Book Title: Kailas Shrutasagar Granthsuchi Vol 26
Author(s): Mahavir Jain Aradhana Kendra Koba
Publisher: Mahavir Jain Aradhana Kendra Koba

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Page 476
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२६ www.kobatirth.org ४६१ सामायिक सज्झाय, उपा. यशोविजयजी गणि, पुहि., पद्य, वि. १८वी, आदि: सामायक नय धारो चतुर नर, अंति ज्ञानवंत के पासे, गाथा-८. Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir १२००९७. (#) महावीरजिन स्तवन व नेमराजिमती स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, प्रले. मु. रायचंद, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. मूल पाठ का अंश खंडित है, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., ( २४.५X१०.५, १६५४). १. पे. नाम. महावीरजिन स्तवन, पृ. १अ १आ, संपूर्ण. मु. हीर, मा.गु., पद्य, वि. १६९५, आदि सरस सबद सुहामणो सरस तेज, अंति हीर० वंछित चिंतामणिसमड, गाथा- १७. २. पे. नाम. नेमराजिमती स्तवन, पृ. १आ, संपूर्ण. मु. राम, मा.गु., पद्य, आदि श्रीजिनवर बीनती सखी अति राम०पूरो हो पाल्यो परतबंध, गाथा- १४. १२००९८ (+) पंचप्रतिक्रमण विधि, संपूर्ण, वि. १९वी मध्यम पू. १, प्र. वि. संशोधित अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., गुटका, (२५X१०.५, १४४४९). प्रतिक्रमणविधि संग्रह-खरतरगच्छीय, संबद्ध, प्रा., मा.गु., गद्य, आदि: प्रथम इरियावही पडिकमीजै; अंति: पछै देवी पडिकमणो कीजै. १२००९९ (४) पार्श्वजिन स्तवन, संभवजिन स्तवन व नेमराजिमती स्तवन, अपूर्ण, वि. १९वी जीर्ण, पू. ३-२ (१ से २) = १, कुल पे. ३, प्र.वि. पत्रांक अनुमानित दिया गया है., मूल पाठ का अंश खंडित है, अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, अक्षरों की स्वाही फैल गयी है, जैदे. (२४.५४१०.५, १५४४५). "" १. पे. नाम. पार्श्वनाथ स्तवन, पृ. ३अ- ३आ, अपूर्ण, पू. वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं.. पार्श्वजिन स्तवन, मु. कहान ऋषि, मा.गु., पद्य, वि. १८४९, आदि (-); अंति हो जिम अधिक उत्साह, डाल-५, (पू.वि. ढाल-३ गाथा-११ अपूर्ण से है.) २. पे. नाम संभवनाथ स्तवन, पू. ३आ, संपूर्ण. संभवजिन स्तवन, मु. कहान ऋषि, मा.गु., पद्य वि. १७५१, आदि संभव नाम सोहामणो वर अंतिः कहइ मुनि कान्ह उल्लास रे, गाथा- ७. ३. पे. नाम. नेमराजिमती स्तवन, पृ. ३आ, संपूर्ण. मु. कहान ऋषि, मा.गु., पद्य, आदि नेमसु बीन बातडली; अंति: कान्ह० केरी वारू वातडली, गाथा-५. १२०१००. गुरुवंदन गाथा, असंयतिपूजाश्चर्य विचार व जिननामकर्मोपार्जकजीवनामादि संग्रह, संपूर्ण, वि. १९ वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. १२, जैवे. (२५.५x१०, १८४६२). १. पे. नाम. ६ स्थान गाथा- गुरुवंदन सह बालावबोध, पू. १अ संपूर्ण. ६ स्थान गाथा, प्रा., पद्य, आदि: इच्छाए१ अणुन्नवणा२; अंति: तुब्भे वणाइ वंदणरिहस्स, गाथा-२. ६ स्थान गाथा- बालावबोध, मा.गु., गद्य, आदि: इ० शिष्य वांदवा इच्छइ छइ; अंति: खमावुं छं ए गुरुवचन. २. पे. नाम. ३२ वंदनदोष गाथा सह बालावबोध, पू. १अ १आ, संपूर्ण. १अ-१आ, ३२ वंदनदोष गाथा, प्रा., पद्य, आदि अणाडियं च धद्धं च२; अंतिः शुद्धं किइकम्मं च पउंज, गाथा-५. ३२ वंदनदोष गाथा-बालावबोध, मा.गु., गद्य, आदि: अ० आदररहित १ थ० स्तब्धपणइ; अंति: आगलि रजोहरण करतो बांद ३. पे. नाम. सामायकखमासमण गाथा, पृ. १आ, संपूर्ण. सामायिकखमासमण गाधा, प्रा., पद्य, आदि ठाण१ इरियावहीए२ बंदणर्य३ अति सामाइय एस खमासमणं, गाथा-२. ४. पे. नाम. ९ पुण्य प्रकार, पृ. १आ, संपूर्ण. प्रा. गद्य, आदि अनपुन्ने१ पाणपुन्ने२ वत्थ; अंति: नमोक्कारपुन्ने ९. ५. पे. नाम ९ जीव तीर्थंकरनामकर्मोपार्जन करने वाले महावीरजिनतीर्थे, पृ. १आ, संपूर्ण ९ जीव तीर्थंकरनामकर्मोपार्जक-महावीरजिनतीर्थे, मा.गु., गद्य, आदि: १राजा श्रेणिक तीर्थंकर; अंति: जेणइ भगवंतनइ दान दीधो. .पे. नाम संवत असंयतादि जघन्योत्कृष्ट जिनगति विचार, पृ. १आ, संपूर्ण. For Private and Personal Use Only ,

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