Book Title: Kailas Shrutasagar Granthsuchi Vol 26
Author(s): Mahavir Jain Aradhana Kendra Koba
Publisher: Mahavir Jain Aradhana Kendra Koba

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Page 435
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ४२० कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ३१. पे. नाम. पार्श्वजिन स्तवन, पृ. १२आ-१३अ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तवन-गोडीजी, मु. मोहनविजय, मा.गु., पद्य, आदि: प्राण थकी प्यारो; अंति: मोहन कहे० प्राण आधार, गाथा-५. ३२. पे. नाम. संभवजिन स्तवन, पृ. १३अ, संपूर्ण. मु. मोहनविजय, मा.गु., पद्य, वि. १७७०, आदि: समकित दाता समकित आपो; अंति: पभणे रसना पावन कीधी, गाथा-७. ३३. पे. नाम. सुपार्श्वजिन स्तवन, पृ. १३अ-१३आ, संपूर्ण. मु. मोहनविजय, मा.गु., पद्य, आदि: वाल्हो मेह बपीहडा; अंति: सुपासने वंदे हो राज, गाथा-७. ३४. पे. नाम, मनिसव्रतस्वामी स्तवन, पृ. १३आ, संपूर्ण. मुनिसुव्रतजिन स्तवन, मु. मोहनविजय, मा.गु., पद्य, आदि: हो प्रभु मुझ प्यारा; अंति: मन माया लागी ताहरी रे लो, गाथा-६. ३५. पे. नाम. नेमिजिन स्तवन, पृ. १४अ, संपूर्ण. मु. मोहन, पुहिं., पद्य, आदि: सजेलार जलधार सुखकार; अंति: मोहन० कह्यो उल्लासे, गाथा-७. ३६. पे. नाम, अजितजिन स्तवन, पृ. १४अ-१४आ, संपूर्ण. मा.गु., पद्य, आदि: विजयनंदन जिनजी मुझ मनमां; अंति: अधिक महानंद पदवी थाय, गाथा-५. ३७. पे. नाम. सिद्धचक्र स्तवन, पृ. १४आ-१५अ, संपूर्ण. पंन्या. पद्मविजय, मा.गु., पद्य, आदि: सिद्धचक्र वर सेवा; अंति: निज आतम हित साधे, गाथा-१३. ३८. पे. नाम. विमलजिन स्तवन, पृ. १५अ, संपूर्ण. म. जिनकीर्ति, मा.गु., पद्य, आदि: विमल विमल गण मन; अंति: जिनकीर्ति व्यापे रे लो, गाथा-६. ३९. पे. नाम. महावीरजिन स्तवन, पृ. १५अ-१५आ, संपूर्ण. मु. मोहनविजय, मा.गु., पद्य, आदि: दुर्लभ भव लही दोहलो; अंति: कांइ वसीयो तुं विसवावीस, गाथा-८. ४०. पे. नाम. आध्यात्मिक सज्झाय, पृ. १५आ-१६अ, संपूर्ण, वि. १९१२, चैत्र शुक्ल, २, ले.स्थल. राणीगाम. आध्यात्मिक सज्झाय-सहजानंदी, पं. वीरविजय, मा.गु., पद्य, वि. १९वी, आदि: सहजानंदी रे आतीमा सुतो; अंति: भवजल तरिया अनेक रे, गाथा-११. ४१. पे. नाम. कुंथुजिन स्तवन, पृ. १६अ-१६आ, संपूर्ण. पंन्या. पद्मविजय, मा.गु., पद्य, वि. १९वी, आदि: रात दिवस नित सांभरे रे; अंति: पद्मने मंगल माल लाल, गाथा-६. ४२. पे. नाम. अजितजिन स्तवन, पृ. १६आ, संपूर्ण. मु. मोहनविजय, मा.गु., पद्य, आदि: अजित अजितजिन अंतर्यामी; अंति: रस आनंदशं चाखे, गाथा-९. ११९८२५. (+) कल्पसूत्र, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ.५१, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरे-संशोधित., जैदे., (२५४१२, १३४३५). कल्पसूत्र, आ. भद्रबाहस्वामी, प्रा., गद्य, आदि: नमो अरिहंताणं नमो; अंति: भुज्जो उवदंसेइ त्तिबेमि, व्याख्यान-८, ग्रं. १२१६. ११९८२६. नयचक्रसार, संपूर्ण, वि. १९७१, वैशाख शुक्ल, १४, शुक्रवार, श्रेष्ठ, पृ.८, ले.स्थल. सवाईजयपुर, प्र.वि. हुंडी:नयचक्र., प्र.ले.श्लो. (१) यादृशं पुस्तकं दृष्ट्वा , दे., (२४.५४१२, १२४३८-४२). नयचक्रसार, ग. देवचंद्र, सं., गद्य, वि. १८वी, आदि: गुणानां विस्तरं; अंति: जीवस्यशरीरमिति भावार्थः. ११९८२७. (#) जिनबिंबप्रतिष्ठा विधि, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ५, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. हुंडी:प्रतिष्ठाक०., मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., (२५४१२, १४४४२-४९). जिनबिंब प्रतिष्ठाविधि संग्रह, मा.गु.,सं., प+ग., आदि: प्रणम्य स्वस्तिऋद्धिश्री; अंति: (-), (पू.वि. पाठ-"वासुपूज्यविश्वा २ लहणु कुंथुनाथ" तक है., वि. सारिणीयुक्त.) ११९८३०. नयचक्र सह बालावबोध, संपूर्ण, वि. १७७८, कार्तिक कृष्ण, ११, शनिवार, मध्यम, पृ. ३९, प्रले. गंगाराम भट्ट, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. त्रिपाठ., जैदे., (२५४१२,७४२४-३३). For Private and Personal Use Only

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