Book Title: Kailas Shrutasagar Granthsuchi Vol 26
Author(s): Mahavir Jain Aradhana Kendra Koba
Publisher: Mahavir Jain Aradhana Kendra Koba
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कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची
११९९४२ (+) ऋषभजिनादि पंचपरमेसर स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ५, कुल पे. ५, ले. स्थल. मुमाइबंदर, प्रले. पं. जसविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. हुंडी पसतरत तवन, संशोधित, जैवे. (२६१२, १०x२७).
१. पे नाम ऋषभजिन स्तवन, पू. १अ १आ, संपूर्ण
आदिजिन स्तवन- शत्रुंजयतीर्थमंडन, पं. नरविजय, मा.गु., पद्य, वि. १७६६, आदि सरसति सामण विनवू रे; अति तणोरे नरविजे गुण गाय, गाथा- १२.
२. पे नाम. शांतिजिन स्तवन. पू. १आ-२आ, संपूर्ण.
मु. मोहनविजय, मा.गु., पद्य, आदि: सोलमा श्रीजिनराज उलग; अंति: पंडित रुपनो लाल, गाथा-७.
३. पे. नाम, नेमीजन स्तवन, पृ. २आ-३अ संपूर्ण.
नेमराजिमती स्तवन, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., पद्य, आदि: तोरण आइ रथ फेरी रे हा अंति: जस कहे० हो दोय दंपती सीध, गाथा-६.
४. पे. नाम. पासप्रभु स्तवन, पू. ३अ ४अ, संपूर्ण.
पार्श्वजिन स्तवन, मु. उदयरत्न, मा.गु., पद्य, आदि: सुण रे सखी मुझ वाल हो; अंति: कहे० प्रणमु प्रभुजीना पाय,
गाथा - ९.
५. पे. नाम महावीरजिन स्तवन, पू. ४-५आ, संपूर्ण
महावीरजिन पंचकल्याणक स्तवन, पं. नरविजय, मा.गु., पद्य, वि. १७७१, आदि हां रे लाला सरसति सामण; अति नरविजय० गाय रे लाल, गाथा- १६.
११९९४३. डालगण, संपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पृ. ५, जैवे. (२६.५४१२, १२४३७-४०).
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औपदेशिक सज्झाय, मा.गु., पद्य, आदि: देवधरम गुर वंदि के कहु; अंति: पद पावे कवि कहावे अधिकानी, गाथा-६१. ११९९४५ (+) सत्तरभेदी पूजा सामग्री, संपूर्ण वि. २०वी श्रेष्ठ, पृ. १, प्र. वि. संशोधित. दे. (२६४१२.५ १५४५-२२).
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सत्तरभेदी पूजा सामग्री, मा.गु., गद्य, आदि: चावलसेर १ श्रीफल५ कपूर भीम; अंति: पाघ२ भोजकने वाजिंद्रीनी. ११९९४६ तत्त्वार्थाधिगममोक्षशास्त्र सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २०- १ (१) = १९, प्र. वि. हुंडी : मोक्षशास्त्रटबो., जैदे., (२७X१२.५, ५X३१-३६).
तत्त्वार्थाधिगमसूत्र, वा. उमास्वाति, सं., गद्य, आदि: (-); अंति: बहुतत्त्वतः साध्याः, अध्याय-१०, ( पू. वि. अध्याय-१ सूत्र-८ अपूर्ण से है.)
तत्त्वार्थाधिगमसूत्र- टवार्थ, पुहिं. गद्य, आदि (-); अति सिद्ध जुहे ते साधिवै है.
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११९९४७. मृगलेखा रास, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. २४, प्र. वि. हुंडी : मृगले., जैवे. (२७४१२, १७४३१)
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मृगांकलेखा चौपाई. मु. रायचंद ऋषि, मा.गु., पद्य, वि. १८३८, आदि आदेसर जिन आददे चोवीसमा अंति: (-). (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., ढाल ६२ गाथा-८ अपूर्ण तक लिखा है.) १९१९९४८. (+) पाक्षिकखामणासूत्र, अपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पू. १६-१२ (१ से १२) =४, प्र. वि. संशोधित, जैदे. (२६.५x१२.५,
१२X३०-३३).
आवश्यक सूत्र- साधु प्रतिक्रमणसूत्र संग्रह का हिस्सा पाक्षिकसूत्र व खामणासूत्र, प्रा., पद्य, आदि (-); अति मणसा मत्ण दामि, (पू.वि. १० श्रमणधर्म सूत्र से है.)
११९९४९. आषाढभूतनी चोपड़, संपूर्ण, वि. १८७८, आश्विन कृष्ण, १०, शुक्रवार, मध्यम, पृ. ६, ले. स्थल. किशनगढ़, प्रले. चनराम, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. हुंडी आषाढभूत जै. (२६१२.५ २०x४४).
आषाढाभूतिमुनि चौपाई, मु. ज्ञानसागर, मा.गु., पद्य, वि. १७२४, आदि: सकल ऋद्धि समृद्धिकर; अंति: एषणीक आहार लियो मुनि, दाल- १६, गाथा-२१८, . ३५१.
११९९५०. (+#) पार्श्वजिन पट्टावली, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १०, प्र. वि. पदच्छेद सूचक लकीरें-संशोधित. अक्षर पत्रों आमने-सामने छप गए हैं, जैवे. (२५.५x१२.५, १०-१३४२५-२८).
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पार्श्वजिन पट्टावली, मा.गु., गद्य, आदि: श्रीपार्श्वनाथ संतानीया अति (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., देवगुप्तसूरि परंपरा तक लिखा है.)

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