Book Title: Kailas Shrutasagar Granthsuchi Vol 26
Author(s): Mahavir Jain Aradhana Kendra Koba
Publisher: Mahavir Jain Aradhana Kendra Koba

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Page 453
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra ४३८ www.kobatirth.org कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची अंति: औपदेशिक सज्झाय-समकित, मु. रतनचंद, मा.गु., पद्य, वि. १८६९, आदि: निरमल सुधा समकित जिण पाइ; रतनचंद जो चावो मुकतरमणने, गाथा- १३. ० ३. पे नाम. सीमंधरजिन स्तवन, पृ. २अ, संपूर्ण. Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir मु. रतनचंद, मा.गु., पद्य, आदि जिनजी हो दिनदयाल अंति: रत्नचंदजी गुण गावे, गाथा- १०. ४. पे नाम, सीमंधरजिन स्तवन, पू. २अ २आ, संपूर्ण. मु. रतनचंद, मा.गु., पद्य, वि. १८५३, आदि साहिब सावलो हो प्रभुजी अति हो रत्नचंदजी करे अरदास गाथा- १३. ५. पे. नाम. सीमंधरजिन स्तवन, पृ. २आ, संपूर्ण. मु. रतनचंद, मा.गु., पद्य, आदि धन धन क्षेत्रविदेह अंति कृपा नित आपरी रे लाल, गावा- ७. ६. पे. नाम. सीमंधरजिन स्तवन, पृ. २आ- ३अ, संपूर्ण. मु. रतनचंद, मा.गु., पद्य, आदि श्रीसीमंधर जिनदेव प्रभु अंति रतनचंदजीरी आइज विनती जी, गाथा ५. ७. पे. नाम. साधारणजिन स्तवन, पृ. ३अ, संपूर्ण. मु. रतनचंद, मा.गु., पद्य, वि. १८६०, आदि: मनडो उमायो हो दरसण देखवा; अंति: कहे ज्याने छै स्या बांस, गाथा - ९. ८. पे. नाम. सीमंधरजिन स्तवन, पू. ३अ-३आ, संपूर्ण. पं. रतनचंद, मा.गु., पद्य, वि. १८७३ आदि मनडो उमाह्यो हो दरसण अंतिः विनती नित रहु आफ्नी संग हो, गाथा- ९. गाथा - १०. १०. पे नाम, सीमंधरजिन स्तवन, पृ. ३आ, संपूर्ण. ९. पे नाम. सीमंधरजिन स्तवन, पृ. ३आ, संपूर्ण. मु. रतनचंद, मा.गु., पद्य, वि. १८८६, आदि: प्रभु माहरा विनतडी अवधीरक; अंति: रतन०जी मिटे न गरभावासक मु. रतनचंद, मा.गु., पद्य, आदि सीमंधरजिन साहबा सांभल, अंति: जिनराजजी वांदू ने करजोड, गाथा- ९. ११. पे. नाम. सीमंधरजिन स्तवन, पृ. ३आ-४अ, संपूर्ण. मु. रतनचंद, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीसीमंधर सुण अलवेसर तुम; अंति: रतनचंदजी ० भवसागर बेगो तारी, गाथा-८. १२. पे नाम महावीरजिन स्तवन, पृ. ४अ, संपूर्ण. मु. रतनचंद, मा.गु., पद्य, वि. १८६९, आदि देखण हूस घणा छे जी जिणरा; अंति: गत मे अब तो मारग पायो, गाथा- ११. १३. पे. नाम. आदिजिन स्तवन, पृ. ४अ - ४आ, संपूर्ण. मु. रतनचंद, मा.गु., पद्य, वि. १८५३, आदि श्रीरिषभ जिणेसर साम दरसण अति में तवन कियो चितलाय, गाथा १३. १४. पे नाम. अभिनंदनजिन स्तवन, पू. ४आ, संपूर्ण. मु. रतनचंद, मा.गु., पद्य, आदि: प्रभुजी थारी चाकरी रे; अंति: हां रे काइ रतन कहे करजोड, गाथा - ५. १५. पे. नाम चंद्रप्रभजिन स्तवन, पृ. ४आ-५अ संपूर्ण मु. रतनचंद, मा.गु., पद्य, वि. १८५०, आदि चंदाप्रभु मो मन भावे रे; अंतिः किवो शाहपुर शहर चोमास, गाथा-१. १६. पे. नाम. शीतलजिन स्तवन, पृ. ५अ, संपूर्ण. मु. रतनचंद, मा.गु., पद्य, वि. १८५५, आदि: जिणेसर वंदीयेजी दुख टल; अंति: रतनचंदजी कहे करजोड, १७. पे. नाम. धर्मजिन स्तवन, पृ. ५अ -५आ, संपूर्ण. गाथा - ११. मु. रतनचंद, मा.गु., पद्य, वि. १८५४, आदि मारो मन लागो धरमजिणंदस् अति रतनचंदजी करी जोड रे, गाथा- १२. १८. पे नाम, शांतिजिन स्तवन, पू. ५आ, संपूर्ण, मु. रतनचंद, मा.गु., पद्म, वि. १८५१, आदि संत जिनेसर सोलमा सांति; अंति रतनचंदजी करे अरदासजी, गाथा- ९. १९. पे नाम नेमराजिमती स्तवन, पृ. ५आ-६अ, संपूर्ण. For Private and Personal Use Only मु. रतनचंद, मा.गु., पद्य, आदि समुदविजेजीरा लाडला हो; अति वंदना हो नीचो सीस नमाय हो, गाथा- १०. २०. पे. नाम. नेमिजिन स्तवन, पृ. ६अ, संपूर्ण. मु. रतनचंद, मा.गु., पद्य, वि. १८४९, आदि: नेमीसर जिन तारो हो तुम; अंति: रतनचंद तुमारो दास ने, गाथा-११. २१. पे नाम, नेमिजिन स्तवन, पृ. ६ अ-६आ, संपूर्ण.

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