Book Title: Kailas Shrutasagar Granthsuchi Vol 26
Author(s): Mahavir Jain Aradhana Kendra Koba
Publisher: Mahavir Jain Aradhana Kendra Koba
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कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची औपदेशिक सवैया-साघ, श्राव. भगवतीदास भैया, पहिं., पद्य, आदि: मन वचन काय योग तीनउ; अंति: चलै साघु है
सोय, गाथा-१. ९५. पे. नाम, औपदेशिक सवैया-पेट, पृ. ७९आ, संपूर्ण.
श्राव. भगवतीदास भैया, पहिं., पद्य, आदि: पेट ही कै काज महाराज; अंति: भरै पंडित कहाय कै, गाथा-१. ९६. पे. नाम. जिनभक्ति सवैया, पृ.७९आ-८०अ, संपूर्ण.
श्राव. भगवतीदास भैया, पुहिं., पद्य, आदि: वीतराग के विवसेव; अंति: भैया नित जपिवो कर व, गाथा-५. ९७. पे. नाम. औपदेशिक दोहे-जिनवाणी, पृ.८०अ-८०आ, संपूर्ण.
औपदेशिक पद-जिनवाणी, श्राव. भगवतीदास भैया, पुहिं., पद्य, आदि: सीमंधर स्वामी प्रमुख; अंति: ते सव शिवपुर
जांहि, गाथा-१५. ९८. पे. नाम. ब्रह्मविलासगत, पृ. ८०आ, संपूर्ण. ब्रह्मविलासगत कृतिनाम सवैया, श्राव. भगवतीदास भैया, पुहिं., पद्य, आदि: पुन्यपचीसी शतअष्टोत्तर; अंति:
ब्रह्मविलास मधिसव आय, गाथा-७. ९९. पे. नाम. भगवतीदास कवि परिचय सवैया, पृ. ८०आ-८१अ, संपूर्ण.
श्राव. भगवतीदास भैया, पुहिं., पद्य, आदि: जंबूदीप मैं दछन भत; अंति: शुद्ध सरूप वहै भगवान, गाथा-११. १००. पे. नाम. ब्रह्मविलास संबंध बीजक, पृ. ८१अ-८१आ, संपूर्ण.
ब्रह्मविलास-संबंध बीजक, श्राव. भगवतीदास भैया, पुहि., को., आदि: (-); अंति: (-). १०१. पे. नाम. ब्रह्मविलास, पृ. ८१आ, संपूर्ण, पे.वि. वस्तुतः कुल ८१ पेज है, अलग-अलग पेटांक भरने के कारण मात्र अंतिम
पेज का उल्लेख किया है.
श्राव. भगवतीदास भैया, पुहिं., पद्य, वि. १७५५, आदि: प्रथम प्रणमि अरहंत; अंति: भगौतीदास० वहे भगवान. ११९८८८. ५३ प्रश्न, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ५, प्र.वि. हुंडी:प्रश्न५३पत्रमिदं., दे., (२६.५४१२, १६४४३-५१).
आगमिक प्रश्नोत्तरी, मा.गु., गद्य, आदि: समवायांगे मल्लिनाथरे ५७००; अंति: बारे व्रतना कह्या ए किम. ११९८८९ (+) धर्मध्यान के चार प्रकार, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २०-१(१)=१९, प्रले. मु. अचलसुंदर (उपकेशगच्छ); पठ. श्राव. आणंदरूप, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२७४१२.५, १२४३६). योगशास्त्र-हिस्सा प्रकाश-५ से १० धर्मध्यान के ४ प्रकार का बालावबोध, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: न छंडावीइ
चपल न थाइ, (पू.वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं., पार्थिव मंडल के लक्षण अपूर्ण से है.) ११९८९० (+) सप्तस्मरण, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १३, ले.स्थल. अजीमगंज, प्रले. मु. रामचंद्र ऋषि; पठ. मु. श्रीपालचंद्रजी,
प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. हुंडी:सप्तस्म., पदच्छेद सूचक लकीरें., प्र.ले.श्लो. (१२) मंगलं लेखकानां च, जैदे., (२७४१२.५, १०४३०). सप्तस्मरण-खरतरगच्छीय, मु. भिन्न भिन्न कर्तक, प्रा., पद्य, आदि: अजिअं जिअ सव्वभयं; अंति: भूमे भूपति मंगलं,
स्मरण-७. ११९८९३, बृहत्कल्पसूत्र सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १९१४, भाद्रपद शुक्ल, १५, श्रेष्ठ, प. ३४, ले.स्थल. खाचरोद, प्रले. सा. तीर्थश्री, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. हुंडी:वृहत्क०., जैदे., (२५.५४१२.५, ६४३४-३९).
बृहत्कल्पसूत्र, आ. भद्रबाहस्वामी, प्रा., गद्य, आदि: नो कप्पइ निग्गंथाण; अंति: कप्पट्टिई तिबेमि, उद्देशक-६, ग्रं. ४७३.
बृहत्कल्पसूत्र-टबार्थ *, मा.गु., गद्य, आदि: न कल्पि साधुने; अंति: ति० एम हुं कहुं छु. ११९८९४. (+) ६ द्रव्य विचार, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २२-२(१,११)=२०, पृ.वि. प्रथम एक, बीच व अंत के पत्र नहीं हैं, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित., जैदे., (२५.५४१२, १३४३०-३५). ६ द्रव्य विचार, मा.गु., गद्य, आदिः (-); अंति: (-), (पू.वि. समकित करण-२ अपूर्ण से षड्द्रव्य गुण भावना अपूर्ण तक है
व बीच के पाठांश नहीं हैं.) ११९८९५ (+) साम्यशतक व समाधिशतक, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ४, कुल पे. २, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२५४१२.५,
१८४५१). १. पे. नाम, साम्यशतक, प.१अ-३अ, संपूर्ण.
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