-१अ पर ऊपर की ओर तीन पंक्तियों में महावीरजिन से संबंधित स्तुति है., जैदे., (२५.५४१३.५, १२४२८). जंबस्वामी सज्झाय, म. उदयरत्न, मा.ग., पद्य, आदि: सरसतसामीने वीनवं; अंति: मोक्षमारग देखाड, गाथा-१५. ११६४७५ (#) श्रीपाल रास, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ४८-४७(१ से ४७)=१, पू.वि. मात्र बीच का ही एक पत्र है., प्र.वि. मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., (२५.५४१२.५, १३४२८). श्रीपाल रास, उपा. विनयविजय; उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., पद्य, वि. १७३८, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. खंड-३ ढाल-५ गाथा-२८ से ढाल-६ गाथा-८ अपूर्ण तक है.) ११६४७६ (+) आत्मा स्वाध्याय व आध्यात्मिक सज्झाय, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. २-१(१)=१, कुल पे. २, प्र.वि. पत्रांक लिखा न होने के कारण अनुमानित पत्रांक दिया गया है., संशोधित., दे., (२६.५४१३, ७४२६). १. पे. नाम. आत्मा स्वाध्याय, पृ. २अ, अपूर्ण, पृ.वि. प्रथम पत्र नहीं है. ___ आध्यात्मिक सज्झाय, मु. आणंदविजय, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: धरत सव आनंदविजय हमारे रे, गाथा-७, (पू.वि. गाथा-५ अपूर्ण से है.) २. पे. नाम, आध्यात्मिक सज्झाय, पृ. २अ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. मा.गु., पद्य, आदि: अवें चलसंघ हमारे रि निस; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-२ अपूर्ण तक है.) ११६४७७. १० बोल स्याद्वाद सज्झाय, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ७-६(१ से ६)=१, जैदे., (२६४१३.५, १२४३०). १० बोल स्याद्वाद सज्झाय, मु. श्रीसार, मा.गु., पद्य, आदि: स्याद्वादमत श्रीजिनवरनो; अंति: (-), (पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., गाथा-१६ अपूर्ण तक है.) । ११६४७८. (#) एकादशीनु चैत्यवंदन, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२५.५४१३.५, १३४३६). १५० जिन कल्याणक चैत्यवंदन, मा.गु., पद्य, आदि: शासननायक जग जयो वर्धमान; अंति: समरीजे शिवलक्ष्मी वरीजे, गाथा-१५. ११६४७९. बीज व वैराग्य सज्झाय, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, दे., (२६४१३, ९४३३). १. पे. नाम. बीजनी सज्झाय, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. बीजतिथि सज्झाय, म. लब्धिविजय, मा.गु., पद्य, आदि: बीज कहे भव्य जीवने; अंति: लब्धि०विविध विनोद रे, गाथा-८. २. पे. नाम, वैराग्य सज्झाय, पृ. १आ, संपूर्ण. For Private and Personal Use Only Page #102 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२६ औपदेशिक सज्झाय-वैराग्य, मा.गु., पद्य, आदि: ते तरिया भाई ते तरिया जिन; अंति: हवे जे धर्मे दीठ रहेवे रे, गाथा-५. ११६४८०. वैराग्य पच्चीसी, कायानी उपर सज्झाय व नवकार महामंत्र पद, संपूर्ण, वि. १८८३, मध्यम, पृ. २, कुल पे. ३, ले.स्थल. अलवर, अन्य. श्राव. हेमराज, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. हेमराजजी आगरावाला की पोथी से लिखी है., जैदे., (२५४१३.५, १८४४२). १. पे. नाम. वैराग्य पच्चीसी, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. वैराग्यपच्चीसी, मु. गोपालदास, पुहिं., पद्य, आदि: ए प्रमादी जीव जग; अंति: गोपाल करणी मुक्त ले जाय, गाथा-२५. २. पे. नाम. कायानी उपर सज्झाय, पृ. १आ, संपूर्ण. ___आध्यात्मिक सज्झाय-जीवकाया, मु. दीप, मा.गु., पद्य, आदि: तू मेरा पीवु साजना; अंति: लाल ते पामे रंग कोड, गाथा-९. ३. पे. नाम. नवकार महामंत्र पद, पृ. १आ-२अ, संपूर्ण. नवकारमहामंत्र पद, म. दोलत, मा.गु., पद्य, आदि: मंत्र जपो नवकार; अंति: दौलत० सुमरि नवकार, गाथा-५. ११६४८१. औपदेशिकसवैया संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ९, दे., (२६४१३, १२४३७). १. पे. नाम. औपदेशिक सवैया, पृ. १अ, संपूर्ण. मु. लाल, पुहि., पद्य, आदि: काम न आवत काज न आवत; अंति: पैजार की दीजै, गाथा-१. २. पे. नाम, औपदेशिक सवैया-पुण्य, पृ. १अ, संपूर्ण. म. छीतर, मा.गु., पद्य, आदि: हाथि चेर हकम चलावत; अंति: पन्य कीया नर नोवत पाई, सवैया-१. ३. पे. नाम. औपदेशिक सवैया-भाग्य, पृ. १अ, संपूर्ण. ___ मा.गु., पद्य, आदि: एक सिंणगार करे नित नागर; अंति: तोहि न चेतें मूरख प्राणी, सवैया-१. ४. पे. नाम. औपदेशिक सवैया-ऐश्वर्य, पृ. १अ, संपूर्ण. मु. छीतर, मा.गु., पद्य, आदि: कोठार भंडार दरवार सुदीपत; अंति: छीतर०कीयो तो वात विगाडी, सवैया-१. ५.पे. नाम. औपदेशिक सवैया-धर्म बिना धन, पृ. १अ, संपूर्ण. क. गद, मा.गु., पद्य, आदि: अगर सोलै हजार सो नायक; अंति: गद० बिना धन राखरी ढेरी, सवैया-१. ६. पे. नाम. औपदेशिक सवैया, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. औपदेशिक सवैया-संगति, मा.गु., पद्य, आदि: पूत कपूत कुलछण नार लडाक; अंति: वाराही को संग निवारो, सवैया-१. ७. पे. नाम. औपदेशिक सवैया, पृ. १आ, संपूर्ण.. ____ मा.गु., पद्य, आदि: आपणा ख्याल मे खेलनावुवहै; अंति: केडायजा भेष भगवानमांही, सवैया-१. ८. पे. नाम, औपदेशिक सवैया-साहस, पृ. १आ, संपूर्ण. पुहि., पद्य, आदि: हा जान में मोत बुरी है; अंतिः अब जाय जंगल में वास किया, सवैया-१. ९. पे. नाम. औपदेशिक सवैया-पाखंड, पृ. १आ, संपूर्ण. मा.गु., पद्य, आदि: नख चख कटे देखे सीस तारी; अंति: छिपे नहीं वभूत लगायां, सवैया-३. ११६४८२ (+#) चंद्रगुप्त छः ढालिया, अपूर्ण, वि. १९३८, भाद्रपद कृष्ण, ७, मंगलवार, मध्यम, पृ. ५-३(२ से ४)=२, ले.स्थल. आसोप, प्रले. मु. हीरविजय (तपागच्छ), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२६४१३, १५४३७). चंद्रगुप्त छः ढालिया, म. तिलोकचंद, मा.ग., पद्य, वि. १८९२, आदि: सिद्धचक्र सेवा करु पूज; अंति: तिलोकचंद०भवजल उतरो पार रे, ढाल-६, (पू.वि. ढाल-१ गाथा-४ अपूर्ण से ढाल-५ दहा-१ तक नहीं है.) ११६४८३ (#) इरियावही सज्झाय, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. २-१(१)=१, प्र.वि. पत्रांक का उल्लेख नहीं है., मूल पाठ का अंश खंडित है, दे., (२६७१३.५, ८x२८). इरियावही सज्झाय, संबद्ध, पं. वीरविजय, मा.गु., पद्य, वि. १९वी, आदिः (-); अंति: शुभविर० अनुसरिई जी, गाथा-१४, (पू.वि. गाथा-१० अपूर्ण से है.) For Private and Personal Use Only Page #103 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ८८ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ११६४८४. (#) चोविसतीर्थंकरना कल्याणीक तपविधि, संपूर्ण, वि. १८९०, वैशाख शुक्ल, १५, गुरुवार, मध्यम, पृ. १, ले.स्थल. मंगलापुरी, प्रले. ऋ. रतन, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. मूल पाठ का अंश खंडित है, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५.५४१२.५, १९४४२). २४ जिनकल्याणक तपविधि, रा.,सं., गद्य, आदि: १० अरनाथअर्हते नमः; अंति: श्रीपद्मप्रभूपारंगताय नमः. ११६४८५. दस पच्चक्खाण के आगार व १० प्रत्याख्याण के अर्थ, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २, कुल पे. २, जैदे., (२४.५४१३, ९-१३४३२). १.पे. नाम. दसपच्चक्खाण के आगार, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. १० पच्चक्खाण के आगार, प्रा., गद्य, आदि: नमोक्कारसी अन्नत्थणा; अंति: समाहि वत्तियागारेणं. २. पे. नाम. १० प्रत्याख्याण के अर्थ, पृ. १आ-२आ, संपूर्ण. प्रत्याख्यान आगारसंख्या गाथा-अर्थ, मा.गु., गद्य, आदि: अन्नत्थणाभोगेणं; अंति: पच्च० भंग नहीं. ११६४८६. (+) नवतत्त्वप्रकरण, गाथासंग्रह व उपदेशतरंगिणी, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ३, कुल पे. ३, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें., दे., (२४.५४१३, १४४३६). १.पे. नाम. नवतत्त्वप्रकरण, पृ. १अ-३आ, संपूर्ण, ले.स्थल. नागौर, पठ.मु. जिनचंद, प्र.ले.प. सामान्य, पे.वि. हुंडी:नवतत्त्व. नवतत्त्व प्रकरण ६० गाथा, प्रा., पद्य, आदि: जीवाजीवा पुण्णं पावा; अंति: मिस्सो होइ अजीवो, गाथा-५४. २.पे. नाम. गाथा संग्रह, पृ. ३आ, संपूर्ण. गाथा संग्रह जैन*, प्रा., पद्य, आदि: जिणपूअणं तिसंझं कुणमाणो; अंति: सिज्झइ अहवा सत्तमे जम्मे. ३. पे. नाम, औपदेशिक तरंगिणी, पृ. ३आ, संपूर्ण. औपदेशिकतरंगिणी-हिस्सा तरंग ३-४ का चयन, ग. रत्नमंदिरगणि, प्रा.,सं., पद्य, आदि: मणसा होइ चउत्थं छट्ठफलं; अंति: अणंतपुस्पं जिणेधुणिए, गाथा-४. ११६४८८. (+) अठाईदिन भास व महावीरजिन स्तवन, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २-१(१)=१, कुल पे. २, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२६४१३.५, १३४३१). १. पे. नाम. अट्ठाईदिन भास, पृ. २अ, अपूर्ण, पृ.वि. प्रथम पत्र नहीं है. अट्ठाईपर्व भास, मु. ज्ञानविमल, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: ज्ञानविमल० हो राज, गाथा-१२, (पू.वि. गाथा-३ अपूर्ण से है.) २. पे. नाम, महावीरजिन स्तवन, पृ. २अ-२आ, संपूर्ण. मु. उदयरत्न, रा., पद्य, आदि: साहिबनि सेवा मारस्या; अंति: उदयरत्न० श्रीमहावीर, गाथा-६. ११६४८९. स्वरोदयसार, अपूर्ण, वि. १९१४, वैशाख शुक्ल, ५, मध्यम, पृ. १९-१८(१ से १८)=१, ले.स्थल. वाड, अन्य. म. लब्धिविजय, प्र.ले.प. सामान्य, प्र.वि. लक्ष्मीविजयजी पास्यैथी आप कृपाथी लिख्या छे., दे., (२६.५४१३.५, १०४३४). स्वरोदयसार, मु. कपुरचंद, मा.गु., पद्य, वि. १९०७, आदि: (-); अंति: नंद चंद चित्त धार, गाथा-४४८, ग्रं. ५५०, (पू.वि. गाथा-४४१ अपूर्ण से है.) ११६४९० (+) नवकारमहामंत्र महिमापद सह बालावबोध, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, पृ.वि. मात्र प्रथम पत्र है., पठ. श्राव. गुणेश, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें., जैदे., (२५.५४१३.५, १२४३९). नमस्कार महामंत्र-हिस्सा नमस्कार महामंत्रमहिमा पद, शाश्वत , प्रा., पद्य, आदि: एसो पंच नमुक्कार सव्वपाव; अंति: च सव्वेसिं पढमं हवइ मंगलं, संपूर्ण. नमस्कार महामंत्र-हिस्सा नमस्कार महामंत्रमहिमा पद का बालावबोध, मा.गु., गद्य, आदि: ए पंच परमेष्ठी नवकार मूल; अंति: ते कारण नवपद पूरा गुणवा, संपूर्ण. ११६४९१ (#) करकंड्रमनि सज्झाय, शांतिजिन पद व औपदेशिक लावणी, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ३, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६.५४१३.५, १३४२३-२६). १. पे. नाम. करकंडूमुनि सज्झाय, पृ. १अ, संपूर्ण. For Private and Personal Use Only Page #104 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२६ करकंडुमुनि सज्झाय, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, आदि: करकंडुनै करु वंदना; अंति: प्रणम्या पाप पलाय रे, गाथा-५. २. पे. नाम. शांतिजिन पद, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. शांतिजिन स्तवन, मु. मोहनविजय, मा.गु., पद्य, आदि: शांति जिनेश्वर साहिबा रे; अंति: मोहन जय जयकार, गाथा-७. ३. पे. नाम. औपदेशिक लावणी, पृ. १आ, संपूर्ण. औपदेशिक लावणी-स्त्रीपरिहार, पुहिं., पद्य, आदि: तिरिया चाहे रंभा होवे; अंति: अब तो पडो तुरे के चरन, गाथा-४. ११६४९२. २० स्थानकतपनुं गण, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, जैदे., (२५.५४१३.५, ११४२४). २० स्थानकतप गणणं, मा.गु., गद्य, आदि: नमो अरिहंताणं अरिहंत; अंति: नमो तित्थस्स लो २०. ११६४९३. सप्तव्यसनयुगल व पच्चक्खाणफलनी सज्झाय, अपूर्ण, वि. १९१८, माघ शुक्ल, ३, सोमवार, मध्यम, पृ. ८-६(१ से ६)=२, कुल पे. ३, प्रले. मु. लब्धिचंद्र; लिख. श्राव. मेघजी, प्र.ले.प. सामान्य, प्र.वि. हुंडी:सिज्झाय., दे., (२५.५४१३.५, १२४३३). १. पे. नाम. सातवीसननी सज्झाय, पृ. ७अ, अपूर्ण, पृ.वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं. ७ व्यसन निवारण सज्झाय, मु. जयरंग, मा.गु., पद्य, आदिः (-); अंति: गुरु सीस समे जयरंग कहे, गाथा-९, (पू.वि. गाथा-५ अपूर्ण से है.) २. पे. नाम. सातव्यसननी सज्झाय, पृ. ७अ-७आ, संपूर्ण. सप्तव्यसन सज्झाय, पं. रत्नकुशल गणि, मा.गु., पद्य, आदि: सिद्धारथ नृप कुल; अंति: रत्नकुशल० सफल फले तस आस, गाथा-११. ३. पे. नाम. पच्चक्खाणफलनी सज्झाय, पृ. ७आ-८आ, संपूर्ण. प्रत्याख्यानफल सज्झाय-शत्रुजयतीर्थे, मु. प्रीतिविमल, मा.गु., पद्य, आदि: पचख पच्चख्खाण प्रभात; अंति: तीर्थ अभिध्यान धरता, गाथा-७. ११६४९४. प्रथमचंद लेख व गुणावलीचंद्रराजा पत्र, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ३, कुल पे. २, जैदे., (२६४१४, १७४२३). १.पे. नाम. प्रथमचंद लेख, पृ.१अ-२आ, संपूर्ण, पे.वि. श्रीचंदराजा कुर्कटथी पुरुस थया पछी गुणावलिइ राणी उपर लेखचंदे हर्षनो लख्यो तेवा० उत्तर गुणावलीइं लख्यो ते लिख्यते धवलसेठ लेइ भडणा थवा सुरती महीनानीरा देसीपणा कागल सोरो लखे छे. चंद्रराजागणावलीराणी लेख, म. दीपविजय, मा.गु., पद्य, आदि: स्वस्ति श्रीमरुदेवी; अंति: आगल वात रसाल, गाथा-३३. २. पे. नाम. गुणावलीचंद्रराजा पत्र, पृ. २आ-३आ, अपूर्ण, पू.वि. अंतिम पत्र नहीं है. क. दीपविजय, मा.गु., पद्य, आदि: स्वस्तीश्री वीमलापुर; अंति: (-), (पूर्ण, पृ.वि. गाथा-३७ अपूर्ण तक है.) ११६४९५. सिद्धचक्र स्तवन व औपदेशिक सवैया, अपूर्ण, वि. १८५४, ?, कार्तिक कृष्ण, २, शनिवार, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, जैदे., (२६४१३.५, १४४३७). १. पे. नाम. श्रीपाल रास, पृ. १अ, संपूर्ण. श्रीपाल रास-सिद्धचक्र स्तवन, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., पद्य, आदि: त्रीजे भव वर थानक तप; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., गाथा-९ तक लिखा है.) २. पे. नाम. औपदेशिक सवैया-धनप्रभाव, पृ. १आ, संपूर्ण. धनप्रभावदर्शक सवैया, क. केशवदास, पुहि., पद्य, आदि: चाह करे जिनकी जग में; अंति: वडो जाकी गाठे रूपैया, ___ सवैया-१. ११६४९६. कुगुरुपच्चीसी व महावीरजिन स्तवन, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, दे., (२६४१३.५, १३४३५). १. पे. नाम. कुगुरुपच्चीसी, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. मु. तेजपाल, मा.गु., पद्य, आदि: जिनवर प्रणमी सदा लही; अंति: तेजपाल पांमी सुखदाय, गाथा-२४. २. पे. नाम. महावीरजिन स्तवन, पृ. १आ, अपूर्ण, पू.वि. मात्र प्रथम पत्र है. For Private and Personal Use Only Page #105 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची मु. ऋषभ, मा.गु., पद्य, आदि: वीरजिनेशर साहिब मेरा पायो; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-४ तक है.) ११६४९९ महावीरजिन स्तवन व गौतमस्वामी स्तुत्यादि संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २-१(१)=१, कुल पे. ५, जैदे., (२६४१३.५, १७२३२-३५). १. पे. नाम, महावीरजिन स्तवन, पृ. २अ, अपूर्ण, पू.वि. प्रथम पत्र नहीं है. आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: ज्ञानविमल कहीये, गाथा-९, (पू.वि. गाथा-६ अपूर्ण से है.) २. पे. नाम. गौतमस्वामी चैत्यवंदन, पृ. २अ, संपूर्ण. आ. ज्ञानविमलसरि, मा.गु., पद्य, आदि: नमो गणधर नमो गणधर,; अंति: नामथी होवे जय जयकार, गाथा-३. ३. पे. नाम. गौतमस्वामी स्तुति, पृ. २अ-२आ, संपूर्ण. आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: इंद्रभूति अनुपम गुण; अंति: नित नित मंगलमालिका, गाथा-४. ४. पे. नाम. गौतमस्वामी स्तुति, पृ. २आ, संपूर्ण. आ. ज्ञानसूरि, सं., पद्य, आदि: श्रीइंद्रभूति; अंति: श्रीज्ञानसुरीवरदायकाश्च, श्लोक-४. ५. पे. नाम. गौतमस्वामी स्तवन, पृ. २आ, अपूर्ण, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं.. आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: वीर मधुरी वाणी भाखे; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-७ अपूर्ण तक है.) ११६५००, आत्म विचार, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. २, प्र.वि. दो लिपियों में लिखावट है., दे., (२३४१४, १२४३४). आध्यात्मिक विचार, मा.गु., गद्य, आदि: अरे चेतन अरे प्राणी अरे; अंति: पोते सामयिक करवू. ११६५०१ पजुसण थोय, संपूर्ण, वि. १९४५, आश्विन शुक्ल, ३, सोमवार, श्रेष्ठ, पृ. १, दे., (२३.५४१३.५, १५४३२). पर्युषणपर्व स्तुति, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., पद्य, आदि: पर्वपजुसण पुण्य कीजें; अंति: सुजस महोदय लीजै, गाथा-४. ११६५०२ (#) नवतत्त्व प्रकरण, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ४-२(१ से २)=२, पृ.वि. बीच के पत्र हैं., प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२५४१३.५, १२४३५). नवतत्त्व प्रकरण १०७ गाथा, प्रा., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. गाथा-४० अपूर्ण से गाथा-७७ अपूर्ण तक है.) ११६५०३. (#) नेमराजिमती सज्झाय, २४ अवतार नाम व मेतारजमुनि सज्झाय, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ३, प्र.वि. पत्रांक अनुमानित है., मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., (२५४१३.५, ११४३५). १. पे. नाम. नेमराजिमती सज्झाय, पृ. १अ, संपूर्ण, प्रले. मु. जीतरत्न, प्र.ले.पु. सामान्य. मा.गु., पद्य, आदि: (अपठनीय); अंति: आवे नेम के जीवनरी जडी, गाथा-५. २. पे. नाम. २४ अवतार नाम, पृ. १आ, संपूर्ण. विष्णु २४ अवतार श्लोक, सं., पद्य, आदि: (अपठनीय); अंति: रामा किष्ण बुद्धा कलकि. ३. पे. नाम. मेतारजमुनि सज्झाय, पृ. १आ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. मु. राजविजय, पुहि.,मा.गु., पद्य, आदि: समदम गुणना आगरु जी; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-४ तक है.) ११६५०४. चैत्यवंदन संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ३, जैदे., (२४.५४१३.५, १२४२३). १.पे. नाम. २० स्थानकतप चैत्यवंदन, पृ. १अ, संपूर्ण, पे.वि. यह कृति इस प्रत के साथ एक से अधिक बार जुड़ी हुई है. पंन्या. पद्मविजय, मा.गु., पद्य, वि. १९वी, आदि: पद पहिले अरिहंत नमो; अंति: सेवता रत्न लहे भव पार, गाथा-६. २. पे. नाम. २० स्थानकतप चैत्यवंदन, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. २० स्थानकतप चैत्यवंदन-कायोत्सर्गसंख्यागर्भित, पंन्या. पद्मविजय, मा.गु., पद्य, वि. १९वी, आदि: द्वादश अष्ट पिसतालीस; अंति: सेवता रत्न लहे सुखपूर, गाथा-६. ३. पे. नाम. २० स्थानकतप चैत्यवंदन, पृ. १आ, अपूर्ण, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., पे.वि. यह कृति इस प्रत के साथ एक से अधिक बार जुड़ी हुई है. पंन्या. पद्मविजय, मा.ग., पद्य, वि. १९वी, आदि: पहिले पद अरिहंत नमो बीजे; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-३ अपूर्ण तक ११६५०५. पद संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ३, कुल पे. १८, जैदे., (२४.५४१३.५, १७४३५). For Private and Personal Use Only Page #106 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२६ १.पे. नाम. आध्यात्मिक पद, पृ. १अ, संपूर्ण. म. जिणदास, पुहिं., पद्य, आदि: चेतन तुं क्या फीरे भुला; अंति: जीणदास आठो करम की बेडी, गाथा-४. २.पे. नाम. आध्यात्मिक पद, पृ. १अ, संपूर्ण. आध्यात्मिक पद-वैराग्य, मु. सदारंग, पुहिं., पद्य, आदि: अगर की बंदगी प्यारे कीया; अंति: ताला सदारंग नेन गुलाला, गाथा-४. ३. पे. नाम. पार्श्वजिन पद, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तवन, मु. हर्षचंद, पुहि., पद्य, आदि: बंदु पारसनाथ ढीगर वता दे; अंति: हो साहेब भवदधि पार उतार, गाथा-५. ४. पे. नाम. साधारणजिन पद, पृ. १आ, संपूर्ण. साधारणजिन पद-अष्टपूजा गर्भित, पुहि., पद्य, आदि: चलिये जीनेश्वर बंदीये; अंति: धारीये तो ते अघ सब धोय, गाथा-३. ५. पे. नाम. साधारणजिन पद, पृ. १आ, संपूर्ण. पुहिं., पद्य, आदि: सोइ घडी सफल सुजाय येसे; अंति: लगी हे जीनजी के नाम से. ६. पे. नाम. साधारणजिण पद, पृ. १आ, संपूर्ण. साधारणजिन पद, मु. रामदास, मा.गु., पद्य, आदि: हाजी नेना सफल भये हम दरसण; अंति: रामदास०लोक शीखर नो राज, गाथा-४. ७. पे. नाम. साधारणजिन पद, पृ. १आ, संपूर्ण. पुहिं., पद्य, आदि: मेरी सुध लीजो अंतरजामी; अंति: अभीमानी हो मेरे स्वामी, गाथा-३. ८. पे. नाम. साधारणजिन पद, पृ. २अ, संपूर्ण. साधारणजिन स्तवन, म. सुखसागर, पुहि., पद्य, आदि: राग दोष जाके नही पयै हम; अंति: पये सेवा से सखसागर हे, गाथा-४. ९. पे. नाम. पार्श्वजिन पद, पृ. २अ, संपूर्ण. म. कनककीर्ति, पुहिं., पद्य, आदि: तुं मेरा मन मै तुं; अंति: कनककीरत० तीन भवन मे, गाथा-३. १०. पे. नाम. साधारणजिन पद, पृ. २अ, संपूर्ण. क. बनारसीदास, पुहिं., पद्य, आदि: जीनराज नाम सोधा नही कीनी; अंति: भव प्राणी आखर चल चलवे का, गाथा-६. ११. पे. नाम. महावीरजिन पद, पृ. २अ, संपूर्ण. महावीरजिन जन्म लावणी, पुहि., पद्य, आदि: घुघरु वाजत झन नन नन; अंति: मुदरा ढोक देत चरनन नन नन, गाथा-२. १२. पे. नाम. नेमराजिमती पद, पृ. २अ-२आ, संपूर्ण. म. आणंदलाल, पुहिं., पद्य, आदि: म्हारो बरज्यो मानो जी; अंति: आणंदलाल० गीरनारा सीरदार, गाथा-३. १३. पे. नाम. नेमराजिमती पद, पृ. २आ, संपूर्ण.. पुहिं., पद्य, आदि: नेम तोरी नगरीया चल बसरे; अंति: दउ करजोडे भवसागर से तार, गाथा-३. १४. पे. नाम. नेमराजिमती संवाद, पृ. २आ, संपूर्ण. मु. लालविनोद, पुहि., पद्य, आदि: व्यानेकु खुब आया सीर सेरा; अंति: वीनोदी गावे गीरनार गढ गया, सवैया-३. १५. पे. नाम. आध्यात्मिक पद, पृ. २आ, संपूर्ण. मु. द्यानत, पुहिं., पद्य, आदि: वाके करमरी पुलारा फीरे; अंति: द्यानत प्रभुजीसु अरज करे, गाथा-३. १६. पे. नाम. साधारणजिन पद, पृ. २आ-३अ, संपूर्ण. मु. आणंदलाल, पुहिं., पद्य, आदि: भजले अरीहंत देव जैन को; अंति: आणंदलाल० भव सागर से तारो, गाथा-३. १७. पे. नाम. औपदेशिक पद, पृ. ३अ, संपूर्ण. म.रूपचंद, रा., पद्य, आदि: जीवाजी थाने वरजा छा थे; अंति: रूपचंद० भवदधि पार उतारो, गाथा-३. १८. पे. नाम. साधारणजिन पद, पृ. ३अ, संपूर्ण. For Private and Personal Use Only Page #107 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची पुहि., पद्य, आदि: जीनधरम नही कीताहो नर देही; अंति: करम पुजीता हो नर देही पाई, गाथा-४. ११६५१३. २४ जिन स्तोत्र, अपूर्ण, वि. १९३८, कार्तिक कृष्ण, ३, सोमवार, श्रेष्ठ, पृ. २-१(१)=१, प्रले. पं. कीर्तिविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, दे., (२४.५४१३, १०x१३-२४). २४ जिन स्तोत्र-पंचषष्टियंत्रगर्भित, मु. सुखनिधान, सं., पद्य, आदि: आदौ नेमिजिनं नौमि; अंति: मोक्षलक्ष्मी निवासम्, श्लोक-८, संपूर्ण. ११६५१४. पर्युषणपर्व गहुंली व पजूसण गहुंली, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, दे., (२२४१३, १३४२६). १. पे. नाम. पर्युषणपर्व गुंहली, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. पर्युषणपर्व गहुंली, मु. मोहनविजय, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: श्रीब्राह्मी लीपी प्रणमी; अंति: मोहनविजय सुख लीजै, गाथा-७. २. पे. नाम. पजूसण गुंहली, पृ. १आ, संपूर्ण. पर्युषणपर्व गहंली, मु. मोहनविजय, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: पर्युषण धर्म भूषण भलुं जे; अंति: कहे मोहन विजे सुख पावो, गाथा-५. ११६५१८. कल्पसूत्र की पीठिका, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ३, दे., (२३४१३, ११४३९). कल्पसूत्र-पीठिका, संबद्ध, मा.गु., गद्य, आदि: अज्ञानतिमरांधानां; अंति: (-), (प्रतिअपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., कोकण साधु दृष्टांत अपूर्ण तक लिखा है.) । ११६५२२. (+) शांतिजिन स्तुति, संपूर्ण, वि. १९६६, फाल्गुन शुक्ल, ३, मध्यम, पृ. १, ले.स्थल. अणहिलपुरपत्तण, पठ. मु. लक्ष्मीविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. श्री श्री १०००८ श्रीपंचासरापार्श्वनाथजी प्रशादात्., पदच्छेद सूचक लकीरें-संशोधित., प्र.ले.श्लो. (५०६) यादृशं पुस्तकं दृष्ट्वा, दे., (२६.५४१३.५, १३४२२). शांतिजिन स्तुति-संगीताक्षरमय, सं., पद्य, आदि: धपमपधुनिगसससारिरे; अंति: भवति सुखदं कृतं शासनदेवता, श्लोक-४. ११६५२३. संथारापोरसीसूत्र, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, जैदे., (२७७१३.५, ११४२६). संथारापोरसीसूत्र, प्रा., पद्य, आदि: निसीही ३ नमो खमासमणा; अंति: मिच्छामिदक्कडं तस्स, गाथा-१७. ११६५२४. (+) पार्श्वजिन स्तवन व क्रोध सज्झाय, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित., दे., (२६.५४१३, १६x२९). १. पे. नाम. पार्श्वजिन स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तवन-सम्मेतशिखरतीर्थ, म. पद्मविजय, मा.गु., पद्य, आदि: समेतशिखर जिन वंदीये; अंति: पद्मविजय० चेई रे, गाथा-८. २. पे. नाम. क्रोध सज्झाय, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. औपदेशिक सज्झाय-क्रोधपरिहार, मु. उदयरत्न, मा.गु., पद्य, आदि: कडुवां फल छे क्रोधना; अंति: उदयरतन उपसम रस नाही, गाथा-६. ११६५२६. (१) भक्तामरस्तोत्र व औपदेशिक दहा, संपूर्ण, वि. १९६६, रसरसाकंदु, श्रावण शुक्ल, ४, गुरुवार, मध्यम, पृ. ४, कुल पे. २, ले.स्थल. नागोरनगर, प्रले. मु. रामलाल ऋषि, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. मूल पाठ का अंश खंडित है, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, प्र.ले.श्लो. (५६०) जलात् रक्षेत् थलात् रक्षे, दे., (२७.५४१३.५, ११४३७). १. पे. नाम. भक्तामरस्तोत्र, पृ. १अ-४अ, संपूर्ण.. भक्तामर स्तोत्र, आ. मानतुंगसूरि, सं., पद्य, आदि: भक्तामरप्रणतमौलि; अंति: मानतुंग० लक्ष्मीः, श्लोक-४४. २. पे. नाम. औपदेशिक दूहा, पृ. ४अ, संपूर्ण. औपदेशिक दोहा संग्रह, पुहि.,प्रा.,मा.गु.,सं., पद्य, आदि: तनबल धनबल मनसुबल; अंति: अधिक छे कटे कर्म कलेश, गाथा-१. ११६५२७. बुढापा रास, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ३-२(१ से २)=१, पृ.वि. मात्र बीच का ही एक पत्र है., दे., (२७.५४१३, १७४३५). For Private and Personal Use Only Page #108 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२६ बुढापा रास, मु. चंद, रा., पद्य, वि. १८३६, आदिः (-); अंति: (-), (पू.वि. ढाल-११ गाथा-१ अपूर्ण से ढाल-१८ गाथा-२ अपूर्ण तक है.) ११६५२८. (+#) राजप्रश्नीयसूत्र सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, प. ३-१(१)=२, प्र.वि. संशोधित. मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., (२६४१४, ६४३७). राजप्रश्नीयसूत्र, प्रा., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. प्रथम पत्र नहीं है व प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., सूत्र-६ अपूर्ण से है व सूत्र-१० अपूर्ण तक लिखा है.) राजप्रश्नीयसूत्र-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), पू.वि. बीच के पत्र हैं. ११६५३२. योगचिंतामणि, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. पत्रांक अनुमानित है., दे., (२६.५४१४, ११४२२-२८). योगचिंतामणि, आ. हर्षकीर्तिसरि, सं., पद्य, वि. १७वी, आदिः यत्र वित्रासमायांति; अंति: (-), (प.वि. पाकाधिकार __ श्लोक-२ अपूर्ण तक है.) ११६५३३. पिंगल नाममाला, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. पत्रांक अनुमानित है., दे., (२६.५४१३.५, ११४३४). पिंगल नाममाला, मु. ज्ञानसार, पुहि., पद्य, वि. १८७६, आदि: श्रीअरिहंतसु सिद्धपद; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-१० अपूर्ण तक है.) ११६५३६. (#) रोहिणीतप स्तवन, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. पत्रांक अनुमानित है., अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२८x१३, १२४३६-४०). रोहिणीतप स्तवन, मु. दीपविजय कवि, मा.गु., पद्य, वि. १८५९, आदि: हां रे मारे वासुपूज्यनो; अंति: (-), (पू.वि. ढाल-३ तक है.) ११६५३८. सौभाग्यपंचमी कथा, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ४-१(१)=३, जैदे., (२५.५४१३.५, १२४३२). सौभाग्यपंचमी कथा, सं., गद्य, आदिः (-); अंति: कार्यो भवद्भिरद्भूतं, (पू.वि. 'जायते यौवने न च कोपित दुद्वाह' पाठांश से है.) ११६५३९. नलदमयंती चरित्र, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ८२-८०(१ से ८०)=२, पू.वि. बीच के पत्र हैं., प्र.वि. हुंडी:नल०., दे., (२६४१३.५, १०x२५). नलदमयंती चरित्र, रा., प+ग., आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. अध्याय-२० अपूर्ण से २१ अपूर्ण तक है.) ११६५४०. अध्यात्मसारमाला, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, पूवि. अंत के पत्र नहीं हैं., जैदे., (२६४१३, १२४३१). अध्यात्मसारमाला, क. नेमिदास रामजी शाह कवि, मा.ग., पद्य, वि. १७६५, आदि: श्रीजिनवाणी नित नमी कीजे; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-११ तक है.) ११६५४१. बारव्रत पूजा, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, पृ.वि. मात्र प्रथम पत्र है., दे., (२६.५४१३, १०४२४). १२ व्रतपूजा विधिसहित, पं. वीरविजय, मा.गु., पद्य, वि. १८८७, आदि: उच्चैर्गुणैर्यस्य; अंति: (-), (पू.वि. प्रारंभिक दोहा-५ अपूर्ण तक है.) । ११६५४२. सिद्धाचल गरबो, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, जैदे., (२६.५४१३, १४४३५). शत्रुजयतीर्थ स्तवन, पं. दीपविजय कवि, मा.गु., पद्य, वि. १८७७, आदि: जे कोइ सिद्धगिरिराज; अंति: दीप० सुख साजने रे लो, गाथा-१५. ११६५४३. (+) पंचप्रतिक्रमणसूत्र संग्रह सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १,प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., दे., (२६४१३, ४४२६). पंचप्रतिक्रमणसूत्र संग्रह-तपागच्छीय, संबद्ध, प्रा.,मा.गु.,सं., प+ग., आदि: नमो अरिहंताणं नमो; अंति: (-), (प.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., 'संपदा ८ भारी अक्षर ७ लघु' पाठांश तक है.) पंचप्रतिक्रमणसूत्र संग्रह-तपागच्छीय-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: चउसद्धि इद्रादिकनी कीधी; अंति: (-), पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. For Private and Personal Use Only Page #109 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra ९४ www.kobatirth.org कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १९६५४४ (+) धनंजयनाममाला, अपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पृ. ३, प्र. वि. हुंडी धनंजयनाममाला, पदच्छेद सूचक लकीरें अन्वय दर्शक अंक युक्त पाठ-टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२६X१३.५, ११x२७). धनंजय नाममाला, जै.क, धनंजय, सं., पद्य, आदि: तन्नमामि परं ज्योति अंति: (-), (पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., श्लोक-४४ अपूर्ण तक है.) ११६५४६. जिनप्रतिमा स्तवन, अपूर्ण, वि. १८८०, मार्गशीर्ष शुक्ल, १, बुधवार, मध्यम, पृ. १२-१० (१ से १० ) = २, प्रले. मु. हर्षचंद; पठ. श्रावि. वजीबाई अन्य मु. हीरविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. हुंडी प्रतिमाहुं, जैदे. (२६४१३.५, १३४३१). जिनप्रतिमा स्तवन, मु. मानविजय, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीजिन जिनप्रतिमां अति सीस मान नामे गुरनें सीस, ढाल २, गाथा - २१, संपूर्ण ११६५४७. धर्म भावना, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १. पू. वि. अंत के पात्र नहीं हैं. वे. (२६.५४१३.५, ११४३६) " Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir धर्म भावना, मा.गु., गद्य, आदि धन्य हो प्रभुजी संसार अंति (-). (पू.वि. 'जगतने विषे बीजो आधार नथी' पाठांश तक है.) ११६५४८. (#) श्रावकधर्म चौपाई, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १४- १३(१ से १३) = १, पू.वि. मात्र बीच का ही एक पत्र है., प्र. वि. हुंडी धर्म ०., मूल पाठ का अंश खंडित है, दे., ( २६.५X१४, ९X३४-४०). श्रावकधर्म चौपाई, मा.गु., पद्य, आदि (-); अंति (-) (पू.वि. गाधा-७४ अपूर्ण से ८४ अपूर्ण तक है.) १९६५४९ (०) नवपदनी ओलीनी विधि, संपूर्ण वि. २०वी मध्यम, पू. १, प्र. वि. अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं. दे.. (२६.५X१३.५, १६x४५). नवपद आराधन विधि, मा.गु, गद्य, आदि एक दिहाडे एकक पदनी क्रिया; अति: वर्णसहित एहवा तपपदने माह. १९६५५०. सरस्वती अष्टक, अपूर्ण, वि. १९४७, आषाढ़ कृष्ण, ३, शुक्रवार, मध्यम, पृ. २- १ (१) १ ले, स्थल, अजीमगंज, प्र. मु. मोतीचंद्र ऋषि मु. धनसुख ऋषिः पठ मु. हेमचंद्र ऋषि, प्र.ले.पु. सामान्य, दे. (२६४१३.५, ७४३३). सरस्वतीदेवी स्तोत्र, उपा. विद्याविलास, सं., पद्य, आदि (-); अंति पूर्ण कमला निवासम्, श्लोक ९, (पू.वि. मात्र अंतिम श्लोक अपूर्ण है.) २, ११६५५६. () रामचंद्र बारामासी व औपदेशिक लावणी, अपूर्ण, वि. १९३६, ज्येष्ठ कृष्ण, ५, रविवार, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ले. स्थल. जालरापाटण, प्र. वि. अशुद्ध पाठ. दे. (२५x१३, १८४२८-३७). १. पे नाम. रामचंद्रजी बारहमासी, पृ. १अ संपूर्ण. मु. हुकमचंद पुहिं., पद्य, आदि आज बचनन के बांधे रामचंद्र अति हुकमचंद० मनसा पूरो मनकी, गाथा १३. २. पे. नाम. औपदेशिक लावणी, पृ. १आ, अपूर्ण, पू. वि. मात्र प्रथम पत्र है. औपदेशिक लावणी-धर्मादिसार, पुहिं., पद्य, आदि: सार वस्तु जीनधरम भविजन; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-४ अपूर्ण तक है.) ११६५५७ (+) बृहत्संग्रहणी, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. प्र. वि. संशोधित, जैवे. (२६४१३, १३X३६). बृहत्संग्रहणी, आ. चंद्रसूरि, प्रा., पद्य, वि. १२वी, आदि: नमिउं अरिहंताई ठिई १; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-३१ अपूर्ण तक है.) ११६५६०. दीवालीदेववंदन विधि व पौषध प्रत्याख्यानसूत्र, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ४, कुल पे. २, वे. (२४.५४१३, १२४२९). .पे. नाम. दीवालीदेववंदन विधि, पृ. १अ ४आ, संपूर्ण. दीपावली पर्व देववंदन विधिसहित आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., पद्य वि. १८वी आदि वीरजिनवर वीरजिनवर अंतिः प्रगटे सकल गुण खाण. २. पे नाम. पौषध प्रत्याख्यानसूत्र, पृ. ४आ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. संबद्ध, प्रा., मा.गु., गद्य, आदि करेमि भंते पोसह अंतिः (-) (पू.वि. 'जावदिवस अहोरत्तंपजुवा' पाठांश तक है.) For Private and Personal Use Only Page #110 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२६ ९५ ११६५६८ (+) चित्रसेनपद्मावती चरित्र सह अर्थ, अपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. २- १ (१) = १, पू.वि. प्रथम एक व अंत के पत्र नहीं हैं... प्र. वि. संशोधित., जैदे., (२५X१३, १२X३४). चित्रसेनपद्मावती चरित्र, पा. राजवल्लभ, सं., पद्य, वि. १५२४, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. श्लोक-३ से ५ तक है.) चित्रसेनपद्यावती चरित्र -अर्थ, मा.गु., गद्य, आदि (-); अति: (-). ११६५७०. वृद्धशांति, अपूर्ण, वि. १९०९, वैशाख शुक्ल, ३, मध्यम, पृ. ५०-४८ (१ से ४८) = २, प्रले. भोजाजी हरीचंदजी; पठ. पं. सुखविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. हुंडी: अजीसं०. असांत०, दे. (२६.५४१३, १३x२७). , י Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir बृहत्शांति स्तोत्र- तपागच्छीय, सं., प+ग, आदि (-) अति जैन जयति शासनम्, (पू.वि. 'सोधम्र्म्माधिपति सुघोषाघंटाचालनानंतरं' पाठांश से है.) १९६५७१. पार्श्वजिन स्तवन व पदादि संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी श्रेष्ठ, पृ. १. कुल पे. ४, दे. (२५.५४१३, १८४३४). " १. पे नाम. पार्श्वजिन स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण. मु. जिनचंद्र, पुहिं., पद्य, आदि जय बोलो पास जिनेसर अति जिनचंद० सुरतरु की गाथा-८. " २. पे. नाम नेमराजिमती पद, पृ. १अ संपूर्ण. मु. चंद, पुहिं, पद्य, आदि: यादव मन मेरो हर लीयो रेस अंतिः चंद कहे मन हरखियो रे, गाथा-३. ३. पे. नाम औपदेशिक होली पद, पृ. १अ, संपूर्ण. पुहिं., पद्य, आदि: होरी खेलो रे भविक; अंति: तेरा पाप सबल थरकै, गाथा-४. ४. पे. नाम औपदेशिक लावणी, पृ. १अ १आ, संपूर्ण पुहिं., पद्य, आदि: खबर नही जगमे पलकी सुकृत; अंति: जिनकु विनति अखेमल की, गाथा- ९. ११६५७२. चैत्यवंदन संग्रह, संपूर्ण, वि. २०बी, श्रेष्ठ, पृ. २. कुल पे. ७, दे., (२५X१३, १२४३१). १. पे नाम. सिद्ध नमस्कार, पृ. १अ, संपूर्ण. सिद्धभगवंत चैत्यवंदन, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि सिद्ध सकल सुख संपदा अविचल, अंति ज्ञानविमल० पाम्या ते भगवंत, गाथा-३. २. पे. नाम. अतीतचोवीसी नमस्कार, पृ. १अ, संपूर्ण. अतीतचौवीशीजिन चैत्यवंदन, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: अतितचोविसि प्रथम देव जिन; अंतिः स्पंदन २३ संप्रति कहेश २४, गाथा ३. ३. पे. नाम. वर्त्तमानचोवीसी नमस्कार, पृ. १अ, संपूर्ण. २४ जिन चैत्यवंदन, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., पद्य, आदि ऋषभ १ अजित २ संभव ३ अंति कहे ज्ञानविमलसूरीश, गाथा - ३. ४. पे. नाम. अनागतचोवीसी नमस्कार, पृ. १अ २अ संपूर्ण. २४ जिन चैत्यवंदन- अनागत, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि पद्मनाभ पहेला जिनंद, अति: कहे ज्ञानविमलसूरीश, गाथा- १५. ५. पे नाम, बीसवेहरमान नमस्कार, पू. २अ २आ, संपूर्ण. २० विहरमानजिन चैत्यवंदन, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., पद्य, वि. १८वी आदि पहेला जिनवर विहरमान; अंति विसमा बंद निसदिस, गाथा-८. , ६. पे. नाम. साधारणजिन चैत्यवंदन, पृ. २आ, संपूर्ण. आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: चउजिण जंबूद्रीपमा अड; अंति: ज्ञानविमल० सिर धरिजे आंण, गाथा - ३. ७. पे नाम शाश्वतजिन चैत्यवंदन, पृ. २आ, संपूर्ण. आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: लाख बहोत्तेर कोडी; अंति: ज्ञानविमल० आगम ए निसंदेह, गाथा-३. ११६५७३. सरस्वतीदेवी छंद संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, ले. स्थल, राधनपुर, प्रले. मु. भगवानविजय; पठ. मु. साधुविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. श्रीपार्श्वनाथजी पसादात्., दे., (२५.५X१२.५, १४x२१). For Private and Personal Use Only Page #111 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra ९६ www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १. पे. नाम. सरस्वतीदेवी छंद, पृ. १अ, संपूर्ण, पे. वि. यह कृति इस प्रत के साथ एक से अधिक बार जुड़ी हुई है. मु. दयानंद, मा.गु., पद्य, आदि: मा भगवती विद्यानी; अंति: हुं जाउं तोरी बलिहारी, गाथा- ७. २. पे. नाम. सरस्वतीदेवी छंद, पृ. १आ, संपूर्ण, पे.वि. यह कृति इस प्रत के साथ एक से अधिक बार जुड़ी हुई है.. मु. दयानंद, मा.गु., पद्य, आदि मा भगवति विद्यानी अंति (-), (अपूर्ण, पू. वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण. गाथा-४ तक लिखा है.) ११६५७४. पजुषणपर्व सज्झाय, संपूर्ण वि. २०वी मध्यम, पृ. १, वे. (२५x१२.५, १०x२७). पर्युषणपर्व सज्झाय, ग. हंस, मा.गु., पद्य, आदि: परब पजुसण आवीया रे लाल; अंति: हंस नमे करजोडि रे, गाथा - ११. १९६५७८, (+) नवपद स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, प्र. वि. संशोधित, जैये. (२४४१३, १२४३७). "1 नवपद स्तवन, पं. लब्धिरुचि, मा.गु., पद्य, वि. १८८२, आदि: तप नवमें पद प्रणमीयै प्रण; अंति: पामैं लीलविशाल लाल रे, गाथा - १२. ११६५८०. (+) ग्रहशांति स्तोत्र, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, प्र. वि. पदच्छेद सूचक लकीरें., जैदे., (२५X१३, १४X३६). ग्रहशांति स्तोत्र-लघु, आ. भद्रबाहुस्वामी, सं., पद्य, आदि: जगद्गुरु नमस्कृत्य; अंति: ऋद्धि वृद्धि जय कुरु, श्लोक-१३. ११६५८१. समकितना सडसठबोल सज्झाब, अपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पृ. १. पू. वि. अंत के पत्र नहीं हैं., जैवे. (२५४१३. 3 १४४४१). सम्यक्त्व ६७ बोल सज्झाय, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., पद्य, आदि: सुकृतवल्लि कादंबिनी; अंति: (-), (पू. वि. दाल-४ गाथा २१ अपूर्ण तक है.) ११६५८२. जीवादि बोल संग्रह, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ३- २ (१ से २) = १, पू. वि. मात्र बीच का ही एक पत्र है., दे., (२५.५x१३.५, ९४२६). बोल संग्रह-विविधगत्यागतादि जीव एकसमयसिद्धसंख्या विचार, मा.गु., गद्य, आदि (-); अंति: (-), (पू.वि. बोल-६ अपूर्ण से बोल - १० अपूर्ण तक है.) ११६५८४. (*) सज्झाय व बारमासादि संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी श्रेष्ठ, पृ. ३, कुल पे. ५. प्र. वि. प्रत्रांक का उल्लेख नहीं है., अशुद्ध पाठ अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे. (२३४१३.५, १२४३१). १. पे नाम औपदेशिक पद, पृ. १अ १आ, संपूर्ण. पुहिं., पद्य, आदि: तु सुन सतगुरु की सीक समज, अंति: जीन जीन देव कहु कहा ताइ, गाथा-४. २. पे. नाम नेमिराजर्षि सज्झाय, पृ. १आ, संपूर्ण. मु. ऋषिराय, रा., पद्य, वि. १९५१, आदि: सेवाजी कीजे सुद परणाम नेम; अंति: कह रीखरायजी० सोभागी धन धन, गाथा - ९. ३. पे. नाम. पंचमआरा सज्झाय, पृ. २अ-२आ, संपूर्ण. मु. चोथमल ऋषि, मा.गु, पद्य, आदि नीतको उठ गामे जावे माथे अति सुख नही एण पंचमे आरेमे, गाथा-२१. ४. पे. नाम. नेमिजिन बारमासो, पृ. ३अ - ३आ, संपूर्ण. नेमराजिमती सज्झाय, मु. धनीदास, पुहिं., पद्य, आदि: नेमजीसु होरी मचाइ खेलगे; अंति: धनीदास०सुणो सब सजन भाई. गाथा ११. ५. पे. नाम. आध्यात्मिक होरी, पृ. ३आ, संपूर्ण.. मु. रतनचंद, पुहिं, पद्य, आदि सुध ग्यानीजी फागुणमे; अंति मुकत बघू से हीत जोडी, गाथा-८. १९६५८५. (०) जैनदीक्षा मुहूर्त्त संपूर्ण वि. १९वी मध्यम, पृ. १, प्र. वि. पदच्छेद सूचक लकीरें मूल पाठ का अंश खंडित है, जैवे., 5 (२३.५X१३, १७X३६). जैनदीक्षा मुहूर्त-मुहूर्तप्रदीपके, मा.गु. सं., गद्य, आदिः शिष्यस्य गोचरे शुद्धि: अंति: १३ नवांश कुंडली लग्न. ११६५८६ संखेश्वरजीनो छंद, अपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. २- १ (१) = १, जैदे., ( २३१३.५, ११X३३-४०). For Private and Personal Use Only पार्श्वजिन छंद-शंखेश्वर, ग. कनकरत्न, मा.गु., पद्य, वि. १७११, आदि: (-); अंति: कनक० भवि सीव सुख लीधो, गाथा २५, (पू.वि. गाथा १८ से है.) Page #112 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२६ ११६५८७. स्तुति संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ४, जैदे., (२०x१३, १३३२). १. पे. नाम. सिद्धाचल थुइ, पृ. १अ, संपूर्ण, पे. वि. स्तुति के बाद विधि लिखी है.. शत्रुंजयतीर्थ स्तुति, मु. सुमतिविजय, मा.गु., पद्य, आदि श्रीविमलाचल भावे प्रणमो अंतिः सुमतिविजय चितधारोजी. २. पे. नाम. बीजाविहरमान थुई, पृ. १अ, संपूर्ण. युगमंधरजिन स्तुति, मु. सुमतिविजय, मा.गु., पद्य, आदि दिनउ गमते बंदु अंति: सुमतिविजय करंत, गाथा- १. ३. पे नाम महावीरजिन थुई, पृ. १अ १आ, संपूर्ण. महावीरजिन स्तुति, मु. सुमतिविजय, मा.गु., पद्य, आदि: चैत्र सुदि दिन तेरसेए; अंति: सुमतिविजय जयकारतो, Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir गाथा-४. ४. पे. नाम. सीमंधरस्वामी चैत्यवंदन. पू. १आ. संपूर्ण. सीमंधरजिन चैत्यवंदन, मु. सुमतिविजय, मा.गु., पद्य, आदि श्रीसीमंधरजगत्प्रभुः अंतिः सुमतिवि० होज्यो नित्यसवार, गाथा-५. ११६५८८. हित सिखामण, संपूर्ण, वि. १९२६, श्रेष्ठ, पृ. ३, ले. स्थल. अमरगढ, प्रले. पं. उत्तमविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, दे., (२०१३, १५२४). ९३ औपदेशिक बोल, पुहिं., गद्य, आदि इष्ट देवता उपर मन राखीजे; अंति घर ने घणा दिन नहि जे. ११६५८९. (+) सिद्धपद स्तुति व शत्रुंजयतीर्थ चैत्यवंदन, संपूर्ण वि. १९१९ कार्तिक कृष्ण, १. शुक्रवार, मध्यम, पू. १, कुल पे. २, ले. स्थल. राधिकापूर, प्रले. श्राव. जयचंद वलीचंद सेठ, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. संशोधित. वे. (२२.५x१३, १५४२६) १. पे नाम. सिद्धपद स्तुति, पृ. १अ संपूर्ण सिद्धपद स्तवन, मा.गु.,सं., पद्य, आदि: जगत भूषण विगत दुषण प्रणय; अंति: ध्यानथी सिद्धदर्शनं, गाथा-१३. २. पे नाम. शत्रुजवतीर्थ चैत्यवंदन, पृ. १आ, संपूर्ण. ग. पद्मविजय, मा.गु., पद्य, आदि: विमलकेवल ज्ञानकमला; अंति: पद्मविजय सुहितकरं, गाथा- ७. " ११६५९०. (#) पार्श्वजिन छंद-अंतरीक्षजी व सम्मेतशिखरतीर्थ चैत्यवंदनादि संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ६, प्र. वि. पत्रांक १४१६०१. पत्रांक गिनकर दिया गया है. मूल पाठ का अंश खंडित है, दे. (३१.५x१२.५, ५८४१३ ). १. पे. नाम. पार्श्वजिन छंद-अंतरीक्षजी, पृ. १अ, संपूर्ण, पे. वि. यह कृति इस प्रत के साथ एक से अधिक बार जुड़ी हुई है. मु. लावण्यसमय, मा.गु., पद्य, वि. १५८५, आदि सरस वचन दो सरसति मात बोली अंति (-), (अपूर्ण, पू. वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण. गाथा २७ अपूर्ण तक लिखा है.) २. पे. नाम. सम्मेतशिखरतीर्थ चैत्यवंदन, पृ. १अ, संपूर्ण. मु. सेवक, मा.गु., पद्य, आदि समेत गिर उपर सिधा वीस अति सेवग० कठै सादो सगला काज, गाथा-३, (वि. प्रतिलेखक ने गाथा क्रमांक भिन्न-भिन्न दिया है.) ३. पे. नाम. सम्मेतशिखरतीर्थ स्तवन, पृ. १अ संपूर्ण. मु. सेवक, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीसिखरगिर वंदो रे नरनार, अंतिः सेवग की ० वंदो रे नरनारी, गाथा-५. ४. पे. नाम. पार्श्वजिन स्तवन- अंतरीक्ष, पृ. १अ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तवन- अंतरीक्षजी, मु. सेवक, मा.गु., पद्य, आदि अंतरीक प्रभु साहेब मेरे अंतिः सेवग० लाज हमारी जी प्रभु, गाथा-५. ५. पे. नाम. पार्श्वजिन स्तवन- अंतरीक्ष, पृ. १अ संपूर्ण. ९७ , पार्श्वजिन स्तवन-अंतरीक्षजी, मा.गु., पद्य, आदि: दक्षिण देसै सोभतो नयर; अंति: (-), (अपूर्ण, पू. वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., गाथा-५ तक लिखा है.) ६. पे नाम. पार्श्वजिन छंद - अंतरीक्षजी, पू. १आ, संपूर्ण, पे. वि. यह कृति इस प्रत के साथ एक से अधिक बार जुड़ी हुई है. मु. लावण्यसमय, मा.गु., पद्य, वि. १५८५, आदि: सरस वचन दो सरसति मात बोली; अति: तुम धियाने मन माहरो रहै, गाथा - ५४. १९६५९६. (+) २४ जिन कल्याणक स्तवन, संपूर्ण, वि. २०बी, श्रेष्ठ, पृ. ४, प्र. वि. संशोधित. वे. (२४४१२.५, ११४३२) For Private and Personal Use Only Page #113 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची २४ जिनकल्याणक स्तवन, पंन्या. पद्मविजय, मा.गु., पद्य, वि. १८३६, आदि: प्रणमी जिन चोवीसने; अंति: इम थुणतां श्रीजिनरायो रे, ढाल-७, गाथा-४९. ११६६००. सुबुध बारेखडी, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ४-३(१ से ३)=१, जैदे., (२४.५४१३, १०४३४). औपदेशिक छंद-पैतीसअंक, मा.गु., पद्य, वि. १८४२, आदि: (-); अंति: ध्यान कर जीवने ग्यान पाया, गाथा-३६, (पू.वि. गाथा-३४ अपूर्ण से है.) ११६६०४. (+) भक्तामर स्तोत्र, संपूर्ण, वि. १८७२, आषाढ़ कृष्ण, ६, गुरुवार, मध्यम, पृ. ४, ले.स्थल. उदेपुर, प्रले. पं. उदेचंद; राज्यकालरा. भीमसिंहजी, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२५४१२, १२४२८). भक्तामर स्तोत्र, आ. मानतंगसूरि, सं., पद्य, आदि: भक्तामरप्रणतमौलिमणि; अंति: मानतुंग० लक्ष्मीः , श्लोक-४४. ११६६०६. अष्टापदतीर्थ खमासमण विधि व यंत्र संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. २, कुल पे. २, दे., (२१४१३, ११४२४). १.पे. नाम. अष्टापदजीकी ओलीका १६ खमासमणा विधि, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. अष्टापदतीर्थतप खमासमण विधि, सं., गद्य, आदि: अशोकवृक्षादि अष्टप्राति०; अंति: स्फटिकाचलपर्वताय नमः१५, (वि. अंत में कुछ शब्दार्थ दिये हैं.) २. पे. नाम. यंत्र संग्रह, पृ. २आ, संपूर्ण. मंत्र-तंत्र-यंत्र संग्रह, उ.,पहि.,प्रा.,मा.ग.,सं., प+ग., आदि: (-); अंति: (-). ११६६०९. पार्श्वनाथजी निसाणी, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, जैदे., (२४.५४१२.५, १२४३७). पार्श्वजिन निसाणी-घग्घर, मु. जिनहर्ष, पुहिं., पद्य, आदि: सुखसंपति दायक सुरनर; अंति: (-), (पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., गाथा-३५ अपूर्ण तक है.) ११६६११. (4) पेटउपरि दहा, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १,प्र.वि. अंत में ज्वरनिवारण यंत्र दिया गया है., अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२३.५४१३, १५४३१). औपदेशिक दोहा-पेटउपरि, मु. उदयराज, मा.गु., पद्य, आदि: करीउ करीया कुं नमत; अंति: कवि उदै करत सलाम सलाम, दोहा-१०. ११६६१५. नयचक्रालाप पद्धति, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ४-२(१ से २)=२, पू.वि. बीच के पत्र हैं., प्र.वि. हुंडी:नायचक्र., दे., (२३.५४१३, १७४३६). आलाप पद्धति, आ. देवसेन, सं., पद्य, वि. १०वी, आदिः (-); अंति: (-), (प.वि. नैगमनय निरूपण अपूर्ण से स्वद्रव्यग्राहक अस्ति स्वभाव निरूपण अपूर्ण तक है.) ११६६१७. दोषाकेवली, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, दे., (२१.५४१३.५, १३४२६). दोषाकेवली, मा.गु., गद्य, आदि: १११ शरीर वेदना छई दोष कौ; अंति: (-), (पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., ४११ 'विश्वास करइ धुनी' पाठांश तक है.) ११६६२१ (२) १० पच्चक्खाण फल, संपूर्ण, वि. १९३७, पौष शुक्ल, १०, रविवार, श्रेष्ठ, पृ. १, ले.स्थल. टोडा, प्रले. श्राव. छोकचंद, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. अशुद्ध पाठ., दे., (१९४१३, १९४१६). १० पच्चक्खाण फल, मा.गु., गद्य, आदि: नोकारसी पचखाण सो वर्ष; अंति: आवतो तिर्थंकर गोत्र बाध. ११६६३१. अकलंकाष्टक स्तोत्र, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., दे., (२१४१३, ७४२१). अकलंकाष्टक स्तोत्र, आ. अकलंकदेव, सं., पद्य, आदि: त्रैलोक्यं सकलं; अंति: (-), (पू.वि. श्लोक-४ अपूर्ण तक है.) ११६६३३. (+#) वीतरागशब्दस्य षष्टिरर्थ स्तोत्र, संपूर्ण, वि. १७वी, मध्यम, पृ. १,प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें-संधि सूचक चिह्न-अन्वय दर्शक अंक युक्त पाठ-टिप्पण युक्त विशेष पाठ. मूल पाठ का अंश खंडित है, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२८.५४११, १२४६७). वीतराग स्तोत्र-६०अर्थगर्भित, सं., पद्य, आदि: अंब त्र्यंबकभाललालितसुधा; अंति: वाग्वीतरागं जय साधुरत्न, श्लोक-१६. ११६६३४. १३ पदानुसार ५२ जिनभेद गाथा, अष्टसिद्धि विचार, पुण्यएकतीसा व मंत्रादिसंग्रह, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ५, जैदे., (२८x११, १७७५७). For Private and Personal Use Only Page #114 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२६ www.kobatirth.org १. पे. नाम. १३ पदानुसार ५२ जिनभेद गाथा, पू. १अ संपूर्ण, प्रा., पद्य, आदि: तित्थय१ सिद्ध२ कुल ३ गण४; अंति: तेरस चउगुणा हुंति बावन्ना, गाथा-२. २. पे नाम अष्टसिद्धि विचार, पृ. १अ, संपूर्ण. ८ सिद्धिविचार, सं., गद्य, आदि: अणिमा१ महिमा२ लघिमा ३; अंति: वशित्वं सर्वजीव वशीकरणं. ३. पे. नाम. पुण्यएकतीसा, पृ. १अ १आ, संपूर्ण. मा.गु., पद्य, आदि एगंदिय पंचंदियउ हे अहेव अति घण ए पुण पुन्न विचारि, गावा- ३१. ४. पे नाम. मांसदोष लोक, पृ. १आ, संपूर्ण. सं., पद्य, आदि अज्ञातभाजनमशुद्धजलादि; अति नितरां किल मांसदोषाः श्लोक-१. ५. पे. नाम. मंत्रसंग्रह, पृ. १आ, संपूर्ण. Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir मंत्र संग्रह, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), (वि. अंत में १ प्रास्ताविक श्लोक है.) ११६६३५. तत्त्वार्थाधिगमसूत्र सह टवार्थ, अपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पू. २, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. जै.. (२६.५x११. ४X३८). तत्त्वार्थाधिगमसूत्र, वा. उमास्वाति, सं., गद्य, आदि: मोक्षमार्गस्य नेतारं; अंति: (-), (पू.वि. अध्याय- १ सूत्र- "मतिश्रुतावधयोबिपर्ययश्च" पाठांश तक है.) तत्त्वार्थाधिगमसूत्र - टवार्थ पुहिं. गद्य, आदि मोक्षमार्ग के प्राप्तकरण अति: (-). ११६६३८. (A) आवश्यकसूत्र सह नियुक्ति व भाष्य, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ७९ ७८ (१ से ७८) = १. पू. वि. मात्र बीच का ही एक पत्र है., प्र. वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२९.५x११, ११X५१). " आवश्यक सूत्र- निर्युक्ति, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., पद्य, आदि (-); अंति (-) (पू.वि. कायोत्सर्गनियुक्ति पाठ "वासीचंदणकप्पो" से प्रत्याख्याननियुक्ति 'बत्तीसा सावया भणिया तक है. वि. इसमें टीका नहीं है, किंतु टीकागत प्रवचनसारोद्धारादि के साक्षीपाठ समाहित है.) יי आवश्यक सूत्र भाष्य, प्रा., पद्य, आदि (-); अति (-) (पू.वि. गाथा- २३७ से २४३ तक है.) १९६६५१. ज्योतिष प्रश्नावली अपूर्ण, वि. १९वी जीर्ण, पृ. ७-५ (१,३ से ६) =२. पू. वि. बीच-बीच के पत्र हैं., १२४३८-४२). ज्योतिष प्रश्नावली, सं., पद्य, आदि (-); अंति (-), (पू.वि. बीच-बीच के पाठांश है.) ११६६५५. (+) सूत्रकृतांगसूत्र, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. २२-२० (१ से २० ) = २, पू.वि. बीच के पत्र हैं., प्र. वि. संशोधित., जैदे., (२७४११, ९४२९-३५). ९९ सूत्रकृतांगसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., प+ग, आदि (-); अंति: (-), (पू. वि. अध्ययन-५ उद्देशक- १ गाथा १६ अपूर्ण से अध्ययन-५ उद्देशक-२ गाथा- २३ अपूर्ण तक है.) १९६६५६. चातुर्मासिक व्याख्यान, संपूर्ण, वि. २०वी श्रेष्ठ, पृ. ३, प्र. वि. हुंडी चातुर्मा०. दे. (२७.५x११, ९४४३). चातुर्मासिक व्याख्यान *, रा., गद्य, आदि: श्रीपार्श्वं सुखमागारं अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., पाठ-"सामायिकनो फल अ०को जाणिवो जेह भणी" तक लिखा है.) आ. लघ्वाचार्य, सं., पद्य, आदि ऐंद्रस्यैव शरासनस्य अंति: सततं सोभाग्यमारोग्यतां श्लोक-२४. २. पे. नाम जिनपंजर स्तोत्र. पू. ३आ, संपूर्ण, For Private and Personal Use Only , जैटे., (२८x१०.५, ११६६५९. (+) त्रिपुराभवानी व जिनपंजर स्तोत्र, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ४. कुल पे. २. प्र. वि. संशोधित अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२७X११, ११x४०). १. पे नाम. त्रिपुराभवानी स्तोत्र, पृ. १आ-३आ, संपूर्ण आ. कमलप्रभसूरि, सं., पद्य, आदि ॐ ह्रीं श्रीं अह अंतिः श्रीकमलप्रभाख्यः श्लोक-२५. १९६६६० (+) शास्वतजिनप्रतिमा स्तवन, संपूर्ण, वि. १६६३, पौष कृष्ण, १२, मध्यम, पृ. १, ले. स्थल कारपुर, प्रले. ग. विद्याविशाल (गुरुग, सहजविमल ) गुपि. ग. सहजविमल (गुरुग विनयविमल), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. संशोधित, जैदे. (२५.५x१०.५, १३X२४-३४). "" Page #115 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org १०० कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची शाश्वतजिनप्रतिमा स्तवन, मु. हर्षसागर, मा.गु., पद्य, आदि: सयल जिणेसर पब नमि, अंति पछे सीवसुख सार रे, गाथा - १२. ११६६६१. महावीरजिन स्तवन, औपदेशिक व जंबुस्वामी सज्झाय, अपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. २- १ (१) = १, कुल पे. ३, जैये., (२६.५X११, १२X३५). १. पे. नाम. महावीरजिन स्तवन, पृ. २अ, अपूर्ण, पू. वि. प्रारंभ के पत्र हैं.. श्राव. श्यामदास, पुहिं., पद्य, आदि: (-); अंतिः स्यामदास० का दुख निवारि, गाथा-११, (पू.वि. गाथा - १० अपूर्ण से है.) २. पे नाम औपदेशिक सज्झाय-वैराग्य, पृ. २अ संपूर्ण. Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir मु. दामोदर, पुहिं, पद्य, आदि मारग वहरे उतावलो उड झीणी अति: दामोदर० जिम जीवन निरभय होय, गाथा ९. - " ३. पे नाम, जंबुस्वामी सज्झाय, पृ. २आ, अपूर्ण, पू. वि. अंत के पत्र नहीं हैं. जंबूस्वामी सज्झाय, मु. सिद्धिविजय, मा.गु., पद्य, आदि राजग्रही नगरी वसे ऋषभदत्त; अंति: (-), (पू. वि. गाथा-१० तक है.) ११६६६६. (+#) १४ गुणस्थानक ६२ मार्गणा यंत्र व सूक्ष्मार्थविचारसारोद्धार, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २, कुल पे. २, प्र. वि. संशोधित मूल पाठ का अंश खंडित है, अक्षरों की स्वाही फैल गयी है, जैदे. (२५.५x१०.५, १७-२२४३४-५०). " १. पे. नाम, १४ गुणस्थानके ६२ मार्गणा यंत्र, पृ. १अ २आ, संपूर्ण मा.गु., को., आदि: (-); अंति: (-). २. पे. नाम. सूक्ष्मार्थविचारसारोद्धार-गाथा ५१ से ५८, पृ. २आ, संपूर्ण. सूक्ष्मार्थविचारसारोद्धार, ग. जिनवल्लभ, प्रा., पद्य, आदि (-); अति (-) (प्रतिपूर्ण, वि. यही गाथाएँ प्रवचनसारोद्धार में १२९० से १२९७ गाथांक पर मिलती हैं.) ११६६६७ (+) पंचप्रतिक्रमणसूत्र संग्रह व नमिउण स्तोत्र, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ७-२ (१,६)=५, कुल पे. २, प्र. वि. संशोधित, जैवे. (२५x११, ११४३८). १. पे. नाम. पंचप्रतिक्रमणसूत्र संग्रह, पृ. २अ-७अ, अपूर्ण, पू. वि. प्रथम एक व बीच के पत्र नहीं हैं. पंचप्रतिक्रमणसूत्र संग्रह- तपागच्छीय, संबद्ध, प्रा., मा.गु., सं., प+ग., आदि: (-); अंति: वंदामि जिणे चउवीसं, (पू.वि. जगचिंतामणि गाथा-४ अपूर्ण से प्रत्याख्यानगाथा अपूर्ण तक व वंदित्तुसूत्र गाथा ४४ अपूर्ण से है.) २. पे. नाम. नमिऊण स्तोत्र, पृ. ७अ-७आ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र नहीं है. आ. मानतुंगसूरि, प्रा., पद्य, आदि: नमिऊण पणय सुरगण, अंति: (-), (पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., गाथा- १४ अपूर्ण तक लिखा है.) ११६६६९. लोचकरण विधि, उपयोग विधि व वीसस्थानक आलावा, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २ -१(१)=१, कुल पे. ३, जैदे. (२५.५x११, १६x४०). १. पे. नाम. लोचकरण विधि, पृ. २अ, अपूर्ण, पू.वि. प्रथम पत्र नहीं है.. लोच विधि, प्रा., मा.गु., सं., प+ग., आदि: (-); अंति: पवेयणाइ न करेइ, (पू.वि. उच्चासणं संदिसावेमि आदेश अपूर्ण से है.) २. पे नाम उपयोग विधि, पू. २अ संपूर्ण. " प्रा. गद्य, आदि संपर्व उवओगं विना, अंति: आयारसच्छावणच्छं कारिता. ३. पे. नाम. वीसस्थानक आलावा, पृ. २अ-२आ, संपूर्ण. २० स्थानकतप आलापक, प्रा., गद्य, आदि: अहन्नं भंते तुम्हाणं; अंति: अप्पाणं वोसरामि. ११६६७३. ४७ आहारदोष सह बालावबोध, संपूर्ण, वि. १७१०, मध्यम, पृ. १, ले. स्थल, सेवाडी, प्रले. मु. जेसिंघ ऋषि (गुरु . वेणाजी ऋषि); गुपि मु. वेणाजी ऋषि (गुरु आ. धनराजजी ऋषि), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. पंचपाठ, जैदे. (२६४११, ६x२२). ४७ आहारदोष गाथा आधाकर्मी, प्रा., पद्य, आदि आहाकम्मं उद्देसीयं अंतिः रसहेतु दव्वसंजोगा, गाथा-६. For Private and Personal Use Only Page #116 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२६ १०१ ४७ आहारदोष गाथा-आधाकर्मी-बालावबोध, मा.गु., गद्य, आदि: आहार जे साधुनेइ निमित्त; अंति: दोष टाली सुधु संजम पालवो. ११६६७४. (+) चौवीसजिन स्तुति सह बालावबोध, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १,प्र.वि. त्रिपाठ-संशोधित., जैदे., (२६४१०.५, २४५३-५६). २४ जिन स्तुति, अप., पद्य, आदि: भरहेसरकारिय देव हरे; अंति: हरंतु दुहंसगुणा, गाथा-२. २४ जिन स्तुति-टीका, उपा. समयराज, सं., गद्य, आदि: भरहेसरेत्यादि अहं; अंति: समयराज० शुभंबोभुवीति सदा. ११६६७८. सामुद्रिकशास्त्र व हीरावेधी कवित्त, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, जैदे., (२५४१०.५, १५४४२-४६). १. पे. नाम. सामुद्रिकशास्त्र-करलक्षण, स्त्रीलक्षण व गतिलक्षण, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण.. सामुद्रिकशास्त्र, सं., पद्य, आदिः (-); अंति: (-), (प्रतिपूर्ण, वि. कल्पसूत्र के सामुद्रिक अधिकारे प्रदत्त ४ गतिओं से आने-जाने वाले जीवों के लक्षण भी बीच में दिये गये हैं व धर्मोद्यम हेतु १ श्लोक भी दिया गया है.) २. पे. नाम. हीरावेधी कवित्त, पृ. १आ, संपूर्ण. ज्योतिष पद, मु. जिनहर्ष, मा.गु., पद्य, आदि: पंचम प्रवीण वार; अंति: जिनहर्ष०रासि उपमा कहीजीयै, गाथा-१. ११६६८३. पार्श्वजिन स्तोत्रद्वय व स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ३, ., (२४.५४१०.५, १४४४६). १.पे. नाम, पार्श्वजिन स्तोत्र, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. ग. शिवनिधान, मा.गु., पद्य, आदि: धन धन आज विहाणडउ मुझ; अंति: शिवनिधान० सुख देज्यो रे. २. पे. नाम. पार्श्वजिन स्तोत्र, पृ. १आ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तवन, ग. शिवनिधान, मा.गु., पद्य, आदि: (अपठनीय); अंति: करि मै मानिज्यो शिवनिधान, गाथा-५, (वि. आदिवाक्य अस्पष्ट है.) ३. पे. नाम, पार्श्वजिन स्तवन-शंखेश्वर, पृ. १आ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तवन, ग. शिवनिधान, मा.गु., पद्य, आदि: हिव मुझनइ चिंता किसीजी; अंति: शिवनिधान० चीत करउ करि सार, गाथा-५. ११६६८७. (+) निशीथसूत्र का बीजक, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ३, ले.स्थल. वीदासर, प्रले. मु. वीरमजी, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२५४१०.५, १७४२९). निशीथसूत्र-बीजक, मा.गु., गद्य, आदि: सूई छुरी नहणी आदि घसइ; अंति: प्रव्रज्याअव्यक्तः. ११६६८८.(+) साधअतिचारचिंतवन गाथा, गोचरी आलोयण गाथा व महावीरजिन स्तवनादि संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. ५, प्र.वि. पत्र १अ पर धर्मचक्रवाल तपोदिन का चक्र है., संशोधित-टिप्पण युक्त विशेष पाठ., दे., (२५.५४११, १३-१६४१७-४६). १. पे. नाम. साधुअतिचारचितवन गाथा, पृ. १अ, संपूर्ण. संबद्ध, प्रा.,मा.गु., पद्य, आदि: सयणासणन्नपाणे; अंति: वितहायरणे अइयारो, गाथा-१. २. पे. नाम. गोचरी आलोयण गाथा, पृ. १अ, संपूर्ण. प्रा., पद्य, आदि: अहो जिणेहिं असावज्जा; अंति: साहु देहस्स धारणा, गाथा-१. ३. पे. नाम. महावीरजिन स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण. महावीरजिन स्तोत्र, आ. मुनिसुंदरसूरि, प्रा., पद्य, वि. १५वी, आदि: जयसिरिजिणवर तिहुअणजण; अंति: निअपयसुहदाणओ अइरा, गाथा-५. ४. पे. नाम. साधुदैवसिकप्रतिक्रमण आलोचनासूत्र सह अवचूरि, पृ. १आ, संपूर्ण. साधदेवसिप्रतिक्रमण अतिचार-म.प., संबद्ध, मा.गु., गद्य, आदि: ठाणे कमणे चंकमणे; अंति: तस मिच्छामि दक्कडं. साधदेवसिप्रतिक्रमण अतिचार-म.प.-अवचरि, सं., गद्य, आदि: ठाणे कमणे इत्यादि वक्ति; अंति: सूत्रपाठ तस्यायमर्थः. ५. पे. नाम. रात्रिप्रतिक्रमण आलोचनासूत्र सह अवचूरि, पृ. १आ, संपूर्ण.. साधुराईप्रतिक्रमण अतिचार-श्वे.मू.पू., संबद्ध, प्रा.,मा.गु., गद्य, आदि: संथारा उवट्टणकि परिय; अंति: तस्स मिच्छामी दुकडं. For Private and Personal Use Only Page #117 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra १०२ www.kobatirth.org कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची " साधुराईप्रतिक्रमण अतिचार .मू. पू. अवचूरि, सं. गद्य, आदि संस्तारके उद्वर्तना एकवार; अति: कार्यमाणमिति चूर्णि ११६६८९. (+) दशवैकालिकसूत्र सह टवार्थ, अपूर्ण, वि. १६२२, वैशाख शुक्ल, ५, श्रेष्ठ, पू. ७६-७५ (१ से ७५) = १, पठ. सा. पुण्यमति, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. संशोधित, जैवे. (२५.५x११, ४४३०). ,י Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir दशवैकालिकसूत्र, आ. शय्यंभवसूरि, प्रा., पद्य, वी. २वी, आदि: (-); अंति: कहणा पवियालणा संघे, अध्ययन-१०, (पू.वि. चूलिका गाथा- २ अपूर्ण से है., वि. चूलिका-२) दशवैकालिकसूत्र- टवार्थ, मा.गु. गद्य, आदि (-); अति कहिए शास्त्रभंडारी. ११६६९०. (+) बीसमरा कल्प, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, प्र. वि. संशोधित., दे., (२७X११, १२x२९-३६). विसहरा शकुन विचार, मा.गु., गद्य, आदि अदीत १ मंगल २ सनेवार अंति: पडरारो विचार जांणवो. ११६६९३. (*) उपदेशरत्नमाला सह टवार्थ, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ४. पू. वि. अंत के पत्र नहीं हैं. प्र. वि. पदच्छेद सूचक लकीरें-संशोधित-टिप्पण युक्त विशेष पाठ., दे., ( २६.५X११, ३X३८). , उपदेशरत्नमाला, आ. पद्मजिनेश्वरसूरि प्रा. पद्य, आदि उवएसरयणकोसं नासिय नीसेस अति (-) (पू.वि. गाथा २४ " अपूर्ण तक है.) उपदेशरत्नमाला-वार्थ, मा.गु., गद्य, आदि उपदेशरूप रत्नकोश; अति: (-). ११६६९४. (+) उत्तराध्ययनसूत्र सह बालावबोध, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ९८ ९५ (१ से ८८, ९०, ९२ से १७) = ३, पू.वि. बीच-बीच के पत्र हैं. प्र. वि. पंचपाठ-पदच्छेद सूचक लकीरें संशोधित अक्षरों की स्वाही फैल गयी है, जैदे. (२७X११, ११x२३). उत्तराध्ययनसूत्र, मु. प्रत्येकबुद्ध, प्रा., प+ग., आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. अध्ययन- २५ गाथा - ३४ अपूर्ण से अंत तक, अध्ययन-२६ गाथा-१५ अपूर्ण से २७ अपूर्ण तक व अध्ययन २८ पाठ "पच्चक्खाणे १३ इथुईमंगले १४" से पाठ "दंसणविसोहीए य णं विसुद्धाए" तक है.) उत्तराध्ययनसूत्र- बालावबोध, मा.गु., गद्य, आदि (-); अंति: (-). ११६६९६. (+) गजसुकुमाल चौपाई, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ८-४(१ से ४)=४, प्र. वि. हुंडी देवकी, संशोधित. मूल पाठ का अंश खंडित है, दे., (२५X१०.५, १८X३१). " गजसुकुमालमुनि चौपाई, मा.गु., पद्य, आदि (-); अति (-). (पू.वि. बीच के पत्र हैं. डाल- १० गाथा-९ अपूर्ण से ढाल १७ गाथा १५ अपूर्ण तक है.) ११६६९७ मौनएकादशी गणणुं, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २, जैदे., ( २५.५X११, १२X३६). मौनएकादशीपर्व गणणु, सं., को. आदि: जंबूद्वीपे भरते क्षेत्रे, अंतिः आरण्यकनाथाय नमः १९६६९८. स्तोत्र, छंद व चैत्यवंदनादि संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ४, कुल पे ९ जैदे. (२६४११, १४४४०). ', " १. पे. नाम. षटऋतु श्लोक, पृ. १अ, संपूर्ण. सं., पद्य, आदि मिने मेषवसंतश्च वृषमिथुन, अंति: मकरकुंभशशिकतो, श्लोक - २. २. पे. नाम. शनिश्चर स्तोत्र, पृ. १अ - १आ, संपूर्ण. शनैश्चर छंद, मा.गु., पद्य, आदि छाया नंदन जगिजयो, अंति: सहजे सदा वली वलि पखाणिये, गाथा - १५. ३. पे नाम. माणभद्रजी छंद. पू. १आ-२आ, संपूर्ण. माणिभद्रवीर छंद, मु. उदयकुशल, मा.गु., पद्य, आदि: सरस वचन द्यो सरसती; अंति लाख लाख रीझा लहे, गाथा २५. ४. पे. नाम. पंचतीर्थ चैत्यवंदन, पृ. २आ, संपूर्ण. ५ तीर्थ चैत्यवंदन, मु. कमलविजय, मा.गु., पद्य, आदि: धुर समरुं श्रीआदिदेव; अंति: कमलविजय०त्यां घर जय जयकार, गाथा- ३. .पे. नाम. चैत्यनमस्कार, पृ. २आ-३अ, संपूर्ण, तीर्थवंदना चैत्यवंदन, सं., पद्य, आदि: ख्यातोष्टापदपर्वतो; अंति: वनच्छेदो नमयेरिष्टनेमयो, श्लोक-६. ६. पे नाम. साधारणजिन चैत्यवंदन, पू. ३अ संपूर्ण , For Private and Personal Use Only Page #118 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२६ १०३ सं., पद्य, आदि: अनंतविज्ञानमतीतदोष; अंति: जिनःसाक्षात्सरोर्दमम्, श्लोक-८. ७. पे. नाम. नमस्कार महामंत्र छंद, पृ. ३अ-४अ, संपूर्ण. उपा. कुशललाभ, मा.गु., पद्य, वि. १७वी, आदि: वंछित० श्रीजिनशासन; अंति: कुशललाभ० वंछित फल लहे, गाथा-१३. ८. पे. नाम. सोलसती स्वाध्याय, पृ. ४अ-४आ, संपूर्ण. १६ सती सज्झाय, वा. उदयरत्न, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: आदिनाथ आदे जिनवर; अंति: उदयरतन० लहसे सुख संपदाये, गाथा-९. ९. पे. नाम. राईप्रतिक्रमण विधि, पृ. ४आ, अपूर्ण, पृ.वि. मात्र प्रथम पत्र है. संबद्ध, प्रा.,मा.गु., प+ग., आदि: प्रथम इरियावहि तसोत्तरी; अंति: (-), (पू.वि. इच्छकारसूत्र-प्रारंभिक गुरुवंदन विधि अपूर्ण तक है.) ११६७०१. आधाशीशी कथा व सात सखी संवाद, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, दे., (२६४१०.५, १४४४१). १.पे. नाम. आधाशीशी कथा, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण, पे.वि. हुंडी:आधोसीसि कथा. __ पुहि., गद्य, आदि: ॐ नमो अठाउली वन गहन माहि; अंति: हाथी सउ ऊजीइ आघोसीसी जाई. २. पे. नाम. सात सखी संवाद, पृ. १आ, संपूर्ण. ७ सहेली संवाद, पुहि., पद्य, आदि: पहिली सखी उठि बोलीयुं; अंति: तिण माथा दुष्या ततकालि, गाथा-७. ११६७०४. नवघाटी सज्झाय, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, दे., (२५.५४१०.५, १४४४१). औपदेशिक सज्झाय-नवघाटी, मु. हीरा, मा.गु., पद्य, आदि: नवघाटी मै है लटकाता रे; अंति: वखाण इक मनाया इ सांभलो, गाथा-१८. ११६७०७. (+) अशोकचंद्र कथा-रोहिणीतपविषये, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, पृ.वि. मात्र प्रथम पत्र है., प्र.वि. संशोधित-टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२५.५४११, १३४३४). अशोकचंद्र कथा-रोहिणीतपविषये, मु. कनककुशल, सं., पद्य, आदिः श्रीमान्पार्श्वजिनसर; अंति: (-), (पू.वि. श्लोक-२४ अपूर्ण तक है.) ११६७०८. २४ जिन कल्याणकदिन विचार, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, जैदे., (२६४१०.५, १७X४०). २४ जिन कल्याणकदिन विचार, प्रा.,मा.गु.,सं., को., आदि: कार्तिकवदि ५ शंभवनाथ; अंति: आसु शुदि नेमिनाथ च्यवन. ११६७०९ (+#) चतुःशरण प्रकीर्णक, संपूर्ण, वि. १७३७, मध्यम, पृ. ३, प्र.वि. संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५.५४१०.५, १३४३३). चतःशरण प्रकीर्णक, ग. वीरभद्र, प्रा., पद्य, वि. ११वी, आदि: सावज्जजोग विरई; अंति: कारणं निव्वुइ सुहाणं, गाथा-६३. ११६७१० (+#) जीवविचार प्रकरण सह अवचूरि, अपूर्ण, वि. १६९७, आषाढ़ शुक्ल, १०, गुरुवार, मध्यम, पृ. ५-४(१ से ४)=१, प्रले. मु. जिनहर्ष (गुरु मु. रूपविजय); गुपि. मु. रूपविजय (गुरु मु. ज्ञानसमुद्र); मु. ज्ञानसमुद्र (गुरु मु. पं.हर्षविसाल); मु. पं.हर्षविसाल, प्र.ले.पु. मध्यम, प्र.वि. हुंडी:जीव०सू०अ., संशोधित. मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., (२६४१०.५, १३४३६). जीवविचार प्रकरण, आ. शांतिसूरि, प्रा., पद्य, वि. ११वी, आदि: (-); अंति: रुद्दाओ सुय समुद्दाओ, गाथा-५१, (पू.वि. गाथा-४५ अपूर्ण से है.) जीवविचार प्रकरण-अर्थलेश अवचूरि, सं., गद्य, आदि: (-); अंति: शास्त्रमुदात्त आस्ताघात. ११६७११ (+) भगवतीसूत्र-शतक ८ उद्देशक ३ सूत्र ३९९ पृथ्वी प्रकार प्रश्नोत्तर का बालावबोध, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. १, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२६४११, २१४७४). भगवतीसूत्र-हिस्सा शतक ८ उद्देशक ३ सूत्र ३९९ पृथ्वी प्रकार प्रश्नोत्तर का बालावबोध, मा.गु., गद्य, आदि: केतली हे भगवंत पृथिवि कही; अंति: लाभस्ये ते तो अचरम कहियइ. For Private and Personal Use Only Page #119 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra १०४ www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ११६७१२. (+) इलाचीकुमार रास, अपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पृ. १०-४ (१ से ४) = ६ प्र. वि. संशोधित टिप्पण पाठ. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५.५X१०.५, १३X३६). कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची युक्त विशेष इलाचीकुमार चौपाई भावविषये, मु. ज्ञानसागर, मा.गु., पद्य, वि. १७१९, आदि (-); अंति: न्यानसागर० अजुआलइ छे, डाल-१६, गाथा - १८८, ग्रं. २९९ (पू. वि. गाथा- ७९ अपूर्ण से है.) ११६७१९. (+) जीवविचार प्रकरण सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. १८४७, पौष शुक्ल, ११, मध्यम, पृ. ७-४ (१ से ४) = ३, ले. स्थल. वालोतरा, पठ. मु. गोडीदास, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. श्री शांतिजिन प्रसादात्., टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२६X१०.५, ५X३४). जीवविचार प्रकरण, आ. शांतिसूरि, प्रा. पद्य वि. ११वी, आदि (-) अंति शांतिसू० सुय समुद्दाओ, गाथा-५१, 1 3 (पू.वि. गाथा- ३१ अपूर्ण तक नहीं है.) जीवविचार प्रकरण-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि (-); अंति सिद्धांत श्रुत समुद्र थकी. ११६७२०. (+) एकादशमांगसूत्र, अपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पृ. ५०-४९ (१ से ४९ ) = १, पठ. श्रावि मानाबाई, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. हुंडी : वैपाकसूत्रं, संशोधित, जैदे. (२५.५x१०.५, ८४४९). विपाकसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., गद्य, आदि (-); अंति: विसेसं जहा आयारस्स, श्रुतस्कंध २ अध्ययन २०, ग्रं. १२५०, (पू.वि. मात्र अंतिम पत्र है., श्रुतस्कंध -२ अध्ययन-१० पाठ 'विमलवाहणे राया धम्मरुती' से है.) ११६७२१. (१) कान्हन कतीबारे की चौपाई, संपूर्ण, वि. १८८३, चैत्र कृष्ण, ३, शुक्रवार, मध्यम, पृ. ३, प्र. मु. ऋषि दयाचंद, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे. (२७११, १७५१). " कान्हडकठियारा रास-शीयलविषये, मु. मानसागर, मा.गु., पद्य, वि. १७४६, आदि: पार्सनाथ प्रणमुं सदा, अंति मानसागर० दिन वधते रंग, ढाल - ९. ११६७२२. मौनएकादशीपर्व कथा, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २, पू. वि. अंत के पत्र नहीं हैं., जैदे., (२६.५X१०.५, १०X३०). मौनएकादशीपर्व कथा, सं., गद्य, आदिः श्रीमहावीरं नत्वा; अंति: (-), (पू.वि. 'मार्गशीर्ष एकादशीं समाराध्य' पाठांश तक है.) ११६७२६. (+) शंखेश्वरपार्श्वनाथ स्तोत्र व गौतमस्वामी छंद, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, प्रले. पं. विवेकविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. हुंडी : छंदपत्र, टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२६X१०.५, ११X३८). १. पे नाम. शंखेश्वर पार्श्वनाथ स्तोत्र. पू. १अ संपूर्ण ले. स्थल. पाटणनगर, ११६७२८. आनाधीरिषि सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पृ. १, जैदे. (२५.५X११, १६x४३). " पार्श्वजिन स्तोत्र-शंखेश्वर, आ. हंसरत्नसूरि, सं., पद्य, आदि महानंदलक्ष्मीघना, अंतिः श्रीपद्मरत्नायितम्, श्लोक ११. २. पे. नाम. गौतमस्वामी छंद, पृ. १आ, संपूर्ण. मु. लावण्यसमय, मा.गु., पद्य, वि. १६वी, आदि: वीरजिणेसर केरो सीस; अंति: लावण्यसमय० तुछें संपत कोड, गाथा - ९. अनाथीमुनि सज्झाय, पंन्या. रामविजय, मा.गु., पद्य, आदि मगधाधिपति श्रेणिक अंति इम बोले मुनि राम के, गाथा - ३०. ११६७२९. सदेवछसावलिंगारी वार्ता, अपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १, पू.वि. मात्र प्रथम पत्र है., जैदे., (२५.५X१०.५, १५X४६). सदयवत्ससावलिंगा कथा, मा.गु., प+ग., आदि: न्यार सुतारं निरवहण सुगुण; अंति: (-), (पू.वि. राजा द्वारा पुत्र सदैव वत्स को पढाने के प्रसंग अपूर्ण तक है.) For Private and Personal Use Only ११६७३२. (+) अंजनासुंदरी रास, अपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पू. ११-१० (१ से १०) = १. पू. वि. मात्र बीच का ही एक पत्र है. प्र. वि. संशोधित, जैदे. (२५.५४१०.५, १६४३७). " अंजनासुंदरी रास, मा.गु., पद्य, आदि (-); अति (-), (पू. वि. गाथा १३६ अपूर्ण से १४८ अपूर्ण तक है.) १९६७३३. (+) धन्ना अणगार सज्झाय, अपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पृ. १, पू. वि. मात्र प्रथम पत्र है., प्र. वि. संशोधित, जैदे., (२५.५X१०, ११३६). Page #120 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२६ १०५ धन्नाअणगार सज्झाय, क. मेघसागर, मा.गु., पद्य, आदि: समरी सरसति सामिणी; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-१० अपूर्ण ___ तक है., वि. पत्रांक-१अ पर पट्टावली अंतर्गत संभूतसूरि तक लिखकर छोड दिया है.) ११६७३४. दसपचखांण लाभ सज्झाय, संपूर्ण, वि. १७८४ कृष्ण, १४, मध्यम, पृ. १, प्रले. वनाबाई, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२६.५४१०, ९४३४). प्रत्याख्यानफल सज्झाय-शत्रंजयतीर्थे, म. प्रीतिविमल, मा.ग., पद्य, आदि: पचखी पचखांण परभाति; अंति: प्रीतविमल० धरतां, गाथा-७.. ११६७३५. (+#) चारमंगल रास, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. २,प्र.वि. हुंडी:मंगल., टिप्पण युक्त विशेष पाठ. अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२६४१०.५, १८४४५). ४ मंगल रास, म. जेमल ऋषि, रा., पद्य, आदि: अनंत चोवीशीजिन नमु; अंति: (-), (अपूर्ण, पृ.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., मंगल-२ तक लिखा है.) ११६७४१ (#) सप्ततिका कर्मग्रंथ-६ सह बालावबोध, अपूर्ण, वि. १९वी, जीर्ण, पृ. ५५-५४(१ से ५४)=१, पृ.वि. मात्र बीच का ही एक पत्र है., प्र.वि. मूल पाठ का अंश खंडित है, अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, जैदे., (२५.५४१०.५, १५४५८). सप्ततिका कर्मग्रंथ-६, आ. चंद्रमहत्तराचार्य, प्रा., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. गाथा-७८ से ८० तक है.) सप्ततिका कर्मग्रंथ-६-बालावबोध, मा.गु., गद्य, आदिः (-); अंति: (-). ११६७४२ (+-#) महावीर स्तवन, संपूर्ण, वि. १८००, वैशाख शुक्ल, ११, बुधवार, मध्यम, पृ. २, ले.स्थल. कल्याणपुर, प्रले. श्रावि. रायकवरी, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. हुंडी:माहावी., अशुद्ध पाठ-संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५.५४९.५, १२४४२). महावीरजिन स्तवन-१४ स्वप्नगर्भित, क. जैत, मा.गु., पद्य, आदि: एक मन वाद वीर जिणंद; अंति: प्रभु पुरोजी आसा हम भणी, गाथा-२८. ११६७४८. सोलैसती सिज्झाय व औपदेशिक लावणी, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २-१(१)=१, कुल पे. २, जैदे., (२६४११, ८४३५). १.पे. नाम. सोलैसती सिज्झाय, पृ. २अ, अपूर्ण, पू.वि. प्रथम पत्र नहीं है., पे.वि. हुंडी:१६ सती० लावणी. १६ सती लावणी, मु. रतनचंद ऋषि, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: सतीयां जिण मार्गमै जयवंति, गाथा-७, (पू.वि. गाथा-५ अपूर्ण से है.) २. पे. नाम. औपदेशिक लावणी, पृ. २अ-२आ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. पुहिं., पद्य, आदि: खबर नहि हे जुग में; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-८ अपूर्ण तक है.) ११६७४९ (+#) कल्याणमंदिर स्तोत्र सह अवचूरि, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ४, प्र.वि. पंचपाठ-पदच्छेद सूचक लकीरें-अन्वय दर्शक अंक युक्त पाठ-संशोधित. कुल ग्रं. ३३२, टिप्पणक का अंश नष्ट, जैदे., (२६४११, १०४२६-३०). कल्याणमंदिर स्तोत्र, आ. सिद्धसेनदिवाकरसूरि, सं., पद्य, वि. १वी, आदि: कल्याणमंदिरमुदारमवद्यभेदि; अंति: कुमुद० प्रपद्यंते, श्लोक-४४. कल्याणमंदिर स्तोत्र-अवचूरि, सं., गद्य, आदि: (१)श्रीमत् पार्श्वजिनं नत्वा, (२)तत्रादो कल्याणमंदिर; अंति: सुगुरुप्रसादात्. ११६७५२. उत्तराध्ययनसूत्र सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ९४-९३(१ से ९३)=१, पू.वि. मात्र बीच का ही एक पत्र है., प्र.वि. हुंडी:उत्तराष्ट०., जैदे., (२५.५४११, ५४४२). उत्तराध्ययनसूत्र, मु. प्रत्येकबुद्ध, प्रा., प+ग., आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. अध्ययन-२३ गाथा-२४ अपूर्ण से गाथा-३५ ___ अपूर्ण तक है.) उत्तराध्ययनसूत्र-टबार्थ *, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: (-). ११६७५५ (+) विचारादि संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ७, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें-अन्वय दर्शक अंक युक्त पाठ-टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२६४११.५, १४-१७४४७-५२). १.पे. नाम. आयु प्रमाण, पृ. १अ, संपूर्ण. For Private and Personal Use Only Page #121 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra १०६ www.kobatirth.org को., आदि: श्रीऋषभदेवना ८४; अंति: भेगा कीधा १४५२ गणधर थाई. विविध जीव आयुष्य विचार *, मा.गु., गद्य, आदि: उत्कृष्टो मनुष्यनो आउषो; अंति: गांडो २० वरस आउषो. २. पे नाम. २४ जिनगणधर संख्या, पृ. १अ संपूर्ण मा.गु., प+ग., आदि: ब्रह्मज्ञानरसायणं सुरधुनं; अंति: चातुरी चतुराई प्रवीणता. ७. पे नाम समकित ९ भेद. पू. १आ, संपूर्ण. मा. गु., ३. पे. नाम वार्षिक प्रतिक्रमण संख्यामान, पृ. १अ, संपूर्ण. प्रा.,मा.गु., प+ग., आदि: पडिकमणा वरस एक माहि हुइ; अंति: सत्तसयाहुंतिपणयाला. ४. पे नाम ढाईद्वीप विचार, पृ. १अ, संपूर्ण. मा.गु. गद्य, आदि अटीद्वीप माहि १३२ चंद्रमा अति तारा कोडा कोडि जाणिवा, . ५. पे. नाम दस अनंता, पृ. १अ संपूर्ण. १० अनंता द्रव्य प्रकार, मा.गु., गद्य, आदि १सिद्धना जीव २ निगोदना अंति: १० वनस्पतिकाय स्थित अनंता. ६. पे. नाम. १४ विद्या नाम, पृ. १आ, संपूर्ण. Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir पुहिं., पद्म, आदि नारी विना घर मै मन भूतसो; अति साक वडी मनरंजनहारी, गाथा- १. " २. पे. नाम. औपदेशिक सवैया, पृ. १अ, संपूर्ण. कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची सम्यक्त्व के ९ भेद, प्रा., मा.गु., गद्य, आदि: द्वव्यसमकित १ भावसमकित २; अंति: दिपक समकित अभव्यने कहीये. ११६७५७. (+) औपदेशिक सवैया संग्रह, संपूर्ण, वि. १८०२, कार्तिक, ७, रविवार, मध्यम, पृ. १, कुल पे. १४, ले. स्थल. खंडप, प्रले. मु. सांवलदास, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. संशोधित., जैदे., (२५.५X११, १५X४७). १. पे. नाम. औपदेशिक सवैया, पृ. १अ, संपूर्ण. मु. . सगति, पुहिं., पद्य, आदि: जागत चोर कहा मुश जाय; अंति: सगति कहे० चालै गौ मुसे, गाथा- १. ३. पे नाम औपदेशिक सवैया, पृ. १अ, संपूर्ण. पुहिं., पद्य, आदि एक की नारी सहेली खेलत; अंति: आपणा हाथ की छाप बनाई, गाथा- १. " ४. पे नाम औपदेशिक सवैया, पृ. १अ, संपूर्ण. पुहिं., पद्य, आदि: जा दिन ब्रह्मगि वारण कि; अंति: जोगी कलिज को खप्पर, गाथा-१. ५. पे. नाम. औपदेशिक सवैया, पृ. १अ, संपूर्ण. मु. मान, पुहिं., पद्य, आदि : मेरो ही मेरो करे नर मूरख; अंति: मान कहै ० ज्यु सराहि कोटटु, गाथा- १. ६. पे. नाम. औपदेशिक सवैया, पृ. १अ, संपूर्ण. विदुर, पुहिं, पद्य, आदि मात कह्यां नही मान जो मेल; अंति: विदुर० समंध भेला हुया, गाथा- १. ७. पे नाम औपदेशिक सवैया, पृ. १अ, संपूर्ण. पुहिं., पद्म, आदि प्रीत की रीतकु ज्यु अतिः सयन सोई सुख दुख बताई, गाथा-१. ९. पे नाम औपदेशिक सवैया, पृ. १आ, संपूर्ण, पुहिं., पद्य, आदि: अनधन पावक पवन लवण जल; अंति: नीपजे तव घर माडो चेलणा, गाथा - १. ८. पे नाम औपदेशिक सवैया, पृ. १अ १आ, संपूर्ण. क. गद, पुहिं., पद्य, आदि: दस बाला तनवीस विचक्षण; अंति: गद० ए जग धुमाको धो लहर, गाथा - १. १०. पे. नाम. औपदेशिक सवैया, पृ. १आ, संपूर्ण. For Private and Personal Use Only मु. धर्मसी, पुहि., पद्य, आदि आठ फूल खंड के अखंड से अंतिः धर्मसी० पुन जोग पाईये, गाथा- १. " ११. पे. नाम. औपदेशिक सवैया, पृ. १आ, संपूर्ण. मु. मल्ल, पुहिं, पद्य, आदिः सीतकु तूलत तायकु चंदन; अंतिः मल्ल० खुटेक कछुन प्रमानी, गाथा-१ १२. पे नाम औपदेशिक सवैया, पृ. १आ, संपूर्ण. पुहिं., पद्य, आदि रामचंद रीझीये दीध हण मत; अति नहीं प्रापति होय सुपाइये, गाथा- १. " १३. पे. नाम औपदेशिक सवैया, पृ. १आ, संपूर्ण. Page #122 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२६ १०७ सीत, पुहिं., पद्य, आदि: राम वदेइ बोलमबोल हमारे तो; अंति: सीत० कीधु दरवेस की हुती, गाथा-१. १४. पे. नाम, औपदेशिक सवैया, पृ. १आ, संपूर्ण. म. हीरानंद, पुहिं., पद्य, आदि: साधन कु जोग जब निकशे नगर; अंति: हीरनंद० कोन वात की नीहे, गाथा-१. ११६७५८. (+) स्तवन व सज्झाय संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ३-१(१)=२, कुल पे. ४, प्र.वि. संशोधित-टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२६.५४१०.५, १५४४४). १. पे. नाम. औपदेशिक सज्झाय, पृ. २अ, अपूर्ण, पृ.वि. प्रथम पत्र नहीं है. ____ मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: विकलाने वीर दीया टाले ए, गाथा-४०. २. पे. नाम, साधु आचार सज्झाय, पृ. २अ-३आ, संपूर्ण. रा., पद्य, आदि: ओलखणा देहली भव जीवा; अंति: त्यां हुवे जय जयकारी जी, गाथा-४५. ३. पे. नाम. पार्श्वनाथ स्तवन, पृ. ३आ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तवन-शंखेश्वर, आ. जिनचंदसरि, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीसंखेसर पास जिणेसर; अंति: जिनचंद सयल रिप जीपतो, गाथा-५. ४. पे. नाम, नेमराजिमती सज्झाय, पृ. ३आ, संपूर्ण. मु. धरम, मा.गु., पद्य, आदि: नव भव केरी प्रित धरी; अंति: भवभवना मुझ वांधण छोड, गाथा-८. ११६७६० पंचांगविधि दोहा, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ३, जैदे., (२६४११.५, १५४३७-४०). पंचांगविधि दोहा, मु. मेघराज, मा.गु., पद्य, वि. १७२३, आदि: गवरीनंद आनंद करि; अंति: रविसंक्रमके जोग, ___गाथा-५३, (वि. यंत्र सहित.) ११६७६१ (+) प्रास्ताविक दोहा, गूढ पद व रावण सैन्य परिमाणादि संग्रह, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ८, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२६४११, ३७-४३४२६-३०). १. पे. नाम, अऊठपदीया, पृ. १अ, संपूर्ण. प्रास्ताविक पदावली, मा.गु., पद्य, आदि: दद्धं उक्कालेवी मांहि; अंति: पाए लागी ठेसी तु फूटो, गाथा-९. २. पे. नाम. प्रियविरह पद संग्रह, पृ. १अ, संपूर्ण. मा.गु., पद्य, आदि: सांकडी सेरी साजन मिल्या; अंति: आभरण सच्च वयणउ रचाय, गाथा-१९. ३. पे. नाम, रावण चतुरंगबल संख्या, पृ. १अ, संपूर्ण. सं., गद्य, आदि: अष्टौ कोट्यः चतुःसप्तति७४; अंति: ४४सहस्राः तुरंगमा. ४. पे. नाम, रामरावण सैन्य परिमाण गाथा, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. प्रा., पद्य, आदि: अक्खोहिणीसहस्सा हवंति; अंति: (१)परिमाणं आसीमस्सीती०हस्सा, (२)अस्थाद्रावणो रणकर्मणि, गाथा-४. ५. पे. नाम. रावण परिवार विचार, पृ. १आ, संपूर्ण. सं., गद्य, आदि: रावणस्य विंशति२० धनुरुच्च; अंति: सुता तिस्रोलक्षाश्चेट्यः, (वि. अंत में रावणांगद अहंकार वचन श्लोक, रामायणसार श्लोक व ताजकोक्त वर्षफल का एक श्लोक दिया गया है.) ६. पे. नाम. गूढ पद संग्रह, पृ. १आ, संपूर्ण.. मा.गु., पद्य, आदि: आपी नहीं मूकी नहीं दान; अंति: मित्र कहइ नामा मांकण, गाथा-५. ७. पे. नाम. वणिक् वंचना श्लोक, पृ. १आ, संपूर्ण. सं., पद्य, आदि: लाल्येन किंचित् कलया च; अंति: प्रपंचोयंगहन कोपि वणिजां, श्लोक-२. ८. पे. नाम, औषधवैद्यक संग्रह, पृ. १आ, संपूर्ण. औषधवैद्यक संग्रह, पुहि.,प्रा.,मा.गु.,सं., गद्य, आदि: रस रहइ गगन की आस कइ रस; अंति: ते सारी नगरी साजा रहइ, (वि. पारा गूढ सांकेतिक दोहा व आंखे खापर दांते लूण० दोहा व अंत में एक सुभाषित श्लोक लिखा गया है.) For Private and Personal Use Only Page #123 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir १०८ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ११६७६४.(+) साधुपाक्षिकअतिचार व पक्खीचौमासीसंवच्छरी तप विचार, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २, कुल पे. २, ले.स्थल. राधणपुर, प्रले. मु. हीरविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरे-संशोधित., जैदे., (२६४११.५, १४४४३-४८). १. पे. नाम. साधुपाक्षिकअतिचार, पृ. १अ-२आ, संपूर्ण. साधपाक्षिकअतिचार-म.प., संबद्ध, प्रा.,मा.गु., गद्य, आदि: नाणंमि दंसणंमि अ चरण; अंति: अनेरो जे कोइ अतिचार. २. पे. नाम. पक्खीचौमासीसंवच्छरी तप विचार, पृ. २आ, अपूर्ण, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. प्रा.,मा.गु., गद्य, आदि: चउत्थेणं एक उपवास; अंति: (-), (पू.वि. 'छहजारस० यथाशक्ति' पाठांश तक है.) ११६७६५ (+) सीमंधरजिन विनती स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, प्रले. सा. लीछमा, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. हुंडी:तवनश्रीम., संशोधित., दे., (२५.५४११, १८४४४). सीमंधरजिन विनती स्तवन, मु. अगरचंद, मा.गु., पद्य, वि. १८६१, आदि: तिरभवनैसाहिब अरज सुणजो; अंति: अगरचंद० वचन विलास, गाथा-२०. ११६७६६. नेमराजिमती गीत व सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, जैदे., (२६४११, ११४३८). १. पे. नाम. नेमराजिमती गीत, पृ. १अ, संपूर्ण.. ___मु. कृपासागर, मा.गु., पद्य, आदि: गुहिरा तो वनमा डुंगरियो; अंति: कृपासागर० पूरो राजुलरी आस, गाथा-७. २.पे. नाम, नेमराजिमती सज्झाय, पृ. १आ, संपूर्ण. म. दयातिलक, मा.गु., पद्य, आदि: गोषे चढी राजुल कहे मारे; अंति: दयातिलक० लाल कदेय न आपे. ११६७६७. जिनपालजिनरक्षित चौढालियो, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ३, जैदे., (२६४१०.५, १४४३८). जिनपालजिनरक्षित चौढालियो, मा.गु., पद्य, आदि: अनंता सिद्ध आगै हुवा; अंति: (-), (अपूर्ण, पृ.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., ढाल-४ की गाथा-६ अपूर्ण तक लिखा है.) ११६७६८ (+#) ८४ गच्छ विवरण, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२८x१२, ४४५६). ८४ गच्छ विवरण, मा.गु., गद्य, आदि: प्रथम तीर्थंकरां के बारे; अंति: (-), (पू.वि. 'जैन को स्थापना' पाठांश तक है.) ११६७६९ (+#) आध्यात्मिक सज्झायादि संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ६, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ. टिप्पणक का अंश नष्ट, जैदे., (२५.५४११, १५४३५). १. पे. नाम, आध्यात्मिक सज्झाय, पृ. १अ, संपूर्ण. आ. अजितदेवसूरि, पुहिं., पद्य, आदि: आठ खाणि सब जीवकी आठ कर्म; अंति: अजतदेव० आणंद भरपूरो रे, गाथा-९. २. पे. नाम. पुरुष बत्रीस लक्षण-षटपदी, पृ. १अ, संपूर्ण. ३२ लक्षण श्लोक-पुरुष, सं., पद्य, आदि: छत्रं१ तामरसं२ धनु३ रथवरो; अंति: पराप रचनाभातां नराणामपि, श्लोक-१. ३. पे. नाम. प्रास्ताविक श्लोक संग्रह, पृ. १अ, संपूर्ण, पे.वि. यह कृति १अ और १आ के हांसिये में लिखी है. प्रा.,मा.गु.,सं., पद्य, आदि: जैनो धर्मः प्रकटविभव; अंति: (-), गाथा-३, (वि. पत्र खंडित होने से अंतिमवाक्य नहीं भरा है.) ४. पे. नाम. ३६ राजकुल, पृ. १आ, संपूर्ण. ३६ राजकुल नाम, मा.गु., गद्य, आदि: सूर्यवंश १ सोमवंश २; अंति: डोडीया ३५ साडीया ३६. ५.पे. नाम. छत्रीस आयुध नाम, पृ. १आ, संपूर्ण. ३६ आयुध प्रकार, सं., गद्य, आदि: चक्र धनुष वज्र अंकुश खड्ग; अंति: गोफण३० डाइडउ३१ छूसट३२. ६. पे. नाम, पुरुषनी ७२ कला, पृ. १आ, संपूर्ण. ७२ कला नाम श्लोक-पुरुष, सं., पद्य, आदि: लिखितं गणितं गीतं नृत्यं; अंति: केवलि विधिशहुनरूते, श्लोक-७. ११६७७० (+) हंसराजवत्सराज चौपाई, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ६-१(३)=५, पू.वि. बीच व अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२५४११, १७४४१). हंसराजवत्सराज चौपाई, आ. जिनोदयसूरि, मा.गु., पद्य, वि. १६८०, आदि: आदीश्वर आदइं करी चउवीसे; अंति: (-), (पू.वि. खंड-१ गाथा-५५ अपूर्ण तक व गाथा-९३ अपूर्ण से खंड-२ गाथा-२०५ अपूर्ण तक है.) For Private and Personal Use Only Page #124 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२६ १०९ ११६७७१. आदिजिन चरित्र भरतवाहुबली अधिकार तक अपूर्ण, वि. २०वी श्रेष्ठ, पू. ११८-११७(१ से ११७) = १, प्र. वि. द्विपाठ.. वे. (२५x११, ८-१२४३३-४२). आदिजिन चरित्र, मा.गु., गद्य, आदि (-); अति (-), (प्रतिअपूर्ण, पू.वि. मरूदेवा माता के द्वारा ऋषभदेव की चिंता प्रसंग अपूर्ण से है.) ११६७७३. (+) जिनवाणी गहुँली, औपदेशिक सज्झाय व वासुदेव रत्नादि संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ४, प्रले. मु. खेमसी, प्र.ले.पु. सामान्य प्र. वि. संशोधित अशुद्ध पाठ. दे. (२७४१०.५, १२X४०). " १. पे. नाम जिनवाणी गहुँली, पृ. १अ १आ, संपूर्ण, जिनवाणी गहूँली, मा.गु., पद्य, वि. १८६१, आदि: ०ज्यं होवै आगमवाणी सांभल; अंति: रे लाल सहर जपुर प्रसिध, गाथा- १५, (अपूर्ण, पू. वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण गाथा १ अपूर्ण से लिखा है.) " २. पे. नाम. ७ रत्न नाम-वासुदेव, पृ. १आ, संपूर्ण. मा.गु., गद्य, आदि: चकर धनुष खडग गदा अतिः संख मणी वनमाला. ३. पे. नाम. ५ चिह्न राजा के, पृ. १आ, संपूर्ण. Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir गाथा-५. २. पे. नाम नेमिनाथ गीत. पू. १अ १आ, संपूर्ण मा.गु., गद्य, आदि तरवार १ छतर२ मुकट३; अंति: पगनी पानइ४ चामर५. ४. पे. नाम. औपदेशिक सज्झाय-जीवोपदेश-गाथा ३१ से ३५, पृ. १आ, संपूर्ण. औपदेशिक सज्झाय-जीवोपदेश, मु. जेमल ऋषि, मा.गु., पद्य, आदि (-); अंति: जेमल० इम रुलीयो रे संसार, प्रतिपूर्ण, ११६७७४. (४) गीत व स्तवनादि संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पृ. ३, कुल पे. ७, प्र. वि. अक्षरों की स्वाही फैल गयी है, जैसे., (२५X११, १३X३२). १. पे. नाम नेमि गीत, पृ. १अ. संपूर्ण. नेमराजिमती गीत, मु. सोममंडन, मा.गु., पद्य, आदि: नयण सलूणी रूडी रायमझ अति सोममंडन० त्रिभुवन जासरे, नेमराजिमती गीत, मु. सोममंडन, मा.गु., पद्य, आदि: झिरमरि झिरमरि वरसिइ मेहा; अंति: कहइ सोमसुरंगिइ वलि रे. ३. पे. नाम नेमिनाथ भास, पू. १आ-२अ, संपूर्ण. नेमराजिमती भास, मु. सोममंडन, मा.गु., पद्य, आदि: सतीय सरोमणि इम भणइ अंतिः सोममंडन० देव आणंदू रे, गाथा-८. ४. पे. नाम, नेमिनाथ गीत, पृ. २अ २आ, संपूर्ण नेमराजिमती गीत, मु. सोममंडन, मा.गु., पद्य, आदि: करजोडी रे राणी राजलि इम; अंति: सोममंडन० सकल संपति पा ए. गाथा-८. ५. पे. नाम. पार्श्वनाथ भास, पृ. २आ-३-अ, संपूर्ण. पार्श्वजिन भास, मु. सोममंडन, मा.गु., पद्य, आदि: सकल रामा मिली पदिमिनी रे अति सोममंडन० पूजीइ पास कुमार, गाथा-७. पे. नाम नेमिनाथ भास. पू. ३अ-३आ, संपूर्ण. मराजिमती भास, मु. सोममंडन, मा.गु, पद्य, आदि: ससि वयणी कहइ सूडला सूडा; अंति भव भवि नेमि चाहुं दीसु रे, गाथा - ९. ७. पे नाम. सीमंधरजिन स्तवन, पृ. ३आ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. मा.गु., पद्य, आदि: दोइ करजोडी वीनवु जी सुणि; अंति: (-), (पू.वि. गाथा - ७ अपूर्ण तक है.) ११६७७६. (+) औपदेशिक सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पृ. २, पठ श्रावि. रत्नाबाई, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. संशोधित जैवे. (२६११, १३४४२-४५). For Private and Personal Use Only Page #125 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra ११० www.kobatirth.org कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची औपदेशिक सज्झाय-शील विषये, मु. नयशेखर, मा.गु., पद्य, आदि: नेमि जिणंद नमी करी समरी; अंति: नयशेखर ० शिवसुख होइ रे, ढाल ४ गाथा ५५. ११६७७८. (+) वर्धमान रसोई, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, प्र. वि. अशुद्ध पाठ-संशोधित., जैदे., ( २६११.५, १२X३९). महावीरजिन सुखडी, मा.गु., पद्य, आदि: माय कहइ मेरे छगना मगना; अंति: मंगल नित नित हुई. ११६७७९. (+) नमिऊण स्तोत्र व ज्ञानपंचमीपर्व स्तुति, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २, कुल पे. २, प्र. वि. पंचपाठ-संशोधित., जैदे., (२५.५x११, १०-१३x२५-३०). १. पे. नाम. नमिऊण स्तोत्र सह अवचूरि, पृ. १अ २आ, संपूर्ण. नमिऊण स्तोत्र, आ. मानतुंगसूरि, प्रा., पद्य, आदि नमिऊण पणय सुरगण, अंतिः परमपयत्थं फुडं पासं, गाथा- २३. नमिऊण स्तोत्र- अवचूरि, सं., गद्य, आदि आदी कविमंगलाभिधान० अति ततो विशेषण कर्मधारय. २. पे नाम ज्ञानपंचमीपर्व स्तुति, पृ. २आ, संपूर्ण. Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir सं., पद्य, आदि श्रीनेमिः पंचरूपत्रिदशपति अंति: कुशलं धीमतां सावधाना, श्लोक-४. ११६७८० (+) जयतिहुअण स्तोत्र सह अवचूर्णि संपूर्ण वि. १९वी मध्यम, पू. ३, प्र. वि. त्रिपाठ संशोधित, जैदे. (२६११, , ३-१०४५३-५७). जयतिहुअण स्तोत्र, आ. अभयदेवसूरि, प्रा., पद्य, वि. १२वी, आदि जय तिहुअणवरकप्परुक्ख; अति: अभयदेव विन्न० आदिउ, गाथा - ३०. जयतिहुअण स्तोत्र - टीका, सं., गद्य, आदि अत्रायं वृद्धसंप्रदायः अति त्रिलोकलोक श्लाघितः. ११६७८९. प्रवचनसारोद्धार सह व्याख्या, संपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पृ. १, प्रले. मु. चारित्रधर्म (गुरु मु. लक्ष्मीसागरसूरि); गुपि. मु. लक्ष्मीसागरसूरि प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. पंचपाठ, जैदे. (२६११, ५३४). प्रवचनसारोद्धार-हिस्सा आचार्य के ३६ गुण, आ. नेमिचंद्रसूरि, प्रा., पद्य, वि. १२वी, आदि अट्ठविहा गणिसंपड़ चउ अति विणए चउहे सपडिवत्ती, गाथा-७. १८-२२x६१). प्रवचनसारोद्धार-हिस्सा आचार्य के ३६ गुण की व्याख्या, सं., गद्य, आदि: गुणानां साधूनां वा; अंति: तदेवमेते० भवति गुरोः. १९६७८२ २४ जिन विवरण यंत्र, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. १, पू.वि. मात्र प्रथम पत्र है. प्र. वि. पंचपाठ, जैवे. (२६११, २४ जिन विवरण यंत्र, मा.गु., को., आदि: (-); अंति: (-). ११६७८३. (+१) भगवतीसूत्र, अपूर्ण, वि. १६वी, मध्यम, पू. २८३- २८१ (१ से १७९,१८१ से २८२) - २, पू.वि. बीच-बीच के पत्र हैं. प्र. वि. हुंडी श्रीभग० सूत्र, संशोधित अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैवे. (२५.५४११, १३४५८). भगवतीसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. शतक-१२ उद्देशक - ४ पुद्गलपरावर्त्तन प्रकार सूत्र अपूर्ण से सूत्र ५४० अपूर्ण तक व शतक - २४ उद्देशक १ सूत्र ८४१ अपूर्ण से सूत्र ८४२ अपूर्ण तक है.) ११६७८४. शील कुलक सह अर्थ व व्याख्या+कथा, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पू. ३. पू.वि. प्रारंभ के पत्र हैं, जैदे. (२६४११, ११४३५). शील कुलक, आ. देवेंद्रसूरि, प्रा., पद्य, आदि सोहा महानिहिणो अति (-) (पू.वि. गाथा १ तक है.) शील कुलक- अर्थ, सं., गद्य, आदि: तत्राजन्म शीलव्रत धारिणो; अंति: (-). शील कुलक-व्याख्या+कथा, सं., गद्य, आदि: श्रीनेमिनाथस्य भगवतो बाल; अंति: (-), (पू.वि. चित्रगति विद्याधर सं अपूर्ण तक हैं.) ११६७८७. (+) उत्तराध्ययनसूत्र का कथासंग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. २- १ (१) १, प्र. वि. संशोधित, जीवे. (२६४११.५, ११X३९). उत्तराध्ययनसूत्र- कथा संग्रह, सं., पद्य, आदि एकस्य आचार्यस्य अंति (-), (पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं, कूलवालक कथा अपूर्ण तक है.) १९६७८८. आध्यात्मिक हरियाली सह टवार्थ, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १, जैये. (२६११.५, ७४४२). For Private and Personal Use Only Page #126 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२६ १११ आध्यात्मिक हरियाली, श्राव. देपाल भोजक, मा.गु., पद्य, वि. १६वी, आदि: (१)सुडा डालि पीपल वासइ, (२)वरसैं कांबलि भिं®; अंति: इण परि कवि देपाल वखाणे, गाथा-६, संपूर्ण. आध्यात्मिक हरियाली-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: सुडा रूप जीव तड़प पीपलनो; अंति: (-), (अपूर्ण, पृ.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., मात्र प्रथम गाथा का टबार्थ लिखा है.) ११६७९० कथा संग्रह, अपूर्ण, वि. १७वी, श्रेष्ठ, पृ. २७-२५(२ से २६)=२, प्र.वि. पत्रांक लिखा न होने के कारण अनुमानित पत्रांक दिया गया है., जैदे., (२७४११.५, १५४५३). कथा संग्रह, सं., गद्य, आदि: वसंतपुरे नगरे एको वराकः; अंति: (-), (पू.वि. बीच के पत्र नहीं हैं व प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., दयाविषये चुल्हकोपरिचंद्रोदक कथा अपूर्ण से नवकार महिमा कथा अपूर्ण तक नहीं है व सुरसुंदर राजा कथा अपूर्ण तक लिखा है.) ११६७९१. प्रास्ताविक दोहादि संग्रह, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. २-१(१)=१, पू.वि. मात्र बीच का ही एक पत्र है., जैदे., (२६.५४११, २०४४७-५०). प्रास्ताविक दोहादि संग्रह, मु. भिन्न भिन्न कर्तृक, प्रा.,मा.गु.,सं., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. गाथा-५३ अपूर्ण से १०० अपूर्ण तक है.) ११६७९३. पार्श्वजिन पट्टावली, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. १, पृ.वि. मात्र प्रथम पत्र है., जैदे., (२६.५४११.५, १६४५६). पार्श्वजिन पट्टावली, मा.ग., गद्य, आदि: तेवीसमउ तीर्थंकर श्रीपार; अंति: (-), (पू.वि. "श्रीमहावीर पंचशब्द वाजतइ" पाठांश तक है.) ११६७९५. (#) स्तोत्र व स्तुति आदि संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ५-३(१ से ३)=२, कुल पे. १०, प्र.वि. मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., (२५.५४११, १३४४२). १.पे. नाम. उवसग्गहर स्तोत्र, पृ. ४अ, संपूर्ण. आ. भद्रबाहस्वामी, प्रा., पद्य, आदि: उवसग्गहरं पासं पास; अंति: भवे भवे पास जिणचंद, गाथा-५. २. पे. नाम, गौतमस्वामी स्वाध्याय, पृ. ४अ-४आ, संपूर्ण. गौतमस्वामी छंद, म. लावण्यसमय, मा.गु., पद्य, वि. १६वी, आदि: श्रीवीर जिणेसर केरो सीस; अंति: लावण्यसमय० संपद कोडि, गाथा-९. ३. पे. नाम. २४ जिन नाम, पृ. ४आ, संपूर्ण, पे.वि. हुंडी:तीर्थंकर. सं., गद्य, आदि: ॐ ऋषभ १ अजित २ संभव ३; अंति: (१)शांतिकरा भवंतु स्वाहा, (२)नेम पार्श्व वर्द्धमान. ४. पे. नाम, १६ सती स्तुति, पृ. ४आ, संपूर्ण. सं., पद्य, आदि: ब्राह्मी १ चंदणबालिका २; अंति: कुर्वंतिवो मंगलं, श्लोक-१. ५. पे. नाम, पंचपरमेष्ठि चैत्यवंदन, पृ. ४आ, संपूर्ण. ५परमेष्ठि नमस्कार स्तुति, सं., पद्य, आदि: ॐ अर्हतो भगवंत इंद्रमहित; अंति: कुर्वंतु वो मंगलम्, श्लोक-१. ६.पे. नाम, नवग्रह स्तुति, पृ. ४आ, संपूर्ण. सं., पद्य, आदि: अहिमगो हिमगो धर्णीसतो; अंति: विदधते सततां मम मंगलं, श्लोक-१. ७. पे. नाम. साधारणजिन स्तुति, पृ. ४आ-५अ, संपूर्ण. साधारणजिन स्तुति प्रार्थना संग्रह, प्रा.,मा.गु.,सं., पद्य, आदि: मंगलं भगवान वीरो मंगलं; अंति: ऋद्ध वृद्धं जयं कुरु, गाथा-९. ८. पे. नाम, शनिश्चर स्तोत्र, पृ. ५अ, संपूर्ण, पे.वि. हुंडी:शनिश्वर०. सं., पद्य, आदि: यत्पुरा राज्यभ्रष्टाय; अंति: पीडा न भवंति कदाचन, श्लोक-१०. ९. पे. नाम. गुरुजाप स्तोत्र, पृ. ५अ-५आ, संपूर्ण. बृहस्पति स्तोत्र, सं., पद्य, आदि: ॐ बृहस्पतिसुराचार्यो; अंति: भगवान् सुप्रीत तस्य जायते, श्लोक-५. १०. पे. नाम. नवग्रह स्तोत्र, पृ. ५आ, अपूर्ण, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. ऋ. वेद व्यास, सं., पद्य, आदि: जपाकुसुमसंकाशं काश्यपेयं; अंति: (-), (पू.वि. मात्र अंतिम गाथा-१२ अपूर्ण तक है.) For Private and Personal Use Only Page #127 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org ११२ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची "" ११६७९६. (4) स्तवनचौवीसी, अपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पृ. ७-६ (२ से ६) =१, पू.वि. मात्र बीच का ही एक पत्र है. प्र. वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., ( २६.५X११.५, १३३०). स्तवनचौवीसी, मु. आनंदघन; आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., पद्य, वि. १८पू, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. स्तवन-१४ गाथा-४ से स्तवन-१६ गाथा-६ अपूर्ण तक है.) ११६७९७. (+) गौडी पार्श्वनाथ छंद, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ३-१ (१) = २, प्र. वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२८x११, १३X३७). पार्श्वजिन स्तवन- अणहिलपुर गोडीजी इतिहास वर्णन, मु. प्रीतिविमल, मा.गु., पद्य, वि. १७वी, आदि: (-); अंति: प्रीतिविमल अभिराम मंते, गाथा ५५ (पू.वि. गावा- १७ अपूर्ण से है.) ११६७९९ पर्युषणपर्व चैत्यवंदन, अपूर्ण, वि. २०वी श्रेष्ठ, पृ. २१(१) -१, वे. (२६११.५, ७x२३). Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir महावीरजिन चैत्यवंदन, मु. पद्मविजय, मा.गु., पद्य, आदि (-); अंति: पद्म० नीतु कल्याण, गाथा-६, (पू.वि. गाथा- १ अपूर्ण से है.) ११६८००. उत्तराध्ययनसूत्र, अपूर्ण, वि. १७वी, मध्यम, पृ. ५१-५० (१ से ५०) = १. पू. वि. मात्र बीच का ही एक पत्र है., जैवे., (२६११, १३३७). उत्तराध्ययनसूत्र, मु. प्रत्येकबुद्ध, प्रा., प+ग, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. अध्ययन- ३६ गाथा- १६२ अपूर्ण से २०७ अपूर्ण तक है. वि. प्रतिलेखक ने गलती से गाथांक २०० की जगह १०० लिख दिया है.) ११६८०१. (+) अमरसेनजयसेन चरित्र, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. १२-८ (१ से ६, ८, १०) = ४, पू. वि. बीच-बीच के पत्र हैं., प्र. वि. संशोधित, जैदे. (२७.५४११, १५४३६). " रात्रिभोजन चौपाई, उपा. सुमतिहंस, मा.गु., पद्य वि. १७२३, आदि (-); अंति: (-), (पू.वि. डाल-८ की गाथा १ अपूर्ण से गाथा - २९६ तक है व बीच-बीच के पाठांश नहीं हैं.) ११६८०२. चंद्रगुप्त राजा के १६ स्वप्न व औपदेशिक पद, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २- १ (१) = १, कुल पे. २, जैदे., (२७X११.५, ७X३१). १. पे. नाम. चंद्रगुप्तराजा के १६ स्वप्न, पृ. २अ, अपूर्ण, पू. वि. प्रथम पत्र नहीं है. चंद्रगुप्तराजा १६ स्वप्न सज्झाय, मु. जेमल ऋषि, रा., पद्य, आदि (-); अति माफी करी नवल कीनो जोडो जी, गाथा - १७, (पू. वि. गाथा ११ अपूर्ण से है ) २. पे. नाम. औपदेशिक पद, पृ. २आ, संपूर्ण. औपदेशिक पद-नरभव दुर्लभता, पुहिं., पद्य, आदि: ऐसो श्रावक कुल नर पाय; अंति: राखो आवागमन निवारो, दोहा १०. ११६८०५. पद, स्तुति व स्तवनादि संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. २, कुल पे. २३, दे., (२५.५X११, १७-२०x४२-५६). १. पे. नाम महावीरजिन पद, पू. १अ संपूर्ण मु. जिनचंद, पुहिं, पद्य, आदि आज हमारे भाग वीर अंतिः चित आनंद वधाए हैं, गाथा-४. २. पे. नाम. नेमजिन पद, पृ. १अ, संपूर्ण. नेमिजिन पद, मु. लालचंद, मा.गु., पद्य, आदि: गिरनारे बोल्या मोर हेली; अंति: लालचंद०गयो चितचोर है, गाथा-४. ३. पे. नाम. आदिजिन स्तुति, पृ. १अ, संपूर्ण. मु. आनंदवर्द्धन, पुहिं., पद्य, आदि आदि जिणंद मया करो; अंति: आनंदवर्द्धन० आसा रे, गाथा-४. ४. पे नाम. सम्मेतशिखरतीर्थ स्तवन, पृ. १अ संपूर्ण. मु. आलमचंद, पुहिं., पद्य, वि. १८२०, आदि समेतशिखर चल रे जी का; अंति: आलमचंद० परभव सफल किया, गाथा-४. .पे. नाम. अष्टापद तीर्थ पद. पू. १आ, संपूर्ण. गाथा-४. अष्टापदतीर्थ पद, मु. जिनचंद्र, मा.गु., पद्य, आदि: रावण नृत्य वणावै हो भलरा; अंति: जिनचंद० सुख पायै हो, ६. पे. नाम. पार्श्वजिन पद, पृ. १आ, संपूर्ण. For Private and Personal Use Only Page #128 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२६ ११३ पार्श्वजिन स्तवन-चिंतामणि, म. भावरत्न, मा.गु., पद्य, आदि: चिंतामणि चित धर रे; अंति: कृपा से भावरतन अनुसर रे, गाथा-४. ७. पे. नाम. कुंथुजिन चैत्यवंदन, पृ. १आ, संपूर्ण. सं., पद्य, आदि: जय जय कुंथुजिनोत्तम; अंति: निति नित्यविशोक, श्लोक-३. ८. पे. नाम. आदिजिन स्तवन, पृ. १आ, संपूर्ण. मु. चंदकुशल, पुहि., पद्य, आदि: देखोरे आदीसर बाबा; अंति: चंदखुस्याल जगाया है, गाथा-५. ९. पे. नाम. मल्लिजिन स्तवन, पृ. १आ, संपूर्ण. म. रूपचंद, पुहिं., पद्य, आदि: मोय कैसै तारोगै दीन; अंति: रूपचंद गुण गाय, गाथा-५. १०.पे. नाम. पार्श्वजिन स्तवन-प्रभाती, पृ. २अ, संपूर्ण. मु. लाभउदय, मा.गु., पद्य, आदि: उठो रे मेरा आतमराम; अंति: वरतु सदा बधाइ रे, गाथा-५. ११. पे. नाम. साधारणजिन पद, पृ. २अ, संपूर्ण. मु. ज्ञानसागर , पुहिं., पद्य, आदि: मेरो पीया पर संग रमत; अंति: हिलमिल सोरठ गावै री, गाथा-३. १२. पे. नाम. औपदेशिक पद, पृ. २अ, संपूर्ण. पुहि., पद्य, आदि: जीया मन लै मोरी कही; अंति: मानै वारंवार नही रे, गाथा-२. १३. पे. नाम, आध्यात्मिक होरी, पृ. २अ, संपूर्ण. आध्यात्मिक पद-होरी, मु. ज्ञानसार, पुहिं., पद्य, आदि: परघर खेलत मेरो पीयो; अंति: यानसार जिन मे मिलीया, गाथा-३. १४. पे. नाम. औपदेशिक पद, पृ. २अ, संपूर्ण. म. नवल, पुहि., पद्य, आदि: (१)जिन से नेह लगावो रे मनवा, (२)वार वार समजायो रे मनवा; अंति: मेरे आवागमन मिटायो रे, गाथा-३. १५. पे. नाम. साधारणजिन पद, पृ. २अ, संपूर्ण. रा., पद्य, आदि: तारो तारो म्हाराज; अंति: गंगा सरन तिहारो जी, गाथा-४. १६. पे. नाम. औपदेशिक पद-गुरुवाणी, पृ. २अ, संपूर्ण. म. गंगा, मा.गु., पद्य, आदि: भजनाथ ए हे सुखदाईजी भ्रमण; अंति: गंगा कहे थिठ वीत जाईजी, गाथा-४. १७. पे. नाम, औपदेशिक पद, पृ. २आ, संपूर्ण. मु. ज्ञानसार, मा.गु., पद्य, आदि: अनुभव अपनी चाल चलीजै; अंति: ग्यान नो उपर दो दीजे, गाथा-५. १८. पे. नाम. औपदेशिक पद-परमात्मभक्ति, पृ. २आ, संपूर्ण. मु. क्षमाकल्याण, पुहि., पद्य, आदि: परमातम पद भज रे मेरे; अंति: नि ताहीको संग सजरेमे, गाथा-४. १९. पे. नाम, पार्श्वजिन स्तवन, पृ. २आ, संपूर्ण. म. लालचंद, पुहिं., पद्य, आदि: मेरो मन वश कर लीनो; अंति: पूरो वंछित आश, गाथा-५. २०. पे. नाम. आदिजिन स्तवन, पृ. २आ, संपूर्ण. मु. करमसी, मा.गु., पद्य, आदि: आय रहो दिल बाग में; अंति: केल करत सिववाग में, गाथा-४. २१. पे. नाम. सुविधिजिन स्तवन, पृ. २आ, संपूर्ण. म. रूपचंद, पुहि., पद्य, आदि: वांकै गढ फोज चढी है; अंति: न ध्याउं दजु और, गाथा-५. २२. पे. नाम. आदिजिन स्तवन, पृ. २आ, संपूर्ण. आदिजिन पद, मु. हर्षचंद, पुहिं., पद्य, आदि: उगत प्रभात नाम जिनजी; अंति: हरखचंद० सुख संपति बधाइयें, गाथा-४. २३. पे. नाम. पार्श्वजिन स्तवन, पृ. २आ, संपूर्ण. मु. जिनचंद्र, मा.गु., पद्य, आदि: आज वधाई मोतीयडे मेह; अंति: ज्यो श्रीजिनचंद सवाइ, गाथा-५. ११६८०६. वीसस्थानक तप आराधना विधि, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, दे., (२५.५४११, १७७५२). For Private and Personal Use Only Page #129 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra ११४ www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची २० स्थानकतप आराधनाविधि, प्रा. मा.गु. प+ग, आदि नमो अरिहंताणं २००० अति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., पाठ- "११ नमो चारितस्स २०००" तक लिखा है.) ११६८०७ (+४) गौतमस्वामी रास, संपूर्ण वि. २०वी मध्यम, पू. ५. प्र. वि. पदच्छेद सूचक लकीरें संशोधित अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., ( २६x११, ११X३१). गौतमस्वामी रास, मा.गु., पद्य, आदि: वीर जिनेसर चरण कमल; अंति: वृद्धि कल्याण करो, ढाल-६, गाथा-४६. ११६८०८. सीतासती गीत, संपूर्ण वि. २०वी मध्यम, पृ. २, पठ. श्रावि. जगीसा, प्र.ले.पु. सामान्य, दे., (२५.५x११.५, १०X३२-३६). सीतासती गीत, मु. जिनरंग, मा.गु., पद्य, आदि: छोडी हो पिउ छोडि; अंति: जिनरंग० मन भावै करी जी, गाथा - ११. ११६८१०. दंडक प्रकरण, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पू. १, दे. (२७४११, १०x२८). , दंडक प्रकरण, मु. गजसार, प्रा., पद्य वि. १५७९, आदि नमिउ चउवीस जिणे, अंति (-), (अपूर्ण, पू. वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण गाथा ११ तक लिखा है.) "" " " ११६८११. पद्मावतीदेवी स्तोत्र, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ३, पू. वि. अंत के पत्र नहीं हैं. वे. (२६.५x११.५, १३४३४)पद्मावतीदेवी स्तोत्र, सं., पद्य, आदि: श्रीमद्गीर्वाण, अंति: (-), (पू.वि. श्लोक-२८ अपूर्ण तक है.) ११६८१२. चैत्यवंदना विधि, अपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पृ. २१(१) =१, जैदे. (२५.५४११, १९३७). 1 " चैत्यवंदनविधि कुलक, प्रा., पद्य, आदि (-); अंति: धम्मो आणाइ पडिबद्धो, गाथा- ३५, (पू.वि. गाथा २२ अपूर्ण से है.) ११६८१३ (१) कृष्णजीरो ढाल, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, प्र. वि. मूल पाठ का अंश खंडित है, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे. (२७४११, २०५५). " कृष्ण ढाल, मा.गु., पद्य, आदि नेमनाथ समसय अति (-) (पू.वि. मात्र प्रथम पत्र है. ढाल ४ गाथा ६ अपूर्ण तक है.) ११६८१४. (+) कल्याणमंदिरस्तोत्र की टीका, संपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पृ. २, प्र. वि. संशोधित. जैवे (२६११, १८४५०)कल्याणमंदिर स्तोत्र- टीका, आ. गुणरत्नसूरि, सं., गद्य, आदि: श्रीपार्श्वजिनमानम्य; अंति: गुरुप्रसादात्. ११६८२४. शांतिजिन स्तवन, अपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. १, पू. वि. मात्र प्रथम पत्र है., जैदे., ( २६.५X११.५, १३x४९). शांतिजिन स्तवन-नागपुरमंडण - षट्भावादि गर्भित, मा.गु., पद्य, आदि: प्रणमु शांतिकरण गुणनिलु; अंति: (-), (पू.वि. ढाल १ की गाथा १३ अपूर्ण तक है.) " ११६८२६. सिंदूरप्रकर, अपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पृ. २१-१८ (१ से १८) ३, पू.वि. बीच के पत्र हैं. जैवे. (२५x११, ५X३३). सिंदूरप्रकर, आ. सोमप्रभसूरि, सं., पद्य, वि. १३वी, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. श्लोक-७९ अपूर्ण से ९१ अपूर्ण तक है.) ११६८२७ (+) जीवविचार प्रकरण सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पू. ७-१ (६) =६. पू.वि. बीच व अंत के पत्र नहीं हैं.. प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२५.५X११, ५x२९). जीवविचार प्रकरण, आ. शांतिसूरि, प्रा. पद्य वि. ११वी, आदि भुवणपईव वीर नमिऊण; अति: (-), (पू.वि. गाथा-२६ अपूर्ण से ३२ अपूर्ण तक व ३८ अपूर्ण से नहीं है.) जीवविचार प्रकरण-वार्थ, मा.गु., गद्य, आदि स्वर्गं मृत्यु पाताल; अति: (-). ११६८२८ (४) महावीरनिर्वाण पश्चात् ऐतिहासिक घटनाचक्र कालमान, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ३-१ (१) = २, पू.वि. बीच के पत्र हैं., प्र. वि. अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, जैदे., (२६x११, १५X४९). महावीरजिनशासने प्रमुख ऐतिहासिक घटनाक्रम संवतवार, मा.गु.,सं., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. सिद्धसेन दिवाकरसूरि उज्जेणीनगर राजा को प्रतिबोध प्रसंग अपूर्ण से दूसरे कालिकाचार्य प्रसंग अपूर्ण तक है.) १९६८२९. आदिजिन स्तवन व भरहेसर सज्झाय, अपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पृ. ११-१० (१ से १०) = १, कुल पे. २, जैदे., " For Private and Personal Use Only (२५.५X११, ११x४२). १. पे. नाम आदिजिन स्तवन, पृ. ११ अ ११आ, अपूर्ण, पू.वि. मात्र अंतिम पत्र है. आदिजिन स्तवन-३४ अतिशयगर्भित, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: अवर न कांइ वांछीइ ए, गाथा-२१, (पू. वि. गाथा - ३ अपूर्ण से है.) Page #130 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२६ ११५ २. पे. नाम, भरहेसर सज्झाय, पृ. ११आ, अपूर्ण, पू.वि. प्रारंभ के पत्र हैं. संबद्ध, प्रा., पद्य, आदि: भरहेसर बाहुबली अभय; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-५ अपूर्ण तक है.) ११६८३०. (+) शांतिजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १,प्र.वि. संशोधित., दे., (२५.५४११, २५४१९-२३). शांतिजिन स्तवन, मु. जयसोम, मा.गु., पद्य, आदि: संत करि संतजिण सेवीयै जी; अंतिः सदा जी सुप्रसन सोलमो साम, गाथा-११. ११६८३१. भाषा लीलावती, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, पृ.वि. मात्र प्रथम पत्र है., दे., (२७४११.५, ११४३७-४२). लीलावती-भाषानुवाद, मु. लालचंद, मा.गु., पद्य, वि. १७३६, आदि: सोभित सिंदूर पुर; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-९ अपूर्ण तक है.) ११६८३२. (+) उपदेशमाला गाथानुक्रमणिका, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ३, प्र.वि. संशोधित., दे., (२६.५४११.५, १५-१८४३८-५०). उपदेशमाला-गाथानुक्रमणिका, प्रा., गद्य, आदि: नमिऊण जगचूडाम सवस्सर; अंति: जावयलव अक्खरम. ११६८३४. (+) ४१ प्रकृति सज्झाय-परमअबंध स्थिति विचार, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २, अन्य. पं. वीरविमल गणि (गुरु आ. आनंदविमलसूरि); गुपि. आ. आनंदविमलसूरि (गुरु उपा. धीरविमल), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. हुंडी:सझाय एकतालसी प्रकृत्ति., पदच्छेद सूचक लकीरें-प्रतिलेखन पुष्पिका मिटाई हुई है., जैदे., (२६४११, १३४३६-४२). ४१ प्रकृति सज्झाय-परमअबंध स्थिति विचार, मु. कुशलहर्ष, मा.गु., पद्य, आदि: सरसति सरस वाणी दीउ निरमली; ____ अंति: चरण सेवक कुशलहर्ष कहइ सदा, गाथा-१९. ११६८३६. विशेषतानुसार देवीदेवता नगरों की सूची, संख्यावाची शब्दसूची व प्रसिद्ध पदार्थों की सूची, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ३, जैदे., (२६४११.५, १७४३९). १. पे. नाम. विशेषतानुसार देवीदेवता नगरों की सूची, पृ. १अ, संपूर्ण. विशेषतानुसार देवीदेवता व नगरों की सूची, मा.गु., गद्य, आदि: गलढुढाड की कपडो मुलतान को; अंति: तो अयोध्या काईदो बलुदारो. २. पे. नाम, संख्यावाची शब्दसूची, पृ. १अ, संपूर्ण. संख्यावाचक शब्दकोष, सं., गद्य, आदि: आदिब्रह्मा १ लोचन २; अंति: १९ विश्व २० ब्रह्मड २१. ३. पे. नाम, प्रसिद्ध पदार्थसूची, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण... प्रसिद्ध पदार्थों की सूची, मा.ग., गद्य, आदि: सिद्धदाता गणेश विद्यालाभ; अंति: (अपठनीय). ११६८३७. देवसिप्रतिक्रमणसूत्र-तपागच्छीय सह भावार्थ, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १४-१३(१ से १३)=१, पू.वि. मात्र बीच का ही एक पत्र है., जैदे., (२६४११.५, १२४३८-४२). देवसिप्रतिक्रमणसूत्र-तपागच्छीय, संबद्ध, प्रा.,मा.गु.,सं., प+ग., आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. श्रुतदेवता स्तुति अपूर्ण से जयवियराय सूत्र अपूर्ण तक है.) देवसिप्रतिक्रमणसूत्र-तपागच्छीय-भावार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: (-). ११६८३८. (#) इष्टतिथ्यादि सारिणी व पंचांगानयन विधि, संपूर्ण, वि. १८२३, ज्येष्ठ शुक्ल, ६, शुक्रवार, मध्यम, पृ. २, कुल पे. २, ले.स्थल. वालोतरा, प्रले. मु. खुश्यालसौभाग्य, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२६.५४११.५, १५४३९-५२). १.पे. नाम. इष्टतिथ्यादि सारिणी, पृ. १अ, संपूर्ण. इष्टतिथ्यादि सारणी, मु. लक्ष्मीचंद्र, सं., पद्य, वि. १७६०, आदि: श्रीवामेयं नमस्कृत्य; अंति: (१)सिंघ संक्राति गताशाः, (२)शोधनीयाश्च धीजनै.. २. पे. नाम, पंचांगानयन विधि, पृ. १अ-२आ, संपूर्ण. पंचांग आनयन विधि, सं., गद्य, आदि: तत्र प्रथमयः प्रवर्तमान; अंति: संक्रांति स्पष्टो आयातिः, (वि. सारिणीयुक्त.) ११६८४३. (+#) पैंतीस बोल सह अर्थ, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ४, प्र.वि. संशोधित. मूल पाठ का अंश खंडित है, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२७४११.५, ११४३५). For Private and Personal Use Only Page #131 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org १९६ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ३५ बोल- गत्यादि धोकडो, मा.गु., गद्य, आदि: पहेले बोले गति चार अंतिः श्रावकरा गुण २१. ३५ बोल- गत्यादि थोकडो अर्थ, मा.गु., गद्य, आदि देवगति मनुष्यगति; अंति: गुण श्रावकरा कहना. ११६८५५. (#) अनुबंधफल व वृत्तगणफल, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, प्र. वि. त्रिपाठ. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५.५X११, ६x४६). १. पे. नाम. अनुबंधफल सह अवचूरि. पू. १अ १आ, संपूर्ण अनुबंधफल, संबद्ध, आ. हेमचंद्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., पद्य, आदि उच्चारणेस्त्यवर्णाद् अति: चानुबंधः कथितो मया, लोक-१०. Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir अनुबंधफल- अवचूरि, सं., गद्य, आदि: अकारउच्चारणार्थः यथावद; अंति: भवतीयः भवतोरि कणीयमौ. २. पे. नाम. वृत्तगणफल सह अवचूरि, पृ. १आ, संपूर्ण. वृत्तगणफल, संबद्ध, ग. विजयविमल, सं., पद्य, आदि: द्युतादेरद्यतन्यां वा; अंति: चैतदीषितं वानरेण हि श्लोक-६, संपूर्ण. वृत्तगणफल-अवचूरि, सं., गद्य, आदि: द्युतिदीप्तौ द्युरन्यो; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., 'इज्यमानं इजवान् इजानः इष्टः इष्टवा' तक लिखा है.) ११६८५८. षट् आरा महावीर स्तवन अपूर्ण, वि. १७४३, फाल्गुन शुक्ल, मध्यम, पू. ४-३ (१ से ३) = १ ले स्थल, खंभाइतविंदर, " पठ. श्रावि. देवकुंवर, प्र.ले.पु. सामान्य, जैवे. (२४.५४११.५, ११४४२). महावीरजिन स्तवन-छट्ठाआरा परिचयगर्भित, श्राव. देवीदास, मा.गु., पद्य, वि. १६११, आदि: (-); अंति: सयल संघ कल्याण करो, ढाल-५, गाथा - ६६, (पू. वि. गाथा - ५८ अपूर्ण से है.) ११६८५९ (+) विविध काव्यादि नाम, वर्षा स्वरूप व वीतराग वाणी पदादि संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पृ. ५-४ (१ से ४) = १, कुल पे. ७. प्र. वि. पदच्छेद सूचक लकीरें संशोधित. जैवे. (२४.५x११, १३४४०). १. पे नाम. विविध काव्य प्रकार नामावली, पू. ५अ, अपूर्ण, पू. वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं. मा.गु., गद्य, आदि (-); अंति: कमलबंध० लोक संगीत गीत, (पू.बि. पाठ "दूहा प्रहेलिकादि" से है.) २. पे. नाम. ३६ आयुध प्रकार नाम, पू. ५अ, संपूर्ण. मा.गु., गद्य, आदि: अघनाल हवाई० मुसल चक्र नाग; अंति: अंकुश अणी छूरी सांकल दारू. ३. पे. नाम. विविध रोग प्रकार नाम, पृ. ५अ, संपूर्ण. मा.गु., गद्य, आदि रोग सोग वियोग आपदा कष्ट; अंति: श्लेष्म छ जातिना पित्त. ४. पे. नाम. विविध नदी नाम, पृ. ५अ, संपूर्ण. मा.गु., गद्य, आदि गंगा गोमति गोदावरी सिंध अति मही तापी० समुद्रमाही भलइ. ५. पे. नाम. वर्षाकाल स्वरूप, पृ. ५अ-५आ, संपूर्ण. वर्षाकाल काव्य, मा.गु., पद्य, आदिः उमटी घटा बादल थया एकठा; अंति: थयो सुमाल एहवो वर्षाकाल. ६. पे. नाम. अकाल अस्थान अशोभनीय वस्तु काव्य, पृ. ५आ, संपूर्ण. मा.गु., पद्य, आदि: मेहनो पणगणो पाडानो उठीगणो; अंतिः विना एतलां वानां सोभ नही. ७. पे. नाम. विचार रत्नसार, पृ. ५आ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. मु. देवचंद्रजी, मा.गु., गद्य, आदि: वीतरागनी वाणी भववेली; अंति: (-), (पू.वि. जिनवाणी महिमा वर्णन प्रारंभिक भाग मात्र है.) ११६८७०. गौतमस्वामी रास, अपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १. पू. वि. मात्र प्रथम पत्र है. प्र. वि. हुंडी गोतमरासो., जैदे. (२६४१२, " १२४३२). गौतमस्वामी रास, मा.गु., पद्य, आदि: वीर जिनेसर चरण कमल अंति: (-) (पू.वि. गाथा १२ अपूर्ण तक है.) ११६८७४ (+) खंधकमुनि छ: डालिया, संपूर्ण, वि. १८८० वैशाख शुक्ल, मध्यम, पृ. ४, ले. स्थल, बेराजा, प्रले. मु. वेलजी ऋषि (गुरु मु. देवजी ऋषि); गुपि. मु. देवजी ऋषि; अन्य. मु. कर्मसी, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. हुंडी : खंधक, टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे. (२६.५४११.५, १३४३५-३८). " For Private and Personal Use Only Page #132 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२६ खंधकमनि सज्झाय, म. नारायण, मा.गु., पद्य, वि. १७३२, आदि: सरसवचन लहिसु सारदा प्रणमी; अंति: नारायण० अविचल राज, ढाल-४. ११६८७७. धनवती चौपाई, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ३७-३६(१ से ३६)=१, पृ.वि. मात्र बीच का ही एक पत्र है., जैदे., (२६.५४१२, १३४३३). धनदधनवती चौपाई, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. कामी पुरोहित से सुरक्षा हेतु सती धनवती द्वारा राजा प्रति निवेदन प्रसंग की ढाल का दोहा-३ से उसी ढाल की गाथा-१४ अपूर्ण तक है., वि. ढाल संख्या नहीं लिखा है.) ११६८७८. ऋषिमंडल स्तोत्र, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ३-२(१ से २)=१, जैदे., (२५४११.५, १२४३१). ऋषिमंडल स्तोत्र-बृहद्, आ. गौतमस्वामी गणधर, सं., पद्य, आदिः (-); अंति: लभ्यते पदमव्ययम्, श्लोक-८०, ग्रं.१५०, (पू.वि. श्लोक-६३ अपूर्ण से है.) ११६८७९. स्थूलिभद्रकोशा पदादि संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ६, जैदे., (२७४१२, १३४५०). १. पे. नाम. स्थूलिभद्रकोशा पद, पृ. १अ, संपूर्ण. मालु, पुहिं., पद्य, आदि: आजु थूलभदु बोलइ नही री; अंति: करि नइ मालु तउ चरन सही री, पद-१. २. पे. नाम. प्रहेलिका दूहा संग्रह, पृ. १अ, संपूर्ण. प्रहेलिका दोहा, मा.ग., पद्य, आदि: हरि बोलउ हरि गज्जीयौ; अंति: यह दनीया जूठी, गाथा-३. ३. पे. नाम. नेमराजिमती पद, पृ. १अ, संपूर्ण. म. माल, पुहिं., पद्य, आदि: बनी नेमराजमती की जोरी; अंति: माल० उह उग्रसेन की सोरी, पद-१. ४. पे. नाम. अकबरसाह कवित, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. अकबर साह कवित, पुहिं., पद्य, आदि: अकबर साह छत्रपती क्या माग; अंति: भाटका अकबर साह महाबली, पद-१. ५. पे. नाम. हीरविजयसूरि कवित, पृ. १आ, संपूर्ण. ग. रंगकुशल, पुहि., पद्य, आदि: नीकउ नीकउरी कुंरानंदन; अंति: रंगकुशल० लोचन ए अवनीकउ, पद-१. ६. पे. नाम. प्रास्ताविक दोहा, पृ. १आ, संपूर्ण. प्रास्ताविक गाथा संग्रह, पुहि.,प्रा.,मा.गु.,सं., पद्य, आदि: चंचल नारिनइ छयल विलुद्धी; अंति: कोडउ कुवसन केडइ पडीउ, गाथा-५. ११६८८१. मौनएकादशीपर्व कथा, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ६-५(१ से ५)=१, जैदे., (२५.५४११.५, १४४३२). मौनएकादशीपर्व व्याख्यान-सव्रतश्रेष्ठिकथा, प्रा.,मा.गु.,सं., गद्य, आदिः (-); अंति: सुखिनोबभूवु द्रिती, (पू.वि. पाठ-"यतः सुव्रतश्रेष्ठीनः प्रव्रज्या" से है.) ११६८८२ (#) कल्पसूत्र, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ६२-६१(१ से ६१)=१, पृ.वि. मात्र बीच का ही एक पत्र है., प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२७४१२, १२४२८). कल्पसूत्र, आ. भद्रबाहस्वामी, प्रा., गद्य, आदिः (-); अंति: (-), (पृ.वि. स्थविरावली-आर्य सिहगिरि से आर्य फगमित्त तक है.) ११६८८३.(+) नवतत्त्व प्रकरण सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ५-४(१ से ४)=१,प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२६४१२, ३४२७). नवतत्त्व प्रकरण ६० गाथा, प्रा., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. मात्र बीच का ही एक पत्र है., गाथा-१६ अपूर्ण से २० अपूर्ण तक है.) नवतत्त्व प्रकरण ६० गाथा-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदिः (-); अंति: (-), पू.वि. मात्र बीच का ही एक पत्र है. ११६८८४.(+) जंबूस्वामी चरित्र, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. २६-२५(१ से २५)=१, पृ.वि. मात्र बीच का ही एक पत्र है., प्र.वि. हुंडी:नात्रा १८., संशोधित., दे., (२६४१२, १५-१८४३७-४०). जंबूस्वामी चरित्र, म. लालचंद ऋषि, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. ढाल-२० गाथा-६ अपूर्ण से ढाल-२२ गाथा-२ अपूर्ण तक है.) 1. For Private and Personal Use Only Page #133 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra १९८ www.kobatirth.org कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ११६८८५ (+) वर्गमूल गणितसाधन चौपाई सह बालावबोध, अपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पृ. ९-८ (१ से ८) = १. पू.वि. मात्र बीच का ही एक पत्र है. प्र. वि. संशोधित, जैवे. (२६.५४१२, १६४३४). वर्गमूल गणितसाधन चौपाई, मा.गु., पद्य, आदि (-); अति: (-), (पू.वि. बीच के पाठांश है. वि. उदाहरण, न्यास आदि सहित.) " Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir वर्गमूल गणितसाधन चौपाई वालावबोध, मा.गु., गद्य, आदि (-); अति: (-). ११६८८९ (#) स्तुति व स्तवनादि संग्रह, संपूर्ण, वि. १८६३, आश्विन शुक्ल, १२, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ४, ले.स्थल. मनफरा, प्र. वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६x१२, १८x४७-५२). १. पे नाम. पार्श्वजिन स्तुति, पृ. १अ संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तुति-गोडीजी, मु. भाणविजय, मा.गु., पद्य, आदिः परम प्रभु परमेश्वर, अंति: भाणनी जयत करेवी, गाथा-४. २. पे. नाम. फलवर्द्धि पार्श्वजिन छंद, पृ. १अ १आ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तवन- फलवर्द्धि, मु. श्रीसार, मा.गु., पद्य, आदि परिता पूरण प्रणमीये; अंतिः सेवकनइ सानिधि करि, गाथा - १८. ३. पे. नाम. पार्श्वजिन गीत. पू. १आ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तवन- गोडीजी, मु. रंगविजय, पुहिं., पद्य, आदि: तुम बिन मेरी कुंन खबर ले; अंति: अब साहिब रंग सदा सुखकारी, गाथा-५. ४. पे. नाम. नेमराजिमती गीत, पृ. १आ, संपूर्ण. नेमराजिमती पद, मु. रंगविजय, पुहिं., पद्य, आदि: तुम विण मेरी कुण खबर ले; अंति: जुगल रंग सदा सुखकारी, गाथा ५. ११६८९० (+) बलभद्र चरित्र, अपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पृ. ३३६-३३५ (१ से ३३५) = १. पू. वि. मात्र बीच का ही एक पत्र है., प्र. वि. पदच्छेद सूचक लकीरें अन्वय दर्शक अंक युक्त पाठ. जैदे. (२६.५४११.५ ९४३८). , बलभद्र चरित्र, सं., पद्य, आदि (-); अंति (-), (पू.वि. श्लोक ५१ अपूर्ण से ७० अपूर्ण तक है.) ११६८९५. बोल संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., जैदे., (२६x१२, २०x५२). " बोल संग्रह *, प्रा.,मा.गु.,सं., गद्य, आदि: क्रोध उपरांत कोइ विष नहिं; अंति: (-), (पू.वि. अभव्य वर्णन तक है.) ११६८९६ (+) आर्यांमेरूसूचि यंत्र विधि, संपूर्ण, वि. २०वी श्रेष्ठ, पृ. १, प्र. वि. संशोधित. दे. (२५.५१२, ५x१०)आर्यामेरुसूचि यंत्र विधि, मा.गु. प+ग, आदि जेतला गणनी सूचि चिंतवीए; अति सर्व ठेकाणे कर्या जावु, ११६९००. अजितशांति स्तोत्र, संपूर्ण वि. १९वी मध्यम, पृ. ३, जैवे. (२६.५४११.५, १३४३९-४२). , " अजितशांति स्तव, आ. नंदिषेणसूरि, प्रा., पद्य, आदि अजिअ जिअ सव्वभवं संति अति जिणवयणे आयरं कुणह गाथा ४०. ११६९०२. (+#) शिवसंगीत वृत्त छंद, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २- १ ( १ ) = १, ले. स्थल. सोजतनगर, प्रले. मु. चंद्रविजय (तपागच्छ), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. हुंडी: संगीत०, संशोधित अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, जैवे. (२६.५x११.५, १३x४०). , शिवसंगीत वृत्त छंद, मु. केसरकुशल, मा.गु., पद्य, आदि (-); अंति केशर० जय शिव शिव शंकर नमो, गाथा- १२, (पू. वि. गाथा-६ अपूर्ण से है.) ११६९०३ (+) संबोध सत्तरी अपूर्ण, वि. १८७६ माघ शुक्ल, १५, रविवार, मध्यम, पृ. १३-१० (१ से १०) ३. ले. स्थल, पालणपुर, .. प्र. मु. विवेकविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. हुंडी संबोधसत्तरी. श्री पलवीहारजी प्रसादात्, टिप्पण युक्त विशेष पाठ संशोधित, जैदे., (२६X११.५, १४X३४-३८). संबोधसप्ततिका, आ. रत्नशेखरसूरि, प्रा., पद्य, आदि (-) अति जयसेहर० नत्थि संदेहो, गाथा ७५, (पू.वि. गावा-७ अपूर्ण तक नहीं है., वि. अन्य प्रक्षेप गाधाएँ पत्रांक १३ आ पर लिखी है.) ११६९०५ (+) कमलावतीरी ढाल व रोहिणी स्तवन, अपूर्ण, वि. १८७६, मध्यम, पू. ११० १०८ (१ से १०८) -२, कुल पे. २. प्र. मु. हुकमचंद, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. संशोधित, जैवे. (२६.५x११.५, १०-११४३५-३८). For Private and Personal Use Only Page #134 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२६ ११९ १. पे. नाम. कमलावतीरी ढाल, पृ. १०९अ-११०आ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र हैं., वि. १८७६, वैशाख शुक्ल, ४, ले.स्थल. कानोड. इक्षकार कमलावती चौढालीयो, म. जेमल ऋषि, मा.गु., पद्य, आदिः (-); अंति: ऋषि जैमल० दक्कडं मो थाय, * ढाल-४, गाथा-७२, (पू.वि. ढाल-२ गाथा-३ अपूर्ण से है.) २. पे. नाम. रोहिणी स्तवन, पृ. ११०आ, संपूर्ण, वि. १८७६, ज्येष्ठ कृष्ण, ले.स्थल. उदयपुर. रोहिणीतप स्तवन, मु. कृष्ण ऋषि शिष्य, मा.गु., पद्य, आदि: रोहिणीतप भवि आदरो रे; अंति: तपथी शिवसुख सार, गाथा-५. ११६९०६. (+) शेजयरास तीर्थ, अपूर्ण, वि. १८६७, कार्तिक शुक्ल, १३, मध्यम, पृ. ६-२(१ से २)=४, प्रले. मु. रत्न ऋषि; पठ. श्रावि. धर्ममूर्तिबाई, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२६४१२, ११४३३). शत्रुजयतीर्थ रास, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, वि. १६८२, आदि: (-); अंति: समयसुंदर आणंद थाय, ढाल-६, ___गाथा-११२, (पू.वि. ढाल-३ गाथा-७ अपूर्ण से है.) । ११६९०७.(#) वृधशांति स्तवन, अपूर्ण, वि. १८५१, वैशाख शुक्ल, ७, मध्यम, पृ. २-१(१)=१, ले.स्थल. खेटवापुर, प्रले. पंन्या. रत्नविजय (गुरु पं. प्रेमविजय, तपागच्छ); गुपि. आ. विजयप्रभसूरि, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. मूल पाठ का अंश खंडित है, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६.५४१२, १३४३६). बृहत्शांति स्तोत्र-तपागच्छीय, सं., प+ग., आदि: (-); अंति: जैनं जयति शासनम्, (पू.वि. प्रथम पत्र नहीं है., ___ "श्रीजिनपदानां शांतिर्भवत्" पाठ से है.) ११६९०८. (+#) दयापच्चीसी, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. २, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२७४१२, ११४३०). दयापच्चीसी, मु. विवेकचंद, मा.गु., पद्य, आदि: सयल तीर्थंकर कर प्रणाम; अंति: सार विवेकचंद कहे ए विचार, गाथा-२५. ११६९१२. (+) विजयसेठविजयासेठाणी सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १,प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२६४११.५, १४-१५४३७-४१). विजयसेठविजयासेठाणी सज्झाय, मु. कुसल, मा.गु., पद्य, आदि: भरतक्षेत्रे रे; अंति: लहीन. पहुचें भवनैं पारी, ढाल-४, गाथा-१८. ११६९१६. (+) १८ पापस्थानक निवारण सज्झाय, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २-१(१)=१, पू.वि. मात्र बीच का ही एक पत्र है., प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२७४११.५, १३४३९-४४). १८ पापस्थानक निवारण सज्झाय, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. सज्झाय-४ गाथा-७ अपूर्ण से सज्झाय-७ गाथा-३ अपूर्ण तक है.) ११६९१७. (+) अकडमचक्र व गोडीपार्श्वनाथ छंदादि संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ३१-२९(१ से २९)=२, कुल पे. ४, प्रले. ग. ऋद्धिविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२६.५४११.५, १४-१७४३५-४१). १.पे. नाम. अकडमचक्र, पृ. ३०अ-३०आ, संपूर्ण.. ___ अकडमचक्र श्लोक, सं., पद्य, आदि: द्वादशारं लिखेच्चक्रं; अंति: हंति आत्मानं हंति उरि, गाथा-१६. २. पे. नाम. गोडीपार्श्वनाथ छंद, पृ. ३०आ-३१अ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तवन-गोडीजी, म. ऋद्धिहर्ष कवि, मा.गु., पद्य, आदि: जस नामे नवनिध ऋद्धि; अंति: ऋद्धिहर्ष कहे करजोडी, गाथा-२०. ३. पे. नाम. मासकाल स्तुति, पृ. ३१अ-३१आ, संपूर्ण. असनादिक कालप्रमाण सज्झाय, म. वीरविमल, मा.गु., पद्य, वि. १७वी, आदि: प्रणमं श्रीगौतम; अंति: विरविमल करजोडी कहें, गाथा-१८. ४. पे. नाम. मूहपत्तिनि पडिलेहण २५ बोल, पृ. ३१आ, संपूर्ण. मुहपत्ति पडिलेहणा, प्रा., पद्य, आदि: सूतत्थतत्तदिठी दंसण; अंति: वह तणू पेहा एवज्जण मिणं, गाथा-४. For Private and Personal Use Only Page #135 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org १२० कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ११६९१८. कायस्थिति स्तवन, प्रकरण व ३६३ पाखंडी मत विचार, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ३, जैदे., (२६.५X११, १५X४७). १. पे. नाम. कायस्थिति स्तवन, पृ. १अ १आ, संपूर्ण. कायस्थिति प्रकरण, आ. कुलमंडनसूरि, प्रा., पद्य, आदि जह तुह दंसणरहिओ काय; अंति: अकायपयसंपदेसु, Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir गाथा - २४. २. पे. नाम. कायस्थिति प्रकरण का अर्थ, पृ. १आ, संपूर्ण कायस्थिति प्रकरण-अर्थ, मा.गु., गद्य, आदि: पुरुषवेद कायास्थिति रहै; अंति: जोगी अनंतो काल जांणवुं. ३. पे. नाम. ३६३ पाखंडी मत विचार, पृ. १आ, संपूर्ण मा.गु., गद्य, आदि: किरीयावादी १८० अकीयावादी अति एवं सर्वमेले ३६३. ११६९२१. (+) २४ जिन नक्षत्रयोनिगणतारादि विचार, संपूर्ण वि. १९वी मध्यम, पृ. १, प्र. वि. संशोधित अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., ( २६.५X११.५, १३ - १६५३-६३). २४ जिन राशि नक्षत्रादि विचार, मा.गु.,सं., गद्य, आदि: धनिकस्य नक्षत्रसंबंधिनां; अंति: दे दो चा ची तु रेवती २८, (वि. अंत में योनि-गण-तारा - राशि - नामाक्षरादि संबंधी यंत्र दिया है.) ११६९३१. (४) शत्रुंजय माहात्म्य, संपूर्ण वि. १९वी मध्यम, पृ. १, प्र. वि. मूल पाठ का अंश खंडित है, जैवे. (२६.५x११, १३x४६). शत्रुंजय माहात्म्य, आ. धनेश्वरसूरि, सं., पद्य, आदिः ॐ नमो विश्वनाथाय अंति: (-), (अपूर्ण, पू. वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण. सर्ग १ श्लोक २५ तक लिखा है.) "" " ११६९३६. महावीरजिन कवित्त, संपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पू. १, जैवे. (२७४११.५, १९४५४). 1 " महावीरजिन कवित्त, पुहिं., पद्य, आदि: मो करूना प्रभु कां न सुन; अंति: अनंतगत मेरे मन भायो है, गाथा - १५. ११६९४३. (+) सम्यक्त्वपच्चीसी सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ४, प्र. वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित., जैदे., (२६.५X११.५, ४४२). सम्यक्त्वपंचविंशतिका, प्रा., पद्य, आदि जह सम्मत्तसरूवं अंति होइ समत्त संपत्ती, गाथा २५. सम्यक्त्वपंचविंशतिका टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि जह कहितां जिम उपसमादिकें; अति: संपक्तिनी प्राप्ति, ११६९४५. (+) पूर्णिमातिथि स्तुत्यादि संग्रह, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ५- ४(१ से ४) = १, कुल पे. ५, प्र. वि. टिप्पणयुक्त पाठ., दे., (२७X१२, १३X३९). १. पे नाम पूर्णिमातिथि स्तुति, पृ. ५अ, अपूर्ण, पू.वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं. आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., पद्य, आदि (-); अति मल जिन नाम तणो गुणी, गाथा-४, (पू.वि. गाथा ३ अपूर्ण से है.) २. पे नाम बीजतिथि स्तुति, पृ. ५अ, संपूर्ण. आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: बीज दिने धर्मनुं; अंति: नयविमल० कवि इम कहै, गाथा-४. ३. पे नाम. अष्टमी स्तुति, पू. ५अ ५आ, संपूर्ण. अष्टमीतिथिपर्व स्तुति, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि अभिनंदन जीनवर परमानंद पव, अंति ज्ञानविमल कहे सीस, गाथा-४. ४. पे नाम. इग्यारस स्तुति, पृ. ५आ, संपूर्ण एकादशीतिथि स्तुति, आ. ज्ञानविमलसूरि, सं., पद्य, आदि: मल्लिदेवनै जन्म संयम; अंति: ज्ञानात्मनां सूरीणां, श्लोक-४. ५. पे. नाम. शीतलजिन स्तवन, पृ. ५आ, संपूर्ण. मु. हुकम, मल., मा.गु., पद्य, वि. १८८६, आदि: मुरवाडा नगर सुहामणो रे; अंति: हुकम० मिच्छामि दुकड०, गाथा-५. ११६९४६. (+) सूत्रकृतांगसूत्र सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २७- २६ (१ से २६) = १, पू. वि. मात्र बीच का ही एक पत्र है., प्र. वि. पदच्छेद सूचक लकीरें., जैदे., (२७.५X११.५, ५X४२). , सूत्रकृतांगसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा. प+ग, आदि (-); अंति (-), (पू.वि. अध्ययन-५ उद्देश्य-२ गाथा १ अपूर्ण से गाथा ११ अपूर्ण तक है.) For Private and Personal Use Only Page #136 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२६ १२१ सूत्रकृतांगसूत्र-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: (-). ११६९४७. संबोधसप्ततिका सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ४, दे., (२७४११.५, २४२८). संबोधसप्ततिका, आ. रत्नशेखरसूरि, प्रा., पद्य, आदि: नमिऊण तिलोअगुरुं; अंति: (-), (पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., गाथा-१० अपूर्ण तक है.) संबोधसप्ततिका-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: ॐ नमस्ते जगतस्यच्चेत; अंति: (-), (पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., गाथा-४ अपूर्ण तक टबार्थ लिखा है.) ११६९४८. औपदेशिक हरियाली सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १९०६, श्रावण कृष्ण, ३, मध्यम, पृ. १, ले.स्थल. नागोर, प्रले. पं. पुन्यविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, दे., (२८x११.५, ५४४०). औपदेशिक हरियाली, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., पद्य, आदि: कहजो रे पंडित ते कुण; अंति: जस कहे ते सुख लहसैं, गाथा-१४. औपदेशिक हरियाली-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: हवें पंडित लोकनि जाणवा; अंति: पांमेए इति भावार्थ ज्ञिया. ११६९४९. २१ स्थान प्रकरण, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २-१(१)=१, जैदे., (२६४११.५, १२४३७). २१ स्थान प्रकरण, आ. सिद्धसेनसूरि, प्रा., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. मात्र बीच का ही एक पत्र है., गाथा-२२ ___ अपूर्ण से गाथा-४५ अपूर्ण तक है.) ११६९५० (#) चेलणीसती सज्झायादि संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ५,प्र.वि. मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., (२५.५४११.५, १७X४४). १. पे. नाम. चेलणासती सज्झाय, पृ. १अ, संपूर्ण. उपा. समयसंदर गणि, मा.गु., पद्य, आदि: वीर वखाणी राणी चेलणाजी; अंति: चेलणाजी पामीओ भव तणो पार. गाथा-६. २. पे. नाम. वैराग्य सज्झाय, पृ. १अ, संपूर्ण. म. लावण्यसमय *, मा.गु., पद्य, आदि: मारग वहे रे उतावलो उडे; अंति: लावण्यसमय० जिननाथ, गाथा-८. ३. पे. नाम. स्थूलिभद्रमुनि सज्झाय, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. ___ मु. तेजहर्ष, मा.गु., पद्य, आदि: सुगुण सनेही रे; अंति: तेजहर्षने तुं तार रे, गाथा-७. ४. पे. नाम. नेमि गीत, पृ. १आ, संपूर्ण. नेमराजिमती स्तवन, मु. मोहन, मा.गु., पद्य, आदि: राजुल कहे रथ वालो; अंति: मोहन कहे श्याबाश, गाथा-७. ५. पे. नाम. नेमराजिमती स्तवन, पृ. १आ, अपूर्ण, पृ.वि. मात्र प्रथम पत्र है. मु. रामविजय, मा.गु., पद्य, आदि: राजुल कहे सुणो नेमजी; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-३ अपूर्ण तक है.) ११६९५५. कायोत्पत्ति सज्झाय, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, दे., (२६४११.५, २२४५०). कायोत्पत्ति सज्झाय, मु. श्रीसार, मा.गु., पद्य, आदि: उत्पति जोज्यो आपणी; अंति: (-), (पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., गाथा-६३ तक है.) ११६९५९ (#) ६७ बोल सज्झाय, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ४-३(१ से ३)=१, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२६.५४१२, १३४३९-४४). समकिताना सडसठबोलनी स्वाध्याय, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: वाचक जस इम बोले रे, गाथा-६८, (पू.वि. मात्र अंतिम पत्र है., बोल-६२ अपूर्ण से है.) ११६९६६. औपदेशिक पच्चीसी, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, पृ.वि. मात्र प्रथम पत्र है., जैदे., (२७४११, ११४३३). औपदेशिक पच्चीसी-वैराग्य, मु. रायचंद ऋषि, रा., पद्य, वि. १८२१, आदि: सासणनायक समरीय गुणधर लागु; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-१४ तक है.) ११६९६७. (#) अंतगडदसांगसूत्र, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ६-५(१ से ५)=१, पृ.वि. मात्र बीच का ही एक पत्र है., प्र.वि. हुंडी:अंतगडदसांग., अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६.५४११.५, १३४४४). For Private and Personal Use Only Page #137 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org १२२ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची अंतकृद्दशांगसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा. गद्य, आदि: (-) अति (-), (पू.वि. वर्ग-३ अध्ययन-८ पाठ "समुल्लावए सुमधुरे पुणोपुणो से पाठ "कोमल कमलाव मे हि तक है.) ११६९६८. चंद्रलेहा रास, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १८-१५ (१ से १४,१७) = ३, पू.वि. बीच-बीच के पत्र हैं., जैदे., (२६x१२, १५४५४). Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir चंद्रलेखा रास, मु.] मतिकुशल, मा.गु., पद्य वि. १७२८ आदि (-); अति: (-) (पू.वि. ढाल २२ गाथा १५ अपूर्ण से ढाल-२६ गाथा-२ अपूर्ण तक व ढाल - २७ गाथा-१८ अपूर्ण से ढाल २९ गाथा-४ अपूर्ण तक है.) ११६९७१ (+) पाक्षिकसूत्र, अपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पू. ६-३ (१ से ३) -३, पू. वि. बीच के पत्र हैं. प्र. वि. संशोधित, जैदे., (२५.५X११, १०X२६). पाक्षिकसूत्र, हिस्सा, प्रा. प+ग, आदि (-); अति (-) (पू.वि. पाठ से कोहा वा लोहा वा भया वा" से "पडिपुन्न भारियाए साया सुखमणु" तक है.) ११६९७३. महावीरजिन स्तवन व मंत्रादि संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पू. ६-५ (१ से ५)=१, कुल पे ४, जैवे. (२४.५४१२, १२x४२). १. पे. नाम. महावीरजिन स्तवन- पंचकल्याणक, पृ. ६अ, अपूर्ण, पू. वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं., वि. १८७६, चैत्र कृष्ण, ११, प्रले. पं. चंद्रसौभाग्य, प्र.ले.पु. सामान्य. महावीरजिन स्तवन-१४ स्वप्नगर्भित, क. जैत, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: जइत विनवै देय मनवंछित तणी, गाथा-२८, (पू.वि. गाथा-२५ अपूर्ण से है., वि. गाथांक नहीं है.) २. पे. नाम. पंचांगुलीमाता मंत्र, पू. ६अ, संपूर्ण. पंचांगुलीदेवी मंत्र, मा.गु. सं., गद्य, आदि: पंचागुली देवी परसिर; अंति: पडे ॐ ठः ठः ठः स्वाहा. ३. पे नाम. मोहणी मंत्र. पू. ६-६ आ, संपूर्ण मंत्र-तंत्र-यंत्र आदि संग्रह, उ., गु., सं., हिं. प+ग, आदि (-); अंति: (-). सं.,हिं., ४. पे नाम. आधा सीसी मंत्र, पृ. ६आ, संपूर्ण. आधाशीशी मंत्र, पुहिं., गद्य, आदि: कालो चीडो चीड चीड करे; अंति: दीतवाररे दिन आधा सीसी जाय, (वि. यंत्र सहित ) ११६९७६. (#) सज्झाय संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ३-२ (१ से २ ) = १, कुल पे. ४, प्र. वि. हुंडी : पिताजि., अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६.५X११.५, १३x४९). १. पे. नाम संसार स्वरूप सज्झाय, पू. ३अ, अपूर्ण, पू.वि. मात्र अंतिम पत्र है. 1 औपदेशिक सज्झाय, उपा. उदयविजय, मा.गु., पद्य वि. १७वी, आदि (-) अंति: उपदिशे भवहित करूं, गाथा-७, (पू.वि. गाथा- २ अपूर्ण से है.) २. पे. नाम. औपदेशिक सज्झाय, पृ. ३अ - ३आ, संपूर्ण. उपा. उदयविजय, पुहिं., पद्य, आदि : आज जिम कोइक पोषै; अंति: इम उदय सदा सुख करीइ रे, गाथा-६. ३. पे. नाम, पांचसौ चोर सज्झाय, पू. ३आ, संपूर्ण. ५०० चोर सज्झाय, उपा. उदयविजय, मा.गु., पद्य, आदि: केवलनांण गुण पूरीयो चोर; अंति: उदयविजय सुखकंद रे, गाथा-७. ४. पे. नाम. भृगुपुरोहित सज्झाय, पृ. ३आ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. भृगुपुरोहित सज्झाय-रात्रिभोजन परिहार, उपा. उदयविजय, मा.गु., पद्य, आदि: देव तणी ऋद्ध भोगवि; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-६ अपूर्ण तक है.) ११६९७७ (+) ज्वर छंद, संपूर्ण वि. १८३० आश्विन कृष्ण, १३, बुधवार, श्रेष्ठ, पू. १, ले. स्थल. सूरत बंदर, प्रले. पं. देव पठ. पं. भाग्य ( गुरु मु. कनक), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. सूर्यमंडनपार्श्वजिन प्रसादात्., संशोधित, जैवे. (२६११.५, १३x४७). ज्वर छंद, मु. कांति, मा.गु., पद्य, आदि: नमो आनंदपुर नगर अजय अंतिः सार मंत्र गणीई सदा, गाथा १६. "" - For Private and Personal Use Only Page #138 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२६ १२३ ११६९८२ (-) पडिकमणानी विधि, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २-१(१)=१, प्र.वि. पत्रांक लिखा न होने के कारण अनुमानित पत्रांक दिया गया है., अशुद्ध पाठ., जैदे., (२६४११.५, १०४३५). देवसीराइअप्रतिक्रमणसूत्र *, संबद्ध, प्रा.,मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: भवंदसण भदो कही, (पू.वि. छमासिक तपवर्णन अपूर्ण से है.) ११६९८३. (+) योगोद्वहनविधि संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें-संशोधित., जैदे., (२६.५४११.५, ९४३८). योगोद्वहनविधि संग्रह, प्रा.,मा.ग.,सं., गद्य, आदि: कालिकयोगि गुरुयोग बे जण; अंति: (-), (पू.वि. नंदीस्तुति तक है.) ११६९८४.(+) गुरुगुण गंहली व अष्टमुनि वंदना, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, ले.स्थल. चोरनडी, प्रले. मु. उदयहंस, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., दे., (२५४११, १३४३३). १. पे. नाम. विजयजिनेंद्रसूरिगुरुगण गंहली, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. जिनेंद्रविजयसूरिगुरुगुण गहुंली, मु. हेमविजय, मा.गु., पद्य, आदि: पंच प्रभु प्रणमी करी रे; अंति: (१)हेमविजय० रहजो अविचल राज, (२)भविकजन प्रणमो सद्गुरु पाय, गाथा-१३. २. पे. नाम. वखतविजयादि अष्टमुनि वंदना, पृ. १आ, संपूर्ण. वखतविजयादिअष्टमनि वंदना, मा.गु., पद्य, आदि: वखतविजय बुधवान हेमनिज; अंति: साधुसर्व वीनवै सतअठ वंदना, गाथा-५. ११६९८९. अनाथीमुनि पंचढालियो, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. हुंडी:अनाथी., जैदे., (२७.५४१२.५, ११४३५). अनाथीमनि पंचढालियो, उपा. विमलविनय वाचक, मा.ग., पद्य, वि. १६४७, आदि: श्रीजिनशासन नंदन नीकौ; अंति: (-), (पू.वि. ढाल-१ गाथा-८ अपूर्ण तक है.) ११६९९१ (+#) पज्जणचरिउ, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ९४-९२(१ से ९२)=२, पृ.वि. बीच के पत्र हैं., प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें-संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२९.५४१२, ११४५०-५४). पज्जणचरिउ, श्राव. सिंह महाकवि, अप., पद्य, वि. १३वी, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. कडवक-३०५ अपूर्ण से प्रशस्तिगाथा-८ अपूर्ण तक है.) ११६९९२ (+) जीवविचार प्रकरण सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १९१८, भाद्रपद शुक्ल, १२, रविवार, श्रेष्ठ, पृ. ४, प्रले. ग. चिमनसागर गणि, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-अन्वय दर्शक अंक युक्त पाठ-पदच्छेद सूचक लकीरे-संशोधित., दे., (२८.५४१२, ६४३९). जीवविचार प्रकरण, आ. शांतिसूरि, प्रा., पद्य, वि. ११वी, आदि: भुवणपईवं वीरं नमिऊण; अंति: संतिसूरि०सुयसमुद्दाओ, गाथा-५१. जीवविचार प्रकरण-टबार्थ , मा.गु., गद्य, आदि: भुवन क० त्रिभुवनमांहे; अंति: सिद्धांतरूपीया समुद्र थकी. ११६९९६ (+#) चौवीस जिन नाम, माता, पिता नक्षत्रादि विवरण, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, प्रले. मु. कल्याण ऋषि (गुरु मु. खीवराज ऋषि); पठ. श्राव. दीपा, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. कोष्ठकयुक्त., संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२९४१२, ५४१०). २४ जिन नाम, माता, पिता, नक्षत्र, यक्ष, यक्षणी, पूर्वभव आदि विवरण यंत्र, मा.गु., को., आदि: ऋषभ१ अजितर संभव३; अंति: वर्ष ७० वर्ष ४२. ११६९९९ (+#) गौतमस्वामी रास, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ४-२(१ से २)=२, पृ.वि. बीच के पत्र हैं., प्र.वि. संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२७.५४१२, १०४३८). गौतमस्वामी रास, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. गाथा-१८ अपूर्ण से ३६ अपूर्ण तक है.) ११७००२. औपदेशिक दोहा संग्रह व शृंगारिक पद, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, जैदे., (२६.५४११.५, १०x४४). १. पे. नाम. औपदेशिक दोहा संग्रह-भजन, पृ. १अ, संपूर्ण. मु. दीन, पुहिं., पद्य, आदि: त्याग तडाका कहेत हौ भजक; अंति: वास मे पछ लीखा तुम भेख, गाथा-१०. For Private and Personal Use Only Page #139 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir १२४ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची २.पे. नाम. शृंगारिक पद-नारी, पृ. १आ, संपूर्ण. मु. विजयराज, पुहिं., पद्य, आदि: वदन तो मेता बतास कीरसे; अंति: विजेराज० बूंद परी है, गाथा-१. ११७००३. (+) यंत्रावली व औपदेशिक गढा पद संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२७.५४१२, १४४४५-४८). १. पे. नाम. यंत्रावली, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. १६ कोष्ठक यंत्रफल चौपाई, पंडित. अमरसुंदर, मा.गु., पद्य, आदि: जिन चोवीसे पय प्रणेव; अंति: पसाई परमारथ सुणइ, गाथा-१७. - २.पे. नाम, औपदेशिक गुढा पद संग्रह, पृ. १आ, संपूर्ण. पुहिं., पद्य, आदि: अली रंजन सुत वाहना; अंति: चोखा राघ सुगंध, गाथा-७. ११७००४. (+) आदिजिन लावणी आदि संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ३-२(१ से २)=१, कुल पे. ४, प्रले. पं. विवेकविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२७.५४१२.५, १४४३३-४४). १. पे. नाम. आदिजिन लावणी, पृ. ३अ, अपूर्ण, पू.वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं. म. चतुर, मा.गु., पद्य, आदिः (-); अंति: चतुर० नहि प्रभु तुम घर की, गाथा-१२, (पू.वि. गाथा-८ अपूर्ण से है.) २. पे. नाम, औपदेशिक दोहा संग्रह, पृ. ३अ, संपूर्ण. पुहिं.,प्रा.,मा.गु.,सं., पद्य, आदि: भगनी सुत मुरख नृपती मद; अंति: रूपु भस्म थाइ. ३.पे. नाम. ५६३ जीवभेद यंत्र, पृ. ३अ, संपूर्ण. मा.गु., को., आदि: (-); अंति: (-). ४. पे. नाम. नेमनाथ लावणी, पृ. ३आ, संपूर्ण. नेमिजिन लावणी, मु. जिनदास, पुहि., पद्य, आदि: तुम तजकर राजुल नार तज्या; अंति: जिनदास सुणो जिनवर रे, गाथा-४. ११७००७. सम्यक्त्व ६७ बोल सज्झाय, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ३-२(१ से २)=१, पू.वि. मात्र बीच का ही एक पत्र है., जैदे., (२७४१२.५, १४४३८). सम्यक्त्व ६७ बोल सज्झाय, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., पद्य, आदिः (-); अंति: (-), (पू.वि. ढाल-७ गाथा-४ अपूर्ण से ढाल-११ गाथा-४ अपूर्ण तक है.) ११७००९. खामणा कुलक व दीपावलीपर्व स्तुति, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, प्रले. मु. भावविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२८x११, ११४४४). १. पे. नाम. खामणा कुलक, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. मु. अमीकुंवर, मा.गु., पद्य, आदि: अरिहंतजीने खामणां; अंति: अमीयकुंवर० पामे मंगलमाल, गाथा-१४. २. पे. नाम. दीपावलीपर्व स्तुति, पृ. १आ, संपूर्ण. मु. चंद्रविजय, मा.गु., पद्य, आदि: सिद्धारथ ताता जगत; अंति: जिनचंद० एहवी वाणी, गाथा-४. ११७०१०, नंदराजवेरोचनप्रधान कथा, संपूर्ण, वि. १९३३, मार्गशीर्ष शुक्ल, १३, मध्यम, पृ. २, प्रले. पं. रत्नसागर, प्र.ले.पु. सामान्य, दे., (२७.५४१२, २०४५५). नंदराजवेरोचनप्रधान कथा, मु. विनयचंद, मा.गु., पद्य, वि. १८७९, आदि: श्रीजिन वीर जिनेश्वरू; अंति: विनयचंद० जयपुर सिंघराज, ढाल-७. ११७०११. (+#) दोषावली व दोषज्ञान, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २, कुल पे. २, प्रले. पं. तीर्थसोमजी; पठ. मु. मानसोम (गुरु मु. नरेंद्रसोम), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६.५४११.५, १५४३८). १.पे. नाम. दोषावली, पृ. १अ-२अ, संपूर्ण. पाशाकेवली-भाषा, संबद्ध, मा.गु., गद्य, आदि: ॐ नमो भगवती; अंति: जात देजो जिम सुख हुवै सही. २.पे. नाम. दोषज्ञान, पृ. २आ, संपूर्ण. लग्नदोषावली, मा.गु.,सं., प+ग., आदि: मेषे तु पूर्वज दोष; अंति: ज्ञायदोषकं उच्चते, श्लोक-१०, (वि. कुंडली सहित.) For Private and Personal Use Only Page #140 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२६ १२५ ११७०१२. १४ नियम गाथा व १२ व्रत नाम, संपूर्ण, वि. १९४२, श्रावण कृष्ण, ११, गुरुवार, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, ले.स्थल. श्रीपालीनगर, प्रले. अमरदत्त मेवाडा, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. हुंडी:नेमधारवाय०., दे., (२५४१०, ३४१४-२०). १.पे. नाम. १४ नियम गाथा सह टबार्थ, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. १४ श्रावकनियम गाथा, प्रा., पद्य, आदि: सचित्त१ दव्व२ विगइ; अंति: त्रसकाय असी मसी कसी. १४ श्रावकनियम गाथा-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: सचित के० माटि मिळू पाणी; अंति: करि तेनो नियम करवू. २.पे. नाम. १२ व्रत नाम, पृ. १आ, संपूर्ण. मा.गु., गद्य, आदि: प्रथम थूलप्राणातिपात; अंति: बार में अतिथिसंविभाग. ११७०१३. २१ बोल प्रत्युत्तर, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २, जैदे., (२७.५४११.५, १२४३३-३८). २१ बोल प्रत्युत्तर, मा.गु., गद्य, आदि: मतीये प्रश्न २१ बोल; अंति: जोइ लेज्यो उपासगदशांगे. ११७०१४. (+) विषापहार स्तोत्र, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. २, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., दे., (२८x१२, १३४३६-४४). विषापहार स्तोत्र, आ. अचलकीर्ति, पुहिं., पद्य, वि. १७१५, आदि: आतम लीन अणंतगुण स्वामी; अंति: श्रीजिणवर को नाम, गाथा-४१. ११७०१५ (+) ६२ मार्गणा यंत्र, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. संशोधित., दे., (२७.५४११.५, २७४५७). ६२ मार्गणा यंत्र, मा.गु., को., आदि: देवगुण स्थानक मनुष्यगुण; अंति: (-), (पू.वि. मार्गणा-३४ तक है.) ११७०१६. स्तवनादि संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २, कुल पे. ११, जैदे., (२७४१२, १७४५१). १.पे. नाम. पंचमी स्तवन, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. ज्ञानपंचमीपर्व महावीरजिन स्तवन-बहत, उपा. समयसंदर गणि, मा.ग., पद्य, आदि: प्रणमं श्रीगुरुपाय; अंति: समयसुंदर० भाव प्रसंसिउ, गाथा-२०. २. पे. नाम. पार्श्वजिन स्तवन, पृ. १आ-२अ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तवन-गोडीजी दशमीतिथि-बृहत्, मु. समयरंग, मा.गु., पद्य, आदि: पास जिणेसर जगतिलौ ए; अंति: समयरंग इण परि बोले. ३. पे. नाम. पार्श्वजिन स्तवन, पृ. २अ, संपूर्ण. . जिनचंद, मा.गु., पद्य, आदि: अश्वसेनजीरा वावा; अंति: ध्यानथी प्रेम सदा जिनचंद, गाथा-६. ४. पे. नाम. अजितजिन स्तवन, पृ. २अ, संपूर्ण. साधारणजिन पद, ग. जिनहर्ष, पहिं., पद्य, आदि: मैं तेरी प्रीत पिछां; अंति: जिनहर्ष० निज सहि नाणी हो, गाथा-३. ५. पे. नाम. आदिजिन स्तवन, पृ. २आ, संपूर्ण. म. कनककुशल, पुहिं., पद्य, आदि: अईयो अइयो नाटक नाचें; अंति: कनककुसल० मेवा मांगे लो, गाथा-६. ६. पे. नाम, औपदेशिक श्लोक, पृ. २आ, संपूर्ण. सं., पद्य, आदि: सखस्य दखस्य न कोपी दाता; अंति: गथतो हि लोका, श्लोक-१. ७. पे. नाम. ७ भय नाम, पृ. २आ, संपूर्ण. __मा.गु., गद्य, आदि: इहलोक भय १ परलोक भय २; अंति: मरणभय ६ अपकीर्तिभय ७. ८. पे. नाम. ७ अभव्य अधिकार, पृ. २आ, संपूर्ण. मा.गु., गद्य, आदि: संगमय कालयसूरी कविला; अंति: ए आठ अभव्य जाणवी, (वि. सामान्य टबार्थ लिखा हुआ है.) ९.पे. नाम.५ आश्रव नाम, पृ. २आ, संपूर्ण.. मा.ग., गद्य, आदि: मिथ्यात्व १ अविरति २: अंतिः कषाय४ योग५. १०. पे. नाम, संयम के १७ भेद, प. २आ, संपूर्ण. प्रा.,सं., पद्य, आदि: पंचाश्रव वेरमणं; अंति: यति ग्रहणे सत्तरसया संजमो, गाथा-१. ११. पे. नाम. ५ चारित्र नाम, पृ. २आ, संपूर्ण. मा.गु., गद्य, आदि: सामायक चारित्र१अंति: यथाक्षात चारित्र५. For Private and Personal Use Only Page #141 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir १२६ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ११७०१७. अष्टदृष्टि स्वाध्याय, संपूर्ण, वि. १९२१, फाल्गुन कृष्ण, ६, शनिवार, श्रेष्ठ, पृ. ४, ले.स्थल. पाटणनगर, प्र.वि. हुंडी:अष्टदृष्टि सझाय., दे., (२८x१२, ११४४७). ८ योगदृष्टिगुण सज्झाय, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., पद्य, आदि: शिवसुख कारण उपदिशी योग; अंति: सेवक वाचक यशने वयणे जी, गाथा-७६. ११७०१९ समतिजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, अन्य. श्राव. नागरभाई, प्र.ले.प. सामान्य, जैदे., (२८.५४१२, ११४२९). सुमतिजिन स्तवन, मु. मणिउद्योत, मा.गु., पद्य, आदि: सजनी मोरी सुमति जिनेशर; अंति: मणिउद्योत० अमृत सुवासरे, गाथा-१०. ११७०२० (+) तपागच्छाधिपति प्रति पत्रलेखन विधि, संपूर्ण, वि. १९१७, ज्येष्ठ कृष्ण, २, श्रेष्ठ, पृ. २, प्रले. मु. नवलरत्न, प्र.ले.प. सामान्य, प्र.वि. संशोधित., दे., (२८x१२, १०४३२). तपागच्छाधिपति प्रति पत्रलेखन विधि, सं., गद्य, आदि: स्वस्तिश्रीमत्वावच्छेदक; अंति: रहस्सं अप्पाहिरं विणासेई. ११७०२३.(-) अंजणा दुहा, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २, प्र.वि. हुंडी:दुहा अंजणा., अशुद्ध पाठ., जैदे., (२७४११.५, १५४४४-४८). अंजनासुंदरी रास, मा.गु., पद्य, आदि: गोतम गुणधर प्रमुख इत्यादी; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., "धन छ मारी माय० मायरी देखो हमारो हाथ" पाठांश तक लिखा है., वि. ढाल क्रमांक नहीं लिखा है.) ११७०२४. नारी सज्झाय व स्त्री शिखामण सज्झाय, संपूर्ण, वि. १८८४, आषाढ़ कृष्ण, ३, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, प्रले. मु. प्रताप, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२८.५४१२, १४४४०). १.पे. नाम. नारी सज्झाय, पृ. १अ, संपूर्ण. औपदेशिक सज्झाय, उपा. उदयरत्न, मा.गु., पद्य, आदि: परमेसरसु प्रीत कर तो नारी; अंति: उदयरतन इम बोले रे, गाथा-७. २. पे. नाम. स्त्री शिखामण सज्झाय, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. औपदेशिक सज्झाय-शीलविषये स्त्री शिखामण, मु. उदयकीर्ति, मा.गु., पद्य, आदि: एक अनोपम शिखामण कहु समजी; अंति: उदयकिरति इम विस्तरे, गाथा-१०. ११७०२५. ज्ञानपंचमी चैत्यवंदन विधि व अंतगडदशांग सज्झाय, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. २, कुल पे. २, दे., (२८.५४१२, १०४३५). १. पे. नाम. ज्ञानपंचमी चैत्यवंदन विधि, पृ. १अ-२आ, संपूर्ण. ज्ञानपंचमीतपउच्चरावण विधि, प्रा.,मा.गु.,सं., गद्य, आदि: तिहां प्रथम पवित्र स्थान; अंति: १लोगसनो कावसग्ग करे. २. पे. नाम. अंतगडदशांग सज्झाय, पृ. २आ, संपूर्ण. अंतगडदशांगसूत्र सज्झाय, मु. विनयचंद्र, मा.गु., पद्य, आदि: आठमो अंग अंतगडदशाजी; अंति: जी तुरत लहै अभिप्राय, गाथा-७. ११७०२६ (+) कामदेवश्रावक पंचढालियो, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ४, प्र.वि. हुंडी:कामदेवजी., संशोधित., दे., (२७.५४१२, १४४३३-३६). कामदेवश्रावक पंचढालियो, श्राव. देवजी दोशी, मा.गु., पद्य, वि. १९२२, आदि: श्रीशांतिनाथ समरतां मन; अंति: देवजी० जिणेसर परसंसा करे, ढाल-५, गाथा-८५. ११७०३० (+#) शालिभद्रमुनि चौपाई, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २६-२५(१ से २५)=१, पू.वि. मात्र बीच का ही एक पत्र है., प्र.वि. संशोधित. मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., (२७४१२, १३४३९). शालिभद्रमुनि चौपाई, मु. मतिसार, मा.गु., पद्य, वि. १६७८, आदिः (-); अंति: (-), (पू.वि. ढाल-२८ गाथा-८ अपूर्ण से ढाल-२९ गाथा-९ अपूर्ण तक है.) ११७०३२ (+) कल्पसूत्र सह टबार्थ व बालावबोध, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १३७-१३६(१ से १३६)=१, पू.वि. मात्र बीच का ही एक पत्र है., प्र.वि. हुंडी:श्रीकल्पसूत्रप., संशोधित., जैदे., (२७४१२, ४-६४३९-४२). For Private and Personal Use Only Page #142 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२६ १२७ कल्पसूत्र, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. स्थविरावली सूत्र-३ अपूर्ण से सूत्र-५ अपूर्ण तक कल्पसूत्र-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: (-). कल्पसत्र-बालावबोध मा.ग..रा.. गद्य, आदिः (-): अंति: (-). ११७०३३. नवस्मरण, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ९-७(१ से ७)=२, पृ.वि. प्रारंभ व अंत के पत्र नहीं हैं., जैदे., (२८x१२.५, १०x२९). नवस्मरण, मु. भिन्न भिन्न कर्तृक, प्रा.,सं., प+ग., आदिः (-); अंति: (-), (पू.वि. अजितशांति स्तोत्र गाथा-२५ अपूर्ण से भक्तामर स्तोत्र गाथा-४ अपूर्ण तक है.) ११७०३४. सिरिसिरिवाल कहा, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., दे., (२६.५४१२.५, ७४३६). सिरिसिरिवाल कहा, आ. रत्नशेखरसरि, प्रा., पद्य, वि. १४२८, आदि: अरिहाइं नवपयाइं; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-७ अपूर्ण तक है.) ११७०३५. सरस्वतीदेवी स्तोत्र, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, प्र.वि. पत्र की किनारी खंडित होने के कारण प्रतिलेखक का नाम अवाच्य है., जैदे., (२७.५४१२, ११४३२). सरस्वतीदेवी स्तोत्र, आ. बप्पभट्टसरि, सं., पद्य, वि. ९वी, आदि: कलमरालविंहगमवाहना; अंति: रंजयति स्फुटम, श्लोक-१३. ११७०३६. (+) जिनप्रतिमाहंडी रास, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ३, प्र.वि. हुंडी:जि०प्र०., संशोधित., दे., (२८x१२, १३४४०). जिनप्रतिमाहंडी रास, मु. जिनहर्ष, मा.गु., पद्य, वि. १७२५, आदि: श्रुतदेवी हीयडै धरी; अंति: सुपसाये जिनहरष कहत के, गाथा-६६. ११७०३७. सिद्धचक्र नमस्कार काव्यबंध, संपूर्ण, वि. १८८३, ज्येष्ठ कृष्ण, ३, मध्यम, पृ. १, ले.स्थल. वडाली, प्रले. पं. कांतिविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२८x१२, १६४३६). नवपद नमस्कार, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: नमोनंत संत प्रमोद; अंति: ज्ञानविमल०जयकार पावे, गाथा-२२. ११७०३८. शीलव्रत सज्झाय, प्रहेलिका पद व पार्श्वजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. १८८६, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. ३, प्रले. मु. नंदलाल ऋषि, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. हुंडी:तवनसझाय. प्रतिलेखकने प्रत के दोनो तरफ पत्रांक लिखा है., जैदे., (२७.५४१२, १४४३५). १. पे. नाम, शीलव्रत सज्झाय, पृ. १अ, संपूर्ण. औपदेशिक सज्झाय-विषय परिहार, म. सिद्धविजय, मा.गु., पद्य, आदि: रे जीव विषय नि वारीये; अंति: चुनडी ते सेवो निसविसो रे, गाथा-११. २. पे. नाम. प्रहेलिका पद, पृ. १अ, संपूर्ण, वि. १८८६, फाल्गुन कृष्ण, ४. प्रहेलिका संग्रह, पुहि., पद्य, आदि: सीह पराक्रम हंसगत; अंति: सिखवे या घर आदु चाल, दोहा-१. ३. पे. नाम, पार्श्वजिन स्तवन, पृ. १आ, संपूर्ण, वि. १८८६, फाल्गुन कृष्ण, ८, मंगलवार. मु. सुखदेव, मा.गु., पद्य, वि. १८२२, आदि: श्रीजिननायक तु; अंति: कीसनगढ वीस वावीसे, गाथा-७. ११७०४४. (#) ऋषभजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. १८८६, पौष शुक्ल, १३, मध्यम, पृ. १,प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२८x१२, ११४३७). आदिजिन स्तवन, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीआदि जिणेसर तू परमेसर; अंति: भयभय भंजन मुगतनरगण सोभरही, गाथा-२१. ११७०४८. महावीरजिन स्तवन, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ५-४(१ से ४)=१, पू.वि. प्रारंभ व अंत के पत्र नहीं हैं., दे., (२७४१२.५, १०४३७). महावीरजिन स्तवन-२७ भव, मु. लालविजय, मा.गु., पद्य, वि. १६६२, आदिः (-); अंति: (-), (पू.वि. ढाल-५ गाथा-११ अपूर्ण से ढाल-६ मात्र अंतिम गाथा अपूर्ण तक है.) ११७०५० (+) सीयल कडा, संपूर्ण, वि. १९२६, भाद्रपद, ८, श्रेष्ठ, पृ. ३, प्र.वि. संशोधित., दे., (२८x१२, १३४३८-४२). शीयल कडा, मा.गु.,रा., पद्य, आदि: धर्मना छै अनेक; अंति: सिल अखंडत सेवजो, गाथा-१६. For Private and Personal Use Only Page #143 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org १२८ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ११७०५३. धन्नाशालिभद्र सिलोको, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, पू. वि. मात्र प्रथम पत्र है., प्र. वि. हुंडी : धनसालभद्ररोसीलोको., दे., (२७X१२.५, १३x३२-३८). शालिभद्रमुनि सलोको, मा.गु., पद्य, आदि: सरसति सामणी पाये; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-२० अपूर्ण तक है.) ११७०५५. (+) अष्टप्रकारी व नंदीश्वरद्वीप पूजादि संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी, ज्येष्ठ शुक्ल, १३, श्रेष्ठ, पृ. १०-८ (१ से ८)=२, कुल Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir पे. ४. प्र. वि. पदच्छेद सूचक लकीरें टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैवे. (२७.५४१२.५, १३४५२). प्र.वि. १. पे. नाम. पंचकल्याणक महोच्छवे अष्टप्रकारी पूजा, पू. ९अ १०अ अपूर्ण, पू.वि. प्रारंभ के पत्र हैं. पार्श्वजिनपंचकल्याणक पूजा विधिसहित, पं. वीरविजय, मा.गु., पद्य, वि. १८८९, आदि: (-); अंति: वांछित दाय सहायो रे, दाल-८ (पू.वि. दीपपूजा से है.) २. पे. नाम. नंदीश्वरद्वीप पूजा, पृ. १० आ, संपूर्ण. मा.गु.से., प+ग, आदि सर्वासिवासे सुतरां अति मनंत कल्याणभुजो भवंति ३. पे. नाम. पार्श्वयक्ष स्तुति, पृ. १०आ, संपूर्ण. सं., पद्य, आदि: श्रीचिंतामणि पार्श्वेश; अंतिः स श्रियेस्तु सुधर्म्मणाम्, श्लोक-३. ४. पे. नाम चक्रेश्वरीदेवी मंत्र, पृ. १०आ, संपूर्ण. सं., गद्य, आदि ॐ ह्रीं श्रीं चक्रेश्वरि अंति: (१) मनोवंछित पूरब स्वाहा, (२) दशांगधूपोक्षेपेणजप्यः. ११००५९. आदिजिन स्तवन- बिहारवर्णन, संपूर्ण, वि. २०वी श्रेष्ठ, पृ. १, दे., (२७४१२, १९४२१-४८). आदिजिन स्तवन- विहारवर्णन, मा.गु., पद्य, आदि नाभराया कुलदीपक चंद माता अंति: (-), (अपूर्ण, पू. वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., गाथा-१२ तक लिखा है.) ११७०६०. (#) सीतारामचंद्र बारमासा, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २, प्र. वि. हुंडी : बारमासा., अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जै., (२७X१२, १०X२८). सीतारामचंद्र बारमासो, मा.गु., पद्य, आदि सखी आवेलो कारतिक मास, अंति दास संभलावे गावने, गाथा- १२. ११७०६१. अष्टप्रकारी पूजा, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १२-८ (१ से ८) = ४, दे., (२८x१२.५, १४x२९-३९). ८ प्रकारी पूजा, पं. वीरविजय, मा.गु., पद्म, वि. १८५८ आदि (-); अति: (१) जई शिवमंदिर लील करो, ( २ ) इत्यादि विधि ते करे, पूजा-८, (पू.वि. चंदन पूजा अपूर्ण से है.) ११००६२. (+) वीस विहरमान, अतीत, अनागत, वर्तमान चौवीसी नामावली, संपूर्ण, वि. २०वी श्रेष्ठ, पू. ३, प्र. वि. हुंडी: चोवीस त्रयण., संशोधित., दे., (२७.५X१२, १२x१८-२२). २० विहरमानजिन, अतीत, अनागत व वर्तमान तीर्थंकरादि नाम, मा.गु. गद्य, आदि केवलज्ञानी १ निर्वाणी अति: ४ श्रीचंद्राननजी. ११७०६७ (+) जैनरक्षा स्तोत्र व यंत्रमंत्र सविधि, अपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ४, कुल पे. २, प्र. वि. हुंडी : जैनरक्षा, यंत्रविधि., पदच्छेद सूचक लकीरें., जैदे., (२७X१२, ७X३६). १. पे. नाम. जैनरक्षा स्तोत्र, पृ. १अ-२आ, संपूर्ण, पे.वि. हुंडी : रक्षास्तो जिनरक्षा स्तोत्र, सं., पद्य, आदि: श्रीजिनं भक्तितो; अंति: स्वजनैः जनैः, श्लोक-२१. २. पे नाम. यंत्र विधिसहित पू. २आ-४आ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र नहीं है. पे.वि. हुंडी यंत्रविधि. 1 " औषध-यंत्र-मंत्रसंग्रह, मा.गु. सं., गद्य, आदि: करौ राज सुपसाय यंत्र, अंति: (-), (पू.वि. पाठ- "अमुकीमेवस्य मानय मान मे वश्य कुरु कुरु स्वाहा तक है.) ११७०६८. (+) १२ व्रत उच्चारण विधि, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. २, पू. वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र. वि. संशोधित., दे., (२६.५X१२, १३x४२). १२ व्रत उच्चारण विधि, प्रा., मा.गु. सं., गद्य, आदि प्रथम जिनभवन अथवा जिन; अंति: (-), (पू.वि. सामायिक व्रत अपर्ण तक है.) ११७०६९. नंदिषेणमुनि कथा, अपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. २- १ (१) १, प्र.वि. पत्रांक का उल्लेख नहीं है. जैवे. (२७४१२.५, " " ७X४९). For Private and Personal Use Only Page #144 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२६ १२९ नंदिषेणमनि कथा-वैयावच्चविषये, सं., गद्य, आदिः (-); अंति: (-), (प.वि. प्रथम पत्र नहीं है व प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., "कश्चित् नगरे वेरिणाराजा आगत्य सैनिकैर्बहुभि:" पाठांश से है व "पानियं अप्रासुकंचक्रे तदा च" पाठांश तक लिखा है.) ११७०७०, दशवैकालिकसूत्र सज्झाय, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ४-३(१ से ३)=१, पू.वि. मात्र बीच का ही एक पत्र है., जैदे., (२७.५४१२.५, १०४३५). दशवकालिकसूत्र-सज्झाय, संबद्ध, मु. वृद्धिविजय, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. अध्याय-५ गाथा-२ अपूर्ण से अध्याय-६ गाथा-३ अपूर्ण तक है.) ११७०७१. (+) द्वादशव्रत विगति आदि संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ३-१(१)=२, कुल पे. ६, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२८x१२, १४४४८). १.पे. नाम. द्वादशव्रत विगति, पृ. २अ, अपर्ण, पृ.वि. प्रथम पत्र नहीं है. १२४ अतिचार विचार-श्रावकव्रत, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: विकरै निर्वाण मुक्ति पामै, (पू.वि. अतिथिसंविभाग विरमणव्रत से है.) २. पे. नाम. पर्वतिथि वर्जितवस्तु नाम, पृ. २अ-२आ, संपूर्ण. ___मा.गु., गद्य, आदि: १ पान नागरमग्घी २ नींबू; अंति: आंबनो ३ नींबूनो ४ गुलाबनो. ३. पे. नाम, ३२ दोष सामायिकना, प. २आ, संपूर्ण. ३२ दोष-सामायिक के, मा.ग., गद्य, आदि: पालठी न जोडै१ अथिर; अंति: मिली बत्तीसदोष जाणवा. ४. पे. नाम. पौषधाष्टादस दोष, पृ. २आ-३अ, संपूर्ण. १८ पौषध दोष, मा.ग., गद्य, आदि: अणपोसातीनो आण्यो; अंति: जोवा नही वात न करवी. ५. पे. नाम. १९ दोष कायोत्सर्ग, पृ. ३अ-३आ, संपूर्ण. १९ कायोत्सर्ग दोष विचार, संबद्ध, मा.गु., गद्य, आदि: घोडाननी पेरे एग पगइ शरीर; अंति: दोष श्रावकने न लागै. ६. पे. नाम. २४ मांडला, पृ. ३आ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. २४ स्थंडिल, प्रा., गद्य, आदि: आघाडे १ आसन्ने २ उच्चारे; अंति: (-), (पू.वि. सूत्र-११ अपूर्ण तक है.) ११७०७२. अंजनासुंदरी रास, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ४-३(१ से ३)=१, पृ.वि. मात्र बीच का ही एक पत्र है., प्र.वि. हुंडी:अं.ढाल., जैदे., (२८x१२.५, १४४४१). अंजनासुंदरी रास, मु. विनयचंद, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. ढाल-४ के दूहा-१२ अपूर्ण से ढाल-५ गाथा-२ अपूर्ण तक है.) ११७०७३. सरस्वतीदेवी छंद व स्तुति, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, दे., (२७४१२.५, ११४३६). १. पे. नाम. सरस्वतीदेवी छंद, पृ. १आ, संपूर्ण. मु. दयानंद, मा.गु., पद्य, आदि: मा भगवती विद्यानी; अंति: जाउं तोरी बलीहारी, गाथा-७. २. पे. नाम. सरस्वतीदेवी स्तुति, पृ. १आ, संपूर्ण. सं., पद्य, आदि: या कुंदेंदुतुषारहार; अंति: निश्शेष जाड्यापहा, श्लोक-१. ११७०७६. (+) कायस्थिति प्रकरण सह अवचूरि, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ४, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. हुंडी:कायस्थि०., कायस्थिति., त्रिपाठ-संशोधित., जैदे., (२७.५४१२, ११४४७). कायस्थिति प्रकरण, आ. कुलमंडनसूरि, प्रा., पद्य, आदि: जह तुह दंसणरहिओ काय; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-११ तक कायस्थिति प्रकरण-टीका, आ. कुलमंडनसूरि, सं., गद्य, वि. १५वी, आदि: हे जिनेंद्र तव दर्शन; अंति: (-). ११७०७७. (+) विविधविषयक साधु पत्राचार पत्रसंग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ४, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित., जैदे., (२७४१२.५, २१४५७). विविधविषयसंबद्ध साधु पत्राचार पत्रसंग्रह, मु. भुवनकीर्ति, सं., गद्य, आदि: स्वस्तिश्रीमदभीष्ट; अंति: तत्रापिस्तात्तकदिति. For Private and Personal Use Only Page #145 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir १३० कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ११७०७८.(#) सुबाहकुमार संधि, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ५-४(१ से ४)=१, प्र.वि. मूल पाठ का अंश खंडित है, दे., (२७.५४१२.५, १२४४४). सुबाहकुमार संधि, उपा. पुण्यसागर, मा.गु., पद्य, वि. १६०४, आदि: (-); अंति: थायउ नितु भणतां, गाथा-८९, ग्रं. १४०, (पू.वि. आखिरी ढाल- गाथा-१ अपूर्ण से है.) ११७०७९ रत्नपालरत्नावती रास, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ३, जैदे., (२७.५४१२.५, १५४३८). रत्नपालरत्नावती रास-दानाधिकारे, मु. सूरविजय, मा.गु., पद्य, वि. १७३२, आदि: श्रीऋषभादिक जिन नमुं; अंति: (-), (अपूर्ण, पृ.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., खंड-१ ढाल-३ गाथा-६६ तक लिखा है.) ११७०८१. चऊदपूर्व करवानी विधि, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, दे., (२७.५४१२, ३४४६). १४ पूर्व नाम आराधना विधि, मा.गु.,सं., प+ग., आदिः (१)चउदसथी आदरे अकेचि चउदसे, (२)श्रीउत्पाद प्रवाद; अंति: सा० काउसग्ग २५ लोगसपचिः. ११७०८२. (+) पद्मावती स्तोत्रादि संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ३, कुल पे. ४,प्र.वि. श्रीधर्मनाथजी प्रसादात्., पदच्छेद सूचक लकीरे-संशोधित., दे., (२८x१२.५, १३४५८-६२). १. पे. नाम. पद्मावतीदेवी स्तोत्र, पृ. १आ-२आ, संपूर्ण. पद्मावतीदेवी स्तव, सं., पद्य, आदि: श्रीमद्गीर्वाणचक्र; अंति: पद्मावती स्तोत्रम्, श्लोक-२८. २.पे. नाम. पार्श्वपद्मावती मंत्र-अट्टेमट्टे, पृ. २आ, संपूर्ण. सं., गद्य, आदिः ॐ नमो भगवते श्रीपार्श्व; अंति: वांछित पूरय पूरय स्वाहा. ३. पे. नाम, चक्रेश्वरीदेवी बीज मंत्र, पृ. ३अ, संपूर्ण. सं., गद्य, आदि: ॐ श्रीं ह्रीं क्लीं चं चं; अंति: कारय दर्शय दर्शय स्वाहा, (वि. संक्षेप विधिसहित.) ४. पे. नाम. चक्रेश्वरी स्तोत्रमंत्र, प. ३अ-३आ, संपूर्ण. चक्रेश्वरीदेवी स्तोत्र, सं., पद्य, आदि: श्रीचक्रे चक्रभीमे; अंति: न भयं चक्रदेव्यास्तवेन, श्लोक-९. ११७०८६. (+) नंदीश्वरद्वीप स्तोत व आवलिकादिकालमान विचार, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २, कुल पे. २, प्र.वि. त्रिपाठ-पदच्छेद सूचक लकीरें-संशोधित., जैदे., (२८x१२, १८४४७-५४). १. पे. नाम. नंदीश्वरद्वीप स्तोत्र सह अवचूरि, पृ. १अ-२आ, संपूर्ण. नंदीश्वरद्वीप स्तोत्र, प्रा., पद्य, आदि: वंदिय नंदियलोअं; अंति: बत्तीसं सोलसयं वंदे, गाथा-२५. नंदीश्वरद्वीप स्तोत्र-अवचूरि, सं., गद्य, आदि: वंदित्वा जिनसमूहं नंदित; अंति: निलया मणिरयणसहस्स कूडवरा. २. पे. नाम. आवलिकादिकालमान विचार, पृ. २आ, संपूर्ण, पे.वि. यह कृति नंदीश्वरद्वीप स्तोत्र की अवचूरि के रुप में पत्रांक-२आ पर है. सं., गद्य, आदि: २५६ आवलि १ वर्ग मूले; अंतिः क्रियते तदा ३०७३ अंश. ११७०८७. (+) औपदेशिक सज्झाय व नेमजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, ले.स्थल. अजमेर, प्रले. मु. हरखचंद, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२७.५४१२, १६x४०). १. पे. नाम. औपदेशिक सज्झाय, पृ. १अ, संपूर्ण. औपदेशिक सज्झाय-नवघाटी, म. चोथमल ऋषि, रा., पद्य, आदि: नवघाटि मे भटकत पायो; अंति: चोथमल०सीस हं री लाज, गाथा-१५. २. पे. नाम, नेमिजिन स्तवन, पृ. १आ, संपूर्ण. म. चोथमल, रा., पद्य, वि. १८५२, आदि: श्रीनेमीसर साहिबा; अंति: चोथमम० ए कीधी अरदास, गाथा-८. ११७०८८. महावीरजिन गंहली, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, जैदे., (२७.५४१२.५, १२४२९). महावीरजिन गहुँली, मु. अमृतसागर, मा.गु., पद्य, आदि: जी रे जिनवर वचन; अंति: वाणी मीठी रे महावीर तणी, गाथा-७. ११७०९० (+) महावीरजिन स्तवन-२७ भवविचारगर्भित, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ३, प्र.वि. संशोधित., ., (२७.५४१२, १०४४३). For Private and Personal Use Only Page #146 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२६ १३१ महावीरजिन स्तवन-२७ भवविचारगर्भित, पं. वीरविजय, मा.गु., पद्य, वि. १९०१, आदि: श्रीशुभविजय सुगुरू; अंति: वीरविजय जय जय करो, ढाल-५, गाथा-५२. ११७०९१. शत्रुजय उद्धार, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, दे., (२७.५४१२, १४४३४-३८). १.पे. नाम. शत्रुजय उद्धार, पृ. १अ, संपूर्ण. जिनप्रतिमामंडन स्तवन, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., पद्य, आदि: भरतादिके उद्धारज; अंति: वाचक जसनी वाणी हो, गाथा-१०. २. पे. नाम, पार्श्वजिन स्तवन, पृ. १आ, संपूर्ण. म. कांतिविजय, मा.ग., पद्य, आदि: दीन के दयालसया तीर तार; अंति: कांतिविजय० देख के निहाल. ११७०९२. जिनकुशलसूरि अष्टक, संपूर्ण, वि. १९६४, पौष कृष्ण, ३०, रविवार, मध्यम, पृ. १, ले.स्थल. धोलेरा बंदर, प्रले. श्राव. दुलभजी सुंदरजी शेठ, प्र.ले.पु. सामान्य, दे., (२७.५४१२, १२४४०). जिनकुशलसूरि अष्टक, मु. रत्नसोम, सं., पद्य, आदि: देवराजपुरमंडनमाप्त; अंति: रत्नसोम समसद्यशोभरम्, श्लोक-९. ११७०९४ (#) जिनप्रतिमाहुंडी रास, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ४, प्र.वि. मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., (२७.५४१२, ११४३५-३८). जिनप्रतिमाहंडी रास, म. जिनहर्ष, मा.ग., पद्य, वि. १७२५, आदि: सुयदेवी हीयडै धरी; अंति: जिनहर्ष कहंत के, गाथा-६७, (वि. अंतिमवाक्य खंडित है.) ११७०९८. चक्रेश्वरीदेवी स्तोत्र व मंत्र संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, दे., (२८x१२, १२४३५). १. पे. नाम, चक्रेश्वरीदेवी स्तोत्र, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. सं., पद्य, आदि: श्रीचक्रे चक्रभीमे; अंति: प्रकटित दशने पाहिमां, श्लोक-८. २. पे. नाम. मंत्र संग्रह, पृ. १आ, संपूर्ण. मंत्र-तंत्र-यंत्र संग्रह, उ.,पुहि.,प्रा.,मा.गु.,सं., प+ग., आदि: (-); अंति: (-). ११७१०१ (+) पर्युषणपर्व सज्झाय, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १,प्र.वि. संशोधित., दे., (२७४१२, १२४३३). पर्यषणपर्व सज्झाय, म. मतिहंस, मा.गु., पद्य, आदि: परव पजुसण आवीया रे; अंति: मतिहंस कहे करजोडि रे, गाथा-११. ११७१०३. (+) साधुपाक्षिकअतिचार-श्वे.म.पू., संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ३, प्र.वि. हुंडी:अतिचार., संशोधित., जैदे., (२७४१२, ११४३२-३५). साधपाक्षिकअतिचार-म.प., संबद्ध, प्रा.,मा.गु., गद्य, आदि: नाणम्मि दंसणम्मि०; अंति: बे हजार० करी तप करवो. ११७१०४. सात व्यसन सज्झाय, संपूर्ण, वि. १८८६, फाल्गुन कृष्ण, ४, मध्यम, पृ. १, प्रले. मु. नंदलाल ऋषि, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. हंडी:सझायलि०., जैदे., (२७.५४१२, १४४३८). ७ व्यसन निवारण सज्झाय, मु. जयरंग, मा.गु., पद्य, आदि: पर उपगारी साध सुगुर; अंति: सीस रंगे जेरंगे कहे, गाथा-९. ११७१०८ (+) भावट्त्रिंशिका व औपदेशिक सज्झाय, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ३, कुल पे. २, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२५.५४१२, १२४३५). १. पे. नाम, भावट्त्रिंशिका, पृ. १अ-२आ, संपूर्ण. भावछत्रीसी, मु. ज्ञानसार, पुहिं., पद्य, वि. १८६५, आदि: क्रिया अशुद्धता कछु; अंति: मुनिज्ञानसार मतिमंद, गाथा-३९. २. पे. नाम, आतमरूपअजाण, पृ. २आ-३आ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. शत्रुजयतीर्थ स्तवन, मु. ज्ञानसार, मा.गु., पद्य, वि. १८६९, आदि: आतमरूप अजाण न जाणू निजपणू; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-१८ अपूर्ण तक है.) ११७१०९ ध्वजादंडरोपण विधि, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, जैदे., (२५.५४१२, १३४३६). ध्वजादंडरोपण विधि, म. देवचंद, मा.ग.,सं., गद्य, आदि: तिहां प्रथम भूमि; अंति: (-), (अपूर्ण, पृ.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., धर्मदेशना के पश्चात् ध्वजारोपणवर्णन अपर्ण तक लिखा है.) "3 For Private and Personal Use Only Page #147 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ९३२ ११७११० (०) संक्षिप्तसामायिक विधि, संपूर्ण वि. २०वी मध्यम, पृ. १, प्र. वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, वे (२५.५४१२, १४४१८). 3 सामायिक विधि, प्रा.मा.गु., पग, आदि प्रथम नवकार गुणे पछे अंतिः नमोधुणं० वडीवंदना दोय वार, (वि. अंत में पारवणगाथा का प्रतीक पाठ दिया है.) ११७१११. प्रश्नोत्तर संग्रह, अपूर्ण, वि. १९५८, ज्येष्ठ शुक्ल, १, शुक्रवार, मध्यम, पृ. २- १ ( १ ) = १, प्र. वि. हुंडी प्रश्न, वे. (२६४१२, १४४४१). प्रश्नोत्तर संग्रह, मु. जसाजी स्वामी, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: कीरीया ते संपराय नथी, प्रश्न- २७, (पू. वि. प्रश्न- १२ अपूर्ण से है.) ११७११२. शत्रुंजयतीर्थउद्धार रास, अपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पृ. ४-३ (१ से ३) १, पू.वि. मात्र बीच का ही एक पत्र है.. जै..... (२६.५X१२, १२X४०). शत्रुंजयतीर्थउद्धार रास, मु. नयसुंदर, मा.गु., पद्य, वि. १६३८, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. गाथा ५७ अपूर्ण से ७७ अपूर्ण तक है.) ११७११३. () इग्यारस स्तवन व मल्लिजिन पद, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २. प्र. वि. हुंडी इग्यारसतवन, मूल पाठ का अंश खंडित है, दे. (२५.५४१२, १३४३९). " १. पे. नाम. इग्यारस स्तवन, पृ. १अ - १आ, संपूर्ण, प्रले. चुनीलाल, प्र.ले.पु. सामान्य. मौनएकादशीपर्व स्तवन, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, वि. १६८१, आदि: समोसरण बेठा भगवंत; अंतिः समयसुंदर कहो घाडी, गाथा- १३. २. पे नाम. मल्लिजिन पद, पृ. ९आ, संपूर्ण. गाथा - ५. मल्लिजिन स्तवन, मु. रूपचंद, पुहिं., पद्य, आदि: मोहि कैसे तारोगे; अंति: रूपचंद गुण गाय, ११७११४. (+) परजन कंवर लावणी, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. २, प्र. वि. हुंडी : लावणी., पदच्छेद सूचक लकीरें, दे., (२५.५X१२, १८x४८). " प्रद्युम्नकुंवर लावणी, मु. खूबचंद ऋषि, पुहिं., पद्य, वि. १९६४ आदि एक परजन कवरजीकी परगट कहु; अंति: म्यांन मुज गरु बतलाया जी, गाथा - २२. ११७११६. कर्मस्तव व बंधस्वामित्व ३, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ३, कुल पे. २, जैदे., ( २६ ११.५, १४४४२). १. पे. नाम. कर्मस्तव, पृ. १अ - २अ, संपूर्ण. कर्मस्तव नव्य कर्मग्रंथ-२, आ. देवेंद्रसूरि, प्रा., पद्य, वि. १३वी - १४वी, आदि: तह थुणिमो वीरजिणं; अंति: देविंद बंदिअं नमह तं वीरं, गाथा- ३४. २. पे. नाम, बंधस्वामित्व-३, पृ. २अ ३आ, संपूर्ण. बंधस्वामित्व नव्य कर्मग्रंथ-३, आ. देवेंद्रसूरि, प्रा., पद्य, वि. १३वी- १४वी, आदि: बंधविहाणविमुक्कं वंद; अंति: तेअं कम्मत्ययं सोउं, गाथा २५. ११७११७. औपदेशिक दोहा संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पू. ३-१ (१) = २, पू.वि. बीच-बीच के पत्र हैं. जैदे. (२६४११.५. २२४४९). יי औपदेशिक दोहा संग्रह, क. गद, पुहिं., पद्य, आदि: (-): अंति: (-), (पू.वि. प्रारम्भ, बीच व अन्त के पाठ नहीं हैं.) ११७११८. चर्चा समाधान, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. २, दे. (२६४१२, २१४४१) " चर्चा समाधान, जै. क. भूधर, पुहिं पद्य वि. १२७६, आदि (-); अति (-) (वि. चयनित प्रश्नों का संग्रह है. ) ११७११९. गुरुगुणषट्त्रिंशिकासूत्र, संपूर्ण, वि. १९६३, भाद्रपद कृष्ण, ६, शुक्रवार, श्रेष्ठ, पृ. ३, प्रले. मु. लक्ष्मीविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. हुंडी : गुरुगुणछत्ती०. वे. (२७४१२, १२४३२) गुरुगुणषट्त्रिंशत्वद्विशिका कुलक, आ. रत्नशेखरसूरि, प्रा., पद्य, आदि वीरस्सपएपणमिण सिरिगोअमपम अति भव्वा पावंतु कल्लाणं, षट्त्रिंशिका-३६, गाथा-४०. For Private and Personal Use Only ११७१२०. शांतिजिन चरित्र वचनिका, अपूर्ण, वि. २०वी श्रेष्ठ, पू. ४-१ (१) -३, दे., (२५.५४१२.५, ३३१७). Page #148 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२६ www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir शांतिजिन चरित्र वचनिका, मा.गु., गद्य, आदि (-); अति: (-), (पू.वि. प्रथम पत्र नहीं है व प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण.. खंड-२ अपूर्ण से है व खंड-५ भव- ११ तक लिखा है.) ११७१२९. विंशतिविंशिका का हिस्सा योगविंशिका की वृत्ति, अपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पू. १६-१५ (१ से १५) १, जैदे.. = 1 (२६.५x१२, ११४३१). विंशतिविंशिका हिस्सा योगविंशिका की वृत्ति, उपा. यशोविजयजी गणि, सं. गद्य वि. १७३-१८पू, आदि (-); अंति: फल निर्वाणं भवति, (पू.वि. अंत के पत्र हैं., पाठ- "पद्भमेवपरमात्मतुल्य तयात्मज्ञानस्यैव" से है.) ११७१२३. (*) औपदेशिक सज्झाय व गहुंली संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पू. १, कुल पे. ३, प्र. वि. हुंडी:तवन, मूल पाठ का अंश खंडित है, दे., (२५.५X१२, १६३६-४४). १. पे. नाम. औपदेशिक सज्झाय, पृ. १अ १आ, संपूर्ण. " मु. किशनलाल, पुहि., पद्य, आदि हाक म कर गरव दीवाना सुण स; अंति: धनालालजी ततव पीछांण्यो रे, गाधा-८. २. पे. नाम. गुरुगुण गहुंली, पृ. १आ, संपूर्ण मा.गु., पद्म, आदि चालो सयां गुरु वांदवा अतिः काचो सह परिवार, चौपाई-४. ३. पे. नाम. औपदेशिक सज्झाय-गुरुगुण महिमा, पृ. १आ, संपूर्ण. रा., पद्य, आदि : आजरो दीयाडो जी भलाई सूरज; अंति: अरज करूं महाराज, गाथा-१०. ११७१२५ (+) बृहद्शांति, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. २, पठ. श्रावि. वेलीबाई, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. संशोधित., जैदे., (२६.५x११, १०x३३). बृहत्शांति स्तोत्र तपागच्छीय, सं., प+ग, आदि भो भो भव्याः शृणुत; अंति जैनं जयति शासनम्. ११७१२६. (+) बृहत्संग्रहणी, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. २१-१७ (२ से १८) =४, पू.वि. बीच व अंत के पत्र नहीं हैं. प्र. वि. संशोधित., दे., ( २६.५X१२, १२x२७). १३३ " बृहत्संग्रहणी, आ. चंद्रसूरि, प्रा., पद्य, वि. १२वी आदि नमिउं अरिहंताई ठिई १; अंति: (-), (पू. बि. गाथा १ से ८ व गाथा-९४ से १४३ अपूर्ण तक है.) ११७१२८. विजयपत्त स्तोत्र व भयहर स्तोत्र, अपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पृ. २- १ (१) -१, कुल पे. २, प्र. वि. हुंडी शांतिकरना पत्र., जैदे., (२७X१२, १३x४२). १. पे. नाम. सत्तरिसयतीर्थंकर स्तवन, पृ. २अ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र हैं., वि. १८७६, आश्विन शुक्ल, १४. तिजयपहुत्त स्तोत्र, आ. मानदेवसूरि, प्रा., पद्य, आदि (-); अति निज्यंत निच्चमच्छेह, गाथा-१४ (पू.वि. गाथा १२ अपूर्ण से है.) २. पे. नाम. भयहर स्तोत्र, पृ. २अ २आ, संपूर्ण, नमिऊण स्तोत्र, आ. मानतुंगसूरि, प्रा., पद्य, आदि नमिऊण पणय सुरगण, अंति: नासइ तस्स दूरेण, गाथा २४. ११७१३० (+) लघुशांति सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. २, प्र. वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-पदच्छेद सूचक लकीरें-अन्वय दर्शक अंक युक्त पाठ-संशोधित, जैये. (२६.५x१२, ७४३३) पू.वि. लघुशांति, आ. मानदेवसूरि, सं., पद्य, आदि शांति शांतिनिशांत, अति (-) (प्रतिअपूर्ण, पू. वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण. गाथा १४ तक लिखा है.) लघुशांति-टबार्थ, सं., गद्य, आदि: शांतिजिनं नमस्कृत्य; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., गाथा-५ क का बार्थ लिखा है.) ११७१३२. (+#) साधुवंदना, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ४, पू. वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र. वि. पदच्छेद सूचक लकीरें संशोधित अक्षरों की स्वाही फैल गयी है, जैवे. (२७.५x१२, १२X४०-४३ ). For Private and Personal Use Only साधुवंदना, आ. पार्श्वचंद्रसूरि, मा.गु., पद्य, आदि रिसह जिण पमुह चडवीस अंति: (-) (पू.वि. गाथा ७० तक है.) ११७१३४. विवाहपडल भाषा, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. २- १ (१) १, प्रले. मु. गुलाबविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, दे., (२५x१२, ९X३०). Page #149 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir १३४ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची विवाहपडल भाषा, मु. रूपचंद, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: यौतिष तणौ मरम, गाथा-३२, (पू.वि. गाथा-२७ अपूर्ण से है.) ११७१३५. १२ भावना सज्झाय-बृहत्, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, पू.वि. मात्र प्रथम पत्र है., जैदे., (२६४१२, ११४३०). १२ भावना सज्झाय-बृहत्, उपा. जयसोम, मा.गु., पद्य, वि. १७०३, आदि: पासजिणेसर पायनमी; अंति: (-), (पू.वि. ढाल-२ की गाथा-३ अपूर्ण तक है.) ११७१३६. २४ जिन स्तुति, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. १, पृ.वि. मात्र प्रथम पत्र है., प्र.वि. हुंडी:छंदसवैयाचालिमे., जैदे., (२६४१२, १३४४६). २४ जिन स्तुति, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: ब्रह्मसुता गिर्वाणी सुमति; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-९ अपूर्ण तक है.) ११७१३८. (+) उत्तराध्ययनेद्रुमपत्रीयाध्ययने-हितशिक्षा स्वाध्याय, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. १, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२६४१२, १३४४२). उत्तराध्ययनसूत्र-द्रुमपत्रीयाध्ययन सज्झाय, संबद्ध, पंन्या. खिमाविजय , मा.गु., पद्य, आदि: वीर विमल केवल धणीजी; अंति: पसरे बह गणवेल, गाथा-२२. ११७१३९ (+#) पद्मावतीदेवी स्तव, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २-१(१)=१, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरे-टिप्पण युक्त विशेष पाठ. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२७.५४१२, ११४४६). पद्मावतीदेवी स्तव, सं., पद्य, आदिः (-); अंति: (-), (पृ.वि. प्रथम एक व अंत के पत्र नहीं हैं., श्लोक-६ अपूर्ण से १८ अपूर्ण तक है.) ११७१४२. नारचंद्र ज्योतिष, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, पू.वि. मात्र प्रथम पत्र है., प्र.वि. हुंडी:नारचंद्रपत्र., जैदे., (२६४१२, ११४२४). ज्योतिषसार, आ. नरचंद्रसूरि, सं., पद्य, आदि: श्रीसर्वज्ञजिनं नत्वा नार; अंति: (-), (पू.वि. श्लोक-१६ अपूर्ण तक है.) ११७१४७.(#) सिद्धहेमशब्दानुशासन सह अवचूरि, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ४-१(१)=३, पृ.वि. बीच के पत्र हैं., प्र.वि. पत्रांक अनुक्रम न मिलने से अनुमानित पत्र संख्या दी गयी है., मूल पाठ का अंश खंडित है, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६४११.५, १८-२२४५४-७०). सिद्धहेमशब्दानुशासन, आ. हेमचंद्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., गद्य, वि. ११९३, आदिः (-); अंति: (-), (पृ.वि. स्मृ चिंतायाम् पाठ से शीड्क स्वप्ने तक है.) सिद्धहेमशब्दानुशासन-अवचूरि *, सं., गद्य, आदि: (-); अंति: (-). ११७१५०. (#) सनत्कुमार सज्झाय व सवैया संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६४१२, १४४४२-४८). १. पे. नाम. सनतकुमार सज्झाय, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. सनत्कुमारचक्रवर्ती सज्झाय, मा.गु., पद्य, आदि: सरसति सामनि पाए लागु; अंति: देवलोके संभाली, गाथा-१६. २. पे. नाम. सवैया संग्रह, पृ. १आ, संपूर्ण.. सवैया संग्रह, पुहि., पद्य, आदि: रामरुपिया रोक छै खरचा; अंति: दिन तो सब वतावता है. ११७१५८. स्थूलिभद्र कथा, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २-१(१)=१, जैदे., (२६.५४१२, ८४३९). स्थूलिभद्र कथा, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. प्रथम पत्र नहीं है व प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., कोशा के स्थूलिभद्र स्वामी से धनलाभ माँगने के प्रसंग अपूर्ण से है व चारित्ररत्न की महत्ता का वर्णन अपूर्ण तक लिखा है.) ११७१६३. मौनएकादशीपर्व स्तवन-१५० कल्याणक, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, पू.वि. मात्र प्रथम पत्र है., दे., (२६४११.५, १४४३८). मौनएकादशीपर्व स्तवन-१५० कल्याणक, उपा. यशोविजय, मा.गु., पद्य, वि. १७३२, आदि: धुरि प्रणमुं जिन; अंति: (-), (पू.वि. ढाल-६ तक है.) For Private and Personal Use Only Page #150 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२६ ११७१७० (+) सरस्वतीमाता छंद व जगदंबा छंद, अपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पृ. ४-३ (१ से ३) १, कुल पे. २, प्र. वि. संशोधित., जैवे. (२६११.५, ११-१४४२५-३३). " १. पे. नाम. सरस्वती छंद, पू. ४अ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir सरस्वतीदेवी छंद, प्रा. मा. गु. सं., पद्य वि. १६७८ आदि (-); अति होऊ सया अम कल्याणं, गाथा ४४, " " 1 (पू.वि. गाथा ३९ से है.) २. पे. नाम जगदंबा छंद, पू. ४आ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. सारंग कवि, मा.गु., पद्य, आदि विजया सांभलि बीनती अति (-). (पू.वि. गाथा १४ अपूर्ण तक है.) ११७१७५ (+) चैत्यवंदन चौवीसी, अपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पू. २, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. प्र. वि. संशोधित, जैदे., (२७४१२, " ११४३६-३९). २४ जिन चैत्यवंदन-कल्याणकतिथि गर्भित, ग. जिनविजय, मा.गु., पद्य, आदि आदिपुरुष एकल्लमल्ल अरिदल; अंति: (-), (पू.बि. गाथा- १४ अपूर्ण तक है.) "" "" १९७१७८. सिद्धदंडिका स्तवन अपूर्ण, वि. २०वी श्रेष्ठ, पृ. १. पू.वि. मात्र प्रथम पत्र है. दे. (२६.५x१२, ११४३३). सिद्धदंडिका स्तवन पंन्या, पद्मविजय, मा.गु, पद्य, वि. १८९१४, आदि: श्रीरसहेशर पय नमी पांमी स; अंति: (-), (पू.वि. ढाल २ की गाथा-६ अपूर्ण तक है.) ११७१८०. भक्तामर स्तोत्र मध्यस्थानि काव्यानि चत्वारि, मंत्र-तंत्र संग्रह व २४ जिन लंछन नाम, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पू. १, कुल पे. ३, जैदे. (२६११.५, १३४२९). " १३५ १. पे नाम. भक्तामर स्तोत्र मध्यस्थानि काव्यानि चत्वारि, पृ. १अ, संपूर्ण, पे. वि. श्लोकानुक्रम ३२ से ३५ दिया है. भक्तामर स्तोत्र - शेषकाव्य, हिस्सा, आ. मानतुंगसूरि, सं., पद्य, आदि गंभीरताररविपुरि, अंति: परिणामगुणैः प्रयोज्याः, श्लोक-४. २. पे नाम, मंत्र-तंत्र संग्रह. पू. १अ १आ, संपूर्ण. मंत्र-तंत्र-यंत्र संग्रह*, प्रा., मा.गु., सं., प+ग, आदि: ॐ ह्रीं अरिहंताणं सिद्धाणं; अंति: सर्वसमीहितदातामहाविद्या. ३. पे. नाम. २४ जिन लंछन नाम, पृ. १आ, संपूर्ण. मा.गु., गद्य, आदि: श्रीआदिश्वरना बलद अति श्रीमहावीरस्वामी सीह. ११७१८१. इलाचीकुमार चौपाई, अपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पृ. ११-१० (१ से १०) = १. पू. वि. मात्र बीच का ही एक पत्र है., जैदे., (२६X१२, १२X२४-३०). इलाचीकुमार चौपाई भावविषये, मु. ज्ञानसागर, मा.गु., पद्य वि. १७१९, आदि (-); अंति: (-), (पू. वि. दाल १४ गाथा-६ अपूर्ण से ढाल १६ गाथा १ अपूर्ण तक है.) - ११७१८२. (4) नारचंद्र ज्योतिष, अपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पृ. १, प्र. वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५.५४१२, ', ११२७). ज्योतिषसार- लघुनारचंद्र ज्योतिष, संक्षेप, मा.गु. सं., पग, आदि: अर्हतं जिनं नत्वा; अंति: (-), (पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. लोक-४ तक है.) " ११०१८३. (+) मौनएकादशी गुणनो, संपूर्ण वि. १९वी मध्यम, पृ. ३, प्र. वि. हुंडी : मनए० गु०, संशोधित, जैदे. (२६x१२, १३X२८). मौनएकादशीपर्व गणणुं, सं., गद्य, आदि: श्रीमहाजस सर्वज्ञाय; अंति: अरण्यनाथनाथाय नमः. ११७१८५. नववाडीशील स्वाध्याय, अपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ३-१ (१)=२, जैये. (२६४१२, १३३४-४०). For Private and Personal Use Only ९ वाड सज्झाय, उपा. उदयरत्न, मा.गु., पद्य, वि. १७६३, आदि: (-); अंति: तेहने जाउ भांमणे, ढाल १०, गाथा-४३, (पू.वि. डाल-४ गाथा ४ अपूर्ण से है.) " ११७१८८. इंद्रियपराजयशतक, अपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पृ. ५. पू. वि. अंत के पत्र नहीं है. प्र. वि. हुंडी इंद्रीस, इंद्रिये सतग, जैदे (२६×११.५, ८४४५-५२). इंद्रियपराजयशतक, प्रा., पद्य, आदि सचिव सूरो सो चेव पडिउ त अति (-) (पू. वि. गाथा ९६ अपूर्ण तक है.) Page #151 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ११७१८९. कल्पसूत्र का अर्थ, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ६-१(१)=५, दे., (२७४१२, ८x२७). कल्पसूत्र-अर्थ *, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. बीच के पत्र हैं., प्रारंभिक भाग अपूर्ण से जीवदया दृष्टांत वर्णन अपूर्ण तक है.) ११७१९० (+) मूलाचार की छाया व आचारसार, अपूर्ण, वि. १५४०, भाद्रपद शुक्ल, ५, सोमवार, मध्यम, पृ. ४४-४२(२ से ४३)=२, कुल पे. २, पठ. मु. विशालकीर्ति (गुरु आ. ज्ञानभूषण, मूलसंघ); गुपि. आ. ज्ञानभूषण (गुरु आ. भुवनकीर्ति, मूलसंघ); आ. भुवनकीर्ति (गुरु आ. सकलकीर्ति भट्टारक, मूलसंघ); लिख. श्राव. रणमल तेजा कालु शाह (पिता श्राव. कालु पहिराज शाह); गुपि. श्राव. कालु पहिराज शाह (पति श्राव. पहिराज शाह); श्राव. पहिराज शाह; अन्य. श्रावि. लाडी पहिराज शाह; श्रावि. कामल कालू शाह, प्र.ले.प. विस्तृत, प्र.वि. रणमल तेजा आदि ने प्रत लिखवाकर ज्ञानभूषणजी को दिया, ऐसा उल्लेख अन्त में मिलता है., पदच्छेद सूचक लकीरें-संधि सूचक चिह्न-टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित., जैदे., (२६.५४१२, १४४४०). १. पे. नाम. मूलाचार की छाया, पृ. १आ, अपूर्ण, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., पे.वि. १अ पर कृतियों की अनुक्रमणिका दी गई मूलाचार-छाया, सं., गद्य, आदि: मूर्दना मूलगुणैः; अंति: (-), (पू.वि. श्लोक-१३ अपूर्ण तक है.) २. पे. नाम, आचारसार, पृ. ४४अ-४४आ, अपूर्ण, पृ.वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं. सं., पद्य, आदिः (-); अंति: कर्म स सिद्धिं लभते लघः, श्लोक-४४, (प.वि. श्लोक-१७ अपूर्ण से है.) ११७१९२. मगापुत्र, अनाथीमुनि व समुद्रपालमुनि सज्झाय, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ७-६(१ से ६)=१, कुल पे. ३, जैदे., (२६.५४१२, १४४४०). १. पे. नाम. मृगापुत्र सज्झाय, पृ. ७अ, अपूर्ण, पू.वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं. उपा. उदयविजय, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: जइ सीस उदयविजय जयकार, गाथा-८, (पू.वि. गाथा-२ अपूर्ण से है.) २. पे. नाम. अनाथीमुनि सज्झाय, पृ. ७अ-७आ, संपूर्ण. उपा. उदयविजय, मा.ग., पद्य, आदि: मगध देस राजग्रही नगरी; अंति: साधुतणा गुण गाय रे, गाथा-१३. ३. पे. नाम. समुद्रपालमुनि सज्झाय, पृ. ७आ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. उपा. उदय वाचक, मा.गु., पद्य, आदि: नगरी चंपामां वसे एतो; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-३ अपूर्ण तक है.) ११७१९९ पार्श्वजिन स्तवन-अंतरीक्षजी, संपूर्ण, वि. १९१७, वैशाख, सोमवार, मध्यम, पृ. २, ले.स्थल. वारणी, दे., (२६.५४१२, १४४३५). पार्श्वजिन छंद-अंतरीक्षजी, मु. लावण्यसमय, मा.गु., पद्य, वि. १५८५, आदि: सरस वचन द्यो सरसति; अंति: लावण्यसमे० पाम सदा, गाथा-५५, (वि. अंतिमवाक्य आंशिकरूप से खंडित है.) ११७२०० मगापुत्र सज्झाय व पार्श्वजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, जैदे., (२६.५४१२, १५४४४). १.पे. नाम. मृगापुत्र सज्झाय, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. मु. सिंहविमल, मा.गु., पद्य, आदि: सुग्रीवनयर सुहामणो; अंति: वीनवेजी होज्यो तास सलाम, गाथा-२६. २. पे. नाम. पार्श्वजिन स्तवन, पृ. १आ, संपूर्ण. ___ मु. प्रधानसागर, मा.गु., पद्य, आदि: प्रभु मारा पारकरदेश; अंति: दिणयर वंछित काज, गाथा-६. ११७२०१ (#) स्तवनचौवीसी, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ६-५(१ से ५)=१, पू.वि. मात्र बीच का ही एक पत्र है., प्र.वि. मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., (२६४१२, १३४३३). स्तवनचौवीसी, पंन्या. जिनविजय, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. धर्मजिन स्तवन अपूर्ण से अरजिन स्तवन अपूर्ण तक है.) ११७२०२. साधारणजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, जैदे., (२६४११.५, ११४३०). साधारणजिन स्तवन, मु. हर्षकीर्ति, रा., पद्य, आदि: जिन जपि जिन जपि; अंति: श्रीजिणधर्म प्रसादोजी, गाथा-१२. ११७२०३.(+) अध्यात्मसार, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २, पृ.वि. प्रारंभ के पत्र हैं., प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-पदच्छेद सूचक लकीरें-अन्वय दर्शक अंक युक्त पाठ., जैदे., (२६४१२, ११४२७). पूणतकह.) For Private and Personal Use Only Page #152 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२६ १३७ अध्यात्मसार, उपा. यशोविजयजी गणि, सं., पद्य, वि. १८वी, आदि: ऐंद्रश्रेणिनतः; अंति: (-), (पू.वि. श्लोक-२५ अपूर्ण तक है.) ११७२०४ (#) होलिका असति कथा, अपूर्ण, वि. १८५६, फाल्गुन शुक्ल, १३, रविवार, श्रेष्ठ, पृ. २-१(१)=१, ले.स्थल. पुष्फावती, प्रले. मु. देवेंद्रसागर (गुरु ग. कल्याणसागर); गुपि.ग. कल्याणसागर; पठ. मु. हेमकपूर, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२७४१२, १४४३२). होलिकापर्व प्रबंध, ग. पुण्यराज, सं., पद्य, वि. १४८५, आदिः (-); अंति: पुण्यराज० वाच्यताम्, श्लोक-३४, (पृ.वि. अंत के पत्र हैं., श्लोक-१९ अपूर्ण से है.) ११७२०५. (#) आलोयणा विधि, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ३, पृ.वि. प्रारंभ के पत्र हैं., प्र.वि. मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., (२७४१२, २२४५३). आलोयणा विधि, मा.गु., गद्य, आदि: णमो अरिहंताणं० पहिली; अंति: (-), (पू.वि. राग-द्वेष वर्णन अपूर्ण तक है.) ११७२०६. (4) कथा संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २-१(१)=१, पृ.वि. मात्र बीच का ही एक पत्र है.,प्र.वि. पत्रांक लिखा न होने के कारण अनुमानित पत्रांक दिया गया है., मूल पाठ का अंश खंडित है, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२७.५४१२, १०४३८). कथा संग्रह**, प्रा.,मा.गु.,सं., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. अश्व कथा के बीच का पाठांश है.) ११७२०७. छंद देशांतरी, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २-१(१)=१, जैदे., (२६.५४११, १८४५१). पार्श्वजिन छंद-गोडीजी, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: राज इम तवियो छंद देशांतरी, गाथा-४७, (पू.वि. अंत के पत्र हैं., गाथा-१९ अपूर्ण से है.) ११७२०८. नवपदजी की स्नात्र विधि, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ८-७(१ से ७)=१, जैदे., (२५.५४१२, ९४३३). नवपद पूजा, उपा. यशोविजयजी गणि, प्रा.,मा.गु.,सं., पद्य, आदिः (-); अंतिः शुचि मनस्तपयामि विशुद्धये, पूजा-९, (पृ.वि. अंत के पत्र हैं., मात्र अंतिम ढाल है.) ११७२०९ (#) चेलणासती चोढाल्यो, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ४, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५.५४१२, ११४३२). चेलणासती चौढालियो, म. रायचंद ऋषि, रा., पद्य, वि. १८३३, आदि: अवसर जे नर अकलेंतो; अंति: रायचंद० हूयज्यो मोय, ढाल-४, गाथा-३७. ११७२१०. पंचमी कथा, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १७-१६(१ से १६)=१, जैदे., (२६४१२, ५४३५). वरदत्तगुणमंजरी कथा-सौभाग्यपंचमीमाहात्म्यविषये, ग. कनककुशल, सं., पद्य, वि. १६५५, आदि: (-); अंति: मेडतानगरे, श्लोक-१५१, (पू.वि. श्लोक-१४८ अपूर्ण से है.) ११७२११ (#) निह्नव सझाय, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, पृ.वि. मात्र प्रथम पत्र है., प्र.वि. मूल पाठ का अंश खंडित है, दे., (२५.५४१२, १२४३७). निह्नव सझाय, रा., पद्य, आदि: ठाणाअंग उवाइ उपगमें; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-१९ तक है., वि. आदिवाक्य खंडित ११७२१२ (+#) श्रावकप्रतिक्रमणसूत्र-तपागच्छीय, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ६-२(४ से ५)=४, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ. मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., (२६४११.५, १९४४६). श्रावकप्रतिक्रमणसूत्र-तपागच्छीय, संबद्ध, प्रा.,सं., प+ग., आदि: (अपठनीय); अंति: जावसंपाविउ० नमो जिणाणं, (पू.वि. बीच का पाठांश नहीं है.) । ११७२१४. (+) जगचिंतामणिसूत्र, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. १, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें., जैदे., (२५.५४११.५, १०४३९). जगचिंतामणिसूत्र, संबद्ध, आ. गौतमस्वामी गणधर, प्रा., प+ग., आदि: इच्छाकारेण संदिसह; अंति: ताइं सव्वाई वंदामी, गाथा-६. ११७२१५. (+) श्रावकप्रतिक्रमणसूत्र-स्थानकवासी सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ३, ले.स्थल. नागौर, प्रले. मु. शंभूराम ऋषि; पठ. मु. सरदारमलजी, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२६.५४१२, ५४४०). For Private and Personal Use Only Page #153 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra १३८ www.kobatirth.org कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची आवश्यक सूत्र- श्रावकप्रतिक्रमणसूत्र संग्रह-स्थानकवासी, संबद्ध, प्रा.मा.गु., प+ग, आदि णमो अरिहंताणं णमो अंति: नमो जिणाणं जीयभयाणं. श्रावकप्रतिक्रमणसूत्र - स्थानकवासी-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि तुम्हे आदेश द्यो अहो; अंतिः जिणा पुरसाने नमस्कार हो. ११७२१६. (+) ज्योतिषसार सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पृ. २, पू. वि. प्रारंभ के पत्र हैं. प्र. वि. संशोधित. मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., (२५. ५X१२, ५x२९-३२). ज्योतिषसार, आ. नरचंद्रसूरि, सं., पद्य, आदि: अर्हतजिनं नत्वा, अंति: (-), (पू.वि. श्लोक- ९ अपूर्ण तक है. ) ज्योतिषसार-वार्थ मा.गु., गद्य, आदि: श्री अरिहंतदेव वीतराग; अति: (-). ११०२१७. (+) बोल संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १२५-१२३(१ से १२०,१२२ से १२४) = २, प्र. वि. हुंडी : बोलना ०., संशोधित.. " जैदे., ( २६x१२, १९६०). Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir बोल संग्रह, प्रा., मा.गु. सं., गद्य, आदि: पेले बोले छ कारणे साधुने अंति (-), (पू.वि. बीच व अंत के पत्र नहीं हैं.. बोल- ११ से ४८ व ४९ से बोल ६६ के क्रम १८ तक है.) " ११७२१८. (१) २४ दंडक यंत्र, अपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पू. ३-१ ( १ ) = २, पू.वि. बीच के पत्र हैं. प्र. वि. पत्रांक अनुमानित मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., (२५.५X१२, २७४३८-४८). יי २४ दंडक यंत्र, मा.गु., को. आदि (-); अंति: (-). ११७२१९. देवसिराईप्रतिक्रमणसूत्र तपागच्छीय-पुक्खरवरदीवड्डे आदि सूत्र, अपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १, पू.वि. मात्र प्रथम पत्र है., जैदे., (२६X१२, १२x२६ ). देवसिराई प्रतिक्रमणसूत्र- तपागच्छीय, संबद्ध, प्रा., मा.गु. सं., प+ग, आदि (-); अंति (-), (प्रति अपूर्ण, पू.वि. संसार दावानल स्तुति गाथा-४ अपूर्ण तक है.) , ११०२२१. महावीरजिन स्तवन- २७ भवविचारगर्भित, अपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पृ. १, पू. वि. मात्र प्रथम पत्र है, जैवे., (२४४१२.५, ११४२५). महावीरजिन स्तवन- २७ भवविचारगर्भित, मु. हंसराज, मा.गु, पद्य, वि. १७वी, आदि सरसति भगवति द्यो मत चंगी; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-१२ अपूर्ण तक है.) ११०२२२. साधुश्रावकप्रतिक्रमणसूत्र, अपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १२-११ (१ से ११) १. पू. वि. मात्र बीच का ही एक पत्र है., जैये.. (२७X१२, ९X३१). साधु श्रावकप्रतिक्रमणसूत्र तपागच्छीय, संबद्ध, प्रा., मा.गु. सं., पग, आदि (-); अंति (-), (पू.वि. बंदिनुसूत्र की गाथा- ३५ अपूर्ण से ज्ञानादिगुण स्तुति अपूर्ण तक हैं.) ११७२२३. आत्मप्रबोध, अपूर्ण, वि. १८६४, आषाढ़ कृष्ण, ४, मध्यम, पृ. १६९-१६८ (१ से १६८) = १ ले. स्थल. महाजनटोली, जैदे., (२७.५x१२, १०X३६ ). आत्मप्रबोध, आ. जिनलाभसूरि, सं., प+ग. वि. १८३३, आदि (-); अंति सद्बोधभक्तिभृता, प्रकाश-४, श्लोक-१८१, (पू.वि. मात्र अंतिम पाठांश है.) ११७२२४. व्यवहारसूत्र, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ३, प्र. वि. हुंडी : व्यवहारसू०., जैदे., (२७X१२, ६३९-४४). व्यवहारसूत्र, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा. गद्य, आदि जे भिक्खू मासिय; अति (-) (अपूर्ण, पू. वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण. उद्देश १ सूत्र - १४ अपूर्ण तक लिखा है.) ११०२२६. (१) सिझणद्वार, संपूर्ण वि. १९१९, ज्येष्ठ कृष्ण, ११, मध्यम, पू. ३, प्र. मु. केशवजी महाराज पठ श्राव जीतमलजी सा. हेमी बाई, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. मूल पाठ का अंश खंडित है, दे. (२६.५x१२.५, १५X३६). बोल संग्रह - विविधगत्यागतादि जीव एकसमयसिद्धसंख्या विचार, मा.गु., गद्य, आदि पेली नारकीरा निकल्या थका अंति: (अपठनीय). ११७२२७. संतिकरं स्तवन व अष्टमीतिथि स्तुति, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, जैदे., ( २६११.५, १३x२९). १. पे. नाम संतिकरं स्तवन, पृ. १अ १आ, संपूर्ण For Private and Personal Use Only Page #154 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२६ www.kobatirth.org संतिकरं स्तोत्र, आ. मुनिसुंदरसूरि प्रा. पद्य वि. १५वी, आदि संतिकरं संतिजिण अति: स लहइ सुह संपयं परमं " गाथा - १३. २. पे. नाम. अष्टमीतिथि स्तुति, पृ. १आ, संपूर्ण. अष्टमीतिथिपर्व स्तुति, आ. जिनसुखसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: चोवीसे जिनवर प्रणमुं; अंति: कहे इम जीवत जन्म Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir प्रमाण, गाथा ४. ११७२२९ स्थानांगसूत्र, अपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ६-५ (१ से ५) १. पू. वि. मात्र बीच का ही एक पत्र है., जैये. (२६४१२.५, ६X३५). स्थानांगसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., प+ग, आदि (-); अंति: (-), (पू.वि. स्थान- १ अपूर्ण से स्थान २ अपूर्ण तक है.) ११७२३०. अष्टमी जिनकल्याणक स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पू. १, जैदे. (२६.५x१२, १०३७). 1 अष्टमीतिथिपर्व स्तवन, मु. दीपकविजय, मा.गु., पद्य, आदि: वंदो रे भविका जिनराज अंतिः ए आराधी शिववास रे, १. पे. नाम. आयुपरीक्षा-श्लोक १, पृ. १अ, संपूर्ण. आयुष्यलक्षण श्लोक, सं., पद्य, आदि: लक्षं लक्षण लक्षते न पयसा; अंति: (-), प्रतिपूर्ण. २. पे. नाम भूत चिकित्सा, पू. १आ, संपूर्ण गाथा - १७. ११७२३२. सिद्धचक्र महापूजन विधि, अपूर्ण, वि. २०वी श्रेष्ठ, पृ. ६-५ (१ से ५) १. पू.वि. मात्र बीच का ही एक पत्र है.. प्र. वि. हुंडी: सिद्ध. मं. पू. दे. (२७४१२, १३४३८). सिद्धचक्र महापूजन विधि सहित, प्रा. मा. गु. सं., प+ग, आदि (-) अति (-) (पू.वि. सिद्धचक्रमूल पूजा विधि अपूर्ण परमेष्ठ पूजा विधि अपूर्ण तक है.) ११७२३३. (+) नवतत्त्व प्रकरण, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ३, प्र. वि. संशोधित., जैदे., (२७.५X१२, १२X४०). नवतत्त्व प्रकरण, आ. मणिरत्नसूरि, प्रा. पद्य, आदि जीवाजीवापुन्नं पावा; अंति: लिहिओ मणिरयणसूरिहि गाथा -४५. ११७२३४. (+४) आयुपरीक्षा- श्लोक १ व भूत चिकित्सा, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पू. १, कुल पे. २. प्र. वि. पदच्छेद लकीरें. अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, जैदे., ( २६.५X१२.५, ५X३३). सूचक १३९ औषधमंत्रादि संग्रह, प्रा.,मा.गु.,सं., गद्य, आदि: सिद्धार्थ त्रिफला शरीखकट; अंति: वेरज्वारघ्नः परः. ११७२३८, (+) ग्रह विलास, अपूर्ण, वि. १९बी, मध्यम, पृ. २४-२१ (१ से २१ ) - ३, प्र. वि. हुंडी ग्रहविलासे, टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., ( २६१२, १४४४७-५२). , ग्रह विलास, ग. कनकविजय गणि, मा.गु., सं., गद्य, आदि: प्रथम चंद्राक्री ग्रंथमते; अंति: युक्त एतले अगस्तोदय थाय, संपूर्ण. ११७२४४. दोषाकेवली, अपूर्ण, वि. १९०४, पीष, मध्यम, पृ. ३-१ (१) २, जैवे. (२६४१२, १६४३०-४१). " For Private and Personal Use Only दोषाकेवली, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: शुभ अशुभ फल विचारी जे, (पू.वि. "क्षेत्रपालनो दोष छे" पाठांश से है.) ११७२४५. (४) छिनालपच्चीसी, संपूर्ण, वि. १९७१, २ आषाढ शुक्ल, २. गुरुवार, मध्यम, पृ. १ ले स्थल, सीरी, प्रले. लक्ष्मीनारायण पठ सेण भाई, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे. (२५.५x१२, १२X४८). 7 " छिनालपच्चीसी, मा.गु., पद्य, आदि: पाछो जोवे पेडे चलती; अंति: ओर छिनाल क्या ढोल बजावे, गाथा-२५. १९७२४९. सामुद्रिकशास्त्र, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १. पू.वि. मात्र प्रथम पत्र है. जै.. (२६.५x१२, १७५९). ', सामुद्रिकशास्त्र, सं., पद्य, आदि आदिदेवं नमस्कृत्य सर्वज्ञ, अंति: (-), (पू.वि. श्लोक-२४ अपूर्ण तक है.) ११७२५०. (+) मंत्र संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. २, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२५X१२, १३X२७-४३). मंत्र संग्रह*, मा.गु.,सं., गद्य, आदि: ॐ ह्रीं गुलपाणी योगणि काम; अंति: छे जस्य तस्य न दीयते .. ११७२५२. जनकेवली शुकनावली, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. २, ले. स्थल, राधनपुर, प्रले. मु. विवेकविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. हुंडी : शुकनावलीपत्र, जनकेवली शुकनावली., जैदे., (२५.५X१२.५, १६३५). जनकेवली शुकनावली, मा.गु., गद्य, आदिः ॐ ह्रीं अहाँ सर्वज्ञाय अंति लगे पछे रुडु होवे सही. Page #155 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir १४० कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ११७२५४. (+) औपदेशिक सवैया, नवकारमहिमा पद व औपदेशिक कवित्तादि संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. ३, ले.स्थल. वालीनगर, प्रले. मु. पद्माब्धि (गुरु मु. पुण्यसागर), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित-टिप्पण युक्त विशेष पाठ., दे., (२५.५४१२.५, २२४६६). १. पे. नाम, औपदेशिक सवैया, पृ. १अ, संपूर्ण. मु. केसवदास, पुहिं., पद्य, आदि: ध्रम ही कुं भ्रम उपनो; अंति: केशवदाश तो साच कह्यो हे, सवैया-१. २. पे. नाम. नवकारमहिमा इकतीसा, पृ. १आ, संपूर्ण. औपदेशिक पद-नवकारमहिमा, मु. जिनहर्ष, पुहि., पद्य, आदि: सुख को करणहार दुख को; अंति: जिनहर्ष० नित एसो नवकारजूं, गाथा-४. ३. पे. नाम. प्रास्ताविक कवित्त दोहादि संग्रह, पृ. १आ, संपूर्ण, पे.वि. वस्तुतः यह कृति प्रथम व द्वितीय पेटांक के बीच-बीच में लिखी है. प्रास्ताविक दोहा संग्रह, पुहिं.,मा.गु., पद्य, आदि: हंसरू काक रहे तरु उपर; अंति: यार को भरोसो न कीजीये, दोहा-१०. ११७२५७. माणिभद्रवीर छंद, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, जैदे., (२६.५४१२, १६-१९४४९-५४). माणिभद्रवीर छंद, म.शांतिसोम, मा.गु., पद्य, आदि: सरस्वती स्वामनी पाय; अंति: आपो मुज सुख संपदा, गाथा-३९. ११७२५९ (+#) जातकदीपिकाविधान पद्धति सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १८४२, पौष कृष्ण, ३, मध्यम, पृ. ९, ले.स्थल. जालोरनगर, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६.५४१२.५, ९४३१-३५). जातकपद्धति, मु. हर्षविजय, सं., पद्य, वि. १७६५, आदि: प्रणम्य भास्करं देवं; अंति: एषा जातकदीपिका, श्लोक-९३, संपूर्ण. जातकपद्धति-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: प्रणाम करी सूर्यदेव प्रतइ; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., श्लोक-४५ तक टबार्थ लिखा है.) ११७२६१. नवग्रहजपदान विधि, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, ले.स्थल. लखनउ, प्रले. मु. गुणचंद्र ऋषि (गुरु मु. गोकलचंद ऋषि, विजयगच्छ); गुपि. मु. गोकलचंद ऋषि (विजयगच्छ), प्र.ले.पु. सामान्य, दे., (२६४१२, १५४३६). नवग्रहजपदान विधि, मा.गु.,सं., गद्य, आदिः ॐ ह्रीं पद्मप्रभु जिनशासन; अंति: फल नैवैद्य फल दीवो कीजे. ११७२६२. दयासूरिगुरुगुण गीत व अइमुत्तामुनि सज्झाय, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, जैदे., (२७४१२, १२४३२-३९). १. पे. नाम. दयासूरिगुरुगुण गीत, पृ. १अ, संपूर्ण. मु.रामविजय, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीतपगच्छगुरु राया; अंति: तेहने रामविजे नित वंदेरे, गाथा-७. २. पे. नाम. अइमुत्तामुनि सज्झाय, पृ. १अ-१आ, अपूर्ण, पू.वि. प्रारंभ के पत्र हैं. आ. लक्ष्मीरत्नसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: वीरजिणंद वांदीने; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-१२ अपूर्ण तक है.) ११७२६६. विचारसार का बालावबोध, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ४-२(१ से २)=२, प्र.वि. हुंडी:विचारसार., जैदे., (२६.५४१२, २५४७३-७८). बृहत्संग्रहणी-बालावबोध *, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: वैमानिकना देवता घणा, (पू.वि. अंत के पत्र हैं., नारकी दंडक वर्णन अपूर्ण से है.) ११७२६९ (+) जैन व्याकरण, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, पू.वि. मात्र प्रथम पत्र है., प्र.वि. हुंडी:संधिपत्र., संशोधित., जैदे., (२५.५४१२, १७X४८-५२). जैन व्याकरण, सं., पद्य, आदि: अवस अग्रे मंडली; अंति: (-), (पू.वि. संधिप्रकरणगत "महत् इति हलादे" पाठ अपूर्ण तक ११७२७१. नववाड सज्झाय, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, दे., (२५.५४११, १३४३०). नववाड सज्झाय, मु. चौथमल ऋषि, रा., पद्य, वि. १८९५, आदि: सोलमो अधेन उतराधेनरो तिण; अंति: चोथमल० वाड सहित व्रतपालजो. For Private and Personal Use Only Page #156 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२६ १४१ ११७२७५. नेमराजिमती सज्झाय, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २-१(१)=१, पृ.वि. मात्र बीच का ही एक पत्र है., जैदे., (२६४११.५, १३४३२). नेमराजिमती सज्झाय, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. गाथा-२५ अपूर्ण से गाथा-४७ अपूर्ण तक है.) ११७२७६. वरुणाधिपति छंद, संपूर्ण, वि. १७७८, फाल्गुन शुक्ल, ३, बुधवार, श्रेष्ठ, पृ. २, ले.स्थल. अमदावाद, प्रले. मु. शांतिरत्न (परंपरा मु. हरिचंदजी); गुपि. मु. हरिचंदजी, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. हुंडी:बीजविधिश्री., प्रतिलेखन पुष्पिका मिटाई हुई है., जैदे., (२६४१२,१५४५६). आदिजिन स्तुति, मु. खेम, उ., पद्य, आदि: साहिब तु सच्चा धणी तू बहु; अंति: कहि तेरे नाम सलाम वसि, ढाल-३, ___ गाथा-४२. ११७२७८. (+) राधिकानी पनरतिथि, गोरमानी गरबी व विजयलक्ष्मीसूरि बारमासा, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २-१(१)=१, कुल पे. ३, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित., जैदे., (२६.५४१२, १७४४३). १. पे. नाम. राधिकानी पनरतिथि, पृ. २अ, अपूर्ण, पू.वि. प्रथम पत्र नहीं है. राधाकृष्ण गीत-१५ तिथिगर्भित, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: माहे रे राधा हरि रमे, गाथा-१५, (पू.वि. गाथा-१४ अपूर्ण से है.) २.पे. नाम. गोरमानी गरबी, पृ. २अ-२आ, संपूर्ण. आध्यात्मिक सज्झाय-काया, मा.गु., पद्य, आदि: गोरमा गणपत लागु पाय के; अंति: कांत के त्रिभुवन धणी रे. ३. पे. नाम. विजयलक्ष्मीसूरि बारमासा, पृ. २आ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. मा.गु., पद्य, आदि: हु तो सरसतिने पाये; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-१० अपूर्ण तक है.) ११७२७९ (+) आध्यात्मिक हरियाली सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., दे., (२७X१२, ४४३०). आध्यात्मिक हरियाली, श्राव. देपाल भोजक, मा.ग., पद्य, वि. १६वी, आदि: वरसे कांबल भींजे पाणी; अंति: मुरख कवि देपाल वखाणे, गाथा-६.. आध्यात्मिक हरियाली-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: कांबलि कहेता इंद्रीवरसे; अंति: इम वखाणे मुख एहनो. ११७२८१ (#) पार्श्वजिन स्तवन, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २-१(१)=१, ले.स्थल. पालनपुर, प्रले. मु. मोतीविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., (२६४१२, ६४२८). पार्श्वजिन स्तवन, उपा. उदय वाचक, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: पहोचे ते भवनो पार, गाथा-५, (पू.वि. अंत के पत्र हैं., गाथा-२ अपूर्ण से है.) ११७२८३. (#) वंदावन काव्य सह टीका, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ८-५(१ से ४,६)=३, प्रले. मु. गुणसागर ऋषि, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., (२६४१२, २४४४१-४६). वृंदावन काव्य, सं., पद्य, आदि: (-); अंति: दशनैः सह लीलाजानाम्, श्लोक-५२, (पू.वि. प्रारंभ व बीच-बीच के पत्र नहीं हैं., श्लोक-२८ से ३५ व ४४ से है.) वृंदावन काव्य-टीका, मु. राम ऋषि, सं., गद्य, आदि: (-); अंति: (१)क्रिययोः सर्वत्राप्यमरः, (२)यथामति कवेगिरां, पू.वि. प्रारंभ व बीच के पत्र नहीं हैं. ११७२८९ मृगापुत्र सज्झाय, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २, पृ.वि. प्रारंभ के पत्र हैं., जैदे., (२६.५४१२.५, १९४३४). मृगापुत्र सज्झाय, मा.गु., पद्य, आदि: प्रणमी पास जिणंदने; अंति: (-), (पू.वि. ढाल-२ गाथा-१९ अपूर्ण तक है.) ११७२९०. शांतिजिन स्तवन, वणजारा सज्झाय व सीमंधरजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ३, जैदे., (२६४११.५, १८-२२४४७-५२). १. पे. नाम. शांतिजिन स्तवन, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. मा.गु., पद्य, आदि: श्रीसंतजिनेसर नमता नवनिध; अंति: ज्याय विराज्या मोखो, गाथा-२५. २. पे. नाम. बणजारा सज्झाय, पृ. १आ, संपूर्ण. For Private and Personal Use Only Page #157 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir १४२ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची वणजारा सज्झाय, उपा. समयसंदर गणि, मा.गु., पद्य, आदि: वीणजारा रे दीठी छे च्यारु; अंति: समयसंदर सिवरमणी वेगी वरो, गाथा-१०, (वि. गाथाक्रम भिन्न है व पाठ भेद प्रतीत होता है.) ३. पे. नाम. सीमंधरजिन स्तवन, पृ. १आ, संपूर्ण. म. जेमल ऋषि, मा.ग., पद्य, आदि: सीमंधर साहब दिल वस्या; अंति: परसादसु तान जोडो उलातो जी, गाथा-१४. ११७२९२. (+) २९ भावना छंद, वैराग्य सज्झाय व नवकारवाली सज्झाय, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ३-१(१)=२, कुल पे. ३, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२७४१२.५, १३४४५). १. पे. नाम, २९ भावना छंद, पृ. २अ, अपूर्ण, पृ.वि. अंत के पत्र हैं. २९ भावना छंद-वैराग्यप्रेरक, मा.गु., पद्य, आदिः (-); अंति: समरिसिइ ते तरसि संसार, गाथा-३१, (पू.वि. मात्र अंतिम गाथा है.) २. पे. नाम. वैराग्य सज्झाय, पृ. २अ-३अ, संपूर्ण. पद्मावती आराधना, उपा. समयसंदर गणि, मा.गु., पद्य, वि. १७वी, आदि: हिवी राणी पद्मावती जीव; अंति: समयसुंदर० छुतइ तत्काल, ढाल-३, गाथा-३३. ३. पे. नाम. नवकारवाली सज्झाय, पृ. ३आ, संपूर्ण, पे.वि. अंत में एक व्यवहारिक दृष्टांत दिया है. नमस्कार महामंत्र सज्झाय, मु. लब्धिविजय, मा.गु., पद्य, आदि: बार जपुं अरिहंतना; अंति: भणजो रे नित नित नवकार, गाथा-९. ११७२९३. कालिकाचार्य कथा, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ४, पृ.वि. प्रारंभ के पत्र हैं.,प्र.वि. हंडी:कालिकाचार्यनी कथा., जैदे., (२६.५४१२, १३४४२). कालिकाचार्य कथा, मा.ग., गद्य, आदि: कालिकाचार्य तिन हुवा तिण; अंति: (-), (पू.वि. कालिकाचार्य चातुर्मास प्रवेश वर्णन अपूर्ण तक है.) ११७२९४. नेमनाथजी स्तवन व महावीरजिन स्तवन, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ.७-६(१ से ६)=१, कुल पे. २, जैदे., (२६४१२, १६x४५). १.पे. नाम. नेमनाथजी स्तवन, पृ. ७अ, अपूर्ण, पू.वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं., प्रले. मु. खुस्यालचंद, प्र.ले.पु. सामान्य. नेमराजिमती स्तवन, मु. मोहनविजय, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: मोहन पंडित रूपनो, गाथा-७, (पू.वि. गाथा-३ अपूर्ण से है.) २. पे. नाम, महावीरजिन स्तवन, पृ. ७अ, संपूर्ण. श्रीपति, मा.गु., पद्य, आदि: मुख मटके अटके मारूं; अंति: श्रीपतिनें दीपकें, गाथा-७. ११७२९५. महावीरजिन होरी, पार्श्वजिन स्तवन व महावीर स्तुति आदि संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. ५, प्र.वि. पत्रांक लिखा न होने के कारण अनुमानित पत्रांक दिया गया है., जैदे., (२७४१२, १६x४४). १. पे. नाम. महावीरजिन होरी, पृ. १अ, संपूर्ण. मु. विबुधविमल, पुहिं., पद्य, आदि: सरधा रुचि के साथ जिने; अंति: वीर पसाये करता गुण अभ्यास, गाथा-५. २.पे. नाम. पार्श्वजिन स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण. पार्श्वजिन होरी, मु. भूपविजय, मा.गु., पद्य, आदि: हां रे अति नीकि सुंदर; अंति: भूपविजे० भवजल आप तरो री, गाथा-६. ३. पे. नाम. महावीर स्तुति, पृ. १अ, संपूर्ण, वि. १८५५, माघ शुक्ल, १०, ले.स्थल. नौतनपुर. महावीरजिन पद-होरी, मु. रूप, पुहिं., पद्य, आदि: होरी मची जिनद्वार; अंति: रूप लहें ते सुखकार, गाथा-५. ४. पे. नाम, इंद्रभुति गणधर भास, पृ. १आ, संपूर्ण. ११ गणधर भास, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., पद्य, आदि: पहिलो गणधर वीरनो वर; अंति: होज्यो धर्मस्नेही रे, गाथा-७, (वि. गाथाक्रम भिन्न है.) ५. पे. नाम. अग्निभूति गणधर सज्झाय, पृ. १आ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. For Private and Personal Use Only Page #158 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir . हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२६ १४३ अग्निभूतिगणधर सज्झाय, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., पद्य, आदि: गोबर गाम समृद्ध अग्निभूति; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-६ अपूर्ण तक है.) ११७२९६. (+) कल्लाणकंद स्तुति, बीजतिथि स्तुति व नेमिजिन स्तुत्यादि संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ३, कुल पे. ८, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२६४१२.५, १६x२३-३३). १. पे. नाम. कल्लाणकंद स्तुति, पृ. १आ, संपूर्ण. संबद्ध, प्रा., पद्य, आदि: कल्याणकंदं पढमं जीणंदं; अंति: सुहाय सिआ अंब सीआ पसथा, गाथा-४. २. पे. नाम. बीजतिथि स्तुति, पृ. १आ-२अ, संपूर्ण. मु. लब्धिविजय, मा.गु., पद्य, आदि: दिन सकल मनोहर बीज; अंति: कहे पूर मनोरथ माय, गाथा-४. ३. पे. नाम, नेमिजिन स्तुति, पृ. २अ, संपूर्ण. क. ऋषभदास संघवी, मा.गु., पद्य, वि. १७वी, आदि: श्रावण सुदि दिन; अंति: ए सफल करो अवतार तो, गाथा-४. ४. पे. नाम. अष्टमीतिथिपर्व स्तति, पृ. २अ-२आ, संपूर्ण... आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: मंगल आठ करी जस आगल; अंति: धीर०सीस० कल्याण जी, गाथा-४. ५. पे. नाम. पौषदशमीपर्व स्तुति, पृ. २आ-३अ, संपूर्ण. मु. राजविजय, मा.गु., पद्य, आदि: पोस दसम दिन पार्श्व; अंति: दीजे बहु सुख भालीजी, गाथा-४. ६. पे. नाम. मौनएकादशीपर्व स्तुति, पृ. ३अ-३आ, संपूर्ण. मु. गुणहर्ष-शिष्य, मा.गु., पद्य, आदि: एकादशी अती रुअड गोव्यंद; अंति: गुणहर्ष० तणा निशदिश, गाथा-४. ७. पे. नाम. संसारदावानल स्तुति, पृ. ३आ, संपूर्ण. संबद्ध, आ. हरिभद्रसूरि, प्रा.,सं., पद्य, आदि: संसार दावानल दाहनीरं; अंति: देहि मे देवि सारम, श्लोक-४. ८. पे. नाम. शत्रुजयतीर्थ स्तुति, पृ. ३आ, अपूर्ण, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. श्राव. ऋषभदास, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीसेāजो तीरथसार; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-१ अपूर्ण तक है.) ११७२९७. गाथा संग्रह व विचार संग्रह-विविधविषयक, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. २२-१७(१ से १७)=५, कुल पे. २, दे., (२६.५४१२.५, २३४६४). १.पे. नाम. सम्यक्त्वफलादि विविध विषयक गाथा संग्रह, पृ. १८अ-१९आ, संपूर्ण. गाथा संग्रह *, प्रा., पद्य, आदि: फासे रसेय गंधे नव; अंति: नायव्वा बुद्धिमंतेहि, (वि. विविध विषयक गाथा व विचार संग्रह.) २.पे. नाम. विविध विचार संग्रह, पृ. २०अ-२२आ, संपूर्ण. विचार संग्रह-विविधविषयक, मा.गु., गद्य, आदि: धर्म१ अस्तिर काय३ द्रव्य४; अंति: हेतुमा ए व आवे ते मिटे. ११७२९८. प्रत्याख्यानसूत्र व श्रावककरणी सज्झाय, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ३-२(१ से २)=१, कुल पे. २, जैदे., (२६.५४१२, १३४३१). १. पे. नाम. प्रत्याख्यानसूत्र, पृ. ३अ, अपूर्ण, पृ.वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं. संबद्ध, प्रा., गद्य, आदिः (-); अंति: आगार० जइणा ए जाणिवा, (पू.वि. तिविहारपच्चक्खाणसूत्र अपूर्ण से है.) २. पे. नाम. श्रावककरणी सज्झाय, पृ. ३अ-३आ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. मु. जिनहर्ष, मा.गु., पद्य, आदि: श्रावक तुं उठे परभात; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-१४ अपूर्ण तक है.) ११७२९९ (+) आत्मनिंदा भावना व सवैया संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ४, कुल पे. २, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें., दे., (२६४१२, १६४२९). १.पे. नाम, आत्मनिंदा भावना, पृ. १अ-४अ, संपूर्ण. म. ज्ञानसार, रा., गद्य, आदि: हे आत्मा हे चेतन ऐ; अंति: सो नर सुगुण प्रवीन. २. पे. नाम. सवैया संग्रह, पृ. ४अ, संपूर्ण. For Private and Personal Use Only Page #159 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org १४४ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची सवैया संग्रह- जैनधार्मिक, मु. भिन्न भिन्न कर्तृक, . भिन्न भिन्न कर्तृक, पुहिं., मा.गु., पद्म, आदि: गुन कोन बुझ कोठ एक रंग अति संघ की रक्षा करे, सवैया- १. ११७३०० (+) प्रश्नोत्तररत्नमाला, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, प्र. वि. पदच्छेद सूचक लकीरें-संशोधित टिप्पण युक्त विशेष पाठ., दे., (२६.५x१२, १६४३२). Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir प्रश्नोत्तररत्नमाला, आ. विमलसूरि, सं., पद्य, आदि: प्रणिपत्य जिनवरेंद्र; अंति: कंठगता किं न भूषयति, श्लोक-२९. ११७३०३ (क) रामविनोद वैद्यक, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १. पू. वि. मात्र प्रथम पत्र है. प्र. वि. पत्र १आ पर व्यक्तिगत लेन-देन का विवरण लिखा हुआ है. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., ( २६.५x१२, १२X४०). रामविनोद, पं. रामचंद्र गणि, मा.गु., पद्य, वि. १७२०, आदि सिद्धबुद्धिदायक सलहीये, अंति: (-), (पू.वि. गाथा - १२ अपूर्ण तक है.) ११०३०४. प्रतिक्रमण विधि, अपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पृ. ३-२ (१ से २ ) =१, जैवे. (२५.५४१२.५, १५४३८). प्रतिक्रमणविधि संग्रह -तपागच्छीय, संबद्ध, प्रा., मा.गु., गद्य, आदि (-); अति कही मुंहपति पडिले है, (पू.वि. पाक्षिकतप विधि अपूर्ण से है.) "" ११०३०५ (+) पाशाकेवली, अपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पृ. २- १(१ ) = १, पू. वि. प्रथम एक व अंत के पत्र नहीं हैं. प्र. वि. संशोधित., जैवे. (२६१२.५, १५४३५). " पाशाकेवली, मु. गर्ग ऋषि, सं., पद्य, आदि (-); अति: (-) (पू.वि. श्लोक-३२ अपूर्ण से ६२ अपूर्ण तक है.) ११७३०६. (+) जैन रामायण, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ६८-६५ (१ से ६५ ) - ३, प्र. वि. संशोधित. वे. (२६४१२, १४४३२-३६). जैन रामायण, सं., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. बीच के पत्र हैं., श्लोक ५२५ अपूर्ण से ६०२ अपूर्ण तक है. लक्ष्मण रावण में युद्ध प्रसंग से विशाला विवाह प्रसंग तक है.) ११७३०७ जैनतर्क भाषा, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, पू.वि. मात्र प्रथम पत्र है. वे. (२७४१२५, ९४२३-२९)जैन तर्कभाषा, उपा. यशोविजयजी गणि, सं., गद्य, वि. १८वी, आदि: ऐंद्रवृंदनतं नत्वा; अंति: (-), (पू.वि. पाठ-"तदपेशलंउपयोगात्मकरणे" तक है.) ११७३०९ (+) ४ निकायदेव वर्णन यंत्र, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. २, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. प्र. वि. संशोधित. दे.. (२६x१३, ११x२७-३०). " ४ निकायदेव वर्णन यंत्र, मा.गु., वं. आदि (-) अंति (-), (पू.वि. तमप्रभावर्णन अपूर्ण तक है.) ११७३११. (+४) अनागत व बीस विहरमान नामावली तथा आदिजिन स्तवन, अपूर्ण, वि. १९वी जीर्ण, पृ. १, कुल पे. ३, प्र. वि. संशोधित. मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे. (२७४१२, १३४३२). , १. पे नाम. अनागत चीवीशी, पृ. १अ, संपूर्ण. अनागत चौवीसी नाम, मा.गु., प+ग., आदि: पद्मनाभ सूरदेव सुपास; अंति: अनंतवीर्य भद्रकृतनाथ, (वि. अंतिमवाक्य आंशिकरुप से खंडित है.) २. पे नाम. वीसविहरमान नामावली, पृ. १आ, संपूर्ण. २० विहरमानजिन नाम, मा.गु., गद्य, आदि (अपठनीय) अंति: देवजसा अमितवीर्य, (वि. आदिवाक्य खंडित है.) ३. पे नाम. आदिजिन स्तवन, पृ. १आ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. ऋषभदेव स्तवन, मु. सिद्धिविजय, मा.गु., पद्य, आदि: मारुं डुंगरिये मन; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-६ अपूर्ण तक है.) ११०३१२. कृष्णरुक्मिणी रास, अपूर्ण, वि. १८वी, जीर्ण, पृ. ३३-३० (१ से २९,३१) ३. पू. वि. बीच-बीच के पत्र हैं. प्र. वि. पत्रांक लिखा न होने के कारण अनुमानित पत्रांक दिया गया है, हुंडी खंडित है. जैदे. (२६५१२.५, ११४४७). , . "" कृष्णरुक्मिणी रास, रा., पद्य, आदि (-); अंति (-), (पू. वि. जांबवती स्वप्न प्रसंग से पूर्व की ढाल की गाथा २ अपूर्ण से भोजन प्रसंग ढाल की गाथा १८ अपूर्ण तक है व बीच के पाठांश नहीं हैं.) ११०३१३. आगमिक बोल संग्रह, अपूर्ण, वि. २०वी मध्यम, पृ. १, ये. (२६४१२.५, २२x४५). बोल संग्रह-आगमगत विविध प्रश्नोत्तरादि, प्रा., मा.गु. सं., पग, आदि ते थकी० सम६३ सिद्ध हुआ; अति: (-). (पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., पाठ - "ते थकी० सम ६३ सिद्ध हुआ" तक लिखा है.) יי For Private and Personal Use Only Page #160 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२६ १४५ ११७३१४. (4) पनरे तिथिरी थुई, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ४, ले.स्थल. मेदनीपुर, प्रले. मु. लक्ष्मीविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२७४१२.५, १३४४०). १५तिथि स्तुति संग्रह, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: एक मिथ्यात असंयम अविरति; अंति: लील करो नित नित्य, स्तुति-१६, गाथा-६४. ११७३१५. (-) औपदेशिक सज्झाय, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, पृ.वि. मात्र प्रथम पत्र है.,प्र.वि. अशुद्ध पाठ., दे., (२६४१२.५, १४४३२). औपदेशिक सज्झाय-साधुसाध्वी, रा., पद्य, आदि: चतुर हुवौ जे नरनारो साध; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-२५ अपूर्ण तक ११७३१६. चौवीस मंडल, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, प्र.वि. हुंडी;२४ मंडल., दे., (२६.५४१२, १०४३९). २४ मांडला, प्रा.,मा.गु., गद्य, आदि: आगाडे आसन्ने उच्चारे; अंति: चारे पासवणे अणहियासे. ११७३१७. समवसरण अधीकार, २५ मिथ्यात्वभेद विचार सह टबार्थ व २५ क्रिया गाथा सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ३-२(१ से २)=१, कुल पे. ३, दे., (२६.५४१२.५, १७४५५). १.पे. नाम. समोसरणनो अधीकार, पृ. ३अ, अपूर्ण, पू.वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं., वि. १९०१, भाद्रपद शुक्ल, १०, प्रले. मु. सदासुख ऋषि (गुरु मु. नंदराम ऋषि); गुपि. मु. नंदराम ऋषि (गुरु मु. अनूपचंद ऋषि); मु. अनूपचंद ऋषि, प्र.ले.पु. सामान्य. भगवतीसूत्र-शतक ३० समवसरण विचार, संबद्ध, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: अजोगी बाकी बोल ४४ पाव ए ४, (पू.वि. उद्देशक-३ विवरण अपूर्ण से है.) २.पे. नाम. २५ मिथ्यात्वभेद विचार सह टबार्थ, पृ. ३आ, संपूर्ण. २५ मिथ्यात्वभेद विचार, प्रा., गद्य, आदि: अधमेधमे सहणा१ धमेअधमे सहण; अंति: अवीणय २४ असातणा मिथ्यात२५, संपूर्ण. २५ मिथ्यात्वभेद विचार-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: आसातना करइ० मीथ्यात जाणवा, (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., अपरगही मिथ्यात्व-११ से लिखा है) ३. पे. नाम. २५ क्रिया गाथा सह टबार्थ, पृ. ३आ, संपूर्ण. नवतत्त्व प्रकरण ६० गाथा-२५ क्रिया गाथा, हिस्सा, प्रा., पद्य, आदि: (१)काइअ१ अहिगरणीया २, (२)काइया१ अहिगरणीया२; अंति: इरीयावहीया क्रीया२५, गाथा-३. नवतत्त्व प्रकरण ६० गाथा-२५ क्रिया गाथा का टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: का० कायाथकी जे पाप लागइ; अंति: ते केवली काया जोगथकी लागइ. ११७३१९ (#) नवतत्त्व के भेद, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ३, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२७४१२, ९४२८). नवतत्त्व २७६ भेद विचार, मा.गु., गद्य, आदि: जीवतत्त्व१ चेतना सहीत; अंति: (-), (पू.वि. पाठ-"च्यार शुभवर्ण १ शुभ ___ गंध २ शुभ रस ३ शुभकरम" तक है.) ११७३२२. स्तुति संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १३-१०(१ से १०)-३, कुल पे. १०, प्र.वि. हुंडी;स्तुति., जैदे., (२६४१२, ११४३१-३५). १. पे. नाम. आदिजिन स्तुति, पृ. ११अ, संपूर्ण. साधारणजिन स्तुति, आ. सोमतिलकसरि, सं., पद्य, आदि: श्रीतीर्थराजः पदपद्मसेवा; अंति: प्रभावदाता ददतां शिवः वा, श्लोक-१. २. पे. नाम. दीपावलीपर्व स्तुति, पृ. ११अ, संपूर्ण. सं., पद्य, आदि: पापायां पुरि चारु; अंति: संस्तौमि वीरं विभुम, श्लोक-१. ३. पे. नाम. ज्ञानपंचमीपर्व स्तुति, पृ. ११अ-११आ, संपूर्ण. सं., पद्य, आदि: पंचानंतकसुप्रपंचपरमानंद; अंति: सा सिद्धायिका त्रायिका, श्लोक-४. For Private and Personal Use Only Page #161 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir १४६ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ४. पे. नाम, महावीरजिन स्तुति, पृ. ११आ, संपूर्ण. सं., पद्य, आदि: वीरं देवं नित्यं; अंति: देवी दद्यात् सौख्यम्, श्लोक-१. ५. पे. नाम. पार्श्वजिन स्तुति, पृ. ११आ-१२अ, संपूर्ण. सं., पद्य, आदि: हर्षनतासरनिर्जरलोकं; अंति: तीर्थपमज्जनशस्तनिदाघः. श्लोक-४. ६. पे. नाम. पार्श्वजिन स्तुति, पृ. १२अ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तुति-पलांकित जेसलमेरमंडन, सं., पद्य, आदि: शमदमोत्तमवस्तुमहापणं; अंति: जयतु सा जिनशासनदेवता, श्लोक-४. ७. पे. नाम, मौनएकादशीपर्व स्तुति, पृ. १२अ-१२आ, संपूर्ण. सं., पद्य, आदि: अरस्य प्रव्रज्या नमिजिन; अंति: विस्मतहृदः क्षितौ, श्लोक-४. ८. पे. नाम, पार्श्वजिन स्तुति, पृ. १२आ-१३अ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तुति-पलांकित, सं., पद्य, आदि: श्रीसर्वज्ञ ज्योतिरूपं; अंति: बुद्धिं वृद्धिं वैष्यम्, श्लोक-४. ९. पे. नाम. आदिजिन स्तति, पृ. १३अ, संपूर्ण. सं., पद्य, आदि: ऋषभनाथ भुनाथनिभानने; अंति: तनुभातनुभातनु भारती, श्लोक-४. १०.पे. नाम. चौवीसजिन स्तुति, पृ. १३अ-१३आ, संपूर्ण. सामान्यजिन स्तुति, सं., पद्य, आदि: अविरल कमल गवल मुक्ता; अंति: देवी श्रुतोच्चयम्, श्लोक-४. ११७३२३. पन्नवणासूत्र-परिमाण पद-१३, संपूर्ण, वि. १९९२, श्रावण शुक्ल, १, रविवार, मध्यम, पृ. २, ले.स्थल. पोरबंदर, प्रले. दामजी वशराम विप्र, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. हुंडी:केवियाणं., दे., (२६.५४१२, १७-२०४४२). प्रज्ञापनासूत्र, वा. श्यामाचार्य, प्रा., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), प्रतिपूर्ण. ११७३२४. शत्रुजयतीर्थ रास, अपूर्ण, वि. १८८१, श्रावण शुक्ल, १४, रविवार, मध्यम, पृ. ८-७(१ से ७)=१, जैदे., (२५.५४१२, १४४३०). शत्रुजयतीर्थ रास, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, वि. १६८२, आदि: (-); अंति: समयसुंदर० आनंद थाय, ढाल-६, गाथा-११२, (पू.वि. ढाल-६ गाथा-६ अपूर्ण से है.) ११७३२५. (+) लावणी, बारमासा व स्तवनादि संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ६-२(१ से २)=४, कुल पे. १०, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२७४१२, १७४४७). १.पे. नाम. विजयलक्ष्मीसूरि बारमासा, पृ. ३अ, अपूर्ण, पू.वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं., वि. १८८५, माघ शुक्ल, ६, प्रले. मु. विवेकविजय (गुरु ग. मानविजय), प्र.ले.पु. सामान्य. मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: सह संघमां थy अजुआलु रे, गाथा-१६, (पू.वि. गाथा-१० अपूर्ण से है.) २.पे. नाम. नेमराजिमती स्तवन-पन्नरतिथि गर्भित, पृ. ३अ-३आ, संपूर्ण. नेमराजिमती स्तवन-१५ तिथि गर्भित, म. रंगविजय, मा.गु., पद्य, आदि: सारद माता दिल धाउंरे; अंति: कहे रंगविजय अमेंगाई, गाथा-२४. ३. पे. नाम. सुविधिजिन पद, पृ. ३आ, संपूर्ण. मु. रूपचंद, पुहिं., पद्य, आदि: मुजरा साहिब मुजरा; अंति: दास निरंजन तेरा रे, गाथा-३. ४. पे. नाम. राधाना बारमासा, पृ. ३आ-४अ, संपूर्ण. राधाजी बारमासा, मा.गु., पद्य, आदि: कारतिक मासे को लामणो सीयल; अंति: सांभले तेहने बैंकुठवास, गाथा-१३. ५. पे. नाम. पनरतिथि गरबा, पृ. ४अ-४आ, संपूर्ण. १५तिथि गरबा, मा.गु., पद्य, आदि: सखी पडवे ते पंथे चाल्या; अंति: मने मलीया छे देव मोरारी, गाथा-१६. ६. पे. नाम. नेमराजिमती बारमासा, पृ. ४आ-५आ, संपूर्ण, ले.स्थल. राधनपुर. नेमराजिमती बारमासो, श्राव. जीवा मयाराम, मा.गु., पद्य, वि. १८२५, आदि: सरसती अंबे माता नमु; अंति: जीवो० एवर मांगु रे, गाथा-२५. ७. पे. नाम. लकड़े की लावणी, पृ. ५आ, संपूर्ण. For Private and Personal Use Only Page #162 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२६ १४७ पुहिं., पद्य, आदि: भरमजल समें कहुं रे दाखला; अंति: लकड़े का सोउलम आलम जाणे, गाथा-१०. ८. पे. नाम, आदिजिन स्तवन, पृ. ५आ, संपूर्ण, ले.स्थल. राधनपुर. श्राव. ऋषभदास, मा.गु., पद्य, आदि: हां रे मुने मेठी लागे छे; अंति: ऋषभदास गुण गेलडीजी, गाथा-४. ९. पे. नाम. औपदेशिक बारमासा, प. ५आ-६अ, संपूर्ण. सांइ दीन, मा.गु., पद्य, आदि: कार्तिक मास कहं करजोड़; अंति: हवे मह्यो जगतनो टलो, गाथा-१३. १०. पे. नाम. महादेव बारमासा, पृ. ६अ-६आ, संपूर्ण, प्रले. पं. विवेकविजय, प्र.ले.पु. सामान्य. रणछोड, पुहिं., पद्य, आदि: ओरा आवो शिवशंकर भोला भोले; अंति: भोलाना गुण रणछोड़े गायो, गाथा-१३. ११७३२७. (#) श्रावकव्रत १२४ अतिचार विचार, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ३-२(१ से २)=१, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२५.५४१२.५, २१४४७). १२४ अतिचार विचार-श्रावकव्रत, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: योगसहित जाव जीव लग त्याग, (पू.वि. सप्तमव्रत वर्णन अपूर्ण से है.) ११७३३२. (+#) महावीरजिन स्तवन-२७ भव गर्भित, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ३-१(२)=२, पृ.वि. बीच व अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. संशोधित. मूल पाठ का अंश खंडित है, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२७.५४१२.५, १२४३५). महावीरजिन स्तवन-२७ भव, मु. लालविजय, मा.गु., पद्य, वि. १६६२, आदि: विमल कमलदल लोयणा; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-१९ अपूर्ण से ३७ अपूर्ण तक व ५९ अपूर्ण से नहीं है.) ११७३३३. (+) सकलार्हत् स्तोत्र व सीमंधरजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. २, कुल पे. ३, प्र.वि. संशोधित., प्र.ले.श्लो. (१९७) एक पोथी अरु पद्मणी, (७२४) जलाद् रक्षे थलाद् रक्षे, दे., (२६४१२.५, १८४४५). १. पे. नाम. पाक्षिक चतुर्मासिक संवत्सरी चैत्यवंदन, पृ. १अ-२अ, संपूर्ण, वि. १९२६, श्रावण कृष्ण, ८, शनिवार, पठ. मु. दीपचंदजी, प्र.ले.पु. सामान्य. त्रिषष्टिशलाकापरुष चरित्र-हिस्सा सकलार्हत् स्तोत्र, आ. हेमचंद्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., पद्य, वि. १२वी, आदि: सकलार्हत्प्रतिष्ठानम; अंति: श्रीवीरभद्रं दिस, श्लोक-३५. २. पे. नाम. सीमंधरजिन स्तुति, पृ. २आ, संपूर्ण. ___ मु. हर्षविजय, मा.गु., पद्य, आदि: पूरव दिशि इशान कुण; अंति: द्यो पूरो संघ जगीश, गाथा-९. ३. पे. नाम, जं किंचिसूत्र, पृ. २आ, संपूर्ण... प्रा., पद्य, आदि: जं किंचि नामतित्थं; अंति: ताइं सव्वाइं वंदामि, गाथा-१. ४१ (#) ज्ञानपंचमीपर्व स्तवन, संपर्ण, वि. १८८०, आषाढ़ कष्ण, ४, मध्यम, प. २, ले.स्थल. नागोर, प्रले. पं. उत्तमविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६४१२.५, २०४४३). ज्ञानपंचमीपर्व स्तवन, मु. गुणविजय, मा.गु., पद्य, आदि: प्रणमी पास जिणेसर; अंति: गुणविजय रंगे गुणि, ढाल-६, गाथा-४९. ११७३४२. पार्श्वजिन सिलोको, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, पृ.वि. मात्र प्रथम पत्र है., जैदे., (२५४१२.५, १६४३४). पार्श्वजिन सलोको, जोरावरमल पंचोली, रा., पद्य, वि. १८५१, आदि: प्रणमं परमातम अविचल; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-२४ अपूर्ण तक है.) ११७३४३. स्तवन, दोहा व चैत्यवंदनादि संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ६, दे., (२५४१२.५, २१४४३). १. पे. नाम. पार्श्वजिन स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तवन-गोडीजी, म. जिनराज, मा.गु., पद्य, आदि: वाल्हेसर मुझ विनती; अंति: इम जपे जिनराज हो, गाथा-७. २. पे. नाम. आबूजी स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण. अर्बुदगिरितीर्थ स्तवन, मु. जिनेंद्रसागर, मा.गु., पद्य, आदि: आबुगढ तीरथ ताजा अष्टादश; अंति: गाया जैनेंद्रसागर, गाथा-८. ३. पे. नाम, समेतशिखरतीर्थ चैत्यवंदन, पृ. १अ, संपूर्ण. For Private and Personal Use Only Page #163 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra १४८ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची सम्मेतशिखरतीर्थ स्तवन, मु. ऋद्धिहर्ष, मा.गु., पद्य, वि. १७४४, आदि: तोह नमो तोह नमो समेत; अंति: जात्रा सफल करी, गाथा - १०. ४. पे नाम. प्रीति दोहा- दोहा १, पृ. १अ संपूर्ण, ले. स्थल, मोहीनगर, प्रले. श्राव. वखतराम, प्र.ले.पु. सामान्य. प्रीति दोहा, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, आदि कागद थोडो हेत घण्ड सो पिण; अति (-), प्रतिपूर्ण, ५. पे. नाम. नवपद स्तवन, पृ. १अ - १आ, संपूर्ण. सिद्धचक्र सज्झाय, मु. उत्तमसागर शिष्य, मा.गु., पद्य, आदि नवपद महिमा सार सांभल, अंति: नवपद महिमा जाणज्यो, गाथा ५. ६. पे नाम. पार्श्वजिन स्तवन, पृ. १आ, संपूर्ण पार्श्वजिन स्तवन- वरकाणामंडन, आ, जिनहर्षसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: कांइ रे जीव तुं मन; अति: पसाइ प्रभु रंगरली, गाथा - ९. ११७३४४. पार्श्वजिन व शांतिजिन छंद, संपूर्ण वि. २०वी मध्यम, पृ. २, कुल पे. २, दे. (२५.५x१२.५, १५४३६). १. पे. नाम. पार्श्वजिन छंद, पृ. १आ, संपूर्ण. पार्श्वजिन छंद-शंखेश्वर, मु. उदयरत्न, मा.गु., पद्य, आदि: सेवो पास शंखेश्वरो; अंति: पास संखेसरो आप तूठा, गाथा-७. २. पे नाम. शांतिजिन छंद. पू. १आ-२आ, संपूर्ण. www.kobatirth.org יי शांतिजिन छंद- हस्तिनापुरमंडन, आ. गुणसागरसूरि, मा.गु., पद्य, आदि सारद मात्र नमुं सिरनाम अंतिः मनवंछित शिवसुख पावे, गाथा २२. ११७३४५. दशवैकालिकसूत्र, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. २- १ ( १ ) = १, प्र. वि. पत्रांक लिखा न होने के कारण अनुमानित पत्र दिया गया है. अंत में "सं १९१६ मिती वैशाख वदि १ सोमे इष्ट २८। १ ल १५ । ३१ । २६ समये वाठीयोकस्य प्रश्न" ऐसा उल्लिखित है व प्रश्नकुंडली दी है. दे., (२५.५X१२, ६३४). दशवैकालिकसूत्र, आ. शय्यंभवसूरि, प्रा., पद्य, वी. २वी, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं व प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण अध्ययन-८ गाथा १४ अपूर्ण से है व २७ अपूर्ण तक लिखा है.) ११७३४६. (+) शांतिजिन स्तवन, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ४, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र. वि. पदच्छेद सूचक लकीरें., दे., (२५X१२.५, ११३७). " Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir शांतिजिन स्तवन-निश्चयव्यवहारगर्भित, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., पद्य, वि. १७३४, आदि: शांतिजिणेसर अरचित जग अति (-), (पू.वि. ढाल ४ गाथा-६ अपूर्ण तक है.) ११७३४८. आदिजिन छंद, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. २- १ (१) १, वे. (२६.५४१२.५, १९४३७-४३). आदिजिन छंद-धुलेवामंडन, आ. गुणसूरि, मा.गु., पद्य, आदि (-); अति ऋद्धिसिद्धि पाईए गाथा-८, ( पू. वि. गाथा- १ अपूर्ण से है.) ११७३४९. (+) पार्श्वजिन छंद, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पू. ३-२ (१ से २) १, प्र. वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ. वे. (२४.५x१२.५, १६-१९X३४). पार्श्वजिन छंद अंतरिक्षजी, वा. भावविजय पं., मा.गु., पद्य, आदि (-); अंति भावविजय० देव जय जयकरण, गावा- ६३ (पू.वि. गाथा ४४ अपूर्ण से है.) " ११७३५०. पार्श्व व महावीरजिन स्तवन, अपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पृ. २- १ (१) = १, कुल पे. २, जैवे. (२५.५x१२.५, 3 १८४४०-४४), १. पे नाम. पार्श्वजिन स्तवन, पृ. २अ, अपूर्ण, पू. वि. प्रथम पत्र नहीं है. पार्श्वजिन स्तवन - कामितपूरण, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., पद्य, आदि (-); अति परमानंद विलासे रे, गाथा-८, (पू.वि. गाथा-५ अपूर्ण से है. ) २. पे. नाम. महावीरजिन स्तवन, पृ. २अ, संपूर्ण. मु. ज्ञानविमल, मा.गु., पद्य, आदि: करुणा कल्पलता श्रीमह; अंति: ण० अनंत सुखनो सदा रे, गाथा-१३. ११७३५१. अनिट्कारिका, संपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पू. १, जैदे. (२५.५x१२, १०३८). ५ For Private and Personal Use Only Page #164 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir १४९ हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२६ सिद्धांतरत्निका व्याकरण-अनिट्कारिका, संबद्ध, आ. जिनचंद्रसूरि, सं., पद्य, आदि: अनिट् स्वरांतो भवति; अंति: विद्ध्यनिट्स्वरान्, श्लोक-११. ११७३५२ (+) साढापच्चीस देशनाम व विविध प्रश्नोत्तर, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, प्र.वि. पत्रांक अनुपलब्ध है., टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२५४१२.५, २३४२७). १.पे. नाम. साढे पच्चीस आर्यदेश नाम, पृ. १अ, संपूर्ण. साढापच्चीसदेशनाम व ग्रामसंख्या, मा.गु., गद्य, आदि: १. मगध देस राजग्रही; अंति: चोवीस नगरी १२९०० गांम छे. २. पे. नाम, विविध प्रश्नोत्तर, पृ. १अ-१आ, अपूर्ण, पू.वि. मात्र प्रथम पत्र है. आगमगत चर्चा बोल-विविध प्रश्नोत्तर, मा.गु., गद्य, आदि: कृष्णलेश्यावंत१ नीलले २; अंति: (-), (पू.वि. श्वासोच्छ्वास क्षुल्लकभव विचार अपूर्ण तक है.) ११७३५३. भरहेसर सज्झाय, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २-१(१)=१, प्रले. श्रावि. बाई कुशला, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२६४१२, ७४३०). भरहेसर सज्झाय, संबद्ध, प्रा., पद्य, आदि: (-); अंति: जासिं जसपढओ तिहूणे सयले, गाथा-१३, (पू.वि. गाथा-८ अपूर्ण से है.) ११७३५४. भरतचक्रवर्ती ऋद्धिवर्णन सज्झाय, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, पू.वि. मात्र प्रथम पत्र है., दे., (२५४१२.५, १६४३९). भरतचक्रवर्ती ऋद्धिवर्णन सज्झाय, म. आसकर्ण ऋषि, मा.ग., पद्य, वि. १८३५, आदि: प्रथम सीमरीयै ऋषभजीणंद ए; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-२४ अपूर्ण तक है.) ११७३५५. (+) उपधानतप विधि यंत्र, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२६४१२.५, ८४३५). उपधानतपविधि यंत्र, प्रा.,मा.गु., को., आदि: (-); अंति: (-). ११७३५७. आदिजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, प्र.वि. प्रारंभ में "अक्षयतृतीयापर्व कथा" गाथा-१ अपूर्ण लिखकर प्रतिलेखक ने छोड़ दिया है., दे., (२५.५४१२.५, १०४३२). आदिजिन स्तवन, मु. खुबकुशल शिष्य, मा.गु., पद्य, वि. १९०७, आदि: श्रीऋषभ जिणेसर ध्याइये; अंति: खुबकुशलशि० अविचल राजै रे, गाथा-८. ११७३५८. (+#) स्तवन संग्रह व गुरुगुण सज्झाय, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ४-३(१ से ३)=१, कुल पे. ४, प्र.वि. संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२६४१२.५, १६४४७). १.पे. नाम. महावीरजिन स्तवन, पृ. ४अ, संपूर्ण. मु. सूर्यमल, मा.गु., पद्य, आदि: रसना महावीर उचर रे त्रिसल; अंति: त्यागो कुटुंब अरु घर रे, गाथा-८. २. पे. नाम, गुरुगुण सज्झाय, पृ. ४अ, संपूर्ण. ___ मु. सूर्यमल, पुहिं., पद्य, आदि: काम क्रोध से न्यारा रे; अंति: सूर्य० करे भव दधि पारा रे, गाथा-७. ३. पे. नाम, सुविधिजिन स्तवन, पृ. ४अ-४आ, संपूर्ण. मु. सूर्यमल, मा.गु., पद्य, आदि: तुम चरणा चित दीनो सुविध; अंति: कृपाकर दीनो ज्ञाननगीनो, गाथा-६. ४. पे. नाम, आदिजिन स्तवन-भरतचक्रवर्ती, पृ. ४आ, संपूर्ण. मु. आशकरण, मा.गु., पद्य, वि. १८३५, आदि: (-); अंति: वंदना भरतने होय ए, गाथा-२७, (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., गाथा-२५ से लिखा है.) ११७३५९ वीस स्थानक गाथा, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ३-१(१)=२, दे., (२६४१२.५, १२४४०). २० स्थानक गाथा-पांखडी, प्रा.,मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: लहिइ परम महोदय ठाण, गाथा-२१, (पू.वि. गाथा-३ अपूर्ण से है.) ११७३६० (+) कुंथुजिन व सुमतिजिन स्तवन, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ३-२(१ से २)=१, कुल पे. २, प्र.वि. संशोधित., दे., (२६.५४१२, १२४३०). १.पे. नाम. कुंथुजिन स्तवन, पृ. ३अ, संपूर्ण. For Private and Personal Use Only Page #165 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir १५० कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची पंन्या. पद्मविजय, मा.गु., पद्य, वि. १९वी, आदि: रात दिवस नित सांभरो रे; अंति: पद्मने मंगलमाल लाल, गाथा-७. २. पे. नाम. सुमतिजिन स्तवन, पृ. ३अ-३आ, संपूर्ण. पंन्या. पद्मविजय, मा.गु., पद्य, आदि: पंचम जगपति वंदिए; अंति: पद पद्मने० अव्याबाध उदार, गाथा-५. ११७३६१. (#) उत्तराध्ययनसूत्र के बोल व शिष्यहिता टीका के बोल, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २६-२३(१ से २२,२४)=३, कुल पे. २, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२७४१३, १५४३३). १.पे. नाम. उत्तराध्ययनसूत्र अध्ययन २९-बोल, पृ. २३अ-२६आ, अपूर्ण, पृ.वि. प्रारंभ व बीच के पत्र नहीं हैं. उत्तराध्ययनसूत्र-हिस्सा २९वाँ अध्ययन का बोल संग्रह, संबद्ध, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: समस्तपर्षदामध्ये का, बोल-७३, (पू.वि. बोल-२२ अपूर्ण से है.) २. पे. नाम. शिष्यहिता टीका के बोल, पृ. २६आ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. आवश्यकसूत्र-शिष्यहिता टीका का बोलसंग्रह, संबद्ध, मा.गु., गद्य, आदि: हवे ४५ आगम प्रभुजीइं; अंति: (-), (पू.वि. प्रथम प्रयोजनवर्णन अपूर्ण तक है.) ११७३६२ (+#) पद्मावती आराधना, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, प्र.वि. संशोधित. मूल पाठ का अंश खंडित है, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२७४१२.५, २२४३१). पद्मावती आराधना, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, वि. १७वी, आदि: हवे राणी पद्मावती; अंति: करूं ए जाणपणानुसार, ढाल-३, गाथा-४०. ११७३६३. (+#) भगवतीसूत्र सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ४-३(१ से ३)=१, पृ.वि. मात्र बीच का ही एक पत्र है., प्र.वि. हुंडी:विवाहप., संशोधित. मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., (२५.५४१२.५, ३४४१). भगवतीसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. उद्देश-१ अपूर्ण पाठ-"उप्पणसड्ढे उप्पणसंसए" से उद्देश-१ "घोसाणाणावंज्झाणा" तक है.) भगवतीसूत्र-टबार्थ *, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: (-). ११७३६४. (+) ठाणांगसूत्र सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, पृ.वि. मात्र प्रथम पत्र है., प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२६.५४१२, ६४३८). स्थानांगसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., प+ग., आदि: सुयं मे आउसं तेणं; अंति: (-), (पू.वि. स्थान-१ पाठ-"एगे संसुद्धे अहाभूएपत्ते एगे दुक्खे" तक है.) स्थानांगसूत्र-टबार्थ , मा.गु., गद्य, आदि: सुधर्मास्वामी जंबू; अंति: (-). ११७३६५. लघुसंग्रहिणी सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. १८६२, मार्गशीर्ष कृष्ण, ७, मध्यम, पृ. ४-३(१ से ३)=१, पठ. ग. चतुरविजय (गुरु ग. रत्नविजय); प्रले. ग. रत्नविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. कुल ग्रं. ११०, जैदे., (२७७१३, ३४३८). लघसंग्रहणी, आ. हरिभद्रसूरि, प्रा., पद्य, आदिः (-); अंति: रईया हरिभद्दसूरिहिं, गाथा-३०, (पू.वि. गाथा-२९ अपूर्ण से लघुसंग्रहणी-टबार्थ *, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: श्रीहरिभद्रससूरिइं. ११७३६६ (+#) बृहत्कल्पसूत्र, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ११-७(१ से ७)=४, पू.वि. बीच के पत्र हैं., प्र.वि. हुंडी:बृ०कल्पसू०., संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२७४१२.५, १६x४५). बृहत्कल्पसूत्र, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. उद्देश-४ सूत्र-२१ अपूर्ण से उद्देश-६ सूत्र-२ ___ अपूर्ण तक है.) ११७३६७. (+) व्याख्यान संग्रह, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. २-१(१)=१, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित., दे., (२६.५४१२.५, १२४२९). व्याख्यान संग्रह *, प्रा.,मा.गु.,रा.,सं., प+ग., आदि: (-); अंति: विस्तरै श्रेय कल्याण, (पू.वि. मात्र अंतिम पत्र है., पाठ-"जे तीन सै साठ संग्राम आप" से है.) ११७३६८. श्रीपाल रास व नेमजिन स्तवन, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. २-१(१)=१, कुल पे. २, दे., (२६.५४१२.५, १२४२७). १.पे. नाम. श्रीपाल रास-खंड १ ढाल ११वीं, पृ. २अ, अपूर्ण, पू.वि. प्रथम पत्र नहीं है., प्रले. पं. ज्ञानविजय, प्र.ले.पु. सामान्य. For Private and Personal Use Only Page #166 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२६ www.kobatirth.org . श्रीपाल रास, उपा. विनयविजय; उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., पद्य वि. १७३८ आदि (-) अंति (-), प्रतिअपूर्ण. २. पे. नाम, नेमजिन स्तवन, पृ. २आ, संपूर्ण. नेमिजिन स्तवन, मु. दोलतविजय, मा.गु., पद्य वि. १८२५, आदि सोरठ देश सोहामणो रे तीरथ अंतिः विनयविजय० दोलतिपूगी जगीस, गाथा-६. ११७३६९. मांगलिक श्लोक, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, प्र. वि. प्रारंभ में सीमंधरस्वामी का २ मंत्र दिया गया है., दे., (२६.५x१२.५, ८४३७). श्लोक संग्रह-मांगलिक, प्रा., मा.गु., सं., पद्य, आदि: एसो मंगल निलहो भय; अंति: धर्मस्वरूप उपदिशे, श्लोक-४. ११७३७० () आवक १२ व्रत विचार, संपूर्ण वि. १९वी मध्यम, पू. ३, प्र. वि. हुंडी: श्रावकजीमरजादा., अक्षर पत्रों पर आमने-सामने Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir छप गए हैं, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., ( २६१२.५, १८-२२४५५). आवक १२ व्रत विचार, मा.गु., गद्य, आदि: दसणसम्यक्त्व प्रमथसंघो वा अति (-), (अपूर्ण, पू. वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., व्रत ८ तक लिखा है.) ११०३७१. (+) द्वात्रिंशद्द्वात्रिंशिका महावीरद्वात्रिंशिका, अपूर्ण, वि. २०वी मध्यम पू. १, पू.वि. मात्र प्रथम पत्र है.. प्र. वि. संशोधित अक्षरों की स्वाही फैल गयी है, दे. (२६.५४१२, १४४३०). 1 १५१ द्वात्रिंशद्द्वात्रिंशिका-हिस्सा महावीरद्वात्रिंशिका, आ. सिद्धसेनदिवाकरसूरि, सं., पद्य, वि. १वी, आदि: सदा योगसात्म्यात्, अंति: (-), (पू.वि. श्लोक-१७ अपूर्ण तक है.) ११७३७३. सिद्धाचलजी स्तवन व दशवैकालिकसूत्र सज्झाय- अध्ययन ७, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, जैदे., (२७X१२.५, १२x२९). १. पे. नाम. सिद्धाचलजी स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण. शत्रुंजयतीर्थ स्तवन, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., पद्य, आदि मोरा आतमराम कुण दिन अंति: दिन परमानंद पद पासिउ, गाथा- ७. २. पे. नाम. सातमांध्ययन सज्झाय, पृ. १अ १आ, संपूर्ण. दशवैकालिकसूत्र-सज्झाय अध्याय ७, संबद्ध, मु. वृद्धिविजय, मा.गु., पद्य, आदि: साचूं वयण जे भाखीये रे; अंतिः वृद्धिविजय जयकार गाथा - ९. ११०३७४ (१) जिनकल्याणक नरकोद्योत वर्णनादि वोलसंग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ५. प्र. वि. मूल पाठ का अंश खंडित है, दे., (२७४१२ २४४६८). १. पे. नाम जिनकल्याणक नरकोद्योत वर्णन, पृ. १अ संपूर्ण. रा., गद्य, आदि: (-); अंति: ए भाव भगवंतना जन्म समे छे, (वि. आदिवाक्य खंडित है.) २. पे. नाम संवछरदाननो अधीकार, पृ. १अ, संपूर्ण. वरसीदान मान, मा.गु. गद्य, आदि हवे भगवंत संवछर दान द्ये अति तिर्थंकर एटलो दान देवे. ३. पे नाम. समोसरण विचार, पृ. १अ, संपूर्ण. समवसरण कालमान विचार-इंद्रादि द्वारा रचित, मा.गु, गद्य, आदि: सोधर्मनो कीधो समोवशर; अंति: देवतानो की धो दिन १५ रहे. ४. पे. नाम. पांच दीव्य नाम पू. १अ, संपूर्ण, " For Private and Personal Use Only ५ दिव्य तीर्थकरदानादि अवसरे, मा.गु., गद्य, आदि: तिहां देवताये फुलनी वर्षा, अंति: अहोदानम् एहवी उद्घोषणा थइ. ५. पे. नाम. पांच अभिगम, पृ. १अ, संपूर्ण. ५ अभिगम नाम, मा.गु., गद्य, आदि सचीत वस्तु छाडेर अचीत ले; अंति: वांदइ नमस्कार करे ५. ११७३७५. (+) भवहर स्तोत्र व अजितशांति स्तव, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ४-३ (१ से ३) १, कुल पे. २, प्र. वि. संशोधित. दे., " (२७४१२.५, ११४३७). १. पे नाम भवहर स्तोत्र, पृ. ४अ, अपूर्ण, पू. वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं. Page #167 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir १५२ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची नमिऊण स्तोत्र, आ. मानतुंगसूरि, प्रा., पद्य, आदि: (-); अंति: वाहिभय नासइ तस्स दूरेण, गाथा-२४, (पू.वि. गाथा-१७ अपूर्ण से है.) २. पे. नाम. अजितशांति स्तव, पृ. ४अ-४आ, अपूर्ण, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. आ. नंदिषेणसूरि, प्रा., पद्य, आदि: अजियं जियसव्वभयं संतिं च; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-९ अपूर्ण तक है.) ११७३७६. ज्ञानप्रदीप, संपूर्ण, वि. १९०४, ज्येष्ठ शुक्ल, ७, मध्यम, पृ. १, प्रले. मु. पुण्यविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, दे., (२६.५४१२, १५४३४). ज्ञानप्रदीप, सं., पद्य, आदि: चरे लग्ने चरे सूर्ये; अंति: सर्व सौख्यं न शंसय, श्लोक-२९. ११७३७९. उपदेशचिंतामणि सह अवचूरि, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १५-१४(१ से १४)=१, पृ.वि. मात्र बीच का ही एक पत्र है., प्र.वि. पत्रांक लिखा न होने के कारण अनुमानित पत्रांक दिया गया है., जैदे., (२५.५४१२.५, १४४३९). उपदेशचिंतामणि, आ. जयशेखरसरि, प्रा., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. गाथा-४८ व ४९ है.) उपदेशचिंतामणि-अवचूरि, सं., गद्य, आदिः (-); अंति: (-), (पू.वि. अशोकचंद्र कथा अपूर्ण से भोगोपभोगमानव्रत वर्णन अपूर्ण तक है.) ११७३८२. एकसठीयो यंत्र, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. २, दे., (२६४१२.५, २२४३४-३८). ६२ मार्गणा जीवादि६ बोल, मा.गु., को., आदि: (-); अंति: (-). ११७३८३. पट्टावली-खरतरगच्छीय, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २२-२१(१ से २१)=१, जैदे., (२६४१२, १४४३४). पट्टावली खरतरगच्छीय, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: १८५८रा० सांप्रत विजयवंते, (पू.वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं., ___ पाठ-"जणचंद्रसूरि ६५ अपरप्रसिद्धनाम" से है) ११७३८७. (#) बंधषट्त्रिंशिका सह अवचूरि, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ३-१(१)=२, पू.वि. प्रथम एक व अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. त्रिपाठ. मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., (२६४१२.५, ४-८४३१). भगवतीसूत्र-टीका का हिस्सा बंधषट्त्रिंशिका प्रकरण, प्रा., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. गाथा-६ से २६ अपूर्ण तक है.) भगवतीसूत्र-टीका का हिस्सा बंधषट्त्रिंशिका प्रकरण की अवचूरि, सं., गद्य, आदि: (-); अंति: (-). ११७३८८. (+#) समवसरण विचार व सुभाषित संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, प्र.वि. संशोधित. मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., (२६.५४१२.५, १५४४६). १. पे. नाम. सुभाषित संग्रह, पृ. १अ, संपूर्ण. सभाषित संग्रह *, सं., पद्य, आदि: आय वित्तं गह छिद्र; अंति: खधातराणं न बलं न तेज, श्लोक-२.. २. पे. नाम. समोसणनो विचार, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण, वि. १८९०, कार्तिक कृष्ण, १४, ले.स्थल. राधनपुर. समवसरण विचार, सं., गद्य, आदिः यः षण्मासाधिकायुष्को लभते; अंति: धनुष१३३३ हस्त१ अंगुल८. ११७३९३. (+) वसुधारा स्तोत्र, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ३, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२५.५४१२.५, १४४३३). वसुधारा स्तोत्र, सं., गद्य, आदि: संसारद्वयदैन्यस्य प्रतिह; अंति: (-), (पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., पाठ-"इंद्रोवैवस्वतश्चैववसणो धनदोयथा" तक है.) ११७३९४. (+) नवस्मरण, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२६४१२.५, १५४२८). नवस्मरण, मु. भिन्न भिन्न कर्तृक, प्रा.,सं., प+ग., आदि: नमो अरिहंताणं० हवइ मंगलम्; अंति: (-), (पू.वि. नमिऊण स्तोत्र गाथा-१३ अपूर्ण तक है.) ११७३९६. (+) ज्वर छंद, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., दे., (२६४१२.५, ११४२९). ज्वर छंद, मु. कांति, मा.गु., पद्य, आदि: ॐ नमो आनंदपुर अजयपाल; अंति: सार मंत्र गणीइं सदा, गाथा-१६. ११७३९७. चउसरण प्रकीर्णक व आतुरप्रत्याख्याण, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ३, कुल पे. २, ., (२६४१२.५, १६४५१). १.पे. नाम. चउसरण प्रकीर्णक, पृ. १आ-३अ, संपूर्ण, पे.वि. हुंडी:चउसरण. For Private and Personal Use Only Page #168 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir १५३ हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२६ चतुःशरण प्रकीर्णक, ग. वीरभद्र, प्रा., पद्य, वि. ११वी, आदि: सावज्जजोग विरई; अंति: कारणं निव्वुइ सुहाणं, गाथा-६३. २.पे. नाम. आतुरप्रत्याख्यान पयन्ना, पृ. ३अ-३आ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., पे.वि. हुंडी:आउरपच्च. आतरप्रत्याख्यान प्रकीर्णक, ग. वीरभद्र, प्रा., प+ग., वि. ११वी, आदि: देसिक्कदेसविरओ; अंति: (-). (प.वि. पाठ-"सद्दहजिणपन्नत्तंपच्चक्खामि" तक है.) ११७३९८. मौनएकादशी व पार्श्वजिन स्तवन, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. २-१(१)=१, कुल पे. २, दे., (२५.५४१२.५, १६४३३). १.पे. नाम. मौनएकादशी स्तवन, पृ. २अ-२आ, अपूर्ण, .वि. प्रथम पत्र नहीं है. मौनएकादशीपर्व स्तवन, मु. कांतिविजय, मा.गु., पद्य, वि. १७६९, आदि: (-); अंति: भणतां लहे मंगळ अति घणो, ढाल-३, गाथा-२५, (पू.वि. गाथा-१७ अपूर्ण से है.) २.पे. नाम. पार्श्वजिन स्तवन, पृ. २आ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तवन-पुरिसादाणी, मु. मोहनविजय, मा.गु., पद्य, आदि: पुरिसादाणी सांवलवरणो; अंति: मोहनवि० करुणा करज्यो, गाथा-७. ११७३९९ (+) बोल संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ३-२(१ से २)=१, पृ.वि. मात्र बीच का ही एक पत्र है., प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२५४१२, १४४४२). बोल संग्रह *, प्रा.,मा.गु.,सं., गद्य, आदिः (-); अंति: (-), (पू.वि. बोल-२० अपूर्ण से २६ अपूर्ण तक है.) ११७४००, चंद्रप्रभजिन स्तोत्र मंत्रादि संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ४, जैदे., (२५४१२.५, १४४४७). १. पे. नाम. चंद्रप्रभजिन स्तोत्र, पृ. १अ, संपूर्ण. सं., पद्य, आदि: ॐ चंद्रप्रभः प्रभा; अंति: दायिनि मे वरप्रदा, श्लोक-५. २. पे. नाम. मंत्र संग्रह, पृ. १अ, संपूर्ण. औषध-मंत्र-तंत्रसंग्रह, मा.गु.,सं., गद्य, आदि: (-); अंति: (-). ३. पे. नाम. नवग्रह स्तोत्र, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. __ ऋ. वेद व्यास, सं., पद्य, आदि: जपाकुसुमसंकाशं; अंति: व्यासो० न संशयः, श्लोक-१२. ४. पे. नाम. शनिश्चर स्तोत्र, पृ. १आ, संपूर्ण. सं., पद्य, आदि: यः पुरा राज्यभ्रष्टाय; अंति: पीडा न भवंति कदाचन, श्लोक-१०. ११७४०१. (#) पाशाकेवली, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ३, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२५.५४१२.५, १९४३५-४२). पाशाकेवली-भाषा, संबद्ध, मा.गु., गद्य, आदि: १११ उत्तम थानक लाभ; अंति: (-), (पू.वि. ४३४ जघन्य तक है.) ११७४०२. २४ जिन स्तुति, अपूर्ण, वि.२०वी, श्रेष्ठ, पृ. ३-२(१ से २)=१, पृ.वि. मात्र बीच का ही एक पत्र है., दे., (२६.५४१२.५, १३४३४). २४ जिन स्तुति, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. गाथा-१५ अपूर्ण से २४ अपूर्ण तक है.) ११७४०३. घंटाकर्णमंत्र संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, ले.स्थल. वल्लहीपुर, प्रले.पं. हिंमतविजय गणि; पठ. पं. तिलोकविजय; अन्य.पं. कस्तुरविजय, प्र.ले.प. सामान्य, प्र.वि. अंत में "सिरि धम्मनाह प्र." लिखा है., जैदे., (२६४१२, ६४३१). १.पे. नाम. घंटाकर्ण मंत्र, पृ. १अ, संपूर्ण. __ घंटाकर्णमहावीरदेव स्तोत्र, सं., पद्य, आदि: ॐ घंटाकर्णो महावीरः; अंति: नमोस्तु ते स्वाहा, श्लोक-४. २. पे. नाम. मंत्रसंग्रह, पृ. १आ, संपूर्ण. मंत्र-तंत्र-यंत्र आदि संग्रह, उ.गु.,सं.,हिं., प+ग., आदि: (-); अंति: (-). ११७४०४. वसुधारानाम महाविद्या, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ४-३(१ से ३)=१, जैदे., (२५४१२.५, १३४३१). वसुधारा स्तोत्र, सं., गद्य, आदि: (-); अंतिः शृणोति भोगं च करोति, (पू.वि. पाठ-"भगवांस्तेनाजलि प्रणम्य" से है.) For Private and Personal Use Only Page #169 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir १५४ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ११७४०५. मौनएकादशीपर्व कथा, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ४, जैदे., (२६४१२.५, १३४३५). ___ मौनएकादशीपर्व कथा, सं., गद्य, आदि: अरस्य प्रव्रज्या नमि; अंति: सुखिनी बभूवुरिति. ११७४०६. कल्पसूत्र, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. २३६-२३५(१ से २३५)=१, पृ.वि. मात्र बीच का ही एक पत्र है., दे., (२५.५४१२.५, ५४२९). कल्पसूत्र, आ. भद्रबाहस्वामी, प्रा., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. व्याख्यान-८ स्थविरावली गाथा-६ अपूर्ण से ___ गाथा-१४ अपूर्ण तक है.) ११७४०७.(+) ऋषिमंडल स्तोत्र-बृहद्, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२६४१२,१३४४०). ऋषिमंडल स्तोत्र-बहद, आ. गौतमस्वामी गणधर, सं., पद्य, आदि: आद्यंताक्षरसंलक्ष्यमक्षरं; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-९४ अपूर्ण तक है.) ११७४०८ (+#) अभिधानचिंतामणि नाममाला, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ७०-६७(१ से ६६,६९)=३, पू.वि. बीच के पत्र हैं., प्र.वि. अन्वय दर्शक अंक युक्त पाठ-पदच्छेद सूचक लकीरे-संशोधित. मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., (२६४१२.५, १०४३५). अभिधानचिंतामणि नाममाला, आ. हेमचंद्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., पद्य, वि. १३वी, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. कांड-४ श्लोक-३६ अपूर्ण से कांड-६ श्लोक-६ अपूर्ण तक है.) ११७४०९. तपावली, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ४-२(१ से २)=२, पू.वि. बीच के पत्र हैं., दे., (२६४१२.५, १६x४२). तपावली, प्रा.,मा.गु.,सं., प+ग., आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. योगशुद्धि तप अपूर्ण से यतिश्राद्धविधि कल्याणक तप तक ११७४१०. मेणरेहा सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९०८, मध्यम, पृ. ३, ले.स्थल. नीबांज, प्रले. सा. लीछमा (गुरु सा. चंदणा); गुपि.सा. चंदणा, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. हुंडी:मणरेहानीसजाय., दे., (२५.५४१२, २३४५१). मदनरेखासती रास, मा.गु., पद्य, आदि: जुवो मांस दारु तणो करे वे; अंति: मिच्छामि दुक्कडम महारो, गाथा-१६९. ११७४११. त्रैलोक्यसंदरी रास, अपूर्ण, वि. १९३२, आश्विन शुक्ल, ४, मध्यम, पृ. ५-४(१ से ४)=१, प्र.वि. हुंडी:लोक०., दे., (२६४१२, १९४४४). त्रैलोक्यसुंदरी रास, मु. सबलदास ऋषि, मा.गु., पद्य, वि. १८५२, आदि: (-); अंति: लील वीलास सीयल सुहामणो, ___ ढाल-१२, (पू.वि. ढाल-८ की गाथा-९ से है.) ११७४१२. दशदिगपाल पूजा, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, प्र.वि. हुंडी:गपा., दे., (२७४१२.५, ५४१०). १० दिक्पाल आवाहन विसर्जन विधि, मा.गु.,सं., प+ग., आदि: ॐ नमो इंद्राय पूर्व; अंति: उछालवा० वार ३ बाकुल नाखवा, पद-१०. ११७४१६. (+) शास्वतअशास्वतजिनप्रतिमा स्तवन, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २-१(१)=१, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें., जैदे., (२६.५४१२.५, १४४४१). शाश्वतअशाश्वतजिनप्रतिमा स्तवन, मा.गु., पद्य, आदिः (-); अंति: तेतरईतिये भमोक्षगामीयं, (पू.वि. गाथा-६० अपूर्ण से है.) ११७४१७. (#) बहत्संग्रहणी व ज्योतिष विचार, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२७४१२.५, १७४३१). १. पे. नाम. बृहत्संग्रहणी, पृ. १अ, संपूर्ण. आ. चंद्रसूरि, प्रा., पद्य, वि. १२वी, आदि: नमिउं अरिहंताई ठिइ; अंति: (-), (अपूर्ण, पृ.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., गाथा-२ तक लिखा है.) २. पे. नाम. ज्योतिष विचार, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. मा.ग.,सं., प+ग., आदि: ये धर्मकर्मारता विजिते; अंति: योगो फलानि यस्मात्. ११७४१८. व्याख्यानश्लोक संग्रह, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. २, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., अ., (२७४१२.५, १३४३०). For Private and Personal Use Only Page #170 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२६ १५५ व्याख्यानश्लोक संग्रह, प्रा.,मा.ग.,सं., पद्य, आदि: दीर्घमायुः परं रूप; अंति: (-), (पू.वि. श्लोक ३७ तक है.) ११७४१९. सुभाषित श्लोकसंग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ४, जैदे., (२६.५४१२, १४-१८४४०-४८). सुभाषित संग्रह, पुहिं.,प्रा.,मा.गु.,सं., पद्य, आदि: पंडितौपिवरसत्तु महामूर्ख; अंति: विद्या दतंतूक्तंफलंसिवं, गाथा-३२. ११७४२० (#) उपासकदशांगसूत्र व बीजक, अपूर्ण, वि. १९४५, कार्तिक शुक्ल, ४, मध्यम, पृ. ४-३(१ से ३)=१, कुल पे. २, ले.स्थल. नागपुर, प्रले. पं. जुहारमल्ल, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. मूल पाठ का अंश खंडित है, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२६४१२, २२-२८४५०-६६). १. पे. नाम, उपासकदशांगसूत्र का बीजक, पृ. ४अ-४आ, अपूर्ण, पू.वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं., पे.वि. हुंडी:उपासक०सूची. उपासकदशांगसूत्र-विषयसूची, मा.गु.,सं., गद्य, आदि: (-); अंति: कुले दीक्षा मुक्ति, (पू.वि. अध्ययन-७ की बीजक __ अपूर्ण से है.) २.पे. नाम. उपासकदशांगसूत्र-अध्ययन-७ महावीरजिन महामहाण, महागोपादि उपमा प्रसंग, पृ. ४आ, संपूर्ण. उपासकदशांगसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., प+ग., आदि: (-); अंति: (-), प्रतिपूर्ण. ११७४२२. (+) सरस्वतीदेवी छंद व औपदेशिक गाथासंग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें., दे., (२५४१२.५, १३४२७). १.पे. नाम. सरस्वतीदेवी छंद, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. आ. दयासरि, मा.गु., पद्य, आदि: बुद्धि विमल करणी; अंति: सेवी नित नमेवी भगवती, गाथा-९. २. पे. नाम, औपदेशिक गाथा संग्रह, पृ. १आ, संपूर्ण. औपदेशिक गाथा संग्रह *, पुहिं.,मा.गु.,सं., पद्य, आदि: बतीसा रे बापडा खाटीवांकी; अंति: कडकोपडे कपाल. ११७४३२. आत्मनिंद्या, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ४, प्रले. पं. नेमीचंद्र, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. हुंडी:ज्ञानसारजीकृत आत्मनिंदा., दे., (२७४१२, १२४३८). आत्मनिंदा भावना, मु. ज्ञानसार, रा., गद्य, आदि: हे आत्मा हे चेतन ऐ; अंति: सो नर सुगुण प्रवीण. ११७४३७. (+) नय प्रमाण का थोकड़ा, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित., जैदे., (२६.५४२५, २१४४२). नय प्रमाण का थोकडा, मा.गु., गद्य, आदि: नय सात निक्षेप चार; अंति: (-), (पू.वि. कंचन के ५ भेद अपूर्ण तक है.) ११७४३८. स्थूलिभद्रमुनि सज्झाय, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २-१(१)=१, जैदे., (२४.५४१२, ८४३८). स्थूलिभद्रमुनि सज्झाय, उपा. उदयरत्न, मा.गु., पद्य, वि. १७५९, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., ढाल-६ गाथा-५ अपूर्ण से हैं व ढाल-८ गाथा-१ अपूर्ण तक लिखा है.) ११७४३९. आगमगत दृष्टांत नाममाला, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. २, प्र.वि. हुंडी:नाममाला., दे., (२५.५४१२, २०४४५). आगमगत दृष्टांत नाममाला, मा.गु., गद्य, आदि: १ गोतमकुमार २ समुद्रकुमार; अंति: १० श्रावक २ श्राविका. ११७४४०. बृहत्शांति, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ३-२(१ से २)=१, पू.वि. मात्र बीच का ही एक पत्र है., प्र.वि. पत्रांक नहीं लिखा है., दे., (२५.५४१२, १२४२८). बहत्शांति स्तोत्र-खरतरगच्छीय, सं., प+ग., आदिः (-); अंति: (-), (पू.वि. २४ जिन माता नामावली से "ॐ उन्मुष्टरिष्ट" पाठ तक है.) ११७४४७. (#) पार्श्वजिन स्तोत्र व छंद संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ४-२(१ से २)=२, कुल पे. ४, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२७४१३, १७४४८). १. पे. नाम. ऋषभदेवजी छंद, पृ. ३अ-४अ, अपूर्ण, पृ.वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं., वि. १८६६, प्रले. पं. मोतिविजय; पठ. पं. तेजहंस, प्र.ले.पु. सामान्य. आदिजिन छंद-धुलेवामंडन, श्राव. मूल, मा.गु., पद्य, वि. १८६३, आदि: (-); अंति: फते श्रीआणा फरे जीन जीन, (पू.वि. "पठाणा मुगला वहे जीमपुरे" पाठांश से है.) २. पे. नाम. पार्श्वजिन स्तोत्र-शंखेश्वरतीर्थ, पृ. ४अ-४आ, संपूर्ण.. मु. मेघराज, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीसकल सार सुरतरु; अंति: मेघराज त्रिभुवन तिलो, गाथा-५. For Private and Personal Use Only Page #171 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir १५६ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ३. पे. नाम. नवग्रह छंद, पृ. ४आ, संपूर्ण. ___ मा.गु., पद्य, आदि: दिन दीन अधिक जे जे करण; अंति: दिन दिन अधिक जय जयकरण, गाथा-१. ४. पे. नाम. नवग्रहरत्न छंद, पृ. ४आ, संपूर्ण. मा.गु., पद्य, आदि: मुगता को स्वामी चंद मुगा; अंति: रूप रूप नवग्रही बनी हे, गाथा-१. ११७४४८. भरतचक्रवर्ती सज्झाय, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, दे., (२७४१२.५, १४४३४). भरतचक्रवर्ती सज्झाय, मा.गु., पद्य, आदि: आभरण अलंकार सवही उत्तारे; अंति: (-), (अपूर्ण, पृ.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., गाथा-१२ अपूर्ण तक लिखा है., वि. गाथा-१० के पश्चात् गाथांक नहीं हैं.) ११७४४९ (+) गीत, सज्झाय व स्तवनादि संग्रह, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ४, कुल पे. ४,प्र.वि. संशोधित., दे., (२६.५४१२.५, ९४३४). १. पे. नाम. ऋषभजिन स्तवन, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. आदिजिन स्तवन, म. कपूर, मा.गु., पद्य, आदि: प्रथम तिर्थंकर रीषभ; अंति: भवोभव मागु साहबनी सेवा तो, गाथा-१४. २.पे. नाम. शांतिनाथ स्तवन, पृ. १आ-२अ, संपूर्ण. शांतिजिन स्तवन, मु. माणक, मा.गु., पद्य, आदि: सुण दयानीधि तुज पद पंकज; अंति: कहे माणकमुनी मोय भव तारो, गाथा-५. ३. पे. नाम. सम्यक्त्व सज्झाय, पृ. २अ, संपूर्ण. मा.गु., पद्य, आदि: समकित विन जीव जगत; अंति: सीद्धा सीवपुर को सटको, गाथा-९. ४. पे. नाम. कृष्णविरह गीत, पृ. २आ-४आ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. मा.गु., पद्य, आदि: आसाढे आणंदकारि रे; अंति: (-), (पृ.वि. गाथा-९ अपूर्ण तक है.) ११७४५० (+) श्रावक आलोयणा, अपूर्ण, वि. १८७३, ज्येष्ठ कृष्ण, १२, मध्यम, पृ. २-१(१)=१, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२७४१२.५, ११४२८). श्रावक आलोयणा, मा.ग.,सं., गद्य, आदिः (-); अंति: वार्षिकं तपो भवति, (पू.वि. प्रथम पत्र नहीं है., पाठ-"विणासणे बहुल विणासणे" से है.) ११७४५१. औपदेशिक हरियाली संग्रह सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ४-२(२ से ३)=२, कुल पे. ३, जैदे., (२७.५४१३, ११४४३). १. पे. नाम. औपदेशिक हरियाली सह टबार्थ, प. १आ, अपूर्ण, प.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. आध्यात्मिक हरियाली, श्राव. देपाल भोजक, मा.गु., पद्य, वि. १६वी, आदि: वरसे कांबल भींजे पाणी; अंति: (-), (पू.वि. हरियाली-३ अपूर्ण तक है.) आध्यात्मिक हरियाली-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: कांबली कहतां इंद्री; अंति: (-). २.पे. नाम. वज्रस्वामी गहंली सह टबार्थ, पृ. ४अ-४आ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र हैं. वज्रस्वामी गहुँली, पं. वीरविजय, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: श्रीशुभवीरना वाहला रे, गाथा-८, (पू.वि. गाथा-६ से वज्रस्वामी गहुंली-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: वीरविजय०वल्लभ वचन छे. ३. पे. नाम. औपदेशिक हरियाली सह टबार्थ, पृ. ४आ, अपूर्ण, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. औपदेशिक हरीयाली, पं. वीरविजय, मा.गु., पद्य, आदि: चेतन चेतो चतुर चबोला; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-३ अपूर्ण तक है.) औपदेशिक हरीयाली-विवेचन, गु., गद्य, आदि: हे चेतन चतुर वाक्ये; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-३ अपूर्ण तक हैं.) ११७४५२. हरिबल पुराण, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. २१२-२११(१ से २११)=१, जैदे., (२८x१२.५, १२४३१). हरिबल पुराण, मु. रत्नकीर्ति, अप., पद्य, आदि: (-); अंति: रयणकित्ति० सिवसुक्खु सया, (पू.वि. अंतिम अंश मात्र है.) ११७४५३. (#) जीवविचार स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ५, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६.५४१२.५, १५४४९). For Private and Personal Use Only Page #172 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२६ www.kobatirth.org १५७ जीवविचार स्तवन- पार्श्वजिन, मु. वृद्धिविजय, मा.गु., पद्य, वि. १७१२, आदि श्रीसरसतीजी वरसति अंतिः विजय पणे आनंदकारी, ढाल - ९, गाथा-८३. ११७४५४. (+) नवपदजी मंडलकी पूजाविधि व जलजात्रा विधि, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १३-११(१ से ११) =२, कुल पे. २, प्र. वि. संशोधित. दे. (२८४१२.५ १४४३२). " " १. पे. नाम. नवपदजीकामंडलकि पूजाविधि, पृ. १२अ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र हैं. वि. १९५१, मार्गशीर्ष शुक्ल, ४, शनिवार, ले.स्थल. अजीमगंज मुर्शिदावाद, प्रले. मु. धनसुख ऋषि, पठ. मु. हेमचंद्र, प्र.ले.पु. सामान्य. १० दिक्पाल आवाहन विसर्जन विधि, मा.गु., सं., प+ग., आदि: (-); अंति: प्रसीद परमेश्वरी, पद-१०, (पू.वि. पद-७ अपूर्ण से है.) २. पे. नाम. जलजात्रा विधि, पृ. १२अ १३आ, संपूर्ण. जलयात्रा विधि, मा.गु. सं., गद्य, आदि: सयवारक बेहडा ४ सिंहा अति शेष अर्धे विसर्जन कीजै. Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ११७४५५. () प्रमादी सज्झाय, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, प्र. वि. मूल पाठ का अंश खंडित है, दे., (२७४१२, ४२४१८). वैराग्यपच्चीसी, मु. गोपालदास पुहिं., पद्य, आदि: इह प्रमादी जीव जग अंति: गोपाल० बैकुंठ ले जाइ, गाधा- २९. ११७४५६. (+४) रामचंद्रजी की मुंदरी व आत्महित सज्झाय, संपूर्ण वि. १९वी मध्यम, पू. ३, कुल पे. २, प्र. वि. संशोधित अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैवे. (२७.५४१२, १५४३६). १. पे. नाम. रामचंद्रजी की मुंदरी, पृ. १अ २अ, संपूर्ण, पे.वि. हुंडी कडवाढा. मा.गु., पद्य, आदि: सरसत सांमण बीनउ सतगुर; अंति: दुर्जन हसन कोय, गाथा ३९. - २. पे नाम. आत्महित सज्झाय, पू. २अ ३अ, संपूर्ण, पे. वि. हुंडी: ढालह. 3 औपदेशिक सज्झाय कटुवचन त्याग, रा., पद्य, आदि कड़वा बोल्यां अनरथ अंति मत कोई प्रकास्यो, गाथा- २४. ११०४६२. १० पच्चक्खाणसूत्र, संपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पृ. ३, जैवे. (२७४१२.५, १२x२७-३०). प्रत्याख्यानसूत्र संबद्ध, प्रा., गद्य, आदि उग्गए सूरे नमुक्कार; अंतिः वत्तियागारेण वोसिरे, ११७४६४. (+) पगामसज्झायसूत्र की टीका, अपूर्ण, वि. १९६३, श्रावण शुक्ल, २ अधिकतिथि, सोमवार, मध्यम, पृ. २१-२० (१ से २०)=१, ले.स्थल, पाटण, प्रले. मु. चंदनविजय (गुरु मु, मोहनविजय, तपागच्छ); गुपि, मु, मोहनविजय (गुरु मु. बुद्धविजय, तपागच्छ); मु. बुद्धविजय (तपागच्छ), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. संशोधित, दे. (२७.५४१२.५, १३४४५) पगामसज्झायसूत्र- टीका, सं., गद्य, आदि: (-); अंति: तत्संभवादित्यदोष:, (पू.वि. अड्ढाइज्जेस सूत्र की टीका अपूर्ण है., वि. मूल का प्रतीक पाठ दिया है.) ११७४६५. सातनय विचार, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, दे., (२७१२.५, १९X३८). ७ नय विचार, मा.गु., गद्य, आदि: नैगम नय सामान्य विशेष, अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., व्यवहारनयवर्णन अपूर्ण तक लिखा है.) १९७४६६. (+) बृहद्शांति, अपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पृ. १५-१४(१ से १४) = १ ले स्थल, सीयोर, प्रले. मु. गुमानविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. श्रीसूपार्शनाथ प्रसादात् संशोधित, जैदे. (२७४१२ ३४३७). बृहत्शांति स्तोत्र- तपागच्छीय, सं., प+ग, आदि (-); अंति जैनं जयतु शासनम्, (पू.वि. अंत की गाथा-५ से ६ है.) ११०४६७. स्तवनचीवीसी- ५वें तीर्थंकर तक, संपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पू. २, जै. (२७४१२५ १२४३४-३८). 1 स्तवनचौवीसी, मु. रामविजय, मा.गु., पद्य, आदिः उलगडि आदिनाथनी जो कांइ कि; अंति: (-), प्रतिपूर्ण. ११०४६८. (४) अंगुलसप्ततिका सह व्याख्या, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ४, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र. वि. हुंडी : अंगुलसि ०., अंगुलस, अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२७.५x१२.५, ११४४१). अंगुलसप्ततिका, आ. मुनिचंद्रसूरि, प्रा., पद्य, आदि उसभसमगमणमुसभं जिणमणि, अंति: (-), (पू.वि. गाथा २० तक है) अंगुलसप्ततिका बालावबोध, मा.गु., गद्य, आदि ऋषभजिनने नत्वा नमीने; अंति: (-). ११७४६९ (४) पडिलेहण विधि, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पू. १, प्र. वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे. (२७१२.५, १२x२७). पौषध विधि, गु., गद्य, आदि: प्रथम सामायक लेई राई, अंति: लेहियइता सांडानी पडिलेहण. For Private and Personal Use Only Page #173 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir १५८ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ११७४७०. (+#) पगामसज्झायसूत्र की अर्थनिर्णयकौमुदी टीका, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ४-१(१)=३, पृ.वि. प्रथम एक व अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. संशोधित-पदच्छेद सूचक लकीरें. मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., (२७.५४१२.५, १३४४३). पगामसज्झायसूत्र-अर्थनिर्णयकौमुदी टीका, आ. जिनप्रभसूरि, सं., गद्य, वि. १३६४, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. करेमि भंते सूत्र की टीका अपूर्ण से पगाम सज्झाय प्रथम आलापक की टीका अपूर्ण तक है., वि. मूल का प्रतीक पाठ दिया है.) ११७४७१. उपधानतप स्तवन, संपूर्ण, वि. १८६९, श्रेष्ठ, पृ. १, जैदे., (२६.५४१२.५, १७४४०). उपधानतप स्तवन-वृद्ध, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीमहावीरजी धर्म; अंति: भणै वंछित सुखकरो, ढाल-३, गाथा-१८ ११७४७२. नेमराजिमती बारमासो, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, प्रले. मु. उमेदसागर, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२७.५४१२, ९४३२). नेमराजिमती बारमासा, मा.गु., पद्य, आदि: श्रावण वरसैरे सांमी मेली; अंति: नेम विना कुण कहस्यै चाखो, गाथा-९. ११७४७३. स्नातस्या स्तुति, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, दे., (२६.५४१२.५, ५४३८). पाक्षिक स्तुति, संबद्ध, आ. बालचंद्रसूरि, सं., पद्य, आदि: स्नातस्याप्रतिमस्य; अंति: सदा सर्वकार्येषु सिद्धिम्, श्लोक-४. ११७४७४. (+-) गौतम कलक व प्रास्ताविक श्लोक संग्रह, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ५-१(४)=४, कुल पे. २, प्र.वि. अशुद्ध पाठ-टिप्पण युक्त विशेष पाठ., ., (२७७१३, १०४५५). १.पे. नाम. गौतम कुलक, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. प्रा., पद्य, आदि: लधानरा अथपरा हवंति: अंति: निसेवित सह लहंति. गाथा-२०. २. पे. नाम. प्रास्ताविक श्लोक संग्रह, पृ. १आ-५अ, अपूर्ण, पृ.वि. बीच का एक पत्र नहीं है. सं., पद्य, आदि: पर्वाताग्रे रथं चली भौमौ; अंति: (-), (पृ.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., श्लोक-८३ से श्लोक-१२१ अपूर्ण तक नहीं है व श्लोक-१४१ तक लिखा है.) ११७४७५. (+#) विजयदेवेंद्रसूरि सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, ले.स्थल. पालणपुर, प्रले. पं. मोहन, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२७.५४१२.५, १३४४४). विजयदेवेंद्रसूरि सज्झाय, मा.गु., पद्य, आदि: प्रणमुं सरसति प्रेमसुं आप; अंति: जोड़कर दोय आशीस०, ढाल-४, गाथा-२१. ११७४७६. (+) ऋषिमंडल स्तोत्र-गौतमस्वामी प्रणीत, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ३, प्र.वि. संशोधित., दे., (२७४१२.५, १३४३८-४२). ऋषिमंडल स्तोत्र-बृहद्, आ. गौतमस्वामी गणधर, सं., पद्य, आदि: आद्यंताक्षरसंलक्ष्यमक्षरं; अंति: लभ्यते पदमव्ययम्, श्लोक-६२, ग्रं. १५०. ११७४७८. (+) कल्याणमंदिर स्तोत्र, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ४, प्र.वि. हुंडी:क०., संशोधित., जैदे., (२७.५४१२.५, ११४३३). कल्याणमंदिर स्तोत्र, आ. सिद्धसेनदिवाकरसूरि, सं., पद्य, वि. १वी, आदि: कल्याणमंदिरमुदारमवद्यभेदि; अंति: कुमुद० प्रपद्यते, श्लोक-४४. ११७४७९. सिझणा द्वार व ४२ भाषाभेद का बालावबोध, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, दे., (२७४१२, १४४४०-४४). १.पे. नाम. सिझणा द्वार, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण, वि. १९२०, वैशाख शुक्ल, २, प्रले. सा. गहारीजी (गुरु सा. मंगलीजी); गुपि. सा. मंगलीजी, प्र.ले.पु. सामान्य. बोल संग्रह-विविधगत्यागतादि जीव एकसमयसिद्धसंख्या विचार, मा.ग., गद्य, आदि: पहेली नरक की आया जगन १; अंति: बिम उपजे तो छै महीन की. २. पे. नाम. ४२ भाषाभेद गाथा का बालावबोध, पृ. १आ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. प्रज्ञापनासूत्र-४२ भाषाभेद गाथा का बालावबोध, मा.ग.,सं., गद्य, आदि: भाषा की आद जीव की भाषा की; अंति: (-), (पू.वि. दश प्रकार भाषा का वर्णन अपूर्ण तक है.) For Private and Personal Use Only Page #174 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२६ १५९ ११७४८०. (+) नवस्मरण, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, पृ.वि. मात्र प्रथम पत्र है., प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२६४१२.५, १३४४४). नवस्मरण, म. भिन्न भिन्न कर्तक, प्रा.,सं., प+ग., आदि: नमो अरिहंताणं० हवइ मंगलम्; अंति: (-), (पू.वि. तिजयपहत्त गाथा-७ अपूर्ण तक है.) १९७४८१. (+) चक्रवर्ती वैभव, संपर्ण, वि. १९वी, मध्यम, प.१.प्र.वि. टिप्पण यक्त विशेष पाठ-पदच्छेद सचक लकीरें., जैदे., (२६.५४१२.५, ११४३४). चक्रवर्ती वैभव, सं., गद्य, आदि: हस्तिनश्चतुरशीतिलक्षाः; अंति: आभूषणानि पिंगलैः दत्ते. ११७४८२. (+) पंचप्रतिक्रमणसूत्र संग्रह-तपागच्छीय, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ४, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरे-संशोधित., दे., (२६.५४१२.५, १०४३१). पंचप्रतिक्रमणसूत्र संग्रह-तपागच्छीय, संबद्ध, प्रा.,मा.गु.,सं., प+ग., आदि: चौमाशी पडिकमणामै चैत्य; अंति: (-), (पू.वि. संवत्सरी तप आलोचना तक है.) ११७४८३. आदिजिन स्तवन-अर्बदगिरितीर्थ मंडन, नेमराजीमती पद व पार्श्वजिन स्तवन, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २-१(१)=१, कुल पे. ३, जैदे., (२६४१२.५, १३४३८). १.पे. नाम. आदिजिन स्तवन-अर्बुदगिरितीर्थ मंडन, पृ. २अ, अपूर्ण, पू.वि. प्रथम पत्र नहीं है., वि. १८८२, श्रावण शुक्ल, १३, ले.स्थल. कानपुर, प्रले.पं. कस्तुरविजय (गुरु आ. विजयराजेंद्रसूरि, कमलकलशागच्छ-पोशाल गच्छ), प्र.ले.प. सामान्य. वा. प्रेमचंद, मा.गु., पद्य, वि. १७७९, आदि: (-); अंति: प्रेमचंद० परमानंद, गाथा-३४, (पू.वि. गाथा-२७ से है.) २. पे. नाम. नेमराजिमती पद, पृ. २अ, संपूर्ण. मु. चेनविजय, पुहिं., पद्य, आदि: राजुल पोकारे नेम; अंति: प्रेमविजे सेन चरण पेखरी, गाथा-५. ३. पे. नाम. पार्श्वजिन स्तवन, पृ. २आ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तवन-शंखेश्वर, पं. वीरविजय, मा.गु., पद्य, आदि: सहजानंद शितल सुख भोग; अंति: वीर० घर तेडतां दोय घरी, गाथा-९. ११७४८४. (#) पार्श्वजिन स्तोत्र, आदिजिन स्तवन व शत्रुजयतीर्थ स्तवन, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २-१(१)=१, कुल पे. ३, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६४१२.५, ११४३१). १. पे. नाम. पार्श्वजिन स्तोत्र, पृ. २अ, अपूर्ण, पृ.वि. प्रथम पत्र नहीं है. पार्श्वजिन स्तोत्र-चिंतामणि, आ. कल्याणसागरसूरि, सं., पद्य, आदिः (-); अंति: पदतरुबीजं बोधबिजं नमामी, श्लोक-११, (पू.वि. गाथा-९ अपूर्ण से है.) २.पे. नाम, आदिजिन स्तवन, पृ. २अ-२आ, संपूर्ण. आ. हीररत्नसूरि, पुहिं., पद्य, आदि: एसा जिन एशा जिन एशा; अंति: करजोड खडा इक दम है, गाथा-६. ३. पे. नाम. शत्रुजयतीर्थ स्तवन, पृ. २आअपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. मु. रूपविजय, मा.गु., पद्य, आदि: चालो चालो विमलगिरि; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-४ अपूर्ण तक है.) ११७४८८. (+#) मेघबावनी, संपूर्ण, वि. १९३१, आश्विन कृष्ण, ४, मध्यम, पृ. २, ले.स्थल. विदासर, प्रले. मु. शिखरचंद्र ऋषि, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित-पदच्छेद सूचक लकीरें. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२६४१२.५, १६x४५). पंचांगविधि दोहा, मु. मेघराज, मा.गु., पद्य, वि. १७२३, आदि: गवरीनंद आनंद करि; अंति: मेघराज० सुगम भांति सुखकाज, गाथा-५४. ११७४८९. ज्योतिष चक्र, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, पू.वि. मात्र प्रथम पत्र है., प्र.वि. हुंडी:जोतचक्र., दे., (२६४१२.५, १७४३९). ज्योतिष्कसंख्या विचार, मा.गु., गद्य, आदि: जंबूद्वीपम दोय चंद्रमा; अंति: (-), (पू.वि. पाठ-"तरसोऊंचोतपतो सोझोज" तक है.) ११७४९१ (+) मंत्र-तंत्र-यंत्र संग्रह, शांतिजिन स्तोत्र व ह्रीं कार मायाबीज मंत्र साधन विधि, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २-१(१)=१, कुल पे. ३, प्र.वि. पत्र खंडित होने के कारण पत्रांक अनुमानित दिया गया है., प्रतिलेखन पुष्पिका मिटाई हुई है-संशोधित., जैदे., (२६.५४१२.५, १३४४०). For Private and Personal Use Only Page #175 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir १६० कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १.पे. नाम. मंत्र-तंत्र-यंत्र संग्रह, पृ. २अ, अपूर्ण, पृ.वि. प्रथम पत्र नहीं है. मंत्र-तंत्र-यंत्र संग्रह, उ.,पुहिं.,प्रा.,मा.गु.,सं., प+ग., आदि: (-); अंति: स्तंभेर्बद्ध मृक्षण रक्षा, (पू.वि. "सर्वे दुष्टानां स शत्रुणां आउबंध" पाठांश से है.) २. पे. नाम, शांतिजिन स्तोत्र, पृ. २अ, संपूर्ण. सं., पद्य, आदि: शांतये शांतिकामाय; अंति: तस्य पापशांतिर्भवेदपि, श्लोक-३. ३. पे. नाम. ह्रीं कार मायाबीज मंत्र साधन विधि, पृ. २अ-२आ, संपूर्ण. ह्रींकार मायाबीज साधन विधि, सं., प+ग., आदि: दीपमालिकायां उपोष अथ; अंति: सर्वे सिद्धं तत्र न संशय, श्लोक-७. ११७४९२. (+) अष्टश्लोकानी-अष्टप्रकारीपूजाया, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें., दे., (२६४१२, १३४३५). पार्श्वचंद्रसूरिअष्टप्रकारी पूजा, मा.गु., पद्य, आदि: जलपूजा जलः सुपूरै घृत; अंति: निर्वाणपामीति स्वाहा. ११७४९३. (+#) अन्ययोगव्यवच्छेदद्वात्रिंशिका, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें-टिप्पण युक्त विशेष पाठ. टिप्पणक का अंश नष्ट, जैदे., (२५.५४१२.५, १६४५२). अन्ययोगव्यवच्छेदद्वात्रिंशिका, आ. हेमचंद्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., पद्य, वि. १२वी, आदि: अनंतविज्ञानमतीत; अंति: कृतसपर्याः कृतधियः, श्लोक-३२. ११७४९४. (+) उरब्भिजंध्ययनसूत्र सह टबार्थ, अपूर्ण, वि.२०वी, श्रेष्ठ, पृ. १,प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., दे., (२६.५४१२.५, ४४३१). उत्तराध्ययनसूत्र-हिस्सा अध्ययन ७ उरभिज्ज, प्रा., पद्य, आदि: जहा एसं समद्दिस्स कोइ; अंति: (-), (प.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., गाथा-४ अपूर्ण तक है.) उत्तराध्ययनसूत्र-हिस्सा अध्ययन ७ उरभिज्जं का टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: जहाक० जिम आएसंक० प्राहुणा; अंति: (-), पृ.वि. मात्र प्रथम पत्र है... ११७४९५. ज्ञानपंचमीपर्व स्तवन, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ४-१(१)=३, पू.वि. बीच के पत्र हैं., दे., (२७७१२.५, ११४३४). ज्ञानपंचमीपर्व स्तवन, पंन्या. जिनविजय, मा.गु., पद्य, वि. १७९३, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. ढाल-२ की गाथा-६ ___ अपूर्ण से ढाल-७ की गाथा-२ अपूर्ण तक है.) ११७४९६. ऋषभदेव द्वादशमास, संपूर्ण, वि. १८७६, फाल्गुन शुक्ल, ३, गुरुवार, मध्यम, पृ. १, प्रले. श्राव. गोवरधन रूपचंद ठाकर; पठ. श्रावि. उगरीबाई, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२६.५४१२.५, १२४२३-२९). __ आदिजिन बारमासा-धुलेवामंडन, मु. मूलचंद ऋषि, मा.गु., पद्य, आदि: प्रथम जिणंद प्रणम; अंति: मूलचंद० देवतणा देवा रे, गाथा-१४, (वि. गाथांक नहीं हैं.) ११७४९८. (#) ६४ योगिनी स्तोत्र, बरज्य स्तुति व ऋषिमंडल स्तोत्र, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ३, प्र.वि. मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., (२६४११, १६४५०). १. पे. नाम.६४ योगिनी स्तोत्र, पृ. १अ, संपूर्ण. सं., पद्य, आदि: ॐ दिव्ययोगी महायोगी; अंति: रक्षंत मां मातरः, श्लोक-११. २. पे. नाम. बरज्य स्तुति, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. बरडावीर स्तोत्र, सं., पद्य, आदि: नमदसुरसुराली मौलीकोटार; अंति: श्रेयांसि भूयांसि वः, श्लोक-९. ३. पे. नाम, ऋषिमंडल स्तोत्र, पृ. १आ, संपूर्ण. ऋषिमंडल स्तोत्र-बृहद, आ. गौतमस्वामी गणधर, सं., पद्य, आदि: आद्यंताक्षरसंलक्ष्यमक्षरं; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., श्लोक-२ अपूर्ण तक लिखा है.) ११७४९९ (+) सरस्वतीदेवी स्तोत्र, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें., जैदे., (२६.५४१२.५, १२४३६). सरस्वतीदेवी स्तोत्र, आ. बप्पभट्टसरि, सं., पद्य, वि. ९वी, आदि: करमरालविहंगमवाहना; अंति: रंजयति स्फुटम्, श्लोक-१३. ११७५००. ऋषिमंडल स्तोत्र, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ३, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., जैदे., (२६४१२.५, ११४२९). For Private and Personal Use Only Page #176 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२६ www.kobatirth.org १६१ 1 ऋषिमंडल स्तोत्र वृहद् आ. गौतमस्वामी गणधर सं., पद्य, आदि आचंताक्षरसंलक्ष अंति: (-) (पू.वि. गाथा-७२ अपूर्ण तक है.) Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ११७५०१ (+४) प्रतिक्रमणसूत्र संग्रह सह टवार्थ व वालावबोध, अपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पृ. ४, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं.. प्र. वि. संशोधित त्रिपाठ, टीकादि का अंश नष्ट है. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैवे. (२६.५x१२.५, ३-६४३९). "" , पंचप्रतिक्रमणसूत्र-खरतरगच्छीय, संबद्ध, प्रा., मा.गु., सं., प+ग., आदि: (१) कम्मभूमीहिं पढमसंघयण, (२) जयउ साम जयउ सामी रिसह, अंति: (-) (पू.वि. प्रारंभिक चैत्यवंदन जयवीयरायसूत्र अपूर्ण तक है.) पंचप्रतिक्रमणसूत्र-खरतरगच्छीय-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: पंचभरत पंचइरवरत; अंति: (-). पंचप्रतिक्रमणसूत्र खरतरगच्छीय- बालावबोध, मा.गु., गद्य, आदि (-); अंति (-), (पू.वि. संसारदावानल स्तुति से बालावबोध लिखा है.) " ११७५०२ (+४) कल्पसूत्र का व्याख्यान व कथा, अपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पृ. ११३-१११(१ से १११) २. पू. वि. बीच के पत्र हैं.. प्र. वि. संशोधित मूल पाठ का अंश खंडित है, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे. (२६.५x१२.५ १२४३७). कल्पसूत्र व्याख्यान+कथा, मा.गु., गद्य, आदि (-); अंति (-), (पू.वि. आदिजिन चरित्र तृतीयभववर्णन अपूर्ण से सममभववर्णन अपूर्ण तक है.) ११७५०३. मरणसमाधि प्रकीर्णक, अपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पृ. ६६ ६४(१ से ६४ ) = २, जैवे. (२७४१२.५ १८x४०-४६). मरणसमाधि प्रकीर्णक, प्रा., पद्य, आदि: (-); अंति: जेणसुज्झ यव्वं, गाथा- ६५८, ( पू. वि. गाथा - ६१६ अपूर्ण से है.) ११७५०५ (F) हस्तप्रत सूचि, संपूर्ण वि. १९१४, मध्यम, पृ. १. ले. स्थल मेडता, प्र. वि. किसी अज्ञात प्रतिलेखक के द्वारा लिखी हुई प्रतों की सूचि अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे. (२६४१२.५, १२४३०). " हस्तप्रत ग्रंथसूची, मा.गु., गद्य, आदि (-); अंति: (-). ११७५०६ ९६ जिन नाम, संपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पृ. १, जैवे. (२६४१२.५, १३४३०) ९६ जिन नाम, मा.गु., गद्य, आदि: श्रीकेवलज्ञानी श्रीनिर्वा; अंति: श्रीवारीषेण जिनायनमः. ११७५०७ त्रिषष्टिशलाकापुरुष चरित्र, संपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पृ. २, जैये. (२५.५x१२, ११४३०). त्रिषष्टिशलाकापुरुष चरित्र-हिस्सा सकलार्हत् स्तोत्र, आ. हेमचंद्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., पद्य वि. १२वी, आदि सकलात्प्रतिष्ठानम; अंति निचय श्रीवीरभद्रं दस, श्लोक-२८. ११७५०८ (४) १८ हजार शीलांग भेद, १३ काठिया नाम व १४ आवकनियम गाथा, अपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पृ. ३-२ (१ से २)=१, कुल पे. ३, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., ( २६x१२.५, १x२९). १. पे. नाम. अढारसहस्रशीलना भेद, पृ. ३अ-३आ, संपूर्ण. १८ हजार शीलांग भेद, मा.गु., गद्य, आदि प्रथम स्त्रीना ४ भेद, अंति: अडारेहजार शीलना भेद जाणवा २. पे. नाम. १३ काठीयारा नाम, पृ. ३आ, संपूर्ण. १३ काठिया नाम, मा.गु., गद्य, आदि आसल १ मोह २ अवर्णवाद: अंति: १३ काठिया विचार० न करवा. ३. पे. नाम. १४ श्रावकनियम गाथा, पृ. ३आ, , संपूर्ण. प्रा., पद्य, आदि: सचित्त १ दव्व २ विगइ; अंति: भातपाणी १४ नियम जाणवा, गाथा - १. ११७५०९ (#) जिनप्रतिमादृढीकरण हुंडी संपूर्ण, वि. १८८६ पौष शुक्ल ५, मध्यम, पृ. २, ले. स्थल, जालोर, प्रले. पं. देवीचंद, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. श्रीपार्श्वनाथ प्रसादात्., मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., (२५.५X१२.५, १७X३४). जिनप्रतिमाहुंडी रास, मु. जिनहर्ष, मा.गु., पद्य, वि. १७२५, आदि: श्रुतदेवी हीयडै धरी; अंति: सुपसाये जिनहरष कहं के, गाथा-६७. ११७५१० (+#) मौनएकादशीपर्व गणणुं, संपूर्ण, वि. १८६४, मार्गशीर्ष कृष्ण, ३, मध्यम, पृ. ३, ले. स्थल. देसणोक, प्रले. मु. प्रसन्नचंद, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६X१२.५, १२X३४). मौनएकादशीपर्व गणणुं, सं., गद्य, आदि: (अपठनीय); अंतिः श्रीआरणनाथाय नमः ११७५११. (+) पार्श्वजिन स्तुति व चरणसित्तरी करणसित्तरी का बालावबोध, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, प्र. वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ. वे. (२५४१२.५, ३-११४३३-३६) For Private and Personal Use Only Page #177 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir १६२ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १.पे. नाम. पार्श्वजिन स्तुति, पृ. १अ, संपूर्ण. मु. रत्नसागर, मा.गु., पद्य, आदि: तारक श्री जिनराज सुहंकर; अंति: रतनसागर० धर्म तना अधारोजी, गाथा-४. २. पे. नाम. चरणसित्तरी करणसित्तरी का बालावबोध, पृ. १आ, संपूर्ण. चरणसत्तरी-करणसत्तरी गाथा-बालावबोध, मा.गु., गद्य, आदि: पंचमहाव्रत; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., नववाडवर्णन अपूर्ण तक लिखा है.) ११७५१२. विमलाचल स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, प्रले. मु. ऋषभचंद, प्र.ले.पु. सामान्य, दे., (२६४१२.५, ९४२६). शत्रुजयतीर्थ स्तवन-आशातनावर्जन, पं. वीरविजय, मा.गु., पद्य, आदि: तीरथनी आशातना नवि; अंति: शुभवीर० मंगल शिवमाल, गाथा-८. ११७५१३. सुगंधदशमीव्रत कथा, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २-१(१)=१, प्र.वि. लेखनपद्धति गुटका ग्रंथवत् है., जैदे., (२६४१०,१२४३५). सुगंधदशमीव्रत कथा, सं., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. मात्र बीच का ही एक पत्र है., राजा द्वारा साधु से पुत्री की दुर्गंधनिवृत्ति प्रश्न से वन में सुगुप्ताचार्य के आगमन प्रसंग तक है.) ११७५१४. (#) १२ व्रत विचार, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. २, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२५.५४१२.५, २१४४८). १२ व्रत विचार, मा.गु., गद्य, आदि: पहले व्रत मे तसजीव जानके; अंति: (-), (पू.वि. सप्तमव्रतवर्णन अपूर्ण तक है.) ११७५१५. देवसिप्रतिक्रमणसूत्र, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १३-११(१ से ११)=२, पू.वि. प्रारंभ व अंत के पत्र नहीं हैं., दे., (२६४१२.५, २-७४३६). देवसिप्रतिक्रमणसूत्र-तपागच्छीय, संबद्ध, प्रा.,मा.गु.,सं., प+ग., आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. इच्छामि पडिक्कमिउंसूत्र अपूर्ण से वंदित्तुसूत्र गाथा-६ अपूर्ण तक है.) । ११७५१६. (#) प्रश्नोत्तर बोल संग्रह, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ३-१(१)=२, पृ.वि. प्रथम एक व अंत के पत्र नहीं हैं.,प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२६४१२, १४४२३-४६). बोल संग्रह-आगमगत विविध प्रश्नोत्तरादि, प्रा.,मा.गु.,सं., प+ग., आदिः (-); अंति: (-), (पू.वि. प्रश्न-१४ से २७ तक ___ है., वि. प्रतिलेखक ने २१ व ४५ प्रश्नों का विभाजन किया है.) ११७५१७.(+) विनयचट रास, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२६.५४१३, १३४३२). विनयचट रास, मु. ऋषभसागर, मा.गु., पद्य, वि. १८३०, आदि: पार्श्वनाथ जिनवर प्रणमि; अंति: (-), (पू.वि. ढाल-१ गाथा-८ अपूर्ण तक है.) ११७५१८. पार्श्वजिन पालगुं, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २-१(१)=१, जैदे., (२६४१३, ९४३१). पार्श्वजिन पालj, ग. उत्तमविजय, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: अवीचल उत्तमविजय वीलास, गाथा-१५, (पू.वि. गाथा-१० अपूर्ण से है.) । ११७५१९. ३५ मार्गानुसारीगुण सज्झाय, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, दे., (२६४१२.५, १४४४२). मार्गानुसारी ३५ गुण सज्झाय, उपा. मानविजय, मा.गु., पद्य, आदि: वीर कहइ भविजन प्रते; अंति: मान कहे शुभ वाणी हो, गाथा-१७. ११७५२०. शास्वतश्री स्तोत्र, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, प. १, दे., (२६४१३, १६४३६). नंदीश्वरद्वीप स्तोत्र, प्रा., पद्य, आदि: वंदिअ नंदिअ लोअंजिणविसरं; अंति: बत्तीसं सोलचउ वंदे, गाथा-२५. ११७५२१ (+) चंद्रराजा रास, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १९-१८(१ से १८)=१, पृ.वि. मात्र बीच का ही एक पत्र है., प्र.वि. संशोधित., दे., (२६४१२.५, १४४३८). चंद्रराजा रास, मु. मोहनविजय, मा.गु., पद्य, वि. १७८३, आदिः (-); अंति: (-), (पू.वि. खंड-१ ढाल-१८ गाथा-१५ अपूर्ण से ढाल-१९ गाथा-१७ अपूर्ण तक है.) For Private and Personal Use Only Page #178 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२६ १६३ ११७५२३. दीपावली व्याख्यान का बालावबोध, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ७-३(२ से ३,५)=४, पृ.वि. बीच-बीच व अंत के पत्र नहीं हैं., दे., (२६.५४१२.५, ११४२५). दीपावली व्याख्यान-बालावबोध, पुहिं., गद्य, आदि: (१)प्रणम्य परया भक्त्या, (२)मे दीपमालिकापर्ब का; अंति: (-), (पू.वि. तृतीय स्वप्नवर्णन अपूर्ण तक है व बीच-बीच के पाठांश नहीं हैं.) ११७५२४. लोकनालिद्वात्रिंशिका, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, जैदे., (२६.५४१२, ३४१८). लोकनालिद्वात्रिंशिका, आ. धर्मघोषसूरि , प्रा., पद्य, वि. १४वी, आदि: जिणदंसणं विणाजं लोयं; अंति: (-), (पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., गाथा-२ अपूर्ण तक है.) ११७५२५. अक्षयतृतीयापर्व व्याख्यान, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., दे., (२६४१२.५, १३४३४). अक्षयतृतीयापर्व व्याख्यान, उपा. क्षमाकल्याण, सं., गद्य, आदि: प्रणिपत्य प्रभु; अंति: (-), (पृ.वि. 'छिन्नस्यप्रसुकाहारदानादान विधि' पाठांश तक है.) ११७५२९. स्तवन संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ८-७(१ से ७)=१, कुल पे. ३, जैदे., (२५.५४१३, १०४३४). १. पे. नाम. वीरसेनजिन स्तवन, पृ. ८अ, संपूर्ण. उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: पश्चिम अरध पुष्करवरे विजय; अंति: करो साहीब प्रीत घेणेरी रे, गाथा-६, (वि. आदिवाक्य का आदि शब्द "पश्चिम" प्रत में नहीं है.) २. पे. नाम. महाभद्रजिन स्तवन, पृ. ८अ-८आ, संपूर्ण. उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: श्रीदेवरायनो नंद मात उमा; अंति: हुं सेवक देव करो दया जी, गाथा-७. ३. पे. नाम. चंद्रयशाजिन स्तवन, पृ. ८आ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. उपा. यशोविजयजी गणि, मा.ग., पद्य, वि. १८वी, आदि: चंदयसाजिन राजिउ मनमोहन; अंति: (-), (प.वि. गाथा-४ अपूर्ण तक है.) ११७५३० (+) पार्श्वजिन धूपपूजा व पार्श्वजिन नमस्कारादि संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, प. १, कुल पे. ५, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., दे., (२६४१२.५, १२४३५). १. पे. नाम. पार्श्वजिन धूपपूजा, पृ. १अ, संपूर्ण. मा.गु.,सं., पद्य, आदि: कृष्णागरमृगमदतगर अंबरतुरक; अंति: (१)जिनपतेपुरतोस्तु सुहर्षितः, (२)धूपं यजामहे स्वाहा, गाथा-५. २. पे. नाम. पार्श्वजिन नमस्कार, पृ. १अ, संपूर्ण. पार्श्वजिन नमस्कार-स्थंभनक, प्रा., पद्य, आदि: जय महायस जय महायस; अंति: तिसंज नमोत्थु नमोत्थु, गाथा-२. ३. पे. नाम, भुवनदेवता स्तुति, पृ. १अ, संपूर्ण. सं., पद्य, आदि: चतुर्वर्णाय संघाय देवी; अंति: दरित० करोतु सुखमक्षतं, श्लोक-१. ४. पे. नाम. क्षेत्रदेवता स्तुति, पृ. १अ, संपूर्ण. संबद्ध, सं., पद्य, आदिः यासां क्षेत्रजगतास्संति; अंति: रक्षत क्षेत्रदेवता, श्लोक-१. ५. पे. नाम. पार्श्वजिन स्तव, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तुति-विविध तीर्थमंडण, प्रा.,मा.गु.,सं., पद्य, आदि: श्रीसेढीतटनी तटेपुरवरे; अंति: पास पयच्छउ वंच्छियं, गाथा-४. १९७५३१. (#) उत्तराध्ययनसूत्र सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २-१(१)=१, पू.वि. प्रथम एक व अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. पत्रांक अनुमानित दिया गया है., अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६.५४१२.५, ७४३७). उत्तराध्ययनसूत्र, मु. प्रत्येकबुद्ध, प्रा., प+ग., आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. अध्ययन-१ गाथा-४ अपूर्ण से ८ अपूर्ण तक उत्तराध्ययनसूत्र-टबार्थ + कथा संग्रह , मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: (-). For Private and Personal Use Only Page #179 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir १६४ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ११७५३५. (#) भुवनदीपक सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, प्र.वि. मूल पाठ का अंश खंडित है, दे., (२५४१२.५, ६४३६). भवनदीपक, आ. पद्मप्रभसूरि, सं., पद्य, वि. १३पू, आदि: सारस्वतं नमस्कृत्य; अंति: (-), (पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., श्लोक-७ अपूर्ण तक है.) भवनदीपक-टबार्थ *, मा.गु., गद्य, आदिः (अपठनीय); अंति: (-), प.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. ११७५३८. नवतत्त्व भेद, संपूर्ण, वि. १९६२, भाद्रपद शुक्ल, ८, मध्यम, पृ. २, ले.स्थल. दामनगर, प्रले. श्राव. अमृतलाल मोतिचंद अजमेरा; पठ. सा. पार्वती बाई, प्र.ले.पु. सामान्य, दे., (२६.५४१२.५, १९४६४). नवतत्त्व २७६ भेद विचार, मा.गु., गद्य, आदि: जीवतत्त्व१ संवरतत्त्व२; अंति: जीव थकी अनंत गुणा छे. ११७५३९ (+) एकादशी चैत्यवंदन, पंचमी नमस्कार व आठम नमस्कार, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ३, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२७४१२.५, १३४३८). १.पे. नाम. एकादशी चैत्यवंदन, पृ. १अ, संपूर्ण. एकादशीतिथि चैत्यवंदन, म. खिमाविजय, मा.गु., पद्य, आदि: सासन नायक वीरजी वर केवल; अंति: खिमाविजय० ___ सफल करी अवतार, गाथा-९. २.पे. नाम. पंचमी नमस्कार, प. १अ-१आ, संपूर्ण. ज्ञानपंचमीपर्व चैत्यवंदन, मु. रंगविजय, मा.गु., पद्य, आदि: त्रिगडे बेठा वीर जिन; अंति: परे रंगविजय लहो सार, गाथा-३. ३. पे. नाम, आठम नमस्कार, पृ. १आ, संपूर्ण. अष्टमीतिथिपर्व चैत्यवंदन, पंन्या. पद्मविजय, मा.ग., पद्य, वि. १९वी, आदि: माहा सुदि आठमने दिन; अंति: सेव्याथी सिववास, गाथा-७. ११७५४० (+) आवश्यकमूलसूत्रे पच्चक्खाण विधि, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २-१(१)=१, प्र.वि. हुंडी:पचक्खाण., संशोधित., जैदे., (२६४१२, १२४३१). प्रत्याख्यानसूत्र, संबद्ध, प्रा., गद्य, आदि: (-); अंति: समाइवत्तियागारेणं वोसरामि, (पू.वि. एकासणा पच्चक्खाण अपूर्ण से ११७५४१. (#) ज्ञानपंचमीपर्व देववंदन विधि, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ.१, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. मूल पाठ का अंश खंडित है, दे., (२६.५४१३, ११४३९). ज्ञानपंचमीपर्व देववंदन विधि, प्रा.,मा.गु., गद्य, आदि: प्रथम बाजोठ उपर तथा ठवणी; अंति: (-), (पू.वि. प्रारंभिक __ चैत्यवंदन अपूर्ण तक है.) । ११७५४२. (+) नेमिजिन चरित्र, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ३६५-३६४(१ से ३६४)=१, पू.वि. मात्र बीच का ही एक पत्र है., प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरे-संधि सूचक चिह्न-संशोधित., जैदे., (२६.५४११.५, ९४३९). नेमिजिन चरित्र, सं., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. श्लोक-२५ अपूर्ण से ९५ अपूर्ण तक है.) ११७५४३. (+) विजयकुंवर सज्झाय, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ३, प्र.वि. हुंडी:सिझायली., संशोधित., दे., (२६४१३, १५४३३). विजयसेठविजयासेठाणी सज्झाय, म. लालचंद, मा.गु., पद्य, वि. १८६१, आदि: श्रीवीतराग देव जिनदेव नम; अंति: रामपुरे गुणगाया, गाथा-१७.. ११७५४४. (+) विजयजिनेंद्रसूरि अष्टक, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, ले.स्थल. राधणपुर, अन्य. मु. हीरविजय; प्रले. मु. रंगविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२६.५४१२.५, १४४३८). विजयजिनेंद्रसूरि अष्टक, मु. रंगविजय, सं., पद्य, आदि: नत्वा श्रीजिन पाद पंकज; अंति: रंगेण० पटुयाव दुष्करश्मि, श्लोक-१०. ११७५४५ (+) ५ इंद्रिय ढाल, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ३-२(१ से २)=१, प्र.वि. संशोधित., दे., (२५.५४१२.५, २१४४२-५३). ५ इंद्रिय ढाल, मु. क्षेमकुशल, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: पामो हाथे कुशलने खेम के, ढाल-५, (पू.वि. ढाल-३ गाथा-१० अपूर्ण से है.) For Private and Personal Use Only Page #180 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२६ १६५ ११७५४६. आत्मप्रबोध सज्झाय व शालिभद्रमनि सज्झाय, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ६-५(१ से ५)=१, कुल पे. २, दे., (२६४१२.५, १८४३४). १.पे. नाम. आत्मप्रबोध सज्झाय, पृ. ६अ, संपूर्ण. औपदेशिक सज्झाय-दानफल, मु. लावण्यसमय, मा.गु., पद्य, वि. १६वी, आदि: एक घर घोडा हाथीया जी रे; अंति: ___ लावण्य० पामे अमर विमान रे, गाथा-९. २. पे. नाम. शालिभद्रमनि सज्झाय, पृ. ६अ-६आ, अपर्ण, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. मु. सहजसुंदर, मा.गु., पद्य, वि. १६वी, आदि: प्रथम गोवालीया तणे भवे जी; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-२३ अपूर्ण तक ११७५४७. मौनएकादशीपर्व स्तवन, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ५-३(१ से ३)=२, दे., (२६.५४१३, १६४३१). मौनएकादशीपर्व स्तवन, म. कांतिविजय, मा.गु., पद्य, वि. १७६९, आदि: द्वारिकानयरी समोसर्या रे; अंति: (-), (प्रतिअपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., ढाल-२ तक लिखा है.) ११७५४८. माणभद्रजी छंद, माणिभद्रवीर छंद व घडपण सज्झाय, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २-१(१)=१, कुल पे. ३, जैदे., (२६४१३, २०४६८). १. पे. नाम. माणभद्रजी छंद, पृ. २अ, अपूर्ण, पू.वि. प्रथम पत्र नहीं है. माणिभद्रवीर स्तोत्र, उपा. उदय वाचक, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: जे माणिभद्र सेवे सदा, गाथा-२५, (पू.वि. गाथा-११ अपूर्ण से है.) २. पे. नाम. माणिभद्रवीर छंद, पृ. २अ-२आ, संपूर्ण, ले.स्थल. पालणपुर. मु. लालकुशल, मा.गु., पद्य, आदि: सरसति भगवती भारती; अंति: ते लालकुशल लक्ष्मी लही, गाथा-२१. ३. पे. नाम. घडपण सज्झाय, पृ. २आ, संपूर्ण. मु. रूपविजय, मा.गु., पद्य, आदि: गरडपण किणे तुझ तेडीयो किण; अंति: शिष्य रूपविजय गुण गाय रे, गाथा-७. ११७५४९. सज्झाय संग्रह, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ३, कुल पे. ५, दे., (२६४१२, ११४३०-३३). १.पे. नाम. इलापुत्र सज्झाय, पृ. १आ-२अ, संपूर्ण. इलाचीकुमार सज्झाय, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, आदि: नाम इलापुत्र जाणीये; अंति: करे समयसुंदर गुण गाय, गाथा-९. २. पे. नाम. अरणिक सज्झाय, पृ. २अ-२आ, संपूर्ण. अरणिकमनि सज्झाय, उपा. समयसंदर गणि, मा.ग., पद्य, आदि: अरणक मुनिवर चाल्या गोचरी; अंति: समयसुंदर० __ फल सिधो जी, गाथा-८. ३. पे. नाम. सीतासती सज्झाय, पृ. २आ-३अ, संपूर्ण. सीतासती सज्झाय-शीलविषये, ग. जिनहर्ष, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: जलजलती मिलती घjरे; अंति: जिनहरष० प्रणमे पाय रे, गाथा-८... ४. पे. नाम, वैराग सज्झाय, पृ. ३अ-३आ, संपूर्ण. औपदेशिक सज्झाय-माया परिहार, महमद, मा.गु., पद्य, आदि: भूलो मन भमरा काई; अंति: महमद० लेखो साहिब हाथ, गाथा-९. ५.पे. नाम. चेलणाराणी सज्झाय, पृ. ३आ, अपर्ण, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. चेलणासती सज्झाय, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, आदि: वीर वखाणी राणि चेलणा; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-५ अपूर्ण तक है.) ११७५५० (#) श्रावकपाक्षिकअतिचार, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २५-२२(१ से २१,२३)=३, पू.वि. बीच के पत्र हैं., प्र.वि. अक्षर फीके पड गये हैं, जैदे., (२६.५४१२.५, ११४३६). श्रावकपाक्षिकअतिचार-तपागच्छीय, संबद्ध, प्रा.,मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. स्थूल-२ अपूर्ण से स्थूल-६ अपूर्ण तक व स्थूल-८ अपूर्ण से तपाचार स्थूल अपूर्ण तक है.) For Private and Personal Use Only Page #181 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir १६६ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ११७५५१. जिनबिंबप्रवेश विधि, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, पृ.वि. मात्र प्रथम पत्र है., जैदे., (२७४१२.५, १३४३४). जिनबिंब प्रवेशस्थापना विधि, मा.गु.,सं., गद्य, आदि: प्रथम दिन शुभ जोइने; अंति: (-), (पू.वि. प्रभु प्रवेश विधि अपूर्ण तक है.) ११७५५२. (+) कल्पसूत्र सह टीका, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २-१(१)=१, पृ.वि. मात्र बीच का ही एक पत्र है.,प्र.वि. पत्रांक लिखा न होने के कारण अनुमानित पत्रांक दिया गया है., पदच्छेद सूचक लकीरें., जैदे., (२६४१२.५, ८x४५). कल्पसूत्र, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. सूत्र-१०३ अपूर्ण से १०४ तक है. (गर्भ में महावीरजिन द्वारा दीक्षा प्रतिज्ञा प्रसंग अपूर्ण से सुखपूर्वक गर्भवहन प्रसंग तक है.)) कल्पसूत्र-टीका *, सं., गद्य, आदि: (-); अंति: (-).. ११७५५४. नमिराजर्षि ढाल, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. २, ले.स्थल. रासमीनगर, प्रले. श्राव. ऋषभदास, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. हुंडी:नमीरायनी. देवगुरुप्रसादत्, दे., (२६.५४१२.५, २०४५६). नमिराजर्षि ढाल, म. आसकर्ण ऋषि, मा.गु., पद्य, वि. १८३९, आदि: सासणनायक समरीये; अंति: तो मने मिच्छामि दुकडाजी, ढाल-७. ११७५६४. (+#) ध्यानफल गाथा व संबोधपंचाशिका, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ३, कुल पे. २, प्र.वि. संशोधित-पदच्छेद सूचक लकीरें-टिप्पण युक्त विशेष पाठ. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२९x१२.५, ११४३७). १.पे. नाम, ध्यानफल गाथा, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण, पे.वि. हंडी:धांन. पिंडस्थपदस्थादि ४ ध्यानभेद गाथा, प्रा., पद्य, आदि: चित्तणिरोहे ज्झाणं चउविह; अंति: जिणवर वंदेहिं ज्झाणस्सा, गाथा-२१. २.पे. नाम. संबोधपंचाशिका, पृ. १आ-३आ, संपूर्ण, पे.वि. हुंडी:पंचासि०. क. रइध महाकवि, अप., पद्य, आदि: णमिऊण अरुहचलणं वंदेप्पिण; अंति: पयडिजं तं च सुहबोहं, गाथा-५०, (वि. अंत में १ श्लोक लिखा है.) ११७५६५ (+) बृहत्संग्रहणी सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ३, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. अन्वय दर्शक अंक युक्त पाठ-पदच्छेद सूचक लकीरें., दे., (२८.५४१२.५, ५४२३). बृहत्संग्रहणी, आ. चंद्रसूरि, प्रा., पद्य, वि. १२वी, आदि: नमिउं अरिहंताई ठिइ; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-१९ अपूर्ण तक बृहत्संग्रहणी-टबार्थ *, मा.गु., गद्य, आदि: नमस्कार करके अर्हतादिक; अंति: (-), (वि. यत्र-तत्र टबार्थ लिखा है.) ११७५७१ (+) विजयानंदसूरि प्रशस्ति, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, प्र.वि. हुंडी:प्रस०. आचार्य श्रीमद् विजयकमलसूरीस्वर प्राचीन हस्तलिखित जैन पुस्तकोद्धार फंड सुरत तरफथी श्रीजैनआनंदपुस्तकालय माटे लखाव्यु., संशोधित., दे., (२९.५४१२.५, १०x४४). विजयानंदसरि प्रशस्ति, सं., पद्य, आदि: श्रीमद विक्रम वर्ष; अंति: तत संस्बया लेखितम, गाथा-५. ११७५७४. (+) उत्सर्गापवाद षड्भंगी विचार, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. २, प्र.वि. संशोधित., दे., (२९.५४१२.५, ६४३१). उत्सर्गापवाद षड्भंगी विचार, प्रा.,सं., गद्य, आदि: उत्सर्गादपवादादुत्सर्गा०; अंति: पूर्णार्थप्राप्यकलक्षणं. ११७५७६. प्रतिलेखन पुष्पिका व दानमहिमा श्लोक, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ३४-३३(१ से ३३)=१, कुल पे. २, अन्य. श्रावि. नाइकदे नेमदास; श्रावि. नारिगदे नरसिंघ; श्राव. जिनदास नरसिंघ; श्रावि. यौणादे जिणदास; श्रावि. आभलदे आभा; लिख. श्रावि. गौरादे गूजर सा; गृही. आ. रत्नभूषणसूरि; प्रले. नराईण, प्र.ले.पु. विस्तृत, प्र.ले.श्लो. (४४०) तैलाद् रक्षेद् जलाद् रक्षेद्, (६३२) भग्न प्रष्टि कटि ग्रीवा, जैदे., (२९x१२.५, ९४४४). १.पे. नाम, प्रतिलेखन पुष्पिका पत्र, पृ. ३४अ, अपूर्ण, पू.वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं. प्रतिलेखन पुष्पिका पत्र संग्रह-छुटक*, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: (-). २. पे. नाम. दानमहिमा श्लोक, पृ. ३४अ, संपूर्ण. सं., पद्य, आदि: ज्ञानवान ज्ञानदानेन; अंति: निर्व्याधिर्भेषजाभवेत. श्लोक-१. For Private and Personal Use Only Page #182 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२६ १६७ , ११७५७७ (+४) ४ मंगल व औपदेशिक दूहा, संपूर्ण वि. १९वी मध्यम, पृ. ३, कुल पे. २. प्र. वि. हुंडी मंगल, संशोधित मूल पाठ का अंश खंडित है, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२९x१२.५, १७४४४-४८). १. पे. नाम. ४ मंगल, पृ. १अ ३आ, संपूर्ण. ४ मंगल चौढालियो, मा.गु., पद्य, आदि: अनंत चोवीसी नित नमुं सकल; अंति: उधरीए गयाज मारो जीतके, ढाल-४, गाथा - ९५. २. पे नाम औपदेशिक दूहा, पृ. ३आ, संपूर्ण. औपदेशिक दोहा संग्रह *, पुहिं., पद्य, आदि: चित हरति कठन है सहलू हरण; अंति: उर बसी है उर बसी समान, दोहा-५. ११७५७८. (+) लुंकागच्छ प्रशस्तिपत्र संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. २, प्र. वि. संशोधित., जैदे., (२८.५X१२.५, ५४x२५). लुकागच्छ प्रशस्तिपत्र संग्रह, सं., पद्म, आदि: स्वस्तिश्रीशरणजनैकशरणं; अति श्रीमदृणि प्रभावतः, श्लोक १००, (वि. अलग-अलग लोकक्रम में प्रशस्ति है. सभी प्रशस्तियों का अनुमानित श्लोक परिमाण दिया गया है.) ११७५७९. दश पच्चक्खाण, अपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पू. १, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. जैदे., (२७.५x१३, १४४२६). प्रत्याख्यानसूत्र, संबद्ध, प्रा. गद्य, आदि उष्णए सूरे नमुक्कार, अंति (-), (पू.वि. एकासणा पच्चकखाण अपूर्ण तक है.) ११७५८९. होलिकापर्व व्याख्यान, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. २, प्र. वि. हुंडी: होलीका०., दे., (२८x१३, १३x४४). होलिकापर्व व्याख्यान, उपा. क्षमाकल्याण, सं., गद्य वि. १८३५, आदि: होलिका फाल्गुने मासे अतिः सुविशाद व्याख्यान भृत्. " " ११७५९० (+) सुरसुंदरी चौपाई, अपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पू. ७-६ (१ से ६) १. पू.वि. मात्र बीच का ही एक पत्र है. प्र. वि. संशोधित, जैदे. (२७४१२.५ १२४३०). " सुरसुंदरी चौपाई, मु. धर्मवर्धन, मा.गु., पद्य, वि. १७३६, आदि (-); अति (-), (पू.वि. ढाल ६ अंतिमगाथा अपूर्ण से ढाल-८ गाथा-७ अपूर्ण तक है.) ११७५९१. हितोउपदेस सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९१५, मार्गशीर्ष शुक्ल, ६, शनिवार, मध्यम, पृ. ३, प्रले. मु. पुन्यकुल; पठ. श्रावि. गदबाई, प्र.ले.पु. सामान्य, वे. (२७.५४१३, २०x१०) . पदेशिक सज्झाय गर्भावास, मु. श्रीसार, मा.गु., पद्य, आदि उतपति जोइजो आपणी मन अति इम कहे श्रीसार ए. गाथा- ७१. ११७५९३. सरस्वती छंद, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २, प्र. वि. हुंडी : सरस्वती स्तोत्र. सरस्वती छंद., जैदे., (२८X१३, १५X२६). सरस्वतीदेवी छंद, मु. शांतिकुशल, मा.गु., पद्य, आदि सरस वचन समता मन आणी अंतिः शांतिकुसल० फलसे सवि ताहरी, गाथा- ३५. ११७५९४. जंबूद्वीपप्रज्ञप्ति का टबार्थ, संपूर्ण, वि. २०वी मध्यम, पृ. १, दे. (२७४१३, ८४४१) जंबूद्वीपप्रज्ञप्ति-टवार्थ, मु, जीवविजय, मा.गु., गद्य वि. १७७०, आदि: श्रीसिद्धार्थनराधिप अति (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., प्रारंभिक नमस्कार के टबार्थ अपूर्ण तक लिखा है.) ११७५९८. (+४) नवग्रह पूजा, पार्श्वनाथ पूजा व स्तोत्रादि संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पृ. २, कुल पे. ५, प्र. वि. संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२८x१३, १६X५५). १. पे. नाम. नवग्रह पूजन, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. नवग्रह पूजा, प्रा., मा.गु. सं., प+ग, आदि आदित्यसोमक्षितिनंदन; अंति: च सर्वग्रहाशांतिदं, २. पे. नाम. चिंतामणी पार्श्वनाथ पूजा जयमाला, पृ. १आ-२अ संपूर्ण. पार्श्वजिन पूजा जयमाला- चिंतामणि, आ. सोमसेन, सं., पद्य, आदि शांति विद्धफ, अति स प्रयाति निधानं, श्लोक-१८. " ३. पे नाम. पार्श्वनाथ पूजा, पू. २अ २आ, संपूर्ण. पार्श्वजिन ८ प्रकारी पूजा, आ. दीपरत्नसूरि; श्राव. वच्छ भंडारी, मा.गु., पद्य, आदि: क्षीर जलनिधि नीर; अंति: जन्म मृत्यु विनाशनं. ४. पे नाम. पार्श्वनाथ स्तोत्र, पृ. २आ, संपूर्ण. For Private and Personal Use Only Page #183 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org १६८ कैलास पार्श्वजिन पूजा, मा.गु. सं., प+ग, आदि जय जय श्री पार्श्वनाथ देव अंतिः पार्श्वनाथ जिनेश्वरो, ५. पे. नाम. कलिकुंड पूजा, पृ. २आ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. सं., प+ग, आदि ॐ हूँकारं ब्रह्मरुद्ध अति (-) (पू.वि. श्लोक-२ अपूर्ण तक है.) ११७६०० (#) पार्श्वजिन छंद, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र. वि. मूल पाठ का अंश खंडित है, अक्ष की स्याही फैल गयी है, जै. (२७.५४१३ १२४३२). Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir श्रुतसागर ग्रंथ सूची पार्श्वजिन छंद - अंतरिक्षजी, वा. भावविजय पं., मा.गु., पद्य, आदि: सरसति मात मया करी; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-२९ अपूर्ण तक है.) ११७६०१. आदिजिन स्तवन व शांतिजिन छंद, अपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १५-१३(१ से १३) - २, कुल पे. २, जैवे. (२७४१३, ११X३१). १. पे. नाम. आदिजिन स्तवन, पृ. १४अ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र हैं. वि. १८९८, ज्येष्ठ शुक्ल, २, ले. स्थल. खाचरोद, प्रले. मु. ऋषभचंद्र, प्र.ले.पु. सामान्य, मु. भीमसुंदर, मा.गु., पद्य, आदि (-); अंति भीमसुंदर बावन बाहां पसार, गाथा ४६, (पू. वि. गाथा ४० अपूर्ण से है.) २. पे नाम शांतिजिन छंद. पू. १४-१५आ, संपूर्ण. शांतिजिन छंद- हस्तिनापुरमंडन, आ. गुणसागरसूरि, मा.गु., पद्य, आदि सारद माय नमु सिरनाम अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., गाथा - १६ तक लिखा है.) ११७६०२. आत्मोपदेश सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १, जैदे., (२७४१८.५, १५X३२). औपदेशिक सज्झाय, मु. आनंदघन, मा.गु., पद्य, आदि: हुं तो प्रणमुं; अंतिः ठाय रे पछे नित आनंदघन थाय, गाथा- ११. ११७६०३. राणपुराजी रो स्तवन व महावीरजी रो स्तवन, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पू. ७-४(१ से ३, ५)=३, कुल पे. २, प्र. वि. हुंडी तवन. पत्रांक लिखा न होने के कारण अनुमानित पत्रांक दिया गया है., दे., (२७.५X१३, १०-१३४३८). १. पे. नाम. राणपुराजी रो स्तवन, पृ. ४आ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र हैं. आदिजिन स्तवन- राणपुरमंडन, मु. शिवसुंदर, मा.गु., पद्य वि. १७१५, आदि (-); अंति लाल सिवसुंदर सुख धाय, गाथा-१६, (पू.वि. गाथा-१० अपूर्ण से है.) २. पे. नाम. महावीरजी रो स्तवन, पृ. ६आ-७अ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र हैं. महावीरजिन स्तवन, मु. रतनसागर, मा.गु., पद्य, आदि (-); अंति: पसाये रतनसागर गाइयो, गाथा २५, ( पू. वि. गाथा - ११ अपूर्ण से है.) " ११७६०४ (+) प्रतिक्रमणहेतु विचार, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ३, प्र. वि. संशोधित, जैवे. (२७४१३, ११४२६). प्रतिक्रमणहेतु विचार, संबद्ध, उपा. क्षमाकल्याण, मा.गु., गद्य, आदि: साधु अने श्रावक दोइ अति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., "चारित्राचार शुद्धि" वर्णन अपूर्ण तक लिखा है.) 1 ११७६०६. २४ जिन पूजा, अपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. २९-२७(१ से २७) = २, प्र. वि. हुंडी : चौ० पू०., जैदे., (२७X१३, १०X३२). २४ जिन पूजा, सं., प+ग., आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं व प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., शांतिजिन जयमाल से है व कुंथुजिन जयमाल अपूर्ण तक लिखा है.) ११७६०७ (+) ज्ञानमहोत्सव विधि पाठ, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १, प्र. वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ, जैवे. (२७४१३, १०x२५)ज्ञानमहोत्सव विधि पाठ, प्रा. गद्य, आदि समणे भगवं महावीर दुवालस; अति: समणो वासगा आणाए आराहई. , ११७६०८. नवतत्त्व प्रकरण, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ३, जैवे. (२७४१३.५, ४४२९). नवतत्त्व प्रकरण ६० गाथा, प्रा., पद्य, आदि जीवाजीवा पुण्णं पावा, अंति: (-), (अपूर्ण, पू. वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण.. गाथा १५ अपूर्ण तक लिखा है.) For Private and Personal Use Only ११७६०९. (+*) बृहत्संग्रहणी, अपूर्ण, वि. १९बी, मध्यम, पृ. १०- ९(१ से १) - १, पू. वि. मात्र बीच का ही एक पत्र है., प्र. वि. पदच्छेद सूचक लकीरें-अन्वय दर्शक अंक युक्त पाठ. अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, जैदे., (२७X१३, १२X४१). बृहत्संग्रहणी, आ. चंद्रसूरि, प्रा., पद्य वि. १२वी आदि (-); अंति: (-), (पू.वि. गाधा- २९४ अपूर्ण से गाथा- ३१३ अपूर्ण तक है.) Page #184 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२६ १६९ ११७६१०. शनिश्चरनो छंद, अपूर्ण, वि. १८८७, वैशाख अधिकमास कृष्ण, १, बुधवार, श्रेष्ठ, पृ. २- १ ( १ ) = १, प्रले. राघवजी गोर, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. हुंडी: सनीसरछं., जैदे., (२७X१३, १२X३१). Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir शनिश्चर चौपाई. पं. ललितसागर, मा.गु., पद्य वि. १७वी आदि (-) अति ललीतसागर एम कहे, गाथा-२७, (पू. वि. अंत के पत्र हैं. गाथा १७ अपूर्ण से है., वि. गाथाक्रम भिन्न है.) ११७६११ (#) वंदित्तुसूत्र, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, पू. वि. मात्र प्रथम पत्र है., प्र. वि. मूल पाठ का अंश खंडित है, जै.., (२६x१३, १६x४१). , वंदित्सूत्र संबद्ध, प्रा., पद्य, आदि: वंदित्तु सव्वसिद्धेः अति: (-) (पू.वि. गाथा ३६ अपूर्ण तक है.) ११७६१२. (*) नवतत्त्व-२७६ बोल, संपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पृ. १, प्र. वि. संशोधित, जैदे, (२७१३, १५X३६). नवतत्त्व प्रकरण ६० गाथा-२७६ बोल, संबद्ध, मा.गु., गद्य, आदि जीवतत्त्व प्राण चेतनावंत, अंति: (-), (अपूर्ण, पू. वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण.. "जीव लक्षण" तक लिखा है.) ११७६१३. मानपरिहारछत्रीसी, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, ये. (२६.५४१३, ९x३४) "" मानपरिहारछत्रीसी, मा.गु., पद्य, आदि: मान ने कीजे रे मानवी मान, अंति: (-), (पू.वि. प्रारंभ के पत्र हैं., गाथा - १६ अपूर्ण तक है.) ११७६१४. (+) धर्म भावना व नवपद पूजा, अपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पू. १, कुल पे. २. प्र. वि. संशोधित, जैदे (२६५१३.५, १३X३३). १. पे. नाम धर्म भावना, पू. १अ १आ, संपूर्ण. मा.गु., गद्य, आदि: धन्य हो प्रभु संसार; अंति: करीने वंदना होजो.. २. पे. नाम. नवपद पूजा, पृ. १आ, अपूर्ण, पू. वि. प्रारंभ के पत्र हैं. उपा. यशोविजयजी गणि, प्रा., मा.गु., सं., पद्य, आदि: परम मंत्र प्रणमी करी; अंति: (-), (पू.वि. पूजा-१ दोहा-३ अपूर्ण तक है.) ११७६१५. कमलतप स्तवन व पार्श्वनाथजीरो स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी श्रेष्ठ, पू. १, कुल पे. २. प्र. वि. हुंडी : कमलत. दे., गाथा ५. २. पे. नाम. पार्श्वनाथजीरो स्तवन, पृ. १आ, संपूर्ण. (२६X१३, ८X३१). १. पे. नाम. कमल तप स्तवन, पृ. १अ - १आ, संपूर्ण, प्रले. श्राव. मिलापचंद, प्र.ले.पु. सामान्य. कमलतप स्तवन, मु. परमानंद, मा.गु., पद्य, आदि सरस सुधारस वरष तीरे श्री अंति पद पाव करे रहे सदा निशोक, पार्श्वजिन स्तवन, मु. हर्षचंद, मा.गु., पद्य, आदि देखी हो मूरत पारस की जी; अति पियारे हरष हरष गुण गाय री, गाथा-५, (वि. अंत में एक दोहा दिया है.) ११७६१६. खरतरमतनामोत्पत्ति वर्णन, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, पू. वि. मात्र प्रथम पत्र है., प्र. वि. पत्रांक लिखा न होने के कारण अनुमानित पत्रांक दिया गया है. दे. (२६.५X१३, ११x२७). खरतरमतनामोत्पत्ति वर्णन, मा.गु., गद्य, आदि: संवत् ११२२ नी साल माहि; अंति: (-), (पू.वि. लोंकागच्छ वर्णन अपूर्ण तक है.) ११७६१७. (४) ग्रह प्रवेश विचार, संपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पू. १, प्र. वि. मूल पाठ का अंश खंडित है, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., ( २६.५X१३, १८x२८). '" ग्रह प्रवेश विचार, मा.गु., गद्य, आदि हवे पूर्वोक्त भले दिवसे अति (अपठनीय), (वि. नीचे की ओर से पत्र फटे होने से अं. बा. अपठनीय है.) ११०६१८. ( कर्मग्रंथ के बोल, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. २. प्र. वि. अशुद्ध पाठ. दे. (२६.५४१२५, ९-१२x२६-३२). कर्मग्रंथ के बोल, मा.गु., गद्य, आदि कहो स्वामी काण्णो अंति (-) (अपूर्ण, पू. वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., बोल- २७ तक लिखा है.) For Private and Personal Use Only Page #185 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir १७० कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ११७६१९ शनिश्चरनो छंद, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, पृ.वि. मात्र प्रथम पत्र है., प्र.वि. हुंडी:नीसरछं. हुंडी का भाग त्रूटक है., जैदे., (२७X१२.५, १२४२८). शनिश्चर चौपाई, पं. ललितसागर, मा.गु., पद्य, वि. १७वी, आदि: सरसति सांमिणि मति; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-१७ अपूर्ण तक है.) ११७६२० पंचदशबंधन विचार व १८ भार वनस्पति मान, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, ले.स्थल. राजनगर, प्रले. पं. तिलकवर्द्धन गणि, प्र.ले.पु. सामान्य, दे., (२६.५४१३, २४४५१). १.पे. नाम, पंचदशबंधन विचार, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. सं., पद्य, आदि: औदारिकोदारमितिकिं; अंति: सिद्धाणो गाहणा भणिआ. २. पे. नाम. १८ भार वनस्पति मान, पृ. १आ, संपूर्ण. मा.गु.,सं., गद्य, आदि: ३ कोडि ८१ लाख १२ हजार; अंति: पाणी६ आटानो लुणनोए. ११७६२१. ८४ लाख जीवयोनि के २५ बोल, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, जैदे., (२६.५४१२.५, १२४३५). ८४ लाख जीवयोनि के २५ बोल, मा.गु., गद्य, आदि: श्रीगौतमस्वामीजी हाथ जोडी; अंति: ३७ कोड १२ लाख. ११७६२२. सिद्धचक्र स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, प्रले.सा. सिणगारश्री, प्र.ले.प. सामान्य, दे., (२६.५४१३, १२४२९). सिद्धचक्र स्तवन, पंन्या. पद्मविजय, मा.गु., पद्य, आदि: सिद्धचक्र वर सेवा; अंति: (१)निज आतम हित साधे, (२)चाल नित नित तजीए जी रे, गाथा-१३. ११७६२३. पट्टावली, संपूर्ण, वि. १९२८, फाल्गुन शुक्ल, ११, बुधवार, श्रेष्ठ, पृ. १, ले.स्थल. जयपुर, प्रले. मु. जगतचंद्र, प्र.ले.प. सामान्य, प्र.वि. हंडी खंडित है., दे., (२६४१३,१४४२८). पट्टावली, मा.गु., गद्य, आदि: श्रीवर्धमानस्वामी; अंति: अमृतचंद्रसूरि चिरं जीव्या. ११७६२४. दीक्षायोग्य लग्न फलाफल विचार, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ३, दे., (२६.५४१३, १६x४३). दीक्षायोग्य लग्न फलाफल विचार, सं., पद्य, आदि: दीक्षा विधि फलं वक्ष्ये; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा ___ अपूर्ण., श्लोक-८७ अपूर्ण तक लिखा है., वि. दीक्षा विधि को लग्न चक्र के माध्यम से समझाया है.) ११७६२६. सीमंधरजिन स्तवन, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २, पू.वि. प्रारंभ के पत्र हैं., जैदे., (२७७१३, १३४३१-३६). सीमंधरजिन स्तवन, मु. विजयदेवसूरि शिष्य, मा.गु., पद्य, आदि: सुण सुण सरसति भगवति ताहरी; अंति: (-), (पू.वि. ढाल-७ गाथा-३ अपूर्ण तक है.) ११७६२८. (+) पक्खीखामणा, संपूर्ण, वि. १९४०, आषाढ़ शुक्ल, ७, बुधवार, श्रेष्ठ, पृ. १, प्रले. य. अबीरचंद्र ऋषि (गुरु मु. इंद्रचंद्र, पार्श्वचंद्रसूरिगच्छ); गुपि. मु. इंद्रचंद्र (गुरु आ. लब्धिचंदसूरि, पार्श्वचंद्रसूरिगच्छ), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें-संशोधित., दे., (२६.५४१३, १०४३५). क्षामणकसूत्र, हिस्सा, प्रा., गद्य, आदि: पियं च मे जं भे; अंति: नित्थारग पारगा होह, आलाप-४. ११७६२९ (#) हीरजी रो स्तवन, आदिजिन चैत्यवंदन व ५ तीर्थ चैत्यवंदन, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २, कुल पे. ३, प्र.वि. पत्रांक १ दो बार लिखा होने के कारण पत्रांक-२ अनुमानित दिया गया है., अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६४१३, ९४२६). १.पे. नाम. हीरजी रो स्तवन, पृ. १अ-२अ, संपूर्ण. हीरविजयसूरि सज्झाय, मु. विजयसेनसूरि-शिष्य, मा.गु., पद्य, आदि: बे कर जोडीजी वीनवू; अंति: होज्यो मुझ आणंद, गाथा-१८. २. पे. नाम, आदिजिन चैत्यवंदन, प. २अ-२आ, संपूर्ण. क. ऋषभदास संघवी, मा.गु., पद्य, आदि: प्रथम पुजो आदिदेव; अंति: श्रीधर्मनाथ रे नाम, गाथा-५. ३. पे. नाम. ५ तीर्थ चैत्यवंदन, पृ. २आ, संपूर्ण.. मु. कमलविजय, मा.गु., पद्य, आदि: धुर समरुं श्रीआदिदेव; अंति: कमलविजय०त्यां घर जय जयकार, गाथा-५. ११७६३० (#) मेतारजमनि सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६.५४१३, ९४२५). For Private and Personal Use Only Page #186 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२६ www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir १०१ मेतारजमुनि सज्झाय, मु. राजविजय, पुहिं., मा.गु., पद्य, आदि: समदम गुणना आगरु जी, अंति राजविजय० ए सज्झाय गाथा - १३. १९७६३१. जिनकुशलसूरिजी रो छंद, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. २- १(१) १, प्र. वि. पत्रांक लिखा न होने के कारण अनुमानित पत्रांक दिया गया है. दे. (२६.५x१३, ६४३१). " "" जिनकुशलसूरि छंद, मु. भावराज, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: भावराज इण पर भणे, गाथा-१३, (पू.वि. अंत के पत्र हैं., गाथा-१२ अपूर्ण से है.) ११७६३२ (+) नवकारमहिमा सज्झाय, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ६-४ (१ से ४) =२, पू.वि. बीच के पत्र हैं., प्र. वि. हुंडी: नवकारनी०, संशोधित. दे. (२६.५x१३, ११४३४). नवकारमहिमा सज्झाय, मा.गु., पद्य, आदि (-); अंति (-), (पू. वि. गाथा- ९ अपूर्ण से गाथा ३० अपूर्ण तक है.) ११७६३३. (४) ज्ञानपंचमी नमस्कार, संपूर्ण, वि. १९वी मध्यम पू. १, प्र. वि. मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे. (२६.५x१२.५, 1 १५X३०). ज्ञानपंचमी नमस्कार, सं., गद्य, आदि स्पर्शनेंद्री व्यंजना अति श्रीकेवलज्ञानाय नमः, ११७६३५. श्रीपाल रास, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २७-२६ (१ से २६) = १. पू. वि. मात्र बीच का ही एक पत्र है., जैदे., (२५.५X१३, ११X३१). श्रीपाल रास, उपा. विनयविजय; उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., पद्य, वि. १७३८, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. खंड-२ ढाल ५ गाथा १८ अपूर्ण से खंड-२ दाल-७ दोहा २ अपूर्ण तक है.) ११७६३६. (f) अध्यात्मवत्तीसी, अपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पृ. २-२ (१) १, प्र. वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे. (२६४१३, २१४४४). अध्यात्मवत्तीसी, मु. बालचंद मुनि, पुहि, पद्य, वि. १६८५, आदि (-); अति सुखकंद रुपचंद जाणीए, गाथा-३३, (पू. वि. अंत के पत्र हैं. गाथा १६ अपूर्ण से है.) ११७६३७. ज्ञानपच्चीसी-गाथा १ से ४ व चंद्रप्रभजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, दे., (२६X१३, १०X२०). १. पे. नाम. ज्ञानपच्चीसी - गाथा १ से ४, पृ. १अ, संपूर्ण. ज्ञानपच्चीसी, जै.क. बनारसीदास, पुहिं., पद्य, वि. १७वी, आदि: सुरनर तिर्यग जग जोनि; अंति: (-), प्रतिपूर्ण. २. पे नाम. चंद्रप्रभजिन स्तवन, पृ. १अ १आ, संपूर्ण मु. चमना, मा.गु., पद्य, आदि श्रीचंद्रप्रभुजिन साहिबा अतिः चमना० हीवडानो हेज के गाथा-८. ११७६३८. ज्ञानपंचमी सज्झाय, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ९-८ (१ से ८) = १, जैदे., (२६.५X१३, १३X३८). ज्ञानपंचमीपर्व सज्झाय, मु. ऋषभ, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं व प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण. डाल- ६ गाथा २१ अपूर्ण से है व ढाल ७ गाथा- ९+२ तक लिखा है.) जैटे., ११७६३९. साधुपाक्षिक अतिचार-छे.मू. पू. अपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पृ. २- १ (१) - १. पू. वि. मात्र बीच का ही एक पत्र है., (२६X१३, १४X४२). साधुपाक्षिक अतिचार - मू. पू. संबद्ध, प्रा., मा.गु., गद्य, आदि (-); अंति: (-), (पू.वि. दर्शनाचार अपूर्ण से षट्का अतिचार अपूर्ण तक है.) ११७६४०. बंभणवाडजीतीर्थमहावीरजिन निसाणी, अपूर्ण, वि. १८८५, आषाढ़ शुक्ल, १०, श्रेष्ठ, पृ. ३-२ (१ से २)=१, ले. स्थल. मुमधा, जैदे., (२६.५X१२.५, १५X३२). महावीरजिन निसाणी- बामणवाडजीतीर्थ, मु. हर्षमाणिक्य, मा.गु., पद्य, आदि (-); अंति अधिक होइ हर्षमाणिक्य मुनि, गाथा-३७, (पू.वि. अंत के पत्र हैं., गाथा-२८ अपूर्ण से है.) ११७६४१. रोहिणीतप स्तुति, दीपावली स्तुति व बीजतिथि स्तुति, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ३-१ (१) = २, कुल पे. ३, प्र. वि. हुंडी: थुइ, जैदे., (२७४१३, १०x२०). १. पे. नाम. रोहिणीतप स्तुति, पृ. २अ, अपूर्ण, पू. वि. अंत के पत्र हैं. मु. लब्धिरूचि, मा.गु, पद्य, आदि (-); अति देवी लब्धिरूची जयकार, गाथा-४, (पू.वि. अंतिम गाथा अपूर्ण है.) For Private and Personal Use Only Page #187 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir १७२ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची २.पे. नाम. दीपावली स्तुति, पृ. २अ-३अ, संपूर्ण. दीपावलीपर्व स्तुति, मु. रत्नविमल, मा.गु., पद्य, आदि: सासणनायक श्रीमहावीर; अंति: द्यो सरसती वाणीजी, गाथा-४. ३. पे. नाम. बीजतिथि स्तुति, पृ. ३अ-३आ, संपूर्ण. मु. लब्धिविजय, मा.गु., पद्य, आदि: दिन सकल मनोहर बीज; अंति: कहे पुरो मनोरथ माय, गाथा-४. ११७६४२ (+#) प्रास्ताविक श्लोक संग्रह सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. १९६४, माघ शुक्ल, १३, मध्यम, पृ. ४-२(२ से ३)=२, ले.स्थल. पीपाड, प्रले. पं. चतुरसागर; पठ. मु. मोहनविजय, प्र.ले.प. सामान्य, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरे-संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२७७१३, ६४३४). प्रास्ताविक श्लोक संग्रह, प्रा.,मा.ग.,सं., पद्य, आदि: विलासानि कांचन पट्टिकायां; अंति: अवर किशिच्छे स्वर्गनिलाड, गाथा-२५, (पू.वि. श्लोक-५ अपूर्ण से १८ अपूर्ण तक नहीं है.) प्रास्ताविक श्लोक संग्रह-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: मनोहर सोने की पटिके उपर; अंति: से स्वर्ग में जाता है. ११७६४३. तत्त्वतरंगिणी की स्वोपज्ञ वृत्ति, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, पृ.वि. मात्र प्रथम पत्र है., जैदे., (२६.५४१३, ९४३४). तत्त्वतरंगिणी-स्वोपज्ञ वृत्ति, उपा. धर्मसागरगणि, सं., गद्य, आदि: श्रीवर्धमानमानम्या; अंति: (-), (पू.वि. मात्र श्लोक-१ की वृत्ति अपूर्ण है., वि. मूल पाठ प्रतीक के रूप में है.) ११७६४४. पंचपरमेष्ठि गीता, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ८-६(१ से ६)=२, प्र.वि. पत्रांक-८ काल्पनिक दिया गया है., दे., (२६.५४१३, ११४३४). पंचपरमेष्ठि गीता, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., पद्य, आदि: नमस्कार अरिहंतने,वास; अंति: मानिआ सुगुण गणराज सभ्य, गाथा-१८, (संपूर्ण, वि. गाथाक्रम भिन्न है व कृति के प्रारंभ में भगवान श्रीकृष्ण के विविध नामों का वर्णन है.) ११७६४५. अष्टादश प्रमेहो परिमेक भेषज व रतनगुरुनी सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ३, कुल पे. २, जैदे., (२७७१३, १०x४३). १.पे. नाम. अष्टादश प्रमेहो परिमेक भेषज, पृ. १अ, संपूर्ण, पे.वि. यह कृति किसी अन्य प्रतिलेखक द्वारा लिखी गई है. औषध संग्रह*, मा.गु., गद्य, आदि: वडगुंदा पाकासे मेदो पाव; अंति: भणी गलती झरती बादि मिटे. २. पे. नाम. रतनगुरुनी सज्झाय, पृ. १आ-३आ, संपूर्ण, वि. १८५४, ज्येष्ठ कृष्ण, १२. रतनगुरु सज्झाय, मा.गु., पद्य, आदि: रतनगुरु गुण आगला रे मीठ; अंति: रंग उपजे रे आपे मुख तंबोल, गाथा-४०. ११७६४८. (#) आदिजिन स्तवनद्वय व आदिजिन लावणी, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २, कुल पे. ३, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२७४१२.५, १६४५४). १. पे. नाम, आदिजिन स्तवन, पृ. १अ-२अ, संपूर्ण. आदिजिन स्तवन-धुलेवातीर्थमंडन, श्राव. मूलचंद मयाराम, मा.गु., पद्य, आदि: सकल मनोरथ संपजे जपता; अंति: सुत विनती मूलचंद भवजल तरे. २. पे. नाम. आदिजिन स्तवन, पृ. २अ-२आ, संपूर्ण. मा.गु., पद्य, आदि: प्रथम तीर्थंकर पायनमी; अंति: शाम धाम पर फौज चलाइ, गाथा-८. ३. पे. नाम. आदिजिन लावणी, पृ. २आ, संपूर्ण. श्राव. ऋषभदास, मा.गु., पद्य, आदि: सुणीये रे वातां सदा; अंति: ऐसा देख तमासा फजुरो मे, गाथा-४, (वि. अन्त में किसी कृति का मात्र प्रारंभिक शब्द "सदाशिव सेन सजे" मिलता है, इसके बाद का पाठ नहीं है.) ११७६४९ (+) नवस्मरण, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ३-२(१ से २)=१, पृ.वि. मात्र बीच का ही एक पत्र है., प्र.वि. पत्रांक लिखा न होने के कारण अनुमानित पत्रांक दिया गया है., संशोधित., जैदे., (२७४१३, १२४३०). नवस्मरण, म. भिन्न भिन्न कर्तक, प्रा.,सं., प+ग., आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. अजितशांति स्तोत्र गाथा-३० अपूर्ण से भक्तामर स्तोत्र श्लोक-२ अपूर्ण तक है.) ११७६५१ (+#) श@जय माहात्म्य सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. १, पृ.वि. मात्र प्रथम पत्र है., प्र.वि. संशोधित. मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., (२६.५४१२.५, ७४३७). For Private and Personal Use Only Page #188 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२६ १७३ शवजय माहात्म्य, आ. धनेश्वरसूरि, सं., पद्य, आदि: ॐ नमो विश्वनाथाय; अंति: (-), (पू.वि. सर्ग-१ श्लोक-७ तक है.) शत्रुजय माहात्म्य-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: नमस्कार हो विश्वनो; अंति: (-). ११७६५२. (+) २४ जिन यक्षयक्षिणी आयुधादि वर्णन विचार, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ३-१(१)=२, प्र.वि. पत्रांक-२ काल्पनिक दिया गया है., पदच्छेद सूचक लकीरे-संशोधित., दे., (२६.५४१२.५, ११४३८). २४ जिन यक्षयक्षिणी आयुधादि वर्णन विचार, सं., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. प्रथम पत्र नहीं है व प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., सुमतिजिन वर्णन अपूर्ण से है व पार्श्वजिन वर्णन अपूर्ण तक लिखा है.) ११७६५३. (#) त्रिशलारानी गर्भावस्था चिंतन विचार, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, प्र.वि. मूल पाठ का अंश खंडित है, दे., (२७७१३, २०४५४). महावीरजिन गर्भकालिन घटना अधिकार, संबद्ध, सं., प+ग., आदि: सत्यमिदं यदि भविता मदीय; अंति: (अपठनीय). ११७६५४. (2) श्रावकपाक्षिकअतिचार-तपागच्छीय, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. २, पृ.वि. प्रारंभ के पत्र हैं., प्र.वि. हुंडी:अतिचार., मूल पाठ का अंश खंडित है, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२७४१३, १२४२९). श्रावकपाक्षिकअतिचार-तपागच्छीय, संबद्ध, प्रा.,मा.गु., गद्य, आदि: नाणंमि दंसणंमि; अंति: (-), (पृ.वि. चारित्राचार वर्णन "पुन्य हेतु स्नान कीधा" पाठ अपूर्ण तक है.) ११७६५५. कायस्थिति प्रकरण सह बालावबोध, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, पृ.वि. मात्र प्रथम पत्र है., दे., (२७.५४१३, ६-१२४२८-३७). कायस्थिति प्रकरण, आ. कलमंडनसरि, प्रा., पद्य, आदि: जह तुह दंसणरहिओ काय; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-२ तक है., वि. कृति के प्रारंभ में जीवविषयकादि वर्णन लिखा है.) कायस्थिति प्रकरण-बालावबोध, मा.गु., गद्य, आदि: हे जिनेंद्र भवभयना भंजण; अंति: (-). ११७६५७. (+) भक्तामर स्तोत्र, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ४, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें., जैदे., (२६.५४१३, ९x४२). भक्तामर स्तोत्र, आ. मानतंगसरि, सं., पद्य, आदि: भक्तामरप्रणतमौलि; अंति: मानतुंग० लक्ष्मीः , श्लोक-४४. ११७६६५. (+) औपदेशिक सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९६०, श्रावण शुक्ल, १३, श्रेष्ठ, पृ. ३, ले.स्थल. वीकानेर, प्रले. फरसराम, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित., दे., (२४.५४१३, ११४२३-२६). औपदेशिक सज्झाय, रा., पद्य, आदि: ए आटोइ कामनी रे जबु अठचल; अंति: मान लो जाया मथलो संजम भार, गाथा-१७. ११७६६८.(#) सज्झाय संग्रह, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ६-५(१ से ५)=१, कुल पे. ४, प्र.वि. मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., (२७४१२.५, २१४४९). १. पे. नाम. रुखमणि सज्झाय, पृ. ६अ, अपूर्ण, पृ.वि. अंत के पत्र हैं. रुक्मणीसती सज्झाय, मु. राजविजय, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: जाय राजविजय रंगे भणे, गाथा-१४, (पू.वि. गाथा-९ अपूर्ण से है.) २. पे. नाम. जंबूकुमार सज्झाय, पृ. ६अ, संपूर्ण. जंबूस्वामी सज्झाय, म. रूपविजय, मा.गु., पद्य, आदि: राजग्रही नयरी तणो रे सेठ; अंति: रूप प्रभु पद सिद्धरे, गाथा-७. ३. पे. नाम. चित्रसंभूति सज्झाय, पृ. ६अ-६आ, संपूर्ण. मु. कवियण, मा.गु., पद्य, आदि: चित्त कहे ब्रह्मराय; अंति: कहे ते शिवपुर लहइस्यइ हो, गाथा-१९. ४. पे. नाम. अइमुत्तामुनि सज्झाय, पृ. ६आ, संपूर्ण. आ. लक्ष्मीरत्नसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: वीरजिणंद वांदीने; अंति: ते मुनिवरना पाया, गाथा-१८. ११७६६९ (+) गौतम कुलक, अपूर्ण, वि. १८२४, फाल्गुन शुक्ल, ६, मध्यम, पृ. ४-२(१,३)=२, प्र.वि. हुंडी:गौतमकुलो., संशोधित., जैदे., (२८x१२.५, ५४२८-३२). गौतम कलक, प्रा., पद्य, आदिः (-); अंति: (१)सेवित्त सह लहंति, (२)फलं प्रीति जे करा नराणो, गाथा-२१. (पू.वि. गाथा-४ अपूर्ण से ११ अपूर्ण तक है व गाथा-१८ से है.) For Private and Personal Use Only Page #189 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra १७४ www.kobatirth.org कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ११७६७१. कुंवरचंद्र सज्झाय व सुबाहुकुमार सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९३०, भाद्रपद कृष्ण, ३, सोमवार, मध्यम, पृ. ४, कुल पे. २, प्रले. श्राव. गोपालजी पानाचंद, प्र.ले.पु. सामान्य, वे., (२७.५x१२.५, १२४३६). १. पे. नाम. कुंवरचंद्र सज्झाय, पू. १अ २आ, संपूर्ण, मा.गु., पद्य, आदि: तेणे काले तेणे समे हस्थी, अंतिः दीक्षा वेश ते विचारी, गाथा- १७. २. पे नाम. सुबाहुकुमार सज्झाय, पृ. ३अ ४आ, संपूर्ण Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir मु. पानाचंद, मा.गु., पद्य, वि. १८९३, आदि हवे सुबाहुकुमार एम: अंति: कुमारे संजम आद, गाथा- १५. ११७६७३. (+) सज्झाय संग्रह, संपूर्ण, वि. १९ वी, मध्यम, पृ. ३, कुल पे. ५, प्र. वि. हुंडी सिझायपत्र, संशोधित., जैये., (२७.५x१३, ५x१०). १. पे. नाम. एकादशीतिथि सज्झाय, पृ. १आ-२अ संपूर्ण, पे.वि. हुंडी सिझाय ११सी. उपा. उदयरत्न, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), गाथा-५, (वि. पाठ खंडित होने के कारण आदि - अंतिमवाक्य अपठनीय है.) २. पे. नाम. अरणिकमुनि सज्झाय, पृ. २अ-२आ, संपूर्ण. मु. रूपविजय, मा.गु., पद्य, आदि (-); अंति: (-), गावा-१०, (वि. पाठ खंडित होने के कारण आदि अंतिमवाक्य अपठनीय है.) ३. पे नाम. मेघकुमार सज्झाय, पृ. २आ, संपूर्ण, पे.बि. हुंडी सिझायमेघ. मु. प्रीतिविमल, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), गाथा-५, (वि. पाठ खंडित होने के कारण आदि अंतिमवाक्य अपठनीय है.) , ४. पे. नाम रथनेमि सज्झाय, पू. २आ-३अ, संपूर्ण. मु. वसता मुनि, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), गाथा-७, (वि. पाठ खंडित होने के कारण आदि - अंतिमवाक्य अपठनीय है.) ५. पे नाम औपदेशिक सज्झाय, पू. ३अ-३आ, संपूर्ण औपदेशिक सज्झायनिंदात्याग, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, वि. १७वी, आदि (-); अंति समयसुंदर सुखकार रे, गाथा-५, (वि. पाठ खंडित होने के कारण आदिवाक्य अपठनीय है.) ११७६७५. ९९ प्रकारी पूजा शत्रुंजयमहिमागर्भित, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. २, जैये. (२८x१३, ११४३५). " ९९ प्रकारी पूजा-शत्रुंजयमहिमागर्भित, पं. वीरविजय, मा.गु., पद्य, वि. १८८४, आदि: श्रीशंखेसर पासजी; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., ढाल १ अपूर्ण तक लिखा है.) ११७६७६ स्तवनचौवीसी, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २, पू.वि. प्रारंभ के पत्र हैं., जैदे., (२७.५X१२.५, १६३८). स्तवनचौवीसी, ग. देवचंद्र, मा.गु., पद्य, वि. १७७६, आदि: ऋषभ जिणंदशुं प्रीतडी, अंति: (-), (पू.वि. सुमतिजिन स्तवन गाथा-६ अपूर्ण तक है.) १९७६७८. आत्महितोपदेश सज्झाय, शालिभद्रजी री सज्झाय व सनत्कुमारचक्रवर्ति सज्झाय आदि संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ३, कुल पे. ४, प्र.वि. अनुमानित पत्रांक दिये हैं., जैदे., (२८x१३, १२x२८). १. पे नाम. आत्महितोपदेश सज्झाय, पृ. १अ १आ, संपूर्ण कलियुग सज्झाय, मु. दयासागर, मा.गु., पद्य, आदि सुण मुज प्राणी सीख; अंति धर्मे चित्त लगायो रे, गाथा- ९. २. पे. नाम. शालभद्रजी री सज्झाय, पू. १आ-२अ संपूर्ण शालिभद्रमुनि सज्झाय, मा.गु., पद्य, आदि: भद्रा माता इम भणे रे; अंति: गावता रे वीर सफल अवतार, गाथा-११. ३. पे. नाम. सनत्कुमारचक्रवर्ति सज्झाय, पृ. २आ, संपूर्ण. सनत्कुमारचक्रवर्ती सज्झाय, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, आदि: सांभल सनतकुमार हो राजेसर; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण. गाथा ४ तक लिखा है. वि. गाथाक्रम भिन्न है.) ४. पे नाम. ५ तीर्थजिन स्तवन, पृ. ३अ ३आ, अपूर्ण, पू.वि. प्रारंभ के पत्र हैं. मु. लावण्यसमय, मा.गु., पद्य, आदि आये हे आये हे आदजिनेस ए अंति: (-). (पू.वि. गाथा-६ अपूर्ण तक है.) For Private and Personal Use Only Page #190 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२६ ११७६७९ (४) चेलणासती चौडालियो, संपूर्ण, वि. १८६७, चैत्र शुक्ल, १२, मध्यम, पृ. ३ ले स्थल, शाजापुर, प्रले. सा. नगीना आर्या, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैये. (२७४१३, १३४३१). चेलणासती चौडालियो, म. रायचंद ऋषि, रा. पद्य वि. १८३३, आदि अवसर जो नर अटकलो ते; अंति: जेमल० समत अठारे तेतीस जाण, ढाल-४, गाथा - ३७. मु. ११७६८१ (४) पौषध विधि व संथारापोरसीसूत्र, अपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पृ. ५-१ (४) ४, कुल पे. २, प्र. वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैवे. (२७.५४१२.५, १०x२८-३३) "" १. पे. नाम. पौषध विधि, पृ. १अ-३आ, अपूर्ण, पू.वि. प्रारंभ के पत्र हैं., पे.वि. हुंडी पोसाविध. संबद्ध, प्रा.मा.गु., गद्य, आदि प्रथम इरियावही अति: (-) (पू.वि. रात्रिपौषध विधि अपूर्ण तक है.) २. पे. नाम. संथारापोरसीसूत्र, पृ. ५अ - ५आ, अपूर्ण, पू.वि. प्रारंभ के पत्र हैं. प्रा. पद्य, आदि निसिंही २ नमो खमासमणाणं अंति: (-), (पू.वि. गाथा-६ अपूर्ण तक है.) ११७६८२. गुरुगुण गहुंली व शत्रुंजयतीर्थ स्तवन, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, जैदे., (२८x१३, ११४३२). १. पे. नाम. गुरुगुण गहुंली, पृ. १अ, संपूर्ण. मु. भावविमल, मा.गु., पद्य, आदि: जी रे म्हारे गुरु गुरुआ; अंति: भवो भव सरण तुमारडूं जी, गाथा-५. २. पे. नाम. शत्रुजयतीर्थ स्तवन, पृ. १आ, अपूर्ण. पू. वि. प्रारंभ के पत्र हैं. १७५ मु. लब्धि, मा.गु., पद्य, आदि अमृत वचने रे प्यारी अंति (-) (पू. वि. गाथा-९ अपूर्ण तक है.) ११७६८४ सिद्धचक्र स्तवन, संपूर्ण, वि. १९बी, मध्यम, पृ. १, जैये. (२७४१३, १३x२७). सिद्धचक्र स्तवन, वा. भोजसागर, मा.गु., पद्य, आदि: सिद्धचक्र सुहामणो; अंति: अति उत्तम अधिकारजी, गाथा-८. ११७६८५ बृहत्शांति स्तोत्र-तपागच्छीय, अपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १४-१२ (१ से १२) = २, पू. वि. बीच के पत्र हैं., जैदे., (२८X१३, ८x४३). "1 बृहत्शांति स्तोत्र- तपागच्छीय, सं., प+ग, आदि (-) अंति (-), (पू.वि. "सहसमेत्य स्नात्रं पीठे पाठ अपूर्ण से "भवतु स्वाहा उपसर्गा" पाठ अपूर्ण तक है.) ११७६८६ (+४) बाहुबली सज्झाय, संपूर्ण वि. १९वी मध्यम, पू. १, प्र. वि. संशोधित मूल पाठ का अंश खंडित है, अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, जैदे. (२७४१३, १३४३६). बाहुबली सज्झाय, मु. राम, मा.गु, पद्य, आदि: बाहुबल दीक्षा ग्रही अंति: राम०तस पद वारोवार रे, गाथा- ११. ११७६८७ (+४) अजितशांति स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पृ. ४, प्रले. मु. मोहनविजय ( परंपरा मु. चंदनविजय); गुपि. मु. चंदनविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. हुंडी : अजितशांति. प्रतिलेखन पुष्पिका खंडित है व पत्र चिपके हुए हैं., संशोधित. मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., (२७१२.५, ११३६). अजितशांति स्तव, आ. नंदिषेणसूरि, प्रा., पद्य, आदि: अजियं जियसव्वभयं संतिं च; अंति: जिणवयणे आयरं कुणह गाथा ४०. ११७६८८. (#) उपदेशरसाल प्राकृतबंध सूक्तमाला का बालावबोध, अपूर्ण, वि. १८९८, कार्तिक कृष्ण, ६, गुरुवार, मध्यम, पू. ९३-९२ (१ से ९२ ) = १ ले स्थल. कांबा, प्र. वि. श्रीगोडीजी प्रसादात्., मूल पाठ का अंश खंडित है, प्र.ले. श्लो. (१) यादृशं पुस्तकं दृष्ट्वा, जैवे. (२८४१३६४४८). श्रेष्ठ. पू. १. सूक्तमाला-बालावबोध *, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: विचारणीय क० विचारवु, (पू.वि. मात्र अंतिम पाठांश है.) ११७६८९ तीर्थंकरवल वर्णन व साढापच्चीस देशनाम व ग्रामसंख्या, संपूर्ण वि. १९०३ भाद्रपद कृष्ण, ८, शुक्रवार, कुल पे. २, ले.स्थल. वेराकुल (वेरावळ, प्रले. मु. खूबचंद ऋषि, प्र.ले.पु. सामान्य, दे., (२७.५X१३, १४X४४). १. पे. नाम. तीर्थंकरबल वर्णन, पृ. १अ, संपूर्ण. For Private and Personal Use Only पुहिं., गद्य, आदि: बार पुरुषे एक वृषभनुं बल; अंति: एटला तीर्थंकरने के वासही. २. पे. नाम. साढापच्चीस देशनाम विधि, पृ. १अ - १आ, संपूर्ण. साढापच्चीसदेशनाम व ग्रामसंख्या, मा.गु., गद्य, आदि: मगधदेशे राजगृही नगरीए एक; अंति: एवं साढापच्चीस गाम जाणवा. Page #191 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir १७६ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ११७६९० (+#) सूतकमृतकादि संज्ञा व्युत्पत्ति विचार, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, प्र.वि. पत्रांक लिखा न होने के कारण अनुमानित पत्रांक दिया गया है., पदच्छेद सूचक लकीरें. मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., (२८x१३, १६४३९). सूतकमृतकादि संज्ञा व्यत्पत्ति विचार, सं., गद्य, आदि: (अपठनीय); अंति: यावज्जीवं न शुद्धति, (वि. विविध नामों की व्युत्पत्ति दी गई है.) ११७६९१. सदेवच्छसावलिंगा रास, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १०-९(१ से ९)=१, प्र.वि. पत्रांक लिखा न होने के कारण अनुमानित पत्रांक दिया गया है., जैदे., (२७.५४१३, १५४५०). सदेवच्छसावलिंगा रास, मा.गु., पद्य, आदिः (-); अंति: गाय जेह० घणा नर पामइ तेह, गाथा-७२७, (पू.वि. अंत के पत्र हैं., गाथा-७१३ अपूर्ण से है.) ११७६९२. गर्भबहत्तरी सज्झाय, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ३-२(१ से २)=१, पृ.वि. मात्र बीच का ही एक पत्र है., प्र.वि. हंडी:गरवउप., जैदे., (२८x१३, १८४३२). औपदेशिक सज्झाय-गर्भावास, म. श्रीसार, मा.ग., पद्य, आदिः (-); अंति: (-), (पू.वि. गाथा-२५ अपूर्ण से गाथा-६० __अपूर्ण तक है.) ११७६९३. (+) बोल संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २, पृ.वि. प्रारंभ के पत्र हैं.,प्र.वि. हंडी:बोलविचार., संशोधित-पदच्छेद सूचक लकीरें., जैदे., (२७.५४१२.५, १५४३७). बोल संग्रह, प्रा.,मा.गु.,सं., गद्य, आदि: ४२ सहस्रदेवता जंबूद्वीप; अंति: (-), (पू.वि. हिमवंत पर्वत वर्णन अपूर्ण तक है.) ११७६९४. विंशतिस्थानक विचारामृत संग्रह, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ७९-७८(१ से ७८)=१, दे., (२७.५४१३, १४४३९). विचारामृतसार संग्रह, ग. जिनहर्ष, सं., पद्य, वि. १५०२, आदिः (-); अंति: वाच्यमानो निरंतरं, कथा-२०, (पू.वि. कथा-२० गाथा-७ से है.) । ११७६९५ (+) अरिहंतपद स्तवन, आत्मबोध सज्झाय व सारबोल सज्झाय, संपूर्ण, वि. २०वी, माघ कृष्ण, ५, बुधवार, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. ३, प्रले. मु. चिमनसागर; पठ. श्राव. दोलतचंद, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., दे., (२७.५४१३, १६४५४). १. पे. नाम, अरिहंतपद स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण. ग. पद्मविजय, मा.गु., पद्य, आदि: भवि तुमे वंदो रे अरि; अंति: कहे प्रगटे तो सवि लहीए, गाथा-११. २. पे. नाम, आत्मबोध सज्झाय, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. ___ आध्यात्मिक सज्झाय, मु. रूपविजय, मा.गु., पद्य, आदि: हो सुण आत्मा मत पड; अंति: रुप०पामे शाश्वत सद्य, गाथा-६. ३. पे. नाम, सारबोल सज्झाय, प. १आ, संपूर्ण. औपदेशिक छंद, पंडित. लक्ष्मीकल्लोल, मा.ग., पद्य, आदि: सरस्वति स्वामीनी पय; अंति: धर्मरंग मन धरज्यो चोल, गाथा-१६. ११७६९६ (#) दीवाली चैत्यवंदन व महावीरजिन स्तुति, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, प्र.वि. अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, जैदे., (२८x१३, १०४२५). १. पे. नाम. दीवाली चैत्यवंदन, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. दीपावलीपर्व देववंदन विधिसहित, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: वीरजिनवर वीरजिनवर; अंति: कहे नय ते गुणखाण. २. पे. नाम. महावीरजिन स्तुति, पृ. १आ, अपूर्ण, पृ.वि. प्रारंभ के पत्र हैं. आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: मनोहर मुरति महावीर; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-३ अपूर्ण तक है.) ११७६९७. (+) बृहत्संग्रहणी सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. १३-११(१ से ११)=२, पू.वि. बीच के पत्र हैं., प्र.वि. हुंडी:संग्रहणीट, संघणटवो., टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२७४१२.५, ५४५४). बृहत्संग्रहणी, आ. चंद्रसरि, प्रा., पद्य, वि. १२वी, आदिः (-); अंति: (-), (पू.वि. गाथा-८७ अपूर्ण से गाथा-१०७ अपूर्ण तक है.) For Private and Personal Use Only Page #192 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२६ www.kobatirth.org बृहत्संग्रहणी-टवार्थ मा.गु., गद्य, आदि (-) अति: (-). ११७६९८. महावीरजिन स्तवन- २७ भवविचारगर्भित, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ४, प्रले. मु. मेघविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, दे., (२७.५X१३, ११X३०). महावीरजिन स्तवन- २७ भवविचारगर्भित, पं. वीरविजय, मा.गु., पद्य वि. १९०१, आदि: श्रीशुभविजय सुगुरू: अंति वीरविजय जय जय करो, ढाल - ५, गाथा-५२. . Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ११७६९९. दीपावलीपर्व स्तवन, गौतमस्वामी स्तवन व गौतमस्वामी स्तुत्यादि संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ३-२ (१ से २) =१, कुल पे. ४, जैदे., (२७.५X१३, १३X२७). १. पे. नाम. दीपावलीपर्व स्तवन, पृ. ३अ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पात्र हैं. आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: (-); अंति: कविराजनो ज्ञानविमल कहिइं, गाथा-९, (पू.वि. गाथा-८ अपूर्ण से है.) २. पे. नाम गौतमस्वामी चैत्यवंदन, पू. ३३-३आ, संपूर्ण, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: नमो गणधर नमो गणधर अंति: नव० होवे जय जयकार, गाथा ६. ३. पे. नाम गौतमस्वामी थुई, पृ. ३आ, संपूर्ण. गीतमस्वामी स्तुति, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., पद्य, वि. १८वी आदि इंद्रभुति अनोपम गुण; अति: नित नित मंगलमालिका, गाथा-४. ४. पे नाम. गौतमस्वामी स्तुति, पृ. ३आ, अपूर्ण, पू.वि. प्रारंभ के पत्र हैं. आ. ज्ञानसूरि, सं., पद्य, आदि श्रीइंद्रभूति अति (-), (पू. वि. गाथा- २ अपूर्ण तक है.) ११७७०० नेमजीराजुल स्तवन व नेमराजुलरो बारमासी, अपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ४-३ (१ से ३) १, कुल पे. २, जैवे., (२७.५X१३, १३X२७). १. पे. नाम. नेमजीराजुल स्तवन, पृ. ४अ, अपूर्ण, पू. वि. अंत के पत्र हैं. नेमराजिमती गीत. ग. जीतसागर, पुहि., पद्य, आदि (-); अति नरनार इण विध प्रीत करे जी गाथा १५, (पू.वि. गाथा-५ अपूर्ण से है.) २. पे. नाम. नेमराजुलरो बारमासी, पृ. ४अ ४आ, अपूर्ण, पू. वि. प्रारंभ के पत्र हैं. नेमराजिमती बारमासा, मा.गु., पद्य, आदि: सखी री सांभल तू वाणी इम; अंति: (-), (पू. वि. गाथा - ९ अपूर्ण तक है.) ११७७०१. (#) औपदेशिक सज्झाय-गर्भावास व क्षमाछत्रीसी, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ७-३ (१ से ३)=४, कुल पे. २, प्र. वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२७X१३, १३X३१). १. पे. नाम, औपदेशिक सज्झाय गर्भावास. पू. ४अ-७अ संपूर्ण मु. श्रीसार, मा.गु., पद्य, आदि : उतपत जोय जीव आपणी; अंति: इम कहै श्रीसार ए, गाथा-७१. २. पे. नाम क्षमाछत्रीसी, पृ. ७अ संपूर्ण 1 १७७ उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, आदि आदरि जीव खिमागुण आदर म; अंति: (-), (प्रतिअपूर्ण, पू. वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण गाथा-३ तक लिखा है.) " १९७७०२. शत्रुंजयतीर्थ स्तवन व नवअंगपूजा दूहा, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, दे., (२७.५X१३, १०X२६). १. पे. नाम. शत्रुंजयतीर्थ स्तवन, पृ. १अ - १आ, संपूर्ण, पू. वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं. मु. रत्न, मा.गु., पद्य, आदि: चालो चालो नें भविक; अंति: रत्न० एम लाहो लीजे, गाथा-५. संपूर्ण. ११७७०३. इरियावही सज्झाय, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, दे., (२७१३, १६X३१). २. पे. नाम. नवअंगपूजा दूहा, पृ. १आ, नवअंगपूजा दोहा, मु. वीरविजय, मा.गु., पद्य, आदि: जलभरी संपूट पत्रमां; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., गाथा-६ तक लिखा है.) इरियावही सज्झाय, संबद्ध, उपा. विनयविजय, मा.गु., पद्य, वि. १७३४, आदि: श्रुतदेवीना चरण नमी; अति विनयविजय उवज्झाय रे, ढाल - २, गाथा- २३. For Private and Personal Use Only Page #193 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir १७८ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ११७७०४. (+) जीवविचारप्रकरण सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें., जैदे., (२८x१३, १२४२६). जीवविचार प्रकरण, आ. शांतिसूरि, प्रा., पद्य, वि. ११वी, आदि: भुवणपईवं वीरं नमिऊण; अंति: (-), (पू.वि. मात्र प्रथम पत्र है., गाथा-८ अपूर्ण तक है.) जीवविचार प्रकरण-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: भुवन क० स्वर्ग; अंति: (-), (पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., गाथा-१ तथा ६ का टबार्थ लिखा है.) ११७७०५. (+) कल्पसूत्र की कल्पलता टीका, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, पू.वि. मात्र प्रथम पत्र है., प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरे-संशोधित., जैदे., (२७७१३, १५४३१). कल्पसूत्र-कल्पलता टीका, उपा. समयसंदर गणि, सं., गद्य, वि. १६८५, आदि: प्रणम्य परमं ज्योतिः; अंति: (-). (पू.वि. पाटण में जगह-जगह पर कल्पसिद्धांत के वांचण का वर्णन अपूर्ण तक है.) ११७७०९. नोकारनो रास, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २-१(१)=१, जैदे., (२८x१३, १५४२९). नवकारमहामंत्र रास, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: जाणज्यो श्रीनवकार तो, गाथा-२१, (पू.वि. प्रथम पत्र नहीं है., गाथा-१२ अपूर्ण से है.) ११७७१२. (+) पार्श्वजिन पद, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, प्र.वि. संशोधित., दे., (२६.५४१३, १३४२९). पार्श्वजिन लावणी, मु. अबीरचंद, पुहिं., पद्य, आदि: तुम सुण मन मेरा भज; अंति: टाल दीया भव दुख फेरा, गाथा-५. ११७७१५. संतिकरं स्तोत्र, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, ले.स्थल. अमरेली, प्रले. मु. कीर्तिविजय; पठ. श्रावि. अंबाबाई, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. श्रीसंभवजिन प्रशादात्., दे., (२६४१२.५, १२४३२). संतिकरं स्तोत्र, आ. मुनिसुंदरसूरि, प्रा., पद्य, वि. १५वी, आदि: संतिकरं संतिजिणं; अंति: स लहइ सुह संपयं परमं, गाथा-१४. ११७७१६. (#) सज्झाय संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ४, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६.५४१२.५, १६x४०). १. पे. नाम. सीमंधरजिन स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण. सीमंधरजिन विनती स्तवन, ग. देवचंद्र, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: श्रीसीमंधर जिनवर; अंति: देवचंद्र पद पावे रे, गाथा-९. २.पे. नाम. सूत्र सज्झाय, पृ. १आ, संपूर्ण. दशवैकालिकसूत्र, आ. शय्यंभवसूरि, प्रा., पद्य, वी. रवी, आदि: धम्मो मंगलमुक्किटुं; अंति: (-), प्रतिपूर्ण. ३. पे. नाम. अध्यात्म स्वाध्याय, पृ. १आ, संपूर्ण. आध्यात्मिक सज्झाय, मु. सुयशविमल, मा.गु., पद्य, आदि: अर्कप्रभा समबोधप्रभामांहि; अंति: विमलसुजश परिणाम रे, गाथा-५. ४. पे. नाम. सामायक स्वाध्याय, पृ. १आ, संपूर्ण. प्रतिक्रमण सज्झाय, संबद्ध, मु. धर्मसिंह मुनि, मा.गु., पद्य, आदि: कर पडिकमणुं भावशू; अंति: मुगती तणो निरवाण लाल रे, गाथा-५. ११७७१७. गौतमस्वामी रास, अपूर्ण, वि. १९२७, ज्येष्ठ कृष्ण, १३, मध्यम, पृ. ५-३(१ से ३)=२, ले.स्थल. अलायनगर, प्रले. पं. पुन्यविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. श्रीसंतनाथजी प्रसादात्., दे., (२७७१३, ११४३१). गौतमस्वामी रास, आ. विजयभद्रसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: जयभद्रसूरि इम भणे ए, ढाल-६, गाथा-४७, (पू.वि. गाथा-३० से है.) ११७७१८. गौतमस्वामी रास, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ३, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., दे., (२७७१३, ११४३४). गौतमस्वामी रास, मा.गु., पद्य, आदि: वीर जिणेसर चरण कमल; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-३० अपूर्ण तक है.) For Private and Personal Use Only Page #194 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२६ ११७७१९. सीमंधरस्वामी स्तवन व औपदेशिक सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९४२, श्रावण कृष्ण, ८, मध्यम, पृ. २, कुल पे. २, प्रले. मु. लिछमीलाल मात्मा; पठ. श्रावि. भुजाईजी, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. अंतमें पेन्सिल से लिखा हैं., दे., (२६.५४१३, १५४३३). १.पे. नाम. सीमंधरस्वामी स्तवन, पृ. १अ-२आ, संपूर्ण. सीमंधरजिन विनती स्तवन, उपा. भक्तिलाभ, मा.गु., पद्य, आदि: सफल संसार अवतार ए; अंति: लाभै० पुरी आसा मनतणी, गाथा-१८. २. पे. नाम. औपदेशिक सज्झाय-दान शील तप, पृ. २आ, संपूर्ण, पे.वि. यह कृति किसी अन्य प्रतिलेखक द्वारा लिखी गई है. __ मा.गु., पद्य, आदि: सूरत इंद्री थारी बस करो; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., गाथा-८ अपूर्ण तक लिखा है.) ११७७२० पट्टावली, अपूर्ण, वि. १८२८, मार्गशीर्ष शुक्ल, १२, बुधवार, मध्यम, पृ. ३-२(१ से २)=१, जैदे., (२६.५४१२.५, ११४४३). पट्टावली तपागच्छीय, मा.गु.,सं., गद्य, आदि: (-); अंति: पट्टेविजयधर्मसूरीश्वरगते, (पू.वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं., दयासूरि के पट्टधर हेमसूरि से है.) ११७७२२ (#) आदितव्रत कथा, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ४, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., (२७X१२.५, ९x४२). आदितव्रत कथा, मु. खुस्याल, मा.गु., पद्य, वि. १७८२, आदि: ऋषभजिनादिक वंदूसार प्रणम; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-८० अपूर्ण तक है.) ११७७२३. रत्नाकरपच्चीसी सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, पृ.वि. मात्र प्रथम पत्र है., जैदे., (२६.५४१३, ४४२९). रत्नाकरपच्चीशी, आ. रत्नाकरसरि, सं., पद्य, वि. १४वी, आदि: श्रेयः श्रियां मंगल; अंति: (-), (प.वि. गाथा-३ अपूर्ण तक है.) रत्नाकरपच्चीसी-टबार्थ *, मा.गु., गद्य, आदि: कल्याणनी लक्ष्मीनो मंगलीक; अंति: (-). ११७७२४. देशांतरी छंद, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. २, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. हुंडी:देशांतरी छंद., देशंतरीछंद., दे., (२८x१३, १३४३७). पार्श्वजिन छंद-गोडीजी, मा.गु., पद्य, आदि: सुवचन आपो शारदा मया; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-३३ अपूर्ण तक है.) ११७७२५ (+#) सुंदरी चौपाई-जिनदर्शनप्रतिज्ञाविषये, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ५-३(१ से ३)=२, पू.वि. बीच के पत्र हैं., प्र.वि. हुंडी:दर्शन., संशोधित. मूल पाठ का अंश खंडित है, दे., (२७४१२.५, १२४३६). सुंदरी चौपाई-जिनदर्शनप्रतिज्ञाविषये, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. गाथा-४९ अपूर्ण से ८८ अपूर्ण तक ११७७२६. (#) सिद्धाचल स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, प्र.वि. हुंडी:स्तवन., मूल पाठ का अंश खंडित है, दे., (२६.५४१२.५, ११४२९). शत्रुजयतीर्थ स्तवन, पंन्या. जिनविजय, मा.गु., पद्य, आदि: कर जोडी कहें कामिनी; अंति: सेवक जन धरे ध्यान, गाथा-१६. ११७७२८. मेरु दस दिशा विचार, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. २-१(१)=१, पू.वि. मात्र बीच का ही एक पत्र है., दे., (२६.५४१२.५, १६x४४). मेरु १० दशा विचार, मा.गु., गद्य, आदिः (-); अंति: (-), (पू.वि. पूर्व-पश्चिम वन वर्णन अपूर्ण से पर्वत वर्णन अपूर्ण तक ११७७२९ (#) दानाधिकार स्वाध्याय, औपदेशिक सज्झाय व साधारणजिन पद, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ३, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२६.५४१३, १७४३६). १. पे. नाम. दानाधिकार स्वाध्याय, पृ. १अ, संपूर्ण. For Private and Personal Use Only Page #195 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir १८० कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची औपदेशिक सज्झाय-दानफल, मु. लावण्यसमय, मा.गु., पद्य, वि. १६वी, आदि: एक घर गोडा हाथीया जी पायक; ___ अंति: दान तणे परीमाण रे, गाथा-१२. २. पे. नाम. औपदेशिक सज्झाय, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. उपा. उदयरत्न, मा.गु., पद्य, आदि: प्रभु साथे जो प्रीत; अंति: उदयरतन इम बोले रे, गाथा-७. ३. पे. नाम. साधारणजिन पद, पृ. १आ, संपूर्ण. औपदेशिक पद, म. आनंदघन, पुहि., पद्य, वि. १८वी, आदि: ए जिनके पाय लाग रे; अंति: आनंदघन पाए लागरे, गाथा-३. ११७७३० (#) झांझरियामुनि सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, प्र.वि. मूल पाठ का अंश खंडित है, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६.५४१२.५, १७४४८). झांझरियामनि सज्झाय, म. मानविजय, मा.गु., पद्य, वि. १७८१, आदि: सरसती चरणे सीस नमावी; अंति: मानविजय जयकार कें, ढाल-४. ११७७३१. कल्पसूत्र सह कल्पद्रुमकलिका टीका, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ८२-८०(१ से ८०)=२, पू.वि. बीच के पत्र हैं., दे., (२६४१२, ११४३२). कल्पसूत्र, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., गद्य, आदिः (-); अंति: (-), (पू.वि. व्याख्यान-४ सिद्धार्थ राजा के द्वारा स्वप्नलक्षण पाठकों को बुलाने के प्रसंग अपूर्ण से स्वप्नलक्षण पाठकों का राजसभा में आगमन प्रसंग अपूर्ण तक है.) कल्पसूत्र-कल्पद्रमकलिका टीका, ग. लक्ष्मीवल्लभ, सं., गद्य, आदि: (-); अंति: (-). ११७७३२. अंजनासती रास, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. २, दे., (२६४१२.५, १२४३१). अंजनासंदरी चौपाई, मा.गु., पद्य, आदि: अंजणा मोटी सती पाल्य; अंति: (-), (अपूर्ण, पृ.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., गाथा-९ अपूर्ण तक लिखा है.) ११७७३३. (+) आदिजिन स्तवन व आदिजिन पद, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. २, कुल पे. २, प्रले. मु. सुमति ऋषि; पठ. चुन्नोकुमारी, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित., दे., (२६.५४१२.५, ९४२४). १.पे. नाम, आदिजिन स्तवन, पृ. १अ-२आ, संपूर्ण. मु. लालचंद, मा.गु., पद्य, आदि: जय जय ऋषभजिनंद अमंद दिवाक; अंति: जिणचंद नमे मस्तक नमी, गाथा-१०. २. पे. नाम. आदिजिन पद, पृ. २आ, संपूर्ण. मु. लालचंद, मा.गु., पद्य, आदि: जय स्वामी रिषभजिनंदजी; अंति: शीस नमै लालचंदजी, गाथा-४. ११७७३४. गौतमस्वामी रास, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, पू.वि. मात्र प्रथम पत्र है., जैदे., (२७४१३, १२४३७). गौतमस्वामी रास, मा.गु., पद्य, आदि: वीर जिनेसर चरण कमल; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-१५ अपूर्ण तक है.) ११७७३५ (+#) बृहत्संग्रहणी, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ३, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. संशोधित. मूल पाठ का अंश खंडित है, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६.५४१२, १२४३६). बृहत्संग्रहणी, आ. चंद्रसूरि, प्रा., पद्य, वि. १२वी, आदि: नमिउं अरिहंताई ठिइ; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-४७ अपूर्ण तक ११७७३६ (#) प्रदेशीराजा रास, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ४-२(१,३)=२, पृ.वि. बीच-बीच के पत्र हैं., प्र.वि. हुंडी:दुजो. पत्रांक नहीं है, अनुमानित दिया है., अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२६४१३, १५४५२). प्रदेशीराजा रास, रा., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. गाथा-३ अपूर्ण से ३६ अपूर्ण तक व ढाल-७ अपूर्ण से ९ अपूर्ण तक है.) ११७७३७. (#) अनंतकाय सज्झाय व दानशीलतपभावना स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ.१, कुल पे. २, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६४१३, १३४३३). १. पे. नाम. अनंतकाय सज्झाय, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. औपदेशिक सज्झाय-अनंतकाय त्यागे, म. भावसागर, मा.गु., पद्य, आदि: अनंतकायना दोष अनंता; अंति: भावसागर आनंदा रे, गाथा-१२. For Private and Personal Use Only Page #196 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२६ www.kobatirth.org ११७७३८. मेतारजऋषि सज्झाय, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, ये. (२६.५x१२.५, ९४३४). " २. पे. नाम. दानशीलतपभावना स्तवन, पृ. १आ, संपूर्ण. दानशीलतपभावना प्रभाती, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, वि. १७वी, आदि रे जीव जैनधर्म कीजीय; अंति मुगति तणा फल तांह, गाथा-६. Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir तारजमुनि सज्झाय, मु. राजविजय, पुहिं., मा.गु., पद्य, आदि: समता गुणना आगरुजी पंचमहा; अंतिः साधु तणी ए सज्झाय, गाथा - १३. ११७७३९. ऋषिमंडल स्तवन व पूजाविधि, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २, कुल पे. २, जैदे., (२६×१२.५, १४X३४). १. पे नाम, ऋषिमंडल स्तवन, पृ. १अ २आ, संपूर्ण. ऋषिमंडल स्तोत्र- लघु, आ. गौतमस्वामी गणधर सं., पद्य, आदि आद्यंताक्षरसंलक्ष्यम अंतिः श्रद्धातमा परम नंद नंद, श्लोक-६३, (वि. श्लोक-२७ के बाद गाथांक नहीं दिया है.) १८१ २. पे. नाम ऋषिमंडल स्तोत्र पूजाविधि, पृ. २आ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. " ऋषिमंडल स्तोत्र- बृहद् पूजाविधि, संबद्ध, सं., गद्य, आदि: प्रणम्य श्रीजिनाधीशं लब्ध; अति: (-) (पू.वि. २४ जिन नाम अपूर्ण तक है.) ११७७४०. जंबुद्वीप विचार, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, पू. वि. अंत के पत्र नहीं हैं., दे., ( २६.५X१२.५, १७x४४). जंबूद्वीप विचार, मा.गु., गद्य, आदि: जंबुद्वीप लांबो पहुल; अंति: (-). ( पू. वि. मेरुपर्वत वर्णन पाठ - "१००० जोजननो लांबो पहुलो छे" तक है.) ११७७४१. महावीरजिन स्तवन, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ५-४ (१ से ४)=१ वे. (२६.५x१३, १२४३९). " महावीरजिन स्तवन, मा.गु., पद्य, आदि: प्रणमुं सरसति मात बीजोने; अंति: (-), (पू.वि. मात्र प्रथम पत्र है., गाथा- ११ अपूर्ण तक है.) ११७७४२. (+) पंचदश संख्यानां प्रत्याख्याकानाकाएणामपभ्रंश भाषया लेसतो अर्थ, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, प्र. वि. हुंडी: पच्चक्खाण०, संशोधित. दे. (२७४१२.५, १७४३८). प्रत्याख्यानसूत्र-खालावबोध पुहि., मा.गु., गद्य, आदि: अन्नत्वणाभोगेण अन्न अति तो व्रत भंग होवे, १९७७४४ (+) आदिनाथ स्तवन- शत्रुंजयमंडण, संपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पू. २, प्रले. मामचंद, प्र.ले.पु. सामान्य, " प्र.वि. हुंडी:आलोना०., आला०, सैत्रुंजा०., संशोधित, जैदे., (२६X१२.५, १२X३४). शत्रुंजयतीर्थ स्तवन- बृहत्, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, आदि: बे करजोडी विनवुं जी; अंति: समयसुंदर गणि भणै, गाथा - ३२. " ११७७४५ समरादित्यकेवली रास खंड-८ ढाल १०, अपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पृ. २-२ (१)-१, जैदे. (२६.५४१३, १३४३८). समरादित्य केवली रास, क. पद्मविजय, मा.गु., पद्य, आदि (-); अंति: (-), (प्रतिअपूर्ण, पू.वि. खंड- ८ ढाल १० गाथा ३२ अपूर्ण से है.) 5 ११७७४६. रत्नविजय प्रति प्रेषित पत्र, संपूर्ण, वि. १९७२ श्रावण कृष्ण, १४, मध्यम, पृ. १, ले. स्थल. कलकत्ता, प्रले. मु. महिमाविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, दे. (२५.५x१३, ३५X१५-१८). रत्नविजय प्रति प्रेषित पत्र, मु. महिमाविजय, सं., गद्य, आदि: गुरुं श्रीरत्नविजयं लिख्य अंति: बहु लेखनेनेत्यलं विस्तरेण, ११७७४७ (४) पंचप्रतिक्रमणसूत्र संग्रह- तपागच्छीय, अपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पृ. २- १ (१) १, पू. वि. प्रथम एक व अंत के पत्र नहीं हैं. प्र. वि. हुंडी ०प्रत्य. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जै. (२६४१२.५ १२४३२). "" " पंचप्रतिक्रमणसूत्र संग्रह-तपागच्छीय, संबद्ध, प्रा., मा.गु. सं., प+ग., आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. अन्नत्थसूत्र अपूर्ण सेनमोत्थुणसूत्र अपूर्ण तक है.) " ', ११७७४८. (+) नवतत्त्वप्रकरण, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ५-१ (१) ४, प्र. वि. संशोधित. दे. (२७४१२.५, १०X३७). नवतत्त्व प्रकरण ६० गांधा, प्रा., पद्य, आदि (-); अति: सह परभवगा न सेसङ, गाथा-७७, (पू.वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं. गाथा - १७ अपूर्ण से है.) For Private and Personal Use Only Page #197 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org १८२ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ११७७४९ (७) विमलमंत्री प्रबंध, अपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पृ. २०-१९(१ से १९ ) = १, प्र. वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैवे., (२७X१२, २०७८). विमलमंत्री प्रबंध, मु. लावण्यसमय, मा.गु., पद्य, वि. १५६८, आदि (-); अंति नूंमं खंड वखाणि, खंड-९, गाथा-३८७, ग्रं. १७००, ( पू. वि. खंड-९ गाथा - २६ अपूर्ण से है.) Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ११७७५०. दीपावलीपर्व स्तवन, संपूर्ण, वि. १९२६, पौष शुक्ल, ११, श्रेष्ठ, पृ. १, ले. स्थल. खंभातबंदर, प्रले. श्राव. रेवादास पंनाचंद शाह, प्र.ले.पु. सामान्य, दे., (२७१३, ११x२९). " " " दीपावली पर्व स्तवन, मा.गु., पद्य, आदि चोंसठ मणनां ते मोती, अंतिः धिग घिग संसार विरंग रे, गाथा - ९. ११७७५१. गौतमस्वामी रास, अपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पु. १. पू. वि. मात्र प्रथम पत्र है. जैदे. (२६४१३ १०X२७). गौतमस्वामी रास, मा.गु., पद्य, आदि: वीर जिनेसर चरण कमल; अंति: (-), (पू.वि. गाथा -४ अपूर्ण तक है.) १९७७५२. सीमंधरजिन गुणमाला, आदिजिन स्तुति व रोहिणीतप स्तुति, अपूर्ण, वि. २०वी श्रेष्ठ, पृ. ३-२ (१ से २ ) = १, कुल २)=१, पे. ३. दे. (२७४१२.५, १२४२७) १. पे नाम. सीमंधरजिन गुणमाला, पू. ३अ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र हैं. सीमंधरजिन स्तवन, मु. विजयदेवसूरि शिष्य, मा.गु., पद्य, आदि (-); अंतिः पुन्ये दरसण पायो रे, दाल-७, गाथा ४०, (पू.वि. डाल-७ गाथा-३ अपूर्ण से है.) २. पे. नाम. आदिजिन स्तुति - शत्रुंजयतीर्थमंडन, पृ. ३अ - ३आ, संपूर्ण. शत्रुंजयतीर्थ स्तुति, आव ऋषभदास, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीशत्रुंजय तीरथसार अंति ऋषभदास गुण गाया, गाथा- ४. ३. पे नाम रोहिणीतप स्तुति, पृ. ३आ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र नहीं है. मु. लब्धिरूचि, मा.गु., पद्य, आदि जयकारी जिनवर वासपूज, अंति: (-), (पू.वि. गाथा- २ अपूर्ण तक है.) ११७७५३. कुमारपाल चौढालियो, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ४, पू. वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र. वि. हुंडी : कुमारपा०चो०., कुमा०चो०. दे. (२६.५X१२.५, ११x४३). " कुमारपाल रास, मु. जिनहर्ष, मा.गु., पद्य, वि. १७४२, आदि: श्रीसरसति भगवति नमु; अंति: (-), (पू.वि. ढाल-५ गाथा-३ अपूर्ण तक है.) ११७७५४. आलाप पद्धति, अपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १, पू. वि. मात्र प्रथम पत्र है., जैदे., (२६X१३, ११x४१). आलाप पद्धति, आ. देवसेन, सं., पद्य, वि. १०वी, आदि: (१)गुणानां विस्तरं, (२) श्रीमत्पार्श्वजिनाधीशं; अंति: (-), (पू.वि. पाठ- "अनंतगुणहानि एवंषट्हानिगुणरुपा" तक है.) ११७७५५ जिनकुशलसूरि अष्टप्रकारी पूजा व मंत्रसंग्रह, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, दे. (२६४१३, १२४३७). १. पे. नाम जिनकुशलसूरि अष्टप्रकारी पूजा, पृ. १अ, संपूर्ण. जिनकुशलसूर अष्टप्रकारी पूजा, मा.गु.,सं., प+ग, आदि: सकलगुणगरिष्टान्; अंतिः श्रीश्रीजि० अर्घनि०, गाथा- ९. २. पे नाम. पार्श्वपद्यावत्यादि मंत्र संग्रह, पृ. १आ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. मंत्र-तंत्र-यंत्र संग्रह*, प्रा.,मा.गु.,सं., प+ग., आदि: ॐ नमो भगवते पार्श्वचंद्रा, अंति: (-), (पू.वि. भंगराज मंत्र अपूर्ण है., वि. बंदीमोचन, विषमुक्ति आदि मंत्र संग्रह.) ११७७५६. (+०) जिनबिंबपूजा स्तवन व प्रहेलिका श्लोकादि संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. २, कुल पे. ७, प्र. वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे. (२६.५४१३, ११४३१). १. पे नाम. पार्श्वजिन स्तवन- चिंतामणि, पृ. १अ, संपूर्ण, जिनविवपूजा स्तवन, आ. जिनचंद्रसूरि, मा.गु., पद्य, आदि भविका श्रीजिनबिंब: अंतिः श्रीजिनचंद सवाई रे, गाथा - ११. २. पे नाम प्रहेलिका श्लोक, पृ. १आ, संपूर्ण. सं., पद्य, आदि कः खे भाति हतो निशाचरपतिः अंतिः त्वां मां च भृत्या सह, श्लोक-३. ३. पे नाम. सुभाषित लोक, पृ. १आ, संपूर्ण. सं., पद्य, आदि धनेदुः कुलिनाः कुलिना, अंति निर्धनस्य मृतस्य च श्लोक-२. For Private and Personal Use Only Page #198 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir १८३ हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२६ ४. पे. नाम. १० लब्धि बोल, पृ. २अ, संपूर्ण. ___ मा.गु., गद्य, आदि: १ अरिहंत लब्धि; अंति: आवइ परमाहांमी भव्य नही. ५. पे. नाम. अभव्यजीव दर्लभ बोल, पृ. २अ, संपूर्ण. मा.गु., गद्य, आदि: १ चक्रवर्ति पदवी २ इंद्र; अंति: बोल अभव्यजीव न पांमइ. ६.पे. नाम. ४ ध्यान विचार, पृ. २अ, संपूर्ण. मा.गु.,रा., गद्य, आदि: कंदणया कहितां महडे करी; अंति: वांछारूप चिंतन वियोग. ७. पे. नाम. प्रास्ताविक श्लोक संग्रह, पृ. २आ, संपूर्ण. श्लोक संग्रह **, पुहिं.,प्रा.,मा.गु.,सं., पद्य, आदि: निर्द्रव्या धनचिंतया धनपत; अंति: पसरतीति किमत्र चित्रं, श्लोक-४. ११७७५७. (+) २२ परिसह सज्झाय, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ४, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. हुंडी:परसी., संशोधित., दे., (२५.५४१२.५, १५४४४). २२ परिसह सज्झाय, मु. रायचंद ऋषि, मा.गु., पद्य, वि. १८२२, आदि: अनथ कोईथको का हो तीरखा; अंति: (-), (पू.वि. ढाल-१५ गाथा-३ अपूर्ण तक है.) । १९७७५८. (+) पुण्यप्रकाश स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२५.५४१२.५, १३४३२). पुण्यप्रकाश स्तवन, उपा. विनयविजय, मा.गु., पद्य, वि. १७२९, आदि: सकल सिद्धिदायक सदा; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., ढाल-१ गाथा-१० अपूर्ण तक लिखा है.) ११७७५९ (+) पार्श्वजिन स्तवन-चिंतामणि, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, प्र.वि. संशोधित., दे., (२५.५४१२, १६४२९). पार्श्वजिन स्तवन-चिंतामणि, मु. शांति, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीचिंतामणि देव वाला; अंति: शांति कहै होसे आणंद, गाथा-१०. ११७७६०. पांच सुमत तीन गुपत सज्झाय व चौवीसजिन स्तवन, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ५-४(१ से ४)=१, कुल पे. २, दे., (२५.५४१३, २१४३७). १.पे. नाम. पांच सुमत तीन गुपत सज्जाय, पृ. ५अ, अपूर्ण, पृ.वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं., पे.वि. हुंडी:पांचसुमत तीन गुपत. ८ प्रवचनमाता सज्झाय, मु. रायचंद ऋषि, मा.गु., पद्य, वि. १८२१, आदि: (-); अंति: चंद कहे जे जेकार हो, ढाल-८, (पू.वि. ढाल-८ अंतिम गाथा-१४ अपूर्ण मात्र है.) २.पे. नाम. २४ जिन स्तवन, पृ. ५अ-५आ, संपूर्ण. मा.गु., पद्य, आदि: अरिहंत सिद्ध आचारज; अंति: बजरंगे मंजारो जी, गाथा-९. ११७७६१. लघुशांति, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., दे., (२६४१३,११४२५). लघुशांति, आ. मानदेवसूरि, सं., पद्य, आदि: शांतं शांतिन शांति; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-१५ अपूर्ण तक है.) ११७७६२. (+) बहत्संग्रहणी-बोल संग्रह, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ.६-१(५)=५, पृ.वि. बीच व अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. संशोधित., अ., (२६४१२.५, ११४५३). बृहत्संग्रहणी-बोल संग्रह, संबद्ध, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. सिद्धगति वर्णन अपूर्ण तक है व बीच के __ पाठांश नहीं हैं., वि. सारिणीयुक्त.) ११७७६३. (+) २९ आंक विचार, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, प्र.वि. संशोधित., दे., (२५.५४१२.५, १८४४८). २९ अंक विचार, मा.गु., गद्य, आदि: ८४ अंक आगै प मींडी एतलै; अंति: कोडा कोडी कोडी कोडी २९. ११७७६४. (+#) ६ द्रव्यपरिमाणविचार गाथा व श्लोक संग्रह जैनधार्मिक, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६.५४१२.५, २८४४८). १. पे. नाम. ६ द्रव्यपरिमाणविचार गाथा सह बालावबोध, पृ. १अ, संपूर्ण. नवतत्त्व प्रकरण १०७ गाथा-हिस्सा ६ द्रव्यपरिमाणविचार गाथा, प्रा., पद्य, आदि: परिणामि जीव मुत्ता; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., मात्र गाथा-१ तक लिखा है.) नवतत्त्व प्रकरण १०७ गाथा-बालावबोध, मा.गु., गद्य, आदि: परिणामी कहिता षट् द्रव्य; अंति: (-), (अपूर्ण, पृ.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., वि. टबार्थ शैली में बालावबोध दिया है.) For Private and Personal Use Only Page #199 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir १८४ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची २.पे. नाम. श्लोक संग्रह जैनधार्मिक, पृ. १आ, संपूर्ण. श्लोक संग्रह जैनधार्मिक, प्रा.,सं., पद्य, आदि: धन्यारते व्रतदानतत्परधिया; अंति: (-), (वि. पत्रांक-१अ के हांसिये से श्लोक प्रारंभ किया है.) ११७७६५. चंद्रकला २१ चोर चौपाई, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ७-६(१ से ६)=१, पृ.वि. मात्र बीच का ही एक पत्र है., प्र.वि. पत्रांक खंडित होने के कारण अनुमानित पत्रांक दिया गया है., जैदे., (२६४१२, १८४४७). चंद्रकला २१ चोर चौपाई, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. गाथा-१६ अपूर्ण से ५९ अपूर्ण तक है.) ११७७६७. शांतिजिन स्तवन-निश्चयव्यवहारगर्भित, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ४, ले.स्थल. वडोदरा, प्रले. श्राव. मोतीलाल ताराचंद झवेरी, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. हुंडी:नीचयव्यवहास्तवन., दे., (२८.५४१३.५, १२४३३). शांतिजिन स्तवन-निश्चयव्यवहारगर्भित, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., पद्य, वि. १७३४, आदि: सांति जिणेसर केसर; अंति: वाचक जसविजय सिरि लही, ढाल-६, गाथा-४९. ११७७६९ (#) सज्झाय संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ३, कुल पे. ९, प्र.वि. हुंडी:सझायपत्र., अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२८x१४, १४४३४). १. पे. नाम. बीजनी सज्झाय, पृ. १अ, संपूर्ण. मु. लब्धिविजय, मा.गु., पद्य, आदि: बीज कहे भव्य जीवने रे; अंति: लब्धीविजय० विनोद रे, गाथा-८. २. पे. नाम, एलाचीकुमरनी सज्झाय, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. इलाचीकुमार सज्झाय, मु. लब्धिविजय, मा.गु., पद्य, आदि: नाम ईलापुर जाणीये धन; अंति: लबधिविजै गुण गाय, गाथा-१०. ३. पे. नाम. प्रसनचंद्रऋषी सज्झाय, पृ. १आ-२अ, संपूर्ण. प्रसन्नचंद्रराजर्षि सज्झाय, मु. रूपविजय, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: प्रणमुं तुमारा पाय; अंति: रूप० दीठा ए परतख्य, गाथा-६. ४. पे. नाम. आतमज्ञानजीवस उपर सज्झाय, पृ. २अ, संपूर्ण. औपदेशिक सज्झाय, म. लब्धिविजय, मा.गु., पद्य, आदि: कानन बीच तेरे चितमां; अंति: रहे तो सुख पामे अपार, गाथा-७. ५.पे. नाम. नववाडनी सज्झाय, पृ. २अ-२आ, संपूर्ण. नारीरूप सज्झाय, मु. जिनहर्ष, मा.गु., पद्य, आदि: चित्रलखीत जें पूतलि; अंति: नही रे कहे जीनहर्ष प्रबंध, गाथा-८. ६. पे. नाम. गछनायक भास, पृ. २आ-३अ, संपूर्ण, ले.स्थल. वडनगर, प्रले. पं. हीरविजय, प्र.ले.पु. सामान्य. विजयाणंदसूरि भास, मु. रंगविजय, मा.गु., पद्य, आदि: सरसती सुभ चित धाउ गुरुराज; अंति: रंगविजय गुण गाया रे, गाथा-८. ७. पे. नाम. संभवजिन स्तवन, पृ. ३अ-३आ, संपूर्ण. मु. रत्न, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीसंभवजिन जग तात रे साह; अंति: जगमा कोय नही तुम होडी रे, गाथा-५. ८. पे. नाम. सीमंधरजिन स्तवन, पृ. ३आ, संपूर्ण. म.रत्न, मा.गु., पद्य, आदि: विचरे पूरव विदेहमा सुखका; अंति: मानज्यो विश्व आधार रे. गाथा-६. ९. पे. नाम, शांतिनाथ आरती, पृ. ३आ, संपूर्ण. शांतिजिन आरती, मु. रत्न, मा.गु., पद्य, आदि: जय जय आरती शांति तुमारी; अंति: भावसुं केवल रत्न लहीजे, गाथा-६. ११७७७४. नवपद पूजा, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, पृ.वि. मात्र प्रथम पत्र है., जैदे., (२८.५४१३.५, १२४३२-३७). नवपद पूजा, उपा. यशोविजयजी गणि, प्रा.,मा.गु.,सं., पद्य, आदि: नमोर्हत्सिद्धाचार्यो; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-७ अपूर्ण तक है.) ११७७७५. १० पच्चक्खाण, अपूर्ण, वि. १९११, चैत्र शुक्ल, १४, रविवार, मध्यम, पृ. २-१(१)=१, ले.स्थल. आणंदपुरनगर, प्रले. मु. हर्षसागर, प्र.ले.पु. सामान्य, दे., (२७.५४१३, १४४३४). गा For Private and Personal Use Only Page #200 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२६ १८५ प्रत्याख्यानसूत्र, संबद्ध, प्रा., गद्य, आदि: (-); अंति: गारेणं बोसिरामि, (पू.वि. प्रथम पत्र नहीं है., चोविहार पच्चक्खाण ७ ___ अपूर्ण से है.) ११७७७६. मौनएकादशी गणj, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ३-१(१)=२, पठ. श्रावि. जुमाबाई, प्र.ले.पु. सामान्य, दे., (२७.५४१३.५, १३४२९). मौनएकादशीपर्व गणणं, सं., गद्य, आदि: (-); अंति: आरणनाथाय नमः, (पू.वि. पुषकरपूर्वभ० अतीत से है.) ११७७७७. (+) उत्तराध्ययनसूत्र-(प्रा.)चयन सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, प्र.वि. संशोधित., दे., (२७७१३.५, १२४२४). उत्तराध्ययनसूत्र-चयनितगाथा संग्रह, प्रा., पद्य, आदि: अप्पानइवेयरणी अप्पामे; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., गाथा-६ अपूर्ण तक लिखा है.) उत्तराध्ययनसूत्र-चयनितगाथा संग्रह-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: दीक्षा लीधइ नाथ हुवो पहिल; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., गाथा-२ तक का टबार्थ लिखा है.) ११७७७८. लघुस्नपन, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २-१(१)=१, प्र.वि. हुंडी:न्हावण०., जैदे., (२८.५४१३.५, १०४३६). जिनाभिषेक विधि, सं., पद्य, आदि: (-); अंति: वंदे कर्माष्टकविनाशकं, श्लोक-१७, (पू.वि. प्रथम पत्र नहीं है., ९ इक्षुरस स्तपनं अपूर्ण से है.) ११७७७९ (+) औपदेशिक सज्झायादि संग्रह, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. २-१(१)=१, कुल पे. ६, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-पदच्छेद सूचक लकीरें., दे., (२६.५४१३, २५४५६). १. पे. नाम. औपदेशिक सज्झाय, पृ. २अ, संपूर्ण, पे.वि. हुंडी:कपटीमनष. औपदेशिक सज्झाय-कपट, मु. रायचंद ऋषि, रा., पद्य, आदि: कपटि मनखरो विसवास न किजे; अंति: रिष रायेचंदजि कहे एमोरे, गाथा-८. २. पे. नाम. औपदेशिक सज्झाय, पृ. २अ, संपूर्ण, पे.वि. हुंडी:किसी को बुरो मत. पुहिं., पद्य, आदि: किसि को बुरो मत चिंतो भाई; अंति: पाप करिने होणहार सो हुवो, गाथा-८. ३. पे. नाम. औपदेशिक द्रष्टांत पद, पृ. २अ, संपूर्ण, पे.वि. हुंडी:दृष्टांत. औपदेशिक दृष्टांत पद, पुहि., पद्य, आदि: लाल किताब में लिखाउ; अंति: लेउ देउने परिबाई० दलि, गाथा-६. ४. पे. नाम. औपदेशिक दोहा संग्रह, पृ. २अ, संपूर्ण, पे.वि. हुंडी:दोहा.. मु. लालचंद ऋषि, पुहिं., पद्य, आदि: सजन एसा न किजिये पेठ पेस; अंति: लालचंद० मुनिराज खोइ रे, गाथा-६. ५. पे. नाम. दसवैकालिकसूत्र-अध्ययन ५ उद्देस २ की गाथा ३१ से ३६ तक, पृ. २अ, संपूर्ण, पे.वि. हुंडी:गाथा. दशवैकालिकसूत्र, आ. शय्यंभवसरि, प्रा., पद्य, वी. रवी, आदि: (-); अंति: (-), प्रतिपूर्ण. ६. पे. नाम. औपदेशिक भजन, पृ. २आ, संपूर्ण, पे.वि. हुंडी:माया. रामचरण, पुहिं., पद्य, आदि: दुनिया बोहत देखो कपटि; अंति: रामचरण० लहै चउगत धका खाय, गाथा-६. ११७७८१ (#) अष्टमीतिथिपर्व स्तवन-ढाल १ गाथा ५ से ८ व ढाल २ गाथा ८ से १४, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, प्र.वि. मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., (२७.५४१३.५, १२४२३). अष्टमीतिथिपर्व स्तवन, मु. कांतिविजय, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: (-); अंति: (-), प्रतिपूर्ण. ११७७८२ (#) दंडक प्रकरण सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, पृ.वि. मात्र प्रथम पत्र है., प्र.वि. टीकादि का अंश नष्ट है, जैदे., (२७७१३, १४४२२). दंडक प्रकरण, मु. गजसार, प्रा., पद्य, वि. १५७९, आदि: नमिउं चौवीस जिणे; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-३ अपूर्ण तक दंडक प्रकरण-टबार्थ*, मा.गु., गद्य, आदि: ऋषभादिक २४ जिननै; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-२ तक टबार्थ लिखा है.) ११७७८३. त्रिलोक्यसार विचार, अपूर्ण, वि. १९१७, फाल्गुन कृष्ण, ११, श्रेष्ठ, पृ. ९-८(१ से ८)=१, ले.स्थल. वडगांमनगर, लिख. श्रावि. जवलबाई, प्र.ले.प. सामान्य, प्र.वि. हंडी:त्रीलोक्यसारपत्र. श्रीचिंतामणीजी पार्श्वप्रशादात्., दे., (२८x१३.५, १३४३८-४१). For Private and Personal Use Only Page #201 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra १८६ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची त्रैलोक्यसार चौपाई, आ. सुमतिकीर्तिसूरि, मा.गु, पद्म, वि. १६२७, आदि (-); अंति घरी मूगते जाय, गाथा २०५, (पू.वि. अंतिम अध्याय की गाथा ३१ अपूर्ण से है.) ११७७८४ (२) चिदानंद स्तोत्र, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. २- १ (१) १, प्र.वि. पत्रांक का उल्लेख नहीं है. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२७४१४, १२x२१-३८). www.kobatirth.org १०x२१-२६). चिदानंद स्तोत्र, आ. दानसूरि, सं., पद्य, आदि: (-); अंति: कर्षित छै सुदाननाम, श्लोक-३१, (पू. वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं., श्लोक-१९ अपूर्ण से है.) ११७७८८ देवसिप्रतिक्रमण विधि- खरतरगच्छीय, अपूर्ण, वि. २०वी श्रेष्ठ, पृ. ५. पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. दे. (२७.५४१३, Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir देवसिप्रतिक्रमण विधि- खरतरगच्छीय, संबद्ध, प्रा. मा.गु. सं., प+ग, आदि इच्छामि खमासमणो वंदि; अति: (-), (पू.वि. तीन गारव पाठ तक है.) ११७७८९. श्रीपाल रास, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ५-४ (१ से ४) = १, प्र.वि. पत्रांक लिखा न होने के कारण अनुमानित पत्रांक दिया गया है. दे. (२८४१३.५, ३४३३). श्रीपाल रास, उपा. विनयविजय; उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., पद्य, वि. १७३८, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं व प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., खंड-१ ढाल-५ गाथा-९ से है व गाथा-११ अपूर्ण तक लिखा है.) ११७७९०. देवसियराईय प्रतिक्रमणसूत्र, संपूर्ण वि. २०वी श्रेष्ठ, पृ. ३, दे., (२८x१३.५, १२x२५-२७) देवसियराईय प्रतिक्रमणसूत्र संबद्ध, गु. प्रा. मा.गु., प+ग, आदि नमो अरिहंताणं नमो अति: (-), (अपूर्ण, पू. वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण. स्थूल-३ तक लिखा है.) ११७७९१. बाहुबलऋषि की सज्झाय, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ३, प्रले. खेमचंद परसोत्तम ठाकोर, प्र.ले.पु. सामान्य, दे., (२८x१३.५, १२X३४). " भरतबाहुबली सज्झाय, मु. रामविजय, मा.गु., पद्य, वि. १७७१, आदि: स्वस्ति श्रीवरवा; अंति: रामविजय जय श्रीवरे, ढाल-४, गाथा ३८. ११७७९४ (+) महावीरजिन स्तवन अपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पृ. ५-२ (१ से २) - ३, प्र. वि. पदच्छेद सूचक लकीरें संशोधित, जै.. (२७X१३.५, १२X३८-४१). महावीरजिन स्तवन- २७ भवविचारगर्भित, मु. हंसराज, मा.गु., पद्य, वि. १७वी, आदि (-) अंति: वंदे० धन मुझ ए गुरो, ढाल - १०, गाथा- ८९, (पू.वि. गाथा- ४७ अपूर्ण से है . ) ११७७९५. (#) सज्झाय संग्रह, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पू. ९-७ (१ से ७)= २, कुल पे. ५. प्र. वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे.. (२७४१३.५, १७४३१). १. पे. नाम. रात्रिभोजन परिहार सज्झाय, पृ. ८अ-८आ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र हैं. मा.गु., पद्य, आदि (-); अंति तप तपीजी सरीया आप काज रे, गाथा २०, ( पू. बि. गाथा-५ से है.) २. पे. नाम. भूलमननी सज्झाय, पृ. ८आ, संपूर्ण. औपदेशिक सज्झाय- मनभमरा, मु. मोहन, मा.गु., पद्य, आदि: भूलो मन भमरा काई भमे भमीय; अंतिः उवारीये लेखो प्रभु हाथ, गाथा- ९. ३. पे. नाम. सीतासती सज्झाय- शीलविषये, पृ. ८- ९अ, संपूर्ण. ग. जिनहर्ष, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: जलजलती मिलती घणुं रे; अंति: नित प्रणमुं पाय रे, गाथा- ९. ४. पे. नाम. तमाकु सज्झाय, पृ. ९अ - ९आ, संपूर्ण. औपदेशिक सज्झाय तमाकुत्याग, मु. आणंद, मा.गु., पद्य, आदि प्रीतम सेती वीनवे; अंति: आनंद० कोडि कल्याण मेरे, गाथा- १५. ५. पे. नाम. माया सज्झाय, पृ. ९आ, , संपूर्ण. For Private and Personal Use Only Page #202 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२६ १८७ औपदेशिक सज्झाय-माया परिहार, मु. उदयरत्न, मा.गु., पद्य, आदि: समकितनुं बीज जाणजो; अंति: ए मारग छे शुद्ध रे, गाथा-६. ११७७९६. (#) कृष्ण सज्झाय, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १,प्र.वि. मूल पाठ का अंश खंडित है, दे., (२६.५४१३, १३४३१). कृष्णमहाराजा सज्झाय, मु. ऋषभ, मा.गु., पद्य, आदि: नगरी द्वारिकामा नेम; अंति: मोरि क्रोड दिवाली जीवोहो, गाथा-११. ११७७९७. शत्रुजयतीर्थ चैत्यवंदन, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, दे., (२६४१३, ९४२०). शत्रंजयतीर्थ चैत्यवंदन, म. नगजय, सं., पद्य, आदि: नमः सिद्धक्षेत्राय; अंति: नमस्तां ३ नमोमे, श्लोक-५. ११७७९८. (#) पाशाकेवली, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ४, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. मूल पाठ का अंश खंडित है, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६.५४१३.५, १५४४०). पाशाकेवली-भाषा, संबद्ध, मा.गु., गद्य, आदि: १११ उत्तम स्थानक थकी लाभ; अंति: (-), (पू.वि. ४३४ मध्यम तक ११७८०० (१) प्रियमेलक चौपाई-दानाधिकारे, संपूर्ण, वि. १७७७, भाद्रपद कृष्ण, ५, शनिवार, मध्यम, पृ. २, ले.स्थल. मक्सुदाबाद, प्र.वि. मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., (२७.५४१३.५, ३०४८६). प्रियमेलक चौपाई-दानाधिकारे, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, वि. १६७२, आदि: प्रणमुं सद्गुरु पाय; अंति: समयसु० अधिक परमोद, ढाल-११, गाथा-२२८. ११७८०२. वर्द्धमानस्वामीनं पारणं, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २, जैदे., (२८x१३, १३४३१). महावीरजिन पारणं, मु. अमीविजय, मा.गु., पद्य, आदि: माता त्रिसलाई पुत्र; अंति: कहे थास्ये लीला लेर, गाथा-१८. ११७८०४. (4) प्रज्ञापनासूत्र-अल्पबहुत्व ९८ बोल, संपूर्ण, वि. १९१२, आश्विन कृष्ण, २, गुरुवार, मध्यम, पृ. २, ले.स्थल. किशनगढ, प्रले. सा. रायकवरी (गुरु सा. पाराजी); गुपि. सा. पाराजी, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२७.५४१३, २७४२१-२४). प्रज्ञापनासूत्र-अल्पबहुत्व ९८ बोल, संबद्ध, मा.गु., गद्य, आदि: सर्वथी थोडा गर्भज मनुष्य; अंति: सर्वजीव विशेषा हिया. ११७८०५. सिद्धाचल स्तवन व शत्रुजयगिरि स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, प्र.वि. पत्रांक लिखा न होने के कारण अनुमानित पत्रांक दिया गया है., जैदे., (२८x१३.५, १३४२५). १. पे. नाम, सिद्धाचल स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण. शत्रंजयतीर्थ स्तवन, म. कांतिविजय, मा.गु., पद्य, आदि: श्री रे सिद्धाचल; अंति: हरषे करी विमलाचल गायो, गाथा-५. २. पे. नाम, शत्रुजयगिरि स्तवन, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. शत्रंजयतीर्थ स्तवन, म. जिनचंद, मा.गु., पद्य, आदि: अंग उमायो मझने अति घणो; अंति: छे प्रम घणो छे जिनचंद रे. गाथा-७. ११७८०६. (#) माणिभद्रवीर छंद, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २, ले.स्थल. जालोर, प्रले. मु. रायचंद्र, प्र.ले.प. सामान्य, प्र.वि. मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., (२६.५४१२.५, १३४२९). माणिभद्रवीर छंद, मु. उदयकुशल, मा.गु., पद्य, आदि: सरस वचन द्यो सरसती; अंति: लाख लाखरी मांजां लहे, गाथा-२६. ११७८०७.(#) औपदेशिक सज्झाय, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ.१,प्र.वि. हुंडी:जेवडेलानी., अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२७४१३, १५४३५). औपदेशिक सज्झाय, मा.गु., पद्य, आदि: अनंतकालसुं जीवडो पाम्यो; अंति: (-), (पू.वि. प्रारंभ के पत्र हैं., गाथा-२६ अपूर्ण तक है.) ११७८०८. भावना कुलक, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. २, प्र.वि. हुंडी:भावना., दे., (२७७१३, १२४३६). भावना कुलक, प्रा., पद्य, आदि: निसाविरामे परिभावयाम; अंति: निव्वाणसुहं लहंति, गाथा-२२. ११७८०९ वंदित्तुसूत्र, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ११०-१०९(१ से १०९)=१, जैदे., (२७.५४१३.५, १३४४०). वंदित्तसूत्र, संबद्ध, प्रा., पद्य, आदि: वंदित्तु सव्वसिद्धे; अंति: (-), (पू.वि. प्रारंभ के पत्र हैं., गाथा-१४ अपूर्ण तक है.) For Private and Personal Use Only Page #203 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra १८८ www.kobatirth.org कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ११७८१०. सकलतीर्थं वंदना व ५ प्रमादनाम गाथा संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पू. १, कुल पे. २, दे. (२८.५५१३.५, १४४३५). १. पे. नाम. सकलतीर्थ वंदना, पृ. १अ १आ, संपूर्ण Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir मु. जीवविजय, मा.गु., पद्य, आदि: सकल तीर्थ वंदु कर; अंति: जीव कहे भवसायर तरुं, गाथा-१५. २. पे. नाम. ५ प्रमादनाम गाथा, पृ. १आ, , संपूर्ण. प्रा., पद्य, आदि मंज विषय कषाया, अंति जीवं पाडती संसारे, गाथा- १. ११७८११. (+) आचारदिनकर-उदय ३३ प्रतिष्ठा विधि, अपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पू. ५-४ (१ से ४) = १. पू.वि. मात्र बीच का ही एक पत्र है., प्र. वि. संशोधित., जैदे., (२७.५X१२.५, १४४४१). आचारदिनकर, आ. वर्द्धमानसूरि, सं., प+ग, आदि: (-); अंति: (-), (प्रतिअपूर्ण, पू. वि. ६४ इंद्राणी स्थापन मंत्र अपूर्ण से ब्रह्मेद्र स्थापन मंत्र अपूर्ण तक है.) ११७८१३. सामायिक ३२ दोष सज्झाय व गौतमस्वामी रास, संपूर्ण, वि. १८८४, मार्गशीर्ष कृष्ण, मध्यम, पृ. २, कुल पे. २, प्र. वि. श्रीऋषभदेवस्य प्रसादने. जैवे. (२७.५४१३, १५-१६४३१-३५). " १. पे नाम सामायिक ३२ दोष सज्झाय, पू. १अ-२आ, संपूर्ण आ. जिनलब्धिसूरि, मा.गु., पद्य, आदि भवियण उपगारह भणी, अंति: जिनलब्धि० सुख सासता, गाथा - ३५. २. पे. नाम. गौतमस्वामी रास, पृ. २आ, संपूर्ण. मा.गु., पद्य, आदि: वीर जिनेसर चरण कमल अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., ढाल १ दोहा २ अपूर्ण तक लिखा है.) ११७८१५. (+४) महावीरजिन स्तवन- ५ कल्याणक वधावा, संपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पृ. ३, प्र. वि. संशोधित मूल पाठ का अंश खंडित है, अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, जैदे., (२७.५x१३.५, १३४३५). महावीरजिन स्तवन -५ कल्याणक वधावा, मु. दीपविजय, मा.गु., पद्य, आदि: वंदी जगजननी ब्रह्माण; अंति: (-), (अपूर्ण, पू. वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., वधावा ४ गाथा १३ तक लिखा है.) ११७८१६. अष्टाह्निकापर्व व्याख्यान का बालावबोध, अपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ४-३ (१ से ३) = १, पू. वि. मात्र बीच का ही एक पत्र है., जैदे., (२७.५x१३.५, १४४३६). अष्ठाह्निकापर्व व्याख्यान- बालावबोध, मा.गु, गद्य, आदि (-); अंति: (-), (पू.वि. व्याख्यान महिमा अपूर्ण से ५२ पर्वत वर्णन अपूर्ण तक है., वि. मूलपाठ प्रतीक के रूप में दिया है.) १९०८१०. धर्मनाथ स्तवन व कलंकीनी सज्झाय, संपूर्ण वि. १९०१ चैत्र शुक्ल, २, मंगलवार, मध्यम, पृ. २, कुल पे. २, ले.स्थल. पाटणनगर, प्रले. श्राव. वल्लभदास संपतराम मेहता, पठ. श्राव. मीरात, प्र.ले.पु. सामान्य, दे., ( २८x१३, १२x३९). १. पे नाम. धर्मनाथ स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण. धर्मजिन स्तवन, मु. आनंदघन, मा.गु., पद्य, आदि: धरमजिनेसर गाउं रंगसु; अंति: सांभलो ए सेवक अरदास, गाथा-८. २. पे. नाम. कलंकीनी सज्झाय, पृ. १आ-२आ, संपूर्ण. पंचम आरा सज्झाय, मु. जिनहर्ष, मा.गु., पद्य, आदि वीर कहे गौतम सुणो; अंतिः देखीये भाख्या वेण रसाल, गाथा-२४. ११७८१९. स्नात्रविधि, अपूर्ण, वि. १८४९, पौष शुक्ल, १३, शुक्रवार, मध्यम, पृ. ५-१ (१) = ४, पठ. सा. ऋषभा, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. हुंडी: स्नात्रनापत्र. पंचास्वरजी प्रसादात्., जैदे., (२८.५X१३, १३X३७). विशेष पाठ., जैदे., स्नात्रपूजा, आव, देपाल भोजक, प्रा. मा.गु., पद्म, वि. १६वी, आदि (-); अति उतारी राजा कुमारपाले, " कुसुमांजलि ५, (पू.वि. कुसुमांजलि विधि गाथा-७ अपूर्ण से है.) ११७८२१. (+) साधारणजिन स्तव सह वृत्ति, अपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पू. १, पू. वि. मात्र प्रथम पत्र है., प्र. वि. पंचपाठ- टिप्पण युक्त जैवे. (१८x१३, ३X३६). साधारणजिन स्तव, आ. जयानंदसूरि, सं., पद्य, आदि देवाः प्रभो व अति (-) (पू.वि. श्लोक-२ तक है.) साधारणजिन स्तव-वृत्ति, ग. कनककुशल, सं., गद्य, आदि: हे प्रभो सत्वं त्वं मया; अंति: (-). ११७८२२. सिद्धपंचाशिका प्रकरण, संपूर्ण, वि. २०वी मध्यम, पृ. १, ये. (२८४१३, ८४४०). " For Private and Personal Use Only Page #204 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir १८९ हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२६ सिद्धपंचाशिका प्रकरण, आ. देवेंद्रसूरि, प्रा., पद्य, आदि: सिद्धं सिद्धत्थसुअं; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., गाथा-१० तक लिखा है.) ११७८२७. लघुशांति, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, दे., (२८x१३, ११४३३). लघुशांति, आ. मानदेवसूरि, सं., पद्य, आदि: शांति शांतिनिशांतं; अंति: जैन जयति शासनम्, श्लोक-१८. ११७८२८. वज्रधरजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, जैदे., (२५.५४१२.५, ९x४९). वज्रधरजिन स्तवन, म. देवचंद्र, मा.गु., पद्य, आदि: विहरमान भगवान सुणो; अंति: देवचंद्र० मुझ आपज्यो, गाथा-७. ११७८२९. हितशिक्षामणछत्रीसी, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ३, जैदे., (२७.५४१३, ११४३१). उपदेशछत्रीसी, पं. वीरविजय, मा.गु., पद्य, आदि: सांभलज्यो सज्जन नर; अंति: शुभवीर० मोहन वेली, गाथा-३७. ११७८३० (+) नेमिस्वर स्तुति, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, प्रले. मु. विमलचंद, प्र.ले.प. सामान्य, प्र.वि. संशोधित., दे., (२७.५४१३, १२४२७). नेमिजिन स्तति, चतर्भज, सं., पद्य, आदि: जय जय; अंति: शिवंकरः, श्लोक-९. ११७८३१. अर्घकांड, वरसाली विचार व उनाली विचार, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ३, दे., (२७.५४१३, १३४४१). १. पे. नाम. अर्घकांड, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. आ. भद्रबाहस्वामी, प्रा., पद्य, आदि: तपसिंद नरिंद नयं पणमिय; अंति: जाणह सो सव्वन्न न संदेहो, गाथा-१९. २. पे. नाम. वरसाली विचार, पृ. १आ, संपूर्ण. वर्षा विचार, मा.गु., गद्य, आदि: वर्षा लीजोइ जे तरे संवत्; अंति: नही वधे तो काल जीरावर होइ. ३. पे. नाम. उनाली विचार, पृ. १आ, संपूर्ण. सुकालदुष्काल विचार, मा.गु., गद्य, आदि: संवत् होवे तिको विमणो करी; अंति: दुकाल पडे गोहु मंगावे. ११७८३२. (+#) पार्श्वजिन स्तवन, आदिजिन होरी व पार्श्वजिन होरी आदि संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २, कुल पे.६, प्र.वि. हंडी:स्तवन., संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२७.५४१३.५, १२४३२). १. पे. नाम. पार्श्वजिन स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण. मु. अनूपचंद, मा.गु., पद्य, आदि: जीवन म्हारा तेवीसमा; अंति: पसाय पभणे अनुपमचंद, गाथा-५, (वि. गाथाक्रम भिन्न २.पे. नाम. आदिजिन होरी, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. मु. जिनचंद्र, मा.गु., पद्य, आदि: होरी खेलियै नर बहुर; अंति: वारी भवभव पातिक जाय, गाथा-४, (वि. गाथाक्रम भिन्न ३. पे. नाम. पार्श्वजिन होरी, पृ. १आ, संपूर्ण. मु. रत्नसागर, पुहिं., पद्य, आदि: रंग मच्यो जिनद्वार; अंति: भावना भावे बोलो जय जयकार, गाथा-९. ४. पे. नाम. सिद्धाचलजी रो स्तवन, पृ. १आ-२अ, संपूर्ण. शत्रंजयतीर्थ स्तुति, म. जिनचंद, मा.ग., पद्य, आदि: वहढं बोले रे पंथिडा वहल; अंति: प्रेम घणो जिणचंद, गाथा-७. ५.पे. नाम. सम्मेतशिखर स्तवन, पृ. २अ-२आ, संपूर्ण. सम्मेतशिखरतीर्थ स्तवन, मु. अमृत, पुहिं., पद्य, वि. १८४३, आदि: चालो सहीया आपे जईयै; अंति: अमृत० करि कल्याण, गाथा-७. ६. पे. नाम. पार्श्वजिन स्तवन, पृ. २आ, अपूर्ण, पू.वि. प्रारंभ के पत्र हैं. वा. क्षमाकल्याण, पुहि., पद्य, वि. १८४७, आदि: आज हमारै हरख वधाई; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-४ अपूर्ण तक है.) ११७८३३. (+#) २४ जिन १२० कल्याणक कोष्ठक, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, प्र.वि. संशोधित. अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, जैदे., (२८x१३, २०४१८-३५). २४ जिन १२० कल्याणक कोष्ठक, प्रा.,मा.ग.,सं., गद्य, आदि: कार्तिकसुदि संभवनाथजी; अंति: आसोज सुदी नेमीनाथ चवन. For Private and Personal Use Only Page #205 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir १९० कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ११७८३४. मौनएकादशीपर्व स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २, जैदे., (२७.५४१३.५, १५४५१). मौनएकादशीपर्व स्तवन, मु. विशुद्धविमल, मा.गु., पद्य, वि. १७८१, आदि: शांतिकरण श्रीशांतिजी; अंति: गुण गाया जी, ढाल-५, गाथा-४२. ११७८३५. एकादशीतिथि सज्झाय व सीमंधरजिन स्तवन, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, जैदे., (२८x१३.५, ८४३०). १. पे. नाम. एकादशीतिथि सज्झाय, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. उपा. उदयरत्न, मा.गु., पद्य, आदि: आज एकादशी नणदल मौन; अंति: धरीने तो भवसायर तरीए, गाथा-७, (वि. गाथाक्रम भिन्न है.) २. पे. नाम. सीमंधरजिन स्तवन, पृ. १आ, अपूर्ण, पू.वि. प्रारंभ के पत्र हैं. म. जिनेंद्रसागर, मा.ग., पद्य, आदि: सीमंधरजी कू वांदणा नित; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-३ तक है.) ११७८३७. जीवतत्त्व भेद, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. २, दे., (२७.५४१३, १०x१३). ९८ बोल-जीवअल्पबहत्व विषयक, मा.गु., गद्य, आदि: गर्भज मनुष्य स्तोक; अंति: जीव अधिक सर्वजीव अधिक. ११७८३८. सरस्वतीमातानो छंद, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. २, दे., (२७७१३, १२४३२). सरस्वतीदेवी छंद-अजारीतीर्थ, मु. शांतिकुशल, मा.गु., पद्य, आदि: सरस वचन समता मन आणी; अंति: ताहरी वाचा फलसे माहरी, गाथा-३५. ११७८४०. वृषभप्रभु स्तुति, वीरजिन स्तुति व शांतिजिन स्तुत्यादि संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ६, प्र.वि. प्रतिलेखन पुष्पिका सांकेतिक भाषा में है., जैदे., (२८x१२.५, १५४५९). १. पे. नाम. वृषभप्रभु स्तुति, पृ. १अ, संपूर्ण. आदिजिन स्तुति-भक्तामरस्तोत्रप्रथमश्लोकपादपूर्तिमय, सं., पद्य, आदि: भक्तामरप्रणतमौलिमणि; अंति: भवजले पततां जनानाम्, श्लोक-४. २. पे. नाम. वीरजिन स्तुति, पृ. १अ, संपूर्ण. महावीरजिन स्तुति-कल्याणमंदिर प्रथमश्लोकपादपूर्तिमय, सं., पद्य, आदि: कल्याणमंदिरमुदारमवद; अंति: नमभिनम्य जिनेश्वरस्य, श्लोक-४. ३. पे. नाम. शांतिजिन स्तुति, पृ. १अ, संपूर्ण. शांतिजिन स्तुति-सकलकुशलवल्ली पादपूर्तिमय, सं., पद्य, आदि: सकल कुशलवल्ली पुष्कर; अंति: वः श्रेयसे शांतिनाथः, श्लोक-४. ४. पे. नाम. पार्श्वजिन स्तुति, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तुति-रत्नाकरपच्चीसी प्रथमश्लोकपादपूर्तिमय, सं., पद्य, आदि: श्रेयः श्रियां मंगल; अंति: जय ज्ञानकलानिधान, श्लोक-४. ५. पे. नाम, सिद्धचक्र स्तुति, पृ. १आ, संपूर्ण. पंन्या. लक्ष्मीविजय, सं., पद्य, आदि: ज्ञात्वा प्रश्नं; अंति: प्रेमपूर्णे प्रसन्ना, श्लोक-४. ६. पे. नाम. नेमिजिन स्तुति, पृ. १आ, संपूर्ण. सं., पद्य, आदि: कमलवल्लपनं तव राजते; अंति: विभाभरनिर्जितभाधिपाः, श्लोक-४. ११७८४२. ५६३ जीवभेद व ५६० अजीवभेद विचार, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. २, कुल पे. २, दे., (२८x१३, १३४३६). १. पे. नाम. ५६३ जीवभेद विचार, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. मा.गु., गद्य, आदि: दशभुवनपति पनरपरमाधामि: अंति: भेद पांचसेने त्रेसठ थया. २. पे. नाम. ५६० अजीवभेद विचार, पृ.१आ-२आ, संपूर्ण. ५६० अजीव भेद विचार, मा.ग., गद्य, आदि: धर्मास्तिकाय खंध देस; अंति: पांचसे अने साठ भेद थाय. ११७८४३. प्रज्ञापनासूत्र-बोल संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. २, ., (२८.५४१३, १५४३९). For Private and Personal Use Only Page #206 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२६ प्रज्ञापनासूत्र-बोल*, संबद्ध, मा.गु., गद्य, आदि: श्रीभगवंतजी श्रीमहावीर; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., भव्यजीव देवता आयुष्य वर्णन तक लिखा है.) ११७८४४. आलोयणास्वरूप सज्झाय, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ३, दे., (२८x१३, १२४३३). महावीरजिन स्तवन-अतिचारगर्भित, म. धर्मवर्धन, मा.गु., पद्य, वि. १७५४, आदि: ए धन सासन वीर जिनवर; अंति: कीधो चोपने फलविधि पुरे, ढाल-४, गाथा-३०. ११७८४५. पार्श्वजिन स्तोत्र व साधारणजिन चैत्यवंदन, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, प. १, कुल पे. २, दे., (२७.५४१२.५, १०४४६). १. पे. नाम, पार्श्वजिन स्तोत्र, पृ. १अ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तोत्र-शंखेश्वरमंडन, सं., पद्य, आदि: ॐ नमः पार्श्वनाथाय; अंति: पूरय मे वांछितं नाथ, श्लोक-५. २. पे. नाम. साधारणजिन चैत्यवंदन, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. मा.गु., पद्य, आदि: जय जय तुं जिनराज आज; अंति: मुज प्रभु पार उतार, गाथा-६. ११७८४७. रामयशोरसायन चौपाई-ढाल ३२, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ४, प्र.वि. हुंडी:रामरस., दे., (२८x१२.५, १०४३२). रामयशोरसायन चौपाई, म. केशराज, मा.गु., पद्य, वि. १६८३, आदिः (-); अंति: (-), प्रतिपूर्ण. ११७८४८. नेमिजिन स्तवन व उपमितिभवप्रपंचा कथा-संसारीजीव चरित्र का बालावबोध, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, जैदे., (२८x१३, ११४३३). १. पे. नाम, नेमिजिन स्तवन, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. पं. वीरविजय, मा.गु., पद्य, वि. १९वी, आदि: सखी श्रावणनी छठ उजली रे; अंति: वीर० नित्य आवे छे खिण चित, गाथा-७. २. पे. नाम. उपमितिभवप्रपंचा कथा-संसारीजीव चरित्र का बालावबोध, पृ. १आ, संपूर्ण. उपमितिभवप्रपंचा कथा-हिस्सा संसारीजीव चरित्र का बालावबोध, ग. अमतसागर, मा.गु., गद्य, आदि: वाग्देवीं प्रणिपत्य; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., "अजयकर्म परिणाम" पाठ अपूर्ण तक लिखा है.) ११७८४९ (+) सप्तनयगर्भितमहावीर स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २,प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२८x१२.५, ११४३०). नयकर्णिका, उपा. विनयविजय, सं., पद्य, वि. १७३, आदि: वर्धमानं स्तुमः सर्व; अंति: जयसिंह गुरुश्चतुष्टी, श्लोक-२३. ११७८५०. ८ योगदृष्टिगुण सज्झाय, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, पू.वि. मात्र प्रथम पत्र है., जैदे., (२६.५४१३, १६४३४-४९). ८ योगदृष्टिगुण सज्झाय, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., पद्य, आदि: शिवसुख कारण उपदिशी; अंति: (-), (पू.वि. ढाल-४ गाथा-५ अपूर्ण तक है.) ११७८५१. दानशीलतपभावना संवाद, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ४-३(१ से ३)=१, जैदे., (२७७१३, १२४४३). दानशीलतपभावना संवाद, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, वि. १६६२, आदि: (-); अंति: समृद्धि सुप्रसादो रे, ढाल-४, गाथा-१०१, (पू.वि. अंत के पत्र हैं., ढाल-४ गाथा-६ अपूर्ण से है.) ११७८५२. ऋषभदेव स्तुति, महावीर स्तुति व पार्श्वजिन स्तुति, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. ३, दे., (२६४१२.५, १२४४३). १. पे. नाम. ऋषभदेव स्तुति, पृ. १अ, संपूर्ण. आदिजिन स्तुति-भक्तामरस्तोत्रप्रथमश्लोकपादपूर्तिमय, सं., पद्य, आदि: भक्तामरप्रणतमौलिमणि; अंति: भवजले पततां जनानाम्, श्लोक-४. २. पे. नाम. महावीर स्तुति, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. महावीरजिन स्तुति-कल्याणमंदिर प्रथमश्लोकपादपूर्तिमय, सं., पद्य, आदि: कल्याणमंदिरमुदारमवद; अंति: नमभिनम्य जिनेश्वरस्य, श्लोक-४. ३. पे. नाम. पार्श्वजिन स्तुति, पृ. १आ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तुति-रत्नाकरपच्चीसी प्रथमश्लोकपादपूर्तिमय, सं., पद्य, आदि: श्रेयः श्रियां मंगल; अंति: जय ज्ञानकलानिधान, श्लोक-४. For Private and Personal Use Only Page #207 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org १९२ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ११७८५४ (१) चोवीसी स्तवन, संपूर्ण वि. १८५३ श्रावण शुक्ल, ८, मंगलवार, मध्यम, पू. ३, प्रले. मु. श्रीचंद, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. संशोधित. मूल पाठ का अंश खंडित है, जै, (२७४१३, १२x२८). Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir २४ जिन स्तवन, पुहिं., पद्य, आदि: श्री आदिनाथं कीजे सुनाथं; अंति: सदा भक्ति द्यो कंठ मोरी, गाथा-३१. ११७८५६. गुरुगुण गहुंली, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, ले स्थल, पुनासेर, प्रले. मु. चारित्रविजय; अन्य श्रावि इठाबाई, प्र.ले.पु. सामान्य, दे. (२७१३, १३x२२). " गुरुगुण हुंली, मु. प्रेम, मा.गु., पद्य, आदि: चालो रे सखि जिनवाणी; अंति: मुज मनथी खसिया, गाथा- १३. ११७८५७. पाक्षिकप्रतिक्रमण विधि, अपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पृ. ४-३ (१ से ३ ) = १, प्र. वि. पत्रांक अनुमानित दिया गया है., जैवे., (२६.५x१२.५, १२x२६). पाक्षिकप्रतिक्रमण विधि, संबद्ध, पुहिं., प्रा., मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू. वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं व प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., "इच्छामिपडिक्कमिङसूत्र" अपूर्ण से है व "पक्खिखामणासूत्र" अपूर्ण तक लिखा है.) ११७८५८. (+) प्रास्ताविक श्लोक संग्रह व २४ जिन स्तोत्र, संपूर्ण, वि. १८९८, आश्विन अधिकमास शुक्ल, ९, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, प्रले. मु. सुंदरचंद, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. पदच्छेद सूचक लकीरें-संशोधित., जैदे., (२७X१३, ११x२१-२८). १. पे. नाम. प्रास्ताविक श्लोक संग्रह, पृ. १अ, संपूर्ण. प्रा., मा.गु., सं., पद्य, आदि धर्माज्जन्मकुले शरीर, अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण श्लोक-३ अपूर्ण तक लिखा है.) "" २. पे. नाम. २४ जिन स्तोत्र, पृ. १आ, संपूर्ण. २४ जिन स्तोत्र-पंचषष्टियंत्रगर्भित, मु. सुखनिधान, सं., पद्य, आदि: आदौ नेमिजिनं नौमि; अंति: मोक्षलक्ष्मी निवासम्, श्लोक- ८. ११७८५९. गुणस्थानक्रमारोह, अपूर्ण, वि. २०वी मध्यम, पृ. २१ (१) १, वे. (२६४१२.५, १५X३५). गुणस्थानक्रमारोह, आ. रत्नशेखरसूरि सं., पद्य, वि. १४४७, आदि: (-); अति: (-), (पू.वि. प्रथम पत्र नहीं है व प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., श्लोक ८ अपूर्ण से है व श्लोक-२४ अपूर्ण तक लिखा है.) + ११७८६०. (१) पार्श्वनाथजीरो स्तवन व आदिजिन स्तवन- राणपुरमंडन, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ३ कुल पे. २, प्र. वि. हुंडी तवन, अक्षरों की स्वाही फैल गयी है, दे. (२६.५x१३, ११४३२). १. पे. नाम. पार्श्वनाथजीरो स्तवन, पृ. १आ-२आ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तवन- गोडीजी, मु. जिनचंद्र, पुहिं., पद्य, वि. १७२२, आदि: अमल कमल जिम धवल विराजे; अंति: श्रीजिनचंद्र० मन आस, गाथा- ९. २. पे. नाम. आदिजिन स्तवन- राणपुरमंडन, पृ. २आ- ३आ, अपूर्ण, पू. वि. प्रारंभ के पत्र हैं. मु. कवियण, मा.गु., पद्य, वि. १७९५, आदि राणपुरे मन मोहियो रे, अंति (-), (पू. वि. गाधा १० अपूर्ण तक है.) ११७८६१. त्रेवीसमाअध्ययननी केशीगोयम स्वाध्याय व धन्नाशालिभद्रनी सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २. जैवे. (२६.५x१३, १४४४०). १. पे. नाम. त्रेवीसमाअध्ययननी केशीगोयम स्वाध्याय, पृ. १अ, संपूर्ण. केशीगौतमगणधर संवाद सज्झाय, उपा. उदयविजय, मा.गु., पद्य, आदि: सीस जिणेसर पासना केसी; अंति: सीस उदयरस रंगे रे, गाथा-८. २. पे. नाम. धन्नाशालिभद्रनी सज्झाय, पृ. १अ -१आ, संपूर्ण. धन्नाशालिभद्र सज्झाय, मु. उदयरत्न, मा.गु., पद्य, आदि अजी आ जोरावर करमीना जालमी; अति: तरी पाम्या भवजल पार रे, गाथा- ७. ११७८६२. (#) परमात्मद्वात्रिंशिका - श्लोक १ से ३, सर्वज्ञाष्टक व पार्श्वजिन स्तोत्र, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. २, कुल पे. ३, प्र. वि. मूल पाठ का अंश खंडित है, वे (२७४१३, १२x२०). १. पे. नाम. परमात्मद्वात्रिंशिका - श्लोक १ से ३, पृ. १आ, संपूर्ण. For Private and Personal Use Only Page #208 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२६ परमात्मद्वात्रिंशिका, आ. अमितगतिसूरि, सं., पद्य, आदि: सत्वेषु मैत्री गुणि; अंति: (-), (प्रतिपूर्ण, वि. कृति के प्रारंभ में एक शांतिजिन से संबंधित श्लोक दिया है.) २. पे. नाम. सर्वज्ञाष्टक, पृ. १आ-२आ, संपूर्ण. म. कनकप्रभविजय, सं., पद्य, आदि: जयति जंगम कल्पमहीरुह; अंति: विश्वाधिपः सर्वविद, श्लोक-९. ३. पे. नाम. पार्श्वजिन स्तोत्र, पृ. २आ, अपूर्ण, पृ.वि. प्रारंभ के पत्र हैं. पार्श्वजिन स्तोत्र-शंखेश्वरमंडन, सं., पद्य, आदि: ॐ नमः पार्श्वनाथाय; अंति: (-), (पू.वि. श्लोक-३ अपूर्ण तक है.) ११७८६३. (+) जगजीवनचंद्रसूरि अष्टक व एक समये जघन्योत्कृष्ट तीर्थंकर जन्म विचार, अपूर्ण, वि. १९०९, चैत्र शुक्ल, ५, मध्यम, पृ. २-१(१)=१, कुल पे. २, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें-द्विपाठ., दे., (२६.५४१३, १२४३०). १.पे. नाम, जगजीवनचंद्रसूरि अष्टक, पृ. २अ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र हैं. मु. पन्नालाल ऋषि, सं., पद्य, वि. १९०७, आदि: (-); अंति: स्तवनमद्भुतं गुरो, श्लोक-११, (पू.वि. अंतिम श्लोक अपूर्ण २.पे. नाम. एक समये जघन्योत्कृष्ट तीर्थंकर जन्म विचार, पृ. २अ, संपूर्ण, पे.वि. यह कृति किसी अन्य प्रतिलेखक द्वारा लिखी मा.गु., गद्य, आदि: जंबूद्वीप में जघन्य पणे; अंति: क्षेत्र में जन्मे नही, (वि. हरभद्रसूरि कृत टीका से संदर्भ लिया है.) ११७८६४. (+) १६ कारण जपमाल पूजा सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. २९-२६(१ से २६)=३,प्र.वि. हुंडी:सो०.ज०., पदच्छेद सूचक लकीरें., दे., (२७७१३, ४४३६). १६ कारण जपमाल पूजा, अप., गद्य, आदि: (-); अंति: कालिवउ भव्वुजीउं इउ आयरई, (पू.वि. "लोइ वच्छल्ले उपज्जंति रिद्धि" पाठ अपूर्ण से है., वि. अंत में पूजा संबंधित मंत्र लिखा है.) १६ कारण जपमाल पूजा-स्तबकार्थ, सं., गद्य, आदि: (-); अंति: भव्यजीवं इदं आचरति, (वि. कहीं कहीं टबार्थ लिखा ११७८६५. पाक्षिकसूत्र, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. २, पृ.वि. प्रारंभ के पत्र हैं., दे., (२७४१३.५, १०४२४). पाक्षिकसूत्र, हिस्सा, प्रा., प+ग., आदि: तित्थंकरे य तित्थे; अंति: (-), (पू.वि. "प्राणातिपात आलापक" अपूर्ण तक है.) ११७८६६. दशवैकालिकसूत्र, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ४६-४५(१ से ४५)=१, पू.वि. मात्र बीच का ही एक पत्र है., जैदे., (२७७१३, ६४३७). दशवकालिकसूत्र, आ. शय्यंभवसूरि, प्रा., पद्य, वी. रवी, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. अध्ययन-९ उद्देश-३ गाथा-१० अपूर्ण से उद्देश-४ गाथा-२१ अपूर्ण तक है.) ११७८६८. मातृका केवली, अपूर्ण, वि. १९३४, माघ कृष्ण, १२, श्रेष्ठ, पृ. २-१(१)=१, ले.स्थल. मकसूदाबाद, प्रले. म्. अवीर ऋषि, प्र.ले.पु. सामान्य, दे., (२७४१३, १४४४३). मातृका केवली, सं., पद्य, आदि: (-); अंति: महालाभ इष्टदर्शनमाप्यते, श्लोक-५४, (पू.वि. अंत के पत्र हैं., श्लोक-२७ अपूर्ण से है.) ११७८६९ आदिजिन स्तवन, आदिजिन लावणी व मयणासंदरी की ध्यान स्तुत्यादि संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २-१(१)=१, कुल पे. ४, प्र.वि. हुंडी:लावनी., त्रिपाठ., जैदे., (२७४१२.५, १५४५४). १.पे. नाम. आदिजिन स्तवन, पृ. २अ, अपूर्ण, पृ.वि. अंत के पत्र हैं., वि. १८९९, फाल्गुन कृष्ण, ९, प्रले. पं. उत्तमविजय गणि, प्र.ले.पु. सामान्य. पं. उत्तमविजय, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: जंपे जय जय ऋषभ जिनेसरु, गाथा-२०, (पू.वि. गाथा-१५ अपूर्ण से है.) २.पे. नाम. आदिजिन लावणी, पृ. २अ-२आ, संपूर्ण... ____ मा.गु., पद्य, आदि: आदिकरन आदिजगत आदिजिणंद; अंति: एकचित ध्यान धरे मन कंदरपे, गाथा-९. ३. पे. नाम. मयणासुंदरी की ध्यान स्तुति, पृ. २आ, संपूर्ण. मयणासुंदरी ध्यान स्तुति, पुहिं., पद्य, आदि: तुं ही अरिहंत तुं ही; अंति: दुख दोहग टालणहार, गाथा-५. ४. पे. नाम. औपदेशिक लावणी, पृ. २आ, अपूर्ण, पू.वि. प्रारंभ के पत्र हैं. For Private and Personal Use Only Page #209 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir १९४ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची पुहिं., पद्य, आदि: करूं अरज एक तो पें; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-८ अपूर्ण तक है.) ११७८७० (#) लघुदीपोत्सव कल्प, अपूर्ण, वि. १९६५, आषाढ़ कृष्ण, ८, शुक्रवार, मध्यम, पृ. २-१(१)=१, प्रले. मु. सुखालचंद, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. मूल पाठ का अंश खंडित है, प्र.ले.श्लो. (१) यादृशं पुस्तकं दृष्ट्वा, दे., (२६.५४१२.५, ११४३६). दीपावली कल्प-लघु, सं., गद्य, आदि: (-); अंति: मंगलीक माला भवंतु, (पू.वि. अंत के पत्र हैं., "वर्षाकाल यावन्मुनयो" पाठ अपूर्ण से है.) ११७८७१ (+) शत्रुजयतीर्थ रास, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, पू.वि. मात्र प्रथम पत्र है., प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२६.५४१३, १०४३०). शत्रंजयतीर्थ रास, उपा. समयसंदर गणि, मा.गु., पद्य, वि. १६८२, आदि: श्रीरिसहेसर पाय नमी आणी; अंतिः (-), (पू.वि. ढाल-१ गाथा-२ अपूर्ण तक है.) ११७८७२. बुढापा चौपाई, अपूर्ण, वि. १८९३, चैत्र शुक्ल, १३, मध्यम, पृ. ७-३(१ से ३)=४, ले.स्थल. हरिदुर्गनगर, प्रले. मु. ज्ञानविजय (तपागच्छ), प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२७४१३, १३४३२). बढ़ापा रास, श्राव. मोतीचंद, रा., पद्य, वि. १८३६, आदि: (-); अंति: चंद० सुणो जुग निसाणी, ढाल-२२, (पू.वि. ढाल-९ अपूर्ण से है.) ११७८७५. कुगुरु सज्झाय, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, ले.स्थल. उदयापुर, प्र.वि. कृति के प्रारंभ में लघुसंग्रहणी की प्रथम गाथा अपूर्ण दी गई है., दे., (२७४१२.५, १२-१५४२५-३६). कुगुरु सज्झाय, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., पद्य, आदि: शुद्ध संवेगी कीरिया; अंति: समझे लाजे नही वलि टाला, गाथा-२२. ११७८८१ (#) जिनप्रतिष्ठा गणराशिनाडीवर्गादि विचार, सिद्धचक्र स्तोत्र व पंचपरमेष्टि स्तोत्र, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २, कुल पे. ३, प्र.वि. मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., (२९.५४१४, ५४१०). १.पे. नाम. जिनप्रतिष्ठा गणराशिनाडीवर्गादि विचार, पृ. १अ, संपूर्ण, पे.वि. इस पेटांक में पत्रांक २असे २आ तक का पाठ भी सम्मिलित है. सं., प+ग., आदि: निश्च षडाष्टकं वावं; अंति: सहिताः वर्जनीयाधुधैथु. २. पे. नाम. सिद्धचक्र स्तोत्र, पृ. १आ, संपूर्ण. सिद्धचक्र चैत्यवंदन, आ. ज्ञानविमलसूरि, प्रा., पद्य, वि. १८वी, आदि: उप्पन्नसन्नाणमहोमयाण; अंति: सिद्धचक्कं नमामि, गाथा-६. ३. पे. नाम. पंचपरमेष्टि स्तोत्र, पृ. १आ, संपूर्ण, पे.वि. इस पेटांक में नवपद यंत्र दिया है. आ. जिनप्रभसूरि, सं., पद्य, आदि: स्वः श्रियं श्रीमदर्हतः; अंति: ते भवंति जिनप्रभा, श्लोक-५. ११७८८३. सामायिक स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. २, दे., (२८.५४१४, १३४४६). सामायिक ३२ दोष सज्झाय, आ. जिनलब्धिसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: भवियण उपगारह भणी; अंति: वर ते लहे सुख सासता, गाथा-३५. ११७८८९. आदिजिनविनती स्तवन, संपूर्ण, वि. १९५०, श्रावण शुक्ल, १०, शुक्रवार, मध्यम, पृ. १, प्रले. बुलाखी गणपतराम; पठ. श्रावि. नाथीबाई, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. कुल ग्रं. २५, दे., (२८x१३.५, १३४३०). आदिजिनविनती स्तवन, ग. जिनहर्ष, मा.गु., पद्य, आदिः सुण जिनवर शेजा; अंति: देज्यो परमानंद रे, गाथा-२०. ११७८९० (+-) जिनसहस्रनाम स्तोत्र, अपूर्ण, वि. १९५४, कार्तिक कृष्ण, ३, मध्यम, पृ. ३-२(१ से २)=१, पठ. श्राव. ऋषभदास सोगाणी, प्र.ले.प. सामान्य, प्र.वि. अशुद्ध पाठ-संशोधित., दे., (२७.५४१३.५, १३४२९). जिनसहस्रनाम स्तोत्र, श्राव. आशाधर, सं., पद्य, वि. १२८७, आदि: (-); अंति: जिनायते, श्लोक-१४३, (पू.वि. अंत के __ पत्र हैं., श्लोक-१२३ अपूर्ण से है.) ११७८९२. वज्रपंजर स्तोत्र, संपूर्ण, वि. १९४६, चैत्र शुक्ल, १५, मध्यम, पृ. १, प्रले. पं. दीपसागर (तपागच्छ), प्र.ले.पु. सामान्य, दे., (२७४१३, १३४३९). स For Private and Personal Use Only Page #210 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir १९५ हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२६ वज्रपंजर स्तोत्र, सं., पद्य, आदि: ॐ परमेष्ठिनमस्कारं सारं; अंति: राधिश्चापि कदाचन, श्लोक-८, (वि. प्रारंभ में स्नात्र करने वालों की विधि दी गई है.) ११७८९५. औपदेशिक हरीयाली सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, दे., (२८x१४, ५४४७). औपदेशिक हरीयाली, पं. वीरविजय, मा.गु., पद्य, आदि: चेतन चेतो चतुर चबोला; अंति: पीधानी न करो खामी, गाथा-९, संपूर्ण. औपदेशिक हरीयाली-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: हे प्राणी चतुर नाच; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., गाथा-४ अपूर्ण तक का टबार्थ लिखा है.) । ११७८९६. सूक्तावली संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, पू.वि. मात्र प्रथम पत्र है., प्र.वि. हुंडी:सूक्तावली., जैदे., (२८x१३.५, १६४३९). सूक्तावली संग्रह, प्रा.,मा.गु.,सं., पद्य, आदि: अस्तं हि सासमो धमो न; अंति: (-), (पू.वि. श्लोक-१८ अपूर्ण तक है.) ११७८९९. अनेकांतजयपताका की उद्योतदीपिका टीका, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ३-२(१ से २)=१, पृ.वि. मात्र बीच का ही एक पत्र है., प्र.वि. हुंडी:अने०.वृ०., जैदे., (२८x१४, १२४४५-४८)... ___ अनेकांतजयपताका-उद्योतदीपिका टीका, आ. मनिचंद्रसरि, सं., गद्य, वि. १२वी, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. "विधशक्त्यभावे कथमित्या" पाठ अपूर्ण से "स्वस्थान स्थापना" पाठ अपूर्ण तक है.) ११७९००. २४ दंडक बोल संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, दे., (२८x१३.५, १०४३१). २४ दंडक बोल संग्रह , मा.गु., गद्य, आदि: शरीर१ अवगाहना२ संघयण३; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., दर्शन तीन प्रकार तक लिखा है.) ११७९०२. आदिजिन स्तवन व सीमंधरजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, जैदे., (२६.५४१४.५, १४४२७). १. पे. नाम, आदिजिन स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण. मु. खीमारतन, मा.गु., पद्य, वि. १८८८, आदि: ए गिरवरनी मेहमा मोटी; अंति: खिमारतन थभु पाया रे, गाथा-४. २. पे. नाम. सीमंधरजिन स्तवन, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. मु. जिनेंद्रसागर, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीमंदर जिकुं वंदना नित; अंति: तणो जेनेंद्र थुणीदा रे, गाथा-७. ११७९०३. दीपावलीपर्व स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, जैदे., (२७.५४१४, १०४३४). दीपावलीपर्व स्तवन, म. धर्मचंद्र, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: सुरसुख भोगवी त्रिशला; अंति: गाता जस कमला नीत वरीइं, गाथा-१३. ११७९०४. (#) महावीरजिन पट्टावली, संपूर्ण, वि. १९९९, श्रावण शुक्ल, ९, सोमवार, मध्यम, पृ. ४, ले.स्थल. चंदरनगर, प्रले. मगनलाल मोहनलाल, प्र.ले.प. सामान्य, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२७.५४१४,८-१२४३७). महावीरजिन पट्टावली, मा.ग., गद्य, आदि: श्रीमहावीर पछै एकसो; अंति: हमणां विद्यमान विचरे छे. ११७९०६. (#) ऋषभदेवजीरो चैत्यवंदन, शांतिजिन चैत्यवंदन व नेमनाथजी चैत्यवंदनादि संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ५, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२८x१४, ११४२२). १.पे. नाम. ऋषभदेवजीरो चैत्यवंदन, पृ. १अ, संपूर्ण. आदिजिन चैत्यवंदन, मु. रूपविजय, मा.गु., पद्य, आदि: प्रणमुं श्रीआदिनाथ; अंति: नोधणी रूप कहे गुण गेह, गाथा-३, (वि. प्रारंभ में जीवतत्त्व का अर्थ लिखकर छोड दिया है.) २. पे. नाम. शांतिजिन चैत्यवंदन, पृ. १अ, संपूर्ण. म. रूपविजय, मा.गु., पद्य, आदि: शांतिकरण श्रीशांति; अंति: वस्यो पूरण सकल जगीश, गाथा-३. ३. पे. नाम. नेमनाथजी चैत्यवंदन, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. नेमिजिन चैत्यवंदन, मु. रूपविजय, मा.गु., पद्य, आदि: राहुल वर श्रीनेमिनाथ शामल; अंति: हे वालहो जगजीवन आधार, गाथा-३. ४. पे. नाम. पार्श्वजिन चैत्यवंदन, पृ. १आ, संपूर्ण. म.रूपविजय, मा.गु., पद्य, आदि: जय जय श्रीपार्श्वनाथ; अंति: रूप कहे नितमेव, गाथा-३. For Private and Personal Use Only Page #211 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra १९६ www.kobatirth.org कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ५. पे. नाम. वर्धमान चैत्यवंदन, पू. १आ, संपूर्ण, महावीरजिन चैत्यवंदन, मु. रूपविजय, मा.गु., पद्य, आदि वर्धमान चोवीशमा अंति (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण गाथा ३ तक लिखा है.) ११७९०७. (+) चतुर्विंशतिस्थानक, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २, पू. वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र. वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे. (२८४१४.५, ८३२). " Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir २४ गुण स्थानक, आ. नेमिचंद्र सिद्धांत चक्रवर्ती, प्रा., पद्य, आदिः सिद्धं सुद्धं पणमिय; अंति: (-), (पू. वि. गाधा- १८ अपूर्ण तक है.) ११७९०८ (०) उत्तराध्ययनसूत्र, अपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पृ. ५२-४८ (१ से ३८,४०, ४२ से ५०)=४, प्र. वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैसे. (२९.५४१४.५, १८४३७). "" उत्तराध्ययनसूत्र, मु. प्रत्येकबुद्ध, प्रा., प+ग., आदि: (-); अंति: सम्मएत्ति बेमि, (पू. वि. बीच-बीच व अंत के पत्र हैं., अध्ययन- ३२ गाथा २९ अपूर्ण से है व बीच-बीच के पाठांश नहीं हैं.) ११७९१२ (-) पार्श्वजिन लावणी, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. २, ले. स्थल. जेतपुर, प्रले. श्राव. वीरचंद, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. अशुद्ध पाठ, दे., (२५X१०, १४x२७). पार्श्वजिन लावणी-वीसनगरमंडण, श्राव. प्रेमचंद जोड़ता, पुहिं., पद्य, आदि तुम जपोनाम नवकार मनुसैन; अंति प्रेमचंद की आरती पदंत, गाथा - १९. ११७९१४. वीतराग स्तोत्र सह अवचूरि, संपूर्ण वि. १९वी मध्यम, पृ. १, जैवे. (२८.५४१३.५, ८४२८). " वीतराग स्तोत्र, आ. हेमचंद्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं. पद्य वि. १२वी, आदिः यः परात्मा परं अंति: (-), (अपूर्ण, " 1 पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., प्रकाश- १ श्लोक ७ अपूर्ण तक लिखा है.) वीतराग स्तोत्र अवचूरि, मु. विशालराजसूरि-शिष्य, सं. गद्य वि. १५१२, आदि जयति श्रीजिनो वीर: अंति (-), प्रकाश- २०, ग्रं. ६२५, अपूर्ण, पू. वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण. + ११७९१५ (+) चौवीशगुणठाणा की चरचानाम सह बोल संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी मध्यम पू. १२४-११६ (१ से ४,६ से ११,१५ से ११४,११८ से १२३)=८, पू.वि. बीच-बीच के पत्र हैं., प्र. वि. पदच्छेद सूचक लकीरें अन्वय दर्शक अंक युक्त पाठ., (२८.५X१४, ६X१०-२२). जैदे., २४ स्थानद्वार गाथा, प्रा., पद्य, आदि गई यंदीय च काए जोय वेय; अंतिः बीसं तु परूवणा भणीया, गाथा-२, संपूर्ण. २४ स्थानद्वार गाथा-बोल संग्रह, संबद्ध, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. ६ पर्याप्ति नाम से है व बीच-बीच के पाठांश हैं . ) ११७९१७. कल्पसूत्र सह टबार्थ व बालावबोध, अपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पृ. २१ -१९(१ से १०, १२ से २० ) = २, पू.वि. बीच-बीच के पत्र हैं., प्र.वि. पत्रांक नहीं है, पाठ के आधार से अनुमानित पत्रांक लिये हैं., जैदे., (२८x१३.५, ५-११४३३-३६). कल्पसूत्र, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., गद्य, आदि (-); अंति: (-), (पू.वि. उच्चकुल वर्णन प्रसंग से भगवान महावीर का देवानंदा की कुक्षी में अवतरण प्रसंग अपूर्ण तक है व बीच-बीच के पाठांश नहीं हैं.) कल्पसूत्र - टवार्थ *, मा.गु, गद्य, आदि (-); अंति: (-). कल्पसूत्र - बालावबोध", मा.गु., रा., गद्य, आदि (-); अति: (-). , ११७९१८. (+) पंचाशक प्रकरण, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. २, प्र. वि. पदच्छेद सूचक लकीरें., दे., (२८.५X१५, ८x४०). पंचाशक प्रकरण, आ. हरिभद्रसूरि, प्रा. पद्य, आदि नमिऊण वद्धमार्ण सावग अति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण. गाथा २८ अपूर्ण तक लिखा है.) ११७९१९. पट्टावली तपागच्छीय, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, पू. वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र. वि. हुंडी पट्टावली., जैदे., (२८४१३.५, २०४४५) पट्टावली तपागच्छीय, मा.गु., गद्य, आदि: चोथा आराना वरस ३ तिन अंति: (-), (पू.वि. 'श्रीसीरोही मध्ये सं. १८८४ माहासुद-१ दीने पाट महोछव थयो'- पाठांश तक है.) ११७९२०. दयापच्चीसी, संपूर्ण वि. १८९३, भाद्रपद कृष्ण, ३, मध्यम, पू. १, ले. स्थल. मुनपर, जैदे. (२९x१३.५, १४४३५). For Private and Personal Use Only Page #212 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२६ १९७ दयापच्चीसी, मु. विवेकचंद, मा.गु., पद्य, आदि: सअल तिथंकर करिअ प्रणांम; अंति: विवेकचंद कहे निरधार, गाथा-२०. ११७९२१ (+) पौषध लेवानी विधि, संपूर्ण, वि. १९२८, कार्तिक कृष्ण, २, मध्यम, पृ. २,प्र.वि. संशोधित., दे., (२८x१३, १३४२०-२५). पौषध विधि *, संबद्ध, प्रा.,मा.गु., गद्य, आदि: प्रथम पडिक्कमणुं करिइं; अंति: तीहां धारे पछे मांडला करे. ११७९२५. समाधिशतक सह टीका, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २, प्र.वि. द्विपाठ., जैदे., (३०x१३, १२४५१). समाधिशतक, आ. देवनंदी, सं., पद्य, ई. ५वी, आदि: येनात्माबुध्यतात्मैव; अंति: (-), (अपूर्ण, पृ.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., श्लोक-१ तक लिखा है.) समाधिशतक-टीका, आ. प्रभाचंद्र, सं., गद्य, आदि: सिद्धं जिनेंद्रमलमप; अंति: (-), (अपूर्ण, प.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., श्लोक-३ की टीका अपूर्ण तक लिखा है.) ११७९२६. (+) चर्चाशतक सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. २-१(१)=१, पृ.वि. मात्र बीच का ही एक पत्र है., प्र.वि. संशोधित., दे., (२९x१३, ७४३५). चर्चाशतक, जै.क. द्यानतराय, पुहिं., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. गाथा-३ अपूर्ण से गाथा-७ अपूर्ण तक है.) चर्चाशतक-टबार्थ, पुहिं., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), (वि. टबार्थ क्रमशः नहीं है.) ११७९२७. (+) जिनसहस्रनाम, संपूर्ण, वि. १९०१, ज्येष्ठ कृष्ण, ८, गुरुवार, मध्यम, पृ. ४, प्र.वि. हुंडी:जे.सं, पदच्छेद सूचक लकीरें., दे., (२९x१३, १५४४२). अर्हन्नामसहस्र समुच्चय, आ. हेमचंद्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., पद्य, वि. १२वी-१३वी, आदि: अर्हन्नामापि __ कर्णाभ्यां; अंति: पठनाज्जपात्, प्रकाश-१०, श्लोक-११७. ११७९२८. वल्लभसत्क साधु पहेरामणि सूची, संपूर्ण, वि. १९२८, मध्यम, पृ. २, ले.स्थल. सौराष्ट्र, दे., (२९४१३, ५४१०). वल्लभसत्क साधु पहेरामणि सूची, मा.गु., गद्य, आदि: ॐ नत्वा श्री श्री विजयदे०; अंति: प्रेमचंद्रग० पं विजयस०. ११७९३०. वीरजिन स्तवन व अष्टप्रकारी पूजा, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ४, कुल पे. २, जैदे., (२८x१३, १८४४९). १. पे. नाम, वीरजिन स्तवन, पृ. १अ-४आ, संपूर्ण. महावीरजिन स्तवन-स्थापनानिक्षेपप्रमाण पंचांगीगर्भित, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., पद्य, वि. १७३३, आदिः प्रणमी श्रीगुरुना पय; अंति: गुरू आणा सिर वहेस्ये जी, ढाल-६, गाथा-१५०, ग्रं. २२८. २. पे. नाम, अष्टप्रकारी पूजा, पृ. ४आ, संपूर्ण. ८ प्रकारी पूजा दोहा, मा.गु., पद्य, आदि: स्नात्र करतां जगद गुरु; अंति: जगति वेल हुई सफल पांमि, गाथा-९. ११७९३१. अभिनंदनजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. १८१९, मध्यम, पृ. १, अन्य. पं. सौभाग्यविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (३०.५४१३, ८x२३). अभिनंदनजिन स्तवन, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: दीठी हो प्रभु दीठी; अंति: देज्यो सुख दरीसन तणो जी, गाथा-६. ११७९३७. (+) पद्गलगीता, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ४, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित., जैदे., (२८x१३, १५४४३). पुद्गलगीता, मु. चिदानंद, पुहि., पद्य, आदि: संतो देखीयें बे; अंति: चिदानंद सुखकारी, गाथा-१०८. १९७९३८. (#) उत्तराध्ययनसूत्र, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ८-७(१ से ७)=१, पृ.वि. मात्र बीच का ही एक पत्र है.,प्र.वि. मूल पाठ का अंश खंडित है, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२७.५४१३.५, १८४४४). उत्तराध्ययनसूत्र, मु. प्रत्येकबुद्ध, प्रा., प+ग., आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. अध्ययन-९ गाथा-३३ अपूर्ण से अध्ययन-१० गाथा-१२ अपूर्ण तक है.) ११७९४०. ज्योतिष नारचंद्र, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २, जैदे., (२८.५४१४, १३४३८). ज्योतिषसार, आ. नरचंद्रसरि, सं., पद्य, आदि: श्रीसर्वज्ञजिनं नत्वा नार; अंति: (-), (अपूर्ण, प.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., चंद्रमाडी लवासो जाणवो तक लिखा है.) ११७९४२. पुण्यपापलक्षणादि पद संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २, कुल पे. १०, जैदे., (२८.५४१४, १८४४४). For Private and Personal Use Only Page #213 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir १९८ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १. पे. नाम, पुण्यपापलक्षण पद, पृ. १अ, संपूर्ण. आ. अमरतिलकसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: (१)अमरतिलक० इणी परि कही, (२)अमरतिलक० वात इणि परि कही, गाथा-२. २. पे. नाम. धर्ममहिमा पद, पृ. १अ, संपूर्ण, पे.वि. प्रत गाथानुक्रम-३ पर है. पुहि., पद्य, आदि: धर्म हि मंगल मूल धर्म हि; अंति: शिवसुख कही अरिहंतदेव रे, गाथा-१. ३. पे. नाम. धर्मोपदेश श्लोकादि संग्रह, पृ. १अ-२अ, संपूर्ण, पे.वि. श्लोकानुक्रम-४ से २४. धर्मोपदेश श्लोक संग्रह, प्रा.,मा.गु.,सं., पद्य, आदि: आयुष्क यदि सागरोपममितं; अंति: घयँत्यहो मक्षिका, श्लोक-२१. ४. पे. नाम. वस्तुपाल ऋद्धिवर्णन पद, पृ. २अ, संपूर्ण, पे.वि. श्लोकक्रम-२५ पर है. वस्तुपालमंत्री दानधर्मविचार पद, मा.गु., पद्य, आदि: पंच अरब दस खरब दीद्ध दुबल; अंति: सुण्यो वस्तपाल महीमंडले, गाथा-१. ५. पे. नाम. जगडूशाह दानसंख्यामान गाथा, पृ. २अ, संपूर्ण. मा.गु., पद्य, आदि: मुडा सहस अट्ठ दीट्ठ वीसल; अंति: जगडुसा० कीद्ध पन्नरोत्तरे, गाथा-१. ६. पे. नाम. मनुष्यभव सार्थकता पद, पृ. २अ, संपूर्ण. मा.गु., पद्य, आदि: जिनभुवन जिनबिंब पूज के; अंति: अवतार तास अहिली गयो, गाथा-१. ७. पे. नाम. विद्वद्गोष्ठि का पद्यानुवाद, पृ. २आ, संपूर्ण. विद्वद्गोष्ठी-पद्यानुवाद, मा.गु., पद्य, आदि: मृगलो भखे न मांस मांस जन; अंति: अवगुण तजि आणो गुणनी कोडि, गाथा-१२. ८. पे. नाम. औपदेशिक पद, पृ. २आ, संपूर्ण. म. नयप्रमोद, मा.गु., पद्य, आदि: कहां कृपण रंजिये कहां; अंति: नयप्रमोद० भेडव्याइ तुई, गाथा-१. ९. पे. नाम, औपदेशिक पद, पृ. २आ, संपूर्ण. औपदेशिक पद-गुणग्रहण, मा.गु., पद्य, आदि: गुणने ग्राहग किता किता; अंति: राखीये सुण मामु सुरापति, गाथा-१. १०.पे. नाम, औपदेशिक पद, पृ. २आ, संपूर्ण. मु. लावण्यसमय, पुहिं., पद्य, आदि: न मिलिं मयगल मसा ससा सुअर; अंति: लावण्यसमय० न मलि कदा, गाथा-१. ११७९४३. (+#) प्रास्ताविक सुभाषित संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. २, प्र.वि. संशोधित. अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, दे., (२८x१३.५, २५४५३-७१). प्रास्ताविक गाथा संग्रह, म. भिन्न भिन्न कर्तक, प्रा.,मा.ग.,सं., पद्य, आदि: दरे जमाइरयणं कोसविकोसं च; अंति: गावे सही कीरति पितधि रसाल, गाथा-१००, (वि. विविध विषयक श्लोक, गाथा व दोहा संग्रह. अलग-अलग क्रम में श्लोकादि है. अतः श्लोक परिमाण एक साथ दिया गया है.) ११७९४४. (+#) जीवविचार प्रकरण सह टबार्थ व १२ देवलोक नाम, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ४, कुल पे. २, पठ. श्रावि. पद्मा, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. हुंडी:जीवविचार., संशोधित. मूल पाठ का अंश खंडित है, दे., (२८x१३, ७४३६). १. पे. नाम, जीवविचार प्रकरण सह टबार्थ, पृ. १अ-४आ, संपूर्ण. जीवविचार प्रकरण, आ. शांतिसूरि, प्रा., पद्य, वि. ११वी, आदि: भुवणपईवं वीरं नमिऊण; अंति: शांतिसूरि० समुद्दाओ, गाथा-५१, (प्रले. मु. सिद्धविजय, प्र.ले.पु. सामान्य) जीवविचार प्रकरण-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: भुवन स्वर्गमुत्यु पाताल०; अंति: माहथी एह अधीकार कह्या, (प्रले. मु. वखतचंद, प्र.ले.पु. सामान्य) २. पे. नाम. १२ देवलोक नाम, पृ. ४आ, संपूर्ण. मा.गु., गद्य, आदि: सौधर्म १ ईशान २; अंति: प्राणत आरण अच्युत, (वि. ९ ग्रेवेयक व ५ अनुत्तर देवलोक के नाम भी लिखे हैं.) For Private and Personal Use Only Page #214 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२६ ११७९४५. वीरनिर्वाणमहोछव स्तवन, अपूर्ण, वि. १९२०, चैत्र कृष्ण, १३, बुधवार, मध्यम, पृ. ९-१(१)=८, ले.स्थल. स्थंभनपुर, प्रले. मु. राजेंद्रसोम (गुरु भट्टा. आणंदसोमसूरि); गुपि. भट्टा. आणंदसोमसूरि, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. हुंडी:महोच्छव., दे., (२७.५४१२.५, ११४३०-३३). महावीरजिन स्तवन-दीपावलीपर्व निर्वाणमहिमा, मु. गुणहर्ष, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: श्रीगुणहर्ष वधामणां, ___ढाल-१०, गाथा-१२०, (पू.वि. गाथा-१३ अपूर्ण से है.) ११७९४६. एकीभाव स्तोत्र, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ६, प्र.वि. कुल ग्रं. २६, जैदे., (२९x१३.५, ६४३४). एकीभाव स्तोत्र, आ. वादिराजसूरि, सं., पद्य, ई. ११वी, आदि: एकीभावं गत इव मया; अंति: वादिराज मुनभव्य सहाय. ११७९४७. (#) लीलावतीसुमतिविलास रास, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ९-६(१,३ से ७)=३, पृ.वि. बीच-बीच के पत्र हैं., प्र.वि. मूल पाठ का अंश खंडित है, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२८x१३.५, १७४३६-४०). लीलावतीसुमतिविलास रास, उपा. उदयरत्न, मा.गु., पद्य, वि. १७६७, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. ढाल-१ गाथा-१२ अपूर्ण से ढाल-१५ तक है व बीच बीच के पाठांश नहीं हैं.) ११७९४८. (+) अकलंकाष्टक स्तोत्र, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ४, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२८x१३, ५४३२-३६). अकलंकाष्टक स्तोत्र, आ. अकलंकदेव, सं., पद्य, आदि: त्रैलोक्यं सकलं; अंति: मतिः संताडितेतस्ततः, श्लोक-१६. ११७९५०. मनकमुनि सज्झाय व सर्वजिन चैत्यवंदन, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, जैदे., (२८x१३, ९-१२४३५). १. पे. नाम. मनकमुनि सज्झाय, पृ. १अ, संपूर्ण. मु. वृद्धिविजय, मा.गु., पद्य, आदि: साधुजी संयम सुधो; अंति: आचार रे गयो सफल जगीशेरे, गाथा-७. २.पे. नाम. सर्वजिन चैत्यवंदन, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. __ मा.गु., पद्य, आदि: सीमंधर प्रमुख नमुं; अंति: महोदय पद दातार, गाथा-३. ११७९५१ (+) १४ राजलोक विचार, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, पृ.वि. मात्र प्रथम पत्र है., प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२७.५४१३, ५४१०). १४ राजलोक विचार, मा.गु., गद्य, आदि: पली नरक एक राजनी; अंति: (-), (पू.वि. देवलोक-९ अपूर्ण तक है.) ११७९५२ (+) चैत्रीपूर्णिमापर्व व्याख्यान, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ४, प्र.वि. हंडी:चैत्रीपू० ब०., संशोधित., जरो., (२८x१३, १३४३७). चैत्रीपूर्णिमापर्व व्याख्यान, मा.गु., गद्य, आदि: सा चैत्री पूर्णिमा; अंति: सदा मंगलीकमाला संपजै. ११७९५३. (+) सारस्वत व्याकरण की दीपिका टीका, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. १, पृ.वि. मात्र प्रथम पत्र है., प्र.वि. हंडी:चंद्रकीर्ति पत्र मिदे., संशोधित., जैदे., (२८x१३.५, १४४३९-४३). सारस्वत व्याकरण-दीपिका टीका, आ. चंद्रकीर्तिसूरि, सं., गद्य, वि. १६२३, आदि: नमोस्तु सर्वकल्याण; अंति: (-), (पू.वि. क्कि प्रत्यय अपूर्ण तक है.) ११७९५४. (+) कुल्पपाकमंडन युगादिजिनस्तवन व सर्वज्ञ स्तवन, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २, कुल पे. २, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२९x१३.५, १३४५०). १. पे. नाम. कुल्पपाकमंडन युगादिजिनस्तवन, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. ग. जयचंद्र, सं., पद्य, आदि: लोकालोक विलोकि के वजर; अंति: समग्रापि लक्ष्मीः , श्लोक-१३. २. पे. नाम. सर्वज्ञ स्तवन, पृ. १आ, अपूर्ण, पू.वि. मात्र प्रथम पत्र है. सं., पद्य, आदि: प्रातरेव समुत्थाय; अंति: (-), (पू.वि. श्लोक-१० अपूर्ण तक है.) ११७९५५. वंग्गचूलीया सुयहीलुप्पत्ती अज्झयण, संपूर्ण, वि. १९८२, ज्येष्ठ कृष्ण, ८, शुक्रवार, श्रेष्ठ, पृ. ४, ले.स्थल. मारवाड, प्रले. श्राव. दीपचंदजी शिवराज महात्मा, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. हुंडी:वंग्गचूलीया सूत्र., दे., (२९x१३.५, १५४५०). वंगचूलिका प्रकीर्णक, आ. यशोभद्रसूरि, प्रा., पद्य, आदि: भत्तिब्भरनमियसुरवर; अंति: दढचित्तो होह पइदियहं. ११७९५६ (#) १४ गुणस्थानक ६२ मार्गणा यंत्र, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, प्र.वि. पत्र-१४४., अक्षरों की स्याही फैल गयी है, गु., (२७.५४१३, ५४१०). १४ गुणस्थानके ६२ मार्गणा यंत्र, मा.ग., को., आदि: (-); अंति: (-). For Private and Personal Use Only Page #215 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir २०० कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ११७९६४. जिनदर्शन प्रार्थनास्तति संग्रह व ४ मंगल पद, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, जैदे., (२७.५४१३, १०४३२). १.पे. नाम. जिनदर्शन प्रार्थनास्तति संग्रह, पृ. १अ, संपूर्ण. सं., पद्य, आदि: परमेष्ठिनमस्कारं सारं; अंति: विक्षमस्वं परमेश्वरी, श्लोक-४. २. पे. नाम. ४ मंगल पद, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. ग. देवचंद्र, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: धर्म उछव समे जिनपद कारणे; अंति: देवचंद्र पद अनुसरे, गाथा-४. ११७९६५. (4) पंचमी सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २, प्र.वि. मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., (२७७१३, ११x१०). ज्ञानपंचमीपर्व सज्झाय, आ. लक्ष्मीसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीवासुपूज्य जिणेसर वयण; अंति: संघ सयल सुखदाय रे, ढाल-५, गाथा-१६. ११७९६६. छमासीतप स्तवन, संपूर्ण, वि. १९६४, चैत्र कृष्ण, ९, मध्यम, पृ. १, दे., (२८x१३, ११४३७). छमासीतप स्तवन, मा.गु., पद्य, आदि: गौतमस्वामी रे बुध दो; अंति: आपो स्वामी सुख घणा, गाथा-७. ११७९६७. विहारविनती, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, जैदे., (२८x१३, १२४२४). गुरुविहारविनती गीत, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीशंखेश्वर पाये नम; अंति: जिम करो आज विहार, गाथा-१९. ११७९६८. ऋषिमंडलपूजनविधि, सरस्वति स्तोत्र व सरस्वतीमंत्र कल्प, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ३-१(२)=२, कुल पे. ३, जैदे., (२९x१३, २१४५२). १.पे. नाम. ऋषिमंडलपूजनविधि, पृ. १आ, अपूर्ण, पू.वि. मात्र प्रथम पत्र है., पे.वि. हुंडी:ऋषि.मं. ऋषिमंडल स्तोत्र-बृहद-ऋषिमंडलपूजनविधि, संबद्ध, मा.ग.,सं., प+ग., आदि: १ भूमिशूद्धि २ अंगन्यास; अंति: (-), (पू.वि. 'मनसि चिंतयेत् नमस्कृता' पाठांश तक है.) २. पे. नाम. सरस्वति स्तोत्र, पृ. ३अ, संपूर्ण, पे.वि. हंडी:सरस्वति स्तोत्र. सरस्वतीदेवीशत स्तोत्र, सं., पद्य, आदि: सरस्वति शरण्या; अंति: ते नमोस्त सयोगिनी, श्लोक-११. ३. पे. नाम. सरस्वतीमंत्र कल्प, पृ. ३अ, संपूर्ण. सरस्वतीदेवीमंत्र कल्प, आ. मल्लिषेण, सं., पद्य, आदि: जगदीशं जिनं देवमभिवंद्या; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., श्लोक-११ तक लिखा है.) ११७९६९ (+) ४७ दोष आहारना सह टीका व औपदेशिक दहा संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, प्र.वि. संशोधित-टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२९४१३, १७४६०). १. पे. नाम. ४७ दोष आहारना सह टीका, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. ४७ आहारदोष गाथा-आधाकर्मी, प्रा., पद्य, आदि: आहाकम्मु १ देसिय; अंति: रसहेतु दव्वसंजोगा, गाथा-६. ४७ आहारदोष गाथा-आधाकर्मी-टीका, सं., गद्य, आदि: सोलसउग्गम दोषा सोल; अंति: संयोजनायामपि न दोषः. २. पे. नाम. औपदेशिक दहा संग्रह, पृ. १आ, संपूर्ण. औपदेशिक दोहा संग्रह, क. गंग, पुहिं., पद्य, आदि: नीर न डोले काठ को कहो; अंति: गंग० गुणी हंसभार एताखमे, गाथा-३. ११७९७२ (+) नवतत्त्व प्रकरण सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ४, ले.स्थल. सीवपुर, पठ. श्रावि. पद्मा, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित-पदच्छेद सूचक लकीरें., जैदे., (२८.५४१३, ७X३६). नवतत्त्व प्रकरण ६० गाथा, प्रा., पद्य, आदि: जीवा१जीवार पुण्णं३ पावा४; अंति: बोहिय इक्कणिक्काय, गाथा-४८, (वि. १८५१, मार्गशीर्ष शुक्ल, ५, गुरुवार, प्रले. मु. प्रतापविजय, प्र.ले.पु. सामान्य) नवतत्त्व प्रकरण ६० गाथा-टबार्थ*, मा.गु., गद्य, आदि: जीवतत्त्व अजीवतत्त्व; अंति: एक सिद्ध अनेक सिद्ध, (वि. १८५२, आश्विन शुक्ल, ११, शनिवार, प्रले. मु. वखता, प्र.ले.पु. सामान्य) ११७९७४. कृष्ण वासुदेव सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, जैदे., (२६.५४१३.५, २५४७७). कृष्ण वासुदेव सज्झाय, मा.गु., पद्य, आदि: रे नान्या राश माँड्यो रे; अंति: भली करी रे मांरा कानजी. ११७९७५. व्याख्यान पीठिका व आदिजिन सवैया, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, प्र.वि. हुंडी:सतुतीवखाण., दे., (२७.५४१२.५, ११४३०-३३). For Private and Personal Use Only Page #216 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२६ २०१ १. पे. नाम, व्याख्यान पीठिका, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. ___ मा.गु.,सं., प+ग., आदि: नमो अरिहंताणं नमो; अंति: सिद्धा सिद्धिं मम दिसंतु. २. पे. नाम, आदिजिन सवैया, पृ. १आ, संपूर्ण. मु. चंद्रभान, मा.गु., पद्य, आदि: नाभि मरुदेव्यानंद घौडि; अंति: चंद्रभान० महा सुख दाई है, पद-१. ११७९७६. (+) महावीरजिन स्तुति, चिलातीपुत्र सज्झाय व औपदेशिक पदादि संग्रह, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. २, कुल पे. १९, प्र.वि. हुंडी:उपदेशोपदादि., संशोधित., दे., (२६.५४१३.५, २१४७१). १.पे. नाम, औपदेशिक पद-आलसपरिहार, पृ. १अ, संपूर्ण. मा.., पद्य, आदि: रे जीव थारे आलस को नहीं; अंति: तो सुख लहे अपार, गाथा-४. २. पे. नाम. औपदेशिक पद-धर्मकर्म, पृ. १अ, संपूर्ण. मा.गु., पद्य, आदि: ध्यान दे सुणज्यो नरनारी; अंति: सिधाया तजो कर्म कयारी, गाथा-३. ३. पे. नाम. औपदेशिक सज्झाय-नारी, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. सोनाराणी सज्झाय-मिथ्याआरोपपरिहारविषये, क. गंग, पहिं., पद्य, आदि: चांपराय हाडा की राणी सोना; अंति: गंग० जिसने पृथक पिछानी है, गाथा-११. ४. पे. नाम. औपदेशिक पद-धनत्याग, पृ. १आ, संपूर्ण. __ मा.गु., पद्य, आदि: दिखो धन अनर करे हरे आतम; अंति: धारे धर्म धरि नेहो रे, गाथा-४. ५. पे. नाम. औपदेशिक पद-धर्मदलाली, पृ. १आ, संपूर्ण. पुहिं., पद्य, आदि: दलाली धर्म की रे महारे; अंति: जाणज्यो रे करसुं सालसंभाल, गाथा-५. ६. पे. नाम, औपदेशिक पद-शीलगुण, पृ. १आ, संपूर्ण. पुहिं.,मा.गु., पद्य, आदि: रे मन थारे हे काई; अंति: तो सुधरे सह काज, गाथा-४. ७. पे. नाम. औपदेशिक पद, पृ. १आ, संपूर्ण. पुहिं., पद्य, आदि: रे जीव थारे लगी विषय की; अंति: छूटे एहकुं चहाय, गाथा-४. ८. पे. नाम. औपदेशिक पद, पृ. १आ, संपूर्ण. पुहिं., पद्य, आदि: रे जीव थारे है विषय की; अंति: प्रणमें तूंग हे अपणी रीत, गाथा-५. ९. पे. नाम. औपदेशिक पद-४ कषायपरिहार, पृ. १आ, संपूर्ण. पुहि., पद्य, आदि: रे जीव तुं तो तज दे; अंति: कियांथी आतम सुख प्रगटाय, गाथा-४. १०. पे. नाम. औपदेशिक पद-ज्ञानमहिमा, पृ. १आ-२अ, संपूर्ण. पुहिं., पद्य, आदि: ज्ञान की महिमा अपरंपार; अंति: फिर दाखी आप्तवांणी मझार, गाथा-५. ११. पे. नाम, औपदेशिक पद-५ आश्रवपरिहार, पृ. २अ, संपूर्ण. पुहिं., पद्य, आदि: कर्म से भमियो जगत मझार; अंति: संवर को तो सुख लहे अपार, गाथा-५. १२. पे. नाम. औपदेशिक पद-जिनवाणीमहिमा, पृ. २अ, संपूर्ण.. पहिं., पद्य, आदि: सोरे तीरणे को संसार ले; अंति: तरणो जाणी करो उद्यम हरवार, गाथा-४. १३. पे. नाम. आध्यात्मिक पद-मनमंदिर, पृ. २अ, संपूर्ण. पुहिं., पद्य, आदि: तोरे सेवन को भगवाँन; अंति: इम नीतनीत आनंद जान, गाथा-५. १४. पे. नाम. औपदेशिक पद, पृ. २अ, संपूर्ण. मा.ग., पद्य, आदि: कामीत पूरण कल्पद्रमसम; अंति: तजी चतुर गति कानन रे, गाथा-७. १५. पे. नाम. २४ जिन स्तुति, पृ. २अ, संपूर्ण. पुहिं., पद्य, आदि: वंद नित में सदा जिन; अंति: स्मरण करसी सो तो लील लहिस, गाथा-६. १६. पे. नाम. महावीरजिन स्तुति, पृ. २अ, संपूर्ण. मा.गु., पद्य, आदि: जपो नरनारी रे यो शाशनपति; अंति: चाउं वृद्धिकारारि रे, गाथा-६. १७. पे. नाम. महावीरजिन स्तवन, पृ. २अ-२आ, संपूर्ण. For Private and Personal Use Only Page #217 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra २०२ www.kobatirth.org मा.गु., पद्य, आदि उत्तम गुणना धारि जी अंति धारे सिद्ध हुवे कर्मकाप, गाथा- ७. १८. पे. नाम. महावीरजिन स्तवन, पृ. २आ, संपूर्ण. मा.गु., पद्य, आदि धन हो धन श्रीवीरप्रभु तुम अंतिः सिद्ध हुवे कर्मकाप जी गावा- १२. १९. पे नाम. खिलातीपुत्र सज्झाय, पृ. २आ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. मा.गु., पद्य, आदि: सुण सुणने रे कीज्यो उपसम, अंतिः (-), (पू.वि. डाल- २ गाथा-६ अपूर्ण तक है.) " ११७९७७. साधु आचार बोलसंग्रह, अपूर्ण, वि. २०वी श्रेष्ठ, पृ. २- १ (१) १, पू. वि. मात्र बीच का ही एक पत्र है., दे., (२५x१३, २४४४६). साधु आचार १०८ बोल, पुहिं., मा.गु., गद्य, आदि (-); अंति (-), (पू.वि. बोल ६७ अपूर्ण से ८३ अपूर्ण तक है.) ११७९७८ (-) दुजो कर्मग्रंथ बंधउदीरणा, अपूर्ण वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १. पू. वि. मात्र प्रथम पत्र है. प्र. वि. हुंडी बंदउरणारो थोकडो, अशुद्ध पाठ., जैदे., (२६X१३, २०x४० ). कर्मबंधउदयसत्ता थोकडा, मा.गु., गद्य, आदि आठकर्मनी १४८ प्रकृति अति (-) (पू.वि. गुणस्थानक ११ अपूर्ण की , Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची सत्ता तक है.) ११७९७९ (+) अवगाहना बोल संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पू. १५४-१५३(१ से १५३) = १, प्र. वि. संशोधित, जैदे. (२४४१४, , २७४४०). अवगाहना बोल संग्रह, मा.गु., गद्य, आदि (-); अति अणुबंधो ९ नवठाणाणांणभाहवे, (पू.वि. मात्र अंतिम पत्र है.. ज्योतिषी देवलोक में जाने वाले जीव की अवगाहना से है.) , , ११७९८० (-) औपदेशिक सज्झाय व साधु वंदना, अपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पृ. २६-२५ (१ से २५) १, कुल पे. २, प्र. वि. हुंडी नपद, अशुद्ध पाठ. जैवे. (२६.५४१३.५, १८४३०). " " १. पे. नाम. औपदेशिक सज्झाय, पृ. २६अ, अपूर्ण, पू.वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं. मु. रायचंद ऋषि, मा.गु., पद्य, वि. १८२८ आदि (-); अंति रायचंदजी० परम आनंद, गाथा २२, (पू.वि. गाथा - २० अपूर्ण से है.) २. पे नाम, साधु वंदान, पृ. २६ अ- २६ आ, अपूर्ण, पू. वि. अंत के पत्र नहीं हैं. साधु वंदना, रा., पद्य, आदि: प्रथम नमाय भावसु सीवरु; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-१६ अपूर्ण तक है.) ११७९८१. औपदेशिक पद, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, दे., (२७१३, १०x४२). औपदेशिक पद- सातवार, मु. हीरानंद, मा.गु, पद्य, वि. १८६७, आदि: चतुरनर सुण सतगुर म्यांना अंति हीरानंदजी ० भवजीव मन मांना, गाथा - १०. " ११७९८२ (१) खेताणुवई विचार, संपूर्ण वि. २०वी मध्यम, पृ. ३, प्र. वि. अशुद्ध पाठ. अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, अक्षरों की स्वाही फैल गयी है, दे. (२६.५४१३.५, १७-२२४५०) " खेताणुवई विचार, मा.गु., गद्य, आदि: समुचेजीव तिर्यंचपंचंद्री; अंति: बंधलगासंख्याता पुरकडा नथी, (वि. प्रज्ञापनादि सूत्रों से उद्धृत.) ११७९८३. देवसिप्रतिक्रमण विधि, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ५, प्र. वि. हुंडी: पडिकमणासूत्र., जैदे., (२७.५X१३, १३X३२). देवसिप्रतिक्रमण विधि-तपागच्छीय, संबद्ध, प्रा., मा.गु, गद्य, आदि: इरीयावही तसुतरी अंति (-), (अपूर्ण, पू. वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., लघुशांति गाथा- २ अपूर्ण तक लिखा है.) ११७९८७. औपदेशिक सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १, जैदे., (२७.५X१३.५, ११×३५). For Private and Personal Use Only ११७९८४. अक्षयतृतीयापर्व व्याख्यान, संपूर्ण, वि. १९०१, वैशाख कृष्ण, ७, मध्यम, पृ. ५, दे., (२७१३, ११X३४). अक्षयतृतीयापर्व व्याख्यान, प्रा. रा. सं., गद्य, आदि उसभस्सय पारणए इक्खु अंति: आतम कारज सार्या ११७९८६. इरियावही सज्झाय, संपूर्ण वि. १९वी श्रेष्ठ, पू. १, जैदे. (२७४१३, ११x२६). 7 इरियावही सज्झाय, संबद्ध, पं. वीरविजय, मा.गु., पद्य, वि. १९वी, आदि: श्रीगुरु सन्मुख रही विनय; अंति: वर एकवीस वरस हजार, गाथा- १४. Page #218 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२६ २०३ औपदेशिक सज्झाय-दुर्मतिविषये, मा.गु., पद्य, आदि: दुरमतडी वेरण थई लीधो; अंति: वडो दोष दीयो शा माटे, ढाल-२, गाथा-१५. ११७९८८. औपदेशिक सज्झाय संग्रह, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ३-२(१ से २)=१, कुल पे. २, दे., (२४.५४१३, १८४३६). १. पे. नाम. औपदेशिक सज्झाय, पृ. ३अ, संपूर्ण. मु. मोतीलाल ऋषि, रा., पद्य, आदि: थे धर्मण वाया कथलो; अंति: मोतीलाल सुणाई जी, गाथा-७. २. पे. नाम, औपदेशिक सज्झाय, पृ. ३अ-३आ, संपूर्ण. औपदेशिक सज्झाय-निद्रा विषे, म. चोथमल, रा., पद्य, आदि: थे सणजो श्रावक; अंति: चोथमल रंग वरसायाजी, गाथा-७. ११७९८९. मेतारजमुनि सज्झाय, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, प्रले. करमचंद रामजी लहिया, प्र.ले.प. सामान्य, दे., (२७.५४१३, ११४३१). मेतारजमुनि सज्झाय, मु. राजविजय, पुहिं.,मा.गु., पद्य, आदि: संजम गुणना आगलाजी; अंति: राजविजय० धन धन ___ तुम अवतार, गाथा-१४. ११७९९०. नेमकृष्ण सज्झाय, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, प्रले. करमचंद रामजी लहिया, प्र.ले.पु. सामान्य, दे., (२८x१२.५, ११४३४). नेमिजिन सज्झाय, म. ऋषभ, मा.गु., पद्य, आदि: नगरी द्वारिका नेमिजिनेसर; अंति: दीवाली जिवो हो प्रभुजी, गाथा-१०. ११७९९१. सीमंधरस्वामीनी विनती, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, प. १, ले.स्थल. पालीताणा, प्रले. करमचंद रामजी लहिया, प्र.ले.पु. सामान्य, दे., (२७.५४१३, ११४३३). सीमंधरजिन स्तवन, मु. हंस, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीसीमंधरस्वामीजी जीवन; अंति: हंस० मानीए महाराज, गाथा-१६. ११७९९२. भरतबाहुबली सज्झाय, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, ले.स्थल. पालीताणा, प्रले. करमचंद रामजी लहिया, प्र.ले.पु. सामान्य, दे., (२७.५४१३, ११४३२). भरतबाहुबली सज्झाय, म. रामविजय, मा.गु., पद्य, वि. १७७१, आदि: तव भरतेश्वर वीनवे; अंति: रामविजय जय सीरीवरे, गाथा-१२. ११७९९३. सिद्धचक्र स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, प. २, दे., (२५.५४१३, ११४२९). सिद्धचक्र स्तवन, पंन्या. पद्मविजय, मा.गु., पद्य, आदि: सिद्धचक्र वर सेवा; अंति: पद्मविजय० हित साधे, गाथा-१३. ११७९९४. रोहिणीनी सज्झाय, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, ले.स्थल, पालीताणा, प्रले. करमचंद रामजी लहिया, प्र.ले.पु. सामान्य, दे., (२७.५४१३,११४३३). रोहिणीतप सज्झाय, मु. रामविजय, मा.गु., पद्य, आदि: वंदो हियडे हरख धरेवी; अंति: रामविजय लहे सयल जगीश, गाथा-९. ११७९९५. तेरकाठीयानि सज्झाय, थलीभद्रनि सज्झाय व श्लोक संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. ३, ले.स्थल. पालीताणा, प्रले. करमचंद रामजी लहिया, प्र.ले.प. सामान्य, दे., (२७.५४१३, ११४३०). १. पे. नाम. तेरकाठियानी सज्झाय, पृ. १अ, संपूर्ण. १३ काठिया सज्झाय, आ. भावप्रभसूरि, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: पेलो आलस काठीयो धरममा; अंति: भावसागर धरे चीतजीवारु, गाथा-७. २. पे. नाम, थुलीभद्र सज्झाय, पृ. १आ, संपूर्ण. स्थूलिभद्रमुनि सज्झाय, मु. रूपविजय, मा.गु., पद्य, आदि: चंपा मोर्यो हे आंगणे; अंति: सीयलथी लहियें सुख अपारजी, गाथा-६. ३. पे. नाम. श्लोक संग्रह, पृ. १आ, संपूर्ण. श्लोक संग्रह-गूढार्थगर्भित, सं., पद्य, आदि: जीन्य दग्धः परानंद हस्त; अंति: मंत्रसीद्धीः कथं भवेत, श्लोक-१. ११७९९६. बीजतिथि स्तुति व उपदेशक सज्झाय, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, दे., (२७.५४१३, १२४३१). १.पे. नाम. बीजतिथि स्तुति, प. १अ, संपूर्ण. For Private and Personal Use Only Page #219 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir २०४ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: जंबूद्वीपे अहनीस; अंति: संघना विघन निवारेजी, गाथा-४. २.पे. नाम. उपदेशक सज्झाय, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. औपदेशिक सज्झाय, म. आणंद, मा.गु., पद्य, आदि: हारे लाला सिद्धस्वर; अंति: शिवपुर सार रे लाल, गाथा-९. ११७९९७. देवानंदानी सज्झाय, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, ले.स्थल. पालीताणा, प्रले. करमचंद रामजी लहिया, प्र.ले.पु. सामान्य, दे., (२७.५४१३, ११४३३). देवानंदामाता सज्झाय, उपा. सकलचंद्र गणि, पुहिं., पद्य, आदि: जिनपर रूप देखि मन हरखी; अंति: सकलचंद० एतो मेरी अम्मा, गाथा-१२. ११७९९८. वासुपूज्यजिन सज्झाय, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, प्रले. करमचंद रामजी लहिया, प्र.ले.पु. सामान्य, दे., (२५४१३, ११४२९). वासुपूज्यजिन स्तवन, मु. विजयानंदसूरि शिष्य, मा.गु., पद्य, आदि: ऋतु वसंत आवे थकेजी; अंति: प्रभु मोह विछोड, गाथा-१३. ११७९९९ (+) दृष्टिवाद का संक्षिप्त वर्णन, संपूर्ण, वि. १९८९, वैशाख शुक्ल, २, सोमवार, श्रेष्ठ, पृ. २, प्रले. मु. रायमल, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित., दे., (२४४१४, २१४२७-३३). दृष्टिवाद विचार, पुहिं., गद्य, आदि: सर्व अपेक्षित नयों; अंति: चूलास् भणियं. ११८००४. (+) २४ दंडक ३० द्वार विचार व ५ इंद्रिय २३ विषय विचार, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २९-१०(१,२० से २८)=१९, कुल पे. २, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२३४११.५, १२४२८). १.पे. नाम. २४ दंडक ३० द्वार विचार, पृ. २अ-२९आ, अपूर्ण, पू.वि. प्रथम एक व बीच के पत्र नहीं हैं., वि. १८४८, आश्विन शुक्ल, ५, रविवार, ले.स्थल. गोयल. मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: केतला मोक्ष जाइ १०८, (पू.वि. १० भवनपति नाम अपूर्ण से संमूर्छिम मनुष्य परिग्रह वर्णन अपूर्ण तक व संख्यातासंख्याता नरक बोल से है.) २. पे. नाम. ५ इंद्रिय २३ विषय विचार, पृ. २९आ, संपूर्ण. मा.गु., गद्य, आदि: जीव शब्द अजीव मिश्र; अंति: वचनबल कायबल आसो सउआउ. ११८०१२. (+) पाशाकेवली, संपूर्ण, वि. १८९०, चैत्र शुक्ल, २, शनिवार, मध्यम, पृ. ६, प्रले. मु. रूपचंद्र ऋषि, प्र.ले.प. सामान्य, प्र.वि. हुंडी:पाशाककेवली०, संशोधित., जैदे., (२२४११.५,१५४३५-३९). पाशाकेवली, म. गर्ग ऋषि, सं., पद्य, आदिः (१)ॐ नमो भगवती कूष्मांडिनी, (२)१११ पदं पदं पदं चांते; अंति: गणोयं सत्यापास केवली, श्लोक-१८४. ११८०१३. अमरसेनवयरसेन चौपाई, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ६-१(१)=५, पृ.वि. बीच के पत्र हैं., जैदे., (२४४११.५, १७४३४). अमरसेनवयरसेन चौपाई-रात्रिभोजन परिहार, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. गाथा-२८ से १६६ अपूर्ण ___ तक है.) ११८०१५ (-) औपदेशिक सज्झाय, आलोयणा विधि व भरतचक्रवर्ती सज्झाय, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ७, कुल पे. ३, प्र.वि. हुंडी:आ०., अशुद्ध पाठ., दे., (२१४११.५, १६-१९४२८). १. पे. नाम. औपदेशिक सज्झाय, पृ. १अ, संपूर्ण, पे.वि. यह कृति किसी अन्य प्रतिलेखक द्वारा लिखी गई है. औपदेशिक सज्झाय-दयाधर्म, मु. रायचंद ऋषि, पुहि., पद्य, आदि: जीवा लखचोरासीमे भमीयो रे; अंति: रायचंदजी इम० आछामोले रे, गाथा-१३. २. पे. नाम, आलोयणा विधि, पृ. १आ-७अ, संपूर्ण. प्रा.,मा.गु., गद्य, आदि: प्रथम नमोकार १ गुणनो; अंति: किया ध्यान उपजे आनंद हे. ३. पे. नाम. भरतचक्रवर्ती सज्झाय, पृ. ७अ-७आ, संपूर्ण. म. हीरालाल, मा.गु., पद्य, वि. १९४५, आदि: मुगतपद पाया हो; अंति: (-), (अपूर्ण, पृ.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., गाथा-३ तक लिखा है.) For Private and Personal Use Only Page #220 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir २०५ हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२६ ११८०१६. (+) रत्नपालरत्नावती चौपाई, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ५७-७(१ से ७)=५०, पृ.वि. बीच के पत्र हैं., प्र.वि. संशोधित-टिप्पण युक्त विशेष पाठ-पदच्छेद सूचक लकीरें., जैदे., (२३४१२, १३४२४). रत्नपालरत्नावती चौपाई, मु. मोहनविजय, मा.गु., पद्य, वि. १७६०, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. खंड-१ ढाल-८ ___ गाथा-१२ अपूर्ण से खंड-४ ढाल-१८ गाथा-२ अपूर्ण तक है.) ११८०२३. (#) कर्मविपाक बोल, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ११, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२०४१२, १२४३०). गौतमपृच्छा, क. नंदलाल, पुहिं., पद्य, वि. १८९०, आदि: ज्ञाताधर्म कथा मध्ये; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-९७ अपूर्ण तक ११८०२४. सारस्वत व्याकरण की दीपिका टीका, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ६,प्र.वि. हुंडी:साल्टी०., जैदे., (२२४११.५, ९४२३-२७). सारस्वत व्याकरण-दीपिका टीका, आ. चंद्रकीर्तिसरि, सं., गद्य, वि. १६२३, आदि: नमोस्तु सर्वकल्याण; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., द्वितीय श्लोक की टीका अपूर्ण तक लिखा है.) ११८०४४. १६ द्वारे २३ पदवी विचार, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ.८, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., दे., (२१४११.५, १७४३४). १६ द्वारे २३ पदवी विचार-पन्नवणासूत्रगत, मा.गु., गद्य, आदि: नाम दुवार १ अर्थ; अंति: (-), (पू.वि. संजम वंतक एक पाठ तक है.) ११८०४७. औपदेशिक दोहा संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ.७, प्र.वि. हुंडी:दूहापत्र, दे., (१८.५४११, ११४२९). औपदेशिक दोहा संग्रह, मा.गु.,सं., पद्य, आदि: स्वस्ति श्री प्रभूशांति; अंति: गोमजीठनो घोयो छटकी न जाय, गाथा-११७. ११८०५७. (#) जयपताकायंत्र विधि व विजयपताकायंत्र विधि, संपूर्ण, वि. १९२९, वैशाख कृष्ण, १२, शनिवार, मध्यम, पृ. ८, कुल पे. २, ले.स्थल. जोधपुर, प्रले. मु. नयसुंदर, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (१७.५४१२, १७४२५-३२). १. पे. नाम, जयपताकायंत्र विधि, पृ. १अ-५अ, संपूर्ण. जयपताकायंत्रकल्प, सं., पद्य, आदि: पूर्वे नैरति उत्तरा; अंति: सर्वान् यंत्राराधान सेवका, (वि. कोष्टकसहितयंत्र.) २. पे. नाम. विजयपताकायंत्र विधि, पृ. ५अ-८आ, संपूर्ण. मा.गु.,सं., प+ग., आदि: पुर्वा चिअ१ मेरईए २; अंति: (अपठनीय), (वि. अंत में कोष्टक दिया है.) ११८०६६. प्रतिक्रमणविधि संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ.८, जैदे., (२१४१२, १२४२५). प्रतिक्रमणविधि संग्रह-अंचलगच्छीय, संबद्ध, मा.गु., गद्य, आदि: प्रथम प्रतीकमणनी वीधी; अंति: संपएय यथा व्याख्यात. ११८०६९. उत्तराध्ययनसूत्र-अध्ययन ३५ से ३६, संपूर्ण, वि. १९२५, फाल्गुन कृष्ण, १४, मध्यम, पृ. ११, ले.स्थल. आंतरी, प्रले. सा. मगना, प्र.ले.पु. सामान्य, दे., (२२.५४१२, १७४२८). उत्तराध्ययनसूत्र, मु. प्रत्येकबुद्ध, प्रा., प+ग., आदि: (-); अंति: सम्मएत्ति बेमि, प्रतिपूर्ण. ११८०७०, वसुधारणी सुत्र, अपूर्ण, वि. १८१९, आश्विन कृष्ण, २, सोमवार, मध्यम, पृ. ८-२(१,५)=६, ले.स्थल, धोलका, प्रले. पं. चंद्रसोम (गुरु आ. सोमसूरि, तपालोहडीपोसाल गच्छ); गुपि. आ. सोमसूरि (तपालोहडीपोसाल गच्छ); अन्य. मु. जससागर (अंचलगच्छ), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. हुंडी:वसुद्धार. अंत में "पांचभाईनी पोलमध्ये पोसाले रह्या ठाणुं२ चेला साथे रह्या, आंचलगच्छना जती जससागरजीनी परत ऊपरथी ऊतारो करु छि." ऐसा लिखा है., जैदे., (२२४१२, १४४२४-३०). वसुधारा स्तोत्र, सं., गद्य, आदि: (-); अंति: हस्ते दत्वा वाचयते, (पू.वि. पाठ "बहुपुत्रोः बहुभृत्यपरिजनसंपन्नश्च" से है व बीच के पाठांश नहीं हैं.) ११८०७२ (+) १२ भावना, दोहा संग्रह व औपदेशिक सज्झाय, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ८, कुल पे. ३, प्र.वि. संशोधित., दे., (२१.५४१२, १८x२७-३३). १.पे. नाम. १२ भावना, पृ. १आ-८अ, संपूर्ण, पे.वि. हुंडी:१२ भाव. अंत में १२ भावना संबंधी उपदेश दिया है. For Private and Personal Use Only Page #221 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra २०६ www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची मा.गु., गद्य, आदि: पहेलि अनंत भावना ते किम; अंति: नही ग्यांनरो सार जयणा छै, भावना-१२. २. पे नाम. दूहा संग्रह, पृ. ८अ ८आ, संपूर्ण, वि. १९४६ माघ कृष्ण, ३, ले. स्थल. नागपुरनगर, पे. वि. श्रीगुरुप्रसादात्प्रास्ताविक दोहा संग्रह, पुहिं., मा.गु., पद्य, आदि: भणजो गुणजो वाचजो हितकर; अंति: नही भटको देश वीदेस, दोहा-५. ३. पे नाम औपदेशिक सज्झाय, पृ. ८आ, संपूर्ण. मु. थूलचंद्र, मा.गु., पद्य, आदि: जीरे समता धारीने संजम; अंति: थूलचं० तिरणतार मुनिराज रे, गाथा- ७. ११८०९० (४) ज्योतिष नारचंद्र, अपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पू. १००-६६ (१,३ से ३३, ३५ से ४२, ४८ से ५२, ५४ से ५५,५७ से ६९.९३ से ९५,९७ से ९९)=३४, पू.वि. बीच-बीच के पत्र हैं. प्र. वि. हुंडी श्रीनर. ज०, मूल पाठ का अंश खंडित है, जैवे., (२५X१२, ९X३०-३४). ज्योतिषसार, आ. नरचंद्रसूरि, सं., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. तात्कालिक चंद्र वर्णन तक है व बीच बीच के पाठांश नहीं हैं.) ११८०९५. (५) दशवैकालिकसूत्र सह टवार्थ, अपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ३२, पू. वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. हुंडी: दशवैकालिक०., पदच्छेद सूचक लकीरें-संशोधित., जैदे., ( २४.५x१२, ७५० ). , दशवैकालिकसूत्र, आ. शय्यंभवसूरि, प्रा., पद्य, वी. २वी आदि धम्मो मंगलमुक्किहूं, अंति (-), (पू.वि. अध्ययन- १० गाथा-१३ अपूर्ण तक है.) दशवैकालिकसूत्र-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि धम्मो० धर्म श्रीजिन; अंति: (-). ११८१००. (+) योगचिंतामणि सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ६०- १(२) = ५९, प्र. वि. हुंडी : योगचिंतामणि., पदच्छेद सूच लकीरें जैये. (२४४१२, १०x३२-३९). , योगचिंतामणि, आ. हर्षकीर्तिसूरि, सं. पद्य वि. १७वी आदिः यत्र वित्रासमायांति अंति: (-), (पू.वि. बीच व अंत के "" " 1 पत्र नहीं हैं., अध्याय-१ स्रीयोग्य सौभाग्य सुंठि पाक के श्लोक-२ अपूर्ण से पीपली पाक के श्लोक-३ अपूर्ण तक नहीं है व अध्याय ६ रोपशात नाडी वर्णन अपूर्ण तक है.) योगचिंतामणि बार्थ, मा.गु., गद्य, आदि जउ विशसने प्राप्त हुवै, अंति: (-). पू. वि. अंत के पत्र नहीं हैं. ११८११२. (+) उत्तराध्ययनसूत्र सह कथा संग्रह- अध्ययन १ से १८, अपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पृ. ७६-१ (१) =७५, " प्र. वि. हुंडी उत्त. कथाको संशोधित, जैये. (२४.५x११, १७४४६-४९). उत्तराध्ययनसूत्र, मु. प्रत्येकबुद्ध, प्रा., प+ग, आदि: (-); अंति: (-), (प्रतिअपूर्ण, पू.वि. अध्ययन- १ गाथा - १३ से है., वि. मात्र कथा से संबंधित मूलपाठ है.) उत्तराध्ययनसूत्र- कथा संग्रह *, मा.गु., गद्य, आदि (-); अति (-). (प्रतिअपूर्ण, पू.वि. चेटक राजा की कथा अपूर्ण से है.) ११८११८. पाशाकेवली, संपूर्ण, वि. १९५६, मार्गशीर्ष कृष्ण, ११, सोमवार, मध्यम, पृ. १३, ले. स्थल. सोजत, प्रले. विश्वनाथ जोशी, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. हुंडी : सु०. श्रीशिवमाणकेश्वर प्रसादात्, दे., ( १७.५X१२, १०X१६). पाशाकेवली, मु. गर्ग ऋषि, सं., पद्य, आदिः ॐ नमो भगवती कूष्मांडिनी; अंति: सत्या पासाय केवली. १९८१३०. जिनस्तवनचौवीसी, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ६-१ (१) =५, पू. वि. प्रारंभ व अंत के पत्र नहीं हैं. दे. (२१.५x११.५, १३४३२). For Private and Personal Use Only जिनस्तवनचौवीसी, मु. मोहनविजय, मा.गु., पद्य, आदि (-); अंति (-), (पू.वि. अजितनाथ स्तवन गाथा १ अपूर्ण से धर्मजिन स्तवन तक है व वासुपूज्य स्वामी से अनंतनाथ स्तवन तक नहीं है.) ११८१३५. (+४) तत्त्वार्थाधिगमसूत्र सह अर्थ, संपूर्ण, वि. १९१० फाल्गुन शुक्ल, १०. बुधवार, मध्यम, पृ. १११+२ (१ से २)=११३, प्र. वि. हुंडी : तत्वा०. प्रस्तावना व विषयानुक्रम सहित निर्णयसागर प्रेस में मुद्रित होने का उल्लेख मिलता है. संशोधित कुल ग्रं. २००० अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे. (१८x११.५, ९४३५). तत्त्वार्थाधिगमसूत्र, वा. उमास्वाति सं., गद्य, आदि: (१) मोक्षमार्गस्य नेतारं, (२) सम्यग्दर्शनज्ञान, अति: बहुतत्त्वतः साध्याः, अध्याय- १०. Page #222 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२६ २०७ तत्त्वार्थाधिगमसूत्र-भाषावचनिकाटीका , श्राव. सदासुखदासजी, हिं., गद्य, वि. १९१०, आदि: मोक्षमार्ग को प्राप; अंति: (१)स्वरूप मे भेद नही है, (२)नमै सदा सुख नित धरि ध्यान, अध्याय-१०, ग्रं. २०००, (वि. अंत में कालाध्ययन (अस्वाध्याय) संबंधी संदर्भ पाठ दिया गया है.) ११८१४७. (#) विषापहार स्तोत्र आदि संग्रह, अपूर्ण, वि. १९२२, मध्यम, पृ. १२८-३०(१ से ७,१८ से ३७,८०,१०८,११९)=९८, कुल पे. ७०, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२०४११.५, ८-१२x२३-२९). १.पे. नाम, विषापहार स्तोत्र, पृ. ८अ-११आ, संपूर्ण. आ. अचलकीर्ति, पुहिं., पद्य, वि. १७१५, आदि: विश्वनाथ विमल गुन ईस; अंति: अचलकीर्त्ति० साहीब को नाम, गाथा-४१. २. पे. नाम. विविध स्तुतिसंग्रह-प्रार्थना, पृ. ११आ, संपूर्ण. विविधप्रार्थना स्तुतिसंग्रह, सं., पद्य, आदि: जिनवर जगदातारं भवदधितारं; अंति: दया धर्म निश्चय चित्तधारं, श्लोक-१. ३. पे. नाम. कल्याणमंदिर स्तोत्र का पद्यानुवाद, पृ. १२अ-१६अ, संपूर्ण. कल्याणमंदिर स्तोत्र-पद्यानवाद, जै.क. बनारसीदास, पुहिं., पद्य, वि. १७वी, आदि: परम जोति परमातमा पर्म; अंति: वनारसी कारण समक्त सुद्धि, गाथा-४५.. ४. पे. नाम. निर्वाणकांड का पद्यानुवाद, पृ. १६अ-१७आ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. निर्वाणकांड-पद्यानुवाद, श्राव. भगवतीदास भैया, पुहिं, पद्य, वि. १७४१, आदि: वीतराग वंदु सदा भाव सहत; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-१६ तक है.) ५. पे. नाम, पंचकल्याणक मंगल, पृ. ३८अ-४५आ, संपूर्ण. म. रूपचंद्र, मा.गु., पद्य, आदि: पणमवी पंच परम गुरु; अंति: जिनदेव चउसंघह जयो, ढाल-५, गाथा-२५. ६. पे. नाम. साधारणजिन स्तुति, पृ. ४५आ, संपूर्ण.. साधारणजिन पद, मु. नवल, पुहिं., पद्य, आदि: कीई आराधना तेरी हीय आनंद; अंति: नवल चेरा तिहारा है, गाथा-५. ७. पे. नाम. देवपूजा विधि, पृ. ४६अ-४९अ, संपूर्ण... जिनपूजा विधि, प्रा.,सं., प+ग., आदि: ॐ नमो सिद्धेभ्य ॐ जय जय; अंति: संबाशमा हीन शाश्ये. ८. पे. नाम. देवशास्त्र गुरुपूजा, पृ. ४९अ-५४अ, संपूर्ण. देवशास्त्रगुरु पूजा, मु. राजकीर्ति, अप.,पुहिं.,सं., प+ग., आदि: सर्व सर्वज्ञनाथ सकल; अंति: करिभ्ये अर्हन रचयामि. ९. पे. नाम. लघु चैत्यभक्ति, पृ. ५४आ-५५आ, संपूर्ण. आ. देवनंदी, सं., पद्य, वि. ५वी, आदि: वर्षेषु वर्षांतर; अंति: जिन गुण संपत होद मज्झं. १०.पे. नाम. सरस्वती मंत्र, पृ. ५५आ, संपूर्ण. सरस्वतीदेवी मंत्र, सं., पद्य, आदि: सरस्वती वाक वादनी; अंति: अर्घिनर्चियामि, (वि. अंत में अर्घ्य द्रव्य नाम दिए गए ११. पे. नाम, गुरुगुण गहुंली, पृ. ५६अ-५७अ, संपूर्ण. जै.क. भूधर, पुहि., पद्य, आदि: वे गुरु मेर उरि बसो जी; अंति: चढो बुधरि मांगित येव, गाथा-१४. १२. पे. नाम. २० विहरमानजिन जयमाल, पृ. ५७अ-५८आ, संपूर्ण. पुहि., पद्य, आदि: सीमंधरजिन वंदस्यां जगसार; अंति: होय मुक्ति स्वयंबरा, गाथा-७. १३. पे. नाम. २० विहरमानजिन नाम, पृ. ५८आ-५९अ, संपूर्ण. मा.गु., गद्य, आदि: श्रीमंधरजी युगमंदरजी; अंति: देवजसजी अजितवीर्यजी. १४. पे. नाम. सिद्ध पूजा, पृ. ५९अ-६२आ, संपूर्ण. ___सं., पद्य, आदि: ॐ उरधाधुरयुतं सबिंद; अंति: पर्म सिद्धि भगवानि. १५. पे. नाम. साधारणजिन स्तुति, पृ. ६२आ, संपूर्ण. पहिं., पद्य, आदि: करु मै स्तुति जिनवरसे: अंति: भयो हे परम हित चेना. For Private and Personal Use Only Page #223 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir २०८ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १६. पे. नाम. पार्श्वजिन ८ प्रकारी पूजा, पृ. ६३अ-६५अ, संपूर्ण, वि. १९२२, भाद्रपद कृष्ण, १, मंगलवार, ले.स्थल. दीर्घपुर, प्रले. कुंजलाल पाटणी; पठ. गणेशलाल भानकुमार पाटणी, प्र.ले.पु. सामान्य. आ. दीपरत्नसूरि; श्राव. वच्छ भंडारी, मा.गु., पद्य, आदि: क्षीर जलनिधि नीर; अंति: ददामि कुसमांजलि विमलं, पूजा-८. १७. पे. नाम. वैराग्य सज्झाय, पृ. ६५आ, संपूर्ण. पुहि., पद्य, आदि: खबर नही है जुगमें पलकी; अंतिः सो करिले कुण जाणि कल की, गाथा-९. १८. पे. नाम. १६ कारण भावना पूजा, पृ. ६६अ-६८अ, संपूर्ण. जै.क. द्यानतराय, पुहिं., प+ग., आदि: सोलेह कारण भाव तीर्थंकरि; अंति: पद द्यानित सिव पद होय. १९. पे. नाम. दशलक्षणधर्म पूजा, पृ. ६८अ-७३आ, संपूर्ण. जै.क. द्यानत, पुहिं., प+ग., वि. १८वी, आदि: उतिम छिमा मार्दव आर्जव; अंति: लहे द्यानित सुख की रासि. २०. पे. नाम. नमस्कार महिमा गाथा, पृ. ७३आ, संपूर्ण. प्रा., पद्य, आदि: नमोकार एक शरणं पाव; अंति: सागर पणसय समगेणं, गाथा-१. २१. पे. नाम. पंचमेरुपूजा विधि, पृ. ७४अ-७७आ, संपूर्ण. पुहि., प+ग., आदि: हेमझारी रत्नझारी गंगा जल; अंति: करा ज्यौ भव्य जिन कंठ धरे. २२. पे. नाम. रत्नत्रय पूजा, पृ. ७८अ-८२आ, अपूर्ण, पू.वि. बीच का एक पत्र नहीं है. जै.क. द्यानतराय, पुहिं., पद्य, वि. १८वी, आदि: चहुगति फल विष हरन मन दुःख; अंति: सब द्यानत को सुखदाय, (पू.वि. ज्ञानपूजा अपूर्ण तक नहीं है.) २३. पे. नाम. पंचमेरु पूजा, पृ.८३अ-८४आ, संपूर्ण. जै.क. द्यानतराय, पुहिं., प+ग., आदि: तीर्थंकरो के न्हवन जल ते; अंति: द्यानित० तुरत महासुख होई. २४. पे. नाम, अठाईजी की पूजा, पृ. ८५अ-८७अ, संपूर्ण. अष्टान्हिका पूजा, जै.क. द्यानतराय, पुहिं., प+ग., आदि: सर्व पर्व मे वडो अठाई परब; अंति: नाम यही भक्ति सिवसुख करे. २५. पे. नाम, नंदीश्वरद्वीप जाप विधान, पृ. ८७अ, संपूर्ण. सं., गद्य, आदि: ॐ ह्रीं नंदीश्वर संज्ञकाय; अंति: जपज्ये मंत्र दिन आठ को छै. २६. पे. नाम. स्वाध्याय श्लोक, पृ. ८७आ, संपूर्ण. सं., पद्य, आदि: ॐकारबिंद संयुक्तं; अंति: दया धर्म सर्व वैध, श्लोक-४. २७. पे. नाम. शास्त्र जयमाला, पृ. ८८अ-८९आ, संपूर्ण... ___अप., पद्य, आदि: संपइ सुह कारण कम्म; अंति: (१)केवलणाण वि उत्तरई, (२)अर्घ निर्विपामीते स्वाहा, गाथा-१४. २८. पे. नाम. गुरु जयमाला, पृ. ८९आ-९१अ, संपूर्ण. ____ अप., पद्य, आदि: भवियह भव तारण सोलह; अंति: (१)रिसिवर मई झाइया, (२)गुरु० निर्विपामीते स्वाहा, गाथा-१४. २९. पे. नाम. अावली, पृ. ९१अ-९१आ, संपूर्ण. सं., गद्य, आदि: उदकचंदनतंदुलपुष्पकैः; अंति: निर्वपामिति स्वाहा. ३०. पे. नाम. साधारणजिन पद, पृ. ९१आ, संपूर्ण. पुहिं., पद्य, आदि: हम जानित है तुम तारोगे; अंति: आह्वागिवन निवारो ग्ये, गाथा-४. ३१. पे. नाम. औपदेशिक दूहा, पृ. ९१आ, संपूर्ण. औपदेशिक दोहा, पुहिं.,मा.गु., पद्य, आदि: जगजीवन जग दोस्ती ओगुन है; अंति: मन मन रहै भलीजु वही ठामि, गाथा-२. ३२. पे. नाम. शांतिपाठ, पृ. ९२अ-९३अ, संपूर्ण. सं., प+ग., आदि: शांतिजिनं शशिनिर्मल; अंति: तुम जिनवर चरण सरणंलीन, श्लोक-१५. ३३. पे. नाम. विसर्जन पाठ, प. ९३अ, संपूर्ण, पे.वि. यह कृति इस प्रत के साथ एक से अधिक बार जड़ी हुई है. For Private and Personal Use Only Page #224 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२६ www.kobatirth.org सं., पद्य, आदि: ज्ञानतोज्ञानतो वापि; अंति: ववतें सर्वो जानि स्तथा श्लोक-३. ३४. पे. नाम. साधारणजिन स्तुति, पृ. ९३-९३आ, संपूर्ण. पुहिं., पद्य, आदि: शुक्ष देवे दुःख मेटवौ; अंति: भोगिय पाव मौक्ष स्थानि, गाथा - ३. ३५. पे. नाम. शास्त्र स्तुति, पृ. ९३आ, संपूर्ण. Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir पुहिं., पद्य, आदि: वीर हिमाचलित निकसी गुरः अति प्रतिमा निजि सीश धरी है, गाथा-२ (वि. अंत में धर्ममहिमा दोहा दिया गया है.) ३६. पे नाम. जिनशासनमहिमा लोक, पृ. ९४अ, संपूर्ण. सं., पद्य, आदि: प्रशांतमतगंभीरां; अंतिः श्रीमत सर्वज्ञ शासनं श्लोक-१, (वि. अंत में शंख मंत्र दिया गया है.) ३७. पे. नाम. ८४ लाख जीवयोनि कवित्त, पृ. ९४अ - ९४आ, संपूर्ण. पुहिं. प+ग, आदि: सात लाख इतर निगोद जीव जात; अति: ए सर्व चोरासी लाख जानिए, . ३८. पे नाम औपदेशिक गाथा संग्रह, पृ. ९४आ- ९५ अ, संपूर्ण. औपदेशिक गाथा संग्रह, पुहिं., मा.गु. सं., पद्य, आदि ए गोहं न थमगोई नाहं मन अति: करन सब विखै न चाहि सौय, गाथा-४. ३९. पे नाम औपदेशिक सवैया, पू. ९५अ, संपूर्ण, पुहिं., पद्य, आदि: भुंजतो कर्म फल कु नैयनरा; अंति: कीज्ये तो सकल अघ हानि ए, गाथा-२. ४०. पे नाम औपदेशिक दोहा संग्रह, पृ. ९५अ - ९५आ, संपूर्ण, वि. १९२२, भाद्रपद शुक्ल, ३, ले. स्थल. दीर्घपुर. मु. भिन्न भिन्न कर्तृक, पुहिं., मा.गु., पद्य, आदि जगजीवन जग दोसती ओगुन है; अति कंचके वाजित है दिन रिने, गाथा - १२. ४१. पे नाम शाश्वताशाश्वतजिन चैत्यसंख्या प्रमाण, पृ. ९६अ ९७आ, संपूर्ण, वि. १९२२ भाद्रपद कृष्ण, १, मंगलवार, पुहिं., गद्य, आदि प्रथम जंबुद्वीप लवण; अंति: उपरली गाथा की अर्थयी छे. ४२. पे. नाम. भक्तामर स्तोत्र का पद्यानुवाद, पृ. ९८अ -१०४आ, संपूर्ण. भक्तामर स्तोत्र-श्लोक ४८-पद्यानुवाद, श्राव. हेमराज पांडे, पुहिं., पद्य, आदि आदि पुरुष आदेशजिन; अंति: हेमराजि० ते पावे सिव खेत, गाथा ४९. ४३. पे नाम ज्योतिष विचार, पृ. १०४आ, संपूर्ण, पे.वि. यह कृति इस प्रत के साथ एक से अधिक बार जुड़ी हुई है. मा.गु., गद्य, आदि: मास दमोदर दुन करि तिथि; अंति: रेवती सताईस नक्षत्र. ४४. पे. नाम. परमानंद स्तोत्र, पृ. १०५अ -१०६आ, संपूर्ण. सं., पद्य, आदि परमानंदसंयुक्त; अंतिः य यानाति स पंडित, श्लोक-२४. ४५. पे नाम. आध्यात्मिक पद. पू. १०६आ, संपूर्ण. पुहिं., पद्य, आदि हम बेठे अपनी मोन से दिन; अंति संगत सुरझे आवागिवनसु, गाधा-४. ४६. पे नाम साधारणजिन विनती स्तवन, पू. २०७२- १०७आ, संपूर्ण साधारणजिन विनती स्तवन- आत्मनिंदागर्भित, मु. कुमुदचंद, मा.गु., पद्य, आदि प्रभु पाय लागु करुं अति कुमदचंद० तिह सुखदेसी. ४७. पे नाम औपदेशिक लावणी- भाविभाव, पू. १०९-१०९आ, संपूर्ण. पु., पद्य, आदि प्रभुने समरौ रै भाई; अंति: लावणी बुद्धि जिन मन लाई, गाथा-४. ४८. पे नाम साधारणजिन स्तवन. पू. ११०अ १११अ संपूर्ण. पुहिं., पद्य, आदि आज धनि मो मस्तग भयी तुहार अंतिः समकद्रष्टी मुक्तमै गयी, गाधा-१६. ४९. पे नाम २४ जिन स्तवन, पृ. १९९१-१११ आ. संपूर्ण. २०९ मु. . लालविनोद, मा.गु., पद्य, आदि: जै जै आदि नमो अरिहंता; अंति: लविनोद० मनवांछित फल पाईये, गाथा-५. ५०. पे नाम. पार्श्वजिन स्तवन, पृ. ११२अ ११२आ, संपूर्ण. For Private and Personal Use Only Page #225 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir २१० कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची पुहिं., पद्य, आदि: भव भव खंडिनौ दुःख विहंडणो; अंति: श्री पार्सनाथ जिनेश्वरो, गाथा-८, (वि. अंत में अर्घ्य मंत्र दिया गया है.) ५१. पे. नाम, आध्यात्मिक जकडी, पृ. ११३अ-११३आ, संपूर्ण. पुहिं., पद्य, आदि: हा हा भुलो मेरो मन जिनवरि; अंति: ज्युं उतरो भव पारिवौ, गाथा-४. ५२. पे. नाम. रावण सैन्यमान कवित्त, पृ. ११३आ, संपूर्ण. मा.गु., पद्य, आदि: एक कोडि गजराज अड बदस तुरी; अंति: असै रावन को सब गयो, पद-१. ५३. पे. नाम. सिंदूरप्रकर की पद्यानुवाद भाषा का चयनित सवैया संग्रह, पृ. ११३आ-११४अ, संपूर्ण. सिंदरप्रकर-पद्यानुवाद भाषा का चयनित सवैया संग्रह, जै.क. बनारसीदास, पुहिं., पद्य, आदि: जैसै नभ मंडल तारा गन रोहन; अंति: कुं यही जिन वाणी है, गाथा-५. ५४. पे. नाम. औपदेशिक दोहा संग्रह, पृ. ११४आ, संपूर्ण, वि. १९२२, आश्विन, ३, शुक्रवार. पुहि.,प्रा.,मा.गु.,सं., पद्य, आदि: ज्यो जल बुडत कोई; अंति: जावसी प्रभु भज लाहो लेह, गाथा-७. ५५. पे. नाम, औपदेशिक दूहा, पृ. ११५अ, संपूर्ण. औपदेशिक दोहा, मा.गु., पद्य, आदि: आपन ही खंखेरीया उर साम; अंति: जीयां तो तै जानी सारि, गाथा-१. ५६. पे. नाम. साधारणजिन जकडी, पृ. ११५अ-११६अ, संपूर्ण. श्राव. ऋषभदास, पुहि., पद्य, आदि: अब मोहि त्यारो सरण तुम; अंति: रिषभदास० देह माहाराज जी, गाथा-१७. ५७. पे. नाम. गुरुगुण स्तुति, पृ. ११६आ-११७अ, संपूर्ण, पे.वि. यह कृति इस प्रत के साथ एक से अधिक बार जुड़ी हुई है. जै.क. भूधरदास, पुहिं., पद्य, आदि: वंदु दिगंबर गुरचरम जग तरन; अंति: भुधर० मेरी हरो पातिक वीर, दोहा-८. ५८. पे. नाम. जिनवाणी स्तवन, पृ. ११७आ, संपूर्ण. श्राव. रायचंद्र, पुहिं., पद्य, आदि: मोहि जिनवाणी भावै मारा मन; अंति: रायचंद० अजर अमर पद पावजी, गाथा-५. ५९. पे. नाम. अष्टप्रकारी पूजा विधान-कुंचामणनगर, पृ. ११८अ-११८आ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. पुहिं., पद्य, आदि: या छवि ज्योरि सोह राजै; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-१५ अपूर्ण तक है.) ६०. पे. नाम. जिनवचन सवैया, पृ. १२०अ, अपूर्ण, पू.वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं. पुहिं., पद्य, आदि: (-); अंति: ओरि वचन अत तुही फेर है, गाथा-३, (पू.वि. गाथा-३ अपूर्ण मात्र है.) ६१. पे. नाम. साधारणजिन स्तवन, पृ. १२०अ-१२०आ, संपूर्ण. पुहिं., पद्य, आदि: पहेली वंदु श्रीजिनराज; अंति: रोग कलेस मिट संताप, गाथा-७. ६२. पे. नाम. प्रास्ताविक सवैया, पृ. १२०आ, संपूर्ण. पुहि., पद्य, आदि: चाहत है धनि हो एक सिविधै; अंति: रुपी रह जाई स्तरज कीवाजी, गाथा-१. ६३. पे. नाम. नेमिजिन पद, पृ. १२१अ, संपूर्ण. पुहिं., पद्य, आदि: वारीजी बधाई रंग भीनी; अंति: यहै असीस सब दीन्ही, गाथा-२. ६४. पे. नाम. पंचजिन स्तवन, पृ. १२१अ-१२२अ, संपूर्ण. क. बनारसीदास, पुहिं., पद्य, आदि: तुम तरण तारिण भवनीवारिण; अंति: मागु मोक्षि फलजी चित हुं, गाथा-१२. ६५. पे. नाम. विसर्जन पाठ, पृ. १२२अ-१२२आ, संपूर्ण, पे.वि. यह कृति इस प्रत के साथ एक से अधिक बार जुड़ी हुई है. सं., पद्य, आदि: ज्ञानतोज्ञानतो चापि; अंति: विरते सर्वयो जानसु तथा. ६६. पे. नाम. साधारणजिन प्रार्थना दोहा, पृ. १२२आ, संपूर्ण. मा.गु., पद्य, आदि: सुख देवो दख मेटवो; अंति: नही तारा गिन सोय, दोहा-३. ६७. पे. नाम. वैराग्यमय लावणी, पृ. १२३अ, संपूर्ण. पुहिं., पद्य, आदि: अरज हमारी सुन दीनपत कौन; अंति: राखो जनम मरण हरनां, गाथा-५. ६८. पे, नाम, गुरुगुण स्तुति, पृ. १२४अ-१२५अ, संपूर्ण, पे.वि. यह कृति इस प्रत के साथ एक से अधिक बार जुड़ी हुई है. जै.क. भूधरदास, पुहिं., पद्य, आदि: वंदु दिगंबर गुरचरम जग तरन; अंति: भुधर० मेरी हरो पातिक वीर, दोहा-८. ६९.पे. नाम. ज्योतिष विचार, पृ. १२६अ-१२७आ, संपूर्ण, पे.वि. यह कृति इस प्रत के साथ एक से अधिक बार जुड़ी हुई है. For Private and Personal Use Only Page #226 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२६ २११ मा.गु., गद्य, आदि: असनी भरणी क्रतका पाए मेष; अंति: यरलव मरग ७ सषसह मींढा ८. ७०.पे. नाम. नेमिजिन १० भव स्तवन, पृ. १२८अ, संपूर्ण. पुहि., पद्य, आदि: पहले भव तोहे प्रभु भील; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., गाथा-२ अपूर्ण तक लिखा है.) ११८१४९. प्रश्नोत्तरसार्द्धशतक का बीजक, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ४१, दे., (२५.५४११, ९x४०). प्रश्नोत्तरसार्द्धशतक-बीजक, वा. क्षमाकल्याण, मा.ग., गद्य, वि. १८५३, आदि: पहिलै बोलै तीर्थंकर; अंति: (१)शास्त्रमै कह्यो छे, (२)भयौ जैसलमेर मझार, प्रश्न-१५१. ११८१५०. मानतुंगमानवती रास, अपूर्ण, वि. १८२८, वैशाख शुक्ल, १०, मंगलवार, मध्यम, पृ. ५७-४(१ से ४)=५३, ले.स्थल. पाटणनगर, प्रले. पं. प्रसिद्धविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. विमलनाथ प्रसादात्., प्र.ले.श्लो. (६१६) यादृशं पुस्तकं दृष्टा, जैदे., (२६४११, १२४३३). मानतुंगमानवती रास-मृषावादविरमण अधिकारे, मु. मोहनविजय, मा.गु., पद्य, वि. १७६०, आदि: (-); अंति: घरिघरि मंगलमाला हे, ढाल-४७, गाथा-१०१५, (पू.वि. ढाल-३ गाथा-१७ अपूर्ण से है.) ११८१५१ (+#) पांडव रास, संपूर्ण, वि. १७६६, माघ कृष्ण, ७, मध्यम, पृ. १४६, ले.स्थल. पटणानगर, प्र.वि. संशोधित. कुल ग्रं. ५३५०, मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., (२५.५४११, १४४४२). पांडव रास, आ. गुणसागरसूरि, मा.गु., पद्य, वि. १६७६, आदि: श्रीजिन आदिजिनेश्वरू; अंति: गुणसुरि० रंगव वधामणो, खंड-९ ढाल १५१. ११८१५२. (+) रामजसरसायन-अधिकार २, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ३४-१२(१४ से २५)=२२, पृ.वि. बीच-बीच व अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. हंडी:रामजस., संशोधित., जैदे., (२५४११.५, १४४३८). रामयशोरसायन चौपाई, म. केशराज, मा.ग., पद्य, वि. १६८३, आदिः (-); अंति: (-), (प्रतिअपूर्ण, पृ.वि. ढाल-३२ __ गाथा-३८ अपूर्ण तक है व बीच-बीच के पाठांश नहीं हैं.) ११८१५६. (+) रामविनोद, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १००, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२५४११.५, ११-१४४३०-३५). रामविनोद, पं. रामचंद्र गणि, मा.गु., पद्य, वि. १७२०, आदि: सिद्धि बुद्धि दायक सकल; अंति: (-), (पू.वि. समुद्देश-७ गाथा-१३८ अपूर्ण तक है.) ११८१५७. (+#) औपदेशिक गाथा, श्लोक, सवैयादि संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ११-४(१ से २,४,६)=७, पृ.वि. बीच-बीच के पत्र हैं., प्र.वि. संशोधित. अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५४११.५, ८x२४). औपदेशिक गाथा संग्रह *, पुहि.,मा.गु.,सं., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. गाथा-१४ अपूर्ण से ७२ अपूर्ण तक है व बीच-बीच के गाथांश नहीं हैं.) ११८१६० (+) रात्रिभोजन चौपाई, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १४, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२४.५४११, १५४३२). रात्रिभोजन चौपाई, ग. लक्ष्मीवल्लभ, मा.गु., पद्य, वि. १७३८, आदि: वरधमान जिनवर तणा चरण नमु; अंति: (-), (पू.वि. ढाल-२१ के दहा-३ अपूर्ण तक है.) ११८१६१. गौतमपृच्छा सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १८६०, वैशाख शुक्ल, ६, श्रेष्ठ, पृ. १०, प्रले. दुर्लभ भगवान त्रवाडी, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२४४११, ५४२५-२८). गौतमपृच्छा, प्रा., पद्य, आदि: नमिऊण तित्थनाहं; अंति: गोयमपुच्छा महत्थावि, प्रश्न-४८, गाथा-६४. गौतमपच्छा-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: नमि नमस्कार करीनइं; अंति: पृच्छा अर्थ हुता तो पण. ११८१६३. अभिधानचिंतामणि नाममाला सह टीका कांड-५ से ६, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, प. ३१, पृ.वि. अंतिम पत्र नहीं है., प्र.वि. त्रिपाठ., जैदे., (२५४११, १-४४४१-५०). अभिधानचिंतामणि नाममाला, आ. हेमचंद्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., पद्य, वि. १३वी, आदिः (-); अंति: रोषोक्तावु नतौ नमः, प्रतिपूर्ण. For Private and Personal Use Only Page #227 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra २१२ www.kobatirth.org कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची अभिधानचिंतामणि नाममाला-सारोद्धार टीका, उपा. वल्लभ, सं., गद्य वि. १६६७, आदि (-); अंति: (-), , Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir (प्रतिअपूर्ण, पू. वि. प्रशस्ति श्लोक-१७ अपूर्ण तक है.) ११८१६६. (४) ज्योतिषसार व ज्योतिष श्लोक संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पृ. १३, कुल पे. २. प्र. वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जै. (२४४११, १३४२५-२९). १. पे. नाम. ज्योतिषसार, पृ. १आ- ११अ, संपूर्ण, वि. १८६१ वैशाख कृष्ण, १, ले. स्थल. बिलाडा नगर, प्रले. मु. उत्तम विजय (गुरु मु. नेमिविजय): गुपि. मु. नेमिविजय (गुरु मु. उदयविजय) मु. उदयविजय (गुरु मु. सकलविजय): मु. सकलविजय, प्र.ले.पु. मध्यम, पे. वि. हुंडी : नारचंद्र. आ. नरचंद्रसूरि, सं., पद्य, आदि: श्रीअर्हतं जिनं नत्वा; अंतिः सेषा शुक्र प्रकिर्त्तिता. २. पे नाम ज्योतिष श्लोक संग्रह, पृ. ११९आ-१३आ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. ज्योतिष*, पुहिं., मा.गु.,सं., प+ग., आदि : आर्द्रादौ रवि चत्वार; अंति: (-), (पू.वि. श्लोक-२२ अपूर्ण तक है.) ११८१६९. (+) अभिधानचिंतामणि नाममाला, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १० -३ (१,६ से ७) =७, पू.वि. प्रथम एक, बीच व अंत के पत्र नहीं है, प्र. वि. संशोधित, जैदे. (२३४११, १२४३२). , अभिधानचिंतामणि नाममाला. आ. हेमचंद्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., पद्य, वि. १३वी आदि (-); अति: (-), (पू.वि. कांड- २ गाथा १० अपूर्ण तक व कांड-२ गाथा ५५ अपूर्ण से गाथा- ११९ अपूर्ण तक है.) ११८१७०. ज्योतिषसार सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ३१, दे., (२५X११, ५×२८-३९). ज्योतिषसार, आ. नरचंद्रसूरि, सं., पद्य, आदि: श्रीअर्हतं जिनं नत्वा, अंति: (-), (पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., श्लोक-२१९ तक है.) ज्योतिषसार-टबार्थ *, मा.गु., गद्य, आदि: श्री शब्द छे सुपुज्य वाची, अंति: (-), (पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., श्लोक-१३ अपूर्ण तक टबार्थ लिखा है.) ११८१७२. कृष्ण ढाल, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ५, पू. वि. अंत के पत्र नहीं हैं., दे., (२३.५X११.५, १५X४०). कृष्ण ढाल, मा.गु., पद्य, आदि श्रीनेमनाथ समोसर्या अति: (-), (पू. वि. दाल-१० गाथा-५ अपूर्ण तक है.) ११८१७३. (+) चमत्कारचिंतामणि सह टबार्थ, संपूर्ण वि. १८६८, मध्यम, पृ. १५, ले. स्थल कंटालीयानगर, प्रले. पं. उत्तमविजय (गुरु पं. नेमविजय); गुपि. पं. नेमविजय (गुरु मु. उदयविजय); मु. उदयविजय (गुरु पं. सकलविजय); पं. सकलविजय (गुरु ग. सुमतिविजय); ग. सुमतिविजय (गुरु ग. लक्ष्मीविजय), प्र.ले.पु. मध्यम, प्र. वि. श्री शांतिनाथजी प्रसादात्., संशोधित टिप्पण युक्त विशेष पाठ. कुल ग्रं. ७०५ प्र.ले. लो. (७२४) जलाद् रक्षे थलाद् रक्षे, जैदे (२४४११.५, ४४३१-३४). "" चमत्कारचिंतामणि, राजऋषिभट्ट, सं., पद्य, आदि: (१) क्वणत्किंकिणी जालकोल, (२)न चेत् खेचराः स्थापिताः; अंति: वस्तु गुह्ये सदैव (वि. १८६८ वैशाख अधिकमास कृष्ण, १ ) चमत्कारचिंतामणि- टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि जन्म कुंडलीने विषे, अंति: रोग उपजे निचे करीनइ (वि. १८६८, वैशाख अधिकमास कृष्ण, १३) १९८१७४. (+) षट्पंचाशिका सह टवार्थ, संपूर्ण, वि. १८६१ मध्यम, पृ. १०, ले. स्थल, धणलानगर, प्रले. पं. उत्तमविजय (गुरु पं. नेमविजय); गुपि. पं. नेमविजय (गुरु मु. उदयविजय); मु. उदयविजय (गुरु पं. सकलविजय); पं. सकलविजय (गुरु ग. सुमतिविजय); ग. सुमतिविजय (गुरु ग. लक्ष्मीविजय), प्र.ले.पु. मध्यम, प्र. वि. श्रीशांतिनाथजी प्रसादात्, टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित, जैये. (२४४११.५, ५४२७-३२) षट्पंचाशिका, आ. पृथुयशा सं., पद्य, आदि प्रणिपत्य रविं अंति: जातिश्च लग्नपात्, अध्याय-७, श्लोक ५६, (वि. १८६१, ज्येष्ठ कृष्ण, ६, सोमवार) षट्पंचाशिका-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: नमस्कार श्रीसूर्य देवतानइ; अंति: उंची नीची गइ वस्तु कहवी, (वि. १८६१, ज्येष्ठ कृष्ण, ११, बुधवार) ११८१७८. (४) पाक्षिकसूत्र, अपूर्ण, वि. १९ वी, मध्यम, पृ. २, पू. वि. अंत के पत्र नहीं हैं. प्र. वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैवे., (२४x११, ११X३६-३९). For Private and Personal Use Only Page #228 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२६ www.kobatirth.org पाक्षिकसूत्र, हिस्सा, प्रा., प+ग, आदि तित्यंकरे य तित्थे अंति: (-), (पू.वि. पाठ "संसारपारगामिस्स निव्वाणगमणपवसाणफलस्स" तक है.) Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir १९१८१७९. (+) भद्रबाहुसंहिता, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ९३-३३(१ से ३,६,८ से ९,२६ से ३७, ३९, ४२ से ४९, ५४ से ५६,५८,८४ से ८५)=६०, प्र. वि. हुंडी : भद्रबाहु संहिता., पदच्छेद सूचक लकीरें - टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित., दे., (२३४११, १४३०-३३). भद्रबाहुसंहिता, आ. भद्रबाहस्वामी, सं., पद्य, आदि (१) मगधेषु पुरं ख्यातं, (२) नमस्कृत्य जिनं वीर; अति: (-), (पू.वि. बीच व अंत के पत्र नहीं हैं., अध्याय- २८ श्लोक ७९ अपूर्ण तक है व बीच बीच के पाठांश नहीं है.) ११८१८८. (००) सामाचारी अध्ययन का बालावबोध, अपूर्ण, वि. १९५६ श्रावण शुक्ल, १०, मध्यम, पृ. २१-१(१)-२०, ले. स्थल. अजीमगंज, प्र. मु. धनसुख ऋषिः पठ. मु. हेमचंद्र, प्र.ले.पु. सामान्य प्र. वि. पदच्छेद सूचक लकीरें. मूल पाठ का अंश खंडित है, दे., ( २४.५X११.५, १४X४०). २१३ कल्पसूत्र - हिस्सा सामाचारी अध्ययन का वालावबोध, य. अवीरचंद्र ऋषि, मा.गु, गद्य, वि. १९३७, आदि (-); अंति: (१)जीव संसार समुद्र से तरे, (२) अबीर० के होय संतोषा, (पू.वि. प्रथम सामाचारी अपूर्ण से है.) ११८१८९. शालिभद्रमुनि चौपाई, संपूर्ण वि. १८३४, माघ शुक्ल, १०, शुक्रवार, मध्यम, पू. १६, ले. स्थल. अकवरावाद, प्र. सा. चैनाजी (गुरु सा. फुलाजी); गुपि. सा. फुलाजी, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. हुंडी: सालिभद्र, अंत में "साधु रणधीर चुनीलाल ने पूत दीनी साधु ख्यालीराम कूं द. चु. के" ऐसा उल्लिखित है., जैदे., ( २४१२, १९x४१). शालिभद्रमुनि चौपाई, मु. मतिसार, मा.गु., पद्य, वि. १६७८, आदि सासणनायक समरौई, अंति: मतिसार० सुख पावे जी. ढाल - २८. ११८१९०. (#) नवतत्त्वादि ९७ बोल संग्रह, संपूर्ण, वि. १८८५, आषाढ़ शुक्ल, १, मध्यम, पृ. ५, ले. स्थल. वडलु, प्रले. पं. हर्षविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५X१२, २०x४४-४९). नवत्त्वादि ९७ बोल संग्रह, मा.गु., गद्य, आदि प्रथम नवतत्त्व कहे छे जीव; अंति साख सुतर भगवती सतक. ११८१९७. (+) चंदनमलयागिरी चौपाई, संपूर्ण, वि. १८४६, ज्येष्ठ कृष्ण, ४, बुधवार, मध्यम, पृ. ६, ले, स्थल, बीलारा, प्र. सा. कुसाला (गुरु सा नेतुजी); गुपि. सा. नेतुजी, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. हुंडी: चंदमलवागरी संशोधित, जैदे. (२४४१२, २१x४७). चंदनमलवागिरी चौपाई, उपा. सुमतिहंस, मा.गु., पद्य, वि. १७११, आदिः स्वस्ति श्रीपूरणसदा अंतिः सुमतहंस० पामे सुखनिधान, ढाल - १६, गाथा - २६५. ११८१९८. (+#) नवपद आराधना विधि, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १३-७ (१ से २, ४ से ८) = ६, पू.वि. बीच-बीच के पत्र हैं., प्र. वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे. (२५४१२, १८४४८). नवपद आराधना विधि, मा.गु.,सं., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. नमस्कारमाहात्म्य वर्णन अपूर्ण से १६ विद्यादेवी २४ यक्षयक्षिणी पूजन अपूर्ण तक है व बीच-बीच के पाठांश नहीं हैं.) १९८२०७. (+) सार्द्धद्विशती अभिषेक, २५० अभिषेक गाथा व २५० अभिषेक विचारादि संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १०, कुल पे. ७, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित., जैदे., (२४X१२.५, १०X३२). १. पे. नाम. सार्द्धद्विशती अभिषेक, पृ. १अ-६आ, संपूर्ण, प्रले. मु. गौतम, अन्य. मु. गुलाल, मु. दीपविजय; मु. विनय, प्र.ले.पु. मध्यम, पे. वि. श्रीमहावीरप्रसादात् ३. पे नाम. २५० अभिषेक विचार, पृ. ६आ, संपूर्ण, प्रले. मु. दीपविजय, प्र.ले.पु. सामान्य. मा.गु. सं., गद्य, आदि जन्माभिषेक महंत महिमा; अंतिः अग्र मेषिना मिलीने जाणवा. ४. पे. नाम. ४५ आगम सज्झाय, पृ. ७अ-७आ, संपूर्ण. पंचकल्याणकअभिषेक स्तवन, मु. लक्ष्मी, मा.गु., पद्य, आदि: जय केवल कमला केलि; अंति: व जिनवर जगतमंगल गाईए, ढाल ५. २. पे नाम. २५० अभिषेक गाथा, पृ. ६आ, संपूर्ण. प्रा., पद्य, आदि इंद समतायत्तीसा पारसी अंति: पंचवणे या संखा कमेणेसिं, गाथा-२. For Private and Personal Use Only Page #229 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir २१४ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची मा.गु., पद्य, आदि: व्यक्ता श्रोता योगथी शुभ; अंति: गुरुमुख सुणि सदहिये माल, गाथा-१३. ५. पे. नाम, ज्ञानपूजा श्लोक दोहा संग्रह, पृ. ७आ, संपूर्ण. मा.गु.,सं., पद्य, आदि: नाणं पहाणं नयसिद्धचक्रं; अंति: लोक मे पूजो ज्ञाननिधान, गाथा-३. ६.पे. नाम. ४५ आगम ज्ञानपूजा-कलश, पृ. ८अ, संपूर्ण. महावीरजिन स्तवन-ज्ञानदर्शनचारित्रसंवादरूप नयमतगर्भित, आ. लक्ष्मीसरि, मा.गु., पद्य, वि. १८२७, आदि: (-); अंति: मीसूरि पभणे संघने जयकार ए, प्रतिपूर्ण. ७. पे. नाम. ३४ अतिशयपूजाविधि स्तवन, पृ. ८अ-१०आ, अपूर्ण, पू.वि. प्रारंभ के पत्र हैं. २४ जिन स्तवन, वा. सकलचंद्र, मा.गु., पद्य, आदि: करि कच्छपी धरती कवि; अंति: (-), (पू.वि. अंतिम गाथा अपूर्ण तक है.) ११८२०९ (+) आराधना, मांगलिक श्लोक संग्रह व पंचदंडनी चौपाई, अपूर्ण, वि. १९११, मार्गशीर्ष शुक्ल, ३, मध्यम, पृ. ५०-११(१ से ११)=३९, कुल पे. ३, ले.स्थल. कृष्णगढ, प्रले. बालमुकुंद जोशी, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित., अ., (२४.५४१२, १४-१७X२०). १.पे. नाम. आराधना, पृ. १२अ-१५अ, अपूर्ण, पृ.वि. अंत के पत्र हैं., पे.वि. हंडी:आराधना. मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: मिच्छामि दुक्कडं, (पू.वि. अनंतजीव वर्णन अपूर्ण से है.) २. पे. नाम, मांगलिक श्लोक संग्रह, पृ. १५अ, संपूर्ण. श्लोक संग्रह-मांगलिक, प्रा.,मा.गु.,सं., पद्य, आदि: सरसत माता वीनउं मया करो; अंति: कहे सफल करो अवतार, श्लोक-२. ३. पे. नाम. पंचदंडनी चौपाई, पृ. १५अ-५०आ, संपूर्ण, पे.वि. हंडी:पंचड०. विक्रमादित्य पंचदंडसाधन चौपाई, उपा. लाभवर्द्धन पाठक, मा.गु., पद्य, वि. १७२३, आदि: श्रीसुखसंपद पूरवै; ___ अंति: ढाल ए पचासमी सुजगीस, ढाल-५०, गाथा-२७४. ११८२१०. साधुवंदना, अपूर्ण, वि. १९५१, माघ कृष्ण, ८, शुक्रवार, मध्यम, पृ. ७-२(१,६)=५, प्र.वि. प्रतिलेखन पुष्पिका पद्यात्मक है., प्र.ले.श्लो. (३४) पढण गुणन कुं पुस्तका, दे., (२४४१२, १५४३८). साधुवंदना, मु. श्रीदेव, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: देवमुनि ते संथुण्या, ढाल-१३, गाथा-३७७, (पू.वि. ढाल-३ गाथा-३ अपूर्ण तक व ढाल-९ गाथा-३ अपूर्ण से ढाल-११ गाथा-५ अपूर्ण तक नहीं है.) ११८२११. (+) विमलाचलतीर्थमाला स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १०, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२४४११.५, १०४२७-३०). शत्रुजय तीर्थमाला स्तवन, मु. अमतविजय, मा.गु., पद्य, वि. १८४०, आदि: विमलाचल वाल्हा वारु रे; अंति: साजे अमृतरंग सुहंकरु, ढाल-१०, गाथा-१५२. ११८२१२. (+-#) रहनेमिजीरो पंचढालियो, मरुदेवीमाता की स्तवन व केशीगौतमगणधर सज्झाय, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ.५, कुल पे. ३, प्र.वि. अशुद्ध पाठ-संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२५४१२.५, १६४२९). १. पे. नाम. रहनेमिजीरो पंचढालियो, पृ. १अ-४अ, संपूर्ण, वि. १९५४, चैत्र शुक्ल, ५, बुधवार, पे.वि. हुंडी:रहनेमी. रथनेमिराजिमती पंचढालियो, मु. रायचंद ऋषि, रा., पद्य, वि. १८५४, आदि: अरिहंत सिद्धने आरिया; अंति: चोमास मे मास आसोज मझार हो, ढाल-५. २. पे. नाम. मरुदेवीमाता का स्तवन, पृ. ४अ-५अ, संपूर्ण. मरुदेवीमाता सज्झाय, मु. रायचंद ऋषि, मा.गु., पद्य, वि. १८३७, आदि: नगर वनीता भली विराजे जगमग; अंति: भणता लील विलासो जी, गाथा-२६, (वि. गाथाक्रम भिन्न है.) ३. पे. नाम. केशीगौतमगणधर सज्झाय, पृ. ५अ-५आ, संपूर्ण. मु. रूपविजय, मा.गु., पद्य, आदि: ए दोय गणधर वरणमुं केशी; अंति: रूपविजय गुण गाय रे, गाथा-१६. ११८२१३. ज्योतिषसार सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ३७, पृ.वि. प्रारंभ के पत्र हैं., जैदे., (२६४१२, ५४३३-३९) ज्योतिषसार, आ. नरचंद्रसरि, सं., पद्य, आदि: अर्हतजिनं नत्वा; अंति: (-), (प.वि. श्लोक-२३९ अपूर्ण तक है.) मा For Private and Personal Use Only Page #230 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir २१५ हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२६ ज्योतिषसार-टबार्थ *, मा.गु., गद्य, आदि: माहरो श्रीअरिहंत; अंति: (-). ११८२१४. जन्मपत्री पद्धति, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ.५१, पृ.वि. प्रारंभ के पत्र हैं.,प्र.वि. हुंडी:जन्मपत्रीका., जैदे., (२५४११.५, १२४४८-५२). जन्मपत्री पद्धति, आ. हर्षकीर्तिसूरि, सं., पद्य, आदि: स्वस्तिश्रीऋद्धिवृद्; अंति: (-), (पू.वि. राजयोग वर्णन अपूर्ण तक ११८२१५. ६७ बोलनी सज्झाय व पच्चक्खाण पारवा गाथा, संपूर्ण, वि. १८९७, कार्तिक कृष्ण, ९, मध्यम, पृ. ६, कुल पे. २, ले.स्थल. जावद, प्रले. श्राव. एकलिंगचंद, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. हुंडी:पूजा., जैदे., (२४.५४११.५, १०४३४). १. पे. नाम. ६७ बोलनी सज्झाय, पृ. १अ-६आ, संपूर्ण. सम्यक्त्व ६७ बोल सज्झाय, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., पद्य, आदिः सुकृतवल्लि कादंबिनी; अंति: वाचक जस इम बोलइ जी, ढाल-१२, गाथा-६८. २. पे. नाम. पच्चक्खाण पारवा गाथा, पृ. ६आ, संपूर्ण. आवश्यकसूत्र-हिस्सा पच्चक्खाण पारणक गाथा, प्रा., पद्य, आदि: फासियं पालियं चेव; अंति: मिच्छामी दक्कडं११, गाथा-२. ११८२१६. सिंदूरप्रकर, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १०-१(१)=९, दे., (२६४११.५, ४४२८-३५). सिंदरप्रकर, आ. सोमप्रभसूरि, सं., पद्य, वि. १३वी, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. प्रथम पत्र नहीं है व प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., श्लोक-२ अपूर्ण से है व श्लोक-२६ तक लिखा है.) ११८२२०. (+#) अभिधानचिंतामणि नाममाला, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १४-५(१ से ५)=९, पृ.वि. बीच के पत्र हैं., प्र.वि. संशोधित. मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., (२५.५४१२, ११४२७). अभिधानचिंतामणि नाममाला, आ. हेमचंद्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., पद्य, वि. १३वी, आदि: (-); अंति: (-), (पृ.वि. कांड-३ श्लोक-८९ अपूर्ण से श्लोक-२३९ अपूर्ण तक है.) ११८२२४. (+) नवतत्त्व २७६ भेद विचार, ८ कर्म १५८ प्रकृति विचार व १४ गुणठाणा नामादि संग्रह, संपूर्ण, वि. १८७५, फाल्गुन कृष्ण, १०, श्रेष्ठ, पृ. ३९, कुल पे.१८, ले.स्थल. वीलूचर, प्रले. श्राव. पन्नालाल; पठ. श्राव. हठीसिंह वांगांणी, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२६४१२.५, १२-१५४३८-४२). १.पे. नाम. नवतत्त्व २७६ भेद विचार, पृ. १आ-५आ, संपूर्ण, पे.वि. हुंडी:नवतत्त्व. मा.गु., गद्य, आदि: जीवतत्त्वना १४ भेद; अंति: संवर निर्जरा मोक्ष आदरवा. २. पे. नाम, ८ कर्म १५८ प्रकृति विचार, पृ. ५आ-७आ, संपूर्ण. ८ कर्म १५८ प्रकति बोल, मा.ग., गद्य, आदि: तत्रादौ ज्ञानावरणीय कर्म; अंति: मुख थकी विचार समझियो. ३. पे. नाम. १४ गुणठाणा नाम, पृ. ७आ, संपूर्ण. १४ गुणस्थानक नाम, मा.गु., गद्य, आदि: मिथ्यात्व गुणठाणो १; अंति: गुणठाणे अयोगी गुणठाणे. ४. पे. नाम. १४ गुणस्थानकस्थिति काल, पृ. ७आ, संपूर्ण. १४ गुणस्थानक स्थितिकाल, मा.गु., गद्य, आदि: मिथ्यात्व गुण ठाणे जीव; अंति: वेर लागे स्थिति जाणवी. ५. पे. नाम. ४५ आगम नाम, पृ. ७आ-८आ, संपूर्ण. मा.गु., गद्य, आदि: आचारांग१ सुयगडांगर; अंति: (१)अनुयोगद्वारसूत्र, (२)सर्वमान वीउ थापणा नही. ६. पे. नाम. १४ अभ्यंतर गांठ, पृ. ८आ, संपूर्ण. मा.गु., गद्य, आदि: मिथ्यात्व १ स्त्रीवेद २; अंति: माया १३ लोभ १४. ७. पे. नाम. १० बाह्य ग्रंथि, पृ. ९अ, संपूर्ण. मा.गु., गद्य, आदि: क्षेत्र१ वास्तुक हवेली२; अंति: (१)दासी९ कुपदधातुपीतलादि१०, (२)भागी होय तेथी अवश्य छोडे. ८. पे. नाम. ५ परमेष्ठि १०८ गुण बोल, पृ. ९अ-१०आ, संपूर्ण. पंचपरमेष्ठि १०८ गुण बोल, मा.गु., गद्य, आदि: दिव्य१ सासोसाससुगंधर लोही; अंति: (१)मरणभयन करे२६ उपसर्गसहे२७, (२)जपे तो जीव अल्पसंसारी होव. For Private and Personal Use Only Page #231 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir २१६ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ९. पे. नाम. श्रावक २१ गुण नाम, पृ. १०आ, संपूर्ण. मा.गु., गद्य, आदि: धूर्तपणो न राखे१ पांचे; अंति: (१)परहितकारी रहे२१, (२)संसार में शोभा पामे. १०. पे. नाम. ३२ अनंतकायाना नाम, पृ. १०आ-११आ, संपूर्ण. __३२ अनंतकाय नाम, मा.गु., गद्य, आदि: सूरणकंद१ भूमिवीचकंदसर्व२; अंति: (१)आंविली३० रत्तालूपिडालू३१, (२)वीकणा होय इत्यादि लक्षण. ११. पे. नाम, २२ अभक्ष्य नाम, पृ. ११आ, संपूर्ण. मा.गु., गद्य, आदि: वड१ पीपल२ प्लक्षपीपलविशेष; अंति: चलितरस२१ बत्तीस अनंतकाय२२. १२. पे. नाम, बृहत्संग्रहणी-बोल संग्रह, पृ. ११आ-३६अ, संपूर्ण. संबद्ध, मा.गु., गद्य, आदि: असुरकुमार नागकुमार; अंति: एते वीस पदवी का नाम जाणवा. १३. पे. नाम. ६२ मार्गणा जीवादि ६ बोल, पृ. ३६अ-३८अ, संपूर्ण. मा.गु., को., आदि: (-); अंति: (-). १४. पे. नाम. १४ गुणठाणा जीवादि १० बोल यंत्र, पृ. ३८अ-३८आ, संपूर्ण. १४ गणस्थान जीवादि १० बोल यंत्र, मा.ग., को., आदिः (-); अंति: (-). १५. पे. नाम. जीवगुणयोगोपयोग १२० प्रकृति यंत्र, पृ. ३८आ, संपूर्ण. मा.गु., को., आदि: (-); अंति: (-). १६. पे. नाम. १४ गुणस्थानक बंधहेतु यंत्र, पृ. ३८आ-३९अ, संपूर्ण. मा.गु., को., आदि: (-); अंति: (-). १७. पे. नाम. ६२ मार्गणाद्वारे ५७ बंधहेतु यंत्र, पृ. ३९अ, संपूर्ण. मा.गु., को., आदि: (-); अंति: (-). १८. पे. नाम. ६२ मार्गणाद्वारे भावयंत्र, पृ. ३९अ, संपूर्ण. ___ मा.गु., को., आदि: (-); अंति: (-). ११८२२६. ८ कर्म १५८ प्रकृति विचार, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ८, दे., (२५४१२, १३४२९). ८ कर्म १५८ प्रकृति विचार, मा.गु., गद्य, आदि: आठ कर्म ते किसा किसा; अंति: देवगुरानी सेवा भक्ति करवी. ११८२२७. (+) कल्पसूत्र-व्याख्यानपद्धति, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १४, प्र.वि. हुंडी:कल्पार्थ०., संशोधित., दे., (२४.५४१२, ११४३०). कल्पसूत्र-बालावबोध, मु. शिवनिधान, मा.गु., गद्य, वि. १६८०, आदि: श्रीहर्षसार सगुरु चरणरजः; अंति: जयवंत प्रवर्तओ. ११८२२८. (+#) जसराज बावनी व श्लोक संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ९, कुल पे. २, प्रले. श्राव. उटारामजी सेवक, प्र.ले.प. सामान्य, प्र.वि. हुंडी:जसराज बावनी., संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२४.५४१२, १२४२५). १. पे. नाम. जसराज बावनी, पृ. १अ-९अ, संपूर्ण. अक्षरबावनी, मु. जसराजजी; मु. जिनहर्ष, पुहिं., पद्य, वि. १७३८, आदिः ॐकार अपार जगत आधार; अंति: गुण चितकु रिझाए है, गाथा-५७. २.पे. नाम. श्लोक संग्रह, पृ. ९अ, संपूर्ण. श्लोक संग्रह **, पुहिं.,प्रा.,मा.ग.,सं., पद्य, आदि: कांवक्ति कपोती; अंति: जयतो दखस्य नाशो भवेत्, श्लोक-२. ११८२३२. (+) केशवदास बावनी व सूक्तावली, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रावण कृष्ण, ११, मध्यम, पृ. १३, कुल पे. २, प्रले. श्राव. उटारामजी सेवक, प्र.ले.प. सामान्य, प्र.वि. हुंडी:केशवदासबावनी., संशोधित., दे., (२३.५४१२.५, १०-१३४२३-२९). १. पे. नाम. केशवदास बावनी, पृ. १आ-१२आ, संपूर्ण. अक्षरबावनी, मु. केशवदास, पुहि., पद्य, वि. १७३६, आदि: ॐकार सदा सुख देत; अंति: केसवदास सदा सुख पावै, गाथा-६२. For Private and Personal Use Only Page #232 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२६ www.kobatirth.org २. पे नाम सूक्तावली, पृ. १२आ- १३आ, संपूर्ण. सं., पद्य, आदि: राज्यं निःसचिवं गतप्रहरणं; अंति: प्रभवति प्राय प्रविष्टकतो, श्लोक-१२. Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ११८२३६. सतयुग चौपाई, संपूर्ण, वि. १९७६, फाल्गुन शुक्ल, १०, मध्यम, पृ. ७, ले. स्थल. सरदारशहर, प्रले. श्राव. चंदनमल दुग्गड, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. हुंडी : सतजुगीच, सतजु.च., दे., (२४X१२, २०x४३). सतयुग चौपाई, मु. खेतसी, पुहिं., पद्य, वि. १९०५, आदि: स्वाम खेतसी शोभता शिष्य; अंति: खेतसी बीदासर शहर मझारीरा, ढाल - १३, गाथा - २२५. ११८२३७. (+#) जन्मपत्री पद्धति, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २१३-८८ (३ से ५९, ६९ से ७४, ७६ से ८४,९१,१२५ से १३४,१६०,१७६ से १७७,२०८ से २०९ + १४(१ से २,६० से ६८, ७५, ८५ से ८६) = १३९, पू. वि. बीच-बीच व अंत के पत्र नहीं हैं. प्र. वि. पत्रांक लिखा न होने के कारण अनुमानित पत्रांक दिये गए हैं., संशोधित. मूल पाठ का अंश खंडित है, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे. (२४.५४११, ११४३२-३६). जन्मपत्री पद्धति, मु. मानसागर, सं., गद्य, आदि: स्वस्ति श्रीऋद्धिवृद अंति (-), (पू.वि. होरा चक्र अपूर्ण तक है व बीच-बीच के पाठांश नहीं हैं.) २१७ ११८२४२. गजसुखमाल की सज्झाय, सीमंधरजिन विनती पत्र व चिंतामणी छंद आदि संग्रह, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १०-१(६)=९, कुल पे. ४, दे., ( २४.५X११, १५X४२). १. पे. नाम. गजसुखमाल की सज्झाय, पृ. १अ ३अ, संपूर्ण, पठ. मु. जोधराज, प्र.ले.पु. सामान्य. गजसुकुमालमुनि सज्झाय, मु. रामकृष्ण ऋषि, मा.गु., पद्य, वि. १८६४, आदि: सोरठ देश में दुआरामत; अंतिः भावे ति सब सुख पावे, गाथा-२२. २. पे नाम. सीमंधरजिन विनती पत्र. पू. ३अ-५आ, संपूर्ण, कार्तिक शुक्ल, ८. क. नर, मा.गु., गद्य, आदि: स्वस्ति श्रीमहाविदेह; अंति: या विधी नौवत बाजै, पत्र-२. ३. पे. नाम. चिंतामणी छंद, पृ. ५आ-१०अ अपूर्ण, पू. वि. बीच का एक पत्र नहीं है. कार्तिक शुक्ल, १०. औपदेशिक छंद, रामचरण, मा.गु., पद्य, आदि: रामतीत राम गुरुदेवजी अति हुशियार रह सीख सतगुरु कही, (पू.वि. बीच का पाठ नहीं है. ) ४. पे. नाम चंदनमलयागिरि रास, पू. १०अ १०आ, अपूर्ण, पू. वि. प्रारंभ के पत्र हैं. भद्रसेन पुहिं., पद्य, आदि स्वस्ति श्रीविक्रम, अंति (-), (पू.वि. अध्याय-२ गाथा-८ अपूर्ण तक है.) ११८२४३. ३ चौवीसी २० विहरमान ४ शाश्वतजिन स्तवन व औषधमंत्रादि संग्रह, संपूर्ण वि. १९वी मध्यम, पू. १, कुल पे. २, मु. " , , प्र. वि. त्रिपाठ, जैये. (२५४११.५, १७४५१). १. पे नाम. ३ चौवीसी २० विहरमान ४ शाश्वतजिन स्तवन, पृ. १अ संपूर्ण, वा. लब्धिकल्लोल, मा.गु., पद्य, वि. १६५६, आदि सबल जिणेसर सुखदातार समरु; अंति पभणइ लब्धिकल्लोल मुणिंद, गाथा-२२. २. पे. नाम. औषधमंत्रादि संग्रह, पृ. १आ, संपूर्ण. प्रा., मा.गु.,सं., गद्य, आदि: विषय विचार नांहि तत्त्व; अंति: सर्व रोग जावे भूख लागे. ११८२४४. (+) आदिजिन लावणी, संपूर्ण, वि. १८७६, भाद्रपद कृष्ण, ७, मध्यम, पू. १, प्रले. मु. किसनचंद पठ श्रावि. रंभाबाई, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. हुंडी : रीषभदेव, ग्रंथ रचना के समीपवर्ती काल मे लिखित., जैदे., ( २४.५X११.५, १४४४०). आदिजिन लावणी, श्राव. रोड गीरासिंह कवि, पुहिं., पद्य, वि. १८६०, आदि: सरस्वती माता समकित दाता; अंतिः रोडा० उदैपुर माहे प्यारे, गावा- २०. ११८२४५. (+) सज्झाय संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १२-२ (१ से २) = १०, कुल पे. २२, प्र. वि. संशोधित., जैदे., (२५X११, For Private and Personal Use Only ११x२८). १. पे. नाम. गजसुकमाल सज्झाय, पू. ३अ, संपूर्ण. गजसुकुमालमुनि सज्झाय, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, आदि नयरी द्वारामती जाणिय अंति समयसुंदर तसु ध्यान, गाथा ६. Page #233 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir २१८ ला कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची २. पे. नाम, मेघकुमार सज्झाय, पृ. ३अ-३आ, संपूर्ण. म. अमर, मा.गु., पद्य, आदि: धारणी मनावे रे मेघ; अंति: वंदिता रे छूटे भव तणा पास, गाथा-५. ३. पे. नाम. पांचमीरी सज्झाय, पृ. ३आ-४अ, संपूर्ण. पंचमीतिथिपर्व सज्झाय, मु. कांतिविजय, मा.गु., पद्य, आदि: सहगुरु चरण पसाउले रे; अंति: कांतिविजय गुण गाय, गाथा-७. ४. पे. नाम, अष्टमी सज्झाय, पृ. ४अ, संपूर्ण. अष्टमीतिथिपर्व सज्झाय, उपा. देवविजय, मा.गु., पद्य, आदि: सरसति चरणे नमी आपो; अंति: वाचक देव सुजगीस, गाथा-७. ५. पे. नाम. एकादशी सज्झाय, पृ. ४अ-४आ, संपूर्ण. एकादशीतिथि सज्झाय, उपा. उदयरत्न, मा.गु., पद्य, आदि: आज एकादशी नणदल मौन; अंति: अविचल लीला लहस्ये, गाथा-७. ६. पे. नाम. राजुल सज्झाय, पृ. ४आ-५अ, संपूर्ण. रथनेमिराजिमती गीत, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, आदि: राजुल चालि रंगसु रे लाल; अंति: पाम्या बे अविचल लील, गाथा-५. ७. पे. नाम. नंदिषेण सज्झाय, पृ. ५अ-६अ, संपूर्ण. नंदिषेणमुनि सज्झाय, मु. मेरुविजय, मा.गु., पद्य, आदि: राजगृही नयरीनो वासी; अंति: साधु नै कुण तोले हो, ढाल-३, गाथा-१६. ८. पे. नाम. नंदिषेण सज्झाय, पृ. ६अ-६आ, संपूर्ण. नंदिषेणमुनि सज्झाय, क. चतुरंग, मा.गु., पद्य, आदि: मुनिवर महियल विचरे; अंति: सुकवि चतुर इम वीनवे, गाथा-६. ९. पे. नाम, थूलिभद्र सज्झाय, पृ. ६आ-७आ, संपूर्ण. स्थूलिभद्रमुनि सज्झाय, ग. लब्धिउदय, मा.गु., पद्य, आदि: मुनिवर रहण चोमासे; अंति: पाया दिन दिन तेज सवाया हो, गाथा-११. १०. पे. नाम. जंबू सज्झाय, पृ. ७आ-८अ, संपूर्ण. जंबूस्वामी सज्झाय, मु. सिद्धिविजय, मा.गु., पद्य, आदि: राजगृही नयरी वसे ऋषभदत्त; अंति: तणो सिद्धिविजय सुपसाया रे, गाथा-१५. ११. पे. नाम. प्रसन्नचंद्रऋषि सज्झाय, पृ. ८अ-८आ, संपूर्ण. प्रसन्नचंद्रराजर्षि सज्झाय, मु. ऋद्धिहर्ष, मा.गु., पद्य, आदि: प्रणमुं तुमारा पाय; अंति: जिण दीव्यते परतिख्य, गाथा-६. १२. पे. नाम. सुलसासतीनी सज्झाय, पृ. ८आ-९अ, संपूर्ण. सुलसाश्राविका सज्झाय, मु. कल्याणविमल, मा.गु., पद्य, आदि: धन धन सुलसा साची; अंति: बुध कल्याणविमल ___ गुण गाय रे, गाथा-१०. १३. पे. नाम. नेमराजिमती सज्झाय, पृ. ९अ-९आ, संपूर्ण. मु. वेलजी, मा.गु., पद्य, आदि: समुद्रविजय सुत नेम; अंति: नेम नमो हितकारी रे, गाथा-८. १४. पे. नाम. बलदेवमुनि सज्झाय, पृ. ९आ-१०अ, संपूर्ण. मु. सकल, मा.गु., पद्य, आदि: तुंगीआगीर शिखर सोहे; अंति: पुहता सकलमुनि सुख देइ रे, गाथा-८. १५. पे. नाम, अनाथी सज्झाय, पृ. १०अ-१०आ, संपूर्ण. अनाथीमुनि सज्झाय, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, आदि: श्रेणिक रयवाडि चढ्यो; अंति: तेहना पाय प्रणमे बे करजोड, गाथा-९. १६. पे. नाम. इलाचीपुत्र सज्झाय, पृ.१०आ-११अ, संपूर्ण. इलाचीकुमार सज्झाय, मु. लब्धिविजय, मा.गु., पद्य, आदि: नामेला पुत्र जाणीए धनदत्त; अंति: लब्धिविजय गुण गाय, गाथा-९. For Private and Personal Use Only Page #234 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir २१९ हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२६ १७. पे. नाम. आत्महितशिक्षा सज्झाय, पृ. ११अ-११आ, संपूर्ण. औपदेशिक सज्झाय, मु. लावण्यसमय, मा.गु., पद्य, वि. १६वी, आदि: सुधो धर्म मकिस विनय; अंति: सो चिरकाले नंदो रे, गाथा-९. १८. पे. नाम, लोभरी सज्झाय, पृ. ११आ, संपूर्ण. औपदेशिक सज्झाय-लोभोपरि, पंडित. भावसागर, मा.गु., पद्य, आदि: लोभ न करीये प्राणीया; अंति: भावसागर० सयल जगीस रे, गाथा-६. १९. पे. नाम. चोथव्रतरी सज्झाय, पृ.११आ-१२अ, संपूर्ण. शीयलव्रत सज्झाय, मु. कांतिविजय, मा.गु., पद्य, आदि: सरस्वती केरा रे चरण; अंति: सीयल पालो नरनारी, गाथा-८. २०. पे. नाम, क्रोधरी सज्झाय, पृ. १२अ-१२आ, संपूर्ण. औपदेशिक सज्झाय-क्रोधपरिहार, म. उदयरत्न, मा.गु., पद्य, आदि: कडुआरे फल छे क्रोधना; अंति: निरमली उपसम रस नाइ, गाथा-६. २१. पे. नाम. मानरी सज्झाय, पृ. १२आ, संपूर्ण. औपदेशिक सज्झाय-मानपरिहार, मु. उदयरत्न, मा.गु., पद्य, आदि: रे जीव मान न कीजीइ; अंति: मानने देजे हिवे देसोटो, गाथा-५. २२. पे. नाम. औपदेशिक सज्झाय-माया परिहार, पृ. १२आ, अपूर्ण, पृ.वि. प्रारंभ के पत्र हैं. मु. उदयरत्न, मा.गु., पद्य, आदि: समकितनो मूल जाणीये जी; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-२ अपूर्ण तक है.) ११८२४६. (+) गौतमपृच्छा सह बालावबोध कथा, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ६४-३(१ से ३)=६१, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२६४१२, ११४३८). गौतमपृच्छा, प्रा., पद्य, आदि: (-); अंति: पावए पुरिसो, प्रश्न-४८, गाथा-६४, (पृ.वि. अंत के पत्र हैं., गाथा-१३ से है.) गौतमपृच्छा-बालावबोध+कथा*, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), पृ.वि. बीच के पत्र हैं. ११८२४७. अभिधानचिंतामणि नाममाला, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ५०-१(१)=४९, पृ.वि. प्रथम एक व अंत के पत्र नहीं हैं., जैदे., (२५.५४११.५, १०४३६-४२). अभिधानचिंतामणि नाममाला, आ. हेमचंद्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., पद्य, वि. १३वी, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. कांड-१ श्लोक-१० अपूर्ण से कांड-४ श्लोक-४४ अपूर्ण तक है.) ११८२५० (+) नंदिषेणमुनि रास, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १०, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२४.५४१२, ९-१२४३०). नंदिषणमुनि रास, मु. ज्ञानसागर, मा.गु., पद्य, वि. १७२५, आदि: सुत सिद्धारथ भूपनो; अंति: ऋद्धि सिद्ध नित गेह रे, ढाल-१६, गाथा-२८४, ग्रं. ४२१. ११८२५१ (+) श्रावकप्रतिक्रमणसूत्र संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ७-१(३)=६, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२५.५४११, १४४२८-३२). श्रावकप्रतिक्रमणसूत्र संग्रह-श्वे.मू.पू.मान्य, संबद्ध, प्रा.,मा.गु., प+ग., आदि: णमो अरिहंताणं णमो; अंति: खमामि सव्वस्स अहयंपि, (पू.वि. जावंतिचेइआइसूत्र अपूर्ण से सामायिक पारवा विधि अपूर्ण तक नहीं है.) ११८२५२ (#) जैनसवैया शतक, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ३०-१५(१ से ७,११,१७,२०,२३ से २७)=१५, प्र.वि. हुंडी:जैनसत., मूल पाठ का अंश खंडित है, दे., (२६४१२, ८४३०). जैनसवैया शतक, श्राव. भूधरदास, पुहिं., पद्य, वि. १७८१, आदि: (-); अंति: बुधि वारको शतक संपून कीन, ___ सवैया-१०७, (पू.वि. आदिजिन स्तुति अपूर्ण से है व बीच-बीच के पाठ नहीं हैं.) ११८२५३. (+) महादंडक ३० द्वार, अपूर्ण, वि. १८७७, मध्यम, पृ. २६-४(६ से ८,११)=२२, प्र.वि. हुंडी:माहादंडनोपानो., संशोधित., जैदे., (२६४१२, १७४३३). महादंडक ३० द्वार, मा.गु., गद्य, आदि: दंडक १ लेस्या २ ठिती; अंति: समय उतकृष्टो मास प्रमाण, (पू.वि. गर्भज मनुष्य दंडक बोल अपूर्ण से ८४ लाख नरगावासा अपूर्ण व जंबूद्वीप द्वार अपूर्ण तक नहीं है.) पूण स सामायिक पारवा विणिमा; अंति: खमामि शतक, अपूर्ण, वि. २०वी For Private and Personal Use Only Page #235 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir २२० कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ११८२५५. रामविनोद, संपूर्ण, वि. १९१७, पौष शुक्ल, १, श्रेष्ठ, पृ. ९४, ले.स्थल. बीदासर, प्रले. मु. केवलचंद्र ऋषि, प्र.ले.पु. सामान्य, दे., (२५.५४११.५, १५४३५). रामविनोद, पं. रामचंद्र गणि, मा.गु., पद्य, वि. १७२०, आदि: सिद्धि बुद्धि दायक; अंति: (१)रामचंद्र० जा लगि धूरविचंद, (२)संख्या श्लोक प्रमाण ३३३२, समुद्देश-७, गाथा-१६१७, ग्रं. ३३३२.. ११८२५६. (+) अध्यात्म गीता सह बालावबोध, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ४९-१(१)-४८, प्र.वि. हुंडी:अध्यात्मगी., संशोधित., जैदे., (२५.५४१२, १३४२९-३३). अध्यात्म गीता, ग. देवचंद्र, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदिः (-); अंति: (-), (पृ.वि. बीच के पत्र हैं., गाथा-३ से ४७ तक है.) अध्यात्म गीता-बालावबोध, मु. कुंअरविजय, मा.गु., गद्य, वि. १८८२, आदि: (-); अंति: (-), पू.वि. बीच के पत्र हैं. ११८२५७. (+) रामविनोद, अपूर्ण, वि. १८वी, जीर्ण, पृ. २४, पू.वि. प्रारंभ के पत्र हैं., प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२५.५४११.५, १७X४४-५४). रामविनोद, पं. रामचंद्र गणि, मा.गु., पद्य, वि. १७२०, आदि: सिद्धि बुद्धि दायक; अंति: (-), (पू.वि. "कुद्ध अधिकार" दोहा अपूर्ण तक है.) ११८२५९. कल्पसूत्र सह टबार्थ व बालावबोध, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ६२-४०(१ से ४०)=२२, पू.वि. बीच के पत्र हैं., जैदे., (२६४११.५, ६-१२४३८-४२). कल्पसूत्र, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. स्वप्नशास्त्र कथन अपूर्ण से लोकांतिक देवों द्वारा दीक्षा हेतु प्रार्थना अपूर्ण तक है.) कल्पसूत्र-टबार्थ*, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: (-). कल्पसूत्र-बालावबोध*, मा.गु.,रा., गद्य, आदि: (-); अंति: (-). ११८२६१. (+) अभिधानचिंतामणि नाममाला-कांड १ से २, अपूर्ण, वि. १८७१, श्रावण कृष्ण, ५, मध्यम, पृ. १३-३(१,९ से १०)=१०, प्रले. मु. सुमतिविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. हुंडी:नाममाला, नाममा., पदच्छेद सूचक लकीरें., जैदे., (२५.५४११.५, १३४३३-४०). अभिधानचिंतामणि नाममाला, आ. हेमचंद्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., पद्य, वि. १३वी, आदि: (-); अंति: (-), (प्रतिअपूर्ण, पू.वि. कांड-१ श्लोक-२८ अपूर्ण तक व कांड-२ श्लोक-८ अपूर्ण से श्लोक-६९ अपूर्ण तक नहीं है.) ११८२६३. (+) कोकसार, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १५, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२५.५४१२, १३४४२-४५). कोकसार, आ. नर्बुदाचार्य, मा.गु., पद्य, वि. १६५६, आदि: मातंगी मति आपीये; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., प्रस्थासन वर्णन तक लिखा है.) ११८२६५ (+) शीलमंजरी चौपाई, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, प. ६, पृ.वि. प्रारंभ के पत्र हैं., प्र.वि. हंडी:शीलमंजरी., टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित., जैदे., (२४.५४१२.५, १५४३५). शीलमंजरी चौपाई, मु. खांजी, पुहिं., पद्य, आदि: प्रणमूं पारस चरण युग करत; अंति: (-), (पू.वि. ढाल-१५ दोहा-१ तक ११८२६६. (+) शाश्वतजिन स्तवन सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ५, प्र.वि. हुंडी:शाश्वतजि. कृति के अंत में टबार्थ की जगह अवचूरि लिखा है., पदच्छेद सूचक लकीरें-संशोधित., जैदे., (२५.५४११, ५४२५-२९). शाश्वतचैत्य स्तव, आ. देवेंद्रसूरि, प्रा., पद्य, आदि: सिरिउसहवद्धमाणं; अंति: भवियाण सिद्धिसुहं, गाथा-२४. शाश्वतचैत्य स्तव-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: श्रीऋषभ श्रीवर्धमान; अंति: हिउ भव्यनइ मुगतिनो सुख. ११८२६७. (+#) समयसार प्रकरण सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १८वी, जीर्ण, पृ. २३, लिख. श्रावि. अधूबाई, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. हुंडी:समयसा, समयसार., संशोधित. अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५४११.५, ५४३५). समयसार प्रकरण, आ. देवानंदसूरि, प्रा., गद्य, वि. १४६९, आदि: सव्वन्नु मोक्खमक्खंत; अंति: हेऊ सययं सिवं दिंतु, अध्याय-१०. For Private and Personal Use Only Page #236 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२६ www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir समयसार प्रकरण- टवार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: सर्वज्ञदेव मोक्ष अति सदाई सिव मोक्ष दिउं. ११८२७०. (+) कल्पसूत्र सह बालावबोध, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ११९-४५ (१ से ४,४७,५१,७६ से ११४)=७४, प्र. वि. संशोधित, जैवे. (२६११.५ १५४५४). "" कल्पसूत्र, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., गद्य, आदि: णमो अरिहंताणं० पढमं; अंति: (-), (पू.वि. बीच-बीच व अंत के पत्र नहीं हैं. स्थविरावली तक है व बीच-बीच के पाठांश नहीं हैं.) * , २२१ कल्पसूत्र - बालावबोध, मा.गु., रा., गद्य, आदि (-): अंति: (-), (पू.वि. प्रारंभ, बीच व अंत के पत्र नहीं हैं. कल्पसूत्र की मांडणी अपूर्ण से है, बीच-बीच व अंत के पाठ नहीं हैं.) ११८२७१. (+) ज्योतिषसार, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १७, पू. वि. प्रारंभ के पत्र हैं., प्र. वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित., जैदे., (२५X११, १०-१३X३२-३५). ज्योतिषसार, आ. नरचंद्रसूरि, सं., पद्य, आदि अर्हतजिनं नत्वा अति (-), (पू.वि. श्लोक-२३३ अपूर्ण तक है.) ११८२७३. भुवनदीपक, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ९, पू. वि. प्रारंभ के पत्र हैं., जैदे., (२५X११, ६X३८-४२). भुवनदीपक, आ. पद्मप्रभसूरि, सं., पद्य, वि. १३५. आदि सारस्वतं नमस्कृत्य; अंति: (-). (पू.बि. श्लोक-१६४ अपूर्ण " तक है.) ११८२७६. (+) यशोधर चरित्र, संपूर्ण, वि. १८२४, आषाढ़ शुक्ल, १२, बुधवार, श्रेष्ठ, पृ. ५३, ले.स्थल. कालाडहरा, प्रले. श्राव. केसरीसिंह (गुरु श्राव. उदयराम) गुपि श्राव, उदयराम मु. अनंतकीर्ति, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. हुंडी: यसो., पदच्छेद सूचक लकीरें अन्वय दर्शक अंक युक्त पाठ-संशोधित टिप्पण युक्त विशेष पाठ. कुल ग्रं. १०००, जैदे., ( २६.५x११.५, १०x३९). यशोधर चरित्र, आ. सकलकीर्ति भट्टारक, से., पद्य, आदि श्रीमंत वृषभं वंदे अति सर्वग्रंथस्य लेखकैः सर्ग-८, 3 लोक- ९६०. ११८२७८. कर्मविपाक नव्य कर्मग्रंथ सह टवार्थ, अपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पू. १, पू.वि. मात्र प्रथम पत्र है. जै. (२५.५४११, , " १३x३५-३९). कर्मविपाक नव्य कर्मग्रंथ १ आ. देवेंद्रसूरि, प्रा. पद्य वि. १३वी १४बी, आदि सिरिवीरजिणं वंदिय; अति: (-), " " (पू. वि. गाथा- ९ अपूर्ण तक है.) कर्मविपाक नव्य कर्मग्रंथ १-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: श्रीवीर जिनने चोवीसमां; अंति: (-). ११८२७९. (+#) देवसिराईप्रतिक्रमणसूत्र संग्रह-अंचलगच्छीय व १४ श्रावकनियम गाथा सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १६-१(१)=१५, कुल पे. २, प्र. वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित. अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, जैदे., (२५X११, ४X३९). १. पे. नाम. देवसिराईप्रतिक्रमणसूत्र संग्रह-अंचलगच्छीय सह टबार्थ, पृ. २अ-१६आ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र हैं. देवसिराई प्रतिक्रमणसूत्र संग्रह- अंचलगच्छीय, संबद्ध, गु., प्रा., मा.गु. सं., प+ग, आदि (-); अंति सिरसा मणसा मत्थएण वंदामि, (पू.वि. पंचेंदियसूत्र अपूर्ण से है.) For Private and Personal Use Only देवसिराईप्रतिक्रमणसूत्र संग्रह-अंचलगच्छीय-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: काय करी मस्तक करी वांद . २. पे. नाम. १४ श्रावकनियम गाथा सह टवार्थ, पृ. १६आ, अपूर्ण, पू. वि. प्रारंभ के पत्र हैं. १४ श्रावकनियम गाथा, प्रा., पद्य, आदि: सचित्त दव्व विगई वाहण; अंति: (-), (पू.वि. गाथा- १ अपूर्ण है.) १४ श्रावकनियम गाथा-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: सचित्त द्रव्य विगइ; अंति: (-). ११८२८० (+) साधुआवकप्रतिक्रमणसूत्र तपागच्छीय, अपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पू. ७-२ (१, ३) ५. पू.वि. प्रथम एक, बीच व अंत के पत्र नहीं हैं, प्र. वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-पदच्छेद सूचक लकीरें अन्वय दर्शक अंक युक्त पाठ-संशोधित., जैदे., (२५.५X११.५, ९२३). साधु श्रावक प्रतिक्रमणसूत्र तपागच्छीय, संबद्ध, प्रा., मा.गु., सं., पग, आदि (-); अंति: (-), (पू.वि. इरियावही सूत्र अपूर्ण से अतिचार आलोचनासूत्र तक है व बीच का पाठांश नहीं है.) Page #237 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir २२२ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ११८२८१ (+) दशवैकालिकसूत्र सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ५९-१५(२,४ से ११,१३ से १५,२०,२७,२९)+१(३)=४५, पू.वि. बीच-बीच व अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. हुंडी:दशवीकालिकसूत्रं., पदच्छेद सूचक लकीरे-संशोधित., जैदे., (२६४११, ५४३६). दशवैकालिकसूत्र, आ. शय्यंभवसूरि, प्रा., पद्य, वी. रवी, आदि: धम्मो मंगलमुक्किट्ठ; अंति: (-), (पू.वि. अध्ययन-९ तक है व बीच-बीच के पाठ नहीं हैं.) दशवैकालिकसूत्र-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: श्रीजिनधर्म उत्कृष्ट; अंति: (-). ११८२८२. (+) अंतकृद्दशांगसूत्र सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १७वी, जीर्ण, पृ. ४३, प्र.वि. हुंडी:अंतक्रीयते अतगड, अंतगड., पदच्छेद सूचक लकीरें-टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२५.५४११, ८४३८). अंतकृद्दशांगसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., गद्य, आदि: तेणं कालेणं तेणं समएणं; अंति: जहा नायाधम्मकहाणं, अध्याय-९२, ग्रं. ८९९. अंतकृद्दशांगसूत्र-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: तेणि कालि चउथइ आरि; अंति: न्याताधर्मकथा माहि छे तिम. ११८२८३. (+#) उपदेशमाला सह हेयोपादेया वृत्ति, संपूर्ण, वि. १६८५, कार्तिक शुक्ल, १३, मध्यम, पृ. १६७, प्र.वि. हुंडी:उपदेशमालावृत्ति., द्विपाठ-संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६.५४११.५, १७X६९). उपदेशमाला, ग. धर्मदासगणि, प्रा., पद्य, आदि: जगचूडामणिभूओ उसभो; अंति: दायव्वा बहुसुयाणं च, गाथा-५३९. उपदेशमाला-हेयोपादेया वृत्ति, ग. सिद्धर्षि गणि, सं., गद्य, वि. १०वी, आदि: हेयोपादेयार्थोपदेश; अंति: साधनपरः खलु जीवलोकः, ग्रं. ९५००. ११८२८४. (+) जीवाभिगमसूत्र, अपूर्ण, वि. १७वी, मध्यम, पृ. १२१-१(१)=१२०, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित., जैदे., (२६.५४११.५, १३४४१). जीवाभिगमसत्र, प्रा., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पृ.वि. प्रथम पत्र नहीं है व प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., प्रतिपत्ति-१ प्रारंभिक पाठ अपूर्ण से प्रतिपत्ति-३ वैमानिक उद्देशक-२ अपूर्ण तक लिखा है.) ११८२८५. चंदनमलयागिरि रास, अपूर्ण, वि. १७६१, श्रावण शुक्ल, ८, मध्यम, पृ. ८-१(२)=७, जैदे., (२५.५४११.५, १३४३४-३८). चंदनमलयागिरि रास, म. भद्रसेन, पुहिं., पद्य, आदि: स्वस्ति श्रीविक्रम; अंति: पुन्यतइ भइ सुवंछित भोग, अध्याय-५, गाथा-२००, (पू.वि. गाथा-१३ अपूर्ण से गाथा-३९ अपूर्ण तक नहीं है.) ११८२९२. कर्मविपाक नव्य कर्मग्रंथ सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १७वी, जीर्ण, पृ. ६, प्र.वि. हुंडी:कर्मग्रंथप्रथम, कर्मग्रंथटबार्थ. पत्रांक चिपके हुए हैं., जैदे., (२५४११, ६४५२). कर्मविपाक नव्य कर्मग्रंथ-१, आ. देवेंद्रसूरि, प्रा., पद्य, वि. १३वी-१४वी, आदि: सिरिवीरजिणं वंदिय; अंति: लिहिओ देविंदसूरिहिं, गाथा-६१, (वि. कृति के अंत में २ औपदेशिक श्लोक दिये हैं.) कर्मविपाक नव्य कर्मग्रंथ-१-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदिः (अपठनीय); अंति: (अपठनीय). ११८२९३. दानाधिकारे कयवन्नसेठ चतुप्पदी, संपूर्ण, वि. १८८५, आश्विन शुक्ल, ६, रविवार, मध्यम, पृ. १५, प्र.वि. हुंडी:कयवन्नाचो. श्रीपद्मप्रभुजी प्रसादात्., जैदे., (२५.५४११.५, १३४३९). कयवन्ना चौपाई, मु. जयतसी, मा.गु., पद्य, वि. १७२१, आदि: स्वस्त श्रीसुखसंपदादायक; अंति: विकसै धरम करण मन उलसै जी, ढाल-३१, गाथा-५५५.. ११८२९४. अंजनासुंदरी पवनंजयराजन चौपाई, अपूर्ण, वि. १८१०, पौष कृष्ण, ७, मध्यम, पृ. २४-६(१७ से २२)=१८, ले.स्थल. अस्यपुरनगर, प्रले. पं. मनरूपहर्ष (गुरु पं. नेमहर्ष); गुपि. पं. नेमहर्ष (गुरु पं. हेमहर्ष); पं. हेमहर्ष, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२५.५४११, १३४३०). अंजनासुंदरी रास, मु. पुण्यसागर, मा.गु., पद्य, वि. १६८९, आदि: गणधर गौतम प्रमुख; अंति: ऋद्धि वृद्धि मंगलमाल, खंड-३, गाथा-६३२, (पू.वि. खंड-३ ढाल-२ गाथा-१ अपूर्ण से ढाल-७ गाथा-१५ अपूर्ण तक नहीं है., वि. ढाल-२२) For Private and Personal Use Only Page #238 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२६ २२३ ११८३०० (+) कल्याणमंदिर स्तोत्र व लघुशांति, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १३-८(१ से ८)=५, कुल पे. २, प्रले. पं. कमलविजय (गुरु मु. कुशलविजय); गुपि. मु. कुशलविजय (गुरु मु. धर्मविजय-शिष्य); पठ. श्राव. वल्ली, प्र.ले.प. सामान्य, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित., जैदे., (२५.५४११,१०४३१). १. पे. नाम. कल्याणमंदिर स्तोत्र, पृ. ९अ-१२आ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र हैं. आ. सिद्धसेनदिवाकरसूरि, सं., पद्य, वि. १वी, आदि: (-); अंति: कुमुद० प्रपद्यंते, श्लोक-४४, (पू.वि. श्लोक-३ अपूर्ण से २. पे. नाम. लघुशांति, पृ. १२आ-१३आ, संपूर्ण. आ. मानदेवसूरि, सं., पद्य, आदि: शांति शांतिनिशांतं; अंति: सूरिः श्रीमानदेवश्च, श्लोक-१७. ११८३०१. (#) जैनीवैष्णवीयावनी जन्मपत्रीलेखनपद्धति, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. १, पू.वि. मात्र प्रथम पत्र है., प्र.वि. मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., (२५.५४१०.५, १५४४१). जैनीवैष्णवीयावनी जन्मपत्रीलेखनपद्धति, सं., पद्य, आदि: स्वस्ति श्रीसौख्यधात्री; अंति: (-), (पू.वि. श्लोक-८ अपूर्ण तक है.) ११८३०२ (#) विवाहपडल सह बालावबोध, अपूर्ण, वि. १८३७, पौष कृष्ण, ७, मंगलवार, मध्यम, पृ. २६-१(१)=२५, प्रले. मु. सुंदरहंस (गुरु पं. येष्टहंस); गुपि.पं. येष्टहंस (गुरु ग. राजेंद्रहंस); ग. राजेंद्रहंस (गुरु ग. कृपाहंस); पठ. शिवरुप (पिता शंभूजीत व्यास); गुपि. शंभूजीत व्यास, प्र.ले.पु. मध्यम, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५.५४११, ११४२८-३२). विवाहपडल, सं., पद्य, आदिः (-); अंति: अंतरं शेष लग्नयोः, श्लोक-१८८, (पूर्ण, पृ.वि. श्लोक-७ अपूर्ण से है.) विवाहपडल-बालावबोध, मु. अमरसुंदर, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंतिः सोमसुंदर० च्योइण विधि अमर, अपूर्ण. ११८३०४. नवतत्त्व प्रकरण का बोल, संपूर्ण, वि. १९४४, चैत्र शुक्ल, ११, श्रेष्ठ, पृ. १६, प्रले. आबामाडण खत्री; पठ. खत्री जीवननारण, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. हुंडी:नवतत्त्व., कुल ग्रं. १५५०, दे., (२५४११,१३४४४-४८). नवतत्त्व प्रकरण ६० गाथा-बोल, संबद्ध, मा.गु., गद्य, आदि: विवेकी श्रावक; अंति: ए वितरागनो मारग छे. ११८३०८. मानतुंगमानवती रास, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १४-१(६)=१३, पृ.वि. बीच व अंत के पत्र नहीं हैं.,प्र.वि. हुंडी:मानतुंग मानवती चौपई., जैदे., (२५४१२,१५४४२-५४). मानतंगमानवती रास-मषावादविरमण अधिकारे, म. मोहनविजय, मा.गु., पद्य, वि. १७६०, आदि: ऋषभजिणंद पदांबुजे; अंति: (-), (पू.वि. ढाल-२२ गाथा-१० तक है व ढाल-७ गाथा-१४ अपूर्ण से ढाल-९ गाथा-६ अपूर्ण तक नहीं है.) ११८३०९. स्तवनचौवीसी, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ६, दे., (२५.५४१२, १७४४४). स्तवनचौवीसी, श्राव. विनयचंद्र गोकलचंद कुमट, मा.गु., पद्य, वि. १९०६, आदि: श्रीआदिश्वर सामी हो; अंति: महास्तुति पूरण करी, स्तवन-२४, (वि. अंत में लिखी हुई कृति प्रायः अशुद्ध है.) ११८३१० (-#) चौभंगी रूपकार वचनिका संग्रह व ४५ आगमतप विधि, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ६-१(१)-५, कुल पे.२, पठ. श्राव. मगनलाल, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. अशुद्ध पाठ. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२६४१२, १९४३७). १.पे. नाम. चौभंगी रूपकार वचनिका संग्रह, पृ. २अ-६अ, अपूर्ण, पू.वि. प्रथम पत्र नहीं है., पे.वि. हुंडी:चोभंगी. पुहिं., गद्य, आदि: (-); अंति: (१)पोहंते तो उद्योत होवे, (२)तीनसे त्रष्ट पाखंडी जाणवा, (पू.वि. ४ दर्शन भांगा से है.) २. पे. नाम, ४५ आगमतप विधि, पृ. ६आ, संपूर्ण. मा.गु.,सं., गद्य, आदि: आचारंगजी २ का २८ करे; अंति: आवसकसूत्र का ८. ११८३११. (#) श्रीपाल रास, संपूर्ण, वि. १७९७, माघ शुक्ल, ९, मध्यम, पृ. १८, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६४१२, १०४३८). श्रीपाल रास-लघु, म. ज्ञानसागर, मा.गु., पद्य, वि. १५३१, आदि: करकमल जोडि करि सिद्ध; अंति: ज्ञान० भपति श्रीपाल, गाथा-३०२. For Private and Personal Use Only Page #239 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra २२४ www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १९१८३१२. आचारांगसूत्र सह टवार्थ, अपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पृ. १११-७५(१ से ७५)+१ (७८)=३७, प्र.वि. हुंडी:आचारांग. पत्रांक खंडित है., कुल ग्रं. १२०००, जैदे., (२६X१२, ५X४५). आचारांगसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., प+ग., आदि: (-); अंति: विसुद्धं जं चरणट्ठिओ साधू, अध्ययन-२५, (वि. १८१६, चैत्र शुक्ल, १३, शनिवार, पू. वि. श्रुतस्कंध - २ अध्ययन - १० अपूर्ण से है., ले. स्थल. वगडी, प्रले. पं. सुजाणविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, वि. श्रीसुविधिनाथजी प्रसादात्.) आचारांगसूत्र- टवार्थ, मा.गु.. गद्य, आदि (-) अंति: एतले मोक्ष परमार्थ जाणिवु, (ले. स्थल. बीलाडानगर, प्रले. पं. गुणविजय, प्र.ले.पु. सामान्य ) १९८३१३. भावनावलि, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ६ ले स्थल खंभालीया, पठ. सुंदर, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे. (२६४११.५, १५X३४), १२ भावना सज्झाय-बृहत्, उपा. जयसोम, मा.गु., पद्य, वि. १७०३, आदि: पास जिणेसर पाय नमी; अंति हेतु भवन भणी जेसलमेर मझार, ढाल १३, गाथा- १२५, ग्रं. २००. ११८३१४. (+) सिद्धांतषट्त्रिंशिका, अपूर्ण, वि. १८८८, मार्गशीर्ष कृष्ण, १०, श्रेष्ठ, पू. १५-४१ से ४) =११, ले. स्थल. सर्वाण्या, प्रले. मु. खुमाणचंद्र ऋषि (परंपरा मु. खुमाणचंद्र ऋषि, लोंकागच्छ), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. हुंडी: ध०च०पू०., संशोधित., जैदे., (२५.५X१२, १८४४३). सिद्धांतषट्त्रिंशिका, प्रा., मा.गु. सं., प+ग, आदि (-); अंति: श्रीसिद्धांतोक्त जाणिवा, अधिकार- ३६, (पू.वि. अधिकार-८ अपूर्ण से है.) जै.. ११८३१५ (+) नयचक्रसार का बालावबोध, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ७१, प्र. वि. संशोधित टिप्पण युक्त विशेष पाठ.. (२५X११.५, १०X३०-३६). नयचक्रसार-स्वोपज्ञ बालावबोध, ग. देवचंद्र, मा.गु., गद्य, वि. १८वी, आदि: प्रणम्य परमब्रह्म; अंति: लहिस्यै तत्त्वतरंग. ११८३१६. (+) संबोधपंचासिका की भाषा छढाल्यौ व औपदेशिक सज्झायादि संग्रह, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १९-१(३)=१८, कुल पे. ११, प्र. वि. पदच्छेद सूचक लकीरें. वे. (२६४१२, ८४२८). " "3 १. पे. नाम. संबोधपंचासिका की भाषा छढाल्यौ, पृ. १आ-६अ, अपूर्ण, पू.वि. बीच का एक पत्र नहीं है., पे. वि. हुंडी:छढा. संबोधपंचाशिका-पद्यानुवाद, जै.क. धानतराय, मा.गु., पद्य, वि. १७५८ आदि ॐकार मझारि पंच परमपद अतिः द्यानत० सुध कर लेहु, गाथा - ५२, (पू. वि. गाथा १८ अपूर्ण से गाथा-२८ अपूर्ण तक नहीं हैं.) २. पे. नाम. औपदेशिक सज्झाय, पृ. ६अ-७आ, संपूर्ण. गाथा - ५. मु. रूपचंद, मा.गु., पद्य, आदि: चेतन अचिरज भारी ये मेरे; अंति: रूपचंद ० हो ईस संसार मझारी, ३. पे. नाम. औपदेशिक सज्झाय, पृ. ७आ-८अ, संपूर्ण, पे.वि. हुंडी:जक. मु. हरिसिंह, मा.गु., पद्य, आदि: वंदौं श्रीअर्हंतदेव वंदौं; अंति: सिंहैहरि भवदोष विजोगवै, गाथा-६. ४. पे नाम औपदेशिक जकड़ी, पृ. ८अ ९आ, संपूर्ण, पे.वि. हुंडी: जक. औपदेशिक पद, जै.क. द्यानतराय, पुहिं., पद्म, आदि प्रथमदेव अरहंत मनाउं अंति: अब द्रष्टि सन्मुख पार है, चौपाई ५. " ५. पे. नाम. औपदेशिक जक्षडी, पृ. ९आ-११आ, संपूर्ण, पे. वि. हुंडी: जक्ष. औपदेशिक जकडी, मु. रामकिसन मा.गु., पद्य, आदि अरहंत चरण चितल्याउं पुनि अति: रामकिसन०किया ही सुखया इहौ, गाथा-१६. ६. पे नाम औपदेशिक सज्झाय, पू. ११ आ-१३अ, संपूर्ण, पे.वि. हुंडी: जख जै.. भूधरदास, मा.गु., पद्य, आदि अब मन मेरा वे सुनि सुनि अंति: भूवरदास रण इस भव वनमें. ७. पे. नाम औपदेशिक सज्झाय, पू. १३अ १४अ संपूर्ण, पे.वि. हुंडी जप, For Private and Personal Use Only मु. भूधर, पुर्हि, पद्य, आदि ई संसार क्षारसागर विचि; अंति: भुधर० दी मेरी वेदन खोई, गाथा १०. " ८. पे. नाम. विवेक खडी, पृ. १४-१५ अ, संपूर्ण, पे. वि. हुंडी ज.. विवेक जकडी, मु. रूपचंद, मा.गु., पद्य, आदि: वादि अनादि गुमायो जीव; अंति: रूपचंद० रत्नत्रये आराधी, गाथा-५. Page #240 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२६ www.kobatirth.org ९. पे नाम. ग्वानपचीसी, पृ. १५ अ १७अ, संपूर्ण, पे. वि. हुंडी : ग्या०प० ज्ञानपच्चीसी, मु. उदयकरण, पुहिं., पद्य, आदि: सुरनर तिरजग जोनि में; अंति: वुडावत आयुको उदैकरन कैहेत, गाथा - २५. १०. पे नाम. धना विनती, पृ. १७अ १८अ संपूर्ण, पे.वि. हुंडी : वी. घ. धन्नाकाबंदी सज्झाय, मु. तिलोकसी, मा.गु., पद्य, आदि श्रीजीनवाणी र धना अमीऐ: अंति: तिलोकचंद० गावौ मुधरि वैनसी, गाथा १६. ', १. पे. नाम. ३६ बोल थोकडो पू. १-५आ, संपूर्ण Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir " ११. पे. नाम. पार्श्वजिन स्तोत्र, पृ. १८अ - १९आ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. " जै.क. भूधरदास, पुहिं, पद्य, आदि करि जिन पूजा आठ विधि भाव; अंति (-), (पू.वि. गाथा १६ अपूर्ण तक है.) ११८३२९. (+) धर्मपरीक्षा हितकारण, संपूर्ण वि. १९वी श्रेष्ठ, पू. १०, प्र. वि. संशोधित पदच्छेद सूचक लकीरें, जै, (२५.५४१२, " १७४४०-४४). धर्मपरीक्षा वार्तिक, मा. गु, गद्य, आदि: कोइक भला शिष्य श्रीगुरुने अतिः एवचन अनुसारें करी छै १९८३२२. (*) ३६ बोल थोकडो व जिनकल्याणक नरकोद्योत वर्णन, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ५, कुल पे. २, प्र. वि. हुंडी : छत्रीस बोल थोकडो संशोधित. जैदे. (२६४११.५ १६x४७-५०). २२५ , प्रा., मा.गु., गद्य, आदि: पेले बोले भाव छ उदय भाव; अंति: कालिक तथा उतकालिक सूत्रनी, बोल- ३६. २. पे. नाम जिनकल्याणक नरकोद्योत वर्णन, पृ. ५आ, संपूर्ण. रा., गद्य, आदि प्रथम नरके छे प्रहर सूर्य अंतिः अवसरे मृतलोक मे आवें सही, (वि. यंत्र सहित है.) ११८३२५ (+) मलयसुंदरी चरित्र, अपूर्ण, वि. १९२८ पौष कृष्ण, १३, शुक्रवार, श्रेष्ठ, पू. ११० ४९ (१ से ४९ ) = ६१ ले स्थल. सीहोर, प्रले. पं. कस्तुरविजय गणि, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. संशोधित. वे. (२६१२, १३x४०). मलयसुंदरी रास, मु. कांतिविजय, मा.गु., पद्य, वि. १७७५, आदि: (-); अंति: ढाल एकाणुं कीधी रे, खंड-४ ढाल ९१, गाथा - १०५२, (पू.वि. खंड-३ से है.) ११८३२९ (4) औपदेशिक सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पृ. ११, प्र. वि. हुंडी: चेतर, मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., (२५.५X१२, ९x२३) For Private and Personal Use Only औपदेशिक सज्झाय, मु. रायचंद ऋषि, मा.गु., पद्य, वि. १८०८, आदि: श्रीजिण दे इसडो; अंति: चेत रे चेत तुं मानवी, गाथा - २४. ११८३३०. (+) १६ जिन स्तवन व आठ तीर्थंकर ढाल, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ३, कुल पे. २, प्र. वि. संशोधित., दे., (२४.५X११, ९X२१). १. पे. नाम. १६ जिन स्तवन, पृ. १अ २अ, संपूर्ण. मु. रायचंद ऋषि, मा.गु, पद्य, वि. १८३६, आदि रिषभ अजित संभवस्वामी; अंति रायचंद० सोला जिन सोवरणा, गाथा - ११. २. पे. नाम. आठ तीर्थंकर ढाल, पृ. २अ - ३आ, संपूर्ण. ८ जिन स्तवन- वर्ण प्रभातिषु, मु. रायचंद ऋषि, मा.गु., पद्य, वि. १८३६, आदि पोह उठ प्रभाते बंदु; अंति: रायचंद ० आठे जिन जपतां गाथा- १०. ११८३३१. महावीरजिन स्तवन, स्तुति व सज्झायादि संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ५, कुल पे. १७, जैदे., (२६X१२, १०-१४४४३). १. पे. नाम. महावीरजिन स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण. मु. उदयरत्न, मा.गु, पद्य, आदि सिद्धारथ राजानो नंदन अंति: उदयरत्न० श्रीमहावीर गाथा-६, २. पे. नाम. देवानंदामाता सज्झाय, पृ. १अ १आ, संपूर्ण. " उपा. सकलचंद्र गणि, पुहि, पद्य, आदि जीनवर रूप देखी मन हरखी अति सकलचंद० एतो मोरी अंमा, गाथा १२. ३. पे. नाम. नाकोडा पार्श्वनाथ, पृ. २अ संपूर्ण. Page #241 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra २२६ www.kobatirth.org कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची पार्श्वजिन पद- नाकोडामंडन, मु. कान, मा.गु., पद्य, आदि श्रीनाकोडा स्वांमी अंतर अंतिः प्रभुजी अर्ज करे छे कान, गाथा-३. ४. पे नाम. आगमपूजा स्तवन, पृ. २अ, संपूर्ण. पं. वीरविजय, मा.गु., पद्य, आदि आगमनी आशातना नवि अति रे हरे सुखमा ये मगन, गाथा-५, ५. पे. नाम. विमलाचलतीर्थ महिमा वर्णन, पृ. २अ - २आ, संपूर्ण. शत्रुंजयतीर्थ स्तवन- आशातनावर्जन, पं. वीरविजय, मा.गु., पद्य, आदि तीर्थंनी आसातना नवी करीई अति शुभवीर ० मंगल शीवमाला, गाथा-८. ६. पे नाम. शत्रुंजयतीर्थं स्तवन, पृ. २आ- ३अ, संपूर्ण Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir पंन्या. पद्मविजय, मा.गु., पद्य, आदि: जात्रा नवाणु करीए वि; अंति: पद्म कहै भव तरीयै, गाथा - १०. ७. पे नाम. पार्श्वजिन स्तवन, पृ. ३अ-३आ, संपूर्ण. मु. माणेकविजय, मा.गु., पद्य, आदि आवो आवो पासजी मुज मळीया र अति एम माणेकविजय गुण गाव, गाथा-८. ८. पे नाम. शत्रुंजयतीर्थ स्तुति, पृ. ३आ-४अ, संपूर्ण. आव ऋषभदास, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीशत्रुजे तीरथ अति: ऋषभदास गुण गाया गाथा- ४. ९. पे नाम. पार्श्वजिन स्तुति, पृ. ४-४आ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तुति-शंखेश्वर, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: शंखेश्वर पासजी पूजीए; अंति: नयविमल० वांछीत पूरती, गाथा-४. १०. पे नाम. शत्रुंजयतीर्थ स्तुति, पू. ४आ, संपूर्ण. मु. सौभाग्यविजय, मा.गु., पद्य, आदि: पुंडरिकमंडण पाय; अति भाग्य यो सुख, गाथा-१. ११. पे नाम. सुमतिजिन स्तुति, पृ. ४आ, संपूर्ण. मु. वीरविजय, मा.गु., पद्य, आदि: सुमति स्वर्ग दीये असुमंत अतिः रु वीर नमे महाकालिका गाथा १. १२. पे. नाम आदिजिन स्तवन, पृ. ४आ-५अ, संपूर्ण. आ. हीररत्नसूरि, पुहिं, पद्य, आदि ऐसा जिन रे जाकुं चउदराज अति हे करजोडी खरा दिल हे गाथा-६. " १३. पे. नाम. आदिजिन लावणी, पृ. ५अ, संपूर्ण. आदिजिन लावणी-केसरियाजी, मु. मूलचंद्र, पुहिं., पद्य, वि. १८६३, आदि: सुनीया बातां रांओ; अंतिः मूल० कुल्लकरक्काइः लावणी, गाथा- ९. १४. पे नाम. अष्टापदतीर्थ स्तवन, पृ. ५अ-५आ, संपूर्ण उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु, पद्य, आदि: मनडु अष्टापद मोह्यो अति जी ग्रह उगमते सुर जी गाथा ५. १५. पे. नाम. ज्योतिष श्लोक, पृ. ५आ, संपूर्ण. मा.गु.,सं., पद्य, आदि: धनीष्टा पंचके ग्रांमै; अंतिः प्रोक्तं कथातं पंचकं फलं, श्लोक - १. १६. पे. नाम. औपदेशिक सज्झाय, पृ. ५आ, संपूर्ण. औपदेशिक सज्झाय-कायाविषे, मा.गु., पद्य, आदि: भूलो मन भमरो तुं कांइं; अंति: उगारीइं लेखो साहेब हाथ, . गाथा-८. १७. पे नाम. नंदीश्वरद्वीप गणणु, पृ. ५आ, संपूर्ण. ५२ जिनालय-नंदीश्वरद्वीप गणणुं, मा.गु., गद्य, आदि: नंदीश्वर द्वीपनो गणु; अंति: जीनालयनुं गरणु गुणवानु छ. ११८३३२. (+) धर्मदत्तधनवती चौपाई, अपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १३, पू. वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र. वि. हुंडी : धर्म्मदत्त.., संशोधित., जैदे., (२५x१२, १४५०). धर्मदत्तधनवती चौपाई, मु. राम, मा.गु., पद्य, आदि: विघनहरन सुखहि करन जिनवर, अंति (-), (पू.वि. डाल- २३ गाथा-५ अपूर्ण तक है.) ११८३३६. (+#) हंसराजवत्सराज चौपाई, अपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ३४, पू. वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र. वि. संशोधित. मूल पाठ का अंश खंडित है अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे. (२५.५x११, ११-१५X३४-४०). 1 For Private and Personal Use Only Page #242 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२६ २२७ हंसराजवत्सराज चौपाई, आ. जिनोदयसूरि, मा.गु., पद्य, वि. १६८०, आदि: आदिसर आदे करी चोवीसे; अंति: (-), (पू.वि. ढाल-४६ गाथा-११ अपूर्ण तक है.) ११८३३७. (+) ललितांगकुमार रास, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १३, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं.,प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२५.५४११.५, १६४३७). ललितांगकुमार रास, मु. दानविजय, मा.गु., पद्य, वि. १७६१, आदि: सकल कुशलकमला सदन; अंति: (-), (पू.वि. ढाल-१५ गाथा-१३ अपूर्ण तक है.) ११८३३८. कलावतीसती चौपाई, चारमंगल रास, महाशतकश्रावक चौढालिया, अपूर्ण, वि. १८५२, भाद्रपद कृष्ण, २, मध्यम, पृ.७-२(१ से २)=५, कुल पे. ४, ले.स्थल. किशनगढ, प्रले. सा. लाछां आर्या; अन्य. सा. बालाजी; म्. आतमचंद; मु. सुरतरामजी, प्र.ले.पु. मध्यम, जैदे., (२५.५४१२, २२४५२). १.पे. नाम. कलावतीसती चौपाई, पृ. ३अ-३आ, अपूर्ण, पृ.वि. मात्र अंतिम पत्र है. मु. रायचंद ऋषि, मा.गु., पद्य, वि. १८३०, आदि: (-); अंति: मेडतेनगर चोमास, ढाल-१६, (पू.वि. ढाल-१२ गाथा-२ अपूर्ण से है.) २. पे. नाम. चारमंगल रास, पृ. ३आ-७अ, संपूर्ण. ४ मंगल रास, मु. जेमल ऋषि, रा., पद्य, आदि: अरिहंत सिद्ध साधु; अंति: आराधीया मुगत सुखां मै जाय, ढाल-४, गाथा-११०. ३. पे. नाम. महाशतकश्रावक चौढालिया, पृ. ७अ-७आ, संपूर्ण. रा., पद्य, आदि: तिणकालैने तिण समे नगरी; अंति: माहाविदेह जासी निखाणोजी, ढाल-४, गाथा-४४. ४. पे. नाम. १० बोल देवता, पृ. ७आ, संपूर्ण. मा.गु., गद्य, आदि: १० बोल देवता मनोहोय; अंति: दस सुभ परिणि परगम्या छइ. ११८३३९ (+) स्तवनचौवीसी, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ८-१(१)=७, पू.वि. बीच के पत्र हैं., प्र.वि. हुंडी:चौवीसी., टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२६४१२, १२४३१). स्तवनचौवीसी, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. संभवनाथ स्तवन गाथा-२ अपूर्ण से नेमिनाथ स्तवन गाथा-३ अपूर्ण तक है.) ११८३४० (+#) तपोधिकार, अपूर्ण, वि. १७३०, आश्विन शुक्ल, १३, जीर्ण, पृ. २३-१४(१ से १४)=९, प्रले. मु. जयतिलक (गुरु मु. पद्म, खरतरगच्छ); गुपि.मु. पद्म (गुरु उपा. कुशलधीर, खरतरगच्छ); उपा. कुशलधीर (गुरु मु. कल्याणलाभ, खरतरगच्छ), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. कर्ता के शिष्य द्वारा लिखित प्रत-ग्रंथ रचना के समीपवर्ती काल मे लिखित-संशोधित-पदच्छेद सूचक लकीरें. कुल ग्रं. १४१७, मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., (२५४११.५, १७४३९-४३). कृतकर्मराजर्षि चौपाई-तपोधिकार, उपा. कुशलधीर, मा.गु., पद्य, वि. १७२८, आदि: (-); अंति: कुशल गृह मंगलमाल, (पू.वि. ढाल-१७ गाथा-१ अपूर्ण से है.) ११८३४१ (+) भक्तामर स्तोत्र सह बालावबोध, कथा व मंत्राम्नाय र्ग, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ५५-१४(१,३७ से ४९) ४१, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२६४१२, १७४३०). भक्तामर स्तोत्र, आ. मानतुंगसूरि, सं., पद्य, आदि: भक्तामरप्रणतमौलि; अंति: (-), (पू.वि. बीच-बीच व अंत के पत्र नहीं हैं., श्लोक-४१ तक है व बीच-बीच के पाठांश नहीं हैं.) भक्तामर स्तोत्र-बालावबोध+कथा, मा.गु., गद्य, आदिः (-); अंति: (-), (पू.वि. प्रारंभ, बीच व अंत के पत्र नहीं हैं., बाण-मयूर कथा अपूर्ण से कथा-२६ अपूर्ण तक है व बीच-बीच का पाठांश नहीं है.) भक्तामर स्तोत्र-मंत्राम्नाय, संबद्ध, मा.गु.,सं., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), पृ.वि. प्रारंभ, बीच व अंत के पत्र नहीं हैं. ११८३४२. (#) कल्पसूत्र सह बालावबोध, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १७४-१४८(१ से १४५,१६७ से १६८,१७३)=२६, पू.वि. बीच के पत्र हैं., प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६.५४११.५, ९४२७). कल्पसूत्र, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. स्थविरावली सूत्र-२ अपूर्ण से सामाचारी सूत्र-२७ अपूर्ण तक है.) For Private and Personal Use Only Page #243 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir २२८ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची कल्पसूत्र-बालावबोध*, मा.गु.,रा., गद्य, आदि: (-); अंति: (-). ११८३४३ (+#) मृषावादविरमण अधिकारे मानतुंग मानवती चरित्र, संपूर्ण, वि. १८८२, फाल्गुन शुक्ल, ११, शुक्रवार, श्रेष्ठ, पृ. ३२, ले.स्थल. सिद्धपुर, प्रले. गोरजी रायचंद रणछोडजी; पठ. शुभहरिचंद; नानचंद, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५४१२, १५-१८४३७-४०). मानतुंगमानवती रास-मृषावादविरमण अधिकारे, मु. मोहनविजय, मा.गु., पद्य, वि. १७६०, आदि: प्रथम जिणंद पदांबुजें मन; अंति: घरिघरि मंगलमाला हे, ढाल-४७, गाथा-१०१५. ११८३४४. (+) ज्योतिषसार सह बालावबोध, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ३३-१३(१ से १०,१४,२९,३२)=२०, पृ.वि. बीच-बीच के पत्र हैं., प्र.वि. पंचपाठ-पदच्छेद सूचक लकीरे-संशोधित., जैदे., (२६४११.५, ५-१३४३७-४२). ज्योतिषसार, आ. नरचंद्रसूरि, सं., पद्य, आदिः (-); अंति: (-), (पू.वि. प्रकरण-१ राहुयंत्र अपूर्ण से प्रकरण-३ नक्षत्र वर्णन तक है व बीच-बीच के पाठांश नहीं हैं.) ज्योतिषसार-बालावबोध, मा.गु.,सं., गद्य, आदि: (-); अंति: (-). ११८३४६. राजप्रश्नीयसूत्र, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ६-१(५)=५, पृ.वि. बीच व अंत के पत्र नहीं हैं., जैदे., (२५.५४१२, ७X४३). राजप्रश्नीयसूत्र, प्रा., गद्य, आदि: तेणं कालेणं० आमलकप्प; अंति: (-), (प.वि. सूत्र-७ अपूर्ण तक है व बीच में 'जोयणाइवडंनि' से 'समणेणं भगवया' तक का पाठांश नहीं है.) ११८३४७. पद्मावतीदेवी पूजा, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १२, दे., (२५.५४११.५, ९४३०). पद्मावतीदेवी पूजा, सं., प+ग., आदि: पार्श्वनाथं नमस्कृत्य; अंति: पमावती० पूर्णार्घम्. ११८३४८. पृथवीकायना भेद, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, पू.वि. मात्र प्रथम पत्र है., जैदे., (२५४१२, ११४२७). ६ काय जीव उत्पत्ति आयुष्यादि विचार, मा.गु., गद्य, आदि: मुरडः माटीः हीगलुः हरतालः; अंति: (-), (पू.वि. पंचेद्रीयकाय अपूर्ण तक है.) ११८३५२. पंचाख्यान वार्तिक सह कथा संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ११-३(१ से २,४)=८, जैदे., (२५.५४१२, १८४४८-५३). पंचाख्यान वार्तिक, सं., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. प्रारंभ, बीच के पत्र नहीं हैं व प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., श्लोक-३ से है व श्लोक-२० तक लिखा है.) पंचाख्यान वार्तिक-कथा संग्रह, मा.ग., गद्य, आदिः (-); अंति: (-), प.वि. प्रारंभ, बीच के पत्र नहीं हैं व प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण. ११८३५५ (#) पाशाकेवली भाषा, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ६-१(१)=५, प्र.वि. मूल पाठ का अंश खंडित है, अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६४१२, १४४२९-३९). पाशाकेवली-भाषा, संबद्ध, मा.गु., गद्य, आदिः (-); अंति: अष्ट महासिद्धि होई, (पू.वि. संख्या-१३२ अपूर्ण से है.) ११८३५६. (+#) सम्यक्त्व कौमुदी कथा, संपूर्ण, वि. १५२८, चैत्र कृष्ण, ६, मध्यम, पृ. २०, प्रले. कृष्णा; अन्य. मु. सोमपंडित; मु. नेमिरत्न, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें. कुल ग्रं. १३१३, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, प्र.ले.श्लो. (२६०) यादृशं लिखितं दष्टं, जैदे., (२६.५४११, १९४४८-५२). सम्यक्त्वकौमदी, आ. जयशेखरसूरि, सं., प+ग., वि. १४५७, आदि: श्रीवर्धमानमानम्य; अंति: विपर्ययादिष्यते बंधः, ग्रं. १६७५. ११८३६४. सिद्धहेमशब्दानुशासन सह वृत्ति अष्टमअध्याय, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ५९, प्र.वि. कुल ग्रं. २४३२, जैदे., (२६.५४११.५, १५४३३-४३). सिद्धहेमशब्दानशासन-हिस्सा अष्टम अध्याय प्राकृत व्याकरण, आ. हेमचंद्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., गद्य, वि. ११९३, आदि: अथ प्राकृतम् बहुलम्; अंति: ततोह्या युष्म० उदयोश्चति, पाद-४, सूत्र-१११९. सिद्धहेमशब्दानशासन-हिस्सा अष्टम अध्याय प्राकृत व्याकरण की स्वोपज्ञ प्राकृतप्रकाश टीका, आ. हेमचंद्रसरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., गद्य, आदि: अथ शब्द आनंतर्यार्थो; अंति: कर्ताभ्युदयश्चेति, ग्रं. २१८५. For Private and Personal Use Only Page #244 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२६ ११८३६५. (+#) दशवैकालिकसूत्र व दशवैकालिकसूत्र की नियुक्ति की माहात्म्य गाथा, संपूर्ण, वि. १८४७, फाल्गुन, मध्यम, पृ. ३९, कुलपे, २, प्रले. अणंवराम, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ. मूल पाठ का अंश खंडित है, टीकादि का अंश नष्ट है, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जै, (२७४११, ६५५४). १. पे. नाम. दशवैकालिकसूत्र सह टबार्थ, पृ. १आ- ३९अ, संपूर्ण. दशवैकालिकसूत्र, आ. शय्यंभवसूरि, प्रा., पद्य, वी. २वी, आदि: धम्मो मंगलमुक्किट्ठे; अंतिः पुच्छा कहणा पवि संघे, अध्ययन १० चूलिका २. - दशवैकालिकसूत्र - टवार्थ* मा.गु., गद्य, आदि (१)धर्म उत्कृष्टओ मंगलिक, (२) धर्म दुर्गति पडतो; अति विचारणा करी ए सत्यवात. २. पे नाम. दशवैकालिकसूत्र की नियुक्ति का माहात्म्य गाथा, पू. ३९अ, संपूर्ण. दशवैकालिकसूत्र- नियुक्ति की माहात्म्य गाथा, प्रा., पद्य, आदि (अपठनीय) अंति: धम्मंमिय निच्चला होसु, गाथा - १५. 3 ११८३६६. (+) कल्पसूत्र सह टवार्थ व व्याख्यान+कथा, अपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पृ. १४२-४ (१,८२ से ८३, १२३) =१३८, प्र. वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ द्विपाठ. जैदे. (२६.५४११.५ ५.१८४३७-४५) " " कल्पसूत्र, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., गद्य, आदि: तेणं कालेणं तेणं; अंति: भुज्जो उवदंसेइ तिबेमि, व्याख्यान- ९, . १२९६ (पू.वि. बीच-बीच के पत्र नहीं हैं. बीच-बीच के पाठांश नहीं हैं.) " कल्पसूत्र - टवार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: ते वर्तमान अवसर्पिणी: अंति: आपणा शिष्यने कहे, पू.वि. बीच-बीच के पत्र नहीं हैं. २२९ " कल्पसूत्र व्याख्यान+कथा*, मा.गु.. गद्य, आदि (-) अति चोवीसमी समाचारी कही (पू.वि. प्रथम एक व बीच के पत्र नहीं हैं., अचेलक कल्प अपूर्ण से है व बीच बीच का पाठांश नहीं है.) १९८३६७. हरिवंश प्रबंध, अपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पृ. ५२-३३ (१ से ३०, ३६ से ३७, ३९) = १९, पू.वि. बीच-बीच के पत्र हैं., जैदे., " (२६X१२, २०x४० ). पांडव रास, आ. गुणसागरसूरि, मा.गु., पद्य, वि. १६७६, आदि (-) अंति: (-) (पू.वि. अधिकार- ३ ढाल रघुवंशी अपूर्ण से अधिकार-४ ढाल टोडाकी महेंदी में बाइहो अपूर्ण तक है.) १९८३६८. आनंदश्रावक संधि, संपूर्ण वि. १९वी मध्यम, पृ. ८. प्र. वि. कुल ग्रं. ३००, जैदे. (२६४१२, १५X४० ). 1 " आनंदश्रावक संधि, मु. श्रीसार, मा.गु., पद्य, वि. १९६८४, आदि: वर्द्धमानजिनवर चरण; अंति: पभणे मुनि श्रीसार, ढाल १५, गाथा - २५२. ११८३७९ (+) जिनेंद्रदेव पूजा, अपूर्ण, वि. १९९७, पौष कृष्ण, २, मध्यम, पृ. ११-३(१.३ से ४) ८ प्रले. परमसुख जयसवाल, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. अशुद्ध पाठ- पंचपाठ संशोधित टीकादि का अंश नष्ट है, प्र.ले. श्लो. (१४६३) भूल चुकजी कछु होई, (१४६४) बुद्धि थोरी नेहां बडौ, दे., ( २४.५X११.५, १०X३३). जिनपूजा विधि, प्रा. सं., प+ग, आदि (-); अति सिद्धि प्रियचंतुन, (पू.वि. बाह्याभ्यंतरसुचि" पाठांश से है व बीच के पाठांश नहीं हैं., वि. अंत में एक दोहा लिखा है.) For Private and Personal Use Only ११८३८०. (#) जंबूअध्ययन प्रकीर्णक सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ४५-३८ (१ से ३०, ३२, ३४ से ३९, ४१)=७, पू.वि. बीच-बीच के पत्र हैं., प्र. वि. मूल पाठ का अंश खंडित है, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५X११.५, ६x४१). जंबूअध्ययन प्रकीर्णक, ग. पद्मसुंदर, प्रा., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. उद्देशक-८ अपूर्ण से उद्देशक-१९ अपूर्ण तक है.) जंबू अध्ययन प्रकीर्णक-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अति: (-). ११८३८२. शालिभद्रमुनि चौपाई, अपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १७, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., जैदे., ( २६१२, १३x१६). शालिभद्रमुनि चौपाई, मु. मतिसार, मा.गु., पद्य, वि. १६७८, आदि: सासननायक समरियै; अंति: (-), (पू.वि. ढाल -२९ गाथा ४ अपूर्ण तक है.) Page #245 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra २३० www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १९८३८३ (+) सारस्वत धातुपाठ, संपूर्ण वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १३, प्र. वि. हुंडी धा०, संशोधित, जैदे. (२६.५X११.५, ११४३०-३३). , सारस्वत व्याकरण-धातुपाठ, संबद्ध, आ. हर्षकीर्तिसूरि, सं., पद्य वि. १६६३, आदि: श्रीसर्वज्ञ जिनं नत्वा; अति (१) निर्मितो नंदताच्चिरम्, (२) तस्य निर्मितो नताचिरं. ११८३८४. छ आरानां बोल व औपदेशिक दोहासंग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पू. ५, कुल पे. २. प्र. वि. हुंडी आरापत्र, श्री माहाविर प्रासादात्, जैदे., (२६.५X११.५, १३X३५-४०). १. पे. नाम. छ आरानां बोल, पू. १अ ५आ, संपूर्ण. ६ आरा बोल, मा.गु., गद्य, आदि दस कोडाकोड सागरोपमना, अंतिः जिनधरम करसे ते सुखी थासे, पं. १८०. २. पे. नाम. औपदेशिक दोहासंग्रह, पृ. ५आ, संपूर्ण. औपदेशिक दोहा संग्रह, पुहि., पद्य, आदि प्रीतप्रीत सहू को कहे; अति आनदमां तु जीवन का फल सोय, दोहा-५. ११८३८५. (+) वृत्तरत्नाकर की सुगमा वृत्ति, अपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ३०, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. प्र. वि. संशोधित टिप्पण युक्त विशेष पाठ, जैदे. (२६४१२, १५X३४-३८). . " वृत्तरत्नाकर-सुगमा वृत्ति, उपा. समयसुंदर गणि, सं., गद्य, वि. १६९४, आदि: पार्श्वनाथ जिनं नत्वा गणि; अंति: (-), (पू.वि. अध्याय-६ व्याख्या- ९ अपूर्ण तक है. ) १९८३८६. सारस्वत व्याकरण सह दीपिका टीका, अपूर्ण, वि. १७वी, श्रेष्ठ, पृ. १५५-२५ (१ से २५ ) + १ (१४६) = १३१, पू. वि. बीच के पत्र हैं., प्र. वि. पंचपाठ., जैदे., ( २६.५X१२, ४-१३X२१-२६). सरस्वतीसूत्र-प्रक्रिया सारस्वत व्याकरण, आ. अनुभूतिस्वरूप, सं., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. स्वरान्त नपुसकलिंग प्रकरण अपूर्ण से कृदंत प्रकरण अपूर्ण तक है.) सारस्वत व्याकरण- दीपिका टीका, आ. चंद्रकीर्तिसूरि, सं. गद्य वि. १६२३, आदि (-); अंति: (-) " 3 १९८३८९ (+) शालिभद्रमुनि चौपाई, अपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पू. ३३-३ (१,३, ८) = ३०, पू.वि. प्रथम एक बीच व अंत के पत्र नहीं हैं, प्र. वि. हुंडी: सालिभ, संशोधित, जैवे. (२५.५x१२, १०x२६-३०). शालिभद्रमुनि चौपाई, मु. मतिसार, मा.गु., पद्य, वि. १६७८, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. ढाल - १ गाथा-३ अपूर्ण ढाल- २६ तक है व बीच-बीच के पाठांश नहीं हैं.) १९८३९०. कुमारपास रास, अपूर्ण, वि. १६९७ आश्विन कृष्ण, १४, मध्यम, पू. १८५-४ (१३ से १६) = १८१, प्र. वि. कुल ग्रं. ५९००, जैवे. (२५.५x११, १३४४२-४५). For Private and Personal Use Only कुमारपाल रास, क. ऋषभदास संघवी, मा.गु., पद्य, वि. १६७०, आदि: सकल सिधि चरणे नमुं नमुं; अंति: बरदधरू नामथी नवि नधि पायु, गाथा ४९४९, (पू. वि. बीच के पाठांश नहीं हैं.) १९८३९५ (+) ८ योगदृष्टिगुण सज्झाय का बालावबोध, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ११, प्र. वि. संशोधित, जैदे. (२६.५४१२, १३४४०-४४). ८ योगदृष्टिगुण सज्झाय बालावबोध, मा.गु., गद्य, आदि: मनोवाक्काय योग; अंति: ग्रंथ कर्तानी प्रशंसा हैं. १९८३९६ (+) संयम प्रकरण, अपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ४३-१(१) ४२, पू.वि. प्रथम एक व अंत के पत्र नहीं हैं. प्र. वि. पदच्छेद सूचक लकीरें संधि सूचक चिह्न-टिप्पण युक्त विशेष पाठ, जैदे. (२७४१२, १३x४०). संयम प्रकरण, सं., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. श्लोक-१३ अपूर्ण से १२०३ अपूर्ण तक है.) १९८३९७ (+) कर्म्मविपाकसूत्र सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १८६१ चैत्र अधिकमास शुक्ल, ९, श्रेष्ठ, पृ. ६०, ले. स्थल हांसीनगर, प्र.वि. हुंडी:कर्मविपाक०. प्रारंभ व अंत के पत्र में अस्पष्ट कृति है., जैदे., ( २६.५X११, ७x४८-५२). विपाकसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., गद्य, आदि: तेणं कालेणं तेण समिएणं, अंतिः सेवं भंते सेवं भंते, श्रुतस्कंध - २ अध्ययन २०, ग्रं. १२५०. विपाकसूत्र - बार्थ, मा.गु., गद्य, आदि अधविपाकश्रुतमिति कः अंति इम्यार अध्ययन कह्या Page #246 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२६ २३१ ११८३९९ (+#) अभिधानचिंतामणि नाममाला की स्वोपज्ञ तत्त्वाभिधायिनी विवति, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १९२, प्र.वि. हुंडी:नाममालावृ०., टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित. कुल ग्रं. १००००, मूल पाठ का अंश खंडित है, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६४११, १५४५३). अभिधानचिंतामणि नाममाला-स्वोपज्ञ तत्त्वाभिधायिनी विवृति, आ. हेमचंद्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., गद्य, वि. १२१६, आदि: धर्मतीर्थकृतां वाचां; अंति: निपात्यंते पदे पदे. ११८४०० (+) कल्पसूत्र, संपूर्ण, वि. १८५५, श्रावण कृष्ण, ६, मध्यम, पृ. ५६, प्रले. पं. नयनानंद (गुरु पं. विवेककल्याण); गुपि.पं. विवेककल्याण (गुरु मु. जिनलाभसूरि); मु. जिनलाभसरि, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित. कुल ग्रं. १२१६, जैदे., (२५.५४११.५,११४२४-४३). कल्पसूत्र, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., गद्य, आदि: तेणं कालेणं तेणं; अंति: भुज्जो उवदंसेइ त्तिबेमि, व्याख्यान-९, ग्रं. १२१६. ११८४०२ (+) नारचंद्र ज्योतिष सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, प. ४४-२५(१,८ से ३०,३३)=१९, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२६४१२, ६x४१-४५). ज्योतिषसार, आ. नरचंद्रसूरि, सं., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पृ.वि. प्रारंभ, बीच व अंत के पत्र नहीं हैं., श्लोक-१० अपूर्ण होडाचक्र ९ अपूर्ण तक श्लोक ३३ अपूर्ण से श्लोक-३६७ के पश्चात् ताम्रघटी परिमाण- श्लोक-१३ अपूर्ण तक ज्योतिषसार-टबार्थ *, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. प्रारंभ, बीच व अंत के पत्र नहीं हैं., टबार्थ यत्र-तत्र लिखा है.) ११८४०४ (+#) पार्श्वजिन स्तोत्रादि संग्रह, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. २८-१९(१ से १९)=९, कुल पे. ५, प्र.वि. संशोधित. मूल पाठ का अंश खंडित है, दे., (२६.५४१२.५, ८४३१). १. पे. नाम. पार्श्वजिन स्तोत्र, प. २०अ-२०आ, अपर्ण, प.वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं. __ जै.क. भूधरदास, पुहिं., पद्य, आदि: (-); अंति: प्रभु सदा करौ विघनघन नास, गाथा-२२, (पू.वि. गाथा-१६ अपूर्ण से है.) २. पे. नाम. साधारणजिन विनती स्तवन, पृ. २०आ-२१अ, संपूर्ण, पे.वि. हुंडी:अ.बी. जै.क. भूधरदास, पुहिं., पद्य, आदि: अहो जगतगुरु एक सुणज्यो; अंति: हे प्रभु ढील न कीजै, गाथा-१२. ३. पे. नाम. भवनगुरुस्वामी की विनती, पृ. २१अ-२२आ, संपूर्ण, पे.वि. हुंडी:त्रि.भु. साधारणजिन विनती स्तवन, म. भधर, मा.गु., पद्य, आदि: त्रिभुवनगुरु स्वामीजी; अंति: निर्भय कीजीए जी, गाथा-१८, (वि. प्रतिलेखक ने गाथाक्रम नहीं दिया है.) ४. पे. नाम. १२ भावना, पृ. २२आ-२५आ, संपूर्ण, पे.वि. हुंडी:बारा., राजा. पुहिं., पद्य, आदि: राजा राना छत्रपति हाथिन; अंति: हिवही ध्यान तप जिनमतमांहि, गाथा-३४. ५. पे. नाम. लघुस्वयंभू स्तोत्र, पृ. २५आ-२८अ, संपूर्ण, पे.वि. हुंडी:स्वयं. सं., पद्य, आदि: येन स्वयं बोधमयेन लोका; अंति: सकल स्वर्गापवर्गास्थिते, श्लोक-२५. ११८४०८. (#) भलेना अर्थ, संपूर्ण, वि. १९१२, मार्गशीर्ष शुक्ल, ३, मध्यम, पृ. ५, ले.स्थल. नागोर, प्रले. पं. पुन्यविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२५.५४१२, १२४३४). भले विवरण-महावीरजिन पाठशालापंडित संवादगर्भित, मु. जगराम, मा.गु., गद्य, वि. १८३९, आदि: प्रभु नेशाले बैठा; अंति: पामस्यो इति तत्त्वं. ११८४१० (#) चंद्रकुमार वार्ता, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, प.७, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२६.५४१२, १२४२५-३०). चंद्रकुमार वार्ता, मा.गु., पद्य, आदि: समरु सरसती मात मनाय; अंति: कुंअर वात कही कविराय, गाथा-८७. ११८४१२. पिंडनियुक्ति, अपूर्ण, वि. १६७१, कार्तिक शुक्ल, ८, रविवार, मध्यम, पृ. २०-२(१ से २)=१८, ले.स्थल. पत्तन (पाटण), लिख. पं. ललितसागर (गुरु आ. गजसागरसूरि); गुपि. आ. गजसागरसूरि (अंचलगच्छ); अन्य. श्रावि. लालबाई; श्रावि. हर्षा; श्राव. भीमा; श्रावि. पूजा संघवी; श्राव. मांगी, प्र.ले.पु. विस्तृत, प्र.वि. हुंडी:पिंडनियुक्तिसूत्र., जैदे., (२७४११, १३४४८-५२). For Private and Personal Use Only Page #247 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra २३२ www.kobatirth.org कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची पिंsनिर्युक्ति, आ. भद्रवाहस्वामी, प्रा., पद्य, आदि (-); अति: विसोहिजुत्तस्स, गाथा ७१६ (पू.वि. गाथा ५७ अपूर्ण से है.) Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir १९८४१५ (+०) उक्तिरत्नाकर, संपूर्ण वि. १६५८, पौष शुक्ल १२, मध्यम, पृ. ९, ले. स्थल, जोधपुर, प्रले. मु. नलोदय प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-पदच्छेद सूचक लकीरें-संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६.५X११, १९X६०-६६ ). उक्तिरत्नाकर, उपा. साधुसुंदर, प्रा.सं., गद्य, आदि: स्मृत्वा श्रीभारतीं; अंति: मान्यश्चिरं नंदतु. ११८४१६_(+) वाक्यप्रकाश सह टीका, संपूर्ण, वि. १८वी मध्यम, पृ. ८. प्र. वि. पदच्छेद सूचक लकीरें अन्वय दर्शक अंक युक्त पाठ- पंचपाठ-संशोधित. जै.. (२६.५x११, १५४२२-३०). " वाक्यप्रकाश, ग. उदयधर्म, सं., पद्य, वि. १५०७, आदि: प्रणम्यात्मविदं; अंति: विहितो वाक्यप्रकाशोयम्, श्लोक-१२६. वाक्यप्रकाश- टीका, मु. हर्षकुल, सं., गद्य, वि. १५८०, आदि: श्रीमज्जिनेंद्रमानम्; अंति: हर्षकुलपंडितेन कृता. ११८४१७ (#) ऋषिमंडल प्रकरण-गाथा १-२ सह वृत्ति-खंड-२ आर्यरक्षित संबंध, अपूर्ण, वि. १६२६, ज्येष्ठ शुक्ल, १, सोमवार, मध्यम, पृ. २८-१७(११ से २७) = ११, प्र. वि. हुंडी ऋषिमंडलवृत्ति, मूल पाठ का अंश खंडित है, जैवे. (२७४११, १७x४८-५५)ऋषिमंडल प्रकरण, आ. धर्मघोषसूरि प्रा. पद्य वि. १४वी आदि भक्तिज्भरनमिरसुरवर अंति: (-), प्रतिअपूर्ण. " ', ऋषिमंडल प्रकरण- टीका, ग. शुभवर्धन, सं., गद्य, आदि: योभूद्युगादौशिवशुद्ध; अंति: (-), प्रतिअपूर्ण. १९८४१८. (+) हैमीनाममाला, अपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पू. १६-७ (१ से ७) = ९, पू. वि. बीच के पत्र हैं. प्र. वि. हुंडी हेमीनामा, संशोधित, जैवे. (२६४११. १५४४४). , अभिधानचिंतामणि नाममाला, आ. हेमचंद्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., पद्य, वि. १३वी, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. कांड- १ श्लोक ७९ से कांड-३ श्लोक-१५ अपूर्ण तक है.) १९८४१९ (+) बृहत्संग्रहणी सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १७-२ (२, ४) = १५, प्र. वि. पदच्छेद सूचक लकीरें टिप्पण युक्त विशेष पाठ- संशोधित., जैदे., (२५.५X११, ५X३८). बृहत्संग्रहणी, आ. चंद्रसूरि, प्रा., पद्य, बि. १२वी, आदि नमिठं अरिहंताई ठिइ अंति: (-), (पू.वि. बीच के पत्र नहीं हैं व प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण, गाथा-५ अपूर्ण से १६ अपूर्ण तक, २६ अपूर्ण से ३७ अपूर्ण तक नहीं है व गाथा १७१ तक लिखा है.) बृहत्संग्रहणी-टबार्थ *, मा.गु., गद्य, आदि: नमस्कार अरिहंता; अंति: लगइ न दोष प्रवर्त्तो, (पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., टवार्थ प्रारम्भिक भाग में यत्र-तत्र लिखा है.) ११८४२०. समवायांगसूत्र, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. १५. पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. प्र. वि. हुंडी: समवयांग, जैदे. (२६४११, १५X४३). समवायांगसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा. गद्य, आदि: सुयं मे आउ तेणं; अंति (-) (पू.वि. समवाय २९ गाथा-"अहेसत्तमाएपुढवी" तक है.) ११८४२१ (+०) आचारांगसूत्र, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. २१-१ (८) = २० प्र. वि. हुंडी आचारांगसूत्र, पदच्छेद सूचक लकीरें संशोधित. अक्षर मिट गए हैं, जैदे., (२६X११, १३x४२). आचारांगसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., प+ग, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. बीच-बीच के पत्र हैं., अध्ययन-१ उद्देशक-१ अपूर्ण पाठ-"मि त्तिबेमि" से उद्देशक-२ पाठ-"अंगारदाहेणावासेडझइ"तक व उद्देशक- ३ अपूर्ण पाठ-"इतिसेएरस्सद्वाए कुगइकम्माई से अध्ययन- ९ उद्देशक- २ गाथा ६ तक है.) ११८४२२. कर्पूरप्रकर सह बालावबोध, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. १३५-२९ (५८,८८ से ११५) + १ (५९) = १०७, जैदे., (२६.५x११, १४४३८-४५). कर्पूरप्रकर, मु. हरिसेन, सं., पद्य, आदि कर्पूरप्रकरः शमामृत, अंति: नेमिचरित्रकर्ता श्लोक-१७९, (पू.वि. बीच-बीच के पत्र नहीं हैं., बीच-बीच के पाठांश नहीं हैं.) For Private and Personal Use Only " Page #248 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२६ २३३ कर्पूरप्रकर-बालावबोध, उपा. मेरुसुंदर, मा.गु., गद्य, वि. १५वी, आदि: पार्श्वश्रिये सोस्तु; अंति: (-), (पू.वि. बीच-बीच के व अंतिम पत्र नहीं हैं., आर्यरक्षितसूरि कथा के पश्चात् पाठ-"भणणहारपुरुषनइ आहा" तक, महाबल कथा पाठ-"कंदमूलफलना आहार लोक करइ से पाठ-"इसिइनंदिशरीयाआग "तक व पाठ-"थकी दाहन पामिउ अपितु पामिउझि" से पाठ-"हरिकवइकर्पूरप्रकरसि" तक है.) ११८४२३. लीलावती रास, अपूर्ण, वि. १७९०, भाद्रपद शुक्ल, १०, बुधवार, मध्यम, पृ. १२-२(१ से २)=१०, प्रले. पं. कपूररत्न; पठ. पं. माणिक्यविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२६.५४११.५, १३४४६). लीलावतीसुमतिविलास रास, उपा. उदयरत्न, मा.गु., पद्य, वि. १७६७, आदि: (-); अंति: उदयरतन० सुरलीला जी, ___ ढाल-२१, गाथा-३५१, (पू.वि. ढाल-३ गाथा-५ अपूर्ण से है.) ११८४२४. (+#) वैदर्भी चौपाई, संपूर्ण, वि. १७९१, जीर्ण, पृ. ९, प्रले. सा. खमोजी, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित. मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., (२६.५४११, १५४३५). वैदर्भी चौपाई, म. प्रेमराज ऋषि, मा.गु., पद्य, आदि: जिणधर्म दीपतो रे करै धरम; अंति: पयडी चढे बलि नावे अवतार, ढाल-७, गाथा-२०९. १९८४२६. (#) उत्तराध्ययनसूत्र सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २०-१०(१ से ३,६ से १२)=१०, पृ.वि. बीच-बीच के पत्र हैं., प्र.वि. हुंडी;उत्तराध्ययन टबो., अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५.५४११, ५४४०-४५). उत्तराध्ययनसूत्र, मु. प्रत्येकबुद्ध, प्रा., प+ग., आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. अध्ययन-१ गाथा-२० अपूर्ण से अध्ययन-२ सूत्र-१९ अपूर्ण तक, अध्ययन-५ गाथा-७ अपूर्ण से अध्ययन-८ गाथा-२१ अपूर्ण तक है.) उत्तराध्ययनसूत्र-टबार्थ *, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: (-). ११८४२७. (+#) बृहत्कल्पसूत्र सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. १८वी, जीर्ण, पृ. ३५-७(१,२५ से ३०)=२८, पू.वि. बीच-बीच के पत्र हैं., प्र.वि. पत्रांक खंडित होने के कारण अनुमानित पत्र दिया गया है., पदच्छेद सूचक लकीरें-टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित. मूल पाठ का अंश खंडित है, टीकादि का अंश नष्ट है, जैदे., (२६४११, ५४४२-४८). बृहत्कल्पसूत्र, आ. भद्रबाहस्वामी, प्रा., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), (प.वि. बीच-बीच के पाठांश हैं.) बृहत्कल्पसूत्र-टबार्थ *, मा.गु., गद्य, आदिः (-); अंति: (-). ११८४२९ (#) बोल, विचार व थोकड़ादि संग्रह, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १८, कुल पे. ४८, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२७४११.५, १२४३७). १. पे. नाम, जंबूद्वीपमान विचार, पृ. १अ-२आ, संपूर्ण. जंबूद्वीपक्षेत्रविस्तारमान विचार, मा.गु., गद्य, आदि: प्रथम जंबूद्वीप, मान ५; अंति: अपईठांण पाथडो जांण छो. २. पे. नाम. पच्चीस देशनो विचार, पृ. २आ-३अ, संपूर्ण. साढापच्चीस आर्यदेश विचार, मा.गु., गद्य, आदि: मगधदेस १ राजग्रहीनगर; अंति: आर्य अर्द्ध अनार्य जाणवा. ३. पे. नाम, पच्चीस बोलना थोकड़ा, पृ. ३अ-४आ, संपूर्ण. २५ बोल थोकडा-जीवगती शरीरादि, मा.गु., गद्य, आदि: नरकगति १ तिर्यंचगति २; अंति: रमजना रंग समान लोभ नरकगति. ४. पे. नाम. पांच ज्योतिष देवता विचार, पृ. ४आ, संपूर्ण. ५ ज्योतिष देवता विचार, मा.गु., गद्य, आदि: चंद्रमा लवण समुद्रे सूर्य; अंति: ९०० जोअण ए रीते जाणवू. ५.पे. नाम. छः द्रव्य नाम, पृ. ४आ, संपूर्ण.. ६ द्रव्य नाम, मा.गु., गद्य, आदि: जीवद्रव १ अजीवद्रव २; अंति: श्यमान अट्ठा समयकाल विशेष. ६. पे. नाम. मनुष्य के छः प्रकार, पृ. ४आ-५अ, संपूर्ण. ६ प्रकार-मनुष्य, मा.गु., गद्य, आदि: समूर्छिम मनुष्य अकर्मभूमि; अंति: गर्भज मनुष्य कर्मभूमिना. ७. पे. नाम. छद्मस्थ के ६ प्रकार, पृ. ५अ, संपूर्ण. ६ प्रकार-छद्मस्थ, मा.गु., गद्य, आदि: १ वेदना समुद्धात २ कषाय; अंति: समुद्धात जाणवा छे. For Private and Personal Use Only Page #249 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir २३४ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ८. पे. नाम. ६ पर्याप्ति नाम, पृ. ५अ, संपूर्ण. मा.गु., गद्य, आदि: आहारपर्याप्ति १ शरीर; अंति: ६ पर्याप्ति हुई. ९. पे. नाम. छ: काय नाम व विवरण, पृ. ५अ-५आ, संपूर्ण. ६ काय जीव उत्पत्ति आयुष्यादि विचार, मा.गु., गद्य, आदि: पृथ्वीकाय २१ हजार वर्षायु; अंति: विजय कुंडी मनुष्यघणा छे. १०. पे. नाम, छ: लेश्या विवरण, पृ. ५आ, संपूर्ण. ६ लेश्या विचार, मा.गु., गद्य, आदि: कृष्णलेश्यानो धणी मरीने; अंति: नो धणी मरीने मोक्ष जाई. ११. पे. नाम. छ री नाम, पृ. ५आ, संपूर्ण. मा.गु., गद्य, आदि: सचित्त परिहारी १ सम्यक्त; अंति: पादचारी ५ ब्रह्मचारी ६. १२. पे. नाम. मनुष्यने ७०० नाडी, पृ. ५आ-६अ, संपूर्ण. मनुष्य की ७०० नाडी, मा.गु., गद्य, आदि: १६० नाडी नाभीथी मस्त; अंति: नपुंसकने६५० नाडी होइ. १३. पे. नाम. सप्तनय नाम, पृ. ६अ, संपूर्ण. सप्तनय विवरण-नैगमादि, मा.गु., गद्य, आदि: नैगम१ संग्रह२ व्यव; अंति: समभिरुढ ६ एवंभूता ७. १४. पे. नाम. ७ नर्क विचार, पृ. ६अ-१०अ, संपूर्ण. नारकी आयुमान देहमान विचार, मा.गु., गद्य, आदि: पहिलि नरके आउखु; अंति: जीवने शदाई शरीर हुई. १५. पे. नाम, नव प्रकार अनंता, पृ. १०अ, संपूर्ण. ९प्रकार अनंता, मा.गु., गद्य, आदि: सत्र मांहे नव अनंता; अंति: नवमै अनंते वाली. १६. पे. नाम.९ प्रकार समकित, पृ. १०अ-११अ, संपूर्ण. ९ सम्यक्त्व प्रकार, मा.गु., गद्य, आदि: प्रथम द्रव्य समकित १ भाव; अंति: समकितने अभव्यने कहीइं. १७. पे. नाम. दस प्रकार स्थविर, पृ. ११अ, संपूर्ण. १० प्रकार के स्थविर, मा.गु., गद्य, आदि: ग्रामस्थविर १ नगरस्थविर २; अंति: जातिस्थविर ८ वर्षस्थविर ९. १८. पे. नाम, दस वाना छद्मस्थ न देखइ, पृ. ११अ, संपूर्ण. १० वाना छद्मस्थ न देखे, मा.गु., गद्य, आदि: धर्मास्तिकाय १ अधर्मास्ति; अंति: दसवाना छद्मस्थ न देखइ. १९. पे. नाम. दस प्रकारे जीवना परिणाम, पृ. ११अ, संपूर्ण. १० प्रकार जीवपरिणाम, प्रा., गद्य, आदि: गइ परिणामे१ इंदि; अंति: रित्त प०९ वेद प० १०. २०. पे. नाम. सम्यग्दृष्टि, देशविरति व सर्वविरति के ११ बोल, पृ. ११आ, संपूर्ण. सम्यग्दृष्टि, देशविरति व सर्वविरति ११ बोल, मा.गु., गद्य, आदि: विधिवाद जे वीतरागे इम; अंति: ते निश्चयवाद पक्ष. २१. पे. नाम, मनुष्य के १२ संपदा, पृ. ११आ-१२अ, संपूर्ण. १२ संपदा-मनुष्य की, मा.गु., गद्य, आदि: मनुष्यपणओ१ आर्य; अंति: मनुष्यने१२ संपदा कही. २२. पे. नाम. अरिहंत के १२ गुण, पृ. १२अ, संपूर्ण. १२ गुण अरिहंत, मा.गु.,सं., गद्य, आदि: देहमान अधिकाररुप १; अंति: मोहनी११ अंतराय१२, अंक-१२. २३. पे. नाम. १२ देवलोक के देवताओं का आयुमान, पृ. १२अ-१२आ, संपूर्ण. देवलोक देहमान-आयुमान विचार, मा.गु., गद्य, आदि: सुधर्मदेवलोक जघन्य आयु; अंति: आ० ज० २१ उ० २२ सागरोपम. २४. पे. नाम. बारह देवलोक विमान, पृ. १२आ, संपूर्ण. १२ देवलोक विमान, मा.गु., गद्य, आदि: १ देव० सोधर्मदेव० छत्रीस; अंति: ए ठाणांगे अधिकार छे. २५. पे. नाम, बारह पर्षदा विचार, पृ. १२आ, संपूर्ण. १२ पर्षदा विचार, मा.गु., गद्य, आदि: महावीरने ८ देवतानीज मिली; अंति: तीर्थंकरने १२ पर्षदा मिली. २६. पे. नाम, २४ जिन समोसरण विवरण, पृ. १२आ-१३अ, संपूर्ण. २४ जिन समवसरणमान विवरण, मा.गु., गद्य, आदि: ऋषभदेवने १२ जोजन समो; अंति: अट्ठमोए प्राभृत वचन छै. For Private and Personal Use Only Page #250 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२६ २७. पे. नाम. बारह व्रत-विवरण, पृ. १३अ, संपूर्ण. १२ व्रत विचार, मा.गु., गद्य, आदि: बारव्रत पांच पांच अतिचार; अंति: मिलिने १२४ हुई अतिचार. २८. पे. नाम. १२ जाति नाम, पृ. १३अ, संपूर्ण. साढीबारा न्यात नाम, मा.गु., गद्य, आदि: श्रीमाली १ ओशवाल २; अंति: महेंसरी एवं अर्द्ध जाति. २९. पे. नाम. चौद गुणस्थानक नाम, पृ. १३अ-१३आ, संपूर्ण. १४ गणस्थानक नाम, मा.गु., गद्य, आदि: पहिलो मिथ्यात्व गुणठाना; अंति: अंतर्मुहर्त अयोगी. ३०. पे. नाम. चौद अभ्यंतर, पृ. १३आ, संपूर्ण.. १४ अभ्यंतर गांठ, मा.गु., गद्य, आदि: मिथ्यात्व १ स्त्रीवेद २; अंति: माया १३ लोभ १४. ३१. पे. नाम. १५ योग विचार, पृ. १३आ-१४अ, संपूर्ण. १५ योग नाम-मनवचनकाया, मा.गु., गद्य, आदि: साची वस्तु मन चिंतवे; अंति: आहारक काय योग हुई. ३२. पे. नाम, १५ कर्मभूमि नाम, पृ. १४अ, संपूर्ण.. मा.गु., गद्य, आदि: तीन क्षेत्र जंबूद्वीप; अंति: विदेह एवं ६ सर्व मिली १५. ३३. पे. नाम. १८ दोष रहित भावचारित्री, पृ. १४आ, संपूर्ण. १८ दोष रहित दीक्षार्थी, मा.गु., गद्य, आदि: अठारै दोष रहित भाव; अंति: पिण दीक्षा न सूझै. ३४. पे. नाम. जीवदया, पृ. १४आ-१५अ, संपूर्ण. सवाविश्वा जीवदया गाथा-अर्थ, मा.गु., गद्य, आदि: जीवना बि भेद सूक्ष्म १; अंति: विश्वानी जीवदया पाले. ३५. पे. नाम.५ इंद्रिय २७ विषय गाथा, पृ. १५अ, संपूर्ण. प्रा., पद्य, आदि: पंचक्खीनासयादोवि; अंति: सत्तावीसं च विन्नेया, गाथा-१. ३६. पे. नाम. २३ जीव नाम सह शब्दार्थ, पृ. १५अ-१५आ, संपूर्ण. २३ जीव नाम, प्रा., गद्य, आदि: जीवेति वा पाणेति वा; अंति: अंतरिक्खेतवा २३, (वि. इन जीवों के नाम जीवाजीवाभिगमसूत्र में लिखे हैं.) २३ जीव नाम-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: मरे नही ते भणी जीव सासो; अंति: व्यापी ते माहि रहे ते भणी. ३७. पे. नाम. चौवीस दंडक नाम, पृ. १५आ-१६अ, संपूर्ण. २४ दंडक नाम गति-आगति विचार, मा.गु., गद्य, आदि: नारकी १ असुरकुमार; अंति: गर्भजमनुष्य २३ तिर्यंच २४. ३८. पे. नाम. अठाईस लब्धि नाम, पृ. १६अ-१७अ, संपूर्ण. २८ लब्धि नाम, मा.गु., गद्य, आदि: जे ऋषीसरने हस्तादिक; अंति: ते पुलाक लबधी कहिइ. ३९. पे. नाम. अनंतचतुष्ट्य नाम, पृ. १७अ, संपूर्ण. अनंत चतुष्टय नाम, मा.गु., गद्य, आदि: अनंतदर्शन १ अनंतज्ञान २; अंति: अनंतवीर्य ३ अनंतसुख ४. ४०. पे. नाम, भारतीय मास नाम, पृ. १७अ, संपूर्ण. १२ मास नाम, मा.ग., गद्य, आदि: श्रावण १ भाद्रवो २ आसो ३; अंति: आसाढ ४ ए मास उष्णकाल. ४१. पे. नाम, सचित अचित काल निर्णय, पृ. १७अ-१७आ, संपूर्ण. सचित्त अचित्त वस्तु काल निर्णय, मा.गु., गद्य, आदि: रांध्युविदल प्रहर ४ रहइं; अंति: निफलाजलमाणंमि. ४२. पे. नाम. षद्रव्य नाम, पृ. १७आ, संपूर्ण. ६ द्रव्य विचार, मा.गु., गद्य, आदि: धर्मास्तिकाय१ अधर्मा; अंति: परमाणुं ५ जीवास्तिकाय ६. ४३. पे. नाम. तेर काठिया नाम, पृ. १७आ, संपूर्ण. १३ काठिया नाम, मा.गु., गद्य, आदि: आलस १ मोह २ अवन्ना ३; अंति: तीव्र विषयाभिलाष. ४४. पे. नाम. धर्मप्राप्ति के १८ प्रकार, पृ. १७आ-१८अ, संपूर्ण. १८ प्रकार-धर्मप्राप्ति, मा.गु., गद्य, आदि: लज्जा थकी धर्म पामे; अंति: वैराग्यथकी जंबूस्वामीवत्. ४५. पे. नाम, २१ बोल सबल दोष, पृ. १८अ, संपूर्ण. २१ बोल-सबल दोष, मा.गु., गद्य, आदि: हस्तकर्म करै तो सबल दोष; अंति: सीतोदग भोगवइ२१. For Private and Personal Use Only Page #251 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir २३६ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ४६. पे. नाम. सारसिद्धांत विचार-श्लोक ४, पृ. १८अ-१८आ, संपूर्ण. रत्नसंचय, आ. हर्षनिधानसूरि, प्रा., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), प्रतिपूर्ण. ४७. पे. नाम. अढार भार वनस्पति, पृ. १८आ, संपूर्ण. १८ भार वनस्पति मान, मा.गु.,सं., गद्य, आदि: अपुप्फितानी २ चत्वारि; अंति: १८ भार वनस्पतिनो परिमाण. ४८. पे. नाम. अढार दोष रहित भगवंत, पृ. १८आ, अपूर्ण, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. १८ दोषरहित अरिहंत परमात्मा, पुहिं., गद्य, आदि: दानांतराय१ लाभांतराय; अंति: (-), (पू.वि. वीर्यांतराय तक है.) ११८४३१ (+) ज्योतिषसार सह टिप्पण, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. १०, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित., जैदे., (२६४११.५, १०-१३४३२-३९). ज्योतिषसार, आ. नरचंद्रसूरि, सं., पद्य, आदि: अर्हतजिनं नत्वा; अंति: (-), (पू.वि. श्लोक-१०४ अपूर्ण तक है.) ज्योतिषसार-यंत्रकोद्धार टिप्पण, आ. सागरचंद्रसूरि, सं., गद्य, आदि: सरस्वतीं नमस्कृत्य; अंति: (-). ११८४३५. चंदनबालासती चौपाई व सोमसुंदरसूरि गहुंली, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ५, कुल पे. २, जैदे., (२६४११.५, १५४४१-४६). १.पे. नाम. चंदनबालासती चौपाई, पृ. १अ-५आ, संपूर्ण, वि. १८वी, पे.वि. पुष्पिका में "संवत-१४१०१ कार्तिक वदि" लिखा श्राव. देपाल भोजक, मा.गु., पद्य, आदि: वीरजिणवर पाय पणमेवि; अंति: तीह नरनारी अफला फलइ, गाथा-१४३. २. पे. नाम. सोमसुंदरसूरि गुरुगुण गहुंली, पृ. ५आ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. मा.गु., पद्य, आदि: ऐसाजणसी कुलि अवतरीउए; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-६ अपूर्ण तक है.) ११८४३९ (+#) शांतिजिन चरित्र, अपूर्ण, वि. १७वी, मध्यम, पृ. ८३-४१(१ से ४०,६५)=४२, पृ.वि. बीच-बीच के पत्र हैं., प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरे-संशोधित. मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., (२६.५४११, १९४४८-५२). शांतिजिन चरित्र, सं., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. सर्ग-५ श्लोक-१४ से सर्ग-७ श्लोक-३९१ अपूर्ण तक है व सर्ग-६ श्लोक-३३६ अपूर्ण से ३९३ अपूर्ण तक नहीं है.) ११८४४० (+) सारस्वतव्याकरण की टीका, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ८७, प्र.वि. हुंडी:चंद्रकीर्ति., पदच्छेद सूचक लकीरें-संशोधित., जैदे., (२७४११.५, १४-१८४४४-७०). सारस्वत व्याकरण-दीपिका टीका, आ. चंद्रकीर्तिसूरि, सं., गद्य, वि. १६२३, आदि: नमोस्तु सर्वकल्याण; अंति: वभूव सुमनोहरम्, वृत्ति-३, ग्रं. ७५००. ११८४४३. धन्नाश्री कंडलिया व गीसती कंडलिया, संपूर्ण, वि. १९४५, माघ शुक्ल, १३, श्रेष्ठ, पृ. ५, कुल पे. २, ले.स्थल. नागोर, प्रले. देवकृष्ण जोसी, प्र.ले.पु. सामान्य, दे., (२६.५४१२.५, १६x६०). १.पे. नाम. धन्नाश्री सवैया, प.१अ-४आ, संपूर्ण. __पुहिं., पद्य, आदि: चौथे आरे केरा जसतीन; अंति: तो क्यं तज अणगार जी, दोहा-४५. २. पे. नाम. गीसती कुंडलिया, पृ. ४आ-५आ, संपूर्ण. गृहस्थ परिहार सज्झाय-साधु, पुहिं., पद्य, आदि: गीसती के घर साधने; अंति: रहें नहीं न सीत ए इधकार, गाथा-२१. ११८४४४. अंजनासती रास, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ.५, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. हुंडी:अंजनानो रास., दे., (२६.५४१२.५, २२४५१). अंजनासुंदरी रास, मु. पुण्यसागर, मा.गु., पद्य, वि. १६८९, आदि: श्रीगौतम गणधर प्रमुख; अंति: (-), (पू.वि. खंड-१ ढाल-१६ गाथा-७४ अपूर्ण तक है.) ११८४४५. स्थूलिभद्रमुनि शीयलवेलि, संपूर्ण, वि. १९०७, वैशाख शुक्ल, ३, मध्यम, पृ. १७, ले.स्थल. मुंबई, प्रले. मु. सदानंद; पठ. मु. झवेरसागर, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. कुल ग्रं. २७५, दे., (२६.५४१२, ९४२४-३२). स्थूलिभद्रमुनि शीयलवेलि, पं. वीरविजय, मा.गु., पद्य, वि. १८६२, आदि: सयल सुहंकर पासजिन; अंति: विमला कमला वरस्यै रै, ढाल-१८. For Private and Personal Use Only Page #252 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२६ २३७ ११८४४८. (+) पार्श्वजिन छंद व पाक्षिक स्तुति, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ.५, कुल पे. २, अनुपू. किसनचंद, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित., प्र.ले.श्लो. (४५४) मंगलं लेखकानां च, दे., (२६.५४१२, १०४२९). १.पे. नाम. अंतरीक पार्श्वजिन छंद, पृ. १अ-५आ, संपूर्ण. पार्श्वजिन छंद-अंतरिक्षजी, वा. भावविजय पं., मा.गु., पद्य, आदि: सारदमात मया करी आपो; अंति: भावविजय०देव जय जयकरण, गाथा-५०. २. पे. नाम. पाक्षिक स्तुति, पृ. ५आ, संपूर्ण.. संबद्ध, आ. बालचंद्रसूरि, सं., पद्य, आदि: स्नातस्याप्रतिमस्य; अंतिः सर्वकार्येषु सिद्धं, श्लोक-४. ११८४४९ (+) कल्पसूत्र की वार्तिक मांडणी, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १९-२(१ से २)=१७, पृ.वि. बीच के पत्र हैं., प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२७४१२.५, १२४३८). कल्पसूत्र-वार्तिक मांडणी, मु. लक्ष्मण, प्रा.,मा.गु., प+ग., आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. नंदीश्वरद्वीप वर्णन अपूर्ण से दशकल्प वर्णन अपूर्ण तक है.) ११८४५० (+) प्रतिक्रमणसूत्र सह बालावबोधादि संग्रह, संपूर्ण, वि. १८४८, मार्गशीर्ष कृष्ण, ११, मंगलवार, मध्यम, पृ. १७, कुल पे. ८, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२६४१२, १५४४६). १.पे. नाम. देवसिप्रतिक्रमणसूत्र सह भावार्थ, पृ. १अ-१४अ, संपूर्ण. देवसिप्रतिक्रमणसूत्र-तपागच्छीय, संबद्ध, प्रा.,मा.गु.,सं., प+ग., आदि: नमो अरिहंताणं; अंति: नायव्वो वीरिआयारो. देवसिप्रतिक्रमणसूत्र-तपागच्छीय-भावार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: जे त्रिभुवननी पूजानइ; अंति: जाणिवउ ते वीर्याचार. २. पे. नाम. श्रावक के १४ नियम-गाथा, पृ. १४अ, संपूर्ण. १४ श्रावकनियम गाथा, प्रा., पद्य, आदि: सच्चित१ दिव्वर विगइ३; अंति: न्हाण१३ भत्तिसु१४, गाथा-१, (वि. सामान्य शब्दार्थ सहित.) ३. पे. नाम. १० प्रत्याख्यान गाथा सह बालावबोध, पृ. १४अ-१४आ, संपूर्ण, पे.वि. यह कृति इस प्रत के साथ एक से अधिक बार जुड़ी हुई है. १० प्रत्याख्याननाम गाथा, प्रा., पद्य, आदि: नवकारसी १ पोरसीए २; अंति: ८ अभिग्गहे ९ विग्गई, गाथा-१. १० प्रत्याख्याननाम गाथा-शब्दार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: १ नउकारसी २ प्रहर; अंति: दातिप्रमुख९ विगइ१० नीवी१०. ४. पे. नाम, बीस स्थानक गाथा सह बालावबोध, पृ. १४आ, संपूर्ण. २० स्थानकतप गाथा, प्रा., पद्य, आदि: अरिहंत सिद्ध पवयण; अंति: तित्थयरत्तं लहइ जीवो, गाथा-३. २० स्थानकतप गाथा-बालावबोध, मा.गु., गद्य, आदि: अरिहंतभक्ति सिद्धभक्ति; अंति: तीर्थंकर गोत्र उपार्जइ. ५.पे. नाम. चउक्कसाय सूत्र सह बालावबोध, पृ. १४आ, संपूर्ण. चउक्कसायसूत्र, हिस्सा, प्रा., पद्य, आदि: चउक्कसायपडिमलुल्लूरण; अंति: पासु पयच्छउ वंछिउ, गाथा-२. चउक्कसायसूत्र-बालावबोध, मा.ग., गद्य, आदि: चिहं कषाय रुपिया; अंति: पार्श्वनाथ० वांछित पूरउ. ६. पे. नाम. संस्कारकविधि सह भावार्थ, पृ. १४आ-१६अ, संपूर्ण. संथारापोरसीसूत्र, प्रा., पद्य, आदि: निसिही २ नमो खमासमणाणं; अंति: इअ समत्तं मए गहिअं, गाथा-१४. संथारापोरसीसूत्र-भावार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: नमस्कार हुं क्षमाश्रमण; अंति: इसिउ सम्यक्त्व मइ लीधउ. ७. पे. नाम. प्रत्याख्यानसूत्र सह बालावबोध, पृ. १६अ-१७आ, संपूर्ण. प्रत्याख्यानसूत्र, संबद्ध, प्रा., गद्य, आदि: सुरे उग्गए अब्भत्त; अंति: गारेणं वोसिरामि. प्रत्याख्यानसूत्र-बालावबोध *, पुहिं.,मा.गु., गद्य, आदि: सूर्यनइ उदय बिहुघटी काची; अंति: शरीनुकारण एतले. ८. पे. नाम. दस पच्चक्खाण गाथा सह बालावबोध, पृ. १७आ, संपूर्ण, पे.वि. यह कृति इस प्रत के साथ एक से अधिक बार जुड़ी हुई है. १० प्रत्याख्याननाम गाथा, प्रा., पद्य, आदि: नवकार पोरसीए पुरमड्ढ; अंति: ८ अभिग्गहे ९ विग्गई, गाथा-१. १० प्रत्याख्याननाम गाथा-शब्दार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: १ नउकारसी २ प्रहर; अंति: दातिप्रमुख९ विगइ१० नीवी१०. ११८४५१ (+) श्रीपाल रास, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. २३-१(१)=२२, प्र.वि. संशोधित., दे., (२७४१२, ११४३१). For Private and Personal Use Only Page #253 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org २३८ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची श्रीपाल रास, उपा. विनयविजय; उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., पद्य, वि. १७३८, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. प्रारंभ व अंत के पत्र नहीं हैं. खंड-१ ढाल - १ गाथा-१४ अपूर्ण से खंड-२ ढाल -२ गाथा-३२८ अपूर्ण तक है.) ११८४५४. कल्पसूत्र सह टीका, अपूर्ण, वि. १७वी, मध्यम, पृ. ७४-६८ (१ से २२, २४ से ४७, ४९ से ५०, ५२ से ५५,५७ से ६०,६२ से ७३) ६. पू. वि. बीच-बीच के पत्र हैं. प्र. वि. हुंडी कल्पटीका. जैदे. (२७४११.५, १७६३-६८). " " कल्पसूत्र, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. महावीर चरित्र - ३७ से स्थविरावली सूत्र- ५ अपूर्ण तक है व बीच-बीच के पाठांश नहीं हैं.) कल्पसूत्र- टीका, सं., गद्य, आदि (-); अंति (-). ११८४५५ (+) सुगंधदशमी, श्रवणद्वादशीमहाव्रत व रत्नत्रयविधान कक्षा, अपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पू. ७४-६७(१ से ६७)=७, कुल पे. ३, प्र. वि. संशोधित., जैदे., (२७११.५, ११x२८). १. पे नाम. सुगंधदशमी कथा, पृ. ६८अ-६८आ, अपूर्ण, पू. वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं. Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir सुगंधदशमीव्रत कथा, आ. श्रुतसागरसूरि, सं., पद्य, आदि (-); अंति: गृह्णति तां विनीताः, श्लोक १६३, (पू.वि. श्लोक-४४ अपूर्ण से है.) २. पे नाम. श्रवणद्वादश्युपाख्यान, पृ. ६८आ ७०आ, संपूर्ण श्रवणद्वादशीमहाव्रत कथा, आ. श्रुतसागरसूरि, सं., पद्य, आदि पूज्यपादप्रभाचंद्रा कलंक, अंतिः कुर्वंतु पुण्यात्मताम्, श्लोक-४१. ३. पे. नाम. रत्नत्रयविधान कथानक, पृ. ७०आ-७४आ, अपूर्ण, पू. वि. अंत के पत्र नहीं हैं. आ. श्रुतसागरसूरि, सं., पद्य, आदि: विद्यानंदप्रदं पूज्यपादं; अंति: (-), (पू.वि. श्लोक-८२ तक है.) ११८४५६. (+) गजसिंह चरित्र व रत्नपालरत्नावती रास, अपूर्ण, वि. २०वी मध्यम, पृ. १४-१३ (१ से १३) १, कुल पे. २, प्र. वि. हुंडी : रतनपाल, संशोधित. दे. (२६४१२, १८x४९). " . १. पे. नाम गजसिंह चरित्र, पृ. १४अ १४आ, अपूर्ण, पू. वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं. ', गजसिंघ चरित्र, मु. आसकर्ण ऋषि, रा. पद्य वि. १८५२, आदि (-) अति आसकर० सुणतां लीलविलास, ढाल ४६, (पू.वि. ढाल - ४६ गाथा - १० अपूर्ण से है.) २. पे. नाम. रत्नपालरत्नावती रास. पू. १४आ, अपूर्ण, पू. वि. अंत के पत्र नहीं हैं. रत्नपालरत्नावती रास-दानाधिकारे, मु. सूरविजय, मा.गु., पद्य, वि. १७३२, आदि: श्रीरिषभादिक जिनवर अति: (-), (पू.वि. ढाल १ गाथा १० अपूर्ण तक हैं.) १९८४५७ (१) नवतत्त्व प्रकरण बोलसंग्रह व तेवीस पदवी विचार, संपूर्ण, वि. १८७६, फाल्गुन कृष्ण, ४. गुरुवार, जीर्ण, पू. ६, कुल पे. २, प्र. मु. सीवकरण (गुरु मु. नानगचंद); गुपि. मु. नानगचंद, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., (२७४१२, २१x६०). १. पे नाम. नवतत्त्व प्रकरण के बोलसंग्रह. पू. १अ ६आ, संपूर्ण. नवतत्त्व प्रकरण ६० गाथा- बोल संग्रह, संबद्ध, मा.गु., गद्य, आदि: जीव १ अजीव २ पुण्य ३; अंति: भेद उनमान प्रमाण २२५०. २. पे नाम. २३ पदवी विचार, पृ. ६आ, संपूर्ण, मा.गु., गद्य, आदि: चक्ररत्न पदवी १ छत्र अंति: समकदष्टी मंडलीक राजा (वि. पन्नवणासूत्र का संदर्भ दिया गया है.) ११८४५८. (+) हरिवंशपुराण अपूर्ण, वि. १९वी मध्यम पू. १७०-२२ (१ से १५,६०,११२,११४ से ११५,११९ से 1 १२०,१३३) १४८, प्र. वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-पदच्छेद सूचक लकीरें अन्वय दर्शक अंक युक्त पाठ संशोधित, जैवे., (२८.५x१२, ११४३२-३७). हरिवंशपुराण, मु. जिनदास ब्रह्मचारी, सं., पद्य, वि. १६वी, आदि (-); अंति: (-), (पू.वि. बीच-बीच के पत्र हैं., सर्ग-४ से सर्ग-१० श्लोक-१८१, श्लोक-२०४ से सर्ग १७ श्लोक ७८, श्लोक १०१ अपूर्ण से १२४ अपूर्ण, श्लोक-१७१ अपूर्ण से सर्ग-१८ श्लोक-२६, श्लोक ७४ अपूर्ण से सर्ग १९ श्लोक-१७२ अपूर्ण, श्लोक-१९५ अपूर्ण से सर्ग -२३ श्लोक-३६ तक है.) For Private and Personal Use Only Page #254 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२६ २३९ ११८४६० (+#) कल्पसूत्र की पीठिका व कल्पसूत्र सह टबार्थ व बालावबोध, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १६४-१(९९)=१६३, कुल पे. २, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित. मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., (२८x१२, ६४३१-३९). १.पे. नाम. कल्पसूत्र की पीठिका सह बालावबोध, पृ. १अ, संपूर्ण. कल्पसूत्र-पीठिका, संबद्ध, प्रा., पद्य, आदि: देवाणं जिणदेवो; अंति: हवंति अणंत सुहाइ, गाथा-१६. कल्पसूत्र-पीठिका का बालावबोध, मा.गु., गद्य, आदि: श्रीमहावीरना चरित्र वृक्ष; अंति: (-). २. पे. नाम. कल्पसूत्र सह टबार्थ व बालावबोध, पृ. १आ-१६४आ, अपूर्ण, पू.वि. बीच व अंत के पत्र नहीं हैं. कल्पसूत्र, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., गद्य, आदि: तेणं कालेणं० समणे; अंति: (-), (पू.वि. समाचारी व्याख्यान सूत्र-६१ तक है व बीच का पाठांश नहीं है.) कल्पसूत्र-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: तेणइ चउथइ कालइ विषइ; अंति: (-). कल्पसूत्र-बालावबोध , मा.गु.,रा., गद्य, आदि: तत्र प्रथमं श्रीमहावीरदेव; अंति: (-). ११८४६१. (+) कल्पसूत्र सह अंतर्वाच्य, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ९१-४(१ से ४)=८७, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरे-संशोधित-प्रतिलेखन पुष्पिका मिटाई हुई है., जैदे., (२६.५४११.५, १३४३७-४०). कल्पसूत्र, आ. भद्रबाहस्वामी, प्रा., गद्य, आदि: नमो अरिहंताणं नमो; अंति: (-), व्याख्यान-९, ग्रं. १२१६, (संपूर्ण, वि. अपेक्षित पाठ लिखा गया है.) कल्पसूत्र-अंतर्वाच्य *, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: करी वृत्ति निरवद्य बिहवो, (अपूर्ण, पू.वि. पीठिका अपूर्ण से है.) ११८४६३. (+) ज्योतिषचक्र विचार, अपूर्ण, वि. १९७३, चैत्र शुक्ल, ३, मध्यम, पृ. १८-२(१ से २)=१६, ले.स्थल, भीनासर, प्र.वि. हंडी:जोतिकचक्र., संशोधित., दे., (२७४१२, १९४४०). ज्योतिषचक्र विचार, म. अमरचंदजी प्रसाद स्वामी, मा.गु., गद्य, वि. १९३१, आदि: (-); अंति: अमरचंद० ते पांमे भवपार, (प.वि. चंद्रमा के विमानों का परिमाण का विवरण अपूर्ण से है.) ११८४६४. (+#) परंदर चौपाई, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १३-४(१ से ४)=९, प्र.वि. हुंडी:पुरंदर चउपइ., टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२८x१३, १३४५१). पुरंदर चौपाई, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. प्रारंभ व अंत के पत्र नहीं हैं., पुरंदर के माता-पिता का पुत्रमोह प्रसंग अपूर्ण से पुरुष के ऊपर धनवती का द्वेष का प्रसंग अपूर्ण तक है.) ११८४६५. श्रीपाल रास, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १५, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., जैदे., (२६४१२, १४४३९). श्रीपाल रास, उपा. विनयविजय; उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., पद्य, वि. १७३८, आदि: कल्पवेल कवियण तणी; अंति: (-), (पू.वि. खंड-२ ढाल-४ गाथा-९२ अपूर्ण तक है.) ११८४६६. (#) बावीसपरीसह दृष्टांत, १० दृष्टांत कथा व ७ निह्नव द्रष्टांत कथा, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ३७-१४(१ से २,४ से १४,२४)=२३, कुल पे. ३, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२७४१२, १३४४८). १.पे. नाम. २२ परिषह दृष्टांत कथा, पृ. ३अ-२३आ, अपूर्ण, पू.वि. प्रारंभ व बीच के पत्र नहीं हैं. मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: आषाढ० सहिओ तिम बीजइ सहिवो, (पू.वि. श्रेणिक कथा अपूर्ण से है व बीच का पाठांश नहीं है.) २. पे. नाम. १० दृष्टांत कथा, पृ. २३आ-३६आ, अपूर्ण, पू.वि. बीच का एक पत्र नहीं है. मनुष्यभव दुर्लभता १० दृष्टांत गाथा-कथा, मा.गु., गद्य, आदि: (१)संसारमाहि च्यार गति छइ पण, (२)चुल्लग१ पासगर धन्ने३; अंति: पडीओ मानवभव वलिने पामइ, (पू.वि. प्रथम द्रष्टांत ब्रह्मदत्त चक्रवर्ती अपूर्ण है-बीच पाठांश नहीं है.) ३. पे. नाम. सातनिह्नव गाथा सह कथा, पृ. ३६आ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. ७ निह्नव गाथा, प्रा., पद्य, आदि: बहुयर जमालि पभवा; अंति: पुट्ठमवड्ढं परूवंति, गाथा-२, संपूर्ण. ७ निह्नव गाथा-दृष्टांतकथा, मा.ग., गद्य, आदि: (१)जेह कारण तो श्रद्धा पायइ, (२)जे गुरु हुंइ सन्मार्गत; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. चतुर्थ निह्नव अपूर्ण तक है.) For Private and Personal Use Only Page #255 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra २४० www.kobatirth.org कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ११८४६८. चौवीस दंडक यंत्र, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ७, पू. वि. अंत के पत्र नहीं हैं. दे., ( २६.५X१२, १५-१९X३५). २४ दंडक यंत्र, मा.गु., को. आदि (-); अति: (-). १९८४६९. सूक्तमाला सह बालावबोध, अपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ३३-२६ (१ से २६) ०७, पू.वि. बीच के पत्र हैं, जैवे., Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir (२७X११.५, १६x४७-५२). सूक्तमाला, मु. केशरविमल, मा.गु. सं., पद्य, वि. १७५४, आदि (-); अंति (-), (पू.वि. वर्ग-१ गाथा - ७५ से वर्ग-२ गाथा-५ तक है.) सूक्तमाला - बालावबोध *, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: (-). ११८४७०. (+#) चातुर्मासिक व्याख्यान, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २५-१९ (१ से २, ६ से २१, २४) = ६, प्र. वि. संशोधित. मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., ( २६.५X१२, १२X३४). चातुर्मासिक व्याख्यान *, रा., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. प्रारंभ, बीच व अंत के पत्र नहीं हैं., अभयदान विचार अपूर्ण से मेतार्य मुनि कथा अपूर्ण तक, प्रथमव्रत अतिचार अपूर्ण से तृतीय शिक्षाव्रत अपूर्ण तक है व बीच-बीच पाठांश नहीं हैं.) ११८४७३. (+) गजसिंघ चरित्र, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १३, पू. वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र. वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित., जैदे., ( २६.५X१२.५, १८५५). गजसिंघ चरित्र, मु. आसकर्ण ऋषि, रा. पद्य वि. १८५२, आदि अरिहंत अतिसैवंत घणु: अंति: (-), (पू.वि. डाल-४६ गाथा १० अपूर्ण तक है.) ११८४७४. भगवतीसूत्र-शतक १६ उद्देसक ६ स्वप्नाधिकार सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १९ वी, मध्यम, पृ. ४, ले. स्थल. किसनगढ, प्र. मु. खेमचंद ऋषि (गुरु मु. उग्रसेन ऋषि); गुपि मु. उग्रसेन ऋषि (गुरु मु. स्वामीदास ऋषि): मु. स्वामीदास ऋषि (गुरु मु. दीपचंद), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. हुंडी, विवाहप०, जैदे., (२८X१२, ८X४८). भगवतीसूत्र-हिस्सा शतक १६ उद्देश ६ स्वप्नाधिकार, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., गद्य, आदि: कतिणं भंते सुविणा प. गो; अंतिः सेवं भंते सेवं भंते ति०, (वि. १८५२, कार्तिक कृष्ण, १३, सोमवार) भगवतीसूत्र - हिस्सा शतक १६ उद्देश ६ स्वप्नाधिकार का टबार्थ, मा.गु, गद्य, आदि: स्वप्नाधिकार कहइ छद क०; अंति: तुम्हे क ते सत्य छ (वि. १८५२ कार्तिक कृष्ण, १४, मंगलवार) ११८४७५. बृहत्कल्पसूत्र, संपूर्ण, वि. १५८४, चैत्र शुक्ल, ५, बुधवार, मध्यम, पृ. ८, जैदे., ( २८.५X१२, १५X४६-५५). बृहत्कल्पसूत्र, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., गद्य, आदि: नो कप्पड़ निम्गंधाण; अंतिः कप्पदुई तिबेमि, उद्देशक-६, अं. ४७३. ११८४७६. (+) दशवैकालिकसूत्र, संपूर्ण, वि. १८८८, माघ कृष्ण, ७, मध्यम, पृ. १२, ले. स्थल. रोहतक, पठ. मु. जोकीरामजी शिष्य (गुरु मु. जोकीराम); प्रले. मु. जोकीराम (गुरु मु. सोधीराम ); गुपि. मु. सोधीराम, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. हुंडी : दशवैकालिकसूत्र., संशोधित., जैदे., (२७X१२, २२४३८-४७). " , दशवैकालिकसूत्र, आ. शय्यंभवसूरि, प्रा., पद्य, वी. २वी आदि धम्मो मंगलमुक्किहूं, अंति: अपुणागमं गइ तिबेमि, अध्ययन- १०, (वि. चूलिका-२) " " ११८४७७ (+) सूत्रकृतांगसूत्र, अपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पृ. ६, पू.वि. अंत के पत्र नहीं है. प्र. वि. हुंडी सू०सू०, पदच्छेद सूचक लकीरें जैदे., (२७४१२, १३४३९-४४). सूत्रकृतांगसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., प+ग, आदि: बुज्झिज्ज तिउट्टेज्ज; अंति: (-), (पू.वि. अध्ययन-३ उद्देसक-१ गाथा ८ अपूर्ण तक है.) ११८४७८. (+) परमात्म प्रकाश चयनिका, संपूर्ण वि. १८वी, मध्यम, पृ. ६, प्र. वि. पदच्छेद सूचक लकीरें अन्वय दर्शक अंक युक्त पाठ- संशोधित., जैदे., ( २८.५X१२, १०X३४). परमात्म प्रकाश-चयनिका आत्मतत्त्व विवरण, अप., पद्य, आदि: पुणु पुणु पणवि विपंच गुरु; अंति: तिहुवणणा हु हवंति, गाथा - १०२. ११८४७९. (+) सिद्धचक्रयंत्रोद्धारपूजन विधि, अपूर्ण, वि. २०वी श्रेष्ठ, पृ. १६-२ (१ से २) = १४, प्र. वि. हुंडी: श्रीसिद्धचक्र, टिप्पण युक्त विशेष पाठ., दे., (२७X१२, १४X३७-४३). For Private and Personal Use Only Page #256 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२६ २४१ सिद्धचक्रयंत्रोद्धार पूजनविधि, सं., गद्य, आदि: (-); अंति: ४०८ अ५०८ महाजाप्य विधि, (पू.वि. सिद्धचक्रयन्त्रोद्धार __ विधि चतुर्विंशतिका श्लोक-१४ अपूर्ण से है.) ११८४८०. अष्टाह्निका व्याख्यान, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १२, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., जैदे., (२७.५४१२, १०४३२). अष्टाह्निका व्याख्यान, मा.गु.,सं., गद्य, आदि: प्रणम्य परमानंदा; अंति: (-), (पू.वि. १२ वां व्रत अपूर्ण तक है.) ११८४८१. सिद्धचक्र मंडल पूजाविधि, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ.५, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. हुंडी:सिद्ध.मं.पू., दे., (२७.५४१२.५, १३४३८). सिद्धचक्रयंत्रोद्धार पूजनविधि, सं., गद्य, आदि: आदौ प्रथमारंभ विधि; अंति: (-), (पू.वि. तपपद की पूजा अपूर्ण तक है.) ११८४८२ (+#) नवतत्त्व प्रकरण सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. १९४६, मध्यम, पृ. ७-१(१)=६, प्रले. मु. त्रिलोकचंद्र; पठ. मु. महेंदु, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें-अन्वय दर्शक अंक युक्त पाठ-टिप्पण युक्त विशेष पाठ. मूल पाठ का अंश खंडित है, टिप्पणक का अंश नष्ट, दे., (२७४१२, ६४३२-३८). नवतत्त्व प्रकरण ६० गाथा, प्रा., पद्य, आदिः (-); अंति: परभवगामित्थ सासअविरय, गाथा-७७, (वि. १९४६, फाल्गुन कृष्ण, २, पू.वि. गाथा-५ अपूर्ण से है., वि. कृति का त्रुटित भाग श्लोक-६९ से ७१ तक पत्रांक-७आ पर लिखा है.) नवतत्त्व प्रकरण ६० गाथा-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: साथ परभव नहि जावे हे, (वि. १९४६, वैशाख शुक्ल, ११) ११८४८३. (+#) कर्मग्रंथ १ से ६, अपूर्ण, वि. १६वी, जीर्ण, पृ. १०-२(५,९)=८, कुल पे. ६, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें-अन्वय दर्शक अंक युक्त पाठ-संशोधित. मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., (२७४१२, १३४५२-५५). १. पे. नाम. लघुकर्मविपाक, पृ. १अ-२आ, संपूर्ण. कर्मविपाक नव्य कर्मग्रंथ-१, आ. देवेंद्रसरि, प्रा., पद्य, वि. १३वी-१४वी, आदि: सिरिवीरजिणं वंदिय; अंति: लिहिओ देविंदसूरिहिं, गाथा-६०. २. पे. नाम. कर्मस्तव, पृ. २आ-३आ, संपूर्ण. कर्मस्तव नव्य कर्मग्रंथ-२, आ. देवेंद्रसूरि, प्रा., पद्य, वि. १३वी-१४वी, आदि: तह थुणिमो वीरजिणं; अंति: देविंद वंदिअंतं नमह वीरं, गाथा-३४. ३. पे. नाम. बंधस्वामित्व, पृ. ३आ-४आ, संपूर्ण. ___ बंधस्वामित्व नव्य कर्मग्रंथ-३, आ. देवेंद्रसूरि, प्रा., पद्य, वि. १३वी-१४वी, आदि: बंधविहाणविमुक्कं; अंति: देविंदसूरि० सोउं, गाथा-२४. ४. पे. नाम. षडशीतिकं, पृ. ४आ-७आ, अपूर्ण, पृ.वि. बीच का एक पत्र नहीं है. षडशीति नव्य कर्मग्रंथ-४, आ. देवेंद्रसूरि, प्रा., पद्य, वि. १३वी-१४वी, आदि: नमिअ जिणं जिअ१ मग्गण; अंति: लिहियो देविंदसूरीहिं, गाथा-८६, (पू.वि. गाथा-६ अपूर्ण से गाथा-२३ अपूर्ण तक नहीं है.) ५. पे. नाम. शतक नव्य कर्मग्रंथ, पृ. ७आ-१०आ, अपूर्ण, पू.वि. बीच का एक पत्र नहीं है., वि. १५३४, आश्विन कृष्ण, १२, गुरुवार, ले.स्थल. मंडपदर्ग, प्रले. आ. सुमतिसुंदरसूरि (गुरु आ. सोमदेवसरि, तपागच्छ); गुपि. आ. सोमदेवसूरि (गुरु आ. सोमसुंदरसूरि, तपागच्छ), प्र.ले.पु. सामान्य. शतक नव्य कर्मग्रंथ-५, आ. देवेंद्रसूरि, प्रा., पद्य, वि. १३वी-१४वी, आदि: नमिय जिणं धुवबंधोदय; अंति: देविंदसूरि०आयसरणट्ठा, गाथा-१००, (पू.वि. गाथा-३४ से गाथा-६८ अपूर्ण तक नहीं है.) ६. पे. नाम. सप्ततिका कर्मग्रंथ, पृ. १०आ, अपूर्ण, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. सप्ततिका कर्मग्रंथ-६, प्रा., पद्य, वि. १३वी-१४वी, आदि: सिद्धपएहिं महत्थं; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-१० अपूर्ण तक ११८४८४. (+) सुभाषित रत्नावली, जैनधर्मसम्मत श्लोक संग्रह व छायापुरुषलक्षण श्लोक, अपूर्ण, वि. १७५३, मार्गशीर्ष कृष्ण, १, रविवार, मध्यम, पृ. २०-३(१ से ३)=१७, कुल पे. ३, प्रले. मु. बालर्षि, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें., जैदे., (२७.५४१२, १३४३६). For Private and Personal Use Only Page #257 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra २४२ www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १. पे नाम. सुभाषित रत्नावली, पृ. ४अ-२०अ, अपूर्ण, पू. वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं. सद्भाषितावली, आ. सकलकीर्ति, सं., पद्य, आदि: (-); अंति: ज्ञानतीर्थं हि जीवान्, श्लोक-४९५, (पू.वि. श्लोक-६२ अपूर्ण से है.) २. पे. नाम. जैनधर्मसम्मत श्लोक संग्रह - विविध शास्त्रोद्धृत, पृ. २०अ २०आ, संपूर्ण. सं., पद्य, आदि: कंडनी पेषणी चुल्ली उदकुंभ; अंति: भेदः शृंग कृतो भवेत्, श्लोक-११. ३. पे. नाम. छायापुरुषलक्षण श्लोक, पृ. २०आ, संपूर्ण. सं., पद्य, आदि अथातः संप्रवक्ष्यामि ; अति तस्य मृत्यु न विद्यते श्लोक-६. " ११८४८५ () सिंदूरप्रकर सह वृत्ति, अपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पृ. २३-४ (२ से ३ ६ से ७)= १९, पू.वि. बीच-बीच व अंत के पत्र नहीं हैं. प्र. वि. हुंडी : सिंदूरप्रक. सू० वृ०. मूल पाठ का अंश खंडित है, जैये. (२७४१२, १२४३१). सिंदूरप्रकर, आ. सोमप्रभसूरि, सं., पद्य, वि. १३वी, आदि: सिंदूरप्रकरस्तपः करिशिरः; अंति: (-), (पू.वि. श्लोक-३ से १० तक, श्लोक १८ से २२ तक व ८६ से नहीं है.) सिंदूरप्रकर- अवचूरि, सं., गद्य, आदि पार्श्वप्रभोर्नखद्युतिभरो; अंति: (-). ११८४९०. धन्नाकाकंदी चौढालिया व प्रतिक्रमण सज्झाय, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ५, कुल पे. २, दे., (२७.५X११.५, ८X३५). १. पे. नाम. धन्नाकाकंदी चौढालिया, पृ. १अ - ५अ, संपूर्ण. मु. माल, मा.गु., पद्य, वि. १८२५, आदि प्रथम समरु सुत देविन अति पसावधी रे मालमुनि गुण गाय, डाल-४. २. पे. नाम. प्रतिक्रमण सज्झाय, पृ. ५अ -५आ, संपूर्ण. संबद्ध, मु. धर्मसिंह मुनि, मा.गु., पद्य, आदि: कर पडिकमणुं भावशुं; अंति: मुक्ति तणो ए निधांन, गाथा-६. १९८४९४ (+०) कविशिक्षा सह टीका, अपूर्ण, वि. १६वी, मध्यम, पू. ३१-२३( २ से ६,८,१० से ११,१३ से १४,१९ से ३०)=८, पू.वि. बीच-बीच के पत्र हैं., प्र. वि. आधे पत्रांक अनुमानित है, पदच्छेद सूचक लकीरें संधि सूचक चिह्न संशोधित मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., (२८x११, १८-२२४७८-९२). कविशिक्षा, श्राव. अरिसिंह, सं., पद्य, वि. १३वी आदि (-); अंति (-), (पू. वि. प्रतान-२ स्तबक ३ श्लोक ४९ (क्रमशः नंबर- ११८) अपूर्ण से इसी प्रतान के स्तबक- ४ श्लोक १७७ तक, प्रतान- ३ स्तबक- १ श्लोक ७ से ४५ अपूर्ण तक, प्रतान-३ स्तबक- ३ श्लोक - ६० से इसी प्रतान के स्तबक-५ का श्लोक-१०२ तक, प्रतान-४ स्तबक-५ श्लोक १४८ से १५६ तक है व बीच-बीच के पाठांश नहीं है. वि. लोकांक देने में कहीं प्रतर से क्रमश: है तो कहीं 3 स्तचक से १ क्रमांक प्रारंभ किया है, कहीं तो नंबर दिया ही नहीं है.) कविशिक्षा-काव्यकल्पलतावृत्ति, य. अमरचंद्र, सं., गद्य, वि. १३वी, आदि: (-); अंति: (-). ११८४९६ (+) पर्याप्ता अपर्याप्ता विचार, अपूर्ण, वि. २०वी मध्यम, पू. १३-१ (१) = १२. पू. वि. बीच के पत्र हैं. प्र. वि. संशोधित. दे., ', " (२७.५४१२, १८४४२). पर्याप्ता अपर्याप्ता ३१ द्वार विचार, रा., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. २. अजीव तत्त्व से ९. मोक्ष तत्त्व वर्णन अपूर्ण तक है.) ११८४९९. (+#) समवायांगसूत्र सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १७५७, कार्तिक शुक्ल, ९, मध्यम, पृ. १०८, प्रले. सा. केसरजी आर्या, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. हुंडी: समवायांगसूत्र., संशोधित टिप्पण युक्त विशेष पाठ. मूल पाठ का अंश खंडित है, जैवे. (२८x११.५, ५x५०). समवायांगसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., गद्य, आदिः सुयमे आउस तेणं भगवद अंतिः अज्झयणं ति त्ति बेमि अध्ययन- १०३, सूत्र- १५९ . १६६७. समवायांगसूत्र-टबार्थ *, मा.गु., गद्य, आदि: पांचमो गणधर सुधर्मास्वामि; अंति: इति शब्द समाप्ति न अर्थइं. ११८५०१. (+) सप्तव्यसन कथासमुच्चय, अपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ३३-२८ (१ से २८) = ५, पू. वि. बीच के पत्र हैं., प्र. वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ संशोधित, जैवे. (२६.५x१२, १५४३६). " For Private and Personal Use Only Page #258 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२६ www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir सप्तव्यसन कथासमुच्चय, मु. सोमकीर्ति, सं., पद्य, वि. १५२६, आदि: (-); अंति: (-), (पू. वि. सर्ग - ३ श्लोक-४४७ अपूर्ण से सर्ग-४ श्लोक-५ अपूर्ण तक है.) ११८५०५. सौभाग्यपंचमी कथा-व्याख्यान व सुभाषित श्लोक संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ५-१(१) ४, कुल पे. २, प्र.वि. हुंडी:पंचमीक., जैदे., (२६.५X१२, १७X४०). १. पे. नाम. सौभाग्यपंचमी कथा व्याख्यान, पृ. २अ ५अ, अपूर्ण, पू. वि. प्रथम पत्र नहीं है. मा.गु., गद्य, आदि (-); अति सिद्धि नवनिधि पामीजे (पू.वि. प्रारंभिक पाठांश नहीं है.) २. पे. नाम. सुभाषित श्लोक संग्रह, पृ. ५अ, संपूर्ण. सुभाषित श्लोक संग्रह *, पुहिं., प्रा., मा.गु.,सं., पद्य, आदि: ग्यान वधे नर पंडित; अंति: जानहु साधु कोउ लक्षण, गाथा-२. ११८५०८. उत्तराध्ययनसूत्र सह टीका, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १३३ - १२३ (१ से १२३) = १०, पू.वि. बीच के पत्र हैं., प्र.वि. हुंडी: उत्तराध्ययन., दे., (२६X१२, १७x४७). " उत्तराध्ययनसूत्र. मु. प्रत्येकबुद्ध, प्रा. प+ग, आदि (-) अंति: (-), (पू.वि. अध्ययन- १३ गाथा ३४ अपूर्ण से अध्ययन-१५ गाथा-१ तक है. ) २४३ उत्तराध्ययनसूत्र- टीका *, सं., गद्य, आदि: (-); अंति: (-). ११८५०९. (+) प्रतिष्ठा स्तवन, पंचमी स्तवन व बारमासा आदि संग्रह, संपूर्ण, वि. १९२७, आषाढ़ कृष्ण, ४, शुक्रवार, श्रेष्ठ, पृ. १२, कुल पे १४, प्रले. बेलीराम मिश्र पठ श्राव लक्ष्मणदास ओसवाल पेखीया, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. पार्श्वनाथ प्रसादात् ग्रंथ रचना के समीपवर्ती काल मे लिखित., दे., (२६X११.५, १३X३७). १. पे. नाम. कुज्जरावाले के मंदिर की प्रतिष्ठा स्तवन, पृ. १आ-६अ, संपूर्ण, पे.वि. हुंडी : प्रति स्त. पार्श्वजिन प्रतिष्ठा स्तवन- कुज्जरावालपंजाब तीर्थमंडन, मु. मोहनलाल, मा.गु., पद्य, वि. १९२१, आदि: शासन नायक वंदीये; अंति: तस घर होये मंगलमाल ए, ढाल - ९, गाथा - १०९. २. पे. नाम. पंचमी स्तवन, पृ. ६आ-७आ, संपूर्ण, पे.वि. हुंडी: पं. ज्ञानपंचमीपर्व महावीरजिन स्तवन- बृहत्, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, आदि: प्रणमुं श्रीगुरु पाय; अंति: भाव भगत प्रशंसियो, ढाल -३, गाथा-२०. ३. पे नाम. पंचमी स्तवन, पू. ७आ, संपूर्ण, ज्ञानपंचमीपर्व स्तवन- लघु उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, आदि पांचमी तप तुमे करो, अंतिः समय० पंचमो भेद रे, गाथा-५. ४. पे. नाम. बारमासा, पृ. ७आ-८अ संपूर्ण. औपदेशिक सज्झाय-बारमासा, मु. रामकृष्ण, पुहिं., पद्य, वि. १८७८, आदि: (१) ए संसार असार चातुरा तूं, (२) चेत कहे चितमांहे विचारो; अंति: कहे सुनिया ज्ञान दरस ताहे, गाथा-१३. ५. पे नाम. प्रमादीजीव का सज्झाय, पू. ८- ९अ, संपूर्ण, पे.वि. हुंडी प वैराग्यपच्चीसी, मु. गोपालदास, पुहिं., पद्य, आदि: रे परमादी जीव जग जंजाल; अंति: गोपाल करणी वैकुंठ ले जाई, गाथा - १३, (वि. गाथाक्रम भिन्न है.) ६. पे नाम. पार्श्वनाथजी की बधाई, पृ. ९अ ९आ, संपूर्ण, पे.वि. हुंडी: व. पार्श्वजिन जन्मबधाई, मु. मोहन, मा.गु., पद्य, आदि: आज तो वधाई असुसैनके दरबार; अंति: मोहन वचन कहे निरधार रे, गाथा- ७. ७. पे. नाम बधाई की छत्तीसी, पृ. ९आ-१०आ, संपूर्ण पार्श्वजिन छत्तीसी, मु. मोहनलाल, पुहिं., पद्य, आदि: अश्वसेन घर मिलण वधाईयां; अंति: जब मोहनलाल बनाईयां, गाथा ३७. ८. पे. नाम. स्वार्थसिद्ध विमान सज्झाय, पृ. १० आ-११अ, संपूर्ण, पे.वि. हुंडी: स्वा. सर्वार्थसिद्ध विमान सज्झाय, मु. रतिराम, पुहिं., पद्य, आदि: स्वार्थसिद्ध विमान की; अंति: भाखीया रिष रतिराम उचारेये, गाथा- १२. For Private and Personal Use Only Page #259 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir २४४ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ९. पे. नाम. विहरमान लंछन बीसी, पृ.११अ-११आ, संपूर्ण. २० विहरमानजिन स्तवन-लंछन, मु. मोहन, पुहिं., पद्य, आदि: विहरमान भगवान वीस के चरण; अंति: मोहण प्रात समय ऊठी सिमरो, गाथा-६. १०. पे. नाम. अजितनाथजी का स्तवन, पृ.११आ, संपूर्ण, पे.वि. हुंडी:स्त. अजितजिन स्तवन, पुहिं., पद्य, आदि: जय जय मुख बोलो अजित तणी; अंति: गति युवति सखी न मिले जोलो, गाथा-७. ११. पे. नाम. अजितजिन स्तवन, पृ. ११आ-१२अ, संपूर्ण, पे.वि. हुंडी:स्त. मु. मोहन, पुहि., पद्य, आदि: क्या मै वरणो शोभारी के; अंति: मोहनरी से गुणमणि आगर की, गाथा-७. १२. पे. नाम. अजितनाथजी की लावणी, पृ.१२अ, संपूर्ण, पे.वि. हुंडी:स्त. अजितजिन लावणी, मु. मोहन, पुहिं., पद्य, आदि: लावणी अजितनाथजी की; अंति: मोहण० प्रभु अज अवनासी की, गाथा-७. १३. पे. नाम, अजितजिन स्तवन, पृ. १२अ-१२आ, संपूर्ण, पे.वि. हुंडी:स्त. मु. मोहन, पुहिं., पद्य, आदि: मेरी सुणो अरज जिनवर की; अंति: मोहन के रहो करो अरजी, गाथा-७. १४. पे. नाम, अजितजिन स्तवन, पृ. १२आ, संपूर्ण, पे.वि. हुंडी:स्त.. मु. सुबुद्धि, पुहिं., पद्य, आदि: विजया के नंद जिनंद वंदो; अंति: सुबुद्धि० कुगुरु वृंदो, गाथा-५. ११८५१० (+#) वृद्धि अतिचार, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ८, पृ.वि. प्रारंभ के पत्र हैं., प्र.वि. हुंडी:वृद्धिअतीचार., संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५.५४११.५, १३४३५-३८). श्रावकपाक्षिकअतिचार-तपागच्छीय, संबद्ध, प्रा.,मा.गु., गद्य, आदिः (१)इच्छामि खमासमणो० इच्छा, (२)श्रावकतणइ धर्मि सम्यक्त्व; अंति: (-), (पू.वि. वीर्याचार अतिचार अपूर्ण तक है.) ११८५११. (+#) संग्रहणी सूत्र, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. १४, प्र.वि. हुंडी:संघयणसूत्रपत्र. श्रीदादाजी प्रसादात्., संशोधित. अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६.५४१२, १३४३०-३५). बृहत्संग्रहणी, आ. चंद्रसूरि, प्रा., पद्य, वि. १२वी, आदि: नमिउं अरहंताई ठिइ भवणो; अंति: जा वीरजिण तित्थं, गाथा-२९२. ११८५१२. शालिभद्र सज्झाय, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ३-२(१ से २)=१, पू.वि. मात्र बीच का ही एक पत्र है., जैदे., (२५.५४११.५, १०४२७). शालिभद्रमुनि सज्झाय, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. ढाल-अज्ञात गाथा-१६ "मोदीयो घृतनो" पाठ अपूर्ण से ढाल-अज्ञात गाथा-११ "करी प्रणाम पाछो" पाठ अपूर्ण तक है., वि. ढाल का नंबर नहीं होने के कारण पाठ दिया ११८५१३. ज्योतिष संग्रह व गोडीपार्श्वजिन छंद, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २-१(१)=१, कुल पे. २, प्र.वि. श्रीऋषभदेवजी., जैदे., (२६४११.५, ११४३४). १. पे. नाम. ज्योतिष संग्रह, पृ. २अ, अपूर्ण, पू.वि. प्रथम पत्र नहीं है. ज्योतिष*, पुहिं.,मा.गु.,सं., प+ग., आदि: (-); अंति: अधमो नमतां क्रमेणैव, (पू.वि. श्लोक-१६ अपूर्ण से है.) २.पे. नाम. गोडीपार्श्वजिन छंद, पृ. २अ-२आ, संपूर्ण. पार्श्वजिन छंद-गोडीजी, मु. उदयरत्न, मा.गु., पद्य, आदि: धवल धींग गोडी धणी सेवक जन; अंति: नमो नाथनी दुखनी जाल तोडि, गाथा-८. ११८५१४. भुवनदीपक ज्योतिषशास्त्र सह अवचूरि व नवग्रह पिता वाहन नाम, अपूर्ण, वि. १८७३, माघ शुक्ल, १३, शुक्रवार, मध्यम, पृ. २९-१(१९)+१(१७)=२९, कुल पे. २, प्रले. रामवकस ब्राह्मण; पठ. गणपति, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२६.५४११.५, १४४३९). १. पे. नाम. भुवनदीपक ज्योतिषशास्त्र सह अवचूरि, पृ. १आ-२९आ, अपूर्ण, पू.वि. बीच का एक पत्र नहीं है. For Private and Personal Use Only Page #260 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२६ www.kobatirth.org २४५ " भुवनदीपक, आ. पद्मप्रभसूरि, सं. पद्य वि. १३, आदि सारस्वतं नमस्कृत्य; अति श्रीपद्मप्रभसूरिभिः, श्लोक १६८, (पू.वि. अष्टाविंशति द्वार अपूर्ण से चीर्याविष्टा द्वार अपूर्ण तक नहीं है.) भुवनदीपक- टीका, सं., गद्य, आदि सरस्वत्याः संबंधि; अति विस्तार्यमाणा बुधैः २. पे. नाम. नवग्रह पिता वाहन नाम, पृ. २९आ, संपूर्ण. पुहिं., गद्य, आदि: काश्यप के पुत्र आदित्य; अंति: जीमन ऋषि को पुत्र . ११८५१६ (+) विविध विषयक आगमिक विचार संग्रह, अपूर्ण, वि. १७४७, मध्यम, पू. ८८-२ (७९ से ८०)=८६, कुल पे. १०६, दत्त. पं. प्रेमसागर, गृही. मु. लाभसागर (गुरु ग. धनसागर), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. संशोधित, जैये. (२६.५x११.५, १५X४५-५०% १. पे. नाम जिनभवन ८४ आशातनाविचार गाथा की दुर्गपद व्याख्या, पृ. १आ-२अ, संपूर्ण. जिनभवन ८४ आशातनाविचार गाथा- दुर्गपद व्याख्या, सं., गद्य, आदि खेलति श्लेष्मोज्झनं केलि; अतिः शातनाश्चैत्ये वर्ज्याः. २. पे. नाम. १७ भेद पूजाफल विचार, पृ. २अ, संपूर्ण. सं., गद्य, आदि: पुष्पात् पुण्य फलं; अंति: न परा पूजा इमास्युर्जिने. ३. पे. नाम. ८४ आशातनाविचार गाथा, पृ. २अ, संपूर्ण. जिनभवन ८४ आशातनाविचार गाथा, प्रा., पद्य, आदि खेलं १ केलि २ कलि ३; अंतिः देवभुवणे वज्जेह मासायणा गाथा-४. ४. पे नाम पल्योपम विचार, पृ. २अ २आ, संपूर्ण. प्रा., पद्य, आदि: पलिओवमं च तिवहं उद्धारद्ध; अंति: हरिय तसाणं च परिमाणं, गाथा- १६. ५. पे. नाम. प्रदेशीराजा प्रश्नोत्तरी, पृ. २आ, संपूर्ण. प्रा., पद्य, आदि: अज्जय१ अज्जी २ कुंभी ३; अंति: (१) अइभारवाह १० पडिवयणं, (२) पएसि न कयावि होयव्वं, गाथा-३, (वि. अंतिम गाथा संशोधनीय है.) ६. पे नाम. नंदनमुनि मासक्षमण गाथा, पृ. २आ, संपूर्ण प्रा., पद्य, आदि: इक्कारस य सहस्सा असिइ; अंति: नंदण भवंमि वीरस्स पंचदिणा, गाथा - १. ७. पे नाम. मासतिथि क्षय गाथा, पृ. २आ-३अ, संपूर्ण. प्रा. पद्य, आदि भवकित्ति य पोसे फग्गुण; अति जुग अंतेतोदो आसाढा, गाथा ५. . Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ८. पे. नाम. १० वस्तु विच्छेद गाथा, पृ. ३अ, संपूर्ण. प्रा., पद्य, आदि: मण परमोहि पुलाए; अंति: पच्छित्त दाणं च गाथा-४. ९. पे. नाम. पानीय विचार, पृ. ३अ, संपूर्ण. २१ पानी प्रकार, प्रा., पद्य, आदि उस्सेइमं संसेइमं तुंदल, अंतिः वासासु पुणोति पहक्खरिं, गाथा-३. १०. पे नाम. १० अच्छेरावर्णन गाथा, पू. ३अ, संपूर्ण. १० आश्चर्यवर्णन गाथा, प्रा., पद्य, आदि उसभ जिणे असयं सिद्धं अंतिः सिद्धा इक्कंमि समयंमि, गाथा- ३. ११. पे नाम. पोरसीसार्द्धपोरसीपुरिमडमान गाथा, पृ. ३अ, संपूर्ण. प्रा., पद्य, आदि: आसाढे पण पाया पय; अंति: हियए वाविए परिमढो होइ, गाथा-५. १२. पे नाम ७ संख्यक बोल गाथा, पृ. ३अ ३आ, संपूर्ण. प्रा. पद्य, आदि सत्तविढप्पं तिसया सत्त न अंति: सत्ताण न वीससीयव्वं. . १३. पे. नाम नेमराजिमति ९ भव गाथा, पृ. ३आ, संपूर्ण. नेमिराजिमती ९ भव गाथा, प्रा. पद्य, आदि धणं धणवई सोहम्मे अंतिः भवे दोवि वंदामि गाथा - २. १४. पे. नाम. पार्श्वजिन १० भव गाथा, पृ. ३आ, संपूर्ण. प्रा. पद्य, आदि मरूभूह कमठ वारण; अति कमढो भवे दसमो, गाथा-२. १५. पे. नाम. महावीरजिन २७ भव गाथा, पृ. ३आ, संपूर्ण. For Private and Personal Use Only Page #261 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir २४६ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची प्रा., पद्य, आदि: ग्रामेश१ सिदशो२; अंति: च ततः श्रीवर्धमानप्रभुः, गाथा-१. १६. पे. नाम, ८ प्रतिहार्य गाथा, पृ. ३आ, संपूर्ण. ८प्रातिहार्य गाथा, प्रा., पद्य, आदि: किंकिल्ले कुसमवुट्ठी; अंति: जयंतु जिणपाडिहेराई, गाथा-१. १७. पे. नाम. गाथा संग्रह, पृ. ३आ-४अ, संपूर्ण. गाथा संग्रह *, प्रा., पद्य, आदि: भामंडलचामरभासनं च सत्; अंति: पंचसयाओहीसहगस्स पुण सहसं, (वि. अरिहंत १२ गुण, २४जिन समवसरण ऊंचाई मान, २४जिन उत्कृष्ट तपभूमि, १० जूभकदेव नाम, ७ धातु आदि की गाथाएँ हैं.) १८. पे. नाम. गृहबिंबप्रमाणं श्लोक संग्रह, पृ. ४अ, संपूर्ण. गृहबिंबप्रमाण श्लोक संग्रह, सं., पद्य, आदि: अथातः संप्रवक्ष्यामि; अंति: प्रासादं कामतः कुरु, श्लोक-६. १९. पे. नाम. सूत्रोक्ततपः प्रमाण गाथा, पृ. ४अ, संपूर्ण. विविध तपनाम गाथा, प्रा., पद्य, आदि: सेणितवो पयरतवो घणो य; अंति: एते वीसघराइं सेणीसु, गाथा-५. २०. पे. नाम. चतुर्विंशतितपसां विवरणा, पृ. ४अ-४आ, संपूर्ण. २४ प्रकार तप पारणादि दिनसंख्यामान, सं., गद्य, आदि: श्रेणितपो दिन ५५ पारणा २०; अंति: १४ मास३ दिन२० मानं स्यात. २१. पे. नाम. चतुर्विंशतिजिनानां भवाः, पृ. ४आ, संपूर्ण. २४ जिन भवसंख्यामान गाथा, प्रा., पद्य, आदि: वीरस्स सत्तवीसा२७ बारस१२; अंति: दस१० पासे तिन्नि३ सेसाणं, गाथा-१. २२. पे. नाम. द्वादशपरिषदः, पृ. ४आ, संपूर्ण. १२ पर्षदास्थान श्लोक, सं., पद्य, आदि: आग्नेय्यां भक्तियुक्त्या; अंति: स्त्रियः संविशंति, श्लोक-१. २३. पे. नाम. दीक्षाया योग्यायोग्य विचार सह व्याख्या, पृ. ४आ-५आ, संपूर्ण. दीक्षा योग्यायोग्य गाथा, प्रा., पद्य, आदि: अट्ठारस परिसेसं वीसं; अंति: दन्नि इमे हंति अन्नेवि, गाथा-४. दीक्षा योग्यायोग्य गाथा-व्याख्या, सं., गद्य, आदि: तत्र सप्ताष्टौ वर्षाणि; अंति: ६षडप्येते प्रव्रज्या इति. २४. पे. नाम. श्रावकप्रतिमा विचार सह व्याख्या, पृ. ५आ-६अ, संपूर्ण. श्रावक ११ प्रतिमा गाथा, प्रा., पद्य, आदि: दसण१ वइ२ सामाइय३; अंति: उद्दिष्टवज्जए१० समणभूए११, गाथा-१. श्रावक ११ प्रतिमा गाथा-व्याख्या, सं., गद्य, आदि: मासं यावद्गृहीत सम्यक्त्व; अंति: एकादशी एषोपि पाठो ज्ञेयः. २५. पे. नाम. तपोविचारः सह टीका, पृ. ६अ, संपूर्ण.. षण्णवतिदिवसमान तप गाथा, प्रा., पद्य, आदि: पट्ठवणओ य दिवसो पच्चक्खाण; अंति: तं भिन्नइ कोडिसहीयं तु, गाथा-१. षण्णवतिदिवसमान तप गाथा-टीका, सं., गद्य, आदि: षण्णवतिदिवसमानं षट्भेदं; अंति: तुलनामात्रमत्रोक्तं. २६. पे. नाम. द्वादशभिक्षप्रतिमा विचार सह व्याख्या, पृ. ६अ-६आ, संपूर्ण. भिक्षुप्रतिमा गाथा, प्रा., पद्य, आदि: मासाई सत्तंता सत्त तहा; अंति: इय भिक्खूपडिमाण बारसगं, गाथा-१. भिक्षप्रतिमा गाथा-व्याख्या, सं., गद्य, आदि: मुनिः प्रथमं गच्छमध्ये एव; अंति: कुर्यादिति साधूनाम्. २७. पे. नाम. संज्ञास्वरूप विचार गाथा-एकेंद्रियदृष्टांतयुक्त, पृ. ६आ, संपूर्ण. प्रा., पद्य, आदि: आहारभयपरिग्गहमेहुणसुहु; अंति: सुहदुहवितिगिच्छासोगधम्माई, गाथा-६. २८. पे. नाम. जपमालास्मरणफलं, पृ. ६आ-७अ, संपूर्ण. प्रा., पद्य, आदि: अटेव य अट्ठसयं अट्ठ; अंति: जं जावं निःफलं होइ गोयमा, गाथा-६. २९. पे. नाम. षट्लेश्या विचार, पृ. ७अ, संपूर्ण. लेश्यालक्षण श्लोक, प्रा.,सं., पद्य, आदि: किन्हाए जाइए नरए नीलाए; अंति: शुक्ललेश्यादिको भवेत, श्लोक-८. ३०. पे. नाम. तंदलवैचारिकाध्ययनस्य विशेष विचारः, पृ. ७अ-९अ, संपूर्ण... तंदलवैचारिक प्रकीर्णक-विशेष विचार, संबद्ध, मा.ग., गद्य, आदि: स्त्री तणी नाभि हेठी हेठी; अंति: व्यालीससहस्र उसासा हुइ. For Private and Personal Use Only Page #262 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२६ २४७ ३१. पे. नाम. ४ ध्यानस्वरूप श्लोक, पृ. ९अ, संपूर्ण. सं., पद्य, आदि: राज्योपभोगशयनासनवाहनेषु; अंति: कुर्यात्प्रयत्नं बुधः, श्लोक-५. ३२. पे. नाम. नरक विचार, पृ. ९अ-१०आ, संपूर्ण. मा.गु.,सं., गद्य, आदि: रत्नप्रभा १ शर्करप्रभा २; अंति: पूठिं पारानी परिं मिलिइं. ३३. पे. नाम. ८७ देवभेद विचार, पृ. १०आ-१२अ, संपूर्ण. ___मा.गु., गद्य, आदि: देव चतुर्विधा भवनपति१; अंति: तेजोमय देह हुई. ३४. पे. नाम. सामायिकादिक ५ चारित्रभेद विचार, पृ. १२अ-१३अ, संपूर्ण. ५ चारित्र विचार, मा.गु., गद्य, आदि: सामाइक चारित्र १ छेदोपस्थ; अंति: अंतर्मुहूर्ति केवली हुइ. ३५. पे. नाम. १८ नात्रा श्लोक, पृ. १३अ, संपूर्ण. १८ नातरा श्लोक, सं., पद्य, आदि: भ्रातासि तनुजन्मासि वर; अंति: सपत्नी च भवत्यहो, श्लोक-३, (वि. टिप्पण में १८ सम्बन्धों का स्पष्टीकरण है.) ३६. पे. नाम. चतुर्विंशतिजिनानामंतराणि, पृ. १३अ-१३आ, संपूर्ण. २४ जिन अंतरा गाथा, प्रा., पद्य, आदि: जिण अंतराइं पत्ता १ तीस २; अंति: कोडी अरदगबायाल वरिसुजुया, गाथा-४. ३७. पे. नाम, ४४ आगार नाम, पृ. १३आ, संपूर्ण. __ आवश्यकसूत्र-हिस्सा प्रत्याख्यानादि ४४ आगार, प्रा.,सं., गद्य, आदि: अन्नत्थणाभोगेणं१ सहसागारे; अंति: खोभाई ४३ दीहडको वा ४४. ३८. पे. नाम. द्वादशावर्त वंदनगत ३२ दोष, पृ. १३आ-१४अ, संपूर्ण. द्वादशावर्त वंदनगत ३२ दोष विचार, सं., गद्य, आदि: अनादृतं आदररहितं १; अंति: रजोहरणादि कृत्वा वंदते ३२. ३९. पे. नाम. कायोत्सर्गगत १९ दोष विचार, पृ. १४अ-१४आ, संपूर्ण. कायोत्सर्ग १९ दोष, संबद्ध, सं., गद्य, आदि: घोटकदोष घोटकवत विषमं; अंति: स्थितः सन ओष्टौ चालयति. ४०. पे. नाम. द्वादशावर्तवंदनकदोष गाथा, पृ. १४आ, संपूर्ण. ३२ वंदनदोष गाथा, प्रा., पद्य, आदि: अनाढियं च थड्ढं च परिद्धं; अंति: शुद्धं किइकम्मं च पउंजइ, गाथा-५. ४१. पे. नाम. कायोत्सर्गे एकोनविंशतिदोष गाथा, प. १४आ, संपूर्ण. चैत्यवंदनभाष्य-हिस्सा १९ कायोत्सर्गदोष गाथा, प्रा., पद्य, आदि: घोडग१ लयर खंभाइ३ माल; अंति: य वारुणी १८ पेहा १९, गाथा-२. ४२. पे. नाम. नमस्कारमहामंत्र महिमा गाथा, पृ. १४आ, संपूर्ण. प्रा., पद्य, आदि: नवकार इक्क अक्खर पावं फेड; अंति: दीवोदहि हंति पवइया, गाथा-२. ४३. पे. नाम. ४ मेघभेद विचार, पृ. १४आ, संपूर्ण. ४ मेघ विचार, प्रा.,सं., गद्य, आदि: चत्तारी मेहा पन्नता; अंति: वासं भावेइ वाणभावेइ. ४४. पे. नाम. गोचरी ४२ दोष विचार, पृ. १४आ-१५आ, संपूर्ण... गोचरी ४२ दोष, मा.गु., गद्य, आदि: जे महात्मा तणइ कारणि; अंति: कहीइ ए महात्मा० राखिवा. ४५. पे. नाम. आर्यअनार्यदेशनाम गाथा, पृ. १५आ, संपूर्ण. आर्यदेशनाम गाथा, प्रा., पद्य, आदि: मगहंगरबंग३ कासी४ कलिंग५; अंति: पवित्ति सग जवणाई अणज्जाते, गाथा-३. ४६. पे. नाम. १४ मिथ्यात्व गुणस्थानक गाथा, पृ. १५आ, संपूर्ण. प्रा., पद्य, आदि: मिच्छद्दिट्ठी१ सासाणेय२; अंति: होइ सजोगी१३ अजोगीय १४, गाथा-२. ४७. पे. नाम. ७ अभव्यनाम गाथा, पृ. १५आ, संपूर्ण. अभव्यजीव गाथा, प्रा., पद्य, आदि: संगमय१ कालसूरयर कविला३; अंति: अभव्वा उदायनिव मारओ चेव, गाथा-१. ४८. पे. नाम. १६ उपसर्ग विचार, पृ. १५आ-१६अ, संपूर्ण. सं., गद्य, आदि: उपसर्गा १६ दिव्यमानषतैरि; अंतिः श्लेष्म३ सन्निपातभेदाः. ४९. पे. नाम. तीर्थंकर गोत्रोपार्जकजीव गाथा, पृ. १६अ, संपूर्ण. For Private and Personal Use Only Page #263 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir २४८ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची प्रा., पद्य, आदि: सेणिय१ सुपास२ उदाई३; अंति: सयबुद्धि २४ जिणजीवे, गाथा-२. ५०. पे. नाम. अचितवस्तुविचार गाथा, पृ. १६अ, संपूर्ण... प्रा., पद्य, आदि: जोयणसयं तु गंता अणहारेणं; अंति: उवक्कमेणं तु परिणामो, गाथा-३. ५१. पे. नाम, २४ भेद अन्ननाम गाथा, प. १६अ-१६आ, संपूर्ण. धान्यभेदविचार गाथा, प्रा., पद्य, आदि: जव१ जवजव२ गोहुम ३ सालि ४; अंति: कुलत्थ१२ तह धन्नय १३ कलाय, गाथा-८. ५२. पे. नाम, अभिवर्द्धित चंद्रविचार गाथा, पृ. १६आ, संपूर्ण. प्रा., पद्य, आदि: चंदे चंदे अभवड्ढीए चेव; अंति: एयच्चिय पच्छिमद्धेवि, गाथा-४, (वि. मासानुसार अभिवर्द्धित चंद्र कोष्ठक.) ५३. पे. नाम. केशीगणधर प्रदेशीराजा ११ प्रश्नोत्तर, पृ. १६आ-१७अ, संपूर्ण. सं., गद्य, आदिः श्रोतव्या प्रदेशिनगरी; अंति: केशकुमारगणधर दत्तोत्तराः. ५४. पे. नाम. १८ नात्रा कोष्ठक, पृ. १७अ, संपूर्ण. १८ नातरा नाम, सं., गद्य, आदि: १ भ्राता एकमातृत्वात्; अंति: पत्नीः भर्तुः कलत्रत्वात्. ५५. पे. नाम. नंदीसूत्रटीकागत चित्रांतरगंडिका सह व्याख्यालेश, पृ. १७अ-१८आ, संपूर्ण. नंदीसूत्र-सूत्र १५४ की टीका का हिस्सा चित्रांतर गंडिका, आ. मलयगिरिसूरि , सं., गद्य, आदि: आइच्च जसाईणं उसभस्सपएपए; अंति: अजियजिणपिया समुप्पन्नो, गाथा-२२. नंदीसूत्र-सूत्र १५४ की टीका का हिस्सा चित्रांतर गंडिका की व्याख्यालेश, सं., गद्य, आदि: एवं पंचपंचाशत्; अंति: एसा एगा इति उत्तरा तईया, (वि. कोष्ठक युक्त.) ५६. पे. नाम. प्रत्याख्यानादि ४४ आगार सह व्याख्या, पृ. १८आ-१९अ, संपूर्ण. आवश्यकसूत्र-हिस्सा प्रत्याख्यानादि ४४ आगार, प्रा.,सं., गद्य, आदि: १अन्नत्थणाभोगेणं रसहसा; अंति: ४३बोहियक्खोभाइ ४४डीहको. आवश्यकसूत्र-प्रत्याख्यानादि ४४ आगार की व्याख्या, सं., गद्य, आदि: अनाभोत्यंतविस्मृतिः; अंति: चत्वारिंशत् समर्थिताः. ५७. पे. नाम, खंडाजोयण द्वार विचार, पृ. १९अ-२०अ, संपूर्ण. प्रा.,सं., प+ग., आदि: खंडाजोयणवासा पव्वयकूडाउ; अंति: ९७८५९०६१ जंबूदीप पयत्थइ, (वि. बीच-बीच मूलगाथा का प्रतीक एवं उसकी संक्षिप्त टीका भी है. कोष्ठक सहित.) ५८. पे. नाम, जंबद्वीप गणित संख्या विचार, पृ. २०अ-२१अ, संपूर्ण. प्रा.,सं., गद्य, आदि: मुनिनव९करोरडु२८षोडश; अंति: तीर्थ० त्रयोविंशतिरंतराणि. ५९. पे. नाम, मेरुपर्वतादि जिनगृह विचार, पृ. २१अ-२२अ, संपूर्ण. प्रा.,मा.ग.,सं., गद्य, आदि: मेरुपर्वत लक्षयोजनप्रमाण: अंति: कंडपिंड ३६ सहस्रयोजनः. ६०. पे. नाम. जंबूवृक्ष विचार, पृ. २२अ-२२आ, संपूर्ण.. सं., गद्य, आदि: उत्तरकुरायामार्द्ध सीता; अंति: जंबू० शास्वता ज्ञेयाः. ६१. पे. नाम. द्रव्यभाववंदनपृच्छा विचार, पृ. २२आ-२३आ, संपूर्ण. प्रा., गद्य, आदि: अरिट्ठनेमीसामी समोसरिउ; अंति: कट्ट वंदइ नमसइ. ६२. पे. नाम. १७ भेद पूजा विचार, पृ. २३आ, संपूर्ण... सं., गद्य, आदि: स्नात्रं सुरभिगंधोदकेन १; अंति: भेदभिन्नं तदादिभेदं वा. ६३. पे. नाम. १५ भेद सिद्ध विचार, पृ. २३आ-२४अ, संपूर्ण. मा.गु., गद्य, आदि: ये तीर्थंकरनइं वारइं; अंति: गया ते अनेकसिद्ध १५. ६४. पे. नाम, सामायिक विचार, पृ. २४अ, संपूर्ण. प्रा.,सं., गद्य, आदि: करेमि भंते० यदा परोक्षो; अंति: आमंतेइ भदंतो गुरु, (वि. आवश्यकच भावश्यकचर्णि से उद्धत.) For Private and Personal Use Only Page #264 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२६ www.kobatirth.org ६५. पे. नाम स्थापनाचार्य विचार, पृ. २४अ, संपूर्ण. प्रा.,सं., गद्य, आदि: एकेषामेव स्थविरकल्पिक यती; अंति: वत्तयाणं एएसिं चेव उवहि, (वि. निशीथोद्देश से उद्धृत.) ६६. पे. नाम. उत्तरासंगेन श्रावकधर्मध्यान विचार, पृ. २४अ, संपूर्ण. श्रावक धर्मध्यानविचार श्लोक उत्तरासंगयुत, सं., पद्य, आदि बृहदानंदारोमांचभूषितः सह अंतिः वाहं निषण्णः शुद्धभूतले, लोक-४. ६७. पे नाम. दिवसरात्र प्रतिक्रमण विचार, पृ. २४अ संपूर्ण प्रा. गद्य, आदि आसाढपुन्निमाए वासावासपाठ; अंतिः न उघाडंति ताव राई भिन्नइ " ६८. पे. नाम. श्राविकाणां ऊवस्थितानां वंदन विचार, पृ. २४- २४आ, संपूर्ण, पे. वि. बीच में पौषध विचार है. श्राविका ऊर्द्धवस्थित वंदन विचार, प्रा.,सं., गद्य, आदि: (१)तएणं सा देवाणंदा माहणी, (२)जत्थ संजई संजण किवकम्मं अंति: (१) स्थितैव अनुपविष्टेत्यर्थः, (२) तं चेव तासिं मुद्धाणिंति (वि. भगवतीटीका व निशी चूर्णि से उद्धृत.) ६९. पे नाम पर्वतिथि पौषध विचार, पृ. २४आ, संपूर्ण. पौषधभेद विचार, संबद्ध, प्रा., गद्य, आदि पोसहोक्वासेत्यादि इह पौषध अति पौषधे उपवासनं पौषधोपवासः, (वि. आवश्यकवृत्ति से उद्धृत.) ७०. पे. नाम. ५६३ जीवभेद विचार, पृ. २४आ, संपूर्ण. Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir पुहिं.,मा.गु., गद्य, आदि: पृथ्वीकाय अपकाय तेउकाय; अंति: देव एतलु आंक दसगुणु कीजइ, (वि. कोष्ठक में है.) ७१. पे नाम साधुसाध्वी आचार उपकरण व्यवहारादि विचार संग्रह, पू. २५अ- २८आ, संपूर्ण. साधुसाध्वी आचारव्यवहारोपकरणादि विचार संग्रह, प्रा. सं., गद्य, आदि दारुदंडे जत्थसु उन्निय; अति दोजक्खए० दोकुंडधारपडिए ७२. पे. नाम. सांव्यवहारिक असांव्यवहारिक जीवभेदादि प्रश्नोत्तर संग्रह, पृ. २८आ- ३०अ, संपूर्ण प्रश्नोत्तर संग्रह, प्रा.,मा.गु.,सं., गद्य, आदि: व्यवहारिकराशेर्निगत्य जीव; अंति: सिद्धत्व सद्भाव इति. ७३. पे. नाम. गुरूपशेशनस्थाने स्वस्तिकगोहलिकादि निषेध विचार, पू. ३० अ-३०आ, संपूर्ण. गुरूपशेशनस्थान स्वस्तिकगोहलिकादि निषेध विचार, प्रा. सं., गद्य, आदि दूमिय धूमिय वासिय उज्जोइय; अंति सीसे सचित्ताईय अणजाणे. ७४. पे नाम. आचार्य विहरणा विचार, पृ. ३०आ- ३१अ संपूर्ण. आचार्य विहरण विचार, प्रा. सं., गद्य, आदि उप्पन्ननाणा जहन्न अडती; अति अरहंता साहुणो वंदियव्वा. "y ७५. पे. नाम चतुः पर्वी विचार, पृ. ३१-३१आ, संपूर्ण. प्रा.सं., गद्य, आदि: अष्टमीचतुर्दशी अमावास्या, अंति: गुणे निच्चओ सो परिवज्जए. (वि. आगमसन्दर्भ सहित ) ७६. पे. नाम. सुखरात्रिक विचार, पृ. ३१आ-३२अ, संपूर्ण. प्रा.सं., गद्य, आदि: पाओसिए जाब पोरिसी न उच्चा, अंति देवदूसजुबलाई नियंसेइ. ७७. पे. नाम सिद्धायतनपूजा विधि, पू. ३२-३३अ, संपूर्ण प्रा.सं., गद्य, आदि: जेणेव नंदा पुष्करणी तेणेव अंति: तिकड्डु वंदइ नपुंसइ. ७८. पे नाम. सामायिकपौषध विचार, पृ. ३३अ, संपूर्ण. प्रा. गद्य, आदि सामाईयमिउकए समणो इव सावउ; अंति: सया नवबागा सत्तपलियस्स. ! י २४९ For Private and Personal Use Only ७९. पे नाम. प्रासुकांबु विचार, पृ. ३३अ ३७अ, संपूर्ण. आ. मेरुतुंगसूरि, प्रा. सं., गद्य, आदि इह किल प्रासुकोदकं द्विधा; अति सुखावाप्तिः स्यादिति, ८०. पे. नाम. जिनभवन विचार, पृ. ३७अ-३७आ, संपूर्ण. देवलोकादि जिनभवन विचार, मा.गु. सं., गद्य, आदि: चैत्यानि यानि सुरसद्मनि अंति: ३४ एतलां जिनभवन जाणिवां. ८१. पे. नाम. श्रावकचतुर्मासी विचार, पृ. ३७आ, संपूर्ण. Page #265 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra २५० www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची श्रावकचतुर्मासीनियम विचार, प्रा., सं., गद्य, आदि: संमत्तं १ सामाईय २ पोसह ३ अंति: ५६ सावय चउमासीया नियमा ८२. पे नाम, साधु चातुर्मासिकनियम विचार, पृ. ३७आ-३८अ, संपूर्ण. साधु चतुर्मासीनियम विचार गाथा, प्रा., पद्य, आदि आवस्सहत्थजोयण १ खमासमणे २; अति नियमा साहूहिं गहियव्वा, गाथा- ११. ८३. पे नाम. शास्वतप्रतिमा जिन विचार, पू. ३८अ, संपूर्ण शास्वत जिनप्रतिमा विचार, प्रा., पद्य, आदि जिणनामजिना भवणजिणाताण, अंति: जीवा दव्वजिणा समवसरणत्था, गाथा - १. ८४. पे नाम, चतुर्दश पूर्व नाम, पृ. ३८अ संपूर्ण. १४ पूर्व नाम, प्रा. गद्य, आदि उपायपुव्वं १ अम्गेणिवं अति: विसाल १३ लोगबिंदुसारं १४. ८५. पे. नाम. पंचागत्वात् दृष्टिवादस्येंद्रियपंचकाधारः शिरः कल्पनं, पृ. ३८अ-३८आ, संपूर्ण. दृष्टिवाद पंचांग वर्णन गाथा, प्रा., पद्य, आदि: पहमे पर कोडिक्का बीए छन्न, अंति: दिट्टिवाओ मुणेयव्वो, गाथा- ९. ८६. पे. नाम. चतुर्दश पूर्व विचार, पृ. ३८आ, संपूर्ण. १४ पूर्व विचार, सं., गद्य, आदिः यत्रोत्पादमंगीकृत्य सर्व अंतिः तस्मात्पूर्वाणीति भणितानि ८७. पे. नाम संज्ञास्वरूप विचार गाथा एकेंद्रियदृष्टांतयुक्त की टीका, पृ. ३८-३९अ, संपूर्ण. संज्ञास्वरूप विचार गाथा-एकेंद्रियदृष्टांतयुक्त टीका, सं., गद्य, आदि: (१) आहारभयपरिग्गहमेहुणसुह, (२)आहाराभिलाष आहारसंज्ञाभाव १; अंति: पशम समुत्था द्रष्टव्या, (वि. मूलगाथा-१ के बाद मात्र टीका ही है.) ८८. पे नाम. शास्वतप्रतिमानां वर्णविभाग विचारः, पृ. ३९अ, संपूर्ण. " शाश्वतप्रतिमावर्णविभाग विचार गाथा, प्रा. पद्म, आदि: पणधणुसय गुरुयाउ; अति परिमाणं भवे वन्नो, गाथा ५. ८९. पे. नाम जिनप्रतिमापरिकर विचार, पृ. ३९अ. ३९आ, संपूर्ण. प्रा., गद्य, आदि: ( १ ) उत्तमनरपंचत्तरताय त्तीसाय, (२) तत्थणं देवच्छंदए चउ; अंति: पायवडियाओ चिट्ठति. ९०. पे नाम. आवक सिद्धांतपठन विचार, पू. ४०अ, संपूर्ण. प्रा.,सं., गद्य, आदि: तथा ढड्ढरश्रावकार्य; अंति: अत्थो पुण उल्लावेण सुणइ. ९१. पे नाम. पिंडनिर्युक्ति-गाथा १३९ व १४६, पृ. ४०अ, संपूर्ण. पिंडनिर्युक्ति, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), (प्रतिपूर्ण, वि. श्रावकभेदकथन. ) ९२. पे. नाम. गणधरवाद, पृ. ४० अ-४३अ, संपूर्ण. सं. गद्य, आदि: विज्ञानघनएवैतेभ्यो अति अनुष्ठानं विधेयं इति. ९३. पे नाम. अर्थोपलब्धि बाधक २१ बोल सह टीका, पृ. ४३अ, संपूर्ण. अर्थोपलब्धि बाधक २१ बोल, सं., गद्य, आदि दूरात् १ अतिसन्निकर्षात् अति विप्रक० अथ नोपलभ्यते. , अर्थोपलब्धि बाधक २१ बोल- टीका, सं., गद्य, आदि दूरात् सन्नप्यर्थी न; अंतिः नभः पिशाचादीनामनुपलभः. ९४. पे. नाम. राजप्रश्नीयसूत्र-सूर्याभदेवऋद्धिवर्णन सह टीका, पृ. ४३-४४आ, संपूर्ण. राजप्रश्रीयसूत्र-हिस्सा सूत्र १३ सूर्याभदेवऋद्धिवर्णन, प्रा., गद्य, आदि अप्पेगइया बंदणवत्तियाए: अति: देवस्स अंतियं . पाउब्भवंति. , राजप्रनीयसूत्र - हिस्सा सूत्र- १३ सूर्याभदेवशद्धिवर्णन की टीका, सं., गद्य, आदि: सूर्याभे विमाने योजन; अतिः ऋद्धिः शरीरमनुप्रविष्टा. ९५. पे. नाम. दर्शनविनय विचार, पृ. ४४आ, संपूर्ण. प्रा.सं., गद्य, आदि छंदा १ रोसा २ परिजुष्णा ३ अंति माझ्याणं केवलनाणावसाणाणं (वि. आगमोद्धृत.) 7 ९६. पे नाम. पट्लेश्या विचार, पू. ४४-४५अ संपूर्ण ६ लेश्या दृष्टांत, सं., गद्य, आदि: तत्र कृष्ण वर्णन स्निग्ध; अंति: जनितत्वात् शुक्ललेश्या. ९७. पे. नाम. आगमोद्धृत विविध विचार संग्रह, पृ. ४५ अ-७८आ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. For Private and Personal Use Only Page #266 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२६ www.kobatirth.org २५१ आगमिक विचार संग्रह, प्रा., मा.गु. सं., प+ग, आदि तिविहे चक्खू पन्नत्ते तंज, अंति: (-), (पू.वि. सर्वत्रोच्चत्व अनेक मान विचार तक है., वि. कोष्ठक, सदर्भपाठादि युक्त.) ९८. पे नाम. आगमिक गाथा संग्रह, पृ. ८१२-८३आ, अपूर्ण, पू. वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं. आगमिक पाठ संग्रह-विविध विषयक, प्रा., प+ग, आदि: (-); अंति: जीवो सोविय पत्तय पढमाए, (पू.वि. गाथा-७० अपूर्ण से है., वि. अलग-अलग क्रम में गाथाक्रम हैं.) ९९. पे नाम, सूर्यचंद्रतापवर्णन विचार, पृ. ८३आ, संपूर्ण. , सं. गद्य, आदि रविताप ऊर्दध्वं योजनशतं अंति: अधस्त्वधोनगराणि यावत्. Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir १०० पे नाम. आहारपरिमाण गाथा, पृ. ८३आ, संपूर्ण आहारादिमान गाथा भरतादिक्षेत्रे, प्रा., पद्य, आदि बत्तीसं कित्र कवला आहारो; अंति: वयणं मिच्छुभिज्जवी सत्बो, गाथा-२. १०१. पे. नाम. पद्मद्रहविचार गाथा, पृ. ८३-८४आ, संपूर्ण. प्रा., पद्य, आदि: हिमवंतसेलसिहरेवरारविंद, अंति: कोसं संजोयणमेगं मुणेयव्वं, गाथा-२९. १०२. पे नाम जंबूवृक्ष विचार, पृ. ८४-८५अ, संपूर्ण जंबूवृक्ष विचार गाथा, प्रा., पद्य, आदि: जंबूनयामयं जंबुपीड उत्तर, अंति: जिणभवणा कोसपमाणा परमरम्मा, गाथा - २१. १०३. पे नाम. प्रास्ताविक गाथा संग्रह. पू. ८५अ, संपूर्ण प्रा., पद्य, आदि एवं‍ अज्जाइज्जा २ बमो३: अंति: बाससएहि चउरासीएहिं समएहिं गाथा-४ (वि. भिन्न-भिन्न विषयसमन्वित.) १०४. पे नाम चत्तारि अद्भुदसदोयगाथा की व्याख्या, पृ. ८५अ संपूर्ण शाश्वतप्रतिमावर्णन स्तव टीका, सं., गद्य, आदि: चतुर्विंशतिः प्रसिद्धैव अति: चतुर्विंशति जिनवरा इति. १०५. पे. नाम. श्रावकयोग्य विधिमुद्रा कुलक, पृ. ८५-८६ आ, संपूर्ण. प्रा., पद्य, आदि नमिऊण अभियनाणं सिरिवीर; अति मग्गं तं पइ इमं भणियं, गाथा- ४५. १०६. पे. नाम. आगमिक पाठ संग्रह, पृ. ८६आ-८८आ, संपूर्ण. आगमिकपाठ संग्रह, प्रा., सं., पग, आदि मेहूणसन्नरूडो नवलक्ख हणे, अति: पडिलाभेमाणा विहरंति, (वि. विविध विषय समाहित है.) ११८५१७. श्रीपाल रास, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ८ जैवे. (२६४१२, ११४३३). श्रीपाल रास, उपा. विनयविजय; उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., पद्य, वि. १७३८, आदि: कल्पवेल कविय तणी; अंति: (-), (अपूर्ण, पू. वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., ढाल -६ गाथा-११ अपूर्ण तक लिखा है.) ११८५१९. (+) कल्पसूत्र सह टबार्थ, अंतर्वाच्य, अंतर्वाच्य का टबार्थ व व्याख्यान, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १०२, प्र. वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ. कुल ग्रं. ३३००, जैदे., (२७४११.५, ५-१५४३६-४०). कल्पसूत्र, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., गद्य, आदि णमो अरिहंताणं० पढमं अति (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण. व्याख्यान ६ अपूर्ण तक लिखा है.) कल्पसूत्र -टबार्ध, मा.गु, गद्य, आदि: श्रीगुरुन माहरु नमस्कार, अंति: (-), अपूर्ण, पू. वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण. कल्पसूत्र-अंतर्वाच्य *, सं., गद्य, आदि: प्रणम्य श्रीजिनं; अंति: (-), अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण. कल्पसूत्र - अंतर्वाच्य का टवार्थ, मा.गु., गद्य, आदि नमस्कार करीने; अंति (-), अपूर्ण, पू. वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण. कल्पसूत्र व्याख्यान+कथा, मा.गु., गद्य, आदि (-); अंति (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., वि. बालावबोध व कथा बीच-बीच में लिखा है.) ११८५२०. (+#) अंजनासती रास, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १८-१३ (१ से २,५,७ से १६) = ५, पू. वि. बीच-बीच के पत्र हैं., प्र. वि. पत्रांक व्यवस्थित न होने के कारण अनुमानित पत्रांक दिये गए हैं., संशोधित मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., (२६.५X११.५, १४x२८). For Private and Personal Use Only Page #267 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir २५२ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची अंजनासती रास, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. गाथा-१४ अपूर्ण से प्रारंभ है, प्रारंभ बीच व अंत के पाठांश नहीं हैं.) ११८५२२. (#) ढालसागर, संपूर्ण, वि. १७९३, माघ कृष्ण, ४, रविवार, मध्यम, पृ. ९२, ले.स्थल. दशपुरनगर, पठ. मु. राम ऋषि (गुरु मु. माणिकचंद ऋषि); गुपि. मु. माणिकचंद ऋषि (गुरु मु. जोधराज ऋषि); मु. जोधराज ऋषि (गुरु आ. विनयसागरसूरि); आ. विनयसागरसूरि, प्र.ले.पु. मध्यम, प्र.वि. हुंडी:ढालसागरपत्र., अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५.५४११, २०x४२-४५). पांडव रास, आ. गुणसागरसूरि, मा.गु., पद्य, वि. १६७६, आदि: श्रीजिन आदिजिनेश्वरू; अंति: गुणसूरि० रंग वधामणो, खंड-९, ग्रं. ५७५०, (वि. ढाल-१५१) ११८५२३. (+) संबोधसप्ततिका सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १८४०, मार्गशीर्ष शुक्ल, ६, शनिवार, मध्यम, पृ. ७, ले.स्थल. पालनपुर, प्रले. मु. शिवसुंदर, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित-टिप्पण युक्त विशेष पाठ-पदच्छेद सूचक लकीरें., जैदे., (२६.५४११.५, ६४३९-४३). संबोधसप्ततिका, आ. रत्नशेखरसूरि, प्रा., पद्य, आदि: नमिऊण तिलोअगुरुं; अंति: जयसेहर नत्थि संदेहो, गाथा-७१, __(वि. गाथाक्रम भिन्न है.) संबोधसप्ततिका-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: नमीने त्रिलोकगुरु लोकालोक; अंति: इहां संदेह नही ए वातनो. ११८५२४. (+) स्त्रीजातक जन्मपत्रिका, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १०, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२६.५४११.५, १५४५२-५५). स्त्रीजातक जन्मपत्रिका, सं., प+ग., आदि: आदीश्वरं नमस्कृत्य; अंति: (-), (अपूर्ण, पृ.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., योग विचार अपूर्ण तक लिखा है.) ११८५२८. (+) उवाई उपांग, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ५०-२(३७ से ३८)=४८, प्र.वि. हुंडी:उवाईसू., पदच्छेद सूचक लकीरें. कुल ग्रं. १२५०, जैदे., (२६.५४११, ११४३५-४०). औपपातिकसूत्र, प्रा., पद्य, आदि: तेणं कालेणं तेणं; अंति: यमणागयमद्धं चिटुंति, सूत्र-४३, (पू.वि. सूत्र-४९ अपूर्ण से सूत्र-५० अपूर्ण तक नहीं है.) ११८५२९ (+) वीरस्तुति, महावीरजिन स्तुति-गाथा १ से ३ सह टबार्थ व औपदेशिक गाथादि संग्रह, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, प.५, कल पे.५.प्र.वि. टिप्पण यक्त विशेष पाठ-संशोधित., जैदे., (२५.५४११, ४४४७-५३). १.पे. नाम. सूत्रकृतांगसूत्र-वीरस्तुति अध्ययन सह टबार्थ, पृ. १अ-४अ, संपूर्ण. सूत्रकृतांगसूत्र-हिस्सा वीरस्तुति अध्ययन, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., पद्य, आदि: पुच्छिसुणं समणा माहण; अंति: आगमिस्संति त्तिबेमि, गाथा-२९. सूत्रकृतांगसूत्र-हिस्सा वीरस्तुति अध्ययन का टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: पु०नरकविभत्ति सांभली; अंति: पदवी० आगमियइ कालइ थाइ. २.पे. नाम, महावीरजिन स्तुति-गाथा १ से ३ सह टबार्थ, पृ. ४अ-४आ, संपूर्ण. महावीरजिन स्तुति-गाथा १ से ३, हिस्सा, प्रा.,मा.गु.,सं., पद्य, आदि: पंचमहव्वयसुव्वय मूलं समण; अंति: मोक्खपयस्स वडिंसग भूयं. महावीरजिन स्तुति-गाथा १ से ३ का टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: प० पंचमहाव्रत सर्व प्राणा; अंति: श्रीभगवंतइ भाष्यउ. ३. पे. नाम. औपदेशिक गाथा-जीवदया सह बालावबोध, पृ. ४आ, संपूर्ण. औपदेशिक गाथा-जीवदया, प्रा., पद्य, आदि: कल्याणकोडि जणणी दूरीतदरि; अंति: तरणी एकंती होइ जीवदया, गाथा-१. औपदेशिक गाथा-जीवदया-बालावबोध, मा.गु., गद्य, आदिः श्रीतीर्थंकरदेव श्रीवीर; अंति: बोल पुन्य होइतो पामीइ. ४. पे. नाम. उत्तराध्ययनसूत्र-अध्ययन १६ गाथा १५ से १७ सह टबार्थ, पृ. ४आ, संपूर्ण. उत्तराध्ययनसूत्र-हिस्सा अध्ययन-१६, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., गद्य, आदि: (-); अंति: सिज्झिस्संति तहावरे, प्रतिपूर्ण. उत्तराध्ययनसूत्र-हिस्सा अध्ययन-१६ का टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: जीव एम छे हुं कहु छु, प्रतिपूर्ण. ५. पे. नाम. तीर्थंकर नामकर्मबंध सह बालावबोध, पृ. ५अ-५आ, संपूर्ण. For Private and Personal Use Only Page #268 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir २५३ हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२६ २० स्थानकतप गाथा, प्रा., पद्य, आदि: अरिहंत सिद्ध पवयण; अंति: तित्थयरत्तं लहइ जीवो, गाथा-३. २० स्थानकतप गाथा-बालावबोध, मा.गु., गद्य, आदि: प्रणम्य श्रीगुरुं सम्यक; अंति: एगदो तिन्नि सव्वेवि. ११८५३०. पाक्षिकसूत्र, सिद्धांत गाथा व पाक्षिकप्रतिक्रमणविधि गाथादि संग्रह, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ५, कुल पे. ४, पठ. मु. भाणविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२६४११, १३४४८-५६). १.पे. नाम. पाक्षिकसूत्र, पृ.१अ-५अ, संपूर्ण. हिस्सा, प्रा., प+ग., आदि: तित्थंकरे य तित्थे; अंति: नित्थारगपारगाहोह. २.पे. नाम, सिद्धांत गाथा, पृ. ५आ, संपूर्ण. ब्रह्मचर्य गाथा, प्रा., पद्य, आदि: महिलाओ जाओ परिरक्खियाओ; अंति: ताणं नियमेण उववाओ, गाथा-२. ३. पे. नाम. पाक्षिकप्रतिक्रमणविधि गाथा, प. ५आ, संपूर्ण. प्रा., पद्य, आदि: मुहपत्ती वंदणयं संबुद्धा; अंति: एसविहि पक्खपडिक्कमणे, गाथा-२. ४. पे. नाम. मांगलिक गाथा संग्रह, पृ. ५आ, संपूर्ण. श्लोक संग्रह-मांगलिक, प्रा.,मा.गु.,सं., पद्य, आदि: सुत्तं अब्भुट्ठाणं; अंति: तस्मै श्रीगुरवे नमः, श्लोक-३. ११८५३१. (+) ऋषिमंडल प्रकरण, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ११,प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें-टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२६४११,११४३७-४८). ऋषिमंडल प्रकरण, आ. धर्मघोषसूरि, प्रा., पद्य, वि. १४वी, आदि: भत्तिब्भरनमिरसुरवर; अंति: धम्मघोस० सिद्धिसुहं, गाथा-२२०. ११८५३२. धन्नाअणगार सज्झाय व १६ सती नाम, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ५-४(१ से ४)=१, कुल पे. २, जैदे., (२५.५४११.५, १६४३२). १.पे. नाम, धन्नाअणगार सज्झाय, पृ. ५अ-५आ, संपूर्ण. मु. सिंघ, मा.गु., पद्य, आदि: सरसति सामनि वीनवु मागु; अंति: संघो भणि मुझनि साधु सरण, गाथा-१५. २. पे. नाम, १६ सतीनाम स्तुति, पृ. ५आ, संपूर्ण. १६ सती स्तुति, सं., पद्य, आदि: ब्राह्मी १ चंदणबालिका २; अंति: कुर्वंतु वो मंगलम्, श्लोक-१.. ११८५३३ (+) पार्श्वजिन स्तुति सह अवचूरि, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. १, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२६४११, ८४४४). पार्श्वजिन स्तुति, मु. जिनपद्म, सं., पद्य, आदि: तमालनीलच्छविपिच्छला; अंति: सहितं सहितं समंतात्, श्लोक-७, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तुति-अवचूरि, सं., गद्य, आदि: ० सदर्थः मनोहरांग अथवासंत; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., श्लोक-५ अपूर्ण तक अवचूरि लिखी है., वि. टबार्थ शैली में अवचूरि लिखी है.) ११८५३४. (+) नंदीश्वरद्वीप पूजा, संपूर्ण, वि. १८७७, माघ शुक्ल, ४, श्रेष्ठ, पृ. ७, ले.स्थल. जयनगर, प्र.वि. हुंडी:नंदीश्वरद्वीपपूजा., टिप्पण युक्त विशेष पाठ-पदच्छेद सूचक लकीरें., जैदे., (२५४११, १०४२६). नंदीश्वरद्वीप ५२ जिनप्रासाद ८प्रकारीपूजा स्तवन, ग. शिवचंद्र, मा.गु., पद्य, वि. १८७६, आदि: स्वस्ति श्रीसुखकरण; अंति: शिवचंद० पूजा मनरंग, पूजा-८, गाथा-७४. ११८५३५ (+) भाष्यत्रय सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १८३३, चैत्र कृष्ण, शनिवार, श्रेष्ठ, पृ. १६, प्रले. मु. हिम्मतहंस; पठ. पं. जुक्तहंस; अन्य. ग. फतेंद्रसागर, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित., जैदे., (२६४११, ५४४४). भाष्यत्रय, आ. देवेंद्रसूरि, प्रा., प+ग., वि. १४वी, आदि: वंदित्तु वंदणिज्जे; अंति: सासयसुक्खं अणाबाहं, भाष्य-३. भाष्यत्रय-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: वंदित्तु कहता वांदीनइ; अंति: सुख० अणावाह बाधारहित.. ११८५३६. (+) अजितशांति स्तवन, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ४, प्र.वि. हुंडी:अजिहं तो, अजिय स्त., संशोधित., जैदे., (२५४११.५, १२४२४). अजितशांति स्तव, आ. नंदिषेणसरि, प्रा., पद्य, आदि: अजियं जिअ सव्वभयं संति च; अंति: जिणवयणे आयरं कणह, गाथा-४०. For Private and Personal Use Only Page #269 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir २५४ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ११८५३७. (#) योगचिंतामणि, पूर्ण, वि. १७३५, मार्गशीर्ष कृष्ण, ८, रविवार, मध्यम, पृ. १०७-१(११)=१०६, प्र.वि. हंडी:योगचिंतामणि, योगचिंता०., प्रतिलेखन पुष्पिका मिटाई हई है. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६.५४११, १४४४३). योगचिंतामणि, आ. हर्षकीर्तिसरि, सं., पद्य, वि. १७वी, आदि: यत्र वित्रासमायांति; अंति: हर्षकीर्ति चिंतामणिश्चिरं, अध्याय-७, (अपूर्ण, पू.वि. आदापाक वर्णन अपूर्ण नहीं है.) ११८५३८. आचारांगसूत्र-द्वितीयश्रुतस्कंध सह टबार्थ, पूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ११२-१(१)=१११, जैदे., (२६.५४११, ५४५१-५५). आचारांगसूत्र-हिस्सा श्रुतस्कंध २, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., प+ग., आदि: से भिक्खु वा भिक्खु; अंति: जे चरण ठिउ ___ साधु, अध्ययन-१६, संपूर्ण. आचारांगसूत्र-हिस्सा श्रुतस्कंध २ का टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: ते चारित्रीओ मुलगुण; अंति: करी पहिलउ अंग पूरउ थयउ, संपूर्ण. ११८५३९ (+) कल्पसूत्र सह टीका, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, प. १३७-९०(१ से २,४ से ८,१०,१२ से १८,५१ से ९३,१०३ से ११७,११९ से १३५)=४७, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२६४११, १७४४४-५५). कल्पसूत्र, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., गद्य, आदि: (-); अंति: भुज्जो उवदंसेइ त्तिबेमि, व्याख्यान-९, (पू.वि. प्रारंभ व ___ बीच-बीच के पत्र नहीं हैं., प्रारंभिक पाठ अपूर्ण से है, बीच-बीच व अंत के पाठ नहीं हैं.) कल्पसूत्र-टीका *, सं., गद्य, आदिः (-); अंति: (-), पृ.वि. प्रारंभ, बीच व अंत के पत्र नहीं हैं. ११८५४० (+) कर्मग्रंथ सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १८९३, मार्गशीर्ष कृष्ण, २, श्रेष्ठ, पृ. १२८, कुल पे. ६, ले.स्थल. राधनपुर, पठ. सा. माणसरी, प्र.ले.प. सामान्य, प्र.वि. श्रीआदेसरजी प्रसादात., टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित., जैदे., (२६४११, ४४२६). १. पे. नाम. कर्मविपाक नव्य कर्मग्रंथ सह टबार्थ, पृ. १आ-२५अ, संपूर्ण. कर्मविपाक नव्य कर्मग्रंथ-१, आ. देवेंद्रसूरि, प्रा., पद्य, वि. १३वी-१४वी, आदि: सिरिवीरजिणं वंदिय; अंति: लिहिओ देविंदसूरिहिं, गाथा-६२. कर्मविपाक नव्य कर्मग्रंथ-१-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: सिरिवीर जिणं केह० महावीर; अंति: आचार्ये लिख्यो छे ते भणवो. २. पे. नाम, कर्मस्तव नव्य कर्मग्रंथ सह टबार्थ, पृ. २५अ-३९अ, संपूर्ण. कर्मस्तव नव्य कर्मग्रंथ-२, आ. देवेंद्रसूरि, प्रा., पद्य, वि. १३वी-१४वी, आदि: तह थुणिमो वीरजिणं; अंति: देविंदवंदियं नमह तं वीरं, गाथा-३४. । कर्मस्तव नव्य कर्मग्रंथ-२-टबार्थ *, मा.गु., गद्य, आदि: तह० के० तिम ज थुणि मोके०; अंति: मान तेहने वांदिने. ३. पे. नाम. बंधस्वामित्व नव्य कर्मग्रंथ सह टबार्थ, पृ. ३९अ-४९आ, संपूर्ण. बंधस्वामित्व नव्य कर्मग्रंथ-३, आ. देवेंद्रसरि, प्रा., पद्य, वि. १३वी-१४वी, आदि: बंधविहाणविमुक्कं; अंति: देविंदसूरि० सोउं, गाथा-२४. बंधस्वामित्व नव्य कर्मग्रंथ-३-टबार्थ *, मा.गु., गद्य, आदि: बंध कर्मनो बंध तिकेनो; अंति: ग्रंथ भणीने पछे ए भणजो ४.पे. नाम. षडशीति नव्य कर्मग्रंथ सह टबार्थ, पृ. ५०अ-७६अ, संपूर्ण, प्र.ले.श्लो. (५०) जलं रक्षेत स्थलं रक्षेत. षडशीति नव्य कर्मग्रंथ-४, आ. देवेंद्रसूरि, प्रा., पद्य, वि. १३वी-१४वी, आदि: नमिय जिणं जियमग्गणगुणठाणु; अंति: लिहियो देविंदसूरी हिं, गाथा-८९. षडशीति नव्य कर्मग्रंथ-४-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: नमस्कार करि जिन वीतराग; अंति: आचार्य ग्यान हेतु. ५. पे. नाम. शतक नव्य कर्मग्रंथ सह टबार्थ, पृ. ७६आ-१०६आ, संपूर्ण. शतक नव्य कर्मग्रंथ-५, आ. देवेंद्रसूरि, प्रा., पद्य, वि. १३वी-१४वी, आदि: नमिअ जिणं धुवबंधोदय; अंति: देविंदसूरि०आयसरणट्ठा, गाथा-१००. For Private and Personal Use Only Page #270 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२६ २५५ शतक नव्य कर्मग्रंथ-५-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: पहिलो द्वार खाडे छे ध्रुब; अंति: संभारवानइ अर्थइ. ६.पे. नाम. सप्ततिका कर्मग्रंथ सह टबार्थ, प. १०६आ-१२८अ, संपूर्ण. सप्ततिका कर्मग्रंथ-६, प्रा., पद्य, वि. १३वी-१४वी, आदि: सिद्धपएहिं महत्थं; अंति: एगुणा होइ नउइओ, गाथा-९३. सप्ततिका कर्मग्रंथ-६-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: सिद्ध निश्चल पद जेह; अंति: उणी नेउ गाथा होइ. ११८५४१. नवकलशनी पूजा, संपूर्ण, वि. १८५१, श्रावण शुक्ल, १, रविवार, श्रेष्ठ, पृ. ७, प्रले. मु. लालसागर; अन्य. ग. फतेंद्रसागर, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. श्रीचिंतामणिजी प्रसादात्., जैदे., (२६४११, १२४४०). नवपद पूजा, उपा. यशोविजयजी गणि, प्रा.,मा.गु.,सं., पद्य, आदि: उपन्नसन्नाणमहोमयाणं; अंति: दीवो अम तणा नाथ चीरं जीवो, पूजा-९. ११८५४२. (+) योगशास्त्र-प्रकाश १ से ४ व लघुशांति, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १०, कुल पे. २, अन्य. ग. फतेंद्रसागर, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. हुंडी:योगशास्त्रसूत्र., पदच्छेद सूचक लकीरे-संशोधित., जैदे., (२६४११, १७४४३-४८). १.पे. नाम. योगशास्त्र-प्रकाश १ से ४, पृ. १अ-१०अ, संपूर्ण, पठ. मु. जयसागर, प्र.ले.पु. सामान्य. योगशास्त्र, आ. हेमचंद्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., पद्य, वि. १३वी, आदि: नमो दुर्वाररागादि; अंति: (-), प्रतिपूर्ण. २.पे. नाम. लघुशांति, पृ. १०आ, संपूर्ण. आ. मानदेवसूरि, सं., पद्य, आदि: शांति शांतिनिशांत; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., श्लोक-३ __ अपूर्ण तक लिखा है.) ११८५४३. कल्पसूत्र-१४ स्वप्न वर्णन सह बालावबोध, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ६, पू.वि. प्रारंभ के पत्र हैं., जैदे., (२६४११, ११४३०-४०). कल्पसूत्र-हिस्सा १४ स्वप्न वर्णन, आ. भद्रबाहस्वामी, प्रा., गद्य, आदि: गय१ वसह२ सिह३ अभिसेय४; अंति: (-), (पू.वि. स्वप्न-११ अपूर्ण तक है.) कल्पसूत्र-हिस्सा १४ स्वप्न वर्णन का बालावबोध, मा.गु., गद्य, आदि: तिवार पछी परमेश्वर तणी; अंति: (-). ११८५४४. (+#) नलदमयंती चरित्र, औपदेशिक सज्झाय व नेमराजिमती सज्झाय, अपूर्ण, वि. १८वी, जीर्ण, पृ.८, कुल पे. ३, प्र.वि. संशोधित. मूल पाठ का अंश खंडित है, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६४११.५, १५४४७). १. पे. नाम. नलदमयंती चरित्र, पृ. १अ-८अ, संपूर्ण. वा. ज्ञानसागर, मा.गु., पद्य, वि. १७५८, आदि: प्रणमुं पारसनाथना चरण कमल; अंति: दिन प्रति होइ उछाह. २. पे. नाम. औपदेशिक सज्झाय, पृ. ८अ-८आ, संपूर्ण. मु. ज्ञानसागर, मा.गु., पद्य, आदि: तरुण पणइ तप कीजीअइ दोहिलो; अंति: सांभलइ ज्ञानसागर कहइ, ढाल-२. ३. पे. नाम. नेमराजिमती सज्झाय, पृ. ८आ, अपूर्ण, पृ.वि. प्रारंभ के पत्र हैं. मा.गु., पद्य, आदि: सांवलिया रे श्रावण०; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-४ अपूर्ण तक है.) ११८५४६. (+) विमलशाह सिलोको, संपूर्ण, वि. १८१३, भाद्रपद शुक्ल, १२, श्रेष्ठ, पृ.८, ले.स्थल. रामपुरा, प्रले. पं. श्रीपतिसागर; पठ.पं. चंद्रसागर, प्र.ले.प. सामान्य, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित., जैदे., (२५४११, १२४२६-३०). विमलमंत्री सलोको, पंन्या. विनीतविमल, मा.गु., पद्य, आदि: सरसती समरूं बे करजोडी; अंति: पंडित विनतिविमल गुण गायो, गाथा-११०. ११८५४७. (+) सडसठ बोल समकितनी सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९वी, मार्गशीर्ष शुक्ल, १५, श्रेष्ठ, पृ. ५, ले.स्थल. राधिकापुर, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२५.५४११, ११४३४). सम्यक्त्व ६७ बोल सज्झाय, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., पद्य, आदिः सुकृतवल्लि कादंबिनी; अंति: वाचक जस इम बोले रे, ढाल-१२, गाथा-६८. ११८५४८. (+#) श्रीपाल रास-लघु, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ९-४(१ से २,७ से ८)=५, प्र.वि. संशोधित-टिप्पण युक्त विशेष पाठ. मूल पाठ का अंश खंडित है, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५४११, १५४३७-४०). For Private and Personal Use Only Page #271 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir २५६ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची श्रीपाल रास-लघु, मु. जिनहर्ष, मा.गु., पद्य, वि. १७४२, आदिः (-); अंति: (-), (पू.वि. प्रारंभ, बीच व अंत के पत्र नहीं हैं., ढाल-५ गाथा-५७ अपूर्ण से ढाल-१२ गाथा-१५१ अपूर्ण तक व ढाल-१५ गाथा-२०२ अपूर्ण से ढाल-१६ गाथा-२२७ अपूर्ण तक है.) ११८५४९. (#) विहरमानजिन स्तवनवीसी, संपूर्ण, वि. १८वी, जीर्ण, पृ. ९, प्र.वि. पत्र चिपके होने के कारण प्रतिलेखन पुष्पिका अवाच्य है., अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५४११, ११४२५). विहरमानजिन स्तवनवीसी, आ. जिनसागरसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: स्वामि सीमंधर विनती; अंति: संघ वरै श्रीजिनसागरसूरि, स्तवन-२०. ११८५५०, दानशीलतपभावना संवाद, नेमराजिमती रास व क्षमाछत्रीसी आदि संग्रह, अपूर्ण, वि. १७८३, भाद्रपद शुक्ल, ३, शुक्रवार, मध्यम, पृ. २१-१३(५ से ६,१० से २०)=८, कुल पे. ७, प्रले. मु. कर्मचंद ऋषि; पठ. सा. भावलदे, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२५.५४११, १५४४३-४६). १. पे. नाम. दानशीलतपभावना संवाद, प. १आ-४अ, संपूर्ण. उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, वि. १६६२, आदि: प्रथम जिणेसर पय नमी; अंति: अधिकारो रे धर्म हिये धरो, ढाल-४, गाथा-९७, ग्रं. १३५. २. पे. नाम. नेमराजिमती रास, पृ. ४अ-४आ, अपूर्ण, पृ.वि. प्रारंभ के पत्र हैं. मु. पुण्यरत्न, मा.गु., पद्य, आदि: सारद पाय प्रणमी करी नेम; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-२० अपूर्ण तक है.) ३. पे. नाम. क्षमाछत्रीसी, पृ. ७अ-७आ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र हैं. उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, आदिः (-); अंति: संघ जगीश जी, गाथा-३६, (पू.वि. गाथा-१३ अपूर्ण से है.) ४. पे. नाम, मेघकुमार सज्झाय, पृ. ७आ-८आ, संपूर्ण. मेघकुमार चौढालिया, मु. जादव, मा.गु., पद्य, आदि: प्रथम गणधर गुणनिलो; अंति: भणता रे सुख थाय, ढाल-४, गाथा-२३. ५. पे. नाम. थावच्चापुत्र सज्झाय, पृ. ८आ-९अ, संपूर्ण. मु. तेजमुनि, मा.गु., पद्य, आदि: नेमजिणंद समोसर्या रे; अंति: ऋषि थावचा गुण गाय रे, ढाल-३, गाथा-२१. ६. पे. नाम. पुण्यसार रास-पुण्याधिकारे, पृ. ९अ-९आ, अपूर्ण, पू.वि. प्रारंभ के पत्र हैं. म. पुण्यकीर्ति, मा.गु., पद्य, वि. १६६६, आदि: नाभिरायनंदन नमुंशांति; अंति: (-), (पू.वि. ढाल-२ गाथा-२ अपूर्ण तक ७. पे. नाम. शीलरास प्रकाश, पृ. २१अ-२१आ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र हैं. शीयलप्रकाश रास, आ. विजयदेवसूरि, मा.गु., पद्य, वि. १६३७, आदि: (-); अंति: के शील अखंडित सेवज्यो, ___गाथा-७२, (पू.वि. गाथा-६७ अपूर्ण से है.) ११८५५१. (#) शत्रंजयतीर्थे सिद्ध आत्मा विवरण, शत्रंजयतीर्थ २१ नाम व शत्रंजयतीर्थ २५ नामादि संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ५, कुल पे. ४, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५४११, ११४२८). १. पे. नाम. शत्रुजयतीर्थे सिद्ध आत्मा विवरण, पृ. १अ-४अ, संपूर्ण. ___ मा.गु., गद्य, आदि: चैत्र सुदि १५ मे; अंति: तेहने माहरो नमस्कार होउ. २. पे. नाम. शत्रुजयतीर्थ २१ नाम, पृ. ४अ, संपूर्ण.. मा.गु., गद्य, आदि: श्रीशेजयतीर्थाय नमः; अंति: श्रीसर्वकर्मद पर्वताय नमः. ३. पे. नाम. शत्रुजयतीर्थ २५ नाम, पृ. ४आ, संपूर्ण. मा.गु., गद्य, आदि: श्रीसिंहशेखराय नमः; अंति: श्रीआषि० पर्वताय नमः. ४. पे. नाम. शत्रुजयतीर्थ-१८ उद्धार, पृ. ४आ-५अ, संपूर्ण. १६ उद्धार-शत्रुजयतीर्थ, मा.गु., गद्य, आदि: प्रथम उद्धार भरतचक्रवर्ति; अंति: पांचमा आराने छेडे थास्ये. ११८५५२. (+) महावीरजिन स्तवन-स्थापनानिक्षेपप्रमाण पंचांगीगर्भित सह बालावबोध, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १४, पू.वि. प्रारंभ के पत्र हैं., प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-त्रिपाठ-संशोधित., जैदे., (२५.५४११, १६४३९-५०). For Private and Personal Use Only Page #272 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२६ २५७ महावीरजिन स्तवन-स्थापनानिक्षेपप्रमाण पंचांगीगर्भित, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., पद्य, वि. १७३३, आदिः प्रणमी श्रीगुरुना पय; अंति: (-), (पू.वि. ढाल-५ गाथा-२५ अपूर्ण तक है.) महावीरजिन स्तवन-स्थापनानिक्षेपप्रमाण पंचांगीगर्भित-बालावबोध, मा.गु., गद्य, आदि: अधिका निक्षेपा न; अंति: (-), (वि. विविध आगम ग्रंथों का संदर्भ दिया गया है.) ११८५५३. अवंतिसुकुमाल सज्झाय व मुनिराज की स्तुति, संपूर्ण, वि. १९१९, श्रावण शुक्ल, १५, श्रेष्ठ, पृ. ७, कुल पे. २, ले.स्थल. शिवपुरीनगर, प्रले. मु. हंसविजय; पठ. श्रावि. जेठीबाई, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.ले.श्लो. (५२) पोथी प्यारी प्राणथी, (११६५) भणज्यो गुणज्यो सीखज्यो, दे., (२५४११.५, १३४३१). १.पे. नाम. अवंतिसुकुमाल सज्झाय, पृ. १अ-७आ, संपूर्ण. म. जिनहर्ष, मा.गु., पद्य, वि. १७४१, आदि: पास जिणेसर सेवीए वीस; अंति: शांतिहर्ष सुख पावेरे, ढाल-१३. २. पे. नाम. मुनिराज की स्तुति, पृ. ७आ, संपूर्ण. साधुस्तुति सवैया, जै.क. बनारसीदास, पुहिं., पद्य, वि. १७वी, आदि: ज्ञान को उजागर सहज; अंति: नमस्कार कर्यो है, पद-२. ११८५५४. बृहत्संग्रहणी-बोल संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १९, जैदे., (२६४११, १३४३३). बृहत्संग्रहणी-बोल संग्रह, संबद्ध, मा.गु., गद्य, आदि: प्रथम नरके आउखो जघन्यै १०; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., १४ गुणठाणा जीव अल्पबहुत्व विचार अपूर्ण तक लिखा है.) । ११८५५५ (+) महावीरजिन स्तवन-२७ भवविचारगर्भित, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ६, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२५.५४११, ११४३४). महावीरजिन स्तवन-२७ भवविचारगर्भित, म. हंसराज, मा.गु., पद्य, वि. १७वी, आदि: सरसति भगवति दिओ मति; अंति: वंदे० धन मुझ ए गुरो, ढाल-१०, गाथा-१००. ११८५५६. अक्षरबावनी, औपदेशिक पद व शुकनावली, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ६, कुल पे. ३, प्रले. मु. रंगहर्ष; अन्य. मु. हीरविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. पं श्रीजयविजयजीनी परत छे., जैदे., (२६४११.५, १३४३९). १.पे. नाम. अक्षरबावनी, पृ. १अ-६आ, संपूर्ण. मु. केशवदास, पुहिं., पद्य, वि. १७३६, आदि: ॐकार सदा सुख देत; अंति: केसवदास सदा सुख पावै, गाथा-५७. २. पे. नाम, औपदेशिक पद, पृ. ६आ, संपूर्ण. मु. केशवदास, पुहिं., पद्य, वि. १८वी, आदि: मालवदेस नरेस महिपती मुज; अंति: कर्म की रेख टरे नही टारी, गाथा-२. ३. पे. नाम. शुकनावली, पृ. ६आ, संपूर्ण. पुहिं., पद्य, आदि: राम नाम थिर लीलविलास; अंति: हनुमंत० वात सुणावे, दोहा-१. ११८५५७. ६ आरा बोल, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ६, प्र.वि. हुंडी:छ आराना बोल., जैदे., (२५४११.५, १५४३८). ६ आरा बोल, मा.गु., गद्य, आदि: दस कोडाकोड सागरोपमना; अंति: जिनधर्म करसे ते सुखी थासे, ग्रं. १८०. ११८५५८. (#) केशीगणधर प्रदेशीराजा चौपाई, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ७-१(४*)=६, प्र.वि. अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, जैदे., (२५.५४११, १२४४०). केशीगणधर प्रदेशीराजा चौपाई, मु. ज्ञानचंद, मा.गु., पद्य, वि. १७वी, आदि: प्रणमी श्रीअरिहंत; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., ढाल-८ गाथा-८ अपूर्ण तक लिखा है.) ११८५६० (+) चमत्कारचिंतामणि सह बालावबोध, संपूर्ण, वि. १८१८, भाद्रपद कृष्ण, ३, सोमवार, श्रेष्ठ, पृ. १५, ले.स्थल. कर्णपुरनगर, प्रले. ग. मनोहरसागर; अन्य. पं. फतेंद्र, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२४४११.५, १५४४६-५०). चमत्कारचिंतामणि, राजऋषिभट्ट, सं., पद्य, आदि: नचेत् खेचरा स्थापिते किं; अंति: मृषि मचिंतामणीयं, श्लोक-१११. चमत्कारचिंतामणि-बालावबोध, मा.गु., गद्य, आदि: जो खेचर ग्रह न थाप्या तओ; अंति: पिण वक्र छे भुजंगनी चालि, (वि. बालावबोध मनोहरसागरजी कृत होने की संभावना है.) For Private and Personal Use Only Page #273 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir २५८ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ११८५६१ (+) चमत्कारचिंतामणि सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १०, प्र.वि. हुंडी:चमत्कार, चिम०., संशोधित., जैदे., (२४४११, १०४२६). चमत्कारचिंतामणि, राजऋषिभट्ट, सं., पद्य, आदि: न चेत् खेचराः स्थापिताः; अंति: (-), (पृ.वि. प्रारंभ के पत्र हैं., केतु ग्रह फल वर्णन अपूर्ण तक है.) चमत्कारचिंतामणि-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: जो खेचर ग्रह चक्र कहता; अंति: (-), (पृ.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., ___ मात्र श्लोक-१ तक लिखा है.) ११८५६२. देवसिप्रतिक्रमणसूत्र-तपागच्छीय, मंगलीक स्तुति व बीजनी स्तुत्यादि संग्रह, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. १०, कुल पे. ११, जैदे., (२४४११, १३४३२). १. पे. नाम. देवसिप्रतिक्रमणसूत्र-तपागच्छीय, पृ. १आ-७आ, संपूर्ण. संबद्ध, प्रा.,मा.गु.,सं., प+ग., आदि: नमो अरिहंताणं० इच्छा; अंति: वंदामि जिणे चउवीसं. २. पे. नाम. मंगलीक स्तुति, पृ. ७आ-८अ, संपूर्ण. कल्लाणकंद स्तुति, संबद्ध, प्रा., पद्य, आदि: कल्याणकंदं पढमं जिणं; अंति: सोहाए सा अंब सया पसत्था, गाथा-४. ३. पे. नाम. बीजनी स्तुति, पृ. ८अ, संपूर्ण. बीजतिथि स्तुति, मु. लब्धिविजय, मा.गु., पद्य, आदि: दिन सकल मनोहर बीज; अंति: कहे पुरो मनोरथ माय, गाथा-४. ४. पे. नाम. पंचमी स्तुति, पृ. ८अ-८आ, संपूर्ण. ज्ञानपंचमीपर्व स्तुति, सं., पद्य, आदि: श्रीनेमिः पंचरूपत्रिदशपति; अंति: कुशलं धीमतां सावधाना, श्लोक-४. ५. पे. नाम, अष्टमी स्तुति, पृ. ८आ-९अ, संपूर्ण. संसारदावानल स्तुति, संबद्ध, आ. हरिभद्रसूरि, प्रा.,सं., पद्य, आदि: संसारदावानलदाहनीरं सम्मोह; अंति: विरहं देहि मे देवसारं, श्लोक-४. ६. पे. नाम, एकादशी स्तुति, पृ. ९अ-९आ, संपूर्ण. मौनएकादशीपर्व स्तुति, मु. गुणहर्ष-शिष्य, मा.गु., पद्य, आदि: एकादशी अति रुअडी गोविंद; अंति: गुणहर्ष० तणा निशदिश, गाथा-४. ७. पे. नाम. चौदस स्तुति, पृ. ९आ, संपूर्ण. पाक्षिक स्तुति, संबद्ध, आ. बालचंद्रसूरि, सं., पद्य, आदि: स्नातस्याप्रतिमस्य; अंति: सर्वकार्येषु सिद्धं, श्लोक-४. ८. पे. नाम. ऋषभदेव स्तुति, पृ. ९आ-१०अ, संपूर्ण. आदिजिन स्तुति, क. ऋषभदास संघवी, मा.गु., पद्य, वि. १७वी, आदि: प्रह उठी वंदु ऋषभदेव; अंति: ऋषभदास गुण गाय, गाथा-४. ९. पे. नाम. शांतिजिन स्तुति, पृ. १०अ-१०आ, संपूर्ण. क. ऋषभदास संघवी, मा.ग., पद्य, आदि: शांति जिणेसर समरीइं; अंति: सांभलो ऋषभदासनी वाणी, गाथा-४. १०. पे. नाम. पार्श्वजिन स्तुति, पृ. १०आ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तुति-भीलडीपुरमंडन, मु. सौभाग्यविजय, मा.गु., पद्य, आदि: भीलडीपुर मंडण सोहे पास; अंति: कहे सुख संपत्ति दातार, गाथा-४. ११. पे. नाम. शत्रुजयगिरनारतीर्थ स्तुति, पृ. १०आ, अपूर्ण, पृ.वि. प्रारंभ के पत्र हैं. मा.गु., पद्य, आदि: त्रिभुवनमांहि तीर्थसार; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-४ अपूर्ण तक है.) ११८५६३. बृहत्संग्रहणी सह बालावबोध, अपूर्ण, वि. १७३८, माघ शुक्ल, ७, शुक्रवार, मध्यम, पृ. ६७-३(१ से २,३४)=६४, ले.स्थल. जैसलमेर, पठ. श्राव. देवराज बोहरा, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२३.५४११.५, ११४३२). बृहत्संग्रहणी, आ. चंद्रसरि, प्रा., पद्य, वि. १२वी, आदिः (-); अंति: नंदउ जा वीरजिणं तित्थं, गाथा-२७४, (पू.वि. गाथा-७ अपूर्ण व गाथा-१२६ से १३० तक नहीं है.) बृहत्संग्रहणी-बालावबोध, मु. मतिचंद्र, मा.गु., गद्य, आदिः (-); अंति: ताइ ए शास्त्र चिरं नंदउ. For Private and Personal Use Only Page #274 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२६ ११८५६५ (+) योगचिंतामणि सह बालावबोध, अपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पू. ३४-७(१,३,१०,१२,२१,२४ से २५) +२ (९,३०)=२९, पू.वि. प्रारंभ, बीच व अंत के पत्र नहीं हैं., प्र. वि. हुंडी घृत, लेप. प्रतिलेखक द्वारा पत्रांक ११ के बाद पुनः १ से पत्रांक प्रारंभ किया गया है अतः पत्रांक गिनकर दिये गए हैं., संशोधित, जैदे., (२३.५X११, ८X३२-३८). יי योगचिंतामणि, आ. हर्षकीर्तिसूरि, सं. पद्य वि. १७वी, आदि (-); अंति (-), (पू.वि. घृतपाक अधिकार अपूर्ण से प्रलापी सन्निपात उपचार तक है व बीच-बीच के पाठांश नहीं है.) योगचिंतामणि- बालावबोध *, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: (-). ११८५७१. भक्तामर स्तोत्र सह सुखबोधिका टीका, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पू. १०. पू.वि. प्रारंभ के पत्र हैं, जैदे. (२३४११, १२X४२-४५). भक्तामर स्तोत्र, आ. मानतुंगसूरि, सं., पद्य, आदि: भक्तामरप्रणतमौलि; अंति: (-), (पू.वि. श्लोक-३५ तक है.) भक्तामर स्तोत्र-सुखबोधिका टीका, आ. अमरप्रभसूरि, सं., गद्य, आदि: युग्मं किल इति सत्ये; अंति: (-). ११८५७२. पंचमीतिथि स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ५, प्रले. श्राव. मयाचंद डूगर; अन्य. सा. मानसरी, प्र.ले.पु. सामान्य, जैवे. (२३.५x११, ८४२६). 3 Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ज्ञानपंचमीपर्व स्तवन, मु. गुणविजय, मा.गु., पद्य, आदि प्रणमी पास जिणेसर; अति भाखीओ गुणविजय रंगे मुनि, डाल- ६, गाथा ४९. ११८५७३. (+) नवस्मरण-नवकार व कल्याणमंदिर स्तोत्र रहित व लघुशांति, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ८, कुल पे. २, प्र. वि. संशोधित. दे. (२४४११. १५४३९-४५) १. पे. नाम. नवस्मरण-नवकार व कल्याणमंदिर स्तोत्र रहित, पू. १अ ७आ, संपूर्ण, वि. १९५२, मार्गशीर्ष शुक्ल, १५, ले. स्थल, बीकानेर, प्रले. पं. ज्ञानविजय, प्र.ले.पु. सामान्य. नवस्मरण, मु. भिन्न भिन्न कर्तक, प्रा. सं., प+ग, आदि (-); अति निब्यंत निच्चमच्चेह, प्रतिपूर्ण २. पे नाम. लघुशांति, पृ. ८अ ८आ, संपूर्ण आ. मानदेवसूरि, सं., पद्य, आदि: शांतिं शांतिनिशांतं; अंति: जैनं जयति शासनम्, श्लोक-१९. ११८५७४. स्नात्रपूजा विधिसहित संपूर्ण वि. १९वी श्रेष्ठ, पू. ६. प्र. वि. हुंडी स्नात्र, जैदे. (२२.५x११, १०X३०-३४). 1 स्नात्रपूजा विधिसहित ग. देवचंद्र, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि चोतिसे अतिसय जुओ वचन, अंति: संघ सकल , २५९ आणंद, ढाल-८, गाथा- ६०. ११८५७५ (+) नंदमणियार चौडालियो, संपूर्ण, वि. २०वी श्रेष्ठ, पृ. ६, प्रले. सा. रायकवरी, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. हुंडी नंदण, नंदणम, नंदनमणी., संशोधित., दे., (२२.५x१०, ११x२७-३४). नंदमणियार चौढालियो, रा., पद्य, वि. १८३४, आदि: गिनातारा तेरमा अध्ययन में; अंति: ए कीजो आत्मारो उधार ए, ढाल-४. ११८५७८. (#) पाशाकेवली शुकनावली, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ५, पू. वि. प्रारंभ के पत्र हैं., प्र. वि. मूल पाठ का अंशखं है, जैदे., ( २३x११, १८x४२-४६). For Private and Personal Use Only अबदी प्रश्न, पुहिं, गद्य, आदि ॐ नमो विसमल्लाहि रहिमान, अंति: (-), (पू.वि. अंक ४४२ ददन का फलादेश अपूर्ण " तक है.) ११८५७९ (४) १८ पापस्थानक निवारण सज्झाव, संपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पृ. ९, प्र. वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैवे., (२३X१०.५, ११x४२). १८ पापस्थानक निवारण सज्झाय, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., पद्य, आदि: पापधानक पहिलं कछु अंति पयसेवक वाचक जस इम आखै जी, सज्झाय - १८, ग्रं. २११. ११८५८० (+) धूर्ताख्यान का बालावबोध, अपूर्ण, वि. १७६९, माघ शुक्ल, ४, सोमवार, मध्यम, पृ. २६-३ (१,१५,२५)=२३, ले. स्थल. उदयनगर, प्रले. मु. ऋषभसुंदर (गुरु वा कर्मसुंदर): गुपि वा कर्मसुंदर, पठ. श्राव. दुलीचंद भंडारी (पिता श्राव. थीरचंद भंडारी); गुपि. श्राव. थीरचंद भंडारी; राज्यकाल रा. संग्राम सिंह, प्र.ले.पु. मध्यम, प्र. वि. संशोधित., जैदे., ( २४४११, १०X३२). Page #275 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir २६० कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची धूर्ताख्यान-बालावबोध, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: अनुमोदवां ध्यावां, (पू.वि. प्रारंभ व बीच-बीच के पत्र नहीं हैं., प्रारंभ व बीच-बीच के पाठांश नहीं हैं.) । ११८५८१. राचाबत्तीसी, गौतमस्वामी रास व महावीरजिन स्तवनादि संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ६, कुल पे. १०, जैदे., (२४.५४१०.५, १५४४२). १. पे. नाम. राचाबत्तीसी, पृ. १अ-२अ, संपूर्ण. श्राव. राचो, मा.गु., पद्य, आदि: जीवडा जाग रे सोवे; अंति: रुडां कहै छे राचो, गाथा-३२. २. पे. नाम. गौतमस्वामी रास, पृ. २अ-४अ, संपूर्ण.. उपा. विनयप्रभ, मा.गु., पद्य, वि. १४१२, आदि: वीरजिणेसर चरणकमल कमला; अंति: विनय० कल्याण करो, गाथा-४६. ३. पे. नाम. महावीरजिनविनती स्तवन-जेसलमेरमंडन, पृ. ४अ-५अ, संपूर्ण. उपा. समयसंदर गणि, मा.गु., पद्य, आदि: वीर सुणो मोरी बीनती; अंति: संथुणिस त्रिभुवनतिलो, गाथा-१९. ४. पे. नाम, सच्चियायकुलदेवी स्तुति, पृ. ५अ-५आ, संपूर्ण. सच्चियायदेवी छंद, आ. सिद्धिसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: मुझ मुनि आशा आज फली सवि; अंति: प्रत्यक्ष प्रसन्न सही, गाथा-२१. ५. पे. नाम. सीमंधरस्वामी गीत, पृ. ५आ, संपूर्ण. सीमंधरजिन गीत, मु. जिनराज, मा.गु., पद्य, आदि: मुज हीयडो हे जालुओ भाष; अंति: इसु कहइ मत मुंको विसार, गाथा-७. ६. पे. नाम. युगमंधरस्वामी गीत, पृ. ५आ-६अ, संपूर्ण. युगमंधरजिन स्तवन, मु. जिनराज, मा.गु., पद्य, आदि: सेमुख हूं न सकुं कही आडी; अंति: अछे अवर न ए वडो जाणो रे, गाथा-५. ७. पे. नाम. बाहुस्वामी गीत, पृ. ६अ, संपूर्ण. बाहुजिन स्तवन, मु. जिनराज, मा.गु., पद्य, आदि: बाह समापोहो बाहुजी सवलानइ; अंति: जीवी जइ जिनराज रे, गाथा-५. ८. पे. नाम, औपदेशिक सज्झाय, पृ. ६अ, संपूर्ण. वच्छमल, रा., पद्य, आदि: देशडलो वीराणो जी आपणो को; अंति: य कहै धन धन साधस धीर, गाथा-५. ९. पे. नाम, आदिजिन सज्झाय, पृ. ६अ-६आ, संपूर्ण. मु. आनंद, मा.गु., पद्य, आदि: हे प्रभुजी प्रणमुजी; अंति: आनंद सेवक प्रभुजी आपरो, गाथा-६. १०. पे. नाम. औपदेशिक सज्झाय, पृ. ६आ, संपूर्ण.. उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, आदि: गुण छे पुरा रे श्रीअरिहंत; अंति: वीनवे भणइ तुं ओछो रे बोल, गाथा-६. ११८५८६. (+) गौतमपृच्छा, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ.७-२(१,४)=५, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२२.५४११, ११४२३-२७). गौतमपच्छा ९७ बोल, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: पडाया छाना राख्या ते, (पू.वि. बोल-८ अपूर्ण तक व बोल-४३ __ अपूर्ण से ५३ अपूर्ण तक नहीं है.) ११८५९४. (#) उपासकदशांगसूत्र सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ४५, पू.वि. प्रारंभ के पत्र हैं., प्र.वि. हुंडी:उवासगसूत्ररः., अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२४४११, ५४३४). उपासकदशांगसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., प+ग., आदि: तेणं कालेणं तेणं; अंति: (-), (पू.वि. अध्ययन-५ सूत्र-३६ अपूर्ण तक है.) उपासकदशांगसूत्र-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: ते कालनें विषं ते; अंति: (-). ११८५९५ (+) आत्मनिंदागर्भित स्तवन सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १८१८, भाद्रपद कृष्ण, ४, मध्यम, पृ. ५, ले.स्थल. कर्णपुरनगर, प्रले. पं. हिमतसागर गणि, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. श्रीआदिनाथजी प्रसादात्., पदच्छेद सूचक लकीरें., जैदे., (२४४११, ४४३३). रत्नाकरपच्चीशी, आ. रत्नाकरसूरि, सं., पद्य, वि. १४वी, आदि: श्रेयः श्रियां मंगल; अंति: श्रेयस्करं प्रार्थये, श्लोक-२५. For Private and Personal Use Only Page #276 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२६ २६१ रत्नाकरपच्चीसी-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: श्रेय कहता मंगलीक श्री क०; अंति: करणहार ते प्रति वाछुछु. ११८५९६. (+) सरस्वतीदेवी स्तुति, ऋषभदेवजिन स्तुति व सभाशंगार शतकादि संग्रह, संपूर्ण, वि. १९०६, माघ कृष्ण, ८, रविवार, श्रेष्ठ, पृ. २०, कुल पे. ४, प्र.वि. हुंडी:प्रस्ताविक., संशोधित., दे., (२४.५४११, १५४३०). १. पे. नाम, सरस्वतीदेवी स्तुति, पृ. १अ, संपूर्ण. सं., पद्य, आदि: या कुंदेंदुतुषारहार; अंति: निश्शेष जाड्यापहा, श्लोक-१. २. पे. नाम. ऋषभदेवजिन स्तुति, पृ. १अ, संपूर्ण. आदिजिन स्तुति, सं., पद्य, आदि: सुवर्णवर्णं गजराज; अंति: ऋषभं जिनोत्तमम्, श्लोक-१ ३. पे. नाम. सभाशृंगार शतक, पृ. १अ-१९अ, संपूर्ण. सभाशंगार शतक-प्रास्ताविक, सं., पद्य, आदि: श्रीधर्ममूर्ति विजयाख्य; अंति: दृशौ निघ्नंतु विघ्नं नव, श्लोक-२१३. ४. पे. नाम. विनोदशास्त्र, पृ. १९अ-२०आ, संपूर्ण, पे.वि. अंत में ज्योतिष संबंधी १ श्लोक दिया है. सं., पद्य, आदि: न कोपि रंगावली; अंति: न हसंति मुनिस्वरा, श्लोक-२५. ११८५९७. सिंदूरप्रकर सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १८१८, नागचंद्रगजाभूमि, आश्विन कृष्ण, २, बुधवार, श्रेष्ठ, पृ. २४, ले.स्थल, कर्णपुरनगर, प्रले. पं. मनोहरसागर गणि (गुरु ग. हेतुसागर); गुपि. ग. हेतुसागर (गुरु उपा. राजसागर गणि); उपा. राजसागर गणि, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. हुंडी:सिंदूरप्रकरणछे. श्रीआदीश्वर प्रसादात्, श्रीवामेय प्रसादतः., जैदे., (२४४११.५, ४४३९). सिंदूरप्रकर, आ. सोमप्रभसूरि, सं., पद्य, वि. १३वी, आदि: सिंदूरप्रकरस्तपः करिशिरः; अंति: सोमप्रभ०मुक्तावलीयम्, द्वार-२२, श्लोक-९९. सिंदरप्रकर-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: केहवो छइ नखद्युतिभर तपरूप; अंति: रूप मोतीनी आवणी श्रेणी छइ. ११८५९९. अंतकृद्दशांगसूत्र सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ५२, ले.स्थल. सोजतनगर, प्र.वि. हुंडी:अंतगढसूत्र., कुल ग्रं. २०००, प्र.ले.श्लो. (१४४९) जादृशं पुस्तकं द्रिष्ट्वा , जैदे., (२४४११.५, ७४४०). अंतकृद्दशांगसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., गद्य, आदि: तेणं कालेणं तेणं; अंति: अंगस्स दसाउ समापतं, अध्याय-९२, ग्रं. ८९९, (वि. १८७४, फाल्गुन शुक्ल, १३, रविवार, प्रले. मु. जिनविजय; गुपि. पंन्या. हेमविजय, प्र.ले.पु. सामान्य) अंतकद्दशांगसूत्र-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: ते काल चोथे आराइ जेणे समय; अंति: दश अध्ययन संपूर्ण, (वि. १८७४, चैत्र कृष्ण, ११, प्रले. पं. उत्तमविजय (गुरु पं. नेमविजय); गुपि. पं. नेमविजय (गुरु मु. उदयविजय); मु. उदयविजय (गुरु पं. सकलविजय); पं. सकलविजय (गुरु ग. सुमतिविजय), प्र.ले.पु. मध्यम) ११८६००. पार्श्वजिन स्तुति सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ६, जैदे., (२४४११, ३४३२). पार्श्वजिन स्तुति, सं., पद्य, आदि: देवपूजा दया दानं तीर्थ; अंति: श्रीपार्श्वजिनेस्वरम्, श्लोक-१९. पार्श्वजिन स्तुति-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: श्रीअरिहंतनी पूजा करवी; अंति: मंगलीकना कारणहार छे. ११८६०१ (+#) उपासकदशांगसूत्र सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ७५-४५(१ से ४५)=३०, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२४४११, ५४३६-३९). उपासकदशांगसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., प+ग., आदि: (-); अंति: दिवसेसु अंगं तहेव, अध्ययन-१०, ग्रं. ८३०, (पू.वि. अध्ययन-५ सूत्र-३ अपूर्ण से है.) उपासकदशांगसूत्र-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: हुइ सातमा अंगना दश अध्ययन. ११८६०२ (+) गौतमस्वामी रास, संपूर्ण, वि. १८४९, फाल्गुन कृष्ण, ७, मध्यम, पृ. ६, ले.स्थल. थावरे, प्र.वि. पत्रांक १अ पर परतिलेखक के द्वारा अस्पष्ट सा कुछ लिखा गया है., संशोधित-प्रतिलेखन पुष्पिका मिटाई हुई है., जैदे., (२४४११, ११४३४). गौतमस्वामी रास, आ. विजयभद्रसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: विरजिणेसर चरण कमला; अंति: भद्र गुरु इम भणे ए, ____ ढाल-६, गाथा-६६. ११८६०३. (+) विक्रमचरित्रकनकावती रास, संपूर्ण, वि. १८८८, आश्विन कृष्ण, १२, मध्यम, पृ. ३२, ले.स्थल. भीनमालनगर, प्र.वि. हंडी:विक्रमचरित्रराशि., संशोधित., जैदे., (२४४११, १४४३८). For Private and Personal Use Only Page #277 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir २६२ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची कनकावती रास-शीलविषये, पं. कांतिविमल, मा.गु., पद्य, वि. १७६७, आदि: सकल समीहित पूरवइ; अंति: कांतिविमल० मंगलमाल हो राज, ढाल-४१. ११८६०४. (+#) स्तवनादि संग्रह, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. १२०-१५(७,८६ से ९४,११५ से ११९)=१०५, कुल पे. २३, प्र.वि. गोटका युक्त ग्रंथ. प्रत्येक कृति के अलग अलग पत्रांक दिये गए है पत्र की क्रमबद्धता के लिए गिनकर पत्रांक दिये गये है. प्रायः दिगंबर कृति संग्रह., संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२३४११, २६४७-२०). १.पे. नाम. ज्ञानदर्पण, पृ. १आ-१२अ, अपूर्ण, पू.वि. बीच का एक पत्र नहीं है., पे.वि. ग्रंथबंधन भूल से इसका अनुसंधान पत्र १०९ पर है. जै.क. दीपचंदजी शाह, पुहिं., पद्य, आदि: गुण अनंत ज्ञायक विमल; अंति: (-), (पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., गाथा-२२,२३ नहीं है व गाथा-४४ तक लिखा है.) २. पे. नाम. नवकार मंत्र, पृ. १३आ, संपूर्ण. नमस्कार महामंत्र, शाश्वत , प्रा., पद्य, आदि: णमो अरिहंताणं; अंति: पढम होइ मंगलं, पद-९. ३. पे. नाम. चतुर्विंशित स्थानक, पृ. १३आ-५१आ, संपूर्ण. २४ स्थानक मार्गणाद्वार कोष्टक, मा.गु., को., आदि: गई इंदिय काए जोए वेए कषाय; अंति: १९९ कुल कोटय सर्वे. ४. पे. नाम. २४ जिन २१ स्थान कोष्टक, पृ. ५२अ-७०अ, संपूर्ण. मा.गु., को., आदि: १वृषभनाथ २अजितनाथ; अंति: (-), (वि. अंत में तीर्थंकर चक्रवर्ती आदि की विवरण गाथा है.) ५. पे. नाम. ८ कर्म १४८ कर्मप्रकृति, पृ. ७०आ-७१आ, संपूर्ण. मा.गु., गद्य, आदि: ज्ञानावरणीभेद ५ मतिज्ञाना; अंति: अंतराय ५ एवं १४८ प्रकृतयः. ६.पे. नाम. १५ प्रमाद, पृ. ७१आ, संपूर्ण. मा.गु., गद्य, आदि: विकथा ४ कषाय ४ इंद्री ५; अंति: निद्रा १ स्नेहु १ एवं १५. ७. पे. नाम. १२ मिथ्यावाद, पृ. ७१आ, संपूर्ण.. मा.गु., गद्य, आदि: १ राजविद्या ५ एकेंद्रीकाय; अंति: भूमि १म्लेच्छखंड एवं १२. ८. पे. नाम. ५ परमेष्ठि गुणाः, पृ. ७२अ-७२आ, संपूर्ण.. ___पंचपरमेष्ठी गुण, मा.गु., गद्य, आदि: ४६ अर्हद्गुणाः ३४ अतिशय ८; अंति: ३गुप्ति एवं २८ साधुगुणा. ९. पे. नाम. थावराणां भेदाः, पृ. ७३अ, संपूर्ण. स्थावर भेद, मा.गु., गद्य, आदि: पृथ्वीकाय भेद ५ मसूरीदालि; अंति: काया कोश ४ आयु वर्ष १००००. १०.पे. नाम. अख्यौहिणी संख्या, पृ.७३अ-७३आ, संपूर्ण. अक्षौहिणीसेना प्रमाण, मा.गु., गद्य, आदि: रथ १० गजु १ अश्व ३ पाइक ५; अंति: भणिजै एवं ४१५५३० सर्वे. ११. पे. नाम. कामदेव नाम, पृ. ७४अ, संपूर्ण. २४ कामदेव नाम, मा.गु., गद्य, आदि: १ बहुवलजी २ अमृतजी; अंति: श्रीकुमार २४ जंबूस्वामि. १२. पे. नाम, आध्यात्मिक पद, पृ. ७५आ-७६अ, संपूर्ण.. म. दीप, पुहिं., पद्य, आदि: सुद्धानंद यह पाई एही अहो; अंति: पद धारे हो परमातम भव कोई, गाथा-९, (वि. प्रारंभ में नवकार मंत्र है.) १३. पे. नाम. मिथ्यात्व सम्यक्त्वस भेद बोल, पृ. ७६आ-७७आ, संपूर्ण. मिथ्यात्वसम्यक्त्व भेद बोल, मा.गु., गद्य, आदि: देव मूढ १ शास्त्र मूढ २; अंति: क्रिया करेसी काल गुरु मूढ. १४. पे. नाम. बोल संग्रह, पृ. ७८आ-८५आ, संपूर्ण. बोल संग्रह *, प्रा.,मा.गु.,सं., गद्य, आदि: गुणथी न कोण न्याय करि छ; अंति: (-), (अपूर्ण, पृ.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., बोल-२७२ तक लिखा है.) १५. पे. नाम. इष्टोपदेश, पृ. ९५अ-१०३आ, अपूर्ण, पू.वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं. आ. देवनंदी, सं., पद्य, वि. ५वी, आदि: (-); अंति: निरूपमामुपयाति भव्यः, श्लोक-५१, (पू.वि. श्लोक-९ अपूर्ण से है.) १६. पे. नाम, जैन धार्मिक श्लोक, प. १०४अ-१०४आ, संपूर्ण. For Private and Personal Use Only Page #278 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२६ २६३ श्लोक संग्रह जैनधार्मिक, प्रा.,सं., पद्य, आदि: कोहं कुतः समायाति कोयं; अंति: खिल तारा पुष्कर दलत्ति. १७. पे. नाम. १० भुवनपतिदेव नाम, पृ. १०६आ, संपूर्ण. मा.गु., गद्य, आदि: असुराणां ६४०००००; अंति: वायुकुमाराणां ९६०००००. १८. पे. नाम. सुभाषित श्लोक, पृ. १०६आ, संपूर्ण.. सभाषित श्लोक संग्रह *, पुहि.,प्रा.,मा.गु.,सं., पद्य, आदि: किं देहेन कदार्थितेन शतता; अंति: (अपठनीय). १९. पे. नाम. पंचम काल, पृ. १०७अ-१०७आ, संपूर्ण. ५ आरा फल वर्णन गाथा संग्रह, प्रा., पद्य, आदि: एवरिणिव्वाणहो सुखणिहाणहो; अंति: अवरूप्प रूजुज्झसहिं. २०. पे. नाम. साधारणजिन स्तवन, पृ. १०७आ-१०८आ, संपूर्ण. सं., पद्य, आदि: यत्पूर्वं विदधेस्म; अंति: श्रीभद्र प्रणमामि सुकांति. २१. पे. नाम. २४ जिन स्तवन-अतीतानागतवर्तमान, पृ. १०८आ-१११अ, संपूर्ण, पे.वि. पत्र नं.१०९ ग्रंथबंधन भूल से हुआ है. सं., पद्य, आदि: वंदे मुनि वृषभ वृषभेस; अंति: विवुध० तीर्थकर्त्त. २२. पे. नाम. आलाप पद्धति, पृ. ११२आ-११४आ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. आ. देवसेन, सं., पद्य, वि.१०वी, आदि: गुणानां विस्तरं; अंति: (-), (पू.वि. 'नित्यस्वभाव अनित्यस्वभाव' पाठांश तक २३. पे. नाम. साधारणजिन स्तवन, पृ. १२०अ, संपूर्ण. मु. दीप, पुहिं., पद्य, आदि: श्रीजिनवर जगराय म्हाने; अंति: दीप० सरण कीता जग हि ज्योग, गाथा-५. ११८६०६. (+#) पार्श्वजिन चैत्यवंदन सह व्याख्या, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ७, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें-अन्वय दर्शक अंक युक्त पाठ. मूल पाठ का अंश खंडित है, दे., (२१४११.५, ८४३२-३५). पार्श्वजिन चैत्यवंदन-यमकबद्ध, मु. शिवसुंदर, सं., पद्य, आदि: वरसं वरसं वरसं भवदं; अंति: शिवसुंदर सौख्यभरम्, श्लोक-७. पार्श्वजिन चैत्यवंदन-यमकबद्ध-व्याख्या, सं., गद्य, आदि: वियते सावितिवनदंया; अंति: तयोर्भर मतिशय मित्यर्थ. ११८६०८. (+) कर्मग्रंथ १ से ४, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ११, कुल पे. ४, प्र.वि. अन्वय दर्शक अंक युक्त पाठ., जैदे., (२२.५४११.५, १४४२६-३२). १.पे. नाम. कर्मविपाक नव्य कर्मग्रंथ-१, पृ. १अ-३आ, संपूर्ण. आ. देवेंद्रसूरि, प्रा., पद्य, वि. १३वी-१४वी, आदि: सिरिवीरजिण वंदिअ; अंति: लहिउ देविंदसूरिहिं, गाथा-६२. २. पे. नाम. कर्मस्तव नव्य कर्मग्रंथ-२, पृ. ३आ-५अ, संपूर्ण. आ. देवेंद्रसूरि, प्रा., पद्य, वि. १३वी-१४वी, आदि: तह थुणिमो वीरजिणं; अंति: देविंदवंदियं नमह तं वीरं, गाथा-३४. ३. पे. नाम, बंधस्वामित्व नव्य कर्मग्रंथ-३, पृ. ५अ-६आ, संपूर्ण. आ. देवेंद्रसूरि, प्रा., पद्य, वि. १३वी-१४वी, आदि: बंधविहाणविमुक्कं वंद; अंति: देविंदसूरि० सोउं, गाथा-२५. ४. पे. नाम, षडशीति नव्य कर्मग्रंथ-४, पृ. ६आ-११अ, संपूर्ण. आ. देवेंद्रसरि, प्रा., पद्य, वि. १३वी-१४वी, आदि: नमिअ जिणं जिअ१ मग्गण; अंति: लिहिउ देविंदसरीहिं, गाथा-८९. ११८६०९ (+) रूपसेन रास, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ७७-६९(१ से ६९)=८, पू.वि. बीच के पत्र हैं., प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२२.५४११.५, १४४३६). रूपसेन रास, मु. महानंद, मा.गु., पद्य, वि. १८०९, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. ढाल-६२ गाथा-२९ से ढाल-७० की दूहा-५ तक है.) ११८६१०. (+) रोहिणीतप रास व श्लोक संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, प. ६, कल पे. २, प्र.वि. संशोधित., दे., (२२.५४११.५, १४४३५). १. पे. नाम. रोहिणीतप रास, पृ. १अ-६आ, संपूर्ण. उपा. उदयविजय, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीजिनमुखपंकजवासिनी; अंति: उदयविजय० तूर वजायाजी, ढाल-८. २.पे. नाम, श्लोक संग्रह, पृ. ६आ, संपूर्ण. For Private and Personal Use Only Page #279 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir २६४ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची श्लोक संग्रह **, पुहिं.,प्रा.,मा.गु.,सं., पद्य, आदि: कामीण पंथी याणय पामर; अंति: नारी राजा जोगी अपुत्रिक, श्लोक-२. ११८६२१ (+) १४ गुणस्थानक विचार, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ७-१(१)=६, प्र.वि. संशोधित., दे., (२१.५४११, १३४३२-३५). १४ गुणस्थानक विचार, मा.गु.,सं., गद्य, आदि: (-); अंति: अजरामरं स्थानं न व्रजति, (पू.वि. गुणस्थानक-४ अपूर्ण से ११८६२२ (+#) जातकपद्धति व अयनांशकरणादि साधन विधि, संपूर्ण, वि. १८७८, चैत्र कृष्ण, ७, मध्यम, पृ. १२, कुल पे. २, ले.स्थल. सांडेरावनगर, प्रले. मु. विवेकसागर, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. श्रीशांतिनाथजी प्रसादात्., पदच्छेद सूचक लकीरें-टिप्पण युक्त विशेष पाठ. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२२.५४११, १२-१६४२७-३०). १.पे. नाम, जातकपद्धति, पृ. १अ-१०आ, संपूर्ण. मु. हर्षविजय, सं., पद्य, वि. १७६५, आदि: प्रणम्य पार्श्वदेवेश; अंति: एषा जातकदीपिका, श्लोक-९३. २. पे. नाम.१२ भावफल साधन, पृ. १०आ-१२अ, संपूर्ण. म. मानसागर, सं., पद्य, आदि: शकोक्ष वेद वेदो ४४५ नो; अंति: स्पष्टं गदितं मानसागरैः, श्लोक-३९. ११८६२४. (+) शत्रुजय माहात्म्य सह टबार्थ-सर्ग ६, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ६०-५३(१ से ५३)+१(६०)=८, प्र.वि. संशोधित., दे., (२२४११, ५४२७). शत्रुजय माहात्म्य, आ. धनेश्वरसूरि, सं., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), (प्रतिअपूर्ण, पू.वि. श्लोक-२३९ अपूर्ण से है.) शत्रुजय माहात्म्य-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदिः (-); अंति: (-), प्रतिअपूर्ण. ११८६३१. जीवविचार प्रकरण, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ३, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. हुंडी:जिवचार., जैदे., (२३४११, ८x२७-३०). जीवविचार प्रकरण, आ. शांतिसूरि, प्रा., पद्य, वि. ११वी, आदि: भुवणपईवं वीरं नमिऊण; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-३१ अपूर्ण तक है.) ११८६३२. देवकुमार चौपाई, अपूर्ण, वि. १९वी, जीर्ण, पृ. १०-४(१ से ४)-६, पू.वि. बीच के पत्र हैं., प्र.वि. हुंडी:देवकुमार चोपइ., जैदे., (२२४११.५, १६४३७-४२). देवकुमार चौपाई, ग. सोभागसुंदर, मा.गु., पद्य, वि. १६२७, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. गाथा-११० अपूर्ण से गाथा-२९५ अपूर्ण तक है.) ११८६३६. (+) शत्रुजयतीर्थ रास, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ७, प्र.वि. हुंडी:सेāजारा०., पदच्छेद सूचक लकीरें., जैदे., (२२.५४११.५, ११४३२). शत्रुजयतीर्थ रास, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, वि. १६८२, आदि: श्रीरिसहेसर पाय नमी आणी; अंति: समयसुंदर० आनंद थाय, ढाल-६, गाथा-११२. ११८६३८. (+) त्रैलोक्यसंदरी रास, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ.६, पृ.वि. अंतिम पत्र नहीं है., प्र.वि. हंडी:तीलोक., संशोधित-टिप्पण युक्त विशेष पाठ., दे., (२२.५४११.५, १७४३३). त्रैलोक्यसंदरी रास, म. सबलदास ऋषि, मा.ग., पद्य, वि. १८५२, आदि: विहरमान वीसे नम; अंति: (-), (पू.वि. ढाल-१२ गाथा-९ अपूर्ण तक है.) ११८६४० (#) रोहिणीतप स्तवन, संपूर्ण, वि. १८८८, पौष कृष्ण, १, मंगलवार, मध्यम, पृ. ७, ले.स्थल. सेवंतीनगर, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२२४११, ९४२३). रोहिणीतप स्तवन, मु. श्रीसार, मा.गु., पद्य, वि. १७२०, आदि: सासनदेवी सांमणी ए; अंति: श्रीसार०मन आस्या फली, ढाल-४. ११८६४१. द्रौपदीसती चौपाई, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १०,प्र.वि. हंडी:द्रोप., दे., (२१.५४११, १७४३७-४०). द्रौपदीसती चौपाई, म. कवियण, रा., पद्य, आदि: सील बडो संसार मे मंतर मही; अंतिः सो मुकत्ये रमणी पद पावसी, ढाल-१२. For Private and Personal Use Only Page #280 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२६ ११८६४२. (१) श्रीपाल रास खंड २, संपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पृ. २६, प्र. वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैये. (२२.५x११.५, ९X२७-३० ). श्रीपाल रास, उपा. विनयविजय; उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., पद्य, वि. १७३८, आदि: (-); अंति: (-), प्रतिपूर्ण ११८६४३. प्रायश्चित ग्रंथ सह टीका, संपूर्ण, वि. १९०४, मार्गशीर्ष कृष्ण, ९, शनिवार, श्रेष्ठ, पृ. ३१, प्र. वि. हुंडी:प्रा०., दे., (२४.५X११, ८x२५-२८). छेदशास्त्र, प्रा., पद्य, आदि णमिऊण पंचगुरुणां, अंति णंद जिण सासणं सुचिरं गाथा- ९४. छेदशास्त्र- बालावबोध, मा.गु., गद्य, आदि: प्रायश्चितं विशुद्धिमलहरण; अंति: पवित्र जिन सासन सदा नंदो. ११८६४४. ज्योतिष विचार, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १९, जैये. (२४.५x११, १५X३७-४२). יי Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ज्योतिष विचार, मा.गु., सं., पग, आदि नीचोनितः स्पष्टतरो; अंति प्राप्तो लंकायां तपनोदये, (वि. अंत में नरपतिजयचर्यादि के श्लोक दिये गये हैं.) ११८६४५. (+) सामायिकादि विधि व स्तवनादि संग्रह, अपूर्ण, वि. १९०६, आषाढ़ कृष्ण, ५, शनिवार, मध्यम, पृ. ८२-४३(१ से ४३) = ३९, कुल पे. १६, प्र. वि. संशोधित दे (२४४११.५, ११४२७). १. पे नाम सामायिक विधि पू. ४४-४९अ संपूर्ण. २६५ आवश्यकसूत्र-सामायिक लेने व पारने की विधि, संबद्ध, गु., प्रा., मा.गु., गद्य, आदि: पंचिंदिय संवरणो तह नवविह; अति तस्स मिच्छामि दुक्कडं (वि. सामायिक अंतर्गत ७लाख व १८ पापस्थानक सूत्र लिखे हैं.) , २. पे नाम सामायिक विधि पू. ४९-४९आ, संपूर्ण , ३२ सामायिकदोष सज्झाय, मु. ज्ञानविमल, मा.गु., पद्य, आदि: संयमे धीर सुगुरु पय; अंति: ज्ञानविमल० वाधें नूर, गाथा - १०. ३. पे. नाम. देवसिराईप्रतिक्रमणसूत्र, पृ. ५० अ-५३आ, संपूर्ण. देवसिराई प्रतिक्रमणसूत्र- तपागच्छीय, संबद्ध, प्रा., मा.गु. सं., प+ग, आदि: इच्छाकारेण संदेसह भगवान; अति मिच्छामि दुक्कडं. ४. पे. नाम. बीज थुई, पृ. ५३-५४अ, संपूर्ण. बीजतिथि स्तुति, मु. लब्धिविजय, मा.गु., पद्य, आदि: दिन सकल मनोहर बीज; अंति: कहै पूर मनोरथ माय, गाथा-४. ५. पे. नाम. पंचमी थुई, पृ. ५४अ - ५४आ, संपूर्ण. ज्ञानपंचमीपर्व स्तुति, सं., पद्य, आदि: श्रीनेमि पंचरूप; अंति: कुसलं धीमतां साविधाना, श्लोक-४. ६. पे नाम. अष्टमी थुई. पू. ५४-५५अ, संपूर्ण. संसारदावानल स्तुति, संबद्ध, आ. हरिभद्रसूरि, प्रा., सं., पद्य, आदि: संसार दावानल दाहनीरं; अंति: भवविरहवरं देह मे देह सारं श्लोक-४. ७. पे. नाम. एकादसी स्तवन, पू. ५५-५५आ, संपूर्ण. मौनएकादशीपर्व स्तुति, मु. गुणहर्ष-शिष्य, मा.गु., पद्य, आदि: एकादशी अति रुवडी; अंति: गुणहर्ष० तणा निशदिश, गाथा-४. For Private and Personal Use Only ८. पे नाम वर्द्धमानजिन स्तवन, पृ. ५५-५६ आ. संपूर्ण पाक्षिक स्तुति, संबद्ध, आ. बालचंद्रसूरि सं., पद्य, आदि स्नातस्याप्रतिमस्य अति सदा सर्वकार्येषु सिद्धिम्, श्लोक-४. ९. पे नाम. शेत्रुंजय स्तवन, पृ. ५६-५७अ संपूर्ण. आदिजिन स्तुति, क. ऋषभदास संघवी, मा.गु., पद्य, वि. १७वी, आदि: प्रह ऊठी वंदु रिषभदेव; अंति: श्राविक रिषभदास गुण गाय, गाथा-४. १०. पे. नाम. आदिजिन स्तवन, पृ. ५७अ -५७आ, संपूर्ण. शत्रुंजयतीर्थ स्तुति, पुर्हि, पद्य, आदि आगे पूरब बार निनांणू अति कारिज सिद्ध हमारी जी, गाथा-४, ११. पे नाम. १२ व्रत नाम, पृ. ५७आ, संपूर्ण. Page #281 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir २६६ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची मा.गु., गद्य, आदि: प्राणातिपात १ मृषावाद २; अंति: पोसध ११ अतिथसंविभाग१२. १२. पे. नाम. ८ कर्म नाम, पृ. ५७आ-५८अ, संपूर्ण. मा.गु., गद्य, आदि: ज्ञानावर्णनी १ दर्शनावर्ण; अंति: अंतराय कर्म ७ आउषो ८. १३. पे. नाम. ५ सुमति प्रकार, पृ. ५८अ, संपूर्ण. मा.गु., गद्य, आदि: चलैनीर्ष १ भाषैउचित २; अंति: लेहनिर्ष ४ डाइनिर्ष ५. १४. पे. नाम, ५ प्रमाद नाम, पृ. ५८अ, संपूर्ण. मा.गु., गद्य, आदि: मद १ विषय २ कषाया ३; अंति: जीवं पाडंती संसारे. १५. पे. नाम. ८ मद नाम, पृ. ५८अ, संपूर्ण. मा.गु., गद्य, आदि: जाति १ लाभ २ कुलमद; अंति: विद्या ६ बल ७ इधकार ८. १६. पे. नाम. वैद्यमनोत्सव, पृ. ५८आ-८२अ, संपूर्ण. नयनसुख केसराज, मा.गु., पद्य, वि. १६४९, आदि: शिवसुत पद प्रणमुं; अंति: सुख उपजे रहे सवायो मान, अध्याय-७, गाथा-३०५. ११८६४६. (+) बृहत्संग्रहणी सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १७९५, श्रेष्ठ, पृ. ५१, ले.स्थल. विद्यापुर, प्रले. पं. हेतुसागर (गुरु पं. राजसागर); गुपि.पं. राजसागर (गुरु ग. लाभसागर); ग. लाभसागर, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. श्री वरकाणपार्श्वप्रभु प्रसादात्., टिप्पण युक्त विशेष पाठ-पदच्छेद सूचक लकीरे-संशोधित., जैदे., (२४.५४११, ४४४३). बृहत्संग्रहणी, आ. चंद्रसूरि, प्रा., पद्य, वि. १२वी, आदि: नमिउं अरिहंताई ठिइ; अंति: नंदो जा वीर जिण तित्थ, ___गाथा-३२४, (वि. १७९५, आश्विन अधिकमास कृष्ण, ७, रविवार) बृहत्संग्रहणी-टबार्थ *, मा.गु., गद्य, आदि: प्रणम्य श्रीमहावीर; अंति: हुइ तिहा लगे ए नंद रहउ, (वि. १७९५, कार्तिक शुक्ल, १०, शुक्रवार) ११८६४७. (+) संबोधसप्ततिका, संपूर्ण, वि. १८५८, ज्येष्ठ शुक्ल, ८, मध्यम, पृ. ५, ले.स्थल. धिणलाग्राम, प्रले. पंन्या. उत्तमविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित.,प्र.ले.श्लो. (१४४६) जब लग मेरु अडग हे, जैदे., (२४४११.५, १३४३२). संबोधसप्ततिका, आ. रत्नशेखरसूरि, प्रा., पद्य, आदि: नमिऊण तिलोयगुरुं; अंति: जयसेहर०नत्थि संदेहो, गाथा-९३. ११८६४८. चोबोली चौपाई, संपूर्ण, वि. १८७३, कार्तिक कृष्ण, १, सोमवार, मध्यम, पृ. ११, प्र.वि. हुंडी:चउबोली., जैदे., (२४.५४१०.५, १५४३७-४०). विक्रमचौबोली रास-पुण्यफलकथने, वा. अभयसोम, मा.गु., पद्य, वि. १७२४, आदि: वीणा पुस्तक धारणी; अंति: अभयसोमे० काजे कही, ढाल-१७. ११८६४९ (+) सिंहासनबत्रीसी, अपूर्ण, वि. १७३३, वैशाख कृष्ण, १३, रविवार, मध्यम, पृ. ४१-१(१)=४०, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें-अन्वय दर्शक अंक युक्त पाठ-टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित., जैदे., (२४.५४११, १९४४३). सिंहासनबत्रीसी, ग. संघविजय कवि, मा.गु., पद्य, वि. १६७८, आदि: (-); अंति: लहइ लहइ नर कोडि कल्याण, __ कथा-३२, (पू.वि. गाथा-५० अपूर्ण से है.) ११८६५०. नेमिजिन चरित्र, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ७५-६८(१ से ६८)=७, पू.वि. बीच के पत्र हैं., जैदे., (२५४११.५, ११४२६-२९). नेमिजिन चरित्र, मा.गु., गद्य, आदिः (-); अंति: (-), (पू.वि. नेमिजिन च्यवन प्रसंग अपूर्ण से गोपी प्रसंग अपूर्ण तक है.) ११८६५२. (+) भव्यजीव हितोपदेश, सुविहितजनाचार प्रकरण, अनित्यताकुलक आदि संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ३३-१(२६)=३२, कुल पे. ५, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित., जैदे., (२४.५४११, १३४३६-४०). १.पे. नाम. सारोद्धारात्मावबोधे सिद्धांत गाथा, पृ. १अ-३२आ, अपूर्ण, पू.वि. बीच का एक पत्र नहीं है. प्रा.,सं., प+ग., आदि: पणमह तं नाहि सुअंसुखइ; अंति: चरित्ते कायव्वो अप्पमाओ अ, गाथा-४७८, (पू.वि. गाथा ३४० अपूर्ण से ३६२ अपूर्ण तक नहीं है.) २. पे. नाम. सुविहितजनाचार प्रकरण, पृ. ३२आ, संपूर्ण. प्रा., पद्य, आदि: धम्मतत्तं पवक्खामि जिण; अंति: सेव ह चारित्तं वररयणं, गाथा-८. For Private and Personal Use Only Page #282 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२६ २६७ ३. पे. नाम, श्रावकचतुर्भंगी, पृ. ३२आ-३३अ, संपूर्ण. साधुप्रति श्रावक व्यवहार विचार, प्रा.,सं., प+ग., आदिः (१)श्रद्धालुता श्राति शृणोति, (२)चउव्विहासमणोवासगा; अंति: असड्ढा जयंति जिणगिहाइसु. ४. पे. नाम. अनित्यता कुलं, पृ. ३३आ, संपूर्ण. ____ अनित्यता कुलक, प्रा., पद्य, आदि: समए समए रे जीव आउअंगले; अंति: खणमवि मा काहिसि पमायं, गाथा-८. ५. पे. नाम, औपदेशिक गाथा संग्रह, पृ. ३३आ, संपूर्ण. प्रा., पद्य, आदि: जह करगओ निकितई दारुइं; अंति: जीवीयं समयं गोयम मा पमायए, गाथा-५ ११८६५४. (+) पुष्पवती सातढालिया, संपूर्ण, वि. १९१७, आश्विन कृष्ण, १३, श्रेष्ठ, पृ. ५, ले.स्थल. बीकानेर, प्रले.ऋ. हमीरमल्ल, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित., अ., (२४४११, १४४४०-४४). पुष्पवती सातढालिया, मु. विनयचंद, मा.गु., पद्य, आदि: अविनासी अविकार जिन; अंति: विनय० सात सुखदाय रे, ढाल-७. ११८६५५. पुन्यप्रकाश स्तवन, संपूर्ण, वि. १९१९, आश्विन, मध्यम, पृ. ८, ले.स्थल. विजापुर, प्रले. श्राव. सुरचंद वखतचंद; अन्य. श्राव. वाहलचंद पानाचंद दोसी, प्र.ले.प. सामान्य, प्र.वि. हुंडी: पुनप्रकास. पठनार्थ नाम अशुद्ध है. श्रीपार्श्वजिन प्रसाद., दे., (२४.५४११,१०४२६). पुण्यप्रकाश स्तवन, उपा. विनयविजय, मा.गु., पद्य, वि. १७२९, आदि: सकल सिद्धिदायक सदा; अंति: विनयविजय० नामे पुणप्रकास, ढाल-८. ११८६५६. (+#) द्रौपदीसती चौपाई, अपूर्ण, वि. १७५०, फाल्गुन शुक्ल, ४, मध्यम, पृ. ४२-९(१ से ७,३७ से ३८)=३३, ले.स्थल. उदयपुरनगर, प्रले. मु. कनकसागर (गुरु मु. अमृतसागर); गुपि. मु. अमृतसागर, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२४.५४११, १३४४०). द्रौपदीसती चौपाई, वा. कनककीर्ति, मा.गु., पद्य, वि. १६९३, आदि: (-); अंति: कनककीरति सुखकार, ढाल-३९, (पू.वि. ढाल-६ गाथा-१३ अपूर्ण से ढाल-३४ गाथा-११ अपूर्ण तक व ढाल-३६ गाथा-१३ अपूर्ण से है.) ११८६५७. वीरजिन दीवालीमहोत्सव स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ९, दे., (२४.५४११.५, ११४३५). महावीरजिन स्तवन-दीपावलीपर्व निर्वाणमहिमा, मु. गुणहर्ष, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीश्रमणसंघ तिलकोपम; अंति: श्रीगुणहर्ष वधामणे, ढाल-१०, गाथा-१२५. ११८६५८. (+) मंगलकलश चोपाई, संपूर्ण, वि. १८९२, आश्विन शुक्ल, १५, श्रेष्ठ, पृ. ५, ले.स्थल. विक्रमपुर, प्रले. पं. विनयचंद्र, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. हुंडी:मंगलक०, मंगल०चो०., संशोधित. कुल ग्रं. २२५, जैदे., (२४४११, १८४४०). मंगलकलश फाग, वा. कनकसोम, मा.गु., पद्य, वि. १६४९, आदि: सासणदेवी सामणी ए मुझ; अंति: कनकसोम० मंगल कवित जगीस, गाथा-१४२. ११८६५९ (#) अमरकुमारसुरसुंदरी चौपाई, संपूर्ण, वि. १८६४, फाल्गुन कृष्ण, १३, मध्यम, पृ. २२, प्रले. मु. उत्तमविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२४४११,१५४४२-४५). सुरसुंदरी चौपाई, मु. धर्मवर्धन, मा.गु., पद्य, वि. १७३६, आदि: सासण जेहनो सलहियै आज; अंति: धर्मवर्द्धन उमंगे जी, खंड-४ ढाल ४०, गाथा-६३२. ११८६६०. दानाधिकारे प्रियमेलक चौपाई, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ८, ले.स्थल. पत्तननगर, पठ. पं. महिमाविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२४४११, १३४४४). प्रियमेलक चौपाई-दानाधिकारे, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, वि. १६७२, आदि: प्रणमु सदगुरु पास समरु; अंति: समयसुंदर०पुन्य अधिक परमोद, ढाल-११, गाथा-२२१. ११८६६१. पद्मणी चरित्र व श्लोक संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ३७, कुल पे. २, जैदे., (२४.५४११, १३४३९-४४). १. पे. नाम. पद्मणी चरित्र, पृ. १आ-३७अ, संपूर्ण, वि. १८२२, भाद्रपद शुक्ल, ६, बुधवार, प्रले. मु. भागचंद ऋषि, प्र.ले.पु. सामान्य. For Private and Personal Use Only Page #283 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir २६८ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची गोराबादल रास, ग. लब्धिउदय, मा.गु., पद्य, वि. १७०७, आदि: श्रीआदिसर प्रथम जिण; अंति: लब्धोदय० सफल सुखकंद, खंड-३ ढाल ३९. २. पे. नाम. श्लोक संग्रह, पृ. ३७अ, संपूर्ण, ले.स्थल. गंधार नगर. सं., पद्य, आदि: नै भूतो पुरबने च; अंति: बित विशाखा भाव निकृ मरेषा. ११८६६२. (#) त्रिषष्टिशलाकापुरुष चरित्र सह टीका, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ५, प्र.वि. त्रिपाठ. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२४.५४११, ३४३३). त्रिषष्टिशलाकापुरुष चरित्र-हिस्सा सकलार्हत् स्तोत्र, आ. हेमचंद्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., पद्य, वि. १२वी, आदि: सकलार्हत्प्रतिष्ठानम; अंति: श्रीवीरं प्रणिदद्धमहे, श्लोक-२६. त्रिषष्टिशलाकापरुष चरित्र-हिस्सा सकलार्हत स्तोत्र की टीका, ग. कनककशल, सं., गद्य, वि. १६५४, आदि: वयमार्फत्यं प्रणिदध; अंति: शोधनीयेयमादरात्, ग्रं. २८२. ११८६६३. (+#) बारव्रत सिज्झाय, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, ले.स्थल. अहमदाबाद, प्रले. सा. जीवकोरश्रीजी, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. ले.स्थल-पंचभाईनी पोल., संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२३.५४११.५, १२४३०). १२ व्रत सज्झाय, मु. कीर्तिविजय, मा.गु., पद्य, आदि: गौतमगणधर पाय नमीजे; अंति: कीरति० साधु श्रावकनी तोले, गाथा-१५. ११८६६४. (+) सप्ततिका कर्मग्रंथ सह बालावबोध, संपूर्ण, वि. १८०३, फाल्गुन शुक्ल, १५, मध्यम, पृ. ५०, दत्त. श्राव. आणंदरूप; गृही. मु. सरूपचंद ऋषि, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. त्रिपाठ-टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित., जैदे., (२४४१०, ३४४४). सप्ततिका कर्मग्रंथ-६, प्रा., पद्य, वि. १३वी-१४वी, आदि: सिद्धपएहिं महत्थं; अंति: एगणा होइ नउईउ, गाथा-९१. सप्ततिका कर्मग्रंथ-बालावबोध, उपा. जयसोम, मा.गु., गद्य, वि. १७०२, आदि: प्रणिपत्य पार्श्वदेव; अंति: मानं कथितं च षष्टे. ११८६६५ (+#) वैद्यवल्लभ, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २१-४(२,४,८,२०)=१७, पृ.वि. बीच व अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. संशोधित. अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, जैदे., (२३.५४११, १०४३९). वैद्यवल्लभ, मु. हस्तिरुचि, सं., पद्य, वि. १७२६, आदि: सरस्वतीं हृदि; अंति: (-), (पू.वि. विलास-१ श्लोक-११ तक, विलास-८ श्लोक-७ से १५ तक है व बीच-बीच के पाठांश नहीं हैं.) ११८६६६. (#) कर्पूरप्रकर टीका का कथासंग्रह सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ५३-८(१,४,११ से १५,१९)=४५, पू.वि. बीच-बीच के पत्र हैं., प्र.वि. टीकादि का अंश नष्ट है, जैदे., (२३४११, ५४३६). कर्पूरप्रकर-टीका का कथासंग्रह, सं., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. अभयदाने शीलमती कथा अपूर्ण से अष्टमीचतुर्दशी पर्वतिथि कथा अपूर्ण तक है.) कर्पूरप्रकर-टीका के कथासंग्रह का टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: (-). ११८६६७. (+) ज्योतिषसार, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २६, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२४४११.५, ११४२६-२९). ज्योतिषसार, आ. नरचंद्रसूरि, सं., पद्य, आदि: श्रीअहँतं जिनं नत्वा; अंति: परिहरे कुशल चउत्थिठांमि, श्लोक-३२४. ११८६६८.(+) सुकनावली, संपूर्ण, वि. १९०५, आश्विन शुक्ल, १२, सोमवार, मध्यम, पृ. १३, ले.स्थल. फलवद्धी, प्रले. मु. गुलाबचंद ऋषि, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. हुंडी:सुकनावली., पदच्छेद सूचक लकीरे-संशोधित., दे., (२४४११.५, १०x१७-२१). पाशाकेवली, मु. गर्ग ऋषि, सं., पद्य, आदि: ॐ नमो भगवती कूष्मांडिनी; अंति: करसी धर्म कीया भलो होसी. ११८६६९ (#) देवसिप्रतिक्रमणसूत्र व बृहत्शांति स्तोत्र, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १२, कुल पे. २, प्र.वि. मूल पाठ का अंश खंडित है, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२३.५४११, १३४३२). १. पे. नाम. देवसिप्रतिक्रमणसूत्र, पृ. १अ-१०अ, संपूर्ण. देवसिप्रतिक्रमणसूत्र-तपागच्छीय, संबद्ध, प्रा.,मा.गु.,सं., प+ग., आदि: इच्छामि खमासमणो वंदिउ; अंति: नोका० नमो० संत लघु केहणी, (वि. विधि सहित.) २.पे. नाम. बृहत्शांति स्तोत्र, पृ.१०अ-१२आ, संपूर्ण. बृहत्शांति स्तोत्र-तपागच्छीय, सं., प+ग., आदि: भो भो भव्याः श्रृणुत; अंति: जैनं जयति शासनम्. For Private and Personal Use Only Page #284 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२६ ११८६७० (+) नवतत्त्व प्रकरण सह टीका, संपूर्ण, वि. १९०६, चैत्र कृष्ण, ११, शनिवार, श्रेष्ठ, पृ. १३, ले.स्थल. मुंडाडानगर, प्रले. मु. चमनसागर (गुरु मु. फतेंद्रसागर, तपागच्छ); गुपि. मु. फतेंद्रसागर (गुरु पं. तेजसागर गणि, तपागच्छ); पं. तेजसागर गणि (गुरु पं. दयासागर गणि, तपागच्छ), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. हुंडी:नवतत्त्ववृत्ति., त्रिपाठ-संशोधित., दे., (२३४११.५, १३४३४-३९). नवतत्त्व प्रकरण ६० गाथा, प्रा., पद्य, आदि: जीवाजीवा पुन्नं पावा; अंति: अणागयद्धा अणंतगुणा, गाथा-२८. नवतत्त्व प्रकरण ६० गाथा-टीका, आ. देवेंद्रसूरि, सं., गद्य, आदि: श्रीवर्द्धमानजिनपति; अंति: स्यादिति गाथार्थः, ग्रं. ४७७. ११८६७५. पूजा व स्तुति संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ.५, कुल पे. ७, प्र.वि. हुंडी:जिनपूजा., दे., (२४.५४११, २२४४५). १. पे. नाम. नित्य पूजा, पृ. १अ, संपूर्ण. नित्य पूजा पीठिका, सं., प+ग., आदि: ॐ जय जय जय नमोस्तु; अंति: सिद्धचक्रं नमाम्यहं. २. पे. नाम. देवपूजा जयमाल, पृ. १आ-३अ, संपूर्ण. जिनपूजा जयमाल, सं., प+ग., आदि: श्रीमज्जिनेंद्रमभिवंद्य; अंति: पणवि वि अरहंता वलि हि. ३. पे. नाम. वीस तीर्थंकर पूजा, पृ. ३अ-४अ, संपूर्ण. २० तीर्थंकर पूजा, पुहिं., पद्य, आदि: पूर्वापर विदेहेसुं; अंति: भावहि ते पावहि सिव परम पय. ४. पे. नाम. सिद्धचक्रपूजा जयमाल, पृ. ४अ-४आ, संपूर्ण. सिद्ध जयमाला पूजा, आ. पद्मनंदि, सं., पद्य, आदि: ॐ उ धोरयुतं; अंति: पद्मनंदी०सोम्येति मुक्तिं. ५. पे. नाम. सिद्धाजी जयमाल, पृ. ४आ-५अ, संपूर्ण. सिद्ध जयमाल, प्रा., गद्य, आदि: तिहुयणसिहरत्या लोक पसत्या; अंति: चंद कीरतितु च गुण सरणं. ६. पे. नाम. शास्त्रपूजा अष्टक, पृ. ५अ-५आ, संपूर्ण. आ. पद्मनंदि, सं., पद्य, आदि: प्रकटितपरमार्थे; अंति: समयसार कल्पद्रुमे, श्लोक-९. ७. पे. नाम. सरस्वती स्तुति, पृ. ५आ, संपूर्ण. सरस्वतीदेवी स्तोत्र, आ. ज्ञानभूषण, सं., पद्य, आदि: त्रिजगदीशजिनेंद्रमुख; अंति: भूषणकवि स्तवनं चकार. ११८६७८.(+) स्नात्र विधि व अष्टप्रकारी पूजा विधि, संपूर्ण, वि. १८९८, चैत्र शुक्ल, १३, श्रेष्ठ, पृ.८, कुल पे. २, ले.स्थल. अलायनगर, प्रले. पं. उत्तमविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२३.५४११, १३४३०-३९). १.पे. नाम. स्नात्र विधि, पृ. १अ-७आ, संपूर्ण. स्नात्रपूजा विधिसहित, गु.,प्रा.,मा.गु.,सं., पद्य, आदि: पूर्व बाजोट उपरि पूज करी; अंति: भिनत्तु भागवती. २. पे. नाम. अष्टप्रकारी पूजा विधि, पृ. ७आ-८अ, संपूर्ण. ८ प्रकारी पूजा श्लोक, मु. देवचंद्र, सं., पद्य, आदि: विमलकेवल भासनभास्करं जग; अंति: मोक्षसौख्यं श्रयंति, श्लोक-९. ११८६७९. भक्तामर स्तोत्र का अर्थ व कथा, अपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ६-१(१)=५, पृ.वि. बीच के पत्र हैं., जैदे., (२३.५४११, २०-२३४५२). भक्तामर स्तोत्र-अर्थ, मा.गु., गद्य, आदिः (-); अंति: (-), (पू.वि. श्लोक-३ से ३० तक का अनुवाद है., वि. मूल का प्रतीक पाठ दिया है.) भक्तामर स्तोत्र-कथा *, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. हेमराज श्रेष्टी कथा से काव्य २७ की कथा पयठाणिपुर पाटक के राजा हरभुपति तक हैं.) ११८६८० (+) सुभाषित श्लोक संग्रह, संपूर्ण, वि. १८१८, चैत्र शुक्ल, ७, गुरुवार, श्रेष्ठ, पृ.५, ले.स्थल. खोडनगर, प्रले. मु. मनोहरसागर, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२४४११.५, १५४३६-४०). सुभाषित श्लोक संग्रह *, पुहि.,प्रा.,मा.गु.,सं., पद्य, आदि: श्रीश्रेयांसो गुरुतरमना; अंति: खेद हनुमान्येक परं वेद. ११८६८१ (+#) नवतत्त्व प्रकरण सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १७४४, पौष शुक्ल, १३, गुरुवार, मध्यम, पृ. १२, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२४४१०.५, ३४२३-२६). नवतत्त्व प्रकरण ६० गाथा, प्रा., पद्य, आदि: जीवा१जीवार पुण्णं३ पावा४; अंति: बुद्धबोहेक्कणिक्काय, गाथा-४५. For Private and Personal Use Only Page #285 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org २७० कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची नवतत्त्व प्रकरण ६० गाथा-टबार्थ *, मा.गु., गद्य, आदि नत्वा देवार्य देवेशं अति: १०८ सिद्ध ने अनेक सिद्ध ११८६८२ (४) आदिजिन व महावीरजिन जन्माभिषेक विधान, संपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पृ. ६, कुल पे. २. प्र. वि. मूल पाठ का अंश खंडित है, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२३X१०.५, ११x२७). १. पे. नाम आदिजिन जन्माभिषेक, पू. १अ ३आ, संपूर्ण आदिजिन जन्माभिषेक कलश, प्रा., सं., पद्य, आदि: मुक्तालंकार विकार; अंति: जिनवर दिउ वरमुत् २. पे. नाम. महावीरजिन जन्माभिषेक, पृ. ३आ-६आ, संपूर्ण. महावीरजिन जन्माभिषेक कलश, आ. मंगलसूरि, मा.गु., सं., प+ग, आदि (१) हवइ श्रावक करस धारकना हाथ, (२)श्रेयःपल्लवयंतु वः; अंति: सोग सब भय उपद्रव ध्रुजई. ११८६८५ () ह्रीँकार महास्तोत्र व कल्पादि संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पू. ६, कुल पे. ५. प्र. वि. पत्रांक खंडित है. मूल पाठ का अंश खंडित है, जैवे. (२४४१०५ १२४३५). १. पे. नाम. घोडाचोली कल्प, पृ. १अ - १आ, संपूर्ण. मा.गु., गद्य, आदि: रस विस गंधकनइ हरताल; अंति: आसगंधसु बायनु आकड जाय. २. पे. नाम, वनस्पती कल्प. पू. २अ ३अ, संपूर्ण. Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir वनस्पति कल्प, मा.गु. सं., गद्य, आदि अश्वगंधा चूर्ण तक्रेण सह अंति: हंस ठः ठः ठः स्वाहा. ३. पे. नाम. ह्रींकार महास्तोत्र, पृ. ३अ ४अ संपूर्ण. सं., पद्य, आदि: हीँकारस्य किं तत्व; अति: भुक्ति मुक्ति प्रदायका, श्लोक-२२. ४. पे. नाम. शक्रस्तव कल्प, पृ. ४अ-५आ, संपूर्ण. नमुत्थुणं कल्प, प्रा.मा.गु. सं., पद्य, आदि: नमोत्थुर्ण अरिहंताणं भगवंत अतिः सर्व भय रक्षा भवति गाथा- १६. ५. पे. नाम. मंत्रादि संग्रह, पृ. ५आ-६आ, संपूर्ण. मंत्र-तंत्र-यंत्र संग्रह, उ. पुहिं. प्रा. मा.गु. सं., प+ग, आदि पहिला पूजा कही छे त्रांबा, अंति टेंटें० स्वाहा वार ७ गुणी. ११८६९०. (+#) दशवैकालिकसूत्र सह टबार्थ व गौभक्ति पद, संपूर्ण, वि. १७६४, भाद्रपद शुक्ल, ३, मंगलवार, मध्यम, पृ. ६२, कुल पे. २, प्र.वि. हुंडी: दसवीका०टबो., पदच्छेद सूचक लकीरें संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, प्र.ले. श्लो. (६१६) यादृशं पुस्तकं दृष्टा, जैदे., ( २६११.५, ६x२८-३२) १. पे. नाम. गौभक्ति पद, पृ. १अ, संपूर्ण. मा.गु., पद्म, आदि: बभण भगत आदवेर जाए पकारी अति आया मारा तरभवन धणी दे. २. पे. नाम. दशवैकालिकसूत्र सह टबार्थ, पृ. १आ-६२अ संपूर्ण. दशवैकालिकसूत्र, आ. शय्यंभवसूरि, प्रा., पद्य, वी. २वी, आदि: धम्मोमंगलमुकट्ठे; अंति: अपुणागमं गइ त्तिबेमि. दशवैकालिकसूत्र -टबार्थ, मा.गु, गद्य, आदि धर्मरूपीउ मंगलिक, अंति: गुरइ शिष्ये प्रते कहां. ११८६९१. (+) ठाणांगसूत्र सह टबार्थ व बालावबोध, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १९७, प्र. वि. हुंडी : ठाणांगसूत्र ०, टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैवे. (२५४११.५, ४-२०४५०-५६). स्थानांगसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., प+ग, आदि सुयं मे आउ तेणं; अंति अज्झयणं सम्मत्तं, स्थान- १०. स्थानांगसूत्र- टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: नत्वा स्थानांग कतिपय; अंति: अध्ययननी परे जाणवु. स्थानांगसूत्र- टीकानुसारी बालावबोध, मा.गु., गद्य, आदि श्रीवीरं जिनं नाथ नत्वा; अंतिः श्रीप्रवचन दीवी नई. ११८६९३. गौतमस्वामी रास, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ५, ले. स्थल. कलकत्ता, प्रले. मु. गोकुलचंद ऋषि; पठ. श्राव. जगतचंद, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. हुंडी : गोतमरास. दे. (२५.५x११.५, १०x३३). " गौतमस्वामी रास, मु. उदयवंत, मा.गु., पद्य, आदि: वीरजिणेसर चरणकमल कमल; अंति: नित नित मंगल उदय करो, गाथा-४७. " १९८६९४ स्तुत्यादि संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पू. ११, कुल पे १९, जैदे. (२५X११.५, १३४३३). .पे. नाम. पंचप्रतिक्रमणसूत्र, पृ. १ अ-७अ, संपूर्ण. For Private and Personal Use Only Page #286 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२६ २७१ पंचप्रतिक्रमणसूत्र-खरतरगच्छीय, संबद्ध, प्रा.,मा.गु.,सं., प+ग., आदि: नमो अरिहंताणं० जयो सामी; अंति: देहि मे देहि सारं. २. पे. नाम. अन्नपूर्णा स्तुति, पृ. ७अ, संपूर्ण. सुपात्रदानफल स्तोत्र, प्रा., पद्य, आदि: उसभस्सय पारणए इक्खुर; अंति: भरहे साहु न सीयंति, गाथा-५. ३. पे. नाम, चतुर्विंशतिजिन स्तुति, पृ. ७अ-७आ, संपूर्ण. २४ जिन स्तुति, आ. जिनकुशलसूरि, सं., पद्य, आदि: नाभेयाजितवासुपूज्यसुविधि; अंति: नेता: प्रयच्छंतु नः, श्लोक-४. ४. पे. नाम. पारणा स्तुति, पृ. ७आ, संपूर्ण. महावीरजिन पारणा स्तुति, सं., पद्य, आदि: यत्पारणासु प्रथमासु; अंति: प्रातु मम प्रमोदं, श्लोक-४. ५. पे. नाम, ज्ञानपंचमी स्तुति, पृ. ७आ-८अ, संपूर्ण. ज्ञानपंचमीपर्व स्तति, सं., पद्य, आदि: पंचानंतकसुप्रपंचपरमानंद; अंति: सा सिद्धायिका त्रायिका, श्लोक-४. ६. पे. नाम. दीपोत्सवपर्व स्तुति, पृ. ८अ-८आ, संपूर्ण. दीपावलीपर्व स्तुति, गच्छा. जिनचंद्रसूरि, सं., पद्य, वि. १७वी, आदि: पापायां पुरि चारु; अंति: जिनचंद्र० विक्रीडितं, श्लोक-४. ७. पे. नाम. मौनएकादशीपर्व स्तुति, पृ. ८आ, संपूर्ण.. सं., पद्य, आदि: अरस्य प्रव्रज्या नमिजिन; अंति: क्षयति विपदः पंचकमदः, श्लोक-४. ८. पे. नाम. महावीरजिन स्तुति, पृ. ८आ-९अ, संपूर्ण.. सं., पद्य, आदि: यदंहिनमनादेव देहिन; अंति: जनानवतु नित्यममंगलेभ्यः, श्लोक-४. ९. पे. नाम. अष्टमीतिथि स्तति, पृ. ९अ, संपूर्ण. अष्टमीतिथिपर्व स्तुति, मा.गु., पद्य, आदि: महामंगलं अष्ट सोहे विसालं; अंति: सहू संत ते संत कल्लाणदाता, गाथा-४. १०. पे. नाम. सीमंधर स्तुति, पृ. ९अ-९आ, संपूर्ण. बीजतिथि स्तुति, प्रा., पद्य, आदि: महीमंडणं पुन्नसोवन्न; अंति: देहि मे सुद्धनाणं, गाथा-४. ११. पे. नाम. पार्श्वजिन स्तुति, पृ. ९आ, संपूर्ण. ___सं., पद्य, आदि: हर्षनताशुरनिर्जरलोकं; अंति: तीर्थपमज्जनशस्तनिदाघः, श्लोक-४. १२. पे. नाम, आदिजिन स्तुति-अर्बुदगिरिमंडन, पृ. ९आ-१०अ, संपूर्ण. प्रा., पद्य, आदि: वरमुत्तियहार सुतारगण; अंति: सुहाणि कुणेसु सया, गाथा-४. १३. पे. नाम. आदिजिन स्तुति, पृ. १०अ, संपूर्ण. सं., पद्य, आदि: युगादिपुरुषंद्राय युगादि; अंति: कूष्मांडी कमलेक्षणा, श्लोक-४. १४. पे. नाम. आदिनाथ स्तुति, पृ. १०अ-१०आ, संपूर्ण. शत्रुजयतीर्थ स्तुति, आ. नंदसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: सेज मंडण आदिदेव; अंति: भणे नंदसूरि तुम पाय सेवता, गाथा-४. १५. पे. नाम. आदिजिन स्तुति, पृ. १०आ, संपूर्ण. चैत्रीपूर्णिमापर्व स्तुति, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीशेāजयतीरथ आदिनाथ; अंति: सुंदर कहै सानिधि करो, गाथा-४. १६. पे. नाम. पार्श्वजिन स्तुति-पलांकित जेसलमेरमंडन, पृ. १०आ-११अ, संपूर्ण. सं., पद्य, आदि: शमदमोत्तमवस्तुमहापणं; अंति: जयति सा जिनशासन देवता, श्लोक-४. १७. पे. नाम. महावीरजिन स्तति, पृ. ११अ, संपूर्ण. सं., पद्य, आदि: वीरं देवं नित्यं; अंति: दद्यात्सौख्यम्, श्लोक-१. १८. पे. नाम. प्रत्याख्यान नाम, पृ. ११अ, संपूर्ण. १० प्रत्याख्याननाम गाथा, प्रा., पद्य, आदि: नवकार १ पोरसीए २ पुरमड्ढे; अंति: अभिग्रहे ९ विगहे १०, गाथा-१. १९. पे. नाम. दसपच्चक्खाणसूत्र, पृ.११अ-११आ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. For Private and Personal Use Only Page #287 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir २७२ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची प्रत्याख्यानसूत्र, संबद्ध, प्रा., गद्य, आदि: उग्गए सूरे नमुक्कार; अंति: (-), (पू.वि. एकासणा पच्चक्खाण अपूर्ण तक है.) ११८६९५ (+) दशवैकालिकसूत्र, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १५, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. हुंडी:दशविका०., संशोधित., जैदे., (२६४११.५, १५४४८). दशवैकालिकसूत्र, आ. शय्यंभवसूरि, प्रा., पद्य, वी. २वी, आदि: धम्मो मंगलमुक्किट्ठ; अंति: (-), (पू.वि. अध्ययन-८ गाथा-५ अपूर्ण तक है.) । ११८६९७ (+#) अंतकृद्दशांगसूत्र सह टिप्पण, अपूर्ण, वि. १७वी, मध्यम, पृ. १९-१४(१ से ४,६ से ७,९,११ से १३,१५ से १८)=५, पू.वि. बीच-बीच के पत्र हैं.,प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-पदच्छेद सूचक लकीरे-संशोधित. मूल पाठ का अंश खंडित है, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६४११.५, ११४३०-३५). अंतक़द्दशांगसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. वर्ग-३ अध्ययन-८ अपूर्ण से वर्ग-६ अध्ययन-३ अपूर्ण तक है व बीच-बीच के पाठांश नहीं हैं.) अंतकृद्दशांगसूत्र-टिप्पण, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: (-). ११८६९८. संबोधसप्ततिका सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १८६१, पौष शुक्ल, २, मध्यम, पृ. ८, ले.स्थल. मंगलपुर, प्रले. मु. विजेचंद (गुरु म. रूपचंद्र); गुपि. मु. रूपचंद्र (गुरु मु. भाग्यचंद्र); मु. भाग्यचंद्र (गुरु मु. चतुरचंद्र); मु. चतुरचंद्र, प्र.ले.पु. मध्यम, प्र.वि. हुंडी:संबोधशत्तरी. नवपलवप्रसादात्., जैदे., (२५४११.५, ५४३८-४२). संबोधसप्ततिका, आ. रत्नशेखरसरि, प्रा., पद्य, आदि: नमिऊण तिलोअगुरुं; अंतिः सो लहइ न इत्थ संदेहो, गाथा-७४. संबोधसप्ततिका-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: नमीनइं त्रिलोकगुरु; अंति: लहइं ईहां संदेह नही. ११८७००. आचारांगसूत्र सह बालावबोध, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १२२-४९(१ से ४९)=७३, प्र.वि. त्रिपाठ., जैदे., (२५४११, ४-९४४५-४८). आचारांगसूत्र , आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., प+ग., आदि: (-); अंति: विमुच्चति त्ति बेमि, (पू.वि. श्रुतस्कंध-२ अध्ययन-२ ___ उद्देश-३ सूत्र-१६ अपूर्ण से है.) आचारांगसूत्र-बालावबोध, आ. पार्श्वचंद्रसूरि, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: इति विमुक्त्याध्ययन. ११८७०१ (+) कर्पूरप्रकर, श्लोक संग्रह व पंचपरमेष्ठि १०८ गुणवर्णन गाथा, संपूर्ण, वि. १८५६, वैशाख शुक्ल, ३, रविवार, जीर्ण, पृ. १०८, कुल पे. ३, ले.स्थल. सूरतबंदर, प्रले. मु. लक्ष्मीरत्न सूरी (परंपरा मु. हेजरत्न सूरी); गुपि. मु. हेजरत्न सूरी (परंपरा मु. हस्तिरत्न सूरी); मु. हस्तिरत्न सूरी (परंपरा मु. सिंहरत्न सूरी); मु. सिंहरत्न सूरी (परंपरा मु. हीररत्न सूरी); मु. हीररत्न सूरी (परंपरा मु. महिमावर्धन सूरी); मु. महिमावर्धन सूरी; अन्य. मु. ज्ञानरत्न; मु. अमृतरत्न (परंपरा मु. लक्ष्मीरत्न सूरी), प्र.ले.पु. विस्तृत, प्र.वि. हुंडी:कर्पूरप्रकर काव्य टीका. श्रीगोडी पार्श्वनाथ प्रसादात्., संशोधित., प्र.ले.श्लो. (४६) भग्न पृष्टी कटी ग्रीवा, (१११७) यादृशं पूस्तकं दृष्ट्वा, (१४४७) जलारक्ष स्थलारक्ष, जैदे., (२४.५४११.५, १२४३६). १.पे. नाम. कर्पूर प्रकरण सह टीका, पृ. १आ-१०८आ, संपूर्ण. कर्पूरप्रकर, मु. हरिसेन, सं., पद्य, आदि: कर्पूरप्रकरः शमामृत; अंति: नेमिचरित्रका, श्लोक-१७९. कर्पूरप्रकर-टीका, आ. जिनसागरसूरि, सं., गद्य, वि. १५५१, आदिः (अपठनीय); अंति: सुभाषितावली कृता. २.पे. नाम. श्लोक संग्रह, पृ. १०८आ, संपूर्ण. सं., पद्य, आदि: कवीकरोती काव्यानी स्वादे; अंति: पर्ति जानाति नोपाता, श्लोक-११. ३. पे. नाम, पंचपरमेष्ठि १०८ गुणवर्णन गाथा, पृ. १०८आ, संपूर्ण. प्रा.,सं., पद्य, आदि: बारस्स गुण अरिहंता; अंति: गुणिया पुव्वसूरीहिं, गाथा-१. ११८७०२ पर्वतिथि स्तुति व प्रास्ताविक श्लोकादि संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ६, कुल पे. १३, प्र.वि. हुंडी:श्लोक.फुट०., जैदे., (२५.५४११.५, १५४३३-४३). १.पे. नाम. प्रास्ताविक श्लोक संग्रह, पृ. १अ-४आ, संपूर्ण. प्रा.,सं., पद्य, आदि: वायुमित्रसुत् बंधु वाहना; अंति: मलनी मालती माधव योसीताम्, (वि. श्लोक संख्या अलग-अलग क्रम में लिखा है.) २. पे. नाम. द्वितीया स्तुति, पृ.५अ, संपूर्ण. For Private and Personal Use Only Page #288 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२६ २७३ बीजतिथि स्तुति, प्रा., पद्य, आदि: महीमंडणं पुन्नसोवन्न; अंति: देहि मे सुद्धनाणं, गाथा-४. ३. पे. नाम. ज्ञानपंचमीपर्व स्तुति, पृ. ५अ, संपूर्ण. __सं., पद्य, आदि: पंचानंतकसुप्रपंचपरमानंद; अंति: (-), (प्रतिपूर्ण, पू.वि. स्तुति-१ व २ लिखी है.) ४. पे. नाम. शनि स्तोत्र, पृ. ५अ-५आ, संपूर्ण. शनिश्चर स्तोत्र, सं., पद्य, आदि: यत्पुरा राज्यभ्रष्टाय; अंति: पीडा न भवंति कदाचन, श्लोक-११. ५. पे. नाम. औपदेशिक श्लोक संग्रह, पृ. ५आ, संपूर्ण, पे.वि. यह कृति इस प्रत के साथ एक से अधिक बार जुड़ी हुई है. औपदेशिक श्लोक संग्रह, पुहि.,प्रा.,मा.गु.,सं., पद्य, आदि: हस्ती हस्त सहस्रेण शतहस्त; अंति: परोक्षेदारू दर्शनम्, श्लोक-७. ६. पे. नाम. श्लोक संग्रह, पृ. ६अ, संपूर्ण. श्लोक संग्रह **, पुहिं.,प्रा.,मा.गु.,सं., पद्य, आदि: देयं भोज धनं घनं; अंति: प्रगगणा तुरितंति जंति, श्लोक-२. ७. पे. नाम. राशि उपमा पद-ज्योतिष, पृ. ६अ, संपूर्ण. पुहिं., पद्य, आदि: पंचम प्रवीन बार सुनो सीख; अंति: पांचविराशि की ओपमा दीजीये, पद-१. ८. पे. नाम. प्रीतदृष्टांत दहा-रात्री व चंद्रमा, पृ. ६अ, संपूर्ण. प्रीतदृष्टांत दोहा-रात्री व चंद्रमा, पुहिं., पद्य, आदि: प्रीतम असी प्रीति करि; अंति: सांवरी निस बिन चंदा हेत, दोहा-१. ९. पे. नाम. औपदेशिक पद, पृ. ६अ, संपूर्ण.. मु. प्रताप, पुहिं., पद्य, आदि: काम तज्यो अर क्रोध तज्यो; अंति: परताप कहै० भगवंतजी देसी, गाथा-२. १०. पे. नाम, आदिजिन पद-जन्ममहोत्सव, पृ. ६अ-६आ, संपूर्ण. मु. लालविनोद, पुहिं., पद्य, आदि: पूरब तीयासीलाख कीये जिन; अंति: विनोदी वंदना हमारी है, गाथा-४, (वि. प्रथम गाथा दो बार लिखि है, गाथांक क्रमश.) ११. पे. नाम. साधारणजिन नमस्कार, पृ. ६आ, संपूर्ण. म. बनारसी, पुहिं., पद्य, आदि: जय जय जय नमोस्तु नमोस्तु; अंति: बनारसी० मिथ्यात निकंदन, पद-१, (वि. गाथांक क्रमश.) १२. पे. नाम. ६ प्रकार के दःख, पृ. ६आ, संपूर्ण. सं., पद्य, आदि: कुग्रामवासी कुलहिने सेवा; अंति: अग्निदाहो दहते च गात्रम्, श्लोक-१. १३. पे. नाम. औपदेशिक श्लोक, पृ. ६आ, संपूर्ण, पे.वि. यह कृति इस प्रत के साथ एक से अधिक बार जुड़ी हुई है. औपदेशिक श्लोक संग्रह, पुहि.,प्रा.,मा.गु.,सं., पद्य, आदि: दृष्टिपूतंन्यसेत्पादं; अंति: मनःपूतं समाचरेत्, श्लोक-१. ११८७०४. (+) चंद्रराजा रास, संपूर्ण, वि. १८८४, ६, मध्यम, पृ. १३४, प्र.वि. हुंडी:चं० रा०., संशोधित., जैदे., (२५४१२, ११४४२). चंद्रराजा रास, म. मोहनविजय, मा.गु., पद्य, वि. १७८३, आदि: प्रथम धराधरति प्रथम; अंति: वर्णका गुणचंदना, उल्लास-४ ढाल १०८, गाथा-२६७९. ११८७०५ (+) अभिधानचिंतामणि नाममाला सह स्वोपज्ञ तत्त्वाभिधायिनी विवृति, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १८०, प्र.वि. हुंडी:नां/सू/व., संशोधित-त्रिपाठ-संशोधित. कुल ग्रं. १००००, जैदे., (२५४११, ४-७४३२-३६). अभिधानचिंतामणि नाममाला, आ. हेमचंद्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., पद्य, वि. १३वी, आदि: प्रणिपत्यार्हतः; अंति: ग्रोषोक्तावुन्नतौ नमः, कांड-६, ग्रं. १४५२. अभिधानचिंतामणि नाममाला-स्वोपज्ञ तत्त्वाभिधायिनी विवृति, आ. हेमचंद्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., गद्य, वि. १२१६, आदि: धर्मतीर्थकृतां वाचा; अंति: निपात्यंते पदे पदे. ११८७०६. (+) नवस्मरण, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १३-४(८ से ११)=९, ले.स्थल. नंदीपुर, पठ. मु. लालचंद (गुरु मु. मनोहरविजय पं.); प्रले. मु. मनोहरविजय पं., प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. श्रीजीवतस्वामीजी श्रीशांतीनाथजी प्रसादात्, श्रीनंदीपुरे १४ मे चौमासे., संशोधित., जैदे., (२४.५४११, १०४३२). For Private and Personal Use Only Page #289 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra २७४ www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची . नवस्मरण, मु. भिन्न भिन्न कर्तृक, प्रा. सं., पग, आदि नमो अरिहंताणं नमो सिद्धाण; अंति: जैनं जयति शासनम्, (पू.वि. अजितशांति गाथा ३५ अपूर्ण से बडीशांति गाथा- २ अपूर्ण तक नहीं है. वि. भक्तामर व कल्याणमंदिर स्तोत्र नहीं हैं.) " १९८७०७ (+) वारव्रतनी विधि, संपूर्ण वि. १९१६ आश्विन शुक्ल, ६, शनिवार, श्रेष्ठ, पृ. ९, ले. स्थल, मुबे, प्र. वि. श्रीशांतिनाथजी प्रसादात्., ग्रंथ रचना के समीपवर्ती काल मे लिखित., दे., (२३११.५, १४X३०). १२ व्रतपूजा विधिसहित पं. वीरविजय, मा.गु., पद्य, वि. १८८७, आदिः उच्चैर्गुणैर्यस्य अंतिः टालवा १२४ दीवा करीइं, ढाल १३, गाथा- १२४. १९८७०८. (A) शब्दांभोधि, संपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पृ. ७. प्र. वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे. (२५x११.५, २०५५२-६७). शब्दसंचय, सं., गद्य, आदि: शब्दांभोधिसमुल्लासरस; अंति: अष्टासप्तति एकोनाशीति अ. ११८७११. (+#) पांडुराजा वार्ता, संपूर्ण वि. १९वी मध्यम, पृ. ६ प्र. वि. हुंडी: पांडु वार्ता, संशोधित. अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५X११.५, १९X३२-३५). पांडुराजा वार्ता, रा., गद्य, आदि: अवै पंडुजी गंगे वजीर, अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., लक्ष्मण दृष्टांतकथा अपूर्ण तक लिखा है.) ११८७१२. (+#) सुक्तावली लोक संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १७, पठ. मु. सिवसागर (गुरु पं. नरेंद्रसागर); प्रले. पं. नरेंद्रसागर (गुरु मु. अनोपसागर); गुप. मु. अनोपसागर (गुरु मु. महिमासागर), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. संशोधित अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५x११, १५X३१-३५). सुक्तावली लोक संग्रह, प्रा. मा. गु., सं., पद्य, आदि: अर्हत्सिद्धगणींद्रवाचक; अतिः कलियुगे स्वच्छंदचारिव्रत, लोक-३१०. ११८७१३. जंबूद्वीप प्रकरण सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १७९७, मार्गशीर्ष कृष्ण, ५, शुक्रवार, श्रेष्ठ, पृ. १७, ले. स्थल. वल्लभीनगर, प्र. ग. हेतुसागर (गुरु उपा. राजसागर गणि), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. मनमोहन पार्श्व प्रभु प्रसादात्., कुल ग्रं. ५२५, जैदे., (२५X११.५, ६X३७). बृहत् क्षेत्रसमास - जंबूद्वीप प्रकरण, आ. जिनभद्रगणि क्षमाश्रमण, प्रा., पद्य, आदि: नमिऊण सजलजलहरनिभस्सण; अति: झाएज्जा सम्मदिडीए, गाथा १८८. बृहत्क्षेत्रसमास- जंबूद्वीप प्रकरण का टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि नमस्कार करीनें भव्य मेघनी, अंतिः ध्यान ध्यावो सम्यग्दृष्टा ११८७१९. (+) नवतत्त्व प्रकरण सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १९, प्र. वि. संशोधित, जैदे., (२६X१२, ३X१८-२४). नवतत्त्व प्रकरण ६० गाथा, प्रा., पद्य, आदि: जीवाजीवा पुन्नं पावा; अंति: दुसय छसत्त नवतत्ते, गाथा-६७. नवतत्त्व प्रकरण ६० गाथा-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि जीवतत्व १ अजीवतत्व २; अंति: नवतत्वना २७६ भेद जाणवा. १९८७२०. (*) कम्र्म्म स्तव व बंधसामित्तं, संपूर्ण, वि. १७९८ फाल्गुन शुक्ल, ३. शुक्रवार, मध्यम, पृ. ७, कुल पे. २, ले.स्थल. जालोर, प्रले. मु. माणिक्यविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. संशोधित-पदच्छेद सूचक लकीरें-अन्वय दर्शक अंक युक्त पाठ- टिप्पण युक्त विशेष पाठ. जैवे. (२५x१२, ५४३३). " " १. पे. नाम कम्र्म्म स्तव सह टवार्थ पू. १अ ४आ, संपूर्ण कर्मस्तव नव्य कर्मग्रंथ-२, आ. देवेंद्रसूरि प्रा. पद्य वि. १३वी १४बी, आदि तह धुणिमो वीरजिणं; अंतिः दिविंद वंदिअं नमह तं वीरं, गाथा-३४. कर्मस्तव नव्य कर्मग्रंथ-२-टबार्थ *, मा.गु., गद्य, आदि: तथा तिम स्तवं श्रीवीरजिन; अंति: भव्यलोको० नमस्कार हुवो. २. पे नाम बंधसामित्तं सह टवार्थ, पृ. ५अ-७आ, संपूर्ण 1 बंधस्वामित्व नव्य कर्मग्रंथ-३, आ. देवेंद्रसूरि प्रा. पद्य वि. १३वी १४वी आदि बंधविहाणविमुक्कं बंद; अति देवेंद्रसूरि० कम्मत्थवं सोठ. For Private and Personal Use Only Page #290 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२६ www.kobatirth.org बंधस्वामित्व नव्य कर्मग्रंथ-३-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि बंध विहाण विमुक्कं बंदि, अंतिः कर्म स्तव भणी सांभळीनई. ११८७२१. जिनभवोत्कीर्तन स्तवन सह अवचूरि, संपूर्ण, वि. १८१२ ज्येष्ठ कृष्ण, ९, श्रेष्ठ, पृ. ५, ले. स्थल, नाडूलनगर, प्रले. पं. कृष्णविमल पठ. पं. हितसागर, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. हुंडी जिनभवा० श्री पद्म प्रभु प्रसादात्., जैदे. (२६५१२. १५X३८-५७). . Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir पुत्रः जिनभवोत्कीर्तन स्तवन, आ. सोमसुंदरसूरि, सं., पद्य, आदिः यः प्राक् सार्थपति अति शर्माण्यहं प्रार्थये श्लोक-२६. जिनभवोत्कीर्तन स्तवन- अवचूरि, सं., गद्य, आदि : आद्ये भवे श्रीऋषभो विदेहे; अंति: श्रीवीरजिनः . ११८७२२. (+) दशवैकालिकसूत्र अध्ययन -१ से ४, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. प्र. वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२५.५X१२, १३X२५). , दशवैकालिकसूत्र, आ. शय्यंभवसूरि, प्रा., पद्य, वी. रवी आदि (-); अति (-) (प्रतिअपूर्ण, पू.वि. अध्ययन- २ गाथा - ३ अपूर्ण से है.) ११८७२३. पासाकेवली, संपूर्ण, वि. १९८०, मार्गशीर्ष शुक्ल, ४, शुक्रवार, श्रेष्ठ, पृ. ५, ले. स्थल. गंगापुर, प्रले. उपा. शिवचंद्र, प्र.ले.पु. सामान्य, वे. (२४.५X११.५, १३x२८-३२). पाशाकेवली भाषा, संबद्ध, मा.गु., गद्य, आदिः ॐ नमो भगवति अति सजन मीले मनोर्थपुरण होसी. ११८७२४. (+) नवपदतप ओली आराधन विधि व नवपद ओली उद्यापन विधि, संपूर्ण वि. १९४१, उगणीसे इगतालीसमे, चैत्र शुक्ल, ५, श्रेष्ठ, पू. १४, कुल पे २ प्रले. पं. केसरसागर, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. संशोधित. दे. (२४.५४११.५ ९२६). १. पे. नाम. नवपदतप ओली आराधन विधि, पृ. १अ -१२आ, संपूर्ण, वि. १९४१, चैत्र शुक्ल, ४, ले. स्थल. " लुणावा, प्रले. पं. केसरसागर, प्र.ले.पु. सामान्य. प्रा., मा.गु., गद्य, आदि हरिआवहि च्यार नोकार; अंति नानवदी बसना खांमणा जाणवा. २. पे. नाम. नवपद ओली उद्यापन विधि, पृ. १३अ - १४आ, संपूर्ण, वि. १९४१, चैत्र शुक्ल, ५, सोमवार, अन्य. गंगाराम, प्र.ले.पु. सामान्य. २७५ गु., गद्य, आदि: प्रथम १०८ कूआ अथवा २१; अंति: कलस करी मोटी पूजा भणावे. ११८७२५. लघु दंडक व देसावगासिक पच्चक्खाण, संपूर्ण, वि. १८७९, भाद्रपद कृष्ण, १३, शुक्रवार, मध्यम, पृ. ११, कुल पे. २, ले. स्थल. अवरंगाबाद, प्रले. रामचंद्र रघुनाथ सैतवाल, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. हुंडी दंड, जैदे (२५x११.५, १३४३३). " १. पे. नाम. लघु दंडक, पृ. १आ-११आ, संपूर्ण. २४ दंडक २६ द्वार विचार, मा.गु., गद्य, आदि: शरीर अवगेणा संघेण संठाण; अंति: माहारी वंदना १०९ हूजो. २. पे. नाम. देसावगासिक पच्चक्खाण, पू. ११ आ. संपूर्ण संबद्ध, प्रा., गद्य, आदि: सचित्त जयणा नियमंच्चा; अंतिः सव्वसमाहिवत्तियागारेणं. יי ११८७२६. भाष्यत्रय सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १८२३, ज्येष्ठ शुक्ल, ७, गुरुवार, मध्यम, पृ. २०, प्रले. पा. रामविजय (तपागच्छ), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. हुंडी : भाष्पसूत्र., जैदे., (२५X११, ५X३७). भाष्यत्रय, आ. देवेंद्रसूरि, प्रा., प+ग., वि. १४वी, आदि: वंदित्तु वंदणिज्जे, अंति: सासय सुखं अणाबाहं, भाष्य-३. भाष्यत्रय - टवार्थ, मा.गु., गद्य, आदि वादिनइ वांदवा योग्य सर्व अति: एहवु ४८ स्थानक पामई. ११८७२७. जीवविचार प्रकरण सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ७, ले. स्थल. सादडी, प्रले. मु. उमेदसागर, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे. (२६११.५, ४X३६-४० ). जीवविचार प्रकरण, आ. शांतिसूरि, प्रा., पद्य, वि. ११वी, आदि: भुवणपईवं वीरं नमिऊण; अंति संतिसूरि० सुयसमुद्दाओ, गाथा-५१. जीवविचार प्रकरण बार्थ, मा.गु, गद्य, आदि त्रिण भुवन स्वर्ग मृत्यु अंतिः श्रुत समुद्र थकी उधरीओ, ११८७२८. (#) नवतत्व प्रकरण व चउसरण, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ६, कुल पे. २, ले. स्थल. वीद्यापुर, प्रले. ग. मनोहरसागर; पठ. मु. चतुरा, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. पार्श्वप्रभु प्रसादात्., मूल पाठ का अंश खंडित है, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५X१२, १५X३५ ). For Private and Personal Use Only Page #291 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir २७६ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची पए १. पे. नाम. नवतत्व प्रकरण, पृ. १अ-४अ, संपूर्ण. नवतत्त्व प्रकरण १०७ गाथा, प्रा., पद्य, आदि: जीवा१ जीवार पुन्नं३; अंति: अणागयद्धा अणंतगुणा, गाथा-९८. २. पे. नाम. चउसरण, पृ. ४अ-६अ, संपूर्ण. चतःशरण प्रकीर्णक, ग. वीरभद्र, प्रा., पद्य, वि. ११वी, आदि: सावज्जजोगविरइ उक्कित्तण; अंति: कारणं निव्वुइ सुहाणं, गाथा-६३. ११८७२९ पाक्षिकसूत्र सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २७-४(१ से ४)=२३, प्र.वि. हुंडी:पाखीसूत्र., जैदे., (२६४११.५, ५४३७). पाक्षिकसूत्र, हिस्सा, प्रा., प+ग., आदिः (-); अंति: जेसिं सुयसायरे भत्ति, (पू.वि. मृषावाद आलापक से है.) पाक्षिकसूत्र-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदिः (-); अंति: हुइ ते मिच्छामि दुकडं. ११८७३०. वृद्ध अतीचार व दोहा संग्रह, संपूर्ण, वि. १८१३, आश्विन शुक्ल, ७, गुरुवार, मध्यम, पृ.६, कुल पे. २, ले.स्थल. खेरवा, प्रले. पंन्या. रत्नविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२६४१२, १५४३८). १. पे. नाम. वृद्ध अतीचार, पृ. १अ-६अ, संपूर्ण. श्रावक पाक्षिक अतिचार-अंचलगच्छीय, संबद्ध, मा.गु., गद्य, आदि: इच्छा० गुरुपर्वभणी; अंति: ते सवि हु० देसावगासीयं०. २. पे. नाम, दोहा संग्रह, पृ. ६आ, संपूर्ण. मा.गु., पद्य, आदि: भली भई पिय मर गयो नही; अंति: कीघा वायदा सोने कीधी सांन, गाथा-३. ११८७३१. () सिरिसिरिवाल कहा, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ४३-२(१ से २) ४१, पृ.वि. बीच के पत्र हैं., प्र.वि. मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., (२५.५४११.५, ६x२८-३२). सिरिसिरिवाल कहा, आ. रत्नशेखरसूरि, प्रा., पद्य, वि. १४२८, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. गाथा-१६ अपूर्ण से ४१५ अपूर्ण तक है.) ११८७३२. (+) आलोचना विधी, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ६, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२५४१२, १८४४०-४३). आलोयणा विधि, मा.गु., गद्य, आदि: अतीत कालें अठारै; अंति: साध श्रावक आराधक होय. ११८७३३. (+) चतुर्विंशतिजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. १९५३, चैत्र कृष्ण, ८, शुक्रवार, श्रेष्ठ, पृ.८, प्र.वि. हुंडी:चउवीशत०., ग्रंथ रचना के समीपवर्ती काल मे लिखित-संशोधित., दे., (२५४११.५, १३४४०-४३). स्तवनचौवीसी, श्राव. विनयचंद्र गोकलचंद कुमट, मा.गु., पद्य, वि. १९०६, आदिः श्रीआदीश्वरस्वामी हो; अंति: विनेचंद० पूरण करी, स्तवन-२४. ११८७३४. (+) दीपावलीदिने देववांदवा विधि, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ.५, प्रले. श्राव. त्रिभोवन कल्याणदास, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२५.५४११.५, १०४३३). दीपावलीपर्व देववंदन विधिसहित, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: वीरजिनवर वीरजिनवर; अंति: प्रगटे सकल गुणखांणि. ११८७३५. चउदगण ठाण का भेद, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ५, जैदे., (२५.५४११.५, १३४३०). १४ गुणस्थानके १३ बोल विचार, मा.गु., गद्य, आदि: नामद्वार १ लक्षण; अंति: मार्गणा १ मोक्ष जाय. ११८७३६. पर्युषणपर्व स्तुति व औपदेशिक सज्झायादि संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ६, कुल पे. १०, जैदे., (२५.५४११.५, १४४३२). १. पे. नाम. अष्टापदतीर्थ स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण. म. जिनेंद्रसागर, मा.ग., पद्य, आदि: तिरथ अष्टापद नित नमी; अंति: जिनेंद्र वधते नेहरे, गाथा-८. २. पे. नाम. औपदेशिक सज्झाय, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. औपदेशिक सज्झाय-माया परिहार, महमद, मा.गु., पद्य, आदि: भूलो मन भमरा काइ; अंति: महमूद० लेखो अरीहंत हाथ, गाथा-९. ३. पे. नाम, अरणकमुनी स्वाध्याय, पृ. १आ-२अ, संपूर्ण. For Private and Personal Use Only Page #292 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२६ २७७ अरणिकमुनि सज्झाय, मु. रूपविजय, मा.गु., पद्य, आदि: अरणिक मुनिवर चाल्या; अंति: मनवांछित फल सीधो जी, गाथा-८. ४. पे. नाम. जीवकाया उपरी सज्झाय, पृ. २अ, संपूर्ण. औपदेशिक सज्झाय-वनमाली, मु. पद्मतिलक, मा.गु., पद्य, आदि: काया रे वाडी कारमी; अंति: पद्मतिलक० जिम खोडिन लागई, गाथा-९. ५. पे. नाम. नेमराजिमती बारमासा, पृ. २अ-३अ, संपूर्ण. म. कवियण, मा.गु., पद्य, आदि: श्रावणमासै स्वांम मेहली; अंति: कवीयण० एम नव निध पांमी रे, गाथा-१३. ६. पे. नाम, उत्तराध्ययनसूत्र सज्झाय- अध्ययन १६, २०, २१, पृ. ३अ-४आ, संपूर्ण. उत्तराध्ययनसूत्र-विनयादि ३६ अध्ययन सज्झाय, संबद्ध, उपा. उदयविजय, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), प्रतिपूर्ण. ७. पे. नाम. प्रथमप्रतेक स्वाध्याय, पृ. ४आ, संपूर्ण. करकंडुमुनि सज्झाय, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, आदि: चंपानगरी अतिभलि हुंवारी; अंति: समयसुंदर० पाय पुलाय रे, गाथा-५. ८. पे. नाम, रात्रिभोजन सज्झाय, पृ. ४आ-५आ, संपूर्ण. रात्रिभोजन परिहार सज्झाय, मा.गु., पद्य, आदि: अवनीतलि नयरी वसइंजी; अंति: पोहतो शिवपुर ठाम रे, गाथा-२०. ९. पे. नाम. जिवहितशिख्या सज्झाय, पृ. ५आ-६अ, संपूर्ण. औपदेशिक सज्झाय-जीवशिक्षा, मु. सिद्धविजय, मा.गु., पद्य, आदि: बापडला रे जीवडला तूं; अंति: सिधवीजे० दिन चढत सवाई रे, गाथा-११. १०. पे. नाम. पर्युषणापर्व स्तुति, पृ. ६अ-६आ, संपूर्ण. पर्युषणपर्व स्तुति, मु. जिनेंद्रसागर, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: वरस दिवसमां सार; अंति: जिनेंद्रसागर जयकार, गाथा-४. ११८७३७. (+) निशीथसूत्र सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १९०३, आषाढ़ कृष्ण, १३, रविवार, श्रेष्ठ, पृ. ९९, प्र.वि. हुंडी:लघुनिसीत., संशोधित., दे., (२५४११.५, ६x४३). निशीथसूत्र, प्रा., गद्य, आदि: जे भिक्खू हत्थकम्मं करेती; अंति: सिसपसिस्सो व भोजंव, उद्देशक-२०, ग्रं. ८१५. निशीथसूत्र-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: नमस्कार हुवो सु०; अंति: लिखी छइ सर्व पहली. ११८७३८. (+) षड्दर्शन समुच्चय सह लघुवृत्ति, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ६, प्र.वि. हुंडी:सट्दर्शन समुच्चय० टीका०., पदच्छेद सूचक लकीरें., जैदे., (२५४११, २४४४७). षड्दर्शन समुच्चय, आ. हरिभद्रसूरि, सं., पद्य, आदि: सद्दर्शनं जिनं नत्वा वीर; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., श्लोक-३२ तक लिखा है.) षड्दर्शन समुच्चय-लघुवृत्ति, आ. सोमतिलकसूरि, सं., गद्य, वि. १३९२, आदि: सत्ज्ञानदर्पणतत्ते विमले; अंति: (-), ___ अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण.. ११८७४० (+) चूलिका गीत, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ५, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२४.५४११,१३४३४-३८). दशवैकालिकसूत्र-सज्झाय, संबद्ध, मु. जैतसी, मा.गु., पद्य, वि. १७१७, आदि: धरम मंगल महिमा निलो धरम; अंति: जयतसी जय जय रंग, अध्याय-१०. ११८७४१. भाष्यत्रय सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १८४७, फाल्गुन शुक्ल, १२, गुरुवार, श्रेष्ठ, पृ. २२, प्रले. पं. तेजसागर गणि (गुरु पं. मनोहरसागर गणि); गुपि.पं. मनोहरसागर गणि (गुरु ग. हेतुसागर); ग. हेतुसागर (गुरु उपा. राजसागर गणि), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. श्रीरामपुरजी प्रसादात्, श्रीचिंतामणपार्श्वनाथजी प्रसादात्., जैदे., (२४.५४११.५, ५४३४). भाष्यत्रय, आ. देवेंद्रसरि, प्रा., प+ग., वि. १४वी, आदि: वंदितु वंदणिज्जे सव्वेविइ; अंति: सासयसुक्खं अणाबाहं, भाष्य-३. भाष्यत्रय-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: ऐंद्रश्रेणिनतं; अंति: सर्वेलोकः सुखी भवतु. For Private and Personal Use Only Page #293 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir २७८ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ११८७४२ (+#) नेमराजिमती बारमासा, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. १, प्रले. मु. भागचंद ऋषि, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. हुंडी:बारमासो., संशोधित. मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., (२६४१०.५, १०४३९). नेमराजिमती बारमासा, म. जिनहर्ष, मा.गु., पद्य, आदि: राणी राजल इणपरि वीनव; अंति: जिनहरख० अविहड प्रीत रे, गाथा-१३. ११८७४३. (+) कल्पसूत्र सह टबार्थ व व्याख्यान+कथा, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. १२३-१०९(१ से १०९)=१४, पू.वि. बीच के पत्र हैं.,प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२५.५४११, ६-१६४२९-४७). कल्पसूत्र, आ. भद्रबाहस्वामी, प्रा., गद्य, आदिः (-); अंति: (-), (प.वि. नेमिजिन चरित्र अपूर्ण से आदिजिन चरित्र अपूर्ण तक है.) कल्पसूत्र-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: (-). कल्पसूत्र-व्याख्यान+कथा*, मा.ग., गद्य, आदिः (-); अंति: (-). ११८७४४. चतुर्विंशतिजिन स्तुति, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ९-२(१,३)=७, जैदे., (२५.५४११, ११४३४). स्तुतिचतुर्विंशतिका, मु. शोभनमुनि, सं., पद्य, आदिः (-); अंति: हारताराबलक्षेमदा, स्तुति-२४, श्लोक-९६, (पू.वि. स्तुति-३ गाथा-१ अपूर्ण से है व बीच के पाठांश नहीं हैं.) ११८७४५. (+) अंतकृद्दशांगसूत्र सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ५५, प्र.वि. हुंडी:अंतगडट०., संशोधित-टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२४.५४११, ६४४०). अंतकृद्दशांगसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., गद्य, आदि: तेणं कालेणं तेणं; अंति: जहा नायाधम्मकहाणं, अध्याय-९२, ग्रं. ८९९. अंतकृद्दशांगसूत्र-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: तेणई कालई चौथउ आरानई; अंति: शेष जिम ज्ञाता धर्मकथा. ११८७४६. (#) पाक्षीसूत्र व खामणासूत्र, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ३०, कुल पे. २, प्र.वि. हुंडी:पाखी., मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., (२६.५४११.५, ८x२३). १. पे. नाम. पाक्षीसूत्र, पृ. १अ-२९आ, संपूर्ण. पाक्षिकसूत्र, हिस्सा, प्रा., प+ग., आदि: तित्थंकरे अ तित्थे; अंति: सययं जेसिं सुअसायरे भत्ति. २. पे. नाम. खामणासूत्र, पृ. २९आ-३०आ, संपूर्ण. क्षामणकसूत्र, हिस्सा, प्रा., गद्य, आदि: इच्छामि खमासमणो० पिय; अंति: नित्थारग पारगा होह, आलाप-४. ११८७४७. (+) कल्पसूत्र सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १०८, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२५४११, ६४३३-३९). कल्पसूत्र, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., गद्य, आदि: (१)अहँ नमो अरिहंताणं, (२)तेणं कालेणं० समणे; अंति: (-), (पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., सामाचारी सूत्र-३८ अपूर्ण तक है.) कल्पसूत्र-टबार्थ , मा.गु., गद्य, आदि: नमो० अरिहंतनै नमस्कार हु; अंति: (-), (पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., भक्तपच्चक्खाण में पानीग्रहणआचारसूत्र तक टबार्थ लिखा है.) ११८७४८.(+) शीलोपदेशमाला सह बालावबोध+कथा, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, प. ४२, प्र.वि. हंडी:शिलउपदेशमा०., पदच्छेद सूचक लकीरें., जैदे., (२४.५४११, १४-१७४३२-३६). शीलोपदेशमाला, आ. जयकीर्तिसरि, प्रा., पद्य, वि. १०वी, आदि: आबालबंभयारि नेमि; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., कथा-१७ गाथा-३९ अपूर्ण तक लिखा है.) शीलोपदेशमाला-बालावबोध कथा, ग. मेरुसुंदर, मा.गु., गद्य, वि. १५५१, आदि: श्रीवामेयममेय; अंति: (-), अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण. ११८७४९ (+) सप्तस्मरण स्तव, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ.७, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२४.५४११, १०x४२-४५). सप्तस्मरण-खरतरगच्छीय, म. भिन्न भिन्न कर्तक, प्रा., पद्य, आदि: अजियं जियसव्वभयं,; अंति: (-), (पू.वि. गणधरदेव स्तुति (तंजयउजए स्तोत्र) गाथा-८ अपूर्ण तक है.) For Private and Personal Use Only Page #294 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२६ २७९ ११८७५० (+) साधुवंदना, संपूर्ण, वि. १८३१, श्रावण शुक्ल, ३, बुधवार, श्रेष्ठ, पृ. ६, प्रले. ग. दयाहंस, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित., प्र.ले.श्लो. (१) यादृशं पुस्तकं दृष्ट्वा, जैदे., (२५४११, ११४३६-४२). साधुवंदना, आ. पार्श्वचंद्रसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: रिसहजिण पमुह चोवीस जिण; अंति: मन आणंदई संथूण्या, ढाल-७, गाथा-८८. ११८७५१ (4) वीरजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ५, अन्य. पं. चिमन; पं. केसरसागर, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६४११, १२४३७). पुण्यप्रकाश स्तवन, उपा. विनयविजय, मा.ग., पद्य, वि. १७२९, आदि: सकल सिद्धिदायक सदा: अंति: विनयविजय० पुण्य प्रकाश ए, ढाल-८, गाथा-१३४. ११८७५२. प्रास्ताविक गाथा संग्रह व शत्रुजयतीर्थ रास, संपूर्ण, वि. १८५९, मध्यम, पृ. ६, कुल पे. २, ले.स्थल. बाहादरपुर, प्रले. पं. नेणचंद्र, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२५.५४११, १२४३३). १. पे. नाम. प्रास्ताविक गाथा संग्रह, पृ. १अ, संपूर्ण. पुहिं.,प्रा.,मा.गु.,सं., पद्य, आदि: सारंगी सिंहशा वंश प्रशति; अंति: मीठी जिनानी गिरी, गाथा-२. २. पे. नाम. शत्रुजयतीर्थ रास, पृ. १आ-६अ, संपूर्ण. उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, वि. १६८२, आदि: श्रीरिसहेसर पाय नमी आणी; अंति: समयसुंदर० आणंद थाय, ढाल-६, गाथा-११२.। ११८७५३. (#) अंजनासुंदरी रास, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. पू.वि. बीच के पत्र हैं., प्र.वि. पत्रांक नहीं लिखा होने के कारण अनुमानित पत्रांक दिया गया है., मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., (२५४१०.५, १६४५५). अंजनासुंदरी रास, मु. पुण्यसागर, मा.गु., पद्य, वि. १६८९, आदिः (-); अंति: (-), (पू.वि. खंड-१ ढाल-१ की गाथा-२० अपूर्ण से खंड-२ ढाल-२ की गाथा-२५ अपूर्ण तक है.) ११८७५४. विंशत विहरमानजिन स्तवन व दंडक स्तवन, संपूर्ण, वि. १८४७, मार्गशीर्ष शुक्ल, १३, श्रेष्ठ, पृ. ५, कुल पे. २, प्रले. पं. संभूदान (गुरु श्राव. माहासिंघ); गुपि. श्राव. माहासिंघ; पठ. सा. कांन; सा. खतू,प्र.ले.पु. मध्यम, जैदे., (२५४११, ११४३५). १.पे. नाम, विंशत विहरमानजिन स्तवन, पृ. १अ-३अ, संपूर्ण. २० विहरमानजिन स्तवन, पं. धर्मसिंह पाठक, मा.गु., पद्य, वि. १७२९, आदि: वंदु मनसुध वइहरमाण; अंति: नेहधर धर्मसी नमै, ढाल-३, गाथा-३६. २.पे. नाम, दंडक स्तवन, पृ. ३अ-५अ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तवन-२४ दंडकविचारगर्भित, म. धरमसी, मा.गु., पद्य, वि. १७२९, आदि: पूर मनोरथ पासजिणेसर; अंति: गावै धरमसी सुजगीस ए, ढाल-४, गाथा-३४. ११८७५५. सूक्त मुक्तावली बावनी, संपूर्ण, वि. १८६८, माघ शुक्ल, ८, मंगलवार, श्रेष्ठ, पृ. ६, ले.स्थल. अठाणानगर, प्रले. मु. माणकचंद, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. हुंडी:बावनी., जैदे., (२४.५४११.५, १३४३८). __ अक्षरबावनी, आ. दयासागरसूरि, मा.गु., पद्य, वि. १७४९, आदि: ॐकार अपार सुअक्षर सार; अंति: दयासागर० कीध कवित तेवीसा, गाथा-५८. ११८७५६ (+) देवकीरीचोपी ढाल, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ९, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२५४११, १३४३३-४८). गजसकुमालमुनि रास, मु. कानजी, मा.गु., पद्य, वि. १७०३, आदि: भदलपुर पधारीया बावीस; अंति: उपज्यो एहां संताप रे, ढाल-१४. ११८७५७. गुरुगण गाथाचतष्क-सद्धर्मोपदेश योग्यता सह टीका, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, प. १,प्र.वि. पावरखा के बाहर ४४४६ एक श्वोसोश्वास की आवलिका का उल्लेख किया गया है., जैदे., (२५.५४१०.५, १३४६२). गुरुगुण गाथाचतुष्क-सद्धर्मोपदेश योग्यता, प्रा., पद्य, आदि: देसकुलजाइरूवी संघयणी धिइ; अंति: जुत्तो पवयणसारं परिकहेउं, गाथा-४. For Private and Personal Use Only Page #295 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra २८० www.kobatirth.org 3 Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir गुरुगुण गाधाचतुष्क-सद्धमोंपदेश योग्यता की टीका, सं., गद्य, आदि तत्र आर्यदेशोद्भूतः अति योगयोग्यो भवतीत्यर्थः. ११८७५८. (#) अंजनासुंदरी चोपई, संपूर्ण, वि. १७२९, माघ कृष्ण, ३, गुरुवार, मध्यम, पृ. २४, प्र. वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५X११, १३-१६X३६-४०). अंजनासुंदरी रास, मु. पुण्यसागर, मा.गु., पद्य, वि. १६८९, आदि श्रीगणधर गौतम प्रमुख अति पुण्यसागर० वृद्धि मंगलमाल, खंड ३ ढाल २२, गाथा - ६३२. ११८७६०. विमलजिन स्तवन, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, पू. वि. मात्र प्रथम पत्र है., जैदे., ( २४.५X१०, १०x५२). विमलजिन स्तवन, मा.गु., पद्य, आदि: विमलजिणेसर बंदिये परतिख; अंति (-), (पू.वि. गावा- ११ तक है.) ११८७६१. (+) कल्याणमंदिर स्तोत्र सह टीका, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ११, प्रले. मु. चिमनसागर (गुरु ग. फतेंद्रसागर); गुपि. ग. फतेंद्रसागर, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. त्रिपाठ - पदच्छेद सूचक लकीरें-संशोधित., जैदे., (२५.५X११, २२५५). कल्याणमंदिर स्तोत्र, आ. सिद्धसेनदिवाकरसूरि, सं., पद्य, वि. १वी, आदि कल्याणमंदिरमुदारमवद्यभेदि; अंति कुमुद० प्रपद्यते श्लोक-४४. कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची कल्याणमंदिर स्तोत्र-टीका, मु. कनककुशल, सं., गद्य, वि. १६५२, आदि: प्रणम्य पार्श्व; अंतिः श्लोकानामिह मंगलम्, ग्रं. ६५०. ११८७६२. (+) श्रीपाल चरित्र, संपूर्ण, वि. १९६०, कार्तिक शुक्ल, ३, श्रेष्ठ, पृ. १७, ले. स्थल, महुधा, प्रले. पं. कनकविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. हुंडी : श्रीपाल चरित्र, पदच्छेद सूचक लकीरें संशोधित वचन विभक्ति संकेत, दे. (२५.५४१०.५, १२X४४). श्रीपाल चरित्र, पंन्या. सत्यराज, सं., पद्य, वि. १५१४, आदि श्रिये श्रीमन्महावीर अंति: रत्नत्रितयमाप्यते श्लोक-४८९. ११८७६३. दशवैकालिकसूत्र सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ३९, पू. वि. अंत के पत्र नहीं हैं. प्र. वि. हुंडी : वसवैका, जैवे. (२५X११, ७४२७-३०). दशवैकालिकसूत्र, आ. शय्यंभवसूरि, प्रा., पद्य, वी. २वी आदि धम्मो मंगलमुक्किट्ठे अंति (-), (पू.वि. अध्ययन-८ गाथा-६४ अपूर्ण तक है.) दशवैकालिकसूत्र-टबार्थ *, मा.गु., गद्य, आदि: (अपठनीय); अंति: (-). ११८७६४ (+) न्यायरत्नावली सह स्वोपज्ञ वृत्ति, संपूर्ण, वि. १७६५, श्रावण, मध्यम, पृ. ३०, कुल पे. २, प्रले. ग. युक्तिसागर; पठ. ग. जगरूपसागर, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. हुंडी : न्यायरत्नावली., संशोधित., जैदे., (२५X११, १५-१८x४६-४९). १. पे नाम, न्यायावतार सूत्र. पू. १आ-२अ संपूर्ण, पे.वि. यह कृति इस प्रत के साथ एक से अधिक बार जुड़ी हुई है. मु. दयारत्न, सं., पद्य, आदि: चिन्मय प्रकृतिर्भूयः; अंति: विवक्षातः कारकाणि, श्लोक - ६९. २. पे. नाम. न्यायरत्नावली सह स्वोपज्ञ वृत्ति, पृ. २अ-३०आ, संपूर्ण, पे. वि. यह कृति इस प्रत के साथ एक से अधिक बार जुड़ी हुई है. For Private and Personal Use Only न्यायावतार सूत्र, मु. दयारत्न, से., पद्य, आदि चिन्मय प्रकृतिर्भूयः अति विवक्षातः कारकाणि, श्लोक ६९. न्यायावतार सूत्र- स्वोपज्ञ वृत्ति, मु. दयारत्न, सं., गद्य, आदि प्रणम्य परमानंद दायिनः; अंति पूर्णि प्रकाशः प्रमः ११८७६५. (+) सौभाग्यपंचमी देववंदन विधि, संपूर्ण, वि. १९१७, आश्विन शुक्ल, ३, श्रेष्ठ, पृ. ६, प्रले. ग. चिमनसागर गणि प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. हुंडी: पंचमी देववंदनपआणि, टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित. दे. (२५.५x११, १३५०)ज्ञानपंचमी पर्व देववंदन विधिसहित, आ. लक्ष्मीसूरि, मा.गु., पद्य, आदि प्रथम बाजोट उपरें तथा अंति पूजियें विजयलक्ष्मी हेज, देववंदनजोडा-५, गाथा १५०. " "" ११८७६८. (+) गौतमस्वामी रास, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ५, प्र. वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२५X११, ११४३८). गौतमस्वामी रास, आ. विजयभद्रसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: वीरजिणेसर चरणकमल कमला; अंति: जयभद्रसूरि भ ए, ढाल ६, गाथा- ४९. ११८७६९ भगवतीसूत्र, पूर्ण, वि. १६५८, वैशाख शुक्ल, १३, शुक्रवार, श्रेष्ठ, पू. ४१२-१ (१) =४११, ले. स्थल. दलीपनगर, अन्य. मनोज्ञसुंदर, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. हुंडी : भगवती सूत्र., कुल ग्रं. १६०००५२, जैदे., (२५X११.५, १३X३७-४२). Page #296 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२६ www.kobatirth.org २८१ भगवतीसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., गद्य, आदि: (-); अंति: देउ अविग्घं लिहंतस्स, (पू. वि. शतक - १ उदेशक - १ सूत्र- ८ अपूर्ण से है.) Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ११८७७० (+) ज्ञाताधर्मकथांगसूत्र सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १८००, फाल्गुन शुक्ल, ७, गुरुवार, मध्यम, पृ. ३८२+३(१०५,२१०,२५९) = ३८५, ले. स्थल. खेरवानगर, प्रले. पं. दीपविजयगणि (गुरु पं. भाग्यविजयगणि); गुपि. पं. भाग्यविजयगणि (गुरु पं. प्रतापविजयगणि); पं. प्रतापविजयगणि (गुरु पं. तीर्थविजयगणि); पं. तीर्थविजयगणि; राज्यकाल पं. इंद्रविजय, प्र.ले.पु. मध्यम, प्र. वि. श्री खरवलनगरे श्रीशांतिजिनप्रसादात्, संशोधित. प्र. ले. श्लो. (१४४८) तैलादृक्षे जलादृक्षे, जैदे., (२५X११, ५X४५). ज्ञाताधर्मकथांगसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा. प+ग, आदि: तेणं कालेणं तेणं समए: अंतिः नायाधम्मकहाओ सम्मत्ताओ, अध्ययन- १९ . ५५००. ', ज्ञाताधर्मकथांगसूत्र- टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि प्रणम्य महावीर, अंतिः करी ज्ञाताधर्म कथांग. ११८७७१. (+) कल्पसूत्र सह कल्पकिरणावली टीका, अपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पू. ३२१-२ (१४८ से १४९)+१ (१४३)=३२०, प्र.वि. हुंडी:कल्प., त्रिपाठ-संशोधित., जैदे., (२५.५X११, ९३८-४४). कल्पसूत्र, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., गद्य, आदि: तेण कालेण० समणे; अति: भुज्झो उवदंसेइत्ति बेमि, व्याख्यान- ९, ग्रं. १२१६ (पू.वि. महावीरजिन परिवारनामसूत्र से दीक्षानुमतिसूत्र अपूर्ण तक नहीं है.) कल्पसूत्र - कल्पकिरणावली टीका, उपा. धर्मसागर गणि, सं. गद्य वि. १६२८ आदि प्रणम्य प्रणताशेष; अंति , , गुरूपारतंत्र्यमभिहितमितियं. ५२१६ " ११८७७२. (+१) ऋषिमंडल प्रकरण की वृत्ति, संपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पू. १४५, प्र. वि. हुंडी ऋषि० वृत्ति, पदच्छेद: लकीरें-संशोधित-टिप्पण युक्त विशेष पाठ. मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., ( २६.५X११, १७x४७-५०). ऋषिमंडल प्रकरण-कथार्णवांक वृत्ति, ग. पद्ममंदिर, सं., गद्य, वि. १५५३, आदि: जयाय जगतामीशो युगादीशो; अंतिः चिदुत्पादाय संजायताम्, ग्रं. ७२६१. ११८७७३. (+) विपाकसूत्र सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १८३१ कार्तिक कृष्ण ९ रविवार मध्यम पू. १२६, ले. स्थल, मीर्यपुर, प्र.वि. हुंडी:विपाकसूत्र., पदच्छेद सूचक लकीरें., प्र.ले. श्लो. (१) यादृशं पुस्तकं दृष्ट्वा, (९७७) जलादि रक्षे स्तैलादि रक्षे, जैदे., (२५X११.५, ५X३३-३८). विपाकसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., गद्य, आदि तेणं कालेणं तेणं, अति: वीवागोवि से जहा आयारस्स, श्रुतस्कंध - २ अध्ययन २०, ग्रं. १२५०. विपाकसूत्र- टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि नत्वा श्री वर्धमानाय अंतिः तिम विपाक अंग जाणव3. ११८७७५. (+१) उत्तराध्ययनसूत्र अध्ययन ९ सह टवार्थ, संपूर्ण वि. १९ वी, मध्यम, पू. ६, प्र. वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-दुर्वाच्य. अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५X१०, ५X३७). उत्तराध्ययनसूत्र-हिस्सा अध्ययन ९ नमिपवज्जा, मु. प्रत्येकबुद्ध, प्रा., पद्य, आदि चहऊण देवलोगाओ, अंति नमीरायरिसित्ति बेमि, गाथा- ६२. उत्तराध्ययनसूत्र- हिस्सा अध्ययन ९ नमिपवज्जा का टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि चवीनड़ देवलोकथी उपनओ; अंति (अपठनीय). 5 १९८७७७, (+०) नारचंद्र जैन ज्योतिष आदि संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पृ. १०, कुल पे. ६. प्र. वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित-पदच्छेद सूचक लकीरें. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५X११, १४X३४). १. पे. नाम. नारचंद्र, पृ. १अ - १० अ, संपूर्ण, प्रले. पं. धीरविजय पंडित, प्र.ले.पु. सामान्य. For Private and Personal Use Only ज्योतिषसार, आ. नरचंद्रसूरि, सं., पद्य, आदि: श्रीअर्हतं जिनं नत्वा; अंति: महोत्सव० महियल वरसै दूध, २. पे. नाम. १२ राशि वर्णमाला, पृ. १०आ, संपूर्ण. मा.गु., गद्य, आदि: चु चे चो ला लि लु ले लो; अति: दिदुशझथदेदोचचिमीन.. ३. पे. नाम. शनिमंगल विचार, पृ. १०आ, संपूर्ण. मा.गु., गद्य, आदि: जेणे संवच्छर शनि वक्रे; अंति: क्रूर वक्रगति इणपरि कही. लोक-२९४. Page #297 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir २८२ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ४. पे. नाम. नवग्रह दोषावली, पृ. १०आ, संपूर्ण. सं., गद्य, आदि: रविभूत देव्या दोष१ सोमे च; अंति: राहु केतु पिसाचका ८. ५.पे. नाम. आगम पृच्छा, पृ. १०आ, संपूर्ण. ग्रामागमन पृच्छा, सं., पद्य, आदि: बुधे चंद्रे भवेत्; अंति: आपद राहु शनीश्चरे, श्लोक-१. ६. पे. नाम. रामसीता दूहा, पृ. १०आ, संपूर्ण. __ रामसीता दोहा, मा.गु., पद्य, आदि: राम नाम सुख लील विलास; अंति: हणमंत वेगी वात सुणावै, दोहा-१. ११८७७८. (+) भुवनदीपक व चतुषष्टी जोगणी नामानि, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ८, कुल पे. २, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित., जैदे., (२५.५४१०, १३४३०-३३). १.पे. नाम. भुवनदीपक, पृ. १अ-८आ, संपूर्ण. ___ आ. पद्मप्रभसूरि, सं., पद्य, वि. १३पू, आदि: सारस्वतं नमस्कृत्य; अंति: श्रीपद्मप्रभसूरिभिः, श्लोक-१८१. २. पे. नाम. चतुषष्टी जोगणी नामानि, पृ. ८आ, संपूर्ण. ६४ योगिनी नाम, सं., प+ग., आदि: ब्राह्मी १ कुमारी २ वाराह; अंति: मां ६३ गवरी ६४. ११८७८२. अंतकृद्दशांगसूत्र का तप यंत्र, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ३-२(१ से २)=१, पू.वि. मात्र बीच का ही एक पत्र है., जैदे., (२५.५४११,११४५८). अंतकृद्दशांगसूत्र-संबद्ध तप यंत्र, मा.गु., यं., आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. सिंहनिक्कीलियं तप यंत्र से अट्ठमियाभिक्खूप्रतिमा यंत्र तक है., वि. मूल का प्रतीक पाठ दिया है.) ११८७८३ (+) उत्तराध्ययनसूत्र सह अधिरोहिणी वृत्ति-अध्ययन १८, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ३८,प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें., जैदे., (२५४११, १७४४०-४३). उत्तराध्ययनसूत्र, मु. प्रत्येकबुद्ध, प्रा., प+ग., आदि: (-); अंति: (-), प्रतिपूर्ण.. उत्तराध्ययनसूत्र-अधिरोहिणी वृत्ति, मु. भावविजय, सं., गद्य, वि. १६८९, आदि: (-); अंति: (-), प्रतिपूर्ण. ११८७८५ (+) तत्त्वार्थाधिगमसूत्र व संबंधकारिका, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ५५, कुल पे. २, प्र.वि. हुंडी:तत्त्वाभाष्य., संशोधित. कुल ग्रं. २२५०, जैदे., (२६४१०.५, १३४५४). १.पे. नाम. तत्त्वार्थाअधिगम संग्रह भाष्यस्याद्याः कारिका, पृ. १आ-२अ, संपूर्ण. तत्त्वार्थाधिगमसूत्र-संबंधकारिका आदि, संबद्ध, वा. उमास्वाति, सं., पद्य, आदि: सम्यग्दर्शनशुद्धं; अंति: मार्ग प्रवक्ष्यामि, का.-३१. २. पे. नाम. तत्त्वार्थाधिगमसूत्र सह स्वोपज्ञ भाष्य, पृ. २अ-५५आ, संपूर्ण. तत्त्वार्थाधिगमसूत्र, वा. उमास्वाति, सं., गद्य, आदि: सम्यग्दर्शनज्ञान; अंति: छद्मस्थ परं क्षेयेति, अध्याय-१०. तत्त्वार्थाधिगमसूत्र-स्वोपज्ञ भाष्य, वा. उमास्वाति, सं., गद्य, आदि: सम्यग्दर्शनं सम्यग्; अंति: चिरेण परमार्थम्, अध्याय-१०, ग्रं. २२००. ११८७८६. कृष्णरुक्मणी वेलि सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २८-३(१ से ३)=२५, पू.वि. बीच के पत्र हैं., जैदे., (२६४११, ६x४३). कृष्णरुक्मणी वेलि, रा. पृथ्वीराज राठोड , मा.गु., पद्य, वि. १६३७, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. गाथा-२७ अपूर्ण से २९५ तक है.) कृष्णरुक्मणी वेलि-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: (-). ११८७८८ (+) निशीथसूत्र सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ८२, प्र.वि. हुंडी:निसित०., टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित., जैदे., (२५४११, ३-६४३९-४५). निशीथसूत्र, प्रा., गद्य, आदि: जे भिक्खू हत्थकम्मं करेती; अंति: पसिस्सो भवोज्जं च, उद्देशक-२०, ग्रं. ८१५, (वि. अंत में उद्देशा आलापक का कोष्टक दिया गया है.) निशीथसूत्र-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: नमस्कार हुवो सु० श्रुत जे; अंति: लिखी छे सर्व पहिली. For Private and Personal Use Only Page #298 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२६ २८३ ११८७९० (+#) ज्योतिषसार सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. २२-३(७ से ९)=१९, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ. मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., (२६४१०.५, ५४२१-३८). ज्योतिषसार, आ. नरचंद्रसूरि, सं., पद्य, आदि: श्रीअर्हतं जिनं नत्वा; अंति: (-), (पू.वि. बीच के पत्र नहीं हैं व प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., नक्षत्रचरणराशि अधिकार अपूर्ण से भद्रा अधिकार अपूर्ण तक नहीं है व राहदिशा अधिकार अपूर्ण तक लिखा है., वि. ४४ के बाद गाथांक नहीं लिखा है. अंतिम पत्र पर बाद में मुलनक्षत्र में जन्मे बालक के बारे में दो श्लोक दिये गये हैं.) ज्योतिषसार-टबार्थ *, मा.गु., गद्य, आदि: श्रीतीर्थंकर वीतरागदेवनैं; अंति: (-), (पू.वि. बीच के पत्र नहीं हैं व प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., श्लोक ३५ तक लिखा है) ११८७९४. (+#) पालगोपाल कथा, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ५, प्र.वि. संशोधित. मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., (२५४११, १५४५०-५४). पालगोपाल कथा, आ. जिनकीर्तिसूरि, सं., पद्य, आदि: ये शीलं सुखकल्लीलं भजते; अंति: जिनकीर्तिसूरिः, श्लोक-२३६९. ११८७९५. (+) समक्तित्व बारव्रत, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १६-५(११ से १५)=११, प्र.वि. हुंडी:बारव्रत., संशोधित., जैदे., (२६४१०.५, १३४३८). १२ व्रत चौपाई, श्राव. देपाल भोजक, मा.गु., पद्य, वि. १५३४, आदि: वीरजिणेसर प्रणम; अंति: काज सरिसिइं तेहनां, (पू.वि. गाथा-२२० अपूर्ण से गाथा-३३५ अपूर्ण तक नहीं है.) ११८७९६. (+#) सिद्धदंडिका यंत्र व सिद्धदंडिका स्तव, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २,प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें. अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, जैदे., (२६४११, १५४३२). १. पे. नाम. सिद्धदंडिका यंत्र, पृ. १अ, संपूर्ण. मा.गु.,सं., यं., आदि: अनुलोम सिद्धिदंडिका; अंति: (-). २. पे. नाम, सिद्धदंडिका स्तव, पृ. १अ-१आ, अपूर्ण, पू.वि. मात्र प्रथम पत्र है. आ. देवेंद्रसूरि, प्रा., पद्य, आदि: जं उसहकेवलाओ अंत; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-८ अपूर्ण तक है.) ११८७९७. (+) संग्रहणी, संपूर्ण, वि. १५६९, फाल्गुन कृष्ण, ५, बुधवार, मध्यम, पृ. १०, प्रले. उपा. तिलकसुंदर (गुरु उपा. गुणकीर्ति, कच्छोलीवालगच्छ); गुपि. उपा. गुणकीर्ति (कच्छोलीवालगच्छ); पठ. मु. वीरकलश (गुरु उपा. तिलकसुंदर, कच्छोलीवालगच्छ), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. हुंडी:श्री०संग्रहणी., टिप्पण युक्त विशेष पाठ-पदच्छेद सूचक लकीरें-अन्वय दर्शक अंक युक्त पाठ-संशोधित., जैदे., (२६४११, १३४४०-४६). बृहत्संग्रहणी, आ. चंद्रसूरि, प्रा., पद्य, वि. १२वी, आदि: नमिऊं अरिहंताई ठिइ; अंति: चंदमुणि० जिणमयं लोए, गाथा-३४९. ११८७९८. (+) वाग्भट्टालंकार-परिच्छेद ५ की टीका, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ६, अन्य. मु. फतेंद्र, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित-टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२६४१०.५, १६४५४). वाग्भट्टालंकार-हिस्सा परिच्छेद ५ की टीका, मु. विशादराज-शिष्य, सं., गद्य, आदि: यथा भोन्यशालि दालि; अंति: तो गण तो पिवा. ११८८०२ (+) सुभद्रासती चौपाई, संपूर्ण, वि. १८४९, चैत्र शुक्ल, ६, बुधवार, श्रेष्ठ, पृ. २३, ले.स्थल. राहसर, प्र.वि. ग्रंथ रचना के समीपवर्ती काल मे लिखित-टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित., जैदे., (२५.५४१०.५, १३४४०). सभद्रासती चौपाई, ग. रूपवल्लभ, मा.गु., पद्य, वि. १८२५, आदि: आदिकरण आदिसरं सांति; अंति: सुणतां रंग रसाला जी, ढाल-२५. ११८८०३ (+) हंसराजवत्सराज चौपाई, संपूर्ण, वि. १८८०, श्रावण कृष्ण, ३, बुधवार, मध्यम, पृ. ३५, ले.स्थल. नाडोलनगर, प्रले. मु. खुशालचंद (गुरु पं. अनोपरत्न, अंचलगच्छ); गुपि. पं. अनोपरत्न (गुरु वा. कुशलरत्न पंडित, अंचलगच्छ); वा. कुशलरत्न पंडित (अंचलगच्छ), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. हुंडी:वछराजहंसराज., संशोधित., जैदे., (२४.५४११, १३४४२). For Private and Personal Use Only Page #299 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir २८४ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची हंसराजवत्सराज चौपाई, आ. जिनोदयसूरि, मा.गु., पद्य, वि. १६८०, आदि: आदिसर आदे करि चउवीसे जिण; अंति: दिन दिन होइ जयजयकार, खंड-४ ढाल ४८, गाथा-९०५. ११८८०६. (#) अभिधानचिंतामणि नाममाला सह टीका, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १६३, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. हुंडी:नामसारो, त्रिपाठ. मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., (२५४११, १-९x४३-४६). अभिधानचिंतामणि नाममाला, आ. हेमचंद्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., पद्य, वि. १३वी, आदि: प्रणिपत्यार्हतः; अंति: (-), (पू.वि. कांड-४ तक है.) अभिधानचिंतामणि नाममाला-सारोद्धार टीका, उपा. वल्लभ, सं., गद्य, वि. १६६७, आदि: श्रीमदर्हतमानम्य; अंति: (-). ११८८०७. (+) बृहत्संग्रहणी सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १८३९, फाल्गुन शुक्ल, १३, रविवार, श्रेष्ठ, पृ. ७२, ले.स्थल. सुद्धदंती, प्रले. मु. मोतीचंद (गुरु मु. दौलतराज); गुपि. मु. दौलतराज, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. हुंडी:संघयणसू., संशोधित., जैदे., (२५४११, ५४३३). बृहत्संग्रहणी, आ. चंद्रसूरि, प्रा., पद्य, वि. १२वी, आदि: नमिऊं अरिहंताई ठिइ; अंति: जा वीरजिण तित्थं, गाथा-३७५. बृहत्संग्रहणी-टबार्थ *, मा.गु., गद्य, आदि: नमस्कार करीनइ अर्हत; अंति: महावीरनो तीर्थ प्रवर्त्तइ. ११८८०८. (+) सूत्रकृतांगसूत्र-श्रुतस्कंध १ सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ७७-१(७५)=७६, पठ. श्रावि. कीवाइबाई, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. हुंडी:सूय सूत्र., टिप्पण युक्त विशेष पाठ-पदच्छेद सूचक लकीरे-संशोधित., जैदे., (२५४११, ५४३५). सूत्रकृतांगसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., प+ग., आदि: बुज्झेज्झ तिउट्टिज्ज; अंति: (-), (प्रतिअपूर्ण, पू.वि. अध्ययन-१५ गाथा-१२ अपूर्ण से गाथा-२१ अपूर्ण तक नहीं है.) सूत्रकृतांगसूत्र-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: एकदर्शनीति केवलज्ञानज थकी; अंति: (-), प्रतिअपूर्ण. ११८८१०. (+) सिंदूरप्रकर सह टीका, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ७, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरे-संशोधित., जैदे., (२५.५४१०.५, १५-१८४५०-५३). सिंदूरप्रकर, आ. सोमप्रभसूरि, सं., पद्य, वि. १३वी, आदि: सिंदूरप्रकरस्तपः करिशिरः; अंति: सूक्तमुक्तावलीयम्, श्लोक-९३. सिंदूरप्रकर-वल्लभीटीका, आ. गुणकीर्तिसूरि, सं., गद्य, आदि: पार्श्वप्रभोः क्रमयो; अंति: मधुकरसम तां अभजत्. ११८८११. प्रत्याख्यान भाष्य, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १२, पठ. श्राव. कनीराम, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२५४११, १०४३७). भाष्यत्रय, आ. देवेंद्रसूरि, प्रा., प+ग., वि. १४वी, आदि: वंदित्तु वंदणिज्जे; अंति: सासयसुक्खं अणाबाहं, भाष्य-३, (वि. कोष्ठक सहित समझाया है.) ११८८१२ (+) विक्रम चरित्र, संपूर्ण, वि. १७८८, चैत्र कृष्ण, १, मध्यम, पृ. १३, अन्य. पं. नानवर्द्धन (गुरु पं. हेतवर्द्धन); गुपि.पं. हेतवर्द्धन, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२५.५४१०.५, १२४४०-४३). विक्रमचौबोली रास-पुण्यफलकथने, वा. अभयसोम, मा.गु., पद्य, वि. १७२४, आदि: वीणा पुस्तक धारणी; अंति: अभयसोमे० काजे कही, ढाल-१७. ११८८१३. (+#) धन्नाशालिभद्रनी चतुःपदी, अपूर्ण, वि. १८२३, माघ कृष्ण, ५, मंगलवार, मध्यम, पृ. १४-४(२ से ३,६,९)=१०, प्रले. मु. धर्मविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. हुंडी:शालिभद्रचौपी. श्री ऋखभदेवजी प्रशादात्., संशोधित-टिप्पण युक्त विशेष पाठ. मूल पाठ का अंश खंडित है, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५४१०.५, १३-१६x४६). शालिभद्रमुनि चौपाई, मु. मतिसार, मा.गु., पद्य, वि. १६७८, आदि: सासननायक समरियै; अंति: पुवावै मनवंछित सुख पामैजी, ढाल-२९, गाथा-५१०, (पू.वि. ढाल-१ गाथा-१५ अपूर्ण से ढाल-५ की दहा-४ अपूर्ण तक, ढाल-१० गाथा-७ अपूर्ण से ढाल-१३ की दूहा-२ अपूर्ण तक व ढाल-१७ गाथा-६ अपूर्ण से ढाल-१९ गाथा-३ अपूर्ण तक नहीं ११८८१४ (+#) अभिधानचिंतामणि नाममाला, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ४७-३७(१ से ३७)=१०, प्र.वि. हुंडी:नाममालासू०., पंचपाठ-अन्वय दर्शक अंक युक्त पाठ-पदच्छेद सूचक लकीरें-टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित. मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., (२५.५४१०.५, १५४१६). For Private and Personal Use Only Page #300 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२६ www.kobatirth.org २८५ अभिधानचिंतामणि नाममाला, आ. हेमचंद्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., पद्य, वि. १३वी आदि (-); अति: रोषोक्ताव नतौ नमः, कांड-६, (पू.वि. कांड - ४ श्लोक-२५६ अपूर्ण से है.) Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir १९८८१९ पट्टावली खरतरगच्छीय, संपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पृ. ५, जैदे. (२५.५४११, १३४३९). पट्टावली खरतरगच्छीय, सं., गद्य, आदि बीरे मोक्ष गते संवत, अंतिः जिनलाभसूरिजी विरंजीव्यात. ११८८२०. अंतकृद्दशांगसूत्र, अपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ३२, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., जैदे., (२७X११, ४४४३). अंतकदशांगसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., गद्य, आदि: तेणं कालेणं तेणं; अंति: (-). (पू.वि. वर्ग-६ अध्ययन १ अपूर्ण तक है.) ११८८२२ (+) अजितसेनकनकावती चौपाई, संपूर्ण वि. १७८२ श्रावण शुक्ल, १०, मध्यम, पू. २५, ले. स्थल. वणोदनगर, प्र. मु. लक्ष्मीविजय (गुरु मु. सुंदरविजय); गुपि. मु. सुंदरविजय (गुरु मु. विवेकविजय); मु. विवेकविजय (गुरु मु. चतुरविजय); मु. चतुरविजय, प्र.ले.पु. मध्यम, प्र. वि. श्रीशांतिजिन प्रसादात्., संशोधित., जैदे., (२६X११.५, १५-१८X३५-४२). अजितसेनकनकावती रास, मु. जिनहर्ष, मा.गु., पद्य, वि. १७५१, आदि: वीणापुस्तकधारणी; अंति: जिनहर्ष० लाभ सवाई हो, ढाल ४३, गाथा- ७५८ . १०१४. ११८८२३. (+) चतुःशरण प्रकीर्णक सह बालावबोध, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १२, अन्य. पं. केसरसागर, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. संशोधित, जैदे. (२६४११.५, ११४३४-४३) "" चतुःशरण प्रकीर्णक, ग. वीरभद्र, प्रा., पद्य, वि. ११वी, आदि: सावज्जजोग विरई; अंति: कारणं निव्वुइ सुहाणं, गाथा-६३. चतुःशरण प्रकीर्णक बालावबोध, मा.गु., गद्य, आदि पहिलुं आवशकनां नाम पहिली अंति: लहड़ निश्चयमेव संदेहर हीत. ११८८२४ (४) चैत्रीपूर्णिमापर्व देववंदनविधि स्तवन, संपूर्ण वि. १९वी मध्यम, पृ. १, प्र. मु. विद्याराज मुनि प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैवे. (२६११, १६४५०). " चैत्री पूर्णिमापर्व देववंदनविधि स्तवन, मु. दयारत्न, मा.गु., पद्य, आदि आदिकरण जिणवर चलण प्रणमवि, अंति दयारत्न० भावइ बल वली, ढाल-६, गाथा-२५. י' ११८८२५. नवस्मरण, अपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पृ. ५, पू. वि. अंत के पत्र नहीं हैं., जैये. (२६४११, १२४३३). " नवस्मरण, मु. भिन्न भिन्न कर्तृक, प्रा. सं., प+ग, आदि अजिअंजिअ सव्वभव अंति: (-), (पृ.वि. बृहच्छांति स्तोत्र 'दोषा प्रयत्नासं सर्व' पाठांश तक है., वि. अजितशांति व बृहच्छांति स्तोत्र है.) ११८८२६ (४) १० ठाणा बोल, अपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पू. १३-३ (१ से ३) १०. पू.वि. प्रारंभ व अंत के पत्र नहीं हैं., 9 प्र. वि. हुंडी : बसठाणा. मूल पाठ का अंश खंडित है, जैवे. (२५४११, १४४३६). , १० ठाणा बोल, मा.गु., गद्य, आदि (-); अति (-), (पू.वि. बोल-४ अपूर्ण से बोल १० अपूर्ण तक है.) १९८८२७. (+) भक्तामर स्तोत्र सह बालावबोध व कथा, संपूर्ण, वि. १९वी जीर्ण, पृ. १५, प्र. वि. संशोधित, जैवे. (२६.५x११, १५X३८-४२). भक्तामर स्तोत्र, आ. मानतुंगसूरि, सं., पद्य, आदि भक्तामरप्रणतमौलिमणि, अंतिः मानतुंग० लक्ष्मीः, श्लोक-४४. भक्तामर स्तोत्र-बालावबोध, मा.गु.,सं., गद्य, आदि: किलइसइ साचउ हउं प्रणते; अंति: तेहनइ स्वयंवर लक्ष्मीवरइं. भक्तामर स्तोत्र-कथा, मा.गु, गद्य, आदि: श्रीमालवदेशमाहि उजेणीनगरी; अंति कीधउ मोटि महिमा हुओ, कथा-२८. ११८८२८. (+) नवस्मरण, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ६, पू. वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र. वि. संशोधित., जैदे., जैवे. (२६४११.५. १४४२८-३२). नवस्मरण, मु. भिन्न भिन्न कर्तृक, प्रा.सं., प+ग, आदि संतिकरं संतिजिणं, अंति (-), (पू.वि. संतिकर, तिजयपहुत, नमिऊण, अजितशांति स्तोत्र है . ) ११८८२९. होलिकापर्व व्याख्यान, संपूर्ण, वि. १८७२ पौष शुक्ल ९, मंगलवार, मध्यम, पृ. ३, प्र. मु. रत्नविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२६X१२, १०X३१). For Private and Personal Use Only Page #301 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir २८६ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची होलिकापर्व व्याख्यान, उपा. क्षमाकल्याण, सं., गद्य, वि. १८३५, आदि: किंचिद्विशेषोदय॑ते; अंति: मुनि धर्मेशतां विभूति. ११८८३१. चंद्रप्रभस्वामी स्तवन व जीरापल्ली स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, जैदे., (२६४११, १२४५४). १.पे. नाम, चंद्रप्रभस्वामी स्तवन, पृ. १आ, संपूर्ण. चंद्रप्रभजिन स्तोत्र, सं., पद्य, आदि: ॐ चंद्रप्रभः प्रभा; अंति: दायिनि मे वरप्रदा, श्लोक-५. २. पे. नाम, जीरापल्ली स्तवन, पृ. १आ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तवन-जीरापल्लि , मु. मेरुनंदन, सं., पद्य, आदि: असुरनरसुरेंद्रश्रेणि; अंति: मेरु०पार्श्वनाथः, श्लोक-८. ११८८३४. (+#) वीर स्तवन व सिद्धहेमशब्दानुशासन सह टीका, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २,प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५.५४११, २०४५५). १.पे. नाम. वीर स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण.. महावीरजिन स्तवन, म. दयारत्न, मा.गु., पद्य, वि. १६००, आदि: प्रणमवि वीर जिणद पाय पंकज; अंति: दयारतन मुनि मनरली, गाथा-१९. २. पे. नाम. सिद्धहेमशब्दानुशासन सह टीका, पृ. १आ, संपूर्ण. सिद्धहेमशब्दानुशासन, आ. हेमचंद्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., गद्य, वि. ११९३, आदि: अह सिद्धिः स्याद्वादात; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., सिद्धिः स्यादवाद सूत्र तक लिखा है.) सिद्धहेमशब्दानशासन-स्वोपज्ञ तत्त्वप्रकाशिका बृहद्वत्ति, आ. हेमचंद्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., गद्य, वि. ११९३, आदिः (१)प्रणम्य परमात्मानं, (२)अहँ इत्येतदक्षरं; अंति: (-), (अपूर्ण, पृ.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., 'शब्दानुशासनमिदमारभ्यत इत्यभिधेय प्रयोज नृप' पाठांश तक लिखा है.) ११८८३५ (+) उपदेश संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १०, प्रले. मु. केसरविमल, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२५.५४११, १९४४३). उपदेश संग्रह, सं., पद्य, आदि: प्रणम्य पुण्यपद्मा; अंति: सत्कर्मणो भवेत्, श्लोक-४२४, (वि. अंत में एक श्लोक लिखा है.) ११८८३६. (+#) बृहत्संग्रहणी सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ३१, प्रले. मु. इसरदास (गुरु मु. हरिदेरामजी); गुपि.मु. हरिदेरामजी (गुरु मु. हेमराजजी); मु. हेमराजजी (गुरु मु. सांवलजी); मु. सांवलजी (गुरु मु. ठाकुर); मु. ठाकुर (गुरु मु. वाघा ऋषि); मु. वाघा ऋषि (गुरु मु. भोजाजी ऋषि); मु. भोजाजी ऋषि (गुरु मु. जसवंत ऋषि), प्र.ले.पु. विस्तृत, प्र.वि. हुंडी: संधेणीटबा. धम्यमास में लिखित., टिप्पण युक्त विशेष पाठ-टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित. टिप्पणक का अंश नष्ट, जैदे., (२५.५४११, ६x४४). बृहत्संग्रहणी, आ. चंद्रसूरि, प्रा., पद्य, वि. १२वी, आदि: नमिऊं अरिहंताई ठिइ; अंति: जा वीरजिण तित्थं, गाथा-३३३, (वि. १७६१, फाल्गुन कृष्ण, ३, बुधवार, ले.स्थल. अजमेर) बृहत्संग्रहणी-टबार्थ *, मा.गु., गद्य, आदि: नमीनइ अरिहंतादि; अंति: जा लगि वीरनुं सासन वर्त्त, (वि. १७६२ कृष्ण, ८, रविवार, ले.स्थल. विश्वतारणी, वि. प्रतिलेखन पुष्पिका में धम्य मास लिखा है जो कि अस्पष्ट है.) ११८८३७. १२ भावफल कथन व ज्योतिष संग्रह, संपूर्ण, वि. १८२८, आषाढ़ कृष्ण, १, श्रेष्ठ, पृ. ५, कुल पे. २, प्रले. पं. मनोहरसागर गणि (गुरु ग. हेतुसागर); गुपि. ग. हेतुसागर (गुरु उपा. राजसागर गणि); अन्य. मु. चिमनसागर (गुरु ग. फतेंद्रसागर), प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२५.५४११, १७४४३). १. पे. नाम. १२ भावफल साधन सह व्याख्या, पृ. १अ-५अ, संपूर्ण. १२ भावफल साधन, मु. मानसागर, सं., पद्य, आदि:शकोक्ष वेद वेदो ४४५ नो; अंति: स्पष्टं गदितं मानसागरैः, श्लोक-३१. १२ भावफल साधन-व्याख्या, सं., गद्य, आदि: संवत् १६९७ वर्षे शाकै; अंति: स्थाप्यः स ग्रहो न चलति. २.पे. नाम. ज्योतिष संग्रह, पृ. ५आ, संपूर्ण. ज्योतिष*, पुहि.,मा.गु.,सं., प+ग., आदि: मनुद्धिका २१४ सप्तजिन २४७; अंति: नही है पंडित विचारज्यो. For Private and Personal Use Only Page #302 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२६ २८७ ११८८३८. (+#) शत्रुजयतीर्थ लघुकल्प, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ. अक्षरों की स्याही फैल गयी ___ है, जैदे., (२५.५४११, ११४३५). शत्रुजयतीर्थ लघुकल्प, प्रा., पद्य, आदि: अइमुत्तय केवलिणा कहियं; अंति: सो लहइ सेत्रुजजत्तफलं, गाथा-२४. ११८८३९. (+) कविशिक्षा, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १०, ले.स्थल. पत्तनपुर, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित. कुल ग्रं. ५००, जैदे., (२५.५४११, १७X४८). कविशिक्षा, श्राव. अरिसिंह , सं., पद्य, वि. १३वी, आदि: वाचं नत्वा महानंदकर; अंति: गुरुतापि रथोपमानैः, प्रतान-४. ११८८४० (+#) दशवैकालिकसूत्र सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ५३-२०(१ से २०)=३३, पृ.वि. प्रारंभ व अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरे-संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५.५४११, ६४३१-३५). दशवैकालिकसूत्र, आ. शय्यंभवसूरि, प्रा., पद्य, वी. २वी, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. अध्ययन-५ उद्देश-२ गाथा-४ अपूर्ण से चूलिका-२ गाथा-१२ अपूर्ण तक है.) दशवैकालिकसूत्र-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: (-). ११८८४८. स्तवन संग्रह, संपूर्ण, वि. १९६२ शुक्ल, १, मध्यम, पृ. ३५, कुल पे. २५, ले.स्थल. वीकानेर, प्रले. मु. हीरालाल महात्मा, प्र.ले.पु. सामान्य, दे., (२५४११.५, १३४४४-४८). १. पे. नाम. नंदस्वरवन्नजिनालय स्तवन, पृ. १आ-२अ, संपूर्ण. __ नंदीश्वरद्वीपजिन स्तवन, म. जैनचंद्र, मा.गु., पद्य, आदि: नंदिश्वर बावन जिनालय; अंति: जैनचंद्र गुण गावौ रे, गाथा-१५. २. पे. नाम. श्रीमंधरजी स्तवन, पृ. २अ-२आ, संपूर्ण. सीमंधरजिन स्तवन, मु. अगरचंद, मा.गु., पद्य, वि. १८२१, आदि: मारी वीनतरी अवधारो साहिब; अंति: अगरचंद० जिनपद ने ए भास, गाथा-२१. ३. पे. नाम, सहस्रकूट स्तवन, पृ. २आ-३आ, संपूर्ण. सहस्रकूटजिन स्तवन, ग. देवचंद्र, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदिः सहसकट जिनप्रतिमा वंदीये; अंति: जिनराजथी देवचंदनी प्रीत, गाथा-१४. ४. पे. नाम, आलोयण स्तवन, पृ. ३आ-५अ, संपूर्ण. महावीरजिन स्तवन-अतिचारगर्भित, मु. धर्मवर्धन, मा.गु., पद्य, वि. १७५४, आदि: ए धन सासन वीर जिनवर; अंति: धर्मसि०फलवर्द्धिपुरे, ढाल-४, गाथा-३०. ५. पे. नाम. चतुर्थदसगुणस्थानवृद्धि स्तवन, पृ. ५अ-६आ, संपूर्ण. सुमतिजिन स्तवन-१४ गुणस्थानविचारगर्भित, मु. धर्मवर्धन, मा.गु., पद्य, वि. १७२९, आदि: सुमतिजिणंद सुमतिदाता; अंति: कहे इम मुनि धरमसी, ढाल-६, गाथा-३४. ६. पे. नाम, जीवविचार स्तवन, पृ. ६आ-१०आ, संपूर्ण. जीवविचार स्तवन-पार्श्वजिन, म. वद्धिविजय, मा.गु., पद्य, वि. १७१२, आदि: श्रीसरसतीजी वरसति; अंति: पभणे आनंदकारी, ढाल-९, गाथा-७७. ७. पे. नाम, चउवीस दंडक स्तवन, पृ. १०आ-१२अ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तवन-२४ दंडकविचारगर्भित, मु. धरमसी, मा.गु., पद्य, वि. १७२९, आदि: पूर मनोरथ पासजिणेसर; अंति: गावै धरमसी सजगीस ए, ढाल-४, गाथा-३४. ८. पे. नाम. सिद्धाचल स्तवन, पृ. १२अ, संपूर्ण. शत्रुजयतीर्थ स्तवन, मु. जिनचंद, मा.गु., पद्य, आदि: ते दिन क्यारे आवस्ये; अंति: चाहै नित जिणंद, गाथा-७. ९. पे. नाम. वीरजिन पंचकल्याणक स्तवन, पृ. १२अ-१४आ, संपूर्ण.. महावीरजिन स्तवन-पंचकल्याणक, म. रामविजय, मा.ग., पद्य, वि. १७७३, आदि: सासननायक सिवकरण वंद; अंति: नामे लहे अधिक जगीस ए, ढाल-३, गाथा-५६. १०. पे. नाम, श्रीमंधरजी स्तवन, पृ. १४आ-१५अ, संपूर्ण. सीमंधरजिन स्तवन, मा.गु., पद्य, आदि: सीमंधरसामिजीने वादि; अंति: माहरी आवागमण निवार, गाथा-१०. For Private and Personal Use Only Page #303 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir २८८ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ११. पे. नाम. आदिजिन विनती, पृ. १५अ-१६अ, संपूर्ण. आदिजिनविनती स्तवन, ग. जिनहर्ष, मा.गु., पद्य, आदि: सुण जिणवर सेāजा; अंति: कहे जिनहर्ष० दीजो परमानंद, गाथा-२०. १२. पे. नाम. शांतिनाथ स्तवन, पृ. १६अ-१६आ, संपूर्ण. शांतिजिन स्तवन, म. भावसागर, पुहिं., पद्य, आदि: सेवा शांतिजिणंद की; अंति: संघ मंगलकारी बेलो, गाथा-१५. १३. पे. नाम. दशपच्चक्खाण स्तवन, पृ. १६आ-१७आ, संपूर्ण. १० पच्चक्खाणफल स्तवन, पं. रामचंद्र गणि, मा.गु., पद्य, वि. १७३१, आदि: सिद्धारथनंदन नमुं; अंति: रामचंद तपविधि भणै, ढाल-३, गाथा-३३. १४. पे. नाम. अठावीसलब्धि स्तवन, पृ. १७आ-१९अ, संपूर्ण. आदिजिन स्तवन-२८ लब्धिविचारगर्भित, मु. धर्मवर्धन, मा.गु., पद्य, वि. १७२६, आदि: प्रथम जिणेसरू सुद्ध मने; अंति: धरमवरधन० प्रकाश ए, ढाल-३, गाथा-२५. १५. पे. नाम. विहरमान स्तवन, पृ. १९अ-२०आ, संपूर्ण. __ २० विहरमानजिन स्तवन, पं. धर्मसिंह पाठक, मा.गु., पद्य, वि. १७२९, आदि: वंदु मन सुध वैहरमाण; अंति: नेहधर ध्रमसी नमै, ढाल-३, गाथा-२६. १६. पे. नाम. पोसोग्रहणविधि स्तवन, पृ. २०आ-२२आ, संपूर्ण. पौषधविधि स्तवन, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, वि. १६६७, आदि: जेसलमेर नगर भलो जिहा; अंति: समयसुंदर भणे सीस, ढाल-५, गाथा-३८. १७. पे. नाम. नवपद सिधचक्रमहिमामय स्तवन, पृ. २२आ-२३आ, संपूर्ण. सिद्धचक्रमहिमा स्तवन, मु. कनककीर्तिशिष्य, मा.गु., पद्य, आदि: नवपदनो ध्यान धरीजे; अंति: कोइ न तोले हो, गाथा-१५. १८. पे. नाम. उपधान स्तवन, पृ. २३आ-२४अ, संपूर्ण. उपधानतप स्तवन-वृद्ध, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीमहावीरजी धर्म; अंति: भणै वंछित सुखकरो, ढाल-३, गाथा-१७. १९. पे. नाम. रोहणीतप स्तवन, पृ. २४अ-२६अ, संपूर्ण. रोहिणीतप स्तवन, म. श्रीसार, मा.ग., पद्य, वि. १७२०, आदि: सासणदेवत सामणीए मुज; अंति: हिव सकल मन आस्या फली, ढाल-४, गाथा-२६. २०. पे. नाम. अष्टमी स्तवन, पृ. २६अ-२७अ, संपूर्ण. __अष्टमीतिथिपर्व स्तवन, म. लावण्यसौभाग्य, मा.गु., पद्य, वि. १८३९, आदि: पंच तिरथ प्रणमं सदा; अंति: लावण्य०कल्याण रे, ढाल-४, गाथा-२४. २१. पे. नाम. गवडीपार्श्वनाथजिन स्तवन, पृ. २७अ-३१अ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तवन-गोडीजी, मु. अनोपचंद, मा.गु., पद्य, वि. १८२५, आदि: श्रीजिन वंदन नीवासणी; अंति: अनोपचंदे० धीगड गोडी धणी, ढाल-८. २२. पे. नाम. मल्लिनाथजिन स्तवन, पृ. ३१अ-३३अ, संपूर्ण. मल्लिजिन स्तवन, मु. कुशललाभ, मा.गु., पद्य, वि. १७५६, आदि: नवपद समरी मन सुधे वली; अंति: कुसललाभ० मन मै धरी, ढाल-५, गाथा-४१. २३. पे. नाम. नेमिजिन स्तवन, पृ. ३३अ-३३आ, संपूर्ण. नेमिजिन स्तवन-गिरनारमंडन, मु. क्षमाकल्याण, मा.गु., पद्य, वि. १८६६, आदि: श्रीनेमीश्वर वंदीयै; अंति: अंबिका सानिध करी, गाथा-१३. २४. पे. नाम. पजुसणारो स्तवन, पृ. ३३आ-३४आ, संपूर्ण. For Private and Personal Use Only Page #304 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२६ २८९ पर्युषणपर्व अठाई स्तवन, मु. हेमसौभाग्य, मा.गु., पद्य, आदि: प्रणमु पासजिणंदा बल; अंति: शिष जपे हेमसोभागी हो, गाथा-३७. २५. पे. नाम. सहस्रफणावामांगजिन स्तुति, पृ. ३४आ-३५आ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तवन-सहस्रफणा, मा.गु., पद्य, आदि: लल जलती मीली ते घj; अंति: मुझ मन भावस्या रे लाल, गाथा-१३. ११८८५१ (+) सप्तस्मरण-अजितशांति व भयहर स्तोत्र सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ११,प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२४.५४१०.५, ५४२९-३५). सप्तस्मरण-खरतरगच्छीय, मु. भिन्न भिन्न कर्तृक, प्रा., पद्य, आदि: अजियं जियसव्वभयं संत; अंति: (-), प्रतिपूर्ण. सप्तस्मरण-खरतरगच्छीय-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: अजित जित सर्व भय शांति; अंति: (-), प्रतिपूर्ण. ११८८५२. (+) दशवकालिकसूत्र, संपूर्ण, वि. १९०२, वैशाख शुक्ल, १, बुधवार, श्रेष्ठ, पृ. १६, ले.स्थल. विक्रमपुर, प्र.वि. हुंडी:दशमीकाल., दशविकाल., संशोधित., दे., (२४.५४११, १६x४१-४९). दशवैकालिकसूत्र, आ. शय्यंभवसूरि, प्रा., पद्य, वी. २वी, आदि: धम्मो मंगलमुक्किट्ठ; अंति: अपुणागमं गइ त्तिबेमि, अध्ययन-१०. ११८८५३. (+) सिंदूरप्रकर, संपूर्ण, वि. १८२१, मध्यम, पृ. ८, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२५४१०.५, १३४३५). सिंदरप्रकर, आ. सोमप्रभसरि, सं., पद्य, वि. १३वी, आदि: सिंदरप्रकरस्तपः करिशिरः; अंतिः सूक्तिमुक्तावलीं, श्लोक-१००. ११८८५४. (+) १४ गुणस्थानक विचार, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२५४११, १२४३९). १४ गुणस्थानक विचार, प्रा.,मा.गु.,सं., प+ग., आदि: मिथ्यात्वाविरतेमृते जीवा; अंति: होइ साकरण लब्धि महादुर्लभ. ११८८५५ (#) आगमिक पाठ संग्रह-विविध विषयक, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १,प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५.५४११.५, २१४५८). आगमिक पाठ संग्रह-विविध विषयक, प्रा., प+ग., आदि: ए एसु सव्व देवा संवत्सर; अंति: सुहं आउअंकम्म समज्जिण. ११८८५६. (+) स्तोत्र व स्तवन संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ५४-३१(१ से ३०,४४)=२३, कुल पे. ९, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें-टिप्पण युक्त विशेष पाठ-अन्वय दर्शक अंक युक्त पाठ., जैदे., (२४.५४११, १२४३५-३८). १. पे. नाम. जयतिहुअण स्तोत्र, पृ. ३१अ-३३अ, अपूर्ण, पू.वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं., पे.वि. हुंडी:जयतिहु. आ. अभयदेवसूरि , प्रा., पद्य, वि. १२वी, आदि: (-); अंति: अभय० विन्निवइ आणंदिय, गाथा-३०, (पू.वि. गाथा-१० अपूर्ण से है.) २.पे. नाम. सप्तस्मरण, पृ. ३३अ-४३अ, संपूर्ण, पे.वि. हुंडी:अजित., उल्लास०., सातेस्म०. सप्तस्मरण-खरतरगच्छीय, मु. भिन्न भिन्न कर्तृक, प्रा., पद्य, आदि: अजियं जियसव्वभयं संत; अंति: मंगल कलाण आवासं, स्मरण-७. ३. पे. नाम. लघुशांति, पृ. ४३अ-४३आ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. आ. मानदेवसरि, सं., पद्य, आदि: शांति शांति निशांतं; अंति: (-), (पू.वि. श्लोक-१२ अपूर्ण तक है.) ४. पे. नाम. तिजयपहुत्त स्तोत्र, पृ. ४५अ, अपूर्ण, पू.वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं. आ. मानदेवसूरि, प्रा., पद्य, आदि: (-); अंति: निब्भंतं निच्चमच्चेह, गाथा-१४, (पू.वि. मात्र अंतिम गाथा-१४ अपूर्ण है.) ५. पे. नाम. दोसावहार स्तोत्र, पृ. ४५अ-४५आ, संपूर्ण, पे.वि. हुंडी:दोसाबा०. पार्श्वजिन स्तोत्र-नवग्रहस्ततिगर्भित, आ. जिनप्रभसूरि, प्रा., पद्य, वि. १४वी, आदि: दोसावहारदक्खो नालीयार; अंति: असुहा वग्गहा न पीडंति, गाथा-१०. ६. पे. नाम. भक्तामर स्तोत्र, पृ. ४५आ-४८आ, संपूर्ण, पे.वि. हुंडी:भक्ताम०. आ. मानतुंगसूरि, सं., पद्य, आदि: भक्तामरप्रणतमौलिमणि; अंति: मानतुंग० लक्ष्मीः, श्लोक-४४. ७. पे. नाम. कल्याणमंदिर स्तवन, पृ. ४९अ-५२आ, संपूर्ण, पे.वि. हंडी:कल्याण०. For Private and Personal Use Only Page #305 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir २९० कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची कल्याणमंदिर स्तोत्र, आ. सिद्धसेनदिवाकरसूरि, सं., पद्य, वि. १वी, आदि: कल्याणमंदिरमदारमवद्यभेदि; अंति: कुमुद० प्रपद्यंते, श्लोक-४४. ८.पे. नाम. वीरजिन स्तवन समसंस्कृतमय, पृ. ५२आ-५४आ, संपूर्ण, पे.वि. हुंडी:भावारि०. महावीरजिन स्तव-समसंस्कृतप्राकृत, आ. जिनवल्लभसूरि, प्रा.,सं., पद्य, आदि: भावारिवारणनिवारणदारु; अंति: जिनवल्लभ० दयालो मयि, श्लोक-३०. ९. पे. नाम, दरिअरयसमीर स्तोत्र, पृ. ५४आ, अपूर्ण, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. आ. जिनवल्लभसूरि, प्रा., पद्य, आदि: दुरियरयसमीरं मोहपंकोहनीरं; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-४ अपूर्ण तक है.) ११८८५७. शतकत्रय सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १८७५, ज्येष्ठ अधिकमास कृष्ण, १२, बुधवार, मध्यम, पृ. ६६, ले.स्थल. खेमल, प्रले. पं. लालसागर, प्र.ले.प. सामान्य, प्र.वि. श्रीशांतिनाथजीप्रसादात्., श्रीपद्मप्रभुजी०., जैदे., (२५.५४११, ४४३६-४१). शतकत्रय, भर्तहरि, सं., पद्य, ई. ७वी, आदि: यां चिंतयामि सततं; अंति: धर्म एको हि निश्चलः, शतक-३. शतकत्रय-टबार्थ, य. रूपचंद, मा.गु., गद्य, आदि: सर्वदर्शिनमानम्य; अंति: ज ए कही ज निश्चल छे. ११८८५८ (+) दंडक प्रकरण सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १८७४, मार्गशीर्ष शुक्ल, ११, मध्यम, पृ. ९,प्र.वि. अंत में कृति नाम लघुसंग्रहणी लिखा है., टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२५.५४११.५, ३४३३). दंडक प्रकरण, मु. गजसार, प्रा., पद्य, वि. १५७९, आदि: नमिउं चउवीस जिणे; अंति: विन्नत्ति अप्पहिया, गाथा-४०. दंडक प्रकरण-टबार्थ , मा.गु., गद्य, आदि: नमस्कार करीने ऋषभादिक; अंति: हीतकारिका वीनती कीनी. ११८८५९ (#) साधारण स्तोत्र सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १७१४, वेदचंद्रमुनिभूमि, भाद्रपद कृष्ण, ५, मध्यम, पृ. ८, प्र.वि. अक्षर मिट गए हैं, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५.५४११, ३४३२). रत्नाकरपच्चीशी, आ. रत्नाकरसूरि, सं., पद्य, वि. १४वी, आदि: श्रेयः श्रियां मंगल; अंति: श्रेयस्कर प्रार्थये, श्लोक-२५. रत्नाकरपच्चीसी-टबार्थ *, मा.गु., गद्य, आदि: श्रेयः कहिता मंगलीक अनइ; अंति: एहवु पीण नाम जाणवू. टबार्थ, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ५, प्र.वि. हुंडी:द०चूलिका., टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जरो., (२५४११.५, ५४४३-४६). दशवैकालिकसूत्र, आ. शय्यंभवसूरि, प्रा., पद्य, वी. रवी, आदि: (-); अंति: भवियाणं बोहणट्ठाए, प्रतिपूर्ण. दशवकालिकसूत्र-टबार्थ*, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: प्रतिबोध देवानै अर्थे, प्रतिपूर्ण.. ११८८६१ (+) भयहर स्तोत्र व अजितशांति स्तव, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ६, कुल पे. २, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें-संशोधित-टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२५४११, ८४४९-५५). १. पे. नाम. भयहर स्तोत्र सह टबार्थ, पृ. १अ-२अ, संपूर्ण, वि. १७६१, आषाढ़ कृष्ण, ७, मंगलवार, ले.स्थल. श्रीपुरनगर, प्रले. पं. हेमराज ऋषि, प्र.ले.पु. सामान्य. नमिऊण स्तोत्र, आ. मानतुंगसूरि, प्रा., पद्य, आदि: नमिउण पणय सुरगण; अंति: तस्स दरे नासंति, गाथा-२४. नमिऊण स्तोत्र-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: नत्वा प्रणमामि देवसम; अंति: एहवा श्रीपार्श्वनाथ. २. पे. नाम, अजितशांति स्तव सह टबार्थ व अवचूरि, पृ. २आ-६आ, संपूर्ण. अजितशांति स्तव , आ. नंदिषेणसूरि, प्रा., पद्य, आदि: अजियं जियसव्वभयं संतिं च; अंति: अजियसंति जिणनाहस्स, गाथा-४२. अजितशांति स्तव-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: अजित जीत्या सर्व भय; अंति: जिन सामान्य केवलीनाथ. अजितशांति स्तव-अवचरि, सं., गद्य, आदि: तदजितशांतिजिनयुगलं बहु; अंति: अर्ह० आराधनयेति गम्यं, (वि. लेशार्थ रूप अवचूरि है.) ११८८६२. (+) भुवनभानुकेवली चरित्र, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ६२-५१(१ से ४३,४५,४७,५३ से ५७,५९)=११, पू.वि. बीच-बीच के पत्र हैं., प्र.वि. पत्रांक अनुमानित दिये हैं., संशोधित., जैदे., (२५.५४११.५, १९४५३). भुवनभानुकेवली चरित्र, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. रोहिणी कथा अपूर्ण से कुवलयचंद्र केवली के पास बलिनरेन्द्र दीक्षाग्रहण प्रसंग अपूर्ण तक है व बीच-बीच के पाठांश नहीं हैं.) For Private and Personal Use Only Page #306 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२६ २९१ ११८८६५. (+) पाक्षिकसूत्र, अपूर्ण, वि. १९वी, चैत्र शुक्ल, १०, शुक्रवार, मध्यम, पृ.८-१(१)=७, ले.स्थल. आगरा, प्रले. मु.खेतसी ऋषि, प्र.ले.प. सामान्य, प्र.वि. अंत में "सांगा की प्रति छे" ऐसा लिखा है., टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित., जैदे., (२५.५४११.५, १५४४६). पाक्षिकसूत्र, हिस्सा, प्रा., प+ग., आदि: (-); अंति: जेसिं सुयसायरे भत्ति, (पू.वि. 'निव्वियारस्सनिव्वित्तीलक्खणस्स' पाठांश से है.) ११८८६८. उपदेशमाला की पर्यायावचूरि, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. २३-१८(१,३ से १५,१८ से २१)=५, जैदे., (२६४११, १७४६२). उपदेशमाला-पर्याय, आ. जयशेखरसरि, सं., गद्य, आदिः (-); अंति: (-), (प.वि. प्रारंभ, बीच के पत्र नहीं हैं व प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., गाथा-१९ से ३६ की अवचूरि अपूर्ण तक, गाथा-३१३ से ३५६ की अवचूरि तक, गाथा-४४२ की अवचूरि अपूर्ण से है व गाथा-४६९ की अवचूरि तक लिखा है., वि. मूल का संकेत पाठ दिया है.) ११८८७२ (+#) भुवनदीपक व ज्योतिष श्लोक संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १०, कुल पे. २, दत्त. श्राव. ताराचंद सांघवी, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. हुंडी:भवनदीपक., संशोधित. मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., (२५४११, ११४३९). १. पे. नाम. भुवनदीपक, पृ. १अ-९अ, संपूर्ण. आ. पद्मप्रभसूरि, सं., पद्य, वि. १३पू, आदि: सारस्वतं नमस्कृत्य; अंतिः श्रीपद्मप्रभसूरिभिः, श्लोक-१६८. २. पे. नाम. ज्योतिष श्लोक संग्रह, पृ. ९अ-१०आ, संपूर्ण. प्रा.,मा.गु.,सं., पद्य, आदि: रवि र्दिन पंच कुजे; अंति: वहि दाहोमहर्थता. ११८८७४. (+) उववाईयसूत्र, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २७, अन्य. मु. रत्नवर्द्धन, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित. कुल ग्रं. १२७०, जैदे., (२५४११, १५४४०-५२). औपपातिकसूत्र, प्रा., पद्य, आदि: तेणं कालेणं तेणं; अंति: सुही सुहं पत्ता, सूत्र-४३. ११८८७५ (+) शालिभद्र चरित्र, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, प. ३८, प्र.वि. हंडी:शालिभद्रचरि., संशोधित. कुल ग्रं. १२२४, दे., (२५.५४११, १२४५०-५३). शालिभद्र चरित्र, म. धर्मकमार, सं., पद्य, वि. १३३४, आदि: श्रीदानधर्मकल्प; अंति: वांच्छित सिद्धयो, प्रक्रम-७, __ ग्रं. १२२४. ११८८७६. (+) प्रस्ताविकश्लोककाव्यादि संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ६, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., दे., (२५४११, १३४२१-३१). सुभाषित श्लोक संग्रह *, पुहिं.,प्रा.,मा.गु.,सं., पद्य, आदि: वापी१ वीप्र२ विहार३ वर्ण४; अंति: अति लोभ न करतव्य० शासभि, (वि. गाथा क्रमांक अलग-अलग दिया गया है.) ११८८७७. (+) नवस्मरण, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २२, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. हुंडी:उवसग०, संतिकरं०, तीजयपहुत०, नमिउण०, अजिसंतो०, भक्तामर०, शांतिबडी०., संशोधित., जैदे., (२४.५४११.५, ८x२७). नवस्मरण, मु. भिन्न भिन्न कर्तृक, प्रा.,सं., प+ग., आदि: नमो अरिहंताणं नमो सिद्धाण; अंति: (-), (पू.वि. बृहच्छांति स्तोत्र अपूर्ण तक है.) ११८८७८. (+#) यतिदिनचर्या, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २०, प्र.वि. हुंडी:साधुदिनकृ., सा० दि०., संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६४११, ११४४२). यतिदिनचर्या, आ. देवसूरि, प्रा., पद्य, आदि: तं जयइ सुहं कम्म; अंति: ता जयउ जईण दिणचरिया, गाथा-३८९. ११८८७९ (+) कालिकाचार्य कथा सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. १७९५, मध्यम, पृ. ११-१(२)=१०, ले.स्थल. देवली, प्रले. मु. भैरुदास; पठ. मु. खुस्यालचंद (गुरु मु. भैरुदास), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. हुंडी:कालिकाचा., टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२५४११, ६४३८). कालिकाचार्य कथा, उपा. समतिहंस, सं., पद्य, वि. १७२१, आदि: एयं च चउत्थीए जेण कयं; अंति: यस्यात्कथेयं नंदिता चिरं, श्लोक-१११, (वि. १७९५, चैत्र शुक्ल, १२, पू.वि. श्लोक-२ अपूर्ण से श्लोक-१२ अपूर्ण तक है.) For Private and Personal Use Only Page #307 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir २९२ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची कालिकाचार्य कथा-टबार्थ, मा.गु.,सं., गद्य, आदि: (१)तत्र कालिकाचार्यस्त्रयस्थ, (२)अठै इण वखाण गुर्वावली न; अंति: घणा दिन ताई चिरंजीव रहो, (वि. १७९५, वैशाख कृष्ण, १) ११८८८० (+) दशवैकालिकसूत्र सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ४७-३२(१ से २३,२९ से ३४,३६ से ३८)=१५, पू.वि. प्रारंभ, बीच व अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें-टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित., जैदे., (२४४१३, १३४१५). दशवैकालिकसूत्र, आ. शय्यंभवसूरि, प्रा., पद्य, वी. २वी, आदिः (-); अंति: (-), (पू.वि. अध्ययन-५ उद्देश-२ गाथा-४६ अपूर्ण से चूलिका-१ सूत्र-१ अपूर्ण तक है व बीच-बीच के पाठांश नहीं हैं.) दशवैकालिकसूत्र-टबार्थ*, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: (-). ११८८८१ (+#) जैनसिद्धांत प्रवचन, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २५, अन्य. पं. चिमन, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६४११, १३४३७-४२). जैनसिद्धांत प्रवचन, प्रा.,मा.गु.,सं., प+ग., आदि: प्रथम जिनशासन माहि; अंति: तथा च श्रीपूर्वसूरिभिः. ११८८८३. (+) जीवविचार प्रकरण व नवतत्व प्रकरण, संपूर्ण, वि. १८५३, फाल्गुन कृष्ण, १०, मंगलवार, मध्यम, पृ. ६०+१(२६)=६१, कुल पे. २, ले.स्थल. भीलोडा, प्रले. मु. माणिकचंद (गुरु मु. ज्ञानप्रियजी); गुपि. मु. ज्ञानप्रियजी (गुरु मु. कुशलसौभाग्यजी); मु. कुशलसौभाग्यजी; अन्य. मु. वाणारसजी, प्र.ले.पु. मध्यम, प्र.वि. संशोधित-टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२४.५४११.५, १२४३२-३५). १. पे. नाम. जीवविचार प्रकरण सह बालावबोध, पृ. १आ-१३अ, संपूर्ण. जीवविचार प्रकरण, आ. शांतिसूरि, प्रा., पद्य, वि. ११वी, आदि: भुवणपईवं वीरं नमिऊण; अंति: रुद्दाउ सुय समुद्दाउ, गाथा-५१. जीवविचार प्रकरण-बालावबोध *, मा.गु., गद्य, आदि: भुवन कहतां तीने त्रिभुवन; अंति: समुद्र ते थकी उद्धरिउ. २. पे. नाम. नवतत्त्व प्रकरण सह बालावबोध, पृ. १३आ-६०आ, संपूर्ण. नवतत्त्व प्रकरण ६० गाथा, प्रा., पद्य, आदि: जीवाजीवा पुण्णं पावा; अंति: बोहिय इक्कणिक्काय, गाथा-४५. नवतत्त्व प्रकरण ६० गाथा-बालावबोध, मा.गु., गद्य, आदि: (१)पहलु जीव तत्त्व जेहनइ, (२)देव देवं जिनं नत्त्वा; अंति: सिद्धना १५ भेद वखाण्या. ११८८८६. (+#) ज्ञाताधर्मकथांगसूत्र, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ९८-३२(५,१७,२२ से २३,३३ से ३५,३९ से ५७,५९ से ६२,६५,७७)=६६, प्र.वि. हुंडी:ज्ञाता०सू., ज्ञाता०सूत्र., ज्ञाताधर्मकतीसूत्र., पदच्छेद सूचक लकीरें-टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६४११, १५४५३). ज्ञाताधर्मकथांगसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., प+ग., आदि: तेणं कालेणं तेणं समए; अंति: सीहेणं जाव संपत्तेणं, अध्ययन-१९, (पू.वि. श्रुतस्कंध-१ सूत्र-१५ अपूर्ण तक श्रुतस्कंध-१ सूत्र-१८ से है व बीच-बीच के पाठांश नहीं हैं.) ११८८८७. (+) स्तुत्यादि संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १७-६(१ से ६)=११, कुल पे. १९, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२६४११, १४४४०). १. पे. नाम. देवसिराईप्रतिक्रमणसूत्र, पृ. ७अ-१०आ, अपूर्ण, पृ.वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं. देवसिराईप्रतिक्रमणसूत्र-तपागच्छीय, संबद्ध, प्रा.,मा.गु.,सं., प+ग., आदि: (-); अंति: वंदामि जिणे चउवीसं, (पू.वि. श्रावक प्रतिक्रमण सूत्र अपूर्ण से है.) २. पे. नाम. पंचतिर्थि वीर स्तुति, पृ. १०आ, संपूर्ण. कल्लाणकंद स्तुति, संबद्ध, प्रा., पद्य, आदि: कल्लाणकंदं पढमं; अंति: सुहाय सया अम्म सया पसत्था, गाथा-४. ३. पे. नाम. शांतिनाथजी स्तुति, पृ. १०आ, संपूर्ण. शांतिजिन स्तुति-जावरापुरतीर्थमंडन, मु. पुण्यविजय, मा.गु., पद्य, आदि: शांतिकर शांतिकर जावरपुर; अंति: पुन्य प्रभाविका, गाथा-४. ४. पे. नाम. पार्श्वजिन स्तति, पृ. १०आ-११अ, संपूर्ण. For Private and Personal Use Only Page #308 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२६ २९३ पार्श्वजिन स्तुति-पौषदशमीपर्व, आ. उदयसमुद्रसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: जय पास देवा करो सेवा; अंति: केरी सयल आस्या पुरणी, गाथा-४. ५. पे. नाम. सीमंधर स्तुति, पृ. ११अ-११आ, संपूर्ण. सीमंधरजिन स्तुति, मु. शांतिकुशल, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीसीमंधर मुझने; अंति: शांतिकुशल सुखदाताजी, गाथा-४. ६. पे. नाम. ऋषभजिन स्तुति, पृ. ११आ, संपूर्ण. शत्रुजयतीर्थ स्तुति, आ. नंदसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीशेजैमंडण; अंति: भणे नंदसूरि तुम पाय सेवता, गाथा-४. ७. पे. नाम. ऋषभजिनसुखडी स्तुति, पृ. ११आ-१२अ, संपूर्ण. साधारणजिन स्तुति, मु. कवियण, मा.गु., पद्य, आदि: चंपक केतकी पाडल जाई; अंति: माइ ज्यो तुसे देव अंबाइ, ___ गाथा-४. ८. पे. नाम. ऋषभजिन स्तुति, पृ. १२अ, संपूर्ण. आदिजिन स्तुति-वीसलपुरमंडन, मु. देवकुशल, मा.गु., पद्य, आदि: वीसलपुर वांदुं आदि; अंति: संघना विघन निवार, गाथा-४. ९. पे. नाम. सिद्धाचल ऋषभजिन स्तुति, पृ. १२अ-१२आ, संपूर्ण. शत्रुजयतीर्थ स्तुति, पुहिं., पद्य, आदि: आगे परव वार; अंति: सिद्धि हमारी जी, गाथा-४. १०. पे. नाम. सिद्धाचल ऋषभजिन स्तुति, पृ. १२आ-१३अ, संपूर्ण. श@जयतीर्थ स्तुति, श्राव. ऋषभदास, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीसेत्रुजय तीरथसार गिर; अंति: पाय ऋषभदास गुण गाय, गाथा-४. ११. पे. नाम. नेमिजिन स्तुति, पृ. १३अ, संपूर्ण. मा.गु., पद्य, आदि: सुर असुर वंदिअ पाय पंकज; अंति: मंगल करो अंबिक देविया, गाथा-४. १२. पे. नाम. रोहिणी स्तुति, पृ. १३अ-१३आ, संपूर्ण. रोहिणीतप स्तुति, म. लब्धिरूचि, मा.गु., पद्य, आदि: जयकारी जिनवर वासपूज; अंति: देवी लब्धिरूची जयकार, गाथा-४. १३. पे. नाम. पर्जुषणपर्व स्तुति, पृ. १३आ, संपूर्ण. पर्युषणपर्व स्तुति, मु. बुधविजय, मा.गु., पद्य, आदि: वीरजिणेसर अतिअलवेसर; अंति: बुधविजय जयकारी जी, गाथा-४. १४. पे. नाम. सिद्धचक्र स्तुति, पृ. १३आ-१४अ, संपूर्ण. ग. क्षमाविजय, मा.गु., पद्य, आदि: वीरजिणेसर भूवन दीणेसर; अंति: मुनिजिन महिमा छाजेजी, गाथा-४. १५. पे. नाम. वीर स्तुति, पृ. १४अ, संपूर्ण. महावीरजिन स्तुति, म. सोमकशल, मा.गु., पद्य, आदि: सकल लब्धि तणो वर सागरु; अंति: श्रीसोमकुशल नित मंगलकारी, गाथा-४. १६. पे. नाम. साधु अतिचार, पृ. १४अ-१६अ, संपूर्ण. साधुपाक्षिकअतिचार-म.पू., संबद्ध, प्रा.,मा.गु., गद्य, आदि: नाणंमि दंसणंमि अचरण; अंति: मिच्छामि दुक्कडम्. १७. पे. नाम. पाक्षिकखामणा, पृ. १६अ-१६आ, संपूर्ण. पाक्षिकचौमासीसंवत्सरीतप आलापक, संबद्ध, प्रा.,मा.गु., गद्य, आदि: एवंकारे श्रीसाधुतणे; अंति: गुरुणोवयणाइ. १८. पे. नाम. पर्जुसणपर्व स्तुति, पृ. १६आ-१७अ, संपूर्ण. पर्युषणपर्व स्तुति, मु. विजयदेवसूरि शिष्य, मा.गु., पद्य, आदि: परव पजूसण पून्ये पाम; अंति: संतोषि गुण गाया जी, गाथा-४. १९. पे. नाम, पार्श्वजिन स्तुति, पृ. १७अ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तुति-नाटिकाबंध, आ. जिनकशलसूरि, सं., पद्य, आदि: }} कि धपमप; अंति: दिशतु शासनदेवता, श्लोक-४. For Private and Personal Use Only Page #309 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir २९४ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ११८८८८. (+) गोराबादल चौपाई, संपूर्ण, वि. १७९०, आश्विन शुक्ल, ९, मध्यम, पृ. २२,प्र.वि. प्रतिलेखन पुष्पिका मिटाई हुई है-संशोधित., जैदे., (२५.५४११, १६४४८). गोराबादल चौपाई, आ. हेमरत्नसूरि, मा.गु., पद्य, वि. १६४५, आदि: सुखसंपतिदायक सकल; अंति: हेमरतन० ले लिखमी वरै. ११८८८९ सचियादेवी पद, ९६ जिन स्तवन व समोसरण स्तवन, संपूर्ण, वि. १८९७, कार्तिक शुक्ल, ९, श्रेष्ठ, पृ. ६, कुल पे. ३, ले.स्थल. समदरडी, जैदे., (२६४११, १३४४०). १.पे. नाम. सचियादेवी पद, पृ. १अ, संपूर्ण. मा.गु., पद्य, आदि: माता सचीयाजीरो उसीया राणी; अंति: अपाणी जाणी साची सचीया. २. पे. नाम. ९६ जिन स्तवन, पृ. १आ-३अ, संपूर्ण. आ. जिनचंद्रसूरि, मा.गु., पद्य, वि. १७४३, आदि: वर्तमान चौवीसे; अंतिः सदा जिणचंदसुर ए, ढाल-५, गाथा-२३. ३. पे. नाम. समोसरण स्तवन, पृ. ३अ-५अ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तवन-समवसरणविचारगर्भित, म. धर्मवर्धन, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीजिनशासनसेहरो जग; अंति: पाठक __ धर्मवर्धन धार ए, ढाल-२, गाथा-२८. ११८८९३. (+) सूत्रकृतांगसूत्र सह टीका, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. २८, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. हुंडी:स०स०व., संशोधित., दे., (२६४११, १२४४२-४६). सूत्रकृतांगसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., प+ग., आदि: बुज्झिज्ज तिउट्टेज्ज; अंति: (-), (पू.वि. श्रुतस्कंध-१ अध्ययन-१ गाथा-१८ अपूर्ण तक है.) सूत्रकृतांगसूत्र-बृहद्वत्ति #, आ. शीलांकाचार्य, सं., गद्य, वि. १०वी, आदि: स्वपरसमयार्थसूचकमनंत; अंति: (-). ११८८९५ (+) वाग्भट्टालंकार सह अवचूरि व प्रास्ताविक श्लोक, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ६, कुल पे. २, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें-टिप्पण युक्त विशेष पाठ-पंचपाठ-संशोधित., जैदे., (२६.५४११.५, १८४५५-६०). १.पे. नाम. वाग्भट्टालंकार सह अवचार, पृ. १आ-६आ, संपूर्ण. वाग्भट्टालंकार, जै.क. वाग्भट्ट, सं., पद्य, वि. १२वी, आदि: श्रियं दिशतु वो देवः; अंति: सारस्वता धानतः, परिच्छेद-५. वाग्भट्टालंकार-अवचूरि, सं., गद्य, आदि: (-); अंति: विशेषेण निसुगमानि. २. पे. नाम. प्रास्ताविक श्लोक, पृ. ६आ, संपूर्ण. सं., पद्य, आदि: चलंति मेरु चलंति मंदरुं; अंति: पुरुष वयण न चलंति धर्म, श्लोक-१. ११८८९७. बोल संग्रह, संपूर्ण, वि. १७९०, भाद्रपद शुक्ल, ६, सोमवार, श्रेष्ठ, पृ. २०, ले.स्थल. आणंदपुर, प्रले. मु. विनयविजय; पठ. श्राव. जैचंदजी पचुजी संघवी, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. कुल ग्रं. १२५०, जैदे., (२६४११, १८४३६-५५). बोल संग्रह-विविधगत्यागतादि जीव एकसमयसिद्धसंख्या विचार, मा.गु., गद्य, आदि: एगे आया एगे लोए एगे ___ अलोए; अंति: परावर्त्त अनंत गुणा कीधा. ११८९०० (+) बंधहेतूदयत्रिभंगी प्रकरण सह टीका, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १८, अन्य. मु. हर्षविमल; ग. फतेंद्रसागर, प्र.ले.प. सामान्य, प्र.वि. पंचपाठ-संशोधित., जैदे., (२४४११, २-५४२५-३५). बंधहेतूदयत्रिभंगी प्रकरण, म. हर्षकल, प्रा., पद्य, आदि: बंधण हेउ विमुक्कं; अंति: सिरिसायरसरिसीसेणं, गाथा-६५. बंधहेतूदयत्रिभंगी प्रकरण-टीका, ग. विजयविमल, सं., गद्य, वि. १६०२, आदि: वृद्धतशालायामति रूपगुणै; अंति: टीकेयं भवतु पुण्यकरी.. ११८९०१ (+#) ऋषिदत्ता कथानक-शीलविषये, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ५, अन्य. मु. नंदा ऋषि, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५.५४११, १८४५२). ऋषिदत्ताकथानक, सं., प+ग., आदि: रथहनं नगरम राजा; अंति: परमपदमुदारनंद संदोहमूहे. ११८९०२. उपासगदशांगसूत्र सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ५८-४८(१ से १३,१७,२० से ३२,३४ से ४१,४४ से ५६)=१०, जैदे., (२६४११, ६४३९). For Private and Personal Use Only Page #310 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir २९५ हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२६ उपासकदशांगसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., प+ग., आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. बीच-बीच के पत्र हैं., आनंद श्रावक वर्णन अपूर्ण से सालिहीपिता वर्णन अपूर्ण तक है व बीच-बीच के पाठ नहीं हैं.) उपासकदशांगसूत्र-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), पू.वि. बीच के पत्र हैं. ११८९०३. (+) चतुर्विंशतिजिन गीत, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ.७, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२५.५४११, ११४३७). स्तवनचौवीसी, आ. जिनराजसूरि, मा.गु., पद्य, वि. १७वी, आदि: मनमधुकर मोही रह्यो रिषभ; अंतिः जिनराजदोलति पावै जी, स्तवन-२४. ११८९०५ (+) आचारांगसूत्र-प्रथम श्रुतस्कंध, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १२, प्र.वि. हंडी:आचारांगसूत्र, पदच्छेद सूचक लकीरें., दे., (२६४११, १९४५६-५९). आचारांगसूत्र , आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., प+ग., आदि: सुयं मे आउसं० इहमेगे; अंति: (-), प्रतिपूर्ण. ११८९०६. (+) तिलोकसुंदरीसती वर्णन, संपूर्ण, वि. १९६७, चैत्र शुक्ल, १, रविवार, श्रेष्ठ, पृ. ६, ले.स्थल. बीकानेर, प्रले. पंडित. केसरीचंद यती; अन्य. श्राव. अगरचंद भेरोदान सेठिया, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. अंत में अगरचंद भेरुदान सेठी का परिचय पद्यबद्ध तरीके से दिया गया है. हंडी:त्रैलोक्यसुंदरी, त्रिलोकसुंदरी., संशोधित., दे., (२६.५४११.५, १३४४७). त्रैलोक्यसुंदरी रास, मु. सबलदास ऋषि, मा.गु., पद्य, वि. १८५२, आदि: विहरमान वीसे नमुं; अंति: जिण घर लील विलासो रे, ढाल-१२. ११८९०७. (+#) भगवतीसूत्र-शतक-२५ उद्देश-७ तक, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ६१-३७(१ से ३७)=२४, प्र.वि. हुंडी:भगसूत्र., संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६४११, ११४३२-३८). भगवतीसत्र, आ. सधर्मास्वामी, प्रा., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), (प्रतिअपूर्ण, प.वि. शतक-८ उद्देश-५ से है.) ११८९०८. (#) भाष्यत्रय सह अवचूरि, संपूर्ण, वि. १६१५, पौष कृष्ण, २, मंगलवार, श्रेष्ठ, पृ.६, ले.स्थल. सारंगपुरनगर, अन्य. मु. तिलोकविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. पंचपाठ. कुल ग्रं. ६५०, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६.५४११, १२४४४-५०). भाष्यत्रय, आ. देवेंद्रसूरि, प्रा., प+ग., वि. १४वी, आदि: वंदित्तु वंदणिज्जे; अंति: सासयसुक्खं अणाबाहं, भाष्य-३. भाष्यत्रय-अवचूरि, सं., गद्य, आदि: वंदनीयान् दशत्रिकाणि; अंतिः प्रपद्यते नदास्यष्टं भवति. ११८९०९ (+) भुवनदीपक, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ.८, प्र.वि. हुंडी:भुवनदीपक., संशोधित., जैदे., (२६.५४१ भुवनदीपक, आ. पद्मप्रभसूरि, सं., पद्य, वि. १३पू, आदि: सारस्वतं नमस्कृत्य; अंति: श्रीपद्मप्रभसूरिभिः, श्लोक-१३८. ११८९१० (#) सत्तावेगुणेकरी विराजमान नगर वर्णन, ४ बुद्धि ज्ञान व जंबूअध्ययन प्रकीर्णक सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. १८०९, ?, जीर्ण, पृ. ७३-३(६ से ८)+१(४१)=७१, कुल पे. ३, प्र.वि. मूल पाठ का अंश खंडित है, मूल व टीका का अंश नष्ट है, जैदे., (२६४११.५, ६४३१). १.पे. नाम. सत्तावीगणेकरी विराजमान नगर वर्णन, पृ. १अ, संपूर्ण.. समवसरण कालमान विचार-इंद्रादि द्वारा रचित, मा.गु., गद्य, आदि: सोधर्मो इंद्रनु; अंति: देवतानो कीधो दिन १५ रहे. २.पे. नाम, ४ बुद्धि ज्ञान, पृ. १अ, संपूर्ण. ४ बुद्धि औत्पातिकी आदिज्ञान, मा.गु., गद्य, आदि: स्वाभाविकि उत्पातिकि; अंति: पारणामिकी ३ कारमणकी. ३. पे. नाम. जंबूअध्ययन प्रकीर्णक सह टबार्थ, पृ. १आ-७३अ, अपूर्ण, पू.वि. बीच के पत्र नहीं हैं. जंबूअध्ययन प्रकीर्णक, ग. पद्मसुंदर, प्रा., गद्य, आदि: तेणं कालेणं० रायगिहे; अंति: से आराहगा भणिया, उद्देशक-२१, (पू.वि. उद्देशक-१ अपूर्ण नहीं है.) जंबूअध्ययन प्रकीर्णक-टबार्थ , मा.गु., गद्य, आदि: ते काल नि विषइ ते समय नि; अंति: आराधकजीव जाणवा न छै. ११८९११ (+) वनमाला व हरिश्चंद्र कथानक, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २५-१३(१ से ६,८ से १०,१५ से १८)=१२, कुल पे. २, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२६.५४११.५, १४४२८). १. पे. नाम. वनमाला कथानक, पृ. ७अ-१३आ, अपूर्ण, पू.वि. प्रारंभ व बीच के पत्र नहीं हैं. वनमाला कथानक-धर्मप्रभावोपरि, सं., पद्य, आदिः (-); अंति: धर्ममलं हि दर्शनं, श्लोक-१५९, (प.वि. श्लोक-१३ अपूर्ण से श्लोक-३४ अपूर्ण तक है व श्लोक-१०० अपूर्ण से है.) For Private and Personal Use Only Page #311 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir २९६ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची २.पे. नाम. हरिश्चंद्र कथानक-सत्त्वोपरि, प. १३आ-२५आ, अपर्ण, प.वि. बीच-बीच के पत्र नहीं हैं. सं., पद्य, आदि: सदानंदमयं देवं देव देव; अंति: प्राणरक्षा यथा तथा, श्लोक-२६८, (पू.वि. श्लोक-२३ अपूर्ण से श्लोक-११४ तक नहीं है.) ११८९१२. मानतुंगमानवती रास, संपूर्ण, वि. १८३४, वैशाख कृष्ण, जीर्ण, पृ. १३, ले.स्थल. करतु, प्रले. श्राव. किशोरचंद; पठ. सा. पेमाजी आर्या, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. पुष्पिका अपूर्ण व अस्पष्ट है., जैदे., (२६.५४११.५, १३४३५). मानतुंगमानवती रास, उपा. अभयसोम, मा.गु., पद्य, वि. १७२७, आदिः (अपठनीय); अंति: भेद मतिमंदिर लहै, ढाल-१४. ११८९१३. आचारांगसूत्र की वृत्ति, संपूर्ण, वि. १५५२, भाद्रपद शुक्ल, ११, सोमवार, मध्यम, पृ. २७१, लिख. श्रावि. मेघा (पति श्राव. हीरा); गुपि. श्राव. हीरा (पिता श्राव. गुणराज); श्राव. गुणराज (पिता श्राव. जेसिंघ); श्राव. जेसिंघ (पिता श्राव. जेसल); श्राव. जेसल (पिता श्राव. अंगद); श्राव. अंगद; प्रे. ग. पद्मवल्लभ; ग. पुण्यवल्लभ (गुरु आ. धर्मरत्नसूरि); गुपि. आ. धर्मरत्नसूरि; उप. आ. सागरचंद्रसूरि; गुपि. आ. जिनसमुद्रसूरि (गुरु आ. जिनचंद्रसूरि, खरतरगच्छ); आ. जिनचंद्रसूरि (गुरु आ. जिनभद्रसूरि, खरतरगच्छ); आ. जिनभद्रसूरि (गुरु आ. जिनवर्धनसूरि, खरतरगच्छ), प्र.ले.पु. अतिविस्तृत, प्र.वि. हुंडी:आचारांग वृत्ति, कुल ग्रं. १२३००, जैदे., (२७४११.५,१५४४८-५२). आचारांगसूत्र-टीका # , आ. शीलांकाचार्य, सं., गद्य, वि. ९१८, आदि: जयति समस्तवस्तु; अंति: मिति तात्पर्यार्थः, श्रुतस्कंध-२, ग्रं. १२०००. ११८९१४. (+) गौतमपृच्छा कथा, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ३५, प्रले. मु. वीरू ऋषि; पठ. सा. धनी (गुरु सा. नेतुजी), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. हुंडी:गौतमछाकः., संशोधित., जैदे., (२७४११, १५४३९). गौतमपृच्छा-कथा संग्रह , मा.गु., गद्य, आदिः (अपठनीय); अंति: आग्रहसी दीधा, (वि. पत्र चिपके हुए हैं) ११८९१५. (+) श्रेणिकराजा रास, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १२, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. हुंडी:श्रेणिक रास, संशोधित-पदच्छेद सूचक लकीरें., जैदे., (२७४११.५, १३४३३-३८). श्रेणिकराजा रास, म. भीमजी, मा.गु., पद्य, वि. १६२१, आदि: गौतमनि सिर नामीय; अंति: (-), (पू.वि. खंड-२ गाथा-१० तक है.) ११८९१६. (+) प्रश्नव्याकरणसूत्र सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १७७०, माघ शुक्ल, ७, सोमवार, मध्यम, पृ. ७७, प्रले. मु. राघवजी (गुरु मु. वीरजी, लुंकागच्छ-नागोरी); गुपि. मु. वीरजी (गुरु मु. जयमलजी, लुंकागच्छ-नागोरी); मु. जयमलजी (लुंकागच्छ-नागोरी); उपा. अमरसी, प्र.ले.पु. मध्यम, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें-टिप्पण युक्त विशेष पाठ., प्र.ले.श्लो. (१५०४) किंचिद् शुद्धशुद्धं वा, जैदे., (२५.५४११.५, ७७३८-४२). प्रश्नव्याकरणसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., प+ग., आदि: जंबू अपरिग्गहो संवुड; अंति: शरीरधरे भविस्सत्तीति, अध्याय-१०, गाथा-१२५०, ग्रं. १३००. प्रश्नव्याकरणसूत्र-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: अहो जंब ए प्रत्यक्ष; अंति: तेणइज भवि मोक्ष जाइ. ११८९१७. स्याद्वादमंजरी की वृत्ति, अपूर्ण, वि. १५०८, भाद्रपद शुक्ल, ४, सोमवार, मध्यम, पृ. ४५-१(२४)+१(२५)-४५, प्रले. ग. दयाराज; अन्य. मु. मोतीचंद्र, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२६.५४११, १९४५९-६३). स्याद्वादमंजरीवृत्ति, आ. मल्लिषेणसूरि, सं., गद्य, श. १२१४, आदिः यस्य ज्ञानमनंतवस्तु; अंति: मल्लषेमसूरि० मंजरी, (पू.वि. पाठ-"वाक्यरुपः शब्दावै प्रवर्तकत्वाद्विधि" से "तह्यापारोभावना पर पर्या विधि" तक नहीं है.) ११८९१९ (+) शांतिजिन स्तवन-निश्चयव्यवहारगर्भित, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ५, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., अन्य. मु. चिमन, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. हुंडी:शांतिनाथ., संशोधित-टिप्पण युक्त विशेष पाठ., दे., (२६४११.५, ९४३४). शांतिजिन स्तवन-निश्चयव्यवहारगर्भित, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., पद्य, वि. १७३४, आदि: शांतिजिणेसर अरचित जग; अंति: (-), (पू.वि. ढाल-४ गाथा-८ अपूर्ण तक है.) ११८९२१ (#) मुनिपति रास, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १८-१(१)=१७, प्र.वि. मूल पाठ का अंश खंडित है, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६.५४११.५, २०४५५). For Private and Personal Use Only Page #312 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२६ २९७ मुनिपति रास, मु. गजविजय, मा.गु., पद्य, वि. १७८१, आदि: (-); अंति: गजविजय० मनवि रमजो एम रे, ढाल-३९, (पू.वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं., ढाल-२ गाथा-२ अपूर्ण से है.) ११८९२२. (+) दस यतीधर्म सज्झाय, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ११-४(२,४ से ५,१०)=७, पृ.वि. बीच-बीच व अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. संशोधित-टिप्पण युक्त विशेष पाठ., दे., (२६.५४११, ११४२२-३०). १० यतिधर्म सज्झाय, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: सुकृत लता वन सींचवा नव; अंति: (-), (पू.वि. सज्झाय-२ गाथा-४ अपूर्ण से सज्झाय-५ गाथा-३ अपूर्ण तक, सज्झाय-९ गाथा-२ अपूर्ण से सज्झाय-९ गाथा-२ अपूर्ण तक व सज्झाय-१० गाथा-२ अपूर्ण से नहीं है.) ११८९२३. (#) ऋषिमंडल स्तोत्र, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रावण शुक्ल, १२, सोमवार, मध्यम, पृ.५, ले.स्थल. कलकत्ता, प्रले. भट्टा. जिनाक्षयसूरि; अन्य श्राव. छोटेमल लाला; आ. नंदिवर्द्धनसूरि, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. मूल पाठ का अंश खंडित है, दे., (२६.५४११.५, १०४३१). ऋषिमंडल स्तोत्र, सं., पद्य, आदि: आद्यंताक्षरसंलक्ष्य; अंति: जापाल्लभत्ते पदमव्ययम्, श्लोक-९६. ११८९२४. सम्यक्त्व कौमुदी सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १८८०, मार्गशीर्ष शुक्ल, ८, मध्यम, पृ. ९०+८(३३,८१ से ८७)=९८, ले.स्थल. विदासर, प्रले. श्राव. उदा चौधरी, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२६.५४११.५, ६x४२-४६). सम्यक्त्वकौमुदी, आ. जयशेखरसूरि, सं., प+ग., वि. १४५७, आदि: श्रीवर्द्धमानमानम्य; अंति: अक्षयं स्वर्गमश्नुते, ग्रं. १६७५, संपूर्ण. सम्यक्त्वकौमदी-टबार्थ*, मा.गु., गद्य, आदि: श्रीवर्धमान चतुर; अंति: (-), (अपूर्ण, पृ.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., राजा द्वारा चोर को दंड देने का प्रसंग अपूर्ण तक लिखा है.) ११८९२५. (+) दशवैकालिकसूत्र सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ७४-२(१ से २)=७२, प्र.वि. हुंडी:दसट०., पदच्छेद सूचक लकीरें., जैदे., (२५.५४११.५, ५४२७-३०). दशवैकालिकसूत्र, आ. शय्यंभवसरि, प्रा., पद्य, वी. २वी, आदिः (-); अंति: अप्पणा गई गइ त्तिबेमि, (पू.वि. अध्ययन-२ गाथा-७ अपूर्ण से है., वि. चुलिका के पत्र नहीं है.) दशवैकालिकसूत्र-टबार्थ*, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: तीर्थंकरनु परुप्यूं. ११८९२७. सूयगडांगसूत्र व सूयगडांगसूत्र की नियुक्ति, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ५१, कुल पे. २, प्रले. श्राव. उदयसिंघ, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. हुंडी:सूयगडांगसूत्र., प्र.ले.श्लो. (१) यादृशं पुस्तकं दृष्ट्वा, (४०५) पद्मोपमं परपरंपरान्वितं, जैदे., (२६.५४११.५, १५४४३). १. पे. नाम. सूयगडांगसूत्र, पृ. १आ-४५अ, संपूर्ण. सूत्रकृतांगसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., प+ग., आदि: बुज्झिज्ज तिउट्टेज्ज; अंति: समत्तो, अध्याय-२३, ग्रं. २१००. २. पे. नाम. सूयगडांगसूत्र की नियुक्ति, पृ. ४५अ-५१अ, संपूर्ण. सूत्रकृतांगसूत्र-नियुक्ति, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., पद्य, आदि: तित्थंकरे य जिणवरे; अंति: सोउं कहियम्मि उवसंतो, गाथा-२०५, (वि. संक्षिप्त में नियुक्ति लिखी है.) ११८९२८. (+) द्विशतिद्वारगर्भितमहावीरजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १०, प्र.वि. हुंडी:छवीस द्वा०, टिप्पण युक्त विशेष पाठ., दे., (२६.५४११.५, १०x२९). महावीरजिन स्तवन-२४ दंडक २६ द्वारगर्भित, आ. पार्श्वचंद्रसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: सुखकर स्वामी वीरजिन; अंति: मई लहीइ अविचल ठाउ, गाथा-९१, ग्रं. १६२. ११८९२९. विक्रमादित्य चौपाई, संपूर्ण, वि. १७८१, पौष कृष्ण, १४, शनिवार, मध्यम, पृ. १९, ले.स्थल. पाटण, पठ. मु. जयविजय (गुरु ग. सुंदरविजय); प्रले. ग. सुंदरविजय (गुरु ग. अमरविजय); गुपि.ग. अमरविजय (गुरु पंन्या. सुमतिविजय); पंन्या. सुमतिविजय (गुरु आ. विजयप्रभसूरि); आ. विजयप्रभसूरि, प्र.ले.पु. मध्यम, जैदे., (२६.५४११.५, १७४४३). विक्रमादित्य चौपाई, उपा. लाभवर्द्धन पाठक, मा.गु., पद्य, वि. १७२३, आदि: पुरिसादाणी प्रणमीइं; अंति: तेहने सदा हुइ कल्याण, ढाल-२७, गाथा-५८५. For Private and Personal Use Only Page #313 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir २९८ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ११८९३०. (+) त्रैलोक्यसार चौपाई, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १५-३(२ से ४)=१२, पृ.वि. बीच व अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. संशोधित., दे., (२४४११.५, ११४२८). त्रैलोक्यसार चौपाई, आ. सुमतिकीर्तिसूरि, मा.गु., पद्य, वि. १६२७, आदि: सुमतिनाथ पंचमो जिन; अंति: (-), (पृ.वि. प्रथम अधोलोक गाथा-८ अपर्ण से ४८ अपूर्ण तक व तीसरे उर्ध्वलोक की गाथा-४२ अपूर्ण से नहीं है. ११८९३१. (+#) वैराग्यशतक सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ९-१(४)=८, पृ.वि. बीच व अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६४१२, ५४३४). वैराग्यशतक, प्रा., पद्य, आदि: संसारंमि असारे नत्थि सुह; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-३० अपूर्ण से ४० अपूर्ण तक व ९२ अपूर्ण से नहीं है.) वैराग्यशतक-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: संसार में चार गत कहि: अंति: (-). ११८९३२. पंद्रह तिथि स्तुति संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ६, प्र.वि. हुंडी:पन्नरेतिथ, दे., (२४.५४११.५, १४४३१-३४). १५ तिथि स्तुति संग्रह, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: एक मिथ्यात असंयम अविरति; अंति: नयविमल० नाम तणो गुणी, स्तुति-१६, गाथा-६४. ११८९३४. दोषपृच्छा-नारचंद्रज्योतिष सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. १८२५, श्रावण अधिकमास कृष्ण, १, शनिवार, मध्यम, पृ. ५२-३७(१ से ३७)=१५, प्रले. पं. गुमान; पठ. हरी, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. हुंडी:नारचंद्रट०, प्र.ले.श्लो. (१) यादृशं पुस्तकं दृष्ट्वा, जैदे., (२६४१२, ५४३२-३६). ज्योतिषसार, आ. नरचंद्रसूरि, सं., पद्य, आदिः (-); अंति: रासदोषं प्रकीर्तिता, श्लोक-३७०, (पू.वि. शत्रुखडाष्टक श्लोक-२३९ अपूर्ण से है.) ज्योतिषसार-टबार्थ *, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: देवी दोष राशना दोष जाणिवा. ११८९३५ (#) योगचिंतामणि, अपूर्ण, वि. १७२१, माघ शुक्ल, ८, शनिवार, मध्यम, पृ. ४३-२१(१ से २१)=२२, ले.स्थल. मेदनीपुर, प्रले. मु. गुणसागर, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. हुंडी:योगचिंताम., कुल ग्रं. ३०५७९, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२४.५४११.५, १९४६२). योगचिंतामणि, आ. हर्षकीर्तिसरि, सं., पद्य, वि. १७वी, आदि: (-); अंति: योगचिंतामणिश्चिरम्, अध्याय-७, (पू.वि. अध्याय-४ अपूर्ण से अध्याय-५ अपूर्ण तक है व अध्याय-६ महानारायण तैल विधि अपूर्ण से है.) ११८९३६. (+) व्रत अतिचार, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ.७, प्र.वि. संशोधित., दे., (२५.५४११.५, ८x२६). श्रावकसंक्षिप्तअतिचार*, संबद्ध, प्रा.,मा.गु., प+ग., आदि: दुविहं तिविहेणं न करेमि; अंति: ते तस्स मिच्छामि दुक्कडं. ११८९३७. गुरुवंदनभाष्य, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ५, प्रले. श्राव. नेमचंद गुलचंद, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. हुंडी:गुरुवंदभाष्य., दे., (२५.५४१२, ९४२४-२८). गुरुवंदनभाष्य, आ. देवेंद्रसूरि, प्रा., पद्य, आदि: गुरुवंदनणमह तिविहं; अंति: अणभिनिवेसीयमच्छरिणो, गाथा-४१. ११८९३८. सम्यक्त्वब्रह्मचर्यादि व्रतोच्चार व ११ प्रतिमा आलापक विधि, संपूर्ण, वि. १९५५, माघ शुक्ल, १, गुरुवार, श्रेष्ठ, पृ. ८, कुल पे. ७, ले.स्थल. अलायनगर, प्रले. मु. पुण्यविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२४.५४११.५, १४४३८-४२). १.पे. नाम. ब्रह्मचर्यव्रतविचार विधि, पृ. १अ-३अ, संपूर्ण.. ब्रह्मचर्यव्रतप्रत्याख्यान आलापक, प्रा.,मा.गु., गद्य, आदि: महामहोत्सव पूर्वकः; अंति: देवरावीइ तो सूझे. २. पे. नाम. २० स्थानकतपउच्चार विधि, पृ. ३अ, संपूर्ण. २० स्थानकतप उच्चारविधि, प्रा.,मा.गु., गद्य, आदि: नांदि सर्व उपधान समकित; अंति: उचरावीइं नित्थारपारगा होह. ३. पे. नाम. ज्ञानपंचमीतप उच्चारण विधि, पृ. ३अ, संपूर्ण. ज्ञानपंचमीतपउच्चारण विधि, प्रा., गद्य, आदि: इमं ज्ञान पंचमी तवं; अंति: मेले जाणवी नाम विशेष. ४. पे. नाम. अनशन विधि, पृ. ३अ-४अ, संपूर्ण. प्रा.,मा.गु., गद्य, आदि: वेला पाम पामै तो; अंति: सर्व० वोसरामि. ५. पे. नाम. सम्यक्त उच्चार विधि, पृ. ४अ, संपूर्ण. सम्यक्त्व शीलव्रतउच्चार विधि, प्रा.,मा.गु., पद्य, आदि: वार ३ खमा० इच्छकार भगवन; अंति: गुरुदेसना दिइं. For Private and Personal Use Only Page #314 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२६ २९९ ६.पे. नाम. श्रावक १२ व्रत उच्चार विधि, पृ. ४अ-६आ, संपूर्ण. १२ व्रतउच्चारण विधि, प्रा.,सं., गद्य, आदि: महोत्सवपूर्वक नांदि प्रदक; अंति: सम्यक्तनी मेले जाणवी. ७. पे. नाम. ११ प्रतिमा आलापक, पृ. ६आ, संपूर्ण. श्रावक ११ प्रतिमा, प्रा.,मा.गु.,सं., गद्य, आदि: अहन्नं० मिच्छतं दव्व; अंतिः विधि विस्तारै छै. ११८९३९ (+) दशवैकालिकसूत्र सह बालावबोध, संपूर्ण, वि. १६२३, श्रावण शुक्ल, ६, सोमवार, श्रेष्ठ, पृ. ३८, ले.स्थल, बहादरपुर, प्र.वि. पंचपाठ-संशोधित., दे., (२५.५४१२, १०४२८-३२). दशवैकालिकसूत्र, आ. शय्यंभवसूरि, प्रा., पद्य, वी. रवी, आदि: धम्मो मंगलमुक्किट्ठ; अंति: दसकालियस निज्जूहगं, अध्ययन-१०, (वि. चूलिका-२) दशवकालिकसूत्र-बालावबोध, उपा. राजहंस, मा.गु., गद्य, आदि: नत्वा श्रीवर्द्धमान; अंति: कीधा० दशवैकालिक नाम भवति. ११८९४०. मेणरेहारी चौपाई, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १२, प्र.वि. हुंडी:मयणरे०., जैदे., (२६४१२, १०४३३). मदनरेखासती रास, मा.गु., पद्य, आदि: जूआ मांस दारु तणी; अंति: मिच्छामि दुक्कडम महारो, गाथा-१८२. ११८९४१ (+) साधुवंदना, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ११, प्र.वि. हुंडी:साधुवंदना., संशोधित., जैदे., (२६४१२, ११४४३). साधुवंदना, मु. श्रीदेव, मा.गु., पद्य, आदि: पंच भरत पंच इरवत जाण; अंति: देवमुनि ते संथुण्या, ढाल-१३, गाथा-३७७. ११८९४२ (#) चित्रसेनपद्मावती चौपाई-दानधर्मानमोदनाधिकारे, संपूर्ण, वि. १८४९, मार्गशीर्ष कृष्ण, १३, मध्यम, पृ. १८, प्रले. मु. खुस्यालचंद ऋषि, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., (२६४११.५, १६x४०). चित्रसेनपद्मावती चौपाई-दानधर्मानमोदनाधिकारे, उपा. रामविजय, मा.गु., पद्य, वि. १८१४, आदि: रिसहेसर पायकमल पणमिय; अंति: व्याल्यो सोभाग सवायौ, ढाल-३१, गाथा-४९१. ११८९४३. (#) गौतमस्वामी रास, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ५,प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६४११, १२४२७-३३). गौतमस्वामी रास, मा.गु., पद्य, आदि: वीर जिणेसर चरणकमल कमलाकय; अंति: ऋद्धिवृद्धि कल्याण करो, गाथा-७३. ११८९४४. (+#) कल्पसूत्र महिमा, संपूर्ण, वि. १८२३, पौष शुक्ल, ५, मध्यम, पृ.८,प्र.वि. श्रीमहावीरजी प्रसादात., संशोधित. अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६४१२, १४४३७-४०). कल्पसूत्र-व्याख्यान+कथा*, मा.गु., गद्य, आदि: प्रणम्य प्रणताशेष; अंति: सहित कल्पसूत्र सांभलइं. ११८९४५. (+) जीवविचार प्रकरण सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ८, प्रले. मु. दयासोम (गुरु ग. लब्धिशेखर); गुपि.ग. लब्धिशेखर; अन्य. पं. देवचंद्रविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. अंत में कृति का स्वरूप अवचूरि व बालावबोध लिखा है., संशोधित-टिप्पण यक्त विशेष पाठ., जैदे., (२६४११, ५४३०). जीवविचार प्रकरण, आ. शांतिसूरि, प्रा., पद्य, वि. ११वी, आदि: भुवणपईवं वीरं नमिऊण; अंति: संतिसूरि०सुयसमुद्दाओ, गाथा-५१. जीवविचार प्रकरण-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: भुवननइ विषइ प्रदीप; अंति: जे समुद्र तेह थकी. ११८९४६. (+) गणधरवाद, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ६,प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२६४११, १४४४२). गणधरवाद, सं., गद्य, आदि: इतश्चास्मिन्नवसरे; अंति: एव तस्मादस्ति निर्वाणं. ११८९४७. स्तुतिचतुर्विंशतिका, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ५, जैदे., (२६४१०.५, १४४४१-५३). स्ततिचतुर्विंशतिका, म. शोभनमनि, सं., पद्य, आदि: भव्यांभोजविबोधनैकतरण; अंति: ताराबला क्षेमदां, स्तुति-२४, __ श्लोक-९६. ११८९४८. धर्मपरीक्षा कथानक, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ३५, जैदे., (२५.५४१२, १३४५५). धर्मपरीक्षा कथानक, पंन्या. सौभाग्यसागर, सं., पद्य, आदि: अर्हत्सिद्धयतींद्रवाचकपति; अंति: श्रेयः श्रीकृज्जयत्यसौ, परिच्छेद-१६. ११८९४९. (+) विपाकसूत्र-सुखविपाकसूत्र सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ६, प्र.वि. हुंडी:सुखविपाक., संशोधित., दे., (२५.५४१२, ८४५२-५५). For Private and Personal Use Only Page #315 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ३०० कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची विपाकसूत्र-हिस्सा सुखविपाक द्वितीयश्रुतस्कंध, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., गद्य, आदि: तेणं कालेणं तेणं; अंति: सेसं जहा आयारस्स, अध्याय-१०. विपाकसूत्र-हिस्सा सुखविपाक द्वितीयश्रुतस्कंध का टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: ते उत्सर्पणीनो चोथो; अंति: आचारंगे का तिम. ११८९५०. करगुडुमुनि रास, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ५, ले.स्थल. पीपाड, प्रले. सा. गनीजी (गुरु सा. वीनाजी); गुपि. सा. वीनाजी, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. हुंडी:करगुड्., दे., (२५४११.५, १८४३९). करगडमनि रास, म. रायचंद ऋषि, मा.गु., पद्य, वि. १८४२, आदि: शांतिनाथनै समरीयै; अंति: नागोर सहर चोमासो जी, ढाल-६. ११८९५१ (+) औपपातिकसूत्र सह टबार्थ व बालावबोध, संपूर्ण, वि. १९६७, चैत्र शुक्ल, ३, मंगलवार, श्रेष्ठ, पृ. ६८, प्र.वि. हुंडी:उववाइसूत्र., टिप्पण युक्त विशेष पाठ., ., (२५४११.५, ६४५३-५६). औपपातिकसूत्र, प्रा., पद्य, आदि: तेणं कालेणं तेणं; अंति: सुही सुहं पत्ता, सूत्र-४३, ग्रं. १६००. औपपातिकसूत्र-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: ते० तेणे काले अवसर्पणी; अंति: सुख पाम्या थका. औपपातिकसूत्र-दुर्गमपद बालावबोध, मु. मोहन ऋषि, मा.गु., गद्य, आदि: प्रणम्य श्रीमहावीर; अंति: कीथो थोडे वचने अणमानता. ११८९५२ (+) आगमसारोद्धार, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ६०, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२५.५४१२, १३४३१). __ आगमसारोद्धार, ग. देवचंद्र, मा.गु., गद्य, वि. १७७६, आदि: प्रथम भव्य जीवनै; अंति: मुनि ज्ञानामृत रसकूप. ११८९५३. (+) दशवैकालिकसूत्र सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १३, प्र.वि. हुंडी:दशवै., संशोधित-टिप्पण युक्त विशेष पाठ. कुल ग्रं. ५०००, जैदे., (२५४११.५, ५४३२-३९). दशवैकालिकसूत्र, आ. शय्यंभवसूरि, प्रा., पद्य, वी. रवी, आदि: धम्मो मंगलमुक्किट्ठ; अंति: अप्पणा गई गइ त्तिबेमि, अध्ययन-१०, (वि. चूलिका-२.) दशवैकालिकसूत्र-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: (१)प्रणम्य श्रीमहावीरं०, (२)ध० जीवनइ दुर्गति; अंति: तुज प्रतै कयै ११८९५४. (+) गुणरत्नाकर छंद, अपूर्ण, वि. १७६५, फाल्गुन शुक्ल, १०, बुधवार, श्रेष्ठ, पृ. १८-२(१ से २)=१६, ले.स्थल, पाटण, प्रले. मु. हेमराज (गुरु वा. वृद्धचंद, तपागच्छ); गुपि. वा. वृद्धचंद (गुरु आ. जयचंदसूरि, तपागच्छ); आ. जयचंदसूरि (तपागच्छ); अन्य. आ. हीरविजयसूरि, प्र.ले.पु. मध्यम, प्र.वि. हुंडी:गुणरत्नाकरछंद., संशोधित. कुल ग्रं. ७००, जैदे., (२६४१२, १५४४८-५२). गुणरत्नाकर छंद, मु. सहजसुंदर, मा.गु., पद्य, वि. १५७२, आदि: (-); अंति: करो सहिजसुंदर मया, अध्याय-४, गाथा-४२५, (पू.वि. अधिकार-१ गाथा-३१ अपूर्ण से है.) ११८९६०. पंचपरमेष्ठि गीता, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ११, जैदे., (२६.५४११.५, १२४३७). पंचपरमेष्ठि गुणवर्णन गीता, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., पद्य, आदि: प्रणमीइं प्रेमस्युं; अंति: ए सार परमेष्टि गीता, गाथा-१३१. ११८९६१ (+) सिद्धचक्रमहिमाश्रीपाल रास, संपूर्ण, वि. १८४३, मार्गशीर्ष शुक्ल, १०, गुरुवार, श्रेष्ठ, पृ. ३१, प्रले. ग. कीर्त्तिसागर (गुरु ग. रामसागर); गुपि. ग. रामसागर (गुरु मु. जीवणसागर); मु. जीवणसागर (गुरु ग. भाणसागर); ग. भाणसागर (गुरु ग. सुविधिसागर), प्र.ले.पु. मध्यम, प्र.वि. संशोधित. कुल ग्रं. १२६०, जैदे., (२५.५४११.५, १३४४५). श्रीपाल रास-बृहद्, मु. जिनहर्ष, मा.गु., पद्य, वि. १७४०, आदि: अरिहंत अनंतगुण धरीये; अंति: निज पातकवन लुणिज्ये रे, ढाल-४८, गाथा-८६१. ११८९६२ (+) राजप्रश्नीयसूत्र की मलयगिरीय टीका, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ७२, प्र.वि. हुंडी:राजप्रश्नपाथांगवृत्ति, राज०वृत्ति., संशोधित., जैदे., (२६.५४११, १५४५८-६३). राजप्रश्नीयसूत्र-टीका, आ. मलयगिरिसूरि , सं., गद्य, आदि: प्रणमत वीरजिनेश्वर; अंति: मलयगिरिणा० भवतु कृती, ग्रं. ३७००. For Private and Personal Use Only Page #316 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२६ ३०१ ११८९६३. (+) हीरावेधी मंदोदरी रावण प्रतै सीख वचन व औपदेशिक गाथा सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १४, कुल पे. २, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२६.५४११.५, ४४३५). १. पे. नाम. हीरावेधीमंदोदरी रावण प्रतै सीख वचन सह टबार्थ, पृ. १अ-१४आ, संपूर्ण. हीरावेधद्वात्रिंशिका, म. कांतिविजय, मा.गु., पद्य, आदि: राजनगर सम एह नारि; अंति: कांति हीरावेधरी, गाथा-३२. हीरावेधद्वात्रिंशिका-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: अथ मंदोदरी रावणने; अंति: तेहज हीराने वेधस्ये. २. पे. नाम. औपदेशिक गाथा सह टबार्थ, पृ. १४आ, अपूर्ण, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. गाथा संग्रह जैन*, प्रा.,मा.गु.,सं., पद्य, आदि: दोसा १ दिण २ भासाणं ३; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-१ अपूर्ण तक है.) गाथा संग्रह जैन-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: रात्रिनो संस्थान १ दिननो; अंति: (-). ११८९६४. (+) संजया बोल, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ५, प्र.वि. हुंडी:संजया., संशोधित., जैदे., (२६.५४११.५, ५४१०). संजयानियंठा के बोल, प्रा.,मा.गु., को., आदि: पन्नवणा १ बेये २; अंति: सर्व थकी घोडा संख्यातगुणा. ११८९६५ (+) स्तवन, सज्झाय व विनतीसंग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ.७, कुल पे. ४, ले.स्थल. सादडी, प्रले. पं. मनोहरसागर, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित., जैदे., (२६.५४११.५, १७४४८). १. पे. नाम. सम्यक्त्व दोष-निवारण स्तवन, पृ. १अ-३आ, संपूर्ण. सम्यक्त्व ६७ बोल सज्झाय, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., पद्य, आदि: सुकृतवल्लि कादंबिनी; अंति: वाचक जस इम बोलइ जी, ढाल-१२, गाथा-६८. २. पे. नाम. सम्यक्त्व सुखडली सज्झाय, पृ. ३आ, संपूर्ण. सम्यक्त्वसुखडी सज्झाय, मा.गु., पद्य, आदि: चाखो नर समकित सखडली; अंति: दर्शनने प्यारी रे, गाथा-५. ३. पे. नाम. सीमंधरजिन स्तवन, पृ. ३आ-७अ, संपूर्ण, ले.स्थल. सादडी, प्रले. पं. मनोहरसागर, प्र.ले.पु. सामान्य. सीमंधरजिन विनती स्तवन-१२५ गाथा, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: स्वामी सीमंधर विनती; अंति: जसविजय बुध जयकरो, ढाल-११, गाथा-१२९, ग्रं. १८८. ४. पे. नाम. नेमिजिन स्तवन, पृ. ७आ, संपूर्ण. मु. आनंदरत्न, रा., पद्य, आदि: थां पर वारी हो नेम; अंति: मुगत पधारीया रे लो, गाथा-७. ११८९६६. (+) मृगावती चरित्र, संपूर्ण, वि. १७५९, ज्येष्ठ कृष्ण, ७, गुरुवार, मध्यम, पृ. २२, ले.स्थल. गोधूदा, प्रले. मु. नारायण (गुरु मु. चांपाजी ऋषि); गुपि. मु. चांपाजी ऋषि (गुरु मु. सांमलजी ऋषि); मु. सांमलजी ऋषि (गुरु मु. अमराजी ऋषि); मु. अमराजी ऋषि, प्र.ले.पु. मध्यम, प्र.वि. संशोधित-टिप्पण युक्त विशेष पाठ-पदच्छेद सूचक लकीरें. कुल ग्रं. ११००, जैदे., (२६.५४११.५, १७X४४). मृगावतीसती चौपाई, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, वि. १६६८, आदि: समरु सरसति सामिणी; अंति: वृद्धि सुजगीसा, खंड-३, गाथा-७४५, ग्रं. ११००, (वि. ढाल-३७) । ११८९६८. शक्रस्तवाम्नाय, उवसग्गहरं स्तव व बाहुबली आराधनादि संग्रह, अपूर्ण, वि. १७७९, मार्गशीर्ष शुक्ल, ८, मंगलवार, मध्यम, पृ. ७-१(४)=६, कुल पे. २०, पठ. मु. सौभाग्यविमल; ग. मोहनविमल गणि (गुरु ग. रत्नविमल); प्रले. ग. रत्नविमल, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.ले.श्लो. (१४७६) सुअसायरो अपारो, जैदे., (२४.५४११.५, १६x६०-६३). १. पे. नाम. मंत्र संग्रह, पृ. १अ-२अ, संपूर्ण. मंत्र संग्रह *, मा.गु.,सं., गद्य, आदि: ॐ३ ह३एँ नमः दशसहस्र गणवो; अंति: शाकिनी घंछवाडी नाशे. २. पे. नाम. सोधित शक्रस्तवाम्नाय, पृ. २अ-२आ, संपूर्ण. शक्रस्तव-शक्रस्तवाम्नाय, संबद्ध, प्रा.,सं., गद्य, आदि: ॐ नमुत्थुणं० ॐ; अंति: सलिलादि सर्वभय निवारयति, मंत्र-१६. ३. पे. नाम, उवसग्गहर स्तव, पृ. २आ, संपूर्ण. उवसग्गहर स्तोत्र-गाथा ७, आ. भद्रबाहस्वामी, प्रा., पद्य, आदि: उवसग्गहरं पासं पास; अंति: अटे अहगुणाधिसरे वंदे, गाथा-०७, (वि. आद्यंत के अलावा बीच की गाथाएँ प्रतीकात्मक लिखी गई हैं.) ४. पे. नाम. बाहुबली साधना, पृ. २आ, संपूर्ण. For Private and Personal Use Only Page #317 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ३०२ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची प्रा.,सं., गद्य, आदि: प्रथमं इर्यापथिकी ततः; अंति: शुभं कथयति बाहुबलीविद्या. ५. पे. नाम. मंत्र-औषधसंग्रह, पृ. २आ-३अ, संपूर्ण, पे.वि. यह कृति इस प्रत के साथ एक से अधिक बार जुड़ी हुई है. मा.गु.,सं., गद्य, आदि: ॐ आगिया वेताल पेटे पेसी; अंति: चूर्ण खाधे आमवात मिटे. ६. पे. नाम. शुभ्रा रेंगणी कल्प, पृ. ३अ, संपूर्ण. श्वेतरीगणी कल्प, मा.गु.,सं., गद्य, आदि: शुभ्रा णिगरें शुक्लपक्षे; अंति: सर्वेषां प्रिय स्यात्. ७. पे. नाम. कृष्ण ओरु कल्प, पृ. ३अ-३आ, संपूर्ण. मार्जारीसिद्धि कल्प, सं., प+ग., आदि: अथेदं संप्रवक्ष्यामि; अंति: जरा २१ वार प्रतिष्टामंत्र, श्लोक-५. ८. पे. नाम. रुद्राक्ष कल्प, पृ. ३आ, संपूर्ण. सं., पद्य, आदि: रुद्राक्षकल्प; अंति: कल्पस्य नारदेवेन भाषितं, गाथा-१४. ९. पे. नाम. हरितकी कल्प, पृ. ३आ, अपूर्ण, पृ.वि. अंतिम पत्र नहीं है. मा.गु.,सं., गद्य, आदि: हरितकी चूर्ण टां.२० इती; अंति: (-), (पू.वि. पांडुरोग निवारण के बाद का पाठ नहीं है.) १०. पे. नाम, अश्वगंधा कल्प, पृ. ५अ, अपूर्ण, पू.वि. प्रथम पत्र नहीं है. मा.गु.,सं., गद्य, आदि: (-); अंति: पंचरात्री वा गुला टले, (पू.वि. गर्भधारण प्रयोग अपूर्ण से है.) ११. पे. नाम, श्वेतगुंजा कल्प, पृ. ५अ, संपूर्ण. मा.गु.,सं., गद्य, आदि: शुभ्रगुंजाजटा पुष्यार्के; अंति: नासे व्याघ्रादि भय मिटे. १२. पे. नाम. रक्तगुंजा कल्प, पृ. ५अ, संपूर्ण. ____ मा.गु., गद्य, आदि: रक्तगुंजाजटा घसि नास ले; अंति: मुखमा राखे उध्रस मिटे. १३. पे. नाम. कपर्दिका कल्प, पृ. ५अ, संपूर्ण. सं., पद्य, आदि: सिंहीव्याघ्रीमृगिहंसि; अंति: विष नस्यति तत्क्षणात्, श्लोक-११. १४. पे. नाम. घंटाकर्णमहावीरदेव स्तोत्र सह कल्प, पृ.५अ-५आ, संपूर्ण. घंटाकर्णमहावीरदेव स्तोत्र, सं., पद्य, आदि: ॐ नमो घंटाकर्णो महावीरः; अंति: घंटाकर्णो नमोस्तु ते, श्लोक-४. घंटाकर्णमहावीरदेव स्तोत्र-घंटाकर्णकल्प साधना विधि, संबद्ध, मा.गु.,सं., गद्य, आदि: त्रिसंध्या समरिइ परिवारे; अंति: दोष समें ए १४ गुणा ज्ञेया, (वि. घंटाकर्ण मंत्र के १४ गुण दर्शाए गए हैं.) १५. पे. नाम. गिरिकर्णिका कल्प, पृ. ५आ, संपूर्ण. मा.गु., गद्य, आदि: श्रीश्वेतगिरिकर्णिका जटा; अंति: वाटि घीसुं पाइ विष टले. १६.पे. नाम, वांदा कल्प, पृ. ५आ, संपूर्ण. मा.ग., गद्य, आदि: श्रीरोहिणी० मंजनो वांदो; अंति: बांधे वाटे चोरभय न होइ. १७. पे. नाम. शृंगालसिंगि कल्प, पृ. ५आ-६अ, संपूर्ण. सं., पद्य, आदि: एकशृंगशृंगालस्य; अंति: सेव्यते बहु जंतुभिः, श्लोक-९. १८. पे. नाम. श्वेतघुघरा कल्प, पृ. ६अ, संपूर्ण. मा.गु., गद्य, आदि: श्रीश्वेतघूघराजटा इंगोरि; अंति: पूजा कीजै पछे सिद्धि होइ. १९. पे. नाम. मंत्र-औषधसंग्रह, पृ. ६अ, संपूर्ण, पे.वि. यह कृति इस प्रत के साथ एक से अधिक बार जुड़ी हुई है. मा.गु.,सं., गद्य, आदि: चडकलानी वीट खापरीयो; अंति: रविभौमदिने विधीयते. २०. पे. नाम. विश्वसंसारोद्धारे आपदुद्धार बटुकभैरव स्तोत्र, पृ. ६आ-७आ, संपूर्ण. रूद्रयामल-बटुकभैरव स्तोत्र, हिस्सा, उमामहेश्वर संवाद, सं., पद्य, आदि: मेरुपृष्ठे सुखासीनं; अंति: सदा सर्वेश्वरेश्वरैः, श्लोक-७१, (वि. प्रारंभ में बटुकभैरव का मंत्र दिया गया है. बीच में गद्यात्मक पाठ भी है.) ११८९६९ (+) बृहत्संग्रहणी सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ४८-४३(१ से ४३)=५, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२६४११.५, ४४३१-३५). बृहत्संग्रहणी, आ. चंद्रसूरि, प्रा., पद्य, वि. १२वी, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. प्रारंभ व अंत के पत्र नहीं हैं., गाथा-२८४ से ३१९ अपूर्ण तक है.) For Private and Personal Use Only Page #318 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२६ बृहत्संग्रहणी - टबार्थ *, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), पू. वि. प्रारंभ व अंत के पत्र नहीं हैं. ११८९७० (+#) ज्ञाताधर्मकथांगसूत्र- श्रुतस्कंध ९ अध्ययन-१४ से श्रुतस्कंध - २ वर्ग-५, अपूर्ण, वि. १६२२, चैत्र ८, मध्यम, पृ. ३७-४(१ से ४)=३३, प्र. वि. हुंडी : ज्ञातासूत्र., संशोधित टिप्पण युक्त विशेष पाठ. मूल पाठ का अंश खंडित है, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे. (२६४११. १३-१६४४४-५०). 1 " ज्ञाताधर्मकथांगसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., प+ग., आदि: (-); अंति: (-), (प्रतिअपूर्ण, पू. वि. श्रुतस्कंध - १ अध्ययन-१४ पाठ "तते से दारए उम्मुक्कबालभावे" से है.) ११८९७१. वडी आलोयणा व आलोयणा विधि, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ६, कुल पे. २, जैदे., ( २६११.५, ११×३१). १. पे. नाम. वडी आलोयणा, पृ. १अ-६आ, संपूर्ण. आवक आलोयणा विधि, मा.गु., गद्य, आदि: इच्छाकारेण संदिसह भगवानजी; अंति तस्स मिच्छामि दुक्कडं. २. पे. नाम. आलोयणा विधि, पृ. ६आ, संपूर्ण. प्रा., मा.गु. सं., गद्य, आदि गुरु कने अथवा थापनाचार्य; अति: समाहिवत्तियागारेण बोसरई, ११८९७२. (+) भक्तामरस्तोत्र सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ८, प्र. वि. पदच्छेद सूचक लकीरें., जैदे., (२६X११, ४X४६). भक्तामर स्तोत्र-४८गाथा, आ. मानतुंगसूरि, सं., पद्य, आदि: भक्तामरप्रणतमौलि; अंतिः मानतुंग० लक्ष्मीः, श्लोक-४४, संपूर्ण. भक्तामर स्तोत्र-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: भक्तिवंत जे अमर कहियइ; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., श्लोक-२ अपूर्ण तक टबार्थ लिखा है.) ३०३ 1 १९८९०३. कर्पूरप्रकर, संपूर्ण वि. १८वी, मध्यम, पू. १, प्र. वि. कुल ग्रं. ४००, जैदे. (२६४११, १५४४२-५०). कर्पूरप्रकर, मु. हरिसेन, सं., पद्य, आदि कर्पूरप्रकरः शमामृत: अंति: नेमिचरित्रकर्त्रा श्लोक-१७५. ११८९७५. प्रश्नव्याकरणसूत्र सह वृत्ति, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. १११-५ (१ से ५) = १०६, प्र. वि. पंचपाठ., जैदे., (२६.५X११.५, १३-१६X३८-४८). प्रश्नव्याकरणसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., प+ग, आदि (-) अंति: सरीरधरे भविस्सइति, अध्याय- १०, गाथा- १२५०, ग्रं. १२५०, (पू.वि. अध्ययन-१ आसवदारं १ पाठ- "कुरगरुरुसरभावमरसंबरहुरझस" से है.) प्रश्नव्याकरणसूत्र- टीका, आ. अभयदेवसूरि, सं., गद्य, वि. १२वी, आदि: (-); अंति: संशोधिता चेयम्, अध्याय- १०, ग्रं. ४६७०. ११८९७६. (+) आचारांगसूत्र श्रुतस्कंध २ सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १६९४, फाल्गुन शुक्ल, १३ मंगलवार, मध्यम, पृ. १३३, ले.स्थल. खंभायतबंदर, प्रले. मु. हरजी ऋषि, मु. धर्मसी ऋषि, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. हुंडी : द्वि०आ०टबो., पदच्छेद सूचक लकीरें-संशोधित-टिप्पण युक्त विशेष पाठ. कुल ग्रं. २६५४, जैदे., ( २६.५X११, ५X४१). आचारांगसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., प+ग, आदि: (-); अंति: विमुच्चति त्ति बेमि, (प्रतिपूर्ण, वि. अंत में आचारांगसूत्र विषय से संबंधित उल्लेख है.) आचारांगसूत्र- टवार्थ, मा.गु., गद्य, आदि (-); अति: जंबूस्वामी आगलि कहिड, प्रतिपूर्ण, ११८९७७. (+) आचारांगसूत्र, संपूर्ण, वि. १५५६, माघ शुक्ल, २, गुरुवार, मध्यम, पृ. ७२, प्रले. पोपा जोसी, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. हंडी: आचारांगसूत्र, संशोधित कुल ग्रं. २५२५, जैदे. (२६.५४११.५, १३x४२-४५). आचारांगसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., प+ग, आदि: सुयं मे आउसं तेणं; अंति: विमुच्चति त्ति बेमि, अध्ययन-२५, For Private and Personal Use Only ग्रं. २६४४. ११८९७९ (+४) कल्पसूत्र सह टबार्थ व बालावबोध, अपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १३७-१ (७६) = १३६, पू.वि. बीच व अंत के पत्र नहीं हैं. प्र. वि. द्विपाठ- टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित अक्षरों की स्वाही फैल गयी है, जैदे. (२६४११.५, ६-१०४३३-३८). " कल्पसूत्र, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., गद्य, आदि: तेणं कालेणं० समणे; अंति: (-), (पू. वि. प्रभु की मधुर व उपदेशप्रद वाणी का वर्णन अपूर्ण से उपस्थित स्त्रियो के फूल, गंध, माला व अलंकारादि का वर्णन तथा मध्यमाशाखा उत्पत्ति सूत्र के बाद के पाठ नहीं है.) कल्पसूत्र- टवार्थ, मा.गु, गद्य, आदि ते वर्तमान अवसर्पिणी: अंति: (-). Page #319 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra ३०४ www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची कल्पसूत्र-व्याख्यान+कथा*, मा.गु., गद्य, आदि: प्रणम्य तीर्थनेतारं; अंति: (-). ११८९८० (+) साधु पाक्षिक अतिचार, संवत्सरी तप व पक्खी प्रतिक्रमण गाथादि संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १६, कुल पे. ७. ले. स्थल, समदडी, प्र. वि. संशोधित टिप्पण युक्त विशेष पाठ-पदच्छेद सूचक लकीरें जै. (२५x११.५, १३X२९). १. पे. नाम. साधुपाक्षिक अतिचार, पृ. १अ - ४अ, संपूर्ण, पे.वि. हुंडी: साधुअतिचार. , साधुपाक्षिक अतिचार-मू. पू. संबद्ध, प्रा., मा.गु, गद्य, आदि: नाणम्मि दंसणम्मिय; अति: मिच्छामि २. पे. नाम संवत्सरी तप, पृ. ४अ ४आ, संपूर्ण. पक्खीचौमासीसंवच्छरी तप विचार, प्रा., मा.गु., गद्य, आदि: चउत्थेणं एक उपवास; अंतिः तप करी पोहचाडवो. ३. पे नाम. पक्खी प्रतिक्रमण गाधा, पृ. ४आ, संपूर्ण. पाक्षिकप्रतिक्रमणविधि गाथा, प्रा., पद्य, आदि: मुहपत्ती वंदणयं संबुद्धा; अंति: (१) करेमि भंतस्सउसग्गो, (२) पक्षि खामणं भणणं, गाथा - २. ४. पे नाम, पक्खिसूत्र, पृ. ४आ-१५अ, संपूर्ण, पे.वि. हुंडी: पक्खीसूत्र. पाक्षिकसूत्र, हिस्सा, प्रा., प+ग., आदि: तित्थंकरे अतित्थे; अंति: जेसिं सुयसायरे भत्ति. ५. पे. नाम. खामणासूत्र, पृ. १५-१६अ, संपूर्ण वि. १९००, कार्तिक कृष्ण, १२, शुक्रवार, ले. स्थल. लाठाडा, प्रले. मु. चिमनसागर (गुरु ग. फतेंद्रसागर); गुपि. ग. फतेंद्रसागर, प्र.ले.पु. सामान्य. क्षामणकसूत्र, हिस्सा, प्रा., गद्य, आदि: इच्छामि खमासमणो पियं; अंति: नित्थारग पारगा होह, आलाप-४. ६. पे. नाम रात्रिप्रतिक्रमणविधि गाथा, पृ. १६आ, संपूर्ण. संबद्ध, प्रा., पद्य, आदि: कुसुमिण दुसुमिण राईय; अंति: भगवानहं तिबेमि, गाथा-५. ७. पे नाम ज्योतिष, पृ. १६आ, संपूर्ण. ज्योतिष, पुहिं., मा.गु., सं., प+ग, आदि: प फ क्ष छ श्र श; अंति: मिथुन रासि बुधा स्मृता. ११८९८१. (+) रूपसेन चौपाई, अपूर्ण, वि. १७८२, ज्येष्ठ कृष्ण, १०, सोमवार, मध्यम, पृ. ३० - १ (१) = २९, ले. स्थल. पीपलदाग्राम, प्र. मु. गंगविमल (गुरु मु. मुक्तिविमल); गुपि. मु. मुक्तिविमल (गुरु मु. रत्नविमल, कीर्तिरत्नसूरिशाखा गच्छ); मु. रत्नविमल (गुरु मु. अमरविमल, कीर्तिरत्नसूरिशाखा गच्छ): मु. अमरविमल (गुरु मु. अमरचंद, कीर्तिरत्नसूरिशाखा गच्छ), प्र.ले.पु. मध्यम, प्र. वि. संशोधित., प्र.ले. नो. (४३९) यादृशं पुस्तकं दृष्ट्वा, जैदे. (२५४११.५, १४४३५). रुपसेन चौपाई, मु. आणंद, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: उदिम करायो साह कल्याण, खंड-४, गाथा-५८४, (पू.वि. खंड-१ गाथा-७ अपूर्ण से है.) ११८९८२ (+) जंबूचरित्र, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १९, पू. वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र. वि. हुंडी : जंबुचरित्र, पदच्छेद सूचक लकीरें. दे., (२५x११.५, २१x६०). जंबूस्वामी चरित्र, मु. पद्मचंद्र, मा.गु., पद्य, वि. १७१४, आदि: (१) सिद्धारथ विकुल तिलो, (२)सर्वद्वीप द्वीपांमे; अंति: (-). (पू.वि. ढाल ५६ गाथा-६ अपूर्ण तक है.) ११८९८३. (#) कल्पसूत्र, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ८६-७८ (१ से ७४,८२ से ८५ ) = ८, पू. वि. बीच-बीच के पत्र हैं., प्र. वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे. (२५x११, ११४३२-३६). कल्पसूत्र, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., गद्य, आदि (-); अंति (-), (पू.वि. स्थविरावली सूत्र-६ अपूर्ण से समाचारी सूत्र २० अपूर्ण तक व समाचारी सूत्र-५० अपूर्ण से सूत्र - ५६ अपूर्ण तक है.) - ११८९८५ (+) सिंदूरकर सह अवचूरि, संपूर्ण, वि. १६२१, पौष कृष्ण, १०, गुरुवार, मध्यम, पृ. ७, प्रले. मु. महिपाल (गुरु वा. गोपाल, मलधारीगच्छ), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. पंचपाठ-संशोधित मूल व टीका का अंश नष्ट है, जैदे. (२६४११, १३x४७). सिंदूरप्रकर, आ. सोमप्रभसूरि, सं., पद्य वि. १३वी आदि सिंदूरप्रकरस्तपः करिशिरः अति सूक्तिमुक्तावली, द्वार- २२, श्लोक-१००. For Private and Personal Use Only सिंदूरप्रकर- अवचूरि, सं. गद्य, आदि पार्श्वप्रभोः क्रमयोश्चरण अति (अपठनीय) (वि. अंतिमवाक्य आंशिक रूप से खंडित व अस्पष्ट है.) Page #320 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२६ ३०५ ११८९८६. (+) उत्तराध्ययनसूत्र के सुखबोधिका टीका की कथा का अनुवाद अध्ययन १ से २२, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पू. ३१, प्र.वि. संशोधित-पदच्छेद सूचक लकीरें टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२६X११, १५X४६). उत्तराध्ययन सूत्र-सुखबोधा टीका की कथा का अनुवाद, मु. मुनिसुंदरसूरि-शिष्य, सं., गद्य, आदि अर्हतः सर्वसिद्धाथ, अंति (-), प्रतिपूर्ण Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ११८९८७ (+) कल्पसूत्र, अपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ९३-८३ (१ से ७९,८१,८९ से ९१)=१०, पू.वि. बीच-बीच के पत्र हैं., प्र. वि. संशोधित, जैवे. (२६४११ ७४२४-२८). , कल्पसूत्र, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., गद्य, आदि (-); अंति (-), (पू.वि. शीतलजिन अंतरावली अपूर्ण से स्थविरावली उत्तरबली सह गुणशाखासूत्र अपूर्ण तक है व बीच-बीच के पाठांश नहीं हैं . ) ११८९८८. (+४) शीलोपदेशमाला सह बालावबोध व कथा, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पू. ५५ ३१ (१ से ४,१० से १२, १४ से १५,२० से २१,२३,३०,३२ से ३६,४० से ५२) २४, पू.वि. बीच-बीच के पत्र हैं. प्र. वि. हुंडी: पारासरविश्वामंत्र, विस्वामंत्रनी, विजड़ पालराजनी., संशोधित अक्षरों की स्वाही फैल गयी है, जैदे. (२६४११, १३४४१-५१). , "" " शीलोपदेशमाला, आ. जयकीर्तिसूरि, प्रा. पद्य वि. १०वी आदि (-); अंति (-), (पू. वि. गाथा-५ से ११, १४ से २० २२ से ३२, ३४ से ३९ व ४० से ४२ तक है.) शीलोपदेशमाला- बालावबोध+कथा, ग. मेरुसुंदर, मा.गु., गद्य वि. १५५१, आदि (-); अंति: (-). , ११८९९१. (+) राजप्रश्नीयसूत्र सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ३१-१ (१) = ३०, पू.वि. बीच के पत्र हैं., प्र. वि. टिप्पणयुक्त विशेष पाठ संशोधित, जैवे. (२५x११, ६x२९-३४). राजप्रश्नीयसूत्र, प्रा., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. आमलकप्पा नगरी वर्णन अपूर्ण से सूर्याभदेव समृद्धि सह जिनदर्शन हेतु आगमन प्रसंग अपूर्ण तक है.) राजप्रश्नीयसूत्र - टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंतिः (-). ११८९९२. (+) पांडव चरित्र, संपूर्ण वि. १७९७, पौष कृष्ण, १३, शुक्रवार, मध्यम, पृ. १३०, ले. स्थल, फलौधी, प्रले. पं. मोहनसागर (गुरु ग. रूपसागर); गुपि. ग. रूपसागर (गुरु पं. भावसागर गणि) पं. भावसागर गणि (गुरु पं. वीरसागर गणि) पं. वीरसागर गणि (गुरु पं. ज्ञानसागर गणि) पं. ज्ञानसागर गणि (गुरु पं. प्रीतिसागर गणि) पं. प्रीतिसागर गणि (गुरु पं. विनयसागर गणि); पं. विनयसागर गणि (गुरु ग. सहजसागर); ग. सहजसागर (गुरु उपा. विद्यासागर गणि); उपा. विद्यासागर गणि, प्र.ले.पु. अतिविस्तृत, प्र.वि. हुंडी : पांडवचरित्र., संशोधित. अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६X११.५, १६x४६). पांडव चरित्र, ग. कमलहर्ष, मा.गु., पद्य, वि. १७२८, आदि: (अपठनीय); अंति: गमनोनामा अष्टादशमो उल्लास, उल्लास-१८ (वि. प्रारंभिक पत्र चिपकने से आदिवाक्य अपठनीय है.) ११८९९४. (+) कालकाचार्य कथा, संपूर्ण, वि. १८७४, श्रावण अधिकमास शुक्ल, १२, मध्यम, पृ. १९, ले. स्थल. नाथूसर प्रले. पं. खेमा, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. हुंडी : काल ०., संशोधित., जैदे., ( २६११.५, ११×३२). कालकाचार्य कथा, आ. जिनलाभसूरि-शिष्य, मा.गु., गद्य, आदि: बंदारुहरि मंदारुमंचरी, अंति: मंगलीकमाला संपजे. ११८९९५ (+) वैद्यवल्लभ सह टवार्थ व औषध संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पू. ११-३ (१ से ३)=८, कुल पे २, प्र. वि. पदच्छेद " सूचक लकीरें., जैदे., (२६×११.५, १८x५०). १. पे. नाम. वैद्यवल्लभ सह टबार्थ-विलास-१ से ८, पृ. ४अ ११अ अपूर्ण, पू.वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं. वि. १८५८ आषाढ कृष्ण, १२. वैद्यवल्लभ, मु. हस्तिरुचि, सं., पद्य, वि. १७२६, आदि: (-); अंति: (-), (प्रतिअपूर्ण, पू.वि. विलास-३ गाथा-१ अपूर्ण से है. ले. स्थल. आसंबीया) वैद्यवल्लभ-टबार्थ *, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), (प्रतिअपूर्ण, ले. स्थल. हालापुर) २. पे नाम औषध संग्रह, पृ. ११आ, संपूर्ण. मा.गु., गद्य, आदि: माया फटकड़ी दाडम बाल; अंति: पेडूनी गांठ टले. For Private and Personal Use Only Page #321 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ३०६ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ११८९९६. (+) दस लक्षण उद्यापन पाठ, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. २०, ले.स्थल. सवाई माधोपुर, प्रले. रायजी, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. हंडी:द०बा०. वि.सं. १८८३ श्रावण सुदि १४ में लिखित ग्रंथ की प्रतिलिपि प्रतीत होती है. लिखापितं-"साहाजैनीझालरापाटिणका मिंदर वास्त बांच बिचारै", पदच्छेद सूचक लकीरें., दे., (२५.५४११.५, ९४३४). १० लक्षण उद्यापन पूजाविधि, मु. सुमतिसागर, पुहि.,सं., पद्य, वि. १९३५, आदि: विमलगुणसमृद्धं ज्ञान; अंति: विश्वजीवहितप्रदां. ११८९९७. (+) युगादिदेशना, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ६१-२८(१ से २८)=३३, ले.स्थल. जैसलमेरुदुर्ग, प्रले. वा. ज्ञानविशाल (गुरु ग. गुणरंग); गुपि. ग. गुणरंग, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. हुंडी:युगादिदेशना., संशोधित. कुल ग्रं. २३९६, जैदे., (२६४११.५, १६x४७). युगादिदेशना, ग. सोममंडन, सं., पद्य, आदि: (-); अंति: चैषा जयाभ्युदयदायिनी, उल्लास-५, श्लोक-५७५, (पू.वि. उल्लास-३ गाथा-५२ अपूर्ण से है.) ११८९९९. योगचिंतामणि सह बालावबोध, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १४६+१(३६)=१४७, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. हुंडी:योग०स०., जैदे., (२५४११.५, १२४३६-४४). योगचिंतामणि, आ. हर्षकीर्तिसरि, सं., पद्य, वि. १७वी, आदिः श्रीसर्वज्ञं प्रणम्यादौ; अंति: (-), (प.वि. अधिकार-७ मुक्ताफल वर्णन अपूर्ण तक है.) योगचिंतामणि-बालावबोध *, मा.गु., गद्य, आदि: श्री वीतरागदेवनै वंदना; अंति: (-). ११९००० (+) उत्तराध्ययनसूत्र सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १४७, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-पदच्छेद सूचक लकीरें., जैदे., (२५.५४११, ४४३७-४०). उत्तराध्ययनसूत्र, मु. प्रत्येकबुद्ध, प्रा., प+ग., आदि: संजोगाविप्पमुक्कस्स; अंति: (-), (पू.वि. अध्ययन-२९ अंतिम प्रश्नोत्तर अपूर्ण तक है.) उत्तराध्ययनसूत्र-टबार्थ *, मा.गु., गद्य, आदि: संयोग बाह्य मातापिता; अंति: (-). ११९००१ (+) कल्पसूत्र की कल्पलता टीका सह बालावबोध, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. १२९-८३(१ से ३६,३८ से ५१,६० से ६२,६९ से ७१,७६ से ८०,८४ से ८५,९२,९६ से १०६,१०८ से १०९,१२० से १२५)=४६, प्र.वि. द्विपाठ-टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित., जैदे., (२६४११, १२-१५४३६-४५). कल्पसूत्र-कल्पलता टीका, उपा. समयसुंदर गणि, सं., गद्य, वि. १६८५, आदिः (-); अंति: (-), (पू.वि. प्रारंभ, बीच व अंत के पत्र नहीं हैं., लक्ष्मीदेवी स्वप्न वर्णन अपूर्ण से आदिजिन चरित्र अपूर्ण तक है व बीच-बीच के पाठांश नहीं हैं.) कल्पसूत्र-कल्पलता टीका का बालावबोध *, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), पू.वि. प्रारंभ, बीच व अंत के पत्र नहीं हैं. ११९००२ (+#) कल्याणमंदिर स्तोत्र सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ६, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६.५४११.५, १५४३७). कल्याणमंदिर स्तोत्र, आ. सिद्धसेनदिवाकरसूरि, सं., पद्य, वि. १वी, आदि: कल्याणमंदिरमुदारमवद्यभेदि; अंति: कुमुद० प्रपद्यंते, श्लोक-४४. कल्याणमंदिर स्तोत्र-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: कल्याण मंगलीकना घर भव्यनइ; अंति: थोडाकालमांहि मोक्षमां मेइ. ११९००३. (+) श्राद्धदिनकृत्य प्रकरण सह टीका का बालावबोध, संपूर्ण, वि. १८८२, भाद्रपद कृष्ण, १३, मंगलवार, मध्यम, पृ. ३७, ले.स्थल. वालोचर, प्र.वि. हुंडी:श्राद्धदिनकृत्यबाला. श्रीसंभवनाथजी प्रसादात्., पदच्छेद सूचक लकीरें., प्र.ले.श्लो. (१) यादृशं पुस्तकं दृष्ट्वा, (५२) पोथी प्यारी प्राणथी, (७५६) तेलाद्रक्षे जलाद्रक्षेत्, (८२०) भग्नपुष्टि कटिग्रीवा, (१४५०) जब लग मेरु समेर है, (१४५१) सकृत् जल्पंति रा जान, जैदे., (२५.५४११, १५४३९-४९). श्राद्धदिनकृत्य प्रकरण, आ. देवेंद्रसूरि, प्रा., पद्य, आदि: वीरं नमिऊण तिलोयभाणु; अंति: मिच्छामिह दुक्कडंति, गाथा-३४१, ग्रं. ३९०. श्राद्धदिनकृत्य प्रकरण-टीका का बालावबोध, मु. आनंदवल्लभ, मा.गु., गद्य, वि. १८८२, आदि: श्रीनेमीशं जिनं नत्वा; अंति: (१)मुझकुं मिच्छा दुक्कड हुवो, (२)ते सही वस्सी पग पग सार. For Private and Personal Use Only Page #322 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२६ ३०७ ११९००४. (+) कल्पसूत्र सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. १७३१, कार्तिक कृष्ण, ७, रविवार, मध्यम, पृ. १०९-९(१ से ५,९४ से ९७)=१००, प्र.वि. हुंडी:कल्पूसूत्र०, कल्पसूत्रं., संशोधित. कुल ग्रं. ४५५१, प्र.ले.श्लो. (१४४२) यादृसं पूस्तकं दृष्ट्वा, जैदे., (२५.५४११.५, ६-१९४३२-५६). कल्पसूत्र, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., गद्य, आदि: (-); अंति: भुज्जो उवदंसेइ त्तिबेमि, व्याख्यान-९, ग्रं. १२१६, (पू.वि. व्याख्यान-१ सूत्र-८ अपूर्ण व वज्रस्वामी चरित्र अपूर्ण से सामाचारी सूत्र-३ अपूर्ण तक नहीं है.) कल्पसूत्र-टबार्थ , मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: मै एतले गुरुभक्त जाणिवो. ११९००५. कल्पसूत्र-अंतर्वाच्य, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. २०-१(१)=१९, पू.वि. बीच के पत्र हैं., जैदे., (२५.५४११, १०४३४). कल्पसूत्र-अंतर्वाच्य, मा.गु.,सं., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. चातुर्मास क्षेत्र गुण अपूर्ण से सिद्धार्थ राजा ज्ञातिभोजन प्रसंग अपूर्ण तक है., वि. मल का प्रतीक पाठ दिया है.) ११९००६. (+) श्रीपाल रास, अपूर्ण, वि. १८४९, पौष कृष्ण, २, शुक्रवार, श्रेष्ठ, पृ. ४९-१(१)=४८, ले.स्थल. राजपुर, प्रले. हरजीराम जोशी; पठ. मु. सौभाग्यजी, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. प्रतिलेखन पुष्पिका में पठनार्थे श्रीभाग्य सोभाग्यजी लिखा है., टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२६४१२, १४४४०). श्रीपाल रास, उपा. विनयविजय; उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., पद्य, वि. १७३८, आदि: (-); अंति: लहसे ज्ञान विशाला जी, खंड-४, गाथा-१८२५, (पू.वि. ढाल-१ गाथा-५ अपूर्ण से है., वि. ढाल-४१) ११९०१० गतागतिना बोल, संपूर्ण, वि. १९४१, श्रावण शुक्ल, १, श्रेष्ठ, पृ.८,प्र.वि. हुंडी:गता., दे., (२६४१२, ९४२६-३०). ५६३ जीवभेद ६२ मार्गणा विचार, मा.गु., गद्य, आदि: सात नारकीना अप्रज्याप्ता; अंति: पांचसे त्रेसठनी ३४ बोल. ११९०११. (+) २४ दंडक २९ द्वार, अपूर्ण, वि. १८६१, कार्तिक कृष्ण, १२, मंगलवार, मध्यम, पृ. १४-२(१ से २)=१२, ले.स्थल. विक्रमपुर, प्रले. मु. मोतीचंद्र (पार्श्वचंद्रसूरिगच्छ), प्र.ले.प. सामान्य, प्र.वि. हंडी:पांचशरीरनाउपयोग, नारकीनीआउखास्थल, समुच्छमगर्भजभेदआउखानी, लोमाहारनाविध, नरकथकीनीसरीउवीगत., टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२६४१२, १४४३१). २४ दंडक २९ बोल, मा.गु., गद्य, आदिः (-); अंति: अनंतगुणा अधिका कहवा वर्णन अपूर्ण से है.) ११९०१२. साधुवंदना, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ९, पू.वि. प्रारंभ के पत्र हैं., प्र.वि. हुंडी:साधवन, साधद., दे., (२६.५४१२, १६x२६). साधुवंदना, मु. श्रीदेव, मा.गु., पद्य, आदि: पंच भरत पंच एरवय; अंति: (-), (पू.वि. ढाल-११ गाथा-१४ अपूर्ण तक है.) ११९०१३. (+) मदननरेश्वर चौपाई, संपूर्ण, वि. १८४४, आश्विन कृष्ण, ८, मध्यम, पृ. २५, ले.स्थल. गोंडलग्राम, प्रले. मु. सुंदरजी (गुरु मु. माधवजी, लोंकागच्छ); गुपि. मु. माधवजी (परंपरा मु. खेमचंदजी, लोंकागच्छ); गुभा. मु. खेमचंदजी (गुरु मु. पुंजा, लोंकागच्छ); गुपि. म. पुंजा (गुरु मु. जीवा, लोंकागच्छ); मु. जीवा (गुरु मु. तेजपाल, लोकागच्छ); मु. तेजपाल (लोंकागच्छ), प्र.ले.पु. विस्तृत, प्र.वि. हुंडी:रासमदनकुमारनोछे. प्रतिलेखन पुष्पिका में कुछ शब्द अवाच्य हैं, अतः गुरुपितृपरंपरा संदेहास्पद है., टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित., जैदे., (२६४१२, १३४४०). मदननरेश्वर चौपाई, मु. दामोदर, मा.गु., पद्य, वि. १६६९, आदि: आदि जिणेसर अतुलबल; अंति: परभवि सुर शिव लील, गाथा-५५७, ग्रं. ९३८. ११९०१४. शालिभद्र चउपई, अपूर्ण, वि. १७४०, मध्यम, पृ. २०-७(१ से ७)=१३, ले.स्थल. वल्लभीपुर, प्रले. मु. रामजी ऋषि, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२७४१२, १३४४५). शालिभद्रमुनि चौपाई, मु. मतिसार, मा.गु., पद्य, वि. १६७८, आदि: (-); अंति: मतिसारइ० फल लहिस्यइ जी, ढाल-२९, गाथा-५१०, (पू.वि. ढाल-१२ गाथा-२ अपूर्ण से है.) ११९०१५ (#) कल्पसूत्र सह बालावबोध, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ६-१(१)-५, पृ.वि. प्रथम एक व अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५.५४१२.५, १३४२८). कल्पसूत्र, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. मात्र नवकारमंत्र अपूर्ण है.) For Private and Personal Use Only Page #323 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra ३०८ www.kobatirth.org कल्पसूत्र - बालावबोध*, मा.गु., रा. गद्य, आदि (-); अंति (-), (पू.वि. अरिहंत वर्णन अपूर्ण तक है.) ११९०१६. कल्पसूत्र सह बालावबोध, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १८, पू. वि. प्रारंभ के पत्र हैं., जैदे., (२५.५x१२, १२४३०-३३). ११९०१८. औपदेशिक सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, जैदे., ( २६१२, १२x२९). कल्पसूत्र, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., गद्य, आदि: णमो अरिहंताणं० पदमं अति: (-). (पू.वि. मात्र नवकारमंत्र है.) कल्पसूत्र-बालावबोध*, मा.गु., रा., गद्य, आदिः ॐकारबिंदुसंयुक्तं नित्यं; अंति: (-), (पू.वि. नवकार माहात्म्य कथा अपूर्ण तक है.) Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir " कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची औपदेशिक सज्झाय-सुखदुखविषये, मु. दाम, मा.गु., पद्य, आदि: सुखदुख सिरज्या पामीया रे; अंति: रे धर सदा सुखकार रे, गाथा- ९. ११९०१९. आचारांगसूत्र - श्रुतस्कंध २ सह बालावबोध व गाथा संग्रह, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. १२३, कुल पे. २, प्र. वि. हुंडी आचा. बा. बीजो श्र०. त्रिपाठ. कुल ग्रं. ७००० जैवे. (२६११, १५-१८४४२). १. पे. नाम. आचारांगसूत्र-श्रुतस्कंध २ सह वालावबोध, पू. १आ- १२३अ संपूर्ण. आचारांगसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा. प+ग, आदि (-); अंति: विमुच्चति त्ति बेमि, प्रतिपूर्ण, आचारांगसूत्र-बालावबोध, आ. पार्श्वचंद्रसूरि, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: यतः नाणेण जाणइ भावे, प्रतिपूर्ण. २. पे. नाम. गाथा संग्रह, पृ. १२३अ, संपूर्ण. , गाथा संग्रह *, प्रा., पद्य, आदिः यदुक्तं णायंमि गिण्ह, अंति: शुद्धं जं चरण द्विउ साधु, (वि. २ गाथा व २ श्लोक हैं.) ११९०२०. (+) उत्तराध्ययनसूत्र, अपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ३२, पू. वि. प्रारंभ के पत्र हैं. प्र. वि. हुंडी : त्तराधिनजी., पदच्छेद सूच लकीरें संशोधित, जैये. (२६.५x११.५, ११४३२). .. उत्तराध्ययनसूत्र. मु. प्रत्येकबुद्ध, प्रा., प+ग, आदि: संजोगा विप्यमुक्कस्स अंति (-), (पू.वि. अध्ययन १९ गाथा-५८ अपूर्ण तक है.) ११९०२१. कथा संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १३५-१२६ (१ से १२३, १२५ से १२६,१३४) = ९, पू.वि. बीच-बीच के पत्र हैं., प्र. वि. त्रिपाठ. जैवे. (२५४१२, १५४३०). कथा संग्रह**, प्रा.,मा.गु., सं., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. बीच-बीच के पाठांश हैं., वि. उपदेशप्रासाद होने संभावना है.) " ११९०२३ (०) शालिभद्रमुनि चौपाई, अपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पृ. ७. पू. वि. प्रारंभ के पत्र हैं. प्र. वि. अक्षरों की स्वाही फैल गयी है, जीवे. (२६४१२, १४४३८). शालिभद्रमुनि चौपाई, मु. मतिसार, मा.गु., पद्य वि. १६७८, आदि सासननायक समरियै अंति (-), (पू.वि. ढाल ११ गाथा- २ अपूर्ण तक है.) ११९०२४ (०) सुरसुंदरी चौपाई, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. २२- ३ (१,१०,१९) = १९, पू.वि. प्रथम एक बीच व अंत के पत्र नहीं हैं, प्र. वि. मूल पाठ का अंश खंडित है, अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, जैदे. (२६११.५, १६x४० ). सुरसुंदरी चौपाई, मु. धर्मवर्धन, मा.गु., पद्य, वि. १७३६, आदि (-); अंति: (-), (पू.वि. डाल- २ गाथा-८ अपूर्ण तक, ढाल १८ गाथा-९ अपूर्ण से ढाल २० गाथा ३ अपूर्ण तक, ढाल ३२ गाथा ११ अपूर्ण से ढाल ३४ गाथा ५ अपूर्ण तक व ढाल ४० दोहा-५ अपूर्ण से नहीं है.) ११९०२८. (#) आषाढभूतिमुनि रास व रथनेमिराजिमती सज्झाय, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ८-१ (१) =७, कुल पे. २, प्र. वि. मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे. (२५.५४११.५, १६x४०). " ढाल १६, गाथा-२१८, . ३५९ (पू.वि. डाल- २ गाथा-३ अपूर्ण से है.) १. पे. नाम. आषाढभूतिमुनि रास, पृ. २अ-८आ, अपूर्ण, पू. वि. प्रथम पत्र नहीं है., प्रले. ग. राजेंद्रसागर गणि, प्र.ले.पु. सामान्य. आषाढाभूतिमुनि चौपाई, मु. ज्ञानसागर, मा.गु., पद्य, वि. १७२४, आदि (-) अंतिः न्यांनसागर० परम कल्याणो रे, For Private and Personal Use Only २. पे. नाम. रथनेमिराजिमती सज्झाय, पृ. ८आ, संपूर्ण. आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., पद्य, आदि छेडो नाजी नाजी छेडो; अति तव ज्ञानविमल गुणमाला, गाथा ५. Page #324 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२६ ३०९ ११९०२९. वरदत्तगुणमंजरी कथा-सौभाग्यपंचमीमाहात्म्यविषये सह टवार्थ, संपूर्ण, वि. १८२४, पौष कृष्ण, ३, गुरुवार, मध्यम, पृ. १३, ले.स्थल. भावनगर, प्रले. पं. रत्नकुशल; पठ. मु. राजसागर, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२६X१३, ७X३०-३३). वरदत्तगुणमंजरी कथा- सौभाग्यपंचमीमाहात्म्यविषये, ग. कनककुशल, सं., पद्य वि. १६५५, आदि श्रीमत्पार्श्वजिन; अंति: मेडतानगरे, श्लोक-१५२. वरदत्तगुणमंजरी कथा- सौभाग्यपंचमीमाहात्म्यविषये-टबार्थ मा.गु., गद्य, आदि श्रीमत्पार्श्वजिनेश्वरजी अति मेडतानगरने वीषे. Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir (+#) ११९०३०. कल्पसूत्र सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. १४५ - १२४ (१ से ८, १० से १५, १८ से २३,२८ से ३२, ३४ से ८६,९१ से ९९,१०१,१०५ से १३५,१३९ से १४३) = २१, पू. वि. बीच-बीच के पत्र हैं., प्र. वि. संशोधित - टिप्पण युक्त विशेष पाठ. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे. (२६४१२, ६-१३२९-३६). " . कल्पसूत्र, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., गद्य, आदि (-); अंति: (-), (पू.वि. च्यवनकल्याणक वर्णन अपूर्ण से अरनाथ अंतरावलीसूत्र वर्णन अपूर्ण तक है व बीच-बीच के पाठ नहीं हैं.) " कल्पसूत्र - टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि (-); अंति: (-). " १९१९०३१. (+) २४ जिन स्तुति, अपूर्ण, वि. १९वी मध्यम पू. ५-४ (१ से ४) = १, प्र. वि. संशोधित, जैवे (२५.५४१२, १३४३०). २४ जिन स्तुति, मा.गु, पद्य, आदि कनक तिलक भाले हार हीये; अंति (-) (पू.वि. प्रारंभ के पत्र हैं. श्रेयांसजिन स्तुति अपूर्ण तक है.) " ११९०३२. (+) गौतमस्वामी रास, संपूर्ण, वि. १९४७, भाद्रपद अधिकमास शुक्ल, १५, श्रेष्ठ, पृ. ५, ले. स्थल. वीदासर, प्र. मु. केवलचंद्र ऋषि, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. संशोधित. वे. (२५.५४१२, १४४३२-६५) गौतमस्वामी रास, आ. विजयभद्रसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: वीरजिणेसर चरणकमल कमल; अंति: संपजे कुरला करे कपूर, ढाल ६, गाथा ४९ (वि. अंत में १ औपदेशिक श्लोक लिखा है.) ११९०३३. (+) २४ दंडक २९ द्वार, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १८-३ (१ से ३) = १५, अन्य. रामसी, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. हुंडी : २४ दंडक, संशोधित कुल ग्रं. ३५०, जैवे. (२५.५X१२, १०x३७). अति गुणा अधिका कहिवा (पू.वि. द्वार ५ अपूर्ण से है.) २४ दंडक २९ बोल, मा.गु. गद्य, आदि (-) ११९०३७. (+) योगचिंतामणि सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १८६८, पौष कृष्ण, ३, मध्यम, पृ. १८८, ले. स्थल. जैसलमेर, राज्यकाल रा. मूलराज रावल, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. हुंडी योगचिंतामणिट, टिप्पण युक्त विशेष पाठ- संशोधित कुल ग्रं. ७५००, जै, (२६X११.५, ५X४०-४६). योगचिंतामणि, आ. हर्षकीर्तिसूरि, सं. पद्य वि. १७वी आदि श्रीसर्वज्ञ प्रणम्यादौ अति: योगचिंतामणिश्चिरम्, अध्याय ७. योगचिंतामणि-टबार्थ *, मा.गु., गद्य, आदि: पहिली करणहारने नमस्कार; अंति: सातमो पूरो हुयो .. ११९०३८. (#) होलिकापर्व कथा सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ९, प्र. वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२५.५X११.५, ५x२५-२८). होलिकापर्व कथा, सं., पद्य, आदि: ऋषभस्वामिनं मन्ये ऋषीमेक; अंति: यतो धर्मस्ततो जयः, श्लोक-६७, संपूर्ण. होलिकापर्व कथा-टबार्थ, पुहिं. गद्य, आदि: श्रीऋषभस्वामीने नमस्कार, अंति: (-), (अपूर्ण, पू. वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., यत्र-तत्र टबार्थ लिखा है.) " ११९०३९. (+) वंदित्तुसूत्र सह टवार्थ, संपूर्ण, वि. १८५७ वैशाख कृष्ण, ४, सोमवार, मध्यम, पू. ६, ले. स्थल. राज्ञपुर, प्रले. श्राव. उत्तम, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. संशोधित, जैवे. (२५.५x१२, ६x२७) वंदित्तसूत्र, संबद्ध, प्रा., पद्य, आदि: वंदित्तु सव्वसिद्धे; अंति: वंदामि जिणे चउवीसं, गाथा- ५०, संपूर्ण. दिसूत्र - वार्थ, मा.गु, गद्य, आदि: वांदि सर्व सिद्ध; अंति: तीर्थंकरा प्रते वांदु छु, (अपूर्ण, पू. वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण. गाथा-४ से गाथा ४९ तक नहीं लिखा है.) ', ११९०४० (+) सिंदूरप्रकर सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १८१८, माघ शुक्ल, ५, मध्यम, पृ. १८, ले.स्थल. सादडी नगर, प्रले. मु. जीवणविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. पदच्छेद सूचक लकीरें-संशोधित., जैदे., (२६X११.५, ५X४२). For Private and Personal Use Only Page #325 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ३१० कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची सिंदरप्रकर, आ. सोमप्रभसूरि, सं., पद्य, वि. १३वी, आदि: सिंदूरप्रकरस्तपः करिशिरः; अंति: सोमप्रभ०मुक्तावलीयम्, द्वार-२२, श्लोक-९८. सिंदरप्रकर-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: सिंदूरनो प्रकर कहिइ; अंति: हवी प्राप्ति वर्णवीते. ११९०४१ (+) जीवविचार प्रकरण सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ६, प्र.वि. संशोधित., दे., (२६.५४१२, ५४३९). जीवविचार प्रकरण, आ. शांतिसूरि, प्रा., पद्य, वि. ११वी, आदि: भुवणपईवं वीरं नमिऊण; अंति: शांतिसूरि० समुद्दाओ, गाथा-५१. जीवविचार प्रकरण-टबार्थ*, मा.गु., गद्य, आदि: त्रिभुवनमाहि प्रदीप समान; अंति: वानइ० सिद्धांत समुद्र थकी. ११९०४२. (+) नवतत्त्व प्रकरण सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ९, प्र.वि. हुंडी:नवःटः., संशोधित., दे., (२६.५४१२, ४४३३). नवतत्त्व प्रकरण ६० गाथा, प्रा., पद्य, आदि: जीवा१जीवार पुण्णं३ पावा४; अंति: १३ क्क१४ णिक्काय१५, गाथा-५०. नवतत्त्व प्रकरण ६० गाथा-टबार्थ*, मा.गु., गद्य, आदि: जीवतत्त्व चेतना सहित होय; अंति: सिद्ध थाय ते अनेक सिद्ध. ११९०४३ (+) विपाकसूत्र सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ५७, प्र.वि. हुंडी:विपाकसूत्र टबार्थ., संशोधित., जैदे., (२५.५४११.५, ८X४२-४९). विपाकसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., गद्य, आदि: तेणं कालेणं तेणं; अंति: (-), (पू.वि. अंतिम पत्र नहीं है., श्रुतस्कंध-२ अध्ययन-१० अपूर्ण तक है.) विपाकसूत्र-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: तिणइ कालइ तिणइ समय; अंति: (-), पृ.वि. अंतिम पत्र नहीं है. ११९०४७. कल्पसूत्र सह सुबोधिका टीका, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २०-१०(१ से १०)=१०, पृ.वि. बीच के पत्र हैं., जैदे., (२५४१०, ६x२९). कल्पसूत्र, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. नवकारमंत्र रहित सूत्र-१ से सूत्र-१५ अपूर्ण तक ११९०५० (+) नंदीसूत्र- राज ऋषि (गुरु आ. क्षमासा (२६४११.५, १४७-१४) कल्पसूत्र-सबोधिका टीका, उपा. विनयविजय, सं., गद्य, वि. १६९६, आदिः (-); अंति: (-), (वि. आवश्यकतानुसार यत्र-तत्र टीका दी है.) ११९०५० (+) नंदीसूत्र-औत्पातिकी बुद्धि दृष्टांत गाथा सह बालावबोध, संपूर्ण, वि. १६२१, कार्तिक शुक्ल, ५, मध्यम, पृ. ८, ले.स्थल. पेरोजपुर, प्रले. मु. धनराज ऋषि (गुरु आ. क्षमासागरसूरि); गुपि.आ. क्षमासागरसूरि; राज्यकालरा. अकबर; पठ. मु. नाकर ऋषि, प्र.ले.पु. मध्यम, प्र.वि. पंचपाठ-संशोधित., जैदे., (२६४११.५, १४७-१४). नंदीसूत्र-औत्पातिकी बुद्धि दृष्टांत गाथा, हिस्सा, आ. देववाचक, प्रा., प+ग., आदि: भरह१ सिल२ मिंढ३; अंति: अगणिअसीयासाडी दीहं. नंदीसूत्र-औत्पातिकी बुद्धि दृष्टांत गाथा का बालावबोध, मा.गु., गद्य, आदि: बीजी त्रीजी ताडप्रति; अंति: एवमादीन्य उदाहरणानि. ११९०५१ (+#) आद्रकुमर चौपाई, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १६, प्रले. लाधुरामजी, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. हुंडी:आद्रकुमर., संशोधित. कुल ग्रं. ३११, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२६४११.५, १४-१८४३६-४३). आर्द्रकुंवर चौपाई, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीवधमान जिनंदजी; अंति: दरशनी मत दूर कीधो जाण रे, ढाल-२२, गाथा-३११. ११९०५२ (+) ऋषिदत्ताचरित्र चौपाई, संपूर्ण, वि. १६७४, वैशाख शुक्ल, २, मध्यम, पृ. १६, प्रले. मु. गोपाल ऋषि (गुरु ग. अमृतचंद्र गणि); गुपि. ग. अमृतचंद्र गणि; पठ. सा. प्रेमा, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित. कुल ग्रं. ५००, जैदे., (२६४११.५, १६x४०-४३). ऋषिदत्ता रास, मु. मेघराज, मा.गु., पद्य, वि. १६५७, आदि: नाभि नरेसर वरघरइ ऋषिभ; अंति: लहिज्यो कोडि कल्याणि, खंड-४, गाथा-६५१. ११९०५३. १८ हजार शीलांगरथ, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, जैदे., (२६४१२, १४४१५-५६). १८ हजार शीलांगरथ, प्रा.,मा.गु., पद्य, आदि: जे नो करंति ६०००; अंति: अकिंचणोते मुणिवंदे१०, गाथा-२. For Private and Personal Use Only Page #326 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२६ ३११ ११९०५४. (+) बृहत्क्षेत्रसमास नव्य की अवचूरि, संपूर्ण, वि. १७वी, मध्यम, पृ. १६, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित., जैदे., (२६४११, २१४५९-६३). बृहत्क्षेत्रसमास नव्य-अवचूरि, आ. गुणरत्नसूरि, सं., गद्य, आदि: श्रीवीरजिनवरेंद्र; अंतिः कृतावचूरि विरचितेयं. ११९०५५. (+) सिंदूरप्रकर, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ९, प्र.वि. हुंडी:सिंदूरप्र०, सिंदूर०., संशोधित., जैदे., (२६.५४११.५, ११४३२-३५). सिंदरप्रकर, आ. सोमप्रभसूरि, सं., पद्य, वि. १३वी, आदि: सिंदरप्रकरस्तपः करिशिरः; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., श्लोक-८२ अपूर्ण तक लिखा है.) ११९०५६. (+) पुरंदरकुमार रास, संपूर्ण, वि. १६७१, पौष कृष्ण, २, मंगलवार, मध्यम, पृ. १०, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित., जैदे., (२६४११.५, १७४४४-४८). पुरंदरकमार रास, वा. मालदेव, मा.गु., पद्य, आदि: वरदाई श्रुतदेवता; अंति: (अपठनीय), ढाल-१२, गाथा-३४४. ११९०५७. (#) ऋषभदेव धवलबंध, संपूर्ण, वि. १६९४, पौष शुक्ल, १२, सोमवार, मध्यम, पृ. १८, ले.स्थल. वनहेडानगर, प्रले. सा. लीलावती आर्या; पठ.सा. मोतीबाई (गुरु सा. लीलावती आर्या), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६४११.५, ११४२९-३४). आदिजिन विवाहलो, मु. गुणनिधानसूरि शिष्य, मा.गु., पद्य, आदि: शासनदेवीय पाय पणमेवीय मझ; अंति: बोलेइ सेवक इम मुदा, ढाल-४४, गाथा-२४५. ११९०५८. (+) ८४ बोल कवित्त व प्रास्ताविक कवित्त, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ५, कुल पे. २, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२६४११.५, १६x४०-४५). १. पे. नाम. ८४ बोल कवित्त, पृ. १अ-५अ, संपूर्ण. श्राव. हेमराज पांडे, पुहिं., पद्य, आदि: सुनय पोषहत दोष मोष; अंति: पडल फटो बढौ ज्ञान सुख होत, गाथा-९१. २.पे. नाम. प्रास्ताविक कवित्त, पृ. ५अ-५आ, संपूर्ण. जै.क. बनारसीदास, पुहि., पद्य, वि. १७वी, आदि: पूरब कि पश्चिम हो; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., गाथा-७ तक लिखा है.) ११९०५९ (+#) सूक्तिमुक्तावली सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ८, प्र.वि. हुंडी:श्लोक., पदच्छेद सूचक लकीरें-टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६४११.५, ३४२७-३०). श्लोक संग्रह जैनधार्मिक, प्रा.,सं., पद्य, आदि: धर्मतः सकल मंगलावली; अंति: एवं अष्टनिमित्त ज्ञानं, श्लोक-३३. श्लोक संग्रह जैनधार्मिक-टबार्थ , मा.गु., गद्य, आदि: धर्म थकी समस्त मंगली करी; अंति: अष्टांग निमित्त ज्ञान कहइ. ११९०६१. (+#) शांतिनाथमहाकाव्य, अपूर्ण, वि. १७वी, मध्यम, पृ. ८९-५(७७ से ८०,८५)=८४, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरे-टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित. कुल ग्रं. ६२७२, मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., (२६.५४११.५, २१४६२-८२). शांतिनाथ महाकाव्य, आ. मुनिभद्रसूरि, सं., पद्य, वि. १४१०, आदि: प्रभाकरो यः परमः; अंति: (१)विनाप्येकोनविंशोगमत, (२)समाधिकतमानि स्वयमिदं, सर्ग-१९, श्लोक-४२२३, (प.वि. सर्ग-१६ श्लोक-२१ अपूर्ण से २५१ अपूर्ण व सर्ग-१७ श्लोक-२०० अपूर्ण से सर्ग-१८ श्लोक-२७ अपूर्ण तक नहीं है., वि. अंत के १६ श्लोकों में कर्ता की प्रशस्ति है.) ११९०६२. (+#) उपदेशमाला, संपूर्ण, वि. १६५१, फाल्गुन, मध्यम, पृ. २०, प्रले. ग. अभयसुंदर (गुरु उपा. समयराज, खरतरगच्छ); गुपि. उपा. समयराज (गुरु आ. जिनचंद्रसूरि, खरतरगच्छ); आ. जिनचंद्रसूरि (गुरु मु. भुवनविजय, खरतरगच्छ); राज्ये गच्छाधिपति जिनमाणिक्यसूरि (खरतरगच्छ); दत्त. श्राव. डुंगरसी नरहरदास शाह; गृही. पं. सुविधिसागर, प्र.ले.पु. विस्तृत, प्र.वि. अंत में "संवत् १७५३ वर्ष आसोज सुदि दिने पंचमीनिमित्तं पुस्तकं विहरापितं शुश्रावक शाह नरहरदासजी तत्पुत्र शाह डूंगरसी पुस्तकं पंचमिनिमित्तं पं. श्री सुविधिसागरजीने विहरानी" ऐसा लिखा है., पदच्छेद सूचक लकीरे-संशोधित. अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२७४११, १३४४२). उपदेशमाला, ग. धर्मदासगणि, प्रा., पद्य, आदि: जगचूडामणिभूओ उसभो; अंति: सोहियव्वं पयत्तेण, गाथा-५४३. For Private and Personal Use Only Page #327 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ३१२ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ११९०६३ (+) स्थानांगसूत्र, दषमकाल ३० बोल आलापक व प्रश्नव्याकरणसूत्र सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ६, कुल पे. ३, प्रले. मु. वीका ऋषि; मु. सेखा ऋषि, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरे-संशोधित-टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२६.५४११, ७४४८-५२). १.पे. नाम. स्थानांगसूत्र-चयनितसूत्र संग्रह सह टबार्थ, पृ. १अ-५अ, संपूर्ण. स्थानांगसूत्र-चयनितसूत्र संग्रह, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., गद्य, आदि: तिहिं ठाणेहिं संपन्ने; अंति: ठाणेहिं सुहं कम्म निबंधई. स्थानांगसूत्र-चयनितसूत्र संग्रह का टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: तिहु प्रकारइ सहित अणगार; अंति: करी शुभ कर्मनइ जीव बंधइ. २. पे. नाम. दुषमकाल ३० बोल आलापक सह टबार्थ, पृ. ५अ-६अ, संपूर्ण. दुषमकाल ३० बोल आलापक, प्रा., प+ग., आदि: दूसमाए समाए वट्टमाणाए एवं; अंति: बलाहिं दुनिच्चा भविस्संति. दुषमकाल ३० बोल आलापक-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: दुखमनामा पंचमो आरो; अंति: धणी दुहीदु राजा हुसी. ३. पे. नाम. प्रश्नव्याकरण-ब्रह्मचर्याध्ययनोपमा आलापक सह टबार्थ, पृ. ६अ-६आ, संपूर्ण. प्रश्नव्याकरणसूत्र-हिस्सा अध्ययन ९ ब्रह्मचर्योपमा आलापक, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., प+ग., आदि: एयं बंभचेर महाधीर पुरिस; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., "नंदणवन" उपमा तक लिखा है.) प्रश्नव्याकरणसूत्र-हिस्सा अध्ययन ९ ब्रह्मचर्योपमा आलापक का टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: हिवइ ब्रह्मचर्यना गुण कहइ; अंति: (-), अपूर्ण, पृ.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण. ११९०६४. (+) जैनविचार संग्रह, संपूर्ण, वि. १७०४, मध्यम, प. १९, ले.स्थल. विहारनगर, प्रले. पं. अमीचंद; अन्य. मु. स्वरूपचंद ऋषि, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. प्रत के अंत में अणदरूपजीने स्वरूपचंदनीछरावल लेने दिराई ऐसा लिखा है., संशोधित., जैदे., (२६४११, १७४३९-४६). विचार संग्रह*, प्रा.,मा.गु.,सं., प+ग., आदि: पणमह पणमंत सुरा सुरिंदमणि; अंति: तुच्छफल२० बहुबीज२१. ११९०६५ (+) आगमसारोद्धार का बालावबोध, संपूर्ण, वि. १७८३, भाद्रपद शुक्ल, १३, सोमवार, मध्यम, पृ. १२, ले.स्थल. रोहितासपुर, प्रले. ग. चतुरविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२६४११.५, २४४६२). आगमसारोद्धार, ग. देवचंद्र, मा.गु., गद्य, वि. १७७६, आदि: प्रथम भव्य जीवनै; अंति: तिथि सफल फली मन आस, (वि. अंत में १ दहा लिखा है.) ११९०६६. ऋषिमंडल प्रकरण, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ७-१(६)-६, पू.वि. बीच व अंत के पत्र नहीं हैं., जैदे., (२६.५४११.५, १३४४०-४४). ऋषिमंडल प्रकरण, आ. धर्मघोषसूरि , प्रा., पद्य, वि. १४वी, आदि: भत्तिभर नमिरसुरवर; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-१३३ अपूर्ण से १६४ तक व गाथा-१९४ अपूर्ण से नहीं है.) ११९०६७. (+) सिंदूरप्रकर सह अवचूरि, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ८, प्र.वि. हुंडी:सिंदूरप्रकरटीका., त्रिपाठ-पदच्छेद सूचक लकीरें-प्रतिलेखन पुष्पिका मिटाई हुई है-संशोधित., जैदे., (२६.५४१०.५, २६४५१-५८). सिंदरप्रकर, आ. सोमप्रभसूरि, सं., पद्य, वि. १३वी, आदि: सिंदूरप्रकरस्तपः करिशिरः; अंति: शुभोत्शवज्ञानगुणास्तनोति, द्वार-२२, श्लोक-९८. सिंदरप्रकर-टीका, सं., गद्य, आदि: पार्श्व प्रभोः क्रमयोश्चर; अंति: तनोति विस्तारयति. ११९०६८. (#) १२ भावना, संपूर्ण, वि. १९०३, फाल्गुन शुक्ल, ३, बुधवार, मध्यम, पृ. १३+१(१२)=१४, ले.स्थल. बोराणा, प्र.वि. हुंडी:बारेभावना, बारेभाव०., अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२५.५४११.५, ११४३३-३७). १२ भावना विचार, मा.गु., गद्य, आदि: तीजो आरो दोय कोडाकोड सागर; अंति: रे मत करो कोइ संसहो रे, (वि. प्रथम भावना का विस्तार से वर्णन किया है.) ११९०६९ (+) २२ परिसह सज्झाय, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ६, पृ.वि. प्रारंभ के पत्र हैं., प्र.वि. हंडी:परिस०, परीसह., संशोधित., दे., (२५.५४१२, १७४३७). For Private and Personal Use Only Page #328 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२६ ३१३ २२ परिसह सज्झाय, मु. रायचंद ऋषि, मा.गु., पद्य, वि. १८२२, आदि: अरिहंत सिद्धनै आयरिय; अंति: (-), (पू.वि. ढाल-२१ अज्ञान परिषह दोहा-१ अपूर्ण तक है.) ११९०७० (+) भगवतीसूत्र-शतक २४ गमा विचार, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २५-१(१३)=२४, अन्य. सा. राजकवरी (गुरु सा. महाकवरी आर्या); गुपि. सा. महाकवरी आर्या, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२५.५४११.५, २५-३४४६०-७८). भगवतीसूत्र शतक २४-संबद्ध दंडक विचार, मा.गु., गद्य, आदि: उववाय परिमाण संघयण; अंति: धनु आउखो अणु बंध __ पू. कोड, (पू.वि. प्रथम देवलोक नव गमा बोल तक व तिर्यंच बोल से लिखा है.) । ११९०७५ (+) २५ बोलनो थोकडो, संपूर्ण, वि. १९६२, निधिचंद्रनेत्ररस, कार्तिक शुक्ल, ३, सोमवार, श्रेष्ठ, पृ. १०, ले.स्थल. अहिपुर(नागपुर), प्रले. मु. उत्तमचंद्र (गुरु गच्छाधिपति प्रसन्नचंद्र); गुपि. गच्छाधिपति प्रसन्नचंद्र (गुरु गच्छाधिपति रामचंद्र); गच्छाधिपति रामचंद्र, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. हुंडी:२५बोल., संशोधित., दे., (२५.५४११.५, ९४३६). २५ बोल थोकडा-जीवगती शरीरादि, मा.गु., गद्य, आदि: नरकगति १ तिर्यंचगति २; अंति: यथाख्यातचारित्र. ११९०७६. (+) नववाडि सज्झाय व श्लोक संग्रह, संपूर्ण, वि. १८२२, मार्गशीर्ष शुक्ल, ७, मंगलवार, मध्यम, पृ. ५, कुल पे. २, ले.स्थल. आउवा, प्रले. मु. रामसौभाग्य, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२५.५४११.५, १३४४२). १. पे. नाम. नववाडि सज्झाय, पृ. १अ-५अ, संपूर्ण. ९ वाड सज्झाय, मु. जिनहर्ष, मा.गु., पद्य, वि. १७२९, आदि: श्रीनेमीसर चरणयुग; अंति: व्रतधारी हो जुगती नववाडि, ढाल-११, गाथा-९७. २. पे. नाम. श्लोक संग्रह, पृ. ५आ, संपूर्ण. श्लोक संग्रह, प्रा.,सं., पद्य, आदि: लिक्ष्मी खीण केश भाव चपले; अंति: बुधजनैः सेखी कला प्रोचते, श्लोक-३. ११९०७८. (+) अंतकृद्दशांगसूत्र सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ४९+१(१४)=५०, अन्य. रामसी, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. हुंडी:अंतगड., संशोधित., जैदे., (२५.५४११.५, ७X४२-४८). अंतकृदशांगसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., गद्य, आदि: तेणं कालेणं तेणं; अंति: जहा नायाधम्मकहाणं, अध्याय-९२, ग्रं. ८९९, (वि. यंत्रसहित.) अंतकृद्दशांगसूत्र-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: तेणं कालेण इत्यादि अथ; अंति: ज्ञातधर्मकथानी परे जाणवउ. ११९०८० (+) प्रव्रज्याभिधान कलक, सप्तस्मरण व लघशांति स्तवनादि संग्रह, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. २७-१५(१ से १५)=१२, कुल पे. ४, प्र.वि. संशोधित-पदच्छेद सूचक लकीरे-संशोधित., जैदे., (२५४११.५, ११४३१). १. पे. नाम. प्रव्रज्याभिधान कुलक, पृ. १६अ-१६आ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र हैं., वि. १७९३, कार्तिक शुक्ल, ९. प्रव्रज्या कुलक, प्रा., पद्य, आदि: (-); अंति: तरंति ते भवसलिलरासिं, गाथा-३४, (पू.वि. गाथा-२० अपूर्ण से है.) २. पे. नाम. सप्तस्मरण-खरतरगच्छीय, पृ. १६आ-२६आ, संपूर्ण. मु. भिन्न भिन्न कर्तक, प्रा., पद्य, आदि: अजिअंजिअ सव्वभयं; अंति: मंगल कलाण आवासं, स्मरण-७. ३. पे. नाम. लघुशांति स्तवन, पृ. २६आ-२७आ, संपूर्ण, वि. १७२२, पे.वि. प्रतिलेखन संवत संदेहास्पद लगता है. लघुशांति, आ. मानदेवसरि, सं., पद्य, आदि: शांति शांतिनिशांतं; अंति: सूरिः श्रीमानदेवश्च, श्लोक-१७. ४. पे. नाम. कल्याणमंदिर स्तोत्र, पृ. २७आ, अपूर्ण, पृ.वि. प्रारंभ के पत्र हैं.. आ. सिद्धसेनदिवाकरसूरि, सं., पद्य, वि. १वी, आदि: कल्याणमंदिरमुदारमवद्यभेदि; अंति: (-), (पू.वि. श्लोक-२ अपूर्ण तक है.) ११९०८१. नवतत्त्व प्रकरण सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ.७-१(४)=६, प्रले. म. कांति, प्र.ले.प. सामान्य, जैदे., (२६४१२,५४२६-३३). नवतत्त्व प्रकरण ६० गाथा, प्रा., पद्य, आदि: जीवाजीवा पुन्नं पावा; अंति: बुद्धबोहिक्क णिक्काय, गाथा-४६, (पृ.वि. गाथा-१८ अपूर्ण से २५ अपूर्ण तक नहीं है.) नवतत्त्व प्रकरण ६० गाथा-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: साची वस्तुनउं स्वरूप; अंति: एक सिद्ध अनेक सिद्ध. For Private and Personal Use Only Page #329 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ३१४ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ११९०८२. ५६३ जीवविचार बोलसंग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, प्रले. मु. वसरामजी ऋषि, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२५.५४११.५, ४०x१२). ५६३ जीवविचार बोलसंग्रह *, पुहि.,मा.गु., गद्य, आदि: स्त्रीवेदमांहि१ पुरुषवेद; अंति: चारीत्रात्मामा७६. ११९०८३. (#) कल्याणमंदिर स्तोत्र, अपूर्ण, वि. १८४२, मार्गशीर्ष शुक्ल, ५, मध्यम, पृ. ३-१(१)=२, प्र.वि. मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., (२५४१२, ९-१३४२५-३२). कल्याणमंदिर स्तोत्र, आ. सिद्धसेनदिवाकरसूरि, सं., पद्य, वि. १वी, आदि: (-); अंति: कुमुद० प्रपद्यते, श्लोक-४४, (पू.वि. श्लोक-१२ से है.) ११९०८४ (+#) सरस्वत्यष्टक, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, ले.स्थल. नागौर, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें-संशोधित. मूल पाठ का अंश खंडित है, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६४११.५, १३४२९-३२). सरस्वतीदेवी स्तोत्र, उपा. विद्याविलास, सं., पद्य, आदि: त्वं सारदादेवि समस्त; अंति: पूर्णं कमलानिवासम्, श्लोक-९. ११९०८५. (#) ५८ बोल सिद्धांतचर्चा, अपूर्ण, वि. १७८७, आश्विन कृष्ण, १४, मध्यम, पृ. २-१(१)=१, प्र.वि. मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., (२५.५४११, १०४३२). ५८ बोल संग्रह-आगमिकसिद्धांतचर्या, प्रा.,मा.गु.,सं., गद्य, आदि: (-); अंति: आणंद आणी भणे मंगल मालए, (पू.वि. बोल-१३ अपूर्ण से है.) ११९०८६. (+) चक्रवर्ती-वासुदेव-प्रतिवासुदेव-बलदेव विवरण कोष्टक व २० विहरमान मात-पिता-लंछन नाम, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित., जैदे., (२५.५४११.५, १८४३८-४२). १. पे. नाम. चक्रवर्ती-वासुदेव-प्रतिवासुदेव-बलदेव विवरण कोष्टक, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. मा.गु., को., आदि: (-); अंति: (-). २.पे. नाम. २० विहरमान मातपितालांछन नाम, प. १आ, संपूर्ण. २० विहरमानजिन माता-पिता-लंछन नाम, मा.गु., गद्य, आदि: सीमंधर१ युगमंधर२ बाहु३; अंति: पद्म१८ चंद्र१९ स्वस्तिक२०. ११९०८७. (+) श्रावकपाक्षिकअतिचार-तपागच्छीय, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ९, पृ.वि. प्रारंभ के पत्र हैं.,प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२५४१२, १२४२७-३०). श्रावकपाक्षिकअतिचार-तपागच्छीय, संबद्ध, प्रा.,मा.गु., गद्य, आदि: नाणम्मि दंसणम्मि; अंति: (-), (पू.वि. वीर्याचार के बाद का आलापक अपूर्ण तक है.) ११९०८८. (+) धन्नाअणगार चौपाई, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ३१-२(१ से २)=२९, पृ.वि. बीच के पत्र हैं., प्र.वि. हुंडी:धनारीचो०., संशोधित., दे., (२५.५४१२, १७४४५). धन्नाअणगार चौपाई, मु. सबलदास ऋषि, मा.गु., पद्य, वि. १८६३, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. ढाल-३ गाथा-२ __अपूर्ण से ढाल-६१ गाथा-१२ तक है.) ११९०८९ (+) विचारदंडकषट्त्रिंशिका प्रकरण सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १८९७, श्रावण शुक्ल, ३, मध्यम, पृ. ६, पठ. श्राव. अनोपचंद, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें., जैदे., (२६४१२, ५४२७). दंडक प्रकरण, मु. गजसार, प्रा., पद्य, वि. १५७९, आदि: नमिउ चउवीस जिणे; अंति: विन्नत्ति अप्पहिया, गाथा-३९. दंडक प्रकरण-टबार्थ*, मा.गु., गद्य, आदि: नमस्कार कर चोवीस तीर्थंकर; अंति: आपरे आत्मा के हित भणी. ११९०९१ (+) वीरनिर्वाण दीवाली स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ.७, प्र.वि. संशोधित.,प्र.ले.श्लो. (६११) यादृशं पुस्तके दृष्ट्वा , जैदे., (२६.५४११.५, १३४४१). महावीरजिन स्तवन-दीपावलीपर्व निर्वाणमहिमा, मु. गुणहर्ष, मा.गु., पद्य, आदि: श्रमणसंघतिलकोपम; अंति: लच्छि __ श्रीगुणहर्ष वधामणइ, ढाल-१०, गाथा-१२२. ११९०९२. अष्टप्रकारीपूजा कथानक-कथा १ से ३सह बालावबोध, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ३०, प्र.वि. हुंडी:अष्टप्रकारी, अष्टप्रकारीक., दे., (२६.५४११.५, १३४४४-५४). अष्टप्रकारीपूजा कथानक, प्रा., पद्य, आदि: विहडियकम्मकलंक कयकेवलेतेय; अंति: (-), प्रतिपूर्ण. For Private and Personal Use Only Page #330 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२६ ३१५ अष्टप्रकारीपूजा कथानक-बालावबोध, मा.गु., गद्य, आदि: श्रीविजयकेवली धर्मोपदेश; अंति: (-), प्रतिपूर्ण. ११९०९३. (+) नेमिनाथ राजिमती धवल, संपूर्ण, वि. १६९०, श्रावण शुक्ल, ८, मंगलवार, जीर्ण, पृ. १२, प्रले. मु. धर्मसी ऋषि (गुरु मु. वरधा ऋषि); गुपि. मु. वरधा ऋषि (गुरु मु. कान्हजी ऋषि); अन्य. श्राव. नथमल बागमल गोलेछा, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२६४११, १६x४३-४६). नेमिजिन विवाहलो, मु. ब्रह्म, मा.गु., पद्य, आदि: सारद सार दया करि देवी; अंति: भाख्यु एह सयल अधिकार, ढाल-४४. ११९०९४. (+) उपदेशछत्तीसी, सुखमछत्तीसी व खंधक चौढालियो, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ९, कुल पे. ३, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२५.५४११.५,१२४३२). १. पे. नाम. उपदेशछत्तीसी, पृ. १आ-३आ, संपूर्ण. उपदेशछत्रीसी, मु. रतनचंद ऋषि, मा.गु., पद्य, वि. १८६६, आदि: सबद करी सतगुरु समझाव; अंति: रतनचंद० पातक नासे रे, गाथा-३६. २. पे. नाम. सुखम छत्तीसी, पृ. ३आ-७अ, संपूर्ण. सुषमछत्रीसी, मु. खेम, मा.गु., पद्य, वि. १८४१, आदि: सुखम छत्तीसी सांभलो; अंति: केरे कीधो ग्यान विचारजी, गाथा-६२. ३. पे. नाम. खंधक चौढालियो-ढाल २ से ४, पृ. ७अ-९आ, संपूर्ण. खंधकमनि चौढालिया, म. जैमल ऋषि, रा., पद्य, वि. १८११, आदि: (-); अंति: मिच्छामि दक्कड होय, प्रतिपूर्ण. ११९०९६ (+#) ५ इंद्रिय आकार, विषय ग्रहणशक्ति व २३ विषय विचारादि संग्रह, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ७४-५७(१,३ से ६,९,११ से १२,१४,१६ से ३७,४१ से ४९,५१ से ५६,६०,६२ से ६७,७० से ७३)=१७, कुल पे. ३४, प्र.वि. पत्रांक अनुमानित दिये गए हैं., संशोधित. मूल पाठ का अंश खंडित है, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२७४१२,११४१०). १. पे. नाम. ५ इंद्रिय आकार विचार, पृ. २अ, संपूर्ण. मा.., गद्य, आदि: श्रोत्रंद्रीनो आकार कदंब; अंति: आकार नाना प्रकाररो. २. पे. नाम.५ इंद्रिय विषयग्रहणशक्ति विचार, पृ. २अ, संपूर्ण. मा.गु., गद्य, आदि: आंखिनो विषय लाख जोयण; अंति: नासिकानो विषय नव जोयण. ३. पे. नाम. ५ इंद्रिय २३ विषय विचार, पृ. २अ-२आ, संपूर्ण. मा.गु., गद्य, आदि: आठ कायाना विषय लूखो; अंति: पांचे इंद्रीयाना हुवे. ४. पे. नाम. ५ स्थावर वर्णाधिष्ठायक विचार, पृ. २आ, अपूर्ण, पृ.वि. प्रारंभ के पत्र हैं. मा.गु., गद्य, आदिः पृथिवीकायनो पीलो वर्ण; अंति: (-), (पू.वि. वनस्पतिकाय वर्णन अपूर्ण तक है.) ५. पे. नाम.५ चारित्र विचार, पृ. ७अ-७आ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र हैं. मा.गु., गद्य, आदिः (-); अंति: पांच चारित्र कह्या, (पू.वि. चारित्र-३ अपूर्ण से है.) ६.पे. नाम.५ समिति विचार, पृ.७आ-८अ, संपूर्ण. मा.गु., गद्य, आदि: ईर्यासमिति मारगि हालता; अंति: परिठमे ए पांच समिति जाणवी. ७. पे. नाम. ५ दान विचार, पृ. ८अ-८आ, संपूर्ण. मा.गु., गद्य, आदि: अभयदान जीवने मारती; अंति: दीजे ते कीर्तिदान कहीजे. ८. पे. नाम. ५ कल्याणक नाम, पृ. ८आ, संपूर्ण. मा.गु., गद्य, आदि: च्यवनकल्याणक१ जन्मकल्याणक; अंति: कल्याणक४ मोक्षकल्याणक५. ९.पे. नाम. ५ ज्ञान नाम, पृ. ८आ, संपूर्ण. मा.गु., गद्य, आदि: मतिज्ञान १ श्रुतज्ञान २; अंति: (१)मनःपर्यवज्ञान४ केवलज्ञान५, (२)ज्ञान अरूपी जाणवा. १०. पे. नाम. ५ दिव्य नाम, पृ. ८आ, संपूर्ण. ५दिव्य-तीर्थंकरदानादि अवसरे, मा.गु., गद्य, आदि: देव इंदभी शजे सुवर्ण; अंति: सुगंध पाणी वरसे. ११. पे. नाम.५ समकित नाम, पृ. ८आ, संपूर्ण. For Private and Personal Use Only Page #331 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ३१६ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ५ सम्यक्त्व नाम, मा.गु., गद्य, आदि: औपसमिक१ सास्वादन२; अंति: वैदक४ क्षायक५. १२. पे. नाम. ५ महाव्रत नाम, पृ. ८आ, संपूर्ण. मा.गु., गद्य, आदिः सव्वाओ पाणइ वायाओ वेरमणं; अंति: सव्वाओ परिग्रहाओ वेरमणं. १३. पे. नाम. ५ महाव्रत १७६ भेद विचार, पृ. ८आ, अपूर्ण, पू.वि. प्रारंभ के पत्र हैं. मा.गु., गद्य, आदि: पांच थावर बेंद्री तेंद्री; अंति: (-), (पू.वि. ९ भेद विचार अपूर्ण तक है.) १४. पे. नाम. श्रावक ११ प्रतिमा विचार, पृ. १०अ-१०आ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र हैं. मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: पिण गृहस्थावस्था मे नावै, (पू.वि. प्रतिमा-८ अपूर्ण से है.) १५. पे. नाम. श्रावक १२ व्रत विचार, पृ. १०आ, अपर्ण, पृ.वि. प्रारंभ के पत्र हैं. मा.ग., गद्य, आदि: थूलपाणई वायाओ वेरमणं; अंति: (-), (पू.वि. व्रत-९ अपूर्ण तक है.) १६. पे. नाम. ५ महाव्रत १७६ भेद विचार, पृ. १३अ-१३आ, अपूर्ण, पृ.वि. अंत के पत्र हैं. मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: कीजे तिवारे १७६ भेद थाइ, (पू.वि. महाव्रत-९ अपूर्ण से है.) १७. पे. नाम. ६ कारण-साधु आहारग्रहण, पृ. १३आ, संपूर्ण. साधु आहारग्रहण के ६ कारण, पुहिं.,मा.गु., गद्य, आदि: क्षधावेदनी उपसमाडिवा; अंति: चिंता निमित्त आहार ल्ये. १८. पे. नाम. ६ कारण-साधु आहार त्याग, पृ. १३आ, अपूर्ण, पू.वि. प्रारंभ के पत्र हैं. साधु आहार त्याग के ६ कारण, मा.गु., गद्य, आदि: कोई उपगसर्ग करे तो आहार; अंति: (-), (पू.वि. कारण-२ अपूर्ण तक है.) १९. पे. नाम. १६ संज्ञा नाम, पृ. १५अ, अपूर्ण, पृ.वि. अंत के पत्र हैं. मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: सोगसंज्ञा१५ धर्मसंज्ञा१६, (पू.वि. संज्ञा-८ अपूर्ण से है.) २०. पे. नाम. १७ संयमभेद विचार, पृ. १५अ, संपूर्ण. ___मा.गु., गद्य, आदि: सव्वाओ पाणाई वायाओ वेरमणं; अंति: एके आसने दृढ होइ न वेसे. २१. पे. नाम. १८ दूषण विचार-दीक्षार्थी, पृ. १५आ, अपूर्ण, पृ.वि. प्रारंभ के पत्र हैं. मा.गु., गद्य, आदि: बालकने दीक्षा न सूझे आठ; अंति: (-), (पू.वि. दूषण-१७ अपूर्ण तक है.) २२. पे. नाम. २४ जिन परिवार कल्याणकभूमिआदि विवरण, पृ. ३८अ-४०आ, अपूर्ण, पृ.वि. बीच के पत्र हैं. २४ जिन परिवार कल्याणकभूमि आदि विवरण, मा.गु., गद्य, आदिः (-); अंति: (-), (पू.वि. आदिजिन विवरण अपूर्ण से सुविधिजिन विवरण अपूर्ण तक है.) २३. पे. नाम. सीझण द्वार, पृ. ५०अ-५०आ, अपूर्ण, पृ.वि. प्रारंभ के पत्र हैं. बोल संग्रह-विविधगत्यागतादि जीव एकसमयसिद्धसंख्या विचार, मा.गु., गद्य, आदि: (अपठनीय); अंति: (-), (पू.वि. नपुंसकवेद सिद्ध संख्या अपूर्ण तक है.) २४. पे. नाम. २८ लब्धि विचार, पृ. ५७अ-५९अ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र हैं. ___मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: कहिते रे लब्धि न० हिवे, (पू.वि. लब्धि-११ अपूर्ण से है.) २५. पे. नाम. ६ अप्रशस्त भाषा विचार, पृ. ५९अ-५९आ, संपूर्ण. मा.गु., गद्य, आदि: पहिली हीलत भाषा दूजी; अंति: ते भाषा सुमिति कही छे. २६. पे. नाम. वैक्रीयशरीर स्थिति कालमान विचार, पृ. ५९आ, संपूर्ण. मा.गु., गद्य, आदि: वैक्रीयशरीर० कहे छ; अंति: देवतानो० काल जाणवो. २७. पे. नाम.५ वस्तु पडिलेहण अयोग्य, पृ. ५९आ, अपूर्ण, पृ.वि. प्रारंभ के पत्र हैं. रा., गद्य, आदि: पांच प्रकाररा वस्तु० कहता; अंति: (-), (पू.वि. वस्तु-२ तक है.) २८. पे. नाम. ३६ आचार्यगण वर्णन, पृ. ६१अ, अपूर्ण, पृ.वि. अंत के पत्र हैं. ___प्रा.,मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: हेत हुवे सोमप्रकृति हुवे, (पू.वि. आचार्यगुण-१० अपूर्ण से है.) २९. पे. नाम, २५ गुण-उपाध्यायपद के, पृ. ६१आ, संपूर्ण. मा.गु., गद्य, आदि: इग्यारे अंगनो जाण; अंति: पचवीस गुण उपाध्याय जाणिवा. For Private and Personal Use Only Page #332 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ३१७ हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२६ ३०. पे. नाम. ४५ आगम नाम, पृ. ६१आ, अपूर्ण, पू.वि. प्रारंभ के पत्र हैं. मा.गु., गद्य, आदि: आचारांग१ सुयगडांग२; अंति: (-), (पू.वि. प्रकीर्णक-भक्तिपरिज्ञा अपूर्ण तक है.) ३१. पे. नाम. १४ गुणस्थानक विचार, पृ. ६८अ-६९आ, अपूर्ण, पू.वि. बीच के पत्र हैं. मा.गु., गद्य, आदिः (-); अंति: (-), (पूवि. मिथ्यात्मगुण स्थानक अपूर्ण से गुणस्थान-४ अपूर्ण तक है.) ३२. पे. नाम. १० बोल-महावीरस्वामी के बाद विच्छेद गई वस्तु, पृ. ७४अ, अपूर्ण, पृ.वि. अंत के पत्र हैं. मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: पछे कोई मोक्ष न गयो, (पू.वि. बोल-९ से है.) ३३. पे. नाम. ४ दुःख-सुख सैया विचार-साधु, पृ. ७४अ, संपूर्ण. ४ दुःख-सुख साधु शैया विचार, मा.गु., गद्य, आदि: जिम मँडी शय्या ऊपरि सूतो; अंति: च्यार सुख सिज्जा कहीजे. ३४. पे. नाम. १३ क्रियास्थान विचार, पृ.७४अ-७४आ, अपूर्ण, पृ.वि. प्रारंभ के पत्र हैं. मा.गु., गद्य, आदि: क्रिया कहता कर्म तेहना; अंति: (-), (पू.वि. अदत्तादान क्रिया अपूर्ण तक है.) ११९०९७. पाशाकेवली, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ९-३(१ से ३)+१(७)-७, पृ.वि. बीच के पत्र हैं., जैदे., (२६.५४१२, ९४२७). पाशाकेवली-भाषा*, संबद्ध, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. शुकनांक-१४१ अपूर्ण से ४३४ अपूर्ण तक है.) ११९०९८. गौतमस्वामी छंद, संपूर्ण, वि. १९०३, आषाढ़ कृष्ण, १४, मध्यम, पृ. १, ले.स्थल, अंजारनगर, प्रले. पं. धनविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, दे., (२७४१२, ११४२३). गौतमस्वामी छंद, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: मात पृथ्वी सुत प्रात; अंति: जस सौभाग्य दोलत सवाई, गाथा-९. ११९०९९ (+) चेतन चरित्र, अपूर्ण, वि. १९२३, आषाढ़ कृष्ण, १०, मध्यम, पृ. ५-२(१ से २)=३, ले.स्थल. नवानगर, प्रले. मु. नथमल, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. हुंडी:चेतनचरित्र, चेतनच०. गुरु प्रसादात्., संशोधित., दे., (२६.५४१२, १७X४७-५६). कर्मचेतन संग्रामभाव रास, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: कीया विध नोबत गाजे, ढाल-१७, (पू.वि. ढाल-७ गाथा-२ अपूर्ण से है.) ११९१०० (+#) प्रतिक्रमणसूत्र संग्रह सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २६-२०(१ से २०)=६, पू.वि. बीच के पत्र हैं., अन्य. मु. हीरविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. पावरेखा के बाहर राधनपुर लिखा है., संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२७.५४१२, ४४३८). प्रतिक्रमणसूत्र संग्रह-श्वे.मू.पू.*, संबद्ध, प्रा.,मा.गु.,सं., प+ग., आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. आयरिय उवज्झाय सूत्र अपूर्ण से १४ नियम गाथा अपूर्ण तक है.) प्रतिक्रमणसूत्र संग्रह-श्वे.मू.पू.-टबार्थ , मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: (-). ११९१०२. (+) पल्वसागरनो विचार जोजनमान, संपूर्ण, वि. १९७१, कार्तिक कृष्ण, १३, रविवार, श्रेष्ठ, पृ. ६, ले.स्थल. पत्री, प्र.वि. हुंडी:जोजनमा०., संशोधित., प्र.ले.श्लो. (५१०) यादृसं पुस्तकं दृष्टवा, दे., (२६.५४१२, १३४४५-४९). सागरोपम पल्योपम पूर्वमान विचार, मा.ग., गद्य, आदि: इहां मंदमतीनां धनीने; अंति: सर्वए वडो मोटो छे. ११९१०३. (+) आगमिक प्रश्नोत्तरी व लंकामतीय प्रश्नबोल, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ.८, कुल पे. २, अन्य. मु. पुन्यरत्नसूरि, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२७४११.५, १३४६-४२). १.पे. नाम. आगमिक प्रश्नोत्तरी, प. १अ-६आ, संपूर्ण. __ आ. पार्श्वचंद्रसूरि, मा.गु., गद्य, वि. १६वी, आदि: श्रीउत्तराध्ययन २६मइ; अंति: ते जिनआज्ञानु आराधक थाइ, प्रश्न-७४. २. पे. नाम. लुंकामतीय प्रश्नबोल, पृ. ६आ-८आ, संपूर्ण. मा.गु., गद्य, आदि: श्रीउवाईमांहि अंबडनी; अंति: अक्षर न मानइ तेहवा. ११९१०४. (+) २२ परिसह सज्झाय, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ५, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. हुंडी:२२ परिस०., संशोधित., जैदे., (२७.५४११.५, १६४४५). २२ परिसह सज्झाय, मु. रायचंद ऋषि, मा.गु., पद्य, वि. १८२२, आदि: श्रीआदेसर आद दै; अंति: (-), (पू.वि. ढाल-२१ गाथा-३ अपूर्ण तक है.) For Private and Personal Use Only Page #333 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra ३१९८ www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ११९१०६ (+) सिद्धांतचंद्रिका सह सुबोधिनी वृत्ति-विसर्गसंधि तक, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. २०-१ (१९)=१९, प्र. वि. हुंडी : सुबो. टि., संशोधित मूल पाठ का अंश खंडित है, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैवे. (२७.५x१२.५, १३-१५X४३-५१). सरस्वतीसूत्र- प्रक्रिया सिद्धांतचंद्रिका, आ. रामाश्रम, सं., गद्य, आदि: नमस्कृत्य महेशानं मतं अंति: (-), (प्रतिअपूर्ण, पू.वि. "विसर्जनीयस्य सः" सूत्र अपूर्ण से "भो भगो अघो०" सूत्र अपूर्ण तक नहीं है.) सरस्वतीसूत्र- प्रक्रिया सिद्धांतचंद्रिका की सुबोधिनी वृत्ति, ग. सदानंद, सं., गद्य वि. १७९९, आदि पुराणपुरुषं ध्यात्वा, अंति: (-), प्रति अपूर्ण. १९९११० दशसूत्र, संपूर्ण वि. १७५८, ज्येष्ठ कृष्ण, १४, रविवार, मध्यम, पृ. १४, ले. स्थल सीसवाल, प्रले. मु. विनयसागर (गुरु मु. सुमतिसागर, तपागच्छ); गुपि. मु. सुमतिसागर (तपागच्छ) पठ मु. भावसागर (गुरु आ. गुणसागर); गुपि आ. गुणसागर, प्र.ले.पु. मध्यम, प्र.वि. हुंडी:दशसूत्र., जैदे., (२७१२, ८X३१-४१). तत्वार्थाधिगमसूत्र, वा. उमास्वाति, सं., गद्य, आदि: त्रैकाल्यं द्रव्य, अति: (१) मरणं चउगइदुख निवारे, (२) बहुत्वतः साध्याः, अध्याय- १०. ११९१११ (+) पंचप्रतिक्रमणसूत्र संग्रह -तपागच्छीय, अपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पृ. १३-१ ( २ ) = १२, पू.वि. प्रथम एक व अंत के पत्र नहीं हैं., प्र. वि. संशोधित. अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, जैदे., (२७.५X१२, १०X३०). पंचप्रतिक्रमणसूत्र संग्रह- तपागच्छीय, संबद्ध, प्रा., मा.गु. सं., प+ग, आदि (-); अति: (-) (पू.वि. सामायिक ग्रहण विधि अपूर्ण से पगाम सज्झायसूत्र अपूर्ण तक है., वि. बीच-बीच में पर्व तिथियों की स्तुतियाँ दी हुई हैं.) ११९११९ (२) सालिभद्र धन्नानी चोपड़, अपूर्ण, वि. १७०९ आश्विन शुक्ल, १०, मध्यम, पृ. २०-३ (९ से १०,१७) १७, ले.स्थल. समुद्रडी, प्रले. पं. हीरहंस (गुरु पं. कल्याणहंस पंडित); गुपि. पं. कल्याणहंस पंडित, पठ. मु. डुंगरसागर, मु. अमरा, प्र.ले.पु. मध्यम, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६.५X१२, १५X३६). शालिभद्रमुनि चौपाई, मु. मतिसार, मा.गु., पद्य, वि. १६७८, आदि: सासणनायक समरीयइ वर्धमान; अंति: मनवंछित फल लहस्येजी, ढाल-२९, गाथा-५११, (पू.वि. बीच के पत्र नहीं हैं., ढाल १३ गाथा-८ अपूर्ण से ढाल १६ गाथा-९ अपूर्ण तक व ढाल-२३ गाथा- १३ अपूर्ण से ढाल २५ गाथा-१ अपूर्ण तक नहीं है.) ११९१२१. नवतत्त्व प्रकरण का बालावबोध, अपूर्ण, वि. १८९९, ज्येष्ठ शुक्ल, २, मध्यम, पृ. १७-१ (१) १६, प्रले. मु. शिवचंद (गुरु मु. गुणचंद, बृहद्विजयगच्छ); गुपि. मु. गुणचंद (गुरु मु. धर्मचंद्र, बृहद्विजयगच्छ); मु. धर्मचंद्र (बृहद्विजयगच्छ), प्र.ले.पु. सामान्य, जैये. (२६.५X१२.५, ८४३९). नवतत्त्व प्रकरण ६० गाथा - बालावबोध, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: सिद्धा अनेक सिद्धा, (पू.वि. 'पृथ्वीका अपकाय ते काय'- पाठांश से है.) For Private and Personal Use Only ११९१२२ (+) सूर्याभविमान विस्तार, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ८- १ (१) =७, अन्य मु. कस्तूरचंद (गुरु मु. खूबचंद): मु. खूबचंद, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. हुंडी : सूरीबाभ, संशोधित टिप्पण युक्त विशेष पाठ-पदच्छेद सूचक लकीरें. दे. (२६४१२, २१४५७). सूर्याभविमान विस्तार, संबद्ध, मा.गु., गद्य, आदि प्रथम सुधर्मा देवलोकन, अंति (-), (पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., सूर्वाभ द्वारा नंदापुष्करणी प्रवेश अपूर्ण तक है.) , ११९१२३. नवपद पूजा, अपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पृ. ७. पू. वि. अंत के पत्र नहीं है. जैदे. (२६११.५ १२४३८-४०). नवपद पूजा, उपा. यशोविजयजी गणि, प्रा. मा.गु. सं., पद्य, आदि उपन्नसन्नाणमहोमयाणं; अंति: (-) (पू.वि. सप्तमी पूजा अपूर्ण तक है.) ११९१२६ सीमंधरजिन स्तवन व सामायिक सज्झाव, अपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पृ. २- १ (१) १, कुल पे. २, जैवे. (२६४१२, १२X३२). १. पे नाम. सीमंधरजिन स्तवन, पृ. २अ, अपूर्ण, पू.वि. प्रथम पत्र नहीं है, अन्य पं. दोलतविजय गणि, प्र.ले.पु. सामान्य. उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., पद्य, आदि (-); अंति: साहेब सीमंधर तुझ रागें, (पू.वि. गाथा - १६ अपूर्ण से है.) २. पे. नाम. सामायिक सज्झाय, पृ. २आ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. मु. . कमलविजय- शिष्य, मा.गु., पद्य, आदि गौतम गणधर प्रणमी पाय अंति: (-). (पू.बि. गाथा-९ अपूर्ण तक है.) Page #334 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२६ ३१९ ११९१२७. शत्रुजयतीर्थे जिनप्रासादजिनप्रतिमा संख्यामान विचार, संपूर्ण, वि. १८४०, फाल्गुन कृष्ण, २, मध्यम, पृ. ३, ले.स्थल. पालीताणा, जैदे., (२६४११.५, १४-१६५३०-४०). शQजयतीर्थे जिनप्रासादजिनप्रतिमा संख्यामान विचार, मा.गु., गद्य, आदि: श्रीआदेश्वरजीने मुलगंभारे; अंति: प्रभुजीना बिंब ३६८१ छइ. ११९१२८. (#) आचारदिनकर, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ६-१(१)=५, प्र.वि. मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., (२६४१२, १६-१९४४१-४३). आचारदिनकर , आ. वर्द्धमानसूरि, सं., प+ग., आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. प्रथम एक व अंत के पत्र नहीं हैं., उदय-१ पीठिका अपूर्ण से उदय-२ गर्भाधानसंस्कार विधि अपूर्ण तक है.) ११९१३० (+) हंसराजवत्सराज चौपाई, संपूर्ण, वि. १८०२, आषाढ़ शुक्ल, १, मंगलवार, मध्यम, पृ. २१, प्रले. ग. रंगचंद्र (गुरु ग. मयाचंद्र); गुपि. ग. मयाचंद्र (गुरु ग. भक्तिचंद्र), प्र.ले.प. सामान्य, प्र.वि. हुंडी:हंसवठराजप०., टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित. कुल ग्रं. ९१७, जैदे., (२६.५४११.५, १८-२०x४४-४८). हंसराजवत्सराज चौपाई, आ. जिनोदयसूरि, मा.गु., पद्य, वि. १६८०, आदि: आदिसर आदि करी चोऊवीस; अंति: जिनोदयसूरि० रहें जयजयकार, खंड-४ ढाल ४८, गाथा-९१७. ११९१३२. (+) सामुद्रिकशास्त्र, अपूर्ण, वि. १६९३, आश्विन शुक्ल, १३, शनिवार, मध्यम, पृ. ७-१(१)=६, ले.स्थल. मेवाड, प्र.वि. हुंडी:सामुद्रि., संशोधित., जैदे., (२६.५४१२, १७४५१-५८). सामुद्रिकशास्त्र, सं., पद्य, आदि: (-); अंति: नागरेण रमयंति कामनी, अध्याय-३६, श्लोक-२७६, (पू.वि. प्रथम पत्र नहीं ___ है., अध्ययन-१ श्लोक-२४ अपूर्ण से है.) ११९१३४. (+) दानाधिकारे रत्नपाल चोपई, संपूर्ण, वि. १७८२, चैत्र शुक्ल, १३, सोमवार, मध्यम, पृ. १८, ले.स्थल. कल्पवट्ट, प्रले. मु. कृष्णजी ऋषि (गुरु मु. रत्नसी ऋषि); गुपि. मु. रत्नसी ऋषि (गुरु मु. गांगजी ऋषि); मु. गांगजी ऋषि (गुरु मु. लखमसी ऋषि); मु. लखमसी ऋषि; गुभा. मु. कल्याणजी ऋषि; मु. विजयकर्ण; मु. शिवजी (गुरु मु. गांगजी ऋषि), प्र.ले.पु. विस्तृत, प्र.वि. हुंडी:रासरत्नपाल., टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित. कुल ग्रं. ७७१, जैदे., (२६.५४११.५, १७४५३). रत्नपालरत्नावती रास-दानाधिकारे, मु. सूरविजय, मा.गु., पद्य, वि. १७३२, आदि: श्रीऋषभादिक जिन नमुं; अंति: सुरविजय० जय जयकार, खंड-३ ढाल ३२. ११९१३५ (+#) जातकपद्धति सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. १९५५, आश्विन शुक्ल, २, शुक्रवार, मध्यम, पृ. २०-१०(१ से १०)+१(१९)=११, प्रले. चुतरभुज साचोरा, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. हुंडी:चंद्रार्कि., संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२६४१२.५, ४-५४२६-२९). जातकपद्धति, मु. हर्षविजय, सं., पद्य, वि. १७६५, आदिः (-); अंति: एषा जातकदीपिका, श्लोक-९३, (पू.वि. श्लोक-५० अपूर्ण से है.) जातकपद्धति-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: एहवी जातकदीपका सोभै छै. ११९१३७. (+) ज्ञाताधर्मकथांगसूत्र सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ३२४-२४१(१ से २४१)=८३, पृ.वि. बीच के पत्र हैं., प्र.वि. हुंडी:ज्ञाताधर्मसूत्रट०., संशोधित., जैदे., (२७४११.५, ६४३८-४८). ज्ञाताधर्मकथांगसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., प+ग., आदिः (-); अंति: (-), (पू.वि. अध्ययन-१३ से अध्ययन-१६ तक ज्ञाताधर्मकथांगसूत्र-टबार्थ *, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: (-). ११९१४१. जीवविचार प्रकरण सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ.८, जैदे., (२६४१२, ४४३१). जीवविचार प्रकरण, आ. शांतिसूरि, प्रा., पद्य, वि. ११वी, आदि: भुवणपईवं वीरं नमिऊण; अंति: ___ संतिसूरि०सुयसमुद्दाओ, गाथा-५१. जीवविचार प्रकरण-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: तीन त्रिभुवन स्वर्ग; अंति: नइ जाणिवानित्त संक्षेप. ११९१४३. (+-) प्रतिक्रमण, स्तोत्र व स्तुति आदि संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ८५-५(१,३,१९ से २०,४८)=८०, कुल पे. ६५, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें-अशुद्ध पाठ-संशोधित., जैदे., (२६४१२, १३४३६-४४). For Private and Personal Use Only Page #335 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ३२० कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १.पे. नाम. प्रतिक्रमणसूत्र, पृ. २अ-५आ, अपूर्ण, पू.वि. प्रथम एक व बीच के पत्र नहीं हैं. देवसिप्रतिक्रमण विधि-खरतरगच्छीय, संबद्ध, प्रा.,मा.गु.,सं., प+ग., आदि: (-); अंति: निमित्तं करेमि काउसग्ग, (पू.वि. प्रारंभ पुक्खर वर्दी सूत्र से है व बीच का पाठांश नहीं है.) २. पे. नाम. नवखंडा पार्श्वनाथ स्तुति, पृ. ५आ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तुति-विविध तीर्थमंडण, प्रा.,मा.गु.,सं., पद्य, आदि: श्रीसेढीतटनी तटेपुरवरे; अंति: सदा ध्यायामि मानसेत्, गाथा-४. ३. पे. नाम, चवदैनियम गाथा, पृ. ५आ, संपूर्ण. १४ श्रावकनियम गाथा, प्रा., पद्य, आदि: सचित्त दव्व विगइ; अंति: बंभ दिसि ण्हाण भत्तेसु. ४. पे. नाम. तेरैकाठीयानाम गाथा, पृ. ५आ, संपूर्ण. १३ काठिया गाथा, प्रा., पद्य, आदि: आलस्स मोहवन्ना थंभा; अंति: निरकेव कुतूहला रमणा. ५. पे. नाम. राई संथारा गाथा, पृ. ५आ-६अ, संपूर्ण. चउक्कसायसूत्र, हिस्सा, प्रा., पद्य, आदि: चउक्कसाय पठमलुल्लूरण; अंति: जिण पासु पयठीओ वंछिय, गाथा-२. ६. पे. नाम. आदिजिन स्तुति, पृ. ६अ, संपूर्ण. शत्रुजयतीर्थ स्तुति, आ. नंदसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीसेज मंडण आदिदेव; अंति: नंदसूरि० पाय सेवता, गाथा-४. ७. पे. नाम. सीमंधर स्तुति, पृ. ६अ, संपूर्ण. बीजतिथि स्तुति, प्रा., पद्य, आदि: महीमंडणं पुन्नसोवन्न; अंति: देहि मे सुद्धनाणं, गाथा-४. ८. पे. नाम. ज्ञानपंचमी स्तुति, पृ. ६अ-६आ, संपूर्ण. ज्ञानपंचमीपर्व स्तुति, सं., पद्य, आदि: पंचानंतकसुप्रपंचपरमानंद; अंति: सा सिद्धायिका त्रायिका, श्लोक-४. ९. पे. नाम. लध्वीसीछंदसि स्तति, पृ. ६आ, संपूर्ण. महावीरजिन स्तुति, सं., पद्य, आदि: वीरं देवं नतं वंदे जैना; अंति: दद्यात्सौख्यम, श्लोक-१. १०. पे. नाम. अणोज्ञा स्तुति, पृ. ६आ, संपूर्ण. महावीरजिन स्तुति, सं., पद्य, आदि: यदंहिनमनादेव देहिन; अंति: भवतु नित्य मंगलेभ्यः, श्लोक-४. ११. पे. नाम, अष्टमीतप स्तुति, पृ. ६आ-७अ, संपूर्ण. अष्टमीतिथिपर्व स्तुति, मा.गु., पद्य, आदि: महामंगलं अष्ट सोहै; अंति: विहसंति कल्याणदाता, गाथा-४. १२. पे. नाम. पार्श्वनाथ स्तुति, पृ. ७अ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तुति, सं., पद्य, आदि: हर्षनतासुर निर्झरलोकं; अंति: तीर्थपमज्जनशस्तनजाघः, श्लोक-४. १३. पे. नाम. आदिजिन स्तुति-अर्बुदगिरिमंडन, पृ. ७अ-७आ, संपूर्ण.. प्रा., पद्य, आदि: वरमुत्तियहार सुतारगण; अंति: मम वाण सुहाण कुणेसु सया, गाथा-४. १४. पे. नाम. पार्श्वजिन स्तुति-पलांकित जेसलमेरमंडन, पृ. ७आ, संपूर्ण. सं., पद्य, आदि: शमदमोत्तमवस्तुमहापणं; अंति: जयतु सा जिनशासनदेवता, श्लोक-४. १५. पे. नाम. पार्श्वजिन स्तुति-पलांकित, पृ. ७आ-८अ, संपूर्ण. सं., पद्य, आदि: श्रीसर्वज्ञज्योतीरूप; अंति: वृद्धि वैदुष्यम्, श्लोक-४. १६. पे. नाम. ऋषभजिन स्तुति, पृ. ८अ, संपूर्ण. आदिजिन स्तुति, सं., पद्य, आदि: युगादिपुरुषंद्राय युगादि; अंति: कूष्मांडी कमलेक्षणा, श्लोक-४. १७. पे. नाम. ऋषभजिन स्तुति, पृ. ८अ, संपूर्ण.. आदिजिन स्तुति, सं., पद्य, आदि: ऋषभनाथभिनाथनिभानन; अंति: तनुभातनुभातन भारती, श्लोक-४. १८. पे. नाम, मौनएकादशीपर्व स्तुति, पृ. ८अ-८आ, संपूर्ण. सं., पद्य, आदि: अरस्य प्रव्रज्या नमिजिन; अंति: विस्मतहृदः क्षितौ, श्लोक-४. १९. पे. नाम, सर्वजिन स्तुति, पृ. ८आ, संपूर्ण. पंचतीर्थजिन स्तुति, सं., पद्य, आदि: श्रीशत्रुजयमुख्यतीर्थ; अंति: सुरास्ते संतु भद्रंकराः, श्लोक-४. For Private and Personal Use Only Page #336 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२६ ३२१ २०. पे. नाम. चौवीसजिन स्तुति, पृ. ८आ-९अ, संपूर्ण. साधारणजिन स्तुति, सं., पद्य, आदि: अविरल कमल गवल मुक्ता; अंति: श्रुतदेवी श्रुतउच्चयं, श्लोक-४. २१. पे. नाम, दीपमालिका स्तुति, पृ. ९अ-९आ, संपूर्ण. दीपावलीपर्व स्तुति, गच्छा. जिनचंद्रसूरि, सं., पद्य, वि. १७वी, आदि: पापायां पुरि चारु; अंति: जिनचंद्र० क्रीडितं, श्लोक-४. २२. पे. नाम. पार्श्वजिन स्तुति-नाटिकाबंध, पृ. ९आ-१०अ, संपूर्ण. आ. जिनकुशलसूरि, सं., पद्य, आदि: दें कि धपमप; अंति: दिशतु शासनदेवता, श्लोक-४. २३. पे. नाम, महावीरजिन स्तुति, पृ. १०अ, संपूर्ण. आ. जिनलाभसरि, मा.ग., पद्य, आदि: मूरति मनमोहन कंचन; अंति: इम श्रीजिनलाभसूरिंद, गाथा-४. २४. पे. नाम, नेमिजिन स्तुति-गिरनारमंडन, पृ. १०अ-१०आ, संपूर्ण. आ. जिनलाभसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: गिरनार सिहर पर नेम; अंति: जिनलाभ० फलै सुजगीस, गाथा-४. २५. पे. नाम. अष्टमीतिथि स्तुति, पृ. १०आ, संपूर्ण. अष्टमीतिथिपर्व स्तुति, आ. जिनलाभसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: कृत्वा निर्मलमष्टमी तिथि; अंति: जिनलाभसूरि वचनैः० देहिनाम, गाथा-४. २६. पे. नाम. २० विहरमानजिन स्तुति, पृ. १०आ-११अ, संपूर्ण. मा.गु., पद्य, आदि: पंचविदेह विषै विहरंता वीस; अंति: जन मन वंछिअसारै, गाथा-४. २७. पे. नाम, नेमिजिन स्तुति, पृ. ११अ, संपूर्ण.. मा.गु., पद्य, आदि: सुरअसुर वंदित पाय पं; अंति: जिनवर मंगलाकर देवियै, गाथा-४. २८. पे. नाम. सर्वजिन स्तुति, पृ. ११अ-११आ, संपूर्ण. २४ जिन स्तुति, आ. जिनकुशलसूरि, सं., पद्य, आदि: नाभेयाजितवासुपूज्यसुविधि; अंति: कुशलानेताः प्रयच्छंतु नः, श्लोक-४. २९. पे. नाम. नेमनाथ स्तुति, पृ. ११आ-१२अ, संपूर्ण. साधारणजिन स्त कवियण, मा.ग., पद्य, आदि: चंपक केतकी पाडल जाई; अंति: माई जौ तसै देव अंबाई, गाथा-४. ३०. पे. नाम. महावीरजिन स्तुति, पृ. १२अ, संपूर्ण. मा.गु., पद्य, आदि: बाल्यपणे डावै पाय चांप्यौ; अंति: काम चढे प्रमाणे, गाथा-४. ३१. पे. नाम. सिद्धचक्र स्तुति, पृ. १२अ-१२आ, संपूर्ण. आ. जिनलाभसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: निरुपम सुखदायक; अंति: श्रीजिनलाभसूरिंदाजी, गाथा-४. ३२. पे. नाम. पंचकल्याणक स्तुति, पृ. १२आ-१३अ, संपूर्ण. प्रा., पद्य, आदि: नाभेयं संभवतं अजिय; अंति: गणसहिया पंचकल्लाणएस, गाथा-४. ३३. पे. नाम. पारणा स्तुति, पृ. १३अ, संपूर्ण. महावीरजिन पारणा स्तुति, सं., पद्य, आदि: यत्पारणासु प्रथमासु; अंति: प्रातु मम प्रमोदं, श्लोक-४. ३४. पे. नाम. पर्युषणपर्व स्तुति, पृ. १३अ-१३आ, संपूर्ण. आ. जिनलाभसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: बल बल हूं ध्यावं, अंति: सानिधि कहै जिनलाभमुणिंद, गाथा-४. ३५. पे. नाम. २४ दंडक स्तुति, पृ. १३आ-१४अ, संपूर्ण. आ. जिनेश्वरसूरि, सं., पद्य, आदि: रुचितरुचि महामणि स्वर्ण; अंति: दद्यादलं भारती भारती, श्लोक-४. ३६. पे. नाम. चंद्रप्रभजिन स्तुति, पृ. १४अ-१४आ, संपूर्ण. अष्टमीतिथिपर्व स्तुति, मु. जीवविजय, मा.गु., पद्य, आदि: चौवीसे जिनवर प्रणमुं हुं; अंति: जिनसुख० जनम प्रमाण, गाथा-४. ३७. पे. नाम. पार्श्वजिन स्तुति, पृ. १४आ, संपूर्ण For Private and Personal Use Only Page #337 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ३२२ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची आ. जिनभक्तिसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: अश्वसेन नरेसर वामा; अंति: जिनभक्तिसूरि० चित्त, गाथा-४. ३८. पे. नाम. नवग्रहरक्षा स्तोत्र, प. १४आ-१५अ, संपूर्ण. ग्रहशांति स्तोत्र-लघु, आ. भद्रबाहुस्वामी, सं., पद्य, आदि: जगद्गुरुं नमस्कृत्य; अंति: भद्रबाहु० मुदाहृतम्, श्लोक-११. ३९. पे. नाम. दसपच्चक्खाण, पृ. १५अ-१६आ, संपूर्ण. प्रत्याख्यानसूत्र, संबद्ध, प्रा., गद्य, आदि: उग्गए सूरे नमुक्कार; अंति: आगारेणं वोसिरामि. ४०. पे. नाम. बृहत्शांति स्तोत्र, पृ. १७अ-१८आ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. बृहत्शांति स्तोत्र-तपागच्छीय, सं., प+ग., आदि: भो भो भव्याः श्रृणुत; अंति: (-), (प.वि. 'सर्वत्र सुखी भवतु लोकः २' पाठांश तक है.) ४१. पे. नाम, जयतिहुअण स्तोत्र, पृ. २१अ-२३अ, संपूर्ण.. आ. अभयदेवसूरि , प्रा., पद्य, वि. १२वी, आदि: जय तिहुयणवरकप्परुक्ख जय; अंति: अभयदेव०विनवइ अणिंदिअ, गाथा-३०. ४२. पे. नाम. श्रमणसूत्र, पृ. २३अ-२५अ, संपूर्ण. पगामसज्झायसूत्र, हिस्सा, प्रा., गद्य, आदि: चत्तारि मंगलं अरिहंत; अंति: (अपठनीय). ४३. पे. नाम. वंदित्तुसूत्र, पृ. २५अ-२७अ, संपूर्ण. संबद्ध, प्रा., पद्य, आदि: वंदित्तु सव्वसिद्धे; अंति: वंदामी जीण चोवीसं, गाथा-५०. ४४. पे. नाम. प्रव्रज्याकुलक प्रकरण, पृ. २७अ-२८अ, संपूर्ण, पे.वि. हुंडी:प्रवज्या. प्रव्रज्या कुलक, प्रा., पद्य, आदि: संसार विसमसायर भवजल; अंति: (अपठनीय), गाथा-३०. ४५. पे. नाम. राई संथारा गाथा, पृ. २८अ-२९अ, संपूर्ण, पे.वि. हंडी:राईसंथा. संथारापोरसीसूत्र, प्रा., पद्य, आदि: निसिही २ नमो खमासमणाणं; अंति: मज्झवि तेह खमंतु, गाथा-१६. ४६. पे. नाम. दशवकालिकसूत्र-प्रथम एवं द्वितीय अध्ययन, पृ. २९अ-२९आ, संपूर्ण. दशवैकालिकसूत्र, आ. शय्यंभवसूरि, प्रा., पद्य, वी. २वी, आदि: धम्मो मंगलमुक्किट्ठ; अंति: (-), प्रतिपूर्ण. ४७. पे. नाम, उपदेशमाला गाथा, पृ. २९आ-३०आ, संपूर्ण. पौषध सज्झाय-खरतरगच्छीय, संबद्ध, प्रा., पद्य, आदि: जगचूडामणिभूओ उसभो; अंति: उप्पन्नं केवलं नाणं, गाथा-३३. ४८. पे. नाम. महावीरजिन स्तोत्र, पृ. ३०आ-३१आ, संपूर्ण. महावीरजिन स्तव-बृहत्, आ. अभयदेवसूरि , प्रा., पद्य, आदि: जइज्जा समणे भगवं; अंति: पढइ कयं अभय सूरीहिं, गाथा-२२. ४९. पे. नाम. सप्तस्मरण-खरतरगच्छीय, पृ. ३१आ-३८आ, संपूर्ण, पे.वि. हुंडी:सातेस्मर. मु. भिन्न भिन्न कर्तृक, प्रा., पद्य, आदि: अजिअं जिअ सव्वभयं; अंति: (अपठनीय), स्मरण-७. ५०. पे. नाम. तिजयपहत्त स्तोत्र, पृ. ३८आ-३९अ, संपूर्ण. आ. मानदेवसूरि, प्रा., पद्य, आदि: तिजयपहुत्तपयासय अठ्ठ; अंति: निब्भंतं निच्चमच्चेह, गाथा-१४. ५१. पे. नाम. पार्श्वजिन स्तोत्र-नवग्रहस्तुतिगर्भित, पृ. ३९अ-३९आ, संपूर्ण. आ. जिनप्रभसरि, प्रा., पद्य, वि. १४वी, आदि: दोसावहारदक्खो नालीया; अंति: गहा ण पीडंति, गाथा-१०. ५२. पे. नाम, भक्तामर स्तोत्र, पृ. ३९आ-४२अ, संपूर्ण. आ. मानतुंगसूरि, सं., पद्य, आदि: भक्तामरप्रणतिमौलिमणि; अंति: (अपठनीय), श्लोक-४४. ५३. पे. नाम. शांति स्तोत्र, पृ. ४२अ-४२आ, संपूर्ण. लघशांति, आ. मानदेवसरि, सं., पद्य, आदि: शांतिं शांतिनिशांतं; अंति: सरिः श्रीमानदेवश्च, श्लोक-१७. ५४. पे. नाम. कल्याणमंदिर स्तोत्र, पृ. ४२आ-४५अ, संपूर्ण, पे.वि. हुंडी:कल्याणमं. आ. सिद्धसेनदिवाकरसूरि, सं., पद्य, वि. १वी, आदि: कल्याणमंदिरमुदारमवद्यभेदि; अंति: (अपठनीय). ५५. पे. नाम. महावीरजिन स्तोत्र, पृ. ४५अ-४६आ, संपूर्ण. For Private and Personal Use Only Page #338 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२६ www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir महावीरजिन स्तव- समसंस्कृतप्राकृत, आ. जिनवल्लभसूरि, प्रा. सं., पद्य, आदि (अपठनीय) अंति जिनवल्लभ० दयालो मयि श्लोक-३०. " ५६. पे. नाम दुरिअरयसमीर स्तोत्र, पृ. ४६ आ-४७आ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. आ. जिनवल्लभसूरि, प्रा., पद्य, आदि दुरिअरयसमीर मोहपंको अति (-) (पू.वि. गाथा ३२ अपूर्ण तक है.) ५७. पे. नाम. लघुक्षेत्रसमास प्रकरण, पृ. ४९-५९अ, अपूर्ण, पू. वि. प्रथम पत्र नहीं है. आ. रत्नशेखरसूरि, प्रा., पद्य, वि. १५वी, आदि (-); अति कुसलरंगमहं पसिद्धिं, अधिकार- ६, गाथा - २६६, (पू.वि. गाथा १७ अपूर्ण से है.) ३२३ ५८. पे. नाम, कम्र्म्मविपाकसूत्र प्रथम, पृ. ५९ अ- ६१ आ. संपूर्ण. कर्मविपाक नव्य कर्मग्रंथ १ आ. देवेंद्रसूरि, प्रा., पद्य, वि. १३वी १४वी आदि सिरिवीरजिणं वंदिय; अति: लिहिओ देविंदसूरिहिं, गाथा-६१. ५९. पे नाम कर्म्मग्रंथसूत्र द्वितीय, पू. ६१ आ. ६३अ, संपूर्ण " कर्मस्तव नव्य कर्मग्रंथ-२ आ. देवेंद्रसूरि प्रा. पद्य वि. १३वी २४वी, आदि: तह थुणिमो वीरजिणं; अंति: वंदिय नहतं महावीरं, गाथा-३४. ६०. पे नाम बंधस्वामित्त कर्म्मग्रंथ तृतीय, पृ. ६३अ-६४अ, संपूर्ण. बंधस्वामित्व नव्य कर्मग्रंथ-३, आ. देवेंद्रसूरि, प्रा., पद्य, वि. १३वी १४बी, आदि बंधविहाणविमुक्कं वंद, अंति देविंदसूरि० कम्मत्थयं सोउं, गाथा २५. ६१. पे. नाम षडशीति कारव्य चतुर्थ कर्म्मग्रंथ, पू. ६४-६८ आ, संपूर्ण. षडशीति नव्य कर्मग्रंथ-४, आ. देवेंद्रसूरि, प्रा., पद्य, वि. १३वी - १४वी, आदि: नमिअ जिणं जिअ १ मग्गण; अंतिः विआरो लिहिओ देविंदसूरीहिं गाधा ८८. ६२. पे. नाम. पंचम कर्मग्रंथ, पृ. ६८आ- ७३अ, संपूर्ण. शतक नव्य कर्मग्रंथ-५, आ. देवेंद्रसूरि, प्रा., पद्य, वि. १३वी - १४वी, आदि: नमिय जिणं धुव बंधो १ दय २; अंतिः देविंदसूरि० आवसरणड्डा, गाथा- ९९. ६३. पे. नाम. सप्ततिका सूत्रं षष्टं कर्म्मग्रंथ, पृ. ७३अ-७६आ, संपूर्ण. सप्ततिका कर्मग्रंथ-६, प्रा., पद्य, वि. १३वी -१४वी, आदि: सिद्धपएहिं महत्थं; अंति: निरमिआणं एगूणं होइ नवईओ, गाथा - ९५. ६४. पे. नाम. पाक्षिकसूत्र, पृ. ७६आ-८५अ, संपूर्ण. आवश्यक सूत्र-साधुप्रतिक्रमणसूत्र संग्रह का हिस्सा पाक्षिकसूत्र, प्रा. प+ग, आदि तित्यंकरे व तित्वे; अंति: जेसिं सुवसाय भत्त ६५. पे. नाम. पाक्षिकखामणा, पृ. ८५अ - ८५आ, संपूर्ण. क्षामणकसूत्र, , हिस्सा, प्रा., गद्य, आदि इच्छामि खमासमणो पियं; अंतिः नित्यारग पारगा होह, आलाप ४. ११९१४४. योगचिंतामणि का बालावबोध, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १८० -१४४(१,३ से ५,८ से ७०, ७२ से ७७,८० से ८६,९८,१००,११६ से १७१,१७३ से १७८) = ३६. पू. वि. प्रथम एक, बीच व अंत के पत्र नहीं हैं, प्र. वि. हुंडी. जो. चि., जैवे., (२४x११.५, ७X२३). . For Private and Personal Use Only योगचिंतामणि- टबार्थ, पं. नरसिंह मुनि, मा.गु., गद्य, आदि (-); अंति (-), (पू.वि. प्रथम पाकाधिकार अपूर्ण से सप्तम मिश्रिकाध्याय अपूर्ण तक है व बीच-बीच के पाठांश नहीं हैं., वि. टबार्थ बालावबोध शैली में लिखा गया है.) ११९१४५. अठार पापस्थानक व २४ जिन सवैया पच्चीसी, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ७-१ (३) = ६, कुल पे. २, प्र.वि. हुंडी:अठा., दे., (२३x१२, १६x२९). १. पे. नाम. अठार पापस्थानक, पृ. १अ ७आ, अपूर्ण, पू.वि. बीच का एक पत्र नहीं है. प्रले. मु. चीमनलाल, पठ. सु. ग्यानचंद अन्य. मु. धरमदास, प्र.ले.पु. सामान्य. Page #339 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra ३२४ www.kobatirth.org कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १८ पापस्थानक सज्झाय, मु. लालचंद ऋषि, मा.गु., पद्य, वि. १८९१, आदि महावीर ब्रधमानजी सासनरा; अंतिः लालचंदजी०० वैखै वैपार, गाथा - ३८, (पू.वि. गाथा-११ अपूर्ण से गाथा १७ अपूर्ण तक नहीं है.) २. पे. नाम. २४ जिन सवैया पच्चीसी, पृ. ७आ, अपूर्ण, पू. वि. अंत के पत्र नहीं हैं. मु. चंद्रभाण ऋषि, मा.गु., पद्य, वि. १८५५, आदि: सुरतरु जिन समरुं सदा अति (-) (पू.वि. गाथा ३ अपूर्ण तक है.) ११९१४८. (+) कवित संग्रह, पार्श्वजिन स्तवन व औपदेशिक श्लोक संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ३, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२३.५X१२, १३४३६). Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir १. पे. नाम. कवित संग्रह, पृ. १अ, संपूर्ण. औपदेशिक कवित्त संग्रह, पुहि., मा.गु., पद्य, आदि: काग सीघ कु क्या करें क्या अंति भाग पडे प्राण नही नमे, गाथा-४. २. पे. नाम. पार्श्वजिन स्तवन, पृ. १अ १आ, संपूर्ण. " पार्श्वजिन स्तवन- गोडीजी, मु. रूपचंद, पुहिं, पद्य, आदि कृपा करो गोडी पासजिणेसर; अति: तुमारी रुपचंद पद पायोरी, गाथा-६. ३. पे. नाम. औपदेशिक श्लोक संग्रह, पृ. १आ, संपूर्ण. औपदेशिक श्लोक संग्रह, पुहिं., प्रा., मा.गु. सं., पद्य, आदि सखीमे भत्तचितुरो स्वयं अंति तोडे राम राम रे जतीडा, श्लोक- ५. ११९१४९. (+) रोहिणीतप सज्झाव, कामद संवाद व औपदेशिक दोहा संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पृ. १, कुल पे. ३, प्र. वि. संशोधित, जैदे. (२३४१२, १४४३२). "" १. पे नाम रोहिणीत सज्झाय, पृ. १अ १आ, संपूर्ण. मु. , रामविजय, मा.गु., पद्य, आदि: वंदो हियडे हरख धरेवी; अंति: रामविजय लहे सयल जगीश, गाथा- ९. २. पे. नाम कागद संवाद, पृ. १आ, संपूर्ण. मा.गु., पद्य, आदि: कागल कहे हुं खरो सपेत मुझ; अति तब लग काम सरे नही कोय, गाथा ६. ३. पे नाम औपदेशिक दोहा संग्रह, पृ. १आ, संपूर्ण. औपदेशिक दोहा संग्रह *, पुहिं., पद्य, आदि: पान पडते तेयु कहो सुणो; अंति: तुम वीतसे धीरी बपडीया, दोहा-३. ११९१५०. (क) रोहिणीतप सज्झाय, गुरुगुण गहुंली व १२४ अतिचार विचार श्रावकव्रत, संपूर्ण वि. १९०७ श्रावण कृष्ण, १३, मध्यम, पृ. ३, कुल पे. ३. ले. स्थल, मेदनीपुर, प्र. वि. अशुद्ध पाठ. मूल पाठ का अंश खंडित है, अक्षरों की स्वाही फैल गयी है, वे., (२३.५x१२, १०X२०). १. पे नाम रोहिणीत सज्झाय, पृ. १अ २अ संपूर्ण, प्रले. मु. कस्तुरहंस, प्र.ले.पु. सामान्य. मु. अमृतविजय, मा.गु, पद्य, आदि श्रीवासुपूज्य नमी; अति पदनो होय सामी हो, गाथा- १२. ,י २. पे. नाम. गुरुगुण गहुली, पृ. २अ ३अ संपूर्ण, मु. अमीकुंअर, मा.गु., पद्य, आदि जिरे मारे देसना द्यो; अति भाव प्रधान शिवनगरी वासा, गाथा-७, ३. पे. नाम. १२४ अतिचार विचार - श्रावकव्रत संक्षेप, पृ. ३अ - ३आ, संपूर्ण. १२४ अतिचार विचार - श्रावकव्रत, मा.गु., गद्य, आदि ज्ञानना ८ दर्शनना ८; अंति करीने तस मिच्छामि दुक्कडं. ११९१५१. रोहिणीतपफल कथा १२ चक्रवर्ती छ खंड साधना कालमान विचार व ज्योतिष श्लोक संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पू. ३, कुल पे. ३, जैवे. (२४४१२, १८४४०). १. पे नाम रोहिणीतपफल कथा. पू. १अ ३अ, संपूर्ण. मा.गु.,सं., गद्य, आदि: जंकींची वछइमाणे; अंति: सदा बोले केवल वाणि. २. पे नाम. १२ चक्रवर्ती छ खंड साधना कालमान विचार, पृ. ३.अ, संपूर्ण. मा.गु., गद्य, आदि: प्रथम चक्रव्रत भरतेश्वरने; अंति: देश साधतां वर्ष ६० थया. ३. पे नाम ज्योतिष श्लोक संग्रह, पू. ३आ, संपूर्ण. राम, मा.गु, पद्य, आदि काली रोहिण तेरसे समो कही; अति: परभणे योतिष साचो जोय, गाथा ४. For Private and Personal Use Only Page #340 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२६ ३२५ ११९१६२. (+) शुकनावली, संपूर्ण, वि. १९०१, ज्येष्ठ कृष्ण, ४, सोमवार, श्रेष्ठ, पृ. ६, ले.स्थल. खीवसर, प्रले. मु. चांदमल, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. हुंडी:शुक्नावली०., सुकना०., संशोधित., दे., (२३.५४१२, ५४१०). पाशाकेवली-भाषा, संबद्ध, मा.गु., गद्य, आदि: (१)ॐ नमो भगवति, (२)१११ उत्तम थानक लाभ; अंति: हाथ लागै ध जय. ११९१६८. (+) सामुद्रिकशास्त्र सह बालावबोध, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २२-१(२१)=२१, प्र.वि. संशोधित-प्रतिलेखन पुष्पिका मिटाई हुई है., प्र.ले.श्लो. (१) यादृशं पुस्तकं दृष्ट्वा, जैदे., (२२४१२, १०४२३-२६). सामुद्रिकशास्त्र, सं., पद्य, आदि: आदिदेवं प्रणम्यादौ; अंति: (-), (प्रतिअपूर्ण, पू.वि. बीच के पत्र नहीं हैं व प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., श्लोक-९१ से ९५ तक नहीं है व श्लोक-९६ तक लिखा है.) सामुद्रिकशास्त्र-बालावबोध *, मा.गु., गद्य, आदि: आदि कहता पहीलो आदिदेव; अंति: (-), प्रतिअपूर्ण, पृ.वि. बीच के पत्र नहीं हैं व प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण. ११९१७२. (#) आलोयणा, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ.८, प्र.वि. हुंडी:अलोयणा., मूल पाठ का अंश खंडित है, दे., (२३.५४१२, २०४४७). आलोयणा, प्रा.,मा.गु., गद्य, आदि: एह आत्मानो इण भवे परभवे; अंति: (-), (पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., __ आश्रवकारी उपकरण आलोयणा अपूर्ण तक है.) ११९१७९. दयादानपुन्य सज्झाय, संपूर्ण, वि. १८३८, मार्गशीर्ष कृष्ण, २, श्रेष्ठ, पृ. ७, ले.स्थल. मुदराबंदर, जैदे., (२१.५४११.५, ११४२०-२४). दयादानपुन्य सज्झाय, मा.गु., पद्य, आदि: आदर जीव दया गुण आदर म करी; अंति: प्रतीत आणी आत्मा करो उजलो, गाथा-४०. ११९१८९ (+) नैषध चरित्र सह टीका-सर्ग १ से २, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ६७, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२०४११.५, १५-१९४३२-३९). नैषध चरित्र, क. श्रीहर्ष, सं., पद्य, ई. ११वी, आदि: निपीय यस्य क्षितिरक्षिणः; अंति: (-), प्रतिपूर्ण. नैषध चरित्र-टीका, आ. जिनराजसूरि, सं., गद्य, आदि: प्रोत्सर्पत्कलिकाल; अंति: (-), प्रतिपूर्ण. ११९१९० (+) इलाचीकुमार छढालियुं व चौपाई संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ४०, कुल पे. ४, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., ., (२७७१३, १७४४०). १. पे. नाम. इलाचीकुमार छढालियु, पृ. १अ-४आ, संपूर्ण. मु. माल, मा.गु., पद्य, वि. १८५५, आदि: मात मया करो सरस्वती; अंति: मालमुनि गुण गाय, ढाल-६. २. पे. नाम. हरिश्चंद्रराजा चौपाई, पृ. ४आ-१६अ, संपूर्ण. मु. प्रेम, रा., पद्य, वि. १८३४, आदि: आदिजिनेसर पाय नमी; अंति: जुग मे नाम तीणरो जोय, ढाल-२३. ३. पे. नाम, कयवन्ना चौपाई, पृ. १६अ-३७आ, संपूर्ण. मु. जयतसी, मा.गु., पद्य, वि. १७२१, आदि: स्वस्ति श्रीसुखसंपदादायक; अंति: धरम करण मन उलसै जी, ढाल-३१. ४. पे. नाम. खंधकमनि चौढालिया, पृ. ३७आ-४०आ, संपूर्ण. मु. जैमल ऋषि, रा., पद्य, वि. १८११, आदि: नमुं वीर सासनधणीजी; अंति: मिच्छामि दुक्कड होय, ढाल-४. ११९१९१. नवपद स्तवन, संपूर्ण, वि. १८९९, चैत्र कृष्ण, ४, बुधवार, श्रेष्ठ, पृ. ५, ले.स्थल. चाणोद, प्रले. चमनचंद, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२६४१३, ९४२२). नवपद स्तवन, आ. जिनपद्मसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: अरिहंतपद आराधीय आणी ऊलट; अंति: पद्मसूरि० महातम मोड, स्तवन-९. ११९१९२ (+) श्रावक अतिचार, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ११,प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२७.५४१३, १२४२९). श्रावकपाक्षिकअतिचार-तपागच्छीय, संबद्ध, प्रा.,मा.गु., गद्य, आदि: चारित्राचारे आठ अतिच्यारे; अंति: पक्ष दि० सूक्ष्म०. For Private and Personal Use Only Page #341 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ३२६ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ११९१९३. (+) सामायिक पारण विधि, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ५,प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२६.५४१३.५, १३४२७). देवसिप्रतिक्रमण विधि-खरतरगच्छीय, संबद्ध, प्रा.,मा.गु.,सं., प+ग., आदि: जगा पुंछे वस्त्र पडलहे; अंति: करी मिच्छामि दुक्कडं. ११९१९४. पट्टावली खरतरगच्छीय, संपूर्ण, वि. १८९२, ज्येष्ठ कृष्ण, ९, रविवार, मध्यम, पृ. १०, प्रले. मु. जयसागर (अंचलगच्छ); राज्ये मु. जिनउदयसूरि (अंचलगच्छ), प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२६.५४१३, १२४३५-४९). पट्टावली खरतरगच्छीय, मा.गु., गद्य, आदि: गुब्बरग्रामवासी; अंति: सौभाग्य तस्य वर्द्धत्ते. ११९१९५. प्रास्ताविक पद संग्रह, जिनकुशलसूरि सवैया व जिनकुशलसूरि गीत, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ३, जैदे., (२५.५४१३, १४४३१). १. पे. नाम. प्रास्ताविक पद संग्रह, पृ. १अ, संपूर्ण. ___ पुहि.,मा.गु., पद्य, आदि: मीनख लगाइ ने गाल काढे ती; अंति: (-), पद-५. २. पे. नाम. जिनकुशलसूरि सवैया, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. म. धर्मसीह, पहिं., पद्य, आदि: राजै थुभ ठौर ठौर ऐसौ; अंति: कुशल नाम य कहायो है, गाथा-२. ३. पे. नाम. जिनकुशलसूरि गीत, पृ. १आ, संपूर्ण. मा.गु., पद्य, आदि: कुशल वडो संसार कुशल; अंति: ग्रहण घर घर होय वधावणो, गाथा-२. ११९१९६. (+) जंबूअध्ययन प्रकीर्णक सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ५४+१(३२)=५५, ले.स्थल. अजीमगंज, प्रले. ग. कुशलविजय; पठ. मु. विजयचंद, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. प्रतिलेखन पुष्पिका का भाग खंडित है., पदच्छेद सूचक लकीरे-प्रतिलेखन पुष्पिका मिटाई हुई है., जैदे., (२५४१३, ७४३१). जंबूअध्ययन प्रकीर्णक, ग. पद्मसुंदर, प्रा., गद्य, आदि: तेणं कालेणं तेणं; अंति: से आराहगा भणिया, उद्देशक-२१. जंबूअध्ययन प्रकीर्णक-टबार्थ , मा.गु., गद्य, आदि: ति काल ते समय राजगृही नाम; अंति: सरदहसि ते आराधिक जाणवो. ११९१९८. खंधकऋषि चौढालियो,सनत्कुमारचक्रवर्ती चौढालियो व आषाढमुनि चउपइ, संपूर्ण, वि. १९०४, ज्येष्ठ कृष्ण, १०, शनिवार, श्रेष्ठ, पृ. १७, कुल पे. ३, ले.स्थल, बालुचर, प्रले. मु. सदासुख ऋषि; पठ. श्राव. सुखलाल, प्र.ले.पु. सामान्य, दे., (२६.५४१३, १३४३०). १. पे. नाम. खंधकऋषि चौढालिया, पृ. १अ-६आ, संपूर्ण. खंधकमुनि चौढालिया, रा., पद्य, वि. १८११, आदि: नमुं वीर सासणधणी जी; अंति: करणी करज्यो सहु कोय, ढाल-४. २.पे. नाम. सनत्कुमारचक्रवर्ती चौढालियो, पृ. ६आ-१०अ, संपूर्ण. मु. कुशलनिधान, मा.गु., पद्य, वि. १७८९, आदि: सुखदाई सासण धणी त्रि; अंति: चरम नमुं सुखकंद, ढाल-४, गाथा-५२. ३. पे. नाम. आषाढमुनि चउपइ, पृ. १०अ-१७अ, संपूर्ण. आषाढाभूतिमुनि चौपाई, मु. मानसागर, मा.गु., पद्य, वि. १७३७, आदि: सासणनायक सुखकरूं; अंति: मानसागर सुभ वांण रे लाल, ढाल-७. ११९१९९ (+) सिंदरप्रकर व सभाषित श्लोक, संपूर्ण, वि. १९३३, मार्गशीर्ष कृष्ण, ८, श्रेष्ठ, पृ.८, कुल पे. २, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें-अन्वय दर्शक अंक युक्त पाठ., दे., (२६.५४१३, १२४४५). १. पे. नाम. सिंदूरप्रकर, पृ. १आ-८आ, संपूर्ण. आ. सोमप्रभसूरि, सं., पद्य, वि. १३वी, आदि: सिंदूरप्रकरस्तपः करिशिरः; अंति: सोमप्रभ०मुक्तावलीयम्, द्वार-२२, श्लोक-१००. २. पे. नाम. सुभाषित श्लोक, पृ. ८आ, संपूर्ण. सुभाषित श्लोक संग्रह *, पुहि.,प्रा.,मा.गु.,सं., पद्य, आदि: वक्षौ जौ कठिनौ न वाक्य; अंति: सा स्त्री कथं प्राप्पते. For Private and Personal Use Only Page #342 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ३२७ हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२६ ११९२०० (+#) सिंदूरप्रकर व औषध संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, जीर्ण, पृ. ९, कुल पे. २, प्र.वि. हुंडी:सिंदूरप्रकरण., संशोधित-संशोधित. मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., (२६.५४१३, १०-१४४३३-३६). १. पे. नाम, सिंदूरप्रकर, पृ. १आ-९अ, संपूर्ण. आ. सोमप्रभसूरि, सं., पद्य, वि. १३वी, आदि: सिंदरप्रकरस्तपः करिशिरः; अंति: सोमप्रभ०मुक्तावलीयम्, द्वार-२२, श्लोक-१००. २.पे. नाम. औषध संग्रह, पृ. ९आ, संपूर्ण. औषध संग्रह*, मा.गु., गद्य, आदि: भीलामा प १ भर खुरणी अजमो; अंति: औषद अजमायो छे. ११९२०१. सकलार्हत् स्तोत्र सह अवचूरि, संपूर्ण, वि. १८८५, ?, आषाढ़ अधिकमास कृष्ण, २, श्रेष्ठ, पृ.७, जैदे., (२६४१३, २४३७). त्रिषष्टिशलाकापुरुष चरित्र-हिस्सा सकलार्हत् स्तोत्र, आ. हेमचंद्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., पद्य, वि. १२वी, आदि: सकलार्हत्प्रतिष्ठानम; अंति: श्रीवीरजिननेत्रयोः, श्लोक-२५, संपूर्ण. त्रिषष्टिशलाकापुरुष चरित्र-हिस्सा सकलार्हत् स्तोत्र की नमस्कारावचूरि, सं., गद्य, आदि: अहं आर्हन्यं प्रणिद; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., श्लोक-१० तक अवचूरि लिखी है.) ११९२०२. शीयल रास, संपूर्ण, वि. १८२०, पौष कृष्ण, ७, मध्यम, पृ. २०, ले.स्थल. रत्नमाल, प्रले. मु. पेमजी ऋषि, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२५४१२.५, १२४२२-२६). शीयल रास, मु. ज्ञानचंद्र, मा.गु., पद्य, आदि: पहिला अरिहंत प्रणमी; अंति: गणि करें एह वखाण, गाथा-१९६. ११९२०३. (+) बोल-विचार संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ७२, कुल पे. ६८, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२६.५४१३, १२४३६). १.पे. नाम. १४८ कर्मप्रकृति विचार, पृ. १आ-१०आ, संपूर्ण, पे.वि. हुंडी:कर्मप्रकृति. ८ कर्म १५८ प्रकृति विचार, मा.ग., गद्य, आदि: आठ कर्मनी एक सौ अडतालीस; अंति: प्रकृति एक सौ १४८ कही. २.पे. नाम. ८ आत्मगण के अवरोधक ८ कर्म, पृ. १०आ-११अ, संपूर्ण, पे.वि. हंडी:कर्मप्रकृ. मा.गु., गद्य, आदि: जीव का आठ गुण है सौ आठ ही; अंति: उतपत्ति क्यों कर होय है. ३. पे. नाम. ४ कारण-कर्मबंध, पृ. ११अ, संपूर्ण, पे.वि. हुंडी:कर्मप्रकृ... पुहि., गद्य, आदि: मिथ्यात १ राग २ द्वेष ३; अंति: दूरि करौ मुगति चाहो हो तो. ४. पे. नाम. बासठियो, पृ. ११अ-१८आ, संपूर्ण, पे.वि. हुंडी:कर्मप्रकृ. ६२ मार्गणाद्वार विचार, मा.गु., गद्य, आदि: गइ इंदि काए जोए वेय; अंति: खरौ पणि प्रतीति नहीं करसी. ५. पे. नाम. गुणठाणा विचार, पृ. १८आ-५४आ, संपूर्ण, पे.वि. हुंडी:कर्मप्रकृ, गुणठाणा. भेद-प्रभेदयुक्त गुणस्थानक विचार विस्तार से दिया गया है. यथा- प्रारंभ में प्रत्येक का विस्तार से विवेचन है, बाद में पृ.३६ए से ४२बी में १४ गुणठाणे २४ द्वार विचार, उसके बाद फिर ध्यान विचार, ५६३ जीवभेद विचार, कुलकोटी, २३ पदवी, लेस्या द्वार आदि दिया गया है. १४ गणस्थानक विचार, मा.गु., गद्य, आदि: मिथ्यात्व गुणठाणा; अंति: लेश्या द्वारं सम्मत्तं. ६. पे. नाम. ५ मिथ्यात्व विचार, पृ. ५४आ-५५अ, संपूर्ण, पे.वि. हंडी:कर्मप्रकृ. ___ पुहिं., गद्य, आदि: अभिग्रहीक मिथ्यात १; अंति: अनाभोग मिथ्यात कही जै. ७. पे. नाम, पाँच इंद्रिय संस्थान विषय विचार, पृ. ५५अ-५५आ, संपूर्ण, पे.वि. हुंडी:कर्मप्रकृ. ५ इंद्रिय विषय विचार, मा.गु., गद्य, आदि: स्रोत्रंद्रिनो आकार; अंति: विषय पाँच इंद्रियाना हुवै. ८. पे. नाम. पाँच स्थावर नाम वर्ण अधिष्ठायक आकार विचार, पृ. ५५आ, संपूर्ण, पे.वि. हुंडी:कर्मप्रकृ. ५ स्थावर वर्णाधिष्ठायक विचार, मा.गु., गद्य, आदि: पृथिवीकायनो पीलो वर्ण; अंति: संस्थानना प्रकार. ९. पे. नाम.५ आगम नाम- पंचमकालांते दुप्पसहसूरि समये विद्यमान, पृ. ५५आ, संपूर्ण, पे.वि. हुंडी:कर्मप्रकृ. ५ आगम नाम-पंचमकालांते दप्पसहसूरि समये विद्यमान, पुहिं., गद्य, आदि: दसवैकालिकसूत्र १ जीतकल्प; अंति: रहिस्यै और बिच्छेद जास्य. १०. पे. नाम. चार महापडवा-असज्झायकाल, पृ. ५५आ-५६अ, संपूर्ण, पे.वि. हुंडी:गुणठाणा. ४ पडवा असज्झाय विचार, मा.गु., गद्य, आदि: वैसाख वदि१ श्रावण वदि१; अंति: ए सदाई सिज्झाय न कीजै. For Private and Personal Use Only Page #343 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra ३२८ www.kobatirth.org ११. पे नाम. सामायिक भेद विचार, पृ. ५६अ, संपूर्ण. पुहिं., गद्य, आदि श्रुतसामायिक १ सूत्र: अंतिः विरतिसामायिक साधुने हुवे. " १२. पे. नाम. ४ संज्ञा नाम, पृ. ५६अ, संपूर्ण. पुहिं., गद्य, आदि आहारसंज्ञा १ भयसंज्ञा २ अंति: संज्ञा ३ परिग्रहसंज्ञा ४ . १३. पे. नाम. ४ विकथा नाम, पृ. ५६अ, संपूर्ण. मा.गु., गद्य, आदि: राजकथा १ राजवियारी कथा; अंति: कथा स्त्रीयांनी वातां करे. १४. पे. नाम. ४ भावप्राण सिद्ध के, पू. ५६अ, संपूर्ण मा.गु., गद्य, आदि: गर्भावस्था १ बाल्यावस्था; अंति: यौवनावस्था ३ वृद्धावस्था. १७. पे. नाम. ४ सुपात्र नाम, पृ. ५६आ, संपूर्ण, मा.गु., गद्य, आदि अरिहंतपात्र १ साधुपात्र २ अंतिः ३ सम्यदृष्टिपात्र. १८. पे. नाम. ४ सूर नाम, पृ. ५६आ, संपूर्ण. ४ भावप्राण- सिद्ध, मा.गु., गद्य, आदि: सिद्धकेवलीरे दस प्राणमां; अंति: केवलज्ञान करी सर्व जाणे. १५. पे. नाम. ४ अनंता भेद, पृ. ५६अ, संपूर्ण. पुहिं., गद्य, आदि हिवै च्यार भेद अनंता अति तेहथकी जाति भव्य अनंता ४. " १६. पे. नाम. ४ अवस्था मानव, पृ. ५६-५६आ, संपूर्ण ४ शूर नाम, मा.गु., गद्य, आदि क्षमासूर अरिहंत १ तपसूर अंति: सूरवासुदेव ३ दानसूर ४. ; १९. पे नाम. ४ उपाय धर्मप्राप्ति, पू. ५६आ, संपूर्ण, मा.गु., गद्य, आदि दान‍ शील२ तप३ भाव४: अंतिः तप ३ भावना ४. २०. पे नाम. ४ गति नाम, पृ. ५६आ, संपूर्ण. मा.गु.. गद्य, आदि देवगति १ मनुष्यगति २ अति तिर्यंचगति ३ नरकगति ४. २१. पे. नाम. ४ कारण मनुष्यायुबंध के पृ. ५६ आ, संपूर्ण मा.गु.. गद्य, आदि: सरलपरणाम राखती १ देवगुरु अति अहंकारे करि रहत थकी ४. २२. पे. नाम. ४ कारण देवायुबंध, पृ. ५६आ, संपूर्ण. मा.गु., गद्य, आदि चिहुं प्रकारे जीव देवतानु; अंति: घ्यावतो ३ सुपात्रदान देतो. २३. पे. नाम. ४ ध्यान विचार, पृ. ५६आ, संपूर्ण. मा.गु., रा., गद्य, आदि आर्त्तध्यान १ रौद्रध्यान, अंति: कामभोगनी विचारणा करै. २४. पे नाम. ४ कारण तिर्यंचगति मे जाने के, पू. ५६ आ-५७अ संपूर्ण, मा.गु., गद्य, आदि: सत्त्व १ भूत २ प्राणी ३ अति नारकी इणाने जीव कहीजे. . २७. पे. नाम. ४ कषाय विचार, पृ. ५७अ-५८अ, संपूर्ण. मा.गु., गद्य, आदि: चार प्रकारतौ जीव तिर्यंच; अंति: मापां करिनै व्यापार करतो. २५. पे. नाम. चार रास्ते-नर्क में जाने के, पृ. ५७अ, संपूर्ण. ४ कारण-नर्क में जाने के, मा.गु., गद्य, आदि: चिहुं प्रकारे जीव; अंति: संसारी जीव चिहु प्रकारै. २६. पे. नाम. सत्त्वभूतजीवादि विचार, पृ. ५७अ संपूर्ण मा.गु., गद्य, आदि: च्यार प्रकारे कषाय तेहना; अंति: नावै नरकनी गति में जाइ. २८. पे. नाम. ४ निक्षेपा विचार, पृ. ५८अ, संपूर्ण. मा.गु., गद्य, आदि: च्यार प्रकारे जिन तेहना, अंतिः ए च्यारे जिन सरीखा जाणवा २९. पे नाम. ४ स्वाध्याय विचार, पृ. ५८अ संपूर्ण Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir मा.गु., गद्य, आदि: बाचणा १ सूत्रसिद्धांत; अंति: ए पाँच प्रकारे सिज्झाय. ३०. पे. नाम. ५ चारित्र नाम, पृ. ५८अ, संपूर्ण. मा.गु., गद्य, आदि: सामायक चारित्र १; अंति: यथाक्षात चारित्र५. कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची For Private and Personal Use Only Page #344 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२६ ३१. पे. नाम. ५ चारित्र विचार, पृ. ५८अ-५९आ, संपूर्ण, पे.वि. हुंडी:बोलचाल. मा.गु., गद्य, आदि: सामाइक चारित्र १ छेदोपस्थ; अंति: पंच चारित्र कह्या. ३२. पे. नाम. ५ समिति विचार, पृ. ५९आ-६०अ, संपूर्ण, पे.वि. हुंडी:बोलचाल. मा.गु., गद्य, आदि: ईर्यासुमति१ मार्गनिहालता; अंति: ए पाँच सुमति जाणवी. ३३. पे. नाम, ५ दान विचार, पृ. ६०अ, संपूर्ण, पे.वि. हुंडी:बोलचाल. मा.गु., गद्य, आदि: अभयदान जीवने मारती; अंति: दीजे ते कीर्तिदान कहीजे. ३४. पे. नाम. ५ कल्याणक नाम, पृ. ६०अ, संपूर्ण, पे.वि. हुंडी:बोलचाल. मा.गु., गद्य, आदि: च्यवनकल्याणक१ जन्मकल्याणक; अंति: कल्याणक४ मोक्षकल्याणक५. ३५. पे. नाम, ५ ज्ञान नाम, पृ. ६०अ, संपूर्ण, पे.वि. हुंडी:बोलचाल. मा.गु., गद्य, आदि: मतिज्ञान १ श्रुतज्ञान २; अंति: ज्ञान अरूपी जाणवा. ३६. पे. नाम. ५ दिव्य-तीर्थंकरदानादि अवसरे, पृ. ६०अ, संपूर्ण, पे.वि. हंडी:बोलचाल. मा.गु., गद्य, आदि: देव वंदभी शजे सुवर्ण; अंति: सुगंध पाणी वरसे. ३७. पे. नाम. ५ समकित नाम, पृ. ६०अ-६०आ, संपूर्ण, पे.वि. हुंडी:बोलचाल. मा.गु., गद्य, आदि: उपसमिक समकित १ सास्वादान; अंति: छेदक ४ क्षायक. ३८. पे. नाम. ६ कारण-साधु आहारग्रहण के, पृ. ६०आ, संपूर्ण, पे.वि. हुंडी:बोलचाल. साधु आहारग्रहण के ६ कारण, पुहि.,मा.गु., गद्य, आदि: क्षुधावेदनी उपसमाडिवा; अंति: चिंता निमित्त आहार ल्ये. ३९. पे. नाम. ६ कारण-साधु आहार त्याग के, पृ. ६०आ, संपूर्ण, पे.वि. हुंडी:बोलचाल. साधु आहार त्याग के ६ कारण, मा.गु., गद्य, आदि: कोई उपगसर्ग करे तो आहार; अंति: छोडे ए छ कारणे आहार छोड़े. ४०. पे. नाम. छ री नाम, पृ. ६०आ, संपूर्ण, पे.वि. हुंडी:बोलचाल. मा.गु., गद्य, आदि: सचित्त परिहारी धरतीय; अंति: पादचारी ५ ब्रह्मचारी ६. ४१. पे. नाम. ६ आरा मान, पृ. ६०आ-६१आ, संपूर्ण, पे.वि. हुंडी:बोलचाल. मा.गु., गद्य, आदि: पहलउ सूसूमसूसम नाम आरउ; अंति: कोडि सागर प्रमाण जाणवौ. ४२. पे. नाम. ६ भाषा नाम, पृ. ६१आ, संपूर्ण, पे.वि. हंडी:बोलचाल. मा.गु., गद्य, आदि: संस्कृत १ प्राकृत; अंति: पैशाची ७ अपभ्रंश. ४३. पे. नाम. ७ नय नाम, पृ. ६१आ, संपूर्ण, पे.वि. हुंडी:बोलचाल. मा.गु., गद्य, आदि: निगमनय १ संग्रह २; अंति: ऋजसत्र समभिरुढ. ४४. पे. नाम. सात अभव्य नाम, पृ. ६१आ, संपूर्ण, पे.वि. हुंडी:बोलचाल. ७ अभव्य अधिकार, मा.गु., गद्य, आदि: संगमे १ कालशूरे य २; अंति: सातमो उदाई राजारो मारणहार. ४५. पे. नाम. ७ भय नाम, पृ. ६१आ-६२अ, संपूर्ण, पे.वि. हुंडी:बोलचाल. ___मा.गु., गद्य, आदि: इहलोक भय १ परलोक भय २; अंति: ए सात भय जाणवा. ४६. पे. नाम. ८ प्रकार की पूजा, पृ. ६२अ, संपूर्ण. ८ प्रकारी पूजा, मा.गु., गद्य, आदि: चंदन पूजा १ धूप पूजा २; अंति: ए आठ प्रकारनी पूजा. ४७. पे. नाम, जीवनी आठ खांणिना नाम, पृ. ६२अ, संपूर्ण. ८ जीवभेद नाम-बालावबोध, मा.गु., गद्य, आदि: अंडजा १ इंडाथी उपना पंखी; अंति: सर्वजीवां उपजिवाना ठिकाणा. ४८. पे. नाम. ८ सिद्धि नाम, पृ. ६२अ-६२आ, संपूर्ण, पे.वि. हुंडी:बोलचाल. __मा.गु.,सं., पद्य, आदि: अणिमा १ महिमा २; अंति: ए आठ महासिद्धि, श्लोक-३. ४९. पे. नाम. ८ मद नाम, पृ. ६२आ, संपूर्ण, पे.वि. हंडी:बोलचाल. मा.गु., गद्य, आदि: जातिमद १ लाभमद २; अंति: ए आठ मद जाणवा. ५०. पे. नाम. ८ प्रवचनमाता नाम, पृ. ६२आ, संपूर्ण, पे.वि. हुंडी:बोलचाल. मा.गु., गद्य, आदि: १ इरज्यासम २ भाषासम; अंति: वचनगुप्त ८ कायगुप्त. For Private and Personal Use Only Page #345 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra ३३० www.kobatirth.org ५१. पे. नाम. नववाड-ब्रह्मचर्य विषयक, पृ. ६२-६३अ, संपूर्ण. नववा शीलविषयक, मा.गु., गद्य, आदि: पशु पंडक रहित स्थानक १ अति: ९ शरीरनी शोभा न करे. ५२. पे. नाम. १० यतिधर्म भेद, पृ. ६३अ, संपूर्ण. मा.गु., गद्य, आदि: क्रोध न करे क्षमा धेरै १; अंति: दस भेदे यतीनो धर्म जाणिवो. ५३. पे. नाम. १० पच्चक्खाण विचार सूत्र, पृ. ६३अ - ६३आ, संपूर्ण, पे. वि. हुंडी : बोलचाल. प्रा. मा. गु., गद्य, आदि अंगूठो नवकार कही नमू अंतिः ए दस पच्चक्खाण. ५४. पे नाम. १० पच्चक्खाण नाम, पृ. ६३आ, संपूर्ण, पे.वि. हुंडी : बोलचाल. मा.गु., गद्य, आदि १ नवकारसी २ पोरसी अंति: ९ अभिग्रह १० उपवास. ५५. पे नाम. १० वैयावच्च भेद, पू. ६३आ, संपूर्ण, पे. वि. हुंडी. बोलचाल. प्रा.मा.गु., गद्य, आदि आचार्यजीनी १ उपध्यायजीनी; अति दसनुं वैयावच्च करवु. ५६. पे. नाम. १० संज्ञा नाम, पृ. ६३आ, संपूर्ण, पे.वि. हुंडी : बोलचाल. मा.गु., गद्य, आदि आहार संज्ञा १ भय संज्ञा २ अति: ओघ संज्ञा ९ लोक संज्ञा १०. ५७. पे. नाम. इग्यार श्रावक प्रतिमा विचार, पृ. ६३आ-६५अ, संपूर्ण, पे.वि. "हिवै सतर भेद संजमना नाम लिखिइ छ" सा प्रारंभ में लिखा है. मा. गु, गद्य, आदि प्रथम स्थूल प्राणाति; अति तिको आहार आप जीमै, ५९. पे. नाम. १२ भावना विचार, पृ. ६५आ-६७आ, संपूर्ण, पे.वि. हुंडी:बोलचाल. मा.गु., गद्य, आदि: पहिली अनित भावना ते अति नास करी मुक्ति पहुचे. ६०. पे नाम, १३ काठिया नाम, पृ. ६७-६८ अ, संपूर्ण, पे.वि. हुंडी : बोलचाल. मा.गु., गद्य, आदि: पहिलो काठियो आलस; अंति: खेलावतौ उपासरै न जाय सकै. ६१. पे नाम. समूर्छिमजीवोत्पत्ति स्थान विचार, पृ. ६८अ ६८आ, संपूर्ण, पे.वि. हुंडी : बोलचाल. मा.गु., गद्य, आदि : उच्चारे सुवा १ उच्चारेसु; अंति: भागि तेहनो देहमांन हुवै. ६२. पे नाम, १४ पूर्व नाम, पृ. ६८आ, संपूर्ण, पे.वि. हंडी: बोलचाल. प्रा.,मा.गु., गद्य, आदि: उत्पाद१ अग्रेणीय२; अंति: लोकबिंदुसार पूर्व १४. ६३. पे. नाम. १४ रत्न विचार- चक्रवर्ती, पृ. ६८-६९अ, संपूर्ण, पे.वि. हुंडी : बोलचाल. मा.गु., गद्य, आदि: चक्ररत्न १ छत्ररत्न; अंति: रत्न चक्रवर्त्तीने जाणवा. ६४. पे नाम. १५ परमाधामी विचार, पू. ६९-७० अ, संपूर्ण. Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कैलास आवक ११ प्रतिमा विचार, मा.गु., गद्य, आदि: दरसन प्रतिमा१ ज्ञान; अंतिः पिण गृहस्थावस्था मे नावै. ५८. पे. नाम. १२ व्रत विचार, पृ. ६५अ -६५आ, संपूर्ण. मा.गु., गद्य, आदि: पहिलो अंब १ तिको में छूरो; अंति: सोटास्युंकुटीने पूठा आणै. ६५. पे नाम. १५ कर्मभूमि विचार, पृ. ७०-७० आ, संपूर्ण, पे.वि. हुंडी बोलचाल. मा.गु., गद्य, आदि: कर्मभूमि जंबूद्वीपमांहै; अंति: तिण वास्ते कर्मभूमि कही जै. ६६. पे नाम. १५ भेद सिद्ध विचार, पृ. ७०-७१अ संपूर्ण, पे.वि. हुंडी : बोलचाल. मा.गु., गद्य, आदि: जिनसिद्ध १ तीर्थंकरनी; अंति: पनरह भेद सिद्धना जांणिवा. ६७. पे नाम. १५ कर्मादान विचार, पू. ७१-७१ आ. संपूर्ण, पे.वि. हुंडी बोलचाल. मा.गु., गद्य, आदि: पहिलो इंगालकर्म १ इंगाला; अंति: कर्मादान श्रावकने नै करवा. ६८. पे नाम. १६ संज्ञा नाम, पृ. ७१आ-७२अ संपूर्ण, पे.वि. हुंडी : बोलचाल. मा.गु., गद्य, आदि : आहार१ भयर परिग्रह३; अंति: सोगसंज्ञा १५ धर्मसंज्ञा १६ . श्रुतसागर ग्रंथ सूची For Private and Personal Use Only ११९२०४ (४) सम्मेत विलास, अपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पृ. ४-१ (१) - ३, प्र. मु. चंद, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. मूल पाठ का अंश खंडित है, अक्षरों की स्वाही फैल गयी है, जैवे. (२५.५४१३, ११४२७). Page #346 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ३३१ हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२६ सम्मेतशिखरतीर्थ स्तवन, आ. लोहाचार्य, पुहि., पद्य, आदि: (-); अंति: (१)सुरगा जाय सुख भोगवै, (२)लोहा० गुण सठि लाखहि मान, गाथा-४८, (पू.वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं., गाथा-१४ अपूर्ण से है.) ११९२०५ (4) महावीरजिन स्तवन-२७ भवविचारगर्भित, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ.५, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६४१३, १२४३०). महावीरजिन स्तवन-२७ भवविचारगर्भित, मु. हंसराज, मा.गु., पद्य, वि. १७वी, आदि: सरसति भगवति दिओ मति; ___अंति: (-), (पू.वि. ढाल-८ गाथा-८३ अपूर्ण तक है.) ११९२०६. (+#) नवतत्त्व विचार. लघु व वृहद, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १०, कुल पे. ३, प्र.वि. संशोधित. अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, जैदे., (२५.५४१३, १४४४१). १.पे. नाम. नवतत्त्व विचार, पृ.१अ-१आ, संपूर्ण, पे.वि. हंडी:नवतत्त्व. मा.गु.,रा., गद्य, आदि: जीव १ अजीव २ पुन्य ३ पाप; अंति: कायना ४ भेदरुपी. २. पे. नाम. नवतत्त्व विचार लघु, पृ. १आ-२आ, संपूर्ण. नवतत्त्वभेद विचार-संक्षिप्त, मा.गु., गद्य, आदि: जीवना १४ भेद १ अजीवना १४; अंति: १ दर्शन २ चारित्र ३ तप ४. ३. पे. नाम. नवतत्त्वविचार वृहद्, पृ. २आ-१०आ, संपूर्ण, पे.वि. हुंडी:वडीनवतत्त्व. नवतत्त्वभेद विचार-बृहद्, मा.गु., गद्य, आदि: जीवना पाँच सौ तेसठ भेद१; अंति: सिद्धासंख्यात गुणा ९. ११९२०७. (+) अनुयोगद्वारसूत्र-२१ बोल अधिकार, संपूर्ण, वि. १९०६, श्रावण कृष्ण, ११, सोमवार, श्रेष्ठ, पृ. ९, प्रले. पंडित. शिवकर्ण, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित., दे., (२५.५४१३, ११४३३). अनयोगद्वारसत्र-२१ बोल अधिकार. संबद्ध, मा.ग.. गद्य, आदि: पहेले बोले नय सात दजे: अंति: ते विचारीने ज्योजोजी. ११९२०८. (+) मेरुत्रयोदशीपर्व व्याख्यान, संपूर्ण, वि. १९४६, फाल्गुन कृष्ण, ६, श्रेष्ठ, पृ. ६, प्रले. मु. धनसुख ऋषि; पठ. श्राव. वेजुलाल, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. हुंडी:मेरुत्रयोदशीव्या०., संशोधित-पदच्छेद सूचक लकीरें-अन्वय दर्शक अंक युक्त पाठ., दे., (२६.५४१३, १४४३५). मेरुत्रयोदशीपर्व व्याख्यान, म.क्षमाकल्याण, सं., गद्य, वि. १८६०, आदि: मारुदेवं जिनं नत्वा; अंति: शिष्यैरामोदतस्त्वदः, ग्रं. १६५. ११९२११. (#) आनंदघन चौवीशी, अपूर्ण, वि. १९वी, जीर्ण, पृ. १२-१(१)=११, प्र.वि. मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., (२७७१३, १३४३१-३५). स्तवनचौवीसी, मु. आनंदघन; आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., पद्य, वि. १८पू, आदि: (-); अंति: (१)अनंत सुखनो सदा रे, (२)गाता अखय संपद अतिघणी, स्तवन-२४, (पू.वि. अभिनंदनजिन स्तवन गाथा-३ अपूर्ण से है.) ११९२१२ (#) औपदेशिक दोहा संग्रह, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १०-४(१ से ४)=६, प्र.वि. हंडी:सीलोक., अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२८x१३, १६४३६-३९). औपदेशिक दोहा संग्रह, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. बीच के पत्र हैं., गाथा-१९० अपूर्ण से ३५४ अपूर्ण तक है.) ११९२१३. (+) चातुर्मासिक व्याख्यान व औपदेशिक श्लोक संग्रह, संपूर्ण, वि. १९३४, आषाढ़ शुक्ल, १५, बुधवार, मध्यम, पृ. १९, कुल पे. २, ले.स्थल. मकसूदाबाद, प्रले. मु. अबीरचंद जती; राज्ये आ. हेमचंद्रसूरि (गुरु पंन्या. पद्मविजय, प्रेमसूरिपट्टे); अन्य. श्राव. छत्रचंद, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. हुंडी:चौमासीवखाण., पदच्छेद सूचक लकीरे-संशोधित., प्र.ले.श्लो. (११३) जब लगई मेरु थिर रहे, दे., (२७४१२.५, १३४३६). १.पे. नाम, चातुर्मासिक व्याख्यान, पृ. १आ-१९अ, संपूर्ण. रा.,सं., पद्य, आदि: सामायिकावश्यकपौषधानि; अंति: दुक्कडं देवो. २. पे. नाम. औपदेशिक श्लोक, पृ. १९आ, संपूर्ण. औपदेशिक श्लोक संग्रह, पुहि.,प्रा.,मा.गु.,सं., पद्य, आदि: यदि भ्रात धनं नास्ति; अंति: स्वर्गेपि ते दुर्लभाः, श्लोक-३. ११९२१४. जंबूस्वामी चरित्र, संपूर्ण, वि. १८५७, ज्येष्ठ शुक्ल, २, श्रेष्ठ, पृ. २४, प्र.वि. हुंडी:जंबुकुमारचौपाई., जैदे., (२७४१३, १७४५६). For Private and Personal Use Only Page #347 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ३३२ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची जंबूकुमार चौपाई, मु. सोभचंद, मा.गु., पद्य, वि. १६९२, आदि: सकल जिनेसर पाय नमी; अंति: जनम सफल ते करस्यइंजी, ढाल-४०. ११९२१५. (+) स्तुति, स्तोत्र, छंद व स्तवनादि संग्रह, संपूर्ण, वि. १८८६-१९०४, मध्यम, पृ. ३४, कुल पे. ६२, ले.स्थल. राधनपुर, प्रले. ग. विवेकविजयजी (तपागच्छ), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२७.५४१२, १५४३४-३८). १. पे. नाम. पार्श्वजिन छंद-शंखेश्वर, पृ. १अ-२अ, संपूर्ण. ग. कनकरत्न, मा.गु., पद्य, वि. १७११, आदि: सरसति सार सदा बुध; अंति: कनक सदा० मन सिद्धो, गाथा-२५. २.पे. नाम. पार्श्वजिन छंद-जीराउला, पृ. २अ-३आ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तवन-जीरावला, म. लावण्यसमय, मा.गु., पद्य, आदि: जीराउलि मंडण श्रीपास; अंति: तूठइं नवनिअंगणइं, गाथा-३८. ३. पे. नाम. ३४ अतिशय छंद, प. ३आ-४आ, संपूर्ण. मु. ज्ञानसागर, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीसुमतिदायक कुमति; अंति: ज्ञान० मांग भवभवे, गाथा-११. ४. पे. नाम. पार्श्वजिन स्तवन-फलवर्द्धि, पृ. ४आ-५अ, संपूर्ण. म. श्रीसार, मा.गु., पद्य, आदि: परतापूरण प्रणमीइ अरिगंजण; अंति: सेवकनइ सानिधि करि, गाथा-२०. ५. पे. नाम. माणिभद्र छंद, पृ. ६आ-७आ, संपूर्ण, ले.स्थल. राधनपुर. माणिभद्रवीर छंद, मु. लालकुशल, मा.गु., पद्य, आदि: सरसति भगवती भारती; अंति: लालकुशल लक्ष्मी लही, गाथा-२१. ६. पे. नाम. प्रास्ताविक गाथा, पृ. ७आ, संपूर्ण, पे.वि. यह कृति इस प्रत के साथ एक से अधिक बार जुड़ी हुई है. प्रास्ताविक श्लोक संग्रह, प्रा.,मा.गु.,सं., पद्य, आदि: हंसस्वेत बगस्वेत को भेदो; अंति: नव गोप्पी निकारएत्, गाथा-२. ७. पे. नाम. पार्श्वजिन छंद-गोडीजी, पृ. ७आ-१०आ, संपूर्ण, वि. १८८६, ज्येष्ठ कृष्ण, १, शनिवार. म. राम, मा.गु., पद्य, वि. १७७२, आदि: ॐकार लीला ललित कलित; अंति: राम० पासजी जय जयकरण, गाथा-६४. ८. पे. नाम. प्रास्ताविक गाथा, पृ. १०आ, संपूर्ण, पे.वि. यह कृति इस प्रत के साथ एक से अधिक बार जुड़ी हुई है. गाथा संग्रह, पुहिं.,प्रा.,मा.गु.,सं., पद्य, आदि: जो सीमांचुथीस पाटलौ मकरी; अंति: धुम्रकेता १ धुम्रकेतु उगे, गाथा-२. ९. पे. नाम. पार्श्वनाथ स्तोत्र, पृ. ११अ, संपूर्ण, पे.वि. विधि सहित. पार्श्वजिन स्तोत्र-कलिकंड, सं., पद्य, आदि: ॐ ह्रीं श्रीं तं नमह; अंति: (१)श्रीं इय नाउ सरह भगवंतं, (२)ये समरणी सर्व सिद्धि थाई, श्लोक-४. १०. पे. नाम. बृहस्पति स्तोत्र, पृ. ११अ-११आ, संपूर्ण. सं., पद्य, आदि: ॐ वृहस्पतिः; अंति: यः पठेत् धिखणा स्तुति, श्लोक-४. ११. पे. नाम. शनिश्चर स्तोत्र, पृ. ११आ, संपूर्ण. __सं., पद्य, आदिः यः पुरा राज्यभ्रष्टाय; अंति: पीडा न भवंति कदाचन, श्लोक-१०. १२. पे. नाम. मंगलग्रह स्तोत्र, पृ. ११आ-१२अ, संपूर्ण, ले.स्थल. राधनपुर. ___सं., पद्य, आदि: मंगलो भूमिपुत्रश्च; अंति: प्राप्नोति नित्यशः, श्लोक-४. १३. पे. नाम. रविवारव्रत कथा, पृ. १२अ-१३अ, संपूर्ण. म. कांतिविजय, मा.गु., पद्य, वि. १८३६, आदि: सुखकर प्रणमुं सरसति; अंति: कांति० रवी जय जयकार, गाथा-३०. १४. पे. नाम, जीवदया छंद, पृ. १३आ-१४आ, संपूर्ण... दयापच्चीसी, म. विवेकचंद, मा.गु., पद्य, आदि: सयल तीर्थंकर कर प्रणाम; अंति: विवेकचंद० एह विचार, गाथा-२४. १५. पे. नाम. नक्षत्र चूडामणी शुकनावली, पृ. १४आ-१५आ, संपूर्ण, ले.स्थल. राधनपुर. ___ सं., गद्य, आदि: ॐ नमो चिलि चिलि इलि इलि; अंति: उतपातश्च दृश्यंते. १६. पे. नाम. चिंतामणजी संगीत छंद, पृ. १५आ, संपूर्ण. पार्श्वजिन छंद-चिंतामणि, मा.गु., पद्य, आदि: कर दुम पवुड मदम क्रिकर; अंति: बचनं नौतम नौतम खेल खेलैया, गाथा-५. For Private and Personal Use Only Page #348 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२६ ३३३ १७. पे. नाम. शांतिजिन स्तवन, पृ. १५आ-१६अ, संपूर्ण, प्रले. ग. विवेकविजयजी (तपागच्छ), प्र.ले.पु. सामान्य. मु. उदयरत्न, मा.गु., पद्य, आदि: सुणो शांतिजिणंद; अंति: एहवी उदयरतन कहे वाणी, गाथा-१०. १८. पे. नाम. वज्रपंजर स्तोत्र, पृ. १६अ-१६आ, संपूर्ण, पे.वि. यह कृति इस प्रत के साथ एक से अधिक बार जुड़ी हुई है. सं., पद्य, आदि: ॐ परमेष्ठिनमस्कारं सारं; अंति: राधिश्चापि कदाचन, श्लोक-८. १९. पे. नाम, महालक्ष्मी मंत्र, पृ. १६आ, संपूर्ण, पे.वि. लक्ष्मी व अन्नपूर्णा मंत्र विधि सहित है. महालक्ष्मी मंत्र विधि सहित, मा.गु.,सं., गद्य, आदि: ॐ ह्रीं श्रीं कमले विमले; अंति: (१)अन्नपूर्णा स्वाहा, (२)धनधान्य सुख पांमे. २०. पे. नाम. सरस्वती स्तोत्र-षोडशनाम गर्भित, पृ. १६आ-१७अ, संपूर्ण. सरस्वतीदेवी षोडशनाम स्तोत्र, सं., पद्य, आदि: नमस्ते शारदादेवी; अंति: निःशेष जाड्यापहा, श्लोक-१२. २१. पे. नाम. माणिभद्रवीर छंद, पृ. १७अ, संपूर्ण, ले.स्थल. राधनपुर. मु. शिवकीर्ति, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीमाणिभद्र सदा; अंति: शिवकीर्ति० सुजस कहे, गाथा-९. २२. पे. नाम. औपदेशिक गाथा, पृ. १७अ, संपूर्ण. औपदेशिक गाथा संग्रह *, पुहिं.,मा.गु.,सं., पद्य, आदि: व्यापारे वधते लक्ष्मी; अंति: भिक्षायं नैव च नैव च, गाथा-१. २३. पे. नाम. पार्श्वजिन चैत्यवंदन, पृ. १७आ-१८अ, संपूर्ण. पार्श्वजिन चैत्यवंदन-शंखेश्वरतीर्थ, पंन्या. रूपविजय, मा.गु., पद्य, वि. १९वी, आदि: सकल भविजन चमत्कारी; अंति: रुप कहे प्रभुता वरो, गाथा-९. २४. पे. नाम. वज्रपंजर स्तोत्र, पृ. १८अ, संपूर्ण, पे.वि. यह कृति इस प्रत के साथ एक से अधिक बार जुड़ी हुई है. सं., पद्य, आदि: ॐ परमेष्ठिनमस्कारं सारं; अंति: राधिश्चापि कदाचन, श्लोक-८. २५. पे. नाम. ज्वालामालिनी स्तोत्र विधि, पृ. १८अ-१८आ, संपूर्ण. मा.गु., गद्य, आदि: ए स्तोत्र सर्वजन सुता पछी; अंति: सर्वदोष जावे ए सत्य छै. २६. पे. नाम. नवग्रह मंत्राक्षर स्तोत्र, पृ. १८आ-१९अ, संपूर्ण. ९ग्रह मंत्राक्षर स्तोत्र, सं., पद्य, आदि: प्रथमप्रणव मायाबीजं; अंति: चिरं जीयाय शाश्वती, श्लोक-१२. २७. पे. नाम. नवग्रहशांति-जिननामगर्भित, पृ. १९अ, संपूर्ण. नवग्रहशांति विधि, मा.गु.,सं., गद्य, आदि: सूर्य नडते पद्मप्रभुना; अंति: नील वस्त्रै पूजा करवी. २८. पे. नाम. शनि मंत्र-विधि सहित, पृ. १९अ, संपूर्ण, पे.वि. हासिये में मंत्र व विधि है. शनिमंत्रजाप विधि, मा.गु.,सं., गद्य, आदि: ॐ नमो शनीश्वराय ओं क्रौं; अंति: कुरु कुरु श्रीयां. २९. पे. नाम. नव अंग पूजा दहा, पृ. १९अ-१९आ, संपूर्ण, पे.वि. पेटांक के अंत में उंदर संबंधी मंत्र दिया है. नवअंगपूजा दोहा, मु. वीरविजय, मा.गु., पद्य, आदि: जल भरी संपुट पत्रमा; अंति: कहे शुभवीर मुणिंद, गाथा-१०. ३०. पे. नाम. पार्श्वजिन छंद-नाकोडा मंडण, पृ. १९आ-२०अ, संपूर्ण. पार्श्वजिन छंद-नाकोडामंडन, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, वि. १७वी, आदि: आपण घर बेठा लील करो; अंति: कहै गुण जोडो, गाथा-८. ३१. पे. नाम. शनिश्चर मंत्र, पृ. २०अ, संपूर्ण, पे.वि. काक शकुन व सामान्य औषध संग्रह का उल्लेख है. शनीश्वर मंत्र संग्रह, सं., गद्य, आदि: ॐ नमो भगवते श्रीशनि; अंति: ऊपरें बांधी समाधि थाय. ३२. पे. नाम. पार्श्वजिन छंद-शंखेश्वर, पृ. २०आ, संपूर्ण, वि. १९००, ले.स्थल. राधनपुर. - ग. जिनहर्ष, मा.गु., पद्य, आदि: सकल सुरासुर सेवे; अंति: जिनहर्ष अकल अविनास, गाथा-८. ३३. पे. नाम, औपदेशिक श्लोक, पृ. २०आ, संपूर्ण. औपदेशिक श्लोक संग्रह , पुहि.,प्रा.,मा.गु.,सं., पद्य, आदि: दहीयं फरदहीयं रंगरसलुद्ध; अंति: हा हा हो हो देवेन सहीयं, श्लोक-१. ३४. पे. नाम. औषध संग्रह, पृ. २०आ, संपूर्ण. औषध संग्रह*, मा.गु., गद्य, आदि: फटकडी ज ४ भार मोरथुथु ज ४; अंति: वालवी फुटु छाया माटे. For Private and Personal Use Only Page #349 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ३३४ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ३५. पे. नाम. आदिजिन छंद, पृ. २१आ, संपूर्ण, वि. १९०१, माघ शुक्ल, ५. आदिजिन छंद-धुलेवामंडन, आ. गणसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: प्रमोदरंगकारणी कला; अंति: रिद्धी सिद्ध पाइइं, गाथा-८. ३६. पे. नाम. ज्योतिष विचार, पृ. २१आ-२२अ, संपूर्ण. भडली संग्रह, मा.गु.,सं., पद्य, आदि: नाम अक्षर दो गुणा कीजै; अंति: कहीइं २ बीजीनो विचार छै. ३७. पे. नाम. माणिभद्र आरती, पृ. २२अ, संपूर्ण. माणिभद्रवीर आरती, मु. चतुरकुशल, मा.गु., पद्य, आदि: जय जय आरती माणिभद्र देवा; अंति: चतुरकुसल नवनिधि पावे, गाथा-८. ३८. पे. नाम. शारदा स्तोत्र, पृ. २२अ-२२आ, संपूर्ण. सरस्वतीदेवी स्तुति, सं., पद्य, आदि: प्रथम भारती नाम; अंति: सरस्वति दिसतु मे विद्या, श्लोक-८. ३९. पे. नाम. छींक विचार-पाक्षिक प्रतिक्रमण, पृ. २२आ, संपूर्ण. छींक विचार, संबद्ध, मा.गु.,सं., गद्य, आदि: पाखी पडिकमणा माहि; अंति: छिक दूषण मिटे सही. ४०. पे. नाम. औपदेशिक गाथा, पृ. २२आ, संपूर्ण, पे.वि. यह कृति इस प्रत के साथ एक से अधिक बार जुड़ी हुई है. गाथा संग्रह, पुहिं.,प्रा.,मा.गु.,सं., पद्य, आदि: एसी वरसे सेंथो पुरें; अंति: पण टेक न मेले टरडी, गाथा-१. ४१. पे. नाम. त्रिशष्टिशलाकापुरुष चरित्र, पृ. २३अ-२३आ, संपूर्ण. ६३ शलाकापुरुष सज्झाय, मु. स्वरूपचंद, मा.गु., पद्य, आदि: प्रहसमे प्रणमुं सरसती माय; अंति: सरुपचंद लहे जयकार, गाथा-२१. ४२. पे. नाम. ३४ अतिशय स्तवन, पृ. २३आ-२४आ, संपूर्ण. चौंतीस अतिशय स्तवन, मु. नित्यलाभ, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीजिन प्रणमुं सुख; अंति: नितलाभ नमे जिन पाय, गाथा-१३. ४३. पे. नाम. चौवीस दंडक छंद, पृ. २४आ-२५अ, संपूर्ण. २४ दंडक छंद, म. विजयशील, मा.गु., पद्य, आदि: चरम जिणेसर वीर जिणंद; अंति: विजयशील तुं मारी सेव, गाथा-२१. ४४. पे. नाम. औपदेशिक गाथा, पृ. २५अ, संपूर्ण, पे.वि. यह कृति इस प्रत के साथ एक से अधिक बार जुड़ी हुई है. गाथा संग्रह, पुहि.,प्रा.,मा.गु.,सं., पद्य, आदि: प्रीतम प्रीत न तोडीइं; अंति: जोडीइं बीच गठ निरधार, गाथा-१. ४५. पे. नाम. आवती चौवीसी नाम, पृ. २५अ-२५आ, संपूर्ण. २४ जिन नाम-अनागत, मा.गु., गद्य, आदि: दजा सुपार्श्वजीनो; अंति: स्वयंबुधनो जीव थस्यै २४. ४६. पे. नाम. महावीरजिन आरती, पृ. २५आ-२६अ, संपूर्ण. मा.गु., पद्य, आदि: श्रीसरसती माइ कृपा करो आई; अंति: भावे आरती करे इंद्र सेवा, गाथा-७. ४७. पे. नाम. गौतमस्वामी स्तोत्र, पृ. २६अ-२६आ, संपूर्ण. ग. विजयशेखर, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीगौतम गुरु प्रभात; अंति: जयशिखर कहे सुविलासि, गाथा-१३. ४८.पे. नाम. ज्योतिष व वैद्यकसंग्रह, पृ. २६-२७आ, संपूर्ण. सं., प+ग., आदि: खयरनां लाकडां पइसा ३ भार; अंति: रोज रुपीओ १ देवें सत्य. ४९. पे. नाम. पिपीलिका रक्षा मंत्र विधि सहित, पृ. २७आ, संपूर्ण. पिपीलिकारक्षा मंत्र, सं., गद्य, आदि: ॐ नमो भगवते श्रीपार्श्व; अंति: क्षिपेत् पिपीलिका नासयंती. ५०. पे. नाम. पार्श्वजिन स्तवन-शंखेश्वर, पृ. २७आ-२८अ, संपूर्ण. पार्श्वजिन छंद-शंखेश्वरतीर्थ, म. पद्मविजय, पुहिं., पद्य, आदि: श्रीसंखेसर गांम बीराजें; अंति: पद्मविजय० सीर नामे, गाथा-७. ५१. पे. नाम. दस पच्चक्खाण फल सज्झाय, पृ. २८अ-२८आ, संपूर्ण, पे.वि. अंत में स्त्री वचित्र विषयक योगी वणी संवादात्मक गाथा दी गई है. १० पच्चक्खाणफल सज्झाय, मा.गु., पद्य, आदि: दसविह प्रह उठी; अंति: पामी निश्चै निर्वाण, गाथा-९. For Private and Personal Use Only Page #350 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२६ ३३५ ५२. पे. नाम. ज्योतिष संग्रह, पृ. २८आ, संपूर्ण. ___ज्योतिष , पुहि.,मा.गु.,सं., प+ग., आदि: शनी आदित्या मंगला जोके; अंति: यदुराय पोढे ते विचार छै. ५३. पे. नाम. अष्टमीतिथि चैत्यवंदन, पृ. २८आ, संपूर्ण. ___ अष्टमीतिथिपर्व चैत्यवंदन, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: सुमतिनाथ एकासणुं करी; अंति: थया ज्ञानविमळ गुणगेह, गाथा-६. ५४. पे. नाम. जंबूपन्नति भेद, पृ. २८आ, संपूर्ण. जंबूद्वीपप्रज्ञप्ति छंद, मु. फूलचंद, मा.गु., पद्य, आदि: एकं लखं जोयण जंबुद्वीपं; अंति: फूलचंद कहंदा हे, गाथा-१८. ५५. पे. नाम. शांतिजिन छंद-हस्तिनापुरमंडन, पृ. २९आ-३०आ, संपूर्ण. आ. गुणसागरसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: सारद माय नमें सिरनाम; अंति: मनवंछित शिवसुख पावे, गाथा-२१. ५६. पे. नाम. प्रास्ताविक श्लोकसंग्रह, पृ. ३०आ, संपूर्ण, पे.वि. यह कृति इस प्रत के साथ एक से अधिक बार जुड़ी हुई है. प्रास्ताविक श्लोक संग्रह, प्रा.,मा.गु.,सं., पद्य, आदि: आतुरस्य पिता वैद्य स्वस्थ; अंति: फिर पीछे पस्तांन, गाथा-६. ५७. पे. नाम. श्लोक संग्रह, पृ. ३०आ, संपूर्ण, पे.वि. यह कृति इस प्रत के साथ एक से अधिक बार जुड़ी हुई है. जैन श्लोकसंग्रह, सं., पद्य, आदि: मत्तेनकुंभदलने भुविसंति; अंति: सर्वजगतः पछे ए गाथा केहवी, श्लोक-२. ५८. पे. नाम. मांगलिक श्लोक, पृ. ३०आ, संपूर्ण, पे.वि. यह कृति इस प्रत के साथ एक से अधिक बार जुड़ी हुई है. जैन श्लोकसंग्रह, सं., पद्य, आदि: ॐ नमो भूमिपुत्राय भुभुक्त; अंति: संपजे सुणता मंगलमाल, श्लोक-१, (वि. मांगलिक श्लोक.) ५९. पे. नाम. चौवीसजिन छंद, पृ. ३०आ-३३अ, संपूर्ण. २४ जिन छंद, ग. नयविमल, मा.गु., पद्य, आदिः (१)चौवीसे जिनवर तणा छंद, (२)आदि जिणंद नमे नरईद; अंति: नयविमल० धरीने भणो नरनारी, सवैया-२७. ६०. पे. नाम. नवकारमंत्र स्तोत्र, पृ. ३३अ-३३आ, संपूर्ण. नमस्कार महामंत्र स्तोत्र, संबद्ध, पं. धर्मसिंह पाठक, प्रा.,मा.गु., पद्य, आदि: कामयंति संपय करणं; अंति: धर्मसी उवज्झाय कहि, गाथा-११. ६१. पे. नाम. सास्वताजिन चैत्यवंदन, पृ. ३३आ-३४अ, संपूर्ण. शाश्वताशाश्वतजिन चैत्यवंदन, क. पद्मविजय, मा.ग., पद्य, आदि: कोडी सातने लाख बहोतर; अंति: आत्मतत्वे रमीजे, गाथा-१३. ६२. पे. नाम. औपदेशिक श्लोक, पृ. ३४अ, संपूर्ण, पे.वि. अंत में वि. सं. १९७२ में हुए अकाल का वर्णन एवं वि. सं. १९६५ में पं. हीरविजय गणि की प्रेरणा से श्रावण सुद ५ मासक्षमण रविवार सावण वद ६ पाखमण वार सो सावण वद १३ अट्ठाई धर वार सोम भाद्रवा सुद बीजी एकमनो जनमवार शुक्रनो ए रीते श्री विवेक सत्क पं. हीरविजय गणि की प्रेरणा से पजूसण करने का वर्णन किया गया है. संवत् १९१० कार्तिक वद ७ दिन को माणिकविजय के सम्मेतशिखर जाने का उल्लेख भी मिलता श्लोक संग्रह, सं., पद्य, आदि: मोमा राम मरादंधे हया; अंति: पुनर्भवनास्ति दुर्लभः, श्लोक-१. ११९२१६ (+) स्तुति, पद व स्तवनादि संग्रह, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ६-१(१)=५, कुल पे. १०, प्र.वि. संशोधित., दे., (२६.५४१२.५, १०४३२-३५). १. पे. नाम. साधारणजिन पद, पृ. २अ, अपूर्ण, पू.वि. प्रथम पत्र नहीं है. आ. जिनलाभसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: जिनलाभ० भवभव चरण सरण्यजी, गाथा-५, (पू.वि. गाथा-२ अपूर्ण से है.) २. पे. नाम. औपदेशिक सज्झाय-काया, पृ. २अ-२आ, संपूर्ण. औपदेशिक पद-काया, आ. जिनलाभसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: काया कारमी रे माया मदमाती; अंति: जिनलाभ० और नफो कछु नाही, गाथा-५. ३. पे. नाम. साधारणजिन पद, पृ. २आ, संपूर्ण. For Private and Personal Use Only Page #351 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ३३६ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची आ. जिनलाभसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: तूं किम तारक नाम धरावै; अंति: यौ जिनलाभै दुख न खमावै, गाथा-५. ४. पे. नाम. महावीरजिन पद, पृ. २आ-३अ, संपूर्ण. महावीरजिन स्तवन, आ. जिनलाभसरि, मा.ग., पद्य, आदि: वीर जिणंद निकट उपगारी; अंति: जिनलाभ० चरणकमल बलिहारी रे, गाथा-५. ५. पे. नाम. अजितजिन स्तवन, प. ३अ-३आ, संपूर्ण. मा.ग., पद्य, आदि: आपणपै तेहवै विना रे गति; अंति: रतनराज सिवपुर राजो रे, गाथा-१०. ६. पे. नाम. पार्श्वजिन स्तुति, पृ. ३आ-४अ, संपूर्ण. मु. ज्ञानसार, मा.गु., पद्य, आदि: परम पुरुषसूं प्रीतड़ी; अंति: पद दीजियै सुख अनंती जोडजी, गाथा-७. ७. पे. नाम. शत्रुजयतीर्थ स्तवन, पृ. ४अ-४आ, संपूर्ण. ग. रत्नराज, मा.गु., पद्य, आदि: गाज्यौ गायज्यौ रे हो; अंति: रतराज गुणगाय, गाथा-७. ८. पे. नाम. आदिजिन स्तुति, पृ. ४-५अ, संपूर्ण. शत्रंजयतीर्थ स्तवन, म. ज्ञानसार, मा.गु., पद्य, आदि: आज्यौ आयज्यो रे हो प्रीतम; अंति: वरी हो भरियै मतनै फाल, गाथा-९. ९.पे. नाम, पार्श्वजिन स्तवन-गोडीजी, पृ. ५अ-५आ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तवन-गोडीजी, मु. ज्ञानसार, मा.गु., पद्य, आदि: करी मोहि सहाय गौडीराय करी; अंति: ज्ञानसार० सदा श्रीजिनराय, गाथा-११. १०. पे. नाम. औपदेशिक सज्झाय सह बालावबोध, पृ. ६अ-६आ, अपूर्ण, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. औपदेशिक सज्झाय, मु. ज्ञानसार, मा.गु., पद्य, आदि: खोट सयांने कहा कहि समझावै; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-९ अपूर्ण तक है.) औपदेशिक सज्झाय- बालावबोध, मा.गु., गद्य, आदि: श्रद्धा सखी प्रतै सुमतिनौ; अंति: (-). ११९२१८. अंतकृद्दशांगसूत्र बीजक, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ८, प्र.वि. हुंडी:अंतग., जैदे., (२७७१३, २३४८१-९२). अंतकृद्दशांगसूत्र-बीजक, मा.गु., गद्य, आदि: अंतगडदशाशब्दनो स्यूं अर्थ; अंति: जिम न्याताधर्मकथानी परै. ११९२१९ (+#) पक्खीप्रतिक्रमण विधि, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ७, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६.५४१३, ११x१९). पाक्षिकप्रतिक्रमण विधि, संबद्ध, पुहि.,प्रा.,मा.गु., गद्य, आदि: प्रथम सामायिक लेवे; अंति: संवत्सरीना आगार जाणवा. ११९२२० (+#) स्तुति, स्तवन व चैत्यवंदनादि संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १२, कुल पे.६, प्र.वि. संशोधित. अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६.५४१३, ११४२४). १. पे. नाम. महावीरजिन पारणा, पृ. १अ-३अ, संपूर्ण. महावीरजिन पारj, मु. अमीविजय, मा.गु., पद्य, आदि: माता त्रिशलाए पुत्र; अंति: कहे थास्ये लीला लेर, गाथा-१८. २. पे. नाम. ज्ञानपंचमीपर्व स्तवन, पृ. ३अ-३आ, संपूर्ण. ज्ञानपंचमीपर्व चैत्यवंदन, म. जिनविजय, मा.ग., पद्य, आदि: युगला धर्म निवारिओ; अंति: श्रीखिमाविजय जिणचंद, गाथा-९. ३. पे. नाम. अष्टमीतिथिपर्व चैत्यवंदन, पृ. ३आ-४आ, संपूर्ण. म. जिनविजय, मा.गु., पद्य, आदि: चैत्र वदी आठम दिने; अंति: प्रगटे ज्ञान अनंत, गाथा-१४. ४. पे. नाम. एकादशीतिथि चैत्यवंदन, पृ. ४आ-५अ, संपूर्ण. म. खिमाविजय, मा.गु., पद्य, आदि: सासणनायक समरीइं प्रभु; अंति: खिमा० सफल करो अवतार, गाथा-९. ५. पे. नाम. साधु अतिचार, पृ. ५आ-११अ, संपूर्ण. ___ साधुपाक्षिकअतिचार-म.पू., संबद्ध, प्रा.,मा.गु., गद्य, आदि: नाणम्मि दंसणम्मिय; अंति: (१)मिच्छामि दुक्कडं, (२)अनेरो जे कोइ अतिचार. ६. पे. नाम. पार्श्वजिन छंद-शंखेश्वर, पृ. ११आ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. For Private and Personal Use Only Page #352 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२६ मु. उदयरत्न, मा.गु, पद्य, आदि सेवो पास वीस मन अति (-) (पू. वि. गाथा ४ अपूर्ण तक है.) ११९२२१ (+) संबोधसप्ततिका सह वृत्ति, संपूर्ण, वि. २०वी श्रेष्ठ, पृ. ९, प्रले. वा. इंद्रचंद्र (गुरु आ. लब्धिचंद्रसूरि); गुप. आ. लब्धिचंद्रसूरि राज्ये गच्छाधिपति पार्श्वचंद्रसूरि प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. पदच्छेद सूचक लकीरें त्रिपाठ- टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित. दे. (२६४१२.५, ४४५४). Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir संबोधसप्ततिका, आ. रत्नशेखरसूरि, प्रा., पद्य, आदि नमिऊण तिलोअगुरु; अति जयसेहर० नत्थि संदेहो, गाथा- ७४. संबोधसमतिका वृत्ति, आ. अमरकीर्तिसूरि, सं., गद्य, आदि नत्वा तं श्रीमहावीर, अंतिः कृता संबोधसप्ततेः. ११९२२२ (०) चातुर्मासिक व्याख्यान, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १६, प्र. वि. मूल पाठ का अंश खंडित है, जैवे. (२६.५x१२.५, १७४४०). चातुर्मासिक व्याख्यान * रा., गद्य, आदि (अपठनीय); अंति तो मिच्छामिदुक्कडम् - " ११९२२३. सूर्य, चंत्र स्तोत्र व पद्मावती अष्टक, संपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पू. १, कुल पे. ३, जै. (२६१२.५, १२-१६X३५-४२). १. पे. नाम. सूर्य स्तोत्र, पृ. १अ, संपूर्ण. सं., पद्य, आदि: आदित्येः कूक्षि; अंति: सर्वदा भास्करोगृहम्, श्लोक ८. २. पे. नाम. चंद्र स्तोत्र, पृ. १अ, संपूर्ण. सं., पद्य, आदि: अत्र नेत्र समुद्भूत, अंतिः कुरु क्षां जयश्रीयम्, श्लोक ५ ३. पे. नाम पद्मावती अष्टक, पृ. १अ १आ, संपूर्ण, पद्मावतीदेवी अष्टक, सं., पद्य, आदि: श्रीमद्गीर्वाणचक्र; अंति: स्तुता दानवेंद्रैः, श्लोक ८. ११९२२४ (+#) दिपावलीपर्व व्याख्यान, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २३, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र. वि. हुंडी : दीवालीव्या., पदच्छेद सूचक लकीरें संशोधित अक्षरों की स्वाही फैल गयी है, जै, (२५.५x१२.५, ११४४१). दीपावलीपर्व व्याख्यान, पा. उमेदचंद्र, सं., गद्य, वि. १८९६, आदि: श्रीनेमीशं जिनं; अंति: (-), (पू. वि. गौतम विलाप प्रसंग तक है.) १९९२२५. भक्तामर स्तोत्र मंत्रयंत्र, अपूर्ण, वि. १९११ माघ कृष्ण २, बुधवार, श्रेष्ठ, पृ. २०१४ (१ से १४)=६, ले. स्थल. मक्सुदाबाद, प्रलेय. स्योलाल अन्य शंभुनाथ, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. हुंडी भक्तामरमंत्रयंत्र, दे., ( २६४१२.५, १५X३७). ३३७ भक्तामर स्तोत्र यंत्रमंत्राम्नाय - पंचांगपद्धति, मा.गु., सं., प+ग., आदि: (-); अंति: वांछित कार्य सिद्धि होय, (पू.वि. मंत्र विधि अपूर्ण से है., वि. विधि सहित.) ११९२२६. (# ) चंद्रप्रज्ञप्ति की टीका, अपूर्ण, वि. १९४५, आषाढ़ शुक्ल, ६, रविवार, मध्यम, पृ. २०७-१९८(१ से १९८)=९, ले. स्थल. कुजरावाला, प्रले. बेलीराम मिश्र, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. हुंडी : चंद्रप्र०टी०, कुल ग्रं. ९४०० अक्षरों की स्याही फैल गयी है, प्र.ले. श्लो. (१) यादृशं पुस्तकं दृष्ट्वा, वे. (२६.५४१२.५, १५४४९) प्र.ले.श्लो. 3 चंद्रप्रज्ञप्तिसूत्र- टीका, आ. मलयगिरिसूरि सं., गद्य, आदि (-); अंति: धुजनस्तेन भवतु कृती, ग्रं. ९४००, (पू.वि. घृतवरद्वीपाधिष्ठायक देव अधिकार से है.) ११९२२७ (+०) बृहत्कल्पसूत्र सह टवार्थ, संपूर्ण वि. १८५८, पीष शुक्ल, मध्यम, पृ. २८, प्र. वि. अंत में "मास प्रमाणे प्रवश्चित की सूची कोष्ठक में दी गई है.", टिप्पण युक्त विशेष पाठ टिप्पणक का अंश नष्ट, जैवे., (२५.५४१३, ७४३८). बृहत्कल्पसूत्र, आ. भद्रबाहस्वामी, प्रा., गद्य, आदि नो कप्पड़ निगंधाण, अंतिः कप्पट्टिई तिबेमि, उद्देशक ६ नं. ४७३. बृहत्कल्पसूत्र-टबार्थ *, मा.गु., गद्य, आदि: ( अपठनीय); अंति: कही इम हुं कहुं हुं, (वि. प्रारंभिक भाग खंडित होने से आदिवाक्य अपठनीय है.) 2 For Private and Personal Use Only ११९२२८ (B) अनुत्तरोपपातिकदसांगसूत्र सह टवार्थ, अपूर्ण, वि. १९२५, चैत्र शुक्ल, ४, मध्यम, पू. ११-१ (८) = १०. प्र. वि. मूल व टीका का अंश नष्ट है, दे., (२७१२.५, ७x४१). "" अनुत्तरीपपातिकदशांगसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा. प+ग, आदि: तेण कालेणं तेण समए: अति: अणुत्तरोववाईदसाणं, अध्याय ३३, (पूर्ण, पू.वि. बीच का पाठांश नहीं है.) Page #353 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org ३३८ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची अनुत्तरीपपातिकदशांगसूत्र-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: ते काल चडथा आराने अति (-) (पूर्ण, वि. अंतिमवाक्य खंडित है.) ११९२२९. मानतुंगमानवती रास, अपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ४९-३९ (१ से ३९) = १०, प्र. वि. हुंडी : मनवती० चरीत्र ०., जैदे., (२६.५X१३.५, १२X३२). मानतुंगमानवती रास, मु. मोहनविजय, मा.गु., पद्य, आदि (-); अति (-) (पू.वि. बीच के पत्र हैं, ढाल ३९ गाथा १२ अपूर्ण से डाल ४७ गाथा ३ अपूर्ण तक है.) " ११९२३० (+) अक्षरवावनी, दस नक्षत्र अधिकार व जीव के १४ भेद, अपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पृ. ७-१ (१) ०६, कुल पे. ३, प्र. वि. पदच्छेद सूचक लकीरें. जैये. (२६.५x१२.५, १५४३९-४४). १. पे. नाम. अक्षरबावनी, पृ. २अ -७आ, अपूर्ण, पू.वि. प्रथम पत्र नहीं है. मु. लालचंद, पुहिं., पद्य, वि. १८७०, आदि (-); अंति: दोलतरामजी पंडित महागुणवान, गाथा-५५, (पूर्णं, पू. वि. गाथा १ अपूर्ण से है.) २. पे नाम. १० नक्षत्र अधिकार, पृ. ७आ, संपूर्ण. १० नक्षत्रज्ञान बोल, मा.गु., गद्य, आदि: (१) दस नक्षत्र वहता सूत्र भणै, (२) मृगशिर १ आद्रा२ पुष्य; अंति: अधिकार समवायांगै दसमै छै. Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ३. पे. नाम, जीव के १४ भेद का विवरण, पृ. ७आ, संपूर्ण, १४ गुणस्थानके जीवभेद विचार, मा.गु., गद्य, आदि जीवरो एक भेद कीहा पावे; अंतिः संसारी जीव में पावे इति. ११९२३१ (+) पार्श्वजिन स्तोत्र, संपूर्ण, वि. १८३९, माघ शुक्ल, ५, मध्यम, पृ. २, प्रले. मु. विरमविजय (गुरु मु. क्षेमविजय), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. संशोधित, जैवे. (२५४१२.५, १३४३२) पार्श्वजिन स्तोत्र-शंखेश्वर, मु. लब्धिरूचि, मा.गु. सं., पद्य, वि. १७१२, आदि: जय जय जगनायक; अंति: मुदा प्रसन्नः, गाथा - ३२. १९९२३३ (+) शालिभद्रमुनि चौपाई, अपूर्ण, वि. १९ वी, मध्यम, पृ. २२-१४(३ से ८, ११ से १६, १९ से २०) = ८, पू.वि. बीच-बीच व अंत के पत्र नहीं हैं., प्र. वि. संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., ( २६१२.५, ११x२९). शालिभद्रमुनि चौपाई, मु. मतिसार, मा.गु., पद्य, वि. १६७८, आदि: सासननायक समरियै, अंति: (-), (पू.वि. गाथा-२६ अपूर्ण से ४० अपूर्ण तक, ७५ अपूर्ण से ११८ अपूर्ण तक ३३ अपूर्ण से १४३ अपूर्ण तक, १५६ अपूर्ण से १६८ अपूर्ण तक व १८१ अपूर्ण के पश्चात् नहीं है.) ११९२३४. योगविधि, अपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ९-१ (३) =८, जैदे., ( २६.५X१३, १६x४४). योगविधि-खरतरगच्छीय, मु. शिवनिधान, प्रा., मा.गु. सं., पद्य, आदि: हर्षसार गुरुचरणद्वय, अंति: (-), (पू.वि. बीच व अंत के पत्र नहीं हैं., पभाई काल काउसग्ग अपूर्ण से सज्झाय पठावणी काउसग्ग के बीच व पवेइयं काउसग्ग के बाद का पाठ नहीं है.) १९९२३६. (#) नवस्मरण सह टबार्थ, सामायिक लेने व पारने की विधि, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २३-७ (१३ से १९) = १६, कुल पे. ३, ले.स्थल. जालोर, प्रले. पं. दोलतविजय; अन्य. पं. सुंदरविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. मूल व टीका का अंश नष्ट है, प्र. ले. श्लो. (१४८१) मिले तो बंधन बंधिया, जैदे., (२६x२१.५, ५x४२). १. पे. नाम, नवस्मरण सह टवार्थ, पृ. १अ २३अ, अपूर्ण, पू. वि. बीच के पत्र नहीं हैं. नवस्मरण, मु. भिन्न भिन्न कर्तृक, प्रा.सं., प+ग, आदि: नमो अरिहंताणं० हवइ मंगलम्; अंति: जैनं जयति शासनम्, स्मरण-९, (वि. १८५७, फाल्गुन कृष्ण, ३, पू. वि. भक्तामर, कल्याणमंदिर स्तोत्र नहीं है व बृहत्शांति स्तोत्रगत "महाजनो येन गतः स पन्थाः " तक नहीं है.) नवस्मरण-टबार्थ *, मा.गु., गद्य, आदि: अरिहंतनई माहरो नमस्कार; अंति: ताहरे समकित लाधइं थकें, (वि. १८५७, फाल्गुन कृष्ण, ४) २. पे नाम. सामायिक लेने की विधि, पृ. २३आ, संपूर्ण, पे.वि. यह कृति बाद में लिखी गई है. For Private and Personal Use Only Page #354 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२६ www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir सामायिक लेवानी विधि तपागच्छीय, गु., प्रा., प+ग, आदि इच्छाकारेण संदिस भ० इरिया अति पच्चक्खाण करावो० ध्यावोसग. ३. पे. नाम. सामायिक पारने की विधि, पृ. २३आ, संपूर्ण, पे.वि. यह कृति बाद में लिखी गई है. संबद्ध, मा.गु., गद्य, आदि: इरियावही पडि० तस्स०; अंति: पछै तीन नौकार गुणीजै. ११९२३७ (+) बृहत्संग्रहणी सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १८२० पौष कृष्ण २ गुरुवार, मध्यम, पृ. ४०, ले. स्थल. मक्सुदाबाद अजीम, प्र. ग. जैतसी (गुरु गच्छाधिपति जिनचंद्रसूरि) पठ. मु. हेमराज ऋषि (गुज.लुंकागच्छ), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. हुंडी: संघयणीसूत्र., संशोधित., जैदे., (२६X१२.५, ६X३६-४०). बृहत्संग्रहणी, आ. चंद्रसूरि प्रा. पद्य वि. १२वी आदि नमिठं अरिहंताई ठिइ; अंति: नंदउ जा जिणमयं लोए, " " गाथा - ३१६. बृहत्संग्रहणी-टबार्थ *, मा.गु., गद्य, आदि: नमी वांदीनइ अरिहंतनइ; अंतिः लोकमांहि० करज्यो. ११९२३८ प्रतिक्रमण विधि, अपूर्ण, वि. १९०९, भाद्रपद कृष्ण, ६, शनिवार, श्रेष्ठ, पृ. ७-२ (१ से २)=५, वे. (२६.५४१२.५, ८-१३X२३-२९). प्रतिक्रमण विधि*, संबद्ध, प्रा.,मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: इछं तस मिच्छामि दुक्कडं, (पू.वि. संसारदावानल स्तुति गाथा- २ अपूर्ण से है.) יי ११९२३९ (+) साढापच्चीस आर्यदेश नाम व श्रीपालराजा चरित्र, संपूर्ण, वि. १८५६, फाल्गुन शुक्ल, ७, शनिवार, श्रेष्ठ, पृ. ४७, कुल पे. २. प्र. वि. ग्रंथ रचना के समीपवर्ती काल मे लिखित संशोधित. जैवे. (२६.५४१२.५, १३४३४-४०). " १. पे. नाम. साढापच्चीस आर्यदेशनाम व ग्रामसंख्या, पृ. १अ, संपूर्ण. मा.गु., पद्म, आदि: मगधदेश राजग्रहीपुरी तिनमे अति (-) (अपूर्ण, पू. वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण गाथा १५ तक लिखा है.) २. पे. नाम. श्रीपालराजा चरित्र, पृ. १आ-४७आ, संपूर्ण. मु. रुपमुनि, मु. प्रेममुनि, मा.गु., पद्य, वि. १८५६, आदि मनमुं गुरुचरणकुं पायो; अंति रूपमुनि० मंगल जवकारीजी, ढाल- ४१. ११९२४०. भगवतीसूत्र-शतक ११ उद्देश ११ सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १९९४, वैशाख शुक्ल, ७, शुक्रवार, श्रेष्ठ, पृ. ३२, प्रले. छगनलाल अविचलभाई लहिया, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. हुंडी : मह०ट०., दे., ( २६.५X१२, ५X३४). ३३९ भगवतीसूत्र - हिस्सा शतक ११ उद्देशक ११ सुदर्शन श्रेष्ठी अधिकार, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., गद्य, आदि: तेणं कालेणं ते समयेणं, अंति: चेव सेवं भंते भंतेत्ति. भगवतीसूत्र - हिस्सा शतक ११ उद्देशक ११ सुदर्शन श्रेष्ठी अधिकार का टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: ते० तेकालने विष अंति: तुम्हे कह्युं ते सत्य छे. ११९२४१ (+) प्रभातव्याख्यान पद्धति व चातुर्मासिकत्रय व्याख्यान, अपूर्ण, वि. १८६७, पौष शुक्ल १, मध्यम, पृ. २५-१४ (१ से १४)=११, कुल पे. २, ले.स्थल. बीकानेर, प्र. वि. संशोधित-पदच्छेद सूचक लकीरें., जैदे., ( २६१२.५, १५X४४). १. पे. नाम. प्रभातव्याख्यान पद्धति, पृ. १५ अ, अपूर्ण, पू. वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं. ऋषिमंडल प्रकरण- प्रभातव्याख्यानपद्धति टीका, ग. हर्षनंदन, सं., गद्य, वि. १७०४ आदि (-); अंति: उत्पाद्य मोक्षं गतः ग्रं. ४५६४, (पू.वि. पाठ- "कर्मसोपक्रमंबद्धमस्ति तन्मध्यमवयसि से है.) 3 २. पे. नाम. चातुर्मासिकत्रयी व्याख्यान, पृ. १५अ २५अ, संपूर्ण. चातुर्मासिकत्रय व्याख्यान, उपा. क्षमाकल्याण पाठक, सं., गद्य, आदि: स्मारं स्मारं स्फुरज्ञा अतिः व्याख्यानमाख्यानभूत, ग्र. ४०१. ११९२४३. (+) श्रावकपच्चक्खाण भांगा ४९, संपूर्ण, वि. १९९८, चैत्र कृष्ण, ३, मध्यम, पृ. ५, ले. स्थल. जयनगर, प्र. वि. संशोधित टिप्पण युक्त विशेष पाठ. दे. (२४.५X१३, ९८४२१-२६). भगवतीसूत्र- श्रावकपच्चक्खाण भांगा ४९, संबद्ध, मा.गु., गद्य, आदि आंक११ भांगा९ सेरी ८१ अति भांगा श्रावकना संपूर्णम्, (वि. सारिणीयुक्त.) For Private and Personal Use Only Page #355 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ३४० कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ११९२४४. मिश्रदंत चरित्र, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ३०, प्रले. सा. सुंदर आर्या, प्र.ले.पु. सामान्य, दे., (२४.५४१२.५, १७४३६-३९). मिश्रदंत चरित्र, मु. ऋषभदास, मा.गु., पद्य, वि. १७७३, आदि: आदि जिनेसर हूं नमूं करुणा; अंति: ऋषभदास० समजो सभी गुणवानजी, गाथा-११६. ११९२४५. सूत्रकृतांगसूत्र सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ५६+१(२१)=५७, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. हुंडी:सूयगडा०., जैदे., (२४४१२.५, ६४३१). सूत्रकृतांगसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., प+ग., आदि: बुज्झिज्ज तिउट्टेज्ज; अंति: (-), (पू.वि. अध्ययन-९ अपूर्ण गाथा-३३ अपूर्ण तक है.) सूत्रकृतांगसूत्र-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: बुज्झे० छ जीवनकायन; अंति: (-). ११९२४६. (+) कल्पसूत्र, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २२, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें., जैदे., (२४.५४१२.५, ७४२३-२६). कल्पसूत्र, आ. भद्रबाहस्वामी, प्रा., गद्य, आदि: तेणं कालेणं० समणे; अंति: (-), (प.वि. स्वप्न-४ लक्ष्मीदेवी का वर्णन ___ अपूर्ण तक है.) ११९२४८. (+) १४ गुणस्थानके १०५ बोल विषये बासठीयो यंत्र, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ६, प्र.वि. संशोधित., ., (२४४१२.५, १०x२८-३२). १४ गुणस्थानके १०५ बोल विषये बासठीयो यंत्र, मा.गु., को., आदि: (-); अंति: (-). ११९२४९ अंबड चरित्र, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ३४, दे., (२४४१२, १३४४७-५१). अंबड चरित्र, वा. क्षमाकल्याण, मा.गु., गद्य, वि. १८५४, आदि: वर्धमान भगवंत के पावन पद; अंति: क्षमाकल्याण० चिरंनंदतात. ११९२५२. (+) विनती, स्तवन व सज्झायादि संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २०, कुल पे. ४,प्र.वि. हुंडी:वीनतीपत्र., टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२४.५४१३, १७X४३). १.पे. नाम. सीमंधरजिन विनती, पृ. १अ-१०आ, संपूर्ण, पे.वि. अंत के पत्र चिपके हुए हैं इसलिये पत्रांक अनुमानित है. सीमंधरजिन विनती स्तवन-३५० गाथा, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: श्रीसीमंधर साहिब; अंति: (अपठनीय), ढाल-१७, गाथा-३५०. २.पे. नाम. महावीरजिन स्तवन, पृ. १०आ-१९आ, संपूर्ण, प्रले. मु. अमरसी कानजी (गुरु ग. उत्तमविजय); गुपि. ग. उत्तमविजय (गुरु ग. वनीतविजय), प्र.ले.पु. सामान्य, पे.वि. प्रारंभिक पत्र चिपके हुए हैं इसलिये पत्रांक अनुमानित महावीरजिन स्तवन-स्थापनानिक्षेपप्रमाण पंचांगीगर्भित, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., पद्य, वि. १७३३, आदिः (अपठनीय); अंति: गुरू आणा सिर वहेस्ये जी, ढाल-६, गाथा-१४८, ग्रं. २२८. ३. पे. नाम. आत्मप्रबोध सज्झाय, पृ. १९आ, संपूर्ण. सामायिक सज्झाय, उपा. यशोविजयजी गणि, पुहिं., पद्य, वि. १८वी, आदि: चतुर नर सामायिक; अंति: ज्ञानवंत के पासे, गाथा-८. ४. पे. नाम, आबूतीर्थ स्तवन, पृ. २०अ-२०आ, संपूर्ण. आबुतीर्थ स्तवन, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., पद्य, वि. १७२८, आदि: आज अनोपम पुन्यथी मइ भेटीआ; अंति: दरिसणे पुहती सयल जगीश, गाथा-३४. ११९२५३. (+) भले का अर्थ व सिद्धदंडिका स्तवन, अपूर्ण, वि. १८७१, मार्गशीर्ष शुक्ल, १२, श्रेष्ठ, पृ. ५, कुल पे. २, प्रले. पंन्या. कपूरविजय * (गुरु पंन्या. सत्यविजय', तपागच्छ); पठ. श्रावि. अखुबाई, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित-ग्रंथ रचना के समीपवर्ती काल मे लिखित., जैदे., (२३.५४१२.५, १३४३२). १. पे. नाम, भले का अर्थ, पृ. १अ-५अ, संपूर्ण. For Private and Personal Use Only Page #356 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२६ ३४१ भले का अर्थ-महावीरजिन पाठशालापंडित संवादगर्भित, मु. महानंद, मा.गु., गद्य, वि. १८३९, आदि: प्रभु नीशाले बैठा; अंति: परमानंदपणु पामस्यो. २. पे. नाम, सिद्धदंडिका स्तवन, पृ. ५अ-५आ, अपूर्ण, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. पंन्या. पद्मविजय, मा.गु., पद्य, वि. १८१४, आदि: श्रीरिसहेसर पाय नमी; अंति: (-), (पू.वि. ढाल-२ गाथा-१ अपूर्ण तक ११९२५५ (+) पंचमहाव्रत दृष्टांतकथा, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ३०, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२४४१२.५, १४-१७४२९-३६). पंचमहाव्रत कथासंग्रह, मा.गु., गद्य, आदि: बालक जीवने हितने; अंति: (-), (पू.वि. राजा उदय व पुष्पसुंदरी रानी की कथा अपूर्ण तक है.) ११९२५६. (+) ज्ञाताधर्मकथांगसूत्र सह टबार्थ- अध्ययन १, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ६०, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित-प्रतिलेखन पुष्पिका मिटाई हुई है., जैदे., (२५४१२, ७४३९-४२). ज्ञाताधर्मकथांगसूत्र, आ. सधर्मास्वामी, प्रा., प+ग., आदि: तेणं कालेणं तेणं समए: अंति: (-), प्रतिपर्ण. ज्ञाताधर्मकथांगसूत्र-टबार्थ *, मा.गु., गद्य, आदि: ते० तेणे काले चउथे; अंति: (-), प्रतिपूर्ण. ११९२५७. नारचंद्र ज्योतिष, संपूर्ण, वि. १९४२, ज्येष्ठ कृष्ण, ७, बुधवार, मध्यम, पृ. १२, प्र.वि. प्रतिलेखक का नाम अवाच्य है., दे., (२४.५४१२.५, १०४३४). ज्योतिषसार, आ. नरचंद्रसूरि, सं., पद्य, आदि: अर्हतजिनं नत्वा; अंति: जातो न जीवति इति यमघंटजोग, श्लोक-२९४. ११९२५८ (#) स्वरोदयसार, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ६, प्र.वि. अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२४४१२.५, १६४३०). स्वरोदयसार, मु. कपुरचंद, मा.गु., पद्य, वि. १९०७, आदि: नमो आदि अरिहंत देव; अंति: (-), (पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., गाथा-१०३ तक लिखा है.) ११९२५९ नवग्रहशांति-बृहत्, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, दे., (२३.५४१३, १४४३०). नवग्रहशांति स्तोत्र-बहत्, आ. भद्रबाहस्वामी, सं., पद्य, आदि: जगद्गुरुं नमस्कृत्य; अंति: (-), (अपूर्ण, पृ.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., श्लोक-१२ तक लिखा है., वि. अंत में अंकतालिका दी हुई है.) ११९२६० (+) सज्झाय संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ४६, कुल पे. ३७, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२४४१२, १३४४५-४९). १. पे. नाम. कर्मफल सज्झाय, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. कर्मविपाकफल सज्झाय, मु. ऋद्धिहर्ष, मा.गु., पद्य, आदि: देवदाणव तीर्थंकर; अंति: नमो कर्म महाराजा रे, गाथा-१८. २.पे. नाम. पंचमआरा सज्झाय, पृ. १आ-२अ, संपूर्ण. मा.गु., पद्य, आदि: वीर कहै गौतम सुणो पंचम; अंति: भाष्या वचन रसाल, गाथा-२४. ३.पे. नाम, कलियुगनी सज्झाय, पृ. २आ, संपूर्ण. औपदेशिक सज्झाय-कलियुग, मु. प्रीतिविमल, पुहि., पद्य, आदि: सरसती स्वामिनी पाय; अंति: जिन वचनें सुख पायो, गाथा-१२. ४. पे. नाम, पूजादृष्टांत सज्झाय, पृ. २आ-३आ, संपूर्ण. आ. नयविमल, मा.गु., पद्य, आदि: जिम चंदनतरुमां अधिक; अंति: लेहवो नय कहे सुविनीत ए, गाथा-८. ५. पे. नाम, सुगुरुपच्चीसी, पृ. ३आ-४अ, संपूर्ण. मु. जिनहर्ष, मा.गु., पद्य, आदि: सुगुरू पिछाणो एणे; अंति: शांतिहर्ष उछरंग जी, गाथा-२५. ६. पे. नाम. कुगुरु सज्झाय, पृ. ४अ-५अ, संपूर्ण. मु. तेजपाल, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीजिनवर परणमुं सदा; अंति: पभणे सुखदाय इसि, गाथा-३१. ७. पे. नाम. आत्मप्रमोद सज्झाय, पृ. ५अ-५आ, संपूर्ण. औपदेशिक पद-आत्म प्रमोद, रा., पद्य, आदि: ओ जुग चलीयो जाय रे सुण; अंति: नरभवसु पार उतरणोरे, गाथा-१०. ८. पे. नाम. प्रभुदेशना सज्झाय, पृ.५आ-६अ, संपूर्ण. For Private and Personal Use Only Page #357 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra ३४२ www.kobatirth.org कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची पं. सकलकुशलगणि, मा.गु., पद्य, आदि जिनवर दिये देशना रे भविक, अंतिः सकलकुशल गुण गाय, गाथा-१२. ९. पे नाम. नागेश्वरीब्रह्माणी सज्झाय, पू. ६अ ७आ, संपूर्ण, नागेश्वरीब्राह्मणी सज्झाय, मा.गु., पद्य, आदि : चंपानगरी वखाणिये रे; अंति: पोता अविचल राज हो ठाम हो, गाथा-३३. १०. पे नाम. १८ नातरा सज्झाय, पृ. ७आ. ९अ, संपूर्ण मु. हेतविजय, मा.गु., पद्य, आदि पहेलां ते समरूं पास, अंतिः कांई हेतविजय गुण गाय, ढाल ३, गाथा-३६. ११. पे. नाम. ८ प्रवचनमाता सज्झाय, पृ. ९अ-१४आ, संपूर्ण. Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ग. देवचंद्र, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: सुकृत कल्पतरु श्रेणि; अंति: परम मंगल सुख सदा, ढाल - ९, गाथा-१३०. १२. पे. नाम. पृथ्वीचंद्रगुणसागर सज्झाव, पृ. १४- १७अ, संपूर्ण. - पंडित, जीवविजय, मा.गु, पद्य, आदि शासननायक सुखकर बंदी अति जीवविजय धरे ध्यान, ढाल ३, गाथा ६८. १३. पे. नाम. जंबुकुमार सज्झाय, पृ. १७अ १८अ संपूर्ण. , जंबूस्वामी सज्झाय, रा., पद्य, आदि: राजग्री नगरीरो वासी; अंति: डेरा दीनी नम परनारी, गाथा - २०. १४. पे. नाम. नंदिषेणमुनि सज्झाय, पृ. १८अ - १९अ, संपूर्ण. मु. मेरुविजय, मा.गु., पद्य, आदि राजगृही नयरीनो वासी, अंति: साधु नै कुण तोले हो, डाल-३, गाथा- १६. १५. पे. नाम. कुगुरुपच्चीसी, पृ. १९अ-२०अ, संपूर्ण. मु. रत्नविजय, मा.गु., पद्य, आदि सदगुरु केरि परखा, अंतिः रत्नविजय इम बोले जी, गाधा- २५. १६. पे. नाम वैराग्य सज्झाय, पृ. २०अ २०आ, संपूर्ण औपदेशिक सज्झाय गर्भावासदुः खवर्णन, जिनदास, मा.गु., पद्म, आदि: तुने संसारी सुख किम; अति महामुसकेल जो रे, गाथा - ९. १७. पे. नाम. धन्नाकाकंदी सज्झाय, पृ. २० आ-२१अ, संपूर्ण. - मु. तिलोकसी, मा.गु., पद्य, आदि श्रीजिनवाणी रे धन्ना अंति: गाया है मनमै गहगही, गाथा २२.. १८. पे नाम वैराग्य सज्झाय, पृ. २१-२२अ संपूर्ण नारी सज्झाय, पुहिं., पद्य, आदि मूरख के भाव नहीं, अंति: आगे इच्छा थारी रे, गाथा-२२. १९. पे. नाम. दशवैकालिकसूत्र सज्झाय, पृ. २२अ - २५आ, संपूर्ण. दशवैकालिकसूत्र-सज्झाय, संबद्ध, मु. जैतसी, मा.गु., पद्य, वि. १७१७, आदि धरम मंगल महिमानिलो; अंति जयतसी जय जय रंग, अध्याय- १०. २०. पे नाम. ११ अंग सज्झाय, पृ. २६२-२९आ, संपूर्ण, मु. विनयचंद्र, मा.गु., पद्य, वि. १७५५, आदि पहिलो अंग सुहामणों अंति: ७ सहेल्या है आज वधावणा, ढाल १२. २१. पे. नाम. दीवानी सज्झाय, पृ. ३० अ-३०आ, संपूर्ण. औपदेशिक सज्झाय-दीवा, मा.गु., पद्य, आदि: दशमे धवार दीवो कह्यो; अंति: तो निश्चे मुक्ते जाय, ढाल -२, गाथा- ९. २२. पे नाम रथनेमिराजिमती सज्झाय, पू. ३०आ-३१अ, संपूर्ण. मु. रूपविजय, मा.गु., पद्य, आदि काउसग्ग ध्याने मुनि, अंतिः निर्मल सुंदर देह रे, गाधा-८. २३. पे. नाम रात्रिभोजन परिहार सज्झाय, पू. ३९अ- ३१आ, संपूर्ण. मु. वसता मुनि, मा.गु., पद्य, आदि: पुण्यसंजोगे नरभव लाध्यो; अंति: मोक्षतणा अधिकारी रे, गाथा- १३. २४. पे. नाम. देवानंदामाता सज्झाय, पृ. ३१आ-३२अ, संपूर्ण. उपा. सकलचंद्र गणि, पुहिं., पद्य, आदि जिनवर रूप देखी मन अति सकलचंद० उलटे मनमा आणी गाथा १२. - " २५. पे. नाम. ७ व्यसन निवारण सज्झाय, पृ. ३२अ, संपूर्ण. मु. धर्मसी, मा.गु., पद्य, आदि सात व्यसननो रे संग; अंति कहे धर्मसी सुखकार, गाथा- ९. २६. पे. नाम. जंबूस्वामी सज्झाय, पृ. ३२-३३अ, संपूर्ण. आ. भाग्यविमलसूरि, मा.गु., पद्य, वि. १७६६, आदि: सरसत सामीने विनवुं अंतिः धन धन जंबू स्वामीने, गाथा- १४. २७. पे. नाम. सनत्कुमारचक्रवर्ती सज्झाय, पृ. ३३२-३३आ, संपूर्ण For Private and Personal Use Only Page #358 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ३४३ हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२६ म. कवियण, मा.गु., पद्य, वि. १७५१, आदि: सुरनर परसंशा करे; अंति: कवियण कहे गायो संतिकुमारो, गाथा-१७. २८. पे. नाम. शीयलव्रत सज्झाय, पृ. ३३आ-३४अ, संपूर्ण.. मु. कवियण, मा.गु., पद्य, आदि: सुणो समजो सकल नरनारी; अंति: जाणी कामनी सीसो जरुर, गाथा-१६. २९. पे. नाम. गजसुकुमालमुनि सज्झाय, पृ. ३४अ-३५अ, संपूर्ण. मा.गु., पद्य, आदि: वाणी श्रीजिनराज तणी काने; अंति: सहीने पोहता शिवपुरी, गाथा-४१. ३०. पे. नाम, बाहुबली सज्झाय, पृ. ३५अ-३५आ, संपूर्ण. भरतबाहबली सज्झाय, मु. विमलकीर्ति, मा.गु., पद्य, आदि: बाहुबल चारित लीयो; अंति: विमलकीरत गुण गाय, गाथा-१२. ३१. पे. नाम. इलाचीकुमार सज्झाय, पृ. ३५आ-३६आ, संपूर्ण. म. लब्धिविजय, मा.गु., पद्य, आदि: नाम येलापुत्र जाणी; अंति: लब्धिविजय गुण गाय, गाथा-२७. ३२. पे. नाम. मेघकुमार चौढालिया, पृ. ३६आ-३८आ, संपूर्ण. मा.गु., पद्य, आदि: सेणीक राजाने धारणी बोले; अंति: मझार हो मुनीसर मेघजी. ३३. पे. नाम. खंधकमुनि सज्झाय, पृ. ३८आ-३९आ, संपूर्ण. म. मोहनविजय, मा.ग., पद्य, आदि: नमो नमो खंधक महामुनि; अंति: सेवक सखियां कीजे रे, ढाल-२, गाथा-२० ३४. पे. नाम. अवंतिसुकुमाल रास, पृ. ३९आ-४३अ, संपूर्ण. म. जिनहर्ष, मा.गु., पद्य, वि. १७४१, आदि: मुनिवर आर्य सुहस्ति; अंति: वैरागीयो सासूवह अरि तेह, ढाल-१३, गाथा-१०८. ३५. पे. नाम, ९ वाड सज्झाय, पृ. ४३आ-४५आ, संपूर्ण. उपा. उदयरत्न, मा.गु., पद्य, वि. १७६३, आदि: श्रीगुरुने चरणे नमी; अंति: तेहने जाउ भामणि, ढाल-१०, गाथा-४३. ३६. पे. नाम. जंबूस्वामी सज्झाय, पृ. ४५आ-४६अ, संपूर्ण. आ. भाग्यविमलसूरि, मा.गु., पद्य, वि. १७७१, आदि: ए आठौहि कामिणि जंबू; अंति: जंबू नामे जय जय कार, गाथा-१४. ३७. पे. नाम. पर्युषणपर्व पद, पृ. ४६अ, संपूर्ण. श्राव. चुनीलाल, पुहिं., पद्य, आदि: पर्वपजुसण मेला देखो; अंति: चुनी० आतमरंग मै खेला, गाथा-४. ११९२६१ (+) नवतत्त्व, जीवविचार व दंडक प्रकरण, संपूर्ण, वि. १९३६, चैत्र शुक्ल, १४, शनिवार, मध्यम, पृ. २१, कुल पे. ३, ले.स्थल. मक्सुदाबाद अजीम, प्रले. मु. अबीरचंद ऋषि; पठ. मु. सुमतिचंद्र ऋषि (वडतपागच्छ), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें-अन्वय दर्शक अंक युक्त पाठ-टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित., दे., (२४४१२.५, ५४३६). १. पे. नाम. नवतत्त्वप्रकरण सह टबार्थ, पृ. १आ-८आ, संपूर्ण. नवतत्त्व प्रकरण ६० गाथा, प्रा., पद्य, आदि: जीवाजीवा पुण्णं पावा; अंति: एयं बंध ठिईमाणं, गाथा-५७, संपूर्ण. नवतत्त्व प्रकरण ६० गाथा-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: पहिलो जीवतत्त्व बीजो; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., गाथा-५५ तक टबार्थ लिखा है.) २. पे. नाम. जीवविचार प्रकरण सह टबार्थ, पृ. ९अ-१५आ, संपूर्ण. जीवविचार प्रकरण, आ. शांतिसूरि, प्रा., पद्य, वि. ११वी, आदि: भुवणपईवं वीरं नमिऊण; अंति: संतिसूरि०सुयसमुद्दाओ, गाथा-५१. जीवविचार प्रकरण-टबार्थ , मा.गु., गद्य, आदि: स्वर्ग मृत्यु पाताल; अंति: मोटा शास्त्र सूं देखकर के. ३. पे. नाम. दंडक स्तोत्र सह टबार्थ, पृ. १५आ-२१अ, संपूर्ण. दंडक प्रकरण, म. गजसार, प्रा., पद्य, वि. १५७९, आदि: नमिउं चौवीस जिणे; अंति: लहिया एसा विनत्ति अप्पहिआ, गाथा-४४, संपूर्ण. दंडक प्रकरण-टबार्थ*, मा.ग., गद्य, आदि: नमस्कार करीनइ चउवीस; अंति: (-), (अपूर्ण, पृ.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., गाथा-४ अपूर्ण तक टबार्थ लिखा है.) नाम पर्यषणपर्व पद, पृ. प जसण मेला देखा; आत शनिवार, मध्यम, पृ. पदच्छेद For Private and Personal Use Only Page #359 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ३४४ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ११९२६२. (+) चतुःसरण प्रकीर्णक सह अवचूरि, संपूर्ण, वि. १९०३, ज्येष्ठ शुक्ल, ८, रविवार, श्रेष्ठ, पृ. १५, ले.स्थल. आगरा, प्रले.मु. चिमनसागर (गुरु ग. फतेंद्रसागर); गुपि.ग. फतेंद्रसागर; राज्ये आ. देवेंद्रसूरि* (त्रिस्तुतिक-तपा),प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. हंडी:चतुःशरण प०., त्रिपाठ-संशोधित-टिप्पण युक्त विशेष पाठ., प्र.ले.श्लो, (५६) यादृशं पुस्तकं दष्टं, दे., (२३.५४१३, १६x४१-४६). चतःशरण प्रकीर्णक, ग. वीरभद्र, प्रा., पद्य, वि. ११वी, आदि: सावज्जजोग विरई; अंति: कारणं निव्वइ सहाणं, गाथा-६३. चतुःशरण प्रकीर्णक-अवचूरि, आ. सोमसुंदरसूरि, सं., गद्य, आदि: इदमध्ययनं परमपद; अंति: भवतीति गाथार्थः. ११९२६३. (+) चित्रसेनपद्मावती चरित्र, आलोयणा विचार व सूतक विचार, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २२, कुल पे. ३, प्र.वि. हुंडी:चित्रसेन., टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२४४१२.५, १३४४१-४३). १. पे. नाम. चित्रसेनपद्मावती चरित्र, पृ. १आ-१९अ, संपूर्ण. पा. राजवल्लभ, सं., पद्य, वि. १५२४, आदि: नत्वा जिनपतिमाद्यं; अंति: पाठक राजवल्लभः, श्लोक-५०६. २. पे. नाम. आलोयणा विचार, पृ. १९अ-२१आ, संपूर्ण. मा.गु., गद्य, आदि: ज्ञानाशातनायां; अंति: अतिथसंविभाग भंगे. ३. पे. नाम. सूतक विचार, पृ. २१आ-२२अ, संपूर्ण. मा.गु., गद्य, आदि: पुत्र जन्म्या दिन १०; अंति: वृष्टि अहोरात्र असज्झाई. ११९२६४. जयतिहुअण स्तोत्र, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ९, दे., (२५४१२.५, ६४२३). जयतिहअण स्तोत्र, आ. अभयदेवसूरि , प्रा., पद्य, वि. १२वी, आदि: जय तिहुयणवरकप्परुक्ख जय; अंति: अभयदेव विण्णिवइ आणिंदिय, गाथा-३०. ११९२६५ (+) नवतत्त्व, जीवविचार व दंडकप्रकरण, संपूर्ण, वि. १९६२, कार्तिक शुक्ल, ५, श्रेष्ठ, पृ. ५, कुल पे. ३, प्र.वि. संशोधित., दे., (२४४१२.५, १४४३९). १.पे. नाम. नवतत्त्व प्रकरण, पृ. १अ-२आ, संपूर्ण, पे.वि. हंडी:नवतत्त्वप्र. नवतत्त्व प्रकरण ६० गाथा, प्रा., पद्य, आदि: जीवाजीवा पुण्णं पावा; अंति: बोहिय इक्कणिक्काय, गाथा-५१. २. पे. नाम. जीवविचार प्रकरण, पृ. २आ-४अ, संपूर्ण. आ. शांतिसूरि, प्रा., पद्य, वि. ११वी, आदि: भुवणपईवं वीरं नमिऊण; अंति: संतिसूरि०सुयसमुद्दाओ, गाथा-५१. ३. पे. नाम, दंडकप्रकरण, पृ. ४अ-५आ, संपूर्ण. दंडक प्रकरण, म. गजसार, प्रा., पद्य, वि. १५७९, आदि: नमिउं चौवीस जिणे; अंति: लहिया एसा विनत्ति अप्पहिआ, गाथा-४०. ११९२६६. सिंदूरप्रकर, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ८, जैदे., (२४४१२.५, १४४३५-४२). सिंदूरप्रकर, आ. सोमप्रभसूरि, सं., पद्य, वि. १३वी, आदि: सिंदूरप्रकरस्तपः करिशिरः; अंति: सोमप्रभ०मुक्तावलीयम्, द्वार-२२, श्लोक-१००. ११९२६७. जंबूअध्ययन प्रकीर्णक, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ.७, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., जैदे., (२३४१२.५, ८४३३-३६). जंबअध्ययन प्रकीर्णक, ग. पद्मसंदर, प्रा., गद्य, आदि: तेणं कालेणं तेणं समए; अंति: (-), (पू.वि. जंबकुमार द्वारा ८ पत्नियों को धर्मोपदेश देने के प्रसंग अपूर्ण तक है.) ११९२६९ बोल विचार संग्रह, संपूर्ण, वि. १९५२, ज्येष्ठ अधिकमास शुक्ल, ९, मध्यम, पृ.७, कुल पे. ८, ले.स्थल. समदडी, प्रले. पं. अचलचंद, प्र.ले.पु. सामान्य, दे., (२२४१३, १५४२६). १. पे. नाम. छः आरा विचार, पृ. १अ-२आ, संपूर्ण. ६ आरा विचार, मा.गु., गद्य, आदि: पैहलो सुखमांसुखमी नामै; अंति: बीस कोडाकोडी तेहनो मान. २. पे. नाम. शत्रुजयतीर्थ विचार, पृ. २आ, संपूर्ण. ___मा.गु., गद्य, आदि: पहेलो आरो सुसमसुसमा नामै; अंति: ए रीते छ आरा संपूर्ण. ३. पे. नाम. ६३ शलाकापुरुष नाम, पृ. २आ-३आ, संपूर्ण. For Private and Personal Use Only Page #360 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२६ ३४५ मा.ग., गद्य, आदि: बारह चक्रवर्ती नाम; अंति: ए नव बलदेव कह्या. ४. पे. नाम. सुधर्मदेवलोक प्रतिमा, विमान, मंदिरादि संख्या विचार, पृ. ४अ-५अ, संपूर्ण. सुधर्मदेवलोक विमान, देरासर प्रतिमादि विचार, मा.गु., गद्य, आदि: सुधर्म देवलोकमा ३२००००; अंति: विमानरी बारै देवलोक जाणवा. ५. पे. नाम. बारह चक्रवर्ती-रिद्धि, पृ. ५अ-५आ, संपूर्ण. १२ चक्रवर्ती-रिद्धि, मा.गु., गद्य, आदि: १२ चक्रवर्तीनी कंचनवरणी; अंति: चक्रवर्तीरी रिद्धि जाणवी. ६. पे. नाम. सात कुलकर व सौ पुत्रादियुक्त आदिजिन परिवार, पृ. ५आ-६आ, संपूर्ण. ७ कुलकर व आदिजिन परिवार शतपुत्रादि विवरण, मा.गु., गद्य, आदि: सात कुलगुरु विमलवाहन; अंति: सो पुत्र दोय पुत्री हुवा. ७. पे. नाम. आबूतीर्थ कथा, पृ. ६आ, संपूर्ण. अर्बदाचलतीर्थ कथा, मा.गु., गद्य, आदि: एक दिनरै समै ८८ हजार ऋषि; अंति: जमहगद रूपीनी कथा जाणवी. ८. पे. नाम. अतीत चोवीसी नाम, पृ. ७आ, संपूर्ण. २४ जिन नाम-अतीत, मा.गु., गद्य, आदि: केवल स्वामीजी १; अंति: चंदणा २३ संप्रतिनाथ २४. ११९२७०. बड़ी शांति, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., जैदे., (२३.५४१३, ११४२३-२५). बृहत्शांति स्तोत्र-तपागच्छीय, सं., प+ग., आदि: भो भो भव्याः शृणुत; अंति: (-), (पू.वि. पाठ-"चंदनाभरणालंकृतकलाशांति" तक है.) ११९२७३. स्वरोदयशास्त्र-सूक्ष्म, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ५, जैदे., (२३४११.५, ८x२७). स्वरोदय-नरपतिजयचर्या, सं., पद्य, आदि: अथात् संप्रवक्ष्यामि; अंति: ज्ञानं तेषां हस्तगतं सदा, श्लोक-४४. ११९२७४ (+) बार भावना विचार व औपदेशिक दुहा संग्रह, संपूर्ण, वि. १९४६, माघ कृष्ण, श्रेष्ठ, पृ. ५, कुल पे. २, प्र.वि. हंडी:१२भाव., संशोधित., दे., (२३४१३, २२४२९-३७). १.पे. नाम. बारभावना विचार, पृ. १अ-५आ, संपूर्ण, पे.वि. अंत में कृति का माहात्म्य गद्यांश के रुप में लिखा है. १२ भावना विचार, मा.गु., गद्य, आदि: पहिली अनित भावना ते; अंति: धर्मरूचिजी भाई. २. पे. नाम, औपदेशिक दहासंग्रह, पृ. ५आ, संपूर्ण. औपदेशिक दोहा संग्रह, मा.गु., पद्य, आदि: भणजो गुणजो वांचजो हितकर; अंति: भटक्यो देश विदेश, गाथा-३. ११९२७५ (#) झीणी चरचा, संपूर्ण, वि. १९८४, आषाढ़ शुक्ल, १३, मध्यम, पृ. २६, प्र.वि. हुंडी:झीणीचर्चा., अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२३४१३, १५४४४). झीणी चरचा, आ. जयाचार्य, मा.गु., पद्य, वि. १९१६, आदि: अजर अमर वर अमल सिव; अंति: साह वीजी जय जश संपति पाय, ढाल-२२. ११९२८४ (+#) नारचंद्र ज्योतिष सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १७, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें-संशोधित. टीकादि का अंश नष्ट है, जैदे., (२१४१२.५, ५-६x१९-२२). ज्योतिषसार-लघुनारचंद्र ज्योतिष, संक्षेप, मा.गु.,सं., प+ग., आदि: अर्हतं जिनं नत्वा; अंति: (-), (पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., श्लोक-७२ अपूर्ण तक है.) ज्योतिषसार-टबार्थ *, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., श्लोक-३५ अपूर्ण तक टबार्थ लिखा है., वि. आदिवाक्य खंडित है.) ११९२९३. वैराग्यशतक सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १८७७, माघ शुक्ल, १, श्रेष्ठ, पृ. ११, ले.स्थल. खेरवा नगर, प्रले. मु. हर्षसागर; अन्य. मु. चिमनसागर (गुरु ग. फतेंद्रसागर); ग. फतेंद्रसागर, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२६.५४१३, १०४२८). वैराग्यशतक, प्रा., पद्य, आदि: संसारंमि असारे नत्थि सुहं; अंति: लहसि जहा सासयं ठाणं, गाथा-१०४. वैराग्यशतक-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: संसार असारमाहि नथी; अंति: सास्वतो स्थानक मुक्त. ११९२९५ (#) श्रीपाल रास, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १७-५(१ से ३,५ से ६)=१२, प्र.वि. मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., (२५४१३.५, १३-१६४३४-४०). For Private and Personal Use Only Page #361 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ३४६ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची श्रीपाल रास, उपा. विनयविजय; उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., पद्य, वि. १७३८, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. प्रारंभ, बीच व अंत के पत्र नहीं हैं., ढाल-४ गाथा-४ अपूर्ण से ढाल-६ गाथा-१२ अपूर्ण तक, ढाल-८ गाथा-१ अपूर्ण से ढाल-४ गाथा-३७ अपूर्ण तक है.) ११९२९९ (+) सिंदूरप्रकर, संपूर्ण, वि. १९३०, आषाढ़ शुक्ल, १३, मंगलवार, मध्यम, पृ.८, प्र.वि. पदच्छेद सूचक __ लकीरे-संशोधित-टिप्पण युक्त विशेष पाठ., दे., (२४.५४१२, १६४३१). सिंदूरप्रकर, आ. सोमप्रभसूरि, सं., पद्य, वि. १३वी, आदि: सिंदूरप्रकरस्तपः करिशिरः; अंति: सोमप्रभ०मुक्तावलीयम्, द्वार-२२, श्लोक-१००. ११९३०१ (+) कल्पसूत्र सह कल्पद्रुमकलिका टीका, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. २६, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें., दे., (२५.५४१२, १२४२७). कल्पसूत्र, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., गद्य, आदि: णमो अरिहंताणं० पढम; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., आश्चर्य-५ अपूर्ण तक लिखा है.) कल्पसूत्र-कल्पद्रुमकलिका टीका, ग. लक्ष्मीवल्लभ, सं., गद्य, आदि: श्रीवर्धमानस्य; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., वि. प्रतिलेखक ने प्रारंभिक कुछ भाग समयसुंदर की कल्पलता टीका का लिखा है.) ११९३०२ (+) सौभाग्यपंचमी व्याख्यान, संपूर्ण, वि. १९४३, आश्विन कृष्ण, ८, मंगलवार, मध्यम, पृ. ७, ले.स्थल. लक्ष्मणापुर, प्रले. य. तिलोकचंद्र, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. हुंडी:ग्यानपं०. व्या०., टिप्पण युक्त विशेष पाठ., दे., (२५४१३.५, १२४२७). वरदत्तगुणमंजरी कथा, मा.गु.,सं., गद्य, आदि: ज्ञानं सारं सर्व; अंति: मंगलीकमाला संपजै. ११९३०३. कार्तिकपूर्णिमा व्याख्यान, संपूर्ण, वि. १९४३, आश्विन कृष्ण, १०, मध्यम, पृ. ५, ले.स्थल. लक्ष्मणापुर, प्रले. य. तिलोकचंद्र, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. हुंडी:कातिपू० व्या, काति०व्याद., ., (२५४१३.५, १२४३३). कार्तिकपूर्णिमा व्याख्यान, प्रा.,मा.गु., गद्य, आदि: सिद्धो विज्जाय चक्की; अंति: आपका जमवारा सफल करणा. ११९३०४. (+) दानशीलतपभावना चौपाई, संपूर्ण, वि. १९०९, आश्विन कृष्ण, ५, मध्यम, पृ. ९, ले.स्थल. नीसलपुर, प्रले. मु. मोतीविजय; राज्ये गच्छाधिपति जशोभद्रसूरि; पठ. श्रावि. हीरूबाई; अन्य. सा. कलुबाई, प्र.ले.पु. मध्यम, प्र.वि. संशोधित., दे., (२५.५४१३.५, १०४२२-२५). दानशीलतपभावना संवाद, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, वि. १६६२, आदि: प्रथम जिनेसर पाय नमी; अंति: ऋद्धि वृद्धि सुख थापो रे, ढाल-४, गाथा-१०१, ग्रं. १३५. ११९३०७. गौतमस्वामी स्तोत्र, जिनकुशलसूरि अष्टक व दादाजी का छंद आदि संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ५, कुल पे. १२, दे., (२३.५४१२.५, १४४५६-५९). १. पे. नाम. गौतमस्वामी स्तोत्र, पृ. १अ, संपूर्ण. सं., पद्य, आदि: श्रीइंद्रभूतिं वसुभूति; अंति: लभंते सुतरां क्रमेण, श्लोक-१०. २. पे. नाम. जिनकुशलसूरि अष्टक, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. आ. जिनपद्मसूरि, सं., पद्य, वि. १४वी, आदि: सुखं सर्वा सद्वसतिपदयो; अंति: चिरं स्थायिनी, श्लोक-९. ३. पे. नाम. दादाजी का छंद, पृ. १आ, संपूर्ण. जिनदत्तसूरि अष्टक, सं., पद्य, आदि: नमाम्यहं श्रीजिनदत्त; अंति: सर्वाणि समीहितानि, श्लोक-८. ४. पे. नाम. जिनदत्तसूरि अष्टक, पृ. १आ-२अ, संपूर्ण. सं., पद्य, आदि: सुरकिन्नर वंदित; अंति: नरा भवंति सततं वागीश्वरा, श्लोक-९. ५. पे. नाम. जिनकुशलसूरि स्तवन, पृ. २अ, संपूर्ण. म. हरिसागर, पुहि., पद्य, वि. १९६९, आदि: कुशल गुरु देव है साचो; अंति: तोरे रक्षक रहो तो ऐसे हो, गाथा-७. ६. पे. नाम. जिनकुशलसूरि स्तुति, पृ. २अ-२आ, संपूर्ण. मु. आनंदसागर, रा., पद्य, वी. २४३८, आदि: सुनो सुनो कुशल गुरु; अंति: आनंद० संपत सबही पाया, गाथा-७. ७. पे. नाम. साधारणजिन स्तुति, पृ. २आ-३आ, संपूर्ण. सं., पद्य, आदि: नेत्रानंदकरी भवोदधितरी; अंति: जिनेश्वराणां, श्लोक-१९. For Private and Personal Use Only Page #362 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२६ ३४७ ८. पे. नाम. २४ जिन स्तोत्र, पृ. ३आ-४अ, संपूर्ण. आ. जिनप्रभसूरि, सं., पद्य, आदि: नतसुरेंद्रजिनेंद्र युगादि; अंति: पूज्यतमा मम मंगलं, श्लोक-९. ९. पे. नाम. आदिजिन स्तोत्र-शत्रुजयतीर्थमंडण, पृ. ४अ, संपूर्ण. सं., पद्य, आदि: पूर्णानंदमयं महोदयमय; अंति: नाभिजन्मा जिनेंद्रः, श्लोक-१०. १०. पे. नाम. सरस्वतीदेवी स्तोत्र, पृ. ४अ-४आ, संपूर्ण, पठ.सा. उगमश्रीजी, प्र.ले.पु. सामान्य. सं., पद्य, आदि: धातुश्चतुर्मुखी कंठगाटक; अंति: निःशेषजाड्यापहा, श्लोक-१३. ११. पे. नाम. पार्श्वजिन अष्टक, पृ. ४आ-५अ, संपूर्ण. आ. रत्नसिंहसूरि, सं., पद्य, आदि: कल्याणकेलिसदनाय नमो; अंति: जनताभिमतार्थसिद्ध्यै, श्लोक-८. १२. पे. नाम. वीतरागाष्टक, पृ. ५अ-५आ, संपूर्ण. सं., पद्य, आदि: शिवं शुद्धबुद्धं; अंतिः श्रीमानत्ददाभ्यद्यातं, श्लोक-९. ११९३१०. उत्तराध्ययनसूत्र सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ६, कुल पे. २, दे., (२५४१२.५, ५-१२४१०). १. पे. नाम. उत्तराध्ययनसूत्र-अध्ययन १६, पृ. १आ-४अ, संपूर्ण. उत्तराध्ययनसूत्र, मु. प्रत्येकबुद्ध, प्रा., प+ग., आदि: (-); अंति: (-), प्रतिपूर्ण. २. पे. नाम. उत्तराध्ययनसूत्र-अध्ययन १७ सह टबार्थ, पृ. ४आ-६आ, संपूर्ण. उत्तराध्ययनसूत्र-हिस्सा पापश्रमणीय अध्ययन, मु. प्रत्येकबुद्ध, प्रा., प+ग., आदि: जे केइ उ पव्वईए निअं; अंति: दुहओ लोगमिणं त्तिबेमि, गाथा-२१. उत्तराध्ययनसूत्र-हिस्सा पापश्रमणीय अध्ययन का टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: जे० जिके एक ए प्रवा ; अंति: सांभल्यो हुं तो तिमहु. ११९३११ (+) साधु उपस्थापना विधि, संपूर्ण, वि. १९९७, कार्तिक कृष्ण, ११, रविवार, श्रेष्ठ, पृ. १७, प्रले. अर्जुनदास शर्मा, प्र.ले.प. सामान्य, प्र.वि. हुंडी:दीक्षाविधि., संशोधित., दे., (२६४१२.५, १५४३६). योगविधि संग्रह-खरतरगच्छीय, मु. शिवनिधान, प्रा.,मा.गु., गद्य, आदिः श्रीहर्षसारवाचकशिष्य; अंति: कायोत्सर्ग पच्चक्खाण. ११९३१२ (+) कल्पसूत्र सह टीका, संपूर्ण, वि. १९६१, पौष शुक्ल, ८, गुरुवार, मध्यम, पृ. ११२, ले.स्थल. अजीमगंज, प्रले. आ. अमरराजसूरिजी (गुरु आ. अजयसूरिजी, गुजराती लुकागच्छ-धनराजशाखा); गुपि. आ. अजयसूरिजी (गुरु आ. अखयराजसूरिजी, गुजराती लुंकागच्छ-धनराजशाखा); आ. अखयराजसूरिजी (गुरु आ. मेघराजसूरिजी, गुजराती लुंकागच्छ-धनराजशाखा); आ. मेघराजसूरिजी (गुरु आ. जयराजसूरिजी, गुजराती लुंकागच्छ-धनराजशाखा); आ. जयराजसूरिजी (गुरु आ. नगराजसूरिजी, गुजराती लुकागच्छ-धनराजशाखा); आ. नगराजसूरिजी (गुरु आ. धर्मसिंघसूरिजी, गुजराती । लुंकागच्छ-धनराजशाखा); आ. धर्मसिंघसूरिजी (गुरु आ. खेमराजसूरिजी, गुजराती लुकागच्छ-धनराजशाखा); आ. खेमराजसूरिजी (गुरु आ. चिंतामणिसूरिजी, गुजराती लुंकागच्छ-धनराजशाखा); आ. चिंतामणिसूरिजी (गुरु आ. धनराजसूरिजी, गुजराती लुंकागच्छ-धनराजशाखा); आ. धनराजसूरिजी (गुरु आ. दामोदरसूरिजी, गुजराती लुंकागच्छ-धनराजशाखा); आ. दामोदरसूरिजी (गुरु आ. रूपचंद्रसूरिजी, गुजराती लुंकागच्छ-धनराजशाखा); आ. रूपचंद्रसूरिजी (गुरु आ. जसवंतसिंघसूरि, गुजराती लुंकागच्छ-धनराजशाखा); आ. जसवंतसिंघसूरि (गुरु आ. वरसिंघसूरिजी-लघु, गुजराती लुंकागच्छ-धनराजशाखा); आ. वरसिंघसूरिजी-लघु (गुरु आ. वरसिंघसूरिजी-वृहद्, गुजराती लुंकागच्छ-धनराजशाखा); आ. वरसिंघसूरिजी-वृहद् (गुरु आ. जीवराजसरिजी, गुजराती लुंकागच्छ-धनराजशाखा); आ. जीवराजसरिजी (गुरु आ. रूपसिंघजी, गुजराती लुंकागच्छ-धनराजशाखा); आ. रूपसिंघजी (गुजराती लुंकागच्छ-धनराजशाखा); पठ. मु. गुलाबचंद्र (गुरु मु. रामचंद्रजी); गुपि. मु. रामचंद्रजी (गुरु आ. देवचंद्रजी), प्र.ले.पु. अतिविस्तृत, प्र.वि. हुंडी:सु० टीका कल्पसूत्र. जिनप्रसादात्. कल्पसूत्र मध्यान्ह समये १२.३० से १.०० बजे तक संघ समक्ष वांचन की पुष्टी के बारे में उल्लेख किया गया है. मुनि तेजसिंहजी द्वारा दृष्टांतशतं कृति का संशोधन करने के बारे मे उल्लेख किया गया है., पदच्छेद सूचक लकीरे-संशोधित., प्र.ले.श्लो. (१) यादृशं पुस्तकं दृष्ट्वा, (१४७) लेखणी पुस्तका रामा, (६०८) जिहां लगे मेरू अडग हैं, (१४५२) तनवाडि मन केवडा, (१४५३) पोथी प्यारी प्राणकी, (१४५४) भो वांधु मया कष्टेन, दे., (२५४१२.५, १४४४३). For Private and Personal Use Only Page #363 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ३४८ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची कल्पसूत्र, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., गद्य, आदि: णमो अरिहंताणं० पढमं; अंति: जोसवणा कप्पो संमत्तो, व्याख्यान-९, ग्रं. १२१६. कल्पसूत्र-कल्पलता टीका, उपा. समयसुंदर गणि, सं., गद्य, वि. १६८५, आदिः प्रणम्य परमं ज्योतिः; अंति: समाप्त समर्थितं इति, ग्रं. ७७००. ११९३१३. (+) ८ प्रकारी पूजा, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ.८, प्र.वि. हुंडी:पूजाअष्टप्र., संशोधित., जैदे., (२४.५४१२.५, १२४२८). ८ प्रकारी पूजा, मु. देवचंद्र, मा.गु.,सं., पद्य, वि. १७२४, आदि: स्वस्ति श्रीसुख पूरवा; अंति: सुरनरनारी अमरपद पावे, ढाल-८, गाथा-६६. ११९३१४ (+) गिरनारतीर्थोद्धारमहिमा प्रबंध, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ११-३(१ से २,६)=८, प्रले. म. कल्याणविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२५४१३, ११४३६). गिरनारतीर्थोद्धार रास, पंडित. नयसुंदर, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: अविचल आपि सुख मंगल सदा, ढाल-१३, गाथा-१८४, (पू.वि. ढाल-३ गाथा-३३ अपूर्ण से है व ढाल-७ गाथा-८८ अपूर्ण से ढाल-९ गाथा-१०५ अपूर्ण तक नहीं है.) ११९३२२ (+) बृहत्संग्रहणी-बोल संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ८, पू.वि. प्रारंभ के पत्र हैं., प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२५४१२.५, २६४५६-७५). बृहत्संग्रहणी-बोल संग्रह, संबद्ध, मा.गु., गद्य, आदि: एक लाख एंशी हजार योजन; अंति: (-), (पू.वि. देव व नारकी के बोल हैं.) ११९३२३. कल्पसूत्र, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ७६-३(१,४ से ५)=७३, जैदे., (२३.५४१३, १२४२६-३१). कल्पसूत्र, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., गद्य, आदि: (-); अंति: भुज्जो उवदंसेइ त्तिबेमि, व्याख्यान-९, (पू.वि. प्रारंभिक पाठ पुष्पतरावतंसक वर्णन अपूर्ण तक व ऋषभदत्त ब्राह्मण स्वप्नफल कथा अपूर्ण से इंद्र द्वारा देवानंदी की कुक्षि में भगवान दर्शन प्रसंग अपूर्ण तक नहीं है.) ११९३२४. (#) सप्तर्षि पूजा व कलिकंड पूजा, संपूर्ण, वि. १८६६, ज्येष्ठ शुक्ल, ५, शनिवार, मध्यम, पृ. १२, कुल पे. २, प्रले. श्राव. हरप्रसाद लाला; पठ. श्राव. शंकरलाल, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., (२३४१३, ११४२७). १.पे. नाम. सप्तर्षि पूजा, पृ. १आ-९आ, संपूर्ण. ७ऋषि पूजा, सं., प+ग., आदि: विंशत्तीर्थंकरं वंदे; अंति: सुललितं भव्यकल्यानकारी, पूजा-७. २. पे. नाम, कलिकुंड पूजा, पृ. १०अ-१२आ, संपूर्ण. ___ सं., प+ग., आदि: ह्रींकारं ब्रह्मरूद्धं; अंति: जिन सुमिरं तह उवसग्ग तहा. ११९३२५ (#) लघुक्षेत्रसमास प्रकरण सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २३-१५(१ से ८,१२ से १६,१८ से १९)=८, प्रले. मु. वीरचंद ऋषि, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२३४१३, ६x२६). लघुक्षेत्रसमास प्रकरण, आ. रत्नशेखरसूरि , प्रा., पद्य, वि. १५वी, आदि: (-); अंति: णाएज्झा सम्मदिट्ठीए, अधिकार-६, गाथा-१९६, (पू.वि. प्रारंभ व बीच-बीच के पत्र नहीं हैं., गाथा-६३ अपूर्ण से है व बीच-बीच के पाठ नहीं हैं.) लघुक्षेत्रसमास प्रकरण-टबार्थ *, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: समास ध्यायवु सम्यक्दृष्टि, पू.वि. प्रारंभ व बीच-बीच के पत्र नहीं हैं. ११९३२६. अणाहारीवस्तु सज्झाय व कृष्ण स्तुति, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, दे., (२४.५४१३.५, ११४२९). १.पे. नाम, अणाहारीवस्तु सज्झाय, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. मु. मुक्ति, मा.गु., पद्य, आदि: जपो मंडन वीरजिणंद जेहने; अंति: मुक्ति० मुखथी लही, गाथा-१०. २. पे. नाम. कृष्ण स्तुति, पृ. १आ, संपूर्ण. सं., पद्य, आदि: तं भूसुता मुक्तिमुदा; अंति: मुक्ति मुता सुभूतं, श्लोक-१. For Private and Personal Use Only Page #364 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२६ ३४९ ११९३३१. (४) महालक्ष्मी स्तोत्र, संपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पू. १, पठ. मीठालाल व्यास, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, जैदे., ( २३x१३, १३X३०). महालक्ष्मी स्तव, सं., पद्य, आदि आद्यं प्रणवस्ततः श्रीमाया अंति: सौभाग्य भूतिमिच्छितः, श्लोक ११. ११९३३२. (+) सारस्वत व्याकरण की दीपिका टीका, अपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पृ. १८, पू.वि. प्रारंभ के पत्र हैं., , प्र. वि. हुंडी : चंद्रकीर्ति०, संशोधित, जैदे. (२६४१२.५, १६४३६-५३). " सारस्वत व्याकरण- दीपिका टीका, आ. चंद्रकीर्तिसूरि, सं., गद्य वि. १६२३, आदि नमोस्तु सर्वकल्याण; अंति: (-). ११९३३३. (+) पर्युषणाष्टाह्निका व्याख्यान सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १३, प्र. वि. पदच्छेद सूचक लकीरें-संशोधित.., जैदे., (२७X१३, ६X३३). पर्युषणाष्ठाह्निका व्याख्यान, मु. नंदलाल, सं., पद्य, वि. १७८९, आदि स्मृत्वा पार्थ अति (-), (अपूर्ण, पू. वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., आद्रक कथा अपूर्ण तक लिखा है.) पर्युषणाष्ठाह्निका व्याख्यान-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि समरीने श्रीपार्श्वजीने अति (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., प्रारंभिक पाठ तक लिखा है.) ११९३३४. (+) सूक्तमाला सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २६, पठ. मु. जीतविजय (गुरु पं. कुशलविजय); गुपि. पं. कुशलविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. हुंडी : शुक्ताव०, सुक्ताव०., टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित., जैदे., (२६X१३, ६X३५-४० ). सूक्तमाला, मु. केशरविमल, मा.गु., सं., पद्य, वि. १७५४, आदि: सकलसुकृतवल्लीवृंदजी; अंति: केसरविमलेन विबुधेन, वर्ग-४, श्लोक-१४३, संपूर्ण. सूक्तमाला-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: सकल सर्व जे शुभ करणीनी, अंति: (-), (अपूर्ण, पू. वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., गाथा-१३७ तक का टबार्थ लिखा है.) ११९३३५ जातकपद्धति, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १०, प्र. वि. कोष्ठक सहित., जैदे., (२६X१३, १२x२४). जातकपद्धति, मु. हर्षविजय, सं., पद्य, वि. १७६५, आदि: प्रणम्य पार्श्वदेवेशं, अंति: (-), (अपूर्ण, पू. वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण, श्लोक ८२ तक लिखा है.) ११९३३९. अजितशांति स्तव सह छाया, संपूर्ण, वि. २०वी मध्यम, पृ. ५. प्रले. मु. रायचंद, प्र.ले.पु. सामान्य, दे., (२५.५४१२.५, ४x२७). अजितशांति स्तव लघु-खरतरगच्छीय, आ. जिनवल्लभसूरि, प्रा., पद्य, आदि उल्लासिक्कमनक्ख; अति दुरियमखिलं तह, गाथा - १८. अजितशांति स्तव लघु-खरतरगच्छीय- छाया, कृष्ण शर्मा, सं., पद्म, वि. २०वी, आदि उल्लासिक्रमनखनिर्गत अंति जिनवल्लभ संस्तुत कुरु, श्लोक-१८. ११९३४० (+) मौनएकादशीपर्व देववंदन विधि, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ८, ले. स्थल. खीमेल नगर, प्रले. मु. चिमन, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. हुंडी एकादशीदेववंदन, टिप्पण युक्त विशेष पाठ, जैये. (२६१२.५, ११४४५). मी एकादशीपर्व देववंदन, पंन्या. रूपविजय, मा.गु., पद्य, आदि नगरगजपुर पुर पुरंदरपुर अंति: जयवीयराय संपूर्ण कहीड़. ११९३४१ पाशाकेवली, अपूर्ण, वि. १९६४, पौष कृष्ण, ७, मध्यम, पृ. ६-२ (२ से ३ ) = ४, ले. स्थल. सूरगढ, प्रले. मु. अनोपचंद ऋषि, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. प्रत के अंत में श्री १००८ श्रीश्री जिनेखेमराजसूरिजी की परत छे ऐसा लिखा है, दे., (२५४१२.५, १३x४७-५०). पाशाकेवली, मु. गर्ग ऋषि, सं., पद्य, आदिः ॐ नमो भगवती कूष्मांडिनी, अंतिः कार्यं ततो विचारी, श्लोक-१९६, (पू.वि. शुकनांक- १३४ अपूर्ण से ३२१ अपूर्ण तक नहीं है.) जैदे.. ११९३४२. कल्पसूत्र-व्याख्यान १ सह कल्पलता टीका, संपूर्ण वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. २१, प्र. वि. हुंडी : श्रीकल्प. सूत्र ०. (२५.५X१३, ६X३०). कल्पसूत्र, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., गद्य, आदि णमो अरिहंताणं० पढमं अति: (-), प्रतिपूर्ण For Private and Personal Use Only Page #365 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ३५० कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची कल्पसूत्र-कल्पलता टीका, उपा. समयसुंदर गणि, सं., गद्य, वि. १६८५, आदि: प्रणम्य परमं ज्योतिः; अंति: (-), प्रतिपूर्ण. ११९३४३. (+) दशवैकालिकसूत्र सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १८२८, माघ शुक्ल, ३, मध्यम, पृ. ५२, ले.स्थल. सादडीनगर, प्रले. मु. दीलरजतसागर, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. श्रीचिंतामणिजी प्रसादात्., टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२५.५४१२.५, ५४४२-५०). दशवकालिकसूत्र, आ. शय्यंभवसूरि, प्रा., पद्य, वी. रवी, आदि: धम्मो मंगलमुक्किटुं; अंति: जखणीइ० विबोहणट्ठाए, _अध्ययन-१०, (वि. चूलिका-२) दशवैकालिकसूत्र-टबार्थ*, मा.गु., गद्य, आदि: धर्म केवली भगवंतउ भाष्यउ; अंति: भव्यनइ प्रतिबोधनइ अर्थइ. ११९३४६. (+#) ज्ञाताधर्मकथांगसूत्र सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. १८८६, मार्गशीर्ष कृष्ण, ११, रविवार, मध्यम, पृ. ३९८-९८(१ से ९८)=३००, ले.स्थल. विक्रमपुर, प्र.वि. हुंडी:ज्ञातासूत्रटबार्थ., संशोधित-पदच्छेद सूचक लकीरे-टिप्पण युक्त विशेष पाठ. कुल ग्रं. ६०००, मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., (२५४१२.५, ५४३२-४५). ज्ञाताधर्मकथांगसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., प+ग., आदि: (-); अंति: नायाधम्मकहाओ सम्मत्ताओ, अध्ययन-१९, (पू.वि. श्रुतस्कंध-१ अध्ययन-३ अपूर्ण से है.) ज्ञाताधर्मकथांगसूत्र-टबार्थ, ग. प्रेमजी, मा.गु., गद्य, वि. १६९९, आदि: (-); अंति: प्रेमजिना टबार्थः. ११९३४७. (+) अध्यात्म गीता सह बालावबोध, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ३२, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें-संशोधित. कुल __ग्रं. १२५०, जैदे., (२५.५४१२.५, १५४४४). अध्यात्म गीता, ग. देवचंद्र, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: प्रणमीयै विश्वहित जिनवाणी; अंति: देवचंद्रे० सुप्रतीता, गाथा-४९. अध्यात्म गीता-बालावबोध, मु. कुंअरविजय, मा.गु., गद्य, वि. १८८२, आदि: (१)संवेगी सिरदार सिरोमणि जिन, (२)एतलै प्रणमीयै कहिता; अंति: तस घर लछि लीला करै, ग्रं. १२५०. ११९३४८. (+#) राजप्रश्नीयसूत्र सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १४५-१(१)+१(११)=१४५, पू.वि. बीच के पत्र हैं., प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ. मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., (२५.५४१२.५, ६४३०-३५). राजप्रश्नीयसूत्र, प्रा., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. सूत्र-५ अपूर्ण से सूत्र-७४ अपूर्ण तक है.) राजप्रश्नीयसूत्र-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: (-). ११९३४९ (+) कल्पसूत्र का कल्पदीपिका बालावबोध, अपूर्ण, वि. १९४२, मध्यम, पृ. १४३, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., ले.स्थल. लक्ष्मणपुर, प्रले. मु. गोकुलचंद्र ऋषि; पठ. श्राव. पन्नालाल, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. हुंडी:श्रीकल्प०.बा०, श्रीकल्पबाल०. श्रीऋषभदेव प्रासादौ. प्रत्येक वाचना में प्रतिलेखन पुष्पिका दी गई है., संशोधित., दे., (२५४१२.५, ११४३९). कल्पसूत्र-कल्पदीपिका बालावबोध, मु. मयाचंद ऋषि, मा.गु., गद्य, वि. १८१४, आदि: प्रणम्य परमं ज्योति; अंति: (-), (पू.वि. व्याख्यान-६ तक है.) ११९३५० (+) जिनबिंब प्रतिष्ठाविधि संग्रह, संपूर्ण, वि. १९२१, पौष कृष्ण, ३, शुक्रवार, श्रेष्ठ, पृ. २८, ले.स्थल. मादाबाद अजीमगंज, प्रले. पं. गजेंद्रसागर, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित., दे., (२५.५४१२.५, १३४३८). जिनबिंब प्रतिष्ठाविधि संग्रह, मा.ग.,सं., प+ग., आदिः (१)प्रणम्य स्वस्तिऋद्धिश्री, (२)तिहां प्रथम भव्य; अंति: अवतर प्रतीष्ट स्वाहा, (वि. यंत्रसहित.) ११९३५१ (+#) वर्द्धमानदेशना, संपूर्ण, वि. १९१३, चैत्र शुक्ल, १५, मध्यम, पृ. ८१, प्र.वि. हंडी:श्रीवर्द्धमान०., संशोधित. कुल ग्रं. ५०००, अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२५.५४१२.५, १९x४५). वर्द्धमानदेशना, ग. राजकीर्ति, सं., गद्य, आदि: नमः श्रीपार्श्वनाथाय; अंति: (१)शोधयंतु गतमत्सराः, (२)प्रतिबोधो नाम दश उल्लासः, उल्लास-१०, ग्रं. ४३००. ११९३५३. (+) कोकसार का बालावबोध, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. २३-२०(१ से २०)=३, पृ.वि. बीच के पत्र हैं., प्र.वि. संशोधित., दे., (२८x१२.५, ९x४१). कोकसार-बालावबोध, मा.ग., गद्य, आदिः (-); अंति: (-), (प.वि. अधिकार-२ स्त्री आचरण वर्णन अपूर्ण है.) For Private and Personal Use Only Page #366 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२६ ३५१ ११९३५७. (+#) श्रीपाल चरित्र, संपूर्ण, वि. १९४२, मार्गशीर्ष कृष्ण, ७, शनिवार, मध्यम, पृ. ४६, ले.स्थल. अजीमगंज, प्रले. मु. गंगा ऋषि, प्र.ले.प. सामान्य, प्र.वि. हुंडी:श्रीपालो, श्रीपाल, श्रीपा०., पदच्छेद सूचक लकीरें. मूल पाठ का अंश खंडित है, दे., (२५.५४१२.५, १४४३५). श्रीपाल चरित्र, ग. जयकीर्ति; पंन्या. जीवराज, सं., गद्य, वि. १८६८, आदिः (अपठनीय); अंति: सिद्धचक्रमहिमा जातः, प्रस्ताव-४. ११९३५८ (+) पाशाकेवली व औपदेशिक दोहा संग्रह, संपूर्ण, वि. १९३४, श्रावण कृष्ण, १४, बुधवार, मध्यम, पृ. ५, कुल पे. २, ले.स्थल. मकसूदाबाद, प्रले. मु. अवीरेंदु ऋषि (वडतपागच्छ), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. प्रत के अंत में "श्रीहेमचंदसूरिश्वरजी ने ४ चौमासा मकसूदावाद में किया" ऐसा उल्लेख है., संशोधित., दे., (२६४१२.५, १३४३७). १. पे. नाम. पाशाकेवली-भाषा, पृ. १आ-५अ, संपूर्ण. ___पाशाकेवली-भाषा*, संबद्ध, मा.गु., गद्य, आदि: ॐ नमो भगवति श्रीअरिहंते; अंति: कल्याणकी वृद्धि होवसी. २. पे. नाम, औपदेशिक दोहा संग्रह, पृ. ५अ, संपूर्ण. पुहि.,प्रा.,मा.गु.,सं., पद्य, आदि: जाति सुभावन जात है करे को; अंति: कोइ कहे तोलडिये वासै नहि, गाथा-३. ११९३५९ (+) आचारांगसूत्र-श्रुतस्कंध १, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. १०, प्र.वि. हुंडी:आचारंग०., संशोधित., जैदे., (२५.५४१२.५, २३४५८-६२). आचारांगसूत्र , आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., प+ग., आदि: सुयं मे आउसं० इहमेगे; अंति: (-), प्रतिपूर्ण. ११९३६० (+) वंदित्तसूत्र व श्लोक संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ५, कुल पे. २, प्रले. मु. अवीरचंद्र ऋषि; पठ. श्राव. छोटुलाल, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. प्रत के अंत में "सुमतिचंद की पोथी है" ऐसा लिखा है., पदच्छेद सूचक लकीरे-संशोधित., दे., (२६४१२.५, ९४३०). १.पे. नाम. वंदित्तुसूत्र, पृ. १आ-५आ, संपूर्ण. __संबद्ध, प्रा., पद्य, आदि: वंदेत्तू सव्वसिद्ध; अंति: वंदामि जिणे चउवीसं, गाथा-५०. २.पे. नाम. श्लोक संग्रह, पृ. ५आ, संपूर्ण. श्लोक संग्रह **, पुहि.,प्रा.,मा.गु.,सं., पद्य, आदि: स्थिरापायः कायः प्रणयिषु; अंति: त्वं स्वर्ण चुरुडोख्यमहं०, श्लोक-२. ११९३६१ (+) वसुधारा स्तोत्र, संपूर्ण, वि. १९४८, माघ शुक्ल, ९, शनिवार, मध्यम, पृ. ५, ले.स्थल. मुर्शिदाबाद, प्रले. मु. धनसुख ऋषि; पठ. मु. सुमतिचंद ऋषि, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. हुंडी:वसुधारा०म०. वसुधारा०महा., पदच्छेद सूचक लकीरें-संशोधित., प्र.ले.श्लो. (१४५५) विद्या न हेया कविभीः कदाचित, दे., (२६४१३, १५४३६). वसुधारा स्तोत्र, सं., गद्य, आदि: संसारद्वयदैन्यस्य प्रतिह; अंति: धारिणीमहाविद्या. ११९३६२. आचारदिनकर-पौष्टिकविधानमहापूजनविधि, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ५, दे., (२५.५४१२.५, १३४३४). आचारदिनकर-हिस्सा पौष्टिकविधानमहापजनविधि, आ. वर्द्धमानसरि, सं., प+ग., आदि: सचायं श्रीयुगादि जिनबिंब; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., कुसुमांजलि-८ श्लोक-३ अपूर्ण तक लिखा है.) ११९३६३. कुंभस्थापन विधि व जिनबिंब प्रवेशस्थापना विधि, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ५, कुल पे. २, जैदे., (२५४१२.५, ११४३५). १. पे. नाम. कुंभस्थापन विधि, पृ. १अ-२आ, संपूर्ण. ___ कलशस्थापन विधि, मा.गु.,सं., गद्य, आदि: कुंभ दाघ रहित रुडो लेवो; अंति: सुधि धूप दीप विशेष करवो. २. पे. नाम. जिनबिंब प्रवेशस्थापना विधि, पृ. २आ-५आ, संपूर्ण. मा.गु.,सं., गद्य, आदि: पहिलं भलो मुहर्त; अंति: सघला दिक्पाल संतोषीइ. ११९३६४. (+) बंधस्वामित्व नव्य कर्मग्रंथ-यंत्र, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ.८, प्र.वि. हुंडी:कर्मग्रंथ., टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित., जैदे., (२५४१२, ५४१०). बंधस्वामित्व नव्य कर्मग्रंथ-यंत्र, म. समतिवर्द्धन, मा.गु., यं., आदि: श्रीवर्धमान जिनचंद्र; अंति: य आउ तीर्यंच आउ हीन. ११९३६५. (+) श्रीपाल चरित्र का बालावबोध, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ६३, प्र.वि. संशोधित., दे., (२३.५४१२, १४४३३-३९). For Private and Personal Use Only Page #367 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org ३५२ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची श्रीपाल चरित्र-बालावबोध, मु. देवमुनि, मा.गु., पद्य, वि. १९१७, आदि: श्रीअरिहंत सुसिद्धपद; अंति: मुनि कथा लिखी सुजगीस, प्रस्ताव ४ ग्रं. १८००. " ११९३६७. (+) दीपावलीपर्व कल्प सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ६. प्र. वि. पदच्छेद सूचक लकीरें संशोधित. दे., (२८x१३, ६X३६). दीपावलीपर्व कल्प, आ. जिनसुंदरसूरि सं., पद्य वि. १४८३, आदि श्रीवर्द्धमान मंगल्य: अंति: (-), (अपूर्ण, पू. वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण श्लोक ६५ तक लिखा है.) दीपावलीपर्व कल्प-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: श्रीवर्द्धमानस्वामी महा; अंति: (-), अपूर्ण, पू. वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण. Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ११९३६८ (+) भगवतीसूत्र शतक २४- दंडक विचार, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ८, प्र. वि. हुंडी : गमा., पदच्छेद सूचक लकीरें.. जैदे., (२७४१३, २-१८४३९-४८). भगवतीसूत्र शतक २४ संबद्ध दंडक विचार, मा.गु., गद्य, आदि ७ नारकीना ७ घर नारकी में, अंति अवगाहणा१ आयु २ अणुबंधाय ३. ११९३६९. आषाढाभूतिमुनि पंचडालियो, संपूर्ण वि. १९वी मध्यम, पृ. ५, पठ. श्राव. जुवासुंदर देसाई, प्रले. मु. हीराचंद स्वामी (गुरु मु. देवजी स्वामी); गुपि. मु. देवजी स्वामी, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. हुंडी : अषाढभु, अषाढभूतिनी चोढालियु., जैदे., (२६.५x१३, ११-१४४३१) आषाढाभूतिमुनि पंचढालियो, मु. रायचंद ऋषि, मा.गु., पद्य, वि. १८३६, आदि: दरसण परीसो बावीसमो कठिण; अंतिः रे लाल तेज गमे जाणे धन हो, ढाल-७. ११९३७०. उत्तराध्ययनसूत्र अध्ययन २९ का बोल संग्रह, संपूर्ण वि. १८९९ कार्तिक शुक्ल, १०, शनिवार, मध्यम, पृ. ७, ले. स्थल हरसरूकी गढी, प्रले. मु. रामलाल (गुरु मु. देवकरण स्वामी); गुपि. मु. देवकरण स्वामी, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. हुंडी:तेतरफली, तेहतरफलीफ०., जैदे., (२८१३, १९x४९). उत्तराध्ययनसूत्र-हिस्सा २९वाँ अध्ययन का बोल संग्रह, संबद्ध, मा.गु., गद्य, आदि: अ० हे चिरंजीवी जंबूए; अंति: हु तुझ प्रतेक छु, बोल- ७३. ११९३७१. (+) स्नात्रपूजा संग्रह, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ८, प्र. वि. प्रतिलेखक का नाम अवाच्य है., संशोधित., जैदे., (२७X१२.५, १०x३१). स्नात्रपूजा संग्रह*, मु. भिन्न भिन्न कर्तृक, प्रा., मा.गु., सं., प+ग., आदि: मुक्तालंकार विकार सार; अंति: रोग सोग सब० जे. ११९३७४ (+) स्नात्रपूजा विधिसहित संपूर्ण वि. १९वी मध्यम, पृ. ६, प्रले. नथुराम, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. संशोधित, जैये., (१७.५X१२.५, १२४३४). स्नात्रपूजा विधिसहित, ग. देवचंद्र, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: चोतिसे अतिसय जुओ वचन; अंति: (१) देवचंद० सूत्र मझार, ( २ ) पूजा स्नात्र सुगीत भणीजे, डाल-८, गाथा- ६०. ११९३७५. राईप्रतिक्रमणसूत्र - तपागच्छीय, संपूर्ण, वि. १९५२, मध्यम, पृ. ५, दे., (२८x१२, १४४४२). राईप्रतिक्रमणसूत्र- तपागच्छीय, संबद्ध, प्रा., मा.गु. सं., प+ग, आदि स्थापनाजी के सामने जीमणो; अति करी मिच्छामि दुक्कडं. ११९३७८. (+) अनेकार्थध्वनिमंजरी व वृतरत्नाकर, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ८, कुल पे. २, प्र. वि. हुंडी : अनेका०.ध्व., संशोधित, जैवे. (२७४१२.५, ११४४४-४८) १. पे. नाम. अनेकार्थध्वनिमंजरी, पृ. १आ-८अ, संपूर्ण. सं., पद्य, आदि: शिवं भद्रं शिवः; अंतिः काव्ये समयो बुधसंघयो, अधिकार- ३, श्लोक-२१९. २. पे नाम. वृत्तरत्नाकर- अध्याय २, ६. पू. ८आ, संपूर्ण वृत्तरत्नाकर, केदार भट्ट, सं., पद्य, आदि (-); अंति (-), (प्रतिपूर्ण, वि. अध्याय-२ के श्लोक-१ की टीका है तथा अध्याय-६ के मूल श्लोक १ से ३ तक हैं.) For Private and Personal Use Only Page #368 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२६ ३५३ ११९३७९ (+) पर्युषणाष्टाहिका व्याख्यान, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २२+१(३)=२३, प्रले. मु. दीपसागर, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. प्रत के अंत में विमलचंदस्येदं पुस्तकमस्ति ऐसा लिखा है., पदच्छेद सूचक लकीरें-टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित., जैदे., (२८x१२.५, १२४४५-४९). अष्टाह्निकापर्व व्याख्यान, उपा. क्षमाकल्याण, सं., गद्य, वि. १८६०, आदि: शांतीशं शांतिकर्ता; अंति: पद्यबंध विलोक्य तत्. ११९३८० (+) कर्मग्रंथ सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १८१०, श्रावण शुक्ल, ४, मध्यम, पृ. ७१, कुल पे. ६, ले.स्थल. मखसुदाबाद-बंग, प्रले. शंभूराम पांडे, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित. कुल ग्रं. १११९, जैदे., (२७७१२.५, ४४३२). १. पे. नाम. कर्मविपाक नव्य कर्मग्रंथ सह टबार्थ, पृ. १आ-१०अ, संपूर्ण. कर्मविपाक नव्य कर्मग्रंथ-१, आ. देवेंद्रसरि, प्रा., पद्य, वि. १३वी-१४वी, आदि: सिरिवीरजिणं वंदिय; अंति: लिहिओ देविंदसूरिहिं, गाथा-६०. कर्मविपाक नव्य कर्मग्रंथ-१-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: प्रणम्य परम प्रेम्ला; अंति: लिख्यो श्रीदेवेंद्रसूरिइ. २. पे. नाम. कर्मस्तव नव्य कर्मग्रंथ सह टबार्थ, पृ. १०अ-१६आ, संपूर्ण. कर्मस्तव नव्य कर्मग्रंथ-२, आ. देवेंद्रसरि, प्रा., पद्य, वि. १३वी-१४वी, आदि: तह थुणिमो वीरजिणं; अंति: देविंद वंदिअंनमह तं वीरं, गाथा-३५. कर्मस्तव नव्य कर्मग्रंथ-२-टबार्थ *, मा.गु., गद्य, आदि: ते प्रकारि स्तवु छु अमे; अंति: एतलइ सत्तानी स्थिति कही. ३. पे. नाम. बंधस्वामित्व नव्य कर्मग्रंथ सह टबार्थ, पृ. १६आ-२१अ, संपूर्ण. बंधस्वामित्व नव्य कर्मग्रंथ-३, आ. देवेंद्रसरि, प्रा., पद्य, वि. १३वी-१४वी, आदि: बंधविहाणविमुक्कं; अंति: लिहियं नेयंकम्मत्थयं सोयं, गाथा-२५. बंधस्वामित्व नव्य कर्मग्रंथ-३-टबार्थ *, मा.ग., गद्य, आदि: बंधविधान कर्मना भेदथी; अंति: बीजो कर्मस्तव सांभलीनइ. ४. पे. नाम. षडशीति नव्य कर्मग्रंथ सह टबार्थ, पृ. २१आ-३७अ, संपूर्ण. षडशीति नव्य कर्मग्रंथ-४, आ. देवेंद्रसूरि, प्रा., पद्य, वि. १३वी-१४वी, आदि: नमिअजिणं जिअ१ मग्गण; अंति: लिहिओ देविंदसूरीहिं, गाथा-८६. षडशीति नव्य कर्मग्रंथ-४-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: वांदीनइ तीर्थंकर प्रति; अंति: सोध्यमपि वहेउ समुद्दिश्य. ५. पे. नाम. शतक नव्य कर्मग्रंथ सह टबार्थ, पृ. ३७अ-५४अ, संपूर्ण. शतक नव्य कर्मग्रंथ-५, आ. देवेंद्रसूरि, प्रा., पद्य, वि. १३वी-१४वी, आदि: नमिअ जिणं धुवबंधोदय; अंति: देविंदसूरि०आयसरणट्ठा, गाथा-१००. शतक नव्य कर्मग्रंथ-५-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: प्रणमीनइ जिनप्रतइ पहिलो; अंति: संभारिवानइ असूरिपइ लिख्यउ. ६. पे. नाम. सप्ततिका कर्मग्रंथ सह टबार्थ, पृ. ५४अ-७१आ, संपूर्ण. सप्ततिका कर्मग्रंथ-६, प्रा., पद्य, वि. १३वी-१४वी, आदि: सिद्धपएहिं महत्थं; अंति: एगुणा होइ नउइओ, गाथा-९३. सप्ततिका कर्मग्रंथ-६-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: सिद्ध निश्चल पद छइ जेहनउ; अंति: उणी नेउ गाथा होइ. ११९३८१ (+) जीवविचार प्रकरण सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १८८१, माघ शुक्ल, १३, मंगलवार, मध्यम, पृ. ६, प्रले. मु. लक्ष्मीचंद्र; पठ. मु. टोकरसी, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. हुंडी:जीवचार पत्र. श्रीशांतिनाथजी प्र., पदच्छेद सूचक लकीरे-संशोधित., जैदे., (२७.५४१२.५, ६४३०). जीवविचार प्रकरण, आ. शांतिसूरि, प्रा., पद्य, वि. ११वी, आदि: भुवणपईवं वीरं नमिऊण; अंति: शांतिसूरि० समुद्दाओ, गाथा-५१. जीवविचार प्रकरण-टबार्थ*, मा.गु., गद्य, आदि: तीन भुवन माहे दिवा; अंति: समुद्र हुंती. ११९३८२. (#) २४ जिन चरित्र, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २०-११(१ से १०,१४)=९, पू.वि. बीच के पत्र हैं., प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२७७१३, २१४५१). For Private and Personal Use Only Page #369 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ३५४ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची २४ जिन चरित्र, सं., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. श्लोक-३८६ अपूर्ण से ७२० अपूर्ण तक है व श्लोक-५३७ अपूर्ण से ५४५ अपूर्ण तक का पाठांश नहीं है.) ११९३८४. (+) प्रज्ञापनासूत्र, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ९-२(१ से २)-७, प्र.वि. हुंडी:पदमणा., संशोधित., दे., (२८x१३, १६x४४). प्रज्ञापनासूत्र, वा. श्यामाचार्य, प्रा., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं व प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., पद-१ सूत्र-१३ अपूर्ण से है व गाथा-७३ अपूर्ण तक लिखा है.) ११९३८५. १४ गुणस्थान के २५ द्वार, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. २८, जैदे., (२९४१३, ११४४८). १४ गुणस्थानके २५ द्वार, मा.गु., गद्य, आदि: गुमठाणानाम मिथ्यात्वगुण; अंति: चौथाथी पहला अणंतगुणा. ११९३८६. (+) संस्तारक प्रकीर्णक सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १५, प्रले. मु. अचलसुंदर (उपकेशगच्छ), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. हुंडी:संथारापय., संशोधित., जैदे., (२७.५४१२, ५४३२-३८). संस्तारक प्रकीर्णक, ग. वीरभद्र, प्रा., पद्य, आदि: काऊण नमोकारं जिणवरवसहस्स; अंति: चंदा सुहसंकमणं सया दिंतु, गाथा-१२१. संस्तारक प्रकीर्णक-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: शमितनिःशेषकर्मणि वरशर्म; अंतिः सदाइ दि० मुझने सेवकनइ. ११९३८७. (#) २० स्थानक गुण विचार, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ.८, प्र.वि. अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, जैदे., (२८x१३, १६x४०-४३). २० स्थानक गुण विचार, प्रा.,मा.गु., गद्य, आदि: नमो अरिहंताणं बारे गुण; अंति: संघभक्ति उजमणो करीइ. ११९३८९ (+) परीक्षामुखसूत्र सह प्रमेयरत्नमालाटीका, संपूर्ण, वि. १८२३, माघ शुक्ल, ५, मध्यम, पृ. ८४, ले.स्थल. सवाइ जयपुर, पठ. मु. चंद्रकीर्ति (दिगंबर); अन्य. आ. मेरुकीर्तिसूरि (गुरु आ. सुरेंद्रकीर्ति); आ. सुरेंद्रकीर्ति, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें-अन्वय दर्शक अंक युक्त पाठ-टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित. कुल ग्रं. ९३६, जैदे., (२७.५४१२, ९४३२-३५). परीक्षामुखसूत्र, आ. माणिक्यनंदि, सं., गद्य, वि. ५६९, आदि: प्रमाणादर्थसंसिद्धिस्तदा; अंति: परीक्षादक्षवद्व्यधां, समुद्देश-६. परीक्षामुखसूत्र-प्रमेयरत्नमालाटीका, आ. अनंतवीर्यजी, सं., प+ग., वि. १२वी, आदि: नतामरशिरोरत्नप्रभाप्रोत; अंति: बालप्रबोधकरमेतदनंतवीर्यैः, समद्देश-६. ११९४०१ (+) हंसराजवत्सराज चौपाई, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २१, प्रले. मूलचंद ब्राह्मण, प्र.ले.प. सामान्य, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२७.५४१३, २१x१०). हंसराजवत्सराज चौपाई, आ. जिनोदयसूरि, मा.गु., पद्य, वि. १६८०, आदि: सदा गुरु पाय प्रणमीये करी; अंति: पामीयै ए हंसने वच्छराज, खंड-४, गाथा-९०५, (वि. ढाल-४८.) ११९४०२ (-2) नववाड सज्झाय, गौतमस्वामी रास व महावीरजिन स्तवनादि संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १२-५(६ से १०)=७, कुल पे. १०,प्र.वि. अशुद्ध पाठ. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२७.५४१३, १६४३४). १. पे. नाम. नववाड सज्झाय, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. मा.गु., पद्य, आदि: नववाड सही जिनराज; अंति: अखी होय जावै बरहमचारी, गाथा-९. २.पे. नाम. गौतमस्वामी रास, पृ. १आ-२आ, संपूर्ण, पे.वि. हुंडी:गोतम. मु. रायचंद ऋषि, रा., पद्य, वि. १८३४, आदि: गुण गावो गोतम तणा; अंति: गौतम स्वामी मे गुण धणा, गाथा-१४. ३. पे. नाम. महावीरजिन स्तवन-नालंदापाडा, पृ. २आ-३आ, संपूर्ण, पे.वि. हुंडी:नाडदो. म. रायचंद ऋषि, मा.गु., पद्य, वि. १८३९, आदि: मगध देशमांहि बिराजे सुंदर; अंति: मुक्त महलमे जासी जी, गाथा-२२. ४. पे. नाम. सीमंधरजिन स्तवन, पृ. ३आ, संपूर्ण. मा.गु., पद्य, आदि: पूरवने पुखलावती हो बीजे; अंति: मोरको थारा सूत्रनी प्रतीत, गाथा-७. ५. पे. नाम. श्रावककरणी सज्झाय, पृ. ३आ-४अ, संपूर्ण, पे.वि. हुंडी:श्रावक. मु. नित, मा.गु., पद्य, आदि: श्रावक धर्म करो सुखदाइ; अंति: नित भण सुणज्यो० जयकारोजी, गाथा-१२, (वि. पाठभेद मिलता है.) For Private and Personal Use Only Page #370 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२६ ३५५ ६. पे. नाम. सीमंधरजिन स्तवन, पृ. ४अ-४आ, संपूर्ण. मु. रायचंद ऋषि, मा.गु., पद्य, आदिः श्रीमंद्र जुगमंद्र सामी; अंति: पाप कर्म फरो देवो ठेली, गाथा-९. ७. पे. नाम. युगमंधरजिन स्तवन, पृ. ४आ-५अ, संपूर्ण. मु. रायचंद ऋषि, रा., पद्य, वि. १८३७, आदि: महाविदेह मे प्रभु रो; अंति: रायचंद० अलग कीजे, गाथा-९. ८. पे. नाम. शांतिजिन स्तवन, पृ. ५अ, संपूर्ण.. मु. सबलदास ऋषि, मा.गु., पद्य, वि. १८६३, आदि: संत जिणेसर समरीये पो उठी; अंतिः श्रावक भलो धर्म उपगार, गाथा-१०. ९. पे. नाम. १४ बोल सज्झाय, पृ. ५आ, अपूर्ण, पू.वि. प्रारंभ के पत्र हैं., पे.वि. हुंडी:भगोतीम. मु. रायचंद, मा.गु., पद्य, आदि: सूत्र भगोती सतक; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-१६ अपूर्ण तक है.) १०. पे. नाम. औपदेशिक श्लोक संग्रह, पृ. ११अ-११आ, अपूर्ण, पृ.वि. बीच के पत्र हैं., पे.वि. हुंडी:सिलोक. पत्र चिपके होने के कारण पाठ अवाच्य है. औपदेशिक श्लोक संग्रह*, पुहिं.,प्रा.,मा.गु.,सं., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. गाथा-५६ अपूर्ण से गाथा-११७ अपूर्ण तक है.) ११९४०३. (+) सिंदरप्रकर व श्लोक संग्रह, संपूर्ण, वि. १९११, वैशाख कृष्ण, १०, मध्यम, पृ. २१, कुल पे. २, प्रले. मु. राजमल्ल, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरे-अन्वय दर्शक अंक युक्त पाठ-संशोधित.,प्र.ले.श्लो. (१४५६) पोथी प्यारी प्राणथी, दे., (२७.५४१३, ८x२३-२६). १.पे. नाम. सिंदरप्रकर, प. १आ-२१अ, संपूर्ण. ___ आ. सोमप्रभसूरि, सं., पद्य, वि. १३वी, आदि: सिंदूरप्रकरस्तपः करिशिरः; अंति: सोमप्रभ०मुक्तावलीयम्, द्वार-२२, श्लोक-१०१. २. पे. नाम. सुभाषित श्लोक संग्रह, पृ. २१आ, संपूर्ण. श्लोक संग्रह **, पुहि.,प्रा.,मा.गु.,सं., पद्य, आदि: काया हंस विना नदी जलं; अंति: विना पुन्यं विना मानवा, श्लोक-१. ११९४०४. (+) सिंदूरप्रकर सह टीका व बालावबोध, संपूर्ण, वि. १७०३, वैशाख शुक्ल, ३, मध्यम, पृ. २७, ले.स्थल. उदयपुर, प्रले. मु. विष्णुदास ऋषि (गुरु मु. वीराजीत ऋषि); गुपि. मु. वीराजीत ऋषि (गुरु मु. हरराजत ऋषि); मु. हरराजत ऋषि; अन्य. ग. भक्तिविशाल वाचक, प्र.ले.प. मध्यम, प्र.वि. त्रिपाठ-संशोधित., जैदे., (२६.५४१३.५, ४-२४४३३-३८). सिंदरप्रकर, आ. सोमप्रभसूरि, सं., पद्य, वि. १३वी, आदि: सिंदरप्रकरस्तपः करिशिरः; अंति: सोमप्रभ०मुक्तावलीयम, द्वार-२२, श्लोक-१००. सिंदूरप्रकर-वल्लभीटीका, आ. गुणकीर्तिसूरि, सं., गद्य, आदि: पार्श्वप्रभोः क्रमयो; अंति: साधुना० साधु भूमिपालेन. सिंदरप्रकर-बालावबोध+कथा, पा. राजशील, मा.गु.,सं., गद्य, आदि: शारदाचरणयुग्ममतीतपापं; अंति: मयि मूर्ख कृतकृपैः. ११९४०५ (+#) रामविनोद, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ७०-२(२८ से २९)=६८, पृ.वि. बीच व अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. हुंडी:रामविनोद०., संशोधित. मूल पाठ का अंश खंडित है, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२८x१३.५, १३-१७४३३-५१). रामविनोद, पं. रामचंद्र गणि, मा.गु., पद्य, वि. १७२०, आदि: सिद्धबुद्धिदायक सलहीयै; अंति: (-), (पू.वि. समुद्देश-४ गाथा-५३ अपूर्ण से ७३ तक नहीं है व उद्देशक-६ गाथा-१५१ अपर्ण से नहीं है.) ११९४०६. (+) सिद्धांतचंद्रिका-धातुपाठ सह सुबोधिनी वृत्ति, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १५, प्र.वि. हुंडी:धातु०., पदच्छेद सूचक लकीरे-संशोधित., जैदे., (२७४१३, ९४४४). सरस्वतीसूत्र-प्रक्रिया सिद्धांतचंद्रिका, आ. रामाश्रम, सं., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), प्रतिपूर्ण. सरस्वतीसूत्र-प्रक्रिया सिद्धांतचंद्रिका की सुबोधिनी वृत्ति, ग. सदानंद, सं., गद्य, वि. १७९९, आदि: (-); अंति: (-), प्रतिपूर्ण. For Private and Personal Use Only Page #371 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ३५६ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ११९४०७. (+) पंचकल्याणकनी पूजा अष्टप्रकारी, भावहर्ष सामग्री सचिव साधारणजिन पद आदि संग्रह, संपूर्ण, वि. १८८९, श्रावण शुक्ल, १३, मध्यम, पृ.५, कुल पे. ४, ले.स्थल. राजनगर, प्र.वि. हुंडी:पंचकल्या०., संशोधित., जैदे., (२८x१३, १६x४३). १. पे. नाम. पार्श्वजिनपंचकल्याणक पूजा विधिसहित, पृ. १अ-५अ, संपूर्ण. पं. वीरविजय, मा.गु., पद्य, वि. १८८९, आदि: श्रीशंखेश्वर साहिबो; अंति: वंछित दाय सुहायो रे, ढाल-८. २.पे. नाम. भावहर्ष सामग्री सूचि-पाली उत्तमचंद उपाश्रय, पृ. ५आ, संपूर्ण. ___मा.गु., गद्य, आदि: चंदूओ१ सूडालनो झालरी; अंति: श्रुतबोध सपर्याय पत्र २. ३. पे. नाम. साधारणजिन पद, पृ. ५आ, संपूर्ण. ___ मा.गु., पद्य, आदि: ताहरी मूरति म्हारे दिल; अंति: मोह्यो त्रिभुवन समरसी, गाथा-२. ४. पे. नाम. पार्श्वजिन स्तवन, पृ. ५आ, संपूर्ण. मा.गु., पद्य, आदि: कमठ वडो सठ हठ तप करता; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., गाथा-१ अपूर्ण तक लिखा है.) ११९४०८. बप्पभट्टिसरि चरित्र, संपूर्ण, वि. १९६६, फाल्गुन शुक्ल, १, शनिवार, श्रेष्ठ, पृ. १५, ले.स्थल. नागोर, प्रले. गौरीशंकर व्यास, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. हुंडी:बप्पभट्टिमरिच०, बप्पभट्टिमरिचरित्र., दे., (२७.५४१३, १४४५७-६०). बप्पट्टिसूरि चरित्र, आ. राजशेखरसूरि, सं., प+ग., वि. १५वी, आदि: गुर्जरदेशे पाटलिपुर नगरे; अंति: पुण्यपुरुषैरेवं भाव्यम्, श्लोक-७९, ग्रं. ६००. ११९४०९. (+) ६२ मार्गणा ९५ बोल, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ६, प्र.वि. संशोधित., दे., (२७.५४१३, १४-१८४३८-४२). ६२ मार्गणा ९५ बोल, मा.गु., को., आदि: (-); अंति: (-). ११९४१०. तेजसारकुमार रास, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ४९-२(२४,४०)=४७, पू.वि. बीच-बीच व अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. हुंडी:तेजसार रा०., जैदे., (२८x१३, १५४३६). तेजसारकुमार रास, मु. रामचंद, मा.गु., पद्य, वि. १८०८, आदि: स्वस्ति श्रीचंदगुरु; अंति: (-), (पू.वि. ढाल-२१ अपूर्ण है, ढाल-३३ गाथा-१३ अपूर्ण से ढाल-३४ गाथा-७ अपूर्ण तक नहीं है व ढाल-४० गाथा-९ अपूर्ण से नहीं है.) ११९४१३. जंबूवतीरी चौपै, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ.७, जैदे., (२७.५४१३.५, १५४४०-४४). जंबूवती चौपाई, मु. सूरसागर, मा.गु., पद्य, आदि: पेहली ढाल सोहामणी जंबुवती; अंति: समाणो दीज्यो अविचल पाटतो, ढाल-१३. ११९४१५. षडावश्यकसूत्र का बालावबोध, संपूर्ण, वि. १८९७, पौष कृष्ण, ३, रविवार, श्रेष्ठ, पृ. २५, ले.स्थल. कपडवांणिज्य, प्रले. आ. सुमतिसोम (गुरु भट्टा. आणंदविमलसोमसूरि, लघुपोसालगच्छ); गुपि. भट्टा. आणंदविमलसोमसूरि (लघुपोसालगच्छ), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. श्रीचिंतामणि पार्श्वनाथ प्रसादात्. श्रीचतुर्मुखजी प्रासात्., प्र.ले.श्लो. (१) यादृशं पुस्तकं दृष्ट्वा, (३) भग्नपृष्टि कटिग्रीवा, (६२५) जलात् रक्षेत् तैलात् रक्षेत्, जैदे., (२८x१३.५, १३४३३). __ आवश्यकसूत्र-षडावश्यकसूत्र का बालावबोध, मा.गु., गद्य, आदि: नमो अरिहंताणं श्रीअरिहंत; अंति: वांदं नमस्कार करुं छु. ११९४१७. क्रियाकोष, संपूर्ण, वि. १९०१, ज्येष्ठ शुक्ल, ३, सोमवार, श्रेष्ठ, पृ. १५६+१(४५)=१५७, ले.स्थल. निवाई, प्रले. श्राव. हुकमचंद बीलाका, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. हुंडी:क्रिया०. पत्रांक १०१ अनुपलब्ध है, परंतु पाठ क्रमशः है., दे., (२७४१२, १०४३१-३६). क्रियाकोष, क. दौलतराम पंडित, पुहिं., पद्य, वि. १७९५, आदि: प्रणमि जिनंद मुनिंद; अंति: जिनमारग की शरण गहै, गाथा-२११७. For Private and Personal Use Only Page #372 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२६ ३५७ ११९४१९ (+) कल्पसूत्र की कल्पद्रमकलिका टीका, संपूर्ण, वि. १९०१, आषाढ़ कृष्ण, ३, सोमवार, श्रेष्ठ, पृ. १७८, ले.स्थल. आढसर, प्रले. पं. विद्यारुचि, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. हुंडी:कल्पद्रुमक. श्रीमद्गुरुदेवजी प्रसादात्. पत्रांक का क्रम व्यवस्थित नहीं होने से काल्पनिक पत्रांक दिया गया है. किसी किसी व्याख्यान में स्वतंत्र पत्रांक क्रम है. प्रत्येक पत्रांक पर व्याख्यान का क्रम दिया गया है., पदच्छेद सूचक लकीरें-टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित., प्र.ले.श्लो. (१) यादृशं पुस्तकं दृष्ट्वा, दे., (२६.५४१२, १५४४२-४५). कल्पसूत्र-कल्पद्रमकलिका टीका, ग. लक्ष्मीवल्लभ, सं., गद्य, आदि: श्रीवर्द्धमानस्य; अंति: कल्पसूत्रस्य चेमाम, ग्रं. ४१०९, (वि. मूलपाठ प्रतीक के रूप में दिया है.) ११९४२०. कल्पसूत्र सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २०७-३४(३१ से ६२,७१,१०७)+४(१७,६८,९७,१७५)=१७७, पू.वि. बीच-बीच व अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. हुंडी:कल्पसूत्रपत्र., जैदे., (२५४१२, ४-१४४२९-३५). कल्पसूत्र, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., गद्य, आदि: णमो अरिहंताणं० पढमं; अंति: (-), (पू.वि. क्षमापनासूत्र अपूर्ण तक है, बीच-बीच व अंत के पाठांश नहीं हैं.) कल्पसूत्र-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: (अपठनीय); अंति: (-). ११९४२१. उत्तराध्ययनसूत्र सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २५८-१२५(१ से १२५)=१३३, प्र.वि. ग्रंथाग्रंथ-१९७६३ संदेहास्पद लगता है., कुल ग्रं. १९७६३, जैदे., (२५.५४१३, ४-१५४२९-३२). उत्तराध्ययनसूत्र, मु. प्रत्येकबुद्ध, प्रा., प+ग., आदि: (-); अंति: सम्मएत्ति बेमि, अध्ययन-३६, ग्रं. २०००, (पू.वि. अध्ययन-१९ अपूर्ण से है.) उत्तराध्ययनसूत्र-टबार्थ *, मा.गु., गद्य, आदिः (-); अंति: प्रति कहिता हुया. ११९४२२. (+#) राजप्रश्नीयसूत्र सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १९३९, भाद्रपद, मध्यम, पृ. ११०, ले.स्थल. नागोर, प्र.वि. हुंडी:रायप्रश्नि०., संशोधित. मूल व टीका का अंश नष्ट है, दे., (२५४१२.५, ८४४३). राजप्रश्नीयसूत्र, प्रा., गद्य, आदि: नमो अरिहंताणं० तेणं; अंति: सुप्पस्सवणाए णमो, सूत्र-१७५, ग्रं. २१००. राजप्रश्नीयसूत्र-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: देवदेवं जिनं नत्वा श्रुत; अंति: भणी नमस्कार थाओ. ११९४२३. (+) कल्पसूत्र, संपूर्ण, वि. १९४५, मार्गशीर्ष कृष्ण, ११, गुरुवार, मध्यम, पृ. ७७, प्रले. मखन मिश्र; अन्य. मु. चंदनविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. हुंडी:श्रीकल्पसूत्र., संशोधित-टिप्पण युक्त विशेष पाठ., दे., (२५४१३, ८४२७-३०). कल्पसूत्र, आ. भद्रबाहस्वामी, प्रा., गद्य, आदि: णमो अरिहंताणं० पढमं; अंति: भुज्जो उवदंसेइ त्तिबेमि, व्याख्यान-९, ग्रं. १२१६. ११९४२४. (+#) अंबड चरित्र, संपूर्ण, वि. १९४०, ? शुक्ल, ३, शनिवार, मध्यम, पृ. २६, ले.स्थल. वीकानेर, प्र.वि. प्रतिलेखन पुष्पिकावाला भाग खण्डित है., संशोधित. मूल पाठ का अंश खंडित है, दे., (२४४१२.५,१५४४२). अंबड चरित्र, ग. अमरसुंदर, सं., गद्य, वि. १५वी, आदि: पातु वः श्रीमहावीरस्वामि; अंति: धर्माद्रुपमनिंदितम्. ११९४२६. (+) मौनएकादशीपर्व गणj, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२५४१३, १२४४२-४५). मौनएकादशीपर्व गणj, सं., को., आदि: जंबुद्वीपे भरत अतीत; अंति: आरण्यकनाथाय नमः. ११९४२९. महावीरजिन स्तवन, शांतिजिन स्तवन व रोहिणीनी थोय आदि संग्रह, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ.७, कुल पे. ६, दे., (२४.५४१३, १३४२२-२६). १. पे. नाम, महावीरजिन स्तवन-सम्यक्त्वविचारगर्भित, प. १अ-४आ, संपूर्ण. ग. दीपविजय, मा.गु., पद्य, वि. १८७७, आदि: आरजदेशमा आरजदेश मगध; अंति: दीप कहे० सादवाद प्रकाशता, ढाल-३, गाथा-३६. २. पे. नाम. शांतिजिन स्तवन, पृ. ४आ-५अ, संपूर्ण. ग. दीपविजय, मा.गु., पद्य, आदि: सोलमा शांतिजिणंदस्यूंजी; अंति: दीप दीये आसीस रे, गाथा-७. ३. पे. नाम. रोहिणीनी थोय, पृ. ५अ-६अ, संपूर्ण. रोहिणीतप स्तुति, मु. कांति, मा.गु., पद्य, आदि: शिवसुखदायक नायक ए; अंति: कांति० जिन भक्ति राचे जी, गाथा-४. ४. पे. नाम. आंबिलतप सज्झाय, पृ. ६अ-६आ, संपूर्ण. For Private and Personal Use Only Page #373 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ३५८ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची आयंबिलतप सज्झाय, उपा. विनयविजय, मा.गु., पद्य, वि. १७उ, आदि: समरी श्रुतदेवी सारदा; अंति: भाखे विनयविजय सज्झाय, गाथा-११. ५. पे. नाम. हरियाली, पृ. ६आ-७आ, संपूर्ण. इरियावही सज्झाय, मु. मेघचंद्र-शिष्य, मा.गु., पद्य, आदि: नारि रे मे दिठि एक; अंति: मेघचंद्रशिष्य० घणी सेवरे, गाथा-७. ६.पे. नाम. औपदेशिक सज्झाय, पृ. ७आ, अपूर्ण, पृ.वि. प्रारंभ के पत्र हैं. उपा. उदयरत्न, मा.गु., पद्य, आदि: प्रभू साथे जो प्रीतजो; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-६ अपूर्ण तक है.) ११९४३० (+) लघस्तव, सौंदर्यलहरी स्तोत्र व गायत्रीमंत्रादि संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. २३, कुल पे. ७, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें., दे., (२५४१२.५, ११४३७). १. पे. नाम. लघुस्तव, पृ. १आ-४अ, संपूर्ण, पे.वि. हुंडी:लघुस्तव. त्रिपराभवानी स्तोत्र, आ. लघ्वाचार्य, सं., पद्य, आदि: ऐंद्रस्यैव शरासनस्य; अंति: भवंति चिरकालम्, श्लोक-२४. २. पे. नाम. सौंदर्यलहरी स्तोत्र, पृ. ४अ-१४अ, संपूर्ण, वि. १९४४, आषाढ़ शुक्ल, ६, ले.स्थल. खीवसर, पे.वि. हुंडी:सौंदर्यल०. सौंदर्यलहरी, शंकराचार्य, सं., पद्य, आदि: शिवः शक्त्या युक्तो; अंति: स्वरुपमिदमीश्वरदीपदीप्यम्, श्लोक-१०३. ३. पे. नाम. गायत्रीमंत्र सह बालावबोध, पृ. १४आ, संपूर्ण, पे.वि. हुंडी:गायत्रीऽर्थ. गायत्री मंत्र, सं., पद्य, आदि: ॐ भूर्भुवः स्वः; अंति: यो नः प्रचोदयात्. गायत्री मंत्र-बालावबोध, मा.गु., गद्य, आदि: ॐ कहता पांच परमेश्वर ते; अंति: नथी ए सर्व सिद्ध दायक छे. ४. पे. नाम. सिद्ध स्तोत्र, प. १४आ-१५अ, संपूर्ण. निरंजनाष्टक, आ. शंकराचार्य, सं., पद्य, आदि: स्थानं न मानं न च; अंति: ज्ञानेन पश्यंति निरंजनाय, श्लोक-९. ५. पे. नाम. सरस्वती स्तोत्र, पृ. १५आ-१७अ, संपूर्ण, पे.वि. हुंडी:सरस्वती स्तो. ब्रह्मांडपुराणे-सरस्वती स्तोत्र, सं., पद्य, आदि: शुक्लां ब्रह्म विचार; अंति: सलोकेनात्र संसय, श्लोक-१२. ६. पे. नाम. महिम्न स्तोत्र, पृ. १७अ-२१अ, संपूर्ण, पे.वि. हुंडी:महिम्न०. शिवमहिम्न स्तोत्र, पुष्पदंतगंधर्व, सं., पद्य, आदि: महिम्नः पारं ते परमविदुषो; अंति: भवित भूतपतिर्महेशः, श्लोक-४०. ७.पे. नाम. उपदेशमाला सह टबार्थ, पृ. २१अ-२३आ, संपूर्ण, पे.वि. हंडी:उपदेसगाः. गौतम कुलक, प्रा., पद्य, आदि: लुद्धा नरा अत्थपरा; अंति: सेवित्तु सुहं लहंति, गाथा-२०. गौतम कुलक-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदिः (अपठनीय); अंति: सुख लहे उत्तम जीव ते लहे. ११९४३२. (+-) गौतमस्वामी रास, कल्याणमंदिर स्तोत्र व औपदेशिक सज्झायादि संग्रह, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ४०-९(१ से ९)=३१, कुल पे. १९, प्र.वि. अशुद्ध पाठ-संशोधित., दे., (२४.५४१२.५,७-१०x२०-२३). १. पे. नाम. गौतमस्वामी रास, पृ. १०अ-१७अ, संपूर्ण. आ. विजयभद्रसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: वीरजिणेसर चरणकमल कमल; अंति: करो विजयभद्रसूरि इम भणीए, ढाल-६, गाथा-७३. २. पे. नाम. कल्याणमंदिर स्तोत्र, पृ. १७आ-२४आ, संपूर्ण. आ. सिद्धसेनदिवाकरसूरि, सं., पद्य, वि. १वी, आदि: कल्याणमंदिरमुदारमवद्यभेदि; अंति: कुमुद० प्रपद्यते, श्लोक-४४. ३. पे. नाम. औपदेशिक सज्झाय-परनारी परिहार, पृ. २४आ-२५अ, संपूर्ण. मु. दयाचंद, मा.गु., पद्य, आदि: जीवा वारुं छु मोरा; अंति: श्रीजिनधर्म अराधो जी, गाथा-५. ४. पे. नाम, औपदेशिक कवित्त संग्रह, पृ. २५अ-२६आ, संपूर्ण.. औपदेशिक कवित्त संग्रह, पुहि.,मा.गु., पद्य, आदि: फुटेवु रोज होत है जानत; अंति: पहरे हरे दोय वाता को सुख. ५. पे. नाम. औपदेशिक सवैया, पृ. २६आ-२७अ, संपूर्ण. म. मान कवि, मा.गु., पद्य, आदि: प्रीत करी कीधू वैर विसायो; अंति: कवि मान० विध वैर विसायो, सवैया-१. ६. पे. नाम. दोहा संग्रह-गूढार्थगर्भित, पृ. २७अ-२८अ, संपूर्ण. For Private and Personal Use Only Page #374 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२६ ३५९ मा.गु., पद्य, आदि: गंगा गया न गुदावरी वाव; अंति: कदे न खादी सबसे भली चुप, गाथा-७. ७. पे. नाम. चेलणासती सज्झाय, पृ. २८अ-२९अ, संपूर्ण. उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, आदि: वीर वखाणी राणी चेलणाजी; अंति: पामशे भवतणो पार, गाथा-७. ८.पे. नाम. पार्श्वनाथ स्तवन, पृ. २९अ-३१अ, संपूर्ण.. पार्श्वजिन स्तवन, म. गंग, मा.गु., पद्य, आदि: पासजिणेसर पूरण आसा; अंति: श्रीसंघने मंगल करो, गाथा-१३. ९. पे. नाम, नमस्कार महामंत्र छंद, पृ. ३१अ-३२अ, संपूर्ण. मु. जिनप्रभसूरि-शिष्य, मा.गु., पद्य, आदि: सुखकारण भवियण समरो; अंति: गुण प्रभुजी सरवे सीस रसाल, गाथा-७. १०. पे. नाम. ४ शरण सज्झाय, पृ. ३२अ-३३अ, संपूर्ण. ४ शरणा सज्झाय, क. विजयभद्र, मा.गु., पद्य, आदि: पहिलो मंगलिक कहुं; अंति: वास जीवडो नवि लहै, गाथा-६. ११.पे. नाम. गणेश स्तोत्र, पृ. ३३अ-३३आ, संपूर्ण. ऋ. वेद व्यास, सं., पद्य, आदि: हेमजा सुतं भुजां गणेश; अंति: परभान्योति नित्ये संरचि, श्लोक-६. १२. पे. नाम. लघुशांति स्तवन, पृ. ३३आ-३६अ, संपूर्ण. लघुशांति, आ. मानदेवसूरि, सं., पद्य, आदि: शांति शांतिनिशांत; अंति: जैनं जयति शासनम्, श्लोक-१९. १३. पे. नाम. नवपद स्तवन, पृ. ३६अ-३६आ, संपूर्ण. मु. छगनचंद्र ऋषि, पुहिं., पद्य, वि. १९४६, आदि: श्रीअरिहंत चंद्र पदलंकृत; अंति: छगन ऋषि गुण गाते हैं, गाथा-६. १४. पे. नाम. संभवजिन स्तवन, पृ. ३६आ-३७अ, संपूर्ण. म. छगनचंद्र ऋषि, मा.गु., पद्य, वि. १९२६, आदि: नयरी सावथी तात जितारी मात; अंति: पसाये छगन ऋषि गुण गायो, गाथा-७. १५. पे. नाम. नवपद स्तुति, पृ. ३७अ-३७आ, संपूर्ण. आ. अमृतचंद्रसूरि, मा.गु., पद्य, वि. १९२४, आदि: नवपद भज चेतन जयकारा संचित; अंति: लक्ष्मीपतसिंह पूजन प्यारा, गाथा-५. १६. पे. नाम. शारदा स्तोत्र, पृ. ३७आ-३९अ, संपूर्ण. ___ सरस्वतीदेवी स्तोत्र, हरिहर ब्रह्म, सं., पद्य, आदि: कमलभू तनया मुखपंकजे; अंति: सुमतिनो विबुध सुमति हरि, श्लोक-१३. १७. पे. नाम, पार्श्वनाथजी रो स्तोत्र, पृ. ३९अ-४०अ, संपूर्ण. पार्श्वजिन छंद-शंखेश्वर, मु. उदयरत्न, मा.गु., पद्य, आदि: सेवो पास शंखेश्वरो; अंति: पास संखेसरो आप तूठा, गाथा-७. १८. पे. नाम. जिनकुशलसूरि पद, पृ. ४०अ-४०आ, संपूर्ण. पुहि., पद्य, आदि: कैसे कैसे अवसर में तुम; अंति: प्रभु तेरा वडा भरोसा भारी, गाथा-४. १९. पे. नाम. जिनकुशलसूरि पद, पृ. ४०आ, संपूर्ण. मु. लालचंद, पुहिं., पद्य, आदि: कुशल गुरुदेव के दरशन मेरा; अंति: लालचंद०सरण मोहि दीजै, गाथा-३. ११९४३४. शत्रुजयतीर्थउद्धार रास, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ५, पू.वि. प्रारंभ के पत्र हैं., जैदे., (२६.५४१३, १४४३१-३५). शत्रंजयतीर्थउद्धार रास, म. नयसंदर, मा.गु., पद्य, वि. १६३८, आदि: विमल गिरवर विमल गिरव; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-८४ अपूर्ण तक है.) ११९४३८. बृहत्संग्रहणी सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १९१०, कार्तिक कृष्ण, १३, रविवार, मध्यम, पृ. ७०, ले.स्थल. कोटा, प्रले. शालिग्राम श्रीमाली; लिख. श्राव. चंदनमल-पुत्र (पिता श्राव. चंदनमल); गुपि. श्राव. चरणमलजी, प्र.ले.प. सामान्य, प्र.वि. हुंडी:संघयणसूत्रपत्र., प्र.ले.श्लो. (१) यादृशं पुस्तकं दृष्ट्वा, दे., (२४.५४१२.५, ४४२७-३०). बृहत्संग्रहणी, आ. चंद्रसूरि, प्रा., पद्य, वि. १२वी, आदि: नमिर अरिहंताई ठिई भवणो; अंति: नंदओ जा वीरजिण तित्थं, गाथा-३१९. बृहत्संग्रहणी-टबार्थ *, मा.गु., गद्य, आदि: नमस्कार करीनइ अरिहंत; अंति: तीर्थ छइ तासि म नंदओ. ११९४४०. २४ जिन कल्याणक तिथि, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २, जैदे., (२४.५४१२.५, १३४१६-२५). For Private and Personal Use Only Page #375 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra ३६० कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची २४ जिन कल्याणक तिथि, मा.गु., गद्य, आदि: आषाढवदि पक्ष ४ श्रीऋषभदेव; अंति: श्रीसुपार्श्वनाथ दीक्षा, (वि. कृति के अंत में जाप करने के लिए मंत्र दिये हैं.) ११९४४१ (+) ज्ञानपच्चीसी व प्रास्ताविक श्लोक संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. २, कुल पे. २, प्र. वि. संशोधित., दे., (२४X१३, ११-१४x२८). १. पे. नाम. ज्ञानपच्चीसी, पृ. १अ - २अ, संपूर्ण. मु. उदयकरण, पुहि., पद्य, आदि सुरनर तिरजग जोनि में अति: आपकुं उदय धरम कुं हेत, गाथा २४. " २. पे नाम. प्रास्ताविक लोक संग्रह, पृ. २अ २आ, संपूर्ण. www.kobatirth.org (२४४१३, १०-१३x२८-३४). १. पे. नाम. रामचंद्र वंशावली, पृ. १आ, संपूर्ण सं., पद्य, आदि: दाक्षिणं स्वजने दया; अंति: तदा तदा जतीकुल प्रमाणं. ११९४४३. (+) रामचंद्र वंशावली व बालचंदबत्रीसी, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २, कुल पे. २, प्र. वि. संशोधित., जैदे., मा.गु., गद्य, आदि: (अपठनीय); अंति: रामचंद्रनो लव अंकुस. २. पे. नाम वालचंदवत्रीसी, पृ. २अ अपूर्ण, पू.वि. प्रारंभ के पत्र हैं. Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir וי अध्यात्मबत्तीसी, मु. बालचंद मुनि, पुहिं., पद्य, वि. १६८५, आदि: सकल पातिक हर विमलकेवलधर, अंति: (-), (पू.वि. गाथा - ३ अपूर्ण तक है.) ११९४४४. (+#) विक्रमराजा रास, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १०३-५४ (१० से ५०, ५३ से ६५) = ४९, पू.वि. बीच-बीच व अंत के पत्र नहीं हैं. प्र. वि. संशोधित मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे. (२४४१३, १७४३२). " अंति: (-), विक्रमराजा रास, मु. भाणविजय, मा.गु., पद्य, वि. १८३०, आदि: अमल कमल सम नयन यूग; (पू.वि. खंड-३ ढाल -५५ दोहा १ अपूर्ण तक है व बीच-बीच के पाठांश नहीं हैं.) ११९४४७. (+) नवचक्र की भाषावचनिका, संपूर्ण, वि. २०वी मध्यम, पृ. १० प्र. वि. संशोधित. दे. (२४४१३ ११x२५)नयचक्र-भाषावचनिका, श्राव. हेमराज शाह, पुहिं., गद्य, वि. १७२६, आदि: वंदो श्रीजिनके वचन; अंति: (-), (अपूर्ण, पू. वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., "जैसे देश राजगढ मे" पाठ अपूर्ण तक लिखा है.) ११९४४९ (+) कल्पसूत्र, संपूर्ण वि. १९वी मध्यम, पृ. ६९, प्र. वि. संशोधित कुल ग्रं. १२१६, मूल पाठ का अंश खंडित है, जैवे., (२४४१३, ११४२८). कल्पसूत्र, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., गद्य, आदि: तेणं कालेणं० समणे, अंति: भुज्जो उबदंसेइ तिबेमि, व्याख्यान- ९, ग्रं. १२१६. ११९४५१. महावीरजिन जन्मपत्रिका, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १, प्र. वि. संवत् १६९१ में लिखी प्रत की प्रतिलिपि प्रतीत हो है.. जैवे. (१४४१२.५, ६५१९). महावीरजिन जन्मपत्रिका, सं., गद्य, आदि: चैत्रसुद १३ भौमवारे; अंति: (-). ११९४५५ (+) कल्पसूत्र-पीठिका सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. १९७४, आषाढ़ कृष्ण, ५, रविवार, मध्यम, पृ. ८१-१०(१ से १०)=७१, प्र. वि. पदच्छेद सूचक लकीरें, दे., (२५.५X१२.५, ५X१०). कल्पसूत्र-पीठिका *, संबद्ध, सं., गद्य, आदि: (-); अंति: प्रतिबोध्य मुक्तिम प्राप, (पू.वि. जिनाधिकार अपूर्ण से है.) कल्पसूत्र- पीठिका का टबार्थ *, पुहिं., मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: इष्ट की सिद्धि होती है. ११९४५९ (+) भाणुद्वार, संपूर्ण, वि. १९७४ वैशाख कृष्ण, ५, गुरुवार, श्रेष्ठ, पृ. १५, ले. स्थल. फलोधीनगर, प्रले. मु. लाभचंद (गुरु पं. कोजूलाल); गुपि. पं. कोजूलाल, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. हुंडी भा०द्वा०, संशोधित. वे. (२४४१२.५, १४४३९)भुवनद्वार विचार, मा.गु., गद्य, आदि: पहिली नारकी असंख्यात अति सीध भगवान विराजमान छे, ११९४६० (+) अष्टाह्निकापर्व व्याख्यान, संपूर्ण वि. १९४४, पौष कृष्ण २, मध्यम, पृ. १९, प्र. वि. संशोधित अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, दे., ( २४.५X१३, १२X३८). अष्टाह्निकापर्व व्याख्यान, मा.गु., सं., गद्य, आदि: शांतीशं शांतिकर्तारं; अंति: मनोवांछित सिद्ध हुवै. For Private and Personal Use Only Page #376 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२६ ११९४६४. (#) ज्योतिषसार, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. १५-६(३,८,१०,१२ से १४)=९, पू.वि. बीच-बीच व अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२४.५४१३, १६४३३-४०). ज्योतिषसार, आ. नरचंद्रसूरि, सं., पद्य, आदि: श्रीअर्हतं जिनं नत्वा; अंति: (-), (पू.वि. चोपदलेवा मुहर्त तक है व बीच-बीच के पाठ नहीं हैं.) ११९४६६. मानतुंग-मानवतीनो रास, संपूर्ण, वि. १८८८, मार्गशीर्ष शुक्ल, ४, गुरुवार, श्रेष्ठ, पृ. ३२, प्रले. पं. सुमतिसोम गणि (लघुपोसालगच्छ), प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२३४१२.५, १८४४०). मानतंगमानवती रास-मषावादविरमण अधिकारे, म. मोहनविजय, मा.गु., पद्य, वि. १७६०, आदि: ऋषभजिणंद पदांबुजे; अंति: होजो घरघर मंगलमाल हे, ढाल-४७, गाथा-१०१५. ११९४६८ (+#) कल्पसूत्र सह कल्पद्रमकलिका टीका, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. १७८-१३(३ से ११,२३ से २६)=१६५, प्र.वि. हंडी:कल्पद्रमक., पदच्छेद सूचक लकीरे-संशोधित. मूल पाठ का अंश खंडित है, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, प्र.ले.श्लो. (५६२) भग्नि पृष्टि कटि ग्रीवा, (६२०) यादृशं पुस्तकं दृष्ट्वा, (१२०९) लेखनी पुस्तका रामा, जैदे., (२५४१२, १३४३३-३८). कल्पसूत्र, आ. भद्रबाहस्वामी, प्रा., गद्य, आदि: णमो अरिहंताणं० पढम; अंति: सवियाणं कप्पइ निग्गंथाणवा, व्याख्यान-९, ग्रं. १२१६, (पू.वि. बीच-बीच के पाठांश नहीं हैं.) कल्पसूत्र-कल्पद्रुमकलिका टीका, ग. लक्ष्मीवल्लभ, सं., गद्य, आदि: श्रीवर्द्धमानस्य; अंति: परिपूर्ति भावं. ११९४६९ (+#) सिद्धाचलजीनी तीर्थमाला, अपूर्ण, वि. १८६९, आश्विन कृष्ण, १४, मध्यम, पृ. ११-२(८,१०)=९, प्रले. पं. अजबसुंदर (उपकेशगच्छ), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित. अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, जैदे., (२५४११.५, १०४३२). शत्रुजय तीर्थमाला स्तवन, मु. अमृतविजय, मा.गु., पद्य, वि. १८४०, आदि: जगजीवन जालिम जादवारे; अंति: नित नमो गिरिराया रे, ढाल-१०, गाथा-१५२, (पू.वि. ढाल-७ गाथा-१६ अपूर्ण से ढाल-८ तक व ढाल-१० गाथा-४ अपूर्ण से गाथा-१५ तक नहीं है.) ११९४७४ (+#) समवायांगसूत्र सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १०५-४४(१ से १९,५२ से ७६)=६१, प्रले. मु. कुशलविजय (तपागच्छ), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. हुंडी:समवायांगसू. यह प्रत जीवणविजय शिष्य शिवविजयजी की प्रत की प्रतिलिपि है., टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित-पदच्छेद सूचक लकीरें. कुल ग्रं.७१३५, टीकादि का अंश नष्ट है, जैदे., (२५४१२, ७४३३-३६). समवायांगसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., गद्य, आदिः (-); अंति: अज्झयणंति त्तिबेमि, अध्ययन-१०३, सूत्र-१५९, (वि. १८८२, वैशाख कृष्ण, ६, शुक्रवार, पू.वि. समवाय-१४ अपूर्ण से है व समवाय-५७ अपूर्ण से ज्ञाताधर्मकथापरिचयसूत्र अपूर्ण तक नहीं है.) । समवायांगसूत्र-टबार्थ, वा. मेघराजजी, मा.गु., गद्य, वि. १७३, आदि: (-); अंति: विषई बहुमान देखाडीउ, (वि. १८८२, भाद्रपद शुक्ल, १४, सोमवार, ले.स्थल. संझाणी) ११९४७५. जयतिहुअण स्तोत्र, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ६, पू.वि. प्रारंभ के पत्र हैं., दे., (२४.५४१२, ४४२५). जयतिहअण स्तोत्र, आ. अभयदेवसूरि , प्रा., पद्य, वि. १२वी, आदि: जय तिहुयणवरकप्परुक्ख जय; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-१४ अपूर्ण तक है.) ११९४७६. कल्पसूत्र सह कल्पद्रुमकलिका टीका व टीका का टबार्थ, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. २१-३(१ से ३)=१८, दे., (२४.५४१२.५, ६४३०). कल्पसूत्र, आ. भद्रबाहस्वामी, प्रा., गद्य, आदि: णमो अरिहंताणं० पढम; अंति: (-), (पृ.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपर्ण.. सूत्र-१ अपूर्ण तक लिखा है.) कल्पसूत्र-कल्पद्रमकलिका टीका, ग. लक्ष्मीवल्लभ, सं., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), पृ.वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं व प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण. For Private and Personal Use Only Page #377 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ३६२ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची कल्पसूत्र-कल्पलता टीका का टबार्थ *, पुहि.,मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), पृ.वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं व प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण. ११९४७७. (+#) भक्तामर स्तोत्र सह सुखबोधिका टीका, अपूर्ण, वि. १८२३, आश्विन कृष्ण, ८, मध्यम, पृ. १४-२(१,५)=१२, ले.स्थल. हुरडानगर, प्रले. मु. प्रीतिकुशल (गुरु पं. नरेंद्रकुशल गणि); गुपि. पं. नरेंद्रकुशल गणि (गुरु पं. फतेकुशल गणि); पं. फतेकुशल गणि, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. श्रीचिंतामणिपार्श्व प्रसादतु., संशोधित. मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., (२४४१२.५, १३४३४). भक्तामर स्तोत्र, आ. मानतुंगसूरि, सं., पद्य, आदिः (-); अंति: मानतुंग० लक्ष्मीः , श्लोक-४४, (पू.वि. श्लोक-१ से ३ व __ श्लोक-१६ से १८ तक नहीं है.) भक्तामर स्तोत्र-सुखबोधिका टीका, आ. अमरप्रभसूरि, सं., गद्य, आदि: (-); अंति: विबुधैः शोध्यतेरियम्. ११९४८३. (+) चातुर्मासिक व्याख्यान, अष्टाह्निकापर्व व्याख्यान व दीपावलीपर्व व्याख्यानादि संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ.७२, कुल पे. १२, प्रले. माईदास आसुलाल, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. हुंडी:बारेपर्वकथा., संशोधित., दे., (२४४१२, १२४३९-४८). १.पे. नाम. चौमासै रो वखाण, पृ. १आ-१७आ, संपूर्ण, पे.वि. हुंडी:चोमासोव०. चातुर्मासिक व्याख्यान *, रा., गद्य, आदि: श्रीपार्श्व सुखमागारं; अंति: दुक्कडम् होज्यो. २. पे. नाम. अठाई रो वखाण, पृ. १७आ-२८अ, संपूर्ण, पे.वि. हुंडी:अठाईरोव०. अष्टाह्निकापर्व व्याख्यान, मा.गु.,सं., गद्य, आदि: शांतीशं शांतिकर्तार; अंति: मनोवांछित सिद्धि हुवै. ३. पे. नाम. दीपमालिका रो वखाण, पृ. २८अ-४४आ, संपूर्ण, पे.वि. हुंडी:दीपमालकारोव०. दीपावलीपर्व व्याख्यान, रा., गद्य, आदि: पणमिय वीरं वुच्छं; अंति: मंगलीकमाला संपजे. ४. पे. नाम. ग्यानपंचमी रौ वखांण, पृ. ४४आ-४८आ, संपूर्ण. वरदत्तगुणमंजरी कथा, मा.गु.,सं., गद्य, आदि: ज्ञानं सारं सर्व; अंति: मंगलीकमाला संपजै. ५. पे. नाम. कातिपूनिम रौ वखाण, पृ. ४८आ-५१आ, संपूर्ण. कार्तिकपूर्णिमा व्याख्यान, प्रा.,मा.गु., गद्य, आदि: सिद्धो विज्जाय चक्की; अंति: आपरौ जमारौ सफल करणौ. ६. पे. नाम. मुनइग्यारस रौ वखांण, पृ. ५१आ-५५अ, संपूर्ण. मौनएकादशीपर्व कथा, रा., गद्य, आदि: सिरिवीरं नमिऊण पुच्छ; अंति: इग्यारसरी तपस्या अंगी जी. ७. पे. नाम. पोहदशम रौ वखांण, पृ. ५५अ-५७अ, संपूर्ण.. पौषदशमीपर्व कथा, रा., गद्य, आदि: ध्यात्वा वामेयमहँत; अंति: तपस्या जावज्जीव अंगेजी. ८. पे. नाम. मेरुत्रयोदशीपर्व व्याख्यान का बालावबोध, पृ. ५७अ-६२अ, संपूर्ण. मेरुत्रयोदशीपर्व व्याख्यान-बालावबोध, मा.गु., गद्य, आदि: मारुदेवं जिनं नत्वा; अंति: सुख संपत्ति प्रगट हवी. ९.पे. नाम. होलिकापर्व री कथा, पृ. ६२अ-६४अ, संपूर्ण. होलिकापर्व व्याख्यान, मा.गु., गद्य, आदि: फागुण सुदि पूनिम दिनै हुई; अंति: मुक्ति रूप सुख मिलै. १०. पे. नाम. चैत्रीपूनम री कथा, पृ. ६४अ-६६आ, संपूर्ण. __ चैत्रीपूर्णिमापर्व व्याख्यान, रा., गद्य, आदि: तीर्थराजं नमस्कृत्य; अंति: सुख संपदा पामै. ११. पे. नाम, आखातीज रौ वखांण, पृ. ६६आ-६९अ, संपूर्ण. अक्षयतृतीया व्याख्यान, रा.,सं., गद्य, आदि: प्रणिपत्य प्रभुं पार्श्व; अंति: कल्याण मंगलीकमाला संपजै. १२. पे. नाम. रोहि कथा, पृ. ६९अ-७२अ, संपूर्ण.. रोहिणी कथा, मा.गु., गद्य, आदि: उच्चिटुं सुंदरयं भत्तं; अंति: कर्मक्षय करी मन गतै गया. ११९४८४. (+) नवपद पूजा, संपूर्ण, वि. १९४९, पौष, १३, शनिवार, मध्यम, पृ. १६, प्रले. मु. खीवराज, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरे-संशोधित., दे., (२३४१२, ९४२३). नवपद पूजा, उपा. यशोविजयजी गणि, प्रा.,मा.गु.,सं., पद्य, आदि: परम मंत्र प्रणमी करी; अंति: कोई नये न अधूरी रे, पूजा-९. For Private and Personal Use Only Page #378 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२६ ३६३ ११९४८५. पट्टावली, संपूर्ण, वि. १९३०, ज्येष्ठ कृष्ण, ५, शुक्रवार, श्रेष्ठ, पृ.५, ले.स्थल. आगर, प्रले. मु. चिमनलाल ऋषि; पठ. मु. ज्ञानचंद्र, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. हुंडी:पाटावली. प्रत के अंत में चोडता मे सेष काल रह्या जिद वीजी प्रत उतारी ऐसा लिखा है., दे., (२४४१२.५, २२४३६). ___ पट्टावली*, प्रा.,मा.गु.,सं., गद्य, आदि: जेसलमेर का भंडार; अंति: केवलीसि कारे सो प्रमाण. ११९४८६ (+) चातुर्मासिक व्याख्यान, अष्टाह्निकापर्व व्याख्यान व दीपावलीपर्व व्याख्यानादि संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ६५, कुल पे. १२, प्र.वि. संशोधित., दे., (२३.५४१२, १५४३६-४०). १.पे. नाम. चौमासेपर्व रौ वखांण, पृ. १आ-१५आ, संपूर्ण.. चातुर्मासिक व्याख्यान *, रा., गद्य, आदि: श्रीपार्श्व सुखमागारं; अंति: दुक्कडम् होज्यो. २. पे. नाम. अषटाहनिका रौ वखांण, पृ. १५आ-२५अ, संपूर्ण. अष्टाह्निकापर्व व्याख्यान, मा.गु.,सं., गद्य, आदि: शांतीशं शांतिकर्तारं; अंति: वांछित सिद्धि हुवै. ३. पे. नाम. दीपमालिका रौ वखांण, पृ. २५अ-४०आ, संपूर्ण. दीपावलीपर्व व्याख्यान, रा., गद्य, आदि: पणमिय वीरं वुच्छं; अंति: मंगलीकमाला संपजे. ४. पे. नाम. सौभाग्यपंचमी व्याख्यान, पृ. ४०आ-४४अ, संपूर्ण. वरदत्तगुणमंजरी कथा, मा.गु.,सं., गद्य, आदि: ज्ञानं सारं सर्व; अंति: मंगलीकमाला संपजै. ५. पे. नाम. कातिपूनिम रौ वखाण, पृ. ४४अ-४७अ, संपूर्ण.. कार्तिकपूर्णिमा व्याख्यान, प्रा.,मा.ग., गद्य, आदि: सिद्धो विज्जाय चक्की; अंति: आपरौ जमारौ सफल करणौ. ६. पे. नाम. मूलइग्यारस रौ वखांण, पृ. ४७अ-५०अ, संपूर्ण. मौनएकादशीपर्व कथा, रा., गद्य, आदि: सिरिवीरं नमिऊण पुच्छ; अंति: इग्यारसरी तपस्या अंगी जी. ७. पे. नाम. पोहदशम रौ वखांण, पृ. ५०अ-५२अ, संपूर्ण. पौषदशमीपर्व कथा, रा., गद्य, आदि: ध्यात्वा वामेयमहँत; अंति: तपस्या जावज्जीव अंगेजी. ८. पे. नाम. मेरुतेरस री कथा, पृ. ५२अ-५५आ, संपूर्ण. मेरुत्रयोदशीपर्व व्याख्यान-बालावबोध, मा.गु., गद्य, आदि: मारुदेवं जिनं नत्वा; अंति: सुख संपत्ति प्रगट हुवौ. ९. पे. नाम. होलिकापर्व री कथा, पृ. ५५आ-५७आ, संपूर्ण. होलिकापर्व व्याख्यान, मा.गु., गद्य, आदि: फागुण सुदि पूनिम दिनै हुई; अंति: मुक्ति रूप सुख मिलै. १०. पे. नाम. चैत्रीपूनम री कथा, पृ. ५७आ-६०अ, संपूर्ण. चैत्रीपूर्णिमापर्व व्याख्यान, रा., गद्य, आदि: तीर्थराजं नमस्कृत्य; अंति: सुख संपदा पामै. ११. पे. नाम. आखातीज रौ वखांण, पृ. ६०अ-६२आ, संपूर्ण. अक्षयतृतीया व्याख्यान, रा.,सं., गद्य, आदि: प्रणिपत्य प्रभुं पार्श्व; अंति: कल्याण मंगलीकमाला संपजै. १२. पे. नाम. रोहिणी कथा, पृ. ६२आ-६५अ, संपूर्ण. ___ मा.गु., गद्य, आदि: उच्चिटुं सुंदरयं भत्तं; अंति: क्षय करी मुगति गया. ११९४८८. (+) दशवैकालिकसूत्र, संपूर्ण, वि. १९४२, ज्येष्ठ अधिकमास शुक्ल, ५, मंगलवार, मध्यम, पृ. १७, प्र.वि. हुंडी:दशमी०., संशोधित., दे., (२४.५४१२.५, १६x४१-४४). दशवैकालिकसूत्र, आ. शय्यंभवसूरि, प्रा., पद्य, वी. रवी, आदि: धम्मो मंगलमुक्किट्ठ; अंति: अपणागमं गइ तिबेमि, अध्ययन-१०, (वि. चूलिका-२) ११९४८९. मानतुंगमानवती रास-मृषावादविरमण अधिकारे, पूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ४२, पू.वि. अंतिम पत्र नहीं है., दे., (२५४१२, १४४३९). मानतंगमानवती रास-मषावादविरमण अधिकारे, म. मोहनविजय, मा.गु., पद्य, वि. १७६०, आदि: ऋषभजिणंद पदांबुजै मन; अंति: (-), (पू.वि. ढाल-४७ की अंतिम गाथा अपूर्ण तक है.) ११९४९० (-2) पर्युषणपर्व चैत्यवंदनादि संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ५, प्र.वि. अशुद्ध पाठ. मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., (२४.५४१२.५, ११४२४). For Private and Personal Use Only Page #379 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra ३६४ www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १. पे नाम. पर्युषणपर्व चैत्यवंदन, पृ. १अ, संपूर्ण. . विनीतविजय, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीशत्रुंजय शृंगार, अंति: आराधीए आगमवाणी विनीत, गाथा - ३. २. पे. नाम. पर्युषणपर्व चैत्यवंदन, पृ. १अ, संपूर्ण. मु. विनीतविजय, मा.गु., पद्य, आदि प्रणमुं श्री देवाधिदेव जि, अंतिः प्रवचन वाणी वनीत, गावा- ३. • मु. ३. पे. नाम. पर्युषणपर्व चैत्यवंदन, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. मु. . विनीतविजय, मा.गु., पद्य, आदिः कल्पतरु कल्पसूत्र अति सुपन लहे उपजे विनय वनीत, गाथा- ३. ४. पे. नाम. पर्युषणपर्व चैत्यवंदन, पृ. १आ, संपूर्ण. मु. विनीतविजय, मा.गु, पद्य, आदिः सुपन विधि कहे सुत; अति वाणी वनीत रसाल, गाथा-३, ५. पे. नाम. पर्युषणपर्व चैत्यवंदन, पृ. १आ, संपूर्ण. महावीरजिन चैत्यवंदन, मु. विनीतविजय, मा.गु., पद्य, आदि: जिननी बहिन सुदर्शना; अंति: धरे सुणज्यो एक चित्त, गाथा - ३. १९९४९१ (१) जीवविचार प्रकरण, अपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पृ. ५. पू. वि. प्रारंभ के पत्र हैं. प्र. वि. हुंडी जिवचार अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२४x१२.५, ८x२३-२६). जीवविचार प्रकरण, आ. शांतिसूरि प्रा. पद्य वि. ११वी, आदि भुवणपईव वीरं नमिऊण; अति: (-), (पू. वि. गाथा -४९ अपूर्ण तक है. ) 3 "" १९९४९२. शत्रुंजय तीर्थमाला स्तवन, अपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पृ. ९. पू.वि. प्रारंभ के पत्र हैं, जैदे. (२३४१२.५, १२४२९). शत्रुंजय तीर्थमाला स्तवन, मु. अमृतविजय, मा.गु., पद्य, वि. १८४०, आदि: जगजीवन जालम जादवा; अंति: (-), (पू.वि. ढाल - १० गाथा - १ अपूर्ण तक है.) १९९४९५. महावीरजी तपस्यानी संख्या, संपूर्ण, वि. २०वी श्रेष्ठ, पृ. १, ये. (२३.५x१२.५, १२x२४) "9 महावीरजिन तपप्रमाण विचार, मा.गु., गद्य, आदि: नव चोमासी छ छे मासी; अंति : (१) वर्ष १२ मास ६ दिन १५, (२) अभीग्रहीन मासी १ पा. १. ११९४९६. ज्ञाताधर्मकथांगसूत्र की टीका, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १४-९ (१ से ९) = ५, पू. वि. बीच के पत्र हैं., जैदे., (२३.५X१२.५, १६x४२). "" ज्ञाताधर्मकथांगसूत्र- टीका, आ. अभवदेवसूरि, सं. गद्य वि. ११२०, आदि (-); अंति (-), (पू.वि. सूत्र -८ की टीका अपूर्ण से सूत्र -१३ की टीका अपूर्ण तक है., वि. मूलपाठ प्रतीक के रूप में दिया है.) ११९४९७. (+) नवपद व्याख्यान, अपूर्ण, वि. १९४५, कार्तिक शुक्ल, ११, गुरुवार, श्रेष्ठ, पृ. १३-१ (१) १२, ले. स्थल, बडगाम, प्रले. मु. विवेकवर्द्धन (गुरु पं. हंसवर्द्धन गणि); गुपि. पं. हंसवर्द्धन गणि (गुरु पं. नित्यवर्द्धन), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. हुंडी: नवकारअर्थ, नवपद वखान. श्रीऋषभदेव प्रसादात्., टिप्पण युक्त विशेष पाठ., दे., (२५X१३, २४४५१). नवपद व्याख्यान, मा.गु., गद्य, आदि (-); अति थका केवल लहे मोक्ष पामे, व्याख्यान ९ (पू.वि. प्रथम पद अपूर्ण से है.) ११९४९८ (#) आगमसारोद्धार, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ४९-२८ ( १७, १९ से २८,३१ से ३२, ३४ से ४८) =२१, पू.वि. बीच-बीच व अंत के पत्र नहीं हैं. प्र. वि. मूल पाठ का अंश खंडित है, जैवे. (२४.५४१२, १३४४७). "" "" आगमसारोद्धार, ग. देवचंद्र, मा.गु., गद्य वि. १७७६, आदि: तिहां प्रथम जीव अति: (-) (पू.वि. निसर्ग रुचि वर्णन अपूर्ण तक है व बीच-बीच के पाठांश नहीं हैं.) ११९५०० (+) सिंदूर प्रकरण, अपूर्ण, वि. २०वी मध्यम, पू. १५-९ (२ से ५८ से ११, १३) =६ प्र.वि. संशोधित अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, दे. (२३४१२, १०४२६). For Private and Personal Use Only सिंदूरप्रकर, आ. सोमप्रभसूरि, सं., पद्य वि. १३वी आदि सिंदूरप्रकरस्तपः करिशिरः; अति सोमप्रभ० मुक्तावलीयम्, द्वार- २२, श्लोक १०० (पू.वि. श्लोक-३ अपूर्ण से ३५ अपूर्ण तक, ४७ अपूर्ण से ७५ अपूर्ण तक व ८१ अपूर्ण से ८८ अपूर्ण तक नहीं है.) Page #380 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२६ ३६५ ११९५०२. (+) दशवैकालिकसूत्र, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ६, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. हुंडी:दशमीकाल., संशोधित., दे., (२४४१२.५, १७७२९). दशवैकालिकसूत्र, आ. शय्यंभवसूरि, प्रा., पद्य, वी. २वी, आदि: धम्मो मंगलमुक्किटुं; अंति: (-), (पू.वि. अध्ययन-५ उद्देश-१ गाथा-१७ अपूर्ण तक है.) ११९५०४. (+#) बृहत्संग्रहणी, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १४, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२४.५४१२.५, १३४२५-२८). बृहत्संग्रहणी, आ. चंद्रसूरि, प्रा., पद्य, वि. १२वी, आदि: नमिउं अरिहंताई ठिइ; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-२२९ अपूर्ण तक है.) ११९५०५. गजसुकमालजी को तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १,प्र.वि. हुंडी:गजसुकमालजी सीझाय., जैदे., (२३.५४१२.५, १२४३३). गजसुकुमालमुनि सज्झाय, मु. चोथमल ऋषि, मा.गु., पद्य, वि. १८५८, आदि: श्रीगजसुखमाल देवकीनंदन; अंति: संसार समुंदर भली उदय आई, गाथा-२२. ११९५०६. (#) नेमिजिन स्तवन, जिनप्रतिमा स्तवन व नेमिजिन पद, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ३-१(२)=२, कुल पे. ३, प्रले. मु. ऋषभचंद, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. मूल पाठ का अंश खंडित है, दे., (२३.५४१२, ९४२४-२९). १.पे. नाम. नेमिजिन स्तवन, पृ. १अ, अपूर्ण, पृ.वि. मात्र प्रथम पत्र है. मु. क्षमाकल्याण, मा.गु., पद्य, आदि: जगपति नेम जिणंद प्रभ; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-११ अपूर्ण तक है.) २. पे. नाम, जिनप्रतिमा स्तवन, पृ. ३अ, अपूर्ण, पू.वि. मात्र अंतिम पत्र है. जिनबिंबपूजा स्तवन, आ. जिनचंद्रसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: श्रीजिनचंद सदाई रे, गाथा-११, (पू.वि. गाथा-१० अपूर्ण से है.) ३. पे. नाम. नेमिजिन पद, पृ. ३अ-३आ, संपूर्ण. नेमिजिन स्तवन, आ. अमृतचंद्रसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: मनमोहन मेरे नेमजिणंद; अंति: अमृत० पूरो वंछित आस रे, गाथा-५. ११९५०७. (#) परदेसीराजानी सीझाअ, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, प्र.वि. मूल पाठ का अंश खंडित है, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२४४१२.५, ३४४२५). प्रदेशीराजा सज्झाय, मु. कवियण, मा.गु., पद्य, आदि: सेतंबिका नअरी सोहामणी रे; अंति: कवियण सुभ उपगार रे, गाथा-१९. ११९५१०. (+) जीवविचार प्रकरण सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १८४७, आश्विन कृष्ण, १, मध्यम, पृ.८, ले.स्थल. साचोर, प्रले. मु. वीरचंद; मु. बालचंद; गुभा. मु. गिरधारी (गुरु मु. खुस्यालचंद); गुपि. मु. खुस्यालचंद (परंपरा मु. रामचंद); मु. रामचंद (गुरु मु. पंचांइण); मु. पंचांइण (परंपरा मु. वणारसी); मु. वणारसी, प्र.ले.पु. विस्तृत, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२३.५४१२.५, ५४२९). जीवविचार प्रकरण, आ. शांतिसूरि, प्रा., पद्य, वि. ११वी, आदि: भुवणपईवं वीरं नमिऊण; अंति: संतिसूरि०सुयसमुद्दाओ, गाथा-५१. जीवविचार प्रकरण-टबार्थ, म. विमलकीर्ति, मा.गु., गद्य, आदि: भुवन त्रिणलोकने विषे; अंति: विद्वद्विमलकीर्तिभिः. ११९५१३. (+) देवसिप्रतिक्रमण विधि, संपूर्ण, वि. १९१४, कार्तिक कृष्ण, ७, शुक्रवार, श्रेष्ठ, पृ. ११, ले.स्थल. मकसुदाबाद अजीमगंज, प्रले. मु. अबीरचंद जती; पठ. श्राव. लछमीपति दगड, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित., दे., (२३४१२.५, १४४३३). देवसिप्रतिक्रमण विधि-तपागच्छीय, संबद्ध, प्रा.,मा.गु., गद्य, आदि: प्रथम थापना करी ३नोकार; अंति: ३नोकार गुणी ऊठीजै. ११९५१४. (+) पुण्यप्रकाश स्तवन व पद्मावती आराधना, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ.८, कुल पे. २, प्र.वि. हुंडी:सोमवार. बाद में किसी ने पेन्सिल से हंडी में सोमवार लिखा है., पदच्छेद सूचक लकीरें., दे., (२२४१२.५, १३४२६). For Private and Personal Use Only Page #381 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ३६६ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १. पे. नाम. पुन्यप्रकास तवन, पृ. १अ-७अ, संपूर्ण. पुण्यप्रकाश स्तवन, उपा. विनयविजय, मा.गु., पद्य, वि. १७२९, आदि: सकल सिद्धिदायक सदा; अंति: नामे पुण्यप्रकाश ए, ढाल-८, गाथा-१०२. २. पे. नाम. पद्मावती आराधना, पृ. ७अ-८आ, अपूर्ण, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. __उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, वि. १७वी, आदि: हिवे राणी पद्मावती; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-३४ अपूर्ण तक है.) ११९५१६. (+-#) रोहणी को चैत्यवंदन, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, प्रले.पं. कुशलगणि; पठ. सा. होकमी (गुरु सा. वीनाजी), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. अशुद्ध पाठ-संशोधित. मूल पाठ का अंश खंडित है, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२२.५४१२.५, ११x१६). रोहिणीतप चैत्यवंदन, म. मानविजय, मा.गु., पद्य, आदि: रोहिणी तप आराधीए; अंतिः विधि करो जिम होय भवनो छेद, गाथा-७. ११९५२२ (+) नवपद पूजा, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ८, ले.स्थल. मजादरग्राम, प्रले. पं. मुक्तिविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. हुंडी:नवपदपूजापत्र., संशोधित., जैदे., (२२.५४१२.५, १२४२८). नवपद पूजा, उपा. यशोविजयजी गणि, प्रा.,मा.गु.,सं., पद्य, आदि: उपन्नसन्नाणमहोमयाणं; अंति: जस०कोई नहीं ___ अधूरी रे, पूजा-९. ११९५२३. (+#) जिनेंद्रपूजा विचार श्लोक सह बालावबोध, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ८, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें. मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., (२२.५४१३, १०४२३). औपदेशिक श्लोक, सं., पद्य, आदि: जिनेंद्रपूजा गुरु; अंति: नृजन्मवृक्षसफलान्मुनी, श्लोक-१. औपदेशिक श्लोक-बालावबोध, मा.गु., गद्य, आदि: श्रीअरिहंत भगवंत असरण शरण; अंति: श्रेयकल्याण संपजै. ११९५२४. (+) भावना कुलक का बालावबोध, असार संसार विचार व जीव सीखामण, संपूर्ण, वि. १८६९, चैत्र कृष्ण, १०, मंगलवार, मध्यम, पृ. १८, कुल पे. ३, ले.स्थल. सतारा, प्रले. श्राव. लखमीचंद दयाराम, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२२.५४१२.५, ११-१४४२९-३५). १.पे. नाम, भावनाकुलक का बालावबोध, पृ. १अ-८अ, संपूर्ण. भावना कुलक-बालावबोध, मा.गु., गद्य, आदि: तिहां प्रथम ए आत्मा; अंति: घणा जीव निस्तार पार थया. २. पे. नाम, असार संसार विचार, पृ. ८अ-१४अ, संपूर्ण. मा.गु., गद्य, आदि: असार संसारने विषे किस्यु; अंति: पुष्टिता थाय तिम करवं. ३. पे. नाम. ६६ बोल-जीव सीखामण, पृ. १४अ-१८आ, संपूर्ण. ६६ बोल-जीवसीखामण, मा.गु., गद्य, आदि: हे भगवंत इम कहि शीष्य गुर; अंति: (१)माननइ विषइ ते घणुं सोभइ, (२)ते प्राणीने परम सुख होइ. ११९५२५ (+) श्रावक अतिचार, संपूर्ण, वि. १८१४, मार्गशीर्ष कृष्ण, ७, रविवार, मध्यम, पृ. ५, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२३४१२, १४४३६). श्रावकपाक्षिकअतिचार-तपागच्छीय, संबद्ध, प्रा.,मा.गु., गद्य, आदि: विशेषतः श्रावक तणे; अंति: मिच्छा मि दक्कडम्. ११९५३७. (-) चंदनबालासती चौपाई, संपूर्ण, वि. १९७०, ?, ज्येष्ठ शुक्ल, १, श्रेष्ठ, पृ.७, ले.स्थल. सवाजपुर, प्रले. सा. पाता (गुरु सा. छोटा); गुपि.सा. छोटा (गुरु सा. लाडु), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. अशुद्ध पाठ., दे., (२१.५४१२, १५४२२-२४). चंदनबालासती चौपाई, मा.गु., पद्य, आदि: परणमु पीडत नीलतन मंगल करण; अंति: अटल उगाणा राखी रे लो, ढाल-१३. ११९५३९. (१) कुमतिउथापण चरचा, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ.७, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२३४१२, ९४२७). कुमतिउत्थापन चर्चा, पुहि., गद्य, आदि: मनोमती झठी प्ररुपणा; अंति: (-), (पू.वि. "आचारांगसूत्रै प्रथम श्रुतस्कंधे नवमें अध्ययनें" पाठ तक है.) For Private and Personal Use Only Page #382 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२६ ३६७ ११९५४० (#) चंदकमरकी वात, अपूर्ण, वि. १८९४, कार्तिक शुक्ल, ६, शनिवार, मध्यम, पृ. १०-५(१ से ५)-५, ले.स्थल. वांकुलीग्राम, प्रले. पं. चतुरविजय (गुरु पं. धनविजय); गुपि.पं. धनविजय (गुरु पं. कृपाविजय); पठ. श्राव. भगवान कोला साह (पिता श्राव. कोला केसरसिंघ साह); गुपि. श्राव. कोला केसरसिंघ साह, प्र.ले.पु. मध्यम, प्र.वि. पत्रांक अनुमानित दिया गया है., अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (१७४१२.५, १०४२१). चंद्रकुमार वार्ता, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: या गुण को गुणसार, गाथा-९०, (पू.वि. गाथा-६२ अपूर्ण से है.) ११९५४४. (#) कल्पसूत्र, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ५१, प्र.वि. श्रीमाणजी प्रसादात्., अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६४१२, १०४२४-३१). कल्पसूत्र, आ. भद्रबाहस्वामी, प्रा., गद्य, आदि: तेणं कालेणं० समणे; अंति: जोसवणा कप्पो संमत्तो, व्याख्यान-९. ग्रं. १२१६. ११९५४५ (+#) अभिधानचिंतामणि नाममाला, संपूर्ण, वि. १९३७, कार्तिक शुक्ल, १, बुधवार, मध्यम, प. ३४, ले.स्थल. श्रीपल्लिकानगर, प्रले. अमरदत्त ब्राह्मण; पठ. मु. चंदनविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. हुंडी:हेमिनांममाला. अंत में "आ परत पाली में चोमासो को जद लिखाइ छे." ऐसा उल्लिखित है., संशोधित. कुल ग्रं. १६९१ अक्षर १३, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२६.५४११.५, १५४५६). अभिधानचिंतामणि नाममाला, आ. हेमचंद्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., पद्य, वि. १३वी, आदि: प्रणिपत्यार्हतः; अंति: रोषोक्तावु नतौ नमः, कांड-६, ग्रं. १४५२. ११९५४६. (+) मुनिपति चरित्र, संपूर्ण, वि. १९५९, आश्विन कृष्ण, १, गुरुवार, मध्यम, पृ. ९५, ले.स्थल. दिल्लीनगर, प्रले. बोघालाला कुंभार लहिया; पठ. मु. चंदनविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. हुंडी:मुनिपतिच०., संशोधित. कुल ग्रं. १८५३, दे., (२५.५४१२, ११-१२४२९). मुनिपति चरित्र, मु. धर्मविजय, सं., प+ग., वि. १८१९, आदि: प्रणम्य सद्गुरुं वीरं; अंति: (१)न कार्यकारण० शिवमश्नुते, (२)धर्मविजयेन० महामंगलं भवति. ११९५४७. कल्याणमंदिर स्तोत्र, स्तुति व सवैयादि संग्रह, संपूर्ण, वि. १८९४-१८९९, मध्यम, पृ. ७७, कुल पे. २७, पठ. मु. गोकुल (गुरु मु. आसकरण ऋषि), प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२५४१२, ६-९४२४-२७). १. पे. नाम. कल्याणमंदिर स्तोत्र, प. १अ-६अ, संपूर्ण. आ. सिद्धसेनदिवाकरसूरि, सं., पद्य, वि. १वी, आदि: कल्याणमंदिरमुदारमवद्यभेदि; अंति: कुमुद० प्रपद्यते, श्लोक-४४. २. पे. नाम. भक्तामर स्तोत्र, पृ. ६अ-११अ, संपूर्ण. आ. मानतुंगसूरि, सं., पद्य, आदि: भक्तामरप्रणतमौलि; अंति: (-), श्लोक-४४. ३. पे. नाम. अज्ञात कृतियों का संग्रह, पृ. ११अ-२२आ, संपूर्ण, पे.वि. अत्यंत नाजुक व चिपके पत्र होने के कारण पेटांक निर्णय करना मुश्किल है. अज्ञात जैनकृति संग्रह, प्रा.,मा.ग.,सं., प+ग., आदिः (-); अंति: (-). ४. पे. नाम. कंसकृष्ण विवरण लावणी, पृ. २२आ-२७अ, संपूर्ण, वि. १८९४, श्रावण शुक्ल, १२, ले.स्थल. नाभा, प्रले. मु. आसकर्ण ऋषि, प्र.ले.प. सामान्य. म. विनयचंद ऋषि, पुहिं., पद्य, आदि: गाफल मत रहे रे मेरी; अंति: वनेचंद० अतहि आणंद, गाथा-४४. ५. पे. नाम. संतसंगति मरहटी गीत, पृ. २७अ-२८आ, संपूर्ण. मु. जिणदास, पुहि., पद्य, आदि: में नित नमाउं सीस; अंति: जिणदास चिहुं दरसण को, गाथा-४. ६. पे. नाम. औपदेशिक लावणी, पृ. २८आ-२९आ, संपूर्ण. मु. जिनदास, पुहि., पद्य, वि. १७वी, आदि: तुम भजो निरंजन नाम; अंति: जिणदास लावणी गाइ, गाथा-४. ७. पे. नाम. द्वारिकानगरी ऋद्धिवर्णन सज्झाय, पृ. २९आ-३३अ, संपूर्ण. मु. जयमल, मा.गु., पद्य, आदि: बावीसमां श्रीनेम; अंति: रीष जैमलजी० मोय ए, गाथा-३२. ८. पे. नाम. जिण स्तुति, पृ. ३३अ-३४अ, संपूर्ण. विविधप्रार्थना स्तुतिसंग्रह, सं., पद्य, आदि: दर्शनं देवदेवस्य; अंति: हन्यते जिन दर्शनात, श्लोक-१२. For Private and Personal Use Only Page #383 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ३६८ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ९. पे. नाम. परमानंद स्तोत्र, पृ. ३४अ-३५आ, संपूर्ण, वि. १८९४, भाद्रपद कृष्ण, ३, राज्यकालरा. जसवंतसिंघ, प्र.ले.पु. सामान्य. सं., पद्य, आदि: परमानंदसयुक्तं निर्विकार; अंति: स किं शिष्यः स किं गरुः, श्लोक-२५. १०. पे. नाम. गौतम कुलक, पृ. ३६अ-३९अ, संपूर्ण. प्रा., पद्य, आदि: लुद्धा नरा अत्थपरा; अंति: निसेवित् सुहं लहंति, गाथा-२०. ११. पे. नाम. नवतत्व प्रकरण, पृ. ३९अ-४५आ, संपूर्ण, वि. १८९४, आश्विन कृष्ण, १४, ले.स्थल. नाभा. नवतत्त्व प्रकरण ६० गाथा, प्रा., पद्य, आदि: जीवाजीवा पुण्णं पावा; अंति: बुद्धबोहिक्कणिक्काय, गाथा-६०. १२. पे. नाम. दानसीलतप भावनाधिकार, पृ. ४५आ-५३आ, संपूर्ण, वि. १८९४, आश्विन शुक्ल, २, ले.स्थल. नाभा, प्रले. मु. आसकरण ऋषि (गुरु मु. जसकर्ण); गुपि. मु. जसकर्ण (गुरु मु. फकीरचंद); मु. फकीरचंद, प्र.ले.पु. सामान्य. दानशीलतपभावना कुलक, मु. अशोकमुनि, प्रा., पद्य, आदि: देवाहिदेवं नमिऊण; अंति: असोग० खमंतु तेणं, गाथा-५१. १३. पे. नाम. नवकारमंत्र सवैया, पृ. ५४अ-५६अ, संपूर्ण. नमस्कार महामंत्र लावणी, मु. विनोदीलाल, पुहिं., पद्य, आदि: जग में सजीवन है पंच; अंति: विनोदी० पद पाइय तु है, सवैया-८, (वि. गाथांक क्रमशः १ से ८.) १४. पे. नाम. औपदेशिक सवैया, पृ. ५६अ-५६आ, संपूर्ण. पुहिं., पद्य, आदि: बालपणे बाल रह्यो पाछै; अंति: तेरे अजहं भी अंधेर है, सवैया-१, (वि. गाथांक क्रमशः ९.) १५. पे. नाम, पार्श्वजिन स्तुति, पृ. ५६आ, संपूर्ण. मा.गु., पद्य, आदि: सकल करम खल दलन कमठ; अंति: दहन जयजय परम अभय करन, गाथा-१, (वि. गाथांक क्रमशः १०.) १६. पे. नाम. औपदेशिक सवैया संग्रह, पृ. ५६आ-६१आ, संपूर्ण.. म. भिन्न भिन्न कर्तक, पुहिं.,प्रा.,मा.गु., पद्य, आदि: कंत बिन कामन वसंत बिन; अंति: श्रीदयासूरि कहै सगला ही, सवैया-४४, (वि. गाथांक क्रमशः ११ से ५४.) १७. पे. नाम. औपदेशिक सवैया, पृ. ६१आ-६२अ, संपूर्ण. पुहिं., पद्य, आदि: मांडलगढे आयकर मालपरै; अंति: लागो नागोर को जाणा है, गाथा-१, (वि. गाथांक क्रमशः ५५.) १८. पे. नाम. दान महिमा सवैया, पृ. ६२अ, संपूर्ण. मु. मुक्ति, मा.गु., पद्य, आदि: दाणते अणंत सुख दांणते टरत; अंति: मुकंत मुनि० दाण नित दाइयै, सवैया-१, (वि. गाथांक क्रमशः ५६.) १९. पे. नाम. उपदेसी सिज्झाय, पृ. ६२अ-६४अ, संपूर्ण. १४ बोल सज्झाय-भगवतीसूत्र शतक १, संबद्ध, म. रायचंद ऋषि, मा.ग., पद्य, आदि: सूत्र भगोती सतक पहल; अंति: रायचंद० फल पामसी रे लाल, गाथा-१७. २०. पे. नाम. भरतचक्रवर्ती चौपाई, पृ. ६४अ-६७अ, संपूर्ण, वि. १८९४, कार्तिक कृष्ण, ३, प्रले. मु. आसकरण ऋषि (गुरु मु. जसकर्ण); गुपि. मु. जसकर्ण (गुरु मु. फकीरचंद); मु. फकीरचंद, प्र.ले.पु. सामान्य. रा., पद्य, आदि: उगो उगीने ऊगीयो ठाणायंगनी; अंति: आउखो मुक्त गयो है सोभागी, ढाल-३. २१. पे. नाम. औपदेशिक सज्झाय, पृ.६७आ-६९आ, संपूर्ण. पुहिं., पद्य, आदि: दलंभ लाधो मनुष जमारो; अंति: क्रोध लोभ अहंकार नही, गाथा-२०. २२. पे. नाम. मरुदेवीमाता सज्झाय, पृ. ६९आ-७१अ, संपूर्ण. मु. रायचंद ऋषि, मा.गु., पद्य, वि. १८३७, आदि: नगर वनीता भली विराजे जगमग; अंति: उपजे वरते जै जैकारो जी, गाथा-१४. २३. पे. नाम. कर्मउपर सिज्झाय, पृ. ७१अ-७२आ, संपूर्ण, वि. १८९९, कार्तिक कृष्ण, ९. कर्मपच्चीसी, मु. हर्ष ऋषि, मा.गु., पद्य, आदि: देव दानव तिर्थंकर; अंति: कर जोडी० छूटक वारन होइ रे, गाथा-१८. For Private and Personal Use Only Page #384 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२६ ३६९ २४. पे. नाम. सीलसुरंगी चूनडी, पृ. ७२आ-७३अ, संपूर्ण, वि. १८९९, कार्तिक कृष्ण, ११. शीयलव्रत सज्झाय, मु. हीर, मा.गु., पद्य, आदि: तीन गुपत तणो ताणो; अंति: हीराचंद० पामीजे भवपारोजी, गाथा-१०. २५. पे. नाम. संकटनिवारण चोवीसी, पृ. ७३अ-७६अ, संपूर्ण. २४ जिन स्तवन, पहिं., पद्य, आदि: श्रीआदिनाथं करीजे; अंति: सदा भक्ति द्यो कंठ मोरी, गाथा-३१. २६. पे. नाम. संभवनाथ स्तवन, पृ. ७६अ-७७अ, संपूर्ण, वि. १८९९, कार्तिक कृष्ण, १२, ले.स्थल. मोतीकटडा अकबराबाद. __संभवजिन स्तवन, मु. अभयराज, मा.गु., पद्य, आदि: प्रभु प्रणमु जी श्रीसंभव; अंति: सुखें लीला सों तरइ, गाथा-८. २७. पे. नाम. नवकार मंत्र, पृ.७७अ, संपूर्ण. नमस्कार महामंत्र, शाश्वत, प्रा., पद्य, आदि: णमो अरिहंताणं; अंति: पढमं हवई मंगलम्, पद-९. ११९५४८.(+) स्थानांगसूत्र सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १९११, ज्येष्ठ शुक्ल, २, रविवार, मध्यम, पृ. २७९, ले.स्थल. बिनातटनगर, प्रले. श्राव. इंद्रभांण वैणीदास राठोड, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. हुंडी:ठाणांगसू०., टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित., प्र.ले.श्लो. (६१) भग्नपृष्टि कटीग्रीवा, (५७८) याद्रसं पुस्तकं द्रष्टवा, (१४५७) मे तो मारी मतसुं, दे., (२५४१२.५, ५-८४२८-३७). स्थानांगसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., प+ग., आदि: सुयं मे आउसं तेणं; अंति: अणंता पण्णत्ता, स्थान-१०, सूत्र-७८३, ग्रं. ३७००. स्थानांगसूत्र-टबार्थ, मु. मेघराज, मा.गु., गद्य, आदि: श्रीमद्वीरजिनं नत्वा; अंति: पुद्गल अनंता कहिआ, ग्रं. १३५००. ११९५४९ (+) रामचरित्र, संपूर्ण, वि. १९०२, कार्तिक शुक्ल, ३, रविवार, श्रेष्ठ, पृ. ७७, पठ.सा. राजाजी आर्या; सा. छोगाजी आर्या, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. हुंडी:रांमचरि०., टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित., दे., (२७४१२, १९४४६-५१). राम चरित्र, मु. चोथमल ऋषि, मा.गु., पद्य, वि. १८६२, आदि: सुखदायक सासणधणी तारक; अंति: चोथमल मंगल ___मंगलीक वारो रे, खंड-७, (वि. ढाल-१८७) ११९५५० (+) ठाणांगसूत्र सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २४४, प्र.वि. हुंडी:ठाणांगसू०, ठाणांग., टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित., जैदे., (२५४१२, ५-८४४२-५३). स्थानांगसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., प+ग., आदि: सुयं मे आउसं तेणं; अंति: अणंता पण्णत्ता, स्थान-१०, सूत्र-७८३, ग्रं. ३७००. स्थानांगसूत्र-टबार्थ , मा.गु., गद्य, आदि: नत्वा स्थानांग कतिपय; अंति: हारी श्रीप्रवचनदेवीनइ, ग्रं. ४७५०. ११९५५१ (+) कल्पसूत्र सह टबार्थ+व्याख्यान+कथा, अपूर्ण, वि. १७६८, वैशाख शुक्ल, ३, रविवार, मध्यम, पृ. १६१-५(१ से ५)=१५६, ले.स्थल. अंजारनगर, प्रले. मु. ज्ञानसागर (गुरु मु. तेजसागर, अंचलगच्छ); गुपि. मु. तेजसागर (अंचलगच्छ), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरे-संशोधित., जैदे., (२५४१२, ५-१५४३६-४२). कल्पसूत्र, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., गद्य, आदि: णमो अरिहंताणं० पढम; अंति: भुज्जो उवदंसेइ त्तिबेमि, व्याख्यान-९, ग्रं. १२१६, संपूर्ण. कल्पसूत्र-टबार्थ+व्याख्यान+कथा, आ. सोमविमलसूरि, मा.गु.,सं., गद्य, आदि: (-); अंति: मनोवाक्कायशुद्धितः, ___ (अपूर्ण, पू.वि. नागकेतु कथा अपूर्ण से है.) ११९५५४. (+#) ठाणांगसूत्र बोल, अपूर्ण, वि. १९वी, जीर्ण, पृ. १०-५(१ से ५)=५, पू.वि. बीच के पत्र हैं., प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ. मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., (२६.५४१२.५, १८४४१). स्थानांगसूत्र-बोल, संबद्ध, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. स्थान-४ अपूर्ण से स्थान-७ अपूर्ण तक है.) ११९५५५ (#) सीमंधरजिन विनती पत्र व पट्टावली, संपूर्ण, वि. १९१४, मार्गशीर्ष कृष्ण, १२, गुरुवार, मध्यम, पृ.८, कुल पे. २, ले.स्थल. पालि, प्रले. उदेराम ब्राह्मण; पठ. राजा, प्र.ले.प. सामान्य, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२७X१२.५, १७४४८). १. पे. नाम. सीमंधरजिन विनती पत्र, पृ. १अ-३आ, संपूर्ण, पे.वि. हुंडी:कागद. क. नर, मा.गु., गद्य, आदि: स्वस्ति श्रीमहाविदेह; अंति: कीय यौ विध नोपत वाजै छे, पत्र-२. २.पे. नाम. पट्टावली, पृ. ३आ-८आ, संपूर्ण, पे.वि. हुंडी:पटावलि. पट्टावली लोंकागच्छीय, रा., गद्य, आदि: श्रीचोथा आरान ३ तीनवरसनै; अंति: पदवि श्रीतोडरमलजीने दिधी. For Private and Personal Use Only Page #385 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ३७० कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ११९५५६. (#) ऋषिमंडल स्तोत्र सह टबार्थ व पंचपरमेष्ठि स्तोत्र, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ५, कुल पे. २, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२५.५४१२, ६४३९-४२). १. पे. नाम. ऋषिमंडल स्तोत्र सह टबार्थ, पृ. १अ-५आ, संपूर्ण. ऋषिमंडल स्तोत्र-बृहद्, आ. गौतमस्वामी गणधर, सं., पद्य, आदि: आद्यंताक्षरसंलक्ष्यमक्षरं; अंति: परमानंदसंपदं, श्लोक-८१. ऋषिमंडल स्तोत्र-बृहद-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: आदिको अक्षर अंतको अक्षर; अंति: पद की संपदा पामे. २.पे. नाम, पंचपरमेष्ठि स्तोत्र, प.५आ, संपूर्ण. सं., पद्य, आदि: अर्हतस्त्रिजगद्वंद्यान; अंति: प्रथमं भवति मंगलम्, श्लोक-७. ११९५५७ (+#) नवतत्त्व प्रकरण सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ६, प्र.वि. हंडी:नवत्तत्वप०., टिप्पण युक्त विशेष पाठ. टीकादि का अंश नष्ट है, टिप्पणक का अंश नष्ट, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६४१२, ५४२९-३२). नवतत्त्व प्रकरण ६० गाथा, प्रा., पद्य, आदि: जीवाजीवा पुण्णं पावा; अंति: बुद्धबोहि१३ कण१४ क्काय१५, गाथा-५१. नवतत्त्व प्रकरण ६० गाथा-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: सिद्ध एकै समै हुवै, (वि. आदिवाक्य खंडित है.) ११९५५८. आर्यवसधारकल्प, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ.८, जैदे., (२५.५४११.५, ९४३१-३९). वसुधारा स्तोत्र, सं., गद्य, आदि: संसारद्वयदैन्यस्य प्रतिह; अंति: भाषितमभ्यनंदन्निति. ११९५५९ (+#) दशवैकालिकसूत्र सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ४९, प्र.वि. हुंडी:दसवै०., संशोधित. अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५.५४१२, ६४३०-३६). दशवैकालिकसूत्र, आ. शय्यंभवसूरि, प्रा., पद्य, वी. २वी, आदि: धम्मो मंगलमुक्किट्ठ; अंति: अप्पणागमं गइ त्तिबेमि, अध्ययन-१०. दशवैकालिकसूत्र-टबार्थ*, मा.गु., गद्य, आदि: ध० जीवनइ दुर्गति; अंति: गुरु ए वचन प्रमाण छै. ११९५६० (+) उत्तराध्ययनसूत्र सज्झाय, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. २०-८(१ से ४,९ से १२)=१२, प्र.वि. हुंडी:उत्तराध्ययन. पत्रांक अनुमानित दिया गया है., संशोधित., दे., (२५४१२.५, १४४६०-६४). उत्तराध्ययनसूत्र-गीत, संबद्ध, ग. महिमासिंह, मा.गु., पद्य, वि. १६७५, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. प्रारंभ, बीच के पत्र नहीं हैं व प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., ढाल-१० गाथा-२ अपूर्ण से है व ढाल-१६ गाथा-५ तक लिखा है तथा ढाल-२३ गाथा-३० अपूर्ण से है व ढाल-३७ गाथा-५ तक लिखा है.) ११९५६१ (+) केशवदासबावनी व ध्रमसीबावनी, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १०-४(१ से ३,५)=६, कुल पे. २, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२५४१२, ११४२९-३२). १.पे. नाम. केशवदासबावनी, पृ. ४अ-१०अ, अपूर्ण, पू.वि. प्रारंभ व बीच के पत्र नहीं हैं. अक्षरबावनी, मु. केशवदास, पुहिं., पद्य, वि. १७३६, आदि: (-); अंति: केसवदास सदा सुख पावै, गाथा-६२, (पू.वि. गाथा-१९ अपूर्ण से २६ अपूर्ण तक व गाथा-३३ अपूर्ण से है.) २. पे. नाम. ध्रमसीबावनी, पृ. १०आ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. अक्षरबावनी, म. धर्मवर्धन, पुहिं., पद्य, वि. १७२५, आदि: ॐकार उदार अगम अपार; अंति: (-), (पू.वि. सरस्वती स्तुति अपूर्ण तक है.) ११९५६२. (+#) उपासकदशांगसूत्र सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १९०२, चैत्र शुक्ल, ५, रविवार, जीर्ण, पृ. ७८, ले.स्थल. कुरुक्षेत्र, प्रले. मु. वीरू ऋषि, प्र.ले.प. सामान्य, प्र.वि. हंडी:उपासगदसा., पदच्छेद सूचक लकीरें-संशोधित. मूल पाठ का अंश खंडित है, टीकादि का अंश नष्ट है, अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२६४१२, ६४३१-३८). उपासकदशांगसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., प+ग., आदि: तेणं० चंपा नामं नयरी; अंति: दिवसेसु अंगं तहेव, अध्ययन-१०,ग्रं. ८३७. उपासकदशांगसूत्र-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: तेणे काले ते समयने; अंति: पूर्वली परें जाणवो. ११९५६३. (+#) अष्टाह्निका महोत्सव सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ९-१(१)=८, पृ.वि. प्रथम एक व अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरे-अन्वय दर्शक अंक युक्त पाठ. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२७४१२.५, ७X४५). For Private and Personal Use Only Page #386 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ३७१ हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२६ अष्टाह्निका महोत्सव, मु. रायचंद, सं., पद्य, वि. १८४३, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. श्लोक-१ अपूर्ण से १३५ अपूर्ण तक है.) अष्टाह्निका महोत्सव-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: (-). ११९५६५. (+) दशवैकालकसूत्र सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. १९६९, चैत्र कृष्ण, १३, सोमवार, मध्यम, पृ. १२४-६(१२ से १३,६१,६४,७६,१०८)=११८, प्रले.पं. हिम्मतविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित., दे., (२६.५४१२.५, ३४३०). दशवैकालिकसूत्र, आ. शय्यंभवसरि, प्रा., पद्य, वी. २वी, आदि: धम्मो मंगलमुक्किट्ठ; अंति: भवियाणं बोहणट्ठाए, अध्ययन-१०, (पू.वि. बीच-बीच के पाठांश नहीं हैं., वि. चूलिका-२.) दशवैकालिकसूत्र-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: धर्मकेवलीरो भाख्यौ; अंति: प्रतिबोधवानेत्यर्थई. ११९५६६. (+#) भगवतीसूत्र सह टीका, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ९७०-७५१(१०२ से ८५१,९२४)=२१९, पृ.वि. बीच-बीच व अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. हुंडी:भगवतीसू०वृ०. हुंडीस्थान में शतक-उद्देशादि का निर्देश किया है., पदच्छेद सूचक लकीरें-टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६.५४१२, ६x४५). _भगवतीसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., गद्य, आदि: नमो अरहंताणं० सव्व; अंति: (-), (पू.वि. शतक-४० वर्ग-१६ अपूर्ण तक है व बीच-बीच के पाठांश नहीं हैं.) भगवतीसूत्र-टीका, आ. अभयदेवसूरि ,सं., गद्य, वि. ११२८, आदि: सर्वज्ञमीश्वरमनंत; अंति: (-). ११९५६७. (+) कल्पसूत्र, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ५३-२९(१ से २९)=२४, प्र.वि. हुंडी:कल्पसूत्र., संशोधित., जैदे., (२६.५४१२, ११४४०). कल्पसूत्र, आ. भद्रबाहस्वामी, प्रा., गद्य, आदि: (-); अंति: अज्झयणं सम्मत्तं, व्याख्यान-९, ग्रं. १२१६, (पृ.वि. पार्श्वनाथ चरित्र पाठ "पासे अरहा परिसादाणीए जे से हमंताणं" से है.) ११९५६८ (+#) सारस्वत व्याकरण सह सुबोधिनी वृत्ति-पूर्वार्ध, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १४६, पठ. पं. ज्ञानविजय (गुरु पंन्या. प्रसिद्धविजय); गुपि. पंन्या. प्रसिद्धविजय; प्रले.पं. देवचंद्रविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. हुंडी:सिद्धांतचंद्रि०, सिद्धांतचं०वृ०., पदच्छेद सूचक लकीरें-संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६.५४१२, १०-१३४३५-३८). सरस्वतीसूत्र-प्रक्रिया सिद्धांतचंद्रिका, आ. रामाश्रम, सं., गद्य, आदि: नमस्कृत्य महेशानं मतं; अंति: (-), प्रतिपूर्ण, सरस्वतीसूत्र-प्रक्रिया सिद्धांतचंद्रिका की सुबोधिनी वृत्ति, ग. सदानंद, सं., गद्य, वि. १७९९, आदि: पुराणपुरुष ध्यात्वा; अंति: (-), प्रतिपूर्ण. ११९५७० (+) योगचिंतामणि सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १८९२, कार्तिक कृष्ण, १२, सोमवार, मध्यम, पृ. १७२, ले.स्थल. केकडी, प्रले. पं. लब्धिसागर (गुरु पं. थानसागर, तपा.सागरशाखा); गुपि. पं. थानसागर (गुरु पं. उदयसागर, तपा.सागरशाखा); पं. उदयसागर (गुरु पं. सबलसागर, तपा.सागरशाखा); पं. सबलसागर (गुरु पं. जिनरंगसागर, तपा.सागरशाखा); पं. जिनरंगसागर (गुरु पं. नित्यसागर); पं. नित्यसागर (तपा.सागरशाखा), प्र.ले.प. विस्तृत, प्र.वि. अंत में "त्रतीईपहरे" व "राजश्री अंगरेजका राजम लखी" ऐसा उल्लिखित है., टिप्पण युक्त विशेष पाठ., प्र.ले.श्लो. (८६) कष्ट कुवडी कर वेगडी, (५७८) याद्रसं पुस्तकं द्रष्ट्वा, (६६९) भग्नपृष्टी कटिग्रीवा, (१४४६) जब लग मेरु अडग हे, (१४६०) तेलरक्षं जलं रक्षं, (१४६१) पोथी प्यारी प्राणथी, जैदे., (२६.५४१२, ७-३०). योगचिंतामणि, आ. हर्षकीर्तिसूरि, सं., पद्य, वि. १७वी, आदि: यत्र वित्रासमायांति; अंति: योगचिंतामणिश्चिरम्, अध्याय-७. योगचिंतामणि-टबार्थ *, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: मिश्राधिकारपूर्ण थयो, (वि. आवश्यकतानुसार टबार्थ लिखा है.) ११९५७१ (+) सुबोधाजन्मपत्री लालचंदी पद्धति, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १६२-४९(१ से ४९)=११३, अन्य. मु. शिवजी मालजी ऋषि, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. हुंडी:लालचंदीपद्धत., संशोधित-संशोधित., जैदे., (२७४१२.५, १५-२१४३२-५३). जन्मपत्री पद्धति, मु. लब्धिचंद्र, सं., गद्य, वि. १७५१, आदिः (-); अंति: लब्धिचद्र० मानसैः, (पू.वि. शुक्रभावफलवर्णन श्लोक-१२ अपूर्ण से है., वि. अंत में भावचलितचक्र व अष्टकवर्गचक्र संबंधी श्लोक दिये हैं.) ११९५७२. (+#) क्षामणासूत्र सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १८, प्र.वि. संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५४१२,७४३८-४२). For Private and Personal Use Only Page #387 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची पाक्षिकसूत्र, हिस्सा, प्रा., प+ग., आदि: तित्थंकरे अतित्थे; अंति: नित्थारगपारगा होत्ति. पाक्षिकसूत्र-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: तीर्थंकर प्रति० संघ; अंति: वांदउ छउं निस्तारपारग्रहक. ११९५७३ (+#) लघुदंडक, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ३३-६(१ से ६)=२७, प्र.वि. हुंडी:लघुदंडक., संशोधित. मूल पाठ का अंश खंडित है, अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२६४१२, १०४२९). दंडकभेद बोल-लघु, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: नथी सिद्धने जोग नथी, (पू.वि. द्वीपमानवर्णन अपूर्ण से है.) ११९५७६. (+#) कल्पसूत्र सह टबार्थ व व्याख्यान-चतुर्थी वाचना, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १३, प्र.वि. संशोधित. मूल पाठ का अंश खंडित है, टीकादि का अंश नष्ट है, जैदे., (२५.५४१२.५, ६४३४). कल्पसूत्र, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), प्रतिपूर्ण. कल्पसूत्र-टबार्थ+कथा, मा.गु.,सं., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), प्रतिपूर्ण. ११९५७९ (+) दसठांणासूत्र बोल, संपूर्ण, वि. १९१६, कार्तिक कृष्ण, १३, सोमवार, श्रेष्ठ, पृ. २०, प्रले. श्राव. वीरानंद वोरा, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. हुंडी:द०ठां०., टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित., दे., (२६.५४१२.५, १९४४९). स्थानांगसूत्र-बोल, मा.गु., गद्य, आदि: एगे आया आया कहेतां; अंति: लखणे करीने सूषमकाल जाणवो. ११९५८० (+#) जिनबिंब प्रवेशस्थापना विधि, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २,प्र.वि. संशोधित. मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., (२५.५४१२.५, १५४३२-३५). जिनबिंब प्रवेशस्थापना विधि, मा.गु.,सं., गद्य, आदि: मुल गुंभारैकुं अछी रीत; अंति: मंत्र गुणी बलबाकुल उछालै. ११९५८१. पट्टावली तपागच्छीय, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, दे., (२५४१२.५, १४४२६). पट्टावली तपागच्छीय, मा.गु., गद्य, आदि: श्रीवर्द्धमानस्वामी; अंति: पं.श्री पुन्यविजयजी. ११९५८२. आदिजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, दे., (२६४१२.५, ८४३६). आदिजिन स्तवन, म. रामविजय, मा.गु., पद्य, आदि: ओलघडी रे आदिनाथनी जो; अंति: इम रामविजय गुणगायजो, गाथा-५. ११९५८३. (+) सुमतिजिन व महावीरजिन पद, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, प्र.वि. हुंडी:राग प्रभाती., संशोधित., दे., (२५.५४१२.५, १२४२५). १. पे. नाम. सुमतिजिन पद, पृ. १आ, संपूर्ण. मु. रूपचंद, पुहिं., पद्य, आदि: मुजरा सायब मुजरा सायब; अंति: रूपचंददास निरंजन तोरा रे, गाथा-३. २. पे. नाम, महावीरजिन पद, पृ. १आ, संपूर्ण. मु. जिनचंद, पुहिं., पद्य, आदि: आज तो हमारे भाग वीर; अंति: चित आनंद वधाए हैं, गाथा-४. ११९५८४. तपसाधना यंत्रवीध, संपूर्ण, वि. १९५२, मार्गशीर्ष शुक्ल, १, मध्यम, पृ. २, ले.स्थल. नागोर,गोंडल, प्रले. मु. रामचंद ऋषि; दत्त. मु. मूलचंद ऋषि; गृही. मु. जादव, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. हुंडी:तपनीविधि. अंत में "आ पानो महापुरुष श्री ७ मुलचंदजीये श्री जादवजीसामीने अर्पण कर्यु छ गोंडलनयरमध्ये." ऐसा उल्लिखित है., दे., (२७.५४१२.५, १९४३४). तपावली यंत्र, मा.गु., यं., आदि: (-); अंति: (-). ११९५८५ (+) ९ दंडक बोल संग्रह, संपूर्ण, वि. १९६२, भाद्रपद शुक्ल, ७, रविवार, मध्यम, पृ. १, प्रले. श्राव. अमृतलाल मोतिचंद अजमेरा, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित., दे., (२६४१२.५, २२४५७). बोल संग्रह , प्रा.,मा.ग.,सं., गद्य, आदिः (-); अंति: (-). ११९५८८. महावीरजिन स्तवन व नवपदपूजा उपकरण सूचि, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ५, कुल पे. २, दे., (२५.५४१२.५, ११४३९). १.पे. नाम, ज्ञानादिनयमतविवरणपरं श्रीमद्वीरजिन स्तवन, पृ. १अ-५अ, संपूर्ण, वि. १९०७, मार्गशीर्ष कृष्ण, ३, शुक्रवार, प्रले. मु. चिमनसागर, प्र.ले.पु. सामान्य. महावीरजिन स्तवन-ज्ञानदर्शनचारित्रसंवादरूप नयमतगर्भित, आ. लक्ष्मीसूरि, मा.गु., पद्य, वि. १८२७, आदि: श्रीइंद्रादिक भावथी; अंति: मीसूरि पभणे संघने जयकार ए, ढाल-८, गाथा-८१. २. पे. नाम. नवपदपूजा उपगरण सूचि, पृ. ५आ, संपूर्ण, पे.वि. यह कृति बाद में अन्य प्रतिलेखक ने लिखी है. For Private and Personal Use Only Page #388 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२६ नवपदपूजा उपकरण सूचि, मा.गु. गद्य, आदि: श्रीफल ९ अंगलुहणार अंतिः छत्र बाजोट३ कुंडीर घडो. ११९५८९ अंगस्फुरण व विविध शकुन विचार संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ५, कुल पे. ५, जैवे. (२५.५४१२, , १७X४७-५०). १. पे. नाम. अंगफुर्कणग्यांन, पृ. १अ, संपूर्ण. अंगस्फुरण विचार, मु. हीररत्न, मा.गु., पद्य, आदि: माथै फुरके पुहवीराज; अंति: हीररतन०जिसी गुरु भणी, गाथा-२१. २. पे नाम. असोई जोयवा विचार सह बालावबोध, पृ. १आ, संपूर्ण. असोई शकुनावली, सं., पद्य, आदि जलपात्रं समादाय पूंगाख्यतः अतिः प्रोक्तं एष उपश्रुतिविधि, श्लोक ६. असोई शकुनावली-बालावबोध, मा.गु., गद्य, आदि: लोटो पाणीथी भरी हाथ में; अंति: (१) सो विचारीजै जिसो काम हुवै, (२) शिघ्रं कथय कथय स्वाहा. ३. पे. नाम. पल्लीनाम संग्रह, पृ. १आ, संपूर्ण, पे. वि. उपयोगी माहिती होने से पेटांक में लिया गया है. पल्ली नाम संग्रह, मा.गु., गद्य, आदि: पल्ली१ छिपाकी २ गृहगोधा३ अति: गिलोई५ बिसहरो देवणी७. ४. पे. नाम पल्लीपतन विचार, पृ. १आ-३अ संपूर्ण मा.गु., गद्य, आदि अथातः संप्रवक्ष्यामि शृणु अंति पड़े तो सर्वसिद्ध करे, (वि. प्रारंभ में वसंतराज ग्रंथ का एक लोक देकर शकुन विचार लिखा है.) ५. पे. नाम. शकुनविचार संग्रह, पृ. ३अ-५आ, संपूर्ण. ३७३ मा.गु. सं., प+ग, आदि: गुर्डवर्ग वाले पुर्ष अति क्लीं क्लीं ए सबद भला, (वि. कालीदेवी, चील, रूपारेल, हिरण, सर्प, कुताकुती, रासभ, शिवा फेंकारी, काक आदि के शकुन दिये गये हैं.) " 3 ११९५९२ (+४) नवतत्वको विवहारनिधे, अपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पू. ६. पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. प्र. वि. हुंडी दुवार४२.. संशोधित अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैसे. (२५.५x१२.५, १८४३९). "" नवतत्त्व प्रकरण ६० गाथा-४२ द्वार विचार, संबद्ध, मा.गु, गद्य, आदि जीवतत्व १ अजीवतत्व २; अति: (-), (पू. वि. पंचमगुणस्थान वर्णन अपूर्ण तक है.) ११९५९५. (+) औपदेशिक सवैया, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ७-१ (१) = ६, पू. वि. बीच के पत्र हैं., प्र. वि. पदच्छेद सूचक लकीरें टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., ( २६.५X१२.५, १०-१४X३०-३३). औपदेशिक सवैया, जै. क. बनारसीदास, पुहिं., पद्य, आदि (-) अति (-) (पू.वि. सवैया १४ अपूर्ण से ७१ अपूर्ण तक है.) ११९५९६ (+) उत्तराध्ययनसूत्र सह वार्तिक अध्ययन १ से ३, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पू. ६६-१ ( २ ) = ६५ प्रले. मु. रामसागर (गुरु ग. रत्नसागर गणि); गुपि. ग. रत्नसागर गणि, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-पदच्छेद सूचक विशेष पाठ-पदच्छेद सूचक लकीरें संशोधित, जैदे. (२७४१२, १५x५२-६६ ). उत्तराध्ययनसूत्र, मु. प्रत्येकबुद्ध, प्रा., प+ग, आदि (-); अंति (-) (प्रति अपूर्ण, पू. वि. अध्ययन- १ गाथा-२ से है.) उत्तराध्ययनसूत्र-बालावबोध, आ. पार्श्वचंद्रसूरि, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), प्रतिअपूर्ण. ११९५९७ (+४) श्रावकप्रतिक्रमणसूत्र सह बालावबोध, संपूर्ण, वि. १७९६, कार्तिक कृष्ण, २, रविवार, मध्यम, पृ. ७२, ले. स्थल. अमररायपुर, पठ. मु. अखैचंद (गुरु मु. भागचंद, पूनमीवागच्छ - विजयराजगच्छ के बीजाजी मत की उदयसागरसूरि बृहद्वितीयशाखा); गुपि मु. भागचंद (गुरु मु. रामचंद्र, पूनमीयागच्छ - विजयराजगच्छ के बीजाजी मत की उदयसागरसूरि बृहद्वितीयशाखा) मु. रामचंद्र (गुरु मु. जीवराज, पूनमीवागच्छ-विजयराजगच्छ के बीजाजी मत की उदयसागरसूरि बृहद्वितीयशाखा); मु. जीवराज (गुरु आ. ज्ञानसागरसूरि, पूनमीयागच्छ-विजयराजगच्छ के बीजाजी मत की उदयसागरसूरि बृहद्वितीयशाखा) आ. ज्ञानसागरसूरि (पूनमीयागच्छ - विजयराजगच्छ के बीजाजी मत की उदयसागरसूरि बृहद्वितीयशाखा), प्र.ले.पु. मध्यम, प्र. वि. संशोधित अक्षरों की स्याही फैल गयी है, प्र.ले. श्लो. (५७८) यासं पुस्तकं द्रष्ट्वा, जैवे. (२६४१२, १६x४२-४८). आवकप्रतिक्रमणसूत्र- तपागच्छीय, संबद्ध, प्रा. सं., प+ग, आदि नमो अरिहंताणं नमो सिद्धाण; अंति: तियागारेणं "" बोसिरामि For Private and Personal Use Only Page #389 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ३७४ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची श्रावकप्रतिक्रमणसूत्र-तपागच्छीय का बालावबोध, पं. हेमहंस गणि, मा.गु., गद्य, वि. १५०१, आदि: श्रेयांसि श्रीमहावीर; अंति: मोक्ष फलदाईउ थाइ. ११९५९८. (+) स्थानांगसूत्र बोल, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ३२-२(१ से २)=३०, पृ.वि. प्रारंभ व अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. संशोधित., दे., (२६.५४१२.५, १७-२१४३४-३८). स्थानांगसूत्र-बोल, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. स्थान-१ अपूर्ण से स्थान-१० अपूर्ण तक है.) ११९५९९. नवतत्त्वना बोल, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ४८, प्रले. मु. अचलसुंदर (उपकेशगच्छ), प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२७४१२,११४३३-४२). नवतत्त्व प्रकरण ६० गाथा-रूपीअरूपी बोल, संबद्ध, मा.गु., गद्य, आदि: नवतत्त्व मांहि रूपी; अंति: बहुत्वद्वार चोवीदं० ७५मो. ११९६०० (+) दशत्रिकविचारगर्भित नेमिजिन स्तवन व सास्वतीप्रतिमाप्रासादजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ५, कुल पे. २, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२७४१२, १२४२८). १.पे. नाम, दशत्रिकविचारगर्भित नेमनाथजीन स्तवन, पृ. १आ-४अ, संपूर्ण.. नेमिजिन स्तवन-दशत्रिकगर्भित, मु. लालचंद, मा.गु., पद्य, वि. १८३३, आदि: सद्गुरु चरण नमी करी; अंति: लालचंदै० तवन कीधो चितधरी, ढाल-४. २.प. नाम. सास्वतीप्रतिमाप्रासादजिन स्तवन, पृ. ४अ-५आ, संपूर्ण. शाश्वताचैत्य नमस्कार स्तवन, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, आदि: रिषभानन वधमान चंद; अंति: समयसुंदर०मुझ परणाम ए, ढाल-५, गाथा-१८. ११९६०१. (+) योगचिंतामणि, संपूर्ण, वि. १८४४, श्रेष्ठ, पृ. ५२, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२६.५४१२.५, १६x४२). योगचिंतामणि, आ. हर्षकीर्तिसूरि, सं., पद्य, वि. १७वी, आदिः यस्याः प्रसादमासद्य सद्यो; अंति: सौख्यं वातरोगं नियंच्छति, अध्याय-५. ११९६०२ (+) २० स्थानक विचारसार रास, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ५४-१(५२*)=५३, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२६.५४१२.५, १५४३९). २० स्थानक विचारसार रास, मु. जिनहर्ष, मा.गु., पद्य, वि. १७४८, आदि: सकल सिद्धि संपतिकरण; अंति: (-), (पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., स्थानक-८ ढाल-३ गाथा-५३ अपूर्ण तक है.) ११९६०३. (+) शांतिक विधि, संपूर्ण, वि. १९३८, श्रेष्ठ, पृ. ५, ले.स्थल. मकसूदाबाद, प्रले. मु. सुमतिचंद्र, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें., दे., (२६.५४१२.५, ११४२३-२७). शांतिपूजा विधि, मा.गु.,सं., गद्य, आदि: ननु संघादीनां विघ्नो; अंति: दूरतो यांति. ११९६०४ (+) शांतिक विधि, संपूर्ण, वि. १९४८, पौष कृष्ण, ३, मध्यम, पृ. १२, प्रले. मु. हीरचंद्र ऋषि (बृहत्विजयगच्छ), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. हुंडी:शांतिकपूजा विधि., पदच्छेद सूचक लकीरें-अन्वय दर्शक अंक युक्त पाठ-टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित., दे., (२७.५४१२.५, १७X४४). शांतिकपूजा विधि, पुहिं., गद्य, आदि: प्रथम शुभ दिन शुभ; अंति: गुरुजी के ज्ञान सारु, (वि. अंत में पूजा सामग्री दी गई ११९६०५ (#) विनीतअविनीत चौपाई, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १७, प्र.वि. हुंडी:विनीतअवि०. अंत में "ए परत संवत १८७३ सालरी लिखी परत ऊपर लिखी छे" ऐसा लिखा है., मूल पाठ का अंश खंडित है, दे., (२६४१२.५, १२४४३). विनीतअविनीत अधिकार, मा.गु.,रा., पद्य, आदि: नमु वीर सासणधणी ते; अंति: दूरा तेतो परमेसररा पूरा, ढाल-११. ११९६०६. (+) भवणद्वार, संपूर्ण, वि. १९०३, माघ शुक्ल, १, मध्यम, पृ. १०, ले.स्थल. बीलाडा, प्रले. लछमी, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. हुंडी:भवणधार., संशोधित., दे., (२६४१२.५, २०७४४-४८). ___ भवणद्वार विचार, मा.गु., गद्य, आदि: पैहली नारकी असंख्याता; अंति: ते सिहसिलारी परध. ११९६०७. (+) सिद्धांतसार, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २२, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२६.५४१२, १६४३०-३५). For Private and Personal Use Only Page #390 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२६ www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir सिद्धांत सारोद्धार विचार, रा., गद्य, आदि एक लाख जोजण जंबुद्वीप; अंति: (-) (अपूर्ण, पू. वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण. १० नीकाय के भवनपतीदेव विवरण अपूर्ण तक लिखा है.) ११९६०८ (+) द्रोपदीसती चोपाई, संपूर्ण, वि. १९११, फाल्गुन शुक्ल, ३, मध्यम, पृ. ८, ले. स्थल. टुकशहर, प्र. वि. हुंडी : दरोपद., संशोधित. दे. (२६.५४१२, १६५३६-४५). द्रौपदीसती चौपाई, मु. कवियण, रा., पद्य, आदि: सुरसत समरु मनरूली सतगुरु अति: कवीजन० रमणी पद पावसी, डाल- १२. ११९६०९. (+) जिनप्रतिमा स्तवनादि संग्रह, संपूर्ण वि. १९वी श्रेष्ठ, पू. ६, कुल पे. ८. प्र. वि. श्रीशंतिनाथजी प्रसादात्, संशोधित. जैदे., (२७X१२.५, १४X३४). १. पे. नाम जिनप्रतिमा स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण. मु. मानविजय, मा.गु., पद्य, आदि श्रीजिन जिनप्रतिमां अंति मान० सुगुरुने सीस, डाल- २, गाथा-२१. २. पे नाम. सूत्रकृतांगसूत्र का विचार संग्रह, पृ. १आ, संपूर्ण. सूत्रकृतांगसूत्र-विचार संग्रह, संबद्ध, मा.गु., गद्य, आदि: मलमूत्रनी भूमिका; अंति: अंगुल १०१ अचित्त. ३. पे. नाम. ४५ लाख योजन मनुष्यक्षेत्र संख्यामान, पृ. १आ, संपूर्ण. मा.गु. गद्य, आदि: २ लाख लवणसमुद्र ४ लाख अंति एवं ४४ जंबुदवीप ४५. " ४. पे. नाम. विहरमानजिन नाम, पृ. १आ, संपूर्ण. ३७५ विहरमानजिन नाम - उत्कृष्ट संख्या, मा.गु., गद्य, आदि उत्कृष्टा तीर्थंकर १७० अति: १७० तीर्थकर अजित सनवारे. ५. पे. नाम. ५६३ जीवभेद विचार, पृ. १आ, संपूर्ण. मा.गु., गद्य, आदि : ९५ परमधामी देवता १०; अंति: ५६३ भेद जिवाने जांणवा. ६. पे. नाम. साधु सामाचारी, पृ. २अ, संपूर्ण. मा.गु., गद्य, आदि उपाश्राथी नीकलता आवसही; अंति: पडिलहण स्थंडलादिक करइ. ७. पे नाम. सप्तभंगी अस्तिनास्ति पू. २अ संपूर्ण. " मा.गु., गद्य, आदि कोइ काले अस्ति रुपे; अंतिः अस्ति युगपत अवक्तव्यं. ८. पे नाम समकितना सडसठबोल सज्झाय, पृ. २आ-६अ, संपूर्ण वि. १८८५ आश्विन शुक्ल, १, गुरुवार, ले. स्थल, श्रीधकारपुर, प्रले. मु. नंदसागर लिख. वा. विवेकसागर गणि, प्र.ले.पु. सामान्य, पे. वि. अंत में सत्वकी विद्याधर एवं महावीरजिन प्रश्नोत्तर दिया गया है. For Private and Personal Use Only सम्यक्त्व ६७ बोल सज्झाय, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., पद्य, आदि: सुकृतवल्लि कादंबिनी; अंति: वाच इम बोले रे, ढाल १२, गाथा-७५ (वि. अंत में किसी अज्ञात कृति का मात्र प्रारंभिक पाठ लिखा है.) ११९६१०. समाधितंत्र दोधक, करणसित्तरी सज्झाय व अध्यात्मबावनी, संपूर्ण, वि. १८८८, आश्विन कृष्ण, ७, बुधवार, श्रेष्ठ, पृ. ५, कुल पे. ३, ले.स्थल. राणपुर, प्रले. मु. नंदसागर (गुरु मु. विवेकसागर); गुपि. मु. विवेकसागर, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२७X१२.५, १६X३९-४४). १. पे. नाम. समाधितंत्र दोधक, पृ. १अ - ३आ, संपूर्ण. समाधिशतक दोधकछंदमय, संबद्ध, उपा. यशोविजयजी गणि, पुहिं., पद्य, वि. १८वी, आदि: समरि भगवति भारत प्रणमी; अति कही जाणो निश्चयबुद्ध, गाथा १०४. २. पे. नाम. करणसित्तरी सज्झाय, पृ. ३आ-४अ संपूर्ण मा.गु., पद्य, आदि: प्रसर सनीमग्न भ्रष्टी; अंति: आदरे ए करण सितरी सार, गाथा- १८. ३. पे. नाम. अध्यात्मवावनी, पृ. ४अ ५आ, संपूर्ण, पे. वि. गाथा क्रमशः १९ से ७० तक है. मु. चिदानंद, मा.गु., पद्य, आदि: माया जाळ मूकीपरी; अंति: पद लह्यो जिनवर पदवी फूल, गाथा-५२. ११९६११. (+) आषाढाभूति रास, संपूर्ण वि. १८८२ पौष शुक्ल ८, सोमवार, मध्यम, पृ. ७. प्र. वि. संशोधित, जै., (२७४१२, १७X३८-४२). Page #391 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra ३७६ www.kobatirth.org कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची आषाढाभूतिमुनि चौपाई, मु. ज्ञानसागर, मा.गु., पद्य, वि. १७२४, आदि: सकल ऋद्धि समृद्धकरण; अति न्याय होजो परम कल्याण रे, ढाल १६, गाथा- ३४१, ग्रं. ३५१. - ११९६१२. (+४) पार्श्वजिन स्तवनादि संग्रह, संपूर्ण वि. १८५४, चैत्र शुक्ल, १३, मध्यम, पू. १७, कुल पे. ९६, ले. स्थल घांटीला, प्रले. पंन्या. उत्तमविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. हुंडी : तवन, टिप्पण युक्त विशेष पाठ. मूल पाठ का अंश खंडित है, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., ( २६.५X१२, १७x४८). १. पे. नाम. पार्श्वजिन स्तवन, पृ. १अ १आ, संपूर्ण. Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir पार्श्वजिन स्तवन- गोडीजी, मु. शांतिकुशल, मा.गु., पद्य, वि. १६६७, आदि: सारद नाम सोहांमणो मनी आणी; अंति विनयकुंशल ० तो सुख लहें, गाथा-३०. २. पे. नाम महावीर स्तवन, पृ. १आ, संपूर्ण. महावीरजिन स्तवन, मु. लब्धिविजय, मा.गु., पद्य, आदि श्रीमहावीर मनोहरू रे; अंति लब्धीविजय० वधुनो कंत, गाथा ६. ३. पे. नाम. नेमी स्तवन, पृ. १आ-२अ, संपूर्ण. नेमराजिमती स्तवन, मु. शिवचंद, रा., पद्य, आदि: जो तुम्हे चालो शिवपुरि रे; अंति: ओ भव पार उतार रे, गाथा-५. ४. पे नाम. शत्रुजयतीर्थ स्तवन, पृ. २अ संपूर्ण. आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., पद्य, आदि आपो आपोनें लाल मुझने; अंति: ज्ञानविमल० कामगवी दोहंति, गाथा-७. ५. पे. नाम. नेमीजिन गीत, पृ. २अ, संपूर्ण. नेमराजिमती गीत, मु. रूपचंद, पुहिं, पद्य, आदि आज में वारी नेमजी एंसि, अति रूपचंद० अणंद पद खेलण हारे, गाथा - ५. ६. पे. नाम. तीर्थमाला स्तवन, पृ. २अ २आ, संपूर्ण. २४ जिन तीर्थमाला स्तवन, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, आदि: सेत्रुंजे रिषभ समो सर्यो; अंति: होज्यो रे समयसुंदर कहे एम गाथा - २७. ७. पे. नाम. साधारणजिन स्तवन, पू. २आ, संपूर्ण. आ. ज्ञानविमलसूरि, पुहिं, पद्य, आदि जब जिनराज कृपा होवे, अंति: नय० जिन उपम आवे, गाथा ५. ८. पे नाम औपदेशिक पद, पृ. २आ-३अ संपूर्ण मु. ९. पे नाम औपदेशिक पद, पृ. ३अ, संपूर्ण. , जिनराज, पुहि., पद्य, आदि कहारे अग्यानी जीव अंति: जिनराज० सहिज मिटावर, गाथा- ३. " मु. जिनरंग, पुहिं., पद्य, आदि सब स्वास्थ के मित्र अति पुरुष हे जिमे आप संरभारा " १०. पे. नाम संभवजिन स्तवन, पृ. ३अ, संपूर्ण. मु. केसरविमल, मा.गु., पद्य, आदिः संभवजिनवर सारिखों देव; अंति: केसरविमल० दरिसण मुझ दीजे, गाथा-५. ११. पे. नाम. शत्रुंजयतीर्थ स्तवन, पृ. ३अ, संपूर्ण. मु. कुंअरविजय, मा.गु., पद्य, आदि तीरथराजनुं लीजे नांम; अंतिः कुअर करे गिरवर गुणयांम, गाथा ४. १२. पे. नाम. शत्रुंजयतीर्थ स्तवन, पृ. ३अ, संपूर्ण. मु. . कांतिविजय, मा.गु., पद्य, आदि: श्री सिद्धाचल भेटवा मुझ; अंति: कांतिविजय० गायो, गाथा-५. १३. पे. नाम. आध्यात्मिक पद, पृ. ३अ, संपूर्ण. मु. आनंदघन, पुहिं., पद्य, वि. १८वी, आदि: रे घडी आलै बाउ रे मत घडी; अंति: आनंदघन० विरला कोइ पावै, पद-३. १४. पे. नाम. पद्मप्रभजिन पद, पृ. ३अ- ३आ, संपूर्ण. उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, आदि मेरो मन मोह्यो जिन; अंति: सकल कुशल संपतीवां, गाथा-३. १५. पे नाम, पार्श्वजिन पद, पू. ३आ, संपूर्ण. पार्श्वजिन पद-चिंतामणि, मु. भानुचंद, पुहिं., पद्य, आदि : आज में प्रभु को दरिसण; अंति: कलसंघ हुं आनंद अधिक उपायो, गाथा-३. For Private and Personal Use Only Page #392 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२६ www.kobatirth.org १६. पे. नाम. पार्श्वजिन गीत, पृ. ३आ, संपूर्ण. मु. आनंदघन, पुहिं., पद्य, वि. १८वी, आदि मेरे याही चाही नित दरसण अति करो कछु ओर न चाहुं में, गाथा-३. " १७. पे नाम. शांतिजिन स्तवन, पृ. ३आ, संपूर्ण. उपा. समयसुंदर गणि, पुहिं., पद्य, आदि: आंगण कलप फल्योरी; अंति: समयसुंदर ० हुंज रहत सुहेलो, गाथा-५. १८. पे नाम. शांतिजिन स्तवन, पृ. ३आ, संपूर्ण. उपा. विनयविजय, पुहिं., पद्य, आदि: शांति तेरे लोचन हैं, अंति: विनइ० मोहुं बहुत हे प्यारे, गाथा - ३. १९. पे नाम आदिजिन स्तवन, पृ. ३आ, संपूर्ण. मु. मोहनविजय, मा.गु., पद्य, आदि उठ हो नाभि दुलारे, अंति दीजे हो पातिक न्यारे, गाथा - ३. २०. पे. नाम. सिद्ध स्तुति, पृ. ३आ, संपूर्ण. Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir मा.गु., पद्य, आदि: मीता मनमोहन पास पीयारा रे अति आवेगी नीरंजन होता रे, गाथा- ३. २८. पे. नाम. नेमिजिन पद, पृ. ४आ, संपूर्ण. मा.गु., पद्य, आदि दील दामे हरम यार मेडा मीत; अंति: अनुभव रसकीरी झपावे छो, पद-२. २९. पे नाम. आध्यात्मिक पद, पृ. ४आ, संपूर्ण. पुहिं., पद्य, आदि अविनासी अधिकार परमरस धांम, अंतिः सीद्ध सदा जयवंत है, गाथा १. २१. पे. नाम. युगमंधरजिन स्तवन, पृ. ३-४अ, संपूर्ण. मु. न्यायसागर, मा.गु., पद्य, आदि क्या जानु कुछ कीनो; अति न्याय० सर्व सुधीनो रे, गाथा-७. २२. पे. नाम. साधारणजिन स्तवन, पृ. ४अ, संपूर्ण. मु. रूपचंद, पुहि., पद्य, आदि मे परदेसी दूर का अंति: रुपचंद० नीरंजन गुण गाया, गाथा ४. " २३. पे. नाम. आदिजिन गीत, पृ. ४अ, संपूर्ण. मु. रूपचंद, पुहिं, पद्य, आदि सींघासन पदमासन बेठे नाभी; अति रूपचंद गुण गाय लो, गाथा-५. २४. पे नाम आदिजिन पद, पृ. ४अ, संपूर्ण, मु. साधुकीर्ति, पुहि., पद्य, आदि आज ऋषभ घर आवे देखो; अंति: फल साधुकीरत गुण गावे, गाथा-५. २५. पे. नाम. ओंकार महिमा दर्शन, पृ. ४अ, संपूर्ण. ॐ कार महिमा दर्शन, मु. रूपचंद, पुहिं, पद्य, आदि: वाणी हे विलास तेरी अंति रूपचंद० तेसी समझ नयरी, गाथा-४. २६. पे. नाम. दानशीलतपभावना प्रभाती, पृ. ४-४आ, संपूर्ण. उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, वि. १७वी, आदि रे जीव जिन धर्म कीजीई, अंति: मुक्त तणां फल थाय रे, गाथा-६. २७. पे नाम, पार्श्वजिन स्तवन, पृ. ४आ, संपूर्ण. पुहिं., पद्य, आदि अविनासी के गुन गावना, अंति: नित नित परम हंस री झावना, गाथा-४. ३०. पे नाम, आध्यात्मिक पद, पू. ४आ, संपूर्ण मु. रूपचंद, पुहि., पद्य, आदि एसें सहर बिच कौन दीवान अंतिः ज्ञान की कवान हे रे, गाथा-५. " ३१. पे. नाम. साधारणजिन पद, पृ. ४-५अ, संपूर्ण. मु. रूपचंद, पुहि., पद्य, आदि: मीलवो जुगजोर कठीन है हो अंति (अपठनीय), पद-४. " ३७७ For Private and Personal Use Only ३२. पे. नाम. पार्श्वजिन स्तवन, पृ. ५अ, संपूर्ण. पार्श्वजिन होरी, मु. रूपचंद, पुहिं, पद्य, आदि पासकुमार होरि खेले नरजिन; अति हरि दीनानाथ दयाल, गाथा- ७. , ३३. पे. नाम. नेमिजिन गीत, पृ. ५अ, संपूर्ण. मु. रूपचंद, रा., पद्य, आदि: होली खेलों नीरंजनलाल; अंति: रूपचंद० पुगवा द्यो किरतार, गाथा-४. ३४. पे. नाम, वैराग्य सज्झाय, पू. ५अ, संपूर्ण. औपदेशिक पद, मु. रूपचंद, पुहिं., पद्य, आदि: हक मरणां हक जाणां अति: रुपचंद० हरदम साहिब जांना, गाथा-४. ३५. पे. नाम. पार्श्वजिन गीत, पृ. ५अ, संपूर्ण. Page #393 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra ३७८ www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची पार्श्वजिन स्तवन, मु. रूपचंद, मा.गु., पद्य, आदि मन भावन जिन तनमन तोसे, अंति रूपचंद० राह मा रल्यो रे, गाथा - ३. ३६. पे. नाम. साधारणजिन गीत, पृ. ५अ-५आ, संपूर्ण. मु. रूपचंद, मा.गु., पद्य, आदि नीरंजन ताहरें नेहडले; अति रूपचंद० प्रीत बंधाणी रे, गाथा-३. ३७. पे. नाम. साधारणजिन स्तवन, पृ. ५आ, संपूर्ण. मु. रूपचंद, पुहिं., पद्य, आदि नीरंजन अयार छे रे मेरा अति: रुपचंद० देव न दुजो ओर, गावा-५. ३८. पे नाम. आध्यात्मिक पद, पृ. ५आ, संपूर्ण मु. आनंदघन, पुहिं., पद्य, वि. १८वी, आदि: आतम अनुभव रीत वरि री; अंति: आनंदघन सरवर वंग धरी री, गाथा-३. ३९. पे नाम आध्यात्मिक पद, पृ. ५आ, संपूर्ण, मु. आनंदघन, पुहिं., पद्य, वि. १८वी, आदि: चेतन चतुर चोगांन लरी री; अंति: रहै आनंदघन पद पकरी री, गाथा-३. ४०. पे. नाम आध्यात्मिक पद, पृ. ५आ, संपूर्ण मु. आनंदघन, मा.गु., पद्य, आदि पियविन निसदिन अंति: आनंदधन पीउंख घरी री, गाथा-३. ४१. पे. नाम. आध्यात्मिक पद, पृ. ५आ-६अ, संपूर्ण. मु. आनंदघन, पु,ि पद्य, वि. १८वी, आदि परम नरममति और न भावै; अति कहा कहु ढोल बजावै, गाथा-३. ४२. पे नाम आध्यात्मिक पद, पृ. ६अ, संपूर्ण. मु. आनंदघन, पु,ि पद्य, वि. १८वी, आदि उगौरी भगौरी लगौरी जगौरी अति आनंदघन उतारण नाव मगौरी, गाथा - ३. ४३. पे. नाम. आध्यात्मिक पद, पृ. ६अ, संपूर्ण. मु. आनंदघन, पुहिं., पद्य, वि. १८वी, आदि: तेरी हु तेरी हु तेरी हु; अंति: तो गंग तरंग वहूं री, गाथा - ३. ४४. पे नाम. आध्यात्मिक पद, पृ. ६अ, संपूर्ण. मु. आनंदघन, पुहिं, पद्य, वि. १८वी, आदि मेरी तु मेरी तु अति आनंदघन पद केल करी री, गाथा-३. ४५. पे. नाम. साधुगुण सज्झाय, पृ. ६अ, संपूर्ण. मु. सुमतिविजय, मा.गु., पद्य, आदि: सो जोगीसर सेवीयें जिणमन; अंति: सुमतिविजय० जांण नगीना, गाथा-४. ४६. पे नाम औपदेशिक सज्झाय, पृ. ६अ, संपूर्ण. वा. जिनराज, मा.गु., पद्य, आदि सोवन की चिरीयां नांही छे, अंतिः जिनराज शिरसूर सभांही छे, गाथा ५. ४७. पे. नाम. औपदेशिक पद, पृ. ६अ, संपूर्ण. जै.क. बनारसीदास, पुहिं., पद्य, वि. १७वी, आदि: तूं भ्रम भूल नरे प्राणी; अंति: बनारसी ना कर होडि विरांनी, गाथा-२. ४८. पे. नाम. औपदेशिक सज्झाय, पृ. ६आ, संपूर्ण. क. गद, पुहिं., पद्य, आदि: हंस गति गमनी युं देह; अंति (-) (अपूर्ण, पू. वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण. मात्र प्रथम गाथा लिखी है.) ४९. पे नाम औपदेशिक सज्झाय, पृ. ६आ, संपूर्ण औपदेशिक कवित्त संग्रह*, पुहिं., मा.गु., पद्य, आदि: समकीत दृष्टी जीवडा; अंति: साभलवे दाता० वीपत्ति, गाथा-१०. ५०. पे. नाम. शाश्वतजिन स्तवन, पृ. ६आ, संपूर्ण. आ. जिनचंद्रसूरि, मा.गु., पद्य, आदि च्यार तीर्थंकर ऋषभानन; अंतिः प्रणमै सदा जिनचंद्रसूरए गाथा ५. ५१. पे नाम गौतमस्वामि स्तवन, पू. ६ आ-७अ, संपूर्ण. गौतमस्वामी स्तवन, मा.गु., पद्य, आदि (अपठनीय); अंति सेवा लिखमी पार्चे रे, गाथा-५. ५२. पे नाम शीतलजिन स्तवन, पृ. ७अ, संपूर्ण, . जिनविजय, मा.गु., पद्य, आदि: शीतलजिन सहिजानंदी थयो; अंति: समावै जिनविजय आनंद सुहावै, गाथा-५. ५३. पे. नाम. शत्रुजयतीर्थ स्तवन, पृ. ७अ, संपूर्ण. मु. मु. न्यायसागर, मा.गु., पद्य, आदि उंचा रे गढसेत्रुज अति बाधे अविहड रंग हो, गाथा-७. For Private and Personal Use Only Page #394 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२६ ३७९ ५४. पे. नाम, महावीरजिन स्तवन, पृ. ७आ, संपूर्ण. मु. ज्ञानविमल, पुहिं., पद्य, आदि: महावीर विना वाणी कौन; अंति: ज्ञानविमल० गीत गावे रे, गाथा-१०. ५५. पे. नाम. औपदेशिक सज्झाय, पृ. ८अ-८आ, संपूर्ण. औपदेशिक सज्झाय-मनवशीकरण, म. आनंदघन, पुहि., पद्य, वि. १८वी, आदि: उदय भर्ण के कारणे; अंति: आनंदधन०भवीआ सेवो भगवान रे, गाथा-५. ५६. पे. नाम, नेमिजिन स्तवन, पृ. ८आ, संपूर्ण. मु. मोहनविजय, मा.गु., पद्य, आदि: ओत्तरवालीओ नहि धनमाल; अंति: नेह निर्वाहो स्यावास, गाथा-७. ५७. पे. नाम. नेमराजिमती पद, पृ. ८आ, संपूर्ण. मु. रूपचंद, पुहिं., पद्य, आदि: मत जाओ रे प्रीया; अंति: रूपचद० भये संयम भावमा, गाथा-५. ५८. पे. नाम. साधारणजिन स्तवन, पृ. ८आ, संपूर्ण. वा. रामविजय, पुहि.,मा.गु., पद्य, आदि: प्रभु तोरी वाणी सुणी; अंति: राखो मुझ तुझ ध्यान, गाथा-९. ५९. पे. नाम. शांतिजिन स्तवन, प.८आ-९अ, संपूर्ण. उपा. यशोविजयजी गणि, पुहिं., पद्य, वि. १८वी, आदि: हम मगन भयें प्रभु ध्यांन; अंति: जीत लीओ मेदान मे, गाथा-६. ६०. पे. नाम. महावीरजिन स्तवन, पृ. ९अ, संपूर्ण.. मु. रंगविजय, मा.गु., पद्य, आदि: प्रभुजी वीरजिणंदने; अंति: आनंद हो सुपसाय हो, गाथा-५. ६१. पे. नाम. धर्मजिन स्तवन, पृ. ९अ-९आ, संपूर्ण. मु. उदय, मा.गु., पद्य, आदि: बेडलडे भार घणो छे राज; अंति: उदय० जिनपद सेवामां घरज्यौ, गाथा-९. ६२. पे. नाम. अभिनंदनजिन स्तवन, पृ. ९आ, संपूर्ण.. मु. कवियण, मा.गु., पद्य, आदि: अभिनंदनजिन अरज अमारी; अंति: कवियण०सबला कीधी राजी, गाथा-७. ६३. पे. नाम, पार्श्वजिन स्तवन, पृ. ९आ-१०अ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तवन-गोडीजी, म. वसता, रा., पद्य, आदि: जोर बन्यो जोर बन्यो; अंति: वसता० नीतमेव माहाराज, गाथा-८. ६४. पे. नाम. पार्श्वजिन स्तवन, पृ. १०अ, संपूर्ण.. पार्श्वजिन स्तवन-गोडीजी, म. जिनचंद्र, पहिं., पद्य, वि. १७२२, आदि: अमल कमल दल धवल विराजै; अंति: जिनचंद० फली मन आस, गाथा-९. ६५. पे. नाम. पार्श्वजिन स्तवन, पृ. १०अ-१०आ, संपूर्ण. मु. भीमविजय, मा.गु., पद्य, आदि: मुझ मन प्रभु मुख मटकें; अंति: भीम० काच नें कटकेमो, गाथा-७. ६६. पे. नाम. औपदेशिक श्लोक संग्रह, पृ. १०आ, औपदेशिक श्लोक संग्रह, पुहि.,प्रा.,मा.गु.,सं., पद्य, आदि: चितायनास्य ते ज्ञानं; अंतिः विद्यार्धेदददश वर्धयेत, श्लोक-४. ६७. पे. नाम. महावीरजिन स्तवन, पृ. १०आ, संपूर्ण.. मु. उदयरत्न, मा.गु., पद्य, वि. १७९०, आदि: जगपति तु तो देवाधी हो देव; अंति: भगवंत चोविसमा भेटीया, गाथा-५. ६८. पे. नाम. शत्रुजयतीर्थ स्तवन, पृ. १०आ-११अ, संपूर्ण. आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: मोरा आतमराम कुण दिन; अंति: दिन परमानंद पद पासु, गाथा-७. ६९. पे. नाम. विजयदेवसूरि स्तुति, पृ. ११अ, संपूर्ण. मा.गु., पद्य, आदि: सोवनगढ ऊपरिं वीर; अंति: जयदेवसूरि नित समरं, गाथा-१. ७०. पे. नाम. साधारणजिन स्तवन, पृ. ११अ, संपूर्ण. मु. कीर्तिविजय, मा.गु., पद्य, आदि: मीथ्या ओध मारग जण भूला; अंति: कीतीवीजय० आपो आपिं भलीइ, गाथा-७. ७१. पे. नाम, पार्श्वजिन स्तवन, पृ. ११अ-११आ, संपूर्ण. मंपणे For Private and Personal Use Only Page #395 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra ३८० www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची पार्श्वजिन स्तवन-मन, मु. उदय, मा.गु., पद्य, आदि: आगल पाछलिं मोहकी फोजां; अंति: उदय० बीराजो सुधारी हो, गाथा - १४. ७२. पे नाम, आदिजिन स्तवन, पृ. ११९आ, संपूर्ण. मोहनविजय, रा., पद्य, वि. १८वी, आदि मरुदेवी केरा जाया राज्य; अति इम मोहनविजय गुणगावा, गाथा-५. ७३. पे. नाम. संभवजिन स्तवन, पृ. ११आ, संपूर्ण. मु. मु. सुमतिविजयशिष्य, मा.गु., पद्म, वि. १७६०, आदि मुनि संभवजीनस्युं प्रीत अंतिः सीस विलमां धारो रे, गाथा- ७. ७४. पे. नाम, पार्श्वजिन स्तवन, पू. ११आ- १२अ संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तवन-शंखेश्वर, मु. कृष्णविजय - शिष्य, मा.गु., पद्य, आदि: प्यारा लागो पासजी आतिमनो; अंति: इम कृष्णविजयनो सीस, गाथा- ७. ७५. पे. नाम. पल्लविया पार्श्वजिन स्तवन, पृ. १२अ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तवन- पल्लविया, मु. रंगविजय, मा.गु., पद्य, आदि: परम पुरुष परमेसरु रे; अंति: अविचल पद नीरधार, गाथा-७. ७६. पे. नाम. पार्श्वजिन स्तवन, पृ. १२अ - १२आ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तवन-गोडीजी, मा.गु., पद्य, आदि: अमा आंओ नेहडो कंदी; अंति: सामी गड्यो खिली हुआ खीर, गाथा-६. ७७. पे नाम. आदिजिन स्तवन, पृ. १२आ, संपूर्ण. मु. रामविजय, मा.गु., पद्म, आदि आगि आज बनी छे रे आठ अंतिः राम नमे करी जोडि रे, गाथा-८. ७८. पे. नाम. नेमराजिमती स्तवन, पृ. १२आ, संपूर्ण. पंडित. मानविजय, मा.गु., पद्य, आदि: पोपटडा संदेसो रे कहेज्यो; अंति: मानवि० जाउं बलीहारी, गाथा-७. ७९. पे. नाम. शत्रुजयतीर्थ स्तवन, पृ. १२आ- १३अ संपूर्ण वा. रामविजय, मा.गु., पद्य, आदि नगरी देखाउ रे जिन अंति: अनुभव ल्यो सुविचारी, गाथा-४. ८०. पे नाम. साधारणजिन पूजा गीत, पृ. १३अ, संपूर्ण. मा.गु., पद्य, आदि प्रभुपदनी सेवा कुन करे, अंतिः सरखी सेवा करतां सेजे तरे, गाथा- ३. ८१. पे. नाम. आध्यात्मिक गीत, पृ. १३अ, संपूर्ण. मु. ज्ञानविमल, मा.गु., पद्य, आदि जोके घट में अनुभव उदयो; अंतिः ज्ञानविमल० सीस घरे रे, गाथा- ६. ८२. पे नाम. शत्रुंजयतीर्थ स्तवन, पू. १३अ, संपूर्ण. मु. समयसुंदर, मा.गु., पद्य, आदि: क्युं न भए हम मोर; अंति: समयसुंदर० जनम मरण नहिं छोर, गाथा - ६. ८३. पे. नाम. आदिजिन स्तवन, पृ. १३अ - १३आ, संपूर्ण. मु. रामविजय, मा.गु., पद्य, आदि जोवा दरीसण आदिसर को अति सीस रामविजय कहे निसदिस, गाथा ५. ८४. पे. नाम राजिमतीसती स्तवन, पृ. १३आ, संपूर्ण. राजिमतीसती सज्झाय, मा.गु., पद्य, आदि: सांभल रे तु सजनी; अति वालो लीधा कंथन नाय जी, गाथा ७. ८५. पे नाम, पार्श्वजिन स्तवन, पृ. १३-१४अ, संपूर्ण, पार्श्वजिन स्तवन- भटेवा, मु. लब्धिविजय, मा.गु., पद्य, आदि श्रीभटेवो पासजी भलई; अंति: लब्धिविजय० त्रिभुवन राज रे, गाथा - १३. ८६. पे. नाम, पार्श्वजिन स्तवन, पू. १४अ १४आ, संपूर्ण. मु. उदय, मा.गु., पद्य, आदि वादल दहदिशे उनह्यो सखी अंतिः प्रतपो जगि जाण रे, गाथा-८. ८७. पे नाम, पार्श्वजिन स्तवन, पृ. १४आ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तवन-गोडीजी, उपा. उदयरत्न, मा.गु., पद्य, आदि: प्यारो पारसनाथ, अंति: उदयरतन० आवे बहु धसमसिया, गाथा-४. ८८. पे नाम, पार्श्वजिन स्तवन, पू. १४-१५अ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तवन- चिंतामणि, मा.गु., पद्य, आदि चिंतामणी० प्रभु मारा अरज; अंति: गांमे हे धुपे जिन गुण गाय, गाथा-५. For Private and Personal Use Only Page #396 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२६ ३८१ ८९. पे. नाम. पार्श्वजिन स्तवन, पृ. १५अ, संपूर्ण. ग. वनीतविजय, मा.गु., पद्य, आदि: पास प्रभुने वंदवान रे; अंति: एतो वनीत नमें करजोड रे, गाथा-७. ९०. पे. नाम. आध्यात्मिक सज्झाय, पृ. १५अ-१५आ, संपूर्ण. औपदेशिक सज्झाय, ग. वनीतविजय, म.,मा.गु., पद्य, आदि: प्यारें निरंजीन पास छे; अंति: सेवें घटमांयोति प्रकास छे, गाथा-८. ९१. पे. नाम. आध्यात्मिक सज्झाय, पृ. १५आ, संपूर्ण. ग. वनीतविजय, मा.गु., पद्य, आदि: कांसी वजाडे कोण छे चेतन; अंति: वनीतने सुख अनुप छे, गाथा-७. ९२. पे. नाम, सिद्धाचल स्तवन, पृ. १५आ, संपूर्ण. शत्रुजयतीर्थ स्तवन, पंन्या. पद्मविजय, मा.गु., पद्य, आदि: जात्रा नवाणुं करीइं; अंति: पद्म कहे भव तरीइं, गाथा-५. ९३. पे. नाम. शत्रुजयतीर्थ स्तुति, पृ. १५आ-१६अ, संपूर्ण. मु. कीर्तिविमल, मा.गु., पद्य, आदि: आगई श्रीसिद्धाचल स्वामि; अंति: देवविमल० विमल सुख पावे जी, गाथा-४. ९४. पे. नाम, आध्यात्मिक सज्झाय, पृ. १६अ-१६आ, संपूर्ण. मा.गु., पद्य, आदि: हाथा छुटी खुह पडी; अंति: भाई पूछी पाछै नार पराई, गाथा-२८. ९५. पे. नाम. औपदेशिक दोहा संग्रह, पृ. १६आ, संपूर्ण. पुहि.,प्रा.,मा.गु.,सं., पद्य, आदि: चारण कांइ सीरजीया चतुरभुज; अंति: बोहत न सोभा लहत है, गाथा-२. ९६. पे. नाम. नेमराजिमती स्तवन, पृ. १६आ-१७आ, संपूर्ण. पं. धर्मकुशल, मा.गु., पद्य, आदि: सकल मनोरथ पुरणो रे लाल; अंति: धर्मकुसल आणंद करो, गाथा-३१. ११९६१३. चतुसरण, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १०, ले.स्थल. जावद, प्रले. मु. धर्मकुशलगणि, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२६४१२, ४४३०-३४). चतःशरण प्रकीर्णक, ग. वीरभद्र, प्रा., पद्य, वि. ११वी, आदि: सावज्जजोगविरइ उक्कित्तण; अंति: कारणं निव्वुइ सुहाणं, गाथा-६३. ११९६१४. नवस्मरणादि स्तोत्र संग्रह, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १६-५(७ से ११)=११, कुल पे. ४, दे., (२६.५४११.५, ९४३७). १. पे. नाम. नवस्मरण, पृ. १अ-६आ, अपूर्ण, पू.वि. प्रारंभ के पत्र हैं. म. भिन्न भिन्न कर्तृक, प्रा.,सं., प+ग., आदि: नमो अरिहंताणं० हवइ मंगलम्; अंति: (-), (पू.वि. अजितशांति की गाथा-४० अपूर्ण तक है., वि. संतिकरम् स्तोत्र नहीं है.) २. पे. नाम. बृहत्शांति स्तोत्र, पृ. १२अ-१५अ, अपूर्ण, पू.वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं., वि. १९१२, श्रावण शुक्ल, १४, रविवार, प्रले. मु. सिवचंद, प्र.ले.प. सामान्य. बहत्शांति स्तोत्र-खरतरगच्छीय, सं., प+ग., आदिः (-); अंति: जैनं जयति शासनम, (प.वि. अतीतचोवीसी जिननाम से ३. पे. नाम. लघुशांति स्तोत्र, पृ. १५अ-१६आ, संपूर्ण. लघशांति, आ. मानदेवसूरि, सं., पद्य, आदि: शांति शांतिनिशांत; अंति: (१)सूरिः श्रीमानदेवश्च, (२)जैनं जयति शासनम्, श्लोक-१९. ४. पे. नाम. कल्याणमंदिर स्तोत्र, पृ. १६आ, अपूर्ण, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. आ. सिद्धसेनदिवाकरसूरि, सं., पद्य, वि. १वी, आदि: कल्याणमंदिरमुदारमवद्यभेदि; अंति: (-), (पू.वि. श्लोक-५ अपूर्ण तक है.) ११९६१५. (+) जंबूस्वामी कथा, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. १३, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं.,प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२५.५४१२.५, ११-१४४४२). जंबूस्वामी कथा, मा.गु., गद्य, आदिः (१)सप्रभावं जिनं, (२)त्रैलोक्य नायक सकल सौख्य; अंति: (-), (पू.वि. जंबूस्वामी की पत्नि कनकवती कथा प्रसंग अपूर्ण तक है.) For Private and Personal Use Only Page #397 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ३८२ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ११९६१६. (+) तत्त्वविचार श्लोकादि संग्रह सह अर्थ, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २, कुल पे. ६, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२५.५४१२, १२-१५४४४). १.पे. नाम. विचार काव्य, पृ. १अ, संपूर्ण. तत्त्वविचार श्लोक, सं., पद्य, आदि: तत्त्वानि९ व्रत५; अंति: ज्ञेया सुधीभिः सदा, श्लोक-१. २. पे. नाम, धर्ममूल श्लोक, पृ. १अ, संपूर्ण. धर्ममल श्लोक-जिनोपदिष्ट, सं., पद्य, आदि: त्रैकाल्यं३ द्रव्यषङक६; अंति: यस्य वैशद्ध दृष्टिः, श्लोक-१. ३. पे. नाम. सूक्ष्मनिगोद विचार सह अर्थ, पृ. १अ, संपूर्ण. सूक्ष्मनिगोद विचार, प्रा., पद्य, आदि: लोए असंखजोयण माणे; अंति: तहत्ति जिणवृत्तं, गाथा-३. सूक्ष्मनिगोद विचार-अर्थ, मा.गु., गद्य, आदि: लोक असंख्याता योजन प्रमाण; अंति: भणी हियामांहि साचौ मानवौ. ४. पे. नाम, अष्टांगनिमित्त ज्ञान सह टबार्थ, पृ. १अ, संपूर्ण. अष्टांगनिमित्त ज्ञान, सं., पद्य, आदि: आंतरिक्ष१ भौमर अंग३ स्वर४; अंति: ८ एवमष्टनिमित्त ज्ञानम्, श्लोक-१. __ अष्टांगनिमित्त ज्ञान-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: आकाश वार्ता कहइ भौम धरती; अंति: अष्टांगनिमित्त ज्ञान कहइ. ५. पे. नाम. सुभाषित श्लोक संग्रह, पृ. १आ-२आ, संपूर्ण. सुभाषित श्लोक संग्रह *, पुहि.,प्रा.,मा.गु.,सं., पद्य, आदि: सकलकुशलवल्ली पुष्करावर्त; अंति: धर्म दोषो हि निश्चल, गाथा-३४. ६. पे. नाम. जैनधार्मिक श्लोक संग्रह, पृ. २आ, संपूर्ण. श्लोक संग्रह जैनधार्मिक, प्रा.,सं., पद्य, आदि: धनमर्जय काकस्थ धनमल; अंति: (-), श्लोक-७, (वि. अंतिमवाक्य खंडित है.) ११९६१९. (+) विविधबोल संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ३१, प्र.वि. संशोधित-टिप्पण युक्त विशेष पाठ-पदच्छेद सूचक लकीरें., जैदे., (२५.५४१२.५, २०४४५). विविधबोल संग्रह, मा.गु., गद्य, आदिः (१)दस प्रकारे सामाचारी, (२)पडिलेहण करवी१ उपाश्रय; अंति: छठो भाण दवार समत्तं. ११९६२०. (+#) बृहत्संग्रहणी, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ७, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२४४१२, १७४४१-५२). बृहत्संग्रहणी, आ. चंद्रसरि, प्रा., पद्य, वि. १२वी, आदि: नमिउं अरिहंताई ठिइ; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-२५० अपूर्ण तक है.) ११९६२१ (+) ज्ञानपंचमी देववंदनविधि, संपूर्ण, वि. १७१८, ज्येष्ठ कृष्ण, १०, मंगलवार, मध्यम, पृ. ८, ले.स्थल. अमदावाद, प्रले. मु. मगनीरांम; पठ. ग. रामचंद्र, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२४.५४१२, १३४३०-३५). ज्ञानपंचमीपर्व देववंदन विधिसहित, आ. लक्ष्मीसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: प्रथम बाजोठ उपरे तथा; अंति: विजयलक्ष्मी ___ शुभ हेत, देववंदनजोडा-५, गाथा-१५०. ११९६२२. (+) उत्तराध्ययनसूत्र सह टबार्थ व कथा संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १८९-१(१)=१८८, पृ.वि. प्रथम एक व अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित-पदच्छेद सूचक लकीरें., जैदे., (२६४१२.५, ६x२८-४६). उत्तराध्ययनसूत्र, मु. प्रत्येकबुद्ध, प्रा., प+ग., आदि: (-); अंति: (-), (पूर्ण, पू.वि. अध्ययन-१ गाथा-४ से अध्ययन-३६ गाथा-२६० अपूर्ण तक है.) उत्तराध्ययनसूत्र-टबार्थ *, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), पूर्ण. उत्तराध्ययनसूत्र-कथा संग्रह, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), अपूर्ण. ११९६२३. पाक्षिकसूत्र, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ५-४(१ से ४)=१, पू.वि. मात्र बीच का ही एक पत्र है., जैदे., (२५.५४१२, १३४३४). पाक्षिकसूत्र, हिस्सा, प्रा., प+ग., आदिः (-); अंति: (-), (पृ.वि. "भित्तिवा सिलंवा पाठ से पचक्खाय पावकमो" पाठ तक For Private and Personal Use Only Page #398 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२६ ३८३ ११९६२४. (#) पाक्षिकसूत्र व बोल संग्रह, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ७-२ (१ से २) = ५, कुल पे. २, प्र.वि. अशुद्ध पाठ. मूल पाठ का अंश खंडित है, दे., (२५x१२.५, ११-१९x४३). १. पे नाम. पाक्षिक सूत्र, पृ. ३अ-७अ, अपूर्ण, पू.वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं. पाक्षिकसूत्र, हिस्सा, प्रा., प+ग, आदि (-); अंति (-), (प्रतिअपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., प्रथम सूत्र अपूर्ण से है व छजीवनी अध्ययन तक लिखा है.) २. पे. नाम. बोल संग्रह, पृ. ७अ-७आ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. बोल संग्रह *, प्रा.,मा.गु.,सं., गद्य, आदि: दोय श्रावकमेइ तीन; अंति: (-), (पू.वि. "तीर्थंकरजीरी आगत पाठांश "तक है.) ११९६२५. (+) साधुश्रावकप्रतिक्रमणसूत्र-स्थानकवासी सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ११, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र. वि. संशोधित., जैदे., (२५.५X१२, ३-१०X३५). साधुश्रावकप्रतिक्रमणसूत्र-स्थानकवासी, संबद्ध, प्रा. मा.गु. प+ग, आदि तिक्खुत्तो अग्राहिणं पवाहिण; अंति: (-), (पू.वि. आवश्यक ४ अपूर्ण तक है.) साधु श्रावकप्रतिक्रमणसूत्र - स्थानकवासी-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: तीन वार करणोजी भणी० आवृत; अंतिः (-)११९६२६. (+) प्रतिक्रमणसूत्र व जीवविचार प्रकरण, अपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ३१-६ (१ से ६) = २५, कुल पे. २, प्र.वि. संशोधित-पदच्छेद सूचक लकीरें., जैदे., (२६x१२.५, ९४२५). १. पे. नाम. प्रतिक्रमणसूत्र, पृ. ७अ - ३१अ, अपूर्ण, पू. वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं. पंचप्रतिक्रमणसूत्र संग्रह -तपागच्छीय, संबद्ध, प्रा. मा.गु., सं., प+ग, आदि (-); अति: वंदामि नित्थार पारगा होह, (पू.वि. पगाम सज्झाय सूत्र से है . ) २. पे. नाम. जीवविचार प्रकरण, पृ. ३१अ, अपूर्ण, पू.वि. मात्र प्रथम पत्र है. आ. शांतिसूरि, प्रा., पद्य वि. ११वी, आदि भुवणपईवं वीरं नमिऊण अति (-), (पू.वि. गाथा ४ अपूर्ण तक है.) ११९६२८ (+) कल्पसूत्र सह टीका, अपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पू. २४६-२२३(१ से २२३) = २३. पू. वि. बीच के पत्र हैं... प्र.वि. संशोधित, जैवे. (२६१२, ६x४२). कल्पसूत्र, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., गद्य, आदि (-); अति (-) (पू.वि. सूत्र- १७२ अपूर्ण से सूत्र- १८३ व्याख्यान ७-नेमिजिन चरित्र तक है.) कल्पसूत्र टीका, सं., गद्य, आदि (-); अति (-). ११९६२९ (+) वैद्यवल्लभ सह टवार्थ, संपूर्ण वि. १९वी मध्यम, पृ. १३, प्र. वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ- संशोधित, जैदे., , (२६.५X१२, ७-११X३०-४० ). वैद्यवल्लभ, मु. हस्तिरुचि, सं., पद्य, वि. १७२६, आदि: सरस्वतीं हृदि; अंति: विनिर्मिता स्वयम्, विलास-९, श्लोक-३२६. वैद्यवल्लभ-टबार्थ *, मा.गु., गद्य, आदि: श्री सारदाप्रतइ हीयै; अंति: वधै मुरादिसाह आपकाधी. ११९६३०. (+) नवतत्वप्रकरण सह टवार्थ, संपूर्ण, वि. १८६९ भाद्रपद कृष्ण, ३, बुधवार, मध्यम, पृ. १६, प्रले. मु. भाग्यविजयगणि (गुरु पं. रविविजयगणि); गुपि. पं. रविविजयगणि (गुरु पं. गंगविजयगणि); पं. गंगविजयगणि (गुरु पं. हंसविजयगणि); पं. हंसविजयगणि (गुरु पं. लब्धिविजयगणि) पं. लब्धिविजयगणि (गुरु पं. रंगविजयगणि) पं. रंगविजयगणि, प्र.ले.पु. विस्तृत, प्र. वि. हुंडी : नक्तत्व, टिप्पण युक्त विशेष पाठ संशोधित पदच्छेद सूचक लकीरें, जैवे. (२५.५x१२, ३४३२). नवतत्त्व प्रकरण ६० गाथा, प्रा., पद्य, आदि: जीवा१ अजीवा २ पुन्नं३; अंति: लहिओ श्रीधम्मसुरेहिं, गाथा- ६५, संपूर्ण. नवतत्त्व प्रकरण ६० गाथा-टवार्थ, मा.गु., गद्य, आदि जीव कहतां च्यार अंति: आत्माने शुद्ध करे, (अपूर्ण, पू. वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण. गाथा १६ तक व गाथा ६३-६४ तक लिखा है.) ११९६३१ (+) वरदत्तगुणमंजरी कथा सह टवार्थ, संपूर्ण वि. १८५०, मार्गशीर्ष कृष्ण, ७, रविवार, मध्यम, पू. १६, ले. स्थल पाडीवनगर, प्रले. पं. राजिंद्रविजय (गुरु पं. फतेविजय); गुपि. पं. फतेविजय (गुरु पं. सुमतिविजय) पं. सुमतिविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. हुंडी: ज्ञानपांच, ज्ञानपं०, ज्ञानपंच. कुंथनाथजी प्रसादात्., संशोधित., जैदे., (२५X१२, ६x२९). For Private and Personal Use Only Page #399 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra ३८४ www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची वरदत्तगुणमंजरी कथा - सौभाग्यपंचमीमाहात्म्यविषये, ग. कनककुशल, सं., पद्य वि. १६५५, आदि: श्रीमत्पार्श्वजिन; अंतिः लिखिता तेरेव मेडतानगरे, श्लोक - १५०. वरदत्तगुणमंजरी कथा-सौभाग्यपंचमीमाहात्म्यविषये-टबार्थ *, मा.गु., गद्य, आदि: श्रीपार्श्वनाथ प्रते; अंति: मेडतानगरने विषं कथा रची, जैदे., ११९६३२. भक्तामर काव्योपरिमंत्र गुण सहित, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ३, प्र. वि. हुंडी : भक्तामरमंत्र ऋद्धि मंत्र गुण., (२६.५x१२, १२-१६४५४-६०). भक्तामर स्तोत्र - श्लोक ४८ ऋद्धिमंत्रादि, संबद्ध, सं., गद्य, आदि: णमोजिणाणं हाँ ह्रीँ; अंति: महासंप्रभाविकः सत्यमिति. ११९६३३. (+) कर्मग्रंथ १-४, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ६, कुल पे. ४, प्र. वि. संशोधित., जैदे., (२५.५X१२, १३x४१-४४). 3 १. पे नाम. प्रथम कम्र्म्मविपाक ग्रंथ, पृ. १आ-४अ, संपूर्ण कर्मविपाक नव्य कर्मग्रंथ-१, आ. देवेंद्रसूरि, प्रा., पद्य, वि. १३वी - १४वी, आदि: सिरिवीरजिणं वंदिय; अंति: लिहियं देविंदसूरीहिं, गाथा- ६२. २. पे. नाम. द्वितीय कर्म्मग्रंथ, पृ. ४अ - ५आ, संपूर्ण. कर्मस्तव नव्य कर्मग्रंथ-२, आ. देवेंद्रसूरि, प्रा., पद्य, वि. १३वी - १४वी, आदि: तह थुणिमो वीरजिणं; अंति: देविंदवंदियं नमह तं वीरं, गाथा- ३४. ३. पे. नाम. बंधसामित्वं तृतीय, पृ. ५आ-६आ, संपूर्ण. बंधस्वामित्व नव्य कर्मग्रंथ-३, आ. देवेंद्रसूरि, प्रा., पद्य, वि. १३वी १४वी, आदि बंधविहाणविमुक्कं अंति देविंदसूरि० सोठे, गाथा २५. - ४. पे. नाम चतुर्थ कर्मग्रंथ, पृ. ६आ, संपूर्ण. षडशीति नव्य कर्मग्रंथ-४ आ. देवेंद्रसूरि, प्रा., पद्य, वि. १३वी १४वी आदि नमिअ जिणं जिअमग्गण; अंति: (-), (प्रतिअपूर्ण, पू. वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., गाथा-४ अपूर्ण तक लिखा है.) ११९६३४. (+) गौतमपृच्छा सह टबार्थ व कथा संग्रह, संपूर्ण वि. १८५९, फाल्गुन शुक्ल, ७, सोमवार, श्रेष्ठ, पृ. ५५, ले. स्थल. श्रीलासनगर, प्रले. पंन्या चतुरविजय (गुरु पंडित धनविजय, आणंदसूरिंगच्छ); गुपि, पंडित धनविजय (गुरु पं. कृपाविजय पंडित, आणंदसूरिगच्छ); पं. कृपाविजय पंडित; लिख. पं. भांणविजय, प्र.ले.पु. मध्यम, प्र. वि. हुंडी : गौतमपृछा, गौतमपृ०. श्री आदीनाथजी श्रीमहावीरजी प्रसादात्., संशोधित., प्र.ले. श्लो. (१) यादृशं पुस्तकं दृष्ट्वा, (१४५८) जलाद्रक्षे तलाक्षे, (१४५९) मंगलं लेखकानं च, जैदे., (२५.५X१२, १६x४० ). गौतमपृच्छा, प्रा., पद्य, आदि नमिऊण तित्खनाहं अंति: गोयमपृछा महत्योवि, प्रश्न- ४८, गाधा- ६५. गौतमपृच्छा - टवार्थ, मा.गु., गद्य, आदि नत्वा कहतां श्रीमहावीर, अंतिः पिणनाम मात्र कह्या छई. गौतमपृच्छा-कथा संग्रह*, मा.गु., गद्य, आदि: वसंतपुरनगरने विषे एक; अंति: राजेंद्र सुधाभूमण सेवीनी, कथा-४८. ११९६३५. (+) नवस्मरण, स्तुति व स्तोत्रादि संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ९-१ (१) ८, कुल पे. ६, अन्य पं. विवेकसागर, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. पदच्छेद सूचक लकीरें जैदे. (२५४१२, १७५४२-४६). , १. पे. नाम. नवस्मरण, पृ. २अ-८आ, अपूर्ण, पू.वि. प्रथम पत्र नहीं है. मु. . भिन्न भिन्न कर्तृक, प्रा., सं., प+ग., आदि: (-); अंति: अचिरान् मोक्षं प्रपद्यंते, स्मरण - ९, (पू. वि. पार्श्वनाथ स्तोत्र गाथा - १२ अपूर्ण से है.) २. पे नाम, लघुशांति, पृ. ८आ- ९अ, संपूर्ण वि. १८४७ कार्तिक शुक्ल, १४, प्रले. मु. खुश्यालहंस, प्र.ले.पु. सामान्य. आ. मानदेवसूरि, सं., पद्य, आदि शांति शांतिनिशांत अंति: धर्माण जइनं जइत सासनं, श्लोक १८. ३. पे. नाम. पार्श्वजिन स्तोत्र, पृ. ९अ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तोत्र-शंखेश्वरमंडन, सं., पद्य, आदि: ॐ नमः पार्श्वनाथाय; अंति: भ्रातां पूरेमि वंछितनाथ, श्लोक-५. ४. पे. नाम. घंटाकर्णमहावीरदेव स्तोत्र, पृ. ९अ संपूर्ण. सं., पद्य, आदि रोगास्तत्र प्रणस्यतिः अति ते ठः ठः ठः स्वाहा, श्लोक-४. ५. पे. नाम. २४ जिन नाम, पृ. ९अ, संपूर्ण. For Private and Personal Use Only Page #400 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२६ २४ जिन नाम - वर्तमान, मा.गु. गद्य, आदि ऋषभदेवजी १ अजितनाथजी अति जिनास्तोता शांतिकरा. ६. पे. नाम. शीलवती स्तुति, पृ. ९आ, संपूर्ण. १६ सती स्तुति, सं., पद्य, आदि: ब्राह्मी चंदनबालिका, अंति: कुर्वंतु वो मंगलं, श्लोक-१. ११९६३६. सिरिसिरिवाल कहा सह अवचूरि, अपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पू. १६. पू. वि. अंत के पत्र नहीं हैं.. प्र. वि. हंडी: श्रीपालच०. जै. (२६४१२, १५X४२). 3 "" "" Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir सिरिसिरिवाल कहा, आ. रत्नशेखरसूरि, प्रा., पद्य वि. १४२८ आदि अरिहाइ नवपयाई झायित अति: (-), (पू.वि. गाथा - १४३ तक है.) सिरिसिरिवाल कहा-अवचूरि, आ. हेमचंद्रसूरि, सं., गद्य, आदि: ध्यात्वा नवपदीं; अंति: (-). ११९६३७ (४) सप्तस्मरण, अपूर्ण, वि. १८८४ आश्विन शुक्ल, १०, रविवार, मध्यम, पृ. २२- १ ( १ ) = २१, ले. स्थल, कालद्रीनगर, प्रले. मु. गंगाराम (गुरु मु. मानविजय); गुपि. मु. मानविजय (गुरु मु. अजितविजय); मु. अजितविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. हुंडी: सप्तस्मर्णा, भक्तामरस्तोत्र, बृहद्शांति, लघुशांति, महावीरजिन प्रासादात्., मूल पाठ का अंश खंडित है, प्र.ले. श्लो. (६६४) जादृष्टं पुस्तकं जस्या, जैदे., (२७.५X१२, ५X४२-४५). सप्तस्मरण-खरतरगच्छीय, मु. भिन्न भिन्न कर्तृक, प्रा., पद्य, आदि: (-); अंति: जैनं जयति शासनम्, स्मरण-७, (पू.वि. शांतिकर स्तोत्र गाथा-४ अपूर्ण से है . ) ११९६३८. (+) पाशाकेवली की भाषा, संपूर्ण, वि. २०वी श्रेष्ठ, पृ. ८, प्र. वि. संशोधित. वे. (२५.५x१२.५, ९-१३x३५-३९)पाशाकेवली-भाषा*, संबद्ध, मा.गु., गद्य, आदि: ॐ रीद्धि नमो भगवति; अंतिः इष्ट देवतानी पुजा करीजे. ११९६३९. (+) देवसिप्रतिक्रमण विधि व ४ शरण सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९९८, आषाढ़ शुक्ल, ९, मंगलवार, श्रेष्ठ, पृ. ६, कुल पे. २, ले. स्थल. विदासर, प्रले. मु. केवलचंद्र ऋषि, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. पदच्छेद सूचक लकीरें संशोधित. दे. (२५X१२.५. १६X३८). १. पे नाम प्रतिक्रमणसूत्र, पू. १२-६आ, संपूर्ण, देवसिप्रतिक्रमण विधि-खरतरगच्छीय, संबद्ध, प्रा., मा.गु.,सं., प+ग., आदि: इच्छामि० इच्छाकारेण; अंति: कोइ दोष लागो होय देवसि०, ३८५ २. पे. नाम मांगलिक, पृ. ६आ, संपूर्ण ४ शरणा सज्झाय, क. विजयभद्र, मा.गु., पद्य, आदि: पहिलो मंगलिक कहु हिव; अति विजयभद्र० जीवडो नवि लहै, गाथा - ६. ११९६४२. (#) शालिभद्रमुनि चौपाई, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २९-२१ (१,३,५,७,९ से १९,२२ से २७) = ८, पू.वि. बीच-बीच के पत्र हैं., प्र.वि. मूल पाठ का अंश खंडित है, मूल व टीका का अंश नष्ट है, जैदे., (२६x१२, ९X३८). शालिभद्रमुनि चौपाई. मु. मतिसार, मा.गु., पद्य, वि. १६७८, आदि (-); अंति (-), (पू. वि. ढाल १ की गाथा ८ अपूर्ण से शालिभद्र द्वारा वैभारगिरि उपर अणशण ग्रहण प्रसंग अपूर्ण तक है व बीच-बीच के पाठांश नहीं हैं.) ११९६४३. (०) दृष्टांतकथा संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पृ. ११. पू. वि. अंत के पत्र नहीं हैं. प्र. वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है. जैवे. (२६१३, २२४५१). दृष्टांत कथानक संग्रह, मा.गु., गद्य, आदि: एक राजा था बडा भारी था; अंति: (-), (पू.वि. कथा- ३७ अपूर्ण तक है.) ११९६४४. अमरकुमार सुरसुंदरी चौपाई, अपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १०, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. जैवे. (२६४१२, १३४३९). सुरसुंदरी चौपाई, मु. धर्मवर्धन, मा.गु., पद्य, वि. १७३६, आदि: सासण जेहनउ सलहियह, अंति (-), (पू.वि. खंड-२ 3 , ढाल-८ गाथा-६ अपूर्ण तक है.) स्वप्न विचार, मा.गु., गद्य, आदि: जे दिवसे काम कीधो हुवे ते; अंति: बीजे भवे मुक्ते जावे. २. पे. नाम. अंगलक्षण विचार, पू. ३आ-५आ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र नहीं है. ११९६४५. स्वप्नफल विचार व अंगलक्षण विचार, अपूर्ण, वि. १९९वी, मध्यम, पृ. ५, कुल पे. २, जैवे. (२६४१३, ११x२८)१. पे. नाम. स्वप्न फल विचार, पृ. १अ - ३अ, संपूर्ण. For Private and Personal Use Only Page #401 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ३८६ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची मा.गु., गद्य, आदि: जन्म थकी संघाते हुवे ते; अंति: (-), (पू.वि. अंक-१३, पाठ 'जेहना पग विसाल हुवे तो सदेव सुखी होवे' तक है.) ११९६४६. अंजनासुंदरी रास, अपूर्ण, वि. १८८५, कार्तिक शुक्ल, ११, बुधवार, मध्यम, पृ. १३-६(१ से ५,९)=७, प्रले. मु. मानमल (गुरु मु. नरसिंघदास); गुपि. मु. नरसिंघदास, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. हुंडी:अंजणानोरास., प्र.ले.श्लो. (८३९) जादृसं पुस्तकं दृष्ट्वा, जैदे., (२७४१२.५, २२४५९). अंजनासंदरी रास, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: भार्या जगतनी मात तो सती, ढाल-२२, गाथा-१६५, (पू.वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं., गाथा-७३ अपूर्ण से है.) ११९६४७. (+#) रत्नपालरत्नावती रास-दानाधिकारे, संपूर्ण, वि. १८२७, आषाढ़ कृष्ण, ११, गुरुवार, मध्यम, पृ. २६, प्रले. श्राव. राजसी दोसी, प्र.ले.प. सामान्य, प्र.वि. संशोधित. अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, जैदे., (२६.५४१२, १७७३६-४०). रत्नपालरत्नावती रास-दानाधिकारे, म. सूरविजय, मा.गु., पद्य, वि. १७३२, आदि: श्रीऋषभादिक जिन नम; अंति: ___ सूरविजय० जय जयकार हो, खंड-३ ढाल ३४, गाथा-७७३. ११९६४८. स्तुति व प्रतिक्रमणादिसूत्र संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ११-२(१,१०)=९, कुल पे. ३१, जैदे., (२६४१२, १३४३६). १. पे. नाम. मौनएकादशीपर्व स्तुति, पृ. २अ, अपूर्ण, पृ.वि. प्रथम पत्र नहीं है. मु. जिनचंद्र, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: जिनचंद्र० करो कल्याण, गाथा-४, (पू.वि. गाथा-३ अपूर्ण से है.) २. पे. नाम. चतुर्विंशतिजिन स्तुति, पृ. २अ, संपूर्ण, पे.वि. यह कृति इस प्रत के साथ एक से अधिक बार जुड़ी हुई है. साधारणजिन स्तुति, सं., पद्य, आदि: अविरल कुवल गवल; अंति: देवी श्रुतोच्चयम्, श्लोक-४. ३. पे. नाम. महावीरजिन स्तुति, पृ. २अ-२आ, संपूर्ण. आ. जिनलाभसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: मूरति मनमोहन कंचन; अंति: इम श्रीजिनलाभसूरिंद, गाथा-४. ४. पे. नाम. महावीरजिन स्तुति, पृ. २आ, संपूर्ण, पे.वि. यह कृति इस प्रत के साथ एक से अधिक बार जुड़ी हुई है. सं., पद्य, आदि: यदह्रिनमनादेव देहिन; अंति: नित्यं मम मंगलेभ्यः, श्लोक-४. ५. पे. नाम. पार्श्वजिन स्तुति, पृ. २आ-३अ, संपूर्ण... आ. जिनभक्तिसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: अश्वसेन नरेसर वामा; अंति: जिनभक्ति० बहु वित्त, गाथा-४. ६. पे. नाम. शीतलनाथ थुई, पृ. ३अ-३आ, संपूर्ण, पे.वि. यह कृति इस प्रत के साथ एक से अधिक बार जुड़ी हुई है. शीतलजिन स्तुति, आ. जिनलाभसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: त्रिभुवनजन नायक दायक; अंति: भणे श्रीजिनलाभसूरिंद, गाथा-४. ७. पे. नाम. प्रतिक्रमणसूत्र संग्रह, पृ. ३आ-५अ, संपूर्ण. पंचप्रतिक्रमणसूत्र-खरतरगच्छीय, संबद्ध, प्रा.,मा.गु.,सं., प+ग., आदि: जयउ सामीहि जयउ सामीहि; अंति: संघस्स समुन्नयनिमित्तं, (प्रतिपूर्ण, वि. कुछेक महत्त्वपूर्ण सूत्रों का संग्रह किया गया है.) ८. पे. नाम. पार्श्वजिन स्तुति, पृ.५अ-५आ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तुति-पलांकित जेसलमेरमंडन, सं., पद्य, आदि: समदमोत्तम वस्तु; अंति: जयतु सा जिनशासनदेवता, श्लोक-४. ९. पे. नाम, आदिजिन स्तुति, पृ. ५आ, संपूर्ण. सं., पद्य, आदि: युगादपुरुषंद्राय युगादि; अंति: कूष्मांडी कमलेक्षणा, श्लोक-४. १०. पे. नाम. महावीरजिन स्तुति, पृ. ५आ, संपूर्ण, पे.वि. यह कृति इस प्रत के साथ एक से अधिक बार जुड़ी हुई है. सं., पद्य, आदि: यदंहिनमनादेव देहिन; अंति: जनानवतु नित्यममंगलेभ्यः, श्लोक-४. ११. पे. नाम. ज्ञानपंचमीपर्व स्तुति, पृ.५आ-६अ, संपूर्ण. सं., पद्य, आदि: पंचानंतकसुप्रपंचपरमानंद; अंति: सिद्धायिकास्त्रायिका, श्लोक-४. १२. पे. नाम. अष्टमीतिथि स्तुति, पृ. ६अ, संपूर्ण. For Private and Personal Use Only Page #402 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२६ ३८७ अष्टमीतिथिपर्व स्तुति, मा.गु., पद्य, आदि: महामंगलं अष्ट सोहै; अंति: विहसंति कल्याणदाता, गाथा-४. १३. पे. नाम. एकादशी स्तुति, पृ. ६अ-६आ, संपूर्ण. मौनएकादशीपर्व स्तुति, सं., पद्य, आदि: अरस्य प्रव्रज्या नमिजिन; अंति: विस्मतहृदः क्षितौ, श्लोक-४. १४. पे. नाम. चतुर्विंशतिजिन स्तुति, पृ. ६आ, संपूर्ण. २४ जिन स्तुति, आ. जिनकुशलसूरि, सं., पद्य, आदि: नाभेयाजितवासुपूज्यसुविधि; अंति: एता प्रयच्छंतु ना, श्लोक-४. १५. पे. नाम. बीजतिथि स्तुति, पृ. ६आ-७अ, संपूर्ण. प्रा., पद्य, आदि: महीमंडणं पुन्नसोवन्न; अंति: देहि मे सुद्धनाणं, गाथा-४. १६. पे. नाम. महावीरजिन स्तुति, पृ. ७अ, संपूर्ण. सं., पद्य, आदि: वीरं देवं नित्यं; अंति: दद्यात्सौख्यम्, श्लोक-१. १७. पे. नाम. पार्श्वजिन स्तुति, पृ. ७अ, संपूर्ण.. सं., पद्य, आदि: हर्षनतासरनिर्जरलोकं; अंति: तीर्थपमज्जनस्वस्तनिजाघ, श्लोक-४. १८. पे. नाम. पार्श्वजिन स्तुति, पृ. ७अ-७आ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तुति-पलांकित, सं., पद्य, आदि: सर्वज्ञ ज्योतिरूपं; अंति: बुद्धिं वृद्धिं वैदुष्यम्, श्लोक-४. १९. पे. नाम. ऋषभजिन स्तुति, पृ. ७आ, संपूर्ण. ____ आदिजिन स्तुति, सं., पद्य, आदि: ऋषभनाथ भनाथ निभानन; अंति: तनुभातनुभातनु भारती, श्लोक-४. २०. पे. नाम. जिन स्तुति, पृ. ७आ-८अ, संपूर्ण. पंचतीर्थजिन स्तुति, सं., पद्य, आदि: श्रीशJजयमुख्यतीर्थ; अंति: सुरास्ते संतु भद्रंकराः, श्लोक-४. २१. पे. नाम. चतुर्विंशतिजिन स्तुति, पृ. ८अ, संपूर्ण, पे.वि. यह कृति इस प्रत के साथ एक से अधिक बार जुड़ी हुई है. साधारणजिन स्तुति, सं., पद्य, आदि: अविरल कुवल गवल; अंति: देवी श्रुतोच्चयम्, श्लोक-४. २२. पे. नाम. दीपमालिका स्तुति, पृ. ८अ-८आ, संपूर्ण. दीपावलीपर्व स्तुति, गच्छा. जिनचंद्रसूरि, सं., पद्य, वि. १७वी, आदि: पापायां पुरु चारुषष्ठतपसा; अंति: ___ शार्दूलविक्रीडितम्, श्लोक-४. २३. पे. नाम. वीसविहरमाण स्तुति, पृ. ८आ, संपूर्ण. २० विहरमानजिन स्तुति, मा.गु., पद्य, आदि: पंचविदेह विषय विहरंता वीस; अंति: तिहुअण जण मनवंछित सारै, गाथा-४. २४. पे. नाम. से@जय स्तुति, पृ. ८आ-९अ, संपूर्ण. शत्रुजयतीर्थ स्तुति, आ. नंदसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीसेजमंडण आदि; अंति: भणे नंदसूरि तुम पाय सेवता, गाथा-४. २५. पे. नाम. राई संथारा सूत्र, पृ. ९अ, संपूर्ण. चउक्कसायसूत्र, हिस्सा, प्रा., पद्य, आदि: चौकसायपडिमल्लल्लूरण; अंति: सो जिण पास पयच्छओ वंछिय, गाथा-२. २६. पे. नाम. पार्श्वजिन स्तुति, पृ. ९अ, संपूर्ण. आ. पार्श्वचंद्रसरि, सं., पद्य, आदि: जगन्मंडले मल्यमालाभिधाने; अंति: विज्ञप्तिमेतांवितंद्रः, श्लोक-५. २७. पे. नाम. चैत्रीपूर्णिमा स्तुति, पृ. ९अ-९आ, संपूर्ण. चैत्रीपूर्णिमापर्व स्तुति, आ. जिनलाभसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: सेजगिर नमीयै; अंति: श्रीजिनलाभसुरिंद, गाथा-४. २८. पे. नाम. ज्ञानपंचमी स्तुति, पृ. ९आ, संपूर्ण. ___ पंचमीतिथि स्तुति, आ. जिनचंद्रसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: पंच अनंत महंत गुणाकर; अंति: कहै जिणचंद मुणिंद, गाथा-४. २९. पे. नाम. नेमिजिन स्तुति, पृ. ९आ, अपर्ण, प.वि. अंतिम पत्र नहीं है. मा.गु., पद्य, आदि: सुर असुर वंदित पाय पंकज; अंति: (-), (पू.वि. प्रथम गाथा का मात्र प्रारंभिक पाठ है.) ३०. पे. नाम. शीतलजिन स्तुति, पृ. ११अ, अपूर्ण, पू.वि. प्रथम पत्र नहीं है., पे.वि. यह कृति इस प्रत के साथ एक से अधिक बार जुड़ी हुई है. For Private and Personal Use Only Page #403 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ३८८ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची आ. जिनलाभसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: पभणै श्रीजिनलाभसूरिंद, गाथा-४, (पू.वि. गाथा-३ अपूर्ण से है.) ३१. पे. नाम. शीतलजिन स्तुति, पृ. ११अ-११आ, संपूर्ण. अजितजिन स्तुति-सरतमंडन, आ. जिनलाभसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: विश्वनायक लायक जितशत्रु; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., गाथा-४ अपूर्ण तक लिखा है.) ११९६४९. गुरुगुण वधावा, भास व गीतादि संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १०, कुल पे. ३८, ले.स्थल. अजीमगंज, प्रले. पं. गुणसोम, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. हुंडी:वधावा. स्थल-गंगाभागी तटे वडीपोसाल., जैदे., (२६४१२.५, १६x४३-४८). १. पे. नाम. जिनहंससूरि वधावो, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. वा. युक्तिसेन, मा.ग., पद्य, आदि: आज भलौ दिन ऊगीयौ म्हारै; अंति: युगतसेन० वंदणां वारंवार, गाथा-१३. २. पे. नाम. जिनचंद्रसूरि चातुर्मासविनंती भास, पृ. १आ, संपूर्ण. मु. रंग, पुहिं., पद्य, आदि: अवको चौमासौ पूजजी इहां; अंति: दावसु रंग दीये या आसीस, गाथा-७. ३. पे. नाम. जिनसौभाग्यसूरि गच्छपति भास, पृ. १आ-२अ, संपूर्ण. मु. तत्वविलास, रा., पद्य, आदि: पूजजी विराज्या पाट हो लाल; अंति: वंदै तत्वविलास० ए गछपती, गाथा-५. ४. पे. नाम. जिनहर्षसूरि गच्छपति गीत, पृ. २अ, संपूर्ण. मा.गु., पद्य, आदि: श्रीजिनहर्षसूरीसरुजी; अंति: मुनिजन पूर्णानंद, गाथा-११. ५. पे. नाम. जिनलाभसूरि वधावो, पृ. २अ-२आ, संपूर्ण. जिनलाभसूरि भास, म. राज, मा.गु., पद्य, आदि: आज वधाऊडौ आवीयो; अंति: राजनै० आसीस हौ राज, गाथा-१२. ६. पे. नाम. जिनसौभाग्यसूरि गच्छपति पद, पृ. २आ-३अ, संपूर्ण. मु. चंद, पुहिं., पद्य, आदि: श्रीजिनसौभाग्यसूरीसरू रे; अंति: जयो रे चंद कहै चित्त लाय, गाथा-५. ७. पे. नाम. जिनहर्षसूरि चातुर्मासविनती भास, पृ. ३अ, संपूर्ण. जिनहर्षसूरि गच्छपति भास, मु. राजसागर, मा.गु., पद्य, वि. १८८५, आदि: श्रीजिनहर्षसूरीसरू रे सूर; अंति: राजसागर० गाई इण पर भास, गाथा-९. ८. पे. नाम, जिनसौभाग्यसूरि गच्छपति भास, पृ. ३अ-३आ, संपूर्ण. मु. दानसागर, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीजिनहरख पाटोधरू रे; अंति: गच्छपती रे दानसागर महाराज, गाथा-९. ९.पे. नाम. जिनसौभाग्यसूरि गच्छपति भास, पृ. ३आ, संपूर्ण. मा.गु., पद्य, आदि: गच्छपति जंगम० जिनसौभाग्य; अंति: सहु सेहरोजी पाय नमे जोगीस, गाथा-७. १०. पे. नाम. जिनसुखसूरि गच्छपति गीत, पृ. ३आ, संपूर्ण. नाथो, मा.गु., पद्य, वि. १७६३, आदि: जिनसुखसूरि वधायले भरि; अंति: जोडिनै सुखना दीजै थाट है, गाथा-८. ११. पे. नाम. जिनहर्षसूरि देशना गीत, पृ. ३आ-४अ, संपूर्ण. जिनहर्षसूरि गच्छपति देशना गीत, रा., पद्य, आदि: हितधर परम प्रवचन सुणावीयै; अंति: आगलै वीनवै श्रीसंघ लोग, गाथा-५. १२. पे. नाम. जिनसौभाग्यसूरि भास, पृ. ४अ, संपूर्ण. जिनसौभाग्यसूरि गच्छपति भास, मु. बाल, मा.गु., पद्य, आदि: मोतियडे मेह बरसियो सखी आज; अंति: करतां निज रूप सुभास रे, गाथा-७. १३. पे. नाम. जिनसौभाग्यसूरि गच्छपति भास, पृ. ४अ-४आ, संपूर्ण. वा. विद्याविशाल गणि, मा.गु., पद्य, वि. १८९७, आदि: गणधर गोतम सारिसा म्हारा; अंति: समे वीनवै विद्याविशाल, गाथा-८. १४. पे. नाम. जिनचंदसूरि गच्छपति भास, पृ. ४आ, संपूर्ण. म. राज, मा.गु., पद्य, आदि: गछपति आया है सहेली म्हारा; अंति: राजरो जिहां लग सूरजचंद, गाथा-८. १५. पे. नाम, जिनहर्षसूरि गच्छपति भास, पृ. ४आ-५अ, संपूर्ण. मु. चतुरहर्ष, मा.गु., पद्य, आदि: आज म्हारे अधिक उमाह; अंति: चतुरहरष इण परे कहे, गाथा-७. For Private and Personal Use Only Page #404 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ३८९ हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२६ १६.पे. नाम. जिनहर्षसूरि गच्छपति भास, पृ. ५अ-५आ, संपूर्ण. ___ मु. लालचंद, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीजिनशासनमाहे सोभता खरत; अंति: आसीस द्यै लालचंद सहेली, गाथा-१३. १७. पे. नाम. जिनहर्षसूरि गच्छपति भास, पृ. ५आ, संपूर्ण. मु. लालचंद, मा.गु., पद्य, आदि: सारा श्रीसंघनी हो पूज; अंति: लालचंद० कोड वरस प्रतपीजै, गाथा-७. १८. पे. नाम. गुरुगुण वधावो, पृ. ५आ-६अ, संपूर्ण. गुरुगुण सज्झाय, मा.गु., पद्य, आदि: आज म्हारै आनंद रंग; अंति: लहीजे हे अतिसय निरमलो, गाथा-८. १९. पे. नाम. जिनहर्षसूरि वधावो, पृ. ६अ, संपूर्ण. जिनहर्षसूरि गच्छपति वधावो, मु. चतुरहर्ष, मा.गु., पद्य, आदि: पंथीडा संदेसो म्हारा पूज; अंति: चतुरहरख० तीरथ जुगतसु जी, गाथा-७. २०. पे. नाम. जिनहर्षसूरि गीत, पृ. ६अ-६आ, संपूर्ण. जिनहर्षसरि गच्छपति गीत, म. ज्ञानवर्द्धन, रा., पद्य, आदि: सदगुरु आया हे सखी ज्यारे; अंति: ज्ञानवर्द्धन सफल करीजै आस, गाथा-७. २१. पे. नाम. जिनहर्षसरि गच्छपति वधावो. प.६आ. संपर्ण. म. दयामेरु, मा.गु., पद्य, आदि: वामांगज जिनवरराया प्रणमी; अंति: दयामेरु सुगुरु गुण गावै, गाथा-९. २२. पे. नाम. जिनलाभसूरि देशना, पृ. ६आ-७अ, संपूर्ण. मु. वसतो, मा.गु., पद्य, आदि: पूज्य श्रीजिनलाभ; अंति: इम वसतो यै आसीस, गाथा-१५. २३. पे. नाम. जिनचंद्रसूरि भास, पृ.७अ, संपूर्ण. मु. लावण्यकमल, मा.गु., पद्य, आदि: गुणनिधि जिणचंद; अंति: लावण्यकमल सुख पावै, गाथा-९. २४. पे. नाम. जिनचंदसूरि गच्छपति वधावो, पृ. ७अ-७आ, संपूर्ण. उपा. क्षमाकल्याण, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीजिनचंदसूरिसरू सुगुरु; अंति: सुध० वाणी क्षमाकल्याण हो, गाथा-९. २५. पे. नाम. जिनहर्षसूरि गच्छपति देशना, पृ. ७आ, संपूर्ण.. मु. विमल, रा., पद्य, आदि: सदगुरु म्हारा देशना द्यौ; अंति: विमल सदा पामे विजनना वृंद, गाथा-५. २६. पे. नाम, आगममहिमा सज्झाय, पृ. ७आ-८अ, संपूर्ण. ___मा.गु., पद्य, आदि: आगम अमृत पीजीये बहु; अंति: केवल ऋद्धि विसाल रे, गाथा-७. २७. पे. नाम. गुरु देशना पद, पृ. ८अ, संपूर्ण. गुरुदेशना पद, मु. हर्षचंद, मा.गु., पद्य, आदि: वरषित वचन झरी हो; अंति: हरषचंदस्वभाव फली हो, गाथा-५. २८. पे. नाम. गौतमस्वामी गहुंली, पृ. ८अ, संपूर्ण... मा.गु., पद्य, आदि: वर अतिशय कंचनवाने; अंति: उल्लसे निज आतमराम हो, गाथा-६. २९. पे. नाम. सद्गुरु पद, पृ. ८अ, संपूर्ण. सद्गुरुगुण वर्णन होली, आ. जिनसौभाग्यसूरि, पुहिं., पद्य, आदि: ऐरी खेलीयै आज वसंत; अंति: जिनशौभाग्य० उत्तम काजसु, गाथा-३. ३०. पे. नाम, जिनहर्षसूरि वधावो, पृ. ८अ-८आ, संपूर्ण. जिनहर्षसूरि गच्छपति वधावो, मु. नितराज, रा., पद्य, आदि: हां जी साहिबा आयौ आयौ; अंति: नितराज०म्हारा राज कहै नित, गाथा-६. ३१. पे. नाम. वेदिकामंगल स्तवन, पृ. ८आ-९अ, संपूर्ण. म. रत्नसिंह, मा.गु., पद्य, आदि: हिवै प्रतिष्ठा कारणे ए; अंति: ए रतनसीह राख प्रमाण तो, गाथा-११. ३२. पे. नाम, ४ मंगल पद, पृ. ९अ, संपूर्ण, पे.वि. प्रथम भास. आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: पहिलं ए मंगल जिनतणु; अंति: भवजलनिधि तरो ए, गाथा-६. ३३. पे. नाम, ऋषभजिन भास, पृ. ९अ, संपूर्ण. For Private and Personal Use Only Page #405 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra ३९० www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची , आदिजिन भास, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., पद्य वि. १८वी, आदि उच्छवरंग वधामणो ए पाम्या; अति ज्ञानवि०कहतां नावै पार तो, गाथा - ७. ३४. पे नाम. शत्रुंजयतीर्थ स्तवन, पृ. ९अ ९आ, संपूर्ण. आदिजिन भास-शत्रुंजयतीर्थमंडन, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: संघपति भरत नरेसरू स्तवे; अति ग्यानविमल अखव भंडार तो गाथा-७. ३५. पे नाम, आदिजिन भास, पृ. ९आ, संपूर्ण. शत्रुंजयतीर्थ स्तवन- शत्रुंजयतीर्थमंडन, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: संघपति भरत नरेसरु; अंति: ज्ञानविमल भाषे लोल, गाथा-५. ३६. पे नाम, ५ मंगल स्तवन, पू. ९आ-१०अ संपूर्ण ग. शुभविजय, मा.गु., पद्य, आदि पहिलुं ए मंगल मन घरो अंतिः सुभ गुण ते वरे ए. गाथा-८. ३७. पे नाम, मंगल स्तवन, पृ. १०अ १०आ, संपूर्ण. पंन्या. पद्मविजय, मा.गु., पद्य, आदि: प्रणमीय शासन देवता; अंति: पद्मविजय कहेइ ए, गाथा - १७. ३८. पे नाम. कुंभ स्थापना, पृ. १०आ, संपूर्ण. ४ मंगल पद, ग. देवचंद्र, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि धरम उच्छव समै जैनपद अति देवचंद पद अनुसरू ए. गाथा ४. १९९६५० (+) चौवीस तीर्थंकर पूजा, अपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १४, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. प्र. वि. संशोधित, जैदे. (२६४१२, १०x२४-२९). २४ जिन पूजा, आव, रामचंद्र चौधरी, पुहिं. पद्य वि. १८५४ आदि सिद्धि बुद्धि दायक; अंति: (-), " , (पू.वि. अभिनंदनजिन चंदनपूजा तक है.) ११९६५१. कुमारपाल रास, अपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ७१ (२) =६, पू.वि. बीच के पत्र हैं. जैदे. (२७४१२, १५X३७). - ११ कुमारपाल रास, क. ऋषभदास संघवी, मा.गु., पद्य, वि. १६७०, आदि: (-); अंति: ( - ), ( पू.वि. खंड-१ के दूहा - १ अपूर्ण से गाथा- १५९ अपूर्ण तक है.) ११९६५२. कल्पसूत्र सह कल्पद्रुमकलिका टीका व्याख्यान २ से ४, अपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ८०, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. हुंडी:कल्पलता, लक्ष्मीवल्लभ., जैदे., (२७१२.५, १२x२९). " कल्पसूत्र, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., गद्य, आदि (-); अंति (-), (प्रतिअपूर्ण, पू. वि. व्याख्यान ४ सूत्र- ६३ तक है.) कल्पसूत्र- कल्पद्रुमकलिका टीका, ग. लक्ष्मीवल्लभ, सं. गद्य, आदि (-) अंति (-), प्रतिअपूर्ण. ११९६५३. (+) दशवैकालिकसूत्र सह टबार्थ अध्ययन १ से ४, अपूर्ण, वि. १८९५, माघ कृष्ण, १, सोमवार, मध्यम, पू. २७-१ (१) - २६, ले. स्थल, कोटानगर, प्रले. मु. जसराज, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. पदच्छेद सूचक लकीरें संशोधित, जैदे., (२६X१२, ४x२३-२८). दशवैकालिकसूत्र, आ. शव्यंभवसूरि, प्रा., पद्य, वी. रवी आदि (-); अति (-) (प्रतिअपूर्ण, पू.वि. अध्ययन- १ गाथा - ३ अपूर्ण से है.) For Private and Personal Use Only दशवैकालिकसूत्र- टबार्थ *, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), प्रतिअपूर्ण. ११९६५४. सुमतीवीलासलीलावती रास, संपूर्ण, वि. १९२४, आश्विन कृष्ण, १, मध्यम, पृ. १६, ले. स्थल अगसरा, गुपि. सा. प्रेमबाई आर्या (गुरु सा. मोतीबाई आर्या); सा. मोतीबाई आर्या (गुरु सा. कडवीबाई आर्या); सा. कडवीबाई आर्या, अन्य श्राव. जुठासुंदर देसाई, प्र.ले.पु. मध्यम, प्र. वि. हुंडी लीलावंतीनोरा, दे., (२५x१२, १४४३२-३६). . लीलावतीसुमतिविलास रास, उपा. उदयरत्न, मा.गु., पद्य वि. १७६७, आदि परम पुरुष प्रभु पासजीन; अति उदअरतन०गुणवंतनी बलीहारीजी, ढाल - २१, गाथा-३४८. ११९६५६ (+) ऊकेशगच्छ चरित्र, अपूर्ण, वि. १५वी, जीर्ण, पृ. २७-१ (१) २६, प्र. वि. संशोधित मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., (२६x११.५, ११४३९-४३). उपकेशगच्छ चरित्र, आ. कक्कसूरि, सं., पद्य, वि. १३९३, आदि: (-); अंति: कक्कसूरी० कुरुतः स्म महा०, श्लोक- ७३५, (पू.वि. श्लोक-२९ अपूर्ण से है., वि. अंतिमवाक्य अस्पष्ट है.) Page #406 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२६ ३९१ ११९६५७. (+) सूत्रकृतांगसूत्र सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ७१-९(१ से ९)=६२, पू.वि. बीच के पत्र हैं., प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित., जैदे., (२६४१२.५, ५४३५). सूत्रकृतांगसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., प+ग., आदिः (-); अंति: (-), (पू.वि. श्रुतस्कंध-१ अध्ययन-२ उद्देशक-१ गाथा-३ अपूर्ण से अध्ययन-१६ गाथा-४ अपूर्ण तक है.) सूत्रकृतांगसूत्र-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: (-). ११९६५९. २० स्थानक पूजा, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १३-१(१)=१२, पू.वि. बीच के पत्र हैं., जैदे., (२४४१२.५, १२४२८-३२). २० स्थानक पूजा, आ. लक्ष्मीसूरि, मा.गु., पद्य, वि. १८४५, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. सिद्धपद पूजा अपूर्ण से कलश अपूर्ण तक है.) ११९६६०. लीलावती का पद्यानुवाद, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ५, जैदे., (२५४१२.५, १६४३९-४४). लीलावती-पद्यानुवाद, पं. रतनचंद, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीपारस परमेश्वर; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा ___ अपूर्ण., घनमूल संबंधित उदाहरण अपूर्ण तक लिखा है.) ११९६६१ (+) कल्पसूत्र की पीठिका, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ५, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें., जैदे., (२५.५४१२, १४४३६-४०). कल्पसूत्र-पीठिका, संबद्ध, मा.गु.,सं., गद्य, आदि: श्रीवर्धमानस्य जिनेश्वर; अंति: (-), (पू.वि. महावीरजिन छ कल्याणक अपूर्ण तक है.) ११९६६२. (+) दसारणभद्र चउढाल्यादि संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ५, कुल पे. ३, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२५४१२, १५४३९). १.पे. नाम. दसारणभद्र चउढालीयौ, पृ. १अ-२अ, संपूर्ण. दशार्णभद्र राजर्षि चौपाई, मु. कुशल, मा.गु., पद्य, वि. १७८६, आदि: सारद समरु मनरली समरु; अंति: कुसल सीस गुण गाइयै, ढाल-४, गाथा-२८. २. पे. नाम. दशारणभद्र चौढालियौ, पृ. २अ-५आ, संपूर्ण. दशार्णभद्र राजर्षि सज्झाय, पं. धर्मसिंह पाठक, मा.गु., पद्य, वि. १७५७, आदि: वीरजिणेसर वंदियै; अंति: धर्म० सुख दौलति दीह, ढाल-६. ३. पे. नाम. दानशीलतपभाव चौढालीयौ, पृ. ५आ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. दानशीलतपभावना संवाद, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, वि. १६६२, आदि: प्रथम जिनेसर पाय; अंति: (-), (पू.वि. ढाल-१ गाथा-४ अपूर्ण तक है.) । ११९६६३. (+) नयचक्र सह भाषा-प्रथम अधिकार, संपूर्ण, वि. १९२८, आश्विन शुक्ल, २, सोमवार, मध्यम, पृ. ५८, प्रले. श्राव. चंदनलाल,प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित., दे., (२६४१२.५, १३४३४). आलाप पद्धति, आ. देवसेन, सं., पद्य, वि. १०वी, आदि: गुणानां विस्तरं; अंति: (-), प्रतिपूर्ण. आलाप पद्धति-भावप्रकासिनी भाषाटीका, पुहि., प+ग., वि. २०वी, आदि: चेतन द्रव्य अनंतगुण ज्ञान; अंति: (-), प्रतिपूर्ण. ११९६६६. (+) चोवीसजिन स्तवनादि संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ८, कुल पे. ५,प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२४.५४१२, १३४३५-४०). १.पे. नाम. चोवीसजिन स्तवन, पृ. १आ-७आ, संपूर्ण. स्तवनचौवीसी, मु. सागरचंद्र, मा.गु., पद्य, आदि: चालोनें जईयै वंदीवा ऋषभ; अंति: वीनतीअवधारो जग भान, स्तवन-२४. २. पे. नाम. पार्श्वजिन पद, पृ. ७आ-८अ, संपूर्ण. मु. सागरचंद्र, मा.गु., पद्य, आदि: पासदिणेसर पूजो रे भविका; अंति: मांगत सागरचंद रे भविका, गाथा-४. ३. पे. नाम. गौडी पार्श्वनाथ स्तवन, पृ. ८अ, संपूर्ण. For Private and Personal Use Only Page #407 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची पार्श्वजिन स्तवन-गोडीजी, मु. सागरचंद्र, मा.गु., पद्य, आदि: गौडी पास जिणंद दिणंद; अंति: माहरी थायज्यो सागर भणो, गाथा-७. ४. पे. नाम. पार्श्वजिन पद, पृ. ८आ, संपूर्ण. पार्श्वजिन पद-दृष्टिकूटार्थगर्भित, ग. वल्लभ, मा.गु., पद्य, आदि: वदन अठ कर दोय जीभ पनरह; अंति: वल्लभ० ढुंढ अर्थ कवि लहे, गाथा-१. ५.पे. नाम. दशार्णभद्र ऋद्धिवर्णन गाथा, पृ. ८आ, संपूर्ण. मु. शिवचंद, पुहि., पद्य, आदि: हाथी सहस अठार लाख चौवीस; अंति: कहें दूहास्यो तूं जीतियो, गाथा-३. ११९६६८. (+#) उपदेशमाला सह टबार्थ व कथा, अपूर्ण, वि. १८४०, मध्यम, पृ. १६०-६(८ से १०,१४,८५,८८)=१५४, ले.स्थल. वल्लभीपुर, प्रले. मु. रूपजी (गुरु मु. लीलाधर); गुपि. मु. लीलाधर (गुरु मु. अजबचंद ऋषि); मु. अजबचंद ऋषि (गुरु मु. सुजाण ऋषि); पठ. श्राव. गुलाबचंद; विक्र. मु. केशवजी ऋषि; य. रूपजी जती; क्रीत. मु. कल्याणविजय; मु. नित्यविजय; अन्य. मु. प्रमोदविजय, प्र.ले.प. अतिविस्तृत, प्र.वि. अंत में प्रत क्रय-विक्रय संबंधी विवरण-१."सं.१८७२ ना श्रावण वदी १वार सोमे लि.ऋ.केशवजी रूपजी जत अमारी परत१ अमे कल्याणविजैजीने वेचाती न दावापणे आपी छै पार्श्वनाथ चरीत्रनी तथा उपदेसमाला एवं परत २ अमे आपी छै एहमां अमारा सगावसीला अमे कांइ कहे नही." २. "ए परत उपदेसमालानी पं.नीत्यविजय गणिने अमो वेचाती रुपीआ १४ अखरे चउद उपरे वेचाती आपी छै अमारी राजी खुशीथी ए परत उपरे कोईनो दावो नथी लखीतं प. प्रमोदविजय गणि दस्तुरखुद श्रीधुलीआ मध्ये सही.", टिप्पण युक्त विशेष पाठ. अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, प्र.ले.श्लो. (४६९) भग्न पृष्टि कटी ग्रीवा, (९६६) जलाद्रक्षे थलाद्रक्षे, (१५०५) जिहां लग मेरु महीधरा, जैदे., (२७४१२.५, ५-१६४३५-४६). उपदेशमाला, ग. धर्मदासगणि, प्रा., पद्य, आदि: (-); अंति: सव्वं जिणविणीगया वांणी, गाथा-५४४, (पूर्ण, वि. १८४०, मार्गशीर्ष कृष्ण, १२, रविवार, पू.वि. प्रथम एक व बीच के पत्र नहीं हैं., गाथा-७ अपूर्ण तक नहीं है व गाथा-१५५ से १६३ अपूर्ण तक नहीं है.) उपदेशमाला-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: जे वांणी श्रुतदेवताने, (अपूर्ण, वि. १८४०, पौष कृष्ण, ८, गुरुवार, पू.वि. प्रथम एक व बीच के पत्र नहीं हैं.) उपदेशमाला-कथा, मा.गु., गद्य, आदि: आ जंबूद्वीप नामा; अंति: अंगोपांग गोपवी राखवां, कथा-७२, (अपूर्ण, पृ.वि. बीच-बीच के पत्र नहीं हैं., बीच-बीच के पाठांश नहीं हैं.) ११९६६९ (+) चित्रसेनपद्मावती चरित्र सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ३६, प्रले. पं. उत्तमविजय (गुरु पं. नेमविजय); गुपि.पं. नेमविजय (गुरु मु. उदयविजय), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. श्री संभवनाथजी प्रसादात्., संशोधित-टिप्पण युक्त विशेष पाठ-पदच्छेद सूचक लकीरें., जैदे., (२६४१२.५, ७४३३-३६). चित्रसेनपद्मावती चरित्र, पा. राजवल्लभ, सं., पद्य, वि. १५२४, आदि: नत्वा जिनपतिमाद्यं; अंति: कथा कृता श्रीराजवल्लभेन, श्लोक-१२३२, (वि. १८७२, चैत्र कृष्ण, १३, ले.स्थल. विश्वतारणी) चित्रसेनपद्मावती चरित्र-टबार्थ *, मा.ग., गद्य, आदि: आदिजिनपति जे श्रीऋषबदेव; अंति: त कवीश्वर जाणवो करता, (वि. १८७२, चैत्र शुक्ल, ११, ले.स्थल. जयतारणनगर) ११९६७१ (+) हैमीनाममाला, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १२, प्र.वि. हंडी:हेमकोश., टिप्पण युक्त विशेष पाठ-पदच्छेद सूचक लकीरे-संशोधित., दे., (२५.५४१३, १२४४५). अभिधानचिंतामणि नाममाला, आ. हेमचंद्रसरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., पद्य, वि. १३वी, आदि: प्रणिपत्यार्हतः; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., कांड-२ श्लोक-२२२ अपूर्ण तक लिखा है.) ११९६७२. नवपद स्तवन, संपूर्ण, वि. १८९९, चैत्र कृष्ण, ९, श्रेष्ठ, पृ. ५, ले.स्थल. चाणोद, प्रले. चिमन, प्र.ले.प. सामान्य, प्र.वि. हुंडी:नवपदस्तवनम्. श्रीअचिरानंदन प्रासादात्, प्र.ले.श्लो. (२१) जिहां ध्रु सायर चंद रवि, जैदे., (२५.५४१३, १०४२५). नवपद स्तवन, आ. जिनपद्मसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: अरिहंतपद आराधीय आणी ऊलट; अंति: पद्मसूरि० महातम मोड, स्तवन-९. For Private and Personal Use Only Page #408 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२६ ३९३ ११९६७३. आचारदिनकर, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ११, प्र.वि. अंत में प्रत ग्रंथाग्र-१९०/२०० दिया गया है., कुल ग्रं. २००, जैदे., (२६४१२.५, १४४३७). आचारदिनकर-हिस्सा शांतिकमहापूजन विधि, आ. वर्द्धमानसूरि, मा.गु.,सं., प+ग., आदि: तिहां प्रथम शुभदिने; अंति: शांतिर्भवति रुद्धि वृद्धि. ११९६७४. साधुवंदना बृहद्, संपूर्ण, वि. १९२२, कार्तिक शुक्ल, १३, मंगलवार, मध्यम, पृ. ९, प्रले. मु. कानजी ऋषि (गुरु मु. भाणजी ऋषि); गुपि. मु. भाणजी ऋषि (गुरु मु. जयचंद्र ऋषि); अन्य. श्रावि. गुलालबाई दोशी, प्र.ले.पु. सामान्य, दे., (२६.५४१३, ९-१२४२३-२६). साधुवंदना बृहद्, मु. जेमल ऋषि, मा.गु., पद्य, वि. १८०७, आदि: नमुं अनंत चोविसी रीषभादिक; अंति: भद्रजी पसाय रूषी जेमल कहे, गाथा-११६. ११९६७७. बालचंदबत्रीसी, संपूर्ण, वि. १८५५, फाल्गुन शुक्ल, २, गुरुवार, मध्यम, पृ.५, ले.स्थल. गोडलगाम, प्रले. मु. रवजी ऋषि (गुरु मु. खीमचंदजी ऋषि); गुपि. मु. खीमचंदजी ऋषि (गुरु मु. कर्मसी ऋषि); मु. कर्मसी ऋषि (गुरु मु. भूधर ऋषि); पठ. मु. जेठा (गुरु मु. लब्धिकमल), प्र.ले.पु. मध्यम, प्र.वि. हुंडी:बालचंदबत्रीसी., जैदे., (२५४११.५, १२४२९). अध्यात्मबत्तीसी, मु. बालचंद मुनि, पुहि., पद्य, वि. १६८५, आदि: अजर अमर पद परमेसर; अंति: सुखकंद रुपचंद जाणीए, गाथा-३३. ११९६७८. (+) कल्पसूत्र सह कल्पद्रमकलिका टीका, अपूर्ण, वि. १९१६, पौष शुक्ल, ७, मध्यम, पृ. २१२-२२(१,६८ से ६९,८३ से १०१)=१९०, दत्त. श्रावि. गोपी; गृही. श्राव. नारिमल, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. हुंडी:कल्पद्रुमकलिका.टी., पदच्छेद सूचक लकीरें-संशोधित., दे., (२६४१२, १३४४५). कल्पसूत्र, आ. भद्रबाहस्वामी, प्रा., गद्य, आदि: तेणं कालेणं० समणे; अंति: भज्जो उवदंसेइ तिबेमि, व्याख्यान-९. ग्रं. १२१६, (पू.वि. बीच-बीच के पत्र नहीं हैं., बीच-बीच के पाठांश नहीं हैं.) कल्पसूत्र-कल्पद्रमकलिका टीका, ग. लक्ष्मीवल्लभ, सं., गद्य, आदि: (-); अंति: कल्पसूत्रस्य चेमाम्, ग्रं. ४१०९, (पू.वि. प्रथम एक व बीच के पत्र नहीं हैं., 'तीर्थंकराणां अतराणि कथयंति प्रथमोयमधिकार'-पाठांश से है व बीच-बीच का पाठांश नहीं है.) ११९६८१. श्रावकप्रतिक्रमणसूत्र, संपूर्ण, वि. १९६५, श्रावण कृष्ण, १३, रविवार, मध्यम, पृ. १४, प्रले. मु. जसकरण (लुकागच्छ-नागोरी), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. श्रीपार्श्वनाथ प्रसादात्., दे., (२६.५४१२.५, ११४१६-२३). श्रावकप्रतिक्रमणसूत्र-लोंकागच्छीय, संबद्ध, मु. जैनश्रमण, प्रा.,गु., प+ग., आदि: नमो अरिहंताणं० इच्छाकारेण; अंति: करणो नमोत्थूणं पर्यंत. ११९६८२. गौतम कुलक सह अर्थ व कथा, अपूर्ण, वि. १८४६, कार्तिक कृष्ण, ७, रविवार, मध्यम, पृ. ६३-११(१ से ११)=५२, ले.स्थल. वनारस, प्रले. मु. दीपचंद (गुरु मु. सारंगधरजी, विजयराजगच्छ बृहत्शाखा); गुपि. मु. सारंगधरजी (गुरु मु. अनोपचंदजी, विजयराजगच्छ बृहत्शाखा); मु. अनोपचंदजी (गुरु मु. गुणसागरसूरि, विजयराजगच्छ बृहत्शाखा); मु. गुणसागरसूरि (विजयराजगच्छ बृहत्शाखा); अन्य. पं. नारायण, प्र.ले.पु. मध्यम, प्र.वि. हुंडी:गोतमकुलो०. अंत में "सरकारी मे गौतम पृछालीनी वांचने को नारायण ने भंडार में से संवत् १९३७" ऐसा उल्लिखित है. प्रतिलेखन पुष्पिका श्लोक के क्रम में 'धर्माज्जन्म कुले शरीर पुटता..।' ऐसा औपदेशिक श्लोक है.,प्र.ले.श्लो. (१४६७) याद्रसं पुस्तकं द्रष्टवा, (१४६८) मंगलं लेखकानस्या, (१४६९) पोथी लिखी चित प्रेमसुं, (१४७०) जिहां लगे मेरु अडिगा है, (१४७२) वांचनहार सदा सुखी, (१४७३) तारा धुगणचंद, जैदे., (२५.५४१२, १३४४१-४५). गौतम कुलक, प्रा., पद्य, आदि: (-); अंति: सेवित्तु सुहं लहंति, गाथा-२०, (पू.वि. गाथा-३ अपूर्ण से है., वि. मूलपाठ कहीं संक्षेप में तो कहीं-कहीं पूरा भी है.) । गौतम कुलक-अर्थ, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: जिनधर्म सेवे सुखी थाय. गौतम कुलक-कथा, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: परे इंद्रिय सुख छंडीये, कथा-६९. ११९६८६. बावीसपरिसह ढाल, संपूर्ण, वि. १९३९, आषाढ़ शुक्ल, ६, श्रेष्ठ, पृ. ६, पठ. श्रावि. साहबाबाई सेठाणी, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. हुंडी:बावीसपरिसा., दे., (२५.५४१२.५, १५४४०). For Private and Personal Use Only Page #409 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ३९४ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची २२ परिसह सज्झाय, म. रायचंद ऋषि, मा.गु., पद्य, वि. १८२२, आदि: श्रीआदेसर आदि दे; अंति: काटे कर्मना फंदोरे, ढाल-२२. ११९६८७. (#) प्रदेशीराजा चौपाई, संपूर्ण, वि. १९३५, ज्येष्ठ कृष्ण, ११, मध्यम, पृ. १५, ले.स्थल. बीलाडा, प्रले. ऋ. फूलचंद (लुकागच्छ-नागोरी); पठ. श्राव. मगनीराम नाहर, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. हुंडी:प्रदेशीराजा चौपाई०. श्रीपार्श्वनाथ प्रसादात्., मूल पाठ का अंश खंडित है, प्र.ले.श्लो. (६१४) यादृसं पुस्तकं दृष्टा, दे., (२५.५४१२.५). प्रदेशीराजा चौपाई, रा., पद्य, आदि: सुरीयाभ हौले करजोडी विनो; अंति: अठारे कोड देसारां संमेल, ढाल-२६. ११९६८८.(+) नवस्मरण सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १८७२, श्रावण शुक्ल, १४, श्रेष्ठ, पृ. २१, अन्य. पं. फतेंद्र, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित., जैदे., (२५.५४१२.५, ५४३५). नवस्मरण, मु. भिन्न भिन्न कर्तक, प्रा.,सं., प+ग., आदि: नमो अरिहंताणं० हवइ मंगलम्; अंति: जैनं जयति शासनं, स्मरण-९. नवस्मरण-टबार्थ *, मा.गु., गद्य, आदि: अरिहंतने काजई नमस्कार; अंति: संबंधि आज्ञा जयवंती वर्तो. ११९६८९. देवसिप्रतिक्रमण विधि, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ४, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., जैदे., (२४४१२.५, ९-१४४२४-३१). देवसिप्रतिक्रमण विधि, मा.गु., प+ग., आदि: (अपठनीय); अंति: (-), (पू.वि. अतिचार आलोयणा सूत्र अपूर्ण तक है.) ११९६९१ (+) जंबूस्वामी चौदपूर्वधर परमपटोधर रास, संपूर्ण, वि. १८२७, वैशाख कृष्ण, ४, बुधवार, श्रेष्ठ, पृ. २०, प्रले. ग. सोभसागर; गुपि. ग. हेतुसागर; अन्य. पं. फतेंद्र, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२६४१२,१६x४७). ___जंबूस्वामी रास, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.ग., पद्य, वि. १७३८, आदि: प्रणमी पासजिणंदना; अंति: दिन कोडि कल्याण छै, ढाल-३५, गाथा-६१८, ग्रं. १०३५. ११९६९२. श्रावकप्रतिक्रमणसूत्र, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ५, जैदे., (२५४१२, १७२३२-४१). श्रावकप्रतिक्रमणसूत्र-लोंकागच्छीय, संबद्ध, म. जैनश्रमण, प्रा.,गु., प+ग., आदि: नमो अरिहंताणं० इच्छाकारेण; ___अंति: पछे दोय नमोत्थुणं गुणना. ११९६९३. (+) कल्पसूत्र का बालावबोध-वाचना १ से ७, अपूर्ण, वि. १९४२, मार्गशीर्ष कृष्ण, ५, गुरुवार, श्रेष्ठ, पृ. १८४-१६९(१ से १६९)=१५, ले.स्थल. लखनउ, प्रले. मु. गोकुलचंद्र ऋषि, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. हुंडी:श्रीकल्प०बा०. श्रीऋषभदेवमंदिरे., संशोधित., दे., (२५४१२.५, ११४४०). कल्पसूत्र-बालावबोध, आ. शांतिसागरसूरि, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: श्रीपर्युषणा पर्व आराधे, (प्रतिअपूर्ण, पू.वि. व्याख्यान-७ अपूर्ण से है.) ११९६९४. मदनरेखासती चौपाई, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ९, प्र.वि. हंडी:मैणरेहीरीचै०, देवकीरीचै०., दे., (२४४१२.५, १२-१५४३०-४१). मदनरेखासती चौपाई, मा.गु., पद्य, वि. १८५५, आदि: श्रीवर्धमान जिणवर; अंति: (-), (अपूर्ण, पृ.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., ढाल-६ गाथा-२० तक लिखा है.) ११९६९५ (१) पंचपरमेष्ठि नमस्कार स्तोत्रादि संग्रह, अपूर्ण, वि. १९०५, पौष शुक्ल, १०, गुरुवार, मध्यम, पृ. २०-११(१ से १०,१४)=९, कुल पे.७, प्र.वि. अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, दे., (२५४१२, १०४३९). १. पे. नाम. पंचपरमेष्ठि नमस्कार स्तोत्र, पृ. ११अ-१२आ, अपूर्ण, पृ.वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं. पंचपरमेष्ठी स्तोत्र, आ. मानतुंगसूरि, प्रा., पद्य, आदि: (-); अंति: गहिएहिं पुत्थयसएहिं, गाथा-३३, (पू.वि. गाथा-६ अपूर्ण से है.) २.पे. नाम. पंचपरमेष्ठि मंत्राराधन विवरण, पृ. १२आ-१३आ, अपूर्ण, पृ.वि. अंतिम पत्र नहीं है. पंचपरमेष्ठि मंत्राराधन विवरण-भत्तिभर स्तोत्रगत, प्रा.,सं., गद्य, आदि: ॐ नमो अरिहंताणं; अंति: (-), (पू.वि. मंत्रविवरण गाथा-५ अपूर्ण तक है.) ३. पे. नाम. पंचपरमेष्ठी महामंत्र स्तोत्र, पृ. १५अ-१६आ, अपूर्ण, पू.वि. प्रथम पत्र नहीं है. पंचनमस्कृति स्तवन, आ. जिनप्रभसूरि, सं., पद्य, आदिः (-); अंति: श्लिष्यंति च श्रीभराः, श्लोक-३३, (पू.वि. श्लोक-४ अपूर्ण से है.) For Private and Personal Use Only Page #410 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२६ ३९५ ४. पे. नाम. परमेष्ठी स्तुती, पृ. १६आ, संपूर्ण. वज्रपंजर स्तोत्र, सं., पद्य, आदि: परमेष्ठि नमस्कारं सारं; अंति: राधिश्चापि कदाचन, श्लोक-८. ५. पे. नाम. पंचपरमेष्ठी मंत्र संग्रह, पृ. १६आ-२०अ, संपूर्ण. प्रा.,सं., गद्य, आदि: ॐ नमो अरिहंताणं०; अंति: मोक्षकांक्षिभि पूज्यं. ६. पे. नाम. नमस्कार महामंत्र कुलक-गाथा १ से २, पृ. २०अ, संपूर्ण. नमस्कार महामंत्र कुलक, संबद्ध, प्रा., पद्य, आदि: घणघाईकम्ममुक्का अरिहंता; अंति: (-), (प्रतिपूर्ण, वि. अग्रिम पाठ का स्पष्टीकरण किया गया है.) ७. पे. नाम, नवकार स्तव, पृ. २०आ, संपूर्ण. पंचपरमेष्ठि स्तवन, सं., पद्य, आदि: नम्रामरेश्वरकिरीटनिविष्टश; अंति: रागादि घातरतयो यतयो जयंति, श्लोक-५. ११९६९६. (+) जीवविचार प्रकरण सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. १८४६, वैशाख कृष्ण, २, शनिवार, श्रेष्ठ, पृ. ८-१(५)=७, ले.स्थल. भील्लपुर, प्रले. पं. अमरविजय; पठ. गुलाबचंद्र; अन्य. मु. कृष्णसौभाग्य, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. हुंडी:जीविचार., पदच्छेद सूचक लकीरें., जैदे., (२५.५४१२, ५४२९). जीवविचार प्रकरण, आ. शांतिसूरि, प्रा., पद्य, वि. ११वी, आदि: भुवणपईवं वीरं नमिऊण; अंति: संतिसूरि०सुयसमुद्दाओ, गाथा-५१, (पू.वि. गाथा-२६ अपूर्ण से गाथा-३३ अपूर्ण तक नहीं है.) जीवविचार प्रकरण-टबार्थ*, मा.गु., गद्य, आदि: स्वर्ग मृत्यु पातालने; अंति: प्राणी धर्मनो उद्यम करो. ११९६९७. (#) दशवैकालिकसूत्र, अपूर्ण, वि. १९वी, जीर्ण, पृ. १२-२(१,११)=१०, प्र.वि. हुंडी:दशमीका., मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., (२४.५४१२, २०४४६). दशवैकालिकसूत्र, आ. शय्यंभवसरि, प्रा., पद्य, वी. रवी, आदि: (-); अंति: क्खू अपूणागमं गई ति बेमि, अध्ययन-१०, (पू.वि. अध्ययन-२ सूत्र-८ अपूर्ण से है व अध्ययन-९ उद्देश-२ अपूर्ण से ३ अपूर्ण तक नहीं है.) ११९६९८ (+#) वरदत्तगणमंजरी कथा सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ.८,प्र.वि. संशोधित. मूल व टीका का अंश नष्ट है, जैदे., (२५४१२.५, ८४४९). वरदत्तगुणमंजरी कथा, मा.गु.,सं., गद्य, आदि: नमः वर्धमानाय श्रीमत; अंति: संयममाराध्य मुक्तिं गत. वरदत्तगुणमंजरी कथा-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: महावीरस्वामीने नमस्कार; अंति: (अपठनीय). ११९७००. श्रीपाल रास सह टबार्थ-खंड ४, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. २३, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., दे., (२५४१२, ८x२७). श्रीपाल रास, उपा. विनयविजय; उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., पद्य, वि. १७३८, आदि: (-); अंति: (-), (प्रतिअपूर्ण, पू.वि. ढाल-६ गाथा-७ अपूर्ण तक है.) श्रीपाल रास-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), प्रतिअपूर्ण.. ११९७०१. औपदेशिक सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, जैदे., (२४४१२.५, १४४३९). औपदेशिक सज्झाय-परनारी परिहार, मु. जिनहर्ष, मा.गु., पद्य, आदि: सीख सुणो पिउ माहरी रे तुझ; अंति: कहे जिनहर्ष०हियडे आगमवाण, गाथा-११. ११९७०२. नवतत्त्व प्रकरण, १४ गुणठाणा व आठ करण नाम, संपूर्ण, वि. १८००, ?, मध्यम, पृ. १६, कुल पे. ३, प्रले. पं. मुक्तिविजय (गुरु मु. मोहनविजय); गुपि. मु. मोहनविजय (गुरु पंन्या. रत्नविजय), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. हुंडी:नवतत्व., जैदे., (२६४१२,१३४३७). १. पे. नाम. नवतत्त्व प्रकरण का बालावबोध, पृ. १अ-१६अ, संपूर्ण. नवतत्त्व प्रकरण ६० गाथा-बालावबोध, मा.गु., गद्य, आदि: पहेलो जीवतत्त्व बीजो; अंति: अजीवनै मिश्र कहिये. २. पे. नाम. १४ गुणठाणा नाम, पृ. १६अ, संपूर्ण. १४ गुणस्थानक नाम, मा.गु., गद्य, आदि: मिथ्यात्व गुणठाणो १; अंतिः सजोगी १३ अजोगी १४. ३. पे. नाम, आठ करण नाम, पृ. १६अ, संपूर्ण. बंधादिकरण भेद, मा.गु., गद्य, आदि: बंधनकरण १ सक्रमकरण २; अंति: नधतकरण ७ नीकाचनी करण ८. For Private and Personal Use Only Page #411 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ३९६ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ११९७०३. (+) शीलविषय मृगलेखा चरित्र, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १८, प्र.वि. हुंडी:मृगलेखा०., पदच्छेद सूचक लकीरें-संशोधित., दे., (२५४१२, १९४४२-४६). मृगांकलेखा चौपाई, म. रायचंद ऋषि, मा.गु., पद्य, वि. १८३८, आदि: आदेसर जिन आद दे चोवीसमां; अंति: रायचंद० वर्ते कोड कल्याण, ढाल-६२. ११९७०४. (+#) विचारामतसार संग्रह सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ३०-१(१)=२९, पृ.वि. प्रथम एक व अंत के पत्र नहीं हैं.,प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें-टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित. मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., (२७४१२, ६४३३-३९). विचारामतसार संग्रह, ग. जिनहर्ष, सं., पद्य, वि. १५०२, आदिः (-); अंति: (-), (पू.वि. कथा-१ श्लोक-७ अपूर्ण से __ कथा-३ श्लोक-२० अपूर्ण तक है.) विचारामृतसार संग्रह-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: (-). ११९७०५. २५० अभिषेक गाथा सह टीका, संपूर्ण, वि. १९२८, मध्यम, पृ. १, ले.स्थल. सादडीनगर, प्रले. पं. चिमनसागर; पठ. श्राव. केशरीसिंह, प्र.ले.पु. सामान्य, दे., (२६४१२.५, १५४४७). २५० अभिषेक गाथा, प्रा., पद्य, आदि: इंद समतायत्तीसा पारसी; अंति: पंचयणे या संखा कमेणेसिं, गाथा-२. २५० अभिषेक गाथा-टीका, सं., गद्य, आदि: अथ जिनजन्माभिषेके कलशानां; अंति: (१)१६०००००० कलशा भवंति, (२)देव कार्यार्थ भंगाराणि, (वि. अंत में २५० अभिषेक यंत्र दिया गया है.) ११९७०६. (+) कर्मविपाक व कर्मस्तव नव्य कर्मग्रंथ, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ.८, कुल पे. २, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें-संशोधित., दे., (२६४१२.५, ८x२८). १. पे. नाम. कर्मविपाक नव्य कर्मग्रंथ, पृ. १अ-७अ, संपूर्ण. कर्मविपाक नव्य कर्मग्रंथ-१, आ. देवेंद्रसूरि, प्रा., पद्य, वि. १३वी-१४वी, आदि: सिरिवीरजिणं वंदिय; अंति: लहिउ देविंदसूरिहिं, गाथा-६०. २. पे. नाम. कर्मग्रंथ २, पृ. ७अ-८आ, अपूर्ण, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. कर्मस्तव नव्य कर्मग्रंथ-२, आ. देवेंद्रसूरि, प्रा., पद्य, वि. १३वी-१४वी, आदि: तह थुणिमो वीरजिणं; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-१४ तक है.) ११९७०७. (+#) श्रावक देवसिप्रतिक्रमणसूत्र संग्रह सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १८८८, वैशाख कृष्ण, ९, जीर्ण, पृ. १०, ले.स्थल. विक्रमपुर, प्रले. मु. शिवदास ऋषि, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें-संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६.५४१२.५, ७४३६-४०). श्रावकप्रतिक्रमणसूत्र संग्रह-श्वे.म.पू.मान्य, संबद्ध, प्रा.,मा.गु., प+ग., आदि: णमो अरिहंताणं णमो; अंति: (१)अरिहे समणे तहा संघे, (२)सुजोयकरे०मिच्छामि दुक्कडं. श्रावकप्रतिक्रमणसूत्र-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: तुम्हें आदेश द्यउ अहो; अंति: संघनी साखे खमावं छु, (वि. सातलाखसूत्र का टबार्थ नहीं दिया है.) ११९७०८. (+) श्रावक प्रतिक्रमण, त्रिकालभाव वंदना व चतुःशरण स्वाध्याय, संपूर्ण, वि. १९३५, श्रावण शुक्ल, १, मध्यम, पृ. ६, कुल पे. ३, प्रले. नारायण व्यास, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें-संशोधित., दे., (२५.५४१२.५, १२४३६). १.पे. नाम, श्रावक प्रतिक्रमण, पृ. १आ-६अ, संपूर्ण. साधुश्रावकप्रतिक्रमणसूत्र-तपागच्छीय, संबद्ध, प्रा.,मा.गु.,सं., प+ग., आदि: नमो अरिहंताणं नमो सिद्धाण; अंति: तस्स मिच्छामि दुक्कडं. २. पे. नाम. त्रिकालभाव वंदना, पृ. ६अ-६आ, संपूर्ण. नवकारमंत्र छंद, मा.गु., पद्य, आदि: पढो मंत्र नवकार ताप; अंति: प्राणी काई पढे, पद-२. ३. पे. नाम, चतुःशरण स्वाध्याय, पृ. ६आ, संपूर्ण. ४ शरणा सज्झाय, क. विजयभद्र, मा.गु., पद्य, आदि: पहिलो मंगलिक कहु हिव; अंति: वास जीवडो नवि लहै, गाथा-६. For Private and Personal Use Only Page #412 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२६ १९९७०९. जिनशतक सह टीका, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १३ - १ (१) १२, प्र. वि. पंचपाठ. दे. (२६.५x१२.५, २-५X३७-४३). Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir स्तुतिविद्या, आ. समंतभद्र, सं., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. प्रथम पत्र नहीं है व प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., श्लोक-२ से है व श्लोक-८६ अपूर्ण तक लिखा है.) स्तुतिविद्या-टीका, आ. वसुनंदि सैद्धांतिक, सं., गद्य, आदि (-); अंति (-), पू. वि. प्रथम पत्र नहीं है व प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण. ११९७१०. (१) उपदेशरसाल सह बालावबोध, संपूर्ण, वि. १९३९ कार्तिक शुक्ल, ११, मंगलवार, मध्यम, पृ. ८३, प्रले. मु. मोतीसागर (गुरु मु. रंगसागर ): गुपि. मु. रंगसागर, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. मूल पाठ का अंश खंडित है, दे., (२७४१२, १७३७-४०). , י सूक्तमाला, मु. केशरविमल, मा.गु. सं., पद्य, वि. १७५४, आदि (अपठनीय); अति गम्ब विचारणीयं वर्ग-४. सूक्तमाला-बालावबोध *, मा.गु., गद्य, आदि: (अपठनीय); अंति: विचारणीय क० विचार. ११९७११. (+) अनुयोगद्वारसूत्र सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ७८, ले. स्थल. वडोदा, प्रले. मु. चनाजी (गुरु मु. ढुंढीराम); गुपि मु. कुंडीराम (गुरु मु. राजरूपजी): मु. राजरूपजी (गुरु मु. रोखजी): मु. रीखजी (गुरु मु. हरकिशनदासजी); मु. हरकिशनदासजी (गुरु मु. स्वामाजी); मु. स्वामाजी (गुरु मु. धनजी) मु. धनजी (गुरु मु. जीवाजी); मु. जीवाजी, प्र.ले.पु. विस्तृत, प्र.वि. हुंडी: अनुयोग द्वार०., टिप्पण युक्त विशेष पाठ- संशोधित., जैदे., (२७X१२, ४-८X४०-४५). अनुयोगद्वारसूत्र आ. आर्यरक्षितसूरि प्रा. प+ग आदि णाणं पंचविहा पणत्ता तं; अंतिः जं चरणगुणडिओ साहू, 7 प्रकरण-३८, (वि. १८७५, चैत्र शुक्ल, ८, सोमवार) अनुयोगद्वारसूत्र - टवार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: ना० ज्ञान पंच प्रकार अंति: (१)तं० ए नय नाम चतुर्थ, (२) ते संपउति नगरं पविठा, (वि. १८७५, वैशाख कृष्ण, २, बुधवार) ११९७१४. (+) जिनसंहिता, अपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ८३-४३ (१ से ४३) = ४०, प्र. वि. हुंडी : जि०सं., जिनसंहि०., संशोधित., जैदे., (२७१२.५, १०x४१-४८). परिच्छेद-२१ जिनसंहिता, भट्टा, एकसंधि भट्टारक ऋषि, सं., पद्य, आदि (-); अति (-), (पू.वि. बीच के पत्र हैं.. श्लोक-५६ अपूर्ण से परिच्छेद - २८ श्लोक-२०६ अपूर्ण तक है.) ३९७ ११९७१५. (+#) १४ गुणठाणा २१ द्वार, संपूर्ण, वि. १९०३, फाल्गुन कृष्ण, १३, शनिवार, मध्यम, पृ. ६, ले. स्थल. बीलाडा, प्रले. सा. चनणा, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. हुंडी : गुणठांणा, संशोधित मूल पाठ का अंश खंडित है, दे. (२६५१२.५, २१४४७). १४ गुणठाणा २१ द्वार, मा.गु., गद्य, आदि नामद्वार १ लखण २ अति मिथ्यात्व जीव जाणवा. १९९७१६. पद्मावती स्तव सह मंत्राम्नाय कल्प, संपूर्ण, वि. १८९०, चैत्र कृष्ण, ४, शुक्रवार, मध्यम, पृ. ७, ले. स्थल, विसालपुर, प्रले. पंडित. लालु, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. हुंडी : पद्मावती पंचा., पद्मावती पं., जैदे., (२७X१२, १४४२-४६). पद्मावतीदेवी स्तव, सं., पद्य, आदि: श्रीमद्गीर्वाणचक्र; अंति: सर्वाधिव्याधिहरम्, श्लोक-२५. יי पद्मावतीदेवी स्तव मंत्राम्नाय कल्प, संबद्ध, मा.गु. सं., गद्य, आदिः ॐ ही वीज मध्ये अतिः कोपात् निदहे नो चिराय. ११९७१७. (+#) गौतमपूच्छा सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पृ. १, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र. वि. संशोधित अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जै. (२६४१२, ७४४५) गौतमपृच्छा, प्रा., पद्य, आदि नमिऊण तित्थनाहं अंति (-), (पू.वि. गाथा १४ अपूर्ण तक है.) गौतमपृच्छा-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि तीर्थनाथ श्रीमहावीर; अति: (-). ११९७१८. ३० चौवीसीजिन पूजा, अपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पृ. ९९-६६ (१ से ६६) = २५. पू. वि. बीच के पत्र हैं., जैदे., For Private and Personal Use Only (२७१२.५, ९X२८). ३० चौवीसीजिन पूजा, सं., प+ग, आदि (-); अंति (-) (पू.वि. पुष्करावर्तद्विपार्थे पश्चिम भरते अतीत चौवीसी जिन नाम पूजा श्लोक-३ अपूर्ण से ३० चौवीसी पूजा के अंतिम अर्घ्य पाठ श्लोक ७ तक है) ११९७२० (+) श्रावकविधिप्रकाश, प्रतिक्रमणसूत्र संग्रह व जयतिहुअण स्तोत्र, संपूर्ण वि. १९वी मध्यम, पू. १६, कुल पे, ४, प्र. वि. संशोधित मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., (२७४१२.५, १५X४४). 1 Page #413 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ३९८ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १. पे. नाम. श्रावकविधिप्रकाश, पृ. १आ-१२आ, संपूर्ण. श्रावकविधि प्रकाश, उपा. क्षमाकल्याण, मा.ग.,सं., गद्य, वि. १८३८, आदि: प्रणम्य श्रीजिनाधीशं; अंति: क्षमाकल्याण सोधीयो सुजान. २. पे. नाम. प्रतिक्रमणसूत्र, पृ. १२आ-१४आ, संपूर्ण. आवश्यकसूत्र-प्रतिक्रमणसूत्र संग्रह की टीका, सं., गद्य, आदि: सव्वलोए अरिहंतचेईयाणं; अंति: आलोउं० मिच्छामि दुक्कडं. ३. पे. नाम. वंदित्तुसूत्र, पृ. १४आ-१५आ, संपूर्ण. ___ संबद्ध, प्रा., पद्य, आदि: वंदित्तु सव्वसिद्धे; अंति: वंदामि जिणे चउवीसं, गाथा-५०. ४. पे. नाम, थंभनकतीर्थराज पार्श्वनाथ स्तवन, पृ. १५आ-१६आ, संपूर्ण. जयतिहअण स्तोत्र, आ. अभयदेवसूरि , प्रा., पद्य, वि. १२वी, आदि: जय तिहुयणवरकप्परुक्ख जय; अंति: अभय० विन्निवइ आणंदिय, गाथा-३०. ११९७२२. (+) रत्नपालरत्नावती चौपाई, अपूर्ण, वि. १८४०, आश्विन कृष्ण, ८, गुरुवार, मध्यम, पृ. ४८-१(१)-४७, प्रले. मु. विनयचंद्र, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. हुंडी:रत्नपालचौ०., संशोधित-प्रतिलेखन पुष्पिका मिटाई हुई है. कुल ग्रं. २१०१, जैदे., (२६.५४१२, १५४४०). रत्नपालरत्नावती चौपाई, म. मोहनविजय, मा.गु., पद्य, वि. १७६०, आदि: (-); अंति: लच्छी मोहनविजय विलास जी, खंड-४ ढाल ६६, गाथा-१३७२, ग्रं. १२८५, (पू.वि. खंड-१ ढाल-१ गाथा-३ अपूर्ण से है.) ११९७२४. (+#) तत्त्वार्थाधिगमसूत्र सह अवचूरि, संपूर्ण, वि. १९३८, ज्येष्ठ कृष्ण, १४, मध्यम, पृ.७१, ले.स्थल. विक्रमपुर, प्रले. वंशीलाल महात्मा; अन्य. मु. पुण्यविजय (गुरु मु. भीमविजय); गुपि. मु. भीमविजय (गुरु मु. प्रीतिविजय); मु. प्रीतिविजय (गुरु उपा. लावण्यविजय); अन्य. मु. चंदनविजय, प्र.ले.पु. मध्यम, प्र.वि. पुण्यविजयजी के द्वारा लिखी गई प्रत की प्रतिलिपि प्रतीत होती है., त्रिपाठ-संशोधित. मूल पाठ का अंश खंडित है, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२५४१२, १४४३९). तत्त्वार्थाधिगमसूत्र, वा. उमास्वाति, सं., गद्य, आदि: (१)मोक्षमार्गस्य नेतारं, (२)सम्यग्दर्शनज्ञान; अंति: बहुतत्त्वतः साध्याः, अध्याय-१०. तत्त्वार्थाधिगमसूत्र-श्रुतसागरी टीका की अवचूरि, श्राव. पांचा ब्रह्मचारी, सं., गद्य, आदि: अहमुमास्वाति नाम; अंति: परमागमात सिद्धं बोध्यं. ११९७२७. (+) जैनधार्मिक श्लोक संग्रह व सर्वजिनमिश्रित स्तोत्र, संपूर्ण, वि. १९३२, श्रावण कृष्ण, ११, मध्यम, पृ. ५, कुल पे. २, ले.स्थल. बीदासर, पठ. श्राव. भरू, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरे-संशोधित., दे., (२५४१२, १२४२८-३२). १. पे. नाम, जैनधार्मिक श्लोक संग्रह, पृ. १अ-५अ, संपूर्ण. ___ श्लोक संग्रह जैनधार्मिक, प्रा.,सं., पद्य, आदि: धर्माज्जन्मकुले० सौभ; अंति: दसणरहिया न सिझंति, श्लोक-६०. २.पे. नाम. सर्वजिनमिश्रित स्तोत्र, पृ. ५अ-५आ, संपूर्ण.. २४ जिन स्तोत्र-पंचषष्ठियंत्रगर्भित, म. नेतसिंह कवि, सं., पद्य, आदि: वंदे धर्मजिनं सदा; अंति: संग्रंथितः सौख्यदः, श्लोक-४. ११९७२८. (+) संग्रहणीसूत्र प्रकरण, संपूर्ण, वि. १९०५, आश्विन शुक्ल, ८, गुरुवार, श्रेष्ठ, पृ. १४, ले.स्थल. सिरदारशहर, प्रले. श्राव. नारायण, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. हंडी:संग्रहणी०., संग्रेणीस., संशोधित., दे., (२५४१२, १४४४०-४४). बृहत्संग्रहणी, आ. चंद्रसूरि, प्रा., पद्य, वि. १२वी, आदि: नमिऊं अरिहंताई ठिइ; अंति: जा वीरजिण तित्थं, गाथा-३७७. ११९७२९. स्नात्र विधि, देवजयमाला व पूजाष्टक, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ९, कुल पे. ३, जैदे., (२५४१२.५, ११४२३). १. पे. नाम. स्नात्र विधि, पृ. १अ-८आ, संपूर्ण. स्नात्रपूजा संग्रह, मु. भिन्न भिन्न कर्तृक, प्रा.,मा.गु.,सं., प+ग., आदि: मुक्तालंकार विकार; अंति: कणया० पयाहिणंदितो. २.पे. नाम, देवजयमाला, पृ. ८आ-९आ, संपूर्ण. अप., पद्य, आदि: वत्ताणे ठाणे जण धनदाने पय; अंति: पुणविविह अरहंतावलिहि. For Private and Personal Use Only Page #414 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२६ ३. पे. नाम. पूजाष्टक, पृ. ९आ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. श्राव. प्राणलाल सेन, मा.गु., पद्य, आदि: क्षीर नीरसु नीर नीरमल जल; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-२ अपूर्ण तक है.) ११९७३० (+#) सुषमछत्रीसी व भगवतीसूत्र शतक-३०, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ९-४(१ से ३,८)=५, कुल पे. २, प्र.वि. हुंडी:सुक्ष्मछती०., समोसर०., द्विपाठ-संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६४१२, १०x२५). १. पे. नाम. सुषमछत्रीसी, पृ. ४अ, अपूर्ण, पू.वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं. मु. उदय ऋषि, मा.गु., पद्य, वि. १८४१, आदिः (-); अंति: उदे रिष० ज्ञान विचार जी, गाथा-६२, (पू.वि. गाथा-६० अपूर्ण २.पे. नाम. भगवतीसूत्र-शतक ३० समवसरण विचार, पृ. ४अ-९आ, अपूर्ण, पृ.वि. बीच का एक पत्र नहीं है. संबद्ध, मा.गु., गद्य, आदि: जीवा१ लेस्य८ पष्य२ दिष्ट३; अंति: समोसरण भव अभव दोनु जाणवा, (पू.वि. बीच के कुछ पाठांश नहीं है.) ११९७३२. भक्तामर स्तोत्र सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १८३५, मध्यम, पृ. १०, ले.स्थल. सागवाडानगर, प्रले. मु. मनरूपसागर (गुरु मु. माणिक्यसागर); गुपि. मु. माणिक्यसागर (गुरु मु. रत्नसागर); मु. रत्नसागर (गुरु मु. दोलितसागर); मु. दोलितसागर, प्र.ले.पु. मध्यम, प्र.वि. हुंडी:भक्ता०., जैदे., (२५४१२, ४४३८). भक्तामर स्तोत्र, आ. मानतुंगसूरि, सं., पद्य, आदि: भक्तामरप्रणतमौलिमणि; अंति: मानतुंग० लक्ष्मीः , श्लोक-४४. भक्तामर स्तोत्र-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: भक्तिवंत जे अमरदेवता; अंति: नइ विसे समुपेती क० संपदा. ११९७३३. (+) भुवनदीपक सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ.८, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२५.५४१२.५, ६४४१-४४). भुवनदीपक, आ. पद्मप्रभसूरि, सं., पद्य, वि. १३पू, आदि: सारस्वतं नमस्कृत्य; अंति: (-), (पू.वि. श्लोक-११८ अपूर्ण तक है.) भुवनदीपक-टबार्थ *, मा.गु., गद्य, आदि: सरस्वती संबंधीयो महकता; अंति: (-). ११९७३४. (+#) समवायांगसूत्र सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ७६-५१(१ से ५१)+१(६३)=२६, पू.वि. बीच के पत्र हैं., प्र.वि. संशोधित-टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५४१२.५, ७४३८). समवायांगसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. समवाय-५७ अपूर्ण से प्रकीर्णक समवाय सूत्र-२२२ अपूर्ण तक है.) समवायांगसूत्र-टबार्थ *, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: (-). ११९७३५ (+) पार्श्वजिन स्तुति, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें., जैदे., (२४.५४१२, १२४२२). पार्श्वजिन स्तुति, मु. कुशल, सं., पद्य, आदि: वें वें कि धपमप; अंति: शं दिशतु शासन देवता, श्लोक-४. ११९७३८. पाशाकेवली का बालावबोध, संपूर्ण, वि. १९४४, आश्विन कृष्ण, ८, शुक्रवार, मध्यम, पृ. ५, अन्य. मु. हीर, प्र.ले.पु. सामान्य, दे., (२४.५४१२.५, ११४२५). पाशाकेवली-भाषा, संबद्ध, मा.गु., गद्य, आदि: (१)प्रणम्य श्रीमहावीर केवल, (२)ॐ नमो भगवति; अंति: सजन मिलइ ___ मनोरथ पूर्ण होसी, (वि. प्रारंभिक श्लोक मूलपाठ के हैं.) ११९७४१. स्तवनचौवीसी, संपूर्ण, वि. १९३१, आषाढ़ अधिकमास कृष्ण, ६, सोमवार, मध्यम, पृ. १३, प्रले. श्राव. लाडाणा डामर दोसी; पठ. श्रावि. धोरीबाई, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. अंत मे "लिखतं इम्रतश्री जोधपुर मध्ये खीवसरा छगनीरामजी वाचनारथं संवतं अढारे ७६रा मा भाद्रवा सुद १३ वार सुकरे नी लखेली" लिखा है. उपर्युक्त वर्ष में लिखी प्रत की प्रतिलिपि है., दे., (२३.५४१२, १३४२८-३२). स्तवनचौवीसी, मु. आनंदघन; आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., पद्य, वि. १८पू, आदि: ऋषभ जिनेश्वर प्रीतम; अंति: आनंदघन प्रभु जागै जी, स्तवन-२४. For Private and Personal Use Only Page #415 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ४०० कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ११९७४२. (+) ४ प्रत्येकबुद्ध रास-खंड १, संपूर्ण, वि. १९४७, आषाढ़ कृष्ण, ७, सोमवार, मध्यम, पृ. १२, ले.स्थल. खीवसर, प्रले. मु. खीवराज; राज्यकालरा. सादुलसिंघजी राठोर; अन्य. रणजितसिंहजी कंवर, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. हुंडी:पदमावतीचो०. प्रतिलेखक ने प्रारंभ व अन्त में कृतिनाम पद्मावती चौपाई लिखा है., पदच्छेद सूचक लकीरे-संशोधित., दे., (२३४१२, ११४३०). ४ प्रत्येकबुद्ध रास, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, वि. १६६५, आदि: श्रीसिद्धारथ कुलतिलउ; अंति: (-), प्रतिपूर्ण. ११९७४३. (#) ज्ञानचिंतामणी दोहा, संपूर्ण, वि. १९४१, श्रावण शुक्ल, १, मध्यम, पृ. ७, ले.स्थल. खीसागाम, प्रले. मु. पुण्यसागर यति, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, प्र.ले.श्लो. (१४६२) करकट ग्रीवा नैन करकट ग्रीवा नैन मुख, दे., (२२४१२, १२४२४). ज्ञानचिंतामणी दोहा, मु. मनोहरदास, मा.गु., पद्य, वि. १७२८, आदि: सकल विद्या वरदायनी; अंति: उपगरि करि कहै मनोहरदास, गाथा-१२७. ११९७४५ (+) औपदेशिक पद, लावणी, कवित्त व सज्झायादि संग्रह, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ४०-११(१ से २,५,१०,१३,१७,२२,२४,२६,३०,३४)=२९, कुल पे. १४४, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें., दे., (२४४१२, २१४५४-५९). १.पे. नाम. औपदेशिक पद, पृ. ३अ, संपूर्ण, पे.वि. हुंडी;सुण चेत नर थारे. मु. अमोलक, पुहि.,रा., पद्य, आदि: (१)मने साध मिलावो रे दरसण, (२)सुण चेतनराया रे क्यो कर; अंति: मरण का कहे अमोलक तेरा रे, गाथा-५, (वि. गाथांक गिनकर लिखा है.) २. पे. नाम, औपदेशिक पद, पृ. ३अ, संपूर्ण. मु. अमोलक, रा., पद्य, आदि: फूले मति तन धन संपत पाइ; अंति: अमोलक कहै पामो आरामि, गाथा-५, (वि. गाथांक गिनकर लिखा है.) ३. पे. नाम. औपदेशिक पद, पृ. ३अ, संपूर्ण. मु. अमोलक, रा., पद्य, आदि: रे चेतन सूदरि मन बिगाड रे; अंति: अमोलक कहे सुगड सुधार रे, गाथा-५, (वि. गाथांक गिनकर लिखा है.) ४. पे. नाम. औपदेशिक पद, पृ. ३अ, संपूर्ण. मु. अमोलक, रा., पद्य, आदि: जागो रे प्यारे मान हमारि; अंति: रिष अमोलक दरसात, गाथा-५, (वि. गाथांक गिनकर लिखा है.) ५.पे. नाम. औपदेशिक पद, पृ. ३अ, संपूर्ण. म. अमोलक, रा., पद्य, आदि: जिवाजी थारा दिल माहे काइ; अंति: अमोलक०मक्ति मे जासि हंसि, गाथा-५, (वि. गाथांक गिनकर लिखा है.) ६.पे. नाम. औपदेशिक पद, पृ. ३अ, संपूर्ण. म. अमोलक, पुहिं., पद्य, आदि: बता दे भया इस जगमे तेरा; अंति: ले ले अमोल सुख जोन, गाथा-५, (वि. गाथांक गिनकर लिखा है.) ७. पे. नाम, औपदेशिक पद, पृ. ३अ, संपूर्ण. म. अमोलक, पुहिं., पद्य, आदि: मान मान मेरि बात सयाना; अंति: अमोल० अमरपुर ठाना रे, गाथा-५, (वि. गाथांक गिनकर लिखा है.) ८. पे. नाम. आध्यात्मिक पद, पृ. ३आ, संपूर्ण. म. अमोलक, पुहिं., पद्य, आदि: चेतन तुं तो हुवा हे बइमान; अंति: आगे पावेगा अमोलरूष ज मान, गाथा-५, (वि. गाथांक गिनकर लिखा है.) ९. पे. नाम. धर्मपरीक्षा पद, पृ. ३आ, संपूर्ण. मु. अमोलक, पुहिं., पद्य, आदि: आनंदकारि जेनधरम जग देते; अंति: अमोल रिष० पावेगा अजर अमर, गाथा-५, (वि. गाथांक गिनकर लिखा है.) १०. पे. नाम. आध्यात्मिक लावणी, पृ. ३आ, संपूर्ण. For Private and Personal Use Only Page #416 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२६ ४०१ आध्यात्मिक लावणी-जीव आत्मा, म. अमोलक, पुहिं., पद्य, आदि: जीव आतम कि बोहत प्रीती; अंति: अमोल रूषि लावणि गाइ, गाथा-५, (वि. गाथांक गिनकर लिखा है.) ११. पे. नाम, आध्यात्मिक पद, पृ. ३आ, संपूर्ण. मु. अमोलक, पुहिं., पद्य, आदि: चेतन तुं तो हुवा नादान; अंति: सुक्ररतकू मान अमोलक बात, गाथा-५, (वि. गाथांक गिनकर लिखा है.) १२. पे. नाम. औपदेशिक पद, पृ. ३आ-४अ, संपूर्ण. मु. अमोलक ऋषि, पुहिं., पद्य, वि. १९५७, आदि: तुं देख तमासा थाहारा जग; अंति: रिष अमोलक गवणहारा, गाथा-५, (वि. गाथांक गिनकर लिखा है.) १३. पे. नाम, आध्यात्मिक पद, पृ. ४अ, संपूर्ण. मु. अमोलक, पुहिं., पद्य, आदि: भुल गये क्यो भाई तुम अपना; अंति: रिष अमोल बताइ, गाथा-४. १४. पे. नाम, औपदेशिक पद, पृ. ४अ, संपूर्ण. मु. अमोलक, पुहिं., पद्य, आदि: ए तन पोसत कोन सुगना रे; अंति: अमोल कहे० दूरलभ पुना रे, गाथा-५. १५. पे. नाम. औपदेशिक पद, पृ. ४अ, संपूर्ण. ___मु. अमोलक, पुहिं.,रा., पद्य, आदि: बनि रे भाइ बनि रे अजु लग; अंति: अमल० करलो प्रभुकू सिर धनि, गाथा-४. १६. पे. नाम, औपदेशिक पद, पृ. ४अ, संपूर्ण. पुहि., पद्य, आदि: तु लेले खरचि संग सयाना; अंति: जाता तब लेता हे साते खाना, गाथा-५. १७. पे. नाम, औपदेशिक पद, पृ. ४अ, संपूर्ण. औपदेशिक पद-काया जीव संबोधन, म. अमोलक, पुहिं., पद्य, आदि: यो काया कहे करजोडि मत; अंति: जि यु अमोल रिष करे होडि, गाथा-९. १८. पे. नाम, औपदेशिक पद, पृ. ४आ, संपूर्ण. औपदेशिक पद-कर्म की रीति, मु. आनंदघन, मा.गु., पद्य, आदि: राम कहो रेमान कहो कोइ; अंति: आनंदघन चेतनमय निःकर्मरी, गाथा-४. १९. पे. नाम. औपदेशिक पद, पृ. ४आ, संपूर्ण. औपदेशिक पद-अभिमान परिहार, दलपतराम, पहिं., पद्य, आदि: अति अपमान करि दिया बिन; अंति: दलपतराम० अति बोत सरम छे, (वि. गाथांक नहीं लिखा है.) २०. पे. नाम. आध्यात्मिक पद, पृ. ४आ, संपूर्ण. औपदेशिक पद-आध्यात्मिक, कबीर, पुहि., पद्य, आदि: मोकु कहाँ तूं ढूंढे; अंति: कबिरा०हरि एक वसे विसवासमे, गाथा-४. २१. पे. नाम, औपदेशिक पद, पृ. ४आ, संपूर्ण. औपदेशिक पद-मानवभव, पुहिं., पद्य, आदि: माहा दूरलभ नरभव पायो तेने; अंति: अमिरष सुख सवायो, गाथा-६. २२. पे. नाम, औपदेशिक पद, पृ. ४आ, संपूर्ण. रा., पद्य, आदि: अव थने जोग मिल्यो छे रे; अंति: भावो या लारा लिजो खरचि, गाथा-५. २३. पे. नाम, औपदेशिक सज्झाय, प.६अ, संपूर्ण. म. राम, मा.गु., पद्य, आदि: बांदो मति कर्म चिकणा; अंति: इण दृष्टांते जाण, गाथा-७. २४. पे. नाम, महावीरजिन स्तवन, पृ. ६अ, संपूर्ण. म. राम, पुहिं., पद्य, आदि: नाथ केसे कर्मा को फंद; अंति: राम कहे० किम आलस दर्सायो, गाथा-८. २५. पे. नाम, औपदेशिक सज्झाय, पृ. ६अ, संपूर्ण. औपदेशिक सज्झाय-घेबर, रा., पद्य, आदि: गेवर नि खाया खाया गेरना ए; अंति: छुटे नहि भुगते आपोहि आप, गाथा-८. २६. पे. नाम. औपदेशिक सज्झाय-कर्म, पृ. ६अ-६आ, संपूर्ण. For Private and Personal Use Only Page #417 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ४०२ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची आ. हरखसूरि, पुहिं., पद्य, आदि: कर्म संजोगे सुख दुख पाया; अंति: हरकसरि० नमो सिध राजा रे, गाथा-२२. २७. पे. नाम, औपदेशिक सज्झाय, पृ. ६आ, संपूर्ण. रा., पद्य, आदि: प्राणि थारा करमा सामो जोय; अंति: मिल्यो सतगरू जोग, गाथा-८. २८. पे. नाम, कक्काबत्रीसी, पृ. ६आ, संपूर्ण. मु. तिलोक ऋषि, पुहि., पद्य, आदि: कका करम कि अजब गति हे मत; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., मात्र प्रथम गाथा लिखा है) २९. पे. नाम. नोपकर्मि सोपकर्म आयुष, पृ. ७अ, संपूर्ण. सोपक्रम निरूपक्रम आयुष्य विचार, मा.गु., गद्य, आदि: (१)आउस दोय प्रकारनो सोपकर्मि, (२)गणा कालनो आऊ थोडा कालमे; अंति: सोपकर्मिना ववहार० कइजे. ३०. पे. नाम. ओपदेशिक सज्झाय, पृ. ७आ, संपूर्ण. औपदेशिक सज्झाय, नानु चवाण, पुहिं., पद्य, आदि: कर्म नचावे जुहि नाचे उचि; अंति: नानु०मुगति मारग पकडो रसता, गाथा-५. ३१. पे. नाम, औपदेशिक सवैया, पृ. ७आ, संपूर्ण. औपदेशिक सवैया संग्रह-जैनधर्म, पुहिं., पद्य, आदि: काउन गलाल काउ मोतियन कि; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., सवैया-३ तक लिखा है.) ३२. पे. नाम. आध्यात्मिक भावना, प्र. ८अ, संपूर्ण. पुहिं., पद्य, आदि: भावनारूप भुजा करो हेत; अंति: सुख सासता पावे जी, (वि. गाथांक नहीं लिखा है.) ३३. पे. नाम, आध्यात्मिक सज्झाय, पृ. ८अ, संपूर्ण. आध्यात्मिक सज्झाय-भाव राखडी, सा. जडाव, रा., पद्य, वि. १९६६, आदि: मारा केवर विरा हंस बांधु; अंति: जडाव कहे०करता मंगल मार रे, गाथा-९. ३४. पे. नाम, औपदेशिक सज्झाय-गौरक्षा, पृ. ८अ-८आ, संपूर्ण. सा. जडाव, पुहिं., पद्य, वि. १९६८, आदि: सुणो मुलक माहाराजा गउ; अंति: जडाव कहे० सुण सुण कजोरिजी, (वि. गाथांक नहीं लिखा है.) ३५. पे. नाम, औपदेशिक सज्झाय, पृ. ८आ, संपूर्ण. दया सज्झाय, मु. विसनलाल, पुहिं., पद्य, वि. १९६२, आदि: दया विन करणी नंननन; अंति: विसनलाल० मोक्ष मिले सननन, (वि. गाथांक नहीं लिखा है.) ३६. पे. नाम. दीपावलीपर्व रास, पृ. ९अ, संपूर्ण. मु. जेमल ऋषि, मा.गु., पद्य, आदिः (१)दिवालि दिन मोटको ए, (२)भजन करो भगवानरो गणधर; अंति: पुज्य जेमलजी जोड छे, गाथा-३२. ३७.पे. नाम. दीपावलीपर्व कथा, पृ. ९अ-९आ, संपूर्ण. मा.गु., गद्य, आदि: दिवालीने प्रबाते रामा; अंति: जुहार राम० आजभि करे छै. ३८. पे. नाम, औपदेशिक सज्झाय, पृ. ९आ, संपूर्ण. औपदेशिक सज्झाय-दयापालने, म. हीरालाल, रा., पद्य, वि. १९४४, आदि: मारी दयामाता थाने; अंति: हिरालाल० भव भव साता हे, गाथा-११. ३९. पे. नाम. छट्ठाआरा सज्झाय, पृ. ११अ, अपूर्ण, पू.वि. प्रथम पत्र नहीं है. मु. हीरालाल, मा.गु., पद्य, वि. १९६३, आदि: (-); अंति: हीरालाल प्रकास्योजि, गाथा-१२, (पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., गाथा-५ अपूर्ण से लिखा है व प्रारंभ में किसी अज्ञात कृति का आंशिक पाठ है.) ४०. पे. नाम, औपदेशिक सज्झाय, पृ. ११अ, संपूर्ण. रा., पद्य, आदि: प्रभुजि माने नोम तणो आदार; अंति: जिवडा ज्याने दूरगति त्यार, गाथा-७. ४१. पे. नाम, औपदेशिक सज्झाय-पंचमआरा, पृ. ११अ, संपूर्ण. . For Private and Personal Use Only Page #418 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ४०३ हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२६ रा., पद्य, आदि: पुरो सुख नहि यो पांचमे; अंति: राजालोभि०एक दूख लागो लारे, गाथा-९. ४२. पे. नाम. औपदेशिक पद-कलियुग, पृ. ११अ, संपूर्ण.. रा., पद्य, आदि: धर्म कर्म रया नहि कलुमा; अंति: कलजुगमे लोग बडे तरकुठ है, पद-१. ४३. पे. नाम. पंचमआरा स्वरूप, पृ. ११आ, संपूर्ण. पंचमआरा स्वरूप-सिद्धपाहड, रा., गद्य, आदि: कोसबिनगरि जितसतरूराजा; अंति: तिर्थंकर जन्मसे इत्यादि. ४४. पे. नाम, पंचमआरा विवरण-मोक्षादिगमन, पृ. १२अ, संपूर्ण. पुहि., गद्य, आदि: पाचमा आरामे सुद्ध आचारी; अंति: २१००० वरस लग सासन चालसे. ४५. पे. नाम. कलयुग पद, पृ. १२आ, संपूर्ण. कलियुग पद, रंगलाल, पुहि., पद्य, आदि: हाका धाका कूर जग आयो तिन; अंति: मेहंत मोठा मुलककि भेट आवे, गाथा-७. ४६. पे. नाम. कलियुग सज्झाय, पृ. १२आ, संपूर्ण. मु.रामचंद, रा., पद्य, आदि: हराहर कूलजग चल आयो रे; अंति: रामचंद्र० धर्मध्यान किजे, गाथा-१०. ४७. पे. नाम. कलियुग सज्झाय, पृ. १२आ, संपूर्ण. पुहि., पद्य, आदि: हलाहल कलियुग मत जाणो रे; अंति: ओर तिन जोगसे रिधि छो सारि, गाथा-७. ४८. पे. नाम. छट्ठाआरा वर्णन सज्झाय, पृ. १२आ, अपूर्ण, पू.वि. अंतिम पत्र नहीं है. रा., पद्य, आदि: गोतमसामि पुछा करे करजोडि; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-६ अपूर्ण तक है.) । ४९. पे. नाम. कलावतीसती चौढालियो, पृ. १४अ-१४आ, संपूर्ण, वि. १९७७, चैत्र शुक्ल, ८, ले.स्थल. जावद, प्रले. मु. हिरालाल ऋषि, प्र.ले.पु. सामान्य. मु. रंग, मा.गु., पद्य, वि. १८३५, आदिः (१)सियल तणा गुण सामलो मालवदे, (२)मालवदेस मनुहरू तिहा नगरि; अंति: मानसि जेय जयवरे, ढाल-४. ५०. पे. नाम. समता सज्झाय, पृ. १५अ, संपूर्ण. मु. रतनचंद, पुहिं., पद्य, आदि: समता रस का प्याला; अंति: पामे केवलज्ञान, गाथा-५. ५१. पे. नाम. औपदेशिक दोहा, पृ. १५अ, संपूर्ण. कबीरदास संत, पुहिं., पद्य, आदि: हार्या ज्याने हर मिल्या; अंति: कबिरा यु कहे बेठा खायो गम, दोहा-१. ५२. पे. नाम. औपदेशिक सज्झाय-क्षमापना, पृ. १५अ, संपूर्ण. मु. हीरालाल, पुहिं., पद्य, वि. १९७९, आदि: खम्या करो नित भावसु खर्च; अंति: हीरा० खम्याथि सुख गणा पाय, गाथा-१५. ५३. पे. नाम, औपदेशिक सज्झाय, पृ. १५अ-१५आ, संपूर्ण. औपदेशिक सज्झाय-समता, मु. हीरालाल, पुहिं., पद्य, वि. १९७९, आदि: समतारस धारि हो गुणधारि; अंति: हीरा० निश्चे मुक्त सुककार, गाथा-१२. ५४. पे. नाम. औपदेशिक सज्झाय, पृ. १५आ, संपूर्ण. औपदेशिक सज्झाय-क्रोधपरिहार, म. रामचंद, पुहिं., पद्य, आदि: खम्या किया सुख पामिये; अंति: छोडदे रे वेजणा कि बाजि जि, गाथा-११. ५५. पे. नाम. औपदेशिक सज्झाय, पृ. १५आ, संपूर्ण. औपदेशिक सज्झाय-क्रोधपरिहार, पुहिं., पद्य, आदि: क्रोध मत किजो रे प्राणी; अंति: चितरा भव संचित प्रगटानि, गाथा-५. ५६. पे. नाम. औपदेशिक सज्झाय, पृ. १५आ, संपूर्ण. क्रोधपरिहार सज्झाय, पुहि., पद्य, आदि: क्रोध मत करीये० क्रोध; अंति: उनका सरणा तुम लेणा रे, गाथा-४. ५७. पे. नाम. अवंतिसुकुमार सज्झाय, पृ. १६अ-१६आ, संपूर्ण. For Private and Personal Use Only Page #419 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ४०४ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: मनोहर मालव देश तिहां; अंति: नयविमल गावे गुण खरा जी, गाथा-४३. ५८. पे. नाम, औपदेशिक सज्झाय, पृ. १६आ, अपूर्ण, पू.वि. अंतिम पत्र नहीं है. औपदेशिक सज्झाय-कर्मविचित्रता, पहिं., पद्य, आदि: कर्म कि बात बडि भारि रे; अंति: (-), (प.वि. "सारो मिल्यो आइ" पाठ तक है., वि. गाथांक नहीं लिखा है.) ५९. पे. नाम, औपदेशिक सज्झाय, पृ. १८अ, संपूर्ण. पुहि., पद्य, आदि: मन अंदर नहि साफ जिया फिर; अंति: अमोल कहे वो जन्म जित लिया, गाथा-५, (वि. गाथा गिनकर लिखा है.) ६०. पे. नाम, औपदेशिक सज्झाय, पृ. १८अ, संपूर्ण. औपदेशिक सज्झाय-शुद्धभाव, मु. हीरालाल, पुहिं., पद्य, आदि: रे जीवा भाव सुध तुम राखजो; अंति: हिरालाल० भावथी कर्म खपाय, गाथा-७, (वि. गाथा गिनकर लिखा है.) ६१. पे. नाम, औपदेशिक सज्झाय, पृ. १८अ, संपूर्ण. मु. मेघ, पुहि., पद्य, आदि: हे कोइ जुगमे सुरे रे एलि; अंति: मेग कहे० दिन पुन सवायो रे, गाथा-५. ६२. पे. नाम, आध्यात्मिक सज्झाय, पृ. १८अ, संपूर्ण. म. राम, पुहिं., पद्य, आदि: मना थने किण विध समजाउ रे; अंति: राम० नमसकार मेरा होना, गाथा-५. ६३. पे. नाम, औपदेशिक पद, पृ. १८अ, संपूर्ण. औपदेशिक पद-जीव, रा., पद्य, आदि: जिवडाने मत मेलो रे यो मन; अंति: जोवो निहि वडे विचार, गाथा-३. ६४. पे. नाम. औपदेशिक सज्झाय-मनवशीकरण, पृ. १८अ-१८आ, संपूर्ण. मु. हीरालाल, रा., पद्य, आदि: मन नहि माने मारि केण हो; अंति: हिरालाल०मोक्ष तणा फल पावे, गाथा-५. ६५. पे. नाम. औपदेशिक सज्झाय, पृ. १८आ, संपूर्ण. पुहि., पद्य, आदि: मनवा नाय विचारि रे लोभिडा; अंति: उतारो सरनो लियो चरनारि रे, गाथा-५. ६६. पे. नाम. प्रसन्नचंद्रराजर्षि सज्झाय, पृ. १८आ, संपूर्ण. मु. रूपविजय, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: प्रसनचंद प्रणमु तुमा; अंति: रूप० रूषी रे दिठा प्रतक्ष, गाथा-६. ६७. पे. नाम. औपदेशिक सज्झाय, पृ. १८आ, संपूर्ण. उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: धोबिडा थु धोजे मनरो धोति; अंति: समय०मन सुद कर वेगि मेल रे, गाथा-६. ६८. पे. नाम. औपदेशिक सज्झाय, पृ. १८आ, संपूर्ण. औपदेशिक सज्झाय-मनवशीकरण, म. आनंदघन, पुहिं., पद्य, वि. १८वी, आदि: मना तु जीनचरणा चित लावो; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., गाथा-३ तक लिखा है.) ६९. पे. नाम. औपदेशिक दोहा संग्रह, पृ. १८आ, संपूर्ण.. औपदेशिक दोहा संग्रह-मन, पुहि., पद्य, आदि: मन लोभि मन लालचि मन कामना; अंति: मनतो मृग जेसि फलंग भरे हे, गाथा-७. ७०. पे. नाम, महावीरजिन स्तवन, पृ. १९अ, संपूर्ण. महावीरजिन स्तवन-पारणागर्भित, मा.गु., पद्य, आदि: चोमासी इग्यारमी; अंति: अणुमोदनाजी जीरणसेठ फल जोय, गाथा-२८. ७१. पे. नाम. महावीरजिन स्तवन, पृ. १९अ-१९आ, संपूर्ण. महावीरजिन स्तवन-१३ बोलगर्भित तप, म. चोथमल ऋषि, रा., पद्य, वि. १८५८, आदि: सासणनायक संजम लेने तपमे; अंति: रिष चोतमल० सुणता सुख थाइ, गाथा-३०. ७२. पे. नाम. चेलणासती सज्झाय, पृ. १९आ, संपूर्ण. उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, आदि: विरजि वखाणि राणि चेलणाजी; अंति: समयसुंदर० भवनो पार, गाथा-७. For Private and Personal Use Only Page #420 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२६ ४०५ ७३. पे. नाम. औपदेशिक सवैया, पृ. १९आ, संपूर्ण. म. हीरालाल, पुहिं., पद्य, आदि: भाव समुद्र कि नाव हे भाव; अंति: हीरालाल. भावसे तिरिजीये. सवैया-२. ७४. पे. नाम. लक्ष्मीपति सज्झाय, पृ. २०अ-२१अ, संपूर्ण. म. अमोलक ऋषि, रा., पद्य, वि. १९५६, आदि: पुन चिज हे बडि जगतमे सुख; अंति: अमोलकऋषि यूं कहता रे, गाथा-३०. ७५. पे. नाम. औपदेशिक सज्झाय, पृ. २१अ, संपूर्ण. औपदेशिक सज्झाय-स्वार्थी जगत, पुहि., पद्य, आदि: अजब तमासा सुपना हे; अंति: जीम पाणि बिच पतासा रे, गाथा-७. ७६. पे. नाम. औपदेशिक पद, पृ. २१आ, संपूर्ण. औपदेशिक पद-पुण्योपरि, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, आदि: पारकी होड तुं मत कर; अंति: समयसुंदर० मिलेगा बात मोटि, गाथा-९. ७७. पे. नाम. १३ काठिया सज्झाय, पृ. २३अ, अपूर्ण, पू.वि. प्रथम पत्र नहीं है. मु. तिलोक ऋषि, मा.गु., पद्य, वि. १९३९, आदि: (-); अंति: तिलोक रीष० भवजल पार, गाथा-१५, (पू.वि. गाथा-६ अपूर्ण से है.) ७८. पे. नाम. अमरकुमार सज्झाय, पृ. २३अ-२३आ, अपूर्ण, पू.वि. अंतिम पत्र नहीं है. म. कवियण, मा.ग., पद्य, आदि: राजगरि नगरि भलि तिया सेणक; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-५३ तक है.) ७९. पे. नाम. औपदेशिक सवैया, पृ. २५अ, संपूर्ण.. औपदेशिक पद-मृषावाद, मु. लालचंद, मा.गु., पद्य, आदि: जुठ दुजो पाप मरषावाद बचन; अंति: लालचंद० सुतरजि कि साखी रे, गाथा-२, (वि. गाथांक क्रमश १ से २) ८०. पे. नाम. औपदेशिक पद, पृ. २५अ, संपूर्ण. म. बालचंद्र, पुहिं., पद्य, आदि: काये को बोले प्राणि जुठ; अंति: बालचंद० जुठन रा तार रे, गाथा-१, (वि. गाथांक क्रमश-३.) ८१. पे. नाम. सुभाषित श्लोक संग्रह, पृ. २५अ, संपूर्ण. सभाषित श्लोक संग्रह , मा.गु.,सं., पद्य, आदि: दोष भरि न प्रकासिये जदपि; अंति: बडा प्राणिना प्राण गात, श्लोक-७. ८२. पे. नाम, औपदेशिक कवित्त संग्रह, पृ. २५अ, संपूर्ण. पुहि.,मा.गु., पद्य, आदि: सिखो हे अनेक लेख गित कवित; अंति: मोक्ष रूप सुख न मिले, (वि. गाथांक अस्पष्ट है.) ८३. पे. नाम. रसना सज्झाय, पृ. २५आ, संपूर्ण. मु. चोथमल, रा., पद्य, आदि: रसना सिदि बोल थारे तो; अंति: छोतमलने सिख सुणाइरे, (वि. गाथांक नहीं लिखा है.) ८४. पे. नाम. ५ इंद्रिय वशीकरण सज्झाय, पृ. २५आ, संपूर्ण. पुहिं., पद्य, आदि: (१)कायानगर सुवावणो चेतन केरो, (२)रे जिवा इंद्रिया वस करो; अंति: व्यावचमे काडो देहिनो सार, (वि. गाथांक नहीं लिखा है.) ८५. पे. नाम, औपदेशिक कवित, पृ. २५आ, संपूर्ण. औपदेशिक कवित-५ इंद्रिय, पुहिं., पद्य, आदि: दिपक देख पतंग जल मधुर सबद; अंति: आत्मा जिव बेहतर वार, गाथा-२. ८६. पे. नाम. औपदेशिक पद, पृ. २५आ, संपूर्ण. औपदेशिक पद-रसनाविषये, म. विनयचंद, रा., पद्य, आदि: चेतन थारि रसना वस कर राख; अंति: विनेचंद त्यागी धन वासताने, गाथा-५. ८७. पे. नाम, धन्ना सार्थवाह कथा, पृ. २७अ, अपूर्ण, पृ.वि. प्रथम पत्र नहीं है. धन्नासार्थवाह कथा, पुहि., गद्य, आदिः (-); अंति: तिरथमे वंदनिक पुजनिक होगा, (पू.वि. पांचसे चोरों की हत्या प्रसंग अपूर्ण से है.) For Private and Personal Use Only Page #421 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra ४०६ www.kobatirth.org पुहिं., प्रा., गद्य, आदि: राजगर नगर चर्ण भगवान; अंति: सिखण्या जावमाविदेमे मोक्ष. ९०. पे. नाम. औपदेशिक सज्झाय, पृ. २९अ, संपूर्ण. पुहि., पद्य, आदि: चंचल जिवडा रे गाफल मत रे; अंतिः पोक्या केरि बारो रे, गाथा- ६. ९१. पे नाम औपदेशिक सज्झाय, पू. २९अ संपूर्ण ८८. पे. नाम. कंडरीकपुंडरीक कथा, पृ. २७अ २८अ, संपूर्ण. मा.गु., गद्य, आदि: जंबु पुर्व म्हा सितानंदि; अति विरत कथया जाव मोक्ष जासी. ८९. पे. नाम. कालिकुंवरी कथा, पृ. २८अ - २८आ, संपूर्ण, वि. १९८०, भाद्रपद शुक्ल, ९, पठ. मु. हीरालाल, प्र.ले.पु. सामान्य, मा.गु., पद्य, आदि: यो भव रत्नचिंतामण सरिको; अंति: जिव अनंता तरिया रे, गाथा-७. ९२. पे. नाम. आध्यात्मिक सज्झाय, पृ. २९अ, संपूर्ण. ई., पद्य, आदि: अरे जिया सोच अपना मन मे; अंति: सुधर जाय एक छिन मे, गाथा-५. ९३. पे नाम औपदेशिक सज्झाच, पृ. २९ अ २९आ, संपूर्ण. पुहिं., रा., पद्य, आदि धारा नेणा मे निद्रा जुक; अंतिः माने सदा ते तरसि संसार रे, गाथा २०. " ९४. पे नाम औपदेशिक सज्झाय-सातव्यसन, पृ. २९आ, संपूर्ण Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची रा., पद्य, आदि का रे भाइ रूडो थे सु; अंतिः अब तो आरिसे मुडो देख, गाथा- १२. ९५. पे. नाम. औपदेशिक सज्झाय, पृ. २९आ, अपूर्ण, पू.वि. अंतिम पत्र नहीं है. औपदेशिक सज्झाय मनुष्यभव दुर्लभता, मु. हीरालाल ऋषि, मा.गु., पद्य, आदि मती हारो रे जीवा मती अंति (-), (पू.वि. गाथा-६ अपूर्ण तक है.) ९६. पे नाम औपदेशिक सज्झाय, पृ. ३१अ संपूर्ण. , औपदेशिक सज्झाय दानधर्म, पुर्हि, पद्य, आदि दान है जुगमे सुखदाइ रे; अति: कोइ दान० खामि बुधमाइ, गाथा ५. ९७. पे. नाम. औपदेशिक पद, पृ. ३१अ, संपूर्ण. गाथा-५. औपदेशिक पद-दयाधर्म, पुहिं., पद्य, आदि: धर्म एक तिरथंकर भाखो रे; अंति: संजम आरादि गया मुगत माही, ९८. पे. नाम. औपदेशिक कवित, पृ. ३१अ, संपूर्ण. हि., पद्य, आदि: मुरख के माथे नाथ सिंग; अंति राखतो तो मेरे मन भावतो, गाथा-२. ९९. पे. नाम. औपदेशिक दोहा, पृ. ३१अ, संपूर्ण. औपदेशिक दोहा-५ दुषण, पुहिं., पद्य, आदिः प्रीय वचने आनंद बहु; अंति पछताइये ए पंच दुषण केवाय, दोहा २. १०० पे नाम शालिभद्र सझाय, पृ. ३१अ संपूर्ण शालिभद्रमुनि सज्झाय-सुपात्रदान, मु. खूबचंद, पुहिं., पद्य, आदि: धन श्रीसालभद्रकुमार दान; अंति: खुबचंद० सफल करो अवतार, गाथा- ७. १०१. पे नाम औपदेशिक सज्झाय, पू. ३१आ, संपूर्ण औपदेशिक सज्झाय दान, पुहिं., पद्य, आदि दान एक चित देरे जिवडा, अंति भवसागर तिरजे रे, गाथा-२६. १०२. पे नाम महावीरजिन पद, पू. ३१आ, संपूर्ण. महावीर जिन पद-रेवतिआविका, मु. आनंदघन, मा.गु., पद्य, आदि: रेवती बाई प्रभुजीने; अंति: आनंदयन० भाग भलो जस पायो, गाथा - ५. १०३. पे नाम. दान महिमा सवैया, पृ. ३१आ, संपूर्ण. दानमहिमा सवैया, पुहिं., पद्य, आदि: दिन को दिजिये होय दया मन; अंति: अभेदान दिया अमरापद पावे, गाथा- २ . १०४. पे नाम. ओतागुण वर्णन पद, पू. ३२अ संपूर्ण. For Private and Personal Use Only मु. राम, पुहिं., पद्य, आदि: चवदे गुण श्रोता का कइये; अंति: मुनि राम कहे धन छे तेहने, गाथा-५. १०५. पे. नाम. वक्तागुण वर्णन पद, पृ. ३२अ, संपूर्ण. Page #422 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२६ ४०७ वक्ता १४ गुण वर्णन पद, मु. राम, पुहिं., पद्य, आदि: वक्ता के गुण चवदा कइये; अंति: मुनि राम० विरला वक्तामाही, गाथा-४. १०६. पे. नाम. औपदेशिक सज्झाय, पृ. ३२अ, संपूर्ण. औपदेशिक सज्झाय-जिनवाणीश्रवण, म. हीरालाल, पुहिं., पद्य, आदि: सुरता बिन कोन सुणे बानि; अंति: हीरालाल० सुधो कूगरू कानि, गाथा-५. १०७. पे. नाम, औपदेशिक सज्झाय, पृ. ३२अ, संपूर्ण.. पुहिं., पद्य, आदि: अंधा को वेठ बताइए आरसि; अंति: तिरिया करे पति अंध के पास, गाथा-५. १०८. पे. नाम, औपदेशिक सज्झाय-समकित, पृ. ३२अ, संपूर्ण. म. हीरालाल, पुहिं., पद्य, वि. १९७९, आदि: सुरतां गुण सामलो रे लाल; अंति: हीरालाल लिजो समकित धार, गाथा-११. १०९. पे. नाम, औपदेशिक सज्झाय, पृ. ३२आ, संपूर्ण. मु. हीरालाल, पुहिं., पद्य, आदि: वरसे पुष्करावर्त सुमेहा; अंति: यो हिरालाल करे प्रकास, गाथा-१५. ११०. पे. नाम. औपदेशिक सज्झाय, पृ. ३३अ, संपूर्ण. औपदेशिक सज्झाय-पुण्य, मु. हीरालाल, पुहिं., पद्य, आदि: पुन विना नहि लागे नहि सत; अंति: हिरालाल ततखीण जगने त्यागे, गाथा-६. १११. पे. नाम. औपदेशिक दोहा संग्रह, पृ. ३३अ, संपूर्ण. औपदेशिक दोहा संग्रह-पुण्य, पुहिं.,प्रा., पद्य, आदि: लक्ष्मी केने अकल के विवाद; अंति: दप्पो मुल विणासस्स, गाथा-४. ११२. पे. नाम. अष्टरिद्धि सज्झाय, पृ. ३३अ, संपूर्ण. रा., पद्य, आदि: प्रथम रिद्धि अणिमानाम; अंति: मुनि कहे सखर ले जंजाल, गाथा-६. ११३. पे. नाम, औपदेशिक कवित, पृ. ३३अ, संपूर्ण.. पुहिं., पद्य, आदि: सुरज छिपे गन बादल से; अंति: उस मुछ कु पुछ जाणिये. ११४. पे. नाम. औपदेशिक लावणी, पृ. ३३अ-३३आ, संपूर्ण.. औपदेशिक लावणी-पुण्यपाप, पुहि., पद्य, आदि: दोय बात हे जुगमे साचि पुन; अंति: कर्म खपा कर मुगत गिया, गाथा-१०. ११५. पे. नाम. औपदेशिक सज्झाय, पृ. ३५अ, अपूर्ण, पृ.वि. प्रथम पत्र नहीं है. पुहिं., पद्य, आदिः (-); अंति: अनंता तरिया० तरेने तरसिजी, गाथा-५, (पू.वि. गाथा-३ अपूर्ण से है.) ११६. पे. नाम. औपदेशिक पद-परनारीत्याग, पृ. ३५अ, संपूर्ण. पुहिं., पद्य, आदि: केसे इजत रहे तुमारि पर; अंति: नाहक कष्ट उठाने वाले, गाथा-४. ११७. पे. नाम. प्रदेशीराजा सज्झाय, पृ. ३५अ, संपूर्ण. मु. खुबचंद, मा.गु., पद्य, आदि: सुण चतुर सयाणा नारीनो नेह; अंति: खुबचंद० नीत प्रणमु पाय रे, (वि. गाथांक नहीं है.) ११८. पे. नाम. औपदेशिक सज्झाय-सती, पृ. ३५अ, संपूर्ण. म. हीरालाल, रा., पद्य, आदि: सतियाने नहि लागे कलंक; अंति: हीरा० मोलमे मुंगा जो होय, गाथा-८. ११९. पे. नाम. ७ सती सज्झाय, पृ. ३५अ-३५आ, संपूर्ण. ___ मु. अमिरेख, रा., पद्य, वि. १९५१, आदि: सति सातो सुखदानी रे; अंति: अमिरेख० मोटि सति का वखाण, गाथा-१६. १२०. पे. नाम, रावण सज्झाय, पृ. ३५आ, संपूर्ण. पुहिं., पद्य, आदि: अरे कूबुधि कंथ कोन पे; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., गाथा-२ तक लिखा है.) १२१. पे. नाम. एकादशीतिथि सज्झाय, पृ. ३६अ, संपूर्ण. उपा. उदयरत्न, मा.गु., पद्य, आदि: नरदल मुन करिने रइये पाछो; अंति: उदेरत्न० अविचल लील विलासे, गाथा-७. १२२. पे. नाम, औपदेशिक सज्झाय, पृ. ३६अ-३६आ, संपूर्ण. For Private and Personal Use Only Page #423 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ४०८ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची औपदेशिक सज्झाय-जीवोपदेश, मु. जेमल ऋषि, मा.गु., पद्य, आदि: जिवा तु तो भोलो रे प्राणी; अंति: मिलेगी रिष जेमलजि कहे एम, गाथा-३३. १२३. पे. नाम. औपदेशिक पद, पृ. ३६आ, संपूर्ण. मु. रूपचंद, पुहि., पद्य, आदि: मोय कैसे तारोगै दीन; अंति: करुणासागर रूपचंद गुणमाल, गाथा-४. १२४. पे. नाम, औपदेशिक सज्झाय, पृ. ३६आ, संपूर्ण. ___ मु. हीरालाल ऋषि, रा., पद्य, वि. १९७९, आदि: मास सवानव मानवि रे लाल; अंति: हीरालाल० सधि समगत लाय हो, गाथा-१९. १२५. पे. नाम. एकादशीतिथि सज्झाय, पृ. ३६आ, संपूर्ण. मा.गु., पद्य, आदि: काले तो मारे एकादसी; अंति: मलसि दुख गणेणो करजो रे, गाथा-६. १२६. पे. नाम. प्रास्ताविक श्लोक, पृ. ३६आ, संपूर्ण. प्रास्ताविक श्लोक संग्रह, प्रा.,सं., पद्य, आदि: उत्तमं च नराहारं पयाहारं; अंति: कंदमुलं च धमाधमा, श्लोक-१. १२७. पे. नाम. कुटुंबमोह परिहार पद, पृ. ३७अ, संपूर्ण. परिवारमोह परिहार पद, म. सुजाण, पुहिं., पद्य, आदि: त् तो जासि अकेलो दिवाना; अंति: सो करले ए तेरे संग चलाना, गाथा-४. १२८. पे. नाम. औपदेशिक पद-मनुष्यभव, पृ. ३७अ, संपूर्ण. पुहि., पद्य, आदि: अब सतगरू जिवने समजावे नर; अंति: समकित बिना सब थोति रे, गाथा-४. १२९. पे. नाम. औपदेशिक सज्झाय-क्षमा, पृ. ३७अ, संपूर्ण. पुहिं., पद्य, आदि: खम्यावंत जोय भगवंतरो; अंति: वितरागनजि चेतो चतुर सुजाण, गाथा-५. १३०. पे. नाम. औपदेशिक पद, पृ. ३७अ, संपूर्ण. मु. रामरतन शिष्य, पुहि., पद्य, आदि: लारे लागो रे यो पाप; अंति: रामरतन० समकित राची रे, गाथा-४. १३१. पे. नाम. आध्यात्मिक पद, पृ. ३७अ, संपूर्ण. ____ आध्यात्मिक पद-कुमतिसुमति, मु. जिनदास, पुहिं., पद्य, आदि: तुं कुमति कलेसन नार लगि; अंति: जीनदास० बात खोटि मत खेडे, गाथा-४. १३२. पे. नाम, औपदेशिक पद-मनुष्यभवदर्लभता, पृ. ३७अ-३७आ, संपूर्ण. औपदेशिक पद, मु. रतनचंद, पुहिं., पद्य, आदि: मानवरो भव पाए के मति जावो; अंति: रतनचंद० सफल फले मुज आसा, गाथा-७. १३३. पे. नाम. औपदेशिक सज्झाय, पृ. ३७आ, संपूर्ण. पुहिं., पद्य, आदि: हमारा दिल लग्या फकिर; अंति: मुगति मिलेगा जिया जटपट से, गाथा-५. १३४. पे. नाम. औपदेशिक सज्झाय-जैनधर्म, पृ. ३७आ, संपूर्ण. पुहिं., पद्य, आदि: सुणियो सब प्यारे जेनधर्म; अंति: सरिखो हुवो न होसि ओर ठोर, गाथा-६. १३५. पे. नाम. देवानंदा सज्झाय, पृ. ३८अ, संपूर्ण. देवानंदामाता सज्झाय, मु. चोथमल ऋषि, रा., पद्य, आदि: दरसण आवे हो देवानंदा; अंति: पाछे पोहता मुगत मुजार, गाथा-११. १३६. पे. नाम. नंदिषेण सज्झाय, पृ. ३८अ, संपूर्ण. नंदिषेणमुनि सज्झाय, मु. हीरालाल, पुहिं., पद्य, वि. १९५९, आदि: साधुजि मासखमण के पारणे रे; अंति: हीरालाल गुण आनंद पामिया, गाथा-८, (वि. अंत में नंदिषणमुनि का सामान्य परिचय दिया है.) १३७. पे. नाम. ऋषभदत्तदेवानंदा सज्झाय, पृ. ३८आ, संपूर्ण. आ. हर्षसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: तिणकाले ने तिण समे; अंति: गोतम रहिये हुलासि, गाथा-१८. १३८. पे. नाम. असज्झाय विचार, पृ. ३९अ, संपूर्ण. मु. लालचंद ऋषि, पुहि., गद्य, आदि: तारो टुटे राति दस अकालमे; अंति: लालचंद० विगन न व्यापे कोय. For Private and Personal Use Only Page #424 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२६ ४०९ १३९. पे. नाम, ३८ बोल असज्झाय, पृ. ३९अ, संपूर्ण. मा.गु., को., आदि: (-); अंति: (-). १४०. पे. नाम. नवकोठायंत्रभरण विधि, पृ. ३९अ, संपूर्ण. __मा.गु., को., आदि: (-); अंति: (-). १४१. पे. नाम. छायादिनमान विचार कुंडलियो, पृ. ३९अ, संपूर्ण. मा.गु., पद्य, आदि: दिन करसो प्रतिकूल हे; अंति: (-), (वि. यंत्र सहित व अंतिमवाक्य अस्पष्ट है.) १४२. पे. नाम. सत्रिने गातक राशि यंत्र, पृ. ३९आ, संपूर्ण. १२ राशिफल विचार-शनि गोचर दृष्टिफल, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: (-). १४३. पे. नाम. ११५ बोल १४ गुणस्थानक यंत्र-नवतत्त्व, पृ. ४०अ, संपूर्ण. मा.गु., को., आदि: (-); अंति: (-). १४४. पे. नाम. ज्ञाताधर्मकथा की साढे तीन करोड कथा का विचार, पृ. ४०अ, संपूर्ण. ज्ञाताधर्मकथा साढे तीन करोड कथा विचार, मा.ग., गद्य, आदि: धर्मकथा का १० वर्ग उपरका; अंति: सं०२४० पाच १९२० सं०६४९. ११९७४६. (+) पाक्षिकसूत्र, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, प. ७-२(१ से २)=५, प.वि. बीच के पत्र हैं..प्र.वि. संशोधित., जैदे.. (२३४१२.५, १२४३२). पाक्षिकसूत्र, हिस्सा, प्रा., प+ग., आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. "पंचमहव्वयजुत्तस्स असंनिहिसंचयस्स" पाठ से "समणाणं जेहिमं वाइयं छव्वि" तक है.) ११९७५२. (+) लघक्षेत्रसमास प्रकरण सह बालावबोध, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ११६-१(१)+१(५८)=११६, पृ.वि. बीच के पत्र हैं., प्र.वि. संशोधित-टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२६४१२, १७४३५-४३). लघुक्षेत्रसमास प्रकरण, आ. रत्नशेखरसूरि , प्रा., पद्य, वि. १५वी, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. गाथा-२ से २५९ तक लघुक्षेत्रसमास प्रकरण-बालावबोध *, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: (-). ११९७५३. (+) चौविशजिन पंचकल्याणक चैत्यवंदन व अष्टप्रकारी पुजा अष्टक, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ५, कुल पे. २, प्रले. मु. जतनविजय (गुरु ग. अमरविजय); गुपि. ग. अमरविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित-टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२७४१२.५, १३४३०). १.पे. नाम. चौविशजिन पंचकल्याणक चैत्यवंदन, पृ. १अ-४आ, संपूर्ण, ले.स्थल. मुमाइ बंदर. चैत्यवंदनचौवीसी, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: प्रथम जिनेसर ऋषभनाथ; अंति: (१)ज्ञानविमल० सीव सुख सार, (२)पर्व दीपोत्सव होत, गाथा-२५.. २. पे. नाम. अष्टप्रकारी पुजा अष्टक, पृ. ४आ-५आ, संपूर्ण.. ८ प्रकारी पूजा श्लोक, मु. देवचंद्र, सं., पद्य, आदि: विमलकेवल भासनभास्करं; अंति: सिद्धि सोख्यं श्रयंती, श्लोक-९. ११९७५५. शत्रुजयतीर्थ स्तवन व १२ मास नाम, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, जैदे., (२५.५४१२.५, १३४३५). १. पे. नाम. शत्रुजयतीर्थ स्तवन, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. मु. पद्मविजय, मा.गु., पद्य, आदि: वीरजी आया रे विमलाचल; अंति: पद्मविजय सुप्रमाण, गाथा-७. २.पे. नाम. १२ मास नाम, पृ. १आ, संपूर्ण. मा.गु., गद्य, आदि: आसढ श्रावण भाद्रवो आसो; अंति: फागुण चैत्र वैशाख जेठ. ११९७५६. (+) नमस्कार महामंत्र पद, सज्झाय व स्तवनादि संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १४-४(१ से ४)=१०, कुल पे. ८, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२६.५४१२.५, १२४४१). १.पे. नाम. नमस्कार महामंत्र पद, पृ. ५अ-५आ, अपूर्ण, पू.वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं. आ. जिनवल्लभसूरि, मा.गु., पद्य, वि. १२वी, आदि: (-); अंति: श्रीवल्लभसूर० सेवा नित्त, गाथा-१३, (पू.वि. गाथा-६ अपूर्ण से है.) For Private and Personal Use Only Page #425 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ४१० कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची २. पे. नाम. नमस्कार महामंत्र छंद, पृ. ५आ-७अ, संपूर्ण. ___उपा. कुशललाभ, मा.गु., पद्य, वि. १७वी, आदि: वंछित पूरे विवध पूर; अंति: कुशल०रिद्ध वंछित लहै, गाथा-१४. ३. पे. नाम. पद्मावती आराधना, पृ. ७अ-८आ, संपूर्ण. उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, वि. १७वी, आदि: हिवे राणी पद्मावती; अंति: समयसुंदर० छुतइ तत्काल, ढाल-३, गाथा-३५. ४. पे. नाम. ४ शरणा, पृ. ८आ-११अ, संपूर्ण. मा.गु., गद्य, आदि: अरिहंतजी को सरणो; अंति: मुझ ने होयज्यो भगवानजी. ५. पे. नाम, श्रावक मनोरथ, पृ.११अ-१२आ, संपूर्ण. श्रावक ३ मनोरथ, मा.गु., गद्य, आदि: समणोवासक श्रावकजी इमचंतवै; अंति: बारमा देवलोके जाय. ६.पे. नाम. श्रावककरणी सज्झाय, पृ. १२आ-१३आ, संपूर्ण. म. जिनहर्ष, मा.ग., पद्य, आदि: श्रावक तुं उठे परभात; अंति: जिनहर्ष० दखहरणी एह, गाथा-२२. ७.पे. नाम. हीरसूरि सज्झाय, पृ. १३आ-१४अ, संपूर्ण. आ. विजयसेनसरि, मा.गु., पद्य, आदि: बे करजोडीजी वीनवं सारद; अंति: भगते भणु होयजो मुझ आणंद, गाथा-१८. ८. पे. नाम. २४ जिन परिवार स्तवन, पृ. १४अ-१४आ, संपूर्ण. मा.गु., पद्य, आदि: चोवीस तीरथंकरा को परिवार; अंति: कर जोडी करुं प्रणाम, गाथा-५. ११९७५७. दंडक प्रकरण यंत्र, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ६-१(१)=५, दे., (२५४१३, १७४३९). दंडक प्रकरण-यंत्र, मु. सुमतिवर्द्धन, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: वैमानिक असंख्यातगुणा, (पू.वि. संस्थान दंडक अपूर्ण से है.) ११९७५९. सुकनावली, संपूर्ण, वि. १८९८, ज्येष्ठ शुक्ल, ४, मध्यम, पृ. ५, प्र.वि. हुंडी:सुकनाव०., जैदे., (२६४१२.५, १३४३२-३९). पाशाकेवली, म. गर्ग ऋषि, सं., पद्य, आदि: ॐ नमो भगवती कृष्मांडिनी; अंति: भजसी मन सत्य करि माने. ११९७६०. खंधकमुनि चौढालिया आदि संग्रह, अपूर्ण, वि. १९७२, ज्येष्ठ शुक्ल, ९, मध्यम, पृ. ९१-८२(१ से ८२)=९, कुल पे. ६, दे., (२६४१२.५, १५४५०). १.पे. नाम. खंधकमनि चौढालिया, पृ. ८३अ, अपूर्ण, पृ.वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं. __मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: हो करज्यो सहू कोय, ढाल-४, (पू.वि. ढाल-४ से है.) २. पे. नाम. रायचंद गुरुगुण ढाल, पृ. ८३अ-८३आ, संपूर्ण, पे.वि. हुंडी:रायचंदजीस्वा०. मु. जीतमल, मा.गु., पद्य, वि. १८७९, आदि: इण दुखम आरे पांच में भूला; अंति: कर भजन कर भजन भी तू तणो, गाथा-१८. ३. पे. नाम. थिरपाल गुरुगुण ढाल, पृ. ८३आ-८५आ, संपूर्ण, पे.वि. हुंडी:थिरपालजीसां. थिरपाल गुरुगुण ढाल, मा.गु., पद्य, वि. १८३३, आदि: शासणनायक समरिये चोवीसमा; अंति: तिण घर कोड कल्याण जी, ढाल-२, गाथा-५२. ४. पे. नाम. सुखराम गुरुगुण ढाल, पृ. ८५आ-८७अ, संपूर्ण, पे.वि. हुंडी:सुखरामजी. मु. चंद्रभाण, मा.गु., पद्य, आदि: वांद श्रीव्रधमाननें; अंति: चंद्रभाण० हमारी लीजे मान, ढाल-२, गाथा-५१. ५. पे. नाम. नगाजी महासती गुरुगुण ढाल, पृ. ८७अ-८८आ, संपूर्ण, पे.वि. हुंडी:नगांजी सती. मा.गु., पद्य, वि. १८६२, आदि: नगाजी निरमल करी करणी; अंति: सतीया सेवा कीधी श्रीकार, गाथा-३७. ६. पे. नाम. जीवणस्वामी चोढालियो, पृ. ८८आ-९१अ, संपूर्ण, पे.वि. हुंडी:जीवणजीस्वामी. जीवणस्वामी चौढालियो, श्राव. पनों, मा.ग., पद्य, वि. १८६२, आदि: पहला अरिहंतने नम दजा; अंति: पनों होते तो जाणो सत वाय, ढाल-४, गाथा-८४. ११९७६१ (+) चंदनमलयागिरि रास, अपूर्ण, वि. १८५४, श्रावण कृष्ण, ४, मध्यम, पृ. ८-१(७)=७, ले.स्थल. पोटला, प्रले. मु. भागसोभाग, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (१७४१२.५, १२४३६). For Private and Personal Use Only Page #426 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२६ ४११ चंदनमलयागिरि रास, मु. भद्रसेन, पुहि., पद्य, आदि: स्वस्ति श्रीविक्रमपुरे; अंति: पुन्यथी फलेसु वांछित भोग, ___ गाथा-२०१, (पू.वि. गाथा-५१ अपूर्ण से गाथा-७९ अपूर्ण तक नहीं है.) ११९७६४. समकितना सडसठबोल सज्झाय, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ६-१(५)=५, पृ.वि. बीच व अंत के पत्र नहीं हैं., जैदे., (२७.५४१३, १३४३३). सम्यक्त्व ६७ बोल सज्झाय, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., पद्य, आदि: सुकृतवल्लि कादंबिनी; अंति: (-), (पू.वि. ढाल-११ गाथा-२ अपूर्ण तक व ढाल-१२ गाथा-२ अपूर्ण से गाथा-१२ अपूर्ण तक है.) ११९७६६. घंटाकर्ण कल्प, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ.७, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., दे., (२६४१२.५, ११४२६). घंटाकर्ण कल्प, मा.गु.,सं., गद्य, आदि: प्रणम्य गिरिजाकांतं; अंति: (-), (पू.वि. विधि-४ 'ताव ते जरो वेलाज्वरो सर्वज्वर' पाठांश तक है.) ११९७६७. (+) साधुश्रावकप्रतिक्रमणसूत्र-तपागच्छीय व स्थापनाचार्य ईरियावही आदि चर्चा विचार, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ११-५(१ से ५)=६, कुल पे. २, प्र.वि. संशोधित-टिप्पण युक्त विशेष पाठ-पदच्छेद सूचक लकीरें., जैदे., (२६४१२.५, ५-११४३०-३६). १.पे. नाम. साधुश्रावकप्रतिक्रमणसूत्र-तपागच्छीय सह टबार्थ, पृ. ६अ-१०आ, अपूर्ण, पू.वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं. साधुश्रावकप्रतिक्रमणसूत्र-तपागच्छीय, संबद्ध, प्रा.,मा.गु.,सं., प+ग., आदि: (-); अंति: तस्स मिच्छामि दूकडं, (पू.वि. पुक्खवर्दिसूत्र अपूर्ण से है.) साधुश्रावकप्रतिक्रमणसूत्र-तपागच्छीय-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., ___ पुक्खवर्दिसूत्र अपूर्ण से देवसि आलोयणासूत्र तक लिखा है.) । २. पे. नाम. स्थापनाचार्य ईरियावही आदि चर्चा विचार-श्रावकक्रियाविषये, पृ. १०आ-११आ, अपूर्ण, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. स्थापनाचार्य इरियावही आदि चर्चा विचार-श्रावकक्रियाविषये, मा.ग., प+ग., आदि: हिवें जिवारे श्रावक; अंति: (-), (पू.वि. इरियावहीसूत्र महत्ता विचार अपूर्ण तक है.) ११९७६९ जीवविचार प्रकरण सह बालावबोध, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ५, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. हुंडी:जीवविचार बालावोध., दे., (२७४१२, १३४३५). जीवविचार प्रकरण, आ. शांतिसूरि, प्रा., पद्य, वि. ११वी, आदि: भुवणपईवं वीरं नमिऊण; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-२४ तक है.) जीवविचार प्रकरण-बालावबोध *, मा.गु., गद्य, आदि: भुवन कहता तीन त्रिभुवन; अंति: (-). ११९७७० (+#) विचारामतसार संग्रह सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. १८८६, रसाष्टवसुचंद्रे, पौष शुक्ल, मंगलवार, मध्यम, पृ. १९७-१८५(१ से १८५)=१२, प्र.वि. श्रीचिंतामणिप्रसादात्., संशोधित. मूल पाठ का अंश खंडित है, दे., (२६.५४१२, ५-८४४६). विचारामतसार संग्रह, ग. जिनहर्ष, सं., पद्य, वि. १५०२, आदिः (-); अंति: वाच्यमानो निरंतरं, कथा-२०, (पू.वि. प्रारंभ __ के पत्र नहीं हैं., कथा-१८ गाथा-१२३ अपूर्ण से है.) विचारामतसार संग्रह-टबार्थ, पंन्या. रूपविजय, मा.गु., गद्य, वि. १८९३, आदिः (-); अंति: (-), (पू.वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं व प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., कथा-२० गाथा-२० तक टबार्थ लिखा है.) ११९७७४. (+#) कल्पसूत्र सह टबार्थ व व्याख्यान, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १५, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. संशोधित. अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, जैदे., (२६.५४१२, ४-१२४३६). कल्पसूत्र, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., गद्य, आदि: तेणं कालेणं तेणं; अंति: (-), (पू.वि. मात्र प्रारंभिक पाठ अपूर्ण तक है.) कल्पसूत्र-टबार्थ*, मा.गु., गद्य, आदि: ते काले जे असर्पिणीनो; अंति: (-). कल्पसूत्र-व्याख्यान+कथा*, मा.गु., गद्य, आदि: श्रीवर्धमानजिनं; अंति: (-), (पू.वि. प्रथम वाचना तक है.) ११९७७५. (+) अनुयोगद्वारसूत्र, संपूर्ण, वि. १८९७, मार्गशीर्ष शुक्ल, ३, शुक्रवार, मध्यम, पृ. ५९, ले.स्थल. रामपुरा, प्रले. श्रावि. सीरुबाई, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. हुंडी:अनुजोग०., अनुजोग दुवार., पदच्छेद सूचक लकीरें-टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित. कुल ग्रं. २००५, जैदे., (२७.५४१२.५, १६x४८). For Private and Personal Use Only Page #427 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ४१२ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची अनुयोगद्वारसूत्र , आ. आर्यरक्षितसूरि, प्रा., प+ग., आदि: नाणं पंचविहं; अंति: दुक्खक्खयट्ठाए, प्रकरण-३८, ग्रं.२००५. ११९७७७. (+) सम्यक्त्वकौमुदी सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. १८५६, फाल्गुन शुक्ल, ३, बुधवार, मध्यम, पृ. ८२-३(१,१७ से १८)-७९, ले.स्थल. डाभेलाग्राम, प्रले. मु. विनीतविजय (गुरु मु. वाणीविजय); गुपि. मु. वाणीविजय (गुरु पं. ऋद्धिविजय); पं. ऋद्धिविजय (गुरु ग. कुशलविजय); ग. कुशलविजय (गुरु ग. भाणविजय); ग. भाणविजय (गुरु ग. मेरुविजय); ग. मेरुविजय (गुरु ग. मेघविजय); ग. मेघविजय, प्र.ले.प. विस्तृत, प्र.वि. अन्वय दर्शक अंक युक्त पाठ-टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२५.५४१२, ७X४२). सम्यक्त्वकौमुदी, आ. जयशेखरसूरि, सं., प+ग., वि. १४५७, आदि: (-); अंति: अक्षयं स्वर्गमश्नुते, (पू.वि. 'राजवद्धिराजति एकदा वने परिभ्रमता' पाठांश से है व बीच के पाठांश नहीं हैं.) सम्यक्त्वकौमुदी-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: मोक्षनो सुख पावै. ११९७७८. (+) दशवैकालिकसूत्र सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ३६-२९(१ से २९)=७, पू.वि. प्रारंभ व अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. हुंडी:दशवैका०., दसवै०., पदच्छेद सूचक लकीरें., जैदे., (२५.५४१२.५, ६४३३-३६). दशवकालिकसूत्र, आ. शय्यंभवसूरि, प्रा., पद्य, वी. २वी, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. अध्ययन-६ गाथा-१ अपूर्ण से गाथा-६३ अपूर्ण तक है.) दशवैकालिकसूत्र-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: (-). ११९७७९ (+) जीवविचार प्रकरण, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ६, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. हुंडी:जीवाचा०., पदच्छेद सूचक लकीरें-संशोधित., जैदे., (२५.५४१३, ६x२२). जीवविचार प्रकरण, आ. शांतिसूरि, प्रा., पद्य, वि. ११वी, आदि: भुवणपईवं वीरं नमिऊंण; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-४१ अपूर्ण तक है.) ११९७८१ (+) वैरसिंहकुमार चौपई, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १४, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. हुंडी:बावनाचंदनिरीचोप., पदच्छेद सूचक लकीरे-संशोधित., दे., (२५४१२.५, १७४४३-४८). वैरसिंहकुमार चौपई-जीवदयाशील विषये, पंन्या. मोहनविमल, मा.गु., पद्य, वि. १७५८, आदि: प्रणमुं सारद सामनी; __अंति: (-), (पू.वि. ढाल-२४ के दूहा-४ अपूर्ण तक है.) ११९७८२ (#) पाशाकेवली, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १०-४(१,३,५,७)=६, पृ.वि. बीच के पत्र हैं., प्र.वि. मूल पाठ का अंश खंडित है, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५.५४१२.५, ११-१४४२८-३६). पाशाकेवली, मु. गर्ग ऋषि, सं., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. श्लोक-१६ अपूर्ण से श्लोक-७१ अपूर्ण तक है व बीच-बीच के पाठांश नहीं हैं.) ११९७८३. (+) अभिधानचिंतामणि नाममाला, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ७, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. हुंडी:हेमीनाममा०., पदच्छेद सूचक लकीरे-संशोधित., दे., (२५.५४१२.५, १०४२६). अभिधानचिंतामणि नाममाला, आ. हेमचंद्रसरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., पद्य, वि. १३वी, आदि: प्रणिपत्यार्हतः; अंति: (-), (पू.वि. कांड-२ गाथा-७ अपूर्ण तक है.) ११९७८४. तपागच्छ पट्टावली सह बालावबोध, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ७, जैदे., (२६४१२.५, १७४३६). पट्टावली तपागच्छीय, उपा. धर्मसागर गणि, प्रा., पद्य, आदि: सिरिमंतोसुहहेउ गुरुपरिवाड; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., श्रीसोमप्रभसूरि तक लिखा है.) पट्टावली तपागच्छीय-बालावबोध, मा.गु., गद्य, आदि: ए श्रीपजूसणकल्प गुरु; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., 'श्रीऋषभदेव नी प्रतिमा प्रतिष्टा किधी सं १४९९ चउदनवाणु ए स्वर्ग' तक लिखा है.) ११९७८५. शांतिनाथ चरित्र सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २३०-२२५(१ से २१४,२१८ से २२४,२२६ से २२९)=५, प.वि. बीच-बीच के पत्र हैं., जैदे., (२७४१२.५, ६x४२). शांतिनाथ चरित्र, आ. अजितप्रभसूरि, सं., पद्य, वि. १३०७, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. प्रस्ताव-५ श्लोक-५२३ अपूर्ण से श्लोक-७४६ अपूर्ण तक है बीच-बीच के पाठांश नहीं हैं.) For Private and Personal Use Only Page #428 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२६ ४१३ शांतिनाथ चरित्र-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: (-). ११९७८६. (+) प्रमाणनयतत्त्वालोकालंकार, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १०, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें-अन्वय दर्शक अंक युक्त पाठ-टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित., दे., (२६४१२, ९-१५४३८-४२). प्रमाणनयतत्त्वालोकालंकार, आ. वादिदेवसूरि, सं., प+ग., वि. ११५२-१२२६, आदि: रागद्वेषविजेतारं ज्ञातारं; अंति: ___ यावत्स्फूर्ति च वाच्यम्, परिच्छेद-८... ११९७८७. शांतसुधारस व ऋषभदेव स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १७, कुल पे. ३, प्रले. मु. सहजानंद (गुरु मु. हेमविजय); गुपि. मु. हेमविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. हुंडी:शां०र०. पुन्यप्रसादात्., जैदे., (२६४१२, १२४३८). १.पे. नाम. शांतसुधारस, पृ. १आ-१७अ, संपूर्ण. उपा. विनयविजय, सं., पद्य, वि. १७२३, आदि: नीरंध्रे भवकानने परिगलत्; अंति: स्फुरद्वांगमयमातनोतु, भावना-१६, श्लोक-२३४. २. पे. नाम. ऋषभदेव स्तवन, पृ. १७अ, संपूर्ण. आदिजिन स्तवन, वा. विनयविजय, सं., पद्य, आदि: श्रीमरुदेवातनुजन्मानं; अंति: ददातु विनयं सदा वांछितं, श्लोक-७. ३. पे. नाम, ऋषभदेव स्तवन, पृ. १७आ, संपूर्ण. आदिजिन स्तवन-शत्रंजयतीर्थमंडन, उपा. यशोविजयजी गणि, सं., पद्य, वि. १८वी, आदि: आदिजिनं वंदे गुणसदनं; अंति: वितनोतु सतां सुखानि, श्लोक-६. ११९७८९ (+) अभिधानचिंतामणि नाममाला-कांड १ व चतुर्निकायदेव नाम, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ५, कुल पे. २, प्र.वि. संशोधित., दे., (२८x१२.५, १३४३३-३९). १.पे. नाम. अभिधानचिंतामणि नाममाला-कांड १, पृ. १अ-५अ, संपूर्ण. अभिधानचिंतामणि नाममाला, आ. हेमचंद्रसरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., पद्य, वि. १३वी, आदि: प्रणिपत्यार्हतः; अंति: (-), प्रतिपूर्ण. २. पे. नाम, चतुर्निकायदेव नाम, पृ. ५अ-५आ, संपूर्ण. मा.गु., गद्य, आदि: असुरा १ नाग २ स्तडित ३; अंति: खगो २३ मार्तंड २४. ११९७९२. (+) ज्ञाताधर्मकथांगसूत्र सह बालावबोध, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १४७, प्र.वि. हुंडी:ज्ञा०ध०स०. पत्र नं-१४७आ पर पुनः कृति पुनः प्रारम्भ की गई है., त्रिपाठ-टिप्पण युक्त विशेष पाठ-पदच्छेद सूचक लकीरें-संशोधित. कुल ग्रं. ६०००, जैदे., (२८x११.५, १३४४७). ज्ञाताधर्मकथांगसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., प+ग., आदि: तेणं कालेणं तेणं समए; अंति: सीहेणं जाव संपत्तेणं, अध्ययन-१९, ग्रं. ५५००, संपूर्ण. ज्ञाताधर्मकथांगसूत्र-बालावबोध, मा.गु., गद्य, आदि: तेणं काले० शब्दवाक्यालंका; अंति: (-), (प्रतिअपूर्ण, पृ.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., श्रुतस्कंध-२, अध्ययन-१ अपूर्ण तक का बालावबोध लिखा है.) ११९७९३. (+#) श्रीपाल रास, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ६३, प्र.वि. संशोधित. मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., (२७.५४१२, १२४३८). श्रीपाल रास, उपा. विनयविजय; उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., पद्य, वि. १७३८, आदि: कल्पवेलि कवियण तणी; अंति: लहेस्ये ज्ञान विशालाजी, खंड-४ ढाल ४१, गाथा-१८२५. ११९७९४. (#) प्रास्ताविक दोहा संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ५, प्र.वि. अक्षर फीके पड गये हैं, जैदे., (२७.५४१२.५, १५४४२). प्रास्ताविक दोहा संग्रह, पुहिं.,मा.गु., पद्य, आदि: केस कनौती ऊजरे कह; अंति: नाद्यापि संतुष्यति, दोहा-१४५. ११९७९५ (+) बोल विचारादि संग्रह, संपूर्ण, वि. १९१५, मध्यम, पृ. ११, कुल पे. ७, ले.स्थल. कासण, प्रले. मु. छगामलजी (गुरु मु. नवनिधराम); गुपि. म. नवनिधराम, प्र.ले.प. सामान्य, प्र.वि. संशोधित., दे., (२७.५४१२.५, १९४३८). १.पे. नाम. भवनद्वार, पृ. १अ-५अ, संपूर्ण, ज्येष्ठ कृष्ण, ७, बुधवार. भवणद्वार विचार, मा.गु., गद्य, आदि: प्रथम सात नरक का नाम कहे; अंति: तिनकुं मेरी नमस्कार होवउ. For Private and Personal Use Only Page #429 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ४१४ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची २. पे. नाम. गतागति बोल, पृ. ५आ-६आ, संपूर्ण, ज्येष्ठ शुक्ल, १४. ५६३ जीवभेद ६२ मार्गणा विचार, मा.गु., गद्य, आदि: पहली नरक की २५ आगत जाई; अंति: ७ नरक लेणी २००८५ ३. पे. नाम. समकत दवार बोल, पृ. ६आ-८अ, संपूर्ण. सम्यक्त्व के ९ भेद, प्रा.,मा.गु., गद्य, आदि: दरब समकत १ भाव समकत २; अंति: आगमे काल जासी नही. ४. पे. नाम. २४ जिन अंतरा, पृ. ८अ-८आ, संपूर्ण.. कल्पसूत्र-संबद्ध २४ जिन आंतरा, मा.गु., गद्य, आदि: ५० लाख कोड सागर ने आंतरे; अंति: ४२ हजार वरस उणां जाणवा. ५. पे. नाम. बोल संग्रह, पृ. ८आ, संपूर्ण, ज्येष्ठ अधिकमास कृष्ण, ४. बोल संग्रह *, प्रा.,मा.गु.,सं., गद्य, आदि: च्यार अंत क्रिया अल्प; अंति: मंडलीक जोरावर राजारी. ६. पे. नाम, १६ प्रश्नोत्तर विचार, पृ. ९अ-११आ, संपूर्ण. ___ बोल संग्रह-आगमगत विविध प्रश्नोत्तरादि, प्रा.,मा.गु.,सं., प+ग., आदि: पांच अभीगम सांचवी ने तु; अंति: धवंत होय सो विचार ली. ७. पे. नाम. विरह दवार, पृ. ११आ, संपूर्ण, ज्येष्ठ अधिकमास कृष्ण, १२. विरहद्वार, मा.गु., गद्य, आदि: समूचे ४ च्यार गतिरो बीरह; अंति: पड तो ज० उ०६ छे महीनारो. ११९७९६. (#) प्रश्नोत्तरसार्द्धशतक का बीजकादि संग्रह, संपूर्ण, वि. १८७०, चैत्र शुक्ल, २, जीर्ण, पृ. २७, कुल पे. ४, ले.स्थल. सीयोर, प्रले. मु. कमलसागर; पठ. मु. रत्नविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., (२७.५४१२,१५४३८). १. पे. नाम. प्रश्नोत्तरसार्द्धशतक का बीजक, पृ. १अ-२५अ, संपूर्ण. प्रश्नोत्तरसार्द्धशतक-बीजक, वा. क्षमाकल्याण, मा.गु., गद्य, वि. १८५३, आदि: पहिले बोले तीर्थंकर; अंति: शास्त्रमै कह्यो छे, प्रश्न-१५१. २. पे. नाम. नवतत्त्व २७६ भेद विचार, पृ. २५अ-२७अ, संपूर्ण. मा.गु., गद्य, आदि: नवतत्त्वमांहि केतला रुपी; अंति: पुद्गल सुए भणियं. ३. पे. नाम. महावीरजिन तपमान, पृ. २७अ, संपूर्ण. मा.गु.,सं., गद्य, आदि: ११ लक्ष ने ८०० सहस्र ६ शत; अंति: पुर्वोक्तं मानं स्यात्. ४. पे. नाम. इंद्राणी सखीसंख्या विचार, पृ. २७अ, संपूर्ण. ____ मा.गु., गद्य, आदि: एक एक इंद्राणि प्रतेके; अंति: १ लाख अने २८ हजार छे. ११९७९७. (+) कोणिक चौपाई, संपूर्ण, वि. १९१६, आश्विन कृष्ण, ९, मध्यम, पृ. १२, ले.स्थल. किसनगढ, प्रले. गोगा, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. हुंडी:कोणक., को०., संशोधित., दे., (२७.५४१२, १५४३४). ___कोणिक चौपाई, मा.गु., पद्य, आदि: लोभ म कर रे जीवडा; अंति: खुसालवे ते पामे सुख रसाल, ढाल-१७. ११९७९८. जंबूस्वामी चरित्र, अपूर्ण, वि. १८२७, चैत्र शुक्ल, १२, शनिवार, मध्यम, पृ. २६-१९(१ से १२,१४ से १९,२१)=७, ले.स्थल. आउआ, प्रले. मु. मनरूपसुंदर (गुरु ग. दर्शनसुंदर); गुपि. ग. दर्शनसुंदर (गुरु ग. जयवंतसुंदर); ग. जयवंतसुंदर, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. हुंडी:जंबूचरत., जैदे., (२८x१२, १७४५७). जंबूअध्ययन प्रकीर्णक-कथा, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: भवंति भवता सदा, (पू.वि. प्रारंभ व बीच-बीच के पत्र नहीं हैं., चतुर्थ स्त्री कथा अपूर्ण से है व बीच-बीच के पाठांश नहीं हैं.) ११९७९९ (+) श्रावकसंक्षिप्तअतिचार, संपूर्ण, वि. १८९७, आषाढ़ कृष्ण, १३, रविवार, मध्यम, पृ.५, ले.स्थल. पालणपुर, प्रले. माधवजी राघवजी, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. पालवीहारप्रसादात्य., संशोधित., जैदे., (२७.५४१२, १४४४०). श्रावकसंक्षिप्तअतिचार*, संबद्ध, प्रा.,मा.गु., प+ग., आदि: नांणंमि अदंशणमि अ; अंति: करी मिच्छामि दुक्कड. ११९८०० (+) वीरस्तुति अध्ययन सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ.७, प्रले. मु. पबाजी ऋषि; अन्य. श्रावि. कुंवरबाई, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. हुंडी:सुयगडा०वीरत्छी०., सुय०वीर०., पदच्छेद सूचक लकीरें-संशोधित., जैदे., (२७.५४१२, ४४२८). For Private and Personal Use Only Page #430 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२६ ४१५ सूत्रकृतांगसूत्र-हिस्सा वीरस्तुति अध्ययन, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., पद्य, आदि: पुच्छिस्सणं समणा; अंति: आगमसंति त्तिबेमि, गाथा-२९. सूत्रकृतांगसूत्र-हिस्सा वीरस्तुति अध्ययन का टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: पु० पुछता हुया कोण; अंति: काले इम हुं कहु छुउ. ११९८०१. तेरह द्वार चर्चा, संपूर्ण, वि. १८६१, मार्गशीर्ष शुक्ल, १४, मध्यम, पृ. १४, ले.स्थल. सारोलानगर, प्रले. मु. रामचंद्र, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२७४१२.५, ११४३०-३३). नवतत्त्व १३ द्वार विचार, मा.गु., गद्य, आदि: मूल १ दृष्टं २ कोण ३; अंति: तलावरुप मोक्ष जाणवो. ११९८०३. (#) कल्पसूत्र सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १६०-१५१(१ से १५०,१५६)=९, ले.स्थल. चंडावलनगर, प्रले. मु. विनयचंद; गुपि. आ. मेघराजसूरिजी (गुरु आ. जयराजसूरिजी, गुजराती लुकागच्छ-धनराजशाखा); आ. जयराजसूरिजी (गुरु आ. नगराजसूरिजी, गुजराती लुंकागच्छ-धनराजशाखा); आ. नगराजसूरिजी (गुरु आ. धर्मसिंघसूरिजी, गुजराती लुंकागच्छ-धनराजशाखा); आ. धर्मसिंघसूरिजी (गुरु आ. खेमराजसूरिजी, गुजराती लुकागच्छ-धनराजशाखा); आ. खेमराजसूरिजी (गुरु आ. चिंतामणिसूरिजी, गुजराती लुकागच्छ-धनराजशाखा); आ. चिंतामणिसूरिजी (गुरु आ. धनराजसूरिजी, गुजराती । लुंकागच्छ-धनराजशाखा); आ. धनराजसूरिजी (गुरु आ. दामोदरसूरिजी, गुजराती लुंकागच्छ-धनराजशाखा); आ. दामोदरसूरिजी (गुरु आ. रूपचंद्रसूरिजी, गुजराती लुंकागच्छ-धनराजशाखा); आ. रूपचंद्रसूरिजी (गुरु आ. जसवंतसिंघसूरि, गुजराती लुंकागच्छ-धनराजशाखा); आ. जसवंतसिंघसूरि (गुरु आ. वरसिंघसूरिजी-लघु, गुजराती लुकागच्छ-धनराजशाखा); आ. वरसिंघसूरिजी-लघु (गुरु आ. वरसिंघसूरिजी-वृहद, गुजराती लुकागच्छ-धनराजशाखा); आ. वरसिंघसूरिजी-वृहद् (गुरु आ. जीवराजसूरिजी, गुजराती लुंकागच्छ-धनराजशाखा); आ. जीवराजसूरिजी (गुरु आ. रूपसिंघजी, गुजराती लुंकागच्छ-धनराजशाखा); आ. रूपसिंघजी (गुजराती लुकागच्छ-धनराजशाखा), प्र.ले.पु. अतिविस्तृत, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२७.५४१२, ८४३६-४०). कल्पसूत्र, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., गद्य, आदि: (-); अंति: भुज्जो उवदंसेइ त्तिबेमि, व्याख्यान-९, (पू.वि. साधु समाचारी से है.) कल्पसूत्र-टबार्थ*, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: कल्पसूत्र संपूर्ण वाच्यो. ११९८०४. (+) नंदीश्वरद्वीपस्थित जिनभवनपूजा, संपूर्ण, वि. १८८९, पौष कृष्ण, ११, बुधवार, मध्यम, पृ. १०, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें-संशोधित., जैदे., (२७.५४१२.५, ११४२७-३२). नंदीश्वरद्वीपस्थित जिनभवनपूजा, आ. रत्नशेखरसूरि, सं., पद्य, आदि: श्रीमत्पार्था जिनाधीशं; अंति: प्राप्नुवंति परं पदम्. ११९८०८. (+#) स्नात्र पूजा, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ५,प्र.वि. संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२७.५४१२.५, १३४३३-३६). स्नात्रपूजा संग्रह, मु. भिन्न भिन्न कर्तक, प्रा.,मा.गु.,सं., प+ग., आदि: नमो अरिहंताणं नमोर्हत्; अंति: श्रमहरामहरास्तु विभोपुरः. ११९८०९ (+#) सिद्धांतसार संग्रह सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. १९५४, ज्येष्ठ शुक्ल, ८, शुक्रवार, मध्यम, पृ. १९-१(४)=१८, ले.स्थल. रामगढ, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित. मूल पाठ का अंश खंडित है, दे., (२७.५४१२, ५४४५-५०). ५८ बोल संग्रह-आगमिकसिद्धांतचर्या, प्रा.,मा.गु.,सं., गद्य, आदि: धम्मोमंगल मुकिट्ठ अहिंसा; अंति: नविचइअन्नमिहेहकिचि, (अपूर्ण, पृ.वि. गाथा-३२ अपूर्ण से ४३ अपूर्ण तक नहीं है.) ५८ बोल संग्रह-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: (अपठनीय); अंति: किम हि छइ पुछइवला, संपूर्ण. ११९८१० (+#) सम्मेतशिखरतीर्थ पूजा, संपूर्ण, वि. १९०१, श्रावण अधिकमास कृष्ण, ७, मध्यम, पृ.१२, प्रले. श्राव. गंगादास; अन्य. मु. धर्मचंद्र भट्टारक (गुरु मु. विजयकीर्ति भट्टारक, मूलसंघ सरस्वतीगच्छ बलात्कारगण), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित. मूल पाठ का अंश खंडित है, दे., (२७४१३, १०४३३). सम्मेतशिखरतीर्थ पूजा, सं., गद्य, आदि: प्रणम्यसर्वज्ञमनंतबोध; अंति: संख्यात्र गणकै० कोत्तमै, ग्रं. १७४. ११९८११. सिंदूरप्रकर, संपूर्ण, वि. १८९६, कार्तिक शुक्ल, ११, रविवार, मध्यम, पृ. ११, ले.स्थल, मोजपुर, प्रले. श्राव. खूबराम, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. हुंडी:सींप्र.,प्र.ले.श्लो. (२४) भग्न पृष्टिं कटी ग्रीवा, (५६) यादृशं पुस्तकं दष्टं, जैदे., (२८x१३, ९x४०). For Private and Personal Use Only Page #431 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ४१६ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची सिंदरप्रकर, आ. सोमप्रभसूरि, सं., पद्य, वि. १३वी, आदि: सिंदूरप्रकरस्तपः करिशिरः; अंति: सोमप्रभ०मुक्तावलीयम्, द्वार-२२, श्लोक-१००. ११९८१२ (#) कल्पसूत्र सह कल्पद्रमकलिका टीका, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १५-३(१,४,६)=१२, प्र.वि. हुंडी:कल्प०., अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, जैदे., (२७४१२, १२४४२). कल्पसूत्र, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., गद्य, आदि: तेणं कालेणं० समणे; अंति: (-), (पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., महावीर चरित्र सूत्र-३१ तक है.) कल्पसूत्र-कल्पद्रमकलिका टीका, ग. लक्ष्मीवल्लभ, सं., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. प्रथम एक, बीच व अंत के पत्र नहीं हैं, "पुरि चरिमाण कप्पो" गाथार्थ अपूर्ण से देवानंदा माता स्वप्न विचार अपूर्ण तक है व बीच-बीच के पाठांश नहीं हैं.) ११९८१३. (+#) मल्लिजिन चरित्र, संपूर्ण, वि. २०वी, फाल्गुन शुक्ल, ११, मंगलवार, मध्यम, पृ. १०९, प्रले. श्राव. जूठाभाई धनजी शाह, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. हुंडी:मल्लिनाथचरित्र., संशोधित. मूल पाठ का अंश खंडित है, दे., (२८.५४१२.५, १२-१५४५५). मल्लिजिन चरित्र, आ. विनयचंद्रसूरि, सं., पद्य, आदि: महातेजःप्रसूः सर्वमंगल; अंति: चरितं तावच्चिरं नंदतात्, सर्ग-८, श्लोक-४३४४, ग्रं. ४४००. ११९८१४ (+#) संस्तारक प्रकीर्णक सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १८५२, भाद्रपद शुक्ल, ६, मध्यम, पृ. ६, ले.स्थल. आगरा, प्रले. सा. फतुजी आर्या (गुरु सा. हेमेजी); अन्य. चंदनलाल, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. हुंडी:संथारो., टिप्पण युक्त विशेष पाठ. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२८x१२, ८४४६-५५). संस्तारक प्रकीर्णक, ग. वीरभद्र, प्रा., पद्य, आदि: काऊण नमुक्कारं जिणवर; अंति: चंदा सुहसंकमणं सया दिंतु, गाथा-१२२. संस्तारक प्रकीर्णक-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: नमस्कार करीनइं जिनवरनइ; अंति: संक्रमण मुझना सदाइ द्यउ. ११९८१५ (+#) छंद, चोपाई व स्तवनादि संग्रह, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १९-१(५)=१८, कुल पे. ९, ले.स्थल. अंजारनगर, प्र.वि. संशोधित-टिप्पण युक्त विशेष पाठ. मूल पाठ का अंश खंडित है, अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२६४१२.५, १३४२६-३३). १. पे. नाम. जिनवंदनविधि स्तवन, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण, वि. १९०२, चैत्र शुक्ल, १२, प्रले. श्राव. गोविंदजी (गुरु मु. धनविजयजी), प्र.ले.पु. सामान्य. मु. कीर्तिविमल, मा.गु., पद्य, आदि: सयल तीर्थंकर करु; अंति: कीर्तिविमल शुभ ठाम, गाथा-११. २. पे. नाम. गौतमस्वामी छंद, पृ. १आ-२आ, संपूर्ण. उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: मात प्रथवि सुत प्रात; अंति: जस सौभाग्य दोलत सवाई, गाथा-९. ३. पे. नाम. गौतमस्वामी छंद, पृ. २आ, संपूर्ण. मा.गु., पद्य, आदि: कामीत दाता जगविख्यात; अंति: लक्ष्मी पामे रे, गाथा-५. ४. पे. नाम. पाँच शिखामण चोपाई, पृ. २आ-४अ, संपूर्ण. औपदेशिक छंद, पंडित. लक्ष्मीकल्लोल, मा.गु., पद्य, आदि: भगवति भारति चरण; अंति: धरमरंग० मनि चोल, गाथा-१६. ५. पे. नाम. पद्मप्रभुजिन स्तवन, पृ. ४अ-४आ, संपूर्ण. पद्मप्रभजिन स्तवन, मु. मानविजय, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीपद्मप्रभुना नाम; अंति: मानविजय०वदे मुको बीजो वाद, गाथा-५. ६. पे. नाम. नेमराजिमती स्तवन, पृ. ४आ, अपूर्ण, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. नेमराजिमती स्तवन-१५ तिथिगर्भित, ग. रंगविजय, मा.गु., पद्य, आदि: जे जिनमुखकमले विराजे; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-६ तक है.) mo For Private and Personal Use Only Page #432 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२६ ४१७ ७. पे. नाम. स्तवन चौवीसी, पृ. ४आ-१४अ, अपूर्ण, पू.वि. बीच का एक पत्र नहीं है. __ स्तवनचौवीसी, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: (-); अंति: (-), स्तवन-२४, गाथा-१२१, (पू.वि. सुपार्श्वजिन स्तवन से है व सुमतिनाथ, शीतलनाथ, श्रेयांसनाथ, वासुपूज्य, नमिनाथ व महावीरजिन स्तवन नहीं है. चंद्रप्रभ व मल्लिनाथजिन स्तवन दो बार है., वि. स्तवन व्युतिक्रम में है.) ८. पे. नाम. ऋषभजिन स्तवन, पृ. १४अ-१८अ, संपूर्ण. आदिजिन सलोको, पंन्या. विनीतविमल, मा.गु., पद्य, आदि: सरस्वती माता द्यो मुज; अंति: भणतां आवे संपति कोडी, गाथा-५५. ९. पे. नाम. आदिजिन सुखडी, पृ. १८अ-१९आ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. ___ मा.गु., पद्य, आदि: सरसति माता देवी चरण; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-४१ अपूर्ण तक है.) ११९८१७. (#) आचारांगसूत्र सह टबार्थ, पूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ८५, पू.वि. अंतिम पत्र नहीं है., प्र.वि. हुंडी:आचारंग. पूर्णतासूचक उल्लेख नहीं है., मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., (२७.५४१२, ८४४६). आचारांगसूत्र , आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., प+ग., आदि: से भिकखुवा निरुणी; अंति: विप्पमुच्चइ त्तिबेमि, अध्ययन-२५, ग्रं. २६४४, संपूर्ण. आचारांगसूत्र-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: भिखूचारित्रियउ मुलगुण; अंति: स्वामि जंबूस्वामि प्रतइ, संपूर्ण. ११९८१८. (+#) सुरसुंदरी चोपाई, संपूर्ण, वि. १८७३, ज्येष्ठ कृष्ण, ८, रविवार, मध्यम, पृ. ४१, प्रले. मु. साधु ऋषि (गुरु मु. लालजी ऋषि), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित. मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., (२७४१२, ६४५२). सुरसुंदरी चौपाई, मु. धर्मवर्धन, मा.गु., पद्य, वि. १७३६, आदि: परमयोति प्रणमुं सदा; अंति: धर्मवर्द्धन उमंगे जी, खंड-४, गाथा-६१३, (वि. ढाल-४०) ११९८१९ (+) संबोधसप्ततिका, रामयशोरसायन चौपाई व औपदेशिक गाथा, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १५, कुल पे. ३, प्र.वि. हुंडी:संबोधसप्तति. श्रीमदष्टमस्तीर्थकृत्प्रसादात्., पदच्छेद सूचक लकीरें-त्रिपाठ-संशोधित., दे., (२६४१२, १७७५७-६०). १. पे. नाम. संबोधसप्ततिका सह वृत्ति, पृ. १अ-१५अ, संपूर्ण, वि. १९०५, आश्विन शुक्ल, ११, प्रले. मु. चमनसागर (गुरु मु. फतेंद्रसागर, तपागच्छ); गुपि. मु. फतेंद्रसागर (गुरु पं. तेजसागर गणि, तपागच्छ); पं. तेजसागर गणि (गुरु पं. दयासागर गणि, तपागच्छ), प्र.ले.पु. सामान्य. संबोधसप्ततिका, आ. रत्नशेखरसूरि, प्रा., पद्य, आदि: नमिऊण तिलोअगुरुं; अंति: जयसेहर नत्थि संदेहो, गाथा-७६. संबोधसप्ततिका-वृत्ति, आ. अमरकीर्तिसूरि, सं., गद्य, आदि: नत्वा तं श्रीमहावीरं; अंतिः कृता संबोधसप्ततेः. २. पे. नाम. रामयशोरसायन चौपाई-मंदोदरी वाक्य गाथा १ से ३, पृ. १५आ, संपूर्ण.. रामयशोरसायन चौपाई, मु. केशराज, मा.गु., पद्य, वि. १६८३, आदि: (-); अंति: (-), (प्रतिपूर्ण, वि. यह कृति प्रक्षेप पाठ का भाग रूप है.) ३. पे. नाम, औपदेशिक गाथा, पृ. १५आ, संपूर्ण. गाथा संग्रह, पुहिं.,प्रा.,मा.गु.,सं., पद्य, आदि: नैनन में अंजन त्रिचनावे; अंति: विधवासवागन कान कतरे, गाथा-१. ११९८२० (+) सप्तनय विचार, संपूर्ण, वि. १९६९, वैशाख कृष्ण, १३, मध्यम, पृ. १, ले.स्थल. अजीमगंज, प्रले. मु. रामचंद्र, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. हुंडी:सप्तनयविचा०., संशोधित., दे., (२७.५४१२.५, १०४४७). सप्तनय विचार, सं., गद्य, आदि: स्यात्कार मुद्रिता; अंति: दृष्टिभिर्नमन्यते, (वि. अंत में एक सुभाषित श्लोक लिखा है.) ११९८२१. (+) अध्यात्मगीता सह बालावबोध, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ३७, ले.स्थल. मंमोई, प्रले. मु. चतुर्भुज, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. हुंडी:अध्यात्मगी०., संशोधित., जैदे., (२७.५४१२, १३४४४). अध्यात्म गीता, ग. देवचंद्र, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: प्रणमियै विश्वहित; अंति: रंगी मुनि सुप्रतीता, गाथा-४९. अध्यात्म गीता-बालावबोध, म. कंअरविजय, मा.गु., गद्य, वि. १८८२, आदि: संवेगी सिरदार सिरोमणि जिन; अंति: कुंयर० कहै निज रूप, ग्रं. १२५०. ११९८२२. (+) अध्यात्ममतपरीक्षा सह बालावबोध, संपूर्ण, वि. १९२७, माघ शुक्ल, १४, शुक्रवार, श्रेष्ठ, पृ. ५८, ले.स्थल. राजनगर, प्रले. बालगरजी बावा, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित., दे., (२५.५४१२, १२४३३). For Private and Personal Use Only Page #433 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra ४१८ www.kobatirth.org कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची अध्यात्ममतपरीक्षा, उपा. यशोविजयजी गणि, प्रा., पद्य, आदि: पणमिय पासजिणिंद, अंति: तं गीयत्था विसेसविऊ, गाथा - १८४, ग्रं. १३७५. अध्यात्ममतपरीक्षा-बालावबोध, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., गद्य, आदि: सर्व कल्याणसिद्धिने; अंतिः यशोविजय ख्यातवान्, ग्रं. १३७५. Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ११९८२३. (+#) औपपातिकसूत्र सह टबार्थ व बालावबोध, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ९७, अन्य. श्राव. रतनचंद, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. हुंडी : ऊववाई., पदच्छेद सूचक लकीरें-प्रतिलेखन पुष्पिका मिटाई हुई है- संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५x१२, ५-८३५-४० ). औपपातिकसूत्र, प्रा., पद्य, आदि: तेणं कालेणं तेणं, अंति: सुही सुहं पत्ता, सूत्र- ४३, ग्रं. १६००. औपपातिकसूत्र - टवार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: तेणई कालि चडथा आरानइ अति सुख पाम्या थका औपपातिकसूत्र - दुर्गमपद वालावबोध, मु. मोहन ऋषि, मा.गु., गद्य, आदि: प्रणम्य श्रीमहावीरं अंति: जाणिवा भगवंतनां छई. १९९८२४. (*) सज्झाय व स्तवनादि संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी श्रेष्ठ, पृ. १६, कुल पे ४२ प्रले. मु. चिमनसागर (गुरु ग. फतेंद्रसागर), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित. दे., ( २४१२, १५X४४). " १. पे नाम. स्तवन चोवीसी-स्तवन १ से १०. पू. १अ ४आ, संपूर्ण, स्तवनचीवीसी, मु. कांतिविजय, मा.गु., पद्य, आदि सुगुण सुगुण सोभागी अंति: (-), प्रतिपूर्ण २. पे नाम औपदेशिक सज्झाय श्रावकाचार, पू. ४आ-५अ, संपूर्ण. मु. आणंदविमलसूरिशिष्य, मा.गु., पद्य, आदि मन शुद्धे सुनजो नरनार, अंतिः आणंदविमलसूरि० विनवारसी, गाथा- २३. ३. पे. नाम जिननाटक स्तवन, पृ. ५अ, संपूर्ण, साधारणजिन स्तवन- देवनाटकविचार, मु. जिनेंद्रसागर, मा.गु., पद्य, आदि: उछक छे अति, गाथा - ९. ४. पे. नाम. सम्मेतशिखरतीर्थ स्तवन, पृ. ५आ, संपूर्ण. ग. जिनहर्ष, मा.गु., पद्य, वि. १७४४, आदि आदीसर अष्टापद सिद्धा अंतिः भावे चैत्यवंदन करी, गाथा- ६. ५. पे. नाम. आत्मा सज्झाय, पृ. ५आ, संपूर्ण. औपदेशिक सज्झाय-परदेशीजीव, मु. राजसमुद्र, पुहिं., पद्य, आदि एक काया अरु कामनी अति: जाणज्यौ स्वारथ को संसार, गाथा ७. ६. पे. नाम. पार्श्वजिन स्तवन- शंखेश्वर, पू. ५आ-६अ, संपूर्ण. गाथा-७. पे. नाम आदिजिन स्तवन, पू. ६अ ६आ, संपूर्ण. . मोहनविजय, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: अलगी रहनै रहनै अलगी; अंति: जिनगुण स्तुति लटकाली, गाथा- ६. ७. पे. नाम. पार्श्वजिन स्तवन- पंचासर, पृ. ६अ, संपूर्ण. मु. पार्श्वजिन स्तवन- पंचासरमंडन, मु. मोहनविजय, मा.गु., पद्य, आदि छांनि छांजि छांजी; अंति: मोहनविजे ए पावो, प्रभु आगल नाचे सुरपत; अंति : जोवण मु. हर्षविजय, मा.गु., पद्य, आदि: ऋषभजिणंद सुखकार दीठै; अंतिः प्रणमै हर्ष धरी री, गाथा - ७. ९. पे नाम, नेमिनाथ स्तवन, पू. ६आ, संपूर्ण. नेमिजिन स्तवन, मु. मोहनविजय, मा.गु., पद्य, आदि: उग्रसेन नृपपति तनया; अंति: मोहन० नेह निसांणा रे, गाथा-९. १०. पे. नाम. साधारणजिन स्तवन, पृ. ७अ, संपूर्ण. साधारणजिन स्तवन- जिनवाणी महिमा, मु. कांति, पुहिं., पद्य, आदि: वाणी गाजे अंबरनाद, अंति: गावे इम वि कांति रे, गाथा-५. For Private and Personal Use Only ११. पे. नाम. अष्टापदतीर्थ स्तवन, पृ. ७अ-७आ, संपूर्ण. आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि अष्टापदगिरि जात्रा करणकुं, अंतिः सुरनर नायक गावे, गाथा-८. Page #434 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ४१९ हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२६ १२. पे. नाम, आदिजिन स्तवन, पृ.७आ, संपूर्ण. मु. मोहनविजय, मा.गु., पद्य, आदि: ए तो प्रथम तीर्थंकर; अंति: मोहनविजय जयकार, गाथा-७. १३. पे. नाम, आदिजिन स्तवन, पृ.७आ-८अ, संपूर्ण. मु. मोहनविजय, रा., पद्य, वि. १८वी, आदि: मरुदेवी मात केरा; अंति: मोहनवि० गुण गाया राज, गाथा-७. १४. पे. नाम. नेमराजिमती स्तवन, पृ. ८अ, संपूर्ण. मु. मोहनविजय, मा.गु., पद्य, आदिः यादवजी हो समुद्रविजय; अंति: जयो शिवादेवी मल्हार, गाथा-७. १५. पे. नाम, पार्श्वजिन स्तवन, पृ.८अ-८आ, संपूर्ण. म. मोहनविजय, मा.ग., पद्य, आदि: साहिब आंगी तुम्हारी; अंति: मोहन कहे तुज जगीश रे, गाथा-८. १६. पे. नाम, धर्मजिन स्तवन, पृ. ८आ-९अ, संपूर्ण. मु. मोहनविजय, मा.गु., पद्य, वि. १८पू, आदि: हां रे मारे धरमजिणंद; अंति: मोहन० उलट अति घणु रे लो, गाथा-७. १७. पे. नाम. पद्मप्रभजिन स्तवन, पृ. ९अ, संपूर्ण. मु. मोहनविजय, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: परम रस भीनो म्हारो; अंति: मोहन० कोडि जगीश हो, गाथा-७. १८. पे. नाम, नेमराजिमती स्तवन, पृ. ९अ-९आ, संपूर्ण. म. मोहनविजय, मा.गु., पद्य, आदि: कांइ रथ वालो हो राज; अंति: मोहन पंडित रूपनो, गाथा-७. १९.पे. नाम. शांतिजिन स्तवन, पृ. ९आ-१०अ, संपूर्ण. मु. मोहनविजय, मा.गु., पद्य, आदि: शांति जिणेशर साहिबा; अंति: मोहन जय जयकार, गाथा-७. २०. पे. नाम. शांतिजिन स्तवन, पृ. १०अ, संपूर्ण. मु. मोहनविजय, मा.गु., पद्य, आदि: सोलमा श्रीजिनराज उलग; अंति: पंडित रुपनो लाल, गाथा-७. २१. पे. नाम. अजितजिन पद, पृ. १०अ-१०आ, संपूर्ण. अजितजिन स्तवन, म. मोहनविजय, मा.गु., पद्य, आदि: ओलग अजित जिणंदनी; अंति: मोहन कहे० जिनजी अंतरजामी, गाथा-५. २२. पे. नाम. चंद्रप्रभजिन स्तवन, पृ. १०आ, संपूर्ण. म. मोहनविजय, मा.गु., पद्य, आदि: श्रेयंकर चंदाप्रभ रे लो; अंति: मोहन कवि रूपनो रे लो, गाथा-७. २३. पे. नाम, नेमराजिमती स्तवन, पृ. १०आ-११अ, संपूर्ण. मु. मोहन, मा.गु., पद्य, आदि: राजुल कहे रथ फेरो हो; अंति: तस मोहन येस्या बास, गाथा-७. २४. पे. नाम. आदिजिन स्तवन, पृ. ११अ, संपूर्ण. म. मोहनविजय, मा.गु., पद्य, आदि: बालपणे आपण ससनेहि; अंति: मोहन० लंछन बलीहारी, गाथा-७. २५. पे. नाम. अनंतजिन पद, पृ. ११अ, संपूर्ण.. अनंतजिन स्तवन, म. मोहनविजय, मा.गु., पद्य, आदि: अनंत जिणंद अवधारीये; अंति: भक्ति मधुर जिम द्राख, गाथा-५. २६. पे. नाम, सुमतिजिन स्तवन, पृ. ११अ-११आ, संपूर्ण. सुमतिजिन स्तवन-उदयापुरमंडण, मु. मोहनविजय, मा.गु., पद्य, आदि: प्रभुथी बांधी प्रीतडी; अंति: मोहन० वाहलो जिनवर एह, गाथा-७. २७. पे. नाम. आदिजिन स्तवन, पृ. ११आ, संपूर्ण. म. मोहनविजय, मा.गु., पद्य, आदि: आदीसर जगदीसरू रे; अंति: जिनजी तुं प्राण आधार, गाथा-५. २८. पे. नाम, अभिनंदनजिन स्तवन, पृ. ११आ-१२अ, संपूर्ण. म. मोहनविजय, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: अकलकला अवीरूध ध्यान; अंति: आयो उमाह्यो अतिघणे, गाथा-७. २९. पे. नाम. शीतलजिन स्तवन, पृ. १२अ-१२आ, संपूर्ण. मु. मोहनविजय, मा.गु., पद्य, आदि: शीतलजिननी सेवना; अंति: तु प्राण आधार हो, गाथा-७. ३०. पे. नाम, शीतलजिन स्तवन, पृ. १२आ, संपूर्ण. मु. मोहनविजय, मा.गु., पद्य, आदि: शीतलजिन सुणौ स्वामी हुँ; अंति: मोहन वचन संबाह ज्यौ, गाथा-७. For Private and Personal Use Only Page #435 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ४२० कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ३१. पे. नाम. पार्श्वजिन स्तवन, पृ. १२आ-१३अ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तवन-गोडीजी, मु. मोहनविजय, मा.गु., पद्य, आदि: प्राण थकी प्यारो; अंति: मोहन कहे० प्राण आधार, गाथा-५. ३२. पे. नाम. संभवजिन स्तवन, पृ. १३अ, संपूर्ण. मु. मोहनविजय, मा.गु., पद्य, वि. १७७०, आदि: समकित दाता समकित आपो; अंति: पभणे रसना पावन कीधी, गाथा-७. ३३. पे. नाम. सुपार्श्वजिन स्तवन, पृ. १३अ-१३आ, संपूर्ण. मु. मोहनविजय, मा.गु., पद्य, आदि: वाल्हो मेह बपीहडा; अंति: सुपासने वंदे हो राज, गाथा-७. ३४. पे. नाम, मनिसव्रतस्वामी स्तवन, पृ. १३आ, संपूर्ण. मुनिसुव्रतजिन स्तवन, मु. मोहनविजय, मा.गु., पद्य, आदि: हो प्रभु मुझ प्यारा; अंति: मन माया लागी ताहरी रे लो, गाथा-६. ३५. पे. नाम. नेमिजिन स्तवन, पृ. १४अ, संपूर्ण. मु. मोहन, पुहिं., पद्य, आदि: सजेलार जलधार सुखकार; अंति: मोहन० कह्यो उल्लासे, गाथा-७. ३६. पे. नाम, अजितजिन स्तवन, पृ. १४अ-१४आ, संपूर्ण. मा.गु., पद्य, आदि: विजयनंदन जिनजी मुझ मनमां; अंति: अधिक महानंद पदवी थाय, गाथा-५. ३७. पे. नाम. सिद्धचक्र स्तवन, पृ. १४आ-१५अ, संपूर्ण. पंन्या. पद्मविजय, मा.गु., पद्य, आदि: सिद्धचक्र वर सेवा; अंति: निज आतम हित साधे, गाथा-१३. ३८. पे. नाम. विमलजिन स्तवन, पृ. १५अ, संपूर्ण. म. जिनकीर्ति, मा.गु., पद्य, आदि: विमल विमल गण मन; अंति: जिनकीर्ति व्यापे रे लो, गाथा-६. ३९. पे. नाम. महावीरजिन स्तवन, पृ. १५अ-१५आ, संपूर्ण. मु. मोहनविजय, मा.गु., पद्य, आदि: दुर्लभ भव लही दोहलो; अंति: कांइ वसीयो तुं विसवावीस, गाथा-८. ४०. पे. नाम. आध्यात्मिक सज्झाय, पृ. १५आ-१६अ, संपूर्ण, वि. १९१२, चैत्र शुक्ल, २, ले.स्थल. राणीगाम. आध्यात्मिक सज्झाय-सहजानंदी, पं. वीरविजय, मा.गु., पद्य, वि. १९वी, आदि: सहजानंदी रे आतीमा सुतो; अंति: भवजल तरिया अनेक रे, गाथा-११. ४१. पे. नाम. कुंथुजिन स्तवन, पृ. १६अ-१६आ, संपूर्ण. पंन्या. पद्मविजय, मा.गु., पद्य, वि. १९वी, आदि: रात दिवस नित सांभरे रे; अंति: पद्मने मंगल माल लाल, गाथा-६. ४२. पे. नाम. अजितजिन स्तवन, पृ. १६आ, संपूर्ण. मु. मोहनविजय, मा.गु., पद्य, आदि: अजित अजितजिन अंतर्यामी; अंति: रस आनंदशं चाखे, गाथा-९. ११९८२५. (+) कल्पसूत्र, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ.५१, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरे-संशोधित., जैदे., (२५४१२, १३४३५). कल्पसूत्र, आ. भद्रबाहस्वामी, प्रा., गद्य, आदि: नमो अरिहंताणं नमो; अंति: भुज्जो उवदंसेइ त्तिबेमि, व्याख्यान-८, ग्रं. १२१६. ११९८२६. नयचक्रसार, संपूर्ण, वि. १९७१, वैशाख शुक्ल, १४, शुक्रवार, श्रेष्ठ, पृ.८, ले.स्थल. सवाईजयपुर, प्र.वि. हुंडी:नयचक्र., प्र.ले.श्लो. (१) यादृशं पुस्तकं दृष्ट्वा , दे., (२४.५४१२, १२४३८-४२). नयचक्रसार, ग. देवचंद्र, सं., गद्य, वि. १८वी, आदि: गुणानां विस्तरं; अंति: जीवस्यशरीरमिति भावार्थः. ११९८२७. (#) जिनबिंबप्रतिष्ठा विधि, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ५, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. हुंडी:प्रतिष्ठाक०., मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., (२५४१२, १४४४२-४९). जिनबिंब प्रतिष्ठाविधि संग्रह, मा.गु.,सं., प+ग., आदि: प्रणम्य स्वस्तिऋद्धिश्री; अंति: (-), (पू.वि. पाठ-"वासुपूज्यविश्वा २ लहणु कुंथुनाथ" तक है., वि. सारिणीयुक्त.) ११९८३०. नयचक्र सह बालावबोध, संपूर्ण, वि. १७७८, कार्तिक कृष्ण, ११, शनिवार, मध्यम, पृ. ३९, प्रले. गंगाराम भट्ट, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. त्रिपाठ., जैदे., (२५४१२,७४२४-३३). For Private and Personal Use Only Page #436 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२६ ४२१ नयचक्र-भाषावचनिका, श्राव. हेमराज शाह, पुहिं., गद्य, वि. १७२६, आदि: वंदो श्रीजिनके वचन; अंति: कीनो वचन विलास. ११९८३२. शत्रुजयतीर्थ चैत्यवंदन व चोमासीपर्व देववंदन, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १३, कुल पे. २, दे., (२४.५४१२, १३४२७). १.पे. नाम. शत्रुजयतीर्थ चैत्यवंदन, पृ.१आ, संपूर्ण. ग. पद्मविजय, मा.गु., पद्य, आदि: विमलकेवल ज्ञानकमला; अंति: पद्मविजय सुहितकर, गाथा-७. २. पे. नाम. चोमासीपर्व देववंदन, पृ. २अ-१३आ, अपूर्ण, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. चौमासीपर्व देववंदन, पंन्या. पद्मविजय, मा.गु., पद्य, आदि: आदिदेव अलवेसरू विनीत; अंति: (-), (पू.वि. महावीरजिन चैत्यवंदन गाथा-४ अपूर्ण तक है.) ११९८३४. (#) प्रियमेलक चौपाई-दानाधिकारे, अपूर्ण, वि. १९वी, जीर्ण, पृ. ५, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. मूल पाठ का अंश खंडित है, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२४.५४१२, १५४२७-३०). प्रियमेलक चौपाई-दानाधिकारे, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, वि. १६७२, आदि: प्रणमुं सद्गुरु पाय; अंति: (-), (पू.वि. ढाल-५ तक है.) ११९८३५. (+#) वैराग्यशतक व प्रतिक्रमण समाचारी, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १३, कुल पे. २, प्र.वि. संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२४.५४१२, ४-७४३६). १. पे. नाम. वैराग्यशतक सह टबार्थ, पृ. १अ-९अ, संपूर्ण, पे.वि. हुंडी:वैराग्यशतक. वैराग्यशतक, प्रा., पद्य, आदि: संसारंमि असारे नत्थि सुहं; अंति: लहइ जिओ सासयं ठाणं, गाथा-१०४. वैराग्यशतक-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: ए संसार असार जांणिउ; अंति: पामीस तुं शाश्वतुं ठाम. २. पे. नाम. प्रतिक्रमण समाचारी सह टबार्थ, पृ. ९आ-१३आ, संपूर्ण. प्रतिक्रमण समाचारी, आ. जिनवल्लभसूरि, प्रा., पद्य, आदि: सम्मं नमिउं देविंद; अंति: जिनवल्लभगणि० तस्स, गाथा-४०. प्रतिक्रमण समाचारी-टबार्थ, मु. विमलकीर्ति, मा.गु., गद्य, आदि: सम्यक्त भलीपरइ मनवचन काया; अंति: सूत्रनउ अणाविर्णउ. ११९८३६. (+#) नवतत्त्वप्रकरण, दंडकप्रकरण व लघुसंग्रहणी आदि संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १७-१(१)=१६, कुल पे. ४, प्रले. मु. भाग्यसोम (गुरु आ. आणंदसोमसूरि); पठ. मु. चंद्रभाण, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२४.५४१२, ११४३०). १.पे. नाम. नवतत्त्व प्रकरण, पृ. २अ-५अ, अपूर्ण, पू.वि. प्रथम पत्र नहीं है., पे.वि. हुंडी:नवतत्त्व. ___ नवतत्त्व प्रकरण ६० गाथा, प्रा., पद्य, आदि: (-); अंति: उद्धरिउ रुद्धाओसुअ समुदाओ, गाथा-६३, (पू.वि. गाथा-१५ से २. पे. नाम. दंडकप्रकरण, पृ. ५अ-८अ, संपूर्ण, पे.वि. हुंडी:दंडक. दंडक प्रकरण, मु. गजसार, प्रा., पद्य, वि. १५७९, आदि: नमिउं चौवीस जिणे; अंति: लहिया एसा विनत्ति अप्पहिआ, गाथा-४४. ३. पे. नाम. लघुसंग्रहणी, पृ. ८अ-१०अ, संपूर्ण, पे.वि. हुंडी:नानीसंघयणी. आ. हरिभद्रसूरि, प्रा., पद्य, आदि: नमिय जिणं सव्वन्नु; अंति: रईया हरिभद्दसूरिहिं, गाथा-३१. ४. पे. नाम. भाष्यत्रय, पृ. १०अ-१७आ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., ले.स्थल. पेथापुर, पे.वि. हुंडी:भाष्य. आ. देवेंद्रसूरि, प्रा., प+ग., वि. १४वी, आदि: वंदित्तु वंदणिज्जे; अंति: (-), (पू.वि. पच्चक्खाणभाष्य गाथा-२६ तक है.) ११९८३९. मिथ्यात्वीकृत निरवद्यक्रिया मतपष्टि चौपाई व लघज्येष्ठविनयव्यवहार सज्झाय, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ३५, कुल पे. २,प्र.वि. हुंडी:नि०., जैदे., (२४४१२.५, ८x२३). १. पे. नाम. मिथ्यात्वीकृत निरवद्यक्रिया मतपुष्टि चौपाई, पृ. १अ-२५अ, संपूर्ण. मा.गु., पद्य, वि. १८४७, आदि: अरिहंत सिधने आयया; अंति: संकामै राखौ लिगार चुतरनर, ढाल-४. For Private and Personal Use Only Page #437 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ४२२ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची २. पे. नाम. लघुज्येष्ठविनयव्यवहार सज्झाय, पृ. २५अ-३५आ, संपूर्ण. ____ मा.गु., पद्य, वि. १८५२, आदि: भेषधार्यारी सरधा बुरी ते; अंति: आसोज वुद पांचमने सुकरवार, गाथा-७१. ११९८४०. (+) संवरनिर्जराभेद विचार व औपदेशिक गाथा, संपूर्ण, वि. १९६८, फाल्गुन कृष्ण, १४, श्रेष्ठ, पृ. १८, कुल पे. २, ले.स्थल, विक्रमपुर, प्र.वि. संशोधित., दे., (२४४१२, १७४३८-४२). १. पे. नाम. संवरनिर्जरा-भेद विचार, पृ. १आ-१८आ, संपूर्ण. संवर-निर्जराभेद विचार, मा.गु., गद्य, आदि: पडिक्कमामि पंचहिं; अंति: एक शुद्ध चेतनभाव छइं. २. पे. नाम. औपदेशिक गाथासंग्रह, पृ. १८आ, संपूर्ण. गाथा संग्रह, पुहि.,प्रा.,मा.गु.,सं., पद्य, आदि: गुलखल एको भाव गुल कीमत; अंति: जिणसे रोहीरुडीरा जिया, गाथा-१. ११९८४१. (+) चेतन चरित्र, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १३, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२४.५४१२.५, १४४३६). चेतन वृतांत, श्राव. भगवतीदास भैया, पुहिं., पद्य, वि. १७३६, आदि: जिनचरण प्रणाम करि; अंति: भगवतीदास कही अनादि, गाथा-२९७. ११९८४२. (+) ज्ञानपंचमीदेववंदन विधि, अपूर्ण, वि. १९२१, कार्तिक शुक्ल, ५, शुक्रवार, मध्यम, पृ. १२-२(१ से २)=१०, ले.स्थल. पुणानगर, प्रले. मु. राजविजय; पठ.सा. छजाजी; अन्य. मु. अभय, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. श्रीगोडीपार्श्वनाथ प्रसादात्., संशोधित. कुल ग्रं. २५०, प्र.ले.श्लो. (५२) पोथी प्यारी प्राणथी, दे., (२३४१२.५, १३४२९). ज्ञानपंचमीपर्व देववंदन विधिसहित, आ. लक्ष्मीसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: श्रुतदेवी भगवती जे; अंति: विजयलक्ष्मी शुभ ___ हेज, देववंदनजोडा-५, गाथा-१५०, संपूर्ण. ११९८४३. (+) नेमजिन चरित्र, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ६, प्र.वि. हुंडी:नेमचरित्र., संशोधित-टिप्पण युक्त विशेष पाठ., दे., (२४.५४१२.५, १५४४३). नेमिजिन रास, मा.गु., पद्य, आदि: संखराजाने जसोमती; अंति: छैतीससू सिवपूरी, ढाल-१८. ११९८४४. वसुधारा स्तोत्र, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ८-२(१ से २)=६, जैदे., (२२४१२, ११४२४). वसुधारा स्तोत्र, सं., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. बीच के पत्र हैं., पाठ-"धारिणीं श्रुताश्रुतोमहीताधारितावाचिंता" से "पुष्टस्तुष्टउदग्र आतमनाः प्रमुदिताः" तक है.) ११९८४८. दशवैकालिकसूत्र सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ.७, जैदे., (२४४१२, १२४३६). दशवैकालिकसूत्र-सज्झाय, संबद्ध, वा. कमलहर्ष, मा.गु., पद्य, वि. १७२३, आदि: मंगलिक महिमा निलो रे; अंति: कमलहरष० वंछित आसो रे, अध्याय-१०. ११९८४९ अनंतमती, विजयकंवर चरित्र व सज्झाय संग्रह, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ५, कुल पे. ५, दे., (२३.५४१२.५, २५४४३). १. पे. नाम. अनंतमती चरित्र, पृ. १अ-४आ, संपूर्ण, पे.वि. हुंडी:अंनतमती. म. चौथमलजी, पुहि., पद्य, वि. १९७६, आदि: अनंत चौवीसी जिन नम; अंति: दिने कीधो शील पर रास, ढाल-१५. २. पे. नाम. विजयकुंवरविजयाकुंवरी चरित्र, पृ. ४आ-५आ, संपूर्ण, पे.वि. हुंडी:विजयकुंवरविजयाकुंवरी. मु. चोथमल ऋषि, मा.गु., पद्य, वि. १९८१, आदि: सदा हुलसाय के रे तस सुरनर; अंति: उपकारी का गुण गाय के रे, गाथा-२५. ३. पे. नाम. औपदेशिक सज्झाय-नरभव, पृ. ५आ, संपूर्ण, पे.वि. हुंडी:स्तवन. मु. मोतीलाल ऋषि, मा.गु., पद्य, वि. १९७६, आदि: पूर्व पुण्योदय नरभव; अंति: मोतीलाल कहे चेतो भाया, गाथा-९. ४. पे. नाम. औपदेशिक सज्झाय-नरभव, पृ. ५आ, संपूर्ण. म. चोथमल ऋषि, पुहिं., पद्य, आदि: पुण्ययोग मनुष्यभव पायो; अंति: चोथमल माया जाल में, गाथा-६. ५. पे. नाम. शील सज्झाय, पृ. ५आ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. शीलगुण सज्झाय, पुहि., पद्य, आदि: देखीगेरा फूल गुलाब; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-३ अपूर्ण तक है.) ११९८५० (+#) मदरेखासती रास, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ११, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं.,प्र.वि. संशोधित. मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., (२२.५४१२.५, ११४३०). For Private and Personal Use Only Page #438 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२६ ४२३ मदनरेखासती रास, मा.गु., पद्य, आदि: शासननायक समरीये; अंति: (-), (पू.वि. ढाल-९ गाथा-२३ अपूर्ण तक है.) ११९८५१ (+) लघुक्षेत्रसमास प्रकरण, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २४, प्र.वि. हुंडी:क्षेत्रसमास प्र०., पदच्छेद सूचक लकीरें-संधि सूचक चिह्न-अन्वय दर्शक अंक युक्त पाठ-टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित., जैदे., (२४४१२, ११४२२-२६). लघुक्षेत्रसमास प्रकरण, आ. रत्नशेखरसूरि , प्रा., पद्य, वि. १५वी, आदि: वीरं जयसेहरपयपयट्ठिय; अंति: कुसलरंगमई ___ पसिद्धिं, अधिकार-६, गाथा-२६६. ११९८५२. कल्पसूत्र का बालावबोध, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ८,प्र.वि. हुंडी:श्रीकल्प., द्विपाठ., जैदे., (२४.५४१२, १२४२७-३१). कल्पसूत्र-बालावबोध*, मा.गु.,रा., गद्य, आदि: इहां श्रीपजुशन पर्व आव्ये; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., "पूरीमज्झरीमांणकप्पो मंगलंवद्धमाण" गाथा तक लिखा है.) ११९८५४.(+) त्रैलोक्यसुंदरी रास, संपूर्ण, वि. १९७९, आश्विन शुक्ल, ५, सोमवार, श्रेष्ठ, पृ. १०, ले.स्थल. बीकानेर, अन्य. श्राव. अगरचंद भेरोदान सेठिया, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. हुंडी:तिलोक. अंत में "यह प्रति अगरचंद भैरोंदान सेठिया तर्फ से जैनग्रन्थालय में पढ़ने पढ़ाने के वास्ते समर्पण की" ऐसा उल्लिखित है., पदच्छेद सूचक लकीरे-संशोधित., दे., (२४४१२, १२४३३). त्रैलोक्यसंदरी रास, म. सबलदास ऋषि, मा.गु., पद्य, वि. १८५२, आदि: विहरमान वीसे नम: अंति: जिण घर लील विलासो रे, ढाल-१२. ११९८५५ (+) ४ प्रमाण विचारादि संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २२, कुल पे. ९, प्र.वि. संशोधित-टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२४४१२, २५४४३). १. पे. नाम. ४ प्रमाण विचार, पृ. १आ-६अ, संपूर्ण. मा.गु., गद्य, आदि: चत्वार्येव प्रमाणानि येन; अंति: सर्व अप्रमाण मूल जाणिवा. २. पे. नाम. ७ नय स्वरूप विचार, पृ. ६अ-६आ, संपूर्ण. सप्तनय विवरण-नैगमादि, मा.गु., गद्य, आदि: नैगमनय१ संग्रहनय२; अंति: मोक्षार्थी इण भाति ध्यावइ. ३. पे. नाम, मोक्षप्राप्तिक्रम विचार, पृ. ६आ-७अ, संपूर्ण. मा.गु., गद्य, आदि: मोक्ष आको स्वरूप है सौ; अंति: गुणपर्यायइ करी बरतइ छै. ४. पे. नाम. ७ नय विचार-जीवविषयक, पृ. ७अ, संपूर्ण. मा.गु., गद्य, आदि: नैगमनय कहै गुणपर्यायवंत; अंति: ए सात नये जीव कह्या. ५. पे. नाम. ७ नय विचार-धर्मविषयक, पृ. ७अ, संपूर्ण. ____ मा.गु., गद्य, आदि: नैगमनय कहे सर्व धर्म छइ; अंति: ए सात नये धर्मे कह्यौ. ६. पे. नाम. ७ नय विचार-सिद्धविषयक, प.७अ-७आ, संपूर्ण. ___ मा.गु., गद्य, आदि: नैगमनये सर्व जीव सिद्ध छै; अंति: उथापे ते वचन अप्रमाण छै. ७. पे. नाम. नयचक्र की भाषावचनिका का बालावबोध, पृ. ७आ-१५अ, संपूर्ण. नयचक्र-भाषावचनिका का बालावबोध, मु. मतिचंद्र, मा.गु., गद्य, आदि: साक्षात्कार मुद्रिता; अंति: मतिच० परोपकृतिहेतवे. ८. पे. नाम. द्रव्यलक्षण विचार, पृ. १५अ-१६आ, संपूर्ण. मा.गु., गद्य, आदि: प्रणम्य परमात्मानं कर्म; अंति: जिम सकल वात सुधरे. ९. पे. नाम. द्रव्यसंग्रह सह बालावबोध, पृ. १६आ-२२आ, संपूर्ण.. द्रव्यसंग्रह, सं., पद्य, आदि: प्रणम्य परमात्मानं; अंति: औपम्यं द्विविधं पुनः, श्लोक-५८. द्रव्यसंग्रह-बालावबोध, मा.गु., गद्य, आदि: परम कहतां प्रधान एहवो जे; अंति: (१)विसयपमाणं मणुयरनयण मणुआणं, (२)की छे पांचमो ए जाणिवं. ११९८५७.(+) शतक व षड्शीति नव्य कर्मग्रंथ, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ६९, कुल पे. २,प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२३४१२, ३४२२). हितप. For Private and Personal Use Only Page #439 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ४२४ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १. पे. नाम. शतक कर्मग्रंथ-५ सह टबार्थ, पृ. १अ-३८आ, संपूर्ण. शतक नव्य कर्मग्रंथ-५, आ. देवेंद्रसूरि, प्रा., पद्य, वि. १३वी-१४वी, आदि: नमिय जिणं धुवबंधोदय; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., गाथा-९७ अपूर्ण तक लिखा है.) शतक नव्य कर्मग्रंथ-५-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: प्रणमीनइ जिनप्रतइ पहिलो; अंति: (-), अपूर्ण, पृ.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण. २. पे. नाम. षड्शीतिनव्य कर्मग्रंथ-४ सह टबार्थ, पृ. ३९अ-६९अ, संपूर्ण. षडशीति नव्य कर्मग्रंथ-४, आ. देवेंद्रसूरि, प्रा., पद्य, वि. १३वी-१४वी, आदि: नमिअ जिणं जिअ१ मग्गण; अंति: लिहियो देविंदसूरीहिं, गाथा-८६. षडशीति नव्य कर्मग्रंथ-४-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: हवइं चउथा कर्मग्रंथ; अंति: लिख्यउ श्रीदेवेंद्रसूरि. ११९८५८. (#) इलाचीकुमार चौपाई, संपूर्ण, वि. १८८४, ?, कार्तिक शुक्ल, ६, सोमवार, मध्यम, पृ. १६, ले.स्थल. भावगढ, प्र.वि. मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., (२३४१२, ११४२४-२८). इलाचीकमार चौपाई-भावविषये, म. ज्ञानसागर, मा.गु., पद्य, वि. १७१९, आदि: सकल सिद्धदायक सदा; अंति: ज्ञानदरसन अजूआलइ वे, ढाल-१६, गाथा-१८७, ग्रं. २९९. ११९८५९ (+) अष्टाह्निकापर्व व्याख्यान का बालावबोध, संपूर्ण, वि. १९४१, ज्येष्ठ शुक्ल, ९, शनिवार, श्रेष्ठ, पृ. २३, प्रले. मु. छत्रचंद्र; पठ. मु. सुमतिचंद्र (गुरु य. अबीरचंद्र ऋषि, पार्श्वचंद्रसूरिंगच्छ), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. कर्ता के शिष्य द्वारा लिखित प्रत-पदच्छेद सूचक लकीरे-संशोधित., दे., (२३४१२, १२४३३). अष्टाह्निकापर्व व्याख्यान-बालावबोध, य. अबीरचंद्र ऋषि, मा.गु., गद्य, वि. १९४१, आदिः (१)शांतीशं शांतिकर्तारं, (२)शांति के करणहार शांतिनाथ; अंति: संपूरण भई घर घर मंगल अपार. ११९८६०. (+) नंदीसूत्र, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १४, प्र.वि. हंडी:नंदी०स०., संशोधित., जैदे., (२४४१२, १८४४५). नंदीसूत्र, आ. देववाचक, प्रा., प+ग., आदि: जयइ जगजीवजोणी वियाणओ; अंति: से तं परोक्खणाणं, सूत्र-५७, गाथा-७००. ११९८६२. (+) वैराग्यशतक सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १९१३, श्रेष्ठ, पृ. १२, ले.स्थल. लाडनु, प्र.वि. हुंडी:वैराग्यस०., टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित., दे., (२४४१२, ५४२७-३४). वैराग्यशतक, प्रा., पद्य, आदि: संसारंमि असारे नत्थि सुहं; अंति: लहइ जिओ सासयं ठाणं, गाथा-१०४, (वि. १९१३, आश्विन शुक्ल, १२) वैराग्यशतक-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: संसार असारमाहि नथी; अंति: सुखरूप अनंती संपदा पामइ, (वि. १९१३, आश्विन शुक्ल, १५, सोमवार) ११९८६३. (+) बारहव्रत पूजा सविधि, संपूर्ण, वि. १९२३, भाद्रपद शुक्ल, १३, मध्यम, पृ. ९, प्रले. श्राव. सरूपचंद खेमचंद शाह, प्र.ले.प. सामान्य, प्र.वि. संशोधित-टिप्पण युक्त विशेष पाठ. कुल ग्रं. २१८, दे., (२३४१२.५, १३४३६). १२ व्रतपूजा विधिसहित, पं. वीरविजय, मा.गु., पद्य, वि. १८८७, आदि: सुखकर शंखेश्वर प्रभु; अंति: (१)जग जस पडह वजायो रे, (२)टालवा १२४ दीवा करीइं, ढाल-१३, गाथा-१२४. ११९८६४. सीमंधरजिन स्तवन व शारदा स्तोत्र, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ५, कुल पे. २, दे., (२४४१२, १२४३७-४२). १.पे. नाम. सीमंधरजिन स्तवन, पृ. १अ-५अ, संपूर्ण, वि. १९०२, श्रावण कृष्ण, १४, प्रले. ग. भीमविजय, प्र.ले.पु. सामान्य. मु. सिद्धिविजय, मा.गु., पद्य, वि. १७१३, आदि: अनंत चोवीसी जिन नमु; अंति: संप्रति भविकजन मंगल करो, ढाल-७, गाथा-११०. २.पे. नाम. शारदा स्तोत्र, पृ. ५अ-५आ, संपूर्ण, वि. १९०३, ज्येष्ठ शुक्ल, ११, मंगलवार, ले.स्थल. व्यालपुर, प्रले. पं. चिमनसागर, प्र.ले.पु. सामान्य. पंन्या. जिनचंद्र, सं., पद्य, आदि: श्रीमद्गीर्वाणवृंदभ्रमर; अंति: पंडिताख्यातकीर्तिः, श्लोक-९. ११९८६५. पट्टावली, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ६, निदाता ऋ. लालचंदजी, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२४.५४१२, ५०४२४). For Private and Personal Use Only Page #440 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२६ ४२५ पट्टावली-परशुरामजी समुदाय, मा.गु., गद्य, आदि: श्रीअनोपचंदजी ओसवाल टोडा; अंति: देविलालजी ओस गंगापुर ०१९. ११९८६७. (+) खंडाजोजण विचार, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. २८, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. संशोधित., दे., (२३४१२, १४४२२-२८). लघसंग्रहणी-खंडाजोयण बोल *, संबद्ध, मा.गु., गद्य, आदि: खंडा १ जोयण २ वास ३; अंति: (-), (पू.वि. पाठ-"सर्वकमल अढीद्वीप में९६४००९६००" तक है.) ११९८७६. बावन प्रश्नोत्तर-विविध शास्त्रोक्त, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ६, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., दे., (२७४१२, १२४३८-४२). ५२ प्रश्नोत्तर-विविधशास्त्रोक्त, प्रा.,मा.गु., प+ग., आदि: श्रीप्रश्नव्याकरणमा; अंति: (-), (पू.वि. पाठ-"जीवनेयथाख्यात चारित्र आवस्यै तिवारे सोसकर्म निष्कर्म" तक है.) ११९८७७. (+) पर्युषणाष्टाह्निकापर्व व्याख्यान, संपूर्ण, वि. १९५१, आश्विन कृष्ण, ५, सोमवार, श्रेष्ठ, पृ. ११, ले.स्थल. पाटण, प्रले. कृष्ण मुथा, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. हुंडी:अष्टाह्नि०., अन्वय दर्शक अंक युक्त पाठ., दे., (२७.५४१२, १५४४३). पर्युषणाष्टाह्निका व्याख्यान, आ. लक्ष्मीसूरि, सं., गद्य, वी. १६६९, आदि: सामायिकप्रमुखशिक्षाव्रत; अंति: मालाणिकाणांकारइत्युक्तं, व्याख्यान-३. ११९८८१ (+) शीलोपदेशमाला का कथासंग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ११९-१०९(१ से १०९)=१०, पृ.वि. बीच के पत्र हैं., प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२७.५४१२.५, १३४३९). शीलोपदेशमाला-कथा संग्रह, संबद्ध, मु. मेरुसुंदर, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. अंजनासुंदरी कथा-२५वीं अपूर्ण से नर्मदासुंदरी कथा-२६वीं अपूर्ण तक है.) ११९८८२ (+) बृहत्संग्रहणी सह टीका, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ.५, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं.,प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२८x१२, १८४५८). बृहत्संग्रहणी, आ. चंद्रसूरि, प्रा., पद्य, वि. १२वी, आदि: नमिउं अरिहंताई ठिइ; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-१३ तक है.) बृहत्संग्रहणी-टीका, आ. देवभद्रसरि, सं., गद्य, आदि: अत्यद्भतं योगिभिरप्यगम्य; अंति: (-). ११९८८३. (+) धर्मसंग्रहश्रावकाचार, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ७३+१(३८)=७४, प्रले. मु. अज्ञात जैनश्रमण, प्र.ले.प. सामान्य, प्र.वि. वि.सं. १५९१ ज्येष्ठ सदि ६ भौमवार को लिखित ग्रंथ की प्रतिलिपि प्रतीत होती है., पदच्छेद सूचक लकीरें-संशोधित., जैदे., (२६.५४१२, १०४३३). धर्मसंग्रहश्रावकाचार, पंडित. मेघावी, सं., पद्य, आदि: श्रियं दद्यात्स वो देवो; अंति: लेखकेनत्व संशयं, अधिकार-१०. ११९८८४. (+) ब्रह्मविलास कृति संग्रह, अपूर्ण, वि. १७८३, ?, वैशाख शुक्ल, १३, मध्यम, पृ.८१-१(३१)=८०, कुल पे. १०१, ले.स्थल. सूरत, प्रले. श्राव. पद्मसी संघवी, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. हुंडी:ब्रह्मविलास., पदच्छेद सूचक लकीरें-संशोधित., जैदे., (२६४११.५, १६x४५). १. पे. नाम. पुण्यपच्चीसी, पृ. १अ-३अ, संपूर्ण. श्राव. भगवतीदास भैया, पुहिं., पद्य, वि. १७३३, आदि: प्रथम० अरिहंत बहुरि; अंति: नमि भाव सौं कहै भगवतीदास, गाथा-२६. २.पे. नाम. शतअष्टोत्तरी स्तोत्र, पृ. ३अ-१०आ, संपूर्ण. __शतअष्टोतरी स्तोत्र, श्राव. भगवतीदास भैया, पुहिं., पद्य, आदि: ॐकार गुण अति अगम; अंति: भगौतीदास० ते पावहि शिवराज, गाथा-१०८. ३. पे. नाम. द्रव्यसंग्रह का पद्यानुवाद, पृ. १०आ-१६आ, संपूर्ण. द्रव्य संग्रह-पद्यानुवाद, श्राव. भगवतीदास भैया, पुहि., पद्य, वि. १७३१, आदि: जे नर पढे विवेक सुं जिणवर; अंति: प्रति करुं प्रणाम, गाथा-११८. ४. पे. नाम. चेतन वृत्तांत, पृ. १६आ-२४अ, संपूर्ण. For Private and Personal Use Only Page #441 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ४२६ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची चेतन वृतांत, श्राव. भगवतीदास भैया, पुहिं., पद्य, वि. १७३६, आदि: जिनचरण प्रणाम करि; अंति: भगवतीदास० कही अनादि, गाथा-२९५. ५. पे. नाम. अक्षरछत्रीसी, पृ. २४अ-२५अ, संपूर्ण. अक्षरछत्तीसी, श्राव. भगवतीदास भैया, पुहिं., पद्य, आदि: ॐकार अपारगुण पार न पावे; अंति: भगौतीदास लहि आतम परकास, गाथा-३६. ६. पे. नाम. ब्रह्मसमाधि शतक, पृ. २५अ-२७अ, संपूर्ण. परमशतक दोहा सोरठा बंध, श्राव. भगवतीदास भैया, पुहिं., पद्य, वि. १७३२, आदि: पंच परमपद प्रणमि; अंति: भगौतीदास० फागुण तीज सुपेद, कडवक-१००. ७. पे. नाम. अष्टप्रकारी पूजा, पृ. २७अ-२८अ, संपूर्ण. ८ प्रकारी जिन पूजा, श्राव. भगवतीदास भैया, पुहिं., पद्य, आदि: जल चंदन अरु सुमन लै अक्षत; अंति: भैया० दीजै अर्ध सुधारि, गाथा-१२. ८. पे. नाम. समवसरण अष्टप्रतिहार्य कवित्त, पृ. २८अ, संपूर्ण. समवसरण अष्टप्रातिहार्या, श्राव. भगवतीदास भैया, पहिं., पद्य, आदि: काहे को देसस्मिंतर धावत; अंति: निश्चै निरधारि कै, गाथा-४. ९.पे. नाम. प्रश्नोत्तर दोहा, पृ. २८अ-२८आ, संपूर्ण. श्राव. भगवतीदास भैया, पुहिं., पद्य, आदि: जेई अख्यर प्रश्न के तेई; अंति: मम आतम नाम, गाथा-५. १०.पे. नाम. यंत्रबद्ध दोहरा, पृ. २८आ-३२अ, अपूर्ण, पू.वि. बीच का एक पत्र नहीं है. श्राव. भगवतीदास भैया, पहि., चिप., आदि: जैन धर्म में जायकी कही; अंति: निकसै है ए अख्यर निकसै है, गाथा-१६, (संपूर्ण, वि. सारिणीयुक्त) ११. पे. नाम, जिनचौवीसी, पृ. ३२अ-३३आ, संपूर्ण. श्राव. भगवतीदास भैया, पुहि., पद्य, आदि: श्रीआदिनाथ अरिहंत; अंति: ते पावै शिव थांन, गाथा-२५. १२. पे. नाम. वर्तमानजिन चौवीसी, पृ. ३३आ-३५अ, संपूर्ण. ___ वर्तमानजिनवीसी, श्राव. भगवतीदास भैया, पुहि., पद्य, आदि: सीमंधर जिनदेव नगर; अंति: भैया० त्रिकाल शीस नाइयै, स्तुति-२२. १३. पे. नाम. परमात्मा की जयमाला, पृ. ३५अ, संपूर्ण. परमात्मा जयमालिका, श्राव. भगवतीदास भैया, पुहि., पद्य, आदि: परमदेव परणांम करि परम; अंति: परमातमा० भैया __ताहि निहारि, गाथा-७. १४. पे. नाम. साधारणजिन स्तति, पृ. ३५अ-३५आ, संपूर्ण. जिन जयमालिका, श्राव. भगवतीदास भैया, पुहिं., पद्य, आदि: श्रीजिनदेव प्रणांम करि; अंति: वसै सिंधु सुख के तट में, गाथा-९. १५. पे. नाम. मनिराज की जयमाल, पृ. ३५आ, संपूर्ण. मनिराज जयमालिका, श्राव. भगवतीदास भैया, पहि., पद्य, आदि: परमदेव परणांम करि सतगुरु; अंति: भैया० जनम मरन भै नाहि, गाथा-१०. १६. पे. नाम. पार्श्वनाथजिन छंद-अहिच्छत्रा, पृ. ३५आ, संपूर्ण. पार्श्वजिन छंद-अहिच्छत्रा, श्राव. भगवतीदास भैया, पुहिं., पद्य, वि. १७३१, आदि: अश्वसेन अंगज निलौं वामा; अंति: सुहावनौं पूजै पासकुमार, गाथा-७. १७. पे. नाम, सिख्य छंद, पृ. ३६अ, संपूर्ण. औपदेशिक छंद-मूढशिक्षा, श्राव. भगवतीदास भैया, पुहिं., पद्य, आदि: देह सनेह कहा करै; अंति: भैया० कै समदिष्टी होइ, दोहा-१२. १८. पे. नाम. आध्यात्मिक पद, पृ. ३६अ, संपूर्ण. For Private and Personal Use Only Page #442 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२६ ४२७ आध्यात्मिक पद-शूची, श्राव. भगवतीदास भैया, पुहि., पद्य, आदि: या देही कौ श्रुचि कहा; अंति: गुण त्यागि जलं जलि दीजै, गाथा-४. १९. पे. नाम, आध्यात्मिक पद-वैराग, पृ. ३६आ, संपूर्ण. आध्यात्मिक पद, श्राव. भगवतीदास भैया, पुहिं., पद्य, आदि: अव मैं छाड्यौ पर जंजा; अंति: गुण राजत सोमम रूप विशाल, गाथा-२. २०. पे. नाम, आध्यात्मिक पद, पृ. ३६आ, संपूर्ण. श्राव. भगवतीदास भैया, पुहिं., पद्य, आदि: या घटमैं परमातमा; अंति: चहै सदा चेतो चित वइया, गाथा-४. २१. पे. नाम. आध्यात्मिक पद, पृ. ३६आ, संपूर्ण. श्राव. भगवतीदास भैया, पुहिं., पद्य, आदि: नर देही वहु पुण्य सौं; अंति: दुल्लभ महा यह गति ठकुराई, गाथा-२. २२. पे. नाम, आध्यात्मिक पद, पृ. ३६आ, संपूर्ण. श्राव. भगवतीदास भैया, पुहिं., पद्य, आदि: अरे तैं जुयै जनम गमायो रे; अंति: भैया तो कौ कहि समुझायो रे, गाथा-२. २३. पे. नाम. आध्यात्मिक पद, पृ. ३६आ, संपूर्ण. श्राव. भगवतीदास भैया, पुहिं., पद्य, आदि: (१)अरे ते जुयै जनम गमायो जीव, (२)जीव कौं मोह महा दुखदाई; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., अंतिम गाथा अपूर्ण तक लिखा है.) २४. पे. नाम. आध्यात्मिक पद, पृ. ३६आ, संपूर्ण. ___ श्राव. भगवतीदास भैया, पुहिं., पद्य, आदि: (-); अंति: सुखसागर आप ही आपु लखावै, गाथा-२, (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., गाथा-२ अपूर्ण से लिखा है.) २५. पे. नाम. आध्यात्मिक पद, पृ. ३६आ-३७अ, संपूर्ण. श्राव. भगवतीदास भैया, पुहिं., पद्य, आदि: नगन दिगंबर मुद्रा धरि कै; अंति: प्रगटै वहुरिन भौमैं आऊं, गाथा-५. २६. पे. नाम. पार्श्वजिन पद-गोडी, पृ. ३७अ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तवन-गोडीजी, श्राव. भगवतीदास भैया, पहिं., पद्य, आदि: गोडी गोडी प्र पास पूजी; अंति: भाव सौंहौ पास जगत विख्यात, गाथा-५. २७. पे. नाम. आध्यात्मिक पद, पृ. ३७अ, संपूर्ण. श्राव. भगवतीदास भैया, पुहिं., पद्य, आदि: कहा परदेशी को पतियारो मन; अंति: भईया आप हि आप संभारो, गाथा-५. २८. पे. नाम. आध्यात्मिक पद, पृ. ३७अ, संपूर्ण. श्राव. भगवतीदास भैया, पुहिं., पद्य, आदि: ते गहिले भाई ते गहिले; अंति: भैया० नातो नरक निगोदहले, गाथा-३. २९. पे. नाम, आध्यात्मिक पद, पृ. ३७अ-३७आ, संपूर्ण. श्राव. भगवतीदास भैया, पुहिं., पद्य, आदि: छांडि दै अभिमान जीव रे; अंति: इम करम० भैया आप पिछांन, गाथा-४, (वि. गाथांक नहीं है.) ३०. पे. नाम. आध्यात्मिक पद, पृ. ३७आ, संपूर्ण. श्राव. भगवतीदास भैया, पुहिं., पद्य, आदि: एक सुनि जिनशासन कीवतिया; अंति: भैया निज पदगह निज मतियां, गाथा-४. ३१. पे. नाम. आध्यात्मिक पद, पृ. ३७आ, संपूर्ण. श्राव. भगवतीदास भैया, पहिं., पद्य, आदि: देखो मिरी सहिए आज चेतन; अंति: अखंडित भैया सवन मन भावे, गाथा-४. ३२. पे. नाम, आध्यात्मिक पद-आत्मा, पृ. ३७आ, संपूर्ण. औपदेशिक पद-आत्मा, श्राव. भगवतीदास भैया, पुहिं., पद्य, आदि: कैसे देऊ करमनी दोस; अंति: पाय नरभो मुकति पंथ सुघोस, गाथा-५, (वि. गाथांक नहीं है.) ३३. पे. नाम. आध्यात्मिक पद, पृ. ३७आ, संपूर्ण. श्राव. भगवतीदास भैया, पुहिं., पद्य, आदि: श्रीजिन चरणां वज प्रते; अंति: भविक नित भाव सहित शिवरूप, गाथा-२. ३४. पे. नाम, आध्यात्मिक पद, पृ. ३७आ-३८अ, संपूर्ण. For Private and Personal Use Only Page #443 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ४२८ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची श्राव. भगवतीदास भैया, पुहिं., पद्य, आदि: भविक तुम वंद हु मन धरिभाव; अंति: भैया जिन प्रतिमां सहिए, गाथा-७. ३५. पे. नाम, औपदेशिक पद, पृ. ३८अ, संपूर्ण. श्राव. भगवतीदास भैया, पुहि., पद्य, आदि: हो चेतन तो मति कौनै हरी; अंति: अपनौं भैया सीख सुधारि खरी, गाथा-४. ३६. पे. नाम. आध्यात्मिक पद, पृ. ३८अ, संपूर्ण. श्राव. भगवतीदास भैया, पुहिं., पद्य, आदि: हे चेतन उवे दुख विसरि गए; अंति: परमपद अपनौं नातो आगै अए, गाथा-३. ३७. पे. नाम. आध्यात्मिक पद, पृ. ३८अ, संपूर्ण. श्राव. भगवतीदास भैया, पुहिं., पद्य, आदि: जो जो देख्यौ वीतरागर्ने; अंति: भैया० जोतारै भौ नीरारै, गाथा-४. ३८. पे. नाम, आध्यात्मिक पद, पृ. ३८अ, संपूर्ण. श्राव. भगवतीदास भैया, पुहिं., पद्य, आदि: जिनवानी कै कोन हितारे; अंति: मुकति पंथ मुनिराज सिधा रे, गाथा-२. ३९. पे. नाम, आध्यात्मिक पद, पृ. ३८अ-३८आ, संपूर्ण. श्राव. भगवतीदास भैया, पुहिं., पद्य, आदि: जिनवानी सुनि तुरत सभा रे; अंति: जिन वचन सवै उपगारे, गाथा-४. ४०. पे. नाम. आध्यात्मिक पद, पृ. ३८आ, संपूर्ण. श्राव. भगवतीदास भैया, पुहिं., पद्य, आदि: चेतन परे मोह विश आइ मानत; अंति: भैया सो निहचै ठहराय, गाथा-४. ४१. पे. नाम. शिष्य चतुर्दशी, पृ. ३८आ-३९अ, संपूर्ण. शिष्यचतुर्दशी, श्राव. भगवतीदास भैया, पुहिं., पद्य, आदि: कहुं दिव्य धुनि शिष्य; अंति: दास भगवंते समता कै घरि आइ, गाथा-१४. ४२. पे. नाम. मिथ्यात्व विध्वंशन चतुर्दशी चौवीसजिन नमस्कार छप्पय, पृ. ३९अ, संपूर्ण. मिथ्यात्व विध्वंशन चतुर्दशी, श्राव. भगवतीदास भैया, पुहिं., पद्य, आदि: वंदौ रिषभजिनंद अजित संभव; अंति: भैया० पढत वढत आनंद, गाथा-१४. ४३. पे. नाम. जिनगुण मालिका, पृ. ४० अ-४०आ, संपूर्ण. ___ जिनगुणमालिका स्तवन, श्राव. भगवतीदास भैया, मा.गु., पद्य, आदि: तीर्थंकर त्रिभुवन; अंति: भैया० पढे पर्म सुख होइ, गाथा-२१. ४४. पे. नाम. अतीतअनागतवर्तमानजिन पद, पृ. ४१अ, संपूर्ण. श्राव. भगवतीदास भैया, पुहिं., पद्य, आदि: नमौं सिद्ध सम आतमा; अंति: सिद्ध जिन जानि प्राणी, गाथा-४. ४५. पे. नाम, पंचपरमेष्ठीनमस्कार स्तवन, पृ. ४१अ, संपूर्ण. पंचपरमेष्ठी नमस्कार स्तवन, श्राव. भगवतीदास भैया, पुहि., पद्य, आदि: प्रात समै श्रीपंचपद वंदन; अंति: सुख सासते भैया सुगम उपाय, गाथा-६. ४६. पे. नाम. गुणमंजरी चौपाई, पृ. ४१अ-४३अ, संपूर्ण. श्राव. भगवतीदास भैया, पुहिं., पद्य, वि. १७४०, आदि: परम पंचपरमेष्ठि कौं वंदौं; अंति: भैया० मंगल कह्यौ सिद्धंत, गाथा-७४. ४७.पे. नाम. लोकाकाशषेत्र के तीन से तेतालीस राज चौपाई, पृ. ४३अ-४४अ, संपूर्ण. लोकाकाश ३४३ राज चौपाई, श्राव. भगवतीदास भैया, पुहिं., पद्य, वि. १७४०, आदि: प्रणमूं परमदेव के पाय मन; अंति: पोष सुदी पून्यौं रवि कही, गाथा-२०. ४८. पे. नाम. मधुबिंदु दृष्टांत चौपाई, पृ. ४४अ-४५आ, संपूर्ण. श्राव. भगवतीदास भैया, पुहिं., पद्य, वि. १७४०, आदि: वंदौ जिनवर जगत गुरु वंदौं; अंति: जे सर दहै ते पावै भवपार, गाथा-६२. ४९. पे. नाम. सिद्ध चतुर्दशी, पृ. ४५आ-४६आ, संपूर्ण. सिद्धचतुर्दशी, श्राव. भगवतीदास भैया, पुहिं., पद्य, आदि: परमदेव परणाम करि परम; अंति: तें फेर रंच कह नाहि, गाथा-१४. ५०. पे. नाम, निर्वाणकांड का पद्यानुवाद, पृ. ४६आ-४७अ, संपूर्ण. For Private and Personal Use Only Page #444 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२६ ४२९ निर्वाणकांड-पद्यानवाद, श्राव. भगवतीदास भैया, पहिं., पद्य, वि. १७४१, आदि: वीतराग वंदों सदा भाव; अंति: निर्वाणकांड गुणमाल, गाथा-२२. ५१.पे. नाम. गुणस्थानएकादसताई जीव किहि पंथ चढे गिरै, पृ. ४७अ-४७आ, संपूर्ण. ११ गुणस्थानक क्रमारोह चौपाई-१४ गुणस्थानकगत, श्राव. भगवतीदास भैया, पुहि., पद्य, आदि: करम कलंक खपाई कै भए; अंति: तेयाते सुख लहि सदीव, दोहा-२१. ५२. पे. नाम. काल अष्टक, पृ. ४८अ, संपूर्ण. कालअष्टक, श्राव. भगवतीदास भैया, पुहिं., पद्य, आदि: तिहंपुर के पुरधीत सव; अंति: भगवतं० ताहि धरि ध्यान, गाथा-८. ५३. पे. नाम. उपदेशपच्चीशी, पृ. ४८अ-४८आ, संपूर्ण. __ उपदेशपच्चीसी, श्राव. भगवतीदास भैया, पुहिं., पद्य, वि. १७४१, आदि: वीतराग के चरण जुग; अंति: श्रीरविवार प्रत्यक्ष, गाथा-२६. ५४. पे. नाम. नंदीश्वरद्वीप जयमाल, पृ. ४८आ-४९अ, संपूर्ण. नंदीश्वरद्वीप जिनप्रतिमा स्तुति, श्राव. भगवतीदास भैया, पुहिं., पद्य, आदि: वंदो श्री जिनदेवको; अंति: जयमाल नंदीश्वर कही, गाथा-१५. ५५. पे. नाम. बारह भावना चौपाई, प. ४९अ-४९आ, संपूर्ण. १२ भावना चौपाई, श्राव. भगवतीदास भैया, पुहिं., पद्य, आदि: पंच परमगुरु वंदना; अंति: इम भाखै स्वामी जगदीश, गाथा-१६. ५६. पे. नाम. कर्म के दस भेद, पृ. ४९आ-५०अ, संपूर्ण. १० कर्मभेद चौपाई, श्राव. भगवतीदास भैया, पुहिं., पद्य, आदि: श्रीजिन चर्णांबुज प्रतै; अंति: भैया० वंदह सिद्ध समान, गाथा-१५. ५७. पे. नाम. सप्तनयभंगी वाणी, पृ. ५०अ, संपूर्ण. श्राव. भगवतीदास भैया, पहिं., पद्य, आदि: वंदौ श्रीजिनदेव कौं वंदौ; अंति: भैया० मिटहि सकल भ्रम भेद, गाथा-१२. ५८. पे. नाम. सुबुधचौवीसी, पृ. ५०अ-५२अ, संपूर्ण. सुबुद्धिचौवीसी, श्राव. भगवतीदास भैया, पुहिं., पद्य, आदि: चरण कमल जिनदेव के वंदौ; अंति: भगौतीदास० ते पावै शिववास, गाथा-२४. ५९. पे. नाम. चैत्यालय जयमालिका, पृ. ५२अ-५३अ, संपूर्ण. श्राव. भगवतीदास भैया, पुहिं., पद्य, वि. १७४५, आदि: प्रणमहं परम देवके; अंति: सुने होत सबनको चैन, गाथा-३३. ६०. पे. नाम. चौदह गुणस्थानक जीवभेद विचार, पृ. ५३अ-५३आ, संपूर्ण... १४ गुणस्थानक जीवभेद विचार, श्राव. भगवतीदास भैया, पुहिं., पद्य, वि. १७४६, आदि: वीतराग के चरणयुग वंदौ; ___ अंति: भैया० प्रति करु प्रणांम, गाथा-२५.. ६१. पे. नाम. १५ पात्र चौपाई, पृ. ५३आ-५४अ, संपूर्ण. १५ भेद पात्रविचार चौपाई, श्राव. भगवतीदास भैया, पहिं., पद्य, आदि: नम देव अरिहंत को नम; अंति: भटकत फिरै विनवैदास किशोर, गाथा-२४. ६२. पे. नाम. ब्रह्मा ब्रह्म निरनै, पृ.५४अ-५४आ, संपूर्ण. औपदेशिक सज्झाय-ब्रह्माब्रह्मनिरणै, श्राव. भगवतीदास भैया, पहिं., पद्य, आदि: असिआउसा पंचपद वंदौ शीस; अंति: भैया० मैं कही कथा विख्यात, गाथा-१३. ६३. पे. नाम. अनित्यसवैयापच्चीसी, पृ.५४आ-५५आ, संपूर्ण. अनित्यपच्चीसी, श्राव. भगवतीदास भैया, पुहि., पद्य, आदि: नरलोकनि केईस नागलोकनि; अंति: भैया० कौं जिनवानी उरधारि, गाथा-२७. ६४. पे. नाम. अष्टकर्म चौपाई, पृ. ५५आ-५६अ, संपूर्ण. का-१४. For Private and Personal Use Only Page #445 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ४३० कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची श्राव. भगवतीदास भैया, पुहिं., पद्य, आदि: नमो देव सर्वज्ञ को वीतराग; अंति: भैया० वरनई जिन आगम परसादि, गाथा-२७. ६५. पे. नाम, सुपंथकुंपंथपच्चीसी, पृ. ५६अ-५८अ, संपूर्ण. सुपंथकुपंथपच्चीसी, श्राव. भगवतीदास भैया, पुहि., पद्य, आदि: केवलज्ञान सरुप मैं राजत; अंति: भैया० लहियै आतम रिद्धि, गाथा-२७. ६६. पे. नाम. मोहभ्रम अष्टक, पृ. ५८अ-५८आ, संपूर्ण. श्राव. भगवतीदास भैया, पुहि., पद्य, आदि: परमपूज्य सर्वज्ञ है तारण; अंति: विवेक० निर्मल चित्त, गाथा-११. ६७. पे. नाम. आश्चर्य चतुर्दशी, पृ. ५८आ-५९अ, संपूर्ण. __ आश्चर्यचतुर्दशी, श्राव. भगवतीदास भैया, पुहिं., पद्य, आदि: नमौं पदारथ सार कौ; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., गाथा-५ अपूर्ण तक है.) ६८. पे. नाम. रागादिनिर्णय अष्टक, पृ. ५९अ-५९आ, संपूर्ण. रागादिनिर्णयाष्टक, श्राव. भगवतीदास भैया, पुहिं., पद्य, आदि: सर्वज्ञेय ज्ञायक परम; अंति: भैया० लीज्यौ सबै लगाय, गाथा-१०. ६९. पे. नाम, पुन्यपापजगमूलपच्चीसी, पृ. ५९आ-६२अ, संपूर्ण. पुण्यपापजगमलपच्चीसी, श्राव. भगवतीदास भैया, पुहिं., पद्य, आदि: परमातम परत० सिद्ध सकल; अंति: भैया० सव सिद्धि प्रवांन, गाथा-२७. ७०. पे. नाम. बावीस परिषह, पृ. ६२अ-६४अ, संपूर्ण. २२ परिषह सवैया, श्राव. भगवतीदास भैया, पहि., पद्य, वि. १७४९, आदि: पंच पर्म पद प्रणमि; अंति: भईया० ते पावै भवपार, गाथा-३०. ७१. पे. नाम. छियालिस दोष रहित आहार, पृ. ६४अ-६५अ, संपूर्ण. गोचरी ४६ दोष चोपाई, श्राव. भगवतीदास भैया, पुहिं., पद्य, वि. १७५०, आदि: अरिहंत सिद्धचिता रिचित; अंति: भैया० मुक्ति पंथ सुखवास, गाथा-२५. ७२. पे. नाम, जिनधर्मपच्चीसी, पृ. ६५अ-६६आ, संपूर्ण. श्राव. भगवतीदास भैया, पुहि., पद्य, वि. १७५०, आदि: प्रगटदेव परमातमा चिदानंद; अंति: भैया० जै जिनधर्मप्रकाश, गाथा-२८. ७३. पे. नाम. अनादिछत्रीशी, पृ. ६६आ-६७अ, संपूर्ण. अनादिबत्रीसी, श्राव. भगवतीदास भैया, पुहिं., पद्य, वि. १७५०, आदि: अष्टकर्म अरिजीतकै भए; अंति: भैया० कही अनादि प्रतक्ष, गाथा-३३. ७४. पे. नाम. समुद्धात सात स्वरुप वर्णन, पृ. ६७अ, संपूर्ण. समद्धात के ७ स्वरुप वर्णन, श्राव. भगवतीदास भैया, पुहि., पद्य, आदि: चरण युगल जिनदेव के वंदत; अंति: जिनकेवली डेसथण जियपाहि, गाथा-११. ७५. पे. नाम, मूढ अष्टक, पृ. ६७आ, संपूर्ण. मूढशिक्षा अष्टपदी, श्राव. भगवतीदास भैया, पुहिं., पद्य, आदि: चिनमूरति चिंताहरन पूरन; अंति: राम कौ भैया लखि निजधांम, गाथा-८. ७६. पे. नाम. सम्यक्त्वपच्चीसी, पृ. ६७आ-६८अ, संपूर्ण. श्राव. भगवतीदास भैया, पुहि., पद्य, वि. १७५०, आदि: सम्यक आदि अनंतगुन सहित; अंति: भैया० मृगपतिवार प्रतक्ष, गाथा-२६. ७७. पे. नाम. वैराग्यपच्चीसी, पृ. ६८अ-६८आ, संपूर्ण. वैराग्यपचीसी, श्राव. भगवतीदास भैया, पुहिं., पद्य, वि. १७५०, आदि: रागादिक दूषन तजे वैरागी; अंति: भैया० जै जै निसपतिवार, गाथा-२५. ७८. पे. नाम, परमात्मछत्तीसी, पृ. ६८आ-६९आ, संपूर्ण. For Private and Personal Use Only Page #446 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ४३१ हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२६ श्राव. भगवतीदास भैया, पुहि., पद्य, वि. १७५०, आदि: परमदेव परमातमा परम ज्योति; अंति: भैया० प्रथम पखि दुति जास, गाथा-३६. ७९. पे. नाम. नाटकपच्चीसी, पृ. ६९आ-७०अ, संपूर्ण. श्राव. भगवतीदास भैया, पुहि., पद्य, आदि: कर्मनाट विधि तोरि के भए; अंति: भैया० ते पहुंचे भवपार, दोहा-२५. ८०. पे. नाम, उपादान निमित्त संवाद, पृ. ७०अ, संपूर्ण. उपादान निमित्त संवाद दोहा, श्राव. भगवतीदास भैया, पुहिं., पद्य, वि. १७५०, आदि: पाइ प्रणमि जिनदेव के एक; अंति: भैया० दशौं दिशा परकास, दोहा-४७. ८१. पे. नाम. चौवीस तीर्थंकर जयमाल, प. ७०आ-७१अ, संपूर्ण. २४ तीर्थंकर स्तुति, श्राव. भगवतीदास भैया, मा.गु., पद्य, आदि: वीस चार जगदीशको बंदो; अंति: भैया० होइ कहां सौ मोष, गाथा-१७. ८२. पे. नाम. पाँच इंद्रिय चौपाई, पृ. ७१अ-७४अ, संपूर्ण. ५ इंद्रिय चौपाई, श्राव. भगवतीदास भैया, पहिं., पद्य, वि. १७५१, आदि: प्रथम प्रणमी जिनदेव; अंति: सवको मंगल होइ, ढाल-६, गाथा-१५५. ८३. पे. नाम. ईश्वरनिर्णयपच्चीसी, पृ. ७४आ-७५अ, संपूर्ण. श्राव. भगवतीदास भैया, पुहि., पद्य, आदि: परमेश्वर जो परम गुरु परम; अंति: भैया० यामैं फेरन कोय, गाथा-२५. ८४. पे. नाम, कर्ताअकर्त्तापच्चीसी, प.७५अ-७५आ, संपूर्ण. श्राव. भगवतीदास भैया, पहिं., पद्य, वि. १७५१, आदि: कर्मन को कर्ता नहीं; अंति: लिखे सो पावे भवपार, गाथा-२५. ८५. पे. नाम. दृष्टांतपच्चीसी, पृ. ७५आ-७६अ, संपूर्ण. श्राव. भगवतीदास भैया, पुहिं., पद्य, वि. १७५२, आदि: केवलज्ञान सरूप मैं बसै; अंति: पचीसिका कही भगवतीदास, गाथा-२६. ८६. पे. नाम, मनबत्तीसी, पृ. ७६अ-७६आ, संपूर्ण. श्राव. भगवतीदास भैया, पुहिं., पद्य, आदि: दरशनज्ञान चरित जिहि सुख; अंति: यो तिहिं पायो कल्यान, गाथा-२७. ८७. पे. नाम. स्वप्नबत्रीसी, पृ. ७७अ-७७आ, संपूर्ण. म. भगोतीदास, पुहिं., पद्य, आदि: सुपनेवत संसारमे जागै; अंति: समजि लह गुनवान, गाथा-३४. ८८. पे. नाम. सूआबत्रीसी, पृ. ७७आ-७८आ, संपूर्ण. सूआबत्तीसी, श्राव. भगवतीदास भैया, पुहि., पद्य, वि. १७५३, आदि: नमसकार जिनदेवको करौं दुहु; अंति: भैया० संगति तै शिवसुख तास, गाथा-३४. ८९. पे. नाम. ज्योतिष कवित्त, पृ. ७८आ, संपूर्ण. श्राव. भगवतीदास भैया, पुहिं., पद्य, आदि: दिनकर के दिन बीस चंद पचास; अंति: दीप और परनि दीपडो, गाथा-५. ९०. पे. नाम. औपदेशिक पद, पृ. ७८आ-७९अ, संपूर्ण. श्राव. भगवतीदास भैया, पुहिं., पद्य, आदि: भरि रहै सदा के जामें; अंति: भैया० पर सौ मति मार्च, गाथा-२. ९१. पे. नाम. औपदेशिक सज्झाय, पृ. ७९अ-७९आ, संपूर्ण. औपदेशिक सवैया, श्राव. भगवतीदास भैया, पुहि., पद्य, आदि: तेरोई सुभाव विन मूरति; अंति: जाके भाव रहै हावभाव रै, गाथा-८. ९२. पे. नाम. औपदेशिक पद-चिंता, पृ. ७९आ, संपूर्ण. श्राव. भगवतीदास भैया, पहिं., पद्य, आदि: ए मन नीच निपात निरथक काहे; अंति: सूझत नांहि किधो भयो सुरो, गाथा-१. ९३. पे. नाम. औपदेशिक पद, पृ. ७९आ, संपूर्ण. श्राव. भगवतीदास भैया, पहिं., पद्य, आदि: शीस गर्भ नहि नमौ कान नहि; अंति: यह निंदनि कष्ट लीजियै, गाथा-१. ९४. पे. नाम. औपदेशिक सवैया, पृ. ७९आ, संपूर्ण. For Private and Personal Use Only Page #447 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ४३२ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची औपदेशिक सवैया-साघ, श्राव. भगवतीदास भैया, पहिं., पद्य, आदि: मन वचन काय योग तीनउ; अंति: चलै साघु है सोय, गाथा-१. ९५. पे. नाम, औपदेशिक सवैया-पेट, पृ. ७९आ, संपूर्ण. श्राव. भगवतीदास भैया, पहिं., पद्य, आदि: पेट ही कै काज महाराज; अंति: भरै पंडित कहाय कै, गाथा-१. ९६. पे. नाम. जिनभक्ति सवैया, पृ.७९आ-८०अ, संपूर्ण. श्राव. भगवतीदास भैया, पुहिं., पद्य, आदि: वीतराग के विवसेव; अंति: भैया नित जपिवो कर व, गाथा-५. ९७. पे. नाम. औपदेशिक दोहे-जिनवाणी, पृ.८०अ-८०आ, संपूर्ण. औपदेशिक पद-जिनवाणी, श्राव. भगवतीदास भैया, पुहिं., पद्य, आदि: सीमंधर स्वामी प्रमुख; अंति: ते सव शिवपुर जांहि, गाथा-१५. ९८. पे. नाम. ब्रह्मविलासगत, पृ. ८०आ, संपूर्ण. ब्रह्मविलासगत कृतिनाम सवैया, श्राव. भगवतीदास भैया, पुहिं., पद्य, आदि: पुन्यपचीसी शतअष्टोत्तर; अंति: ब्रह्मविलास मधिसव आय, गाथा-७. ९९. पे. नाम. भगवतीदास कवि परिचय सवैया, पृ. ८०आ-८१अ, संपूर्ण. श्राव. भगवतीदास भैया, पुहिं., पद्य, आदि: जंबूदीप मैं दछन भत; अंति: शुद्ध सरूप वहै भगवान, गाथा-११. १००. पे. नाम. ब्रह्मविलास संबंध बीजक, पृ. ८१अ-८१आ, संपूर्ण. ब्रह्मविलास-संबंध बीजक, श्राव. भगवतीदास भैया, पुहि., को., आदि: (-); अंति: (-). १०१. पे. नाम. ब्रह्मविलास, पृ. ८१आ, संपूर्ण, पे.वि. वस्तुतः कुल ८१ पेज है, अलग-अलग पेटांक भरने के कारण मात्र अंतिम पेज का उल्लेख किया है. श्राव. भगवतीदास भैया, पुहिं., पद्य, वि. १७५५, आदि: प्रथम प्रणमि अरहंत; अंति: भगौतीदास० वहे भगवान. ११९८८८. ५३ प्रश्न, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ५, प्र.वि. हुंडी:प्रश्न५३पत्रमिदं., दे., (२६.५४१२, १६४४३-५१). आगमिक प्रश्नोत्तरी, मा.गु., गद्य, आदि: समवायांगे मल्लिनाथरे ५७००; अंति: बारे व्रतना कह्या ए किम. ११९८८९ (+) धर्मध्यान के चार प्रकार, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २०-१(१)=१९, प्रले. मु. अचलसुंदर (उपकेशगच्छ); पठ. श्राव. आणंदरूप, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२७४१२.५, १२४३६). योगशास्त्र-हिस्सा प्रकाश-५ से १० धर्मध्यान के ४ प्रकार का बालावबोध, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: न छंडावीइ चपल न थाइ, (पू.वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं., पार्थिव मंडल के लक्षण अपूर्ण से है.) ११९८९० (+) सप्तस्मरण, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १३, ले.स्थल. अजीमगंज, प्रले. मु. रामचंद्र ऋषि; पठ. मु. श्रीपालचंद्रजी, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. हुंडी:सप्तस्म., पदच्छेद सूचक लकीरें., प्र.ले.श्लो. (१२) मंगलं लेखकानां च, जैदे., (२७४१२.५, १०४३०). सप्तस्मरण-खरतरगच्छीय, मु. भिन्न भिन्न कर्तक, प्रा., पद्य, आदि: अजिअं जिअ सव्वभयं; अंति: भूमे भूपति मंगलं, स्मरण-७. ११९८९३, बृहत्कल्पसूत्र सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १९१४, भाद्रपद शुक्ल, १५, श्रेष्ठ, प. ३४, ले.स्थल. खाचरोद, प्रले. सा. तीर्थश्री, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. हुंडी:वृहत्क०., जैदे., (२५.५४१२.५, ६४३४-३९). बृहत्कल्पसूत्र, आ. भद्रबाहस्वामी, प्रा., गद्य, आदि: नो कप्पइ निग्गंथाण; अंति: कप्पट्टिई तिबेमि, उद्देशक-६, ग्रं. ४७३. बृहत्कल्पसूत्र-टबार्थ *, मा.गु., गद्य, आदि: न कल्पि साधुने; अंति: ति० एम हुं कहुं छु. ११९८९४. (+) ६ द्रव्य विचार, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २२-२(१,११)=२०, पृ.वि. प्रथम एक, बीच व अंत के पत्र नहीं हैं, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित., जैदे., (२५.५४१२, १३४३०-३५). ६ द्रव्य विचार, मा.गु., गद्य, आदिः (-); अंति: (-), (पू.वि. समकित करण-२ अपूर्ण से षड्द्रव्य गुण भावना अपूर्ण तक है व बीच के पाठांश नहीं हैं.) ११९८९५ (+) साम्यशतक व समाधिशतक, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ४, कुल पे. २, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२५४१२.५, १८४५१). १. पे. नाम, साम्यशतक, प.१अ-३अ, संपूर्ण. For Private and Personal Use Only Page #448 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ४३३ हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२६ समता शतक, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: समता गंगा मगनता उदास; अंति: करी हेमविजय मुनि हेत, गाथा-१०५. २. पे. नाम. समाधिशतक, पृ. ३अ-४आ, अपूर्ण, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. समाधिशतक दोधकछंदमय, संबद्ध, उपा. यशोविजयजी गणि, पुहि., पद्य, वि. १८वी, आदि: प्रणमी सरसति भारती; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-९३ अपूर्ण तक है.) ११९८९६ (+) अंतसमाधि विचार, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १०, प्र.वि. संशोधित., दे., (२५.५४१२, १३४४०-४३). अंतसमाधि विचार, पुहि., गद्य, आदि: अपने इष्टदेव को नमस्कार; अंति: महिमा वचन अगोचर है. ११९८९८. (+) जीवविचार, नवतत्त्व व दंडकप्रकरण, संपूर्ण, वि. १९वी, पौष शुक्ल, २, मध्यम, पृ. ५, कुल पे. ३, ले.स्थल. बीकानेर, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें., जैदे., (२६४१२.५, १४४७०). १.पे. नाम. जीवविचार प्रकरण, पृ. १अ-२आ, संपूर्ण, पे.वि. हुंडी:जीवविचार. आ. शांतिसूरि, प्रा., पद्य, वि. ११वी, आदि: भुवणपईवं वीरं नमिऊण; अंति: संतिसूरि सुयसमुद्दाओ, गाथा-५१. २. पे. नाम. नवतत्त्व प्रकरण, पृ. २आ-४अ, संपूर्ण, पे.वि. हुंडी:नवतत्त्वप्रकरण. नवतत्त्व प्रकरण ६० गाथा, प्रा., पद्य, आदि: जीवा१जीवा२ पुण्णं३ पावा४; अंति: (अपठनीय), गाथा-५०. ३. पे. नाम. दंडक प्रकरण, पृ. ४अ-५आ, संपूर्ण, पे.वि. हुंडी:दंडकसूत्र. म. गजसार, प्रा., पद्य, वि. १५७९, आदि: नमिउं चौवीस जिणे; अंति: लहिया एसा विनत्ति अप्पहिआ, गाथा-४१. ११९८९९ (#) शांतिनाथ चरित्र सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २७७-२७२(१ से २७२)=५, पृ.वि. बीच के पत्र हैं., प्र.वि. हुंडी:सांतिना०.चरित्र., अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५.५४१२, ५४३६). शांतिनाथ चरित्र, आ. अजितप्रभसूरि, सं., पद्य, वि. १३०७, आदिः (-); अंति: (-), (पू.वि. प्रस्ताव-५ श्लोक-४१४ अपूर्ण से श्लोक-४६६ अपूर्ण तक है.) शांतिनाथ चरित्र-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: (-). ११९९०० (+) कल्याणमंदिर स्तोत्र, संपूर्ण, वि. १९५५, आषाढ़ शुक्ल, ५, गुरुवार, श्रेष्ठ, पृ. ५, ले.स्थल. खीवसर, प्रले. मु. खीवराज; पठ. श्राव. जीतमल, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरे-संशोधित., दे., (२५४१२.५, १०४३२). कल्याणमंदिर स्तोत्र, आ. सिद्धसेनदिवाकरसूरि, सं., पद्य, वि. १वी, आदि: कल्याणमंदिरमुदारमवद्यभेदि; अंति: कुमुद० प्रपद्यते, श्लोक-४४. ११९९०१ (+#) श्रीपाल रास-खंड १ से ३, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ३१, प्र.वि. हुंडी:श्रीपालरासप०., संशोधित-टिप्पण युक्त विशेष पाठ. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५.५४१२, १५४४४). श्रीपाल रास, उपा. विनयविजय; उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., पद्य, वि. १७३८, आदि: कल्पवेलि कवियण __ तणी; अंति: (-), प्रतिपूर्ण. ११९९०२ (+) श्रावकप्रतिक्रमणसूत्र, १२ पर्षदा स्तुति व श्लोक संग्रह, संपूर्ण, वि. १८८५, आषाढ़ अधिकमास शुक्ल, १३, गुरुवार, श्रेष्ठ, पृ. १५४, कुल पे. ३, प्रले. मु. गोमजी महात्मा (पूर्णिमापक्ष-कच्छोलीवालगच्छे), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित. कुल ग्रं.५०००, जैदे., (२६४१२,१२-१५४३५-४३). १. पे. नाम. श्रावकप्रतिक्रमणसूत्र-तपागच्छीय सह टबार्थ+बालावबोध, पृ. १आ-१५४आ, संपूर्ण. श्रावकप्रतिक्रमणसूत्र-तपागच्छीय, संबद्ध, प्रा.,सं., प+ग., आदि: नमो अरिहंताणं नमो सिद्धाण; अंति: वोसिरियं० मएगहियं. श्रावकप्रतिक्रमणसूत्र-तपागच्छीय का टबार्थ+बालावबोध, मु. जिनविजय, मा.गु., गद्य, वि. १७५१, आदि: बार गुणे करि सहित; अंति: लिलेखार्कपूरे मुदेति. २. पे. नाम. १२ पर्षदा स्तुति, पृ. १५४आ, संपूर्ण. ___ सं., पद्य, आदि: आग्नेयां गणभृद्विमान; अंति: भूषितां पातु वः, श्लोक-१. ३. पे. नाम, श्लोक संग्रह, पृ. १५४आ, संपूर्ण. श्लोकसंग्रह, मा.गु.,सं., पद्य, आदि: सारंगीसिंह साबस्युश; अंति: कलुष योगिनां क्षीणमोहं. For Private and Personal Use Only Page #449 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ४३४ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ११९९०३. (+) श्रीपाल रास, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ४९, प्र.वि. हुंडी:श्रीपालरास., संशोधित-टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२५.५४१२, १५४४३). श्रीपाल रास, उपा. विनयविजय; उपा. यशोविजयजी गणि, मा.ग., पद्य, वि. १७३८, आदि: कल्पवेलि कवियण तणी; अंति: ज्ञान विशाला जी, खंड-४ ढाल-४१, गाथा-१८२५. ११९९०४. (+) जीवविचार प्रकरण, नवतत्त्व प्रकरण व चतःशरण प्रकीर्णक आदि संग्रह, संपूर्ण, वि. १८२१, पौष कृष्ण, ३, मंगलवार, मध्यम, पृ. ८, कुल पे. ४, ले.स्थल. नाडोलनगर, प्र.वि. श्रीपद्मप्रभु प्रसादात्., टिप्पण युक्त विशेष पाठ-पदच्छेद सूचक लकीरें-संशोधित., जैदे., (२५.५४१२, १७४३५-३८). १. पे. नाम. जीवविचार प्रकरण, पृ. १अ-२आ, संपूर्ण. आ. शांतिसरि, प्रा., पद्य, वि. ११वी, आदि: भुवणपईवं वीरं नमिऊण; अंति: संतिसूरि०सुयसमुद्दाओ, गाथा-५१. २. पे. नाम. नवतत्त्व प्रकरण, पृ. २आ-६अ, संपूर्ण. नवतत्त्व प्रकरण १०७ गाथा, प्रा., पद्य, आदि: जीवा१ जीवार पुन्नं३; अंति: अणागयद्धा अणंतगुणा, गाथा-९६. ३. पे. नाम. चतुःशरण प्रकीर्णक, पृ. ६अ-८आ, संपूर्ण. ग. वीरभद्र, प्रा., पद्य, वि. ११वी, आदि: सावज्जजोग विरई; अंति: कारणं निव्वुइ सुहाणं, गाथा-६२. ४. पे. नाम. ८ कर्म नाम, पृ. ८आ, संपूर्ण. मा.गु., गद्य, आदि: ज्ञानावरणी १ दर्शनावरणी २; अंति: अंतरायकर्म ए ८ कर्म जाणवा, (वि. कृति के अंत में ८ कर्म से संबंधित संदर्भ गाथा है.) ११९९०५ (+) कल्पसूत्र-व्याख्यान ९ सह कल्पद्रमकलिका टीका, संपूर्ण, वि. १९०१, कार्तिक शुक्ल, ५, गुरुवार, श्रेष्ठ, पृ. ३२, ले.स्थल. विक्रमपुर, प्रले. पं. अणदसुंदर, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित., दे., (२६४१२, १३४३९). कल्पसूत्र, आ. भद्रबाहस्वामी, प्रा., गद्य, आदि: (-); अंति: भुज्जो उवदंसेइ त्तिबेमि, प्रतिपूर्ण... कल्पसूत्र-कल्पद्रमकलिका टीका, ग. लक्ष्मीवल्लभ, सं., गद्य, आदि: (-); अंति: वर्तमानयोगः, प्रतिपूर्ण. ११९९०६. (+) जीवविचार प्रकरण सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १८९५, कार्तिक शुक्ल, १०, श्रेष्ठ, पृ. १४, पठ. श्राव. अनोपचंद, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें., जैदे., (२५४११.५, ३४२४). जीवविचार प्रकरण, आ. शांतिसूरि, प्रा., पद्य, वि. ११वी, आदि: भुवणपईवं वीरं नमिऊण; अंति: रुद्दाओ सुय समुद्दाओ, गाथा-५१. । जीवविचार प्रकरण-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: तीन भुवनने विषे दीपक; अंति: सिद्धांतरूपी समुद्र से. ११९९०७. (+) नवतत्त्व प्रकरण सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १८९६, ज्येष्ठ अधिकमास शुक्ल, १३, श्रेष्ठ, पृ. १५, ले.स्थल. बालुचर, पठ. श्राव. अनोपचंद, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरे-संशोधित., जैदे., (२६४१२, ३४२१). नवतत्त्व प्रकरण ६० गाथा, प्रा., पद्य, आदि: जीवाजीवा पुण्णं पावा; अंति: बोहिय इक्कणिक्काय, गाथा-४९. नवतत्त्व प्रकरण ६० गाथा-टबार्थ*, मा.गु., गद्य, आदि: जीव तत्त्व चेतनावंत अजीव; अंति: सिद्ध होय ए अनेक सिद्ध. ११९९०८.(+) कथा संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ६, प्रले. मु. गोरधन ऋषि, प्र.ले.प. सामान्य, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२५.५४११.५, १०४३९). कथा संग्रह, सं., गद्य, आदि: हस्तिशीर्षनगरे दमदंतोराजा; अंति: व्यादिति दृष्टांत. ११९९०९ (+) नमस्कार महामंत्र सह कथा, संपूर्ण, वि. १८८०, कार्तिक कृष्ण, १२, मध्यम, पृ. १२, प्र.वि. हुंडी:नव०कथा., प्रतिलेखन पुष्पिका मिटाई हुई है-पदच्छेद सूचक लकीरे-टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२५४१२, १२४३२). नमस्कार महामंत्र, शाश्वत , प्रा., पद्य, आदि: णमो अरिहंताणं णमो; अंति: पढमं हवई मंगलम्, पद-९. नमस्कार महामंत्र-कथा, सं., गद्य, आदि: अत्र नमस्कारे अष्टषष्टि; अंति: राजा जातो जैनमंत्रत, कथा-५, (वि. श्रीमती दृष्टांत, शिवकुमार व जिनदासादि कथाएँ हैं.) ११९९१०. (+) समरादित्यकेवली रास, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १३, पृ.वि. प्रारंभ के पत्र हैं., प्र.वि. संशोधित., दे., (२५४१२, १३४३५). समरादित्यकेवली रास, क. पद्मविजय, मा.गु., पद्य, आदि: स्वस्ति श्रीवरसारदा कुंद; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-२४९ अपूर्ण तक है.) For Private and Personal Use Only Page #450 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२६ ४३५ ११९९११ (+#) प्रज्ञाप्रकाशषट्त्रिंशिका व मूर्खशतक सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ३, कुल पे. २, प्र.वि. हुंडीवाला भाग खंडित है., संशोधित. टीकादि का अंश नष्ट है, जैदे., (२५.५४११.५, २५४५०). १.पे. नाम. प्रज्ञाप्रकाशषट्त्रिंशिका सह टबार्थ, पृ. १अ-३अ, संपूर्ण, वि. १७३६, फाल्गुन कृष्ण, ७, बुधवार, ले.स्थल. भोजावस. प्रज्ञाप्रकाशत्रिंशिका, मु. रूपसिंह, सं., पद्य, आदि: प्रज्ञाप्रकाशाय नवीन; अंति: मयका प्रणीता, श्लोक-३७. प्रज्ञाप्रकाशषट्त्रिंशिका-टबार्थ *, मा.गु., गद्य, आदि: प्रज्ञा प्रकाश करवानि; अंति: षट्त्रिंशका सुभाषित कह्या. २. पे. नाम. मूर्खशतक सह टबार्थ, पृ. ३अ-३आ, अपूर्ण, पृ.वि. प्रारंभ के पत्र हैं. मूर्खशतक, क्षेमेंद्र, सं., पद्य, आदि: श्रुण मूर्खशतं राजन् तंतं; अंति: (-), (पू.वि. श्लोक-२३ अपूर्ण तक है.) मूर्खशतक-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: राजा प्रस्ताव माथे पंडित; अंति: (-). ११९९१२. (+) अभिधानचिंतामणि नाममाला-अव्ययवर्ग, संपूर्ण, वि. १८७८, माघ शुक्ल, १४, बुधवार, श्रेष्ठ, पृ. २५, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२५.५४११.५, २४४६०). अभिधानचिंतामणि नाममाला-अव्ययवर्ग, सं., गद्य, आदि: स्वर्गनामानि स्वः१ स्वर्ग; अंति: देशकालानां प्रत्येक. ११९९१३. (+) मानतुंगमानवती रास, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २९, प्र.वि. हुंडी:मानतुंग मां, मानवतीचो., मानतु०., मां०. मां०.तुं०.मां०., टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२५.५४१२.५, १८४४५). मानतंगमानवती रास-मषावादविरमण अधिकारे, म. मोहनविजय, मा.गु., पद्य, वि. १७६०, आदि: ऋषभजिणंद पदांबुजे; अंति: कहै० घर घर मंगल माला है, ढाल-४७, गाथा-१०१५. ११९९१४. पंचतंत्र का पंचाख्यान पद्यानुवाद, अपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ५१, पू.वि. प्रारंभ के पत्र हैं., जैदे., (२५.५४१२, १८४४०-४५). पंचाख्यान भाषा, संबद्ध, मु. गुणमेरुसूरि-शिष्य, मा.गु., पद्य, वि. १६२६, आदि: श्रीअंबा श्रीसारदा; अंति: (-), (पू.वि. अधिकार-५ गाथा-१९७९ अपूर्ण तक है., वि. मूल का प्रतीकपाठ दिया है.) ११९९१५ (+) कस्तूरी प्रकरण, संपूर्ण, वि. १९५४, माघ कृष्ण, २, श्रेष्ठ, पृ. ११, ले.स्थल. पाटण, प्रले. मु. लाल ऋषि; पठ. सा. धोलीबाई, प्र.ले.प. सामान्य, प्र.वि. हुंडी:कस्तूरी०., संशोधित. कुल ग्रं. ४५०, दे., (२५.५४१२, १४४५३-५८). कस्तूरी प्रकरण, म. हेमविजय, सं., पद्य, आदि: कस्तुरीप्रकरः कृपाकमल; अंति: (१)क्षितितलं सुखयंतु संतः, (२)सन्मति गुणचारुरतिकांति, प्रक्रम-३२, श्लोक-१८२, (वि. अंत में कृति से संबंधित १३ श्लोक अलग से दिये हैं.) ११९९१६. (+) भगवतीसूत्र सह टीका, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ४७-४२(१ से ४२)=५, पू.वि. बीच के पत्र हैं., प्र.वि. हुंडी:भग सू०वृ०., त्रिपाठ-संशोधित-पदच्छेद सूचक लकीरें-टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२६४१२, ३४३९). भगवतीसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. शतक-१ उद्देश-२ सूत्र-२८ अपूर्ण से शतक-१ उद्देश-३ सूत्र-३४ अपूर्ण तक है., वि. सूत्रक्रम सलंग दिया है.) भगवतीसूत्र-टीका, आ. अभयदेवसूरि , सं., गद्य, वि. ११२८, आदि: (-); अंति: (-). ११९९१७. (+) स्नात्र पूजा, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ५,प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२५.५४१२,११४३५). स्नात्र पूजा, मु. नगविजय, मा.गु., पद्य, आदि: सद्ध्यानविज्ञानघन; अंति: फले तस वंछित सही. ११९९१८ (+) नवस्मरण व लघुशांति सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ८, कुल पे. २, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें., जैदे., (२५४१२, ८४४२-४५). १.पे. नाम. नवस्मरण-नवकार, उवसग्गहर, संतिकर, नमिऊण व अजितशांति सह टबार्थ, पृ. १अ-७अ, संपूर्ण. नवस्मरण, मु. भिन्न भिन्न कर्तृक, प्रा.,सं., प+ग., आदि: णमो अरिहंताणं णमो सिद्धाण; अंति: (-), प्रतिपूर्ण. नवस्मरण-टबार्थ *, मा.गु., गद्य, आदि: नमस्कार अरिहंतने काजे; अंति: (-), प्रतिपूर्ण. २. पे. नाम. लघुशांति सह टबार्थ, पृ. ८अ-८आ, संपूर्ण. लघुशांति, आ. मानदेवसूरि, सं., पद्य, आदि: शांतिं शांतिनिशांतं; अंति: पूज्यमाने जिनेश्वरे, श्लोक-१८. लघुशांति-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: श्रीशांतिनाथ शांतिनु; अंति: वीतरागनी पूजा करतो हुतो. For Private and Personal Use Only Page #451 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ४३६ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ११९९१९. लीलावती का भाषानुवाद, संपूर्ण, वि. १९०१, पौष शुक्ल, ८, बुधवार, श्रेष्ठ, पृ. ३४, ले.स्थल. चाणोदनगर, प्रले. मु. राजेंद्रसागर (गुरु मु. उमेदसागरजी); गुपि. मु. उमेदसागरजी (गुरु मु. तेजसागरजी); मु. तेजसागरजी (गुरु मु. मनोहरसागरजी), प्र.ले.पु. सामान्य, दे., (२५४१२, १०x१४). लीलावती-भाषानुवाद, मु. लालचंद, मा.गु., पद्य, वि. १७३६, आदि: सोभित सिंदूर पुर; अंति: लालचंद० वरतो जिनसुख काज, अध्याय-१६, गाथा-७०७. ११९९२० (+#) बृहत्संग्रहणी, संपूर्ण, वि. १९१६, फाल्गुन कृष्ण, ११, शुक्रवार, मध्यम, पृ. १४, ले.स्थल. पीपल्या-मेवाड, प्रले. मु. हीरालाल; गुभा. मु. मोतीलाल; मु. श्रीलाल (गुरु मु. जगजीवण ऋषि, विजयगच्छ); पठ. मु. जगजीवण ऋषि (गुरु आ. जिनचंद्रसूरि, विजयगच्छ); गुपि. आ. जिनचंद्रसूरि (विजयगच्छ), प्र.ले.पु. मध्यम, प्र.वि. हुंडी:संग्रहणीसूत्रपत्र., पदच्छेद सूचक लकीरें. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२५.५४१२, १३४३५-३९). बृहत्संग्रहणी, आ. चंद्रसूरि, प्रा., पद्य, वि. १२वी, आदि: नमिउं अरिहंताई ठिइ; अंति: जा वीरजिण तित्थं, गाथा-३१९. ११९९२२. पार्श्वजिन स्तुति, दीवाली स्तवन व पार्श्वजिन स्तोत्रादि संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ.८, कुल पे. १४, जैदे., (२५४१२, ११४३६). १. पे. नाम. पार्श्वजिन स्तुति, पृ. १अ-३आ, संपूर्ण. पार्श्वजिन निसाणी-घग्घर, मु. जिनहर्ष, पुहिं., पद्य, आदि: सुखसंपत्तिदायक सुरनर; अंति: वखाणी घणी जिनहरष कहंदा है, गाथा-२७. २. पे. नाम. दीवाली स्तवन, पृ. ३आ-४आ, संपूर्ण. दीपावलीपर्व स्तवन, मु. रायचंद ऋषि, मा.गु., पद्य, वि. १८४५, आदि: पूर्व दिशा होइ पावापुरी; अंति: जुगतसु जोडी टकसाली, गाथा-१८. ३. पे. नाम. पार्श्वजिन स्तोत्र, पृ. ४आ-५अ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तवन-अंतरीक्षजी, मु. आनंदवर्द्धन, मा.गु., पद्य, आदि: प्रभु पासजी ताहरु नाम; अंति: विघनपुरे आणंदमुनिवर वीनवे, गाथा-९. ४. पे. नाम, पार्श्वजिन स्तवन, पृ. ५अ-५आ, संपूर्ण. मु. भोज, मा.गु., पद्य, आदि: प्रणमुं पासजिणंद; अंति: पामे किं कल्याणरी कोडी, गाथा-११. ५. पे. नाम. ७ वार सज्झाय, पृ. ५आ-६अ, संपूर्ण. मु. धर्मदास, मा.गु., पद्य, आदिः श्रीब्राह्मी प्रणमं मुदा; अंति: वाररा भणे ऋषि धर्मदास, गाथा-१०. ६.पे. नाम, औपदेशिक गीत, पृ. ६अ, संपूर्ण.. उपा. समयसंदर गणि, पुहिं., पद्य, आदि: वखत लख्यो सुख पईए रे भाई; अंति: भजन करो एक धर्मसु रहीए रे, गाथा-३, (वि. पाठ भेद है.) ७. पे. नाम. नेमिजिन पद, पृ. ६अ-६आ, संपूर्ण. मु. क्षांति, मा.गु., पद्य, आदि: प्यारे कुन बतावे मोरी सही; अंति: राया खांति सदा सुख पावे, गाथा-६. ८. पे. नाम. पार्श्वजिन होरी, पृ. ६आ, संपूर्ण. म. सेवक, पुहि., पद्य, आदि: ले गयो खेलन होरी रे; अंति: सेवक० चरणा परघोरी रे, गाथा-४. ९. पे. नाम. औपदेशिक पद, पृ. ६आ-७अ, संपूर्ण. हरिदास, मा.गु., पद्य, आदि: अब महो जान परी दुनिया; अंति: विन जमरे ले गये लूट रे, गाथा-६. १०. पे. नाम. जंबूस्वामीनी सज्झाय, पृ. ७अ-७आ, संपूर्ण. जंबूस्वामी सज्झाय, आ. भाग्यविमलसूरि, मा.गु., पद्य, वि. १७६६, आदि: सरसती सामण वीनवु सद्गुरु; अंति: इम कहे जंबु नामे ते जयकार, गाथा-१४. ११. पे. नाम. हरियाली, पृ. ७आ-८अ, संपूर्ण. औपदेशिक पद-समस्यागर्भित, मु. जिनहर्ष *, मा.गु., पद्य, आदि: आबा डाले रंग सुडली तस; अंति: पंडित इम कहे०छे रूडी रे, गाथा-४. १२. पे. नाम, औपदेशिक प्रहेलिका, पृ. ८अ-८आ, संपूर्ण. For Private and Personal Use Only Page #452 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२६ ४३७ पुहि.,मा.गु.,सं., पद्य, आदि: पथरसुत की पुतली वनसुत; अंति: गुमट परे दे धर अक्षर दाव. १३. पे. नाम. नेमराजिमती पद, पृ. ८आ, संपूर्ण. मु. शिवरतन, मा.गु., पद्य, आदि: बावीस सुभटने जीतवा रे; अंति: फाडिया चिर चिर चररर, गाथा-५. १४. पे. नाम. रेवतीश्राविका सज्झाय, पृ. ८आ, अपूर्ण, पू.वि. प्रारंभ के पत्र हैं. मु. कवियण, मा.गु., पद्य, आदि: सोवन सिंघासने रेवती; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-५ अपूर्ण तक है.) ११९९२३. (+) श्रीपाल रास-खंड ४ सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १२, पूवि. प्रारंभ के पत्र हैं., प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., दे., (२५४१२, ५४३५). श्रीपाल रास, उपा. विनयविजय; उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., पद्य, वि. १७३८, आदि: (-); अंति: (-), (प्रतिअपूर्ण, पू.वि. ढाल-१२ गाथा-१२ अपूर्ण तक है.) श्रीपाल रास-टबार्थ *, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), प्रतिअपूर्ण.. ११९९२४. (+) कल्पसूत्र-साधु सामाचारी अध्ययन सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. २१, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें-टिप्पण युक्त विशेष पाठ., दे., (२५४१२, ५४२७-३१). कल्पसूत्र-हिस्सा सामाचारी अध्ययन, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., प+ग., आदि: तेणं कालेणं तेणं समय; अंति: (-), (प्रतिअपूर्ण, पृ.वि. प्रारंभ के पत्र हैं., सूत्र-२४ अपूर्ण तक है.) कल्पसूत्र-हिस्सा सामाचारी अध्ययन का टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: ते काल चउथा आरानइ विषइ ते; अंति: (-), (प्रतिअपूर्ण, पृ.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., सूत्र-१७ अपूर्ण तक टबार्थ लिखा है.) ११९९२५ (+) सज्जनचित्त काव्य सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १९०६, श्रेष्ठ, पृ.७, प्र.वि. संशोधित., दे., (२४.५४१२, ५४२६-३५). सज्जनचित्तवल्लभ काव्य, आ. मल्लिषेण, सं., पद्य, आदि: नत्वा वीरजिनं; अंतिः सततं संसारविच्छित्तये, श्लोक-२५, संपूर्ण सज्जनचित्तवल्लभ काव्य-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: नमस्कार करीनइ श्रीभगवंत; अंति: (-), (अपूर्ण, पृ.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., श्लोक-२ तक लिखा है.) ११९९२६. सूत्रकृतांगसूत्र-वीरस्तुति अध्ययन सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ४, प्र.वि. हुंडी:पुछेसणानापत्र., जैदे., (२४.५४११.५, १६४३३). सूत्रकृतांगसूत्र-हिस्सा वीरस्तुति अध्ययन, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., पद्य, आदि: पुच्छिस्सणं समणा; अंति: आगमिस्संति त्तिबेमि, गाथा-२९. सूत्रकृतांगसूत्र-हिस्सा वीरस्तुति अध्ययन का टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: पूछे छे साधु निग्रंथ; अंति: पूज्य आगमीइ काले. ११९९२७. बंधस्वामित्व ६२ मार्गणा, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १३, दे., (२५४१२, १२x२५). ६२ मार्गणाद्वार विचार, मा.गु., गद्य, आदि: गइ इंदि काए जोए वेय; अंति: आहारक असंज्ञी अणाहारीक. ११९९२९. खंडाजोयण बोल, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ६-१(३)=५, पू.वि. बीच व अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. हुंडी:खंडाजो०., जैदे., (२५४१२.५, १४४३४). लघसंग्रहणी-खंडाजोयण बोल *, संबद्ध, मा.गु., गद्य, आदि: लाख जोजनरो लांबो पोहलो छे; अंति: (-), (पू.वि. महाविदेह वैताढ्य पर्वत वर्णन अपूर्ण तक है व बीच का पाठ द्वार-३ अपूर्ण है.) ११९९३०. नवतत्त्व २७६ भेद विचार, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १४-३(१ से ३)=११, जैदे., (२५४१२, ९४२७). नवतत्त्व २७६ भेद विचार, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: नवतत्त्व प्रमुख एक अक्षर, (पू.वि. पुण्यतत्त्व भेद अपूर्ण से है.) ११९९३१. (+) जिनातिशय स्तवन, औपदेशिक सज्झाय व सीमंधरजिन स्तवनादि संग्रह, अपर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १७-१(१४)=१६, कुल पे. ५१, प्र.वि. हुंडी:रतनबीलास, रतनबी०, रतनबीस., संशोधित., दे., (२५.५४१२, १८४४३). १.पे. नाम. जिनातिशय स्तवन, पृ. १आ, संपूर्ण. मु. रतनचंद, मा.गु., पद्य, वि. १८७१, आदि: भवजीवा हो वांदो भगवंतने; अंति: हो प्रभु कर्मनि वैर, गाथा-१३. २. पे. नाम. औपदेशिक सज्झाय, पृ. १आ-२अ, संपूर्ण. For Private and Personal Use Only Page #453 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra ४३८ www.kobatirth.org कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची अंति: औपदेशिक सज्झाय-समकित, मु. रतनचंद, मा.गु., पद्य, वि. १८६९, आदि: निरमल सुधा समकित जिण पाइ; रतनचंद जो चावो मुकतरमणने, गाथा- १३. ० ३. पे नाम. सीमंधरजिन स्तवन, पृ. २अ, संपूर्ण. Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir मु. रतनचंद, मा.गु., पद्य, आदि जिनजी हो दिनदयाल अंति: रत्नचंदजी गुण गावे, गाथा- १०. ४. पे नाम, सीमंधरजिन स्तवन, पू. २अ २आ, संपूर्ण. मु. रतनचंद, मा.गु., पद्य, वि. १८५३, आदि साहिब सावलो हो प्रभुजी अति हो रत्नचंदजी करे अरदास गाथा- १३. ५. पे. नाम. सीमंधरजिन स्तवन, पृ. २आ, संपूर्ण. मु. रतनचंद, मा.गु., पद्य, आदि धन धन क्षेत्रविदेह अंति कृपा नित आपरी रे लाल, गावा- ७. ६. पे. नाम. सीमंधरजिन स्तवन, पृ. २आ- ३अ, संपूर्ण. मु. रतनचंद, मा.गु., पद्य, आदि श्रीसीमंधर जिनदेव प्रभु अंति रतनचंदजीरी आइज विनती जी, गाथा ५. ७. पे. नाम. साधारणजिन स्तवन, पृ. ३अ, संपूर्ण. मु. रतनचंद, मा.गु., पद्य, वि. १८६०, आदि: मनडो उमायो हो दरसण देखवा; अंति: कहे ज्याने छै स्या बांस, गाथा - ९. ८. पे. नाम. सीमंधरजिन स्तवन, पू. ३अ-३आ, संपूर्ण. पं. रतनचंद, मा.गु., पद्य, वि. १८७३ आदि मनडो उमाह्यो हो दरसण अंतिः विनती नित रहु आफ्नी संग हो, गाथा- ९. गाथा - १०. १०. पे नाम, सीमंधरजिन स्तवन, पृ. ३आ, संपूर्ण. ९. पे नाम. सीमंधरजिन स्तवन, पृ. ३आ, संपूर्ण. मु. रतनचंद, मा.गु., पद्य, वि. १८८६, आदि: प्रभु माहरा विनतडी अवधीरक; अंति: रतन०जी मिटे न गरभावासक मु. रतनचंद, मा.गु., पद्य, आदि सीमंधरजिन साहबा सांभल, अंति: जिनराजजी वांदू ने करजोड, गाथा- ९. ११. पे. नाम. सीमंधरजिन स्तवन, पृ. ३आ-४अ, संपूर्ण. मु. रतनचंद, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीसीमंधर सुण अलवेसर तुम; अंति: रतनचंदजी ० भवसागर बेगो तारी, गाथा-८. १२. पे नाम महावीरजिन स्तवन, पृ. ४अ, संपूर्ण. मु. रतनचंद, मा.गु., पद्य, वि. १८६९, आदि देखण हूस घणा छे जी जिणरा; अंति: गत मे अब तो मारग पायो, गाथा- ११. १३. पे. नाम. आदिजिन स्तवन, पृ. ४अ - ४आ, संपूर्ण. मु. रतनचंद, मा.गु., पद्य, वि. १८५३, आदि श्रीरिषभ जिणेसर साम दरसण अति में तवन कियो चितलाय, गाथा १३. १४. पे नाम. अभिनंदनजिन स्तवन, पू. ४आ, संपूर्ण. मु. रतनचंद, मा.गु., पद्य, आदि: प्रभुजी थारी चाकरी रे; अंति: हां रे काइ रतन कहे करजोड, गाथा - ५. १५. पे. नाम चंद्रप्रभजिन स्तवन, पृ. ४आ-५अ संपूर्ण मु. रतनचंद, मा.गु., पद्य, वि. १८५०, आदि चंदाप्रभु मो मन भावे रे; अंतिः किवो शाहपुर शहर चोमास, गाथा-१. १६. पे. नाम. शीतलजिन स्तवन, पृ. ५अ, संपूर्ण. मु. रतनचंद, मा.गु., पद्य, वि. १८५५, आदि: जिणेसर वंदीयेजी दुख टल; अंति: रतनचंदजी कहे करजोड, १७. पे. नाम. धर्मजिन स्तवन, पृ. ५अ -५आ, संपूर्ण. गाथा - ११. मु. रतनचंद, मा.गु., पद्य, वि. १८५४, आदि मारो मन लागो धरमजिणंदस् अति रतनचंदजी करी जोड रे, गाथा- १२. १८. पे नाम, शांतिजिन स्तवन, पू. ५आ, संपूर्ण, मु. रतनचंद, मा.गु., पद्म, वि. १८५१, आदि संत जिनेसर सोलमा सांति; अंति रतनचंदजी करे अरदासजी, गाथा- ९. १९. पे नाम नेमराजिमती स्तवन, पृ. ५आ-६अ, संपूर्ण. For Private and Personal Use Only मु. रतनचंद, मा.गु., पद्य, आदि समुदविजेजीरा लाडला हो; अति वंदना हो नीचो सीस नमाय हो, गाथा- १०. २०. पे. नाम. नेमिजिन स्तवन, पृ. ६अ, संपूर्ण. मु. रतनचंद, मा.गु., पद्य, वि. १८४९, आदि: नेमीसर जिन तारो हो तुम; अंति: रतनचंद तुमारो दास ने, गाथा-११. २१. पे नाम, नेमिजिन स्तवन, पृ. ६ अ-६आ, संपूर्ण. Page #454 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ४३९ हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२६ मु. रतनचंद, मा.गु., पद्य, वि. १८५४, आदि: सावलीया मूरत ताहारी प्रभु; अंति: गायो रतनचंद आनंद सुख पायो, गाथा-१३. २२. पे. नाम. नेमराजिमति स्तवन, पृ. ६आ, संपूर्ण. नेमराजिमती स्तवन, मु. रतनचंद, मा.गु., पद्य, आदि: इम किम छोड चले मोय जिनजी; अंति: कहे० मिलीया फली मनोरथ माल, गाथा-१५. २३. पे. नाम. नेमराजिमति स्तवन, पृ. ६आ-७अ, संपूर्ण. नेमराजिमती स्तवन, मु. रतनचंद, मा.गु., पद्य, वि. १८५३, आदि: समुद्रविजेजी को नंदन नीका; अंति: रतनचंदजी करे अरदासो रे, गाथा-११. २४. पे. नाम. पार्श्वजिन स्तवन, पृ. ७अ, संपूर्ण. मु. रतनचंद, मा.गु., पद्य, आदि: वाणारसी नगरी सुंदर अतहा; अंति: मुनि हुँस धरीने गाया हो, गाथा-१४. २५. पे. नाम. पार्श्वजिन पद, पृ. ७अ-७आ, संपूर्ण. पार्श्वजिन पद-चिंतामणि, म. रतनचंद, रा., पद्य, वि. १८७४, आदि: वामानंदन पासजिणंदजी; अंति: समत अठारेने वरस चोहतरो हे, गाथा-५. २६. पे. नाम, महावीरजिन स्तवन, पृ. ७आ-८अ, संपूर्ण. मु. रतनचंद, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीसिद्धारथनंदजी प्रभु; अंति: रतनचंदजी० सहु नरनार जी, गाथा-१०. २७. पे. नाम. महावीरजिन स्तवन, पृ. ८अ, संपूर्ण. म. रतनचंद, मा.ग., पद्य, वि. १८६५, आदि: तसलानंदन साहबा सांभल दीन; अंति: कहे वीरने कोडाकोड सिलाम, गाथा-११. २८. पे. नाम, महावीरजिन स्तवन, पृ. ८अ-८आ, संपूर्ण. मु. रतनचंद, मा.गु., पद्य, आदि: हां जी प्रभु चंपा हो नगर; अंति: जी काइ वडलु ग्राम मझार, गाथा-१०. २९. पे. नाम. गौतमस्वामी गीत, पृ. ८आ, संपूर्ण. मु. रतनचंद, मा.गु., पद्य, वि. १८५१, आदि: वसुभूति पिताने पृथवी माता; अंति: रतनचंद करे अरदासो जी, गाथा-१२. ३०. पे. नाम. गौतमस्वामी गीत, पृ. ८आ-९अ, संपूर्ण. मु. रतनचंद, मा.गु., पद्य, वि. १८७७, आदि: हां वो वेरागी मुनराज हां; अंति: रतन० बोले नही थाहार तोले, गाथा-१२. ३१. पे. नाम, धन्नाकाकंदी सज्झाय, पृ. ९अ, संपूर्ण. मु. रतनचंद, मा.गु., पद्य, आदि: नगरी काकंदी हो मुनीसर आपज; अंति: सिधावसी रतन कहे करजोड, गाथा-७. ३२. पे. नाम. जंबुकुमार सज्झाय, पृ. ९अ-९आ, संपूर्ण. जंबूकुमार सज्झाय, मु. रतनचंद, मा.गु., पद्य, आदि: रीषबदत्त ने धारणी अगज नाम; अंति: वंदु पाम्या अविचल ठामे, गाथा-७. ३३. पे. नाम. ऋषभदत्तदेवानंदा सज्झाय, पृ. ९आ, संपूर्ण. महावीरजिन स्तवन, म. रतनचंद, मा.ग., पद्य, वि. १८८०, आदि: रिषभदत ने देवानंदा नार रथ; अंति: चोमासो वरस कीयो असि रे, गाथा-७, (वि. दो गाथा को १ के क्रम से गिनी गई है.) ३४. पे. नाम. जेवंतीश्राविका सज्झाय, पृ. ९आ-१०अ, संपूर्ण. जयंतीश्राविका सज्झाय, मु. रतनचंद, मा.गु., पद्य, वि. १८८२, आदि: नगर कोसंभी उदाइ माहारायरा; अंति: साभल वेणे सहु सुख पामीया, गाथा-९. ३५. पे. नाम. भवदेवनागिला सज्झाय, पृ. १०अ, संपूर्ण. मु. रतनचंद, मा.गु., पद्य, वि. १८७२, आदि: भवदेव जागी मोहणी तज आयो; अंति: पाय वांदु निज सीस नमाय, गाथा-११. ३६. पे. नाम. धर्मरुचिअणगार सज्झाय, पृ. १०अ-१०आ, संपूर्ण. मु. रतनचंद, मा.गु., पद्य, वि. १८६५, आदि: चंपानगर निरोपम सुंदर जठे; अंति: रतन० नाम थकी सिववासो हो, गाथा-१४. For Private and Personal Use Only Page #455 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra ४४० www.kobatirth.org कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ३७. पे. नाम. गजसुकुमालमुनि सज्झाय, पृ. १० आ-११अ संपूर्ण. मु. रतनचंद, मा.गु., पद्य, वि. १९वी, आदि: देवकीनंद शिरोमण सुंदर; अंति: जी कहे० मधु मासे गुरुवारो, गाथा-१०. ३८. पे. नाम. मृगापुत्र सज्झाय, पृ. ११अ, संपूर्ण. मु. रतनचंद, मा.गु., पद्य, वि. १८९२, आदि सुणो सुणो हो भविक मन; अंतिः रतनचंद० ढाल वाणवे दीपक माल, गाथा - १२, (वि. दो गाथा को १ गाथा के क्रम से गिनी गई है.) Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ३९. पे. नाम. गजसुकुमालमुनि सज्झाय, पृ. ११ अ ११आ, संपूर्ण. मा.गु., पद्य, आदि: वाणी श्रीजिनराज तणी काने; अंति: ऊपर वे सास जामण करणो कीसो, गाथा-१५. ४०. पे नाम. सद्गुरुवाणी पद, पृ. १९आ-१२अ संपूर्ण. मु. रतनचंद, मा.गु., पद्य, वि. १८७३, आदि: मीठी अमृत सारखी; अंति: आनंद में कीधी आ ढाल रसाल, गाथा - १८, (वि. गाथाक्रम भिन्न है.) ४१. पे नाम. गुमानचंदगुरुगुण सज्झाय, पृ. १२अ १२ आ. संपूर्ण. मु. रतनचंद, मा.गु., पद्य, आदि: गुणवंत गुरना गुण काया; अंति: रेण समरे पूजरो उपगार ए, ढाल-२, गाथा-३०. ४२. पे. नाम. गुमानचंदगुरुगुण सज्झाय, पृ. १२आ-१३अ, संपूर्ण. मु. रतनचंद, मा.गु., पद्य, आदि: विने मूल जिनधर्म छे भर्म; अंतिः सुणीने लाया सीमगुणधारी, गाथा- ११. ४३. पे नाम, गुमानचंदगुरुगुण सज्झाय, पृ. १३अ १३आ, संपूर्ण. मु. रतनचंद, मा.गु., पद्य, आदि: जिन आज्ञा अनुस्वारथी उजल; अंतिः प्रगट्यो ग्यान विशेष रे, गाथा-१३. ४४. पे. नाम. गुरुगुण सज्झाय, पू. १३आ, संपूर्ण. मु. रतनचंद, मा.गु., पद्य, आदि मिलिया गुरु ग्यान तणा, अंति: कहे० भेट भए भवजल तिरिया, गाथा-५. ४५. पे. नाम, गुरुगुण सज्झाय, पृ. १३आ, संपूर्ण. मु. रतनचंद, मा.गु., पद्य, आदि: सतगुर मत भूलो एक घडी बोध; अंतिः सेवो जोवे चावो मुगतपुरी, गाथा-५. ४६. पे. नाम. गुरुगुण सज्झाय, पृ. १३आ, संपूर्ण. मु. रतनचंद, मा.गु., पद्य, आदि: गुर सम कुण जग मे उपगारी; अंति दर्शन देख देख लूं बलिहारी, गाथा - ९. ४७. पे नाम. गुरुगुण पद, पृ. १३आ, संपूर्ण मु. रतनचंद, मा.गु., पद्य, आदि मन सतगुर सीख काही भूले अति रतन० अमिरस आतमराम सदा झूले, गाथा-४. ४८. पे. नाम. आचारछत्रीसी, पृ. १३आ, अपूर्ण, पू. वि. प्रारंभ के पत्र हैं. मु. रतनचंद, मा.गु., पद्य, आदि: सुध समकीत पाया वीना, अंति: (-), (पू.वि. दोहा-२ अपूर्ण तक है.) ४९. पे. नाम, आचारछत्रीसी, पृ. १५-१५ आ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र हैं. मु. रतनचंद, मा.गु., पद्य, आदि (-); अति माहे सुणजो भवियण प्राणी, गाथा-३७, (पू.वि. गाथा १ अपूर्ण से है.) ५०. पे. नाम. समजछत्रीसी, पृ. १५आ-१६आ, संपूर्ण. समझछत्रीसी, मु. रतनचंद, मा.गु., पद्य, आदि सतगुरु सुधकर ओलखो छोडा; अंति कीयो जोधाणे शहर चोमास, गाथा-४२. ५१. पे. नाम. साधु आचार सज्झाय, पृ. १६आ-१७आ, अपूर्ण, पू. वि. प्रारंभ के पत्र हैं. साधु आचार सज्झाय-द्वार दोष विचार, मा.गु., पद्य, आदि: सूत्र सुध परूपणा करे; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-३७ अपूर्ण तक है.) ११९९३२. (४) स्थूलभद्ररो नवरस्यो, संपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पृ. ५, ले. स्थल. केकडी प्रले. महाकुर, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. हुंडी खंडित है., अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५.५X११, १८३८). " For Private and Personal Use Only स्थूलिभद्रमुनि नवरसो, उपा. उदयरत्न, मु. दीपविजय, मा.गु., पद्य, वि. १७५९, आदि: सुखसंपत दायक सदा पायक जास; अंति: मनोरथ सहज सहु फल्या रे, ढाल - ९, गाथा-७४. ११९९३४. (+) षडशीति व शतक नव्य कर्मग्रंथ, अपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पू. ७, कुल पे. २, प्र. वि. संशोधित. मूल पाठ का अंश खंडित है, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., ( २६१२, १५X३५-३९). १. पे. नाम षडशीति नव्य कर्मग्रंथ, पृ. १अ ४आ, संपूर्ण. Page #456 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir लह. हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२६ ४४१ षडशीति नव्य कर्मग्रंथ-४, आ. देवेंद्रसूरि, प्रा., पद्य, वि. १३वी-१४वी, आदि: नमिय जिणं जियमग्गण; अंति: लिहिओ देविंदसूरीहिं, गाथा-८९. २. पे. नाम. शतक नव्य कर्मग्रंथ, पृ. ४आ-७आ, अपूर्ण, पृ.वि. प्रारंभ के पत्र हैं. शतक नव्य कर्मग्रंथ-५, आ. देवेंद्रसूरि, प्रा., पद्य, वि. १३वी-१४वी, आदि: नमिय जिणं धुवबंधोदय; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-९३ तक है.) ११९९३५ (+) नवपदनी वचनिका, संपूर्ण, वि. १९५३, कार्तिक शुक्ल, १०, श्रेष्ठ, पृ. २२, प्र.वि. संशोधित., दे., (२५.५४१२, १४४४१). नवपद वचनिका, मा.गु., गद्य, आदि: ॐ० अरिहंत भगवान परमेश्वर; अंति: आराधतां केवल लहे. ११९९३६. १०विध यतिधर्माधिकार सज्झाय, संपूर्ण, वि. १८२४, कार्तिक शुक्ल, २, मध्यम, पृ.८, ले.स्थल. घोघाबंदर, प्रले. मु. रामविजयशिष्य (गुरु ग. रामविजय गणि, तपागच्छ); गुपि. ग. रामविजय गणि (गुरु पंन्या. लक्ष्मीविजय, तपागच्छ); पंन्या. लक्ष्मीविजय (गुरु पंन्या. हर्षविजय, तपागच्छ); पंन्या. हर्षविजय (गुरु आ. विजयप्रभसूरि, तपागच्छ); आ. विजयप्रभसूरि (गुरु आ. विद्याप्रभसूरि, पूर्णिमागच्छ), प्र.ले.पु. मध्यम, प्र.वि. श्रीनवखंडाजी प्रसादात्., प्रतिलेखन पुष्पिका मिटाई हुई है., जैदे., (२६४१२, १३४३६). १० यतिधर्म सज्झाय, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: सुकृत लता वन सींचवा नव; अंति: सुजश लीला अनुभवे, ढाल-११, गाथा-१३६. ११९९३७. शीलविषये चित्रसेनपद्मावती चरित्र, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ५१, जैदे., (२५.५४१२, ७४२८). चित्रसेनपद्मावती चरित्र, पा. राजवल्लभ, सं., पद्य, वि. १५२४, आदि: नत्वा जिनपतिमाद्य; अंति: कथां करोत्पाठक राजवल्लभः, श्लोक-१२३२. ११९९३९. श्रीपाल रास, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ३६-२३(१ से २३)=१३, पू.वि. बीच के पत्र हैं., जैदे., (२६.५४१२, ११४३१). श्रीपाल रास, उपा. विनयविजय; उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., पद्य, वि. १७३८, आदिः (-); अंति: (-), (पू.वि. खंड-२ ढाल-२ गाथा-३२८ अपूर्ण से खंड-२ ढाल-८ गाथा-५२७ अपूर्ण तक है.) ११९९४० (#) शील की नववाडि सज्झाय व शीतलनाथ स्तवनद्वय, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ४, कुल पे. ३, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६.५४१२, १५४४१). १. पे. नाम. शील की नववाडि सज्झाय, पृ. १अ-४अ, संपूर्ण, वि. १८९५, श्रावण कृष्ण, १२, ले.स्थल. जेठाणा, प्रले. मु. रुघनाथ ऋषि, प्र.ले.पु. सामान्य. ९ वाड सज्झाय, मु. जिनहर्ष, मा.गु., पद्य, वि. १७२९, आदि: श्रीनेमीसर चरण जुग; अंति: हो जुगति नववाडी, ढाल-११, गाथा-९७. २.पे. नाम. शीतलनाथ स्तवन, पृ. ४अ-४आ, संपूर्ण, पे.वि. अंत में पीडाहरण मंत्र दिया गया है. शीतलजिन स्तवन, वा. देव, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीसरसति चरणे नमी गाउ; अंति: कहे देव देज्यो सुखकंद भवि, गाथा-७. ३. पे. नाम. शीतलनाथ स्तवन, पृ. ४आ, संपूर्ण, पे.वि. यह कृति बाद में लिखी गई है. शीतलजिन स्तवन, वा. देव, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीसरसतिवर चरणे नमी गाउ; अंति: कहे देव देज्यो सुखकंद भवि, गाथा-७. ११९९४१ (+) स्तवनचौवीसी सह बालावबोध, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ५, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित., जैदे., (२६४१२, १७X४३). स्तवनचौवीसी, मु. आनंदघन; आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., पद्य, वि. १८पू, आदि: ऋषभ जिनेश्वर प्रीतम; अंति: (-), (अपूर्ण, पृ.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., पद्मप्रभजिन स्तवन तक लिखा है.) स्तवनचौवीसी-बालावबोध, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., गद्य, आदि: चिदानंदमय जिनवर सदा; अंति: (-), अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण. For Private and Personal Use Only Page #457 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra ४४२ www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ११९९४२ (+) ऋषभजिनादि पंचपरमेसर स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ५, कुल पे. ५, ले. स्थल. मुमाइबंदर, प्रले. पं. जसविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. हुंडी पसतरत तवन, संशोधित, जैवे. (२६१२, १०x२७). १. पे नाम ऋषभजिन स्तवन, पू. १अ १आ, संपूर्ण आदिजिन स्तवन- शत्रुंजयतीर्थमंडन, पं. नरविजय, मा.गु., पद्य, वि. १७६६, आदि सरसति सामण विनवू रे; अति तणोरे नरविजे गुण गाय, गाथा- १२. २. पे नाम. शांतिजिन स्तवन. पू. १आ-२आ, संपूर्ण. मु. मोहनविजय, मा.गु., पद्य, आदि: सोलमा श्रीजिनराज उलग; अंति: पंडित रुपनो लाल, गाथा-७. ३. पे. नाम, नेमीजन स्तवन, पृ. २आ-३अ संपूर्ण. नेमराजिमती स्तवन, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., पद्य, आदि: तोरण आइ रथ फेरी रे हा अंति: जस कहे० हो दोय दंपती सीध, गाथा-६. ४. पे. नाम. पासप्रभु स्तवन, पू. ३अ ४अ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तवन, मु. उदयरत्न, मा.गु., पद्य, आदि: सुण रे सखी मुझ वाल हो; अंति: कहे० प्रणमु प्रभुजीना पाय, गाथा - ९. ५. पे. नाम महावीरजिन स्तवन, पू. ४-५आ, संपूर्ण महावीरजिन पंचकल्याणक स्तवन, पं. नरविजय, मा.गु., पद्य, वि. १७७१, आदि हां रे लाला सरसति सामण; अति नरविजय० गाय रे लाल, गाथा- १६. ११९९४३. डालगण, संपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पृ. ५, जैवे. (२६.५४१२, १२४३७-४०). "" औपदेशिक सज्झाय, मा.गु., पद्य, आदि: देवधरम गुर वंदि के कहु; अंति: पद पावे कवि कहावे अधिकानी, गाथा-६१. ११९९४५ (+) सत्तरभेदी पूजा सामग्री, संपूर्ण वि. २०वी श्रेष्ठ, पृ. १, प्र. वि. संशोधित. दे. (२६४१२.५ १५४५-२२). " "" सत्तरभेदी पूजा सामग्री, मा.गु., गद्य, आदि: चावलसेर १ श्रीफल५ कपूर भीम; अंति: पाघ२ भोजकने वाजिंद्रीनी. ११९९४६ तत्त्वार्थाधिगममोक्षशास्त्र सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २०- १ (१) = १९, प्र. वि. हुंडी : मोक्षशास्त्रटबो., जैदे., (२७X१२.५, ५X३१-३६). तत्त्वार्थाधिगमसूत्र, वा. उमास्वाति, सं., गद्य, आदि: (-); अंति: बहुतत्त्वतः साध्याः, अध्याय-१०, ( पू. वि. अध्याय-१ सूत्र-८ अपूर्ण से है.) तत्त्वार्थाधिगमसूत्र- टवार्थ, पुहिं. गद्य, आदि (-); अति सिद्ध जुहे ते साधिवै है. " ११९९४७. मृगलेखा रास, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. २४, प्र. वि. हुंडी : मृगले., जैवे. (२७४१२, १७४३१) "" मृगांकलेखा चौपाई. मु. रायचंद ऋषि, मा.गु., पद्य, वि. १८३८, आदि आदेसर जिन आददे चोवीसमा अंति: (-). (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., ढाल ६२ गाथा-८ अपूर्ण तक लिखा है.) १९१९९४८. (+) पाक्षिकखामणासूत्र, अपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पू. १६-१२ (१ से १२) =४, प्र. वि. संशोधित, जैदे. (२६.५x१२.५, १२X३०-३३). आवश्यक सूत्र- साधु प्रतिक्रमणसूत्र संग्रह का हिस्सा पाक्षिकसूत्र व खामणासूत्र, प्रा., पद्य, आदि (-); अति मणसा मत्ण दामि, (पू.वि. १० श्रमणधर्म सूत्र से है.) ११९९४९. आषाढभूतनी चोपड़, संपूर्ण, वि. १८७८, आश्विन कृष्ण, १०, शुक्रवार, मध्यम, पृ. ६, ले. स्थल. किशनगढ़, प्रले. चनराम, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. हुंडी आषाढभूत जै. (२६१२.५ २०x४४). आषाढाभूतिमुनि चौपाई, मु. ज्ञानसागर, मा.गु., पद्य, वि. १७२४, आदि: सकल ऋद्धि समृद्धिकर; अंति: एषणीक आहार लियो मुनि, दाल- १६, गाथा-२१८, . ३५१. ११९९५०. (+#) पार्श्वजिन पट्टावली, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १०, प्र. वि. पदच्छेद सूचक लकीरें-संशोधित. अक्षर पत्रों आमने-सामने छप गए हैं, जैवे. (२५.५x१२.५, १०-१३४२५-२८). " For Private and Personal Use Only पार्श्वजिन पट्टावली, मा.गु., गद्य, आदि: श्रीपार्श्वनाथ संतानीया अति (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., देवगुप्तसूरि परंपरा तक लिखा है.) Page #458 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२६ ४४३ ११९९५२. (४) धर्मबुद्धि चतुष्पदी, संपूर्ण वि. १९०४ वैशाख कृष्ण, ८, बुधवार, जीर्ण, पृ. २५, प्र. वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, वे. (२६४१२, १५-१८४३६-४०). पापबुद्धिराजा धर्मबुद्धिमंत्री रास, मु. लालचंद, मा.गु, पद्य, वि. १७४२, आदि प्रथम जिणेसर परगडो; अंति: गृह शिवसुख सुजस लहै, ढाल-३९, गाथा-५३५. ११९९५३. कल्पसूत्र, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. २३, जैदे. (२६.५X१२, १०२७-३४). कल्पसूत्र, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., गद्य, आदि नमो० तेणं कालेणं तेण अंति (-), (अपूर्ण, पू. वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., सिद्धार्थ राजा का राजसभा आगमन प्रसंग अपूर्ण तक लिखा है.) ११९९५४ (+) प्रतिक्रमणसूत्र संग्रह, १४ नियम गाथा व सर्वसाधु क्षमापना गाथादि संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पृ. ६-१ (१)=५, कुल पे. ४, प्र. वि. संशोधित, जैये. (२६४१२, १५X३०). १. पे. नाम. प्रतिक्रमणसूत्र संग्रह, पृ. २अ-६अ, अपूर्ण, पू.वि. प्रथम पत्र नहीं है. प्रतिक्रमणसूत्र संग्रह .मू. पू. संबद्ध, प्रा. मा.गु. सं., प+ग, आदि (-) अति सर्वामरपूजितं वंदे (पू.वि. इरियावही सूत्र अपूर्ण से है.) " २. पे. नाम. १४ नियम गाथा, पृ. ६अ, संपूर्ण. १४ आवकनियम गाथा, प्रा., पद्य, आदि सचित्त‍ दव्व२ विगइ: अंति: दिसि न्हाण भत्तेसु, गाथा- १. ३. पे नाम. सर्वसाध क्षमापना गाथा, पू. ६अ, संपूर्ण प्रा., पद्य, आदिः अढाइजेसुं दिवसमुद्दे अति: मणसा मत्थएण वंदामि गाथा - १. ४. पे. नाम. चउक्कसाय सूत्र, पृ. ६अ, संपूर्ण. चक्कसायसूत्र, हिस्सा, प्रा., पद्य, आदि चउक्कसाथ पडिमल्लबल्ल अति: पास पयच्छिओ बंछिओ, गाथा-२. ११९९५५ (+) नवतत्त्व प्रकरण सह टवार्थ, संपूर्ण, वि. १८६७ आश्विन कृष्ण, १२ मध्यम पू. ११ प्रले. पं. धीरसागर; पठ. मु. धन्नो, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. हुंडी: नवतत्त्व, टिप्पण युक्त विशेष पाठ-पदच्छेद सूचक लकीरें.. जैदे. (२६.५४१२, ४X३०). " " नवतत्त्व प्रकरण ६० गाथा, प्रा., पद्य, आदि जीवाजीवा पुण्णं पावा; अंतिः गिण्हाई तवेण पुरसुज्जाई, गाथा- ६२. नवतत्त्व प्रकरण ६० गाथा-टबार्थ *, मा.गु., गद्य, आदि: श्रीतीर्थंकर भगवंत केवल; अंति : तपस्या करी पराक्रम जणावे. ११९९५७. रत्नाकरपच्चीसी सह शब्दार्थ, अपूर्ण, वि. १९२० वैशाख शुक्ल, ११, मध्यम, पृ. ८-१(१) ७ ले श्राव, लवजी मोतीचंद, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. हुंडी : र ० शब्दार्थ, र०दशार्थ. प्रतिलेखक ने बालावबोध को शब्दार्थ नाम दिया है., त्रिपाठ., दे., (२७X१२.५, ३X३७). रत्नाकरपच्चीशी, आ. रत्नाकरसरि, सं., पद्य वि. १४वी, आदि श्रेयः श्रियां मंगल अंतिः श्रेयस्करं प्रार्थये श्लोक-२५, संपूर्ण. रत्नाकरपच्चीसी खालावबोध, मु. जीवराज, मा.गु., गद्य वि. १९२०, आदि: (-); अंति जीवराज धर्मनो मर्म, (अपूर्ण, पू. वि. श्लोक - १ अपूर्ण से है.) ११९९५८. (+) भाष्यत्रय-चैत्यवंदन व गुरुवंदन भाष्य सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. २० - १ (१) = १९, ले. स्थल. पोरबंदर, प्रले. मु. खीमचंद, गुभा. मु. विजेचंद (गुरु मु. रूपचंद्र ); गुपि. मु. रूपचंद्र (गुरु मु. भाग्यचंद्र ); मु. भाग्यचंद्र (गुरु मु. चतुरचंद्र); मु. चतुरचंद्र, प्र.ले.पु. मध्यम, प्र. वि. हुंडी : भाष्यपत्र. श्रीशांतिनाथ प्रशादात्., पदच्छेद सूचक लकीरें., जैदे. (२६.५X१२, ४X३४). भाष्यत्रय, आ. देवेंद्रसूरि, प्रा., प+ग., वि. १४वी, आदि: (-); अंति: (-), (प्रतिअपूर्ण, वि. १८६७, आषाढ़ कृष्ण, ७, गुरुवार, पू. वि. चैत्यवंदन भाष्य की गाथा ३ अपूर्ण से है.) "" o भाष्यत्रय-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), (प्रतिअपूर्ण, वि. १८६७ आश्विन कृष्ण, १०, गुरुवार) ११९९५९. उपदेशमाला सह कथा, अपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ४८-४० (१ से ४०) = ८, पू.वि. बीच के पत्र हैं., जैदे., (२७X१२, १-५X४८). For Private and Personal Use Only उपदेशमाला, ग. धर्मदासगणि, प्रा., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. गाथा - ९२ से गाथा- १०२ तक है.) उपदेशमाला-कथा, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: (-). Page #459 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ४४४ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ११९९६१. महावीरना २७ भव तथा १४ स्वप्न विचार, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ५, ले.स्थल. पालीयाद, प्र.वि. हुंडी:२७भव., दे., (२६४१२, १२४३६-४२). महावीरजिन २७ भव व १४ स्वप्न विचार, मा.गु., गद्य, आदि: पहेले भवे जंबुद्विपमा; अंति: मंगलीकमय रूडा सुपन दीठा. ११९९६२. (+) पद्मावत्यष्टक सह वृत्ति व जैन मंत्र संग्रह, संपूर्ण, वि. १९०१, चैत्र शुक्ल, १४, मंगलवार, मध्यम, पृ. २३, कुल पे. २, प्रले. ऋ. हुकमचंद; पठ. पं. गुलाबचंद्र, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें., दे., (२६४१२.५, ११४३३-३६). १. पे. नाम. पद्मावत्यष्टक सह वृत्ति, पृ. १आ-२३अ, संपूर्ण. पद्मावतीदेवी अष्टक, सं., पद्य, आदि: श्रीमद्गीर्वाणचक्र; अंति: स्तुता दानवेंद्रैः, श्लोक-९. पद्मावतीदेवी अष्टक-पार्श्वदेवीय वृत्ति, ग. पार्श्वदेव, सं., गद्य, वि. १२०३, आदि: प्रणिपत्य जिनं देवं; अंति: छंदसां प्रायः, ग्रं. ५२२. २. पे. नाम. जैन मंत्र संग्रह, पृ. २३आ, संपूर्ण. जैन मंत्र संग्रह-सामान्य , प्रा.,मा.गु.,सं., गद्य, आदि: ॐ ह्रीं श्रीं कलिकुंडत्या; अंति: पाइ जे चोखा पवाडीयैफूः. ११९९६३. कर्मसूचनिका, जिनसहस्र नाम व सिंदरप्रकरण भाषाबंध आदि संग्रह, संपूर्ण, वि. १८८५, श्रेष्ठ, पृ. ९१, कुल पे. ७२, प्र.वि. हुंडी:वाणारसी०, वा.सी.वि., प्रतिलेखन पुष्पिका मिटाई हुई है., जैदे., (२६४११.५, १२४३४-३८). १. पे. नाम, कर्मसूचनिका, पृ. १आ-२अ, संपूर्ण. ___ बनारसी विलास-विषयसूचनिका, संबद्ध, जै.क. बनारसीदास, मा.गु., पद्य, आदि: प्रथम सहस्रनाम सिंदू; अंति: यों त्यों अधिकी होइ, गाथा-५. २.पे. नाम. जिनसहस्र नाम, पृ. २अ-८अ, संपूर्ण. जिनसहस्रनाम स्तोत्र, जै.क. बनारसीदास, पुहिं., पद्य, वि. १६९०, आदि: परम देव परनाम करि; अंति: बनारसी० नाम कवित्त, शतक-१०, गाथा-१०२. ३. पे. नाम. सिंदरप्रकरण-भाषाबंध, पृ. ८अ-१९आ, संपूर्ण. ___ सिंदूरप्रकर-पद्यानुवाद भाषा, श्राव. बनारसीदास, पुहिं., पद्य, वि. १६९१, आदि: सोभित तप गजराज सीस; अंति: वानारसि० विस्तार, अधिकार-२२, गाथा-१०४. ४. पे. नाम. बनारसीदासबावनी, पृ. १९आ-२६अ, संपूर्ण. सवैयाबावनी, श्राव. बनारसीदास, मा.गु., पद्य, वि. १६८६, आदि: ॐकार सबद विहदया के; अंति: वनारसीदास० गुणगहि लीजिये, गाथा-५२. ५. पे. नाम. वेदनिर्णयपंचासिका, पृ. २६अ-३०अ, संपूर्ण. श्राव. बनारसीदास, पहिं., पद्य, वि. १७वी, आदि: जगत विलोचन जगतहित; अंति: वनारसी० भुजबल रहित, गाथा-५१. ६. पे. नाम. ६३ शलाकापुरुष सज्झाय, पृ. ३०अ-३१आ, संपूर्ण. श्राव. बनारसीदास, पुहि., पद्य, वि. १७वी, आदि: नमो जिनवर० देव चौवीस; अंति: रघुनाथ नाथपदम नवराम, गाथा-२७. ७. पे. नाम. ६२ मार्गणाविधान सज्झाय, पृ. ३१आ-३२आ, संपूर्ण. ६२ मार्गणा विधान, जै.क. बनारसीदास, पुहिं., पद्य, आदि: वंदो देव जुगादिजिन सुमरि; अंति: बनारसी कीजै मोख उपाई, गाथा-२७. ८. पे. नाम. कर्मप्रकृति विधान, पृ. ३२आ-४१आ, संपूर्ण. श्राव. बनारसीदास, पुहिं., पद्य, वि. १७००, आदि: परमशंकर परमभगवान परम; अंति: बनारसी० भयो सिद्धंत, गाथा-१७८. ९. पे. नाम. कल्याणमंदिर-भाषा, पृ. ४१आ-४४अ, संपूर्ण. कल्याणमंदिर स्तोत्र-पद्यानुवाद, जै.क. बनारसीदास, पुहिं., पद्य, वि. १७वी, आदि: परम ज्योति परमातमा; अंति: कारन समकित शुद्धि, गाथा-४४. For Private and Personal Use Only Page #460 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२६ ४४५ १०. पे. नाम. साधुवंदना, पृ. ४४अ-४५आ, संपूर्ण. श्राव. बनारसीदास, पुहिं., पद्य, वि. १७वी, आदि: श्रीजिनभाषित भारती; अंति: कहत बनारसी पावै अविचल मोख, गाथा-३१. ११. पे. नाम. मोक्षमार्ग पैडी, पृ. ४५आ-४७आ, संपूर्ण. मोक्षमार्ग पयडी, श्राव. बनारसीदास, पुहिं., पद्य, आदि: इक समै रुचिवंतनो गुरु; अंति: वणारसीदास० न समुझै लेस, गाथा-२२. १२. पे. नाम. कर्मछत्तीसी, पृ. ४७आ-४९अ, संपूर्ण. जै.क. बनारसीदास, पुहिं., पद्य, वि. १७वी, आदि: परमनिरंजन परमगुरु; अंति: मूढ़ बढावे सृष्टि, गाथा-३७. १३. पे. नाम. ध्यानछत्तीसी, पृ. ४९अ-५०आ, संपूर्ण. ध्यानबत्रीसी, श्राव. बनारसीदास, पुहिं., पद्य, वि. १७वी, आदि: ग्यान सरूप अनंतगुन; अंति: बनारसी० यथा सकति परधान, गाथा-३४. १४. पे. नाम. अध्यात्मछत्तीसी, पृ.५०आ-५१अ, संपूर्ण. अध्यात्मबत्तीसी, श्राव. बनारसीदास, पुहिं., पद्य, वि. १७वी, आदि: शुद्ध वचन सदगुरु कहे; अंति: परगाससौ आवागमन न होइ, गाथा-३१. १५. पे. नाम. ग्यानपच्चीसी, पृ. ५२अ-५३अ, संपूर्ण. ज्ञानपच्चीसी, जै.क. बनारसीदास, पुहिं., पद्य, वि. १७वी, आदि: सुरनर तिरजगजोनि में नरक; अंति: बनारसी० उदे करण के हेतु, गाथा-२५. १६. पे. नाम. शिवपच्चीसी, पृ. ५३अ-५४अ, संपूर्ण. जै.क. बनारसीदास, पहिं., पद्य, वि. १७वी, आदि: ब्रह्मविलास विकासधर; अंति: वनारस० शिव रीति, गाथा-२६. १७. पे. नाम. सिद्धचतुर्दशी, पृ. ५४अ-५४आ, संपूर्ण. सिंधचतुर्दशी, पुहि., पद्य, आदि: जैसे काह पुरुष को पार; अंति: मुनि चतुर्दशी होइ, गाथा-१४. १८. पे. नाम. अध्यात्म फाग, पृ. ५४आ-५५आ, संपूर्ण. जै.क. बनारसीदास, पुहि., पद्य, वि. १७वी, आदि: अध्यातम बिनु क्यों; अंति: फिर तिहां खेल न कोय, गाथा-१७. १९. पे. नाम. पन्नुरह तिथि, पृ. ५५आ-५६आ, संपूर्ण. १५ तिथि चौपाई, मु. तुलसी, मा.गु., पद्य, आदि: पडिवा प्रथम घट जागी परम; अंति: कहत जती तुलसी वनवासी, गाथा-१६. २०. पे. नाम. १३ काठिया दोहरा, पृ. ५६आ-५७अ, संपूर्ण. श्राव. बनारसीदास, पुहिं., पद्य, वि. १७वी, आदि: जे वट पारे वाट मै; अंति: दसा कहीयै तेरह तिन, गाथा-१७. २१. पे. नाम. औपदेशिक गीत, पृ. ५७अ-५८अ, संपूर्ण. जै.क. बनारसीदास, पुहिं., पद्य, वि. १७वी, आदि: मेरा मन का प्यारा जो मिलइ; अंति: यह परमारथ पंथ निदान, गाथा-३०. २२. पे. नाम. पंचपद विधान, पृ. ५८अ-५८आ, संपूर्ण. पंचपदविधान वर्णन, जै.क. बनारसीदास, पहिं., पद्य, वि. १७वी, आदि: नमो ध्यान धर पंचपद; अंति: पद उलटि सदा शिव होइ, गाथा-१२. २३. पे. नाम. सुमतिदेवी शतक, पृ. ५८आ-५९आ, संपूर्ण. सुमतिदेवी अष्टोत्तरशतनाम दोहरा, पुहिं., पद्य, आदि: नमो सिद्धिसाधक पुरुष नमो; अंति: यह सुबुद्धिदेवी वरनी, गाथा-६. २४. पे. नाम. शारदाष्टक, प.५९आ-६०अ, संपूर्ण. जै.क. बनारसीदास, पुहि., पद्य, वि. १७वी, आदि: नमौ केवल नमौ केवल; अंति: वनारसी० तजि संसार किलेस, गाथा-९. २५. पे. नाम. नवदुर्गा विधान, पृ. ६०अ-६१अ, संपूर्ण. For Private and Personal Use Only Page #461 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra ४४६ www.kobatirth.org पु., पद्य, आदि प्रथम हि समकितवंत, अंतिः सुमति अनेकभांति बरनी, गाथा ९. २६. पे नाम. नामनिर्णय विधान पू. ६१अ ६२अ, संपूर्ण, 1 पुहिं., पद्य, आदि: काहु दिन काहू समै; अंति: ते निरास निर्लेप, गाथा - ११. २७. पे नाम. नवरत्न कवित्त, पृ. ६२-६३, संपूर्ण पुहिं., पद्य, आदि: धन्वंतरि छप्पनक अमर अंतिः धनसंग्रहै ए जग मे वदित गाथा- ११. " २८. पे. नाम. जिनपूजाअष्टप्रकारी वर्णन, पृ. ६३अ - ६३आ, संपूर्ण. जिनपूजा अष्टक, पुहिं, पद्य, आदि जलधारा चंदन पुहप; अति: जलधारसु दीजे अर्थ अभंग गाथा-१०. २९. पे नाम. १० दान विधान, पृ. ६३-६४अ, संपूर्ण. १० दान दोहरा, जै.क. बनारसीदास, पुहिं., पद्य, आदि: गो सुवर्ण दासी भवन; अंति: हित अहित आन की आन, Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची गाथा - १४. ३०. पे नाम. १० बोल, पू. ६४-६५अ, संपूर्ण १० बोल पद, पुहिं., पद्य, आदि जिन की भांत कहो समझाई जिन, अंतिः जहां कहिये जिनमत सोइ, गाथा १२. ३१. पे नाम, कहरानामा की चालि, पृ. ६५ अ- ६५आ, संपूर्ण. आध्यात्मिकज्ञान प्रश्नपहेली, पुहिं., पद्य, आदि: कुमति सुमति दोङ अंति: भई यह सौति घर छांहि गाथा ११. ३२. पे नाम, प्रश्नोत्तर कथानक, पृ. ६५आ-६६अ, संपूर्ण बनारसी, गाथा-५. ३८. पे नाम. शांतिनाथ के त्रिभंगी छंद. पू. ६८आ, संपूर्ण. प्रश्नोत्तर दोहा, श्राव. भगवतीदास भैया, पुहिं., पद्य, आदि: कौन वस्तु वपु मांहि, अंति: कंचन पाहनमांहि, गाथा- ९. ३३. पे नाम, प्रश्नोत्तरमाला, पृ. ६६-६७अ, संपूर्ण. " जै. क. बनारसीदास, पुहि., पद्य, वि. १७वी आदि नमित सीस गोविंदसौ; अति भानुसुगुरुपरसाद, गाथा-२९. ३४. पे. नाम. अवस्थाष्टक, पृ. ६७अ, संपूर्ण. मा.गु., पद्य, आदि: चेतनलक्षण नियतनय सवै अंति जंगम परमातमा भववासी भगवान, गाथा-८. ३५. पे. नाम, षट्दर्शनाष्टक, पृ. ६७अ ६७आ, संपूर्ण " षड्दर्शनाष्टक, पुहिं., पद्य, आदि: शिवमत बोध सुवेदमत नैयायक; अंति: खंड सौ दशा छानवै और, गाथा-८. ३६. पे. नाम. ४ वरण दोहरा, पृ. ६७आ, संपूर्ण. औपदेशिक पद ४ वर्ण, जै. क. बनारसीदास, पुहिं., पद्य, आदि जो निहचे मारग गहे, अंतिः जो मिश्रित परिनाम, गाथा - ५, (वि. गाथांक क्रमश: है . ) ३७. पे नाम, अजितनाथ के छंद, पृ. ६७-६८आ, संपूर्ण. अजितजिन छंद, जै.क. बनारसीदास पुहिं पद्य वि. १७वी, आदि: गोवमगणहरपय नमो सुमरि अतिः सेवक सिरीमाल , "" गाथा - ९. ४०. पे नाम. नवसेना विधान पू. ६९-७०अ, संपूर्ण. पुहिं., पद्य, आदि प्रथमहिं पति नाम, अंति अच्छीहिनि परधान किय, गाथा- १२. " ४१. पे. नाम. समयसारसिद्धांतनाटक के कवित, पृ. ७० अ-७०आ, संपूर्ण. पुहिं., पद्य, आदि प्रथम अग्यानी जीव अंतिः परनति अष्टकर्म विनाश ए. गाथा- ४. " ४२. पे नाम. मिथ्यात्व वाणी, पृ. ७० आ-७१अ, संपूर्ण. शांतिजिन छंद, पुहिं., पद्य, आदि: सहि एरी दिन आज सुहाया मुझ; अंति: को प्रभु धन्य सयानी सहीए, गाथा-२. ३९. पे नाम, शांतिनाथ के छंद. पू. ६८-६९आ, संपूर्ण. शांतिजिन छंद-त्रिभंगी, जै. क. बनारसीदास, पुहिं., पद्य, आदि: विश्वसेन कुल कमल; अति वानारसी० जय जितकरन, For Private and Personal Use Only पुहिं., पद्य, आदि: नारायण देवको कहें कि; अंति: वयणंमि खोइ कप्पूरं, गाथा-४. ४३. पे नाम. प्रास्ताविक कवित्त, पृ. ७१२-७३ आ. संपूर्ण जै.क. बनारसीदास, पु,ि पद्य वि. १७वी आदि पूरव कि पछिम हो; अति जागृत्शुषुप्तिषु, गाथा-२४. पुहिं., Page #462 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२६ ४४७ ४४. पे. नाम, गोरखनाथ वचन, पृ. ७४अ, संपूर्ण. ___ गोरखनाथ वचनिका, गोरखनाथ, पहिं., पद्य, आदि: जो भग देखि भामिनी; अंति: वादविवाद करे सो अंधा, गाथा-७. ४५. पे. नाम. वैद्यलक्षणादि प्रास्ताविक, पृ.७४अ-७६अ, संपूर्ण. ___ वैद्यलक्षणादिप्रस्ताविक कवित्त, पुहि., पद्य, आदि: करमरोग की परकिति पावै जथा; अंति: सहज सुष्टता सोइ, गाथा-४१. ४६. पे. नाम. परमार्थवचनिका, पृ. ७६अ-८०आ, संपूर्ण. चौभंगी रूपकार वचनिका संग्रह, पुहिं., गद्य, आदि: एक जीव द्रव्यता के; अंति: कल्याणकारी हि भाग्यप्रवान. ४७. पे. नाम. निमित्तकारण उपादानकारणदहकोभेदनिर्णय, पृ. ८०आ-८३आ, संपूर्ण. निमित्तकारण उपादानकारणनिर्णय संग्रह, पुहिं., गद्य, आदि: प्रथम ही कोई पूछता; अंति: शुद्धाशुद्ध विचारै. ४८. पे. नाम. निमित्त उपादान का दोहरा, पृ. ८३आ-८४अ, संपूर्ण. निमित्त उपादान दोहा, जै.क. बनारसीदास, पहिं., पद्य, वि. १७वी, आदि: श्रीगुरु उपदेश निमित्त; अंति: देश में करैस तैसे भेस, गाथा-७. ४९. पे. नाम. रागमाला, पृ.८४अ, संपूर्ण. औपदेशिक पद, श्राव. बनारसीदास, पुहि., पद्य, वि. १७वी, आदि: या चेतन की सब सुधि; अंति: तब सुख होत बनारसीदास, गाथा-४, (वि. गाथाक्रम में वैविध्य है.) ५०. पे. नाम. आध्यात्मिक पद, पृ. ८४अ, संपूर्ण. जै.क. बनारसीदास, पुहिं., पद्य, वि. १७वी, आदि: चेतन तूं तिहुं काल; अंति: बनारसी० होइ सहज सुरझेला, गाथा-४. ५१. पे. नाम. साधारणजिन स्तवन, पृ. ८४अ-८४आ, संपूर्ण. जै.क. बनारसीदास, पुहिं., पद्य, वि. १७वी, आदि: मगन होइ आराधो साधो; अंति: वह जैसे का तैसा, गाथा-६. ५२. पे. नाम. कुमतिकुदेववर्णन पद, पृ. ८४आ, संपूर्ण. पुहिं., पद्य, आदि: जिनप्रतिमा जिनसारखी; अंति: तजै समकती सेव, गाथा-२. ५३. पे. नाम. जिनप्रतिमा एकादशी, पृ. ८४आ-८५अ, संपूर्ण. जै.क. बनारसीदास, पुहिं., पद्य, आदि: इहविधि देव अदेव की; अंति: असुर अवंदनी नीरदै संसारी, गाथा-१०. ५४. पे. नाम, मूढशिक्षा पद, पृ. ८५अ, संपूर्ण. मूढशिक्षा अष्टपदी, पुहिं., पद्य, आदि: ऐसे क्यों प्रभु पाईय; अंति: विना तूं समजत नाही, गाथा-७. ५५. पे. नाम, परमार्थ अष्टपदी, पृ. ८५अ-८५आ, संपूर्ण. पुहिं., पद्य, आदि: ऐसै यों प्रभु पाइये; अंति: साहिब एकहि तब को कहि भेटै, गाथा-८. ५६. पे. नाम, औपदेशिक पद, पृ. ८५आ, संपूर्ण. जै.क. बनारसीदास, पुहिं., पद्य, आदि: तु आतम गुण जान रे; अंति: ओर न तोही छोडावणहार, गाथा-७. ५७. पे. नाम, औपदेशिक पद, पृ. ८५आ-८६अ, संपूर्ण. श्राव. बनारसीदास, पुहिं., पद्य, आदि: रे मन कर सदा संतोष; अंति: वनारसी० नृपति को रंक, गाथा-४. ५८. पे. नाम. उधवावर वैराग्य, पृ. ८६अ-८६आ, संपूर्ण. जै.क. बनारसीदास, पुहि., पद्य, आदि: वालभ तू तन चितवत गागरि; अंति: वनारसि० नरोत्तम हेतु, गाथा-२५. ५९. पे. नाम, औपदेशिक पद, पृ. ८६-८७अ, संपूर्ण. श्राव. बनारसीदास, पुहिं., पद्य, वि. १७वी, आदि: चेतन उलटी चाल चाले; अंति: चढि बैठे ते निकले, गाथा-४. ६०. पे. नाम. औपदेशिक पद, पृ. ८७अ, संपूर्ण. श्राव. बनारसीदास, पुहिं., पद्य, आदि: चेतन तोहि न नेक; अंति: सुमिरन भजन आधार, गाथा-४. ६१. पे. नाम. औपदेशिक पद, पृ. ८७-८८अ, संपूर्ण. पुहिं., पद्य, आदि: दुविधा कब जै है या; अंति: कब मेरी बलिहारि वा छनकी, गाथा-४. ६२. पे. नाम, आध्यात्मिक पद, पृ. ८८अ, संपूर्ण. पुहिं., पद्य, आदि: हम बैठे अपने मौन; अंति: संगतिसु रझै आवागमनसौ, गाथा-४. For Private and Personal Use Only Page #463 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ४४८ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ६३. पे. नाम. साधारणजिन पद, पृ. ८८अ, संपूर्ण. जै.क. बनारसीदास, पुहिं., पद्य, आदि: सुखदायक सुख एक जगत मे; अंति: करत वनारसि सेव, गाथा-४. ६४. पे. नाम. रामायण अष्टपदी, पृ. ८८अ-८८आ, संपूर्ण. पुहिं., पद्य, आदि: विराजे रामाइन घटमांहि; अंति: निहचै केवल राम, गाथा-८. ६५. पे. नाम, आलाप गीत, पृ.८८आ-८९अ, संपूर्ण.. आध्यात्मिक पद, पहिं., पद्य, आदि: ज्यो दातार दयाल होइ देइ; अंति: मिलै त चातक हौं मेह, गाथा-६. ६६. पे. नाम. भौंद गीत, पृ. ८९अ, संपूर्ण. औपदेशिक अष्टपदी-भोंदभाई, पुहिं., पद्य, आदि: भोंदभाई देखि हिरदै; अंति: निरविकलप पद पावै, गाथा-८. ६७. पे. नाम, औपदेशिक पद, पृ. ८९अ-८९आ, संपूर्ण. जै.क. बनारसीदास, पुहि., पद्य, वि. १७वी, आदि: तू भ्रम भूलना रे; अंति: ना कर होड़ विरानी, गाथा-३. ६८. पे. नाम. भौंद गीत, पृ. ८९आ, संपूर्ण. ___औपदेशिक अष्टपदी-भोंदभाई, पुहि., पद्य, आदि: भोदूभाइ समझि शबद यह मेरा; अंति: कै गुरुसंगति खोले, गाथा-८. ६९. पे. नाम. पार्श्वजिन पद, पृ. ८९आ-९०अ, संपूर्ण. पार्श्वजिन पद-चिंतामणि, श्राव. बनारसीदास, पुहिं., पद्य, आदि: चिंतामणिस्वामी साचा साहिब; अंति: करै बनारसि बंदा तेरा, गाथा-४. ७०. पे. नाम. परमार्थ हिंडोलना, पृ. ९०अ-९०आ, संपूर्ण. क. केसवदास, पुहिं., पद्य, आदि: सहज हिंडोलना हरख; अंति: विधिस्यों नमित केशवदास, गाथा-८. ७१. पे. नाम. अष्टपदी, पृ. ९०आ-९१अ, संपूर्ण. औपदेशिक पद, श्राव. बनारसीदास, पुहि., पद्य, वि. १७वी, आदि: देखो भाई महाविकल संसारी; अंति: बनारसी० अखैनिध लूटै, गाथा-८. ७२. पे. नाम. बनारसीदास प्रशस्ति, पृ. ९१अ-९१आ, संपूर्ण. श्राव. बनारसीदास, पुहिं., पद्य, वि. १७७१, आदि: नगर आगरेमें अगरवाल; अंति: भई यह वनारसी भाष, गाथा-३. ११९९६४. (+#) कर्मविपाक नव्य कर्मग्रंथ सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १५, पृ.वि. प्रारंभ के पत्र हैं., प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरे-संशोधित-टिप्पण युक्त विशेष पाठ. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६४११.५, ३४३१). कर्मविपाक नव्य कर्मग्रंथ-१, आ. देवेंद्रसूरि, प्रा., पद्य, वि. १३वी-१४वी, आदि: सिरिवीरजिण वंदिअ; अंति: लिहिओ देविंदसुरीहिं, गाथा-६०, (संपूर्ण, वि. कृति के अंत में कर्मग्रंथ-२ की गाथा-१ का प्रारंभिक पाठ दिया है.) कर्मविपाक नव्य कर्मग्रंथ-१-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: श्रीमहावीरजिन प्रति; अंति: श्रीदेवेंद्रसूरइं, संपूर्ण. ११९९६५. (+) जिनपंजर, ऋषिमंडल व बृहत्शांति स्तोत्र, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १०, कुल पे. ३, ले.स्थल. बडीपोसाल, प्रले. मु. रामचंद्र ऋषि; पठ. मु. श्रीपालचंद्रजी, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. श्रीनेमिनाथजी प्रसादात्., पदच्छेद सूचक लकीरे-संशोधित., जैदे., (२६४१२, १०४३३). १. पे. नाम. जिनपंजर स्तोत्र, पृ. १आ-२आ, संपूर्ण, पे.वि. हुंडी:जिनपं०स्तो०. आ. कमलप्रभसूरि, सं., पद्य, आदि: ॐ ह्रीं श्रीं अहँ, अंति: श्रीकमलप्रभाख्यः, श्लोक-२५. २. पे. नाम. ऋषिमंडल स्तोत्र, पृ. २आ-६अ, संपूर्ण, पे.वि. हुंडी:ऋषि०स्तो०. कृति के अंत में "कृति के अंत में क्षेपकश्लोकान्निराकृत्य मूलयंत्रकल्पानुसारेण लिखितं गणिः श्रीक्षमाकल्याणोपाध्यायेः तस्योपरि मया लिखितं इंद्र प्रभाविकं स्तोत्रं" ऐसा लिखा है. ऋषिमंडल स्तोत्र-बृहद, आ. गौतमस्वामी गणधर, सं., पद्य, आदि: आद्यंताक्षरसंलक्ष्यमक्षरं; अंति: लभ्यते पदमुत्तमम्, श्लोक-६३, ग्रं. १५०. ३. पे. नाम. बृहत्शांति स्तोत्र, पृ. ६अ-१०अ, संपूर्ण, पे.वि. हुंडी:बृद्धशां०. बृहत्शांति स्तोत्र-तपागच्छीय, सं., प+ग., आदि: भो भो भव्याः शृणुत; अंति: पूज्यमानो जिनेश्वरः. For Private and Personal Use Only Page #464 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir A हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२६ ४४९ ११९९६६. योगशास्त्र-प्रकाश ५ से १२, संपूर्ण, वि. १८९२, नयननिधिवसुचंद्र, आश्विन कृष्ण, ३, गुरुवार, श्रेष्ठ, पृ. ४४, प्रले. मु. सहजानंद (गुरु मु. हेमविजय); गुपि. मु. हेमविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. हुंडी:अ०, यो०शा०., जैदे., (२६४१२, १२४३६). योगशास्त्र, आ. हेमचंद्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., पद्य, वि. १३वी, आदि: (-); अंति: गिरां श्रीहेमचंद्रेण सा, प्रतिपूर्ण. ११९९६७. (+) नयविचार, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ११, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. हुंडी:नयवि०., संशोधित., दे., (२४४१२, १२४२९-३७). नयविचार, मा.गु., गद्य, आदि: श्रीजिनवरेंद्रनैं; अंति: (-), (पू.वि. विपरिणाम भेदवर्णन अपूर्ण तक है.) ११९९६९. चेलणारी ढाल व मानवीरी सज्झाय, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १०, कुल पे. २, प्र.वि. हुंडी:चेलणारीढा०., जैदे., (२६४१२, १०४३४). १. पे. नाम. चेलणारी ढाल, पृ. १आ-१०अ, संपूर्ण. चेलणासती चौपाई, मु. दयाचंद ऋषि, मा.गु., पद्य, आदि: चोवीसमा महावीरजी; अंति: मेरी जनम मरणरी खामी, ढाल-१३. २. पे. नाम. मानवीरी सज्झाय, पृ. १०अ-१०आ, अपूर्ण, पृ.वि. प्रारंभ के पत्र हैं. मानपरिहारछत्रीसी, मा.गु., पद्य, आदि: मान न कीजे रे मानवी; अंति: (-), (पृ.वि. गाथा-१७ अपूर्ण तक है.) ११९९७० (+) कर्मप्रकृति-भांगासंग्रह व ४ मैत्री प्रकारादि विचार संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, प.५, कल पे. ५, प्र.वि. प्रत के अंत में कृति का नाम जीवविचार दिया है., टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित., जैदे., (२६.५४१२, १४४३२-३६). १.पे. नाम, कर्मप्रकृति-भांगासंग्रह, पृ. १अ-४आ, संपूर्ण. मा.गु.,रा., गद्य, आदि: तिर्यग गति तिर्यग; अंति: २. पे. नाम. ४ मैत्रीप्रकार विचार, पृ. ४आ, संपूर्ण. सं., गद्य, आदि: उपकार मित्री ते उपकारिजन; अंति: मित्री सा चतुर्थी. ३. पे. नाम. ४ करुणाप्रकार विचार, पृ. ४आ, संपूर्ण. मा..,सं., गद्य, आदि: मोह करुणा ते स्यु ग्लाने०; अंति: विषे हित बुध्या चतुर्थी. ४. पे. नाम. ४ मुदितप्रकार विचार, पृ. ४आ-५अ, संपूर्ण. ४ मदिताप्रकार विचार, सं., गद्य, आदि: सुख मात्र मुदिता ते स्यु; अंति: शाश्वतं च तस्मिन चतुर्थी. ५.पे. नाम, ४ उपेक्षाप्रकार विचार, पृ. ५अ-५आ, संपूर्ण. मा.गु.,सं., गद्य, आदि: करुणा सारा उपेक्षा ते; अंति: तत्त्वसारा उपेक्षा कहिए. ११९९७१. सूर्याभदेवता का विमानरचना वर्णन संक्षेप, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ६, प्र.वि. हुंडी:सूर्याभ०., जैदे., (२६.५४१२, १३४३०-३३). सूर्याभविमान विस्तार, संबद्ध, मा.गु., गद्य, आदि: साढीबारा लाख योजन लांबो; अंति: विमान राखी उत्तरे इति सणस. ११९९७४. ६ लेश्या विचार व षट् लेश्या श्लोक, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, जैदे., (२५४११.५, १८४४८). १. पे. नाम. ६ लेश्या विचार, प. १अ, संपूर्ण. मा.गु., गद्य, आदि: पांच आश्रव प्रवर्ते१; अंति: तेहने शुक्ल लेश्या जाणवी. २. पे. नाम, षट् लेश्या श्लोक, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. लेश्यालक्षण श्लोक, प्रा.,सं., पद्य, आदि: अतिरौद्रः सदाक्रोधी; अंति: सुक्काए सासयं ठाणं, श्लोक-८. ११९९७५ (+) २५ बोल, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ५, प्र.वि. प्रत के अंत में "पु. गुर राज्य. दी स्पी ज्या बाइ कुं." ऐसा लिखा है., टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित., जैदे., (२५.५४१२, १२४२५-३०). २५ बोल थोकडा-जीवगती शरीरादि, मा.गु., गद्य, आदि: पेलो बोले च्यारगत नरक१; अंति: यथाख्यातचारित्र. ११९९७६. रतनपाल चरित्र, संपूर्ण, वि. १९११, भाद्रपद, ६, सोमवार, मध्यम, पृ. ३१, प्रले. जमुनादास ब्राह्मण, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. हुंडी:रतन., दे., (२५.५४१२.५, १५४३५-३८). रत्नपालरत्नावती रास-दानाधिकारे, म. सूरविजय, मा.गु., पद्य, वि. १७३२, आदि: श्रीऋषभादिक जिन नमु; अंति: वो जयजयकार रे, खंड-३, गाथा-७७४, (वि. ढाल-३२) For Private and Personal Use Only Page #465 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ४५० कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ११९९७७. (+#) २४ तीर्थंकरना आंतराना बोल, संपूर्ण, वि. १८८१, आश्विन कृष्ण, ९, मध्यम, पृ.५, ले.स्थल. मांडवी बिंदर, प्रले. मु. जसराज-शिष्य; पठ. मु. नथुजी स्वामी, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. हुंडी:अंतरपत्र., प्रतिलेखन पुष्पिका मिटाई हुई है-टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६४१२, २०४३४). कल्पसूत्र-संबद्ध २४ जिन आंतरा, मा.गु., गद्य, आदि: अढार कोडाकोड सागरने आंतरो; अंति: अनंत० अतुल सुख पाम्या छे. ११९९७८. (+#) चतुर्विंशतिजिन नमस्कार, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ.७, ले.स्थल. अजीमगंज, प्रले. पं. अभेचंद, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित. मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., (२१४१२, १३४३०). नमस्कारचौवीसी, मु. क्षमाकल्याण, मा.गु., पद्य, वि. १८५६, आदि: जय जय जिनवर आदिदेव; अंति: धर्म गणि सीस क्षमाकल्याण, अध्याय-२४, गाथा-१४४.. ११९९८१. षडावश्यकप्रतिक्रमणसूत्र सह टबार्थ व दशवैकालिकसूत्र, अपूर्ण, वि. १८००, ज्येष्ठ शुक्ल, ३, मध्यम, पृ. ४२-३(१ से ३)=३९, कुल पे. २, ले.स्थल. उज्जैन, पठ.सा. नाथुजी, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. अंत में महाजन लिपि में अस्पष्ट रूप से कुछ लिखा है., जैदे., (२४४११.५, ९x१२). १.पे. नाम. षडावश्यकप्रतिक्रमणसूत्र सह टबार्थ, पृ. ४अ-४१आ, संपूर्ण. साधुश्रावकप्रतिक्रमणसूत्र-लोंकागच्छीय, संबद्ध, प्रा.,सं., प+ग., आदि: णमो अरिहंताणं; अंति: आणाए अणुपालं अं भवई, (वि. देवसी प्रतिक्रमण है.) साधुश्रावकप्रतिक्रमणसूत्र-लोंकागच्छीय-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: श्रीवीतरागने नमस्कार करी; अंति: (-), (वि. यत्र-तत्र टबार्थ नहीं लिखा है.) २. पे. नाम. दशवैकालिकसूत्र-अध्ययन १, पृ. ४२अ-४२आ, संपूर्ण. दशवैकालिकसूत्र, आ. शय्यंभवसूरि, प्रा., पद्य, वी. २वी, आदि: धम्मो मंगलमुक्किट्ठ; अंति: (-), प्रतिपूर्ण. ११९९८२ (+) कल्पसूत्र-व्याख्यान १ से ५ सह कल्पद्रमकलिका टीका, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ५७, प्र.वि. हुंडी:प्रथमवाचना., द्विति०., तृति०. चतुर्थवाचना., पंचमवाचना., संशोधित., जैदे., (२५४११.५, १६४३१-३५). कल्पसूत्र, आ. भद्रबाहस्वामी, प्रा., गद्य, आदि: णमो अरिहंताणं० पढमं; अंति: (-), (अपूर्ण, पृ.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., महावीरजिन जन्म वर्णन सत्र तक लिखा है.) कल्पसूत्र-कल्पद्रमकलिका टीका, ग. लक्ष्मीवल्लभ, सं., गद्य, आदि: श्रीवर्द्धमानस्य; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., देवो द्वारा महावीरजिन जन्मोत्सव प्रसंग अपूर्ण तक लिखा है.) ११९९८५ (+#) कल्पसूत्र सह अंतर्वाच्य व टबार्थ, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २०८, प्र.वि. हुंडी:कल्पसूत्रटीका, कल्पसूत्रट०., टिप्पण युक्त विशेष पाठ. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५.५४११.५, ५४३३-३८). कल्पसूत्र, आ. भद्रबाहस्वामी, प्रा., गद्य, आदि: णमो अरिहंताणं० पढमं; अंति: भुज्जो उवदंसेइ त्तिबेमि, व्याख्यान-९, ग्रं. १२१६, (वि. १८०८, ज्येष्ठ शुक्ल, २) कल्पसूत्र-अंतर्वाच्य, मा.गु.,सं., गद्य, आदि: नत्वा श्रीमन्महावीरं; अंति: (१)ससंघ बाह्य कर्तव्यः, (२)दुष्कृतो परिदृष्टांतः, (वि. प्रारंभ में अज्ञातकर्तृक कृत कल्पलताटीका का नामोल्लेख किया है.) कल्पसूत्र-टबार्थ*, मा.गु., गद्य, आदि: नमस्कार हो अरिहंत भणी ते; अंति: नवमा पूर्व थकी धर्यो, (वि. १८०८, ज्येष्ठ शुक्ल, १, रविवार) ११९९८६ (+#) कल्पसूत्र सह कल्पद्रुमकलिका टीका, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १८१-३(३४,१७९ से १८०)=१७८, प्र.वि. हंडी:श्रीकल्पद्रमकलिकाटी०., पदच्छेद सूचक लकीरे-संशोधित. मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., (२५.५४१२, १०-१३४३४-३८). कल्पसूत्र, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., गद्य, आदि: णमो अरिहंताणं० पढम; अंति: (-), (पू.वि. बीच व अंत के पत्र नहीं हैं., व्याख्यान-७ आदिजिन भव-७ प्रसंग तक है व बीच-बीच के पाठांश नहीं हैं.) कल्पसूत्र-कल्पद्रुमकलिका टीका, ग. लक्ष्मीवल्लभ, सं., गद्य, आदि: श्रीवर्द्धमानस्य; अंति: (-), पू.वि. बीच-बीच व अंत के पत्र नहीं हैं. For Private and Personal Use Only Page #466 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२६ ११९९८७. चेतनकर्म चरित्र, अक्षरछत्तीसी व मूढशिक्षा पद आदि संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १४, कुल पे. ५, प्र. वि. हुंडी ब्रह्मविला०, ब्रह्मवी०. दे. (२५.५४१२, १५X३८). १. पे. नाम. चेतनकर्म चरित्र, पृ. १आ - १२अ, संपूर्ण. चेतन वृतांत, श्राव. भगवतीदास भैया, पुहिं., पद्य, वि. १७३६, आदि: श्रीजिनचरण प्रणाम; अंति: रचना कही अनादि, गाथा - २९७. २. पे. नाम. अक्षरछत्तीसी, पृ. १२अ - १३आ, संपूर्ण. श्राव. भगवतीदास भैया, पुहिं., पद्य, आदिः ॐकार अपारगुण पार न पावे; अंति: भगोतीदास० लही आतम परकाश, गाथा - ३६. ३. पे नाम. मूढशिक्षा पद, पृ. १३-१४, संपूर्ण. मूढशिक्षा अष्टपदी, पुहिं., पद्य, आदि: ऐसे क्यों प्रभु पाइए सुनु; अंति: विना तू समुझत नाहीं, गाथा-८. ४. पे. नाम. परमार्थ अष्टपदी, पृ. १४अ, संपूर्ण. पुहिं., पद्य, आदि: ऐसै यों प्रभु पाइये; अंति: ए कहे तव को केहि भेटे, गाथा-८. ५. पे नाम. सिंधुचतुर्दशी, पृ. १४- १४आ, संपूर्ण. भवसिंधु चतुईसी, मा.गु., पद्य, आदि जैं सैं काहू पुरुष अंति: मुनि चतुर्दसी होई, गाथा- १४. ११९९८८ जैनसूक्तसंदोह, संपूर्ण, वि. २०वी श्रेष्ठ, पू. ६४, गु. (२६११.५, ४-१७x४७-५८). जैनसूक्तसंदोह, सं., पद्य, आदिः या देव देवता बुद्धि गुरौ; अंति: ज्ञानशृंगार योगिनः. ११९९८९. (+) दशाश्रुतस्कंध सह टवार्थ, संपूर्ण वि. १८वी, मध्यम, पृ. ४०, ले. स्थल, जीर्णदुर्ग, प्रले. ग. मेघविजय (गुरु पंडित. प्रेमविजय, तपागच्छ); गुपि. पंडित. प्रेमविजय (गुरु आ. विजयप्रभसूरि, तपागच्छ), प्र.ले.पु. सामान्य, ४५१ प्र.वि. हुंडी:दशाश्रुतस्कंध., पदच्छेद सूचक लकीरें टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित., जैदे., ( २६.५X११.५, ७x४२-४५). दशाश्रुतस्कंधसूत्र, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., पद्य, आदि सुर्य मे आउस तेण भगवया अति उवदंसेइ त्ति बेमि दशा- १० ग्र. १३८० (वि. १७६२ श्रावण कृष्ण १२, रविवार) 3 दशाश्रुतस्कंधसूत्र- टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदिः सु० सांभल्यो मे० अंतिः घणुं उपदेखाडड़० दशा समत्तो, (वि. १७६२, भाद्रपद शुक्ल, ८, गुरुवार) "" ११९९९४. अंजनासुंदरी चरित्र, संपूर्ण वि. १९वी मध्यम, पृ. १६, प्र. वि. हुंडी: अंजणा. जैवे. (२६४१२, १५४३६)अंजनासुंदरी रास, मा.गु., पद्य, आदि सील समोवरत को नही सील बडो अंतिः रामनी भार्या जगतनी मातती, दाल- २२, गाथा - १५९. " ११९९९५ (+४) सिंदूरप्रकर सह टीका, अपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पृ. ३९-११ (१४ से २२,२४ से २५) = २८, पू. वि. बीच व अंत के पत्र नहीं हैं. प्र. वि. संशोधित अक्षरों की स्वाही फैल गयी है, जैवे. (२४.५४५, १३४३६). सिंदूरकर, आ. सोमप्रभसूरि, सं., पद्य, वि. १३वी आदि सिंदूरप्रकरस्तपः करिशिरः; अंति: (-), (पू.वि. श्लोक-२३ से ४७ व श्लोक-५० से ५७ अपूर्ण तक व श्लोक- ९९ से नहीं हैं.) सिंदरप्रकर- टीका, आ. हर्षकीर्तिसूरि, सं. गद्य वि. १६५५, आदि: श्रीमत्पार्श्वजिनं नत्वा अति: (-). , ११९९९६. रूपचंद की मांडणी, अपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पू. १५-१ (१) १४, प्र.वि. कुल ग्रं. ३३९, जैदे. (२५x१२, ११४२९). रूपचंदऋषि रास, मु. तीकम, मा.गु., पद्य, वि. १६९९, आदि (-); अंति तीकम० लहड़ सदा है, ढाल ११, गाथा - २२४, (पू.वि. ढाल १ गांधा ३ से है.) ११९९९७. सुभाषित संग्रह सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १७, जैदे., ( २४.५X१२, ४X३३-३६). For Private and Personal Use Only सुभाषित संग्रह, सं., पद्य, आदि: विधानं दुर्गतिद्वारं; अंति: (-), (पू. वि. प्रारंभ के पत्र हैं., श्लोक-१०२ अपूर्ण तक है.) सुभाषित संग्रह-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: दुर्गाति कहता नरक गति; अंति: (-), (पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., श्लोक-२७ अपूर्ण तक टबार्थ लिखा है.) ११९९९८. (+) ज्योतिषसार सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. २२-११ (१ से ११) = ११, पू. वि. बीच के पत्र हैं., प्र. वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित, जैदे. (२५४१२, ६३०-३५ ). ज्योतिषसार, आ. नरचंद्रसूरि, सं., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. श्लोक - ९५ अपूर्ण से १८९ अपूर्ण तक है.) Page #467 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ४५२ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ज्योतिषसार-टबार्थ *, मा.गु., गद्य, आदिः (-); अंति: (-), (पू.वि. श्लोक-९५ अपूर्ण से १६७ अपूर्ण तक लिखा है.) १२०००० (+) शांतिपूजा विधि, संपूर्ण, वि. १९४९, कार्तिक कृष्ण, १२, मध्यम, पृ. ५, ले.स्थल. लुध्याने, प्रले. मु. चंदनविजय; अन्य. सा. रामश्री, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. हुंडी:शांति०, शांतिविधि., संशोधित., दे., (२५४१२, ११४२८-३२). शांतिपूजा विधि, मा.गु.,सं., गद्य, आदि: ननु संघादीनां विघ्नो; अंति: दूरतो यांति. १२०००२. (+#) एकादशीमुन गुणणौ, संपूर्ण, वि. १७६१, आश्विन शुक्ल, ५, मध्यम, पृ. २, ले.स्थल. जसवंतीबाद, प्रले. सा. राजा, प्र.ले.प. सामान्य, प्र.वि. संशोधित. मूल पाठ का अंश खंडित है, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६.५४१२, १८४३७). मौनएकादशीपर्व गणj, सं., को., आदि: श्रीमहायशसर्वज्ञाय नमः; अंति: श्रीप्रसादनिधिनाथाय नमः. १२०००३. ६२ मार्गणा १९ द्वार यंत्र, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ३, प्रले. मु. जेराम, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२६४१२.५, ३४४२०). ६२ मार्गणा यंत्र, मा.गु., को., आदि: जीव गइ इंदिय काय जोए; अंति: (-). १२०००४. (+#) २० विहरमानजिन चैत्यवंदन, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. हुंडी:श्रीवीसवरमान., टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित. मूल पाठ का अंश खंडित है, दे., (२७४१२.५, १७४४०-४४). २० विहरमानजिन चैत्यवंदन, मु. लालचंद ऋषि, मा.गु., पद्य, वि. १८६८, आदि: श्रीमंदरस्वामी वेदेह; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-२४ अपूर्ण तक है.) १२०००५. महावीरजिन चैत्यवंदन संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ५, जैदे., (२६.५४१२.५, १३४३४). १. पे. नाम. दीपावलीपर्व चैत्यवंदन, पृ. १अ, संपूर्ण. म. पद्म, मा.ग., पद्य, आदि: त्रीस वरस गिह वास जा; अंति: पद्म० करो चउवीह सुर मंडाण, गाथा-३. २. पे. नाम. महावीरजिन चैत्यवंदन, पृ. १अ, संपूर्ण. मु. पद्मविजय, मा.गु., पद्य, आदि: त्रीस वरस केवली पणे; अंति: पद्म० निजगुण रिद्ध, गाथा-७. ३. पे. नाम. महावीरजिन चैत्यवंदन, पृ. १अ, संपूर्ण. म. पद्मविजय, मा.गु., पद्य, आदि: सुण्यं निर्वाण गौतमगुरु; अंति: पद्म कहे भवपार, गाथा-३. ४. पे. नाम. महावीरजिन चैत्यवंदन, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण.. मु. पद्मविजय, मा.गु., पद्य, आदि: नव चोमासी तप कर्या; अंति: लहीए नितु कल्याण, गाथा-७. ५. पे. नाम. महावीरजिन चैत्यवंदन, पृ. १आ, संपूर्ण. महावीरजिन स्तवन, मु. पद्मविजय, मा.गु., पद्य, आदि: ज्ञान उज्वल दीवो करो; अंति: पद्म कहे कल्याण, गाथा-५. १२०००६ (#) थूलभद्र सीज्झाय, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, प्र.वि. हुंडी:सीझाऐ., अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५४१२,१५४३३). स्थूलिभद्रमुनि सज्झाय, मु. लक्ष्मीविजय, मा.गु., पद्य, आदि: लाछलदे मात मल्हार बह; अंति: लीला लीखमी घणीजी, गाथा-१७. १२०००८. पर्युषणपर्व स्तुति, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, दे., (२५४१२, १२४२८). पर्युषणपर्व स्तुति, आ. श्रीप्रभसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: पुन्यवंता पोसाले आवे पर्व; अंति: प्रभ० सिद्धाईका दुःखहरणी, गाथा-४. १२०००९ (+) कृष्णजन्म सज्झाय व आदिजिन पदादि संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ३, कुल पे. ४, प्र.वि. संशोधित., दे., (२५४१३, १६-२१४३१-४०). १. पे. नाम, कृष्णजन्म सिझाय, पृ. १अ-३अ, संपूर्ण. कंसकृष्ण विवरण लावणी, मु. विनयचंद ऋषि, पुहिं., पद्य, आदि: गाफिल मत रह रे नादान; अंति: विनचंद० मनमांहि अती आनंदे, ढाल-२७, गाथा-५०. २.पे. नाम. गोपीचंद राख्या, पृ. ३अ, संपूर्ण. गोपीचंद की राखी, मु. जडावचंद ऋषि, मा.गु., पद्य, वि. १९६६, आदि: समगत साची बैन भांणजी; अंति: करता मंगलमाल रे, गाथा-९. ३. पे. नाम, आदिजिन पद, पृ. ३अ-३आ, संपूर्ण. For Private and Personal Use Only Page #468 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२६ ४५३ आदिजिन स्तवन, मु. चौथमल, पुहि., पद्य, आदि: मैं चाकर हुं तुम चरन; अंति: चौथमल तो निहालना, गाथा-५. ४. पे. नाम. औपदेशिक सवैया संग्रह, पृ. ३आ, संपूर्ण. औपदेशिक दोहा संग्रह, पुहि.,प्रा.,मा.गु.,सं., पद्य, आदि: काया से काम जात गांठ से; अंति: एक स्त्रीया के प्रसंग ते, गाथा-२. १२००११. (+) ज्वर छंद, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १,प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२६४१२, १२४२७). ज्वर छंद, मु. कांति, मा.गु., पद्य, आदि: ॐ नमो आणंदपुर अजयपाल; अंति: सार मंत्र गुणिये सदा, गाथा-१६. १२००१२. जीव भेद-प्रभेदादि बोल संग्रह, संपूर्ण, वि. १९६८, मार्गशीर्ष कृष्ण, ५, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. ४, ले.स्थल. उदेंमीद्र, दे., (२६४१२.५, १४४४५). १. पे. नाम. जीव भेद-प्रभेद बोल, पृ. १अ, संपूर्ण. पुहि.,मा.गु., गद्य, आदि: पेले बोले जीवरा भेद २ कोड; अंति: वीकार १सो२३ क्रोड ३६ लाख. २. पे. नाम. ८४ लाख जीवयोनि के २५ बोल, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण, पे.वि. हुंडी:८४लाख. मा.गु., गद्य, आदि: श्रीगौतमस्वामीजी हाथ जोडी; अंति: बोल छत्तीसकोड बारेलाख. ३. पे. नाम. ५ बोल-सिद्धांत, पृ. १आ, संपूर्ण. पुहिं., गद्य, आदि: पेले बोले धरति मे सुग नहि; अंति: बोले मूगत मे मसांण नहि५. ४. पे. नाम. ५ बोल-जीवगति, पृ. १आ, संपूर्ण. पुहिं., गद्य, आदि: पेले बोले ओ जीव सोपारीरो; अंति: मीठो वो जीव मुक्त मै जावै. १२००१३. नेमराजिमती पद व वासुपूज्यजिन होरीपद, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ३, जैदे., (२५.५४१२, १४४३८). १.पे. नाम. नेमराजिमती पद, पृ. १आ, संपूर्ण. मु. जिनदास, पुहिं., पद्य, आदि: सुनरी सईया स्याम; अंति: जीन० शरणेरी मेरी सती बे, गाथा-४. २. पे. नाम. नेमराजिमती पद, पृ. १आ, संपूर्ण. म. जिनदास, रा., पद्य, आदि: स्याम मिलन की उमग; अंति: जगत से तिर गयो री, गाथा-६. ३. पे. नाम. वासुपूज्यजिन होरीपद, पृ. १आ, संपूर्ण. मु. सेवक, पुहिं., पद्य, आदि: वासपुज गुण गावां चालो; अंति: सेवक० इनबीध फाग मचावां, गाथा-५. १२००१४. (+-) चंद्रराजा लावणी, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. २-१(१)=१, पृ.वि. प्रथम एक व अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. हुंडी:चंद., अशुद्ध पाठ-संशोधित., दे., (२६.५४१३, १८४३५). चंद्रराजा लावणी, मु. हीरालाल, पुहिं., पद्य, वि. १९५६, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. "आभपृथ्वी ध्यावत" पाठ से अंतिम गाथा अपूर्ण तक है.) १२००१५ (+) धर्मदासजी महाराज का जीवनादर्श, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं.,प्र.वि. संशोधित., दे., (२६.५४१३, १७४३१). धर्मदासजी गरुगण गीत, म. चोथमल ऋषि, पुहिं., पद्य, आदि: पूज्य धर्मदासजी धर्म; अंति: (-), (पृ.वि. गाथा-२४ __ अपूर्ण तक है.) १२००१६. २४ जिन स्तुति, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, दे., (२५४१२, ८४३६). २४ जिन स्तुति, मा.गु., पद्य, आदि: प्रणमी तीन चौवीस नित; अंति: तिनै होवे सुख अनिवार, गाथा-८. १२००१७.) पाक्षिकसूत्र, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ९-५(१,३ से ६)=४, पू.वि. बीच-बीच के पत्र हैं., प्र.वि. अशुद्ध पाठ., दे., (२५४१२, ९x१८). पाक्षिकसूत्र, हिस्सा, प्रा., प+ग., आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. सूत्र १ अपूर्ण से सूत्र २ अपूर्ण तक है व बीच-बीच के पाठ नहीं हैं.) १२००१८. (+) जीवादि विविधद्वार विचार, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ४-२(१ से २)=२, पृ.वि. बीच के पत्र हैं., प्र.वि. हुंडी:वीमाणी., संशोधित., दे., (२६४१३, १७-२२४४०-५४). जीवादि विविधद्वार विचार, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. गुणस्थानद्वार-११ अपूर्ण से वैमानिक के विमानद्वार-२१ अपूर्ण तक है.) For Private and Personal Use Only Page #469 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org ४५४ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १२००१९. (+) अष्टमीनी थोड़, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, प्र. वि. संशोधित, दे., (२५x१२, १२४३९). अष्टमीतिथिपर्व स्तुति, उपा. राजरत्न, मा.गु., पद्य, आदि: अष्टमी जिन चंद्रप्रभ; अंति: अष्टमी पोसहसार, गाथा-४. १२००२० सिद्धचक्र स्तुति, संपूर्ण वि. २०वी मध्यम पू. १, दे. (२५x१२, १२४३१). " Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir सिद्धचक्र स्तुति, मु. विनयविजय, मा.गु., पद्य, आदि: सिद्धचक्र सेवो; अति विनयविजय निशदिश गाथा ४. १२००२१. (+#) पच्चक्खाणविधि स्तवन व नेमनाथजी स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २, कुल पे. २, प्र. वि. संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., ( २६१२, १४४४०). १. पे. नाम. पच्चक्खाणविधि स्तवन, पृ. १अ २अ संपूर्ण १० पच्चक्खाणफल स्तवन, पं. रामचंद्र गणि, मा.गु., पद्य, वि. १७३१, आदि: सिद्धारधनंदन नमः अति: रामविजय तपविधि भणे, ढाल - ३, गाथा-३३. २. पे. नाम. नेमनाथजी स्तवन, पृ. २अ २आ, संपूर्ण. नेमराजिमती गीत. ग. जीतसागर, पुहिं, पद्म, आदि: तोरण आया हे सखी कडे; अंतिः जितसागर० निध संपजे जी, " गाथा - १८. १२००२२. प्रज्ञापनादिसूत्र थोकडा संग्रह, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पू. २, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. दे., (२५x१३, २४४४०-४४). प्रज्ञापनासूत्र- थोकडा संग्रह, संबद्ध, प्रा. मा.गु., गद्य, आदि नाम दवार उदारीक अरथ दवार अंति (-), (पू.वि. "समचे जीव ६ नीयंठा हुइ" पाठ तक है.) १२००२३. विजययंत्र विधि, चक्रेश्वरी मंत्र व औषध संग्रह, अपूर्ण, वि. १९३२, पौष कृष्ण, २, मध्यम, पृ. ३, कुल पे. ५, ले. स्थल. वेडना, प्रले. मु. मोहनविजय मु. सुबुद्धिविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, दे. (२६४१२.५, १९x४४). " १. पे. नाम. जयपताकायंत्र कल्प, पृ. १अ - ३आ, संपूर्ण, पे.वि. हुंडी : विजययंत्रविधी. संबद्ध, सं., प+ग., आदि: सर्वयंत्रप्रतिष्ठानां; अंति: तुला७ घट११ त्रीषु सुद्रा. २. पे. नाम चक्रेश्वरीदेवी मंत्र, पृ. ३आ, संपूर्ण. सं., गद्य, आदि ॐ ह्रीं हीं चक्रसृष्टि, अंतिः रुडो अवलो फरे तो माठो. ३. पे. नाम काली द्राक्षनो ओसड, पू. ३आ, संपूर्ण, औषध संग्रह, मा.गु., गद्य, आदि: गंधक टा२ साकर टां२ माया; अंतिः मध्ये चोपडीइ द्राद्र जाये, (वि. धाधर रोगे द्राक्ष प्रयोग.) ४. पे. नाम. मेंढी आउल कल्प. पू. ३आ, संपूर्ण. मिंढीआवल कल्प, मा.गु., गद्य, आदि: मेंढीआवल दीन २१ टांक२॥; अंति: सर्व झेर चढंत उतरी जाय२६. ५. पे. नाम. ततख्याल, पृ. ३आ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. इंद्रजाल, मा.गु., गद्य, आदि: मालकांगणी लीबोली दिवालीने; अंति: (-), (पू.वि. प्रयोग- २ तक है.) १२००२४. (+) श्रावकपाक्षिक अतिचार, अपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पृ. ८-३ (५ से ७) =५, प्र. वि. संशोधित, जैदे., (२५.५x१२, १२X३०). आवकपाक्षिक अतिचार-तपागच्छीय, संबद्ध, प्रा. मा. गु, गद्य, आदि विशेषतः श्रावकतणइ अति: मांहि जिको अतिचार, (पू.वि. नवमस्थूलव्रत वर्णन अपूर्ण से अंतिमव्रतवर्णन अपूर्ण तक नहीं है., वि. अंत में अतिचार के बाद की पाक्षिकचौमासीसंवत्सरी प्रतिक्रमण की संक्षिप्त विधि दी है.) १२००२५. मृगापुत्र सज्झाय, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, पू. वि. अंत के पत्र नहीं हैं. दे. (२४.५४१२, १७X३०). मृगापुत्र सज्झाय, मा.गु., पद्य, आदि: प्रणमी पास जिणंदने, अंति: (-), (पू.वि. गाथा-२२ तक है.) १२००२६. (#) चैत्यवंदन विधि, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, प्र. वि. मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., (२४x१२, ११x२९). चैत्यवंदन विधि, गु., प्रा., हि., प+ग, आदि इच्छामी खमासमणो वंदि; अंति: (-), (अपूर्ण, पू. वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., जंकिंचिसूत्र तक लिखा है.) १२००२८. (+#) नवपद उलाला, औपदेशिक सज्झाय व दोहादि संग्रह, अपूर्ण, वि. १८२१, पौष शुक्ल ११, मध्यम, पृ. १३-११ (१ ११) = २, कुल पे. ४, प्र. वि. संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैवे. (२४.५X११.५, १५X३६-३९). For Private and Personal Use Only Page #470 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२६ ४५५ १. पे. नाम. सीद्धचक्र स्तवन, पृ. १२अ-१३अ, संपूर्ण. नवपद उलाला, ग. देवचंद्र, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: तिरथपति अरिहा नमी; अंति: देवचंद्र सूसोभता, गाथा-११. २. पे. नाम. सीखांमण सज्झाय, पृ. १३अ-१३आ, संपूर्ण. औपदेशिक सज्झाय, म. उदयरत्न, मा.गु., पद्य, आदि: कंतनें कहि निजकांमनी रे; अंति: उदय० तु शीअल श्रंगारो रे, गाथा-१५. ३. पे. नाम. प्रभु सन्मुख बोलने के दोहे, पृ. १३आ, संपूर्ण. मा.गु., पद्य, आदि: जीवडा जिनवर पूजीए प; अंति: विना इं लें जनम महारिं, कडी-४. ४. पे. नाम, सुभाषित श्लोक संग्रह, पृ. १३आ, संपूर्ण. सुभाषित श्लोक संग्रह *, पुहि.,प्रा.,मा.गु.,सं., पद्य, आदि: संगति में संतनी गुणवाधि; अंति: दोहिलो चीत वीत ने पात्र, गाथा-३. १२००२९ गाथापति सज्झाय व साधारणजिन जन्ममहोत्सव स् र्ग, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, दे., (२६.५४१३, १४४३७). १. पे. नाम. गाथापति सज्झाय, पृ. १अ, संपूर्ण. __मा.गु., पद्य, आदि: वसंतपुर नामा नगर; अंति: पडो तिन धीक्कार, गाथा-११. २. पे. नाम. साधारणजिन जन्ममहोत्सव स्तवन, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण, पे.वि. यह कृति बाद में पेन्सिल से लिखी गई है. म. नंद, रा., पद्य, आदि: जय जयै नंदन नाथ नीरंजन; अंति: नंद आयो सरणा थारी दीन दया, (वि. गाथांक नहीं लिखा है.) १२००३०. ७ व्यसन निवारण लावनी आदि संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ४, जैदे., (२५४१२, १४४२९). १. पे. नाम. ७ व्यसन परिहार लावणी, पृ. १अ, संपूर्ण. ७ व्यसननिवारण लावणी, श्राव. चंपाराम दीवान, पुहिं., पद्य, वि. १९वी, आदि: तजो नर सातु दखदाई उपजत; अंति: चंपाराम दिवान० सजन मनभाई, गाथा-४. २. पे. नाम, औपदेशिक पद-असारसंसार, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. म. कालुराम, रा., पद्य, आदि: मनवा नही वीचारी रे लोभी; अंति: कालुराम० कै गयो सारी रे, गाथा-६. ३. पे. नाम, औपदेशिक पद, पृ. १आ, संपूर्ण. औपदेशिक सज्झाय, क. भोजा भगत, पुहिं., पद्य, आदि: जीवडानै साच तणी सगाइ खरमै; अंति: तो तुरत बीजा रे जाई, गाथा-४. ४. पे. नाम, औपदेशिक पद, पृ. १आ, संपूर्ण. औपदेशिक पद-रामनाम, क. भोजा भगत, रा., पद्य, आदि: फेरोनी रामा तणी माला चोड; अंति: भोजो० कैवै अध गालै उचाला, गाथा-३. १२००३३. औपदेशिक सज्झाय व स्थानांगसूत्र, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. २-१(१)=१, कुल पे. २, दे., (२५.५४१२.५, १३४३२). १. पे. नाम. स्थानांगसूत्र स्थान-६ सूत्र ५८१, पृ. २अ, अपूर्ण, पू.वि. मात्र अंतिम पत्र है. स्थानांगसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., प+ग., आदि: (-); अंति: (-), प्रतिअपूर्ण. २. पे. नाम. औपदेशिक सज्झाय, पृ. २अ, संपूर्ण. औपदेशिक सज्झाय-व्याख्यानश्रवण, म. चोथमल, रा., पद्य, आदि: बाया सूतर सुणो रे सूतर; अंति: चोथमल. ___ निरथक बाता त्यागो. १२००३४. (+) दशवैकालिकसूत्र-प्रथमा चूलिका, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १,प्र.वि. हुंडी:चुलीका., पदच्छेद सूचक लकीरें-संशोधित., दे., (२६.५४१२.५, १८४५२). दशवैकालिकसूत्र, आ. शय्यंभवसूरि, प्रा., पद्य, वी. रवी, आदिः (-); अंति: (-), (प्रतिअपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., गाथा-१३ तक लिखा है.) १२००३६. नेमराजिमती स्तवन, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. हंडी:नेमनाथजी., दे., (२५.५४१२, १५४२९). For Private and Personal Use Only Page #471 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org ४५६ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची नेमराजिमती स्तवन, पुहिं., पद्य, आदि: किम आया किम फिर चलीय; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-१८ अपूर्ण तक है.) १२००३९. (+#) शत्रुंजय माहात्म्य, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १९१० - ५८ (१ से १३,१७ से ५५,१०४ से १०९)=५२, पू.वि. बीच-बीच के पत्र हैं., प्र. वि. हुंडी : श्रीशत्रुंजयमा०., संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५.५X१२, १५x५२). शत्रुंजय माहात्म्य, आ. धनेश्वरसूरि, सं., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. सर्ग-१ श्लोक ५१८ से सर्ग-९ श्लोक-३१ तक है व बीच-बीच के लोकांश नहीं हैं.) १२००४० (+४) २० विहरमानजिन मातापितादि वर्णन व स्थान विचार, संपूर्ण, वि. १९वी जीर्ण, पृ. १, कुल पे. २, प्र. वि. संशोधित. मूल पाठ का अंश खंडित है, अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैवे., (२५x११, १५X३१). १. पे नाम. २० विहरमानजिन मातापितादि वर्णन, पृ. १अ १आ, संपूर्ण, पुहिं., गद्य, आदिः श्रीमंधरस्वामि श्रेयांस; अंति: रत्न०कलत्र स्वस्तिक लांछन. २. पे. नाम. २० विहरमानजिन स्थान विचार, पृ. १आ, संपूर्ण. मा.गु., गद्य, आदि: पूर्वविदेह उत्तरार्द्ध; अंति: देवयश ० तीर्थंकर जाणिवा . १२००४४. (+) रत्नाकरपच्चीसी व सकलार्हत् स्तोत्र, संपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पू. ४, कुल पे २, प्र. वि. संशोधित, जैदे., , Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir (२६११.५, ११४४२). १. पे. नाम. वीतराग स्तवन, पृ. ९अ-२अ संपूर्ण. रत्नाकरपच्चीशी, आ. रत्नाकरसूरि, सं., पद्य, वि. १४वी, आदि श्रेयः श्रियां मंगल, अंतिः श्रेयस्करं प्रार्थये लोक-२५२. पे. नाम. सकलात् स्तोत्र, पृ. २अ ४अ संपूर्ण. त्रिषष्टिशलाकापुरुष चरित्र - हिस्सा सकलाहंत् स्तोत्र, आ. हेमचंद्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., पद्य, वि. १२वी, आदि: सकलाईत्प्रतिष्ठानम; अति जिनसाक्षात्सुरडुमः श्लोक-४७. १२००४५ (४) साधुवंदना, अपूर्ण, वि. १६१०, मध्यम, पू. ७-२(२ से ३ )=५, ले. स्थल गोधूमपुर, प्र. वि. अक्षरों की स्वाही फैल गयी है. जैवे. (२४.५x११, १६x४९-५२). "" साधुवंदना, मा.गु., पद्य, आदि वंदीय गिरुआ सिद्धि, अंतिः शुद्ध करू गीतारथ सोई, गाथा-२५०, (पू.वि. गाथा-३२ अपूर्ण से १०३ अपूर्ण तक नहीं है.) १२००५०. (#) पृथ्वीचंद्र चरित्र, संपूर्ण, वि. १६६१, भाद्रपद शुक्ल, ५, मध्यम, पृ. १९, प्रले. मु. हर्षाक (गुरु मु. हेमनंदन, खरतरगच्छ); गुपि. मु. हेमनंदन (गुरु मु. रत्नसागर, खरतरगच्छ): मु. रत्नसागर (गुरु गच्छाधिपति जिनराजसूरि, खरतरगच्छ ). प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६X११.५, १८४५१). पृथ्वीचंद्र नरेंद्र चरित्र, आ. माणिक्यसुंदरसूरि, मा.गु. सं., प+ग. वि. १४७८, आदि या विश्वकल्पवल्लीवल्लिलया अंति ऋद्धिबुद्धिपरंपरा संपजह, उल्लास-५, ग्रं. २१००. " १२००५१ (४) वैद्यवल्लभ सह टवार्थ, अपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पृ. ८. पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. प्र. वि. हुंडी: वैद्यवल्लभ अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., ( २६x११.५, ९३८). יי " For Private and Personal Use Only वैद्यवल्लभ, मु. हस्तिरुचि, सं., पद्य वि. १७२६, आदि सरस्वतीं हृदि अति (-) (पू.वि. विलास ७ श्लोक-२० अपूर्ण 3 तक है.) वैद्यवल्लभ-टबार्थ *, मा.गु., गद्य, आदि: सरस्वतीनो ध्यान हृदयमांहे; अंति: (-). १२००५५ (+४) उत्तराध्ययनोद्धृत गाथासंग्रह, अपूर्ण, वि. १४९५, मध्यम, पृ. २-२ (१) = १, प्र. वि. पत्रांक अनुमानित दिया गया है.. पदच्छेद सूचक लकीरें. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., ( २६.५X११, १७x४९). उत्तराध्ययनसूत्र-चयनितगाथा संग्रह, प्रा., पद्य, आदि: (-); अंति: ए छत्तीसं उत्तरज्झाए, गाथा-४८. १२००५६. (+) नवाणुं प्रकारी पूजा, संपूर्ण, वि. १८९३, वैशाख कृष्ण, १४, मध्यम, पृ. ११, प्रले. ग. हेमविमल; पठ. सा. राजश्री, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. ग्रंथ रचना के समीपवर्ती काल मे लिखित संशोधित., जैदे., (२५.५X११.५, ९X२७). ९९ प्रकारी पूजा शत्रुंजयमहिमागर्भित, पं. वीरविजय, मा.गु., पद्य, वि. १८८४, आदि: श्रीशंखेश्वर पासजी अंति आतम आप ठायो रे, डाल- ११, (वि. अंत में ९९ प्रकारी पूजा आवश्यक सामग्री का उल्लेख दिया है.) Page #472 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ४५७ हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२६ १२००५७. (+#) वर्द्धमानजिन सतावीसभव स्तवन, अपूर्ण, वि. १७३२, माघ शुक्ल, ९, शुक्रवार, मध्यम, पृ. ७-१(४)=६, ले.स्थल. राजनगर, लिख. श्रावि. मानबाई, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५४११.५, ११४३६). महावीरजिन स्तवन-२७ भव, मु. लालविजय, मा.गु., पद्य, वि. १६६२, आदि: विमल कमलदल लोयणा; अंति: शुभविजय शिष्य जय करो, ढाल-६, (पू.वि. गाथा-३९ से ५६ अपूर्ण तक नहीं है.) १२००६०. (#) प्राकृतलक्षण-१ से ३ विधान, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ५, प्रले. श्रावि. पद्मा, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. हुंडी:प्राकृतलक्षण., अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६.५४१२, १५४४२). प्राकृतलक्षण, क. चंड कवि, सं., गद्य, आदि: प्रणम्य शिरसा वीरं; अंति: (-), प्रतिपूर्ण. १२००६३. (-) मेघकुमार सज्झाय, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, प्र.वि. अशुद्ध पाठ., दे., (२६४११, १०४३१). मेघकुमार सज्झाय, मा.गु., पद्य, आदि: वीर जिणंद समोसर्या; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., गाथा-८ तक लिखा है.) १२००६४. (+#) सुरसुंदरीसती चौपई, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २०-१(१)=१९, प्र.वि. संशोधित. कुल ग्रं. ९००, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६४१२, १५४४१). सरसंदरी चौपाई, म. धर्मवर्धन, मा.गु., पद्य, वि. १७३६, आदि: (-); अंति: धर्मवर्द्धन उमंगे जी, खंड-४, गाथा-६१९, (पृ.वि. खंड-१ ढाल-१ गाथा-१५ अपूर्ण से है., वि. ढाल-४०) १२००६५ (-) शांतिजिन स्तवन, औपदेशिक सज्झाय व लावणी, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ३, प्र.वि. हुंडी:तवनकडी., अशुद्ध पाठ., दे., (२७४१२, १२४३३). १. पे. नाम. शांतिजिन स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण. मु. रतनचंद, रा., पद्य, आदि: तुं धन तुं धन तुं; अंति: रचनचंद० हुं सहुं भर पामी, गाथा-५. २. पे. नाम. औपदेशिक सज्झाय, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. मु. रतनचंद, पुहि., पद्य, आदि: तेरी फुल सी देह पलक; अंति: क्या मगरुरी राखरे, गाथा-५. ३. पे. नाम. औपदेशिक लावणी, पृ. १आ, संपूर्ण. औपदेशिक लावणी-कोडी, म. जीवणलाल, पुहिं., पद्य, आदि: कोडी जगमे अजब चीज हे भाइ: अंति: लावणी ___ जीवणलालन गाइ, गाथा-४. १२००६७. (+) वीरजिन पंचकल्याणक स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ४, प्रले. जयकृष्ण बोडा, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. हुंडी:पंचक०., संशोधित., दे., (२५.५४१२, १२४३०). महावीरजिन स्तवन-पंचकल्याणक, मु. रामविजय, मा.गु., पद्य, वि. १७७३, आदि: शासननायक शिवकरण वंद; अंति: रामविजय० अधिक जगीश ए, ढाल-३, गाथा-५६. १२००६८ (+) छटक बोल संग्रह, संपूर्ण, वि. १९१८, माघ शुक्ल, ५, मंगलवार, मध्यम, प. ४, कुल पे. ५, ले.स्थल. फलोधी, प्रले. पं. रविविजय; पठ. श्रावि. टीमा, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित., दे., (२५४१२, १०x२८). १. पे. नाम. देवलोक विमानविचार संग्रह, पृ. १अ-२अ, संपूर्ण. मा.गु., गद्य, आदि: सोधर्मदेवलोक में जघन्य; अंति: तेतीससागरनो आऊखो जांणवो. २. पे. नाम. २३ पदवी विचार, पृ. २अ-३आ, संपूर्ण... मा.गु., गद्य, आदि: चक्ररत्न१ छत्ररत्न२; अंति: बलदेव वासदेव न हवें. ३. पे. नाम. ८ कर्म विचार, पृ. ३आ, संपूर्ण. मा.गु., गद्य, आदि: ज्ञानावरणी कर्म आंख; अंति: राजारा भंडारी समांन छै. ४. पे. नाम. धर्मपाप परिवार विचार, पृ. ३आ-४अ, संपूर्ण. ___ मा.गु.,रा., गद्य, आदि: धर्मरी उतपत किहां सत्यवचन; अंति: भाई क्रोध पापरो मूल झूठ. ५. पे. नाम. ८ बोल-सम्यक्त्व, पृ. ४अ-४आ, संपूर्ण. मा.गु., गद्य, आदि: जिनवचन उपर संका; अंति: श्रीसंघनी भक्ति करें. For Private and Personal Use Only Page #473 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ४५८ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १२००६९ (+) आचार्यपद उपाध्यायपद पंडितपद देवानी विधि, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १,प्र.वि. संशोधित., दे., (२६४१२, १३४४१). आचार्यपद उपाध्यायपद पंडितपदप्रदान विधि, मा.गु., गद्य, आदि: आचार्यपद की० काल लेई; अंति: थिर करें हितशिख्या . १२००७१ (#) प्रत्याख्यानसूत्र, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५.५४११.५, १५४५४). प्रत्याख्यानसूत्र, संबद्ध, प्रा., गद्य, आदि: उग्गए सूरे नमक्कार; अंति: गारेणं वोसिरामि, (वि. यंत्रसहित.) १२००७२. सरस्वतीदेवी स्तोत्र संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ३, जैदे., (२५.५४११.५, १५४५४). १. पे. नाम. सरस्वतीदेव्या स्तोत्र, पृ. १अ, संपूर्ण. सरस्वतीदेवी स्तोत्र, बृहस्पति, सं., पद्य, आदि: शुभ्रां शुभ्रविचार; अंति: स लोके नात्र संशयः, श्लोक-११. २. पे. नाम. पद्धतसिद्धिसारस्वतमंत्र स्तवन, पृ. १आ, संपूर्ण. सरस्वतीदेवी स्तोत्र, सं., पद्य, आदि: व्याप्तानंतसमस्तलोक; अंति: भवत्युत्तम संपदः, श्लोक-९. ३. पे. नाम. सरस्वतीदेवी स्तोत्र, पृ. १आ, अपूर्ण, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. सं., पद्य, आदि: वाग्वादिनी नमस्तुभ्यं; अंति: (-), (पू.वि. श्लोक-४ अपूर्ण तक है.) १२००७३. (#) धनवंतीनो चोढालीओ, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ३, प्र.वि. हुंडी:धनवंतीनोचो०., अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२६४११.५, १४४५६). धनवती चौढालियो, मु. तेजपाल ऋषि, मा.गु., पद्य, वि. १८९०, आदि: धरमोदम कीजें भवि; अंति: तेजपालजी कहे हितकांमी, ढाल-४, गाथा-७६. १२००७५. गुरु वंदणा व औषध संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, जैदे., (२५.५४११.५, १२४४३). १.पे. नाम. गुरु वंदणा, पृ. १अ, संपूर्ण. गच्छपतिगुरुवंदन विधि-अंचलगच्छीय, प्रा.,मा.गु., प+ग., आदि: इच्छामि ख० इच्छाकारे; अंति: अंचलगछ नायक वंदे. २. पे. नाम, औषध संग्रह, पृ. १आ, संपूर्ण. औषध संग्रह, मा.गु., गद्य, आदि: प्रथम वाल साढा३ दातण करवो; अंति: सद्य छे ऐ उपरे करी नथी. १२००७६. (+#) श्रावकना अतीचार, संपूर्ण, वि. १९वी, आश्विन कृष्ण, ७, शुक्रवार, मध्यम, पृ. ५, प्रले. ग. खेमविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित. मूल पाठ का अंश खंडित है, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५४११.५, १६४३२). श्रावकपाक्षिकअतिचार-तपागच्छीय, संबद्ध, प्रा.,मा.गु., गद्य, आदि: विशेषतः श्रावकतणइ; अंति: मिच्छामि दक्कडं. १२००७७ (+#) पार्श्वनाथ स्तवन, संपूर्ण, वि. १८२६, फाल्गुन कृष्ण, ३, मध्यम, पृ. ५, प्र.वि. ग्रंथ रचना के समीपवर्ती काल में लिखित-संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६४१२, १४४३८). पार्श्वजिन स्तवन-गोडीजी, मु. नेमविजय, मा.गु., पद्य, वि. १८१७, आदि: भाव धरी भजना करु आपो; अंति: नेमविजय जयकार, ढाल-१४. १२००७९ (#) नवपद पूजा, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ३, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे.. (२५.५४११.५, १२४३३). नवपद पूजा, उपा. यशोविजयजी गणि, प्रा.,मा.गु.,सं., पद्य, आदि: उपन्नसन्नाणमहोमयाणं; अंति: (-), (पू.वि. पूजा-५ गाथा-१ अपूर्ण तक है.) १२००८० संखेश्वरा पार्श्वनाथ छंद, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, दे., (२५४१२, ११४३०). पार्श्वजिन चैत्यवंदन-शंखेश्वरतीर्थ, पंन्या. रूपविजय, मा.गु., पद्य, वि. १९वी, आदि: सकल भविजन चमत्कारी; अंति: स्वामीनाथ शंखेश्वरो, गाथा-९. १२००८१ (#) शंखेश्वरपार्श्वजिन स्तवन व लोडणपार्श्वजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, प्र.वि. मूल पाठ का अंश खंडित है, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२६४१०, २६४१५). १.पे. नाम. पार्श्वजिन स्तवन-शंखेश्वर, पृ. १अ, संपूर्ण. For Private and Personal Use Only Page #474 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ४५९ हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२६ वा. उदयरतन, मा.गु., पद्य, आदि: आप अरूपी होय के प्रभु; अंति: तुझ पद पंकज सेव हो, गाथा-८. २.पे. नाम. लोडणपार्श्वनाथ स्तवन, पृ. १आ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तवन-लोढणपुरमंडन, मु. विनय, मा.गु., पद्य, आदि: प्रभु लोडण पास जोहारीइ; अंति: विनय सदा सूख छाजे छे, गाथा-५. १२००८२. जंबुकुमर सिझाय, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, जैदे., (२५.५४१०, ११४३६). जंबूस्वामी सज्झाय, श्राव. पुनो, मा.गु., पद्य, आदि: श्रेणिकनरवर राजीयो; अंति: पुनो भणै ते पामै भवपार, गाथा-१७. १२००८३.(+) ३४ अतिशय स्तवन व नेमराजिमती सज्झाय, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ.१, कुल पे. २, प्र.वि. संशोधित., दे., (२५.५४१०, १३४४३). १. पे. नाम. चउतीस अतिसय स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण. ३४ अतिशय स्तवन, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीसहगुरुना पाय नमी; अंति: गाईसी मुगतिसरोवर जाय रे, गाथा-११. २.पे. नाम. नेमनाथराजिमती सिझाय, पृ. १आ, संपूर्ण. नेमराजिमती सज्झाय, मा.गु., पद्य, आदि: चढिवऊ बारइ देखता; अंति: पाम्या सुख अपारणा, गाथा-१३. १२००८४. (+) पद्मप्रभुजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, प्रले. मु. रामविजय; अन्य. पं. मोहनविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२५४१०.५, ११४४४). पद्मप्रभजिन स्तवन-नाडोलमंडन, मु. जिनेंद्रसागर, मा.गु., पद्य, आदि: पद्मप्रभु जिनराया हो; अंति: जिनेंद्र० दीए एम आसीसए, गाथा-१५. १२००८५. ज्ञानपच्चीसी व अध्यात्मबत्रीसी, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, जैदे., (२५.५४१०.५, १७X५७). १.पे. नाम. ग्यानपचीसी, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. ज्ञानपच्चीसी, मु. उदयकरण, पुहिं., पद्य, आदि: सुरनर तिरजग जोनि में; अंति: बुझावत आपको उदैकरन के हेत. गाथा-२५. २.पे. नाम, अध्यातमबत्रीसी, प. १आ, अपर्ण, प.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. अध्यात्मबत्तीसी, श्राव. बनारसीदास, पुहिं., पद्य, वि. १७वी, आदि: सुद्ध वचन सदगुरु कहै; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-२७ अपूर्ण तक है.) १२००८६. (#) सचित्तअचित्त सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., गुटका, (२५४१०, १४४५०). असनादिक कालप्रमाण सज्झाय, मु. वीरविमल, मा.गु., पद्य, वि. १७वी, आदि: प्रणमुं श्रीगौतम; अंति: वीरविमल करजोडी कहे, गाथा-१८, (वि. अंत में एक औपदेशिक श्लोक दिया है.) १२००८७. चउदगुणठाणइं बंधउदयउदीरणासत्तासुं विवरो, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ३, दे., (२५.५४१०.५, १३४४७). १४ गुणस्थानके कर्मबंधउदयसत्ता व उदीरणा विचार, मा.गु., गद्य, आदि: प्रथम मिथ्यातगुणठाणइं ११७; अंति: (-). १२००८८. (#) गुरुगुण सज्झाइ, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, ले.स्थल, जोधपुर, प्रले. सा. माना आर्या, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. हुंडी:गुरणीजी., मूल पाठ का अंश खंडित है, दे., (२५.५४१०.५, १८४३८). गुरुगुण गहुँली, मा.गु., पद्य, आदि: या गरु जीव गरुया गणा विचै; अंति: मत कोई करजो रीसो जी, गाथा-२५. १२००८९. मधुबिंदूआ सझाय, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. १, जैदे., (२५.५४१०, १७४४३). बिंद सज्झाय, मु. चरणप्रमोद-शिष्य, मा.गु., पद्य, आदि: सरसति मुझ रे मात दिओ; अंति: सुसीस०परमसुख मुं हि मागीइ, गाथा-१०. १२००९०. सज्झाय व गीतादि संग्रह, संपूर्ण, वि. १८९९, श्रावण कृष्ण, १२, मंगलवार, मध्यम, पृ. २, कुल पे. ५, ले.स्थल. हनुमानगढ, प्रले. मु. वीरचंद, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२५.५४१०.५, १४४३७). १.पे. नाम, जीवउपरि सिज्झाय, पृ. १अ, संपूर्ण. औपदेशिक सज्झाय-गर्भावासगर्भित, मु. क्षमाविजय, मा.गु., पद्य, आदि: गरभावासमांहि चिंतवे; अंति: खीमा० मुगत मझार तो, गाथा-१०. २. पे. नाम, गोतम स्वाध्याय, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. For Private and Personal Use Only Page #475 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ४६० कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची गौतमस्वामी छंद, मु. लावण्यसमय, मा.गु., पद्य, वि. १६वी, आदि: वीरजिणेसर केरो सीस; अंति: गौतम तू? संपति कोडि, गाथा-९. ३. पे. नाम. देवकी षटपुत्र सिझाय, पृ. १आ-२अ, संपूर्ण. देवकी ६ पुत्र सज्झाय, मु. कुशल, मा.गु., पद्य, आदि: अब रायऋषजी हो राज; अंति: सिष कुसल मुनि गुण गाईयाजी, गाथा-१३, (वि. प्रतिलेखक ने दो गाथा को एक गिना है.) ४. पे. नाम. भैरुजीरो गीत, पृ. २अ-२आ, संपूर्ण... क्षेत्रपाल पूजा, म. सोभाचंद, पुहिं., पद्य, आदि: जैन को उद्योत भैरु; अंति: सुभचंद० गीत भैरूलाल कै, गाथा-१२. ५. पे. नाम. औपदेशिक दोहा संग्रह, पृ. २आ, संपूर्ण. औपदेशिक दोहा संग्रह, पुहि., पद्य, आदि: आव नहीं आदर नहीं; अंति: अरू मीनघर मीलण देत है नाह, दोहा-५. १२००९१. (+#) मेघकुमारनो च्योढाल्यो, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, ले.स्थल. रुपनगर, प्रले. गुला, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. हुंडी:मेघ०., संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६४१०, १७४३८). मेघकुमार चौढालिया, मु. जादव, मा.गु., पद्य, आदि: प्रथम गुणधर गुण निलो; अंति: जादव कइ० सुख थाय, ढाल-४, गाथा-२३. १२००९२. महावीरजिन स्तवन व पार्श्वजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, जैदे., (२५.५४१०, ११४३२). १. पे. नाम. महावीरजिन स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण. महावीरजिन स्तवन-विकानेर, म. धनिसंदर, रा., पद्य, वि. १७१३, आदि: महावीरजीणंद वांदीयै हौ; अंति: धनिसुंदर० प्रभु प्ररम आणा, गाथा-९. २. पे. नाम. पार्श्वजिन स्तवन, पृ. १आ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तवन-भीनमालमंडन, मु. वीरसुंदर, मा.गु., पद्य, वि. १७२३, आदि: भवियण वामानंदन वांदीयै हो; अंति: वीरसुंदर० मुझ वंछित कामके, गाथा-९. १२००९३ (+#) पार्श्वनाथ तीर्थमाला स्तवन, संपूर्ण, वि. १७६३, आश्विन शुक्ल, १, मध्यम, पृ. १, ले.स्थल. वल्हवीपुरी, प्र.वि. संशोधित. अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५.५४१०, १३४३३). पार्श्वजिन तीर्थमाला स्तवन, उपा. जसकुशल, मा.गु., पद्य, आदि: पुरसादांणी पासजिण; अंति: जसकुशलजपै पास इछा पूरवै, गाथा-१८. १२००९४. उपधानतप विधि, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ४, जैदे., (२५४१०, १४४३८). ___ उपधानतप विधि, प्रा.,मा.गु.,सं., प+ग., आदि: प्रथम शुभदिवसइ पोषध; अंति: पछी माल पहिरी कल्पें. १२००९५. (#) सीमंधरजिन स्तवन व सज्झाय संग्रह, संपूर्ण, वि. १८६२, ज्येष्ठ कृष्ण, ८, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ४, ले.स्थल. सीतारोहण, पठ. सा. सरुपाश्रीजी (गुरु सा. गमानाश्रीजी); गुपि. सा. गमानाश्रीजी, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. पत्र-१४२=१., अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५.५४१०.५, ३८x२०). १.पे. नाम. सीमंधरजिन स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण. सीमंधरजिन स्तवन-तमरीमंडण, मु. रायचंद ऋषि, रा., पद्य, आदि: सत की नंदण जगत वंदण कीनो; अंति: रायचंद० तमरी मे करी अरदास, गाथा-१६. २.पे. नाम. ब्राह्मीसंदरी सज्झाय, पृ. १अ, संपूर्ण. म. रायचंद ऋषि, रा., पद्य, वि. १८४३, आदि: रिषब राजा रे राणी दोय हुई; अंति: रायचंद०करणमे कसर नही काई, गाथा-२०. ३. पे. नाम. नेमराजिमती सज्झाय, पृ. १आ, संपूर्ण. म. रायचंद ऋषि, रा., पद्य, वि. १८४०, आदि: नगरी सोरीपुर सोभती समदवि; अंति: रायचंद० ढाल हुलास रे, गाथा-१२. ४. पे. नाम, औपदेशिक सज्झाय, प. १आ, संपूर्ण. औपदेशिक सज्झाय-नवघाटी, मु. हीरा, मा.गु., पद्य, आदि: नवघाटीम भटकतां रे पायो नर; अंति: ईम अणसारे कहे मन हीरो, गाथा-७, (वि. प्रारंभ में किसी अज्ञात कृति का मात्र प्रारंभिक पाठ लिखा है.) १२००९६. सामायिक सज्झाय, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, दे., (२५.५४१०.५, २२४१५). For Private and Personal Use Only Page #476 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२६ www.kobatirth.org ४६१ सामायिक सज्झाय, उपा. यशोविजयजी गणि, पुहि., पद्य, वि. १८वी, आदि: सामायक नय धारो चतुर नर, अंति ज्ञानवंत के पासे, गाथा-८. Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir १२००९७. (#) महावीरजिन स्तवन व नेमराजिमती स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, प्रले. मु. रायचंद, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. मूल पाठ का अंश खंडित है, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., ( २४.५X१०.५, १६५४). १. पे. नाम. महावीरजिन स्तवन, पृ. १अ १आ, संपूर्ण. मु. हीर, मा.गु., पद्य, वि. १६९५, आदि सरस सबद सुहामणो सरस तेज, अंति हीर० वंछित चिंतामणिसमड, गाथा- १७. २. पे. नाम. नेमराजिमती स्तवन, पृ. १आ, संपूर्ण. मु. राम, मा.गु., पद्य, आदि श्रीजिनवर बीनती सखी अति राम०पूरो हो पाल्यो परतबंध, गाथा- १४. १२००९८ (+) पंचप्रतिक्रमण विधि, संपूर्ण, वि. १९वी मध्यम पू. १, प्र. वि. संशोधित अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., गुटका, (२५X१०.५, १४४४९). प्रतिक्रमणविधि संग्रह-खरतरगच्छीय, संबद्ध, प्रा., मा.गु., गद्य, आदि: प्रथम इरियावही पडिकमीजै; अंति: पछै देवी पडिकमणो कीजै. १२००९९ (४) पार्श्वजिन स्तवन, संभवजिन स्तवन व नेमराजिमती स्तवन, अपूर्ण, वि. १९वी जीर्ण, पू. ३-२ (१ से २) = १, कुल पे. ३, प्र.वि. पत्रांक अनुमानित दिया गया है., मूल पाठ का अंश खंडित है, अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, अक्षरों की स्वाही फैल गयी है, जैदे. (२४.५४१०.५, १५४४५). "" १. पे. नाम. पार्श्वनाथ स्तवन, पृ. ३अ- ३आ, अपूर्ण, पू. वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं.. पार्श्वजिन स्तवन, मु. कहान ऋषि, मा.गु., पद्य, वि. १८४९, आदि (-); अंति हो जिम अधिक उत्साह, डाल-५, (पू.वि. ढाल-३ गाथा-११ अपूर्ण से है.) २. पे. नाम संभवनाथ स्तवन, पू. ३आ, संपूर्ण. संभवजिन स्तवन, मु. कहान ऋषि, मा.गु., पद्य वि. १७५१, आदि संभव नाम सोहामणो वर अंतिः कहइ मुनि कान्ह उल्लास रे, गाथा- ७. ३. पे. नाम. नेमराजिमती स्तवन, पृ. ३आ, संपूर्ण. मु. कहान ऋषि, मा.गु., पद्य, आदि नेमसु बीन बातडली; अंति: कान्ह० केरी वारू वातडली, गाथा-५. १२०१००. गुरुवंदन गाथा, असंयतिपूजाश्चर्य विचार व जिननामकर्मोपार्जकजीवनामादि संग्रह, संपूर्ण, वि. १९ वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. १२, जैवे. (२५.५x१०, १८४६२). १. पे. नाम. ६ स्थान गाथा- गुरुवंदन सह बालावबोध, पू. १अ संपूर्ण. ६ स्थान गाथा, प्रा., पद्य, आदि: इच्छाए१ अणुन्नवणा२; अंति: तुब्भे वणाइ वंदणरिहस्स, गाथा-२. ६ स्थान गाथा- बालावबोध, मा.गु., गद्य, आदि: इ० शिष्य वांदवा इच्छइ छइ; अंति: खमावुं छं ए गुरुवचन. २. पे. नाम. ३२ वंदनदोष गाथा सह बालावबोध, पू. १अ १आ, संपूर्ण. १अ-१आ, ३२ वंदनदोष गाथा, प्रा., पद्य, आदि अणाडियं च धद्धं च२; अंतिः शुद्धं किइकम्मं च पउंज, गाथा-५. ३२ वंदनदोष गाथा-बालावबोध, मा.गु., गद्य, आदि: अ० आदररहित १ थ० स्तब्धपणइ; अंति: आगलि रजोहरण करतो बांद ३. पे. नाम. सामायकखमासमण गाथा, पृ. १आ, संपूर्ण. सामायिकखमासमण गाधा, प्रा., पद्य, आदि ठाण१ इरियावहीए२ बंदणर्य३ अति सामाइय एस खमासमणं, गाथा-२. ४. पे. नाम. ९ पुण्य प्रकार, पृ. १आ, संपूर्ण. प्रा. गद्य, आदि अनपुन्ने१ पाणपुन्ने२ वत्थ; अंति: नमोक्कारपुन्ने ९. ५. पे. नाम ९ जीव तीर्थंकरनामकर्मोपार्जन करने वाले महावीरजिनतीर्थे, पृ. १आ, संपूर्ण ९ जीव तीर्थंकरनामकर्मोपार्जक-महावीरजिनतीर्थे, मा.गु., गद्य, आदि: १राजा श्रेणिक तीर्थंकर; अंति: जेणइ भगवंतनइ दान दीधो. .पे. नाम संवत असंयतादि जघन्योत्कृष्ट जिनगति विचार, पृ. १आ, संपूर्ण. For Private and Personal Use Only , Page #477 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ४६२ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची संयत असंयतादि जघन्योत्कृष्ट देवगति विचार, मा.गु., गद्य, आदि: अवरहि संजति ज० १देव० उ०; अंति: उ० भवइ तापसा भ० जीतकामा. ७. पे. नाम. ४ अंतक्रिया, पृ. १आ, संपूर्ण. स्थानांगसूत्र-४ अंतक्रिया, मा.गु., गद्य, आदि: १भरतनी घोडै २सनतकुमार; अंति: ४मरुदेवीनी घोडै. ८. पे. नाम. असंयतिपूजा विचार, पृ. १आ, संपूर्ण. मा.गु., गद्य, आदि: सुविध सीतल विचइ पल्योपमनइ; अंति: साधु विच्छेद गइ हुँतै. ९. पे. नाम. महावीरजिन जन्मपत्रिका, पृ. १आ, संपूर्ण. सं., गद्य, आदि: गतकलित २६९१ चैत्रशुक्ल१३; अंति: गृहे राजपुत्रो जातः. १०. पे. नाम. १० श्राद्ध कुलक-श्रावकनाम गाथा, पृ. १आ, संपूर्ण. १० श्राद्ध कुलक, प्रा., पद्य, आदि: आणंदे१ कामदेवे य २ गाहावइ; अंति: (-), प्रतिपूर्ण. ११. पे. नाम. महावीरजिन चातुर्मास स्थान संख्या, पृ. १आ, संपूर्ण, पे.वि. पावरेखा के बहार "पक्षाधिकमासषट्के व्यतीते सति भगवानभिग्रहं गृह्णाति" ऐसा उल्लिखित है. सं., गद्य, आदि: १अस्तिग्रामे प्रथमं ३चंपा; अंति: (१)१पापायां चतुर्मासिकानि, (२)४२ अंतरवासं वर्षरात्रं. १२. पे. नाम, नंदनमनि मासक्षमण गाथा, पृ. १आ, संपूर्ण. प्रा., पद्य, आदि: इक्कारसयसहस्सा असीयसहस्सा; अंति: कया वीरेण नंदण भवंमि, गाथा-१. १२०१०१. (+) पाक्षिकआलोचना विधि, बार भावना व औपदेशिक पद, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ३, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित., जैदे., (२५.५४१०.५, १३४३६). १.पे. नाम. पाक्षिकआलोचना विधि, पृ.१अ, संपूर्ण. संबद्ध, मा.गु., गद्य, आदि: आलित्तेणं भंते लोए पलि; अंति: वत्तियं धम्ममाइक्खियं. २. पे. नाम. बार भावना, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. १२ भावना सज्झाय, मु. खेम, मा.गु., पद्य, आदि: बारइ भावन भावो भवीयण जेम; अंति: खेम० कल्याणपुर सुखकारजी, गाथा-१६. ३. पे. नाम. औपदेशिक पद, पृ. १आ, संपूर्ण. प्रास्ताविक दोहा संग्रह, मा.गु., पद्य, आदि: नहु कागद कुछ वात सुणावै; अंति: काय पयंपै आली वयण, गाथा-१. १२०१०२ (#) विजयरत्नसूरि सज्झाय व ज्योतिष संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २,प्र.वि. अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५.५४१०, १२४५६). १. पे. नाम. विजयरत्नसूरि सज्झाय, पृ. १अ, संपूर्ण. मु. रामविजय, मा.गु., पद्य, आदि: वीनतडी अवधारो हो पउध; अंति: रामविजय गुण गाय, गाथा-९. २. पे. नाम. ज्योतिष संग्रह, पृ. १आ, संपूर्ण. ज्योतिष , पुहिं.,मा.ग.,सं., प+ग., आदि: (-); अंति: (-). १२०१०३. (+) देवकी पुत्र सिज्झाय, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, प्रले. मु. लिखमीचंद, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२५.५४१०.५, १०४३५). देवकी ६ पुत्र सज्झाय, मु. कुशल, मा.गु., पद्य, आदि: अब रायरिषजी हो राज; अंति: सिष कुसल मुनि गुण गाईयाजी, गाथा-१३. १२०१०४. पार्श्वजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, जैदे., (२५.५४१०.५, १०४२५). पार्श्वजिन स्तवन-फलवर्द्धि, मु. अभयसोम, मा.गु., पद्य, आदि: सरसती माता सेवकीद्यो; अंति: (-), (अपूर्ण, पृ.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., गाथा-७ अपूर्ण तक लिखा है.) १२०१०५ (+#) गुण ठाणा, अनाहार नाम व औषध संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ३, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-पदच्छेद सूचक लकीरें. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५४१०.५, १७४४७). १. पे. नाम. गुण ठाणा, पृ. १अ, संपूर्ण.. १४ गुणस्थानक विचार, मा.गु., गद्य, आदि: मिथ्यात्व गुणठाण १ तु देव; अंति: ५ उच्चार प्रमाण काल रहै. For Private and Personal Use Only Page #478 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२६ ४६३ २.पे. नाम. अनाहार नाम, पृ. १आ, संपूर्ण. अणाहारीवस्तु नाम, मा.गु., गद्य, आदि: मूत्रनी बंगिलो कडू; अंति: विहार माहि न कल्पइ. ३. पे. नाम. औषध संग्रह, पृ. १आ, संपूर्ण. औषध संग्रह*, मा.गु., गद्य, आदि: कमल काकडी दिन गरा चोथा; अंति: पाणी सेतीलेप न फाटै. १२०१०६. ५२ अनाचार वर्णन, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, जैदे., (२५४१०,१५४३६). ५२ अनाचार वर्णन-साधु जीवन के, मा.गु., गद्य, आदि: उद्देशीकयाहार भोगवइतो; अंति: शरीर नीसो भाते अणाचीर्ण, (वि. अंत में बोल संबंधी गाथा दी है.) १२०१०७. (+) मेघकमार चोढालियो व मनिशिक्षा सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २,प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२४.५४१०.५, १६४४४). १. पे. नाम, मेघकुमार चौढालिया, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. मु. जादव, मा.गु., पद्य, आदि: प्रथम गुणधर गुण नीलो रे; अंति: यादव० नित्य भणता सुख थाय, ढाल-४, गाथा-२२. २.पे. नाम. मुनिशिक्षा सज्झाय, पृ. १आ, संपूर्ण. मु. पार्श्वचंद्र, मा.गु., पद्य, आदि: देवगुरु संघ कारण; अंति: पासचंद० सुधो मन पालो रे, गाथा-८. १२०१०८. (+) क्रोध, मान व मायादि सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९१५, पौष शुक्ल, १०, श्रेष्ठ, पृ. २, कुल पे. ४, ले.स्थल. पाहलणपुर, प्रले. गोविंददास खुशालदास साधु, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित., दे., गुटका, (२४४१०.५, ९४३४). १. पे. नाम, क्रोधनी सज्झाय, पृ. १अ, संपूर्ण. औपदेशिक सज्झाय-क्रोधपरिहार, मु. उदयरत्न, मा.गु., पद्य, आदि: कडुआं फल छे क्रोधनां; अंति: उदयरतन उपसम रस नांही, गाथा-६. २. पे. नाम. मानपरि स्तवन, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. औपदेशिक सज्झाय-मानपरिहार, मु. उदयरत्न, मा.गु., पद्य, आदि: रे जीव मांन न कीजीइ; अंति: उदयरतन०मांनने दीजे देसोटो, गाथा-५. ३. पे. नाम. सत्यवचन सिझाय, पृ. १आ-२अ, संपूर्ण. औपदेशिक सज्झाय-माया परिहार, म. उदयरत्न, मा.गु., पद्य, आदि: समकितनं मूल जाणीइं; अंति: उदयरतन० सुद्ध रे, गाथा-६. ४. पे. नाम. लोभ सज्झाय, पृ. २अ-२आ, संपूर्ण. औपदेशिक सज्झाय-लोभ परिहार, मु. उदयरत्न कवि, मा.गु., पद्य, आदि: तुमे लक्षण जोयो लोभना रे; अंति: उदयरतन० तेहने सदा रे, गाथा-७. १२०१०९ (+) प्रदेशीराजा चोपाई व चौपडकी सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २, कुल पे. २, ले.स्थल. दुजाणाग्राम, प्रले. सा. चंद्रश्रीजी, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२४.५४११, १४४४५). १. पे. नाम. प्रदेशीराजा चोपाई, पृ. १अ-२अ, संपूर्ण.. __ प्रदेशीराजा चौपाई, मा.गु., पद्य, आदि: हिवै प्रदेशी एकदा तेडी; अंति: तणीए जुगति मेलो घपी ए, ढाल-३. २. पे. नाम. चौपडकी सज्झाय, पृ. २अ-२आ, संपूर्ण. औपदेशिक सज्झाय-चौपटखेल, आ. रत्नसागरसूरि, पुहि., पद्य, आदि: प्रथम असुभ मैल झाटकी चतुर; अंति: एह मुक्तकी पंथ रे, गाथा-९. १२०११०. ऋतवंतीनि सज्झाय, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, ले.स्थल. पालीताणा, प्रले. करमचंद रामजी लहिया, प्र.ले.पु. सामान्य, दे., (२४.५४१०.५, ९४३५). ऋतवंती असज्झायनिवारण सज्झाय, म. ऋषभविजय, मा.ग., पद्य, आदि: सरसति माता आदे नमिने सरस; अंति: थी वहेला वरशो सिद्धि, गाथा-११. १२०१११. अंबिकादेवी स्तुति आदि संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ३, कुल पे. ६, जैदे., (२४.५४१०.५, १०४३३). १. पे. नाम. अंबादेवी स्तुति, पृ. १अ, संपूर्ण. अंबिकादेवी स्तुति, जगराज, रा., पद्य, आदि: आज सचवदिस चांद्रणी देवीरौ; अंति: जुगराय० ताहरौ सरणाई, गाथा-९. For Private and Personal Use Only Page #479 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ४६४ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची २. पे. नाम. पलीवालगछरी भुवालदेवीजीरी स्तुति, पृ. १आ-२अ, संपूर्ण. भुवालदेवी स्तुति-पलीवालगच्छ, उपा. उदयशेखर, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीसगति सुमति मुझ आपि; अंति: उदैसेखर० इण परि समझावै, गाथा-११. ३. पे. नाम. अंबिकादेवी स्तुति, पृ. २अ-२आ, संपूर्ण. आ. हीरसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: मात तू तात तू भ्रात तू; अंति: हीरसूरी० मातजी आप वाचा, गाथा-५. ४. पे. नाम. सचियादेवी स्तुति, पृ. २आ-३अ, संपूर्ण. मु. उदेचंद, रा., पद्य, आदि: करूं सेव सचीयायरी सदा; अंति: उदौ करि उदौ करि चंद दाखै, गाथा-४. ५. पे. नाम, नारायण महत्तावर्णन पद, पृ. ३अ, संपूर्ण. मा.गु., पद्य, आदि: सायरजल समौ नही कोई सरवर; अंति: सामिण समौ न कोई सुरु, गाथा-४. ६. पे. नाम, अंबिकादेवी आरती, पृ. ३अ-३आ, संपूर्ण. मु. नरसिंघ, रा., पद्य, आदि: मारौ कंटक माऊली साधूडा; अंति: नरसिंघौ० भल चामुंड भेटौ, गाथा-४. १२०११२. (+) सुदर्शनसेठ सज्झाय व प्रतिक्रमणसूत्र संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. २, कुल पे. २, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें., दे., (२४.५४१०.५, १२४३९). १. पे. नाम. सुदर्शनसेठ सज्झाय, पृ. १अ-२अ, संपूर्ण, वि. १९३८, माघ शुक्ल, १३, मंगलवार, प्रले. नंदराम, प्र.ले.प. सामान्य. पुहि.,मा.गु., पद्य, आदि: वंदु सरीजीनीर धीर संजम; अंति: सवाय ओर छोरे की कहाणी हे. २. पे. नाम. प्रतिक्रमणसूत्र संग्रह, पृ. २आ, संपूर्ण. प्रतिक्रमणसूत्र संग्रह, संबद्ध, प्रा.,मा.गु.,सं., प+ग., आदि: सिद्धाणं बुद्धाणं पारगयाण; अंति: अठा सीधा सीधी मम दीसतु. १२०११३. महिमाई वाक्य, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ३, प्रले. पं. भक्तिसागर, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. हुंडी:मेमाईवा., जैदे., (२४.५४१०.५, १५४४२). महिमा वाक्य-संवत १२०२ से १८०६ तक के जैन सर्वसामान्य ऐतिहासिक घटनाक्रम, मा.गु., गद्य, आदि: संवत १२०२ पाटणनगरे; अंति: करें होवै ज मंगलाचार. १२०११४. महावीरवेली, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ३, जैदे., (२५४१०, १४४३४). महावीरजिन हमचडी-५ कल्याणकवर्णन, उपा. सकलचंद्र गणि, पुहिं., पद्य, आदि: नंदनकुं तिशला हुलरावे; अंति: सकलचंद० वीरो रे हमवडी, ढाल-३, गाथा-६८. १२०११५. अक्षरबत्रीसी व हरियाली सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २, कुल पे. २, जैदे., गुटका, (२३.५४१०.५, १२४३०). १. पे. नाम. अक्षरबत्रीसी, पृ. १अ-२आ, संपूर्ण, पे.वि. हुंडी:अक्षरब०. अक्षरबत्रीसी-आत्महितशिक्षागर्भित, मा.गु., पद्य, आदि: कका ते किरिया करौ करम करौ; अंति: ज्यौ वधै विध्या विलास, गाथा-३३. २. पे. नाम. हरियाली सज्झाय, पृ. २आ, संपूर्ण. प्रहेलिका हरियाली-सज्झाय, मा.गु., पद्य, आदि: एक फूल च्यारि पंखडी कजल; अंति: पंडितां आ नारी कुण होइ, गाथा-८. १२०११६. खिमाछत्रीसी, संपूर्ण, वि. १७६०, माघ शुक्ल, २, मध्यम, पृ. १, प्रले. पं. विनोदसागर, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२४.५४१०.५, १६४४१). क्षमाछत्रीसी, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, आदि: आदरि जीव खिमागुण आदरि; अंति: समैसुंदर० संघ जगीस ___ जी, गाथा-३६. १२०११७. सीमंधरजिन स्तवन, नेमनाथ स्तवन व शांतिनाथ स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ.१, कुल पे. ३, जैदे., (२४४१०.५, १७४४२). १.पे. नाम. सीमंधरजिन स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण. For Private and Personal Use Only Page #480 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ४६५ हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२६ मु. जगरूप, मा.गु., पद्य, आदि: चंदाजी हो मे; अंति: जाय कहौ नै राज, गाथा-५. २. पे. नाम. नेमनाथ स्तवन, पृ. १आ, संपूर्ण. नेमराजिमती पद, आ. जिनसिंहसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: इवडो ग्यान धरो छो; अंति: जिनसमुद्रसूरि० मोरथ फलिया. ३. पे. नाम. शांतिनाथ स्तवन, पृ. १आ, संपूर्ण. शांतिजिन स्तवन, मु. कवियण, मा.गु., पद्य, आदि: जिनजी हो आज उमाहो; अंति: कवियण० पूरो मननी आस, गाथा-७. १२०११८. गोचरी आलोयण विधि, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, जैदे., (२५४१०.५, १३४४०). गोचरी आलोयण विधि, प्रा.,मा.गु., गद्य, आदि: विहरि आवीझोली बाहमाहिथ; अंति: (-), (अपूर्ण, पृ.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., 'गोडलीयां बइसी शक्रस्तव कहइ जयउ सामी' तक लिखा है.) १२०११९. स्तवनचौवीसी, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २-१(१)=१, जैदे., (२४४१०, १५४४०). स्तवनचौवीसी, म. ललितविजय, मा.ग., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. प्रथम पत्र नहीं है व प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., पद्मप्रभजिन स्तवन गाथा-२ अपूर्ण से है व शीतलजिन स्तवन तक लिखा है.) १२०१२० (+) स्थापनापरीक्षा विधि, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. २, प्र.वि. संशोधित., दे., (२४.५४१०.५, ११४३०). स्थापनाचार्यजी परीक्षा विधि, मा.गु., गद्य, आदि: श्रीभद्रबाहुस्वामी का; अंति: जाइं हाथे बांधवा थकी जाइं. १२०१२१ (+) गउडीया पार्श्वनाथ लघस्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १,प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें., जैदे., (२५४१०.५, १२४३३). पार्श्वजिन स्तवन-गोडीजी, मु. भुवनकीर्ति, मा.गु., पद्य, आदि: गाजइ गउडी राजीयउ धिंग धवल; अंति: भुवनकीरति० __तुरतइ नामकि, गाथा-९. १२०१२२ (+) सुभद्रासती सज्झाय व ज्योतिष संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २, कुल पे. २, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२३.५४१०.५, १०४३५). १. पे. नाम. सुभद्रासती सज्झाय, पृ. १अ-२अ, संपूर्ण, वि. १८५३, श्रावण कृष्ण, ८, ले.स्थल. कालद्री, प्रले. मु. किसनचंद, प्र.ले.पु. सामान्य, पे.वि. हुंडी:सुभद्रास०. क. संग, मा.गु., पद्य, आदि: वीरजिनेसर पाय नमी; अंति: भणे संगो० सिवपूर वास, गाथा-२३. २. पे. नाम. नक्षत्रविचार श्लोक संग्रह, पृ. २अ-२आ, संपूर्ण. __ ज्योतिष , पुहि.,मा.गु.,सं., प+ग., आदि: धनिष्ट रोहिणी पुष्पा; अंति: वीटी उपरे भालवी. १२०१२३. (+) समुद्रपाल चउढालीयो व संभवजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २, कुल पे. २, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२४.५४१०.५, १५४३९). १.पे. नाम. समुद्रपाल चउढालीयो, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण, पठ. सा. सोनाजी आर्या, प्र.ले.पु. सामान्य. समद्रपाल रास, म. उदेसींघ, मा.गु., पद्य, वि. १७६४, आदि: श्रीआदीसर आदि; अंति: उदेसिघ० एहवा वंदीयइ जी, ढाल-४. २.पे. नाम. संभवजिन स्तवन, पृ. २अ-२आ, संपूर्ण. ग. इंद्रविजय, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीसहगरु समरण थकी सीझै; अंति: इंद्रविजय० पुरि जयकार गो, गाथा-१३. १२०१२४. (+) उपदेशी स्वाध्याय, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, प्र.वि. संशोधित., जैदे., गुटका, (२४४१०.५, १३४३६). औपदेशिक सज्झाय, रा., पद्य, आदि: तुंतो राख धर्मसुं हेते रे; अंति: तु गाटो हुइ सूर चीर रे, गाथा-१२. १२०१२५. १५ तिथि सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, जैदे., (२३४१०, १४४२८). १५ तिथि सज्झाय, मा.गु., पद्य, आदि: एकम कहतु एकलो रे तु तो; अंति: नर चेत पछ पछता वालो रे, गाथा-१७. १२०१२६. रानकपुर स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, जैदे., (२३४१०, १२४३४). आदिजिन स्तवन-राणपुरमंडन, मु. शिवसुंदर, मा.गु., पद्य, वि. १७१५, आदि: रांणपुरै मन मोहीयो; अंति: सिवसुंदर० थाय सुखकारी रे, गाथा-१६. १२०१२७. (#) महावीरजिन स्तोत्र, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १,प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२४.५४१०.५, १४४४२). For Private and Personal Use Only Page #481 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra ४६६ www.kobatirth.org कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची महावीरजिन स्तोत्र- प्रभाती, मु. विवेक, मा.गु., पद्य, आदि सेवो वीरने चितमां नित अति विवेक० माहा सीधी पावे, गाथा - १५. १२०१२८. गोडी पारसनाथ स्तवन, संपूर्ण, वि. १८९१२ माघ कृष्ण, १ रविवार, मध्यम, पृ. १ ले स्थल. एकलिंग, प्र. वि. हुंडी श्रीपार्श्वनाथ स्तवन., प्र.ले. श्री. (१४६५) ज्यां लग मेर अडग है, जैये. (२३.५४९.५, १०४२६). पार्श्वजिन स्तवन- गोडीजी, मु. जिनचंद्र, पुहिं., पद्य, वि. १७२२, आदि: अमल कमल जिम धवल विराजे; अंति: जिनचंद० फली सह आस, गाथा- ९. १२०१२९. औपदेशिक बोल संग्रह, संपूर्ण, वि. १८८८, ज्येष्ठ शुक्ल, ११, सोमवार, मध्यम, पृ. २, ले.स्थल. रूपनगर, प्रले. श्रावि रायकवारी, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे. (२५. ५X१०, १४४५६). " औपदेशिक बोल संग्रह, मा.गु., गद्य, आदि: सावण भादरवाम चोदास कारण; अंति: नव निधान का नाम छे. १२०१३०. औपदेशिक सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १, प्रले. मु. भावविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, जैवे. (२५x१०, १२३०). औपदेशिक सज्झाय, पन्या, ऋषभसागर, मा.गु., पद्य, आदि करो रे कसीदा इन विधि अति रिषभसागर रस लाग रे " चतुरनर, गाथा-८. १२०१३१. (+) मवणरेहा सज्झाय, संपूर्ण वि. १९वी मध्यम, पृ. ४, प्रले. श्राव. गुमान प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैवे. (२४.५x१०.५. १९४४६). Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir मदनरेखासती सज्झाय, मा.गु., पद्य, आदि: अरिहंत सिद्धने आयरिय; अंति: पोहचइ मोक्ष मझारि, गाथा - १६०. १२०१३२ (4) चित्रसंभूति सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९वी मध्यम पू. १, प्र. वि. मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., (२२.५x१०, १३X३८). و चित्रसंभूति सज्झाय, मु. कविवण, मा.गु., पद्य, आदि चित कहे ब्रह्मरायने कछु अंति: कवीअण० आवागमण नीवारो हो, गाथा- २३. १२०१३३. २४ जिन स्तवन व शांतिजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, प्रले. मु. धीरजमल, प्र.ले.पु. सामान्य, जैवे. (२३१०, १५x२८). १. पे. नाम. २४ जिन स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण. २४ जिन स्तवन- वर्णगर्भीत, मु. रायचंद ऋषि, रा., पद्य, वि. १८३६, आदि: श्रीरषभ अजित संभवसामी अंति रायचंद० आवी गमण दुर हरणा, गाथा - ११. २. पे. नाम. शांतिजिन स्तवन, पृ. १आ, , संपूर्ण. मु. रतनचंद, मा.गु., पद्य, वि. १८५१, आदि: संत जिणैसर सोलमा संत करो; अंति: रतनचंद० संतजीणै सोलमा, गाथा- ९. १२०१३४. ८ कर्म १५८ प्रकृति विचार, मरुदेवीमाता सज्झाय व दानशीलतपभावना सज्झाय, संपूर्ण वि. १९वी मध्यम, पू. १, कुल पे. ३, प्र. वि. पत्रांक नहीं लिखा होने के कारण अनुमानित पत्रांक दिया गया है, जैदे. (२४.५४१०.५, १५४५५). . "" १. पे. नाम. ८ कर्म १५८ प्रकृति विचार, पृ. १अ, संपूर्ण. मा.गु., गद्य, आदि: पहेलो म्यानावरणी तेहनी; अंति: जीव मोख जाय. २. पे नाम, मरुदेवीमाता सज्झाय, पू. १अ १आ, संपूर्ण, मा.गु., पद्य, आदि: मोरादेवी माता कहे सांभलो; अंति: वरत्या जे जैकारो रे. ३. पे नाम, दानशीलतपभावना सझाय, पृ. १आ, संपूर्ण. दानशीलतपभावना सज्झाब, मा.गु., पद्य, आदि रे जीव धर्म कीजीये धर्मना, अंति बिनबुं प्रभुं पार उतार, गाथा-४. १२०१३५. २४ जिन तीर्थमाला स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, जैदे., ( २३X१०.५, ११x२४). २४ जिन तीर्थमाला स्तवन, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, आदि सेत्रुज ऋषभ सामासर्वा अतिः समवसुंदर कहे एम, गाथा-१६, (वि. अहमदावाद स्थित मंदिरों के किसी अज्ञात स्तवन की गाथा १२ से १४ लिखी है.) १२०१३६. (+०) चडवीस तीर्थंकर गीत, संपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पृ. २, प्र. वि. संशोधित मूल पाठ का अंश खंडित है, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैवे. (२४४१०, २३४६९) स्तवनचौवीसी, आ. जिनराजसूरि, मा.गु. पद्य वि. १७वी आदि मनमधुकर मोही रह्यो रिषभ अति हिव करी आप समान रे, स्तवन- २४. , For Private and Personal Use Only Page #482 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२६ ૪૬૭ १२०१३७. (#) श@जय स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२४.५४१०.५, १५४४१). आदिजिन स्तवन-शत्रंजयतीर्थमंडन बहत, म. प्रेमविजय, मा.गु., पद्य, आदि: प्रणमिय सयल जिणंद पाय; अंति: कवियण जिम पामे भव पार ए, गाथा-२१. १२०१३८. मृगापुत्र सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, प्रले. मु. धनराज, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२४४१०, १६४३९). मृगापुत्र सज्झाय, मा.गु., पद्य, आदि: सुग्रीवपुर सुहामणो; अंति: पोहता शिव सूख ठाम हो, गाथा-१४. १२०१३९. मेघकुमार सज्झाय व शीतलजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, जैदे., (२३४१०.५, १३४३७). १. पे. नाम. मेघकुमार सज्झाय, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण, ले.स्थल. अजमेर, प्रले. मु. चतुरा, प्र.ले.पु. सामान्य. मु. देव, पुहिं., पद्य, आदि: तेरे रे कारण मेहा जिणवर; अंति: देव सेवक मुनि गुण गाया, गाथा-९. २. पे. नाम. शीतलजिन स्तवन, पृ. १आ, संपूर्ण. ग. लालजी, मा.गु., पद्य, आदि: सुगण सनेही जिणवर सीतल; अंति: लालजी० सेवक थारो रे, गाथा-५. १२०१४० (#) औपदेशिक सज्झाय व जंबूस्वामी सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५४१०.५, १५४४६). १.पे. नाम, औपदेशिक सज्झाय, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. औपदेशिक सज्झाय-बढापा, म. मान कवि, मा.गु., पद्य, आदि: सुगण बुढापउ आवीयो भावै; अंति: जैतसागर० एम कहै कवि मान, गाथा-२२. २. पे. नाम. जंबूस्वामी सज्झाय, पृ. १आ, संपूर्ण. श्राव. पुनो, मा.गु., पद्य, आदि: श्रेणिक नरवै राजायो; अंति: पुनो भणै तो घरे आवे सिध, गाथा-१५. १२०१४१. (+) नेमराजिमति गीत व औपदेशिक सज्झाय, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२५४१०.५, १५४५०). १.पे. नाम. नेमराजिमती गीत, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. मा.गु., पद्य, आदि: कइ जाणउ परणतां सोहेली नर; अंति: एक वहअय रसिउ नही निरवाहइ, (वि. गाथांक नहीं लिखा है.) २.पे. नाम, औपदेशिक सज्झाय, पृ. १आ, संपूर्ण. औपदेशिक सज्झाय-जीवदया, मा.गु., पद्य, आदि: जे जीवदया प्रतिपाल करइ; अंति: ऊडंता कीडा लीख भमारइ, गाथा-७. १२०१४२. (+#) विहरमान गीतानि, अपूर्ण, वि. १७५१, आषाढ़ कृष्ण, ५, शनिवार, मध्यम, पृ. ३-२(१ से २)=१, ले.स्थल. कालू, प्रले. पं. सुखवर्धन गणि (गुरु मु. जिनहर्ष, खरतरगच्छ-क्षेमशाखा); गुपि. मु. जिनहर्ष (गुरु मु. शांतिहर्ष, खरतरगच्छ-क्षेमशाखा); मु. शांतिहर्ष (गुरु उपा. सोमहर्ष, खरतरगच्छ-क्षेमशाखा); उपा. सोमहर्ष (गुरु वा. गुणवर्द्धन, खरतरगच्छ), प्र.ले.पु. मध्यम, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित. मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., (२५४१०, १७४५६). २० विहरमानजिन स्तवनवीसी, आ. जिनराजसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: विहरमान जिन वीस, स्तवन-२०, (पू.वि. स्तवन-१४ अपूर्ण से है.) १२०१४३. (+) जीवदया सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२५४१०, १४४३८). जीवदया सज्झाय, मु. सोमसुंदरसूरि-शिष्य, मा.गु., पद्य, वि. १६वी, आदि: सिरिगोअम गुरु पाय पणणेवि; अंति: सोमसुंदर० सासन सुधउ धर्म, गाथा-१५. १२०१४४. श्रावकनी करणी सज्झायादि संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ४, कुल पे. ३, जैदे., (२२.५४१०.५, १०४३०). १. पे. नाम. श्रावककरणी सज्झाय, पृ. १अ-२अ, संपूर्ण. ___ उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, आदि: श्रावकनी करणी सांभलौ नित; अंति: समैसुंदर वाचक इम कहै, गाथा-१४. २. पे. नाम, कर्मपरीक्षा सज्झाय, पृ. २अ-३अ, संपूर्ण. कर्मविपाकफल सज्झाय, म. ऋद्धिहर्ष, मा.गु., पद्य, आदि: देवदांणव तीर्थंकर गणघर; अंति: हरष० महाराजा रे प्राणी, गाथा-१८. ३. पे. नाम. पाप पन्य फल विषये स्वाध्याय, पृ. ३अ-४आ, संपूर्ण. पापपुण्य फल सज्झाय, मा.गु., पद्य, आदि: चवदपूरब मांहि ते हज सार; अंति: धर्मथकी सिव संपदा सिद्धि, गाथा-१८. For Private and Personal Use Only Page #483 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ४६८ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १२०१४५. धनानी सज्झाय व औपदेशिक सज्झाय, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, जैदे., (२१x१०.५, ३९x१९). १. पे. नाम. धनानी सज्झाय, पृ. १अ, संपूर्ण. धन्नाअणगार सज्झाय, म. श्रीदेव, मा.गु., पद्य, आदि: जिनवचने वयरागी हो; अंति: होये जय जयकार रे, गाथा-१२. २. पे. नाम. औपदेशिक सज्झाय, पृ. १आ, अपूर्ण, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. औपदेशिक सज्झाय-जीवकाय, मा.गु., पद्य, आदि: कायां कामनि वीनवें सुणो; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-२२ अपूर्ण तक १२०१४६. वर्तमान वीस विहरमान, सप वजिन व आदिजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. ३, जैदे., (२४.५४१०.५, १५४४१). १.पे. नाम. वर्तमान वीस विहरमान स्तवन, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण, ले.स्थल. उदयपुर, प्रले. पं. भक्तिसागर, प्र.ले.पु. सामान्य. २० विहरमानजिन स्तवन-वर्तमानतीर्थंकर, मु. ज्ञानविलास, मा.गु., पद्य, आदि: पंच परमगुरुने नमी; अंति: तारो ___ ग्यानविलास, गाथा-२१. २. पे. नाम. सुपार्श्वजिन स्तवन, पृ. १आ, संपूर्ण. मु. कांतिविजय, मा.गु., पद्य, आदि: सकल स्वामी हित सुरतरु रें; अंति: कांति० मांहें स्यावास, गाथा-५. ३. पे. नाम. आदिजिन स्तवन, पृ. १आ, संपूर्ण. मु. मोहनविजय, मा.गु., पद्य, आदि: आदिसर जगदिसरु रे अवधारो; अंति: मोहन कहे० तुमे प्राणाधार, गाथा-५. १२०१४७. मागधी परिभाषा व कालिंग परिभाषा, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ३४-३३(१ से ३३)=१, कुल पे. २, जैदे., (२५४१०.५, १६x२६). १. पे. नाम. मागधी परिभाषा, पृ. ३४अ, संपूर्ण. परिमाण विचार-मगधदेश परिभाषा, मा.गु., गद्य, आदि: ३० परमाणु की १त्रसरेणु; अंति: ४गौणी १खारीटां ६५५३६४. २. पे. नाम, कालिंग परिभाषा, पृ. ३४अ, संपूर्ण. परिमाण विचार-कलिंगदेश परिभाषा, मा.गु., गद्य, आदि: १२सर्षप १यव २यवा गुंजा; अंति: १०प्रस्थ १कुंडवटां४०. १२०१४८. दशवैकालिकसूत्र, १४ नियम गाथा व कारक सवैयादि संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ५, जैदे., (२५.५४१०.५, १२४४३). १. पे. नाम, दशवैकालिकसूत्र-अध्ययन १ द्रमपुष्पिका अध्ययन, पृ. १अ, संपूर्ण. दशवकालिकसूत्र, आ. शय्यंभवसूरि, प्रा., पद्य, वी. २वी, आदि: धम्मो मंगलमुक्किट्ठ; अंति: (-), प्रतिपूर्ण. २. पे. नाम. १४ नियम गाथा, पृ. १अ, संपूर्ण. १४ श्रावकनियम गाथा, प्रा., पद्य, आदि: सचित्त दव्व विगई वाहण; अंति: न्हाण१३ भत्तिसु१४, गाथा-१. ३. पे. नाम, कारक सवैया, पृ. १अ, संपूर्ण.. मा.गु., गद्य, आदि: प्रथम सुविनीत वदे पुन; अंति: हुत्ति ५ ने ६ विषै ७, (वि. अंत में कारक के चिन्ह दिये गये है.) ४. पे. नाम, ग्रहशांति स्तोत्र, पृ. १आ, संपूर्ण. ग्रहशांति स्तोत्र-लघु, आ. भद्रबाहुस्वामी, सं., पद्य, आदि: जगद्गुरुं नमस्कृत्य; अंति: ग्रहशांतिविधिर्मतः, श्लोक-११. ५. पे. नाम, उवसग्गहर स्तोत्र, पृ. १आ, संपूर्ण. उवसग्गहर स्तोत्र-गाथा ५ की भंडारगाथा *, संबद्ध, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., पद्य, आदि: तुह दंसणेण सामिय; अंति: पासजिणिंद नमसामि, (वि. मंत्र सहित है.) १२०१४९ (-) विजयसेठविजयासेठाणी सज्झाय, जंबुस्वामी सज्झाय व औपदेशिक दोहा, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. २-१(१)=१, कुल पे. ३, प्र.वि. पत्रांक का उल्लेख नहीं है., अशुद्ध पाठ., दे., गुटका, (२१४१०.५, १३४२६). १.पे. नाम, औपदेशिक दोहा, पृ. २अ, अपूर्ण, पू.वि. प्रथम पत्र नहीं है. औपदेशिक पद, क. गंग, पुहि., पद्य, आदि: (-); अंति: गंग० खीर खांडमै एही मुसर, पद-७, (पू.वि. पद-६ अपूर्ण से है.) २. पे. नाम. विजयसेठसेठाणी सज्झाय, पृ. २अ-२आ, संपूर्ण. विजयसेठविजयासेठाणी सज्झाय, म. रतनचंद, मा.ग., पद्य, आदि: सज सीगार वाला पीया; अंति: रतनचद० पावे नीरवानी हेजी, गाथा-९. For Private and Personal Use Only Page #484 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२६ ४६९ ३. पे. नाम. जंबुस्वामी सज्झाय, पृ. २आ, संपूर्ण. जंबूस्वामी सज्झाय, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), (अपूर्ण, पृ.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., गाथा-१८ अपूर्ण से व १९ अपूर्ण तक लिखकर इति संपूर्ण कर दिया है.) १२०१५० निश्चयव्यवहार सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २, जैदे., (२४४९.५, ९४३१). निश्चयव्यवहार सज्झाय, आ. हंसभुवनसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: श्री जिनवर रे देशना धै; अंति: वीतराग एणि परे कहे. १२०१५१. (#) चउद गुणस्थानक सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, ले.स्थल. लिंबडी, प्रले. पं. विनयचंद्र; लिख. मु. रविविजय पंडित, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२३.५४१०, १२४३६). १४ गणस्थानक सज्झाय, म. कर्मसागरशिष्य, मा.गु., पद्य, आदि: पासजिणेसर पय नमी; अंति: करमसागर० मन जिनवर आणो रे, गाथा-१८. १२०१५२ (+#) रोहिणीतप स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ४, प्र.वि. हुंडी:रोहिणीतवन., संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५४१०.५, ९४३२). रोहिणीतप स्तवन, म. श्रीसार, मा.गु., पद्य, वि. १७२०, आदि: सासन देवी सामनीए मुझ; अंति: श्रीसार० सयल मन __ आस्या फली, ढाल-४, गाथा-३२. १२०१५३. (#) पंचकल्याणकनी चोवीसीस्तवन, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ३-२(१ से २)=१,प्र.वि. मूल पाठ का अंश खंडित है, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५४१०.५, १४४३८). स्तवनचौवीसी-पंचकल्याणक, मु. बुधदर्शनसागर, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: बुधदर्शनसागर० जिनवर गायजी, स्तवन-२४, (पू.वि. स्तवन-२१ से है.) १२०१५४. (+) साघु २७ गुण व अजीव ५३० भेद, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२४.५४१०.५, १४४३७). १. पे. नाम. साधु २७ गुण, पृ. १अ, संपूर्ण. २७ साधगण वर्णन, मा.गु., गद्य, आदि: सोइंद्री कहतां काननी; अंति: पालेइ अत समै संथारो करइ. २. पे. नाम. अजीव ५३० भेद, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. ५३० भेद अजीव, मा.गु., गद्य, आदिः (-); अंति: पडीयो ८ एवं २३ विषय हुई. १२०१५५. साधारण सीखामण व गुरुमहिमा दहा संग्रह, संपूर्ण, वि. १८७४, मार्गशीर्ष शुक्ल, ५, शनिवार, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, ले.स्थल. वाली, प्रले. मु. रविंद्र, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२३.५४१०, १३४३१). १.पे. नाम. साधारण सीखामण, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. औपदेशिक छंद, पंडित. लक्ष्मीकल्लोल, मा.गु., पद्य, आदि: भगवती भारती चरण नमेव; अंति: धरम रंग मन धरजो चोल, गाथा-१६. २.पे. नाम. गुरुमहिमा दोहा संग्रह, पृ. १आ, संपूर्ण. मा.गु., पद्य, आदि: गुरुदीवो गुरु देवता गुरु; अंति: प्रसंगेन मृतफरेवन संसय, गाथा-३. १२०१५६. (#) औपदेशिक पदादि संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ४, प्र.वि. अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, जैदे., (२४४१०.५, २२४१९). १. पे. नाम. पर उपकार पद, पृ. १अ, संपूर्ण. औपदेशिक पद-परोपकार, मु. धर्मवर्धन, रा., पद्य, आदि: दुनी दाम खाटै किता केइ; अंति: धर्म० जगसार उपगार रहसी, गाथा-४. २. पे. नाम. औपदेशिक पद, प. १अ-१आ, संपूर्ण. उपा. ध्रमसी, रा., पद्य, आदि: धरौ ध्यान भगवान गणग्यान; अंति: ध्रमसी० सैणहिक वैण हितरौ, गाथा-४. ३. पे. नाम, दिशागमनवयं विचार श्लोक, पृ. १आ, संपूर्ण. सं., पद्य, आदि: न गुरौ दक्षिणां गच्छे; अंति: चीनं नोत्तराबुध भौमयोः, श्लोक-१. ४. पे. नाम. औपदेशिक पद, पृ. १आ, संपूर्ण. For Private and Personal Use Only Page #485 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ४७० कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची औपदेशिक पद-अभिमान परिहार, नानग, पुहि., पद्य, आदि: गुमान ण माणलेए दिना दस; अंति: नानग० जंगल हुवैगा वासा, पद-१. १२०१५७. (+) गौतम रास, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ३, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२४४१०.५, १४४४३). गौतमस्वामी रास, मा.गु., पद्य, आदि: वीर जिनेसर चरण कमल; अंति: वृद्धि कल्याण करो, गाथा-४८. १२०१५८. २५० अभिषेक विचार, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, जैदे., (२४.५४१०.५, ९४४४). २५० अभिषेक विचार, मा.गु.,सं., गद्य, आदि: अथ वैमानीकना इंद्र ९; अंति: एका कोटिस्यात्. १२०१५९. आदिजिन स्तवन, अपूर्ण, वि. १६१९, वैशाख शुक्ल, १, शुक्रवार, श्रेष्ठ, पृ. ३-१(१)=२, ले.स्थल. बोहिया, प्रले. मु. माना, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. हुंडी:आदिस्तवन., जैदे., (२४४८.५, १४४५५).. आदिजिन स्तवन, आ. अजितदेवसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: अजितदेवसूरि० सेवा आदिजिण, गाथा-३६, (पू.वि. गाथा-८ अपूर्ण से है.) १२०१६०. नेमराजिमती बारमासो व गौतम छंद, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, जैदे., (२३४१०.५, १५४३९). १.पे. नाम. नेमराजिमती बारमासो, पृ. १अ, संपूर्ण, वि. १८८७, आषाढ़ कृष्ण, ले.स्थल. महमाइ बंदर, पठ. श्राव. छोडाजी, प्र.ले.पु. सामान्य. नेमराजिमती बारमासा, रा., पद्य, आदि: काती कंत वीना किस सरसा; अंति: मेहतो बाला दीया चीतराइ ने, गाथा-१२. २. पे. नाम. गौतम छंद, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण, पे.वि. हुंडी:तवन. गौतमस्वामी छंद, म. लावण्यसमय, मा.गु., पद्य, वि. १६वी, आदि: वीरजीणेसर के सीस गोतम नाम; अंति: लावनसमगोतम तुठं सपंद कोढ, गाथा-९. For Private and Personal Use Only Page #486 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir संस्कृत, प्राकृत व अपभ्रंश भाषाओं की मूल कृति के अकारादि क्रम से प्रत-पेटाकृति क्रमांक सूची परिशिष्ट-१ ४ उपेक्षाप्रकार विचार, मा.गु.,सं., गद्य, मूपू., (करुणा सारा उपेक्षा ते), ११९९७०-५(+) ४ करंड उपमा आलापक-आचार्य प्रकार, प्रा., गद्य, मूपू., (कति णं भंते करंडगा), ११५४०६-१०(+#) ४ करुणाप्रकार विचार, मा.गु.,सं., गद्य, मपू., (मोह करुणा ते स्यु ग्लाने०), ११९९७०-३(+) ४ ध्यानस्वरूप श्लोक, सं., श्लो. ५, पद्य, मप., (राज्योपभोगशयनासनवाहनेषु), ११८५१६-३१(+) ४ मुदिताप्रकार विचार, सं., गद्य, मूपू., (सुख मात्र मुदिता ते स्यु), ११९९७०-४(+) ४ मेघ विचार, प्रा.,सं., गद्य, मपू., (चत्तारी मेहा पन्नता), ११८५१६-४३(+) ४ मैत्रीप्रकार विचार, सं., गद्य, मपू., (उपकार मित्री ते उपकारिजन), ११९९७०-२(+) ५ आरा फल वर्णन गाथा संग्रह, प्रा., पद्य, श्वे., (एवरिणिव्वाणहो सुखणिहाणहो), ११८६०४-१९(+#) ५ इंद्रिय २७ विषय गाथा, प्रा., गा. १, पद्य, मप., (पंचक्खीनासयादोवि), ११८४२९-३५(#) ५ परमेष्ठि नमस्कार स्तुति, सं., श्लो. १, पद्य, मपू., (अहँतो भगवंत इंद्र), ११६७९५-५(#) ५ प्रकार बोल विचार, प्रा.,मा.गु., गद्य, मूपू., (--), ११६४०३($) ५ प्रमादनाम गाथा, प्रा., गा. १, पद्य, मूपू., (मज्ज विषय कषाया), ११७८१०-२ ६ प्रकार के दःख, सं., श्लो. १३, पद्य, श्वे., (कुग्रामवास: कुलनस्य), ११८७०२-१२ ६ लेश्या दृष्टांत, सं., गद्य, मपू., (जंबूवृक्ष निरीक्ष्य), ११८५१६-९६(+) ६ स्थान गाथा, प्रा., गा. २, पद्य, मपू., (इच्छाए१ अणुन्नवणा२), १२०१००-१ (२) ६ स्थान गाथा-बालावबोध, मा.गु., गद्य, मूपू., (इ० शिष्य वांदवा इच्छइ छइ), १२०१००-१ ७ ऋषि पूजा, सं., पूजा. ७, प+ग., दि., (विंशत्तीर्थंकरं वंदे),११९३२४-१(२) ७ गरणा गाथा, प्रा., गा. १, पद्य, मूपू., (सुद्धो सावय गेह वर), ११५४०६-१५(+#) ७ निह्नव गाथा, प्रा., गा. २, पद्य, मूपू., (बहुयर जमालि पभवा), ११८४६६-३(#) (२) ७ निह्नव गाथा-दृष्टांतकथा, मा.गु., गद्य, मूप., (प्रथम जमाली कुंडपुर नगरिं), ११८४६६-३(#$) ७ संख्यक बोल गाथा, प्रा., पद्य, मप., (सत्तविढप्पं तिसया सत्त न), ११८५१६-१२(+) ८ जीवभेद नाम, प्रा., गद्य, मपू., (अंडया१ पोउआ२ जराउआ३), प्रतहीन. (२) ८ जीवभेद नाम-बालावबोध, मा.गु., गद्य, मूपू., (अंडजा कहता अंड थकी उपना), ११९२०३-४७(+) ८ प्रकार आत्मा गाथा, प्रा., गा. १, पद्य, मूपू., (नाणं च दंसणं दव्वं चरित्त), ११५४२५-६(+#) ८ प्रकारी पूजा, मु. देवचंद्र, मा.गु.,सं., ढा. ८, गा. ६६, वि. १७२४, पद्य, मपू., (गंगा मागध क्षीरनिधि औषध), ११९३१३(+), ११५५०३-२(#S) ८ प्रकारी पूजा श्लोक, मु. देवचंद्र, सं., श्लो. ९, पद्य, मूपू., (विमलकेवल भासनभास्कर), ११८६७८-२(+), ११९७५३-२(+) ८ प्रतिहार्य गाथा, प्रा., गा. १, पद्य, मूपू., (किंकिल्ले कुसमवुट्ठी), ११८५१६-१६(+) ८ सिद्धि नाम, मा.गु.,सं., श्लो. ३, पद्य, जै., वै., बौ., (अणिमा १ महिमा २), ११९२०३-४८(+) ८ सिद्धि विचार, सं., गद्य, मूपू., (अणिमा१ महिमा२ लघिमा३), ११६६३४-२ ९ ग्रह मंत्राक्षर स्तोत्र, सं., श्लो. १३, पद्य, मूपू., (प्रथमप्रणव मायाबीज), ११९२१५-२६(+) ९ पुण्य प्रकार, प्रा., गद्य, मूपू., (नवविहे पुन्ने पन्नत), १२०१००-४ १० आश्चर्य वर्णन, प्रा.,मा.गु.,सं., ग्रं. ११३, प+ग., मप., (उवसग्ग १ गब्भहरणं २), ११५५०५($) १० आश्चर्यवर्णन गाथा, प्रा., गा. ५, पद्य, मपू., (उवसग्ग१ गब्भहरणं२), ११८५१६-१०(+) १० दिक्पाल आवाहन विसर्जन विधि, मा.गु.,सं., पद. १०, प+ग., श्वे., (ॐ नमो इंद्राय पूर्व), ११७४५४-१(+s), ११७४१२ परिशिष्ट परिचय हेतु देखें खंड ७, पृष्ठ ४५४ For Private and Personal Use Only Page #487 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ४७२ संस्कृत, प्राकृत व अपभ्रंश भाषाओं की मूल कृति के अकारादि क्रम से प्रत-पेटाकृति क्रमांक सूची परिशिष्ट-१ १० पच्चक्खाण के आगार, प्रा., गद्य, मपू., (नमोक्कारसी अन्नत्थणा), ११६४८५-१ १० पच्चक्खाण विचार सूत्र, प्रा.,मा.गु., गद्य, मूपू., (तिहां प्रथम चवदै), ११९२०३-५३(+) १० प्रकार जीवपरिणाम, प्रा., गद्य, मूपू., (गइ परिणामे१ इंदि), ११८४२९-१९(१) १० प्रत्याख्याननाम गाथा, प्रा., गा. १, पद्य, मूपू., (नवकार पोरसीए पुरमड्ढ), ११८४५०-३(+), ११८४५०-८(+), ११८६९४-१८ (२) १० प्रत्याख्याननाम गाथा-शब्दार्थ, मा.गु., गद्य, मप., (१ नउकारसी २ प्रहर), ११८४५०-३(+), ११८४५०-८(+) १० लक्षण उद्यापन पूजाविधि, मु. सुमतिसागर, पुहि.,सं., वि. १९३५, पद्य, दि., (विमलगुणसमृद्धं ज्ञान), ११८९९६(+) १० वस्तु विच्छेद गाथा, प्रा., गा. ४, पद्य, म्पू., (मण परमोहि पुलाए), ११८५१६-८(+) १० वैयावच्च भेद, प्रा.,मा.गु., गद्य, मूपू., (१ आचार्य २ उपाध्याय), ११९२०३-५५(+) १० श्राद्ध कुलक, प्रा., गा. १४, पद्य, मूपू., (आणंद१ कामदेवेअ२ गाहा), १२०१००-१० १२ गुण अरिहंत, मा.गु.,सं., अंक. १२, गद्य, मूप., (अशोकवृक्ष प्राति), ११८४२९-२२(#) १२ पर्षदा स्तुति, सं., श्लो. १, पद्य, मूपू., (आग्नेयां गणभृद्विमान), ११९९०२-२(+) १२ पर्षदास्थान श्लोक, सं., श्लो. १, पद्य, मूप., (आग्नेय्यां भक्तियुक्त्या), ११८५१६-२२(+) १२ भावना, प्रा., गा. १५, पद्य, मूपू., (पढममणिच्चमसरणं संसार), ११५४२५-८+#) १२ भावफल साधन, मु. मानसागर, सं., श्लो. ३१, पद्य, मूपू., इतर, (शकोक्ष वेद वेदो ४४५ नो), ११८६२२-२(+#), ११८८३७-१ (२) १२ भावफल साधन-व्याख्या, सं., गद्य, मूपू., इतर, (संवत् १६९७ वर्षे शाकै), ११८८३७-१ १२ व्रत अतिचार आलोयणा, मा.गु.,सं., गद्य, मप., (ज्ञानाचारइं पोथीपाटी), ११६४२१(5) १२ व्रत उच्चारण विधि, प्रा.,मा.गु.,सं., गद्य, मपू., (बारव्रतना पोसह वहि), ११७०६८(+$) १२ व्रतउच्चारण विधि, प्रा.,सं., गद्य, श्वे., (सम्यक्त्वदंड भणंति), ११८९३८-६ १३ काठिया गाथा, प्रा., गा. १, पद्य, म्पू., (आलस मोह अवन्ना थंभा), ११९१४३-४(+-) १३ पदानुसार ५२ जिनभेद गाथा, प्रा., गा. २, पद्य, मूपू., (तित्थय१ सिद्ध२ कुल३ गण४), ११६६३४-१ १४ अभ्यंतरग्रंथि गाथा, प्रा., गा. १, पद्य, मप., (मिच्छत्तं वीय तिगं), ११५४२५-५(+#) १४ गुणस्थानक विचार, प्रा.,मा.गु.,सं., प+ग., मपू., (मिथ्यात्वाविरतेमृते जीवा), ११८८५४(+) १४ गुणस्थानक विचार, मा.गु.,सं., गद्य, मपू., (--), ११८६२१(+$) १४ पूर्व नाम, प्रा.,मा.गु., गद्य, मूपू., (१ श्रीउत्पादपूर्व), ११९२०३-६२(+) १४ पूर्व नाम, प्रा., गद्य, मूपू., (उपायं च मगोणिय), ११८५१६-८४(+) १४ पूर्व नाम आराधना विधि, मा.गु.,सं., प+ग., श्वे., (श्रीउत्पाद प्रवाद), ११७०८१ १४ पूर्व विचार, सं., गद्य, मूपू., (यत्रोत्पादमंगीकृत्य सर्व), ११८५१६-८६(+) १४ मिथ्यात्व गुणस्थानक गाथा, प्रा., गा. २, पद्य, मपू., (मिच्छद्दिट्ठी१ सासाणेय२), ११८५१६-४६(+) १४ रत्न नाम, प्रा., गा. २, प+ग., मपू., (सेणावई१ गाहावई२), ११५४२५-४(+#) १४ श्रावकनियम गाथा, प्रा., गा. १, पद्य, मूपू., (सचित्त दव्व विगई वाहण), ११८२७९-२(+#s), ११८४५०-२(+), ११९१४३-३(+-), ११९९५४-२(+), ११६०४९-५, ११७०१२-१, १२०१४८-२, ११७५०८-३(#) (२) १४ श्रावकनियम गाथा-टबार्थ, मा.गु., गद्य, पू., (पाणी फल बीज दातण ते), ११८२७९-२(+#$), ११७०१२-१ १६ उपसर्ग विचार, सं., गद्य, मूपू., (उपसर्गा १६ दिव्यमानुषतैरि), ११८५१६-४८(+) १६ कारण जपमाल पूजा, अप., गद्य, दि., (--), ११७८६४(+$) (२) १६ कारण जपमाल पूजा-स्तबकार्थ, सं., गद्य, दि., (--), ११७८६४(+$) १६ सती स्तुति, सं., श्लो. १, पद्य, मूपू., (ब्राह्मी चंदनबालिका), ११९६३५-६(+), ११८५३२-२, ११६७९५-४(#) १७ भेद पूजाफल विचार, सं., गद्य, मूपू., (पुष्पात् पुण्य फलं), ११८५१६-२(+) १७ भेद पूजा विचार, सं., गद्य, मूपू., (स्नात्रं सुरभिगंधोदकेन १), ११८५१६-६२(+) १७ संयमभेद गाथा, प्रा., गा. १, पद्य, मूपू., (पुढवी दगमा रूय वणस्सई), ११५४२५-३(+#) १८ नातरा नाम, सं., गद्य, श्वे., (बालक: १. भ्रात एवक), ११८५१६-५४(+) For Private and Personal Use Only Page #488 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १.१.२६ ४७३ १८ नातरा श्लोक, सं., श्लो. ३, पद्य, मूपू., (भ्रातासितनुर्जन्मासि), ११८५१६-३५(+) १८ भार वनस्पति मान, मा.गु.,सं., गद्य, श्वे., (३८ अडत्रीस कोडि ११), ११७६२०-२, ११८४२९-४७(2) १८ हजार शीलांगरथ, प्रा.,मा.गु., गा. २, पद्य, मप., (जे नो करंति मणसा), ११६४३५, ११९०५३ १८ हजार शीलांगरथ आम्नाय, प्रा., गा. ४, पद्य, मपू., (जे नो करंति मणसा), ११५६१३-३(+), ११५२८४-३ २० स्थानक गाथा-पांखडी, प्रा.,मा.ग., गा. २१, पद्य, मप., (अरिहंत १ सिद्ध २),११७३५९(5) २० स्थानक गुण विचार, प्रा.,मा.गु., गद्य, मप., (नमो अरिहंताणं बारे गुण), ११९३८७(2) २० स्थानकतप आराधनाविधि, प्रा.,मा.गु., प+ग., मूपू., (नमो अरिहंताणं अरिहंत), ११६८०६(६) २० स्थानकतप आलापक, प्रा., गद्य, मूपू., (अहन्नं भंते तुम्हाणं), ११६६६९-३ २० स्थानकतप उच्चारविधि, प्रा.,मा.गु., गद्य, भूपू., (नांदि सर्व उपधान समकित), ११८९३८-२ २० स्थानकतप गाथा, प्रा., गा. ३, पद्य, मूपू., (अरिहंत सिद्ध पवयण), ११८४५०-४(+), ११८५२९-५(+) (२) २० स्थानकतप गाथा-बालावबोध, मा.गु., गद्य, मप., (प्रणम्य श्रीगुरुं सम्यक), ११८४५०-४(+), ११८५२९-५(+) २१ पानी प्रकार, प्रा., गा. २, पद्य, मूपू., (उस्सेयम संसेयम उदल), ११८५१६-९(+) २१ स्थान प्रकरण, आ. सिद्धसेनसूरि, प्रा., गा. ६६, पद्य, मूपू., (चवण विमाणा नयरी जणया), ११६९४९($) २२ अभक्ष्य गाथा, प्रा., गा. २, पद्य, मपू., (पंचुंबर चउविगई हिम), ११५४२५-१(+#) २२ परिषह नाम, प्रा., गा. २, प+ग., मप., (खुहा पिवासा सीत उण्ह), ११५४२५-७(+#) २३ जीव नाम, प्रा., गद्य, मपू., (जीवेति वा पाणेति वा), ११८४२९-३६(#) (२) २३ जीव नाम-टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूप., (मरे नही ते भणी जीव सासो), ११८४२९-३६(#) २४ गुण स्थानक, आ. नेमिचंद्र सिद्धांत चक्रवर्ती, प्रा., गा. ३७७, पद्य, दि., (सिद्धं सुद्धं पणमिय), ११७९०७(+$) २४ जिन १२० कल्याणक कोष्ठक, प्रा.,मा.गु.,सं., गद्य, मूपू., (श्रीऋषभदेव आषाढ वदि४), ११७८३३(+#) २४ जिन अंतरा गाथा, प्रा., गा. ४, पद्य, मूपू., (जिण अंतराइं पत्ता १ तीस २), ११८५१६-३६(+) २४ जिनकल्याणक तपविधि, रा.,सं., गद्य, मपू., (श्रीसंभवनाथसर्वज्ञाय), ११६४८४(#) २४ जिन कल्याणकदिन विचार, प्रा.,मा.गु.,सं., को., मप., (कार्तिकवदि ५ नाणंस), ११६७०८ २४ जिन चरित्र, सं., पद्य, जै.?, (--), ११९३८२(#$) । २४ जिन नाम, सं., गद्य, मूपू., (ऋषभ १ अजित २ श्रीसंभ), ११६७९५-३(#) २४ जिन पिता नाम-वर्तमान, सं., गद्य, मूप., (ॐ श्री नाभि१ जितशत्रु२), ११५२६२-४ २४ जिन पूजा, सं., प+ग., दि., (विघ्नौघाः प्रलयं), ११७६०६($) २४ जिन भवसंख्यामान गाथा, प्रा., गा. १, पद्य, श्वे., (तेरस भव रीसह अठसय), ११८५१६-२१(+) २४ जिन मंत्राक्षरफल, मा.गु.,सं., गद्य, दि., (ॐ ह्रीं श्रीं ऐं लोगस्स), ११६३४३(+) २४ जिन यक्षयक्षिणी आयुधादि वर्णन विचार, सं., गद्य, मपू., (--), ११७६५२(+$) २४ जिन राशि नक्षत्रादि विचार, मा.गु.,सं., गद्य, मपू., (रिषभदेव उतराषाढा धनरासी), ११६९२१(+#) २४ जिन स्तवन-अतीतानागतवर्तमान, सं., पद्य, मपू., (वंदे मुनि वृषभ वृषभेस), ११८६०४-२१(+#) २४ जिन स्तुति, आ. जिनकुशलसरि, सं., श्लो. ४, पद्य, मप., (नाभेयाजितवासुपूज्यसुविधि), ११९१४३-२८(+-), ११८६९४-३, ११९६४८-१४ २४ जिन स्तुति, अप., गा. २, पद्य, मूपू., (भरहेसरकारिय देव हरे), ११६६७४(+) (२) २४ जिन स्तुति-टीका, उपा. समयराज, सं., गद्य, मपू., (भरहेसरेत्यादि अहं), ११६६७४(+) २४ जिन स्तोत्र, आ. जिनप्रभसूरि, सं., श्लो. ९, पद्य, मपू., (नतसुरेंद्रजिनेंद्र युगादि), ११९३०७-८ २४ जिन स्तोत्र-पंचषष्टियंत्रगर्भित, मु. सुखनिधान, सं., श्लो. ८, पद्य, मूपू., (आदौ नेमिजिनं नौमि), ११५७९१-५(+), ११७८५८-२(+), ११६५१३, ११६२२३-१(#) २४ जिन स्तोत्र-पंचषष्ठियंत्रगर्भित, मु. नेतृसिंह कवि, सं., श्लो. ४, पद्य, मूपू., (वंदे धर्मजिनं सदा), ११९७२७-२(+) २४ दंडक स्तुति, आ. जिनेश्वरसूरि, सं., श्लो. ४, पद्य, मपू., (रुचितरुचि महामणि स्वर्ण), ११९१४३-३५(+-) For Private and Personal Use Only Page #489 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ४७४ संस्कृत, प्राकृत व अपभ्रंश भाषाओं की मूल कृति के अकारादि क्रम से प्रत-पेटाकृति क्रमांक सूची परिशिष्ट-१ २४ प्रकार तप पारणादि दिनसंख्यामान, सं., गद्य, मप., (श्रेणितपो दिन ५५ पारणा २०), ११८५१६-२०(+) २४ प्रमादविकार लक्षण, सं., गद्य, मूपू., (उच्चैर्निष्ठवति१ सानुराग),११६३९७-२ २४ मांडला, प्रा.,मा.गु., गद्य, मूपू., (६ हाथ १ प्र० १ आगाढे), ११७३१६ २४ स्थंडिल, प्रा., गद्य, मपू., (आघाडे आसन्ने उच्चारे), ११७०७१-६(+$) २४ स्थानद्वार गाथा, प्रा., गा. २, पद्य, दि., (गई यंदीय च काए जोय वेय), ११७९१५(+) (२) २४ स्थानद्वार गाथा-बोल संग्रह, संबद्ध, मा.ग., गद्य, दि., (--), ११७९१५(+$) २५ मिथ्यात्वभेद विचार, प्रा., गद्य, मूपू., (अधमेधमे सहणा१ धमेअधमे सहण), ११७३१७-२ (२) २५ मिथ्यात्वभेद विचार-टबार्थ, मा.गु., गद्य, म्पू., (--), ११७३१७-२($) ३० चौवीसीजिन पूजा, सं., प+ग., जै., (--), ११९७१८(5) ३२ लक्षण नाम-पुरुष, सं., गद्य, इतर, (कमंडल कलश० सूप चापिक), ११६३९७-४ ३२ लक्षण श्लोक-पुरुष, सं., श्लो. १, पद्य, इतर, (छत्रं तामरसं धनुषवरो), ११६७६९-२(+#) ३२ वंदनदोष गाथा, प्रा., गा. ५, पद्य, मप., (अणाढियं च१ थद्धं च२),११८५१६-४०(+), १२०१००-२ (२) ३२ वंदनदोष गाथा-बालावबोध, मा.गु., गद्य, मूपू., (अ० आदररहित१ थ० स्तब्धपणइ), १२०१००-२ ३६ आचार्यगुण वर्णन, प्रा.,मा.गु., पद्य, मूपू., (पडिरूवाई चउदस१४ खंती), ११९०९६-२८(+#$) ३६ आयुध प्रकार, सं., गद्य, श्वे., इतर, (चक्र धनु वज्र खड्ग), ११६७६९-५(+#) ३६ बोल थोकडो, प्रा.,मा.गु., बो. ३६, गद्य, श्वे., (पेले बोले भाव६ नाम अनुजोग), ११८३२२-१(+) ४५ आगमतप विधि, मा.गु.,सं., गद्य, मप., (प्रथम बीजें श्रीनंदि), ११८३१०-२(-#) ४७ आहारदोष गाथा-आधाकर्मी, प्रा., गा. ६, पद्य, मूपू., (आहाकम्मु १ देसिय २), ११७९६९-१(+), ११६६७३ (२) ४७ आहारदोष गाथा-आधाकर्मी-टीका, सं., गद्य, मूपू., (सोलसउग्गम दोषा सोल), ११७९६९-१(+) (२) ४७ आहारदोष गाथा-आधाकर्मी-बालावबोध, मा.गु., गद्य, पू., (आह० आधाकर्मि ते कहीइ), ११६६७३ ४८ लब्धि मंत्र, प्रा., मंत्र. ४८, गद्य, मपू., (ॐ ह्री आमोसही लद्धिणं), ११५३९९(+#$), ११५८२०-३ ५२ प्रश्नोत्तर-विविधशास्त्रोक्त, प्रा.,मा.गु., प्रश्न. ५२, प+ग., मपू., (श्रीप्रश्नव्याकरणमां), ११९८७६($) ५८ बोल संग्रह-आगमिकसिद्धांतचर्या, प्रा.,मा.गु.,सं., गद्य, मपू., (नाणेम जाणइ भावे), ११९८०९(+#s), ११९०८५(#$) (२) ५८ बोल संग्रह-टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (--), ११९८०९(+#) ६३ शलाकापुरुष चरित्र विचारप्रकरण, प्रा., गा. २१, पद्य, मूपू., (बत्तीसंघरयाइं काउंतिरिया), ११६४०५(+) ६४ योगिनी नाम, सं., प+ग., मप., वै., (दिव्ययोगिनी सिद्धमहा), ११८७७८-२(+) ६४ योगिनी स्तोत्र, सं., श्लो. ११, पद्य, वै., (ॐ दिव्ययोगी महायोगी), ११७४९८-१(#) ७२ कला नाम श्लोक-पुरुष, सं., श्लो. ३, पद्य, श्वे., (लिखित १ पठित २), ११६७६९-६(+#) ८४ जीवयोनि क्षमापना, प्रा.,मा.गु., अंक. ८४, प+ग., मप., (संसारंमि० पुढवीकाई), ११५६१३-६(+) २५० अभिषेक गाथा, प्रा., गा. २, पद्य, मूपू., (इंद १९४ सम १ तायत्तीसा ३३), ११८२०७-२(+), ११९७०५ (२) २५० अभिषेक गाथा-टीका, सं., गद्य, मूपू., (अथ जिनजन्माभिषेके कलशानां), ११९७०५ २५० अभिषेक विचार, मा.गु.,सं., गद्य, श्वे., (एक कोड साठ लाख कलसा), ११८२०७-३(+), १२०१५८ अंगुलसप्ततिका, आ. मुनिचंद्रसूरि, प्रा., गा. ७०, पद्य, मपू., (उसभसमगमणमुसभजिणमणि), ११७४६८(#S) (२) अंगुलसप्ततिका-बालावबोध, मा.गु., गद्य, पू., (उ० ऋषभदेव स्वामी ते), ११७४६८(#S) अंतकृद्दशांगसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., अ. ९२, ग्रं. ८९९, गद्य, मूपू., (तेणं कालेणं० चंपा०), ११८२८२(+), ११८६९७(+#$), ११८७४५(+), ११९०७८(+), ११८५९९, ११६९६७(#s), ११८८२०(5) (२) अंतकृद्दशांगसूत्र-टिप्पण, मा.गु., गद्य, मूपू., (--), ११८६९७(+#$) (२) अंतकृद्दशांगसूत्र-टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (अंतगड शब्दस्य कः), ११८२८२(+), ११८७४५(+), ११९०७८(+), ११८५९९ (२) अंतकृद्दशांगसूत्र-संबद्ध तप यंत्र, मा.गु., यं., मपू., (--), ११८७८२($) (२) अंतकृद्दशांगसूत्र-बीजक, मा.गु., गद्य, मूपू., (अंतगडदशाशब्दनो स्यूं अर्थ), ११९२१८ For Private and Personal Use Only Page #490 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १.१.२६ ४७५ अंतिम आराधना संग्रह, प्रा.,मा.गु., प+ग., श्वे., (प्रथम इरियावही), ११५५९५-१(६) अंबड चरित्र, ग. अमरसुंदर, सं., वि. १५वी, गद्य, म्पू., (धर्मात् संपद्यते), ११९४२४(+#) अकडमचक्र श्लोक, सं., श्लो. ५, पद्य, वै., इतर, (द्वादशारं लिखेच्चक्र), ११६९१७-१(+) अकलंकाष्टक स्तोत्र, आ. अकलंकदेव, सं., श्लो. १६, पद्य, दि., (त्रैलोक्यं सकलं), ११७९४८(+), ११६६३१(६) अक्षयतृतीयापर्व व्याख्यान, उपा. क्षमाकल्याण, सं., ग्रं.७०, गद्य, मप., (प्रणिपत्य प्रभु), ११७५२५(६) अक्षयतृतीयापर्व व्याख्यान, प्रा.,रा.,सं., गद्य, मूपू., (उसभस्सय पारणए इक्खु), ११७९८४ अक्षयतृतीया व्याख्यान, रा.,सं., गद्य, मूपू., (प्रणिपत्य प्रभुं पार्श्व), ११९४८३-११(+), ११९४८६-११(+) अचितवस्तुविचार गाथा, प्रा., गा. ३, पद्य, मप., (जोयणसयं तु गंता अणहारेणं), ११८५१६-५०(+) अजितशांति स्तव , आ. नंदिषेणसूरि, प्रा., गा. ४०, पद्य, पू., (अजियं जियसव्वभयं संतिं च), ११६३४७(+), ११७३७५-२(+$), ११७६८७(+#), ११८५३६(+), ११८८६१-२(+), ११६९००, ११५२७८($) (२) अजितशांति स्तव-अवचूरि, सं., गद्य, स्पू., (तदजितशांतिजिनयुगलं बहु), ११८८६१-२(+) (२) अजितशांति स्तव-टबार्थ, मा.गु., गद्य, मप., (अजितनाथ जीता छइ सर्व), ११८८६१-२(+) अजितशांति स्तव लघु-खरतरगच्छीय, आ. जिनवल्लभसूरि, प्रा., गा. १७, पद्य, मूपू., (उल्लासिक्कमनक्ख), ११९३३९ (२) अजितशांति स्तव लघु-खरतरगच्छीय-छाया, कृष्ण शर्मा, सं., श्लो. १७, वि. २०वी, पद्य, मपू., (उल्लासिक्रमनखनिर्गत), ११९३३९ अज्ञात जैनकृति संग्रह, प्रा.,मा.गु.,सं., प+ग., श्वे., (--), ११९५४७-३ अढीद्वीप १७० उत्कृष्टजिन नाम, मा.गु.,सं., गद्य, मपू., (श्रीजयदेवनाथाय), ११५८८७(+) अध्यात्ममतपरीक्षा, उपा. यशोविजयजी गणि, प्रा., गा. १८४, पद्य, मपू., (पणमिय पासजिणिंद), ११९८२२(+) (२) अध्यात्ममतपरीक्षा-बालावबोध, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., गद्य, मूपू., (सर्व कल्याणसिद्धिने), ११९८२२(+) अध्यात्मसार, उपा. यशोविजयजी गणि, सं., प्रबं. ७, श्लो. ९४९, वि. १८वी, पद्य, स्पू., (ऐंद्रश्रेणिनतः), ११७२०३(+$) अनशन विधि, प्रा.,मा.गु., गद्य, मूपू., (प्रथम नवकार तीन भणी), ११८९३८-४ अनित्यता कुलक, प्रा., गा. ८, पद्य, मूपू., (समए समए रे जीव आउअंगले), ११८६५२-४(+) अनुत्तरौपपातिकदशांगसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., अ. ३३, ग्रं. १९२, प+ग., मूपू., (तेणं कालेणं० नवमस्स), ११९२२८(#) (२) अनुत्तरौपपातिकदशांगसूत्र-टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (ते काल चउथा आराने), ११९२२८(#) अनुयोगद्वारसूत्र , आ. आर्यरक्षितसूरि, प्रा., प्रक. ३८, ग्रं. २०८५, प+ग., मपू., (नाणं पंचविह), ११९७११(+), ११९७७५(+) (२) अनुयोगद्वारसूत्र-टबार्थ , मा.गु., गद्य, मूपू., (ना० ज्ञान पंच प्रकार), ११९७११(+) (२) अनुयोगद्वारसूत्र-२१ बोल अधिकार, संबद्ध, मा.गु., गद्य, मूपू., (पहिलै बोलै नय ७ दुजै), ११९२०७(+) अनुयोग विधि, प्रा.,मा.गु.,सं., गद्य, स्पू., (मुहपत्ती पडिलेही), ११६३१५(+) अनेकांतजयपताका, आ. हरिभद्रसूरि, सं., अ. ६, ग्रं. ३७५०, गद्य, मूपू., (जयति विनिर्जितरागः), प्रतहीन. (२) अनेकांतजयपताका-उद्योतदीपिका टीका, आ. मुनिचंद्रसूरि, सं., ग्रं. २०००, वि. १२वी, गद्य, मूपू., (शेषमतिमतिशयाना), ११७८९९(६) अनेकार्थध्वनिमंजरी, सं., अधि. ३, श्लो. २१९, पद्य, मूप., इतर, (शुद्धवर्णमनेकार्थं), ११९३७८-१(+) अन्ययोगव्यवच्छेदद्वात्रिंशिका, आ. हेमचंद्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., श्लो. ३२, वि. १२वी, पद्य, मपू., (अनंतविज्ञानमतीत), ११७४९३(+#) (२) अन्ययोगव्यवच्छेदद्वात्रिंशिका-स्याद्वादमंजरी वृत्ति, आ. मल्लिषेणसूरि, सं., श. १२१४, गद्य, मूपू., (यस्य ज्ञानमनंतवस्तु), ११८९१७(8) अभव्यजीव गाथा, प्रा., गा. २, पद्य, मपू., (संगमय१ कालसूरयर कविला३),११८५१६-४७(+) For Private and Personal Use Only Page #491 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ४७६ संस्कृत, प्राकृत व अपभ्रंश भाषाओं की मूल कृति के अकारादि क्रम से प्रत-पेटाकृति क्रमांक सूची परिशिष्ट-१ अभिधानचिंतामणि नाममाला, आ. हेमचंद्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., कां. ६, ग्रं. १४५२, वि. १३वी, पद्य, मूपू., इतर, (प्रणिपत्यार्हतः),११७४०८(+#$), ११८१६९(+$), ११८२२०(+#$), ११८२६१(+$), ११८४१८(+६), ११८७०५(+), ११८८१४(+#s), ११९५४५(+#), ११९६७१(+$), ११९७८३(+9), ११९७८९-१(+), ११८१६३, ११८८०६(#s), ११५५४७(s), ११६३६०(६), ११८२४७(5) (२) अभिधानचिंतामणि नाममाला-सारोद्धार टीका, उपा. वल्लभ, सं., ग्रं. ८०००, वि. १६६७, गद्य, मूपू., इतर, (श्रीमदर्हतमानम्य), ११८८०६(#$), ११८१६३(5) (२) अभिधानचिंतामणि नाममाला-स्वोपज्ञ तत्त्वाभिधायिनी विवति, आ. हेमचंद्रसरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., वि. १२१६, गद्य, मूपू., इतर, (धर्मतीर्थकृतां वाचां), ११८३९९(+#), ११८७०५(+) । (२) अभिधानचिंतामणि नाममाला-अव्ययवर्ग, सं., गद्य, मप., इतर, (स्वर्गनामानि स्व:१ स्वर्ग), ११९९१२(+) अभिवर्द्धित चंद्रविचार गाथा, प्रा., गा. ४, पद्य, मूपू., इतर, (चंदे चंदे अभवड्ढीए चेव), ११८५१६-५२(+) अर्घकांड, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., गा. १९, पद्य, मूपू., इतर, (तपसिंद नरिंद नयं पणमिय), ११७८३१-१ अावली, सं., गद्य, दि., (उदकचंदन० क्षमामार्दवआर्जव), ११८१४७-२९(#) अर्थोपलब्धि बाधक २१ बोल, सं., गद्य, मपू., (दुरात् १ अतिसन्निकर्षात्), ११८५१६-९३(+) (२) अर्थोपलब्धि बाधक २१ बोल-टीका, सं., गद्य, मपू., (दरात् सन्नप्यर्थो न), ११८५१६-९३(+) अर्हन्नामसहस्र समुच्चय, आ. हेमचंद्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., प्रका. १०, श्लो. ११७, वि. १२वी-१३वी, पद्य, मपू., (अर्हन्नामापि कर्णाभ्यां), ११५७५९(+६), ११७९२७(+) अशोकचंद्र कथा-रोहिणीतपविषये, मु. कनककुशल, सं., श्लो. २०१, पद्य, मप., (श्रीमान्पार्श्वजिनसर), ११६७०७(+$) अष्टक प्रकरण, आ. हरिभद्रसूरि, सं., अष्ट. ३२, पद्य, मूपू., (यस्य संक्लेशजननो), प्रतहीन. (२) अष्टक प्रकरण-हिस्सा अग्निकारिकाष्टक, आ. हरिभद्रसूरि, सं., श्लो. ८, पद्य, मूपू., (कर्मेधनं समाश्रित्य), ११५७८०($) (३) अष्टक प्रकरण-हिस्सा अग्निकारिकाष्टक की टीका, सं., गद्य, मपू., (कर्मज्ञानावरणादिकं मूल), ११५७८०(5) अष्टप्रकारीपूजा कथानक, प्रा., पद्य, मप., (विहडियकम्मकलंक कयकेवलेतेय), ११९०९२ (२) अष्टप्रकारीपूजा कथानक-बालावबोध, मा.गु., गद्य, मपू., (श्रीविजयकेवली धर्मोपदेश), ११९०९२ अष्टांगनिमित्त ज्ञान, सं., श्लो. १, पद्य, जै., इतर?, (आंतरिक्ष१ भौमर अंग३ स्वर४),११९६१६-४(+) (२) अष्टांगनिमित्त ज्ञान-टबार्थ, मा.गु., गद्य, जै., इतर?, (आकाश वार्ता कहइ भौम धरती), ११९६१६-४(+) अष्टापदतीर्थतप खमासमण विधि, सं., गद्य, मूपू., (अशोकवृक्षादि अष्टप्राति०), ११६६०६-१ अष्टाह्निकापर्व व्याख्यान, उपा. क्षमाकल्याण, सं., वि. १८६०, गद्य, मप., (शांतीशं शांतिकर्ता), ११९३७९(+) (२) अष्टाह्निकापर्व व्याख्यान-बालावबोध, मा.गु., गद्य, मूप., (अर्हन्नत्वाल्पबुधिना), ११७८१६($) (२) अष्टाह्निकापर्व व्याख्यान-बालावबोध, य. अबीरचंद्र ऋषि, मा.गु., वि. १९४१, गद्य, मूप., (शांतीशं शांतिकर्तारं), ११९८५९(+) अष्टाह्निकापर्व व्याख्यान, मा.गु.,सं., गद्य, मूपू., (शांतीशं शांतिकर्तारं), ११६४६३-१(+$), ११९४६०(+#), ११९४८३-२(+), ११९४८६-२(+), ११५९७९ (६) अष्टाह्निका महोत्सव, मु. रायचंद, सं., श्लो. १३८, वि. १८४३, पद्य, श्वे., (धर्मेशानसनत्कुमार मधवत्), ११९५६३(+#$) (२) अष्टाह्निका महोत्सव-टबार्थ, मा.गु., गद्य, श्वे., (--), ११९५६३(+#$) अष्टाह्निका व्याख्यान, मा.गु.,सं., गद्य, मूपू., (प्रणम्य परमानंदा), ११८४८०($) अष्टोत्तरी शांतिस्नात्र विधि, मा.गु.,सं., प+ग., मूप., (ते माहिली शांतिकविधि), ११५८५१(-2) असतीलक्षण विचार, सं., गद्य, मूपू., (यतः द्वाविंशतिप्रति), ११६३९७-३ असोई शकनावली, सं., श्लो. ६, पद्य, जै., वै., इतर, (जलपात्रं समादाय पूंगाख्यत), ११९५८९-२ (२) असोई शकुनावली-बालावबोध, मा.गु., गद्य, जै., वै., इतर, (लोटो पाणीथी भरी हाथ में), ११९५८९-२ आगम अक्षरार्थ चतुर्भंगी, सं., गद्य, मूपू., (अल्पाक्षर महार्थ पन्नवणा), ११५४०६-२६(+#) आगमिकपाठ संग्रह, प्रा.,सं., प+ग., मपू., (कप्पइ निगंथाण वा), ११८५१६-१०६(+) आगमिक पाठ संग्रह-विविध विषयक, प्रा., प+ग., मूप., (जे भिक्खू वा भिखूणी), ११८५१६-९८(+$), ११६०४८-२, ११८८५५(#) For Private and Personal Use Only Page #492 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १.१.२६ ४७७ आगमिक विचार संग्रह, प्रा.,मा.गु.,सं., प+ग., श्वे., (नमो अरिहंताणं नमो), ११८५१६-९७(+$) आचारदिनकर , आ. वर्द्धमानसूरि, सं., उद. ४०, प+ग., मूपू., (तत्त्वज्ञानमयो लोके), ११७८११(+S), ११९१२८(#$) (२) आचारदिनकर-हिस्सा पौष्टिकविधानमहापूजनविधि, आ. वर्द्धमानसूरि, सं., प+ग., मूपू., (सचायं श्रीयुगादि जिनबिंब), ११९३६२($) (२) आचारदिनकर-हिस्सा शांतिकमहापूजन विधि, आ. वर्द्धमानसूरि, मा.गु.,सं., प+ग., मूपू., (तिहां प्रथम शुभदिने), ११९६७३ आचारसार, सं., श्लो. ४४, पद्य, दि., (--), ११७१९०-२(+$) आचारांगसूत्र , आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., अध्य. २५, ग्रं. २६४४, प+ग., मूपू., (सुयं मे आउसं० इहमेगे), ११८४२१(+#$), ११८९०५(+), ११८९७६(+), ११८९७७(+), ११९३५९(+), ११९०१९-१, ११९८१७(#), ११८३१२(s), ११८७००(६) (२) आचारांगसूत्र-टीका# , आ. शीलांकाचार्य, सं., श्रु. २, ग्रं. १२०००, वि. ९१८, गद्य, मपू., (जयति समस्तवस्तु), ११८९१३ (२) आचारांगसूत्र-बालावबोध, आ. पार्श्वचंद्रसूरि, मा.गु., गद्य, मूपू., (प्रणम्य श्रीजिनाधीशं), ११९०१९-१, ११८७००(5) (२) आचारांगसूत्र-टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (श्रीवीतरागने नमस्कार), ११८९७६(+), ११९८१७(#), ११८३१२(5) (२) आचारांगसूत्र-हिस्सा श्रुतस्कंध २ का टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (ते चारित्रीओ मुलगुण), ११८५३८ (२) आचारांगसूत्र-हिस्सा श्रुतस्कंध २, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., अध्य. १६, प+ग., मूपू., (से भिक्खु वा भिक्खु), ११८५३८ आचार्य विहरण विचार, प्रा.,सं., गद्य, मप., (उप्पन्ननाणा जहन्न अडंती), ११८५१६-७४(+) आतुरप्रत्याख्यान प्रकीर्णक, ग. वीरभद्र, प्रा., गा. ७१, वि. ११वी, प+ग., मपू., (देसिक्कदेसविरओ), ११७३९७-२(5) आत्मप्रबोध, आ. जिनलाभसूरि, सं., प्रका. ४, श्लो. १८१, वि. १८३३, प+ग., मपू., (अनंतविज्ञानविशुद्ध), ११७२२३($) आदिजिन जन्माभिषेक कलश, प्रा.,सं., गा. १६, पद्य, मपू., (मुक्तालंकार विकार), ११८६८२-१(#) आदिजिनमहिम्न स्तोत्र, आ. रत्नशेखरसूरि, सं., श्लो. ३८, वि. १५वी, पद्य, मपू., (महिम्नः पारं ते परमलभमाना), ११५८६५(+$) (२) आदिजिनमहिम्न स्तोत्र-बालावबोध, मा.गु., श्लो. ३८, गद्य, मूपू., (हे विभो तमारा महिमा), ११५८६५(+$) (२) आदिजिनमहिम्न स्तोत्र-अन्वय, सं., गद्य, पू., (हे विभो यत समवसृति भूमौ), ११५८६५ (+$) आदिजिन स्तवन, वा. विनयविजय, सं., श्लो. ७, पद्य, मपू., (श्रीमरुदेवातनुजन्मानं), ११९७८७-२ आदिजिन स्तवन-शत्रुजयतीर्थमंडन, उपा. यशोविजयजी गणि, सं., श्लो. ६, वि. १८वी, पद्य, मूपू., (आदिजिनं वंदे गुणसदन), ११९७८७-३ आदिजिन स्तुति, मु. शोभनमुनि, सं., श्लो. ४, पद्य, मूपू., (भव्यांभोजविबोधनैक), ११५२६५-१(६) आदिजिन स्तुति, सं., श्लो. ४, पद्य, मूपू., (ऋषभनाथ भुनाथनिभानने), ११९१४३-१७(+-), ११७३२२-९, ११९६४८-१९ आदिजिन स्तुति, सं., श्लो. ४, पद्य, मूपू., (युगादिपुरुषंद्राय युगादि), ११९१४३-१६(+-), ११८६९४-१३, ११९६४८-९ आदिजिन स्तुति, सं., श्लो. १, पद्य, मूपू., (सुवर्णवर्णं गजराज), ११८५९६-२(+) आदिजिन स्तुति-अर्बदगिरिमंडन, प्रा., गा. ४, पद्य, मप., (वरमुत्तियहार सुतारगुणं), ११९१४३-१३(+-), ११८६९४-१२ आदिजिन स्तुति-भक्तामरस्तोत्रप्रथमश्लोकपादपूर्तिमय, सं., श्लो. ४, पद्य, मूपू., (भक्तामरप्रणतमौलिमणि), ११६४६६-१, ११७८४०-१,११७८५२-१ आदिजिन स्तोत्र-शत्रुजयतीर्थमंडण, सं., श्लो. १०, पद्य, मपू., (पूर्णानंदमयं महोदयमय), ११५९०३, ११९३०७-९ आयुष्यलक्षण श्लोक, सं., श्लो. ६, पद्य, मूपू., इतर, (लक्ष्मं लक्षणो लक्षत), ११७२३४-१(+#) आरंभसिद्धि, आ. उदयप्रभसूरि, सं., विम. ५, श्लो. ४१३, ग्रं. ४६०, वि. १३वी, पद्य, मूप., इतर, (ॐ नमः सकलारंभसिद्धि), ११५६४३-१(+६) आर्यदेशनाम गाथा, प्रा., गा. ६, पद्य, श्वे., (रायगिह मगह चांपा अंग),११८५१६-४५(+) आलाप पद्धति, आ. देवसेन, सं., अधि. १९, सू. २२८, वि. १०वी, पद्य, दि., (गुणानां विस्तरं), ११८६०४-२२(+#$), ११९६६३(+), ११६६१५(७), ११७७५४(६) (२) आलाप पद्धति-भावप्रकासिनी भाषाटीका, पुहि., वि. २०वी, प+ग., दि., (चेतन द्रव्य अनंतगुण ज्ञान), ११९६६३(+) आलोचणा रथ, प्रा.,मा.गु., गा. १, प+ग., मूपू., (कय चउसरणो नाणी निअमिअ), ११५६१३-२(+) आलोयणा, प्रा.,मा.ग., गद्य, श्वे., (एक प्रकार की असंजम), ११९१७२(#$) For Private and Personal Use Only Page #493 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra ४७८ www.kobatirth.org संस्कृत, प्राकृत व अपभ्रंश भाषाओं की मूल कृति के अकारादि क्रम से प्रत- पेटाकृति क्रमांक सूची परिशिष्ट १ " आलोयणा विधि, प्रा.,मा.गु., गद्य, मूपू., (प्रथमं ईर्यापथिकी), ११८०१५-२(-) आलोयणा विधि, प्रा., मा.गु. सं., गद्य, मूपू., (प्रथम गृहस्थी अविरत), ११८९७१-२ आवलिकादिकालमान विचार, सं., गद्य, म्पू, (२५६ आवलि १ वर्ग मूले) ११७०८६-२ (०) आवश्यकसूत्र, प्रा. अध्य. ६. सू. १०५, प+ग. म्पू, णमो अरहंताणं० स. ११६३८९ (+) . " (२) आवश्यकसूत्र -निर्युक्ति, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा. गा. २५५०, ग्रं. ३१००, पद्य, मूपू. (आभिणिबोहियनाणं), ११६६३८(१६) " Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir (२) आवश्यकसूत्र-भाष्य, प्रा., पद्य, मूपू., (जह गणहरेहिं भणियं), ११६६३८(#$) (२) आवश्यकसूत्र - शिष्यहिता टीका#, आ. हरिभद्रसूरि, सं. ग्रं. २२०००, गद्य, मूपू., ( प्रणिपत्य जिनवरेंद्र ), प्रतहीन. (३) आवश्यकसूत्र - शिष्यहिता टीका का बोलसंग्रह, संबद्ध, मा.गु., गद्य, म्पू, (हवे ४५ आगम प्रभुजीई), ११७३६१-२ (०३) (२) आवश्यकसूत्र-टबार्थ, मा.गु., गद्य, म्पू., (नमो० नमस्कार होवड), ११६३८९(+) (२) आवश्यकसूत्र - हिस्सा पच्चक्खाण पारणक गाथा, प्रा. गा. २, पद्य, मूपू. ( फासियं पालियं चेव), १९८२१५-२ " (२) आवश्यकसूत्र-हिस्सा प्रत्याख्यानादि ४४ आगार, प्रा. सं., गद्य, म्पू., (१ अन्नत्वणाभोगेणं २ सहसा ), ११८५१६-३७(*), ११८५१६-५६(+) (३) आवश्यकसूत्र- प्रत्याख्यानादि ४४ आगार की व्याख्या, सं., गद्य, म्पू (अनाभोत्यंतविस्मृतिः), ११८५१६-५६) (२) शक्रस्तव, हिस्सा, प्रा., गा. १०, पद्य, मूपू ( नमुत्थुर्ण अरिहंताणं), प्रतहीन. , (३) शक्रस्तव शक्रस्तवाम्नाय संबद्ध, प्रा. सं., मंत्र. १६, गद्य, भूपू (ॐ नमुत्थुण अरहंताणं भगवंत), ११८९६८-२ " (२) सकलकुशलवल्लि चैत्यवंदनसूत्र, हिस्सा, सं., श्लो. १, पद्य, मूपू., (सकल कुशलवल्ली पुष्करावर्त), ११५४०१-१(०) (३) सकलकुशलवल्लि चैत्यवंदनसूत्र- अर्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., ( इहां श्री अरिहंत), ११५४०१-१(+) (२) जं किंचिसूत्र, प्रा., गा. १, पद्य, मूपू., (जं किंचि नामतित्थं), ११७३३३-३(+) (२) ६ आवश्यक स्तवन, संबद्ध, मु. विनयविजय, मा.गु., ढा. ६, गा. ४३, वि. १८वी, पद्य, मूपू., (चोवीसे जिन चिंतवी चतुर), ११५६८७ (5) (२) १९ कायोत्सर्ग दोष विचार, संबद्ध, मा.गु., गद्य, मूपू. (घोडानी परि एकई पगि), ११७०७१-५ (+) (२) आवश्यक सूत्र - (प्रा.मा.गु) संवत्सरीप्रतिक्रमण विधि, संबद्ध, प्रा., मा.गु., प+ग. म्पू (सकला० स्नातस्या० ), ११५३६८ (45) (२) आवश्यकसूत्र- प्रतिलेखन विधि, संबद्ध, प्रा., मा.गु., गद्य, मूपू., (हरियावही पंडिकमी), ११५३०६-१ (२) आवश्यकसूत्र-श्रावकप्रतिक्रमणसूत्र संग्रह-स्थानकवासी, संबद्ध, प्रा., मा.गु., प+ग., मूपू., स्था., ( नमो अरिहंताणं० तिखुत), יי ११७२१५(+) (३) श्रावकप्रतिक्रमणसूत्र - स्थानकवासी-टबार्थ, मा.गु. गद्य, मूपू., स्था. (नमस्कार हो कर्मरूप), ११७२१५ (+) (२) आवश्यकसूत्र-षडावश्यकसूत्र, संबद्ध, प्रा., गद्य, मूपू., ( नमो अरिहंताणं नमो ), प्रतहीन. (३) आवश्यकसूत्र- षडावश्यकसूत्र का वालावबोध, मा.गु., गद्य, मूपू., (अरिहंतने नमस्कार), ११९४१५ (२) आवश्यकसूत्र स व-सामायिक लेने व पारने की विधि, संबद्ध, गु., प्रा., मा.गु., गद्य, मूपू., (अथ सामायक लेवानी), ११८६४५-१(+) (२) इरियावही सज्झाय, संबद्ध, उपा. विनयविजय, मा.गु., ढा. २, गा. २५, वि. १७३४, पद्य, मूपू., (श्रुतदेवीना चरण नमी), ११७७०३ (२) इरियावही सज्झाय, संबद्ध, पं. वीरविजय, मा.गु., गा. १४, वि. १९वी, पद्य, मूपू., (श्रीगुरु सन्मुख रही विनय), ११६०९७ (+), ११७९८६, ११६४८३ (#S) (२) कल्लाणकंद स्तुति, संबद्ध, प्रा., गा. ४, पद्य, मूपू. (कल्लाणकंदं पढमं), ११७२९६-१(+), १९८८८७-२(+), ११८५६२-२, ११५८२५-२१ For Private and Personal Use Only (२) कायोत्सर्ग १९ दोष, संबद्ध, सं., गद्य, मूपू., (संजइ कविट्ठेत्यादि), ११८५१६-३९(+) (२) क्षेत्रदेवता स्तुति, संबद्ध, सं., श्लो. १, पद्य, भूपू (यस्याः क्षेत्र समा), ११७५३०-४०) (२) जगचिंतामणिसूत्र संबद्ध, आ. गीतमस्वामी गणधर, प्रा., गा. ७, प+ग, मूपु. ( जगचिंतामणी जगनाह), ११७२१४(+) (२) देवसिप्रतिक्रमण विधि- खरतरगच्छीय, संबद्ध, प्रा., मा.गु. सं., प+ग, मूपू. (इच्छामि खमासमणो बंदि), ११९१४३-१ (+४), ११९१९३ (+), ११९६३९-१ (+), ११६२४८-३, ११७७८८($) Page #494 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ४७९ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १.१.२६ (२) देवसिप्रतिक्रमण विधि-तपागच्छीय, संबद्ध, प्रा.,मा.गु., गद्य, मूपू., (इरीयावही तसुतरी), ११९५१३(+), ११७९८३($) (२) देवसिप्रतिक्रमणसूत्र-तपागच्छीय, संबद्ध, प्रा.,मा.गु.,सं., प+ग., मपू., (नमो अरिहंताणं), ११८४५०-१(+), ११८५६२-१, ११८६६९-१(#), ११६८३७($), ११७५१५($) (३) देवसिप्रतिक्रमणसूत्र-तपागच्छीय-भावार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (जे त्रिभुवननी पूजानइ), ११८४५०-१(+), ११६८३७(5) (२) देवसियराईय प्रतिक्रमणसूत्र, संबद्ध, गु.,प्रा.,मा.गु., प+ग., पू., (नमो अरिहंताणं नमो), ११७७९०(६) (२) देवसिराईप्रतिक्रमणसूत्र-तपागच्छीय, संबद्ध, प्रा.,मा.गु.,सं., प+ग., मूपू., (नमो अरिहंताणं नमो), ११८६४५-३(+), ११८८८७-१(+$), ११७२१९(5) (२) देवसिराईप्रतिक्रमणसूत्र संग्रह-अंचलगच्छीय, संबद्ध, गु.,प्रा.,मा.गु.,सं., प+ग., मपू., (नमो अरिहंताणं० पढम), ११८२७९-१(+#s) (३) देवसिराईप्रतिक्रमणसूत्र संग्रह-अंचलगच्छीय-टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (--), ११८२७९-१(#s) (२) देवसीराइअ प्रतिक्रमणसूत्र*, संबद्ध, प्रा.,मा.गु., गद्य, मूपू., (पहिलै पडिकमणो करती), ११६९८२(-१) (२) देसावगासिक पच्चक्खाण, संबद्ध, प्रा., गद्य, मूपू., (अहन्नं भंते तुम्हाणं), ११८७२५-२ (२) पंचप्रतिक्रमणसूत्र-अंचलगच्छीय, संबद्ध, गु.,प्रा.,सं., प+ग., मूपू., (प्रथम संध्या समये), प्रतहीन. (३) श्रावक पाक्षिक अतिचार-अंचलगच्छीय, संबद्ध, मा.गु., गद्य, मपू., (इच्छा० गुरुपर्वभणी), ११८७३०-१ (२) पंचप्रतिक्रमणसूत्र-खरतरगच्छीय, संबद्ध, प्रा.,मा.गु.,सं., प+ग., मूपू., (णमो अरिहंताणं० जयउ), ११७५०१(+#s), ११८६९४-१, ११९६४८-७ (३) पंचप्रतिक्रमणसूत्र-खरतरगच्छीय-बालावबोध, मा.गु., गद्य, मूपू., (--), ११७५०१(+#5) (३) पंचप्रतिक्रमणसूत्र-खरतरगच्छीय-टबार्थ, मा.गु., गद्य, मप., (माहरउ नमस्कार अरिहंत), ११७५०१(+#$) (२) पंचप्रतिक्रमणसूत्र संग्रह-तपागच्छीय, संबद्ध, प्रा.,मा.गु.,सं., प+ग., मपू., (नमो अरिहंताणं), ११६५४३(+$), ११६६६७-१(+s), ११७४८२(+$), ११९१११(+#$), ११९६२६-१(+$), ११७७४७(#S) (३) पंचप्रतिक्रमणसूत्र संग्रह-तपागच्छीय-टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (श्रीमद्वामेयमानम्य), ११६५४३(+$) (३) पौषध प्रत्याख्यानसूत्र, संबद्ध, प्रा.,मा.गु., गद्य, पू., (करेमि भंते पोसह), ११६५६०-२(5) (३) मन्हजिणाणं सज्झाय-तपागच्छीय, संबद्ध, प्रा., गा. ५, पद्य, मप., (मन्हजिणाणं आणं मिच्छ),११६०४९-४ (२) पाक्षिकआलोचना विधि, संबद्ध, मा.गु., गद्य, मप., (इच्छा० संदि० पखिउं), १२०१०१-१(+) (२) पाक्षिकचौमासीसंवत्सरीतप आलापक, संबद्ध, प्रा.,मा.गु., गद्य, मपू., (इच्छाकारेण संदिसह), ११८८८७-१७(+), ११५७५८-२, ११५८१२-२ (२) पाक्षिकचौमासीसंवत्सरीप्रतिक्रमण विधि, संबद्ध, प्रा.,मा.गु., प+ग., मूप., (मुहपत्तिवंदणयं), ११५६१४(#) (३) छींक विचार, संबद्ध, मा.ग.,सं., गद्य, मप., (पाखी पडिकमणा करता), ११६०९४-३(+#), ११९२१५-३९(+) (२) पाक्षिकप्रतिक्रमण विधि, संबद्ध, पुहि.,प्रा.,मा.गु., गद्य, मूपू., (देवसिय आलो० इच्छाकार), ११५४१२(+६), ११९२१९(+#), ११७८५७(5) (२) पाक्षिक स्तुति, संबद्ध, आ. बालचंद्रसूरि, सं., श्लो. ४, पद्य, मूपू., (स्नातस्याप्रतिमस्य), ११८४४८-२(+), ११८६४५-८(+), ११७४७३, ११८५६२-७ (२) पौषधभेद विचार, संबद्ध, प्रा., गद्य, मूपू., (सोयं पोसहो आहाराइभेए), ११८५१६-६९(+) (२) पौषध लेवा विधि-खरतरगच्छीय, संबद्ध, मा.गु., गद्य, मप., (दिन उगां पछी प्रथम), ११६२४८-४($) (२) पौषध व राईप्रतिक्रमण विधि-खरतरगच्छीय, संबद्ध, मा.गु., गद्य, मूपू., (इरियावही पडिकमी लोगस), ११६२४८-१ (२) पौषध विधि*, संबद्ध, प्रा.,मा.गु., गद्य, मूप., (इरियावहि पडिकमिइं), ११७९२१(+), ११५३३३ (२) पौषध विधि, संबद्ध, प्रा.,मा.गु., गद्य, मूपू., (प्रथम इरियावही पडिक), ११७६८१-१(#$) (२) पौषधविधि संग्रह, संबद्ध, मा.गु., गद्य, म्पू., (इरियावहि चार नवकारनो), ११५५०० (२) प्रतिक्रमण विधि, संबद्ध, प्रा.,मा.गु., गद्य, मूपू., (श्रीप्रवचनसारोद्धार), ११९२३८($) (२) प्रतिक्रमणविधि संग्रह-अंचलगच्छीय, संबद्ध, मा.गु., गद्य, मूपू., (प्रथम प्रतीकमणनी वीधी), ११८०६६ For Private and Personal Use Only Page #495 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ४८० संस्कृत, प्राकृत व अपभ्रंश भाषाओं की मूल कृति के अकारादि क्रम से प्रत-पेटाकृति क्रमांक सूची परिशिष्ट-१ (२) प्रतिक्रमणविधि संग्रह-खरतरगच्छीय, संबद्ध, प्रा.,मा.गु., गद्य, मपू., (पाछिली रात्रइ शय्याथी ऊठी), १२००९८(+#) (२) प्रतिक्रमणविधि संग्रह-तपागच्छीय, संबद्ध, प्रा.,मा.गु., गद्य, मप., (देवसिय आलोइय पडिक्कं),११७३०४(६) (२) प्रतिक्रमण सज्झाय, संबद्ध, मु. धर्मसिंह मुनि, मा.गु., गा. ६, पद्य, मपू., (कर पडिकमणुं भावशू), ११८४९०-२, ११७७१६-४(#) (२) प्रतिक्रमणसूत्र संग्रह, संबद्ध, प्रा.,मा.गु.,सं., प+ग., मपू., (नमो अरिहंताणं नमो), १२०११२-२(+) (२) प्रतिक्रमणसूत्र संग्रह-श्वे.मू.पू.*, संबद्ध, प्रा.,मा.गु.,सं., प+ग., मूपू., (नमो अरिहंताणं नमो), ११९१००(+#$), ११९९५४-१(+$) (३) प्रतिक्रमणसूत्र संग्रह-श्वे.मू.पू.-टबार्थ , मा.गु., गद्य, म्पू., (हे वीतरागदेव तुमे), ११९१००(+#$) (२) प्रतिक्रमणसूत्र संग्रह-श्वेतांबर*, संबद्ध, प्रा.,सं., प+ग., मूपू, (नमो अरिहंताणं० करेमि), प्रतहीन. (३) आवश्यकसूत्र-प्रतिक्रमणसूत्र संग्रह की टीका (श्वेतांबर), सं., गद्य, मपू., (सव्वलोए अरिहंतचेईयाणं), ११९७२०-२(+#) (२) प्रतिक्रमणहेतुगर्भित स्वाध्याय, संबद्ध, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., ढा. १९, वि. १७४४, पद्य, मूपू., (श्रीजिनवर प्रणमी), ११६१६८() (२) प्रतिक्रमणहेतु विचार, संबद्ध, उपा. क्षमाकल्याण, मा.गु., गद्य, मप., (साधु अने श्रावक दोइ), ११७६०४(+$) (२) प्रत्याख्यानसूत्र, संबद्ध, प्रा., गद्य, मूपू., (उग्गए सूरे नमुक्कार), ११७५४०(+), ११८४५०-७(+), ११९१४३-३९(+-), ११७४६२, १२००७१(#), ११७२९८-१(६), ११७५७९($), ११७७७५(६), ११८६९४-१९($) (३) प्रत्याख्यानसूत्र-बालावबोध , पुहि.,मा.गु., गद्य, मूपू., (अन्नत्थणाभोगेणं अन्न), ११७७४२(+), ११८४५०-७(+) (३) प्रत्याख्यान आगारसंख्या गाथा, संबद्ध, प्रा., गा. ३, पद्य, मूपू., (दो चेव नमोक्कारे), ११६०१८ (४) प्रत्याख्यान आगारसंख्या गाथा-अर्थ, मा.गु., गद्य, मपू., (अन्नत्थणाभोगेणं), ११६०१८, ११६४८५-२ (२) राईप्रतिक्रमण विधि, संबद्ध, प्रा.,मा.गु., प+ग., मपू., (प्रथम इरियावही पडिक), ११६६९८-९(5) (२) राईप्रतिक्रमणसूत्र-तपागच्छीय, संबद्ध, प्रा.,मा.गु.,सं., प+ग., मूपू., (नमो अरिहंताणं नमो), ११९३७५ (३) भरहेसर सज्झाय, संबद्ध, प्रा., गा. १३, पद्य, मूपू., (भरहेसर बाहुबली अभय), ११५९९७, ११६४१७(), ११६८२९-२(६), ११७३५३($) (४) भरहेसर सज्झाय-व्याख्यान, मा.गु., गद्य, मूपू., (भरतेश्वर बाहूंबलि अभय), ११६४१७($) (२) रात्रिप्रतिक्रमणविधि गाथा, संबद्ध, प्रा., गा. ५, पद्य, मूपू., (कुसुमिण दुसुमिण राईय), ११८९८०-६(+) (२) वंदित्तुसूत्र, संबद्ध, प्रा., गा. ५०, पद्य, मूपू., (वंदित्तु सव्वसिद्धे), ११९०३९(+), ११९१४३-४३(+-), ११९३६०-१(+), ११९७२०-३(+#), ११५८२५-४(#$), ११७६११(#s), ११७८०९(६) (३) वंदित्तुसूत्र-टबार्थ*, मा.गु., गद्य, मूपू., (वंदितु क० वांदीने), ११९०३९(+$) (२) वरकनक स्तुति, संबद्ध, सं., श्लो. १, पद्य, मूपू., (वरकनक शंखविद्रुम), ११६०४९-७ (२) विशाललोचनदल स्तुति, संबद्ध, सं., श्लो. ३, पद्य, मूपू., (विशाललोचनदलं), ११६०४९-८ (२) श्रावकप्रतिक्रमणसूत्र-खरतरगच्छीय, संबद्ध, प्रा.,मा.गु.,सं., प+ग., मूपू., (णमो अरिहंताणं णमो), प्रतहीन. (३) पौषध सज्झाय-खरतरगच्छीय, संबद्ध, प्रा., गा. ३३, पद्य, म्पू., (जगचूडामणिभूओ उसभो),११६४६३-२(+), ११९१४३-४७(+-), ११६४३८ (२) श्रावकप्रतिक्रमणसूत्र-तपागच्छीय, संबद्ध, प्रा.,सं., प+ग., मप., (नमो अरिहंताणं० पंचिंदिय), ११७२१२(+#$), ११९५९७(+#), ११९९०२-१(+) (३) श्रावकप्रतिक्रमणसूत्र-तपागच्छीय का टबार्थ+बालावबोध, मु. जिनविजय, मा.गु., वि. १७५१, गद्य, मूपू., (बार गुणे करि सहित), ११९९०२-१(+) (३) श्रावकप्रतिक्रमणसूत्र-तपागच्छीय का बालावबोध, पं. हेमहंस गणि, मा.गु., वि. १५०१, गद्य, मूपू., (श्रेयांसि श्रीमहावीर), ११९५९७(+#) (२) श्रावकप्रतिक्रमणसूत्र-लोंकागच्छीय, संबद्ध, मु. जैनश्रमण, प्रा.,गु., प+ग., स्था., (णमो अरिहंताणं०० श्री), ११९६८१, ११९६९२ (२) श्रावकप्रतिक्रमणसूत्र संग्रह-श्वे.म.पू.मान्य, संबद्ध, प्रा.,मा.गु., प+ग., मपू., (नमो अरिहं० सव्वसाहूण), ११८२५१(+$), ११९७०७(+#) For Private and Personal Use Only Page #496 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ४८१ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १.१.२६ (३) श्रावकप्रतिक्रमणसूत्र-टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (अरिहंतनइ नमस्कार हुओ), ११९७०७(+#) (३) श्रावकपाक्षिकअतिचार-तपागच्छीय, संबद्ध, प्रा.,मा.गु., गद्य, मपू., (नाणंमि दंसणंमि०), ११८५१०(+#$), ११९०८७(+$), ११९१९२(+), ११९५२५(+), १२००२४(+$), १२००७६(+#), ११५८१२-१, ११७५५०(#$), ११७६५४(#$) (२) श्रावकसंक्षिप्तअतिचार*, संबद्ध, प्रा.,मा.गु., प+ग., मूपू., (पण संलेहणा पनरस), ११८९३६(+), ११९७९९(+) (२) श्रुतदेवी स्तुति, संबद्ध, सं., श्लो. १, पद्य, पू., (कमलदलविपुलनयना कमलमुखी), ११६४६२-२ (२) संध्या सामायिक विधि-खरतरगच्छीय, संबद्ध, मा.गु., गद्य, स्पू., (तिहां धर्मशाला), ११५७३७-२ (२) संसारदावानल स्तुति, संबद्ध, आ. हरिभद्रसूरि, प्रा.,सं., श्लो. ४, पद्य, मूपू., (संसारदावानलदाहनीरं सम्मोह), ११७२९६-७(+), ११८६४५-६(+), ११८५६२-५,११५८२५-१(#$) (२) साधुप्रतिक्रमणसूत्र संग्रह श्वे.मू.पू., संबद्ध, प्रा.,सं., प+ग., मूपू., (नमो अरिहंताणं नमो सिद्धाण), प्रतहीन. (३) आवश्यकसूत्र-साधुप्रतिक्रमणसूत्र संग्रह का हिस्सा पाक्षिकसूत्र, प्रा., प+ग., म्पू., (तित्थंकरे य तित्थे), ११६९७१(+$), ११८८६५(+$), ११८९८०-४(+), ११९१४३-६४(+-), ११९५७२(+#), ११९७४६(+$), ११८५३०-१, ११८१७८(#$), ११८७४६-१(१), ११७८६५($), ११८७२९(६), ११९६२३($), ११९६२४-१(-#$), १२००१७(-$) (४) पाक्षिकसूत्र-टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूप., (तीर्थंकर प्रते वांदउ), ११९५७२(+#), ११८७२९($) (३) आवश्यकसूत्र-साधुप्रतिक्रमणसूत्र संग्रह का हिस्सा पाक्षिकसूत्र व खामणासूत्र, प्रा., पद्य, भूपू., (तित्थंकरे य तित्थे), ११९९४८(+$) (३) क्षामणकसूत्र, हिस्सा, प्रा., आला. ४, गद्य, मप., (इच्छामि खमासमणो पियं), ११७६२८(+), ११८९८०-५(+), ११९१४३-६५(+-), ११८७४६-२(#) (३) पगामसज्झायसूत्र, हिस्सा, प्रा., सू. २१, गद्य, मप., (करेमि भंते० चत्तारि०), ११९१४३-४२(+-) (४) पगामसज्झायसूत्र-अर्थनिर्णयकौमुदी टीका, आ. जिनप्रभसूरि, सं., वि. १३६४, गद्य, मपू., (नत्वा श्रीवीरजिन), ११७४७०(+#$) (४) पगामसज्झायसूत्र-टीका, सं., गद्य, भूपू., (शुभयोगेभ्यो शुभयोग), ११७४६४(+$) (३) साधुअतिचारचिंतवन गाथा, संबद्ध, प्रा.,मा.गु., गा. १, पद्य, मपू., (सयणासणन्नपाणे), ११६६८८-१(+) (३) साधुदेवसिप्रतिक्रमण अतिचार-म.पू., संबद्ध, मा.गु., गद्य, मपू., (ठाणे कमणे चंकमणे), ११६६८८-४(+) (४) साधुदेवसिप्रतिक्रमण अतिचार-मू.पू.-अवचूरि, सं., गद्य, मूपू., (ठाणे कमणे इत्यादि वक्ति), ११६६८८-४(+) (३) साधुपाक्षिकअतिचार-मू.पू., संबद्ध, प्रा.,मा.गु., गद्य, मूपू., (नाणम्मि दंसणम्मि०), ११६७६४-१(+), ११७१०३(+), ११८८८७-१६(+), ११८९८०-१(+), ११९२२०-५(+#), ११६४६२-१, ११७६३९($) (३) साधुराईप्रतिक्रमण अतिचार-श्वे.मू.पू., संबद्ध, प्रा.,मा.गु., गद्य, मूपू., (संथारा उवट्टणकि परिय), ११६६८८-५(+) (४) साधुराईप्रतिक्रमण अतिचार-श्वे.म.पू.-अवचूरि, सं., गद्य, मपू., (संस्तारके उद्वर्तना एकवार), ११६६८८-५(+) (२) साधुश्रावकप्रतिक्रमणसूत्र-तपागच्छीय, संबद्ध, प्रा.,मा.गु.,सं., प+ग., मपू., (नमो अरिहंताणं नमो सिद्धाण), ११८२८०(+$), ११९७०८-१(+), ११९७६७-१(+$), ११७२२२($) (३) साधुश्रावकप्रतिक्रमणसूत्र-तपागच्छीय-टबार्थ, मा.गु., गद्य, पू., (जे त्रिभुवननी पूजानइ), ११९७६७-१(+$) (३) चउक्कसायसूत्र, हिस्सा, प्रा., गा. २, पद्य, मूपू., (चउक्कसायपडिमलुल्लूरण), ११८४५०-५(+), ११९१४३-५(+-), ११९९५४-४(+), ११९६४८-२५ (४) चउक्कसायसूत्र-बालावबोध, मा.गु., गद्य, मूपू., (चिहुं कषाय रुपिया), ११८४५०-५(+) (२) साधुश्रावकप्रतिक्रमणसूत्र-लोंकागच्छीय, संबद्ध, प्रा.,सं., प+ग., स्था., (णमो अरिहंताणं), ११९९८१-१ (३) साधुश्रावकप्रतिक्रमणसूत्र-लोंकागच्छीय-टबार्थ, मा.गु., गद्य, स्था., (श्रीवीतरागने नमस्कार करी), ११९९८१-१ (२) साधुश्रावकप्रतिक्रमणसूत्र-स्थानकवासी, संबद्ध, प्रा.,मा.गु., प+ग., मपू., स्था., (नमो अरिहंताणं०), ११९६२५ (+$) (३) साधुश्रावकप्रतिक्रमणसूत्र-स्थानकवासी-टबार्थ, मा.गु., गद्य, मपू., स्था., (नमस्कार हो कर्मरूप), ११९६२५(+$) (२) सामायिक पारने की विधि, संबद्ध, मा.गु., गद्य, मप., (प्रथम खमासमण देई), ११९२३६-३(#) (२) सामायिक लेने की विधि, संबद्ध, मा.गु., गद्य, मूपू., (प्रथम वस्त्र उतारी), ११६१०७(+#) आहारादिमान गाथा-भरतादिक्षेत्रे, प्रा., गा. ३, पद्य, मूपू., (बत्तीसं कवलाहारो), ११८५१६-१००(+) For Private and Personal Use Only Page #497 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ४८२ संस्कृत, प्राकृत व अपभ्रंश भाषाओं की मूल कृति के अकारादि क्रम से प्रत-पेटाकृति क्रमांक सूची परिशिष्ट-१ इंद्रनाग कथा-बालतपसी, सं., श्लो. २१, पद्य, मूप., (वसंतपुर नामास्ति), ११६३४५-१(+) इंद्रियपराजयशतक, प्रा., गा. १००, पद्य, मप., (सच्चिअ सरो सो), ११७१८८($) इष्टतिथ्यादि सारणी, मु. लक्ष्मीचंद्र, सं., वि. १७६०, पद्य, मपू., (श्रीवामेयं नमस्कृत्य), ११६८३८-१(#) इष्टोपदेश, आ. देवनंदी, सं., श्लो. ५१, वि. ५वी, पद्य, दि., (यस्य स्वयं स्वभावाप्ति), ११८६०४-१५(+#$) उक्तिरत्नाकर, उपा. साधुसुंदर, प्रा.,सं., गद्य, मूप., इतर, (स्मृत्वा श्रीभारती), ११८४१५(+#) उत्तमकुमार चरित्र, सं., गद्य, मूपू., (भक्त्या वस्त्राणि), ११६३५०-२(+$) उत्तराध्ययनसूत्र, मु. प्रत्येकबुद्ध, प्रा., अध्य. ३६, ग्रं. २०००, प+ग., मूप., (संजोगाविप्पमुक्कस्स), ११५४९०(+$), ११६२२५(+$), ११६६९४(+#$), ११८११२(+9), ११८७८३(+), ११९०००(+$), ११९०२०(+$), ११९५९६ (+$), ११९६२२(+), ११८०६९, ११९३१०-१,११५४११(#), ११७५३१(#$), ११७९०८(#$), ११७९३८(#$), ११८४२६(#$), ११६७५२(), ११६८००६), ११८५०८(s), ११९४२१(६) (२) उत्तराध्ययनसूत्र-अधिरोहिणी वृत्ति, मु. भावविजय, सं., अध्य. ३६, ग्रं. १४२५५, वि. १६८९, गद्य, मूपू., (ॐ नमः सिद्धि), ११८७८३(+) (२) उत्तराध्ययनसूत्र-टीका*, सं., गद्य, म्पू., (--), ११८५०८(5) (२) उत्तराध्ययनसूत्र-सुखबोधा टीका, आ. नेमिचंद्रसूरि, सं., ग्रं. १२०००, वि. ११२९, गद्य, मूपू., (प्रणम्य विघ्नसंघात), प्रतहीन. (३) उत्तराध्ययनसूत्र-सुखबोधा टीका की कथा, आ. नेमिचंद्रसूरि, प्रा., गद्य, मूपू., (--), प्रतहीन. (४) उत्तराध्ययनसूत्र-सुखबोधा टीका की कथा का अनुवाद, मु. मुनिसुंदरसूरि-शिष्य, सं., गद्य, मपू., (अर्हतः सर्वसिद्धाश्च), ११८९८६(+) (२) उत्तराध्ययनसूत्र-बालावबोध, आ. पार्श्वचंद्रसूरि, मा.गु., गद्य, मूपू., (--), ११९५९६(+$) (२) उत्तराध्ययनसूत्र-बालावबोध , मा.गु., गद्य, भूपू., (संसारतणा संबंधथी), ११६६९४(+#$) (२) उत्तराध्ययनसूत्र-टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (संयोग बे प्रकारे), ११९०००(+$), ११९६२२(+), ११८४२६(१६), ११६७५२($), ११९४२१(६) (२) उत्तराध्ययनसूत्र-टबार्थ + कथा संग्रह , मा.गु., गद्य, स्पू., (संजोग बि प्रकारे), ११७५३१(#$) (२) उत्तराध्ययनसूत्र-कथा संग्रह, मा.गु., कथा. ४, गद्य, मूपू., (एक आचार्यनइं एक चेलो), ११८११२(+$), ११९६२२(+$) (२) उत्तराध्ययनसूत्र-कथा संग्रह, सं., पद्य, मूपू., (एकस्य आचार्यस्य), ११६७८७(45) (२) उत्तराध्ययनसूत्र-हिस्सा २९वाँ अध्ययन, मु. प्रत्येकबुद्ध, प्रा., गा. ७४, पद्य, मपू., (सुअं मे आउसं तेणं), प्रतहीन. (३) उत्तराध्ययनसूत्र-हिस्सा २९वाँ अध्ययन का बोल संग्रह, संबद्ध, मा.गु., बो. ७३, गद्य, मूपू., (संवेग१ ते मोक्षनो अभिलाष), ११९३७०, ११७३६१-१(#S) (२) उत्तराध्ययनसूत्र-हिस्सा अध्ययन-१६, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., गद्य, मूपू., (सुअं मे आउसं तेणं), ११८५२९-४(+) (३) उत्तराध्ययनसूत्र-हिस्सा अध्ययन-१६ का टबार्थ, मा.गु., गद्य, मपू., (सु सांभल्यो मै आउषवं), ११८५२९-४(+) (२) उत्तराध्ययनसूत्र-हिस्सा अध्ययन ७ उरभिज्ज, प्रा., गा. ३०, पद्य, मूपू., (जहा एसं सुमद्दिस्स कोइ), ११७४९४(+$) (३) उत्तराध्ययनसूत्र-हिस्सा अध्ययन ७ उरभिज्जं का टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (जहाक० जिम आएसंक० प्राहुणा), ११७४९४(+$) (२) उत्तराध्ययनसूत्र-हिस्सा अध्ययन ९ नमिपवज्जा, मु. प्रत्येकबुद्ध, प्रा., गा. ६२, पद्य, मपू., (चइऊण देवलोगाओ उवयन्न), ११८७७५(+-#) (३) उत्तराध्ययनसूत्र-हिस्सा अध्ययन ९ नमिपवज्जा का टबार्थ, मा.गु., गद्य, मप., (च० चवीने किहां थकि), ११८७७५(+-#) (२) उत्तराध्ययनसूत्र-हिस्सा पापश्रमणीय अध्ययन, मु. प्रत्येकबुद्ध, प्रा., गा. २१, प+ग., मूपू., (जे केइ उ पव्वईए नि), ११९३१०-२ (३) उत्तराध्ययनसूत्र-हिस्सा पापश्रमणीय अध्ययन का टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (जे० जिके एक ए प्रवा ), ११९३१०-२ (२) उत्तराध्ययनसूत्र-चयनितगाथा संग्रह, प्रा., गा. ३८, पद्य, मपू., (संजोगाविप्पमुक्कस्स), ११७७७७(+$), १२००५५(+#$) (३) उत्तराध्ययनसूत्र-चयनितगाथा संग्रह-टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (दीक्षा लीधइ नाथ हुवो पहिल),११७७७७(+$) (२) उत्तराध्ययनसूत्र-गीत, संबद्ध, ग. महिमासिंह, मा.गु., ढा. ३६, वि. १६७५, पद्य, मूपू., (श्रीजिनवर पदजुग नमी), ११९५६०(+$) For Private and Personal Use Only Page #498 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ४८३ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १.१.२६ (२) उत्तराध्ययनसूत्र-गीत, संबद्ध, उपा. राजशील, मा.गु., गी. ९, पद्य, म्पू., (सरसति मति अति निरमली), ११५६३७-३(+#$) (२) उत्तराध्ययनसूत्र-द्रुमपत्रीयाध्ययन सज्झाय, संबद्ध, पंन्या. खिमाविजय , मा.गु., गा. २२, पद्य, मूपू., (वीर विमल केवल धणीजी), ११७१३८(+) (२) उत्तराध्ययनसूत्र-विनयादि ३६ अध्ययन सज्झाय, संबद्ध, उपा. उदयविजय, मा.गु., सज्झा. ३६, पद्य, मूपू., (पवयणदेवी चित्त धरी), ११८७३६-६ (२) उत्तराध्ययनसूत्र-व्याख्यानपीठिका, संबद्ध, मा.गु., गद्य, मूपू., (ईहां श्री अरिहंता भगवंत), ११६००३ उत्सर्गापवाद षड्भंगी विचार, प्रा.,सं., गद्य, मपू., (उत्सर्गादपवादात्सर्गा०), ११७५७४(+) उपकेशगच्छ चरित्र, आ. कक्कसूरि, सं., श्लो. ७३५, वि. १३९३, पद्य, मपू., (--), ११९६५६(+#$) उपदेशचिंतामणि, आ. जयशेखरसूरि, प्रा., अधि. ४, गा. ५४०, पद्य, मूपू., (तित्थयरे भयवंते परमग), ११७३७९($) (२) उपदेशचिंतामणि-अवचूरि, सं., गद्य, मपू., (--), ११७३७९($) उपदेशतरंगिणी, ग. रत्नमंदिरगणि, सं., त. ५, ग्रं. ३३००, पद्य, मप., (श्रीनाभेयः स वो देया), प्रतहीन. (२) औपदेशिकतरंगिणी-(सं.,प्रा.)हिस्सा तरंग ३-४, ग. रत्नमंदिरगणि, सं., पद्य, मप., (--), प्रतहीन. (३) औपदेशिकतरंगिणी-(सं.,प्रा.)हिस्सा तरंग ३-४ का (सं.,प्रा.)चयन, ग. रत्नमंदिरगणि, प्रा.,सं., पद्य, स्पू., (मणसा होइ चउत्थं छट्ठफलं), ११६४८६-३(+) उपदेशमाला, ग. धर्मदासगणि, प्रा., गा. ५४४, पद्य, मप., (नमिऊण जिणवरिंदे इंद), ११८२८३(+#), ११९०६२(+#), ११९६६८(+#), ११९९५९(६) (२) उपदेशमाला-हेयोपादेया वृत्ति, ग. सिद्धर्षि गणि, सं., ग्रं. ९५००, वि. १०वी, गद्य, मप., (हेयोपादेयार्थोपदेश), ११८२८३(+#) (२) उपदेशमाला-पर्याय, आ. जयशेखरसूरि, सं., ग्रं. १५००, गद्य, मूप., (इंद्रनरेंद्रार्चितान), ११८८६८($) (२) उपदेशमाला-टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (नमिऊण कहीइ नमीनइ), ११९६६८(+#$) (२) उपदेशमाला-कथा, मा.गु., गद्य, मूपू., (हवे श्रीउपदेशमाला), ११९६६८(+#$), ११९९५९(६) (२) उपदेशमाला-गाथानुक्रमणिका, प्रा., गद्य, मूपू., (नमिऊण जगचूडाम सवस्सर), ११६८३२(+) उपदेशरत्नमाला, आ. पद्मजिनेश्वरसूरि, प्रा., गा. २६, पद्य, मूपू., (उवएसरयणकोसं नासिय नीसेस), ११६६९३(+$) (२) उपदेशरत्नमाला-टबार्थ, मा.गु., गद्य, मपू., (उपदेशरूप रतन तेहनो), ११६६९३(+$) उपदेश संग्रह, सं., श्लो. ४३९, पद्य, मूपू., (प्रणम्य पुण्यपद्मा), ११८८३५(+) उपधानतप विधि, प्रा.,मा.गु.,सं., प+ग., मूपू., (प्रथम शुभदिवसइ पोषध), १२००९४ उपधानतपविधि यंत्र, प्रा.,मा.गु., को., मपू., (उपधाननाम१ सूत्रनाम२), ११७३५५(+) उपमिति भवप्रपंचा कथा, ग. सिद्धर्षि गणि, सं., प्र.८, ग्रं. १६०००, वि. ९६२, प+ग., मप., (नमो नि शिताशेषमहा), प्रतहीन. (२) उपमितिभवप्रपंचा कथा-हिस्सा संसारीजीव चरित्र, ग. सिद्धर्षि गणि, सं., वि. ९६२, पद्य, मपू., (अस्तीह लोके सुमेरूरि), प्रतहीन. (३) उपमितिभवप्रपंचा कथा-हिस्सा संसारीजीव चरित्र का बालावबोध, ग. अमृतसागर, मा.गु., गद्य, मूपू., (वाग्देवीं प्रणिपत्य), ११७८४८-२($) उपयोग विधि, प्रा., गद्य, मपू., (संपयं उवओगं विणा), ११६६६९-२ उपासकदशांगसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., अध्य. १०, ग्रं. ८१२, प+ग., मूपू., (तेणं० चंपा नामं नयरी), ११८६०१(+#s), ११९५६२(+#), ११७४२०-३(#), ११८५९४(#$), ११८९०२($) (२) उपासकदशांगसूत्र-टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (श्रीवर्द्धमानमानम्य), ११८६०१(+#s), ११९५६२(+#), ११८५९४(#$), ११८९०२(१) (२) उपासकदशांगसूत्र-विषयसूची, मा.गु.,सं., गद्य, मूपू., (चंपानगरी सुधर्मस्वामीसु), ११५५३७(+#$), ११७४२०-१(#S) उवसग्गहर स्तोत्र, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., गा. ५, पद्य, मूपू., (उवसग्गहरं पासं पास), ११६७९५-१(#) (२) उवसग्गहर स्तोत्र-गाथा ५ की भंडारगाथा, संबद्ध, आ. भद्रबाहस्वामी, प्रा., गा. २, पद्य, मप., (तुह दंसणेण सामिय), १२०१४८-५ For Private and Personal Use Only Page #499 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra ४८४ www.kobatirth.org संस्कृत, प्राकृत व अपभ्रंश भाषाओं की मूल कृति के अकारादि क्रम से प्रत-पेटाकृति क्रमांक सूची परिशिष्ट-१ उवसग्गहर स्तोत्र- गाथा ७, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., गा. ०७, पद्य, मूपू (उवसग्गहरं पासं०० ॐ), ११८९६८-३ ऋषिदत्ताकथानक, सं., प+ग., मूपू., (रथर्हनं नगरम राजा), ११८९०१(+#) ऋषिमंडल पूजा, सं. गद्य, मूपू. (श्रीऋषभाय नमः), ११५४२९(+) ऋषिमंडल प्रकरण, आ. धर्मघोषसूरि प्रा. गा. २०९ ग्रं. २५९, वि. १४वी, पद्य, म्पू. (भत्तिब्भरनमिरसुरवर), ११८५३१(+), ११८४१७(#$), ११९०६६ ($) " (२) ऋषिमंडल प्रकरण-कथार्णवांक वृत्ति, ग. पद्ममंदिर, सं. ग्रं. ७२६१, वि. १५५३, गद्य, मूपु., (जयाय जगतामीशो युगादीशो). "" ११८७७२(+४) (२) ऋषिमंडल प्रकरण- टीका, ग. शुभवर्धन, सं., गद्य, मूपू. (योभूद्युगादीशिवशुद्ध), १९८४१७(०६) " (२) ऋषिमंडल प्रकरण-प्रभातव्याख्यानपद्धति टीका, ग. हर्षनंदन, सं. ग्रं. ४५६४, वि. १७०४, गद्य, मूपू., (अध मल्लिस्वामीपूर्व), ११९२४१-१ (+$) ऋषिमंडल स्तोत्र, सं., श्लो. ८४, पद्य वि., (आद्यंताक्षरसंलक्ष्य), ११८९२३(०) ऋषिमंडल स्तोत्र-बृहद्, आ. गौतमस्वामी गणधर, सं., श्लो. ६२, ग्रं. १५०, पद्य, मूपू., (आद्यंताक्षरसंलक्ष्यमक्षरं), ११५२६९(+$), ११५२७७(+), ११७४०७(+४) ११७४७६(+), ११९९६५-२(+), ११७४९८-३०), ११९५५६-१(१), ११५८६३ (३), ११६८७८($), ११७५०० ($) Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir (२) ऋषिमंडल स्तोत्र- बृहद्-टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (आदिको अक्षर अंतको अक्षर), ११९५५६-१(१) " "" " (२) ऋषिमंडल स्तोत्र - बृहद्- (गु.सं.) ऋषिमंडलपूजनविधि, संबद्ध, मा.गु. सं., प+ग, भूपू (जे स्थानमा पूजन), ११७९६८-१(5) (२) ऋषिमंडल स्तोत्र- बृहद् पूजाविधि, संबद्ध, सं. ग्रं. ३८३, गद्य, मूपु. ( प्रणम्य श्रीजिनाधीश), ११७७३९-२(४) ऋषिमंडल स्तोत्र-लघु, आ. गौतमस्वामी गणधर, सं., श्लो. ६३, पद्य, मूपू., (आद्यंताक्षरसंलक्ष्य), ११७७३९-१ एकादशीतिथि स्तुति, आ. ज्ञानविमलसूरि, सं., श्लो. ४, पद्य, मूपू., (मल्लिदेव सुजन्म संयम), ११६९४५-४०१, ११६३९०-१(१) एकीभाव स्तोत्र, आ. वादिराजसूरि, सं., श्लो. २६, ई. ११वी, पद्य, दि., (एकीभावं गत इव मया), ११७९४६ एकेंद्रियादिजीव निवासस्थान गाथा, प्रा., गा. ४, पद्य, मूपू (एगिंदिअ पंचिंदिअ उड्ढे अ) ११५४०६ १२(+) औदारिकवैक्रियाहार गाथा, प्रा., गा. २, पद्य, मूपू., ( उरालविउव्वाहारा छण्हवि), ११५४०६-२५(+#) औपदेशिक गाथाजीवदया, प्रा., गा. १, पद्य, मूपू., (कल्याणकोडि जणणी दूरीतदरि), ११८५२९-३(+) (२) औपदेशिक गाथा - जीवदया बालावबोध, मा.गु., गद्य, म्पू., (श्रीतीर्थंकरदेव श्रीवीर), ११८५२९-३(+) औपदेशिक गाथा संग्रह *, पुहिं., मा.गु., सं., पद्य, श्वे., (अजो कृष्ण अवतार कंस), ११७४२२-२ (+), ११८१५७(+#$), ११९२१५-२२(०), ११८१४७-३८१ . औपदेशिक गाथा संग्रह, प्रा., गा. ४, पद्य, मूपू., (जं जं समयं जीवो), ११८६५२-५(+) औपदेशिक दोहा संग्रह, पुहिं., प्रा., मा.गु., सं., गा. ९, पद्य, श्वे., ( काम वली सवही पुरहे), ११७००४-२ (+), ११९३५८-२ (+), ११९६१२-९५(+), १२०००९-४(+), ११५४९५-२(१), ११६५२६-२(१), १९८१४७-५४०, ११५३४६-४(१) औपदेशिक दोहा संग्रह, मा.गु. सं., गा. ११७, पद्य, वे., (स्वस्ति श्री प्रभूशांति), ११८०४७ औपदेशिक दोहा संग्रह-पुण्य, पुहिं., प्रा., गा. ४, पद्य, श्वे., (लक्ष्मी केने अकल के विवाद), ११९७४५-१११(+) औपदेशिक प्रहेलिका, पुहिं. मा.गु., सं., पद्य, वे, पथरसुत की पुतली बनसुत), १९९९२२-१२ " औपदेशिक श्लोक, सं., श्लो. १, पद्य, मूपू., ( क्रोध मान यथा लोभं), ११७०१६-६ औपदेशिक श्लोक सं. लो. १, पद्य, भूपू (जिनेंद्रपूजा गुरु), ११९५२३(+०) ., יי (२) औपदेशिक श्लोक-बालावबोध, मा.गु., गद्य, मूपू., (अरिहंत भगवंत अशरण शरण), ११९५२३(+#) औपदेशिक श्लोक संग्रह *, पुहिं., प्रा., मा.गु., सं., श्लो. ६१, पद्य, श्वे., (धर्मे रागः श्रुतौ), ११९१४८-३ (+), ११९२१३-२(+), ११९२१५-३३ (+), ११९६१२-६६ (+#), ११८७०२-५, ११८७०२-१३, ११९४०२-१०(#$) औपदेशिक सवैया संग्रह, मु. भिन्न भिन्न कर्तृक, पुहिं., प्रा., मा.गु., सवै. ४४, पद्य, मूपू., ( कंत बिन कामन वसंत बिन), ११९५४७-१६ औपपातिकसूत्र, प्रा. सू. ४३, ग्रं. १६००, पद्य, मूपू., (तेण कालेनं० चंपा० ), १९८५२८(+), ११८८७४(+), ११८९५१(+), ११९८२३(+) For Private and Personal Use Only Page #500 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १.१.२६ ४८५ (२) औपपातिकसूत्र-दुर्गमपद बालावबोध, मु. मोहन ऋषि, मा.गु., गद्य, मूपू., (प्रणम्य श्रीमहावीरं), ११८९५१(+), ११९८२३(+#) (२) औपपातिकसूत्र-टबार्थ , मा.गु., गद्य, मप., (चउथा आरानइ विषइ वरस), ११८९५१(+), ११९८२३(+#) . औषधवैद्यक संग्रह, पुहि.,प्रा.,मा.गु.,सं., गद्य, इतर, (अनार दाणा टां.८०), ११५७९१-४(+), ११५८२६-६(+), ११६७६१-८(+) कथा संग्रह, सं., गद्य, मप., (पश्चिम विदेहे गंधिला), ११९९०८(+), ११६७९०($) कथा संग्रह , प्रा.,मा.गु.,सं., पद्य, मपू., (हिवे छ आरानुं नाम), ११७२०६(#s), ११९०२१(६) कर्पूरप्रकर, मु. हरिसेन, सं., श्लो. १७९, पद्य, मूपू., (कर्पूरप्रकरः शमामृत), ११८७०१-१(+), ११८९७३, ११८४२२(5) (२) कर्पूरप्रकर-टीका, आ. जिनसागरसूरि, सं., वि. १५५१, गद्य, मूपू., (व्याख्यायां धर्मदेशनायां), ११८७०१-१(+) (३) कर्परप्रकर-टीका का कथासंग्रह, सं., पद्य, मप., (--), ११८६६६(#$) (४) कर्परप्रकर-टीका के कथासंग्रह का टबार्थ, मा.गु., गद्य, मप., (--), ११८६६६(#$) । कर्परप्रकर-बालावबोध, उपा. मेरुसुंदर, मा.गु., वि. १५वी, गद्य, मप., (पार्श्वश्रिये सोस्तु), ११८४२२(5) (२) कर्पूरप्रकर-कथामहोदधि, संबद्ध, ग. सोमचंद्र पंडित, सं., कथा. १५७, ग्रं. १८००, वि. १५०४, गद्य, मूपू., (श्रीवर्द्धमानमानम्य), ११६४०४(६) (२) कर्पूरप्रकर-रोहिणेयचोर कथा, संबद्ध, सं., श्लो. ७६, पद्य, मूपू., (द्वेषेपि बोधकवच), ११५७५५($) कर्मप्रकृति, आ. शिवशर्मसूरि, प्रा., गा. ४४४, पद्य, मूपू., (नमिऊण सुयहराणं वोच्छ), प्रतहीन. (२) कर्मप्रकृति-भांगासंग्रह, मा.गु.,रा., गद्य, मूपू., (पहिली २० रो उदै), ११९९७०-१(+) कर्मप्रकृति, आ. शिवशर्मसूरि, प्रा., अधि. ७, गा. ४७५, पद्य, मपू., (सिद्धं सिद्धत्थसुयं), ११५९०४(६) कर्मविपाक नव्य कर्मग्रंथ-१, आ. देवेंद्रसूरि, प्रा., गा. ६१, वि. १३वी-१४वी, पद्य, म्पू., (सिरिवीरजिणं वंदिय), ११८४८३-१(+#), ११८५४०-१(+), ११८६०८-१(+), ११९१४३-५८(+-), ११९३८०-१(+), ११९६३३-१(+), ११९७०६-१(+), ११९९६४(+#), ११८२९२, ११८२७८() (२) कर्मविपाक नव्य कर्मग्रंथ-१-टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (श्रीवीरजिन वांदी), ११८५४०-१(+), ११९३८०-१(+), ११९९६४(+#), ११८२९२, ११८२७८() कर्मस्तव नव्य कर्मग्रंथ-२, आ. देवेंद्रसूरि, प्रा., गा. ३४, वि. १३वी-१४वी, पद्य, स्पू., (तह थुणिमो वीरजिणं), ११८४८३-२(+#), ११८५४०-२(+), ११८६०८-२(+), ११८७२०-१(+), ११९१४३-५९(+-), ११९३८०-२(+), ११९६३३-२(+), ११९७०६-२(+$), ११७११६-१, ११६०९१-१() (२) कर्मस्तव नव्य कर्मग्रंथ-२-बालावबोध*, मा.गु., गद्य, मपू., (तिम श्रीमहावीर प्रति), ११६०९१-१(६) (२) कर्मस्तव नव्य कर्मग्रंथ-२-टबार्थ, मा.गु., गद्य, मपू., (बंध ते स्यु कहीयइ), ११८५४०-२(+), ११८७२०-१(+), ११९३८०-२(+) कलशस्थापन विधि, मा.गु.,सं., गद्य, मपू., (कुंभ दाघ रहित रुडो लेवो), ११९३६३-१ कलिकुंड पूजा, सं., प+ग., दि., (ॐ हूँकारं ब्रह्मरूद्ध), ११७५९८-५(+#$), ११९३२४-२(#) कल्पसूत्र, आ. भद्रबाहस्वामी, प्रा., व्याख. ९, ग्रं. १२१६, गद्य, मप., (तेणं कालेणं० समणे), ११६२८४(+$), ११७०३२(+$). ११७५५२(+5), ११८२७०(+$), ११८३६६(+$), ११८४००(+), ११८४६०-२(+#$), ११८४६१(+), ११८५१९(+६), ११८५३९(+$), ११८७४३(+$), ११८७४७(+$), ११८७७१(+$), ११८९७९(+#$), ११८९८७(+$), ११९००४(+$), ११९०३०(+#$), ११९२४६(+$), ११९३०१(+$), ११९३१२(+), ११९४२३(+), ११९४४९(+#), ११९४६८(+#s), ११९५५१(+), ११९५६७(+$), ११९५७६(+#), ११९६२८(+$), ११९६७८(+$), ११९७७४(+#$), ११९८२५(+), ११९९०५(+), ११९९८२(+$), ११९९८५(+#), ११९९८६(+#$), ११९३४२,११६८८२(#$), ११८३४२(#$), ११८९८३(#$), ११९०१५(#$), ११९५४४(#), ११९८०३(#$), ११९८१२(#$), ११७४०६(), ११७७३१(६), ११७९१७(६), ११८२५९(६), ११८४५४($), ११९०१६(), ११९०४७(६), ११९३२३(७), ११९४२०(), ११९४७६(६), ११९६५२(६), ११९९५३($) (२) कल्पसूत्र-कल्पकिरणावली टीका, उपा. धर्मसागर गणि, सं., ग्रं. ५२१६, वि. १६२८, गद्य, मपू., (प्रणम्य प्रणताशेष), ११८७७१(+$) For Private and Personal Use Only Page #501 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ४८६ संस्कृत, प्राकृत व अपभ्रंश भाषाओं की मूल कृति के अकारादि क्रम से प्रत-पेटाकृति क्रमांक सूची परिशिष्ट-१ (२) कल्पसूत्र-कल्पद्रमकलिका टीका, ग. लक्ष्मीवल्लभ, सं., ग्रं. ४१०९, गद्य, मूप., (श्रीवर्द्धमानस्य), ११९३०१(+$), ११९४१९(+), ११९४६८(+#$), ११९६७८(+$), ११९९०५(+), ११९९८२(+$), ११९९८६(+#S), ११९८१२(#$), ११७७३१(६), ११९४७६(), ११९६५२(६) (२) कल्पसूत्र-कल्पलता टीका, उपा. समयसुंदर गणि, सं., ग्रं. ७७००, वि. १६८५, गद्य, मूपू., (प्रणम्य परमं ज्योतिः), ११७७०५ (+$), ११९००१(+६), ११९३१२(+), ११९३४२ (३) कल्पसूत्र-कल्पलता टीका का बालावबोध , मा.गु., गद्य, मूपू., (नत्वा श्रीमन्महावीरं), ११९००१(+$) (३) कल्पसूत्र-कल्पलता टीका का टबार्थ , पुहिं.,मा.गु., गद्य, मप., (नमीने श्रीमहावीर), ११९४७६(६) (२) कल्पसूत्र-टीका*, सं., गद्य, मूपू., (प्रणम्य प्रणताशेषखंडलं), ११७५५२(+$), ११८५३९(+9), ११९६२८(+8), ११८४५४(६) (२) कल्पसूत्र-सुबोधिका टीका, उपा. विनयविजय, सं., ग्रं. ६५८०, वि. १६९६, गद्य, मप., (प्रणम्य परमश्रेयस्कर), ११९०४७(६) (२) कल्पसूत्र-कल्पदीपिका बालावबोध, मु. मयाचंद ऋषि, मा.गु., ग्रं. ३२९९, वि. १८१४, गद्य, मूपू., (प्रणम्य परमं ज्योति), ११९३४९(+S) (२) कल्पसूत्र-बालावबोध, मु. खीमाविजय, मा.गु., वि. १७०७, गद्य, मूप., (प्रणम्य श्रीमहावीरं), ११६१२५(#) (२) कल्पसूत्र-बालावबोध, आ. शांतिसागरसूरि, मा.गु., गद्य, मूपू., (प्रणम्य परमं ज्योतिः), ११९६९३(+$) (२) कल्पसूत्र-बालावबोध, मु. शिवनिधान, मा.गु., वि. १६८०, गद्य, मूपू., (नमः श्रीवर्धमानाय), ११८२२७(+) (२) कल्पसूत्र-बालावबोध , मा.गु.,रा., गद्य, मूपू., (नमो अरिहंताणं), ११६२८४(+$), ११७०३२(+$), ११८२७०(+$), ११८४६०-२(+#$), ११८३४२(#S), ११९०१५(#$), ११७९१७(६), ११८२५९(), ११९०१६($), ११९८५२($) (२) कल्पसूत्र-वार्तिक मांडणी, मु. लक्ष्मण, प्रा.,मा.गु., प+ग., मूपू., (नमो अरिहंताणं० ॐकार), ११८४४९(+$) (२) कल्पसूत्र-टबार्थ*, मा.गु., गद्य, म्पू., (अरिहंतनइ माहरो), ११७०३२(+$), ११८३६६(+$), ११८४६०-२(+#$), ११८५१९(+$), ११८७४३(+$), ११८७४७(+$), ११८९७९(+#$), ११९००४(+$), ११९०३०(+#$), ११९७७४(+#$), ११९९८५(+#), ११९८०३(#$), ११७९१७($), ११८२५९(), ११९४२०६६) (२) कल्पसूत्र-टबार्थ+कथा, मा.गु.,सं., गद्य, मपू., (वर्द्धमानं जिन), ११९५७६(+#) (२) कल्पसूत्र-टबार्थ+व्याख्यान+कथा, आ. सोमविमलसूरि, मा.गु.,सं., गद्य, मूपू., (सकलार्थसिद्धिजननी), ११९५५१(+$) (२) कल्पसूत्र-अर्थ*, मा.गु., गद्य, मूपू., (--), ११७१८९($) (२) कल्पसूत्र-व्याख्यान+कथा*, मा.गु., गद्य, मूपू., (नमः श्रीवर्द्धमानाय), ११७५०२(+#$), ११८३६६(+$), ११८५१९(+$), ११८७४३(+9), ११८९४४(+#), ११८९७९(+#S), ११९७७४(+#$) (२) कल्पसूत्र-व्याख्यान+कथा*, प्रा.,मा.गु.,सं., गद्य, मूपू., (प्रणम्य प्रणताशेष), ११५८७५(६) (३) कल्पसूत्र-व्याख्यान+कथा की गंगा तेली दृष्टांत कथा, मा.गु.,सं., गद्य, मप., (कश्चित् विप्र देशे गत्वा),११६१७३ (२) कल्पसूत्र-हिस्सा १४ स्वप्न वर्णन, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., गद्य, मूपू., (गय१ वसहर सिह३ अभिसेय४), ११८५४३($) (३) कल्पसूत्र-हिस्सा १४ स्वप्न वर्णन का बालावबोध, मा.गु., गद्य, मूपू., (तिवार पछी परमेश्वर तणी), ११८५४३(5) (२) कल्पसूत्र-हिस्सा सामाचारी अध्ययन, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., प+ग., मूपू., (तेणं कालेणं तेणं समय), ११९९२४(+$) (३) कल्पसूत्र-हिस्सा सामाचारी अध्ययन का बालावबोध, य. अबीरचंद्र ऋषि, मा.गु., वि. १९३७, गद्य, मूपू., (--), ११८१८८(+#$) (३) कल्पसूत्र-हिस्सा सामाचारी अध्ययन का टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (तेणे कालनै विषइ तेणे), ११९९२४(+$) (२) कल्पसूत्र-पीठिका, संबद्ध, मा.गु., गद्य, मूपू., (अल्त भगवंत उत्पन्न), ११६५१८(६) (२) कल्पसूत्र-पीठिका, संबद्ध, प्रा., गा. १६, पद्य, मूपू., (देवाणं जिणदेवो), ११८४६०-१(+#) (३) कल्पसूत्र-पीठिका का बालावबोध, मा.गु., गद्य, मपू., (श्रीमहावीरना चरित्र वृक्ष), ११८४६०-१(+#) (२) कल्पसूत्र-पीठिका, संबद्ध, मा.गु.,सं., गद्य, मूपू., (नमः श्रीवर्द्धमानाय), ११९६६१(+$) (२) कल्पसूत्र-पीठिका*, संबद्ध, सं., गद्य, मूपू., (श्रीकल्पः सहकार एष), ११९४५५(+$) (३) कल्पसूत्र-पीठिका का टबार्थ, पुहिं.,मा.गु., गद्य, मूपू., (श्रीकल्पसूत्र आम्र), ११९४५५(+$) (२) कल्पसूत्र-व्याख्यानपद्धति, संबद्ध, सं., अधि. ३, गद्य, मूपू., (--), ११५५१७(+$), ११५५१८(+$) For Private and Personal Use Only Page #502 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ४८७ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १.१.२६ (२) कल्पसूत्र-संबद्ध २४ जिन आंतरा, मा.गु., गद्य, मूप., (५० कोडि लाख सागर), ११९७९५-४(+), ११९९७७(+#) (२) महावीरजिन गर्भकालिन घटना अधिकार, संबद्ध, सं., प+ग., श्वे., (सत्यमिदं यदि भविता मदीय), ११७६५३(#) (२) कल्पसूत्र-अंतर्वाच्य*, मा.गु., गद्य, मूपू., (उत्तराफाल्गुनी नक्षत्र), ११८४६१(+$) (२) कल्पसूत्र-अंतर्वाच्य*, सं., गद्य, मूपू., (कल्याणांपुरिम इह), ११८५१९(+5) (३) कल्पसूत्र-अंतर्वाच्य का टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (नमस्कार करीने), ११८५१९(+$) (२) कल्पसूत्र-अंतर्वाच्य, मा.गु.,सं., गद्य, मूपू., (जयति जगदेकचक्षुः), ११९००५(5) (२) कल्पसूत्र-अंतर्वाच्य, मा.गु.,सं., गद्य, मप., (नत्वा श्रीमन्महावीरं), ११९९८५(+#) कल्याणमंदिर स्तोत्र, आ. सिद्धसेनदिवाकरसूरि, सं., श्लो. ४४, वि. १वी, पद्य, मूपू., (कल्याणमंदिरमुदारमवद्यभेदि), ११५३७२(+$), ११६३८२(+), ११६४३०-१(+), ११६७४९(+#), ११७४७८(+), ११८३००-१(+$), ११८७६१(+), ११८८५६-७(+), ११९००२(+#), ११९०८०-४(+$), ११९१४३-५४(+-), ११९४३२-२(+-), ११९९००(+), ११९५४७-१,११६००४(#$), ११६४४७(#$), ११९०८३(#$), ११५६२०($), ११९६१४-४($) । (२) कल्याणमंदिर स्तोत्र-टीका, मु. कनककुशल, सं., ग्रं. ६५०, वि. १६५२, गद्य, मूपू., (प्रणम्य पार्श्व), ११८७६१(+) (२) कल्याणमंदिर स्तोत्र-टीका, आ. गुणरत्नसूरि, सं., गद्य, मपू., (सर्वज्ञं जिनमानम्य), ११६८१४(+) (२) कल्याणमंदिर स्तोत्र-अवचरि, सं., गद्य, मप., (अहं श्रीसिद्धसेन), ११६७४९(+#) (२) कल्याणमंदिर स्तोत्र-टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (पार्श्वनाथजीरा चरण), ११९००२(+#), ११६४४७(#$) (२) कल्याणमंदिर स्तोत्र-पद्यानुवाद, जै.क. बनारसीदास, पुहि., गा. ४४, वि. १७वी, पद्य, मूपू., दि., (परम ज्योति परमातमा), ११६३४८-२(+), ११५९४५, ११९९६३-९,११८१४७-३(#) (२) कल्याणमंदिर स्तोत्र-पद्यानुवाद, मा.गु., पद्य, मूपू., (कमठमान भंजनवरवीर गरिमा), ११६४४७(#S) (२) कल्याणमंदिर स्तोत्र-कथा, मा.गु., गद्य, मप., (ओजणी नाम नगरी नै विषइ), ११५७४३-१(#) (२) कल्याणमंदिर स्तोत्र-मंत्र विधिसहित, संबद्ध, मा.गु.,सं., गद्य, मूप., (ॐ नमो भगवओ रिसहस्स), ११६४४७(#$) कविशिक्षा, श्राव. अरिसिंह , सं., प्रता. ४, वि. १३वी, पद्य, मूपू., इतर, (वाचं नत्वा महानंदकर), ११८४९४(+#s), ११८८३९(+) (२) कविशिक्षा-काव्यकल्पलतावृत्ति, य. अमरचंद्र, सं., ग्रं. ३३५७, वि. १३वी, गद्य, मप., इतर, (विमृश्य वाङ्मय), ११८४९४(+#$) कस्तूरी प्रकरण, मु. हेमविजय, सं., प्रक्र. ३२, श्लो. १८२, पद्य, मूपू., (कस्तुरीप्रकर: कृपाकमल), ११९९१५(+) कामदेव चरित्र, आ. मेरुतुंगसूरि, सं., ग्रं.७४८, गद्य, मूपू, (जयतिकामितपूर्ति), ११६३८३($) कायस्थिति प्रकरण, आ. कुलमंडनसूरि, प्रा., गा. २४, पद्य, मपू., (जह तुह दंसणरहिओ काय), ११७०७६(+$), ११६९१८-१, ११७६५५(६) (२) कायस्थिति प्रकरण-टीका, आ. कुलमंडनसूरि, सं., वि. १५वी, गद्य, मूप., (वर्द्धमानं जिन), ११७०७६(+$) (२) कायस्थिति प्रकरण-बालावबोध, मा.गु., गद्य, मूपू., (वर्द्धमानं जिन), ११७६५५(६) (२) कायस्थिति प्रकरण-अर्थ, मा.ग., गद्य, मप., (पुरुषवेद कायास्थिति रहै), ११६९१८-२ कार्तिकपूर्णिमा व्याख्यान, प्रा.,मा.गु., गद्य, म्पू., (सिद्धो विज्जाय चक्की), ११९४८३-५(+), ११९४८६-५(+), ११९३०३ कालिकाचार्य कथा, उपा. सुमतिहंस, सं., श्लो. १११, वि. १७२१, पद्य, मप., (एयं च चउत्थीए जेण कयं), ११८८७९(+$) (२) कालिकाचार्य कथा-टबार्थ, मा.गु.,सं., गद्य, स्पू., (तत्र कालिकाचार्यस्त्रयस्थ), ११८८७९(+$) कालिकंवरी कथा, पुहिं.,प्रा., गद्य, श्वे., (राजगर नगर चर्ण भगवान), ११९७४५-८९(+) कुंथुजिन चैत्यवंदन, सं., श्लो. ३, पद्य, मूपू., (जय जय कुंथुजिनोत्तम), ११६८०५-७ कुमतिउत्थापन चर्चा, प्रा.,मा.गु., गद्य, मूपू., (मनोमती झूठी प्ररूपणा), ११५३९६ कुल्पपाकमंडन युगादिजिनस्तवन, ग. जयचंद्र, सं., श्लो. १३, पद्य, मूपू., (लोकालोक विलोकि के वजर), ११७९५४-१(+) कृष्ण स्तुति, सं., श्लो. १, पद्य, वै., (तं भूसुता मुक्तिमुदा), ११९३२६-२ केशीगणधर प्रदेशीराजा ११ प्रश्नोत्तर, सं., गद्य, मप., (श्रोतव्या प्रदेशिनगरी), ११८५१६-५३(+) खंडाजोयण द्वार विचार, प्रा.,सं., प+ग., मप., (खंडाजोयणवासा पव्वयकूडाउ), ११८५१६-५७(+) खेचरमंजरी, मु. जैनचंद्र, सं., श्लो. ९, पद्य, मूपू., इतर, (श्रीमत्तीर्थपति), ११६४५६(+) For Private and Personal Use Only Page #503 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ४८८ संस्कृत, प्राकृत व अपभ्रंश भाषाओं की मूल कृति के अकारादि क्रम से प्रत-पेटाकति क्रमांक सूची परिशिष्ट-१ गच्छपतिगुरुवंदन विधि-अंचलगच्छीय, प्रा.,मा.गु., प+ग., मूपू., (इच्छामि ख० इच्छाकारे), १२००७५-१ गणधरवाद, सं., गद्य, मप., (अत्रांतरे भगवन्नमस्यार्थ), ११८५१६-९२(+), ११८९४६(+) गणेशमानसपूजा विधि, सं., श्लो. ३, पद्य, वै., (नानारत्न विचित्रकं रमणकं), ११५३३४-२ गणेश स्तोत्र, ऋ. वेद व्यास, सं., श्लो. ५, पद्य, वै., (हेमजा सुतं भुजां गणेश), ११९४३२-११(+-) गांगेयभंग प्रकरण, मु. पद्मविजय, प्रा., गा. ३६, पद्य, मूपू., (नमिऊण महावीरं गंगेय),११५४५६(+) गाथा संग्रह, पुहि.,प्रा.,मा.गु.,सं., पद्य, वै., इतर, (कज्जल विज्जल गुंद), ११९२१५-८(+), ११९२१५-४०(+), ११९२१५-४४(+), ११९८१९-३(+), ११९८४०-२(+) गाथा संग्रह, प्रा., पद्य, श्वे., (सत्तइ रत्ता मत्तइ), ११५३२४-२(+#), ११८५१६-१७(+), ११५२८४-१, ११७२९७-१, ११९०१९-२ गाथा संग्रह जैन, प्रा., पद्य, श्वे., (उस्सासट्ठारमे भागे), ११६४८६-२(+) गाथा संग्रह जैन*, प्रा.,मा.गु.,सं., पद्य, मूपू., (सललमथ तकाज निक्खु), ११५४०६-१९(+#), ११८९६३-२(+$) (२) गाथा संग्रह जैन-टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूप., (जिनधर्म जीवानइ), ११८९६३-२(+$) गायत्री मंत्र, सं., पद्य, वै., (ॐ भूर्भुवः स्वः ॐ तत), ११९४३०-३(+) (२) गायत्री मंत्र-बालावबोध, मा.गु., गद्य, वै., (ॐ कहता पांच परमेश्वर ते), ११९४३०-३(+) गिरनार चैत्यपरिपाटी, अप., गा. ४१, पद्य, मप., (समरीय अंबिकि सरसती), ११६४२६-२ गुणवर्म चरित्र, आ. माणिक्यसुंदरसूरि, सं., स. ५, श्लो. ६०७, ग्रं. १८११, वि. १४८४, पद्य, मूपू., (विजयतां जिनवाक्यसुधारसः), ११६३९१(+#s) गुणस्थानक्रमारोह, आ. रत्नशेखरसूरि, सं., श्लो. १३५, वि. १४४७, पद्य, मूपू., (गुणस्थानक्रमारोहहतमोह), ११६२२६(#$), ११७८५९() (२) गणस्थानक्रमारोह-स्वोपज्ञ टीका, आ. रत्नशेखरसूरि, सं., वि. १४४७, गद्य, मप., (अहँ पदं हृदि), ११६२२६(#$) गुरुगुण गाथाचतुष्क-सद्धर्मोपदेश योग्यता, प्रा., गा. ४, पद्य, मूपू., (देसकुलजाइरूवी संघयणी धिइ), ११८७५७ (२) गुरुगुण गाथाचतुष्क-सद्धर्मोपदेश योग्यता की टीका, सं., गद्य, मूपू., (तत्र आर्यदेशोद्भूतः), ११८७५७ गुरुगुणषट्त्रिंशत्षट्त्रिंशिका कुलक, आ. रत्नशेखरसूरि, प्रा., षट्. ३६, गा. ४०, पद्य, मूपू., (वीरस्स पए पणमिय सिरि), ११७११९ गुरु जयमाला, अप., गा. १३, पद्य, दि., (भवियह भव तारण सोलह), ११८१४७-२८(#) गुरुवंदनभाष्य, आ. देवेंद्रसूरि, प्रा., गा. ४१, पद्य, मूप., (गुरुवंदनणमह तिविह), ११८९३७ गुरूपशेशनस्थान स्वस्तिकगोहलिकादि निषेध विचार, प्रा.,सं., गद्य, मूपू., (दूमिय धूमिय वासिय उज्जोइय), ११८५१६-७३(+) गृहबिंबप्रमाण श्लोक संग्रह, सं., श्लो. ६, पद्य, मूपू., (अथातः संप्रवक्ष्यामि), ११८५१६-१८(+) गोचरी आलोयण गाथा, प्रा., गा. २, पद्य, मपू., (अहो जिणेहिं असावज्जा), ११६६८८-२(+) गोचरी आलोयण विधि, प्रा.,मा.गु., गद्य, मूपू., (गोचरीथी आवीने पात्रा), १२०११८(5) गौतम कुलक, प्रा., गा. २०, पद्य, मूपू., (लुद्धा नरा अत्थपरा), ११५३८०(+#$), ११७४७४-१(+-), ११७६६९(+$), ११९४३०-७(+), ११९५४७-१०,११९६८२(5) (२) गौतम कुलक-टबार्थ, मा.गु., गद्य, मप., (लोभीया मनुष्य अर्थनइ), ११५३८०(+#$), ११९४३०-७(+) (२) गौतम कुलक-अर्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (--), ११९६८२(६) (२) गौतम कुलक-कथा, मा.गु., गद्य, मपू., (कलेस जे देशथी एहवो), ११९६८२(5) गौतमपृच्छा, प्रा., प्रश्न. ४८, गा. ६४, पद्य, मूपू., (नमिऊण तित्थनाह), ११८२४६(+$), ११९६३४(+), ११९७१७(+#$), ११८१६१, ११५३७८($), ११६३३८($) (२) गौतमपृच्छा-बालावबोध , मा.गु., वि. १५६९, गद्य, मूपू., (तीर्थनाथ श्रीमहावीर), ११६३३८($) (२) गौतमपृच्छा-बालावबोध+कथा*, मा.गु., गद्य, मूपू., (एकई गामि धनसार इसिइ), ११८२४६(+$), ११५३७८(5) (२) गौतमपृच्छा -टबार्थ*, मा.गु., गद्य, मप., (तीर्थनाथ श्रीमहावीर), ११९६३४(+), ११९७१७(+#$), ११८१६१ (२) गौतमपच्छा -कथा संग्रह, मा.गु., कथा. ३५, गद्य, मूपू., (वसंतपुर नगरने विषे), ११८९१४(+), ११९६३४(+) गौतमस्वामी स्तुति, आ. ज्ञानसूरि, सं., श्लो. ४, पद्य, मपू., (श्रीइंद्रभूति), ११६४९९-४, ११७६९९-४($) For Private and Personal Use Only Page #504 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १.१.२६ गीतमस्वामी स्तुति, मा.गु. सं., गा. ५, पद्य, म्पू., (अंगुठे अमृत बसे), १९५८८८-२ गौतमस्वामी स्तोत्र, सं., श्लो. १०, पद्य, भूपू (श्रीइंद्रभूति वसुभूति) ११५२६४ (+), ११५४७७, ११९३०७-१ ग्रंथलेखनप्रारंभकाल गाथा, प्रा., गा. १, पद्य, मूपू (वलही नयरे रम्मे देवड्डी), १९१५४०६-१३(+) "" ग्रह विलास, ग. कनकविजय गणि, मा.गु. सं., गद्य, म्पू, इतर (प्रथम चंद्राक्री ग्रंथमते), ११७२३८ (+) ग्रहशांति स्तोत्र-बृहत्, आ. भद्रबाहुस्वामी, सं., श्लो. २८, पद्य, मूपू., (जगद्गुरुं नमस्कृत्य), ११९२५९(S) ग्रहशांति स्तोत्र- लघु, आ. भद्रबाहुस्वामी, सं., श्लो. ११, पद्य, मूपू. (जगद्गुरुं नमस्कृत्य), ११६५८०+), ११९१४३-३८(+), १२०१४८-४ ग्रामागमन पृच्छा, सं., श्लो. ३, पद्य, श्वे. इतर, (बुधे चंद्रे भवेत्), ११८७७७-५ (+#) " घंटाकर्ण कल्प, मा.गु. सं., गद्य, भूपू.. वै., (प्रणम्य गिरिजाकांत ), ११९७६६ ($) घंटाकर्णमहावीरदेव स्तोत्र, सं., श्लो. ४, पद्य, मूपू (ॐ घंटाकर्णो महावीरः), ११९६३५-४०), ११५३०५-१, ११५८८६, ११७४०३-१, ११८९६८-१४ (२) घंटाकर्णमहावीरदेव स्तोत्र-घंटाकर्णकल्प साधना विधि, संबद्ध, मा.गु. सं., गद्य, भूपु (त्रिकाल स्मरण करीइ परिवार), ११८९६८-१४ चंद्रगुप्तराजा १६ स्वप्नवर्णन, सं., गद्य, श्वे. (कल्पवृक्षशाखा भग्ना), ११५४०६-५०) चंद्रप्रज्ञप्तिसूत्र, प्रा. प्राभृ. २० . १८५४, पद्य, भूपू (नमो अरि० जयति नवणलिण), प्रतहीन, "" Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir (२) चंद्रप्रज्ञप्तिसूत्र- टीका, आ. मलयगिरिसूरि सं. ग्रं. ९४००, गद्य, म्पू, (मुक्ताफलमिव करतलकलित), ११९२२६(७) " " चंद्रप्रभजिन स्तोत्र, सं. श्री. ५, पद्य, भूपू (ॐ चंद्रप्रभः प्रभा), ११७४००-१, ११८८३१-१ " ', चंद्र स्तोत्र, सं., श्लो. ५, पद्य, भूपू (अत्र नेत्र समुद्भूत), ११९२२३-२ " चक्रवर्त्ती वैभव, सं., गद्य, मूपू., (हस्तिनश्चतुरशीतिलक्षाः), ११७४८१ (+) चक्रेश्वरीदेवी बीज मंत्र, सं., गद्य, मूपू. (ॐ च ह्रीं श्री हीं). ११७०८२-३(+) " चक्रेश्वरीदेवी मंत्र, सं., गद्य, मूपू., (ॐ नमो चक्रेश्वरीदेवी), ११७०५५-४(+), १२००२३-२ चक्रेश्वरीदेवी स्तोत्र, सं., श्लो. ९, पद्य, मूपू (श्रीचक्रे चक्रभीमे), ११५४३७(+), ११७०८२-४०), ११७०९८-१ "3 चतुः पर्वी विचार, प्रा., सं., गद्य, मूपु. ( श्रीसिद्धांते पाक्षि), ११८५१६-७५ (+) चतुः शरण प्रकीर्णक, ग. वीरभद्र, प्रा., गा. ६३, वि. ११वी, पद्य, मूपु. ( सावज्जजोग विरई), ११५३९३(+45), ११६७०९ (+), १९८८२३(*), ११९२६२(+), १९९९०४-३(+), ११७३९७-१, ११९६१३, १९८७२८-२(१) (२) चतुः शरण प्रकीर्णक-अवचूरि, आ. सोमसुंदरसूरि सं., गद्य, मूपु. ( इदमध्ययनं परमपद), ११९२६२(+) , " (२) चतुःशरण प्रकीर्णक-बालावबोध, मा.गु., गद्य, मूपू., (सावद्य योग विरति ते), ११८८२३(+) चमत्कारचिंतामणि, नारायण भट्ट, सं., गद्य, वै., इतर, (लसत्पीत पट्टांबरं कृष्ण ), प्रतहीन. (२) चमत्कारचिंतामणि-पद्यानुवाद, मु. श्रीसार, पुहिं., दोहा. १०८, वि. १७वी, पद्य, मूपू., वै., इतर, (युं विचार ज्योतिष को), , ११६२०६ चमत्कारचिंतामणि, राजऋषिभट्ट, सं., श्लो. १११, पद्य, वै., इतर, (क्वणत्किंकिणी जालकोल), ११८१७३(+), ११८५६० (+), ११८५६१ (+$), ११६३२९-२ ($) (२) चमत्कारचिंतामणि- बालावबोध, मा.गु, गद्य, मूपू., वै., इतर (श्रीवामेय जिनं नत्वा), १९८५६० (+) (२) चमत्कार चिंतामणि- वार्थ, मा.गु., गद्य, म्पू, वै., इतर (श्रीवामेय जिनं नत्वा), ११८१७३(०), १९१८५६१(+३) चरणसत्तरी-करणसत्तरी गाथा, प्रा., गा. २, पद्य, मूपू. (एवय समणधम्म १० संजम), प्रतहीन. (२) चरणसत्तरी-करणसत्तरी गाधा वालावबोध, मा.गु.. गद्य, भूपू., (पंचमहाव्रत). ११७५११-२(+३) चातुर्मासिकत्रय व्याख्यान, उपा. क्षमाकल्याण पाठक, सं. ग्रं. ४०१, गद्य, मूपु., (स्मारं स्मारं स्फुरज्ज्ञा), ११९२४१-२(+) चातुर्मासिकपर्व व्याख्यान, उपा. समयसुंदर गणि, सं., वि. १६६५, गद्य, भूपू. (प्रणम्य परमानंद), ११६४३६ चातुर्मासिक व्याख्यान, रा., सं., पद्य, मूपू., (सामायिकावश्यकपौषधानि ), ११९२१३-१(+) For Private and Personal Use Only ४८९ Page #505 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ४९० संस्कृत, प्राकृत व अपभ्रंश भाषाओं की मूल कृति के अकारादि क्रम से प्रत-पेटाकृति क्रमांक सूची परिशिष्ट-१ चित्रसेनपद्मावती चरित्र, पा. राजवल्लभ, सं., श्लो. १२३२, वि. १५२४, पद्य, मूपू., (नत्वा जिनपतिमाद्यं), ११६५६८(+६), ११९२६३-१(+), ११९६६९(+), ११९९३७ (२) चित्रसेनपद्मावती चरित्र-टबार्थ , मा.गु., गद्य, मूपू., (अशरण शरण भव भय हरण), ११९६६९(+) (२) चित्रसेनपद्मावती चरित्र-अर्थ, मा.गु., गद्य, मपू., (--), ११६५६८(+$) चिदानंद स्तोत्र, आ. दानसूरि, सं., श्लो. ३१, पद्य, मूपू., (--), ११७७८४(#$) चैत्यवंदनभाष्य, आ. देवेंद्रसूरि, प्रा., गा. ६३, पद्य, मूपू., (वंदित्तु वंदणिज्जे), प्रतहीन. (२) चैत्यवंदनभाष्य-हिस्सा १९ कायोत्सर्गदोष गाथा, प्रा., गा. २, पद्य, मूपू., (घोडग१ लयर खंभाइ३ माल), ११८५१६-४१(+) चैत्यवंदन विधि, गु.,प्रा.,हिं., प+ग., मपू., (इच्छामी खमासमणो वंदि), १२००२६(#$) चैत्यवंदनविधि कुलक, प्रा., गा. ३५, पद्य, मपू., (तिन्नि निसीही तिन्नि), ११६८१२(5) छायापुरुषलक्षण श्लोक, सं., श्लो. ६, पद्य, मपू., (अथातः संप्रवक्ष्यामि), ११८४८४-३(+) छेदशास्त्र, प्रा., गा. ९४, पद्य, दि., (णमिऊण य पंचगुरुं), ११८६४३ (२) छेदशास्त्र-बालावबोध, मा.गु., गद्य, दि., (प्रायश्चितं विशुद्धि), ११८६४३ जंबूअध्ययन प्रकीर्णक, ग. पद्मसुंदर, प्रा., उ. २१, गद्य, मप., (तेणं कालेणं० रायगिहे), ११९१९६(+), ११८३८०(#$), ११८९१०-३(#S), ११९२६७(5) (२) जंबूअध्ययन प्रकीर्णक-टबार्थ , मा.गु., गद्य, मूपू., (तणइं कालने विषे), ११८३८०(#$) (२) जंबूअध्ययन प्रकीर्णक-टबार्थ , मा.गु., गद्य, मपू., (ते काल चउथो आरो तेवाइ समइ), ११९१९६(+), ११८९१०-३(#$) (२) जंबूअध्ययन प्रकीर्णक-कथा, मा.गु., गद्य, मूपू., (एक समें श्रीमहावीरस), ११६४२३($) (२) जंबूअध्ययन प्रकीर्णक-कथा, मा.गु., गद्य, म्पू., (सुप्रभावं जिनं नत्वा), ११९७९८($) जंबूद्वीप गणित संख्या विचार, प्रा.,सं., गद्य, मूपू., (मुनिनव९करोरडु२८षोडश), ११८५१६-५८(+) जंबूद्वीपप्रज्ञप्ति, प्रा., वक्ष. ७, ग्रं. ४१४६, गद्य, मूपू., (नमो अरिहंताणं० तेणं), ११५३७७(६) (२) जंबूद्वीपप्रज्ञप्ति-टबार्थ, मु. जीवविजय, मा.गु., ग्रं. १५०००, वि. १७७०, गद्य, मूपू., (श्रीसिद्धार्थनराधिप), ११७५९४($) जंबूवृक्ष विचार, सं., गद्य, मूपू., (उत्तरकुरायामा॰ सीता), ११८५१६-६०(+) जंबवक्ष विचार गाथा, प्रा., गा. २१, पद्य, मप., (जंबूनयामयं जंबुपीढ उत्तर), ११८५१६-१०२(+) जगजीवनचंद्रसूरि अष्टक, मु. पन्नालाल ऋषि, सं., श्लो. ११, वि. १९०७, पद्य, श्वे., (अथप्रज्ञासीमा गुणगण), ११७८६३-१(+$) जन्मपत्री पद्धति, मु. मानसागर, सं., गद्य, मूपू., इतर, (नीचोनितास्पष्टतरा), ११८२३७(+#$) जन्मपत्री पद्धति, मु. लब्धिचंद्र, सं., वि. १७५१, गद्य, मप., इतर, (स्वस्ति श्रीऋद्धि वृद्धि), ११९५७१(+$) जन्मपत्री पद्धति, आ. हर्षकीर्तिसूरि, सं., अधि. ३३, पद्य, मप., इतर, (प्रणम्य सारदां), ११८२१४(६) जपमालास्मरणफलं, प्रा., गा. ६, पद्य, मप., (अट्ठेव य अट्ठसयं अट्ठ),११८५१६-२८(+) जयतिहुअण स्तोत्र, आ. अभयदेवसूरि , प्रा., गा. ३०, वि. १२वी, पद्य, मूपू., (जय तिहुयणवरकप्परुक्ख जय), ११६७८०(+), ११८८५६-१(+$), ११९१४३-४१(+-), ११९७२०-४(+#), ११५९८४, ११९२६४, ११९४७५ (5) (२) जयतिहअण स्तोत्र-टीका, सं., ग्रं. २५०, गद्य, मप., (अत्रायं वृद्धसंप्रदायः), ११६७८०(+) जलयात्रा विधि, मा.गु.,सं., गद्य, मूपू., (जलयात्रा योग्य उपगरण), ११७४५४-२(+) जातकपद्धति, मु. हर्षविजय, सं., श्लो. ९३, वि. १७६५, पद्य, मूप., इतर, (प्रणम्य पार्श्वदेवेशं), ११७२५९(+#), ११८६२२-१(+#), ११९१३५(+#S), ११९३३५(5) (२) जातकपद्धति-टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., इतर, (प्रणाम करीने), ११७२५९(+#$), ११९१३५(+#$) जिनकल्पस्थमहावीरकल्पादि आगमिक विचार, प्रा.,सं., गद्य, मप., (--), ११५६०१-१(+$) जिनकशलसूरि अष्टक, आ. जिनपद्मसूरि, सं., श्लो. ९, वि. १४वी, पद्य, मप., (सुखं सर्वा संपद्वसति), ११९३०७-२ जिनकुशलसूरि अष्टक, मु. रत्नसोम, सं., श्लो. ९, पद्य, मूपू., (देवराजपुरमंडनमाप्त), ११७०९२ जिनकुशलसूरि अष्टप्रकारी पूजा, मा.गु.,सं., गा. ९, प+ग., मूपू., (सुरनदी जलनिर्मल धारय), ११७७५५-१ जिनदत्तसूरि अष्टक, सं., श्लो. ८, पद्य, मूपू., (नमाम्यहं श्रीजिनदत्त), ११९३०७-३ For Private and Personal Use Only Page #506 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ४९१ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १.१.२६ जिनदत्तसूरि अष्टक, सं., श्लो. ९, पद्य, मपू., (सुरकिन्नर वंदित), ११९३०७-४ जिनदर्शन प्रार्थनास्तुति संग्रह, सं., श्लो. ८, पद्य, मूपू., (अद्य प्रक्षालितं गात्रं), ११७९६४-१ जिनपंजर स्तोत्र, आ. कमलप्रभसूरि, सं., श्लो. २५, पद्य, मूपू., (ॐ ह्रीं श्रीं अर्ह), ११६६५९-२(+#), ११९९६५-१(+) जिनपूजा जयमाल, सं., प+ग., दि., (श्रीमज्जिनेंद्रमभिवंद्य), ११८६७५-२ जिनपूजा विधि, प्रा.,सं., प+ग., दि., (जय जय जय णमोस्तु०), ११८३७९(+-#5), ११८१४७-७(#) जिनपूजाविधि श्लोकसंग्रह, प्रा.,सं., पद्य, भूपू., (प्रविशतां वामभागे), ११५६१६-१(+#$) जिनप्रतिमापरिकर विचार, प्रा., गद्य, मूपू., (तत्थणं देवच्छंदए चउ), ११८५१६-८९(+) जिनप्रतिष्ठा गणराशिनाडीवर्गादि विचार, सं., प+ग., म्पू., (निश्च षडाष्टकं वावं०), ११६२८०(+#$), ११७८८१-१(#) जिनबिंब प्रतिमा उत्थापन विधि, मा.गु.,सं., प+ग., मूपू., (प्रथम जलयात्रा विधिये करी), ११५४५३ जिनबिंब प्रतिष्ठाविधि संग्रह, मा.गु.,सं., प+ग., मप., (प्रणम्य स्वस्तिऋद्धिश्री), ११९३५०(+), ११९८२७(#$), ११५३६४(5) जिनबिंब प्रवेशस्थापना विधि, मा.गु.,सं., गद्य, मूपू., (पहिलु मुहूर्त भलु), ११९५८०(+#), ११९३६३-२, ११७५५१(६) जिनभवन ८४ आशातनाविचार गाथा, प्रा., गा. ४, पद्य, पू., (खेलं १ केलि २ कलि ३), ११८५१६-३(+) (२) जिनभवन ८४ आशातनाविचार गाथा-दर्गपद व्याख्या, सं., गद्य, मूपू., (खेले१ श्लेष्मक्षेपणं केले), ११८५१६-१(+) जिनभवोत्कीर्तन स्तवन, आ. सोमसुंदरसूरि, सं., श्लो. २६, पद्य, मूपू., (यः प्राक् सार्थपति), ११८७२१ (२) जिनभवोत्कीर्तन स्तवन-अवचूरि, सं., गद्य, मप., (आद्ये भवे धनसार्ध वाह), ११८७२१ जिनरक्षा स्तोत्र, सं., श्लो. १८, पद्य, मप., (श्रीजिनं भक्तितो), ११७०६७-१(+), ११५८१८-२(2) जिनशतक, मु. जंबू कवि, सं., परि. ४, श्लो. १००, वि. १००१-१०२५, पद्य, मूपू., (श्रीमद्भिः स्वैर्महो), ११६१९९(+), ११६२५९(+#$) (२) जिनशतक-अवचूरि, सं., परि. ४, गद्य, मूपू., (एष सूर्यो भुवनं विश), ११६१९९(+) जिनशासनमहिमा श्लोक, सं., श्लो. १, पद्य, श्वे., (प्रशांतमतगंभीरां), ११८१४७-३६(#) जिनसंहिता, भट्टा. एकसंधि भट्टारक ऋषि, सं., पद्य, दि., (मंगलं भगवानर्हत्मंगल), ११९७१४(+$) जिनसहस्रनाम लघुस्तोत्र, सं., श्लो. ४१, पद्य, मूपू., (नमस्त्रिलोकनाथाय), ११५३३५-१(#) जिनसहस्रनाम स्तोत्र, श्राव. आशाधर, सं., श्लो. १४३, वि. १२८७, पद्य, दि., (प्रभो भवांगभोगेषु), ११७८९०(+-$) जिनाभिषेक विधि, सं., श्लो. २०, पद्य, दि., (श्रीमज्जिनेंद्रमभिवं), ११७७७८($) जीवविचार प्रकरण, आ. शांतिसूरि, प्रा., गा. ५१, वि. ११वी, पद्य, मूपू., (भुवणपईवं वीरं नमिऊण), ११६७१०(+#$), ११६७१९(+s), ११६८२७(+$), ११६९९२(+), ११७७०४(+$), ११७९४४-१(+#), ११८८८३-१(+), ११८९४५(+), ११९०४१(+), ११९२६१-२(+), ११९२६५-२(+), ११९३८१(+), ११९५१०(+), ११९६२६-२(+$), ११९६९६(+$), ११९७७९(+$), ११९८९८-१(+), ११९९०४-१(+), ११९९०६(+), ११६०४६, ११८७२७, ११९१४१, ११९४९१(#$), ११८६३१(६), ११९७६९(६) (२) जीवविचार प्रकरण-अर्थलेश अवचूरि, सं., गद्य, स्पू., (भुवनदीपसमं श्रीवीरं नत्वा), ११६७१०(+#$) (२) जीवविचार प्रकरण-बालावबोध, मा.ग., गद्य, मप., (भुवनमाहि मिथ्यात्व), ११८८८३-१(+), ११९७६९($) (२) जीवविचार प्रकरण-टबार्थ, मु. विमलकीर्ति, मा.गु., गद्य, मपू., (भुवन त्रिणलोकने विषे), ११९५१०(+) (२) जीवविचार प्रकरण-टबार्थ, मा.गु., गद्य, मपू., (तीन भुवन रै विषै), ११६७१९(+$), ११६८२७(+$), ११६९९२(+), ११७७०४(+$), ११७९४४-१(+#), ११८९४५(+), ११९०४१(+), ११९२६१-२(+), ११९३८१(+), ११९६९६(+$), ११९९०६(+), ११८७२७, ११९१४१ जीवाभिगमसूत्र, प्रा., प्रतिप. १०, सू. २७२, ग्रं. ४७५०, गद्य, मपू., (णमो उसभादियाणं चउवीस), ११८२८४(+$) जैन तर्कभाषा, उपा. यशोविजयजी गणि, सं., परि. ३, ग्रं. ७००, वि. १८वी, गद्य, मूपू., (ऐंद्रवृंदनतं नत्वा), ११७३०७($) जैनदीक्षा मुहूर्त-मुहूर्तप्रदीपके, मा.गु.,सं., गद्य, मूपू., इतर, (दीक्षायां स्थापनायां), ११६५८५(+#) जैनधर्मसम्मत श्लोक संग्रह-विविध शास्त्रोद्धत, सं., पद्य, श्वे., (दशस्वपि कृता दिक्ष), ११८४८४-२(+) जैन मंत्र संग्रह-सामान्य, प्रा.,मा.गु.,सं., गद्य, श्वे., (ॐ नमो अरिहंताणं), ११९९६२-२(+), ११५२९०($) For Private and Personal Use Only Page #507 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ४९२ संस्कृत, प्राकृत व अपभ्रंश भाषाओं की मूल कति के अकारादि क्रम से प्रत-पेटाकति क्रमांक सूची परिशिष्ट-१ जैन रामायण, सं., पद्य, दि., (--), ११७३०६(+$) जैन व्याकरण, सं., पद्य, मप., इतर, (अवस् अग्रे मंडली), ११७२६९(+$) जैन श्लोकसंग्रह, सं., श्लो. ४, पद्य, मप., (दर्शनज्ञानचारित्रात), ११९२१५-५७(+), ११९२१५-५८(+) जैनसिद्धांत प्रवचन, प्रा.,मा.गु.,सं., प+ग., मूपू., (प्रथम जिनशासन माहि),११८८८१(+#) जैनसूक्तसंदोह, सं., पद्य, मूपू., (या देव देवता बुद्धि गुरौ), ११९९८८ । जैनीवैष्णवीयावनी जन्मपत्रीलेखनपद्धति, सं., श्लो. ३८, पद्य, जै., वै., अन्य, इतर, (स्वस्ति श्रीसौख्यधात्री), ११८३०१(#$) ज्ञाताधर्मकथांगसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., अध्य. २२५, ग्रं. ५५००, प+ग., मप., (तेणं कालेणं० चंपाए), ११६१९२(+#$), ११८७७०(+), ११८८८६(+#$), ११८९७०(+#$), ११९१३७(+$), ११९२५६(+), ११९३४६(+#$), ११९७९२(+) (२) ज्ञाताधर्मकथांगसूत्र-टीका, आ. अभयदेवसूरि , सं., अध्य. १९, ग्रं. ३८००, वि. ११२०, गद्य, मूपू., (नत्वा श्रीमन्महावीरं), ११९४९६(६) (२) ज्ञाताधर्मकथांगसूत्र-बालावबोध, मा.गु., गद्य, मप., (तेणं काले० शब्दवाक्यालंका), ११९७९२(+$) (२) ज्ञाताधर्मकथांगसूत्र-टबार्थ, ग. प्रेमजी, मा.गु., वि. १६९९, गद्य, मप., (प्रणम्य श्रीमहावीरं), ११९३४६(+#$) (२) ज्ञाताधर्मकथांगसूत्र-टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (नमस्कार श्रीमहावीरने), ११८७७०(+), ११९१३७(+$), ११९२५६(+) ज्ञानपंचमीतपउच्चरावण विधि, प्रा.,मा.गु.,सं., गद्य, श्वे., (तिहां प्रथम खमा० इरि), ११७०२५-१ ज्ञानपंचमीतपउच्चारण विधि, प्रा., गद्य, मपू., (इमं ज्ञान पंचमी तवं), ११८९३८-३ ज्ञानपंचमी नमस्कार, सं., गद्य, प., (स्पर्शनेंद्री व्यंजना), ११७६३३(#) ज्ञानपंचमीपर्व देववंदन विधि, प्रा.,मा.गु., गद्य, स्पू., (तिहां प्रथम पवित्र), ११७५४१(#$) ज्ञानपंचमीपर्व पूजा विधिसहित, मु. भिन्न भिन्न कर्तृक, मा.गु.,सं., प+ग., मूपू., (प्रथम श्री मंदरजी मे), ११५४३५ ज्ञानपंचमीपर्व स्तुति, सं., श्लो. ४, पद्य, मूपू., (पंचानंतकसुप्रपंचपरमानंद), ११९१४३-८(+-), ११७३२२-३, ११८६९४-५, ११९६४८-११, ११८७०२-३ । ज्ञानपंचमीपर्व स्तुति, सं., श्लो. ४, पद्य, मूपू., (श्रीनेमिः पंचरूपत्रिदशपति), ११६७७९-२(+), ११८६४५-५(+), ११५३०१-२, ११८५६२-४ ज्ञानपूजा श्लोक दोहा संग्रह, मा.गु.,सं., गा. ३, पद्य, मूपू., (नाणं पहाणं नयसिद्धचक्र), ११८२०७-५(+) ज्ञानप्रदीप, सं., श्लो. ३०, पद्य, मूपू., इतर, (चरे लग्ने चरे सूर्ये), ११७३७६ ज्ञानमहोत्सव विधि पाठ, प्रा., गद्य, मप., (समणे भगवं महावीरे दवालस), ११७६०७(+) ज्योतिष, पुहि.,मा.गु.,सं., प+ग., जै., वै., इतर, (आदित्यं १सोम मंगल), ११८९८०-७(+), ११९२१५-५२(+), १२०१२२-२(+), ११८८३७-२, ११८१६६-२(#$), १२०१०२-२(#), ११८५१३-१(६) ज्योतिष प्रश्नावली, सं., पद्य, मपू., इतर, (--), ११६६५१(६) ज्योतिषयंत्र संग्रह, मा.गु.,सं., को., इतर, (--), ११६२७८-२ ज्योतिष व वैद्यकसंग्रह, सं., प+ग., इतर, (प्रथमं वाणी परीक्षा।), ११९२१५-४८(+) ज्योतिष विचार, मा.गु.,सं., प+ग., मपू., इतर, (बुधचंद्रोत्तरे मार्ग), ११८६४४, ११७४१७-२(#) ज्योतिष श्लोक, मा.गु.,सं., पद्य, वै., इतर, (ज्येष्ठार्क पश्चिमो), ११८३३१-१५ ज्योतिष श्लोक संग्रह, प्रा.,मा.गु.,सं., गा. ११, पद्य, मपू., इतर, (अच्चिबुहविहप्पिसणिवारा), ११५६४३-२(+), ११८८७२-२(+#) ज्योतिषसार, आ. नरचंद्रसूरि, सं., श्लो. २९४, पद्य, मपू., इतर, (श्रीसर्वज्ञजिनं नत्वा नार), ११७२१६(+#$), ११८२७१(+$), ११८३४४(+$), ११८४०२(+$), ११८४३१(+$), ११८६६७(+), ११८७७७-१(+#), ११८७९०(+#s), ११९९९८(+$), ११९२५७, ११५६२५(#$), ११५९२१(#$), ११८०९०(#$), ११८१६६-१(#), ११९४६४(#$), ११५९७७(s), ११७१४२(६), ११७९४०(), ११८१७०(६), ११८२१३(६), ११८९३४($) (२) ज्योतिषसार-यंत्रकोद्धार टिप्पण, आ. सागरचंद्रसूरि, सं., गद्य, मूप., इतर, (सरस्वतीं नमस्कृत्य), ११८४३१(+$) (२) ज्योतिषसार-बालावबोध, मा.गु.,सं., गद्य, मपू., इतर, (प्रणम्य परमानंददायक), ११८३४४(+$) S) For Private and Personal Use Only Page #508 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ४९३ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १.१.२६ (२) ज्योतिषसार-टबार्थ*, मा.गु., गद्य, स्पू., इतर, (श्रीअरिहंतभगवानने), ११७२१६(+#$), ११८४०२(+$), ११८७९०(+#$), ११९२८४(+#$), ११९९९८(+$), ११५६२५ (#s), ११८१७०(६), ११८२१३($), ११८९३४($) (२) ज्योतिषसार-लघनारचंद्र ज्योतिष, संक्षेप, मा.गु.,सं., प+ग., मप., इतर, (अहँतं जिनं नत्वा), ११९२८४(+#$), ११७१८२(#S), ११५९५०(६) ज्योतिषसारोद्धार, आ. हर्षकीर्तिसूरि, सं., अ. ३, श्लो. ३३७, ग्रं. ५००, पद्य, मपू., इतर, (तं नमामि जिनाधीशं), ११५८६४(६) ज्वालामालिनीदेवी स्तोत्र-सबीज, सं., गद्य, मप., (ॐ नमो भगवते श्रीचंद),११६४६५(+) तंदलवैचारिक प्रकीर्णक, प्रा., प+ग., म्पू., (निज्जरिय जरामरणं), प्रतहीन. (२) तंदलवैचारिक प्रकीर्णक-विशेष विचार, संबद्ध, मा.गु., गद्य, पू., (त्री तणी नाभि हेठी हेठी), ११८५१६-३०(+) तत्त्वतरंगिणी, उपा. धर्मसागरगणि, प्रा., गा. ६२, वि. १६१५, पद्य, मप., (नमिऊण वद्धमाणं तित्थ), प्रतहीन. (२) तत्त्वतरंगिणी-स्वोपज्ञ वृत्ति, उपा. धर्मसागरगणि, सं., ग्रं. ११०२, गद्य, मप., (श्रीवर्द्धमानमानम्या), ११७६४३($) तत्त्वविचार श्लोक, सं., श्लो. १, पद्य, मपू., (तत्त्वानि७ व्रत१२), ११९६१६-१(+) तत्त्वार्थाधिगमसूत्र, वा. उमास्वाति, सं., अ. १०, गद्य, मपू., दि., (सम्यग्दर्शनशुद्ध), ११८१३५(+#), ११८७८५-२(+), ११९७२४(+#), ११९११०,११६६३५(६), ११९९४६(६) (२) तत्त्वार्थाधिगमसूत्र-स्वोपज्ञ भाष्य, वा. उमास्वाति, सं., अ. १०, ग्रं. २२००, गद्य, दि., (सम्यग्दर्शनं सम्यग), ११८७८५-२(+) (२) तत्त्वार्थाधिगमसूत्र-श्रुतसागरी टीका (दि.), आ. श्रुतसागरसूरि, सं., गद्य, मूपू., दि., (सिद्धोमास्वामि), प्रतहीन. (३) तत्त्वार्थाधिगमसूत्र-श्रुतसागरी टीका (दि.) की अवचूरि, श्राव. पांचा ब्रह्मचारी, सं., गद्य, मप., दि., (अहमुमास्वाति नाम), ११९७२४(+#) (२) तत्त्वार्थाधिगमसूत्र-टबार्थ, पुहि., गद्य, मूपू., दि., (तीन काल भूत १ भव्यष), ११९९४६(5) (२) तत्त्वार्थाधिगमसूत्र-टबार्थ, पुहिं., गद्य, मप., दि., (सम्यग्दर्शन सम्यग्ज), ११६६३५($) (२) तत्त्वार्थाधिगमसूत्र-भाषावचनिकाटीका (दि.), श्राव. सदासुखदासजी, हिं., अ. १०, ग्रं. २०००, वि. १९१०, गद्य, मप., दि., (मोक्षमार्गस्य नेतारं), ११८१३५(+#) (२) तत्त्वार्थाधिगमसूत्र-संबंधकारिका आदि, संबद्ध, वा. उमास्वाति, सं., का. ३१, पद्य, स्पू., (सम्यग्दर्शनशुद्ध), ११८७८५-१(+) तपागच्छाधिपति प्रति पत्रलेखन विधि, सं., गद्य, मपू., (स्वस्तिश्रीमत्वावच्छेदक), ११७०२०(+) तपावली, प्रा.,मा.गु.,सं., तप. ५७, प+ग., मूपू., (उपधानानि सर्वाणि), ११५४७४-१(६), ११७४०९(६) तिजयपहुत्त स्तोत्र, आ. मानदेवसूरि, प्रा., गा. १४, पद्य, मूपू., (तिजयपहुत्तपयासय अठ्ठ), ११५७५६(+#), ११८८५६-४(+$), ११९१४३-५०(+-), ११७१२८-१($) (२) तिजयपहुत्त स्तोत्र-टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (तीन जगत्रन प्रभुताना), ११५७५६(+#) तीर्थंकर गोत्रोपार्जकजीव गाथा, प्रा., गा. २, पद्य, मपू., (सेणिय१ सुपास२ उदाई३), ११८५१६-४९(+) तीर्थवंदना चैत्यवंदन, सं., श्लो. ४, पद्य, मपू., (ख्यातोष्टापदपर्वतो), ११६६९८-५ तीर्यग्ज़ंभकदेव निवासस्थान गाथा, प्रा., गा. १, पद्य, मूपू., (कंचणगिरिपव्वयसु चित्त), ११५४०६-१७(+#) तुलजाभवानी स्तोत्र, शंकराचार्य, सं., श्लो. १२, पद्य, वै., (हंसारूढ महाप्रसन्न), ११६०५६-४(#) त्रिपुराभवानी स्तोत्र, आ. लघ्वाचार्य, सं., श्लो. २४, पद्य, वै., (ऐंद्रस्यैव शरासनस्य), ११६६५९-१(+#), ११९४३०-१(+) त्रिषष्टिशलाकापुरुष चरित्र, आ. हेमचंद्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., पर्व. १०, ग्रं. ३५०००, वि. १२२०, पद्य, मप., __(सकलार्हत्प्रतिष्ठानम), ११६२८३(+$) (२) त्रिषष्टिशलाकापुरुष चरित्र-हिस्सा सकलार्हत् स्तोत्र, आ. हेमचंद्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., श्लो. २६, वि. १२वी, पद्य, मूप., (सकलार्हत्प्रतिष्ठानम), ११५३६२-१(+$), ११७३३३-१(+), १२००४४-२(+), ११५९१२, ११७५०७, ११९२०१, ११८६६२(#), ११५४८३(६) (३) त्रिषष्टिशलाकापुरुष चरित्र-हिस्सा सकलार्हत् स्तोत्र की टीका, ग. कनककुशल, सं., ग्रं. २८२, वि. १६५४, गद्य, मूपू., (वयम् आर्हत्यं), ११८६६२(#) (३) त्रिषष्टिशलाकापुरुष चरित्र-हिस्सा सकलार्हत् स्तोत्र की नमस्कारावचूरि, सं., गद्य, मूपू., (अहं आर्हन्यं प्रणिद), ११९२०१(5) For Private and Personal Use Only Page #509 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org ४९४ संस्कृत, प्राकृत व अपभ्रंश भाषाओं की मूल कृति के अकारादि क्रम से प्रत-पेटाकृति क्रमांक सूची परिशिष्ट-१ (३) त्रिषष्टिशलाकापुरुष चरित्र-हिस्सा सकलार्हत् स्तोत्र का टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू. ( नमः श्रीपार्श्वनाथाय), ११५४८३(३), ११५९१२(३) (३) त्रिषष्टिशलाकापुरुष चरित्र-हिस्सा सकलार्हत् स्तोत्र की जिनभवन स्तुति, संबद्ध, सं., श्लो. १, पद्य, मूपू.. (अवनितलगतानां कृत्रिम), ११५३६२-२(*) दंडक प्रकरण, मु. गजसार, प्रा., गा. ४४, वि. १५७९, पद्य, मूपू., (नमिउं चौवीस जिणे), ११६३३७ (+$), ११८८५८ (+), ११९०८९(+), ११९२६१-३(+), ११९२६५-३(+), ११९८३६-२ (+), ११९८९८-३(०) ११७७८२(२६), ११६८१०(३) Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir (२) दंडक प्रकरण-टबार्थ *, मा.गु., गद्य, मूपू., (ऋषभादिक २४ जिननै), ११८८५८ (+), ११९०८९(+), ११९२६१-३(+$), ११७७८२ (45) (२) दंडक प्रकरण-यंत्र, मु. सुमतिवर्द्धन, मा.गु, गद्य, म्पू., (--), ११९७५७ (३) दर्शनविनय विचार, प्रा., सं., गद्य, मूपू., (छंदा १ रोसा २ परिजुण्णा ३), ११८५१६-९५(+) दशविधचक्रवाल समाचारी रथ, प्रा., मा.गु., गा. १, प+ग, मृपू., (मणगुत्तो सन्नाणी), ११५६१३-१(+) दशविधचक्रवाल समाचारी रथ, प्रा., गा. २, पद्य, मूपू., (मणगुत्तो सन्नाणी पसमिपको), ११५२८४-२ दशवैकालिकसूत्र, आ. शय्यंभवसूरि, प्रा., अध्य. १० चूलिका २, वी. २वी, पद्य, मूपू., (धम्मो मंगलमुक्किट्ठ), ११५३०७(+#$), ११५४००-२३/+), ११५५०९०४), ११६३७३(+), ११६६८९ +६, ११७७७९-५(+), ११८०९५ (+९), ११८२८१(०४), ११८३६५-१(+#), ११८४७६(+), ११८६९०-२ (+#), ११८६९५ (+$), ११८७२२ (+$), ११८८४० (+#$), ११८८५२(+), ११८८६०(+), १९८८८० (+), १९८९२५ (+), ११८९३९(+), ११८९५३(+), ११९१४३-४६(+), ११९३४३ (+), ११९४८८(+), ११९५०२(०३), ११९५५९(+), ११९५६५ (+5), ११९६५३ (+5), ११९७७८ (+३), १२००३४(+), ११९९८१-२, १२०१४८-१, ११७७१६-२(#), ११९६९७(#$), ११५३८१ ($), ११६०४८-१ ($), ११७३४५ ($), ११७८६६ ($), ११८७६३($) (२) दशवैकालिकसूत्र-निर्मुक्ति, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., गा. ४४५, पद्य, म्पू., (सिद्धिगमुवगवाणं), प्रतहीन. (३) दशवैकालिकसूत्र-निर्युक्ति की माहात्म्य गाथा, प्रा., गा. १५, पद्य, मूपू., (सिज्जंभवं गणहरं जिणपडिमा ), ११८३६५-२(+#) (२) दशवैकालिकसूत्र - बालावबोध, उपा. राजहंस, मा.गु., गद्य, मूपू., (नत्वा श्रीवर्द्धमान), ११८९३९(+) (२) दशवैकालिकसूत्र -टबार्थ *, मा.गु., गद्य, मृपू., (ध० जीवन दुर्गति), ११६६८९ (+३), ११८०९५ (+४), ११८२८१ (+४), ११८३६५-१(+#), ११८६९०-२(+#), ११८८४० (+#$), ११८८६० (+), ११८८८० (+), ११८९२५ (+$), ११८९५३ (+), ११९३४३(+), ११९५५९(+), ११९६५३ (+४), ११९७७८(+), ११८७६३(३) (२) दशवैकालिकसूत्र -टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (धर्मकेवलीरो भाख्यौ, ११९५६५ (+$) (२) दशवैकालिकसूत्र-अन्वयार्थ, पुहिं., गद्य, मूपू., (अहिंसा प्राण व्यपरोप), ११५५०९(+$) (२) दशवेकालिकसूत्र - हिस्सा द्रुमपुष्पिका अध्ययन, आ. शय्यंभवसूरि, प्रा., गा. ५, पद्य, मूपू., ११५४०१-२ (+) (३) दशवेकालिकसूत्र - हिस्सा द्रुमपुष्पिका अध्ययन का अर्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (धर्म सर्व में मांगली कहैं). ११५४०१-२(*) (२) दशवैकालिकसूत्र-अध्ययन नाम, संबद्ध, प्रा., मा.गु., गद्य, मूपू., (दुम्मपुफीया नामें १), ११५४९१-१(#) (२) दशवैकालिकसूत्र-सज्झाय, संबद्ध, वा. कमलहर्ष, मा.गु., अ. १०, वि. १७२३, पद्य, मूपू., (मंगलिक महिमा निलो रे), (धम्मो मंगलमुक्किई). ११९८४८ 13. (२) दशवैकालिकसूत्र - सज्झाब, संबद्ध, मु. जैतसी, मा.गु., अ. १०, वि. १७१७, पद्य, मूपू., (धर्ममंगल महिमा निलो), ११८७४० (+), ११९२६०-१९(+) For Private and Personal Use Only (२) दशवैकालिकसूत्र-सज्झाब, संबद्ध, मु. वृद्धिविजय, मा.गु., सज्झा. ११, गा. १०८, पद्य, मूपू., (श्रीगुरूपदपंकज नमीजी), ११७०७० (5) (२) दशवैकालिकसूत्र-सज्झाव अध्याय ७, संबद्ध, मु. वृद्धिविजय, मा.गु., गा. ९, पद्य, मूपू., (साचं वयण जे भाखीये रे), ११७३७३-२ "" दशाश्रुतस्कंधसूत्र, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा. दशा. १० ग्रं. १३८०, पद्य, म्पू, नमो अरिहंताणं० हवइ), ११९९८९ (+) (२) दशाश्रुतस्कंधसूत्र - टवार्थ, मा.गु., गद्य, म्पू., (श्रीदशाश्रुतस्कंध), ११९९८९ (+) Page #510 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १.१.२६ ४९५ (२) दशाश्रुतस्कंधसूत्र-अध्ययन नाम, संबद्ध, प्रा.,मा.गु., गद्य, मपू., (२० असमाधी अध्येन १), ११५४९१-२(2) दानमहिमा श्लोक, सं., श्लो. १, पद्य, श्वे., (ज्ञानवान् ज्ञानदानेन), ११७५७६-२ दानशीलतपभावना कुलक, मु. अशोकमुनि, प्रा., गा. ५०, पद्य, मपू., (देवाहिदेवं नमिऊण), ११९५४७-१२ दिगंबर उत्पत्तिकाल गाथा, प्रा., गा. १, पद्य, मप., (छ वाससएहिं नवत्तरहिं), ११५४०६-११(+#) दिवसरात्रि प्रतिक्रमण विचार, प्रा., गद्य, मूपू., (आसाढपुन्निमाए वासावासपाउ), ११८५१६-६७(+) दिशागमनवयं विचार श्लोक, सं., श्लो. १, पद्य, जै., वै., इतर, (न गुरौ दक्षिणां गच्छे), १२०१५६-३(#) दीक्षायोग्य लग्न फलाफल विचार, सं., पद्य, मप., इतर, (दीक्षा विधि फलं वक्ष्ये), ११७६२४($) दीक्षा योग्यायोग्य गाथा, प्रा., गा. ४, पद्य, मपू., (अट्ठारस पुरिसेसुं वीसं), ११८५१६-२३(+) (२) दीक्षा योग्यायोग्य गाथा-व्याख्या, सं., गद्य, मप., (तत्र सप्ताष्टौ वर्षाणि),११८५१६-२३(+) दीपावली कल्प-लघु, सं., गद्य, म्पू., (--), ११७८७०(#$) दीपावलीपर्व कल्प, आ. जिनसुंदरसूरि, सं., श्लो. ४३७, ग्रं. १५००, वि. १४८३, पद्य, मूपू., (श्रीवर्द्धमानमांगल्य), ११९३६७(+$) (२) दीपावलीपर्व कल्प-बालावबोध, मा.गु., गद्य, मूपू., (स्वस्ति श्रीसुखदातार), ११५९२०-१ (२) दीपावलीपर्व कल्प-टबार्थ, मा.गु., गद्य, मपू., (अष्ट माहाप्रातिहार्य), ११९३६७(+$) दीपावलीपर्व व्याख्यान, पा. उमेदचंद्र, सं., वि. १८९६, गद्य, मप., (श्रीनेमीशं जिन), ११९२२४(+#$) दीपावलीपर्व स्तुति, गच्छा. जिनचंद्रसूरि, सं., श्लो. ४, वि. १७वी, पद्य, मूपू., (पापायां पुरि चारु), ११९१४३-२१(+-), ११८६९४-६, ११९६४८-२२ दीपावलीपर्व स्तति, सं., श्लो. १, पद्य, मपू., (पापायां पुरि चारु), ११७३२२-२ दीपावली व्याख्यान, सं., गद्य, मूपू., (प्रणम्य परया भक्त्या), प्रतहीन. (२) दीपावली व्याख्यान-बालावबोध, पुहि., गद्य, मूपू., (प्रणम्य परया भक्त्या), ११७५२३($) दुरिअरयसमीर स्तोत्र, आ. जिनवल्लभसूरि, प्रा., गा. ४४, पद्य, मूप., (दुरिअरयसमीरं मोहपंको), ११८८५६-९(+$), ११९१४३-५६(+-$) दुषमकाल ३० बोल आलापक, प्रा., प+ग., मपू., (दूसमाए समाए वट्टमाणाए एवं), ११९०६३-२(+) (२) दुषमकाल ३० बोल आलापक-टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूप., (दुखमनामा पंचमो आरो), ११९०६३-२(+) दुष्कालबोधक श्लोकसंग्रह, आ. जिनप्रभसूरि, प्रा.,सं., श्लो. १४, पद्य, मूप., (--), ११६३०१-१(६) दृष्टिवाद पंचांगवर्णन गाथा, प्रा., गा. ९, पद्य, मूपू., (पढमे पय कोडिक्का बीए छन्न), ११८५१६-८५(+) देवजयमाला, अप., गा. ८, पद्य, दि., (वत्ताणुट्ठाणे जणु), ११९७२९-२ देवलोकादि जिनभवन विचार, मा.गु.,सं., गद्य, मप., (चैत्यानि यानि सुरसद्मनि), ११८५१६-८०(+) देववंदन विधि, प्रा.,मा.गु., गद्य, मूपू., (नमोत्थुणं कहीने भगवन), ११६०४९-१ देवशास्त्रगुरु पूजा, मु. राजकीर्ति, अप.,पुहि.,सं., प+ग., दि., (सार्वः सर्वज्ञनाथः), ११८१४७-८(#) देवेंद्रस्तव प्रकीर्णक, मु. ऋषिपालित, प्रा., गा. ३११, पद्य, मूपू., (अमर नरवदिए वंदिऊण), ११५३७३(+$) (२) देवेंद्रस्तव प्रकीर्णक-टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (--), ११५३७३(+$) । दोषपृच्छा विचार, मा.गु.,सं., प+ग., मूपू., (ध्वजेन क्षेत्रपाल स्यात्), ११६२७४-१ द्रव्यभाववंदनपृच्छा विचार, प्रा., गद्य, मपू., (अरिट्ठनेमीसामी समोसरिउ), ११८५१६-६१(+) द्रव्य संग्रह, आ. नेमिचंद्र सिद्धांत चक्रवर्ती, प्रा., अधि. ३, गा. ५८, पद्य, दि., (जीवमजीवं दव्वं जिणवर), प्रतहीन. (२) द्रव्य संग्रह-पद्यानुवाद, श्राव. भगवतीदास भैया, पुहिं., गा. ७०, वि. १७३१, पद्य, दि., (तिहि जिन जीव अजीव के लखे), ११९८८४-३(+) द्रव्यसंग्रह, सं., श्लो. ५८, पद्य, मपू., (प्रणम्य परमात्मानं), ११९८५५-९(+) (२) द्रव्यसंग्रह-बालावबोध, मा.गु., गद्य, मूपू., (परम कहतां प्रधान एहवो जे), ११९८५५-९(+) द्वात्रिंशद्वात्रिंशिका, आ. सिद्धसेनदिवाकरसूरि, सं., द्वात. २१, श्लो. ६६३, पद्य, मूपू., (स्वयंभुवं भूतसहस्रने), प्रतहीन. For Private and Personal Use Only Page #511 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ४९६ संस्कृत, प्राकृत व अपभ्रंश भाषाओं की मूल कृति के अकारादि क्रम से प्रत-पेटाकृति क्रमांक सूची परिशिष्ट-१ (२) द्वात्रिंशद्वात्रिंशिका-हिस्सा महावीरद्वात्रिंशिका, आ. सिद्धसेनदिवाकरसूरि, सं., श्लो. ३३, वि. १वी, पद्य, मपू., (सदा योगसात्म्यात्), ११७३७१(+#$) द्वादशावर्त वंदनगत ३२ दोष विचार, सं., गद्य, मप., (अनादृतं आदररहितं १), ११८५१६-३८(+) द्विजवदनचपेटा, आ. हरिभद्रसूरि, सं., पद्य, म्पू., (कूर्मवामनमीनाद्यैरवत), ११६१११(+) धनंजय नाममाला, जै.क. धनंजय, सं., पद्य, दि., इतर, (तन्नमामि परं ज्योति), ११६५४४(+$) धनदत्तसिद्धदत्त कथा, सं., गद्य, मूपू., (--), ११६३८६-१(+$) धर्मपरीक्षा कथानक, पंन्या. सौभाग्यसागर, सं., परि. १६, पद्य, मूपू., (अर्हत्सिद्धयतींद्रवाचकपति), ११८९४८ धर्ममूल श्लोक-जिनोपदिष्ट, सं., श्लो. १, पद्य, श्वे., (त्रैकाल्यं द्रव्यषड्कं), ११९६१६-२(+) धर्मसंग्रहश्रावकाचार, पंडित. मेघावी, सं., अधि.७, पद्य, दि., (श्रियं दद्यात्स वो देवो), ११९८८३(+) धर्मोपदेश श्लोक संग्रह, प्रा.,मा.गु.,सं., पद्य, श्वे., (संसारेमावन्नपरस्स), ११७९४२-३ धान्यभेदविचार गाथा, प्रा., गा. ८, पद्य, मूपू., (जव१ जवजव२ गोहुम ३ सालि ४), ११८५१६-५१(+) धूर्ताख्यान, आ. हरिभद्रसूरि, प्रा., आख्या. ५, पद्य, मूपू., (नमिऊण जिणवरिंदे तिअ), प्रतहीन. (२) धूर्ताख्यान-बालावबोध, मा.गु., गद्य, मूपू., (सदुपनिषदनेकग्रंथसंदर), ११८५८०(+$) ध्वजादंडरोपण विधि, मु. देवचंद, मा.गु.,सं., गद्य, मूप., (तिहां प्रथम भूमि), ११७१०९(5) नंदनमुनि मासक्षमण गाथा, प्रा., गा. १, पद्य, मूपू., (इक्कारस य सहस्सा असिइ), ११८५१६-६(+), १२०१००-१२ नंदिषेणमनि कथा-वैयावच्चविषये, सं., गद्य, मप., (--), ११७०६९(६) नंदीश्वरद्वीप जाप विधान, सं., गद्य, दि., (ॐ ह्रीँ नंदीश्वर संज्ञकाय), ११८१४७-२५(#) नंदीश्वरद्वीप पूजा, मु. धनविजय, मा.गु.,सं., प+ग., मूपू., (श्रीनेमीजिन राजनी चरण), ११५४२२(+$) नंदीश्वरद्वीप पूजा, मा.गु.,सं., प+ग., म्पू., (सर्वासिवासे सुतरां), ११७०५५-२(+) नंदीश्वरद्वीप स्तोत्र, प्रा., गा. २५, पद्य, मप., (वंदिय नंदियलोअं), ११७०८६-१(+), ११७५२० (२) नंदीश्वरद्वीप स्तोत्र-अवचूरि, सं., गद्य, मपू., (वंदित्वा जिनसमूहं नंदित), ११७०८६-१(+) नंदीश्वरद्वीपस्थित जिनभवनपूजा, आ. रत्नशेखरसूरि, सं., पद्य, मप., (श्रीमत्पार्था जिनाधीशं), ११९८०४(+) नंदीसूत्र, आ. देववाचक, प्रा., सूत्र. ५७, गा. ७००, प+ग., मूपू., (जयइ जगजीवजोणीवियाणओ), ११९८६०(+) (२) नंदीसूत्र-टीका, आ. मलयगिरिसूरि , सं., ग्रं.७७३२, गद्य, मपू., (जयति भुवनैकभानुः), प्रतहीन. (३) नंदीसूत्र-सूत्र १५४ की टीका का हिस्सा चित्रांतर गंडिका, आ. मलयगिरिसूरि , सं., गा. २२, गद्य, मप., (आइच्च जसाईणं उसभस्सपएपए), ११८५१६-५५(+) (४) नंदीसूत्र-सूत्र १५४ की टीका का हिस्सा चित्रांतर गंडिका की व्याख्यालेश, सं., गद्य, मूपू., (एवं पंचपंचाशत्), ११८५१६-५५(+) (२) नंदीसूत्र-औत्पातिकी बुद्धि दृष्टांत गाथा, हिस्सा, आ. देववाचक, प्रा., प+ग., मपू., (भरह१ सिल२ मिंढ३), ११९०५०(+) (३) नंदीसूत्र-औत्पातिकी बुद्धि दृष्टांत गाथा का बालावबोध, मा.गु., गद्य, मूपू., (बीजी त्रीजी ताडप्रति), ११९०५०(+) (२) नंदीसूत्र स्तुति, संबद्ध, सं., श्लो. ८, पद्य, मूपू., (अर्हस्तनोतु स श्रेय), ११६३२६-२(+) नक्षत्र चूडामणी शुकनावली, सं., गद्य, जै., वै., इतर, (ॐ नमो चिलि चिलि इलि इलि), ११९२१५-१५(+) नमस्कार महामंत्र, शाश्वत , प्रा., पद. ९, पद्य, मूपू., (णमो अरिहंताणं), ११६१४०(+$), ११८६०४-२(+#), ११९९०९(+), ११९५४७-२७, ११६३८८(#$) (२) नमस्कार महामंत्र-बालावबोध , मा.गु., गद्य, मूपू., (बारसगुण अरिहंता), ११६१४०(+$), ११६३८८(#$) (२) नमस्कार महामंत्र-कथा, सं., कथा. ५, गद्य, मप., (एषा नमस्कारमहिमावानस्ति), ११९९०९(+) (२) नमस्कार महामंत्र-हिस्सा नमस्कार महामंत्रमहिमा पद, शाश्वत , प्रा., पद्य, मपू., (एसो पंच नमुक्कार सव्वपाव), ११६४९०(+) (३) नमस्कार महामंत्र-हिस्सा नमस्कार महामंत्रमहिमा पद का बालावबोध, मा.गु., गद्य, मूपू., (ए पंच परमेष्ठी नवकार मूल), ११६४९०(+) (२) नमस्कार महामंत्र-कथा संग्रह, संबद्ध, सं., गद्य, पू., (नमस्कारप्रभावे इह), ११६४६७($) For Private and Personal Use Only Page #512 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ४९७ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १.१.२६ (२) नमस्कार महामंत्र कुलक, संबद्ध, प्रा., गा. २६, पद्य, मप., (घणघायकम्ममुक्का ), ११९६९५-६(#) (२) नमस्कार महामंत्र स्तोत्र, संबद्ध, पं. धर्मसिंह पाठक, प्रा.,मा.गु., गा. ११, पद्य, मूपू., (कामितसंपय करणं तिम), ११९२१५-६०(+) नमस्कारमहामंत्र महिमा गाथा, प्रा., गा. २, पद्य, मूपू., (नवकार इक्क अक्खर पावं फेड), ११८५१६-४२(+) नमस्कार महिमा गाथा, प्रा., गा. १, पद्य, दि., (नमोकार एक शरणं पाव),११८१४७-२०(#) नमिऊण स्तोत्र, आ. मानतुंगसूरि, प्रा., गा. २४, पद्य, मूपू., (नमिऊण पणय सुरगण), ११६६६७-२(+S), ११६७७९-१(+), ११७३७५-१(+$), ११८८६१-१(+), ११५७५३-२,११७१२८-२ (२) नमिऊण स्तोत्र-अवचूरि, सं., गद्य, मूपू., (आदौ कविर्मंगलाभिधान०), ११६७७९-१(+) (२) नमिऊण स्तोत्र-टबार्थ, मा.गु., गद्य, मपू., (नमस्कार करी चरण कमल), ११८८६१-१(+) नमुत्थुणं कल्प, प्रा.,मा.गु.,सं., गा. १६, पद्य, मूपू., (ॐ नमुत्थुणं अरिहंता), ११८६८५-४(#) नयकर्णिका, उपा. विनयविजय, सं., श्लो. २३, वि. १७उ, पद्य, मूपू., (वर्द्धमानं स्तुमः), ११७८४९(+) नयचक्र, मु. माइल्लधवल, प्रा., गा. ४२५, पद्य, दि., (दव्वाविस्स सहावा), प्रतहीन. (२) नयचक्र-भाषावचनिका, श्राव. हेमराज शाह, पुहिं., वि. १७२६, गद्य, दि., (वंदो श्रीजिनके वचन), ११९४४७(+$), ११९८३० (३) नयचक्र-भाषावचनिका का बालावबोध, मु. मतिचंद्र, मा.गु., गद्य, मपू., दि., (स्यात्कारमुद्रिता), ११९८५५-७(+) नयचक्रसार, ग. देवचंद्र, सं., वि. १८वी, गद्य, स्पू., (प्रणम्य परमब्रह्म), ११९८२६ (२) नयचक्रसार-स्वोपज्ञ बालावबोध, ग. देवचंद्र, मा.गु., वि. १८वी, गद्य, मूपू., (प्रणम्य परमब्रह्म), ११८३१५(+) नरक विचार, मा.गु.,सं., गद्य, श्वे., (पहिली नरग एक लाख), ११८५१६-३२(+) । नवग्रहजपदान विधि, मा.गु.,सं., गद्य, मूपू., (ॐ ह्रीं पद्मप्रभु जिनशासन), ११७२६१ नवग्रह दोषावली, सं., गद्य, वै., इतर, (रविभूत देव्या दोष१ सोमे च), ११८७७७-४(+#) नवग्रह पूजा, प्रा.,मा.गु.,सं., प+ग., मपू., (हवै स्नात्रना दिवसथी), ११७५९८-१(+#) नवग्रहशांति विधि, मा.गु.,सं., गद्य, मपू., (श्रीसूर्यस्य पद्म), ११९२१५-२७(+) नवग्रह स्तुति, सं., श्लो. १, पद्य, वै., (अहिमगो हिमगो धरणीसुत), ११६७९५-६(#) नवग्रह स्तोत्र, ऋ. वेद व्यास, सं., श्लो. १२, पद्य, वै., (जपाकुसुमसंकाशं), ११७४००-३, ११६७९५-१०(#$) नवतत्त्व प्रकरण, आ. मणिरत्नसूरि, प्रा., गा. ५५, पद्य, मूप., (जीवाजीवापुन्नं पावा), ११७२३३(+) नवतत्त्व प्रकरण १०७ गाथा, प्रा., गा. १०७, पद्य, मूपू., (जीवाजीवापुन्नं पावा), ११९९०४-२(+), ११६५०२(#$), ११८७२८-१(#) (२) नवतत्त्व प्रकरण १०७ गाथा-बालावबोध, मा.गु., गद्य, मप., (हवे नवतत्त्वना नाम), ११७७६४-१(+#$) (२) नवतत्त्व प्रकरण १०७ गाथा-हिस्सा ६ द्रव्यपरिमाणविचार गाथा, प्रा., गा. ३, पद्य, मपू., (परिणामि जीव मुत्ता), ११७७६४-१(+#S) नवतत्त्व प्रकरण ६० गाथा, प्रा., गा. ६०, पद्य, पू., (जीवाजीवा पुण्णं पावा), ११६४८६-१(+), ११६८८३(+$), ११७७४८(+$), ११७९७२(+), ११८४८२(+#$), ११८६७०(+), ११८६८१(+#), ११८७१९(+), ११८८८३-२(+), ११९०४२(+), ११९२६१-१(+), ११९२६५-१(+), ११९५५७(+#), ११९६३०(+), ११९८३६-१(+#$), ११९८९८-२(+), ११९९०७(+), ११९९५५(+), ११९५४७-११, ११५९५८(#), ११६३२४(६), ११७६०८(६), ११९०८१(६) (२) नवतत्त्व प्रकरण ६० गाथा-टीका, आ. देवेंद्रसूरि, सं., ग्रं. ४७७, गद्य, मपू., (श्रीवर्द्धमानजिनपति), ११८६७०(+) (२) नवतत्त्व प्रकरण ६० गाथा-बालावबोध, मा.गु., गद्य, मूपू., (जीवतत्त्व अजीवतत्त्व), ११८८८३-२(+), ११९७०२-१, ११५३२३(#$), ११९१२१(६) (२) नवतत्त्व प्रकरण ६० गाथा-बालावबोध*, रा., गद्य, मूपू., (जीवाजीवा० जीवतत्त्व), ११५५७४(+$) (२) नवतत्त्व प्रकरण ६० गाथा-टबार्थ*, मा.गु., गद्य, मपू., (जीव कहतां च्यार), ११६८८३(+$), ११७९७२(+), ११८४८२(+#S), ११८६८१(+#), ११८७१९(+), ११९०४२(+), ११९२६१-१(+$), ११९५५७(+#), ११९६३०(+$), ११९९०७(+), ११९९५५(+), ११६३२४(s), ११९०८१(६) (२) नवतत्त्व प्रकरण ६० गाथा-२५ क्रिया गाथा, हिस्सा, प्रा., गा. ३, पद्य, मूपू., (काइअ १ अहिगरणीया २),११७३१७-३ (३) नवतत्त्व प्रकरण ६० गाथा-२५ क्रिया गाथा का टबार्थ, मा.गु., गद्य, मपू., (कायाई करी कर्म), ११७३१७-३ For Private and Personal Use Only Page #513 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ४९८ संस्कृत, प्राकृत व अपभ्रंश भाषाओं की मूल कृति के अकारादि क्रम से प्रत-पेटाकृति क्रमांक सूची परिशिष्ट-१ (२) नवतत्त्व प्रकरण ६० गाथा-२७६ बोल, संबद्ध, मा.गु., गद्य, पू., (जीवतत्त्व अजीवतत्त्व), ११७६१२(+$) (२) नवतत्त्व प्रकरण ६० गाथा-४२ द्वार विचार, संबद्ध, मा.गु., गद्य, पू., (जीवतत्व१ अजीवतत्व२), ११९५९२(+#$) (२) नवतत्त्व प्रकरण ६० गाथा-बोल, संबद्ध, मा.गु., गद्य, मूपू., (हवे विवेकि सम्यग्दृष), ११८३०४ (२) नवतत्त्व प्रकरण ६० गाथा-बोल संग्रह, संबद्ध, मा.गु., गद्य, मपू., (जीवतत्त्व अजीवतत्त्व), ११८४५७-१(2) (२) नवतत्त्व प्रकरण ६० गाथा-रूपीअरूपी बोल, संबद्ध, मा.गु., गद्य, मपू., (नवतत्त्व मांहि रुपि), ११९५९९ (२) नवतत्त्व प्रकरण ६० गाथा-हेयज्ञेयउपादेय, संबद्ध, प्रा., गा. २, पद्य, मूपू., (हेया बंधासव पुन्ना), ११५३२९-२, ११५४४८(-) नवपद आराधना विधि, मा.गु.,सं., गद्य, मपू., (प्रथम आशु शुदि ७),११८१९८(+#$) नवपदतप ओली आराधन विधि, प्रा.,मा.गु., गद्य, मूपू., (प्रथम आसो सुद सातमथी), ११८७२४-१(+) नवपद पूजा, उपा. यशोविजयजी गणि, प्रा.,मा.गु.,सं., पूजा. ९, पद्य, मूपू., (उपन्नसन्नाणमहोमयाणं), ११७६१४-२(+$), ११९४८४(+), ११९५२२(+), ११८५४१, १२००७९(#$), ११५७५०(६), ११७२०८(5), ११७७७४(६), ११९१२३($) नवपद स्तवन, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु.,सं., गा. १४, पद्य, मूपू., (अरिहंत पद ध्यातो), ११६००५ (#) नवस्मरण, मु. भिन्न भिन्न कर्तृक, प्रा.,सं., स्मर. ९, प+ग., मपू., (नमो अरिहंताणं० हवइ मंगलम्), ११७३९४(+$), ११७४८०(+$), ११७६४९(+5), ११८५७३-१(+), ११८७०६(+$), ११८८२८(+s), ११८८७७(+s), ११९६३५-१(+$), ११९६८८(+), ११९९१८-१(+), ११६४४८-२, ११५२७९(#s), ११९२३६-१(#s), ११५४०२(६), ११७०३३($), ११८८२५(६), ११९६१४-१(६) (२) नवस्मरण-टबार्थ , मा.गु., गद्य, मूपू., (अरिहंतनइं माहरो नमस्कार), ११९६८८(+), ११९९१८-१(+), ११९२३६-१(#$) नित्य पूजा पीठिका, सं., श्लो. ११, प+ग., दि., (ॐ जय जय जय नमोस्तु), ११८६७५-१ निरंजनाष्टक, आ. शंकराचार्य, सं., श्लो. ९, पद्य, वै., (स्थानं न मानं न च), ११९४३०-४(+) निर्वाणकांड, प्रा., गा. ४७, पद्य, दि., (अट्ठावयंमि उसहो चंपा), प्रतहीन. (२) निर्वाणकांड-पद्यानुवाद, श्राव. भगवतीदास भैया, पुहि., गा. २२, वि. १७४१, पद्य, दि., (वीतराग वंदों सदा भाव), ११९८८४-५०(+), ११८१४७-४(#S) निशीथसूत्र, प्रा., उ. २०, ग्रं. ८१५, गद्य, मूपू., (जे भिखु हत्थकम्म), ११८७३७(+), ११८७८८(+) (२) निशीथसूत्र-विशेषचूर्णि#, ग. जिनदास महत्तर, प्रा.,सं., ग्रं. २८०००, वि. ८वी, गद्य, मप., (नमिऊण अरहंताणं सिद्ध), ११५४०६-२४४+#) (२) निशीथसूत्र-टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूप., (नमस्कार हुवो सु०), ११८७३७(+), ११८७८८(+) (२) निशीथसूत्र-बीजक, मा.गु., गद्य, मपू., (नमस्कार हो सूत्र०), ११६६८७(+) नेमिजिन चरित्र, सं., पद्य, दि.?, (--), ११७५४२(+$) नेमिजिन स्तुति, चतुर्भुज, सं., श्लो. ९, पद्य, मूपू., (जय जय), ११७८३०(+) नेमिजिन स्तुति, सं., श्लो. ४, पद्य, मूपू., (कमलवल्लपनं तव राजते), ११६४६६-५, ११७८४०-६ नेमिराजिमती ९ भव गाथा, प्रा., गा. २, पद्य, मपू., (धणं धणवई सोहम्मे), ११८५१६-१३(+) नैषध चरित्र, क. श्रीहर्ष, सं., स. २२, श्लो. २८३०, ई. ११वी, पद्य, वै., इतर, (निपीय यस्य क्षितिरक्षिणः), ११५८४१(+$), ११९१८९(+) (२) नैषध चरित्र-टीका, आ. जिनराजसूरि, सं., गद्य, मूप., वै., इतर, (प्रोत्सर्पत्कलिकाल), ११९१८९(+) (२) नैषध चरित्र-टीका, सं., गद्य, मप., वै., इतर, (या कांक्षितामलपदानियतं), ११५८४१(+$) न्यायावतार सूत्र, मु. दयारत्न, सं., श्लो. ६९, पद्य, मपू., (चिन्मय प्रकृतिर्भूयः), ११८७६४-१(+), ११८७६४-२(+) (२) न्यायावतार सूत्र-स्वोपज्ञ वृत्ति, मु. दयारत्न, सं., गद्य, मूपू., (प्रणम्य परमानंद दायिनः), ११८७६४-२(+) पंचकल्याणक स्तुति, प्रा., गा. ४, पद्य, मूपू., (नाभेयं संभवं तं अजिय), ११९१४३-३२(+-) पंचतंत्र, विष्णु शर्मा, सं., गद्य, वै., इतर, (ब्रह्मा रुद्रः कुमार), प्रतहीन. (२) पंचतंत्र-पंचाख्यान पद्यानुवाद, संबद्ध, मु. गुणमेरुसूरि-शिष्य, मा.गु., अधि. ५, चौपा. २०१५, ग्रं. २७००, वि. १६२६, पद्य, पू., वै., इतर, (श्रीअंबा श्रीसारदा), ११९९१४(६) पंचतीर्थजिन स्तुति, सं., श्लो. ४, पद्य, मूपू., (श्रीशत्रुजयमुख्यतीर्थ), ११९१४३-१९(+-), ११९६४८-२० For Private and Personal Use Only Page #514 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ४९९ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १.१.२६ पंचदशबंधन विचार, सं., पद्य, मूपू., (औदारिकोदारमितिकिं), ११७६२०-१ पंचनमस्कृति स्तवन, आ. जिनप्रभसूरि, सं., श्लो. ३३, पद्य, मूपू., (प्रतिष्ठितं तयः पाटे), ११९६९५-३(#$) पंचपरमेष्टि स्तोत्र, आ. जिनप्रभसूरि, सं., श्लो. ५, पद्य, मूपू., (स्वश्रियं श्रीमदहँत), ११५८१८-१(#), ११७८८१-३(#) पंचपरमेष्ठि १०८ गुणवर्णन गाथा, प्रा.,सं., गा. १, पद्य, मप., (बारसगुण अरिहंता), ११८७०१-३(+) पंचपरमेष्ठि मंत्राराधन विवरण-भत्तिभर स्तोत्रगत, प्रा.,सं., गद्य, मप., (ॐ नमो अरिहंताणं), ११९६९५-२(#$) पंचपरमेष्ठि स्तवन, सं., श्लो. ११, पद्य, मूपू., (नम्रामरेश्वरकिरीटनिविष्टश), ११९६९५-७(#) पंचपरमेष्ठि स्तोत्र, सं., श्लो. ७, पद्य, म्पू., (अल्तस्त्रिजगद्वंद्यान), ११९५५६-२(#) पंचपरमेष्ठी मंत्र संग्रह, प्रा.,सं., गद्य, म्पू., (सिद्धेभ्यः कानिचित्), ११९६९५-५(#) पंचपरमेष्ठी स्तोत्र, आ. मानतुंगसूरि, प्रा., गा. ३५, पद्य, मूपू., (भत्तिभरअमरपणयं पणमिय), ११६३१६(+$), ११९६९५-१(#$) पंचांग आनयन विधि, सं., गद्य, इतर, (तत्र प्रथमयः प्रवर्तमान), ११६८३८-२(#) पंचांगुलीदेवी मंत्र, मा.गु.,सं., गद्य, मपू., (ॐ पंचागुली २ परिसर), ११५३०५-२,११६०६७, ११६९७३-२ पंचाख्यान वार्तिक, सं., श्लो. ४८, पद्य, श्वे., इतर?, (कुश्रितं कुप्रनष्टं), ११८३५२($) (२) पंचाख्यान वार्तिक-कथा संग्रह, मा.गु., गद्य, श्वे., इतर?, (कोइक नगरे श्रीपतीसेठ), ११८३५२($) पंचाशक प्रकरण, आ. हरिभद्रसूरि, प्रा., पंचा. १९, गा. ९४०, ग्रं. ११८७, पद्य, मप., (नमिऊण वद्धमाणं सावग), ११७९१८(+$) पक्खीचौमासीसंवच्छरी तप विचार, प्रा.,मा.गु., गद्य, मूपू., (चउत्थेणं एक उपवास), ११६७६४-२(+$), ११८९८०-२(+) पच्चक्खाण पारने की विधि, प्रा.,मा.गु., गद्य, म्पू., (खमा० इरिया० पडिक्कमी), ११६०९४-२(+#), ११६०४९-२ पज्जुणचरिउ, श्राव. सिंह महाकवि, अप., संधि. १५, वि. १३वी, पद्य, दि., (खम दम जम णिलयहो तिहु), ११६९९१(+#$) पट्टावली*, प्रा.,मा.गु.,सं., गद्य, मूपू., (श्रीमहावीर), ११९४८५ पट्टावली खरतरगच्छीय, सं., गद्य, मपू., (वीरे मोक्ष गते संवत), ११८८१९ पट्टावली तपागच्छीय, उपा. धर्मसागर गणि, प्रा., गा. २१, पद्य, मप., (सिरिमंतो सुहहेउ),११९७८४($) (२) पट्टावली तपागच्छीय-बालावबोध, मा.गु., गद्य, मूप., (ए श्रीपजूसणकल्प गुरु), ११९७८४(६) पट्टावली तपागच्छीय, मा.गु.,सं., गद्य, मूपू., (प्रणम्य त्रिविधं), ११७७२०(६) पद्मद्रहविचार गाथा, प्रा., गा. २९, पद्य, मूपू., (हिमवंतसेलसिहरेवरारविंद), ११८५१६-१०१(+) पद्मावतीदेवी अष्टक, सं., श्लो. ८, पद्य, मूपू., (श्रीमद्गीर्वाणचक्र), ११९९६२-१(+), ११९२२३-३ (२) पद्मावतीदेवी अष्टक-पार्श्वदेवीय वृत्ति, ग. पार्श्वदेव, सं., ग्रं. ५२२, वि. १२०३, गद्य, मपू., (प्रणिपत्य जिनं देवं), ११९९६२-१(+) पद्मावतीदेवी छंद, मु. हर्षसागर, मा.गु.,सं., गा. १०, पद्य, मूप., (ॐ ह्रीं कलिकुंडदंड), ११५६०८(+$) पद्मावतीदेवी पूजा, सं., प+ग., मपू., (पार्श्वनाथं नमस्कृत्य), ११८३४७ पद्मावतीदेवी स्तव, सं., श्लो. २७, पद्य, मूप., (श्रीमद्गीर्वाणचक्र), ११७०८२-१(+), ११७१३९(+#$), ११९७१६ पद्मावतीदेवी स्तोत्र, सं., श्लो. ३२, पद्य, मूपू., (श्रीमद्गीर्वाण), ११६८११(६) परमात्मद्वात्रिंशिका, आ. अमितगतिसरि, सं., श्लो. ३३, पद्य, जै.?, (सत्वेषु मैत्रीं गुणि), ११७८६२-१(#) परमात्म प्रकाश, मु. योगींद्रदेव, अप., अधि. २, गा. ३४५, वि. ६वी, पद्य, दि., (जे जाया झाणग्गियए), प्रतहीन. (२) परमात्मप्रकाश-टीका, आ. ब्रह्मदेवसूरि, सं., अ. २, ग्रं. ४०००, वि. १६वी, गद्य, दि., (चिदानंदैकरूपाय जिनाय), ११६२३०(+$) (२) परमात्म प्रकाश-(अपभ्रंश.)चयनिका आत्मतत्त्व विवरण, अप., गा.१०२, पद्य, दि., (पुणु पुणु पणवि विपंच गुरु), ११८४७८(+) परमानंद स्तोत्र, सं., श्लो. २५, पद्य, मूप., (परमानंदसंपन्न), ११५६५३, ११९५४७-९, ११५३३५-२(#), ११८१४७-४४(#) परिष्टापनिका विधि, प्रा., गद्य, श्वे., (दिअनिसिमए पयकरंगु), ११६३२६-३(+) परीक्षामुखसूत्र, आ. माणिक्यनंदि, सं., समु. ६, वि. ५६९, गद्य, दि., (प्रमाणादर्थसंसिद्धिस्तदा), ११९३८९(+) (२) परीक्षामुखसूत्र-प्रमेयरत्नमालाटीका, आ. अनंतवीर्यजी, सं., समु. ६, वि. १२वी, प+ग., दि., (नतामरशिरोरत्नप्रभाप्रोत), __ ११९३८९(+) पर्युषणाष्टाह्निका व्याख्यान, मु. नंदलाल, सं., श्लो. ६२४, वि. १७८९, पद्य, मपू., (स्मृत्वा पार्श्व), ११९३३३(+$) For Private and Personal Use Only Page #515 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ५०० संस्कृत, प्राकृत व अपभ्रंश भाषाओं की मूल कृति के अकारादि क्रम से प्रत-पेटाकृति क्रमांक सूची परिशिष्ट-१ (२) पर्युषणाष्टाह्निका व्याख्यान-टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (स्मृ० श्रीपार्श्वनाथ), ११९३३३(+$) पर्युषणाष्टाह्निका व्याख्यान, आ. लक्ष्मीसूरि, सं., व्याख. ३, वी. १६६९, गद्य, मपू., (सामायिकप्रमुखशिक्षाव्रत), ११९८७७(+) (२) पर्युषणाष्टाह्निका व्याख्यान-प्रवचन, मा.गु., पद्य, मूपू., (दुर्गतिमां पडता आत्माने), ११५४१९($) पल्योपम विचार, प्रा., गा. १६, पद्य, मूपू., (पलिओवमं च तिवहं उद्धारद्ध), ११८५१६-४(+) पल्लीपतन विचार, मा.गु.,सं., गद्य, श्वे., इतर, (बार उघाड पडतां गिलोई), ११६१७१-१(६) पांडव पुराण, आ. शुभचंद्र, सं., अ. २५ पर्व, ग्रं. ६०००, वि. १६०८, पद्य, दि., (सिद्धं सिद्धार्थसर्वस्वं), ११५८६१(5) पाक्षिकप्रतिक्रमणविधि गाथा, प्रा., गा. २, पद्य, मूपू., (मुहपत्ती वंदणयं संबुद्धा), ११८९८०-३(+), ११८५३०-३ पात्रफल गाथा, सं., श्लो. २, पद्य, श्वे., (मिथ्यादृष्टीसहस्रेषु), ११५३२९-३ पार्श्वजिन १० भव गाथा, प्रा., गा. २, पद्य, मूपू., (मरूभूइ कमठ वारण), ११८५१६-१४(+) पार्श्वजिन अष्टक, आ. रत्नसिंहसूरि, सं., श्लो.८, पद्य, मूपू., (कल्याणकेलिसदनाय नमो), ११९३०७-११ पार्श्वजिन चैत्यवंदन-यमकबद्ध, मु. शिवसुंदर, सं., श्लो. ७, पद्य, मपू., (वरसं वरसं वरसं वरसं), ११८६०६(+#) (२) पार्श्वजिन चैत्यवंदन-यमकबद्ध-व्याख्या, सं., गद्य, मपू., (व्रियते सावितिवृनदया), ११८६०६(+#) (२) पार्श्वजिन चैत्यवंदन-यमकबद्ध-अवचूरि, सं., गद्य, मूपू., (वरं प्रधाना संवरस्य), ११६४२९($) पार्श्वजिन धूपपूजा, मा.गु.,सं., गा. ५, पद्य, मूपू., (कृष्णागरमृगमदतगर अंबरतुरक),११७५३०-१(+) पार्श्वजिन नमस्कार-स्थंभनक, प्रा., गा. २, पद्य, मूपू., (जय महायस जय महायस), ११७५३०-२(+) पार्श्वजिन पूजा, मा.ग.,सं., प+ग., मप्., (जगद्गुरुं जगद्देवं), ११७५९८-४(+#) । पार्श्वजिन पूजा जयमाला-चिंतामणि, आ. सोमसेन, सं., श्लो. १८, पद्य, दि., (श्रीशारदाधारमुखारविंद), ११७५९८-२(+#) पार्श्वजिनमहिम्न स्तोत्र, आ. रघुनाथ, सं., श्लो. ४१, वि. १८५७, पद्य, स्था., (महिम्नः पारं ते परम), ११५५२८(६), ११६१५७(१) पार्श्वजिन मालामंत्र स्तोत्र, सं., गद्य, मूप., (ॐ नमो भगवते पार्श्व), ११५४५९-१(+#) पार्श्वजिन स्तवन, प्रा., गा. ४, पद्य, मूपू., (तं नमह पासनाहं धरणिं), ११६०१७ पार्श्वजिन स्तवन-जीरापल्लि , मु. मेरुनंदन, सं., श्लो. ८, पद्य, मूपू., (असुरनरसुरेंद्रश्रेणि), ११८८३१-२ पार्श्वजिन स्तुति, मु. कुशल, सं., श्लो. ४, पद्य, मपू., (द्वे द्वे कि धपमप), ११९७३५(+) पार्श्वजिन स्तुति, मु. जिनपद्म, सं., श्लो. ७, पद्य, मप., (तमालनीलच्छविपिच्छलां), ११८५३३(+) (२) पार्श्वजिन स्तुति-अवचूरि, सं., गद्य, मूपू., (० सदर्थः मनोहरांग अथवासंत), ११८५३३(+$) पार्श्वजिन स्तुति, आ. पार्श्वचंद्रसूरि, सं., श्लो. ५, पद्य, मूपू., (जगन्मंडले मल्यमालाभिधाने), ११९६४८-२६ पार्श्वजिन स्तुति, सं., श्लो. १९, पद्य, मूपू., (देवपूजा दया दानं तीर्थ), ११८६०० (२) पार्श्वजिन स्तुति-टबार्थ, मा.गु., गद्य, मपू., (श्रीअरिहंतनी पूजा करवी), ११८६०० पार्श्वजिन स्तुति, सं., श्लो. ४, पद्य, मप., (हर्षनतासुरनिर्जरलोकं),११९१४३-१२(+-), ११७३२२-५, ११८६९४-११, ११९६४८-१७ पार्श्वजिन स्तुति-नाटिकाबंध, आ. जिनकुशलसूरि, सं., श्लो. ४, पद्य, मूपू., (नै दें कि धप), ११८८८७-१९(+), ११९१४३-२२(+-), ११५८३४, ११६३१८ पार्श्वजिन स्तुति-पलांकित, सं., श्लो. ४, पद्य, मूपू., (श्रीसर्वज्ञं ज्योतिरूपं), ११९१४३-१५(+-), ११७३२२-८, ११९६४८-१८ पार्श्वजिन स्तुति-पलांकित जेसलमेरमंडन, सं., श्लो. ४, पद्य, मपू., (शमदमोत्तमवस्तुमहापणं), ११९१४३-१४(+-), ११७३२२-६, ११८६९४-१६, ११९६४८-८, ११६३९०-५(#$), ११६३९२($) पार्श्वजिन स्तुति-रत्नाकरपच्चीसी प्रथमश्लोकपादपूर्तिमय, सं., श्लो. ४, पद्य, मूपू., (श्रेयः श्रियां मंगल), ११६४६६-३, ११७८४०-४, ११७८५२-३ पार्श्वजिन स्तुति-विविध तीर्थमंडण, प्रा.,मा.गु.,सं., गा. ४, पद्य, मूपू., (श्रीसेढीतटिनी तटेपुर), ११७५३०-५(+), ११९१४३-२(+-) पार्श्वजिन स्तोत्र, सं., श्लो. ४९, पद्य, मूपू., (पार्श्वनाथ नमस्तुभ्य), ११५३७४-१(+#$) पार्श्वजिन स्तोत्र-कलिकंड, सं., श्लो. ४, पद्य, मप., (ॐ ह्रीं तं नमह), ११५४५९-२(+#), ११९२१५-९(+) पार्श्वजिन स्तोत्र-गाथा १७, प्रा.,सं., गा. १७, पद्य, मप., (उवसग्गहरं पासं पास),११६३२२(६) For Private and Personal Use Only Page #516 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १.१.२६ ५०१ पार्श्वजिन स्तोत्र-चिंतामणि, आ. कल्याणसागरसूरि, सं., श्लो. ११, पद्य, मूपू., (किं कर्पूरमयं सुधारस), ११५५२९(+#$), ११७४८४-१(#$) पार्श्वजिन स्तोत्र-नवग्रहस्ततिगर्भित, आ. जिनप्रभसरि, प्रा., गा. १०, वि. १४वी, पद्य, मप., (दोसावहारदक्खो नालिया), ११८८५६-५(+), ११९१४३-५१(+-) पार्श्वजिन स्तोत्र-शंखेश्वर, मु. लब्धिरूचि, मा.ग.,सं., गा. ३२, वि. १७१२, पद्य, मप., (जय जय जगनायक), ११९२३१(+) पार्श्वजिन स्तोत्र-शंखेश्वर, आ. हंसरत्नसूरि, सं., श्लो. ११, पद्य, मूपू., (महानंदलक्ष्मीघना), ११६७२६-१(+) पार्श्वजिन स्तोत्र-शंखेश्वरमंडन, सं., श्लो. ५, पद्य, मूपू., (ॐ नमः पार्श्वनाथाय), ११९६३५-३(+), ११७८४५-१, ११७८६२-३(#$) पार्श्वधरणेद्रपद्मावती स्तोत्र, सं., गद्य, मप., (नमो भगवते श्री), ११६२७८-१(६) पार्श्वपद्मावती मंत्र-अट्टेमट्टे, सं., गद्य, मप., (ॐ नमो भगवते श्रीपार्श्व), ११७०८२-२(+) पार्श्वमहावीरसीमंधरजिन सिद्धचक्र स्तोत्र, सं., पद्य, म्पू., (--), ११५४७०($) (२) पार्श्वमहावीरसीमंधरजिन सिद्धचक्र स्तोत्र-व्याख्या, मा.गु., गद्य, मूपू., (--), ११५४७०(5) (२) पार्श्वमहावीरसीमंधरजिन सिद्धचक्र स्तोत्र-अन्वय, सं., गद्य, स्पू., (--), ११५४७०($) पार्श्वयक्ष स्तुति, सं., श्लो. ३, पद्य, पू., (श्रीचिंतामणि पार्श्वेश), ११७०५५-३(+) पालगोपाल कथा, आ. जिनकीर्तिसरि, सं., श्लो. २३८, पद्य, मप., (ये शील सुखकल्लील भजंते), ११८७९४(+#) पालीसंघप्रश्नोत्तर संग्रह, प्रा.,मा.गु., प+ग., श्वे., (आंबिलमां दोय द्रव्य ज), ११६४६८(+#) पाशाकेवली, मु. गर्ग ऋषि, सं., श्लो. १९६, पद्य, मूपू., वै., इतर, (महादेवं नमस्कृत्य), ११५५६९(+), ११७३०५(+$), ११८०१२(+), ११८६६८(+), ११८११८, ११९७५९, ११६४५९(#), ११९७८२(#$), ११५३७५(६), ११९३४१(६) (२) पाशाकेवली-भाषा, संबद्ध, मा.गु., गद्य, मूपू., वै., इतर, (१११ उत्तम थानक लाभ), ११७०११-१(+#), ११९१६२(+), ११९३५८-१(+), ११९६३८(+), ११८७२३, ११९७३८, ११५६९२(#$), ११७४०१(#$), ११७७९८(#$), ११८३५५(#s), ११९०९७($) पिंडनिर्यक्ति, आ. भद्रबाहस्वामी, प्रा., गा. ६७१, पद्य, मप., (पिंडे उग्गम उप्पाय), ११८५१६-९१(+), ११८४१२(६) पिंडविशुद्धि प्रकरण, आ. जिनवल्लभसूरि, प्रा., गा. १०३, पद्य, मूपू., (देविंदविंदवंदिय पयार), ११६३४२($) पिंडस्थपदस्थादि ४ ध्यानभेद गाथा, प्रा., गा. २१, पद्य, पू., (चित्तणिरोहे ज्झाणं चउविह), ११७५६४-१(+#) पुराणहुंडी, मा.गु.,सं., श्लो. २७८, पद्य, श्वे., वै., (श्रूयतां धर्मः), ११६४३०-२(+) पूर्वश्रृत अर्थविस्तारमान गाथा, प्रा., गा. २, पद्य, मप., (सव्व नईणं जा होज्ज वालुया), ११५४०६-२१(+#) पृथ्वीचंद्रनरेंद्र चरित्र, आ. माणिक्यसुंदरसूरि, मा.गु.,सं., उल्ला. ५, ग्रं. २१००, वि. १४७८, प+ग., मपू., (श्रीमहीपाला या विश्वे), १२००५०(4) पोरसीसार्द्धपोरसीपुरिमढमान गाथा, प्रा., गा. ५, पद्य, मप., (आसाढे पण पाया पय), ११८५१६-११(+) प्रज्ञापनासूत्र, वा. श्यामाचार्य, प्रा., पद. ३६, सू. २१७६, ग्रं. ७७८७, गद्य, मूपू., (नमो अरिहंताणं० ववगय), ११९३८४(+$), ११७३२३ (२) प्रज्ञापनासूत्र-४२ भाषाभेद गाथा, हिस्सा, प्रा., गा. ५, पद्य, मूपू., (जणवय सम्मय ठवणा नामे), प्रतहीन. (३) प्रज्ञापनासूत्र-४२ भाषाभेद गाथा का बालावबोध, मा.गु.,सं., गद्य, मूपू., (जणवय कहीइ जे जे देस), ११७४७९-२($) (२) प्रज्ञापनासूत्र-अल्पबहुत्व ९८ बोल, संबद्ध, मा.गु., गद्य, मूपू., (सर्वथी थोडा गर्भज), ११७८०४(#) (२) प्रज्ञापनासूत्र-तृतीयपदसंग्रहणी, संबद्ध, आ. अभयदेवसूरि , प्रा., गा. १३३, पद्य, मप., (दिसि १ गइ २ इंदिय ३), ११५५७५(+) (२) प्रज्ञापनासूत्र- थोकडा संग्रह*, संबद्ध, प्रा.,मा.गु., प्रश्न. ८, गद्य, मूपू., (इदा अगीए जमी नीरती), १२००२२(5) (२) प्रज्ञापनासूत्र-बोल*, संबद्ध, मा.गु., गद्य, पू., (मनुक्षलोक मध्ये), ११७८४३($) (२) प्रज्ञापनासूत्र-सज्झाय, संबद्ध, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., गा. १४, पद्य, मूप., (कहजो रे पंडित ते), ११५६६१-१ प्रज्ञाप्रकाशषट्त्रिंशिका, मु. रूपसिंह, सं., श्लो. ३७, पद्य, श्वे., (प्रज्ञाप्रकाशाय नवीन), ११९९११-१(+#) (२) प्रज्ञाप्रकाशषट्त्रिंशिका-टबार्थ , मा.गु., गद्य, श्वे., (प्रज्ञा क० बुद्धि), ११९९११-१(+#) प्रतिक्रमण समाचारी, आ. जिनवल्लभसूरि, प्रा., गा. ४०, पद्य, मपू., (सम्म नमिउं देविंद), ११९८३५-२(+#) For Private and Personal Use Only Page #517 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ५०२ संस्कृत, प्राकृत व अपभ्रंश भाषाओं की मूल कृति के अकारादि क्रम से प्रत-पेटाकृति क्रमांक सूची परिशिष्ट-१ (२) प्रतिक्रमण समाचारी-टबार्थ, मु. विमलकीर्ति, मा.गु., गद्य, मूप., (सम्यक्त भलीपरइ मनवचन काया), ११९८३५-२(+#) प्रतिष्ठादीक्षादि विधिमुहुर्त संग्रह, सं., प+ग., श्वे., (अंशक यामित्रपतौ पश्यंति), ११६३५७-१(+) प्रत्याख्यान ४९ भांगा, प्रा.,मा.गु.,सं., गद्य, मपू., (मनई न करुं वचने न), ११६२७०(+) प्रदेशीराजा प्रश्नोत्तरी,प्रा., गा. २, पद्य, मप., (अज्जय १ अज्जा २ कुंभ),११८५१६-५(+) प्रभातकालीन सामायिक की विधि-खरतरगच्छीय, प्रा.,मा.गु.,रा., गद्य, मपू., (पहिली इच्छामि खमासमण), ११५७३७-१ प्रमाणनयतत्त्वालोकालंकार, आ. वादिदेवसूरि, सं., परि. ८, वि. ११५२-१२२६, प+ग., मपू., (रागद्वेषविजेतारं ज्ञातारं), ११९७८६(+) प्रवचनसारोद्धार, आ. नेमिचंद्रसूरि, प्रा., द्वा. २७६, गा. १५९९, ग्रं. २०००, वि. १२वी, पद्य, मूपू., (नमिऊण जुगाइजिणं), प्रतहीन. (२) प्रवचनसारोद्धार-हिस्सा आचार्य के ३६ गुण, आ. नेमिचंद्रसूरि, प्रा., गा. ७, वि. १२वी, पद्य, मपू., (अट्ठविहा गणिसंपइ चउ), ११६७८१ (३) प्रवचनसारोद्धार-हिस्सा आचार्य के ३६ गुण की व्याख्या, सं., गद्य, पू., (गुणानां साधूनां वा), ११६७८१ प्रव्रज्या कुलक, प्रा., गा. ३०, पद्य, मपू., (संसार विसमसायर भवजल),११९०८०-१(+$), ११९१४३-४४(+-) प्रश्नपद्धति संग्रह, आ. हेमप्रभसूरि, सं., पद्य, मप., इतर, (प्रणम्य पार्श्वदेवेश), ११६४०२(#$) (२) प्रश्नपद्धति संग्रह-टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूप., इतर, (प्रणम्य करिने श्रीपार्श्व), ११६४०२(#$) प्रश्नव्याकरणसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., अ. १०, गा. १२५०, ग्रं. १३००, प+ग., मूपू., (जंबू अपरिग्गहो संवुड), ११८९१६(+), ११८९७५(६) (२) प्रश्नव्याकरणसूत्र-टीका, आ. अभयदेवसूरि , सं., अ. १०, ग्रं. ५६३०, वि. १२वी, गद्य, मूपू, (श्रीवर्द्धमानमानम्य), ११८९७५($) (२) प्रश्नव्याकरणसूत्र-टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (हे जंबू एह प्रत्यक्ष), ११८९१६(+) (२) प्रश्नव्याकरणसूत्र-हिस्सा अध्ययन ९ ब्रह्मचर्योपमा आलापक, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., प+ग., मूपू., (एयं बंभचेरं महाधीर पुरिस), ११९०६३-३(+$) (३) प्रश्नव्याकरणसूत्र-हिस्सा अध्ययन ९ ब्रह्मचर्योपमा आलापक का टबार्थ, मा.गु., गद्य, पू., (हिवइ ब्रह्मचर्यना गुण कहइ), ११९०६३-३(+$) प्रश्नोत्तररत्नमाला, आ. विमलसूरि, सं., श्लो. २९, पद्य, मूपू., (प्रणिपत्य जिनवरेंद्र), ११७३००(+) प्रश्नोत्तर संग्रह, प्रा.,मा.गु.,सं., गद्य, श्वे., (विसालसुरसहस्सरस्सिए), ११८५१६-७२(+) प्रश्नोत्तरसार्द्धशतक, उपा. क्षमाकल्याण, सं., प्रश्न. १५१, वि. १८५१, गद्य, मप., (श्रीसर्वज्ञं नत्वा), प्रतहीन. (२) प्रश्नोत्तरसार्द्धशतक-बीजक, वा. क्षमाकल्याण, मा.गु., प्रश्न. १५१, वि. १८५३, गद्य, मपू., (पहिलै बोलै तीर्थंकर), ११८१४९, ११९७९६-१(2) प्रहेलिका श्लोक, सं., श्लो. १, पद्य, इतर, (जीव चोरासी लख तु), ११७७५६-२(+#) प्राकृतलक्षण, क. चंड कवि, सं., विधा. ४, गद्य, जै., इतर, (प्रणम्य शिरसा वीरं), १२००६०(#) प्रासुकांबु विचार, आ. मेरुतुंगसूरि, प्रा.,सं., गद्य, मूपू., (इह किल प्रासुकोदकं द्विधा), ११८५१६-७९(+) प्रास्ताविक गाथा संग्रह, मु. भिन्न भिन्न कर्तृक, प्रा.,मा.गु.,सं., पद्य, श्वे., वै., (पूआए मन चिंतए पाहा), ११७९४३(+#), ११५३००-४(#$) प्रास्ताविक गाथा संग्रह, प्रा., गा. ५, पद्य, मपू., (अरिहंत सिद्ध पवयण), ११८५१६-१०३(+) प्रास्ताविक गाथा संग्रह, पुहिं.,प्रा.,मा.गु.,सं., गा. २८, पद्य, मूपू., (पंचमहव्वयसुव्वयमूलं), ११६८७९-६, ११८७५२-१ प्रास्ताविक दोहादि संग्रह, मु. भिन्न भिन्न कर्तृक, प्रा.,मा.गु.,सं., गा. ३७३, पद्य, श्वे., वै., (भमरा भमत नभ जिइ निगुणन), ११५५७८-३, ११६७९१(६) प्रास्ताविक श्लोक, सं., श्लो. १, पद्य, मूपू., (चलंति तारा विचलंति), ११८८९५-२(+) प्रास्ताविक श्लोक संग्रह, सं., श्लो. ११०, पद्य, श्वे., इतर, (कोटं च बूटं च पतलून), ११७४७४-२(+-$) प्रास्ताविक श्लोक संग्रह, प्रा.,सं., श्लो. ५७, पद्य, जै., इतर?, (दाता दरीद्री कृपणो), ११९७४५-१२६(+), ११८७०२-१ प्रास्ताविक श्लोक संग्रह, प्रा.,मा.गु.,सं., गा. ६१, पद्य, भूपू., (धर्माज्जन्मकुले शरीर), ११५६३६(+), ११६७६९-३(+#), ११७६४२(+#S), ११७८५८-१(+$), ११९२१५-६(+), ११९२१५-५६(+) For Private and Personal Use Only Page #518 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १.१.२६ ५०३ (२) प्रास्ताविक श्लोक संग्रह-टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (धर्म थकी भला कुलनइ), ११७६४२(+#$) प्रास्ताविक श्लोक संग्रह, सं., श्लो. २४, पद्य, श्वे., इतर, (श्रिष्टे संगः श्रुते), ११५३१८-३(+$), ११९४४१-२(+) बंधस्वामित्व नव्य कर्मग्रंथ-३, आ. देवेंद्रसूरि, प्रा., गा. २५, वि. १३वी-१४वी, पद्य, मप., (बंधविहाणविमुक्कं), ११८४८३-३(+#), ११८५४०-३(+), ११८६०८-३(+), ११८७२०-२(+), ११९१४३-६०(+-), ११९३८०-३(+), ११९६३३-३(+), ११७११६-२, ११६०९१-३() (२) बंधस्वामित्व नव्य कर्मग्रंथ-३-बालावबोध , मा.गु., गद्य, मप., (बंध सामित्त विचार), ११६०९१-३($) (२) बंधस्वामित्व नव्य कर्मग्रंथ-३-टबार्थ*, मा.गु., गद्य, मूपू., (कर्म बंधना प्रकारथी), ११८५४०-३(+), ११८७२०-२(+), ११९३८०-३(+) (२) बंधस्वामित्व नव्य कर्मग्रंथ-यंत्र, म. समतिवर्द्धन, मा.ग., यं., मप., (श्रीवर्द्धमान जिनचंद), ११९३६४(+) बंधस्वामित्व प्राचीन कर्मग्रंथ, प्रा., गा. ५४, पद्य, मूप., (नमिऊण वद्धमाणं० वोच), ११६३५३-१(+$) बंधहेतूदयत्रिभंगी प्रकरण, मु. हर्षकुल, प्रा., गा. ६५, पद्य, पू., (बंधण हेउ विमुक्कं), ११८९००(+) (२) बंधहेतूदयत्रिभंगी प्रकरण-टीका, ग. विजयविमल, सं., वि. १६०२, गद्य, मूपू., (जयति जगत्त्रयनाथः), ११८९००(+) बप्पभट्टिसूरि चरित्र, आ. राजशेखरसूरि, सं., श्लो. ७९, ग्रं. ६००, वि. १५वी, प+ग., मूपू., (गुर्जरदेशे पाटलिपुरे), ११९४०८ बरडावीर स्तोत्र, सं., श्लो. ९, पद्य, मपू., (नमदसुरसुराली मौलीकोटार), ११७४९८-२(#) बलभद्र चरित्र, सं., पद्य, मूप., (--), ११६८९०(+$) बाहबली साधना, प्रा.,सं., गद्य, मूप., (प्रथमं इर्यापथिकी ततः), ११८९६८-४ बीजतिथि स्तुति, प्रा., गा. ४, पद्य, मूपू., (महीमंडणं पुन्नसोवन्न), ११९१४३-७(+-), ११८६९४-१०, ११८७०२-२, ११९६४८-१५ बृहत्कल्पसूत्र, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., उ. ६, ग्रं. ४७३, गद्य, मूपू., (नो कप्पइ निग्गंथाण), ११७३६६(+#$), ११८४२७(+#$), ११९२२७(+#), ११८४७५, ११९८९३ (२) बृहत्कल्पसूत्र-टबार्थ*, मा.गु., गद्य, मूपू., (कव० कश्चित नगरं), ११८४२७(+#$), ११९२२७(+#). ११९८९३ बृहत्क्षेत्रसमास, आ. जिनभद्रगणि क्षमाश्रमण, प्रा., अधि. ५, गा. ६५५, वि. ६वी, पद्य, मपू., (नमिऊण सजलजलहरनिभस्सण), प्रतहीन. (२) बृहत्क्षेत्रसमास-जंबूद्वीप प्रकरण, आ. जिनभद्रगणि क्षमाश्रमण, प्रा., गा. १४२, पद्य, मपू., (नमिऊण सजलजलहरनिभस्सण), ११८७१३ (३) बृहत्क्षेत्रसमास-जंबूद्वीप प्रकरण का टबार्थ, मा.गु., गद्य, मप., (नमीनइ जलसहित मेघ), ११८७१३ बृहत्क्षेत्रसमास नव्य, आ. सोमतिलकसरि, प्रा., गा. ३८७, वि. १३७३, पद्य, मप., (सिरिनिलयं केवलिणं), प्रतहीन. (२) बृहत्क्षेत्रसमास नव्य-अवचूरि, आ. गुणरत्नसूरि, सं., गद्य, मपू., (वीरजिनवरेंद्रं सर्वे), ११९०५४(+) बृहत्शांति स्तोत्र-खरतरगच्छीय, सं., प+ग., मूपू., (भो भो भव्याः शृणुत वचन), ११७४४०(६), ११९६१४-२($) बृहत्शांति स्तोत्र-तपागच्छीय, सं., प+ग., मप., (भो भो भव्याः शृणुत), ११५७६६(+#$), ११७१२५(+), ११७४६६(+$), ११९१४३-४०(+-$), ११९९६५-३(+), ११६९०७(#$), ११८६६९-२(#), ११५४१८(६), ११६५७०(६), ११७६८५(s), ११९२७०(६) बृहत्संग्रहणी, आ. चंद्रसूरि, प्रा., गा. ३४९, वि. १२वी, पद्य, मूपू., (नमिउं अरिहंताई ठिइ), ११६५५७(+s), ११७१२६(+६), ११७५६५(+$), ११७६०९(+#$), ११७६९७(+$), ११७७३५(+#$), ११८४१९(+६), ११८५११(+#), ११८६४६(+), ११८७९७(+), ११८८०७(+), ११८८३६(+#), ११८९६९(+s), ११९२३७(+), ११९५०४(+#$), ११९६२०(+#$), ११९७२८(+), ११९८८२(+$), ११९९२०(+#), ११९४३८, ११६१७५(#$), ११७४१७-१(#S), ११५५७८-१(६), ११८५६३() (२) बृहत्संग्रहणी-टीका, आ. देवभद्रसूरि, सं., ग्रं. ३५००, गद्य, मूपू., (अत्यद्भुतं योगिभिरप्यगम्य), ११९८८२(+$) (२) बृहत्संग्रहणी-बालावबोध, ग. दयासिंह, मा.गु., ग्रं. १७५७, वि. १४९७, गद्य, मूपू., (नत्वा श्रीवीरजिन), ११६१७५ (#S) (२) बृहत्संग्रहणी-बालावबोध, मु. मतिचंद्र, मा.गु., गद्य, मूपू., (नमिउं कहतां नमस्कार), ११८५६३(६) (२) बृहत्संग्रहणी-बालावबोध, मा.गु., गद्य, भूपू., (ॐ नत्वा अरिहंतादी), ११७२६६(६) For Private and Personal Use Only Page #519 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ५०४ संस्कृत, प्राकृत व अपभ्रंश भाषाओं की मूल कृति के अकारादि क्रम से प्रत-पेटाकृति क्रमांक सूची परिशिष्ट-१ (२) बृहत्संग्रहणी-टबार्थ*, मा.गु., गद्य, मूपू., (नमस्कार अरिहंता), ११७५६५(+$), ११७६९७(+$), ११८४१९(+), ११८६४६(+), ११८८०७(+), ११८८३६(+#), ११८९६९(+$), ११९२३७(+), ११९४३८ (२) बृहत्संग्रहणी-बोल संग्रह, संबद्ध, मा.गु., गद्य, मूपू., (असुरकुमार नागकुमार), ११७७६२(+s), ११८२२४-१२(+), ११९३२२(+$), ११८५५४(s) बृहस्पति स्तोत्र, सं., श्लो. ५, पद्य, वै., (ॐ बृहस्पतिः सुरा), ११६७९५-९(#) बृहस्पति स्तोत्र, सं., श्लो. ४, पद्य, वै., (बृहस्पतिर्देवगुरुं देवोसि), ११९२१५-१०(+) बोल संग्रह, प्रा.,मा.गु.,सं., गद्य, मूपू., (जीवाय १ लेसा ८ पखीय २), ११७६९३(+$) बोल संग्रह, प्रा.,मा.गु.,सं., गद्य, श्वे., (हिवै शिष्य पूछ हे भगवन्), ११७२१७(+$), ११७३९९(+5), ११८६०४-१४(+#$), ११९५८५(+), ११९७९५-५(+), ११६८९५($), ११९६२४-२(-#$) बोल संग्रह-आगमगत विविध प्रश्नोत्तरादि, प्रा.,मा.गु.,सं., प+ग., श्वे., (सर्वथी थोडा चरित), ११९७९५-६(+), ११७५१६(#s), ११७३१३६) ब्रह्मचर्य गाथा, प्रा., गा. २, पद्य, मूपू., (महिलाओ जाओ परिरक्खियाओ), ११८५३०-२ ब्रह्मचर्यव्रतप्रत्याख्यान आलापक, प्रा.,मा.गु., गद्य, मूपू., (प्रथम इरियावही), ११८९३८-१ ब्रह्मांडपुराणे-सरस्वती स्तोत्र, सं., श्लो. १०, पद्य, वै., (शुक्लां ब्रह्म विचार), ११९४३०-५(+) भक्तामर स्तोत्र, आ. मानतुंगसूरि, सं., श्लो. ४४, पद्य, मूपू., (भक्तामरप्रणतमौलि), ११५८६७(+$), ११६६०४(+), ११७६५७(+), ११८३४१(+$), ११८८२७(+),११८८५६-६(+), ११८९७२(+), ११९१४३-५२(+-), ११९४७७(+#$), ११९५४७-२,११९७३२, ११६२६८(#), ११६५२६-१(#, ११८५७१(६) (२) भक्तामर स्तोत्र-टीका व कथा, मु. विश्वभूषण, सं., गद्य, मप., दि., (--), प्रतहीन. (३) भक्तामर स्तोत्र-टीका व कथा का पद्यानुवाद, श्राव. विनोदीलाल, पुहिं., कथा. ३८, का. ४८, वि. १७४८, पद्य, मूपू., दि., (प्रथमपद अरिहंतवरकुं), ११५८०६($) (२) भक्तामर स्तोत्र-सखबोधिका टीका, आ. अमरप्रभसूरि, सं., गद्य, मप., (किल इति निश्चये अहम), ११९४७७(+#s), ११८५७१() (२) भक्तामर स्तोत्र-बालावबोध, मा.गु.,सं., गद्य, स्पू., (किल इति सत्ये), ११८८२७(+) (२) भक्तामर स्तोत्र-बालावबोध+ कथा, मा.गु., गद्य, मूपू., (--), ११८३४१(+$) (२) भक्तामर स्तोत्र-टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (भक्तिवंत जे देवता), ११८९७२(+$), ११९७३२ (२) भक्तामर स्तोत्र यंत्रमंत्राम्नाय-पंचांगपद्धति, मा.गु.,सं., प+ग., मपू., दि., (-), ११९२२५(5) (२) भक्तामर स्तोत्र-अर्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (--), ११८६७९($) (२) भक्तामर स्तोत्र-कथा , मा.गु., गद्य, मपू., (श्रीमालवदेशमाहि), ११८८२७(+), ११५८२०-१(६), ११८६७९(5) (२) भक्तामर स्तोत्र-शेषकाव्य, हिस्सा, आ. मानतुंगसूरि, सं., श्लो. ४, पद्य, मूपू., दि., (गंभीरताररविपुरि), ११७१८०-१ (२) भक्तामर स्तोत्र-मंत्राम्नाय, संबद्ध, मा.गु.,सं., गद्य, मूपू., (ॐ नमो वृषभनाथाय), ११८३४१(+$) भक्तामर स्तोत्र-श्लोक ४८, आ. मानतुंगसूरि, सं., श्लो. ४८, पद्य, दि., (भक्तामरप्रणतमौलिमणि), प्रतहीन. (२) भक्तामर स्तोत्र-श्लोक ४८-पद्यानुवाद, श्राव. हेमराज पांडे, पुहिं., गा. ४८, पद्य, मप., दि., (आदिपुरूष आदिसजिन आदि), ११६१३८(#s), ११८१४७-४२(2) (२) भक्तामर स्तोत्र-श्लोक ४८-ऋद्धिमंत्रादि, संबद्ध, सं., गद्य, दि., (ॐह्रीं अहँ णमो अरि), ११९६३२ भगवतीसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., शत. ४१, सू. ८६९, ग्रं. १५७५२, गद्य, मूपू., (नमो अरहताणं० सव्व), ११५४०६-८(+#), ११६७८३(+#$), ११७३६३(+#$), ११८९०७(+#$), ११९५६६(+#$), ११९९१६(+६), ११८७६९ (२) भगवतीसूत्र-टीका, आ. अभयदेवसूरि , सं., शत. ४१, ग्रं. १८६१६, वि. ११२८, गद्य, मूपू., (सर्वज्ञमीश्वरमनंत), ११९५६६(+#$), ११९९१६(+$) (३) भगवतीसूत्र-टीका का हिस्सा बंधषट्त्रिंशिका प्रकरण, प्रा., गा. ३६, पद्य, मपू., (ओरालसव्वबंधा थोवा), ११७३८७(#S) (४) भगवतीसूत्र-टीका का हिस्सा बंधषट्त्रिंशिका प्रकरण की अवचूरि, सं., गद्य, मूपू., (इहाल्पबहुत्वाधिकार), ११७३८७(#5) (२) भगवतीसूत्र-टबार्थ*, मा.गु., गद्य, मूपू., (ते कालनइ विषइ ते), ११७३६३(+#$) For Private and Personal Use Only Page #520 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ५०५ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १.१.२६ (२) भगवतीसूत्र-हिस्सा शतक ११ उद्देशक ११ सदर्शनश्रेष्ठी अधिकार, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., गद्य, मप., (तेणं कालेणं तेणं समयेणं), ११९२४० (३) भगवतीसूत्र-हिस्सा शतक ११ उद्देशक ११ सुदर्शनश्रेष्ठी अधिकार का टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (ते० तेकालने विषे), ११९२४० (२) भगवतीसूत्र-हिस्सा शतक १६ उद्देश ६ स्वप्नाधिकार, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., गद्य, मूपू., (कतिणं भंते सुविणा प. गो), ११८४७४ (३) भगवतीसूत्र-हिस्सा शतक १६ उद्देश ६ स्वप्नाधिकार का टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूप., (स्वप्नाधिकार कहइ छइ क०), ११८४७४ (२) भगवतीसूत्र-हिस्सा शतक २५ उद्देशक ६ संजयानियंठा ३६ द्वार २२ प्रकार अधिकार, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., गद्य, मूप., (पन्नवणा वेय रागे कप्प), ११६४२७(+) (३) भगवतीसूत्र-हिस्सा शतक २५ उद्देशक ६ संजयानियंठा ३६ द्वार २२ प्रकार अधिकार-बालावबोध, मा.गु., गद्य, मूपू., (निपँथक० बाह्याभंतर), ११६४२७(+) (३) भगवतीसूत्र-हिस्सा शतक २५ उद्देशक ६ संजयानियंठा ३६ द्वार २२ प्रकार अधिकार-टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (प० पनवणा ते द्वारते नियंठ), ११६४२७(+) (२) भगवतीसूत्र-हिस्सा शतक ८ उद्देशक ३ सूत्र ३९९ पृथ्वी प्रकार प्रश्नोत्तर, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., गद्य, मूपू., (कति णं भंते पुढवीओ), प्रतहीन. (३) भगवतीसूत्र-हिस्सा शतक ८ उद्देशक ३ सूत्र ३९९ पृथ्वी प्रकार प्रश्नोत्तर का बालावबोध, मा.गु., गद्य, मूपू., (केतली हे भगवंत पृथिवि कही), ११६७११(+) । (२) भगवतीसूत्र-हिस्सा शतक ९ उद्देश ३२ गत गांगेयभांगा, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., गद्य, मपू., (--), प्रतहीन. (३) भगवतीसूत्र-हिस्सा शतक ९ उद्देश ३२ गत गांगेयभांगा का बालावबोध, मा.गु., गद्य, मूपू., (गांगीया अणगारना भांग), ११५८१४(६) (२) १४ बोल सज्झाय-भगवतीसूत्र शतक १, संबद्ध, मु. रायचंद ऋषि, मा.गु., गा. ११, पद्य, मूपू., (सूत्र भगोती सतक पहल), ११९५४७-१९ (२) भगवतीसूत्र-जयंतीप्रश्न गहुंली, संबद्ध, पं. वीरविजय, मा.गु., गा. ९, पद्य, मूपू., (चितहर चोवीसमा जिनराय), ११६००७(#) (२) भगवतीसूत्र भास, संबद्ध, श्राव. मनसुखदास दुग्गड, मा.गु., गा. १८, पद्य, श्वे., (कानन मांडी उपमा भला तरुवर), ११५३४२-६(+) (२) भगवतीसूत्र शतक २४-संबद्ध दंडक विचार, मा.गु., गद्य, मूपू., (सात नारिकीयानो दंडक), ११९०७०(+$), ११९३६८(+) (२) भगवतीसूत्र-शतक ३० समवसरण विचार, संबद्ध, मा.गु., गद्य, मपू., (जीवाय लेश पखी दिट्ठी), ११९७३०-२(+#$), ११७३१७-१(६) (२) भगवतीसूत्र-श्रावकपच्चक्खाण भांगा ४९, संबद्ध, मा.गु., गद्य, मूप., (सूत्र भगवती सतक ८मे), ११९२४३(+), ११६४३१(#) (२) भगवतीसूत्र-सज्झाय, संबद्ध, उपा. क्षमाकल्याण, मा.गु., गा. २१, वि. १८४३, पद्य, मूपू., (वीर जिणेसर अरथ), ___११५३४२-२(+$) भडली संग्रह, मा.गु.,सं., पद्य, इतर, (अथ पुनम के विचार।), ११९२१५-३६(+) भद्रबाहुसंहिता, आ. भद्रबाहुस्वामी, सं., अ. २८, पद्य, मूपू., (मगधेषु पुरं ख्यात), ११८१७९(+$) भावना कुलक, आ. देवेंद्रसूरि, प्रा., गा. २१, पद्य, मूपू., (कमठासुरेण रईअम्मि), प्रतहीन. (२) भावना कुलक-बालावबोध, मा.गु., गद्य, मूपू., (तिहां प्रथम ए आत्मा), ११९५२४-१(+) भावना कुलक, प्रा., गा. २२, पद्य, मपू., (निसाविरामे परिभावयाम), ११७८०८ भाष्यत्रय, आ. देवेंद्रसूरि, प्रा., भाष्य. ३, वि. १४वी, प+ग., मूपू., (वंदित्तु वंदणिज्जे), ११८५३५(+), ११९८३६-४(+#s), ११९९५८(+$), ११८७२६, ११८७४१, ११८८११, ११८९०८(#) (२) भाष्यत्रय-अवचूरि, सं., गद्य, मूपू., (वंदनीयान् दशत्रिकाणि), ११८९०८(#) (२) भाष्यत्रय-टबार्थ, मा.गु., गद्य, मपू., (वंदित्तु क० वांदीने), ११८५३५(+), ११९९५८(+$), ११८७२६, ११८७४१ भिक्षुप्रतिमा गाथा, प्रा., गा. १, पद्य, मूपू., (मासाए सत्तंता पढमा बीया), ११८५१६-२६(+) For Private and Personal Use Only Page #521 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir संस्कृत, प्राकृत व अपभ्रंश भाषाओं की मूल कृति के अकारादि क्रम से प्रत-पेटाकृति क्रमांक सूची परिशिष्ट-१ ५०६ (२) भिक्षुप्रतिमा गाथा व्याख्या, सं., गद्य, म्पू, (मुनिः प्रथमं गच्छमध्ये एव), ११८५१६-२६ (०) भुवनदीपक, आ. पद्मप्रभसूरि, सं., श्लो. १७०, वि. १३पू, पद्य, मूपू., इतर, (सारस्वतं नमस्कृत्य), ११८७७८-१(+), ११८८७२-१(+#), ११८९०९(+), ११९७३३(+), ११७५३५ (#$), ११८२७३ (S), ११८५१४-१($) (२) भुवनदीपक टीका, सं. गद्य, म्पू, इतर (सरस्वत्याः संबंधि), ११८५१४-१(5) (२) भुवनदीपक-टबार्थ, मा.गु., गद्य, म्पू, इतर (सरस्वती संबंधीओ मह), ११९७३३(०३), ११७५३५ (०३) भुवनदेवता स्तुति, सं., श्लो. १, पद्य, मूपू., ( चतुर्वर्णाय संघाय देवी), ११७५३०-३(+) भूमि भेद विचार, सं., गद्य, वै., (शुभेच्छा विचारणा तनूमानसा), ११५७४१-२ " मंगलग्रह स्तोत्र, सं., श्लो. ४, पद्य, वै., (मंगलो भूमिपुत्रश्च), ११९२१५-१२(+) मंगलाष्टक, सं., श्लो. ९, पद्य, मूपू. (श्रीमन्नम्रसुरासुर), ११५९४६ (5) " मंडल प्रकरण, मु. विनयकुशल, प्रा., गा. ९९, वि. १६५२, पद्य, मूपू., (पणमिअ वीरजिणिंद), ११५२६६ (+$) (२) मंडल प्रकरण-वार्थ, मा.गु., गद्य, भूपू (प्रणाम नमस्कार करीनड़), १९५२६६ (+३) मनुष्यभव दुर्लभता १० दृष्टांत गाथा, प्रा. गा. १, पद्य, थे. (चूलग पासग धन्ने जूए) प्रतहीन, " " (२) मनुष्यभव दुर्लभता १० दृष्टांत गाथा-कथा, मा.गु., गद्य, खे, (प्रथम चूलक भोजन खीर), १९८४६६-२ (०६) मरणसमाधि प्रकीर्णक, प्रा. गा. ६६३, पद्य, भूपू (तिहुअणसरीरिवंदं सप्प) ११७५०३(३) मल्लिजिन चरित्र, आ. विनयचंद्रसूरि सं., स. ८, श्लो. ४३४४, पद्य, मूपू. ( महातेजः प्रसूः सर्वमंगल), ११९८१३ (+०) महा अर्घ्यविधान, अप., पुहिं., रा., वि. १९६३, प+ग. दि., (प्रभु जी अष्टद्रव्य जी), ११५७६३-२ महादेव स्तोत्र, आ. हेमचंद्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., श्लो. ४४, पद्य, म्पू, (प्रशांतं दर्शनं यस्य), ११५३१८-१(+) महादेवी सूत्र, महादेव, सं., श्लो. ३९, पद्य, वै., इतर, (सिद्धिं करोति राजकेंद्र), ११६३०२ ($) (२) महादेवी सूत्र-दीपिका टीका, वा. धनराज, सं., ग्रं. १५००, वि. १६९२, गद्य, मूपू., वै., इतर ( श्रीनाभेयं जिनं नत्वा), ११६३०२(३) महापुराण, आ. जिनसेनाचार्य, आ. गुणभद्र, सं., पर्व. ७६, वि. ९वी, पद्य, दि., ( श्रीमते सकलज्ञानसाम्), प्रतहीन. महालक्ष्मी मंत्र विधि सहित, मा.गु., सं., गद्य, वै., (ॐ ह्रीं श्रीं कमले विमले), ११९२१५-१९) महालक्ष्मी स्तव, सं., श्लो. ११, पद्य, मूपू (आर्च प्रणवस्ततः), ११६०५६-३(४), ११९३३१(०) महावीरजिन २७ भव गाथा, प्रा., गा. १, पद्य, मूपू (ग्रामेश१ सिदशो२) ११८५१६-१५(४) महावीर जिन चातुर्मास स्थान संख्या, सं., गद्य, मूपू., (१ अस्तिग्रामे प्रथमं चंपा), १२०१००-११ महावीरजिन जन्मपत्रिका, सं., गद्य, म्पू, इतर (गतकलि संवत युग २६९), ११९४५१, १२०९०० ९ महावीरजिन जन्माभिषेक कलश, आ. मंगलसूरि, मा.गु. सं., गा. १६, प+ग. म्पू. (श्रेयः पल्लवयंतु वः), ११८६८२-२(७) महावीरजिन तपमान, मा.गु., सं., गद्य, म्पू, (मासक्षमणानि ११ लाख), ११९७९६-३ (५) महावीरजिन निर्वाणात् गौतमादि मोक्षगमनकाल गाथा, प्रा., गा. २, पद्य, मूपू (वीरजिणे सिद्धिगए बारसवरिस), ११५४०६-२० (+#) महावीरजिन पारणा स्तुति, सं., श्लो. ४, पद्य, मूपू., (यत्पारणासु प्रथमासु), ११९१४३-३३(+), ११८६९४-४ महावीर जिनशासने प्रमुख ऐतिहासिक घटनाक्रम संवतवार, मा.गु., सं., गद्य, श्वे. (श्रीपार्श्व० वीरनि०), ११६८२८(म) महावीरजिनशासने प्रमुख ऐतिहासिक घटनाक्रम संवतवार, सं., गद्य, मूपू., (श्रीमहावीरे मोक्षं), ११६३७५-२(#) महावीरजिन से पद्मनाभजिन अंतरकाल गाथा, प्रा., पद्य, मृपू., ( वाससहस्साचुलसी वासा सत्त), ११५४०६-१८(+) महावीरजिन स्तव बृहत्, आ. अभवदेवसूरि प्रा. गा. २२, पद्य, म्पू, (जइज्जा समणे भगवं), ११९१४३-४८(+) महावीरजिन स्तव-समसंस्कृतप्राकृत, आ. जिनवल्लभसूरि, प्रा.सं., श्लो. ३०, पद्य, मूपू., (भावारिवारणनिवारणदारु), ११८८५६-८(+), ११९१४३-५५ (+), ११६४४८-३ (६) " महावीरजिन स्तुति, प्रा., मा.गु., सं., गा. ११, पद्य, मूपू., (पंचमहव्वयसुव्वयमूलं), ११५३८२-२(#) " (२) महावीरजिन स्तुति-गाथा १ से ३, हिस्सा, प्रा., मा.गु. सं., पद्य, मूपू., (पंचमहव्वयसुव्वय मूलं समण), ११८५२९-२(१) (३) महावीरजिन स्तुति-गाथा १ से ३ का टवार्थ, मा.गु., गद्य, भूपू (पं० पंचमहाव्रत सर्व प्राणा), ११८५२९-२(*) For Private and Personal Use Only Page #522 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १.१.२६ ५०७ महावीरजिन स्तुति, सं., श्लो. ४, पद्य, मूपू., (यदंह्रिनमनादेव देहिन), ११९१४३-१०(+-), ११८६९४-८, ११९६४८-४, ११९६४८-१० महावीरजिन स्तुति, सं., श्लो. १, पद्य, मपू., (वीरं देवं नित्यं), ११९१४३-९(+-), ११७३२२-४, ११८६९४-१७, ११९६४८-१६ महावीरजिन स्तुति-कल्याणमंदिर प्रथमश्लोकपादपूर्तिमय, सं., श्लो. ४, पद्य, मूपू., (कल्याणमंदिरमुदारमवद), ११६४६६-२, ११७८४०-२, ११७८५२-२ । महावीरजिन स्तोत्र, आ. मुनिसुंदरसूरि, प्रा., गा. ५, वि. १५वी, पद्य, मूपू., (जयसिरिजिणवर तिहुअणजण), ११६६८८-३(+) महेश्वरदत्त कथा, सं., गद्य, मपू., (--), ११६३८६-२(+$) मांसदोष श्लोक, सं., श्लो. १, पद्य, श्वे., (अज्ञातभाजनमशुद्धजलादि), ११६६३४-४ माणिभद्रवीर स्तोत्र, मु. धरणीधर कवि, सं., श्लो. ९, पद्य, भूपू., (गाढं दोर्भिश्चतुर्भि), ११५७४७($) मातृका केवली, सं., श्लो. ५४, पद्य, मूपू., इतर, (--), ११७८६८($) मासतिथि क्षय गाथा, प्रा., गा. ५, पद्य, मपू., (भद्दवकित्ति य पोसे फग्गुण), ११८५१६-७(+) मद्रापंचक विधि, सं., गद्य, मप., (ॐ ह्रीं नमो जिणाणं ॐ), ११५३८३(६) मनिपति चरित्र, मु. धर्मविजय, सं., वि. १८१९, प+ग., मप., (प्रणम्य सद्गुरुं वीरं), ११९५४६(+) मुहपत्ति पडिलेहणा, प्रा., गा. २, पद्य, मूपू., (सूतत्थतत्तदिठी दंसण), ११६९१७-४(+) मूर्खशतक, क्षेमेंद्र, सं., श्लो. २६, पद्य, वै., इतर, (श्रुणु मूर्खशतं राज), ११९९११-२(+#$) (२) मूर्खशतक-टबार्थ, मा.गु., गद्य, वै., इतर, (राजा प्रस्ताव माथे पंडित), ११९९११-२(+#$) मूलाचार, आ. वट्टेरकाचार्य, प्रा., अधि. १२, गा. १२५२, पद्य, दि., (मूलगुणेसु विसुद्धे), प्रतहीन. (२) मूलाचार-छाया, सं., अधि. १२, गद्य, दि., (मूलगुणेषु विशुद्धान्), ११७१९०-१(+$) मत्युकाल जीव निर्गमन गत्यादि श्लोक-शैवमते, सं., श्लो. २, पद्य, वै., (ब्रह्मद्वारेण मोक्षत्वं), ११५४०६-२९(+#) मेरुत्रयोदशीपर्व व्याख्यान, मु. क्षमाकल्याण, सं., ग्रं. १६५, वि. १८६०, गद्य, मूपू., (मारुदेवं जिनं नत्वा), ११९२०८(+) (२) मेरुत्रयोदशीपर्व व्याख्यान-बालावबोध, मा.गु., गद्य, मपू., (मारुदेवं जिनं नत्वा), ११९४८३-८(+), ११९४८६-८(+) मेरुपर्वतादि जिनगृह विचार, प्रा.,मा.गु.,सं., गद्य, मपू., (मेरौ सप्तदशोत्त० ष्वष्ट), ११८५१६-५९(+) मौनएकादशीपर्व कथा, सं., गद्य, मूपू., (अरस्य प्रव्रज्या नमि), ११७४०५ मौनएकादशीपर्व कथा, सं., गद्य, मपू., (श्रीवीरं नत्वा गौतमः), ११६७२२(६) मौनएकादशीपर्व गणj, सं., को., मूपू., (जंबूद्वीपे भरते क्षेत्रे), ११९४२६(+), १२०००२(+#), ११६६९७ मौनएकादशीपर्व गणj, सं., गद्य, मूपू., (श्रीमहाजस सर्वज्ञाय), ११७१८३(+), ११७५१०(+#), ११७७७६($) मौनएकादशीपर्व माहात्म्य, मु. धीरविजय, सं., श्लो. १०९, वि. १७७४, पद्य, मूपू., (श्रीवर्द्धमानतीर्थेशं), ११५३२७(६) (२) मौनएकादशीपर्व माहात्म्य-टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूप., (श्रीवर्द्धमानस्वामि), ११५३२७($) मौनएकादशीपर्व व्याख्यान-सुव्रतश्रेष्ठिकथा, प्रा.,मा.गु.,सं., गद्य, पू., (सिरिवीरं नमिऊण), ११६८८१(६) मौनएकादशीपर्व स्तुति, सं., श्लो. ४, पद्य, मूपू., (अरस्य प्रव्रज्या नमिजिन), ११९१४३-१८(+-), ११७३२२-७, ११८६९४-७, ११९६४८-१३ यतिदिनचर्या, आ. देवसूरि, प्रा., गा. ३९४, पद्य, मूपू., (तं जयइ सुहं कम्म), ११८८७८(+#) यशोधर चरित्र, आ. सकलकीर्ति भट्टारक, सं., स. ८, श्लो. ९६०, पद्य, दि., (श्रीमंतं वृषभं वंदे), ११८२७६(+) युगादिदेशना, ग. सोममंडन, सं., उल्ला . ५, श्लो. ५७७, पद्य, मप., (श्रीमानादिजिनः श्रेय), ११८९९७(+$) योगचिंतामणि, आ. हर्षकीर्तिसूरि, सं., अ.७, वि. १७वी, पद्य, मप., इतर, (यत्र वित्रासमायांति), ११८१००(+$), ११८५६५(+$), ११९०३७(+), ११९५७०(+), ११९६०१(+), ११८५३७(#s), ११८९३५ (#$), ११६५३२(६), ११८९९९(5) (२) योगचिंतामणि-बालावबोध , मा.गु., गद्य, मप., इतर, (प्रथम स्त्री योग्य), ११८५६५(+$), ११८९९९(5) (२) योगचिंतामणि-टबार्थ, पं. नरसिंह मुनि, मा.गु., गद्य, मूप., इतर, (यत्रेति सुगम), ११९१४४($) (२) योगचिंतामणि-टबार्थ , मा.गु., गद्य, मप., इतर, (जबइ वित्रासनइ), ११८१००(+$), ११९०३७(+), ११९५७०(+) योगविधि-खरतरगच्छीय, मु. शिवनिधान, प्रा.,मा.गु.,सं., पद्य, मूपू., (हर्षसार गुरुचरणद्वय), ११९२३४($) योगविधि संग्रह-खरतरगच्छीय, मु. शिवनिधान, प्रा.,मा.गु., गद्य, मूपू., (श्रीहर्षसारवाचकशिष्य), ११९३११(+) For Private and Personal Use Only Page #523 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ५०८ संस्कृत, प्राकृत व अपभ्रंश भाषाओं की मूल कृति के अकारादि क्रम से प्रत-पेटाकृति क्रमांक सूची परिशिष्ट-१ योगशास्त्र, आ. हेमचंद्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., प्रका. १२, श्लो. १०००, वि. १३वी, पद्य, मूपू., (नमो दुर्वाररागादि), ११८५४२ (२) योगशास्त्र-हिस्सा प्रकाश-५ से १० धर्मध्यान के ४ प्रकार, आ. हेमचंद्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., वि. १३वी, पद्य, मप., (पादांगुष्ठादौ जंघाया), प्रतहीन. (३) योगशास्त्र-हिस्सा प्रकाश-५ से १० धर्मध्यान के ४ प्रकार का बालावबोध, मा.गु., गद्य, मपू., (पगना अंगुठा आदि देइ), ११९८८९() योगोद्वहनविधि संग्रह, प्रा.,मा.गु.,सं., गद्य, मूपू., (श्रीआवश्यक सुअखंधो), ११६९८३(+$) रत्नत्रयविधान कथानक, आ. श्रुतसागरसूरि, सं., श्लो. ८४, पद्य, दि., (विद्यानंदप्रदं पूज्यपादं), ११८४५५-३(+$) रत्नपालराजा कथा-प्रासुकनीरदानोपरि, सं., गद्य, मूपू., (प्रासुकजलं जिनोक्तं), ११६३५०-१(+$) रत्नविजय प्रति प्रेषित पत्र, मु. महिमाविजय, सं., गद्य, मपू., (गुरुं श्रीरत्नविजयं लिख्य), ११७७४६ रत्नसंचय, आ. हर्षनिधानसूरि, प्रा., गा.५५०, पद्य, मूपू., (नमिऊण जिणवरिंदे उवया), ११८४२९-४६(#) रत्नाकरपच्चीशी, आ. रत्नाकरसूरि, सं., श्लो. २५, वि. १४वी, पद्य, मपू., (श्रेयः श्रियां मंगल), ११८५९५(+), १२००४४-१(+), ११९९५७, ११८८५९(#), ११७७२३() (२) रत्नाकरपच्चीसी-बालावबोध, मु. जीवराज, मा.गु., वि. १९२०, गद्य, मूपू., (सत्य चोवीसेजिन नमुं), ११९९५७($) (२) रत्नाकरपच्चीसी-टबार्थ , मा.गु., गद्य, म्पू., (अहो कल्याणक लक्ष्मी), ११८५९५(+), ११८८५९(#), ११७७२३(5) राजप्रश्नीयसूत्र, प्रा., सू. १७५, ग्रं. २१००, गद्य, भूपू., (नमो अरिहंताणं० तेणं), ११६५२८(+#$), ११८९९१(+$), ११९३४८(+#$), ११९४२२(+#), ११८३४६(६) (२) राजप्रश्नीयसूत्र-टीका, आ. मलयगिरिसूरि , सं., ग्रं. ३७००, गद्य, मपू., (प्रणमत वीरजिनेश्वर), ११८९६२(+) (२) राजप्रश्नीयसूत्र-टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (नमस्कार हुवउ० चउथा), ११६५२८(+#$), ११८९९१(+5), ११९३४८(+#$), ११९४२२(+#) (२) राजप्रश्नीयसूत्र-हिस्सा सूत्र-१३ सूर्याभदेवऋद्धिवर्णन, प्रा., गद्य, मूपू., (अप्पेगइया वंदणवत्तियाए), ११८५१६-९४(+) (३) राजप्रश्नीयसूत्र-हिस्सा सूत्र-१३ सूर्याभदेवऋद्धिवर्णन की टीका, सं., गद्य, मूपू., (सूर्याभे विमाने योजन), ११८५१६-९४(+) (२) सूर्याभविमान विस्तार, संबद्ध, मा.गु., गद्य, मूपू., (साढाबारे लाख जोजननौ), ११९१२२(+६), ११९९७१ रामरावणसैन्य परिमाण, सं., गद्य, वै., इतर, (रावणदलं पंचाशत्योजनस्तु), ११६३९७-५ रामरावण सैन्य परिमाण गाथा, प्रा., गा. ४, पद्य, मप., (अक्खोहिणीसहस्सा हवंति), ११६७६१-४(+) रावण चतरंगबल संख्या, सं., गद्य, जै.?, (अष्टौ कोट्यः चतुःसप्तति७४), ११६७६१-३(+) रावण परिवार विचार, सं., गद्य, मप., (रावणस्य विंशति२० धनुरुच्च), ११६७६१-५(+) रूद्रयामल, सं., पद्य, वै., (--), प्रतहीन. (२) रूद्रयामल-बटुकभैरव स्तोत्र, हिस्सा, उमामहेश्वर संवाद, सं., श्लो. ८६, पद्य, वै., (मेरुपृष्ठे सुखासीनं), ११८९६८-२० रूपीअरूपी जीवअजीव भेद गाथा, प्रा., गा. ४, पद्य, श्वे., (धम्माधम्मागासा तिय), ११५३२९-१ रोहिणीतपफल कथा, मा.गु.,सं., गद्य, मूपू., (श्रीवासुपूज्यमानम्य), ११९१५१-१ लग्नदोषावली, मा.गु.,सं., प+ग., इतर, (जे समे जे लग्न होइ ते समे), ११७०११-२(+#) लघुक्षेत्रसमास प्रकरण, आ. रत्नशेखरसूरि , प्रा., अधि. ६, गा. २६३, वि. १५वी, पद्य, मूपू., (वीरं जयसेहरपयपट्ठिय), ११९१४३-५७(+-६), ११९७५२(+$), ११९८५१(+), ११९३२५(#$) (२) लघुक्षेत्रसमास प्रकरण-बालावबोध, मा.गु., गद्य, पू., (वीरं० ग्रंथनोकरणहार), ११९७५२(+$) (२) लघुक्षेत्रसमास प्रकरण-टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (वीर श्रीमहावीर केहवा), ११९३२५(#$) लघु चैत्यभक्ति, आ. देवनंदी, सं., श्लो. ३०, वि. ५वी, पद्य, दि., (वर्षेषु वर्षांतर), ११८१४७-९(#) लघशांति, आ. मानदेवसरि, सं., श्लो. १७, पद्य, मप., (शांतिं शांतिनिशांतं), ११७१३०(+$), ११८३००-२(+), ११८५४२-२(+$), ११८५७३-२(+), ११८८५६-३(+5), ११९०८०-३(+), ११९१४३-५३(+-), ११९४३२-१२(+-), ११९६३५-२(+), ११९९१८-२(+), ११७८२७, ११९६१४-३, ११६४२८(६), ११६४४८-१(६), ११७७६१(६) For Private and Personal Use Only Page #524 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ५०९ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १.१.२६ (२) लघुशांति-टबार्थ, सं., गद्य, मूपू., (शांतिजिनं नमस्कृत्य), ११७१३०(+$) (२) लघुशांति-टबार्थ, मा.गु., गद्य, मपू., (श्रीशांतिनाथ शांति), ११९९१८-२(+) लघुसंग्रहणी, आ. हरिभद्रसूरि, प्रा., गा. ३०, पद्य, मूप., (नमिय जिणं सव्वन्नु), ११९८३६-३(+#), ११७३६५() (२) लघुसंग्रहणी-टबार्थ*, मा.गु., गद्य, मूपू., (नमिय क० नमस्कार करी), ११७३६५(६) (२) लघुसंग्रहणी-खंडाजोयण बोल*, संबद्ध, मा.गु., गद्य, मूपू., (लाख जोयणनो जंबूद्वीप), ११९८६७(+$), ११९९२९(5) (२) लघुसंग्रहणी-यंत्र, मा.गु., गद्य, मूपू., (खंडद्वार जंबूद्वीपरा), ११६०३५ लघुस्वयंभू स्तोत्र, सं., श्लो. २५, पद्य, दि., (येन स्वयं बोधमयेन लोका), ११८४०४-५(+#) लाठी पर्वसंख्याफल गाथा, प्रा., गा. ३, पद्य, मूपू., इतर, (एगपव्वं पसंसंति दुपव्वा), ११५४०६-२३(+#) लीलावती, पंडित. भास्कराचार्य, सं., श्लो. २७९, प+ग., वै., इतर, (प्रीतिं भक्तजनस्य), प्रतहीन. (२) लीलावती-पद्यानुवाद, पं. रतनचंद, मा.गु., पद्य, मूपू., वै., इतर, (श्रीपारस परमेश्वर), ११९६६०($) (२) लीलावती-भाषानुवाद, मु. लालचंद, मा.गु., अ. १६, गा. ७०७, वि. १७३६, पद्य, मूपू., वै., इतर, (सोभित सिंदूर पुर), ११९९१९, ११६८३१(६) लुंकागच्छ प्रशस्तिपत्र संग्रह, सं., श्लो. १००, पद्य, स्था., (स्वस्तिश्रीशरणंजनैकशरणं), ११७५७८(+) लेश्यालक्षण श्लोक, प्रा.,सं., श्लो. ६, पद्य, पू., (अतिरौद्र सदा क्रोधी), ११८५१६-२९(+), ११९९७४-२, ११६३७८(#) लोकनालिद्वात्रिंशिका, आ. धर्मघोषसूरि , प्रा., गा. ३२, वि. १४वी, पद्य, मपू., (जिणदसणं विणा जं), ११७५२४($) लोच विधि, प्रा.,मा.ग.,सं., प+ग., मप., (खमासमण इरियावही पडिक),११६६६९-१(६) वंगचूलिका प्रकीर्णक, आ. यशोभद्रसूरि, प्रा., पद्य, मूपू., (भत्तिब्भरनमियसुरवर), ११७९५५ ।। वज्रपंजर स्तोत्र, सं., श्लो.८, पद्य, मूपू., (ॐ परमेष्ठिनमस्कारं सारं), ११९२१५-१८(+), ११९२१५-२४(+), ११७८९२, ११५८१८-३(१), ११९६९५-४(#) वज्रशुचिकोपनिषत्, शंकराचार्य, सं., गद्य, वै., (वज्रशुचिं प्रवक्ष्यामि), ११५३१८-२(+) वणिक् वंचना श्लोक, सं., श्लो. २, पद्य, इतर, (लाल्येन किंचित् कलया च), ११६७६१-७(+) वनमाला कथानक-धर्मप्रभावोपरि, सं., श्लो. १५९, पद्य, मप., (सम्यक्त्वरत्नं यत्नेन), ११८९११-१(+$) वरदत्तगणमंजरी कथा, मा.गु.,सं., गद्य, मपू., (ज्ञानं सारं सर्व), ११९३०२(+), ११९४८३-४(+), ११९४८६-४(+), ११९६९८(+#) (२) वरदत्तगुणमंजरी कथा-टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (वृषभनुं लंछन छे जेहन), ११९६९८(+#) वरदत्तगुणमंजरी कथा-सौभाग्यपंचमीमाहात्म्यविषये, ग. कनककुशल, सं., श्लो. १५०, वि. १६५५, पद्य, पू., (श्रीमत्पार्श्वजिन), ११९६३१(+), ११९०२९, ११७२१०(६) (२) वरदत्तगणमंजरी कथा-सौभाग्यपंचमीमाहात्म्यविषये-टबार्थ*, मा.गु., गद्य, मपू., (श्रीपार्श्वनाथ प्रतै), ११९६३१(+), ११९०२९ वर्द्धमानदेशना, ग. राजकीर्ति, सं., उल्ला. १०, ग्रं. ४३००, गद्य, मूपू., (नमः श्रीपार्श्वनाथाय), ११९३५१(+#) वसुधारा-लघु, सं., गद्य, श्वे., (ॐ नमो रत्नत्रयाय ॐ), ११६४६१ वसुधारा स्तोत्र, सं., गद्य, मपू., बौ., (संसारद्वयदैन्यस्य प्रतिह), ११७३९३(+$), ११९३६१(+), ११६४३४, ११९५५८, ११७४०४(६), ११८०७०(5), ११९८४४(६) वाक्यप्रकाश, ग. उदयधर्म, सं., श्लो. १२५, वि. १५०७, पद्य, मपू., इतर, (प्रणम्यात्मविदं), ११८४१६(+) (२) वाक्यप्रकाश-टीका, मु. हर्षकुल, सं., वि. १५८०, गद्य, मूपू., इतर, (श्रीमज्जिनेंद्रमानम्), ११८४१६(+) वाग्भट्टालंकार, जै.क. वाग्भट्ट, सं., परि. ५, वि. १२वी, पद्य, मूपू., इतर, (श्रियं दिशतु वो देवः), ११८८९५-१(+) (२) वाग्भट्टालंकार-अवचूरि, सं., गद्य, मूपू., इतर, (यदागमपदावली यस्यागम), ११८८९५-१(+) (२) वाग्भटालंकार-हिस्सा परीच्छेद ५, जै.क. वाग्भट्ट, सं., वि. १२वी, पद्य, मूपू., इतर, (--), प्रतहीन. (३) वाग्भट्टालंकार-हिस्सा परिच्छेद ५ की टीका, मु. विशादराज-शिष्य, सं., गद्य, मपू., इतर, (यथा भोन्यशालि दालि), ११८७९८(+) वार्षिक प्रतिक्रमण संख्यामान, प्रा.,मा.गु., प+ग., मूपू., (पडिकमणा वरस एक माहि हुइ), ११६७५५-३(+) विंशतिविंशिका, आ. हरिभद्रसूरि, प्रा., अधि. २०, ग्रं. ५००, पद्य, मूपू., (नमिऊण वीयरायं सव्व), प्रतहीन. For Private and Personal Use Only Page #525 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ५१० संस्कृत, प्राकृत व अपभ्रंश भाषाओं की मूल कृति के अकारादि क्रम से प्रत-पेटाकृति क्रमांक सूची परिशिष्ट-१ (२) विंशतिविंशिका-हिस्सा योगविंशिका, आ. हरिभद्रसूरि, प्रा., गा. २०, पद्य, मपू., (मुक्खेण जोयणाओ जोगो), प्रतहीन. (३) विंशतिविंशिका-हिस्सा योगविंशिका की वृत्ति, उपा. यशोविजयजी गणि, सं., वि. १७उ-१८पू, गद्य, मूपू., (अथ योगविंशिका व्याख), ११७१२१(६) विचार संग्रह, प्रा.,मा.गु.,सं., प+ग., मूप., (समरवीर राजा महावीरनउ), ११९०६४(+) विचारामतसार संग्रह, ग. जिनहर्ष, सं., कथा. २०, ग्रं. २८००, वि. १५०२, पद्य, मूप., (श्रीभूर्भुवः स्वस्त्रित), ११९७०४(+#$), ११९७७०(+#$), ११७६९४(६) (२) विचारामतसार संग्रह-टबार्थ, पंन्या. रूपविजय, मा.गु., वि. १८९३, गद्य, मूप., (नूतनजलधररुचये देववधू), ११९७७०(+#$) (२) विचारामृतसार संग्रह-टबार्थ, मा.गु., गद्य, म्पू., (प्रणाम माहरो श्रीअरि), ११९७०४(+#$) विजयजिनेंद्रसूरि अष्टक, मु. रंगविजय, सं., श्लो. १०, पद्य, मपू., (नत्वा श्रीजिन पाद पंकज), ११७५४४(+) विजयपताकायंत्र विधि, मा.गु.,सं., प+ग., मूपू., (पुव्वं चिय नेरइए), ११८०५७-२(#) विजयानंदसूरि प्रशस्ति, सं., श्लो. ५, पद्य, मूपू., (श्रीमद् विक्रम वर्ष), ११७५७१(+) विद्याविलास कथानक-पुण्यप्रभावे, सं., गद्य, म्पू., (धर्माज्जन्मकुले शरीर), ११६३५४(+) विद्वद्गोष्ठी, पंडित. सुधाभूषण गणि, सं., श्लो. २१, पद्य, मूपू., इतर, (येषां न विद्या न तपो), प्रतहीन. (२) विद्वद्गोष्ठी-पद्यानुवाद, मा.गु., गा. १२, पद्य, मूपू., इतर, (मृगलो भखे न मांस मांस जन), ११७९४२-७ विनोदशास्त्र, सं., श्लो. २५, पद्य, वै., इतर, (न कोपि रंगावली), ११८५९६-४(+) । विपाकसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., श्रु. २ अध्ययन २०, ग्रं. १२५०, गद्य, मूपू., (तेणं कालेणं तेणं), ११६७२०(+), ११८३९७(+), ११८७७३(+), ११९०४३(+$) (२) विपाकसूत्र-टबार्थ, मा.गु., गद्य, मप., (अथ विपाकश्रुत किसउ), ११८३९७(+), ११८७७३(+), ११९०४३(+$) । सुखविपाक द्वितीयश्रुतस्कंध, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., अ. १०, गद्य, मप., (तेणं कालेणं तेणं), ११८९४९(+) (३) विपाकसूत्र-हिस्सा सुखविपाक द्वितीयश्रुतस्कंध का टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (ते उत्सर्पणीनो चोथो), ११८९४९(+) विवाहपडल, सं., श्लो. १६०, पद्य, वै., इतर, (जंभाराति पुरोहिते), ११८३०२(#) (२) विवाहपडल-बालावबोध, मु. अमरसुंदर, मा.गु., गद्य, मूपू., वै., इतर, (प्रणम्य शिरसा), ११८३०२(#$) विविध तपनाम गाथा, प्रा., गा. ५, पद्य, मप., (सेणितवो पयरतवो घणो य),११८५१६-१९(+) विविध दोहा, गाथा, श्लोक, सवैया, कवित्त, हरियाली, गढा आदि पद्य संग्रह, भिन्न भिन्न कर्तृक, पुहिं.,प्रा.,मा.गु.,सं., पद्य, श्वे., _ (गुणा गुणज्ञेषु गुणा भवंति), ११५५८०(६) विविधप्रार्थना स्तुतिसंग्रह, सं., श्लो. १४, पद्य, मूपू., (दर्शनं देवदेवस्य), ११९५४७-८, ११८१४७-२(#) विविधविचार संग्रह*, गु.,प्रा.,मा.गु.,सं., प+ग., मूपू., (जईया होही पुच्छा), ११५४०६-३०(+#) विविधविषयसंबद्ध साधु पत्राचार पत्रसंग्रह, मु. भुवनकीर्ति, सं., गद्य, मूप., (स्वस्तिश्रीमदभीष्ट), ११७०७७(+) विष्णु २४ अवतार श्लोक, सं., श्लो. १, पद्य, वै., (श्रीमत्मत्स वराह कूर्म), ११६५०३-२(#) विसर्जन पाठ, सं., श्लो. ४, पद्य, दि., (ज्ञानतोज्ञानतो चापि), ११५७६३-४, ११८१४७-३३(#), ११८१४७-६५(#) वीतराग स्तोत्र, आ. हेमचंद्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., प्रका. २०, वि. १२वी, पद्य, मप., (यः परात्मा परं), ११७९१४(६) (२) वीतराग स्तोत्र-अवचूरि , मु. विशालराजसूरि-शिष्य, सं., प्रका. २०, ग्रं. ६२५, वि. १५१२, गद्य, मप., (जयति श्रीजिनो वीरः), ११७९१४(६) वीतराग स्तोत्र-६०अर्थगर्भित, सं., श्लो. १६, पद्य, मप., (अंब त्र्यंबकभाललालितसुधा), ११६६३३(+#) वीतरागाष्टक, सं., श्लो. ९, पद्य, मूपू., (शिवं शुद्धबुद्धं), ११९३०७-१२ वृंदावन काव्य, सं., श्लो. ५२, पद्य, वै., (वरदाय नमो हरये पतति), ११७२८३(#$) (२) वृंदावन काव्य-टीका, मु. राम ऋषि, सं., गद्य, मूपू., वै., (--), ११७२८३(#$) वृत्तरत्नाकर, केदार भट्ट, सं., अ. ६, ग्रं. १८९, पद्य, वै., इतर, (सुखसंतानसिध्यर्थं नत्वा), ११९३७८-३(+) (२) वृत्तरत्नाकर-सुगमा वृत्ति, उपा. समयसुंदर गणि, सं., वि. १६९४, गद्य, मूपू., वै., इतर, (पव्वेको द्विजोत्तमः अभूत), ११८३८५(+$) वेदिका स्थापन विधि, गु.,प्रा.,मा.गु.,सं., प+ग., पू., (तिहां पहिले भव्य), ११५४४९(+$) For Private and Personal Use Only Page #526 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १.१.२६ ५११ वैद्यवल्लभ, मु. हस्तिरुचि, सं., विला. ९, श्लो. ३२६, वि. १७२६, पद्य, मपू., इतर, (सरस्वतीं हृदि), ११८६६५(+#$), ११८९९५-१(+६), ११९६२९(+), १२००५१(#S) (२) वैद्यवल्लभ-टबार्थ , मा.गु., गद्य, मूपू., इतर, (श्रीसरस्वती देवता), ११८९९५-१(+$), ११९६२९(+), १२००५१(#$) वैराग्य अष्टक, सं., श्लो. ८, पद्य, भूपू., (जन्म दुःखं जस दुःखं), ११६२९६-२(+) वैराग्यशतक, प्रा., गा. १०४, पद्य, मपू., (संसारंमि असारे नत्थि सुह), ११८९३१(+#$), ११९८३५-१(+#), ११९८६२(+), ११९२९३ (२) वैराग्यशतक-टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (संसार असारमाहि नथी), ११८९३१(+#$), ११९८३५-१(+#), ११९८६२(+), ११९२९३ व्यवहारसूत्र, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., उ. १०, ग्रं. ३७३, गद्य, म्पू., (जे भिक्खू मासियं), ११७२२४($) व्याख्यान पीठिका, मा.गु.,सं., प+ग., मूपू., (अशरणशरण भवभयहरण), ११६०००, ११७९७५-१, ११५५०७-१(#), ११५९१०-२(#) व्याख्यान पीठिका, मा.गु.,सं., प+ग., मूपू., (नमो अरिहंताणं० अज्ञा), ११५३७४-२(+#$) व्याख्यानश्लोक संग्रह, प्रा.,मा.गु.,सं., गा. १००, पद्य, मूपू., (जिनेंद्रपूजा गुरू), ११७४१८(६) व्याख्यान संग्रह , प्रा.,मा.गु.,रा.,सं., प+ग., मूपू., (देवपूजा दया दान), ११७३६७(+$), ११५३१०($) शकुनविचार संग्रह, मा.गु.,सं., प+ग., जै., वै., इतर, (गुर्डवर्ग वालै पुर्ष), ११९५८९-५ शक्रस्तव-अर्हन्सहस्रनाम, आ. सिद्धसेनदिवाकरसूरि, सं., प+ग., मपू., (ॐ नमोर्हते भगवते), ११५३८४(+$), ११५५५२(+) शतकत्रय, भर्तृहरि, सं., शत. ३, ई. ७वी, पद्य, वै., इतर, (यां चिंतयामि सततं), ११८८५७ (२) शतकत्रय-टबार्थ, य. रूपचंद, मा.गु., गद्य, पू., वै., इतर, (सर्वदर्शिनमानम्य), ११८८५७ शतक नव्य कर्मग्रंथ-५, आ. देवेंद्रसूरि, प्रा., गा. १००, वि. १३वी-१४वी, पद्य, मपू., (नमिय जिणं धुवबंधोदय), ११८४८३-५(+#$), ११८५४०-५(+), ११९१४३-६२(+-), ११९३८०-५(+), ११९८५७-१(+$), ११९९३४-२(+#$) (२) शतक नव्य कर्मग्रंथ-५-टबार्थ, मा.गु., गद्य, मप., (परमात्मानई भव्य), ११८५४०-५(+), ११९३८०-५(+), ११९८५७-१(+$) (२) शतक नव्य कर्मग्रंथ-५-हिस्सा गाथा ३७, ३८, ४०, ४१, आ. देवेंद्रसूरि, प्रा., वि. १३वी-१४वी, पद्य, मूपू., (अयमुक्कोसो गिंदीसु पलिय), प्रतहीन. (३) शतक नव्य कर्मग्रंथ-५-हिस्सा गाथा ३७,३८, ४०, ४१ का बालावबोध, मा.गु., गद्य, मूपू., (ए पांत्रीश प्रकृति विना), ११५५२०(2) शत्रुजयतीर्थ चैत्यवंदन, मु. नगजय, सं., श्लो. ६, पद्य, मूपू., (नमः सिद्धक्षेत्राय), ११७७९७ शत्रुजयतीर्थ लघुकल्प, प्रा., गा. २५, पद्य, मूपू., (अइमुत्तयकेवलिणा कहिअ), ११८८३८(+#) शत्रुजय माहात्म्य, आ. धनेश्वरसूरि, सं., स. १४, ग्रं. १००००, पद्य, मूपू., (ॐ नमो विश्वनाथाय), ११७६५१(+#$), ११८६२४(+$), १२००३९(+#$), ११६९३१(#$) (२) शत्रुजय माहात्म्य-टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (प्रणम्य श्रीयुगादीशं), ११७६५१(+#$), ११८६२४(+$) शनिमंत्रजाप विधि, मा.ग.,सं., गद्य, वै., (ओं शनिश्चराय आँ क्रो), ११९२१५-२८(+) शनिश्चर स्तोत्र, मु. केसरकीर्ति, सं., श्लो. १७, पद्य, मूपू., (सुखदम→कृतं च शनिश्चरं), ११६१८९(+) शनिश्चर स्तोत्र, सं., श्लो. १०, पद्य, वै., (यः पुरा राज्यभ्रष्टाय), ११९२१५-११(+), ११७४००-४, ११८७०२-४, ११६७९५-८(#) शनीश्वर मंत्र संग्रह, सं., गद्य, इतर, (ॐ नमो भगवते श्रीशनि), ११९२१५-३१(+) शब्दसंचय, सं., गद्य, मूपू., इतर, (शब्दांभोधिसमुल्लासरस), ११८७०८(#) शांतसुधारस, उपा. विनयविजय, सं., भा. १६, श्लो. २३४, वि. १७२३, पद्य, मपू., (नीरंध्रे भवकानने परिगलत्), ११९७८७-१ शांतिजिन चरित्र, सं., पद्य, पू., (--), ११८४३९(+#$) शांतिजिन स्तुति-संगीताक्षरमय, सं., श्लो. ४, पद्य, मपू., (धपमपधुनिगसससारिरे), ११६५२२(+) शांतिजिन स्तुति-सकलकुशलवल्ली पादपूर्तिमय, सं., श्लो. ४, पद्य, मूपू., (सकल कुशलवल्ली पुष्कर), ११६४६६-४, ११७८४०-३ शांतिजिन स्तोत्र, सं., श्लो. ३, पद्य, मूपू., (शांतये शांतिकामाय), ११७४९१-२(+) For Private and Personal Use Only Page #527 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ५१२ संस्कृत, प्राकृत व अपभ्रंश भाषाओं की मूल कृति के अकारादि क्रम से प्रत-पेटाकृति क्रमांक सूची परिशिष्ट-१ शांतिनाथ चरित्र, आ. अजितप्रभसूरि, सं., प्र. ६, श्लो. ४८९०, ग्रं. ५०००, वि. १३०७, पद्य, मूप., (श्रेयोरत्नकरोद्भतामह), ११९८९९(#$), ११९७८५(६) (२) शांतिनाथ चरित्र-टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (मंगलिकरूप समुद्र), ११९८९९(#$), ११९७८५(६) शांतिनाथ महाकाव्य, आ. मुनिभद्रसूरि, सं., स. १९, श्लो. ४२२३, वि. १४१०, पद्य, मप., (प्रभाकरो यः परमः), ११९०६१(+#$) शांतिपाठ, प्रा.,सं., श्लो. २०, प+ग., दि., (शांतिजिनं शशि निर्मल), ११५७६३-१ शांतिपाठ, सं., श्लो. १३, प+ग., मप., (शांतिजिनं शशिनिर्मल),११८१४७-३२(#) शांतिपूजा विधि, मा.गु.,सं., गद्य, मपू., (ननु संघादीनां विघ्नो), ११९६०३(+), १२००००(+) शांतिस्नात्र विधि, उपा. सकलचंद्र गणि, मा.गु.,सं., पद्य, म्पू., (अथ प्रतिष्ठायां वा), ११६४३३ शारदा स्तोत्र, पंन्या. जिनचंद्र, सं., श्लो. ९, पद्य, मपू., (श्रीमद्गीर्वाणवृंदभ्रमर), ११९८६४-२ शालिभद्र चरित्र, मु. धर्मकुमार, सं., प्रक्र.७, श्लो. ११७०, ग्रं. १२२४, वि. १३३४, पद्य, मप., (श्रीदानधर्मकल्प), ११८८७५(+) शाश्वतचैत्य स्तव, आ. देवेंद्रसूरि, प्रा., गा. २४, पद्य, मप., (सिरिउसहवद्धमाणं), ११८२६६(+) (२) शाश्वतचैत्य स्तव-टबार्थ, मा.गु., गद्य, मपू., (ऋषभनाथ वर्द्धमान), ११८२६६(+) शाश्वतप्रतिमावर्णन स्तव, आ. देवेंद्रसूरि, प्रा., गा. १२, पद्य, मूपू., (चत्तारिअट्ठदसदोइ), प्रतहीन. (२) शाश्वतप्रतिमावर्णन स्तव-टीका, सं., गद्य, भूपू., (दाहिण दुवारे ४ पच्छि), ११८५१६-१०४(+) शाश्वतप्रतिमावर्णविभाग विचार गाथा, प्रा., गा. ५, पद्य, मपू., (पणधणुसय गुरुयाउ), ११८५१६-८८(+) शाश्वताशाश्वतजिन स्तव, आ. धर्मसूरि, सं., श्लो. १५, पद्य, मप., (नित्ये श्रीभवनाधिवासिभवन), ११५४९६(+#) शास्त्र जयमाला, अप., गा. १३, पद्य, दि., (संपइ सुह कारण कम्म), ११८१४७-२७(#) शास्त्रपूजा अष्टक, आ. पद्मनंदि, सं., श्लो. ९, पद्य, दि., (प्रकटितपरमार्थे), ११८६७५-६ शास्वत जिनप्रतिमा विचार, प्रा., गा. १, पद्य, म्पू., (जिणनामजिणा भवणजिणाताण), ११८५१६-८३(+) शिवमहिम्न स्तोत्र, पुष्पदंतगंधर्व, सं., श्लो. ४०, पद्य, वै., (महिम्नः पारं ते परमविदुषो), ११९४३०-६(+) शिवालिखितपद्धति, सं., श्लो. ३४, पद्य, वै., इतर, (कवियुद्धं कोटियुद्ध), ११५५४९-१(#) शिवाष्टक, शंकराचार्य, सं., श्लो. ९, पद्य, वै., (प्रभु प्राणनाथं विभु), ११६०५६-६(2) शील कुलक, आ. देवेंद्रसूरि, प्रा., गा. २०, पद्य, मूपू., (सोहग्ग महानिहिणो), ११६७८४($) (२) शील कुलक-व्याख्या+कथा, सं., गद्य, म्पू., (धर्मस्य द्वितीयभेदं), ११६७८४(६) (२) शील कुलक-अर्थ, सं., गद्य, मूपू., (तत्राजन्म शीलव्रत धारिणो), ११६७८४(६) शीलव्रतोच्चार विधि, प्रा.,मा.गु., प+ग., म्पू., (अहं भंते तुम्हाणं), ११५२९३(+#) शीलोपदेशमाला, आ. जयकीर्तिसूरि, प्रा., कथा. ४३, गा. ११५, वि. १०वी, पद्य, मूप., (आबालबंभयारि नेमि), ११८७४८(+$), ११८९८८(+#$), ११५४८०(#$) (२) शीलोपदेशमाला-बालावबोध कथा, ग. मेरुसुंदर, मा.ग., ग्रं. ६२५०, वि. १५५१, गद्य, मप., (श्रीवामेयममेय), ११८७४८(+s), ११८९८८(+#$), ११५४८०(#$) (२) शीलोपदेशमाला-कथा संग्रह, संबद्ध, मु. मेरुसुंदर, मा.ग., गद्य, मप., (पोतनपुर नगरि नर विक), ११९८८१(+$) शुभकर्मबंध आलापक, प्रा., गद्य, मपू., (कहिणं भंते जीवा सुह), ११५४०६-६(+#) श्रमणधर्म रथ, प्रा.,मा.गु., गा. १, प+ग., मपू., (नहणेइ सयंसाहु मणसा), ११५६१३-४(+) श्रवणद्वादशीमहाव्रत कथा, आ. श्रुतसागरसूरि, सं., श्लो. ४१, पद्य, दि., (पूज्यपादप्रभाचंद्रा कलंक), ११८४५५-२(+) श्राद्धदिनकृत्य प्रकरण, आ. देवेंद्रसूरि, प्रा., गा. ३४१, ग्रं. ३९०, पद्य, मूपू., (वीरं नमिऊण तिलोयभाणु), ११९००३(+) (२) श्राद्धदिनकृत्य प्रकरण-टीका*, सं., गद्य, मूपू., (--), प्रतहीन. (३) श्राद्धदिनकृत्य प्रकरण-टीका का बालावबोध, मु. आनंदवल्लभ, मा.गु., वि. १८८२, गद्य, मूपू., (श्रीनेमीशं जिनं नत्वा), ११९००३(+) श्रावक ११ प्रतिमा, प्रा.,मा.गु.,सं., गद्य, मूपू., (अहन्नं० मिच्छतं दव्व), ११८९३८-७ श्रावक ११ प्रतिमा गाथा, प्रा., गा. १, पद्य, मपू., (दंसण वय सामाई पोसह), ११८५१६-२४(+) For Private and Personal Use Only Page #528 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १.१.२६ ५१३ (२) श्रावक ११ प्रतिमा गाथा-व्याख्या, सं., गद्य, मप., (मासं यावद्गृहीत सम्यक्त्व), ११८५१६-२४(+) श्रावक आलोयणा, मा.गु.,सं., गद्य, मपू., (ज्ञानाचारि पोथी पाटी), ११७४५०(+$) श्रावकचतुर्मासीनियम विचार, प्रा.,सं., गद्य, मूप., (संमत्तं १ सामाईय २ पोसह ३), ११८५१६-८१(+) श्रावक धर्मध्यानविचार श्लोक-उत्तरासंगयुत, सं., श्लो. ४, पद्य, मूपू., (बृहदानंदारोमांचभूषितः सह), ११८५१६-६६(+) श्रावकयोग्य विधिमुद्रा कुलक, प्रा., गा. ४५, पद्य, मूपू., (नमिऊण अमियनाणं सिरिवीर), ११८५१६-१०५(+) श्रावकविधि प्रकाश, उपा. क्षमाकल्याण, मा.ग.,सं., वि. १८३८, गद्य, मप., (प्रणम्य श्रीजिनाधीशं), ११९७२०-१(+#) श्रावक सिद्धांतपठन विचार, प्रा.,सं., गद्य, मपू., (तथा ढड्ढरश्रावकार्य), ११८५१६-९०(+) श्रावकाराधना, सं., प+ग., श्वे., (श्रीसर्वज्ञं प्रपंपण), ११५२७६($) । श्राविका ऊध्वस्थित वंदन विचार, प्रा.,सं., गद्य, मूपू., (तएणं सा देवाणंदा माहणी), ११८५१६-६८(+) श्रीपति कथा-अनर्थदंडविरतेसमृद्धिदत्त, सं., श्लो. १०९, पद्य, मूपू., (दक्षिणमधुरेत्यासी दत्रपूः), ११६३४५-२(+) श्रीपाल चरित्र, ग. जयकीर्ति; पंन्या. जीवराज, सं., प्र. ४, वि. १८६८, गद्य, मपू., (प्रणम्य सिद्धचक्रं च), ११९३५७(+#), ११५३१४($) (२) श्रीपाल चरित्र-बालावबोध, मु. देवमुनि, मा.गु., प्र. ४, ग्रं. १८००, वि. १९१७, पद्य, मप., (श्रीअरिहंत सुसिद्धपद), ११९३६५(+) श्लोक संग्रह, सं., श्लो. ११, पद्य, इतर, (अस्मान् विचित्रवपुषि), ११८७०१-२(+) श्लोक संग्रह*, पुहि.,प्रा.,मा.गु.,सं., श्लो. ५, पद्य, मूपू., (कलकोमलपत्रयुता श्यामलवर्ण), ११७७५६-७(+#), ११८२२८-२(+#), ११८६१०-२(+), ११९३६०-२(+), ११९४०३-२(+), ११५८३५-३, ११८७०२-६, ११६३९७-६(s) श्लोक संग्रह, सं., श्लो. १००, पद्य, जै., वै., (जिनेंद्र पूजा गुरु), ११९२१५-६२(+), ११८६६१-२ श्लोक संग्रह, प्रा.,सं., श्लो. ४१, पद्य, मपू., (नेत्रानंदकरी भवोदधितरी), ११५३८२-३(#$) श्लोकसंग्रह, मा.गु.,सं., पद्य, मूपू., इतर, (सारंगीसिंह साबस्युश), ११९९०२-३(+) श्लोक संग्रह, प्रा.,सं., श्लो. १०, पद्य, इतर, (स्नाने सिंह समारणे), ११९०७६-२(+) श्लोक संग्रह-गूढार्थगर्भित, सं., श्लो. २५, पद्य, मप., वै., (गोश्रावः किमयंग),११७९९५-३ श्लोक संग्रह जैनधार्मिक, प्रा.,सं., श्लो. ५०, पद्य, श्वे., (देहे निर्ममता गुरौ), ११७७६४-२(+#), ११८६०४-१६(+#), ११९०५९(+#), ११९६१६-६(+), ११९७२७-१(+), ११६२६५(#$) (२) श्लोक संग्रह जैनधार्मिक-टबार्थ, मा.ग., गद्य, मप., (एकाग्रचित्ते जिन), ११९०५९(+#) श्लोक संग्रह-मांगलिक, प्रा.,मा.गु.,सं., श्लो. ३, पद्य, मूपू., (ॐकार बिंदु संयुक्तं), ११८२०९-२(+), ११७३६९, ११८५३०-४ षटऋतु श्लोक, सं., श्लो. २, पद्य, इतर, (मिने मेषवसंतश्च वृषमिथुन), ११६६९८-१ षट्पंचाशिका, आ. पृथुयशा, सं., अ.७, श्लो. ५६, पद्य, वै., इतर, (प्रणिपत्य रविं), ११८१७४(+) (२) षट्पंचाशिका-टबार्थ, मा.गु., गद्य, मपू., वै., इतर, (नमस्कार श्रीसूर्य देवतानइ), ११८१७४(+) षडशीति नव्य कर्मग्रंथ-४, आ. देवेंद्रसूरि, प्रा., गा. ८६, वि. १३वी-१४वी, पद्य, मूपू., (नमिय जिणं जियमग्गण), ११८४८३-४(+#$), ११८५४०-४(+), ११८६०८-४(+), ११९१४३-६१(+-), ११९३८०-४(+), ११९६३३-४(+$), ११९८५७-२(+), ११९९३४-१(+#) (२) षडशीति नव्य कर्मग्रंथ-४-टबार्थ, मा.गु., गद्य, मप., (हवइं चउथा कर्मग्रंथ), ११८५४०-४(+), ११९३८०-४(+), ११९८५७-२(+) षडशीति प्राचीन कर्मग्रंथ-४, आ. जिनवल्लभसूरि, प्रा., गा. ८६, पद्य, मूपू., (निच्छिन्नमोहपासं), ११६३५३-२(+) षड्दर्शन समुच्चय, आ. हरिभद्रसूरि, सं., अधि.६, श्लो. ८७, पद्य, मपू., वै., बौ., अन्य, (सदर्शनं जिनं नत्वा वीरं), ११५४४५(+$), ११८७३८(+$), ११५९०६(#$) (२) षड्दर्शन समुच्चय-लघुवृत्ति, आ. सोमतिलकसूरि, सं., ग्रं. १२५२, वि. १३९२, गद्य, मपू., वै., बौ., अन्य, (सज्ज्ञानदर्पणतले), ११८७३८(+$), ११५९०६(#$) षण्णवतिदिवसमान तप गाथा, प्रा., गा. १, पद्य, मूपू., (पट्ठवणओ य दिवसो पच्चक्खाण), ११८५१६-२५(+) (२) षण्णवतिदिवसमान तप गाथा-टीका, सं., गद्य, मपू., (षण्णवतिदिवसमानं षट्भेदं), ११८५१६-२५(+) संख्या गिणती, प्रा., गद्य, इतर, (इकं १ दयं २ सयं ३ सहस्स), ११५५४५-१(#) संख्याताअसंख्याताअनंता मान विचार, मा.गु.,सं., गद्य, मपू., (पाला च्यार ते मधे), ११६३८७(#$) संख्यातादिभेद विचार, मु. पार्श्वचंद्र, प्रा.,मा.गु., गद्य, मूपू., (से किंतं गणण संखा), ११६३८५(+) For Private and Personal Use Only Page #529 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ५१४ संस्कृत, प्राकृत व अपभ्रंश भाषाओं की मूल कृति के अकारादि क्रम से प्रत-पेटाकृति क्रमांक सूची परिशिष्ट-१ संख्यावाचक शब्दकोष, सं., गद्य, श्वे., (आदिब्रह्मा १ लोचन २), ११६८३६-२ संजयानियंठा के बोल, प्रा.,मा.गु., को., श्वे., (पन्नवणा १ बेये २), ११८९६४(+) संज्ञास्वरूप विचार गाथा-एकेंद्रियदृष्टांतयुक्त, प्रा., गा. ६, पद्य, मूपू., (आहार१ भय२ परिग्गह३), ११८५१६-२७(+) (२) संज्ञास्वरूप विचार गाथा-एकेंद्रियदृष्टांतयुक्त-टीका, सं., गद्य, मूपू., (आहारभयपरिग्गहमेहुणसुह), ११८५१६-८७(+) संतिकरं स्तोत्र, आ. मुनिसुंदरसूरि, प्रा., गा. १४, वि. १५वी, पद्य, मूपू., (संतिकरं संतिजिणं), ११५७५३-१, ११७२२७-१, ११७७१५ संथारापोरसी विधि, प्रा.,मा.गु., गा. ११, प+ग., मूपू., (पहिलु संथाड करावीइ), ११६०४९-३ संथारापोरसीसूत्र, प्रा., गा. १४, पद्य, मप., (निसीहि निसीहि निसीहि), ११८४५०-६(+), ११९१४३-४५(+-), ११५५९५-२, ११६५२३, ११७६८१-२(#$), ११६३५१-१(६) (२) संथारापोरसीसूत्र-भावार्थ, मा.गु., गद्य, मपू., (क्षमाश्रमणोने गौतमादि), ११८४५०-६(+) संबोधपंचाशिका, आ. गौतमाचार्य, अप., गा. ५०, पद्य, दि., (णमिऊण अरहचरणं), प्रतहीन. (२) संबोधपंचाशिका-पद्यानुवाद, जै.क. द्यानतराय, मा.गु., गा.५२, वि. १७५८, पद्य, दि., (ॐकार मझारि पंच परमपद), ११८३१६-१(+$) संबोधपंचाशिका, क. रइधू महाकवि, अप., गा. ५१, पद्य, दि., (णमिऊण अरहचरणं वंदेप्), ११७५६४-२(+#) संबोधसप्ततिका, आ. रत्नशेखरसूरि, प्रा., गा. १२५, पद्य, मूपू., (नमिऊण तिलोअगुरुं), ११६९०३(+$), ११८५२३(+), ११८६४७(+), ११९२२१(+), ११९८१९-१(+), ११८६९८, ११६९४७(5) (२) संबोधसप्ततिका-वृत्ति, आ. अमरकीर्तिसूरि, सं., गद्य, मपू., (नत्वा तं श्रीमहावीरं), ११९२२१(+), ११९८१९-१(+) (२) संबोधसप्ततिका-टबार्थ, मा.गु., गद्य, मपू., (नमस्कार करीनइ तिन), ११८५२३(+), ११८६९८, ११६९४७(६) संयम के १७ भेद, प्रा.,सं., गा. १, पद्य, मप., (पंचाश्रवाद्विरमणं), ११७०१६-१० संयम प्रकरण, सं., पद्य, मपू., (--), ११८३९६(+$) संलेखना पाठ, प्रा.,मा.गु., गद्य, मूपू., (अहं भंते अपछिम मारणं), ११५२६७ संवेगरसमहात्म्य गाथा, प्रा., गा. ३, पद्य, मूपू., (जह०मवगाहइ अइसयरस०तह तह), ११५४०६-२२(+#) संस्तारक प्रकीर्णक, ग. वीरभद्र, प्रा., गा. १२२, पद्य, मप., (काऊण नमुक्कारं जिणवर), ११९३८६(+), ११९८१४(+#) (२) संस्तारक प्रकीर्णक-टबार्थ, मा.गु., गद्य, मप., (श्रीवीरं० करीनइं), ११९३८६(+), ११९८१४(+#) सज्जनचित्तवल्लभ काव्य, आ. मल्लिषेण, सं., श्लो. २५, पद्य, दि., (नत्वा वीरजिन), ११९९२५(+), ११५३९२ (२) सज्जनचित्तवल्लभ काव्य-टबार्थ, मा.गु., गद्य, दि., (त्रण जगतना गुरु एहवा), ११९९२५(+$) (२) सज्जनचित्तवल्लभ काव्य-टबार्थ, मा.गु., गद्य, दि., (नमस्कार करकै श्रीवीर),११५३९२ सद्भाषितावली, आ. सकलकीर्ति, सं., पद्य, दि., (जिनाधीशं नमस्कृत्य), ११८४८४-१(+$) सप्ततिका कर्मग्रंथ-६, आ. चंद्रमहत्तराचार्य, प्रा., गा. ९१, पद्य, मप., (सिद्धपएहिं महत्थं), ११५९०२(#S), ११६७४१(#$) (२) सप्ततिका कर्मग्रंथ-६-बालावबोध, मा.गु., गद्य, मूप., (श्रीवर्द्धमानमानम्य), ११६७४१(#$) (२) सप्ततिका कर्मग्रंथ-६-टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (सिद्धपदा निश्चला), ११५९०२(#$) सप्ततिका कर्मग्रंथ-६, प्रा., गा. ९१, वि. १३वी-१४वी, पद्य, पू., (सिद्धपएहिं महत्थं), ११८४८३-६(+#$), ११८५४०-६(+), ११८६६४(+), ११९१४३-६३(+-), ११९३८०-६(+) (२) सप्ततिका कर्मग्रंथ-बालावबोध, उपा. जयसोम, मा.गु., ग्रं. ४०००, वि. १७०२, गद्य, मूपू., (प्रणिपत्य पार्श्वदेव), ११८६६४(+) (२) सप्ततिका कर्मग्रंथ-६-टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (सिद्ध निश्चल पद छइ), ११८५४०-६(+), ११९३८०-६(+) सप्तनय स्वरूप, सं., गद्य, मपू., (स्यात्कार मुद्रिता), ११९८२०(+) सप्तव्यसन कथासमुच्चय, मु. सोमकीर्ति, सं., स.७, श्लो. ६७७, ग्रं. २०६७, वि. १५२६, पद्य, दि., (प्रणम्य श्रीजिनान), ११८५०१(+$) सप्तस्मरण-खरतरगच्छीय, मु. भिन्न भिन्न कर्तृक, प्रा., स्मर. ७, पद्य, मूपू., (णमो अरिहंताणं० हवइ), ११८७४९(+$), ११८८५१(+), ११८८५६-२(+), ११९०८०-२(+), ११९१४३-४९(+-), ११९८९०(+), ११९६३७(#S), ११५४३८() (२) सप्तस्मरण-खरतरगच्छीय-टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूप., (अजितनाथ जीता छइ सर्व), ११८८५१(+) For Private and Personal Use Only Page #530 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १.१.२६ सभाशृंगार शतक - प्रास्ताविक, सं., श्लो. २१३, पद्य, म्पू, इतर ( श्रीधर्ममूर्ति विजयाख्य), ११८५९६-३(+) समयसार प्रकरण, आ. देवानंदसूरि प्रा. अ. १० वि. १४६९, गद्य, मूपु. ( सव्वन्नु मोक्खमक्खंत), ११८२६७(+४) " (२) समयसार प्रकरण-टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू (श्रीसर्वज्ञदेव मोक्ष), ११८२६७(+) समवसरण विचार, सं., गद्य, मूपु. ( बाह्यरूप्यमये प्रकार), ११७३८८-२(+) www.kobatirth.org יי יי समवायांगसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., अध्य. १०३, सू. १५९, ग्रं. १६६७, गद्य, मूपू., (सुयं मे० इह खलु समणे), ११५२८८(+$), १९८४९९(+), ११९४७४+०७), ११९७३४+०३), १९८४२०(३) , (२) समवायांगसूत्र-टबार्थ, वा. मेघराजजी, मा.गु., ग्रं. ४४७४, वि. १७उ, गद्य, मूपू., (देवदेवं जिनं नत्वा), ११५२८८ (+$), ११९४७४(+#$) (२) समवायांगसूत्र-टबार्थ *, मा.गु., गद्य, मूपू., (पांचमो गणधर सुधर्मास्वामि), ११८४९९ (+#), ११९७३४(+#$) समाधिशतक, आ. देवनंदी, सं., श्लो. १०६, ई. ५वी, पद्य, दि., (येनात्माबुध्यतात्मैव), ११७९२५($) (२) समाधिशतक-टीका, आ. प्रभाचंद्र, सं., गद्य, दि., (सिद्धं जिनेंद्रमलमप), ११७९२५ ($) 7 " (२) समाधिशतक दोधकछंदमय, संबद्ध, उपा. यशोविजयजी गणि पुटि गा. १०४ वि. १८वी, पद्य, मूपू. दि. (प्रणमी सरसति भारती), ११९८९५-२(+), ११९६१०-१ सम्मेतशिखरतीर्थ पूजा, सं., गद्य, दि., (प्रणम्यसर्व्वज्ञमनंतबोध), ११९८१० (+) सम्यक्त्व के ९ भेद, प्रा.,मा.गु., गद्य, मूपू., (द्रव्य समकित भाव), ११६७५५-७ (+), ११९७९५-३(+) सम्यक्त्वकौमुदी, आ. जयशेखरसूरि सं. ग्रं. १६७५ वि. १४५७, प+ग. मूपू. (श्रीवर्द्धमानमानम्य), १९८३५६(+०), ११९७७७(+S), ११८९२४ (२) सम्यक्त्वकौमुदी -टबार्थ *, मा.गु., गद्य, मूपू., (श्रीवर्द्धमान चतुर्), ११९७७७(+४), ११८९२४(३) सम्यक्त्वपंचविंशतिका, प्रा., गा. २५, पद्य, भूपू (जह सम्मत्तसरूवं), ११६९४३(*) (२) सम्यक्त्वपंचविंशतिका-टबार्थ, मा.गु., गद्य, म्पू. (जह कहतां जे उपशमादिक), ११६९४३ (+) सम्यक्त्वव्रत ग्रहण विचार, प्रा., गद्य, वे. (खमा० पुत्ती ० खमा० पंचमंगल), ११६३२६-१(*) सम्यक्त्व शीलव्रतउच्चार विधि, प्रा. मा.गु., पद्य, मूपु., (ते समकीत ५ तेहनां), ११८९३८-५ सरस्वतीदेवी छंद, प्रा.,मा.गु., सं., गा. ४४, वि. १६७८, पद्य, श्वे., (सकलसिद्धिदातारं), ११७१७०-१(+$) सरस्वतीदेवी मंत्र, सं., पद्य, जै., (सरस्वती वाक वादनी), ११८९४७-१०) "" " Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir सरस्वतीदेवीमंत्र कल्प, आ. मल्लिषेण, सं., श्लो. ७७, पद्य, मूपू., (जगदीशं जिनं देवमभिवंद्या), ११७९६८-३($) सरस्वतीदेवी विद्योपासना विधि, सं., गद्य, जै., वै., (ॐ ह्रीँ अर्हं णमो कुठ), ११५७९१-३(+) सरस्वतीदेवीशत स्तोत्र, सं. लो. ११, पद्य, भूपू (सरस्वती सरण्या च सह), ११७९६८-२ सरस्वतीदेवी षोडशनाम स्तोत्र, सं., श्लो. १२, पद्य, मूपू., वै., (नमस्ते शारदादेवी), ११९२१५-२०(+) (प्रथमं भारती नाम), ११९२१५-३८(+) ', सरस्वतीदेवी स्तुति, सं., श्लो. ८, पद्य, वै. सरस्वतीदेवी स्तुति, सं., लो. १, पद्य, (या कुंदेंदुतुषारहार), ११८५९६-१(+), ११७०७३-२ सरस्वतीदेवी स्तोत्र, आ. ज्ञानभूषण, सं. लो. ११, पद्य, दि.. (त्रिजगदीशजिनेंद्रमुख), ११८६७५-७ वे. " י' सरस्वतीदेवी स्तोत्र, आ. अप्पभट्टसूरि, सं., श्लो. १३, वि. ९वी, पद्य, मूपू., (करमरालविहंगमवाहना) ११७४९९(+), ११७०३५ सरस्वतीदेवी स्तोत्र, बृहस्पति, सं., श्लो. १२, पद्य, वै., (शुभ्रां शुभ्रविचार), १२००७२-१ सरस्वतीदेवी स्तोत्र, ब्रह्मा, सं., श्लो. १६, पद्य, वै., (आरुढा श्वेतहंसे भुमति), ११६०५६-१(०१) , सरस्वतीदेवी स्तोत्र, उपा. विद्याविलास, सं., श्लो. ९, पद्य, मूपू., (त्वं शारदादेवी समस्त), ११९०८४ (+#), ११६५५० (5) सरस्वतीदेवी स्तोत्र, हरिहर ब्रह्म, सं., श्लो. १३, पद्य, वै., (कमलभू तनया मुखपंकजे), ११९४३२-१६(+) " सरस्वतीदेवी स्तोत्र, सं., श्लो. १३, पद्य, जे. वै. (धातुचतुर्मुखीकंठ), ११९३०७-१० सरस्वतीदेवी स्तोत्र, सं., श्लो. ७, पद्य, वै., (वाग्वादिनी नमस्तुभ्यं), १२००७२-३ (६) सरस्वतीदेवी स्तोत्र, सं., श्लो. ९, पद्य, म्पू. (व्याप्तानंतसमस्तलोक), १२००७२-२ सरस्वतीदेवी स्तोत्र, सं., श्लो. ११, पद्य, वै. (हीं हीं हचैक बीजे), १९६०५६-२(०) For Private and Personal Use Only ५१५ Page #531 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir संस्कृत, प्राकृत व अपभ्रंश भाषाओं की मूल कृति के अकारादि क्रम से प्रत-पेटाकृति क्रमांक सूची परिशिष्ट-१ सरस्वतीसूत्र, सं., पद्य, वै., इतर, (--), प्रतहीन. (२) सरस्वतीसूत्र-प्रक्रिया सारस्वत व्याकरण, आ. अनुभूतिस्वरूप, सं., गद्य, वै., इतर, (प्रणम्य परमात्मानं), ११५६७७(६), ११८३८६($) (३) सारस्वत व्याकरण-दीपिका टीका, आ. चंद्रकीर्तिसरि, सं., वृ. ३, ग्रं. ७५००, वि. १६२३, गद्य, मप., वै., इतर, (नमोस्तु सर्वकल्याण),११७९५३(+$), ११८४४०(+), ११९३३२(+$), ११५६७७(%), ११८०२४(६), ११८३८६($) (३) सारस्वत व्याकरण-धातुपाठ, संबद्ध, आ. हर्षकीर्तिसूरि, सं., वि. १६६३, पद्य, मूपू., इतर, (श्रीसर्वज्ञं जिनं नत्वा), ११८३८३(+) (२) सरस्वतीसूत्र-प्रक्रिया सिद्धांतचंद्रिका, आ. रामाश्रम, सं., गद्य, वै., इतर, (नमस्कृत्य महेशानं मतं), ११९१०६(+#$), ११९४०६(+), ११९५६८+#) (३) सरस्वतीसूत्र-प्रक्रिया सिद्धांतचंद्रिका की सुबोधिनी वृत्ति, ग. सदानंद, सं., प्रक. १९, वि. १७९९, गद्य, मूपू., वै., इतर, (पुराणपुरुषं ध्यात्वा), ११९१०६(+#$), ११९४० ६(+), ११९५६८+#) सर्वज्ञ स्तवन, सं., श्लो. १३, पद्य, मूपू., (प्रातरेव समुत्थाय), ११७९५४-२(+$) सर्वज्ञाष्टक, मु. कनकप्रभविजय, सं., श्लो. ९, पद्य, मूपू., (जयति जंगमकल्पमहीरुहो जयति), ११७८६२-२(#) सर्वसाधु क्षमापना गाथा, प्रा., गा. १, पद्य, मूपू., (अढ्ढाइजेसु दिवसमुदेस), ११९९५४-३(+) सवाविश्वा जीवदया गाथा, प्रा., गा. १, पद्य, मपू., (जीवा सुहमा थूला), प्रतहीन. (२) सवाविश्वा जीवदया गाथा-अर्थ, मा.गु., गद्य, मप., (जीवना दोय भेद), ११८४२९-३४(#) साधारणजिन चैत्यवंदन, सं., श्लो. ८, पद्य, मूपू., (अनंतविज्ञानमतीतदोष), ११६६९८-६ साधारणजिन स्तव, आ. जयानंदसूरि, सं., श्लो. ९, पद्य, मूपू., (देवाः प्रभो यं), ११७८२१(+$) (२) साधारणजिन स्तव-वृत्ति, ग. कनककुशल, सं., ग्रं. १४२, गद्य, मूपू., (हे प्रभो सत्वं मया), ११७८२१(+$) साधारणजिन स्तवन, सं., पद्य, श्वे., (यत्पूर्वं विदधेस्म), ११८६०४-२०(+#) साधारणजिन स्तुति, आ. सोमतिलकसूरि, सं., श्लो. १, पद्य, मूपू., (श्रीतीर्थराजः पदपद्मसेवा), ११७३२२-१ साधारणजिन स्तुति, सं., श्लो. ४, पद्य, मूपू., (अविरल कमल गवल मुक्ता), ११९१४३-२०(+-), ११७३२२-१०, ११९६४८-२, ११९६४८-२१ साधारणजिन स्तुति, सं., श्लो. १३, पद्य, मूपू., (नेत्रानंदकरी भवोदधितरी), ११९३०७-७ साधारणजिन स्तुति प्रार्थना संग्रह, प्रा.,मा.ग.,सं., गा.८, पद्य, मप., (मंगलं भगवान वीरो मंगलं), ११६३५७-२(+), ११५७११-२, ११५९८३, ११६७९५-७(#), ११५४७२(5) साधु चतुर्मासीनियम विचार गाथा, प्रा., गा. ११, पद्य, मूपू., (आवस्सहत्थजोयण १ खमासमणे २), ११८५१६-८२(+) साधुप्रति श्रावक व्यवहार विचार, प्रा.,सं., प+ग., मूपू., (श्रद्धालुता श्राति शृणोति), ११८६५२-३(+) साधसाध्वी आचारव्यवहारोपकरणादि विचार संग्रह, प्रा.,सं., गद्य, मप., (दारुदंडे जत्थसु उन्निय), ११८५१६-७१(+) सामाचारी रथ, प्रा.,मा.गु., गा. १, प+ग., मपू., (भईनाण जुआणं जईण), ११५६१३-५(+) सामायिकखमासमण गाथा, प्रा., गा. २, पद्य, मप., (ठाणं१ इरियावहीए२ वंदणयं३), १२०१००-३ सामायिकपौषध विचार, प्रा., गद्य, मूपू., (सामाईयंमिउकए समणो इव सावउ), ११८५१६-७८(+) सामायिक लेवानी विधि तपागच्छीय, गु.,प्रा., प+ग., म्पू., (सामायिक लेवा माटे बा), ११९२३६-२(#) सामायिक विचार, प्रा.,सं., गद्य, मप., (करेमि भंते० यदा परोक्षो), ११८५१६-६४(+) सामायिक विधि, प्रा.,मा.गु., प+ग., म्पू., (नमो अरिहंताणं नमो), ११७११०(#) सामुद्रिकशास्त्र, सं., अ. ३६, श्लो. २७१, पद्य, मूपू., इतर, (आदिदेवं प्रणम्यादौ), ११९१३२(+s), ११९१६८(+5), ११६६७८-१, ११५६५१(६), ११७२४९(६) (२) सामुद्रिकशास्त्र-बालावबोध*, मा.गु., गद्य, मूपू., इतर, (आदिदेव प्रते प्रथम), ११९१६८(+$) सारोद्धारात्मावबोधे सिद्धांत गाथा, प्रा.,सं., गा. ४७८, प+ग., मूप., (पणमह तं नाहि सुअंसुखइ), ११८६५२-१(+$) सावधनिर्वद्य क्रियापरिणाम चतुर्भंगी, प्रा., गद्य, मूपू., (सावधक्रिया सावद्य), ११५४०६-७(+#) For Private and Personal Use Only Page #532 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १.१.२६ सिंदूरप्रकर, आ. सोमप्रभसूरि, सं., द्वा. २२, श्लो. १००, वि. १३वी, पद्य, मूप., (सिंदूरप्रकरस्तपः करिशिरः), ११८८१०(+), ११८८५३(+), ११८९८५(+#), ११९०४०(+), ११९०५५(+$), ११९०६७(+), ११९१९९-१(+), ११९२००-१(+#), ११९२९९(+), ११९४०३-१(+), ११९४०४(+), ११९५००(+#s), ११९९९५(+#s), ११८५९७, ११९२६६, ११९८११, ११८४८५(#s), ११६२८७($), ११६८२६(s), ११८२१६(s) (२) सिंदूरप्रकर-टीका, आ. हर्षकीर्तिसूरि, सं., वि. १६५५, गद्य, मूपू., (श्रीमत्पार्श्वजिनं नत्वा), ११९९९५(+#S) प्रकर-टीका, सं., गद्य, मूपू., (पार्श्वप्रभोः क्रमयोश्चरण), ११८९८५(+#), ११९०६७(+), ११८४८५ (#$), ११६२८७($) (२) सिंदूरप्रकर-वल्लभीटीका, आ. गुणकीर्तिसूरि, सं., गद्य, मूपू., (पार्श्वप्रभोः क्रमयो), ११८८१०(५), ११९४०४(+) (२) सिंदूरप्रकर-टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (सिंदूरनउ समूह तापरूप), ११९०४०(+), ११८५९७ (२) सिंदरप्रकर-पद्यानुवाद भाषा, श्राव. बनारसीदास, पुहि., अधि. २२, गा. १०१, वि. १६९१, पद्य, मपू., दि., (सोभित तप गजराज सीस), ११९९६३-३ (३) सिंदूरप्रकर-पद्यानुवाद भाषा का चयनित सवैया संग्रह, जै.क. बनारसीदास, पुहि., गा. ५, पद्य, मूपू., दि., (जैसै नभ मंडल तारा गन रोहन), ११८१४७-५३(#) | (२) सिंदूरप्रकर-बालावबोध+कथा, पा. राजशील, मा.गु.,सं., गद्य, मप., (शारदाचरणयुग्ममतीतपापं), ११९४०४(+) सिद्धचक्र चैत्यवंदन, आ. ज्ञानविमलसूरि, प्रा., गा. ६, वि. १८वी, पद्य, प., (उप्पन्नसन्नाणमहोमयाण), ११७८८१-२(#) सिद्धचक्र जयमाल, आ. पद्मनंदि, सं., श्लो. ११, पद्य, दि., (त्रीलोक्येश्वर वंदनीय चरण), ११५३३५-५(#) सिद्धचक्र महापूजन विधि सहित, प्रा.,मा.गु.,सं., प+ग., मूपू., (अथाष्टदलमध्याब्जकर्ण), ११७२३२(5) सिद्धचक्रयंत्रोद्धार पूजनविधि, सं., गद्य, पू., (विधि महोत्सवे), ११८४७९(+$), ११८४८१(६) सिद्धचक्र स्तुति, पंन्या. लक्ष्मीविजय, सं., श्लो. ४, पद्य, मपू., (ज्ञात्वा प्रश्नं), ११७८४०-५ सिद्ध जयमाल, प्रा., गद्य, दि., (तिहुयणसिहरत्या लोक पसत्या), ११८६७५-५ सिद्ध जयमाला पूजा, आ. पद्मनंदि, सं., पद्य, दि., (ॐ उ धोरयुत), ११८६७५-४, ११५३३५-४(#) सिद्धदंडिका यंत्र, मा.गु.,सं., यं., मूपू., (अनुलोम सिद्धिदंडिका), ११८७९६-१(+#) सिद्धदंडिका स्तव, आ. देवेंद्रसूरि, प्रा., गा. १३, पद्य, मप., (जं उसहकेवलाओ अंत), ११८७९६-२(+#$) सिद्धपंचाशिका प्रकरण, आ. देवेंद्रसूरि, प्रा., गा. ५०, पद्य, मपू., (सिद्धं सिद्धत्थसुअं), ११७८२२(६) सिद्धपद स्तवन, मा.गु.,सं., गा. १४, पद्य, मूप., (जगतभूषण विगत दूषण), ११६५८९-१(+) सिद्ध पूजा, सं., श्लो. २५, पद्य, दि., (ॐ उर्ध्वाधोरयुत), ११८१४७-१४(#) सिद्धयोग प्रकरण, सं., श्लो. १४, पद्य, वै., इतर, (आदित्येचाष्टमेहस्तो), ११६३५६-१ सिद्धहेमशब्दानुशासन, आ. हेमचंद्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., अ. ८, सू. ४६८५, ग्रं. २१८५, वि. ११९३, गद्य, मूपू., इतर, (अर्ह सिद्धिः स्याद्वादात), ११८८३४-२(+#$), ११७१४७(#$) (२) सिद्धहेमशब्दानुशासन-स्वोपज्ञ तत्त्वप्रकाशिका बृहद्वत्ति, आ. हेमचंद्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., ग्रं. १८०००, वि. ११९३, गद्य, मूपू., इतर, (प्रणम्य परमात्मानं), ११८८३४-२(+#$) (२) सिद्धहेमशब्दानुशासन-अवचूरि*, सं., गद्य, मूपू., इतर, (अर्हमित्येतदक्षरं), ११७१४७(#$) (२) सिद्धहेमशब्दानुशासन-हिस्सा अष्टम अध्याय प्राकृत व्याकरण, आ. हेमचंद्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., पाद. ४, सू. १११९, वि. ११९३, गद्य, मूपू., इतर, (अथ प्राकृतम् बहुलम्), ११८३६४ (३) सिद्धहेमशब्दानुशासन-हिस्सा अष्टम अध्याय प्राकृत व्याकरण की स्वोपज्ञ प्राकृतप्रकाश टीका, आ. हेमचंद्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., ग्रं. २१८५, गद्य, मपू., इतर, (अथ शब्द आनंतर्यार्थी), ११८३६४ (२) अनुबंधफल, संबद्ध, आ. हेमचंद्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., श्लो. १०, पद्य, मूपू., इतर, (उच्चारणेस्ति वर्णा), ११६८५५-१(#) (३) अनुबंधफल-अवचूरि, सं., गद्य, मपू., इतर, (वद व्यक्तायां वाचि), ११६८५५-१(#) (२) वृत्तगणफल, संबद्ध, ग. विजयविमल, सं., श्लो. ६, पद्य, मपू., इतर, (धुतादेरद्यतन्यां), ११६८५५-२(#) (३) वृत्तगणफल-अवचूरि, सं., गद्य, मूपू., इतर, (द्युतिदीप्तौ धुरन्यो), ११६८५५-२(#5) सिद्धांतरत्निका व्याकरण, आ. जिनचन्द्रसूरि, सं., गद्य, पू., इतर, (श्रीमद्गुरुपदाम्भोज), प्रतहीन. For Private and Personal Use Only Page #533 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ५१८ संस्कृत, प्राकृत व अपभ्रंश भाषाओं की मूल कृति के अकारादि क्रम से प्रत-पेटाकृति क्रमांक सूची परिशिष्ट-१ (२) सिद्धांतरत्निका व्याकरण-अनिट्कारिका, संबद्ध, आ. जिनचंद्रसूरि, सं., श्लो. ११, पद्य, मपू., इतर, (अनिट् स्वरांतो भवति), ११६४४३(+), ११७३५१ (३) सिद्धांतरत्निका व्याकरण-अनिट्कारिका की टीका, सं., गद्य, मूपू., इतर, (वृङ् संभक्तौ याद), ११६४४३(+) सिद्धांतषट्त्रिंशिका, प्रा.,मा.गु.,सं., अधि. ३६, प+ग., मपू., (प्रथमं तावत्जिनाजैव), ११८३१४(+$) सिद्धायतनपूजा विधि, प्रा.,सं., गद्य, मप., (जेणेव नंदा पुष्करणी तेणेव), ११८५१६-७७(+) सिरिसिरिवाल कहा, आ. रत्नशेखरसूरि, प्रा., गा. १३४१, ग्रं. १६७५, वि. १४२८, पद्य, मूपू., (अरिहाइ नवपयाइं झायित), ११८७३१(#s), ११७०३४(६), ११९६३६() (२) सिरिसिरिवाल कहा-अवचूरि, आ. हेमचंद्रसूरि, सं., ग्रं. ४०२२, गद्य, मूपू., (ध्यात्वा नवपदी), ११९६३६(5) (२) श्रीपाल चरित्र, पंन्या. सत्यराज, सं., श्लो. ४९८, वि. १५१४, पद्य, मूपू., (श्रिये श्रीमन्महावीर), ११८७६२(+) सुक्तावली श्लोक संग्रह, प्रा.,मा.गु.,सं., श्लो. ३१०, पद्य, श्वे., (सकल कुशलवल्ली पुष्कर), ११८७१२(+#) सुखरात्रिक विचार, प्रा.,सं., गद्य, मपू., (पाओसिए जाव पोरिसी न उग्घा), ११८५१६-७६(+) सगंधदशमीव्रत कथा, आ. श्रुतसागरसूरि, सं., श्लो. १६१, पद्य, दि., (पादांभोजान्यहं नत्वा), ११८४५५-१(+$) सुगंधदशमीव्रत कथा, सं., गद्य, दि., (--), ११७५१३($) सुपात्रदानफल स्तोत्र, प्रा., गा. ६, पद्य, मूपू., (उसभस्सय पारणए इक्खुर),११८६९४-२ सुभाषित श्लोक, सं., श्लो. २, पद्य, श्वे., (दुरितवनघनालीशोककासार), ११७७५६-३(+#) सुभाषित श्लोक संग्रह*, मा.गु.,सं., श्लो. ५, पद्य, श्वे., (अपुत्रस्य गृहं सुन), ११९७४५-८१(+), ११५७००-२(#) सुभाषित श्लोक संग्रह , पुहि.,प्रा.,मा.गु.,सं., गा. ४०, पद्य, श्वे., (दानं सुपात्रे विशुद्धं च), ११५६१६-२(+#), ११८६०४-१८(+#), ११८६८०(+), ११८८७६(+), ११९१९९-२(+), ११९६१६-५(+), १२००२८-४(+#), ११७४१९, ११८५०५-२ सुभाषित श्लोक संग्रह , मा.गु.,सं., श्लो. ४५, पद्य, मूपू., इतर, (विद्यालक्ष्मीसंपन्नाद्), ११५६०१-२(+), ११६३९७-१($) सुभाषित संग्रह , प्रा.,मा.गु.,सं., श्लो. २००, प+ग., श्वे., (ॐकारबिंदु संयुक्तं), ११५६७५ सभाषित संग्रह , सं., श्लो.८, पद्य, इतर, (नागो भाति मदेन), ११७३८८-१(+#) सुभाषित संग्रह, सं., पद्य, मूपू., (विधानं दुर्गतिद्वारं), ११९९९७(६) (२) सुभाषित संग्रह-टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (दुर्गाति कहता नरक गति), ११९९९७(5) सुविहितजनाचार प्रकरण, प्रा., गा. ८, पद्य, मपू., (धम्मतत्तं पवक्खामि जिण), ११८६५२-२(+) सूक्तमाला, मु. केशरविमल, मा.गु.,सं., वर्ग. ४, श्लो. १७६, वि. १७५४, पद्य, मपू., (सकलसुकृत्यवल्लीवृंद), ११९३३४(+), ११९७१०(#), ११८४६९($) (२) सूक्तमाला-बालावबोध*, मा.गु., गद्य, मपू., (सकल सर्व जे शुभ करणी), ११७६८८(#$), ११९७१०(१), ११८४६९(5) (२) सूक्तमाला-टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (सर्व जे शुभ करणीनी), ११९३३४(+$) सूक्तावली, सं., श्लो. १३८, पद्य, श्वे., इतर, (राज्यं निःसचिवं गतप्रहरणं), ११८२३२-२(+) सूक्तावली संग्रह, प्रा.,मा.गु.,सं., श्लो. २६०, पद्य, मूपू., (वीरं विश्वगुरुं), ११७८९६(६) सूक्ष्मनिगोद विचार, प्रा., गा. ३, पद्य, मूप., (लोए असंखजोयण माणे), ११९६१६-३(+) (२) सूक्ष्मनिगोद विचार-अर्थ, मा.गु., गद्य, मप., (लोक असंख्याता योजन प्रमाण), ११९६१६-३(+) सूक्ष्मार्थविचारसारोद्धार, ग. जिनवल्लभ, प्रा., गा. १५०, पद्य, मप., (सयलंतरारि वीरं वंदिय), ११६३५३-३(+$), ११६६६६-२+#) सूतकमतकादि संज्ञा व्युत्पत्ति विचार, सं., गद्य, श्वे., (--), ११७६९०(+#) सूत्रकृतांगसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., अ. २३, ग्रं. २१००, प+ग., मूपू., (बुज्झिज्ज तिउट्टेज्ज), ११६६५५(+$), ११६९४६(+S), ११८४७७(+$), ११८८०८(+$), ११८८९३(+9), ११९६५७(+5), ११८९२७-१, ११५३९०, ११९२४५(5) (२) सूत्रकृतांगसूत्र-नियुक्ति, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., गा. २०५, पद्य, म्पू., (तित्थयरे य जिणवरे), ११८९२७-२ (२) सूत्रकृतांगसूत्र-बृहद्वत्ति#, आ. शीलांकाचार्य, सं., ग्रं. १२८५०, वि. १०वी, गद्य, मूपू., (स्वपरसमयार्थसूचकमनंत), ११५४०६ st+#), ११८८९३(+$) For Private and Personal Use Only Page #534 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ५१९ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १.१.२६ (२) सूत्रकृतांगसूत्र-टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (बुज्झि० छकाय जीवना), ११६९४६(+$), ११८८०८(+$), ११९६५७(+६), ११९२४५(s) (२) सूत्रकृतांगसूत्र-हिस्सा वीरस्तुति अध्ययन, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., गा. २९, पद्य, मूपू., (पुच्छिसुणं समणा माहण), ११८५२९-१(+), ११९८००(+), ११९९२६, ११५३८२-१(#), ११६४४५-२($) (३) सूत्रकृतांगसूत्र-हिस्सा वीरस्तुति अध्ययन का टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (पु० पुछता हवा कोण), ११८५२९-१(+), ११९८००(+), ११९९२६ (२) सूत्रकृतांगसूत्र-विचार संग्रह, संबद्ध, मा.गु., गद्य, मपू., (मलमूत्रनी भूमिका), ११९६०९-२(+) सरसोमभ्रातद्वय कथानक, सं., श्लो. ३२, पद्य, मप., (गृहेपि वसतां नित्यमश्रताम),११६३४५-३(+) सूर्यचंद्रतापवर्णन विचार, सं., गद्य, मूपू., (रविताप ऊद्ध्वं योजनशत), ११८५१६-९९(+) सूर्य स्तोत्र, सं., श्लो. ८, पद्य, मूपू., (आदित्येः कूक्षि), ११९२२३-१ सौंदर्यलहरी, शंकराचार्य, सं., श्लो. १०३, पद्य, वै., (शिवः शक्त्या युक्तो), ११९४३०-२(+) सौभाग्यपंचमी कथा, सं., गद्य, मप., (प्रणम्य पार्श्वनाथ), प्रतहीन. (२) सौभाग्यपंचमी कथा-व्याख्यान, मा.गु., गद्य, मूपू., (प्रणम्य पार्श्वनाथां), ११८५०५-१(६) सौभाग्यपंचमी कथा, सं., गद्य, मूपू., (श्रीमत्पार्श्वजिन), ११६५३८($) स्तुतिचतुर्विंशतिका, मु. शोभनमुनि, सं., स्तु. २४, श्लो. ९६, पद्य, मूपू., (भव्यांभोजविबोधनैकतरण), ११८९४७, ११८७४४(६) स्तुतिविद्या, आ. समंतभद्र, सं., श्लो. ११६, पद्य, दि., (श्रीमज्जिनपदाभ्याशं), ११९७०९(5) (२) स्ततिविद्या-टीका, आ. वसुनंदि सैद्धांतिक, सं., गद्य, दि., (नमो वृषभनाथाय लोकाऽलोक), ११९७०९(5) स्त्रीजातक जन्मपत्रिका, सं., प+ग., मूपू., इतर, (आदीश्वरं नमस्कृत्य), ११८५२४(+$) स्थानांगसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., स्था. १०, सू. ७८३, ग्रं. ३७००, प+ग., मूपू., (सुयं मे आउसं तेणं), ११५४०६-९(+#), ११५४०६-१४+#), ११५४०६-२८+#), ११७३६४(+$), ११८६९१(+), ११९५४८(+), ११९५५०(+), ११५२७०(5), ११७२२९(६), १२००३३-१(६) (२) स्थानांगसूत्र- टीकानुसारी बालावबोध, मा.गु., गद्य, मूप., (श्रीवीर जिनं नाथं), ११८६९१(+) (२) स्थानांगसूत्र-टबार्थ, मु. मेघराज, मा.गु., ग्रं. १३५००, गद्य, मूपू., (श्रीमद्वीरजिनं नत्वा), ११९५४८(+) (२) स्थानांगसूत्र-टबार्थ , मा.गु., गद्य, मूपू., (नत्वा स्थानांग कतिपय), ११७३६४(+$), ११८६९१(+), ११९५५०(+) (२) स्थानांगसूत्र-टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (श्रीसुधर्मा कहि हे), ११५२७०(5) (२) स्थानांगसूत्र-बोल, मा.गु., गद्य, मपू., (एगे आया एगे अणया), ११९५७९(+), ११९५९८(+$) (२) स्थानांगसूत्र-चयनितसूत्र संग्रह, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., गद्य, पू., (सुयं मे आउसं तेण भगवया), ११९०६३-१(+) (३) स्थानांगसूत्र-चयनितसूत्र संग्रह का टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (तिहु प्रकारइ सहित अणगार), ११९०६३-१(+) (२) स्थानांगसूत्र-बोल, संबद्ध, मा.गु., गद्य, मूपू., (एगे अरिहंता एगे समए), ११९५५४(+#$) (२) स्थानांगसूत्र-४ अंतक्रिया, मा.गु., गद्य, मूपू., (१भरतनी घोडै २सनतकुमार), १२०१००-७ स्थापनाचार्य विचार, प्रा.,सं., गद्य, मपू., (एकेषामेव स्थविरकल्पिक यती), ११८५१६-६५(+) स्नात्रपूजा, श्राव. देपाल भोजक, प्रा.,मा.गु., कुसु. ५, वि. १६वी, पद्य, मपू., (पवित्र उदक लेइ अंग), ११५७३८-१(+#$), ११७८१९(६) स्नात्रपूजा विधिसहित, गु.,प्रा.,मा.गु.,सं., पद्य, मपू., (पूर्वे तथा उत्तरदिसे), ११८६७८-१(+) स्नात्रपूजा संग्रह*, मु. भिन्न भिन्न कर्तृक, प्रा.,मा.गु.,सं., प+ग., मूपू., (नमो अरिहंताणं नमोर्हत्), ११९३७१(+), ११९८०८(+#), ११९७२९-१ स्यादिशब्दसमुच्चय, आ. अमरचंद्रसूरि, सं., उल्ला. ४, पद्य, मूपू., इतर, (श्रीशारदां हृदि ध्यात्वा), ११५५८७(+#) (२) स्यादिशब्दसमुच्चय-स्वोपज्ञ दीपिका अवचूरि, आ. अमरचंद्रसूरि, सं., गद्य, मूपू., इतर, (श्रीशारदामित्यादि इत्यादौ), ११५५८७(+#) स्वरोदय-नरपतिजयचर्या, सं., श्लो. ४४, पद्य, जै., इतर, (अथात् संप्रवक्ष्यामि), ११९२७३ स्वाध्याय श्लोक, सं., श्लो. ४, पद्य, दि., (ॐकारबिंदु संयुक्तं), ११८१४७-२६(#) For Private and Personal Use Only Page #535 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ५२० संस्कृत, प्राकृत व अपभ्रंश भाषाओं की मूल कृति के अकारादि क्रम से प्रत-पेटाकृति क्रमांक सूची परिशिष्ट-१ हरिबल पुराण, मु. रत्नकीर्ति, अप., पद्य, दि., (--), ११७४५२($) हरिवंशपुराण, मु. जिनदास ब्रह्मचारी, सं., स. ३९, ग्रं. ६९६५, वि. १६वी, पद्य, दि., (सिद्ध संपूर्णभव्यार्थ), ११८४५८(+$) (२) हरिवंशपराण-भाषा, श्राव. खुशालचंद्र, मा.गु., वि. १७८०, पद्य, दि., (महावीर वंदौ जिनदेव), ११५७६९(#$) हरिश्चंद्र कथानक-सत्त्वोपरि, सं., श्लो. २६८, पद्य, मप., (सदानंदमयं देवं देव देव), ११८९११-२(+$) होलिकापर्व कथा, सं., श्लो. ६५, पद्य, मूपू., (ऋषभस्वामिनं वंदे ऋषभैक), ११९०३८(#) (२) होलिकापर्व कथा-टबार्थ, पुहिं., गद्य, मूपू., (ऋषभस्वामी तिनकु वंदु), ११९०३८(#$) होलिकापर्व कथा , सं., श्लो. ५०, पद्य, पू., (वर्द्धमानं जिन), ११५७६२ होलिकापर्व प्रबंध, ग. पुण्यराज, सं., श्लो. ३४, वि. १४८५, पद्य, मूप., (प्रणम्य सम्यक्), ११७२०४(#$) होलिकापर्व व्याख्यान, उपा. क्षमाकल्याण, सं., वि. १८३५, गद्य, मूपू., (होलिका फाल्गुने मासे), ११७५८९, ११८८२९ ह्रींकार महास्तोत्र, सं., श्लो. २३, पद्य, मप., (ह्रींकारस्य किं तत्व), ११८६८५-३(#) ह्रींकार मायाबीज साधन विधि, सं., श्लो. ७, प+ग., वै., (दीपमालिकायां उपोष अथ), ११७४९१-३(+) For Private and Personal Use Only Page #536 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir देशी भाषाओं की मूल कृति के अकारादि क्रम से प्रत-पेटाकृति क्रमांक सूची परिशिष्ट-२ ॐ कार महिमा दर्शन, मु. रूपचंद, पुहि., गा. ४, पद्य, मूपू., (वाणी हे विलास तेरी), ११९६१२-२५(+#) ३ चौवीसी २० विहरमान ४ शाश्वतजिन स्तवन, वा. लब्धिकल्लोल, मा.गु., गा. २२, वि. १६५६, पद्य, स्पू., (सयल जिणेसर सुखदातार समरु), ११८२४३-१ ४ अनंता भेद, पुहि., गद्य, मपू., (हिवै च्यार भेद अनंता), ११९२०३-१५(+) ४ अवस्था-मानव, मा.ग., गद्य, मप., (गर्भावस्था १ बाल्यावस्था), ११९२०३-१६(+) ४ उपाय-धर्मप्राप्ति, मा.गु., गद्य, मूप., (दान१ शील२ तप३ भाव४), ११९२०३-१९(+) ४ कषाय विचार, मा.गु., गद्य, मूपू., (च्यार प्रकारे कषाय तेहना), ११९२०३-२७(+) ४ कारण-कर्मबंध, पुहिं., गद्य, मपू., (मिथ्यात १ राग २ द्वेष ३), ११९२०३-३(+) ४ कारण-तिर्यंचगति मे जाने के, मा.गु., गद्य, मप., (चार प्रकारतौ जीव तिर्यंच), ११९२०३-२४(+) ४ कारण-देवायबंध, मा.ग., गद्य, मप., (चिहं प्रकारे जीव देवतान), ११९२०३-२२(+) ४ कारण-नर्क में जाने के, मा.गु., गद्य, मप., (चिहं प्रकारे जीव), ११९२०३-२५(+) ४ कारण-मनुष्यायुबंध के, मा.गु., गद्य, मूपू., (सरलपरणांम राखतौ १ देवगुरु), ११९२०३-२१(+) ४ गति नाम, मा.गु., गद्य, मूपू., (देवगति १ मनुष्यगति २), ११९२०३-२०(+) ४ दुःख-सुख साधु शैया विचार, मा.गु., गद्य, मूपू., (जिम भुंडी शय्या ऊपरि सूतो), ११९०९६-३३(+#) ४ ध्यान विचार, मा.गु.,रा., गद्य, मूपू., (प्रथम आरितध्यान जीका), ११७७५६-६(+#), ११९२०३-२३(+) ४ निकायदेव वर्णन यंत्र, मा.गु., यं., म्पू., (--), ११७३०९(+$) ४ निक्षेप विचार-अरिहंतपदघटित, मा.गु., गद्य, मपू., (चक्रभाव संबद्ध छे वाचकने), ११५४०६-२(+#) ४ निक्षेपा विचार, मा.गु., गद्य, मूपू., (च्यार प्रकारे जिन तेहना), ११९२०३-२८(+) ४ पडवा असज्झाय विचार, मा.गु., गद्य, मूपू., (वैसाख वदि१ श्रावण वदि१), ११९२०३-१०(+) ४ प्रत्येकबुद्ध रास, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., खं. ४ ढाल ४५, गा. ८६२, ग्रं. ११२०, वि. १६६५, पद्य, मपू., (सिद्धारथ शशिकुलतिलो), ११९७४२(+) ४ प्रमाण विचार, मा.गु., गद्य, मूपू., (चत्वार्येव प्रमाणानि येन), ११९८५५-१(+) ४ बुद्धि औत्पातिकी आदि ज्ञान, मा.गु., गद्य, मपू., (स्वाभाविकि उत्पातिकि), ११८९१०-२(#) ४ भावप्राण-सिद्ध, मा.गु., गद्य, मूपू., (सिद्धकेवलीरे दस प्राणमा), ११९२०३-१४(+) ४ मंगल चौढालियो, मा.गु., ढा. ४, गा. ९५, पद्य, मपू., (अनंत चोवीसी नित नमुंसकल), ११७५७७-१(+#) ४ मंगल पद, मु. उदयरत्न, मा.गु., ढा. ४, गा. २०, वि. १८वी, पद्य, मूपू., (सिद्धार्थ भूपति सोहे), ११५३३४-१ ४ मंगल पद, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., गा. ६, वि. १८वी, पद्य, मूपू., (पहेलु ए मंगल जिनतणु), ११९६४९-३२ ४ मंगल पद, ग. देवचंद्र, मा.गु., गा. ४, वि. १८वी, पद्य, मप., (धरम उछव समै जैनपद), ११७९६४-२,११९६४९-३८ ४ मंगल रास, मु. जेमल ऋषि, रा., ढा. ४, गा. ११०, पद्य, स्था., (अनंत चोवीसी जे नम्),११६७३५(+#$), ११८३३८-२ ४ विकथा नाम, मा.गु., गद्य, मपू., (राजकथा १ राजवियारी कथा), ११९२०३-१३(+) ४ शरणा, मा.गु., गद्य, श्वे., (पहिलो शरणो अरिहंत), ११९७५६-४(+) ४ शरणा सज्झाय, क. विजयभद्र, मा.गु., गा. ६, पद्य, मूपू., (पहिलो मंगलिक कहुं), ११९४३२-१०(+-), ११९६३९-२(+), ११९७०८-३(+) ४ शूर नाम, मा.गु., गद्य, मूपू., (क्षमासूर अरिहंत १ तपसूर), ११९२०३-१८(+) ४ संज्ञा नाम, पुहिं., गद्य, मूपू., (आहारसंज्ञा १ भयसंज्ञा २), ११९२०३-१२(+) ४ सुपात्र नाम, मा.गु., गद्य, मूप., (अरिहंतपात्र १ साधुपात्र २), ११९२०३-१७(+) ४ स्वाध्याय विचार, मा.गु., गद्य, मूप., (बाचणा १ सूत्रसिद्धांत), ११९२०३-२९(+) ५ अभिगम नाम, मा.गु., गद्य, मूपू., (सचीत वस्तु छांडे१ अचीत ले), ११७३७४-५(#) For Private and Personal Use Only Page #537 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ५२२ देशी भाषाओं की मूल कृति के अकारादि क्रम से प्रत-पेटाकृति क्रमांक सूची परिशिष्ट-२ ५ आगम नाम-पंचमकालांते दुप्पसहसूरि समये विद्यमान, पुहि., गद्य, मूपू., (दसवैकालिकसूत्र १ जीतकल्प), ११९२०३-९(+) ५ आश्रव नाम, मा.गु., गद्य, मूपू., (मिथ्यात्व १ अविरति २), ११७०१६-९ ५ इंद्रिय २३ विषय विचार, मा.गु., गद्य, मूपू., (चक्षुइंद्री१ कामीविषय५), ११८००४-२(+), ११९०९६-३(+#) ५ इंद्रिय आकार विचार, मा.गु., गद्य, मूपू., (श्रोत्रेद्रीनो आकार कदंब), ११९०९६-१(+#) ५ इंद्रिय चौपाई, श्राव. भगवतीदास भैया, पुहिं., ढा. ६, गा. १५४, वि. १७५१, पद्य, दि., (प्रथम प्रणमी जिनदेव), ११९८८४-८२(+) ५ इंद्रिय ढाल, मु. क्षेमकुशल, मा.गु., ढा. ५, पद्य, मूपू., (--), ११७५४५(+$) ५ इंद्रिय वशीकरण सज्झाय, पुहिं., पद्य, श्वे., (कायानगर सुवावणो चेतन केरो), ११९७४५-८४(+) ५ इंद्रिय विषयग्रहणशक्ति विचार, मा.गु., गद्य, मूपू., (आंखिनो विषय लाख जोयण), ११९०९६-२(+#) ५ इंद्रिय विषय विचार, मा.गु., गद्य, मूपू., (जघन्यतो अंगुलनो), ११९२०३-७(+) ५ कल्याणक नाम, मा.गु., गद्य, मपू., (च्यवनकल्याणक१ जन्मकल्याणक), ११९०९६-८(+#), ११९२०३-३४(+) ५ कारण स्तवन, उपा. विनयविजय, मा.गु., ढा. ६, गा. ५८, वि. १७३२, पद्य, मूप., (सिद्धारथसुत वंदिये), ११५४५४ ५ चारित्र नाम, मा.गु., गद्य, मपू., (सामायक१ छेदोपस्थापनि), ११९२०३-३०(+), ११७०१६-११ ५ चारित्र विचार, मा.गु., गद्य, मूपू., (सामाइक विशेष विना), ११८५१६-३४(+), ११९०९६-५(+#$), ११९२०३-३१(+) ५चिह्न-राजा के, मा.गु., गद्य, मूपू., (तरवार१ छतर२ मुकट३), ११६७७३-३(+-) ५ ज्ञान नाम, मा.गु., गद्य, मूपू., (मतिज्ञान १ श्रुतज्ञान २), ११९०९६-९(+#), ११९२०३-३५(+) ५ ज्योतिष देवता विचार, मा.गु., गद्य, मप., इतर, (चंद्रमा लवण समुद्रे सूर्य), ११८४२९-४(#) ५ तीर्थ चैत्यवंदन, मु. कमलविजय, मा.गु., गा. ६, पद्य, मपू., (धुर समरु श्रीआदिदेव), ११६६९८-४, ११७६२९-३(#) ५ तीर्थजिन स्तवन, मु. लावण्यसमय, मा.गु., गा. ११, पद्य, मूप., (आदि हे आदिजिणेसरु ए), ११६४२२(#), ११७६७८-४(5) ५ दान विचार, मा.गु., गद्य, मूपू., (अभयदान जीवने मारती), ११९०९६-७(+#), ११९२०३-३३(+) ५ दिव्य-तीर्थंकरदानादि अवसरे, मा.गु., गद्य, मूपू., (तिहां देवताये फुलनी वर्षा), ११९०९६-१०(+#), ११९२०३-३६(+), ११७३७४-४(#) ५ प्रमाद नाम, मा.गु., गद्य, मूपू., (मद्यपान विषपान कषाय), ११८६४५-१४(+) ५ बोल-जीवगति, पुहि., गद्य, श्वे., (पेले बोले ओ जीव सोपारीरो), १२००१२-४ ५ बोल-सिद्धांत, पुहि., गद्य, श्वे., (पेले बोले धरति मे सुग नहि), १२००१२-३ ५ मंगल स्तवन, ग. शुभविजय, मा.गु., गा. ८, पद्य, मूपू., (पहिलं ए मंगल मन धरो), ११९६४९-३६ ५ महाव्रत १७६ भेद विचार, मा.गु., गद्य, मपू., (पांच थावर बेंद्री तेंद्री), ११९०९६-१३(+#$) ५ महाव्रत १७६ भेद विचार, मा.गु., गद्य, मूपू., (--), ११९०९६-१६(+#$) ५ महाव्रत नाम, मा.गु., गद्य, मूपू., (सव्वाओ पाणइ वायाओ वेरमणं), ११९०९६-१२(+#) ५ महाव्रत सज्झाय, मु. कांतिविजय, मा.गु., ढा. ५, गा. ३१, पद्य, मपू., (सकल मनोरथ पूरवैरे), ११५५६२-१ ५ मिथ्यात्व विचार, पहिं., गद्य, मप., (अभिग्रहीक मिथ्यात १),११९२०३-६(+) । ५ वस्तु पडिलेहण अयोग्य, रा., गद्य, मपू., (पांच प्रकाररा वस्तु० कहता), ११९०९६-२७(+#$) ५ समिति विचार, मा.गु., गद्य, मपू., (ईर्यासमिति मारगि हालता), ११९०९६-६(+#) ५ समिति विचार, मा.गु., गद्य, मपू., (ईर्यासुमति१ मार्गनिहालता), ११९२०३-३२(+) ५ सम्यक्त्व नाम, मा.गु., गद्य, मपू., (औपशम समकित १), ११९०९६-११(+#), ११९२०३-३७(+) ५ सुमति प्रकार, मा.गु., गद्य, मूप., (चलैनीर्ष १ भाषैउचित २), ११८६४५-१३(+) ५ स्थावर वर्णाधिष्ठायक विचार, मा.गु., गद्य, मप., (पृथिवीकायनो पीलो वर्ण), ११९०९६-४(+#$), ११९२०३-८(+) ६ अप्रशस्त भाषा विचार, मा.गु., गद्य, मूपू., (पहिली हीलत भाषा दूजी), ११९०९६-२५(+#) ६ आरा बोल, मा.गु., ग्रं. १८०, गद्य, मपू., (दस कोडाकोड सागरोपमना), ११८३८४-१,११८५५७ ६ आरा मान, मा.गु., गद्य, मूपू., (वीस कोडाकोडि सागरोपम), ११९२०३-४१(+) ६ आरा विचार, मा.गु., गद्य, स्था., (पहलो सुखमांसुखमी), ११९२६९-१ For Private and Personal Use Only Page #538 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ५२३ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १.१.२६ ६ काय जीव उत्पत्ति आयुष्यादि विचार, मा.गु., गद्य, मप., (पृथ्वीकाय अपकाय), ११८४२९-९(#), ११८३४८($) ६ द्रव्य ७ नय विचार, मा.गु., गद्य, मूपू., (धर्मास्तिकायरा गुण ४), ११६३१९(+#$) ६ द्रव्य नाम, मा.गु., गद्य, श्वे., (जीवद्रव १ अजीवद्रव २), ११८४२९-५(#) ६ द्रव्य विचार, मा.गु., गद्य, मूपू., (धर्मद्रव्य शुद्ध लोक), ११९८९४(+$), ११८४२९-४२(#) ६ पर्याप्ति नाम, मा.गु., गद्य, मूपू., (आहारपर्याप्ति १ शरीर), ११८४२९-८(#) ६ प्रकार-छद्मस्थ, मा.गु., गद्य, श्वे., (१ वेदना समुद्धात २ कषाय), ११८४२९-७(#) ६ प्रकार-मनुष्य, मा.गु., गद्य, श्वे., (समूर्छिम मनुष्य अकर्मभूमि), ११८४२९-६(#) ६ भाषा नाम, मा.गु., गद्य, श्वे., (संस्कृत १ प्राकृत), ११९२०३-४२(+) ६ लेश्या विचार, मा.गु., गद्य, मूपू., (कृष्णलेस्या १ सर्व), ११९९७४-१, ११८४२९-१०(#) ७ अभव्य अधिकार, मा.गु., गद्य, पू., (अंगारमर्दकाचार्य जिणे), ११९२०३-४४(+), ११७०१६-८ ७ कुलकर व आदिजिन परिवार शतपुत्रादि विवरण, मा.गु., गद्य, मूपू., (सात कुलगुरु विमलवाहन), ११९२६९-६ ७ नय नाम, मा.गु., गद्य, मूपू., (निगम नइ १ संगर २), ११९२०३-४३(+) ७ नय विचार, मा.गु., गद्य, मूपू., (घणे माने करावसु सत्तामविइ), ११७४६५(६) ७ नय विचार, मा.गु., गद्य, मपू., (नैगम नय नैगम नय वालाने), ११६१३७ ७ नय विचार-अरिहंतपदघटित, मा.गु., गद्य, म्पू., (--), ११५४०६-१(+#$) ७ नय विचार-जीवविषयक, मा.गु., गद्य, मपू., (नैगमनय कहै गुणपर्यायवंत), ११९८५५-४(+) ७ नय विचार-धर्मविषयक, मा.गु., गद्य, मप., (नैगमनय कहे सर्व धर्म छइ), ११९८५५-५(+) ७ नय विचार-सिद्धविषयक, मा.गु., गद्य, मूप., (नैगमनये सर्व जीव सिद्ध छै), ११९८५५-६(+) ७ भय नाम, मा.गु., गद्य, मूपू., (इहलोक भय १ परलोक भय २), ११९२०३-४५(+), ११७०१६-७ ७ रत्न नाम-वासुदेव, मा.गु., गद्य, मूपू., (चकर धनुष खडग गदा), ११६७७३-२(+-) ७ वार सज्झाय, मु. धर्मदास, मा.गु., गा. १०, पद्य, मपू., (श्रीब्राह्मी प्रणमी मुदा), ११९९२२-५ ७ व्यसननिवारण लावणी, श्राव. चंपाराम दीवान, पुहिं., गा. ५, वि. १९वी, पद्य, श्वे., (तजो ए सातौ दखदाई कुविसन), १२००३०-१ ७ व्यसन निवारण सज्झाय, मु. जयरंग, मा.गु., गा. ९, पद्य, मूपू., (पर उपगारी साध सुगुरु), ११५८६०, ११७१०४, ११६४९३-१(६) ७ व्यसन निवारण सज्झाय, मु. धर्मसी, मा.गु., गा. ९, पद्य, मूप., (सात व्यसननो रे संग), ११९२६०-२५(+) ७ व्यसन निवारण सज्झाय, मु. लालचंद ऋषि, मा.गु., ढा. ४, गा. १६, पद्य, श्वे., (मनुष जमारो पायक करणी), ११६३२८-१(+) ७ सगपण गीत, मु. भावहर्ष, मा.गु., गा. १२, पद्य, मूपू., (जीव विमासी निज मने), ११६२९३-२(#$) ७ सती सज्झाय, मु. अमिरेख, रा., गा. १६, वि. १९५१, पद्य, श्वे., (सति सातो सुखदानी रे), ११९७४५-११९(+) ७ सहेली संवाद, पुहि., गा. ७, पद्य, मपू., (पहिली सखी उठि बोलीयु), ११६७०१-२ ८ आत्मगुण के अवरोधक ८ कर्म, मा.गु., गद्य, मूपू., (जीव का आठ गुण है सौ आठ ही), ११९२०३-२(+) ८ कर्म १४८ कर्मप्रकृति, मा.गु., गद्य, दि., (ज्ञानावरणीभेद ५ मतिज्ञाना), ११८६०४-५(+#) ८ कर्म १५८ प्रकृति बोल, मा.गु., गद्य, श्वे., (८ कर्मनी मूल प्रकृति), ११५८५२-६(+#), ११८२२४-२(+) ८ कर्म १५८ प्रकृति विचार, मा.गु., गद्य, मपू., (मूल कर्म आठ तेहनी), ११९२०३-१(+), ११८२२६, १२०१३४-१ ८ कर्म नाम, मा.गु., गद्य, मपू., (ज्ञानावर्णनी १ दर्शनावर्ण), ११८६४५-१२(+), ११९९०४-४(+) ८ कर्मप्रकति विचार, मा.गु., गद्य, मप., (आठ कर्म ते केहा पहिलं), ११५३९७($) । ८ कर्म विचार, मा.गु., गद्य, मपू., (ज्ञानावरणी कर्म आंख), १२००६८-३(+) ८ जिन स्तवन-वर्ण प्रभातियुं, मु. रायचंद ऋषि, मा.गु., गा. १०, वि. १८३६, पद्य, श्वे., (प्रभातें उठीनें प्रभुजी), ११८३३०-२(+) ८ प्रकारी जिन पूजा, श्राव. भगवतीदास भैया, पुहिं., गा. १२, पद्य, दि., (जल चंदन अरु सुमन लै अक्षत), ११९८८४-७(+) ८ प्रकारी पूजा, पं. वीरविजय, मा.गु., पूजा. ८, वि. १८५८, पद्य, मपू., (सरस वचन रस वरसती), ११७०६१(६) ८ प्रकारी पूजा, मा.गु., गद्य, मूपू., (चंदन पूजा १ धूप पूजा २), ११९२०३-४६(+) ८ प्रकारी पूजा दोहा, मा.गु., गा. ९, पद्य, मूपू., (स्नात्र करता जगत), ११७९३०-२ For Private and Personal Use Only Page #539 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ५२४ देशी भाषाओं की मूल कृति के अकारादि क्रम से प्रत-पेटाकृति क्रमांक सूची परिशिष्ट-२ ८ प्रकारी पूजा विधिसहित, उपा. क्षमाकल्याण, पुहिं., गा. ९, प+ग., मूपू., (शुचि सुगंध वर कुसुमजुत जल), ११५५२६($) ८ प्रवचनमाता नाम, मा.गु., गद्य, श्वे., (१ इरज्यासम २ भाषासम), ११९२०३-५०(+) ८ प्रवचनमाता सज्झाय, ग. देवचंद्र, मा.गु., ढा. ९, गा. १३०, वि. १८वी, पद्य, मपू., (सुकृत कल्पतरु श्रेणि), ११९२६०-११(+) ८ प्रवचनमाता सज्झाय, मु. रायचंद ऋषि, मा.गु., ढा. ८, वि. १८२१, पद्य, श्वे., (पांचसुमत तीनगुप्त आठ), ११७७६०-१(६) ८ बोल-सम्यक्त्व, मा.गु., गद्य, पू., (जिनवचन उपर संका), १२००६८-५(+) ८ मद नाम, मा.गु., गद्य, मूपू., (जातिमद), ११८६४५-१५(+), ११९२०३-४९(+) ८ योगदृष्टिगुण सज्झाय, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., ढा. ८, गा. ७६, पद्य, मपू., (शिवसुख कारण उपदेशी), ११७०१७, ११६१०६(६), ११७८५०($) (२) ८ योगदृष्टिगुण सज्झाय बालावबोध, मा.गु., गद्य, मपू., (मनोवाक्काय योग), ११८३९५(+) ९ जीव तीर्थंकरनामकर्मोपार्जक-महावीरजिनतीर्थे, मा.गु., गद्य, मप., (श्रेणिक राजाये १), १२०१००-५ ९ प्रकार अनंता, मा.गु., गद्य, मपू., (सूत्र माहे नव अनंता), ११८४२९-१५(#) ९ वाड-ब्रह्मचर्य, मा.गु., गद्य, श्वे., (वसति निरदूषण १ स्त्रीनी), ११९२०३-५१(+) ९ वाड सज्झाय, उपा. उदयरत्न, मा.गु., ढा. १०, गा. ४३, वि. १७६३, पद्य, मपू., (श्रीगुरुने चरणे नमी), ११९२६०-३५(+), ११६०२१, ११६०२५, ११७१८५($) ९ वाड सज्झाय, मु. जिनहर्ष, मा.गु., ढा. ११, गा. ९७, वि. १७२९, पद्य, मपू., (श्रीनेमीश्वर चरणयुग), ११९०७६-१(+), ११९९४०-१(#) ९ सम्यक्त्व प्रकार, मा.गु., गद्य, मूपू., (एहवू सांभलीनै शिष्य), ११८४२९-१६(#) १० अनंता द्रव्य प्रकार, मा.गु., गद्य, श्वे., (१ पहिले बोले सिद्ध), ११६७५५-५(+) १० कर्मभेद चौपाई, श्राव. भगवतीदास भैया, पुहि., गा. १५, पद्य, दि., (श्रीजिन चर्णांबुज प्रते), ११९८८४-५६(+) १० जीवद्वार विचार, रा., गद्य, श्वे., (नाम१ परुपणार यया३ थीत४),११५२५९(#$) १० ठाणा बोल, मा.गु., गद्य, श्वे., (एगे आया१ एगे अणाया२), ११८८२६(#$) १० दान दोहरा, जै.क. बनारसीदास, पुहि., गा. १४, पद्य, दि., (गो सुवर्ण दासी भवन), ११९९६३-२९ १० नक्षत्रज्ञान बोल, मा.गु., गद्य, मपू., (१ मृगसिर नक्षत्र), ११९२३०-२(+) । १० पच्चक्खाण नाम, मा.गु., गद्य, श्वे., (नवकारसी सागार पोरसी), ११९२०३-५४(+) १० पच्चक्खाण फल, मा.गु., गद्य, मूपू., (पच्चक्खाणना नाम नवकारशी), ११६६२१(-) १० पच्चक्खाणफल सज्झाय, मा.गु., गा. ८, पद्य, मपू., (दसविह प्रह उठी), ११९२१५-५१(+) १० पच्चक्खाणफल स्तवन, पं. रामचंद्र गणि, मा.गु., ढा. ३, गा. ३३, वि. १७३१, पद्य, मूपू., (सिद्धारथनंदन नमुं), १२००२१-१(+#), ११६०४२,११८८४८-१३ १० पूर्वधर नाम, मा.गु., गद्य, मूपू., (१महागिरि २सुहस्ती), ११६३७५-३(#) १० प्रकार के स्थविर, मा.गु., गद्य, मूपू., (ग्राम १ नगर २ राष्ट्र ते),११८४२९-१७(#) १० बाह्य ग्रंथि, मा.गु., गद्य, मपू., (क्षेत्र१ वास्तुक हवेली२), ११८२२४-७(+) १० बोल देवता, मा.गु., गद्य, मप., (१० बोल देवता मनोहोय), ११८३३८-४ १० बोल पद, पुहि., गा. १२, पद्य, दि., (जिन की बात कहूं), ११९९६३-३० १० बोल-महावीरस्वामी के बाद विच्छेद गई वस्तु, मा.गु., गद्य, मूपू., (जथाख्यातचारित्र विछे), ११९०९६-३२(+#$) १० बोल स्याद्वाद सज्झाय, मु. श्रीसार, मा.गु., गा. २१, पद्य, मूपू., (स्याद्वादमत श्रीजिनवरनो), ११६४७७($) १० भवनपतिदेव नाम, मा.गु., गद्य, मूप., (असुरनिकाय १ नागनिकाय), ११८६०४-१७(+#) १० यतिधर्म भेद, मा.गु., गद्य, मूपू., (खंती क० साधु क्षमा), ११९२०३-५२(+) १० यतिधर्म सज्झाय, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., ढा. ११, गा. १३६, वि. १८वी, पद्य, मूप., (सुकृत लता वन सींचवा नव), ११५२८६-१(+$), ११८९२२(+s), ११९९३६ १० लब्धि बोल, मा.ग., गद्य, मप., (१ अरिहंत लब्धि), ११७७५६-४(+#) For Private and Personal Use Only Page #540 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १.१.२६ ५२५ १० वाना छद्मस्थ न देखे, मा.गु., गद्य, श्वे., (धर्मास्तीकायने न देख), ११८४२९-१८(#) १० संज्ञा नाम, मा.गु., गद्य, मूपू., (आहारसंज्ञा भयसंज्ञा), ११९२०३-५६(+) । ११ अंग सज्झाय, मु. विनयचंद्र, मा.गु., ढा. १२, वि. १७५५, पद्य, मूपू., (पहिलो अंग सुहामणों), ११९२६०-२०(+) ११ गणधर गहुंली, मु. दीपविजय, मा.गु., गा.७, पद्य, मप., (पहेलो गोयम गणधर), ११६००६-२ ११ गणधर भास, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., गा. ११, पद्य, मूपू., (पहिलो गणधर वीरनो वर), ११७२९५-४ ११ गुणस्थानक क्रमारोह चौपाई-१४ गुणस्थानकगत, श्राव. भगवतीदास भैया, पुहिं., दोहा. २१, पद्य, दि., (करम कलंक खपाई कै भए), ११९८८४-५१(+) १२ चक्रवर्ती छ खंड साधना कालमान विचार, मा.गु., गद्य, मपू., (प्रथम चक्रव्रत भरतेश्वरने), ११९१५१-२ १२ चक्रवर्ती-रिद्धि, मा.गु., गद्य, मूपू., (१२ चक्रवर्तीनी कंचनवरणी), ११९२६९-५ १२ देवलोक ९ ग्रैवेयक ५ अनुत्तरदेव विमान-प्रासाद-प्रतिमा-कायामानादि विवरण, मा.गु., को., श्वे., (--), ११५९५५(+) १२ देवलोक नाम, मा.गु., गद्य, श्वे., (पहिलो सौधर्मइ देवलोक), ११७९४४-२(+#) १२ देवलोक विमान, मा.गु., गद्य, मप., (१ देव० सोधर्मदेव० छत्रीस), ११८४२९-२४(#) १२ पर्षदा विचार, मा.गु., गद्य, मपू., (वीतराग देव रे समोसरण), ११८४२९-२५(#) १२ भावना, पुहि., गा. ३४, पद्य, दि., (राजा राना छत्रपति हाथिन), ११८४०४-४(+#) १२ भावना चौपाई, श्राव. भगवतीदास भैया, पुहि., गा. १६, पद्य, दि., (पंच परमगुरु वंदना), ११९८८४-५५(+) १२ भावना विचार, मा.गु., गद्य, पू., (पहिली अनित भावना ते), ११८०७२-१(+), ११९२०३-५९(+), ११९२७४-१(+), ११९०६८(#) १२ भावना सज्झाय, मु. खेम, मा.गु., गा. १६, पद्य, मपू., (बारइ भावन भावो भवीयण जेम), १२०१०१-२(+) १२ भावना सज्झाय-बृहत्, उपा. जयसोम, मा.गु., ढा. १३, गा. १२८, ग्रं. २००, वि. १७०३, पद्य, मूपू., (पास जिणेसर पाय नमी), ११८३१३, ११७१३५() १२ मास नाम, मा.गु., गद्य, मूपू., इतर, (आसढ श्रावण भाद्रवो आसो), ११९७५५-२, ११८४२९-४०(2) १२ मिथ्यावाद, मा.गु., गद्य, दि., (१ राजविद्या ५ एकेंद्रीकाय), ११८६०४-७(+#) १२ राशिफल विचार-शनि गोचर दृष्टिफल, मा.गु., गद्य, इतर, (मेष वृष मिथुन तीन राशि), ११९७४५-१४२(+) १२ राशि वर्णमाला, मा.गु., गद्य, श्वे., इतर, (चु चे चो ला लि लु ले लो), ११८७७७-२(+#) १२ व्रत चौपाई, श्राव. देपाल भोजक, मा.गु., गा. ३४१, वि. १५३४, पद्य, मूपू., (वीरजिणेसर प्रणमुं), ११८७९५(+$) १२ व्रत नाम, मा.गु., गद्य, मूप., (प्राणातिपातव्रत मृषावाद), ११८६४५-११(+), ११७०१२-२ १२ व्रतपूजा विधिसहित, पं. वीरविजय, मा.गु., ढा. १३, गा. १२४, वि. १८८७, पद्य, पू., (उच्चैर्गुणैर्यस्य), ११८७०७(+), ११९८६३(+), ११६५४१(६) १२ व्रत सज्झाय, मु. कीर्तिविजय, मा.गु., गा. १५, पद्य, मपू., (गौतमगणधर पाय नमीजे), ११८६६३(+#) १२ संपदा-मनुष्य की, मा.गु., गद्य, मूपू., (मनुष्यपणओ१ आर्य), ११८४२९-२१(#) १३ काठिया दोहरा, श्राव. बनारसीदास, पुहि., गा. १८, वि. १७वी, पद्य, दि., (जे वट पारे वाट मै), ११९९६३-२० १३ काठिया नाम, मा.गु., गद्य, मूपू., (आलस सो धरम उद्यम रहित १), ११९२०३-६०(+), ११७५०८-२(#), ११८४२९-४३(#) १३ काठिया सज्झाय, मु. तिलोक ऋषि, मा.गु., गा. १५, वि. १९३९, पद्य, मूपू., (जिनमारग पाई जी कमाई), ११९७४५-७७(+$) १३ काठिया सज्झाय, आ. भावप्रभसूरि, मा.गु., गा. ७, वि. १८वी, पद्य, मूप., (आलस पेलो काठियो धर्म), ११७९९५-१ १३ काठिया सज्झाय, मु. हेमविमलसूरि-शिष्य, मा.गु., गा. १५, पद्य, मप., (समरूं श्रीगौतम गणधार), ११६१३९-१(+$) १३ क्रियास्थान विचार, मा.गु., गद्य, भूपू., (क्रिया कहता कर्म तेहना), ११९०९६-३४(+#$) १४ अभ्यंतर गांठ, मा.गु., गद्य, मूपू., (मिथ्यात्व १ स्त्रीवेद २), ११८२२४-६(+), ११८४२९-३०(#) १४ गुणठाणा २१ द्वार, मा.गु., गद्य, मूपू., (नामद्वार १ लखण २), ११९७१५(+#) १४ गुणस्थानक के कर्मप्रकृति बंध बोल, मा.गु., गद्य, मूपू., (पहिले गुणठाणे ११७नुं बंध), ११६०९१-२ For Private and Personal Use Only Page #541 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ५२६ देशी भाषाओं की मूल कृति के अकारादि क्रम से प्रत-पेटाकृति क्रमांक सूची परिशिष्ट-२ १४ गुणस्थानक जीवभेद विचार, श्राव. भगवतीदास भैया, पुहि., गा. २३, वि. १७४६, पद्य, दि., (वीतराग के चरणयुग वंदौ), ११९८८४-६०(+) १४ गुणस्थानक नाम, मा.गु., गद्य, मूपू., (मिथ्यात्व गुणठाणो १), ११८२२४-३(+), ११९७०२-२, ११८४२९-२९(#) १४ गुणस्थानक बंधहेतु यंत्र, मा.गु., को., मूपू., (--), ११८२२४-१६(+) १४ गुणस्थानक विचार, मा.गु., गद्य, श्वे., (बंधप्रकृतयस्तासां), ११५८५२-२(+#), ११९०९६-३१(+#$), ११९२०३-५(+), १२०१०५-१(+#), ११६२९४ १४ गुणस्थानक विचार, मा.गु., गद्य, मपू., (श्रीसर्वज्ञं जिनं नत्वा), ११६०८८ १४ गुणस्थानक सज्झाय, मु. कर्मसागरशिष्य, मा.गु., गा. १७, पद्य, मूपू., (पासजिनेसर पय नमी रे), १२०१५१(#) १४ गुणस्थानक स्थितिकाल, मा.गु., गद्य, मूपू., (मिथ्या० स्थिति अनंतो), ११८२२४-४(+) १४ गुणस्थानके १०५ बोल विषये बासठीयो यंत्र, मा.गु., को., म्पू., (--), ११९२४८(+) १४ गुणस्थानके १३ बोल विचार, मा.गु., गद्य, मूपू., (नामद्वार लक्षणद्वार), ११८७३५ १४ गुणस्थानके २५ द्वार, मा.गु., गद्य, मपू., (नामद्वार लक्षणद्वार), ११९३८५ १४ गुणस्थानके ६२ मार्गणा यंत्र, मा.गु., को., म्पू., (--), ११६६६६-१(+#), ११७९५६(#) । १४ गुणस्थानके कर्मबंधउदयसत्ता व उदीरणा विचार, मा.गु., गद्य, मूपू., (ज्ञानावरणी ५ दर्शना), १२००८७ १४ गणस्थानके जीवभेद विचार, मा.ग., गद्य, मप., (पहिले गुणठाणे जीवनां), ११९२३०-३(+) १४ गुणस्थान जीवादि १० बोल यंत्र, मा.गु., को., मपू., (--), ११८२२४-१४(+) १४ बोल सज्झाय, मु. रायचंद, मा.गु., गा. १७, पद्य, श्वे., (सूत्र भगोती शतक दूसर), ११९४०२-९(#$) १४ रत्न विचार-चक्रवर्ती, मा.ग., गद्य, मप., (चक्र छत्र दंड ए तीन), ११९२०३-६३(+) १४ राजलोक विचार, मा.गु., गद्य, मूपू., (पहेली नरके पहेलो राज), ११५३२४-३(+#), ११७९५१(+$) १४ विद्या नाम, मा.गु., प+ग., मूपू., (विद्याकला रसायण), ११६७५५-६(+) १४ समर्छिमपंचेंद्रियजीव उत्पत्तिस्थानक सज्झाय, मु. धर्मदास, मा.गु., गा. १३, पद्य, मप., (गौतम गणधर प्रणमी पाय), ११५३५८ १४ स्वप्न-ढाल, मु. ज्ञानचंद्रजी, मा.गु., पद्य, मपू., (--), ११५४०४(5) १४ स्वप्न स्तवन-त्रिशलामाता, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूप., (राए सिद्धारथ घर पट), ११५४२७-१ १५ कर्मभूमि नाम, मा.गु., गद्य, मपू., (भरत क्षेत्र ५ ऐरावत), ११८४२९-३२(#) १५ कर्मभूमि विचार, मा.गु., गद्य, श्वे., (पनर कर्मभूमि कहीइ), ११९२०३-६५(+) १५ कर्मादान विचार, मा.गु., गद्य, मूपू., (इंगलकर्म चुला चार), ११९२०३-६७(+) १५ तिथि गरबा, मा.गु., गा. १६, पद्य, वै., (सखी पडवे ते पंथे चाल्या), ११७३२५-५(+) १५ तिथि चौपाई, मु. तुलसी, मा.गु., गा. १६, पद्य, जै.?, (परिवा प्रथम कला घटि), ११९९६३-१९ १५ तिथि सज्झाय, मा.गु., गा. १७, पद्य, मपू., (एकम कहै तू एकलो रे), १२०१२५ १५ तिथि सज्झाय-औपदेशिक, मु. गुणसागर, मा.ग., गा. १८, पद्य, मप., (पनरइ तिथि सहेलडी मिली आवइ),११६३२५-५ १५ तिथि स्तुति संग्रह, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., स्तु. १६, गा. ६४, पद्य, मूपू., (एक मिथ्यात असंयम अविरति), ११५४६१(+$), ११८९३२, ११७३१४(#) १५ परमाधामी विचार, मा.गु., गद्य, श्वे., (अंब१ अंबरीष२ शामशबल), ११९२०३-६४(+) १५ प्रमाद, मा.गु., गद्य, दि., (विकथा ४ कषाय ४ इंद्री ५), ११८६०४-६(+#) १५ भेद पात्रविचार चौपाई, श्राव. भगवतीदास भैया, पुहिं., गा. २४, पद्य, दि., (नमु देव अरिहंत को नम), ११९८८४-६१(+) १५ भेद सिद्ध विचार, मा.गु., गद्य, मप., (जिनसिद्ध ते ऋषभादि), ११८५१६-६३(+), ११९२०३-६६(+) १५ योग नाम-मनवचनकाया, मा.गु., गद्य, मूपू., (सत्यमनोयोग १ असत्य), ११८४२९-३१(2) १६ उद्धार-शत्रुजयतीर्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (श्रीभरत महाराजानो), ११८५५१-४(१) १६ कारण भावना पूजा, जै.क. द्यानतराय, पुहिं., गा. २१, प+ग., दि., (सोलह कारण भाय), ११८१४७-१८(#) For Private and Personal Use Only Page #542 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ५२७ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १.१.२६ १६ कोष्ठक यंत्रफल चौपाई, पंडित. अमरसुंदर, मा.गु., गा. १६, पद्य, मप., (जिन चउविसइ पाय प्रणम), ११७००३-१(+) १६ जिन स्तवन, मु. रायचंद ऋषि, मा.गु., गा. १२, वि. १८३६, पद्य, श्वे., (ऋषभ अजित संभवस्वामी), ११८३३०-१(+) १६ द्वारे २३ पदवी विचार-पन्नवणासूत्रगत, मा.गु., गद्य, मूपू., (नाम दुवार १ अर्थ), ११८०४४(६) १६ संज्ञा नाम, मा.गु., गद्य, श्वे., (आहार१ भय२ परिग्रह३), ११९०९६-१९(+#$), ११९२०३-६८(+) १६ सती लावणी, मु. रतनचंद ऋषि, मा.गु., गा. ७, पद्य, श्वे., (श्रीवीरणी तणां तु), ११६७४८-१(६) १६ सती सज्झाय, वा. उदयरत्न, मा.गु., गा. १७, वि. १८वी, पद्य, मूपू., (आदिनाथ आदि जिनवर), ११६६९८-८, ११५६८३(#$) १६ सती सज्झाय, मु. रत्नविजय, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., (सोलसतीना लीजे नाम), ११५९१७-२ १७ संयमभेद विचार, मा.गु., गद्य, मूपू., (सव्वाओ पाणाई वायाओ वेरमणं), ११९०९६-२०(+#) १८ दुषण विचार-दीक्षार्थी, मा.गु., गद्य, मप., (बालकने दीक्षा न सूझे आठ), ११९०९६-२१(+#$) १८ दोषरहित अरिहंत परमात्मा, पुहिं., अंक. १८, गद्य, मूप., (अरिहंत प्रभु १८ दोष), ११८४२९-४८(#$) १८ दोष रहित दीक्षार्थी, मा.गु., गद्य, मपू., (अठारै दोष रहित भाव), ११८४२९-३३(#) १८ नातरा विचार, मा.गु., गद्य, मूपू., (मथुरा नगरी मे कुबेर), ११६२७४-३($) १८ नातरा सज्झाय, मु. हेतविजय, मा.गु., ढा. ३, गा. ३६, पद्य, मूपू., (पहेला ते समरूं पास), ११९२६०-१०(+) १८ पापस्थानक निवारण सज्झाय, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., सज्झा. १८, ग्रं. २११, पद्य, पू., (पापस्थानक पहिलं कहि), ११६९१६(+$), ११८५७९(#) १८ पापस्थानक सज्झाय, मु. लालचंद ऋषि, मा.गु., गा. ३८, वि. १८९१, पद्य, श्वे., (महावीर वर्धमानजी), ११९१४५-१(६) १८ पौषध दोष, मा.गु., गद्य, मप., (१ बोले पोसानी रातने), ११७०७१-४(+) १८ प्रकार-धर्मप्राप्ति, मा.गु., गद्य, भूपू., (लज्जा थकी धर्म पामे), ११८४२९-४४(१) १८ भार वनस्पति गाथा, क. शुभ, मा.गु., गा. ३, पद्य, पू., (प्रथम कोडि अडतीस), ११६२४८-२ १८ हजार शीलांग भेद, मा.गु., गद्य, पू., (प्रथम स्त्री भेद ४), ११७५०८-१(#) १८ हजारशीलांगरथधारी भेद, मा.गु., गद्य, मूपू., (चेतन १ अचेतन २ एवं), ११५४२५-९(+#) २० तीर्थंकर पूजा, पुहिं., दोहा. ८, पद्य, दि., (पूर्वापर विदेहेसु), ११८६७५-३ २० विहरमानजिन, अतीत, अनागत व वर्तमान तीर्थंकरादि नाम, मा.गु., गद्य, मप., (श्रीकेवलज्ञानी १), ११७०६२(+) २० विहरमानजिन चैत्यवंदन, आ. ज्ञानविमलसरि, मा.गु., गा.८, वि. १८वी, पद्य, मप., (पहेला जिनवर विहरमान), ११६५७२-५ २० विहरमानजिन चैत्यवंदन, मु. लालचंद ऋषि, मा.गु., गा. २५, वि. १८६८, पद्य, मप., (श्रीसीमंधरस्वामि), १२०००४(+#$) २० विहरमानजिन जयमाल, पुहिं., गा. ७, पद्य, मूपू., (सीमंधरजिन सेइस्या जग), ११८१४७-१२(#) २० विहरमानजिन नगरी नाम, मा.गु., गद्य, मूपू., (पुंडरीकिणी नगरीइ), ११६३६६-१ २० विहरमानजिन नाम, मा.गु., गद्य, मूपू., (सीमंधर १ युगमंधर), ११८१४७-१३(१) २० विहरमानजिन नाम, मा.गु., गद्य, मपू., (सीमंधरस्वामी श्रीजुगमंदर), ११७३११-२(+#) २० विहरमानजिन मातापितादि वर्णन, पुहि., गद्य, मप., (श्रीमंधरस्वामि श्रेयांस), १२००४०-१(+#) २० विहरमानजिन माता-पिता-लंछन नाम, मा.गु., गद्य, मूपू., (सीमंधर१ युगमंधर२ बाहु३), ११९०८६-२(+) २० विहरमानजिन स्तवन, मु. देवचंद्र, मा.गु., पद्य, मूपू., (--), ११५५०८($) २० विहरमानजिन स्तवन, पं. धर्मसिंह पाठक, मा.गु., ढा. ३, गा. ३६, वि. १७२९, पद्य, मूपू., (वंदु मन सुध विहरमाण), ११८७५४-१,११८८४८-१५ २० विहरमानजिन स्तवन-लंछन, मु. मोहन, पुहि., गा. ६, पद्य, पू., (विहरमान भगवान वीस के चरण), ११८५०९-९(+) २० विहरमानजिन स्तवन-वर्तमानतीर्थंकर, मु. ज्ञानविलास, मा.गु., गा. २३, पद्य, मपू., (पंच परमगुरुने नमी), १२०१४६-१ २० विहरमानजिन स्तवनवीसी, आ. जिनराजसरि, मा.ग., स्त. २०, पद्य, मप., (मुज हीयडौ हेजालूवौ), १२०१४२(+#$) २० विहरमानजिन स्तवनवीसी, ग. देवचंद्र, मा.गु., स्त. २०, वि. १८वी, पद्य, दि., (श्रीसीमंधर जिनवर), ११६३८१-१(#$) २० विहरमानजिन स्तुति, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू., (पंचविदेह विषय विहरंता वीस), ११९१४३-२६(+-), ११९६४८-२३ २० विहरमानजिन स्थान विचार, मा.गु., गद्य, मप., (पूर्वविदेह उत्तरार्द्ध), १२००४०-२(+#) For Private and Personal Use Only Page #543 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org देशी भाषाओं की मूल कृति के अकारादि क्रम से प्रत- पेटाकृति क्रमांक सूची परिशिष्ट-२ ५२८ २० सखी सज्झाय, मु. गोरधन, मा.गु., गा. २३, पद्य, श्वे. (उत्तम साथ पधारीया), ११६२५२(३) 19 २० स्थानकतप गणणुं, मा.गु., गद्य, श्वे., (ॐ नमो अरिहंताणं), ११६४९२ २० स्थानकतप चैत्यवंदन, पंन्या. पद्मविजय, मा.गु., गा. ५, वि. १९वी, पद्य, मूपू., (पहेले पद अरिहंत नमुं), ११६०३४-१, ११६५०४-१. ११६५०४-३६) २० स्थानकतप चैत्यवंदन- कायोत्सर्गसंख्यागर्भित, पंन्या. पद्मविजय, मा.गु., गा. ५, वि. १९वी, पद्य, मूपू., (चोवीस पन्नर पिस्तालीशनो), १९६०३४-२, ११६५०४-२ २० स्थानकतप दोहा, मा.गु. गा. २०, पद्य, मूपू., (परम पंच परमेष्टिमा), ११६०३४-४ २० स्थानकतप स्तवन, आ. लक्ष्मीसूरि, मा.गु. गा. ७, पद्य, मूपू (श्री अरिहंत पद ध्याइय), ११६०३४-३ २० स्थानक पूजा, आ. लक्ष्मीसूरि, मा.गु., ढा. २०, वि. १८४५, पद्य, मूपू., (श्रीशंखेश्वर पासजी), ११९६५९($) २० स्थानक विचार, मा.गु., गद्य, म्पू, (अरिहंतजी गुणगीराम), ११५४२५-२ (+०ण " Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir २० स्थानक विचारसार रास, मु. जिनहर्ष, मा.गु.. ढा. १३१ गा. ३४०३ वि. १७४८, पद्य, मूपु (सकल सिद्धि संपतिकरण), ११९६०२ (+३) " २१ बोल प्रत्युत्तर, मा.गु., गद्य, श्वे. (मतीये प्रश्न २१ बोल), ११७०१३ "" २१ बोल- सबल दोष, मा.गु., गद्य, मूपू., (हस्तकर्म करे तो सबल दोष), ११८४२९-४५ाण २२ अभक्ष्य नाम, मा.गु., गद्य, मूपू., (वडोलीया पीप पीपर), ११८२२४-११(+) २२ परिषह दृष्टांत कथा, मा.गु., गद्य, मूपू., ( उजेणी नगरीय हस्तमित), ११८४६६-१(४७) २२ परिषह सवैया, श्राव. भगवतीदास भैया, पुहिं., गा. ३०, वि. १७४९, पद्य, दि., (पंच पर्म पद प्रणमि), ११९८८४-७० (+) २२ परिसह सज्झाय, मु. रायचंद ऋषि, मा.गु., ढा. २२, वि. १८२२, पद्य, स्था., (श्रीआदेसर आद दै), ११७७५७(+$), ११९०६९(+३), ११९१०४(+), ११९६८६ २३ पदवी विचार, मा.गु., गद्य, मूपू., (सात एकेंद्री रत्ननी), ११५८५२ - ४ (+#), १२००६८-२ (+), ११८४५७ - २(#) २४ कामदेव नाम, मा.गु., गद्य, मूपू., (१ बहुवलजी २ अमृतजी), १९८६०४-११(०) २४ जिन २१ स्थान कोष्टक, मा.गु., को., मूपू., (१वृषभनाथ २ अजितनाथ), ११८६०४-४(+#) २४ जिन अष्टक, आ. उदयसागरसूरि, मा.गु., गा. ८, पद्य, मूपू., (अविचल थानक पहुता), ११५८३६-२ २४ जिन आरती, मा.गु., पद्य, मूपू., (पहेली आरती प्रथम), ११५७५७-२ (७) २४ जिन कल्याणक तिथि, मा.गु., गद्य, मूपू., (प्रथम आदिनाथजी आसाड ), ११९४४० २४ जिनकल्याणक स्तवन, पंन्या. पद्मविजय, मा.गु., ढा. ७, गा. ४९, वि. १८३६, पद्य, मूपू., (प्रणमी जिन चोवीशने), ११६५९६(+), ११५७०६ (5) २४ जिनगणधर संख्या, मा.गु., को. वे., (ऋषभदेव अजितनाथ संभव), ११६७५५-२(१) " २४ जिन चैत्यवंदन, उपा. क्षमाकल्याण, मा.गु., चैत्यव. २४, पद्य, मूपू (--) ११५५१६ (+) "" २४ जिन चैत्यवंदन, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., गा. ३, पद्य, मूपू., (ऋषभ अजित संभव अभिनंद), ११६५७२-३ २४ जिन चैत्यवंदन- अनागत, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., गा. १५. वि. १८वी, पद्य, मूपू (पद्मनाभ पहेला जिणंद), ११६५७२-४ २४ जिन चैत्यवंदन-कल्याणकतिथि गर्भित, ग. जिनविजय, मा.गु., पद्य, मूपू., ( आदिपुरुष एकल्लमल्ल अरिदल), ११७१७५(३) २४ जिन छंद, ग. नयविमल, मा.गु., सवै २७, पद्य, मूपू., (आदि जिणंद नमे नरईंद), ११९२१५-५९(+) २४ जिन तीर्थमाला स्तवन, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु, गा. ८, पद्य, मूपू., (शत्रुंजे ऋषभ समोसर्या भला) ११९६१२-६ (+), १२०१३५ २४ जिन नाम, मा.गु., अंक. २४, गद्य, मूपू., (श्रीरिषभनाथजी), ११५२६२-२ २४ जिन नाम, माता, पिता, नक्षत्र, यक्ष, वक्षणी, पूर्वभव आदि विवरण यंत्र, मा.गु., को. म्पू., (ऋषभ अजित २ संभव ३), ११६९९६(+) २४ जिन नाम अतीत, मा.गु., गद्य, मूप. (श्रीकेवलज्ञानी निर्वाणी), ११५२६२-१, ११९२६९-८ " २४ जिन नाम-अनागत, मा.गु., गद्य, मूपू., (पद्मनाभ श्रेणिकनो), ११९२१५-४५ (+), ११५२६२-३ For Private and Personal Use Only Page #544 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १.१.२६ २४ जिन नाम वर्त्तमान, मा.गु, गद्य, मूपू. (श्रीऋषभदेवजी अजित), ११९६३५ याला २४ जिन परिवार कल्याणकभूमि आदि विवरण, मा.गु, गद्य, मूपू., (पहिला श्रीऋषभदेव), ११९०९६-२२(+१३) २४ जिन परिवार परंपरा संपदादि बोल विचार, मा.गु., गद्य, श्वे. (श्रीआदिनाथना ९८पुत्र), ११५२६३ " २४ जिन परिवार स्तवन, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., (चोवीस तीर्थकरनो), ११९७५६-८(क) २४ जिन पूजा, श्राव. रामचंद्र चौधरी, पुहिं, पूजा. २४ वि. १८५४, पद्य, दि., (सिद्धि बुद्धि दायक), ११९६५० (+5) 1 २४ जिन लंछन नाम, मा.गु., गद्य, म्पू., (श्रीऋषभ वृषभ लांछन१), ११७१८०-३ २४ जिन विवरण यंत्र, मा.गु. को.. म्पू (ऋषभर अजित संभव३), ११६७८२(६) Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir २४ जिन स्तुति, पुहिं., गा. ६, पद्य, मूपू., (वंदु नित में सदा जिन), ११७९७६-१५ (+) २४ जिन स्तुति, मा.गु., पद्य, मूपू., (--), ११७४०२ (६) २४ जिन समवसरणमान विवरण, मा.गु., गद्य, मूपू., (ऋषभ समोसर्ण गाउ ४६), ११८४२९-२६(#) "" २४ जिन सवैया पच्चीसी, मु. चंद्रभाण ऋषि, मा.गु. सवै २५, वि. १८५५, पद्य, श्वे. (सुरतरु जिन समरु सदा), ११९१४५-२(६) २४ जिन स्तवन, मु. लालविनोद, मा.गु, गा. ५, पद्य, म्पू., (जय जय आदि न अरिह) १९८१४७-४९) २४ जिन स्तवन, वा. सकलचंद्र, मा.गु., गा. ३७, पद्य, मूपू., (करि कच्छपी धरती कवि), ११८२०७-७(+$) २४ जिन स्तवन, मा.गु., गा. ९, पद्य, मूपू., (अरिहंत सिद्ध आचारज), ११७७६०-२ २४ जिन स्तवन, पुहिं., गा. ३२, पद्य, म्पू., (श्री आदिनाथ करिजे), ११७८५४(+), ११९५४७-२५ २४ जिन स्तवन- पांसठीयायंत्र गर्भित, मु. धर्मसिंह मुनि, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू (श्रीनेमीश्वर संभव), ११५६३४-३(+) २४ जिन स्तवन-मातापितानामादिगर्भित, मु. आणंद, मा.गु., गा. २९, वि. १५६२, पद्य, मूपू., (सयल जिणेसर प्रणमुं), ११५४२७-२ २४ जिन स्तवन-वर्णगर्भीत, मु. रायचंद ऋषि, रा., गा. १२, वि. १८३६, पद्य, वे., (रीखभ अजित संभवस्वामी), १२०१३३-१ २४ जिन स्तुति, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., गा. २९, पद्य, मूपू., (ब्रह्मसुता गिर्वाणी सुमति), ११७१३६ ($) २४ जिन स्तुति, मा.गु., गा. २७, पद्य, मूपू., ( कनक तिलक भाले हार हीये), ११९०३१(+$) २४ जिन स्तुति, मा.गु.. गा. ८, पद्य, भूपू (प्रणमी तीन चौवीस नित), १२००१६ २४ ठाणा विचार, मा.गु., प+ग, मूप, (गइ इंद्रि काय जोग), ११५९१९-२(+) २४ तीर्थंकर स्तुति, श्राव. भगवतीदास भैया, मा.गु., गा. १६, पद्य, दि., (वीस चार जगदीशको बंदो), ११९८८४-८१ (+) २४ दंडक २६ द्वार विचार, मा.गु., गद्य, म्पू., (शरीर अवगाहणा संघवण), १९८७२५-१ २४ दंडक २९ बोल, मा.गु., गद्य, म्पू., ( प्रथम नामद्वार बीज), ११९०११०६), ११९०३३ (०३) २४ दंडक ३० द्वार विचार, मा.गु., गद्य, मूपू., (दंडक लेश्या ठित्ति), ११८००४-१(+$) २४ दंडक छंद, मु. विजयशील, मा.गु., गा. २१, पद्य, मूपू., (चरम जिणेसर वीर जिणंद), ११९२१५-४३(+) २४ दंडक नाम गति-आगति विचार, मा.गु., गद्य, म्पू., (नारकी १ असुरकुमार), ११५८५२-५(१) १९८४२९-३७(१ וי २४ दंडक बोल संग्रह, मा.गु. गद्य, मूपू., (दंडक २४ ना शरीर ५), ११७९००(३) २४ दंडक यंत्र, मा.गु., को. मृपू. (नरक७ भवणपती१० पृथ्वी). ११७२१८ (४७), १९८४६८(5) "" २४ स्थानक मार्गणाद्वार कोष्टक, मा.गु., को. मूपू., ( गई इंदिय काए जोए वेए कषाय), ११५८०५ (+४), १९१८६०४-३(+) ५२९ २५ गुण-उपाध्यायपद के, मा.गु., गद्य, मूपू., ( आचारांग १ सुयगडांगाद), ११९०९६-२९(+#) २५ बोल थोकडा-जीवगती शरीरादि, मा.गु., गद्य, श्वे. ( नरकगति १ तिर्यंचगति २), ११९०७५ (+), ११९९७५(+), ११८४२९-३(#) २७ साधुगुण वर्णन, मा.गु. गद्य, वे. (पंचमहाव्रत पाले ५) १२०१५४-१(+) २८ लब्धि नाम, मा.गु., गद्य, भूपू., (आमोसही विप्पोसही). ११८४२९-३८ २८ लब्धि विचार, मा.गु., गद्य, मूपू., (जे मुनिना हाथ पगना), ११९०९६-२४(+) २९ अंक विचार, मा.गु., गद्य, वे (८४ अंक आगे प मींडी एतलै), ११७७६३(+) २९ भावना छंद- वैराग्यप्रेरक, मा.गु., गा. ३१, पद्य, मूपू. (अविचल पद मन थिर करी). ११७२९२ १(+४) ३२ अनंतकाय नाम, मा.गु., गद्य, भूपू (सूरणकंदर भूमिवीचकंदसर्व२) १९८२२४-१०+) ३२ दोष- सामायिक के, मा.गु., गद्य, मृपू., (पालठी न बेसे १ अधिरा), ११७०७१-३(+) For Private and Personal Use Only Page #545 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ५३० देशी भाषाओं की मूल कृति के अकारादि क्रम से प्रत-पेटाकृति क्रमांक सूची परिशिष्ट-२ ३२ सामायिकदोष सज्झाय, मु. ज्ञानविमल, मा.गु., गा. १०, पद्य, पू., (संयम धर सुगुरु प्राय), ११८६४५-२(+) ३३ बोल थोकडा-जैन पदार्थज्ञान, मा.गु., गद्य, श्वे., (सात्त भये इहलोक भय), ११६३७०(६) ३३ बोल थोकडो, मा.गु., गद्य, मूपू., (एक संजय एक असंजम), ११६१८२($) ३४ अतिशय छंद, मु. ज्ञानसागर, मा.गु., गा. ११, पद्य, मूपू., (श्रीसुमतिदायक कुमति), ११९२१५-३(+) ३४ अतिशय नाम, मा.गु., अंक. ३४, गद्य, मपू., (अद्भुतरूप अद्भूत अंग), ११५८०४-२(#) ३४ अतिशय वर्णनमय साधारणजिन स्तवन, मु. केशो, मा.गु., गा. ११, पद्य, मप., (स्वेद रोगमल रहित), ११६३२५-२ ३४ अतिशय स्तवन, मु. नित्यलाभ, मा.गु., गा. १३, पद्य, मप., (श्रीजिन प्रण, सुख), ११९२१५-४२(+) ३४ अतिशय स्तवन, मा.गु., गा. ११, पद्य, मूपू., (श्रीसहगुरुना पाय नमी), १२००८३-१(+) ३५ बोल-गत्यादि थोकडो, मा.गु., गद्य, मूपू., (पहेले बोले गति चार), ११६८४३(+#) (२) ३५ बोल-गत्यादि थोकडो-अर्थ, मा.गु., गद्य, मप., (देवगति मनुष्यगति), ११६८४३(+#) ३६ आयुध प्रकार नाम, मा.गु., गद्य, मूपू., इतर, (अघनाल हवाईमुसल चक्र नाग), ११६८५९-२(+) ३६ राजकुल नाम, मा.गु., गद्य, मूप., (सूर्यवंश १ सोमवंश २),११६७६९-४(+#) ३८ बोल असज्झाय, मा.गु., को., श्वे., (--), ११९७४५-१३९(+) ४१ प्रकृति सज्झाय-परमअबंध स्थिति विचार, मु. कुशलहर्ष, मा.गु., गा. १९, पद्य, मूपू., ते., (सरसति सरस वाणी दीउ निरमली), ११६८३४(+) ४५ आगम नाम, मा.गु., गद्य, मूपू., (आचारांग१ सुयगडांग२), ११८२२४-५(+), ११९०९६-३०(+#$) ४५ आगम सज्झाय, मा.गु., गा. १३, पद्य, मूपू., (व्यक्ता श्रोता योगथी शुभ), ११८२०७-४(+) ४५ लाख योजन मनुष्यक्षेत्र संख्यामान, मा.गु., गद्य, मूप., (मेरपर्वतथी हरकाणी), ११९६०९-३(+) ५२ अनाचार वर्णन-साधु जीवन के, मा.गु., गद्य, मप., (उद्देशिक आहार लेवें), १२०१०६ ५२ जिनालय-नंदीश्वरद्वीप गणj, मा.गु., गद्य, मूपू., (नंदीश्वर द्वीपनो गणु), ११८३३१-१७ ६२ मार्गणा ९५ बोल, मा.गु., को., मपू., (--), ११९४०९(+) ६२ मार्गणा जीवादि६ बोल, मा.गु., को., मूपू., (--), ११८२२४-१३(+), ११७३८२ ६२ मार्गणाद्वार विचार, मा.गु., गद्य, मप., (नमिउं अरिहंताई बोले), ११९२०३-४(+), ११९९२७ ६२ मार्गणाद्वारे ५७ बंधहेतु यंत्र, मा.गु., को., म्पू., (--), ११८२२४-१७(+) ६२ मार्गणाद्वारे भावयंत्र, मा.ग., को., मप., (--),११८२२४-१८(+) ६२ मार्गणा यंत्र, मा.गु., को., मप., (देवगति मनुष्यगति), ११७०१५(+$), १२०००३ ६२ मार्गणा विधान, जै.क. बनारसीदास, पुहि., गा. २८, पद्य, श्वे., (वंदौ देव जुगादि जिण), ११९९६३-७ ६३ शलाकापुरुष नाम, मा.गु., गद्य, मूपू., (१२ चक्री १ दिर्घदंत), ११९२६९-३ ६३ शलाकापुरुष सज्झाय, श्राव. बनारसीदास, पुहि., गा. २७, वि. १७वी, पद्य, दि., (नमो जिनवर० देव चौवीस), ११९९६३-६ ६३ शलाकापुरुष सज्झाय, मु. स्वरूपचंद, मा.गु., गा. २१, पद्य, मूपू., (प्रहसमे प्रणमुं सरसती माय), ११९२१५-४१(+) ६६ बोल-जीवसीखामण, मा.गु., गद्य, मपू., (हे भगवंत इम कहि शीष्य गुर), ११९५२४-३(+) ७७ बोल-साधु आचार विचार, मा.गु., गद्य, मूपू., (साधु साध्वीने आधा कर्मादि), ११५२७१ ८४ उपमा-मुनि की, मा.गु., गद्य, श्वे., (पहली ओपमा सरप की), ११५३४५ ८४ गच्छ विवरण, मा.गु., गद्य, श्वे., (गच्छपरंपरा श्रीमहावी), ११६७६८(+#$) ८४ बोल-औपदेशिक, मा.गु., गद्य, मूपू., (नकारो नर सोचन नटता उपजे), ११५४१७ ८४ बोल कवित्त, श्राव. हेमराज पांडे, पुहि., गा. ९०, पद्य, दि., (सुनय पोषहत दोष मोख), ११९०५८-१(+) ८४ लाख जीवयोनि कवित्त, पुहि., प+ग., दि., (सात लाख इतर निगोद जीव जात), ११८१४७-३७(#) ८४ लाख जीवयोनि के २५ बोल, मा.गु., गद्य, मूपू., (श्रीगौतमस्वामीजी हाथ जोडी), ११७६२१, १२००१२-२ ८७ देवभेद विचार, मा.गु., गद्य, मपू., (देव चतुर्विधा भवनपति१), ११८५१६-३३(+) ९३ औपदेशिक बोल, पुहि., गद्य, मूपू., (इष्ट देवता उपर मन राखीजे), ११६५८८ For Private and Personal Use Only Page #546 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १.१.२६ ५३१ ९६ जिन नाम, मा.गु., गद्य, मपू., (केवलज्ञानी सर्वज्ञाय नमः), ११७५०६ ९६ जिन स्तवन, आ. जिनचंद्रसूरि, मा.गु., ढा. ५, गा. २३, वि. १७४३, पद्य, मपू., (वरतमान चोवीसै वंद), ११८८८९-२ ९८ बोल-जीवअल्पबहुत्व विषयक, मा.गु., गद्य, मूपू., (अहमंते सव्व जीवा), ११७८३७ ९८ बोल यंत्र-अल्पबहुत्व, मा.गु., को., श्वे., (सरवथी थोडा गर्भज), ११५९१९-१(+) ९९ प्रकारी पूजा-शत्रंजयमहिमागर्भित, पं. वीरविजय, मा.गु., ढा. ११, वि. १८८४, पद्य, मप., (श्रीशंखेश्वर पासजी), १२००५६(+), ११५३२८(#$), ११७६७५ (६) ११५ बोल १४ गुणस्थानक यंत्र-नवतत्त्व, मा.गु., को., श्वे., (--), ११९७४५-१४३(+) १२४ अतिचार विचार-श्रावकव्रत, मा.गु., गद्य, मप., (ज्ञानना ८ दर्शनना ८), ११७०७१-१(+$), ११७३२७(#$), ११९१५०-३(-#) १५० जिन कल्याणक चैत्यवंदन, मा.गु., गा. १६, पद्य, मूपू., (शासननायक जग जयो), ११६४७८(#) २२२ बोल-लब्धि २१ द्वार, मा.गु., गद्य, श्वे., (पांच ज्ञानना भेद), ११६०२८ ।। ३६३ पाखंडी मत विचार, मा.गु., गद्य, मूपू., (सूयगडेणं असीयस्स), ११६९१८-३ ५०० चोर सज्झाय, उपा. उदयविजय, मा.गु., गा. ७, पद्य, भूपू., (केवलनांण गुण पूरीयो चोर), ११६९७६-३(#) ५३० भेद अजीव, मा.गु., गद्य, मपू., (कालावरणमाहिइं रस ५), १२०१५४-२(+) ५६० अजीव भेद विचार, मा.गु., गद्य, मपू., (धर्मास्तिकाय खंध देस), ११७८४२-२ ५६३ जीव भेद २६२ मार्गणा, मा.गु., गद्य, मपू., (जीवना ५६३ने गति आगति कही), ११६४१३ ५६३ जीवभेद ६२ मार्गणा विचार, मा.गु., गद्य, श्वे., (सात नारकी पर्याप्ता), ११९७९५-२(+), ११९०१० ५६३ जीवभेद यंत्र, मा.गु., को., मूपू., (भरति महाबिदेह),११७००४-३(+) । ५६३ जीवभेद विचार, पुहिं.,मा.गु., गद्य, मूपू., (उंचा लोक में ५६३ भेद), ११८५१६-७०(+) ५६३ जीवभेद विचार, मा.गु., गद्य, मूपू., (नारकी सात नरकना पर्याप्त), ११९६०९-५(+), ११७८४२-१ ५६३ जीवविचार बोलसंग्रह, पुहिं.,मा.गु., गद्य, मपू., (जीव का भेद बेइंद्री का), ११९०८२ अंगलक्षण विचार, मा.ग., गद्य, जै., वै., अन्य, इतर, (मणिबंध थकी उर्दध्व),११९६४५-२(5) अंगस्फुरण विचार, मु. हीररत्न, मा.गु., गा. २१, पद्य, मूपू., इतर, (माथै फुरके पुहवीराज), ११९५८९-१ अंजनासती रास, मा.गु., पद्य, मपू., (--), ११८५२०(+#$) अंजनासंदरी चौपाई, मा.गु., गा. १५०, पद्य, मप., (अंजणा मोटी सती पाल्य), ११७७३२(5) अंजनासुंदरी रास, मु. पुण्यसागर, मा.गु., खं. ३ ढाल २२, गा. ६३२, वि. १६८९, पद्य, मप., (गणधर गौतम प्रमुख), ११८७५३(#$), ११८७५८(#), ११८२९४(६), ११८४४४($) अंजनासुंदरी रास, मु. विनयचंद, मा.गु., ढा. ११, पद्य, स्था., (परमेष्ठिपद मंत्रथी), ११७०७२($) अंजनासुंदरी रास, मा.गु., गा. १५६, पद्य, श्वे., (अरिहंत सिद्ध समरु), ११६७३२(+$) अंजनासुंदरी रास, मा.गु., ढा. २२, गा. १६५, पद्य, मूपू., (शील समो वड को नही), ११९९९४, ११९६४६(६), ११७०२३(-) अंतगडदशांगसूत्र सज्झाय, मु. विनयचंद्र, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., (आठमो अंग अंतगडदशाजी), ११७०२५-२ अंतसमाधि विचार, पुहिं., गद्य, मूपू., (हे भव्य तुं सुण समाध), ११९८९६(+) अंतिम आराधना पद, मा.गु., गा. ४, पद्य, मपू., (जाडो जूडो संसार थोडु), ११६३५१-२ अंबड चरित्र, वा. क्षमाकल्याण, मा.ग., वि. १८५४, गद्य, मप., (वर्धमान भगवंत के पावन पद), ११९२४९ अंबिकादेवी आरती, मु. नरसिंघ, रा., गा. ४, पद्य, श्वे.?, (मारौ कंटक माऊली साधूडा), १२०१११-६ अंबिकादेवी छंद, सारंग कवि, मा.गु., गा. २८, पद्य, वै., (विजया सांभलि वीनती), ११७१७०-२(+$) अंबिकादेवी छंद, मा.गु., गा. ९, पद्य, वै., (सदा पूर्ण ब्रह्मांड), ११६११०-१(+) अंबिकादेवी स्तुति, जुगराज, रा., गा. ९, पद्य, श्वे.?, (आज सचवदिस चांद्रणी देवीरौ), १२०१११-१ अंबिकादेवी स्तुति, आ. हीरसूरि, मा.गु., गा. ५, पद्य, श्वे., (मात तू तात तू भ्रात तू), १२०१११-३ अइमुत्तामुनि सज्झाय, मु. कहानजी ऋषि, मा.गु., गा. १६, पद्य, पू., (इक दिन रित वरसातनी), ११६३८१-२(#) For Private and Personal Use Only Page #547 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ५३२ देशी भाषाओं की मूल कृति के अकारादि क्रम से प्रत-पेटाकृति क्रमांक सूची परिशिष्ट-२ अइमुत्तामुनि सज्झाय, आ. लक्ष्मीरत्नसूरि, मा.गु., गा. १८, पद्य, मूपू., (वीरजिणंद वांदीने), ११५३५१-३, ११७६६८-४(#), ११७२६२-२) अकबर साह कवित, पुहिं., पद. १, पद्य, जै., इतर?, (अकबर साह छत्रपती क्या माग), ११६८७९-४ अकाल अस्थान अशोभनीय वस्तु काव्य, मा.गु., पद्य, मूपू., इतर, (मेहनो पणगणो पाडानो उठीगणो), ११६८५९-६(+) अक्षरछत्तीसी, श्राव. भगवतीदास भैया, पुहिं., गा. ३६, पद्य, दि., (ॐकार अपारगुण पार न पावे), ११९८८४-५(+), ११९९८७-२ अक्षरबत्रीसी-आत्महितशिक्षागर्भित, मा.गु., गा. ३५, पद्य, मूपू., (कक्का तें किरिया), १२०११५-१ अक्षरबावनी, मु. केशवदास, पुहि., गा. ६२, वि. १७३६, पद्य, भूपू., (ॐकार सदा सुख देत), ११८२३२-१(+), ११९५६१-१(+$), ११८५५६-१ अक्षरबावनी, मु. जसराजजी; मु. जिनहर्ष, पुहिं., गा. ५६, वि. १७३८, पद्य, मूपू., (ॐकार अपार जगत आधार), ११८२२८-१(+#) अक्षरबावनी, आ. दयासागरसूरि, मा.गु., गा. ५८, वि. १७४९, पद्य, मूपू., (ॐकार अपार सुअक्षर सार), ११८७५५ अक्षरबावनी, मु. धर्मवर्धन, पुहिं., गा. ५७, वि. १७२५, पद्य, मूपू., (ॐकार उदार अगम अपार), ११९५६१-२(+$) अक्षरबावनी, मु. लालचंद, पुहिं., गा. ५८, वि. १८७०, पद्य, स्था., (सरस वचन सरस्वति तणा), ११९२३०-१(+) अक्षौहिणीसेना प्रमाण, मा.गु., गद्य, जै.?, (रथ १० गजु १ अश्व ३ पाइक ५), ११८६०४-१०(+#) अग्निभूतिगणधर सज्झाय, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., (गोबर गाम समृद्ध अग्निभूति), ११७२९५-५(5) अजितजिन छंद, जै.क. बनारसीदास, पुहिं., गा. ५, वि. १७वी, पद्य, दि., (गोयमगणहरपय नमो सुमरि), ११९९६३-३७ अजितजिन लावणी, मु. मोहन, पुहि., गा. ७, पद्य, मप., (लावणी अजितनाथजी की), ११८५०९-१२(+) अजितजिन स्तवन, आ. पार्श्वचंद्रसूरि, मा.गु., गा. ९, पद्य, मूप., (आदि अजित श्रीशांतिनो), ११५७९९-१(#) अजितजिन स्तवन, मु. मोहन, पुहि., गा. ७, पद्य, मपू., (क्या मै वरणो शोभारी के), ११८५०९-११(+) अजितजिन स्तवन, मु. मोहन, पुहि., गा. ७, पद्य, मूपू., (मेरी सुणो अरज जिनवर की), ११८५०९-१३(+) अजितजिन स्तवन, मु. मोहनविजय, मा.गु., गा. ९, पद्य, मूपू., (अजित अजितजिन अंतर्यामी), ११९८२४-४२(+) अजितजिन स्तवन, मु. मोहनविजय, मा.गु., गा. ५, पद्य, मपू., (ओलग अजित जिणंदनी), ११९८२४-२१(+) अजितजिन स्तवन, मा.गु., गा. १०, पद्य, मप., (आपणपै तेहवै विना रे गति), ११९२१६-५(+) अजितजिन स्तवन, मु. रामविजय, मा.गु., गा. ६, पद्य, मप., (अजितजिणेसर साहिबो रे), ११५६६५-१(+#) अजितजिन स्तवन, मु. सुबुद्धि, पुहिं., गा. ५, पद्य, मपू., (विजया के नंद जिनंद वंदो), ११८५०९-१४(+) अजितजिन स्तवन, पुहि., गा. ७, पद्य, मूपू., (जय जय मुख बोलो अजित तणी), ११८५०९-१०(+) अजितजिन स्तवन, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (विजयनंदन जिनजी मुझ), ११९८२४-३६(+) अजितजिन स्तुति-सुरतमंडन, आ. जिनलाभसूरि, मा.गु., गा. ४, पद्य, मपू., (विश्वनायक लायक जितशत्रु), ११९६४८-३१(5) अजितसेनकनकावती रास, मु. जिनहर्ष, मा.गु., ढा. ४३, गा. ७५८, ग्रं. १०१४, वि. १७५१, पद्य, मूपू., (वीणापुस्तकधारणी), ११८८२२(+) अट्ठाईपर्व भास, मु. ज्ञानविमल, मा.गु., गा. १२, पद्य, मूपू., (श्रीसरसति ध्याउं मन), ११६४८८-१(+$) अणाहारीवस्तु नाम, मा.गु., गद्य, मूपू., (हरडै १ बहेडा २ आंवला), १२०१०५-२(+#) अणाहारीवस्तु सज्झाय, मु. मुक्ति, मा.गु., गा. १०, पद्य, मूपू., (जखौ मंडण वीरजिणंद), ११९३२६-१ अतीतअनागतवर्तमान चौवीसजिन स्तवन, मु. न्यायसागर, मा.गु., ढा. ३, गा. ३१, पद्य, मप., (सीस चोवीसी प्रणमी करी नेक), ११५९७१-१ अतीतअनागतवर्तमानजिन पद, श्राव. भगवतीदास भैया, पुहि., गा. ४, पद्य, दि., (नमौं सिद्ध सम आतमा), ११९८८४-४४(+) अतीतचौवीशीजिन चैत्यवंदन, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., गा. ३, वि. १८वी, पद्य, मपू., (अतीतचोवीशी प्रथमदेव),११६५७२-२ अध्यात्म गीता, ग. देवचंद्र, मा.गु., गा. ४९, वि. १८वी, पद्य, मूप., (प्रणमियै विश्वहित), ११८२५६(+$), ११९३४७(+), ११९८२१(+) (२) अध्यात्म गीता-बालावबोध, मु. कुंअरविजय, मा.गु., ग्रं. १२५०, वि. १८८२, गद्य, मपू., (संवेगी सिरदार सिरोमणि जिन), ११८२५६(+$), ११९३४७(+), ११९८२१(+) अध्यात्म फाग, जै.क. बनारसीदास, पुहिं., गा. १८, वि. १७वी, पद्य, दि., (अध्यातम बिनु क्यों), ११९९६३-१८ For Private and Personal Use Only Page #548 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १.१.२६ अध्यात्मबत्तीसी, श्राव. बनारसीदास, पुहिं., गा. ३२, वि. १७वी, पद्य, दि., (सुध वचन सदगुरु कहें), ११९९६३-१४, १२००८५-२(६) अध्यात्मबत्तीसी, मु. बालचंद मुनि, पुहि., गा. ३३, वि. १६८५, पद्य, स्था., (अजर अमर पद परमेसर), ११९४४३-२(+$), ११९६७७, ११७६३६(#s) अध्यात्मबावनी, मु. चिदानंद, मा.गु., गा. ५२, पद्य, मपू., (माया जाळ मूकीपरी), ११९६१०-३ अध्यात्मसारमाला, क. नेमिदास रामजी शाह कवि, मा.गु., पी. ५, गा. १०८, ग्रं. २३०, वि. १७६५, पद्य, श्वे., (श्रीजिनवाणी निउ नमी), ११६५४०(६) अनंत चतुष्टय नाम, मा.गु., गद्य, मूपू., (अनंतदर्शन १ अनंतज्ञान २), ११८४२९-३९(#) अनंतजिन स्तवन, मु. मोहनविजय, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (हो जिनजी अनंत जिणंद), ११९८२४-२५(+) अनंतमती चरित्र, मु. चौथमलजी, पुहिं., ढा. १५, वि. १९७६, पद्य, स्था., (अनंत चौवीसी जिन नमूं), ११९८४९-१ अनागत चौवीसी नाम, मा.गु., प+ग., मूपू., (पद्मनाभ सूरदेव सुपास), ११७३११-१(+#) अनाथीमनि पंचढालियो, उपा. विमलविनय वाचक, मा.गु., ढा. ५, गा. ७१, वि. १६४७, पद्य, मूपू., (श्रीजिनशासन नायक), ११६९८९(६) अनाथीमनि सज्झाय, उपा. उदयविजय, मा.गु., गा. १३, पद्य, मप., (मगध देस राजग्रही नगरी), ११७१९२-२ अनाथीमुनि सज्झाय, पंन्या. रामविजय, मा.गु., गा. ३०, पद्य, मपू., (मगधाधिप श्रेणिक), ११६७२८ अनाथीमुनि सज्झाय, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., गा. ९, पद्य, मपू., (श्रेणिक रयवाडी चड्यो), ११८२४५-१५(+) अनादिबत्रीसी, श्राव. भगवतीदास भैया, पुहिं., गा. ३३, वि. १७५०, पद्य, दि., (अष्टकर्म अरिजीतकै भए), ११९८८४-७३(+) अनित्यपच्चीसी, श्राव. भगवतीदास भैया, पुहिं., गा. २७, पद्य, दि., (नरलोकनि केईस नागलोकनि), ११९८८४-६३(+) अबयदी प्रश्न, पुहि., गद्य, जै.?, (ए च्यारि अक्षर पाशे), ११८५७८(#$) अभव्यजीव दुर्लभ बोल, मा.गु., गद्य, मूपू., (१ चक्रवर्ति पदवी २ इंद्र), ११७७५६-५(+#) अभव्य सज्झाय, मु. उदय, मा.गु., गा. ६, पद्य, मूपू., (उपदेश न लागे अभव्यने), ११५४६५ अभिनंदनजिन स्तवन, मु. आनंदघन, मा.गु., गा. ६, वि. १८वी, पद्य, मूपू., (अभिनंदन जिन दरिसण), ११५४१४-३(+) अभिनंदनजिन स्तवन, मु. कवियण, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., (अभिनंदनजी अरज हमारी), ११९६१२-६२(+#) अभिनंदनजिन स्तवन, मु. मोहनविजय, मा.गु., गा. ७, वि. १८वी, पद्य, मूप., (अकल कला अविरुद्ध), ११९८२४-२८(+) अभिनंदनजिन स्तवन, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., गा. ६, वि. १८वी, पद्य, मूपू., (दीठी हो प्रभु दीठी), ११७९३१ अभिनंदनजिन स्तवन, मु. रतनचंद, मा.गु., गा. ५, पद्य, श्वे., (प्रभुजी थारी चाकरी रे), ११९९३१-१४(+) अमरकुमार सज्झाय, मु. कवियण, मा.गु., गा. ५२, पद्य, मूपू., (राजगृही नयरी भली), ११९७४५-७८(+$) अमरसेनवयरसेन चौपाई-रात्रिभोजन परिहार, मा.गु., पद्य, श्वे., (--), ११८०१३($) अरणिकमुनि रास, मु. आणंद, मा.गु., ढा. ८, वि. १७०२, पद्य, मूपू., (सरसति सामिणि वीन), ११५८२९-१(६) अरणिकमुनि सज्झाय, मु. रूपविजय, मा.गु., गा. १०, पद्य, मूपू., (अरणिक मुनिवर चाल्या), ११७६७३-२(+), ११६०८४, ११८७३६-३ अरणिकमनि सज्झाय, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., गा.८, पद्य, मप., (अरणिक मुनिवर चाल्या), ११५४६६-६(+), ११५५५५-९(+#), ११७५४९-२ अरिहंतपद स्तवन, ग. पद्मविजय, मा.गु., गा. ११, पद्य, मप., (भवि तुमे वंदो रे अरि), ११७६९५-१(+) अर्बुदगिरितीर्थ स्तवन, मु. जिनेंद्रसागर, मा.गु., गा. ८, पद्य, मपू., (आबुगढ तीरथ ताजा अष्टादश), ११७३४३-२ अर्बुदगिरितीर्थ स्तवन, मु. रूपचंद, मा.गु., गा. २२, पद्य, मूपू., (जात्रीडा भाई आबूजीनी), ११५३६७-२(+$) अर्बुदगिरितीर्थ स्तवन, मु. वीरविजय, मा.गु., गा. १०, पद्य, मूपू., (आदिजिणेसर पूजतां), ११५३५१-२ अर्बुदाचलतीर्थ कथा, मा.गु., गद्य, वै., (एक दिनरै समै ८८ हजार ऋषि), ११९२६९-७ अवंतिसुकुमार सज्झाय, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., गा. ४०, वि. १८वी, पद्य, मूपू., (मनोहर मालव देश तिहां), ११९७४५-५७(+) अवंतिसुकुमाल रास, मु. जिनहर्ष, मा.गु., ढा. १३, गा. १०७, वि. १७४१, पद्य, मूपू., (मुनिवर आर्य सुहस्ति), ११९२६०-३४(+) अवंतिसुकुमाल सज्झाय, मु. जगचंद, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूप., (वंदो अयवंती सुकुमालने रे), ११५४४६-२(+#) For Private and Personal Use Only Page #549 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ५३४ देशी भाषाओं की मूल कृति के अकारादि क्रम से प्रत-पेटाकृति क्रमांक सूची परिशिष्ट-२ अवंतिसुकुमाल सज्झाय, मु. जिनहर्ष, मा.गु., ढा. १३, वि. १७४१, पद्य, मूपू., (पास जिनेश्वर सेविये), ११८५५३-१ अवगाहना बोल संग्रह, मा.गु., गद्य, श्वे., (चुवीस तीर्थंकरना), ११७९७९(+$) अवस्थाष्टक, मा.गु., गा. ८, पद्य, दि., (चेतन लच्छन नियतनै), ११९९६३-३४ अष्टकर्म चौपाई, श्राव. भगवतीदास भैया, पुहि., गा. २७, पद्य, दि., (नमौं देवसर वज्ञ कौं), ११९८८४-६४(+) अष्टगंध नाम, मा.गु., गद्य, इतर, (रतांजणी सुकड वीली धात्री), ११५७६८-१(#) अष्टप्रकारी पूजा विधान-कुंचामणनगर, पुहिं., पद्य, दि., (या छवि ज्योरि सोह राजै), ११८१४७-५९(#$) अष्टमीतिथिपर्व चैत्यवंदन, मु. जिनविजय, मा.गु., गा. १४, पद्य, मप., (चैत्र वदी आठम दिने), ११९२२०-३(+#) अष्टमीतिथिपर्व चैत्यवंदन, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., गा. ६, वि. १८वी, पद्य, मूपू., (सुमतिनाथ एकासणुं करी), ११९२१५-५३(+) अष्टमीतिथिपर्व चैत्यवंदन, पंन्या. पद्मविजय, मा.गु., गा. ७, वि. १९वी, पद्य, मूपू., (महा सुदी आठमने दिने), ११७५३९-३(+), ११६१०४-२ अष्टमीतिथिपर्व सज्झाय, उपा. देवविजय, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., (श्रीसरसतिने चरणे), ११८२४५-४(+) अष्टमीतिथिपर्व स्तवन, मु. कांतिविजय, मा.गु., ढा. २, गा. २४, वि. १८वी, पद्य, मूपू., (हां रे मारे ठाम धर्मना), ११६०९४-१(+#$), ११७७८१(#), ११५७०३(६) अष्टमीतिथिपर्व स्तवन, मु. दीपकविजय, मा.गु., गा. १७, पद्य, म्पू., (वंदो रे भविका जिनराज), ११७२३० अष्टमीतिथिपर्व स्तवन, मु. लावण्यसौभाग्य, मा.गु., ढा. ४, गा. २४, वि. १८३९, पद्य, मूपू., (पंच तिरथ प्रणमुं सदा), ११८८४८-२० अष्टमीतिथिपर्व स्तुति, आ. जिनलाभसूरि, मा.गु., गा. ४, पद्य, मप., (कृत्वा निर्मलमष्टमी तिथि), ११९१४३-२५(+-) अष्टमीतिथिपर्व स्तुति, आ. जिनसुखसूरि, मा.गु., गा. ४, पद्य, मपू., (चोवीसे जिनवर प्रणमु), ११६१०९-२(+#), ११७२२७-२ अष्टमीतिथिपर्व स्तुति, मु. जीवविजय, मा.गु., गा. ४, पद्य, मप., (चौवीसे जिनवर प्रणमु), ११९१४३-३६(+-) अष्टमीतिथिपर्व स्तुति, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., गा. ४, वि. १८वी, पद्य, मूपू., (अभिनंदन जिनवर परमानं), ११६९४५-३(+) अष्टमीतिथिपर्व स्तुति, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., गा. ४, वि. १८वी, पद्य, मूपू., (मंगल आठ करी जिन आगल), ११७२९६-४(+) अष्टमीतिथिपर्व स्तुति, उपा. राजरत्न, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू., (अष्टमीदिन चंद्रप्रभु), १२००१९(+), ११६०४० अष्टमीतिथिपर्व स्तुति, मा.गु., गा. ४, पद्य, मप., (महामंगलं अष्ट सोहै), ११९१४३-११(+-), ११८६९४-९, ११९६४८-१२ अष्टरिद्धि सज्झाय, रा., गा.६, पद्य, श्वे., (प्रथम रिद्धि अणिमानाम), ११९७४५-११२(+) अष्टान्हिका पूजा, जै.क. द्यानतराय, पुहि., गा. ९, प+ग., दि., (सरव परव मैं सार अठाई पर्व), ११८१४७-२४(#) अष्टापदतीर्थ पद, मु. जिनचंद्र, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू., (रावण नृत्य वणावै हो भलरा), ११६८०५-५ अष्टापदतीर्थ स्तवन, मु. जिनेंद्रसागर, मा.गु., गा. ८, पद्य, मूपू., (तिरथ अष्टापद नित), ११५५१२-१, ११६३५२-५, ११८७३६-१ अष्टापदतीर्थ स्तवन, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., गा. ८, वि. १८वी, पद्य, पू., (अष्टापदगिरि जात्रा करणकुं), ११९८२४-११(+), ११५७५८-१ अष्टापदतीर्थ स्तवन, मु. भाणविजय, मा.गु., गा. २३, वि. १८वी, पद्य, मूपू., (अष्टापद उपरे जाणी), ११५३०२(+$) अष्टापदतीर्थ स्तवन, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., गा. ५, पद्य, मपू., (मनडो अष्टापद मोह्यो), ११८३३१-१४ असंयतिपूजा विचार, मा.गु., गद्य, मूपू., (सुविध सीतल विचइ पल्योपमनइ), १२०१००-८ असज्झाय विचार, मु. लालचंद ऋषि, पुहिं., गद्य, श्वे., (तारो टुटे राति दस अकालमे), ११९७४५-१३८(+) असनादिक कालप्रमाण सज्झाय, मु. वीरविमल, मा.गु., गा. १८, वि. १७वी, पद्य, मूपू., (प्रणमुं श्रीगौतम), ११५३७९(+), ११६९१७-३(+), ११५५३६, १२००८६(#) असार संसार विचार, मा.गु., गद्य, मपू., (असार संसारने विषे किस्यु), ११९५२४-२(+) आगमगत चर्चा बोल-विविध प्रश्नोत्तर, मा.गु., प्रश्न. ४९, गद्य, श्वे., (श्रीउत्ताधेन सुत्त मधे २८), ११७३५२-२(+$) आगमगत दृष्टांत नाममाला, मा.गु., गद्य, मूपू., (१ गोतमकुमार २ समुद्रकुमार), ११७४३९ आगमपूजा स्तवन, पं. वीरविजय, मा.गु., गा. ५, पद्य, मपू., (आगमनी आशातना नवि), ११८३३१-४ आगममहिमा सज्झाय, मा.गु., गा. ७, पद्य, मप., (आगम अमृत पीजीये बहु), ११९६४९-२६ आगमसारोद्धार, ग. देवचंद्र, मा.गु., वि. १७७६, गद्य, मपू., (हिवै भव्यजीवने), ११८९५२(+), ११९०६५(+), ११९४९८(#$) For Private and Personal Use Only Page #550 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ५३५ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १.१.२६ आगम स्तवन, उपा. क्षमाकल्याण, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., (श्रुत अतिहि भलो संघ), ११६२९७-१३(+) आगमिक प्रश्नोत्तरी, आ. पार्श्वचंद्रसूरि, मा.गु., प्रश्न. ७४, वि. १६वी, गद्य, मूपू., (श्रीउत्तराध्ययन २६मइ), ११९१०३-१(+) आगमिक प्रश्नोत्तरी, मा.गु., गद्य, मूपू., (लोक आश्री प्रस्तते), ११९८८८ आचारछत्रीसी, मु. रतनचंद, मा.गु., गा. ३७, पद्य, श्वे., (गुर समज मेको नही), ११९९३१-४९(+$), ११५४०५($) आचारछत्रीसी, मु. रतनचंद, मा.गु., गा. ३८, पद्य, श्वे., (शुद्ध समकित पाया), ११९९३१-४८(+$) आचार्यपद उपाध्यायपद पंडितपदप्रदान विधि, मा.गु., गद्य, मूपू., (आचार्यपद की० काल लेई), १२००६९(+) आत्मनिंदा भावना, मु. ज्ञानसार, रा., गद्य, मपू., (हे आत्मा हे चेतन ऐ), ११७२९९-१(+), ११७४३२ आत्मभावना, पुहि.,मा.गु., गद्य, मपू., (अरे आतमा अरे चेतन), ११५६८८($) आदिजिन गीत, मु. रूपचंद, पुहि., गा. ३, पद्य, श्वे., (सिंहासण पद्मासन बैठे), ११९६१२-२३(+#) आदिजिन चरित्र, मा.गु., गद्य, मूपू., (जंबुद्वीपइं पश्चिम), ११६७७१(६) आदिजिन चैत्यवंदन, क. ऋषभदास संघवी, मा.गु., गा.५, पद्य, मूपू., (प्रथम पुजो आदिदेव),११७६२९-२(#) आदिजिन चैत्यवंदन, मु. रूपविजय, मा.गु., गा. ३, पद्य, मूप., (प्रणमुं श्रीआदिनाथ), ११७९०६-१(#) आदिजिन चैत्यवंदन, मु. रूपविजय, मा.गु., गा. ३, पद्य, मूपू., (प्रथम तिर्थंकर आदि), ११५५५६-४ आदिजिन चौपाई, मु. रायचंद ऋषि, मा.गु., ढा. ४७, वि. १८४०, पद्य, श्वे., (अरिहंत सिद्धनै आयरिय), ११५५७७(+$) आदिजिन छंद-धुलेवामंडन, आ. गुणसूरि, मा.गु., गा.८, पद्य, मूपू., (प्रमोदरंगकारणी कला), ११९२१५-३५(+), ११७३४८($) आदिजिन छंद-धुलेवामंडन, मु. दीपविजय कवि, मा.गु., गा. ६३, वि. १८७५, पद्य, मपू., (आदि करण आदि जग आदि), ११५२९६, ११५३७०(६), ११५४९२(६), ११५५२१(६) आदिजिन छंद-धुलेवामंडन, श्राव. मूल, मा.गु., वि. १८६३, पद्य, श्वे., (--), ११७४४७-१(#$) आदिजिन ढाल, मु. जिनचंद, पुहि., पद्य, मपू., (--), ११५८३७-२ आदिजिन पद, मु. आनंदवर्द्धन, पुहिं., गा. ४, पद्य, मप., (आदि जिणंद मया करो), ११६८०५-३ आदिजिन पद, मु. लालचंद, मा.गु., गा. ४, पद्य, मपू., (जयो स्वामी ऋषभ जिणंद), ११७७३३-२(+) आदिजिन पद, मु. साधुकीर्ति, पुहि., गा. ३, पद्य, मूपू., (आज ऋषभ घर आवे देखो), ११५५५५-४(+#), ११९६१२-२४(+#) आदिजिन पद, मु. हर्षचंद, पुहिं., गा. ४, पद्य, पू., (उगत प्रभात नाम जिनजी), ११६८०५-२२ आदिजिन पद, मु. हर्षचंद, पुहिं., गा. ४, पद्य, मूपू., (प्रात समै तेरो मुख देखन), ११५४४२-१ आदिजिन पद-जन्ममहोत्सव, मु. लालविनोद, पुहि., गा. ४, पद्य, श्वे., (जाके जनम समय सुरराज), ११८७०२-१० आदिजिन बारमासा-धुलेवामंडन, मु. मूलचंद ऋषि, मा.गु., गा. १४, पद्य, श्वे., (प्रथम जिणंद प्रणमु), ११७४९६ आदिजिन भास, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., गा. ७, वि. १८वी, पद्य, मूप., (उच्छव रंग वधामणाजी), ११९६४९-३३ आदिजिन भास-शत्रुजयतीर्थमंडन, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., गा.७, वि. १८वी, पद्य, मूपू., (संघपति भरत नरेसरू स्तवे), ११९६४९-३४ आदिजिन लावणी, श्राव. ऋषभदास, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूप., (सुणीये रे वातां सदा), ११७६४८-३(#) आदिजिन लावणी, मु. चतुर, मा.गु., गा. १२, पद्य, मूपू., (--), ११७००४-१(+$) आदिजिन लावणी, श्राव. रोड गीरासिंह कवि, पुहिं., गा. २०, वि. १८६०, पद्य, मप., (सरस्वती माता समकित दाता), ११८२४४(+) आदिजिन लावणी, मा.गु., गा. ९, पद्य, पू., (आदिकरन आदिजगत आदिजिणंद), ११७८६९-२ आदिजिन लावणी-केसरियाजी, क. ऋषभदास संघवी, पुहिं., गा. ७, वि. १७वी, पद्य, मूपू., (सुनीओ बात सदासीवजी), ११५५१२-२ आदिजिन लावणी-केसरियाजी, मु. मूलचंद्र, पुहि., गा. ९, वि. १८६३, पद्य, मपू., (सुणीये बातो रांव), ११५६९४-३(+), ११८३३१-१३ आदिजिन लावणी-धुलेवामंडन, मा.गु., पद्य, मपू., (षडगदेश धुलेव नग्र हे ऋषभ), ११६१८५-२(#$) आदिजिनविनती स्तवन, ग. जिनहर्ष, मा.गु., गा. १९, पद्य, मूपू., (सुण जिनवर शेजूंजा), ११५८८५(+), ११५४६८, ११७८८९, ११८८४८-११ For Private and Personal Use Only Page #551 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir देशी भाषाओं की मूल कृति के अकारादि क्रम से प्रत-पेटाकृति क्रमांक सूची परिशिष्ट-२ आदिजिन विवाहलो, मु. गुणनिधानसूरि शिष्य, मा.गु., ढा. ४४, गा. २४३, पद्य, मपू., (सासनदेवीय पाय प्रणमेवीय), ११९०५७(#) आदिजिन विवाहलो, मा.गु., पद्य, मप., (पहिलउ पढम जिणेसर हेलडी), ११५६३७-२(+#$) आदिजिन शत्रुजय पूर्व ९९ वार यात्रा विचार, मा.गु., गद्य, मूपू., (सेजेजे श्रीऋषभदेव), ११५९७४-२ आदिजिन सज्झाय, मु. आनंद, मा.गु., गा. ६, पद्य, मूपू., (हे प्रभुजी प्रणमुजी), ११८५८१-९ आदिजिन सलोको, पंन्या. विनीतविमल, मा.गु., गा. ५१, पद्य, पू., (सरस्वती माता द्यो मुज), ११९८१५-८(+#) आदिजिन सवैया, मु. चंद्रभान, मा.गु., पद. १, पद्य, मपू., (नाभि मरुदेव्यानंद घौडि), ११७९७५-२ आदिजिन-सीमंधरजिन स्तुति, मा.गु., गा. ३, पद्य, मपू., (जय जय त्रिभुवन आदि), ११५७११-३ आदिजिन सखडी, मा.गु., गा. ५४, पद्य, मप., (सरसति माता देवी चरण), ११९८१५-९(+#$) आदिजिन स्तवन, आ. अजितदेवसूरि, मा.गु., गा. ३६, पद्य, मूपू., (--), १२०१५९($) आदिजिन स्तवन, पं. उत्तमविजय, मा.गु., गा. २०, पद्य, मूपू., (--), ११७८६९-१(६) आदिजिन स्तवन, श्राव. ऋषभदास, मा.गु., गा. ६, पद्य, भूपू., (मुरति मोहन वेलडीजी), ११७३२५-८(+) आदिजिन स्तवन, मु. कनककुशल, पुहिं., गा. ६, पद्य, मपू., (अईयो अइयो नाटक नाचें), ११७०१६-५ आदिजिन स्तवन, मु. कपूर, मा.गु., गा.७, पद्य, मप., (प्रथम तिर्थंकर रीषभ), ११७४४९-१(+) आदिजिन स्तवन, मु. करमसी, मा.गु., गा. ५, पद्य, श्वे., (आय रहो दिल बाग में), ११६८०५-२० आदिजिन स्तवन, मु. किसन, मा.गु., गा. १८, पद्य, स्था., (श्रीऋषभजिणेसर जगत), ११६१४१-१(#) आदिजिन स्तवन, मु. केसर, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (जे जगनायक जगगुरु जी), ११६०८६(+) आदिजिन स्तवन, वा. क्षमाकल्याण, मा.गु., गा. ५, पद्य, मपू., (आदिसर जिनराय), ११६२९७-५(+) आदिजिन स्तवन, उपा. क्षमाकल्याण, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (प्रभु मया करी दिल), ११६२९७-१७(+) आदिजिन स्तवन, मु. क्षमाकल्याण, मा.गु., गा. ५, पद्य, मपू., (प्रात उठि समरियै), ११६२९७-१८(+) आदिजिन स्तवन, मु. खीमारतन, मा.गु., गा. ४, वि. १८८८, पद्य, मूपू., (ए गिरवरनी मेहमा मोटी), ११७९०२-१ आदिजिन स्तवन, मु. खुबकुशल शिष्य, मा.गु., गा. ८, वि. १९०७, पद्य, मपू., (श्रीऋषभ जिणेसर ध्याइये), ११७३५७ आदिजिन स्तवन, मु. चंदकुशल, पुहिं., गा. ५, पद्य, मपू., (देखोने आदेसर बाबा), ११६८०५-८ आदिजिन स्तवन, मु. चौथमल, पुहि., गा. ५, पद्य, श्वे., (मैं चाकर हुं तुम चरन), १२०००९-३(+) आदिजिन स्तवन, पंडित. टोडरमल , पुहिं., गा. ६, पद्य, दि., (उठ तेरो मुख देखें), ११५४४२-२ आदिजिन स्तवन, मु. भीमसुंदर, मा.गु., गा. ४६, पद्य, मूपू., (--), ११७६०१-१(६) आदिजिन स्तवन, मु. मोहनविजय, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (आदीसर जगदीसरू रे), ११९८२४-२७(+), १२०१४६-३ आदिजिन स्तवन, मु. मोहनविजय, मा.गु., गा. ३, पद्य, मूपू., (उठ हो नाभि दूलारे), ११९६१२-१९(+#) आदिजिन स्तवन, मु. मोहनविजय, मा.गु., गा.७, पद्य, मप., (एतो प्रथम तीर्थंकर), ११९८२४-१२(+) आदिजिन स्तवन, मु. मोहनविजय, मा.गु., गा. ७, पद्य, मपू., (बालपणे आपण ससनेहि), ११९८२४-२४(+) आदिजिन स्तवन, मु. मोहनविजय, रा., गा.७, वि. १८वी, पद्य, प., (राज मरुदेवी केरा),११९६१२-७२(+#), ११९८२४-१३(+) आदिजिन स्तवन, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., गा. ५, वि. १८वी, पद्य, मूपू., (जगजीवन जगवाल हो), ११५६४४-३ आदिजिन स्तवन, मु. रंग शिष्य, मा.गु., गा. १५, वि. १७७३, पद्य, मूपू., (रिषभ जिणेसर भेटवा रे लाल), ११५८२७-२ आदिजिन स्तवन, मु. रतनचंद, मा.गु., गा. १३, वि. १८५३, पद्य, श्वे., (श्रीरिषभ जिणेसर साम दरसण), ११९९३१-१३(+) आदिजिन स्तवन, मु. रामविजय, मा.गु., गा. ८, पद्य, मपू., (आंगि आज बनी छे रे आठ), ११९६१२-७७(+#) आदिजिन स्तवन, मु. रामविजय, मा.गु., गा. ५, पद्य, मपू., (आज भले दिन उगो हो), ११५७२६(#$) आदिजिन स्तवन, मु. रामविजय, मा.गु., गा. ५, पद्य, मपू., (ओलगडी आदिनाथनी जो), ११९५८२ आदिजिन स्तवन, मु. रामविजय, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (जोवा दरीसण आदिसर को), ११९६१२-८३(+#) आदिजिन स्तवन, मु. लालचंद, मा.गु., गा.१०, पद्य, मूप., (जय जय ऋषभजिनंद अमंद दिवाक), ११७७३३-१(+) आदिजिन स्तवन, मु. सकलविजय, मा.गु., गा. ७, पद्य, मपू., (सरसति सामण विनवू रे), ११५७५७-१(#) आदिजिन स्तवन, मु. हर्षविजय, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., (ऋषभजिणंद सुखकार दीठे), ११९८२४-८(+) For Private and Personal Use Only Page #552 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १.१.२६ आदिजिन स्तवन, आ. हीररत्नसूरि पुठि, गा. ६, पद्य, म्पू, (एसा जिन एशा जिन एशा), १९८३३१-१२, ११७४८४-२ (०) आदिजिन स्तवन, मा.गु., पद्य, श्वे., (ऋषभ जिणंद जुहारीय), ११५४९८-१(#$) आदिजिन स्तवन, मा.गु., गा. ९, पद्य, मूपू., (जोवा चालो हे सहियां आदि), ११६०४३(+) आदिजिन स्तवन, मा.गु., गा. ८, पद्य, मूपू., (प्रथम तीर्थंकर पायनमी), ११७६४८-२(#) आदिजिन स्तवन, मा.गु., गा. २१, पद्य, मूपु., (श्री आदि जिणेसर तू परमेसर), ११७०४४) आदिजिन स्तवन- २८ लब्धिविचारगर्भित, मु. धर्मवर्धन, मा.गु., डा. ३, गा. २६, वि. १७२६, पद्य, मूपू. (प्रणमुं प्रथम जिनेसर), ११८८४८-१४ आदिजिन स्तवन-३४ अतिशयगर्भित, मा.गु., गा. २१, पद्य, मूपू., ( नाभिनरिंदमल्हार), ११६८२९-१($) आदिजिन स्तवन-अर्बुदगिरितीर्थ मंडन, वा. प्रेमचंद, मा.गु., गा. ३४, वि. १७७९, पद्य, मूपू., ( आबु शिखर सोहामणो जिह), ११७४८३-१ ($) आदिजिन स्तवन- आहडपुरमंडन, मु. गुणसागर, मा.गु., गा. २५, पद्य, मूपू (जिन जीम जाणे होते), ११६३२५-३ आदिजिन स्तवन-जन्मबधाई, मा.गु., गा. ६, पद्य, मूपू., (आज तो बधाइ राजा नाभि), ११५५५५-१(+#) आदिजिन स्तवन- धुलेवातीर्थमंडन, श्राव. मूलचंद मयाराम, मा.गु.. गा. २५, पद्य, मूपू., (सकल मनोरथ संपजे जपता), ११७६४८-१० आदिजिन स्तवन-भरतचक्रवर्ती, मु. आशकरण, मा.गु., गा. २७, वि. १८३५, पद्य, श्वे., ( प्रथम जिनेसर ऋषभजिण), ११७३५,८-४+४६) . आदिजिन स्तवन- राणपुरमंडन, मु. कवियण, मा.गु. गा. १५, वि. १७१५, पद्य, मूपू (राणपुरे मन मोहियो रे), १९७८६०-२ (०६) आदिजिन स्तवन- राणपुरमंडन, मु. शिवसुंदर मा.गु., गा. १६, वि. १७१५, पद्य, म्पू.. (राणपुर नमी हिवो रे) १२०१२६. ११७६०३.१(३) आदिजिन स्तवन- विहारवर्णन, मा.गु., पद्य, भूपू (नाभराया कुलदीपक चंद माता), ११७०५९(३) , आदिजिन स्तवन-वृद्ध, आ. जिनराजसूरि, मा.गु., गा. १७, पद्य, मूपू., (करजोडी इम वीनवुं), ११५८२७-३ आदिजिन स्तवन- शत्रुंजयतीर्थमंडन, उपा. क्षमाकल्याण, मा.गु., गा. ११. वि. १८५४, पद्य, म्पू, (जिनजी आदिपुरुष), ११६२९७-१०+) आदिजिन स्तवन-शत्रुंजयतीर्थमंडन, पं. नरविजय, मा.गु., गा. १२, वि. १७६६, पद्य, मूपू., (सरसति सामण विनवू रे), ११९९४२-१ (+) आदिजिन स्तवन-शत्रुंजयतीर्थमंडन बृहत्, मु. प्रेमविजय, मा.गु., गा. २३, पद्य, मूपू., (प्रणमवि सयल जिणंद), १२०१३७(#) आदिजिन स्तुति, क. ऋषभदास संघवी, मा.गु., गा. ४, वि. १७वी, पद्य, मूपू. (प्रह उठी वंदु ऋषभदेव), १९१८६४५ ९(१), ११८५६२-८ आदिजिन स्तुति, मु. खेम, उ., डा. ३, गा. ४२, पद्य, खे, (साहिब तुं सच्चा धणी), ११७२७६ आदिजिन स्तुति-मरुदेवामाता केवलज्ञान, मु. मोहनविजय, मा.गु गा. ४, पद्य, मूपू (गजकुंभे बेसी आवे). १९६३९०-३ () 3 आदिजिन स्तुति- बीसलपुरमंडन, मु. देवकुशल, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू., (विसलपुर बांदु), १९८८८७-८ (का आदिजिन होरी, मु. जिनचंद्र, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू, (होरी खेलियै नर बहुर), ११७८३२-२(+) आदितव्रत कथा, मु खुस्याल, मा.गु., गा. १३०, वि. १७८२, पद्य, वे ऋषभजिनादिक बंदूसार प्रणम्), ११७७२२ (०३) " आधाशीशी कथा, पुहि., गद्य, वै., इतर (ॐ नमो पेठाणपुर पाटण), १९६७०१-१ " आधाशीशी मंत्र, पुहिं., गद्य, वै., इतर, ॐ नमो हनुवंतबीर के), ११६९७३-४ " आध्यात्मिक गीत, मु. ज्ञानविमल, मा.गु., गा. ६, पद्य, मूपू., (जोके घट में अनुभव उदयो), ११९६१२-८१(+#) आध्यात्मिक जकडी, पुहि., गा. ४, पद्य, दि. (हा हा भुलो मेरो मन जिनवरि ११८१४७-५१(क) आध्यात्मिकज्ञान प्रश्नपहेली, पुहिं., गा. ११, पद्य, दि., (कुमति सुमति दोउ ), ११९९६३-३१ आध्यात्मिक पद, मु. अमोलक, पुहिं., गा. ५, पद्य, श्वे., (चेतन तुं तो हुवा नादान), ११९७४५-११(+) आध्यात्मिक पद, मु. अमोलक, पुहिं, गा. ५, पद्य, श्वे. (चेतन तु तो हुवा हे बइमान), ११९७४५-८(+) " " For Private and Personal Use Only ५३७ Page #553 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ५३८ देशी भाषाओं की मूल कृति के अकारादि क्रम से प्रत-पेटाकृति क्रमांक सूची परिशिष्ट-२ आध्यात्मिक पद, मु. अमोलक, पुहि., गा. ४, पद्य, श्वे., (भुल गये क्यो भाई तुम अपना), ११९७४५-१३(+) आध्यात्मिक पद, मु. आनंदघन, पुहिं., पद. ५, पद्य, मूप., (कंत चतुर दिल जानी), ११५४५७-१(+) (२) आध्यात्मिक पद-टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (चतुर भर्ता म्हारौ), ११५४५७-१(+) आध्यात्मिक पद, मु. आनंदघन, पुहि., गा. ३, वि. १८वी, पद्य, मपू., (क्या सोवै उठि जाग), ११५८२६-१(+) आध्यात्मिक पद, मु. आनंदघन, पुहि., गा. ३, वि. १८वी, पद्य, मूपू., (चेतन चतुर चोगान लरी), ११९६१२-३९(+#) आध्यात्मिक पद, मु. आनंदघन, पुहिं., गा. ३, वि. १८वी, पद्य, मप., (छोरानै क्युं मारै),११५४५७-२(+) (२) आध्यात्मिक पद-टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूप., (ऊपजतौ उपसम सम्यक्त्व), ११५४५७-२(+) आध्यात्मिक पद, मु. आनंदघन, पुहिं., गा. ३, वि. १८वी, पद्य, मप., (जिया जानै मेरी सफल),११५८२६-३(+) आध्यात्मिक पद, मु. आनंदघन, पुहिं., गा. ३, वि. १८वी, पद्य, मूपू., (ठगोरी भगोरी लगोरी), ११९६१२-४२(+#) आध्यात्मिक पद, मु. आनंदघन, पुहिं., गा. ३, वि. १८वी, पद्य, मूपू., (तेरी हुं तेरी हुँ), ११९६१२-४३(+#) आध्यात्मिक पद, मु. आनंदघन, पुहि., गा. ३, वि. १८वी, पद्य, मूपू., (परम नरममति और न भावै), ११९६१२-४१(+#) आध्यात्मिक पद, मु. आनंदघन, मा.गु., गा. ३, पद्य, मूपू., (पियविन निसदिन), ११९६१२-४०(+#) आध्यात्मिक पद, मु. आनंदघन, पुहिं., गा. ३, वि. १८वी, पद्य, मप., (मेरी तुं मेरी तं), ११९६१२-४४(+#) आध्यात्मिक पद, मु. आनंदघन, पुहिं., गा. ३, वि. १८वी, पद्य, मप., (मोर बताय निज रूप),११९६१२-३८(+#) आध्यात्मिक पद, मु. आनंदघन, पुहिं., पद. ३, वि. १८वी, पद्य, मपू., (रे घरियारी बाउ रे मत), ११५८२६-२(+), ११९६१२-१३(+#) आध्यात्मिक पद, मु. आनंदघन, पुहि., गा. ४, वि. १८वी, पद्य, म्पू., (सुहागणि जागी अनुभव), ११५८२६-४(+) आध्यात्मिक पद, मु. क्षमाकल्याण, पुहि., गा. ५, पद्य, मपू., (किन देखावे शिवगामी हमारा), ११६२९७-४(+) आध्यात्मिक पद, मु. चिदानंद, हिं., गा. ५, पद्य, मप., (प्रीतम प्रीतम प्रीतम), ११५६६६-१(#$) आध्यात्मिक पद, मु. चिदानंद, पुहि., गा. ३, पद्य, मपू., (सोहं सोहं सोहं सोह), ११५६६६-२(#) आध्यात्मिक पद, मु. जिणदास, पुहि., गा. ४, पद्य, मूपू., (चेतन तुं क्या फीरे भुला), ११६५०५-१ आध्यात्मिक पद, मु. दीप, पुहि., गा. ९, पद्य, मूपू., (सुद्धानंद यह पाई एही अहो), ११८६०४-१२(+#) आध्यात्मिक पद, मु. द्यानत, पुहिं., गा. ३, पद्य, मपू., (वाके करमरी पुलारा फीरे), ११६५०५-१५ आध्यात्मिक पद, जै.क. बनारसीदास, पुहि., गा. ४, वि. १७वी, पद्य, दि., (चेतन तूं तिहुं काल), ११९९६३-५० आध्यात्मिक पद, श्राव. भगवतीदास भैया, पुहि., गा. २, पद्य, दि., (अरे तैं जुयै जनम गमायो रे), ११९८८४-२२(+) आध्यात्मिक पद, श्राव. भगवतीदास भैया, पुहि., गा. २, पद्य, दि., (अव मैं छाड्यौ पर जंजा), ११९८८४-१९(+) आध्यात्मिक पद, श्राव. भगवतीदास भैया, पुहि., गा. ४, पद्य, दि., (एक सुनि जिनशासन कीवतिया), ११९८८४-३०(+) आध्यात्मिक पद, श्राव. भगवतीदास भैया, पुहिं., गा. ५, पद्य, दि., (कहा परदेशी को पतियारो मन), ११९८८४-२७(+) आध्यात्मिक पद, श्राव. भगवतीदास भैया, पुहि., गा. ४, पद्य, दि., (चेतन परे मोह विश आइ मानत), ११९८८४-४०(+) आध्यात्मिक पद, श्राव. भगवतीदास भैया, पहिं., गा. ४, पद्य, दि., (छांडि दै अभिमान जीय रे), ११९८८४-२९(+) आध्यात्मिक पद, श्राव. भगवतीदास भैया, पुहि., गा. २, पद्य, दि., (जाको मन लागो निज रूप मैं), ११९८८४-२४(+$) आध्यात्मिक पद, श्राव. भगवतीदास भैया, पुहि., गा. २, पद्य, दि., (जिनवानी कै कोन हिता रे), ११९८८४-३८(+) आध्यात्मिक पद, श्राव. भगवतीदास भैया, पुहि., गा. ४, पद्य, दि., (जिनवानी सुनि तुरत सभा रे), ११९८८४-३९(+) आध्यात्मिक पद, श्राव. भगवतीदास भैया, पुहिं., गा. ४, पद्य, दि., (जीव कौं मोह महा दुखदाई), ११९८८४-२३(+$) आध्यात्मिक पद, श्राव. भगवतीदास भैया, पुहि., गा. ४, पद्य, दि., (जो जो देख्यौ वीतरागर्ने), ११९८८४-३७(+) आध्यात्मिक पद, श्राव. भगवतीदास भैया, पुहिं., गा. ३, पद्य, दि., (ते गहिले भाई ते गहिले),११९८८४-२८(+) आध्यात्मिक पद, श्राव. भगवतीदास भैया, पुहिं., गा. ४, पद्य, दि., (देखो मिरी सहिए आज चेतन), ११९८८४-३१(+) आध्यात्मिक पद, श्राव. भगवतीदास भैया, पुहिं., गा. ५, पद्य, दि., (नगन दिगंपर मुद्रा धरि कै), ११९८८४-२५(+) आध्यात्मिक पद, श्राव. भगवतीदास भैया, पुहि., गा. २, पद्य, दि., (नर देही वह पुण्य सौं), ११९८८४-२१(+) आध्यात्मिक पद, श्राव. भगवतीदास भैया, पुहि., गा. ७, पद्य, दि., (भविक तुम वंद हु मन धरिभाव), ११९८८४-३४(+) आध्यात्मिक पद, श्राव. भगवतीदास भैया, पुहि., गा. ४, पद्य, दि., (या घटमैं परमातमा), ११९८८४-२०(+) For Private and Personal Use Only Page #554 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १.१.२६ आध्यात्मिक पद, श्राव. भगवतीदास भैया, पुहिं., गा. २, पद्य, दि., (श्रीजिन चरणां वुज प्रते), ११९८८४-३३(+) आध्यात्मिक पद, श्राव. भगवतीदास भैया, पुहि., गा. ३, पद्य, दि., (हे चेतन उवे दुख विसरि गए), ११९८८४-३६(+) आध्यात्मिक पद, मु. रूपचंद, पुहि., गा. ५, पद्य, मूपू., (है इस सहिर विचको), ११९६१२-३०(+#) आध्यात्मिक पद, पुहिं., गा. ४, पद्य, श्वे., (अविनाशी के गुण गावता), ११९६१२-२९(+#) आध्यात्मिक पद, पहि., गा. ६, पद्य, दि., (जो दातार दयाल है), ११९९६३-६५ आध्यात्मिक पद, पुहि., गा. ४, पद्य, दि., (हम बैठे अपनी मोनसौ), ११९९६३-६२, ११८१४७-४५(#) आध्यात्मिक पद-कुमतिसुमति, मु. जिनदास, पुहि., गा. ४, पद्य, श्वे., (तुं कुमति कलेसन नार लगि), ११९७४५-१३१(+) आध्यात्मिक पद-मनमंदिर, पुहि., गा. ५, पद्य, श्वे., (तोरे सेवन को भगवाँन), ११७९७६-१३(+) आध्यात्मिक पद-वैराग्य, मु. सदारंग, पुहिं., गा. ४, पद्य, पू., (अगर की बंदगी प्यारे कीया),११६५०५-२ आध्यात्मिक पद-शूची, श्राव. भगवतीदास भैया, पुहि., गा. ४, पद्य, दि., (या देही कौ श्रुचि कहा), ११९८८४-१८(+) आध्यात्मिक पद-होरी, मु. ज्ञानसार, पुहिं., गा. ३, पद्य, मप., (परघर खेलत मेरो पीयो), ११६८०५-१३ आध्यात्मिक भावना, पुहिं., पद्य, श्वे., (भावनारूप भुजा करो हेत), ११९७४५-३२(+) आध्यात्मिक लावणी, मु. अबीरचंद, पुहिं., गा. ४, पद्य, श्वे., (क्या तैं मूरख शकती गावै), ११५५१०-३(+) आध्यात्मिक लावणी, मु. अबीरचंद, पुहिं., गा. ४, पद्य, श्वे., (शिव पहली अरु शगती पीछ), ११५५१०-२(+) आध्यात्मिक लावणी-जीव आत्मा, मु. अमोलक, पुहि., गा. ५, पद्य, श्वे., (जीव आतम कि बोहत प्रीती), ११९७४५-१०(+) आध्यात्मिक विचार, मा.गु., गद्य, श्वे., (अरे चेतन अरे प्राणी अरे), ११६५०० आध्यात्मिक सज्झाय, आ. अजितदेवसूरि, पुहि., गा. ९, पद्य, मपू., (आठ खाणि सब जीवकी आठ कर्म), ११६७६९-१(+#) आध्यात्मिक सज्झाय, मु. आणंदविजय, मा.गु., गा. ७, पद्य, मप., (--), ११६४७६-१(+$) आध्यात्मिक सज्झाय, मु. राम, पुहिं., गा. ५, पद्य, श्वे., (मना थने किण विध समजाउरे), ११९७४५-६२(+) आध्यात्मिक सज्झाय, मु. रूपविजय, मा.गु., गा. ६, पद्य, मूपू., (हो सुण आत्मा मत पड), ११७६९५-२(+) आध्यात्मिक सज्झाय, ग. वनीतविजय, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., (कांसी वजाडे कोण छे चेतन), ११९६१२-९१(+#) आध्यात्मिक सज्झाय, मु. सुयशविमल, मा.गु., गा. ५, पद्य, मपू., (अर्कप्रभा समबोधप्रभामांहि), ११७७१६-३(#) आध्यात्मिक सज्झाय, मु. हर्षविजय, मा.गु., गा.७, पद्य, मप., (मारं मारु म कर जीव),११६००८-२(+) आध्यात्मिक सज्झाय, पुहिं., गा.५, पद्य, श्वे., (अरे जिया सोच अपना मन मे), ११९७४५-९२(+) आध्यात्मिक सज्झाय, मा.गु., पद्य, मूपू., (अवें चलसंघ हमारे रि निस),११६४७६-२(+$) आध्यात्मिक सज्झाय, मा.गु., गा. २८, पद्य, मूपू., (हाथा छुटी खुह पडी), ११९६१२-९४(+#) आध्यात्मिक सज्झाय-काया, मा.गु., पद्य, मपू., (गोरमा गणपत लागु पाय के), ११७२७८-२(+) आध्यात्मिक सज्झाय-जीवकाया, मु. दीप, मा.गु., गा. १०, पद्य, मूपू., (तू मेरा पीवु साजना), ११६४८०-२ आध्यात्मिक सज्झाय-भाव राखडी, सा. जडाव, रा., गा. ९, वि. १९६६, पद्य, श्वे., (मारा केवर विरा हंस बांधु), ११९७४५-३३(+) आध्यात्मिक सज्झाय-सहजानंदी, पं. वीरविजय, मा.गु., गा. ११, वि. १९वी, पद्य, मूपू., (सहजानंदी रे आतीमा), ११९८२४-४०(+) आध्यात्मिक सवैया, पुहि., सवै. १, पद्य, वै., (बरषत० नीक बान नेनतो), ११५७४१-५ आध्यात्मिक हरियाली, श्राव. देपाल भोजक, मा.गु., गा. ६, वि. १६वी, पद्य, मपू., (वरसे कांबल भींजे पाणी), ११७२७९(+), ११६७८८, ११५६६१-२(६), ११७४५१-१(६) (२) आध्यात्मिक हरियाली-टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूप., (कांबली कहतां इंद्री), ११७२७९(+),११६७८८(६), ११७४५१-१(६) आध्यात्मिक होरी, मु. रतनचंद, पुहि., गा.७, पद्य, श्वे., (सुध ग्यानीजी फागुणमे), ११६५८४-५(-2) आनंदश्रावक संधि, मु. श्रीसार, मा.ग., ढा. १५, गा. २५२, वि. १६८४, पद्य, मप., (वर्द्धमानजिनवर चरण), ११८३६८ आबुतीर्थ स्तवन, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., गा. ३४, वि. १७२८, पद्य, मूप., (आज अनोपम पुन्यथी मइ भेटीआ), ११९२५२-४(+) आयंबिलतप सज्झाय, पंन्या. पद्मविजय, मा.गु., गा. १३, पद्य, पू., (श्रीमुनिचंद्र मुनिसर), ११५९११ आयंबिलतप सज्झाय, उपा. विनयविजय, मा.गु., गा. ११, वि. १७उ, पद्य, मूपू., (समरी श्रुतदेवी सारदा), ११९४२९-४ आराधना, मा.गु., ग्रं. २२७, गद्य, मपू., (नमो अरिहंताणं० पहिलउ), ११८२०९-१(+$) For Private and Personal Use Only Page #555 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir आषा ५४० देशी भाषाओं की मूल कृति के अकारादि क्रम से प्रत-पेटाकृति क्रमांक सूची परिशिष्ट-२ आर्द्रकुंवर चौपाई, मा.गु., ढा. २२, गा. ३११, पद्य, मूपू., (श्रीव्रधमान जिनंदजी), ११९०५१(+#) आर्यामेरूसूचि यंत्र विधि, मा.गु., प+ग., मूप., (जेतला गणनी सूचि चिंतवीए), ११६८९६(+) आलोयणा विचार, मा.गु., गद्य, मपू., (ज्ञाननी आशातना जघन्य), ११९२६३-२(+) आलोयणा विधि, मा.गु., गद्य, श्वे., (अतीत काल अठार पाप), ११८७३२(+) आलोयणा विधि, मा.गु., गद्य, श्वे., (णमो अरिहंताणं० पहिली), ११७२०५(#$) आशिष वचन कवित्त, मा.गु., पद. १, पद्य, मूपू., (घमुलो कहे सुरतीगर्ने प्रथम), ११५४३१-२ आश्चर्यचतुर्दशी, श्राव. भगवतीदास भैया, पुहिं., गा. १५, पद्य, दि., (नमौं पदारथ सार कौ), ११९८८४-६७(+$) आषाढाभूतिमुनि चौपाई, मु. ज्ञानसागर, मा.गु., ढा. १६, गा. २१८, ग्रं. ३५१, वि. १७२४, पद्य, मपू., (सकल ऋद्धि समृद्धिकर), ११९६११(+), ११९९४९, ११९०२८-१(#$) आषाढाभूतिमुनि चौपाई, मु. मानसागर, मा.गु., ढा. ७, वि. १७३७, पद्य, मपू., (सासणनायक सुरवरूं), ११९१९८-३ आषाढाभूतिमुनि पंचढालियो, मु. रायचंद ऋषि, मा.गु., ढा. ७, वि. १८३६, पद्य, श्वे., (दरसण परिसोह बावीसमो), ११९३६९ सज्झाय, मु. भावरत्न, मा.गु., ढा. ५, गा. ३७, वि. १८वी, पद्य, मप., (श्रीश्रुतदेवी हिइ धरी), ११५७०५(६) इंद्रकृत कृत्रिम जिनबालरूप द्रव्य विचार, मा.गु., गद्य, भूपू., (तीर्थंकरने जन्मसमये इंद्र), ११५४०६-३२(+#) इंद्रजाल, मा.गु., गद्य, इतर, (६।२७।३०।१६ १६ २७ २८), १२००२३-५(६) इंद्रयम शुकनावली, पुहि., गद्य, वै., इतर, (इंद्र यम राजा एवं भविष्यं), ११५६२९-२(+$) इंद्राणी सखीसंख्या विचार, मा.ग., गद्य, मप., (एक एक इंद्राणि प्रतेके), ११९७९६-४(#) इक्षकार कमलावती चौढालीयो, मु. जेमल ऋषि, मा.गु., ढा. ४, गा. ७२, पद्य, स्था., (देवता हता ते पुर्व), ११६९०५-१(+$) इरियावही सज्झाय, मु. मेघचंद्र-शिष्य, मा.गु., गा. ६, पद्य, पू., (नारी मे दीठी इक आवती), ११९४२९-५ इरियावही सज्झाय, मा.गु., पद्य, मूपू., (श्रीशारद चितमां धरी सद),११५२८६-२(+$) इलाचीकुमार चौपाई-भावविषये, मु. ज्ञानसागर, मा.गु., ढा. १६, गा. १८७, ग्रं. २९९, वि. १७१९, पद्य, मूपू., (सकल सिद्धदायक सदा), ११६७१२(+#S), ११९८५८(#), ११७१८१(६) इलाचीकुमार छढालियु, मु. माल, मा.गु., ढा. ६, वि. १८५५, पद्य, स्था., (मात मया करो सरस्वती), ११९१९०-१(+) इलाचीकुमार सज्झाय, मु. लब्धिविजय, मा.गु., गा. २९, पद्य, मूप., (धनदत्त शेठनो दीकरो ए), ११९२६०-३१(+) इलाचीकुमार सज्झाय, मु. लब्धिविजय, मा.गु., गा. ९, पद्य, मूपू., (नाम इलापुत्र जाणीए), ११५५५५-७(+#), ११८२४५-१६(+), ११७७६९-२(#) इलाचीकुमार सज्झाय, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., गा. २७, पद्य, मप., (नाम इलापुत्र जाणीयइ धनवंत), ११७५४९-१ इलाचीकुमार सज्झाय, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., गा.८, पद्य, मूपू., (नाम एलापुतर जाणीए), ११५४६६-१(+) ईश्वरनिर्णयपच्चीसी, श्राव. भगवतीदास भैया, पुहि., गा. २५, पद्य, दि., (परमेश्वर जो परम गुरु परम), ११९८८४-८३(+) उधवावर वैराग्य, जै.क. बनारसीदास, पुहि., गा. २६, पद्य, दि., (वालभ तु हूंत न), ११९९६३-५८ उपदेशछत्रीसी, मु. रतनचंद ऋषि, मा.गु., गा. ३६, वि. १८६६, पद्य, स्था., (सबद करी सतगुरु समझाव), ११९०९४-१(+) उपदेशछत्रीसी, पं. वीरविजय, मा.गु., गा. ३७, पद्य, मपू., (सांभलज्यो सज्जन नर), ११७८२९, ११५४७१-२(#$) उपदेशपच्चीसी, श्राव. भगवतीदास भैया, पुहि., गा. २६, वि. १७४१, पद्य, दि., (वीतराग के चरण जुग), ११९८८४-५३(+) उपदेशमाला, मु. दीप, पुहि., गा. ४५, पद्य, मूपू., (--), ११६४२४-१(-६) उपधानतप स्तवन-वृद्ध, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., ढा. ३, गा.१८, पद्य, मूपू., (श्रीमहावीर धरम),११७४७१,११८८४८-१८ उपादान निमित्त संवाद दोहा, श्राव. भगवतीदास भैया, पुहिं., दोहा. ४७, वि. १७५०, पद्य, दि., (पाद प्रणमि जिनदेव के), ११९८८४-८०(+) ऋतुवंती असज्झायनिवारण सज्झाय, मु. ऋषभविजय, मा.गु., गा. ११, पद्य, मपू., (सरसती माता आदि नमीने), १२०११० ऋषभदत्तदेवानंदा सज्झाय, आ. हर्षसूरि, मा.गु., गा. २१, पद्य, मपू., (तिणकाले ने तिण समे), ११९७४५-१३७(+) ऋषिदत्ता रास, मु. मेघराज, मा.गु., खं. ४, गा. ५००, वि. १६५७, पद्य, मूपू., (नाभि नरेसर वरघरइ ऋषिभ), ११९०५२(+) एकत्व भावना सज्झाय, मु. चिदानंद, पुहि., गा. ५, पद्य, मपू., (जग में न तेरा कोइ नर), ११५६६६-३(#) For Private and Personal Use Only Page #556 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १.१.२६ ५४१ एक समये जघन्योत्कृष्ट तीर्थंकर जन्म विचार, मा.गु., गद्य, मूपू., (जंबूद्वीप में जघन्य पणे), ११७८६३-२(+) एकादशीतिथि चैत्यवंदन, मु. खिमाविजय, मा.गु., गा. ९, पद्य, मपू., (शासननायक वीरजी प्रभु), ११७५३९-१(+), ११९२२०-४(+#) एकादशीतिथि सज्झाय, उपा. उदयरत्न, मा.गु., गा. १२, पद्य, मूपू., (आज एकादसी रे नणदल), ११७६७३-१(+), ११८२४५-५(+), ११९७४५-१२१(+), ११७८३५-१ एकादशीतिथि सज्झाय, मु. विशालसोमसूरि शिष्य, मा.गु., गा. १५, वि. १७वी, पद्य, मपू., (गोयम पूछे वीरने सुणो), ११५७४८(+) एकादशीतिथि सज्झाय, मा.गु., गा. ५, पद्य, श्वे., (काले तो मारे एकादसी), ११९७४५-१२५(+) औपदेशिक-अंधेरनगरी सज्झाय, मु. उदयरत्न, मा.गु., गा. ११, पद्य, मूपू., (अज्ञान महा अंधेर नगर), ११५४५८-१(+) औपदेशिक अष्टपदी-भोंदभाई, पुहि., गा. ८, पद्य, दि., (भोंदूभाई ते हिरदै), ११९९६३-६६ औपदेशिक अष्टपदी-भोंदभाई, पुहि., गा.८, पद्य, दि., (भोंदूभाई समुझ सबद), ११९९६३-६८ औपदेशिक कवित, पुहि., गा. २, पद्य, श्वे., (मुरख के माथे नाथ सिंग), ११९७४५-९८(+) औपदेशिक कवित, पुहिं., गा. २, पद्य, जै., वै.?, (सुरज छिपे गन बादल से), ११९७४५-११३(+) औपदेशिक कवित-५ इंद्रिय, पुहिं., गा. २, पद्य, श्वे., (दिपक देख पतंग जल मधुर सबद), ११९७४५-८५(+) औपदेशिक कवित्त, मा.गु., गा. २, पद्य, श्वे., (समर एक अरिहंत रयण), ११५७७९-२(#) औपदेशिक कवित्त संग्रह , पुहि.,मा.गु., पद्य, मपू., इतर, (कीमत करन बाचजो सब), ११९१४८-१(+), ११९४३२-४(+-), ११९६१२-४९(+#), ११९७४५-८२(+) औपदेशिक कंडलीया, अगरदास, पहिं., पद्य, श्वे., (गड जानै कै कोथलोकै वनीया), ११५५२२-२($) औपदेशिक गीत, जै.क. बनारसीदास, पुहि., गा. ३१, वि. १७वी, पद्य, दि., (मेरा मन का प्यारा), ११९९६३-२१ औपदेशिक गीत, उपा. समयसुंदर गणि, पुहिं., गा. ३, पद्य, मपू., (आए तीन जणे व्यापारी), ११६१३९-२(+) औपदेशिक गीत, उपा. समयसुंदर गणि, पुहि., गा. ३, पद्य, मूपू., (रे जीव वखत लिख्या सु), ११९९२२-६ औपदेशिक गुढा पद संग्रह, पुहि., गा.७, पद्य, इतर, (अली रंजन सुत वाहना), ११७००३-२(+) औपदेशिक छंद, रामचरण, मा.गु., पद्य, वै., (रामतीत राम गुरुदेवजी), ११८२४२-३($) औपदेशिक छंद, पंडित. लक्ष्मीकल्लोल, मा.गु., गा. १६, पद्य, मूपू., (भगवति भारति चरण), ११६२७९-२(+), ११७६९५-३(+), ११९८१५-४(+#), १२०१५५-१ औपदेशिक छंद-पैतीसअंक, मा.गु., गा. ३६, वि. १८४२, पद्य, श्वे., (--), ११६६००($) औपदेशिक छंद-मढशिक्षा, श्राव. भगवतीदास भैया, पहिं., दोहा. १२, पद्य, दि., (देह सनेह कहा करै), ११९८८४-१७(+) औपदेशिक जकडी, मु. रामकिसन, मा.गु., गा. ८, पद्य, मप., (अरिहंत चरणे चित्त), ११८३१६-५(+) औपदेशिक दुहा, मा.गु., दोहा. ५, पद्य, श्वे., (अकल वडि संसार में अकलें), ११६४२०-२(#) औपदेशिक दृष्टांत पद, पुहि., गा. ६, पद्य, श्वे., (लाल किताब में लिखाउ), ११७७७९-३(+) औपदेशिक दोहा, कबीरदास संत, पुहिं., दोहा. १, पद्य, वै., (हार्या ज्याने हर मिल्या), ११९७४५-५१(+) औपदेशिक दोहा, पुहिं.,मा.गु., गा. २, पद्य, श्वे., (कुप पडत नदी घ्रह), ११८१४७-३१(#) औपदेशिक दोहा, मा.गु., गा. १, पद्य, श्वे., (कुल बोलेने कहेस्ये), ११८१४७-५५(१) औपदेशिक दोहा, पुहि., दोहा. १, पद्य, इतर, (सोरठ गढथी उतरी कंस), ११६२७९-४(+) औपदेशिक दोहा-५ दृषण, पुहिं., दोहा. २, पद्य, श्वे., (प्रीय वचने आनंद बहु), ११९७४५-९९(+) औपदेशिक दोहा-पेटउपरि, मु. उदयराज, मा.गु., दोहा. १०, पद्य, मपू., इतर, (करीउ करीया कुं नमत), ११६६११(#) औपदेशिक दोहा संग्रह, क. गंग, पुहि., गा.५, पद्य, जै., इतर, (कहा नीच का संग कहा मूरख), ११७९६९-२(+) औपदेशिक दोहा संग्रह, क. गद, पुहि., गा. २०, पद्य, जै.?, (कनक दान कुर खेत का), ११७११७(5) औपदेशिक दोहा संग्रह, मु. भिन्न भिन्न कर्तृक, पुहिं.,मा.गु., पद्य, श्वे., (गइ संपत फर आवे), ११८१४७-४०(#) औपदेशिक दोहा संग्रह, मु. लालचंद ऋषि, पुहिं., गा. ६, पद्य, श्वे., (सजन एसा न किजिये पेठ पेस), ११७७७९-४(+) औपदेशिक दोहा संग्रह, पुहिं., दोहा. ४६, पद्य, वै., इतर, (चोपड खेले चतुर नर), ११७५७७-२(+#), ११९१४९-३(+), ११८३८४-२, १२००९०-५ For Private and Personal Use Only Page #557 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ५४२ देशी भाषाओं की मूल कृति के अकारादि क्रम से प्रत-पेटाकृति क्रमांक सूची परिशिष्ट-२ औपदेशिक दोहा संग्रह, मा.गु., गा. ३, पद्य, श्वे., (लगे भुख ज्वर के गये), ११९२७४-२(+) औपदेशिक दोहा संग्रह, मा.गु., पद्य, श्वे., (--), ११९२१२(#$) औपदेशिक दोहा संग्रह-भजन, मु. दीन, पुहि., गा. १०, पद्य, श्वे., (त्याग तडाका कहेत हौ भजक), ११७००२-१ औपदेशिक दोहा संग्रह-मन, पुहि., गा. ७, पद्य, जै., वै., (मन लोभि मन लालचि मन कामना), ११९७४५-६९(+) औपदेशिक पच्चीसी-वैराग्य, मु. रायचंद ऋषि, रा., गा. २६, वि. १८२१, पद्य, स्था., (सासणनायक श्रीवर्धमान), ११६९६६($) औपदेशिक पद, मु. अमोलक ऋषि, पुहि., गा. ५, वि. १९५७, पद्य, श्वे., (तुं देख तमासा थाहारा जग), ११९७४५-१२(+) औपदेशिक पद, मु. अमोलक, पुहि., गा. ५, पद्य, श्वे., (ए तन पोसत कोन सुगना रे), ११९७४५-१४(+) औपदेशिक पद, मु. अमोलक, रा., गा. ५, पद्य, श्वे., (जागो रे प्यारे मान हमारि), ११९७४५-४(+) औपदेशिक पद, मु. अमोलक, रा., गा. ५, पद्य, श्वे., (जिवाजी थारा दिल माहे काइ), ११९७४५-५(+) औपदेशिक पद, मु. अमोलक, रा., गा. ५, पद्य, श्वे., (फूले मति तन धन संपत पाइ), ११९७४५-२(+) औपदेशिक पद, मु. अमोलक, पुहि., गा. ५, पद्य, श्वे., (बता दे भया इस जगमे तेरा), ११९७४५-६(+) औपदेशिक पद, मु. अमोलक, पुहि.,रा., गा. ४, पद्य, श्वे., (बनि रे भाइ बनि रे अजु लग), ११९७४५-१५(+) औपदेशिक पद, मु. अमोलक, पुहि.,रा., गा. ५, पद्य, श्वे., (मने साध मिलावो रे दरसण), ११९७४५-१(+) औपदेशिक पद, मु. अमोलक, पुहि., गा. ५, पद्य, श्वे., (मान मान मेरि बात सयाना), ११९७४५-७(+) औपदेशिक पद, मु. अमोलक, रा., गा. ५, पद्य, श्वे., (रे चेतन सूदरि मन बिगाड रे), ११९७४५-३(+) औपदेशिक पद, मु. आनंदघन, पुहिं., गा. ४, वि. १८वी, पद्य, मूपू., (ए जिनके पइया लाग रे), ११७७२९-३(#) औपदेशिक पद, मु. केशवदास, पुहिं., गा. २, वि. १८वी, पद्य, मूप., (मालवदेश नरेस महिपति मुज), ११८५५६-२ औपदेशिक पद, क. गंग, पुहिं., पद. २, पद्य, जै.?, (संतण के एक जीह रावण), १२०१४९-१(-१) औपदेशिक पद, मु. जिनरंग, पुहि., गा. ३, पद्य, मपू., (सब स्वारथ के मित्र), ११९६१२-९(+#) औपदेशिक पद, मु. जिनराज, पुहिं., गा. ३, पद्य, मूपू., (कहारे अग्यानी जीव), ११९६१२-८(+#) औपदेशिक पद, मु. ज्ञानसार, मा.गु., गा.६, पद्य, मूपू., (अनुभव अपनी चाल चलीजै),११६८०५-१७ औपदेशिक पद, जै.क. द्यानतराय, पुहि., चौपा. ५, पद्य, दि., (प्रथमदेव अरिहंत मनाउ), ११८३१६-४(+) औपदेशिक पद, उपा. ध्रमसी, रा., गा. ४, पद्य, श्वे., (धरौ ध्यान भगवान गुणग्यान), १२०१५६-२(#) औपदेशिक पद, मु. नयप्रमोद, मा.गु., गा. १, पद्य, मपू., (कहां कृपण रंजिये कहां), ११७९४२-८ औपदेशिक पद, मु. नवल, पुहि., गा. ३, पद्य, मूपू., (वार वार समजायो रे मनवा), ११६८०५-१४ औपदेशिक पद, मु. प्रताप, पुहि., गा. २, पद्य, श्वे., (काम तज्यो अर क्रोध तज्यो), ११८७०२-९ औपदेशिक पद, श्राव. बनारसीदास, पुहिं., गा. ४, वि. १७वी, पद्य, दि., (चेतन उलटी चाल चाले), ११९९६३-५९ औपदेशिक पद, श्राव. बनारसीदास, पुहिं., गा. ४, पद्य, दि., (चेतन नैक न तोहि), ११९९६३-६० औपदेशिक पद, जै.क. बनारसीदास, पुहि., गा. ७, पद्य, श्वे., (तु आतम गुण जान रे), ११९९६३-५६ औपदेशिक पद, जै.क. बनारसीदास, पुहि., गा. ३, वि. १७वी, पद्य, दि., (तू भ्रम भूलना रे), ११९६१२-४७(+#), ११९९६३-६७ औपदेशिक पद, श्राव. बनारसीदास, पुहिं., गा. ८, वि. १७वी, पद्य, दि., (देखो भाई महाविकल संसारी), ११९९६३-७१ औपदेशिक पद, श्राव. बनारसीदास, पुहिं., गा.८, वि. १७वी, पद्य, दि., (या चेतन की सब सुधि), ११९९६३-४९ औपदेशिक पद, श्राव. बनारसीदास, पुहि., गा. ४, पद्य, दि., (रे मन कुरु सदा संतोष), ११९९६३-५७ औपदेशिक पद, मु. बालचंद्र, पुहि., गा. १, पद्य, मपू., (काये कुं बोलत प्राणि जुठ), ११९७४५-८०(+) औपदेशिक पद, श्राव. भगवतीदास भैया, पुहिं., गा. १, पद्य, दि., (शीस गर्भ नहि नमौ कान नहि), ११९८८४-९३(+) औपदेशिक पद, श्राव. भगवतीदास भैया, पुहिं., गा. २, पद्य, दि., (साहिब जाके अमर है सेवक), ११९८८४-९०(+) औपदेशिक पद, श्राव. भगवतीदास भैया, पुहिं., गा. ४, पद्य, दि., (हो चेतन तो मति कौनै हरी), ११९८८४-३५(+) औपदेशिक पद, मु. रतनचंद, पुहि., गा. ६, पद्य, म्पू., (मानव को भव पायके मत), ११९७४५-१३२(+) औपदेशिक पद, मु. रामरतन शिष्य, पुहि., गा. ४, पद्य, श्वे., (लारे लागो रे यो पाप), ११९७४५-१३०(+) औपदेशिक पद, मु. रूपचंद, रा., गा. ३, पद्य, श्वे., (जीवाजी थांने वरजु छु), ११६५०५-१७ For Private and Personal Use Only Page #558 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १.१.२६ ५४३ औपदेशिक पद, मु. रूपचंद, पुहि., गा. ४, पद्य, श्वे., (मोय कैसे तारोगै दीन), ११९७४५-१२३(+) औपदेशिक पद, मु. रूपचंद, पुहिं., गा. ४, पद्य, श्वे., (हक मरना हक जानां), ११९६१२-३४(+#) औपदेशिक पद, मु. लावण्यसमय, पुहि., गा. १, पद्य, मूपू., (न मलि मीडालमसौ ससौ), ११७९४२-१० औपदेशिक पद, हरिदास, मा.गु., गा. ६, पद्य, मपू., (अब महो जान परी दुनिया), ११९९२२-९ औपदेशिक पद, रा., गा. ५, पद्य, श्वे., (अव थने जोग मिल्यो छे रे), ११९७४५-२२(+) औपदेशिक पद, मा.गु., गा. ७, पद्य, श्वे., (कामीत पूरण कल्पद्रमसम),११७९७६-१४(+) औपदेशिक पद, पुहिं., गा. ४, पद्य, दि., (कोऊ सरल कहै दुविधा), ११९९६३-६१ औपदेशिक पद, पुहिं., गा. १, पद्य, स्पू., (चिंता जवल शरीर मै दव लागी), ११६३४१-३(+#) औपदेशिक पद, पुहि., गा. २, पद्य, मूपू., (जीया मन लै मोरी कही), ११६८०५-१२ औपदेशिक पद, पुहिं., गा. ५, पद्य, श्वे., (तु लेले खरचि संग सयाना), ११९७४५-१६(+) औपदेशिक पद, पुहिं., गा. ४, पद्य, श्वे., (तु सन सतगुरु की सीक समज), ११६५८४-१(-2) औपदेशिक पद, पुहि., गा. ४, पद्य, श्वे., (रे जीव थारे लगी विषय की), ११७९७६-७(+) औपदेशिक पद, पुहिं., गा. ५, पद्य, श्वे., (रे जीव थारे है विषय की), ११७९७६-८(+) औपदेशिक पद-४ कषायपरिहार, पुहि., गा. ४, पद्य, श्वे., (रे जीव तुं तो तज दे), ११७९७६-९(+) औपदेशिक पद-४ वर्ण, जै.क. बनारसीदास, पुहि., गा. ५, पद्य, दि., (जो निहचे मारग गहे), ११९९६३-३६ औपदेशिक पद-५ आश्रवपरिहार, पुहि., गा. ५, पद्य, श्वे., (कर्म से भमियो जगत मझार), ११७९७६-११(+) औपदेशिक पद-अभिमान परिहार, दलपतराम, पुहिं., पद्य, श्वे., (अति अपमान करि दिया बिन), ११९७४५-१९(+) औपदेशिक पद-अभिमान परिहार, नानग, पुहिं., पद. १, पद्य, वै., (गुमान ण माणलेए दिना दस), १२०१५६-४(#) औपदेशिक पद-असारसंसार, मु. कालुराम, रा., गा. ६, पद्य, श्वे., (मनवा नही वीचारी रे लोभी), १२००३०-२ औपदेशिक पद-आत्म प्रमोद, रा., गा. १०, पद्य, भूपू., (ओ जुग चलीयो जासी रे), ११९२६०-७(+) औपदेशिक पद-आत्मा, श्राव. भगवतीदास भैया, पुहिं., गा. ५, पद्य, दि., (के दारौ केसैं देंउ कर मन), ११९८८४-३२(+) औपदेशिक पद-आध्यात्मिक, कबीर, पुहि., गा. ४, पद्य, वै., (मोकु कहाँ तूं ढूंढे), ११९७४५-२०(+) औपदेशिक पद-आलसपरिहार, मा.गु., गा. ४, पद्य, श्वे., (रे जीव थारे आलस को नहीं), ११७९७६-१(+) औपदेशिक पद-कर्म की रीति, मु. आनंदघन, मा.गु., गा.४, पद्य, मूपू., (राम कहो रहिमान कहो), ११९७४५-१८(+) औपदेशिक पद-कलियुग, रा., पद. १, पद्य, श्वे., (धर्म कर्म रया नहि कलुमा), ११९७४५-४२(+) औपदेशिक पद-काया, आ. जिनलाभसूरि, मा.गु., गा. ५, पद्य, मप., (काया कारमी रे माया मदमाती), ११९२१६-२(+) औपदेशिक पद-काया जीव संबोधन, मु. अमोलक, पुहिं., गा. ९, पद्य, श्वे., (यो काया कहे करजोडि मत), ११९७४५-१७(+) औपदेशिक पद-कुटुंबमोह परिहार, मु. सुजाण, पुहि., गा. ४, पद्य, श्वे., (तु तो जासि अकेलो दिवाना), ११९७४५-१२७(+) औपदेशिक पद-गुणग्रहण, मा.गु., गा. १, पद्य, मूपू., (गुणने ग्राहग किता किता), ११७९४२-९ औपदेशिक पद-गुरुवाणी, मु. गंगा, मा.गु., गा. ४, पद्य, श्वे., (भजनाथ ए हे सुखदाईजी भ्रमण), ११६८०५-१६ औपदेशिक पद-चिंता, श्राव. भगवतीदास भैया, पुहि., गा. १, पद्य, दि., (ए मन नीच निपात निरथक काहे), ११९८८४-९२(+) औपदेशिक पद-जिनवाणी, श्राव. भगवतीदास भैया, पुहिं., गा. १५, पद्य, दि., (सीमंधर स्वामी प्रमुख), ११९८८४-९७(+) औपदेशिक पद-जिनवाणीमहिमा, पुहि., गा. ४, पद्य, श्वे., (सो रे तीरणे को संसार ले), ११७९७६-१२(+) औपदेशिक पद-जीव, रा., गा. ३, पद्य, श्वे., (जिवडाने मत मेलो रे यो मन), ११९७४५-६३(+) औपदेशिक पद-ज्ञानमहिमा, पुहि., गा. ५, पद्य, श्वे., (ज्ञान की महिमा अपरंपार), ११७९७६-१०(+) औपदेशिक पद-दयाधर्म, पहिं., गा. ५, पद्य, श्वे., (धर्म एक तिरथंकर भाखो रे), ११९७४५-९७(+) औपदेशिक पद-धनत्याग, मा.गु., गा. ४, पद्य, श्वे., (दिखो धन अनर करे हरे आतम), ११७९७६-४(+) औपदेशिक पद-धर्मकर्म, मा.गु., गा. ३, पद्य, श्वे., (ध्यांन दे सुणज्यो नरनारी), ११७९७६-२(+) औपदेशिक पद-धर्मदलाली, पुहि., गा. ५, पद्य, श्वे., (दलाली धर्म की रे महारे), ११७९७६-५(+) औपदेशिक पद-नरभव दर्लभता, पुहिं., दोहा. १०, पद्य, मूपू., (ऐसो उत्तमकुल नर पाय), ११६८०२-२ For Private and Personal Use Only Page #559 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ५४४ देशी भाषाओं की मूल कृति के अकारादि क्रम से प्रत-पेटाकृति क्रमांक सूची परिशिष्ट-२ औपदेशिक पद-नवकारमहिमा, मु. जिनहर्ष, पुहि., गा. ४, पद्य, मूपू., (सुख को करणहार दुख को), ११७२५४-२(+) औपदेशिक पद-परनारीत्याग, पुहिं., गा. ४, पद्य, श्वे., (केसे इजत रहे तुमारि पर), ११९७४५-११६(+) औपदेशिक पद-परमात्मभक्ति, मु. क्षमाकल्याण, पुहि., गा.७, पद्य, मूपू., (परमातम पद भज रे मेरे), ११६८०५-१८ औपदेशिक पद-परोपकार, मु. धर्मवर्धन, रा., गा. ४, पद्य, जै., इतर, (दुनी दाम खाटै केता क), १२०१५६-१(#) औपदेशिक पद-पुण्योपरि, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., गा. ३, पद्य, मूपू., (पारकी होड मत कर रे), ११९७४५-७६(+) औपदेशिक पद-मनुष्यभव, पुहि., गा. ४, पद्य, श्वे., (अब सतगरू जिवने समजावे नर), ११९७४५-१२८(+) औपदेशिक पद-मानवभव, पुहि., गा. ६, पद्य, श्वे., (माहा दरलभ नरभव पायो तेने), ११९७४५-२१(+) औपदेशिक पद-मषावाद, मु. लालचंद, मा.गु., गा. २, पद्य, मप., (जुठ दजो पाप मरषावाद बचन), ११९७४५-७९(+) औपदेशिक पद-रसनाविषये, मु. विनयचंद, रा., गा. ५, पद्य, श्वे., (चेतन तेरी रसना वस कर), ११९७४५-८६(+) औपदेशिक पद-रामनाम, क. भोजा भगत, रा., गा. ३, पद्य, जै., वै., (फेरोनी रामा तणी माला चोड), १२००३०-४ औपदेशिक पद-शीलगुण, पुहि.,मा.गु., गा. ४, पद्य, श्वे., (रे मन थारे हे काई), ११७९७६-६(+) औपदेशिक पद-समस्यागर्भित, मु. जिनहर्ष *, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू., (डाले बेठी सुडलि तस), ११९९२२-११ औपदेशिक पद-सातवार, मु. हीरानंद, मा.गु., गा. १०, वि. १८६७, पद्य, श्वे., (चतुरनर सुण सतगुर ग्यांना), ११७९८१ औपदेशिक बारमासा, सांइ दीन, मा.गु., गा. १३, पद्य, श्वे., वै., (कार्तिक मास कहुं करजोड़), ११७३२५-९(+) औपदेशिक बोल-गर्भावास दःख, मा.गु., गद्य, श्वे., (अरे जीव तूं कीहाथी), ११५७१७०) औपदेशिक बोल संग्रह, मा.गु., पद. ३५, गद्य, श्वे., (पहिला बाणा संसकरत), १२०१२९ औपदेशिक भजन, रामचरण, पुहि., गा. ६, पद्य, जै., वै.?, (दुनिया बोहत देखो कपटि), ११७७७९-६(+) औपदेशिक लावणी, पुहिं., गा. ११, पद्य, श्वे., (खबर नही आ जगमे पल), ११६५७१-४, ११६७४८-२($) औपदेशिक लावणी, मु. अबीरचंद, पुहि., गा. ४, पद्य, श्वे., (ए संसार असार के अंदर), ११५५१०-१(+) औपदेशिक लावणी, मु. जिनदास, पुहिं., गा. ४, वि. १७वी, पद्य, मूपू., (तुम भजो निरंजन नाम), ११९५४७-६ औपदेशिक लावणी, पुहिं., गा. १२, पद्य, मपू., (करूं अरज एक तो पें), ११७८६९-४($) औपदेशिक लावणी-कोडी, म. जीवणलाल, पहि., गा. ४, पद्य, श्वे., (कोडी जगमे अजब चीज हे भाइ), १२००६५-३(-) औपदेशिक लावणी-धर्मादिसार, पुहि., पद्य, श्वे., (सार वस्तु जीनधरम भविजन), ११६५५६-२(-१) औपदेशिक लावणी-पुण्यपाप, पुहि., गा. ४, पद्य, मपू., (दोए बात है जगमें साची पुन), ११९७४५-११४(+), ११५३४६-३(-#) औपदेशिक लावणी-भाविभाव, पुहि., गा. ४, पद्य, दि., (प्रभुने समरौ रै भाई), ११८१४७-४७(#) औपदेशिक लावणी-स्त्रीपरिहार, पुहिं., गा. ४, पद्य, श्वे., (तिरिया चाहे रंभा होवे), ११६४९१-३(#) औपदेशिक सज्झाय, मु. आणंद, मा.गु., गा. ९, पद्य, मूपू., (हारे लाला सिद्धस्वर), ११७९९६-२ औपदेशिक सज्झाय, मु. आनंदघन, मा.गु., गा. ११, पद्य, मूप., (हुं तो प्रणमु सदगुर), ११७६०२ औपदेशिक सज्झाय, मु. उदय, मा.गु., गा. ७, पद्य, मपू., (भूल्यो मन भमरा), ११६२८८(-) औपदेशिक सज्झाय, मु. उदयरत्न, मा.गु., गा. १५, पद्य, मूपू., (कंतनें कहि निजकांमनी रे), १२००२८-२(+#) औपदेशिक सज्झाय, उपा. उदयरत्न, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., (प्रभु संघाते प्रीत), ११७०२४-१,११७७२९-२(#), ११९४२९-६(5) औपदेशिक सज्झाय, उपा. उदयविजय, पुहि., गा. ६, पद्य, मपू., (आज जिम कोइक पोषै), ११६९७६-२(#) औपदेशिक सज्झाय, उपा. उदयविजय, मा.गु., गा. ७, वि. १७वी, पद्य, मप., (संसारे जीव अनंत भवें), ११६९७६-१(#$) औपदेशिक सज्झाय, पंन्या. ऋषभसागर, मा.गु., गा. ६, पद्य, मपू., (करो रे कसीदा इण विधि), १२०१३० औपदेशिक सज्झाय, मु. किशनलाल, पुहि., गा. ८, पद्य, श्वे., (मत कर गर्व दीवाना), ११७१२३-१(#) औपदेशिक सज्झाय, क. गद, पुहि., गा. ९, पद्य, मपू., (हंस गति गमनी युं देह), ११९६१२-४८(+#$) औपदेशिक सज्झाय, वा. जिनराज, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (सोवन की चिरीयां नांही छे), ११९६१२-४६(+#) औपदेशिक सज्झाय, मु. जैमल ऋषि, मा.गु., गा. १३, वि. १८६२, पद्य, स्था., (लाख पतालीस जोजन पली पली), ११५७१४-१(-) औपदेशिक सज्झाय, मु. ज्ञानसागर, मा.गु., ढा. २, पद्य, मपू., (तरुण पणइ तप कीजीअइ दोहिलो), ११८५४४-२(+#) औपदेशिक सज्झाय, मु. ज्ञानसार, मा.गु., गा. ९, पद्य, मूप., (खोट सयांने कहा कहि समझावै), ११९२१६-१०(+$) For Private and Personal Use Only Page #560 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १.१.२६ ५४५ (२) औपदेशिक सज्झाय- बालावबोध, मा.गु., गद्य, पू., (श्रद्धा सखी प्रतै सुमतिनौ), ११९२१६-१०(+$) औपदेशिक सज्झाय, मु. थूलचंद्र, मा.गु., गा. ७, पद्य, मपू., (जीरे समता धारीने संजम), ११८०७२-३(+) औपदेशिक सज्झाय, पं. धीरविमल गणि, मा.गु., गा. १३, पद्य, मूपू., (सुमति सदा सुकुलिणी), ११५७४२(#$) औपदेशिक सज्झाय, नानु चवाण, पुहिं., गा. ५, पद्य, श्वे., (कर्म नचावे जुहि नाचे उचि), ११९७४५-३०(+) औपदेशिक सज्झाय, जै.क. भूधरदास, मा.गु., पद्य, मूपू., (अब मन मेरा वे सुनि सुनि), ११८३१६-६(+) औपदेशिक सज्झाय, मु. भूधर, पुहि., गा. ९, पद्य, श्वे., (या संसार क्षारसागर), ११८३१६-७(+) औपदेशिक सज्झाय, क. भोजा भगत, पुहि., गा. ५, पद्य, जै., वै., (जीवने सांसतणी सगाई), १२००३०-३ औपदेशिक सज्झाय, मु. माल, मा.गु., गा. १८, पद्य, मप., (वाडी फूली अति भली), ११६२९६-१(+) औपदेशिक सज्झाय, मु. मेघ, पुहिं., गा. ५, पद्य, श्वे., (हे कोइ जुगमे सुरे रे एलि), ११९७४५-६१(+) औपदेशिक सज्झाय, मु. मोतीलाल ऋषि, रा., गा. ७, पद्य, श्वे., (थे धर्मण वाया कथलो), ११७९८८-१ औपदेशिक सज्झाय, मु. रतनचंद, पुहिं., गा. ५, पद्य, श्वे., (थारी फूल सी देह पलक), १२००६५-२(-) औपदेशिक सज्झाय, आ. रतनसूरि, मा.गु., गा. ७, पद्य, प., (जीव रे एह जगत जन नात), ११५४९८-२(#) औपदेशिक सज्झाय, म. राम, मा.गु., गा.७, पद्य, श्वे., (बांधो मति कर्म चीकणा), ११९७४५-२३(+) औपदेशिक सज्झाय, मु. रायचंद ऋषि, मा.गु., गा. २२, वि. १८२८, पद्य, श्वे., (जीणवर दीयोजी ए उपदेस), ११७९८०-१(-१) औपदेशिक सज्झाय, मु. रायचंद ऋषि, मा.गु., गा. २४, वि. १८०८, पद्य, स्था., (श्रीजिण दे इसडो), ११८३२९(#) औपदेशिक सज्झाय, मु. रूपचंद, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (चेतन अचिरज भारी ये मेरे), ११८३१६-२(+) औपदेशिक सज्झाय, मु. लब्धिविजय, मा.गु., गा. ६, पद्य, मपू., (कांइ नवी चेतो रे चित), ११७७६९-४(#) औपदेशिक सज्झाय, मु. लावण्यसमय, मा.गु., गा. ९, वि. १६वी, पद्य, मप., (सुधो धर्म मकिस विनय), ११८२४५-१७(+) औपदेशिक सज्झाय, वच्छमल, रा., गा. ५, पद्य, श्वे., (देसडलो विडांणो जी), ११८५८१-८ औपदेशिक सज्झाय, ग. वनीतविजय, म.,मा.गु., गा. ८, पद्य, मूपू., (प्यारें निरंजीन पास छे), ११९६१२-९०(+#) औपदेशिक सज्झाय, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., गा. ६, पद्य, मूपू., (गुण छे पुरा रे), ११८५८१-१० औपदेशिक सज्झाय, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., गा. ६, वि. १८वी, पद्य, मपू., (धोबीडा तुं धोजे मननु), ११९७४५-६७(+) औपदेशिक सज्झाय, मु. हरिसिंह, मा.ग., गा. ६, पद्य, मप., (वंदौं श्रीअर्हतदेव वंदौं), ११८३१६-३(+) औपदेशिक सज्झाय, मु. हीरालाल ऋषि, रा., गा. १९, वि. १९७९, पद्य, श्वे., (मास सवानव मानवि रे लाल), ११९७४५-१२४(+) औपदेशिक सज्झाय, मु. हीरालाल, पुहि., गा. १५, पद्य, श्वे., (वरसे पुष्करावर्त सुमेहा), ११९७४५-१०९(+) औपदेशिक सज्झाय, पुहिं., गा. ५, पद्य, श्वे., (अंधा को वेठ बताइए आरसि), ११९७४५-१०७(+) औपदेशिक सज्झाय, मा.गु., पद्य, मूपू., (अनंतकालसुं जीवडो पाम्यो), ११७८०७(#$) । औपदेशिक सज्झाय, रा., गा. १७, पद्य, मप., (ए आटोइ कामनी रे जब अठचल), ११७६६५(+) औपदेशिक सज्झाय, मा.गु., गा. ७, पद्य, मपू., (ओ भव रतन चिंतामणी), ११९७४५-९१(+) औपदेशिक सज्झाय, पुहिं., गा. ८, पद्य, श्वे., (किसि को बुरो मत चिंतो भाई), ११७७७९-२(+) औपदेशिक सज्झाय, पुहिं., गा. ६, पद्य, श्वे., (चंचल जिवडा रे गाफल मत रे), ११९७४५-९०(+) औपदेशिक सज्झाय, मा.गु., गा. ८, पद्य, मूपू., (जो हो जिन भजताखो चोघडियो), ११६३२८-२(+) औपदेशिक सज्झाय, रा., गा. १२, पद्य, मप., (तुंतो राख धर्मसं हेते रे), १२०१२४(+) औपदेशिक सज्झाय, रा., गा. २०, पद्य, श्वे., (थारा नेणा मे निद्रा जुक), ११९७४५-९३(+) औपदेशिक सज्झाय, पुहि., गा. २०, पद्य, मूपू., (दुर्लभ लाधो मनुष्य), ११९५४७-२१ औपदेशिक सज्झाय, मा.गु., गा. ६१, पद्य, मूप., (देवधरम गुर वंदि के कहु), ११९९४३ औपदेशिक सज्झाय, मा.गु., गा. २, पद्य, मूपू., (पाव देये हलने चलने कू हाथ), ११६३४१-१(+#) औपदेशिक सज्झाय, रा., गा. ७, पद्य, श्वे., (प्रभुजि माने नोम तणो आदार), ११९७४५-४०(+) औपदेशिक सज्झाय, रा., गा.८, पद्य, श्वे., (प्राणि थारा करमा सामो जोय), ११९७४५-२७(+) औपदेशिक सज्झाय, पुहिं., पद्य, श्वे., (मन अंदर नहि साफ जिया फिर), ११९७४५-५९(+) For Private and Personal Use Only Page #561 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ५४६ देशी भाषाओं की मूल कृति के अकारादि क्रम से प्रत-पेटाकृति क्रमांक सूची परिशिष्ट-२ औपदेशिक सज्झाय, पुहि., गा. ५, पद्य, श्वे., (मनवा नाय विचारि रे लोभिडा), ११९७४५-६५(+) औपदेशिक सज्झाय, मा.गु., गा. ९, पद्य, श्वे., (सजे घण सुभट ठठ फोज गढ कोट), ११६०६६ औपदेशिक सज्झाय, मा.गु., गा. ९, पद्य, श्वे., (सुणउ सुणउ चित चितलाए), ११५७१४-२(-) औपदेशिक सज्झाय, पुहिं., गा. ७, पद्य, श्वे., (हमारा दिल लग्या फकिर), ११९७४५-१३३(+) औपदेशिक सज्झाय, मा.गु., गा. ४०, पद्य, श्वे., (--), ११६७५८-१(+$) औपदेशिक सज्झाय, पुहिं., गा. ५, पद्य, श्वे., (--), ११९७४५-११५(+$) औपदेशिक सज्झाय-अनंतकाय त्यागे, मु. भावसागर, मा.गु., गा. १२, पद्य, मूपू., (अनंतकायना दोष अनंता), ११७७३७-१(#) औपदेशिक सज्झाय-कटुवचन त्याग, रा., गा. २४, पद्य, मपू., (कडवा बोल्यां अनरथ), ११७४५६-२(+#) औपदेशिक सज्झाय-कपट, मु. रायचंद ऋषि, रा., गा. ८, पद्य, श्वे., (कपटि मनखरो विसवास न किजे), ११७७७९-१(+) औपदेशिक सज्झाय-कर्म, आ. हरखसूरि, पुहिं., गा. २२, पद्य, मूपू., (कर्म संजोगे सुख दुख पाया), ११९७४५-२६(+) औपदेशिक सज्झाय-कर्मविचित्रता, पुहिं., पद्य, श्वे., (कर्म कि बात बडि भारि रे), ११९७४५-५८(+$) औपदेशिक सज्झाय-कलियुग, मु. प्रीतिविमल, पुहि., गा. १२, पद्य, मूपू., (यारो कूडो कलियुग), ११९२६०-३(+) औपदेशिक सज्झाय-कायाविषे, मा.गु., गा. ९, पद्य, मूपू., (भुलो मनभमरा काई भम्य), ११८३३१-१६ औपदेशिक सज्झाय-क्रोधपरिहार, मु. उदयरत्न, मा.गु., गा. ६, पद्य, मूपू., (कडवां फल छे क्रोधनां), ११६५२४-२(+), ११८२४५-२०(+), १२०१०८-१(+) औपदेशिक सज्झाय-क्रोधपरिहार, मु. रामचंद, पुहि., गा. ११, पद्य, मूपू., (खमा कीया सुख उपजै), ११९७४५-५४(+) औपदेशिक सज्झाय-क्रोधपरिहार, पुहिं., गा. ५, पद्य, श्वे., (क्रोध मत किजो रे प्राणी), ११९७४५-५५(+) औपदेशिक सज्झाय-क्षमा, पुहि., गा. ५, पद्य, श्वे., (खम्यावंत जोय भगवंतरो), ११९७४५-१२९(+) औपदेशिक सज्झाय-क्षमापना, मु. हीरालाल, पुहि., गा. १५, वि. १९७९, पद्य, श्वे., (खम्या करो नित भावसु खर्च), ११९७४५-५२(+) औपदेशिक सज्झाय-खटमल, मु. माणेक, मा.गु., गा.८, पद्य, मप., (मांकणनो चटको दोहिलो), ११५७५२ औपदेशिक सज्झाय-गर्भावास, मु. श्रीसार, मा.गु., गा. ७२, पद्य, मप., (उत्पति जोज्यो आपणी), ११५४७६, ११६१९१, ११७५९१,११६३२०(#$), ११७७०१-१(#), ११६९५५(६), ११७६९२(६) औपदेशिक सज्झाय-गर्भावासगर्भित, मु. क्षमाविजय, मा.गु., गा. ८, पद्य, मपू., (गरभावासमे चिंतवइ है), १२००९०-१ औपदेशिक सज्झाय-गर्भावासदःखवर्णन, जिनदास, मा.गु., गा. ९, पद्य, मूपू., (तने संसारी सुख किम), ११९२६०-१६(+) औपदेशिक सज्झाय-गुरुगुण महिमा, रा., गा. १०, पद्य, मूपू., (आजरो दीयाडो जी भलाई सूरज), ११७१२३-३(2) औपदेशिक सज्झाय-गौरक्षा, सा. जडाव, पुहिं., गा. २६, वि. १९६८, पद्य, श्वे., (सुणो मुलक माहाराजा गउ), ११९७४५-३४(+) औपदेशिक सज्झाय-घेबर, रा., गा. ८, पद्य, श्वे., (गेवर नि खाया खाया गेरना ए), ११९७४५-२५(+) । औपदेशिक सज्झाय-चौपट, आ. रत्नसागरसूरि, रा., गा. ८, पद्य, मपू., (अरे माहरा प्राणीया), ११६१०५(+) औपदेशिक सज्झाय-चौपटखेल, आ. रत्नसागरसूरि, पुहिं., गा. २३, पद्य, मूपू., (प्रथम अशुभ मल झाटिके), १२०१०९-२(+) औपदेशिक सज्झाय-जिनवाणीश्रवण, मु. हीरालाल, पुहिं., गा. ५, पद्य, श्वे., (सुरता बिन कोन सुणे बानि), ११९७४५-१०६(+) औपदेशिक सज्झाय-जीवकाय, मा.गु., पद्य, मूपू., (कायां कामनि वीनवें सुणो), १२०१४५-२(६) औपदेशिक सज्झाय-जीवदया, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., (जे जीवदया प्रतिपाल करइ), १२०१४१-२(+) औपदेशिक सज्झाय-जीवशिक्षा, मु. सिद्धविजय, मा.गु., गा. १०, पद्य, मूपू., (बापडला रे जीवडला), ११८७३६-९, ११५४१३-२() औपदेशिक सज्झाय-जीवोपदेश, मु. जेमल ऋषि, मा.गु., गा. ३५, पद्य, स्था., (जीवा तु तो भोला रे प्राणी), ११६७७३-४(+-), ११९७४५-१२२(+) औपदेशिक सज्झाय-जैनधर्म, पुहि., गा. ६, पद्य, श्वे., (सुणियो सब प्यारे जेनधर्म), ११९७४५-१३४(+) औपदेशिक सज्झाय-तमाकत्याग, मु. आणंद, मा.गु., गा. १७, पद्य, मप., (प्रीतम सेती विनवे), ११७७९५-४(#) औपदेशिक सज्झाय-दयाधर्म, मु. रायचंद ऋषि, पुहि., गा. १३, पद्य, श्वे., (तुं तो लख चोरासी), ११८०१५-१(-) For Private and Personal Use Only Page #562 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १.१.२६ ५४७ औपदेशिक सज्झाय-दयापालने, मु. हीरालाल, रा., गा. १३, वि. १९४४, पद्य, स्था., (मारी दयामाता थाने), ११९७४५-३८(+), ११५५२७-१(-१) औपदेशिक सज्झाय-दान, पुहिं., गा. २६, पद्य, श्वे., (दान एक चित देरे जिवडा), ११९७४५-१०१(+) औपदेशिक सज्झाय-दानधर्म, पुहिं., गा. ५, पद्य, श्वे., (दानहै जुगमे सुखदाइ रे), ११९७४५-९६(+) औपदेशिक सज्झाय-दानफल, मु. लावण्यसमय, मा.गु., गा. १४, वि. १६वी, पद्य, मूपू., (एक घर घोडा हाथीया जी), ११५४५८-३(+), ११७५४६-१, ११७७२९-१(#) औपदेशिक सज्झाय-दान शील तप, मा.गु., पद्य, मूपू., (सूरत इंद्री थारी बस करो), ११७७१९-२($) औपदेशिक सज्झाय-दीवा, मा.गु., ढा. २, गा. ९, पद्य, मूपू., (दस द्वारे दिवो कह्यो), ११९२६०-२१(+) औपदेशिक सज्झाय-दुर्मतिविषये, मा.गु., ढा. २, गा. १५, पद्य, मूपू., (दुरमतडी वेरण थई लीधो), ११५३४४-१(+), ११६१०३, ११६४७०-२, ११७९८७ औपदेशिक सज्झाय-नरभव, मु. चोथमल ऋषि, पुहि., गा. ६, पद्य, स्था., (पुण्ययोग मनुष्यभव पायो), ११९८४९-४ औपदेशिक सज्झाय-नरभव, मु. मोतीलाल ऋषि, मा.गु., गा. ९, वि. १९७६, पद्य, श्वे., (पूर्व पुण्योदय नरभव), ११९८४९-३ औपदेशिक सज्झाय-नवघाटी, मु. चोथमल ऋषि, रा., गा. १५, पद्य, श्वे., (नवघाटी मे भटकता रे), ११७०८७-१(+) औपदेशिक सज्झाय-नवघाटी, मु. हीरा, मा.गु., गा. ७, पद्य, श्वे., (नवघाटी उलंघन हो पायो), ११६७०४, १२००९५-४(#) औपदेशिक सज्झाय-निंदात्याग, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., गा.५, वि. १७वी, पद्य, मपू., (निंदा म करजो कोईनी), ११७६७३-५(+) औपदेशिक सज्झाय-निद्रा विषे, मु. चोथमल, रा., गा. ७, पद्य, श्वे., (थे सुणजो श्रावक), ११७९८८-२ औपदेशिक सज्झाय-पंचमआरा, रा., गा. ९, पद्य, श्वे., (पुरो सुख नहि यो पांचमे), ११९७४५-४१(+) औपदेशिक सज्झाय-परदेशीजीव, मु. राजसमुद्र, पुहि., गा. ७, पद्य, मप., (एक काया दुजी कामनी), ११९८२४-५(+) औपदेशिक सज्झाय-परनारी परिहार, मु. जिनहर्ष, मा.गु., गा. ११, पद्य, मूप., (सीख सुणो रे पीया), ११९७०१,११५७४३-२(#$), ११५७४३-३(#S) औपदेशिक सज्झाय-परनारी परिहार, मु. दयाचंद, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (जीवा वारुं छु मोरा), ११९४३२-३(+-) औपदेशिक सज्झाय-परनारी परिहार, मु. शांतिविजय, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (जीवा वारु छु मांहरा वालहा), ११५६३८-२ औपदेशिक सज्झाय-पुण्य, मु. हीरालाल, पुहिं., गा. ६, पद्य, श्वे., (पुन विना नहि लागे नहि सत), ११९७४५-११०(+) औपदेशिक सज्झाय-बारमासा, मु. रामकृष्ण, पुहिं., गा. १३, वि. १८७८, पद्य, श्वे., (ए संसार असार चातुरा तूं), ११८५०९-४(+) औपदेशिक सज्झाय-बुढापा, मु. मान कवि, मा.गु., गा. १६, पद्य, मपू., (सुगण बुढापो आवीयो), १२०१४०-१(#) औपदेशिक सज्झाय-ब्रह्माब्रह्मनिरणे, श्राव. भगवतीदास भैया, पुहिं., गा. १४, पद्य, दि., (असिआउसा पंचपद वंदौ शीस), ११९८८४-६२(+) औपदेशिक सज्झाय-मनभमरा, मु. मोहन, मा.गु., गा. ९, पद्य, पू., (भूलो मन भमरा काई भमे भमीय), ११७७९५-२(#) औपदेशिक सज्झाय-मनवशीकरण, मु. आनंदघन, पुहि., गा. ५, वि. १८वी, पद्य, मूपू., (मनाजी तुं तो जिन), ११९६१२-५५(+#), ११९७४५-६८(+$) औपदेशिक सज्झाय-मनवशीकरण, मु. हीरालाल, रा., गा. ५, पद्य, श्वे., (मन नहि माने मारि केण हो), ११९७४५-६४(+) औपदेशिक सज्झाय-मनुष्यभव दुर्लभता, मु. हीरालाल ऋषि, मा.गु., गा. ९, पद्य, श्वे., (मती हारो रे जीवा मती), ११९७४५-९५(+$) औपदेशिक सज्झाय-मानत्याग, ग. तत्त्वविजय, मा.गु., गा. १४, पद्य, मूपू., (मान न कीजे कोई मानवी), ११५४५८-४(+) औपदेशिक सज्झाय-मानपरिहार, मु. उदयरत्न, मा.गु., गा. ५, पद्य, मप., (रे जीव मान न कीजीए), ११८२४५-२१(+), १२०१०८-२(+) औपदेशिक सज्झाय-माया परिहार, मु. उदयरत्न, मा.ग., गा. ६, पद्य, मप., (समकितनं मुल जाणीये), ११८२४५-२२(+$), १२०१०८-३(+), ११७७९५-५(#) औपदेशिक सज्झाय-माया परिहार, महमद, मा.गु., गा. ११, पद्य, इतर, मु., (भूलो ज्ञान भमरा कांई), ११७५४९-४, ११८७३६-२ For Private and Personal Use Only Page #563 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org ५४८ देशी भाषाओं की मूल कृति के अकारादि क्रम से प्रत-पेटाकृति क्रमांक सूची परिशिष्ट-२ औपदेशिक सज्झाय-लीखहत्यानिषेध, मु. शांतिकुशल, मा.गु., गा. १२, वि. १६७५, पद्य, मूपू., (सरसति मति सुमति द्यो), ११६०४१ औपदेशिक सज्झाय-लोभ परिहार, मु. उदयरत्न कवि, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., (तमे लक्षण जो जो लोभ), १२०१०८-४(+) औपदेशिक सज्झाव-लोभपरिहार, ग. पद्मसुंदर, मा.गु., गा. ३६, पद्य, म्पू.. (भगवंत भाखड़ भक्षिण), ११६३७९ (+5) औपदेशिक सज्झाय- लोभोपरि, पंडित भावसागर, मा.गु. गा. ८, पद्य, म्पू, (लोभ न करीये प्राणीवा), ११८२४५-१८(+) पदेशिक सज्झाय वणझारा, पंन्या पद्मविजय, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू (नरभव नगर सोहामणु), ११६००८-१(०) औपदेशिक सज्झाय-वनमाली, मु. पद्मतिलक, मा.गु., गा. १०, पद्य, मूपू., (काया रे वाडी कारमी), ११५५५५-१० (+#$), ११८७३६-४ "" Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir औपदेशिक सज्झाव- वाणिया, मु. विशुद्धविमल, मा.गु., गा. ९, पद्य, मृपू., (वाणीओ वणज करे छे रे), ११५६६५-४१ औपदेशिक सज्झाय-विषय परिहार, मु. सिद्धविजय, मा.गु., गा. १३, पद्य, मूपू., (रे जीव विषय न राचीइं), ११७०३८-१ औपदेशिक सज्झाय-वैराग्य, मु. दामोदर, पुहिं., गा. ९, पद्य, मूपू., (मारग वहरे उतावलो उड झीणी), ११६६६१-२ औपदेशिक सज्झाय वैराग्य, मा.गु., गा. ५, पद्य, म्पू., (ते तरिया भाई ते तरिया जिन), ११६४७९-२ औपदेशिक सज्झाय-वैराग्य, मा.गु., गा. १२, पद्य, मूपू., (प्राणीरा रे अब तूं सुनो), ११६४४५-१ औपदेशिक सज्झा व्याख्यानश्रवण, मु. चोवमल, रा. गा. ८, पद्य, श्वे. (बाया सूत्तर सुणो रे सूतर), १२००३३-२ औपदेशिक सज्झाय-शील विषये, मु. नयशेखर, मा.गु., ढा. ४, गा. ५५, पद्य, मूपू., ( नेमि जिणंद नमी करी समरी), ११६७७६ (+) औपदेशिक सज्झाय-शीलविषये स्त्री शिखामण, मु. उदयकीर्ति, मा.गु., गा. १०, पद्य, मूपू., (एक अनोपम शिखामण कहु समजी), ११७०२४-२ औपदेशिक सज्झाव- शीलविषये खी शिखामण, मु. उदयरत्न, मा.गु., गा. १०, पद्य, मूपू. (एक अनोपम शिखामण कही), ११५६६२+३) औपदेशिक सज्झाय-शुद्धभाव, मु. हीरालाल, पुहिं., पद्य, श्वे. (रे जीवा भाव सुध तुम राखजो), ११९७४५-६० (+) " " औपदेशिक सज्झाय-श्रावकाचार, मु. आणंदविमलसूरिशिष्य, मा.गु., गा. २३, पद्य, मूपू. (मन शुद्धे सुनजो नरनार), ११९८२४-२ (+) औपदेशिक सज्झाय षड्दर्शनप्रबोध, मु. रूपचंद, पुहिं. गा. ९, पद्य, मूपू (ओरन से रंग न्यारा), ११६३३६-२ औपदेशिक सज्झाय-सती, मु. हीरालाल, रा., गा. ८, पद्य, श्वे., (सतियाने नहि लागे कलंक), ११९७४५-११८(+) औपदेशिक सज्झाय-समकित, मु. रतनचंद, मा.गु., गा. १३, वि. १८६९, पद्य, श्वे. (निरमल सुधा समकित जिण पाइ), ११९९३१-२ (+) औपदेशिक सज्झाय समकित मु. हीरालाल, पुहि गा. ११. वि. १९७९, पद्य, श्वे. (सुरतां गुण सामलो रे लाल), " " " " ११९७४५-१०८(+) औपदेशिक सज्झाय-समता, मु. हीरालाल, पुहिं., गा. १२, वि. १९७९, पद्य, श्वे. (समतारस धारि हो गुणधारि), ११९७४५-५३(+) औपदेशिक सज्झाव- सातव्यसन, रा. गा. १२, पद्य, से., (कां रे भाइ रूडो थे सु), ११९७४५- ९४(+) औपदेशिक सज्झाय-साधुसाध्वी, रा., पद्य, श्वे., (चतुर हुवौ जे नरनारी साध), ११७३१५($) औपदेशिक सज्झाय सुखदुखविषये, मु. दाम, मा.गु., गा. ९, पच, म्पू, सुखदुख सरज्या पामिइ), ११९०१८ औपदेशिक सज्झाय स्वार्थी जगत, पुहिं., गा. ७, पद्य, खे, (अजब तमासा सुपना है), ११९७४५-७५(+) औपदेशिक सज्झाय - हितशिक्षा, मु. सहजसुंदर, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (गुण संपूर्ण एक अरिहं), ११५८१६-२ औपदेशिक सवैया, मु. केसवदास, पुहिं., सवै. १, पद्य, श्वे., (भ्रम ही कुं भ्रम उपनो), ११७२५४-१ (+) औपदेशिक सवैया, क. गद, पुहि., गां. १, पद्य, वे. (दस बाला तनवीस विचक्षण), ११६७५७ ९(+) औपदेशिक सवैया, मु. धर्मसी, पुहिं., गा. १, पद्य, मूपू., (आठ फूल खंड के अखंड से), ११६७५७-१० (+) औपदेशिक सवैया, जै. क. बनारसीदास, पुहिं., सवै ३३, पद्य, ओ., (--), ११९५९५ (+8) " औपदेशिक सवैया, श्राव. भगवतीदास भैया, पुहिं., गा. ८, पद्य, दि., (तेरोई सुभाव विन मूरति), ११९८८४-९१ (+) औपदेशिक सवैया, मु. मल्ल, पुहिं. गा. १, पद्य, खे, (सीतकु तूलत तायकु चंदन), ११६७५७-११(०) औपदेशिक सवैया, मु, मान कवि, मा.गु., सबै १, पद्य, श्वे. (प्रीत करी की वैर विसायो), १९९४३२-५ (+) " For Private and Personal Use Only Page #564 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १.१.२६ औपदेशिक सवैया, मु. मान, पुहि., गा. १, पद्य, मूपू., (मेरो ही मेरो करे नर मूरख), ११६७५७-५(+) । औपदेशिक सवैया, मु. राम, पुहि., गा. ३, पद्य, मूपू., (राण आदारी बीजली चामके कदी), ११५३४६-२(-#) औपदेशिक सवैया, मु. लाल, पुहि., गा. १, पद्य, श्वे., (काम न आवत काज न आवत), ११६४८१-१ औपदेशिक सवैया, विदुर, पुहि., गा. १, पद्य, वै., इतर, (मात कह्यां नही मान जो मेल),११६७५७-६(+) औपदेशिक सवैया, मु. सगति, पुहि., गा. १, पद्य, श्वे., (जागत चोर कहा मुश जाय), ११६७५७-२(+) औपदेशिक सवैया, सीत, पुहिं., गा. १, पद्य, वै., इतर, (राम वदेइ बोलमबोल हमारे तो), ११६७५७-१३(+) औपदेशिक सवैया, श्राव. सुंदरलाल कवि, पुहिं., सवै. ३, पद्य, श्वे., (धिग काजल घाल निहाल चली), ११५७४१-१ औपदेशिक सवैया, मु. हीरानंद, पुहिं., गा. १, पद्य, श्वे., (साधन कु जोग जब निकशे नगर), ११६७५७-१४(+) औपदेशिक सवैया, मु. हीरालाल, पुहि., सवै. २, पद्य, श्वे., (भाव समुद्र कि नाव हे भाव), ११९७४५-७३(+) औपदेशिक सवैया, पुहिं., गा. १, पद्य, मूपू., (अनधन पावक पवन लवण जल), ११६७५७-७(+) औपदेशिक सवैया, मा.गु., सवै. १, पद्य, श्वे., (आपणा ख्याल मे खेलनावहै), ११६४८१-७ औपदेशिक सवैया, पुहिं., गा. १, पद्य, मप., (एक की नारी सहेलीस खेलत), ११६७५७-३(+) औपदेशिक सवैया, पुहि., गा. १, पद्य, मूपू., (जा दिन ब्रह्मगि वारण कि), ११६७५७-४(+) औपदेशिक सवैया, पुहिं., गा. १, पद्य, मपू., (नारी विना घर मै मन भूतसो), ११६७५७-१(+) औपदेशिक सवैया, पुहिं., गा. १, पद्य, मप., (प्रीत की रीतक ज्य), ११६७५७-८(+) औपदेशिक सवैया, मा.गु., गा.८, पद्य, मप., (फूल सुगंध ले० दीपक वले आप), ११५३४६-१(-2) औपदेशिक सवैया, पुहिं., सवै. १, पद्य, श्वे., (बालपणे बाल रह्यो पाछै), ११९५४७-१४ औपदेशिक सवैया, पुहिं., गा. २, पद्य, दि., (भुजतो कर्म फल कु नैयनरा), ११८१४७-३९(#) औपदेशिक सवैया, पुहिं., गा. ४, पद्य, श्वे., (मांडलगढे आयकर मालपरै), ११९५४७-१७ औपदेशिक सवैया, पुहिं., गा. १, पद्य, वै., इतर, (रामचंद रीझीये दीध हण मत), ११६७५७-१२(+) औपदेशिक सवैया-ऐश्वर्य, मु. छीतर, मा.गु., सवै. १, पद्य, श्वे., (कोठार भंडार दरवार सुदीपत), ११६४८१-४ औपदेशिक सवैया-धर्म बिना धन, क. गद, मा.गु., सवै. १, पद्य, श्वे., (अगर सोलै हजार सो नायक), ११६४८१-५ औपदेशिक सवैया-पाखंड, मा.गु., सवै. ३, पद्य, श्वे., (नख चख कटे देखे सीस तारी), ११६४८१-९ औपदेशिक सवैया-पुण्य, मु. छीतर, मा.गु., सवै. १, पद्य, श्वे., (हाथि चेर हुकम चलावत), ११६४८१-२ औपदेशिक सवैया-पेट, श्राव. भगवतीदास भैया, पुहि., गा. १, पद्य, दि., (पेट ही कै काज महाराज), ११९८८४-९५(+) औपदेशिक सवैया-भाग्य, मा.गु., सवै. १, पद्य, श्वे., (एक सिंणगार करे नित नागर), ११६४८१-३ औपदेशिक सवैया-संगति, मा.गु., सवै. १, पद्य, श्वे., (पूत कपूत कुलछण नार लडाक), ११६४८१-६ औपदेशिक सवैया संग्रह-जैनधर्म, पुहि., सवै. २४, पद्य, श्वे., (कहुं नग लाल कहुं), ११९७४५-३१(+$) औपदेशिक सवैया-साघ, श्राव. भगवतीदास भैया, पुहि., गा. १, पद्य, दि., (मन वचन काय योग तीनउ), ११९८८४-९४(+) औपदेशिक सवैया-साहस, पुहिं., सवै. १, पद्य, श्वे., (हा जान में मोत बुरी है), ११६४८१-८ । औपदेशिक साखी संग्रह-दृष्टांतगर्भित, मा.गु., गा. १८, पद्य, मूपू., (जेशी जो की उदय है ते सोवे), ११५७००-१(#) औपदेशिक हरियाली, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., गा. १४, पद्य, मूपू., (कहेयो रे पंडित ते), ११६९४८ (२) औपदेशिक हरियाली-टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (दिसे जाणिइं ते चेतना), ११६९४८ औपदेशिक हरीयाली, पं. वीरविजय, मा.गु., गा. ९, पद्य, मपू., (चेतन चेतो चतुर चबोला), ११७८९५, ११७४५१-३($) (२) औपदेशिक हरीयाली-टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (हे चेतन चतुर नाच), ११७८९५($) (२) औपदेशिक हरीयाली-विवेचन, गु., गद्य, मूपू., (हे चेतन चतुर वाक्ये), ११७४५१-३($) औपदेशिक होली पद, पुहि., गा. ५, पद्य, मप., (होरी खेलो रे भविक), ११६५७१-३ औषध संग्रह, मा.गु., गद्य, श्वे., इतर, (घोडाने चर्म पड्या),११५३८५(+), ११८९९५-२(+), १२००२३-३ औषध संग्रह , मा.गु., गद्य, वै., इतर, (लूंग टा१ जाईफल टा२), ११९२००-२(+#), ११९२१५-३४(+), १२०१०५-३(+#), ११५३०६-२,११६३६६-२,११७६४५-१, १२००७५-२ For Private and Personal Use Only Page #565 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ५५० देशी भाषाओं की मूल कृति के अकारादि क्रम से प्रत-पेटाकृति क्रमांक सूची परिशिष्ट-२ कंडरीकपुंडरीक कथा, मा.गु., गद्य, श्वे., (जंबु पुर्व म्हा सितानंदि), ११९७४५-८८(+) कंसकृष्ण विवरण लावणी, मु. विनयचंद ऋषि, पुहि., ढा. २७, गा. ४३, पद्य, श्वे., (गाफल मत रहे रे मेरी), ११५५३८(+#), १२०००९-१(+), ११९५४७-४ कक्काबत्रीसी, . जिनवर्द्धन, मा.गु., गा. ३३, पद्य, मप., (कका करमनी वात करी), ११५४७१-१(#) कक्काबत्रीसी, म. तिलोक ऋषि, पहिं., पद्य, श्वे., (कका करणी अजब गती हे), ११९७४५-२८(+8) कनकावती रास-शीलविषये, पं. कांतिविमल, मा.गु., ढा. ४१, वि. १७६७, पद्य, मप., (सकल सुरासुर सामनी), ११८६०३(+) कमलतप स्तवन, मु. परमानंद, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (सरस सुधारस बरष तीरे श्री), ११७६१५-१ कमलावतीरानी इक्षकारराजा भृगुपुरोहित सज्झाय, मा.गु., गा. ३४, पद्य, मूपू., (महिला में बैठी राणी), ११५८१५(६) कयवन्ना चौपाई, मु. जयतसी, मा.गु., ढा. ३१, गा. ५५५, वि. १७२१, पद्य, पू., (स्वस्ति श्रीसुखसंपदादायक), ११९१९०-३(+), ११८२९३ करकंडमनि सज्झाय, उपा. समयसंदर गणि, मा.ग., गा. ६, पद्य, मप., (चंपानगरी अतिभली ह), ११५४७९-३, ११५४९९, ११८७३६-७, ११६४९१-१(#) करणसित्तरी सज्झाय, मा.गु., गा. १८, पद्य, मूपू., (प्रसर सनीमग्न ध्रष्टी), ११९६१०-२ कर्ताअकर्तापच्चीसी, श्राव. भगवतीदास भैया, पुहि., गा. २५, वि. १७५१, पद्य, दि., (कर्मन को कर्ता नहीं), ११९८८४-८४(+) कर्मगति सज्झाय, मु. नवल, पुहि., गा. ५, पद्य, भूपू., (हे माय वांकडी करमगति जाय), ११६३५२-२ कर्मग्रंथ के बोल, मा.गु., गद्य, मपू., (कहो स्वामी काण्णो), ११७६१८(-) कर्मचेतन संग्रामभाव रास, मा.गु., ढा. १७, पद्य, मूपू., (--), ११९०९९(+$) कर्मछत्तीसी, जै.क. बनारसीदास, पुहि., गा. ३७, वि. १७वी, पद्य, मूपू., (परमनिरंजन परमगुरु), ११९९६३-१२ कर्मपच्चीसी, मु. हर्ष ऋषि, मा.गु., गा. २६, पद्य, मपू., (देव दानव तिर्थंकर), ११९५४७-२३ कर्मप्रकृति विधान, श्राव. बनारसीदास, पुहि., गा. १७५, वि. १७००, पद्य, दि., (परमशंकर परमभगवान परम), ११९९६३-८ कर्मप्रकृति सज्झाय, मु. मणिविजय, मा.गु., सज्झा. २, पद्य, मूप., (श्रीशंखेश्वर पूर धणी), ११६४४४ कर्मबंधउदयसत्ता थोकडा, मा.गु., गद्य, मूपू., (आठकर्मनी १४८ प्रकृति), ११७९७८(-3) कर्मबंध भांगा, मा.गु., गद्य, मूपू., (--), ११५२९७($) कर्मविपाकफल सज्झाय, मु. ऋद्धिहर्ष, मा.गु., गा. १८, पद्य, मूपू., (देवदाणव तीर्थंकर), ११९२६०-१(+), १२०१४४-२ कलावतीसती चौढालियो, मु. रंग, मा.गु., ढा. ४, गा. ६२, वि. १८३५, पद्य, स्था., (मालवदेश मनोहरु तिहां), ११९७४५-४९(+) कलावतीसती चौपाई, मु. रायचंद ऋषि, मा.गु., ढा. १६, वि. १८३०, पद्य, श्वे., (जुगमंद्र जिन जगतगुरु), ११८३३८-१($) कलावतीसती सज्झाय, मु. जेमल ऋषि, मा.गु., गा. २९, पद्य, मूपू., (--), ११५५९३-१(#$) कलियुग पद, रंगलाल, पुहिं., गा. ९, पद्य, श्वे.?, (हाकांधिका कुलजग आयो), ११९७४५-४५(+) कलियुग सज्झाय, मु. दयासागर, मा.गु., गा.८, पद्य, मपू., (सुण मुज प्राणी सीख), ११७६७८-१ कलियुग सज्झाय, मु. रामचंद, रा., गा. १०, पद्य, मूप., (हलाहल कलजुग चल आयो), ११९७४५-४६(+) कलियुग सज्झाय, पुहि., गा. ७, पद्य, श्वे., (हलाहल कलियुग मत जाणो रे), ११९७४५-४७(+) कागद संवाद, मा.गु., गा. ६, पद्य, इतर, (कागद कहे हु खरो सखेत), ११९१४९-२(+) कान्हडकठियारा रास-शीयलविषये, मु. मानसागर, मा.गु., ढा. ९, वि. १७४६, पद्य, मूपू., (पारसनाथ प्रणमुं सदा), ११६७२१(#) कामदेवश्रावक पंचढालियो, श्राव. देवजी दोशी, मा.गु., ढा. ५, गा. ८५, वि. १९२२, पद्य, श्वे., (श्रीशांतिनाथ समरतां मन), ११७०२६(+) कायस्थिति २२ द्वार वर्णन, मा.गु., गद्य, मूपू., (जीव १ गई २ इंदिय ३), ११५३९१(+-$) कायस्थिति बोल, मा.गु., गद्य, मूपू., (जीव गइ इंद्रिय काय), ११५३९८(-$) कायावाडी सज्झाय, मु. पद्मतिलक, मा.गु., गा. ९, पद्य, मूप., (कायावाडी कारमि सिचंत), ११५६९८-३($) कारक सवैया, मा.गु., गद्य, इतर, (प्रथम सुविनीत वदे पुन), १२०१४८-३ कालअष्टक, श्राव. भगवतीदास भैया, पुहिं., गा. ८, पद्य, दि., (तिहुंपुर के पुरधीत सव), ११९८८४-५२(+) For Private and Personal Use Only Page #566 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १.१.२६ ५५१ कालकाचार्य कथा, आ. जिनलाभसूरि-शिष्य, मा.गु., गद्य, मूपू., (वंदारुहरि मंदारुमंचरी), ११८९९४(+) कालिकाचार्य कथा, मा.गु., गद्य, मपू., (कालिकाचार्य तीन हुआ), ११७२९३($) कालिकामाता स्तोत्र, गिरधारी, मा.ग., गा.८, पद्य, वै., (करी सेवना ताहरी मात), ११६२७९-३(+) कुंथुजिन स्तवन, पंन्या. पद्मविजय, मा.गु., गा. ६, वि. १९वी, पद्य, मप., (रात दिवस नित सांभरो रे), ११७३६०-१(+), ११९८२४-४१(+) कुंवरचंद्र सज्झाय, मा.गु., गा. १७, पद्य, मपू., (तेणे काले तेणे समे हस्थी), ११७६७१-१ कुगुरुपच्चीसी, मु. तेजपाल, मा.गु., गा. ३२, पद्य, मूपू., (जिनवर प्रणमी सदा), ११९२६०-६(+), ११६३१७, ११६४९६-१ कुगुरुपच्चीसी, मु. रत्नविजय, मा.गु., गा. २५, पद्य, मूपू., (सद्गुरु केरि परिक्षा), ११९२६०-१५(+) कुगुरु सज्झाय, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., गा. २८, पद्य, मूपू., (शुद्ध संवेगी कीरिया), ११७८७५ कुगृहस्थ परिहार सज्झाय-साधु, पुहिं., गा. १०, पद्य, श्वे., (गीसती के घर साधने), ११८४४३-२ कुमतिउत्थापन चर्चा, पुहि., गद्य, मपू., (मनोमती झूठी प्ररुपणा), ११९५३९(#s) कुमतिकुदेववर्णन पद, पुहि., गा. २, पद्य, दि., (जिनप्रतिमा जिनसारखी), ११९९६३-५२ कुमारपाल रास, क. ऋषभदास संघवी, मा.गु., गा. ४९४९, ग्रं. ५८००, वि. १६७०, पद्य, मूपू., (सकल सिद्ध सुपरि नमुं), ११८३९०(s), ११९६५१(६) कुमारपाल रास, मु. जिनहर्ष, मा.गु., ढा. १२९, गा. २८७६, ग्रं. ४१६०, वि. १७४२, पद्य, मूपू., (श्रीसरसति भगवति नमुं), ११७७५३() कुरगडुमुनि रास, मु. रायचंद ऋषि, मा.गु., ढा. ६, वि. १८४२, पद्य, श्वे., (शांतिनाथनै समरीयै), ११८९५० कृतकर्मराजर्षि चौपाई-तपोधिकार, उपा. कुशलधीर, मा.गु., ढा. २९, गा. ६३०, ग्रं. ९१७, वि. १७२८, पद्य, मपू., (परम पुरुष परमेष्टि), ११८३४०(+#s) कृष्ण ढाल, मा.गु., ढा. १८, पद्य, मूपू., (नेमनाथ समसाँ), ११६८१३(#5), ११८१७२($) कृष्णभक्ति गीत, मा.गु., श्लो. १४, पद्य, वै., (स्वस्ति श्री प्रभु प्रणम), ११५८२९-२ कृष्णमहाराजा सज्झाय, मु. ऋषभ, मा.गु., गा. १०, पद्य, मपू., (नगरी द्वारिकामा नेम), ११७७९६(#) कृष्णरुक्मणी वेलि, रा. पृथ्वीराज राठोड , मा.गु., गा. ३०४, वि. १६३७, पद्य, वै., इतर, (परमेसर प्रणमि), ११८७८६(5) (२) कृष्णरुक्मणी वेलि-टबार्थ, मा.गु., गद्य, श्वे., वै., इतर, (ग्रंथनी आदइ करी मंगल), ११८७८६($) कृष्णरुक्मिणी रास, रा., पद्य, जै., वै.?, (--), ११७३१२($) कृष्ण वासुदेव सज्झाय, मा.गु., गा. ४१, पद्य, मूपू., (रे नान्या राश माँड्यो रे), ११७९७४ कृष्णविरह गीत, मा.गु., पद्य, वै., (आसाढे आणंदकारि रे), ११७४४९-४(+$) केशीगणधर प्रदेशीराजा चौपाई, मु. ज्ञानचंद, मा.गु., ढा. ४१, गा. ५९४, वि. १७वी, पद्य, मप., (प्रणमी श्रीअरिहंत), ११८५५८(#$) केशीगौतमगणधर गहुंली, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., (सावथी उद्यानमा रे), ११६०३९-२ केशीगौतमगणधर संवाद सज्झाय, उपा. उदयविजय, मा.गु., गा.८, पद्य, मूपू., (सीस जिणेसरपासना केशी), ११७८६१-१ केशीगौतमगणधर सज्झाय, मु. रूपविजय, मा.गु., गा. १६, पद्य, मूपू., (ए दोय गणधर प्रणमीये), ११८२१२-३(+-#) कोकसार, आ. नर्बुदाचार्य, मा.गु., प्रका. १०, गा. १४९२, वि. १६५६, पद्य, भूपू., इतर, (मातंगी मति आपीये), ११८२६३(+$) (२) कोकसार-बालावबोध, मा.ग., गद्य, मपू., इतर, (--), ११९३५३(+$) कोणिक चौपाई, मा.गु., ढा. १७, पद्य, श्वे., (लोभ म कर रे जीवडा), ११९७९७(+) क्रियाकोष, क. दौलतराम पंडित, पुहिं., गा. २११७, वि. १७९५, पद्य, दि., (प्रणमि जिनंद मुनिंद), ११९४१७ क्रोधपरिहार सज्झाय, पुहि., गा. ४, पद्य, श्वे., (क्रोध मत करीये० क्रोध), ११९७४५-५६(+) क्षमाछत्रीसी, उपा. समयसुंदर गणि, मा.ग., गा. ३६, पद्य, मप., (आदर जीव क्षमागुण), ११५८५२-१(+#$), ११६१०८(+#), १२०११६, ११७७०१-२(#S), ११५६२३(६), ११८५५०-३($) क्षेत्रपाल पूजा, मु. सोभाचंद, पुहि., गा. १३, पद्य, म्पू., (जैन को उद्योत भैरु), १२००९०-४ For Private and Personal Use Only Page #567 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ५५२ देशी भाषाओं की मूल कृति के अकारादि क्रम से प्रत-पेटाकृति क्रमांक सूची परिशिष्ट-२ खंधकमुनि चौढालिया, मु. जैमल ऋषि, रा., ढा. ४, वि. १८११, पद्य, स्था., (नमुं वीर सासनधणीजी), ११९०९४-३(+), ११९१९०-४(+) खंधकमुनि चौढालिया, रा., ढा. ४, वि. १८११, पद्य, श्वे., (नमूं वीर शासनधणी जी), ११९१९८-१ खंधकमुनि चौढालिया, मा.गु., ढा. ४, गा. २४, पद्य, मूपू., (सावत्थी नगरी सोहामणी), ११९७६०-१(६) खंधकमुनि सज्झाय, मु. नारायण, मा.गु., ढा. ४, वि. १७३२, पद्य, श्वे., (तिर्थंकर चरणे नमि), ११६८७४(+) खंधकमुनि सज्झाय, मु. मोहनविजय, मा.गु., ढा. २, गा. २०, पद्य, मूपू., (नमो नमो खंधक महामुनि), ११९२६०-३३(+) खरतरमतनामोत्पत्ति वर्णन, मा.गु., गद्य, मपू., (संवत् ११२२ नी साल माहि), ११७६१६($) खामणा कुलक, मु. अमीकुंवर, मा.गु., गा.१४, पद्य, मपू., (अरिहंतजीने खामणां), ११७००९-१ खेताणुवई विचार, मा.गु., गद्य, मूपू., (क्षेत्र आश्री २० बोल), ११७९८२(-2) गजसिंघ चरित्र, मु. आसकर्ण ऋषि, रा., ढा. ४६, वि. १८५२, पद्य, श्वे., (अरिहंत अतिसैवंत घणु), ११८४५६-१(+$), ११८४७३(+$) गजसुकुमालमुनि चौपाई, मा.गु., ढा. १८, पद्य, मूपू., (भदलपुर नामे नगर तिहा), ११६६९६(+#$) गजसुकुमालमुनि रास, मु. कानजी, मा.गु., ढा. १४, वि. १७०३, पद्य, श्वे., (भदलपुर पधारीया बावीस), ११८७५६(+) गजसुकुमालमुनि सज्झाय, मु. चोथमल ऋषि, मा.गु., गा. २३, वि. १८५८, पद्य, श्वे., (गजसुखमाल देवकीनंदन), ११५४८१(+), ११५३१६, ११९५०५ गजसुकुमालमुनि सज्झाय, मु. रतनचंद, मा.गु., गा. ११, वि. १९वी, पद्य, श्वे., (देवकीनंद शिरोमणि), ११९९३१-३७(+) गजसुकुमालमुनि सज्झाय, मु. रामकृष्ण ऋषि, मा.गु., गा. ३४, वि. १८६४, पद्य, श्वे., (सोरठ देश में दुआरामत), ११८२४२-१ गजसुकुमालमुनि सज्झाय, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., गा. ६, पद्य, मूपू., (नयरी द्वारामती जाणिय), ११८२४५-१(+) गजसुकुमालमुनि सज्झाय, मा.गु., गा. ४१, पद्य, मूप., (वाणी श्रीजिनराज तणी काने), ११९२६०-२९(+) गजसुकुमालमुनि सज्झाय, मा.गु., गा. १५, पद्य, स्था., (वाणी श्रीजिनराज तणी काने), ११९९३१-३९(+) गाथापति सज्झाय, मा.गु., गा. ११, पद्य, श्वे., (वसंतपुर नामा नगर), १२००२९-१ गिरनारतीर्थ स्तवन, ग. वीरविजय, मा.गु., गा. ९, पद्य, मपू., (सहसावन जए वसीये चालो), ११५३५१-१ गिरनारतीर्थोद्धार रास, पंडित. नयसुंदर, मा.गु., ढा. १३, गा. १८४, पद्य, मूपू., (सयल वासव सयल वासव), ११९३१४(+$) गुढा पद, मा.गु., गा. १, पद्य, जै., इतर?, (हाथि लदे घोडा लडे लडे उंट), ११५३२९-५ गुणठाणा सज्झाय, मु. खांतिविमल, मा.गु., गा. ५, पद्य, मपू., (वीरजिनेश्वरवा दिने कहे), ११६१३९-३(+) गुणमंजरी चौपाई, श्राव. भगवतीदास भैया, पुहि., गा. ७४, वि. १७४०, पद्य, दि., (परम पंच परमेष्ठिको), ११९८८४-४६(+) गुणरत्नाकर छंद, मु. सहजसुंदर, मा.गु., अ. ४, गा. ४२५, वि. १५७२, पद्य, मूपू., (शशिकरनिकर समुज्वल), ११८९५४(+$) गुणावलीचंद्रराजा पत्र, क. दीपविजय, मा.गु., गा. ३७, पद्य, मूपू., (स्वस्ति श्री विमलापु), ११६४९४-२ गुमानचंदगुरुगण सज्झाय, मु. रतनचंद, मा.गु., ढा. २, गा. ३०, पद्य, श्वे., (गुणवंत गुरना गुण काया), ११९९३१-४१(+) गुमानचंदगुरुगुण सज्झाय, मु. रतनचंद, मा.गु., गा. १३, पद्य, श्वे., (जिन आज्ञा अनुस्वारथी उजल), ११९९३१-४३(+) गुमानचंदगुरुगण सज्झाय, मु. रतनचंद, मा.गु., गा. ११, पद्य, श्वे., (विने मूल जिनधर्म छे भर्म), ११९९३१-४२(+) गुरु आरती, मु. परमानंद, मा.गु., गा. १०, वि. १८८१, पद्य, मूपू., (--), ११५२४७-१(६) । गुरुगुण गहुंली, मु. अमीकुंअर, मा.गु., गा. ८, पद्य, मूपू., (जी रे मारे देशना दो), ११९१५०-२(-2) गुरुगुण गहुंली, मु. प्रेम, मा.गु., गा. १३, पद्य, मूपू., (चालो रे सखि जिनवाणी), ११७८५६ गुरुगुण गहुँली, मु. भावविमल, मा.गु., गा. ५, पद्य, श्वे., (जी रे म्हारे गुरु गुरुआ), ११७६८२-१ गुरुगुण गहंली, जै.क. भूधर, पुहि., गा. १३, पद्य, दि.?, (ते गुरु मेरे उर वसे), ११८१४७-११(#) गुरुगुण गहुँली, पुहिं., पद्य, श्वे., (गरुजी मारा अबके जनम सुधार), ११५५२७-३(-9) गुरुगुण गहुंली, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू., (चालो सयां गुरु वांदवा), ११७१२३-२(#) गुरुगुण गहुँली, मा.गु., गा. २५, पद्य, श्वे., (या गरु जीव गरुया गणा विचै), १२००८८(2) गुरुगुण गहुंली, मा.गु., पद्य, मूपू., (श्रीगुरुचरणे चित लागुं रे), ११६४१९(६) गुरुगण गीत-होली, रा., पद्य, मप., (जै बोलो रे भवियण जै बोलो), ११५२४७-७($) For Private and Personal Use Only Page #568 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org , कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १.१.२६ " गुरुगुण पद, मु. रतनचंद, मा.गु., गा. ४, पद्य, चे., (मन सतगुर सीख काही भूले) ११९९३१-४७(+) गुरुगुणवर्णन कवित्त, पुहिं., पद्य, म्पू., ( द्रढ आसन मन अडरा कमर पद), ११५४२७-३(३) " गुरुगुण सज्झाय, मु. रतनचंद, मा.गु., गा. ९, पद्य, खे, गुरुगुण सज्झाय, मु. रतनचंद, मा.गु., गा. ५, पद्य, श्वे. गुरुगुण सज्झाय, मु. रतनचंद, मा.गु., गा. ५, पद्य, श्वे., (गुर सम कुण जग मे उपगारी), ११९९३१-४६(+) (मिलिया गुरु ग्यान तणा), ११९९३१-४४(+) " (सतगुर मत भूलो एक घडी बोध), ११९९३१-४५ (+) गुरुगुण सज्झाय, मु. सूर्यमल पुहिं. गा. ७, पद्य, थे. (काम क्रोध से न्यारा रे), ११७३५८-२ (०४) . " " Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir गुरुगुण सज्झाय, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., (आज म्हार आनंद रंग), ११९६४९-१८ गुरुगुण स्तुति, जे.क. भूधरदास, पुहिं., दोहा ८, पद्य, दि., (वंदी दिगंबर गुरु चरण जग), ११८९४७-५७००), ११८१४७-६८(१) , गुरुदेशना पद, मु. हर्षचंद, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (वरषित वचन झरी हो), ११९६४९-२७ गुरुमहिमा दोहा संग्रह, मा.गु., गा. ३, पद्य, मूपू., (गुरुदीवो गुरु देवता गुरु), १२०१५५-२ गुरुविहारविनती गीत, मा.गु. गा. २०, पद्य, म्पू, (श्रीशंखेश्वर पाये नम) ११७९६७ गूढ पद संग्रह, मा.गु., गा. ५, पद्य, इतर (आपी नहीं मूकी नहीं दान) ११६७६१-६(+) गोचरी ४२ दोष, मा.गु., गद्य, मूपू., (उद्गम दोष श्रावकथी), ११८५१६-४४(+) गोचरी ४६ दोष चोपाई, श्राव, भगवतीदास भैया, पुहिं. गा. २५, वि. १७५०, पद्य, दि. (अरिहंत सिद्धचिता रिचित), " " ११९८८४-७१(+) गोपीचंद की राखी, मु. जडावचंद ऋषि, मा.गु., गा. ९, वि. १९६६, पद्य, मूपू., (समगत साची बेन भांणजी), १२०००९-२ (+) गोरखनाथ वचनिका, गोरखनाथ, पुहिं., गा. ७, पद्य, वै., (जो भग देखि भामिनी), ११९९६३-४४ " गोराबादल चौपाई, आ. हेमरत्नसूरि, मा.गु., गा. ६१७, वि. १६४५, पद्य, म्पू, इतर (सुखसंपतिदायक सकल), १९८८८८(+) गोराबादल रास, ग. लब्धिउदय, मा.गु., खं. ३ ढाल ३९, गा. ८१६, ग्रं. ११५७, वि. १७०७, पद्य, मूपू., (श्रीआदिसर प्रथम जिण), ११८६६१-१ गौतमपृच्छा, क. नंदलाल, पुहिं. गा. २१५, वि. १८९०, पद्य, खे, (ज्ञाताधर्मकथामांहि), ११८०२३ (०३) " गौतमपृच्छा ९७ बोल, मा.गु., गद्य, मूपू., (कहो स्वामि कणां होय), ११८५८६ ( +$) गौतमस्वामी गहुली, मु. दीपविजय, मा.गु. गा. ८, पद्य, मूपू. (जी रे कांमनी कहे सुण), ११५८०८, ११५८३५-१ " ५५३ गौतमस्वामी गहुली, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., (वर अतिशय कंचनवाने ), ११९६४९-२८ , गौतमस्वामी गीत, मु. रतनचंद, मा.गु., गा. १२, वि. १८५१, पद्य, श्वे. (वसुभूति पिताने पृथवी माता), ११९९३१-२९(+) गौतमस्वामी गीत, मु. रतनचंद, मा.गु.. गा. १२, वि. १८७७, पद्य, श्वे. (हां वो वेरागी मुनराज हां), ११९९३१-३०(+) गौतमस्वामी चैत्यवंदन, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., गा. ६, पद्य, मूपू., ( नमो गणधर नमो गणधर ), ११६४९९-२, ११७६९९-२ गौतमस्वामी छंद, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., गा. ९, वि. १८वी, पद्य, मूपू., (मात पृथ्वी सुत प्रात), ११९८१५-२ (+#), ११९०९८ गौतमस्वामी छंद, मु. लावण्यसमय, मा.गु., गा. ९, वि. १६वी, पद्य, मूपू., (वीरजिनेश्वर केरो शिष्य), ११६७२६-२(+), १२००९०-२, १२०१६०-२, ११६७९५-२(#) गौतमस्वामी छंद, मा.गु., गा. ५, पद्य, म्पू. ( कामीत दाता जगविख्यात ), १९९८१५-३००) गौतमस्वामी रास, मु. उदयरत्न, मा.गु., डा. ५, गा. ६७, पद्य, मूपू., (वीर जिणेसर चरण कमला) ११५८८८-१ गौतमस्वामी रास, मु. उदयवंत, मा.गु., गा. ४६, पद्य, म्पू, (वीरजिणेसर चरणकमल कमल), ११८६९३ गौतमस्वामी रास, मु. रायचंद ऋषि, रा. गा. १४, वि. १८३४, पद्य, स्था. (गुण गाउ गीतम तणा), ११९४०२-२ (-१) " ', गौतमस्वामी रास, आ. विजयभद्रसूरि, मा.गु., ढा. ६, गा. ६६, पद्य, मूपू., (वीरजिणेसर चरणकमल कमल). १९८६०२(+), ११८७६८(+), ११९०३२(+), ११९४३२-१(+), ११६००६-१(5), ११७७१७(४) गौतमस्वामी रास, उपा. विनयप्रभ, मा.गु., गा. ६३, वि. १४१२, पद्य, मूपू (वीरजिणेसर चरणकमल कमला). ११८५८१-२, ११५७७९-११, ११५९९८ (३) गौतमस्वामी रास, मा.गु., गा. ७३, पद्य, म्पू, (वीर जिणेसर चरणकमल कमलाक्य), ११८९४३(०) For Private and Personal Use Only Page #569 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ५५४ देशी भाषाओं की मूल कति के अकारादि क्रम से प्रत-पेटाकति क्रमांक सूची परिशिष्ट-२ गौतमस्वामी रास, मा.गु., ढा. ६, गा. ४६, पद्य, मूपू., (वीर जिनेसर चरण कमल), ११६८०७(+#), ११६९९९(+#$), १२०१५७(+), ११६८७०(६), ११७७१८(६), ११७७३४(६), ११७७५१(६), ११७८१३-२($) गौतमस्वामी स्तवन, आ. ज्ञानविमलसरि, मा.गु., गा.७, वि. १८वी, पद्य, मप., (वीर मधुरी वाणी भाखे), ११६४९९-५(5) गौतमस्वामी स्तवन, मा.गु., गा. ५, पद्य, मपू., (--), ११९६१२-५१(+#) गौतमस्वामी स्तुति, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., गा. ४, वि. १८वी, पद्य, मूपू., (इंद्रभूति अनुपम गुण), ११६४९९-३, ११७६९९-३ गौतमस्वामी स्तोत्र, ग. विजयशेखर, मा.गु., गा. १३, पद्य, मूपू., (श्रीगौतम गुरु प्रभात), ११९२१५-४७(+) गौभक्ति पद, मा.गु., पद्य, वै., इतर, (बभण भगत आदवेर जाए पकारी), ११८६९०-१(+#) ग्रह प्रवेश विचार, मा.गु., गद्य, मूपू., इतर, (हवे पूर्वोक्त भले दिवसे), ११७६१७(2) घडपण सज्झाय, मु. रूपविजय, मा.गु., गा. ८, पद्य, मूप., (घडपण तुझ केणे तेडिओ), ११५६६५-३(+#), ११७५४८-३ चंदनबालासती चौपाई, श्राव. देपाल भोजक, मा.गु., गा. १२८, पद्य, मप., (वीरजिणवर पाय पणमेवि), ११८४३५-१ चंदनबालासती चौपाई, मा.गु., ढा. १३, पद्य, श्वे., (प्रणमि मंडत नीलतन), ११९५३७(२) चंदनमलयगिरी चौपाई, मा.गु., ढा.८, गा. २७३, पद्य, मूपू., (जिनवर चरणे नमी गाईस), ११६३२१($) चंदनमलयागिरि रास, मु. भद्रसेन, पुहि., अ. ५, गा. १९९, पद्य, मूपू., (स्वस्ति श्रीविक्रम), ११९७६१(+$), ११८२४२-४($), ११८२८५(६) चंदनमलयागिरी चौपाई, उपा. सुमतिहंस, मा.गु., ढा. १६, गा. २६५, वि. १७११, पद्य, मप., (स्वस्ति श्रीपूरण सदा), ११८१९७(+) चंद्रकला २१ चोर चौपाई, मा.गु., पद्य, मप., (--), ११७७६५(६) चंद्रकुमार वार्ता, मा.गु., गा. १२५, पद्य, मपू., (समरु सरसती मात मनाय), ११८४१०(१), ११९५४०(#S) चंद्रगुप्त छः ढालिया, मु. तिलोकचंद, मा.गु., ढा. ६, वि. १८९२, पद्य, मपू., (सिद्धचक्र सेवा करु पूजु), ११६४८२(+#$) चंद्रगुप्तराजा १६ स्वप्न सज्झाय, मु. जेमल ऋषि, रा., गा. १९, पद्य, स्था., (उजीणीनगरी कै वागमैं), ११६८०२-१(६) चंद्रप्रभजिन स्तवन, मु. चमना, मा.गु., गा.८, पद्य, मूपू., (श्रीचंद्रप्रभुजिन साहिबा), ११७६३७-२ चंद्रप्रभजिन स्तवन, मु. मोहनविजय, मा.गु., गा.७, पद्य, मप., (श्रीशंकर चंदाप्रभु), ११९८२४-२२(+) चंद्रप्रभजिन स्तवन, मु. रतनचंद, मा.गु., गा. ९, वि. १८५०, पद्य, श्वे., (चंदाप्रभु मो मन भावे रे), ११९९३१-१५(+) चंद्रयशाजिन स्तवन, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., गा. ७, वि. १८वी, पद्य, मपू., (चंद्र यशाजिन राजीओ), ११७५२९-३(5) चंद्रराजागुणावलीराणी लेख, मु. दीपविजय, मा.गु., गा. ७४, पद्य, मूपू., (स्वस्ति श्रीमरुदेवी), ११६४९४-१ चंद्रराजा रास, मु. मोहनविजय, मा.गु., उल्ला. ४ ढाल १०८, गा. २६७९, वि. १७८३, पद्य, मूपू., (प्रथम धराधव तीम), ११७५२१(+$), ११८७०४(+), ११५९७५($) चंद्रराजा लावणी, मु. हीरालाल, पुहिं., वि. १९५६, पद्य, स्था., (मुनिसुव्रत माहाराज), १२००१४(+-$) चंद्रलेखा रास, मु. मतिकुशल, मा.गु., ढा. २९, गा. ६२४, वि. १७२८, पद्य, मूपू., (सरसति भगवति नमी करी), ११६९६८($) चंद्राननजिन स्तवन, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., गा.७, वि. १८वी, पद्य, मप., (नलिनावती विजये जयकार),११५२६५-२ चउसरण गीत, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., गा. ३, पद्य, मूपू., (तुमने चार सरणा हुज्य), ११५६९८-२ चक्रवर्ती-वासुदेव-प्रतिवासुदेव-बलदेव विवरण कोष्टक, मा.गु., को., म्पू., (--), ११९०८६-१(+) चतुर्दशीतिथि-उजमणा विधि, मा.गु., गद्य, मूपू., (चउद वानिना पकवान), ११५४७४-२ चतुर्निकायदेव नाम, मा.गु., गद्य, श्वे., (दश प्रकार भवनपति), ११९७८९-२(+) चतुर्विधसंघशोभा स्तवन, मु. दीपविजय, मा.गु., गा. २३, वि. १८८७, पद्य, मूपू., (वंदी जिन प्रभु वीरने), ११६४५०($) चर्चाशतक, जै.क. द्यानतराय, पहि., दोहा. १०३, पद्य, दि., (परमेष्ठी पांचौ विघनहर), ११७९२६(+$) (२) चर्चाशतक-टबार्थ, पुहि., गद्य, दि., (--), ११७९२६(+$) चर्चा समाधान, जै.क. भूधर, पुहि., वि. १२७६, पद्य, दि., (जयो वीर जिनचंद्रमा), ११७११८ चातुर्मासिक व्याख्यान*, रा., गद्य, मूपू., (पंचापि परमेष्टिन), ११८४७०(+#s), ११९४८३-१(+), ११९४८६-१(+), ११९२२२(#), ११६६५६($) चित्रसंभूति सज्झाय, मु. कवियण, मा.गु., गा. १९, पद्य, मूपू., (चित्त कहे ब्रह्मराय), ११७६६८-३(#), १२०१३२(2) For Private and Personal Use Only Page #570 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १.१.२६ (रिसहेसर चित्रसेनपद्मावती चौपाई दानधर्मानुमोदनाधिकारे, उपा. रामविजय, मा.गु., डा. ३१, गा. ४९१. वि. १८१४, पद्य, म्पू, पायकमल पणमिय), ११८९४२(१ चिलातीपुत्र सज्झाय, मा.गु., पद्य, मृपू., (सुण सुणने रे कीज्यो उपसम), ११७९७६-१९(०६) चेतन वृतांत, श्राव. भगवतीदास भैया, पुहिं. गा. २९८, वि. १७३६, पद्य, दि., (जिनचरण प्रणाम करि), ११९८४१ (+), ११९८८४-४(१), ११९९८७-१ चेलणासती चौढालियो, मु. रायचंद ऋषि, रा., ढा. ४, गा. ३७, वि. १८३३, पद्य, स्था., (अवसर जो नर अटकलो ते), ११७२०९(#), ११७६७९(१) चेलणासती चौपाई, मु. दयाचंद ऋषि, मा.गु., ढा. १३, पद्य, श्वे., (चोवीसमा महावीरजी), ११९९६९-१ चेलणासती सज्झाय, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपु (वीरे वखाणी राणी), ११५४६६-३ (०), १९९४३२-७(+), ११९७४५-७२ (+), ११५८१६-१, ११५८८३- ३, ११६९५०-१ (# ), ११५६९८ - १($), ११७५४९-५ ($) चैत्यवंदनचौवीसी, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., गा. २४जोड, पद्य, मूपू., ( प्रथम जिनेसर ऋषभदेव), ११९७५३ -१(+) चैत्यालय जयमालिका, श्राव. भगवतीदास भैया, पुहिं, गा. ३३, वि. १७४५, पद्य, वि., (प्रणमहं परम देवके), ११९८८४-५९(१) चैत्री पूर्णिमापर्व देववंदनविधि स्तवन, मु. दवारत्न, मा.गु., ढा. ६, गा. २५, पद्य, म्पू (आदिकरण जिणवर चलण प्रणमवि), ११८८२४(१) चैत्री पूर्णिमापर्व व्याख्यान, रा. गद्य, मूपू., (तीर्थराजं नमस्कृत्य), ११९४८३-१० (+), ११९४८६-१० (+) , चैत्रीपूर्णिमापर्व व्याख्यान, मा.गु., गद्य, मूपू., (सा चैत्री पूर्णिमा), ११७९५२(+) चैत्री पूर्णिमापर्व स्तुति, आ. जिनलाभसूरि, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू., (सेतुंजगिर नमीये), ११९६४८-२७ चैत्रीपूर्णिमापर्व स्तुति, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू., (श्रीशत्रुंजयतीरथ आदिनाथ), ११८६९४-१५ चौभगी रूपकार वचनिका संग्रह, पुहिं. गद्य, दि., (एक जीव द्रव्यता के), ११९९६३-४६ " चौमासीपर्व देववंदन, पन्या, पद्मविजय, मा.गु., पद्य, मूपू. (विमलकेवलज्ञान कमला), ११९८३२-२(४) छट्ठाआरा वर्णन सज्झाय, रा., पद्य, श्वे., (गोतमसामि पुछा करे करजोडि), ११९७४५-४८(+$) छड्डाआरा सज्झाय, मु. हीरालाल, मा.गु, गा. १३. वि. १९६३, पद्य, वे. (सीरी गोतमसामी बीनवे). १९९७४५-३९(+४) छमासीतप स्तवन, मा.गु., गा. ९, पद्य, म्पू, (गौतमस्वामी रे बुध दो), ११६०९६ (*), ११७९६६ छरी नाम, मा.गु., गद्य, मूपू. (सचित्त परिहारी धरतीय), ११९२०३-४० (+), ११८४२९-११(७) छायादिनमान विचार कुंडलियो, मा.गु, पद्य, श्वे. (दिन करसो प्रतिकूल हे). ११९७४५-१४१(०) छिनालपच्चीसी, मा.गु., गा. २५, पद्य, मूपू., (पाछो जोवे पेडे चलती), ११७२४५ (#) " जंबूकुमार चौपाई, मु. सोभचंद, मा.गु., ढा. ४०, वि. १६९२, पद्य, मूपू., (सकल जिनेसर पाय नमी), ११९२१४ जंबूकुमार सज्झाय, मु. रतनचंद, मा.गु., गा. ७, पद्य, वे. (रीषवदत्त ने धारणी अगज नाम), ११९९३१-३२(*) "" For Private and Personal Use Only ५५५ जंबूद्वीप क्षेत्र विस्तारमान विचार, मा.गु., गद्य, वे., (जंबूद्वीप एक लक्ष), १९८४२९- १(क) जंबूद्वीपप्रज्ञप्ति छंद, मु. फूलचंद, मा.गु., गा. १८, पद्य, मूपू., (एकं लखं जोयण जंबुद्वीपं), ११९२१५-५४(+) विचार, मा.गु., गद्य, मूपू., (जंबुद्वीप लांबो पहुल), ११५५०२ (+$), ११७७४० ($) जंबूवती चौपाई, मु. सूरसागर, मा.गु., डा. १३, पद्य, मूपू. (पहिली ढाल सोहामणी). १९९४१३ जंबूस्वामी कथा, मा.गु., गद्य, श्वे., (सप्रभावं जिनं), ११९६१५ (+) जंबूस्वामी चरित्र, मु. पद्मचंद्र, मा.गु., डा. ५८, गा. १५०० ग्रं. १५११, वि. १७१४, पद्य, मूपू. (शारद पाय प्रणमुं), ११८९८२ (७) जंबूस्वामी चरित्र, मु. लालचंद ऋषि, मा.गु., ढा. ४३, पद्य, श्वे. (--), ११६८८४(+$) जंबूस्वामी रास, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., डा. ३५, गा. ६०८, ग्रं. १०३५, वि. १७३८, पद्य, भूपू., (प्रणमी पासजिणंदना), १९९६९१(०) जंबूस्वामी रास, श्राव. देपाल भोजक, मा.गु., गा. १८५, वि. १५२२, पद्य, मूपू., (गोयम गणहर पय नमी), ११६२५७(+$) जंबूस्वामी रास, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., वि. १७३९, पद्य, मूपू., (सारद सार दया करो), ११५९४८($) जंबूस्वामी सज्झाय, मु. उदयरत्न, मा.गु., गा. १५, पद्य, मूपु. ( सरसतसामीने वीनवु), ११६४७४ Page #571 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ५५६ देशी भाषाओं की मूल कृति के अकारादि क्रम से प्रत-पेटाकृति क्रमांक सूची परिशिष्ट-२ जंबूस्वामी सज्झाय, श्राव. पुनो, मा.गु., गा. २०, पद्य, मपू., (श्रेणिकनरवर राजीयो), १२००८२, १२०१४०-२(#) जंबूस्वामी सज्झाय, आ. भाग्यविमलसूरि, मा.गु., गा. १६, वि. १७७१, पद्य, मूपू., (ए आठौहि कामिणि जंबू), ११९२६०-३६(+) जंबूस्वामी सज्झाय, आ. भाग्यविमलसूरि, मा.गु., गा. १४, वि. १७६६, पद्य, मप., (सरसत सामीने विनवू), ११९२६०-२६(+), ११९९२२-१० जंबूस्वामी सज्झाय, मु. रूपविजय, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., (राजग्रही नयरी वसे रे), ११७६६८-२(2) जंबूस्वामी सज्झाय, मु. सिद्धिविजय, मा.गु., गा. १४, पद्य, मपू., (राजग्रही नगरी वसे ऋषभदत्त), ११८२४५-१०(+), ११६६६१-३($) जंबूस्वामी सज्झाय, रा., गा. २०, पद्य, मूपू., (राजगृही नगरीरा वासी), ११६०४५(+), ११९२६०-१३(+) जंबूस्वामी सज्झाय, मा.गु., पद्य, मूपू., (--), १२०१४९-३(-$) जगडूशाह दानसंख्यामान गाथा, मा.गु., गा. १, पद्य, मूपू., (मुडा सहस अट्ठ दी8 वीसल), ११७९४२-५ जनकेवली शुकनावली, मा.गु., गद्य, मूपू., इतर, (ॐ ह्रीं अहाँ सर्वज्ञाय), ११७२५२ जयंतीश्राविका सज्झाय, मु. रतनचंद, मा.गु., गा. ९, वि. १८८२, पद्य, श्वे., (नगर कोसंभी उदाइ माहारायरा), ११९९३१-३४(+) जलयात्रा वरघोडा स्तवन, मु. वीरविजय, मा.ग., गा. १५, पद्य, मप., (हवे सामग्री सवी सज),११६०२४ जिनकल्याणक नरकोद्योत वर्णन, रा., गद्य, मपू., (तीर्थंकर भगवानरा), ११८३२२-२(+), ११७३७४-१(#) जिनकुशलसूरि गीत, मा.गु., गा. ३, पद्य, मूपू., (कुशल वडो संसार कुशल), ११९१९५-३ जिनकुशलसूरि घग्घर निसाणी, य. दोलत, मा.गु., गा.१०, वि. १८१२, पद्य, मपू., (सरस्वती माता जगत), ११५३६० जिनकुशलसूरि छंद, मु. भावराज, मा.गु., गा. १४, पद्य, मूपू., (श्रीजिनकुशलसूरि सुख), ११७६३१(5) जिनकुशलसूरि पद, मु. लालचंद, पुहि., गा. ३, पद्य, मूपू., (कुशल गुरु देखतां), ११९४३२-१९(+-) जिनकुशलसूरि पद, पुहि., गा. ४, पद्य, मपू., (कैसे कैसे अवसरमें), ११९४३२-१८(+-) जिनकुशलसूरि सवैया, मु. धर्मसीह, पुहि., गा. २, पद्य, मूपू., (राजै थूभ ठौर ठौर ऐसौ), ११९१९५-२ जिनकुशलसूरि स्तवन, मु. हरिसागर, पुहिं., गा.७, वि. १९६९, पद्य, मूपू., (कुशल गुरु देव हैं जग), ११९३०७-५ जिनकुशलसूरि स्तुति, मु. आनंदसागर, रा., गा. ६, वी. २४३८, पद्य, मूपू., (सुनो सुनो कुशल गुरु), ११९३०७-६ जिनगुणमालिका स्तवन, श्राव. भगवतीदास भैया, मा.गु., गा. २१, पद्य, दि., (तीर्थंकर त्रिभुवन), ११९८८४-४३(+) जिनचंदसूरि गच्छपति भास, मु. राज, मा.गु., गा. ८, पद्य, मपू., (गछपति आया है सहेली म्हारा), ११९६४९-१४ जिनचंदसूरि गच्छपति वधावो, उपा. क्षमाकल्याण, मा.गु., गा. ९, पद्य, मूपू., (श्रीजिनचंदसूरिसरू सुगुरु), ११९६४९-२४ जिनचंद्रसूरि गहंली, मु. जीतरंग, मा.गु., गा. ६, पद्य, मपू., (आज आनंद मुझ अती थयो), ११५३४२-४(+) जिनचंद्रसूरि चातुर्मासविनंती भास, मु. रंग, पुहि., गा. ७, पद्य, मूपू., (अवकौ चौमासौ पूजजी इहां), ११९६४९-२ जिनचंद्रसूरि भास, मु. लावण्यकमल, मा.गु., गा. ८, पद्य, मूपू., (गुणनिधि जिणचंद), ११९६४९-२३ जिनचंद्रसूरि वीनती, मा.ग., गा. १४, वि. १७६९, पद्य, मप., (सरसत सामण विनवं हं तो), ११५८२८ जिनचौवीसी, श्राव. भगवतीदास भैया, पुहि., गा. २५, पद्य, दि., (श्रीआदिनाथ अरिहंत), ११९८८४-११(+) जिन जयमालिका, श्राव. भगवतीदास भैया, पुहिं., गा. ९, पद्य, दि., (श्रीजिनदेव प्रणांम करि), ११९८८४-१४(+) जिनदत्तसूरि गीत, आ. जिनवल्लभसूरि, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., (सिरिसुयदेव पसाइ करो), ११६३०५-२ जिनधर्मपच्चीसी, श्राव. भगवतीदास भैया, पुहिं., गा. २८, वि. १७५०, पद्य, दि., (प्रगटदेव परमातमा चिदानंद), ११९८८४-७२(+) जिनपालजिनरक्षित चौढालियो, मा.गु., ढा. ४, गा. ६८, पद्य, मप., (अनंत चोवीसी आगे हुई),११६७६७($) जिनपूजा अष्टक, पुहि., गा. ११, पद्य, दि., (जलधारा चंदन पुहप), ११९९६३-२८ जिनप्रतिमा एकादशी, जै.क. बनारसीदास, पहिं., गा. ९, पद्य, दि., (इहविधि देव अदेव की), ११९९६३-५३ जिनप्रतिमामंडन स्तवन, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., गा. १०, पद्य, मूपू., (भरतादिके उद्धारज), ११७०९१-१ जिनप्रतिमा स्तवन, मु. मानविजय, मा.गु., ढा. २, गा. २१, पद्य, मपू., (जिन जिन प्रतिमा वंदण), ११९६०९-१(+), ११६५४६ जिनप्रतिमास्थापना सज्झाय, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., गा. १५, पद्य, मूपू., (जिन जिन प्रतिमा वंदन), ११६००१-१ जिनप्रतिमाहंडी रास, मु. जिनहर्ष, मा.गु., गा. ६७, वि. १७२५, पद्य, मपू., (सुयदेवी हीयडै धरी), ११७०३६(+), ११७०९४(#), ११७५०९(#) For Private and Personal Use Only Page #572 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ५५७ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १.१.२६ जिनबिंबपूजा स्तवन, आ. जिनचंद्रसूरि, मा.गु., गा. ११, पद्य, मप., (भविका श्रीजिनबिंब), ११७७५६-१(+#), ११९५०६-२(#$) जिनभक्ति सवैया, श्राव. भगवतीदास भैया, पुहि., गा. ५, पद्य, दि., (वीतराग के विवसेव), ११९८८४-९६(+) जिनलाभसूरि देशना, मु. वसतो, मा.गु., गा. १५, पद्य, पू., (पूज्य श्रीजिनलाभ), ११९६४९-२२ जिनलाभसूरि भास, मु. राज, मा.गु., गा. १३, पद्य, मूपू., (आज वधाऊडौ आवीयो), ११९६४९-५ जिनवंदनविधि स्तवन, मु. कीर्तिविमल, मा.गु., गा. ११, पद्य, मूपू., (सयल तीर्थंकर करु), ११९८१५-१(+#) जिनवचन सवैया, पुहिं., गा. ३, पद्य, दि., (--), ११८१४७-६०(#$) जिनवाणी गहुँली, मा.गु., गा. १५, वि. १८६१, पद्य, श्वे., (०ज्यु होवै आगमवाणी सांभल), ११६७७३-१(+-5) जिनवाणीमाहात्म्यवर्णन स्तवन, उपा. क्षमाकल्याण, मा.गु., गा. ५, पद्य, मप., (सुनियै रे प्रानी जिनजी), ११६२९७-६(+) जिनवाणी स्तवन, श्राव. रायचंद्र, पुहिं., गा. ५, पद्य, दि., (मोहि जिनवाणी भावै मारा मन), ११८१४७-५८(#) जिनसहस्रनाम स्तोत्र, जै.क. बनारसीदास, पुहि., शत. १०, गा. १०१, वि. १६९०, पद्य, दि., (परम देव परनाम करि), ११९९६३-२ जिनसुखसूरि गच्छपति गीत, नाथो, मा.गु., गा. ८, वि. १७६३, पद्य, मूपू., (सहीयां मोरी जिनसुख), ११९६४९-१० जिनसौभाग्यसूरि गच्छपति पद, मु. चंद, पुहिं., गा. ५, पद्य, मपू., (श्रीजिनसौभाग्यसूरीसरू रे), ११९६४९-६ जिनसौभाग्यसूरि गच्छपति भास, मु. तत्वविलास, रा., गा. ५, पद्य, मूपू., (पूजजी विराज्या पाट हो लाल), ११९६४९-३ जिनसौभाग्यसूरि गच्छपति भास, मु. दानसागर, मा.गु., गा. ९, पद्य, मपू., (श्रीजिनहरख पाटोधरू रे), ११९६४९-८ जिनसौभाग्यसूरि गच्छपति भास, मु. बाल, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., (मोतियडे मेह बरसियो सखी आज), ११९६४९-१२ जिनसौभाग्यसूरि गच्छपति भास, वा. विद्याविशाल गणि, मा.गु., गा. ८, वि. १८९७, पद्य, मूपू., (गणधर गोतम सारिसा म्हारा), ११९६४९-१३ जिनसौभाग्यसूरि गच्छपति भास, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., (गच्छपति जंगम० जिनसौभाग्य), ११९६४९-९ जिनस्तवनचौवीसी, मु. मोहनविजय, मा.गु., स्त. २४, गा. ३३४, पद्य, मपू., (बालपणे आपण ससनेही), ११८१३०(5) जिनहंससूरि वधावो, वा. युक्तिसेन, मा.गु., गा. १३, पद्य, मूप., (आज भलौ दिन ऊगीयौ म्हारै), ११९६४९-१ जिनहर्षसूरि गच्छपति गीत, मु. ज्ञानवर्द्धन, रा., गा. ७, पद्य, मपू., (सदगुरु आया हे सखी ज्यारे), ११९६४९-२० जिनहर्षसूरि गच्छपति गीत, मा.गु., गा. ११, पद्य, मूपू., (श्रीजिनहर्षसूरीसरुजी), ११९६४९-४ जिनहर्षसूरि गच्छपति देशना, मु. विमल, रा., गा. ५, पद्य, मूपू., (सदगुरु म्हारा देशना द्यौ), ११९६४९-२५ जिनहर्षसूरि गच्छपति देशना गीत, रा., गा. ५, पद्य, मूपू., (हितधर परम प्रवचन सुणावीयै), ११९६४९-११ जिनहर्षसूरि गच्छपति भास, मु. चतुरहर्ष, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., (आज म्हारे अधिक उमाह), ११९६४९-१५ जिनहर्षसूरि गच्छपति भास, मु. राजसागर, मा.गु., गा. ९, वि. १८८५, पद्य, मपू., (श्रीजिनहर्षसूरीसरू रे सूर), ११९६४९-७ जिनहर्षसूरि गच्छपति भास, मु. लालचंद, मा.गु., गा. १३, पद्य, मूपू., (श्रीजिनशासनमाहे सोभता खरत), ११९६४९-१६ जिनहर्षसूरि गच्छपति भास, मु. लालचंद, मा.गु., गा. ७, पद्य, भूपू., (सारा श्रीसंघनी हो पूज), ११९६४९-१७ जिनहर्षसूरि गच्छपति वधावो, मु. चतुरहर्ष, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., (पंथीडा संदेसो म्हारा पूज), ११९६४९-१९ जिनहर्षसूरि गच्छपति वधावो, मु. दयामेरु, मा.गु., गा. ९, पद्य, मूपू., (वामांगज जिनवरराया प्रणमी), ११९६४९-२१ जिनहर्षसूरि गच्छपति वधावो, मु. नितराज, रा., गा. ६, पद्य, मपू., (हां जी साहिबा आयौ आयौ), ११९६४९-३० जिनातिशय स्तवन, मु. रतनचंद, मा.गु., गा. १३, वि. १८७१, पद्य, श्वे., (भवजीवा हो वांदो भगवंतने), ११९९३१-१(+) जिनेंद्रविजयसूरिगुरुगुण गहुंली, मु. हेमविजय, मा.गु., गा. १३, पद्य, मूपू., (पंच प्रभु प्रणमी करी रे), ११६९८४-१(+) जीवगुणयोगोपयोग १२० प्रकृति यंत्र, मा.गु., को., मूपू., (--), ११८२२४-१५(+) जीवण गुरुगुण पद, मु. परमानंद, रा., गा. ८, पद्य, श्वे., (आज मनोरथ फलीयाजी), ११५२४७-४ जीवणगुरु स्तवन-नागोरीगच्छाधिपति, मु. परमानंद, रा., गा. १६, पद्य, मूप., (सद्गुरु साहिब सांभलो अरज), ११५२४७-२ जीवणगुरु स्तवन-नागोरीगच्छाधिपति, मु. परमानंद, रा., गा. ८, पद्य, मूप., (सेवो सेवो री माय जीवण), ११५२४७-३ जीवणगुरु स्तवन-नागोरीगच्छाधिपति, आ. लक्ष्मीचंद्रसूरि, रा., गा. ७, पद्य, श्वे., (आज दिवस सफलो भयो सद), ११५२४७-५ जीवणगुरु स्तवन-नागोरीगच्छाधिपति, आ. लक्ष्मीचंद्रसूरि, रा., गा. ६, पद्य, श्वे., (आज हुवो अति ओछव मेरे), ११५२४७-६ जीवणस्वामी चौढालियो, श्राव. पनों, मा.गु., ढा. ४, गा. ८४, वि. १८६२, पद्य, मूपू., (पहला अरिहंतने नमुं दूजा), ११९७६०-६ For Private and Personal Use Only Page #573 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ५५८ देशी भाषाओं की मूल कृति के अकारादि क्रम से प्रत-पेटाकृति क्रमांक सूची परिशिष्ट-२ जीवदया सज्झाय, मु. सोमसुंदरसूरि-शिष्य, मा.गु., गा. १५, वि. १६वी, पद्य, मूप., (गोयम गणहर पय पणमेवि), १२०१४३(+) जीव भेद-प्रभेद बोल, पुहि.,मा.गु., गद्य, मूपू., (दोय कोड चोराणवे लाख), १२००१२-१ जीवविचार स्तवन-पार्श्वजिन, मु. वृद्धिविजय, मा.गु., ढा. ९, गा. ८३, वि. १७१२, पद्य, मूपू., (श्रीसरसती रे वरसती), ११८८४८-६, ११७४५३(#) जीवादि विविधद्वार विचार, मा.गु., गद्य, मपू., (सरीरना पंचनाम ऊदारिक१), १२००१८(+$) जैनसवैया शतक, श्राव. भूधरदास, पुहिं., सवै. १०७, वि. १७८१, पद्य, दि., (--), ११८२५२(#S) जैमलऋषि गुण वर्णन, मु. रायचंद ऋषि, मा.गु., ढा. २, गा. ५०, वि. १८५२, पद्य, स्था., (अरिहंत सिद्धने साध गुर), ११५७५१ ज्ञाताधर्मकथा साढे तीन करोड कथा विचार, मा.गु., गद्य, मपू., (धर्मकथा के वरग), ११९७४५-१४४(+) ज्ञानचिंतामणी दोहा, मु. मनोहरदास, मा.गु., गा. १२८, वि. १७२८, पद्य, स्था., (सकल विद्या वरदायनी), ११६२३१-१, ११९७४३(#) ज्ञानदर्पण, जै.क. दीपचंदजी शाह, पुहि., गा. १९६, पद्य, श्वे., (गुण अनंत ज्ञायक विमल), ११८६०४-१(+#$) ज्ञानदर्शन नाम, मा.गु., गद्य, मूपू., (मतिज्ञान चक्षुदर्शन), ११५८५२-३(+#) ज्ञानपंचमीपर्व चैत्यवंदन, मु. जिनविजय, मा.गु., गा. ९, पद्य, मपू., (युगला धर्म निवारिओ), ११९२२०-२(+#) ज्ञानपंचमीपर्व चैत्यवंदन, मु. रंगविजय, मा.गु., गा. ९, पद्य, मूपू., (त्रिगडे बेठा वीर), ११७५३९-२(+) ज्ञानपंचमीपर्व देववंदन विधिसहित, आ. लक्ष्मीसूरि, मा.गु., देवजो. ५, गा. १५०, पद्य, पू., (श्रीसौभाग्यपंचमी), ११८७६५(+), ११९६२१(+), ११९८४२(+) ज्ञानपंचमीपर्व महावीरजिन स्तवन-बृहत्, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., ढा. ३, गा. २५, पद्य, मूपू., (प्रणमुं श्रीगुरु पाय), ११८५०९-२(+), ११७०१६-१ ज्ञानपंचमीपर्व सज्झाय, मु. ऋषभ, मा.गु., पद्य, मपू., (--), ११७६३८($) ज्ञानपंचमीपर्व सज्झाय, मु. मानसागर, मा.गु., ढा. ३, पद्य, मप., (-), ११५५१४(६) ज्ञानपंचमीपर्व सज्झाय, मु. रिषजी, मा.गु., गा. १२, पद्य, श्वे., (गौतम पूछ भगवनसार पंचमी), ११६०२९ ज्ञानपंचमीपर्व सज्झाय, आ. लक्ष्मीसूरि, मा.गु., ढा. ५, गा. १६, पद्य, मूपू., (श्रीवासुपूज्य जिणेसर वयण), ११७९६५(2), ११५६८६(६) ज्ञानपंचमीपर्व स्तवन, मु. गुणविजय, मा.गु., ढा. ६, गा. ४९, पद्य, मूपू., (प्रणमी पास जिणेसर), ११८५७२, ११७३४१(#) ज्ञानपंचमीपर्व स्तवन, पंन्या. जिनविजय, मा.गु., ढा. ६, गा. ६८, वि. १७९३, पद्य, मूपू., (सुत सिद्धारथ भूपनो), ११७४९५(5) ज्ञानपंचमीपर्व स्तवन-लघु, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (पंचमीतप तुमे करो रे), ११८५०९-३(+) ज्ञानपच्चीसी, मु. उदयकरण, पुहि., गा. २४, पद्य, मपू., (शुरनर तिरीजग योनी), ११८३१६-९(+), ११९४४१-१(+), १२००८५-१ ज्ञानपच्चीसी, जै.क. बनारसीदास, पुहि., गा. २५, वि. १७वी, पद्य, दि., (सुरनर तिर्यग जग जोनि), ११५७९२, ११९९६३-१५, ११७६३७-१ ज्योतिष कवित्त, श्राव. भगवतीदास भैया, पुहि., गा. ५, पद्य, दि., इतर, (दिनकर के दिन बीस चंद पचास), ११९८८४-८९(+) ज्योतिषचक्र विचार, मु. अमरचंदजी प्रसाद स्वामी, मा.गु., वि. १९३१, गद्य, श्वे., (--), ११८४६३(+$) ज्योतिष पद, मु. जिनहर्ष, मा.गु., गा. १, पद्य, मूपू., (पंचम प्रवीण वार), ११६६७८-२ ज्योतिष विचार, मा.गु., गद्य, मपू., (चंद्रमानौ आउखो), ११८१४७-४३(१), ११८१४७-६९(#) ज्योतिष श्लोक संग्रह, राम, मा.ग., गा. ४, पद्य, इतर, (काली रोहिण तेरसे समो कही),११९१५१-३ ज्योतिष्कसंख्या विचार, मा.गु., गद्य, श्वे., (जंबू द्वीप मांहे २), ११७४८९(६) ज्वर छंद, मु. कांति, मा.ग., गा.१६, पद्य, मप., इतर, (ॐ नमो आनंदपुर अजयपाल),११६९७७(+), ११७३९६(+), १२००११(+) ज्वालामालिनी स्तोत्र विधि, मा.गु., गद्य, मूपू., (ए स्तोत्र सर्वजन सुता पछी), ११९२१५-२५(+) झाझरियामुनि सज्झाय, मु. भावरत्न, मा.गु., ढा. ४, गा. ४३, वि. १७५६, पद्य, मूपू., (सरसति चरणे शीश नमावी), ११५४५८-२(+) झांझरियामुनि सज्झाय, मु. मानविजय, मा.गु., ढा. ४, वि. १७८१, पद्य, मूपू., (सरसती चरणे सीस नमावी), ११७७३०(#) झीणी चरचा, आ. जयाचार्य, मा.गु., ढा. २२, वि. १९१६, पद्य, ते., (अजर अमर वर अमल सिव), ११९२७५(#) For Private and Personal Use Only Page #574 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १.१.२६ ढंढणऋषि सज्झाय, मु. जिनहर्ष, मा.गु., गा. ९, पद्य, मूपू., (ढंढणऋषिने वंदणा), ११५४६६-५(+), ११५५५५-८(+#) ढाईद्वीप विचार, मा.गु., गद्य, श्वे., (खंडा ८ हजार ५५०), ११६७५५-४(+) तपपद सज्झाय, मु. धीरविजय, मा.गु., गा. ११, पद्य, मूपू., (सर्व देवदेव में), ११६११०-२(+) तपागच्छीय पट्टावली, मा.गु., गद्य, मूपू., (श्रीमहावीर पछै एकसो), ११७९०४(#) तपावली यंत्र, मा.गु., यं., श्वे., (--), ११९५८४ तीर्थंकर चक्रवर्ती ऋद्धि वर्णन, मा.गु., गद्य, म्पू., (तित्थयरा गणहारी चक्क), ११५३०८ तीर्थंकरबल वर्णन, पुहि., गद्य, मूपू., (बारां पुरुष का बल), ११७६८९-१ तेजसारकुमार रास, मु. रामचंद, मा.गु., ढा. १०९, वि. १८०८, पद्य, श्वे., (स्वस्ति श्रीचंदगुरु), ११९४१०(६) त्रैलोक्यसार चौपाई, आ. सुमतिकीर्तिसूरि, मा.गु., गा. २०५, वि. १६२७, पद्य, दि., (सरसति सद्गुरू सेवु), ११५६९१(+#S), ११८९३०(+), ११७७८३($) त्रैलोक्यसुंदरी रास, मु. सबलदास ऋषि, मा.गु., ढा. १२, वि. १८५२, पद्य, श्वे., (विहरमान वीसे नमुं), ११८६३८(+5), ११८९०६(+), ११९८५४(+), ११७४११(६) थावच्चापुत्र सज्झाय, उपा. क्षमाकल्याण, मा.गु., ढा. ४, गा. ५३, वि. १८४७, पद्य, मूपू., (द्वारिका नगरी अति भली रे), ११५४७८(+) थावच्चापत्र सज्झाय, मु. तेजमुनि, मा.गु., ढा. ३, गा. २१, पद्य, श्वे., (श्रीजिन नेम समोसर्या), ११८५५०-५ थिरपाल गुरुगुण ढाल, मा.गु., ढा. २, गा. ५२, वि. १८३३, पद्य, श्वे., (शासणनायक समरिये चोवीसमा), ११९७६०-३ दंडकभेद बोल-लघु, मा.गु., गद्य, मूपू., (शरीर ओगाहणा संघयण), ११९५७३(+#$) दयादानपुन्य सज्झाय, मा.गु., गा. ४०, पद्य, मूपू., (आदर जीव दया गुण आदर म करी), ११९१७९ दयापच्चीसी, मु. विवेकचंद, मा.गु., गा. २५, पद्य, मूपू., (सयल तीर्थंकर करु प्रणाम), ११६९०८(+#), ११९२१५-१४(+), ११७९२० दया सज्झाय, मु. विसनलाल, पुहि., गा.१०, वि. १९६२, पद्य, स्था., (दया विन करणी नननन), ११९७४५-३५(+) दयासूरिगुरुगुण गीत, मु. रामविजय, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., (श्रीतपगच्छगुरु राया), ११७२६२-१ दशलक्षणधर्म पूजा, जै.क. द्यानत, पुहिं., वि. १८वी, प+ग., दि., (उत्तम छिमा मारदव),११८१४७-१९(#) दशार्णभद्र ऋद्धिवर्णन गाथा, मु. शिवचंद, पुहि., गा. ३, पद्य, मूपू., (हाथि सहसअढार लाख), ११९६६६-५(+) दशार्णभद्र राजर्षि चौपाई, मु. कुशल, मा.गु., ढा. ४, गा. २८, वि. १७८६, पद्य, मपू., (सारदमात मनरली समरु), ११६३४१-२(+#), ११९६६२-१(+) दशार्णभद्र राजर्षि सज्झाय, पं. धर्मसिंह पाठक, मा.गु., ढा. ६, वि. १७५७, पद्य, मूपू., (वीरजिणेसर वंदिने), ११९६६२-२(+) दशार्णभद्रराजर्षि सज्झाय, मु. लालविजय, मा.गु., गा. १४, पद्य, मूपू., (सारद बुधदाईक सेवक नयणानंद), ११५८७७-१, ११५४१३-१(६) दसोटण विधि, मा.गु., गद्य, श्वे., (मांड्यो उतंग तोरण), ११६२५३(+#$) दान महिमा सवैया, मु. मुक्ति, मा.गु., सवै. १, पद्य, मपू., (दाणते अणंत सुख दांणते टरत), ११९५४७-१८ दानमहिमा सवैया, पुहिं., गा. २, पद्य, श्वे., (दिन को दिजिये होय दया मन), ११९७४५-१०३(+) दानशीलतपभावना प्रभाती, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., गा.६, वि. १७वी, पद्य, मूपू., (रे जीव जिन धरम कीजीय), ११९६१२-२६(+#), ११५४७९-२,११५८३६-१, ११७७३७-२(#) दानशीलतपभावना संवाद, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., ढा. ४, गा. १०१, ग्रं. १३५, वि. १६६२, पद्य, मूपू., (प्रथम जिनेसर पाय), ११५६६३(+$), ११९३०४(+), ११९६६२-३(+$), ११८५५०-१, ११५३७६(#s), ११७८५१(६) दानशीलतपभावना सज्झाय, मा.गु., गा. ४, पद्य, मपू., (रे जीव धर्म कीजीये धर्मना), १२०१३४-३ दीपावलीपर्व कथा, मा.गु., गद्य, श्वे., (दिवालीने प्रबाते रामा), ११९७४५-३७(+) दीपावलीपर्व चैत्यवंदन, मु. पद्म, मा.गु., गा. ३, पद्य, मूपू., (त्रीस वरस घर वास), १२०००५-१ दीपावलीपर्व देववंदन विधिसहित, आ. ज्ञानविमलसरि, मा.गु., वि. १८वी, पद्य, मप., (वीरजिनवर वीरजिनवर), ११५६६४(+$), ११८७३४(+), ११६५६०-१, ११७६९६-१(#) For Private and Personal Use Only Page #575 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra ५६० www.kobatirth.org देशी भाषाओं की मूल कृति के अकारादि क्रम से प्रत-पेटाकृति क्रमांक सूची परिशिष्ट-२ "1 दीपावली पर्व रास, मु. जेमल ऋषि, मा.गु, गा. ४३, पद्य, वे (भजन करो श्रीभगवंतरी), ११९७४५-३६ (+) दीपावलीपर्व व्याख्यान, रा., गद्य, मूपू., (पणमिय वीरं वुच्छं), ११९४८३ - ३ (+), ११९४८६-३(+) दीपावलीपर्व स्तवन, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., गा. ९, वि. १८वी, पद्य, मूपू., (श्रीमहावीर मनोहरु), ११७६९९-१($) दीपावलीपर्व स्तवन, मु. धर्मचंद्र, मा.गु., गा. १३, वि. १८बी, पद्य, म्पू, (सुरसुख भोगवी त्रिशाला) ११७९०३ दीपावली पर्व स्तवन, मु. रायचंद ऋषि, मा.गु., गा. २० वि. १८४५, पद्य, स्था. (पूरव दिसे दिसे हुइ), १९९९२२-२ दीपावलीपर्व स्तवन, मा.गु., गा. ९, पद्य, मूपू., (चोंसठ मणनां ते मोती), ११७७५० दीपावली पर्व स्तुति, मु. चंद्रविजय, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू (सिद्धारथ ताता जग ), ११७००९-२ ', दीपावलीपर्व स्तुति, मु. रत्नविमल, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू., (सासननायक श्रीमहावीर), ११५५१९-२ (+), ११७६४१-२, ११५३५०-३(5) दीपावलीपर्व स्तुति, मु. लालविजय, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू., (वंदु वीर जिणंदनुचरी), ११५३५०-२ (#) दृष्टांत कथानक संग्रह, मा.गु., गद्य, मूपू., (राजगृही नगरी प्रसेणी), ११९६४३(#$) Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir दृष्टांतपच्चीसी, श्राव. भगवतीदास भैया, पुहिं., गा. २६, वि. १७५२, पद्य, दि., (केवलज्ञान सरूप मैं बसै), ११९८८४-८५ (+) दृष्टिवाद विचार, पुहिं., गद्य, वे., (सर्व अपेक्षित नयों), ११७९९९(+) देवकी ६ पुत्र सज्झाय, मु. कुशल, मा.गु., गा. २४, पद्य, म्पू., (अब रावऋषजी हो राज), १२०१०३ (+), १२००९०-३ देवकुमार चौपाई, ग. सोभागसुंदर, मा.गु., गा. ३३७, वि. १६२७, पद्य, मूपू., (--), ११८६३२($) देवदत्त कथा, मा.गु., पद्य, मूपू., (सावस्ती नामे नगरी), ११५५०६ (+$) देवदेवी भोगकालमान वर्णन, मा.गु., गद्य, मूपू., (देवता देवी मैथुन), ११५४०६-२७(+#) देव नारकी बोल संग्रह, मा.गु., को. म्पू. (-), ११६०४४ देवराजवच्छराज चौपाई, मा.गु., पद्य, मूपू., (--), ११५२५६ (+#$) " देवलोक देहमान आयुमान विचार, मा.गु., गद्य, भूपू (सौधर्मदेवलोक सात), ११८४२९-२३(१) देवलोक विमानविचार संग्रह, मा.गु., गद्य, खे, (सौधर्म ३२ लाख ईशान), १२००६८-१(*) देवसिप्रतिक्रमण विधि, मा.गु. प+ग, मूपू. (प्रथम इरिवावही पडिकम), ११९६८९(३) देवानंदामाता सज्झाय, मु. चोथमल ऋषि, रा., गा. ७, पद्य, श्वे., (दरसण आव हो देवानंदा), ११९७४५-१३५ (+) देवानंदामाता सज्झाय, उपा. सकलचंद्र गणि, पुहिं., गा. १२, पद्य, मूपू., (जिनवर रूप देखी मन ), ११९२६०-२४(+), ११७९९७, ११८३३१-२, ११५८३९-१(#) दोषाकेवली, मा.गु., गद्य, श्वे., (१११ शरीर वेदना छे), ११६६१७($), ११७२४४($) दोहा संग्रह, मा.गु., गा. ५, पद्य, श्वे., (दसे बालो वीसे भोलो), ११८७३०-२ दोहा संग्रह - गूढार्थगर्भित, मा.गु., गा. ६७, पद्य, खे, (पृथवी मंडण तास पति), ११९४३२-६(+) दोहा संग्रह - जैन धार्मिक, पुहि. मा. गु., दोहा १, पद्य, मूपू. (अष्टापद श्रीआदजिनवर), ११५४१४-२ (०) " द्रव्यगुणपर्याय रास, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., ढा. १७, गा. ३८४, वि. १७२९, पद्य, मूपू., (श्रीगुरु जितविजय मन), १९६२३५ (०३) द्रव्यलक्षण विचार, मा.गु., गद्य, मूपू., (सत द्रव्यलक्षण जे), ११९८५५-८(०) " द्रौपदीसती चौपाई, वा. कनककीर्ति, मा.गु., ढा. ३९, गा. १९१७, वि. १६९३, पद्य, मूपू., (पुरिसादाणी पासजिण), ११८६५६(+#$) द्रौपदीसती चौपाई, मु. कवियण, रा. ढा. १२, पद्य, वे. (सुरसत समरु मनरूली सतगुरु), ११९६०८ (+), ११८६४१ द्वारिकानगरी ऋद्धिवर्णन सज्झाय, मु. जयमल, मा.गु., गा. ३२, पद्य, श्वे., (बावीसमा श्रीनेमिजिण), ११९५४७-७ धनदधनवती चौपाई, मा.गु., पद्य, मूपू., (--), ११६८७७ ($) धनप्रभावदर्शक सवैया, क. केशवदास, पुहिं. सबै १, पद्य, वै., इतर ( चाह करे जिनकी जग में), ११६४९५-२ धनवती चौढालियो, मु. . तेजपाल ऋषि, मा.गु., ढा. ४, गा. ७६, वि. १८९०, पद्य, श्वे., (धरमोदम कीजें भवि), १२००७३(#) धन्ना अणगार चौपाई, मु. सबलदास ऋषि, मा.गु., ढा. ६१, वि. १८६३, पद्य, थे. (त्रिभुवन नायक वीरना चरण), ११९०८८(+३) धन्ना अणगार सज्झाय, मु. ठाकुरसी, मा.गु., गा. २२, पद्य, श्वे. (जिनवाणी रे धना अमीय), ११५४४६-३(००६), ११५४६६-४(+) ', , For Private and Personal Use Only Page #576 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ५६१ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १.१.२६ धन्नाअणगार सज्झाय, क. मेघसागर, मा.गु., गा. २५, पद्य, मूपू., (समरी सरसति सामिणी), ११६७३३(+$) धन्नाअणगार सज्झाय, मु. श्रीदेव, मा.गु., गा. १२, पद्य, मपू., (जिनवचने वयरागी हो), १२०१४५-१ धन्नाअणगार सज्झाय, मु. सिंघ, मा.गु., गा. १५, पद्य, श्वे., (सरसति सामिनि वीन),११८५३२-१ धन्नाकाकंदी चौढालिया, मु. माल, मा.गु., ढा. ४, वि. १८२५, पद्य, मपू., (प्रथम समरु सुत देविन), ११८४९०-१ धन्नाकाकंदी सज्झाय, मु. तिलोकसी, मा.गु., गा. २२, पद्य, श्वे., (श्रीजिनवाणी रे धन्ना), ११६४३७-२(+), ११८३१६-१०(+), ११९२६०-१७(+) धन्नाकाकंदी सज्झाय, मु. रतनचंद, मा.गु., गा. ७, पद्य, श्वे., (नगरी काकंदी हो मुनीसर आपज), ११९९३१-३१(+) धन्नाकाकंदी सज्झाय, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., गा. २४, पद्य, मूपू., (श्रीजिनवाणी रे धना), ११६०९०($) धन्नाशालिभद्र सज्झाय, मु. उदयरत्न, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., (अजीया जोरावर कारमी), ११७८६१-२ धन्नाशालिभद्र सज्झाय, मु. नंदलाल शिष्य, मा.गु., गा. १३, वि. १९६१, पद्य, श्वे., (नगरी तो राजग्रना), ११५५२७-२() धन्नाश्री सवैया, पुहि., दोहा. ४५, पद्य, श्वे., (चौथे आरे केरा जसतीन), ११८४४३-१ धन्नासार्थवाह कथा, पुहिं., गद्य, मप., (राजग्रही नाम नगरी विषे), ११५९६०(+), ११९७४५-८७(+$) धर्मजिन स्तवन, मु. आनंदघन, मा.गु., गा. ८, पद्य, मपू., (धरमजिनेश्वर गाउं रंग), ११७८१७-१ धर्मजिन स्तवन, मु. उदय, मा.गु., गा. ९, पद्य, मूपू., (बेडलडे भार घणो छे राज), ११९६१२-६१(+#) धर्मजिन स्तवन, मु. मोहनविजय, मा.गु., गा.७, वि. १८पू, पद्य, मूपू., (हां रे मारे धरमजिणंद), ११९८२४-१६(+) धर्मजिन स्तवन, मु. रतनचंद, मा.गु., गा. १२, वि. १८५४, पद्य, श्वे., (मारो मन लागो धरमजिणंदसू), ११९९३१-१७(+) धर्मदत्तधनवती चौपाई, मु. राम, मा.गु., पद्य, मूपू., (विघनहरन सुखहि करन जिनवर), ११८३३२(+$) धर्मदासजी गुरुगण गीत, मु. चोथमल ऋषि, पुहिं., गा. ३७, पद्य, स्था., (पूज्य धर्मदासजी धर्म), १२००१५(+$) धर्मपरीक्षा पद, मु. अमोलक, पुहि., गा. ५, पद्य, श्वे., (आनंदकारि जेनधरम जग देते), ११९७४५-९(+) धर्मपरीक्षा वार्त्तिक, मा.गु., गद्य, मूपू., (कोइक भलो शिष्य विनइ), ११८३२१(+) धर्मपाप परिवार विचार, मा.गु.,रा., गद्य, श्वे., (धर्मरो पिता ज्ञान), १२००६८-४(+) धर्म भावना, मा.गु., गद्य, श्वे., (धन्य हो प्रभु संसार), ११७६१४-१(+), ११६५४७($) धर्ममहिमा पद, पुहि., गा. १, पद्य, मूपू., (धर्म हि मंगल मूल धर्म हि), ११७९४२-२ धर्मरुचिअणगार सज्झाय, मु. रतनचंद, मा.गु., गा. १५, वि. १८६५, पद्य, श्वे., (चंपानगरनी रुप सुंदर), ११९९३१-३६(+) ध्यानबत्रीसी, श्राव. बनारसीदास, पुहि., गा. ३६, वि. १७वी, पद्य, दि., (ग्यान सरूप अनंतगुन), ११९९६३-१३ नंदमणियार चौढालियो, रा., ढा. ४, वि. १८३४, पद्य, श्वे., (ग्यातारा तेरमां अधेन), ११८५७५(+) । नंदराजवेरोचनप्रधान कथा, मु. विनयचंद, मा.गु., ढा. ७, वि. १८७९, पद्य, श्वे., (जिन वीर जिनेश्वरू),११७०१० नंदिषेणमुनि रास, मु. ज्ञानसागर, मा.गु., ढा. १६, गा. २८४, ग्रं. ४२१, वि. १७२५, पद्य, मूप., (सुत सिद्धारथ भूपनो), ११८२५०(+) नंदिषेणमुनि सज्झाय, क. चतुरंग, मा.गु., गा. ६, पद्य, मूपू., (मुनिवर महियल विचरे), ११८२४५-८(+) नंदिषेणमुनि सज्झाय, मु. मेरुविजय, मा.गु., ढा. ३, गा. १६, पद्य, मूपू., (राजगृही नयरीनो वासी), ११८२४५-७(+), ११९२६०-१४(+) नंदिषेणमुनि सज्झाय, मु. हीरालाल, पुहि., गा. ८, वि. १९५९, पद्य, श्वे., (साधुजि मासखमण के पारणे रे), ११९७४५-१३६(+) नंदीश्वरद्वीप ५२ जिनप्रासाद ८प्रकारीपूजा स्तवन, ग. शिवचंद्र, मा.गु., पूजा. ८, गा. ७४, वि. १८७६, पद्य, पू., (स्वस्ति श्रीसुखकरण), ११८५३४(+) नंदीश्वरद्वीप जिनप्रतिमा स्तुति, श्राव. भगवतीदास भैया, पुहिं., गा. १५, पद्य, दि., (वंदो श्री जिनदेवको), ११९८८४-५४(+) नंदीश्वरद्वीपजिन स्तवन, मु. जैनचंद्र, मा.ग., गा. १५, पद्य, मप., (नंदीसर बावन जिनालये), ११८८४८-१ नगाजी महासती गरुगण ढाल, मा.गु., गा. ३७, वि. १८६२, पद्य, श्वे., (नगाजी निरमल करी करणी),११९७६०-५ नमस्कारचौवीसी, मु. क्षमाकल्याण, मा.गु., अ. २४, गा. १४४, वि. १८५६, पद्य, मूपू., (जय जय जिनवर आदिदेव), ११९९७८(+#) नमस्कार महामंत्र छंद, उपा. कुशललाभ, मा.गु., गा. १८, वि. १७वी, पद्य, मपू., (वंछित० श्रीजिनशासन), ११५७३८-२(+#$), ११९७५६-२(+), ११६६९८-७ नमस्कार महामंत्र छंद, मु. जिनप्रभसूरि-शिष्य, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., (सुखकारण भवियण समरो), ११९४३२-९(+-) For Private and Personal Use Only Page #577 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ५६२ देशी भाषाओं की मूल कृति के अकारादि क्रम से प्रत-पेटाकृति क्रमांक सूची परिशिष्ट-२ नमस्कार महामंत्र पद, आ. जिनवल्लभसूरि, मा.गु., गा. १३, वि. १२वी, पद्य, मूपू., (किं कप्पतरु रे आयाण), ११९७५६-१(+$), ११६३०५-१ नमस्कार महामंत्र लावणी, मु. विनोदीलाल, पुहिं., सवै.७, पद्य, श्वे., (जग मै सजी वचनह पंच), ११९५४७-१३ नमस्कार महामंत्र सज्झाय, मु. लब्धिविजय, मा.गु., गा. ९, पद्य, मूपू., (बार जपुं अरिहंतना), ११७२९२-३(+), ११५८८३-१ नमिराजर्षि ढाल, मु. आसकर्ण ऋषि, मा.गु., ढा. ७, वि. १८३९, पद्य, श्वे., (सासणनायक समरीये), ११७५५४ नय प्रमाण का थोकडा, मा.गु., गद्य, मूपू., (नय सात निक्षेप चार), ११७४३७(+$) नयविचार, मा.ग., गद्य, मप., (श्रीजिनवरेंद्रनैं), ११९९६७(+$) नरकगति प्राप्ति गीत, उपा. समयसुंदर गणि, पुहि., गा.१०, पद्य, मप., (जीव तणी हिंसा करइ, ब), ११५४९५-१(2) नरकविस्तार स्तवन, मा.गु., ढा. ६, गा. ३५, पद्य, म्पू., (वर्द्धमानजिन विनवू), ११५८९६() नलदमयंती चरित्र, वा. ज्ञानसागर, मा.गु., वि. १७५८, पद्य, मूपू., (प्रणमुं पारसनाथना चरण कमल), ११८५४४-१(+#) नलदमयंती चरित्र, रा., प+ग., श्वे., (--), ११६५३९(5) नवअंगपूजा दोहा, मु. वीरविजय, मा.गु., गा. १०, पद्य, मूपू., (जल भरी संपुट पत्रमा), ११९२१५-२९(+), ११७७०२-२(5) नवकारमंत्र छंद, मा.गु., पद. १, पद्य, मूपू., (पढो मंत्र नवकार ताप), ११९७०८-२(+) नवकारमहामंत्र पद, मु. दोलत, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (मंत्र जपो नवकार), ११६४८०-३ नवकारमहामंत्र रास, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., गा. २७, पद्य, मूपू., (पेहलो जी प्रणमु), ११७७०९(5) नवकारमहिमा सज्झाय, मा.गु., पद्य, मूपू., (--), ११७६३२(+$) नवकोठायंत्रभरण विधि, मा.गु., को., श्वे., (--), ११९७४५-१४०(+) नवग्रह छंद, मा.गु., गा. १, पद्य, वै., (दिन दीन अधिक जे जे करण), ११७४४७-३(#) नवग्रह पिता वाहन नाम, पुहि., गद्य, वै., इतर, (काश्यप के पुत्र आदित्य),११८५१४-२ नवग्रहरत्न छंद, मा.गु., गा. १, पद्य, वै., (मुगता को स्वामी चंद मुगा), ११७४४७-४(#) नवतत्त्व १३ द्वार विचार, मा.गु., गद्य, श्वे., (जीव चेतन १ अजीव अचेतन २),११९८०१ नवतत्त्व २७६ भेद विचार, मा.गु., गद्य, मपू., (जीवतत्त्व १४ भेद), ११८२२४-१(+), ११७५३८, ११७३१९(#$), ११९७९६-२(#), ११९९३०(६) नवतत्त्वभेद विचार-बृहद, मा.गु., गद्य, मपू., (जीव किणने कहीजे सुख), ११९२०६-३(+#) नवतत्त्वभेद विचार-संक्षिप्त, मा.गु., गद्य, मूपू., (जीवतत्त्व १ अजीव २), ११९२०६-२(+#) नवतत्त्व विचार, मा.गु.,रा., गद्य, मपू., (जीवाजीवापुण्णं), ११९२०६-१(+#) नवतत्त्वादि ९७ बोल संग्रह, मा.गु., गद्य, मूपू., (प्रथम नवतत्त्व कहे छे जीव), ११८१९०(#) नवदुर्गा विधान, पुहि., गा. ९, पद्य, दि., (प्रथम हि समकितवंत), ११९९६३-२५ नवपद आराधन विधि, मा.गु., गद्य, मूपू., (आसो सुदि सातमी तथा), ११५८९१, ११६५४९(#) नवपद उलाला, ग. देवचंद्र, मा.गु., गा. २१, वि. १८वी, पद्य, भूपू., (तीर्थपति अरिहा नमुं), १२००२८-१(+#) नवपद ओली उद्यापन विधि, गु., गद्य, मपू., (साडाचार वर्षे एकयाशी), ११८७२४-२(+) नवपद नमस्कार, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., गा. २१, पद्य, मपू., (नमोनंत संत प्रमोद), ११६०४९-६, ११७०३७ नवपद पूजा, पंन्या. पद्मविजय, मा.गु., ढा. ९, वि. १८३८, पद्य, मूपू., (श्रुतदायक श्रुतदेवता), ११६२२०(5) नवपदपूजा उपकरण सूचि, मा.गु., गद्य, मूपू., (श्रीफल९ अंगलुहणा९), ११९५८८-२ नवपद लावणी, क. बाल, पुहिं., गा. ५, वि. १९१७, पद्य, मपू., (जगतमें नवपद जयकारी), ११६२०० नवपद वचनिका, मा.गु., गद्य, मूपू., (ॐ ह्री नमो अरिहंताण), ११९९३५(+) नवपद व्याख्यान, मा.गु., व्याख. ९, गद्य, मपू., (--), ११९४९७(+$) नवपद स्तवन, मु. उत्तमसागर शिष्य, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (गोयम नाणी हो कहै), ११५२८५-२(+) नवपद स्तवन, मु. छगनचंद्र ऋषि, पुहिं., गा. ६, वि. १९४६, पद्य, श्वे., (श्रीअरिहंत चंद्र पदलंकृत), ११९४३२-१३(+-) नवपद स्तवन, आ. जिनपद्मसूरि, मा.गु., स्त. ९, पद्य, मूपू., (अरिहंतपद आराधीयै आणी ऊलट), ११९१९१, ११९६७२ For Private and Personal Use Only Page #578 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १.१.२६ नवपद स्तवन, मु. दानविजय, मा.गु., गा. २३, वि. १७६२, पद्य, मूपू., (सकल कुशल कमलानो), ११५४६४(#) नवपद स्तवन, पं. लब्धिरुचि, मा.गु. गा. १२, वि. १८८२, पद्य, मूपू. (तप नव पद प्रणमीयै प्रण), ११६५७८ (+) नवपद स्तवन, ग. हर्षेदु गणि, मा.गु., गा. ५, वि. १९०१, पद्य, मूपू., (ए दिन सफल भयो मे), ११५९८५(#) नवपद स्तुति, आ. अमृतचंद्रसूरि, मा.गु. गा. ५. वि. १९२४, पद्य, मूपू. (नवपद भज चेतन जयकारा संचित), ११९४३२-१५ (+) नवपद स्तुति, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू., (आसौ चेत्र आंबिल ओली नव), ११५३७१-२ (#$) (धन्वंतरि छपणक अमर घट), ११९९६३-२७ " " " नवरत्न कवित्त, पुहिं. गा. ११, पद्य, दि. नववाड सज्झाय, मु. चौथमल ऋषि, रा. नववाड सज्झाय, मा.गु., गा. १०, पद्य, नवसेना विधान, पुहिं. गा. १२, पद्य, दि. नागेश्वरीब्राह्मणी सज्झाय, मा.गु., गा. ३३, पद्य, मूपू (चंपानगरी सोहामणी रे) ११९२६०-९(+) नाटकपच्चीसी, श्राव. भगवतीदास भैया, पुहिं., दोहा. २४, पद्य, दि., (कर्म नाट नृत्य तोड क), ११९८८४-७९(+) नामनिर्णय विधान, पुहिं., गा. ११, पद्य, दि., ( काहु दिन काहू समै), ११९९६३-२६ वि. १८९५, पद्य, स्था. (सोलमो अधेन उत्तराधेनरो तिण), ११७२७१ मूपू., (नववाड सही जिनराज ), ११९४०२-१(#) (प्रथम महिपतिनाम दल), ११९९६३-४० नारकी आयुमान देहमान विचार, मा.गु., गद्य, म्पू, (रतनप्रभा जघन्य १००००), १९८४२९-१४(क) नारायण महत्तावर्णन पद, मा.गु., गा. ४, पद्य, जै. ?, (सायरजल समौ नही कोई सरवर), १२०१११-५ नारीरूप सज्झाय, मु. जिनहर्ष, मा.गु., गा. ८, पद्य, भूपू (चित्रलिखित जे पूतली), ११७७६९.५(४) नारी सज्झाय, पुहिं., गा. २३, पद्य, मूपू. (मूरख के भावे नहीं), ११९२६०-१८(+) निमित्त उपादान दोहा, जै.क. बनारसीदास, पुहिं. गा. ७. वि. १७वी, पद्य, दि., (गुरु उपदेश निमित्त ब) १९९९६३-४८ निमित्तकारण उपादानकारणनिर्णय संग्रह, पुहिं., गद्य, वे., (प्रथम ही कोई पूछता), ११९९६३-४७, ११८३१०-१(-#$) निश्चयव्यवहार सज्झाय, आ. हंसभुवनसूरि, मा.गु., गा. १६, पद्य, मूपू., (श्रीय जिनवर रे देशना), ११५८७४, १२०१५० निश्चयव्यवहार सज्झाय, आ. हंससूरि, मा.गु गा. ८, पद्य, भूपू (श्रीजिनवर रे देशना), ११५६३९(३) " निह्नव सझाय, रा., पद्य, भूपू (ठाणाअंग उवाइ उपगमें). ११७२११(०३) नेमराजिमती गीत, मु. कृपासागर, मा.गु., गा. ७, पद्य, वे (गुहिरा तो वनमा डुंगरियो), ११६७६६-१ " नेमराजिमती गीत, ग. जीतसागर, पुहिं., गा. १५, पद्य, मूपू., (तोरण आया हे सखी कहे), १२००२१-२ (+#), ११७७००-१($) नेमराजिमती गीत, मु. मल्लदास, मा.गु., गा. ६, पद्य, श्वे., (थाढी राजुल वीनवे रे पाय), ११६३१२-२ नेमराजिमती गीत, मु. रूपचंद, पुहिं., गा. ६, पद्य, खे, (आजू मे वारि नेमजी), ११९६१२-५ (+) नेमराजिमती गीत, मु. सोममंडन, मा.गु., गा. ८, पद्य, मूपू., (करजोडी रे राणी राजलि इम), ११६७७४-४(#) नेमराजिमती गीत, मु. सोममंडन, मा.गु., गा. ३, पद्य, म्पू (झिरमरि झिरमरि वरसिह मेहा), ११६७७४-२ (४) नेमराजिमती गीत, मु. सोममंडन, मा.गु, गा. ५, पद्य, मृपू., (नवण सलूणी रूडी रायमइ), ११६७७४-१(०) नेमराजिमती गीत, मा.गु., पद्य, मूपू., ( कइ जांणड परणतां सोहेली नर). १२०१४१-१(+) " , नेमराजिमती पद, मु. आणंदलाल, पुहिं., गा. ३, पद्य, मूपू., ( म्हारो बरज्यो मानो जी), ११६५०५-१२ नेमराजिमती पद, पं. कपूरचंद पुहिं. गा. ६, पद्य, मूपु. ( छाई घटा गगन में काली), ११५३६९-२ नेमराजिमती पद, मु. चंद, पुहिं. गा. ३, पद्य, श्वे. (यादव मन मेरो हर लीवो), ११६५७१-२ नेमराजिमती पद, मु. चेनविजय, पुहिं., गा. ४, पद्य, मूपू., (राजुल पोकारे नेम), ११७४८३-२ नेमराजिमती पद, मु. जयरामजी, मा.गु., गा. ७, पद्य, श्वे. (हे सलुणी सांवरी), ११५७४१-३ " , (सजन समझाओ अपने वाल), ११६०३१-१(०) (सुनरी सईया स्याम) १२००१३-१ मराजिमती पद, मु. जिनवास पुहिं, गा. ४, पद्य, म्पू., नेमराजिमती पद, मु. जिनदास, पु४ि. गा. ४, पद्य, म्पू नेमराजिमती पद, मु. जिनदास, रा. गा. ८, पद्य, म्पू, (स्वाम मिलन की उमग), १२००१३-२ नेमराजिमती पद, आ. जिनसिंहसूरि, मा.गु., गा. ६, पद्य, मूपू., (इवडो ग्यान धरो छो), १२०११७-२ नेमराजिमती पद, मु. माल, पुहिं., पद. १, पद्य, श्वे., (बनी नेमराजमती की जोरी), ११६८७९-३ नेमराजिमती पद, मु. रंगविजय, पुहिं. गा. ४, पद्य, मृपू., (तुझ वन मेरी कुन खबर), ११६८८९-४१०) For Private and Personal Use Only ५६३ Page #579 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra ५६४ www.kobatirth.org देशी भाषाओं की मूल कृति के अकारादि क्रम से प्रत-पेटाकृति क्रमांक सूची परिशिष्ट-२ नेमराजिमती पद, मु. रूपचंद, पुहिं., गा. ५, पद्य, मूपु. ( मत जाओ रे पीया तुम), १९१९६१२-५७(१) नेमराजिमती पद, मु. शिवरतन, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (बावीस सुभटने जीपवा), ११९९२२-१३ नेमराजिमती पद, पुहिं., गा. ३, पद्य, मूपू., (नेम तोरी नगरीया चल बसरे), ११६५०५-१३ "" राजिमती बारमासा, मु. कवियण, मा.गु., गा. १३, पद्य, मूपू., (सांवण मासे स्वाम), ११८७३६-५ मराजिमती बारमासा, मु. जिनहर्ष, मा.गु.. गा. १३, पद्य, भूपू (राणी राजुल इन परि), ११८७४२ (+) नेमराजिमती बारमासा, मु. लालविनोद, पुहिं., गा. २६, पद्य, मूपू., (विनवे उग्रसेन की), ११५८३० ($) नेमराजिमती बारमासा, रा. गा. १२, पद्य, थे. (काती कंत चीन कीम सरस), १२०९६०-१ नेमराजिमती बारमासा, मा.गु., गा. ९, पद्य, मूपू., (श्रावण वरसै रे सांमी मेली), ११७४७२ नेमराजिमती बारमासा, मा.गु., पद्य, मूपू. (सखी री सांभल तू वाणी इम), ११७७००-२(४) नेमराजिमती बारमासा, मा.गु., गा. २२, पद्य, म्पू, (--). ११६३११-१(३) " י Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir नेमराजिमती बारमासो, श्राव. जीवा मयाराम, मा.गु., गा. २६, वि. १८२५, पद्य, श्वे., (सरसती अंबे माता नमु), ११७३२५-६(+) नेमराजिमती भास, मु. सोममंडन, मा.गु., गा. ८, पद्य, मूपू., (सतीय सरोमणि इम भणइ), ११६७७४-३(#) " " (प्रथम मनाउ श्रीनवकार), ११६०८७(-) मराजिमती भास, मु. सोममंडन, मा.गु., गा. ९, पद्य, मूपू., (ससि वयणी कहइ सूडला सूडा), ११६७७४-६ (०) नेमराजिमती रास, मु, पुण्यरत्न, मा.गु., गा. ७०, पद्य, मूपू. (सारद पय पणमी करी), १९८५५०- २ (४) नेमराजिमती लावणी, मु. जिनदास, पु,ि गा. ४, वि. १७वी, पद्य, भूपू (एजी तुम तजकर राजुल), ११६०३१-२(१) नेमराजिमती संवाद, मु. लालविनोद, पुहिं. सबै ४, पद्य, वे (व्याहनेकुं आया सिरसे) ११६५०५-१४ मराजिमती सज्झाय, मु, कांतिविजय, मा.गु., गा. १५. वि. १७७१, पद्य, मूपू (राणी राजुल करजोडी), १९५६८२(*) नेमराजिमती सज्झाय, मु. चंदनलाल, मा.गु., गा. २५, पद्य, श्वे. नेमराजिमती सज्झाय, मु. चोथमल ऋषि, मा.गु., गा. २१, वि. १८२२, पद्य, श्वे., (राजुल इण परि वीनवै), ११५६३४-१(+) नेमराजिमती सज्झाय, मु. दयातिलक, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू. (गौष चढी राजलि कहे हो लाल), ११६७६६-२ नेमराजिमती सज्झाय, मु. धनीदास, पुहिं., गा. ११, पद्य, श्वे., (नेमजी से होली मचाई), ११६५८४-४(#) नेमराजिमती सज्झाय, मु, धरम, मा.गु., गा. ९, पद्य, म्पू. (नव भव केरी प्रित घरी). ११६७५८-४(+) नेमराजिमती सज्झाय, मु. रायचंद ऋषि, रा., गा. १३, वि. १८४०, पद्य, श्वे. ( नगर सोरीपुर शोभता), १२००९५-३(#) नेमराजिमती सज्झाय, मु. वेलजी, मा.गु., गा. ८, पद्य, वे (समुद्रविजय सुत नेम), ११८२४५-१३(५) मराजिमती सज्झाय, मा.गु., गा. १३, पद्य, मूपू., (चडिवऊ बारह देखता), १२००८३-२(५) नेमराजिमती सज्झाय, मा.गु., पद्य, मूपू., (सांवलिया रे श्रावण०), ११८५४४-३ (+#$) नेमराजिमती सज्झाय, मा.गु., पद्य, भूपू (--). ११७२७५ (5) नेमराजिमती सज्झाय, मा.गु., गा. ५, पद्य, भूपू., (--), ११६५०३-१(०) नेमराजिमती स्तवन, मु. कहान ऋषि, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू नेमराजिमती स्तवन, पं. धर्मकुशल, मा.गु., गा. ३१, पद्य, मूपू. (नेमसु वीनवूं वातडली), १२००९९-३ (०) (सकल मनोरथ पुरणो रे लाल), ११९६१२-९६ (+) राजिमती स्तवन, पंडित मानविजय, मा.गु., गा. ११, पद्य, मूपू. (पोपटडा संदेसो कहेजे), ११९६१२-७८(+) राजिमती स्तवन, मु. मोहन, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., (राजुल कहे रथ वालो), ११९८२४-२३ (+), ११६९५०-४(#) , नेमराजिमती स्तवन, मु. मोहनविजय, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., (कां रथ वाळो हो राज), ११९८२४-१८ (+), ११७२९४-१ ($) नेमराजिमती स्तवन, मु. मोहनविजय, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., (यादवजी हो समुद्रविजय), ११९८२४ १४(०) नेमराजिमती स्तवन, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., गा. ६, पद्य, मूपू., (तोरणथी रथ फेरी गया), ११९९४२ - ३(+) नेमराजिमती स्तवन, मु. रतनचंद, मा.गु., गा. १५, पद्य, श्वे., (इम किम छोड चले मोय जिनजी), ११९९३१-२२(+) नेमराजिमती स्तवन, मु. रतनचंद, मा.गु., गा. १०, पद्य, थे. (समुदविजेजीरा लाडला हो), ११९९३१-१९(+) नेमराजिमती स्तवन, मु. रतनचंद, मा.गु., गा. ११, वि. १८५३, पद्य, श्वे., (समुद्रविजेजी को नंदन नीका), ११९९३१-२३(+) नेमराजिमती स्तवन, मु. रामविजय, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., (राजुल कहे सुणो नेमजी), ११६९५०-५ (७) नेमराजिमती स्तवन, मु. राम, मा.गु., गा. १४, पद्य, वे (श्रीजिणवर वीनती सखी), १२००९७-२(४) " For Private and Personal Use Only Page #580 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १.१.२६ ५६५ नेमराजिमती स्तवन, मु. शिवचंद, रा., गा. ५, पद्य, श्वे., (जउ थे चाले शिवपुरी), ११९६१२-३(+#) नेमराजिमती स्तवन, पुहि., गा. २०, पद्य, श्वे., (क्यु आया किम फीर), १२००३६($) नेमराजिमती स्तवन-१५ तिथिगर्भित, ग. रंगविजय, मा.गु., गा. २३, पद्य, मूपू., (जे जिनमुखकमले विराजे), ११९८१५-६(+#$) नेमराजिमती स्तवन-१५ तिथि गर्भित, मु. रंगविजय, मा.गु., गा. २४, पद्य, मपू., (सारद माता दिल धाउं रे), ११७३२५-२(+) नेमराजिमती होरीपद, पुहिं., गा. ५, पद्य, मपू., (मेरो नेम पीया परदेस होरी), ११६३५२-६ नेमिजिन १० भव स्तवन, पुहि., पद्य, दि., (पहले भव तोहे प्रभु भील),११८१४७-७० (#$) नेमिजिन गीत, मु. रूपचंद, रा., गा. ५, पद्य, मपू., (होरी खेले निरंजण), ११९६१२-३३(+#) नेमिजिन चरित्र, मु. जेमल ऋषि, मा.गु., ढा. ४५, वि. १८७४, पद्य, स्था., (नगरा सुरीपुर राजीयो), ११६२४०(5) नेमिजिन चरित्र, मा.गु., गद्य, मपू., (अरहा अरिट्टनेमि एकदा), ११८६५०($) नेमिजिन चैत्यवंदन, मु. रूपविजय, मा.गु., गा. ३, पद्य, मूपू., (राजुलवर श्रीनेमनाथ), ११७९०६-३(#) नेमिजिन पद, मु. क्षांति, मा.गु., गा. ६, पद्य, मूप., (प्यारे कुन बतावे मोरी सही), ११९९२२-७ नेमिजिन पद, मु. लालचंद, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (हेली गिरनारै बोल्या), ११६८०५-२ नेमिजिन पद, मा.गु., पद. २, पद्य, म्पू., (दील दामे हरम यार मेडा मीत), ११९६१२-२८(+#) नेमिजिन पद, पुहिं., गा. ३, पद्य, श्वे., (वारी हो बधाइयां रंग), ११८१४७-६३(#) नेमिजिन रास, मा.गु., ढा. १८, पद्य, श्वे., (संखराजाने जसोमती), ११९८४३(+) नेमिजिन लावणी, मु. जिनदास, पुहिं., गा. ४, पद्य, म्पू., (तुम तजीय कर राजुल), ११७००४-४(+) नेमिजिन विवाहलो, मु. ब्रह्म, मा.गु., ढा. ४६, पद्य, श्वे., (सारद सार दया करे), ११९०९३(+) नेमिजिन सज्झाय, मु. ऋषभ, मा.गु., गा. १०, पद्य, मूपू., (नगरी द्वारिका नेमिजिनेसर), ११७९९० नेमिजिन स्तवन, आ. अमृतचंद्रसूरि, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (मनमोहन मेरे नेमजिणंद), ११९५०६-३(#) नेमिजिन स्तवन, मु. आनंदरत्न, रा., गा. १२, पद्य, मूपू., (थां पर वारी हो नेम), ११८९६५-४(+) नेमिजिन स्तवन, मु. क्षमाकल्याण, मा.गु., गा. ११, पद्य, मपू., (जगपति नेम जिणंद प्रभ), ११९५०६-१(#$) नेमिजिन स्तवन, मु. चोथमल, रा., गा. ७, वि. १८५२, पद्य, श्वे., (श्रीनेमीसर साहिबा), ११७०८७-२(+) नेमिजिन स्तवन, मु. दोलतविजय, मा.गु., गा. ६, वि. १८२५, पद्य, मपू., (सोरठ देश सोहामणो रे तीरथ), ११७३६८-२ नेमिजिन स्तवन, मु. मोहनविजय, मा.गु., गा. ९, पद्य, मूपू., (उग्रसेन नृपपति तनया), ११९८२४-९(+) नेमिजिन स्तवन, मु. मोहनविजय, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., (ओत्तरवालीओ नहि धनमाल), ११९६१२-५६(+#) नेमिजिन स्तवन, मु. मोहन, पुहि., गा. ७, पद्य, मपू., (सजेलार जलधार सुखकार), ११९८२४-३५(+) नेमिजिन स्तवन, मु. रतनचंद, मा.गु., गा. ११, वि. १८४९, पद्य, श्वे., (नेमीसर जिन तारो हो तुम), ११९९३१-२०(+) नेमिजिन स्तवन, मु. रतनचंद, मा.गु., गा. १३, वि. १८५४, पद्य, श्वे., (सावलीया मूरत ताहारी प्रभु), ११९९३१-२१(+) नेमिजिन स्तवन, पं. वीरविजय, मा.गु., गा. ८, वि. १९वी, पद्य, मूपू., (सखी श्रावणनी छठ उछली), ११७८४८-१ नेमिजिन स्तवन, मु. हर्षचंद, पुहि., गा. ४, पद्य, श्वे., (माई री में जिनजी से), ११६३५२-१ नेमिजिन स्तवन, मा.गु., पद्य, मूपू., (सुणज्यो नेम कहिजे एम), ११६३५१-३($) नेमिजिन स्तवन-गिरनारमंडन, मु. क्षमाकल्याण, मा.ग., गा. १३, वि. १८६६, पद्य, मप., (श्रीनेमीश्वर वंदीय), ११८८४८-२३ नेमिजिन स्तवन-गिरनारमंडन, उपा. क्षमाकल्याण, मा.गु., गा. ५, वि. १९वी, पद्य, मपू., (श्रीयादवकुल मंडण स्वामी), ११६२९७-११(+) नेमिजिन स्तवन-दशत्रिकगर्भित, मु. लालचंद, मा.गु., ढा. ४, वि. १८३३, पद्य, मूपू., (सद्गुरु चरण नमी करी), ११९६००-१(+) नेमिजिन स्तुति, क. ऋषभदास संघवी, मा.गु., गा. ४, वि. १७वी, पद्य, पू., (श्रावण सुदि दिन), ११७२९६-३(+) नेमिजिन स्तुति, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू., (सुर असुर वंदित पाय पंकज), ११८८८७-११(+), ११९१४३-२७(+-), ११९६४८-२९(5) नेमिजिन स्तुति-गिरनारमंडन, आ. जिनलाभसूरि, मा.गु., गा. ४, पद्य, पू., (गिरनारसिहरि पर नेमि), ११९१४३-२४(+-) नेमिराजर्षि सज्झाय, मु. ऋषिराय, रा., गा. ९, वि. १९५१, पद्य, श्वे., (सेवाजी कीजे सुद परणाम नेम), ११६५८४-२(-2) पंखीडा विवाहलो, मा.गु., गा. ३०, पद्य, इतर, (तीतर बेठो ताडु करे), ११५६६५-२(+#) For Private and Personal Use Only Page #581 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org ५६६ देशी भाषाओं की मूल कृति के अकारादि क्रम से प्रत-पेटाकृति क्रमांक सूची परिशिष्ट-२ पंचकल्याणकअभिषेक स्तवन, मु. लक्ष्मी, मा.गु., ढा. ५, पद्य, मूपू., (जय केवल कमला केलि), ११८२०७-१(+) पंचकल्याणक मंगल, मु. रूपचंद्र, मा.गु., डा. ५, गा. २५, पद्य, श्वे. (पणमवि पंच परम गुरु), ११६०९५ (+8), १९८९४७-५(१) पंचकल्याणक स्तवन, मु. हेमचंद ऋषि, मा.गु., गा. २३, वि. १८९३, पद्य, मूपू., (सरसती चरण नमी करी हरखे), ११६२२९ पंचजिन स्तवन, क. बनारसीदास, पुहिं. गा. १३, पद्य, दि., (तुम तरणतारण भवनिवारण), १९८९४७-६४(१ " पंचतीर्थ चैत्यवंदन, उपा. क्षमाकल्याण, मा.गु., गा. १५, पद्य, म्पू (जै जै नाभिनरिंद नंद), ११५७११-१ יי पंचतीर्थ चैत्यवंदन, मु. गुणसागर, मा.गु., गा. ६, पद्य, मूपू. (आदि जिनवर आदि जिनवर प्रथम), ११६३२५-४ पंचतीर्थ स्तवन, पुहि., गा. ८, पद्य, म्पू, तुम तरण तारण विघनवार), ११५७६३-३ पंचपदविधान वर्णन, जै. क. बनारसीदास, पु.ि गा. १२. वि. १७वी, पद्य, दि.. ( नमो ध्यान धर पंचपद ), ११९९६३-२२ पंचपरमेष्ठि १०८ गुण बोल, मा.गु., गद्य, मूपु., (दिव्य१ सासोसाससुगंध २ लोही), ११८२२४-८(+) " "" पंचपरमेष्ठि गीता, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., गा. १८, पद्य, मूपू., (नमस्कार अरिहंतने,वास), ११७६४४ पंचपरमेष्ठि गुणवर्णन गीता, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु.. गा. १३१, पद्य, मूपू (प्रणमी प्रेम), ११८९६० पंचपरमेष्ठी गुण, मा.गु., गद्य, दि. १, (४६ अर्हगुणाः ३४ अतिशय ८), ११८६०४-८(+#) पंचपरमेष्ठी नमस्कार स्तवन, श्राव. भगवतीदास भैया, पुहिं. गा. ६, पद्य, दि., (प्रातः समय श्री), ११९८८४-४५ (+) पंचम आरा विवरण- मोक्षादिगमन, पुहिं., गद्य, वे., (पाचमा आरामे सुद्ध आचारी), ११९७४५-४४(१) पंचमआरा सज्झाय, मु. चोथमल ऋषि, मा.गु., गा. ७, पद्य, श्वे., (नित रे नित गांवडै जावणौ), ११६५८४-३(#) पंचमआरा सज्झाय, मु. जिनहर्ष, मा.गु., गा. २१, पद्य, मूपू., (वीर कहे गीतम सुणो), ११५९७२, ११७८१७-२ पंचम आरा सज्झाय, मा.गु.. गा. २४, पद्य, मूपू., (वीर कहै गौतम सुणो पंचम), ११९२६०-२(+) पंचमआरा स्वरूप-सिद्धपाहूड, रा., गद्य, श्वे., (कोसबिनगरि जितसतरूराजा), ११९७४५-४३(+) पंचमहाव्रत कथासंग्रह, मा.गु., अ. ५, गद्य, मूपू., (बालक जीवने हितने ), ११९२५५ (+$) पंचमीतिथिपर्व सज्झाय, मु. कांतिविजय, मा.गु., गा. ७, पद्य, म्पू, (सद्गुरू चरण पसाउले), ११८२४५-३(+) " पंचमीतिथि स्तुति, आ. जिनचंद्रसूरि, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू. (पंच अनंत महंत गुणाकर), ११९६४८-२८ पंचमीतिथि स्तुति, मु. जीवविजय मु. सौभाग्यविजय, मा.गु. गा. ४, वि. १७८४-१८००, पद्य, मूपू (पंचमी दिन जनम्या नेम), ११५३०१-३(S) पंचमी तिथि स्तुति, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू (पंचरूप करि मेरुशिखर), ११५३०१-१(5) पंचमेरु पूजा, जै.क. द्यानतराय, पुहिं., दोहा. २३, प+ग. दि., (तीर्थंकरों के न्हवन), ११८१४७-२३(#) ११६७६० पट्टावली, मा.गु., गद्य, मूपु. ( श्रीवर्द्धमानस्वामी), ११७६२३ ', Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir पंचमेरुपूजा विधि, पुहिं., प+ग. वि. (हेमझारी रत्नझारी गंगा जल ). १९८१४७-२१(१) , * , पंचषष्ठि यंत्र विचार, मा.गु, प+ग, भूपू इतर (घर वर्ग पंच मंडप चोल), ११५७९१-१ (+) , पंचांगविधि दोहा, मु. मेघराज, मा.गु., गा. ५८, वि. १७२३, पद्य, मूपू., इतर, (गवरीनंद आनंद करि), ११७४८८(+#), ११६१७१-२, पट्टावली अंचलगच्छीय, मा.गु., गद्य, मूपू., (जिणइ कलिकाल तणइ योगइ), ११६३७५-१(#) पट्टावली खरतरगच्छीय, मा.गु., गद्य, म्पू., (गुवरग्रामवासी वसुभूति नाम), ११९१९४, ११७३८३(5) पट्टावली तपागच्छीय, मा.गु., गद्य, मूपू., ( तिहां गुरु परपाटि), ११७९१९($) पट्टावली तपागच्छीय, मा.गु. गद्य, म्पू, (श्रीवर्द्धमान), ११५८६६-१, ११९५८१ पट्टावली - परशुरामजी समुदाय, मा.गु., गद्य, स्था., (श्री अनोपचंदजी ओसवाल टोडा), ११९८६५ पट्टावली लोंकागच्छीय, रा., गद्य, श्वे., (श्रीमहावीरस्वामीने), ११९५५५-२(#) पदसंग्रह, मा.गु., पद्य, जे. वे. इतर ? (पदराग भरु बोत दिनांक), ११५५७८-२ पद्मप्रभजिन पद, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., गा. ३, पद्य, मूपू. ( मेरी मन मोह्यो जिन), ११९६१२-१४(+) पद्मप्रभजिन स्तवन, मु. मानविजय, मा.गु., गा. ५, पद्य, भूपू (श्रीपद्मप्रभुना नाम), ११९८१५-५ (+) " पद्मप्रभजिन स्तवन, मु. मोहनविजय, मा.गु., गा. ७, वि. १८वी, पद्य, मूपू., (परम रस भीनो म्हारो), ११९८२४-१७(१) For Private and Personal Use Only Page #582 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १.१.२६ पद्मप्रभजिन स्तवन, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (कोसंबी नयरी भलीजी), ११६१२३-२ पद्मप्रभजिन स्तवन-नाडोलमंडन, मु. जिनेंद्रसागर, मा.गु., गा. १५, पद्य, मप., (श्रीपद्मप्रभु जिनराय), १२००८४(+) पद्मप्रभजिन स्तवन-संप्रतिराजावर्णनगर्भित, मु. कनक, मा.गु., गा. ९, पद्य, श्वे., (धन धन संप्रति साचो), ११५८३९-२(#S), ११६०१६(#) पद्मावती आराधना, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., ढा. ३, गा. ३६, वि. १७वी, पद्य, मूपू., (हवे राणी पद्मावती), ११५४८२(+$), ११७२९२-२(+), ११७३६२(+#), ११९५१४-२(+$), ११९७५६-३(+), ११५६८४, ११६०३०, ११६१२२ परमशतक दोहा सोरठा बंध, श्राव. भगवतीदास भैया, पुहिं., क.ड. १००, वि. १७३२, पद्य, दि., (पंच परमपद प्रणमि), ११९८८४-६(+) परमात्मछत्तीसी, श्राव. भगवतीदास भैया, पुहि., गा. ३६, वि. १७५०, पद्य, दि., (परमदेव परमातमा परम ज्योति), ११९८८४-७८(+) परमात्मा जयमालिका, श्राव. भगवतीदास भैया, पुहिं., गा. ७, पद्य, दि., (परमदेव परणांम करि परम), ११९८८४-१३(+) परमार्थ अष्टपदी, पुहि., गा. ८, पद्य, दि., (ऐसै ज्यौं प्रभु पाईइ), ११९९६३-५५, ११९९८७-४ परमार्थ हिंडोलना, क. केसवदास, पुहि., गा. ८, पद्य, दि.?, (हरख हिंडोलना झूलत), ११९९६३-७० परिमाण विचार-कलिंगदेश परिभाषा, मा.गु., गद्य, जै., इतर?, (१२सर्षप १यव २यवा १गुंजा), १२०१४७-२ परिमाण विचार-मगधदेश परिभाषा, मा.गु., गद्य, जै., इतर?, (३० परमाणु की १त्रसरेणु), १२०१४७-१ पर्याप्ता अपर्याप्ता ३१ द्वार विचार, रा., गद्य, श्वे., (--), ११८४९६(+$) पर्युषणपर्व अठाई स्तवन, मु. हेमसौभाग्य, मा.गु., गा. ३७, पद्य, मूप., (प्रणमुं पास जिणंदा), ११८८४८-२४ पर्युषणपर्व गहुंली, मु. मोहनविजय, मा.गु., गा. ५, वि. १८वी, पद्य, मूपू., (पर्युषण धर्म भूषण भलुंजे), ११६५१४-२ पर्युषणपर्व गहुंली, मु. मोहनविजय, मा.गु., गा. ७, वि. १८वी, पद्य, मूपू., (श्रीब्राह्मी लीपी प्रणमी), ११६५१४-१ पर्युषणपर्व चैत्यवंदन, मु. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू., (सब परबो मे एही परब अलबेला), ११५४०३ पर्युषणपर्व चैत्यवंदन, मु. प्रमोदसागर, मा.गु., गा. १३, पद्य, मूप., (सकलपर्व शृंगारहार), ११६४५३(+), ११५४५२ पर्युषणपर्व चैत्यवंदन, मु. विनीतविजय, मा.गु., गा. ३, पद्य, मूपू., (कल्पतरुवर कल्पसूत्र), ११९४९०-३(-2) पर्युषणपर्व चैत्यवंदन, मु. विनीतविजय, मा.गु., गा. ३, पद्य, मूप., (जिननी बहिन सुदर्शना), ११९४९०-५(-2) पर्युषणपर्व चैत्यवंदन, मु. विनीतविजय, मा.गु., गा. ३, पद्य, मूपू., (प्रणमुं श्रीदेवाधि), ११९४९०-२(-2) पर्यषणपर्व चैत्यवंदन, मु. विनीतविजय, मा.गु., गा. ३, पद्य, मप., (श्रीशजय शृंगार), ११६३४०(+), ११९४९०-१(-2) पर्युषणपर्व चैत्यवंदन, मु. विनीतविजय, मा.गु., गा. ३, पद्य, मपू., (सुपन विधि कहे सुत), ११९४९०-४(-2) पर्यषणपर्व पद, श्राव. चुनीलाल, पुहि., गा. ४, पद्य, श्वे., (पर्वपजुसण मेला देखो), ११९२६०-३७(+) पर्युषणपर्व सज्झाय, मु. जगवल्लभ, मा.गु., गा. १६, पद्य, मूपू., (प्रथम प्रणमु सरस्वती), ११६०३३ पर्युषणपर्व सज्झाय, मु. मतिहंस, मा.गु., गा. ११, पद्य, मूपू., (पर्व पजुषण आवीया रे), ११७१०१(+) पर्युषणपर्व सज्झाय, ग. हंस, मा.गु., गा. ११, पद्य, मूपू., (पर्व पजुसण आवीया रे), ११६५७४ पर्यषणपर्व स्तति, मु. चिदानंद, मा.गु., गा. ४, पद्य, मप., (मणि रचित सिंहासन बेठ), ११५८३५-२ पर्युषणपर्व स्तुति, आ. जिनलाभसूरि, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू., (वली वली हुं ध्या), ११९१४३-३४(+-) पर्युषणपर्व स्तुति, मु. जिनेंद्रसागर, मा.गु., गा. ४, वि. १८वी, पद्य, मूपू., (वरस दिवसमां अषाड), ११८७३६-१० पर्युषणपर्व स्तुति, मु. बुधविजय, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू., (वीरजिणेसर अतिअलवसर प्रात), ११८८८७-१३(+) पर्युषणपर्व स्तुति, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू., (परव पजुसण पुण्ये), ११६५०१ पर्युषणपर्व स्तुति, मु. विजयदेवसूरि शिष्य, मा.गु., गा. ४, पद्य, पू., (पर्व पजुसण पुण्ये), ११८८८७-१८(+) पर्युषणपर्व स्तुति, मु. शांतिकुशल, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू., (परव पजुसण पुन्य), ११६३९०-२(#) पर्युषणपर्व स्तुति, आ. श्रीप्रभसूरि, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू., (पुन्यवंता पोसाले आवे पर्व), १२०००८ पर्वतिथि वर्जितवस्तु नाम, मा.गु., गद्य, श्वे., (पान नागरमग्घी नींबू), ११७०७१-२(+) पल्यव्रत विधि, मा.गु., गद्य, दि., (--), ११५८०४-१(#$) पल्ली नाम संग्रह, मा.गु., गद्य, जै., वै., इतर, (पल्ली१ छिपाकीर गृहगोधा३), ११९५८९-३ For Private and Personal Use Only Page #583 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ५६८ देशी भाषाओं की मूल कृति के अकारादि क्रम से प्रत-पेटाकृति क्रमांक सूची परिशिष्ट-२ पल्लीपतन विचार, मा.गु., गद्य, वै., इतर, (अथातः संप्रवक्ष्यामि शृणु), ११९५८९-४ पांडव चरित्र, ग. कमलहर्ष, मा.गु., उल्ला . १८, वि. १७२८, पद्य, मपू., (--), ११८९९२(+#) पांडव रास, आ. गुणसागरसूरि, मा.गु., खं. ९ ढाल १५१, ग्रं. ५७५०, वि. १६७६, पद्य, मप., (श्रीजिन आदिजिनेश्वरू), ११८१५१(+#), ११८५२२(#), ११८३६७(5) पांडुराजा वार्ता, रा., गद्य, श्वे., (अवै पंडुजी गंगे वजीर), ११८७११(+#$) पापपुण्य फल सज्झाय, मा.गु., गा. १८, पद्य, मूप., (चवदपूरब मांहि ते हज सार), १२०१४४-३ पापबुद्धिराजा धर्मबुद्धिमंत्री रास, मु. लालचंद, मा.गु., ढा. ३९, गा. ५३५, वि. १७४२, पद्य, मूपू., (प्रथम जिणेसर परगडो), ११९९५२(#) पार्श्वचंद्रसूरिअष्टप्रकारी पूजा, मा.गु., पद्य, मूपू., (जलपूजा जलः सुपूरै घृत), ११७४९२(+) पार्श्वचंद्रसूरिगुरुगुण पद, मु. अबीरचंद, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (गुरुदेव भरोसा तेरा हम), ११५५०१-२(+) पार्श्वचंद्रसूरिगुरुगुण पद, मु. अबीरचंद, मा.गु., गा. ३, पद्य, मूपू., (श्रीगुरुदेव साहाई जिनके), ११५५०१-४(+) पार्श्वचंद्रसूरिगुरुगुण पद, मु. इंद्रचंद्र, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (पाशचंद्रसूरिंद मन भाया), ११५५०१-३(+) पार्श्वचंद्रसूरिगुरुगुण पद, मु. इंद्रचंद्र, पुहि., गा. ४, पद्य, मूपू., (सद्गुरु की बलिहारी जग मे), ११५५०१-५(+) पार्श्वचंद्रसूरिगुरुगुण स्तवन, मु. अबीरचंद, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (प्रात समय सुमरण सद्गुरु), ११५५०१-१(+) पार्श्वजिन अष्टप्रकारी पूजा, आ. दीपरत्नसूरि; श्राव. वच्छ भंडारी, मा.गु., पूजा. ८, पद्य, पू., (क्षीर जलनिधि नीर), ११७५९८-३(+#), ११८१४७-१६(#) पार्श्वजिन गीत, मु. आनंदघन, पुहि., गा. ३, वि. १८वी, पद्य, मपू., (मेरे एही ज चाहीइं), ११५५५५-५(+#), ११९६१२-१६(+#) पार्श्वजिन चैत्यवंदन, मु. रूपविजय, मा.गु., गा. ३, पद्य, मूप., (जय जय श्रीपार्श्वनाथ), ११७९०६-४(#) पार्श्वजिन चैत्यवंदन-शंखेश्वरतीर्थ, पंन्या. रूपविजय, मा.गु., गा. ९, वि. १९वी, पद्य, मूपू., (सकल भविजन चमत्कारी), ११९२१५-२३(+), १२००८० पार्श्वजिन छंद-अंतरिक्षजी, वा. भावविजय पं., मा.गु., गा. ६३, पद्य, मूपू., (सरसत मात मना करी), ११७३४९(+$), ११८४४८-१(+), ११७६००(#$) पार्श्वजिन छंद-अंतरीक्षजी, मु. लावण्यसमय, मा.गु., गा. ५५, वि. १५८५, पद्य, मप., (सरस वचन दियो सरसति), ११७१९९, ११६५९०-१(#S), ११६५९०-६(#), ११६००१-३(), ११६०११(६), ११६३६५(६) पार्श्वजिन छंद-अहिच्छत्रा, श्राव. भगवतीदास भैया, पुहि., गा. ७, वि. १७३१, पद्य, दि., (अश्वसेन अंगज निलौं वामा), ११९८८४-१६(+) पार्श्वजिन छंद-गोडीजी, म. उदयरत्न, मा.ग., गा.८, पद्य, मप., (धवल धींग गोडी धणी सेवक जन),११८५१३-२ पार्श्वजिन छंद-गोडीजी, मु. राम, मा.गु., गा. ६४, वि. १७७२, पद्य, मपू., (ॐकार लीला ललित कलित), ११९२१५-७(+) पार्श्वजिन छंद-गोडीजी, मा.गु., गा. ४६, पद्य, मूपू., (सुवचन आपो शारदा मया), ११५९१७-३, ११७२०७(६), ११७७२४(६) पार्श्वजिन छंद-चिंतामणि, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (कर दुम पदुदुड मदम क्रिकर), ११९२१५-१६(+) पार्श्वजिन छंद-नाकोडामंडन, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., गा. ८, वि. १७वी, पद्य, मप., (आपण घर बेठा लील करो), ११९२१५-३०(+) पार्श्वजिन छंद-शंखेश्वर, मु. उदयरत्न, मा.गु., गा. ७, पद्य, मपू., (सेवो पास शंखेश्वरो), ११९२२०-६(+#s), ११९४३२-१७(+-), ११७३४४-१ पार्श्वजिन छंद-शंखेश्वर, ग. कनकरत्न, मा.गु., गा. २५, वि. १७११, पद्य, मपू., (सरसति सार सदा बुध), ११९२१५-१(+), ११६५८६(६) पार्श्वजिन छंद-शंखेश्वर, ग. जिनहर्ष, मा.गु., गा.८, पद्य, मपू., (सकल सुरासुर सेवे), ११९२१५-३२(+) पार्श्वजिन छंद-शंखेश्वरतीर्थ, मु. पद्मविजय, पुहि., गा.७, पद्य, मपू., (श्रीशंखेश्वर गाम), ११५६९४-१(+), ११९२१५-५०(+) पार्श्वजिन छत्तीसी, मु. मोहनलाल, पुहि., गा. ३७, पद्य, मपू., (अश्वसेन घर मिलण वधाईयां), ११८५०९-७(+) पार्श्वजिन जन्मबधाई, मु. मोहन, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., (आज तो वधाई असुसैनके दरबार), ११८५०९-६(+) For Private and Personal Use Only Page #584 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १.१.२६ पार्श्वजिन तीर्थमाला स्तवन, उपा. जसकुशल, मा.गु., गा. १८, पद्य, मूपू., (पुरसादांणी पासजिण), १२००९३(+#) पार्श्वजिन निसाणी-घग्घर, मु. जिनहर्ष, पुहि., गा. २७, पद्य, मपू., (सुखसंपत्तिदायक सुरनर), ११९९२२-१, ११५७६८-२(#S), ११६६०९(क) पार्श्वजिनपंचकल्याणक पूजा विधिसहित, पं. वीरविजय, मा.गु., ढा. ८, वि. १८८९, पद्य, मूपू., (संखेश्वर साहेब सुर), ११७०५५-१(+$), ११९४०७-१(+), ११५६८५(#$) पार्श्वजिन पट्टावली, मा.गु., गद्य, मप., (तेवीसमउ तीर्थंकर श्रीपार), ११९९५०(+#$), ११६७९३($) पार्श्वजिन पद, म. कनककीर्ति, पहि., गा. ३, पद्य, मप., (तं मेरे मन में तं), ११६५०५-९ पार्श्वजिन पद, मु. लालचंद ऋषि, पुहिं., पद. ३, पद्य, श्वे., (श्रीजिनराज सदाइ जाकै), ११५५५५-३(+#) पार्श्वजिन पद, मु. सागरचंद्र, मा.गु., गा. ४, पद्य, मपू., (पासदिणेसर पूजो रे भविका), ११९६६६-२(+) पार्श्वजिन पद, पुहिं., पद. ५, पद्य, मूपू., (जय बोलो पासजिनेसर की), ११५५४९-२(#) पार्श्वजिन पद-चिंतामणि, श्राव. बनारसीदास, पुहिं., गा. ४, पद्य, दि., (चिंतामणिसामी साचा), ११९९६३-६९ पार्श्वजिन पद-चिंतामणि, मु. भानुचंद, पुहिं., गा. ३, पद्य, मपू., (प्रभु को दरिशण पायो), ११९६१२-१५(+#) पार्श्वजिन पद-चिंतामणि, मु. रतनचंद, रा., गा. ६, वि. १८७४, पद्य, श्वे., (वामानंदन पासजिणंदजी), ११९९३१-२५(+) पार्श्वजिन पद-दृष्टिकूटार्थगर्भित, ग. वल्लभ, मा.गु., गा. १, पद्य, मपू., (वदन अठ कर दोय जीभ पनरह), ११९६६६-४(+) पार्श्वजिन पद-नाकोडामंडन, मु. कान, मा.गु., गा. ४, पद्य, श्वे., (नाकोडा स्वामी अंतरया), ११८३३१-३ पार्श्वजिन पालj, ग. उत्तमविजय, मा.गु., गा. १५, पद्य, मूप., (माता वामादे झूलावे), ११७५१८($) पार्श्वजिन प्रतिष्ठा स्तवन-कुज्जरावालपंजाब तीर्थमंडन, मु. मोहनलाल, मा.गु., ढा. ९, गा. १०९, वि. १९२१, पद्य, मूप., (शासन नायक वंदीये), ११८५०९-१(+) । पार्श्वजिन प्रभाति, मु. जिनहर्ष, मा.गु., गा. ७, पद्य, मप., (सारद वदन अमृतनी वाणी), ११५४७९-१, ११६३२९-१ पार्श्वजिन भास, मु. सोममंडन, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., (सकल रामा मिली पदिमिनी रे), ११६७७४-५(#) पार्श्वजिन लावणी, मु. अबीरचंद, पुहिं., गा. ५, पद्य, श्वे., (तुम सुण मन मेरा भज), ११७७१२(+) पार्श्वजिन लावणी-कल्याण-वीसनगरमंडन, मु. तेजराम, पुहिं., गा. १८, वि. १८६५, पद्य, श्वे., (अगडदम अगडदम वाजै), ११५९८६ पार्श्वजिन लावणी-गोडीजी, पंन्या. रूपविजय, पुहिं., गा. १६, पद्य, मूपू., (जगत भविक जिन पास), ११६१८५-१(#$) पार्श्वजिन लावणी-वीसनगरमंडण, श्राव. प्रेमचंद जोइता, पुहि., गा. १९, पद्य, श्वे., (तुंम जपोनांम नवकार मनुसैन), ११७९१२(-) पार्श्वजिन सलोको, जोरावरमल पंचोली, रा., गा. ५६, वि. १८५१, पद्य, श्वे., वै., (प्रणमुं परमातम अविचल), ११७३४२($) पार्श्वजिन स्तवन, मु. अनूपचंद, मा.गु., गा. १०, पद्य, मूपू., (जीवन मांहरा तेवीसम ज), ११७८३२-१(+#) पार्श्वजिन स्तवन, मु. उदयरत्न, मा.गु., गा. ९, पद्य, मपू., (सुण सखि रे मुझ वाल), ११९९४२-४(+) पार्श्वजिन स्तवन, उपा. उदय वाचक, मा.गु., गा. ५, पद्य, मपू., (नीलडी बुटीनो जामो), ११७२८१(#$) पार्श्वजिन स्तवन, मु. उदय, मा.गु., गा.८, पद्य, मूपू., (वादल दहदीस उनह्या), ११९६१२-८६(+#) पार्श्वजिन स्तवन, मु. कहान ऋषि, मा.गु., ढा. ५, वि. १८४९, पद्य, मूपू., (श्रीपरमगुरु पाय प्रण), १२००९९-१(#$) पार्श्वजिन स्तवन, मु. कांतिविजय, मा.गु., पद्य, मपू., (दीन के दयालसया तीर तार), ११७०९१-२ पार्श्वजिन स्तवन, वा. क्षमाकल्याण, पुहिं., गा. ५, वि. १८४७, पद्य, मपू., (आज हमारै हरख वधाई), ११७८३२-६(+#$) पार्श्वजिन स्तवन, उपा. क्षमाकल्याण, मा.गु., गा.७, पद्य, मपू., (मनमोहन महाराज तीन),११६२९७-१६(+) पार्श्वजिन स्तवन, मु. गंग, मा.गु., गा. १४, पद्य, श्वे., (पासजिणेसर पूरण आसा), ११९४३२-८(+-) पार्श्वजिन स्तवन, मु. जिनचंद, मा.गु., गा. ६, पद्य, मूपू., (अश्वसेनजीरा वावा), ११७०१६-३ पार्श्वजिन स्तवन, मु. जिनचंद्र, मा.गु., गा.५, पद्य, मपू., (आज बधाई म्हारै आज), ११६८०५-२३ पार्श्वजिन स्तवन, मु. जिनचंद्र, पुहि., गा. ७, पद्य, मपू., (जय बोलो पास जिनेसर), ११६५७१-१ पार्श्वजिन स्तवन, मु. जिनेंद्रसागर, मा.गु., गा.८, पद्य, मप., (वामानंदन जिन प्रणमीइ नित),११६१२३-१ पार्श्वजिन स्तवन, पंन्या. पद्मविजय, मा.गु., गा. ५, पद्य, मपू., (जिनजी त्रेवीशमो जिन), ११६०२७ For Private and Personal Use Only Page #585 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ५७० देशी भाषाओं की मूल कृति के अकारादि क्रम से प्रत-पेटाकृति क्रमांक सूची परिशिष्ट-२ पार्श्वजिन स्तवन, मु. प्रधानसागर, मा.गु., गा. ६, पद्य, मूप., (प्रभु मारा पारकरदेश), ११७२००-२ पार्श्वजिन स्तवन, मु. भीमविजय, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., (मुझ मन प्रभु मुख मटकें), ११९६१२-६५(+#) पार्श्वजिन स्तवन, मु. भोज, मा.गु., गा. ११, पद्य, मपू., (प्रणमुं पासजिणंद), ११९९२२-४ पार्श्वजिन स्तवन, मु. माणेकविजय, मा.गु., गा. ७, पद्य, मपू., (आवो आवो पार्श्वजी), ११८३३१-७ पार्श्वजिन स्तवन, मु. मोहनविजय, मा.गु., गा. ८, पद्य, पू., (साहिब आंगी तुम्हारी), ११९८२४-१५(+) पार्श्वजिन स्तवन, मु. रतनचंद, मा.गु., गा. १४, पद्य, श्वे., (वाणारसी नगरी सुंदर अतहा), ११९९३१-२४(+) पार्श्वजिन स्तवन, मु. रूपचंद, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (मन भावन जिन तनमन तोसे), ११९६१२-३५(+#) पार्श्वजिन स्तवन, मु. लालचंद, पुहि., गा. ५, पद्य, मपू., (मेरो मन वश कर लीनो), ११६८०५-१९ पार्श्वजिन स्तवन, ग. वनीतविजय, मा.गु., गा. ७, पद्य, मपू., (पास प्रभुने वंदवान रे), ११९६१२-८९(+#) पार्श्वजिन स्तवन, पं. वीरविजय, मा.गु., गा. ९, पद्य, मपू., (सेरी मांहि रमतो दीठो), ११६००१-२ पार्श्वजिन स्तवन, ग. शिवनिधान, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (हिव मुझनइ चिंता किसीजी), ११६६८३-३ पार्श्वजिन स्तवन, ग. शिवनिधान, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (--), ११६६८३-२ पार्श्वजिन स्तवन, मु. सुखदेव, मा.गु., गा. ७, वि. १८२२, पद्य, श्वे., (श्रीजिननायक तु), ११७०३८-३ पार्श्वजिन स्तवन, मु. हर्षचंद, मा.गु., गा. ५, पद्य, मपू., (देखी हो मूरत पारस की जी), ११७६१५-२ पार्श्वजिन स्तवन, मु. हर्षचंद, पुहिं., गा.५, पद्य, मप., (बंद पारसनाथ ढीगर वता दे), ११६५०५-३ पार्श्वजिन स्तवन, मा.गु., पद्य, मूपू., (कमठ वडो सठ हठ तप करता), ११९४०७-४(+$) पार्श्वजिन स्तवन, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., (पारस जिनवर सुखकरु), ११५४६०-२ पार्श्वजिन स्तवन, पुहि., गा.८, पद्य, दि., (भव भव खंडिनौ दुःख विहंडणो), ११८१४७-५०(#) पार्श्वजिन स्तवन, मा.गु., गा. ३, पद्य, मप., (मीता मनमोहन पास पीयारा रे), ११९६१२-२७(+#) पार्श्वजिन स्तवन, मा.गु., गा. ९, पद्य, मपू., (सेरीमाहे रमतो दीठो), ११५५४५-२(#) पार्श्वजिन स्तवन, मा.गु., पद्य, मूपू., (--), ११५३११(#$) पार्श्वजिन स्तवन-२४ दंडकविचारगर्भित, मु. धरमसी, मा.गु., ढा. ४, गा. ३४, वि. १७२९, पद्य, मप., (पूर मनोरथ पासजिणेसर), ११८७५४-२, ११८८४८-७ पार्श्वजिन स्तवन-अंतरीक्षजी, मु. आनंदवर्द्धन, मा.गु., गा. ९, पद्य, मूपू., (प्रभु पासजी ताहरो), ११९९२२-३ पार्श्वजिन स्तवन-अंतरीक्षजी, उपा. क्षमाकल्याण, मा.गु., गा.७, वि. १९वी, पद्य, मूपू., (म्हारा प्रभुजीनो दरसण), ११६२९७-१४(+) पार्श्वजिन स्तवन-अंतरीक्षजी, उपा. विनयविजय, मा.गु., गा. १५, वि. १७१९, पद्य, मूपू., (आज मनोरथ मुझ फल्या सफल), ११६१०९-१(+#) पार्श्वजिन स्तवन-अंतरीक्षजी, मु. सेवक, मा.गु., गा. ५, पद्य, मप., (अंतरीक प्रभु साहैब मेरे), ११६५९०-४(#) पार्श्वजिन स्तवन-अंतरीक्षजी, मा.गु., पद्य, मपू., (दक्षिण देसै सोभतो नयर), ११६५९०-५(#$) पार्श्वजिन स्तवन-अणहिलपुर गोडीजी इतिहास वर्णन, मु. प्रीतिविमल, मा.गु., ढा. ५, गा. ५५, वि. १७वी, पद्य, मूपू., (वाणी ब्रह्मवादिनी), ११६७९७(+$) पार्श्वजिन स्तवन-कामितपूरण, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., गा.८, पद्य, मूपू., (पास प्रभु प्रणमुं), ११५६३८-३, ११५६९०-१, ११७३५०-१(६) पार्श्वजिन स्तवन-गोडीजी, मु. अनोपचंद, मा.गु., ढा. ८, वि. १८२५, पद्य, मूप., (जिन वदन निवासनी), ११८८४८-२१ पार्श्वजिन स्तवन-गोडीजी, आ. आणंदसोमसूरि, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., (आजुनी घडी रे बेनी आजुनी), ११५८२०-२ पार्श्वजिन स्तवन-गोडीजी, उपा. उदयरत्न, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., (प्यारो पारसनाथ पूजा), ११९६१२-८७(+#) पार्श्वजिन स्तवन-गोडीजी, मु. ऋद्धिहर्ष कवि, मा.गु., गा. २०, पद्य, मपू., (जस नामे नवनिध ऋद्धि), ११६९१७-२(+) पार्श्वजिन स्तवन-गोडीजी, मु. जिनचंद्र, पुहिं., गा. ९, वि. १७२२, पद्य, मूप., (अमल कमल जिम धवल विराजे), ११९६१२-६४(+#), १२०१२८, ११७८६०-१(#) पार्श्वजिन स्तवन-गोडीजी, मु. जिनराज, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., (वाल्हेसर मुझ विनती), ११७३४३-१ For Private and Personal Use Only Page #586 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १.१.२६ ५७१ पार्श्वजिन स्तवन-गोडीजी, मु. ज्ञानसार, मा.गु., गा. ११, पद्य, मप., (करी मोहि सहाय गौडीराय करी), ११९२१६-९(+) पार्श्वजिन स्तवन-गोडीजी, मु. देवीचंद, मा.गु., गा. ४, पद्य, मप., (जिन दरबारां जावजो रे), ११५५५६-२ पार्श्वजिन स्तवन-गोडीजी, मु. नेमविजय, मा.गु., ढा. १४, वि. १८१७, पद्य, मूपू., (भावधरी भजना करु आपे अविचल), १२००७७(+#) पार्श्वजिन स्तवन-गोडीजी, श्राव. भगवतीदास भैया, पुहिं., गा. ५, पद्य, दि., (गौडी प्रभु पारस पूजियौ), ११९८८४-२६(+) पार्श्वजिन स्तवन-गोडीजी, मु. भुवनकीर्ति, मा.गु., गा. ९, पद्य, मप., (गाजे गौडी राजीयो), १२०१२१(+) पार्श्वजिन स्तवन-गोडीजी, मु. मोहनविजय, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (प्राण थकी प्यारो), ११९८२४-३१(+) पार्श्वजिन स्तवन-गोडीजी, मु.रंगविजय, पुहिं., गा. ६, पद्य, मूपू., (तुम विना मेरी कुण), ११६८८९-३(#) पार्श्वजिन स्तवन-गोडीजी, मु. रूपचंद, पुहिं., गा. ५, पद्य, मप., (कृपा करो गोडी पास), ११९१४८-२(+) पार्श्वजिन स्तवन-गोडीजी, मु. वसता, रा., गा. १५, पद्य, श्वे., (जोर बन्यो जोर बन्यो), ११९६१२-६३(+#) पार्श्वजिन स्तवन-गोडीजी, मु. शांतिकुशल, मा.गु., गा. ३१, वि. १६६७, पद्य, मपू., (सारद नाम सुहामणुं), ११९६१२-१(+#) पार्श्वजिन स्तवन-गोडीजी, मु. सागरचंद्र, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., (गौडी पास जिणंद दिणंद), ११९६६६-३(+) पार्श्वजिन स्तवन-गोडीजी, मु. सुंदर, मा.गु., गा. ३९, पद्य, मूपू., (जपता प्रभु जाप संताप जावे), ११६१९७-२ पार्श्वजिन स्तवन-गोडीजी, मा.गु., गा. ७, पद्य, मपू., (अमे आउ नेहडो कदी), ११९६१२-७६(+#) पार्श्वजिन स्तवन-गोडीजी दशमीतिथि-बहत, मु. समयरंग, मा.गु., ढा. ५, गा. २३, पद्य, मप्., (पास जिनेसर जगतिलोए), ११७०१६-२ पार्श्वजिन स्तवन-चिंतामणि, मु. भावरत्न, मा.ग., गा. ३, पद्य, मप., (चिंतामणि चित धर रे), ११६८०५-६ पार्श्वजिन स्तवन-चिंतामणि, मु. शांति, मा.गु., गा. १०, पद्य, मूप., (श्रीचिंतामणि देव वाला), ११७७५९(+) पार्श्वजिन स्तवन-चिंतामणि, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (चिंतामणी० प्रभु मारा अरज), ११९६१२-८८(+#) पार्श्वजिन स्तवन-चिंतामणि, मा.गु., पद्य, मूपू., (चितामणि चित में धरी हो), ११५४६०-३(६) पार्श्वजिन स्तवन-जीरावला, उपा. क्षमाकल्याण, मा.गु., गा. ५, पद्य, मपू., (जीरावलै जिनराजजी ललना लला), ११६२९७-८(+) पार्श्वजिन स्तवन-जीरावला, मु. लावण्यसमय, मा.गु., गा. ३८, पद्य, मपू., (जीराउलि मंडण श्रीपास), ११९२१५-२(+) पार्श्वजिन स्तवन-पंचासरमंडन, मु. मोहनविजय, मा.गु., गा. ८, पद्य, मपू., (छांजि छांजि छांजी), ११९८२४-७(+) पार्श्वजिन स्तवन-पल्लविया, मु. रंगविजय, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., (परम पुरुष परमेसरु), ११९६१२-७५(+#) पार्श्वजिन स्तवन-पुरिसादाणी, मु. मोहनविजय, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., (पुरिसादाणी सांवलवरणो), ११७३९८-२ पार्श्वजिन स्तवन-पुरिसादानी, मु. लाभवर्द्धन, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू., (सुखकारी हो साहिब), ११६३४१-४(+#) पार्श्वजिन स्तवन-प्रभाती, मु. लाभउदय, मा.गु., गा. ५, पद्य, मपू., (उठो रे मारा आतमराम), ११६८०५-१० पार्श्वजिन स्तवन-फलवर्द्धि, मु. अभयसोम, मा.गु., गा. ९, पद्य, मपू., (सरसति माता सेवका दे), ११५९१७-१, १२०१०४($) पार्श्वजिन स्तवन-फलवर्द्धि, उपा. अमृतधर्म, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (श्रीफलवर्द्धिपुर जइय), ११६२९७-९(+) पार्श्वजिन स्तवन-फलवर्द्धि, मु. उदयचंद, मा.गु., ढा. १४, गा. ४१, वि. १७२३, पद्य, मूपू., (फलवधिपुर पति नयण देखी), ११५७९९-२(#) पार्श्वजिन स्तवन-फलवर्द्धि, मु. श्रीसार, मा.गु., गा. २१, पद्य, मूपू., (परतापूरण प्रणमीइ अरिगंजण), ११९२१५-४(+), ११६८८९-२(#) पार्श्वजिन स्तवन-भटेवा, मु. लब्धिविजय, मा.गु., गा. १३, पद्य, मूपू., (श्रीभटेवो पासजी भलई), ११९६१२-८५(+#) पार्श्वजिन स्तवन-भीनमाल, मु. पुण्यकमल, मा.गु., गा. ५३, वि. १६६१, पद्य, मूपू., (सरसति भगवति नमीय पाय), ११५९९४(६), ११६४६९(s) पार्श्वजिन स्तवन-भीनमालमंडन, मु. वीरसुंदर, मा.गु., गा. ९, वि. १७२३, पद्य, मपू., (भवियण वामानंदन वांदीयै हो), १२००९२-२ पार्श्वजिन स्तवन-मगसीतीर्थ, मु. प्रमोदरुचि, पुहि., गा. ५, पद्य, मपू., (पास प्यारो हे सरीया मोरी), ११५९०७-१ पार्श्वजिन स्तवन-मन, म. उदय, मा.ग., गा. १४, पद्य, मप., (आगल पाछलिं मोहकी फोजां), ११९६१२-७१(+#) पार्श्वजिन स्तवन-लोढणपुरमंडन, मु. विनय, मा.गु., गा. ५, पद्य, मपू., (प्रभु लोडण पास जोहारीइ), १२००८१-२(#) पार्श्वजिन स्तवन-वरकाणामंडन, आ. जिनहर्षसूरि, मा.गु., गा. ९, पद्य, मूपू., (काइ रे जीव तुं मन), ११७३४३-६ For Private and Personal Use Only Page #587 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ५७२ देशी भाषाओं की मूल कृति के अकारादि क्रम से प्रत-पेटाकृति क्रमांक सूची परिशिष्ट-२ पार्श्वजिन स्तवन-व्रहानपुरमंडन, उपा. क्षमाकल्याण, मा.गु., गा. ३, वि. १९वी, पद्य, मूपू., (मनमोहन मन धर रे तुं आतम), ११६२९७-१५(+) पार्श्वजिन स्तवन-शंखेश्वर, वा. उदयरतन, मा.गु., गा.८, पद्य, मपू., (आप अरुपी होय नय प्रभ), १२००८१-१(#) पार्श्वजिन स्तवन-शंखेश्वर, मु. कृष्णविजय-शिष्य, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (प्यारा लागो प्रभु), ११९६१२-७४(+#) पार्श्वजिन स्तवन-शंखेश्वर, आ. जिनचंदसूरि, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (श्रीशंखेश्वर पासजिन), ११६७५८-३(+) पार्श्वजिन स्तवन-शंखेश्वर, मु. मोहनविजय, मा.गु., गा. ६, वि. १८वी, पद्य, मपू., (रहिने रहिने रहिने), ११९८२४-६(+) पार्श्वजिन स्तवन-शंखेश्वर, पं. वीरविजय, मा.गु., गा. ९, पद्य, मूपू., (सहजानंदी शीतल सुख), ११६१७२(+), ११७४८३-३ (२) पार्श्वजिन स्तवन-शंखेश्वर-टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूप., (माथे म ढूंकी ने महीयानी), ११६१७२(+) पार्श्वजिन स्तवन-समवसरणविचारगर्भित, मु. धर्मवर्धन, मा.गु., ढा. २, गा. २७, पद्य, मूपू., (श्रीजिनशासनसेहरो जग), ११८८८९-३, ११५५७६(६) पार्श्वजिन स्तवन-सम्मेतशिखरतीर्थ, मु. पद्मविजय, मा.गु., गा. ८, पद्य, मूपू., (समेतशिखर जिन वंदीये), ११६५२४-१(+) पार्श्वजिन स्तवन-सहस्रफणा, उपा. अमृतधर्म, मा.गु., गा. ७, वि. १८३६, पद्य, मपू., (सहसफणा प्रभुपासजी रे), ११६२९७-७(+) पार्श्वजिन स्तवन-सहस्रफणा, मा.गु., गा. १३, पद्य, मप., (लल जलती मीली ते घj), ११८८४८-२५ पार्श्वजिन स्तवन-स्थंभनतीर्थ, उपा. कुशललाभ, मा.गु., ढा. ५, गा. १८, पद्य, मूपू., (प्रभु प्रणमुरे पास), ११६४३७-१(+), ११५४५०-२ पार्श्वजिन स्तुति, आ. जिनभक्तिसूरि, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू., (अश्वसेन नरेसर वामा), ११९१४३-३७(+-), ११९६४८-५ पार्श्वजिन स्तुति, मु. ज्ञानसार, मा.गु., गा.७, पद्य, मपू., (परम पुरुषसू प्रीतड़ी), ११९२१६-६(+) पार्श्वजिन स्तुति, श्राव. बनारसीदास, पुहिं., सवै. ३, पद्य, दि., (करम भरम जग तिमर हरन), ११६१५०(#) पार्श्वजिन स्तुति, मु. रत्नसागर, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू., (तारक श्री जिनराज सुहंकर), ११७५११-१(+) पार्श्वजिन स्तुति, मा.गु., गा. १, पद्य, श्वे., (सकल करम खल दलन कमठ), ११९५४७-१५ पार्श्वजिन स्तुति-गोडीजी, मु. भाणविजय, मा.गु., गा. ४, पद्य, मप., (परम प्रभु परमेश्वर), ११५३००-३(१), ११६८८९-१(#) पार्श्वजिन स्तुति-पौषदशमीपर्व, आ. उदयसमुद्रसूरि, मा.गु., गा. ४, पद्य, मपू., (जय पास देवा करूं), ११८८८७-४(+) पार्श्वजिन स्तुति-भीलडीपुरमंडन, मु. सौभाग्यविजय, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू., (भीलडीपुर मंडण सोहिए), ११८५६२-१० पार्श्वजिन स्तुति-शंखेश्वर, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू., (शंखेश्वर पासजी पूजीए), ११८३३१-९ पार्श्वजिन स्तुति-शामला, मु. मोहनविजय, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू., (मेरु महीधर सुंदर), ११६४६६-६ पार्श्वजिन स्तोत्र, जै.क. भूधरदास, पुहि., गा. १९, पद्य, दि., (प्रभु इस जग समरथ ना), ११८३१६-११(+$), ११८४०४-१(+#$) पार्श्वजिन स्तोत्र, ग. शिवनिधान, मा.गु., ढा. २, गा. १६, पद्य, मूपू., (धन धन आज विहाणडउ मुझ), ११६६८३-१ पार्श्वजिन स्तोत्र-शंखेश्वरतीर्थ, मु. मेघराज, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूप., (श्रीसकल सार सुरतरु), ११७४४७-२(#) पार्श्वजिन होरी, मु. भूपविजय, मा.गु., गा. ६, पद्य, मूपू., (हां रे अति नीकि सुंदर), ११७२९५-२ पार्श्वजिन होरी, मु. रत्नसागर, पुहि., गा. ७, पद्य, मूपू., (रंग मच्यो जिनद्वार), ११७८३२-३(+#) पार्श्वजिन होरी, मु. रूपचंद, पुहिं., गा. ७, पद्य, मप., (नवल दलारो नाथजी), ११९६१२-३२(+#) पार्श्वजिन होरी, मु. सेवक, पुहिं., गा. ४, पद्य, मप., (ले गयो खेलन होरी रे), ११९९२२-८ नाममाला, म. ज्ञानसार, पहिं., गा. १५४, वि. १८७६, पद्य, मप., इतर, (श्रीअरिहंतस सिद्धपद),११५८६९(+$), ११६५३३($) पुण्यएकतीसा, मा.गु., गा. ३१, पद्य, मूपू., (एगंदिय पंचंदियउ हे अहेय), ११६६३४-३ पुण्यपच्चीसी, श्राव. भगवतीदास भैया, पुहिं., गा. २६, वि. १७३३, पद्य, दि., (प्रथम० अरिहंत बहुरि), ११९८८४-१(+) पुण्यपापजगमूलपच्चीसी, श्राव. भगवतीदास भैया, पुहिं., गा. २७, पद्य, दि., (परमातम परत० सिद्ध सकल), ११९८८४-६९(+) पुण्यपापलक्षण पद, आ. अमरतिलकसूरि, मा.गु., गा. २, पद्य, मपू., (--), ११७९४२-१ पुण्यप्रकाश स्तवन, उपा. विनयविजय, मा.गु., ढा. ८, गा. १०२, वि. १७२९, पद्य, मूपू., (सकल सिद्धिदायक सदा), ११७७५८(+$), ११९५१४-१(+), ११८६५५, ११८७५१(#) For Private and Personal Use Only Page #588 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १.१.२६ पुण्यसार रास-पुण्याधिकारे, मु. पुण्यकीर्ति, मा.गु., डा. ९, गा. २०५ वि. १६६६, पद्य, म्पू. ( नाभिरायनंदन नमुं शांति), १९८५५०.६(8) पुगलगीता, मु. चिदानंद, पुहिं. गा. १०८, पद्य, म्पू, (संतो देखीयें बे), ११७९३७(+) पुरंदरकुमार रास, वा. मालदेव, मा.गु., ढा. १२, गा. ३७६, पद्य, मूपू., (वरदाई श्रुतदेवता), ११९०५६ (+) पुरंदर चौपाई, मा.गु., पद्य, श्वे., (--), ११८४६४(+#$) पुष्पवती सातढालिया, मु. विनयचंद, मा.गु., डा. ७, पद्य, स्था. (अविनासी अधिकार जिन), ११८६५४(+) पूजादृष्टांत सज्झाय, आ. नयविमल, मा.गु., गा. ८, पद्य, मूपू., (जिम चंदनतरुमां अधिक), ११९२६०-४(+) पूजाष्टक, श्राव, प्राणलाल सेन, मा.गु., गा. ९, पद्य, मूपू. (क्षीर नीरसु नीर), ११९७२९-३(१) पूर्णिमातिथि स्तुति, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु गा. ४, पद्य, मूपू (जिनपति संभव संजम), ११६९४५-१(०३) " ,י Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir पृथ्वी चंद्रगुणसागर सज्झाच, पंडित जीवविजय, मा.गु., डा. ३, गा. ६८, पद्य, म्पू., (शासननायक सुखकरु वंदी), ११९२६०-१२(५) पौषदशमीपर्व कथा, रा. गद्य, मूपू., ( ध्यात्वा वामेयमर्हत), १९१९४८३-७(+), ११९४८६-७(+), ११५४३२ पौषदशमीपर्व स्तुति, मु, राजविजय, मा.गु. गा. ४, पद्य, मूपु (पोस दसम दिन पार्श्व), ११७२९६-५ (०) पौषध विधि, गु, गद्य, मृपू. (पीषध एटलुं शुं), ११७४६९ (४) पौषधविधि स्तवन, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु. डा. ५, गा. ३८, वि. १६६७, पद्य, मूपू.. ( जेसलमेर नगर भलो जिहा), ११८८४८-१६ प्रतापसिंह चौपाई, मा.गु., पद्य, श्वे., (--), ११५३६६ ($) प्रतिलेखन पुष्पिका पत्र संग्रह छुटक, मा.गु., गद्य, जे. २, (--), ११६२३२ (०७), ११७५७६-१(5) प्रतिष्ठा सामान सूचि, मा.गु., गद्य, मूपू., (चोखंडी सोनामोर नं.१.), ११५४३६($) प्रत्याख्यानफल सज्झाय-शत्रुंजयतीर्थे, मु. प्रीतिविमल, मा.गु. गा. ७, पद्य, मूपू. (पचखि पचखाण परभाति), ११६४९३-३, , ११६७३४ , प्रदेशीराजा चौपाई, रा. ढा. २६, पद्य, म्पू (सुरीयाभ हौले करजोडी विनो), ११९६८७ (४) प्रदेशीराजा चौपाई, मा.गु., डा. ३, पद्य, मृपू., (हिवै प्रदेशी एकदा तेडी), १२०१०९-१(+) प्रदेशीराजा रास, रा. डा. १९, पद्य, भूपू (कुण ती भव पाछले), ११७७३६(७) प्रदेशीराजा सज्झाय, मु. कवियण, मा.गु., गा. १९, पद्य, मूपू., (सेतंबिका नयरि सोहांम), ११९५०७) प्रदेशीराजा सज्झाय, मु. खुबचंद, मा.गु., पद्य, श्वे., (सुण चतुर सयाणा नारीनो नेह), ११९७४५-११७(+) प्रद्युम्नकुंवर लावणी, मु. खूबचंद ऋषि, पुहिं., गा. २२, वि. १९६४, पद्य, श्वे. (ये प्रजनकंवर कि), ११७११४(+) प्रभुदेशना सज्झाव, पं. सकलकुशलगणि, मा.गु., गा. १२, पद्य, म्पू, (जिनवर दिये देशना रे भविक), ११९२६०-८(*) प्रभु सन्मुख बोलने के दोहे, मा.गु., कडी. ७, पद्य, मूपू. (जीवडा जिनवर पूजीए पू), १२००२८-३(क) "" प्रश्न पत्रिका, य. गोपीचंदजी, मा.गु., गा. ५३, वि. १९३३, पद्य, मूपू., ते., (चरण कमल जिनराज का जामे), प्रतहीन. (२) प्रश्न पत्रिका-आधारित प्रश्नोत्तर तत्त्वबोध, आ. जयाचार्य, मा.गु., अधि. २७, गा. १७०२, वि. १९३३, पद्य, मूपू., ते., ( नमूं देव अरिहंत नित), ११५४१० (+$) प्रश्नोत्तर दोहा, श्राव. भगवतीदास भैया, पुठि, गा. १०, पद्य, दि., (कौन वस्तु वपु मांहि), ११९८८४-९ (+), ११९९६३-३२ प्रश्नोत्तरमाला, जै. क. बनारसीदास, पु.ि गा. २१, वि. १७वी, पद्य, दि., (नमित सीस गोविंदसी), ११९९६३-३३ प्रश्नोत्तर संग्रह. मु. जसाजी स्वामी, मा.गु. प्रश्न. २७, गद्य, खे., (--), ११७१११(३) , प्रश्नोत्तर संग्रह - आगमिक, मा.गु. प्रश्न. ३२, गद्य, मूपू (नवकार मांहि पहिला पद), ११५३२४-१ (+०३) प्रसन्नचंद्रराजर्षिं सज्झाच, मु. ऋद्धिहर्ष, मा.गु., गा. ६, पद्य, मूपू., (प्रणमुं तुमारा पाय), ११८२४५-११(+) प्रसन्नचंद्रराजर्षि सज्झाय, मु. कुंअरविजय, मा.गु., गा. ११, पद्य, मूपू., (मन वसि करवुं दोहिलू), ११५८८३-२ प्रसन्नचंद्रराजर्षि सज्झाय, मु. रूपविजय, मा.गु., गा. ६, वि. १८वी, पद्य, म्पू, (प्रणमुं तुमारा पाय). १९९७४५-६६ (५), ११७७६९.३(१) प्रसिद्ध पदार्थों की सूची, मा.गु., गद्य, वै., इतर (सिद्धदाता गणेश विद्यालाभ) १९६८३६-३ ५७३ For Private and Personal Use Only Page #589 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra ५७४ www.kobatirth.org देशी भाषाओं की मूल कृति के अकारादि क्रम से प्रत- पेटाकृति क्रमांक सूची परिशिष्ट-२ प्रहेलिका दोहा, मा.गु., गा. २, पद्य, जै., इतर ?, (गिऊ पहली नीपजै सरीखो), ११६८७९-२ (पवन को करें तोल गगन), ११७०३८-२ प्रहेलिका संग्रह, पुहि., दोहा. ४, पद्य, वे , " प्रहेलिका हरियाली सज्झाय, मा.गु., गा. ८, पद्य, मूपू. (एक फूल च्यारि पंखडी कजल), १२०११५-२ प्रास्ताविक कवित्त, जे.क. बनारसीदास, पुहिं, गा. २३, वि. १७वी, पद्य, दि., (पूरव कि पछिम हो), ११९०५८-२(+), Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ११९९६३-४३ प्रास्ताविक कवित्त संग्रह, मु. भिन्न भिन्न कर्तृक, पुहिं., मा.गु., गा. ४, पद्य, श्वे. वै., (थरहरै कृपण पंचमांहि), ११५८९५ (+$) प्रास्ताविक दोहा संग्रह, पुहिं., मा.गु., दोहा. ७१, पद्य, श्वे., इतर, (पडिवन्नइ माछा भला ), ११७२५४-३ (+), ११८०७२-२(+), ११६१२३-३ ११९७९४(१ प्रास्ताविक दोहा संग्रह, मा.गु., गा. ५, पद्य, इतर ? (प्रीतो करि पाछा खस्य) १२०१०१-३ (+) प्रास्ताविक दोहा संग्रह*, पुहिं., मा.गु., रा., गा. २५, पद्य, वै., इतर, (बुरी प्रीत भमर की कली कली), ११६३५२-४, ११६२२३-२(#) प्रास्ताविक पद संग्रह, पुहि., मा.गु., पद. १, पद्य, थे. इतर (सखी आज वदन कमलाय कहो), ११९१९५-१ प्रास्ताविक पदावली, मा.गु., गा. ९, पद्य, मूपू., (दुद्धं उक्कालेवी मांहि), ११६७६१-१ (+) प्रास्ताविक सवैया, पुहिं., गा. १, पद्य, दि., ( चाहत है धनि हो एक सिविधै), ११८१४७-६२(#) प्रियमेलक चौपाई-दानाधिकारे, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., ढा. ११, गा. २२०, वि. १६७२, पद्य, मूपू., (प्रणमुं सद्गुरु पाय), ११८६६०, ११७८००(१), ११९८३४ (०३) प्रियविरह पद संग्रह, मा.गु., गा. १९, पद्य, वै., इतर, (सांकडी सेरी साजन मिल्या), ११६७६१-२(+) प्रीतदृष्टांत दोहा रात्री व चंद्रमा, पुहिं., दोहा १, पद्य, जे., इतर ? (प्रीतम असी प्रीति करि), ११८७०२-८ प्रीति दोहा, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू., (कागद थोडो हेत घणउ सो पिण), ११७३४३-४ बंधादिकरण भेद, मा.गु., गद्य, थे., (बंधनकरण संक्रमणकरण), ११९७०२-३ बनारसीदास प्रशस्ति श्राव. बनारसीदास, पुहिं. गा. ३, वि. १७७१, पद्य, वि., (नगर आगरेमें अगरवाल), ११९९९६३-७२ " " बनारसी विलास, जै.क. बनारसीदास, हिं., गद्य, दि., इतर, (--), प्रतहीन. (२) बनारसी विलास-विषयसूचनिका, संबद्ध, जै. क. बनारसीदास, मा.गु., गा. ५, पद्य, दि. इतर ( प्रथम सहस्रनाम सिंदू), ', ११९९६३-१ बलदेवमुनि सज्झाय, मु. सकल, मा.गु., गा. ८, पद्य, मूपु. ( तुंगी आगीर सीखर सोहे), ११८२४५-१४(+) बलभद्रमुनि सज्झाय, मा.गु. गा. २१, पद्य, वे.. (हुं तुझ आगल सुं कहु), ११५६३४-२(+) " बाहुजिन स्तवन, मु. जिनराज, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (बाहु समापउ बाहुजी), ११८५८१-७ बाहुबली सज्झाय, मु. राम, मा.गु., गा. ११, पद्य, मूपू. ( बाहुबल दीक्षा ग्रही), ११७६८६(२०) बीजतिथि सज्झाय, मु. लब्धिविजय, मा.गु., गा. ८, पद्य, मूपू., (बीज कहे भव्य जीवने), ११६४७९-१, ११७७६९-१(#) बीजतिथि स्तवन, ग. गणेशरुचि, मा.गु., गा. १९, वि. १८१९, पद्य, मूपू., (श्रीश्रुतदेवि पसाउले), ११५५१५(#) वीजतिथि स्तुति, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु. गा. ४, पद्य, म्पू (जंबूद्वीपे अहनीस), ११७९९६-१ बीजतिथि स्तुति, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू., (बीज जिनधर्मनुं बीज), ११६९४५-२(०) बीजतिथि स्तुति, मु. लब्धिविजय, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू., (दिन सकल मनोहर बीज), ११७२९६-२ (+), ११८६४५-४(+), ११७६४१-३, १९८५६२-३. ११५८२५-३(३) बुढापा रास, मु. चंद, रा. ढा. २२, वि. १८३६, पद्य, मूपू., (दया ज माता वीनवु), ११६५२७($) बुढ़ापा रास, श्राव. मोतीचंद, रा. डा. २२, वि. १८३६, पद्य, म्पू, (दया ज माता वीनवु), १९७८७२(३) " बोल संग्रह, मा.गु., गद्य, श्वे., (ज्ञानावरणीय ३०), ११५२६०($) बोल संग्रह-विविधगत्यागतादि जीव एकसमयसिद्धसंख्या विचार, मा.गु., गद्य, वे पेले बोले समुद्रमा), ११९०९६-२३(+४४), "" ११५८३३, ११७४७९-१, ११८८९७, ११७२२६(१), १९६५८२ (S) ब्रह्मविलास श्राव. भगवतीदास भैया, पुहि. वि. १७५५, पद्य, दि. (प्रथम प्रणमि अरहंत), ११९८८४-१०१(+) (२) ब्रह्मविलास संबंध बीजक, श्राव. भगवतीदास भैया, पुहिं. को वि. (--), ११९८८४-१००(०) For Private and Personal Use Only Page #590 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १.१.२६ " ब्रह्मविलासगत कृतिनाम सवैया, श्राव. भगवतीदास भैया, पुहिं. गा. ७, पद्य, दि., (पुन्यपचीसी शतअष्टोत्तर), ११९८८४-९८(१) ब्राह्मीसुंदरी सज्झाय, मु. रायचंद ऋषि, रा. गा. २१. वि. १८४३, पद्य, वे (रिखभ राजा रे राणी), १२००९५- २(क) भगवतीदास कवि परिचय सवैया, श्राव. भगवतीदास भैया, पुहिं., गा. १८, पद्य, दि., (जंबूदीप मैं दछन भर्त्त), ११९८८४-९९(+) भडलीवाक्य, भडली, गु., पद्य, इतर, (नाम गणावे गरभनु), ११६३०९-२ भरतक्षेत्रादि परिमाण विचार, मा.गु., गद्य, वे., (भरतक्षेत्र ५२६ योजन), ११६४०१ (+$) " भरतचक्रवर्ती ऋद्धिवर्णन सज्झाय, मु. आसकर्ण ऋषि, मा.गु., गा. २६, वि. १८३५, पद्य, श्वे. (प्रथम सीवरीये ऋषभजिण), ११७३५४(६) भरतचक्रवर्ती चौपाई, रा., ढा. ३, पद्य, श्वे. (उगो उगीने ऊगीयो ठाणायंगनी), ११९५४७-२० "" भरतचक्रवर्ती सज्झाय, मु. हीरालाल, मा.गु., गा. ११, वि. १९४५, पद्य, श्वे., (मुगतपद पाया हो), ११८०१५-३(-$) भरतचक्रवर्ती सज्झाय, मा.गु., गा. १०, पद्य, मृपू. (आभरण अलंकार सवही उत्तारे), ११७४४८(३) भरतबाहुबली सज्झाय, मु. रामविजय, मा.गु., गा. १२, वि. १७७१, पद्य, मूपू (तव भरतेश्वर वीनवे) ११७९९२ भारतबाहुबली सज्झाय, मु. रामविजय, मा.गु., डा. ४, गा. ३८, वि. १७७१, पद्य, मूपू. (स्वस्ति श्रीवरवा), ११७७९१ भरतबाहुबली सज्झाय, मु. विमलकीर्ति, मा.गु. गा. १२, पद्य, म्पू., ( बाहुबल चारित लीयो ), ११९२६०-३०(+) भरतबाहुबली सज्झाय, उपा. समवसुंदर गणि, मा.गु गा. ७. वि. १७वी, पद्य, मूपू (राजतणा अति लोभीया), ११५४६६- २(*), Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ११५५५५-२(+४) भले का अर्थ- महावीरजिन पाठशालापंडित संवादगर्भित, मु, महानंद, मा.गु. वि. १८३९, गद्य, भूपू (प्रभु नीशाले बैठा), ११९२५३-१(+) भले विवरण-महावीरजिन पाठशालापंडित संवादगर्भित, मु. जगराम, मा.गु., वि. १८३९, गद्य, मूपू., (प्रभु नेशाले बैठा), ११८४०८(#) भवणद्वार विचार, मा.गु., गद्य, मृपू., (लोक में अलोक में जे), ११९६०६०) भवणद्वार विचार, मा.गु., गद्य, मूप, (सातमी नारकीनां नाम). ११९७९५-११) " भवदेवनागिला सज्झाय, मु. रतनचंद, मा.गु, गा. ११, वि. १८७२, पद्य, वे (भवदेव जागी मोहनी तज), ११९९३१-३५ (+) भवसिंधु चतुर्द्दसी, मा.गु., गा. १४, पद्य, श्वे., (जैं सैं काहू पुरुष), ११९९८७-५ भावछत्रीसी, मु. ज्ञानसार, पुहिं., गा. ३९, वि. १८६५, पद्य, मूपू., (क्रिया अशुद्धता कछु), ११७१०८-१(+) भावहर्ष सामग्री सूचि-पाली उत्तमचंद उपाश्रय, मा.गु., गद्य, मूपू., (चंदूओ१ सूडालनो झालरी), ११९४०७-२(+) भुवनद्वार विचार, मा.गु., गद्य, श्वे. (पहिली नारकी असंख्यात), ११९४५९(+) भुवनभानुकेवली चरित्र, मा.गु., गद्य, भूपू (--). ११८८६२ (०४) भुवालदेवी स्तुति-पलीवालगच्छ, उपा. उदयशेखर, मा.गु., गा. ११, पद्य, श्वे. ?, (श्रीसगति सुमति मुझ आपि), १२०१११-२ भृगुपुरोहित सज्झाय-रात्रिभोजन परिहार, उपा. उदयविजय, मा.गु. गा. ६, पद्य, मूपू (देव तणी ऋद्ध भोगवि), ११६९७६-४/०७) भैरुजी छंद, मा.गु., पद्य, श्वे. (वाटे घाटे तुं वसै), ११५७९४ मंगलकलश फाग, वा. कनकसोम, मा.गु. गा. १४२, वि. १६४९, पद्य, मूपू (सासणदेवीय सामिणी ए). ११८६५८(क) " मंगल स्तवन, पंन्या, पद्मविजय, मा.गु., गा. १७, पद्य, भूपू (प्रणमीय शासन देवता), ११९६४९-३७ " मदननरेश्वर चौपाई, मु. दामोदर, मा.गु., गा. ५५७, ग्रं. ९३८, वि. १६६९, पद्य, मूपू. (आदि जिणेसर अतुलबल), ११९०१३(+) मदनरेखासती चौपाई, मा.गु., ढा. ८, वि. १८५५, पद्य, श्वे. (श्रीवर्धमान जिणवर), ११९६९४($) मदनरेखासती रास, मा.गु., गा. १८८, पद्य, मूपू., (जूआ मांस दारु तणी), ११७४१०, ११८९४० मदनरेखासती रास, मा.गु, पद्य, मूपू., (शासननायक समरीये), ११९८५० (+) " मदनरेखासती सज्झाय, मा.गु., गा. १६३, पद्य, मूपू (अरिहंत सिद्धने आयरिव), १२०१३१(०) " मधुबिंदु दृष्टांत चौपाई, श्राव. भगवतीदास भैया, पुहिं., गा. ६१, वि. १७४०, पद्य, दि., (वंदौ जिनवर जगत गुरु वंदौं), ११९८८४-४८(+) मधुबिंदु सज्झाव, मु. चरणप्रमोद - शिष्य, मा.गु., गा. १०, पद्य, मूपू., (सरसति मुझने रे मात), १२००८९ For Private and Personal Use Only ५७५ Page #591 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ५७६ देशी भाषाओं की मूल कृति के अकारादि क्रम से प्रत-पेटाकृति क्रमांक सूची परिशिष्ट-२ मनकमुनि सज्झाय, मु. वृद्धिविजय, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., (साधुजी संयम सुधो), ११७९५०-१ मनबत्तीसी, श्राव. भगवतीदास भैया, पुहि., गा. २७, पद्य, दि., (दर्शन ज्ञान चारित्र), ११९८८४-८६(+) मनुष्य की ७०० नाडी, मा.गु., गद्य, मूपू., (१६० नाडी नाभीथी मस्त), ११८४२९-१२(2) मनुष्यभव सार्थकता पद, मा.गु., गा. १, पद्य, मपू., (जिनभुवन जिनबिंब पूज के), ११७९४२-६ मयणासुंदरी ध्यान स्तुति, पुहि., गा. ५, पद्य, मूपू., (तुं ही अरिहंत तुं ही), ११७८६९-३ मरुदेवीमाता सज्झाय, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., गा. ९, पद्य, मूप., (एक दिन मरुदेवी आइ), ११५४३३ मरुदेवीमाता सज्झाय, मु. रायचंद ऋषि, मा.गु., गा. १३, वि. १८३७, पद्य, स्था., (नगरी वनीतां भली वीर), ११८२१२-२(+-#), ११९५४७-२२ मरुदेवीमाता सज्झाय, मा.गु., गा. १७, पद्य, मपू., (मरुदेवी माता कहे), १२०१३४-२ मलयसुंदरी रास, मु. कांतिविजय, मा.गु., खं. ४ ढाल ९१, गा. १०५२, वि. १७७५, पद्य, मूपू., (स्वस्ति श्रीसुखसंपदा), ११८३२५(+$) मल्लिजिन स्तवन, मु. कुशललाभ, मा.गु., ढा. ५, गा. ४१, वि. १७५६, पद्य, मपू., (नवपद समरी मन शुद्ध), ११५४५०-१, ११८८४८-२२ मल्लिजिन स्तवन, मु. जिनराज, मा.गु., गा. ५, पद्य, मप., (दास अरदास शीपरि करंजी), ११६३१४-२ मल्लिजिन स्तवन, मु. रूपचंद, पुहि., गा. ५, पद्य, मप., (मोहे केसे तारोगे दीन), ११६८०५-९, ११७११३-२(#) महादंडक ३० द्वार, मा.गु., गद्य, मूपू., (दंडक १ लेस्या २ ठिती), ११८२५३(+$) महादेव बारमासा, रणछोड, पुहि., गा. १३, पद्य, वै., (ओरा आवो शिवशंकर भोला भोले), ११७३२५-१०(+) महाभद्रजिन स्तवन, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., गा. ७, वि. १८वी, पद्य, मूपू., (देवरायतो नंद मात उमा), ११७५२९-२ महालक्ष्मी मंत्राम्नाय, मा.गु., गद्य, मपू., इतर, (--), ११५५९८(+$) । महावीरजिन २७ भव व १४ स्वप्न विचार, मा.गु., गद्य, मप., (पहेले भवे जंबुद्विपमा), ११९९६१ महावीरजिन आरती, मा.गु., गा.७, पद्य, मप., (श्रीसरसती माइ कृपा करो आई), ११९२१५-४६(+) महावीरजिन कवित्त, पुहि., गा. १५, पद्य, मूपू., (मो करूना प्रभु कां न सुन), ११६९३६ महावीरजिन गहुंली, मु. अमृतसागर, मा.गु., गा.१०, पद्य, मूपू., (जी रे जिनवर वचन), ११७०८८ महावीरजिन गहुंली, पं. दीपविजय, मा.गु., गा. ९, पद्य, म्पू., (सहि चालो श्रीमहाविर), ११५८३८ महावीरजिन चैत्यवंदन, मु. पद्मविजय, मा.गु., गा. ७, पद्य, मपू., (त्रीश वरस केवलि पणे), १२०००५-२ महावीरजिन चैत्यवंदन, मु. पद्मविजय, मा.गु., गा. ७, पद्य, मप., (नव चोमासी तप कर्या), १२०००५-४, ११६७९९() महावीरजिन चैत्यवंदन, मु. पद्मविजय, मा.गु., गा. ३, पद्य, मपू., (सुणी निर्वाण गौतमगुर), १२०००५-३ महावीरजिन चैत्यवंदन, मु. रूपविजय, मा.गु., गा. ३, पद्य, मूपू., (वर्धमान चोवीशमा), ११७९०६-५(#$) महावीरजिन जन्म लावणी, पुहिं., गा. २, पद्य, मूपू., (घुघरु वाजत झन नन नन), ११६५०५-११ महावीरजिन तपप्रमाण विचार, मा.गु., गद्य, मूपू., (नव चोमासी छ छे मासी), ११९४९५ महावीरजिन निसाणी-बामणवाडजीतीर्थ, मु. हर्षमाणिक्य, मा.गु., गा. ३७, पद्य, स्पू., (श्रीमाता सरसती सेवक), ११७६४०(5) महावीरजिन पंचकल्याणक स्तवन, पं. नरविजय, मा.गु., गा. १६, वि. १७७१, पद्य, म्पू., (हारे लाल सरसती), ११९९४२-५(+) महावीरजिन पद, मु. जिनचंद, पुहि., गा. ४, पद्य, पू., (आज हमारे भाग वीर), ११९५८३-२(+), ११६८०५-१ महावीरजिन पद-रेवतिश्राविका, मु. आनंदघन, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू., (रेवती बाई प्रभुजीने), ११९७४५-१०२(+) महावीरजिन पद-होरी, मु. रूप, पुहिं., गा. ५, पद्य, मूपू., (होरी मची जिनद्वार), ११७२९५-३ महावीरजिन पारj, मु. अमीविजय, मा.गु., गा. १८, पद्य, मूप., (माता त्रिशलाए पुत्र), ११९२२०-१(+#), ११७८०२ महावीरजिनविनती स्तवन-जेसलमेरमंडन, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., गा. १९, पद्य, मपू., (वीर सुणो मुज विनती), ११८५८१-३ महावीरजिन सवैया-वाणीविशेषण, पुहि., गा. ६, पद्य, श्वे., (वीर हिमाचल ते निकसी), ११५८८४ महावीरजिन सुखडी, मा.गु., पद्य, श्वे., (माय कहै मैरे चगनां), ११६७७८(+-) महावीरजिन स्तवन, मु. उदयरत्न, मा.गु., गा. ५, वि. १७९०, पद्य, मूपू., (जगपति तारक श्रीजिनदे), ११९६१२-६७(+#) महावीरजिन स्तवन, मु. उदयरत्न, रा., गा. ८, पद्य, मूपू., (में तो नजीक रहस्याजी), ११६४८८-२(+) For Private and Personal Use Only Page #592 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १.१.२६ ५७७ महावीरजिन स्तवन, मु. उदयरत्न, मा.गु., गा. ८, पद्य, मूपू., (सिद्धारथ राजानो नंदन), ११८३३१-१ महावीरजिन स्तवन, मु. ऋषभ, मा.गु., गा. ११, पद्य, मपू., (वीरजिणेसर साहिब मेरा), ११६४७०-१(६), ११६४९६-२(६) महावीरजिन स्तवन, उपा. क्षमाकल्याण, मा.गु., गा. ५, वि. १९वी, पद्य, मूपू., (आज हृदयकमल प्रगट्यो आनंद), ११६२९७-१२(+) महावीरजिन स्तवन, उपा. क्षमाकल्याण, मा.गु., गा. ९, पद्य, मूपू., (इण वन सामी समोसा), ११६२९७-३(+) महावीरजिन स्तवन, उपा. क्षमाकल्याण, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (--), ११६२९७-१(+$) महावीरजिन स्तवन, मु. जिनचंद्र, मा.गु., गा. १७, वि. १८५०, पद्य, मपू., (मगध देस सुहामणो रे), ११५८२७-१ महावीरजिन स्तवन, आ. जिनलाभसूरि, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूप., (वीर जिणंद निकट उपगारी), ११९२१६-४(+) महावीरजिन स्तवन, पंन्या. जिनविजय, मा.गु., गा. ७, पद्य, मपू., (वंदो वीर जिनेश्वर), ११५८७७-२ महावीरजिन स्तवन, मु. ज्ञानविमल, मा.गु., गा. १३, पद्य, मूपू., (करुणा कल्पलता श्रीमह), ११७३५०-२, ११५६३८-४($) महावीरजिन स्तवन, मु. ज्ञानविमल, पुहिं., गा. ९, पद्य, मूपू., (वीर विना वाणी कोण), ११९६१२-५४(+#) महावीरजिन स्तवन, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., गा. ९, पद्य, मूपू., (महावीर मनोहरु प्रणमु), ११६४९९-१(६) महावीरजिन स्तवन, मु. दयारत्न, मा.गु., गा. १९, वि. १६००, पद्य, मपू., (प्रणमवि वीर जिणद पाय पंकज), ११८८३४-१(+#) महावीरजिन स्तवन, मु. पद्मविजय, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (ज्ञान उज्ज्व ल दिवा), १२०००५-५ महावीरजिन स्तवन, मु. मोहनविजय, मा.गु., गा.८, पद्य, मप., (दुर्लभ भव लही दोहलो), ११९८२४-३९(+) महावीरजिन स्तवन, मु. रंगविजय, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (प्रभुजी वीरजिणंदने), ११९६१२-६०(+#), ११५६९०-२, ११५५०७-२(#) महावीरजिन स्तवन, मु. रतनचंद, मा.गु., गा. ११, वि. १८६५, पद्य, श्वे., (तसलानंदन साहबा सांभल दीन), ११९९३१-२७(+) महावीरजिन स्तवन, मु. रतनचंद, मा.गु., गा. ११, वि. १८६१, पद्य, श्वे., (देखण इस घणा छे जी जिणरा), ११९९३१-१२(+) महावीरजिन स्तवन, मु. रतनचंद, मा.गु., गा. १४, वि. १८८०, पद्य, श्वे., (रिषभदत ने देवानंदा नार रथ), ११९९३१-३३(+) महावीरजिन स्तवन, मु. रतनचंद, मा.गु., गा.१०, पद्य, श्वे., (श्रीसिद्धारथनंदजी प्रभु), ११९९३१-२६(+) महावीरजिन स्तवन, मु. रतनचंद, मा.गु., गा. १०, पद्य, श्वे., (हां जी प्रभु चंपा हो नगर), ११९९३१-२८(+) महावीरजिन स्तवन, मु. रतनसागर, मा.ग., गा. २५, पद्य, मप., (--), ११७६०३-२(६) महावीरजिन स्तवन, मु. राम, पुहिं., गा.८, पद्य, श्वे., (नाथ केसे कर्मा को फंद), ११९७४५-२४(+) महावीरजिन स्तवन, मु. लब्धिविजय, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., (श्रीमहावीर मनोहरु), ११९६१२-२(+#) महावीरजिन स्तवन, श्राव. श्यामदास, पुहि., गा. ११, पद्य, श्वे., (--), ११६६६१-१(६) महावीरजिन स्तवन, श्रीपति, मा.गु., गा. ७, पद्य, मपू., (मुख मटके अटके मारु), ११७२९४-२ महावीरजिन स्तवन, मु. सूर्यमल, मा.गु., गा.८, पद्य, श्वे., (रसना महावीर उचर रे त्रिसल), ११७३५८-१(+#) महावीरजिन स्तवन, मु. हीर, मा.गु., गा. १७, वि. १६९५, पद्य, म्पू., (सरस सबद सुहामणो सरस तेज), १२००९७-१(#) महावीरजिन स्तवन, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., (उत्तम गुणना धारि जी), ११७९७६-१७(+) महावीरजिन स्तवन, मा.गु., गा. १२, पद्य, मपू., (धन हो धन श्रीवीरप्रभु तुम), ११७९७६-१८(+) महावीरजिन स्तवन, मा.गु., पद्य, मपू., (प्रणमुं सरसति मात बीजोने), ११७७४१(६) महावीरजिन स्तवन-१३ बोलगर्भित तप, मु. चोथमल ऋषि, रा., गा. ३०, वि. १८५८, पद्य, श्वे., (सासणनायक संजम लेने तपमे), ११९७४५-७१(+) महावीरजिन स्तवन-१४ स्वप्नगर्भित, क. जैत, मा.गु., गा. २८, पद्य, मूप., (एक मन वंधु श्रीवीर), ११६७४२(+-#), ११६९७३-१(६) महावीरजिन स्तवन-२४ दंडक २६ द्वारगर्भित, आ. पार्श्वचंद्रसूरि, मा.गु., गा. ९१, ग्रं. १६२, पद्य, मूपू., (सुखकर स्वामी वीरजिन), ११८९२८(+) महावीरजिन स्तवन-२७ भव, मु. लालविजय, मा.गु., ढा. ६, वि. १६६२, पद्य, मपू., (विमल कमलदल लोयणा), ११५५१३(+$), ११७३३२(+#$), १२००५७(+#$), ११७०४८(5) महावीरजिन स्तवन-२७ भवविचारगर्भित, पं. वीरविजय, मा.गु., ढा. ५, गा. ५२, वि. १९०१, पद्य, मूपू., (श्रीशुभविजय सुगुरू), ११७०९०(+), ११७६९८, ११५९१०-१(#) For Private and Personal Use Only Page #593 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ५७८ देशी भाषाओं की मूल कृति के अकारादि क्रम से प्रत-पेटाकृति क्रमांक सूची परिशिष्ट-२ महावीरजिन स्तवन-२७ भवविचारगर्भित, मु. हंसराज, मा.गु., ढा. १०, गा. १००, वि. १७वी, पद्य, मप., (सरसति भगवति दिओ मति), ११७७९४(+s), ११८५५५(+), ११९२०५(#$), ११७२२१(६) महावीरजिन स्तवन-५ कल्याणक वधावा, मु. दीपविजय, मा.गु., ढा. ५, गा. ५९, पद्य, मूपू., (वंदी जगजननी ब्रह्माण), ११७८१५(+#$) महावीरजिन स्तवन-अतिचारगर्भित, मु. धर्मवर्धन, मा.गु., ढा. ४, गा. ३०, वि. १७५४, पद्य, मूपू., (ए धन सासन वीर जिनवर), ११७८४४, ११८८४८-४ महावीरजिन स्तवन-छट्ठाआरा परिचयगर्भित, श्राव. देवीदास, मा.गु., ढा. ५, गा. ६६, वि. १६११, पद्य, मूपू., (सकल जिणंद पाय नमी), ११६८५८($) महावीरजिन स्तवन-ज्ञानदर्शनचारित्रसंवादरूप नयमतगर्भित, आ. लक्ष्मीसूरि, मा.गु., ढा. ८, गा. ८१, वि. १८२७, पद्य, मूपू., (श्रीइंद्रादिक भावथी), ११८२०७-६(+), ११९५८८-१ महावीरजिन स्तवन-दीपावलीपर्व निर्वाणमहिमा, मु. गुणहर्ष, मा.गु., ढा. १०, गा. १२५, पद्य, मूपू., (श्रमणसंघतिलकोपम), ११९०९१(+), ११८६५७, ११७९४५ (६) महावीरजिन स्तवन-नालंदापाडा, मु. रायचंद ऋषि, मा.गु., गा. २२, वि. १८३९, पद्य, श्वे., (मगध देशमांहि विराजै), ११९४०२-३(-) महावीरजिन स्तवन-पंचकल्याणक, मु. रामविजय, मा.गु., ढा. ३, गा. ५६, वि. १७७३, पद्य, मूपू., (शासननायक शिवकरण वंदु), १२००६७(+), ११८८४८-९ महावीरजिन स्तवन-पारणागर्भित, मु. माल, मा.गु., गा. ३१, पद्य, मूपू., (श्रीअरिहंत अनंत गुण), ११५९१६, ११५२७४(#$) महावीरजिन स्तवन-पारणागर्भित, मा.गु., गा. २८, पद्य, भूपू., (चोमासी इग्यारमी), ११९७४५-७०(+) महावीरजिन स्तवन-पारणाविनती, पं. वीरविजय, मा.गु., गा. ८, पद्य, मूपू., (चोमासी पारणो आवे), ११५५५६-१ महावीरजिन स्तवन-पावापुरीमंडन, उपा. क्षमाकल्याण, मा.गु., गा. ५, पद्य, मप., (वीर प्रभु त्रिभुवन), ११६२९७-२(+) महावीरजिन स्तवन-विकानेर, मु. धनिसुंदर, रा., गा. ९, वि. १७१३, पद्य, मूपू., (महावीरजीणंद वांदीयै हौ), १२००९२-१ महावीरजिन स्तवन-सम्यक्त्वविचारगर्भित, ग. दीपविजय, मा.गु., ढा. ३, गा. ३६, वि. १८७७, पद्य, मूपू., (आरजदेशमां आरजदेश मगध), ११९४२९-१ महावीरजिन स्तवन-स्थापनानिक्षेपप्रमाण पंचांगीगर्भित, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., ढा. ६, गा. १४८, ग्रं. २२८, वि. १७३३, पद्य, मपू., (प्रणमी श्रीगुरुना पय), ११८५५२(+$), ११९२५२-२(+), ११७९३०-१ (२) महावीरजिन स्तवन-स्थापनानिक्षेपप्रमाण पंचांगीगर्भित-बालावबोध, मा.गु., गद्य, मूपू., (ए स्तवनमां प्राइ पद), ११८५५२(+$) महावीरजिन स्तुति, आ. जिनलाभसूरि, मा.ग., गा. ४, पद्य, मप., (मुरति मनमोहन कंचन), ११९१४३-२३(+-), ११९६४८-३ महावीरजिन स्तुति, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., गा. ४, वि. १८वी, पद्य, मूपू., (मनोहर मुरति महावीर), ११७६९६-२(#$) महावीरजिन स्तुति, मु. सुमतिविजय, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूप., (चैत्र सुदि दिन तेरसेए), ११६०५३-३, ११६५८७-३ महावीरजिन स्तुति, मु. सोमकुशल, मा.गु., गा. ४, पद्य, मपू., (सकल लब्धि तणो वर सागरु), ११८८८७-१५(+) महावीरजिन स्तुति, मा.गु., गा. ६, पद्य, मप., (जपो नरनारी रे यो शाशनपति), ११७९७६-१६(+) महावीरजिन स्तुति, मा.गु., गा. ४, पद्य, मपू., (बालपणे डाबो पाय), ११९१४३-३०(+-) महावीरजिन स्तुति, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू., (वर्धमान जिनवर परम), ११६३९०-४(#) महावीरजिन स्तोत्र-प्रभाती, मु. विवेक, मा.गु., गा. १५, पद्य, मूप., (सेवो वीरने चित्तमां), १२०१२७(#) महावीरजिन हमचडी-५ कल्याणकवर्णन, उपा. सकलचंद्र गणि, पुहि., ढा. ३, गा. ६८, पद्य, मपू., (नंदनकुं त्रिशला), १२०११४ महावीरजिन होरी, मु. विबुधविमल, पुहि., गा. ६, पद्य, मूप., (सुद्ध रूची के साथ), ११७२९५-१ महाशतकश्रावक चौढालिया, रा., ढा. ४, गा. ४४, पद्य, मप., (तिणकालैने तिण समे नगरी), ११८३३८-३ महिमा वाक्य-संवत १२०२ से १८०६ तक के जैन सर्वसामान्य ऐतिहासिक घटनाक्रम, मा.गु., गद्य, मूपू., (संवत १२०२ पाटणनगरे), १२०११३ For Private and Personal Use Only Page #594 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १.१.२६ माणिभद्रवीर आरती, मु. चतुरकुशल, मा.गु., गा. ८, पद्य, मूप., (जय जय आरती माणिभद्र देवा), ११९२१५-३७(+) माणिभद्रवीर छंद, मु. उदयकुशल, मा.गु., गा. २६, पद्य, मूप., (सरस वचन द्यो सरसती), ११६६९८-३, ११७८०६(2) माणिभद्रवीर छंद, मु. लालकुशल, मा.गु., गा. १९, पद्य, मूपू., (सरसति भगवती भारती), ११९२१५-५(+), ११७५४८-२ माणिभद्रवीर छंद, मु. शांतिसोम, मा.गु., गा. ४४, पद्य, मूपू., (सरस्वती स्वामनी पाय), ११७२५७ माणिभद्रवीर छंद, मु. शिवकीर्ति, मा.गु., गा. ९, पद्य, मूपू., (श्रीमाणिभद्र सदा), ११९२१५-२१(+) माणिभद्रवीर स्तोत्र, उपा. उदय वाचक, मा.गु., गा. २२, पद्य, मपू., (नित समरं त्रिपुरा), ११७५४८-१(६) माणिभद्रवीर स्तोत्र, मु. चिमन, मा.गु., गा. ७, पद्य, मपू., (मंगल करणो माणिभद्र तुं हे), ११५४९४ मानतुंगमानवती रास, उपा. अभयसोम, मा.गु., ढा. १४, वि. १७२७, पद्य, पू., (प्रणमुं माता सरसती), ११८९१२ मानतुंगमानवती रास, मु. मोहनविजय, मा.गु., पद्य, मूपू., (गुण गिरूयो धणी प्रबल), ११९२२९($) मानतुंगमानवती रास-मृषावादविरमण अधिकारे, मु. मोहनविजय, मा.गु., ढा. ४७, गा. १०१५, वि. १७६०, पद्य, मूपू., (ऋषभजिणंद पदांबुजे), ११६३२३(+$), ११८३४३(+#), ११९९१३(+), ११९४६६, ११९४८९, ११८१५०(5), ११८३०८($) मानपरिहारछत्रीसी, मा.गु., गा. ३७, पद्य, मूपू., (मान न कीजे रे मानवी), ११७६१३($), ११९९६९-२(६) मान परिहार सज्झाय, मा.गु., गा. २०, पद्य, मूपू., (मान न कीजै रे मानवी), ११६२३१-२ मार्गानुसारी ३५ गुण सज्झाय, उपा. मानविजय, मा.गु., गा. १७, पद्य, मपू., (वीर कहइ भविजन प्रते), ११७५१९ मिथ्यात्व वाणी, पुहिं., गा. ४, पद्य, दि., (नारायण देवको कहें कि), ११९९६३-४२ मिथ्यात्व विध्वंशन चतुर्दशी, श्राव. भगवतीदास भैया, पुहिं., गा. १४, पद्य, दि., (वंदौ रिषभजिनंद अजित संभव), ११९८८४-४२(+) मिथ्यात्वसम्यक्त्व भेद बोल, मा.गु., गद्य, मूपू., (देव मूढ १ शास्त्र मूढ २), ११८६०४-१३(+#) मिथ्यात्वीकृत निरवद्यक्रिया मतपुष्टि चौपाई, मा.गु., ढा. ४, वि. १८४७, पद्य, मूपू., (अरिहंत सिधने आयया), ११९८३९-१ मिश्रदंत चरित्र, मु. ऋषभदास, मा.गु., गा. ११६, वि. १७७३, पद्य, मूपू., (आदि जिनेसर हूं नमूं करुणा), ११९२४४ मनिपति रास, म. गजविजय, मा.ग., ढा. ३९, वि. १७८१, पद्य, मप., (--), ११८९२१(#s) । मुनिराज जयमालिका, श्राव. भगवतीदास भैया, पुहि., गा. १०, पद्य, दि., (परमदेव परणांम करि सतगुरु), ११९८८४-१५(+) मुनिशिक्षा सज्झाय, मु. पार्श्वचंद्र, मा.गु., गा. ९, पद्य, मूपू., (देवगुरु संघ कारण), १२०१०७-२(+) मुनिसुव्रतजिन स्तवन, मु. मोहनविजय, मा.गु., गा. ६, पद्य, मूपू., (हो प्रभु मुज प्यारा), ११९८२४-३४(+) मूढशिक्षा अष्टपदी, श्राव. भगवतीदास भैया, पुहि., गा. ८, पद्य, दि., (चिनमूरति चिंताहरन पूरन), ११९८८४-७५ (+) मूढशिक्षा अष्टपदी, पुहि., गा. ८, पद्य, दि., (ऐसे क्युं प्रभु पाईइ), ११९९६३-५४, ११९९८७-३ मृगांकलेखा चौपाई, मु. रायचंद ऋषि, मा.गु., ढा. ६२, वि. १८३८, पद्य, श्वे., (आदेसर जिन आददे चोवीसमा), ११९७०३(+), ११९९४७($) मृगापुत्र सज्झाय, उपा. उदयविजय, मा.गु., गा.८, पद्य, मपू., (सुग्रीव नयर वर वनवाड), ११७१९२-१(s) मृगापुत्र सज्झाय, मु. रतनचंद, मा.गु., गा. २३, वि. १८९२, पद्य, श्वे., (सुणो सुणो भवक मन), ११९९३१-३८(+) मृगापुत्र सज्झाय, मु. सिंहविमल, मा.गु., गा. २४, पद्य, मूपू., (सुग्रीवनयर सुहामणो), ११७२००-१ मृगापुत्र सज्झाय, मा.गु., ढा. २, गा. ३८, पद्य, मूपू., (प्रणमी पास जिणंदने), ११७२८९(६), १२००२५(5) मृगापुत्र सज्झाय, मा.गु., गा. १४, पद्य, श्वे., (सुग्रीवनयर सोहामणुं), १२०१३८ । मृगावतीसती चौपाई, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., खं. ३ ढाल ३७, गा. ७४५, ग्रं. ११००, वि. १६६८, पद्य, मपू., (समरु सरसति सामिणी), ११८९६६(+) मेघकुमार चौढालिया, मु. जादव, मा.गु., ढा. ४, गा. २३, पद्य, श्वे., (प्रथम गणधर गुणनिलो), १२००९१(+#), १२०१०७-१(+), ११८५५०-४ मेघकुमार चौढालिया, मा.गु., ढा. ७, पद्य, मपू., (सेणीक राजाने धारणी बोले), ११९२६०-३२(+) मेघकुमार सज्झाय, मु. अमर, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (धारणी मनावे रे मेघ), ११८२४५-२(+) मेघकुमार सज्झाय, मु. देव, पुहि., गा. १०, पद्य, श्वे., (तेरे कारण मेहा जिनवर), १२०१३९-१ मेघकुमार सज्झाय, मु. प्रीतिविमल, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (धारणी मनावे रे मेघ), ११७६७३-३(+), ११५६४४-२ For Private and Personal Use Only Page #595 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ५८० देशी भाषाओं की मूल कृति के अकारादि क्रम से प्रत-पेटाकृति क्रमांक सूची परिशिष्ट-२ मेघकुमार सज्झाय, मा.गु., गा. २१, पद्य, मपू., (वीर जिणंद समोसर्या), १२००६३(-१) । मेतारजमुनि सज्झाय, मु. राजविजय, पुहिं.,मा.गु., गा. १४, पद्य, मूपू., (समदम गुणना आगरु जी), ११५८७६, ११७७३८, ११७९८९, ११६५०३-३(#$), ११७६३०(#) मेरु १० दशा विचार, मा.गु., गद्य, मपू., (मेरुप्रबत १०००००), ११७७२८($) मोक्षप्राप्तिक्रम विचार, मा.गु., गद्य, मूपू., (मोक्ष आको स्वरूप है सौ), ११९८५५-३(+) मोक्षभेद विचार-स्त्रीपुरुष, मा.गु., गद्य, पू., (--), ११५३४९($) मोक्षमार्ग पयडी, श्राव. बनारसीदास, पुहि., गा. २४, पद्य, दि., (इक्क समैं रुचिवंतनों), ११९९६३-११ मोतीकपासीया संबंध, मु. श्रीसार, मा.गु., ढा. ५, गा. १०३, वि. १६८९, पद्य, मपू., (सुंदर रुप सोहामणो), ११६३३९($) मोहभ्रम अष्टक, श्राव. भगवतीदास भैया, पुहिं., गा. ११, पद्य, दि., (परम पूज्य सरवग्य है), ११९८८४-६६(+) मोहराजा चौपाई, मा.गु., पद्य, मूपू., (--), ११६३७४($) मौनएकादशीपर्व कथा, रा., गद्य, मूपू., (सिरिवीरं नमिऊण पुच्छ), ११९४८३-६(+), ११९४८६-६(+) मौनएकादशीपर्व देववंदन, पंन्या. रूपविजय, मा.गु., पद्य, मप., (नगर गजपूर पुरंदर), ११९३४०(+) मौनएकादशीपर्व स्तवन, मु. कांतिविजय, मा.गु., ढा. ३, गा. २५, वि. १७६९, पद्य, मूपू., (द्वारिकानयरी समोसर्या रे), ११५४८५(#s), ११७३९८-१(६), ११७५४७(६) मौनएकादशीपर्व स्तवन, पंन्या. जिनविजय, मा.गु., ढा. ४, गा. ४२, वि. १७९५, पद्य, मप., (जगपति नायक नेमिजिणंद), ११५२८५-१(+), ११६४०९ मौनएकादशीपर्व स्तवन, मु. न्यायसागर, मा.गु., ढा. २, गा. १८, पद्य, मूप., (पहेले कोटे महाजस), ११५७३५(६), ११५९५७(), ११५९७१-२($) मौनएकादशीपर्व स्तवन, मु. माणेक, मा.गु., गा. १३, पद्य, मूपू., (विश्वनायक मुक्तिदायक), ११६४३२ मौनएकादशीपर्व स्तवन, मु. विशुद्धविमल, मा.गु., ढा. ५, गा. ४२, वि. १७८१, पद्य, मूपू., (शांतिकरण श्रीशांतिजी), ११७८३४, ११५३१५(६) मौनएकादशीपर्व स्तवन, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., गा. १३, वि. १६८१, पद्य, मूपू., (समवसरण बेठा भगवंत), ११७११३-१(#) मौनएकादशीपर्व स्तवन-१५० कल्याणक, उपा. यशोविजय, मा.गु., ढा. १२, गा. ६२, वि. १७३२, पद्य, मप., (धुरि प्रणमुं जिन), ११७१६३(६) मौनएकादशीपर्व स्तुति, मु. गुणहर्ष-शिष्य, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू., (एकादशी अति रुअडी), ११७२९६-६(+), ११८६४५-७(+), ११८५६२-६ मौनएकादशीपर्व स्तुति, मु. जिनचंद्र, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू., (अरनाथ जिनेश्वर), ११९६४८-१(६) मौनएकादशीपर्व स्तुति, मु. लालविजय, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू., (गौतम बोले ग्रंथ संभाली), ११५३३६(+), ११५४२१ यंत्रबद्ध दोहरा, श्राव. भगवतीदास भैया, पुहिं., गा. १६, चिप., दि., (जैन धर्म में जायकी कही), ११९८८४-१०(+) युगमंधरजिन स्तवन, मु. जिनराज, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (सइमुख हुं न सकुं कही), ११८५८१-६ युगमंधरजिन स्तवन, मु. न्यायसागर, मा.गु., गा. ७, पद्य, मपू., (क्या जानु कुछ कीनो), ११९६१२-२१(+#) युगमंधरजिन स्तवन, मु. रायचंद ऋषि, रा., गा. ९, वि. १८३७, पद्य, श्वे., (महाविदेह मे प्रभु रो), ११९४०२-७(-2) युगमंधरजिन स्तुति, मु. सुमतिविजय, मा.गु., गा. १, पद्य, मूपू., (दिनउ गमते वंदु श्रीयुग), ११६०५३-२, ११६५८७-२ रतनगुरु सज्झाय, मा.गु., गा. ३८, पद्य, श्वे., (रतनगुरु गुण आगला रे), ११७६४५-२ रत्नत्रय पूजा, जै.क. द्यानतराय, पुहिं., गा. ५१, वि. १८वी, पद्य, दि., (चहुँगति फणि विषय हरन मणि), ११८१४७-२२(#$) रत्नपालरत्नावती चौपाई, पं. माणिक्यराज, मा.ग., ढा. ३५, गा. ६६५, ग्रं. ९०५, वि. १८१९, पद्य, मप., (स्वस्ति श्रीप्रभु), ११६३४८-१(+$) रत्नपालरत्नावती चौपाई, मु. मोहनविजय, मा.गु., खं. ४ ढाल ६६, गा. १३७२, वि. १७६०, पद्य, भूपू., (सकल श्रेणि में दुर), ११८०१६(+$), ११९७२२(+$) For Private and Personal Use Only Page #596 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १.१.२६ रत्नपालरत्नावती रास-दानाधिकारे, मु. सूरविजय, मा.गु., खं. ३ ढाल ३२, गा. ७७४, वि. १७३२, पद्य, मूपू., (रीषभादिक जिनवर नमुं), ११८४५६-२(+$), ११९१३४(+), ११९६४७(+#), ११९९७६, ११७०७९(5) रत्नविजय रास, मा.गु., ढा. ५, गा. ३९, वि. १९३३, पद्य, मप., (सरसत गणपत दीजियौ), ११६०३२ रथनेमिराजिमती गीत, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (राजुल चाली रंगसु रे), ११८२४५-६(+) रथनेमिराजिमती पंचढालियो, मु. रायचंद ऋषि, रा., ढा. ५, वि. १८५४, पद्य, श्वे., (अरिहंत सिद्धनें आयरी), ११८२१२-१(+-#), ११६२०५ रथनेमिराजिमती सज्झाय, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूप., (छेडो नाजी नाजी छेडो), ११९०२८-२(#) रथनेमिराजिमती सज्झाय, मु. रूपविजय, मा.गु., गा.८, पद्य, मप., (काउसग्ग ध्याने मुनि), ११९२६०-२२(+), ११६२९५ रथनेमिराजिमती सज्झाय, पं. वीरविजय, मा.गु., गा. ४०, पद्य, मपू., (रहनेमि अंबर विण), ११५६२१(६) रथनेमि सज्झाय, मु. वसता मुनि, मा.गु., गा. ७, पद्य, मपू., (काउसग्ग थकी रे रहनेम), ११७६७३-४(+) रमल शुकनावली, पुहिं., गद्य, मपू., इतर, (अरे यार वहुत दिन), ११५६२९-१(+), ११५७६४ रमल शुकनावली, पुहिं., गद्य, जै., इतर, (लहीयान १ कुबजतुदाखील), ११५८२१(+#) रविवारव्रत कथा, मु. कांतिविजय, मा.गु., गा. ३२, वि. १८३६, पद्य, मपू., (सुखकर प्रणमुं सरसति), ११९२१५-१३(+) रसना सज्झाय, मु. चोथमल, रा., गा. ११, पद्य, श्वे., (रसना सीधी बोल तेरे), ११९७४५-८३(+) रागादिनिर्णयाष्टक, श्राव. भगवतीदास भैया, पुहिं., गा. १०, पद्य, दि., (सर्वज्ञेय ज्ञायक परम), ११९८८४-६८(+) राचाबत्तीसी, श्राव. राचो, मा.गु., गा. ३२, पद्य, श्वे., (जीवडा जाग रे सोवे), ११८५८१-१,११६३१३($) राजसिंघ रास, ग. कपूरविजय, मा.गु., ढा. ५३, गा. १३८५, वि. १८२०, पद्य, मप., (ऋषी पडिलाभे भावथी), ११६३३६-१($) राजिमतीसती सज्झाय, मा.गु., गा. ७, पद्य, मपू., (सांभल रे तुं सजनी), ११९६१२-८४(+#) रात्रिभोजन चौपाई, ग. लक्ष्मीवल्लभ, मा.गु., ढा. २६, वि. १७३८, पद्य, मप., (वर्धमान जिनवर तणा), ११८१६०(+#$) रात्रिभोजन चौपाई, उपा. सुमतिहंस, मा.गु., ढा. २४, गा. ४०५, वि. १७२३, पद्य, मपू., (सुबुधि लबधि नव निध), ११६८०१(+$) रात्रिभोजन परिहार सज्झाय, उपा. देवविजय, मा.ग., ढा. २, गा.१४, पद्य, मप., (गुरु चरणे रे भाव), ११५३३७(+#$), ११५४८७-१(#$) रात्रिभोजन परिहार सज्झाय, मु. वसता मुनि, मा.गु., गा. १३, पद्य, मूपू., (पुण्यसंजोगे नरभव लाध्यो), ११९२६०-२३(+) रात्रिभोजन परिहार सज्झाय, मु. सेवक, मा.गु., गा. १७, पद्य, मपू., (रंभा जणणी रुयडीजी), ११५६३७-१(+#) रात्रिभोजन परिहार सज्झाय, मा.गु., गा. १९, पद्य, मूपू., (अवनितलि वारू वसइजी), ११८७३६-८, ११७७९५-१(#$) राधाकृष्ण गीत-१५ तिथिगर्भित, मा.गु., गा. १५, पद्य, वै., (--), ११७२७८-१(+$) राधाकृष्णभक्ति पद, मा.गु., पद्य, वै., (बोलो दिल खोलोजी राधे), ११५३४४-३(+) राधाजी बारमासा, मा.गु., गा. १३, पद्य, वै., (कारतिक मासे को लामणो सीयल), ११७३२५-४(+) रामचंद्रजी की मुंदरी, मा.गु., गा. ३१, पद्य, श्वे., (सरसत सामण विनउं), ११७४५६-१(+#) रामचंद्रजी बारहमासी, मु. हुकमचंद, पुहि., गा. १३, पद्य, श्वे., (आज बचनन के बांधे रामचंद्र), ११६५५६-१(-) रामचंद्र वंशावली, मा.गु., गद्य, श्वे., (--), ११९४४३-१(+) राम चरित्र, मु. चोथमल ऋषि, मा.गु., खं. ७ ढाल १८७, वि. १८६२, पद्य, श्वे., (सुखदायक सांसणधणी), ११९५४९(+) रामयशोरसायन चौपाई, मु. केशराज, मा.गु., अधि. ४ ढाल ६२, गा. ३१९१, ग्रं. ४३७५, वि. १६८३, पद्य, मूप., (मुनिसुव्रतस्वामीजी),११८१५२(+$), ११९८१९-२(+), ११७८४७ रामविनोद, पं. रामचंद्र गणि, मा.गु., समु.७, गा. १६१७, ग्रं. ३३२५, वि. १७२०, पद्य, मूपू., इतर, (सिद्धबुद्धिदायक सलहीयै), ११८१५६(+$), ११८२५७(+$), ११९४०५(+#$), ११८२५५, ११७३०३(#$) रामसीता दोहा, मा.गु., दोहा. १, पद्य, जै., वै.?, (राम नाम सुख लील विलास), ११८७७७-६(+#) रामायण अष्टपदी, पुहिं., गा.८, पद्य, दि., (विराजै रामायन घटमां), ११९९६३-६४ रायचंद गुरुगुण ढाल, मु. जीतमल, मा.गु., गा. १८, वि. १८७९, पद्य, स्था., (इण दुखम आरे पांच में भूला), ११९७६०-२ रावण सज्झाय, पुहिं., पद्य, श्वे., (अरे कूबुधि कंथ कोन पे), ११९७४५-१२०(+$) रावण सैन्यमान कवित्त, मा.गु., पद. १, पद्य, जै., वै., (एक कोडि गजबंध अड बदस), ११८१४७-५२(#) For Private and Personal Use Only Page #597 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ५८२ देशी भाषाओं की मूल कृति के अकारादि क्रम से प्रत-पेटाकृति क्रमांक सूची परिशिष्ट-२ राशि उपमा पद-ज्योतिष, पुहिं., पद. १, पद्य, श्वे., इतर, (पंचम प्रवीन बार सुनो सीख), ११८७०२-७ रुक्मणीसती सज्झाय, मु. राजविजय, मा.गु., गा. १४, पद्य, मपू., (विचरता गामोगाम नेमि), ११७६६८-१(#S) रुपसेन चौपाई, मु. आणंद, मा.गु., खं. ४, गा. ५८४, पद्य, स्पू., (--), ११८९८१(+$) रूपचंदऋषि रास, मु. तीकम, मा.गु., ढा. ११, गा. २२४, वि. १६९९, पद्य, श्वे., (महावीर जिवन घणीक), ११९९९६($) रूपसेन रास, मु. महानंद, मा.गु., ढा. ७५, गा. २९४५, वि. १८०९, पद्य, श्वे., (श्रीऋषभादिक नित्य), ११८६०९(+$) रेवतीश्राविका सज्झाय, मु. कवियण, मा.गु., गा. १०, पद्य, मपू., (सोवन सिंघासने रेवती), ११९९२२-१४($) रोहिणी कथा, मा.गु., गद्य, मूपू., (चंपानगरीयै श्रीवासु), ११९४८३-१२(+), ११९४८६-१२(+) । रोहिणीतप चैत्यवंदन, मु. मानविजय, मा.गु., गा. ६, पद्य, मप., (रोहिणी तप आराधीए), ११९५१६(+-#) रोहिणीतप रास, उपा. उदयविजय, मा.गु., ढा. ८, पद्य, मूपू., (श्रीजिनमुखकजवासिनी), ११८६१०-१(+) रोहिणीतप सज्झाय, मु. अमृतविजय, मा.गु., गा. २१, पद्य, मप., (वासुपूज्य नमी स्वामी), ११९१५०-१(-#) रोहिणीतप सज्झाय, मु. रामविजय, मा.गु., गा. ९, पद्य, मूपू., (वंदो हियडे हरख धरेवी), ११९१४९-१(+), ११७९९४ रोहिणीतप स्तवन, मु. कृष्ण ऋषि शिष्य, मा.गु., गा. ५, पद्य, श्वे., (रोहिणीतप भवि आदरो रे), ११६९०५-२(+) रोहिणीतप स्तवन, मु. दीपविजय कवि, मा.गु., ढा. ६, गा. ३१, वि. १८५९, पद्य, मूपू., (हां रे मारे वासुपूज्यनो), ११५४५१(#), ११६५३६(#$) रोहिणीतप स्तवन, मु. श्रीसार, मा.गु., ढा. ४, गा. ३२, वि. १७२०, पद्य, मूपू., (सासणदेवता सामणीए मुझ), ११५३६५(+#), ११५९१८(+), १२०१५२(+#), ११८८४८-१९,११८६४०(2) रोहिणीतप स्तुति, मु. कांति, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूप., (शिवसुखदायक नायक ए), ११९४२९-३ रोहिणीतप स्तुति, मु. लब्धिरूचि, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू., (जयकारी जिनवर वासपूज), ११८८८७-१२(+), ११७६४१-१(६), ११७७५२-३(६) लकड़े की लावणी, पुहिं., गा. १०, पद्य, जै., इतर, (भरमजल समें कहुं रे दाखला), ११७३२५-७(+) लक्ष्मीपति सज्झाय, मु. अमोलक ऋषि, रा., गा. ३०, वि. १९५६, पद्य, श्वे., (पुन्य चीज है बडी जगत), ११९७४५-७४(+) लग्नसुबोधीएकोत्तरी, मु. रामचंद, मा.गु., गा. ७१, वि. १८०८, पद्य, मप., इतर, (गुरु सारद पाय नमी), ११५६९७(+$) लघुज्येष्ठविनयव्यवहार सज्झाय, मा.गु., गा. ७१, वि. १८५२, पद्य, श्वे., (भेषधार्यारी सरधा बुरी ते), ११९८३९-२ लब्धिचंदसूरि गहुंली, मा.गु., गा. ८, पद्य, मूपू., (गच्छपती आया हे सहेली), ११५३४२-५(+) । लब्धिचंदसूरि वधावो, पा. वल्लभ, मा.गु., गा. ५, पद्य, मपू., (वहिला पधारोजी रे वाला), ११५३४२-३(+) ललितांगकुमार रास, मु. दानविजय, मा.गु., ढा. २७, गा. ६८९, वि. १७६१, पद्य, पू., (सकल कुशलकमला सदन), ११८३३७(+$) लीलावतीसुमतिविलास रास, उपा. उदयरत्न, मा.गु., ढा. २१, गा. ३४८, वि. १७६७, पद्य, मूपू., (परम पुरुष प्रभु पास), ११५६४१(+#S), ११९६५४, ११७९४७(#$), ११८४२३($) लुंकामतीय प्रश्नबोल, मा.गु., गद्य, मूपू., (श्रीउवाईमांहि अंबडनी), ११९१०३-२(+) लोकाकाश ३४३ राज चौपाई, श्राव. भगवतीदास भैया, पुहि., गा. २०, वि. १७४०, पद्य, दि., (प्रणमूं परमदेव के पाय मन), ११९८८४-४७(+) वंकचूलचोर सज्झाय, मु. मति, मा.गु., गा. १०, पद्य, मपू., (जंबुद्विपमां दीपतु), ११६३८१-३(#) वक्ता १४ गुण वर्णन पद, मु. राम, पुहि., गा. ४, पद्य, श्वे., (वक्ता के गुण चवदा कइये), ११९७४५-१०५(+) वखतविजयादिअष्टमुनि वंदना, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूप., (वखतविजय बुधवान हेमनिज), ११६९८४-२(+) वज्रधरजिन स्तवन, मु. देवचंद्र, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूप., (विहरमान भगवान सुणो), ११७८२८ वज्रस्वामी गहुंली, पं. वीरविजय, मा.गु., गा. ८, पद्य, मूपू., (सखी रे में कौतुंक), ११७४५१-२(६) (२) वज्रस्वामी गहंली-टबार्थ, मा.गु., गद्य, मपू., (वयरस्वामी ६ मासन), ११७४५१-२(६) वणजारा सज्झाय, उपा. समयसुंदर गणि, मा.ग., गा. १९, पद्य, मप., (विणजारा रे भाई देखी), ११७२९०-२ वरदत्तगुणमंजरी चौपाई-ज्ञानपंचमीफलमाहात्म्ये, मु. ऋषभसागर, मा.गु., ढा. २१, वि. १७४८, पद्य, मूपू., (पास जिणेसर पाय नमुं), ११६२६७(5) वरसीदान मान, मा.गु., गद्य, मपू., (एक कोडिने आठ लाख दिन), ११७३७४-२(#) For Private and Personal Use Only Page #598 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १.१.२६ ५८३ वर्गमूल गणितसाधन चौपाई, मा.गु., पद्य, मूपू., इतर, (--), ११६८८५(+$) (२) वर्गमूल गणितसाधन चौपाई-बालावबोध, मा.गु., गद्य, मप., इतर, (--), ११६८८५(+$) वर्तमानजिनवीसी, श्राव. भगवतीदास भैया, पुहि., स्तु. २२, पद्य, दि., (सीमंधर जिनदेव नगर), ११९८८४-१२(+) वर्षाकाल काव्य, मा.गु., पद्य, इतर, (उमटी घटा बादल थया एकठा), ११६८५९-५(+) वर्षा विचार, मा.गु., गद्य, मूपू., इतर, (वर्षा लीजोइ जे तरे संवत्), ११७८३१-२ वर्षेश राजामंत्रीधान्येशादि विचार, मा.गु., गद्य, वै., इतर, (चैत्र सुदि १ प्रतिपदानो), ११६२७४-२ वल्लभसत्क साधु पहेरामणि सूची, मा.गु., गद्य, मूपू., (ॐ नत्वा श्री श्री विजयदे०), ११७९२८ वस्तुपालमंत्री दानधर्मविचार पद, मा.गु., गा. १, पद्य, मपू., (अढार कोड शेव्रुज), ११७९४२-४ वासुपूज्यजिन स्तवन, मु. विजयानंदसूरि शिष्य, मा.गु., गा. १३, पद्य, मूप., (ऋतु वसंत आवे थकेजी), ११७९९८ वासुपूज्यजिन स्तवन-सूर्यपुरमंडण, उपा. उदयरत्न, मा.गु., ढा. ६, गा. ५९, पद्य, मपू., (श्रीसांतीसार सोलमो), ११५४६९ वासुपूज्यजिन होरीपद, मु. सेवक, पुहिं., गा. ५, पद्य, मूपू., (वासपुज गुण गावां चालो), १२००१३-३ विक्रमचौबोली रास-पुण्यफलकथने, वा. अभयसोम, मा.गु., ढा. १७, ग्रं. ३२५, वि. १७२४, पद्य, मूपू., (वीणा पुस्तक धारणी), ११८८१२(+), ११८६४८ विक्रमराजा रास, मु. भाणविजय, मा.गु., ढा. १७४, गा. ५७९७, ग्रं. ७४४०, वि. १८३०, पद्य, मपू., (अमल कमल सम नयन यूग), ११९४४४(+#$) विक्रमादित्य चौपाई, उपा. लाभवर्द्धन पाठक, मा.गु., ढा. २७, गा. ५८५, वि. १७२३, पद्य, मूपू., (पुरिसादाणी प्रणमीइं), ११८९२९ विक्रमादित्य पंचदंडसाधन चौपाई, उपा. लाभवर्द्धन पाठक, मा.गु., ढा. ५०, गा. २७४, वि. १७२३, पद्य, मूपू., (श्रीसुखसंपद पूरवै), ११८२०९-३(+) विचार रत्नसार, मु. देवचंद्रजी, मा.गु., ग्रं. २५२७, गद्य, मूपू., (श्रीवीतरागनी वाणी भव), ११६८५९-७(+$) विचार संग्रह-विविधविषयक, मा.गु., गद्य, श्वे., (ठाणांगमाहिं त्रीजे), ११७२९७-२ विजयकुंवरविजयाकुंवरी चरित्र, मु. चोथमल ऋषि, मा.गु., गा. २५, वि. १९८१, पद्य, स्था., (सदा हुलसाय के रे तस सुरनर), ११९८४९-२ विजयजिनेंद्रसूरि गुरुगुण गहुंली, मु. राम, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., (वीर पटोधर जाणीइं रे सोहम), ११५५०७-३(#) विजयदेवसूरि स्तुति, मा.गु., गा. १, पद्य, मपू., (सोवनगढ ऊपरिं वीर), ११९६१२-६९(+#) विजयदेवेंद्रसूरि सज्झाय, मा.गु., ढा. ४, गा. २१, पद्य, मूपू., (प्रणमुं सरसति प्रेमसुंआप), ११७४७५(+#) विजयरत्नसूरि सज्झाय, मु. रामविजय, मा.गु., गा. १०, पद्य, मप., (वीनतडी अवधारो हो पउध), १२०१०२-१(#) विजयलक्ष्मीसूरि बारमासा, मा.गु., गा. १६, पद्य, मूपू., (हु तो सरसतिने पाये), ११७२७८-३(+$), ११७३२५-१(+$) विजयसेठविजयासेठाणी सज्झाय, मु. कुसल, मा.गु., ढा. ४, गा. २८, पद्य, मपू., (भरतक्षेत्रे रे), ११६९१२(+) विजयसेठविजयासेठाणी सज्झाय, मु. रतनचंद, मा.गु., गा.८, पद्य, श्वे., (शुक्लपक्ष विजया व्रत), १२०१४९-२(-) विजयसेठविजयासेठाणी सज्झाय, मु. लालचंद, मा.गु., गा. २१, वि. १८६१, पद्य, स्था., (मनुष जमारो पायने जे), ११७५४३(+) विजयाणंदसूरि भास, मु. रंगविजय, मा.गु., गा.८, पद्य, मूपू., (श्रीसरसति सूभवित), ११७७६९-६(#) विनयचट रास, मु. ऋषभसागर, मा.गु., उल्ला. ४ ढाल ५८, गा. १५३०, वि. १८३०, पद्य, मपू., (पार्श्वनाथ जिनवर प्रणम्य), ११७५१७(+$) विनीतअविनीत अधिकार, मा.गु.,रा., ढा. ११, पद्य, मप., (नमो वीर सासणधणी ते), ११९६०५(#) विमलजिन स्तवन, मु. जिनकीर्ति, मा.गु., गा. ६, पद्य, मूपू., (विमल विमल गुण मन), ११९८२४-३८(+) विमलजिन स्तवन, मा.गु., पद्य, मूपू., (विमलजिणेसर वंदियै परतिख), ११८७६०(६) विमलमंत्री प्रबंध, मु. लावण्यसमय, मा.गु., खं. ९, गा. ३८७, ग्रं. १७००, वि. १५६८, पद्य, मूप., (आदिजिनवर आदिजिनवर), ११७७४९(#$) विमलमंत्री सलोको, पंन्या. विनीतविमल, मा.गु., गा. १०९, पद्य, मप., (सरसति समरूं बे करजोड), ११८५४६(+) विरहद्वार, मा.गु., गद्य, स्था., (समुचय चार गतिनो विरह), ११९७९५-७(+) विवाहपडल भाषा, मु. रूपचंद, मा.गु., गा. ३६, पद्य, मूपू., इतर, (सदगुरु वाणी समरि), ११५५९६(+#), ११७१३४(5) For Private and Personal Use Only Page #599 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ५८४ देशी भाषाओं की मूल कृति के अकारादि क्रम से प्रत-पेटाकृति क्रमांक सूची परिशिष्ट-२ विविध काव्य प्रकार नामावली, मा.गु., गद्य, स्पू., इतर, (--), ११६८५९-१(+$) विविध जीव आयुष्य विचार*, मा.गु., गद्य, मूपू., (१२० हाथीनो आयु १२०), ११६७५५-१(+) विविध नदी नाम, मा.गु., गद्य, मूपू., (गंगा गोमति गोदावरी सिंध), ११६८५९-४(+) विविधबोल संग्रह, मा.गु., गद्य, ., (दस प्रकारे सामाचारी), ११९६१९(+) विविध रोग प्रकार नाम, मा.गु., गद्य, मूपू., इतर, (रोग सोग वियोग आपदा कष्ट), ११६८५९-३(+) विवेक जकडी, मु. रूपचंद, मा.गु., गा. ५, पद्य, श्वे., (वादि अनादि गवायौ जीव),११८३१६-८(+) विशेषतानुसार देवीदेवता व नगरों की सूची, मा.गु., गद्य, श्वे., (गलढुढाड की कपडो मुलतान को), ११६८३६-१ विषापहार स्तोत्र, आ. अचलकीर्ति, पुहिं., गा. ४२, वि. १७१५, पद्य, दि., (आत्मलीन अनंतगुण), ११५५०४(+#$), ११७०१४(+), ११६१४१-३(#$), ११८१४७-१(#) विसहरा शकुन विचार, मा.गु., गद्य, श्वे., इतर, (वार अदीत१ मंगल२ शनि३), ११६६९०(+) विहरमानजिन नाम-उत्कष्ट संख्या, मा.गु., गद्य, मप., (श्रीजयदेवनाथ१), ११९६०९-४(+) विहरमानजिन स्तवनवीसी, आ. जिनसागरसूरि, मा.गु., स्त. २०, पद्य, मप., (सामि सीमंधर विनती), ११८५४९(2) विहरमानशाश्वतजिन स्तवन, आ. हेमखेमसूरि, मा.गु., गा. ७, पद्य, मपू., (विहरमान जिन वीस वीस नित), ११६१०४-१ वीरसेनजिन स्तवन, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., गा. ६, वि. १८वी, पद्य, मूपू., (पश्चिम अरध पुष्कवरे), ११७५२९-१ वेदनिर्णयपंचासिका, श्राव. बनारसीदास, पुहि., गा. ५१, वि. १७वी, पद्य, दि., (जगत विलोचन जगतहित), ११९९६३-५ वेदिकामंगल स्तवन, मु. रत्नसिंह, मा.गु., गा. ११, पद्य, मप., (हिवै प्रतिष्ठा कारणे ए), ११९६४९-३१ वैक्रीयशरीर स्थिति कालमान विचार, मा.गु., गद्य, मपू., (वैक्रीयशरीर० कहे छे), ११९०९६-२६(+#) वैदर्भी चौपाई, मु. प्रेमराज ऋषि, मा.गु., ढा. ७, गा. २०९, पद्य, श्वे., (जिणधरमसुं जागता हुवो), ११८४२४(+#) वैद्यमनोत्सव, नयनसुख केसराज, मा.गु., अ.७, गा. ३१०, वि. १६४९, पद्य, वै., इतर, (शिवसुत पद प्रणमु), ११८६४५-१६(+) वैद्यलक्षणादिप्रस्ताविक कवित्त, पुहि., गा. ४१, पद्य, मप., (करमरोग की परकिति पावै जथा), ११९९६३-४५ वैरसिंहकमार चौपई-जीवदयाशील विषये, पंन्या. मोहनविमल, मा.गु., ढा. ३८, गा. ८७६, वि. १७५८, पद्य, मूपू., (प्रणमुं सारद सामनी), ११९७८१(+s), ११५७१३(६) वैराग्यपचीसी, श्राव. भगवतीदास भैया, पुहिं., गा. २५, वि. १७५०, पद्य, दि., (रागादिक दोष नित जै वैरागी), ११९८८४-७७(+) वैराग्यपच्चीसी, मु. गोपालदास, पुहिं., गा. २५, पद्य, श्वे., (इह प्रमादी जीव जग), ११८५०९-५(+), ११६४८०-१, ११७४५५(#) वैराग्यमय लावणी, पुहि., गा.५, पद्य, मपू., (अरज हमारी सुणो दीनपत), ११८१४७-६७(#) वैराग्य सज्झाय, मु. लावण्यसमय *, मा.गु., गा. २०, पद्य, मूपू., (वैकुठ पंथ बिहामणो), ११६९५०-२(#) वैराग्य सज्झाय, पुहिं., गा. १०, पद्य, मूप., (खबर नहीं आ जगमें पलक), ११८१४७-१७(#) शतअष्टोतरी स्तोत्र, श्राव. भगवतीदास भैया, पुहिं., गा. १०८, पद्य, दि., (ॐकार गुण अति अगम), ११९८८४-२(+) शत्रुजयगिरनारतीर्थ स्तुति, मा.गु., गा. ४, पद्य, मप., (त्रिभुवनमांहे तिरथ), ११८५६२-११(5) शत्रुजयतीर्थ २१ खमासमण दोहा, मु. धर्मचंद्र, मा.गु., गा. २९, पद्य, मूपू., (समरी रीदय सारदा सरस वचन), ११५९७४-१ शत्रुजयतीर्थ २१ नाम, मा.गु., गद्य, मपू., (सेजेंजो १ श्रीपुंड), ११८५५१-२(#) शत्रुजयतीर्थ २५ नाम, मा.गु., गद्य, मूपू., (श्रीसिंहशेखराय नमः), ११८५५१-३(#) शत्रुजयतीर्थउद्धार रास, मु. नयसुंदर, मा.गु., ढा. १२, गा. १२०, ग्रं. १७०, वि. १६३८, पद्य, मूपू., (विमल गिरिवर विमल), ११५७०४(६), ११७११२(६), ११९४३४(६) शत्रुजयतीर्थ चैत्यपरिपाटी, मा.गु., गा. ३६, पद्य, मूपू., (वागवाणि सुपसाउ करे), ११६४२६-१ श@जयतीर्थ चैत्यवंदन, ग. पद्मविजय, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., (विमलकेवल ज्ञानकमला), ११६५८९-२(+), ११९८३२-१ शत्रुजय तीर्थमाला स्तवन, मु. अमृतविजय, मा.गु., ढा. १०, गा. १५२, वि. १८४०, पद्य, मपू., (विमलाचल वाल्हा वारु रे), ११८२११(+), ११९४६९(+#$), ११९४९२(६) शत्रुजयतीर्थ रास, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., ढा. ६, गा. ११२, वि. १६८२, पद्य, मपू., (श्रीरिसहेसर पाय नमी आणी), ११६९०६(+$), ११७८७१(+$), ११८६३६(+), ११८७५२-२, ११७३२४($) शत्रुजयतीर्थ विचार, मा.गु., गद्य, मप., (पहेलो आरो सुसमसुसमा नामै), ११९२६९-२ For Private and Personal Use Only Page #600 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १.१.२६ शत्रंजयतीर्थ स्तवन, मु. कांतिविजय शिष्य, मा.गु., गा. १०, पद्य, मप., (सहीयां मोरी चालो शेत), ११५६४४-१(६) शत्रुजयतीर्थ स्तवन, मु. कांतिविजय, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (श्री रे सिद्धाचल), ११९६१२-१२(+#), ११७८०५-१ शत्रुजयतीर्थ स्तवन, मु. कुंअरविजय, मा.गु., गा. ४, पद्य, मपू., (तीरथराजनुं लीजे नांम), ११९६१२-११(+#) शत्रुजयतीर्थ स्तवन, मु. जिनचंद, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., (अंग उमाहो अति घणो), ११७८०५-२ शत्रुजयतीर्थ स्तवन, मु. जिनचंद, मा.गु., गा. ७, पद्य, मपू., (ते दिन क्यारे आवसी), ११८८४८-८ शत्रुजयतीर्थ स्तवन, पंन्या. जिनविजय, मा.गु., गा. १६, पद्य, मूपू., (करजोडी कहे कामनी), ११७७२६(#) शत्रुजयतीर्थ स्तवन, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., गा. ७, पद्य, मपू., (आपो आपोने लाल मोंघा), ११९६१२-४(+#) शत्रुजयतीर्थ स्तवन, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., गा.७, पद्य, मूपू., (मोरा आतमराम कुण दिन), ११९६१२-६८(+#), ११७३७३-१ शत्रुजयतीर्थ स्तवन, मु. ज्ञानसार, मा.गु., गा. ९, पद्य, मपू., (आज्यौ आयज्यो रे हो प्रीतम), ११९२१६-८(+) शत्रुजयतीर्थ स्तवन, मु. ज्ञानसार, मा.गु., गा. २१, वि. १८६९, पद्य, मूपू., (आतमरूप अजाण न जाणू निजपणू), ११७१०८-२(+$) शत्रुजयतीर्थ स्तवन, पं. दीपविजय कवि, मा.गु., गा. १५, वि. १८७७, पद्य, मपू., (जे कोइ सिद्धगिरिराज), ११६५४२ श@जयतीर्थ स्तवन, मु. न्यायसागर, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., (उंचा रे गढसेज), ११९६१२-५३(+#) शत्रुजयतीर्थ स्तवन, पंन्या. पद्मविजय, मा.गु., गा. १०, पद्य, मूप., (जात्रा नवाणु करीए वि), ११९६१२-९२(+#), ११८३३१-६ शत्रुजयतीर्थ स्तवन, मु. पद्मविजय, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., (वीरजी आव्या रे), ११९७५५-१ शत्रुजयतीर्थ स्तवन, मु. रत्न, मा.गु., गा. ५, पद्य, मपू., (चालो चालो नें भविक), ११७७०२-१ शत्रुजयतीर्थ स्तवन, ग. रत्नराज, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., (गाज्यौ गायज्यौ रे हो), ११९२१६-७(+) शत्रंजयतीर्थ स्तवन, वा. रामविजय, मा.गु., गा.७, पद्य, मप., (नगरी देखाउ रे जिन), ११९६१२-७९(+#) शत्रंजयतीर्थ स्तवन, मु. रूपविजय, मा.ग., गा. ७, पद्य, मप., (चालो चालो विमलगिरि), ११७४८४-३(#$) शत्रुजयतीर्थ स्तवन, मु. लब्धि, मा.गु., गा. २७, पद्य, मपू., (अमृत वचने रे प्यारी), ११७६८२-२($) शत्रुजयतीर्थ स्तवन, मु. समयसुंदर, मा.गु., गा. ६, पद्य, मूपू., (क्युं न भए हम मोर), ११९६१२-८२(+#) शत्रुजयतीर्थ स्तवन, मु. सिद्धिविजय, मा.गु., गा. १२, पद्य, मूपू., (मारुं डुंगरिये मन), ११७३११-३(+#$) शत्रुजयतीर्थ स्तवन-९९ यात्रागर्भित, मु. जिनहर्ष, मा.गु., गा. १५, पद्य, मूपू., (श्रीसिद्धाचलमंडण), ११५३६७-१(+) शत्रुजयतीर्थ स्तवन-आशातनावर्जन, पं. वीरविजय, मा.गु., गा. ७, पद्य, मपू., (तीरथनी आशातना नवि), ११७५१२,११८३३१-५ शत्रुजयतीर्थ स्तवन-बृहत्, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., गा. ३१, पद्य, मपू., (बे करजोडी विनवू जी), ११७७४४(+) शत्रुजयतीर्थ स्तवन-शजयतीर्थमंडन, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (संघपति भरत नरेसरु), ११९६४९-३५ शत्रुजयतीर्थ स्तुति, श्राव. ऋषभदास, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू., (श्रीशत्रुजय तीरथसार), ११५३८८(+5), ११७२९६-८(+5), ११८८८७-१०(+), ११७७५२-२, ११८३३१-८ शत्रुजयतीर्थ स्तुति, मु. कीर्त्तिविमल, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू., (आगे श्रीसिद्धाचल स्वामि), ११९६१२-९३(+#) श@जयतीर्थ स्तुति, मु. जिनचंद, मा.गु., गा. ११, पद्य, भूपू., (पहिलो बोले पंथीडा), ११७८३२-४(+#) शत्रुजयतीर्थ स्तुति, आ. नंदसूरि, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू., (श्रीशजयमंडण), ११८८८७-६(+), ११९१४३-६(+-), ११८६९४-१४, ११९६४८-२४ श@जयतीर्थ स्तुति, मु. सुमतिविजय, मा.गु., पद्य, मूपू., (श्रीविमलाचल भावे प्रणमो), ११६०५३-१, ११६५८७-१ शत्रुजयतीर्थ स्तुति, मु. सौभाग्यविजय, मा.गु., गा. १, पद्य, मूपू., (पुंडरिकमंडण पाय), ११८३३१-१० शत्रुजयतीर्थ स्तुति, पुहि., गा. ४, पद्य, मूपू., (आगे पूरव वार नीवाणु), ११८६४५-१०(+), ११८८८७-९(+) शत्रुजयतीर्थे आदिजिन आगमन वर्षसंख्या , मा.गु., गद्य, मपू., (६९८४४००००..०००० एकोनसप्त), ११५४०६-३१(+#) शत्रुजयतीर्थे जिनप्रासादजिनप्रतिमा संख्यामान विचार, मा.गु., गद्य, मूप., (श्रीआदेश्वरजीने मुलगंभारे), ११९१२७ शत्रुजयतीर्थे मोतीशाट्रंक स्तवन-अंजनशलाकाइतिहासयुक्त, पं. वीरविजय, मा.गु., ढा. ७, पद्य, मूप., (उठी प्रभाते प्रभु), ११६०२०(+$) शत्रुजयतीर्थे सिद्ध आत्मा विवरण, मा.गु., गद्य, मूपू., (चैत्र सुदि १५ मे), ११८५५१-१(#) शनिमंगल विचार, मा.गु., गद्य, जै., इतर?, (जेणे संवच्छर शनि वक्रै), ११८७७७-३(+#) शनिश्चर चौपाई, पं. ललितसागर, मा.गु., गा. ४७, वि. १७वी, पद्य, मूपू., (सरसती सामिणी मन दियो), ११७६१०(६), ११७६१९(5) For Private and Personal Use Only Page #601 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ५८६ देशी भाषाओं की मूल कृति के अकारादि क्रम से प्रत-पेटाकृति क्रमांक सूची परिशिष्ट-२ शनैश्चर छंद, मा.गु., गा. १५, पद्य, वै., (छाया नंदन जगिजयो), ११६६९८-२ शांतिकपूजा विधि, पुहि., गद्य, मूप., (प्रथम शुभ दिन शुभ), ११९६०४(+) शांतिकर स्तव यंत्र, मा.गु., गद्य, मूपू., (वाणि २० तिहुअण ३६), ११५८२६-५(+) शांतिजिन आरती, मु. रत्न, मा.गु., गा. ६, पद्य, मपू., (जय जय आरती शांति तुमारी), ११७७६९-९(#) शांतिजिन आरती, मा.गु., गा. ६, पद्य, मूपू., (जय जय आरती शांति), ११६३५६-२ शांतिजिन आरती, पुहि., गा. ७, पद्य, मूपू., (शांति तुमारी तोरा), ११५६९४-२(+) शांतिजिन चरित्र वचनिका, मा.गु., गद्य, मपू., (--), ११७१२०(5) शांतिजिन चैत्यवंदन, मु. रूपविजय, मा.गु., गा. ३, पद्य, मप., (शांतिकरण श्रीशांति), ११७९०६-२(2) शांतिजिन छंद, पुहिं., गा. २, पद्य, दि., (सहि एरी दिन आज सुहाय), ११९९६३-३८ शांतिजिन छंद-त्रिभंगी, जै.क. बनारसीदास, पुहिं., गा. ५, पद्य, दि., (विश्वसेन कुल कमल), ११९९६३-३९, ११६१४१-२(#) शांतिजिन छंद-हस्तिनापुरमंडन, आ. गुणसागरसूरि, मा.गु., गा. २१, पद्य, मूपू., (सारद माय नमुं सिरनाम), ११९२१५-५५(+), ११७३४४-२, ११७६०१-२($) शांतिजिन स्तवन, मु. अमृतविमल, मा.गु., गा. ९, पद्य, पू., (जीहो समीहित पूरण), ११६३३२(#$) शांतिजिन स्तवन, मु. उदयरत्न, मा.गु., गा. १०, पद्य, मूपू., (सुणो शांतिजिणंद), ११९२१५-१७(+) शांतिजिन स्तवन, मु. कवियण, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., (जिनजी हो आज उमाहो), १२०११७-३ शांतिजिन स्तवन, मु. खेम, मा.ग., गा. १३, वि. १७४२, पद्य, मप., (श्रीशांतिजिणेसर शांत), ११६१५१(+) शांतिजिन स्तवन, मु. जयसोम, मा.गु., गा. ११, पद्य, मूप., (संत करि संतजिण सेवीयै जी), ११६८३०(+) शांतिजिन स्तवन, मु. जीतविमल, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., (संती जिनेसर साहिबा रे),११६१९०-२(#) शांतिजिन स्तवन, मु. जैनेंद्रसागर, मा.गु., गा. २५, पद्य, मपू., (अचिरा नंदनंदन प्रणमी), ११५८०७ शांतिजिन स्तवन, ग. दीपविजय, मा.गु., गा.७, पद्य, मूपू., (सोलमा सांति जीणंद), ११९४२९-२ शांतिजिन स्तवन, मु. पुण्यविजय, पुहिं., गा. ६, पद्य, मपू., (अखियन में गुलजारा जिनंद), ११६३५२-३ शांतिजिन स्तवन, मु. भावसागर, पुहिं., गा. १५, पद्य, मप., (सेवा शांतिजिणेसर की),११८८४८-१२ शांतिजिन स्तवन, मु. माणक, मा.गु., गा. ५, पद्य, मप., (सुण दयानीधि तुज पद पंकज),११७४४९-२(+) शांतिजिन स्तवन, मु. मोहनविजय, मा.गु., गा. ७, पद्य, मपू., (शांति जिनेश्वर साहिबा रे), ११९८२४-१९(+), ११६४९१-२(#) शांतिजिन स्तवन, मु. मोहनविजय, मा.गु., गा. ७, पद्य, मपू., (सोलमा श्रीजिनराज उलग), ११९८२४-२०(+), ११९९४२-२(+) शांतिजिन स्तवन, उपा. यशोविजयजी गणि, पुहि., गा. ६, वि. १८वी, पद्य, मूपू., (हम मगन भए प्रभुध्यान), ११९६१२-५९(+#) शांतिजिन स्तवन, मु. रतनचंद, रा., गा. ५, पद्य, श्वे., (तुं धन तुं धन तुं), १२००६५-१(-) शांतिजिन स्तवन, मु. रतनचंद, मा.गु., गा. ९, वि. १८५१, पद्य, श्वे., (संत जिनेसर सोलमा सांति), ११९९३१-१८(+), १२०१३३-२ शांतिजिन स्तवन, उपा. विनयविजय, पुहिं., गा. ५, पद्य, मपू., (शांति तेरे लोचन है), ११९६१२-१८(+#) शांतिजिन स्तवन, मु. सबलदास ऋषि, मा.गु., गा. १०, वि. १८६३, पद्य, श्वे., (संत जिणेसर समरीये पो उठी), ११९४०२-८(-2) शांतिजिन स्तवन, उपा. समयसुंदर गणि, पुहिं., गा. ५, पद्य, मूपू., (मेरइ आंगन कल्प फल्यो), ११९६१२-१७(+#) शांतिजिन स्तवन, मा.गु., गा. ७, पद्य, श्वे., (शांतिजिणंदनी सेवा), ११५४६०-१(६) शांतिजिन स्तवन, मा.गु., गा. २५, पद्य, मूपू., (श्रीसंतजिनेसर नमता नवनिध), ११७२९०-१ शांतिजिन स्तवन-१२ भव, पं. दिनकरसागर, मा.ग., गा. २८, वि. १८७१, पद्य, मप., (आदिइल जगविछ परतिख जोत), ११५३५७(#) शांतिजिन स्तवन-नागपुरमंडण-षट्भावादि गर्भित, मा.गु., पद्य, मूपू., (प्रणमु शांतिकरण गुणनिलु), ११६८२४($) शांतिजिन स्तवन-निश्चयव्यवहारगर्भित, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., ढा. ६, गा. ४८, वि. १७३४, पद्य, स्पू., (शांतिजिणेसर अरचित जग), ११७३४६(+$), ११८९१९(+६), ११७७६७ शांतिजिन स्तवन-पणजी दिक्षा प्रसंग गर्भित, मु. प्रमोदरुचि, पुहिं., गा.८, वि. १९३५, पद्य, मप., (शांतिजिनेश्वर साताकारी), ११५९०७-२ शांतिजिन स्तवन-भुजनगर, रा., गा. ७, पद्य, मूपू., (हा रमतो गयो छोर गयो छो जी), ११६४०८(-) For Private and Personal Use Only Page #602 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १.१.२६ ५८७ शांतिजिन स्तुति, क. ऋषभदास संघवी, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू., (शांति जिणेसर समरीइं), ११८५६२-९, ११५३५०-१(#) शांतिजिन स्तुति-जावरापुरतीर्थमंडन, मु. पुण्यविजय, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू., (शांतिकर शांतिकर), ११८८८७-३(+) शारदाष्टक, जै.क. बनारसीदास, पुहिं., गा. १०, वि. १७वी, पद्य, दि., (नमो केवल रुप भगवान), ११९९६३-२४ शालिभद्र चौपाई, आ. जिनराजसरि, मा.गु., पद्य, मप., (--), ११६११२ शालिभद्रमनि चौपाई, मु. मतिसार, मा.गु., ढा. २९, गा. ५१०, वि. १६७८, पद्य, मप., (सासननायक समरिय), ११७०३०(+#$), ११८३८९(+$), ११८८१३(+#$), ११९२३३(+#$), ११८१८९,११९०२३(#$), ११९११९(#$), ११९६४२(#$), ११५३२२(5), ११८३८२(६), ११९०१४(६) । शालिभद्रमुनि सज्झाय, मु. सहजसुंदर, मा.गु., गा. १७, पद्य, मप., (प्रथम गोवालतणे भवेइं जी), ११६१३९-४(+) शालिभद्रमुनि सज्झाय, मु. सहजसुंदर, मा.गु., गा. ३६, वि. १६वी, पद्य, मपू., (प्रथम गोवालिया तणे), ११७५४६-२(5) शालिभद्रमनि सज्झाय, मा.गु., गा. ११, पद्य, मप., (भद्रा माता इम भणे रे), ११७६७८-२ शालिभद्रमुनि सज्झाय, मा.गु., पद्य, मूपू., (--), ११८५१२(क) शालिभद्रमुनि सज्झाय-सुपात्रदान, मु. खुबचंद, पुहि., गा. ७, पद्य, श्वे., (धन श्रीसालभद्रकुमार दान), ११९७४५-१००(+) शालिभद्रमुनि सलोको, मा.गु., गा. ३५, पद्य, मपू., (सरसति सामणी पाये), ११७०५३(5) शाश्वतअशाश्वतजिनप्रतिमा स्तवन, मा.ग., पद्य, मप., (--), ११७४१६(+$) शाश्वतजिन चैत्यवंदन, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., गा. ३, पद्य, मूपू., (लाख बहोत्तेर कोडी), ११६५७२-७ शाश्वतजिनप्रतिमा स्तवन, मु. हर्षसागर, मा.गु., गा. २०, पद्य, मूपू., (सयल जिणेसर पय नमि), ११६६६०(+) शाश्वतजिन स्तवन, आ. जिनचंद्रसूरि, मा.गु., गा. ५, पद्य, म्पू., (च्यार तीर्थंकर ऋषभानन), ११९६१२-५०(+#) शाश्वतप्रतिमा विचार, मा.ग., गद्य, मप., (पहिलो सौधर्म देवलोक), ११५७०७($) शाश्वताचैत्य नमस्कार स्तवन, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., ढा. ५, गा. २०, पद्य, मूपू., (रिषभानन वधमान चंद), ११९६००-२(+) शाश्वताशाश्वतजिन चैत्यवंदन, क. पद्मविजय, मा.गु., गा. १३, पद्य, मप., (कोडी सातने लाख बहोतर), ११९२१५-६१(+) शाश्वताशाश्वतजिन चैत्यसंख्या प्रमाण, पुहि., गद्य, दि., (प्रथम जंबुद्वीप लवण), ११८१४७-४१(#) शासनदेवी वधावागीत, मा.गु., गा. २८, पद्य, मप., (सरसति सामणि वीनवं रे), ११६०२६(+) शास्त्र स्तुति, पुहिं., गा. २, पद्य, दि., (वीर हिमाचलते निकरी), ११८१४७-३५(#) । शिवपच्चीसी, जै.क. बनारसीदास, पुहि., गा. २६, वि. १७वी, पद्य, दि., (ब्रह्मविलास विकासधर), ११९९६३-१६ शिवसंगीत वृत्त छंद, मु. केसरकुशल, मा.गु., गा. १२, पद्य, मूपू., (--), ११६९०२(+#$) शिष्यचतुर्दशी, श्राव. भगवतीदास भैया, पुहि., गा. १४, पद्य, दि., (कहं दिव्य धुनि शिष्य), ११९८८४-४१(+) शीतलजिन स्तवन, मु. जिनविजय, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (शीतलजिन सहजानंदी थयो), ११९६१२-५२(+#) शीतलजिन स्तवन, वा. देव, मा.गु., गा. ७, पद्य, पू., (श्रीसरसति चरणे नमी गाउ), ११९९४०-२(#) शीतलजिन स्तवन, वा. देव, मा.गु., गा. ७, पद्य, स्था., (श्रीसरसतिवर चरणे नमी गाउ), ११९९४०-३(#) शीतलजिन स्तवन, मु. मोहनविजय, मा.गु., गा.७, पद्य, मप., (शीतल जिन सुणौ स्वामी), ११९८२४-३०(+) शीतलजिन स्तवन, मु. मोहनविजय, मा.गु., गा. ७, पद्य, मपू., (सितलजिननी सेवना), ११९८२४-२९(+) शीतलजिन स्तवन, मु. रतनचंद, मा.गु., गा. ११, वि. १८५५, पद्य, श्वे., (जिणेसर वंदीयेजी दुख टल), ११९९३१-१६(+) शीतलजिन स्तवन, ग. लालजी, मा.गु., गा. ५, पद्य, भूपू., (सुगण सनेही जिणवर सीतल), १२०१३९-२ शीतलजिन स्तवन, मु. हुकम, मल.,मा.गु., गा. ५, वि. १८८६, पद्य, मपू., (मुरवाडा नगर सुहामणो रे), ११६९४५-५(+) शीतलजिन स्तुति, आ. जिनलाभसूरि, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू., (त्रिभुवन जननायक दायक), ११९६४८-६, ११९६४८-३०(5) शीयल कडा, मा.गु.,रा., गा. १६, पद्य, श्वे., (धर्मनां छे अनेक प्रक), ११७०५०(+) शीयलप्रकाश रास, आ. विजयदेवसूरि, मा.गु., गा. ६८, ग्रं. २५१, वि. १६३७, पद्य, मूपू., (पहिलुं प्रणाम करूं), ११८५५०-७($) शीयल रास, मु. ज्ञानचंद्र, मा.गु., गा. १९६, पद्य, श्वे., (पहिला अरिहंत प्रणमी), ११९२०२ शीयलव्रत सज्झाय, मु. कवियण, मा.गु., गा. १८, पद्य, मूपू., (सुणो समजो सकल नरनारी), ११९२६०-२८(+) शीयलव्रत सज्झाय, मु. कांतिविजय, मा.गु., गा. ८, पद्य, मपू., (सरसती केरा रे चरणकमल), ११५४१४-१(+$), ११८२४५-१९(+) शीयलव्रत सज्झाय, मु. हीर, मा.गु., गा. ९, पद्य, मूपू., (तिन गुपत ताणो भण्यो), ११९५४७-२४ For Private and Personal Use Only Page #603 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra ५८८ www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir देशी भाषाओं की मूल कृति के अकारादि क्रम से प्रत- पेटाकृति क्रमांक सूची परिशिष्ट-२ शीलगुण सज्झाय, पुहिं., पद्य, श्वे., (देखीगेरा फूल गुलाब), ११९८४९-५ ($) शीलमंजरी चौपाई, मु. खांजी, पुहिं., पद्य, थे. (प्रणमूं पारस चरण युग करत), ११८२६५ (+३) शुकनावली, पुहि. दोहा १, पद्य, वै. इतर (राम नाम थिर लीलविलास), ११८५५६-३ " शृंगारिक पद-नारी, मु. विजयराज, पुहिं., गा. १, पद्य, मूपू., (बदन तो मेता बतास कीरसे) ११७००२-२ श्रावक ११ प्रतिमा विचार, मा.गु., गद्य, मूपू., ( दरसन प्रतिमा ज्ञान), ११९०९६-१४(+), ११९२०३-५७ला श्रावक १२ व्रत विचार, मा.गु., गद्य, मूपू., (प्राणातिपात अतिचार), ११९०९६-१५ (+#$), ११९२०३-५८ (+), ११७३७०(#$), ११७५१४ (#$), ११८४२९-२७(#) आवक २१ गुण नाम, मा.गु., गद्य, श्वे. (धर्म रत्ने व्यवहारे, १९८२२४-९(+) श्रावक ३ मनोरथ, मा.गु, गद्य, मूपू. (पहिलो मनोरथ समणोपासण), ११९७५६न्याका श्रावक आलोयणा, मा.गु., गद्य, मूपू., (श्रावकने सकल पातक), ११५९२०-२ श्रावक आलोयणा विधि, मा.गु., गद्य, श्वे. (प्रथम इरियावहि पडकमी), ११८९७१-१ " आवककरणी सज्झाय, मु. जिनहर्ष, मा.गु., गा. २३, पद्य, मूपू. (श्रावक तु उठे परभात). ११९७५६-६ (+), ११७२९८-२ (४) श्रावककरणी सज्झाय, मु. नित, मा.गु., गा. ११, पद्य, से. (श्रावक धर्म करो सुखदाइ), ११९४०२-५ (-) श्रावककरणी सज्झाय, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., गा. १४, पद्य, मृपू., (श्रावकनी करणी सांभलो), १२०१४४-१ आवक गृहे ९ चंद्रवा विधान, मा.गु., गद्य, मूपू., (पाणीहारे १ उखले २), ११५४०६-१६ (+) श्रावकधर्म चौपाई, मा.गु., पद्य, श्वे. (--), ११६५४८(#$) " श्रीपालराजा चरित्र, मु. रुपमुनि, मु. प्रेममुनि, मा.गु. डा. ४१, वि. १८५६, पद्य, मूपू., (मनमुं गुरुचरणकुं पायो), ११९२३९-२(+) श्रीपाल रास, मु. चेतनविजय, मा.गु., ढा. ९, वि. १८५३, पद्य, मूपू., (देव धरम गुरु सेवके), ११५४७५(#$) श्रीपाल रास, उपा. विनयविजय उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., खं. ४ ढाल ४१, गा. १८२५, वि. १७३८, पद्य, मूपू. ( कल्पवेल कवियण तणी), ११८४५१(+), ११९००६ (+४), ११९७९३(+), ११९९० (+), ११९९०३(+), ११९९२३ (+४), ११६४७५(४७), ११८६४३(०), ११९२९५ (०३), ११७३६८-१(३), ११७६३५(३), ११७७८९(३) १९८४६५(३), ११८५१७(३), ११९७००(5), ११९९३९(३) (२) श्रीपाल रास-टबार्थ *, मा.गु., गद्य, मूपू., (त्रीजो खंड पूरो थयो), ११९९२३(+$) (२) श्रीपाल रास-वार्थ, मा.गु. गद्य, म्पू, (प्रथम ऋषभदेव प्रमातम ), ११९७००(5) (२) श्रीपाल रास - सिद्धचक्र स्तवन, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., ढा. ११, गा. ४६, पद्य, मूपू. (त्रीजे भव वर थानक तप), ११६४९५-१(३) श्रीपाल रास- बृहद्, मु. जिनहर्ष, मा.गु., डा. ४९ गा. ८६१, वि. १७४०, पद्य, म्पू. ( अरिहंत अनंतगुण धरीये). ११८९६१ (+) श्रीपाल रास- लघु. मु. जिनहर्ष, मा.गु., डा. २० गा. २७१, वि. १७४२, पद्य, मूपू. (चउवीसे प्रणमु जिनराय), ११८५४८ (905), ११६१८३(क) श्रीपाल रास- लघु, मु. ज्ञानसागर, मा.गु., गा. ३२३, वि. १५३१, पद्य, मूपू (करकमल जोडि करि सिद्ध), १९८३११(१) श्रीसारबावनी, मु. श्रीसार कवि, मा.गु., रा., गा. ५६, वि. १६८९, पद्य, मूपू., (ॐ ॐकार अपार पार न), ११५५२२-१ ($) श्रेणिकराजा रास, मु. भीमजी, मा.गु., खं. ३, गा. ७१८, वि. १६२१, पद्य, स्था. (गोतिमनइ सिर नमिय), ११८९१५ (१७) श्रेयांसजिन पद, मु. गुणविलास, पुहिं, गा. ४, पद्य, भूपू (महेर करो महाराज हम प). ११५७४१-४ " " "" ओतागुण वर्णन पद, मु. राम, पुहिं, गा. ५, पद्य, थे., (चवदे गुण श्रोता का कइये), ११९७४५-१०४०) " श्वासोश्वास थोकडा-प्रज्ञापनासूत्रगत, मा.गु., गद्य, श्वे. (पन्नवणासूत्र पद १५ में), ११५५६२-२ " षट्कारक व्यवहारनिश्चयदृष्टांत स्वरूप छप्पय, श्राव. हेमराज पांडे, पुहिं. पद. १, पद्य, दि., (स्वयंसिद्ध करतार करे निज), " ११५३३५-३(४) (२) षट्कारक व्यवहारनिश्चयदृष्टांत स्वरूप छप्पय (पु.ही.) बालावबोध, पुहिं., गद्य, दि. (अब षटकारक आपही के विषे), " ११५३३५-३(४) षड्दर्शनाष्टक, पुठि, गा. ८, पद्य, दि.. (शिवमत बोध सुवेदमत नैवायक), १९९९६३-३५ संतसंगति मरहटी गीत, मु. जिणदास, पुहिं. गा. ४, पद्य, क्षे., ( में नित नमाउं सीस), १९१९५४७-५ For Private and Personal Use Only Page #604 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १.१.२६ संप्रतिराजा वंशवृक्ष, मा.गु., गद्य, म्पू. (पाडिलीपुरे श्रीचंद्रगुप्त), ११६३७५-४(१ संभवजिन स्तवन, मु. अभयराज, मा.गु., गा. ८, पद्य, मूपू., (प्रभु प्रणमु जी संभव), ११९५४७-२६ संभवजिन स्तवन, ग. इंद्रविजय, मा.गु., गा. १३, पद्य, मूपू., (श्रीसहगरु समरण थकी सीझै), १२०१२३-२(+) संभवजिन स्तवन, मु. कहान ऋषि, मा.गु., गा. ८, वि. १७५१, पद्य, श्वे., (संभव नाम सोहामणो वर), १२००९९-२(#) Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir יי संभवजिन स्तवन, मु. कांतिविजय, मा.गु., गा. ५, वि. १७५५, पद्य, मूपू., (हरि प्रभु संभवस्वा), ११५४६३ संभवजिन स्तवन, मु. केसरविमल, मा.गु., गा. ५, पद्य, भूपू (संभवजिनवर सारिखों देव), ११९६१२-१० (+) संभवजिन स्तवन, मु. छगनचंद्र ऋषि, मा.गु., गा. ७, वि. १९२६, पद्य, वे (नवरी सावधी तात जितारी मात), ११९४३२-१४(+) संभवजिन स्तवन, मु. जीतविमल, मा.गु., गा. ९, पद्य, भूपू (संभवजनवर नेनजी मनथी कुंड), ११६१९०-१(७) ! संभवजिन स्तवन, मु. मोहनविजय, मा.गु. गा. ७. वि. १७७०, पद्य, मूपू (समकित दाता समकित आपो), १९९८२४-३२(+) संभवजिन स्तवन, मु. रत्न, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (श्रीसंभवजिन जग तात रे साह), ११७७६९-७(#) संभवाजिन स्तवन, मु. सुमतिविजयशिष्य, मा.गु., गा. ७, वि. १७६०, पद्य, मूपू., (मुने संभवजिनस्युं), ११९६१२-७३(१) संयत असंयतादि जघन्योत्कृष्ट देवगति विचार, मा.गु., गद्य, म्पू, (अवरहि संजति ज० १देव० ३०) १२०१९००-६ संवर-निर्जराभेद विचार, मा.गु., गद्य, श्वे., (पडिक्कमामि पंचहिं), ११९८४०-१(+) " सकलतीर्थ वंदना, मु. जीवविजय, मा.गु गा. १५, पद्य, मूपू. (सकल तीर्थ बंदु कर). ११७८१०-१ सचित्त अचित्त वस्तु काल निर्णय, मा.गु., गद्य, श्वे. (आषाडे चोमासामांहे), ११८४२९-४१(०) सचियादेवी पद, मा.गु., पद. १, पद्य, मूपू., (माता सचीयाजीरो उसीया राणी), ११८८८९-१ सचियादेवी स्तुति, मु. उदेचंद, रा., गा. ४, पद्य, मूपू., (करूं सेव सचीयायरी सदा), १२०१११-४ सच्चियायदेवी छंद, आ. सिद्धिसूरि, मा.गु., गा. २१, पद्य, मूपू., (मुझ मुनि आशा आज फली सवि), ११८५८१-४ सतयुग चौपाई, मु. खेतसी, पुहिं., ढा. १३, गा. २२५, वि. १९०५, पद्य, ते., (स्वाम खेतसी शोभता शिष्य), ११८२३६ सत्तरभेदी पूजा सामग्री, मा.गु., गद्य, मूपू., (चावलसेर १ श्रीफल५ कपूर भीम), ११९९४५ (+) सत्त्वभूतजीवादि विचार, मा.गु. गद्य, मूपू (सत्त्व १ भूत २ प्राणी ३) ११९२०३-२६(+) सत्यार्थप्रकाश, दयानंद सरस्वती स्वामी, हिं., उल्ला. १४, ई. १९वी, गद्य, वै., (शन्नो मित्रः सं वरुणः शन्), प्रतहीन. (२) सत्यार्थप्रकाश चयनित संदर्भश्लोक संग्रह, सं., पद्य, वै. (मद्यं मांसं च मानं च), ११५८६६-२ " सदयवत्ससावलिंगा कथा, मा.गु., प+ग. मूपू (न्यायसूतारा नरवहण). ११६७२९(३) सदेवच्छसावलिंगा रास, मा.गु., गा. ७२७, पद्य, म्पू., (--). १९७६९१(३) सद्गुरुगुण वर्णन होली, आ. जिनसीभाग्यसूरि, पुहिं, गा. ३, पद्य, मूपू., (ऐसी खेलीये आज वसंत), ११९६४९-२९ सद्गुरुवाणी पद, मु. रतनचंद, मा.गु., गा. ९, वि. १८७३, पद्य, श्वे. (मीठी अमृत सारखी), ११९९३१-४० (+) सनत्कुमारचक्रवर्ति सज्झाय, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., (सांभलि सनतकुमार हो), ११७६७८-३ ($) सनत्कुमारचक्रवर्ती सज्झाय, मु. कवियण, मा.गु., गा. १६, वि. १७५१, पद्य, म्पू. (सुरनर परसंशा करे), ११९२६०-२७(+) सनत्कुमारचक्रवर्ती सज्झाय, मा.गु., गा. १६, पद्य, मूपू. (सरसति सामनि पाए लागु), ११७१५०-१(७) " सनत्कुमारचक्रवर्त्ती चौढालियो, मु. कुशलनिधान, मा.गु., ढा. ४, गा. ५२, वि. १७८९, पद्य, मूपू., (सुखदायक सासणधणी तिभु), ११९१९८-२ सप्तनयभंगी वाणी, श्राव. भगवतीदास भैया, पुहिं. गा. १२, पद्य, दि., (बंदी श्रीजिनदेव को बंदी), ११९८८४-५७) सप्तनय विवरण- नैगमादि, मा.गु., गद्य, मूपू., (नगम संग्रह व्यवहार), ११९८५५- २(१), ११८४२९-१३०) सप्तभंगी अस्तिनास्ति, मा.गु., गद्य, मूपू., (कोइक काले अस्ति रुपे), ११५४०६ ३(+०), ११९६०९-७(+) सप्तव्यसन सज्झाय, पं. रत्नकुशल गणि, मा.गु., गा. ११, पद्य, मूपू., (श्रीसिद्धारथ कुल), ११६४९३-२ समकित सज्झाय, मा.गु., गा. ९, पद्य, वे (नरग निगोदमा किया), १९६३११-२ समझछत्रीसी, मु. रतनचंद, मा.गु., गा. ४२, पद्य, वे. (सतगुरु सुधकर ओलखो छोडा), ११९९३१-५० (+) श्वे., समता शतक, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., गा. १०५, वि. १८वी, पद्य, मूपू., (समता गंगा मगनता उदास), ११९८९५-१(+) " समता सज्झाय, मु. रतनचंद, पुर्हि, गा. ५, पद्य, म्पू, (समता रस का प्याला) ११९७४५-५०१०) समयसार सिद्धांतनाटक के कवित, पुहिं. गा. ४, पद्य, दि. (प्रथम अग्यानी जीव), ११९९६३-४१ " For Private and Personal Use Only ५८९ Page #605 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ५९० देशी भाषाओं की मूल कृति के अकारादि क्रम से प्रत-पेटाकृति क्रमांक सूची परिशिष्ट-२ समरादित्यकेवली रास, क. पद्मविजय, मा.गु., खं. ९ ढाल १९९, पद्य, मूपू., (कालादिक जे आठ आचार), ११९९१०(+$), ११७७४५(६) समवसरण अष्टप्रातिहार्या, श्राव. भगवतीदास भैया, पुहिं., गा. ४, पद्य, दि., (प्रथम अशोक फूलकी वरषावानी), ११९८८४-८(+) समवसरण कालमान विचार-इंद्रादि द्वारा रचित, मा.गु., गद्य, मूपू., (सोधर्मो इंद्रनु), ११७३७४-३(#), ११८९१०-१(#) समद्धात के ७ स्वरुप वर्णन, श्राव. भगवतीदास भैया, पुहिं., गा. ११, पद्य, दि., (चरण युगल जिनदेव के वंदत),११९८८४-७४(+) समुद्रपालमुनि सज्झाय, उपा. उदय वाचक, मा.गु., गा. ९, पद्य, मपू., (नगरी चंपामां वसे एतो), ११७१९२-३($) समद्रपाल रास, मु. उदेसींघ, मा.गु., ढा. ४, वि. १७६४, पद्य, मप., (श्रीआदीसर आदि), १२०१२३-१(+) समूर्छिमजीवोत्पत्ति स्थान विचार, मा.गु., गद्य, पू., (उच्चारे सुवा १ उच्चारेसु), ११९२०३-६१(+) सम्मेतशिखरतीर्थ चैत्यवंदन, मु. सेवक, मा.गु., गा. ३, पद्य, मूप., (समेत गिर उपरै सिधा वीस), ११६५९०-२(2) सम्मेतशिखरतीर्थ स्तवन, मु. अमृत, पुहिं., गा. ७, वि. १८४३, पद्य, मूपू., (चालो सहीया आपा जासा), ११७८३२-५(+#) सम्मेतशिखरतीर्थ स्तवन, मु. आलमचंद, पुहि., गा. ७, वि. १८२०, पद्य, मूपू., (समेतशिखर चल रे जी का), ११६८०५-४ सम्मेतशिखरतीर्थ स्तवन, मु. ऋद्धिहर्ष, मा.गु., गा.१०, वि. १७४४, पद्य, मूपू., (तोह नमो तोह नमो समेत), ११७३४३-३ सम्मेतशिखरतीर्थ स्तवन, ग. जिनहर्ष, मा.ग., गा. ६, वि. १७४४, पद्य, मप., (अष्टापद आदिसर सीद्धा), ११९८२४-४(+) सम्मेतशिखरतीर्थ स्तवन, आ. लोहाचार्य, पुहि., गा. ४८, पद्य, दि., (--), ११९२०४(#$) सम्मेतशिखरतीर्थ स्तवन, मु. सेवक, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (श्रीसिखरगिर वंदो रे नरनार), ११६५९०-३(#) सम्यक्त्व ६७ बोल सज्झाय, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., ढा. १२, गा. ६८, पद्य, मूपू., (सुकृतवल्लि कादंबिनी), ११८५४७(+), ११८९६५-१(+), ११९६०९-८(+), ११८२१५-१,११६९५९(#s), ११६५८१(६), ११७००७($), ११९७६४(६) सम्यक्त्वपच्चीसी, श्राव. भगवतीदास भैया, पुहि., गा. २६, वि. १७५०, पद्य, दि., (सम्यक आदि अनंतगुन सहित), ११९८८४-७६(+) सम्यक्त्व सज्झाय, मा.गु., गा. १०, पद्य, श्वे., (स्मक्त समकित वीना), ११७४४९-३(+) सम्यक्त्व सुखडी सज्झाय, मा.ग., गा.५, पद्य, मप., (चाखो नर समकित सुखडली),११८९६५-२(+) सम्यक् मिथ्या स्वरूप, पुहिं., गद्य, श्वे., (पहले बोले श्रद्धान-४), ११५५२७-४(-) सम्यग्दृष्टि, देशविरति व सर्वविरति ११ बोल, मा.गु., गद्य, मप., (विधिवाद १ जे वितरागइ), ११८४२९-२०(#) सरस्वतीदेवी छंद, मु. दयानंद, मा.गु., गा. ७, पद्य, श्वे., (मा भगवती विद्यानी), ११६५७३-१, ११७०७३-१, ११६५७३-२(5) सरस्वतीदेवी छंद, आ. दयासूरि, मा.गु., गा. १०, पद्य, मूपू., (बुद्धि विमल करणी), ११६२७९-१(+s), ११७४२२-१(+), ११५८४०(#) सरस्वतीदेवी छंद, मु. शांतिकुशल, मा.गु., गा. ३५, पद्य, मूपू., (सरस वचन समता मन), ११७५९३ सरस्वतीदेवी छंद, मा.गु., गा. ५, पद्य, मपू., (मोजदेयण तुं सरसति माता), ११६१९७-१ सरस्वतीदेवी छंद-अजारीतीर्थ, मु. शांतिकुशल, मा.गु., गा. ३५, पद्य, मूप., (सरसति सरस वचन समता), ११५२९४(+), ११७८३८, ११५७८९(६) सर्वजिन चैत्यवंदन, मा.गु., गा. ३, पद्य, मूपू., (सीमंधर प्रमुख नमु), ११७९५०-२ सर्वार्थसिद्ध विमान सज्झाय, मु. रतिराम, पुहिं., गा. १२, पद्य, पू., (स्वार्थसिद्ध विमान की), ११८५०९-८(+) सवैयाबावनी, श्राव. बनारसीदास, मा.गु., गा. ५२, वि. १६८६, पद्य, दि., (ॐकार सबद विहदया के), ११९९६३-४ सवैया संग्रह, पुहिं., पद्य, वै., इतर, (अली आय खरी सन्मख),११७१५०-२() सवैया संग्रह-जैनधार्मिक, मु. भिन्न भिन्न कर्तृक, पुहि.,मा.गु., सवै. १३, पद्य, जै., (पूरव तयासीलाख सुख), ११७२९९-२(+) सहस्रकूटजिन स्तवन, ग. देवचंद्र, मा.गु., गा. १४, वि. १८वी, पद्य, मपू., (सहसकूट जिनप्रतिमा वंदीये), ११८८४८-३ सागरोपम पल्योपम पूर्वमान विचार, मा.गु., गद्य, श्वे., (तीखै सत्रै देवतानी), ११९१०२(+) साढापच्चीस आर्यदेशनाम व ग्रामसंख्या, मा.गु., पद्य, श्वे., (मगधदेश राजग्रहीपुरी तिणमे), ११९२३९-१(+$) साढापच्चीस आर्यदेश विचार, मा.गु., गद्य, मूपू., (मगध देश राजगृही बे), ११८४२९-२(#) साढापच्चीसदेशनाम व ग्रामसंख्या, मा.गु., गद्य, मूपू., (मगधदेस राजग्रहीनगर), ११७३५२-१(+), ११७६८९-२ साढीबारा न्यात नाम, मा.गु., गद्य, श्वे., (ओसवाल १ महेसरी २), ११८४२९-२८(#) साधारणजिन गीत, मु.रूपचंद, मा.गु., गा. ३, पद्य, मप., (नीरंजन तारें नेहडले), ११९६१२-३६(+#) साधारणजिन चैत्यवंदन, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., गा. ३, वि. १८वी, पद्य, मूपू., (चउजिन जंबूद्वीपमा), ११६५७२-६ For Private and Personal Use Only Page #606 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १.१.२६ साधारणजिन चैत्यवंदन, मा.गु., गा. ६, पद्य, मप., (जय जय तुं जिनराज आज), ११७८४५-२ साधारणजिन जकडी, श्राव. ऋषभदास, पुहिं., गा. १७, पद्य, दि., (अब मोहि त्यारो सरण तुम), ११८१४७-५६(#) साधारणजिन जन्ममहोत्सव स्तवन, मु. नंद, रा., पद्य, मूपू., (जयै जयै नंदन नाथ नीरंजन), १२००२९-२ साधारणजिन नमस्कार, मु. बनारसी, पुहिं., पद. १, पद्य, श्वे., (जय जय जय नमोस्तु नमोस्तु), ११८७०२-११ साधारणजिन पद, मु. आणंदलाल, पुहिं., गा. ३, पद्य, मूपू., (भजले अरीहंत देव जैन को),११६५०५-१६ साधारणजिन पद, आ. जिनलाभसूरि, मा.गु., गा. ५, पद्य, मप., (उदयौ दिन आज सुधन्यजी), ११९२१६-१(+$) साधारणजिन पद, आ. जिनलाभसूरि, मा.गु., गा. ५, पद्य, पू., (तूं किम तारक नाम धरावै), ११९२१६-३(+) साधारणजिन पद, ग. जिनहर्ष, पुहि., गा. ५, पद्य, म्पू., (हो प्रभु मे तेरी), ११७०१६-४ साधारणजिन पद, मु. ज्ञानसागर , पुहिं., गा. ३, पद्य, मूपू., (मेरो पीया पर संग रमत),११६८०५-११ साधारणजिन पद, मु. नवल, पुहि., गा.५, पद्य, मपू., (कीयै आराधना तेरी), ११८१४७-६(#) साधारणजिन पद, क. बनारसीदास, पुहिं., गा. ६, पद्य, दि., (जीनराज नाम सोधा नही कीनी), ११६५०५-१० साधारणजिन पद, जै.क. बनारसीदास, पुहि., गा. ४, पद्य, श्वे., (सुखदायक मुख एव जगत), ११९९६३-६३ साधारणजिन पद, मु. रामदास, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू., (नैना सफल भये प्रभु), ११६५०५-६ साधारणजिन पद, मु. रूपचंद, पुहि., पद. ४, पद्य, मूप., (मीलवो जुगजोर कठीन है हो), ११९६१२-३१(+#) साधारणजिन पद, पुहि., गा. ४, पद्य, मूपू., (जीनधरम नही कीताहो नर देही), ११६५०५-१८ साधारणजिन पद, रा., गा. ४, पद्य, मपू., (तारो तारो म्हाराज), ११६८०५-१५ साधारणजिन पद, मा.गु., गा. २, पद्य, मूपू., (ताहरी मूरति म्हारे दिल), ११९४०७-३(+) साधारणजिन पद, पुहिं., गा. ३, पद्य, मूपू., (मेरी सुध लीजो अंतरजामी), ११६५०५-७ साधारणजिन पद, पुहिं., गा. ३, पद्य, श्वे., (सुनो अविनासि साहिब), ११५३००-२(#) साधारणजिन पद, पुहिं., गा. ३, पद्य, श्वे., (सोइ घडी सफल सुजाय येसे), ११६५०५-५ साधारणजिन पद, पुहिं., गा. ४, पद्य, दि., (हम जानित है तुम तारोगे), ११८१४७-३०(#) साधारणजिन पद-अष्टपूजा गर्भित, पुहि., गा. ३, पद्य, मप., (चलिये जीनेश्वर बंदीये),११६५०५-४ साधारणजिन पूजा गीत, मा.गु., गा. ३, पद्य, मूपू., (प्रभुपदनी सेवा कुन करे), ११९६१२-८०(+#) साधारणजिन प्रार्थना दोहा, मा.गु., दोहा. २, पद्य, मपू., (सुख देवो दुख मेटवो), ११८१४७-६६(#) साधारणजिन विनती स्तवन, मु. भुधर, मा.गु., गा. १८, पद्य, मपू., (त्रिभुवनगुरु स्वामीजी), ११८४०४-३(+#) साधारणजिन विनती स्तवन, जै.क. भूधरदास, पुहि., गा.१२, पद्य, दि., (अहो जगत गुर एक सुणिय),११८४०४-२(+#) साधारणजिन विनती स्तवन-आत्मनिंदागर्भित, मु. कुमुदचंद, मा.गु., गा. १०, पद्य, श्वे., (प्रभु पाय लागु करुं), ११८१४७-४६(#) साधारणजिन स्तवन, मु. कीर्तिविजय, मा.गु., गा.७, पद्य, मप., (मीथ्या ओध मारग जण भूला), ११९६१२-७०(+#) साधारणजिन स्तवन, आ. गुणसूरि, मा.गु., गा. २२, पद्य, म्पू., (--), ११६३२५-१(5) साधारणजिन स्तवन, आ. ज्ञानविमलसरि, पुहि., गा. ५, पद्य, मप., (जब जिनराज कृपा होवे), ११९६१२-७(+#) साधारणजिन स्तवन, मु. दीप, पुहिं., गा. ५, पद्य, मूपू., (श्रीजिनवर जगराय म्हाने), ११८६०४-२३(+#) साधारणजिन स्तवन, जै.क. बनारसीदास, पुहि., गा. ८, वि. १७वी, पद्य, दि., (मगन होइ आराधो साधो), ११९९६३-५१ साधारणजिन स्तवन, मु. मानसिंह, मा.गु., पद्य, श्वे., (--), ११६३१२-१(६) साधारणजिन स्तवन, मु. रतनचंद, मा.गु., गा. ९, वि. १८६०, पद्य, श्वे., (मनडो उमायो हो दरसण देखवा), ११९९३१-७(+) साधारणजिन स्तवन, वा. रामविजय, पुहिं.,मा.गु., गा. ८, पद्य, मूपू., (प्रभु तोरी वाणी सुणी), ११९६१२-५८(+#) साधारणजिन स्तवन, मु. रूपचंद, पुहि., गा. ५, पद्य, मपू., (निरंजन यार वोरे अब), ११९६१२-३७(+#) साधारणजिन स्तवन, मु. रूपचंद, पुहि., गा. ४, पद्य, मपू., (मे परदेसी दूर का),११९६१२-२२(+#) साधारणजिन स्तवन, मु. सुखसागर, पुहि., गा. ५, पद्य, मूपू., (रागद्वेष जाके नहि), ११६५०५-८ साधारणजिन स्तवन, मु. हर्षकीर्ति, रा., गा. १३, पद्य, मप., (जिण जपि जिण जपि जीवड), ११७२०२ साधारणजिन स्तवन, पुहिं., गा. १६, पद्य, दि., (आज धनि मो मस्तग भयौ तुहार), ११८१४७-४८(#) साधारणजिन स्तवन, पुहिं., गा.७, पद्य, श्वे., (पहेली वंद श्रीजिनराज), ११८१४७-६१(#) For Private and Personal Use Only Page #607 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ५९२ देशी भाषाओं की मूल कृति के अकारादि क्रम से प्रत-पेटाकृति क्रमांक सूची परिशिष्ट-२ साधारणजिन स्तवन, पुहि., पद्य, मपू., (मो भवभव हो जिनदेव सेव नहि), ११६४२४-२(-६) साधारणजिन स्तवन-जिनवाणी महिमा, मु. कांति, पुहि., गा. ५, पद्य, मप., (जिणंदा तोरी वाणीइ), ११९८२४-१०(+) साधारणजिन स्तवन-देवनाटकविचार, मु. जिनेंद्रसागर, मा.गु., गा. ९, पद्य, मपू., (प्रभु आगल नाचे सुरपत), ११९८२४-३(+) साधारणजिन स्तुति, मु. कवियण, मा.गु., गा. ४, पद्य, मपू., (चंपक केतकी पाडल जाई), ११८८८७-७(+), ११९१४३-२९(+-) साधारणजिन स्तति, पुहि., पद्य, श्वे., (करु मै स्तुति जिनवरसे), ११८१४७-१५(#) साधारणजिन स्तुति, पुहि., गा. ३, पद्य, जै.?, (शुक्ष देवे दुःख मेटवौ), ११८१४७-३४(#) साधु आचार १०८ बोल, पुहि.,मा.गु., गद्य, श्वे., (जति थइनै आधाकर्मी), ११७९७७($) साधु आचार सज्झाय, रा., गा. ४५, पद्य, श्वे., (उलखणा दोरी भव जीवा), ११६७५८-२(+) साधु आचार सज्झाय-द्वार दोष विचार, मा.गु., पद्य, श्वे., (सूत्र सुध परूपणा करे), ११९९३१-५१(+$) साधु आहारग्रहण के ६ कारण, पुहिं.,मा.गु., गद्य, म्पू., (पेलो दशभेदे), ११९०९६-१७(+#), ११९२०३-३८(+) साधु आहार त्याग के ६ कारण, मा.गु., गद्य, मूपू., (कोई उपगसर्ग करे तो आहार), ११९०९६-१८(+#$), ११९२०३-३९(+) साधुगुण सज्झाय, मु. सुमतिविजय, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू., (सो जोगीसर सेवीयें जिणमन), ११९६१२-४५(+#) साधुगुण सज्झाय, पुहिं., गा. २४, पद्य, मूपू., (--), ११५२७५(5) साधुप्रायश्चित विधि, मा.गु., गद्य, मूपू., (ज्ञानना अतिचार कहै), ११५९२०-३ साधुमर्यादापट्टक, आ. हीरविजयसूरि, गु., बो. २९, वि. १६४६, गद्य, मूपू., (छति योगि देव जुहारवा), ११५४२४ साधुवंदना, आ. पार्श्वचंद्रसूरि, मा.गु., ढा. ७, गा. ८८, पद्य, मूपू., (रिसहजिण पमुह चउवीस), ११७१३२(+#S), ११८७५०(+) साधुवंदना, श्राव. बनारसीदास, पुहि., गा. ३२, वि. १७वी, पद्य, दि., (श्रीजिनभाषित भारती), ११९९६३-१० साधुवंदना, मु. श्रीदेव, मा.गु., ढा. १३, गा. ३७७, पद्य, मूपू., (पंच भरत पंच एरवय), ११८९४१(+), ११८२१०(६), ११९०१२($) साधु वंदना, रा., पद्य, मपू., (प्रथम नमाय भावसु सीवरु), ११७९८०-२(-) । साधुवंदना, मा.गु., गा. २४९, पद्य, मूपू., (वंदिय गुरूआ सिद्ध), १२००४५(#$) साधुवंदना बृहद, मु. जेमल ऋषि, मा.गु., गा. १११, वि. १८०७, पद्य, स्था., (नमुं अनंत चोवीसी ऋषभादिक), ११९६७४ साधुसाध्वी कालधर्म विधि, मा.गु., गद्य, मूपू., (प्रथम स्नान कराव), ११५४६७(+#) साधु सामाचारी, मा.गु., गद्य, मूपू., (जे साधु आधाकरमी उपास), ११९६०९-६(+) साधुस्तुति सवैया, जै.क. बनारसीदास, पुहिं., पद. २, वि. १७वी, पद्य, दि., (ग्यान्न को उजागर), ११८५५३-२ सामायिक ३२ दोष सज्झाय, आ. जिनलब्धिसूरि, मा.गु., गा. ३५, पद्य, मूपू., (भवियण उपगारह भणी), ११७८१३-१, ११७८८३ सामायिक भेद विचार, पुहि., गद्य, मूपू., (श्रुतसामायिक १ सूत्र), ११९२०३-११(+) सामायिक सज्झाय, मु. कमलविजय-शिष्य, मा.गु., गा. १३, पद्य, मूपू., (प्रणमिय श्रीगौतम), ११९१२६-२($) सामायिक सज्झाय, मु. नेमसागर, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (सामायिक मन सुधे करो), ११५५५५-६(+#) सामायिक सज्झाय, उपा. यशोविजयजी गणि, पुहि., गा. ८, वि. १८वी, पद्य, मूपू., (चतुर नर साय नायक), ११९२५२-३(+), १२००९६ सिंधुचतुर्दशी, पुहिं., गा. १४, पद्य, दि.?, (जैसे काहु पुरुष को पार), ११९९६३-१७ सिंहासनबत्रीसी, ग. संघविजय कवि, मा.गु., कथा. ३२, गा. १५४७, ग्रं. १६००, वि. १६७८, पद्य, मूपू., (सकल मंगल धर्म धुरि), ११८६४९(+$) सिद्धचक्र चैत्यवंदन, मु. साधुविजय, मा.गु., गा. १६, पद्य, मपू., (श्रीसिद्धचक्र आराधता), ११५३७१-१(#) सिद्धचक्र पद, मु. लालचंद, मा.गु., गा. ३, पद्य, मूपू., (नवपद ध्यान धरो रे), ११६४३७-३(+) सिद्धचक्र पूजा में प्रारंभ के दोहे, मा.गु., गा. ९, पद्य, मूप., (प्रथम तो बलबाकुल करी), ११५९९५(+$) सिद्धचक्रमहिमा स्तवन, मु. कनककीर्तिशिष्य, मा.गु., गा. १५, पद्य, मूपू., (नवपदनो ध्यान धरीजे), ११५८३७-१, ११८८४८-१७ सिद्धचक्र सज्झाय, मु. उत्तमसागर शिष्य, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (नवपद महिमा सार सांभल), ११५५७९-१, ११७३४३-५ सिद्धचक्र स्तवन, ग. अमृतविजय, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (सिद्धचक्रने भजीए रे), ११५८३२ सिद्धचक्र स्तवन, मु. कांतिसागर, मा.गु., गा. १०, पद्य, मपू., (वीर जिणंद वखाण्यौ), ११५५७९-२ सिद्धचक्र स्तवन, मु. जिनचंद, मा.गु., गा. ११, पद्य, मूपू., (नवपदना गुन गावो तुम), ११५३६९-१ For Private and Personal Use Only Page #608 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १.१.२६ ५९३ सिद्धचक्र स्तवन, पंन्या. पद्मविजय, मा.गु., गा. १३, पद्य, मप., (सिद्धचक्र वर सेवा), ११९८२४-३७(+), ११७६२२, ११७९९३ सिद्धचक्र स्तवन, वा. भोजसागर, मा.गु., गा. ८, पद्य, मूपू., (सिद्धचक्र सुहामणो), ११७६८४ सिद्धचक्र स्तवन, उपा. मानविजय, मा.गु., ढा. ४, गा. २५, पद्य, मूपू., (जी हो प्रणमु दिन प्रतें), ११५८९३(#$) सिद्धचक्र स्तुति, ग. क्षमाविजय, मा.गु., गा. ४, पद्य, मपू., (वीरजिनेश्वर भवनदिनेश), ११८८८७-१४(+) सिद्धचक्र स्तुति, आ. जिनलाभसूरि, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू., (निरुपम सुखदायक), ११५३४२-१(+), ११९१४३-३१(+-) सिद्धचक्र स्तुति, मु. माणेकविजय, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू., (आसो चैत्र आंबिल ओली), ११६०९३(+) सिद्धचक्र स्तुति, मु. विनयविजय, मा.ग., गा. ४, पद्य, मप., (सिद्धचक्र सेवो), १२००२० सिद्धचतुर्दशी, श्राव. भगवतीदास भैया, पुहिं., गा. १४, पद्य, दि., (परमदेव परणाम करि परम), ११९८८४-४९(+) सिद्धदंडिका स्तवन, पंन्या. पद्मविजय, मा.गु., ढा. ५, गा. ३८, वि. १८१४, पद्य, पू., (श्रीरिसहेसर पाय नमी), ११९२५३-२(+$), ११७१७८(६) सिद्धपद सज्झाय, मु. देवविजय, मा.गु., गा. ६, पद्य, मूपू., (आठ कर्म चूरण करी रे), ११५४३०(+) सिद्धभगवंत चैत्यवंदन, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., गा. ३, वि. १८वी, पद्य, मूपू., (सिद्ध सकळ समरूं सदा), ११६५७२-१ सिद्ध स्तुति, पुहिं., गा. १, पद्य, मप., (अविनाशी अविकार परमरस), ११९६१२-२०(+#) सिद्धांत सारोद्धार विचार, रा., गद्य, मूपू., (एक बोल रे विचार जंबू), ११९६०७(+$) सीतारामचंद्र बारमासो, मा.गु., गा. १३, पद्य, मप., (सखी आवेलो कारतिक मास),११७०६०(#) सीतासती गीत, मु. जिनरंग, मा.गु., गा.११, पद्य, मपू., (छोडी हो पिउ छोडि), ११६८०८ सीतासती सज्झाय-शीलविषये, ग. जिनहर्ष, मा.गु., गा. ९, वि. १८वी, पद्य, मप., (जलजलती मिलती घणी रे), ११५४४६-१(+#), ११७५४९-३, ११७७९५-३(#) सीमंधरजिन गीत, मु. जिनराज, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., (मुज हीयडो हे जालुओ भाष), ११८५८१-५ सीमंधरजिन चैत्यवंदन, उपा. विनयविजय, मा.गु., गा. ३, वि. १७उ, पद्य, मूपू., (श्रीसीमंधर वीतराग), ११५५५६-३ सीमंधरजिन चैत्यवंदन, मु. सुमतिविजय, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (श्रीसीमंधरजगत्प्रभु), ११६०५३-४, ११६५८७-४ सीमंधरजिन विनती पत्र, क. नर, मा.गु., पत्र. २, गद्य, श्वे., (स्वस्ति श्रीमहाविदेह), ११८२४२-२, ११९५५५-१(#) सीमंधरजिन विनती स्तवन, मु. अगरचंद, मा.गु., गा. २१, वि. १८६१, पद्य, मूपू., (त्रिभुवनस्वामी अरज), ११६७६५(+) सीमंधरजिन विनती स्तवन, ग. देवचंद्र, मा.गु., गा. ९, वि. १८वी, पद्य, मूपू., (श्रीसीमंधर जिनवर), ११७७१६-१(#) सीमंधरजिन विनती स्तवन, उपा. भक्तिलाभ, मा.गु., गा. १९, पद्य, मपू., (सफल संसार अवतार हुँ), ११७७१९-१ सीमंधरजिन विनती स्तवन-१२५ गाथा, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., ढा. ११, गा. १२५, ग्रं. १८८, वि. १८वी, पद्य, मपू., (स्वामी सीमंधर विनती), ११८९६५-३(+) सीमंधरजिन विनती स्तवन-३५० गाथा, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., ढा. १७, गा. ३५०, वि. १८वी, पद्य, मपू., (श्रीसीमंधर साहिब), ११९२५२-१(+) सीमंधरजिन स्तवन, मु. अगरचंद, मा.गु., गा. २३, वि. १८२१, पद्य, मप., (मारी वीनतडी अवधारो), ११८८४८-२ सीमंधरजिन स्तवन, मु. जगरूप, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (चंदाजी हो मे), १२०११७-१ सीमंधरजिन स्तवन, मु. जिनहर्ष, मा.गु., गा. ५, वि. १८वी, पद्य, मूपू., (पूर्वविदेह विजये), ११६०१५ सीमंधरजिन स्तवन, मु. जिनेंद्रसागर, मा.गु., गा.७, पद्य, मूपू., (सिमंधरजीने वंदणा), ११७९०२-२,११७८३५-२($) सीमंधरजिन स्तवन, मु. जेमल ऋषि, मा.गु., गा. १०, पद्य, श्वे., (श्रीसीमंदर सायाव दील), ११७२९०-३ सीमंधरजिन स्तवन, क. पद्मविजय, मा.गु., गा. ७, पद्य, मपू., (सुणो चंदाजी सीमंधर), ११५४८७-२(#) सीमंधरजिन स्तवन, मु. मुनिसुंदर, मा.गु., गा. १०, पद्य, मप., (श्रीश्रीमंधर सामिया), ११५८७९ सीमंधरजिन स्तवन, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., गा. २४, पद्य, म्पू., (धन्य ते मुनिवरा रे), ११९१२६-१(६) सीमंधरजिन स्तवन, मु. रतनचंद, मा.गु., गा.१०, पद्य, श्वे., (जिनजी हो दिनदयाल), ११९९३१-३(+) सीमंधरजिन स्तवन, मु. रतनचंद, मा.गु., गा.७, पद्य, श्वे., (धन धन क्षेत्रविदेह), ११९९३१-५(+) सीमंधरजिन स्तवन, मु. रतनचंद, मा.गु., गा.१०, वि. १८८६, पद्य, श्वे., (प्रभु माहरा विनतडी अवधीरक), ११९९३१-९(+) सीमंधरजिन स्तवन, पं. रतनचंद, मा.ग., गा. ९, वि. १८७३, पद्य, मप., (मनडो उमाह्यो हो दरसण),११९९३१-८(+) For Private and Personal Use Only Page #609 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ५९४ देशी भाषाओं की मूल कृति के अकारादि क्रम से प्रत-पेटाकृति क्रमांक सूची परिशिष्ट-२ सीमंधरजिन स्तवन, मु. रतनचंद, मा.गु., गा. ५, पद्य, श्वे., (श्रीसीमंधर जिनराज प्रभुजी),११९९३१-६(+) सीमंधरजिन स्तवन, मु. रतनचंद, मा.गु., गा.८, पद्य, श्वे., (श्रीसीमंधर सुण अलवेसर तुम), ११९९३१-११(+) सीमंधरजिन स्तवन, मु. रतनचंद, मा.गु., गा. १३, वि. १८५३, पद्य, श्वे., (साहिब सावलो हो प्रभुजी), ११९९३१-४(+) सीमंधरजिन स्तवन, मु. रतनचंद, मा.गु., गा. ९, पद्य, श्वे., (सीमंधरजिन साहबा सांभल), ११९९३१-१०(+) सीमंधरजिन स्तवन, मु. रत्न, मा.गु., गा. ६, पद्य, मपू., (विचरे पूर्व विदेहमा), ११७७६९-८(#) सीमंधरजिन स्तवन, मु. रायचंद ऋषि, मा.गु., गा. ९, पद्य, मूपू., (श्रीमंद्र जुगमंद्र सामी), ११९४०२-६(-2) सीमंधरजिन स्तवन, मु. लालचंद, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूप., (श्रीसीमंधरजी सुणजो), ११५३४४-२(+) सीमंधरजिन स्तवन, मु. विजयदेवसूरि शिष्य, मा.गु., ढा. ७, गा. ४०, पद्य, मूपू., (सुण सुण सरसती भगवती तोरी), ११७६२६(६), ११७७५२-१(६) सीमंधरजिन स्तवन, मु. सिद्धिविजय, मा.गु., ढा. ७, गा. ११५, वि. १७१३, पद्य, मपू., (अनंत चोवीसी जिन नमुं), ११९८६४-१ सीमंधरजिन स्तवन, मु. हंस, मा.गु., गा. १६, पद्य, मूपू., (श्रीसीमंधरस्वामीजी जीवन), ११७९९१ सीमंधरजिन स्तवन, मा.गु., पद्य, मूप., (दोइ करजोडी वीनवु जी सुणि), ११६७७४-७(#$) सीमंधरजिन स्तवन, मा.गु., गा. ७, पद्य, मपू., (पूरवने पुखलावती हो बीजे), ११९४०२-४(-2) सीमंधरजिन स्तवन, मा.गु., गा. १०, पद्य, मपू., (सीमंधरसामिजीने वादि), ११८८४८-१० सीमंधरजिन स्तवन, मा.गु., पद्य, म्पू., (सीमंधर सामी अरज सुणी), ११६३११-३($) सीमंधरजिन स्तवन-तमरीमंडण, मु. रायचंद ऋषि, रा., गा. १६, पद्य, श्वे., (सत की नंदण जगत वंदण कीनो), १२००९५-१(#) सीमंधरजिन स्तुति, मु. शांतिकुशल, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू., (श्रीसीमंधर मुजनेवाला), ११८८८७-५(+) सीमंधरजिन स्तुति, मु. हर्षविजय, मा.गु., गा. ८, पद्य, मपू., (पूरव दिशि इशान कुण), ११७३३३-२(+) सुंदरी चौपाई-जिनदर्शनप्रतिज्ञाविषये, मा.गु., पद्य, जै.?, (--), ११७७२५(+#$) सुकालदुष्काल विचार, मा.गु., गद्य, मूपू., इतर, (संवत् होवे तिको विमणो करी), ११७८३१-३ सुखराम गुरुगुण ढाल, मु. चंद्रभाण, मा.गु., ढा. २, गा. ५१, पद्य, श्वे., (वांदू श्रीवधमानने), ११९७६०-४ सुगंधदशमी व्रत कथा, क. महाचंद्र, पुहि., गा. ४५, वि. १४१९, पद्य, दि., (वर्द्धमान जिन चरण नित नमि), ११५७७८ सुगुरुपच्चीसी, मु. जिनहर्ष, मा.गु., गा. २५, पद्य, मूप., (सुगुरू पिछाणो एणे), ११९२६०-५(+) सुदर्शनसेठ सज्झाय, पुहि.,मा.गु., पद्य, मपू., (वंदु सरीजीनीर धीर संजम), १२०११२-१(+) सुदर्शनासती भास, मु. अमृत, मा.गु., गा. ६, पद्य, श्वे., (--), ११५३००-१(#$) सुधर्मदेवलोक विमान, देरासर प्रतिमादि विचार, मा.गु., गद्य, स्पू., (सुधर्म देवलोकमा ३२००००), ११९२६९-४ सुधर्मास्वामी भास, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूप., (चंपानयरी उद्यान सुरत), ११६०३९-१ सुपंथकुपंथपच्चीसी, श्राव. भगवतीदास भैया, पुहिं., गा. २७, पद्य, दि., (केवलग्यान सरूप मैं), ११९८८४-६५(+) सुपार्श्वजिन स्तवन, मु. कांतिविजय, मा.गु., गा. ५, पद्य, मप., (सकल समिहीत सूरतरु रे), १२०१४६-२ सुपार्श्वजिन स्तवन, मु. देवचंद्र, मा.गु., गा. ८, पद्य, मूपू., (श्रीसुपास आनंद में), ११५५१९-१(+$) सुपार्श्वजिन स्तवन, मु. मोहनविजय, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूप., (वाल्हा मेह बवीयडा), ११९८२४-३३(+) सुबाहुकुमार संधि, उपा. पुण्यसागर, मा.गु., गा. ८९, ग्रं. १४०, वि. १६०४, पद्य, मप., (पणमि पास जिणेसर केरा), ११७०७८(#S) सुबाहुकुमार सज्झाय, मु. पानाचंद, मा.गु., गा. १५, वि. १८९३, पद्य, स्था., (हवे सुबाहुकुमार एम), ११७६७१-२ सुबाहुकुमार सज्झाय, मु. सौभाग्यविजय, मा.गु., गा. १७, वि. १८९३, पद्य, मूपू., (हवे सुबाहुकुमार एम), ११५७९३(#) सबद्धिचौवीसी, श्राव. भगवतीदास भैया, पुहिं., गा. २४, पद्य, दि., (चरण कमल जिनदेव के वंदौ), ११९८८४-५८(+) सुभद्रासती चौपाई, ग.रूपवल्लभ, मा.गु., ढा. २५, गा. ५४०, वि. १८२५, पद्य, मूपू., (आदिकरण आदिसलं सांति), ११८८०२(+) सुभद्रासती सज्झाय, क. संग, मा.गु., गा. २३, पद्य, श्वे., (वीरजिनेसर पाय नमी), १२०१२२-१(+) सुमतिजिन पद, मु. जिनराज, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू., (कर तासुं तो प्रीत), ११६३१४-१ । सुमतिजिन पद, मु. रूपचंद, पुहि., गा. ३, पद्य, मूपू., (मुजरा साहिब मुजरा), ११९५८३-१(+) सुमतिजिन स्तवन, पंन्या. पद्मविजय, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (पंचम जगपति वंदिए), ११७३६०-२(+) सुमतिजिन स्तवन, मु. मणिउद्योत, मा.गु., गा. १०, पद्य, मपू., (सजनी मोरी सुमति जीने), ११७०१९ For Private and Personal Use Only Page #610 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ५९५ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १.१.२६ सुमतिजिन स्तवन-१४ गुणस्थानविचारगर्भित, मु. धर्मवर्धन, मा.गु., ढा. ६, गा. ३४, वि. १७२९, पद्य, मपू., (सुमतिजिणंद सुमति), ११८८४८-५ सुमतिजिन स्तवन-उदयापुरमंडण, मु. मोहनविजय, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., (प्रभुस्युं तो बांधी), ११९८२४-२६(+) सुमतिजिन स्तुति, मु. वीरविजय, मा.गु., गा. १, पद्य, मपू., (सुमति स्वर्ग दिये), ११८३३१-११ सुमतिदेवी अष्टोत्तरशतनाम दोहरा, पुहि., गा. ६, पद्य, दि., (नमो सिद्धिसाधक पुरुष नमो), ११९९६३-२३ सुरसुंदरी चौपाई, मु. धर्मवर्धन, मा.गु., खं. ४ ढाल ४०, गा. ६१३, वि. १७३६, पद्य, मपू., (सासण जेहनउ सलहियइ), ११७५९०(+S), ११९८१८(+#), १२००६४(+#s), ११८६५९(#), ११९०२४(#$), ११९६४४(5) सुलसाश्राविका सज्झाय, मु. कल्याणविमल, मा.गु., गा. १०, पद्य, मूपू., (धन धन सुलसा साची), ११८२४५-१२(+) सुविधिजिन पद, मु. रूपचंद, पुहि., गा. ३, पद्य, मपू., (मुजरा साहिब मेरा रे), ११७३२५-३(+) सुविधिजिन स्तवन, मु. रूपचंद, पुहिं., गा.५, पद्य, मपू., (वांकै गढ फोज चढी है),११६८०५-२१ सुविधिजिन स्तवन, मु. सूर्यमल, मा.गु., गा. ६, पद्य, श्वे., (तुम चरणा चित दीनो सुविध), ११७३५८-३(+#) सुषमछत्रीसी, मु. उदय ऋषि, मा.गु., गा. ५३, वि. १८४१, पद्य, श्वे., (सुषमछतीसी सांभल), ११९७३०-१(+#$) सुषमछत्रीसी, मु. खेम, मा.गु., गा. ६२, वि. १८४१, पद्य, श्वे., (सुखम छत्तीसी सांभलो), ११९०९४-२(+) सूआबत्तीसी, श्राव. भगवतीदास भैया, पुहि., गा. ३४, वि. १७५३, पद्य, दि., (नमसकार जिनदेवको करौं दह), ११९८८४-८८(+) सूतक विचार, मा.गु., गद्य, मूपू., (पुत्र जन्म्यां १०), ११९२६३-३(+) सूरजदेव सलोको, मु. ऋषभसुंदर, मा.गु., गा. २८, पद्य, मप., वै., (प्रणमुं सारदा गणपतरा), ११५९४१ सोनाराणी सज्झाय-मिथ्याआरोपपरिहारविषये, क. गंग, पुहि., गा. २१, पद्य, श्वे., (चांपराय हाडा की राणी सोना), ११७९७६-३(+) सोपक्रम निरूपक्रम आयुष्य विचार, मा.गु., गद्य, मूपू., (सोपक्रम आयुष्य ७),११९७४५-२९(+) सोमसुंदरसूरि गुरुगुण गहुंली, मा.गु., पद्य, मपू., (ऐ साजणसी कुलि अवतरीउ ए), ११८४३५-२($) स्तवनचौवीसी, मु. आनंदघन; आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., स्त. २४, वि. १८पू, पद्य, मप., (ऋषभ जिनेश्वर प्रीतम), ११९९४१(+$), ११९७४१, ११६७९६(#$), ११९२११(#$), ११५६३८-१(६) (२) स्तवनचौवीसी-बालावबोध, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., गद्य, मूपू., (चिदानंदमय जिनवर सदा), ११९९४१(+$) स्तवनचौवीसी, मु. कांतिविजय, मा.गु., स्त. २४, पद्य, पू., (सुगुण सुगुण सोभागी), ११९८२४-१(+) स्तवनचौवीसी, आ. जिनराजसूरि, मा.गु., स्त. २४, वि. १७वी, पद्य, मपू., (मनमधुकर मोही रह्यो रिषभ), ११८९०३(+), १२०१३६(+#) स्तवनचौवीसी, पंन्या. जिनविजय, मा.गु., स्त. २४, ग्रं. २६०, पद्य, मपू., (प्रथम जिणेसर पूजवा), ११७२०१(#S) स्तवनचौवीसी, ग. देवचंद्र, मा.गु., स्त. २४, गा. २०५, वि. १७७६, पद्य, मूपू., (ऋषभ जिणिंदसु प्रीतडी), ११७६७६($) स्तवनचौवीसी, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., स्त. २४, गा. १२१, वि. १८वी, पद्य, मपू., (जगजीवन जगवाल हो माता), ११८३३९(+S), ११९८१५-७(+#$) स्तवनचौवीसी, मु. रामविजय, मा.गु., स्त. २४, पद्य, पू., (ओलगडी आदिनाथनी जो), ११७४६७ स्तवनचौवीसी, मु. ललितविजय, मा.गु., स्त. २४, पद्य, मूपू., (--), १२०११९($) स्तवनचौवीसी, श्राव. विनयचंद्र गोकलचंद कुमट, मा.गु., स्त. २४, वि. १९०६, पद्य, श्वे., (श्रीआदिश्वर सामी हो), ११८७३३(+), ११८३०९ स्तवनचौवीसी, मु. सागरचंद्र, मा.गु., स्त. २४, गा. १४५, पद्य, मूपू., (चालोनें जईयै वंदीवा ऋषभ), ११९६६६-१(+) स्तवनचौवीसी, मु. हर्षचंद, मा.गु., स्त. २४, पद्य, मपू., (उठत प्रभात नाम जिनजी), ११५२९५(5) स्तवनचौवीसी-पंचकल्याणक, मु. बुधदर्शनसागर, मा.गु., स्त. २४, पद्य, मपू., (ऋषभ जिणेसर साहेब साचो), १२०१५३(#$) स्त्री कवित, रघूनाथ, पुहिं., पद. १, पद्य, जै., इतर?, (एक नारे परे कर्क चपलचित्त), ११५३२९-४ स्थापनाचार्य इरियावही आदि चर्चा विचार-श्रावकक्रियाविषये, मा.गु., प+ग., मूपू., (हिवें जिवारे श्रावक), ११९७६७-२(+$) स्थापनाचार्यजी परीक्षा विधि, मा.गु., गद्य, मूप., (श्रीभद्रबाहुस्वामी), १२०१२०(+) स्थावर भेद, मा.गु., गद्य, दि.?, (पृथ्वीकाय भेद ५ मसूरीदालि), ११८६०४-९(+#) स्थूलिभद्र कथा, मा.गु., गद्य, मूपू., (अथ पाडलीपुर नांम), ११७१५८($) For Private and Personal Use Only Page #611 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ५९६ देशी भाषाओं की मूल कृति के अकारादि क्रम से प्रत-पेटाकृति क्रमांक सूची परिशिष्ट-२ स्थूलिभद्रकोशा पद, मालु, पुहि., पद. १, पद्य, श्वे., (आजु थूलभदु बोलइ नही री), ११६८७९-१ स्थूलिभद्रमुनि नवरसो, उपा. उदयरत्न; मु. दीपविजय, मा.गु., ढा. ९, गा. ७४, वि. १७५९, पद्य, मूपू., (सुखसंपत दायक सदा पायक __जास), ११९९३२(#), ११६३४४(६), ११६३४६(६) । स्थूलिभद्रमुनि शीयलवेलि, पं. वीरविजय, मा.गु., ढा. १८, वि. १८६२, पद्य, मूपू., (सयल सुहंकर पासजिन), ११८४४५ स्थूलिभद्रमुनि सज्झाय, उपा. उदयरत्न, मा.गु., ढा. ९, गा. ६७, वि. १७५९, पद्य, मूपू., (सुख संपति दायक सदा), ११७४३८($) स्थूलिभद्रमुनि सज्झाय, मु. ऋषभ, मा.गु., गा. १७, पद्य, मपू., (श्रीस्थूलिभद्र मुनि), ११५४३१-१ स्थूलिभद्रमुनि सज्झाय, मु. तेजहर्ष, मा.गु., गा.७, पद्य, म्पू., (सुगुण सनेही रे), ११६९५०-३(#) स्थूलिभद्रमुनि सज्झाय, मु. रूपविजय, मा.गु., गा. ६, पद्य, मपू., (चंपा मोर्यो हे आंगणे), ११७९९५-२ स्थूलिभद्रमुनि सज्झाय, मु. लक्ष्मीविजय, मा.गु., गा. १७, पद्य, मूपू., (लाछलदे मात मल्हार बह), १२०००६(#) स्थूलिभद्रमुनि सज्झाय, ग. लब्धिउदय, मा.गु., गा. ११, पद्य, मपू., (मुनिवर रहण चोमासे), ११८२४५-९(+) स्थूलिभद्रमुनि सज्झाय, मु. शिवचंद, मा.गु., गा.८, पद्य, श्वे., (श्रीथूलिभद्र मुनिवर), ११६२९३-१(#) स्नात्र पूजा, मु. नगविजय, मा.गु., पद्य, म्पू., (सध्यानविज्ञानघन), ११९९१७(+) स्नात्रपूजा विधिसहित, ग. देवचंद्र, मा.गु., ढा. ८, गा. ६०, वि. १८वी, पद्य, मप., (चोतिसे अतिसय जुओ वचन), ११९३७४(+), ११८५७४, ११५५०३-१(#$) स्वप्नबत्रीसी, मु. भगोतीदास, पुहि., गा. ३३, पद्य, दि.?, (सुपनेवत संसारमे जागै), ११९८८४-८७(+) स्वप्न विचार, मा.गु., गद्य, मूपू., इतर, (हवै स्वप्न विचार), ११९६४५-१ स्वरोदयसार, मु. कपुरचंद, मा.गु., गा. ४५३, ग्रं. ५५०, वि. १९०७, पद्य, मूपू., इतर, (नमो आदि अरिहंत देव), ११५४१५(+$), ११९२५८(#S), ११६४८९(5) हंसराजवत्सराज चौपाई, आ. जिनोदयसूरि, मा.गु., खं. ४ ढाल ४८, गा. ९०५, वि. १६८०, पद्य, मप., (आदिसर आदे करी चोवीसे), ११६७७०(+9), ११८३३६(+#$), ११८८०३(+), ११९१३०(+), ११९४०१(+) हरिश्चंद्रराजा चौपाई, मु. प्रेम, रा., ढा. २३, वि. १८३४, पद्य, श्वे., (आदेसर आदी करी वीतराग), ११९१९०-२(+) हस्तप्रत ग्रंथसूची, मा.गु., गद्य, श्वे., (--), ११७५०५(#) हितोपदेश पद, मु. केवलमुनि, पुहिं., गा. ७, पद्य, श्वे., (तुं जो करे घरनुं काम रे), ११५४३४-२(#) हितोपदेश पद, मु. केवलमुनि, मा.गु., गा. ७, पद्य, मपू., (प्राणी मोहनि निंदथी), ११५४३४-१(2) हीरविजयसूरि कवित, ग. रंगकुशल, पुहि., पद. १, पद्य, श्वे., (नीकउ नीकउरी कुंरानंदन), ११६८७९-५ हीरविजयसूरि सज्झाय, मु. विजयसेनसूरि-शिष्य, मा.गु., गा. २०, पद्य, मूपू., (बे कर जोडीजी वीनवू), ११७६२९-१(#) हीरसूरि सज्झाय, आ. विजयसेनसूरि, मा.गु., गा. १८, पद्य, मूपू., (बे करजोडी विनवू शार), ११९७५६-७(+) हीरानंद धर्माचार्य गुणवर्णन गीत, मा.गु., गद्य, श्वे., (श्रधापरूपणा फर्सणायै करी), ११५५९३-२(#) हीरावेधि बत्रीसी, मु. कांतिविजय, मा.गु., गा. ३२, पद्य, मूपू., (राजनगर सम एह नारि), ११८९६३-१(+) (२) हीरावेधि बत्रीसी-टबार्थ, मा.गु., गद्य, मपू., (अथ मंदोदरी रावणने), ११८९६३-१(+) हेमचंद्रसूरि-कलिकालसर्वज्ञ रास, मा.गु., पद्य, म्पू., (--), ११५५४६(#$) हेमविमलसूरि पट्टावली, मा.गु., गद्य, मूपू., (श्रीहेमविमलसूरिने पाटे), ११६४२०-१(#) होलिकापर्व व्याख्यान, मा.गु., गद्य, मप., (फागुण चौमासी पर्वनें), ११५४२३(+), ११९४८३-९(+), ११९४८६-९(+) For Private and Personal Use Only Page #612 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir Enlardhasrarthe 7682ture designgal LORSMOKER anpreKaratapradaa imanandHDRAM wanireview omando न आराधना महावीर बा. अमृतं तु विद्या Acharya Sri Kailasasagarsuri Gyanmandir Sri Mahavir Jain Aradhana Kendra Koba Tirth, Gandhinagar E-mail: gyanmandir@kobatirth.org, 'Website : www.kobatirth.org ISBN:ms-5800-17 Set.n0171001 For Private and Personal use only