Book Title: Kailas Shrutasagar Granthsuchi Vol 26
Author(s): Mahavir Jain Aradhana Kendra Koba
Publisher: Mahavir Jain Aradhana Kendra Koba

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Page 474
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ४५९ हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२६ वा. उदयरतन, मा.गु., पद्य, आदि: आप अरूपी होय के प्रभु; अंति: तुझ पद पंकज सेव हो, गाथा-८. २.पे. नाम. लोडणपार्श्वनाथ स्तवन, पृ. १आ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तवन-लोढणपुरमंडन, मु. विनय, मा.गु., पद्य, आदि: प्रभु लोडण पास जोहारीइ; अंति: विनय सदा सूख छाजे छे, गाथा-५. १२००८२. जंबुकुमर सिझाय, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, जैदे., (२५.५४१०, ११४३६). जंबूस्वामी सज्झाय, श्राव. पुनो, मा.गु., पद्य, आदि: श्रेणिकनरवर राजीयो; अंति: पुनो भणै ते पामै भवपार, गाथा-१७. १२००८३.(+) ३४ अतिशय स्तवन व नेमराजिमती सज्झाय, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ.१, कुल पे. २, प्र.वि. संशोधित., दे., (२५.५४१०, १३४४३). १. पे. नाम. चउतीस अतिसय स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण. ३४ अतिशय स्तवन, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीसहगुरुना पाय नमी; अंति: गाईसी मुगतिसरोवर जाय रे, गाथा-११. २.पे. नाम. नेमनाथराजिमती सिझाय, पृ. १आ, संपूर्ण. नेमराजिमती सज्झाय, मा.गु., पद्य, आदि: चढिवऊ बारइ देखता; अंति: पाम्या सुख अपारणा, गाथा-१३. १२००८४. (+) पद्मप्रभुजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, प्रले. मु. रामविजय; अन्य. पं. मोहनविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२५४१०.५, ११४४४). पद्मप्रभजिन स्तवन-नाडोलमंडन, मु. जिनेंद्रसागर, मा.गु., पद्य, आदि: पद्मप्रभु जिनराया हो; अंति: जिनेंद्र० दीए एम आसीसए, गाथा-१५. १२००८५. ज्ञानपच्चीसी व अध्यात्मबत्रीसी, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, जैदे., (२५.५४१०.५, १७X५७). १.पे. नाम. ग्यानपचीसी, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. ज्ञानपच्चीसी, मु. उदयकरण, पुहिं., पद्य, आदि: सुरनर तिरजग जोनि में; अंति: बुझावत आपको उदैकरन के हेत. गाथा-२५. २.पे. नाम, अध्यातमबत्रीसी, प. १आ, अपर्ण, प.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. अध्यात्मबत्तीसी, श्राव. बनारसीदास, पुहिं., पद्य, वि. १७वी, आदि: सुद्ध वचन सदगुरु कहै; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-२७ अपूर्ण तक है.) १२००८६. (#) सचित्तअचित्त सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., गुटका, (२५४१०, १४४५०). असनादिक कालप्रमाण सज्झाय, मु. वीरविमल, मा.गु., पद्य, वि. १७वी, आदि: प्रणमुं श्रीगौतम; अंति: वीरविमल करजोडी कहे, गाथा-१८, (वि. अंत में एक औपदेशिक श्लोक दिया है.) १२००८७. चउदगुणठाणइं बंधउदयउदीरणासत्तासुं विवरो, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ३, दे., (२५.५४१०.५, १३४४७). १४ गुणस्थानके कर्मबंधउदयसत्ता व उदीरणा विचार, मा.गु., गद्य, आदि: प्रथम मिथ्यातगुणठाणइं ११७; अंति: (-). १२००८८. (#) गुरुगुण सज्झाइ, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, ले.स्थल, जोधपुर, प्रले. सा. माना आर्या, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. हुंडी:गुरणीजी., मूल पाठ का अंश खंडित है, दे., (२५.५४१०.५, १८४३८). गुरुगुण गहुँली, मा.गु., पद्य, आदि: या गरु जीव गरुया गणा विचै; अंति: मत कोई करजो रीसो जी, गाथा-२५. १२००८९. मधुबिंदूआ सझाय, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. १, जैदे., (२५.५४१०, १७४४३). बिंद सज्झाय, मु. चरणप्रमोद-शिष्य, मा.गु., पद्य, आदि: सरसति मुझ रे मात दिओ; अंति: सुसीस०परमसुख मुं हि मागीइ, गाथा-१०. १२००९०. सज्झाय व गीतादि संग्रह, संपूर्ण, वि. १८९९, श्रावण कृष्ण, १२, मंगलवार, मध्यम, पृ. २, कुल पे. ५, ले.स्थल. हनुमानगढ, प्रले. मु. वीरचंद, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२५.५४१०.५, १४४३७). १.पे. नाम, जीवउपरि सिज्झाय, पृ. १अ, संपूर्ण. औपदेशिक सज्झाय-गर्भावासगर्भित, मु. क्षमाविजय, मा.गु., पद्य, आदि: गरभावासमांहि चिंतवे; अंति: खीमा० मुगत मझार तो, गाथा-१०. २. पे. नाम, गोतम स्वाध्याय, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. For Private and Personal Use Only

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