Book Title: Kailas Shrutasagar Granthsuchi Vol 26
Author(s): Mahavir Jain Aradhana Kendra Koba
Publisher: Mahavir Jain Aradhana Kendra Koba
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कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १२००६९ (+) आचार्यपद उपाध्यायपद पंडितपद देवानी विधि, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १,प्र.वि. संशोधित., दे., (२६४१२, १३४४१).
आचार्यपद उपाध्यायपद पंडितपदप्रदान विधि, मा.गु., गद्य, आदि: आचार्यपद की० काल लेई; अंति: थिर करें
हितशिख्या . १२००७१ (#) प्रत्याख्यानसूत्र, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५.५४११.५, १५४५४).
प्रत्याख्यानसूत्र, संबद्ध, प्रा., गद्य, आदि: उग्गए सूरे नमक्कार; अंति: गारेणं वोसिरामि, (वि. यंत्रसहित.) १२००७२. सरस्वतीदेवी स्तोत्र संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ३, जैदे., (२५.५४११.५, १५४५४). १. पे. नाम. सरस्वतीदेव्या स्तोत्र, पृ. १अ, संपूर्ण.
सरस्वतीदेवी स्तोत्र, बृहस्पति, सं., पद्य, आदि: शुभ्रां शुभ्रविचार; अंति: स लोके नात्र संशयः, श्लोक-११. २. पे. नाम. पद्धतसिद्धिसारस्वतमंत्र स्तवन, पृ. १आ, संपूर्ण.
सरस्वतीदेवी स्तोत्र, सं., पद्य, आदि: व्याप्तानंतसमस्तलोक; अंति: भवत्युत्तम संपदः, श्लोक-९. ३. पे. नाम. सरस्वतीदेवी स्तोत्र, पृ. १आ, अपूर्ण, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं.
सं., पद्य, आदि: वाग्वादिनी नमस्तुभ्यं; अंति: (-), (पू.वि. श्लोक-४ अपूर्ण तक है.) १२००७३. (#) धनवंतीनो चोढालीओ, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ३, प्र.वि. हुंडी:धनवंतीनोचो०., अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२६४११.५, १४४५६). धनवती चौढालियो, मु. तेजपाल ऋषि, मा.गु., पद्य, वि. १८९०, आदि: धरमोदम कीजें भवि; अंति: तेजपालजी कहे
हितकांमी, ढाल-४, गाथा-७६. १२००७५. गुरु वंदणा व औषध संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, जैदे., (२५.५४११.५, १२४४३). १.पे. नाम. गुरु वंदणा, पृ. १अ, संपूर्ण. गच्छपतिगुरुवंदन विधि-अंचलगच्छीय, प्रा.,मा.गु., प+ग., आदि: इच्छामि ख० इच्छाकारे; अंति: अंचलगछ नायक
वंदे. २. पे. नाम, औषध संग्रह, पृ. १आ, संपूर्ण.
औषध संग्रह, मा.गु., गद्य, आदि: प्रथम वाल साढा३ दातण करवो; अंति: सद्य छे ऐ उपरे करी नथी. १२००७६. (+#) श्रावकना अतीचार, संपूर्ण, वि. १९वी, आश्विन कृष्ण, ७, शुक्रवार, मध्यम, पृ. ५, प्रले. ग. खेमविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित. मूल पाठ का अंश खंडित है, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५४११.५, १६४३२).
श्रावकपाक्षिकअतिचार-तपागच्छीय, संबद्ध, प्रा.,मा.गु., गद्य, आदि: विशेषतः श्रावकतणइ; अंति: मिच्छामि दक्कडं. १२००७७ (+#) पार्श्वनाथ स्तवन, संपूर्ण, वि. १८२६, फाल्गुन कृष्ण, ३, मध्यम, पृ. ५, प्र.वि. ग्रंथ रचना के समीपवर्ती काल में लिखित-संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६४१२, १४४३८). पार्श्वजिन स्तवन-गोडीजी, मु. नेमविजय, मा.गु., पद्य, वि. १८१७, आदि: भाव धरी भजना करु आपो; अंति: नेमविजय
जयकार, ढाल-१४. १२००७९ (#) नवपद पूजा, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ३, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे.. (२५.५४११.५, १२४३३). नवपद पूजा, उपा. यशोविजयजी गणि, प्रा.,मा.गु.,सं., पद्य, आदि: उपन्नसन्नाणमहोमयाणं; अंति: (-), (पू.वि. पूजा-५
गाथा-१ अपूर्ण तक है.) १२००८० संखेश्वरा पार्श्वनाथ छंद, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, दे., (२५४१२, ११४३०).
पार्श्वजिन चैत्यवंदन-शंखेश्वरतीर्थ, पंन्या. रूपविजय, मा.गु., पद्य, वि. १९वी, आदि: सकल भविजन चमत्कारी; अंति:
स्वामीनाथ शंखेश्वरो, गाथा-९. १२००८१ (#) शंखेश्वरपार्श्वजिन स्तवन व लोडणपार्श्वजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, प्र.वि. मूल पाठ का
अंश खंडित है, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२६४१०, २६४१५). १.पे. नाम. पार्श्वजिन स्तवन-शंखेश्वर, पृ. १अ, संपूर्ण.
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